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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Chinturocky

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भाईयों
आज रात तक मैं पोस्ट कर दूँगा
पर एक निवेदन है
अब कुछ समय के लिए अपडेट्स आने में देरी होगी
मेरी सासु जी की ओभारीयान कैंसर फोर्थ स्टेज डिटेक्ट हुआ है l
घर में माहौल थोड़ा ग़मगीन है
इसलिए समय निकाल कर लिख रहा हूँ
Ishwar Aapki sasu maa ko jald swasthya Labh pradan Kare.
 
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भाईयों
आज रात तक मैं पोस्ट कर दूँगा
पर एक निवेदन है
अब कुछ समय के लिए अपडेट्स आने में देरी होगी
मेरी सासु जी की ओभारीयान कैंसर फोर्थ स्टेज डिटेक्ट हुआ है l
घर में माहौल थोड़ा ग़मगीन है
इसलिए समय निकाल कर लिख रहा हूँ
भगवान से उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना रहेगी और आपको और आपके परिवार को इस कठिन समय के लिए हिम्मत और धैर्य देने की भी।
 

Ajju Landwalia

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भाईयों
आज रात तक मैं पोस्ट कर दूँगा
पर एक निवेदन है
अब कुछ समय के लिए अपडेट्स आने में देरी होगी
मेरी सासु जी की ओभारीयान कैंसर फोर्थ स्टेज डिटेक्ट हुआ है l
घर में माहौल थोड़ा ग़मगीन है
इसलिए समय निकाल कर लिख रहा हूँ

Bhagwan Jagnnath ji sab achcha karenge Bhai........

have faith in God
 

Anky@123

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भाईयों
आज रात तक मैं पोस्ट कर दूँगा
पर एक निवेदन है
अब कुछ समय के लिए अपडेट्स आने में देरी होगी
मेरी सासु जी की ओभारीयान कैंसर फोर्थ स्टेज डिटेक्ट हुआ है l
घर में माहौल थोड़ा ग़मगीन है
इसलिए समय निकाल कर लिख रहा हूँ
Koi bat nahi Bhai, ye bada hi sensitive matter hai, pariwar ko bhi aapke sath aur waqt ki jarurat hai, update aate rehge.
 

Kala Nag

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👉एक सौ पांचवां अपडेट
-------------------------

वैदेही के बारे में कहते कहते प्रतिभा रुक जाती है l रुप को प्रतिभा के चेहरे पर वैदेही से एक भावनात्मक लगाव दिखता है l पर रुप के माथे पर सिकुड़न दिखती है वह कुछ सोचते हुए अपना सिर नीचे कर लेती है l


प्रतिभा - क्या बात है नंदिनी... कुछ असमंजस सी लग रही हो...
रुप - (उसी असमंजस स्थिति में, अटक अटक कर) कु... कुछ नहीं आंटी... अनाम... मेरा मतलब है... प्रताप जब महल में आया था... तब उसने मुझसे कहा था... की वह... अनाथ था... मतलब अनाथ हो गया है... बचपन में माँ चल बसी... पिता और बड़ी बहन... महल आने के कुछ दिन पहले... हादसे में गुजर गए थे... पर अब.. (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - (मुस्करा कर) उसने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला था... तब उसके लिए... वही सच था... उसकी बहन... उस दर्दनाक हादसे के सात साल बाद मिली... तब उसे मालुम हुआ... के उसकी दीदी जिंदा है...
रुप - (चौंक कर) क्या... स.. सात साल... बाद...
प्रतिभा - हाँ सात साल बाद....

इतना कह कर प्रतिभा रुप को देखती है, रुप बहुत ही हैरानी भरे नजरों से प्रतिभा को देखे जा रही है l

प्रतिभा - खैर... अब तुम यह बताओ... तुम अनाम की पिछली जिंदगी... जिससे तुम जुड़ी नहीं हो.... वह मुझसे ही क्यूँ जानना चाहा... अनाम... यानी प्रताप से सीधे क्यूँ नहीं पूछा...
रुप - (झिझकते हुए) जी.. वह...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... जब तुम्हें यह मालुम हुआ... के प्रताप ही.... अनाम है... तो... तुम उसे अपनी पहचान बता कर... उससे.. उसकी पिछली जिंदगी के बारे में क्यूँ नहीं पूछी...

प्रतिभा की बात सुन कर रुप थोड़ी असहज हो जाती है l वह प्रतिभा की ओर देखती है, प्रतिभा मुस्कराते हुए जिज्ञासा भरी नजर से उसे देख रही थी l

प्रतिभा - ऊपर से... सोने पे सुहागा... हाथ छोड़ दिया... बेचारे प्रताप के गालों पर...
रुप - (अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर) सॉरी आंटी...
प्रतिभा - हूँ... यह मैं बाद में डिसाइड करूंगी... तुम्हारा सॉरी एसेप्टेबल है... या नहीं... क्या यह थप्पड़ मारने की आदत बचपन से है...
रुप - प्लीज आंटी...
प्रतिभा - अरे नहीं... कोई भी मिलता है... बजा देती हो उसे... उस दिन इंस्पेक्टर को... जानती हो... वह भी राजगड़ से था...
रुप - (चौंकती है) क्या...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... उस दिन जब तुम लोग मेरे घर में थे... मुझे मालुम हुआ... की प्रताप को ढूंढते हुए... वह मेरे घर आने वाला था... इसीलिए... उस दिन तुम्हारे जरिए प्रताप को वहाँ से भगाया था.... (अब कि बार रुप की हैरानी और भी बढ़ जाती है)
रुप - क्या... पुलिस इंस्पेक्टर... प्रताप को ढूंढ रहा था.... एक मिनट... आंटी... एक मिनट... अब मेरा सिर चकरा रहा है... प्रताप है क्या चीज़... पुलिस उसे ढूंढ रही है... और मुजरिम... उससे डरते हैं...
प्रतिभा - पुलिस इसलिए नहीं ढूंढ रही है कि... वह कोई मुजरिम है या... उसने कोई जुर्म किया है... वह इसलिए ढूंढ रही थी... ताकि तुम्हारे पिता की सल्तनत महफूज रहे... जिसकी नींव अब हिलने लगी है... (रुप मुहँ फाड़े प्रतिभा की ओर देखने लगती है)
रुप - म.. मतलब...
प्रतिभा - मतलब... मतलब यह है कि... आज प्रताप कानून का वह मुहाफीज है... जिससे हर कानून और इंसानियत के दुश्मन डर रहे हैं... वह चाहे वर्दी वाला हो... या... खैर... मेरा उस सवाल का जवाब... तुमने नहीं दिया... तुमने... प्रताप से जानने की कोशिश क्यूँ नहीं की...

रुप कुछ देर के लिए चुप हो जाती है l वह खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करती है l एक गहरी सांस छोड़ते हुए

रुप - आंटी... मैं अपनी बात क्या कहूँ... जब होश संभाला... तब मेरी दुनिया सिर्फ माँ की गोद और आंचल थी... मेरे पास मेरे भाई नहीं थे... मेरे पास मेरे पिता नहीं थे... ऐसे में एक दिन... मेरी माँ... (आवाज़ भर्रा जाती है) मुझे छोड़ कर चली जाती है... मेरी छोटी माँ... यानी मेरी चाची माँ.... मुझे संभाला तो बहुत... पर गम में... डर में... तड़प में... मैं अपनी माँ को ढूंढ रही थी... मेरे पास... मुझे पुचकारने के लिए... या दुलारने के लिए... कोई नहीं था... छोटी माँ... मुझसे जुड़ी रहती तो थी... पर उनकी भी अपनी सीमाएँ थी... मुझे लगने लगा... जैसे... किसी को भी.. मेरी जरूरत नहीं है... मैं अपने पिता के लिए... अपनी भाई के लिए... एक गैर जरूरत चीज़ हूँ... मुझे धीरे धीरे उजाले से डर लगने लगा था... अंधेरे की आदत होने लगी थी... जानती है आंटी... उस वक़्त मैं सिर्फ पांच साल की थी... ऐसे में... अनाम.... मेरी जिंदगी में आया... बुझी बुझी सी... मुर्झाइसी जिंदगी में... एक नई जान लेकर आया.... मेरे जीवन की अंधेरे को चीरते हुए... अपने साथ का अलख लेकर के आया... उसके वजह से ही.. मैंने रूठना सीखा... क्यूंकि उसका मनाना... मुझे बहुत अच्छा लगता था... मैं हँसने लगी... क्यूंकि उसके साथ मुझे हँसना अच्छा लगता था... मैं अंधेरे से अब डरने लगी थी... क्यूँकी मुझे उसके सीने से लग जाना... अच्छा लगता था.... और वह... किसी भी कीमत पर... मुझे हँसाने की कोशिश करता... कहानियाँ सुनाता... गप्पे लगाता... मेरे लिए घोड़ा बन जाता... ऐसे में... मैं धीरे धीरे... उसके लिए पजेस्सीव होने लगी... उस पर अपना हक़ जताने लगी... और वह बेवक़ूफ़... मेरी खुशी के लिए... मेरी हर बात को मान लिया करता था... फिलींग्स तो बचपन में ही पनपने लगे थे.... पर उसके साथ जुदाई ने... मुझे यह एहसास दिलाया... हर ख्वाहिश... और हर चाहत... पुरी नहीं होती.... मैंने उससे वादा तो ले लिया... की वह मुझसे ही शादी करेगा... पर वास्तविकता मुझ पर हँस रही थी... चिढ़ा रही थी... कैसे... कब... (कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर जाती है, फिर) आंटी... समय के साथ साथ... अनाम मेरे लिए... एक मिथक बन चुका था... मैंने... अपनी जिंदगी से... समझौता भी कर लिया था... क्यूंकि... वह महल था... क्षेत्रपाल महल... और उस महल के.. अंतर्महल से ना कोई बाहर जा सकता था... ना कोई अंदर आ सकता था... फिर पता नहीं... भगवान को क्या मंजुर था... दसपल्ला राज घराने में... मेरी शादी तय हुई... उनको जिस तरह की बहू चाहिए थी... वैसी मैं नहीं थी... इसलिए मुझे भुवनेश्वर भेजा गया... ताकि उनके घर के लायक बन सकूँ... यहाँ किस्मत ने फिर से... अनाम से रुबरु कराया... सच कहूँ तो ओरायन मॉल में ही पहचान गई थी... पर... यकीन नहीं कर पा रही थी के वही अनाम है... ऐसे में... पार्किंग में वह लड़ाई... मेरे भाई से...
प्रतिभा - हाँ... हाँ... हाँ... पर तुम तो वहाँ नहीं थी...
रुप - थी आंटी... थी.. गाड़ी के भीतर... और बाहर की हर बात... मुझे दिखाई भी दे रहा था... और सुनाई भी दे रही थी... मेरे भाई के... मेरे पिता के नाम लेकर... ललकारने के बाद... अनाम जिस तरह से रिएक्ट किया... तभी मैं समझ गई... के कुछ तो हुआ है... जिसके पीछे मेरे पिता का हाथ है... उसके बाद फिर अनाम से... मेरे जन्मदिन पर... धबलेश्वर मंदिर में मुलाकात हुई....
प्रतिभा - ना... मुलाकात नहीं... मुक्कालात हुई...
रुप - (हँस देती है) प्लीज आंटी.... मत छेड़ीये...
प्रतिभा - अरे... मैं छेड़ कहाँ रही हूँ... मैं तो माहौल को हल्का कर रही हूँ... वरना देखो... चेहरा कितना सीरियस है तुम्हारी...

रुप फिर से हँस देती है और अपना सिर झुका लेती है l इस बार वह हल्की सी शर्माने भी लगी l

प्रतिभा - अरे... रुक क्यूँ गई... बोलो... आगे क्या हुआ...
रुप - जी...(चौंकते हुए) जी... वह... मैं कहाँ पर थी... हाँ... याद आया... आंटी... उस दिन मुझे जिस तरह का बर्थ-डे विश मिला... वह सिर्फ और सिर्फ... अनाम ही कर सकता था... सोच सकता था... और... इत्तेफ़ाक देखिए... बिछड़ते वक़्त... मैंने जो वादा लिया था... अनाम से... वह वादा... भगवान के दर पर पुरा हुआ... पर फिर भी... मुझे यकीन नहीं हो पा रहा था... की यही अनाम है... क्यूंकि अनाम जब अनाथ था... तो उसके माँ बाप कहाँ से आए... इस उधेड़ बुन में थी के... इत्तेफ़ाक और होने लगे... अनाम और मैं... ड्राइविंग स्कुल में मिले... हमारी दोस्ती हुई... दोस्ती गहरी भी हुई... फिर वह मोड़ भी आया... जब हमें फिर से बिछड़ना था... वह पल बहुत भारी था मेरे लिए... एक युद्ध चल रही थी... मेरे अंर्तमन में... एक द्वंद था... कौन है यह... प्रताप... या अनाम... बर्दास्त नहीं हुआ... मैं... उसके सीने से लग गई... उसकी धड़कने मेरे कानों में दस्तक देने लगे... जैसे मेरा नाम पुकार रहा हो... क्यूंकि बचपन से यही धड़कन तो सुन रही थी... और मेरी नथुने... मुझे महकाने लगे... मैं हैरान हो गई... यह... यह तो अनाम है... हाँ... यह उसीकी जिस्म की खुशबु थी... मैं पहचान गई थी... यह अनाम ही था... मैं उससे अलग हुई... उसके आँखों में देखा... उसके आँखों में... जैसे कोई झिझक था... कोई ग्लानि था.... मैं मन ही मन उसे कहने लगी... बेवकूफ मैं तुझे पहचान गई... पर तुमने... तुमने क्यूँ नहीं पहचाना मुझे.... बस इसी बात पर... मैंने... (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - हूँ... तुमने थप्पड़ जड़ दिया... तो क्या इसलिए... तुमने उसे... उसके अतीत के बारे में नहीं पुछा...
रुप - मेरी चाहत शिद्दत भरा था... इसलिए मैंने उसे पहचान लिया... मैं पूछ भी लेती... अगर... उसके आँखों में... झिझक और ग्लानि न देखी होती...
प्रतिभा - हूँ....

थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप प्रतिभा को और कुछ सुनने की आश लिए देखती है I

प्रतिभा - हूँ... उस दिन के बाद... फिर बातचीत नहीं हुई...
रुप - हुई... हुई ना..
प्रतिभा - तो कुछ पता चला तुम्हें...
रुप - हाँ... यही के.. वह अब भी नहीं पहचानता मुझे... और...
प्रतिभा - और...
रुप - झिझक इसलिए था कि... उसके सीने से नंदिनी लगी थी... जिसे वह दिलासा नहीं दे पा रहा था... और ग्लानि इसलिए थी... क्यूंकि नंदिनी के प्रति खिंचाव... उसे राजकुमारी के प्रति भावनाओं के आगे... लज्जित कर रही थी...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वाकई... तुम उस भोंदु के लिए... परफेक्ट हो... (यह सुन कर रुप शर्मा जाती है पर प्रतिभा थोड़ी सीरियस हो जाती है) पर क्या... तुम प्रताप की... राजा भैरव सिंह से... दुश्मनी की वजह जान कर... उसके लिए... वही फिलींग्स रख पाओगी....
रुप - (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) आंटी... मैं क्षेत्रपाल हूँ... यह मेरे लिए... कोई गर्व की बात नहीं है... मैं बस... उसके... अनाम के अतीत को जानना चाहती हूँ... वह मुझसे बिछड़े आठ सालों में... ऐसा क्या हो गया... मैं उससे पूछूँगी तो... वह राजकुमारी से बात करेगा... रुप से नहीं... उसका अतीत रुप जानना चाहती है... ना कि राजकुमारी....
प्रतिभा - अच्छा... ह्म्म्म्म... ठीक है...

प्रतिभा नन्ही वैदेही का रंग महल से भागना, रघुनाथ महापात्र और सरला महापात्र को मिलना, विश्व का जन्म, सरला देवी की देहांत, फिर वैदेही और विश्व का इम्तिहान में अच्छे नम्बरों से पास होना, मेडिकल एंट्रेंस के लिए कटक जाने के वक़्त डाकुओं के वेश में क्षेत्रपाल और उसके लोगों को आना, वैदेही को उठा कर ले जाना, फिर उसके साथ दुष्कर्म, हस्पताल पहुँचना अंत में रंग महल से वीवस्त्र भगा दिया जाना और चुड़ैल बता कर गांव वालों के जरिए हमला करवाना और एक नौजवान के द्वारा वैदेही को बचा कर अपने घर ले जाना l यहाँ तक कह कर प्रतिभा थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है l रुप यह सब सुन कर सन्न रह जाती है l उसके आँखों में निरंतर आँसू बहने लगती है l प्रतिभा के रुकते ही भीगे आँखों से रुप प्रतिभा को देखती है l

रुप - मैं जानती तो थी... मेरे बाप दादा गिरे हुए हैं... पर इतने... छी... इंसान तो इंसान... जानवर कहलाने के भी लायक नहीं हैं... घृणा हो रही मुझे... खुद पर...
प्रतिभा - (आवाज़ में भारी पन था) मैं समझ सकती हूँ नंदिनी... (पॉज लेकर) जरा सोचो... वैदेही... जो पाइकराय परिवार की अंश थी... पर वह थी तो नागेंद्र क्षेत्रपाल की दंश... पर खुद उस क्षेत्रपाल के दंश की शिकार हो गई... किसीके साथ ऐसा हो... यह सोचते हुए भी रूह कांपने लगती है... फिर... उसके साथ तो वह सब गुजरी है...
रुप - (भर्राइ आवाज़ में) आप सच कह रही हैं आंटी... अगर प्रताप... बदला लेना चाहता है... तो उसमें कोई गलती नहीं है...
प्रतिभा - नहीं नंदिनी... तुम गलत सोच रही हो... प्रताप क्षेत्रपाल से... बदला इसलिए नहीं लेना चाहता.... कि उसकी बहन की आबरू लूटी है उन लोगों ने... हाँ यह मूल वजह है... और आंशिक भी... उसके बदले की वजह.... बहुत विशाल है...
रुप - यह... यह क्या आंटी... (हैरानी के साथ) प.. प्र... प्रताप का... अपनी वैदेही दीदी के लिए बदला लेना... हर लिहाज से जायज है... और वह वजह छोटी तो हो नहीं सकती... एक लड़की... जिसे कुछ भी मालुम ना हो... उसकी जिंदगी... नर रूपी कुछ राक्षस बर्बाद कर दें... फिर... आप ही ने तो कहा... वैदेही माता जगत जननी है... और विश्व उसका हथियार... अब... आप किस विशाल वजह की बात कर रहे हैं...
प्रतिभा - (एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ) याद है नंदिनी... तुमने रेडियो एफएम 97 में... अपनी स्पीच के अंत में... एक बात कही थी...
रुप - (अटक अटक कर) क्या... क्या कहा था मैंने....
प्रतिभा - यही फिल्म अग्निपथ में... अमिताभ बच्चन की माता जी... कहती हैं कि... शाबाश बेटे... क्या तरक्की कर ली है तुमने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों साल लगे.... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... पर तुमने तो एक पल भी नहीं लगाया... इंसान से जानवर बनने के लिए...
रुप - अच्छा वह... हाँ याद आया... पर प्रताप के बदले का... इस डायलॉग से क्या मतलब...
प्रतिभा - है... है नंदिनी... है... खैर... इतना समझ लो... आज प्रताप बदला लेना चाहता है... पर... इसलिए नहीं कि उसकी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई.... उसका बदला अब निजी नहीं है... उसका बदला है... सैकड़ों सालों से... उन दबे हुए... डरे हुए... जुल्मों सितम को झेले हुए... राजगड़ के हर एक आदमी... औरत... हर एक बच्चे के लिए... राजगड़ के मिट्टी के हर कण कण के लिए... उनके आजादी के लिए.... तुमने अभी वैदेही के लिए बिल्कुल सही कहा... वह जगत जननी है... और विश्व... उसके हाथ में सजे हथियार है... वह खड़ग भी है... खर्पर भी... त्रिशूल भी है... सुदर्शन चक्र भी... धनुष भी है.. और तीर भी....

रुप के तन बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है l इतना कह लेने के बाद प्रतिभा रुप की तरफ देखती है, कुछ सोच में खोई हुई थी l

प्रतिभा - नंदिनी... क्या हुआ...
रुप - क.. क्क्क्कुछ नहीं आंटी... मैं प्रताप के बारे में सोच रही थी... फिर... फिर क्या हुआ... वैदेही भाग रहीं थीं... लोग पत्थर मार रहे थे... फिर एक नौजवान आता है... वैदेही को गांव वालों से बचा कर... अपने घर ले जाता है.... फिर...

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ESS ऑफिस
ट्रेनिंग हॉल में गार्ड्स आपस में कंबेट ट्रेनिंग में व्यस्त हैं l विक्रम उनके बीच घुम घुम कर सब की निरीक्षण कर रहा था l उनके प्रैक्टिस देख कर विक्रम चिढ़ जाता है l

विक्रम - (ऊँची आवाज़ में) स्टॉप...

सभी रुक जाते हैं l विक्रम उन लोगों के बीच में आता है l

विक्रम - तुम सब लोग... अच्छे लड़ाके हो... पर किसी आम फाइटर के लिए... स्टेट के सभी सिक्युरिटी सर्विस के मुकाबले... पर हो सकता है... आने वाले कल को... हम से भी अच्छे फाइटर आयेंगे... जिनसे... दो दो हाथ करना पड़ सकता है... इसलिए तुम सबको बेस्ट होना होगा... अपना बेस्ट देना होगा... आम आई राइट...
सभी - यस सर...
विक्रम - गुड... इस बार मैं हर एक के सैलरी में पांच पांच हजार रुपये का... बढ़ोतरी कर रहा हूँ.... अपनी गैरेंटी पर... पर मैं चाहूँगा... तुम लोग अगले महीने तक... मुझे अपने ट्रेनिंग और प्रैक्टिस से... इम्प्रेस करो... आम आई क्लियर...
सभी - यस सर...

तभी सारे गार्ड्स में से एक गार्ड सामने आता है और विक्रम से पूछता है l

गार्ड - युवराज जी... अगर आप बुरा न मानें... तो एक बात पूछूं...
विक्रम - जरूर... पूछो...
गार्ड - हमें आपने... अगले महीने तक इम्प्रेस करने के लिए कहा है... पर हम आपको कैसे इम्प्रेस करें... हमारा इंप्रुवमेंट... हम कैसे साबित करें...
विक्रम - (मुस्कराते हुए गार्ड के तरफ देखता है) अभी पता चल जाएगा... (कह कर गार्ड्स के बीच आता है) तुम में से दस लोग आओ... और बाकी पीछे जाओ...

गार्ड्स आपस में देखते हैं फिर इशारों इशारे में दस लोग इक्कठे होते हैं और बाकी सब किनारे हो जाते हैं l

एक गार्ड - युवराज जी... हमें करना क्या है...
विक्रम - कोई बड़ा टास्क नहीं है... तुम लोगों को मुझ पर हमला करना है...
सारे गार्ड्स - (डर और हैरानी के साथ) क्या...
विक्रम - घबराओ मत... हमला कर सकते हो... वार जाए भी तो... मुझे कम से कम छु कर दिखाओ... सिर्फ दस मिनट में... पर याद रहे... मैं तुम लोगों को छु सकता हूँ... तुम लोगों पर वार कर सकता हूँ...

गार्ड्स आपस में एक दुसरे को देखने लगते हैं l विक्रम उन्हें कहता है

विक्रम - अब तुम लोग सोच क्या रहे हो... कॉम ऑन...

गार्ड्स अब एक साथ विक्रम पर झपट पड़ते हैं l पर विक्रम बड़ी फुर्ती के साथ अपनी जगह से हट जाता है l फिर उन दस गार्ड्स के हर वार से डॉज करते हुए खुद को बचाने लगता है l गार्ड्स अपनी पुरी ताकत लगा कर विक्रम को छूने की भी कोशिश करते हैं, पर सभी नाकामयाब रहते हैं l कोई भी दस मिनट के अंदर विक्रम को मारना तो दुर छु भी नहीं पाया l जब दस मिनट खतम होता है तभी एक आवाज़ सुनाई देता है l

- ओके... ओके... स्टॉप... दस मिनट हो गए...

वहाँ पर मौजूद सभी आवाज की ओर देखते हैं l वहाँ पर महांती खड़ा था I

विक्रम - अरे महांती... (फिर गार्ड्स की ओर देख कर) कीप प्रैक्टिसींग... (कह कर महांती की ओर जाने लगता है, फिर मुड़ कर, सभी गार्ड्स को) गार्ड्स अगले महीने... अपनी दस दस की टोली बनाओ... मुझे इम्प्रेस करो... तब तुम्हारे सैलरी में... स्पेशल इंक्रीमेंट मिलेगा...

सभी गार्ड्स खुशी के मारे चिल्लाने लगते हैं l विक्रम, महांती के पास पहुँचता है तो महांती इशारे से ट्रेनिंग हॉल के बाहर चलने को कहता है l विक्रम और महांती दोनों हॉल के बाहर आते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... कोई खबर...
महांती - जी...
विक्रम - कहो...
महांती - मैंने हाई कोर्ट के पीआईओ में सेंध लगाया...
विक्रम - अच्छा... तो क्या खबर निकाले..
महांती - रुप फाउंडेशन स्कैम से केस जुड़े... सभी पहलु...
विक्रम - ह्म्म्म्म... डिटेल्स नहीं... मुद्दे पर आओ...
महांती - वह एक... वेल ऑर्गनाइज्ड क्राइम था... उपरी सतह पर... ऐसा लगेगा... की विश्व प्रताप, कुछ लोगों के साथ मिलकर... एक संगठित लुट किए हैं... पर गहराई में जाने पर... यह मालुम पड़ता है कि... विश्व प्रताप... एक बकरा था... जिसे बलि पर चढ़ाया गया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
महांती - उस केस की सुनवाई के दौरान... जो स्पेशल बेंच बिठाया गया था... वह भी शायद विश्व को बाइज़्ज़त बरी कर दिए होते... अगर... (महांती चुप हो जाता है)
विक्रम - चुप क्यूँ हो गए... अगर...
महांती - अगर... विश्व के लिए लड़ने वाले वकील... जयंत राउत... कोर्ट में ही दम ना तोड़ दिए होते तो...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती की सवालिया नजर से देखता है) तुम्हारा हर जवाब... कुछ सस्पेंस पर रुक रहा है... महांती जवाब पुरा करो...
महांती - जी युवराज... जयंत राउत... विश्व के खिलाफ जितने भी प्रमुख गवाह थे... और जितने भी अहं सबूत थे... सबको झूठा साबित कर चुके थे...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी युवराज... सारे गवाह... और लगभग सारे सबूत... झूठे साबित हो गए थे... सिर्फ एक अंतिम गवाह थे... जिनके जिरह करते हुए... अदालती कारवाई के दौरान... जयंत राउत जी का देहांत हो गया...
विक्रम - एक मिनट... कहीं यह अंतिम गवाह... राजा साहब तो नहीं...
महांती - जी... आपने सही अंदाजा लगाया...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि तब यह हर न्यूज में... हॉट टॉपिक था... के राजा साहब... पहली बार... अदालत के कारवाई में हिस्सा ले रहे थे...
महांती - जी...

दोनों मैदान के किनारे किनारे चलते जा रहे थे l महांती देखता है विक्रम कुछ सोचते हुए अपने जबड़े भींचने लगता है I

महांती - क्या हुआ युवराज...
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, महांती की ओर देख कर) जानते हो महांती... विश्व के वकील जयंत की मौत... नॉर्मल नहीं थी.... (महांती कोई जवाब नहीं देता, महांती की चुप्पी को देखते हुए) लगता है... तुम यह बात जानते हो...
महांती - नहीं... नहीं जानता... पर अंदाजा लगा सकता हूँ... जब कटघरे में... राजा साहब हों... तो ऐसा हो सकता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक कहा...
महांती - पर युवराज...
विक्रम - हूँ...
महांती - आपको कब पता चला... के जयंत की हत्या हुई थी...
विक्रम - (महांती की ओर देखता है, फिर अपनी नजरें फ़ेर कर) सॉरी महांती... यह बात तुम्हें नहीं बताया था... इन फैक्ट... बता भी देता तो... कोई फायदा नहीं हुआ होता... आज से पांच साल पहले... याद है यश की एक्सीडेंट हुई थी... कटक में... किसी वकील की गाड़ी से टकरा गया था... और अपने ही निरोग हस्पताल में एडमिट हुआ था... तब वह मुझसे मिलना चाहता था... मैं छोटे राजा जी के साथ... उसके हस्पताल के स्पेशल केबिन में मिलने गया था... तब उसने... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, एक गहरी सांस छोड़ता है, इस बार उसकी सांसे थर्रा जाती है) हस्पताल से कुछ देर के लिए बाहर जाने की तरकीब बताई थी... (विक्रम रुक जाता है और महांती की ओर देखता है, महांती हैरानी भरे नजरों में उसे देखे जा रहा था,) मैंने उसकी तरकीब सुन कर मना कर दिया था... तब उसने मुझे बताया था कि... क्षेत्रपाल नाम को... पहचान को... भरी अदालत में... रुसवा होने से उसने बचाया है... इसलिए बदले में... मुझे उसका यह काम करना पड़ेगा... मैंने जब इस बारे में छोटे राजा जी से बात की... तब उन्होंने मुझे एडवोकेट जयंत की कत्ल की सारी बातेँ बताई थी... तब मुझे इस इस विश्व के बारे में... कुछ भी जानकारी नहीं थी.. ना ही मैंने लेने की जरूरत समझी थी...
महांती - तो आपने उसे... हस्पताल से बाहर निकलने में मदत की...
विक्रम - हाँ... मैं एक डॉक्टर के लिबास में... छोटे राजा जी के साथ उसके केबिन में गया था... अंदर उसके बेड पर मैं लेट गया था... और यश न वह डॉक्टर का लिबास पहन कर बाहर निकल गया... और... (पॉज लेकर) शुभ्रा जी के दोस्त... प्रत्युष नाम के एक लड़के को... मार कर वापस आ गया...

सारी बातेँ सुनने के बाद महांती कुछ सोच में पड़ जाता है और विक्रम भी चुप हो जाता है l

महांती - (विक्रम की ओर देख कर) युवराज... अब आप क्या करना चाहते हैं...
विक्रम - (चेहरे पर परेशानी दिखने लगती है) मैं नहीं जानता... (दांत पिसते हुए) महांती मैं नहीं जानता... विश्व से मेरी बात हो चुकी है... उसके अंदर का जुनून को मैंने महसूस किया है... और अब यश भी नहीं है... इस दुनिया में...
महांती - अगर यश होता भी... तो क्या... आप उससे मदत लेते...
विक्रम - मैं... मैं उसे... जान से मार दिआ होता... वह तो उसकी खुश किस्मती थी... जो जैल में... हार्ट चोक और ड्रग्स के ओवर डोज से मर गया... वरना... मैंने ठान लीआ था... (दांत पिसते हुए और गुर्राते हुए) शुभ्रा जी से गुस्ताखी के लिए... अपनी हाथों से उसका गला घोंट कर मार देता...

विक्रम चुप हो जाता है पर उसकी सांसे तेजी से चल रही थी l थोड़ी देर की चुप्पी के बाद

महांती - ठीक है युवराज... अब हमें करना क्या है...
विक्रम - जब तक राजा साहब हमें... इसमें इंवॉल्व होने के लिए ना कहें... हमें दुर ही रहना होगा...
महांती - मैंने आपसे... और दुसरे सोर्स से जितना जाना... जितना समझा... मुझे नहीं लगता... राजा साहब उसे संभाल पाएंगे...

विक्रम अब कोई जवाब नहीं देता l अपना चेहरा घुमा लेता है l

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वीर से बात कर लेने के बाद विश्व xxx मॉल से निकल कर एक पार्क में पेड़ के नीचे सीमेंट के बेंच पर बैठा हुआ था l अपनी हाथों को क्रॉस कर के कुहनियों में फंसा कर आँखे मूँद कर सीमेंट बेंच के हेड रेस्ट पर सिर को टिकाये अपने ही अंदर वीर के साथ अपनी दोस्ती के बारे में सोचते हुए वह गुम था I

- हैलो... मिस्टर विश्व प्रताप...

आवाज़ सुन कर विश्व अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने एक सफारी शूट पहले आँखों में काले गॉगल पहले एक हट्टा कट्टा आदमी खड़ा था l

आदमी - हेइ... आर यु विश्व प्रताप...
विश्व - (हैरानी के साथ, अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
आदमी - कैन आई सीट हीयर..
विश्व - पांच फुट लंबा बेंच है... सरकारी है... मेरे बाप की तो नहीं है...
आदमी - (बैठता नहीं है, वैसे ही खड़ा रहा) कोई तुमसे मिलना चाहते हैं... मैं तुम्हें... उनके पास ले जाने आया हूँ...
विश्व - (उस आदमी को सिर से लेकर पांव तक अच्छे से देख लेने के बाद) इंवीटेशन दे रहे हो... या धमका रहे हो... मुझे ले जाने आए हो... मैं क्या कोई बैल हूँ... जो हांकते हुए ले जाओगे...
आदमी - वेल... हमें ऑर्डर यही मिला है... आपको इज़्ज़त के साथ ले जाने के लिए... वरना... हम.... दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... (अपने दोनों हाथ हेड रेस्ट पर फैला देता है और दायां पैर को मोड़ कर बाएं पैर रख देता है) तो मिस्टर कोई के चमचे... वैसे कौनसे... सिक्युरिटी सर्विस से जुड़े हुए हो...
आदमी - (हैरान हो कर) आ... आपको कैसे मालुम हुआ... मैं किसी सिक्युरिटी सर्विस जुड़ा हुआ हूँ...
विश्व - तुम्हारा पहनावा... और एपीयरेंस... बात करने का लहजा... डीसीप्लींड तो बिल्कुल नहीं है... पर फिर भी... जिस धौंस से बात कर रहे हो... जरूर किसी गटर छाप प्राइवेट सिक्युरिटी संस्था से जुड़े हुए हो...
आदमी - वाव... (विश्व के थोड़े करीब आकर अपना हाथ आगे करते हुए) हैलो... आई एम... बिरंची सेठी... सिक्युरिटी इनचार्ज... RGSS... आई मीन... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस...
विश्व - (विश्व उससे हाथ नहीं मिलाता, इसलिए बिरंची अपना हाथ वापस लेता है) मिस्टर बिरंची... तुम्हारा उस कोई का... मुझसे क्या काम है...
बिरंची - मेरा कोई का नहीं... मेरे बॉस के बॉस का..
विश्व - अच्छा... बॉस के बॉस... मतलब बिग बॉस... उसका कोई नाम भी है... या...
बिरंची - केके... कंस्ट्रक्शन किंग... केके...
विश्व - (भवें सिकुड़ जाती है) केके...(पॉज लेने के बाद) मुझसे क्या काम पड़ गया...
बिरंची - तुम उनके... और वह तुम्हारे... काम आ सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म...
अगर ना जाऊँ तो...
बिरंची - (मुस्कराते हुए) मैंने पहले से ही बता दिया है... हम दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... मुझे विश्वा जान कर आए हो... या कोई बैल... जिसे लाठी से हांक कर ले जाओगे...

बिरंची चुप रहता है, विश्व अपनी भंवे दो बार उठा कर इशारे से पूछता है l

बिरंची - सॉरी विश्वा भाई... सॉरी...
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... तुम और तुम्हारा बिग बॉस... मेरे बारे में... अच्छी जानकारी रखे हुए हो...
बिरंची - ज.. जी...
विश्व - तो मिस्टर बिरंची... अपने बिग बॉस से कहो... गाड़ी में बैठ कर हमारी बात सुनने के वजाए... वह अपने गाड़ी से उतरे... और सीधे मेरे पास आकर बात करे...

बिरंची चौंक जाता है और विश्व को आँखे और मुहँ फाड़े देखने लगता है l

विश्व - अपना मुहँ बंद कर... इस पार्क में मच्छर बहुत हैं... घुस जाएंगे...

कुछ देर बाद ताली बजाते हुए पार्क के एंट्रेस से केके उर्फ़ कमल कांत अपने सिक्युरिटी गार्ड्स के साथ वहाँ आता है l एक गार्ड विश्व के बैठे हुए बेंच के सामने एक फोल्डिंग चेयर डाल देता है जिस पर केके बैठ जाता है l

केके - वाव.. वाव... जैसा सुना था.. तुम तो उससे भी बढ़ कर निकले...
विश्व - मतलब कम ही सुना है मेरे बारे में... और शायद कम ही जानते हो मेरे बारे में...
केके - हाँ कम ही सुना है... पर तुम बड़े काम के हो... यह अब जान गया हूँ... मैं तो फैन हो गया तुम्हारा...
विश्व - कमाल की बात है... आज कल मेरे फैन फोलोवींग तो बढ़ती ही जा रही है...
केके - हीरे की कद्र तो हर किसीको होता है... हाँ यह बात और है... हर किसीके नसीब में.. हीरा नहीं होता...
विश्व - तो तुम यहाँ... अपना नसीब आजमाने आए हो...
केके - आजमाने नहीं... बनाने आया हूँ... तुम्हारा...
विश्व - अच्छा... तो मेरे पंखे... अब हवा चलाना बंद करो... किस काम से आए हो... यह बकना शुरु करो...
केके - देखो... कुछ बातेँ हैं... जिन पर जिक्र... या मशविरा बंद कमरे में.. या बंद जगहों पर होने चाहिए....
विश्व - ह्म्म्म्म.. मतलब... या तो तुम बात छुपाना चाहते हो है... या खुद को...
केके - दोनों... बात भी... और खुद को भी... ईफ यु डोंट माइंड... यहीं पार्क के बाहर... मेरा अपना वैनिटी वैन है... क्यूँ ना मेरे वैनिटी वैन में चलें...
विश्व - (कुछ देर केके को घूर कर देखता है, फिर अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ठीक है... चलो...

विश्व और केके उठ खड़े होते हैं और पार्क के बाहर चलने लगते हैं l दोनों को को गार्ड्स घेर कर बाहर एक खड़े एक वैनिटी वैन की ओर ले जाते हैं l दोनों वैनिटी वैन में बैठ जाते हैं l विश्व अंदर देखता है बहुत ही लक्जरीयस था अंदर से I इतना लक्जरीयस के सोफ़े लगे हुए थे, टीवी फ्रिज भी था और यहाँ तक उसमें बाथरुम और टॉयलेट भी था l एक टेबल पर एक नौजवान भी वहाँ पर बैठा हुआ था l विश्व और केके के बैठने के बाद वैन चलने लगता है l

विश्व - इन साहब की तारीफ...
केके - यह मेरा बेटा है... विनय...

विश्व उसे गौर से देखता है, विनय स्टाइलिश ड्रेस में बैठा हुआ था, चुइंगम चबाते हुए विश्व को हाथ हिला कर हाय कहता है l जवाब में विश्व मुस्करा कर बस अपना सिर हिलाता है l

केके - सो विश्वा... जो तुम्हारी मंजिल है... हम तुम्हें उस मंजिल तक पहुँचा सकते हैं... क्यूंकि वही... हमारी भी मंजिल है... आई मीन... क्षेत्रपाल की बर्बादी...
विश्व - ह्म्म्म्म... अच्छा... अब यह बताओ... हम एक दुसरे के कैसे काम आ सकते हैं...
केके - देखो... तुम क्षेत्रपाल के दुश्मन हो... और मैं भी... और यह कहावत है कि... दुश्मन का दुश्मन... दोस्त होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... मुझसे चाहते क्या हो...
विनय - अरे यार... हम चाहते हैं... तुम हमारे लिए काम करो...
विश्व - बात जब बाप से हो रहा हो... पिल्लों को बीच में नहीं फुदकना नहीं चाहिए...
विनय - ऐ... पिल्ला किसको बोला बे...
विश्व - यहाँ तेरे सिवा... मुझे कोई और दिख नहीं रहा है...
विनय - (शिकायत भरे लहजे में चिल्लाते हुए) डैड...
केके - (विनय से) श्श्श्श्श... थोड़ी देर के लिए चुप रहेगा... (विनय मुहँ बना कर अपने जगह पर बैठ जाता है) विश्वा... विनय ने गलत नहीं कहा है...
विश्व - अच्छा... (हँसते हुए) उसने ऐसा क्या सही कह दिआ...
केके - क्षेत्रपाल क्या है... कैसा है... यह तुम अच्छे तरह से जानते हो... तुम्हें उसके खिलाफ लड़ने के लिए... हर फिल्ड मे... सपोर्ट चाहिए होगी...
विश्व - जब से मिले हो... पहेली पर पहेली बुझा रहे हो... सीधे सीधे मुद्दे पर आओ...
केके - देखो... यह हम जानते हैं... तुमने अभी रुप फाउंडेशन स्कैम पर आरटीआई दायर किया है... इसलिए अब आगे तुम्हें किसी ना किसी की सहायता की जरूरत पड़ेगी... हम तुम्हें हर तरह की मदत मुहैया कराएंगे...
विश्व - और... इसके लिए मुझे क्या करना पड़ेगा...
केके - सिंपल... तुम हमारे लिए काम करो... तो क्या कहते हो... डील...
विश्व - हा हा हा हा... (हँसते हुए) केके... ऐसे डील.. शाह करते हैं... प्यादे नहीं...
केके - व्हाट... (जुबान लड़खड़ाने लगती है) क्क्क.. क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
विश्व - केके... उर्फ़ कमला कांत महानायक... उर्फ़ कंस्ट्रक्शन किंग... मैं... सामने वाले की बात से... उसकी औकात का अंदाजा लगा लेता हूँ...
विनय - ऐ... (गुस्से से तन कर) अपनी जुबान संभाल... मत भूल... तु हमारे कब्जे में है... (दांत पिसते हुए) अभी के अभी... तेरी खाल खिंचवा देंगे....

विश्व, विनय को आँखे उठा कर देखता है, उसका का जबड़ा भींच जाता है, उसके मुट्ठीयाँ कसने लगती हैं l यह देख कर केके अपने हलक से थूक बड़ी मुस्किल से निगलता है l वह झटपट खड़े हो कर विनय को थप्पड़ मार देता है l विनय हैरान हो कर अपने बाप को देखता है और अपने लाल हुए गाल को सहलाते हुए अपनी जगह पर बैठ जाता है l केके भी अपने जगह पर बैठ जाता है l

केके - विश्वा... हम तुम्हारे बारे में... सब कुछ जानते हैं... तुम... हमारे बारे में कुछ भी नहीं जानते... फिर यह तुमने... किस बिनाह पर कहा...
विश्व - केके... तुम वह लंगड़े हो... जो कभी क्षेत्रपाल नाम की वैशाखी की सहारे भांगड़ा कर रहे थे... बस कुछ ही महीनों पहले.... पिनाक सिंह पर हमले के बाद.... खुद को बचाते हुए अंडरग्राउंड कर लिए थे... पर जो वजह... तुम्हें अंडरग्राउंड से बाहर लेकर आया है... वह वजह... मैंने ही बनाया है...
केके - (हैरान हो कर) क्क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कैसी वजह...
विश्व - (आगे झुक कर घुटनों पर कोहनी रख कर) थाईशन टावर... स्वपन जोडार... कुछ याद आया... (केके का मुहँ खुला रह जाता है) अब तुमने वैशाखी बदल ली है... जिसके सहारे अंडरग्राउंड से निकल कर... ना सिर्फ वह सारे सामान... स्वपन जोडार को लौटाया... बल्कि हेवी पेनल्टी भी दिया...
केके - मतलब तुम...
विश्व - (आत्मविश्वास भरा मुस्कान लिए) मैं स्वपन जोड़ार का लीगल एडवाइजर हूँ...

विश्व की इस खुलासे से केके विश्व को आँखे और मुहँ फाड़ कर देखने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

विश्व - हालाँकि मैंने क्षेत्रपाल को टार्गेट किया था... पर किस्मत में तुम्हारा पिछवाड़ा लिखा था....
केके - तो... क्या हुआ... अब आगे और भी मौके आयेंगे... तब तुम्हें हमारी जरूरत पड़ेगी ना... स्वपन जोडार... क्या कर सकता है... कुछ भी नहीं...
विश्व - तुम अपनी बात करो... तुमने जो वैशाखी... अभी जिसकी नाम की बदला है... अपने उसी बाप के बारे में मुझे जानकारी दो...

केके फिर से चौंक जाता है उसका का मुहँ खुला का खुला रह जाता है l अब उसके हलक से थूक भी ना निगला जा रहा था l

विश्व - वह शख्स... तुम्हारा नाजायज बाप... जिसके बैसाखी के सहारे... तुम क्षेत्रपाल से टकराने की सोचा है... वह स्टेट पालिटिक्स में क्षेत्रपाल के बराबर कद तो नहीं रखता होगा... पर कम भी नहीं होगा... कौन है वह...
केके - वह.... (केके कुछ नहीं कह पाता है)
विश्व - कोई नहीं... वैसे भी आज मेरा मुड़ नहीं है... अपने ड्राइवर से कहो... वैनिटी वैन यहीं पर रोक दे... कल का कोई भी टाइम मुकर्रर कर लो... मैं तुम्हें उसी पार्क में मिलूंगा...
केके - ठी.. ठीक है...

केके गाड़ी के भीतर पीए सेक्शन ऑन कर ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए बोलता है l गाड़ी रुकते ही विश्व उतर जाता है l विश्व के जाने के बाद

विनय - डैड... इसे जाने क्यूँ दिया... चूहा बन कर आया था... हमारे चूहे दानी में फंसने के लिए... और यह तो... पहले से ही... हमारा ही बजाया हुआ है... इतने गार्ड्स हैं हमारे...
केके - हूँ... तुम अपनी बकौती बंद करो... इतनी जल्दी रंगा को कैसे भूल गए... इस एक आदमी को देख कर रंगा और उसके बाइस आदमी भाग खड़े हुए... हमारे कुछ गार्ड्स उसका क्या बिगाड़ लेते... मैंने इसे बातों में नाप लूँगा ऐसा सोच लिया था...गलत आंक लिया था... यह तो जरूरत से ज्यादा शार्प है...

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द हैल
शाम ढल चुकी है
रात के खाने का समय है l डायनिंग टेबल पर घर के चारों सदस्य बैठे हुए हैं l चारों की थाली लगी हुई है पर तीन सदस्यों का ध्यान थाली पर नहीं था I विक्रम, वीर और रुप तीनों ही अपने में खोए हुए थे l तीनों का हाथ खाने के निवाले पर तो था पर वहाँ से हिल नहीं रहा था l शुभ्रा तीनों को देखते हुए अपनी थाली से निवाला उठाते हुए रुक जाती है, फिर निवाले को थाली पर रख कर

शुभ्रा - क्या बात है... खाना खराब बना है क्या...

तीनों चौंकते हैं l क्यूँकी तीनों ही अपने अपने ख़यालों में खोए हुए थे l तीनों ही के जेहन में विश्व ही घुम रहा था l जहां विक्रम आज महांती से मिले जानकारी और विश्व के साथ अपनी निजी तजुर्बे के बारे में सोच रहा था वहीं रुप विश्व के अतीत और वर्तमान को प्रतिभा से जान लेने के बाद अपने और विश्व की भविष्य को कैसे जोड़े इसी सोच में खोई हुई थी l इन दोनों के अलावा वीर भी विश्व के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी ना होने पर सोच सोच कर हैरान भी था और परेशान भी I

तीनों - कुछ नहीं... सब ठीक है...
शुभ्रा - क्या कुछ नहीं... तीनों के सामने खाना लगा हुआ है... पर तीनों का ध्यान कहीं खोया हुआ है...
विक्रम - कुछ नहीं ऐसे ही... वह मैं... आने वाले दिनों में... पार्टी में अपनी भूमिका के बारे में सोच रहा था...
शुभ्रा - यह आप खाने के टेबल पर ही क्यूँ सोच रहे थे... (विक्रम चुप रहता है) वीर... तुम किसके ख़यालों में खोए हुए थे... (छेड़ते हुए) कहीं... (पुरी बात नहीं कह पाती)
वीर - (सकपका जाता है) नहीं... नहीं भाभी... ऐसा कुछ भी नहीं है...
शुभ्रा - हाँ भई... ठीक है... हम होते कौन हैं... क्या कुछ हो गया... हमे चाची माँ से मालुम होता है... पर आपसे नहीं... ऐसा क्यूँ...
वीर - वह भाभी... (क्या कहे वह समझ नहीं पाता, खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करते हुए) सॉरी भाभी... सॉरी...
शुभ्रा - ठीक है... लगता है.. आज तुम्हारा मुड़ ठीक नहीं है... (रुप से) और तुम... आज तुम्हें क्या हो गया है... सुबह से गई थी... शाम को आई हो... और जब से आई हो... मैं देख रही हूँ... तब से खोई खोई सी हो...
रुप - (हड़बड़ा जाती है, अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए) कु... कुछ नहीं है... कुछ नहीं है भाभी...
शुभ्रा - पता नहीं क्यूँ... तुम तीनों का ज़वाब... तुम लोगों के हाव भाव से मैच नहीं कर रहे हैं... (सभी शुभ्रा की ओर देखते हैं) आज पहली बार ऐसा हो रहा है... तीनों ही अपने आप में खोए हुए हो... कहीं ऐसा तो नहीं... तीनों आज किसी एक ही विषय पर... सोचे जा रहे हो...

शुभ्रा इतना कह कर हँस देती है l शुभ्रा का साथ देते हुए रुप और विक्रम भी हँस देते हैं, पर वीर नहीं हँसता l शुभ्रा वीर की और देखती है I

शुभ्रा - वीर... क्या हुआ... अभी भी... बहुत सीरियस हो...
वीर - (एक पॉज लेकर) हाँ भाभी... मैं अभी अपने एक दोस्त... और हमारी दोस्ती की भविष्य के बारे में.. सोच रहा हूँ...
विक्रम - (हैरान हो कर) दोस्त... कौन दोस्त... कैसा भविष्य...
वीर - तुम.... (थोड़ा रुक कर) तुम उसे जानते हो...
विक्रम - मैं...
वीर - हाँ भैया... (विक्रम की ओर देखते हुए) तुम्हारा उससे... तीन बार अनचाहा मुलाकात हो चुका है...

विक्रम की भवें तन जाते हैं l वह सवालिया नजर से वीर की ओर देखने लगता है l

वीर - विश्व... विश्व प्रताप महापात्र....

विश्व का नाम आते ही रुप की गले में खाना अटक जाता है l वह खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर को थपथपा कर पानी पिलाती है l

विक्रम - तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो... या जानना चाहते हो...
वीर - नहीं... मैं कुछ भी जानना नहीं चाहता हूँ... तुम्हारा उससे कैसे... कहाँ... और किस वजह से मुलाकात हुई है... यह मैं बिल्कुल जानना भी नहीं चाहता हूँ... पर तुम्हें कुछ बताना जरूर चाहता हूँ... (विक्रम वीर की आँखों में देखने लगता है) मैं उसका अतीत नहीं जानता... पर आज... उसकी बातों से एक बात जरूर जान गया... उसके ज़ख्म... हम क्षेत्रपालों के वजह से है... क्षेत्रपाल बिल्कुल भी सही नहीं किया होगा... क्यूंकि हम... बिलकुल भी अच्छे तो नहीं हैं...
विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) तुम कहना क्या चाहते हो...
वीर - यही.. के कल क्या होगा... मैं नहीं जानता... पर अगर... क्षेत्रपाल और विश्व कभी आमने सामने हुए... तो मैं... विश्व के खिलाफ नहीं जाऊँगा.... (कुछ देर के लिए एक चुप्पी सी छा जाती है) चाहे कुछ भी हो जाए...

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l पर उसकी कहे बातेँ वहाँ पर बैठे तीनों पर गहरा असर छोड़ा था l क्यूँकी तीनों ही विश्व से किसी ना किसी तरह से सवंधीत थे I

शुभ्रा - वीर... खाना ऐसे अधूरा नहीं छोड़ते...
वीर - (रुक जाता है) भाभी... माफी चाहूँगा... पर आज... मेरी दिली हालत ठीक नहीं है... खा नहीं पाऊँगा...

यह कह कर वीर चला जाता है l विक्रम को भी अब अच्छा नहीं लगता l विक्रम अपना थाली छोड़ कर उठने लगता है l

शुभ्रा - विक्की... आप तो ना जाइए...
रुप - हाँ भैया... आप उठ गए... तो भाभी भी उठ जाएंगी...

विक्रम खुद को काबु करते हुए बैठ जाता है और बेमन से खाना खाने लगता है l जैसे जैसे खाना खतम होने को आता है तब रुप विक्रम से कहती है

रुप - भैया...
विक्रम - (रुप की ओर बिना देखे) हूँ...
रुप - मैं कल चाची माँ के पास जाना चाहती हूँ... क्या आप मुझे राजगड़ जाने देंगे...
विक्रम - (रुप की ओर देख कर) पर तुम्हारा एक्जाम...
रुप - एक्जाम के वक़्त आ जाऊँगी... प्लीज भैया...
विक्रम - (खाना खतम कर उठते हुए) ठीक है... कल सुबह तैयार हो जाना... मैं गुरु को कह देता हूँ... वह तुम्हें राजगड़ ले जाएगा...
रुप - (खुश होते हुए) ठीक है भैया...

विक्रम वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही शुभ्रा रुप की ओर सवालिया नजरों से देखती है I रुप शुभ्रा से नजरें चुरा कर खाना खतम करने लगती है l

शुभ्रा - यह क्या नाटक है नंदिनी... तुम यूँ अचानक राजगड़...
रुप - वह भाभी... मुझे... चाची माँ की बहुत याद आ रही है...
शुभ्रा - तुमने अपने भाई को बना दिया... ठीक है... मुझे तो ना बनाओ...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) (शुभ्रा की ओर देखते हुए) भाभी... मेरी मंजिल... उसकी की हासिल... राजगड़ में है... मैं सिर्फ कुछ दिनों के लिए जाना चाहती हूँ...
शुभ्रा - (हैरानी से भवें सिकुड़ कर) आज सबको क्या हो गया है... कोई भी सीधे सीधे बात क्यूँ नहीं कर रहे हैं... वीर अपनी बात घुमा रहा है... विक्की भी बात घुमा रहे हैं और नंदिनी... तुम भी... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है, फिर) आज सुबह से गायब रही... कहाँ गई नहीं बताया... आई तो आई... शाम को आई... और अब कह रही हो... राजगड़ जाना चाहती हो...
रुप - (अपना हाथ बढ़ा कर शुभ्रा हाथ थाम लेती है) भाभी... प्लीज... मैं वापस आकर आपको सब बता दूंगी...

कह कर डायनिंग टेबल से उठ जाती है l शुभ्रा को डायनिंग टेबल पर असमंजस स्थिति में छोड़ कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद सीडियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चली जाती है l
कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर अपने रीडिंग टेबल की ओर देखती है जहां उसकी मोबाइल रखी हुई थी l वह आकर अपना मोबाइल उठाती है और बेड पर गिर जाती है l मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन करती है l प्रतिभा से हुई सारी बातेँ रिकॉर्ड थी वह सुनने लगती है l धीरे धीरे रिकॉर्डिंग को फॉरवर्ड करने लगती है l कहानी उस मोड़ पर आ जाती है जहां वैदेही को बचा कर वह नौजवान अपने घर लता है l घर में पहुँच कर वैदेही देखती है,

यह तो वही घर है जहां उसकी बचपन गुजरी थी, वह मुड़ कर उस नौजवान को देख कर पहचानने की कोशिश करती है l अचानक वह पहचान जाती है यह तो उसका भाई विश्व है जिसे वह मरा हुआ समझती थी l उसके होंठ थरथराने लगी

वैदेही - विशु...

 

KANCHAN

New Member
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बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
वीर ने तो अपनी स्तिथि स्पष्ट कर दी, रूप का अबे वाले दिनों में पता चलेगा, शुभ्रा स्वयं और विक्रम को भी इसमें शामिल कर लेगी फिर तो राजा साहेब की लग गई
 

Jaguaar

Well-Known Member
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👉एक सौ पांचवां अपडेट
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वैदेही के बारे में कहते कहते प्रतिभा रुक जाती है l रुप को प्रतिभा के चेहरे पर वैदेही से एक भावनात्मक लगाव दिखता है l पर रुप के माथे पर सिकुड़न दिखती है वह कुछ सोचते हुए अपना सिर नीचे कर लेती है l


प्रतिभा - क्या बात है नंदिनी... कुछ असमंजस सी लग रही हो...
रुप - (उसी असमंजस स्थिति में, अटक अटक कर) कु... कुछ नहीं आंटी... अनाम... मेरा मतलब है... प्रताप जब महल में आया था... तब उसने मुझसे कहा था... की वह... अनाथ था... मतलब अनाथ हो गया है... बचपन में माँ चल बसी... पिता और बड़ी बहन... महल आने के कुछ दिन पहले... हादसे में गुजर गए थे... पर अब.. (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - (मुस्करा कर) उसने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला था... तब उसके लिए... वही सच था... उसकी बहन... उस दर्दनाक हादसे के सात साल बाद मिली... तब उसे मालुम हुआ... के उसकी दीदी जिंदा है...
रुप - (चौंक कर) क्या... स.. सात साल... बाद...
प्रतिभा - हाँ सात साल बाद....

इतना कह कर प्रतिभा रुप को देखती है, रुप बहुत ही हैरानी भरे नजरों से प्रतिभा को देखे जा रही है l

प्रतिभा - खैर... अब तुम यह बताओ... तुम अनाम की पिछली जिंदगी... जिससे तुम जुड़ी नहीं हो.... वह मुझसे ही क्यूँ जानना चाहा... अनाम... यानी प्रताप से सीधे क्यूँ नहीं पूछा...
रुप - (झिझकते हुए) जी.. वह...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... जब तुम्हें यह मालुम हुआ... के प्रताप ही.... अनाम है... तो... तुम उसे अपनी पहचान बता कर... उससे.. उसकी पिछली जिंदगी के बारे में क्यूँ नहीं पूछी...

प्रतिभा की बात सुन कर रुप थोड़ी असहज हो जाती है l वह प्रतिभा की ओर देखती है, प्रतिभा मुस्कराते हुए जिज्ञासा भरी नजर से उसे देख रही थी l

प्रतिभा - ऊपर से... सोने पे सुहागा... हाथ छोड़ दिया... बेचारे प्रताप के गालों पर...
रुप - (अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर) सॉरी आंटी...
प्रतिभा - हूँ... यह मैं बाद में डिसाइड करूंगी... तुम्हारा सॉरी एसेप्टेबल है... या नहीं... क्या यह थप्पड़ मारने की आदत बचपन से है...
रुप - प्लीज आंटी...
प्रतिभा - अरे नहीं... कोई भी मिलता है... बजा देती हो उसे... उस दिन इंस्पेक्टर को... जानती हो... वह भी राजगड़ से था...
रुप - (चौंकती है) क्या...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... उस दिन जब तुम लोग मेरे घर में थे... मुझे मालुम हुआ... की प्रताप को ढूंढते हुए... वह मेरे घर आने वाला था... इसीलिए... उस दिन तुम्हारे जरिए प्रताप को वहाँ से भगाया था.... (अब कि बार रुप की हैरानी और भी बढ़ जाती है)
रुप - क्या... पुलिस इंस्पेक्टर... प्रताप को ढूंढ रहा था.... एक मिनट... आंटी... एक मिनट... अब मेरा सिर चकरा रहा है... प्रताप है क्या चीज़... पुलिस उसे ढूंढ रही है... और मुजरिम... उससे डरते हैं...
प्रतिभा - पुलिस इसलिए नहीं ढूंढ रही है कि... वह कोई मुजरिम है या... उसने कोई जुर्म किया है... वह इसलिए ढूंढ रही थी... ताकि तुम्हारे पिता की सल्तनत महफूज रहे... जिसकी नींव अब हिलने लगी है... (रुप मुहँ फाड़े प्रतिभा की ओर देखने लगती है)
रुप - म.. मतलब...
प्रतिभा - मतलब... मतलब यह है कि... आज प्रताप कानून का वह मुहाफीज है... जिससे हर कानून और इंसानियत के दुश्मन डर रहे हैं... वह चाहे वर्दी वाला हो... या... खैर... मेरा उस सवाल का जवाब... तुमने नहीं दिया... तुमने... प्रताप से जानने की कोशिश क्यूँ नहीं की...

रुप कुछ देर के लिए चुप हो जाती है l वह खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करती है l एक गहरी सांस छोड़ते हुए

रुप - आंटी... मैं अपनी बात क्या कहूँ... जब होश संभाला... तब मेरी दुनिया सिर्फ माँ की गोद और आंचल थी... मेरे पास मेरे भाई नहीं थे... मेरे पास मेरे पिता नहीं थे... ऐसे में एक दिन... मेरी माँ... (आवाज़ भर्रा जाती है) मुझे छोड़ कर चली जाती है... मेरी छोटी माँ... यानी मेरी चाची माँ.... मुझे संभाला तो बहुत... पर गम में... डर में... तड़प में... मैं अपनी माँ को ढूंढ रही थी... मेरे पास... मुझे पुचकारने के लिए... या दुलारने के लिए... कोई नहीं था... छोटी माँ... मुझसे जुड़ी रहती तो थी... पर उनकी भी अपनी सीमाएँ थी... मुझे लगने लगा... जैसे... किसी को भी.. मेरी जरूरत नहीं है... मैं अपने पिता के लिए... अपनी भाई के लिए... एक गैर जरूरत चीज़ हूँ... मुझे धीरे धीरे उजाले से डर लगने लगा था... अंधेरे की आदत होने लगी थी... जानती है आंटी... उस वक़्त मैं सिर्फ पांच साल की थी... ऐसे में... अनाम.... मेरी जिंदगी में आया... बुझी बुझी सी... मुर्झाइसी जिंदगी में... एक नई जान लेकर आया.... मेरे जीवन की अंधेरे को चीरते हुए... अपने साथ का अलख लेकर के आया... उसके वजह से ही.. मैंने रूठना सीखा... क्यूंकि उसका मनाना... मुझे बहुत अच्छा लगता था... मैं हँसने लगी... क्यूंकि उसके साथ मुझे हँसना अच्छा लगता था... मैं अंधेरे से अब डरने लगी थी... क्यूँकी मुझे उसके सीने से लग जाना... अच्छा लगता था.... और वह... किसी भी कीमत पर... मुझे हँसाने की कोशिश करता... कहानियाँ सुनाता... गप्पे लगाता... मेरे लिए घोड़ा बन जाता... ऐसे में... मैं धीरे धीरे... उसके लिए पजेस्सीव होने लगी... उस पर अपना हक़ जताने लगी... और वह बेवक़ूफ़... मेरी खुशी के लिए... मेरी हर बात को मान लिया करता था... फिलींग्स तो बचपन में ही पनपने लगे थे.... पर उसके साथ जुदाई ने... मुझे यह एहसास दिलाया... हर ख्वाहिश... और हर चाहत... पुरी नहीं होती.... मैंने उससे वादा तो ले लिया... की वह मुझसे ही शादी करेगा... पर वास्तविकता मुझ पर हँस रही थी... चिढ़ा रही थी... कैसे... कब... (कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर जाती है, फिर) आंटी... समय के साथ साथ... अनाम मेरे लिए... एक मिथक बन चुका था... मैंने... अपनी जिंदगी से... समझौता भी कर लिया था... क्यूंकि... वह महल था... क्षेत्रपाल महल... और उस महल के.. अंतर्महल से ना कोई बाहर जा सकता था... ना कोई अंदर आ सकता था... फिर पता नहीं... भगवान को क्या मंजुर था... दसपल्ला राज घराने में... मेरी शादी तय हुई... उनको जिस तरह की बहू चाहिए थी... वैसी मैं नहीं थी... इसलिए मुझे भुवनेश्वर भेजा गया... ताकि उनके घर के लायक बन सकूँ... यहाँ किस्मत ने फिर से... अनाम से रुबरु कराया... सच कहूँ तो ओरायन मॉल में ही पहचान गई थी... पर... यकीन नहीं कर पा रही थी के वही अनाम है... ऐसे में... पार्किंग में वह लड़ाई... मेरे भाई से...
प्रतिभा - हाँ... हाँ... हाँ... पर तुम तो वहाँ नहीं थी...
रुप - थी आंटी... थी.. गाड़ी के भीतर... और बाहर की हर बात... मुझे दिखाई भी दे रहा था... और सुनाई भी दे रही थी... मेरे भाई के... मेरे पिता के नाम लेकर... ललकारने के बाद... अनाम जिस तरह से रिएक्ट किया... तभी मैं समझ गई... के कुछ तो हुआ है... जिसके पीछे मेरे पिता का हाथ है... उसके बाद फिर अनाम से... मेरे जन्मदिन पर... धबलेश्वर मंदिर में मुलाकात हुई....
प्रतिभा - ना... मुलाकात नहीं... मुक्कालात हुई...
रुप - (हँस देती है) प्लीज आंटी.... मत छेड़ीये...
प्रतिभा - अरे... मैं छेड़ कहाँ रही हूँ... मैं तो माहौल को हल्का कर रही हूँ... वरना देखो... चेहरा कितना सीरियस है तुम्हारी...

रुप फिर से हँस देती है और अपना सिर झुका लेती है l इस बार वह हल्की सी शर्माने भी लगी l

प्रतिभा - अरे... रुक क्यूँ गई... बोलो... आगे क्या हुआ...
रुप - जी...(चौंकते हुए) जी... वह... मैं कहाँ पर थी... हाँ... याद आया... आंटी... उस दिन मुझे जिस तरह का बर्थ-डे विश मिला... वह सिर्फ और सिर्फ... अनाम ही कर सकता था... सोच सकता था... और... इत्तेफ़ाक देखिए... बिछड़ते वक़्त... मैंने जो वादा लिया था... अनाम से... वह वादा... भगवान के दर पर पुरा हुआ... पर फिर भी... मुझे यकीन नहीं हो पा रहा था... की यही अनाम है... क्यूंकि अनाम जब अनाथ था... तो उसके माँ बाप कहाँ से आए... इस उधेड़ बुन में थी के... इत्तेफ़ाक और होने लगे... अनाम और मैं... ड्राइविंग स्कुल में मिले... हमारी दोस्ती हुई... दोस्ती गहरी भी हुई... फिर वह मोड़ भी आया... जब हमें फिर से बिछड़ना था... वह पल बहुत भारी था मेरे लिए... एक युद्ध चल रही थी... मेरे अंर्तमन में... एक द्वंद था... कौन है यह... प्रताप... या अनाम... बर्दास्त नहीं हुआ... मैं... उसके सीने से लग गई... उसकी धड़कने मेरे कानों में दस्तक देने लगे... जैसे मेरा नाम पुकार रहा हो... क्यूंकि बचपन से यही धड़कन तो सुन रही थी... और मेरी नथुने... मुझे महकाने लगे... मैं हैरान हो गई... यह... यह तो अनाम है... हाँ... यह उसीकी जिस्म की खुशबु थी... मैं पहचान गई थी... यह अनाम ही था... मैं उससे अलग हुई... उसके आँखों में देखा... उसके आँखों में... जैसे कोई झिझक था... कोई ग्लानि था.... मैं मन ही मन उसे कहने लगी... बेवकूफ मैं तुझे पहचान गई... पर तुमने... तुमने क्यूँ नहीं पहचाना मुझे.... बस इसी बात पर... मैंने... (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - हूँ... तुमने थप्पड़ जड़ दिया... तो क्या इसलिए... तुमने उसे... उसके अतीत के बारे में नहीं पुछा...
रुप - मेरी चाहत शिद्दत भरा था... इसलिए मैंने उसे पहचान लिया... मैं पूछ भी लेती... अगर... उसके आँखों में... झिझक और ग्लानि न देखी होती...
प्रतिभा - हूँ....

थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप प्रतिभा को और कुछ सुनने की आश लिए देखती है I

प्रतिभा - हूँ... उस दिन के बाद... फिर बातचीत नहीं हुई...
रुप - हुई... हुई ना..
प्रतिभा - तो कुछ पता चला तुम्हें...
रुप - हाँ... यही के.. वह अब भी नहीं पहचानता मुझे... और...
प्रतिभा - और...
रुप - झिझक इसलिए था कि... उसके सीने से नंदिनी लगी थी... जिसे वह दिलासा नहीं दे पा रहा था... और ग्लानि इसलिए थी... क्यूंकि नंदिनी के प्रति खिंचाव... उसे राजकुमारी के प्रति भावनाओं के आगे... लज्जित कर रही थी...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वाकई... तुम उस भोंदु के लिए... परफेक्ट हो... (यह सुन कर रुप शर्मा जाती है पर प्रतिभा थोड़ी सीरियस हो जाती है) पर क्या... तुम प्रताप की... राजा भैरव सिंह से... दुश्मनी की वजह जान कर... उसके लिए... वही फिलींग्स रख पाओगी....
रुप - (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) आंटी... मैं क्षेत्रपाल हूँ... यह मेरे लिए... कोई गर्व की बात नहीं है... मैं बस... उसके... अनाम के अतीत को जानना चाहती हूँ... वह मुझसे बिछड़े आठ सालों में... ऐसा क्या हो गया... मैं उससे पूछूँगी तो... वह राजकुमारी से बात करेगा... रुप से नहीं... उसका अतीत रुप जानना चाहती है... ना कि राजकुमारी....
प्रतिभा - अच्छा... ह्म्म्म्म... ठीक है...

प्रतिभा नन्ही वैदेही का रंग महल से भागना, रघुनाथ महापात्र और सरला महापात्र को मिलना, विश्व का जन्म, सरला देवी की देहांत, फिर वैदेही और विश्व का इम्तिहान में अच्छे नम्बरों से पास होना, मेडिकल एंट्रेंस के लिए कटक जाने के वक़्त डाकुओं के वेश में क्षेत्रपाल और उसके लोगों को आना, वैदेही को उठा कर ले जाना, फिर उसके साथ दुष्कर्म, हस्पताल पहुँचना अंत में रंग महल से वीवस्त्र भगा दिया जाना और चुड़ैल बता कर गांव वालों के जरिए हमला करवाना और एक नौजवान के द्वारा वैदेही को बचा कर अपने घर ले जाना l यहाँ तक कह कर प्रतिभा थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है l रुप यह सब सुन कर सन्न रह जाती है l उसके आँखों में निरंतर आँसू बहने लगती है l प्रतिभा के रुकते ही भीगे आँखों से रुप प्रतिभा को देखती है l

रुप - मैं जानती तो थी... मेरे बाप दादा गिरे हुए हैं... पर इतने... छी... इंसान तो इंसान... जानवर कहलाने के भी लायक नहीं हैं... घृणा हो रही मुझे... खुद पर...
प्रतिभा - (आवाज़ में भारी पन था) मैं समझ सकती हूँ नंदिनी... (पॉज लेकर) जरा सोचो... वैदेही... जो पाइकराय परिवार की अंश थी... पर वह थी तो नागेंद्र क्षेत्रपाल की दंश... पर खुद उस क्षेत्रपाल के दंश की शिकार हो गई... किसीके साथ ऐसा हो... यह सोचते हुए भी रूह कांपने लगती है... फिर... उसके साथ तो वह सब गुजरी है...
रुप - (भर्राइ आवाज़ में) आप सच कह रही हैं आंटी... अगर प्रताप... बदला लेना चाहता है... तो उसमें कोई गलती नहीं है...
प्रतिभा - नहीं नंदिनी... तुम गलत सोच रही हो... प्रताप क्षेत्रपाल से... बदला इसलिए नहीं लेना चाहता.... कि उसकी बहन की आबरू लूटी है उन लोगों ने... हाँ यह मूल वजह है... और आंशिक भी... उसके बदले की वजह.... बहुत विशाल है...
रुप - यह... यह क्या आंटी... (हैरानी के साथ) प.. प्र... प्रताप का... अपनी वैदेही दीदी के लिए बदला लेना... हर लिहाज से जायज है... और वह वजह छोटी तो हो नहीं सकती... एक लड़की... जिसे कुछ भी मालुम ना हो... उसकी जिंदगी... नर रूपी कुछ राक्षस बर्बाद कर दें... फिर... आप ही ने तो कहा... वैदेही माता जगत जननी है... और विश्व उसका हथियार... अब... आप किस विशाल वजह की बात कर रहे हैं...
प्रतिभा - (एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ) याद है नंदिनी... तुमने रेडियो एफएम 97 में... अपनी स्पीच के अंत में... एक बात कही थी...
रुप - (अटक अटक कर) क्या... क्या कहा था मैंने....
प्रतिभा - यही फिल्म अग्निपथ में... अमिताभ बच्चन की माता जी... कहती हैं कि... शाबाश बेटे... क्या तरक्की कर ली है तुमने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों साल लगे.... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... पर तुमने तो एक पल भी नहीं लगाया... इंसान से जानवर बनने के लिए...
रुप - अच्छा वह... हाँ याद आया... पर प्रताप के बदले का... इस डायलॉग से क्या मतलब...
प्रतिभा - है... है नंदिनी... है... खैर... इतना समझ लो... आज प्रताप बदला लेना चाहता है... पर... इसलिए नहीं कि उसकी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई.... उसका बदला अब निजी नहीं है... उसका बदला है... सैकड़ों सालों से... उन दबे हुए... डरे हुए... जुल्मों सितम को झेले हुए... राजगड़ के हर एक आदमी... औरत... हर एक बच्चे के लिए... राजगड़ के मिट्टी के हर कण कण के लिए... उनके आजादी के लिए.... तुमने अभी वैदेही के लिए बिल्कुल सही कहा... वह जगत जननी है... और विश्व... उसके हाथ में सजे हथियार है... वह खड़ग भी है... खर्पर भी... त्रिशूल भी है... सुदर्शन चक्र भी... धनुष भी है.. और तीर भी....

रुप के तन बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है l इतना कह लेने के बाद प्रतिभा रुप की तरफ देखती है, कुछ सोच में खोई हुई थी l

प्रतिभा - नंदिनी... क्या हुआ...
रुप - क.. क्क्क्कुछ नहीं आंटी... मैं प्रताप के बारे में सोच रही थी... फिर... फिर क्या हुआ... वैदेही भाग रहीं थीं... लोग पत्थर मार रहे थे... फिर एक नौजवान आता है... वैदेही को गांव वालों से बचा कर... अपने घर ले जाता है.... फिर...

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ESS ऑफिस
ट्रेनिंग हॉल में गार्ड्स आपस में कंबेट ट्रेनिंग में व्यस्त हैं l विक्रम उनके बीच घुम घुम कर सब की निरीक्षण कर रहा था l उनके प्रैक्टिस देख कर विक्रम चिढ़ जाता है l

विक्रम - (ऊँची आवाज़ में) स्टॉप...

सभी रुक जाते हैं l विक्रम उन लोगों के बीच में आता है l

विक्रम - तुम सब लोग... अच्छे लड़ाके हो... पर किसी आम फाइटर के लिए... स्टेट के सभी सिक्युरिटी सर्विस के मुकाबले... पर हो सकता है... आने वाले कल को... हम से भी अच्छे फाइटर आयेंगे... जिनसे... दो दो हाथ करना पड़ सकता है... इसलिए तुम सबको बेस्ट होना होगा... अपना बेस्ट देना होगा... आम आई राइट...
सभी - यस सर...
विक्रम - गुड... इस बार मैं हर एक के सैलरी में पांच पांच हजार रुपये का... बढ़ोतरी कर रहा हूँ.... अपनी गैरेंटी पर... पर मैं चाहूँगा... तुम लोग अगले महीने तक... मुझे अपने ट्रेनिंग और प्रैक्टिस से... इम्प्रेस करो... आम आई क्लियर...
सभी - यस सर...

तभी सारे गार्ड्स में से एक गार्ड सामने आता है और विक्रम से पूछता है l

गार्ड - युवराज जी... अगर आप बुरा न मानें... तो एक बात पूछूं...
विक्रम - जरूर... पूछो...
गार्ड - हमें आपने... अगले महीने तक इम्प्रेस करने के लिए कहा है... पर हम आपको कैसे इम्प्रेस करें... हमारा इंप्रुवमेंट... हम कैसे साबित करें...
विक्रम - (मुस्कराते हुए गार्ड के तरफ देखता है) अभी पता चल जाएगा... (कह कर गार्ड्स के बीच आता है) तुम में से दस लोग आओ... और बाकी पीछे जाओ...

गार्ड्स आपस में देखते हैं फिर इशारों इशारे में दस लोग इक्कठे होते हैं और बाकी सब किनारे हो जाते हैं l

एक गार्ड - युवराज जी... हमें करना क्या है...
विक्रम - कोई बड़ा टास्क नहीं है... तुम लोगों को मुझ पर हमला करना है...
सारे गार्ड्स - (डर और हैरानी के साथ) क्या...
विक्रम - घबराओ मत... हमला कर सकते हो... वार जाए भी तो... मुझे कम से कम छु कर दिखाओ... सिर्फ दस मिनट में... पर याद रहे... मैं तुम लोगों को छु सकता हूँ... तुम लोगों पर वार कर सकता हूँ...

गार्ड्स आपस में एक दुसरे को देखने लगते हैं l विक्रम उन्हें कहता है

विक्रम - अब तुम लोग सोच क्या रहे हो... कॉम ऑन...

गार्ड्स अब एक साथ विक्रम पर झपट पड़ते हैं l पर विक्रम बड़ी फुर्ती के साथ अपनी जगह से हट जाता है l फिर उन दस गार्ड्स के हर वार से डॉज करते हुए खुद को बचाने लगता है l गार्ड्स अपनी पुरी ताकत लगा कर विक्रम को छूने की भी कोशिश करते हैं, पर सभी नाकामयाब रहते हैं l कोई भी दस मिनट के अंदर विक्रम को मारना तो दुर छु भी नहीं पाया l जब दस मिनट खतम होता है तभी एक आवाज़ सुनाई देता है l

- ओके... ओके... स्टॉप... दस मिनट हो गए...

वहाँ पर मौजूद सभी आवाज की ओर देखते हैं l वहाँ पर महांती खड़ा था I

विक्रम - अरे महांती... (फिर गार्ड्स की ओर देख कर) कीप प्रैक्टिसींग... (कह कर महांती की ओर जाने लगता है, फिर मुड़ कर, सभी गार्ड्स को) गार्ड्स अगले महीने... अपनी दस दस की टोली बनाओ... मुझे इम्प्रेस करो... तब तुम्हारे सैलरी में... स्पेशल इंक्रीमेंट मिलेगा...

सभी गार्ड्स खुशी के मारे चिल्लाने लगते हैं l विक्रम, महांती के पास पहुँचता है तो महांती इशारे से ट्रेनिंग हॉल के बाहर चलने को कहता है l विक्रम और महांती दोनों हॉल के बाहर आते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... कोई खबर...
महांती - जी...
विक्रम - कहो...
महांती - मैंने हाई कोर्ट के पीआईओ में सेंध लगाया...
विक्रम - अच्छा... तो क्या खबर निकाले..
महांती - रुप फाउंडेशन स्कैम से केस जुड़े... सभी पहलु...
विक्रम - ह्म्म्म्म... डिटेल्स नहीं... मुद्दे पर आओ...
महांती - वह एक... वेल ऑर्गनाइज्ड क्राइम था... उपरी सतह पर... ऐसा लगेगा... की विश्व प्रताप, कुछ लोगों के साथ मिलकर... एक संगठित लुट किए हैं... पर गहराई में जाने पर... यह मालुम पड़ता है कि... विश्व प्रताप... एक बकरा था... जिसे बलि पर चढ़ाया गया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
महांती - उस केस की सुनवाई के दौरान... जो स्पेशल बेंच बिठाया गया था... वह भी शायद विश्व को बाइज़्ज़त बरी कर दिए होते... अगर... (महांती चुप हो जाता है)
विक्रम - चुप क्यूँ हो गए... अगर...
महांती - अगर... विश्व के लिए लड़ने वाले वकील... जयंत राउत... कोर्ट में ही दम ना तोड़ दिए होते तो...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती की सवालिया नजर से देखता है) तुम्हारा हर जवाब... कुछ सस्पेंस पर रुक रहा है... महांती जवाब पुरा करो...
महांती - जी युवराज... जयंत राउत... विश्व के खिलाफ जितने भी प्रमुख गवाह थे... और जितने भी अहं सबूत थे... सबको झूठा साबित कर चुके थे...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी युवराज... सारे गवाह... और लगभग सारे सबूत... झूठे साबित हो गए थे... सिर्फ एक अंतिम गवाह थे... जिनके जिरह करते हुए... अदालती कारवाई के दौरान... जयंत राउत जी का देहांत हो गया...
विक्रम - एक मिनट... कहीं यह अंतिम गवाह... राजा साहब तो नहीं...
महांती - जी... आपने सही अंदाजा लगाया...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि तब यह हर न्यूज में... हॉट टॉपिक था... के राजा साहब... पहली बार... अदालत के कारवाई में हिस्सा ले रहे थे...
महांती - जी...

दोनों मैदान के किनारे किनारे चलते जा रहे थे l महांती देखता है विक्रम कुछ सोचते हुए अपने जबड़े भींचने लगता है I

महांती - क्या हुआ युवराज...
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, महांती की ओर देख कर) जानते हो महांती... विश्व के वकील जयंत की मौत... नॉर्मल नहीं थी.... (महांती कोई जवाब नहीं देता, महांती की चुप्पी को देखते हुए) लगता है... तुम यह बात जानते हो...
महांती - नहीं... नहीं जानता... पर अंदाजा लगा सकता हूँ... जब कटघरे में... राजा साहब हों... तो ऐसा हो सकता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक कहा...
महांती - पर युवराज...
विक्रम - हूँ...
महांती - आपको कब पता चला... के जयंत की हत्या हुई थी...
विक्रम - (महांती की ओर देखता है, फिर अपनी नजरें फ़ेर कर) सॉरी महांती... यह बात तुम्हें नहीं बताया था... इन फैक्ट... बता भी देता तो... कोई फायदा नहीं हुआ होता... आज से पांच साल पहले... याद है यश की एक्सीडेंट हुई थी... कटक में... किसी वकील की गाड़ी से टकरा गया था... और अपने ही निरोग हस्पताल में एडमिट हुआ था... तब वह मुझसे मिलना चाहता था... मैं छोटे राजा जी के साथ... उसके हस्पताल के स्पेशल केबिन में मिलने गया था... तब उसने... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, एक गहरी सांस छोड़ता है, इस बार उसकी सांसे थर्रा जाती है) हस्पताल से कुछ देर के लिए बाहर जाने की तरकीब बताई थी... (विक्रम रुक जाता है और महांती की ओर देखता है, महांती हैरानी भरे नजरों में उसे देखे जा रहा था,) मैंने उसकी तरकीब सुन कर मना कर दिया था... तब उसने मुझे बताया था कि... क्षेत्रपाल नाम को... पहचान को... भरी अदालत में... रुसवा होने से उसने बचाया है... इसलिए बदले में... मुझे उसका यह काम करना पड़ेगा... मैंने जब इस बारे में छोटे राजा जी से बात की... तब उन्होंने मुझे एडवोकेट जयंत की कत्ल की सारी बातेँ बताई थी... तब मुझे इस इस विश्व के बारे में... कुछ भी जानकारी नहीं थी.. ना ही मैंने लेने की जरूरत समझी थी...
महांती - तो आपने उसे... हस्पताल से बाहर निकलने में मदत की...
विक्रम - हाँ... मैं एक डॉक्टर के लिबास में... छोटे राजा जी के साथ उसके केबिन में गया था... अंदर उसके बेड पर मैं लेट गया था... और यश न वह डॉक्टर का लिबास पहन कर बाहर निकल गया... और... (पॉज लेकर) शुभ्रा जी के दोस्त... प्रत्युष नाम के एक लड़के को... मार कर वापस आ गया...

सारी बातेँ सुनने के बाद महांती कुछ सोच में पड़ जाता है और विक्रम भी चुप हो जाता है l

महांती - (विक्रम की ओर देख कर) युवराज... अब आप क्या करना चाहते हैं...
विक्रम - (चेहरे पर परेशानी दिखने लगती है) मैं नहीं जानता... (दांत पिसते हुए) महांती मैं नहीं जानता... विश्व से मेरी बात हो चुकी है... उसके अंदर का जुनून को मैंने महसूस किया है... और अब यश भी नहीं है... इस दुनिया में...
महांती - अगर यश होता भी... तो क्या... आप उससे मदत लेते...
विक्रम - मैं... मैं उसे... जान से मार दिआ होता... वह तो उसकी खुश किस्मती थी... जो जैल में... हार्ट चोक और ड्रग्स के ओवर डोज से मर गया... वरना... मैंने ठान लीआ था... (दांत पिसते हुए और गुर्राते हुए) शुभ्रा जी से गुस्ताखी के लिए... अपनी हाथों से उसका गला घोंट कर मार देता...

विक्रम चुप हो जाता है पर उसकी सांसे तेजी से चल रही थी l थोड़ी देर की चुप्पी के बाद

महांती - ठीक है युवराज... अब हमें करना क्या है...
विक्रम - जब तक राजा साहब हमें... इसमें इंवॉल्व होने के लिए ना कहें... हमें दुर ही रहना होगा...
महांती - मैंने आपसे... और दुसरे सोर्स से जितना जाना... जितना समझा... मुझे नहीं लगता... राजा साहब उसे संभाल पाएंगे...

विक्रम अब कोई जवाब नहीं देता l अपना चेहरा घुमा लेता है l

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वीर से बात कर लेने के बाद विश्व xxx मॉल से निकल कर एक पार्क में पेड़ के नीचे सीमेंट के बेंच पर बैठा हुआ था l अपनी हाथों को क्रॉस कर के कुहनियों में फंसा कर आँखे मूँद कर सीमेंट बेंच के हेड रेस्ट पर सिर को टिकाये अपने ही अंदर वीर के साथ अपनी दोस्ती के बारे में सोचते हुए वह गुम था I

- हैलो... मिस्टर विश्व प्रताप...

आवाज़ सुन कर विश्व अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने एक सफारी शूट पहले आँखों में काले गॉगल पहले एक हट्टा कट्टा आदमी खड़ा था l

आदमी - हेइ... आर यु विश्व प्रताप...
विश्व - (हैरानी के साथ, अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
आदमी - कैन आई सीट हीयर..
विश्व - पांच फुट लंबा बेंच है... सरकारी है... मेरे बाप की तो नहीं है...
आदमी - (बैठता नहीं है, वैसे ही खड़ा रहा) कोई तुमसे मिलना चाहते हैं... मैं तुम्हें... उनके पास ले जाने आया हूँ...
विश्व - (उस आदमी को सिर से लेकर पांव तक अच्छे से देख लेने के बाद) इंवीटेशन दे रहे हो... या धमका रहे हो... मुझे ले जाने आए हो... मैं क्या कोई बैल हूँ... जो हांकते हुए ले जाओगे...
आदमी - वेल... हमें ऑर्डर यही मिला है... आपको इज़्ज़त के साथ ले जाने के लिए... वरना... हम.... दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... (अपने दोनों हाथ हेड रेस्ट पर फैला देता है और दायां पैर को मोड़ कर बाएं पैर रख देता है) तो मिस्टर कोई के चमचे... वैसे कौनसे... सिक्युरिटी सर्विस से जुड़े हुए हो...
आदमी - (हैरान हो कर) आ... आपको कैसे मालुम हुआ... मैं किसी सिक्युरिटी सर्विस जुड़ा हुआ हूँ...
विश्व - तुम्हारा पहनावा... और एपीयरेंस... बात करने का लहजा... डीसीप्लींड तो बिल्कुल नहीं है... पर फिर भी... जिस धौंस से बात कर रहे हो... जरूर किसी गटर छाप प्राइवेट सिक्युरिटी संस्था से जुड़े हुए हो...
आदमी - वाव... (विश्व के थोड़े करीब आकर अपना हाथ आगे करते हुए) हैलो... आई एम... बिरंची सेठी... सिक्युरिटी इनचार्ज... RGSS... आई मीन... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस...
विश्व - (विश्व उससे हाथ नहीं मिलाता, इसलिए बिरंची अपना हाथ वापस लेता है) मिस्टर बिरंची... तुम्हारा उस कोई का... मुझसे क्या काम है...
बिरंची - मेरा कोई का नहीं... मेरे बॉस के बॉस का..
विश्व - अच्छा... बॉस के बॉस... मतलब बिग बॉस... उसका कोई नाम भी है... या...
बिरंची - केके... कंस्ट्रक्शन किंग... केके...
विश्व - (भवें सिकुड़ जाती है) केके...(पॉज लेने के बाद) मुझसे क्या काम पड़ गया...
बिरंची - तुम उनके... और वह तुम्हारे... काम आ सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म...
अगर ना जाऊँ तो...
बिरंची - (मुस्कराते हुए) मैंने पहले से ही बता दिया है... हम दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... मुझे विश्वा जान कर आए हो... या कोई बैल... जिसे लाठी से हांक कर ले जाओगे...

बिरंची चुप रहता है, विश्व अपनी भंवे दो बार उठा कर इशारे से पूछता है l

बिरंची - सॉरी विश्वा भाई... सॉरी...
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... तुम और तुम्हारा बिग बॉस... मेरे बारे में... अच्छी जानकारी रखे हुए हो...
बिरंची - ज.. जी...
विश्व - तो मिस्टर बिरंची... अपने बिग बॉस से कहो... गाड़ी में बैठ कर हमारी बात सुनने के वजाए... वह अपने गाड़ी से उतरे... और सीधे मेरे पास आकर बात करे...

बिरंची चौंक जाता है और विश्व को आँखे और मुहँ फाड़े देखने लगता है l

विश्व - अपना मुहँ बंद कर... इस पार्क में मच्छर बहुत हैं... घुस जाएंगे...

कुछ देर बाद ताली बजाते हुए पार्क के एंट्रेस से केके उर्फ़ कमल कांत अपने सिक्युरिटी गार्ड्स के साथ वहाँ आता है l एक गार्ड विश्व के बैठे हुए बेंच के सामने एक फोल्डिंग चेयर डाल देता है जिस पर केके बैठ जाता है l

केके - वाव.. वाव... जैसा सुना था.. तुम तो उससे भी बढ़ कर निकले...
विश्व - मतलब कम ही सुना है मेरे बारे में... और शायद कम ही जानते हो मेरे बारे में...
केके - हाँ कम ही सुना है... पर तुम बड़े काम के हो... यह अब जान गया हूँ... मैं तो फैन हो गया तुम्हारा...
विश्व - कमाल की बात है... आज कल मेरे फैन फोलोवींग तो बढ़ती ही जा रही है...
केके - हीरे की कद्र तो हर किसीको होता है... हाँ यह बात और है... हर किसीके नसीब में.. हीरा नहीं होता...
विश्व - तो तुम यहाँ... अपना नसीब आजमाने आए हो...
केके - आजमाने नहीं... बनाने आया हूँ... तुम्हारा...
विश्व - अच्छा... तो मेरे पंखे... अब हवा चलाना बंद करो... किस काम से आए हो... यह बकना शुरु करो...
केके - देखो... कुछ बातेँ हैं... जिन पर जिक्र... या मशविरा बंद कमरे में.. या बंद जगहों पर होने चाहिए....
विश्व - ह्म्म्म्म.. मतलब... या तो तुम बात छुपाना चाहते हो है... या खुद को...
केके - दोनों... बात भी... और खुद को भी... ईफ यु डोंट माइंड... यहीं पार्क के बाहर... मेरा अपना वैनिटी वैन है... क्यूँ ना मेरे वैनिटी वैन में चलें...
विश्व - (कुछ देर केके को घूर कर देखता है, फिर अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ठीक है... चलो...

विश्व और केके उठ खड़े होते हैं और पार्क के बाहर चलने लगते हैं l दोनों को को गार्ड्स घेर कर बाहर एक खड़े एक वैनिटी वैन की ओर ले जाते हैं l दोनों वैनिटी वैन में बैठ जाते हैं l विश्व अंदर देखता है बहुत ही लक्जरीयस था अंदर से I इतना लक्जरीयस के सोफ़े लगे हुए थे, टीवी फ्रिज भी था और यहाँ तक उसमें बाथरुम और टॉयलेट भी था l एक टेबल पर एक नौजवान भी वहाँ पर बैठा हुआ था l विश्व और केके के बैठने के बाद वैन चलने लगता है l

विश्व - इन साहब की तारीफ...
केके - यह मेरा बेटा है... विनय...

विश्व उसे गौर से देखता है, विनय स्टाइलिश ड्रेस में बैठा हुआ था, चुइंगम चबाते हुए विश्व को हाथ हिला कर हाय कहता है l जवाब में विश्व मुस्करा कर बस अपना सिर हिलाता है l

केके - सो विश्वा... जो तुम्हारी मंजिल है... हम तुम्हें उस मंजिल तक पहुँचा सकते हैं... क्यूंकि वही... हमारी भी मंजिल है... आई मीन... क्षेत्रपाल की बर्बादी...
विश्व - ह्म्म्म्म... अच्छा... अब यह बताओ... हम एक दुसरे के कैसे काम आ सकते हैं...
केके - देखो... तुम क्षेत्रपाल के दुश्मन हो... और मैं भी... और यह कहावत है कि... दुश्मन का दुश्मन... दोस्त होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... मुझसे चाहते क्या हो...
विनय - अरे यार... हम चाहते हैं... तुम हमारे लिए काम करो...
विश्व - बात जब बाप से हो रहा हो... पिल्लों को बीच में नहीं फुदकना नहीं चाहिए...
विनय - ऐ... पिल्ला किसको बोला बे...
विश्व - यहाँ तेरे सिवा... मुझे कोई और दिख नहीं रहा है...
विनय - (शिकायत भरे लहजे में चिल्लाते हुए) डैड...
केके - (विनय से) श्श्श्श्श... थोड़ी देर के लिए चुप रहेगा... (विनय मुहँ बना कर अपने जगह पर बैठ जाता है) विश्वा... विनय ने गलत नहीं कहा है...
विश्व - अच्छा... (हँसते हुए) उसने ऐसा क्या सही कह दिआ...
केके - क्षेत्रपाल क्या है... कैसा है... यह तुम अच्छे तरह से जानते हो... तुम्हें उसके खिलाफ लड़ने के लिए... हर फिल्ड मे... सपोर्ट चाहिए होगी...
विश्व - जब से मिले हो... पहेली पर पहेली बुझा रहे हो... सीधे सीधे मुद्दे पर आओ...
केके - देखो... यह हम जानते हैं... तुमने अभी रुप फाउंडेशन स्कैम पर आरटीआई दायर किया है... इसलिए अब आगे तुम्हें किसी ना किसी की सहायता की जरूरत पड़ेगी... हम तुम्हें हर तरह की मदत मुहैया कराएंगे...
विश्व - और... इसके लिए मुझे क्या करना पड़ेगा...
केके - सिंपल... तुम हमारे लिए काम करो... तो क्या कहते हो... डील...
विश्व - हा हा हा हा... (हँसते हुए) केके... ऐसे डील.. शाह करते हैं... प्यादे नहीं...
केके - व्हाट... (जुबान लड़खड़ाने लगती है) क्क्क.. क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
विश्व - केके... उर्फ़ कमला कांत महानायक... उर्फ़ कंस्ट्रक्शन किंग... मैं... सामने वाले की बात से... उसकी औकात का अंदाजा लगा लेता हूँ...
विनय - ऐ... (गुस्से से तन कर) अपनी जुबान संभाल... मत भूल... तु हमारे कब्जे में है... (दांत पिसते हुए) अभी के अभी... तेरी खाल खिंचवा देंगे....

विश्व, विनय को आँखे उठा कर देखता है, उसका का जबड़ा भींच जाता है, उसके मुट्ठीयाँ कसने लगती हैं l यह देख कर केके अपने हलक से थूक बड़ी मुस्किल से निगलता है l वह झटपट खड़े हो कर विनय को थप्पड़ मार देता है l विनय हैरान हो कर अपने बाप को देखता है और अपने लाल हुए गाल को सहलाते हुए अपनी जगह पर बैठ जाता है l केके भी अपने जगह पर बैठ जाता है l

केके - विश्वा... हम तुम्हारे बारे में... सब कुछ जानते हैं... तुम... हमारे बारे में कुछ भी नहीं जानते... फिर यह तुमने... किस बिनाह पर कहा...
विश्व - केके... तुम वह लंगड़े हो... जो कभी क्षेत्रपाल नाम की वैशाखी की सहारे भांगड़ा कर रहे थे... बस कुछ ही महीनों पहले.... पिनाक सिंह पर हमले के बाद.... खुद को बचाते हुए अंडरग्राउंड कर लिए थे... पर जो वजह... तुम्हें अंडरग्राउंड से बाहर लेकर आया है... वह वजह... मैंने ही बनाया है...
केके - (हैरान हो कर) क्क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कैसी वजह...
विश्व - (आगे झुक कर घुटनों पर कोहनी रख कर) थाईशन टावर... स्वपन जोडार... कुछ याद आया... (केके का मुहँ खुला रह जाता है) अब तुमने वैशाखी बदल ली है... जिसके सहारे अंडरग्राउंड से निकल कर... ना सिर्फ वह सारे सामान... स्वपन जोडार को लौटाया... बल्कि हेवी पेनल्टी भी दिया...
केके - मतलब तुम...
विश्व - (आत्मविश्वास भरा मुस्कान लिए) मैं स्वपन जोड़ार का लीगल एडवाइजर हूँ...

विश्व की इस खुलासे से केके विश्व को आँखे और मुहँ फाड़ कर देखने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

विश्व - हालाँकि मैंने क्षेत्रपाल को टार्गेट किया था... पर किस्मत में तुम्हारा पिछवाड़ा लिखा था....
केके - तो... क्या हुआ... अब आगे और भी मौके आयेंगे... तब तुम्हें हमारी जरूरत पड़ेगी ना... स्वपन जोडार... क्या कर सकता है... कुछ भी नहीं...
विश्व - तुम अपनी बात करो... तुमने जो वैशाखी... अभी जिसकी नाम की बदला है... अपने उसी बाप के बारे में मुझे जानकारी दो...

केके फिर से चौंक जाता है उसका का मुहँ खुला का खुला रह जाता है l अब उसके हलक से थूक भी ना निगला जा रहा था l

विश्व - वह शख्स... तुम्हारा नाजायज बाप... जिसके बैसाखी के सहारे... तुम क्षेत्रपाल से टकराने की सोचा है... वह स्टेट पालिटिक्स में क्षेत्रपाल के बराबर कद तो नहीं रखता होगा... पर कम भी नहीं होगा... कौन है वह...
केके - वह.... (केके कुछ नहीं कह पाता है)
विश्व - कोई नहीं... वैसे भी आज मेरा मुड़ नहीं है... अपने ड्राइवर से कहो... वैनिटी वैन यहीं पर रोक दे... कल का कोई भी टाइम मुकर्रर कर लो... मैं तुम्हें उसी पार्क में मिलूंगा...
केके - ठी.. ठीक है...

केके गाड़ी के भीतर पीए सेक्शन ऑन कर ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए बोलता है l गाड़ी रुकते ही विश्व उतर जाता है l विश्व के जाने के बाद

विनय - डैड... इसे जाने क्यूँ दिया... चूहा बन कर आया था... हमारे चूहे दानी में फंसने के लिए... और यह तो... पहले से ही... हमारा ही बजाया हुआ है... इतने गार्ड्स हैं हमारे...
केके - हूँ... तुम अपनी बकौती बंद करो... इतनी जल्दी रंगा को कैसे भूल गए... इस एक आदमी को देख कर रंगा और उसके बाइस आदमी भाग खड़े हुए... हमारे कुछ गार्ड्स उसका क्या बिगाड़ लेते... मैंने इसे बातों में नाप लूँगा ऐसा सोच लिया था...गलत आंक लिया था... यह तो जरूरत से ज्यादा शार्प है...

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द हैल
शाम ढल चुकी है
रात के खाने का समय है l डायनिंग टेबल पर घर के चारों सदस्य बैठे हुए हैं l चारों की थाली लगी हुई है पर तीन सदस्यों का ध्यान थाली पर नहीं था I विक्रम, वीर और रुप तीनों ही अपने में खोए हुए थे l तीनों का हाथ खाने के निवाले पर तो था पर वहाँ से हिल नहीं रहा था l शुभ्रा तीनों को देखते हुए अपनी थाली से निवाला उठाते हुए रुक जाती है, फिर निवाले को थाली पर रख कर

शुभ्रा - क्या बात है... खाना खराब बना है क्या...

तीनों चौंकते हैं l क्यूँकी तीनों ही अपने अपने ख़यालों में खोए हुए थे l तीनों ही के जेहन में विश्व ही घुम रहा था l जहां विक्रम आज महांती से मिले जानकारी और विश्व के साथ अपनी निजी तजुर्बे के बारे में सोच रहा था वहीं रुप विश्व के अतीत और वर्तमान को प्रतिभा से जान लेने के बाद अपने और विश्व की भविष्य को कैसे जोड़े इसी सोच में खोई हुई थी l इन दोनों के अलावा वीर भी विश्व के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी ना होने पर सोच सोच कर हैरान भी था और परेशान भी I

तीनों - कुछ नहीं... सब ठीक है...
शुभ्रा - क्या कुछ नहीं... तीनों के सामने खाना लगा हुआ है... पर तीनों का ध्यान कहीं खोया हुआ है...
विक्रम - कुछ नहीं ऐसे ही... वह मैं... आने वाले दिनों में... पार्टी में अपनी भूमिका के बारे में सोच रहा था...
शुभ्रा - यह आप खाने के टेबल पर ही क्यूँ सोच रहे थे... (विक्रम चुप रहता है) वीर... तुम किसके ख़यालों में खोए हुए थे... (छेड़ते हुए) कहीं... (पुरी बात नहीं कह पाती)
वीर - (सकपका जाता है) नहीं... नहीं भाभी... ऐसा कुछ भी नहीं है...
शुभ्रा - हाँ भई... ठीक है... हम होते कौन हैं... क्या कुछ हो गया... हमे चाची माँ से मालुम होता है... पर आपसे नहीं... ऐसा क्यूँ...
वीर - वह भाभी... (क्या कहे वह समझ नहीं पाता, खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करते हुए) सॉरी भाभी... सॉरी...
शुभ्रा - ठीक है... लगता है.. आज तुम्हारा मुड़ ठीक नहीं है... (रुप से) और तुम... आज तुम्हें क्या हो गया है... सुबह से गई थी... शाम को आई हो... और जब से आई हो... मैं देख रही हूँ... तब से खोई खोई सी हो...
रुप - (हड़बड़ा जाती है, अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए) कु... कुछ नहीं है... कुछ नहीं है भाभी...
शुभ्रा - पता नहीं क्यूँ... तुम तीनों का ज़वाब... तुम लोगों के हाव भाव से मैच नहीं कर रहे हैं... (सभी शुभ्रा की ओर देखते हैं) आज पहली बार ऐसा हो रहा है... तीनों ही अपने आप में खोए हुए हो... कहीं ऐसा तो नहीं... तीनों आज किसी एक ही विषय पर... सोचे जा रहे हो...

शुभ्रा इतना कह कर हँस देती है l शुभ्रा का साथ देते हुए रुप और विक्रम भी हँस देते हैं, पर वीर नहीं हँसता l शुभ्रा वीर की और देखती है I

शुभ्रा - वीर... क्या हुआ... अभी भी... बहुत सीरियस हो...
वीर - (एक पॉज लेकर) हाँ भाभी... मैं अभी अपने एक दोस्त... और हमारी दोस्ती की भविष्य के बारे में.. सोच रहा हूँ...
विक्रम - (हैरान हो कर) दोस्त... कौन दोस्त... कैसा भविष्य...
वीर - तुम.... (थोड़ा रुक कर) तुम उसे जानते हो...
विक्रम - मैं...
वीर - हाँ भैया... (विक्रम की ओर देखते हुए) तुम्हारा उससे... तीन बार अनचाहा मुलाकात हो चुका है...

विक्रम की भवें तन जाते हैं l वह सवालिया नजर से वीर की ओर देखने लगता है l

वीर - विश्व... विश्व प्रताप महापात्र....

विश्व का नाम आते ही रुप की गले में खाना अटक जाता है l वह खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर को थपथपा कर पानी पिलाती है l

विक्रम - तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो... या जानना चाहते हो...
वीर - नहीं... मैं कुछ भी जानना नहीं चाहता हूँ... तुम्हारा उससे कैसे... कहाँ... और किस वजह से मुलाकात हुई है... यह मैं बिल्कुल जानना भी नहीं चाहता हूँ... पर तुम्हें कुछ बताना जरूर चाहता हूँ... (विक्रम वीर की आँखों में देखने लगता है) मैं उसका अतीत नहीं जानता... पर आज... उसकी बातों से एक बात जरूर जान गया... उसके ज़ख्म... हम क्षेत्रपालों के वजह से है... क्षेत्रपाल बिल्कुल भी सही नहीं किया होगा... क्यूंकि हम... बिलकुल भी अच्छे तो नहीं हैं...
विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) तुम कहना क्या चाहते हो...
वीर - यही.. के कल क्या होगा... मैं नहीं जानता... पर अगर... क्षेत्रपाल और विश्व कभी आमने सामने हुए... तो मैं... विश्व के खिलाफ नहीं जाऊँगा.... (कुछ देर के लिए एक चुप्पी सी छा जाती है) चाहे कुछ भी हो जाए...

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l पर उसकी कहे बातेँ वहाँ पर बैठे तीनों पर गहरा असर छोड़ा था l क्यूँकी तीनों ही विश्व से किसी ना किसी तरह से सवंधीत थे I

शुभ्रा - वीर... खाना ऐसे अधूरा नहीं छोड़ते...
वीर - (रुक जाता है) भाभी... माफी चाहूँगा... पर आज... मेरी दिली हालत ठीक नहीं है... खा नहीं पाऊँगा...

यह कह कर वीर चला जाता है l विक्रम को भी अब अच्छा नहीं लगता l विक्रम अपना थाली छोड़ कर उठने लगता है l

शुभ्रा - विक्की... आप तो ना जाइए...
रुप - हाँ भैया... आप उठ गए... तो भाभी भी उठ जाएंगी...

विक्रम खुद को काबु करते हुए बैठ जाता है और बेमन से खाना खाने लगता है l जैसे जैसे खाना खतम होने को आता है तब रुप विक्रम से कहती है

रुप - भैया...
विक्रम - (रुप की ओर बिना देखे) हूँ...
रुप - मैं कल चाची माँ के पास जाना चाहती हूँ... क्या आप मुझे राजगड़ जाने देंगे...
विक्रम - (रुप की ओर देख कर) पर तुम्हारा एक्जाम...
रुप - एक्जाम के वक़्त आ जाऊँगी... प्लीज भैया...
विक्रम - (खाना खतम कर उठते हुए) ठीक है... कल सुबह तैयार हो जाना... मैं गुरु को कह देता हूँ... वह तुम्हें राजगड़ ले जाएगा...
रुप - (खुश होते हुए) ठीक है भैया...

विक्रम वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही शुभ्रा रुप की ओर सवालिया नजरों से देखती है I रुप शुभ्रा से नजरें चुरा कर खाना खतम करने लगती है l

शुभ्रा - यह क्या नाटक है नंदिनी... तुम यूँ अचानक राजगड़...
रुप - वह भाभी... मुझे... चाची माँ की बहुत याद आ रही है...
शुभ्रा - तुमने अपने भाई को बना दिया... ठीक है... मुझे तो ना बनाओ...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) (शुभ्रा की ओर देखते हुए) भाभी... मेरी मंजिल... उसकी की हासिल... राजगड़ में है... मैं सिर्फ कुछ दिनों के लिए जाना चाहती हूँ...
शुभ्रा - (हैरानी से भवें सिकुड़ कर) आज सबको क्या हो गया है... कोई भी सीधे सीधे बात क्यूँ नहीं कर रहे हैं... वीर अपनी बात घुमा रहा है... विक्की भी बात घुमा रहे हैं और नंदिनी... तुम भी... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है, फिर) आज सुबह से गायब रही... कहाँ गई नहीं बताया... आई तो आई... शाम को आई... और अब कह रही हो... राजगड़ जाना चाहती हो...
रुप - (अपना हाथ बढ़ा कर शुभ्रा हाथ थाम लेती है) भाभी... प्लीज... मैं वापस आकर आपको सब बता दूंगी...

कह कर डायनिंग टेबल से उठ जाती है l शुभ्रा को डायनिंग टेबल पर असमंजस स्थिति में छोड़ कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद सीडियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चली जाती है l
कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर अपने रीडिंग टेबल की ओर देखती है जहां उसकी मोबाइल रखी हुई थी l वह आकर अपना मोबाइल उठाती है और बेड पर गिर जाती है l मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन करती है l प्रतिभा से हुई सारी बातेँ रिकॉर्ड थी वह सुनने लगती है l धीरे धीरे रिकॉर्डिंग को फॉरवर्ड करने लगती है l कहानी उस मोड़ पर आ जाती है जहां वैदेही को बचा कर वह नौजवान अपने घर लता है l घर में पहुँच कर वैदेही देखती है,

यह तो वही घर है जहां उसकी बचपन गुजरी थी, वह मुड़ कर उस नौजवान को देख कर पहचानने की कोशिश करती है l अचानक वह पहचान जाती है यह तो उसका भाई विश्व है जिसे वह मरा हुआ समझती थी l उसके होंठ थरथराने लगी

वैदेही - विशु...

Jabardasttt Updateee
 

parkas

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👉एक सौ पांचवां अपडेट
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वैदेही के बारे में कहते कहते प्रतिभा रुक जाती है l रुप को प्रतिभा के चेहरे पर वैदेही से एक भावनात्मक लगाव दिखता है l पर रुप के माथे पर सिकुड़न दिखती है वह कुछ सोचते हुए अपना सिर नीचे कर लेती है l


प्रतिभा - क्या बात है नंदिनी... कुछ असमंजस सी लग रही हो...
रुप - (उसी असमंजस स्थिति में, अटक अटक कर) कु... कुछ नहीं आंटी... अनाम... मेरा मतलब है... प्रताप जब महल में आया था... तब उसने मुझसे कहा था... की वह... अनाथ था... मतलब अनाथ हो गया है... बचपन में माँ चल बसी... पिता और बड़ी बहन... महल आने के कुछ दिन पहले... हादसे में गुजर गए थे... पर अब.. (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - (मुस्करा कर) उसने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला था... तब उसके लिए... वही सच था... उसकी बहन... उस दर्दनाक हादसे के सात साल बाद मिली... तब उसे मालुम हुआ... के उसकी दीदी जिंदा है...
रुप - (चौंक कर) क्या... स.. सात साल... बाद...
प्रतिभा - हाँ सात साल बाद....

इतना कह कर प्रतिभा रुप को देखती है, रुप बहुत ही हैरानी भरे नजरों से प्रतिभा को देखे जा रही है l

प्रतिभा - खैर... अब तुम यह बताओ... तुम अनाम की पिछली जिंदगी... जिससे तुम जुड़ी नहीं हो.... वह मुझसे ही क्यूँ जानना चाहा... अनाम... यानी प्रताप से सीधे क्यूँ नहीं पूछा...
रुप - (झिझकते हुए) जी.. वह...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... जब तुम्हें यह मालुम हुआ... के प्रताप ही.... अनाम है... तो... तुम उसे अपनी पहचान बता कर... उससे.. उसकी पिछली जिंदगी के बारे में क्यूँ नहीं पूछी...

प्रतिभा की बात सुन कर रुप थोड़ी असहज हो जाती है l वह प्रतिभा की ओर देखती है, प्रतिभा मुस्कराते हुए जिज्ञासा भरी नजर से उसे देख रही थी l

प्रतिभा - ऊपर से... सोने पे सुहागा... हाथ छोड़ दिया... बेचारे प्रताप के गालों पर...
रुप - (अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर) सॉरी आंटी...
प्रतिभा - हूँ... यह मैं बाद में डिसाइड करूंगी... तुम्हारा सॉरी एसेप्टेबल है... या नहीं... क्या यह थप्पड़ मारने की आदत बचपन से है...
रुप - प्लीज आंटी...
प्रतिभा - अरे नहीं... कोई भी मिलता है... बजा देती हो उसे... उस दिन इंस्पेक्टर को... जानती हो... वह भी राजगड़ से था...
रुप - (चौंकती है) क्या...
प्रतिभा - हाँ नंदिनी... उस दिन जब तुम लोग मेरे घर में थे... मुझे मालुम हुआ... की प्रताप को ढूंढते हुए... वह मेरे घर आने वाला था... इसीलिए... उस दिन तुम्हारे जरिए प्रताप को वहाँ से भगाया था.... (अब कि बार रुप की हैरानी और भी बढ़ जाती है)
रुप - क्या... पुलिस इंस्पेक्टर... प्रताप को ढूंढ रहा था.... एक मिनट... आंटी... एक मिनट... अब मेरा सिर चकरा रहा है... प्रताप है क्या चीज़... पुलिस उसे ढूंढ रही है... और मुजरिम... उससे डरते हैं...
प्रतिभा - पुलिस इसलिए नहीं ढूंढ रही है कि... वह कोई मुजरिम है या... उसने कोई जुर्म किया है... वह इसलिए ढूंढ रही थी... ताकि तुम्हारे पिता की सल्तनत महफूज रहे... जिसकी नींव अब हिलने लगी है... (रुप मुहँ फाड़े प्रतिभा की ओर देखने लगती है)
रुप - म.. मतलब...
प्रतिभा - मतलब... मतलब यह है कि... आज प्रताप कानून का वह मुहाफीज है... जिससे हर कानून और इंसानियत के दुश्मन डर रहे हैं... वह चाहे वर्दी वाला हो... या... खैर... मेरा उस सवाल का जवाब... तुमने नहीं दिया... तुमने... प्रताप से जानने की कोशिश क्यूँ नहीं की...

रुप कुछ देर के लिए चुप हो जाती है l वह खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करती है l एक गहरी सांस छोड़ते हुए

रुप - आंटी... मैं अपनी बात क्या कहूँ... जब होश संभाला... तब मेरी दुनिया सिर्फ माँ की गोद और आंचल थी... मेरे पास मेरे भाई नहीं थे... मेरे पास मेरे पिता नहीं थे... ऐसे में एक दिन... मेरी माँ... (आवाज़ भर्रा जाती है) मुझे छोड़ कर चली जाती है... मेरी छोटी माँ... यानी मेरी चाची माँ.... मुझे संभाला तो बहुत... पर गम में... डर में... तड़प में... मैं अपनी माँ को ढूंढ रही थी... मेरे पास... मुझे पुचकारने के लिए... या दुलारने के लिए... कोई नहीं था... छोटी माँ... मुझसे जुड़ी रहती तो थी... पर उनकी भी अपनी सीमाएँ थी... मुझे लगने लगा... जैसे... किसी को भी.. मेरी जरूरत नहीं है... मैं अपने पिता के लिए... अपनी भाई के लिए... एक गैर जरूरत चीज़ हूँ... मुझे धीरे धीरे उजाले से डर लगने लगा था... अंधेरे की आदत होने लगी थी... जानती है आंटी... उस वक़्त मैं सिर्फ पांच साल की थी... ऐसे में... अनाम.... मेरी जिंदगी में आया... बुझी बुझी सी... मुर्झाइसी जिंदगी में... एक नई जान लेकर आया.... मेरे जीवन की अंधेरे को चीरते हुए... अपने साथ का अलख लेकर के आया... उसके वजह से ही.. मैंने रूठना सीखा... क्यूंकि उसका मनाना... मुझे बहुत अच्छा लगता था... मैं हँसने लगी... क्यूंकि उसके साथ मुझे हँसना अच्छा लगता था... मैं अंधेरे से अब डरने लगी थी... क्यूँकी मुझे उसके सीने से लग जाना... अच्छा लगता था.... और वह... किसी भी कीमत पर... मुझे हँसाने की कोशिश करता... कहानियाँ सुनाता... गप्पे लगाता... मेरे लिए घोड़ा बन जाता... ऐसे में... मैं धीरे धीरे... उसके लिए पजेस्सीव होने लगी... उस पर अपना हक़ जताने लगी... और वह बेवक़ूफ़... मेरी खुशी के लिए... मेरी हर बात को मान लिया करता था... फिलींग्स तो बचपन में ही पनपने लगे थे.... पर उसके साथ जुदाई ने... मुझे यह एहसास दिलाया... हर ख्वाहिश... और हर चाहत... पुरी नहीं होती.... मैंने उससे वादा तो ले लिया... की वह मुझसे ही शादी करेगा... पर वास्तविकता मुझ पर हँस रही थी... चिढ़ा रही थी... कैसे... कब... (कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर जाती है, फिर) आंटी... समय के साथ साथ... अनाम मेरे लिए... एक मिथक बन चुका था... मैंने... अपनी जिंदगी से... समझौता भी कर लिया था... क्यूंकि... वह महल था... क्षेत्रपाल महल... और उस महल के.. अंतर्महल से ना कोई बाहर जा सकता था... ना कोई अंदर आ सकता था... फिर पता नहीं... भगवान को क्या मंजुर था... दसपल्ला राज घराने में... मेरी शादी तय हुई... उनको जिस तरह की बहू चाहिए थी... वैसी मैं नहीं थी... इसलिए मुझे भुवनेश्वर भेजा गया... ताकि उनके घर के लायक बन सकूँ... यहाँ किस्मत ने फिर से... अनाम से रुबरु कराया... सच कहूँ तो ओरायन मॉल में ही पहचान गई थी... पर... यकीन नहीं कर पा रही थी के वही अनाम है... ऐसे में... पार्किंग में वह लड़ाई... मेरे भाई से...
प्रतिभा - हाँ... हाँ... हाँ... पर तुम तो वहाँ नहीं थी...
रुप - थी आंटी... थी.. गाड़ी के भीतर... और बाहर की हर बात... मुझे दिखाई भी दे रहा था... और सुनाई भी दे रही थी... मेरे भाई के... मेरे पिता के नाम लेकर... ललकारने के बाद... अनाम जिस तरह से रिएक्ट किया... तभी मैं समझ गई... के कुछ तो हुआ है... जिसके पीछे मेरे पिता का हाथ है... उसके बाद फिर अनाम से... मेरे जन्मदिन पर... धबलेश्वर मंदिर में मुलाकात हुई....
प्रतिभा - ना... मुलाकात नहीं... मुक्कालात हुई...
रुप - (हँस देती है) प्लीज आंटी.... मत छेड़ीये...
प्रतिभा - अरे... मैं छेड़ कहाँ रही हूँ... मैं तो माहौल को हल्का कर रही हूँ... वरना देखो... चेहरा कितना सीरियस है तुम्हारी...

रुप फिर से हँस देती है और अपना सिर झुका लेती है l इस बार वह हल्की सी शर्माने भी लगी l

प्रतिभा - अरे... रुक क्यूँ गई... बोलो... आगे क्या हुआ...
रुप - जी...(चौंकते हुए) जी... वह... मैं कहाँ पर थी... हाँ... याद आया... आंटी... उस दिन मुझे जिस तरह का बर्थ-डे विश मिला... वह सिर्फ और सिर्फ... अनाम ही कर सकता था... सोच सकता था... और... इत्तेफ़ाक देखिए... बिछड़ते वक़्त... मैंने जो वादा लिया था... अनाम से... वह वादा... भगवान के दर पर पुरा हुआ... पर फिर भी... मुझे यकीन नहीं हो पा रहा था... की यही अनाम है... क्यूंकि अनाम जब अनाथ था... तो उसके माँ बाप कहाँ से आए... इस उधेड़ बुन में थी के... इत्तेफ़ाक और होने लगे... अनाम और मैं... ड्राइविंग स्कुल में मिले... हमारी दोस्ती हुई... दोस्ती गहरी भी हुई... फिर वह मोड़ भी आया... जब हमें फिर से बिछड़ना था... वह पल बहुत भारी था मेरे लिए... एक युद्ध चल रही थी... मेरे अंर्तमन में... एक द्वंद था... कौन है यह... प्रताप... या अनाम... बर्दास्त नहीं हुआ... मैं... उसके सीने से लग गई... उसकी धड़कने मेरे कानों में दस्तक देने लगे... जैसे मेरा नाम पुकार रहा हो... क्यूंकि बचपन से यही धड़कन तो सुन रही थी... और मेरी नथुने... मुझे महकाने लगे... मैं हैरान हो गई... यह... यह तो अनाम है... हाँ... यह उसीकी जिस्म की खुशबु थी... मैं पहचान गई थी... यह अनाम ही था... मैं उससे अलग हुई... उसके आँखों में देखा... उसके आँखों में... जैसे कोई झिझक था... कोई ग्लानि था.... मैं मन ही मन उसे कहने लगी... बेवकूफ मैं तुझे पहचान गई... पर तुमने... तुमने क्यूँ नहीं पहचाना मुझे.... बस इसी बात पर... मैंने... (चुप हो जाती है)
प्रतिभा - हूँ... तुमने थप्पड़ जड़ दिया... तो क्या इसलिए... तुमने उसे... उसके अतीत के बारे में नहीं पुछा...
रुप - मेरी चाहत शिद्दत भरा था... इसलिए मैंने उसे पहचान लिया... मैं पूछ भी लेती... अगर... उसके आँखों में... झिझक और ग्लानि न देखी होती...
प्रतिभा - हूँ....

थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप प्रतिभा को और कुछ सुनने की आश लिए देखती है I

प्रतिभा - हूँ... उस दिन के बाद... फिर बातचीत नहीं हुई...
रुप - हुई... हुई ना..
प्रतिभा - तो कुछ पता चला तुम्हें...
रुप - हाँ... यही के.. वह अब भी नहीं पहचानता मुझे... और...
प्रतिभा - और...
रुप - झिझक इसलिए था कि... उसके सीने से नंदिनी लगी थी... जिसे वह दिलासा नहीं दे पा रहा था... और ग्लानि इसलिए थी... क्यूंकि नंदिनी के प्रति खिंचाव... उसे राजकुमारी के प्रति भावनाओं के आगे... लज्जित कर रही थी...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वाकई... तुम उस भोंदु के लिए... परफेक्ट हो... (यह सुन कर रुप शर्मा जाती है पर प्रतिभा थोड़ी सीरियस हो जाती है) पर क्या... तुम प्रताप की... राजा भैरव सिंह से... दुश्मनी की वजह जान कर... उसके लिए... वही फिलींग्स रख पाओगी....
रुप - (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) आंटी... मैं क्षेत्रपाल हूँ... यह मेरे लिए... कोई गर्व की बात नहीं है... मैं बस... उसके... अनाम के अतीत को जानना चाहती हूँ... वह मुझसे बिछड़े आठ सालों में... ऐसा क्या हो गया... मैं उससे पूछूँगी तो... वह राजकुमारी से बात करेगा... रुप से नहीं... उसका अतीत रुप जानना चाहती है... ना कि राजकुमारी....
प्रतिभा - अच्छा... ह्म्म्म्म... ठीक है...

प्रतिभा नन्ही वैदेही का रंग महल से भागना, रघुनाथ महापात्र और सरला महापात्र को मिलना, विश्व का जन्म, सरला देवी की देहांत, फिर वैदेही और विश्व का इम्तिहान में अच्छे नम्बरों से पास होना, मेडिकल एंट्रेंस के लिए कटक जाने के वक़्त डाकुओं के वेश में क्षेत्रपाल और उसके लोगों को आना, वैदेही को उठा कर ले जाना, फिर उसके साथ दुष्कर्म, हस्पताल पहुँचना अंत में रंग महल से वीवस्त्र भगा दिया जाना और चुड़ैल बता कर गांव वालों के जरिए हमला करवाना और एक नौजवान के द्वारा वैदेही को बचा कर अपने घर ले जाना l यहाँ तक कह कर प्रतिभा थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है l रुप यह सब सुन कर सन्न रह जाती है l उसके आँखों में निरंतर आँसू बहने लगती है l प्रतिभा के रुकते ही भीगे आँखों से रुप प्रतिभा को देखती है l

रुप - मैं जानती तो थी... मेरे बाप दादा गिरे हुए हैं... पर इतने... छी... इंसान तो इंसान... जानवर कहलाने के भी लायक नहीं हैं... घृणा हो रही मुझे... खुद पर...
प्रतिभा - (आवाज़ में भारी पन था) मैं समझ सकती हूँ नंदिनी... (पॉज लेकर) जरा सोचो... वैदेही... जो पाइकराय परिवार की अंश थी... पर वह थी तो नागेंद्र क्षेत्रपाल की दंश... पर खुद उस क्षेत्रपाल के दंश की शिकार हो गई... किसीके साथ ऐसा हो... यह सोचते हुए भी रूह कांपने लगती है... फिर... उसके साथ तो वह सब गुजरी है...
रुप - (भर्राइ आवाज़ में) आप सच कह रही हैं आंटी... अगर प्रताप... बदला लेना चाहता है... तो उसमें कोई गलती नहीं है...
प्रतिभा - नहीं नंदिनी... तुम गलत सोच रही हो... प्रताप क्षेत्रपाल से... बदला इसलिए नहीं लेना चाहता.... कि उसकी बहन की आबरू लूटी है उन लोगों ने... हाँ यह मूल वजह है... और आंशिक भी... उसके बदले की वजह.... बहुत विशाल है...
रुप - यह... यह क्या आंटी... (हैरानी के साथ) प.. प्र... प्रताप का... अपनी वैदेही दीदी के लिए बदला लेना... हर लिहाज से जायज है... और वह वजह छोटी तो हो नहीं सकती... एक लड़की... जिसे कुछ भी मालुम ना हो... उसकी जिंदगी... नर रूपी कुछ राक्षस बर्बाद कर दें... फिर... आप ही ने तो कहा... वैदेही माता जगत जननी है... और विश्व उसका हथियार... अब... आप किस विशाल वजह की बात कर रहे हैं...
प्रतिभा - (एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ) याद है नंदिनी... तुमने रेडियो एफएम 97 में... अपनी स्पीच के अंत में... एक बात कही थी...
रुप - (अटक अटक कर) क्या... क्या कहा था मैंने....
प्रतिभा - यही फिल्म अग्निपथ में... अमिताभ बच्चन की माता जी... कहती हैं कि... शाबाश बेटे... क्या तरक्की कर ली है तुमने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों साल लगे.... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... पर तुमने तो एक पल भी नहीं लगाया... इंसान से जानवर बनने के लिए...
रुप - अच्छा वह... हाँ याद आया... पर प्रताप के बदले का... इस डायलॉग से क्या मतलब...
प्रतिभा - है... है नंदिनी... है... खैर... इतना समझ लो... आज प्रताप बदला लेना चाहता है... पर... इसलिए नहीं कि उसकी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई.... उसका बदला अब निजी नहीं है... उसका बदला है... सैकड़ों सालों से... उन दबे हुए... डरे हुए... जुल्मों सितम को झेले हुए... राजगड़ के हर एक आदमी... औरत... हर एक बच्चे के लिए... राजगड़ के मिट्टी के हर कण कण के लिए... उनके आजादी के लिए.... तुमने अभी वैदेही के लिए बिल्कुल सही कहा... वह जगत जननी है... और विश्व... उसके हाथ में सजे हथियार है... वह खड़ग भी है... खर्पर भी... त्रिशूल भी है... सुदर्शन चक्र भी... धनुष भी है.. और तीर भी....

रुप के तन बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है l इतना कह लेने के बाद प्रतिभा रुप की तरफ देखती है, कुछ सोच में खोई हुई थी l

प्रतिभा - नंदिनी... क्या हुआ...
रुप - क.. क्क्क्कुछ नहीं आंटी... मैं प्रताप के बारे में सोच रही थी... फिर... फिर क्या हुआ... वैदेही भाग रहीं थीं... लोग पत्थर मार रहे थे... फिर एक नौजवान आता है... वैदेही को गांव वालों से बचा कर... अपने घर ले जाता है.... फिर...

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ESS ऑफिस
ट्रेनिंग हॉल में गार्ड्स आपस में कंबेट ट्रेनिंग में व्यस्त हैं l विक्रम उनके बीच घुम घुम कर सब की निरीक्षण कर रहा था l उनके प्रैक्टिस देख कर विक्रम चिढ़ जाता है l

विक्रम - (ऊँची आवाज़ में) स्टॉप...

सभी रुक जाते हैं l विक्रम उन लोगों के बीच में आता है l

विक्रम - तुम सब लोग... अच्छे लड़ाके हो... पर किसी आम फाइटर के लिए... स्टेट के सभी सिक्युरिटी सर्विस के मुकाबले... पर हो सकता है... आने वाले कल को... हम से भी अच्छे फाइटर आयेंगे... जिनसे... दो दो हाथ करना पड़ सकता है... इसलिए तुम सबको बेस्ट होना होगा... अपना बेस्ट देना होगा... आम आई राइट...
सभी - यस सर...
विक्रम - गुड... इस बार मैं हर एक के सैलरी में पांच पांच हजार रुपये का... बढ़ोतरी कर रहा हूँ.... अपनी गैरेंटी पर... पर मैं चाहूँगा... तुम लोग अगले महीने तक... मुझे अपने ट्रेनिंग और प्रैक्टिस से... इम्प्रेस करो... आम आई क्लियर...
सभी - यस सर...

तभी सारे गार्ड्स में से एक गार्ड सामने आता है और विक्रम से पूछता है l

गार्ड - युवराज जी... अगर आप बुरा न मानें... तो एक बात पूछूं...
विक्रम - जरूर... पूछो...
गार्ड - हमें आपने... अगले महीने तक इम्प्रेस करने के लिए कहा है... पर हम आपको कैसे इम्प्रेस करें... हमारा इंप्रुवमेंट... हम कैसे साबित करें...
विक्रम - (मुस्कराते हुए गार्ड के तरफ देखता है) अभी पता चल जाएगा... (कह कर गार्ड्स के बीच आता है) तुम में से दस लोग आओ... और बाकी पीछे जाओ...

गार्ड्स आपस में देखते हैं फिर इशारों इशारे में दस लोग इक्कठे होते हैं और बाकी सब किनारे हो जाते हैं l

एक गार्ड - युवराज जी... हमें करना क्या है...
विक्रम - कोई बड़ा टास्क नहीं है... तुम लोगों को मुझ पर हमला करना है...
सारे गार्ड्स - (डर और हैरानी के साथ) क्या...
विक्रम - घबराओ मत... हमला कर सकते हो... वार जाए भी तो... मुझे कम से कम छु कर दिखाओ... सिर्फ दस मिनट में... पर याद रहे... मैं तुम लोगों को छु सकता हूँ... तुम लोगों पर वार कर सकता हूँ...

गार्ड्स आपस में एक दुसरे को देखने लगते हैं l विक्रम उन्हें कहता है

विक्रम - अब तुम लोग सोच क्या रहे हो... कॉम ऑन...

गार्ड्स अब एक साथ विक्रम पर झपट पड़ते हैं l पर विक्रम बड़ी फुर्ती के साथ अपनी जगह से हट जाता है l फिर उन दस गार्ड्स के हर वार से डॉज करते हुए खुद को बचाने लगता है l गार्ड्स अपनी पुरी ताकत लगा कर विक्रम को छूने की भी कोशिश करते हैं, पर सभी नाकामयाब रहते हैं l कोई भी दस मिनट के अंदर विक्रम को मारना तो दुर छु भी नहीं पाया l जब दस मिनट खतम होता है तभी एक आवाज़ सुनाई देता है l

- ओके... ओके... स्टॉप... दस मिनट हो गए...

वहाँ पर मौजूद सभी आवाज की ओर देखते हैं l वहाँ पर महांती खड़ा था I

विक्रम - अरे महांती... (फिर गार्ड्स की ओर देख कर) कीप प्रैक्टिसींग... (कह कर महांती की ओर जाने लगता है, फिर मुड़ कर, सभी गार्ड्स को) गार्ड्स अगले महीने... अपनी दस दस की टोली बनाओ... मुझे इम्प्रेस करो... तब तुम्हारे सैलरी में... स्पेशल इंक्रीमेंट मिलेगा...

सभी गार्ड्स खुशी के मारे चिल्लाने लगते हैं l विक्रम, महांती के पास पहुँचता है तो महांती इशारे से ट्रेनिंग हॉल के बाहर चलने को कहता है l विक्रम और महांती दोनों हॉल के बाहर आते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... कोई खबर...
महांती - जी...
विक्रम - कहो...
महांती - मैंने हाई कोर्ट के पीआईओ में सेंध लगाया...
विक्रम - अच्छा... तो क्या खबर निकाले..
महांती - रुप फाउंडेशन स्कैम से केस जुड़े... सभी पहलु...
विक्रम - ह्म्म्म्म... डिटेल्स नहीं... मुद्दे पर आओ...
महांती - वह एक... वेल ऑर्गनाइज्ड क्राइम था... उपरी सतह पर... ऐसा लगेगा... की विश्व प्रताप, कुछ लोगों के साथ मिलकर... एक संगठित लुट किए हैं... पर गहराई में जाने पर... यह मालुम पड़ता है कि... विश्व प्रताप... एक बकरा था... जिसे बलि पर चढ़ाया गया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
महांती - उस केस की सुनवाई के दौरान... जो स्पेशल बेंच बिठाया गया था... वह भी शायद विश्व को बाइज़्ज़त बरी कर दिए होते... अगर... (महांती चुप हो जाता है)
विक्रम - चुप क्यूँ हो गए... अगर...
महांती - अगर... विश्व के लिए लड़ने वाले वकील... जयंत राउत... कोर्ट में ही दम ना तोड़ दिए होते तो...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती की सवालिया नजर से देखता है) तुम्हारा हर जवाब... कुछ सस्पेंस पर रुक रहा है... महांती जवाब पुरा करो...
महांती - जी युवराज... जयंत राउत... विश्व के खिलाफ जितने भी प्रमुख गवाह थे... और जितने भी अहं सबूत थे... सबको झूठा साबित कर चुके थे...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी युवराज... सारे गवाह... और लगभग सारे सबूत... झूठे साबित हो गए थे... सिर्फ एक अंतिम गवाह थे... जिनके जिरह करते हुए... अदालती कारवाई के दौरान... जयंत राउत जी का देहांत हो गया...
विक्रम - एक मिनट... कहीं यह अंतिम गवाह... राजा साहब तो नहीं...
महांती - जी... आपने सही अंदाजा लगाया...
विक्रम - हाँ... क्यूंकि तब यह हर न्यूज में... हॉट टॉपिक था... के राजा साहब... पहली बार... अदालत के कारवाई में हिस्सा ले रहे थे...
महांती - जी...

दोनों मैदान के किनारे किनारे चलते जा रहे थे l महांती देखता है विक्रम कुछ सोचते हुए अपने जबड़े भींचने लगता है I

महांती - क्या हुआ युवराज...
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, महांती की ओर देख कर) जानते हो महांती... विश्व के वकील जयंत की मौत... नॉर्मल नहीं थी.... (महांती कोई जवाब नहीं देता, महांती की चुप्पी को देखते हुए) लगता है... तुम यह बात जानते हो...
महांती - नहीं... नहीं जानता... पर अंदाजा लगा सकता हूँ... जब कटघरे में... राजा साहब हों... तो ऐसा हो सकता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक कहा...
महांती - पर युवराज...
विक्रम - हूँ...
महांती - आपको कब पता चला... के जयंत की हत्या हुई थी...
विक्रम - (महांती की ओर देखता है, फिर अपनी नजरें फ़ेर कर) सॉरी महांती... यह बात तुम्हें नहीं बताया था... इन फैक्ट... बता भी देता तो... कोई फायदा नहीं हुआ होता... आज से पांच साल पहले... याद है यश की एक्सीडेंट हुई थी... कटक में... किसी वकील की गाड़ी से टकरा गया था... और अपने ही निरोग हस्पताल में एडमिट हुआ था... तब वह मुझसे मिलना चाहता था... मैं छोटे राजा जी के साथ... उसके हस्पताल के स्पेशल केबिन में मिलने गया था... तब उसने... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, एक गहरी सांस छोड़ता है, इस बार उसकी सांसे थर्रा जाती है) हस्पताल से कुछ देर के लिए बाहर जाने की तरकीब बताई थी... (विक्रम रुक जाता है और महांती की ओर देखता है, महांती हैरानी भरे नजरों में उसे देखे जा रहा था,) मैंने उसकी तरकीब सुन कर मना कर दिया था... तब उसने मुझे बताया था कि... क्षेत्रपाल नाम को... पहचान को... भरी अदालत में... रुसवा होने से उसने बचाया है... इसलिए बदले में... मुझे उसका यह काम करना पड़ेगा... मैंने जब इस बारे में छोटे राजा जी से बात की... तब उन्होंने मुझे एडवोकेट जयंत की कत्ल की सारी बातेँ बताई थी... तब मुझे इस इस विश्व के बारे में... कुछ भी जानकारी नहीं थी.. ना ही मैंने लेने की जरूरत समझी थी...
महांती - तो आपने उसे... हस्पताल से बाहर निकलने में मदत की...
विक्रम - हाँ... मैं एक डॉक्टर के लिबास में... छोटे राजा जी के साथ उसके केबिन में गया था... अंदर उसके बेड पर मैं लेट गया था... और यश न वह डॉक्टर का लिबास पहन कर बाहर निकल गया... और... (पॉज लेकर) शुभ्रा जी के दोस्त... प्रत्युष नाम के एक लड़के को... मार कर वापस आ गया...

सारी बातेँ सुनने के बाद महांती कुछ सोच में पड़ जाता है और विक्रम भी चुप हो जाता है l

महांती - (विक्रम की ओर देख कर) युवराज... अब आप क्या करना चाहते हैं...
विक्रम - (चेहरे पर परेशानी दिखने लगती है) मैं नहीं जानता... (दांत पिसते हुए) महांती मैं नहीं जानता... विश्व से मेरी बात हो चुकी है... उसके अंदर का जुनून को मैंने महसूस किया है... और अब यश भी नहीं है... इस दुनिया में...
महांती - अगर यश होता भी... तो क्या... आप उससे मदत लेते...
विक्रम - मैं... मैं उसे... जान से मार दिआ होता... वह तो उसकी खुश किस्मती थी... जो जैल में... हार्ट चोक और ड्रग्स के ओवर डोज से मर गया... वरना... मैंने ठान लीआ था... (दांत पिसते हुए और गुर्राते हुए) शुभ्रा जी से गुस्ताखी के लिए... अपनी हाथों से उसका गला घोंट कर मार देता...

विक्रम चुप हो जाता है पर उसकी सांसे तेजी से चल रही थी l थोड़ी देर की चुप्पी के बाद

महांती - ठीक है युवराज... अब हमें करना क्या है...
विक्रम - जब तक राजा साहब हमें... इसमें इंवॉल्व होने के लिए ना कहें... हमें दुर ही रहना होगा...
महांती - मैंने आपसे... और दुसरे सोर्स से जितना जाना... जितना समझा... मुझे नहीं लगता... राजा साहब उसे संभाल पाएंगे...

विक्रम अब कोई जवाब नहीं देता l अपना चेहरा घुमा लेता है l

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वीर से बात कर लेने के बाद विश्व xxx मॉल से निकल कर एक पार्क में पेड़ के नीचे सीमेंट के बेंच पर बैठा हुआ था l अपनी हाथों को क्रॉस कर के कुहनियों में फंसा कर आँखे मूँद कर सीमेंट बेंच के हेड रेस्ट पर सिर को टिकाये अपने ही अंदर वीर के साथ अपनी दोस्ती के बारे में सोचते हुए वह गुम था I

- हैलो... मिस्टर विश्व प्रताप...

आवाज़ सुन कर विश्व अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने एक सफारी शूट पहले आँखों में काले गॉगल पहले एक हट्टा कट्टा आदमी खड़ा था l

आदमी - हेइ... आर यु विश्व प्रताप...
विश्व - (हैरानी के साथ, अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
आदमी - कैन आई सीट हीयर..
विश्व - पांच फुट लंबा बेंच है... सरकारी है... मेरे बाप की तो नहीं है...
आदमी - (बैठता नहीं है, वैसे ही खड़ा रहा) कोई तुमसे मिलना चाहते हैं... मैं तुम्हें... उनके पास ले जाने आया हूँ...
विश्व - (उस आदमी को सिर से लेकर पांव तक अच्छे से देख लेने के बाद) इंवीटेशन दे रहे हो... या धमका रहे हो... मुझे ले जाने आए हो... मैं क्या कोई बैल हूँ... जो हांकते हुए ले जाओगे...
आदमी - वेल... हमें ऑर्डर यही मिला है... आपको इज़्ज़त के साथ ले जाने के लिए... वरना... हम.... दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... (अपने दोनों हाथ हेड रेस्ट पर फैला देता है और दायां पैर को मोड़ कर बाएं पैर रख देता है) तो मिस्टर कोई के चमचे... वैसे कौनसे... सिक्युरिटी सर्विस से जुड़े हुए हो...
आदमी - (हैरान हो कर) आ... आपको कैसे मालुम हुआ... मैं किसी सिक्युरिटी सर्विस जुड़ा हुआ हूँ...
विश्व - तुम्हारा पहनावा... और एपीयरेंस... बात करने का लहजा... डीसीप्लींड तो बिल्कुल नहीं है... पर फिर भी... जिस धौंस से बात कर रहे हो... जरूर किसी गटर छाप प्राइवेट सिक्युरिटी संस्था से जुड़े हुए हो...
आदमी - वाव... (विश्व के थोड़े करीब आकर अपना हाथ आगे करते हुए) हैलो... आई एम... बिरंची सेठी... सिक्युरिटी इनचार्ज... RGSS... आई मीन... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस...
विश्व - (विश्व उससे हाथ नहीं मिलाता, इसलिए बिरंची अपना हाथ वापस लेता है) मिस्टर बिरंची... तुम्हारा उस कोई का... मुझसे क्या काम है...
बिरंची - मेरा कोई का नहीं... मेरे बॉस के बॉस का..
विश्व - अच्छा... बॉस के बॉस... मतलब बिग बॉस... उसका कोई नाम भी है... या...
बिरंची - केके... कंस्ट्रक्शन किंग... केके...
विश्व - (भवें सिकुड़ जाती है) केके...(पॉज लेने के बाद) मुझसे क्या काम पड़ गया...
बिरंची - तुम उनके... और वह तुम्हारे... काम आ सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म...
अगर ना जाऊँ तो...
बिरंची - (मुस्कराते हुए) मैंने पहले से ही बता दिया है... हम दुसरे तरीके भी आजमा सकते हैं...
विश्व - अच्छा... मुझे विश्वा जान कर आए हो... या कोई बैल... जिसे लाठी से हांक कर ले जाओगे...

बिरंची चुप रहता है, विश्व अपनी भंवे दो बार उठा कर इशारे से पूछता है l

बिरंची - सॉरी विश्वा भाई... सॉरी...
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... तुम और तुम्हारा बिग बॉस... मेरे बारे में... अच्छी जानकारी रखे हुए हो...
बिरंची - ज.. जी...
विश्व - तो मिस्टर बिरंची... अपने बिग बॉस से कहो... गाड़ी में बैठ कर हमारी बात सुनने के वजाए... वह अपने गाड़ी से उतरे... और सीधे मेरे पास आकर बात करे...

बिरंची चौंक जाता है और विश्व को आँखे और मुहँ फाड़े देखने लगता है l

विश्व - अपना मुहँ बंद कर... इस पार्क में मच्छर बहुत हैं... घुस जाएंगे...

कुछ देर बाद ताली बजाते हुए पार्क के एंट्रेस से केके उर्फ़ कमल कांत अपने सिक्युरिटी गार्ड्स के साथ वहाँ आता है l एक गार्ड विश्व के बैठे हुए बेंच के सामने एक फोल्डिंग चेयर डाल देता है जिस पर केके बैठ जाता है l

केके - वाव.. वाव... जैसा सुना था.. तुम तो उससे भी बढ़ कर निकले...
विश्व - मतलब कम ही सुना है मेरे बारे में... और शायद कम ही जानते हो मेरे बारे में...
केके - हाँ कम ही सुना है... पर तुम बड़े काम के हो... यह अब जान गया हूँ... मैं तो फैन हो गया तुम्हारा...
विश्व - कमाल की बात है... आज कल मेरे फैन फोलोवींग तो बढ़ती ही जा रही है...
केके - हीरे की कद्र तो हर किसीको होता है... हाँ यह बात और है... हर किसीके नसीब में.. हीरा नहीं होता...
विश्व - तो तुम यहाँ... अपना नसीब आजमाने आए हो...
केके - आजमाने नहीं... बनाने आया हूँ... तुम्हारा...
विश्व - अच्छा... तो मेरे पंखे... अब हवा चलाना बंद करो... किस काम से आए हो... यह बकना शुरु करो...
केके - देखो... कुछ बातेँ हैं... जिन पर जिक्र... या मशविरा बंद कमरे में.. या बंद जगहों पर होने चाहिए....
विश्व - ह्म्म्म्म.. मतलब... या तो तुम बात छुपाना चाहते हो है... या खुद को...
केके - दोनों... बात भी... और खुद को भी... ईफ यु डोंट माइंड... यहीं पार्क के बाहर... मेरा अपना वैनिटी वैन है... क्यूँ ना मेरे वैनिटी वैन में चलें...
विश्व - (कुछ देर केके को घूर कर देखता है, फिर अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ठीक है... चलो...

विश्व और केके उठ खड़े होते हैं और पार्क के बाहर चलने लगते हैं l दोनों को को गार्ड्स घेर कर बाहर एक खड़े एक वैनिटी वैन की ओर ले जाते हैं l दोनों वैनिटी वैन में बैठ जाते हैं l विश्व अंदर देखता है बहुत ही लक्जरीयस था अंदर से I इतना लक्जरीयस के सोफ़े लगे हुए थे, टीवी फ्रिज भी था और यहाँ तक उसमें बाथरुम और टॉयलेट भी था l एक टेबल पर एक नौजवान भी वहाँ पर बैठा हुआ था l विश्व और केके के बैठने के बाद वैन चलने लगता है l

विश्व - इन साहब की तारीफ...
केके - यह मेरा बेटा है... विनय...

विश्व उसे गौर से देखता है, विनय स्टाइलिश ड्रेस में बैठा हुआ था, चुइंगम चबाते हुए विश्व को हाथ हिला कर हाय कहता है l जवाब में विश्व मुस्करा कर बस अपना सिर हिलाता है l

केके - सो विश्वा... जो तुम्हारी मंजिल है... हम तुम्हें उस मंजिल तक पहुँचा सकते हैं... क्यूंकि वही... हमारी भी मंजिल है... आई मीन... क्षेत्रपाल की बर्बादी...
विश्व - ह्म्म्म्म... अच्छा... अब यह बताओ... हम एक दुसरे के कैसे काम आ सकते हैं...
केके - देखो... तुम क्षेत्रपाल के दुश्मन हो... और मैं भी... और यह कहावत है कि... दुश्मन का दुश्मन... दोस्त होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... मुझसे चाहते क्या हो...
विनय - अरे यार... हम चाहते हैं... तुम हमारे लिए काम करो...
विश्व - बात जब बाप से हो रहा हो... पिल्लों को बीच में नहीं फुदकना नहीं चाहिए...
विनय - ऐ... पिल्ला किसको बोला बे...
विश्व - यहाँ तेरे सिवा... मुझे कोई और दिख नहीं रहा है...
विनय - (शिकायत भरे लहजे में चिल्लाते हुए) डैड...
केके - (विनय से) श्श्श्श्श... थोड़ी देर के लिए चुप रहेगा... (विनय मुहँ बना कर अपने जगह पर बैठ जाता है) विश्वा... विनय ने गलत नहीं कहा है...
विश्व - अच्छा... (हँसते हुए) उसने ऐसा क्या सही कह दिआ...
केके - क्षेत्रपाल क्या है... कैसा है... यह तुम अच्छे तरह से जानते हो... तुम्हें उसके खिलाफ लड़ने के लिए... हर फिल्ड मे... सपोर्ट चाहिए होगी...
विश्व - जब से मिले हो... पहेली पर पहेली बुझा रहे हो... सीधे सीधे मुद्दे पर आओ...
केके - देखो... यह हम जानते हैं... तुमने अभी रुप फाउंडेशन स्कैम पर आरटीआई दायर किया है... इसलिए अब आगे तुम्हें किसी ना किसी की सहायता की जरूरत पड़ेगी... हम तुम्हें हर तरह की मदत मुहैया कराएंगे...
विश्व - और... इसके लिए मुझे क्या करना पड़ेगा...
केके - सिंपल... तुम हमारे लिए काम करो... तो क्या कहते हो... डील...
विश्व - हा हा हा हा... (हँसते हुए) केके... ऐसे डील.. शाह करते हैं... प्यादे नहीं...
केके - व्हाट... (जुबान लड़खड़ाने लगती है) क्क्क.. क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
विश्व - केके... उर्फ़ कमला कांत महानायक... उर्फ़ कंस्ट्रक्शन किंग... मैं... सामने वाले की बात से... उसकी औकात का अंदाजा लगा लेता हूँ...
विनय - ऐ... (गुस्से से तन कर) अपनी जुबान संभाल... मत भूल... तु हमारे कब्जे में है... (दांत पिसते हुए) अभी के अभी... तेरी खाल खिंचवा देंगे....

विश्व, विनय को आँखे उठा कर देखता है, उसका का जबड़ा भींच जाता है, उसके मुट्ठीयाँ कसने लगती हैं l यह देख कर केके अपने हलक से थूक बड़ी मुस्किल से निगलता है l वह झटपट खड़े हो कर विनय को थप्पड़ मार देता है l विनय हैरान हो कर अपने बाप को देखता है और अपने लाल हुए गाल को सहलाते हुए अपनी जगह पर बैठ जाता है l केके भी अपने जगह पर बैठ जाता है l

केके - विश्वा... हम तुम्हारे बारे में... सब कुछ जानते हैं... तुम... हमारे बारे में कुछ भी नहीं जानते... फिर यह तुमने... किस बिनाह पर कहा...
विश्व - केके... तुम वह लंगड़े हो... जो कभी क्षेत्रपाल नाम की वैशाखी की सहारे भांगड़ा कर रहे थे... बस कुछ ही महीनों पहले.... पिनाक सिंह पर हमले के बाद.... खुद को बचाते हुए अंडरग्राउंड कर लिए थे... पर जो वजह... तुम्हें अंडरग्राउंड से बाहर लेकर आया है... वह वजह... मैंने ही बनाया है...
केके - (हैरान हो कर) क्क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कैसी वजह...
विश्व - (आगे झुक कर घुटनों पर कोहनी रख कर) थाईशन टावर... स्वपन जोडार... कुछ याद आया... (केके का मुहँ खुला रह जाता है) अब तुमने वैशाखी बदल ली है... जिसके सहारे अंडरग्राउंड से निकल कर... ना सिर्फ वह सारे सामान... स्वपन जोडार को लौटाया... बल्कि हेवी पेनल्टी भी दिया...
केके - मतलब तुम...
विश्व - (आत्मविश्वास भरा मुस्कान लिए) मैं स्वपन जोड़ार का लीगल एडवाइजर हूँ...

विश्व की इस खुलासे से केके विश्व को आँखे और मुहँ फाड़ कर देखने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

विश्व - हालाँकि मैंने क्षेत्रपाल को टार्गेट किया था... पर किस्मत में तुम्हारा पिछवाड़ा लिखा था....
केके - तो... क्या हुआ... अब आगे और भी मौके आयेंगे... तब तुम्हें हमारी जरूरत पड़ेगी ना... स्वपन जोडार... क्या कर सकता है... कुछ भी नहीं...
विश्व - तुम अपनी बात करो... तुमने जो वैशाखी... अभी जिसकी नाम की बदला है... अपने उसी बाप के बारे में मुझे जानकारी दो...

केके फिर से चौंक जाता है उसका का मुहँ खुला का खुला रह जाता है l अब उसके हलक से थूक भी ना निगला जा रहा था l

विश्व - वह शख्स... तुम्हारा नाजायज बाप... जिसके बैसाखी के सहारे... तुम क्षेत्रपाल से टकराने की सोचा है... वह स्टेट पालिटिक्स में क्षेत्रपाल के बराबर कद तो नहीं रखता होगा... पर कम भी नहीं होगा... कौन है वह...
केके - वह.... (केके कुछ नहीं कह पाता है)
विश्व - कोई नहीं... वैसे भी आज मेरा मुड़ नहीं है... अपने ड्राइवर से कहो... वैनिटी वैन यहीं पर रोक दे... कल का कोई भी टाइम मुकर्रर कर लो... मैं तुम्हें उसी पार्क में मिलूंगा...
केके - ठी.. ठीक है...

केके गाड़ी के भीतर पीए सेक्शन ऑन कर ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए बोलता है l गाड़ी रुकते ही विश्व उतर जाता है l विश्व के जाने के बाद

विनय - डैड... इसे जाने क्यूँ दिया... चूहा बन कर आया था... हमारे चूहे दानी में फंसने के लिए... और यह तो... पहले से ही... हमारा ही बजाया हुआ है... इतने गार्ड्स हैं हमारे...
केके - हूँ... तुम अपनी बकौती बंद करो... इतनी जल्दी रंगा को कैसे भूल गए... इस एक आदमी को देख कर रंगा और उसके बाइस आदमी भाग खड़े हुए... हमारे कुछ गार्ड्स उसका क्या बिगाड़ लेते... मैंने इसे बातों में नाप लूँगा ऐसा सोच लिया था...गलत आंक लिया था... यह तो जरूरत से ज्यादा शार्प है...

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द हैल
शाम ढल चुकी है
रात के खाने का समय है l डायनिंग टेबल पर घर के चारों सदस्य बैठे हुए हैं l चारों की थाली लगी हुई है पर तीन सदस्यों का ध्यान थाली पर नहीं था I विक्रम, वीर और रुप तीनों ही अपने में खोए हुए थे l तीनों का हाथ खाने के निवाले पर तो था पर वहाँ से हिल नहीं रहा था l शुभ्रा तीनों को देखते हुए अपनी थाली से निवाला उठाते हुए रुक जाती है, फिर निवाले को थाली पर रख कर

शुभ्रा - क्या बात है... खाना खराब बना है क्या...

तीनों चौंकते हैं l क्यूँकी तीनों ही अपने अपने ख़यालों में खोए हुए थे l तीनों ही के जेहन में विश्व ही घुम रहा था l जहां विक्रम आज महांती से मिले जानकारी और विश्व के साथ अपनी निजी तजुर्बे के बारे में सोच रहा था वहीं रुप विश्व के अतीत और वर्तमान को प्रतिभा से जान लेने के बाद अपने और विश्व की भविष्य को कैसे जोड़े इसी सोच में खोई हुई थी l इन दोनों के अलावा वीर भी विश्व के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी ना होने पर सोच सोच कर हैरान भी था और परेशान भी I

तीनों - कुछ नहीं... सब ठीक है...
शुभ्रा - क्या कुछ नहीं... तीनों के सामने खाना लगा हुआ है... पर तीनों का ध्यान कहीं खोया हुआ है...
विक्रम - कुछ नहीं ऐसे ही... वह मैं... आने वाले दिनों में... पार्टी में अपनी भूमिका के बारे में सोच रहा था...
शुभ्रा - यह आप खाने के टेबल पर ही क्यूँ सोच रहे थे... (विक्रम चुप रहता है) वीर... तुम किसके ख़यालों में खोए हुए थे... (छेड़ते हुए) कहीं... (पुरी बात नहीं कह पाती)
वीर - (सकपका जाता है) नहीं... नहीं भाभी... ऐसा कुछ भी नहीं है...
शुभ्रा - हाँ भई... ठीक है... हम होते कौन हैं... क्या कुछ हो गया... हमे चाची माँ से मालुम होता है... पर आपसे नहीं... ऐसा क्यूँ...
वीर - वह भाभी... (क्या कहे वह समझ नहीं पाता, खुद को नॉर्मल करने की कोशिश करते हुए) सॉरी भाभी... सॉरी...
शुभ्रा - ठीक है... लगता है.. आज तुम्हारा मुड़ ठीक नहीं है... (रुप से) और तुम... आज तुम्हें क्या हो गया है... सुबह से गई थी... शाम को आई हो... और जब से आई हो... मैं देख रही हूँ... तब से खोई खोई सी हो...
रुप - (हड़बड़ा जाती है, अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए) कु... कुछ नहीं है... कुछ नहीं है भाभी...
शुभ्रा - पता नहीं क्यूँ... तुम तीनों का ज़वाब... तुम लोगों के हाव भाव से मैच नहीं कर रहे हैं... (सभी शुभ्रा की ओर देखते हैं) आज पहली बार ऐसा हो रहा है... तीनों ही अपने आप में खोए हुए हो... कहीं ऐसा तो नहीं... तीनों आज किसी एक ही विषय पर... सोचे जा रहे हो...

शुभ्रा इतना कह कर हँस देती है l शुभ्रा का साथ देते हुए रुप और विक्रम भी हँस देते हैं, पर वीर नहीं हँसता l शुभ्रा वीर की और देखती है I

शुभ्रा - वीर... क्या हुआ... अभी भी... बहुत सीरियस हो...
वीर - (एक पॉज लेकर) हाँ भाभी... मैं अभी अपने एक दोस्त... और हमारी दोस्ती की भविष्य के बारे में.. सोच रहा हूँ...
विक्रम - (हैरान हो कर) दोस्त... कौन दोस्त... कैसा भविष्य...
वीर - तुम.... (थोड़ा रुक कर) तुम उसे जानते हो...
विक्रम - मैं...
वीर - हाँ भैया... (विक्रम की ओर देखते हुए) तुम्हारा उससे... तीन बार अनचाहा मुलाकात हो चुका है...

विक्रम की भवें तन जाते हैं l वह सवालिया नजर से वीर की ओर देखने लगता है l

वीर - विश्व... विश्व प्रताप महापात्र....

विश्व का नाम आते ही रुप की गले में खाना अटक जाता है l वह खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर को थपथपा कर पानी पिलाती है l

विक्रम - तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो... या जानना चाहते हो...
वीर - नहीं... मैं कुछ भी जानना नहीं चाहता हूँ... तुम्हारा उससे कैसे... कहाँ... और किस वजह से मुलाकात हुई है... यह मैं बिल्कुल जानना भी नहीं चाहता हूँ... पर तुम्हें कुछ बताना जरूर चाहता हूँ... (विक्रम वीर की आँखों में देखने लगता है) मैं उसका अतीत नहीं जानता... पर आज... उसकी बातों से एक बात जरूर जान गया... उसके ज़ख्म... हम क्षेत्रपालों के वजह से है... क्षेत्रपाल बिल्कुल भी सही नहीं किया होगा... क्यूंकि हम... बिलकुल भी अच्छे तो नहीं हैं...
विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) तुम कहना क्या चाहते हो...
वीर - यही.. के कल क्या होगा... मैं नहीं जानता... पर अगर... क्षेत्रपाल और विश्व कभी आमने सामने हुए... तो मैं... विश्व के खिलाफ नहीं जाऊँगा.... (कुछ देर के लिए एक चुप्पी सी छा जाती है) चाहे कुछ भी हो जाए...

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l पर उसकी कहे बातेँ वहाँ पर बैठे तीनों पर गहरा असर छोड़ा था l क्यूँकी तीनों ही विश्व से किसी ना किसी तरह से सवंधीत थे I

शुभ्रा - वीर... खाना ऐसे अधूरा नहीं छोड़ते...
वीर - (रुक जाता है) भाभी... माफी चाहूँगा... पर आज... मेरी दिली हालत ठीक नहीं है... खा नहीं पाऊँगा...

यह कह कर वीर चला जाता है l विक्रम को भी अब अच्छा नहीं लगता l विक्रम अपना थाली छोड़ कर उठने लगता है l

शुभ्रा - विक्की... आप तो ना जाइए...
रुप - हाँ भैया... आप उठ गए... तो भाभी भी उठ जाएंगी...

विक्रम खुद को काबु करते हुए बैठ जाता है और बेमन से खाना खाने लगता है l जैसे जैसे खाना खतम होने को आता है तब रुप विक्रम से कहती है

रुप - भैया...
विक्रम - (रुप की ओर बिना देखे) हूँ...
रुप - मैं कल चाची माँ के पास जाना चाहती हूँ... क्या आप मुझे राजगड़ जाने देंगे...
विक्रम - (रुप की ओर देख कर) पर तुम्हारा एक्जाम...
रुप - एक्जाम के वक़्त आ जाऊँगी... प्लीज भैया...
विक्रम - (खाना खतम कर उठते हुए) ठीक है... कल सुबह तैयार हो जाना... मैं गुरु को कह देता हूँ... वह तुम्हें राजगड़ ले जाएगा...
रुप - (खुश होते हुए) ठीक है भैया...

विक्रम वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही शुभ्रा रुप की ओर सवालिया नजरों से देखती है I रुप शुभ्रा से नजरें चुरा कर खाना खतम करने लगती है l

शुभ्रा - यह क्या नाटक है नंदिनी... तुम यूँ अचानक राजगड़...
रुप - वह भाभी... मुझे... चाची माँ की बहुत याद आ रही है...
शुभ्रा - तुमने अपने भाई को बना दिया... ठीक है... मुझे तो ना बनाओ...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) (शुभ्रा की ओर देखते हुए) भाभी... मेरी मंजिल... उसकी की हासिल... राजगड़ में है... मैं सिर्फ कुछ दिनों के लिए जाना चाहती हूँ...
शुभ्रा - (हैरानी से भवें सिकुड़ कर) आज सबको क्या हो गया है... कोई भी सीधे सीधे बात क्यूँ नहीं कर रहे हैं... वीर अपनी बात घुमा रहा है... विक्की भी बात घुमा रहे हैं और नंदिनी... तुम भी... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है, फिर) आज सुबह से गायब रही... कहाँ गई नहीं बताया... आई तो आई... शाम को आई... और अब कह रही हो... राजगड़ जाना चाहती हो...
रुप - (अपना हाथ बढ़ा कर शुभ्रा हाथ थाम लेती है) भाभी... प्लीज... मैं वापस आकर आपको सब बता दूंगी...

कह कर डायनिंग टेबल से उठ जाती है l शुभ्रा को डायनिंग टेबल पर असमंजस स्थिति में छोड़ कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद सीडियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चली जाती है l
कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर अपने रीडिंग टेबल की ओर देखती है जहां उसकी मोबाइल रखी हुई थी l वह आकर अपना मोबाइल उठाती है और बेड पर गिर जाती है l मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन करती है l प्रतिभा से हुई सारी बातेँ रिकॉर्ड थी वह सुनने लगती है l धीरे धीरे रिकॉर्डिंग को फॉरवर्ड करने लगती है l कहानी उस मोड़ पर आ जाती है जहां वैदेही को बचा कर वह नौजवान अपने घर लता है l घर में पहुँच कर वैदेही देखती है,

यह तो वही घर है जहां उसकी बचपन गुजरी थी, वह मुड़ कर उस नौजवान को देख कर पहचानने की कोशिश करती है l अचानक वह पहचान जाती है यह तो उसका भाई विश्व है जिसे वह मरा हुआ समझती थी l उसके होंठ थरथराने लगी

वैदेही - विशु...

Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Superb update… saari khani main ek dum se speed aa gayi har movement thrilling… ab yeh kahani ek dhamakedar situation main aa gayi hai janha har update chota lagega…. Jabardast lekhni hai aapki mitre …
 
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