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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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Besabari se itezaar rahega Kala Nag bhai....
लिख चुका हूँ मित्र
बस रिफाइनिंग के साथ अडिशन और सबट्रक्सन चल रहा है l पर अपने सेफ साइड के लिए कल सुबह दस बजे पोस्ट करूँगा
 

parkas

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लिख चुका हूँ मित्र
बस रिफाइनिंग के साथ अडिशन और सबट्रक्सन चल रहा है l पर अपने सेफ साइड के लिए कल सुबह दस बजे पोस्ट करूँगा
Intezaar rahega...
 
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Kala Nag

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👉पचासीवां अपडेट
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ऐसे में दो दिन बीत जाते हैं
इन दो दिनों में द हैल में कुछ बदलाव हुआ है l शुभ्रा को अब सुबह की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है l यह बात वीर और रुप को मालुम है l इसलिए दोनों अपने अपने कमरे में बंद दरवाजे से शुभ्रा की कमरे पर नजर रखे हुए हैं l
क्लिक
विक्रम के कमरे का दरवाजा खुलता है l विक्रम अपने दोनों हाथों में गुलाब के फुल और एक लेटर लाकर शुभ्रा के कमरे के बाहर रख देता है और वापस अपने कमरे में चला जाता है l
रुप जिज्ञासा भरे नजर से अपनी हाथ की घड़ी पर नजर डालती है l ठीक दो मिनट के बाद शुभ्रा की कमरे का दरवाजा खुलता है l शुभ्रा बाहर आती है इधर उधर देखती है l जब उसे कोई नहीं दिखता तब झुक कर वह गुलाब के फुल और लेटर उठा लेती है l फिर से चारों ओर नजर दौड़ाती है कोई भी नहीं है और उसे कोई भी नहीं देख रहा है, यह कंफर्म कर लेने के बाद शुभ्रा अपनी कमरे में घुस कर दरवाज़ा बंद कर देती है l
वीर यह देख कर मुस्कराता है और वह अपने कमरे के अंदर चला जाता है l रुप भी यह देख कर बहुत खुश होती है, दरवाजा बंद कर अपनी बेड पर चढ़ कर उछलने लगती है l
उधर कमरे के अंदर शुभ्रा दरवाज़े पर पीठ टिकाये खड़ी थी, उसके चेहरे पर बहुत ही हल्का सा एक रौनक भरा मुस्कान खिल उठता है l वह आकर अपनी बेड पर बैठ जाती है l कांपते हांथों से चिट्ठी को पढ़ने लगती है

- शुब्बु मेरी जान,
इस खत में... मैं फिर से अपनी जज्बातों को दोहरा रहा हूँ... बार बार दोहराउंगा... दोहराता रहूँगा... हमारे प्यार के सितारे गर्दिश में सही... पर फिर भी आप मेरी मंजिल हो... आज हमारे बीच जो भी दूरी है... उसकी वजह... मैं खुद ही हूँ... मुझे अपनी ही उजड़ी दुनिया को... फ़िर से आबाद करना था... जो कि मैंने नहीं की... अपनी वादों से फिर गया... अपनी बातों से मुकर गया हूँ... पर और नहीं, अब मैं आपको मनाऊँगा, इस जन्म के अंतिम छोर तक... अगले जन्म तक... जन्म जन्म तक... मैं आपका था... आपका ही हूँ... आपसे पहले ना जिंदगी में कोई था.... ना आपके वगैर इस जिंदगी का कोई मतलब बाकी है... ताउम्र... विक्रम बन कर जीया... अभी भी जी रहा हूँ... वह दो पल बेहद खास थे... जो आपके पहलु में गुजारे थे... विकी बन कर... वही जिंदगी के अब... सबसे... हसीन पल थे... बहुत... अनमोल पल थे...
जान... अब मुझे विक्की बनना है... आपके पहलु में जिदंगी गुजारना है... आपकी पलकों में झाँकना है... मैं खुद को... खो चुका हूँ... अब आपकी आँखों में... ख़ुद को ढूँढना चाहता हूँ...
जान आई लव यु... इसे थ्री मैजिकल वर्ड्स कहते हैं... मैं अब इसके साथ... इसी में जी कर दिखाऊंगा.... आप यही सोच रही होंगी ना... मैं यह बात मोबाइल पर मैसेज कर भी सकता था... या फोन पर भी कह सकता था... यूँ इस तरह चिट्ठी में क्यूँ... एक बात का मुझे एहसास हो गया है जान... चिट्ठी लिखना वाकई बहुत ही मुश्किल भरा काम है... हर एक चिट्ठी को नजाने कितना बार लिखा है... ना जाने कितने काग़ज़ फाड़े हैं... फिर भी हाल ए दिल को बयान करना... आसान नहीं हो रहा है... ऐसा लगता है... फिर कुछ रह गया है... लिखना चाहिए था... पर यह एहसास भी क्या खूब है... खैर जो बाकी रह गया है... मैं कल लिख कर आपके सपने हाल ए दिल बयान करूँगा अपनी माफी नामे के साथ...

आपका... सिर्फ़ आपका.... विक्की...

चिट्ठी पढ़ने के बाद शुभ्रा के गालों में हल्का सा हरकत होता है वह उस चिट्ठी और गुलाब के फूलों को लेकर वार्डरोब में एक ड्रॉयर खोल कर उसमें रख देती है जहां पहले से ही दो चिट्ठी और कुछ सूखे हुए गुलाब के फुल रखे हुए हैं l फुल और चिट्ठी
शुभ्रा बाथरूम में जाति है l नहा धो कर तैयार हो कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुँचती है l कुछ नौकर वहाँ पहले से ही खड़े हुए हैं l शुभ्रा उनके पास पहुँच कर

शुभ्रा - क्या हुआ... कोई आज दिख नहीं रहा...
नौकर - सब आपकी राह देख रहे हैं युवराणी...
रुप और वीर - (झट से शुभ्रा के पास पहुँच कर) हम भी यहीँ हैं भाभी...
शुभ्रा - ओ ह्..

फिर सब डायनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं l उनके बैठते ही विक्रम भी वहाँ पहुँच कर बैठ जाता है l रुप और वीर दोनों देखते हैं विक्रम और शुभ्रा एक दुसरे को बिल्कुल भी नहीं देख रहे हैं l चारों चुप चाप खा कर उठ जाते हैं l और हर दिन की रुटीन को कायम रखते हुए रुप अपनी भाभी को बाय कह कर वीर के साथ निकल जाती है l विक्रम गाड़ी में बैठ कर चाबी लगाते ही रियर मिरर अपनी पोजिशन में आ जाते हैं l उस मिरर में विक्रम को शुभ्रा की अक्स साफ दिखाई देती है जिसमें वह विक्रम की ओर देख रही है l विक्रम मिरर में दिख रही शुभ्रा की परछाई को देख कर मुस्करा देता है l शुभ्रा को भी उस मिरर में विक्रम की अक्स मुस्कराते हुए दिखता है l शुभ्रा अपना चेहरा मोड़ कर दुसरी तरफ देखने लगती है l

विक्रम - सब आपकी ...
मसरूफियत में शामिल हैं...
बस एक...,
मुझ बे-ज़रूरी के सिवा.....

इतना मन में कहते हुए गाड़ी द हैल से बाहर निकाल कर ले जाता है l कुछ देर बाद विक्रम गाड़ी की रेडियो ऑन कर देता है, हु बु हु उसके दिल की हाल को बयान करते हुए एक शेर रेडियो एफएम पर ब्रॉडकास्ट हो रहा था l

कब तक रहोगे आखिर...
युँ दूर-दूर हमसे,...
मिलना पडेगा आखिर...
इक दिन जरूर हमसे,...
दामन बचाने वाले....
ये बेरूखी है कैसी...
कह दो हुआ क्या है...
कोई कसूर हमसे....
तुम छोड दो हमसे...
युँ बातचीत करना,...
हम पुछते फिरेंगे फिर भी...
अपना कसूर तुमसे,...
हमसे छीन लिया है...
तुमने ये शान-ऐ-बेनियाजी,...
हम माँगते फिर रहे हैं...
अपना गरुर तुमसे..


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


हॉस्पिटल की कमरे में रोणा की हालत कुछ सुधरी हुई है l चेहरे का सुजन थोड़ा कम हुआ है l लेकिन चेहरे पर गुस्सा और नाराजगी साफ दिख रही है l तभी कैबिन का दरवाज़ा खुलता है, बल्लभ हाथों में कुछ कागजात लेकर अंदर आता है l उसे देख कर

रोणा - आओ... काले कोट आओ... दो दिन से कहाँ अपना मुहँ काला करवा रहा था बे हरामी...
बल्लभ - यह... (हाथों में काग़ज़ दिखाते हुए) यह सब जुगाड़ करने गया था...
रोणा - क्यूँ... किसीकी जायदाद उड़ाने की चक्कर में था क्या बे... जो मुझे दो दिन तक यहाँ अकेले अकेले सड़ने के लिए छोड़ गया था बे...
बल्लभ - क्यूँ... इतने सारे नर्सों के बीच... तेरा एंटेना डेड हो गया था क्या...
रोणा - भोषड़ी के... बात तो ऐसे कर रहा है... जैसे हूरों के बीच छोड़ गया था...
बल्लभ - बोला ना... तेरा ही काम करने के लिए गया था...
रोणा - मेरा कौन सा काम...
बल्लभ - भूल गया... इन सात सालों में... जैल की पोस्टिंग और कैदियों की लिस्ट...
रोणा - ओ... तो तुझे मेरी बात पर यकीन हो गया...
बल्लभ - हाँ भी... और नहीं भी...
रोणा - क्या मतलब...

बल्लभ वह सारे कागजात रोणा के पास पटक देता है और खुद जाकर केबिन के खिड़की के पास खड़ा हो जाता है l

रोणा - दो दिन गायब रहा... पढ़ तो लिया होगा...
बल्लभ - हूँम्म्म्म्...
रोणा - तो... कुछ पता लगा... या लगाना है...
बल्लभ - तु जानता है... कितने दिन तुझे नर्सों के बीच गुजारने हैं...
रोणा - उँहुँ... नहीं जानता... पैरों में अभी भी दर्द है... ठीक से चला नहीं जा रहा है...
बल्लभ - तेरे दाहिने पैर की लीगमेंट... डिसप्लेश हो गया है...
रोणा - ली... लीगमेंट... वह क्या होता है...

बल्लभ - पेशियों को बांधे रखने वाला रज्जु...

रोणा हैरानी भरे नजरों से बल्लभ को देखने लगता है l बल्लभ उसे देख कर समझ जाता है कि रोणा को कुछ भी समझ में नहीं आया l

बल्लभ - तुझे मारने वाला कोई... प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... जिसे जिस्म के नर्व्स के बारे में... अच्छी जानकारी थी... उसने तेरी बॉडी को... टेंपोरार्ली अपाहिज कर दिया है...
रोणा - (चौंक कर उछल पड़ता है) क्या... (रोते हुए) इसका मतलब... मैं अपाहिज हो गया... (रोने लगता है)
बल्लभ - (चिल्ला कर) अबे चुप...(रोणा चुप हो जाता है)

बल्लभ के चिल्लाने से नर्स उस कमरे में भाग कर आती है l

बल्लभ - कुछ नहीं सिस्टर... यह थोड़ा नर्वस हो गया था...(नर्स हैरान हो कर दोनों को देखती है और चुप चाप बाहर निकल जाती है)

बल्लभ - भोषड़ी के.. टेंपोरार्ली कहा... यहाँ तुझे शायद और एक हफ्ता रहना पड़ेगा...
रोणा - ओ.. अच्छा... मेरी तो फट गई थी...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l बल्लभ समझ जाता है रोणा अब विश्व को लेकर सोच में पड़ गया है l

बल्लभ - क्या सोचने लग गया...
रोणा - (बल्लभ को देखते हुए) अगर... मुझे मारने वाला... कोई प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... तो मेरी उसके साथ क्या दुश्मनी है... या सच में वह विश्व ही था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... एक बंदा... प्लान बनाता है... सिर्फ़ एक दिन में ही... तेरी रूटीन समझ गया... दुसरे दिन... मॉब को इस्तमाल करता है... तेरी जमकर कुटाई करता है... और तेरी चीजें लुटा जाता है... फिर अपने ही आदमी के जरिए... तुझे हस्पताल पहुँचाता है... मुझे फोन करता है... इंस्पेक्टर साहू बन कर... फिर हम दोनों की चुतिआ काटता है... छोटे राजा जी के होते हुए... तुझे गुलदस्ता भेजता है... साथ साथ बॉक्स के अंदर तुझसे लुटे हुए सामान लौटा देता है... असली इंस्पेक्टर साहू सामने आता है... और हम दोनों शर्म के मारे... बोल भी नहीं पाए... किसी हरामी.. मादरचोद ने... हमारी ही गांड मार ली...

रोणा सब सुन कर ख़ामोश रहता है l बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ बोलते बोलते जोर जोर से सांस ले रहा है l

रोणा - राजगड़ में पहलवानों की गदा साफ करने वाला... उनके लंगोट साफ़ करने वाला... क्या जैल के अंदर... यह मुमकिन है... कोई... (चुप हो जाता है) नहीं... तो फिर यह विश्व नहीं हो सकता... (बल्लभ की ओर देखता है, बल्लभ अभी फिरसे खिड़की के बाहर देख रहा है) तो फिर यह कागजात क्यूँ लाया...
बल्लभ - (रोणा के पास आकर चेयर पर बैठ जाता है) अच्छी तरह से याद कर... किसी से कोई ऐसी दुश्मनी थी... जो इस तरह से... उतार सके...
रोणा - प्रधान बाबु... मैं सिर्फ सात साल... राजगड़ से दूर रहा... सिर्फ़ राजगड़ में ही ऐसी खुन्नस निकालने वाले हो सकते हैं...
बल्लभ - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) इसी लिए.. यह कागजात हासिल किए...
रोणा - प्रधान... गुस्सा मत होना... फर्ज करो... यह विश्वा ही हुआ तो...

बल्लभ धीरे से अपनी जगह से उठता है और चलते हुए फिरसे खिड़की के बाहर देखते हुए

बल्लभ - अगर फाइटर हो भी गया है.... तो भी डरने की कोई वजह नहीं है... पर उसने जो किया... जैसे किया... अगर वह विश्वा ही हुआ... तो उसने एक खास मैसेज दिया है...
रोणा - वह तो मैं बता चुका हूँ.... पहले से ही... उसकी नजर हम पर है...
बल्लभ - नहीं... यह आधा अधूरा मैसेज है...
रोणा - अच्छा... तो पुरा मैसेज क्या है....
बल्लभ - (खिड़की के पास से रोणा के बेड के सामने खड़ा हो जाता है) अहेम... अहेम.. (खरासता है) आने वाले दिनों में... उसने हमसे किस अंदाज में भीड़ेगा... बता दिया है... झलक दिखा दिया है....
रोणा - (आँखे बड़ी हो जाती है) कैसे...
बल्लभ - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... सोचो कुछ... बताओ कुछ... समझाओ कुछ... हो जाए कुछ....

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ट्रेनिंग मैदान और हॉल की निरीक्षण कर लेने के बाद विक्रम महांती के साथ कांफ्रेंस हॉल में आता है l दोनों अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं l

विक्रम - महांती... एक हफ्ता बाकी है...
महांती - जी... युवराज...
विक्रम - क्या डेवलपमेंट है...
महांती - बस... हम तैयार हैं...
विक्रम - तैयार हैं... किस बात के लिए तैयार हैं... कंबैट के लिए...
महांती - मुझे खेद है... पर यस...
विक्रम - महांती... क्या हो गया है... कोई और जानकारी नहीं है हमारे पास...
महांती - युवराज... ऑल मोस्ट ऑल... जानकारी है.. अभी... पर एक जगह खाली हाथ हैं...
विक्रम - (अपना बायां भवां तान कर सवालिया नजर से देखता है)
महांती - बताया इसलिए नहीं था... की आप तब कुछ समझने की हालत में नहीं थे...
विक्रम - (बहुत सीरियस हो कर महांती को देखने लगता है)
महांती - पर सच यह भी है कि... उन ख़बरों से हमें फायदा कुछ भी नहीं हुआ है...
विक्रम - मुझे तुम पर ना शक़ है... ना ही कोई नाराजगी है... क्यूँ के मैं जानता हूँ... तुम अपने टार्गेट से नहीं चुकोगे... पर मुझे बताते कब...
महांती - जब जरूरत पड़ती...
विक्रम - तो... अब अगर मैं तुम्हें ठीक लग रहा हूँ... बताओ फिर...
महांती - हमारे दुश्मनों में... अभी कोई भी इस सहर में नहीं हैं... केके हफ्ते बाद आएगा... और उसके साथ साथ... सारे के सारे... इकट्ठे होंगे धीरे धीरे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यानी दाव पेच की चालें खेली जाएगी...
महांती - जी युवराज... खबर है... ओंकार भी लौट आएगा... अपनी निर्वाचन क्षेत्र में... फिर से राजनीतिक पारी खेलेगा...

विक्रम - मतलब अपनी चुनाव क्षेत्र में... अपने गुर्गों के साथ आकर जम जाएगा...
महांती - जी... और हो सकता है... आप की उन लोगों के साथ एक... फ्रेंडली ऐनवायरनमेंट में मुलाकात भी हो...

विक्रम - यह तुम क्या कह रहे हो...
महांती - सच कह रहा हूँ... युवराज... दो हफ्ते बाद... कानून मंत्री विजय जेना जी की लड़के की शादी है... उनके शादी में...
विक्रम - आ..आ ह्...
महांती - युवराज जी... जाना तो आपको पड़ेगा ही... आख़िर पार्टी के युवा नेता जो हैं... और इसबार संभव है... आप इलेक्शन भी लड़ें...
विक्रम - क्या एक एमएलए टिकट के लिए... हमें उस शादी में जाना पड़ेगा...
महांती - टिकट के लिए तो नहीं... पर हो सकता है... राजा साहब... उस शादी में आयें...
विक्रम - (चौंक कर) क्या राजा साहब आ सकते हैं... क्यूँ... सिर्फ़ एक शादी अटेंड करने के लिए...
महांती - हाँ... पर उससे भी बड़ी वजह दो हैं...
विक्रम - (सवालिया नजर से देखता है)
महांती - होम मिनिस्टर का वह कांड तो आप जानते ही हैं... इसलिए सबको एक वॉर्निंग देने के लिए... वह आयेंगे... पर उस शादी में आने का बहुत बड़ी वजह है... दसपल्ला राज परिवार आना...
विक्रम - ओ... दसपल्ला राज परिवार के लिए... राजा साहब आयेंगे... ह्म्म्म्म.... (अपनी जगह से उठ कर) तुमने कहा ऑल मोस्ट ऑल... तो क्या मिस हो गया है...
महांती - (अपने मुहँ का पाउट बना कर एक पॉज लेता है) हमारे घर का भेदी... वह अभी तक हाथ नहीं लगा है...
विक्रम - (चेहरा बहुत ही सीरियस हो जाता है) यह... तो बहुत बड़ी चुक है... हमारी ही मांद में है... हमे ही नोच रहा है... और हमें उसके बारे में जरा सा भी इल्म नहीं है... (महांती की ओर देख कर) क्यूँ महांती...

महांती - युवराज... सिर्फ़... इक्कीस लोग... उस लड़की को मिला कर.. तरकीब लगा कर उनसे उनकी मोबाइल हासिल किया गया.... और उन की मोबाइल में... स्पाय बग इंस्टाल कर दिया गया है... और अब तक कुछ भी शक़ करने लायक बात सामने नहीं आया है...
विक्रम - क्या हम गलत लोगों पर शक़ कर रहे हैं...
महांती - नहीं युवराज... यही इक्कीस लोग... बिना इंटरव्यू के ESS स्क्वाड में आए हैं... इसलिए इन पर शक़ तो बनता है...
विक्रम - तुम ही कह रहे थे... लड़की अच्छी है... फिर उसके मोबाइल में बग क्यूँ लगाया है...
महांती - युवराज अब लगा दिया है तो... निकालने की क्या जरुरत है... क्यूँ के... उस मोबाइल को खुद राजकुमार जी ने उसे गिफ्ट किया था... अगर उससे मोबाइल कलेक्ट कर... हम बग निकालें... और बात राजकुमार जी तक पहुँच गया... तो...
विक्रम - ह्म्म्म्म... बात तो ठीक कह रहे हो... पर राजकुमार अभी हैं कहाँ...
महांती - पता नहीं... आज कल वह थोड़े लेट आ रहे हैं...

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तु छुपा है कहाँ... मैं तड़पता यहाँ....

वीर बड़ा ही मासूम सा चेहरा बना कर यह गुनगुना रहा है l उसकी यह गाना सुन कर आसपास बैठे लोग हँस रहे हैं l

तुमने पुकारा और... हम चले आए... कॉफी हाथों लिए आए रे...

कॉफी रखते हुए विश्व यह गा कर चुप हो जाता है l आसपास के लोग यह देख व सुन कर फिर से हँसने लगते हैं l

वीर - यार इन लोगों के लिए हम जोकर बन गए हैं...
विश्व - भाई हम अभी रोमांटिक लोगों से घिरे हुए हैं.. जिस उम्र में लोग रोमांस करते हैं... उस उम्र में... हमें ब्रोमांस करते देख हँस रहे हैं...
वीर - क्या यार... तुम भी ऐसी बातें कर रहे हो...
विश्व - क्यूँ किसी और ने भी किया था क्या...
वीर - हाँ... (चेहरा बना कर) मेरी बहन ने...
विश्व - हा हा हा हा हा.... (हँसने लगता है) अरे बाप रे...(हँसते हुए) और... और... तुमने क्या कहा...
वीर - (खीज कर) वही... जो तुमसे कहा...
विश्व - (अपनी हँसी को रोकते हुए) ओके.. ओके... अब बताओ... तुम्हारी प्रेम की गाड़ी चल रही है... या दौड़ रही है...
वीर - कहाँ यार... रेंग रही है... प्लान बनाता हूँ... बोलने को होता हूँ... पर जैसे ही उसे देखता हूँ... मेरी जुबान को लकवा मार जाता है...
विश्व - उसे डरते हो क्या...
वीर - नहीं... नहीं बिल्कुल नहीं... पर... पता नहीं क्यूँ... उसकी मासूम सा चेहरा जब भी देखता हूँ... खो ही जाता हूँ... जुबान अटक जाता है... उसके साथ सब कुछ बात कर पा रहा हूँ... पर यही नहीं कह पा रहा हूँ...
विश्व - हाँ... यह बात तो है...
वीर - यार.. तुम तो मेरी वाली के बारे में जानते हो... तुम अपनी वाली के बारे में बताओ...
विश्व - अच्छा... एक काम करते हैं... तुम अपनी वाली कि वह खूबी बताओ... मैं भी एक एक खूबी बताता जाऊँगा...
वीर - चलो ठीक है...
विश्व - तो शुरु करें...

वीर - ठीक है... अपनी अपनी महबूब के बारे में... एक एक ख़ूबी बताते हैं... शुरु मैं करता हूँ... मेरी वाली... बहुत खूबसूरत है...
विश्व - मेरी भी...
वीर - हूँ.. (अपनी आँखों को बंद कुछ याद करते हुए) वह जब सीढियों से उतर कर आती है... ऐसा लगता है... जैसे कोई परी... आसमान से धरती पर उतर रही है...
विश्व - (अपनी आँखे बंद करते हुए) मैं जब उसे देखता हूँ... ऐसा लगता है जैसे हज़ारों टिमटिमाते हुए सितारों के बीच जगमगाता हुआ चांद....
वीर - वह जब बातेँ करती है... तो कानों में मिश्री सी घुल जाती है...
विश्व - मेरी वाली कि आवाज़ इतनी मीठी है... की उसकी कड़वी बोल भी बार बार सुनने को दिल करता है...
वीर - मेरी वाली मृग नयनी है...
विश्व - मेरी वाली... उम्म्म्म् मीनाक्षी है...
वीर - उसकी बालों की जुड़ा... जैसे काली बलखाती नागिन सी...
विश्व - मेरी वाली कि जुल्फें... जैसे काले घने बादल...
वीर - (अपनी आँखे खोल कर) मेरी वाली... हमेशा मेरी खातिर दारी को तैयार ही रहती है... मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती... मुझे वह बहुत अच्छी तरह से समझती है... इतनी शांत... के... क्या कहूँ... इतनी शर्मीली... कभी कोई शिकायत नहीं करती... कभी नहीं रूठती.. अपनी दिल की भी... कहने से शर्माती है... अगर मैं यह कह दूँ... मुझे उससे प्यार नहीं... मैं जानता हूँ... वह ना अपनी किस्मत से... ना अपनी भगवन से कोई शिकायत करेगी...
विश्व - (अपनी आँखे खोल कर) बस यहीँ... यहीँ पर... मेरी वाली... अलग है... सबसे अलग हो जाती है... शर्म और हया तो है उसमें... पर उससे कहीं जिद्दी है... अपनी ही दिल की कहती है... (खुश होते हुए) हुकुम चलाती है... गुस्सा हमेशा नाक पर रखती है... रूठ जाये तो मनाना मुश्किल हो जाता है... (फिर अचानक चौंक कर चुप हो जाता है) ओह शीट...(टेबल पर घुसा मारते हुए) शीट... शीट
वीर - (चौंक कर) क्या हुआ प्रताप...
विश्व - एक मिनट... मैं अभी आया...

विश्व तेजी से उसी फ्लोर पर वॉशरुम की ओर बढ़ जाता है l वॉशरुम के अंदर पहुँच कर पहले दरवाज़ा बंद कर देता है, फिर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है l बेसिन के पास आकर टाप खोल कर अपने चेहरे पर पानी की छींटे मारता है l फिर अपनी चेहरे को आईने में देखता है l

विश्व - (अपनी परछाई से, गुर्राते हुए) क्या कर रहा है... राजकुमारी जी से दगा कर रहा था... काबु रख... काबु रख अपने आप पर... अपने दिल पर.... राजकुमारी जी को तस्सबुर करते करते... नंदिनी जी को कैसे... क्यूँ... तस्सबुर करने लग गया... (खीज कर) आ.. आह..

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कैन्टीन में सभी दोस्त साथ बैठे हैं सिवाय एक के l भाश्वती l आज भाश्वती आई नहीं है l बातों बातों में दीप्ति रुप से भाश्वती के बारे में पूछती है l

दीप्ति - क्या हुआ.. कहाँ है हमारी कार चैंप... दिखाई नहीं दे रही है आज...
रुप - हाँ यार... मैं भी मिस कर रही हूँ उसे...
सब - सिर्फ़ तू ही नहीं... हम सब मिस कर रहे हैं...
रुप - तो... रहती तो है ना वह... मेरे साथ तुमसे ज्यादा समय...
तब्बसुम - तो... ड्राइविंग लाइसेंस मिलने तक ही... उसके बाद... जितनी देर तेरे साथ उतनी देर हमारे साथ...
रुप - (मुहँ बना कर) ठीक है... ठीक है...
इतिश्री - वैसे नंदिनी... एक खबर... तेरे लिए है...
रुप - कौनसी खबर...
इतिश्री - मधु प्रकाशनी की मालकिन... अब वापस आ गईं हैं...
रुप - वह कौन हैं...
इतिश्री - कमाल है... तुने ही तो कहा था.. सुचरीता मैग्ज़ीन की मालकिन से मिलना चाहती है...
रुप - ओ.. हाँ हाँ... वह विदेश गई हुई थी..
दीप्ति - इस मैग्जीन वाली से... क्या काम है तुझे...
रुप - कुछ नहीं... एक्चुयली... मैं कुछ लिख रही हूँ... उन्हें दिखाना चाहती हूँ...
बनानी - मैं समझ सकती हूँ... तु क्या लिख रही होगी...
रुप - (बनानी को अपनी दांत पिसते हुए देखती है)
दीप्ति - (जिज्ञासा भरी अंदाज में) हाँ हाँ बोल.. किस बारे में...
बनानी - अरे... वही... जो नंदिनी ने रेडियो एफएम में कहा था.. उसे ही लिख कर... मधु प्रकाशनी के सुचरीता में छपवाना चाहती है...
रुप - हाँ हाँ वही वही...
सभी - ओ...

तभी क्लास शुरु होने की बेल बजती है l सभी क्लास की ओर जाते हैं l चलते चलते रुप भाश्वती को फोन लगाती है l फोन पीक होते ही


भाश्वती - ह्ँ.. हाँ.. हाँ.. बोल...

रुप चलते चलते रुक जाती है l सभी रुक कर रुप की ओर देखते हैं l रुप इशारे से उन सबको क्लास जाने के लिए कहती है l सभी क्लास की ओर जाते ही

रुप - क्या हुआ... रो क्यूँ रही है...
भाश्वती - क.. कु.. कुछ नहीं..
रुप - अच्छा... कुछ नहीं... मुझे नहीं बताएगी...
भाश्वती - तु.. तुझे ही बताऊंगी... क्यूंकि... तु ही मेरी परेशानी... दूर कर सकती है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... तु परेशान है... बात क्या है...
भाश्वती - मैं फोन पर... बता नहीं सकती...
रुप - तु आई भी तो नहीं ना कॉलेज...
भाश्वती - मैं... वह... (सुबकने लगती है)
रुप - अच्छा सुन... मैं तेरे घर आ रही हूँ... सबको लेकर...
भाश्वती - (चीख कर गिड़गिड़ाते हुए) नहीं... नहीं नंदिनी... प्लीज... यह बात सिर्फ तेरे और मेरे बीच रहे...
रुप - भाश्वती... सच सच बता... क्या हुआ है...
भाश्वती - मैं... ड्राइविंग स्कुल आऊंगी ना.. वहीँ... वहीँ पर तुझे बताऊंगी...
रुप - तु आएगी पक्का...
भाश्वती - हाँ... पक्का...
रुप - ठीक है... मैं ड्राइविंग स्कुल में इंतजार करुँगी...
भाश्वती - ह्म्म्म्म... ठीक है...

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व्हीलचेयर पर रोणा बैठ कर खिड़की से बाहर देख रहा है l कमरे के सोफ़े पर बैठ कर सेब छील रहा था l

रोणा - साला इतने सालों के नौकरी में... किसीने ऐसा चुतिआ काटा है... जानता है... कैसा लग रहा... (बल्लभ सेब को छीलना छोड़ रोणा की ओर देखता है) ऐसा लग रहा है कि... कोई डंडा जरा सा घुसा हुआ है गांड में... ना निकाला जा रहा है... ना पेला जा रहा है...
बल्लभ - तो... कोई पुलिस वाला पहचान का नहीं मिला लिस्ट में...
रोणा - नहीं... पर कुछ कैदियों की पहचान कर ली है मैंने...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... सारा शक़ घूम फिर कर... विश्व पर ठहर रहा है...
रोणा - हाँ... पर तेरे दिए डेस्क्रीपशन ने मुझे कंफ्युज कर दिया है...
बल्लभ - कैसा कंफ्युजन...
रोणा - विश्व... वह भी फाइटर... या फिर कोई... फाइटर वाला गैंग बनाया है...
बल्लभ - अच्छा चल... तेरे बात पर हम गौर करते हैं... विश्वा... फाइटर बन कर क्या उखाड़ लेगा... राजा साहब का अपना लश्कर है... वह गैंग बनाया होगा भी तो कितनों की... वह क्या कर लेगा... राजा साहब से भिड़ने के लिए... सिर्फ ताकत के बूते कोई उनके सामने खड़ा नहीं हो सकता.... उसके लिए सिस्टम की तलवार चाहिए... जब कि उसके पास सिस्टम की तिनका भी नहीं है... साला वह लड़ेगा... राजा साहब खुद सिस्टम हैं... यह विश्वा किसके सहारे सिस्टम से भिड़ेगा....
रोणा - (कुछ सोचते हुए) मासी... वैदेही की मासी... जिसके दम पर वैदेही ने... चपड़ चपड़ कर कानून के सेक्शन बक रही थी.... मुझे लगता है... अगर हम इस मासी को ढूंढ लेंगे... तो सारे सवालों के जवाब... हमे मिल जाएगा...

बल्लभ - अरे हाँ... यह पॉइंट तो हमने मिस कर दिया... क्या बताया था तुने... कहाँ की प्रेसिडेंट है वह...
रोणा - वाव... मेरा मतलब है... वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा....
बल्लभ - यह कौनसी बड़ी बात है... अपने कंटेक्ट से... उसकी पुरी कुंडली निकाल लेते हैं....
रोणा - नहीं... अभी मत करो...
बल्लभ - क्यूँ...
रोणा - मुझे लगता है... हम दोनों उसके नजर में... अभी भी हैं...
बल्लभ - यह कैसे कह सकते हो...
रोणा - इसलिए के जब... छोटे राजा जी हमारे साथ थे... उसी वक़्त उसने... गुलदस्ता लुटा हुआ समान लौटाया... ताकि इंस्पेक्टर साहू से हम... राहजनी केस भी दर्ज ना कर पाएं...
बल्लभ - तो हम पता कैसे करें...
रोणा - यह कोई बड़ी बात नहीं है... पंजीकृत संस्थान होगी... हम किसी से भी पता कर सकते हैं... पर पता ऐसे करो... की हमारे साये को भी मालुम ना हो....
बल्लभ - कभी कभी... मैं तेरे दिमाग का कायल हो जाता हूँ... यही वजह है कि... तेरा विश्वा पर शक़... नकार नहीं पा रहा हूँ....

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विश्व बस में चढ़ता है, उसे अंदर रुप नहीं दिखती l वह एक सुकून वाली गहरी सांस छोड़ता है l पर लेडीज सीट पर उसे भाश्वती बैठी दिखती है l उसे एहसास होता है कि भाश्वती को किसी बात का तकलीफ है l वह शायद बहुत रोई है l उसके मन की पीड़ा को जानने की इच्छा होती है इसलिए वह भाश्वती के पास जाने की सोचता है l तभी उसे धक्का देकर दो लड़के भाश्वती के पास खड़े हो जाते हैं l विश्व, भाश्वती के पास जा नहीं पाता पर वह पीछे भी नहीं जाता, वहीँ खड़ा रहता है l वह लड़के कमेंट करते करते भाश्वती को बार बार छूने को छूने के लिए हाथ बढ़ा रहे थे l विश्व भी कुछ ना कुछ बहाने से उनके हाथों को रोक देता था l इससे वह लड़के चिढ़ने लगे I पर बस में कुछ भी करने से बचने लगे थे l अपनी मंज़िल पर आते ही विश्व और भाश्वती दोनों उतर जाते हैं, उनके पीछे पीछे वह लड़के भी उतर जाते हैं l

एक लड़का - (विश्व से) क्यूँ बे... तेरी बहन लगती है क्या... हमें छूने से रोक रहा था...
विश्व - जी बिल्कुल... बहन ही लगती है मेरी... (भाश्वती से) तुम जाओ बहन...
भाश्वती - नहीं... आप को अकेले..
विश्व - मेरी फिक्र मत करो..(इतने में वह दुसरा लड़का विश्व के पेट पर पंच मारता है) आह... जा..ओ यहाँ से...

भाश्वती विश्व को मार खाते देख ड्राइविंग स्कुल की ओर भाग जाती है l भागते भागते वह स्कुल के अंदर पहुँचती है l अंदर उसे रुप दिखाई देती है l भाश्वती को यूँ भागते हुए आते देख हैरान हो जाती है l भाश्वती आकर रुप के गले लग जाती है l

रुप - है... तु भाग क्यूँ रही है...
भाश्वती - कुछ लड़के मुझे छेड़ने की कोशिश कर रहे थे... प्रताप उन्हें रोका तो वह लोग प्रताप को मारने लगे हैं...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप को मार रहे हैं...
भाश्वती - हाँ...

दोनों गेट की तरफ देखते हैं, विश्व सिटी बजाते हुए अंदर आता है l भाश्वती हैरानी भरे आँखों से देखती है और विश्व से

भाश्वती - वह.. व.. ह.. लोग... आपको मार रहे थे ना...

विश्व - (दर्द भरे आवाज में) हाँ... हाय... बहुत मारा रे...
रुप - (उसे गुस्से से देखती है)ओ हो... आरे आरे आरए... कितनी जोर से पिटाई की है... इतनी जोर से... की मुहँ से सिटी बजने लगी है... है ना...

विश्व - (अपना जीभ दांतों तले दबा देता है) अरे... वह मैं... कहना तो भूल ही गया... वह लोग जो मार रहे थे ना... मैंने उन्हें बहुत समझाया... हाथ जोड़े... पैर भी पड़े... वह लोग बहुत ही समझदार निकले... फौरन समझ गए... और मुझे बिना मारे... छोड़ कर भाग... मेरा मतलब है... बड़ा दिल दिखा कर चले गए....

विश्व उन दोनों से कोई बात किए वगैर वहाँ से निकल जाता है l विश्व के जाते ही

रुप - अब बता... क्या बात है... फोन पर क्यूँ रो रही थी...
भाश्वती - (खीज कर रोनी सुरत बनाते हुए) मेरी किस्मत ही ख़राब है... याद है जिस दिन प्रताप से मिली थी... उस दिन क्या हुआ था...
रुप - हाँ... उसने तुझे बहन कहा था...
भाश्वती - आ..आ..ह तुझे यह सब घटिया बातेँ याद रहती हैं...
रुप - ओके बाबा... अब बोल... क्या हुआ था...
भाश्वती - (तुनक कर) कहा नहीं था... उस ऑटो वाले और उसके दोस्त के बारे में...
रुप - हाँ.. हाँ.. हाँ.. क्या वे लोग... तुझे अब स्टॉल्क कर रहे हैं...
भाश्वती - कर रहे थे...
रुप - वे लोग... स्टॉल्क कर रहे थे... तो मैंने हमारे कॉलोनी वालों के मदत से... उनकी पिटाई कर दी थी...
रुप - तो... तो क्या अब भी... तुझे परेशान कर रहे हैं...
भाश्वती - नहीं... अब वह लोग नहीं करते... पर उनसे भी बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है... उन्हीं हराम खोरों के वजह से...

रुप - व्हाट... कैसी परेशानी....
 

ANUJ KUMAR

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ऐसे में दो दिन बीत जाते हैं
इन दो दिनों में द हैल में कुछ बदलाव हुआ है l शुभ्रा को अब सुबह की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है l यह बात वीर और रुप को मालुम है l इसलिए दोनों अपने अपने कमरे में बंद दरवाजे से शुभ्रा की कमरे पर नजर रखे हुए हैं l
क्लिक
विक्रम के कमरे का दरवाजा खुलता है l विक्रम अपने दोनों हाथों में गुलाब के फुल और एक लेटर लाकर शुभ्रा के कमरे के बाहर रख देता है और वापस अपने कमरे में चला जाता है l
रुप जिज्ञासा भरे नजर से अपनी हाथ की घड़ी पर नजर डालती है l ठीक दो मिनट के बाद शुभ्रा की कमरे का दरवाजा खुलता है l शुभ्रा बाहर आती है इधर उधर देखती है l जब उसे कोई नहीं दिखता तब झुक कर वह गुलाब के फुल और लेटर उठा लेती है l फिर से चारों ओर नजर दौड़ाती है कोई भी नहीं है और उसे कोई भी नहीं देख रहा है, यह कंफर्म कर लेने के बाद शुभ्रा अपनी कमरे में घुस कर दरवाज़ा बंद कर देती है l
वीर यह देख कर मुस्कराता है और वह अपने कमरे के अंदर चला जाता है l रुप भी यह देख कर बहुत खुश होती है, दरवाजा बंद कर अपनी बेड पर चढ़ कर उछलने लगती है l
उधर कमरे के अंदर शुभ्रा दरवाज़े पर पीठ टिकाये खड़ी थी, उसके चेहरे पर बहुत ही हल्का सा एक रौनक भरा मुस्कान खिल उठता है l वह आकर अपनी बेड पर बैठ जाती है l कांपते हांथों से चिट्ठी को पढ़ने लगती है

- शुब्बु मेरी जान,
इस खत में... मैं फिर से अपनी जज्बातों को दोहरा रहा हूँ... बार बार दोहराउंगा... दोहराता रहूँगा... हमारे प्यार के सितारे गर्दिश में सही... पर फिर भी आप मेरी मंजिल हो... आज हमारे बीच जो भी दूरी है... उसकी वजह... मैं खुद ही हूँ... मुझे अपनी ही उजड़ी दुनिया को... फ़िर से आबाद करना था... जो कि मैंने नहीं की... अपनी वादों से फिर गया... अपनी बातों से मुकर गया हूँ... पर और नहीं, अब मैं आपको मनाऊँगा, इस जन्म के अंतिम छोर तक... अगले जन्म तक... जन्म जन्म तक... मैं आपका था... आपका ही हूँ... आपसे पहले ना जिंदगी में कोई था.... ना आपके वगैर इस जिंदगी का कोई मतलब बाकी है... ताउम्र... विक्रम बन कर जीया... अभी भी जी रहा हूँ... वह दो पल बेहद खास थे... जो आपके पहलु में गुजारे थे... विकी बन कर... वही जिंदगी के अब... सबसे... हसीन पल थे... बहुत... अनमोल पल थे...
जान... अब मुझे विक्की बनना है... आपके पहलु में जिदंगी गुजारना है... आपकी पलकों में झाँकना है... मैं खुद को... खो चुका हूँ... अब आपकी आँखों में... ख़ुद को ढूँढना चाहता हूँ...
जान आई लव यु... इसे थ्री मैजिकल वर्ड्स कहते हैं... मैं अब इसके साथ... इसी में जी कर दिखाऊंगा.... आप यही सोच रही होंगी ना... मैं यह बात मोबाइल पर मैसेज कर भी सकता था... या फोन पर भी कह सकता था... यूँ इस तरह चिट्ठी में क्यूँ... एक बात का मुझे एहसास हो गया है जान... चिट्ठी लिखना वाकई बहुत ही मुश्किल भरा काम है... हर एक चिट्ठी को नजाने कितना बार लिखा है... ना जाने कितने काग़ज़ फाड़े हैं... फिर भी हाल ए दिल को बयान करना... आसान नहीं हो रहा है... ऐसा लगता है... फिर कुछ रह गया है... लिखना चाहिए था... पर यह एहसास भी क्या खूब है... खैर जो बाकी रह गया है... मैं कल लिख कर आपके सपने हाल ए दिल बयान करूँगा अपनी माफी नामे के साथ...

आपका... सिर्फ़ आपका.... विक्की...

चिट्ठी पढ़ने के बाद शुभ्रा के गालों में हल्का सा हरकत होता है वह उस चिट्ठी और गुलाब के फूलों को लेकर वार्डरोब में एक ड्रॉयर खोल कर उसमें रख देती है जहां पहले से ही दो चिट्ठी और कुछ सूखे हुए गुलाब के फुल रखे हुए हैं l फुल और चिट्ठी
शुभ्रा बाथरूम में जाति है l नहा धो कर तैयार हो कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुँचती है l कुछ नौकर वहाँ पहले से ही खड़े हुए हैं l शुभ्रा उनके पास पहुँच कर

शुभ्रा - क्या हुआ... कोई आज दिख नहीं रहा...
नौकर - सब आपकी राह देख रहे हैं युवराणी...
रुप और वीर - (झट से शुभ्रा के पास पहुँच कर) हम भी यहीँ हैं भाभी...
शुभ्रा - ओ ह्..

फिर सब डायनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं l उनके बैठते ही विक्रम भी वहाँ पहुँच कर बैठ जाता है l रुप और वीर दोनों देखते हैं विक्रम और शुभ्रा एक दुसरे को बिल्कुल भी नहीं देख रहे हैं l चारों चुप चाप खा कर उठ जाते हैं l और हर दिन की रुटीन को कायम रखते हुए रुप अपनी भाभी को बाय कह कर वीर के साथ निकल जाती है l विक्रम गाड़ी में बैठ कर चाबी लगाते ही रियर मिरर अपनी पोजिशन में आ जाते हैं l उस मिरर में विक्रम को शुभ्रा की अक्स साफ दिखाई देती है जिसमें वह विक्रम की ओर देख रही है l विक्रम मिरर में दिख रही शुभ्रा की परछाई को देख कर मुस्करा देता है l शुभ्रा को भी उस मिरर में विक्रम की अक्स मुस्कराते हुए दिखता है l शुभ्रा अपना चेहरा मोड़ कर दुसरी तरफ देखने लगती है l

विक्रम - सब आपकी ...
मसरूफियत में शामिल हैं...
बस एक...,
मुझ बे-ज़रूरी के सिवा.....

इतना मन में कहते हुए गाड़ी द हैल से बाहर निकाल कर ले जाता है l कुछ देर बाद विक्रम गाड़ी की रेडियो ऑन कर देता है, हु बु हु उसके दिल की हाल को बयान करते हुए एक शेर रेडियो एफएम पर ब्रॉडकास्ट हो रहा था l

कब तक रहोगे आखिर...
युँ दूर-दूर हमसे,...
मिलना पडेगा आखिर...
इक दिन जरूर हमसे,...
दामन बचाने वाले....
ये बेरूखी है कैसी...
कह दो हुआ क्या है...
कोई कसूर हमसे....
तुम छोड दो हमसे...
युँ बातचीत करना,...
हम पुछते फिरेंगे फिर भी...
अपना कसूर तुमसे,...
हमसे छीन लिया है...
तुमने ये शान-ऐ-बेनियाजी,...
हम माँगते फिर रहे हैं...
अपना गरुर तुमसे..


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हॉस्पिटल की कमरे में रोणा की हालत कुछ सुधरी हुई है l चेहरे का सुजन थोड़ा कम हुआ है l लेकिन चेहरे पर गुस्सा और नाराजगी साफ दिख रही है l तभी कैबिन का दरवाज़ा खुलता है, बल्लभ हाथों में कुछ कागजात लेकर अंदर आता है l उसे देख कर

रोणा - आओ... काले कोट आओ... दो दिन से कहाँ अपना मुहँ काला करवा रहा था बे हरामी...
बल्लभ - यह... (हाथों में काग़ज़ दिखाते हुए) यह सब जुगाड़ करने गया था...
रोणा - क्यूँ... किसीकी जायदाद उड़ाने की चक्कर में था क्या बे... जो मुझे दो दिन तक यहाँ अकेले अकेले सड़ने के लिए छोड़ गया था बे...
बल्लभ - क्यूँ... इतने सारे नर्सों के बीच... तेरा एंटेना डेड हो गया था क्या...
रोणा - भोषड़ी के... बात तो ऐसे कर रहा है... जैसे हूरों के बीच छोड़ गया था...
बल्लभ - बोला ना... तेरा ही काम करने के लिए गया था...
रोणा - मेरा कौन सा काम...
बल्लभ - भूल गया... इन सात सालों में... जैल की पोस्टिंग और कैदियों की लिस्ट...
रोणा - ओ... तो तुझे मेरी बात पर यकीन हो गया...
बल्लभ - हाँ भी... और नहीं भी...
रोणा - क्या मतलब...

बल्लभ वह सारे कागजात रोणा के पास पटक देता है और खुद जाकर केबिन के खिड़की के पास खड़ा हो जाता है l

रोणा - दो दिन गायब रहा... पढ़ तो लिया होगा...
बल्लभ - हूँम्म्म्म्...
रोणा - तो... कुछ पता लगा... या लगाना है...
बल्लभ - तु जानता है... कितने दिन तुझे नर्सों के बीच गुजारने हैं...
रोणा - उँहुँ... नहीं जानता... पैरों में अभी भी दर्द है... ठीक से चला नहीं जा रहा है...
बल्लभ - तेरे दाहिने पैर की लीगमेंट... डिसप्लेश हो गया है...
रोणा - ली... लीगमेंट... वह क्या होता है...

बल्लभ - पेशियों को बांधे रखने वाला रज्जु...

रोणा हैरानी भरे नजरों से बल्लभ को देखने लगता है l बल्लभ उसे देख कर समझ जाता है कि रोणा को कुछ भी समझ में नहीं आया l

बल्लभ - तुझे मारने वाला कोई... प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... जिसे जिस्म के नर्व्स के बारे में... अच्छी जानकारी थी... उसने तेरी बॉडी को... टेंपोरार्ली अपाहिज कर दिया है...
रोणा - (चौंक कर उछल पड़ता है) क्या... (रोते हुए) इसका मतलब... मैं अपाहिज हो गया... (रोने लगता है)
बल्लभ - (चिल्ला कर) अबे चुप...(रोणा चुप हो जाता है)

बल्लभ के चिल्लाने से नर्स उस कमरे में भाग कर आती है l

बल्लभ - कुछ नहीं सिस्टर... यह थोड़ा नर्वस हो गया था...(नर्स हैरान हो कर दोनों को देखती है और चुप चाप बाहर निकल जाती है)

बल्लभ - भोषड़ी के.. टेंपोरार्ली कहा... यहाँ तुझे शायद और एक हफ्ता रहना पड़ेगा...
रोणा - ओ.. अच्छा... मेरी तो फट गई थी...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l बल्लभ समझ जाता है रोणा अब विश्व को लेकर सोच में पड़ गया है l

बल्लभ - क्या सोचने लग गया...
रोणा - (बल्लभ को देखते हुए) अगर... मुझे मारने वाला... कोई प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... तो मेरी उसके साथ क्या दुश्मनी है... या सच में वह विश्व ही था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... एक बंदा... प्लान बनाता है... सिर्फ़ एक दिन में ही... तेरी रूटीन समझ गया... दुसरे दिन... मॉब को इस्तमाल करता है... तेरी जमकर कुटाई करता है... और तेरी चीजें लुटा जाता है... फिर अपने ही आदमी के जरिए... तुझे हस्पताल पहुँचाता है... मुझे फोन करता है... इंस्पेक्टर साहू बन कर... फिर हम दोनों की चुतिआ काटता है... छोटे राजा जी के होते हुए... तुझे गुलदस्ता भेजता है... साथ साथ बॉक्स के अंदर तुझसे लुटे हुए सामान लौटा देता है... असली इंस्पेक्टर साहू सामने आता है... और हम दोनों शर्म के मारे... बोल भी नहीं पाए... किसी हरामी.. मादरचोद ने... हमारी ही गांड मार ली...

रोणा सब सुन कर ख़ामोश रहता है l बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ बोलते बोलते जोर जोर से सांस ले रहा है l


रोणा - राजगड़ में पहलवानों की गदा साफ करने वाला... उनके लंगोट साफ़ करने वाला... क्या जैल के अंदर... यह मुमकिन है... कोई... (चुप हो जाता है) नहीं... तो फिर यह विश्व नहीं हो सकता... (बल्लभ की ओर देखता है, बल्लभ अभी फिरसे खिड़की के बाहर देख रहा है) तो फिर यह कागजात क्यूँ लाया...
बल्लभ - (रोणा के पास आकर चेयर पर बैठ जाता है) अच्छी तरह से याद कर... किसी से कोई ऐसी दुश्मनी थी... जो इस तरह से... उतार सके...
रोणा - प्रधान बाबु... मैं सिर्फ सात साल... राजगड़ से दूर रहा... सिर्फ़ राजगड़ में ही ऐसी खुन्नस निकालने वाले हो सकते हैं...
बल्लभ - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) इसी लिए.. यह कागजात हासिल किए...
रोणा - प्रधान... गुस्सा मत होना... फर्ज करो... यह विश्वा ही हुआ तो...

बल्लभ धीरे से अपनी जगह से उठता है और चलते हुए फिरसे खिड़की के बाहर देखते हुए

बल्लभ - अगर फाइटर हो भी गया है.... तो भी डरने की कोई वजह नहीं है... पर उसने जो किया... जैसे किया... अगर वह विश्वा ही हुआ... तो उसने एक खास मैसेज दिया है...
रोणा - वह तो मैं बता चुका हूँ.... पहले से ही... उसकी नजर हम पर है...
बल्लभ - नहीं... यह आधा अधूरा मैसेज है...
रोणा - अच्छा... तो पुरा मैसेज क्या है....
बल्लभ - (खिड़की के पास से रोणा के बेड के सामने खड़ा हो जाता है) अहेम... अहेम.. (खरासता है) आने वाले दिनों में... उसने हमसे किस अंदाज में भीड़ेगा... बता दिया है... झलक दिखा दिया है....
रोणा - (आँखे बड़ी हो जाती है) कैसे...
बल्लभ - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... सोचो कुछ... बताओ कुछ... समझाओ कुछ... हो जाए कुछ....


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ट्रेनिंग मैदान और हॉल की निरीक्षण कर लेने के बाद विक्रम महांती के साथ कांफ्रेंस हॉल में आता है l दोनों अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं l

विक्रम - महांती... एक हफ्ता बाकी है...
महांती - जी... युवराज...
विक्रम - क्या डेवलपमेंट है...
महांती - बस... हम तैयार हैं...
विक्रम - तैयार हैं... किस बात के लिए तैयार हैं... कंबैट के लिए...
महांती - मुझे खेद है... पर यस...
विक्रम - महांती... क्या हो गया है... कोई और जानकारी नहीं है हमारे पास...
महांती - युवराज... ऑल मोस्ट ऑल... जानकारी है.. अभी... पर एक जगह खाली हाथ हैं...
विक्रम - (अपना बायां भवां तान कर सवालिया नजर से देखता है)
महांती - बताया इसलिए नहीं था... की आप तब कुछ समझने की हालत में नहीं थे...
विक्रम - (बहुत सीरियस हो कर महांती को देखने लगता है)
महांती - पर सच यह भी है कि... उन ख़बरों से हमें फायदा कुछ भी नहीं हुआ है...
विक्रम - मुझे तुम पर ना शक़ है... ना ही कोई नाराजगी है... क्यूँ के मैं जानता हूँ... तुम अपने टार्गेट से नहीं चुकोगे... पर मुझे बताते कब...
महांती - जब जरूरत पड़ती...
विक्रम - तो... अब अगर मैं तुम्हें ठीक लग रहा हूँ... बताओ फिर...
महांती - हमारे दुश्मनों में... अभी कोई भी इस सहर में नहीं हैं... केके हफ्ते बाद आएगा... और उसके साथ साथ... सारे के सारे... इकट्ठे होंगे धीरे धीरे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यानी दाव पेच की चालें खेली जाएगी...
महांती - जी युवराज... खबर है... ओंकार भी लौट आएगा... अपनी निर्वाचन क्षेत्र में... फिर से राजनीतिक पारी खेलेगा...

विक्रम - मतलब अपनी चुनाव क्षेत्र में... अपने गुर्गों के साथ आकर जम जाएगा...
महांती - जी... और हो सकता है... आप की उन लोगों के साथ एक... फ्रेंडली ऐनवायरनमेंट में मुलाकात भी हो...

विक्रम - यह तुम क्या कह रहे हो...
महांती - सच कह रहा हूँ... युवराज... दो हफ्ते बाद... कानून मंत्री विजय जेना जी की लड़के की शादी है... उनके शादी में...
विक्रम - आ..आ ह्...
महांती - युवराज जी... जाना तो आपको पड़ेगा ही... आख़िर पार्टी के युवा नेता जो हैं... और इसबार संभव है... आप इलेक्शन भी लड़ें...
विक्रम - क्या एक एमएलए टिकट के लिए... हमें उस शादी में जाना पड़ेगा...
महांती - टिकट के लिए तो नहीं... पर हो सकता है... राजा साहब... उस शादी में आयें...
विक्रम - (चौंक कर) क्या राजा साहब आ सकते हैं... क्यूँ... सिर्फ़ एक शादी अटेंड करने के लिए...
महांती - हाँ... पर उससे भी बड़ी वजह दो हैं...
विक्रम - (सवालिया नजर से देखता है)
महांती - होम मिनिस्टर का वह कांड तो आप जानते ही हैं... इसलिए सबको एक वॉर्निंग देने के लिए... वह आयेंगे... पर उस शादी में आने का बहुत बड़ी वजह है... दसपल्ला राज परिवार आना...
विक्रम - ओ... दसपल्ला राज परिवार के लिए... राजा साहब आयेंगे... ह्म्म्म्म.... (अपनी जगह से उठ कर) तुमने कहा ऑल मोस्ट ऑल... तो क्या मिस हो गया है...
महांती - (अपने मुहँ का पाउट बना कर एक पॉज लेता है) हमारे घर का भेदी... वह अभी तक हाथ नहीं लगा है...
विक्रम - (चेहरा बहुत ही सीरियस हो जाता है) यह... तो बहुत बड़ी चुक है... हमारी ही मांद में है... हमे ही नोच रहा है... और हमें उसके बारे में जरा सा भी इल्म नहीं है... (महांती की ओर देख कर) क्यूँ महांती...

महांती - युवराज... सिर्फ़... इक्कीस लोग... उस लड़की को मिला कर.. तरकीब लगा कर उनसे उनकी मोबाइल हासिल किया गया.... और उन की मोबाइल में... स्पाय बग इंस्टाल कर दिया गया है... और अब तक कुछ भी शक़ करने लायक बात सामने नहीं आया है...
विक्रम - क्या हम गलत लोगों पर शक़ कर रहे हैं...
महांती - नहीं युवराज... यही इक्कीस लोग... बिना इंटरव्यू के ESS स्क्वाड में आए हैं... इसलिए इन पर शक़ तो बनता है...
विक्रम - तुम ही कह रहे थे... लड़की अच्छी है... फिर उसके मोबाइल में बग क्यूँ लगाया है...
महांती - युवराज अब लगा दिया है तो... निकालने की क्या जरुरत है... क्यूँ के... उस मोबाइल को खुद राजकुमार जी ने उसे गिफ्ट किया था... अगर उससे मोबाइल कलेक्ट कर... हम बग निकालें... और बात राजकुमार जी तक पहुँच गया... तो...
विक्रम - ह्म्म्म्म... बात तो ठीक कह रहे हो... पर राजकुमार अभी हैं कहाँ...
महांती - पता नहीं... आज कल वह थोड़े लेट आ रहे हैं...


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तु छुपा है कहाँ... मैं तड़पता यहाँ....

वीर बड़ा ही मासूम सा चेहरा बना कर यह गुनगुना रहा है l उसकी यह गाना सुन कर आसपास बैठे लोग हँस रहे हैं l

तुमने पुकारा और... हम चले आए... कॉफी हाथों लिए आए रे...

कॉफी रखते हुए विश्व यह गा कर चुप हो जाता है l आसपास के लोग यह देख व सुन कर फिर से हँसने लगते हैं l

वीर - यार इन लोगों के लिए हम जोकर बन गए हैं...
विश्व - भाई हम अभी रोमांटिक लोगों से घिरे हुए हैं.. जिस उम्र में लोग रोमांस करते हैं... उस उम्र में... हमें ब्रोमांस करते देख हँस रहे हैं...
वीर - क्या यार... तुम भी ऐसी बातें कर रहे हो...
विश्व - क्यूँ किसी और ने भी किया था क्या...
वीर - हाँ... (चेहरा बना कर) मेरी बहन ने...
विश्व - हा हा हा हा हा.... (हँसने लगता है) अरे बाप रे...(हँसते हुए) और... और... तुमने क्या कहा...
वीर - (खीज कर) वही... जो तुमसे कहा...
विश्व - (अपनी हँसी को रोकते हुए) ओके.. ओके... अब बताओ... तुम्हारी प्रेम की गाड़ी चल रही है... या दौड़ रही है...
वीर - कहाँ यार... रेंग रही है... प्लान बनाता हूँ... बोलने को होता हूँ... पर जैसे ही उसे देखता हूँ... मेरी जुबान को लकवा मार जाता है...
विश्व - उसे डरते हो क्या...
वीर - नहीं... नहीं बिल्कुल नहीं... पर... पता नहीं क्यूँ... उसकी मासूम सा चेहरा जब भी देखता हूँ... खो ही जाता हूँ... जुबान अटक जाता है... उसके साथ सब कुछ बात कर पा रहा हूँ... पर यही नहीं कह पा रहा हूँ...
विश्व - हाँ... यह बात तो है...
वीर - यार.. तुम तो मेरी वाली के बारे में जानते हो... तुम अपनी वाली के बारे में बताओ...
विश्व - अच्छा... एक काम करते हैं... तुम अपनी वाली कि वह खूबी बताओ... मैं भी एक एक खूबी बताता जाऊँगा...
वीर - चलो ठीक है...
विश्व - तो शुरु करें...

वीर - ठीक है... अपनी अपनी महबूब के बारे में... एक एक ख़ूबी बताते हैं... शुरु मैं करता हूँ... मेरी वाली... बहुत खूबसूरत है...
विश्व - मेरी भी...
वीर - हूँ.. (अपनी आँखों को बंद कुछ याद करते हुए) वह जब सीढियों से उतर कर आती है... ऐसा लगता है... जैसे कोई परी... आसमान से धरती पर उतर रही है...
विश्व - (अपनी आँखे बंद करते हुए) मैं जब उसे देखता हूँ... ऐसा लगता है जैसे हज़ारों टिमटिमाते हुए सितारों के बीच जगमगाता हुआ चांद....
वीर - वह जब बातेँ करती है... तो कानों में मिश्री सी घुल जाती है...
विश्व - मेरी वाली कि आवाज़ इतनी मीठी है... की उसकी कड़वी बोल भी बार बार सुनने को दिल करता है...
वीर - मेरी वाली मृग नयनी है...
विश्व - मेरी वाली... उम्म्म्म् मीनाक्षी है...
वीर - उसकी बालों की जुड़ा... जैसे काली बलखाती नागिन सी...
विश्व - मेरी वाली कि जुल्फें... जैसे काले घने बादल...
वीर - (अपनी आँखे खोल कर) मेरी वाली... हमेशा मेरी खातिर दारी को तैयार ही रहती है... मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती... मुझे वह बहुत अच्छी तरह से समझती है... इतनी शांत... के... क्या कहूँ... इतनी शर्मीली... कभी कोई शिकायत नहीं करती... कभी नहीं रूठती.. अपनी दिल की भी... कहने से शर्माती है... अगर मैं यह कह दूँ... मुझे उससे प्यार नहीं... मैं जानता हूँ... वह ना अपनी किस्मत से... ना अपनी भगवन से कोई शिकायत करेगी...
विश्व - (अपनी आँखे खोल कर) बस यहीँ... यहीँ पर... मेरी वाली... अलग है... सबसे अलग हो जाती है... शर्म और हया तो है उसमें... पर उससे कहीं जिद्दी है... अपनी ही दिल की कहती है... (खुश होते हुए) हुकुम चलाती है... गुस्सा हमेशा नाक पर रखती है... रूठ जाये तो मनाना मुश्किल हो जाता है... (फिर अचानक चौंक कर चुप हो जाता है) ओह शीट...(टेबल पर घुसा मारते हुए) शीट... शीट
वीर - (चौंक कर) क्या हुआ प्रताप...
विश्व - एक मिनट... मैं अभी आया...

विश्व तेजी से उसी फ्लोर पर वॉशरुम की ओर बढ़ जाता है l वॉशरुम के अंदर पहुँच कर पहले दरवाज़ा बंद कर देता है, फिर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है l बेसिन के पास आकर टाप खोल कर अपने चेहरे पर पानी की छींटे मारता है l फिर अपनी चेहरे को आईने में देखता है l


विश्व - (अपनी परछाई से, गुर्राते हुए) क्या कर रहा है... राजकुमारी जी से दगा कर रहा था... काबु रख... काबु रख अपने आप पर... अपने दिल पर.... राजकुमारी जी को तस्सबुर करते करते... नंदिनी जी को कैसे... क्यूँ... तस्सबुर करने लग गया... (खीज कर) आ.. आह..

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कैन्टीन में सभी दोस्त साथ बैठे हैं सिवाय एक के l भाश्वती l आज भाश्वती आई नहीं है l बातों बातों में दीप्ति रुप से भाश्वती के बारे में पूछती है l

दीप्ति - क्या हुआ.. कहाँ है हमारी कार चैंप... दिखाई नहीं दे रही है आज...
रुप - हाँ यार... मैं भी मिस कर रही हूँ उसे...
सब - सिर्फ़ तू ही नहीं... हम सब मिस कर रहे हैं...
रुप - तो... रहती तो है ना वह... मेरे साथ तुमसे ज्यादा समय...
तब्बसुम - तो... ड्राइविंग लाइसेंस मिलने तक ही... उसके बाद... जितनी देर तेरे साथ उतनी देर हमारे साथ...
रुप - (मुहँ बना कर) ठीक है... ठीक है...
इतिश्री - वैसे नंदिनी... एक खबर... तेरे लिए है...
रुप - कौनसी खबर...
इतिश्री - मधु प्रकाशनी की मालकिन... अब वापस आ गईं हैं...
रुप - वह कौन हैं...
इतिश्री - कमाल है... तुने ही तो कहा था.. सुचरीता मैग्ज़ीन की मालकिन से मिलना चाहती है...
रुप - ओ.. हाँ हाँ... वह विदेश गई हुई थी..
दीप्ति - इस मैग्जीन वाली से... क्या काम है तुझे...
रुप - कुछ नहीं... एक्चुयली... मैं कुछ लिख रही हूँ... उन्हें दिखाना चाहती हूँ...
बनानी - मैं समझ सकती हूँ... तु क्या लिख रही होगी...
रुप - (बनानी को अपनी दांत पिसते हुए देखती है)
दीप्ति - (जिज्ञासा भरी अंदाज में) हाँ हाँ बोल.. किस बारे में...
बनानी - अरे... वही... जो नंदिनी ने रेडियो एफएम में कहा था.. उसे ही लिख कर... मधु प्रकाशनी के सुचरीता में छपवाना चाहती है...
रुप - हाँ हाँ वही वही...
सभी - ओ...

तभी क्लास शुरु होने की बेल बजती है l सभी क्लास की ओर जाते हैं l चलते चलते रुप भाश्वती को फोन लगाती है l फोन पीक होते ही


भाश्वती - ह्ँ.. हाँ.. हाँ.. बोल...


रुप चलते चलते रुक जाती है l सभी रुक कर रुप की ओर देखते हैं l रुप इशारे से उन सबको क्लास जाने के लिए कहती है l सभी क्लास की ओर जाते ही

रुप - क्या हुआ... रो क्यूँ रही है...
भाश्वती - क.. कु.. कुछ नहीं..
रुप - अच्छा... कुछ नहीं... मुझे नहीं बताएगी...
भाश्वती - तु.. तुझे ही बताऊंगी... क्यूंकि... तु ही मेरी परेशानी... दूर कर सकती है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... तु परेशान है... बात क्या है...
भाश्वती - मैं फोन पर... बता नहीं सकती...
रुप - तु आई भी तो नहीं ना कॉलेज...
भाश्वती - मैं... वह... (सुबकने लगती है)
रुप - अच्छा सुन... मैं तेरे घर आ रही हूँ... सबको लेकर...
भाश्वती - (चीख कर गिड़गिड़ाते हुए) नहीं... नहीं नंदिनी... प्लीज... यह बात सिर्फ तेरे और मेरे बीच रहे...
रुप - भाश्वती... सच सच बता... क्या हुआ है...
भाश्वती - मैं... ड्राइविंग स्कुल आऊंगी ना.. वहीँ... वहीँ पर तुझे बताऊंगी...
रुप - तु आएगी पक्का...
भाश्वती - हाँ... पक्का...
रुप - ठीक है... मैं ड्राइविंग स्कुल में इंतजार करुँगी...
भाश्वती - ह्म्म्म्म... ठीक है...


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व्हीलचेयर पर रोणा बैठ कर खिड़की से बाहर देख रहा है l कमरे के सोफ़े पर बैठ कर सेब छील रहा था l

रोणा - साला इतने सालों के नौकरी में... किसीने ऐसा चुतिआ काटा है... जानता है... कैसा लग रहा... (बल्लभ सेब को छीलना छोड़ रोणा की ओर देखता है) ऐसा लग रहा है कि... कोई डंडा जरा सा घुसा हुआ है गांड में... ना निकाला जा रहा है... ना पेला जा रहा है...
बल्लभ - तो... कोई पुलिस वाला पहचान का नहीं मिला लिस्ट में...
रोणा - नहीं... पर कुछ कैदियों की पहचान कर ली है मैंने...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... सारा शक़ घूम फिर कर... विश्व पर ठहर रहा है...
रोणा - हाँ... पर तेरे दिए डेस्क्रीपशन ने मुझे कंफ्युज कर दिया है...
बल्लभ - कैसा कंफ्युजन...
रोणा - विश्व... वह भी फाइटर... या फिर कोई... फाइटर वाला गैंग बनाया है...
बल्लभ - अच्छा चल... तेरे बात पर हम गौर करते हैं... विश्वा... फाइटर बन कर क्या उखाड़ लेगा... राजा साहब का अपना लश्कर है... वह गैंग बनाया होगा भी तो कितनों की... वह क्या कर लेगा... राजा साहब से भिड़ने के लिए... सिर्फ ताकत के बूते कोई उनके सामने खड़ा नहीं हो सकता.... उसके लिए सिस्टम की तलवार चाहिए... जब कि उसके पास सिस्टम की तिनका भी नहीं है... साला वह लड़ेगा... राजा साहब खुद सिस्टम हैं... यह विश्वा किसके सहारे सिस्टम से भिड़ेगा....
रोणा - (कुछ सोचते हुए) मासी... वैदेही की मासी... जिसके दम पर वैदेही ने... चपड़ चपड़ कर कानून के सेक्शन बक रही थी.... मुझे लगता है... अगर हम इस मासी को ढूंढ लेंगे... तो सारे सवालों के जवाब... हमे मिल जाएगा...

बल्लभ - अरे हाँ... यह पॉइंट तो हमने मिस कर दिया... क्या बताया था तुने... कहाँ की प्रेसिडेंट है वह...
रोणा - वाव... मेरा मतलब है... वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा....
बल्लभ - यह कौनसी बड़ी बात है... अपने कंटेक्ट से... उसकी पुरी कुंडली निकाल लेते हैं....
रोणा - नहीं... अभी मत करो...
बल्लभ - क्यूँ...
रोणा - मुझे लगता है... हम दोनों उसके नजर में... अभी भी हैं...
बल्लभ - यह कैसे कह सकते हो...
रोणा - इसलिए के जब... छोटे राजा जी हमारे साथ थे... उसी वक़्त उसने... गुलदस्ता लुटा हुआ समान लौटाया... ताकि इंस्पेक्टर साहू से हम... राहजनी केस भी दर्ज ना कर पाएं...
बल्लभ - तो हम पता कैसे करें...
रोणा - यह कोई बड़ी बात नहीं है... पंजीकृत संस्थान होगी... हम किसी से भी पता कर सकते हैं... पर पता ऐसे करो... की हमारे साये को भी मालुम ना हो....
बल्लभ - कभी कभी... मैं तेरे दिमाग का कायल हो जाता हूँ... यही वजह है कि... तेरा विश्वा पर शक़... नकार नहीं पा रहा हूँ....


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विश्व बस में चढ़ता है, उसे अंदर रुप नहीं दिखती l वह एक सुकून वाली गहरी सांस छोड़ता है l पर लेडीज सीट पर उसे भाश्वती बैठी दिखती है l उसे एहसास होता है कि भाश्वती को किसी बात का तकलीफ है l वह शायद बहुत रोई है l उसके मन की पीड़ा को जानने की इच्छा होती है इसलिए वह भाश्वती के पास जाने की सोचता है l तभी उसे धक्का देकर दो लड़के भाश्वती के पास खड़े हो जाते हैं l विश्व, भाश्वती के पास जा नहीं पाता पर वह पीछे भी नहीं जाता, वहीँ खड़ा रहता है l वह लड़के कमेंट करते करते भाश्वती को बार बार छूने को छूने के लिए हाथ बढ़ा रहे थे l विश्व भी कुछ ना कुछ बहाने से उनके हाथों को रोक देता था l इससे वह लड़के चिढ़ने लगे I पर बस में कुछ भी करने से बचने लगे थे l अपनी मंज़िल पर आते ही विश्व और भाश्वती दोनों उतर जाते हैं, उनके पीछे पीछे वह लड़के भी उतर जाते हैं l

एक लड़का - (विश्व से) क्यूँ बे... तेरी बहन लगती है क्या... हमें छूने से रोक रहा था...
विश्व - जी बिल्कुल... बहन ही लगती है मेरी... (भाश्वती से) तुम जाओ बहन...
भाश्वती - नहीं... आप को अकेले..
विश्व - मेरी फिक्र मत करो..(इतने में वह दुसरा लड़का विश्व के पेट पर पंच मारता है) आह... जा..ओ यहाँ से...

भाश्वती विश्व को मार खाते देख ड्राइविंग स्कुल की ओर भाग जाती है l भागते भागते वह स्कुल के अंदर पहुँचती है l अंदर उसे रुप दिखाई देती है l भाश्वती को यूँ भागते हुए आते देख हैरान हो जाती है l भाश्वती आकर रुप के गले लग जाती है l

रुप - है... तु भाग क्यूँ रही है...
भाश्वती - कुछ लड़के मुझे छेड़ने की कोशिश कर रहे थे... प्रताप उन्हें रोका तो वह लोग प्रताप को मारने लगे हैं...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप को मार रहे हैं...
भाश्वती - हाँ...

दोनों गेट की तरफ देखते हैं, विश्व सिटी बजाते हुए अंदर आता है l भाश्वती हैरानी भरे आँखों से देखती है और विश्व से

भाश्वती - वह.. व.. ह.. लोग... आपको मार रहे थे ना...

विश्व - (दर्द भरे आवाज में) हाँ... हाय... बहुत मारा रे...
रुप - (उसे गुस्से से देखती है)ओ हो... आरे आरे आरए... कितनी जोर से पिटाई की है... इतनी जोर से... की मुहँ से सिटी बजने लगी है... है ना...

विश्व - (अपना जीभ दांतों तले दबा देता है) अरे... वह मैं... कहना तो भूल ही गया... वह लोग जो मार रहे थे ना... मैंने उन्हें बहुत समझाया... हाथ जोड़े... पैर भी पड़े... वह लोग बहुत ही समझदार निकले... फौरन समझ गए... और मुझे बिना मारे... छोड़ कर भाग... मेरा मतलब है... बड़ा दिल दिखा कर चले गए....

विश्व उन दोनों से कोई बात किए वगैर वहाँ से निकल जाता है l विश्व के जाते ही

रुप - अब बता... क्या बात है... फोन पर क्यूँ रो रही थी...
भाश्वती - (खीज कर रोनी सुरत बनाते हुए) मेरी किस्मत ही ख़राब है... याद है जिस दिन प्रताप से मिली थी... उस दिन क्या हुआ था...
रुप - हाँ... उसने तुझे बहन कहा था...
भाश्वती - आ..आ..ह तुझे यह सब घटिया बातेँ याद रहती हैं...
रुप - ओके बाबा... अब बोल... क्या हुआ था...
भाश्वती - (तुनक कर) कहा नहीं था... उस ऑटो वाले और उसके दोस्त के बारे में...
रुप - हाँ.. हाँ.. हाँ.. क्या वे लोग... तुझे अब स्टॉल्क कर रहे हैं...
भाश्वती - कर रहे थे...
रुप - वे लोग... स्टॉल्क कर रहे थे... तो मैंने हमारे कॉलोनी वालों के मदत से... उनकी पिटाई कर दी थी...
रुप - तो... तो क्या अब भी... तुझे परेशान कर रहे हैं...
भाश्वती - नहीं... अब वह लोग नहीं करते... पर उनसे भी बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है... उन्हीं हराम खोरों के वजह से...

रुप - व्हाट... कैसी परेशानी....
awesome update
 

Rajesh

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👉पचासीवां अपडेट
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ऐसे में दो दिन बीत जाते हैं
इन दो दिनों में द हैल में कुछ बदलाव हुआ है l शुभ्रा को अब सुबह की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है l यह बात वीर और रुप को मालुम है l इसलिए दोनों अपने अपने कमरे में बंद दरवाजे से शुभ्रा की कमरे पर नजर रखे हुए हैं l
क्लिक
विक्रम के कमरे का दरवाजा खुलता है l विक्रम अपने दोनों हाथों में गुलाब के फुल और एक लेटर लाकर शुभ्रा के कमरे के बाहर रख देता है और वापस अपने कमरे में चला जाता है l
रुप जिज्ञासा भरे नजर से अपनी हाथ की घड़ी पर नजर डालती है l ठीक दो मिनट के बाद शुभ्रा की कमरे का दरवाजा खुलता है l शुभ्रा बाहर आती है इधर उधर देखती है l जब उसे कोई नहीं दिखता तब झुक कर वह गुलाब के फुल और लेटर उठा लेती है l फिर से चारों ओर नजर दौड़ाती है कोई भी नहीं है और उसे कोई भी नहीं देख रहा है, यह कंफर्म कर लेने के बाद शुभ्रा अपनी कमरे में घुस कर दरवाज़ा बंद कर देती है l
वीर यह देख कर मुस्कराता है और वह अपने कमरे के अंदर चला जाता है l रुप भी यह देख कर बहुत खुश होती है, दरवाजा बंद कर अपनी बेड पर चढ़ कर उछलने लगती है l
उधर कमरे के अंदर शुभ्रा दरवाज़े पर पीठ टिकाये खड़ी थी, उसके चेहरे पर बहुत ही हल्का सा एक रौनक भरा मुस्कान खिल उठता है l वह आकर अपनी बेड पर बैठ जाती है l कांपते हांथों से चिट्ठी को पढ़ने लगती है

- शुब्बु मेरी जान,
इस खत में... मैं फिर से अपनी जज्बातों को दोहरा रहा हूँ... बार बार दोहराउंगा... दोहराता रहूँगा... हमारे प्यार के सितारे गर्दिश में सही... पर फिर भी आप मेरी मंजिल हो... आज हमारे बीच जो भी दूरी है... उसकी वजह... मैं खुद ही हूँ... मुझे अपनी ही उजड़ी दुनिया को... फ़िर से आबाद करना था... जो कि मैंने नहीं की... अपनी वादों से फिर गया... अपनी बातों से मुकर गया हूँ... पर और नहीं, अब मैं आपको मनाऊँगा, इस जन्म के अंतिम छोर तक... अगले जन्म तक... जन्म जन्म तक... मैं आपका था... आपका ही हूँ... आपसे पहले ना जिंदगी में कोई था.... ना आपके वगैर इस जिंदगी का कोई मतलब बाकी है... ताउम्र... विक्रम बन कर जीया... अभी भी जी रहा हूँ... वह दो पल बेहद खास थे... जो आपके पहलु में गुजारे थे... विकी बन कर... वही जिंदगी के अब... सबसे... हसीन पल थे... बहुत... अनमोल पल थे...
जान... अब मुझे विक्की बनना है... आपके पहलु में जिदंगी गुजारना है... आपकी पलकों में झाँकना है... मैं खुद को... खो चुका हूँ... अब आपकी आँखों में... ख़ुद को ढूँढना चाहता हूँ...
जान आई लव यु... इसे थ्री मैजिकल वर्ड्स कहते हैं... मैं अब इसके साथ... इसी में जी कर दिखाऊंगा.... आप यही सोच रही होंगी ना... मैं यह बात मोबाइल पर मैसेज कर भी सकता था... या फोन पर भी कह सकता था... यूँ इस तरह चिट्ठी में क्यूँ... एक बात का मुझे एहसास हो गया है जान... चिट्ठी लिखना वाकई बहुत ही मुश्किल भरा काम है... हर एक चिट्ठी को नजाने कितना बार लिखा है... ना जाने कितने काग़ज़ फाड़े हैं... फिर भी हाल ए दिल को बयान करना... आसान नहीं हो रहा है... ऐसा लगता है... फिर कुछ रह गया है... लिखना चाहिए था... पर यह एहसास भी क्या खूब है... खैर जो बाकी रह गया है... मैं कल लिख कर आपके सपने हाल ए दिल बयान करूँगा अपनी माफी नामे के साथ...

आपका... सिर्फ़ आपका.... विक्की...

चिट्ठी पढ़ने के बाद शुभ्रा के गालों में हल्का सा हरकत होता है वह उस चिट्ठी और गुलाब के फूलों को लेकर वार्डरोब में एक ड्रॉयर खोल कर उसमें रख देती है जहां पहले से ही दो चिट्ठी और कुछ सूखे हुए गुलाब के फुल रखे हुए हैं l फुल और चिट्ठी
शुभ्रा बाथरूम में जाति है l नहा धो कर तैयार हो कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुँचती है l कुछ नौकर वहाँ पहले से ही खड़े हुए हैं l शुभ्रा उनके पास पहुँच कर

शुभ्रा - क्या हुआ... कोई आज दिख नहीं रहा...
नौकर - सब आपकी राह देख रहे हैं युवराणी...
रुप और वीर - (झट से शुभ्रा के पास पहुँच कर) हम भी यहीँ हैं भाभी...
शुभ्रा - ओ ह्..

फिर सब डायनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं l उनके बैठते ही विक्रम भी वहाँ पहुँच कर बैठ जाता है l रुप और वीर दोनों देखते हैं विक्रम और शुभ्रा एक दुसरे को बिल्कुल भी नहीं देख रहे हैं l चारों चुप चाप खा कर उठ जाते हैं l और हर दिन की रुटीन को कायम रखते हुए रुप अपनी भाभी को बाय कह कर वीर के साथ निकल जाती है l विक्रम गाड़ी में बैठ कर चाबी लगाते ही रियर मिरर अपनी पोजिशन में आ जाते हैं l उस मिरर में विक्रम को शुभ्रा की अक्स साफ दिखाई देती है जिसमें वह विक्रम की ओर देख रही है l विक्रम मिरर में दिख रही शुभ्रा की परछाई को देख कर मुस्करा देता है l शुभ्रा को भी उस मिरर में विक्रम की अक्स मुस्कराते हुए दिखता है l शुभ्रा अपना चेहरा मोड़ कर दुसरी तरफ देखने लगती है l

विक्रम - सब आपकी ...
मसरूफियत में शामिल हैं...
बस एक...,
मुझ बे-ज़रूरी के सिवा.....

इतना मन में कहते हुए गाड़ी द हैल से बाहर निकाल कर ले जाता है l कुछ देर बाद विक्रम गाड़ी की रेडियो ऑन कर देता है, हु बु हु उसके दिल की हाल को बयान करते हुए एक शेर रेडियो एफएम पर ब्रॉडकास्ट हो रहा था l

कब तक रहोगे आखिर...
युँ दूर-दूर हमसे,...
मिलना पडेगा आखिर...
इक दिन जरूर हमसे,...
दामन बचाने वाले....
ये बेरूखी है कैसी...
कह दो हुआ क्या है...
कोई कसूर हमसे....
तुम छोड दो हमसे...
युँ बातचीत करना,...
हम पुछते फिरेंगे फिर भी...
अपना कसूर तुमसे,...
हमसे छीन लिया है...
तुमने ये शान-ऐ-बेनियाजी,...
हम माँगते फिर रहे हैं...
अपना गरुर तुमसे..


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हॉस्पिटल की कमरे में रोणा की हालत कुछ सुधरी हुई है l चेहरे का सुजन थोड़ा कम हुआ है l लेकिन चेहरे पर गुस्सा और नाराजगी साफ दिख रही है l तभी कैबिन का दरवाज़ा खुलता है, बल्लभ हाथों में कुछ कागजात लेकर अंदर आता है l उसे देख कर

रोणा - आओ... काले कोट आओ... दो दिन से कहाँ अपना मुहँ काला करवा रहा था बे हरामी...
बल्लभ - यह... (हाथों में काग़ज़ दिखाते हुए) यह सब जुगाड़ करने गया था...
रोणा - क्यूँ... किसीकी जायदाद उड़ाने की चक्कर में था क्या बे... जो मुझे दो दिन तक यहाँ अकेले अकेले सड़ने के लिए छोड़ गया था बे...
बल्लभ - क्यूँ... इतने सारे नर्सों के बीच... तेरा एंटेना डेड हो गया था क्या...
रोणा - भोषड़ी के... बात तो ऐसे कर रहा है... जैसे हूरों के बीच छोड़ गया था...
बल्लभ - बोला ना... तेरा ही काम करने के लिए गया था...
रोणा - मेरा कौन सा काम...
बल्लभ - भूल गया... इन सात सालों में... जैल की पोस्टिंग और कैदियों की लिस्ट...
रोणा - ओ... तो तुझे मेरी बात पर यकीन हो गया...
बल्लभ - हाँ भी... और नहीं भी...
रोणा - क्या मतलब...

बल्लभ वह सारे कागजात रोणा के पास पटक देता है और खुद जाकर केबिन के खिड़की के पास खड़ा हो जाता है l

रोणा - दो दिन गायब रहा... पढ़ तो लिया होगा...
बल्लभ - हूँम्म्म्म्...
रोणा - तो... कुछ पता लगा... या लगाना है...
बल्लभ - तु जानता है... कितने दिन तुझे नर्सों के बीच गुजारने हैं...
रोणा - उँहुँ... नहीं जानता... पैरों में अभी भी दर्द है... ठीक से चला नहीं जा रहा है...
बल्लभ - तेरे दाहिने पैर की लीगमेंट... डिसप्लेश हो गया है...
रोणा - ली... लीगमेंट... वह क्या होता है...

बल्लभ - पेशियों को बांधे रखने वाला रज्जु...

रोणा हैरानी भरे नजरों से बल्लभ को देखने लगता है l बल्लभ उसे देख कर समझ जाता है कि रोणा को कुछ भी समझ में नहीं आया l

बल्लभ - तुझे मारने वाला कोई... प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... जिसे जिस्म के नर्व्स के बारे में... अच्छी जानकारी थी... उसने तेरी बॉडी को... टेंपोरार्ली अपाहिज कर दिया है...
रोणा - (चौंक कर उछल पड़ता है) क्या... (रोते हुए) इसका मतलब... मैं अपाहिज हो गया... (रोने लगता है)
बल्लभ - (चिल्ला कर) अबे चुप...(रोणा चुप हो जाता है)

बल्लभ के चिल्लाने से नर्स उस कमरे में भाग कर आती है l

बल्लभ - कुछ नहीं सिस्टर... यह थोड़ा नर्वस हो गया था...(नर्स हैरान हो कर दोनों को देखती है और चुप चाप बाहर निकल जाती है)

बल्लभ - भोषड़ी के.. टेंपोरार्ली कहा... यहाँ तुझे शायद और एक हफ्ता रहना पड़ेगा...
रोणा - ओ.. अच्छा... मेरी तो फट गई थी...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l बल्लभ समझ जाता है रोणा अब विश्व को लेकर सोच में पड़ गया है l

बल्लभ - क्या सोचने लग गया...
रोणा - (बल्लभ को देखते हुए) अगर... मुझे मारने वाला... कोई प्रोफेशनल मास्टर फाइटर था... तो मेरी उसके साथ क्या दुश्मनी है... या सच में वह विश्व ही था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... एक बंदा... प्लान बनाता है... सिर्फ़ एक दिन में ही... तेरी रूटीन समझ गया... दुसरे दिन... मॉब को इस्तमाल करता है... तेरी जमकर कुटाई करता है... और तेरी चीजें लुटा जाता है... फिर अपने ही आदमी के जरिए... तुझे हस्पताल पहुँचाता है... मुझे फोन करता है... इंस्पेक्टर साहू बन कर... फिर हम दोनों की चुतिआ काटता है... छोटे राजा जी के होते हुए... तुझे गुलदस्ता भेजता है... साथ साथ बॉक्स के अंदर तुझसे लुटे हुए सामान लौटा देता है... असली इंस्पेक्टर साहू सामने आता है... और हम दोनों शर्म के मारे... बोल भी नहीं पाए... किसी हरामी.. मादरचोद ने... हमारी ही गांड मार ली...

रोणा सब सुन कर ख़ामोश रहता है l बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ बोलते बोलते जोर जोर से सांस ले रहा है l


रोणा - राजगड़ में पहलवानों की गदा साफ करने वाला... उनके लंगोट साफ़ करने वाला... क्या जैल के अंदर... यह मुमकिन है... कोई... (चुप हो जाता है) नहीं... तो फिर यह विश्व नहीं हो सकता... (बल्लभ की ओर देखता है, बल्लभ अभी फिरसे खिड़की के बाहर देख रहा है) तो फिर यह कागजात क्यूँ लाया...
बल्लभ - (रोणा के पास आकर चेयर पर बैठ जाता है) अच्छी तरह से याद कर... किसी से कोई ऐसी दुश्मनी थी... जो इस तरह से... उतार सके...
रोणा - प्रधान बाबु... मैं सिर्फ सात साल... राजगड़ से दूर रहा... सिर्फ़ राजगड़ में ही ऐसी खुन्नस निकालने वाले हो सकते हैं...
बल्लभ - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) इसी लिए.. यह कागजात हासिल किए...
रोणा - प्रधान... गुस्सा मत होना... फर्ज करो... यह विश्वा ही हुआ तो...

बल्लभ धीरे से अपनी जगह से उठता है और चलते हुए फिरसे खिड़की के बाहर देखते हुए

बल्लभ - अगर फाइटर हो भी गया है.... तो भी डरने की कोई वजह नहीं है... पर उसने जो किया... जैसे किया... अगर वह विश्वा ही हुआ... तो उसने एक खास मैसेज दिया है...
रोणा - वह तो मैं बता चुका हूँ.... पहले से ही... उसकी नजर हम पर है...
बल्लभ - नहीं... यह आधा अधूरा मैसेज है...
रोणा - अच्छा... तो पुरा मैसेज क्या है....
बल्लभ - (खिड़की के पास से रोणा के बेड के सामने खड़ा हो जाता है) अहेम... अहेम.. (खरासता है) आने वाले दिनों में... उसने हमसे किस अंदाज में भीड़ेगा... बता दिया है... झलक दिखा दिया है....
रोणा - (आँखे बड़ी हो जाती है) कैसे...
बल्लभ - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... सोचो कुछ... बताओ कुछ... समझाओ कुछ... हो जाए कुछ....


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ट्रेनिंग मैदान और हॉल की निरीक्षण कर लेने के बाद विक्रम महांती के साथ कांफ्रेंस हॉल में आता है l दोनों अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं l

विक्रम - महांती... एक हफ्ता बाकी है...
महांती - जी... युवराज...
विक्रम - क्या डेवलपमेंट है...
महांती - बस... हम तैयार हैं...
विक्रम - तैयार हैं... किस बात के लिए तैयार हैं... कंबैट के लिए...
महांती - मुझे खेद है... पर यस...
विक्रम - महांती... क्या हो गया है... कोई और जानकारी नहीं है हमारे पास...
महांती - युवराज... ऑल मोस्ट ऑल... जानकारी है.. अभी... पर एक जगह खाली हाथ हैं...
विक्रम - (अपना बायां भवां तान कर सवालिया नजर से देखता है)
महांती - बताया इसलिए नहीं था... की आप तब कुछ समझने की हालत में नहीं थे...
विक्रम - (बहुत सीरियस हो कर महांती को देखने लगता है)
महांती - पर सच यह भी है कि... उन ख़बरों से हमें फायदा कुछ भी नहीं हुआ है...
विक्रम - मुझे तुम पर ना शक़ है... ना ही कोई नाराजगी है... क्यूँ के मैं जानता हूँ... तुम अपने टार्गेट से नहीं चुकोगे... पर मुझे बताते कब...
महांती - जब जरूरत पड़ती...
विक्रम - तो... अब अगर मैं तुम्हें ठीक लग रहा हूँ... बताओ फिर...
महांती - हमारे दुश्मनों में... अभी कोई भी इस सहर में नहीं हैं... केके हफ्ते बाद आएगा... और उसके साथ साथ... सारे के सारे... इकट्ठे होंगे धीरे धीरे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यानी दाव पेच की चालें खेली जाएगी...
महांती - जी युवराज... खबर है... ओंकार भी लौट आएगा... अपनी निर्वाचन क्षेत्र में... फिर से राजनीतिक पारी खेलेगा...

विक्रम - मतलब अपनी चुनाव क्षेत्र में... अपने गुर्गों के साथ आकर जम जाएगा...
महांती - जी... और हो सकता है... आप की उन लोगों के साथ एक... फ्रेंडली ऐनवायरनमेंट में मुलाकात भी हो...

विक्रम - यह तुम क्या कह रहे हो...
महांती - सच कह रहा हूँ... युवराज... दो हफ्ते बाद... कानून मंत्री विजय जेना जी की लड़के की शादी है... उनके शादी में...
विक्रम - आ..आ ह्...
महांती - युवराज जी... जाना तो आपको पड़ेगा ही... आख़िर पार्टी के युवा नेता जो हैं... और इसबार संभव है... आप इलेक्शन भी लड़ें...
विक्रम - क्या एक एमएलए टिकट के लिए... हमें उस शादी में जाना पड़ेगा...
महांती - टिकट के लिए तो नहीं... पर हो सकता है... राजा साहब... उस शादी में आयें...
विक्रम - (चौंक कर) क्या राजा साहब आ सकते हैं... क्यूँ... सिर्फ़ एक शादी अटेंड करने के लिए...
महांती - हाँ... पर उससे भी बड़ी वजह दो हैं...
विक्रम - (सवालिया नजर से देखता है)
महांती - होम मिनिस्टर का वह कांड तो आप जानते ही हैं... इसलिए सबको एक वॉर्निंग देने के लिए... वह आयेंगे... पर उस शादी में आने का बहुत बड़ी वजह है... दसपल्ला राज परिवार आना...
विक्रम - ओ... दसपल्ला राज परिवार के लिए... राजा साहब आयेंगे... ह्म्म्म्म.... (अपनी जगह से उठ कर) तुमने कहा ऑल मोस्ट ऑल... तो क्या मिस हो गया है...
महांती - (अपने मुहँ का पाउट बना कर एक पॉज लेता है) हमारे घर का भेदी... वह अभी तक हाथ नहीं लगा है...
विक्रम - (चेहरा बहुत ही सीरियस हो जाता है) यह... तो बहुत बड़ी चुक है... हमारी ही मांद में है... हमे ही नोच रहा है... और हमें उसके बारे में जरा सा भी इल्म नहीं है... (महांती की ओर देख कर) क्यूँ महांती...

महांती - युवराज... सिर्फ़... इक्कीस लोग... उस लड़की को मिला कर.. तरकीब लगा कर उनसे उनकी मोबाइल हासिल किया गया.... और उन की मोबाइल में... स्पाय बग इंस्टाल कर दिया गया है... और अब तक कुछ भी शक़ करने लायक बात सामने नहीं आया है...
विक्रम - क्या हम गलत लोगों पर शक़ कर रहे हैं...
महांती - नहीं युवराज... यही इक्कीस लोग... बिना इंटरव्यू के ESS स्क्वाड में आए हैं... इसलिए इन पर शक़ तो बनता है...
विक्रम - तुम ही कह रहे थे... लड़की अच्छी है... फिर उसके मोबाइल में बग क्यूँ लगाया है...
महांती - युवराज अब लगा दिया है तो... निकालने की क्या जरुरत है... क्यूँ के... उस मोबाइल को खुद राजकुमार जी ने उसे गिफ्ट किया था... अगर उससे मोबाइल कलेक्ट कर... हम बग निकालें... और बात राजकुमार जी तक पहुँच गया... तो...
विक्रम - ह्म्म्म्म... बात तो ठीक कह रहे हो... पर राजकुमार अभी हैं कहाँ...
महांती - पता नहीं... आज कल वह थोड़े लेट आ रहे हैं...


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तु छुपा है कहाँ... मैं तड़पता यहाँ....

वीर बड़ा ही मासूम सा चेहरा बना कर यह गुनगुना रहा है l उसकी यह गाना सुन कर आसपास बैठे लोग हँस रहे हैं l

तुमने पुकारा और... हम चले आए... कॉफी हाथों लिए आए रे...

कॉफी रखते हुए विश्व यह गा कर चुप हो जाता है l आसपास के लोग यह देख व सुन कर फिर से हँसने लगते हैं l

वीर - यार इन लोगों के लिए हम जोकर बन गए हैं...
विश्व - भाई हम अभी रोमांटिक लोगों से घिरे हुए हैं.. जिस उम्र में लोग रोमांस करते हैं... उस उम्र में... हमें ब्रोमांस करते देख हँस रहे हैं...
वीर - क्या यार... तुम भी ऐसी बातें कर रहे हो...
विश्व - क्यूँ किसी और ने भी किया था क्या...
वीर - हाँ... (चेहरा बना कर) मेरी बहन ने...
विश्व - हा हा हा हा हा.... (हँसने लगता है) अरे बाप रे...(हँसते हुए) और... और... तुमने क्या कहा...
वीर - (खीज कर) वही... जो तुमसे कहा...
विश्व - (अपनी हँसी को रोकते हुए) ओके.. ओके... अब बताओ... तुम्हारी प्रेम की गाड़ी चल रही है... या दौड़ रही है...
वीर - कहाँ यार... रेंग रही है... प्लान बनाता हूँ... बोलने को होता हूँ... पर जैसे ही उसे देखता हूँ... मेरी जुबान को लकवा मार जाता है...
विश्व - उसे डरते हो क्या...
वीर - नहीं... नहीं बिल्कुल नहीं... पर... पता नहीं क्यूँ... उसकी मासूम सा चेहरा जब भी देखता हूँ... खो ही जाता हूँ... जुबान अटक जाता है... उसके साथ सब कुछ बात कर पा रहा हूँ... पर यही नहीं कह पा रहा हूँ...
विश्व - हाँ... यह बात तो है...
वीर - यार.. तुम तो मेरी वाली के बारे में जानते हो... तुम अपनी वाली के बारे में बताओ...
विश्व - अच्छा... एक काम करते हैं... तुम अपनी वाली कि वह खूबी बताओ... मैं भी एक एक खूबी बताता जाऊँगा...
वीर - चलो ठीक है...
विश्व - तो शुरु करें...

वीर - ठीक है... अपनी अपनी महबूब के बारे में... एक एक ख़ूबी बताते हैं... शुरु मैं करता हूँ... मेरी वाली... बहुत खूबसूरत है...
विश्व - मेरी भी...
वीर - हूँ.. (अपनी आँखों को बंद कुछ याद करते हुए) वह जब सीढियों से उतर कर आती है... ऐसा लगता है... जैसे कोई परी... आसमान से धरती पर उतर रही है...
विश्व - (अपनी आँखे बंद करते हुए) मैं जब उसे देखता हूँ... ऐसा लगता है जैसे हज़ारों टिमटिमाते हुए सितारों के बीच जगमगाता हुआ चांद....
वीर - वह जब बातेँ करती है... तो कानों में मिश्री सी घुल जाती है...
विश्व - मेरी वाली कि आवाज़ इतनी मीठी है... की उसकी कड़वी बोल भी बार बार सुनने को दिल करता है...
वीर - मेरी वाली मृग नयनी है...
विश्व - मेरी वाली... उम्म्म्म् मीनाक्षी है...
वीर - उसकी बालों की जुड़ा... जैसे काली बलखाती नागिन सी...
विश्व - मेरी वाली कि जुल्फें... जैसे काले घने बादल...
वीर - (अपनी आँखे खोल कर) मेरी वाली... हमेशा मेरी खातिर दारी को तैयार ही रहती है... मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती... मुझे वह बहुत अच्छी तरह से समझती है... इतनी शांत... के... क्या कहूँ... इतनी शर्मीली... कभी कोई शिकायत नहीं करती... कभी नहीं रूठती.. अपनी दिल की भी... कहने से शर्माती है... अगर मैं यह कह दूँ... मुझे उससे प्यार नहीं... मैं जानता हूँ... वह ना अपनी किस्मत से... ना अपनी भगवन से कोई शिकायत करेगी...
विश्व - (अपनी आँखे खोल कर) बस यहीँ... यहीँ पर... मेरी वाली... अलग है... सबसे अलग हो जाती है... शर्म और हया तो है उसमें... पर उससे कहीं जिद्दी है... अपनी ही दिल की कहती है... (खुश होते हुए) हुकुम चलाती है... गुस्सा हमेशा नाक पर रखती है... रूठ जाये तो मनाना मुश्किल हो जाता है... (फिर अचानक चौंक कर चुप हो जाता है) ओह शीट...(टेबल पर घुसा मारते हुए) शीट... शीट
वीर - (चौंक कर) क्या हुआ प्रताप...
विश्व - एक मिनट... मैं अभी आया...

विश्व तेजी से उसी फ्लोर पर वॉशरुम की ओर बढ़ जाता है l वॉशरुम के अंदर पहुँच कर पहले दरवाज़ा बंद कर देता है, फिर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है l बेसिन के पास आकर टाप खोल कर अपने चेहरे पर पानी की छींटे मारता है l फिर अपनी चेहरे को आईने में देखता है l


विश्व - (अपनी परछाई से, गुर्राते हुए) क्या कर रहा है... राजकुमारी जी से दगा कर रहा था... काबु रख... काबु रख अपने आप पर... अपने दिल पर.... राजकुमारी जी को तस्सबुर करते करते... नंदिनी जी को कैसे... क्यूँ... तस्सबुर करने लग गया... (खीज कर) आ.. आह..

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कैन्टीन में सभी दोस्त साथ बैठे हैं सिवाय एक के l भाश्वती l आज भाश्वती आई नहीं है l बातों बातों में दीप्ति रुप से भाश्वती के बारे में पूछती है l

दीप्ति - क्या हुआ.. कहाँ है हमारी कार चैंप... दिखाई नहीं दे रही है आज...
रुप - हाँ यार... मैं भी मिस कर रही हूँ उसे...
सब - सिर्फ़ तू ही नहीं... हम सब मिस कर रहे हैं...
रुप - तो... रहती तो है ना वह... मेरे साथ तुमसे ज्यादा समय...
तब्बसुम - तो... ड्राइविंग लाइसेंस मिलने तक ही... उसके बाद... जितनी देर तेरे साथ उतनी देर हमारे साथ...
रुप - (मुहँ बना कर) ठीक है... ठीक है...
इतिश्री - वैसे नंदिनी... एक खबर... तेरे लिए है...
रुप - कौनसी खबर...
इतिश्री - मधु प्रकाशनी की मालकिन... अब वापस आ गईं हैं...
रुप - वह कौन हैं...
इतिश्री - कमाल है... तुने ही तो कहा था.. सुचरीता मैग्ज़ीन की मालकिन से मिलना चाहती है...
रुप - ओ.. हाँ हाँ... वह विदेश गई हुई थी..
दीप्ति - इस मैग्जीन वाली से... क्या काम है तुझे...
रुप - कुछ नहीं... एक्चुयली... मैं कुछ लिख रही हूँ... उन्हें दिखाना चाहती हूँ...
बनानी - मैं समझ सकती हूँ... तु क्या लिख रही होगी...
रुप - (बनानी को अपनी दांत पिसते हुए देखती है)
दीप्ति - (जिज्ञासा भरी अंदाज में) हाँ हाँ बोल.. किस बारे में...
बनानी - अरे... वही... जो नंदिनी ने रेडियो एफएम में कहा था.. उसे ही लिख कर... मधु प्रकाशनी के सुचरीता में छपवाना चाहती है...
रुप - हाँ हाँ वही वही...
सभी - ओ...

तभी क्लास शुरु होने की बेल बजती है l सभी क्लास की ओर जाते हैं l चलते चलते रुप भाश्वती को फोन लगाती है l फोन पीक होते ही


भाश्वती - ह्ँ.. हाँ.. हाँ.. बोल...


रुप चलते चलते रुक जाती है l सभी रुक कर रुप की ओर देखते हैं l रुप इशारे से उन सबको क्लास जाने के लिए कहती है l सभी क्लास की ओर जाते ही

रुप - क्या हुआ... रो क्यूँ रही है...
भाश्वती - क.. कु.. कुछ नहीं..
रुप - अच्छा... कुछ नहीं... मुझे नहीं बताएगी...
भाश्वती - तु.. तुझे ही बताऊंगी... क्यूंकि... तु ही मेरी परेशानी... दूर कर सकती है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... तु परेशान है... बात क्या है...
भाश्वती - मैं फोन पर... बता नहीं सकती...
रुप - तु आई भी तो नहीं ना कॉलेज...
भाश्वती - मैं... वह... (सुबकने लगती है)
रुप - अच्छा सुन... मैं तेरे घर आ रही हूँ... सबको लेकर...
भाश्वती - (चीख कर गिड़गिड़ाते हुए) नहीं... नहीं नंदिनी... प्लीज... यह बात सिर्फ तेरे और मेरे बीच रहे...
रुप - भाश्वती... सच सच बता... क्या हुआ है...
भाश्वती - मैं... ड्राइविंग स्कुल आऊंगी ना.. वहीँ... वहीँ पर तुझे बताऊंगी...
रुप - तु आएगी पक्का...
भाश्वती - हाँ... पक्का...
रुप - ठीक है... मैं ड्राइविंग स्कुल में इंतजार करुँगी...
भाश्वती - ह्म्म्म्म... ठीक है...


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व्हीलचेयर पर रोणा बैठ कर खिड़की से बाहर देख रहा है l कमरे के सोफ़े पर बैठ कर सेब छील रहा था l

रोणा - साला इतने सालों के नौकरी में... किसीने ऐसा चुतिआ काटा है... जानता है... कैसा लग रहा... (बल्लभ सेब को छीलना छोड़ रोणा की ओर देखता है) ऐसा लग रहा है कि... कोई डंडा जरा सा घुसा हुआ है गांड में... ना निकाला जा रहा है... ना पेला जा रहा है...
बल्लभ - तो... कोई पुलिस वाला पहचान का नहीं मिला लिस्ट में...
रोणा - नहीं... पर कुछ कैदियों की पहचान कर ली है मैंने...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... सारा शक़ घूम फिर कर... विश्व पर ठहर रहा है...
रोणा - हाँ... पर तेरे दिए डेस्क्रीपशन ने मुझे कंफ्युज कर दिया है...
बल्लभ - कैसा कंफ्युजन...
रोणा - विश्व... वह भी फाइटर... या फिर कोई... फाइटर वाला गैंग बनाया है...
बल्लभ - अच्छा चल... तेरे बात पर हम गौर करते हैं... विश्वा... फाइटर बन कर क्या उखाड़ लेगा... राजा साहब का अपना लश्कर है... वह गैंग बनाया होगा भी तो कितनों की... वह क्या कर लेगा... राजा साहब से भिड़ने के लिए... सिर्फ ताकत के बूते कोई उनके सामने खड़ा नहीं हो सकता.... उसके लिए सिस्टम की तलवार चाहिए... जब कि उसके पास सिस्टम की तिनका भी नहीं है... साला वह लड़ेगा... राजा साहब खुद सिस्टम हैं... यह विश्वा किसके सहारे सिस्टम से भिड़ेगा....
रोणा - (कुछ सोचते हुए) मासी... वैदेही की मासी... जिसके दम पर वैदेही ने... चपड़ चपड़ कर कानून के सेक्शन बक रही थी.... मुझे लगता है... अगर हम इस मासी को ढूंढ लेंगे... तो सारे सवालों के जवाब... हमे मिल जाएगा...

बल्लभ - अरे हाँ... यह पॉइंट तो हमने मिस कर दिया... क्या बताया था तुने... कहाँ की प्रेसिडेंट है वह...
रोणा - वाव... मेरा मतलब है... वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा....
बल्लभ - यह कौनसी बड़ी बात है... अपने कंटेक्ट से... उसकी पुरी कुंडली निकाल लेते हैं....
रोणा - नहीं... अभी मत करो...
बल्लभ - क्यूँ...
रोणा - मुझे लगता है... हम दोनों उसके नजर में... अभी भी हैं...
बल्लभ - यह कैसे कह सकते हो...
रोणा - इसलिए के जब... छोटे राजा जी हमारे साथ थे... उसी वक़्त उसने... गुलदस्ता लुटा हुआ समान लौटाया... ताकि इंस्पेक्टर साहू से हम... राहजनी केस भी दर्ज ना कर पाएं...
बल्लभ - तो हम पता कैसे करें...
रोणा - यह कोई बड़ी बात नहीं है... पंजीकृत संस्थान होगी... हम किसी से भी पता कर सकते हैं... पर पता ऐसे करो... की हमारे साये को भी मालुम ना हो....
बल्लभ - कभी कभी... मैं तेरे दिमाग का कायल हो जाता हूँ... यही वजह है कि... तेरा विश्वा पर शक़... नकार नहीं पा रहा हूँ....


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विश्व बस में चढ़ता है, उसे अंदर रुप नहीं दिखती l वह एक सुकून वाली गहरी सांस छोड़ता है l पर लेडीज सीट पर उसे भाश्वती बैठी दिखती है l उसे एहसास होता है कि भाश्वती को किसी बात का तकलीफ है l वह शायद बहुत रोई है l उसके मन की पीड़ा को जानने की इच्छा होती है इसलिए वह भाश्वती के पास जाने की सोचता है l तभी उसे धक्का देकर दो लड़के भाश्वती के पास खड़े हो जाते हैं l विश्व, भाश्वती के पास जा नहीं पाता पर वह पीछे भी नहीं जाता, वहीँ खड़ा रहता है l वह लड़के कमेंट करते करते भाश्वती को बार बार छूने को छूने के लिए हाथ बढ़ा रहे थे l विश्व भी कुछ ना कुछ बहाने से उनके हाथों को रोक देता था l इससे वह लड़के चिढ़ने लगे I पर बस में कुछ भी करने से बचने लगे थे l अपनी मंज़िल पर आते ही विश्व और भाश्वती दोनों उतर जाते हैं, उनके पीछे पीछे वह लड़के भी उतर जाते हैं l

एक लड़का - (विश्व से) क्यूँ बे... तेरी बहन लगती है क्या... हमें छूने से रोक रहा था...
विश्व - जी बिल्कुल... बहन ही लगती है मेरी... (भाश्वती से) तुम जाओ बहन...
भाश्वती - नहीं... आप को अकेले..
विश्व - मेरी फिक्र मत करो..(इतने में वह दुसरा लड़का विश्व के पेट पर पंच मारता है) आह... जा..ओ यहाँ से...

भाश्वती विश्व को मार खाते देख ड्राइविंग स्कुल की ओर भाग जाती है l भागते भागते वह स्कुल के अंदर पहुँचती है l अंदर उसे रुप दिखाई देती है l भाश्वती को यूँ भागते हुए आते देख हैरान हो जाती है l भाश्वती आकर रुप के गले लग जाती है l

रुप - है... तु भाग क्यूँ रही है...
भाश्वती - कुछ लड़के मुझे छेड़ने की कोशिश कर रहे थे... प्रताप उन्हें रोका तो वह लोग प्रताप को मारने लगे हैं...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप को मार रहे हैं...
भाश्वती - हाँ...

दोनों गेट की तरफ देखते हैं, विश्व सिटी बजाते हुए अंदर आता है l भाश्वती हैरानी भरे आँखों से देखती है और विश्व से

भाश्वती - वह.. व.. ह.. लोग... आपको मार रहे थे ना...

विश्व - (दर्द भरे आवाज में) हाँ... हाय... बहुत मारा रे...
रुप - (उसे गुस्से से देखती है)ओ हो... आरे आरे आरए... कितनी जोर से पिटाई की है... इतनी जोर से... की मुहँ से सिटी बजने लगी है... है ना...

विश्व - (अपना जीभ दांतों तले दबा देता है) अरे... वह मैं... कहना तो भूल ही गया... वह लोग जो मार रहे थे ना... मैंने उन्हें बहुत समझाया... हाथ जोड़े... पैर भी पड़े... वह लोग बहुत ही समझदार निकले... फौरन समझ गए... और मुझे बिना मारे... छोड़ कर भाग... मेरा मतलब है... बड़ा दिल दिखा कर चले गए....

विश्व उन दोनों से कोई बात किए वगैर वहाँ से निकल जाता है l विश्व के जाते ही

रुप - अब बता... क्या बात है... फोन पर क्यूँ रो रही थी...
भाश्वती - (खीज कर रोनी सुरत बनाते हुए) मेरी किस्मत ही ख़राब है... याद है जिस दिन प्रताप से मिली थी... उस दिन क्या हुआ था...
रुप - हाँ... उसने तुझे बहन कहा था...
भाश्वती - आ..आ..ह तुझे यह सब घटिया बातेँ याद रहती हैं...
रुप - ओके बाबा... अब बोल... क्या हुआ था...
भाश्वती - (तुनक कर) कहा नहीं था... उस ऑटो वाले और उसके दोस्त के बारे में...
रुप - हाँ.. हाँ.. हाँ.. क्या वे लोग... तुझे अब स्टॉल्क कर रहे हैं...
भाश्वती - कर रहे थे...
रुप - वे लोग... स्टॉल्क कर रहे थे... तो मैंने हमारे कॉलोनी वालों के मदत से... उनकी पिटाई कर दी थी...
रुप - तो... तो क्या अब भी... तुझे परेशान कर रहे हैं...
भाश्वती - नहीं... अब वह लोग नहीं करते... पर उनसे भी बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है... उन्हीं हराम खोरों के वजह से...

रुप - व्हाट... कैसी परेशानी....
Ultimate update bro maza aa gaya


Waiting for the next update bro
 
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