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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Rohit2708

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मित्रों क्षमा चाहता हूँ
कहानी का अगला अपडेट आज रात को आएगा
देरी की वज़ह यह है कि हम लोग यहाँ एक नाटक मंचन में व्यस्त थे
इसी कारण हम सभी जो नाटक से जुड़े हुए थे हर तरह की सोशल मीडिया से दूर थे
फिर से माफी मांगते हुए
अपडेट आज रात आ जाएगी
intzar rahega.
 

parkas

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मित्रों क्षमा चाहता हूँ
कहानी का अगला अपडेट आज रात को आएगा
देरी की वज़ह यह है कि हम लोग यहाँ एक नाटक मंचन में व्यस्त थे
इसी कारण हम सभी जो नाटक से जुड़े हुए थे हर तरह की सोशल मीडिया से दूर थे
फिर से माफी मांगते हुए
अपडेट आज रात आ जाएगी
Intezaar rahega Kala Nag bhai...
 

Kala Nag

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👉एक सौ तीसवां अपडेट
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पंचायत भवन कांड के दो दिन बाद
यशपुर क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस
समय दो पहर का वक़्त

क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस, अंदर रोणा कुर्सी पर बैठा हुआ था और एक कोने में शनिया और उसके गुर्गे लाइन हाजिरी में खड़े हुए थे, उनके सामने भीमा भी खड़ा था

शनिया - (हिचकिचाते हुए) हमें यहाँ... इस वक़्त क्यूँ बुलाया है आपने दरोगा जी
रोणा - वकील बाबु आ रहे हैं... उनको राजा साहब ने भेजा है... खैरियत बुझने के लिए... थोड़ी देर बाद वकील बाबु पहुँचेंगे...
शनिया - हम... हम उनसे क्या कहेंगे साहब... हम तो उनसे नजरें तक मिला नहीं पायेंगे...
रोणा - (बिदक कर ) मैंने उदय के हाथों खबर भिजवाया था... पंचायत की सभा देर से शुरु करने के लिए...
शनिया - मैंने तो आपको फोन लगाया था... आपके फोन पर...
रोणा - (बिदक कर खड़ा हो जाता है) कितनी बार कहा है... मेरा फोन बाहर डिपॉजिट था... किसने फोन उठाया... क्या किया मैं नहीं जानता...

अभी बाहर से चर्र्र्र्र्र् की आवाज सुनाई देती है l मतलब बाहर कोई गाड़ी रुकी थी l सबकी ध्यान दरवाजे की ओर जाता है l थोड़ी देर बाद बल्लभ अंदर आता है
सभी बल्लभ को देखते ही सकपका जाते हैं और नजरें चुराने लगते हैं

बल्लभ - (ताली बजाते हुए) वाह वाह वाह... राजा साहब के गैर हाजिरी में... क्या क्या कारनामें किए हो तुम सब हराम जादे... वाह..

सबके सिर शर्म से झुक जाते हैं, बल्लभ गुस्से में फनफनाते हुए चल कर शनिया के सामने खड़ा होता है

बल्लभ - क्यूँ बे कुत्ते... आखिर कार तुझे घी हजम हुई ही नहीं....
शनिया - जी वह वकील साहब..
बल्लभ - चुप बे... समझाया था तुम हराम जादों को... अगली बार कोई भी कांड करने से पहले... मुझसे सलाह कर लिया करो... (रोणा की ओर देखते हुए) क्यूँ बे दरोगा... तेरे सामने ही इनकी क्लास ली थी ना मैंने... फिर तुने भी नहीं समझाया इनको...
रोणा - (नरम आवाज में) सस.. समझाया था मैंने इन्हें... पर इन्हें ही चूल मची थी... राजा साहब को भी उस सरपंच के जरिए मना लिए... इसलिए...
बल्लभ - अबे इन सबसे ज्यादा तेरा विश्वा से पाला पड़ चुका है... इन अक्ल के अंधों को समझा भी सकता था... और पंचायत भवन में... हर हाल में तुझे उनके साथ होना चाहिए था... राजा साहब ने तुझे हिदायत भी तो यही दी थी...
रोणा - मैंने उदय के हाथों खबर भिजवाया था... मेरा इंतजार करने के लिए... पर यहाँ पर भी.. कांड हो गया...
बल्लभ - कैसा कांड...
रोणा - चार साल पहले का वारंट था... जब मैं देवगड़ में पोस्टिंग था... अचानक एक दिन पहले मुझे तहसील से कॉल आया... और वारंट अटेंड करने से पहले... ना करता... तो कंटेप्ट ऑफ कोर्ट हो जाता... मैंने अपना मोबाइल बाहर अटेंडेंट के पास डिपॉजिट दे आया था... तभी शायद इस शनिया का फोन आया था... किसी ने फोन लिफ्ट कर... मेरे या मेरे स्टाफ के बदले... वहाँ पंचायत भवन में पहुंच गए... और वहाँ पर वही हुआ... सब जैसा विश्वा चाहता था...
बल्लभ - ऐसे कैसे हो गया... तेरा फोन लॉक नहीं था क्या...
रोणा - कॉल लिफ्ट करने के लिए... लॉक क्या संबंध...
बल्लभ - (भीमा से) और तु... तु कैसे इन सबके साथ नहीं था...
भीमा - अब मैं क्या कहूँ वकील साहब... ( शनिया को देख कर) इस कमबख्त ने जैसे डींगे हांके थे... साथ में पच्चीस तीस पट्ठों का लश्कर... फिर भी... इस बार... दिन के उजाले में मार खाए...

बल्लभ एक कुर्सी पर बैठ जाता है और ठुड्डी पर हाथ रखकर कुछ सोचने लगता है l दांत पिसते हुए सब पर एक नजर डालता है

बल्लभ - सरपंच कहाँ है..
रोणा - हस्पताल में...
बल्लभ - क्या... हस्पताल में... क्यूँ...
रोणा - सबसे ज्यादा डरा हुआ... तो वही है... गहरा सदमा लगा है... इतना गहरा के... हाथ पैर ठंडा पड़ गया... इसलिए इमर्जेंसी में हस्पताल में दाखिल करना पड़ा...
बल्लभ - (शनिया और उसके लोगों से) जानते हो तुम लोग अभी कहाँ पर हो.... (कहते हुए खड़ा हो जाता है) यह जहां तुम लोग खड़े हुए हो... क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस है... राजा साहब रुतबा ही है... के यहाँ सरकारी मुलाजिम पहरेदारी करते हैं.... तुम लोगों के मूर्खता के वज़ह से... राजा साहब के साख पर बट्टा लगा है... इसे अब साफ करने का जिम्मा भी अब तुम्हारा है...
शनिया - जी अब तो... राजा साहब का सामना हम कैसे करें... इस बात की परेशानी है..
बल्लभ - वह तुम जानो... बहुत बहादुरी दिखा दी तुमने... अभी कमीना पन दिखाने की बारी है तुम्हारी... बहादुरी और सीधे रास्ते पर... कोई उसे हरा नहीं सकता... तब बहादुरी छोड़ो... अपना कमीना पन आजमाओ... कुछ भी करो... (जोर देते हुए) उसे.... उसे जान से मार दो..

बल्लभ को आवाज़ गूंज रही थी l कमरे में इतनी खामोशी थी के बाहर से अंदाजा लगाना मुश्किल था के अंदर करीब करीब तीस आदमी हैं l बल्लभ फिर बोलना शुरु करता है

बल्लभ - उसे सामने से मार नहीं सकते... तो पीठ पर वार करो... छुप कर वार करो... पर उसे मारना जरुर... जानते हो... तुम लोग हारे क्यूँ.... वह इसलिए कि आज तक तुम लोगों पर किसीने पलट वार नहीं किया था... एक बार पलट वार किया तो तुम लोगों की यह गत बन गई... (सब खामोशी के साथ सुने जा रहे थे) मुफ्त की... हराम की खा खा कर ऐसे हो गए हो कि.... (चुप हो जाता है) इससे पहले कि लोग... तुम लोगों की नाकारा पन की कहानियां बनाने लगे... (फिर से चुप हो जाता है) शूकर करो... छोटे राजा जी ने भीमा का फोन उठाया था.... और उन्होंने मुझे बात का पता करने के लिए भेज दिया.... इससे पहले कि राजा साहब मामला को अपने हाथ पर लें... तुम लोग कुछ करके दिखाओ... वर्ना... राजा साहब का गुस्सा विश्वा पर फूटेगा बाद में... टुटेगा पहले तुम लोगों पर... अब जाओ यहाँ से... तभी राजा साहब के सामने आना... जब विश्वा की कटे हुए सिर को राजगड़ के गालियों में ठोकर मारते हुए गुजरोगे.... अब जाओ यहाँ से... जाओ

शनिया और उसके सारे पट्ठे वहाँ से चले जाते हैं l कमरे में अब सिर्फ बल्लभ, रोणा और भीमा रह जाते हैं l बल्लभ हांफते हुए धप कर बैठ जाता है

बल्लभ - रोणा... क्या रिपोर्ट बनाया है तुमने..
रोणा - यही की... शराब के नशे में... कुछ लोग... वहाँ पर बातचीत में गरम हो गए... हाथापाई कर बैठे...
भीमा - वकील बाबु... कभी सोचा भी नहीं था... विश्वा जैसा कोई आयेगा... इतना नाक में दम कर देगा...
रोणा - यह तो कुछ भी नहीं है भीमा... असली परेशानी अब शुरु होने वाला है...
बल्लभ - कैसी परेशानी...
रोणा - तु जानता है वकील... तु जानता है... यशपुर के डाक खाने से... पहली बार... डाक गया था... परसों वैदेही के पते पर.... (अपनी भवें सिकुड़ कर बल्लभ रोणा को देखने लगता है) तुझे याद होगा वकील... विश्वा ने दो जगह पर आरटीआई दाखिल किया था... एक होम सेक्रेटरीयट में... दुसरा हाइकोर्ट में... दोनों जगह से ज़वाब आ गया है शायद... अब हो ना हो... इन कुछ दिनों में... विश्वा पीआईएल फाइल करेगा... रुप फाउंडेशन की केस फिर से उछलेगा...

यह सुनते ही बल्लभ की आँखे हैरानी के मारे फैल जाते हैं l भीमा बल्लभ की प्रतिक्रिया देख रहा था l रोणा थोड़ी देर की चुप्पी लेकर फिर से कहने ल

रोणा - वह जैल में पुरे सात साल रहा... इन सात सालों में... उसने हर तरह की पढ़ाई की... जुर्म की दुनिया की हर दाव पेच से लेकर लड़ाई मार धाड़ तक सब कुछ... खुद को हर सांचे में बेहतरीन तरीके से ढाला हुआ है... हर जगह अपने आदमियों की जाल फैला रखा है... भुवनेश्वर से लेकर... राजगड़ और यशपुर के चप्पे-चप्पे तक... हम सोचते ही रह जाते हैं... वह अपना काम पुरा कर निकल जाता है.... ऐसा लग रहा है... जैसे हम कुछ कर नहीं रहे हैं... वह हमसे करवा रहा है.

रोणा की बात ख़तम होता है l कमरे में मरघट की शांति महसुस हो रही थी l इतनी के बल्लभ को अपनी साँसे तक सुनाई दे रही थी l कुछ देर बाद

बल्लभ - भीमा..
भीमा - जी वकील साब...
बल्लभ - तुम... शनिया और उसके आदमियों को कहीं छुपे रहने के लिए कह दो... फ़िलहाल विश्वा से और राजगड़ से दुर रहने के लिए कह दो...
भीमा - क्यूँ... वकील साहब... अभी तो आप उसकी सिर लाने की बात कह रहे थे...
बल्लभ - जब उसने आरटीआई दाखिल किया.. तभी से खुद को आरटीआई ऐक्टिविस्ट घोषित करवा दिया था.... अब जब उसे पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर से जवाब मिल गया होगा... तो पीआईएल दाखिल करते वक़्त... अपनी जान का खतरा बताएगा... उसे खरोंच भी आई... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...
रोणा - हाँ भीमा... वकील साहब ठीक कह रहे हैं... अभी विश्वा को छेड़ना नहीं है... उसे अपनी इस छोटी सी जीत का जश्न मना लेने दो... अब कुछ ऐसा प्लान करना होगा... की वह जान से जाए... जहान से भी जाए... पर सरकार को लगे.... वह फरार हो गया है... जैसे हम लोग रुप फाउंडेशन केस में... बैंक अधिकारी और तहसीलदार के साथ किया था...

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एक ऑटो मध्यम गति से राजगड़ की ओर रास्ते पर धुल उड़ाते हुए बढ़ी जा रही थी l ऑटो में पिछली सीट पर बीचों-बीच वैदेही बैठी थी और उसके अगल बगल दो बड़े भरे हुए थैले सटे हुए थे l एक में सब्जियाँ थीं और दुसरे में किराना के सामान l

वैदेही - (ऑटो वाले से) तो तुम्हारा नाम सीलु है...
सीलु - जी दीदी...
वैदेही - पर तुम लोग आज मुझसे अलग अलग हो कर क्यूँ मिले... इकट्ठे क्यूँ नहीं...
सीलु - दीदी... आपको शायद मालुम नहीं... जब से भाई गाँव लौट कर आए हैं... तब से राजा अपने कुछ प्यादों को भाई पर नजर रखने के लिए... इधर उधर बिखरा के रखा है.... ताकि भाई की कोई कमजोर नस उसे मिल जाए...
वैदेही - ओ... पर आज मैं तुम तीनों से इकट्ठे मिलना चाहती थी...
सीलु - दीदी.. मन तो हमारा भी बहुत करता है... क्यूंकि जब भी टीलु हमसे मिलता है... आपकी बड़ी प्रशंसा करता है... पर क्या करें... हम बिलकुल नहीं चाहते... आपकी तपस्या और भाई की लक्ष की राह में कोई रुकावट आए... हमसे कोई चुक ना हो...
वैदेही - बड़ी गहरी दोस्ती निभा रहे हो तुम लोग...
सीलु - नहीं दीदी... यह रिश्ता उससे भी अधिक है... उससे भी आगे है...
वैदेही - ह्म्म्म्म समझ सकती हूँ... इसी लिए तुम लोग मुझे दीदी बुला रहे हो... (सीलु चुप रहता है) अच्छा... तुम लोगों को डर नहीं लगा... पंचायत भवन में कुछ ऊँच नीच हो गया होता तो...
सीलु - नहीं होता.... हमें विश्वा भाई की प्लानिंग पर पुरा भरोसा था... (वैदेही हैरान हो कर सुन रही थी) वारंट पर मीटिंग के वक़्त... प्रोटोकॉल के तहत रोणा ने अपनी मोबाइल को रिसेप्शन में जमा करवाया था... मैं उससे बराबर दूरी बना रखा था... जैसे ही वह मैजिस्ट्रेट के चेंबर में गया... मैं उसका सॉबओर्डीनेट बन कर रिसेप्शन के पास पहुँच गया... बाकी आप तो जानते हो...
वैदेही - हाँ... (कहते हुए हँसने लगती है) अपने लिए क्या नाम चुना था तुम लोगों ने... तुम शैतान सिंह... (हँसने लगती है, फिर थोड़ी देर बाद, अपनी हँसी रोक कर) अच्छा हमें तुम सुरक्षित पंचायत भवन से निकाल कर बाहर ले आए... पर दुकान पर या घर के बाहर क्यूँ नहीं छोड़ा...
सीलु - (मुस्करा देता है) दीदी आपके इस सवाल पर... जवाब वही है... हमारा ताल्लुक जान कर... कोई हमारा पीछा ना करदे इस लिए...
वैदेही - ओह.. खैर... यह तुम लोग मुझे इतना सारा सब्जी और किराना के सामान क्यूँ दे दिए...
सीलु - यह मिलु और जिलु ने दिए हैं... इसमें मैं क्या कर सकता था...
वैदेही - क्यूँ...
सीलु - दीदी हमारी एक इच्छा है... सच कहें तो कभी कभी हम सबको... टीलु से जलन होती है...वह साक्षात अन्नपूर्णा स्वरूप के हाथों से खाना खा रहा है... पता नहीं कब हम इकट्ठे होंगे...

वैदेही - क्यूँ... तुम इतने नकारात्मक क्यूँ सोच रहे हो... क्या हम कभी भी... इकट्ठे नहीं होगे...
सीलु - होंगे दीदी होंगे... वह भी बहुत जल्द... हमारा तो सपना है ही... के आपके साथ बैठ कर... आपकी हाथों से बनी खाना खाएं...
वैदेही - (थोड़ी उदास हो कर) हाँ... सभी अपने मिलकर इकठ्ठे हों... ऐसा त्योहार भी तो राजगड़ में नहीं आता... कुछ दिनों बाद होली है... पर सदियों से यहाँ कोई त्योहार मनाना तो दुर मातम तक नहीं मनाता....
सीलु - (दिलासा देते हुए) बस कुछ दिन और दीदी... बस कुछ दिन और...

ऑटो अब गाँव में प्रवेश करता है l लोग वैदेही को ऑटो में आते हुए देख हैरान होते हैं l ऑटो वैदेही की दुकान के आगे रुकती है l सीलु उतर कर दोनों थैलों को दुकान के अंदर छोड़ता है l

सीलु - (धीरे से इशारे के साथ) दीदी... थोड़ा पानी...
वैदेही - हाँ हाँ...

वैदेही मटके से ठंडा पानी निकाल कर सीलु को देती है l सीलु पानी पीते हुए नजरें घुमाता है और वैदेही से कहता है

सीलु - दीदी... मुझे कुछ नजरें दिख रही हैं... जो तुम पर और तुम्हारी दुकान पर टिकी हुई हैं... इसलिए मुझे भाड़े के पैसे दे दो... और कोशिश करो... किसी से भी... वह चाहे कितना भी अपना हो... हमसे मुलाकात की बात नहीं कहोगी... (वैदेही हैरान हो कर सीलु को देखती है) हैरान मत हो दीदी... तुमसे कुछ गलती नहीं होगी... पर किसी और से गलती हो सकती है... अगर यह बात खुली... तो आपकी तपस्या और विश्वा भाई की मुहिम को झटका लगेगा... हम सब खतरे में आ जाएंगे...

कह कर वैदेही को ग्लास लौटाता है l वैदेही भी चुप चाप सीलु के हाथों में कुछ पैसे रख देती है l सीलु पैसे लेकर वहाँ से ऑटो लेकर बिना पीछे मुड़े बिना उसे देखे चला जाता है l उसके जाते ही वैदेही एक कुर्सी पर पीठ टिकाए बैठ जाती है और छत की देख कर एक आत्म संतोष के साथ आखें मूँद लेती है l कुछ देर बाद उसके कानों में गौरी की आवाज़ सुनाई देती है

गौरी - क्या सोच रही है अपने मन में...
वैदेही - (अपनी आँख खोल कर देखती है) क्या... अरे काकी तुम कब आई... और क्या पुछा तुमने अभी...
गौरी - अरे बेटी... अपनी मन में क्या कुछ सोच रही हो... और बड़ी खुश भी दिख रही हो... क्या बात है...
वैदेही - काकी... मुझे आज अपने विशु की किस्मत पर गर्व भी हो रहा है और खुशी भी...
गौरी - गर्व... खुशी...
वैदेही - हाँ काकी... मैं जिंदगी भर खोती रही... पर मेरा विशु... आज हर मोड़ पर हासिल कर रहा है... वह चाहे रिश्ता हो... या... मुकाम...
गौरी - तु अपनी किस्मत की बात क्यूँ कर रही है...
वैदेही - काकी... मेरी किस्मत बड़ी अजीब है... जब तक माँ का साया था... पिता का पता नहीं था... फ़िर माँ का साथ छुटा तो माता पिता दोनों मिले... फिर जब विशु आया... माँ ने विशु की जिम्मेदारी दे कर चली गई... मैं विशु की दीदी रही.. माँ भी बन गई... जब खुद बर्बाद हो गई... तो पिता का साया भी सिर से उठ गया... वापस जब गाँव लौटी... (आवाज़ भर्रा जाती है) विशु की बर्बादी बन गई....
गौरी - तु किसी ना किसी बात पर खुद को दोष देती है... कोसती रहती है... क्यूँ...
वैदेही - (हँसने की कोशिश करते हुए) काकी... पर मेरा विशु... के किस्मत में सिर्फ पाना ही पाना लिखा है... देखो ना... आज विशु के पास... माँ है... पिता हैं... दोस्त हैं... और होने वाली जीवन साथी भी है... आज वह वकील भी बन गया है... शहर में अच्छी नौकरी भी है.... (थोड़ी उदासी में अपने आप में खोते हुए) पता नहीं क्यूँ... यहाँ मेरी अहंकार की लड़ाई वह लड़ रहा है... (चुप हो जाती है, थोड़ी देर बाद) काकी... कहीं मैं स्वार्थी तो नहीं हो गई हूँ...
गौरी - नहीं मैं नहीं जानती... तु स्वार्थी हो गई है या नहीं... पर इतना जानती हूँ... तु सिर्फ दो रिश्तों में खुद को बांधे रखी है... पहली बेटी... फिर माँ... और तु यह क्यूँ सोच रही है... विशु तेरी लड़ाई लड़ रहा है... यह हर राजगड़... हर यशपुर वालों की लड़ाई है... हर एक के भीतर उस विद्रोह की बीज पड़ी हुई है... पर उनके आत्मा की जमीन बंजर हुई पड़ी है... बस तेरे अंदर बीज फुट कर विशाल वृक्ष बना है... तु अपने उस वृक्ष की साये में विशु को अपने जैसा बनाया है... पर तु देखना... विशु के वज़ह से... इन सोये हुए लोगों की आत्मा जागेगी... तब सबकी संघर्ष की राह तेरी राह से जुड़ जाएगी....
वैदेही - हाँ... यह जब होगा... तब होगा... ज़रा सोचो काकी... विशु... इसी गाँव की गालियों में पला बढ़ा... पर उसे वैसे दोस्त नहीं मिले... जैसे उसे परदेश में मिले... जो विशु के लिए जान भी दे सकते हैं और जान ले भी सकते हैं...
गौरी - क्या...
वैदेही - हाँ काकी... मैं ऐसे ही दोस्तों से मिलने गई थी... और मिल कर आ रही हूँ...
गौरी - क्या... तो तु... यह सामान लेने नहीं गई थी...
वैदेही - नहीं...
गौरी - तो क्या मिल लिया उनसे...
वैदेही - हाँ... पर वह सब मिले तो ऐसे मिले... जैसे कि भुत... पास साये की तरह आए... रहे... सामने कब आए कब गए पता भी नहीं चला... बस इतना संतोष है कि सबसे मिली... सबको आशीर्वाद दे कर आ पाई...


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देखिए मुझे कोई ऐतराज नहीं है... आप लोग मरीज़ से मिल सकते हैं... पर फिर भी... मैं इतना कहूंगा... मरीज़ कॅंसियस में नहीं है... कभी कभार थर थर कांपने लगता है... तो कभी कभी ऊल जलूल बड़बड़ाने लगता है...

यह डॉक्टर था, बल्लभ और रोणा से कह रहा था l डॉक्टर के ऐसे कहने पर बल्लभ रोणा की ओर देखता है पर रोणा कोई खास प्रतिक्रिया नहीं देता l

बल्लभ - सुनो डॉक्टर... मैं यहाँ उस कमबख्त की जानकारी लेने आया हूँ... बस... उसे अपने आँखों से देख लूँ और आत्म संतोष कर लूँ... वैसे मेडिकल टर्म में... उसे हुआ क्या है...
डॉक्टर - पता नहीं... हम अभी भी टेस्ट कर रहे हैं... सरपंच जी को इतनी गर्मी में भी ठंड लग रहा है... यह हैपो थर्मिया के सिमटंस् लगते हैं... पर और कुछ टेस्ट करलेने के बाद ही हम श्योर हो कर कुछ कह पाएंगे...
बल्लभ - ओके... ओके... क्या हम उससे मिल सकते हैं...
डॉक्टर - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... चलिए मैं खुद लिए चलता हूँ...

हस्पताल में एक ही विशेष सुविधा वाली केबिन थी, डॉक्टर इन दोनों को अपने साथ उसी केबिन में ले जाता है l केबिन में सरपंच की बीवी और बच्चे थे l केबिन में पहुँच कर बल्लभ देखता है सरपंच लेटने के बजाय बैठा हुआ है और सिर पर चादर की मोटी फ़ोल्ड बंधी हुई है और पूरा शरीर दो तीन ब्लैंकेट से ढका हुआ है l फिर भी उसका शरीर ऐसे कांप रहा था जैसे सर्दियों में बिना गर्म लिबास के नंगा शरीर जैसे कांपता है l सरपंच की बीवी जैसे ही डॉक्टर को देखती है

स. बीवी - देखिए ना डॉक्टर साहब... इनको क्या हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है... कंबल ओढ़े हुए हैं... अंदर से पसीने से भीगे भी हुए हैं... पर फिर भी ठंड लगने की बात कर रहे हैं...
डॉक्टर - (स. बीवी से) बस एक दो दिन में इनकी हालत ठीक हो जाएगी... (बल्लभ से) अब आप ही देख लीजिए... ऐसी इनकी हालत है...
बल्लभ - क्या यह बातेँ करता है... आई मिन...
डॉक्टर - हाँ हाँ... यह सवालों का जवाब देते हैं... पुछ सकते हैं...
बल्लभ - (आगे बढ़ कर सरपंच के बगल में बैठ जाता है, और उसके कंधे पर हाथ रखकर) सरपंच... क्या हुआ... बताओ...
सरपंच - (थरथराती आवाज़ में) वह... वह... शनिया भाई के लोगों के बीच में था... शुरु से ही... पर कोई नहीं जान पाया... (रुक जाता है)
बल्लभ - हाँ... रुक क्यूँ गए...
सरपंच - (उसी तरह कांपती आवाज में) वह जब सामने आया... मैंने देखा... सबको एक साथ सांप सूँघ गया... सबको जैसे लकवा मार गया... (फिर रुक जाता है)
बल्लभ - (झिंझोडते हुए) सरपंच... फिर क्या हुआ...
सरपंच - (अपना चेहरा घुमा कर बल्लभ की ओर देखता है) वह... बड़े आराम से... जैसे कोई बच्चा... खिलोनों को पटकता है... वैसे ही सबको पटकने लगा... सब के सब जैसे खुद को उसके हाथों पटकने के लिए.. उसके पास जा रहे थे... वह भी लोगों को बड़े सावधानी से... सबको पटक रहा था... फिर... (रुक जाता है)
बल्लभ - फिर... फिर क्या हुआ...
सरपंच - फिर.. कुछ नहीं... कुछ भी नहीं हुआ... शनिया अपनी तलवार निकाल कर मारने को खड़ा हो गया... पर... पर वह शनिया के आँखों में घुर कर देखने लगा... शनिया जैसे जड़ हो गया... वह शनिया से तलवार ऐसे लिया... जैसे शनिया ने तलवार उसीके लिए निकाला हो... फिर उसके बाद... वह... तलवार को ऐसे घुमाया के... मंच पर हवाओं को चीरती हुई बवंडर की आवाज़ गूंजने लगी... और उस बवंडर के भीतर से कभी कभार बिजली सी कौंधती दिखी.... उ... हू.. हू... (कांप जाता है)(इसबार बल्लभ उसे गौर से देखता है) (सरपंच का चेहरा सफेद पड़ रहा था) उसके बाद... मेरी पगड़ी को... तलवार की नोक से उछाला फिर सिर्फ तीन बार... तलवार चलाया... मेरी पगड़ी चार बराबर टुकड़ों में फर्श पर बिखरी पड़ी थी... मैंने देखा... नहीं नहीं... हम सबने देखा... वह तीन पुलिस वाले... मंच पर आए... उन दो भाई बहन को ले कर चले गए... बस... बस इतना ही हुआ....

बल्लभ वहाँ से इतना सुनते ही केबिन से बाहर आ जाता है l उसके पीछे पीछे रोणा भी बाहर आ जाता है l हस्पताल से बाहर आकर बल्लभ गाड़ी में बैठ जाता है l रोणा गाड़ी में बैठ कर बल्लभ से पूछता है

रोणा - अब कहाँ जाना चाहोगे...
बल्लभ - गेस्ट हाउस...
रोणा - (गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है)
बल्लभ - (कुछ देर बाद) तुझे क्या हुआ है...
रोणा - कुछ नहीं... मुझे क्या होगा..
बल्लभ - कमाल है... हमेशा की तरह... तेरी चुतिया काटा उसने... फिर भी तुझे कुछ नहीं हुआ...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं पर कोई जवाब नहीं देता)
बल्लभ - तुने मूंछें भी मुंडवा ली... क्या विश्वा ने तुझे मूंछें रखने के लायक भी नहीं छोड़ा...

रोणा गाड़ी की स्पीड बढ़ाने लगता है, बल्लभ देखता है रोणा की आँखों में खुन उतर आया था, बल्लभ यह भी देखता है कि गाड़ी गेस्ट हाऊस के बजाय नहर के पास रुकता है l रोणा गाड़ी से उतर कर नहर के किनारे पर खड़ा हो जाता है l उसके पीछे बल्लभ पहुँचता है और उसे महसूस होता है कि रोणा तेज तेज साँस ले रहा है l

बल्लभ - तुने राजा साहब से झूठ क्यूँ बोला...
रोणा - (वगैर बल्लभ को देखे) कौनसा झूठ...
बल्लभ - उस लड़की का... विश्वा से कोई कनेक्शन नहीं है...
रोणा - जब नहीं है... तो कैसे कह देता की कनेक्शन है...
बल्लभ - (कुछ देर तक चुप रहता है) तेरी छटपटाहट देख कर... मैंने बहुत कुछ समझ लिया है...
रोणा - (बल्लभ की ओर देखते हुए, खीजते हुए) क्या... समझ लिया है तुने... हाँ... क्या समझ लिया है...
बल्लभ - मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ... जहां लड़की देखी... लार टपकाने लगता है... वहीँ आज सरपंच की बीवी की ओर... नजर उठा कर देखा तक नहीं तुने... इसलिए कम से कम मैंने तो सारे डॉट्स जोड़ लिए... और सारी बात समझ में आ गई....
रोणा - (अपनी जबड़ों को भींच कर) क्या... क्या समझ में आ गया तुझे...
बल्लभ - मत भूल... हम मिलकर ही भुवनेश्वर गए थे... यह बात और है... छोटे राजा जी ने मुझे काम पर लगा दिया... पर उसी दौरान किन्नरों वाला कांड बहुत मशहूर भी हुआ था... उसके बाद तेरा चौबीस घंटों के लिए गायब हो जाना... और आज तुझे मूछ मुंडा देख कर सब समझ में आ गया.... (दांत पिसते हुए रोणा बल्लभ की ओर देखने लगता है) तेरा अनुमान बिल्कुल सही था... उस लड़की का जरूर विश्वा से कोई लेना-देना है... विश्वा ने जिसकी सजा तुझे दी है...
रोणा - हाँ हाँ हाँ... (चिल्लाते हुए कहता है, फिर थोड़ी देर चुप हो जाता है, अपने हाथों से बालों को नोचने लगता है फिर गाड़ी के पास आकर दोनों हाथों की मुट्ठी को पटक देता है, फिर गुर्राते हुए) उस लड़की का नाम... नंदनी है... और वह विश्वा की माशुका है... बस इतना ही जान पाया हूँ...
बल्लभ - तो फिर तुने राजा साहब से झुठ क्यूँ कहा... उस लड़की के बारे में...
रोणा - क्यूंकि अब यह मेरा निजी मामला है... राजा साहब का भले ही... सौ खुन्नस हो विश्वा से... पर वह है मेरी निजी मामला... (बल्लभ चुप रह कर सुनता है) राजा साहब को अगर बता देता... तो उस लड़की को... पहले अपने नीचे लिटाते... जब कि उसे सबसे पहले... (अपनी गाल पर हाथ फेरते हुए) अपने नीचे लाने का हक और जुनून मेरा है....
बल्लभ - कल को अगर... राजा साहब को सच्चाई मालुम पड़ा तब... तब क्या करेगा...
रोणा - कुछ खुन्नस बहुत निजी होते हैं प्रधान... बहुत ही निजी... अब यह मेरी जिंदगी की मक़सद बन चुकी है... उस हराम खोर विश्वा के पास... मेरी कमजोरी है... मुझे उसकी कमजोरी पर हावी होना है... बस मुझे मेरी बारी की इंतजार है...
बल्लभ - मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुने... अगर कल को राजा साहब को मालुम पड़ा... तब क्या करेगा तु...
रोणा - वह जब पता चलेगा... तब देखा जाएगा... उसने एक तरह से मेरा रेप किया है...
बल्लभ - रेप... कैसा रेप...
रोणा - याद है... रंगा... उसे मैंने ही छोटे राजा जी के पास लेकर गया था... उसे विश्वा के वज़ूद को उसके भीतर ही ख़तम करने के लिए भेजा गया था... यह बात और है... विश्वा उस पर भारी पड़ा... पर किन्नरों के आड़ विश्वा ने मेरे साथ वही किया... पर... (आवाज़ कांपने लगती है) मैं टूटा नहीं हूँ... मैं... उसकी माशुका को... अपनी रखैल बनाऊँगा... (आवाज़ में कड़क पन) पहले उसकी इज़्ज़त को फाड़ुंगा.. फिर उसकी जिस्म की चिथड़े चिथड़े कर दूँगा.... वह भी (चिल्लाते हुए) उस हरामजादे के आँखों के सामने... (हांफने लगता है)
बल्लभ - मानना पड़ेगा... साला खुब छका रहा है तुझे... नचा भी रहा है...
रोणा - गलत बोल रहा है प्रधान... गलत बोल रहा है... बेशक वह मुझे नचाया है... पर सच्चाई यही है... वह हम सबको छका रहा है... हम में से कोई भी उसे पार नहीं पा सका है...
बल्लभ - तु अपनी हार... हमारे मत्थै क्यूँ मढ रहा है...
रोणा - हा हा हा हा (हँसने लगता है) उसके साथ उलझ उलझ कर... मुझे इतना मालुम हो गया है... जहां हमारी सोच की हद ख़तम होती है.... (गंभीर हो कर) वहीँ से उसकी सोच शुरु होती है... तभी तो... वह आसानी से... हमें अपनी सोच की ज़द में ले लेता है... हम सिर्फ दो आँखों से नजर रखने की कोशिश करते हैं... पर विश्वा हज़ार आँखों से हम पर नजर रखता है... वकील बाबु... आज जो भी हुआ है... या हो रहा है... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ... विश्वा के नॉलेज में है...
बल्लभ - ओ हो... विश्वा ने तेरी इस कदर ली है... की उसके लिए तारीफ ही निकल रही है...
रोणा - हाँ वकील बाबु हाँ... तुझे एक किस्सा सुनाता हूँ... पंचायत सभा से पहले... उसने मुझसे कहा था... की मैं पंचायत ना जाऊँ...
बल्लभ - तो क्या तुने इसलिए तहसील में वारंट का बहाना बनाया...
रोणा - नहीं... मैं यह कहना चाहता हूँ... जरा टाइमिंग को देख... यह कोई इत्तेफाक नहीं है... सोची समझी वैल प्लान्ड हरकत है... के देवगड में मेरे पुराने केस की वारंट निकाल कर... राजगड़ तहसील को ट्रांसफर करवाया....
बल्लभ - (हैरानी के साथ) क्या... यह तु कैसे कह सकता है...
रोणा - कह सकता हूँ... उसने वह ऑर्डर भिजवा के मुझे यह एहसास दिलाया कि मैं उसके हर चाल के आगे बेबस हूँ... और मज़बूर हूँ...
बल्लभ - तु है ही... मूढमति... इसलिये तुझ पर वह हावी हो गया... मैं वकील हूँ... हर काम दिमाग से लेता हूँ... मैंने अभी अभी एक केस हाथ में लिया है... उसके मेंटर को झटका देने... देखना (चुटकी बजाते हुए) वह मेरी दिमाग की शतरंज की चाल से कैसे बिल बिला जाएगा...
रोणा - हा हा हा हा... (हँसते हुए) कोई ना... बहुत जल्द तुझे यह एहसास हो जाएगा... तु विश्वा को लपेटे में लेने के लिए जो जाल बिछाया है... खुद को उसी जाल में फंसा हुआ पाएगा...
बल्लभ - तुझे उससे खुन्नस है... या डर... तु ऐसे क्यूँ सोच रहा है...
रोणा - मैं सोच नहीं रहा हूँ... अपनी बारी का इंतजार कर रहा हूँ... हर कुत्ते का दिन आता है... मेरा भी दिन आएगा... तु देखना... मेरा भी दिन आएगा...



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क्या भाई जबसे यह काग़ज़ के बंडल आए हैं... उसी दिन से तुम दिन दुनिया भूल कर उन्हीं काग़ज़ों में खोए हुए हो....

यह टीलु कह रहा था विश्व से, विश्व बड़ी शिद्दत से आरटीआई के जरिए मिले उन दस्तावेजों को पढ़ रहा था l टीलु की बात सुन कर विश्व उसकी ओर देखता है l

टीलु - भाई तुम यहाँ ईन काग़ज़ों में खोए हुए हो... और उधर बच्चे तुमसे मिलने आ रहे हैं... और तुमसे मिले वगैर चले भी जाते हैं...
विश्व - क्यूँ ऐसा क्यूँ... उनके लिए तो हमने लाइब्रेरी बनाए हैं...
टीलु - हाँ बनाए हैं... पर बच्चे किताबों से ज्यादा तुम्हें ढूंढते हैं...
विश्व - मुझे ढूंढते हैं... तो तुम किस मर्ज की दवा हो... तुम उनके साथ खेलो..
टीलु - कह तो तुम सही कह रहे हो... पर... इस बात का ज़वाब तुम उन से क्यूँ नहीं पूछते...

विश्व कुर्सी पर पीठ टीका कर टीलु को घूरने लगता है l टीलु विश्व का इस तरह घूरने को नजर अंदाज कर देता है l

विश्व - तुम जानते हो... यह कैसे कागजात हैं...
टीलु - हाँ... यह उसी केस के दस्तावेज हैं... जिसमें तुम फंसे हुए थे...
विश्व - हाँ... (एक बंडल दिखाते हुए) यह... कोर्ट में हुए सारी कारवाई की डिटेल है... और यह... (दूसरी बंडल दिखा कर) एसआईटी की... कोर्ट के ऑर्डर के बाद की तहकीकात की अधूरी रिपोर्ट है... मुझे इन दोनों के सार निकाल कर पीआईएल फाइल करनी है...
टीलु - देखो भाई... यह सब बड़ी बड़ी बातेँ तुम ही समझ सकते हो.... पर मैं उन बच्चों का क्या... जो अपने मामा से मिलने आने वाले हैं...
विश्व - अरे यार... तुम बच्चों को बहला भी नहीं पाते...
टीलु - नहीं... नहीं बहला पा रहा हूँ... क्यूँकी उनसे मामा भांजे का रिश्ता तुमने बनाया है... मैंने नहीं...
विश्व - ठीक है... मैं बच्चों से मिल लूँगा... पर तुम्हें उन सबको बहलाते रहना होगा....
टीलु - वह क्यूँ...
विश्व - मैं शायद एक दो दिन कटक निकलने वाला हूँ... पीआईएल फाइल करने...
टीलु - ह्म्म्म्म... मतलब सब सीधे खतरे को... घर में दावत देने जा रहे हो...
विश्व - हाँ... अब आमने सामने होने का वक़्त आ गया है...

तभी बाहर से कुछ आवाजें आने लगते हैं l विश्व और टीलु बाहर आते हैं l अरुण और उसकी टोली आई हुई थी l विश्व को देख कर सब खुश हो जाते हैं l

विश्व - हाँ तो बच्चों... यह शोर किसलिए...
अरुण - वह मामा... यह छुटकी है ना... (अपने बगल में खड़ी एक लड़की की ओर इशारा करते हुए) आपसे कुछ पूछना चाहती थी....
विश्व - अच्छा... तो यह है छुटकी... हाँ तो छुटकी क्या पूछना चाहती हो तुम मुझसे...
छुटकी - कुछ नहीं मामा... यह.. (अरुण के कंधे पर मुक्का मारते हुए) झूठ बोल रहा है... इसे ही आपसे पूछना है...
अरुण - चल झूठी..
छुटकी - तु झूठा...
अरुण - ऐ मुझे झूठा कहती है..
छुटकी - क्यूंकि तु झूठ बोलता है...

अरुण छुटकी की चोटी पकड़ लेता है l बदले में छुटकी भी अरुण के बाल पकड़ लेती है l इससे पहले कि वहाँ पर झपटा झपटी शुरु होता विश्व दोनों को छुड़ाता है l

विश्व - ऐ.. ऐ.. (अरुण के कान खिंचते हुए) तु पक्का शैतान है... बोल तुझे क्या पूछना है... (दुसरे बच्चे खुशी से उछल कर ताली मारते हुए कूदने लगते हैं)
अरुण - आह आ... बताता हूँ मामा... बताता हूँ... मेरे कान छोड़ो ना...
विश्व - (कान छोड़ देता है) हाँ अब बोलो...
अरुण - वह मामा... (अटक अटक कर शर्माते हुए) आप ना...
विश्व - हाँ मैं...
अरुण - हम सबको...
विश्व - हाँ तुम सबको...
अरुण -(जल्दी जल्दी) तलवार घुमाना सीखा दोगे...
विश्व - (चौंक कर) क्या...
सभी बच्चे मिलकर - हाँ हमें आप तलवार घुमाना सीखा दो...
विश्व - ऐ... तुम लोगों को कैसे मालुम हुआ यह सब...
छुटकी - यही अरुण ने हम सबको बटाया...
विश्व - (अरुण के गाल खिंच कर) तो यह सब नाटक क्या है... तुझे कैसे मालुम हुआ यह सब...
अरुण - आह... आ.. ह... मामा उस दिन मैं छुप कर पंचायत ऑफिस गया था.... आह...
विश्व - (अरुण के गाल छोड़ते हुए) पर वहाँ पर बच्चों का आना मना था...
अरुण - तभी तो छुप कर गया था... घर में माँ और बापू के बीच झगड़ा हुआ था... बापू पर भी कर्जा चढ़ा था ना.. इसलिए...
विश्व - तो तु तलवार सीख कर कर्जा उतारेगा...
अरुण - नहीं.. मैं तो बस तुम्हारी तरह तलवार पंखे की तेजी से घुमाऊँगा... जिसे देखकर शनिया दादा डर कर हमारे घर नहीं आएगा...

विश्व मुस्कराते हुए अरुण के गाल पर थपकी लगाता है और टीलु की ओर देखता है, टीलु भी हैरानी से अरुण की ओर देखता है

टीलु - क्यूँ रे छछूंदर... यह लाइब्रेरी है... भूल गया क्या...
अरुण - नहीं चमगादड़ मामा... नहीं भूला...
टीलु - अबे मुझे चमगादड़ बोलता है...
अरुण - तुमने क्यूँ मुझे छछूंदर बुलाया...
विश्व - बस... बस... बस... (बच्चों से) तो तुम लोगों को... तलवार नहीं... लट्ठ घुमाना सीखना चाहिए...
बच्चे - लट्ठ...
विश्व - हाँ...
अरुण - आप सीखाओगे...
विश्व - नहीं मैं नहीं... (टीलु को दिखाते हुए) यह... तुम्हारा यह मामा सिखाएगा...
अरुण - क्या... यह चमगादड़ मामा...
टीलु - अबे छछूंदर तेरी तो...
विश्व - ऐ... ऐ... (अरुण से) मैंने क्या कहा था इन्हें क्या बुलाने के लिए...
अरुण - (मुहँ फुला कर) बैटमैन मामा...
विश्व - गुड... हाँ तो चमगादड़... ओह मेरा मतलब है टीलु... तुम इन सब बच्चों को लट्ठ घुमाना सीखाओगे...
टीलु - (अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को घूरने लगता है)
विश्व - अरे यार... गलती से मुहँ से निकल गया..

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रास्ते पर एक आदमी बदहवास हो कर भाग रहा है जैसे उसके पीछे उसका मौत पड़ा हो l वह भागते हुए अपना फोन निकाल कर कॉल करता है l

आदमी - है... हैलो...
@ - क्या हुआ इतना हांफ क्यूँ रहा है...
आदमी - मैं... मैं... अपनी मौत से पीछा छुड़ाने के लिए भाग... भाग रहा हूँ... मेरे पीछे वीर पड़ा है...
@ - तु कब उसे मिल गया...
आदमी - मिला नहीं... आज पार्टी ऑफिस में यूथ वर्कर रियूनियन हुआ था... वहाँ मैं... मैं... अपने दोस्त के लिए बाहर इंतजार कर रहा था... वीर ने मुझे देख लिया... अब... वह.. मेरे पीछे पड़ा है...
@ - तो भोषड़ी के... गाड़ी से नहीं भाग सकता था...
आदमी - मौका... मौका नहीं मिला...
@ - अच्छा बोल कहाँ है इस वक़्त... अपना लोकेशन बताओ...


वह आदमी भागते हुए पहले पीछे मुड़ कर देखता है, वीर किसी जुनूनी की तरह उसके पीछे भागते हुए आ रहा था, वह बिना देरी किए अपना लोकेशन बताता है l

@ - कोई ना... थोड़ी दूर पुलिस हेड क्वार्टर है... वहाँ पर... xxxx को मैं फोन कर देता हूँ... वह पहुँच कर तु अपना गिरफ्तारी दे देना...

वह आदमी फोन काट कर फिर से पीछे मुड़ कर देखता है l वीर बहुत तेजी से उसके तरफ बढ़ रहा था l आदमी अपनी पुरी ताकत लगा कर बिना पीछे मुड़े भागने लगता है l थोड़ी देर बाद उसे पुलिस हेड क्वार्टर दिखता है l वह "बचाओ बचाओ" "मुझे इस आदमी से बचाओ" चिल्लाते हुए हेड क्वार्टर के अंदर भागने लगता है l कुछ देर बाद पुलिस वाले उस आदमी को अपने घेरे में ले लेते हैं l वीर अंदर भागते हुए आता है, उसे कुछ पुलिस वाले रोकने की कोशिश करते हैं l पर वीर इस कदर जुनूनी हो गया था कि उन चंद पुलिस वालों की पिटाई कर उस आदमी तक पहुँचने की कोशिश करता है l बात जब चंद पुलिस वालों से नहीं बनती तो बड़ी तादात में पुलिस वाले वीर को कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं l वीर को पंद्रह से बीस पुलिस वाले पकड़ लेते हैं l फिर भी वीर उन्हें अपने साथ खिंचते हुए उस आदमी की तरफ बढ़ने लगता है l वीर का यह उग्र रुप देख कर उस आदमी की पेशाब निकल जाता है l इतने में शोर शराबा सुन कर कमिश्नर बाहर आ जाता है l वीर का यह रुप और अपने पुलिस वालों की हालत देख कर कमिश्नर मोटे रस्सियों वाली जाल लाने के लिए कहता है l कुछ पुलिस वाले वही रस्सियाँ वाली जाल लाकर वीर पर डाल देते हैं और पुलिसीए लाठी से वीर के हाथ पैर जाल के अंदर बाँध देते हैं l वीर जाल के अंदर गुर्राता रहता है l वीर को जाल के अंदर छटपटाते देख कमिश्नर के पास खड़ा एक कांस्टेबल कहता है

- हे भगवान... यह जाल तो जंगली हाथी या जंगली शेरों को काबु में लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है... यह राजकुमार क्षेत्रपाल तो सच में उतना जंगली लग रहा है...

कमिश्नर उसे घूरने लगता है तो वह कांस्टेबल नजरें चुराते हुए दुबक कर अपना सिर झुका लेता है l कमिश्नर वीर के पास जाता है और

कमिश्नर - राजकुमार... होश में आइये... यह आप क्या कर रहे हैं...
वीर - मुझे वह हरामजादा चाहिए कमिश्नर... मैं अपने हाथों से उसे चिर दूँगा...
कमिश्नर - इनॉफ... माना कि स्टेट पालिटिक्स में... आप बहुत रुतबा रखते हैं... पर यह पुलिस हेड क्वार्टर है... आप शांत हो जाइए... प्लीज...

वीर फिर भी कमिश्नर को अनसुना कर उस जाल निकल ने के लिए अंदर छटपटाने लगता है l कमिश्नर उस आदमी के पास जाता है और पूछता है l

कमिश्नर - सच सच बताओ... राजकुमार क्यूँ तुम्हें मारना चाहता है... अगर सच नहीं बताया तो तुम्हें मजबूरन उनके हवाले कर दिया जाएगा...
आदमी - (डर के मारे गिड़गिड़ाते हुए) नहीं... नहीं कमिश्नर साहब नहीं... लगभग दो महीने पहले... राजकुमार एक लड़की के साथ... मेरिन बीच में घुम रहे थे... मैं और मेरे दोस्तों ने उस लड़की को छेड़ने की कोशिश की थी... यह कौन है जाने वगैर... आज xxxx पार्टी में अगली मीटिंग के लिए भीड़ जुटाने के लिए मुझे बुलाया गया था... वहीं पर राजकुमार जी ने मुझे देख लिया.... मैं तभी से जान बचाने के लिए यहाँ भाग कर आया हूँ... प्लीज कमिश्नर साहब मुझे बचा लीजिए... मैं मरना नहीं चाहता... प्लीज...

कमिश्नर एक थप्पड़ मारता है उस आदमी को l फिर वह घुम कर वीर के पास पहुँचता है l वीर अभी भी जाल से छूटने के लिए हाथ पैर चला रहा था l

कमिश्नर - राजकुमार जी... देखिए... यह मत समझिए की इसने जो किया है... उसका कबुल नामा को मद्देनजर रखते हुए हम इसे गिरफ्तार कर रहे हैं... इसकी जान को खतरा देख कर हम इसे हिरासत में ले रहे हैं... बेहतर होगा आप यहाँ से चुप चाप निकल जाइए... क्यूँकी... बाहर मीडिया वालों को हमने रोक रखा है... उन्हें अगर यह मसाला दार खबर मिल गई... तो उसमें और नमक मिर्च लगा कर आपकी और आपकी पार्टी की बदनाम करने से नहीं चुकेंगे... आप समझदारी से काम लें... इसे सजा बहुत थोड़ी होगी... जब यह छूटेगा... तब इसे आप देख लीजिएगा... मगर यहाँ आप और कोई सीन ना बनाए... वर्ना...
वीर - (गुर्राते हुए) वर्ना...
कमिश्नर - वर्ना हम कुछ नहीं करेंगे... मीडिया वालों को अंदर बुला लेंगे... आगे आप समझ दार हैं... किसे कैसे जवाब देंगे... (यह सुन कर वीर थोड़ा शांत होता है, कमिश्नर अपने स्टाफ से) इसे अंदर लेकर लकअप में डाल दो... और जल्द से जल्द कोर्ट फॉरवर्ड करने की तैयारी करो...

पुलिस वाले वैसा ही करते हैं, उस आदमी को जल्द ही अंदर ले जाते हैं l उसके बाद कमिश्नर इशारा करता है, पुलिस वाले वीर के उपर लाठियों से जो पकड़ बनाए थे वह हटाते हैं और उसके बाद उसके उपर से वह जाल हटाते हैं l

कमिश्नर - देखिए राजकुमार जी... आपके परिवार के प्रति हमारा पूरा सम्मान है... पर हम भी बंधे हुए हैं...
वीर - जी... मुझे माफ कर दीजिए...
कमिश्नर - अरे क्यूँ शर्मिंदा कर रहे हैं... माफी तो हम आपसे मांगते हैं... के हम इस वक़्त आपके कोई काम नहीं आए... (वीर कोई जवाब नहीं देता, मुड़ कर वापस जाने लगता है) राजकुमार जी... (वीर कमिश्नर के तरफ मुड़ता है) एक राय है... आप बुरा ना मानें तो... पिछले रास्ते से चले जाइए... वर्ना बाहर मीडिया वाले आपको घेर लेंगे....

वीर अपना सिर सहमति से हिलाते हुए एक पुलिस वाले के साथ पिछले रास्ते हो कर हेड क्वार्टर से बाहर आता है, हेड क्वार्टर के बाहर आते ही मायूसी के साथ गहरी सोच में डूब जाता है l खुद पर गुस्सा आ रहा था उसे l आज अगर वह आदमी हाथ में आ जाता तो इस खेल के पीछे कौन है उसे मालुम हो जाता l पर वह अपने आप को दिलासा देता है कि उसे किसी ना किसी तरह से छुड़वाएगा और अपने कब्जे में लेकर पर्दे के पीछे खेलने वाले खिलाड़ी के बारे में पता लगाएगा l वीर ऐसे ही सोच में खोया हुआ था कि उसका मोबाइल बज उठता है l वीर मोबाइल निकाल कर देखता है प्राइवेट नंबर लिखा आ रहा था l वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाते हैं l वीर फोन उठाता है पर कुछ नहीं कहता

@ - क्या बात है वीर... कोई हैलो नहीं दुआ सलाम नहीं... मुझसे नाराज हो...
वीर - (चुप रहता है)
@ - हाँ बुरा तो लग रहा होगा... आखिर कुत्ते की मुहँ से हड्डी जो छिन ली मैंने...
वीर - (जिल्लत से अपनी आँखे मूँद लेता है और जबड़े भींच लेता है, दांत पिसते हुए) तुम्हारा किस्मत... कब तक साथ देगी
@ - अरे मेरी किस्मत मेरी आखिरी साँस तक देगी... पर तुम्हारी किस्मत... ना ना ना... वह कहावत भी झूठा हो जाएगा... हर कुत्ते का दिन आता है...
वीर - तु फोन पर ही बड़ी बड़ी फेंक सकता है.... कभी सामने तो मिल... मर्द होने की गलत फहमी दुर ना हो जाए... तो कहना....
@ - मिलेंगे वीर... मिलेंगे... पर तब... जब तु आखिरी साँसे गिन रहा होगा...
वीर - फिर भी वादा रहा... तुझे मारे वगैर इस दुनिया से जाऊँगा नहीं...
@ - ना ना वीर ना... तु कुछ नहीं कर पाएगा... बस ऐसे ही छटपटता रहेगा.... तु अनु की सोच... बहुत कम दिन बचे हैं बेचारी के...
वीर - खबरदार... वह निर्दोष है... मासूम है...
@ - नहीं है... उसकी सबसे बड़ी गुनाह यह है कि... उसने तुझ जैसे गलीज से मुहब्बत की है...
वीर - (चिल्लाते हुए) तु मुझे क्यूँ नहीं मार देता... (टूटते हुए) उस बेचारी ने तेरा क्या बिगाड़ा है...
@ - क्या बात है वीर... गिड़गिड़ा रहा है...
वीर - अबे चुप...
@ - हाँ... यह हुई ना बात... तुझे क्यूँ लग रहा है... उसकी मौत उसके लिए सजा होगी... उसकी मौत तो उसके लिए मुक्ति होगी... तुझ जैसे गलीज से...
वीर - बस बहुत हुआ... तुने मेरी सब्र का इम्तिहान ले लिया है... अब तु सुन... मुझे तेरे बारे में जानने की देरी होगी... कसम है मुझे मेरी अनु की... तुझे ऐसे खौफनाक मौत दूँगा के तु तो क्या तेरे फरिश्ते भी नहीं सोचे होंगे....

वीर फोन काट देता है और चलने लगता है आज की बात याद करते हुए खुद पर खीजने लगता है ऐसे ही कुछ देर तक
अपना मन मसोसने के बाद वह अपना फोन निकाल कर विक्रम को फोन लगाता है l फोन के उठते ही


विक्रम - हैलो वीर...
वीर - (टुटे और भर्राई आवाज में) भैया...
विक्रम - क्या बात है वीर... बहुत परेशान लग रहे हो...
वीर - हाँ भैया... थोड़ा अकेला महसूस कर रहा हूँ...
विक्रम - क्या हुआ...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम्हें मिस कर रहा हूँ...
विक्रम - बस यार दो तीन दिन और... हम आ जाएंगे....
वीर - ठीक है भैया... मुझे इंतजार रहेगा...
विक्रम - अरे मेरा भाई शेर है... अकेला सब सम्भाल सकता है... फिक्र मत कर... मैं बहुत जल्द तेरे सामने होउँगा....

वीर फोन काट देता है l उसे महसुस होता है कि उसके आँखों के कोने भीगने लगे हैं l वह अपना हाथ उठा कर पोछता है, फिर मोबाइल से प्रताप को कॉल करता है l जैसे ही कॉल लिफ्ट होता है

वीर - हैलो...
विश्व - हैलो वीर.. सरप्राइज... कैसे हो यार...
वीर - अच्छा हूँ... और तुम...
विश्व - मैं भी ठीक हुँ... कहो कैसे याद किया...
वीर - यार... जिंदगी के कुछ पल ऐसे भी होते हैं... जब दोस्त की जरूरत बड़ी सिद्दत से महसुस होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... लगता है... किसी बड़ी उलझन में हो...
वीर - हाँ... हाँ यार... मुझे तुम्हारी एडवाइज की सख्त जरूरत है....
विश्व - हाँ बोलो क्या जानना चाहते हो...
वीर - नहीं यार... ऐसे नहीं... फीजिकली मिलते हैं... आमने सामने...
विश्व - ठीक है... हम परसों मिलते हैं...
वीर - ठीक है... मैं दो दिन किसी तरह से सम्भाल लूँगा... प्लीज यार... जल्दी आना...


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विक्रम अपने कमरे से निकल कर पिनाक के कमरे में आता है l देखता है पिनाक कमरे में बनी बार काउंटर पर बैठ कर फोन को कान पर लगाए बैठा है l विक्रम उसके पास आता है, पिनाक उसे देखता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l कुछ देर बाद अपनी जेब में रख देता है l

पिनाक - क्या बात है युवराज...
विक्रम - हम यहाँ अभी तक क्यूँ हैं... मुझे लगता है... हम बेकार में ही यहाँ रुके हुए हैं...
पिनाक - राजा साहब का कोई काम... बेकार नहीं होता....
विक्रम - राजा साहब के रुतबे के हिसाब से... हम तीनों यहाँ अपने लीगल पर्सनल्स को लेकर... एग्रीमेंट कर सकते थे... बेवजह हम अपनी एजेंसी के सीनियर ऑफिसियल्स को लेकर आए... ना कहीं उन्होंने डेमो दिया... ना ही कोई प्रेजेंटेशन...
पिनाक - तो... तुम कहना क्या चाहते हो...
विक्रम - (कुछ देर तक पिनाक को घूर कर देखता है फिर) मुझे लगता है.... बात कुछ और है...
पिनाक - अच्छा... तो बताओ तुम्हें क्या लगता है...
विक्रम - बात.... बात शायद... वीर से ताल्लुक रखती है...
पिनाक - वीर नहीं... राजकुमार... राजकुमार कहो... और यह क्या... तुम हम कहने के बजाय... बकरी की तरह मैं मैं क्यूँ कर रहे हो...
विक्रम - आप बात को घूमा रहे हैं...


पिनाक अपनी जबड़े भींच कर विक्रम की ओर देखता है, फिर शराब की ग्लास को उठा कर पी लेता है और दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l

पिनाक - तुम सवाल सीधा करो... जवाब तुम्हें सीधा मिलेगा...
विक्रम - (एक गहरी साँस लेता है और पिनाक की आँखों में झांकते हुए) कुछ ऐसा होने वाला है... जिससे वीर और उसकी जिंदगी प्रभावित होने वाली है... वीर अकेला है... उसने कभी भी... सिक्युरिटी ऑपरेशन और मूवमेंट को डील नहीं किया है... खुदा ना खास्ता कुछ ऐसा हो... जिसके लिए उसे सिक्युरिटी सिस्टम से मदत लेनी हो... तो वह ले नहीं सकता... ऐसा अपाहिज कर दिया गया है उसे... है ना...
पिनाक - (एक कड़वी हँसी हँसते हुए, शराब की एक घूंट अपनी हलक में उतारता है, फिर) हाँ... है...
विक्रम - क्यूँ... छोटे राजा जी क्यूँ...
पिनाक - क्षेत्रपाल के चश्म ओ चराग के ऊपर... एक चुड़ैल का साया है... उसे उतारने के लिए यह सब किया गया है... (विक्रम को कोई प्रतिक्रिया नहीं देते देख पिनाक एक कुटिल मुस्कान मुस्कराता है) मतलब तुम पहले से ही उस चुड़ैल के बारे में अच्छी तरह से जानते हो...
विक्रम - वह लड़की बहुत अच्छी है... शायद शुभ्रा जी से भी ज्यादा...
पिनाक - तो तुम क्यूँ नहीं उस चुड़ैल से नाता जोड़ लेते...
विक्रम - (बिदक कर) आप होश में तो हैं...
पिनाक - (हाथ में ग्लास उठा कर) इतने से पैमाने में तो बस तबीयत ही झूम सकती है... होश फाख्ता हो जाए... कहाँ मैखाने में इतना मैसर है...
विक्रम - अगर बात यही थी... तो सीधे सीधे अनु को रास्ते से हटा सकते थे...
पिनाक - हाँ... वही तो कर रहे हैं... पर सीधे सीधे नहीं... खुद को टेढ़ा कर रहे हैं... पहले तुम... मुहब्बत कर बैठे... पर औकात और हैसियत देख कर... बीरजा किंकर सामंतराय की बेटी... xxx पार्टी की अध्यक्ष की बेटी... इसलिए तुम्हारा सौ खुन माफी हो गया... पर राजकुमार... एक छोटी जात की ओछी लड़की को... क्षेत्रपाल घराने के माथे पर सजाने की बेवकूफ़ी कर रहा है... इसलिये... राजकुमार को उसकी बेवकूफ़ी आजादी और क्षेत्रपाल के माथे से बदनामी से निजात के लिए... उस बदजात लड़की को गायब होना होगा...
विक्रम - इसका मतलब आपने किसीको काम सौंप रखा है...
पिनाक - हाँ कोई शक़...
विक्रम - आपको पहले... वीर से बात करनी चाहिए...
पिनाक - बात... हा हा हा हा... बात... (सीरियस हो जाता है) बात तो हो सकती थी... अगर वीर को मुहब्बत ना हो गया होता.... (अपनी जगह से उठ खड़े होकर) वीर बचपन से ही बहुत जिद्दी है... कभी किसीका सुना ही नहीं... हमेशा अपनी मन की किया है... इसलिए उसके जानकारी के वगैर... वह लड़की गायब हो जाएगी... हमेशा के लिए...
विक्रम - वीर आपका बेटा है छोटे राजा जी...
पिनाक - (थोड़े दर्द भरे लहजे में) बेटा है... तभी तो... हम उसे अपने तरीके से बचाना चाहते हैं...
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - हम राजा साहब को नाराज नहीं कर सकते हैं... हमें राजा साहब ने इशारे से बता चुके हैं... के लोग क्षेत्रपाल के चराग पर गप्पे लड़ा रहे हैं... छिटाकसी कर रहे हैं...
विक्रम - तो आपने राजा साहब को समझाने की कोशिश क्यूँ नहीं की... अनु अगर बहु बन जाती है... तो हमें आगे चलकर पालिटिकल माइलेज मिल सकता है...
पिनाक - युवराज... बेशक तुम उनके औलाद हो.... पर उन्हें ठीक से जानते नहीं हो.... बात इज्ज़त और अहंकार पर आ जाए... तो ना तुम.. ना हम और ना ही बड़े राजा... वह किसीको भी माफ नहीं करेंगे....
विक्रम - यह सारी बातें ज़ज्बातें... गैरों के लिए या बाहर वालों के लिए होनी चाहिए... अपनों के लिए भी...
पिनाक - युवराज... तुम बचपन से बाहर रहे...
विक्रम - हाँ... पर जब मैंने शुभ्रा के साथ भुवनेश्वर में रहने की बात की... राजा साहब ने कोई विरोध नहीं किया...
पिनाक - वह इसलिए... कि राजा साहब को क्षेत्रपाल महल में... उस लड़की की मौजूदगी हरगिज बर्दास्त नहीं थी... वैसे भी... हमारा राजनीतिक भविष्य और प्रभाव के लिए तुम्हारा भुवनेश्वर में होना आवश्यक था... इसलिए तुम्हें मंजूरी मिल गई...
विक्रम - क्या अनु से वीर की शादी से... राजनीतिक भविष्य और प्रभाव... कम हो जाएगा...
पिनाक - (छटपटाते हुए) ओ ह... अब कैसे तुम्हें समझाउँ... तुम जानते भी हो... जब तुम राजगड़ में नहीं थे... तब राजगड़ में क्या क्या हुआ...
विक्रम - (चुप हो कर कुछ देर के लिए पिनाक को घूरने लगा, फिर) हाँ...
पिनाक - (हैरानी से आँखे फैल जाते हैं) क्या... क्या जानते हो...
विक्रम - कुछ सालों से रंग महल की रस्में बंद थी... क्यूँकी वहाँ से एक लड़की भाग गई थी... वैदेही... यही नाम है ना... जब वह मिली... उसके बाद रंग महल की रस्म फिर से शुरू हुआ... रंग महल में हमेशा... क्षेत्रपाल घराने... और क्षेत्रपाल गुरुर के दुश्मनों का श्मशान बना रहा... यहां तक कि... क्षेत्रपाल परिवार की मूँछ... रुप फाउंडेशन केस में नीची होते होते रह गई... फिर भी... दिलीप कर की बेटी रंग महल की रस्म की भेंट चढ़ गई... रुप फाउंडेशन की बेदी में बलि चढ़ने वाला कोई और नहीं... वैदेही की भाई विश्व प्रताप महापात्र है... यही ना...
पिनाक - वाह वाह वाह... बहुत खूब... कितना कुछ जानते हो... फिर भी बहुत कम जानते हो... राजा क्षेत्रपाल की औलाद हो... पर उनके बारे में कम ही जानते हो.... (पिनाक अब काउंटर पर जा कर बोतल से शराब एक ग्लास में डाल कर पीता है फिर विक्रम की ओर देख कर) राजा क्षेत्रपाल की इच्छा, अहंकार, और मूँछ की ताव के आगे... कोई भी रिश्ता... कोई मायने नहीं रखता.... (विक्रम की ओर पीठ कर) युवराज... तुम्हें क्या लगता है... रानी जी की मौत कैसे हुई थी....
विक्रम - ( पिनाक की ओर ऐसे देखता है जैसे उसके उपर बिजली गिरी हो, उसकी जुबान लड़खड़ाने लगती है) मेरी.. म माँ की मौत.... क्या म मतलब है आपका...
पिनाक - वैदेही को रंग महल लाने के तीन दिन बाद... जब राजा साहब महल लौटे... रानी जी उनसे बहुत झगड़ा किया... बदले में... राजा साहब ने... रानी जी को सभी नौकरों के आगे थप्पड़ मार कर बहुत जलील किया... वैदेही की हालत खराब हो गई थी... उसे हस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया गया... उस रात जब राजा साहब लौटे... तो बहुत नशे में थे... हमने राजा साहब को उनके कमरे में पहुँचाया था... पर ज्यादा दुर नहीं जा सके... बाहर लॉबी में कुर्सी पर बैठ गए... तब राजा सहाब और रानी जी के बीच बातेँ हुईं ऊँची आवाज में... हम... खुद को संभालते हुए... दरवाजे तक पहुँचा... रानी जी खुद को छूने नहीं दे रही थीं... राजा साहब गुस्से में आकर रानी जी की पल्लू को ही... उनके गले में बांधकर... पंखे पर लटका दिया.... सबको लगा... रंग महल कांड से रानी जी आत्महत्या कर ली... हत्या करते वक़्त राजा साहब ने हमें देख लिया था... पर उन्हें किसी बात की कोई फिक्र नहीं थी... उनके आँखों में एक ग़ज़ब की भयानक चमक देखे थे... तब से लेकर आज तक.... हम कभी भी... उनके आँखों में झांकने की हिम्मत नहीं कर पाए... वह जैसा कहते गए... हम खुद को वैसे ही ढालते रहे.... उस हत्या का कोई और गवाह था ही नहीं... पर जो बात... राजा साहब तक नहीं जानते वह यह कि... उस हत्या कांड का... एक और गावह है... और वह कोई और नहीं... रुप थी... राजा जी... रानी जी की हत्या के बाद... कमरे से निकल गए... पर हम वहाँ स्तब्ध खड़े थे... तब हमने देखा... डरी सहमी कबोर्ड के अंदर रुप खड़ी थी... (पिनाक एक और ग्लास उठा कर पी लेता है) तुम राजा साहब को नहीं जानते... वह अपनी मूँछ के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं...

पिनाक मूड कर देखता है, विक्रम स्तब्ध सा कुर्सी पर बैठा हुआ है l पिनाक ने राज खोल कर जो बिजली गिराई थी उससे विक्रम खुद को सम्भाल नहीं पा रहा था l पिनाक एक पेग बना कर विक्रम को देते हुए

पिनाक - यह पी लो.... यह तुम्हें झटके से उबार लेगा...

विक्रम झटके से पिनाक की हाथों से ग्लास ले कर शराब की घूंट गटक जाता है l फिर विक्रम हांफने लगता है l

पिनाक - अगर तुम्हें लगता है... की हम सब वीर की मदत रोकने आए हैं... तो यह सच है... पर राजा साहब अपने किसी और काम से भी आए हैं... (विक्रम नजर उठा कर पिनाक को देखता है) राजा साहब जिसको अपने जुते के बराबर रखे हुए थे... अगर वह अपनी औकात से उपर उठने की कोशिश कर रहा है... उसके पीछे की बैसाखी के बारे में पता करने यहाँ आए हैं...
विक्रम - मतलब....
पिनाक - विश्वा... वैदेही का भाई विश्व... राजा साहब... उसके मेंटर डैनी को ढूँढ कर मिलने आए हैं....
विक्रम - डैनी से.... वह एक माफिया... उससे राजा साहब को क्या मतलब है....
पिनाक - ओह ओ... तो तुम्हें डैनी के बारे में भी जानकारी है... खैर उन्हें क्या काम है... यह तो वही जाने.... पर तुम्हें मेरी इतनी सलाह है... तुम जिस काम के लिये आए हो... तुम सिर्फ उसी पर ध्यान दो... हम अपनी काम में ध्यान देंगे... राजा साहब... डैनी को ढूंढने आए हैं... उसे मिलने... परखने आए हैं... फिर वह क्या करेंगे... वही जानें
 

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पंचायत भवन कांड के दो दिन बाद
यशपुर क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस
समय दो पहर का वक़्त

क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस, अंदर रोणा कुर्सी पर बैठा हुआ था और एक कोने में शनिया और उसके गुर्गे लाइन हाजिरी में खड़े हुए थे, उनके सामने भीमा भी खड़ा था

शनिया - (हिचकिचाते हुए) हमें यहाँ... इस वक़्त क्यूँ बुलाया है आपने दरोगा जी
रोणा - वकील बाबु आ रहे हैं... उनको राजा साहब ने भेजा है... खैरियत बुझने के लिए... थोड़ी देर बाद वकील बाबु पहुँचेंगे...
शनिया - हम... हम उनसे क्या कहेंगे साहब... हम तो उनसे नजरें तक मिला नहीं पायेंगे...
रोणा - (बिदक कर ) मैंने उदय के हाथों खबर भिजवाया था... पंचायत की सभा देर से शुरु करने के लिए...
शनिया - मैंने तो आपको फोन लगाया था... आपके फोन पर...
रोणा - (बिदक कर खड़ा हो जाता है) कितनी बार कहा है... मेरा फोन बाहर डिपॉजिट था... किसने फोन उठाया... क्या किया मैं नहीं जानता...

अभी बाहर से चर्र्र्र्र्र् की आवाज सुनाई देती है l मतलब बाहर कोई गाड़ी रुकी थी l सबकी ध्यान दरवाजे की ओर जाता है l थोड़ी देर बाद बल्लभ अंदर आता है
सभी बल्लभ को देखते ही सकपका जाते हैं और नजरें चुराने लगते हैं

बल्लभ - (ताली बजाते हुए) वाह वाह वाह... राजा साहब के गैर हाजिरी में... क्या क्या कारनामें किए हो तुम सब हराम जादे... वाह..

सबके सिर शर्म से झुक जाते हैं, बल्लभ गुस्से में फनफनाते हुए चल कर शनिया के सामने खड़ा होता है

बल्लभ - क्यूँ बे कुत्ते... आखिर कार तुझे घी हजम हुई ही नहीं....
शनिया - जी वह वकील साहब..
बल्लभ - चुप बे... समझाया था तुम हराम जादों को... अगली बार कोई भी कांड करने से पहले... मुझसे सलाह कर लिया करो... (रोणा की ओर देखते हुए) क्यूँ बे दरोगा... तेरे सामने ही इनकी क्लास ली थी ना मैंने... फिर तुने भी नहीं समझाया इनको...
रोणा - (नरम आवाज में) सस.. समझाया था मैंने इन्हें... पर इन्हें ही चूल मची थी... राजा साहब को भी उस सरपंच के जरिए मना लिए... इसलिए...
बल्लभ - अबे इन सबसे ज्यादा तेरा विश्वा से पाला पड़ चुका है... इन अक्ल के अंधों को समझा भी सकता था... और पंचायत भवन में... हर हाल में तुझे उनके साथ होना चाहिए था... राजा साहब ने तुझे हिदायत भी तो यही दी थी...
रोणा - मैंने उदय के हाथों खबर भिजवाया था... मेरा इंतजार करने के लिए... पर यहाँ पर भी.. कांड हो गया...
बल्लभ - कैसा कांड...
रोणा - चार साल पहले का वारंट था... जब मैं देवगड़ में पोस्टिंग था... अचानक एक दिन पहले मुझे तहसील से कॉल आया... और वारंट अटेंड करने से पहले... ना करता... तो कंटेप्ट ऑफ कोर्ट हो जाता... मैंने अपना मोबाइल बाहर अटेंडेंट के पास डिपॉजिट दे आया था... तभी शायद इस शनिया का फोन आया था... किसी ने फोन लिफ्ट कर... मेरे या मेरे स्टाफ के बदले... वहाँ पंचायत भवन में पहुंच गए... और वहाँ पर वही हुआ... सब जैसा विश्वा चाहता था...
बल्लभ - ऐसे कैसे हो गया... तेरा फोन लॉक नहीं था क्या...
रोणा - कॉल लिफ्ट करने के लिए... लॉक क्या संबंध...
बल्लभ - (भीमा से) और तु... तु कैसे इन सबके साथ नहीं था...
भीमा - अब मैं क्या कहूँ वकील साहब... ( शनिया को देख कर) इस कमबख्त ने जैसे डींगे हांके थे... साथ में पच्चीस तीस पट्ठों का लश्कर... फिर भी... इस बार... दिन के उजाले में मार खाए...

बल्लभ एक कुर्सी पर बैठ जाता है और ठुड्डी पर हाथ रखकर कुछ सोचने लगता है l दांत पिसते हुए सब पर एक नजर डालता है

बल्लभ - सरपंच कहाँ है..
रोणा - हस्पताल में...
बल्लभ - क्या... हस्पताल में... क्यूँ...
रोणा - सबसे ज्यादा डरा हुआ... तो वही है... गहरा सदमा लगा है... इतना गहरा के... हाथ पैर ठंडा पड़ गया... इसलिए इमर्जेंसी में हस्पताल में दाखिल करना पड़ा...
बल्लभ - (शनिया और उसके लोगों से) जानते हो तुम लोग अभी कहाँ पर हो.... (कहते हुए खड़ा हो जाता है) यह जहां तुम लोग खड़े हुए हो... क्षेत्रपाल गेस्ट हाउस है... राजा साहब रुतबा ही है... के यहाँ सरकारी मुलाजिम पहरेदारी करते हैं.... तुम लोगों के मूर्खता के वज़ह से... राजा साहब के साख पर बट्टा लगा है... इसे अब साफ करने का जिम्मा भी अब तुम्हारा है...
शनिया - जी अब तो... राजा साहब का सामना हम कैसे करें... इस बात की परेशानी है..
बल्लभ - वह तुम जानो... बहुत बहादुरी दिखा दी तुमने... अभी कमीना पन दिखाने की बारी है तुम्हारी... बहादुरी और सीधे रास्ते पर... कोई उसे हरा नहीं सकता... तब बहादुरी छोड़ो... अपना कमीना पन आजमाओ... कुछ भी करो... (जोर देते हुए) उसे.... उसे जान से मार दो..

बल्लभ को आवाज़ गूंज रही थी l कमरे में इतनी खामोशी थी के बाहर से अंदाजा लगाना मुश्किल था के अंदर करीब करीब तीस आदमी हैं l बल्लभ फिर बोलना शुरु करता है

बल्लभ - उसे सामने से मार नहीं सकते... तो पीठ पर वार करो... छुप कर वार करो... पर उसे मारना जरुर... जानते हो... तुम लोग हारे क्यूँ.... वह इसलिए कि आज तक तुम लोगों पर किसीने पलट वार नहीं किया था... एक बार पलट वार किया तो तुम लोगों की यह गत बन गई... (सब खामोशी के साथ सुने जा रहे थे) मुफ्त की... हराम की खा खा कर ऐसे हो गए हो कि.... (चुप हो जाता है) इससे पहले कि लोग... तुम लोगों की नाकारा पन की कहानियां बनाने लगे... (फिर से चुप हो जाता है) शूकर करो... छोटे राजा जी ने भीमा का फोन उठाया था.... और उन्होंने मुझे बात का पता करने के लिए भेज दिया.... इससे पहले कि राजा साहब मामला को अपने हाथ पर लें... तुम लोग कुछ करके दिखाओ... वर्ना... राजा साहब का गुस्सा विश्वा पर फूटेगा बाद में... टुटेगा पहले तुम लोगों पर... अब जाओ यहाँ से... तभी राजा साहब के सामने आना... जब विश्वा की कटे हुए सिर को राजगड़ के गालियों में ठोकर मारते हुए गुजरोगे.... अब जाओ यहाँ से... जाओ

शनिया और उसके सारे पट्ठे वहाँ से चले जाते हैं l कमरे में अब सिर्फ बल्लभ, रोणा और भीमा रह जाते हैं l बल्लभ हांफते हुए धप कर बैठ जाता है

बल्लभ - रोणा... क्या रिपोर्ट बनाया है तुमने..
रोणा - यही की... शराब के नशे में... कुछ लोग... वहाँ पर बातचीत में गरम हो गए... हाथापाई कर बैठे...
भीमा - वकील बाबु... कभी सोचा भी नहीं था... विश्वा जैसा कोई आयेगा... इतना नाक में दम कर देगा...
रोणा - यह तो कुछ भी नहीं है भीमा... असली परेशानी अब शुरु होने वाला है...
बल्लभ - कैसी परेशानी...
रोणा - तु जानता है वकील... तु जानता है... यशपुर के डाक खाने से... पहली बार... डाक गया था... परसों वैदेही के पते पर.... (अपनी भवें सिकुड़ कर बल्लभ रोणा को देखने लगता है) तुझे याद होगा वकील... विश्वा ने दो जगह पर आरटीआई दाखिल किया था... एक होम सेक्रेटरीयट में... दुसरा हाइकोर्ट में... दोनों जगह से ज़वाब आ गया है शायद... अब हो ना हो... इन कुछ दिनों में... विश्वा पीआईएल फाइल करेगा... रुप फाउंडेशन की केस फिर से उछलेगा...

यह सुनते ही बल्लभ की आँखे हैरानी के मारे फैल जाते हैं l भीमा बल्लभ की प्रतिक्रिया देख रहा था l रोणा थोड़ी देर की चुप्पी लेकर फिर से कहने ल

रोणा - वह जैल में पुरे सात साल रहा... इन सात सालों में... उसने हर तरह की पढ़ाई की... जुर्म की दुनिया की हर दाव पेच से लेकर लड़ाई मार धाड़ तक सब कुछ... खुद को हर सांचे में बेहतरीन तरीके से ढाला हुआ है... हर जगह अपने आदमियों की जाल फैला रखा है... भुवनेश्वर से लेकर... राजगड़ और यशपुर के चप्पे-चप्पे तक... हम सोचते ही रह जाते हैं... वह अपना काम पुरा कर निकल जाता है.... ऐसा लग रहा है... जैसे हम कुछ कर नहीं रहे हैं... वह हमसे करवा रहा है.

रोणा की बात ख़तम होता है l कमरे में मरघट की शांति महसुस हो रही थी l इतनी के बल्लभ को अपनी साँसे तक सुनाई दे रही थी l कुछ देर बाद

बल्लभ - भीमा..
भीमा - जी वकील साब...
बल्लभ - तुम... शनिया और उसके आदमियों को कहीं छुपे रहने के लिए कह दो... फ़िलहाल विश्वा से और राजगड़ से दुर रहने के लिए कह दो...
भीमा - क्यूँ... वकील साहब... अभी तो आप उसकी सिर लाने की बात कह रहे थे...
बल्लभ - जब उसने आरटीआई दाखिल किया.. तभी से खुद को आरटीआई ऐक्टिविस्ट घोषित करवा दिया था.... अब जब उसे पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर से जवाब मिल गया होगा... तो पीआईएल दाखिल करते वक़्त... अपनी जान का खतरा बताएगा... उसे खरोंच भी आई... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...
रोणा - हाँ भीमा... वकील साहब ठीक कह रहे हैं... अभी विश्वा को छेड़ना नहीं है... उसे अपनी इस छोटी सी जीत का जश्न मना लेने दो... अब कुछ ऐसा प्लान करना होगा... की वह जान से जाए... जहान से भी जाए... पर सरकार को लगे.... वह फरार हो गया है... जैसे हम लोग रुप फाउंडेशन केस में... बैंक अधिकारी और तहसीलदार के साथ किया था...

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एक ऑटो मध्यम गति से राजगड़ की ओर रास्ते पर धुल उड़ाते हुए बढ़ी जा रही थी l ऑटो में पिछली सीट पर बीचों-बीच वैदेही बैठी थी और उसके अगल बगल दो बड़े भरे हुए थैले सटे हुए थे l एक में सब्जियाँ थीं और दुसरे में किराना के सामान l

वैदेही - (ऑटो वाले से) तो तुम्हारा नाम सीलु है...
सीलु - जी दीदी...
वैदेही - पर तुम लोग आज मुझसे अलग अलग हो कर क्यूँ मिले... इकट्ठे क्यूँ नहीं...
सीलु - दीदी... आपको शायद मालुम नहीं... जब से भाई गाँव लौट कर आए हैं... तब से राजा अपने कुछ प्यादों को भाई पर नजर रखने के लिए... इधर उधर बिखरा के रखा है.... ताकि भाई की कोई कमजोर नस उसे मिल जाए...
वैदेही - ओ... पर आज मैं तुम तीनों से इकट्ठे मिलना चाहती थी...
सीलु - दीदी.. मन तो हमारा भी बहुत करता है... क्यूंकि जब भी टीलु हमसे मिलता है... आपकी बड़ी प्रशंसा करता है... पर क्या करें... हम बिलकुल नहीं चाहते... आपकी तपस्या और भाई की लक्ष की राह में कोई रुकावट आए... हमसे कोई चुक ना हो...
वैदेही - बड़ी गहरी दोस्ती निभा रहे हो तुम लोग...
सीलु - नहीं दीदी... यह रिश्ता उससे भी अधिक है... उससे भी आगे है...
वैदेही - ह्म्म्म्म समझ सकती हूँ... इसी लिए तुम लोग मुझे दीदी बुला रहे हो... (सीलु चुप रहता है) अच्छा... तुम लोगों को डर नहीं लगा... पंचायत भवन में कुछ ऊँच नीच हो गया होता तो...
सीलु - नहीं होता.... हमें विश्वा भाई की प्लानिंग पर पुरा भरोसा था... (वैदेही हैरान हो कर सुन रही थी) वारंट पर मीटिंग के वक़्त... प्रोटोकॉल के तहत रोणा ने अपनी मोबाइल को रिसेप्शन में जमा करवाया था... मैं उससे बराबर दूरी बना रखा था... जैसे ही वह मैजिस्ट्रेट के चेंबर में गया... मैं उसका सॉबओर्डीनेट बन कर रिसेप्शन के पास पहुँच गया... बाकी आप तो जानते हो...
वैदेही - हाँ... (कहते हुए हँसने लगती है) अपने लिए क्या नाम चुना था तुम लोगों ने... तुम शैतान सिंह... (हँसने लगती है, फिर थोड़ी देर बाद, अपनी हँसी रोक कर) अच्छा हमें तुम सुरक्षित पंचायत भवन से निकाल कर बाहर ले आए... पर दुकान पर या घर के बाहर क्यूँ नहीं छोड़ा...
सीलु - (मुस्करा देता है) दीदी आपके इस सवाल पर... जवाब वही है... हमारा ताल्लुक जान कर... कोई हमारा पीछा ना करदे इस लिए...
वैदेही - ओह.. खैर... यह तुम लोग मुझे इतना सारा सब्जी और किराना के सामान क्यूँ दे दिए...
सीलु - यह मिलु और जिलु ने दिए हैं... इसमें मैं क्या कर सकता था...
वैदेही - क्यूँ...
सीलु - दीदी हमारी एक इच्छा है... सच कहें तो कभी कभी हम सबको... टीलु से जलन होती है...वह साक्षात अन्नपूर्णा स्वरूप के हाथों से खाना खा रहा है... पता नहीं कब हम इकट्ठे होंगे...

वैदेही - क्यूँ... तुम इतने नकारात्मक क्यूँ सोच रहे हो... क्या हम कभी भी... इकट्ठे नहीं होगे...
सीलु - होंगे दीदी होंगे... वह भी बहुत जल्द... हमारा तो सपना है ही... के आपके साथ बैठ कर... आपकी हाथों से बनी खाना खाएं...
वैदेही - (थोड़ी उदास हो कर) हाँ... सभी अपने मिलकर इकठ्ठे हों... ऐसा त्योहार भी तो राजगड़ में नहीं आता... कुछ दिनों बाद होली है... पर सदियों से यहाँ कोई त्योहार मनाना तो दुर मातम तक नहीं मनाता....
सीलु - (दिलासा देते हुए) बस कुछ दिन और दीदी... बस कुछ दिन और...

ऑटो अब गाँव में प्रवेश करता है l लोग वैदेही को ऑटो में आते हुए देख हैरान होते हैं l ऑटो वैदेही की दुकान के आगे रुकती है l सीलु उतर कर दोनों थैलों को दुकान के अंदर छोड़ता है l

सीलु - (धीरे से इशारे के साथ) दीदी... थोड़ा पानी...
वैदेही - हाँ हाँ...

वैदेही मटके से ठंडा पानी निकाल कर सीलु को देती है l सीलु पानी पीते हुए नजरें घुमाता है और वैदेही से कहता है

सीलु - दीदी... मुझे कुछ नजरें दिख रही हैं... जो तुम पर और तुम्हारी दुकान पर टिकी हुई हैं... इसलिए मुझे भाड़े के पैसे दे दो... और कोशिश करो... किसी से भी... वह चाहे कितना भी अपना हो... हमसे मुलाकात की बात नहीं कहोगी... (वैदेही हैरान हो कर सीलु को देखती है) हैरान मत हो दीदी... तुमसे कुछ गलती नहीं होगी... पर किसी और से गलती हो सकती है... अगर यह बात खुली... तो आपकी तपस्या और विश्वा भाई की मुहिम को झटका लगेगा... हम सब खतरे में आ जाएंगे...

कह कर वैदेही को ग्लास लौटाता है l वैदेही भी चुप चाप सीलु के हाथों में कुछ पैसे रख देती है l सीलु पैसे लेकर वहाँ से ऑटो लेकर बिना पीछे मुड़े बिना उसे देखे चला जाता है l उसके जाते ही वैदेही एक कुर्सी पर पीठ टिकाए बैठ जाती है और छत की देख कर एक आत्म संतोष के साथ आखें मूँद लेती है l कुछ देर बाद उसके कानों में गौरी की आवाज़ सुनाई देती है

गौरी - क्या सोच रही है अपने मन में...
वैदेही - (अपनी आँख खोल कर देखती है) क्या... अरे काकी तुम कब आई... और क्या पुछा तुमने अभी...
गौरी - अरे बेटी... अपनी मन में क्या कुछ सोच रही हो... और बड़ी खुश भी दिख रही हो... क्या बात है...
वैदेही - काकी... मुझे आज अपने विशु की किस्मत पर गर्व भी हो रहा है और खुशी भी...
गौरी - गर्व... खुशी...
वैदेही - हाँ काकी... मैं जिंदगी भर खोती रही... पर मेरा विशु... आज हर मोड़ पर हासिल कर रहा है... वह चाहे रिश्ता हो... या... मुकाम...
गौरी - तु अपनी किस्मत की बात क्यूँ कर रही है...
वैदेही - काकी... मेरी किस्मत बड़ी अजीब है... जब तक माँ का साया था... पिता का पता नहीं था... फ़िर माँ का साथ छुटा तो माता पिता दोनों मिले... फिर जब विशु आया... माँ ने विशु की जिम्मेदारी दे कर चली गई... मैं विशु की दीदी रही.. माँ भी बन गई... जब खुद बर्बाद हो गई... तो पिता का साया भी सिर से उठ गया... वापस जब गाँव लौटी... (आवाज़ भर्रा जाती है) विशु की बर्बादी बन गई....
गौरी - तु किसी ना किसी बात पर खुद को दोष देती है... कोसती रहती है... क्यूँ...
वैदेही - (हँसने की कोशिश करते हुए) काकी... पर मेरा विशु... के किस्मत में सिर्फ पाना ही पाना लिखा है... देखो ना... आज विशु के पास... माँ है... पिता हैं... दोस्त हैं... और होने वाली जीवन साथी भी है... आज वह वकील भी बन गया है... शहर में अच्छी नौकरी भी है.... (थोड़ी उदासी में अपने आप में खोते हुए) पता नहीं क्यूँ... यहाँ मेरी अहंकार की लड़ाई वह लड़ रहा है... (चुप हो जाती है, थोड़ी देर बाद) काकी... कहीं मैं स्वार्थी तो नहीं हो गई हूँ...
गौरी - नहीं मैं नहीं जानती... तु स्वार्थी हो गई है या नहीं... पर इतना जानती हूँ... तु सिर्फ दो रिश्तों में खुद को बांधे रखी है... पहली बेटी... फिर माँ... और तु यह क्यूँ सोच रही है... विशु तेरी लड़ाई लड़ रहा है... यह हर राजगड़... हर यशपुर वालों की लड़ाई है... हर एक के भीतर उस विद्रोह की बीज पड़ी हुई है... पर उनके आत्मा की जमीन बंजर हुई पड़ी है... बस तेरे अंदर बीज फुट कर विशाल वृक्ष बना है... तु अपने उस वृक्ष की साये में विशु को अपने जैसा बनाया है... पर तु देखना... विशु के वज़ह से... इन सोये हुए लोगों की आत्मा जागेगी... तब सबकी संघर्ष की राह तेरी राह से जुड़ जाएगी....
वैदेही - हाँ... यह जब होगा... तब होगा... ज़रा सोचो काकी... विशु... इसी गाँव की गालियों में पला बढ़ा... पर उसे वैसे दोस्त नहीं मिले... जैसे उसे परदेश में मिले... जो विशु के लिए जान भी दे सकते हैं और जान ले भी सकते हैं...
गौरी - क्या...
वैदेही - हाँ काकी... मैं ऐसे ही दोस्तों से मिलने गई थी... और मिल कर आ रही हूँ...
गौरी - क्या... तो तु... यह सामान लेने नहीं गई थी...
वैदेही - नहीं...
गौरी - तो क्या मिल लिया उनसे...
वैदेही - हाँ... पर वह सब मिले तो ऐसे मिले... जैसे कि भुत... पास साये की तरह आए... रहे... सामने कब आए कब गए पता भी नहीं चला... बस इतना संतोष है कि सबसे मिली... सबको आशीर्वाद दे कर आ पाई...


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देखिए मुझे कोई ऐतराज नहीं है... आप लोग मरीज़ से मिल सकते हैं... पर फिर भी... मैं इतना कहूंगा... मरीज़ कॅंसियस में नहीं है... कभी कभार थर थर कांपने लगता है... तो कभी कभी ऊल जलूल बड़बड़ाने लगता है...

यह डॉक्टर था, बल्लभ और रोणा से कह रहा था l डॉक्टर के ऐसे कहने पर बल्लभ रोणा की ओर देखता है पर रोणा कोई खास प्रतिक्रिया नहीं देता l

बल्लभ - सुनो डॉक्टर... मैं यहाँ उस कमबख्त की जानकारी लेने आया हूँ... बस... उसे अपने आँखों से देख लूँ और आत्म संतोष कर लूँ... वैसे मेडिकल टर्म में... उसे हुआ क्या है...
डॉक्टर - पता नहीं... हम अभी भी टेस्ट कर रहे हैं... सरपंच जी को इतनी गर्मी में भी ठंड लग रहा है... यह हैपो थर्मिया के सिमटंस् लगते हैं... पर और कुछ टेस्ट करलेने के बाद ही हम श्योर हो कर कुछ कह पाएंगे...
बल्लभ - ओके... ओके... क्या हम उससे मिल सकते हैं...
डॉक्टर - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... चलिए मैं खुद लिए चलता हूँ...

हस्पताल में एक ही विशेष सुविधा वाली केबिन थी, डॉक्टर इन दोनों को अपने साथ उसी केबिन में ले जाता है l केबिन में सरपंच की बीवी और बच्चे थे l केबिन में पहुँच कर बल्लभ देखता है सरपंच लेटने के बजाय बैठा हुआ है और सिर पर चादर की मोटी फ़ोल्ड बंधी हुई है और पूरा शरीर दो तीन ब्लैंकेट से ढका हुआ है l फिर भी उसका शरीर ऐसे कांप रहा था जैसे सर्दियों में बिना गर्म लिबास के नंगा शरीर जैसे कांपता है l सरपंच की बीवी जैसे ही डॉक्टर को देखती है

स. बीवी - देखिए ना डॉक्टर साहब... इनको क्या हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है... कंबल ओढ़े हुए हैं... अंदर से पसीने से भीगे भी हुए हैं... पर फिर भी ठंड लगने की बात कर रहे हैं...
डॉक्टर - (स. बीवी से) बस एक दो दिन में इनकी हालत ठीक हो जाएगी... (बल्लभ से) अब आप ही देख लीजिए... ऐसी इनकी हालत है...
बल्लभ - क्या यह बातेँ करता है... आई मिन...
डॉक्टर - हाँ हाँ... यह सवालों का जवाब देते हैं... पुछ सकते हैं...
बल्लभ - (आगे बढ़ कर सरपंच के बगल में बैठ जाता है, और उसके कंधे पर हाथ रखकर) सरपंच... क्या हुआ... बताओ...
सरपंच - (थरथराती आवाज़ में) वह... वह... शनिया भाई के लोगों के बीच में था... शुरु से ही... पर कोई नहीं जान पाया... (रुक जाता है)
बल्लभ - हाँ... रुक क्यूँ गए...
सरपंच - (उसी तरह कांपती आवाज में) वह जब सामने आया... मैंने देखा... सबको एक साथ सांप सूँघ गया... सबको जैसे लकवा मार गया... (फिर रुक जाता है)
बल्लभ - (झिंझोडते हुए) सरपंच... फिर क्या हुआ...
सरपंच - (अपना चेहरा घुमा कर बल्लभ की ओर देखता है) वह... बड़े आराम से... जैसे कोई बच्चा... खिलोनों को पटकता है... वैसे ही सबको पटकने लगा... सब के सब जैसे खुद को उसके हाथों पटकने के लिए.. उसके पास जा रहे थे... वह भी लोगों को बड़े सावधानी से... सबको पटक रहा था... फिर... (रुक जाता है)
बल्लभ - फिर... फिर क्या हुआ...
सरपंच - फिर.. कुछ नहीं... कुछ भी नहीं हुआ... शनिया अपनी तलवार निकाल कर मारने को खड़ा हो गया... पर... पर वह शनिया के आँखों में घुर कर देखने लगा... शनिया जैसे जड़ हो गया... वह शनिया से तलवार ऐसे लिया... जैसे शनिया ने तलवार उसीके लिए निकाला हो... फिर उसके बाद... वह... तलवार को ऐसे घुमाया के... मंच पर हवाओं को चीरती हुई बवंडर की आवाज़ गूंजने लगी... और उस बवंडर के भीतर से कभी कभार बिजली सी कौंधती दिखी.... उ... हू.. हू... (कांप जाता है)(इसबार बल्लभ उसे गौर से देखता है) (सरपंच का चेहरा सफेद पड़ रहा था) उसके बाद... मेरी पगड़ी को... तलवार की नोक से उछाला फिर सिर्फ तीन बार... तलवार चलाया... मेरी पगड़ी चार बराबर टुकड़ों में फर्श पर बिखरी पड़ी थी... मैंने देखा... नहीं नहीं... हम सबने देखा... वह तीन पुलिस वाले... मंच पर आए... उन दो भाई बहन को ले कर चले गए... बस... बस इतना ही हुआ....

बल्लभ वहाँ से इतना सुनते ही केबिन से बाहर आ जाता है l उसके पीछे पीछे रोणा भी बाहर आ जाता है l हस्पताल से बाहर आकर बल्लभ गाड़ी में बैठ जाता है l रोणा गाड़ी में बैठ कर बल्लभ से पूछता है

रोणा - अब कहाँ जाना चाहोगे...
बल्लभ - गेस्ट हाउस...
रोणा - (गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है)
बल्लभ - (कुछ देर बाद) तुझे क्या हुआ है...
रोणा - कुछ नहीं... मुझे क्या होगा..
बल्लभ - कमाल है... हमेशा की तरह... तेरी चुतिया काटा उसने... फिर भी तुझे कुछ नहीं हुआ...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं पर कोई जवाब नहीं देता)
बल्लभ - तुने मूंछें भी मुंडवा ली... क्या विश्वा ने तुझे मूंछें रखने के लायक भी नहीं छोड़ा...

रोणा गाड़ी की स्पीड बढ़ाने लगता है, बल्लभ देखता है रोणा की आँखों में खुन उतर आया था, बल्लभ यह भी देखता है कि गाड़ी गेस्ट हाऊस के बजाय नहर के पास रुकता है l रोणा गाड़ी से उतर कर नहर के किनारे पर खड़ा हो जाता है l उसके पीछे बल्लभ पहुँचता है और उसे महसूस होता है कि रोणा तेज तेज साँस ले रहा है l

बल्लभ - तुने राजा साहब से झूठ क्यूँ बोला...
रोणा - (वगैर बल्लभ को देखे) कौनसा झूठ...
बल्लभ - उस लड़की का... विश्वा से कोई कनेक्शन नहीं है...
रोणा - जब नहीं है... तो कैसे कह देता की कनेक्शन है...
बल्लभ - (कुछ देर तक चुप रहता है) तेरी छटपटाहट देख कर... मैंने बहुत कुछ समझ लिया है...
रोणा - (बल्लभ की ओर देखते हुए, खीजते हुए) क्या... समझ लिया है तुने... हाँ... क्या समझ लिया है...
बल्लभ - मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ... जहां लड़की देखी... लार टपकाने लगता है... वहीँ आज सरपंच की बीवी की ओर... नजर उठा कर देखा तक नहीं तुने... इसलिए कम से कम मैंने तो सारे डॉट्स जोड़ लिए... और सारी बात समझ में आ गई....
रोणा - (अपनी जबड़ों को भींच कर) क्या... क्या समझ में आ गया तुझे...
बल्लभ - मत भूल... हम मिलकर ही भुवनेश्वर गए थे... यह बात और है... छोटे राजा जी ने मुझे काम पर लगा दिया... पर उसी दौरान किन्नरों वाला कांड बहुत मशहूर भी हुआ था... उसके बाद तेरा चौबीस घंटों के लिए गायब हो जाना... और आज तुझे मूछ मुंडा देख कर सब समझ में आ गया.... (दांत पिसते हुए रोणा बल्लभ की ओर देखने लगता है) तेरा अनुमान बिल्कुल सही था... उस लड़की का जरूर विश्वा से कोई लेना-देना है... विश्वा ने जिसकी सजा तुझे दी है...
रोणा - हाँ हाँ हाँ... (चिल्लाते हुए कहता है, फिर थोड़ी देर चुप हो जाता है, अपने हाथों से बालों को नोचने लगता है फिर गाड़ी के पास आकर दोनों हाथों की मुट्ठी को पटक देता है, फिर गुर्राते हुए) उस लड़की का नाम... नंदनी है... और वह विश्वा की माशुका है... बस इतना ही जान पाया हूँ...
बल्लभ - तो फिर तुने राजा साहब से झुठ क्यूँ कहा... उस लड़की के बारे में...
रोणा - क्यूंकि अब यह मेरा निजी मामला है... राजा साहब का भले ही... सौ खुन्नस हो विश्वा से... पर वह है मेरी निजी मामला... (बल्लभ चुप रह कर सुनता है) राजा साहब को अगर बता देता... तो उस लड़की को... पहले अपने नीचे लिटाते... जब कि उसे सबसे पहले... (अपनी गाल पर हाथ फेरते हुए) अपने नीचे लाने का हक और जुनून मेरा है....
बल्लभ - कल को अगर... राजा साहब को सच्चाई मालुम पड़ा तब... तब क्या करेगा...
रोणा - कुछ खुन्नस बहुत निजी होते हैं प्रधान... बहुत ही निजी... अब यह मेरी जिंदगी की मक़सद बन चुकी है... उस हराम खोर विश्वा के पास... मेरी कमजोरी है... मुझे उसकी कमजोरी पर हावी होना है... बस मुझे मेरी बारी की इंतजार है...
बल्लभ - मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुने... अगर कल को राजा साहब को मालुम पड़ा... तब क्या करेगा तु...
रोणा - वह जब पता चलेगा... तब देखा जाएगा... उसने एक तरह से मेरा रेप किया है...
बल्लभ - रेप... कैसा रेप...
रोणा - याद है... रंगा... उसे मैंने ही छोटे राजा जी के पास लेकर गया था... उसे विश्वा के वज़ूद को उसके भीतर ही ख़तम करने के लिए भेजा गया था... यह बात और है... विश्वा उस पर भारी पड़ा... पर किन्नरों के आड़ विश्वा ने मेरे साथ वही किया... पर... (आवाज़ कांपने लगती है) मैं टूटा नहीं हूँ... मैं... उसकी माशुका को... अपनी रखैल बनाऊँगा... (आवाज़ में कड़क पन) पहले उसकी इज़्ज़त को फाड़ुंगा.. फिर उसकी जिस्म की चिथड़े चिथड़े कर दूँगा.... वह भी (चिल्लाते हुए) उस हरामजादे के आँखों के सामने... (हांफने लगता है)
बल्लभ - मानना पड़ेगा... साला खुब छका रहा है तुझे... नचा भी रहा है...
रोणा - गलत बोल रहा है प्रधान... गलत बोल रहा है... बेशक वह मुझे नचाया है... पर सच्चाई यही है... वह हम सबको छका रहा है... हम में से कोई भी उसे पार नहीं पा सका है...
बल्लभ - तु अपनी हार... हमारे मत्थै क्यूँ मढ रहा है...
रोणा - हा हा हा हा (हँसने लगता है) उसके साथ उलझ उलझ कर... मुझे इतना मालुम हो गया है... जहां हमारी सोच की हद ख़तम होती है.... (गंभीर हो कर) वहीँ से उसकी सोच शुरु होती है... तभी तो... वह आसानी से... हमें अपनी सोच की ज़द में ले लेता है... हम सिर्फ दो आँखों से नजर रखने की कोशिश करते हैं... पर विश्वा हज़ार आँखों से हम पर नजर रखता है... वकील बाबु... आज जो भी हुआ है... या हो रहा है... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ... विश्वा के नॉलेज में है...
बल्लभ - ओ हो... विश्वा ने तेरी इस कदर ली है... की उसके लिए तारीफ ही निकल रही है...
रोणा - हाँ वकील बाबु हाँ... तुझे एक किस्सा सुनाता हूँ... पंचायत सभा से पहले... उसने मुझसे कहा था... की मैं पंचायत ना जाऊँ...
बल्लभ - तो क्या तुने इसलिए तहसील में वारंट का बहाना बनाया...
रोणा - नहीं... मैं यह कहना चाहता हूँ... जरा टाइमिंग को देख... यह कोई इत्तेफाक नहीं है... सोची समझी वैल प्लान्ड हरकत है... के देवगड में मेरे पुराने केस की वारंट निकाल कर... राजगड़ तहसील को ट्रांसफर करवाया....
बल्लभ - (हैरानी के साथ) क्या... यह तु कैसे कह सकता है...
रोणा - कह सकता हूँ... उसने वह ऑर्डर भिजवा के मुझे यह एहसास दिलाया कि मैं उसके हर चाल के आगे बेबस हूँ... और मज़बूर हूँ...
बल्लभ - तु है ही... मूढमति... इसलिये तुझ पर वह हावी हो गया... मैं वकील हूँ... हर काम दिमाग से लेता हूँ... मैंने अभी अभी एक केस हाथ में लिया है... उसके मेंटर को झटका देने... देखना (चुटकी बजाते हुए) वह मेरी दिमाग की शतरंज की चाल से कैसे बिल बिला जाएगा...
रोणा - हा हा हा हा... (हँसते हुए) कोई ना... बहुत जल्द तुझे यह एहसास हो जाएगा... तु विश्वा को लपेटे में लेने के लिए जो जाल बिछाया है... खुद को उसी जाल में फंसा हुआ पाएगा...
बल्लभ - तुझे उससे खुन्नस है... या डर... तु ऐसे क्यूँ सोच रहा है...
रोणा - मैं सोच नहीं रहा हूँ... अपनी बारी का इंतजार कर रहा हूँ... हर कुत्ते का दिन आता है... मेरा भी दिन आएगा... तु देखना... मेरा भी दिन आएगा...



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क्या भाई जबसे यह काग़ज़ के बंडल आए हैं... उसी दिन से तुम दिन दुनिया भूल कर उन्हीं काग़ज़ों में खोए हुए हो....

यह टीलु कह रहा था विश्व से, विश्व बड़ी शिद्दत से आरटीआई के जरिए मिले उन दस्तावेजों को पढ़ रहा था l टीलु की बात सुन कर विश्व उसकी ओर देखता है l

टीलु - भाई तुम यहाँ ईन काग़ज़ों में खोए हुए हो... और उधर बच्चे तुमसे मिलने आ रहे हैं... और तुमसे मिले वगैर चले भी जाते हैं...
विश्व - क्यूँ ऐसा क्यूँ... उनके लिए तो हमने लाइब्रेरी बनाए हैं...
टीलु - हाँ बनाए हैं... पर बच्चे किताबों से ज्यादा तुम्हें ढूंढते हैं...
विश्व - मुझे ढूंढते हैं... तो तुम किस मर्ज की दवा हो... तुम उनके साथ खेलो..
टीलु - कह तो तुम सही कह रहे हो... पर... इस बात का ज़वाब तुम उन से क्यूँ नहीं पूछते...

विश्व कुर्सी पर पीठ टीका कर टीलु को घूरने लगता है l टीलु विश्व का इस तरह घूरने को नजर अंदाज कर देता है l

विश्व - तुम जानते हो... यह कैसे कागजात हैं...
टीलु - हाँ... यह उसी केस के दस्तावेज हैं... जिसमें तुम फंसे हुए थे...
विश्व - हाँ... (एक बंडल दिखाते हुए) यह... कोर्ट में हुए सारी कारवाई की डिटेल है... और यह... (दूसरी बंडल दिखा कर) एसआईटी की... कोर्ट के ऑर्डर के बाद की तहकीकात की अधूरी रिपोर्ट है... मुझे इन दोनों के सार निकाल कर पीआईएल फाइल करनी है...
टीलु - देखो भाई... यह सब बड़ी बड़ी बातेँ तुम ही समझ सकते हो.... पर मैं उन बच्चों का क्या... जो अपने मामा से मिलने आने वाले हैं...
विश्व - अरे यार... तुम बच्चों को बहला भी नहीं पाते...
टीलु - नहीं... नहीं बहला पा रहा हूँ... क्यूँकी उनसे मामा भांजे का रिश्ता तुमने बनाया है... मैंने नहीं...
विश्व - ठीक है... मैं बच्चों से मिल लूँगा... पर तुम्हें उन सबको बहलाते रहना होगा....
टीलु - वह क्यूँ...
विश्व - मैं शायद एक दो दिन कटक निकलने वाला हूँ... पीआईएल फाइल करने...
टीलु - ह्म्म्म्म... मतलब सब सीधे खतरे को... घर में दावत देने जा रहे हो...
विश्व - हाँ... अब आमने सामने होने का वक़्त आ गया है...

तभी बाहर से कुछ आवाजें आने लगते हैं l विश्व और टीलु बाहर आते हैं l अरुण और उसकी टोली आई हुई थी l विश्व को देख कर सब खुश हो जाते हैं l

विश्व - हाँ तो बच्चों... यह शोर किसलिए...
अरुण - वह मामा... यह छुटकी है ना... (अपने बगल में खड़ी एक लड़की की ओर इशारा करते हुए) आपसे कुछ पूछना चाहती थी....
विश्व - अच्छा... तो यह है छुटकी... हाँ तो छुटकी क्या पूछना चाहती हो तुम मुझसे...
छुटकी - कुछ नहीं मामा... यह.. (अरुण के कंधे पर मुक्का मारते हुए) झूठ बोल रहा है... इसे ही आपसे पूछना है...
अरुण - चल झूठी..
छुटकी - तु झूठा...
अरुण - ऐ मुझे झूठा कहती है..
छुटकी - क्यूंकि तु झूठ बोलता है...

अरुण छुटकी की चोटी पकड़ लेता है l बदले में छुटकी भी अरुण के बाल पकड़ लेती है l इससे पहले कि वहाँ पर झपटा झपटी शुरु होता विश्व दोनों को छुड़ाता है l

विश्व - ऐ.. ऐ.. (अरुण के कान खिंचते हुए) तु पक्का शैतान है... बोल तुझे क्या पूछना है... (दुसरे बच्चे खुशी से उछल कर ताली मारते हुए कूदने लगते हैं)
अरुण - आह आ... बताता हूँ मामा... बताता हूँ... मेरे कान छोड़ो ना...
विश्व - (कान छोड़ देता है) हाँ अब बोलो...
अरुण - वह मामा... (अटक अटक कर शर्माते हुए) आप ना...
विश्व - हाँ मैं...
अरुण - हम सबको...
विश्व - हाँ तुम सबको...
अरुण -(जल्दी जल्दी) तलवार घुमाना सीखा दोगे...
विश्व - (चौंक कर) क्या...
सभी बच्चे मिलकर - हाँ हमें आप तलवार घुमाना सीखा दो...
विश्व - ऐ... तुम लोगों को कैसे मालुम हुआ यह सब...
छुटकी - यही अरुण ने हम सबको बटाया...
विश्व - (अरुण के गाल खिंच कर) तो यह सब नाटक क्या है... तुझे कैसे मालुम हुआ यह सब...
अरुण - आह... आ.. ह... मामा उस दिन मैं छुप कर पंचायत ऑफिस गया था.... आह...
विश्व - (अरुण के गाल छोड़ते हुए) पर वहाँ पर बच्चों का आना मना था...
अरुण - तभी तो छुप कर गया था... घर में माँ और बापू के बीच झगड़ा हुआ था... बापू पर भी कर्जा चढ़ा था ना.. इसलिए...
विश्व - तो तु तलवार सीख कर कर्जा उतारेगा...
अरुण - नहीं.. मैं तो बस तुम्हारी तरह तलवार पंखे की तेजी से घुमाऊँगा... जिसे देखकर शनिया दादा डर कर हमारे घर नहीं आएगा...

विश्व मुस्कराते हुए अरुण के गाल पर थपकी लगाता है और टीलु की ओर देखता है, टीलु भी हैरानी से अरुण की ओर देखता है

टीलु - क्यूँ रे छछूंदर... यह लाइब्रेरी है... भूल गया क्या...
अरुण - नहीं चमगादड़ मामा... नहीं भूला...
टीलु - अबे मुझे चमगादड़ बोलता है...
अरुण - तुमने क्यूँ मुझे छछूंदर बुलाया...
विश्व - बस... बस... बस... (बच्चों से) तो तुम लोगों को... तलवार नहीं... लट्ठ घुमाना सीखना चाहिए...
बच्चे - लट्ठ...
विश्व - हाँ...
अरुण - आप सीखाओगे...
विश्व - नहीं मैं नहीं... (टीलु को दिखाते हुए) यह... तुम्हारा यह मामा सिखाएगा...
अरुण - क्या... यह चमगादड़ मामा...
टीलु - अबे छछूंदर तेरी तो...
विश्व - ऐ... ऐ... (अरुण से) मैंने क्या कहा था इन्हें क्या बुलाने के लिए...
अरुण - (मुहँ फुला कर) बैटमैन मामा...
विश्व - गुड... हाँ तो चमगादड़... ओह मेरा मतलब है टीलु... तुम इन सब बच्चों को लट्ठ घुमाना सीखाओगे...
टीलु - (अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को घूरने लगता है)
विश्व - अरे यार... गलती से मुहँ से निकल गया..

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रास्ते पर एक आदमी बदहवास हो कर भाग रहा है जैसे उसके पीछे उसका मौत पड़ा हो l वह भागते हुए अपना फोन निकाल कर कॉल करता है l

आदमी - है... हैलो...
@ - क्या हुआ इतना हांफ क्यूँ रहा है...
आदमी - मैं... मैं... अपनी मौत से पीछा छुड़ाने के लिए भाग... भाग रहा हूँ... मेरे पीछे वीर पड़ा है...
@ - तु कब उसे मिल गया...
आदमी - मिला नहीं... आज पार्टी ऑफिस में यूथ वर्कर रियूनियन हुआ था... वहाँ मैं... मैं... अपने दोस्त के लिए बाहर इंतजार कर रहा था... वीर ने मुझे देख लिया... अब... वह.. मेरे पीछे पड़ा है...
@ - तो भोषड़ी के... गाड़ी से नहीं भाग सकता था...
आदमी - मौका... मौका नहीं मिला...
@ - अच्छा बोल कहाँ है इस वक़्त... अपना लोकेशन बताओ...


वह आदमी भागते हुए पहले पीछे मुड़ कर देखता है, वीर किसी जुनूनी की तरह उसके पीछे भागते हुए आ रहा था, वह बिना देरी किए अपना लोकेशन बताता है l

@ - कोई ना... थोड़ी दूर पुलिस हेड क्वार्टर है... वहाँ पर... xxxx को मैं फोन कर देता हूँ... वह पहुँच कर तु अपना गिरफ्तारी दे देना...

वह आदमी फोन काट कर फिर से पीछे मुड़ कर देखता है l वीर बहुत तेजी से उसके तरफ बढ़ रहा था l आदमी अपनी पुरी ताकत लगा कर बिना पीछे मुड़े भागने लगता है l थोड़ी देर बाद उसे पुलिस हेड क्वार्टर दिखता है l वह "बचाओ बचाओ" "मुझे इस आदमी से बचाओ" चिल्लाते हुए हेड क्वार्टर के अंदर भागने लगता है l कुछ देर बाद पुलिस वाले उस आदमी को अपने घेरे में ले लेते हैं l वीर अंदर भागते हुए आता है, उसे कुछ पुलिस वाले रोकने की कोशिश करते हैं l पर वीर इस कदर जुनूनी हो गया था कि उन चंद पुलिस वालों की पिटाई कर उस आदमी तक पहुँचने की कोशिश करता है l बात जब चंद पुलिस वालों से नहीं बनती तो बड़ी तादात में पुलिस वाले वीर को कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं l वीर को पंद्रह से बीस पुलिस वाले पकड़ लेते हैं l फिर भी वीर उन्हें अपने साथ खिंचते हुए उस आदमी की तरफ बढ़ने लगता है l वीर का यह उग्र रुप देख कर उस आदमी की पेशाब निकल जाता है l इतने में शोर शराबा सुन कर कमिश्नर बाहर आ जाता है l वीर का यह रुप और अपने पुलिस वालों की हालत देख कर कमिश्नर मोटे रस्सियों वाली जाल लाने के लिए कहता है l कुछ पुलिस वाले वही रस्सियाँ वाली जाल लाकर वीर पर डाल देते हैं और पुलिसीए लाठी से वीर के हाथ पैर जाल के अंदर बाँध देते हैं l वीर जाल के अंदर गुर्राता रहता है l वीर को जाल के अंदर छटपटाते देख कमिश्नर के पास खड़ा एक कांस्टेबल कहता है

- हे भगवान... यह जाल तो जंगली हाथी या जंगली शेरों को काबु में लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है... यह राजकुमार क्षेत्रपाल तो सच में उतना जंगली लग रहा है...

कमिश्नर उसे घूरने लगता है तो वह कांस्टेबल नजरें चुराते हुए दुबक कर अपना सिर झुका लेता है l कमिश्नर वीर के पास जाता है और

कमिश्नर - राजकुमार... होश में आइये... यह आप क्या कर रहे हैं...
वीर - मुझे वह हरामजादा चाहिए कमिश्नर... मैं अपने हाथों से उसे चिर दूँगा...
कमिश्नर - इनॉफ... माना कि स्टेट पालिटिक्स में... आप बहुत रुतबा रखते हैं... पर यह पुलिस हेड क्वार्टर है... आप शांत हो जाइए... प्लीज...

वीर फिर भी कमिश्नर को अनसुना कर उस जाल निकल ने के लिए अंदर छटपटाने लगता है l कमिश्नर उस आदमी के पास जाता है और पूछता है l

कमिश्नर - सच सच बताओ... राजकुमार क्यूँ तुम्हें मारना चाहता है... अगर सच नहीं बताया तो तुम्हें मजबूरन उनके हवाले कर दिया जाएगा...
आदमी - (डर के मारे गिड़गिड़ाते हुए) नहीं... नहीं कमिश्नर साहब नहीं... लगभग दो महीने पहले... राजकुमार एक लड़की के साथ... मेरिन बीच में घुम रहे थे... मैं और मेरे दोस्तों ने उस लड़की को छेड़ने की कोशिश की थी... यह कौन है जाने वगैर... आज xxxx पार्टी में अगली मीटिंग के लिए भीड़ जुटाने के लिए मुझे बुलाया गया था... वहीं पर राजकुमार जी ने मुझे देख लिया.... मैं तभी से जान बचाने के लिए यहाँ भाग कर आया हूँ... प्लीज कमिश्नर साहब मुझे बचा लीजिए... मैं मरना नहीं चाहता... प्लीज...

कमिश्नर एक थप्पड़ मारता है उस आदमी को l फिर वह घुम कर वीर के पास पहुँचता है l वीर अभी भी जाल से छूटने के लिए हाथ पैर चला रहा था l

कमिश्नर - राजकुमार जी... देखिए... यह मत समझिए की इसने जो किया है... उसका कबुल नामा को मद्देनजर रखते हुए हम इसे गिरफ्तार कर रहे हैं... इसकी जान को खतरा देख कर हम इसे हिरासत में ले रहे हैं... बेहतर होगा आप यहाँ से चुप चाप निकल जाइए... क्यूँकी... बाहर मीडिया वालों को हमने रोक रखा है... उन्हें अगर यह मसाला दार खबर मिल गई... तो उसमें और नमक मिर्च लगा कर आपकी और आपकी पार्टी की बदनाम करने से नहीं चुकेंगे... आप समझदारी से काम लें... इसे सजा बहुत थोड़ी होगी... जब यह छूटेगा... तब इसे आप देख लीजिएगा... मगर यहाँ आप और कोई सीन ना बनाए... वर्ना...
वीर - (गुर्राते हुए) वर्ना...
कमिश्नर - वर्ना हम कुछ नहीं करेंगे... मीडिया वालों को अंदर बुला लेंगे... आगे आप समझ दार हैं... किसे कैसे जवाब देंगे... (यह सुन कर वीर थोड़ा शांत होता है, कमिश्नर अपने स्टाफ से) इसे अंदर लेकर लकअप में डाल दो... और जल्द से जल्द कोर्ट फॉरवर्ड करने की तैयारी करो...

पुलिस वाले वैसा ही करते हैं, उस आदमी को जल्द ही अंदर ले जाते हैं l उसके बाद कमिश्नर इशारा करता है, पुलिस वाले वीर के उपर लाठियों से जो पकड़ बनाए थे वह हटाते हैं और उसके बाद उसके उपर से वह जाल हटाते हैं l

कमिश्नर - देखिए राजकुमार जी... आपके परिवार के प्रति हमारा पूरा सम्मान है... पर हम भी बंधे हुए हैं...
वीर - जी... मुझे माफ कर दीजिए...
कमिश्नर - अरे क्यूँ शर्मिंदा कर रहे हैं... माफी तो हम आपसे मांगते हैं... के हम इस वक़्त आपके कोई काम नहीं आए... (वीर कोई जवाब नहीं देता, मुड़ कर वापस जाने लगता है) राजकुमार जी... (वीर कमिश्नर के तरफ मुड़ता है) एक राय है... आप बुरा ना मानें तो... पिछले रास्ते से चले जाइए... वर्ना बाहर मीडिया वाले आपको घेर लेंगे....

वीर अपना सिर सहमति से हिलाते हुए एक पुलिस वाले के साथ पिछले रास्ते हो कर हेड क्वार्टर से बाहर आता है, हेड क्वार्टर के बाहर आते ही मायूसी के साथ गहरी सोच में डूब जाता है l खुद पर गुस्सा आ रहा था उसे l आज अगर वह आदमी हाथ में आ जाता तो इस खेल के पीछे कौन है उसे मालुम हो जाता l पर वह अपने आप को दिलासा देता है कि उसे किसी ना किसी तरह से छुड़वाएगा और अपने कब्जे में लेकर पर्दे के पीछे खेलने वाले खिलाड़ी के बारे में पता लगाएगा l वीर ऐसे ही सोच में खोया हुआ था कि उसका मोबाइल बज उठता है l वीर मोबाइल निकाल कर देखता है प्राइवेट नंबर लिखा आ रहा था l वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाते हैं l वीर फोन उठाता है पर कुछ नहीं कहता

@ - क्या बात है वीर... कोई हैलो नहीं दुआ सलाम नहीं... मुझसे नाराज हो...
वीर - (चुप रहता है)
@ - हाँ बुरा तो लग रहा होगा... आखिर कुत्ते की मुहँ से हड्डी जो छिन ली मैंने...
वीर - (जिल्लत से अपनी आँखे मूँद लेता है और जबड़े भींच लेता है, दांत पिसते हुए) तुम्हारा किस्मत... कब तक साथ देगी
@ - अरे मेरी किस्मत मेरी आखिरी साँस तक देगी... पर तुम्हारी किस्मत... ना ना ना... वह कहावत भी झूठा हो जाएगा... हर कुत्ते का दिन आता है...
वीर - तु फोन पर ही बड़ी बड़ी फेंक सकता है.... कभी सामने तो मिल... मर्द होने की गलत फहमी दुर ना हो जाए... तो कहना....
@ - मिलेंगे वीर... मिलेंगे... पर तब... जब तु आखिरी साँसे गिन रहा होगा...
वीर - फिर भी वादा रहा... तुझे मारे वगैर इस दुनिया से जाऊँगा नहीं...
@ - ना ना वीर ना... तु कुछ नहीं कर पाएगा... बस ऐसे ही छटपटता रहेगा.... तु अनु की सोच... बहुत कम दिन बचे हैं बेचारी के...
वीर - खबरदार... वह निर्दोष है... मासूम है...
@ - नहीं है... उसकी सबसे बड़ी गुनाह यह है कि... उसने तुझ जैसे गलीज से मुहब्बत की है...
वीर - (चिल्लाते हुए) तु मुझे क्यूँ नहीं मार देता... (टूटते हुए) उस बेचारी ने तेरा क्या बिगाड़ा है...
@ - क्या बात है वीर... गिड़गिड़ा रहा है...
वीर - अबे चुप...
@ - हाँ... यह हुई ना बात... तुझे क्यूँ लग रहा है... उसकी मौत उसके लिए सजा होगी... उसकी मौत तो उसके लिए मुक्ति होगी... तुझ जैसे गलीज से...
वीर - बस बहुत हुआ... तुने मेरी सब्र का इम्तिहान ले लिया है... अब तु सुन... मुझे तेरे बारे में जानने की देरी होगी... कसम है मुझे मेरी अनु की... तुझे ऐसे खौफनाक मौत दूँगा के तु तो क्या तेरे फरिश्ते भी नहीं सोचे होंगे....

वीर फोन काट देता है और चलने लगता है आज की बात याद करते हुए खुद पर खीजने लगता है ऐसे ही कुछ देर तक
अपना मन मसोसने के बाद वह अपना फोन निकाल कर विक्रम को फोन लगाता है l फोन के उठते ही


विक्रम - हैलो वीर...
वीर - (टुटे और भर्राई आवाज में) भैया...
विक्रम - क्या बात है वीर... बहुत परेशान लग रहे हो...
वीर - हाँ भैया... थोड़ा अकेला महसूस कर रहा हूँ...
विक्रम - क्या हुआ...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम्हें मिस कर रहा हूँ...
विक्रम - बस यार दो तीन दिन और... हम आ जाएंगे....
वीर - ठीक है भैया... मुझे इंतजार रहेगा...
विक्रम - अरे मेरा भाई शेर है... अकेला सब सम्भाल सकता है... फिक्र मत कर... मैं बहुत जल्द तेरे सामने होउँगा....

वीर फोन काट देता है l उसे महसुस होता है कि उसके आँखों के कोने भीगने लगे हैं l वह अपना हाथ उठा कर पोछता है, फिर मोबाइल से प्रताप को कॉल करता है l जैसे ही कॉल लिफ्ट होता है

वीर - हैलो...
विश्व - हैलो वीर.. सरप्राइज... कैसे हो यार...
वीर - अच्छा हूँ... और तुम...
विश्व - मैं भी ठीक हुँ... कहो कैसे याद किया...
वीर - यार... जिंदगी के कुछ पल ऐसे भी होते हैं... जब दोस्त की जरूरत बड़ी सिद्दत से महसुस होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... लगता है... किसी बड़ी उलझन में हो...
वीर - हाँ... हाँ यार... मुझे तुम्हारी एडवाइज की सख्त जरूरत है....
विश्व - हाँ बोलो क्या जानना चाहते हो...
वीर - नहीं यार... ऐसे नहीं... फीजिकली मिलते हैं... आमने सामने...
विश्व - ठीक है... हम परसों मिलते हैं...
वीर - ठीक है... मैं दो दिन किसी तरह से सम्भाल लूँगा... प्लीज यार... जल्दी आना...



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विक्रम अपने कमरे से निकल कर पिनाक के कमरे में आता है l देखता है पिनाक कमरे में बनी बार काउंटर पर बैठ कर फोन को कान पर लगाए बैठा है l विक्रम उसके पास आता है, पिनाक उसे देखता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l कुछ देर बाद अपनी जेब में रख देता है l

पिनाक - क्या बात है युवराज...
विक्रम - हम यहाँ अभी तक क्यूँ हैं... मुझे लगता है... हम बेकार में ही यहाँ रुके हुए हैं...
पिनाक - राजा साहब का कोई काम... बेकार नहीं होता....
विक्रम - राजा साहब के रुतबे के हिसाब से... हम तीनों यहाँ अपने लीगल पर्सनल्स को लेकर... एग्रीमेंट कर सकते थे... बेवजह हम अपनी एजेंसी के सीनियर ऑफिसियल्स को लेकर आए... ना कहीं उन्होंने डेमो दिया... ना ही कोई प्रेजेंटेशन...
पिनाक - तो... तुम कहना क्या चाहते हो...
विक्रम - (कुछ देर तक पिनाक को घूर कर देखता है फिर) मुझे लगता है.... बात कुछ और है...
पिनाक - अच्छा... तो बताओ तुम्हें क्या लगता है...
विक्रम - बात.... बात शायद... वीर से ताल्लुक रखती है...
पिनाक - वीर नहीं... राजकुमार... राजकुमार कहो... और यह क्या... तुम हम कहने के बजाय... बकरी की तरह मैं मैं क्यूँ कर रहे हो...
विक्रम - आप बात को घूमा रहे हैं...


पिनाक अपनी जबड़े भींच कर विक्रम की ओर देखता है, फिर शराब की ग्लास को उठा कर पी लेता है और दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l

पिनाक - तुम सवाल सीधा करो... जवाब तुम्हें सीधा मिलेगा...
विक्रम - (एक गहरी साँस लेता है और पिनाक की आँखों में झांकते हुए) कुछ ऐसा होने वाला है... जिससे वीर और उसकी जिंदगी प्रभावित होने वाली है... वीर अकेला है... उसने कभी भी... सिक्युरिटी ऑपरेशन और मूवमेंट को डील नहीं किया है... खुदा ना खास्ता कुछ ऐसा हो... जिसके लिए उसे सिक्युरिटी सिस्टम से मदत लेनी हो... तो वह ले नहीं सकता... ऐसा अपाहिज कर दिया गया है उसे... है ना...
पिनाक - (एक कड़वी हँसी हँसते हुए, शराब की एक घूंट अपनी हलक में उतारता है, फिर) हाँ... है...
विक्रम - क्यूँ... छोटे राजा जी क्यूँ...
पिनाक - क्षेत्रपाल के चश्म ओ चराग के ऊपर... एक चुड़ैल का साया है... उसे उतारने के लिए यह सब किया गया है... (विक्रम को कोई प्रतिक्रिया नहीं देते देख पिनाक एक कुटिल मुस्कान मुस्कराता है) मतलब तुम पहले से ही उस चुड़ैल के बारे में अच्छी तरह से जानते हो...
विक्रम - वह लड़की बहुत अच्छी है... शायद शुभ्रा जी से भी ज्यादा...
पिनाक - तो तुम क्यूँ नहीं उस चुड़ैल से नाता जोड़ लेते...
विक्रम - (बिदक कर) आप होश में तो हैं...
पिनाक - (हाथ में ग्लास उठा कर) इतने से पैमाने में तो बस तबीयत ही झूम सकती है... होश फाख्ता हो जाए... कहाँ मैखाने में इतना मैसर है...
विक्रम - अगर बात यही थी... तो सीधे सीधे अनु को रास्ते से हटा सकते थे...
पिनाक - हाँ... वही तो कर रहे हैं... पर सीधे सीधे नहीं... खुद को टेढ़ा कर रहे हैं... पहले तुम... मुहब्बत कर बैठे... पर औकात और हैसियत देख कर... बीरजा किंकर सामंतराय की बेटी... xxx पार्टी की अध्यक्ष की बेटी... इसलिए तुम्हारा सौ खुन माफी हो गया... पर राजकुमार... एक छोटी जात की ओछी लड़की को... क्षेत्रपाल घराने के माथे पर सजाने की बेवकूफ़ी कर रहा है... इसलिये... राजकुमार को उसकी बेवकूफ़ी आजादी और क्षेत्रपाल के माथे से बदनामी से निजात के लिए... उस बदजात लड़की को गायब होना होगा...
विक्रम - इसका मतलब आपने किसीको काम सौंप रखा है...
पिनाक - हाँ कोई शक़...
विक्रम - आपको पहले... वीर से बात करनी चाहिए...
पिनाक - बात... हा हा हा हा... बात... (सीरियस हो जाता है) बात तो हो सकती थी... अगर वीर को मुहब्बत ना हो गया होता.... (अपनी जगह से उठ खड़े होकर) वीर बचपन से ही बहुत जिद्दी है... कभी किसीका सुना ही नहीं... हमेशा अपनी मन की किया है... इसलिए उसके जानकारी के वगैर... वह लड़की गायब हो जाएगी... हमेशा के लिए...
विक्रम - वीर आपका बेटा है छोटे राजा जी...
पिनाक - (थोड़े दर्द भरे लहजे में) बेटा है... तभी तो... हम उसे अपने तरीके से बचाना चाहते हैं...
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - हम राजा साहब को नाराज नहीं कर सकते हैं... हमें राजा साहब ने इशारे से बता चुके हैं... के लोग क्षेत्रपाल के चराग पर गप्पे लड़ा रहे हैं... छिटाकसी कर रहे हैं...
विक्रम - तो आपने राजा साहब को समझाने की कोशिश क्यूँ नहीं की... अनु अगर बहु बन जाती है... तो हमें आगे चलकर पालिटिकल माइलेज मिल सकता है...
पिनाक - युवराज... बेशक तुम उनके औलाद हो.... पर उन्हें ठीक से जानते नहीं हो.... बात इज्ज़त और अहंकार पर आ जाए... तो ना तुम.. ना हम और ना ही बड़े राजा... वह किसीको भी माफ नहीं करेंगे....
विक्रम - यह सारी बातें ज़ज्बातें... गैरों के लिए या बाहर वालों के लिए होनी चाहिए... अपनों के लिए भी...
पिनाक - युवराज... तुम बचपन से बाहर रहे...
विक्रम - हाँ... पर जब मैंने शुभ्रा के साथ भुवनेश्वर में रहने की बात की... राजा साहब ने कोई विरोध नहीं किया...
पिनाक - वह इसलिए... कि राजा साहब को क्षेत्रपाल महल में... उस लड़की की मौजूदगी हरगिज बर्दास्त नहीं थी... वैसे भी... हमारा राजनीतिक भविष्य और प्रभाव के लिए तुम्हारा भुवनेश्वर में होना आवश्यक था... इसलिए तुम्हें मंजूरी मिल गई...
विक्रम - क्या अनु से वीर की शादी से... राजनीतिक भविष्य और प्रभाव... कम हो जाएगा...
पिनाक - (छटपटाते हुए) ओ ह... अब कैसे तुम्हें समझाउँ... तुम जानते भी हो... जब तुम राजगड़ में नहीं थे... तब राजगड़ में क्या क्या हुआ...
विक्रम - (चुप हो कर कुछ देर के लिए पिनाक को घूरने लगा, फिर) हाँ...
पिनाक - (हैरानी से आँखे फैल जाते हैं) क्या... क्या जानते हो...
विक्रम - कुछ सालों से रंग महल की रस्में बंद थी... क्यूँकी वहाँ से एक लड़की भाग गई थी... वैदेही... यही नाम है ना... जब वह मिली... उसके बाद रंग महल की रस्म फिर से शुरू हुआ... रंग महल में हमेशा... क्षेत्रपाल घराने... और क्षेत्रपाल गुरुर के दुश्मनों का श्मशान बना रहा... यहां तक कि... क्षेत्रपाल परिवार की मूँछ... रुप फाउंडेशन केस में नीची होते होते रह गई... फिर भी... दिलीप कर की बेटी रंग महल की रस्म की भेंट चढ़ गई... रुप फाउंडेशन की बेदी में बलि चढ़ने वाला कोई और नहीं... वैदेही की भाई विश्व प्रताप महापात्र है... यही ना...
पिनाक - वाह वाह वाह... बहुत खूब... कितना कुछ जानते हो... फिर भी बहुत कम जानते हो... राजा क्षेत्रपाल की औलाद हो... पर उनके बारे में कम ही जानते हो.... (पिनाक अब काउंटर पर जा कर बोतल से शराब एक ग्लास में डाल कर पीता है फिर विक्रम की ओर देख कर) राजा क्षेत्रपाल की इच्छा, अहंकार, और मूँछ की ताव के आगे... कोई भी रिश्ता... कोई मायने नहीं रखता.... (विक्रम की ओर पीठ कर) युवराज... तुम्हें क्या लगता है... रानी जी की मौत कैसे हुई थी....
विक्रम - ( पिनाक की ओर ऐसे देखता है जैसे उसके उपर बिजली गिरी हो, उसकी जुबान लड़खड़ाने लगती है) मेरी.. म माँ की मौत.... क्या म मतलब है आपका...
पिनाक - वैदेही को रंग महल लाने के तीन दिन बाद... जब राजा साहब महल लौटे... रानी जी उनसे बहुत झगड़ा किया... बदले में... राजा साहब ने... रानी जी को सभी नौकरों के आगे थप्पड़ मार कर बहुत जलील किया... वैदेही की हालत खराब हो गई थी... उसे हस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया गया... उस रात जब राजा साहब लौटे... तो बहुत नशे में थे... हमने राजा साहब को उनके कमरे में पहुँचाया था... पर ज्यादा दुर नहीं जा सके... बाहर लॉबी में कुर्सी पर बैठ गए... तब राजा सहाब और रानी जी के बीच बातेँ हुईं ऊँची आवाज में... हम... खुद को संभालते हुए... दरवाजे तक पहुँचा... रानी जी खुद को छूने नहीं दे रही थीं... राजा साहब गुस्से में आकर रानी जी की पल्लू को ही... उनके गले में बांधकर... पंखे पर लटका दिया.... सबको लगा... रंग महल कांड से रानी जी आत्महत्या कर ली... हत्या करते वक़्त राजा साहब ने हमें देख लिया था... पर उन्हें किसी बात की कोई फिक्र नहीं थी... उनके आँखों में एक ग़ज़ब की भयानक चमक देखे थे... तब से लेकर आज तक.... हम कभी भी... उनके आँखों में झांकने की हिम्मत नहीं कर पाए... वह जैसा कहते गए... हम खुद को वैसे ही ढालते रहे.... उस हत्या का कोई और गवाह था ही नहीं... पर जो बात... राजा साहब तक नहीं जानते वह यह कि... उस हत्या कांड का... एक और गावह है... और वह कोई और नहीं... रुप थी... राजा जी... रानी जी की हत्या के बाद... कमरे से निकल गए... पर हम वहाँ स्तब्ध खड़े थे... तब हमने देखा... डरी सहमी कबोर्ड के अंदर रुप खड़ी थी... (पिनाक एक और ग्लास उठा कर पी लेता है) तुम राजा साहब को नहीं जानते... वह अपनी मूँछ के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं...

पिनाक मूड कर देखता है, विक्रम स्तब्ध सा कुर्सी पर बैठा हुआ है l पिनाक ने राज खोल कर जो बिजली गिराई थी उससे विक्रम खुद को सम्भाल नहीं पा रहा था l पिनाक एक पेग बना कर विक्रम को देते हुए

पिनाक - यह पी लो.... यह तुम्हें झटके से उबार लेगा...

विक्रम झटके से पिनाक की हाथों से ग्लास ले कर शराब की घूंट गटक जाता है l फिर विक्रम हांफने लगता है l

पिनाक - अगर तुम्हें लगता है... की हम सब वीर की मदत रोकने आए हैं... तो यह सच है... पर राजा साहब अपने किसी और काम से भी आए हैं... (विक्रम नजर उठा कर पिनाक को देखता है) राजा साहब जिसको अपने जुते के बराबर रखे हुए थे... अगर वह अपनी औकात से उपर उठने की कोशिश कर रहा है... उसके पीछे की बैसाखी के बारे में पता करने यहाँ आए हैं...
विक्रम - मतलब....
पिनाक - विश्वा... वैदेही का भाई विश्व... राजा साहब... उसके मेंटर डैनी को ढूँढ कर मिलने आए हैं....
विक्रम - डैनी से.... वह एक माफिया... उससे राजा साहब को क्या मतलब है....
पिनाक - ओह ओ... तो तुम्हें डैनी के बारे में भी जानकारी है... खैर उन्हें क्या काम है... यह तो वही जाने.... पर तुम्हें मेरी इतनी सलाह है... तुम जिस काम के लिये आए हो... तुम सिर्फ उसी पर ध्यान दो... हम अपनी काम में ध्यान देंगे... राजा साहब... डैनी को ढूंढने आए हैं... उसे मिलने... परखने आए हैं... फिर वह क्या करेंगे... वही जानें
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

Sidd19

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