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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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:budhabudhi::hinthint::dj::respekt::tease3::hukka::drunk::vhappy1:

डबल सेंचुरी की हार्दिक शुभकामनाएँ
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
आपका साथ है इसलिए यह मंजिल हासिल है
बस साथ बने रहें मंजिल मुकम्मल हो जाएगा
 

Kala Nag

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👉सतहत्तरवां अपडेट
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सुबह सुबह जॉगिंग कर तापस अंदर आता है, देखता है ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर प्रतिभा पेपर पढ़ रही है l बगल में विश्व चाय का कप लेकर खड़ा हुआ है l पर प्रतिभा चाय लेने के वजाए चुपचाप पेपर पढ़ रही है और दोनों ही ख़ामोश हैं l

तापस - (विश्व से इशारे से पूछता है) क्या हुआ...
विश्व - (इशारे से) माँ मुझसे गुस्सा हैं...
तापस - (इशारे में) क्यूँ...
विश्व - (इशारे में चाय की कप दिखा कर) मैंने बनाया है... इसलिए माँ गुस्सा है...
तापस - अरे वाह... सुबह सुबह जॉगिंग के बाद... चाय मिल जाए... तो सोने पे सुहागा... ला.... चाय इधर ला... (विश्व के हाथ से चाय ले कर एक सीप लेता है) आह् आहा... आह् हा... क्या बात है... क्या मस्त चाय बनी है... भाग्यवान.... आज तो तुमने कमाल कर दिया... क्या बढ़िया चाय बनाई है...
प्रतिभा - (पेपर को पटकते हुए) ओह... इसका मतलब... आज तक क्या चाय के नाम पर घास चर रहे थे...
तापस - कमाल करती हो... मैंने तुम्हारे चाय की तारीफ की... और तुम हो कि भड़क रही हो...
प्रतिभा - (मुहं फूला कर) यह मैंने नहीं बनाया है... (विश्व की ओर दिखाते हुए) इस कम्बख्त ने बनाया है...
तापस - (हैरान होते हुए) क्या... फिर भी इतना बढ़िया बनी है... मैं तो कहता हूँ... तुम भी ट्राय करो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पी लीजिए... पेट भरने तक पीते जाइए...
तापस - अरे सच में चाय अच्छी बनी है... और तुम्हें गुस्सा किस बात पर है...
प्रतिभा - सुबह उठने में थोड़ी देर हो गई... इसके बेड रुम में पहुँची... तो लाट साहब गायब... ढूंढने से मुझे छत पर कसरत करते दिखा... मैं इसलिए स्नान कर नाश्ता बनाने की सोच रही थी... की यह किचन में घुस कर... नास्ता भी बना दिया... मैं पूछती हूँ... मैं इसे खिलाउँ... या यह मुझे खिलाएगा...
विश्व - (अपने घुटने पर बैठ कर) माँ... तुम हो ना... बहुत ही प्यारी माँ हो... कल रात भर सोई नहीं... हर दुसरे घंटे मेरे कमरे में आती रही... मुझे देखती रही... अब इतना प्यार करने वाली माँ को... खुद कुछ बना कर खिलाने में जो खुशी है... उसे छोड़ना नहीं चाहता था... अब क्या माँ की सेवा के लिए भी मुझे... मेरी माँ सजा देगी...
प्रतिभा - (पिघल जाती है) मेरा बच्चा... (गले लगा कर) (तापस से) देखा... कितना प्यार करता है...
तापस - हाँ भाई... अब माँ बेटे के बीच... मेरा क्या काम...
प्रतिभा - हो गया आपका... अब यह टौंट मारना बंद कीजिए...
तापस - मैं टौंट मारूंगा.. वह भी तुम्हें... मैं...
प्रतिभा - जानती हूँ... जानती हूँ... आप कितना खयाल रखते हैं मेरा...
तापस - लो... अब टौंट कौन मारा... जानती हो भाग्यवान... तुम्हें रोज कोर्ट तक अप एंड डाउन करने के लिए... कल ही आपके लाट साहब को ड्राइविंग स्कुल में गाड़ी चलाना सीखने के लिए कहा....
प्रतिभा - क्यूँ... मैं क्या गाड़ी नहीं सीखा सकती इसे...
तापस - अरे भाग्यवान... तुम इसे सिर्फ़ जुबान चलाना सिखाओ... बाकी चीज़ें उसे किसी और से सीखने के लिए छोड़ दो...
प्रतिभा - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या.. मैं उसे जुबान चलाना सीखाती हूँ...
तापस - फिर गलत... कोर्ट में... आर्गुमेंट को... शुद्ध हिंदी में... जुबान लड़ाना कहते हैं.... क्यूँ बेटा...

दोनों देखते हैं विश्व वहाँ से गायब हो चुका है l

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अनु सिटी बस से उतर कर ESS ऑफिस के अंदर जाती है l अनु को महसुस होती है कुछ तिरछी और तीखी नजरें उसे घूर रही हैं I एक पल के लिए वह ठिठक जाती है l उसे वह नजरें चुभती हुई महसुस होती हैं l वह पल भर के लिए अपनी आँखे बंद कर लेती है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए अंदर जाती है l अपने टेबल पर अपनी हैंड बैग रख देती है और चेयर पर बैठ जाती है l वहाँ पर भी उसे वही सब कुछ महसुस होने लगती है जो ऑफिस के अंदर आते वक़्त उसे महसुस हुई थी l वह जब किसी को देखती है तो सबको किसी ना किसी काम में व्यस्त पाती है l वह अपनी कुर्सी से उठ कर हैंड बैग से वीर की कैबिन की चाबी निकाल कर कैबिन की ओर जाती है l वीर का कैबिन का लॉक खुला हुआ था l मतलब आज वीर जल्दी आ गया है l अनु फौरन अपनी घड़ी देखती है वह ठीक टाइम पर पहुँची है तो वीर इतनी जल्दी कैसे और क्यूँ l यह सोचते हुए वह दरवाजे पर दस्तक देती है l अंदर से वीर की आवाज आती है

वीर - आओ अनु...
अनु दरवाजे को खोल कर अंदर झाँकती है l वीर अपनी कैबिन के अंदर झूम रहा है किसी धुन पर l अनु उसे यूँ झूमते हुए देख कर हैरान हो जाती है l जैसे ही वीर अनु को देखता है वैसे ही झूमते हुए अनु के करीब आता है और उसे कमरे के अंदर खिंच लेता है l अनु हड़बड़ा जाती है पर वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही वीर उसे अपने साथ लिए झूमने लगता है l अनु के कदम वीर के साथ ताल नहीं मिला पाती इसलिए वह घुटनों के बल गिर जाती है l

अनु - आह...
वीर - सॉरी.. सॉरी.. अनु.. सॉरी..
अनु - (उठ कर संभल कर) राजकुमार जी... यह आप ऐसे क्यूँ नाच रहे थे...
वीर - ओ... अनु.. अनु... क्या कहूँ... कल खुशियाँ ही इतनी मिल गई... के उसका सुरूर उतर ही नहीं रहा है...
अनु - ओ अच्छा... आप इतनी जल्दी... ऑफिस इसलिये आ गए...
वीर - (अपने मस्ती में अनु के दोनों बाहों को पकड़ कर) सच कहूँ तो रात जल्दी नींद ही नहीं आई... पता नहीं कब सो गया... (फिर झूमते हुए) पर सुबह जल्दी नींद खुल गई... और आज पहली बार... अपनी भाभी और बहन के साथ... डायनिंग टेबल पर टिफिन कर आया हूँ... (फिर अनु के पास रुक जाता है) सच अनु... बहुत अच्छा लग रहा है...
अनु - (मुस्कराते हुए) तो कल का दिन... आपके लिए बहुत खास बन गया...
वीर - हाँ अनु हाँ... और तुम नहीं जानती... तुम्हें बताने के लिए मैं कितना बेताब हूँ...
अनु - (हल्की सी शर्माहट के साथ) मुझे.. क्यूँ...
वीर - क्या बात कर रही हो... एक ही तो दोस्त हो मेरी... तुमसे अपनी बात ना कहूँ तो किससे कहूँ...
अनु - शुक्रिया राजकुमार जी...
वीर - किसलिए...
अनु - मुझे अपना दोस्त मानने और बनाए रखने के लिए...
वीर - क्या बात कर रही हो अनु... क्या तुम्हें मेरी दोस्ती पर शक है...
अनु - नहीं... कभी नहीं...
वीर - तो फिर... एक बात याद रखना... हमारे बीच कभी थैंक्यू या सॉरी... नहीं आनी चाहिए... ठीक है...
अनु - ठीक है...
वीर - ह्म्म्म्म... आओ अब बैठो...

वीर अनु को खिंच कर सोफ़े पर बिठा देता है और खुद अनु के सामने नीचे फ़र्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है l

अनु - अरे यह... यह आप नीचे क्यूँ बैठ गए... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...
वीर - अनु... इतने दिनों से... कभी देखा है किसीको मेरे होते हुए... मेरे कैबिन में आते... (अनु सिर हिला कर ना कहती है) सिवाय तुम्हारे...

अनु अपनी काली काली आँखे उपर उठा कर वीर के आँखों में देखती है फिर अपनी नजरें झुका लेती है l

वीर - पूछोगी नहीं... कल घर में क्या हुआ...
अनु - (वीर की आँखों में दुबारा देखती है) क्या हुआ...

फ्लैशबैक

आपने गाल पर हाथ फेरते हुए रुप वीर को देखने लगती है l

शुभ्रा - यह... यह क्या किया आपने... राजकुमार...
वीर - नहीं भाभी... राजकुमार नहीं... वीर...

शुभ्रा और रुप दोनों का मुहँ खुला रह जाता है l वह दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं l वीर चुटकी बजाता है l दोनों वीर की ओर देखते हैं

वीर - (रुप से) उस कमीने ने इतना बड़ा कांड किया है... मतलब इससे पहले भी कुछ हुआ है...(चिल्ला कर) बताया क्यूँ नहीं मुझे... और क्या पुछा... थप्पड़ कौन मार रहा है... तो सुन... अभी तुझे तेरे भाई ने लाफा मारा है... समझी... यह ले... (उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट रख कर) केक... चल काट... और हाँ... बड़ा सा टुकड़ा मुझे ही देना... नाश्ते के बाद... अब तक भूखा हूँ...

रुप और शुभ्रा जैसे शॉक में थे l वीर को घूरे जा रहे थे l अचानक यह बर्ताव और ऐसी भाषा l

वीर - हे..इ ...चल केक काट...(रुप के हाथ में प्लास्टिक का छुरी पकड़ा देता है)

रुप - (छुरी को अपने बाएं हाथ पर चुभोती है) आह...
वीर - कोई सपना नहीं देख रही है... अब काटती है या नहीं...
रुप - हँ.. हाँ.. ह्म्म्म्म...

रुप केक काटने लगती है वीर ताली बजाते हुए गाता है
"हैप्पी बर्थ डे टू यू"
रुप केक से एक टुकड़ा काट कर निकालती पर वह असमंजस में पड़ जाती है किसे खिलाए l वीर उसकी मनोस्थिति समझ जाता है l रुप की हाथ से केक का टुकड़ा ले कर

वीर - अपना मुहँ खोल...

रुप एक रोबॉट की तरह मुहँ खोल देती है l वीर उसके मुहँ में केक ठूँस देता है और झट से केक से बड़ा टुकड़ा तोड़ कर रुप के चेहरे पर पोत देता है l फ़िर अपने उँगलियों को चाट कर

वीर - हूँम्म्म्... क्या टेस्ट है... वाह.. मजा आ गया...

रुप अब शॉक से निकलती है और गुस्से से चिल्लाती है

रुप - आ.. आ.. आ.. ह...

वीर वहाँ से सोफ़े के पीछे की ओर भाग जाता है l रुप उसके पीछे केक लेकर भागती है l फिर वीर कुछ देर के लिए ड्रॉइंग रुम में इधर उधर भागने लगता है l रुप भी उसके पीछे पीछे भागने लगती है l फिर वीर टेबल से वह बचा हुआ पुरा केक उठा कर अपने कमरे की ओर भाग जाता है l रुप भी पीछे पीछे पहुँचती है पर तब तक वीर अपने कमरे में घुस कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर देता है l

रुप - (कमरे के बाहर) आ..आ.. आह...(चिल्ला कर) मैं कहती हूँ खोलो दरवाज़ा...
वीर - क्यूँ... क्यूँ खोलुं दरवाजा...
रुप - मेरे हाथ में अभी भी केक का टुकड़ा है...
वीर - ठीक है... जहां तेरे चेहरे पर नहीं लगा है... लगा ले...
रुप - आ... ह... आ... ह... मैं... मैं नहीं छोड़ूंगी...
वीर - ऐ चल हट... पकड़ तो नहीं सकी.. छोड़ने की बात कर रही है...
रुप - (गुस्से में अपनी दांत चबाते हुए) घर पर भूखे आए थे ना... इसलिए बाहर निकलो... मैं अपने हाथों से खाना बना कर खिलाउँगी...
वीर - ना बहना ना... रुलाएगी क्या... बचे हुए केक... अपने साथ ले आया हूँ... जा अपना थोबड़ा साफ कर... वरना सारे नौकर चाकर... डर के मारे... रात भर सो नहीं पाएंगे...
रुप - आ...ह... ठीक है... जब बाहर निकलोगे... तब बहुत पछताओगे...
वीर - (झट से दरवाजा खोलता है) (भारी और कड़क आवाज में) क्या.. क्या कहा...

रुप जो अब तक गुर्रा रही थी वीर का यह रुप देख कर मीमीयाने लगती है l

रुप - क.. कुछ नहीं...
वीर - यह तेरे हाथ में... केक क्यूँ है...
रुप - वह.. वह... मैं..
वीर - ला वह केक...

रुप डर के मारे वह केक का टुकड़ा वीर को दे देती है, वीर वह लेकर जो जगह रुप के चेहरे पर बच गया था वहाँ पर लगा देता है और झट से अपने कमरे में घुस कर दरवाजा फिरसे बंद कर लेता है l अब रुप को समझ में आता है कि उसे वीर ने बेवक़ूफ़ बना दिया l

रुप - आ... ह... आज तुमने मेरा पुरा दिन खराब कर दिया... और तो और तुमने मुझे अब बेवक़ूफ़ भी बनाया... अब तो सच में नहीं छोड़ुंगी... (अंदर से कोई आवाज नहीं आती) (अपने दोनों से दरवाजे पर बारी बारी से मारने लगती है) भा..आ.ई तुमने सुना... मैं तुम्हें नहीं छोड़ुंगी... (तभी दरवाजे के पास जोर से डकार की आवाज सुनाई देता है)
वीर - वाह सच में बहना... क्या टेस्टी केक था.. (फिर से डकार की आवाज सुनाई देती है)

रुप फिर से चिल्लाते हुए अपना पैर पटक कर वहाँ से चल देती है और शुभ्रा के पास पहुँचती है I जब से वीर आया था तब से उसकी हरकतों को देख कर तब से शुभ्रा का मुहँ शॉक से खुला रह गया है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हँ...
रुप - भा...भी
शुभ्रा - हँ... हाँ.. ओ.. हाँ.. अभी अभी कुछ हुआ है... क.. क्या हुआ है...
रुप - भाभी... आपको क्या हो गया है...
शुभ्रा - व.. वह... नंदिनी... यह हैल ही है ना... इस हैल में... हेवन वाली हरकतें... मैं... जाग रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... मैं कबसे नींद में हूँ... मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
रुप - ओ हो भाभी... होश में आओ... जो भी हुआ वह सब सच था... सब वीर भैया ने ही किया...
शुभ्रा - क्या... रा... राजकुमार जी ने किया...

राजकुमार नहीं भाभी.... वीर... वीर ने किया है यह सब... (वीर वहाँ पहुँच कर कहता है) हाँ भाभी... आप कोई नींद में नहीं हैं... ना ही कोई सपना देख रही हैं... मैं नकली पहचान के नीचे छुपे असली रिश्ते को पहचान गया हूँ... वह नकली पहचान... दुनिया वालों के लिये है... घरवालों के लिए नहीं... (रुप को दिखा कर) यह मेरी बहन है... और आप मेरी भाभी... और आज से... मैं वह नकली और झूठे पहचान को और ढ़ो नहीं सकता... जिनसे रिश्तों में सिर्फ दूरियों के सिवा कुछ ना दिया... (फिर रुप को अपने तरफ घुमा कर) मुझे माफ करदे मेरी बहना... बीस सालों से ज़मी धुल साफ हो चुका है... और तु भी... मेरे लिए कोई ज़ज्बात... छुपाना मत... गुस्सा आए... ढेर सारा गुस्सा करना... जब लड़ने को मन होए... जम कर लड़ना... आख़िर इन बीस सालों में... यही तो मुझ से खो गया था... आज मिल गया है...
रुप - भैया... (कह कर फफक पड़ती है, और वीर के गले लग जाती है)
वीर - देखा भाभी... आज दिन भर रोया हूँ... देखो यह फिरसे मुझे अभी रुला रही है... रुलाने तक तो ठीक है... केक से पोती हुई अपनी शकल को... मेरे कपड़े से पोंछ रही है...

रुप झट से अलग हो जाती है और वीर पर घुसे बरसाने लगती है l वीर भी बेशरमो की तरफ अपनी पीठ दिखा कर

वीर - हाँ.. यहाँ.. यह यहाँ.. ले अब यहाँ...
रुप - आँ ह्.. हा.. हाँ... देखो ना भाभी... भाई क्या कर रहे हैं...

शुभ्रा पहले जज्बाती हो गई थी पर फिर जोर जोर से हँसने लग जाती है l

शुभ्रा - ओ ह.. वीर... तुममे इतना शरारत भरा हुआ है...
वीर - पता नहीं भाभी... सच कहूँ तो... मैं आज ही खुद को खोज पाया हूँ...
वीर - (प्यार और आदर के साथ वीर को देखती है) वीर... कभी सोचा नहीं था... इस घर में किसी के बर्थ डे पर केक कटेगा... एक छोटी बहन... अपने भाई के पीछे मारने के लिए भागेगी... शायद इस घर का कोना कोना... यही देखने के लिए तरस रही थी...
वीर - भाभी आज से इस घर में यही सब होगा... बार बार दोहराया भी जाएगा... वैसे भाभी... आप भुल रही हो...
शुभ्रा - क्या...
वीर - आज दिन भर भूखा हूँ...
रुप - अभी अभी तो केक ठूँसा है तुमने...
वीर - आधे से ज्यादा तुझे मेकअप करने में बरबाद हो गया ना...
रुप - आ...ह...
शुभ्रा - बस बस कोई झगड़ा नहीं... जाओ नंदिनी तुम अपना चेहरा साफ कर लो... और वीर... जाओ तुम भी तैयार हो कर आओ... आज हम मिल कर खाना खाएंगे...

फ्लैशबैक खतम

वीर - क्या बताऊँ अनु... मैं अभी भी.. उस खुशी के सुरूर में हूँ... सुबह भी वैसे ही नोक झोंक... पहली बार... छोटी बहन के जिद और नखरे... कितने अच्छे लग रहे थे... मैं अपने अंदर एक नए वीर को खोज निकाला है... जिसे अब मैं हरगिज़ खोने नहीं दूँगा....

अनु उसकी बात को सिर्फ सुन नहीं थी बल्कि उसे एक टक बिना पलकें झुकाए देखे जा रही थी l

वीर - क्या देख रही हो अनु...
अनु - राजकुमार जी... पहले भी आपको खुश होते मैंने देखा है... पर खुशी से चेहरा दमकना... आज पहली बार देख रही हूँ...

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हस्पताल के स्पेशल कैबिन में रॉकी वॉशरुम से निकल कर ठिठक जाता है l उसके बेड पर रवि लेटा हुआ है और आसपास इसके बाकी दोस्त बैठे हुए हैं l उसके वॉशरुम से निकलते ही सभी उसके तरफ देखते हैं l

राजु - आओ... रॉकी बाबु आओ...
रॉकी - (अपने बेड के पास आकर) हैलो...
रवि - हैलो भैया हैलो... बांह फैलाए... आँखे बंद कर... टाइटैनिक पोज लिए खड़ा था... जब आँख खुली तो... (बिस्तर पर हाथ पटक कर) यही हकीकत थी प्यारे....
रॉकी - ह्म्म्म्म... वैसे तुम लोग यहाँ.. मुझे देखने आये हो... या ताना मारने...
सुशील - इतना हक तो रखते हैं हम... है ना... आखिर तु बड्डी है अपना...
आशीष - हाँ... और नहीं तो... ऐसा कौन माई का लाल मर्द है... जो तुने किया... वैसा कर के दिखा दे....
रवि - हाँ... पर यारा... यह जो किया... वह तुझे... सरे आम नहीं करना चाहिए था...
रॉकी - (झुकी हुई कंधे लेकर अपने बेड के किनारे बैठ जाता है) पता नहीं दोस्तों... मैं शायद वह करता भी नहीं... अगर तुम लोग मेरे साथ होते...
राजु - हमारे साथ होने के बावजूद... तुने नंदिनी को... सिम्फनी हाईट्स बुलाया था...
रॉकी - (अपना सिर झुकाए) सॉरी दोस्तों... मैंने ही तुम लोगों का साथ छोड़ा...
रवि - खैर... अब सच बता... यह नाटक क्यूँ किया... पहले दिलरुबा... फिर बहन...
रॉकी - मैं... मैं क्या कहूँ... असलियत यह है कि... नंदिनी के लिए... मेरे दिल में कभी कोई फिलिंग थी ही नहीं... जब मुझे यह एहसास हुआ... मैंने गलती की है... उसकी भरपाई मैंने ऐसे करना चाहा... सच्चे दिल से... जानता था... जोखिम है... फिर भी किया... अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा दाव था... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वैसे... अपने इस कमीने दोस्त के पास... कैसे आना हुआ...
राजु - हाँ... है तो बड़ा कमीना... पर कमीने का दोस्त भी कमीने ही तो हो सकते हैं...
आशीष - हाँ... लाइब्रेरी में कहे... तेरी वह तीन बातों में से.. दो बातेँ हो गई...
रॉकी - लाइब्रेरी में... मेरी कौनसी बातेँ...
रवि - अरे... भूल गया... पहली बात जो किसी मर्द ने... कभी ना किया हो... वाकई... तुने जो किया... वह सिर्फ तु ही कर सकता था...
आशीष - तुझे बचाने के लिए... अपने भाई से लड़ गई...
राजु - बस वह वाला नहीं हुआ...
सुशील - कौन सा...
राजु - अबे वही... नंदिनी भागते हुए... सबके सामने इसके गले लगने वाली...
रॉकी - बस करो यार... बहुत शर्मिंदा हूँ... अपने पेरेंट्स के नजरों में भी गिर गया हूँ... मम्मी ठीक कहती थी... मैं... हर बात में... उतावला हो जाता हूँ... जल्दबाज़ी करने लग जाता हूँ... इसका खामियाजा... अब कॉलेज से रेस्ट्रीकेट होने वाला हूँ...

नहीं होने वाले हो... (कहते हुए कैबिन में रुप अंदर दाख़िल होती है) नहीं होने वाले हो...
रॉकी - नंदिनी जी आ.. आप... (बेड से उतर कर खड़ा हो जाता है)

रॉकी के बाकी दोस्त भी नीचे उतर कर खड़े हो जाते हैं l

रॉकी - आई एम सॉरी... नंदिनी जी...
रुप - सच कहूँ तो... वीर भैया से पहले अगर मैं भी पहुँचती... तब भी वही करती... जो वीर भैया ने किया... पर उस वक़्त तुम्हें बचाना मेरी मज़बूरी बन गई... (रॉकी का सिर झुक जाता है)
राजु - नंदिनी जी... रॉकी से गलती हो गई... पर वह लड़का बुरा नहीं है...
रुप - एई... तुम क्यूँ बीच में बोलने लगे...
राजु - (चुप हो जाता है)
रुप - रॉकी... तुम अपने किसी पुरानी खुन्नस के चलते... मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की हो... पर असलियत यही है कि मेरे साथ हमेशा अच्छा ही हुआ... कल के तुम्हारे उस हरक़त के वजह से... मुझे मेरा भाई मिल गया... बस मेरे जन्मदिन पर मिला यह मेरा सबसे बड़ा तोहफा था... इसी खुशी में आज सुबह ही... तुम्हें माफ करने के लिए वीर भैया से कह दिया... इसलिए तुम कॉलेज से रेस्ट्रीकेट नहीं हो रहे हो...
रॉकी - (खुश होते हुए) थ.. थैंक्यू.. नंदिनी जी... थैंक्यू...
रुप - अब चूँकि... मेरी कुछ खुशियों के पीछे तुम वजह रहे हो... इसलिए मैं तुम्हें अपने भाई का दर्जा दे रही हूँ...
रॉकी - (हैरान हो कर रुप को देखता है)
रुप - अब जल्दी से ठीक हो जाओ... और अपनी डिग्री पुरी करो... वैसे भी तुम्हारे टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप के बारे में... कॉलेज में अच्छी ओपीनियन है...
रॉकी - (अपना हाथ जोड़ देता है) (उसके आँखों से कुछ बूंद आँसू गिर जाते हैं) थैंक्.. थैंक्स... नंदिनी जी...
रुप - ओके रॉकी भैया... मैं अब चलती हूँ... अपना खयाल रखना...
रॉकी - जी नंदिनी बहन... (रुप मुड़ कर जाने को होती है) नंदिनी बहन... (नंदिनी रुक कर रॉकी को देखती है) वह क्या... मैं... ब... बना..नी.. जी से बात कर सकता हूँ...
रुप - हाँ क्यूँ नहीं... (चिल्लाती है) बनानी...

कैबिन के बाहर किसी के भाग जाने की आवाज सुनाई देती है l रुप बाहर जा कर देखती है और फिर कैबिन के अंदर आकर

रुप - वह शायद... शर्मा कर भागी है.. या रूठ कर... पता नहीं... (रॉकी का चेहरा उतर जाता है) (बड़ी उम्मीद भरी नजरों से नंदिनी की ओर देखने लगता है) ना... मुझसे कुछ उम्मीद मत करना... अगर वह तुम्हें पसंद है... तो तुम्हें ही उसके दिल की... सारी गलत फहमी दूर करनी होगी... यह तुम्हारा काम है... मुझसे किसी भी प्रकार की उम्मीद मत करना... क्यूंकि सिफारिश का प्यार सच्चा नहीं होता...

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एक गाड़ी भुवनेश्वर से कटक रास्ते में जा रही है l वह गाड़ी एक सत्ताइस मंज़िल वाली एक आधे तैयार इमारत के नीचे रुकती है l गाड़ी से पहले प्रतिभा उतरती है और दुसरी तरफ से विश्व l

विश्व - माँ... यह हम कहाँ आए हैं...
प्रतिभा - हूँह्... (अपना मुहँ फ़ेर लेती है)
विश्व - ओह ओ माँ... सुबह से मुहँ फूला कर बैठी हो... तुमने कहा तैयार हो जाओ... मैं तैयार हो गया... तुमने कहा गाड़ी में बैठो... मैं बैठ गया... पर अब आए कहाँ हैं...
प्रतिभा - मुझे छोड़ कर... घर से बाहर क्यूँ चला गया था...
विश्व - तो क्या करता... डैड और तुम... दोनों ऐसे लड़ रहे थे... जैसे मैं वहाँ था ही नहीं... तो सोचा... थोड़े समय के लिए बाहर हो आऊँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ... अपनी माँ को अकेली छोड़ कर भाग गया...
विश्व - (अपना सिर गाड़ी पर पीटने लगता है)
प्रतिभा - बस बस... ठीक है चलो माफ किया...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) धन्यबाद माते... अहोभाग्य मेरे..
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब बस कर... लोग हमारे तरफ देख रहे हैं...
विश्व - क्यूँ... मैं अपनी माँ के सामने हाथ जोड़ रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है मेरे लाल... अब जिस काम के लिए आए हैं... वह तो कर लें...
विश्व - मुझे क्या पता... हम कहाँ आए हैं और क्यूँ आए हैं...
प्रतिभा - चल बताती हूँ (कह कर विश्व और वह कंस्ट्रक्शन लोडर लिफ्ट से धीरे धीरे उपर जाने लगते हैं)
प्रतिभा - हम यहाँ.. तेरे क्लाइंट के पास आए हैं... यह उनका कंस्ट्रक्शन साइट है... उन्होंने कहा था... की तेरे छूटने के बाद... तुझे उनसे मिलवाऊँ... मैंने कल उनसे बात की थी... तो उन्होंने ही यहाँ पर मिलने बुलाया था...
विश्व - अच्छा... ह्म्म्म्म... (कह कर चारों ओर अपनी नजरें घुमाता है)

दोनों आखिरी मंजिल पर पहुँचते हैं l वहाँ पर विश्व चारो तरफ घुम कर कंस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन साइट के आस पास देखने लगता है l प्रतिभा अपनी घड़ी देखती है और विश्व की तरफ देख कर

प्रतिभा - अब... थोड़ी ही देर में... जोडार साहब आते होंगे...

विश्व एक जगह खड़े हो कर नीचे की ओर देख रहा है l प्रतिभा उसके पास पहुँचती है l

प्रतिभा - अच्छा प्रताप... तुने... जोडार साहब के बारे में... जानने की कोशिश नहीं की...
विश्व - (अपना सिर हिला कर ना कहता है)
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की उनके बारे में... तुम्हें सब पता होगा... यह मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ...
प्रतिभा - हाँ... मुझे पता तो है पर... सब कुछ नहीं...
विश्व - तो आज ही पता कर लेते हैं...
प्रतिभा - उस दिन... तुने क्या स्कैन किया था उनका...
विश्व - (मुस्कराता है) माँ... स्वपन जोडार... एक माईग्रेटेड बंगाली हैं... वह जब दो या तीन साल के होंगे... तब बांग्लादेश से सन बहत्तर के लड़ाई में... माईग्रेट हो कर उनकी फॅमिली ओड़िशा आए... ओड़िशा के मलकानगिरी ज़िले में उनके फॅमिली को बसाया गया था... उनकी स्कुल कॉलेज सब मलकानगिरी में हुआ... वहीँ से वह बीएसएफ के लिए सिलेक्ट हुए... बॉर्डर पर उनकी वीरता के लिए... मेडल से सम्मानित किया गया.... और भुवनेश्वर में कुछ जमीन भी दी गई... उसी जमीन और रिटायर्मेंट की पूंजी से... वह नई पारी शुरुआत कर आज इस जगह पर पहुँचे हैं...

तभी ताली बजने लगती है l विश्व और प्रतिभा दोनों ताली बजाने वाले की तरफ देखते हैं l स्वपन जोडार उनकी ओर देख कर ताली बजा रहा है l

विश्व - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह विश्व प्रताप... वाह... जैल में पहली मुलाकात में तुमने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया था... और आज दुसरी मुलाकात में.. तुमने मुझे अपना मुरीद बना डाला... वाह...
प्रतिभा - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह... मिसेज सेनापति जी... आज मुझे पुरा यकीन हो गया... मैंने अपने फार्म के लिए... कोहिनूर हीरा ढूँढा है....
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रख कर, बड़े गर्व से कहती है) वह तो है...
स्वपन - आइए... ऊपर बने पेंट हाउस में चलते हैं... वहाँ पर बैठ कर बात चित करते हैं...

तीनों सत्ताइसवीं मंजिल के ऊपर बने पेंट हाउस के ऑफिस में जाते हैं l
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हस्पताल से निकल कर रुप गाड़ी की पार्किंग एरिया में पहुँचती है l वहाँ उसे गाड़ी के पास बनानी इंतजार करते मिल जाती है l रुप बनानी के पास आती है

बनानी - (रुप को बिना देखे) तुमने उसे मेरे बारे में क्यूँ बताया...
रुप - क्यूंकि उसने तुम्हारे बारे में पूछा... इसलिए...
बनानी - (रुप की ओर देख कर) मैं कितनी गलत थी ना...
रुप - तुम गलत नहीं थी... हालात गलत थे... वह गलत था...
बनानी - अगर वह गलत था... तो तुमने मुझसे वह बातेँ क्यूँ छुपाई...
रुप - (एक खरास लेकर) हम गाड़ी में चलते हुए बात करें...

बनानी रुप की गाड़ी में बैठ जाती है, रुप भी उसके बगल में बैठ जाती है l गुरु गाड़ी को पार्किंग में निकाल कर गाड़ी को कॉलेज की ओर ले जाता है l

बनानी - अब बताओ...
रुप - देखो बनानी... रेडियो एफएम प्रोग्राम के बाद... मुझे शक़ हुआ... उसके बाद मैंने... अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश की... तब तक रॉकी के लिए... तेरे दिल में फिलिंग्स पनपने लगे थे...
बनानी - अगर बता देती तो क्या हो जाता...
रुप - कल तुने मुझे मज़बूर किया... तो सब कुछ बता तो दिया... फिर भी... कल तु उसे देखने हस्पताल आयी थी... क्यूँ...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - रॉकी बुरा नहीं है... बस एक गलत फहमी के चलते उसने वह सब किया...
बनानी - तुम क्यूँ उसकी अच्छे होने की सर्टिफिकेट दे रही हो...
रुप - इसलिए कि उसके उम्र में जहां सारे लड़के... कक्टेल पार्टी करते हैं... मैंने जितने दिन भी ऑबजर्वेशन किया... वह या उसके दोस्त नशा बिल्कुल नहीं करते हैं... यही वजह है कि वह बुरा नहीं है....
बनानी - क्या इसलिए तुमने उसे माफ कर दिया...
रुप - नहीं... इसलिए नहीं... उसकी रेडियो वाली हरकत के वजह से... मुझे मेरे अंदर एक नई नंदिनी मिली... और कल के हरकत के वजह से मुझे मेरा भाई मिला...
बनानी - तुम्हारे पास माफ करने के लिए वजह है... पर मैं क्यूँ करूँ...
रुप - वह गुनहगार तुम्हारा नहीं है... मेरा है... रही माफ करने की बात... तो कल उसने जो किया... उसमें पछतावा और प्रायश्चित था... बेशक तरीका गलत था... पर कल की उसकी हरकत में... वह ईमानदार था...

गाड़ी के अंदर कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l रुप देखती है बनानी खिड़की से बाहर की ओर झाँक रही है और मुट्ठी बना कर मुड़े हुए उंगलीओं को उपर नीचे कर रही है l

रुप - क्या हुआ... तुम ख़ामोश क्यूँ हो गई...
बनानी - क्या तुमने उसे यहाँ तक माफ कर दिया... की एक दिन उसके गले लग जाओ...
रुप - नहीं.. उसने मुझसे रिश्ता जोड़ा नहीं है... थोपा है... जब भाई वाला कोई ऐसा काम हो... जिस पर एक बहन को नाज़ हो... उस दिन मैं बेझिझक उसके गले लग जाऊँगी...
बनानी - (रुप की ओर देखती है)
रुप - अब जो रिश्ता उसने जोड़ने की कोशिश की है... उसमें इम्तिहान उसे देना है...
बनानी - मैं उसे माफ नहीं करुँगी...
रुप - मैं उसकी सिफारिश भी नहीं करूंगी...

बनानी मुहँ फ़ेर कर फिर से बाहर की ओर देखने लगती है l रुप उसे कुछ और नहीं कहती है वह भी बाहर की ओर देखने लगती है l

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जोडार के पेंट हाउस वाली ऑफिस में टेबल पर प्रतिभा और विश्व बैठे हुए हैं पर जोडार वहाँ से बाहर नीचे की ओर देख रहा है

प्रतिभा - क्या बात है, जोडार साहब.... किन ख़यालों में खोए हुए हैं... हम भी इस कमरे में हैं... जरा गौर कीजिए....
जोडार - (उनके तरफ मुड़ते हुए) माफ कीजिए... सोच रहा था... कैसे बात शुरु करूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... लगता है... कोई बड़ी वाली परेशानी है....
जोडार - हाँ है...
प्रतिभा - अगर पर्सनल है... तो हमें माफ लीजिए... और अगर लॉ रिलेटेड है... तो मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... और प्रताप आपके सामने बैठा है...
जोडार - जी मैडम... जानता हूँ... (पॉज लेकर) जानती हैं.... इससे पहले जो लीगल टीम थी... वह फैल हो गई थी... इसलिए मैं आपके पास गया था... आपने मुझे प्रताप का नाम सुझाया था... पहली मुलाकात में... उसने मुझे इम्प्रेस भी किया... और अभी कुछ देर पहले... मेरी पुरी डेटा आपको बता दिया.... फिर भी...
प्रतिभा - फ़िर भी... क्या मतलब है फिर भी...
जोडार - फिर भी... क्या प्रताप यह केस समझ पाएगा... क्यूंकि अभीतक उसका कोई एक्सपेरियंस नहीं है.... वैसे भी... प्रताप का बार लाइसेंस आने में दो महीने बाकी हैं...
प्रतिभा - एक्सपीरियंस नहीं है... यह आपकी नजरिया है... मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... तो मेरी एक्सपीरियंस पर भरोसा कर सकते हैं.... लाइसेंस चाहे जब भी आए... आपको एडवाइस लेने के लिए लाइसेंस की क्या जरूरत है...
जोडार - प्रताप... इफ यु डोंट माइंड... कुछ पूछूं...
विश्व - जी बिल्कुल...
जोडार - पहली मुलाकात में... तुमने मेरा परफेक्ट स्कैन किया था... पर आज तुमने मेरा बायोडेटा कैसे हासिल कर लिया...
विश्व - मेरी अपनी सोर्सेस हैं...
जोडार - मतलब तुम्हारा अपनी नेटवर्क है....
विश्व - एक वकील के लिए यह बहुत जरूरी है...
जोडार - (एक गहरी सांस अंदर लेकर छोड़ता है) मैंने भी तुम्हारे बारे में कुछ जानकारी हासिल की है... होप... बुरा नहीं मानोगे...
विश्व - नहीं... पर आप किस बात पर हिचकिचा रहे हैं...
जोडार - मेरे इस केस में कहीं ना कहीं... क्षेत्रपाल जुड़े हुए हैं... इसलिए हिचकिचा रहा था...
विश्व - मैं जानता हूँ...
जोडार - व्हाट... क.. कैसे.. कैसे जानते हो...
विश्व - आप भूल रहे हैं... अभी अभी मैंने कहा था कि मेरी अपनी सोर्सेस हैं....
जोडार - यानी तुम जानते हो... मैं किस केस में घुट रहा हूँ...
विश्व - जी...
जोडार - ओह माय गॉड... कैसे... सॉरी मतलब क्या जानते हो...
विश्व - आप एक नहीं दो केसों में उलझे हुए हैं... जिस दिन आपने मेरा इंटरव्यू लिया था... उसी मैंने आपके बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया था....
जोडार - तुमने मेरी कुंडली पढ़ ली है लगता है... तो अब यह भी बता दो.. कहाँ पर राहु केतु कुंडली मार कर... मेरे भाग्य में बैठ गए हैं...
विश्व - आप सेल्फ मेड बिजनेसमैन हैं... इससे पहले पश्चिम बंगाल में अपना बिजनैस को जमाया... अब अपने राज्य में आकर एस्टाब्लीस होने के इरादे से यहाँ आए... पहली ही बॉल में चौका मारते हुए... इस बिल्डिंग की कांट्रैक्ट हासिल की... सब कुछ सही जा रहा था... पर अब जब सेंचुरी तक पहुँचे हैं... नर्वस नाइन्टी पर पहुँच गए हैं... आपको आउट करने के लिए फील्डिंग सजा दी गई है...
जोडार - परफेक्ट...मतलब तुम्हें केस की पुरी जानकारी है...
विश्व - केस के बारे में जानता हूँ... उसमे क्या अप्स एंड डाउन है... वह सब डॉक्यूमेंट्स देखने के बाद ही कुछ कह सकता हूँ...
जोडार - हूँन्न्न्न्न... और इस केस से अलग एक मुद्दा है...
विश्व - यहाँ पहुँचने के बाद... सारी जगह देख कर.. मैंने अंदाजा लगा लिया है...
जोडार - (हैरान हो कर) क्या... तुमने अंदाजा लगा लिया है...
विश्व - अगर मैं सही हूँ... आपके इस बिल्डिंग के प्रेमीसेस से लग कर... मुझे कुछ इलीगल और अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन्स दिखे... जिससे आपके इस कंस्ट्रक्शन को... जो शायद आपके उस केस के साइड इफेक्ट हैं....
जोडार - वाकई... तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है... तुमने सही अंदाजा लगाया है... यह अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन एक्चुयली... ज़बरदस्ती कब्जा है... और जिसने यह किया है... वह इस शहर का सबसे बड़ा बिल्डर है... और उसके पीछे क्षेत्रपाल है...
विश्व - तो आप क्या चाहते हैं...
जोडार - मुझ पर केस... पेनल्टी भरने के लिए हुआ है... जो कि गलत है... पर डॉक्युमेंट्स के मुताबिक मैं कटघरे में हूँ... मुझे उससे बाहर निकलने का उपाय बताओ... और इस कब्जे से मेरी जमीन छुड़ाने का भी उपाय बताओ...
विश्व - (एक गहरी सांस लेते हुए) ठीक है... मुझे आपके केस रिलेटेड सभी डॉक्युमेंट्स दीजिये...
जोडार - कितने दिनों के लिए...
विश्व - तीन दिनों के लिए...
जोडार - आर यु श्योर...
विश्व - जी...
जोडार - ठीक है... आज शाम तक तुमको सभी डॉक्युमेंट्स मिल जाएंगे...
 

Jaguaar

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सुबह सुबह जॉगिंग कर तापस अंदर आता है, देखता है ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर प्रतिभा पेपर पढ़ रही है l बगल में विश्व चाय का कप लेकर खड़ा हुआ है l पर प्रतिभा चाय लेने के वजाए चुपचाप पेपर पढ़ रही है और दोनों ही ख़ामोश हैं l

तापस - (विश्व से इशारे से पूछता है) क्या हुआ...
विश्व - (इशारे से) माँ मुझसे गुस्सा हैं...
तापस - (इशारे में) क्यूँ...
विश्व - (इशारे में चाय की कप दिखा कर) मैंने बनाया है... इसलिए माँ गुस्सा है...
तापस - अरे वाह... सुबह सुबह जॉगिंग के बाद... चाय मिल जाए... तो सोने पे सुहागा... ला.... चाय इधर ला... (विश्व के हाथ से चाय ले कर एक सीप लेता है) आह् आहा... आह् हा... क्या बात है... क्या मस्त चाय बनी है... भाग्यवान.... आज तो तुमने कमाल कर दिया... क्या बढ़िया चाय बनाई है...
प्रतिभा - (पेपर को पटकते हुए) ओह... इसका मतलब... आज तक क्या चाय के नाम पर घास चर रहे थे...
तापस - कमाल करती हो... मैंने तुम्हारे चाय की तारीफ की... और तुम हो कि भड़क रही हो...
प्रतिभा - (मुहं फूला कर) यह मैंने नहीं बनाया है... (विश्व की ओर दिखाते हुए) इस कम्बख्त ने बनाया है...
तापस - (हैरान होते हुए) क्या... फिर भी इतना बढ़िया बनी है... मैं तो कहता हूँ... तुम भी ट्राय करो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पी लीजिए... पेट भरने तक पीते जाइए...
तापस - अरे सच में चाय अच्छी बनी है... और तुम्हें गुस्सा किस बात पर है...
प्रतिभा - सुबह उठने में थोड़ी देर हो गई... इसके बेड रुम में पहुँची... तो लाट साहब गायब... ढूंढने से मुझे छत पर कसरत करते दिखा... मैं इसलिए स्नान कर नाश्ता बनाने की सोच रही थी... की यह किचन में घुस कर... नास्ता भी बना दिया... मैं पूछती हूँ... मैं इसे खिलाउँ... या यह मुझे खिलाएगा...
विश्व - (अपने घुटने पर बैठ कर) माँ... तुम हो ना... बहुत ही प्यारी माँ हो... कल रात भर सोई नहीं... हर दुसरे घंटे मेरे कमरे में आती रही... मुझे देखती रही... अब इतना प्यार करने वाली माँ को... खुद कुछ बना कर खिलाने में जो खुशी है... उसे छोड़ना नहीं चाहता था... अब क्या माँ की सेवा के लिए भी मुझे... मेरी माँ सजा देगी...
प्रतिभा - (पिघल जाती है) मेरा बच्चा... (गले लगा कर) (तापस से) देखा... कितना प्यार करता है...
तापस - हाँ भाई... अब माँ बेटे के बीच... मेरा क्या काम...
प्रतिभा - हो गया आपका... अब यह टौंट मारना बंद कीजिए...
तापस - मैं टौंट मारूंगा.. वह भी तुम्हें... मैं...
प्रतिभा - जानती हूँ... जानती हूँ... आप कितना खयाल रखते हैं मेरा...
तापस - लो... अब टौंट कौन मारा... जानती हो भाग्यवान... तुम्हें रोज कोर्ट तक अप एंड डाउन करने के लिए... कल ही आपके लाट साहब को ड्राइविंग स्कुल में गाड़ी चलाना सीखने के लिए कहा....
प्रतिभा - क्यूँ... मैं क्या गाड़ी नहीं सीखा सकती इसे...
तापस - अरे भाग्यवान... तुम इसे सिर्फ़ जुबान चलाना सिखाओ... बाकी चीज़ें उसे किसी और से सीखने के लिए छोड़ दो...
प्रतिभा - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या.. मैं उसे जुबान चलाना सीखाती हूँ...
तापस - फिर गलत... कोर्ट में... आर्गुमेंट को... शुद्ध हिंदी में... जुबान लड़ाना कहते हैं.... क्यूँ बेटा...

दोनों देखते हैं विश्व वहाँ से गायब हो चुका है l

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अनु सिटी बस से उतर कर ESS ऑफिस के अंदर जाती है l अनु को महसुस होती है कुछ तिरछी और तीखी नजरें उसे घूर रही हैं I एक पल के लिए वह ठिठक जाती है l उसे वह नजरें चुभती हुई महसुस होती हैं l वह पल भर के लिए अपनी आँखे बंद कर लेती है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए अंदर जाती है l अपने टेबल पर अपनी हैंड बैग रख देती है और चेयर पर बैठ जाती है l वहाँ पर भी उसे वही सब कुछ महसुस होने लगती है जो ऑफिस के अंदर आते वक़्त उसे महसुस हुई थी l वह जब किसी को देखती है तो सबको किसी ना किसी काम में व्यस्त पाती है l वह अपनी कुर्सी से उठ कर हैंड बैग से वीर की कैबिन की चाबी निकाल कर कैबिन की ओर जाती है l वीर का कैबिन का लॉक खुला हुआ था l मतलब आज वीर जल्दी आ गया है l अनु फौरन अपनी घड़ी देखती है वह ठीक टाइम पर पहुँची है तो वीर इतनी जल्दी कैसे और क्यूँ l यह सोचते हुए वह दरवाजे पर दस्तक देती है l अंदर से वीर की आवाज आती है

वीर - आओ अनु...
अनु दरवाजे को खोल कर अंदर झाँकती है l वीर अपनी कैबिन के अंदर झूम रहा है किसी धुन पर l अनु उसे यूँ झूमते हुए देख कर हैरान हो जाती है l जैसे ही वीर अनु को देखता है वैसे ही झूमते हुए अनु के करीब आता है और उसे कमरे के अंदर खिंच लेता है l अनु हड़बड़ा जाती है पर वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही वीर उसे अपने साथ लिए झूमने लगता है l अनु के कदम वीर के साथ ताल नहीं मिला पाती इसलिए वह घुटनों के बल गिर जाती है l

अनु - आह...
वीर - सॉरी.. सॉरी.. अनु.. सॉरी..
अनु - (उठ कर संभल कर) राजकुमार जी... यह आप ऐसे क्यूँ नाच रहे थे...
वीर - ओ... अनु.. अनु... क्या कहूँ... कल खुशियाँ ही इतनी मिल गई... के उसका सुरूर उतर ही नहीं रहा है...
अनु - ओ अच्छा... आप इतनी जल्दी... ऑफिस इसलिये आ गए...
वीर - (अपने मस्ती में अनु के दोनों बाहों को पकड़ कर) सच कहूँ तो रात जल्दी नींद ही नहीं आई... पता नहीं कब सो गया... (फिर झूमते हुए) पर सुबह जल्दी नींद खुल गई... और आज पहली बार... अपनी भाभी और बहन के साथ... डायनिंग टेबल पर टिफिन कर आया हूँ... (फिर अनु के पास रुक जाता है) सच अनु... बहुत अच्छा लग रहा है...
अनु - (मुस्कराते हुए) तो कल का दिन... आपके लिए बहुत खास बन गया...
वीर - हाँ अनु हाँ... और तुम नहीं जानती... तुम्हें बताने के लिए मैं कितना बेताब हूँ...
अनु - (हल्की सी शर्माहट के साथ) मुझे.. क्यूँ...
वीर - क्या बात कर रही हो... एक ही तो दोस्त हो मेरी... तुमसे अपनी बात ना कहूँ तो किससे कहूँ...
अनु - शुक्रिया राजकुमार जी...
वीर - किसलिए...
अनु - मुझे अपना दोस्त मानने और बनाए रखने के लिए...
वीर - क्या बात कर रही हो अनु... क्या तुम्हें मेरी दोस्ती पर शक है...
अनु - नहीं... कभी नहीं...
वीर - तो फिर... एक बात याद रखना... हमारे बीच कभी थैंक्यू या सॉरी... नहीं आनी चाहिए... ठीक है...
अनु - ठीक है...
वीर - ह्म्म्म्म... आओ अब बैठो...

वीर अनु को खिंच कर सोफ़े पर बिठा देता है और खुद अनु के सामने नीचे फ़र्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है l

अनु - अरे यह... यह आप नीचे क्यूँ बैठ गए... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...
वीर - अनु... इतने दिनों से... कभी देखा है किसीको मेरे होते हुए... मेरे कैबिन में आते... (अनु सिर हिला कर ना कहती है) सिवाय तुम्हारे...

अनु अपनी काली काली आँखे उपर उठा कर वीर के आँखों में देखती है फिर अपनी नजरें झुका लेती है l

वीर - पूछोगी नहीं... कल घर में क्या हुआ...
अनु - (वीर की आँखों में दुबारा देखती है) क्या हुआ...

फ्लैशबैक

आपने गाल पर हाथ फेरते हुए रुप वीर को देखने लगती है l

शुभ्रा - यह... यह क्या किया आपने... राजकुमार...
वीर - नहीं भाभी... राजकुमार नहीं... वीर...

शुभ्रा और रुप दोनों का मुहँ खुला रह जाता है l वह दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं l वीर चुटकी बजाता है l दोनों वीर की ओर देखते हैं

वीर - (रुप से) उस कमीने ने इतना बड़ा कांड किया है... मतलब इससे पहले भी कुछ हुआ है...(चिल्ला कर) बताया क्यूँ नहीं मुझे... और क्या पुछा... थप्पड़ कौन मार रहा है... तो सुन... अभी तुझे तेरे भाई ने लाफा मारा है... समझी... यह ले... (उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट रख कर) केक... चल काट... और हाँ... बड़ा सा टुकड़ा मुझे ही देना... नाश्ते के बाद... अब तक भूखा हूँ...

रुप और शुभ्रा जैसे शॉक में थे l वीर को घूरे जा रहे थे l अचानक यह बर्ताव और ऐसी भाषा l

वीर - हे..इ ...चल केक काट...(रुप के हाथ में प्लास्टिक का छुरी पकड़ा देता है)

रुप - (छुरी को अपने बाएं हाथ पर चुभोती है) आह...
वीर - कोई सपना नहीं देख रही है... अब काटती है या नहीं...
रुप - हँ.. हाँ.. ह्म्म्म्म...

रुप केक काटने लगती है वीर ताली बजाते हुए गाता है

"हैप्पी बर्थ डे टू यू"
रुप केक से एक टुकड़ा काट कर निकालती पर वह असमंजस में पड़ जाती है किसे खिलाए l वीर उसकी मनोस्थिति समझ जाता है l रुप की हाथ से केक का टुकड़ा ले कर

वीर - अपना मुहँ खोल...

रुप एक रोबॉट की तरह मुहँ खोल देती है l वीर उसके मुहँ में केक ठूँस देता है और झट से केक से बड़ा टुकड़ा तोड़ कर रुप के चेहरे पर पोत देता है l फ़िर अपने उँगलियों को चाट कर

वीर - हूँम्म्म्... क्या टेस्ट है... वाह.. मजा आ गया...

रुप अब शॉक से निकलती है और गुस्से से चिल्लाती है

रुप - आ.. आ.. आ.. ह...

वीर वहाँ से सोफ़े के पीछे की ओर भाग जाता है l रुप उसके पीछे केक लेकर भागती है l फिर वीर कुछ देर के लिए ड्रॉइंग रुम में इधर उधर भागने लगता है l रुप भी उसके पीछे पीछे भागने लगती है l फिर वीर टेबल से वह बचा हुआ पुरा केक उठा कर अपने कमरे की ओर भाग जाता है l रुप भी पीछे पीछे पहुँचती है पर तब तक वीर अपने कमरे में घुस कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर देता है l

रुप - (कमरे के बाहर) आ..आ.. आह...(चिल्ला कर) मैं कहती हूँ खोलो दरवाज़ा...
वीर - क्यूँ... क्यूँ खोलुं दरवाजा...
रुप - मेरे हाथ में अभी भी केक का टुकड़ा है...
वीर - ठीक है... जहां तेरे चेहरे पर नहीं लगा है... लगा ले...
रुप - आ... ह... आ... ह... मैं... मैं नहीं छोड़ूंगी...
वीर - ऐ चल हट... पकड़ तो नहीं सकी.. छोड़ने की बात कर रही है...
रुप - (गुस्से में अपनी दांत चबाते हुए) घर पर भूखे आए थे ना... इसलिए बाहर निकलो... मैं अपने हाथों से खाना बना कर खिलाउँगी...
वीर - ना बहना ना... रुलाएगी क्या... बचे हुए केक... अपने साथ ले आया हूँ... जा अपना थोबड़ा साफ कर... वरना सारे नौकर चाकर... डर के मारे... रात भर सो नहीं पाएंगे...
रुप - आ...ह... ठीक है... जब बाहर निकलोगे... तब बहुत पछताओगे...
वीर - (झट से दरवाजा खोलता है) (भारी और कड़क आवाज में) क्या.. क्या कहा...

रुप जो अब तक गुर्रा रही थी वीर का यह रुप देख कर मीमीयाने लगती है l

रुप - क.. कुछ नहीं...
वीर - यह तेरे हाथ में... केक क्यूँ है...
रुप - वह.. वह... मैं..
वीर - ला वह केक...

रुप डर के मारे वह केक का टुकड़ा वीर को दे देती है, वीर वह लेकर जो जगह रुप के चेहरे पर बच गया था वहाँ पर लगा देता है और झट से अपने कमरे में घुस कर दरवाजा फिरसे बंद कर लेता है l अब रुप को समझ में आता है कि उसे वीर ने बेवक़ूफ़ बना दिया l

रुप - आ... ह... आज तुमने मेरा पुरा दिन खराब कर दिया... और तो और तुमने मुझे अब बेवक़ूफ़ भी बनाया... अब तो सच में नहीं छोड़ुंगी... (अंदर से कोई आवाज नहीं आती) (अपने दोनों से दरवाजे पर बारी बारी से मारने लगती है) भा..आ.ई तुमने सुना... मैं तुम्हें नहीं छोड़ुंगी... (तभी दरवाजे के पास जोर से डकार की आवाज सुनाई देता है)
वीर - वाह सच में बहना... क्या टेस्टी केक था.. (फिर से डकार की आवाज सुनाई देती है)

रुप फिर से चिल्लाते हुए अपना पैर पटक कर वहाँ से चल देती है और शुभ्रा के पास पहुँचती है I जब से वीर आया था तब से उसकी हरकतों को देख कर तब से शुभ्रा का मुहँ शॉक से खुला रह गया है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हँ...
रुप - भा...भी
शुभ्रा - हँ... हाँ.. ओ.. हाँ.. अभी अभी कुछ हुआ है... क.. क्या हुआ है...
रुप - भाभी... आपको क्या हो गया है...
शुभ्रा - व.. वह... नंदिनी... यह हैल ही है ना... इस हैल में... हेवन वाली हरकतें... मैं... जाग रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... मैं कबसे नींद में हूँ... मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
रुप - ओ हो भाभी... होश में आओ... जो भी हुआ वह सब सच था... सब वीर भैया ने ही किया...
शुभ्रा - क्या... रा... राजकुमार जी ने किया...

राजकुमार नहीं भाभी.... वीर... वीर ने किया है यह सब... (वीर वहाँ पहुँच कर कहता है) हाँ भाभी... आप कोई नींद में नहीं हैं... ना ही कोई सपना देख रही हैं... मैं नकली पहचान के नीचे छुपे असली रिश्ते को पहचान गया हूँ... वह नकली पहचान... दुनिया वालों के लिये है... घरवालों के लिए नहीं... (रुप को दिखा कर) यह मेरी बहन है... और आप मेरी भाभी... और आज से... मैं वह नकली और झूठे पहचान को और ढ़ो नहीं सकता... जिनसे रिश्तों में सिर्फ दूरियों के सिवा कुछ ना दिया... (फिर रुप को अपने तरफ घुमा कर) मुझे माफ करदे मेरी बहना... बीस सालों से ज़मी धुल साफ हो चुका है... और तु भी... मेरे लिए कोई ज़ज्बात... छुपाना मत... गुस्सा आए... ढेर सारा गुस्सा करना... जब लड़ने को मन होए... जम कर लड़ना... आख़िर इन बीस सालों में... यही तो मुझ से खो गया था... आज मिल गया है...
रुप - भैया... (कह कर फफक पड़ती है, और वीर के गले लग जाती है)
वीर - देखा भाभी... आज दिन भर रोया हूँ... देखो यह फिरसे मुझे अभी रुला रही है... रुलाने तक तो ठीक है... केक से पोती हुई अपनी शकल को... मेरे कपड़े से पोंछ रही है...

रुप झट से अलग हो जाती है और वीर पर घुसे बरसाने लगती है l वीर भी बेशरमो की तरफ अपनी पीठ दिखा कर

वीर - हाँ.. यहाँ.. यह यहाँ.. ले अब यहाँ...
रुप - आँ ह्.. हा.. हाँ... देखो ना भाभी... भाई क्या कर रहे हैं...

शुभ्रा पहले जज्बाती हो गई थी पर फिर जोर जोर से हँसने लग जाती है l

शुभ्रा - ओ ह.. वीर... तुममे इतना शरारत भरा हुआ है...
वीर - पता नहीं भाभी... सच कहूँ तो... मैं आज ही खुद को खोज पाया हूँ...
वीर - (प्यार और आदर के साथ वीर को देखती है) वीर... कभी सोचा नहीं था... इस घर में किसी के बर्थ डे पर केक कटेगा... एक छोटी बहन... अपने भाई के पीछे मारने के लिए भागेगी... शायद इस घर का कोना कोना... यही देखने के लिए तरस रही थी...
वीर - भाभी आज से इस घर में यही सब होगा... बार बार दोहराया भी जाएगा... वैसे भाभी... आप भुल रही हो...
शुभ्रा - क्या...
वीर - आज दिन भर भूखा हूँ...
रुप - अभी अभी तो केक ठूँसा है तुमने...
वीर - आधे से ज्यादा तुझे मेकअप करने में बरबाद हो गया ना...
रुप - आ...ह...
शुभ्रा - बस बस कोई झगड़ा नहीं... जाओ नंदिनी तुम अपना चेहरा साफ कर लो... और वीर... जाओ तुम भी तैयार हो कर आओ... आज हम मिल कर खाना खाएंगे...

फ्लैशबैक खतम

वीर - क्या बताऊँ अनु... मैं अभी भी.. उस खुशी के सुरूर में हूँ... सुबह भी वैसे ही नोक झोंक... पहली बार... छोटी बहन के जिद और नखरे... कितने अच्छे लग रहे थे... मैं अपने अंदर एक नए वीर को खोज निकाला है... जिसे अब मैं हरगिज़ खोने नहीं दूँगा....

अनु उसकी बात को सिर्फ सुन नहीं थी बल्कि उसे एक टक बिना पलकें झुकाए देखे जा रही थी l

वीर - क्या देख रही हो अनु...
अनु - राजकुमार जी... पहले भी आपको खुश होते मैंने देखा है... पर खुशी से चेहरा दमकना... आज पहली बार देख रही हूँ...

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हस्पताल के स्पेशल कैबिन में रॉकी वॉशरुम से निकल कर ठिठक जाता है l उसके बेड पर रवि लेटा हुआ है और आसपास इसके बाकी दोस्त बैठे हुए हैं l उसके वॉशरुम से निकलते ही सभी उसके तरफ देखते हैं l

राजु - आओ... रॉकी बाबु आओ...
रॉकी - (अपने बेड के पास आकर) हैलो...
रवि - हैलो भैया हैलो... बांह फैलाए... आँखे बंद कर... टाइटैनिक पोज लिए खड़ा था... जब आँख खुली तो... (बिस्तर पर हाथ पटक कर) यही हकीकत थी प्यारे....
रॉकी - ह्म्म्म्म... वैसे तुम लोग यहाँ.. मुझे देखने आये हो... या ताना मारने...
सुशील - इतना हक तो रखते हैं हम... है ना... आखिर तु बड्डी है अपना...
आशीष - हाँ... और नहीं तो... ऐसा कौन माई का लाल मर्द है... जो तुने किया... वैसा कर के दिखा दे....
रवि - हाँ... पर यारा... यह जो किया... वह तुझे... सरे आम नहीं करना चाहिए था...
रॉकी - (झुकी हुई कंधे लेकर अपने बेड के किनारे बैठ जाता है) पता नहीं दोस्तों... मैं शायद वह करता भी नहीं... अगर तुम लोग मेरे साथ होते...
राजु - हमारे साथ होने के बावजूद... तुने नंदिनी को... सिम्फनी हाईट्स बुलाया था...
रॉकी - (अपना सिर झुकाए) सॉरी दोस्तों... मैंने ही तुम लोगों का साथ छोड़ा...
रवि - खैर... अब सच बता... यह नाटक क्यूँ किया... पहले दिलरुबा... फिर बहन...
रॉकी - मैं... मैं क्या कहूँ... असलियत यह है कि... नंदिनी के लिए... मेरे दिल में कभी कोई फिलिंग थी ही नहीं... जब मुझे यह एहसास हुआ... मैंने गलती की है... उसकी भरपाई मैंने ऐसे करना चाहा... सच्चे दिल से... जानता था... जोखिम है... फिर भी किया... अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा दाव था... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वैसे... अपने इस कमीने दोस्त के पास... कैसे आना हुआ...
राजु - हाँ... है तो बड़ा कमीना... पर कमीने का दोस्त भी कमीने ही तो हो सकते हैं...
आशीष - हाँ... लाइब्रेरी में कहे... तेरी वह तीन बातों में से.. दो बातेँ हो गई...
रॉकी - लाइब्रेरी में... मेरी कौनसी बातेँ...
रवि - अरे... भूल गया... पहली बात जो किसी मर्द ने... कभी ना किया हो... वाकई... तुने जो किया... वह सिर्फ तु ही कर सकता था...
आशीष - तुझे बचाने के लिए... अपने भाई से लड़ गई...
राजु - बस वह वाला नहीं हुआ...
सुशील - कौन सा...
राजु - अबे वही... नंदिनी भागते हुए... सबके सामने इसके गले लगने वाली...
रॉकी - बस करो यार... बहुत शर्मिंदा हूँ... अपने पेरेंट्स के नजरों में भी गिर गया हूँ... मम्मी ठीक कहती थी... मैं... हर बात में... उतावला हो जाता हूँ... जल्दबाज़ी करने लग जाता हूँ... इसका खामियाजा... अब कॉलेज से रेस्ट्रीकेट होने वाला हूँ...

नहीं होने वाले हो... (कहते हुए कैबिन में रुप अंदर दाख़िल होती है) नहीं होने वाले हो...
रॉकी - नंदिनी जी आ.. आप... (बेड से उतर कर खड़ा हो जाता है)

रॉकी के बाकी दोस्त भी नीचे उतर कर खड़े हो जाते हैं l

रॉकी - आई एम सॉरी... नंदिनी जी...
रुप - सच कहूँ तो... वीर भैया से पहले अगर मैं भी पहुँचती... तब भी वही करती... जो वीर भैया ने किया... पर उस वक़्त तुम्हें बचाना मेरी मज़बूरी बन गई... (रॉकी का सिर झुक जाता है)
राजु - नंदिनी जी... रॉकी से गलती हो गई... पर वह लड़का बुरा नहीं है...
रुप - एई... तुम क्यूँ बीच में बोलने लगे...
राजु - (चुप हो जाता है)
रुप - रॉकी... तुम अपने किसी पुरानी खुन्नस के चलते... मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की हो... पर असलियत यही है कि मेरे साथ हमेशा अच्छा ही हुआ... कल के तुम्हारे उस हरक़त के वजह से... मुझे मेरा भाई मिल गया... बस मेरे जन्मदिन पर मिला यह मेरा सबसे बड़ा तोहफा था... इसी खुशी में आज सुबह ही... तुम्हें माफ करने के लिए वीर भैया से कह दिया... इसलिए तुम कॉलेज से रेस्ट्रीकेट नहीं हो रहे हो...
रॉकी - (खुश होते हुए) थ.. थैंक्यू.. नंदिनी जी... थैंक्यू...
रुप - अब चूँकि... मेरी कुछ खुशियों के पीछे तुम वजह रहे हो... इसलिए मैं तुम्हें अपने भाई का दर्जा दे रही हूँ...
रॉकी - (हैरान हो कर रुप को देखता है)
रुप - अब जल्दी से ठीक हो जाओ... और अपनी डिग्री पुरी करो... वैसे भी तुम्हारे टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप के बारे में... कॉलेज में अच्छी ओपीनियन है...
रॉकी - (अपना हाथ जोड़ देता है) (उसके आँखों से कुछ बूंद आँसू गिर जाते हैं) थैंक्.. थैंक्स... नंदिनी जी...
रुप - ओके रॉकी भैया... मैं अब चलती हूँ... अपना खयाल रखना...
रॉकी - जी नंदिनी बहन... (रुप मुड़ कर जाने को होती है) नंदिनी बहन... (नंदिनी रुक कर रॉकी को देखती है) वह क्या... मैं... ब... बना..नी.. जी से बात कर सकता हूँ...
रुप - हाँ क्यूँ नहीं... (चिल्लाती है) बनानी...

कैबिन के बाहर किसी के भाग जाने की आवाज सुनाई देती है l रुप बाहर जा कर देखती है और फिर कैबिन के अंदर आकर

रुप - वह शायद... शर्मा कर भागी है.. या रूठ कर... पता नहीं... (रॉकी का चेहरा उतर जाता है) (बड़ी उम्मीद भरी नजरों से नंदिनी की ओर देखने लगता है) ना... मुझसे कुछ उम्मीद मत करना... अगर वह तुम्हें पसंद है... तो तुम्हें ही उसके दिल की... सारी गलत फहमी दूर करनी होगी... यह तुम्हारा काम है... मुझसे किसी भी प्रकार की उम्मीद मत करना... क्यूंकि सिफारिश का प्यार सच्चा नहीं होता...

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एक गाड़ी भुवनेश्वर से कटक रास्ते में जा रही है l वह गाड़ी एक सत्ताइस मंज़िल वाली एक आधे तैयार इमारत के नीचे रुकती है l गाड़ी से पहले प्रतिभा उतरती है और दुसरी तरफ से विश्व l

विश्व - माँ... यह हम कहाँ आए हैं...
प्रतिभा - हूँह्... (अपना मुहँ फ़ेर लेती है)
विश्व - ओह ओ माँ... सुबह से मुहँ फूला कर बैठी हो... तुमने कहा तैयार हो जाओ... मैं तैयार हो गया... तुमने कहा गाड़ी में बैठो... मैं बैठ गया... पर अब आए कहाँ हैं...
प्रतिभा - मुझे छोड़ कर... घर से बाहर क्यूँ चला गया था...
विश्व - तो क्या करता... डैड और तुम... दोनों ऐसे लड़ रहे थे... जैसे मैं वहाँ था ही नहीं... तो सोचा... थोड़े समय के लिए बाहर हो आऊँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ... अपनी माँ को अकेली छोड़ कर भाग गया...
विश्व - (अपना सिर गाड़ी पर पीटने लगता है)
प्रतिभा - बस बस... ठीक है चलो माफ किया...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) धन्यबाद माते... अहोभाग्य मेरे..
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब बस कर... लोग हमारे तरफ देख रहे हैं...
विश्व - क्यूँ... मैं अपनी माँ के सामने हाथ जोड़ रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है मेरे लाल... अब जिस काम के लिए आए हैं... वह तो कर लें...
विश्व - मुझे क्या पता... हम कहाँ आए हैं और क्यूँ आए हैं...
प्रतिभा - चल बताती हूँ (कह कर विश्व और वह कंस्ट्रक्शन लोडर लिफ्ट से धीरे धीरे उपर जाने लगते हैं)
प्रतिभा - हम यहाँ.. तेरे क्लाइंट के पास आए हैं... यह उनका कंस्ट्रक्शन साइट है... उन्होंने कहा था... की तेरे छूटने के बाद... तुझे उनसे मिलवाऊँ... मैंने कल उनसे बात की थी... तो उन्होंने ही यहाँ पर मिलने बुलाया था...
विश्व - अच्छा... ह्म्म्म्म... (कह कर चारों ओर अपनी नजरें घुमाता है)

दोनों आखिरी मंजिल पर पहुँचते हैं l वहाँ पर विश्व चारो तरफ घुम कर कंस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन साइट के आस पास देखने लगता है l प्रतिभा अपनी घड़ी देखती है और विश्व की तरफ देख कर

प्रतिभा - अब... थोड़ी ही देर में... जोडार साहब आते होंगे...

विश्व एक जगह खड़े हो कर नीचे की ओर देख रहा है l प्रतिभा उसके पास पहुँचती है l

प्रतिभा - अच्छा प्रताप... तुने... जोडार साहब के बारे में... जानने की कोशिश नहीं की...
विश्व - (अपना सिर हिला कर ना कहता है)
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की उनके बारे में... तुम्हें सब पता होगा... यह मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ...
प्रतिभा - हाँ... मुझे पता तो है पर... सब कुछ नहीं...
विश्व - तो आज ही पता कर लेते हैं...
प्रतिभा - उस दिन... तुने क्या स्कैन किया था उनका...
विश्व - (मुस्कराता है) माँ... स्वपन जोडार... एक माईग्रेटेड बंगाली हैं... वह जब दो या तीन साल के होंगे... तब बांग्लादेश से सन बहत्तर के लड़ाई में... माईग्रेट हो कर उनकी फॅमिली ओड़िशा आए... ओड़िशा के मलकानगिरी ज़िले में उनके फॅमिली को बसाया गया था... उनकी स्कुल कॉलेज सब मलकानगिरी में हुआ... वहीँ से वह बीएसएफ के लिए सिलेक्ट हुए... बॉर्डर पर उनकी वीरता के लिए... मेडल से सम्मानित किया गया.... और भुवनेश्वर में कुछ जमीन भी दी गई... उसी जमीन और रिटायर्मेंट की पूंजी से... वह नई पारी शुरुआत कर आज इस जगह पर पहुँचे हैं...

तभी ताली बजने लगती है l विश्व और प्रतिभा दोनों ताली बजाने वाले की तरफ देखते हैं l स्वपन जोडार उनकी ओर देख कर ताली बजा रहा है l

विश्व - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह विश्व प्रताप... वाह... जैल में पहली मुलाकात में तुमने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया था... और आज दुसरी मुलाकात में.. तुमने मुझे अपना मुरीद बना डाला... वाह...
प्रतिभा - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह... मिसेज सेनापति जी... आज मुझे पुरा यकीन हो गया... मैंने अपने फार्म के लिए... कोहिनूर हीरा ढूँढा है....
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रख कर, बड़े गर्व से कहती है) वह तो है...
स्वपन - आइए... ऊपर बने पेंट हाउस में चलते हैं... वहाँ पर बैठ कर बात चित करते हैं...

तीनों सत्ताइसवीं मंजिल के ऊपर बने पेंट हाउस के ऑफिस में जाते हैं l
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हस्पताल से निकल कर रुप गाड़ी की पार्किंग एरिया में पहुँचती है l वहाँ उसे गाड़ी के पास बनानी इंतजार करते मिल जाती है l रुप बनानी के पास आती है

बनानी - (रुप को बिना देखे) तुमने उसे मेरे बारे में क्यूँ बताया...
रुप - क्यूंकि उसने तुम्हारे बारे में पूछा... इसलिए...
बनानी - (रुप की ओर देख कर) मैं कितनी गलत थी ना...
रुप - तुम गलत नहीं थी... हालात गलत थे... वह गलत था...
बनानी - अगर वह गलत था... तो तुमने मुझसे वह बातेँ क्यूँ छुपाई...
रुप - (एक खरास लेकर) हम गाड़ी में चलते हुए बात करें...

बनानी रुप की गाड़ी में बैठ जाती है, रुप भी उसके बगल में बैठ जाती है l गुरु गाड़ी को पार्किंग में निकाल कर गाड़ी को कॉलेज की ओर ले जाता है l

बनानी - अब बताओ...
रुप - देखो बनानी... रेडियो एफएम प्रोग्राम के बाद... मुझे शक़ हुआ... उसके बाद मैंने... अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश की... तब तक रॉकी के लिए... तेरे दिल में फिलिंग्स पनपने लगे थे...
बनानी - अगर बता देती तो क्या हो जाता...
रुप - कल तुने मुझे मज़बूर किया... तो सब कुछ बता तो दिया... फिर भी... कल तु उसे देखने हस्पताल आयी थी... क्यूँ...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - रॉकी बुरा नहीं है... बस एक गलत फहमी के चलते उसने वह सब किया...
बनानी - तुम क्यूँ उसकी अच्छे होने की सर्टिफिकेट दे रही हो...
रुप - इसलिए कि उसके उम्र में जहां सारे लड़के... कक्टेल पार्टी करते हैं... मैंने जितने दिन भी ऑबजर्वेशन किया... वह या उसके दोस्त नशा बिल्कुल नहीं करते हैं... यही वजह है कि वह बुरा नहीं है....
बनानी - क्या इसलिए तुमने उसे माफ कर दिया...
रुप - नहीं... इसलिए नहीं... उसकी रेडियो वाली हरकत के वजह से... मुझे मेरे अंदर एक नई नंदिनी मिली... और कल के हरकत के वजह से मुझे मेरा भाई मिला...
बनानी - तुम्हारे पास माफ करने के लिए वजह है... पर मैं क्यूँ करूँ...
रुप - वह गुनहगार तुम्हारा नहीं है... मेरा है... रही माफ करने की बात... तो कल उसने जो किया... उसमें पछतावा और प्रायश्चित था... बेशक तरीका गलत था... पर कल की उसकी हरकत में... वह ईमानदार था...

गाड़ी के अंदर कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l रुप देखती है बनानी खिड़की से बाहर की ओर झाँक रही है और मुट्ठी बना कर मुड़े हुए उंगलीओं को उपर नीचे कर रही है l

रुप - क्या हुआ... तुम ख़ामोश क्यूँ हो गई...
बनानी - क्या तुमने उसे यहाँ तक माफ कर दिया... की एक दिन उसके गले लग जाओ...
रुप - नहीं.. उसने मुझसे रिश्ता जोड़ा नहीं है... थोपा है... जब भाई वाला कोई ऐसा काम हो... जिस पर एक बहन को नाज़ हो... उस दिन मैं बेझिझक उसके गले लग जाऊँगी...
बनानी - (रुप की ओर देखती है)
रुप - अब जो रिश्ता उसने जोड़ने की कोशिश की है... उसमें इम्तिहान उसे देना है...
बनानी - मैं उसे माफ नहीं करुँगी...
रुप - मैं उसकी सिफारिश भी नहीं करूंगी...

बनानी मुहँ फ़ेर कर फिर से बाहर की ओर देखने लगती है l रुप उसे कुछ और नहीं कहती है वह भी बाहर की ओर देखने लगती है l

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जोडार के पेंट हाउस वाली ऑफिस में टेबल पर प्रतिभा और विश्व बैठे हुए हैं पर जोडार वहाँ से बाहर नीचे की ओर देख रहा है

प्रतिभा - क्या बात है, जोडार साहब.... किन ख़यालों में खोए हुए हैं... हम भी इस कमरे में हैं... जरा गौर कीजिए....
जोडार - (उनके तरफ मुड़ते हुए) माफ कीजिए... सोच रहा था... कैसे बात शुरु करूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... लगता है... कोई बड़ी वाली परेशानी है....
जोडार - हाँ है...
प्रतिभा - अगर पर्सनल है... तो हमें माफ लीजिए... और अगर लॉ रिलेटेड है... तो मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... और प्रताप आपके सामने बैठा है...
जोडार - जी मैडम... जानता हूँ... (पॉज लेकर) जानती हैं.... इससे पहले जो लीगल टीम थी... वह फैल हो गई थी... इसलिए मैं आपके पास गया था... आपने मुझे प्रताप का नाम सुझाया था... पहली मुलाकात में... उसने मुझे इम्प्रेस भी किया... और अभी कुछ देर पहले... मेरी पुरी डेटा आपको बता दिया.... फिर भी...
प्रतिभा - फ़िर भी... क्या मतलब है फिर भी...
जोडार - फिर भी... क्या प्रताप यह केस समझ पाएगा... क्यूंकि अभीतक उसका कोई एक्सपेरियंस नहीं है.... वैसे भी... प्रताप का बार लाइसेंस आने में दो महीने बाकी हैं...
प्रतिभा - एक्सपीरियंस नहीं है... यह आपकी नजरिया है... मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... तो मेरी एक्सपीरियंस पर भरोसा कर सकते हैं.... लाइसेंस चाहे जब भी आए... आपको एडवाइस लेने के लिए लाइसेंस की क्या जरूरत है...
जोडार - प्रताप... इफ यु डोंट माइंड... कुछ पूछूं...
विश्व - जी बिल्कुल...
जोडार - पहली मुलाकात में... तुमने मेरा परफेक्ट स्कैन किया था... पर आज तुमने मेरा बायोडेटा कैसे हासिल कर लिया...
विश्व - मेरी अपनी सोर्सेस हैं...
जोडार - मतलब तुम्हारा अपनी नेटवर्क है....
विश्व - एक वकील के लिए यह बहुत जरूरी है...
जोडार - (एक गहरी सांस अंदर लेकर छोड़ता है) मैंने भी तुम्हारे बारे में कुछ जानकारी हासिल की है... होप... बुरा नहीं मानोगे...
विश्व - नहीं... पर आप किस बात पर हिचकिचा रहे हैं...
जोडार - मेरे इस केस में कहीं ना कहीं... क्षेत्रपाल जुड़े हुए हैं... इसलिए हिचकिचा रहा था...
विश्व - मैं जानता हूँ...
जोडार - व्हाट... क.. कैसे.. कैसे जानते हो...
विश्व - आप भूल रहे हैं... अभी अभी मैंने कहा था कि मेरी अपनी सोर्सेस हैं....
जोडार - यानी तुम जानते हो... मैं किस केस में घुट रहा हूँ...
विश्व - जी...
जोडार - ओह माय गॉड... कैसे... सॉरी मतलब क्या जानते हो...
विश्व - आप एक नहीं दो केसों में उलझे हुए हैं... जिस दिन आपने मेरा इंटरव्यू लिया था... उसी मैंने आपके बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया था....
जोडार - तुमने मेरी कुंडली पढ़ ली है लगता है... तो अब यह भी बता दो.. कहाँ पर राहु केतु कुंडली मार कर... मेरे भाग्य में बैठ गए हैं...
विश्व - आप सेल्फ मेड बिजनेसमैन हैं... इससे पहले पश्चिम बंगाल में अपना बिजनैस को जमाया... अब अपने राज्य में आकर एस्टाब्लीस होने के इरादे से यहाँ आए... पहली ही बॉल में चौका मारते हुए... इस बिल्डिंग की कांट्रैक्ट हासिल की... सब कुछ सही जा रहा था... पर अब जब सेंचुरी तक पहुँचे हैं... नर्वस नाइन्टी पर पहुँच गए हैं... आपको आउट करने के लिए फील्डिंग सजा दी गई है...
जोडार - परफेक्ट...मतलब तुम्हें केस की पुरी जानकारी है...
विश्व - केस के बारे में जानता हूँ... उसमे क्या अप्स एंड डाउन है... वह सब डॉक्यूमेंट्स देखने के बाद ही कुछ कह सकता हूँ...
जोडार - हूँन्न्न्न्न... और इस केस से अलग एक मुद्दा है...
विश्व - यहाँ पहुँचने के बाद... सारी जगह देख कर.. मैंने अंदाजा लगा लिया है...
जोडार - (हैरान हो कर) क्या... तुमने अंदाजा लगा लिया है...
विश्व - अगर मैं सही हूँ... आपके इस बिल्डिंग के प्रेमीसेस से लग कर... मुझे कुछ इलीगल और अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन्स दिखे... जिससे आपके इस कंस्ट्रक्शन को... जो शायद आपके उस केस के साइड इफेक्ट हैं....
जोडार - वाकई... तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है... तुमने सही अंदाजा लगाया है... यह अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन एक्चुयली... ज़बरदस्ती कब्जा है... और जिसने यह किया है... वह इस शहर का सबसे बड़ा बिल्डर है... और उसके पीछे क्षेत्रपाल है...
विश्व - तो आप क्या चाहते हैं...
जोडार - मुझ पर केस... पेनल्टी भरने के लिए हुआ है... जो कि गलत है... पर डॉक्युमेंट्स के मुताबिक मैं कटघरे में हूँ... मुझे उससे बाहर निकलने का उपाय बताओ... और इस कब्जे से मेरी जमीन छुड़ाने का भी उपाय बताओ...
विश्व - (एक गहरी सांस लेते हुए) ठीक है... मुझे आपके केस रिलेटेड सभी डॉक्युमेंट्स दीजिये...
जोडार - कितने दिनों के लिए...
विश्व - तीन दिनों के लिए...
जोडार - आर यु श्योर...
विश्व - जी...
जोडार - ठीक है... आज शाम तक तुमको सभी डॉक्युमेंट्स मिल जाएंगे...
Jabardastt Updateee
 

Surya_021

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👉सतहत्तरवां अपडेट
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सुबह सुबह जॉगिंग कर तापस अंदर आता है, देखता है ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर प्रतिभा पेपर पढ़ रही है l बगल में विश्व चाय का कप लेकर खड़ा हुआ है l पर प्रतिभा चाय लेने के वजाए चुपचाप पेपर पढ़ रही है और दोनों ही ख़ामोश हैं l

तापस - (विश्व से इशारे से पूछता है) क्या हुआ...
विश्व - (इशारे से) माँ मुझसे गुस्सा हैं...
तापस - (इशारे में) क्यूँ...
विश्व - (इशारे में चाय की कप दिखा कर) मैंने बनाया है... इसलिए माँ गुस्सा है...
तापस - अरे वाह... सुबह सुबह जॉगिंग के बाद... चाय मिल जाए... तो सोने पे सुहागा... ला.... चाय इधर ला... (विश्व के हाथ से चाय ले कर एक सीप लेता है) आह् आहा... आह् हा... क्या बात है... क्या मस्त चाय बनी है... भाग्यवान.... आज तो तुमने कमाल कर दिया... क्या बढ़िया चाय बनाई है...
प्रतिभा - (पेपर को पटकते हुए) ओह... इसका मतलब... आज तक क्या चाय के नाम पर घास चर रहे थे...
तापस - कमाल करती हो... मैंने तुम्हारे चाय की तारीफ की... और तुम हो कि भड़क रही हो...
प्रतिभा - (मुहं फूला कर) यह मैंने नहीं बनाया है... (विश्व की ओर दिखाते हुए) इस कम्बख्त ने बनाया है...
तापस - (हैरान होते हुए) क्या... फिर भी इतना बढ़िया बनी है... मैं तो कहता हूँ... तुम भी ट्राय करो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पी लीजिए... पेट भरने तक पीते जाइए...
तापस - अरे सच में चाय अच्छी बनी है... और तुम्हें गुस्सा किस बात पर है...
प्रतिभा - सुबह उठने में थोड़ी देर हो गई... इसके बेड रुम में पहुँची... तो लाट साहब गायब... ढूंढने से मुझे छत पर कसरत करते दिखा... मैं इसलिए स्नान कर नाश्ता बनाने की सोच रही थी... की यह किचन में घुस कर... नास्ता भी बना दिया... मैं पूछती हूँ... मैं इसे खिलाउँ... या यह मुझे खिलाएगा...
विश्व - (अपने घुटने पर बैठ कर) माँ... तुम हो ना... बहुत ही प्यारी माँ हो... कल रात भर सोई नहीं... हर दुसरे घंटे मेरे कमरे में आती रही... मुझे देखती रही... अब इतना प्यार करने वाली माँ को... खुद कुछ बना कर खिलाने में जो खुशी है... उसे छोड़ना नहीं चाहता था... अब क्या माँ की सेवा के लिए भी मुझे... मेरी माँ सजा देगी...
प्रतिभा - (पिघल जाती है) मेरा बच्चा... (गले लगा कर) (तापस से) देखा... कितना प्यार करता है...
तापस - हाँ भाई... अब माँ बेटे के बीच... मेरा क्या काम...
प्रतिभा - हो गया आपका... अब यह टौंट मारना बंद कीजिए...
तापस - मैं टौंट मारूंगा.. वह भी तुम्हें... मैं...
प्रतिभा - जानती हूँ... जानती हूँ... आप कितना खयाल रखते हैं मेरा...
तापस - लो... अब टौंट कौन मारा... जानती हो भाग्यवान... तुम्हें रोज कोर्ट तक अप एंड डाउन करने के लिए... कल ही आपके लाट साहब को ड्राइविंग स्कुल में गाड़ी चलाना सीखने के लिए कहा....
प्रतिभा - क्यूँ... मैं क्या गाड़ी नहीं सीखा सकती इसे...
तापस - अरे भाग्यवान... तुम इसे सिर्फ़ जुबान चलाना सिखाओ... बाकी चीज़ें उसे किसी और से सीखने के लिए छोड़ दो...
प्रतिभा - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या.. मैं उसे जुबान चलाना सीखाती हूँ...
तापस - फिर गलत... कोर्ट में... आर्गुमेंट को... शुद्ध हिंदी में... जुबान लड़ाना कहते हैं.... क्यूँ बेटा...

दोनों देखते हैं विश्व वहाँ से गायब हो चुका है l

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अनु सिटी बस से उतर कर ESS ऑफिस के अंदर जाती है l अनु को महसुस होती है कुछ तिरछी और तीखी नजरें उसे घूर रही हैं I एक पल के लिए वह ठिठक जाती है l उसे वह नजरें चुभती हुई महसुस होती हैं l वह पल भर के लिए अपनी आँखे बंद कर लेती है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए अंदर जाती है l अपने टेबल पर अपनी हैंड बैग रख देती है और चेयर पर बैठ जाती है l वहाँ पर भी उसे वही सब कुछ महसुस होने लगती है जो ऑफिस के अंदर आते वक़्त उसे महसुस हुई थी l वह जब किसी को देखती है तो सबको किसी ना किसी काम में व्यस्त पाती है l वह अपनी कुर्सी से उठ कर हैंड बैग से वीर की कैबिन की चाबी निकाल कर कैबिन की ओर जाती है l वीर का कैबिन का लॉक खुला हुआ था l मतलब आज वीर जल्दी आ गया है l अनु फौरन अपनी घड़ी देखती है वह ठीक टाइम पर पहुँची है तो वीर इतनी जल्दी कैसे और क्यूँ l यह सोचते हुए वह दरवाजे पर दस्तक देती है l अंदर से वीर की आवाज आती है

वीर - आओ अनु...
अनु दरवाजे को खोल कर अंदर झाँकती है l वीर अपनी कैबिन के अंदर झूम रहा है किसी धुन पर l अनु उसे यूँ झूमते हुए देख कर हैरान हो जाती है l जैसे ही वीर अनु को देखता है वैसे ही झूमते हुए अनु के करीब आता है और उसे कमरे के अंदर खिंच लेता है l अनु हड़बड़ा जाती है पर वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही वीर उसे अपने साथ लिए झूमने लगता है l अनु के कदम वीर के साथ ताल नहीं मिला पाती इसलिए वह घुटनों के बल गिर जाती है l

अनु - आह...
वीर - सॉरी.. सॉरी.. अनु.. सॉरी..
अनु - (उठ कर संभल कर) राजकुमार जी... यह आप ऐसे क्यूँ नाच रहे थे...
वीर - ओ... अनु.. अनु... क्या कहूँ... कल खुशियाँ ही इतनी मिल गई... के उसका सुरूर उतर ही नहीं रहा है...
अनु - ओ अच्छा... आप इतनी जल्दी... ऑफिस इसलिये आ गए...
वीर - (अपने मस्ती में अनु के दोनों बाहों को पकड़ कर) सच कहूँ तो रात जल्दी नींद ही नहीं आई... पता नहीं कब सो गया... (फिर झूमते हुए) पर सुबह जल्दी नींद खुल गई... और आज पहली बार... अपनी भाभी और बहन के साथ... डायनिंग टेबल पर टिफिन कर आया हूँ... (फिर अनु के पास रुक जाता है) सच अनु... बहुत अच्छा लग रहा है...
अनु - (मुस्कराते हुए) तो कल का दिन... आपके लिए बहुत खास बन गया...
वीर - हाँ अनु हाँ... और तुम नहीं जानती... तुम्हें बताने के लिए मैं कितना बेताब हूँ...
अनु - (हल्की सी शर्माहट के साथ) मुझे.. क्यूँ...
वीर - क्या बात कर रही हो... एक ही तो दोस्त हो मेरी... तुमसे अपनी बात ना कहूँ तो किससे कहूँ...
अनु - शुक्रिया राजकुमार जी...
वीर - किसलिए...
अनु - मुझे अपना दोस्त मानने और बनाए रखने के लिए...
वीर - क्या बात कर रही हो अनु... क्या तुम्हें मेरी दोस्ती पर शक है...
अनु - नहीं... कभी नहीं...
वीर - तो फिर... एक बात याद रखना... हमारे बीच कभी थैंक्यू या सॉरी... नहीं आनी चाहिए... ठीक है...
अनु - ठीक है...
वीर - ह्म्म्म्म... आओ अब बैठो...

वीर अनु को खिंच कर सोफ़े पर बिठा देता है और खुद अनु के सामने नीचे फ़र्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है l

अनु - अरे यह... यह आप नीचे क्यूँ बैठ गए... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...
वीर - अनु... इतने दिनों से... कभी देखा है किसीको मेरे होते हुए... मेरे कैबिन में आते... (अनु सिर हिला कर ना कहती है) सिवाय तुम्हारे...

अनु अपनी काली काली आँखे उपर उठा कर वीर के आँखों में देखती है फिर अपनी नजरें झुका लेती है l

वीर - पूछोगी नहीं... कल घर में क्या हुआ...
अनु - (वीर की आँखों में दुबारा देखती है) क्या हुआ...

फ्लैशबैक

आपने गाल पर हाथ फेरते हुए रुप वीर को देखने लगती है l

शुभ्रा - यह... यह क्या किया आपने... राजकुमार...
वीर - नहीं भाभी... राजकुमार नहीं... वीर...

शुभ्रा और रुप दोनों का मुहँ खुला रह जाता है l वह दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं l वीर चुटकी बजाता है l दोनों वीर की ओर देखते हैं

वीर - (रुप से) उस कमीने ने इतना बड़ा कांड किया है... मतलब इससे पहले भी कुछ हुआ है...(चिल्ला कर) बताया क्यूँ नहीं मुझे... और क्या पुछा... थप्पड़ कौन मार रहा है... तो सुन... अभी तुझे तेरे भाई ने लाफा मारा है... समझी... यह ले... (उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट रख कर) केक... चल काट... और हाँ... बड़ा सा टुकड़ा मुझे ही देना... नाश्ते के बाद... अब तक भूखा हूँ...

रुप और शुभ्रा जैसे शॉक में थे l वीर को घूरे जा रहे थे l अचानक यह बर्ताव और ऐसी भाषा l

वीर - हे..इ ...चल केक काट...(रुप के हाथ में प्लास्टिक का छुरी पकड़ा देता है)

रुप - (छुरी को अपने बाएं हाथ पर चुभोती है) आह...
वीर - कोई सपना नहीं देख रही है... अब काटती है या नहीं...
रुप - हँ.. हाँ.. ह्म्म्म्म...

रुप केक काटने लगती है वीर ताली बजाते हुए गाता है

"हैप्पी बर्थ डे टू यू"
रुप केक से एक टुकड़ा काट कर निकालती पर वह असमंजस में पड़ जाती है किसे खिलाए l वीर उसकी मनोस्थिति समझ जाता है l रुप की हाथ से केक का टुकड़ा ले कर

वीर - अपना मुहँ खोल...

रुप एक रोबॉट की तरह मुहँ खोल देती है l वीर उसके मुहँ में केक ठूँस देता है और झट से केक से बड़ा टुकड़ा तोड़ कर रुप के चेहरे पर पोत देता है l फ़िर अपने उँगलियों को चाट कर

वीर - हूँम्म्म्... क्या टेस्ट है... वाह.. मजा आ गया...

रुप अब शॉक से निकलती है और गुस्से से चिल्लाती है

रुप - आ.. आ.. आ.. ह...

वीर वहाँ से सोफ़े के पीछे की ओर भाग जाता है l रुप उसके पीछे केक लेकर भागती है l फिर वीर कुछ देर के लिए ड्रॉइंग रुम में इधर उधर भागने लगता है l रुप भी उसके पीछे पीछे भागने लगती है l फिर वीर टेबल से वह बचा हुआ पुरा केक उठा कर अपने कमरे की ओर भाग जाता है l रुप भी पीछे पीछे पहुँचती है पर तब तक वीर अपने कमरे में घुस कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर देता है l

रुप - (कमरे के बाहर) आ..आ.. आह...(चिल्ला कर) मैं कहती हूँ खोलो दरवाज़ा...
वीर - क्यूँ... क्यूँ खोलुं दरवाजा...
रुप - मेरे हाथ में अभी भी केक का टुकड़ा है...
वीर - ठीक है... जहां तेरे चेहरे पर नहीं लगा है... लगा ले...
रुप - आ... ह... आ... ह... मैं... मैं नहीं छोड़ूंगी...
वीर - ऐ चल हट... पकड़ तो नहीं सकी.. छोड़ने की बात कर रही है...
रुप - (गुस्से में अपनी दांत चबाते हुए) घर पर भूखे आए थे ना... इसलिए बाहर निकलो... मैं अपने हाथों से खाना बना कर खिलाउँगी...
वीर - ना बहना ना... रुलाएगी क्या... बचे हुए केक... अपने साथ ले आया हूँ... जा अपना थोबड़ा साफ कर... वरना सारे नौकर चाकर... डर के मारे... रात भर सो नहीं पाएंगे...
रुप - आ...ह... ठीक है... जब बाहर निकलोगे... तब बहुत पछताओगे...
वीर - (झट से दरवाजा खोलता है) (भारी और कड़क आवाज में) क्या.. क्या कहा...

रुप जो अब तक गुर्रा रही थी वीर का यह रुप देख कर मीमीयाने लगती है l

रुप - क.. कुछ नहीं...
वीर - यह तेरे हाथ में... केक क्यूँ है...
रुप - वह.. वह... मैं..
वीर - ला वह केक...

रुप डर के मारे वह केक का टुकड़ा वीर को दे देती है, वीर वह लेकर जो जगह रुप के चेहरे पर बच गया था वहाँ पर लगा देता है और झट से अपने कमरे में घुस कर दरवाजा फिरसे बंद कर लेता है l अब रुप को समझ में आता है कि उसे वीर ने बेवक़ूफ़ बना दिया l

रुप - आ... ह... आज तुमने मेरा पुरा दिन खराब कर दिया... और तो और तुमने मुझे अब बेवक़ूफ़ भी बनाया... अब तो सच में नहीं छोड़ुंगी... (अंदर से कोई आवाज नहीं आती) (अपने दोनों से दरवाजे पर बारी बारी से मारने लगती है) भा..आ.ई तुमने सुना... मैं तुम्हें नहीं छोड़ुंगी... (तभी दरवाजे के पास जोर से डकार की आवाज सुनाई देता है)
वीर - वाह सच में बहना... क्या टेस्टी केक था.. (फिर से डकार की आवाज सुनाई देती है)

रुप फिर से चिल्लाते हुए अपना पैर पटक कर वहाँ से चल देती है और शुभ्रा के पास पहुँचती है I जब से वीर आया था तब से उसकी हरकतों को देख कर तब से शुभ्रा का मुहँ शॉक से खुला रह गया है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हँ...
रुप - भा...भी
शुभ्रा - हँ... हाँ.. ओ.. हाँ.. अभी अभी कुछ हुआ है... क.. क्या हुआ है...
रुप - भाभी... आपको क्या हो गया है...
शुभ्रा - व.. वह... नंदिनी... यह हैल ही है ना... इस हैल में... हेवन वाली हरकतें... मैं... जाग रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... मैं कबसे नींद में हूँ... मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
रुप - ओ हो भाभी... होश में आओ... जो भी हुआ वह सब सच था... सब वीर भैया ने ही किया...
शुभ्रा - क्या... रा... राजकुमार जी ने किया...

राजकुमार नहीं भाभी.... वीर... वीर ने किया है यह सब... (वीर वहाँ पहुँच कर कहता है) हाँ भाभी... आप कोई नींद में नहीं हैं... ना ही कोई सपना देख रही हैं... मैं नकली पहचान के नीचे छुपे असली रिश्ते को पहचान गया हूँ... वह नकली पहचान... दुनिया वालों के लिये है... घरवालों के लिए नहीं... (रुप को दिखा कर) यह मेरी बहन है... और आप मेरी भाभी... और आज से... मैं वह नकली और झूठे पहचान को और ढ़ो नहीं सकता... जिनसे रिश्तों में सिर्फ दूरियों के सिवा कुछ ना दिया... (फिर रुप को अपने तरफ घुमा कर) मुझे माफ करदे मेरी बहना... बीस सालों से ज़मी धुल साफ हो चुका है... और तु भी... मेरे लिए कोई ज़ज्बात... छुपाना मत... गुस्सा आए... ढेर सारा गुस्सा करना... जब लड़ने को मन होए... जम कर लड़ना... आख़िर इन बीस सालों में... यही तो मुझ से खो गया था... आज मिल गया है...
रुप - भैया... (कह कर फफक पड़ती है, और वीर के गले लग जाती है)
वीर - देखा भाभी... आज दिन भर रोया हूँ... देखो यह फिरसे मुझे अभी रुला रही है... रुलाने तक तो ठीक है... केक से पोती हुई अपनी शकल को... मेरे कपड़े से पोंछ रही है...

रुप झट से अलग हो जाती है और वीर पर घुसे बरसाने लगती है l वीर भी बेशरमो की तरफ अपनी पीठ दिखा कर

वीर - हाँ.. यहाँ.. यह यहाँ.. ले अब यहाँ...
रुप - आँ ह्.. हा.. हाँ... देखो ना भाभी... भाई क्या कर रहे हैं...

शुभ्रा पहले जज्बाती हो गई थी पर फिर जोर जोर से हँसने लग जाती है l

शुभ्रा - ओ ह.. वीर... तुममे इतना शरारत भरा हुआ है...
वीर - पता नहीं भाभी... सच कहूँ तो... मैं आज ही खुद को खोज पाया हूँ...
वीर - (प्यार और आदर के साथ वीर को देखती है) वीर... कभी सोचा नहीं था... इस घर में किसी के बर्थ डे पर केक कटेगा... एक छोटी बहन... अपने भाई के पीछे मारने के लिए भागेगी... शायद इस घर का कोना कोना... यही देखने के लिए तरस रही थी...
वीर - भाभी आज से इस घर में यही सब होगा... बार बार दोहराया भी जाएगा... वैसे भाभी... आप भुल रही हो...
शुभ्रा - क्या...
वीर - आज दिन भर भूखा हूँ...
रुप - अभी अभी तो केक ठूँसा है तुमने...
वीर - आधे से ज्यादा तुझे मेकअप करने में बरबाद हो गया ना...
रुप - आ...ह...
शुभ्रा - बस बस कोई झगड़ा नहीं... जाओ नंदिनी तुम अपना चेहरा साफ कर लो... और वीर... जाओ तुम भी तैयार हो कर आओ... आज हम मिल कर खाना खाएंगे...

फ्लैशबैक खतम

वीर - क्या बताऊँ अनु... मैं अभी भी.. उस खुशी के सुरूर में हूँ... सुबह भी वैसे ही नोक झोंक... पहली बार... छोटी बहन के जिद और नखरे... कितने अच्छे लग रहे थे... मैं अपने अंदर एक नए वीर को खोज निकाला है... जिसे अब मैं हरगिज़ खोने नहीं दूँगा....

अनु उसकी बात को सिर्फ सुन नहीं थी बल्कि उसे एक टक बिना पलकें झुकाए देखे जा रही थी l

वीर - क्या देख रही हो अनु...
अनु - राजकुमार जी... पहले भी आपको खुश होते मैंने देखा है... पर खुशी से चेहरा दमकना... आज पहली बार देख रही हूँ...

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हस्पताल के स्पेशल कैबिन में रॉकी वॉशरुम से निकल कर ठिठक जाता है l उसके बेड पर रवि लेटा हुआ है और आसपास इसके बाकी दोस्त बैठे हुए हैं l उसके वॉशरुम से निकलते ही सभी उसके तरफ देखते हैं l

राजु - आओ... रॉकी बाबु आओ...
रॉकी - (अपने बेड के पास आकर) हैलो...
रवि - हैलो भैया हैलो... बांह फैलाए... आँखे बंद कर... टाइटैनिक पोज लिए खड़ा था... जब आँख खुली तो... (बिस्तर पर हाथ पटक कर) यही हकीकत थी प्यारे....
रॉकी - ह्म्म्म्म... वैसे तुम लोग यहाँ.. मुझे देखने आये हो... या ताना मारने...
सुशील - इतना हक तो रखते हैं हम... है ना... आखिर तु बड्डी है अपना...
आशीष - हाँ... और नहीं तो... ऐसा कौन माई का लाल मर्द है... जो तुने किया... वैसा कर के दिखा दे....
रवि - हाँ... पर यारा... यह जो किया... वह तुझे... सरे आम नहीं करना चाहिए था...
रॉकी - (झुकी हुई कंधे लेकर अपने बेड के किनारे बैठ जाता है) पता नहीं दोस्तों... मैं शायद वह करता भी नहीं... अगर तुम लोग मेरे साथ होते...
राजु - हमारे साथ होने के बावजूद... तुने नंदिनी को... सिम्फनी हाईट्स बुलाया था...
रॉकी - (अपना सिर झुकाए) सॉरी दोस्तों... मैंने ही तुम लोगों का साथ छोड़ा...
रवि - खैर... अब सच बता... यह नाटक क्यूँ किया... पहले दिलरुबा... फिर बहन...
रॉकी - मैं... मैं क्या कहूँ... असलियत यह है कि... नंदिनी के लिए... मेरे दिल में कभी कोई फिलिंग थी ही नहीं... जब मुझे यह एहसास हुआ... मैंने गलती की है... उसकी भरपाई मैंने ऐसे करना चाहा... सच्चे दिल से... जानता था... जोखिम है... फिर भी किया... अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा दाव था... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वैसे... अपने इस कमीने दोस्त के पास... कैसे आना हुआ...
राजु - हाँ... है तो बड़ा कमीना... पर कमीने का दोस्त भी कमीने ही तो हो सकते हैं...
आशीष - हाँ... लाइब्रेरी में कहे... तेरी वह तीन बातों में से.. दो बातेँ हो गई...
रॉकी - लाइब्रेरी में... मेरी कौनसी बातेँ...
रवि - अरे... भूल गया... पहली बात जो किसी मर्द ने... कभी ना किया हो... वाकई... तुने जो किया... वह सिर्फ तु ही कर सकता था...
आशीष - तुझे बचाने के लिए... अपने भाई से लड़ गई...
राजु - बस वह वाला नहीं हुआ...
सुशील - कौन सा...
राजु - अबे वही... नंदिनी भागते हुए... सबके सामने इसके गले लगने वाली...
रॉकी - बस करो यार... बहुत शर्मिंदा हूँ... अपने पेरेंट्स के नजरों में भी गिर गया हूँ... मम्मी ठीक कहती थी... मैं... हर बात में... उतावला हो जाता हूँ... जल्दबाज़ी करने लग जाता हूँ... इसका खामियाजा... अब कॉलेज से रेस्ट्रीकेट होने वाला हूँ...

नहीं होने वाले हो... (कहते हुए कैबिन में रुप अंदर दाख़िल होती है) नहीं होने वाले हो...
रॉकी - नंदिनी जी आ.. आप... (बेड से उतर कर खड़ा हो जाता है)

रॉकी के बाकी दोस्त भी नीचे उतर कर खड़े हो जाते हैं l

रॉकी - आई एम सॉरी... नंदिनी जी...
रुप - सच कहूँ तो... वीर भैया से पहले अगर मैं भी पहुँचती... तब भी वही करती... जो वीर भैया ने किया... पर उस वक़्त तुम्हें बचाना मेरी मज़बूरी बन गई... (रॉकी का सिर झुक जाता है)
राजु - नंदिनी जी... रॉकी से गलती हो गई... पर वह लड़का बुरा नहीं है...
रुप - एई... तुम क्यूँ बीच में बोलने लगे...
राजु - (चुप हो जाता है)
रुप - रॉकी... तुम अपने किसी पुरानी खुन्नस के चलते... मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की हो... पर असलियत यही है कि मेरे साथ हमेशा अच्छा ही हुआ... कल के तुम्हारे उस हरक़त के वजह से... मुझे मेरा भाई मिल गया... बस मेरे जन्मदिन पर मिला यह मेरा सबसे बड़ा तोहफा था... इसी खुशी में आज सुबह ही... तुम्हें माफ करने के लिए वीर भैया से कह दिया... इसलिए तुम कॉलेज से रेस्ट्रीकेट नहीं हो रहे हो...
रॉकी - (खुश होते हुए) थ.. थैंक्यू.. नंदिनी जी... थैंक्यू...
रुप - अब चूँकि... मेरी कुछ खुशियों के पीछे तुम वजह रहे हो... इसलिए मैं तुम्हें अपने भाई का दर्जा दे रही हूँ...
रॉकी - (हैरान हो कर रुप को देखता है)
रुप - अब जल्दी से ठीक हो जाओ... और अपनी डिग्री पुरी करो... वैसे भी तुम्हारे टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप के बारे में... कॉलेज में अच्छी ओपीनियन है...
रॉकी - (अपना हाथ जोड़ देता है) (उसके आँखों से कुछ बूंद आँसू गिर जाते हैं) थैंक्.. थैंक्स... नंदिनी जी...
रुप - ओके रॉकी भैया... मैं अब चलती हूँ... अपना खयाल रखना...
रॉकी - जी नंदिनी बहन... (रुप मुड़ कर जाने को होती है) नंदिनी बहन... (नंदिनी रुक कर रॉकी को देखती है) वह क्या... मैं... ब... बना..नी.. जी से बात कर सकता हूँ...
रुप - हाँ क्यूँ नहीं... (चिल्लाती है) बनानी...

कैबिन के बाहर किसी के भाग जाने की आवाज सुनाई देती है l रुप बाहर जा कर देखती है और फिर कैबिन के अंदर आकर

रुप - वह शायद... शर्मा कर भागी है.. या रूठ कर... पता नहीं... (रॉकी का चेहरा उतर जाता है) (बड़ी उम्मीद भरी नजरों से नंदिनी की ओर देखने लगता है) ना... मुझसे कुछ उम्मीद मत करना... अगर वह तुम्हें पसंद है... तो तुम्हें ही उसके दिल की... सारी गलत फहमी दूर करनी होगी... यह तुम्हारा काम है... मुझसे किसी भी प्रकार की उम्मीद मत करना... क्यूंकि सिफारिश का प्यार सच्चा नहीं होता...

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एक गाड़ी भुवनेश्वर से कटक रास्ते में जा रही है l वह गाड़ी एक सत्ताइस मंज़िल वाली एक आधे तैयार इमारत के नीचे रुकती है l गाड़ी से पहले प्रतिभा उतरती है और दुसरी तरफ से विश्व l

विश्व - माँ... यह हम कहाँ आए हैं...
प्रतिभा - हूँह्... (अपना मुहँ फ़ेर लेती है)
विश्व - ओह ओ माँ... सुबह से मुहँ फूला कर बैठी हो... तुमने कहा तैयार हो जाओ... मैं तैयार हो गया... तुमने कहा गाड़ी में बैठो... मैं बैठ गया... पर अब आए कहाँ हैं...
प्रतिभा - मुझे छोड़ कर... घर से बाहर क्यूँ चला गया था...
विश्व - तो क्या करता... डैड और तुम... दोनों ऐसे लड़ रहे थे... जैसे मैं वहाँ था ही नहीं... तो सोचा... थोड़े समय के लिए बाहर हो आऊँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ... अपनी माँ को अकेली छोड़ कर भाग गया...
विश्व - (अपना सिर गाड़ी पर पीटने लगता है)
प्रतिभा - बस बस... ठीक है चलो माफ किया...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) धन्यबाद माते... अहोभाग्य मेरे..
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब बस कर... लोग हमारे तरफ देख रहे हैं...
विश्व - क्यूँ... मैं अपनी माँ के सामने हाथ जोड़ रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है मेरे लाल... अब जिस काम के लिए आए हैं... वह तो कर लें...
विश्व - मुझे क्या पता... हम कहाँ आए हैं और क्यूँ आए हैं...
प्रतिभा - चल बताती हूँ (कह कर विश्व और वह कंस्ट्रक्शन लोडर लिफ्ट से धीरे धीरे उपर जाने लगते हैं)
प्रतिभा - हम यहाँ.. तेरे क्लाइंट के पास आए हैं... यह उनका कंस्ट्रक्शन साइट है... उन्होंने कहा था... की तेरे छूटने के बाद... तुझे उनसे मिलवाऊँ... मैंने कल उनसे बात की थी... तो उन्होंने ही यहाँ पर मिलने बुलाया था...
विश्व - अच्छा... ह्म्म्म्म... (कह कर चारों ओर अपनी नजरें घुमाता है)

दोनों आखिरी मंजिल पर पहुँचते हैं l वहाँ पर विश्व चारो तरफ घुम कर कंस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन साइट के आस पास देखने लगता है l प्रतिभा अपनी घड़ी देखती है और विश्व की तरफ देख कर

प्रतिभा - अब... थोड़ी ही देर में... जोडार साहब आते होंगे...

विश्व एक जगह खड़े हो कर नीचे की ओर देख रहा है l प्रतिभा उसके पास पहुँचती है l

प्रतिभा - अच्छा प्रताप... तुने... जोडार साहब के बारे में... जानने की कोशिश नहीं की...
विश्व - (अपना सिर हिला कर ना कहता है)
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की उनके बारे में... तुम्हें सब पता होगा... यह मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ...
प्रतिभा - हाँ... मुझे पता तो है पर... सब कुछ नहीं...
विश्व - तो आज ही पता कर लेते हैं...
प्रतिभा - उस दिन... तुने क्या स्कैन किया था उनका...
विश्व - (मुस्कराता है) माँ... स्वपन जोडार... एक माईग्रेटेड बंगाली हैं... वह जब दो या तीन साल के होंगे... तब बांग्लादेश से सन बहत्तर के लड़ाई में... माईग्रेट हो कर उनकी फॅमिली ओड़िशा आए... ओड़िशा के मलकानगिरी ज़िले में उनके फॅमिली को बसाया गया था... उनकी स्कुल कॉलेज सब मलकानगिरी में हुआ... वहीँ से वह बीएसएफ के लिए सिलेक्ट हुए... बॉर्डर पर उनकी वीरता के लिए... मेडल से सम्मानित किया गया.... और भुवनेश्वर में कुछ जमीन भी दी गई... उसी जमीन और रिटायर्मेंट की पूंजी से... वह नई पारी शुरुआत कर आज इस जगह पर पहुँचे हैं...

तभी ताली बजने लगती है l विश्व और प्रतिभा दोनों ताली बजाने वाले की तरफ देखते हैं l स्वपन जोडार उनकी ओर देख कर ताली बजा रहा है l

विश्व - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह विश्व प्रताप... वाह... जैल में पहली मुलाकात में तुमने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया था... और आज दुसरी मुलाकात में.. तुमने मुझे अपना मुरीद बना डाला... वाह...
प्रतिभा - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह... मिसेज सेनापति जी... आज मुझे पुरा यकीन हो गया... मैंने अपने फार्म के लिए... कोहिनूर हीरा ढूँढा है....
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रख कर, बड़े गर्व से कहती है) वह तो है...
स्वपन - आइए... ऊपर बने पेंट हाउस में चलते हैं... वहाँ पर बैठ कर बात चित करते हैं...

तीनों सत्ताइसवीं मंजिल के ऊपर बने पेंट हाउस के ऑफिस में जाते हैं l
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हस्पताल से निकल कर रुप गाड़ी की पार्किंग एरिया में पहुँचती है l वहाँ उसे गाड़ी के पास बनानी इंतजार करते मिल जाती है l रुप बनानी के पास आती है

बनानी - (रुप को बिना देखे) तुमने उसे मेरे बारे में क्यूँ बताया...
रुप - क्यूंकि उसने तुम्हारे बारे में पूछा... इसलिए...
बनानी - (रुप की ओर देख कर) मैं कितनी गलत थी ना...
रुप - तुम गलत नहीं थी... हालात गलत थे... वह गलत था...
बनानी - अगर वह गलत था... तो तुमने मुझसे वह बातेँ क्यूँ छुपाई...
रुप - (एक खरास लेकर) हम गाड़ी में चलते हुए बात करें...

बनानी रुप की गाड़ी में बैठ जाती है, रुप भी उसके बगल में बैठ जाती है l गुरु गाड़ी को पार्किंग में निकाल कर गाड़ी को कॉलेज की ओर ले जाता है l

बनानी - अब बताओ...
रुप - देखो बनानी... रेडियो एफएम प्रोग्राम के बाद... मुझे शक़ हुआ... उसके बाद मैंने... अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश की... तब तक रॉकी के लिए... तेरे दिल में फिलिंग्स पनपने लगे थे...
बनानी - अगर बता देती तो क्या हो जाता...
रुप - कल तुने मुझे मज़बूर किया... तो सब कुछ बता तो दिया... फिर भी... कल तु उसे देखने हस्पताल आयी थी... क्यूँ...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - रॉकी बुरा नहीं है... बस एक गलत फहमी के चलते उसने वह सब किया...
बनानी - तुम क्यूँ उसकी अच्छे होने की सर्टिफिकेट दे रही हो...
रुप - इसलिए कि उसके उम्र में जहां सारे लड़के... कक्टेल पार्टी करते हैं... मैंने जितने दिन भी ऑबजर्वेशन किया... वह या उसके दोस्त नशा बिल्कुल नहीं करते हैं... यही वजह है कि वह बुरा नहीं है....
बनानी - क्या इसलिए तुमने उसे माफ कर दिया...
रुप - नहीं... इसलिए नहीं... उसकी रेडियो वाली हरकत के वजह से... मुझे मेरे अंदर एक नई नंदिनी मिली... और कल के हरकत के वजह से मुझे मेरा भाई मिला...
बनानी - तुम्हारे पास माफ करने के लिए वजह है... पर मैं क्यूँ करूँ...
रुप - वह गुनहगार तुम्हारा नहीं है... मेरा है... रही माफ करने की बात... तो कल उसने जो किया... उसमें पछतावा और प्रायश्चित था... बेशक तरीका गलत था... पर कल की उसकी हरकत में... वह ईमानदार था...

गाड़ी के अंदर कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l रुप देखती है बनानी खिड़की से बाहर की ओर झाँक रही है और मुट्ठी बना कर मुड़े हुए उंगलीओं को उपर नीचे कर रही है l

रुप - क्या हुआ... तुम ख़ामोश क्यूँ हो गई...
बनानी - क्या तुमने उसे यहाँ तक माफ कर दिया... की एक दिन उसके गले लग जाओ...
रुप - नहीं.. उसने मुझसे रिश्ता जोड़ा नहीं है... थोपा है... जब भाई वाला कोई ऐसा काम हो... जिस पर एक बहन को नाज़ हो... उस दिन मैं बेझिझक उसके गले लग जाऊँगी...
बनानी - (रुप की ओर देखती है)
रुप - अब जो रिश्ता उसने जोड़ने की कोशिश की है... उसमें इम्तिहान उसे देना है...
बनानी - मैं उसे माफ नहीं करुँगी...
रुप - मैं उसकी सिफारिश भी नहीं करूंगी...

बनानी मुहँ फ़ेर कर फिर से बाहर की ओर देखने लगती है l रुप उसे कुछ और नहीं कहती है वह भी बाहर की ओर देखने लगती है l

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जोडार के पेंट हाउस वाली ऑफिस में टेबल पर प्रतिभा और विश्व बैठे हुए हैं पर जोडार वहाँ से बाहर नीचे की ओर देख रहा है

प्रतिभा - क्या बात है, जोडार साहब.... किन ख़यालों में खोए हुए हैं... हम भी इस कमरे में हैं... जरा गौर कीजिए....
जोडार - (उनके तरफ मुड़ते हुए) माफ कीजिए... सोच रहा था... कैसे बात शुरु करूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... लगता है... कोई बड़ी वाली परेशानी है....
जोडार - हाँ है...
प्रतिभा - अगर पर्सनल है... तो हमें माफ लीजिए... और अगर लॉ रिलेटेड है... तो मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... और प्रताप आपके सामने बैठा है...
जोडार - जी मैडम... जानता हूँ... (पॉज लेकर) जानती हैं.... इससे पहले जो लीगल टीम थी... वह फैल हो गई थी... इसलिए मैं आपके पास गया था... आपने मुझे प्रताप का नाम सुझाया था... पहली मुलाकात में... उसने मुझे इम्प्रेस भी किया... और अभी कुछ देर पहले... मेरी पुरी डेटा आपको बता दिया.... फिर भी...
प्रतिभा - फ़िर भी... क्या मतलब है फिर भी...
जोडार - फिर भी... क्या प्रताप यह केस समझ पाएगा... क्यूंकि अभीतक उसका कोई एक्सपेरियंस नहीं है.... वैसे भी... प्रताप का बार लाइसेंस आने में दो महीने बाकी हैं...
प्रतिभा - एक्सपीरियंस नहीं है... यह आपकी नजरिया है... मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... तो मेरी एक्सपीरियंस पर भरोसा कर सकते हैं.... लाइसेंस चाहे जब भी आए... आपको एडवाइस लेने के लिए लाइसेंस की क्या जरूरत है...
जोडार - प्रताप... इफ यु डोंट माइंड... कुछ पूछूं...
विश्व - जी बिल्कुल...
जोडार - पहली मुलाकात में... तुमने मेरा परफेक्ट स्कैन किया था... पर आज तुमने मेरा बायोडेटा कैसे हासिल कर लिया...
विश्व - मेरी अपनी सोर्सेस हैं...
जोडार - मतलब तुम्हारा अपनी नेटवर्क है....
विश्व - एक वकील के लिए यह बहुत जरूरी है...
जोडार - (एक गहरी सांस अंदर लेकर छोड़ता है) मैंने भी तुम्हारे बारे में कुछ जानकारी हासिल की है... होप... बुरा नहीं मानोगे...
विश्व - नहीं... पर आप किस बात पर हिचकिचा रहे हैं...
जोडार - मेरे इस केस में कहीं ना कहीं... क्षेत्रपाल जुड़े हुए हैं... इसलिए हिचकिचा रहा था...
विश्व - मैं जानता हूँ...
जोडार - व्हाट... क.. कैसे.. कैसे जानते हो...
विश्व - आप भूल रहे हैं... अभी अभी मैंने कहा था कि मेरी अपनी सोर्सेस हैं....
जोडार - यानी तुम जानते हो... मैं किस केस में घुट रहा हूँ...
विश्व - जी...
जोडार - ओह माय गॉड... कैसे... सॉरी मतलब क्या जानते हो...
विश्व - आप एक नहीं दो केसों में उलझे हुए हैं... जिस दिन आपने मेरा इंटरव्यू लिया था... उसी मैंने आपके बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया था....
जोडार - तुमने मेरी कुंडली पढ़ ली है लगता है... तो अब यह भी बता दो.. कहाँ पर राहु केतु कुंडली मार कर... मेरे भाग्य में बैठ गए हैं...
विश्व - आप सेल्फ मेड बिजनेसमैन हैं... इससे पहले पश्चिम बंगाल में अपना बिजनैस को जमाया... अब अपने राज्य में आकर एस्टाब्लीस होने के इरादे से यहाँ आए... पहली ही बॉल में चौका मारते हुए... इस बिल्डिंग की कांट्रैक्ट हासिल की... सब कुछ सही जा रहा था... पर अब जब सेंचुरी तक पहुँचे हैं... नर्वस नाइन्टी पर पहुँच गए हैं... आपको आउट करने के लिए फील्डिंग सजा दी गई है...
जोडार - परफेक्ट...मतलब तुम्हें केस की पुरी जानकारी है...
विश्व - केस के बारे में जानता हूँ... उसमे क्या अप्स एंड डाउन है... वह सब डॉक्यूमेंट्स देखने के बाद ही कुछ कह सकता हूँ...
जोडार - हूँन्न्न्न्न... और इस केस से अलग एक मुद्दा है...
विश्व - यहाँ पहुँचने के बाद... सारी जगह देख कर.. मैंने अंदाजा लगा लिया है...
जोडार - (हैरान हो कर) क्या... तुमने अंदाजा लगा लिया है...
विश्व - अगर मैं सही हूँ... आपके इस बिल्डिंग के प्रेमीसेस से लग कर... मुझे कुछ इलीगल और अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन्स दिखे... जिससे आपके इस कंस्ट्रक्शन को... जो शायद आपके उस केस के साइड इफेक्ट हैं....
जोडार - वाकई... तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है... तुमने सही अंदाजा लगाया है... यह अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन एक्चुयली... ज़बरदस्ती कब्जा है... और जिसने यह किया है... वह इस शहर का सबसे बड़ा बिल्डर है... और उसके पीछे क्षेत्रपाल है...
विश्व - तो आप क्या चाहते हैं...
जोडार - मुझ पर केस... पेनल्टी भरने के लिए हुआ है... जो कि गलत है... पर डॉक्युमेंट्स के मुताबिक मैं कटघरे में हूँ... मुझे उससे बाहर निकलने का उपाय बताओ... और इस कब्जे से मेरी जमीन छुड़ाने का भी उपाय बताओ...
विश्व - (एक गहरी सांस लेते हुए) ठीक है... मुझे आपके केस रिलेटेड सभी डॉक्युमेंट्स दीजिये...
जोडार - कितने दिनों के लिए...
विश्व - तीन दिनों के लिए...
जोडार - आर यु श्योर...
विश्व - जी...
जोडार - ठीक है... आज शाम तक तुमको सभी डॉक्युमेंट्स मिल जाएंगे...
Awesome update 😍😍
 

parkas

Well-Known Member
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👉सतहत्तरवां अपडेट
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सुबह सुबह जॉगिंग कर तापस अंदर आता है, देखता है ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर प्रतिभा पेपर पढ़ रही है l बगल में विश्व चाय का कप लेकर खड़ा हुआ है l पर प्रतिभा चाय लेने के वजाए चुपचाप पेपर पढ़ रही है और दोनों ही ख़ामोश हैं l

तापस - (विश्व से इशारे से पूछता है) क्या हुआ...
विश्व - (इशारे से) माँ मुझसे गुस्सा हैं...
तापस - (इशारे में) क्यूँ...
विश्व - (इशारे में चाय की कप दिखा कर) मैंने बनाया है... इसलिए माँ गुस्सा है...
तापस - अरे वाह... सुबह सुबह जॉगिंग के बाद... चाय मिल जाए... तो सोने पे सुहागा... ला.... चाय इधर ला... (विश्व के हाथ से चाय ले कर एक सीप लेता है) आह् आहा... आह् हा... क्या बात है... क्या मस्त चाय बनी है... भाग्यवान.... आज तो तुमने कमाल कर दिया... क्या बढ़िया चाय बनाई है...
प्रतिभा - (पेपर को पटकते हुए) ओह... इसका मतलब... आज तक क्या चाय के नाम पर घास चर रहे थे...
तापस - कमाल करती हो... मैंने तुम्हारे चाय की तारीफ की... और तुम हो कि भड़क रही हो...
प्रतिभा - (मुहं फूला कर) यह मैंने नहीं बनाया है... (विश्व की ओर दिखाते हुए) इस कम्बख्त ने बनाया है...
तापस - (हैरान होते हुए) क्या... फिर भी इतना बढ़िया बनी है... मैं तो कहता हूँ... तुम भी ट्राय करो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पी लीजिए... पेट भरने तक पीते जाइए...
तापस - अरे सच में चाय अच्छी बनी है... और तुम्हें गुस्सा किस बात पर है...
प्रतिभा - सुबह उठने में थोड़ी देर हो गई... इसके बेड रुम में पहुँची... तो लाट साहब गायब... ढूंढने से मुझे छत पर कसरत करते दिखा... मैं इसलिए स्नान कर नाश्ता बनाने की सोच रही थी... की यह किचन में घुस कर... नास्ता भी बना दिया... मैं पूछती हूँ... मैं इसे खिलाउँ... या यह मुझे खिलाएगा...
विश्व - (अपने घुटने पर बैठ कर) माँ... तुम हो ना... बहुत ही प्यारी माँ हो... कल रात भर सोई नहीं... हर दुसरे घंटे मेरे कमरे में आती रही... मुझे देखती रही... अब इतना प्यार करने वाली माँ को... खुद कुछ बना कर खिलाने में जो खुशी है... उसे छोड़ना नहीं चाहता था... अब क्या माँ की सेवा के लिए भी मुझे... मेरी माँ सजा देगी...
प्रतिभा - (पिघल जाती है) मेरा बच्चा... (गले लगा कर) (तापस से) देखा... कितना प्यार करता है...
तापस - हाँ भाई... अब माँ बेटे के बीच... मेरा क्या काम...
प्रतिभा - हो गया आपका... अब यह टौंट मारना बंद कीजिए...
तापस - मैं टौंट मारूंगा.. वह भी तुम्हें... मैं...
प्रतिभा - जानती हूँ... जानती हूँ... आप कितना खयाल रखते हैं मेरा...
तापस - लो... अब टौंट कौन मारा... जानती हो भाग्यवान... तुम्हें रोज कोर्ट तक अप एंड डाउन करने के लिए... कल ही आपके लाट साहब को ड्राइविंग स्कुल में गाड़ी चलाना सीखने के लिए कहा....
प्रतिभा - क्यूँ... मैं क्या गाड़ी नहीं सीखा सकती इसे...
तापस - अरे भाग्यवान... तुम इसे सिर्फ़ जुबान चलाना सिखाओ... बाकी चीज़ें उसे किसी और से सीखने के लिए छोड़ दो...
प्रतिभा - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या.. मैं उसे जुबान चलाना सीखाती हूँ...
तापस - फिर गलत... कोर्ट में... आर्गुमेंट को... शुद्ध हिंदी में... जुबान लड़ाना कहते हैं.... क्यूँ बेटा...

दोनों देखते हैं विश्व वहाँ से गायब हो चुका है l

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अनु सिटी बस से उतर कर ESS ऑफिस के अंदर जाती है l अनु को महसुस होती है कुछ तिरछी और तीखी नजरें उसे घूर रही हैं I एक पल के लिए वह ठिठक जाती है l उसे वह नजरें चुभती हुई महसुस होती हैं l वह पल भर के लिए अपनी आँखे बंद कर लेती है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए अंदर जाती है l अपने टेबल पर अपनी हैंड बैग रख देती है और चेयर पर बैठ जाती है l वहाँ पर भी उसे वही सब कुछ महसुस होने लगती है जो ऑफिस के अंदर आते वक़्त उसे महसुस हुई थी l वह जब किसी को देखती है तो सबको किसी ना किसी काम में व्यस्त पाती है l वह अपनी कुर्सी से उठ कर हैंड बैग से वीर की कैबिन की चाबी निकाल कर कैबिन की ओर जाती है l वीर का कैबिन का लॉक खुला हुआ था l मतलब आज वीर जल्दी आ गया है l अनु फौरन अपनी घड़ी देखती है वह ठीक टाइम पर पहुँची है तो वीर इतनी जल्दी कैसे और क्यूँ l यह सोचते हुए वह दरवाजे पर दस्तक देती है l अंदर से वीर की आवाज आती है

वीर - आओ अनु...
अनु दरवाजे को खोल कर अंदर झाँकती है l वीर अपनी कैबिन के अंदर झूम रहा है किसी धुन पर l अनु उसे यूँ झूमते हुए देख कर हैरान हो जाती है l जैसे ही वीर अनु को देखता है वैसे ही झूमते हुए अनु के करीब आता है और उसे कमरे के अंदर खिंच लेता है l अनु हड़बड़ा जाती है पर वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही वीर उसे अपने साथ लिए झूमने लगता है l अनु के कदम वीर के साथ ताल नहीं मिला पाती इसलिए वह घुटनों के बल गिर जाती है l

अनु - आह...
वीर - सॉरी.. सॉरी.. अनु.. सॉरी..
अनु - (उठ कर संभल कर) राजकुमार जी... यह आप ऐसे क्यूँ नाच रहे थे...
वीर - ओ... अनु.. अनु... क्या कहूँ... कल खुशियाँ ही इतनी मिल गई... के उसका सुरूर उतर ही नहीं रहा है...
अनु - ओ अच्छा... आप इतनी जल्दी... ऑफिस इसलिये आ गए...
वीर - (अपने मस्ती में अनु के दोनों बाहों को पकड़ कर) सच कहूँ तो रात जल्दी नींद ही नहीं आई... पता नहीं कब सो गया... (फिर झूमते हुए) पर सुबह जल्दी नींद खुल गई... और आज पहली बार... अपनी भाभी और बहन के साथ... डायनिंग टेबल पर टिफिन कर आया हूँ... (फिर अनु के पास रुक जाता है) सच अनु... बहुत अच्छा लग रहा है...
अनु - (मुस्कराते हुए) तो कल का दिन... आपके लिए बहुत खास बन गया...
वीर - हाँ अनु हाँ... और तुम नहीं जानती... तुम्हें बताने के लिए मैं कितना बेताब हूँ...
अनु - (हल्की सी शर्माहट के साथ) मुझे.. क्यूँ...
वीर - क्या बात कर रही हो... एक ही तो दोस्त हो मेरी... तुमसे अपनी बात ना कहूँ तो किससे कहूँ...
अनु - शुक्रिया राजकुमार जी...
वीर - किसलिए...
अनु - मुझे अपना दोस्त मानने और बनाए रखने के लिए...
वीर - क्या बात कर रही हो अनु... क्या तुम्हें मेरी दोस्ती पर शक है...
अनु - नहीं... कभी नहीं...
वीर - तो फिर... एक बात याद रखना... हमारे बीच कभी थैंक्यू या सॉरी... नहीं आनी चाहिए... ठीक है...
अनु - ठीक है...
वीर - ह्म्म्म्म... आओ अब बैठो...

वीर अनु को खिंच कर सोफ़े पर बिठा देता है और खुद अनु के सामने नीचे फ़र्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है l

अनु - अरे यह... यह आप नीचे क्यूँ बैठ गए... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...
वीर - अनु... इतने दिनों से... कभी देखा है किसीको मेरे होते हुए... मेरे कैबिन में आते... (अनु सिर हिला कर ना कहती है) सिवाय तुम्हारे...

अनु अपनी काली काली आँखे उपर उठा कर वीर के आँखों में देखती है फिर अपनी नजरें झुका लेती है l

वीर - पूछोगी नहीं... कल घर में क्या हुआ...
अनु - (वीर की आँखों में दुबारा देखती है) क्या हुआ...

फ्लैशबैक

आपने गाल पर हाथ फेरते हुए रुप वीर को देखने लगती है l

शुभ्रा - यह... यह क्या किया आपने... राजकुमार...
वीर - नहीं भाभी... राजकुमार नहीं... वीर...

शुभ्रा और रुप दोनों का मुहँ खुला रह जाता है l वह दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं l वीर चुटकी बजाता है l दोनों वीर की ओर देखते हैं

वीर - (रुप से) उस कमीने ने इतना बड़ा कांड किया है... मतलब इससे पहले भी कुछ हुआ है...(चिल्ला कर) बताया क्यूँ नहीं मुझे... और क्या पुछा... थप्पड़ कौन मार रहा है... तो सुन... अभी तुझे तेरे भाई ने लाफा मारा है... समझी... यह ले... (उसके हाथ में बड़ा सा पैकेट रख कर) केक... चल काट... और हाँ... बड़ा सा टुकड़ा मुझे ही देना... नाश्ते के बाद... अब तक भूखा हूँ...

रुप और शुभ्रा जैसे शॉक में थे l वीर को घूरे जा रहे थे l अचानक यह बर्ताव और ऐसी भाषा l

वीर - हे..इ ...चल केक काट...(रुप के हाथ में प्लास्टिक का छुरी पकड़ा देता है)

रुप - (छुरी को अपने बाएं हाथ पर चुभोती है) आह...
वीर - कोई सपना नहीं देख रही है... अब काटती है या नहीं...
रुप - हँ.. हाँ.. ह्म्म्म्म...

रुप केक काटने लगती है वीर ताली बजाते हुए गाता है

"हैप्पी बर्थ डे टू यू"
रुप केक से एक टुकड़ा काट कर निकालती पर वह असमंजस में पड़ जाती है किसे खिलाए l वीर उसकी मनोस्थिति समझ जाता है l रुप की हाथ से केक का टुकड़ा ले कर

वीर - अपना मुहँ खोल...

रुप एक रोबॉट की तरह मुहँ खोल देती है l वीर उसके मुहँ में केक ठूँस देता है और झट से केक से बड़ा टुकड़ा तोड़ कर रुप के चेहरे पर पोत देता है l फ़िर अपने उँगलियों को चाट कर

वीर - हूँम्म्म्... क्या टेस्ट है... वाह.. मजा आ गया...

रुप अब शॉक से निकलती है और गुस्से से चिल्लाती है

रुप - आ.. आ.. आ.. ह...

वीर वहाँ से सोफ़े के पीछे की ओर भाग जाता है l रुप उसके पीछे केक लेकर भागती है l फिर वीर कुछ देर के लिए ड्रॉइंग रुम में इधर उधर भागने लगता है l रुप भी उसके पीछे पीछे भागने लगती है l फिर वीर टेबल से वह बचा हुआ पुरा केक उठा कर अपने कमरे की ओर भाग जाता है l रुप भी पीछे पीछे पहुँचती है पर तब तक वीर अपने कमरे में घुस कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर देता है l

रुप - (कमरे के बाहर) आ..आ.. आह...(चिल्ला कर) मैं कहती हूँ खोलो दरवाज़ा...
वीर - क्यूँ... क्यूँ खोलुं दरवाजा...
रुप - मेरे हाथ में अभी भी केक का टुकड़ा है...
वीर - ठीक है... जहां तेरे चेहरे पर नहीं लगा है... लगा ले...
रुप - आ... ह... आ... ह... मैं... मैं नहीं छोड़ूंगी...
वीर - ऐ चल हट... पकड़ तो नहीं सकी.. छोड़ने की बात कर रही है...
रुप - (गुस्से में अपनी दांत चबाते हुए) घर पर भूखे आए थे ना... इसलिए बाहर निकलो... मैं अपने हाथों से खाना बना कर खिलाउँगी...
वीर - ना बहना ना... रुलाएगी क्या... बचे हुए केक... अपने साथ ले आया हूँ... जा अपना थोबड़ा साफ कर... वरना सारे नौकर चाकर... डर के मारे... रात भर सो नहीं पाएंगे...
रुप - आ...ह... ठीक है... जब बाहर निकलोगे... तब बहुत पछताओगे...
वीर - (झट से दरवाजा खोलता है) (भारी और कड़क आवाज में) क्या.. क्या कहा...

रुप जो अब तक गुर्रा रही थी वीर का यह रुप देख कर मीमीयाने लगती है l

रुप - क.. कुछ नहीं...
वीर - यह तेरे हाथ में... केक क्यूँ है...
रुप - वह.. वह... मैं..
वीर - ला वह केक...

रुप डर के मारे वह केक का टुकड़ा वीर को दे देती है, वीर वह लेकर जो जगह रुप के चेहरे पर बच गया था वहाँ पर लगा देता है और झट से अपने कमरे में घुस कर दरवाजा फिरसे बंद कर लेता है l अब रुप को समझ में आता है कि उसे वीर ने बेवक़ूफ़ बना दिया l

रुप - आ... ह... आज तुमने मेरा पुरा दिन खराब कर दिया... और तो और तुमने मुझे अब बेवक़ूफ़ भी बनाया... अब तो सच में नहीं छोड़ुंगी... (अंदर से कोई आवाज नहीं आती) (अपने दोनों से दरवाजे पर बारी बारी से मारने लगती है) भा..आ.ई तुमने सुना... मैं तुम्हें नहीं छोड़ुंगी... (तभी दरवाजे के पास जोर से डकार की आवाज सुनाई देता है)
वीर - वाह सच में बहना... क्या टेस्टी केक था.. (फिर से डकार की आवाज सुनाई देती है)

रुप फिर से चिल्लाते हुए अपना पैर पटक कर वहाँ से चल देती है और शुभ्रा के पास पहुँचती है I जब से वीर आया था तब से उसकी हरकतों को देख कर तब से शुभ्रा का मुहँ शॉक से खुला रह गया है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हँ...
रुप - भा...भी
शुभ्रा - हँ... हाँ.. ओ.. हाँ.. अभी अभी कुछ हुआ है... क.. क्या हुआ है...
रुप - भाभी... आपको क्या हो गया है...
शुभ्रा - व.. वह... नंदिनी... यह हैल ही है ना... इस हैल में... हेवन वाली हरकतें... मैं... जाग रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... मैं कबसे नींद में हूँ... मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
रुप - ओ हो भाभी... होश में आओ... जो भी हुआ वह सब सच था... सब वीर भैया ने ही किया...
शुभ्रा - क्या... रा... राजकुमार जी ने किया...

राजकुमार नहीं भाभी.... वीर... वीर ने किया है यह सब... (वीर वहाँ पहुँच कर कहता है) हाँ भाभी... आप कोई नींद में नहीं हैं... ना ही कोई सपना देख रही हैं... मैं नकली पहचान के नीचे छुपे असली रिश्ते को पहचान गया हूँ... वह नकली पहचान... दुनिया वालों के लिये है... घरवालों के लिए नहीं... (रुप को दिखा कर) यह मेरी बहन है... और आप मेरी भाभी... और आज से... मैं वह नकली और झूठे पहचान को और ढ़ो नहीं सकता... जिनसे रिश्तों में सिर्फ दूरियों के सिवा कुछ ना दिया... (फिर रुप को अपने तरफ घुमा कर) मुझे माफ करदे मेरी बहना... बीस सालों से ज़मी धुल साफ हो चुका है... और तु भी... मेरे लिए कोई ज़ज्बात... छुपाना मत... गुस्सा आए... ढेर सारा गुस्सा करना... जब लड़ने को मन होए... जम कर लड़ना... आख़िर इन बीस सालों में... यही तो मुझ से खो गया था... आज मिल गया है...
रुप - भैया... (कह कर फफक पड़ती है, और वीर के गले लग जाती है)
वीर - देखा भाभी... आज दिन भर रोया हूँ... देखो यह फिरसे मुझे अभी रुला रही है... रुलाने तक तो ठीक है... केक से पोती हुई अपनी शकल को... मेरे कपड़े से पोंछ रही है...

रुप झट से अलग हो जाती है और वीर पर घुसे बरसाने लगती है l वीर भी बेशरमो की तरफ अपनी पीठ दिखा कर

वीर - हाँ.. यहाँ.. यह यहाँ.. ले अब यहाँ...
रुप - आँ ह्.. हा.. हाँ... देखो ना भाभी... भाई क्या कर रहे हैं...

शुभ्रा पहले जज्बाती हो गई थी पर फिर जोर जोर से हँसने लग जाती है l

शुभ्रा - ओ ह.. वीर... तुममे इतना शरारत भरा हुआ है...
वीर - पता नहीं भाभी... सच कहूँ तो... मैं आज ही खुद को खोज पाया हूँ...
वीर - (प्यार और आदर के साथ वीर को देखती है) वीर... कभी सोचा नहीं था... इस घर में किसी के बर्थ डे पर केक कटेगा... एक छोटी बहन... अपने भाई के पीछे मारने के लिए भागेगी... शायद इस घर का कोना कोना... यही देखने के लिए तरस रही थी...
वीर - भाभी आज से इस घर में यही सब होगा... बार बार दोहराया भी जाएगा... वैसे भाभी... आप भुल रही हो...
शुभ्रा - क्या...
वीर - आज दिन भर भूखा हूँ...
रुप - अभी अभी तो केक ठूँसा है तुमने...
वीर - आधे से ज्यादा तुझे मेकअप करने में बरबाद हो गया ना...
रुप - आ...ह...
शुभ्रा - बस बस कोई झगड़ा नहीं... जाओ नंदिनी तुम अपना चेहरा साफ कर लो... और वीर... जाओ तुम भी तैयार हो कर आओ... आज हम मिल कर खाना खाएंगे...

फ्लैशबैक खतम

वीर - क्या बताऊँ अनु... मैं अभी भी.. उस खुशी के सुरूर में हूँ... सुबह भी वैसे ही नोक झोंक... पहली बार... छोटी बहन के जिद और नखरे... कितने अच्छे लग रहे थे... मैं अपने अंदर एक नए वीर को खोज निकाला है... जिसे अब मैं हरगिज़ खोने नहीं दूँगा....

अनु उसकी बात को सिर्फ सुन नहीं थी बल्कि उसे एक टक बिना पलकें झुकाए देखे जा रही थी l

वीर - क्या देख रही हो अनु...
अनु - राजकुमार जी... पहले भी आपको खुश होते मैंने देखा है... पर खुशी से चेहरा दमकना... आज पहली बार देख रही हूँ...

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हस्पताल के स्पेशल कैबिन में रॉकी वॉशरुम से निकल कर ठिठक जाता है l उसके बेड पर रवि लेटा हुआ है और आसपास इसके बाकी दोस्त बैठे हुए हैं l उसके वॉशरुम से निकलते ही सभी उसके तरफ देखते हैं l

राजु - आओ... रॉकी बाबु आओ...
रॉकी - (अपने बेड के पास आकर) हैलो...
रवि - हैलो भैया हैलो... बांह फैलाए... आँखे बंद कर... टाइटैनिक पोज लिए खड़ा था... जब आँख खुली तो... (बिस्तर पर हाथ पटक कर) यही हकीकत थी प्यारे....
रॉकी - ह्म्म्म्म... वैसे तुम लोग यहाँ.. मुझे देखने आये हो... या ताना मारने...
सुशील - इतना हक तो रखते हैं हम... है ना... आखिर तु बड्डी है अपना...
आशीष - हाँ... और नहीं तो... ऐसा कौन माई का लाल मर्द है... जो तुने किया... वैसा कर के दिखा दे....
रवि - हाँ... पर यारा... यह जो किया... वह तुझे... सरे आम नहीं करना चाहिए था...
रॉकी - (झुकी हुई कंधे लेकर अपने बेड के किनारे बैठ जाता है) पता नहीं दोस्तों... मैं शायद वह करता भी नहीं... अगर तुम लोग मेरे साथ होते...
राजु - हमारे साथ होने के बावजूद... तुने नंदिनी को... सिम्फनी हाईट्स बुलाया था...
रॉकी - (अपना सिर झुकाए) सॉरी दोस्तों... मैंने ही तुम लोगों का साथ छोड़ा...
रवि - खैर... अब सच बता... यह नाटक क्यूँ किया... पहले दिलरुबा... फिर बहन...
रॉकी - मैं... मैं क्या कहूँ... असलियत यह है कि... नंदिनी के लिए... मेरे दिल में कभी कोई फिलिंग थी ही नहीं... जब मुझे यह एहसास हुआ... मैंने गलती की है... उसकी भरपाई मैंने ऐसे करना चाहा... सच्चे दिल से... जानता था... जोखिम है... फिर भी किया... अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा दाव था... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वैसे... अपने इस कमीने दोस्त के पास... कैसे आना हुआ...
राजु - हाँ... है तो बड़ा कमीना... पर कमीने का दोस्त भी कमीने ही तो हो सकते हैं...
आशीष - हाँ... लाइब्रेरी में कहे... तेरी वह तीन बातों में से.. दो बातेँ हो गई...
रॉकी - लाइब्रेरी में... मेरी कौनसी बातेँ...
रवि - अरे... भूल गया... पहली बात जो किसी मर्द ने... कभी ना किया हो... वाकई... तुने जो किया... वह सिर्फ तु ही कर सकता था...
आशीष - तुझे बचाने के लिए... अपने भाई से लड़ गई...
राजु - बस वह वाला नहीं हुआ...
सुशील - कौन सा...
राजु - अबे वही... नंदिनी भागते हुए... सबके सामने इसके गले लगने वाली...
रॉकी - बस करो यार... बहुत शर्मिंदा हूँ... अपने पेरेंट्स के नजरों में भी गिर गया हूँ... मम्मी ठीक कहती थी... मैं... हर बात में... उतावला हो जाता हूँ... जल्दबाज़ी करने लग जाता हूँ... इसका खामियाजा... अब कॉलेज से रेस्ट्रीकेट होने वाला हूँ...

नहीं होने वाले हो... (कहते हुए कैबिन में रुप अंदर दाख़िल होती है) नहीं होने वाले हो...
रॉकी - नंदिनी जी आ.. आप... (बेड से उतर कर खड़ा हो जाता है)

रॉकी के बाकी दोस्त भी नीचे उतर कर खड़े हो जाते हैं l

रॉकी - आई एम सॉरी... नंदिनी जी...
रुप - सच कहूँ तो... वीर भैया से पहले अगर मैं भी पहुँचती... तब भी वही करती... जो वीर भैया ने किया... पर उस वक़्त तुम्हें बचाना मेरी मज़बूरी बन गई... (रॉकी का सिर झुक जाता है)
राजु - नंदिनी जी... रॉकी से गलती हो गई... पर वह लड़का बुरा नहीं है...
रुप - एई... तुम क्यूँ बीच में बोलने लगे...
राजु - (चुप हो जाता है)
रुप - रॉकी... तुम अपने किसी पुरानी खुन्नस के चलते... मेरे साथ कुछ भी गलत करने की कोशिश की हो... पर असलियत यही है कि मेरे साथ हमेशा अच्छा ही हुआ... कल के तुम्हारे उस हरक़त के वजह से... मुझे मेरा भाई मिल गया... बस मेरे जन्मदिन पर मिला यह मेरा सबसे बड़ा तोहफा था... इसी खुशी में आज सुबह ही... तुम्हें माफ करने के लिए वीर भैया से कह दिया... इसलिए तुम कॉलेज से रेस्ट्रीकेट नहीं हो रहे हो...
रॉकी - (खुश होते हुए) थ.. थैंक्यू.. नंदिनी जी... थैंक्यू...
रुप - अब चूँकि... मेरी कुछ खुशियों के पीछे तुम वजह रहे हो... इसलिए मैं तुम्हें अपने भाई का दर्जा दे रही हूँ...
रॉकी - (हैरान हो कर रुप को देखता है)
रुप - अब जल्दी से ठीक हो जाओ... और अपनी डिग्री पुरी करो... वैसे भी तुम्हारे टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप के बारे में... कॉलेज में अच्छी ओपीनियन है...
रॉकी - (अपना हाथ जोड़ देता है) (उसके आँखों से कुछ बूंद आँसू गिर जाते हैं) थैंक्.. थैंक्स... नंदिनी जी...
रुप - ओके रॉकी भैया... मैं अब चलती हूँ... अपना खयाल रखना...
रॉकी - जी नंदिनी बहन... (रुप मुड़ कर जाने को होती है) नंदिनी बहन... (नंदिनी रुक कर रॉकी को देखती है) वह क्या... मैं... ब... बना..नी.. जी से बात कर सकता हूँ...
रुप - हाँ क्यूँ नहीं... (चिल्लाती है) बनानी...

कैबिन के बाहर किसी के भाग जाने की आवाज सुनाई देती है l रुप बाहर जा कर देखती है और फिर कैबिन के अंदर आकर

रुप - वह शायद... शर्मा कर भागी है.. या रूठ कर... पता नहीं... (रॉकी का चेहरा उतर जाता है) (बड़ी उम्मीद भरी नजरों से नंदिनी की ओर देखने लगता है) ना... मुझसे कुछ उम्मीद मत करना... अगर वह तुम्हें पसंद है... तो तुम्हें ही उसके दिल की... सारी गलत फहमी दूर करनी होगी... यह तुम्हारा काम है... मुझसे किसी भी प्रकार की उम्मीद मत करना... क्यूंकि सिफारिश का प्यार सच्चा नहीं होता...

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एक गाड़ी भुवनेश्वर से कटक रास्ते में जा रही है l वह गाड़ी एक सत्ताइस मंज़िल वाली एक आधे तैयार इमारत के नीचे रुकती है l गाड़ी से पहले प्रतिभा उतरती है और दुसरी तरफ से विश्व l

विश्व - माँ... यह हम कहाँ आए हैं...
प्रतिभा - हूँह्... (अपना मुहँ फ़ेर लेती है)
विश्व - ओह ओ माँ... सुबह से मुहँ फूला कर बैठी हो... तुमने कहा तैयार हो जाओ... मैं तैयार हो गया... तुमने कहा गाड़ी में बैठो... मैं बैठ गया... पर अब आए कहाँ हैं...
प्रतिभा - मुझे छोड़ कर... घर से बाहर क्यूँ चला गया था...
विश्व - तो क्या करता... डैड और तुम... दोनों ऐसे लड़ रहे थे... जैसे मैं वहाँ था ही नहीं... तो सोचा... थोड़े समय के लिए बाहर हो आऊँ...
प्रतिभा - हाँ हाँ... अपनी माँ को अकेली छोड़ कर भाग गया...
विश्व - (अपना सिर गाड़ी पर पीटने लगता है)
प्रतिभा - बस बस... ठीक है चलो माफ किया...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) धन्यबाद माते... अहोभाग्य मेरे..
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब बस कर... लोग हमारे तरफ देख रहे हैं...
विश्व - क्यूँ... मैं अपनी माँ के सामने हाथ जोड़ रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है मेरे लाल... अब जिस काम के लिए आए हैं... वह तो कर लें...
विश्व - मुझे क्या पता... हम कहाँ आए हैं और क्यूँ आए हैं...
प्रतिभा - चल बताती हूँ (कह कर विश्व और वह कंस्ट्रक्शन लोडर लिफ्ट से धीरे धीरे उपर जाने लगते हैं)
प्रतिभा - हम यहाँ.. तेरे क्लाइंट के पास आए हैं... यह उनका कंस्ट्रक्शन साइट है... उन्होंने कहा था... की तेरे छूटने के बाद... तुझे उनसे मिलवाऊँ... मैंने कल उनसे बात की थी... तो उन्होंने ही यहाँ पर मिलने बुलाया था...
विश्व - अच्छा... ह्म्म्म्म... (कह कर चारों ओर अपनी नजरें घुमाता है)

दोनों आखिरी मंजिल पर पहुँचते हैं l वहाँ पर विश्व चारो तरफ घुम कर कंस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन साइट के आस पास देखने लगता है l प्रतिभा अपनी घड़ी देखती है और विश्व की तरफ देख कर

प्रतिभा - अब... थोड़ी ही देर में... जोडार साहब आते होंगे...

विश्व एक जगह खड़े हो कर नीचे की ओर देख रहा है l प्रतिभा उसके पास पहुँचती है l

प्रतिभा - अच्छा प्रताप... तुने... जोडार साहब के बारे में... जानने की कोशिश नहीं की...
विश्व - (अपना सिर हिला कर ना कहता है)
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की उनके बारे में... तुम्हें सब पता होगा... यह मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ...
प्रतिभा - हाँ... मुझे पता तो है पर... सब कुछ नहीं...
विश्व - तो आज ही पता कर लेते हैं...
प्रतिभा - उस दिन... तुने क्या स्कैन किया था उनका...
विश्व - (मुस्कराता है) माँ... स्वपन जोडार... एक माईग्रेटेड बंगाली हैं... वह जब दो या तीन साल के होंगे... तब बांग्लादेश से सन बहत्तर के लड़ाई में... माईग्रेट हो कर उनकी फॅमिली ओड़िशा आए... ओड़िशा के मलकानगिरी ज़िले में उनके फॅमिली को बसाया गया था... उनकी स्कुल कॉलेज सब मलकानगिरी में हुआ... वहीँ से वह बीएसएफ के लिए सिलेक्ट हुए... बॉर्डर पर उनकी वीरता के लिए... मेडल से सम्मानित किया गया.... और भुवनेश्वर में कुछ जमीन भी दी गई... उसी जमीन और रिटायर्मेंट की पूंजी से... वह नई पारी शुरुआत कर आज इस जगह पर पहुँचे हैं...

तभी ताली बजने लगती है l विश्व और प्रतिभा दोनों ताली बजाने वाले की तरफ देखते हैं l स्वपन जोडार उनकी ओर देख कर ताली बजा रहा है l

विश्व - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह विश्व प्रताप... वाह... जैल में पहली मुलाकात में तुमने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया था... और आज दुसरी मुलाकात में.. तुमने मुझे अपना मुरीद बना डाला... वाह...
प्रतिभा - नमस्कार जोडार साहब...
स्वपन - वाह... मिसेज सेनापति जी... आज मुझे पुरा यकीन हो गया... मैंने अपने फार्म के लिए... कोहिनूर हीरा ढूँढा है....
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रख कर, बड़े गर्व से कहती है) वह तो है...
स्वपन - आइए... ऊपर बने पेंट हाउस में चलते हैं... वहाँ पर बैठ कर बात चित करते हैं...

तीनों सत्ताइसवीं मंजिल के ऊपर बने पेंट हाउस के ऑफिस में जाते हैं l
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हस्पताल से निकल कर रुप गाड़ी की पार्किंग एरिया में पहुँचती है l वहाँ उसे गाड़ी के पास बनानी इंतजार करते मिल जाती है l रुप बनानी के पास आती है

बनानी - (रुप को बिना देखे) तुमने उसे मेरे बारे में क्यूँ बताया...
रुप - क्यूंकि उसने तुम्हारे बारे में पूछा... इसलिए...
बनानी - (रुप की ओर देख कर) मैं कितनी गलत थी ना...
रुप - तुम गलत नहीं थी... हालात गलत थे... वह गलत था...
बनानी - अगर वह गलत था... तो तुमने मुझसे वह बातेँ क्यूँ छुपाई...
रुप - (एक खरास लेकर) हम गाड़ी में चलते हुए बात करें...

बनानी रुप की गाड़ी में बैठ जाती है, रुप भी उसके बगल में बैठ जाती है l गुरु गाड़ी को पार्किंग में निकाल कर गाड़ी को कॉलेज की ओर ले जाता है l

बनानी - अब बताओ...
रुप - देखो बनानी... रेडियो एफएम प्रोग्राम के बाद... मुझे शक़ हुआ... उसके बाद मैंने... अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश की... तब तक रॉकी के लिए... तेरे दिल में फिलिंग्स पनपने लगे थे...
बनानी - अगर बता देती तो क्या हो जाता...
रुप - कल तुने मुझे मज़बूर किया... तो सब कुछ बता तो दिया... फिर भी... कल तु उसे देखने हस्पताल आयी थी... क्यूँ...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - रॉकी बुरा नहीं है... बस एक गलत फहमी के चलते उसने वह सब किया...
बनानी - तुम क्यूँ उसकी अच्छे होने की सर्टिफिकेट दे रही हो...
रुप - इसलिए कि उसके उम्र में जहां सारे लड़के... कक्टेल पार्टी करते हैं... मैंने जितने दिन भी ऑबजर्वेशन किया... वह या उसके दोस्त नशा बिल्कुल नहीं करते हैं... यही वजह है कि वह बुरा नहीं है....
बनानी - क्या इसलिए तुमने उसे माफ कर दिया...
रुप - नहीं... इसलिए नहीं... उसकी रेडियो वाली हरकत के वजह से... मुझे मेरे अंदर एक नई नंदिनी मिली... और कल के हरकत के वजह से मुझे मेरा भाई मिला...
बनानी - तुम्हारे पास माफ करने के लिए वजह है... पर मैं क्यूँ करूँ...
रुप - वह गुनहगार तुम्हारा नहीं है... मेरा है... रही माफ करने की बात... तो कल उसने जो किया... उसमें पछतावा और प्रायश्चित था... बेशक तरीका गलत था... पर कल की उसकी हरकत में... वह ईमानदार था...

गाड़ी के अंदर कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l रुप देखती है बनानी खिड़की से बाहर की ओर झाँक रही है और मुट्ठी बना कर मुड़े हुए उंगलीओं को उपर नीचे कर रही है l

रुप - क्या हुआ... तुम ख़ामोश क्यूँ हो गई...
बनानी - क्या तुमने उसे यहाँ तक माफ कर दिया... की एक दिन उसके गले लग जाओ...
रुप - नहीं.. उसने मुझसे रिश्ता जोड़ा नहीं है... थोपा है... जब भाई वाला कोई ऐसा काम हो... जिस पर एक बहन को नाज़ हो... उस दिन मैं बेझिझक उसके गले लग जाऊँगी...
बनानी - (रुप की ओर देखती है)
रुप - अब जो रिश्ता उसने जोड़ने की कोशिश की है... उसमें इम्तिहान उसे देना है...
बनानी - मैं उसे माफ नहीं करुँगी...
रुप - मैं उसकी सिफारिश भी नहीं करूंगी...

बनानी मुहँ फ़ेर कर फिर से बाहर की ओर देखने लगती है l रुप उसे कुछ और नहीं कहती है वह भी बाहर की ओर देखने लगती है l

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जोडार के पेंट हाउस वाली ऑफिस में टेबल पर प्रतिभा और विश्व बैठे हुए हैं पर जोडार वहाँ से बाहर नीचे की ओर देख रहा है

प्रतिभा - क्या बात है, जोडार साहब.... किन ख़यालों में खोए हुए हैं... हम भी इस कमरे में हैं... जरा गौर कीजिए....
जोडार - (उनके तरफ मुड़ते हुए) माफ कीजिए... सोच रहा था... कैसे बात शुरु करूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... लगता है... कोई बड़ी वाली परेशानी है....
जोडार - हाँ है...
प्रतिभा - अगर पर्सनल है... तो हमें माफ लीजिए... और अगर लॉ रिलेटेड है... तो मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... और प्रताप आपके सामने बैठा है...
जोडार - जी मैडम... जानता हूँ... (पॉज लेकर) जानती हैं.... इससे पहले जो लीगल टीम थी... वह फैल हो गई थी... इसलिए मैं आपके पास गया था... आपने मुझे प्रताप का नाम सुझाया था... पहली मुलाकात में... उसने मुझे इम्प्रेस भी किया... और अभी कुछ देर पहले... मेरी पुरी डेटा आपको बता दिया.... फिर भी...
प्रतिभा - फ़िर भी... क्या मतलब है फिर भी...
जोडार - फिर भी... क्या प्रताप यह केस समझ पाएगा... क्यूंकि अभीतक उसका कोई एक्सपेरियंस नहीं है.... वैसे भी... प्रताप का बार लाइसेंस आने में दो महीने बाकी हैं...
प्रतिभा - एक्सपीरियंस नहीं है... यह आपकी नजरिया है... मैंने आपको प्रताप का नाम सुझाया था... तो मेरी एक्सपीरियंस पर भरोसा कर सकते हैं.... लाइसेंस चाहे जब भी आए... आपको एडवाइस लेने के लिए लाइसेंस की क्या जरूरत है...
जोडार - प्रताप... इफ यु डोंट माइंड... कुछ पूछूं...
विश्व - जी बिल्कुल...
जोडार - पहली मुलाकात में... तुमने मेरा परफेक्ट स्कैन किया था... पर आज तुमने मेरा बायोडेटा कैसे हासिल कर लिया...
विश्व - मेरी अपनी सोर्सेस हैं...
जोडार - मतलब तुम्हारा अपनी नेटवर्क है....
विश्व - एक वकील के लिए यह बहुत जरूरी है...
जोडार - (एक गहरी सांस अंदर लेकर छोड़ता है) मैंने भी तुम्हारे बारे में कुछ जानकारी हासिल की है... होप... बुरा नहीं मानोगे...
विश्व - नहीं... पर आप किस बात पर हिचकिचा रहे हैं...
जोडार - मेरे इस केस में कहीं ना कहीं... क्षेत्रपाल जुड़े हुए हैं... इसलिए हिचकिचा रहा था...
विश्व - मैं जानता हूँ...
जोडार - व्हाट... क.. कैसे.. कैसे जानते हो...
विश्व - आप भूल रहे हैं... अभी अभी मैंने कहा था कि मेरी अपनी सोर्सेस हैं....
जोडार - यानी तुम जानते हो... मैं किस केस में घुट रहा हूँ...
विश्व - जी...
जोडार - ओह माय गॉड... कैसे... सॉरी मतलब क्या जानते हो...
विश्व - आप एक नहीं दो केसों में उलझे हुए हैं... जिस दिन आपने मेरा इंटरव्यू लिया था... उसी मैंने आपके बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया था....
जोडार - तुमने मेरी कुंडली पढ़ ली है लगता है... तो अब यह भी बता दो.. कहाँ पर राहु केतु कुंडली मार कर... मेरे भाग्य में बैठ गए हैं...
विश्व - आप सेल्फ मेड बिजनेसमैन हैं... इससे पहले पश्चिम बंगाल में अपना बिजनैस को जमाया... अब अपने राज्य में आकर एस्टाब्लीस होने के इरादे से यहाँ आए... पहली ही बॉल में चौका मारते हुए... इस बिल्डिंग की कांट्रैक्ट हासिल की... सब कुछ सही जा रहा था... पर अब जब सेंचुरी तक पहुँचे हैं... नर्वस नाइन्टी पर पहुँच गए हैं... आपको आउट करने के लिए फील्डिंग सजा दी गई है...
जोडार - परफेक्ट...मतलब तुम्हें केस की पुरी जानकारी है...
विश्व - केस के बारे में जानता हूँ... उसमे क्या अप्स एंड डाउन है... वह सब डॉक्यूमेंट्स देखने के बाद ही कुछ कह सकता हूँ...
जोडार - हूँन्न्न्न्न... और इस केस से अलग एक मुद्दा है...
विश्व - यहाँ पहुँचने के बाद... सारी जगह देख कर.. मैंने अंदाजा लगा लिया है...
जोडार - (हैरान हो कर) क्या... तुमने अंदाजा लगा लिया है...
विश्व - अगर मैं सही हूँ... आपके इस बिल्डिंग के प्रेमीसेस से लग कर... मुझे कुछ इलीगल और अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन्स दिखे... जिससे आपके इस कंस्ट्रक्शन को... जो शायद आपके उस केस के साइड इफेक्ट हैं....
जोडार - वाकई... तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है... तुमने सही अंदाजा लगाया है... यह अनअथॉराइज्ड कंस्ट्रक्शन एक्चुयली... ज़बरदस्ती कब्जा है... और जिसने यह किया है... वह इस शहर का सबसे बड़ा बिल्डर है... और उसके पीछे क्षेत्रपाल है...
विश्व - तो आप क्या चाहते हैं...
जोडार - मुझ पर केस... पेनल्टी भरने के लिए हुआ है... जो कि गलत है... पर डॉक्युमेंट्स के मुताबिक मैं कटघरे में हूँ... मुझे उससे बाहर निकलने का उपाय बताओ... और इस कब्जे से मेरी जमीन छुड़ाने का भी उपाय बताओ...
विश्व - (एक गहरी सांस लेते हुए) ठीक है... मुझे आपके केस रिलेटेड सभी डॉक्युमेंट्स दीजिये...
जोडार - कितने दिनों के लिए...
विश्व - तीन दिनों के लिए...
जोडार - आर यु श्योर...
विश्व - जी...
जोडार - ठीक है... आज शाम तक तुमको सभी डॉक्युमेंट्स मिल जाएंगे...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and lovely update....
 
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