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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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Intezar kar rahe hain

Besabari se intezaar rahega Kala Nag bhai...


यह शाम इतने धीरे-धीरे क्यों आ रही है???


Aaj ka intzar hai bhai

अपडेट आने का और विश्व - रूप के मिलन दोनो का टाइम इतने धीरे धीरे कट रहा है कि बस पूछो ही मत और दोनो ही घटनाओं के भाग्य विधाता है Kala Nag भाई, अब देखो इनकी दयादृष्टि कब होती है?

बेसब्री अब बढ़ती जा रही है कि आज क्या होगा। वैसे विश्व और रूप का मिलन तो आपने 2 अपडेट आगे कर दिया है यानी अगले 6 दिन बाद वो रोमांचक पल हम देख व पढ़ सकेंगे। पर टोनी क्या जानकारी देने वाला है यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। सुकुमार अंकल के लिए विश्व और क्या करेगा यह जानने की उत्सुकता बनी हुई है और इसमें विश्व और रूप के मिलने का एंगल कैसे फिट होता है उसका भी शिद्दत से इंतजार है। सो भाई जल्दी से अपडेट दे दो ताकि इंतजार खत्म हो और दिल को कुछ सुकून मिले। वैसे आपका स्वास्थ्य कैसा है आशा करता हु की अब पहले से सही होगा।

Bhai update kab ayega

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?
बस दस मिनट और
 

Kala Nag

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👉पिंचानवेंवां अपडेट
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गायत्री अपने कमरे में लेटी हुई थी, और आज दोपहर जो भी हुआ उसके बारे में सोच रही थी l वह उस गाड़ी चोर के बारे में सोच रही थी l आखिर उसने ऐसा किया ही क्यूँ और उसके बाद जो हुआ वह गायत्री के लिए स्वीकार करना मुश्किल हो रहा था l ऐसे में उसे लगता है कि घर में कोई आया है, फिर भी वह अपनी जगह से नहीं उठती l क्यूँकी उसे लगता है शायद सुकुमार आया होगा l कुछ देर बाद किचन में कुछ गिर कर टूटने की आवाज आती है l गायत्री सोचने लगती है कहीं कोई बिल्ली तो नहीं आ गई, कहीं पोते पोतीयों के लिए रखे दूध में मुहँ मार दी तो, यह खयाल आते ही फौरन अपनी बेड से उठ बैठती है और बेड रुम से निकल कर ड्रॉइंग रुम की जाने लगती है कि उसके कानो में किसीके गुन गुनाने की आवाज सुनाई देती है l वह हैरानी से ध्यान से सुनने की कोशिश करती है, ना जरुर कोई और है, इस घर का सदस्य नहीं हो सकता है l कहीं कोई चोर तो नहीं l यह भान होते ही सोचने लगती है

"हे भगवान, अगर यह कोई चोर हुआ तो... मेरे बच्चों के सामान और घर की सभी चीजें चुरा ले गया तो... नहीं... मैं ऐसा नहीं होने दूँगी..."

इतना सोच कर वह वह चुपके से ड्रॉइंग रुम के बाहर रुक कर झाँकती है l काले लिबास में एक चोर जो चेहरे पर मुखौटा लगाया हुआ है, उस मुखौटे के अंदर पुरा चेहरा ढका हुआ है सिवाय उसके मुहँ के I वह चोर बड़े इत्मिनान से गुनगुनाते हुए फ्रिज खोल कर एपल खा रहा है l गायत्री इधर उधर अपनी नजरें घुमा कर देखती है तो उसे छत साफ करने वाली एक झाड़ू नजर आती है, जिसके पीछे एक बड़ा सा डंडा लगा हुआ था l वह चुपके से उस झाड़ू के पास पहुँचती है और झाड़ू उठा कर जैसे ही घूमती है उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है l क्यूँकी वह चोर अब उसे हो देख रहा था I थोड़ी हिम्मत बटोर कर गायत्री डंडा उठाती है कि तभी वह चोर अपने जेब से एक रिवॉल्वर निकाल लेता है l गायत्री जैसे ही चोर के हाथ में रिवॉल्वर देखती है जड़वत वहीँ खड़ी रह जाती है l वह चोर इशारे से उसे ड्रॉइंग रुम के अंदर चलने को कहता है l गायत्री एक रोबोट की तरह ड्रॉइंग रुम के अंदर आती है, चोर उसे इशारे से बैठने के लिए कहता है l वह एक सोफ़े पर बैठे जाती है l

चोर - यह क्या... मैंने तो गिन गिन कर... दस टिकट रखे थे... तुम कैसे रह गई...
गायत्री - (हैरान हो जाती है) तुम... तुमने सुबह गाड़ी चोरी की थी...
चोर - हाँ... पर तुमको अकेली छोड़ कर... वह नौ लोग सिनेमा देखने चले गए क्या...
गायत्री - (दुख भरी आवाज में) नौ नहीं आठ.... मैं और मेरे पति नहीं गए...
चोर - गए नहीं... या... लेकर नहीं गए...
गायत्री - (बिदक जाती है) तुम से मतलब...
चोर - मतलब है... तभी तो पुछ रहा हूँ...
गायत्री - वह... मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी... इसलिए नहीं गई...
चोर - (हैरान होते हुए) क्या... फिर तेरा बुड्ढा किधर गया...
गायत्री - वह.. थोड़ा बाहर गए हैं...
चोर - कब से...
गायत्री - तुमसे मतलब...
चोर - अरे... अपना एक उसूल है... मैं उसी घर में चोरी करता है... जिस घर में कोई नहीं होता है... इसी लिए तो... सुबह... इनवेस्टमेंट किया... ताकि शाम को आकार अपना रिटर्न ले सकूँ...
गायत्री - तो ले लो ना.. जो भी लेने आए हो...
चोर - ना... मैं उसूल से बाहर नहीं जा सकता... इसलिए एक काम करो... तुम इस घर से निकल जाओ... मैं चोरी खत्म कर लूँ... उसके बाद तुम घर आ जाना...
गायत्री - क्या... तुम मेरे घर से... मुझे निकल जाने के लिए कह रहे हो...
चोर - नहीं थोड़ी देर के लिए... जाने के लिए कह रहा हूँ... ताकि मैं आराम से अपनी इनवेस्टमेंट का रिटर्न उठा सकूं...
गायत्री - मैं... कहाँ जाऊँ... कैसे जाऊँ...
चोर - अरे... तभी तो दस टिकट भेजे थे... मैंने... ताकि तुम सपरिवार फिल्म देख सको... मैं अपना काम कर सकूँ...
गायत्री - अगर इतना ही... जरूरी था... तो एक और कर छोड़ जाते... उस इनोवा में... बच्चों सहित आठ लोग ही जा सकते थे....
चोर - और वह कार भी... मैं चोरी से लाता...सिनेमा खतम होने के बाद... सारी की सारी फॅमिली... चोरी के इल्ज़ाम में जैल यात्रा में होती...
गायत्री - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) तुम्हें जो लेना है जाओ ले जाओ... मैं कुछ नहीं कहूँगी... समझ लो... मैं इस घर में हूँ ही नहीं...
चोर - मैं ऐसे कैसे सोच लूँ... मैं तुम्हारे बेटों की तरह थोड़े ही हूँ...
गायत्री - खबरदार जो तुमने मेरे बच्चों के खिलाफ कुछ कहा तो...
चोर - और नहीं तो... सिर्फ फ्री के कोल्ड ड्रिंक्स... और पॉप कॉर्न के लिए... उन्होंने अपने माँ बाप को साथ नहीं लेकर गए...
गायत्री - ऐसी बात नहीं है...
चोर - तो कैसी बात है...
गायत्री - वह... हमें ले जाने के लिए... एक टैक्सी की जरूरत पड़ती...
चोर - खुशियाँ जिसके साथ बांटी ना जा सके... वह अपने नहीं होते... और जो अपने नहीं होते... खुशियों में उनकी जरुरत नहीं होती...

चोर के मुहँ से यह बात सुन कर गायत्री को झटका सा लगता है l आखिर उसकी बात गायत्री को दर्द पे दर्द दिए जा रहा है l वह एक दर्द सी महसूस करते हुए अपनी आँखे बंद कर लेती है, फिर भी उसकी आखों के किनारों से आँसू दिखते हैं l

कड्र्र्रर्र्र्र्र्
डोर बेल बजती है l गायत्री और चोर दोनों की ध्यान टुटती है l चोर गायत्री के पास जा कर रिवॉल्वर गायत्री के कनपटी पर लगा देता है और साथ चल कर दरवाजा खोलने के लिए कहता है l रिवॉल्वर के नोक पर यंत्र वत चलते हुए गायत्री दरवाजा खोलती है, दरवाजा खुलते ही चोर झटके से गायत्री को खिंच कर पीछे ले आता है l बाहर दो लोग थे सुकुमार और उसके साथ रुप l सुकुमार और रुप दोनों हैरान हो जाते हैं अंदर का नज़ारा देख कर एक नकाब पोस अपने रिवॉल्वर के नोक पर गायत्री को लिए खड़ा है l

सुकुमार - कौन हो तुम... क्या कर रहे हो मेरे घर में...
चोर - यह बात तो मैं भी पुछ रहा हूँ... इस वक़्त तुम सबका सिनेमा हॉल में होना चाहिए था... यहाँ क्या कर रहे हो.. और क्यूँ...
सुकुमार - यह क्या बकवास कर रहे हो... हम सिनेमा हॉल क्यूँ जाएं... और तुम हो कौन...
चोर - अररे... मैंने सुबह कुछ इनवेस्टमेंट किया था... मेरे रिटर्न के लिए तुम सबको सिनेमा हॉल में होना चाहिए था... ताकि मैं इस घर में चोरी कर के अपना रिटर्न ले पाता... अब मेरा इनवेस्टमेंट डूब गया ना...
रुप - ओ... तो तुम वही चोर हो... जिसने गाड़ी चोरी कर... घंटों शहर में घुमाया... और टैंक फुल कर रखते हुए... दस सिनेमा के टिकट भी रख दिया था...
चोर - हाँ...
रुप - तो बोलो कितने पैसे हुए... मैं लौटा दूंगी...
विश्व - आप क्यूँ लौटाओगी... मैं एक चोर हूँ... चोरी मेरा काम है... और मेरा एक उसूल है... मैं उसी घर में चोरी करता हूँ... जिस घर से मैं... लोगों को बाहर भेज देता हूँ...
रुप - (थोड़ी तैस में आकर) ऐ...
चोर - (थोड़ी ऊंची आवाज में) ऐ... मेरे हाथ में गन है... ट्रिगर दब गया... तो यह औरत गई...
सुकुमार - नहीं... (गिड़गिड़ाते हुए) नहीं प्लीज नहीं... तुम यूँ समझो... हम घर में हैं ही नहीं... जो चाहे लेलो... हम कुछ नहीं कहेंगे... तुम चाहो तो... हम सब को यहाँ... (किचन की ओर दिखाते हुए) किचन में बंद कर सकते हो...
रुप - अंकल... यह आप क्या कह रहे हैं...
सुकुमार - (बड़े करुण आवाज में) तुम चुप रहोगी प्लीज.. (चोर की ओर देखते हुए) प्लीज... हम सबको किचन में बंद कर दो...
चोर - हाँ हाँ... वह मैं बाद में देखूँगा... पहले यह बताओ... मैंने दस टिकेट्स दिए थे... तो तुम दोनों उनके साथ... सिनेमा हॉल जाने के वजाए... घर पर क्यूँ रुके रहे...
सुकुमार - क्यूंकि... हमें... यह फिल्म देखना अच्छा नहीं लगता...
चोर - अंकल जी झूठ मत बोलो...
खुदा के पास जाना है...
ना हाती है ना घोड़ा है...
वहाँ पैदल ही जाना है...
सुकुमार - मैं... मैंने कोई झूठ नहीं बोला है...
चोर - फिर झूठ... हर महीने आप दोनों सिनेमा जाते हो... मेरे पास पक्का खबर है... तभी तो.. मैंने आप लोगों के एंटरटेनमेंट का खयाल करते हुए... सिनेमा के टिकेट रख छोड़े थे...

सुकुमार पहले हैरान हो जाता है मगर फिर लाज़वाब हो जाता है और बिनती भरे नजरों से चोर की ओर देखता है l

रुप - तो क्या हो गया... अगर अंकल और आंटी सिनेमा हॉल नहीं गए...
चोर - अररे... आप हो कौन.. इस घर के दस सदस्यों में तो... आप हो नहीं...
रुप - तो.. यह पुछने वाले तुम कौन हो...
चोर - वेरी सिम्पल... इस घर का ग्यारहवां सदस्य...
रुप - तुम... तुम चोर.. लुच्चे... कमीने... इस घर का सदस्य..
चोर - हाँ... क्यूंकि मैंने... इस घर के सदस्य पर आज.. इनवेस्ट... किया है... इस नाते से...
रुप - अगर सदस्य हो... अंकल आंटी की इज़्ज़त करो... और...
चोर - चुप... घर वालों के बीच... बाहर वाले... बक बक क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - यू... (बिदक जाती है)
सुकुमार - (रुप से) रुक जाओ बेटा.. रुक जाओ... प्लीज... (चोर से) क्या चाहते हो आखिर...
चोर - आप दोनों... सिनेमा क्यूँ नहीं गए...
सुकुमार - वह इनोवा... एइट सीटर की थी...
चोर - तो... एक कार... या फिर ऑटो बुक करा लेते... और चले जाते... (इस पर सुकुमार चुप रहता है) सच सच बताओ अंकल...

इतने देर से गायत्री चोर को चुप चाप सुन रही थी l अब उससे रहा नहीं जाता था चोर की रिवॉल्वर वाली हाथ को पकड़ कर झटका देती है और चोर की गिरेबान पकड़ कर

गायत्री - क्या सुनना चाहते हो... यही ना... हमें सिनेमा ले जाना... हमारे बच्चों ने जरूरत नहीं समझा... दो टिकट के सरेंडर कर देने से... पुरी शो में... फ्री की कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न के लिए... हमें छोड़ दिया... और क्या जानना चाहते हो... (कह कर गायत्री रो देती है और चोर के सीने पर सिर टिका कर रोने लगती है)
चोर - आप रो लीजिए आंटी... ताकि आपकी आंसुओं से... आपके अंदर की वहम भी बह जाए...

गायत्री अपना सिर उठा कर चोर के चेहरे को देखती है I चोर के होठों पर मुस्कराहट उसे साफ दिख रही थी l पर वह मुस्कराहट उसकी खिल्ली नहीं उड़ा रही थी, बल्कि उस मुस्कराहट में उसे एक अपनापन दिख रहा था l चोर के इस बर्ताव से दो लोग और भी हैरान थे, रुप और सुकुमार l चोर अपने चेहरे से नकाब उतार देता है l सब के सब हैरान रह जाते हैं क्यूंकि सामने प्रताप था I

गायत्री - तुम... प्रताप हो ना...
विश्व - जी... आपको मैं अभी भी याद हूँ...
गायत्री - (अभी भी उसका गिरेबान पकड़े हुए थी) हाँ.. तुझे कैसे भुल सकती हूँ... उस दिन ओरायन मॉल के आइस्क्रीम पार्लर में... तुने भी तो मुझे गले से लगाया था...
विश्व - आओ आंटी... पहले आप बैठ जाओ... फ़िर इस चोर को जो सजा देना चाहो... दे दो...

विश्व गायत्री को सोफ़े पर बिठाता है और सुकुमार को इशारे से गायत्री के बगल में बैठने को कहता है l सुकुमार के बैठने के बाद

गायत्री - (रुप से) तुम नंदिनी हो ना..
रुप - (झिझकते हुए) जी... पर... आपने कैसे जाना...
गायत्री - पहले... मेरे सामने वाले सोफ़े पर बैठ जाओ... (रुप बैठ जाती है) यह जब शाम को लौटते थे... तुम दोनों की ही तो बातेँ किया करते थे... (कह कर चुप हो जाती है और रुप को देखने लगती है, रुप अपना सिर झुका लेती है) खैर... (विश्व से) तु क्यूँ... खड़ा है अभी तक... जा बैठ जा... नंदिनी के पास..
रुप - (खड़ी हो जाती है) क्या...
विश्व - (चौंक कर) जी मैं... (हकलाने लगता है) म.. म.. मैं... क.. के.. कैसे..
गायत्री - तुम दोनों दोस्त हो ना...
दोनों - जी...
गायत्री - तो साथ बैठने में... क्या परेशानी... कैसी झिझक...

विश्व और रुप एक दुसरे को देखते हैं और फिर गायत्री को देख कर

दोनों - जी... ठीक है...

फिर सामने वाले सोफ़े पर विश्व और रुप बैठ जाते हैं l

गायत्री - (रुप से) तो नंदिनी... तुम्हारे दोस्त के प्लान में तुम शामिल थी.. क्यूँ...
रुप - नहीं आंटी... जब यह आपकी प्रॉब्लम को जाना... तब मैं समझ गई... के यह आपके लिए कुछ करेगा... मैंने कहा भी था... की आपको समझाने के लिए जो भी प्लान करेगा... मुझे प्लान में शामिल करेगा... पर... (विश्व देखते हुए दांत पिसते हुए अपनी शब्दों को चबा कर) मुझे सिर्फ इतना मेसेज किया कि... आज मैं जैसे भी हो... अंकल को घर पर छोड़ने जाऊँ... बाकी का प्लान मिलने के बाद बतायेगा... पर यहाँ पता चला... प्लान पुरी हो चुकी...

रुप की हर शब्द ऐसे निकल रहे थे जैसे वह विश्व को घुसे मार रही थी l विश्व भी अपने चेहरे का भाव हर शब्द पर मार खाने जैसी ही बना रहा था l यह सब देख कर गायत्री और सुकुमार दोनों मजे ले रहे थे l थोड़ी देर बाद

गायत्री - खैर... (सुकुमार की हाथ पकड़ कर) प्रताप... जो बात मेरे पति मुझे अकेले में... ना जाने कितनी बार कहा... पर तुमने वही बात कुछ सिनेमा के टिकटों से समझा दिया... थैंक्यू...
विश्व - आप... थैंक्यू ना कहें आंटी...
सुकुमार - नहीं प्रताप... यह थैंक्यू... फॉरमल नहीं है... दिल से दिया जा रहा है...
विश्व - मैं जानता हूँ अंकल... पर...
गायत्री - नहीं बेटे... तुमने एक मौका बनाया... हमारे बच्चों के लिए... हमारी अहमियत क्या है... कितनी है... इस छोटी सी बात से... मुझे तुम क्या समझाना चाहते थे... वह मैं अच्छे से समझ गई...

विश्व चुप रहता है l वह क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l रुप सिचुएशन को सम्भालने के लिए

रुप - वैसे... अंकल आंटी... हैप्पी कोरल अनिवर्सेरी... एडवांस...
गायत्री - ओ... हूँ.. हूँ... मतलब... सुकुमार जी ने सबकुछ बता दिया है तुम दोनों को...
रुप - कहाँ आंटी... सिर्फ दुख ही तो बताया था... खुशी के पल की जानकारी कहाँ दी...
विश्व - हाँ आंटी... अब जब... आपके परिवार के सदस्य नहीं आ जाते... तब तक चलिए ना... हम कहीं जाएं... और... साथ मिल कर टाइम स्पेंड करें...
रुप - हाँ आंटी...
गायत्री - क्यूँ... हम बाहर क्यूँ जाएं... हम यहीं महफिल सजा देते हैं...
रुप - कैसी महफिल...
सुकुमार - अरे... तुम लोग चाहो तो... गाना बजाना...
विश्व - और... खाना...
सुकुमार - उसके लिए यह है ना... (मोबाइल में स्वीगी ऐप दिखाते हुए)
रुप - इसका मतलब यह हुआ कि... आप दोनों गाते हैं...
सुकुमार - गाते हैं... अरे... कॉलेज दिनों में... हमारी मुलाकात... सिंगिंग कंपिटीशन में हुई थी... और इज़हारे मुहब्बत... कॉलेज पिकनिक के अंताक्षरी के दौरान हुई थी... (गायत्री से) क्यूँ जानेमन...

गायत्री शर्मा कर सुकुमार के कंधे पर एक चपत लगाती है l विश्व और रुप हँस देते हैं इसी तरह इनकी गप्पे चलती रहती है l फिर स्वीगी वाला खाना डेलीवर कर देता है l चारों मिलकर खाना खाने लगते हैं l खाना खतम कर लेने के बाद सुकुमार और गायत्री अपने जीवन की बहुत सी बातेँ विश्व और रुप से कहते हैं l समय साढ़े नौ बज रही होती है कि रुप को बार बार घड़ी की ओर देखते हुए गायत्री देखती है l

गायत्री - नंदिनी तुम्हें देर हो रही है... है ना...
रुप - जी... वह..
गायत्री - मैं समझ सकती हूँ... लड़की हो... रात हो चुकी है... और घर पर तुम्हारा इंतजार हो रहा होगा...
नंदिनी - जी...
सुकुमार - तब तो तुम लोगों को जाना चाहिए... हमारे वजह से तुम दोनों बेकार में फंस गए...
विश्व - जी... इस में... फंसने वाली बात कुछ भी नहीं है... हमने आपके लिए जो भी किया... अपना समझ कर किया...
सुकुमार - तो हमें भी अपना समझने दो... हमारे वजह से तुम्हारे अपनों को चिंता नहीं होनी चाहिए... इसलिए जाओ... अपने घर पर जाओ...
रुप - एक शर्त पर...
गायत्री - (मुस्कराते हुए) लो घर हमारा... देर तुम्हें हो रही है... और शर्त तुम रख रही हो... चलो कोई नहीं... बोलो क्या शर्त है...
रुप - कल आपका एनीवर्सेरी है... तो आप... अपनी खुशियों में... हमें भी शामिल करें...
गायत्री - है तो एनीवर्सेरी.... पर... हमने कुछ प्लान किया नहीं है अब तक...
विश्व - तो आप हमें प्लान करने दीजिए...
सुकुमार और गायत्री - तुम... तुम दोनों...
विश्व - हाँ... अगर आपको ऐतराज ना हो... तो...

सुकुमार और गायत्री एक दुसरे को पहले हैरान हो कर देखते हैं l फिर दोनों खुश हो कर "ठीक है" कहते हैं l विश्व और रुप दोनों घर के बाहर आते हैं l सुकुमार दंपति उन्हें छोड़ने के लिए बाहर तक आते हैं l जब विश्व और रुप को विदा दे रहे होते हैं तभी सुकुमार दंपति के बेटे बहु और पोते पोती आकर पहुंचते हैं l विश्व और रुप को देख कर वे लोग हैरान होते हैं l

बेटा एक - ऐ... कौन हो तुम... और इतनी रात गए... हमारे घर में क्या कर रहे हो...
गायत्री - यह हमारे मेहमान हैं...
बेटा एक - अच्छा अच्छा... ठीक है..
सुकुमार - क्या बात है... इतना चिढ़ा हुआ क्यूँ है...
बेटा दो - वह सुबह का चोर... जिसने गाड़ी चोरी की थी..
गायत्री - हाँ... क्या हुआ उसका...
बहु एक - होना क्या था... कमबख्त... झूठ बोला था हमें...
गायत्री - क्या झूठ था... फिल्म टिकट असली नहीं थे क्या...
बेटा एक - नहीं टिकट असली थे... पर वह दो टिकट सरेंडर वाली बात झूठ थी...
विश्व - हाँ... ऐसा थोड़े ना कहीं होता है... टिकट सरेंडर करने से... फ्री में कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न कौन देगा... और क्यूँ देगा...
रुप - हाँ... ऐसा तो अमेरीका में भी नहीं होता होगा...
बेटा एक - (गुस्से से) हे.. इ... हू द हैल यु आर...
गायत्री - कहा ना... मेहमान हैं हमारे...
बेटा दो - तो... मेहमान तुम्हारे हुए... हमें क्या... पहले से ही हॉल में... कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न के लिए दिमाग खराब हुआ पड़ा है...
सुकुमार - फ्री में टैंक फुल मिला... सिनेमा का टिकट मिला... उससे भी तुम लोग खुश नहीं हो... कोल्ड ड्रिंक के लिए दिमाग गरम किए हुए हो...
बेटा एक - आप चुप रहिए... उस बास्टर्ड चोर के वजह से... हम कितने ह्युमीलेट हुए हैं...
रुप - फ्री के सिनेमा देखने के बाद भी... सिर्फ कोल्ड ड्रिंक के लिए... उस शुभ चिंतक को बास्टर्ड कर दिया...
बेटा एक - हे इ.. यु.. फ@ बीच...
सुकुमार - माइंड योर टंग...
बेटा - यु माइंड योर टंग...

चटाक एक थप्पड़ लगती है बेटा एक के गाल पर l मारने वाली थी गायत्री l सन्नाटा घोर सन्नाटा पसर जाती है कुछ देर के लिए l सब हैरान हो कर गायत्री को देखने लगते हैं l

बेटा एक - (अपने गाल पर हाथ रखे हुए) म्म्म... मॉम...
गायत्री - जिससे तुने अभी बद-जुबानी की है... वह तेरा बाप है... और पहले भी मैंने कहा था... यह दोनों... हमारे... मेहमान हैं... (विश्व और रुप से) तुम दोनों जाओ... कल के प्लान के बारे में फोन पर जानकारी देना ठीक है...

विश्व और रुप अचंभित हो कर सुकुमार दंपति के घर पर अभी हुआ कांड से शॉक में थे l गायत्री के जाने को कहने पर दोनों होश में आते हैं l

दोनों - जी... ठीक है... (कह का जाने वाले थे कि)
गायत्री - अररे... ऐसे कैसे... अपने आंटी से गले मिलकर नहीं जाओगे...

विश्व और रुप एक दुसरे को देखते हैं और फिर गायत्री से एक साथ "जी" कहते हैं

गायत्री - (रुप से) पहले तुम... आओ.. (रुप गायत्री के गले लग जाती है, गायत्री रुप के कान में कहती है) बहुत ही अच्छा लड़का है... कंग्राचुलेशन...

रुप हैरानी और शर्म के साथ गायत्री से अलग होती है l गायत्री खुशी और मुस्कराहट के साथ अपनी बाहें फैला कर विश्व की ओर देखती है l विश्व गायत्री के गले से लग जाता है l

गायत्री - (विश्व के कान में) बहुत ही अच्छी लड़की है... कंग्राचुलेशन....

अब विश्व भी हैरानी और शर्म के साथ गायत्री से अलग होता है l अब विश्व और रुप वहाँ से जाने लगते हैं l पीछे से गायत्री चिल्ला कर कहती है
"कल की प्लान फोन पर बताना ठीक है"
विश्व और रुप पीछे मुड़ कर देखते हैं और दोनों हाँ में सिर हिला कर चले जाते हैं l रास्ते में दोनों एक दुसरे से नज़रें मिलाने से कतराते हैं l क्यूँकी दोनों ही जानते हैं कि गायत्री आंटी दोनों के कान में क्या कहा l

रुप - (अपनी झिझक से बाहर निकलने के लिए) तो... कल का प्लान क्या है...
विश्व - अभी तक बनाया नहीँ है...
रुप - क्या... इस बार भी... मुझे प्लान से दुर रखने का इरादा है क्या...
विश्व - कहाँ... आप तो सुबह से ही प्लान में... शामिल हैं...
रुप - पर वह अनजाने में...
विश्व - तभी तो... आप नेचुरल परफॉर्म कर पाई...

रुप अपने कुहनियों में हाथ बांधे रुक जाती है l तो विश्व भी रुक जाता है और रुप की ओर देखने लगता है l

विश्व - क्या हुआ...
रुप - अब मुझे... अनजाने में नहीं... पुरी नॉलेज के साथ प्लान में शामिल होना है...
विश्व - ठीक है... कल नौ या दस बजे तक... आपको प्लान पुरा समझा दूँगा...

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रात के दो बज रहे हैं l काठजोड़ी की रेतीली पठार पर भारी भीड़ लगी हुई है l बल्लभ, रोणा और टोनी अपनी गाड़ी को पार्क करते हैं l तीनों उतर कर फाइट ग्राउंड के पास पहुँचते हैं l तब तक चार फाइट खतम हो चुका है l चारों फाइटरों के बीच फाइट के लिए लॉटरी होने वाली होती है कि तभी एक एनाउंसमेंट होती है कि डेविल लड़ेगा, विरुद्ध में कोई भी हो और कितने भी हो, भाव एक का दस l इस एनाउंसमेंट के बाद लोग डेविल डेविल चिल्लाने लगते हैं l कुछ देर बाद फिर से एनाउंसमेंट हुआ कि चारों फाइटर वर्सेस डेविल की फाइट होगी l

बल्लभ - टोनी... तु हमें यहाँ क्यूँ ले कर आया है...
टोनी - सब बताऊँगा... पहले फाइट देख लेते हैं... और लगे हाथ कुछ पैसे भी लगा लेते हैं...
बल्लभ - नहीं... मुझे इसमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है...
टोनी - रोणा सर आप...
रोणा - तु किस पर पैसा लगाने वाला है...
टोनी - डेविल पर...
बल्लभ - क्या... पर मुझे लगता है यह डेविल कोई पागल है... उसके खिलाफ चार चार बंदे लड़ने वाले हैं...
टोनी - ठीक है... तो फिर आप चारों पर पैसा लगाइए...
बल्लभ - ठीक है...

उसके बाद टोनी पैसे लेकर काउंटर में लगा कर टोकन ले लेता है l कुछ देर बाद रिंग में फाइटर्स पहुँचते हैं l एक तरफ नकाब के पीछे डेविल था और एक तरफ बाकी चार फाइटर्स थे I रेफरी आकर फाइटर्सों को रुल समझा देता है फिर व्हिसील बजाता है l लोग डेविल डेविल चिल्लाने लगते हैं और रिजल्ट भी अनुरुप आता है l सिर्फ पांच मिनट में चारों फाइटर्स नीचे पड़े हुए थे और कुछ देर बाद वहाँ से डेविल गायब हो गया था I
टोनी भागते हुए जाता है और करीब बीस मिनट के बाद पैसे लेकर आता है और कुछ देर बाद तीनों गाड़ी से काठजोड़ी से निकल कर ट्वेंटी फोर सेवन हाइ वे इन नामकी बार एंड रेस्टोरेंट में पहुँचते हैं l सुबह से टोनी ऐसे ही कहीं ना कहीं घुमा रहा है l टोनी के साथ रोणा चुप चाप घुम रहा है पर बल्लभ चिढ़ चुका था l बार के भीतर टेबल पर बैठने के बाद बल्लभ चिढ़ कर टोनी से

बल्लभ - ऑए दारोगा ... सुबह से.. जब से यह मिला है... तब से... पहले हमारे रुम में पिछवाड़ा उठा कर सोया हुआ था... उसके बाद घुमा रहा है... घुमा रहा है... और अब यहाँ... यह विश्व के बारे में हमें क्या जानकारी देगा यार... और तु है कि इससे आस लगाए हुए है...
टोनी - वकील साहब... क्यूँ चिढ़ रहे हो... पहले यह बताओ... जैल की जो लिस्ट में आपने नाम दिया था रोणा सर जी को... क्या उसमें मेरा नाम था...
बल्लभ - मुझे क्या पता... मुझे सिर्फ ऑफिसरों के नाम से मतलब था... मुज़रिमों के नाम में अपना इंफॉर्मर... रोणा ढूंढ रहा था...
रोणा - हाँ... अगर लिस्ट को अच्छी तरह से... पढ़ा होता... तो तुझे टोनी नाम नहीं मिला होता...
बल्लभ - (चौंकता है)तो... तो फिर.. यह... यह कौन है...
रोणा - लेनिन पोदार...
बल्लभ - क्या... लेनिन... पोदार...
रोणा - हाँ एक वांटेड क्रिमिनल है... पर अब यह जिंदा नहीं है...
बल्लभ - (झटका खाते हुए) क्या...
टोनी - हाँ वकील साहब... पुलिस फाइल में... लेनिन पोदार को... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा ने एनकाउंटर किया था...
बल्लभ - तो यह टोनी...
रोणा - तकरीबन तीन साल पहले... जब देवगड़ में मेरी पोस्टिंग हुई थी... तब यह एक दिन देवगड़ में पहुँचा... वहाँ पर एक लोकल दादा से इसका झगड़ा हो गया था... वह लोकल दादा मुझे हफ्ता देता था... इसलिए मैंने इसे पकड़ लिया...
टोनी - तब रोणा साहब ने... मुझे पकड़ कर लॉकअप में डाल दिया... तब मैंने... इन्हें अच्छी खासी रकम के बदले... एक नई पहचान मांगी... क्यूंकि मुझे मारने के लिए... मिनिस्टर ओंकार चेट्टी के आदमी पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे थे...
रोणा - तब केरल में.. मुनार गए एक लेबर की मौत हो गई थी... इत्तेफाक से उसका कोई रिस्तेदार था ही नहीं... तो मैंने चालाकी से... लेबर डिपार्टमेंट से उसका लाश और उसके रिलेटेड सभी डाक्यूमेंट हासिल कर ली... और इसे उसके जगह पर फिट कर दिया... और लेनिन पोदार की एनकाउंटर डिक्लेर कर दी...
बल्लभ - ओह... तो यह टोनी नहीं है... लेनिन है...
टोनी - ना टोनी ही हूँ... लेनिन तो कब का मर चुका है...
बल्लभ - ठीक है... विश्व के बारे में... और क्या जानते हो... जो हम नहीं जानते... क्या ओंकार चेट्टी के बेटे यश की मौत के वजह से... तुम्हें मारने के लिए ढूंढ रहा था...
टोनी - हाँ... वह एक एक्सीडेंट था... असल में उस वक़्त यश और मेरे बीच एक डील हुई थी... कबड्डी के मैच में यश विश्व को मार देना था... यश विश्व को अपने कब्जे में ले भी लिया था... (टोनी कबड्डी मैच की पुरी कहानी बताने लगता है) बाद में... पोस्ट मोर्टेम में ड्रग्स के ओवर डोज के वजह से यश की मौत की पुष्टि हुई... पर ओंकार को मालुम था... यश की और मेरी डील के बारे में... तभी से वह मुझे मरवाने के लिए... ओंकार पीछे पड़ा हुआ था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो तुम विश्व से अपनी दुश्मनी यूँ उतारना चाहते थे...
टोनी - हाँ...
बल्लभ - क्या जैल में रह कर... वह इतना बड़ा तोप बन गया..
टोनी - तोप... हा हा हा हा हा... वह साक्षात... यमदूत बन गया... आपको क्या लगा... मैं क्यूँ लेकर गया था... उस फाइट में... विश्व बिल्कुल उस डेविल की तरह है... या शायद उससे बेहतर...
रोणा और बल्लभ - व्हाट... क्या...
रोणा - विश्वा... एक फाइटर...
टोनी - हाँ... एक जबरदस्त फाइटर...
रोणा - यह कैसे... कैसे हो सकता है... साले हरामी मादरचोद को... राजगड़ में... पहलवानों के लंगोट धोते देखा है... यह फाइटर कब बन गया...
टोनी - सिर्फ फाइटर ही नहीं... जैल के अंदर सभी कैदीयों का लीडर बन गया... कोई भी... कहीं का भी दादा या भाई हो... उनकी दादा गिरी और भाई गिरी.... जैल बाहर ताला बंद कर जैल आते थे... क्यूंकि जैल के अंदर वह विश्व नहीं... विश्वा भाई था...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

दो दिन बाद विश्व बेड पर सोया हुआ था l पिछले रात के दो बजे सुकुमार और गायत्री की एनीवर्सेरी अटेंड कर लौटा था l देर रात को आया था, चूंकि पहले से ही प्रतिभा को कह रखा था कि वह देर से आएगा इसलिए वह एक्स्ट्रा चाबी लेकर गया हुआ था I वह चाबी खोल कर अंदर आकर सो गया था l उसे सुबह कमरे में तापस सोता देखता है, और फिर तापस अपने मॉर्निंग वक़ पर चला जाता है l प्रतिभा भी अपनी सारे काम खतम कर विश्व के सिरहाने बैठ कर उसके बालों में हाथ फेरती है l विश्व की नींद टुट जाती है l चौंक कर उठ बैठता है और मुड़ कर प्रतिभा की तरफ चेहरा कर बैठ जाता है l

उधर रुप की भी विश्व के अनुरुप हालत थी l वह भी रात को उखड़े मुड़ में घर आई थी शुभ्रा ने उसका गुस्से भरा चेहरा देखकर सुबह पुछना ही ठीक समझा था, शुभ्रा को यह एहसास भी था रुप रात भर जाग कर सुबह के करीब ही सोई थी l सुबह जब विक्रम और वीर डायनिंग टेबल पर रुप को नहीं देखते हैं तो उन्हें अचरज होती है l

विक्रम - क्या बात है... नंदिनी अभी तक जगी नहीं है क्या...
वीर - हाँ भाभी नंदिनी कहाँ है..
शुभ्रा - वह... अपने दोस्तों के साथ... सुकुमार अंकल और आंटी जी की एनीवर्सेरी को देर रात तक सेलिब्रेट करते रहे... शायद उस वजह से रात को ठीक से सो नहीं पाई... अभी सुबह ही उसे नींद आई है... इसलिए उसे सोने दिया है मैंने...
विक्रम - ठीक है... आज अगर कॉलेज ना जाना चाहे तो... जाने मत दीजिए... अरे हाँ... तो वीर जी... आज आपका जन्म दिन है... अभिनंदन...
वीर - क्या भैया... हमारे जन्म दिन में ऐसा क्या है... किसे याद रहता है... सिवाय माँ के...
शुभ्रा - फिर भी सेलिब्रेशन तो बनता है...
वीर - ठीक है... आप रात को प्रोग्राम रखिए... हम रात को ही मिलेंगे...
विक्रम - क्यूँ... रात को क्यूँ...
वीर - आज मेरा बहुत ही इंपोरटेंट काम है... मैं हर हाल में वह काम खतम करना चाहता हूँ... उसके बाद... आप जो भी कहें...

विक्रम वीर की ओर कुछ देर के लिए देखता है l पर वीर विक्रम की ओर देखे वगैर अपना खाना खाने लगता है l फिर वीर जल्दी जल्दी अपना खाना खतम कर बिना कुछ कहे वहाँ से निकल जाता है l वीर के ऐसे चले जाने पर विक्रम और शुभ्रा दोनों हैरान होते हैं l फिर विक्रम भी उठता है

विक्रम - ठीक है जान... हम भी चलते हैं... आप अपना और नंदिनी का खयाल रखियेगा...
शुभ्रा - जी...

विक्रम फिर शुभ्रा को बाय कह कर चला जाता है l विक्रम के जाते ही शुभ्रा रुप के कमरे में आती है l रुप बड़ी गहरी नींद में सोई हुई थी l शुभ्रा रुप के पास बैठ कर रुप की हाथ को हिलाती है l रुप अपनी आँखे मलते हुए बेड पर उठ बैठती है l

विश्व - माँ... तुम... अभी तक सोई नहीं...
प्रतिभा - (विश्व के गाल पर चपत लगाते हुए) सुबह के साढ़े आठ बज रहे हैं... मतलब रात भर ठीक से सोया नहीं है... है ना...
विश्व - (अपनी नजरें झुका लेता है)
प्रतिभा - कल तु कुछ अच्छा करने गया था... चूंकि तुने प्रोग्राम बनाया था... कुछ गलत हो ही नहीं सकता था... फिर तेरे चेहरे पर... यह मायूसी... किस लिए मेरे बच्चे...
विश्व - (आँखों में थोड़ा सा पानी आ जाता है) माँ... मैं तेरे कोख से नहीं आया... फिर भी कैसे जान लेती हो... मैं अंदर ही अंदर कब खुश होता हूँ... या दुखी...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) क्या तु... अभी भी मेरे प्यार पर शक करता है...
विश्व - माँ... शक तो एक बार भगवान पर कर लूं... पर तुम्हारे प्यार पर कभी नहीं... बस... (प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख कर) तुम कैसे मेरे दिल की हालत जान लेती हो...
प्रतिभा - माँ हूँ... बस... (विश्व के बालों को सहलाते हुए) मैं तेरी माँ हूँ... और तु मेरे कलेजे का टुकड़ा है... अब बता क्या हुआ... क्या नंदिनी से कोई अनबन हो गई...

रुप - (अपना सिर शुभ्रा के गोद में रख कर) हाँ भाभी... पर आपको कैसे पता चला..
शुभ्रा - कल जिस मुड़ में तुम घर में आई... मैं समझ गई... बात जरूर तुम्हारे और प्रताप के बीच की है...

विश्व - (झट से उठ बैठता है) हाँ माँ... पर तुमने कैसे पता लगा लिया...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मतलब मेरा शक बिल्कुल सही है...
विश्व - (मुहँ लटका के)हूँ... (कहते हुए अपना गाल सहलाता है)
प्रतिभा - हूँम्म्म्म्म्... इसका मतलब... कहीं... नंदिनी ने तुम्हें थप्पड़ तो नहीं मारा...
विश्व - (अपना सिर हिला कर हाँ कहता है)

शुभ्रा - क्या... तुमने प्रताप को थप्पड़ मारा... पर क्यूँ...
रुप - (अपनी जबड़े भिंच कर) क्यूँ की... मेरे पास उसकी कलई खुल गई... वह जिसे राज बनाए रखा था... मैंने उसकी वह चोरी पकड़ ली... मुझे गुस्सा आया... इतना गुस्सा आया कि... मैंने उसे थप्पड़ मार दी....

प्रतिभा - (झट से उठती है और अपनी साड़ी की आँचल को कमर में ठूँस कर) उसकी यह हिम्मत... मेरे बेटे को... तबला समझ कर रखी है क्या... जब जी चाहे मार देती है... अभी खबर लेती हूँ उसकी...

कह कर कमरे से बाहर जाने लगती है, विश्व भागते हुए प्रतिभा को रोकने की कोशिश करता है l प्रतिभा नहीं रुकती और सीधे बाहर अपनी गाड़ी में जाकर बैठती है l

विश्व - माँ...
प्रतिभा - क्या है...
विश्व - तुम जानती भी हो... नंदिनी जी रहती कहाँ हैं...
प्रतिभा - क्या... नंदिनी जी...
विश्व - वह... शायद.. मेरी गलती हो...
प्रतिभा - कौनसी गलती... कैसी गलती...
विश्व - माँ... पहले तुम मेरी पुरी बात सुन लो... फिर जो चाहे... जैसा चाहे फैसला करना...
प्रतिभा - ठीक है... बता फिर अपनी बात...
विश्व - माँ... अंदर चलो ना... बाहर... क्या ठीक रहेगा...

प्रतिभा गुस्से से गाड़ी से उतरती है और तमतमाते हुए घर के अंदर आकर सोफ़े पर बैठ जाती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है बता... क्या हुआ कल रात...

विश्व बताना शुरु करता है

बीते दिन बहुत सोचने के बाद विश्व रुप को दुपहर को xxxx रेस्टोरेंट में मिलने के मैसेज करता है l रुप भी मैसेज पाने के बाद दुपहर को तैयार हो कर अपनी भाभी से इजाजत ले कर पौने एक बजे xxxx रेस्टोरेंट में पहुँचती है l पर तक विश्व वहाँ नहीं पहुँचा था I वह एक टेबल पर जा कर बैठ जाती है l इतने में वेटर आकर उसे मेन्यू कार्ड देता है l रुप मेन्यू कार्ड देख कर ऑर्डर करने के लिए जैसे ही वेटर को बुलाने के लिए होती है तब वह देखती है विश्व उसके सामने बैठा हुआ है l

रुप - अरे... तुम कब आए...
विश्व - जब आप.. मेन्यू कार्ड देख रही थी...
रुप - ठीक है... क्या लोगे तुम...
विश्व - जो भी मंगवा दीजिए... आपकी पसंद की...

रुप पहले विश्व को घूरती है, फिर वेटर को बुला कर खाना ऑर्डर करती है l वेटर के ऑर्डर ले जाने के बाद

रुप - तो क्या प्लान बनाया है...
विश्व - हम शाम को... अंकल और आंटी जी को लेकर एक पार्क जा रहे हैं... पर अलग अलग...
रुप - क्या अलग अलग... पर क्यूँ...
विश्व - मैं सबसे पहले... सुकुमार अंकल को लेकर... आंटी के लिए गिफ्ट खरीदने के बहाने किसी मॉल या... ज्वेलरी के दुकान पर ले जाऊँगा...
रुप - और मैं...
विश्व - आप... आंटी जी को लेकर किसी दुसरे मॉल में... या गिफ्ट शो रुम में ले जाइए... अंकल के लिए गिफ्ट खरीदने के बहाने...
रुप - ठीक है... खरीद लिया... फिर उसके बाद...
विश्व - उसके बाद... ठीक आठ बजे मैं अंकल को... #@* पार्क में एक नंबर गेट से अंदर लेकर जाऊँगा.... और आप आंटी जी को चौथे नंबर गेट से अंदर लाइयेगा...
रुप - (विश्व की बातों से अब उसे मजा आने लगता है) फिर...
विश्व - वहाँ.. उस पार्क में नॉर्थ साइड में... डांसिंग फाउंटेन की टेस्टिंग चल रही है...
रुप - आज छुट्टी है... तो दुसरे लोग भी तो हो सकते हैं...
विश्व - नहीं... वह पार्क में चूंकि रिनोवेशन चल रहा है... इसलिए बंद है...
रुप - अच्छा... तो हम कैसे...
विश्व - मैंने सब अरेंजमेंट कर ली है... डांसिंग फाउंटेन के पास...
रुप - वहाँ पर.. हम क्या करेंगे...
विश्व - वहाँ पर पीएलसी में ब्लू टूथ से दो चैनल मैंने सेट करवाया है... डांसिंग फाउंटेन में एक माँ भारती की बड़ी सी मुरत है... आपको आंटी जी को साथ लेकर उस मुरत के आगे पहुँचना है... और अपनी मोबाइल की ब्लू टूथ ऑन कर के.... यह कोड @s&# फ़ीड कर देना है... मैं अंकल को ले कर उस मूर्ति के पीछे पहुँच कर अपनी मोबाइल पर.. अपना कोड फ़ीड कर दूँगा...
रुप - ठीक है... फिर आगे...
विश्व - आप भूल गई.. अंकल और आंटी जी ने... उनके कॉलेज के पिकनिक में... गाना गा कर... एक दुसरे से प्यार का इजहार किया था...
रुप - हाँ तो...
विश्व - तो... हम अपने मोबाइल से एक दुसरे से जुड़े रहेंगे... अंकल एक गाना गाएंगे... तो डांसिंग फाउंटेन में पानी उनके रिदम के अनुसार फाउंटेन में से निकलेगा... और आंटी भी गाने से जवाब देंगी... उनके आवाज के रिदम के अनुसार फाउंटेन में से पानी निकल कर नाचेगी...
रुप - वाव... अंधेरे में... पानी दिखेगा कैसे...
विश्व - कहाना... पीएलसी में सब अरेंजमेंट हुआ है... उनके आवाज के रिदम से... फाउंटेन में लगे रंग बिरंगी लाइटें जलेंगी और बुझेंगी... और हाँ जब वे गाना गाएंगे... स्पीकर ऑन करना ना भूलीयेगा...
रुप - वाव... पर यह पीएलसी क्या है...
विश्व - प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर...
रुप - (मन ही मन) तुमने... ऐसे... इतना कुछ कैसे सोच लिया...
विश्व - आप समझ गयीं ना...
रुप - (हड़बड़ाते हुए) हाँ हाँ... बिल्कुल... बिल्कुल...

उसके बाद शाम को दोनों सुकुमार के घर से कुछ दूर पर रुकते हैं l पहले विश्व सुकुमार को फोन कर घर से बाहर बुलाता है और उसे अपने साथ ले जाता है l उनके जाते ही रुप सुकुमार के घर जाती है और गायत्री को तैयार होने के लिए कहती है l गायत्री तैयार हो कर आने के बाद रुप उसे अपने साथ ले जाती है l अब विश्व किसी तरह से सुकुमार से गायत्री के लिए कान की बालियाँ खरीद करता है l उधर रुप भी गायत्री से सुकुमार के लिए एक ब्रेसलेट खरीद करती है l प्लान के मुताबिक दोनों जोड़े अपनी अपनी जगह पर पहुँचते हैं l विश्व रुप को कॉल करता है, रुप कॉल पीक करती है और मोबाइल को थामे रखती है l

विश्व - (सुकुमार से) अंकल... इसे... डांसिंग फाउंटेन कहते हैं... आप बस इतना जान लीजिए... की आंटी जी इसी पार्क में हैं... आपको उन तक मैसेज देना है... तो गा कर बताइए... इस फब्बारे की पानी और रौशनी... नाचते हुए आंटी जी को आपके दिल की बात बतायेंगे...
सुकुमार - अच्छा... सच में...
विश्व - जी...
सुकुमार - पर बेटा... मैं अभी इस उम्र में... कहाँ गा पाऊँगा...
विश्व - अंकल... आप गाइये तो सही... यह हवाएं.. यह फिजायें... सब आपका संदेश पहुँचा देंगे... मुझ पर भरोसा रखिए...

सुकुमार गाना गाता है
"एक तेरा साथ... हमको दो जहां से प्यारा है...
तु है तो हर सहारा है"

इतने में ही फाउंटेन में से रंग बिरंगी लाइट के सहारे जगमगाते हुए पानी नाचते हुए उपर उठने और गिरने लगती है l

जवाब में गायत्री गाती है

"ना मिले संसार,... तेरा प्यार तो हमारा है...
तू है तो हर सहारा है... "

ठीक उसी तरह पानी जगमगाते हुए नाचने लगती है l यह देख कर सुकुमार और गायत्री जितने हैरान और खुश होते हैं उनसे कहीं ज्यादा रुप हैरान व खुश होती है l

सुकुमार फिर एक गाना गाता है

"तुमसे बना मेरा जीवन
सुन्दर सपन सलोना
तुम मुझसे खफा न होना
कभी मुझसे जुदा न होना"

जवाब में गायत्री गाती है

"वादा करे ले साजना
तेरे बिना मैं न रहूँ
मेरे बिना तू न रहे
हो के जुदा ...

जवाब में सुकुमार भी गाता है

" ये वादा रहा", न होंगे जुदा
ये वादा रहा"

इसी तरह गाने के सिलसिले बढ़ते जाते हैं और दोनों धीरे धीरे गाना गाते हुए एक दुसरे के सामने आ जाते हैं अंत में सुकुमार गाता है

" जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा..
जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा.."

तो जवाब में गायत्री उसके सामने खड़े हो कर गाती है

"ना कोई है, ना कोई था, ज़िन्दगी में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा… "

फिर सुकुमार और गायत्री दोनों एक दुसरे से गले लग जाते हैं l कुछ देर तक यूँ हीं एक दुसरे के बाहों में खोए रहते हैं l फिर कुछ देर बाद अलग होते हैं l दोनों अपनी बाहें फैला कर विश्व और रुप को अपने पास बुला लेते हैं l विश्व और रुप भी इमोशनल हो कर उन दोनों के गले लग जाते हैं l विश्व उनसे अलग होते हुए

विश्व - अंकल... आंटी... आज आपके शादी के.. पैंतीस साल पुरे हो गए... मैं अगर आपको कुछ दूँ... तो आप बुरा to
नहीं मानेंगे...
गायत्री - कास के मेरा कोई बेटा तुझ जैसा होता... या फिर तु ही मेरा बेटा होता... आज तु मुझे जो भी देगा मुझे मंजुर होगा...
विश्व - वादा...
सुकुमार - वादा... आज तुमने मेरे रगों में जवानी भर दी है... वादा... वादा वादा...
विश्व - तो फिर आइए मेरे साथ... बाहर चलते हैं...

सभी बाहर आते है विश्व एक गाड़ी के पास रुक जाता है और चाबी निकाल कर सुकुमार को देता है l

विश्व - यह मेरे तरफ से... मेरे अंकल आंटी को.. शादी की साल गिरह का तोहफा... रख लीजिए... आप इसी गाड़ी में... पुरा इंडीया घूमना... ठीक है...

सुकुमार और गायत्री विश्व को हैरानी से देख रहे थे l तो विश्व उन्हें कहता है

विश्व - देखिए... आपने... वादा किया है मुझसे...

सुकुमार फफक पड़ता है और विश्व को जोर से गले लगा लेता है l गायत्री की भी वैसी हालत हो जाती है वह भी विश्व को गले से लगा लेती है l

गायत्री - (सुबकते हुए) प्रताप... आज मुझे तेरी माँ के तकदीर पर... जलन हो रही है... के तु उसका बेटा है...

यह सब देख कर रुप की भी आँखे बहने लगती है l वह अपने आँसू पोंछती है और बड़ी मुश्किल से अपने अंदर की भावनाओं को काबु करती है l

उसके बाद सुकुमार और गायत्री उस गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l उनके जाने के बाद विश्व भी अपनी आँखों से आँसू पोंछता है और रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे भीगे पलकों से एक अलग सी भाव से एक टक देखे जा रही है l

विश्व - नंदिनी जी...
रुप - (चौंक कर) हूँ... ओह... सॉरी.. (कहते हुए अपनी आँखे पोंछती है)
विश्व - चलें...
रुप - (अपना सिर हिला कर) हूँ...

फिर दोनों चलते हुए थोड़ी दूर जाते हैं l विश्व को रुप देखे ही जा रही थी l रुप का ऐसे देखना विश्व के मन में झिझक बढ़ा रहा था l

विश्व - आप.. ऐसे क्यूँ देख रही हैं...
रुप - तुम बहुत अच्छे हो... प्रताप... तुम बहुत अच्छे हो... मैं तुम्हारे बारे में हमेशा से कंफ्युज थी... तुमसे... कुछ लोग डरते हैं... जिनका ताल्लुक गुनाह की दुनिया से है... तुम किसी किसी से मार पीट भी करते हो... फिर भी बहुत ही अच्छे हो... मुझे नाज़ है... तुम्हारे और मेरे... आई मीन... हमारे दोस्ती पर...
विश्व - (कुछ नहीं कह पाता है, बस हल्का सा मुस्कराने की कोशिश करता है)
रुप - (अपना हाथ आगे करती है) हम शायद आखिरी बार मिल रहे हैं... फिर पता नहीं... मिलना होगा.. या नहीं... (अपना हाथ दिखाते हुए) हूँ...

विश्व अपना हाथ आगे करता है और रुप की हाथ से हाथ मिलाता है l पता नहीं रुप को क्या हो जाता है वह विश्व के गले लग जाती है l रुप का सिर बिल्कुल विश्व के सीने से सटा हुआ होता है l विश्व की हाथ रुप गले लगाने के लिए उठती तो है पर वह रुप को गले नहीं लगा पाता l उसके हाथ वैसे ही हवा में रह जाते हैं l रुप कुछ देर आँखे मूँद विश्व के सीने से लगी हुई थी कि अचानक वह अपनी आँखे खोलती है और विश्व की शर्ट को मुट्ठी में भींच लेती है l हैरानी भरे नजरों से विश्व की चेहरे को देखती है l अचानक हुए रुप में तब्दीली से विश्व भी चौंकता है l रुप विश्व से अलग होती है और जोरदार झन्नाटेदार थप्पड़ मार देती है l विश्व भी हैरानी से रुप को देखता है l

विश्व - नंदिनी जी...
रुप - शट अप...
विश्व - मैंने कुछ नहीं किया...
रुप - खबरदार... अगर कुछ और कहा तो... मुहँ तोड़ दूंगी तुम्हारा...

कह कर रुप भागते हुए वहाँ से चली जाती है l विश्व हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देखता रहता है l

विश्व - अब तुम्हीं बता ओ माँ... इस में मेरी क्या गलती है...
प्रतिभा - सारी की सारी... तेरी ही गलती है...
विश्व - पर माँ... मैं सच में कुछ नहीं किया...
प्रतिभा - कुछ नहीं किया... इसी लिए तो मारा उसने... मैं तो हैरान हूँ... उसने एक थप्पड़ क्यूँ मारा... मेरे हिसाब से.. चार पांच और मारने चाहिए थे...
विश्व - किस लिए माँ...
प्रतिभा - हे भगवान... इसे थोड़ी अक्ल दो... अरे मुर्ख... उसने तेरी तारीफ करते हुए... तेरे गले लग गई... और किस तरह से वह कहती...
विश्व - क्या...
प्रतिभा - (अपना हाथ सिर पर मारते हुए) हे भगवान... वह तुझसे प्यार करती है...
विश्व - (अपनी बेड से उछलते हुए) क्या...

शुभ्रा - क्या... प्रताप... ही अनाम है...
रुप - हाँ भाभी.. वह अनाम ही था.. मैंने उसे पहचान लिया...
शुभ्रा - कैसे नंदिनी... कैसे...
रुप - मैंने बचपन में एक ही मर्द के गले लगती थी... जब भी उसके गले लगती थी... उसके बदन की खुशबु... मुझे हिप्नोटाइज कर देती थी... मैं उसके गले से लग कर गहरी गहरी सांसे लिया करती थी... मेरे जेहन में... मेरे रोम रोम में... मेरी आत्मा में.. उसकी खुशबु बसी हुई है भाभी... वह अनाम है...
शुभ्रा - अगर वह अनाम है... तो... तुमने उसे मारा क्यूँ... अपने बारे में बताया क्यूँ नहीं...
रुप - क्यूंकि मुझे अब... उसके बारे में जानना है... और किससे जानना है... मैं जानती हूँ
 

Jaguaar

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गायत्री अपने कमरे में लेटी हुई थी, और आज दोपहर जो भी हुआ उसके बारे में सोच रही थी l वह उस गाड़ी चोर के बारे में सोच रही थी l आखिर उसने ऐसा किया ही क्यूँ और उसके बाद जो हुआ वह गायत्री के लिए स्वीकार करना मुश्किल हो रहा था l ऐसे में उसे लगता है कि घर में कोई आया है, फिर भी वह अपनी जगह से नहीं उठती l क्यूँकी उसे लगता है शायद सुकुमार आया होगा l कुछ देर बाद किचन में कुछ गिर कर टूटने की आवाज आती है l गायत्री सोचने लगती है कहीं कोई बिल्ली तो नहीं आ गई, कहीं पोते पोतीयों के लिए रखे दूध में मुहँ मार दी तो, यह खयाल आते ही फौरन अपनी बेड से उठ बैठती है और बेड रुम से निकल कर ड्रॉइंग रुम की जाने लगती है कि उसके कानो में किसीके गुन गुनाने की आवाज सुनाई देती है l वह हैरानी से ध्यान से सुनने की कोशिश करती है, ना जरुर कोई और है, इस घर का सदस्य नहीं हो सकता है l कहीं कोई चोर तो नहीं l यह भान होते ही सोचने लगती है

"हे भगवान, अगर यह कोई चोर हुआ तो... मेरे बच्चों के सामान और घर की सभी चीजें चुरा ले गया तो... नहीं... मैं ऐसा नहीं होने दूँगी..."

इतना सोच कर वह वह चुपके से ड्रॉइंग रुम के बाहर रुक कर झाँकती है l काले लिबास में एक चोर जो चेहरे पर मुखौटा लगाया हुआ है, उस मुखौटे के अंदर पुरा चेहरा ढका हुआ है सिवाय उसके मुहँ के I वह चोर बड़े इत्मिनान से गुनगुनाते हुए फ्रिज खोल कर एपल खा रहा है l गायत्री इधर उधर अपनी नजरें घुमा कर देखती है तो उसे छत साफ करने वाली एक झाड़ू नजर आती है, जिसके पीछे एक बड़ा सा डंडा लगा हुआ था l वह चुपके से उस झाड़ू के पास पहुँचती है और झाड़ू उठा कर जैसे ही घूमती है उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है l क्यूँकी वह चोर अब उसे हो देख रहा था I थोड़ी हिम्मत बटोर कर गायत्री डंडा उठाती है कि तभी वह चोर अपने जेब से एक रिवॉल्वर निकाल लेता है l गायत्री जैसे ही चोर के हाथ में रिवॉल्वर देखती है जड़वत वहीँ खड़ी रह जाती है l वह चोर इशारे से उसे ड्रॉइंग रुम के अंदर चलने को कहता है l गायत्री एक रोबोट की तरह ड्रॉइंग रुम के अंदर आती है, चोर उसे इशारे से बैठने के लिए कहता है l वह एक सोफ़े पर बैठे जाती है l

चोर - यह क्या... मैंने तो गिन गिन कर... दस टिकट रखे थे... तुम कैसे रह गई...
गायत्री - (हैरान हो जाती है) तुम... तुमने सुबह गाड़ी चोरी की थी...
चोर - हाँ... पर तुमको अकेली छोड़ कर... वह नौ लोग सिनेमा देखने चले गए क्या...
गायत्री - (दुख भरी आवाज में) नौ नहीं आठ.... मैं और मेरे पति नहीं गए...
चोर - गए नहीं... या... लेकर नहीं गए...
गायत्री - (बिदक जाती है) तुम से मतलब...
चोर - मतलब है... तभी तो पुछ रहा हूँ...
गायत्री - वह... मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी... इसलिए नहीं गई...
चोर - (हैरान होते हुए) क्या... फिर तेरा बुड्ढा किधर गया...
गायत्री - वह.. थोड़ा बाहर गए हैं...
चोर - कब से...
गायत्री - तुमसे मतलब...
चोर - अरे... अपना एक उसूल है... मैं उसी घर में चोरी करता है... जिस घर में कोई नहीं होता है... इसी लिए तो... सुबह... इनवेस्टमेंट किया... ताकि शाम को आकार अपना रिटर्न ले सकूँ...
गायत्री - तो ले लो ना.. जो भी लेने आए हो...
चोर - ना... मैं उसूल से बाहर नहीं जा सकता... इसलिए एक काम करो... तुम इस घर से निकल जाओ... मैं चोरी खत्म कर लूँ... उसके बाद तुम घर आ जाना...
गायत्री - क्या... तुम मेरे घर से... मुझे निकल जाने के लिए कह रहे हो...
चोर - नहीं थोड़ी देर के लिए... जाने के लिए कह रहा हूँ... ताकि मैं आराम से अपनी इनवेस्टमेंट का रिटर्न उठा सकूं...
गायत्री - मैं... कहाँ जाऊँ... कैसे जाऊँ...
चोर - अरे... तभी तो दस टिकट भेजे थे... मैंने... ताकि तुम सपरिवार फिल्म देख सको... मैं अपना काम कर सकूँ...
गायत्री - अगर इतना ही... जरूरी था... तो एक और कर छोड़ जाते... उस इनोवा में... बच्चों सहित आठ लोग ही जा सकते थे....
चोर - और वह कार भी... मैं चोरी से लाता...सिनेमा खतम होने के बाद... सारी की सारी फॅमिली... चोरी के इल्ज़ाम में जैल यात्रा में होती...
गायत्री - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) तुम्हें जो लेना है जाओ ले जाओ... मैं कुछ नहीं कहूँगी... समझ लो... मैं इस घर में हूँ ही नहीं...
चोर - मैं ऐसे कैसे सोच लूँ... मैं तुम्हारे बेटों की तरह थोड़े ही हूँ...
गायत्री - खबरदार जो तुमने मेरे बच्चों के खिलाफ कुछ कहा तो...
चोर - और नहीं तो... सिर्फ फ्री के कोल्ड ड्रिंक्स... और पॉप कॉर्न के लिए... उन्होंने अपने माँ बाप को साथ नहीं लेकर गए...
गायत्री - ऐसी बात नहीं है...
चोर - तो कैसी बात है...
गायत्री - वह... हमें ले जाने के लिए... एक टैक्सी की जरूरत पड़ती...
चोर - खुशियाँ जिसके साथ बांटी ना जा सके... वह अपने नहीं होते... और जो अपने नहीं होते... खुशियों में उनकी जरुरत नहीं होती...

चोर के मुहँ से यह बात सुन कर गायत्री को झटका सा लगता है l आखिर उसकी बात गायत्री को दर्द पे दर्द दिए जा रहा है l वह एक दर्द सी महसूस करते हुए अपनी आँखे बंद कर लेती है, फिर भी उसकी आखों के किनारों से आँसू दिखते हैं l

कड्र्र्रर्र्र्र्र्
डोर बेल बजती है l गायत्री और चोर दोनों की ध्यान टुटती है l चोर गायत्री के पास जा कर रिवॉल्वर गायत्री के कनपटी पर लगा देता है और साथ चल कर दरवाजा खोलने के लिए कहता है l रिवॉल्वर के नोक पर यंत्र वत चलते हुए गायत्री दरवाजा खोलती है, दरवाजा खुलते ही चोर झटके से गायत्री को खिंच कर पीछे ले आता है l बाहर दो लोग थे सुकुमार और उसके साथ रुप l सुकुमार और रुप दोनों हैरान हो जाते हैं अंदर का नज़ारा देख कर एक नकाब पोस अपने रिवॉल्वर के नोक पर गायत्री को लिए खड़ा है l

सुकुमार - कौन हो तुम... क्या कर रहे हो मेरे घर में...
चोर - यह बात तो मैं भी पुछ रहा हूँ... इस वक़्त तुम सबका सिनेमा हॉल में होना चाहिए था... यहाँ क्या कर रहे हो.. और क्यूँ...
सुकुमार - यह क्या बकवास कर रहे हो... हम सिनेमा हॉल क्यूँ जाएं... और तुम हो कौन...
चोर - अररे... मैंने सुबह कुछ इनवेस्टमेंट किया था... मेरे रिटर्न के लिए तुम सबको सिनेमा हॉल में होना चाहिए था... ताकि मैं इस घर में चोरी कर के अपना रिटर्न ले पाता... अब मेरा इनवेस्टमेंट डूब गया ना...
रुप - ओ... तो तुम वही चोर हो... जिसने गाड़ी चोरी कर... घंटों शहर में घुमाया... और टैंक फुल कर रखते हुए... दस सिनेमा के टिकट भी रख दिया था...
चोर - हाँ...
रुप - तो बोलो कितने पैसे हुए... मैं लौटा दूंगी...
विश्व - आप क्यूँ लौटाओगी... मैं एक चोर हूँ... चोरी मेरा काम है... और मेरा एक उसूल है... मैं उसी घर में चोरी करता हूँ... जिस घर से मैं... लोगों को बाहर भेज देता हूँ...
रुप - (थोड़ी तैस में आकर) ऐ...
चोर - (थोड़ी ऊंची आवाज में) ऐ... मेरे हाथ में गन है... ट्रिगर दब गया... तो यह औरत गई...
सुकुमार - नहीं... (गिड़गिड़ाते हुए) नहीं प्लीज नहीं... तुम यूँ समझो... हम घर में हैं ही नहीं... जो चाहे लेलो... हम कुछ नहीं कहेंगे... तुम चाहो तो... हम सब को यहाँ... (किचन की ओर दिखाते हुए) किचन में बंद कर सकते हो...
रुप - अंकल... यह आप क्या कह रहे हैं...
सुकुमार - (बड़े करुण आवाज में) तुम चुप रहोगी प्लीज.. (चोर की ओर देखते हुए) प्लीज... हम सबको किचन में बंद कर दो...
चोर - हाँ हाँ... वह मैं बाद में देखूँगा... पहले यह बताओ... मैंने दस टिकेट्स दिए थे... तो तुम दोनों उनके साथ... सिनेमा हॉल जाने के वजाए... घर पर क्यूँ रुके रहे...
सुकुमार - क्यूंकि... हमें... यह फिल्म देखना अच्छा नहीं लगता...
चोर - अंकल जी झूठ मत बोलो...
खुदा के पास जाना है...
ना हाती है ना घोड़ा है...
वहाँ पैदल ही जाना है...
सुकुमार - मैं... मैंने कोई झूठ नहीं बोला है...
चोर - फिर झूठ... हर महीने आप दोनों सिनेमा जाते हो... मेरे पास पक्का खबर है... तभी तो.. मैंने आप लोगों के एंटरटेनमेंट का खयाल करते हुए... सिनेमा के टिकेट रख छोड़े थे...

सुकुमार पहले हैरान हो जाता है मगर फिर लाज़वाब हो जाता है और बिनती भरे नजरों से चोर की ओर देखता है l

रुप - तो क्या हो गया... अगर अंकल और आंटी सिनेमा हॉल नहीं गए...
चोर - अररे... आप हो कौन.. इस घर के दस सदस्यों में तो... आप हो नहीं...
रुप - तो.. यह पुछने वाले तुम कौन हो...
चोर - वेरी सिम्पल... इस घर का ग्यारहवां सदस्य...
रुप - तुम... तुम चोर.. लुच्चे... कमीने... इस घर का सदस्य..
चोर - हाँ... क्यूंकि मैंने... इस घर के सदस्य पर आज.. इनवेस्ट... किया है... इस नाते से...
रुप - अगर सदस्य हो... अंकल आंटी की इज़्ज़त करो... और...
चोर - चुप... घर वालों के बीच... बाहर वाले... बक बक क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - यू... (बिदक जाती है)
सुकुमार - (रुप से) रुक जाओ बेटा.. रुक जाओ... प्लीज... (चोर से) क्या चाहते हो आखिर...
चोर - आप दोनों... सिनेमा क्यूँ नहीं गए...
सुकुमार - वह इनोवा... एइट सीटर की थी...
चोर - तो... एक कार... या फिर ऑटो बुक करा लेते... और चले जाते... (इस पर सुकुमार चुप रहता है) सच सच बताओ अंकल...

इतने देर से गायत्री चोर को चुप चाप सुन रही थी l अब उससे रहा नहीं जाता था चोर की रिवॉल्वर वाली हाथ को पकड़ कर झटका देती है और चोर की गिरेबान पकड़ कर

गायत्री - क्या सुनना चाहते हो... यही ना... हमें सिनेमा ले जाना... हमारे बच्चों ने जरूरत नहीं समझा... दो टिकट के सरेंडर कर देने से... पुरी शो में... फ्री की कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न के लिए... हमें छोड़ दिया... और क्या जानना चाहते हो... (कह कर गायत्री रो देती है और चोर के सीने पर सिर टिका कर रोने लगती है)
चोर - आप रो लीजिए आंटी... ताकि आपकी आंसुओं से... आपके अंदर की वहम भी बह जाए...

गायत्री अपना सिर उठा कर चोर के चेहरे को देखती है I चोर के होठों पर मुस्कराहट उसे साफ दिख रही थी l पर वह मुस्कराहट उसकी खिल्ली नहीं उड़ा रही थी, बल्कि उस मुस्कराहट में उसे एक अपनापन दिख रहा था l चोर के इस बर्ताव से दो लोग और भी हैरान थे, रुप और सुकुमार l चोर अपने चेहरे से नकाब उतार देता है l सब के सब हैरान रह जाते हैं क्यूंकि सामने प्रताप था I

गायत्री - तुम... प्रताप हो ना...
विश्व - जी... आपको मैं अभी भी याद हूँ...
गायत्री - (अभी भी उसका गिरेबान पकड़े हुए थी) हाँ.. तुझे कैसे भुल सकती हूँ... उस दिन ओरायन मॉल के आइस्क्रीम पार्लर में... तुने भी तो मुझे गले से लगाया था...
विश्व - आओ आंटी... पहले आप बैठ जाओ... फ़िर इस चोर को जो सजा देना चाहो... दे दो...

विश्व गायत्री को सोफ़े पर बिठाता है और सुकुमार को इशारे से गायत्री के बगल में बैठने को कहता है l सुकुमार के बैठने के बाद

गायत्री - (रुप से) तुम नंदिनी हो ना..
रुप - (झिझकते हुए) जी... पर... आपने कैसे जाना...
गायत्री - पहले... मेरे सामने वाले सोफ़े पर बैठ जाओ... (रुप बैठ जाती है) यह जब शाम को लौटते थे... तुम दोनों की ही तो बातेँ किया करते थे... (कह कर चुप हो जाती है और रुप को देखने लगती है, रुप अपना सिर झुका लेती है) खैर... (विश्व से) तु क्यूँ... खड़ा है अभी तक... जा बैठ जा... नंदिनी के पास..
रुप - (खड़ी हो जाती है) क्या...
विश्व - (चौंक कर) जी मैं... (हकलाने लगता है) म.. म.. मैं... क.. के.. कैसे..
गायत्री - तुम दोनों दोस्त हो ना...
दोनों - जी...
गायत्री - तो साथ बैठने में... क्या परेशानी... कैसी झिझक...

विश्व और रुप एक दुसरे को देखते हैं और फिर गायत्री को देख कर

दोनों - जी... ठीक है...

फिर सामने वाले सोफ़े पर विश्व और रुप बैठ जाते हैं l

गायत्री - (रुप से) तो नंदिनी... तुम्हारे दोस्त के प्लान में तुम शामिल थी.. क्यूँ...
रुप - नहीं आंटी... जब यह आपकी प्रॉब्लम को जाना... तब मैं समझ गई... के यह आपके लिए कुछ करेगा... मैंने कहा भी था... की आपको समझाने के लिए जो भी प्लान करेगा... मुझे प्लान में शामिल करेगा... पर... (विश्व देखते हुए दांत पिसते हुए अपनी शब्दों को चबा कर) मुझे सिर्फ इतना मेसेज किया कि... आज मैं जैसे भी हो... अंकल को घर पर छोड़ने जाऊँ... बाकी का प्लान मिलने के बाद बतायेगा... पर यहाँ पता चला... प्लान पुरी हो चुकी...

रुप की हर शब्द ऐसे निकल रहे थे जैसे वह विश्व को घुसे मार रही थी l विश्व भी अपने चेहरे का भाव हर शब्द पर मार खाने जैसी ही बना रहा था l यह सब देख कर गायत्री और सुकुमार दोनों मजे ले रहे थे l थोड़ी देर बाद

गायत्री - खैर... (सुकुमार की हाथ पकड़ कर) प्रताप... जो बात मेरे पति मुझे अकेले में... ना जाने कितनी बार कहा... पर तुमने वही बात कुछ सिनेमा के टिकटों से समझा दिया... थैंक्यू...
विश्व - आप... थैंक्यू ना कहें आंटी...
सुकुमार - नहीं प्रताप... यह थैंक्यू... फॉरमल नहीं है... दिल से दिया जा रहा है...
विश्व - मैं जानता हूँ अंकल... पर...
गायत्री - नहीं बेटे... तुमने एक मौका बनाया... हमारे बच्चों के लिए... हमारी अहमियत क्या है... कितनी है... इस छोटी सी बात से... मुझे तुम क्या समझाना चाहते थे... वह मैं अच्छे से समझ गई...

विश्व चुप रहता है l वह क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l रुप सिचुएशन को सम्भालने के लिए

रुप - वैसे... अंकल आंटी... हैप्पी कोरल अनिवर्सेरी... एडवांस...
गायत्री - ओ... हूँ.. हूँ... मतलब... सुकुमार जी ने सबकुछ बता दिया है तुम दोनों को...
रुप - कहाँ आंटी... सिर्फ दुख ही तो बताया था... खुशी के पल की जानकारी कहाँ दी...
विश्व - हाँ आंटी... अब जब... आपके परिवार के सदस्य नहीं आ जाते... तब तक चलिए ना... हम कहीं जाएं... और... साथ मिल कर टाइम स्पेंड करें...
रुप - हाँ आंटी...
गायत्री - क्यूँ... हम बाहर क्यूँ जाएं... हम यहीं महफिल सजा देते हैं...
रुप - कैसी महफिल...
सुकुमार - अरे... तुम लोग चाहो तो... गाना बजाना...
विश्व - और... खाना...
सुकुमार - उसके लिए यह है ना... (मोबाइल में स्वीगी ऐप दिखाते हुए)
रुप - इसका मतलब यह हुआ कि... आप दोनों गाते हैं...
सुकुमार - गाते हैं... अरे... कॉलेज दिनों में... हमारी मुलाकात... सिंगिंग कंपिटीशन में हुई थी... और इज़हारे मुहब्बत... कॉलेज पिकनिक के अंताक्षरी के दौरान हुई थी... (गायत्री से) क्यूँ जानेमन...

गायत्री शर्मा कर सुकुमार के कंधे पर एक चपत लगाती है l विश्व और रुप हँस देते हैं इसी तरह इनकी गप्पे चलती रहती है l फिर स्वीगी वाला खाना डेलीवर कर देता है l चारों मिलकर खाना खाने लगते हैं l खाना खतम कर लेने के बाद सुकुमार और गायत्री अपने जीवन की बहुत सी बातेँ विश्व और रुप से कहते हैं l समय साढ़े नौ बज रही होती है कि रुप को बार बार घड़ी की ओर देखते हुए गायत्री देखती है l

गायत्री - नंदिनी तुम्हें देर हो रही है... है ना...
रुप - जी... वह..
गायत्री - मैं समझ सकती हूँ... लड़की हो... रात हो चुकी है... और घर पर तुम्हारा इंतजार हो रहा होगा...
नंदिनी - जी...
सुकुमार - तब तो तुम लोगों को जाना चाहिए... हमारे वजह से तुम दोनों बेकार में फंस गए...
विश्व - जी... इस में... फंसने वाली बात कुछ भी नहीं है... हमने आपके लिए जो भी किया... अपना समझ कर किया...
सुकुमार - तो हमें भी अपना समझने दो... हमारे वजह से तुम्हारे अपनों को चिंता नहीं होनी चाहिए... इसलिए जाओ... अपने घर पर जाओ...
रुप - एक शर्त पर...
गायत्री - (मुस्कराते हुए) लो घर हमारा... देर तुम्हें हो रही है... और शर्त तुम रख रही हो... चलो कोई नहीं... बोलो क्या शर्त है...
रुप - कल आपका एनीवर्सेरी है... तो आप... अपनी खुशियों में... हमें भी शामिल करें...
गायत्री - है तो एनीवर्सेरी.... पर... हमने कुछ प्लान किया नहीं है अब तक...
विश्व - तो आप हमें प्लान करने दीजिए...
सुकुमार और गायत्री - तुम... तुम दोनों...
विश्व - हाँ... अगर आपको ऐतराज ना हो... तो...

सुकुमार और गायत्री एक दुसरे को पहले हैरान हो कर देखते हैं l फिर दोनों खुश हो कर "ठीक है" कहते हैं l विश्व और रुप दोनों घर के बाहर आते हैं l सुकुमार दंपति उन्हें छोड़ने के लिए बाहर तक आते हैं l जब विश्व और रुप को विदा दे रहे होते हैं तभी सुकुमार दंपति के बेटे बहु और पोते पोती आकर पहुंचते हैं l विश्व और रुप को देख कर वे लोग हैरान होते हैं l

बेटा एक - ऐ... कौन हो तुम... और इतनी रात गए... हमारे घर में क्या कर रहे हो...
गायत्री - यह हमारे मेहमान हैं...
बेटा एक - अच्छा अच्छा... ठीक है..
सुकुमार - क्या बात है... इतना चिढ़ा हुआ क्यूँ है...
बेटा दो - वह सुबह का चोर... जिसने गाड़ी चोरी की थी..
गायत्री - हाँ... क्या हुआ उसका...
बहु एक - होना क्या था... कमबख्त... झूठ बोला था हमें...
गायत्री - क्या झूठ था... फिल्म टिकट असली नहीं थे क्या...
बेटा एक - नहीं टिकट असली थे... पर वह दो टिकट सरेंडर वाली बात झूठ थी...
विश्व - हाँ... ऐसा थोड़े ना कहीं होता है... टिकट सरेंडर करने से... फ्री में कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न कौन देगा... और क्यूँ देगा...
रुप - हाँ... ऐसा तो अमेरीका में भी नहीं होता होगा...
बेटा एक - (गुस्से से) हे.. इ... हू द हैल यु आर...
गायत्री - कहा ना... मेहमान हैं हमारे...
बेटा दो - तो... मेहमान तुम्हारे हुए... हमें क्या... पहले से ही हॉल में... कोल्ड ड्रिंक और पॉप कॉर्न के लिए दिमाग खराब हुआ पड़ा है...
सुकुमार - फ्री में टैंक फुल मिला... सिनेमा का टिकट मिला... उससे भी तुम लोग खुश नहीं हो... कोल्ड ड्रिंक के लिए दिमाग गरम किए हुए हो...
बेटा एक - आप चुप रहिए... उस बास्टर्ड चोर के वजह से... हम कितने ह्युमीलेट हुए हैं...
रुप - फ्री के सिनेमा देखने के बाद भी... सिर्फ कोल्ड ड्रिंक के लिए... उस शुभ चिंतक को बास्टर्ड कर दिया...
बेटा एक - हे इ.. यु.. फ@ बीच...
सुकुमार - माइंड योर टंग...
बेटा - यु माइंड योर टंग...

चटाक एक थप्पड़ लगती है बेटा एक के गाल पर l मारने वाली थी गायत्री l सन्नाटा घोर सन्नाटा पसर जाती है कुछ देर के लिए l सब हैरान हो कर गायत्री को देखने लगते हैं l

बेटा एक - (अपने गाल पर हाथ रखे हुए) म्म्म... मॉम...
गायत्री - जिससे तुने अभी बद-जुबानी की है... वह तेरा बाप है... और पहले भी मैंने कहा था... यह दोनों... हमारे... मेहमान हैं... (विश्व और रुप से) तुम दोनों जाओ... कल के प्लान के बारे में फोन पर जानकारी देना ठीक है...

विश्व और रुप अचंभित हो कर सुकुमार दंपति के घर पर अभी हुआ कांड से शॉक में थे l गायत्री के जाने को कहने पर दोनों होश में आते हैं l

दोनों - जी... ठीक है... (कह का जाने वाले थे कि)
गायत्री - अररे... ऐसे कैसे... अपने आंटी से गले मिलकर नहीं जाओगे...

विश्व और रुप एक दुसरे को देखते हैं और फिर गायत्री से एक साथ "जी" कहते हैं

गायत्री - (रुप से) पहले तुम... आओ.. (रुप गायत्री के गले लग जाती है, गायत्री रुप के कान में कहती है) बहुत ही अच्छा लड़का है... कंग्राचुलेशन...

रुप हैरानी और शर्म के साथ गायत्री से अलग होती है l गायत्री खुशी और मुस्कराहट के साथ अपनी बाहें फैला कर विश्व की ओर देखती है l विश्व गायत्री के गले से लग जाता है l

गायत्री - (विश्व के कान में) बहुत ही अच्छी लड़की है... कंग्राचुलेशन....

अब विश्व भी हैरानी और शर्म के साथ गायत्री से अलग होता है l अब विश्व और रुप वहाँ से जाने लगते हैं l पीछे से गायत्री चिल्ला कर कहती है
"कल की प्लान फोन पर बताना ठीक है"
विश्व और रुप पीछे मुड़ कर देखते हैं और दोनों हाँ में सिर हिला कर चले जाते हैं l रास्ते में दोनों एक दुसरे से नज़रें मिलाने से कतराते हैं l क्यूँकी दोनों ही जानते हैं कि गायत्री आंटी दोनों के कान में क्या कहा l

रुप - (अपनी झिझक से बाहर निकलने के लिए) तो... कल का प्लान क्या है...
विश्व - अभी तक बनाया नहीँ है...
रुप - क्या... इस बार भी... मुझे प्लान से दुर रखने का इरादा है क्या...
विश्व - कहाँ... आप तो सुबह से ही प्लान में... शामिल हैं...
रुप - पर वह अनजाने में...
विश्व - तभी तो... आप नेचुरल परफॉर्म कर पाई...

रुप अपने कुहनियों में हाथ बांधे रुक जाती है l तो विश्व भी रुक जाता है और रुप की ओर देखने लगता है l

विश्व - क्या हुआ...
रुप - अब मुझे... अनजाने में नहीं... पुरी नॉलेज के साथ प्लान में शामिल होना है...
विश्व - ठीक है... कल नौ या दस बजे तक... आपको प्लान पुरा समझा दूँगा...

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रात के दो बज रहे हैं l काठजोड़ी की रेतीली पठार पर भारी भीड़ लगी हुई है l बल्लभ, रोणा और टोनी अपनी गाड़ी को पार्क करते हैं l तीनों उतर कर फाइट ग्राउंड के पास पहुँचते हैं l तब तक चार फाइट खतम हो चुका है l चारों फाइटरों के बीच फाइट के लिए लॉटरी होने वाली होती है कि तभी एक एनाउंसमेंट होती है कि डेविल लड़ेगा, विरुद्ध में कोई भी हो और कितने भी हो, भाव एक का दस l इस एनाउंसमेंट के बाद लोग डेविल डेविल चिल्लाने लगते हैं l कुछ देर बाद फिर से एनाउंसमेंट हुआ कि चारों फाइटर वर्सेस डेविल की फाइट होगी l

बल्लभ - टोनी... तु हमें यहाँ क्यूँ ले कर आया है...
टोनी - सब बताऊँगा... पहले फाइट देख लेते हैं... और लगे हाथ कुछ पैसे भी लगा लेते हैं...
बल्लभ - नहीं... मुझे इसमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है...
टोनी - रोणा सर आप...
रोणा - तु किस पर पैसा लगाने वाला है...
टोनी - डेविल पर...
बल्लभ - क्या... पर मुझे लगता है यह डेविल कोई पागल है... उसके खिलाफ चार चार बंदे लड़ने वाले हैं...
टोनी - ठीक है... तो फिर आप चारों पर पैसा लगाइए...
बल्लभ - ठीक है...

उसके बाद टोनी पैसे लेकर काउंटर में लगा कर टोकन ले लेता है l कुछ देर बाद रिंग में फाइटर्स पहुँचते हैं l एक तरफ नकाब के पीछे डेविल था और एक तरफ बाकी चार फाइटर्स थे I रेफरी आकर फाइटर्सों को रुल समझा देता है फिर व्हिसील बजाता है l लोग डेविल डेविल चिल्लाने लगते हैं और रिजल्ट भी अनुरुप आता है l सिर्फ पांच मिनट में चारों फाइटर्स नीचे पड़े हुए थे और कुछ देर बाद वहाँ से डेविल गायब हो गया था I
टोनी भागते हुए जाता है और करीब बीस मिनट के बाद पैसे लेकर आता है और कुछ देर बाद तीनों गाड़ी से काठजोड़ी से निकल कर ट्वेंटी फोर सेवन हाइ वे इन नामकी बार एंड रेस्टोरेंट में पहुँचते हैं l सुबह से टोनी ऐसे ही कहीं ना कहीं घुमा रहा है l टोनी के साथ रोणा चुप चाप घुम रहा है पर बल्लभ चिढ़ चुका था l बार के भीतर टेबल पर बैठने के बाद बल्लभ चिढ़ कर टोनी से

बल्लभ - ऑए दारोगा ... सुबह से.. जब से यह मिला है... तब से... पहले हमारे रुम में पिछवाड़ा उठा कर सोया हुआ था... उसके बाद घुमा रहा है... घुमा रहा है... और अब यहाँ... यह विश्व के बारे में हमें क्या जानकारी देगा यार... और तु है कि इससे आस लगाए हुए है...
टोनी - वकील साहब... क्यूँ चिढ़ रहे हो... पहले यह बताओ... जैल की जो लिस्ट में आपने नाम दिया था रोणा सर जी को... क्या उसमें मेरा नाम था...
बल्लभ - मुझे क्या पता... मुझे सिर्फ ऑफिसरों के नाम से मतलब था... मुज़रिमों के नाम में अपना इंफॉर्मर... रोणा ढूंढ रहा था...
रोणा - हाँ... अगर लिस्ट को अच्छी तरह से... पढ़ा होता... तो तुझे टोनी नाम नहीं मिला होता...
बल्लभ - (चौंकता है)तो... तो फिर.. यह... यह कौन है...
रोणा - लेनिन पोदार...
बल्लभ - क्या... लेनिन... पोदार...
रोणा - हाँ एक वांटेड क्रिमिनल है... पर अब यह जिंदा नहीं है...
बल्लभ - (झटका खाते हुए) क्या...
टोनी - हाँ वकील साहब... पुलिस फाइल में... लेनिन पोदार को... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा ने एनकाउंटर किया था...
बल्लभ - तो यह टोनी...
रोणा - तकरीबन तीन साल पहले... जब देवगड़ में मेरी पोस्टिंग हुई थी... तब यह एक दिन देवगड़ में पहुँचा... वहाँ पर एक लोकल दादा से इसका झगड़ा हो गया था... वह लोकल दादा मुझे हफ्ता देता था... इसलिए मैंने इसे पकड़ लिया...
टोनी - तब रोणा साहब ने... मुझे पकड़ कर लॉकअप में डाल दिया... तब मैंने... इन्हें अच्छी खासी रकम के बदले... एक नई पहचान मांगी... क्यूंकि मुझे मारने के लिए... मिनिस्टर ओंकार चेट्टी के आदमी पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे थे...
रोणा - तब केरल में.. मुनार गए एक लेबर की मौत हो गई थी... इत्तेफाक से उसका कोई रिस्तेदार था ही नहीं... तो मैंने चालाकी से... लेबर डिपार्टमेंट से उसका लाश और उसके रिलेटेड सभी डाक्यूमेंट हासिल कर ली... और इसे उसके जगह पर फिट कर दिया... और लेनिन पोदार की एनकाउंटर डिक्लेर कर दी...
बल्लभ - ओह... तो यह टोनी नहीं है... लेनिन है...
टोनी - ना टोनी ही हूँ... लेनिन तो कब का मर चुका है...
बल्लभ - ठीक है... विश्व के बारे में... और क्या जानते हो... जो हम नहीं जानते... क्या ओंकार चेट्टी के बेटे यश की मौत के वजह से... तुम्हें मारने के लिए ढूंढ रहा था...
टोनी - हाँ... वह एक एक्सीडेंट था... असल में उस वक़्त यश और मेरे बीच एक डील हुई थी... कबड्डी के मैच में यश विश्व को मार देना था... यश विश्व को अपने कब्जे में ले भी लिया था... (टोनी कबड्डी मैच की पुरी कहानी बताने लगता है) बाद में... पोस्ट मोर्टेम में ड्रग्स के ओवर डोज के वजह से यश की मौत की पुष्टि हुई... पर ओंकार को मालुम था... यश की और मेरी डील के बारे में... तभी से वह मुझे मरवाने के लिए... ओंकार पीछे पड़ा हुआ था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो तुम विश्व से अपनी दुश्मनी यूँ उतारना चाहते थे...
टोनी - हाँ...
बल्लभ - क्या जैल में रह कर... वह इतना बड़ा तोप बन गया..
टोनी - तोप... हा हा हा हा हा... वह साक्षात... यमदूत बन गया... आपको क्या लगा... मैं क्यूँ लेकर गया था... उस फाइट में... विश्व बिल्कुल उस डेविल की तरह है... या शायद उससे बेहतर...
रोणा और बल्लभ - व्हाट... क्या...
रोणा - विश्वा... एक फाइटर...
टोनी - हाँ... एक जबरदस्त फाइटर...
रोणा - यह कैसे... कैसे हो सकता है... साले हरामी मादरचोद को... राजगड़ में... पहलवानों के लंगोट धोते देखा है... यह फाइटर कब बन गया...
टोनी - सिर्फ फाइटर ही नहीं... जैल के अंदर सभी कैदीयों का लीडर बन गया... कोई भी... कहीं का भी दादा या भाई हो... उनकी दादा गिरी और भाई गिरी.... जैल बाहर ताला बंद कर जैल आते थे... क्यूंकि जैल के अंदर वह विश्व नहीं... विश्वा भाई था...

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दो दिन बाद विश्व बेड पर सोया हुआ था l पिछले रात के दो बजे सुकुमार और गायत्री की एनीवर्सेरी अटेंड कर लौटा था l देर रात को आया था, चूंकि पहले से ही प्रतिभा को कह रखा था कि वह देर से आएगा इसलिए वह एक्स्ट्रा चाबी लेकर गया हुआ था I वह चाबी खोल कर अंदर आकर सो गया था l उसे सुबह कमरे में तापस सोता देखता है, और फिर तापस अपने मॉर्निंग वक़ पर चला जाता है l प्रतिभा भी अपनी सारे काम खतम कर विश्व के सिरहाने बैठ कर उसके बालों में हाथ फेरती है l विश्व की नींद टुट जाती है l चौंक कर उठ बैठता है और मुड़ कर प्रतिभा की तरफ चेहरा कर बैठ जाता है l

उधर रुप की भी विश्व के अनुरुप हालत थी l वह भी रात को उखड़े मुड़ में घर आई थी शुभ्रा ने उसका गुस्से भरा चेहरा देखकर सुबह पुछना ही ठीक समझा था, शुभ्रा को यह एहसास भी था रुप रात भर जाग कर सुबह के करीब ही सोई थी l सुबह जब विक्रम और वीर डायनिंग टेबल पर रुप को नहीं देखते हैं तो उन्हें अचरज होती है l

विक्रम - क्या बात है... नंदिनी अभी तक जगी नहीं है क्या...
वीर - हाँ भाभी नंदिनी कहाँ है..
शुभ्रा - वह... अपने दोस्तों के साथ... सुकुमार अंकल और आंटी जी की एनीवर्सेरी को देर रात तक सेलिब्रेट करते रहे... शायद उस वजह से रात को ठीक से सो नहीं पाई... अभी सुबह ही उसे नींद आई है... इसलिए उसे सोने दिया है मैंने...
विक्रम - ठीक है... आज अगर कॉलेज ना जाना चाहे तो... जाने मत दीजिए... अरे हाँ... तो वीर जी... आज आपका जन्म दिन है... अभिनंदन...
वीर - क्या भैया... हमारे जन्म दिन में ऐसा क्या है... किसे याद रहता है... सिवाय माँ के...
शुभ्रा - फिर भी सेलिब्रेशन तो बनता है...
वीर - ठीक है... आप रात को प्रोग्राम रखिए... हम रात को ही मिलेंगे...
विक्रम - क्यूँ... रात को क्यूँ...
वीर - आज मेरा बहुत ही इंपोरटेंट काम है... मैं हर हाल में वह काम खतम करना चाहता हूँ... उसके बाद... आप जो भी कहें...

विक्रम वीर की ओर कुछ देर के लिए देखता है l पर वीर विक्रम की ओर देखे वगैर अपना खाना खाने लगता है l फिर वीर जल्दी जल्दी अपना खाना खतम कर बिना कुछ कहे वहाँ से निकल जाता है l वीर के ऐसे चले जाने पर विक्रम और शुभ्रा दोनों हैरान होते हैं l फिर विक्रम भी उठता है

विक्रम - ठीक है जान... हम भी चलते हैं... आप अपना और नंदिनी का खयाल रखियेगा...
शुभ्रा - जी...

विक्रम फिर शुभ्रा को बाय कह कर चला जाता है l विक्रम के जाते ही शुभ्रा रुप के कमरे में आती है l रुप बड़ी गहरी नींद में सोई हुई थी l शुभ्रा रुप के पास बैठ कर रुप की हाथ को हिलाती है l रुप अपनी आँखे मलते हुए बेड पर उठ बैठती है l

विश्व - माँ... तुम... अभी तक सोई नहीं...
प्रतिभा - (विश्व के गाल पर चपत लगाते हुए) सुबह के साढ़े आठ बज रहे हैं... मतलब रात भर ठीक से सोया नहीं है... है ना...
विश्व - (अपनी नजरें झुका लेता है)
प्रतिभा - कल तु कुछ अच्छा करने गया था... चूंकि तुने प्रोग्राम बनाया था... कुछ गलत हो ही नहीं सकता था... फिर तेरे चेहरे पर... यह मायूसी... किस लिए मेरे बच्चे...
विश्व - (आँखों में थोड़ा सा पानी आ जाता है) माँ... मैं तेरे कोख से नहीं आया... फिर भी कैसे जान लेती हो... मैं अंदर ही अंदर कब खुश होता हूँ... या दुखी...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) क्या तु... अभी भी मेरे प्यार पर शक करता है...
विश्व - माँ... शक तो एक बार भगवान पर कर लूं... पर तुम्हारे प्यार पर कभी नहीं... बस... (प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख कर) तुम कैसे मेरे दिल की हालत जान लेती हो...
प्रतिभा - माँ हूँ... बस... (विश्व के बालों को सहलाते हुए) मैं तेरी माँ हूँ... और तु मेरे कलेजे का टुकड़ा है... अब बता क्या हुआ... क्या नंदिनी से कोई अनबन हो गई...

रुप - (अपना सिर शुभ्रा के गोद में रख कर) हाँ भाभी... पर आपको कैसे पता चला..
शुभ्रा - कल जिस मुड़ में तुम घर में आई... मैं समझ गई... बात जरूर तुम्हारे और प्रताप के बीच की है...

विश्व - (झट से उठ बैठता है) हाँ माँ... पर तुमने कैसे पता लगा लिया...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मतलब मेरा शक बिल्कुल सही है...
विश्व - (मुहँ लटका के)हूँ... (कहते हुए अपना गाल सहलाता है)
प्रतिभा - हूँम्म्म्म्म्... इसका मतलब... कहीं... नंदिनी ने तुम्हें थप्पड़ तो नहीं मारा...
विश्व - (अपना सिर हिला कर हाँ कहता है)

शुभ्रा - क्या... तुमने प्रताप को थप्पड़ मारा... पर क्यूँ...
रुप - (अपनी जबड़े भिंच कर) क्यूँ की... मेरे पास उसकी कलई खुल गई... वह जिसे राज बनाए रखा था... मैंने उसकी वह चोरी पकड़ ली... मुझे गुस्सा आया... इतना गुस्सा आया कि... मैंने उसे थप्पड़ मार दी....

प्रतिभा - (झट से उठती है और अपनी साड़ी की आँचल को कमर में ठूँस कर) उसकी यह हिम्मत... मेरे बेटे को... तबला समझ कर रखी है क्या... जब जी चाहे मार देती है... अभी खबर लेती हूँ उसकी...

कह कर कमरे से बाहर जाने लगती है, विश्व भागते हुए प्रतिभा को रोकने की कोशिश करता है l प्रतिभा नहीं रुकती और सीधे बाहर अपनी गाड़ी में जाकर बैठती है l

विश्व - माँ...
प्रतिभा - क्या है...
विश्व - तुम जानती भी हो... नंदिनी जी रहती कहाँ हैं...
प्रतिभा - क्या... नंदिनी जी...
विश्व - वह... शायद.. मेरी गलती हो...
प्रतिभा - कौनसी गलती... कैसी गलती...
विश्व - माँ... पहले तुम मेरी पुरी बात सुन लो... फिर जो चाहे... जैसा चाहे फैसला करना...
प्रतिभा - ठीक है... बता फिर अपनी बात...
विश्व - माँ... अंदर चलो ना... बाहर... क्या ठीक रहेगा...

प्रतिभा गुस्से से गाड़ी से उतरती है और तमतमाते हुए घर के अंदर आकर सोफ़े पर बैठ जाती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है बता... क्या हुआ कल रात...

विश्व बताना शुरु करता है

बीते दिन बहुत सोचने के बाद विश्व रुप को दुपहर को xxxx रेस्टोरेंट में मिलने के मैसेज करता है l रुप भी मैसेज पाने के बाद दुपहर को तैयार हो कर अपनी भाभी से इजाजत ले कर पौने एक बजे xxxx रेस्टोरेंट में पहुँचती है l पर तक विश्व वहाँ नहीं पहुँचा था I वह एक टेबल पर जा कर बैठ जाती है l इतने में वेटर आकर उसे मेन्यू कार्ड देता है l रुप मेन्यू कार्ड देख कर ऑर्डर करने के लिए जैसे ही वेटर को बुलाने के लिए होती है तब वह देखती है विश्व उसके सामने बैठा हुआ है l

रुप - अरे... तुम कब आए...
विश्व - जब आप.. मेन्यू कार्ड देख रही थी...
रुप - ठीक है... क्या लोगे तुम...
विश्व - जो भी मंगवा दीजिए... आपकी पसंद की...

रुप पहले विश्व को घूरती है, फिर वेटर को बुला कर खाना ऑर्डर करती है l वेटर के ऑर्डर ले जाने के बाद

रुप - तो क्या प्लान बनाया है...
विश्व - हम शाम को... अंकल और आंटी जी को लेकर एक पार्क जा रहे हैं... पर अलग अलग...
रुप - क्या अलग अलग... पर क्यूँ...
विश्व - मैं सबसे पहले... सुकुमार अंकल को लेकर... आंटी के लिए गिफ्ट खरीदने के बहाने किसी मॉल या... ज्वेलरी के दुकान पर ले जाऊँगा...
रुप - और मैं...
विश्व - आप... आंटी जी को लेकर किसी दुसरे मॉल में... या गिफ्ट शो रुम में ले जाइए... अंकल के लिए गिफ्ट खरीदने के बहाने...
रुप - ठीक है... खरीद लिया... फिर उसके बाद...
विश्व - उसके बाद... ठीक आठ बजे मैं अंकल को... #@* पार्क में एक नंबर गेट से अंदर लेकर जाऊँगा.... और आप आंटी जी को चौथे नंबर गेट से अंदर लाइयेगा...
रुप - (विश्व की बातों से अब उसे मजा आने लगता है) फिर...
विश्व - वहाँ.. उस पार्क में नॉर्थ साइड में... डांसिंग फाउंटेन की टेस्टिंग चल रही है...
रुप - आज छुट्टी है... तो दुसरे लोग भी तो हो सकते हैं...
विश्व - नहीं... वह पार्क में चूंकि रिनोवेशन चल रहा है... इसलिए बंद है...
रुप - अच्छा... तो हम कैसे...
विश्व - मैंने सब अरेंजमेंट कर ली है... डांसिंग फाउंटेन के पास...
रुप - वहाँ पर.. हम क्या करेंगे...
विश्व - वहाँ पर पीएलसी में ब्लू टूथ से दो चैनल मैंने सेट करवाया है... डांसिंग फाउंटेन में एक माँ भारती की बड़ी सी मुरत है... आपको आंटी जी को साथ लेकर उस मुरत के आगे पहुँचना है... और अपनी मोबाइल की ब्लू टूथ ऑन कर के.... यह कोड @s&# फ़ीड कर देना है... मैं अंकल को ले कर उस मूर्ति के पीछे पहुँच कर अपनी मोबाइल पर.. अपना कोड फ़ीड कर दूँगा...
रुप - ठीक है... फिर आगे...
विश्व - आप भूल गई.. अंकल और आंटी जी ने... उनके कॉलेज के पिकनिक में... गाना गा कर... एक दुसरे से प्यार का इजहार किया था...
रुप - हाँ तो...
विश्व - तो... हम अपने मोबाइल से एक दुसरे से जुड़े रहेंगे... अंकल एक गाना गाएंगे... तो डांसिंग फाउंटेन में पानी उनके रिदम के अनुसार फाउंटेन में से निकलेगा... और आंटी भी गाने से जवाब देंगी... उनके आवाज के रिदम के अनुसार फाउंटेन में से पानी निकल कर नाचेगी...
रुप - वाव... अंधेरे में... पानी दिखेगा कैसे...
विश्व - कहाना... पीएलसी में सब अरेंजमेंट हुआ है... उनके आवाज के रिदम से... फाउंटेन में लगे रंग बिरंगी लाइटें जलेंगी और बुझेंगी... और हाँ जब वे गाना गाएंगे... स्पीकर ऑन करना ना भूलीयेगा...
रुप - वाव... पर यह पीएलसी क्या है...
विश्व - प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर...
रुप - (मन ही मन) तुमने... ऐसे... इतना कुछ कैसे सोच लिया...
विश्व - आप समझ गयीं ना...
रुप - (हड़बड़ाते हुए) हाँ हाँ... बिल्कुल... बिल्कुल...

उसके बाद शाम को दोनों सुकुमार के घर से कुछ दूर पर रुकते हैं l पहले विश्व सुकुमार को फोन कर घर से बाहर बुलाता है और उसे अपने साथ ले जाता है l उनके जाते ही रुप सुकुमार के घर जाती है और गायत्री को तैयार होने के लिए कहती है l गायत्री तैयार हो कर आने के बाद रुप उसे अपने साथ ले जाती है l अब विश्व किसी तरह से सुकुमार से गायत्री के लिए कान की बालियाँ खरीद करता है l उधर रुप भी गायत्री से सुकुमार के लिए एक ब्रेसलेट खरीद करती है l प्लान के मुताबिक दोनों जोड़े अपनी अपनी जगह पर पहुँचते हैं l विश्व रुप को कॉल करता है, रुप कॉल पीक करती है और मोबाइल को थामे रखती है l

विश्व - (सुकुमार से) अंकल... इसे... डांसिंग फाउंटेन कहते हैं... आप बस इतना जान लीजिए... की आंटी जी इसी पार्क में हैं... आपको उन तक मैसेज देना है... तो गा कर बताइए... इस फब्बारे की पानी और रौशनी... नाचते हुए आंटी जी को आपके दिल की बात बतायेंगे...
सुकुमार - अच्छा... सच में...
विश्व - जी...
सुकुमार - पर बेटा... मैं अभी इस उम्र में... कहाँ गा पाऊँगा...
विश्व - अंकल... आप गाइये तो सही... यह हवाएं.. यह फिजायें... सब आपका संदेश पहुँचा देंगे... मुझ पर भरोसा रखिए...

सुकुमार गाना गाता है
"एक तेरा साथ... हमको दो जहां से प्यारा है...
तु है तो हर सहारा है"

इतने में ही फाउंटेन में से रंग बिरंगी लाइट के सहारे जगमगाते हुए पानी नाचते हुए उपर उठने और गिरने लगती है l

जवाब में गायत्री गाती है

"ना मिले संसार,... तेरा प्यार तो हमारा है...
तू है तो हर सहारा है... "

ठीक उसी तरह पानी जगमगाते हुए नाचने लगती है l यह देख कर सुकुमार और गायत्री जितने हैरान और खुश होते हैं उनसे कहीं ज्यादा रुप हैरान व खुश होती है l

सुकुमार फिर एक गाना गाता है

"तुमसे बना मेरा जीवन
सुन्दर सपन सलोना
तुम मुझसे खफा न होना
कभी मुझसे जुदा न होना"

जवाब में गायत्री गाती है

"वादा करे ले साजना

तेरे बिना मैं न रहूँ
मेरे बिना तू न रहे
हो के जुदा ...

जवाब में सुकुमार भी गाता है

" ये वादा रहा", न होंगे जुदा
ये वादा रहा"

इसी तरह गाने के सिलसिले बढ़ते जाते हैं और दोनों धीरे धीरे गाना गाते हुए एक दुसरे के सामने आ जाते हैं अंत में सुकुमार गाता है

" जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा..
जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा.."

तो जवाब में गायत्री उसके सामने खड़े हो कर गाती है


"ना कोई है, ना कोई था, ज़िन्दगी में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा… "

फिर सुकुमार और गायत्री दोनों एक दुसरे से गले लग जाते हैं l कुछ देर तक यूँ हीं एक दुसरे के बाहों में खोए रहते हैं l फिर कुछ देर बाद अलग होते हैं l दोनों अपनी बाहें फैला कर विश्व और रुप को अपने पास बुला लेते हैं l विश्व और रुप भी इमोशनल हो कर उन दोनों के गले लग जाते हैं l विश्व उनसे अलग होते हुए

विश्व - अंकल... आंटी... आज आपके शादी के.. पैंतीस साल पुरे हो गए... मैं अगर आपको कुछ दूँ... तो आप बुरा to
नहीं मानेंगे...
गायत्री - कास के मेरा कोई बेटा तुझ जैसा होता... या फिर तु ही मेरा बेटा होता... आज तु मुझे जो भी देगा मुझे मंजुर होगा...
विश्व - वादा...
सुकुमार - वादा... आज तुमने मेरे रगों में जवानी भर दी है... वादा... वादा वादा...
विश्व - तो फिर आइए मेरे साथ... बाहर चलते हैं...

सभी बाहर आते है विश्व एक गाड़ी के पास रुक जाता है और चाबी निकाल कर सुकुमार को देता है l

विश्व - यह मेरे तरफ से... मेरे अंकल आंटी को.. शादी की साल गिरह का तोहफा... रख लीजिए... आप इसी गाड़ी में... पुरा इंडीया घूमना... ठीक है...

सुकुमार और गायत्री विश्व को हैरानी से देख रहे थे l तो विश्व उन्हें कहता है

विश्व - देखिए... आपने... वादा किया है मुझसे...

सुकुमार फफक पड़ता है और विश्व को जोर से गले लगा लेता है l गायत्री की भी वैसी हालत हो जाती है वह भी विश्व को गले से लगा लेती है l

गायत्री - (सुबकते हुए) प्रताप... आज मुझे तेरी माँ के तकदीर पर... जलन हो रही है... के तु उसका बेटा है...

यह सब देख कर रुप की भी आँखे बहने लगती है l वह अपने आँसू पोंछती है और बड़ी मुश्किल से अपने अंदर की भावनाओं को काबु करती है l

उसके बाद सुकुमार और गायत्री उस गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l उनके जाने के बाद विश्व भी अपनी आँखों से आँसू पोंछता है और रुप की ओर देखने लगता है l रुप उसे भीगे पलकों से एक अलग सी भाव से एक टक देखे जा रही है l

विश्व - नंदिनी जी...
रुप - (चौंक कर) हूँ... ओह... सॉरी.. (कहते हुए अपनी आँखे पोंछती है)
विश्व - चलें...
रुप - (अपना सिर हिला कर) हूँ...

फिर दोनों चलते हुए थोड़ी दूर जाते हैं l विश्व को रुप देखे ही जा रही थी l रुप का ऐसे देखना विश्व के मन में झिझक बढ़ा रहा था l

विश्व - आप.. ऐसे क्यूँ देख रही हैं...
रुप - तुम बहुत अच्छे हो... प्रताप... तुम बहुत अच्छे हो... मैं तुम्हारे बारे में हमेशा से कंफ्युज थी... तुमसे... कुछ लोग डरते हैं... जिनका ताल्लुक गुनाह की दुनिया से है... तुम किसी किसी से मार पीट भी करते हो... फिर भी बहुत ही अच्छे हो... मुझे नाज़ है... तुम्हारे और मेरे... आई मीन... हमारे दोस्ती पर...
विश्व - (कुछ नहीं कह पाता है, बस हल्का सा मुस्कराने की कोशिश करता है)
रुप - (अपना हाथ आगे करती है) हम शायद आखिरी बार मिल रहे हैं... फिर पता नहीं... मिलना होगा.. या नहीं... (अपना हाथ दिखाते हुए) हूँ...

विश्व अपना हाथ आगे करता है और रुप की हाथ से हाथ मिलाता है l पता नहीं रुप को क्या हो जाता है वह विश्व के गले लग जाती है l रुप का सिर बिल्कुल विश्व के सीने से सटा हुआ होता है l विश्व की हाथ रुप गले लगाने के लिए उठती तो है पर वह रुप को गले नहीं लगा पाता l उसके हाथ वैसे ही हवा में रह जाते हैं l रुप कुछ देर आँखे मूँद विश्व के सीने से लगी हुई थी कि अचानक वह अपनी आँखे खोलती है और विश्व की शर्ट को मुट्ठी में भींच लेती है l हैरानी भरे नजरों से विश्व की चेहरे को देखती है l अचानक हुए रुप में तब्दीली से विश्व भी चौंकता है l रुप विश्व से अलग होती है और जोरदार झन्नाटेदार थप्पड़ मार देती है l विश्व भी हैरानी से रुप को देखता है l

विश्व - नंदिनी जी...
रुप - शट अप...
विश्व - मैंने कुछ नहीं किया...
रुप - खबरदार... अगर कुछ और कहा तो... मुहँ तोड़ दूंगी तुम्हारा...

कह कर रुप भागते हुए वहाँ से चली जाती है l विश्व हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देखता रहता है l

विश्व - अब तुम्हीं बता ओ माँ... इस में मेरी क्या गलती है...
प्रतिभा - सारी की सारी... तेरी ही गलती है...
विश्व - पर माँ... मैं सच में कुछ नहीं किया...
प्रतिभा - कुछ नहीं किया... इसी लिए तो मारा उसने... मैं तो हैरान हूँ... उसने एक थप्पड़ क्यूँ मारा... मेरे हिसाब से.. चार पांच और मारने चाहिए थे...
विश्व - किस लिए माँ...
प्रतिभा - हे भगवान... इसे थोड़ी अक्ल दो... अरे मुर्ख... उसने तेरी तारीफ करते हुए... तेरे गले लग गई... और किस तरह से वह कहती...
विश्व - क्या...
प्रतिभा - (अपना हाथ सिर पर मारते हुए) हे भगवान... वह तुझसे प्यार करती है...
विश्व - (अपनी बेड से उछलते हुए) क्या...

शुभ्रा - क्या... प्रताप... ही अनाम है...
रुप - हाँ भाभी.. वह अनाम ही था.. मैंने उसे पहचान लिया...
शुभ्रा - कैसे नंदिनी... कैसे...
रुप - मैंने बचपन में एक ही मर्द के गले लगती थी... जब भी उसके गले लगती थी... उसके बदन की खुशबु... मुझे हिप्नोटाइज कर देती थी... मैं उसके गले से लग कर गहरी गहरी सांसे लिया करती थी... मेरे जेहन में... मेरे रोम रोम में... मेरी आत्मा में.. उसकी खुशबु बसी हुई है भाभी... वह अनाम है...
शुभ्रा - अगर वह अनाम है... तो... तुमने उसे मारा क्यूँ... अपने बारे में बताया क्यूँ नहीं...
रुप - क्यूंकि मुझे अब... उसके बारे में जानना है... और किससे जानना है... मैं जानती हूँ
Jabardasttt Updatee

Aakhir kar Sukumar Couple ek hogaye aur Anniversary bhi celebrate hogaya.

Idher Vishwa hi Anaam hai yeh baat Roop ko pata chal gayi. Par usne thappad kyo maar diya bechare ko. Isme Vishwa ki kyaa galti.
 
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Awesome update, लेकिन ये क्या बात हुई कि उसने नही बताया तो एक जोरदार रख कर दे दिया। अपनी गलती तो दिखती नही जो नाम बदल कर घूम रही है।
 

Sidd19

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Aww GIF
 
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Parthh123

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Wow what an update sir ji. Mast update rha puri story ka plot abhi tk kamal ka rha hai. Ye mera first review hai es story par but sch kahata hu kala naag bhai gjb ki story gjb ki theme gjb ki hi plotting. Amazing bro. Keep writing. Thank you.
 

KANCHAN

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बेहद शानदार अपडेट
नंदिनी ने प्रताप को थप्पड इसलिए मारा कि उसे सिर्फ रूप से प्यार करना है किसी और से नहीं
 
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