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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

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Kala Nag

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parkas

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अभी तो पोस्ट कर दूँगा पर अगले अपडेट के लिए आप लोगों को थोड़ा लंबा इंतजार करना पड़ेगा
Besababri se intezaar rahega....
 
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Kala Nag

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👉उनासीवां अपडेट
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मोबाइल की घंटी बजने पर रोणा की नींद टुटती है l नींद भरे आँखों को मुश्किल से खोल कर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है "प्रधान वकील" डिस्प्ले हो रहा है l

रोणा - हे.. हैलो..
बल्लभ - भोषड़ी के... मैं तेरा नौकर हूँ क्या बे... मुझसे अपनी पोस्टिंग की ऑर्डर रिसीव करने भेज कर... खुद रात भर किसकी चुत मार रहा था बे...
रोणा - अरे... प्रधान बाबु... गुस्सा क्यूँ कर रहे हो... वैसे हो कहाँ पर अभी...
बल्लभ - तु जिस लॉज में चुदाई का लुफ्त उठा रहा है... उसीके रिसेप्शन में तेरा इंतजार कर रहा हूँ...
रोणा - अरे... भाई एक मिनट... अभी तैयार हो कर नीचे आ रहा हूँ....

इतना कह कर रोणा फोन काट देता है और बिस्तर से नंगा उठ कर बाथरुम भागता है l अपना चेहरा धो कर वह जैसे ही बाहर आता है बिस्तर पर लेटी चादर में खुद को छुपाती एक औरत बोलती है

औरत - (बिनती करने के लहजे में) साब जी... आपने जैसा कहा... मैंने वैसा ही किया.. अब तो मेरे बेटे को छोड़ दीजिए... प्लीज...
रोणा - (उस औरत को बिस्तर से खिंच कर खड़ा करता है, और चादर खिंच कर फेंक देता है ) अरे... इतनी बढ़िया ज़मानत दी है तुने... तेरे बेटे को कैसे ना छोड़ुँ... (उस औरत को ऐसे चूमने लगता है जैसे खा रहा हो)
औरत - म्म्म्न... म्म्म्न.. आह...
रोणा - आह... क्या माल है... अभी भी.. मन नहीं भरा मेरा... (उसे छोड़ते हुए) जा... पीछे के रास्ते घर जा... अच्छे अच्छे पकवान बना... तेरा बेटा पहुँच जाएगा...

कह कर अपने कपड़े पहन लेता है और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर निकल कर सीधे रिसेप्शन में पहुँच जाता है l रिसेप्शन में बल्लभ को देख कर उससे गले मिल जाता है l

बल्लभ - रात भर क्या कर रहा था बे...
रोणा - एक बेचारा लड़का... एक्जाम में कपि सप्लाई करते पकड़ा गया था... उसकी फ्यूचर की बात थी... इसलिए रात भर उसकी माँ से ज़मानत ले रहा था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो ज़मानत ले ली...
रोणा - तुमने मेरी राजगड़ पोस्टिंग की लेटर ले ली...
बल्लभ - (जेब से एक खाकी रंग का लिफाफा निकाल कर देते हुए) यह ले.. अच्छा.. क्या मैं भी देख लूँ... उसकी ज़मानत में क्या बाकी रह गया...
रोणा - प्रधान बाबु... यह बात तुम को पहले बताना चाहिए था... मैंने उसे पीछे के रास्ते से भेज दिया...
बल्लभ - चल कोई बात नहीं... जब तकदीर हो गांडु... क्या करेगा पाण्डु...
रोणा - पर यहाँ पाण्डु नहीं है... प्रधान है...

बल्लभ मुहँ बना कर रोणा को देखता है, रोणा उसे मुस्कराते हुए देखता है फिर दोनों हँसने लगते हैं

रोणा - चलो... प्रधान बाबु... चार्ज हैंड ओवर कर के... चलते हैं राजगड़... (रिसेप्शन में बैठा आदमी से) चलता हूँ... हिसाब सब खाते से मिटा देना... और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना...

कह कर रोणा बल्लभ को खिंचते हुए लॉज के बाहर ले जाता है l

रिसेप्शनीस्ट - कीड़े पड़ेंगे... साले... हरामजादे... तुझ पर कीड़े पड़ेंगे...

बाहर रोणा के जीप में दोनों बैठ जाते हैं और रोणा गाड़ी को दौड़ा देता है l

बल्लभ - बहुत नाम और रुतबा कमाया है यहाँ... आसानी से मालुम हो गया... थानेदार साहब कहाँ मिल सकते हैं...
रोणा - सब.... राजा साहब की महिमा है...
बल्लभ - एक बात कहूँ... जब इस जगह तु एक राजा की तरह रहता था... जिसे चाहे अपने नीचे ले आता है... फिर राजगड़ क्यूँ... क्यूँ जाना चाहता है...
रोणा - प्रधान बाबु... तुम्हें.... विश्व याद है... या भुला दिया है...
बल्लभ - हाँ... क्यूँ नहीं... उसीके वजह से तो पहली बार... हमें अपनी मांद से निकलना पड़ा... एक कस्बे का केस... पूरे राज्य का हो गया...
रोणा - कब रिहा हुआ मालुम है...
बल्लभ - क्या... विश्व रिहा हो गया...
रोणा - दो दिन पहले... आज तीसरा दिन है...
बल्लभ - व्हाट... इसका मतलब.. तु... विश्व की खबर रख रहा था...
रोणा - नहीं... मुझे बस उसकी रिहाई की... वह तारीख याद था... मैं जब खबर लेने पहुँचा... तब मालुम हुआ... की वह छूट कर जा चुका है...
बल्लभ - लगता है.... अगर दिख जाता... तो सारा खुन्नस निकाल कर ही मानता...
रोणा - हाँ.. मैं तो उसे तब मार देना चाहता था... पर... राजा साहब ने मुझे रोक दिया था... अब मैं राजगड़ अपनी खुन्नस उतारने जा रहा हूँ...
बल्लभ - ओ... तभी मैं सोचूँ.. यह राजा वाली जिंदगी को छोड़... तुझे गुलाम वाली जिंदगी की चुल क्यूँ मची है...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं, और चेहरा कठोर हो जाता है मगर कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
बल्लभ - सच कहूँ तो... राजगड़ से दूर तु... अच्छी जिंदगी जी रहा है... वहाँ पहुँच कर जी हुजूरी के सिवा... कर ही क्या सकता है...
रोणा - उसने गाँव वालों के सामने... मेरे जबड़े पर घुसा जड़ा था... कुछ देर के लिए ही सही... मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया था... गिर कर उठ नहीं पाया था... इसलिए... मैं उसे मरवा देना चाहता था... पर राजा साहब ने उसे जिंदा रखने के लिए कहा... मैं... मैं मन मसोस कर रह गया था... पर अब नहीं... अब नहीं... मैं राजगड़ में उसकी जिंदगी नर्क से भी बदत्तर बना दूँगा...
बल्लभ - क्या इसलिए.. अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया...
रोणा - हाँ... जितना कमाना था.. कमा लिया... अब सिर्फ विश्व से खुन्नस बाकी रह गया है... उसे पुरा करना है...
बल्लभ - उसे मार कर...
रोणा - नहीं... उसकी जिंदगी.. इतना भयानक कर दूँगा... के वह मौत की भीख मांगेगा... देख लेना...
बल्लभ - (भयानक होते हुए रोणा की चेहरे को देख रहा था) क.. कैसे... करोगे...
रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

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ESS ऑफिस
वीर के कैबिन में दरवाजे के तरफ पीठ कर अनु हाथ में एक कपड़े का टुकड़ा लेकर टेबल और कुर्सी को पोंछ रही है और साथ साथ एक गाना भी गुनगुना रही है l

"तेरे बिना... जिया जाए ना...
तेरे बिना... जिया जाए ना
बिन तेरे... तेरे बिन... ओ साजना"

पोछने के बाद फ्लावरबाश में सजे फ़ूलों को फिर से सजाने लगती है l फिर उन फूलों पर पानी स्प्रे करती है l फिर उसके बाद लैंडलाइन फोन को चेक करती है उसमें रिंग टोन सुनाई दे रही है या नहीं l ऐसे करते वक़्त उसे लगता है जैसे कोई उसे देख रहा है l वह अचानक गाना रोक कर उस तरफ देखने लगती है तो देखती है दरवाजे के पास विक्रम खड़ा हुआ है l विक्रम को देखते ही वह बहुत नर्वस हो जाती है चेहरा झुका लेती है फिर कुछ सोचते हुए विक्रम को सैल्यूट कर सलामी देती है l

विक्रम - क्या नाम है तुम्हारा...
अनु - जी... वह..
विक्रम - यह कैसा नाम है..
अनु - जी... अनु... अनु.. है मेरा नाम...
विक्रम - सिर्फ़ अनु... कोई सर नेम नहीं है क्या...
अनु - जी है.. है ना...
विक्रम - क्या है...
अनु - जी... बारीक...
विक्रम - अब पुरा नाम कहो...
अनु - जी... अनुसूया बारीक...
विक्रम - अगली बार जब पूछा जाए... तो पुरा नाम बताना...
अनु - जी... जी युवराज...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो...
अनु - जी... मैं सब ठीक है या नहीं... चेक कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... गाना भी गा रही थी...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - (चलते हुए आता है और वीर के चेयर पर बैठ जाता है ) वैसे तुम यहाँ कैसे आई...
अनु - (हैरान हो कर) जी... मैं आज ऑटो से...
विक्रम - मतलब... तुम्हारा इंटरव्यू कब हुआ... किसने ली... और यहाँ किस पोस्ट पर हो...
अनु - जी... एक बार हमारे बस्ती में... छोटे राजा जी आए थे... सबकी खैरियत पुछ रहे थे... उस दिन मेरी दादी ने मेरे लिए कुछ काम मांगा तो... छोटे राजा जी ने हमे उनके ऑफिस आने के लिए कहा था.. उनके ऑफिस में राजकुमार जी से मुलाकात हुई... तो उन्होंने हमे तुरंत नौकरी पर रख लिया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - मैंने पुछा कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - जी म.. म.. मैट्रिक... तक...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और यहाँ कौनसी पोस्ट पर हो...
अनु - जी... राजकुमार जी की.. पर्सनल सेक्रेटरी... कम असिस्टेंट...
विक्रम - क्या इसलिए... तुम राजकुमार जी की गैर हाजिरी में... उनके कमरे में घुसी रहती हो...
अनु - जी नहीं... ऐसी बात नहीं है... राजकुमार जी ने खुद कहा है कि... वह जब कमरे में आयें... उन्हें सब कुछ सही दिखना और मिलना चाहिए...
विक्रम - अच्छा... राजकुमार जी ने ऐसा कहा है तुमसे...
अनु - (अपना सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाती है)
विक्रम - और क्या क्या कहा है... राज कुमार जी ने...
अनु - जी जब भी वह कैबिन में हों... कॉफी उन्हें तैयार मिलना चाहिए... और उनके सारे कॉल पहले मैं अटेंड करूँ... चाहे मोबाइल हो या लैड लाइन... और डायरी में सब नोट करूँ... आख़िर में उन्हें सब बताऊँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
अनु - जी.. जी नहीं...
विक्रम - तुम्हें... उसके साथ कैसा लगता है...
अनु - (चौंक कर) जी... जी मैं समझी नहीं...
विक्रम - कभी डर नहीं लगता...
अनु - किससे...
विक्रम - राजकुमार से...
अनु - जी... उन्होंने कभी डराया ही नहीं...
विक्रम - तुम्हारे घर में कौन कौन हैं...
अनु - जी.. मेरा घर... मतलब...
विक्रम - मेरा मतलब है... घर में तुम्हारे साथ.. कौन कौन रहता है...
अनु - जी मेरे साथ कोई नहीं रहता... मैं अपनी दादी के साथ... दादी के पास रहती हूँ...
विक्रम - माँ बाप...
अनु - वह तो मेरे बचपन में ही चल बसे...
विक्रम - ओ... (उठते हुए) अच्छा राजकुमार जी आयें तो... उन्हें मेरे कैबिन में आने के लिए कह देना...
अनु - जी अच्छा...

विक्रम अनु को देखते हुए दरवाजे की ओर जाता है l दरवाजे की पास रुक जाता है और अनु की ओर मुड़कर

विक्रम - अनु... राजकुमार जी से... थोड़ी दूरी बना कर रहना... कोशिश करो... जितना बाहर बैठ सको तो बैठो... जब उन्हें जरूरत हो तभी उनके सामने जाओ...

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वीर की गाड़ी कॉलेज की पार्किंग में आती है l पहले रुप उतरती है उसके बाद दुसरी तरफ से वीर उतरता है l

रुप - अच्छा भैया... चलती हूँ...
वीर - ठीक है जा...
रुप - तुम क्लास नहीं करोगे...
वीर - देख सुधरा जरूर हूँ... मगर इतना भी नहीं... के क्लास में बैठ कर लेक्चर सुनूँ... तु जा... बस छुट्टी होने से पहले मुझे कॉल कर देना...
रुप - (हैरान हो कर) तो अभी.. तुम कहाँ जाओगे...
वीर - ऑफिस और कहाँ...
रुप - आर यु सीरियस...
वीर - क्यूँ... मैं तुझे सीरियस नहीं दिख रहा...
रुप - (कंफ्यूजन में, अपना सिर हिलाती तो है, पर हाँ में हिला रही है या ना में हिला रही है वीर यह समझ नहीं पाता)
वीर - यह सिर क्या इधर उधर हिला रही है... बोल हाँ या ना..
रुप - (ना में सिर हिलाते हुए) हाँ.. हाँ..
वीर - समझ गया... मैं समझ गया... तु जा अपनी क्लास कर.. मैं जाकर अपना ड्यूटी बजाता हूँ...

कह कर वीर गाड़ी घुमा कर चला जाता है, रुप भी मुड़ कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है l देखती है लड़के उसे देखते ही दुम दबा कर भाग रहे हैं l वह कैन्टीन में पहुँचती है, सीधे जा कर अपनी ग्रुप के पास बैठ जाती है l वहाँ पर भी जितने भी लड़के थे, सबके सब कन्नी काट कर निकल जाते हैं l

रुप - यह क्या हो रहा है... सारे लड़के मुझे देख कर यूँ भाग क्यूँ रहे हैं....
दीप्ति - वेरी... सिंपल... लड़के जो भी तेरे लिए चोरी चोरी अरमान पाले बैठे थे...
तब्बसुम - सिर्फ बहन कहने पर जब रॉकी की सिर फुट सकती है... तो गलती से भी तेरे वीर भैया को मालुम हुआ...
इतिश्री - के कोई कम्बख्त तेरे लिए ख्वाब सजाये हैं...
भाश्वती - तो कहीं उसकी अर्थी ना सज जाए...

सभी लड़कियाँ एक दुसरे से हाइफाइ करते हुए हँसने लगती हैं l

तब्बसुम - वैसे.. एक बात बता... तुझे क्या पसंद है... पहले इश्क़ फिर शादी या... पहले शादी फिर इश्क़...
रुप - (एक भाव हीन मुस्कान के साथ) अपनी किस्मत में... यह कॉलेज वाला इश्क़ नहीं लिखा है... अपनी तो पहले शादी तय हुई... फिर हम कॉलेज में आए...
भाश्वती - ओ... मतलब तेरी... अंगेजमेंट हो गई है...
रुप - नहीं... फिक्स हो गई है... दसपल्ला राज घराने में... और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह है कि... उनके परिवार में... मुझे किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं पता..
सब - (एक साथ) व्हाट...
इतिश्री - यह कैसे...
दीप्ति - क्यूँ इस में अचरज क्या है... इस बात की क्या ग्यारंटी है कि हम जिससे नैन मटक्का करें... कल को हम उसी से ही शादी करें...
भाश्वती - बट शी इज़ फ्रोम रॉयल फॅमिली ना...
दीप्ति - सो व्हाट... सारे मैटर एक ही जगह पर ठहरती है... किसकी फॅमिली कितनी और किस हद तक कंजरवेटिव है...

कर्र्र्र्र्र्र्र्र

क्लास की बेल बजती है सभी अपनी जगह से उठ कर क्लास की ओर जाने लगते हैं, सिवाय रुप के

रुप - बनानी... (सभी रुक जाती हैं ) बस बनानी... जरा रुकना... तेरे पास कुछ काम है...

बाकी सभी लड़कियाँ चली जाती हैं बनानी वापस अपनी जगह बैठ जाती है l

रुप - क्या हुआ... आज पुरी डिस्कशन में... तु ख़ामोश रही... जब से आई हूँ... देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी हो... क्या बात है...
बनानी - (थोड़ी ऑकवर्ड फिल करते हुए) नहीं.. कुछ नहीं...
रुप - (उसके हाथ पकड़ कर) मुझसे भी नहीं बताएगी...
बनानी - मैं क्या करूं.. कुछ समझ में नहीं आ रहा है...
रुप - मतलब...
बनानी - आज बस स्टॉप में वह मिला..
रुप - कौन... एक.. एक मिनट... रॉकी...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - क्या हुआ...

फ्लैशबैक

बस स्टॉप

बनानी कॉलेज जाने के लिए बस का इंतजार कर रही है l तभी बाइक से रॉकी वहाँ पहुँचता है और बाइक एक साइड में लगा कर वहाँ खड़ा हो जाता है l बनानी थोड़ी अंकंफर्टेबल हो जाती है l फिर भी खुद को सम्भाल लेती है l थोड़ी देर बाद बस आती है, वहाँ पर मौजूद सभी लोग बस चढ़ने लगते हैं l बनानी भी जाने लगती है

रॉकी - बनानी... (बनानी पीछे मुड़ कर देखती है) क... क्या... दो मिनट.. दो मिनट के लिए रुक सकती हो.. प्लीज...
बनानी - क्यूँ..
रॉकी - सिर्फ़ दो मिनट... अगली बस से चली जाना... प्लीज...

बनानी रुक जाती है और बस चली जाती है l

रॉकी - थैंक्यू...
बनानी - जो भी कहना है जल्दी कहो... मुझे जाना है...
रॉकी - मैं सबसे पहले माफी माँगता हूँ... जो हुआ... जो भी हुआ... उन सबके लिए...
बनानी - ठीक है... और...
रॉकी - और... यह मेरा लास्ट ईयर है... उसके बाद मुझे पापा का बिजनैस संभालना है...
बनानी - अच्छी बात है... कंग्रेचुलेशन...
रॉकी - क्या मैं.. अगर तुम हाँ कहो तो... मैं अपनी मम्मी और पापा को लेकर तुम्हारे घर...
बनानी - किस लिए...
रॉकी - वह... मतलब.. श्.. श.. शादी...
बनानी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रॉकी - क्यूँ नहीं.. आख़िर प्यार करती हो.... तुम मुझसे...
बनानी - प्यार... कैसा प्यार... वह एक भ्रम था... टुट गया...
रॉकी - मैंने ऐसा क्या कर दिया है...
बनानी - क्या... कर दिया है... अपने बदले के लिए... तुमने मेरी जान की बाजी लगा दी... और पूछते हो क्या कर दिया है...
रॉकी - मैं... मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ... गलती सुधारना चाहता हूँ... प्लीज... सच्चे दिल से.... अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ...
बनानी - ओ... तुम यहाँ प्रायश्चित के लिए आए हो.. प्यार के लिए नहीं...
रॉकी - नहीं.. मेरा कहने का मतलब है कि... मैं भी तुम्हें चाहने लगा हूँ...
बनानी - तो.. तो क्या मैं खुश हो जाऊँ... नाचने लगूँ... झूमने गाने लगूँ....
रॉकी - प्लीज... एक मौका... दो.. प्लीज...
बनानी - जानते हो... तुम्हारी कमीना पन जानने के बावजूद.... नंदिनी ने तुम्हें क्यूँ छोड़ा था... वजह मैं थी... उसे मेरे अंदर की भावनाओं का कदर था... इसलिए जिस दिन... वह तुम्हें दिल से भाई मान कर गले लगा लेगी... उस दिन मैं... (तभी बस आने की हॉर्न बजती है) मेरी बस आ गई...
रॉकी - (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
बनानी - रॉकी... तुम जितने नंदिनी के गुनहगार हो.. उतने मेरे भी... उसने माफ भी कर दिया है तुम्हें... पर जिस रिश्ते की ढोल बजाये हो... अगर उसे... वह स्वीकार हुआ... तब मैं भी अपनी दिल की ज़ज्बात को स्वीकार कर लुंगी... बस...

फ्लैशबैक खतम

रुप - तो क्या तु इस बात से डिस्टर्ब्ड थी...
बनानी - ह्म्म्म्म...
रुप - देख तुने जो फैसला किया है... वह तेरा अपना है... मैं सच कहती हूँ... अगर वह मेरा अपना भाई भी होता... तब भी मैं उसकी सिफारिश हरगिज ना करती...
बनानी - मैं... जानती हूँ...
रुप - यह सिफारिशी वाला जो प्यार होता है ना... सिर्फ़ जवानी में ही किया जाता है... इसलिए मैं इसे सच्चा प्यार नहीं मनाती...
बनानी - अच्छा... अभी अभी तुने कहा कि तेरी शादी तय हो चुकी है... फिर सच्चे प्यार के बारे में... कैसे जानती है...
रुप - जानती नहीं हूँ... पर... समझती जरूर हूँ...
बनानी - अच्छा...
रुप - हाँ... प्यार या तो बचपन का सच्चा होता है... या फिर बुढ़ापे का... जवानी में भटकाव ज्यादा होता है.. सच्चाई कम होती है... क्यूंकि बचपन का प्यार आसमान ढूंढ लेता है... और बुढ़ापे का प्यार कभी जमीन नहीं छोड़ती है... बस जवानी के प्यार के हिस्से में... ना आसमान होता है... ना जमीन...
बनानी - वाव.. पता नहीं... तेरी बातों में कितना सच्चाई है... पर मान लेने को दिल करता है...
रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...
बनानी - नंदनी... सच सच बता... जिस कंनफिडेंट के साथ यह कह रही है... कहीं बचपन में... तुने किसी को...
रुप - (अपनी शर्माहट को छुपाते हुए) चल चलते हैं... क्लास में...
बनानी - (रुप की शर्माहट पकड़ लेती है) नहीं गए तो क्या हो जाएगा... (छेड़ते हुए) चल बता ना... कौन था... कैसा था...
रुप - (गालों पर लाली छा जाती है) तु चलती है कि नहीं...
बनानी - नहीं... अब मुझे जाननी है.. तेरे बचपन के सच्चे वाले प्यार के बारे में...
रुप - देख मुझे परेशान मत कर... प्लीज... चलते हैं ना क्लास...
बनानी - देख या तो मुझे सब बताएगी... या मैं.. सब को बुला कर ढिंढोरा पीटुंगी...
रुप - अच्छा... बताऊंगी... तुझे जरूर बताऊंगी... प्लीज अभी क्लास चलते हैं...
बनानी - ठीक है... पर याद रखना... वरना... मैं क्या करुँगी...
रुप - (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मेरी माँ... अब क्लास तो करलें हम पहले...

बनानी हँसने लगती है फिर कैन्टीन से निकल कर दोनों क्लास की ओर चलने लगते हैं l


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ESS ऑफिस में वीर अपनी कार लेकर आता है, गाड़ी को गेट के पास रोक कर गाड़ी से उतर कर गार्ड के हाथ में चाबी देता है और झूमते हुए ऑफिस के अंदर जाता है l गार्ड से लेकर स्टाफ सभी हैरानी से वीर की ओर देखने लगते हैं l वीर ऐसे झूमते हुए अपनी कैबिन की ओर जा रहा है जैसे वह कोई गाना सुन रहा है l झूमते झूमते हुए वह अपनी कैबिन के पास पहुँचता है और दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है l अंदर पहुँच कर दोनों बाहें फैला कर एक गहरी सांस लेता है फिर एक नजर अपनी कैबिन में हर कोने पर डालता है l उसके बाद वह जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l ऐसे में करीब दस मिनट गुजर जाते हैं l वह हैरान हो जाता है क्यूँकी अब तक अनु को उसके सामने आ जाना चाहिए था l
"वह क्यूँ नहीं आई"
टेबल पर रखे इंटरकॉम से अनु के इंटरकॉम पर डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - क्या हुआ... तुम्हें अब तक मेरे सामने.. मेरे पास होना चाहिए था...
अनु - जी... आपको अभी... क्या चाहिए...
वीर - (हैरान हो कर) क्या चाहिए... क्या मतलब है क्या चाहिए...
अनु - जी.. मेरा मतलब है... चाय कॉफी...
वीर - यह क्या नाटक है अनु...
अनु - ठीक है... मैं कॉफी लेकर आती हूँ... (इंटरकॉम पर क्रेडेल रख देती है)

अनु के इस तरह से बात करने और जवाब देने से वीर हैरान हो जाता है l उसके जबड़े भींच जाती हैं और दांत कड़कड़ आवाज के साथ पीसने लगता है l तभी हाथ में कॉफी लेकर अनु अंदर आती है, और वीर को बढ़ाती है l वीर अनु की चेहरे को देख कर कॉफी लेता है और टेबल पर रख देता है l

वीर - क्या हुआ...
अनु - कुछ.. कुछ नहीं राजकुमार जी...
वीर - मैंने पुछा... क्या... हुआ...
अनु - जी यह ऑफिस है... मेरी टेबल आपके कैबिन के बाहर है... मुझे सिर्फ तभी आना चाहिए... जब आपको कुछ चीजों की जरूरत हो...
वीर - (अपनी चेयर पर सीधा होकर बैठ जाता है) किसने कहा...
अनु - जी.. वह.. व ह ...
वीर - और जब मुझे खुशी में या दुख में... किसी दोस्त की जरूरत होगी... तब...
अनु - (अपनी वैनिटी बैग से दो स्माइली बॉल निकाल कर वीर को देती है)
वीर - (वह दो बॉल अनु के हाथ से लेता है और डस्टबीन में फेंक देता है) मैंने तुमसे वादा लिया था... और तुमने मुझे वादा भी किया था... मैं जब भी ज्यादा खुश हो जाऊँ... या ज्यादा दुखी हो जाऊँ... तुम मुझे गले से लगा लोगी...
अनु - (अपना सिर झुका लेती है और वीर नजरें मिलाने से कतराती है)
वीर - कौन आया था यहाँ...
अनु - जी... वह...
वीर - तुम्हें मैंने अपनी टर्म्स एंड कंडीशन पर नौकरी पर रखा है... यहाँ... इस कैबिन में.. मेरी शर्तें लागू हैं... तुम... मेरी पर्सनल सेक्रेटरी और असिस्टेंट हो... इसलिए अब बताओ... कौन आया था यहाँ...
अनु - (फिर भी चुप रहती है)
वीर - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) अनु..
अनु - (चौंक जाती है)
वीर - (अनु के बाहें पकड़ कर) अनु... तुम मेरी... सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त हो... यह... हमारी दोस्ती के बीच कौन आ गया अनु... प्लीज... कहो.. कौन है वह...
अनु - एक... एक शर्त पर...
वीर - मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजुर है...
अनु - आप उनसे झगड़ा नहीं करेंगे... बल्कि उनकी बातेँ मानेंगे...
वीर - मंजुर है...
अनु - आपसे युवराज जी मिलना चाहते थे... मुझे आपके कमरे में देख कर... बस इतना ही कहा... की पीएस का काम खयाल रखना है... पर तभी जब जरूरत हो... तभी... हर वक़्त कैबिन के अंदर होना जरूरी नहीं है....
वीर - ओ.. मैं.. मैं.. समझ गया... उन्होंने मुझे बुलाया है ना...
अनु - जी...
वीर - मैं... मैं उनसे अभी... मिलकर आता हूँ...
अनु - आपको हमारी दोस्ती का वास्ता... आप चिल्लाएंगे नहीं...
वीर - अपने दोस्त पर ना सही... क्या तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा नहीं...
अनु - है... खुद से ज्यादा... अपनी जान से ज्यादा...
वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है सीधे जा कर विक्रम के कैबिन में पहुँचता है l विक्रम के साथ वहाँ पर महांती भी बैठा हुआ मिलता है l

वीर - (खुद को काबु करते हुए) आप... आपने मुझे बुलाया...
विक्रम - हाँ राज कुमार... पर लगता है... मेरे बुलाने से... आप खुश नहीं हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... कहिए... क्या काम था...
विक्रम - क्या वगैर काम के... आप यहाँ नहीं आते...
वीर - नहीं... नहीं आता... क्यूंकि वगैर काम के... आपको कभी मेरी जरूरत पड़ी हो... ऐसा मुझे याद नहीं...
विक्रम - अगर आपके और मेरे बीच काम का रिश्ता है... तो आपके और आपके पीएस के बीच कौनसा रिश्ता है...
वीर - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भींच जाती हैं) वह मेरी पीएस कम असिस्टेंट है... बाय प्रोफेशन... और इकलौती दोस्त है... बाय डेस्टिनी...
विक्रम - कुछ देर से.. आप हम के वजाए मैं कह रहे हैं... क्या मैं सही सुन रहा हूँ...
वीर - जी...
विक्रम - क्यूँ...
वीर - हम दोनों की अपनी अपनी वजह है...
विक्रम - मैंने अपनी वजह आपसे छुपाया नहीं है...
वीर - और अभीतक मैंने अपनी वजह बताय नहीं है...
विक्रम - तो अभी बता दीजिए...
वीर - (एक गहरी सांस लेते हुए) मुझसे यह झूठे नक़ाब ढोया नहीं गया... जो रिश्ते नातों को किसी अहं के नीचे दबोच दे... खतम कर दे... इसलिए मैंने उस हम को ढोना छोड़ दिया... भैया...
विक्रम - (चौंक जाता है) क्या... क्या कहा आपने...
वीर - भैया... आप बार बार मुझे... आप ना कहें... तु कह सकते हैं... जैसे माँ कहती है... या फिर तुम... जैसे भाभी या रुप कहती है...
विक्रम - (आँखे चौड़ी हो जाती है) क्या... यह.. यह सब कब हुआ...
वीर - परसों... रुप के जन्मदिन पर...
विक्रम - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
वीर - अगर बातेँ हो गई... तो मैं जाऊँ...
विक्रम - हँ... हाँ... नहीं रुको एक मिनट... क्या इन सबके पीछे... आपकी वह पीएस है...
वीर - नहीं... वह मेरी दोस्त है... पुरी दुनिया में... मेरी इकलौती दोस्त है...
विक्रम - आपको दुनिया में... कोई और मिली नहीं... रंग... उसका फीका... बहुत ही आम सी दिखने वाली... वह... एक मामुली लड़की...
वीर - (अपनी उंगली विक्रम की ओर दिखाते हुए) बस... बस भैया... बस... वह मेरी दोस्त है... उसकी मान सम्मान... मेरी मान सम्मान... (विक्रम की आँखे फटी की फटी रह जाती है और वह खड़ा हो जाता है, उसे खड़ा होता देख महांती भी अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) अगर कोई काम हो... तो सीधे मुझे फोन कर बुला सकते हैं.... हाजिर हो जाऊँगा... चलता हूँ...

वीर इतना कह कर वहाँ से निकल जाता है l उसके जाने के बाद भी विक्रम हैरानी से दरवाजे की ओर देखता रह जाता है l

महांती - युवराज...
विक्रम - हँ...(होश में आते हुए) हाँ...... महांती... कुछ कहा तुमने...
महांती - राजकुमार चले गए...
विक्रम - यह... अभी जो हुआ... मतलब जो हुआ... वह क्या था... महांती...
महांती - (थोड़ा खरास लेते हुए) अहेम.. अहेम... राजकुमार जी को...
विक्रम - हाँ... राजकुमार जी को...
महांती - राजकुमार जी को... प्यार हो गया है...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती को देखता है)
महांती - हाँ... युवराज... यह प्यार ही है... जिसे राजकुमार दोस्ती कह रहे हैं...
विक्रम - कैसे... महांती... कैसे... एक.... मामुली सी लड़की से...
महांती - हमारे यहाँ लोकल में एक बात खूब बोली जाती है...
"भुख ना देखे बासी भात"
"प्यार ना देखे ऊँच नीच जात पात"
विक्रम - वह लड़की...
महांती - बहुत ही अच्छी लड़की है... मैंने पता किया है.... बहुत ही शरीफ... मासूम और भोली.... या यूं कहूँ कि... राजकुमार जी के चरित्र की पुरी उल्टी है... लड़की पुरब है तो राजकुमार जी पश्चिम हैं...
विक्रम - वह लड़की अच्छी है... मैं जानता हूँ...
महांती - क्या... कैसे...
विक्रम - (अपनी कान से माइक निकाल कर डस्टबीन में फेंकता है) मैंने कुछ देर पहले... राजकुमार जी के कैबिन में बग फिट कर आया था...
महांती - (सवालिया नजरों से देखता है)
विक्रम - अभी अभी उनके बीच हुए सारी बातेँ... मैंने सुनी है...
महांती - (हाँ मे अपना सिर हिलाता है)
विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...


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एक जीप यशपुर के रास्ते राजगड़ की ओर तेजी से भाग रही है l ड्राइविंग सीट पर रोणा हाथ में सिगरेट की धुआँ उड़ाते हुए स्टीयरिंग मोड़ रहा है और बगल में बल्लभ संभल कर बैठने की कोशिश कर रहा है l

बल्लभ - अबे संभाल... संभल कर... किस बात की जल्दी है तुझे... कोई टांग खोलके तेरा इंतजार कर रहा है क्या...
रोणा - नहीं... पर मुझे विश्व से मिलने की जल्दी है...
बल्लभ - अगर राजगड़ आया होगा... तो वह गांव में ही होगा... पर तुझे शायद मालुम ना हो... राजा साहब ने सात साल पहले ही... उसका गांव में हुक्का पानी बंद कर रखा है... गांव में तो घुसने से रहा...
रोणा - अगर वह नहीं मिला... तो उसकी बहन तो होगी... मैं उससे ज़मानत वसूल कर लूँगा...
बल्लभ - जैसे कल... उस औरत से वसूल रहा था...
रोणा - (शैतानी हँसी के साथ) हाँ... बिल्कुल वैसे ही...
बल्लभ - यह गलती से भी मत सोचना...
रोणा - क्यूँ...
बल्लभ - तुझे क्या.. तु सस्पेंड हो कर हेड क्वार्टर में छह महीने तक हाजिरी लगाता रहा... और छह महीने बाद... जहां पोस्टिंग मिला चला गया... कोर्ट के विश्व को सज़ा सुनाने के बाद... राजा साहब अपनी गाड़ी से वैदेही को बिठा कर बीच चौराहे में... उसे ले जाकर सात थप्पड़ मारे थे... वैदेही के बेहोश होने तक... उसके बाद उसे वहीँ छोड़ दिया... और अपने आदमियों से विश्व के वापस आने तक... वैदेही से दुर रहने का फरमान सुनाया....
रोणा - पर... अब तो विश्व छूट गया ना...
बल्लभ - हाँ... पर राजगड़ में राजा साहब की मिल्कियत से प्रसाद... उनके झूठन करने के बाद मिलता है... जानते हो ना...
रोणा - ह्म्म्म्म... पर मैं... टॉर्चर तो कर ही सकता हूँ... वरना सुकून कैसे मिलेगा...

इतने में थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे उन्हें गांव के दो आदमी दिखते हैं l उनमें से एक आकर रास्ते के बीच खड़ा हो जाता है और गाड़ी को रोकने की कोशिश करता है l एक आदमी के चेहरे पर बैंडेज बंधा हुआ है l उन्हें देख कर बल्लभ गाड़ी रुकवाता है l उनमें से किसी एक से

बल्लभ - अरे नरी... क्या हुआ तुझे... (रोणा से) यह राजा साहब के लोग हैं...
नरी - वह... मैं... गिर गया था...
बल्लभ - सच बोल...
नरी के साथ वाला - नहीं वकील साहब.. वैदेही ने इसके चेहरे पर.. दरांती चला दिया....
रोणा - क्या.. तो पुलिस में कंप्लेंट कर देते...
बल्लभ - कैसे करते यह कम्बख्त... इन्होंने ही छेड़ा होगा उसे... क्यूँ समरा... ठीक कह रहा हूँ ना... (वह दोनों अपना चेहरा झुका लेते हैं) अरे घबराओ नहीँ... यह(रोणा को दिखा कर) आज से राजगड़ थाने के अधिकारी हैं... बड़े पुराने साहब हैं.. राजा साहब ने खास तुम लोगों के लिए बुलाया है... इसलिए इन्हें सब सच सच बता दो...
वह दोनों - सलाम साहब...
रोणा - सलाम... कहो... वैदेही ने तुम पर क्यूँ हमला किया... सच बोलोगे... तो सब संभाल लुंगा...

वे दोनों पहले एक दुसरे को देखते हैं फिर बल्लभ की ओर देखते हैं l

बल्लभ - अरे बिंदास बोलो... इन साहब का भी वैदेही से... काम है.. घबराओ मत... बेझिझक खुल कर बोल दो...

समरा - साहब मैं बताता हूँ... यह नरी है... इसकी आँख बहुत दिनों से कीर्तनीया की बेटी मल्ली पर थी... इसलिए कीर्तनीया को पीने के लिए हमेशा पैसे देता था... पिछले महीने से अपना पैसा वापस मांग रहा था... कीर्तनीया के पास थे नहीं... इसलिए बच रहा था... आज सुबह यह ज़बरदस्ती कीर्तनीया के घर पहुँच गया... वहाँ जा कर अपने पैसों के लिए हंगामा खड़ा कर दिया... कीर्तनीया बहुत बिनती किया... हाथ जोड़े... और पैसे वापस देने के लिए तीन महीने की मोहलत मांगा... तो इसने एक शर्त रख दी...
रोणा - कैसी शर्त...
समरा - तीन महीने के लिए... इसके घर में मल्ली काम करने के लिए जाती...
रोणा - ओ... अच्छा... तो इसमें... वैदेही कहाँ से आ गई...
समरा - जैसे ही इसने अपना शर्त रखा... कीर्तनीया की बीवी कमली ने मल्ली को वैदेही के पास भगा दिया...


फ्लैशबैक

मल्ली भागते हुए वैदेही के दुकान पर पहुँचती है l मल्ली वैदेही को सारी बात बताती है l तभी उसके पीछे पीछे भागते हुए नरी वहाँ पहुँचता है l

वैदेही - बस... नरी बस... इस दुकान के अंदर मत आना... वह तुम्हारा हद है... लांघने की कोशिश भी ना करना... वरना... तुम्हें पचताने से कोई नहीं रोक पाएगा...
नरी - ओ... अच्छा... देखो तो.. कौन बोल रही है... रंग महल की रंडी साली...
वैदेही - फिर भी... तेरी औकात नहीं है... मल्ली को यहाँ से ले जाने की...
नरी - अच्छा... कौन रोकेगा मुझे... तु... (वहाँ पर कुछ छोटे बच्चे और कुछ औरतें खड़े थे उन्हें दिखा कर) या यह... तेरी फौजें... हा हा हा...
वैदेही - यह जब लड़ने पर आयेंगे... तब तुझ जैसों को छुपने के लिए सारा ब्रह्मांड कम पड़ जाएगा... पर कोई नहीं... तेरी औकात... तेरी हैसियत इतनी भी नहीं... की मेरे होते हुए... इसे हाथ भी लगा दे...
नरी - उई माँ... मैं तो डर गया.... रंग महल की इस रांड ने मुझे डरा दिया... (मल्ली से) एई लड़की... प्यार से मेरे साथ चल... वरना... तुझे बालों से खींचते हुए ले जाऊँगा....

मल्ली वैदेही के पीछे खड़ी हो जाती है l नरी बेपरवाह आगे बढ़ने लगता है l जैसे ही वैदेही के पास पहुँचता है वैदेही की एक जोरदार लात नरी के बीच टांगों में पड़ती है l नरी एक फुट ऊपर उछल कर अपने घुटने के बल गिरता है l मुहँ से गँ गँ की आवाज निकलने लगती है l चोट लगी जगह को दोनों हाथों से ढक कर पीड़ा भरी आँखों से वैदेही की तरफ देखने लगता है l ऐसा लगता है दर्द से उसकी आँखे उबल कर बाहर आ जाएंगी l फिर धीरे धीरे नरी की आँखे गुस्से से जलने लगती है वह उठ कर जल्दी से वैदेही पर झपट्टा मारता है l पर इस बार भी उससे देर हो जाती है l ना जाने कहाँ से वैदेही दरांती निकालती है और उतनी ही फुर्ती से चला देती है l इस बार नरी अपना चेहरा पकड़ कर नीचे गिर जाता है और छटपटाने लगता है l

नरी - आ... आ..ह.. साली कुत्तीआ... रंडी... आ...ह... आ.. आ.. ह..
वैदेही - कहा था ना... मेरे होते हुए... नहीं... रांड की लात झेल नहीं पाया... अब किसीको मुहँ भी दिखाने के लायक नहीं रहा.... और सुन... राजगड़ की हर घर की इज़्ज़त मेरी जान है... आँखे उठा कर कोई भी देखा... तो कसम खा कर कहती हूँ... उसकी गर्दन उड़ा दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

समरा - एक चीरा... बाईं आँख के ऊपर से होकर... नाक को चीरते हुए... दाएं गाल तक... पंद्रह स्टिच लगे हैं...
बल्लभ - ठीक है बैठ जाओ... हम राजगड़ ही जा रहे हैं...

वे दोनों जीप के पीछे बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद बल्लभ रोणा से

बल्लभ - देखा... वैदेही अब कितनी खतरनाक हो गई है... अब तो उसका भाई भी वापस आ गया होगा...
रोणा - तो क्या हुआ... क्या उखाड़ लेगा... आने दो उस हरामजादे को... दोनों भाई बहन की जिंदगी नर्क बना कर रख दूँगा...
समरा - क्या... उसका भाई विश्व आने वाला है...
बल्लभ - आने वाला है... वह तो तीन दिन पहले पहुँच गया होगा...
नरी - नहीं वकील साहब... विश्व आया होता तो हमें पता चल गया होता... अभी तक तो विश्व आया नहीं है...
बल्लभ - (रोणा से) ऐ रोणा... तु तो कह रहा था... वह तीन दिन पहले... छुट गया है...
रोणा - तुमको क्या लगता है प्रधान बाबु... मैंने झूठ कहा है... अगर विश्व गांव नहीं गया है... तो जरूर कहीं भाग गया है...
बल्लभ - हाँ... यह हो सकता है... भाग गया होगा... भागता नहीं.... तो करता क्या...

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शाम का समय
प्रतिभा के नए घर में l ड्रॉइंग रुम में जोडार एक सोफ़े पर बैठा हुआ है उसके सामने प्रतिभा कमरे के एक कोने से दुसरे कोने तक, जा रही है फिर वापस आ रही है l बीच बीच में वह घड़ी देख रही है l

जोडार - मिसेज सेनापति... प्लीज... आप परेशान ना हो... वह आ जाएंगे...
प्रतिभा - फोन पर बताया था... छह बजे तक पहुँच जाएंगे...
- तो छह बजा ही कहाँ है... (अंदर आते हुए तापस) घड़ी देख लो... अभी भी पांच मिनट बचे हैं... छह बजने के लिए...

तापस के पीछे पीछे विश्व कुछ कागजात हाथों में लिए विश्व अंदर आता है l

प्रतिभा - ठीक है.. ठीक है... पर फिर भी... इतना देर...
विश्व - माँ... ट्रैफिक... जानती हो ना... वह तो डैड आपसे डरते हैं... इसलिए इतनी जल्दी गाड़ी उड़ा कर लाए... वरना मैं तो सोच रहा था... आठ बज जाएंगे...
प्रतिभा - तु चुप रह... डैड का चमचा... (तापस से) आपको गाड़ी चलाना था... उड़ाना नहीं था...
तापस - (दोनों हाथ जोड़ कर) गलती हो गई भाग्यवान... आइंदा से खयाल रखूँगा...

प्रतिभा अपना मुहँ बना कर आँखे सिकुड़ कर देखने लगती है l उन दोनों के बीच की नोक झोंक को जोडार एंजॉय कर रहा था l

विश्व - ओके ओके... इस पर हम... जोडार साहब के जाने के बाद भी बात कर सकते हैं...
तापस - हाँ भाग्यवान... हमें सबसे पहले जोडार साहब को भगाना है...(जोडार से) प्लीज डोंट माइंड... उसके बाद हम पेट भरने तक लड़ सकते हैं...
जोडार - कमाल करते हो... सेनापति सर... मैं तो यहाँ से डिनर करके जाना चाहता था...
तापस - ओ... ऐसी बात थी... कोई बात नहीं... हम कल झगड़ लेंगे... क्यूँ भाग्यवान...

प्रतिभा का तमतमाता चेहरा देख कर तापस सकपका जाता है और चुपचाप एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

प्रतिभा - (अपनी दांत चबाते हुए) (और तापस की देख कर) तो प्रताप... तुझे सबूत मिल गए...
विश्व - हाँ माँ... मिले भी और हमने हासिल भी कर लिया है... (सोफ़े पर तापस के बगल में बैठते हुए) यह रहे... (कागजात दिखाते हुए) इन्हें हासिल करने में थोड़ा वक़्त लग गया....
प्रतिभा - यह कैसे कागजात हैं...
विश्व - वेट मशीन की रिपोर्ट.... यानी लोकल भाषा में... धर्म कांटा के रिपोर्ट...
जोडार - वेट मशीन की रिपोर्ट तो थी ना हमारे पास... फिर...
विश्व - जोडार साहब... आपका सामान कार्गो शिप से जब अनलोड हुई तब... वेट मशीन में चेक किया गया और सिंगापुर रिपोर्ट के साथ मैच किया गया... फिर गोदाम में सामान की कस्टम चेकिंग हुई... उसके बाद स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... अंतिम बार की वेट मशीन से चेक होने से पहले... सामान निकाल लिया गया... और आपके लिए खाली कंटेनर रिसीव करने के लिए छोड़ दिया गया...
जोडार - पर जो डेलीवेरी रिपोर्ट थी... वह सब एज पर रिसीवींग ही किया गया है...
विश्व - वह तेरह पन्ने की रिपोर्ट थी... जिसे इसलिए बनाया गया था... ताकि असली बात छुपाया जा सके...
जोडार - कौनसी बात...
विश्व - चलिए मैं आपको साजिश की पुरी कहानी डिटेल में बताता हूँ...
तो हुआ यूँ... कार्गो शिप से आपके चार कंटेनर उतारा जाता है, और वेट मशीन में वजन चेक कर के सिंगापुर रिपोर्ट से मैच किया गया... उसके बाद कस्टम चेकिंग के लिए गोदाम भेजा गया... वहाँ पर हर एक प्लाइवुड के वुडेन बॉक्स... और कार्ड बोर्ड बॉक्स खोल कर कस्टम क्लीयरेंस किया गया... क्लीयरेंस के बाद सभी कंटेनर को स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... जिसकी रख रखाव लीज पर एक प्राइवेट संस्था कर रही है... और यह बताने की कोई जरूरत नहीं... वह संस्था केके की है... और वहाँ पर सिक्युरिटी की इंतजाम ESS की है...
प्रतिभा - ओ... मतलब... इस साजिश में क्षेत्रपाल इस तरह से शामिल हुए हैं...
विश्व - कह नहीं सकते...
प्रतिभा - क्या मतलब कह नहीं सकते...
तापस - भाग्यवान ... तुम इतनी उतावली क्यूँ हो रही हो... पुरी कहानी तो सुन लो..
विश्व - तो चूंकि स्टॉक यार्ड की देख रेख एक निजी संस्था करती है... इसलिए उनकी ड्यूटी है... सामान बिल्कुल उसी तरह लौटाएँ... जैसा कस्टम अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया हो... और डेलीवेरी से पहले... अंतिम बार वेट मशीन की रिपोर्ट भी अटैच करे... पर... यहाँ थोड़ी सी चालाकी कि गयी...
जोडार - कस्टम अधिकारी के दिए रिपोर्ट के अनुरूप... उन्होंने सेम टू सेम रिपोर्ट बनाते बनाते... सिर्फ़ सेम प्लाइवुड वुडेन बॉक्स और सेम कार्ड बोर्ड बॉक्स की लोडिंग की बात लिखी गई... पर फिल्ड विथ द सेम मैटेरियल्स... यह नहीं लिखा... यही लाइन ठीक से समझ नहीं पाए थे... आपके पहले वाले वकील... और रिपोर्ट में फाइनल वेट मशीन रिपोर्ट अटैच भी नहीं किया गया... जिसको आपके वकील ने इग्नोर मारा था शायद... इसलिए... आपको कंटेनर तो मिले... वुडेन बॉक्स और कार्ड बोर्ड के साथ... मगर वगैर मैटेरियल्स के...
जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....
प्रतिभा - हाँ हाँ... हो जाएगा... कल दुपहर तक कोर्ट से ऑर्डर... मैं निकलवा लुंगी... परसों तक उन लोगों को नोटिस मिल जाएगा....
विश्व - बस... (जोडार से) आपका काम हो गया...

जोडार अपनी जगह से उठता है और विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l

जोडार - (विश्व के दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर) थैंक्यू... माय बॉय... थैंक्यू...
 

parkas

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👉उनासीवां अपडेट
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मोबाइल की घंटी बजने पर रोणा की नींद टुटती है l नींद भरे आँखों को मुश्किल से खोल कर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है "प्रधान वकील" डिस्प्ले हो रहा है l

रोणा - हे.. हैलो..
बल्लभ - भोषड़ी के... मैं तेरा नौकर हूँ क्या बे... मुझसे अपनी पोस्टिंग की ऑर्डर रिसीव करने भेज कर... खुद रात भर किसकी चुत मार रहा था बे...
रोणा - अरे... प्रधान बाबु... गुस्सा क्यूँ कर रहे हो... वैसे हो कहाँ पर अभी...
बल्लभ - तु जिस लॉज में चुदाई का लुफ्त उठा रहा है... उसीके रिसेप्शन में तेरा इंतजार कर रहा हूँ...
रोणा - अरे... भाई एक मिनट... अभी तैयार हो कर नीचे आ रहा हूँ....

इतना कह कर रोणा फोन काट देता है और बिस्तर से नंगा उठ कर बाथरुम भागता है l अपना चेहरा धो कर वह जैसे ही बाहर आता है बिस्तर पर लेटी चादर में खुद को छुपाती एक औरत बोलती है

औरत - (बिनती करने के लहजे में) साब जी... आपने जैसा कहा... मैंने वैसा ही किया.. अब तो मेरे बेटे को छोड़ दीजिए... प्लीज...
रोणा - (उस औरत को बिस्तर से खिंच कर खड़ा करता है, और चादर खिंच कर फेंक देता है ) अरे... इतनी बढ़िया ज़मानत दी है तुने... तेरे बेटे को कैसे ना छोड़ुँ... (उस औरत को ऐसे चूमने लगता है जैसे खा रहा हो)
औरत - म्म्म्न... म्म्म्न.. आह...
रोणा - आह... क्या माल है... अभी भी.. मन नहीं भरा मेरा... (उसे छोड़ते हुए) जा... पीछे के रास्ते घर जा... अच्छे अच्छे पकवान बना... तेरा बेटा पहुँच जाएगा...

कह कर अपने कपड़े पहन लेता है और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर निकल कर सीधे रिसेप्शन में पहुँच जाता है l रिसेप्शन में बल्लभ को देख कर उससे गले मिल जाता है l

बल्लभ - रात भर क्या कर रहा था बे...
रोणा - एक बेचारा लड़का... एक्जाम में कपि सप्लाई करते पकड़ा गया था... उसकी फ्यूचर की बात थी... इसलिए रात भर उसकी माँ से ज़मानत ले रहा था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो ज़मानत ले ली...
रोणा - तुमने मेरी राजगड़ पोस्टिंग की लेटर ले ली...
बल्लभ - (जेब से एक खाकी रंग का लिफाफा निकाल कर देते हुए) यह ले.. अच्छा.. क्या मैं भी देख लूँ... उसकी ज़मानत में क्या बाकी रह गया...
रोणा - प्रधान बाबु... यह बात तुम को पहले बताना चाहिए था... मैंने उसे पीछे के रास्ते से भेज दिया...
बल्लभ - चल कोई बात नहीं... जब तकदीर हो गांडु... क्या करेगा पाण्डु...
रोणा - पर यहाँ पाण्डु नहीं है... प्रधान है...

बल्लभ मुहँ बना कर रोणा को देखता है, रोणा उसे मुस्कराते हुए देखता है फिर दोनों हँसने लगते हैं

रोणा - चलो... प्रधान बाबु... चार्ज हैंड ओवर कर के... चलते हैं राजगड़... (रिसेप्शन में बैठा आदमी से) चलता हूँ... हिसाब सब खाते से मिटा देना... और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना...

कह कर रोणा बल्लभ को खिंचते हुए लॉज के बाहर ले जाता है l

रिसेप्शनीस्ट - कीड़े पड़ेंगे... साले... हरामजादे... तुझ पर कीड़े पड़ेंगे...

बाहर रोणा के जीप में दोनों बैठ जाते हैं और रोणा गाड़ी को दौड़ा देता है l

बल्लभ - बहुत नाम और रुतबा कमाया है यहाँ... आसानी से मालुम हो गया... थानेदार साहब कहाँ मिल सकते हैं...
रोणा - सब.... राजा साहब की महिमा है...
बल्लभ - एक बात कहूँ... जब इस जगह तु एक राजा की तरह रहता था... जिसे चाहे अपने नीचे ले आता है... फिर राजगड़ क्यूँ... क्यूँ जाना चाहता है...
रोणा - प्रधान बाबु... तुम्हें.... विश्व याद है... या भुला दिया है...
बल्लभ - हाँ... क्यूँ नहीं... उसीके वजह से तो पहली बार... हमें अपनी मांद से निकलना पड़ा... एक कस्बे का केस... पूरे राज्य का हो गया...
रोणा - कब रिहा हुआ मालुम है...
बल्लभ - क्या... विश्व रिहा हो गया...
रोणा - दो दिन पहले... आज तीसरा दिन है...
बल्लभ - व्हाट... इसका मतलब.. तु... विश्व की खबर रख रहा था...
रोणा - नहीं... मुझे बस उसकी रिहाई की... वह तारीख याद था... मैं जब खबर लेने पहुँचा... तब मालुम हुआ... की वह छूट कर जा चुका है...
बल्लभ - लगता है.... अगर दिख जाता... तो सारा खुन्नस निकाल कर ही मानता...
रोणा - हाँ.. मैं तो उसे तब मार देना चाहता था... पर... राजा साहब ने मुझे रोक दिया था... अब मैं राजगड़ अपनी खुन्नस उतारने जा रहा हूँ...
बल्लभ - ओ... तभी मैं सोचूँ.. यह राजा वाली जिंदगी को छोड़... तुझे गुलाम वाली जिंदगी की चुल क्यूँ मची है...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं, और चेहरा कठोर हो जाता है मगर कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
बल्लभ - सच कहूँ तो... राजगड़ से दूर तु... अच्छी जिंदगी जी रहा है... वहाँ पहुँच कर जी हुजूरी के सिवा... कर ही क्या सकता है...
रोणा - उसने गाँव वालों के सामने... मेरे जबड़े पर घुसा जड़ा था... कुछ देर के लिए ही सही... मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया था... गिर कर उठ नहीं पाया था... इसलिए... मैं उसे मरवा देना चाहता था... पर राजा साहब ने उसे जिंदा रखने के लिए कहा... मैं... मैं मन मसोस कर रह गया था... पर अब नहीं... अब नहीं... मैं राजगड़ में उसकी जिंदगी नर्क से भी बदत्तर बना दूँगा...
बल्लभ - क्या इसलिए.. अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया...
रोणा - हाँ... जितना कमाना था.. कमा लिया... अब सिर्फ विश्व से खुन्नस बाकी रह गया है... उसे पुरा करना है...
बल्लभ - उसे मार कर...
रोणा - नहीं... उसकी जिंदगी.. इतना भयानक कर दूँगा... के वह मौत की भीख मांगेगा... देख लेना...
बल्लभ - (भयानक होते हुए रोणा की चेहरे को देख रहा था) क.. कैसे... करोगे...
रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

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ESS ऑफिस
वीर के कैबिन में दरवाजे के तरफ पीठ कर अनु हाथ में एक कपड़े का टुकड़ा लेकर टेबल और कुर्सी को पोंछ रही है और साथ साथ एक गाना भी गुनगुना रही है l

"तेरे बिना... जिया जाए ना...
तेरे बिना... जिया जाए ना
बिन तेरे... तेरे बिन... ओ साजना"

पोछने के बाद फ्लावरबाश में सजे फ़ूलों को फिर से सजाने लगती है l फिर उन फूलों पर पानी स्प्रे करती है l फिर उसके बाद लैंडलाइन फोन को चेक करती है उसमें रिंग टोन सुनाई दे रही है या नहीं l ऐसे करते वक़्त उसे लगता है जैसे कोई उसे देख रहा है l वह अचानक गाना रोक कर उस तरफ देखने लगती है तो देखती है दरवाजे के पास विक्रम खड़ा हुआ है l विक्रम को देखते ही वह बहुत नर्वस हो जाती है चेहरा झुका लेती है फिर कुछ सोचते हुए विक्रम को सैल्यूट कर सलामी देती है l

विक्रम - क्या नाम है तुम्हारा...
अनु - जी... वह..
विक्रम - यह कैसा नाम है..
अनु - जी... अनु... अनु.. है मेरा नाम...
विक्रम - सिर्फ़ अनु... कोई सर नेम नहीं है क्या...
अनु - जी है.. है ना...
विक्रम - क्या है...
अनु - जी... बारीक...
विक्रम - अब पुरा नाम कहो...
अनु - जी... अनुसूया बारीक...
विक्रम - अगली बार जब पूछा जाए... तो पुरा नाम बताना...
अनु - जी... जी युवराज...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो...
अनु - जी... मैं सब ठीक है या नहीं... चेक कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... गाना भी गा रही थी...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - (चलते हुए आता है और वीर के चेयर पर बैठ जाता है ) वैसे तुम यहाँ कैसे आई...
अनु - (हैरान हो कर) जी... मैं आज ऑटो से...
विक्रम - मतलब... तुम्हारा इंटरव्यू कब हुआ... किसने ली... और यहाँ किस पोस्ट पर हो...
अनु - जी... एक बार हमारे बस्ती में... छोटे राजा जी आए थे... सबकी खैरियत पुछ रहे थे... उस दिन मेरी दादी ने मेरे लिए कुछ काम मांगा तो... छोटे राजा जी ने हमे उनके ऑफिस आने के लिए कहा था.. उनके ऑफिस में राजकुमार जी से मुलाकात हुई... तो उन्होंने हमे तुरंत नौकरी पर रख लिया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - मैंने पुछा कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - जी म.. म.. मैट्रिक... तक...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और यहाँ कौनसी पोस्ट पर हो...
अनु - जी... राजकुमार जी की.. पर्सनल सेक्रेटरी... कम असिस्टेंट...
विक्रम - क्या इसलिए... तुम राजकुमार जी की गैर हाजिरी में... उनके कमरे में घुसी रहती हो...
अनु - जी नहीं... ऐसी बात नहीं है... राजकुमार जी ने खुद कहा है कि... वह जब कमरे में आयें... उन्हें सब कुछ सही दिखना और मिलना चाहिए...
विक्रम - अच्छा... राजकुमार जी ने ऐसा कहा है तुमसे...
अनु - (अपना सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाती है)
विक्रम - और क्या क्या कहा है... राज कुमार जी ने...
अनु - जी जब भी वह कैबिन में हों... कॉफी उन्हें तैयार मिलना चाहिए... और उनके सारे कॉल पहले मैं अटेंड करूँ... चाहे मोबाइल हो या लैड लाइन... और डायरी में सब नोट करूँ... आख़िर में उन्हें सब बताऊँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
अनु - जी.. जी नहीं...
विक्रम - तुम्हें... उसके साथ कैसा लगता है...
अनु - (चौंक कर) जी... जी मैं समझी नहीं...
विक्रम - कभी डर नहीं लगता...
अनु - किससे...
विक्रम - राजकुमार से...
अनु - जी... उन्होंने कभी डराया ही नहीं...
विक्रम - तुम्हारे घर में कौन कौन हैं...
अनु - जी.. मेरा घर... मतलब...
विक्रम - मेरा मतलब है... घर में तुम्हारे साथ.. कौन कौन रहता है...
अनु - जी मेरे साथ कोई नहीं रहता... मैं अपनी दादी के साथ... दादी के पास रहती हूँ...
विक्रम - माँ बाप...
अनु - वह तो मेरे बचपन में ही चल बसे...
विक्रम - ओ... (उठते हुए) अच्छा राजकुमार जी आयें तो... उन्हें मेरे कैबिन में आने के लिए कह देना...
अनु - जी अच्छा...

विक्रम अनु को देखते हुए दरवाजे की ओर जाता है l दरवाजे की पास रुक जाता है और अनु की ओर मुड़कर

विक्रम - अनु... राजकुमार जी से... थोड़ी दूरी बना कर रहना... कोशिश करो... जितना बाहर बैठ सको तो बैठो... जब उन्हें जरूरत हो तभी उनके सामने जाओ...

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वीर की गाड़ी कॉलेज की पार्किंग में आती है l पहले रुप उतरती है उसके बाद दुसरी तरफ से वीर उतरता है l

रुप - अच्छा भैया... चलती हूँ...
वीर - ठीक है जा...
रुप - तुम क्लास नहीं करोगे...
वीर - देख सुधरा जरूर हूँ... मगर इतना भी नहीं... के क्लास में बैठ कर लेक्चर सुनूँ... तु जा... बस छुट्टी होने से पहले मुझे कॉल कर देना...
रुप - (हैरान हो कर) तो अभी.. तुम कहाँ जाओगे...
वीर - ऑफिस और कहाँ...
रुप - आर यु सीरियस...
वीर - क्यूँ... मैं तुझे सीरियस नहीं दिख रहा...
रुप - (कंफ्यूजन में, अपना सिर हिलाती तो है, पर हाँ में हिला रही है या ना में हिला रही है वीर यह समझ नहीं पाता)
वीर - यह सिर क्या इधर उधर हिला रही है... बोल हाँ या ना..
रुप - (ना में सिर हिलाते हुए) हाँ.. हाँ..
वीर - समझ गया... मैं समझ गया... तु जा अपनी क्लास कर.. मैं जाकर अपना ड्यूटी बजाता हूँ...

कह कर वीर गाड़ी घुमा कर चला जाता है, रुप भी मुड़ कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है l देखती है लड़के उसे देखते ही दुम दबा कर भाग रहे हैं l वह कैन्टीन में पहुँचती है, सीधे जा कर अपनी ग्रुप के पास बैठ जाती है l वहाँ पर भी जितने भी लड़के थे, सबके सब कन्नी काट कर निकल जाते हैं l

रुप - यह क्या हो रहा है... सारे लड़के मुझे देख कर यूँ भाग क्यूँ रहे हैं....
दीप्ति - वेरी... सिंपल... लड़के जो भी तेरे लिए चोरी चोरी अरमान पाले बैठे थे...
तब्बसुम - सिर्फ बहन कहने पर जब रॉकी की सिर फुट सकती है... तो गलती से भी तेरे वीर भैया को मालुम हुआ...
इतिश्री - के कोई कम्बख्त तेरे लिए ख्वाब सजाये हैं...
भाश्वती - तो कहीं उसकी अर्थी ना सज जाए...

सभी लड़कियाँ एक दुसरे से हाइफाइ करते हुए हँसने लगती हैं l

तब्बसुम - वैसे.. एक बात बता... तुझे क्या पसंद है... पहले इश्क़ फिर शादी या... पहले शादी फिर इश्क़...
रुप - (एक भाव हीन मुस्कान के साथ) अपनी किस्मत में... यह कॉलेज वाला इश्क़ नहीं लिखा है... अपनी तो पहले शादी तय हुई... फिर हम कॉलेज में आए...
भाश्वती - ओ... मतलब तेरी... अंगेजमेंट हो गई है...
रुप - नहीं... फिक्स हो गई है... दसपल्ला राज घराने में... और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह है कि... उनके परिवार में... मुझे किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं पता..
सब - (एक साथ) व्हाट...
इतिश्री - यह कैसे...
दीप्ति - क्यूँ इस में अचरज क्या है... इस बात की क्या ग्यारंटी है कि हम जिससे नैन मटक्का करें... कल को हम उसी से ही शादी करें...
भाश्वती - बट शी इज़ फ्रोम रॉयल फॅमिली ना...
दीप्ति - सो व्हाट... सारे मैटर एक ही जगह पर ठहरती है... किसकी फॅमिली कितनी और किस हद तक कंजरवेटिव है...

कर्र्र्र्र्र्र्र्र

क्लास की बेल बजती है सभी अपनी जगह से उठ कर क्लास की ओर जाने लगते हैं, सिवाय रुप के

रुप - बनानी... (सभी रुक जाती हैं ) बस बनानी... जरा रुकना... तेरे पास कुछ काम है...

बाकी सभी लड़कियाँ चली जाती हैं बनानी वापस अपनी जगह बैठ जाती है l

रुप - क्या हुआ... आज पुरी डिस्कशन में... तु ख़ामोश रही... जब से आई हूँ... देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी हो... क्या बात है...
बनानी - (थोड़ी ऑकवर्ड फिल करते हुए) नहीं.. कुछ नहीं...
रुप - (उसके हाथ पकड़ कर) मुझसे भी नहीं बताएगी...
बनानी - मैं क्या करूं.. कुछ समझ में नहीं आ रहा है...
रुप - मतलब...
बनानी - आज बस स्टॉप में वह मिला..
रुप - कौन... एक.. एक मिनट... रॉकी...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - क्या हुआ...

फ्लैशबैक

बस स्टॉप

बनानी कॉलेज जाने के लिए बस का इंतजार कर रही है l तभी बाइक से रॉकी वहाँ पहुँचता है और बाइक एक साइड में लगा कर वहाँ खड़ा हो जाता है l बनानी थोड़ी अंकंफर्टेबल हो जाती है l फिर भी खुद को सम्भाल लेती है l थोड़ी देर बाद बस आती है, वहाँ पर मौजूद सभी लोग बस चढ़ने लगते हैं l बनानी भी जाने लगती है

रॉकी - बनानी... (बनानी पीछे मुड़ कर देखती है) क... क्या... दो मिनट.. दो मिनट के लिए रुक सकती हो.. प्लीज...
बनानी - क्यूँ..
रॉकी - सिर्फ़ दो मिनट... अगली बस से चली जाना... प्लीज...

बनानी रुक जाती है और बस चली जाती है l

रॉकी - थैंक्यू...
बनानी - जो भी कहना है जल्दी कहो... मुझे जाना है...
रॉकी - मैं सबसे पहले माफी माँगता हूँ... जो हुआ... जो भी हुआ... उन सबके लिए...
बनानी - ठीक है... और...
रॉकी - और... यह मेरा लास्ट ईयर है... उसके बाद मुझे पापा का बिजनैस संभालना है...
बनानी - अच्छी बात है... कंग्रेचुलेशन...
रॉकी - क्या मैं.. अगर तुम हाँ कहो तो... मैं अपनी मम्मी और पापा को लेकर तुम्हारे घर...
बनानी - किस लिए...
रॉकी - वह... मतलब.. श्.. श.. शादी...
बनानी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रॉकी - क्यूँ नहीं.. आख़िर प्यार करती हो.... तुम मुझसे...
बनानी - प्यार... कैसा प्यार... वह एक भ्रम था... टुट गया...
रॉकी - मैंने ऐसा क्या कर दिया है...
बनानी - क्या... कर दिया है... अपने बदले के लिए... तुमने मेरी जान की बाजी लगा दी... और पूछते हो क्या कर दिया है...
रॉकी - मैं... मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ... गलती सुधारना चाहता हूँ... प्लीज... सच्चे दिल से.... अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ...
बनानी - ओ... तुम यहाँ प्रायश्चित के लिए आए हो.. प्यार के लिए नहीं...
रॉकी - नहीं.. मेरा कहने का मतलब है कि... मैं भी तुम्हें चाहने लगा हूँ...
बनानी - तो.. तो क्या मैं खुश हो जाऊँ... नाचने लगूँ... झूमने गाने लगूँ....
रॉकी - प्लीज... एक मौका... दो.. प्लीज...
बनानी - जानते हो... तुम्हारी कमीना पन जानने के बावजूद.... नंदिनी ने तुम्हें क्यूँ छोड़ा था... वजह मैं थी... उसे मेरे अंदर की भावनाओं का कदर था... इसलिए जिस दिन... वह तुम्हें दिल से भाई मान कर गले लगा लेगी... उस दिन मैं... (तभी बस आने की हॉर्न बजती है) मेरी बस आ गई...
रॉकी - (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
बनानी - रॉकी... तुम जितने नंदिनी के गुनहगार हो.. उतने मेरे भी... उसने माफ भी कर दिया है तुम्हें... पर जिस रिश्ते की ढोल बजाये हो... अगर उसे... वह स्वीकार हुआ... तब मैं भी अपनी दिल की ज़ज्बात को स्वीकार कर लुंगी... बस...

फ्लैशबैक खतम

रुप - तो क्या तु इस बात से डिस्टर्ब्ड थी...
बनानी - ह्म्म्म्म...
रुप - देख तुने जो फैसला किया है... वह तेरा अपना है... मैं सच कहती हूँ... अगर वह मेरा अपना भाई भी होता... तब भी मैं उसकी सिफारिश हरगिज ना करती...
बनानी - मैं... जानती हूँ...
रुप - यह सिफारिशी वाला जो प्यार होता है ना... सिर्फ़ जवानी में ही किया जाता है... इसलिए मैं इसे सच्चा प्यार नहीं मनाती...
बनानी - अच्छा... अभी अभी तुने कहा कि तेरी शादी तय हो चुकी है... फिर सच्चे प्यार के बारे में... कैसे जानती है...
रुप - जानती नहीं हूँ... पर... समझती जरूर हूँ...
बनानी - अच्छा...
रुप - हाँ... प्यार या तो बचपन का सच्चा होता है... या फिर बुढ़ापे का... जवानी में भटकाव ज्यादा होता है.. सच्चाई कम होती है... क्यूंकि बचपन का प्यार आसमान ढूंढ लेता है... और बुढ़ापे का प्यार कभी जमीन नहीं छोड़ती है... बस जवानी के प्यार के हिस्से में... ना आसमान होता है... ना जमीन...
बनानी - वाव.. पता नहीं... तेरी बातों में कितना सच्चाई है... पर मान लेने को दिल करता है...
रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...
बनानी - नंदनी... सच सच बता... जिस कंनफिडेंट के साथ यह कह रही है... कहीं बचपन में... तुने किसी को...
रुप - (अपनी शर्माहट को छुपाते हुए) चल चलते हैं... क्लास में...
बनानी - (रुप की शर्माहट पकड़ लेती है) नहीं गए तो क्या हो जाएगा... (छेड़ते हुए) चल बता ना... कौन था... कैसा था...
रुप - (गालों पर लाली छा जाती है) तु चलती है कि नहीं...
बनानी - नहीं... अब मुझे जाननी है.. तेरे बचपन के सच्चे वाले प्यार के बारे में...
रुप - देख मुझे परेशान मत कर... प्लीज... चलते हैं ना क्लास...
बनानी - देख या तो मुझे सब बताएगी... या मैं.. सब को बुला कर ढिंढोरा पीटुंगी...
रुप - अच्छा... बताऊंगी... तुझे जरूर बताऊंगी... प्लीज अभी क्लास चलते हैं...
बनानी - ठीक है... पर याद रखना... वरना... मैं क्या करुँगी...
रुप - (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मेरी माँ... अब क्लास तो करलें हम पहले...

बनानी हँसने लगती है फिर कैन्टीन से निकल कर दोनों क्लास की ओर चलने लगते हैं l


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ESS ऑफिस में वीर अपनी कार लेकर आता है, गाड़ी को गेट के पास रोक कर गाड़ी से उतर कर गार्ड के हाथ में चाबी देता है और झूमते हुए ऑफिस के अंदर जाता है l गार्ड से लेकर स्टाफ सभी हैरानी से वीर की ओर देखने लगते हैं l वीर ऐसे झूमते हुए अपनी कैबिन की ओर जा रहा है जैसे वह कोई गाना सुन रहा है l झूमते झूमते हुए वह अपनी कैबिन के पास पहुँचता है और दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है l अंदर पहुँच कर दोनों बाहें फैला कर एक गहरी सांस लेता है फिर एक नजर अपनी कैबिन में हर कोने पर डालता है l उसके बाद वह जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l ऐसे में करीब दस मिनट गुजर जाते हैं l वह हैरान हो जाता है क्यूँकी अब तक अनु को उसके सामने आ जाना चाहिए था l
"वह क्यूँ नहीं आई"
टेबल पर रखे इंटरकॉम से अनु के इंटरकॉम पर डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - क्या हुआ... तुम्हें अब तक मेरे सामने.. मेरे पास होना चाहिए था...
अनु - जी... आपको अभी... क्या चाहिए...
वीर - (हैरान हो कर) क्या चाहिए... क्या मतलब है क्या चाहिए...
अनु - जी.. मेरा मतलब है... चाय कॉफी...
वीर - यह क्या नाटक है अनु...
अनु - ठीक है... मैं कॉफी लेकर आती हूँ... (इंटरकॉम पर क्रेडेल रख देती है)

अनु के इस तरह से बात करने और जवाब देने से वीर हैरान हो जाता है l उसके जबड़े भींच जाती हैं और दांत कड़कड़ आवाज के साथ पीसने लगता है l तभी हाथ में कॉफी लेकर अनु अंदर आती है, और वीर को बढ़ाती है l वीर अनु की चेहरे को देख कर कॉफी लेता है और टेबल पर रख देता है l

वीर - क्या हुआ...
अनु - कुछ.. कुछ नहीं राजकुमार जी...
वीर - मैंने पुछा... क्या... हुआ...
अनु - जी यह ऑफिस है... मेरी टेबल आपके कैबिन के बाहर है... मुझे सिर्फ तभी आना चाहिए... जब आपको कुछ चीजों की जरूरत हो...
वीर - (अपनी चेयर पर सीधा होकर बैठ जाता है) किसने कहा...
अनु - जी.. वह.. व ह ...
वीर - और जब मुझे खुशी में या दुख में... किसी दोस्त की जरूरत होगी... तब...
अनु - (अपनी वैनिटी बैग से दो स्माइली बॉल निकाल कर वीर को देती है)
वीर - (वह दो बॉल अनु के हाथ से लेता है और डस्टबीन में फेंक देता है) मैंने तुमसे वादा लिया था... और तुमने मुझे वादा भी किया था... मैं जब भी ज्यादा खुश हो जाऊँ... या ज्यादा दुखी हो जाऊँ... तुम मुझे गले से लगा लोगी...
अनु - (अपना सिर झुका लेती है और वीर नजरें मिलाने से कतराती है)
वीर - कौन आया था यहाँ...
अनु - जी... वह...
वीर - तुम्हें मैंने अपनी टर्म्स एंड कंडीशन पर नौकरी पर रखा है... यहाँ... इस कैबिन में.. मेरी शर्तें लागू हैं... तुम... मेरी पर्सनल सेक्रेटरी और असिस्टेंट हो... इसलिए अब बताओ... कौन आया था यहाँ...
अनु - (फिर भी चुप रहती है)
वीर - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) अनु..
अनु - (चौंक जाती है)
वीर - (अनु के बाहें पकड़ कर) अनु... तुम मेरी... सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त हो... यह... हमारी दोस्ती के बीच कौन आ गया अनु... प्लीज... कहो.. कौन है वह...
अनु - एक... एक शर्त पर...
वीर - मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजुर है...
अनु - आप उनसे झगड़ा नहीं करेंगे... बल्कि उनकी बातेँ मानेंगे...
वीर - मंजुर है...
अनु - आपसे युवराज जी मिलना चाहते थे... मुझे आपके कमरे में देख कर... बस इतना ही कहा... की पीएस का काम खयाल रखना है... पर तभी जब जरूरत हो... तभी... हर वक़्त कैबिन के अंदर होना जरूरी नहीं है....
वीर - ओ.. मैं.. मैं.. समझ गया... उन्होंने मुझे बुलाया है ना...
अनु - जी...
वीर - मैं... मैं उनसे अभी... मिलकर आता हूँ...
अनु - आपको हमारी दोस्ती का वास्ता... आप चिल्लाएंगे नहीं...
वीर - अपने दोस्त पर ना सही... क्या तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा नहीं...
अनु - है... खुद से ज्यादा... अपनी जान से ज्यादा...
वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है सीधे जा कर विक्रम के कैबिन में पहुँचता है l विक्रम के साथ वहाँ पर महांती भी बैठा हुआ मिलता है l

वीर - (खुद को काबु करते हुए) आप... आपने मुझे बुलाया...
विक्रम - हाँ राज कुमार... पर लगता है... मेरे बुलाने से... आप खुश नहीं हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... कहिए... क्या काम था...
विक्रम - क्या वगैर काम के... आप यहाँ नहीं आते...
वीर - नहीं... नहीं आता... क्यूंकि वगैर काम के... आपको कभी मेरी जरूरत पड़ी हो... ऐसा मुझे याद नहीं...
विक्रम - अगर आपके और मेरे बीच काम का रिश्ता है... तो आपके और आपके पीएस के बीच कौनसा रिश्ता है...
वीर - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भींच जाती हैं) वह मेरी पीएस कम असिस्टेंट है... बाय प्रोफेशन... और इकलौती दोस्त है... बाय डेस्टिनी...
विक्रम - कुछ देर से.. आप हम के वजाए मैं कह रहे हैं... क्या मैं सही सुन रहा हूँ...
वीर - जी...
विक्रम - क्यूँ...
वीर - हम दोनों की अपनी अपनी वजह है...
विक्रम - मैंने अपनी वजह आपसे छुपाया नहीं है...
वीर - और अभीतक मैंने अपनी वजह बताय नहीं है...
विक्रम - तो अभी बता दीजिए...
वीर - (एक गहरी सांस लेते हुए) मुझसे यह झूठे नक़ाब ढोया नहीं गया... जो रिश्ते नातों को किसी अहं के नीचे दबोच दे... खतम कर दे... इसलिए मैंने उस हम को ढोना छोड़ दिया... भैया...
विक्रम - (चौंक जाता है) क्या... क्या कहा आपने...
वीर - भैया... आप बार बार मुझे... आप ना कहें... तु कह सकते हैं... जैसे माँ कहती है... या फिर तुम... जैसे भाभी या रुप कहती है...
विक्रम - (आँखे चौड़ी हो जाती है) क्या... यह.. यह सब कब हुआ...
वीर - परसों... रुप के जन्मदिन पर...
विक्रम - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
वीर - अगर बातेँ हो गई... तो मैं जाऊँ...
विक्रम - हँ... हाँ... नहीं रुको एक मिनट... क्या इन सबके पीछे... आपकी वह पीएस है...
वीर - नहीं... वह मेरी दोस्त है... पुरी दुनिया में... मेरी इकलौती दोस्त है...
विक्रम - आपको दुनिया में... कोई और मिली नहीं... रंग... उसका फीका... बहुत ही आम सी दिखने वाली... वह... एक मामुली लड़की...
वीर - (अपनी उंगली विक्रम की ओर दिखाते हुए) बस... बस भैया... बस... वह मेरी दोस्त है... उसकी मान सम्मान... मेरी मान सम्मान... (विक्रम की आँखे फटी की फटी रह जाती है और वह खड़ा हो जाता है, उसे खड़ा होता देख महांती भी अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) अगर कोई काम हो... तो सीधे मुझे फोन कर बुला सकते हैं.... हाजिर हो जाऊँगा... चलता हूँ...

वीर इतना कह कर वहाँ से निकल जाता है l उसके जाने के बाद भी विक्रम हैरानी से दरवाजे की ओर देखता रह जाता है l

महांती - युवराज...
विक्रम - हँ...(होश में आते हुए) हाँ...... महांती... कुछ कहा तुमने...
महांती - राजकुमार चले गए...
विक्रम - यह... अभी जो हुआ... मतलब जो हुआ... वह क्या था... महांती...
महांती - (थोड़ा खरास लेते हुए) अहेम.. अहेम... राजकुमार जी को...
विक्रम - हाँ... राजकुमार जी को...
महांती - राजकुमार जी को... प्यार हो गया है...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती को देखता है)
महांती - हाँ... युवराज... यह प्यार ही है... जिसे राजकुमार दोस्ती कह रहे हैं...
विक्रम - कैसे... महांती... कैसे... एक.... मामुली सी लड़की से...
महांती - हमारे यहाँ लोकल में एक बात खूब बोली जाती है...
"भुख ना देखे बासी भात"
"प्यार ना देखे ऊँच नीच जात पात"
विक्रम - वह लड़की...
महांती - बहुत ही अच्छी लड़की है... मैंने पता किया है.... बहुत ही शरीफ... मासूम और भोली.... या यूं कहूँ कि... राजकुमार जी के चरित्र की पुरी उल्टी है... लड़की पुरब है तो राजकुमार जी पश्चिम हैं...
विक्रम - वह लड़की अच्छी है... मैं जानता हूँ...
महांती - क्या... कैसे...
विक्रम - (अपनी कान से माइक निकाल कर डस्टबीन में फेंकता है) मैंने कुछ देर पहले... राजकुमार जी के कैबिन में बग फिट कर आया था...
महांती - (सवालिया नजरों से देखता है)
विक्रम - अभी अभी उनके बीच हुए सारी बातेँ... मैंने सुनी है...
महांती - (हाँ मे अपना सिर हिलाता है)
विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...


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एक जीप यशपुर के रास्ते राजगड़ की ओर तेजी से भाग रही है l ड्राइविंग सीट पर रोणा हाथ में सिगरेट की धुआँ उड़ाते हुए स्टीयरिंग मोड़ रहा है और बगल में बल्लभ संभल कर बैठने की कोशिश कर रहा है l

बल्लभ - अबे संभाल... संभल कर... किस बात की जल्दी है तुझे... कोई टांग खोलके तेरा इंतजार कर रहा है क्या...
रोणा - नहीं... पर मुझे विश्व से मिलने की जल्दी है...
बल्लभ - अगर राजगड़ आया होगा... तो वह गांव में ही होगा... पर तुझे शायद मालुम ना हो... राजा साहब ने सात साल पहले ही... उसका गांव में हुक्का पानी बंद कर रखा है... गांव में तो घुसने से रहा...
रोणा - अगर वह नहीं मिला... तो उसकी बहन तो होगी... मैं उससे ज़मानत वसूल कर लूँगा...
बल्लभ - जैसे कल... उस औरत से वसूल रहा था...
रोणा - (शैतानी हँसी के साथ) हाँ... बिल्कुल वैसे ही...
बल्लभ - यह गलती से भी मत सोचना...
रोणा - क्यूँ...
बल्लभ - तुझे क्या.. तु सस्पेंड हो कर हेड क्वार्टर में छह महीने तक हाजिरी लगाता रहा... और छह महीने बाद... जहां पोस्टिंग मिला चला गया... कोर्ट के विश्व को सज़ा सुनाने के बाद... राजा साहब अपनी गाड़ी से वैदेही को बिठा कर बीच चौराहे में... उसे ले जाकर सात थप्पड़ मारे थे... वैदेही के बेहोश होने तक... उसके बाद उसे वहीँ छोड़ दिया... और अपने आदमियों से विश्व के वापस आने तक... वैदेही से दुर रहने का फरमान सुनाया....
रोणा - पर... अब तो विश्व छूट गया ना...
बल्लभ - हाँ... पर राजगड़ में राजा साहब की मिल्कियत से प्रसाद... उनके झूठन करने के बाद मिलता है... जानते हो ना...
रोणा - ह्म्म्म्म... पर मैं... टॉर्चर तो कर ही सकता हूँ... वरना सुकून कैसे मिलेगा...

इतने में थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे उन्हें गांव के दो आदमी दिखते हैं l उनमें से एक आकर रास्ते के बीच खड़ा हो जाता है और गाड़ी को रोकने की कोशिश करता है l एक आदमी के चेहरे पर बैंडेज बंधा हुआ है l उन्हें देख कर बल्लभ गाड़ी रुकवाता है l उनमें से किसी एक से

बल्लभ - अरे नरी... क्या हुआ तुझे... (रोणा से) यह राजा साहब के लोग हैं...
नरी - वह... मैं... गिर गया था...
बल्लभ - सच बोल...
नरी के साथ वाला - नहीं वकील साहब.. वैदेही ने इसके चेहरे पर.. दरांती चला दिया....
रोणा - क्या.. तो पुलिस में कंप्लेंट कर देते...
बल्लभ - कैसे करते यह कम्बख्त... इन्होंने ही छेड़ा होगा उसे... क्यूँ समरा... ठीक कह रहा हूँ ना... (वह दोनों अपना चेहरा झुका लेते हैं) अरे घबराओ नहीँ... यह(रोणा को दिखा कर) आज से राजगड़ थाने के अधिकारी हैं... बड़े पुराने साहब हैं.. राजा साहब ने खास तुम लोगों के लिए बुलाया है... इसलिए इन्हें सब सच सच बता दो...
वह दोनों - सलाम साहब...
रोणा - सलाम... कहो... वैदेही ने तुम पर क्यूँ हमला किया... सच बोलोगे... तो सब संभाल लुंगा...

वे दोनों पहले एक दुसरे को देखते हैं फिर बल्लभ की ओर देखते हैं l

बल्लभ - अरे बिंदास बोलो... इन साहब का भी वैदेही से... काम है.. घबराओ मत... बेझिझक खुल कर बोल दो...

समरा - साहब मैं बताता हूँ... यह नरी है... इसकी आँख बहुत दिनों से कीर्तनीया की बेटी मल्ली पर थी... इसलिए कीर्तनीया को पीने के लिए हमेशा पैसे देता था... पिछले महीने से अपना पैसा वापस मांग रहा था... कीर्तनीया के पास थे नहीं... इसलिए बच रहा था... आज सुबह यह ज़बरदस्ती कीर्तनीया के घर पहुँच गया... वहाँ जा कर अपने पैसों के लिए हंगामा खड़ा कर दिया... कीर्तनीया बहुत बिनती किया... हाथ जोड़े... और पैसे वापस देने के लिए तीन महीने की मोहलत मांगा... तो इसने एक शर्त रख दी...
रोणा - कैसी शर्त...
समरा - तीन महीने के लिए... इसके घर में मल्ली काम करने के लिए जाती...
रोणा - ओ... अच्छा... तो इसमें... वैदेही कहाँ से आ गई...
समरा - जैसे ही इसने अपना शर्त रखा... कीर्तनीया की बीवी कमली ने मल्ली को वैदेही के पास भगा दिया...


फ्लैशबैक

मल्ली भागते हुए वैदेही के दुकान पर पहुँचती है l मल्ली वैदेही को सारी बात बताती है l तभी उसके पीछे पीछे भागते हुए नरी वहाँ पहुँचता है l

वैदेही - बस... नरी बस... इस दुकान के अंदर मत आना... वह तुम्हारा हद है... लांघने की कोशिश भी ना करना... वरना... तुम्हें पचताने से कोई नहीं रोक पाएगा...
नरी - ओ... अच्छा... देखो तो.. कौन बोल रही है... रंग महल की रंडी साली...
वैदेही - फिर भी... तेरी औकात नहीं है... मल्ली को यहाँ से ले जाने की...
नरी - अच्छा... कौन रोकेगा मुझे... तु... (वहाँ पर कुछ छोटे बच्चे और कुछ औरतें खड़े थे उन्हें दिखा कर) या यह... तेरी फौजें... हा हा हा...
वैदेही - यह जब लड़ने पर आयेंगे... तब तुझ जैसों को छुपने के लिए सारा ब्रह्मांड कम पड़ जाएगा... पर कोई नहीं... तेरी औकात... तेरी हैसियत इतनी भी नहीं... की मेरे होते हुए... इसे हाथ भी लगा दे...
नरी - उई माँ... मैं तो डर गया.... रंग महल की इस रांड ने मुझे डरा दिया... (मल्ली से) एई लड़की... प्यार से मेरे साथ चल... वरना... तुझे बालों से खींचते हुए ले जाऊँगा....

मल्ली वैदेही के पीछे खड़ी हो जाती है l नरी बेपरवाह आगे बढ़ने लगता है l जैसे ही वैदेही के पास पहुँचता है वैदेही की एक जोरदार लात नरी के बीच टांगों में पड़ती है l नरी एक फुट ऊपर उछल कर अपने घुटने के बल गिरता है l मुहँ से गँ गँ की आवाज निकलने लगती है l चोट लगी जगह को दोनों हाथों से ढक कर पीड़ा भरी आँखों से वैदेही की तरफ देखने लगता है l ऐसा लगता है दर्द से उसकी आँखे उबल कर बाहर आ जाएंगी l फिर धीरे धीरे नरी की आँखे गुस्से से जलने लगती है वह उठ कर जल्दी से वैदेही पर झपट्टा मारता है l पर इस बार भी उससे देर हो जाती है l ना जाने कहाँ से वैदेही दरांती निकालती है और उतनी ही फुर्ती से चला देती है l इस बार नरी अपना चेहरा पकड़ कर नीचे गिर जाता है और छटपटाने लगता है l

नरी - आ... आ..ह.. साली कुत्तीआ... रंडी... आ...ह... आ.. आ.. ह..
वैदेही - कहा था ना... मेरे होते हुए... नहीं... रांड की लात झेल नहीं पाया... अब किसीको मुहँ भी दिखाने के लायक नहीं रहा.... और सुन... राजगड़ की हर घर की इज़्ज़त मेरी जान है... आँखे उठा कर कोई भी देखा... तो कसम खा कर कहती हूँ... उसकी गर्दन उड़ा दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

समरा - एक चीरा... बाईं आँख के ऊपर से होकर... नाक को चीरते हुए... दाएं गाल तक... पंद्रह स्टिच लगे हैं...
बल्लभ - ठीक है बैठ जाओ... हम राजगड़ ही जा रहे हैं...

वे दोनों जीप के पीछे बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद बल्लभ रोणा से

बल्लभ - देखा... वैदेही अब कितनी खतरनाक हो गई है... अब तो उसका भाई भी वापस आ गया होगा...
रोणा - तो क्या हुआ... क्या उखाड़ लेगा... आने दो उस हरामजादे को... दोनों भाई बहन की जिंदगी नर्क बना कर रख दूँगा...
समरा - क्या... उसका भाई विश्व आने वाला है...
बल्लभ - आने वाला है... वह तो तीन दिन पहले पहुँच गया होगा...
नरी - नहीं वकील साहब... विश्व आया होता तो हमें पता चल गया होता... अभी तक तो विश्व आया नहीं है...
बल्लभ - (रोणा से) ऐ रोणा... तु तो कह रहा था... वह तीन दिन पहले... छुट गया है...
रोणा - तुमको क्या लगता है प्रधान बाबु... मैंने झूठ कहा है... अगर विश्व गांव नहीं गया है... तो जरूर कहीं भाग गया है...
बल्लभ - हाँ... यह हो सकता है... भाग गया होगा... भागता नहीं.... तो करता क्या...

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शाम का समय
प्रतिभा के नए घर में l ड्रॉइंग रुम में जोडार एक सोफ़े पर बैठा हुआ है उसके सामने प्रतिभा कमरे के एक कोने से दुसरे कोने तक, जा रही है फिर वापस आ रही है l बीच बीच में वह घड़ी देख रही है l

जोडार - मिसेज सेनापति... प्लीज... आप परेशान ना हो... वह आ जाएंगे...
प्रतिभा - फोन पर बताया था... छह बजे तक पहुँच जाएंगे...
- तो छह बजा ही कहाँ है... (अंदर आते हुए तापस) घड़ी देख लो... अभी भी पांच मिनट बचे हैं... छह बजने के लिए...

तापस के पीछे पीछे विश्व कुछ कागजात हाथों में लिए विश्व अंदर आता है l

प्रतिभा - ठीक है.. ठीक है... पर फिर भी... इतना देर...
विश्व - माँ... ट्रैफिक... जानती हो ना... वह तो डैड आपसे डरते हैं... इसलिए इतनी जल्दी गाड़ी उड़ा कर लाए... वरना मैं तो सोच रहा था... आठ बज जाएंगे...
प्रतिभा - तु चुप रह... डैड का चमचा... (तापस से) आपको गाड़ी चलाना था... उड़ाना नहीं था...
तापस - (दोनों हाथ जोड़ कर) गलती हो गई भाग्यवान... आइंदा से खयाल रखूँगा...

प्रतिभा अपना मुहँ बना कर आँखे सिकुड़ कर देखने लगती है l उन दोनों के बीच की नोक झोंक को जोडार एंजॉय कर रहा था l

विश्व - ओके ओके... इस पर हम... जोडार साहब के जाने के बाद भी बात कर सकते हैं...
तापस - हाँ भाग्यवान... हमें सबसे पहले जोडार साहब को भगाना है...(जोडार से) प्लीज डोंट माइंड... उसके बाद हम पेट भरने तक लड़ सकते हैं...
जोडार - कमाल करते हो... सेनापति सर... मैं तो यहाँ से डिनर करके जाना चाहता था...
तापस - ओ... ऐसी बात थी... कोई बात नहीं... हम कल झगड़ लेंगे... क्यूँ भाग्यवान...

प्रतिभा का तमतमाता चेहरा देख कर तापस सकपका जाता है और चुपचाप एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

प्रतिभा - (अपनी दांत चबाते हुए) (और तापस की देख कर) तो प्रताप... तुझे सबूत मिल गए...
विश्व - हाँ माँ... मिले भी और हमने हासिल भी कर लिया है... (सोफ़े पर तापस के बगल में बैठते हुए) यह रहे... (कागजात दिखाते हुए) इन्हें हासिल करने में थोड़ा वक़्त लग गया....
प्रतिभा - यह कैसे कागजात हैं...
विश्व - वेट मशीन की रिपोर्ट.... यानी लोकल भाषा में... धर्म कांटा के रिपोर्ट...
जोडार - वेट मशीन की रिपोर्ट तो थी ना हमारे पास... फिर...
विश्व - जोडार साहब... आपका सामान कार्गो शिप से जब अनलोड हुई तब... वेट मशीन में चेक किया गया और सिंगापुर रिपोर्ट के साथ मैच किया गया... फिर गोदाम में सामान की कस्टम चेकिंग हुई... उसके बाद स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... अंतिम बार की वेट मशीन से चेक होने से पहले... सामान निकाल लिया गया... और आपके लिए खाली कंटेनर रिसीव करने के लिए छोड़ दिया गया...
जोडार - पर जो डेलीवेरी रिपोर्ट थी... वह सब एज पर रिसीवींग ही किया गया है...
विश्व - वह तेरह पन्ने की रिपोर्ट थी... जिसे इसलिए बनाया गया था... ताकि असली बात छुपाया जा सके...
जोडार - कौनसी बात...
विश्व - चलिए मैं आपको साजिश की पुरी कहानी डिटेल में बताता हूँ...
तो हुआ यूँ... कार्गो शिप से आपके चार कंटेनर उतारा जाता है, और वेट मशीन में वजन चेक कर के सिंगापुर रिपोर्ट से मैच किया गया... उसके बाद कस्टम चेकिंग के लिए गोदाम भेजा गया... वहाँ पर हर एक प्लाइवुड के वुडेन बॉक्स... और कार्ड बोर्ड बॉक्स खोल कर कस्टम क्लीयरेंस किया गया... क्लीयरेंस के बाद सभी कंटेनर को स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... जिसकी रख रखाव लीज पर एक प्राइवेट संस्था कर रही है... और यह बताने की कोई जरूरत नहीं... वह संस्था केके की है... और वहाँ पर सिक्युरिटी की इंतजाम ESS की है...
प्रतिभा - ओ... मतलब... इस साजिश में क्षेत्रपाल इस तरह से शामिल हुए हैं...
विश्व - कह नहीं सकते...
प्रतिभा - क्या मतलब कह नहीं सकते...
तापस - भाग्यवान ... तुम इतनी उतावली क्यूँ हो रही हो... पुरी कहानी तो सुन लो..
विश्व - तो चूंकि स्टॉक यार्ड की देख रेख एक निजी संस्था करती है... इसलिए उनकी ड्यूटी है... सामान बिल्कुल उसी तरह लौटाएँ... जैसा कस्टम अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया हो... और डेलीवेरी से पहले... अंतिम बार वेट मशीन की रिपोर्ट भी अटैच करे... पर... यहाँ थोड़ी सी चालाकी कि गयी...
जोडार - कस्टम अधिकारी के दिए रिपोर्ट के अनुरूप... उन्होंने सेम टू सेम रिपोर्ट बनाते बनाते... सिर्फ़ सेम प्लाइवुड वुडेन बॉक्स और सेम कार्ड बोर्ड बॉक्स की लोडिंग की बात लिखी गई... पर फिल्ड विथ द सेम मैटेरियल्स... यह नहीं लिखा... यही लाइन ठीक से समझ नहीं पाए थे... आपके पहले वाले वकील... और रिपोर्ट में फाइनल वेट मशीन रिपोर्ट अटैच भी नहीं किया गया... जिसको आपके वकील ने इग्नोर मारा था शायद... इसलिए... आपको कंटेनर तो मिले... वुडेन बॉक्स और कार्ड बोर्ड के साथ... मगर वगैर मैटेरियल्स के...
जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....
प्रतिभा - हाँ हाँ... हो जाएगा... कल दुपहर तक कोर्ट से ऑर्डर... मैं निकलवा लुंगी... परसों तक उन लोगों को नोटिस मिल जाएगा....
विश्व - बस... (जोडार से) आपका काम हो गया...

जोडार अपनी जगह से उठता है और विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l

जोडार - (विश्व के दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर) थैंक्यू... माय बॉय... थैंक्यू...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update....
 

Jaguaar

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👉उनासीवां अपडेट
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मोबाइल की घंटी बजने पर रोणा की नींद टुटती है l नींद भरे आँखों को मुश्किल से खोल कर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है "प्रधान वकील" डिस्प्ले हो रहा है l

रोणा - हे.. हैलो..
बल्लभ - भोषड़ी के... मैं तेरा नौकर हूँ क्या बे... मुझसे अपनी पोस्टिंग की ऑर्डर रिसीव करने भेज कर... खुद रात भर किसकी चुत मार रहा था बे...
रोणा - अरे... प्रधान बाबु... गुस्सा क्यूँ कर रहे हो... वैसे हो कहाँ पर अभी...
बल्लभ - तु जिस लॉज में चुदाई का लुफ्त उठा रहा है... उसीके रिसेप्शन में तेरा इंतजार कर रहा हूँ...
रोणा - अरे... भाई एक मिनट... अभी तैयार हो कर नीचे आ रहा हूँ....

इतना कह कर रोणा फोन काट देता है और बिस्तर से नंगा उठ कर बाथरुम भागता है l अपना चेहरा धो कर वह जैसे ही बाहर आता है बिस्तर पर लेटी चादर में खुद को छुपाती एक औरत बोलती है

औरत - (बिनती करने के लहजे में) साब जी... आपने जैसा कहा... मैंने वैसा ही किया.. अब तो मेरे बेटे को छोड़ दीजिए... प्लीज...
रोणा - (उस औरत को बिस्तर से खिंच कर खड़ा करता है, और चादर खिंच कर फेंक देता है ) अरे... इतनी बढ़िया ज़मानत दी है तुने... तेरे बेटे को कैसे ना छोड़ुँ... (उस औरत को ऐसे चूमने लगता है जैसे खा रहा हो)
औरत - म्म्म्न... म्म्म्न.. आह...
रोणा - आह... क्या माल है... अभी भी.. मन नहीं भरा मेरा... (उसे छोड़ते हुए) जा... पीछे के रास्ते घर जा... अच्छे अच्छे पकवान बना... तेरा बेटा पहुँच जाएगा...

कह कर अपने कपड़े पहन लेता है और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर निकल कर सीधे रिसेप्शन में पहुँच जाता है l रिसेप्शन में बल्लभ को देख कर उससे गले मिल जाता है l

बल्लभ - रात भर क्या कर रहा था बे...
रोणा - एक बेचारा लड़का... एक्जाम में कपि सप्लाई करते पकड़ा गया था... उसकी फ्यूचर की बात थी... इसलिए रात भर उसकी माँ से ज़मानत ले रहा था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो ज़मानत ले ली...
रोणा - तुमने मेरी राजगड़ पोस्टिंग की लेटर ले ली...
बल्लभ - (जेब से एक खाकी रंग का लिफाफा निकाल कर देते हुए) यह ले.. अच्छा.. क्या मैं भी देख लूँ... उसकी ज़मानत में क्या बाकी रह गया...
रोणा - प्रधान बाबु... यह बात तुम को पहले बताना चाहिए था... मैंने उसे पीछे के रास्ते से भेज दिया...
बल्लभ - चल कोई बात नहीं... जब तकदीर हो गांडु... क्या करेगा पाण्डु...
रोणा - पर यहाँ पाण्डु नहीं है... प्रधान है...

बल्लभ मुहँ बना कर रोणा को देखता है, रोणा उसे मुस्कराते हुए देखता है फिर दोनों हँसने लगते हैं

रोणा - चलो... प्रधान बाबु... चार्ज हैंड ओवर कर के... चलते हैं राजगड़... (रिसेप्शन में बैठा आदमी से) चलता हूँ... हिसाब सब खाते से मिटा देना... और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना...

कह कर रोणा बल्लभ को खिंचते हुए लॉज के बाहर ले जाता है l

रिसेप्शनीस्ट - कीड़े पड़ेंगे... साले... हरामजादे... तुझ पर कीड़े पड़ेंगे...

बाहर रोणा के जीप में दोनों बैठ जाते हैं और रोणा गाड़ी को दौड़ा देता है l

बल्लभ - बहुत नाम और रुतबा कमाया है यहाँ... आसानी से मालुम हो गया... थानेदार साहब कहाँ मिल सकते हैं...
रोणा - सब.... राजा साहब की महिमा है...
बल्लभ - एक बात कहूँ... जब इस जगह तु एक राजा की तरह रहता था... जिसे चाहे अपने नीचे ले आता है... फिर राजगड़ क्यूँ... क्यूँ जाना चाहता है...
रोणा - प्रधान बाबु... तुम्हें.... विश्व याद है... या भुला दिया है...
बल्लभ - हाँ... क्यूँ नहीं... उसीके वजह से तो पहली बार... हमें अपनी मांद से निकलना पड़ा... एक कस्बे का केस... पूरे राज्य का हो गया...
रोणा - कब रिहा हुआ मालुम है...
बल्लभ - क्या... विश्व रिहा हो गया...
रोणा - दो दिन पहले... आज तीसरा दिन है...
बल्लभ - व्हाट... इसका मतलब.. तु... विश्व की खबर रख रहा था...
रोणा - नहीं... मुझे बस उसकी रिहाई की... वह तारीख याद था... मैं जब खबर लेने पहुँचा... तब मालुम हुआ... की वह छूट कर जा चुका है...
बल्लभ - लगता है.... अगर दिख जाता... तो सारा खुन्नस निकाल कर ही मानता...
रोणा - हाँ.. मैं तो उसे तब मार देना चाहता था... पर... राजा साहब ने मुझे रोक दिया था... अब मैं राजगड़ अपनी खुन्नस उतारने जा रहा हूँ...
बल्लभ - ओ... तभी मैं सोचूँ.. यह राजा वाली जिंदगी को छोड़... तुझे गुलाम वाली जिंदगी की चुल क्यूँ मची है...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं, और चेहरा कठोर हो जाता है मगर कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
बल्लभ - सच कहूँ तो... राजगड़ से दूर तु... अच्छी जिंदगी जी रहा है... वहाँ पहुँच कर जी हुजूरी के सिवा... कर ही क्या सकता है...
रोणा - उसने गाँव वालों के सामने... मेरे जबड़े पर घुसा जड़ा था... कुछ देर के लिए ही सही... मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया था... गिर कर उठ नहीं पाया था... इसलिए... मैं उसे मरवा देना चाहता था... पर राजा साहब ने उसे जिंदा रखने के लिए कहा... मैं... मैं मन मसोस कर रह गया था... पर अब नहीं... अब नहीं... मैं राजगड़ में उसकी जिंदगी नर्क से भी बदत्तर बना दूँगा...
बल्लभ - क्या इसलिए.. अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया...
रोणा - हाँ... जितना कमाना था.. कमा लिया... अब सिर्फ विश्व से खुन्नस बाकी रह गया है... उसे पुरा करना है...
बल्लभ - उसे मार कर...
रोणा - नहीं... उसकी जिंदगी.. इतना भयानक कर दूँगा... के वह मौत की भीख मांगेगा... देख लेना...
बल्लभ - (भयानक होते हुए रोणा की चेहरे को देख रहा था) क.. कैसे... करोगे...
रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

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ESS ऑफिस
वीर के कैबिन में दरवाजे के तरफ पीठ कर अनु हाथ में एक कपड़े का टुकड़ा लेकर टेबल और कुर्सी को पोंछ रही है और साथ साथ एक गाना भी गुनगुना रही है l

"तेरे बिना... जिया जाए ना...
तेरे बिना... जिया जाए ना
बिन तेरे... तेरे बिन... ओ साजना"

पोछने के बाद फ्लावरबाश में सजे फ़ूलों को फिर से सजाने लगती है l फिर उन फूलों पर पानी स्प्रे करती है l फिर उसके बाद लैंडलाइन फोन को चेक करती है उसमें रिंग टोन सुनाई दे रही है या नहीं l ऐसे करते वक़्त उसे लगता है जैसे कोई उसे देख रहा है l वह अचानक गाना रोक कर उस तरफ देखने लगती है तो देखती है दरवाजे के पास विक्रम खड़ा हुआ है l विक्रम को देखते ही वह बहुत नर्वस हो जाती है चेहरा झुका लेती है फिर कुछ सोचते हुए विक्रम को सैल्यूट कर सलामी देती है l

विक्रम - क्या नाम है तुम्हारा...
अनु - जी... वह..
विक्रम - यह कैसा नाम है..
अनु - जी... अनु... अनु.. है मेरा नाम...
विक्रम - सिर्फ़ अनु... कोई सर नेम नहीं है क्या...
अनु - जी है.. है ना...
विक्रम - क्या है...
अनु - जी... बारीक...
विक्रम - अब पुरा नाम कहो...
अनु - जी... अनुसूया बारीक...
विक्रम - अगली बार जब पूछा जाए... तो पुरा नाम बताना...
अनु - जी... जी युवराज...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो...
अनु - जी... मैं सब ठीक है या नहीं... चेक कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... गाना भी गा रही थी...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - (चलते हुए आता है और वीर के चेयर पर बैठ जाता है ) वैसे तुम यहाँ कैसे आई...
अनु - (हैरान हो कर) जी... मैं आज ऑटो से...
विक्रम - मतलब... तुम्हारा इंटरव्यू कब हुआ... किसने ली... और यहाँ किस पोस्ट पर हो...
अनु - जी... एक बार हमारे बस्ती में... छोटे राजा जी आए थे... सबकी खैरियत पुछ रहे थे... उस दिन मेरी दादी ने मेरे लिए कुछ काम मांगा तो... छोटे राजा जी ने हमे उनके ऑफिस आने के लिए कहा था.. उनके ऑफिस में राजकुमार जी से मुलाकात हुई... तो उन्होंने हमे तुरंत नौकरी पर रख लिया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - मैंने पुछा कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - जी म.. म.. मैट्रिक... तक...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और यहाँ कौनसी पोस्ट पर हो...
अनु - जी... राजकुमार जी की.. पर्सनल सेक्रेटरी... कम असिस्टेंट...
विक्रम - क्या इसलिए... तुम राजकुमार जी की गैर हाजिरी में... उनके कमरे में घुसी रहती हो...
अनु - जी नहीं... ऐसी बात नहीं है... राजकुमार जी ने खुद कहा है कि... वह जब कमरे में आयें... उन्हें सब कुछ सही दिखना और मिलना चाहिए...
विक्रम - अच्छा... राजकुमार जी ने ऐसा कहा है तुमसे...
अनु - (अपना सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाती है)
विक्रम - और क्या क्या कहा है... राज कुमार जी ने...
अनु - जी जब भी वह कैबिन में हों... कॉफी उन्हें तैयार मिलना चाहिए... और उनके सारे कॉल पहले मैं अटेंड करूँ... चाहे मोबाइल हो या लैड लाइन... और डायरी में सब नोट करूँ... आख़िर में उन्हें सब बताऊँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
अनु - जी.. जी नहीं...
विक्रम - तुम्हें... उसके साथ कैसा लगता है...
अनु - (चौंक कर) जी... जी मैं समझी नहीं...
विक्रम - कभी डर नहीं लगता...
अनु - किससे...
विक्रम - राजकुमार से...
अनु - जी... उन्होंने कभी डराया ही नहीं...
विक्रम - तुम्हारे घर में कौन कौन हैं...
अनु - जी.. मेरा घर... मतलब...
विक्रम - मेरा मतलब है... घर में तुम्हारे साथ.. कौन कौन रहता है...
अनु - जी मेरे साथ कोई नहीं रहता... मैं अपनी दादी के साथ... दादी के पास रहती हूँ...
विक्रम - माँ बाप...
अनु - वह तो मेरे बचपन में ही चल बसे...
विक्रम - ओ... (उठते हुए) अच्छा राजकुमार जी आयें तो... उन्हें मेरे कैबिन में आने के लिए कह देना...
अनु - जी अच्छा...

विक्रम अनु को देखते हुए दरवाजे की ओर जाता है l दरवाजे की पास रुक जाता है और अनु की ओर मुड़कर

विक्रम - अनु... राजकुमार जी से... थोड़ी दूरी बना कर रहना... कोशिश करो... जितना बाहर बैठ सको तो बैठो... जब उन्हें जरूरत हो तभी उनके सामने जाओ...

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वीर की गाड़ी कॉलेज की पार्किंग में आती है l पहले रुप उतरती है उसके बाद दुसरी तरफ से वीर उतरता है l

रुप - अच्छा भैया... चलती हूँ...
वीर - ठीक है जा...
रुप - तुम क्लास नहीं करोगे...
वीर - देख सुधरा जरूर हूँ... मगर इतना भी नहीं... के क्लास में बैठ कर लेक्चर सुनूँ... तु जा... बस छुट्टी होने से पहले मुझे कॉल कर देना...
रुप - (हैरान हो कर) तो अभी.. तुम कहाँ जाओगे...
वीर - ऑफिस और कहाँ...
रुप - आर यु सीरियस...
वीर - क्यूँ... मैं तुझे सीरियस नहीं दिख रहा...
रुप - (कंफ्यूजन में, अपना सिर हिलाती तो है, पर हाँ में हिला रही है या ना में हिला रही है वीर यह समझ नहीं पाता)
वीर - यह सिर क्या इधर उधर हिला रही है... बोल हाँ या ना..
रुप - (ना में सिर हिलाते हुए) हाँ.. हाँ..
वीर - समझ गया... मैं समझ गया... तु जा अपनी क्लास कर.. मैं जाकर अपना ड्यूटी बजाता हूँ...

कह कर वीर गाड़ी घुमा कर चला जाता है, रुप भी मुड़ कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है l देखती है लड़के उसे देखते ही दुम दबा कर भाग रहे हैं l वह कैन्टीन में पहुँचती है, सीधे जा कर अपनी ग्रुप के पास बैठ जाती है l वहाँ पर भी जितने भी लड़के थे, सबके सब कन्नी काट कर निकल जाते हैं l

रुप - यह क्या हो रहा है... सारे लड़के मुझे देख कर यूँ भाग क्यूँ रहे हैं....
दीप्ति - वेरी... सिंपल... लड़के जो भी तेरे लिए चोरी चोरी अरमान पाले बैठे थे...
तब्बसुम - सिर्फ बहन कहने पर जब रॉकी की सिर फुट सकती है... तो गलती से भी तेरे वीर भैया को मालुम हुआ...
इतिश्री - के कोई कम्बख्त तेरे लिए ख्वाब सजाये हैं...
भाश्वती - तो कहीं उसकी अर्थी ना सज जाए...

सभी लड़कियाँ एक दुसरे से हाइफाइ करते हुए हँसने लगती हैं l

तब्बसुम - वैसे.. एक बात बता... तुझे क्या पसंद है... पहले इश्क़ फिर शादी या... पहले शादी फिर इश्क़...
रुप - (एक भाव हीन मुस्कान के साथ) अपनी किस्मत में... यह कॉलेज वाला इश्क़ नहीं लिखा है... अपनी तो पहले शादी तय हुई... फिर हम कॉलेज में आए...
भाश्वती - ओ... मतलब तेरी... अंगेजमेंट हो गई है...
रुप - नहीं... फिक्स हो गई है... दसपल्ला राज घराने में... और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह है कि... उनके परिवार में... मुझे किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं पता..
सब - (एक साथ) व्हाट...
इतिश्री - यह कैसे...
दीप्ति - क्यूँ इस में अचरज क्या है... इस बात की क्या ग्यारंटी है कि हम जिससे नैन मटक्का करें... कल को हम उसी से ही शादी करें...
भाश्वती - बट शी इज़ फ्रोम रॉयल फॅमिली ना...
दीप्ति - सो व्हाट... सारे मैटर एक ही जगह पर ठहरती है... किसकी फॅमिली कितनी और किस हद तक कंजरवेटिव है...

कर्र्र्र्र्र्र्र्र

क्लास की बेल बजती है सभी अपनी जगह से उठ कर क्लास की ओर जाने लगते हैं, सिवाय रुप के

रुप - बनानी... (सभी रुक जाती हैं ) बस बनानी... जरा रुकना... तेरे पास कुछ काम है...

बाकी सभी लड़कियाँ चली जाती हैं बनानी वापस अपनी जगह बैठ जाती है l

रुप - क्या हुआ... आज पुरी डिस्कशन में... तु ख़ामोश रही... जब से आई हूँ... देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी हो... क्या बात है...
बनानी - (थोड़ी ऑकवर्ड फिल करते हुए) नहीं.. कुछ नहीं...
रुप - (उसके हाथ पकड़ कर) मुझसे भी नहीं बताएगी...
बनानी - मैं क्या करूं.. कुछ समझ में नहीं आ रहा है...
रुप - मतलब...
बनानी - आज बस स्टॉप में वह मिला..
रुप - कौन... एक.. एक मिनट... रॉकी...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - क्या हुआ...

फ्लैशबैक

बस स्टॉप

बनानी कॉलेज जाने के लिए बस का इंतजार कर रही है l तभी बाइक से रॉकी वहाँ पहुँचता है और बाइक एक साइड में लगा कर वहाँ खड़ा हो जाता है l बनानी थोड़ी अंकंफर्टेबल हो जाती है l फिर भी खुद को सम्भाल लेती है l थोड़ी देर बाद बस आती है, वहाँ पर मौजूद सभी लोग बस चढ़ने लगते हैं l बनानी भी जाने लगती है

रॉकी - बनानी... (बनानी पीछे मुड़ कर देखती है) क... क्या... दो मिनट.. दो मिनट के लिए रुक सकती हो.. प्लीज...
बनानी - क्यूँ..
रॉकी - सिर्फ़ दो मिनट... अगली बस से चली जाना... प्लीज...

बनानी रुक जाती है और बस चली जाती है l

रॉकी - थैंक्यू...
बनानी - जो भी कहना है जल्दी कहो... मुझे जाना है...
रॉकी - मैं सबसे पहले माफी माँगता हूँ... जो हुआ... जो भी हुआ... उन सबके लिए...
बनानी - ठीक है... और...
रॉकी - और... यह मेरा लास्ट ईयर है... उसके बाद मुझे पापा का बिजनैस संभालना है...
बनानी - अच्छी बात है... कंग्रेचुलेशन...
रॉकी - क्या मैं.. अगर तुम हाँ कहो तो... मैं अपनी मम्मी और पापा को लेकर तुम्हारे घर...
बनानी - किस लिए...
रॉकी - वह... मतलब.. श्.. श.. शादी...
बनानी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रॉकी - क्यूँ नहीं.. आख़िर प्यार करती हो.... तुम मुझसे...
बनानी - प्यार... कैसा प्यार... वह एक भ्रम था... टुट गया...
रॉकी - मैंने ऐसा क्या कर दिया है...
बनानी - क्या... कर दिया है... अपने बदले के लिए... तुमने मेरी जान की बाजी लगा दी... और पूछते हो क्या कर दिया है...
रॉकी - मैं... मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ... गलती सुधारना चाहता हूँ... प्लीज... सच्चे दिल से.... अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ...
बनानी - ओ... तुम यहाँ प्रायश्चित के लिए आए हो.. प्यार के लिए नहीं...
रॉकी - नहीं.. मेरा कहने का मतलब है कि... मैं भी तुम्हें चाहने लगा हूँ...
बनानी - तो.. तो क्या मैं खुश हो जाऊँ... नाचने लगूँ... झूमने गाने लगूँ....
रॉकी - प्लीज... एक मौका... दो.. प्लीज...
बनानी - जानते हो... तुम्हारी कमीना पन जानने के बावजूद.... नंदिनी ने तुम्हें क्यूँ छोड़ा था... वजह मैं थी... उसे मेरे अंदर की भावनाओं का कदर था... इसलिए जिस दिन... वह तुम्हें दिल से भाई मान कर गले लगा लेगी... उस दिन मैं... (तभी बस आने की हॉर्न बजती है) मेरी बस आ गई...
रॉकी - (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
बनानी - रॉकी... तुम जितने नंदिनी के गुनहगार हो.. उतने मेरे भी... उसने माफ भी कर दिया है तुम्हें... पर जिस रिश्ते की ढोल बजाये हो... अगर उसे... वह स्वीकार हुआ... तब मैं भी अपनी दिल की ज़ज्बात को स्वीकार कर लुंगी... बस...

फ्लैशबैक खतम

रुप - तो क्या तु इस बात से डिस्टर्ब्ड थी...
बनानी - ह्म्म्म्म...
रुप - देख तुने जो फैसला किया है... वह तेरा अपना है... मैं सच कहती हूँ... अगर वह मेरा अपना भाई भी होता... तब भी मैं उसकी सिफारिश हरगिज ना करती...
बनानी - मैं... जानती हूँ...
रुप - यह सिफारिशी वाला जो प्यार होता है ना... सिर्फ़ जवानी में ही किया जाता है... इसलिए मैं इसे सच्चा प्यार नहीं मनाती...
बनानी - अच्छा... अभी अभी तुने कहा कि तेरी शादी तय हो चुकी है... फिर सच्चे प्यार के बारे में... कैसे जानती है...
रुप - जानती नहीं हूँ... पर... समझती जरूर हूँ...
बनानी - अच्छा...
रुप - हाँ... प्यार या तो बचपन का सच्चा होता है... या फिर बुढ़ापे का... जवानी में भटकाव ज्यादा होता है.. सच्चाई कम होती है... क्यूंकि बचपन का प्यार आसमान ढूंढ लेता है... और बुढ़ापे का प्यार कभी जमीन नहीं छोड़ती है... बस जवानी के प्यार के हिस्से में... ना आसमान होता है... ना जमीन...
बनानी - वाव.. पता नहीं... तेरी बातों में कितना सच्चाई है... पर मान लेने को दिल करता है...
रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...
बनानी - नंदनी... सच सच बता... जिस कंनफिडेंट के साथ यह कह रही है... कहीं बचपन में... तुने किसी को...
रुप - (अपनी शर्माहट को छुपाते हुए) चल चलते हैं... क्लास में...
बनानी - (रुप की शर्माहट पकड़ लेती है) नहीं गए तो क्या हो जाएगा... (छेड़ते हुए) चल बता ना... कौन था... कैसा था...
रुप - (गालों पर लाली छा जाती है) तु चलती है कि नहीं...
बनानी - नहीं... अब मुझे जाननी है.. तेरे बचपन के सच्चे वाले प्यार के बारे में...
रुप - देख मुझे परेशान मत कर... प्लीज... चलते हैं ना क्लास...
बनानी - देख या तो मुझे सब बताएगी... या मैं.. सब को बुला कर ढिंढोरा पीटुंगी...
रुप - अच्छा... बताऊंगी... तुझे जरूर बताऊंगी... प्लीज अभी क्लास चलते हैं...
बनानी - ठीक है... पर याद रखना... वरना... मैं क्या करुँगी...
रुप - (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मेरी माँ... अब क्लास तो करलें हम पहले...

बनानी हँसने लगती है फिर कैन्टीन से निकल कर दोनों क्लास की ओर चलने लगते हैं l


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ESS ऑफिस में वीर अपनी कार लेकर आता है, गाड़ी को गेट के पास रोक कर गाड़ी से उतर कर गार्ड के हाथ में चाबी देता है और झूमते हुए ऑफिस के अंदर जाता है l गार्ड से लेकर स्टाफ सभी हैरानी से वीर की ओर देखने लगते हैं l वीर ऐसे झूमते हुए अपनी कैबिन की ओर जा रहा है जैसे वह कोई गाना सुन रहा है l झूमते झूमते हुए वह अपनी कैबिन के पास पहुँचता है और दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है l अंदर पहुँच कर दोनों बाहें फैला कर एक गहरी सांस लेता है फिर एक नजर अपनी कैबिन में हर कोने पर डालता है l उसके बाद वह जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l ऐसे में करीब दस मिनट गुजर जाते हैं l वह हैरान हो जाता है क्यूँकी अब तक अनु को उसके सामने आ जाना चाहिए था l
"वह क्यूँ नहीं आई"
टेबल पर रखे इंटरकॉम से अनु के इंटरकॉम पर डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - क्या हुआ... तुम्हें अब तक मेरे सामने.. मेरे पास होना चाहिए था...
अनु - जी... आपको अभी... क्या चाहिए...
वीर - (हैरान हो कर) क्या चाहिए... क्या मतलब है क्या चाहिए...
अनु - जी.. मेरा मतलब है... चाय कॉफी...
वीर - यह क्या नाटक है अनु...
अनु - ठीक है... मैं कॉफी लेकर आती हूँ... (इंटरकॉम पर क्रेडेल रख देती है)

अनु के इस तरह से बात करने और जवाब देने से वीर हैरान हो जाता है l उसके जबड़े भींच जाती हैं और दांत कड़कड़ आवाज के साथ पीसने लगता है l तभी हाथ में कॉफी लेकर अनु अंदर आती है, और वीर को बढ़ाती है l वीर अनु की चेहरे को देख कर कॉफी लेता है और टेबल पर रख देता है l

वीर - क्या हुआ...
अनु - कुछ.. कुछ नहीं राजकुमार जी...
वीर - मैंने पुछा... क्या... हुआ...
अनु - जी यह ऑफिस है... मेरी टेबल आपके कैबिन के बाहर है... मुझे सिर्फ तभी आना चाहिए... जब आपको कुछ चीजों की जरूरत हो...
वीर - (अपनी चेयर पर सीधा होकर बैठ जाता है) किसने कहा...
अनु - जी.. वह.. व ह ...
वीर - और जब मुझे खुशी में या दुख में... किसी दोस्त की जरूरत होगी... तब...
अनु - (अपनी वैनिटी बैग से दो स्माइली बॉल निकाल कर वीर को देती है)
वीर - (वह दो बॉल अनु के हाथ से लेता है और डस्टबीन में फेंक देता है) मैंने तुमसे वादा लिया था... और तुमने मुझे वादा भी किया था... मैं जब भी ज्यादा खुश हो जाऊँ... या ज्यादा दुखी हो जाऊँ... तुम मुझे गले से लगा लोगी...
अनु - (अपना सिर झुका लेती है और वीर नजरें मिलाने से कतराती है)
वीर - कौन आया था यहाँ...
अनु - जी... वह...
वीर - तुम्हें मैंने अपनी टर्म्स एंड कंडीशन पर नौकरी पर रखा है... यहाँ... इस कैबिन में.. मेरी शर्तें लागू हैं... तुम... मेरी पर्सनल सेक्रेटरी और असिस्टेंट हो... इसलिए अब बताओ... कौन आया था यहाँ...
अनु - (फिर भी चुप रहती है)
वीर - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) अनु..
अनु - (चौंक जाती है)
वीर - (अनु के बाहें पकड़ कर) अनु... तुम मेरी... सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त हो... यह... हमारी दोस्ती के बीच कौन आ गया अनु... प्लीज... कहो.. कौन है वह...
अनु - एक... एक शर्त पर...
वीर - मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजुर है...
अनु - आप उनसे झगड़ा नहीं करेंगे... बल्कि उनकी बातेँ मानेंगे...
वीर - मंजुर है...
अनु - आपसे युवराज जी मिलना चाहते थे... मुझे आपके कमरे में देख कर... बस इतना ही कहा... की पीएस का काम खयाल रखना है... पर तभी जब जरूरत हो... तभी... हर वक़्त कैबिन के अंदर होना जरूरी नहीं है....
वीर - ओ.. मैं.. मैं.. समझ गया... उन्होंने मुझे बुलाया है ना...
अनु - जी...
वीर - मैं... मैं उनसे अभी... मिलकर आता हूँ...
अनु - आपको हमारी दोस्ती का वास्ता... आप चिल्लाएंगे नहीं...
वीर - अपने दोस्त पर ना सही... क्या तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा नहीं...
अनु - है... खुद से ज्यादा... अपनी जान से ज्यादा...
वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है सीधे जा कर विक्रम के कैबिन में पहुँचता है l विक्रम के साथ वहाँ पर महांती भी बैठा हुआ मिलता है l

वीर - (खुद को काबु करते हुए) आप... आपने मुझे बुलाया...
विक्रम - हाँ राज कुमार... पर लगता है... मेरे बुलाने से... आप खुश नहीं हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... कहिए... क्या काम था...
विक्रम - क्या वगैर काम के... आप यहाँ नहीं आते...
वीर - नहीं... नहीं आता... क्यूंकि वगैर काम के... आपको कभी मेरी जरूरत पड़ी हो... ऐसा मुझे याद नहीं...
विक्रम - अगर आपके और मेरे बीच काम का रिश्ता है... तो आपके और आपके पीएस के बीच कौनसा रिश्ता है...
वीर - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भींच जाती हैं) वह मेरी पीएस कम असिस्टेंट है... बाय प्रोफेशन... और इकलौती दोस्त है... बाय डेस्टिनी...
विक्रम - कुछ देर से.. आप हम के वजाए मैं कह रहे हैं... क्या मैं सही सुन रहा हूँ...
वीर - जी...
विक्रम - क्यूँ...
वीर - हम दोनों की अपनी अपनी वजह है...
विक्रम - मैंने अपनी वजह आपसे छुपाया नहीं है...
वीर - और अभीतक मैंने अपनी वजह बताय नहीं है...
विक्रम - तो अभी बता दीजिए...
वीर - (एक गहरी सांस लेते हुए) मुझसे यह झूठे नक़ाब ढोया नहीं गया... जो रिश्ते नातों को किसी अहं के नीचे दबोच दे... खतम कर दे... इसलिए मैंने उस हम को ढोना छोड़ दिया... भैया...
विक्रम - (चौंक जाता है) क्या... क्या कहा आपने...
वीर - भैया... आप बार बार मुझे... आप ना कहें... तु कह सकते हैं... जैसे माँ कहती है... या फिर तुम... जैसे भाभी या रुप कहती है...
विक्रम - (आँखे चौड़ी हो जाती है) क्या... यह.. यह सब कब हुआ...
वीर - परसों... रुप के जन्मदिन पर...
विक्रम - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
वीर - अगर बातेँ हो गई... तो मैं जाऊँ...
विक्रम - हँ... हाँ... नहीं रुको एक मिनट... क्या इन सबके पीछे... आपकी वह पीएस है...
वीर - नहीं... वह मेरी दोस्त है... पुरी दुनिया में... मेरी इकलौती दोस्त है...
विक्रम - आपको दुनिया में... कोई और मिली नहीं... रंग... उसका फीका... बहुत ही आम सी दिखने वाली... वह... एक मामुली लड़की...
वीर - (अपनी उंगली विक्रम की ओर दिखाते हुए) बस... बस भैया... बस... वह मेरी दोस्त है... उसकी मान सम्मान... मेरी मान सम्मान... (विक्रम की आँखे फटी की फटी रह जाती है और वह खड़ा हो जाता है, उसे खड़ा होता देख महांती भी अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) अगर कोई काम हो... तो सीधे मुझे फोन कर बुला सकते हैं.... हाजिर हो जाऊँगा... चलता हूँ...

वीर इतना कह कर वहाँ से निकल जाता है l उसके जाने के बाद भी विक्रम हैरानी से दरवाजे की ओर देखता रह जाता है l

महांती - युवराज...
विक्रम - हँ...(होश में आते हुए) हाँ...... महांती... कुछ कहा तुमने...
महांती - राजकुमार चले गए...
विक्रम - यह... अभी जो हुआ... मतलब जो हुआ... वह क्या था... महांती...
महांती - (थोड़ा खरास लेते हुए) अहेम.. अहेम... राजकुमार जी को...
विक्रम - हाँ... राजकुमार जी को...
महांती - राजकुमार जी को... प्यार हो गया है...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती को देखता है)
महांती - हाँ... युवराज... यह प्यार ही है... जिसे राजकुमार दोस्ती कह रहे हैं...
विक्रम - कैसे... महांती... कैसे... एक.... मामुली सी लड़की से...
महांती - हमारे यहाँ लोकल में एक बात खूब बोली जाती है...
"भुख ना देखे बासी भात"
"प्यार ना देखे ऊँच नीच जात पात"
विक्रम - वह लड़की...
महांती - बहुत ही अच्छी लड़की है... मैंने पता किया है.... बहुत ही शरीफ... मासूम और भोली.... या यूं कहूँ कि... राजकुमार जी के चरित्र की पुरी उल्टी है... लड़की पुरब है तो राजकुमार जी पश्चिम हैं...
विक्रम - वह लड़की अच्छी है... मैं जानता हूँ...
महांती - क्या... कैसे...
विक्रम - (अपनी कान से माइक निकाल कर डस्टबीन में फेंकता है) मैंने कुछ देर पहले... राजकुमार जी के कैबिन में बग फिट कर आया था...
महांती - (सवालिया नजरों से देखता है)
विक्रम - अभी अभी उनके बीच हुए सारी बातेँ... मैंने सुनी है...
महांती - (हाँ मे अपना सिर हिलाता है)
विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...


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एक जीप यशपुर के रास्ते राजगड़ की ओर तेजी से भाग रही है l ड्राइविंग सीट पर रोणा हाथ में सिगरेट की धुआँ उड़ाते हुए स्टीयरिंग मोड़ रहा है और बगल में बल्लभ संभल कर बैठने की कोशिश कर रहा है l

बल्लभ - अबे संभाल... संभल कर... किस बात की जल्दी है तुझे... कोई टांग खोलके तेरा इंतजार कर रहा है क्या...
रोणा - नहीं... पर मुझे विश्व से मिलने की जल्दी है...
बल्लभ - अगर राजगड़ आया होगा... तो वह गांव में ही होगा... पर तुझे शायद मालुम ना हो... राजा साहब ने सात साल पहले ही... उसका गांव में हुक्का पानी बंद कर रखा है... गांव में तो घुसने से रहा...
रोणा - अगर वह नहीं मिला... तो उसकी बहन तो होगी... मैं उससे ज़मानत वसूल कर लूँगा...
बल्लभ - जैसे कल... उस औरत से वसूल रहा था...
रोणा - (शैतानी हँसी के साथ) हाँ... बिल्कुल वैसे ही...
बल्लभ - यह गलती से भी मत सोचना...
रोणा - क्यूँ...
बल्लभ - तुझे क्या.. तु सस्पेंड हो कर हेड क्वार्टर में छह महीने तक हाजिरी लगाता रहा... और छह महीने बाद... जहां पोस्टिंग मिला चला गया... कोर्ट के विश्व को सज़ा सुनाने के बाद... राजा साहब अपनी गाड़ी से वैदेही को बिठा कर बीच चौराहे में... उसे ले जाकर सात थप्पड़ मारे थे... वैदेही के बेहोश होने तक... उसके बाद उसे वहीँ छोड़ दिया... और अपने आदमियों से विश्व के वापस आने तक... वैदेही से दुर रहने का फरमान सुनाया....
रोणा - पर... अब तो विश्व छूट गया ना...
बल्लभ - हाँ... पर राजगड़ में राजा साहब की मिल्कियत से प्रसाद... उनके झूठन करने के बाद मिलता है... जानते हो ना...
रोणा - ह्म्म्म्म... पर मैं... टॉर्चर तो कर ही सकता हूँ... वरना सुकून कैसे मिलेगा...

इतने में थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे उन्हें गांव के दो आदमी दिखते हैं l उनमें से एक आकर रास्ते के बीच खड़ा हो जाता है और गाड़ी को रोकने की कोशिश करता है l एक आदमी के चेहरे पर बैंडेज बंधा हुआ है l उन्हें देख कर बल्लभ गाड़ी रुकवाता है l उनमें से किसी एक से

बल्लभ - अरे नरी... क्या हुआ तुझे... (रोणा से) यह राजा साहब के लोग हैं...
नरी - वह... मैं... गिर गया था...
बल्लभ - सच बोल...
नरी के साथ वाला - नहीं वकील साहब.. वैदेही ने इसके चेहरे पर.. दरांती चला दिया....
रोणा - क्या.. तो पुलिस में कंप्लेंट कर देते...
बल्लभ - कैसे करते यह कम्बख्त... इन्होंने ही छेड़ा होगा उसे... क्यूँ समरा... ठीक कह रहा हूँ ना... (वह दोनों अपना चेहरा झुका लेते हैं) अरे घबराओ नहीँ... यह(रोणा को दिखा कर) आज से राजगड़ थाने के अधिकारी हैं... बड़े पुराने साहब हैं.. राजा साहब ने खास तुम लोगों के लिए बुलाया है... इसलिए इन्हें सब सच सच बता दो...
वह दोनों - सलाम साहब...
रोणा - सलाम... कहो... वैदेही ने तुम पर क्यूँ हमला किया... सच बोलोगे... तो सब संभाल लुंगा...

वे दोनों पहले एक दुसरे को देखते हैं फिर बल्लभ की ओर देखते हैं l

बल्लभ - अरे बिंदास बोलो... इन साहब का भी वैदेही से... काम है.. घबराओ मत... बेझिझक खुल कर बोल दो...

समरा - साहब मैं बताता हूँ... यह नरी है... इसकी आँख बहुत दिनों से कीर्तनीया की बेटी मल्ली पर थी... इसलिए कीर्तनीया को पीने के लिए हमेशा पैसे देता था... पिछले महीने से अपना पैसा वापस मांग रहा था... कीर्तनीया के पास थे नहीं... इसलिए बच रहा था... आज सुबह यह ज़बरदस्ती कीर्तनीया के घर पहुँच गया... वहाँ जा कर अपने पैसों के लिए हंगामा खड़ा कर दिया... कीर्तनीया बहुत बिनती किया... हाथ जोड़े... और पैसे वापस देने के लिए तीन महीने की मोहलत मांगा... तो इसने एक शर्त रख दी...
रोणा - कैसी शर्त...
समरा - तीन महीने के लिए... इसके घर में मल्ली काम करने के लिए जाती...
रोणा - ओ... अच्छा... तो इसमें... वैदेही कहाँ से आ गई...
समरा - जैसे ही इसने अपना शर्त रखा... कीर्तनीया की बीवी कमली ने मल्ली को वैदेही के पास भगा दिया...


फ्लैशबैक

मल्ली भागते हुए वैदेही के दुकान पर पहुँचती है l मल्ली वैदेही को सारी बात बताती है l तभी उसके पीछे पीछे भागते हुए नरी वहाँ पहुँचता है l

वैदेही - बस... नरी बस... इस दुकान के अंदर मत आना... वह तुम्हारा हद है... लांघने की कोशिश भी ना करना... वरना... तुम्हें पचताने से कोई नहीं रोक पाएगा...
नरी - ओ... अच्छा... देखो तो.. कौन बोल रही है... रंग महल की रंडी साली...
वैदेही - फिर भी... तेरी औकात नहीं है... मल्ली को यहाँ से ले जाने की...
नरी - अच्छा... कौन रोकेगा मुझे... तु... (वहाँ पर कुछ छोटे बच्चे और कुछ औरतें खड़े थे उन्हें दिखा कर) या यह... तेरी फौजें... हा हा हा...
वैदेही - यह जब लड़ने पर आयेंगे... तब तुझ जैसों को छुपने के लिए सारा ब्रह्मांड कम पड़ जाएगा... पर कोई नहीं... तेरी औकात... तेरी हैसियत इतनी भी नहीं... की मेरे होते हुए... इसे हाथ भी लगा दे...
नरी - उई माँ... मैं तो डर गया.... रंग महल की इस रांड ने मुझे डरा दिया... (मल्ली से) एई लड़की... प्यार से मेरे साथ चल... वरना... तुझे बालों से खींचते हुए ले जाऊँगा....

मल्ली वैदेही के पीछे खड़ी हो जाती है l नरी बेपरवाह आगे बढ़ने लगता है l जैसे ही वैदेही के पास पहुँचता है वैदेही की एक जोरदार लात नरी के बीच टांगों में पड़ती है l नरी एक फुट ऊपर उछल कर अपने घुटने के बल गिरता है l मुहँ से गँ गँ की आवाज निकलने लगती है l चोट लगी जगह को दोनों हाथों से ढक कर पीड़ा भरी आँखों से वैदेही की तरफ देखने लगता है l ऐसा लगता है दर्द से उसकी आँखे उबल कर बाहर आ जाएंगी l फिर धीरे धीरे नरी की आँखे गुस्से से जलने लगती है वह उठ कर जल्दी से वैदेही पर झपट्टा मारता है l पर इस बार भी उससे देर हो जाती है l ना जाने कहाँ से वैदेही दरांती निकालती है और उतनी ही फुर्ती से चला देती है l इस बार नरी अपना चेहरा पकड़ कर नीचे गिर जाता है और छटपटाने लगता है l

नरी - आ... आ..ह.. साली कुत्तीआ... रंडी... आ...ह... आ.. आ.. ह..
वैदेही - कहा था ना... मेरे होते हुए... नहीं... रांड की लात झेल नहीं पाया... अब किसीको मुहँ भी दिखाने के लायक नहीं रहा.... और सुन... राजगड़ की हर घर की इज़्ज़त मेरी जान है... आँखे उठा कर कोई भी देखा... तो कसम खा कर कहती हूँ... उसकी गर्दन उड़ा दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

समरा - एक चीरा... बाईं आँख के ऊपर से होकर... नाक को चीरते हुए... दाएं गाल तक... पंद्रह स्टिच लगे हैं...
बल्लभ - ठीक है बैठ जाओ... हम राजगड़ ही जा रहे हैं...

वे दोनों जीप के पीछे बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद बल्लभ रोणा से

बल्लभ - देखा... वैदेही अब कितनी खतरनाक हो गई है... अब तो उसका भाई भी वापस आ गया होगा...
रोणा - तो क्या हुआ... क्या उखाड़ लेगा... आने दो उस हरामजादे को... दोनों भाई बहन की जिंदगी नर्क बना कर रख दूँगा...
समरा - क्या... उसका भाई विश्व आने वाला है...
बल्लभ - आने वाला है... वह तो तीन दिन पहले पहुँच गया होगा...
नरी - नहीं वकील साहब... विश्व आया होता तो हमें पता चल गया होता... अभी तक तो विश्व आया नहीं है...
बल्लभ - (रोणा से) ऐ रोणा... तु तो कह रहा था... वह तीन दिन पहले... छुट गया है...
रोणा - तुमको क्या लगता है प्रधान बाबु... मैंने झूठ कहा है... अगर विश्व गांव नहीं गया है... तो जरूर कहीं भाग गया है...
बल्लभ - हाँ... यह हो सकता है... भाग गया होगा... भागता नहीं.... तो करता क्या...

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शाम का समय
प्रतिभा के नए घर में l ड्रॉइंग रुम में जोडार एक सोफ़े पर बैठा हुआ है उसके सामने प्रतिभा कमरे के एक कोने से दुसरे कोने तक, जा रही है फिर वापस आ रही है l बीच बीच में वह घड़ी देख रही है l

जोडार - मिसेज सेनापति... प्लीज... आप परेशान ना हो... वह आ जाएंगे...
प्रतिभा - फोन पर बताया था... छह बजे तक पहुँच जाएंगे...
- तो छह बजा ही कहाँ है... (अंदर आते हुए तापस) घड़ी देख लो... अभी भी पांच मिनट बचे हैं... छह बजने के लिए...

तापस के पीछे पीछे विश्व कुछ कागजात हाथों में लिए विश्व अंदर आता है l

प्रतिभा - ठीक है.. ठीक है... पर फिर भी... इतना देर...
विश्व - माँ... ट्रैफिक... जानती हो ना... वह तो डैड आपसे डरते हैं... इसलिए इतनी जल्दी गाड़ी उड़ा कर लाए... वरना मैं तो सोच रहा था... आठ बज जाएंगे...
प्रतिभा - तु चुप रह... डैड का चमचा... (तापस से) आपको गाड़ी चलाना था... उड़ाना नहीं था...
तापस - (दोनों हाथ जोड़ कर) गलती हो गई भाग्यवान... आइंदा से खयाल रखूँगा...

प्रतिभा अपना मुहँ बना कर आँखे सिकुड़ कर देखने लगती है l उन दोनों के बीच की नोक झोंक को जोडार एंजॉय कर रहा था l

विश्व - ओके ओके... इस पर हम... जोडार साहब के जाने के बाद भी बात कर सकते हैं...
तापस - हाँ भाग्यवान... हमें सबसे पहले जोडार साहब को भगाना है...(जोडार से) प्लीज डोंट माइंड... उसके बाद हम पेट भरने तक लड़ सकते हैं...
जोडार - कमाल करते हो... सेनापति सर... मैं तो यहाँ से डिनर करके जाना चाहता था...
तापस - ओ... ऐसी बात थी... कोई बात नहीं... हम कल झगड़ लेंगे... क्यूँ भाग्यवान...

प्रतिभा का तमतमाता चेहरा देख कर तापस सकपका जाता है और चुपचाप एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

प्रतिभा - (अपनी दांत चबाते हुए) (और तापस की देख कर) तो प्रताप... तुझे सबूत मिल गए...
विश्व - हाँ माँ... मिले भी और हमने हासिल भी कर लिया है... (सोफ़े पर तापस के बगल में बैठते हुए) यह रहे... (कागजात दिखाते हुए) इन्हें हासिल करने में थोड़ा वक़्त लग गया....
प्रतिभा - यह कैसे कागजात हैं...
विश्व - वेट मशीन की रिपोर्ट.... यानी लोकल भाषा में... धर्म कांटा के रिपोर्ट...
जोडार - वेट मशीन की रिपोर्ट तो थी ना हमारे पास... फिर...
विश्व - जोडार साहब... आपका सामान कार्गो शिप से जब अनलोड हुई तब... वेट मशीन में चेक किया गया और सिंगापुर रिपोर्ट के साथ मैच किया गया... फिर गोदाम में सामान की कस्टम चेकिंग हुई... उसके बाद स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... अंतिम बार की वेट मशीन से चेक होने से पहले... सामान निकाल लिया गया... और आपके लिए खाली कंटेनर रिसीव करने के लिए छोड़ दिया गया...
जोडार - पर जो डेलीवेरी रिपोर्ट थी... वह सब एज पर रिसीवींग ही किया गया है...
विश्व - वह तेरह पन्ने की रिपोर्ट थी... जिसे इसलिए बनाया गया था... ताकि असली बात छुपाया जा सके...
जोडार - कौनसी बात...
विश्व - चलिए मैं आपको साजिश की पुरी कहानी डिटेल में बताता हूँ...
तो हुआ यूँ... कार्गो शिप से आपके चार कंटेनर उतारा जाता है, और वेट मशीन में वजन चेक कर के सिंगापुर रिपोर्ट से मैच किया गया... उसके बाद कस्टम चेकिंग के लिए गोदाम भेजा गया... वहाँ पर हर एक प्लाइवुड के वुडेन बॉक्स... और कार्ड बोर्ड बॉक्स खोल कर कस्टम क्लीयरेंस किया गया... क्लीयरेंस के बाद सभी कंटेनर को स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... जिसकी रख रखाव लीज पर एक प्राइवेट संस्था कर रही है... और यह बताने की कोई जरूरत नहीं... वह संस्था केके की है... और वहाँ पर सिक्युरिटी की इंतजाम ESS की है...
प्रतिभा - ओ... मतलब... इस साजिश में क्षेत्रपाल इस तरह से शामिल हुए हैं...
विश्व - कह नहीं सकते...
प्रतिभा - क्या मतलब कह नहीं सकते...
तापस - भाग्यवान ... तुम इतनी उतावली क्यूँ हो रही हो... पुरी कहानी तो सुन लो..
विश्व - तो चूंकि स्टॉक यार्ड की देख रेख एक निजी संस्था करती है... इसलिए उनकी ड्यूटी है... सामान बिल्कुल उसी तरह लौटाएँ... जैसा कस्टम अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया हो... और डेलीवेरी से पहले... अंतिम बार वेट मशीन की रिपोर्ट भी अटैच करे... पर... यहाँ थोड़ी सी चालाकी कि गयी...
जोडार - कस्टम अधिकारी के दिए रिपोर्ट के अनुरूप... उन्होंने सेम टू सेम रिपोर्ट बनाते बनाते... सिर्फ़ सेम प्लाइवुड वुडेन बॉक्स और सेम कार्ड बोर्ड बॉक्स की लोडिंग की बात लिखी गई... पर फिल्ड विथ द सेम मैटेरियल्स... यह नहीं लिखा... यही लाइन ठीक से समझ नहीं पाए थे... आपके पहले वाले वकील... और रिपोर्ट में फाइनल वेट मशीन रिपोर्ट अटैच भी नहीं किया गया... जिसको आपके वकील ने इग्नोर मारा था शायद... इसलिए... आपको कंटेनर तो मिले... वुडेन बॉक्स और कार्ड बोर्ड के साथ... मगर वगैर मैटेरियल्स के...
जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....
प्रतिभा - हाँ हाँ... हो जाएगा... कल दुपहर तक कोर्ट से ऑर्डर... मैं निकलवा लुंगी... परसों तक उन लोगों को नोटिस मिल जाएगा....
विश्व - बस... (जोडार से) आपका काम हो गया...

जोडार अपनी जगह से उठता है और विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l

जोडार - (विश्व के दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर) थैंक्यू... माय बॉय... थैंक्यू...
Jabardastt Updatee

Lagta hai ab Rona aur Ballab ki zindagi tabah hone wali hai. Woh samajte hai Vishwa aur Vaidehi ab bhi purane wale hi hai. Par unhe nhi pata ab woh dono yamdut se kam nhi. Dekhte hai Rona ka yeh over confidence uski kyaa halat karta hai.
 

Surya_021

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👉उनासीवां अपडेट
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मोबाइल की घंटी बजने पर रोणा की नींद टुटती है l नींद भरे आँखों को मुश्किल से खोल कर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है "प्रधान वकील" डिस्प्ले हो रहा है l

रोणा - हे.. हैलो..
बल्लभ - भोषड़ी के... मैं तेरा नौकर हूँ क्या बे... मुझसे अपनी पोस्टिंग की ऑर्डर रिसीव करने भेज कर... खुद रात भर किसकी चुत मार रहा था बे...
रोणा - अरे... प्रधान बाबु... गुस्सा क्यूँ कर रहे हो... वैसे हो कहाँ पर अभी...
बल्लभ - तु जिस लॉज में चुदाई का लुफ्त उठा रहा है... उसीके रिसेप्शन में तेरा इंतजार कर रहा हूँ...
रोणा - अरे... भाई एक मिनट... अभी तैयार हो कर नीचे आ रहा हूँ....

इतना कह कर रोणा फोन काट देता है और बिस्तर से नंगा उठ कर बाथरुम भागता है l अपना चेहरा धो कर वह जैसे ही बाहर आता है बिस्तर पर लेटी चादर में खुद को छुपाती एक औरत बोलती है

औरत - (बिनती करने के लहजे में) साब जी... आपने जैसा कहा... मैंने वैसा ही किया.. अब तो मेरे बेटे को छोड़ दीजिए... प्लीज...
रोणा - (उस औरत को बिस्तर से खिंच कर खड़ा करता है, और चादर खिंच कर फेंक देता है ) अरे... इतनी बढ़िया ज़मानत दी है तुने... तेरे बेटे को कैसे ना छोड़ुँ... (उस औरत को ऐसे चूमने लगता है जैसे खा रहा हो)
औरत - म्म्म्न... म्म्म्न.. आह...
रोणा - आह... क्या माल है... अभी भी.. मन नहीं भरा मेरा... (उसे छोड़ते हुए) जा... पीछे के रास्ते घर जा... अच्छे अच्छे पकवान बना... तेरा बेटा पहुँच जाएगा...

कह कर अपने कपड़े पहन लेता है और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर निकल कर सीधे रिसेप्शन में पहुँच जाता है l रिसेप्शन में बल्लभ को देख कर उससे गले मिल जाता है l

बल्लभ - रात भर क्या कर रहा था बे...
रोणा - एक बेचारा लड़का... एक्जाम में कपि सप्लाई करते पकड़ा गया था... उसकी फ्यूचर की बात थी... इसलिए रात भर उसकी माँ से ज़मानत ले रहा था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो ज़मानत ले ली...
रोणा - तुमने मेरी राजगड़ पोस्टिंग की लेटर ले ली...
बल्लभ - (जेब से एक खाकी रंग का लिफाफा निकाल कर देते हुए) यह ले.. अच्छा.. क्या मैं भी देख लूँ... उसकी ज़मानत में क्या बाकी रह गया...
रोणा - प्रधान बाबु... यह बात तुम को पहले बताना चाहिए था... मैंने उसे पीछे के रास्ते से भेज दिया...
बल्लभ - चल कोई बात नहीं... जब तकदीर हो गांडु... क्या करेगा पाण्डु...
रोणा - पर यहाँ पाण्डु नहीं है... प्रधान है...

बल्लभ मुहँ बना कर रोणा को देखता है, रोणा उसे मुस्कराते हुए देखता है फिर दोनों हँसने लगते हैं

रोणा - चलो... प्रधान बाबु... चार्ज हैंड ओवर कर के... चलते हैं राजगड़... (रिसेप्शन में बैठा आदमी से) चलता हूँ... हिसाब सब खाते से मिटा देना... और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना...

कह कर रोणा बल्लभ को खिंचते हुए लॉज के बाहर ले जाता है l

रिसेप्शनीस्ट - कीड़े पड़ेंगे... साले... हरामजादे... तुझ पर कीड़े पड़ेंगे...

बाहर रोणा के जीप में दोनों बैठ जाते हैं और रोणा गाड़ी को दौड़ा देता है l

बल्लभ - बहुत नाम और रुतबा कमाया है यहाँ... आसानी से मालुम हो गया... थानेदार साहब कहाँ मिल सकते हैं...
रोणा - सब.... राजा साहब की महिमा है...
बल्लभ - एक बात कहूँ... जब इस जगह तु एक राजा की तरह रहता था... जिसे चाहे अपने नीचे ले आता है... फिर राजगड़ क्यूँ... क्यूँ जाना चाहता है...
रोणा - प्रधान बाबु... तुम्हें.... विश्व याद है... या भुला दिया है...
बल्लभ - हाँ... क्यूँ नहीं... उसीके वजह से तो पहली बार... हमें अपनी मांद से निकलना पड़ा... एक कस्बे का केस... पूरे राज्य का हो गया...
रोणा - कब रिहा हुआ मालुम है...
बल्लभ - क्या... विश्व रिहा हो गया...
रोणा - दो दिन पहले... आज तीसरा दिन है...
बल्लभ - व्हाट... इसका मतलब.. तु... विश्व की खबर रख रहा था...
रोणा - नहीं... मुझे बस उसकी रिहाई की... वह तारीख याद था... मैं जब खबर लेने पहुँचा... तब मालुम हुआ... की वह छूट कर जा चुका है...
बल्लभ - लगता है.... अगर दिख जाता... तो सारा खुन्नस निकाल कर ही मानता...
रोणा - हाँ.. मैं तो उसे तब मार देना चाहता था... पर... राजा साहब ने मुझे रोक दिया था... अब मैं राजगड़ अपनी खुन्नस उतारने जा रहा हूँ...
बल्लभ - ओ... तभी मैं सोचूँ.. यह राजा वाली जिंदगी को छोड़... तुझे गुलाम वाली जिंदगी की चुल क्यूँ मची है...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं, और चेहरा कठोर हो जाता है मगर कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
बल्लभ - सच कहूँ तो... राजगड़ से दूर तु... अच्छी जिंदगी जी रहा है... वहाँ पहुँच कर जी हुजूरी के सिवा... कर ही क्या सकता है...
रोणा - उसने गाँव वालों के सामने... मेरे जबड़े पर घुसा जड़ा था... कुछ देर के लिए ही सही... मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया था... गिर कर उठ नहीं पाया था... इसलिए... मैं उसे मरवा देना चाहता था... पर राजा साहब ने उसे जिंदा रखने के लिए कहा... मैं... मैं मन मसोस कर रह गया था... पर अब नहीं... अब नहीं... मैं राजगड़ में उसकी जिंदगी नर्क से भी बदत्तर बना दूँगा...
बल्लभ - क्या इसलिए.. अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया...
रोणा - हाँ... जितना कमाना था.. कमा लिया... अब सिर्फ विश्व से खुन्नस बाकी रह गया है... उसे पुरा करना है...
बल्लभ - उसे मार कर...
रोणा - नहीं... उसकी जिंदगी.. इतना भयानक कर दूँगा... के वह मौत की भीख मांगेगा... देख लेना...
बल्लभ - (भयानक होते हुए रोणा की चेहरे को देख रहा था) क.. कैसे... करोगे...
रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

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ESS ऑफिस
वीर के कैबिन में दरवाजे के तरफ पीठ कर अनु हाथ में एक कपड़े का टुकड़ा लेकर टेबल और कुर्सी को पोंछ रही है और साथ साथ एक गाना भी गुनगुना रही है l

"तेरे बिना... जिया जाए ना...
तेरे बिना... जिया जाए ना
बिन तेरे... तेरे बिन... ओ साजना"

पोछने के बाद फ्लावरबाश में सजे फ़ूलों को फिर से सजाने लगती है l फिर उन फूलों पर पानी स्प्रे करती है l फिर उसके बाद लैंडलाइन फोन को चेक करती है उसमें रिंग टोन सुनाई दे रही है या नहीं l ऐसे करते वक़्त उसे लगता है जैसे कोई उसे देख रहा है l वह अचानक गाना रोक कर उस तरफ देखने लगती है तो देखती है दरवाजे के पास विक्रम खड़ा हुआ है l विक्रम को देखते ही वह बहुत नर्वस हो जाती है चेहरा झुका लेती है फिर कुछ सोचते हुए विक्रम को सैल्यूट कर सलामी देती है l

विक्रम - क्या नाम है तुम्हारा...
अनु - जी... वह..
विक्रम - यह कैसा नाम है..
अनु - जी... अनु... अनु.. है मेरा नाम...
विक्रम - सिर्फ़ अनु... कोई सर नेम नहीं है क्या...
अनु - जी है.. है ना...
विक्रम - क्या है...
अनु - जी... बारीक...
विक्रम - अब पुरा नाम कहो...
अनु - जी... अनुसूया बारीक...
विक्रम - अगली बार जब पूछा जाए... तो पुरा नाम बताना...
अनु - जी... जी युवराज...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो...
अनु - जी... मैं सब ठीक है या नहीं... चेक कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... गाना भी गा रही थी...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - (चलते हुए आता है और वीर के चेयर पर बैठ जाता है ) वैसे तुम यहाँ कैसे आई...
अनु - (हैरान हो कर) जी... मैं आज ऑटो से...
विक्रम - मतलब... तुम्हारा इंटरव्यू कब हुआ... किसने ली... और यहाँ किस पोस्ट पर हो...
अनु - जी... एक बार हमारे बस्ती में... छोटे राजा जी आए थे... सबकी खैरियत पुछ रहे थे... उस दिन मेरी दादी ने मेरे लिए कुछ काम मांगा तो... छोटे राजा जी ने हमे उनके ऑफिस आने के लिए कहा था.. उनके ऑफिस में राजकुमार जी से मुलाकात हुई... तो उन्होंने हमे तुरंत नौकरी पर रख लिया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - मैंने पुछा कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - जी म.. म.. मैट्रिक... तक...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और यहाँ कौनसी पोस्ट पर हो...
अनु - जी... राजकुमार जी की.. पर्सनल सेक्रेटरी... कम असिस्टेंट...
विक्रम - क्या इसलिए... तुम राजकुमार जी की गैर हाजिरी में... उनके कमरे में घुसी रहती हो...
अनु - जी नहीं... ऐसी बात नहीं है... राजकुमार जी ने खुद कहा है कि... वह जब कमरे में आयें... उन्हें सब कुछ सही दिखना और मिलना चाहिए...
विक्रम - अच्छा... राजकुमार जी ने ऐसा कहा है तुमसे...
अनु - (अपना सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाती है)
विक्रम - और क्या क्या कहा है... राज कुमार जी ने...
अनु - जी जब भी वह कैबिन में हों... कॉफी उन्हें तैयार मिलना चाहिए... और उनके सारे कॉल पहले मैं अटेंड करूँ... चाहे मोबाइल हो या लैड लाइन... और डायरी में सब नोट करूँ... आख़िर में उन्हें सब बताऊँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
अनु - जी.. जी नहीं...
विक्रम - तुम्हें... उसके साथ कैसा लगता है...
अनु - (चौंक कर) जी... जी मैं समझी नहीं...
विक्रम - कभी डर नहीं लगता...
अनु - किससे...
विक्रम - राजकुमार से...
अनु - जी... उन्होंने कभी डराया ही नहीं...
विक्रम - तुम्हारे घर में कौन कौन हैं...
अनु - जी.. मेरा घर... मतलब...
विक्रम - मेरा मतलब है... घर में तुम्हारे साथ.. कौन कौन रहता है...
अनु - जी मेरे साथ कोई नहीं रहता... मैं अपनी दादी के साथ... दादी के पास रहती हूँ...
विक्रम - माँ बाप...
अनु - वह तो मेरे बचपन में ही चल बसे...
विक्रम - ओ... (उठते हुए) अच्छा राजकुमार जी आयें तो... उन्हें मेरे कैबिन में आने के लिए कह देना...
अनु - जी अच्छा...

विक्रम अनु को देखते हुए दरवाजे की ओर जाता है l दरवाजे की पास रुक जाता है और अनु की ओर मुड़कर

विक्रम - अनु... राजकुमार जी से... थोड़ी दूरी बना कर रहना... कोशिश करो... जितना बाहर बैठ सको तो बैठो... जब उन्हें जरूरत हो तभी उनके सामने जाओ...

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वीर की गाड़ी कॉलेज की पार्किंग में आती है l पहले रुप उतरती है उसके बाद दुसरी तरफ से वीर उतरता है l

रुप - अच्छा भैया... चलती हूँ...
वीर - ठीक है जा...
रुप - तुम क्लास नहीं करोगे...
वीर - देख सुधरा जरूर हूँ... मगर इतना भी नहीं... के क्लास में बैठ कर लेक्चर सुनूँ... तु जा... बस छुट्टी होने से पहले मुझे कॉल कर देना...
रुप - (हैरान हो कर) तो अभी.. तुम कहाँ जाओगे...
वीर - ऑफिस और कहाँ...
रुप - आर यु सीरियस...
वीर - क्यूँ... मैं तुझे सीरियस नहीं दिख रहा...
रुप - (कंफ्यूजन में, अपना सिर हिलाती तो है, पर हाँ में हिला रही है या ना में हिला रही है वीर यह समझ नहीं पाता)
वीर - यह सिर क्या इधर उधर हिला रही है... बोल हाँ या ना..
रुप - (ना में सिर हिलाते हुए) हाँ.. हाँ..
वीर - समझ गया... मैं समझ गया... तु जा अपनी क्लास कर.. मैं जाकर अपना ड्यूटी बजाता हूँ...

कह कर वीर गाड़ी घुमा कर चला जाता है, रुप भी मुड़ कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है l देखती है लड़के उसे देखते ही दुम दबा कर भाग रहे हैं l वह कैन्टीन में पहुँचती है, सीधे जा कर अपनी ग्रुप के पास बैठ जाती है l वहाँ पर भी जितने भी लड़के थे, सबके सब कन्नी काट कर निकल जाते हैं l

रुप - यह क्या हो रहा है... सारे लड़के मुझे देख कर यूँ भाग क्यूँ रहे हैं....
दीप्ति - वेरी... सिंपल... लड़के जो भी तेरे लिए चोरी चोरी अरमान पाले बैठे थे...
तब्बसुम - सिर्फ बहन कहने पर जब रॉकी की सिर फुट सकती है... तो गलती से भी तेरे वीर भैया को मालुम हुआ...
इतिश्री - के कोई कम्बख्त तेरे लिए ख्वाब सजाये हैं...
भाश्वती - तो कहीं उसकी अर्थी ना सज जाए...

सभी लड़कियाँ एक दुसरे से हाइफाइ करते हुए हँसने लगती हैं l

तब्बसुम - वैसे.. एक बात बता... तुझे क्या पसंद है... पहले इश्क़ फिर शादी या... पहले शादी फिर इश्क़...
रुप - (एक भाव हीन मुस्कान के साथ) अपनी किस्मत में... यह कॉलेज वाला इश्क़ नहीं लिखा है... अपनी तो पहले शादी तय हुई... फिर हम कॉलेज में आए...
भाश्वती - ओ... मतलब तेरी... अंगेजमेंट हो गई है...
रुप - नहीं... फिक्स हो गई है... दसपल्ला राज घराने में... और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह है कि... उनके परिवार में... मुझे किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं पता..
सब - (एक साथ) व्हाट...
इतिश्री - यह कैसे...
दीप्ति - क्यूँ इस में अचरज क्या है... इस बात की क्या ग्यारंटी है कि हम जिससे नैन मटक्का करें... कल को हम उसी से ही शादी करें...
भाश्वती - बट शी इज़ फ्रोम रॉयल फॅमिली ना...
दीप्ति - सो व्हाट... सारे मैटर एक ही जगह पर ठहरती है... किसकी फॅमिली कितनी और किस हद तक कंजरवेटिव है...

कर्र्र्र्र्र्र्र्र

क्लास की बेल बजती है सभी अपनी जगह से उठ कर क्लास की ओर जाने लगते हैं, सिवाय रुप के

रुप - बनानी... (सभी रुक जाती हैं ) बस बनानी... जरा रुकना... तेरे पास कुछ काम है...

बाकी सभी लड़कियाँ चली जाती हैं बनानी वापस अपनी जगह बैठ जाती है l

रुप - क्या हुआ... आज पुरी डिस्कशन में... तु ख़ामोश रही... जब से आई हूँ... देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी हो... क्या बात है...
बनानी - (थोड़ी ऑकवर्ड फिल करते हुए) नहीं.. कुछ नहीं...
रुप - (उसके हाथ पकड़ कर) मुझसे भी नहीं बताएगी...
बनानी - मैं क्या करूं.. कुछ समझ में नहीं आ रहा है...
रुप - मतलब...
बनानी - आज बस स्टॉप में वह मिला..
रुप - कौन... एक.. एक मिनट... रॉकी...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - क्या हुआ...

फ्लैशबैक

बस स्टॉप

बनानी कॉलेज जाने के लिए बस का इंतजार कर रही है l तभी बाइक से रॉकी वहाँ पहुँचता है और बाइक एक साइड में लगा कर वहाँ खड़ा हो जाता है l बनानी थोड़ी अंकंफर्टेबल हो जाती है l फिर भी खुद को सम्भाल लेती है l थोड़ी देर बाद बस आती है, वहाँ पर मौजूद सभी लोग बस चढ़ने लगते हैं l बनानी भी जाने लगती है

रॉकी - बनानी... (बनानी पीछे मुड़ कर देखती है) क... क्या... दो मिनट.. दो मिनट के लिए रुक सकती हो.. प्लीज...
बनानी - क्यूँ..
रॉकी - सिर्फ़ दो मिनट... अगली बस से चली जाना... प्लीज...

बनानी रुक जाती है और बस चली जाती है l

रॉकी - थैंक्यू...
बनानी - जो भी कहना है जल्दी कहो... मुझे जाना है...
रॉकी - मैं सबसे पहले माफी माँगता हूँ... जो हुआ... जो भी हुआ... उन सबके लिए...
बनानी - ठीक है... और...
रॉकी - और... यह मेरा लास्ट ईयर है... उसके बाद मुझे पापा का बिजनैस संभालना है...
बनानी - अच्छी बात है... कंग्रेचुलेशन...
रॉकी - क्या मैं.. अगर तुम हाँ कहो तो... मैं अपनी मम्मी और पापा को लेकर तुम्हारे घर...
बनानी - किस लिए...
रॉकी - वह... मतलब.. श्.. श.. शादी...
बनानी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रॉकी - क्यूँ नहीं.. आख़िर प्यार करती हो.... तुम मुझसे...
बनानी - प्यार... कैसा प्यार... वह एक भ्रम था... टुट गया...
रॉकी - मैंने ऐसा क्या कर दिया है...
बनानी - क्या... कर दिया है... अपने बदले के लिए... तुमने मेरी जान की बाजी लगा दी... और पूछते हो क्या कर दिया है...
रॉकी - मैं... मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ... गलती सुधारना चाहता हूँ... प्लीज... सच्चे दिल से.... अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ...
बनानी - ओ... तुम यहाँ प्रायश्चित के लिए आए हो.. प्यार के लिए नहीं...
रॉकी - नहीं.. मेरा कहने का मतलब है कि... मैं भी तुम्हें चाहने लगा हूँ...
बनानी - तो.. तो क्या मैं खुश हो जाऊँ... नाचने लगूँ... झूमने गाने लगूँ....
रॉकी - प्लीज... एक मौका... दो.. प्लीज...
बनानी - जानते हो... तुम्हारी कमीना पन जानने के बावजूद.... नंदिनी ने तुम्हें क्यूँ छोड़ा था... वजह मैं थी... उसे मेरे अंदर की भावनाओं का कदर था... इसलिए जिस दिन... वह तुम्हें दिल से भाई मान कर गले लगा लेगी... उस दिन मैं... (तभी बस आने की हॉर्न बजती है) मेरी बस आ गई...
रॉकी - (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
बनानी - रॉकी... तुम जितने नंदिनी के गुनहगार हो.. उतने मेरे भी... उसने माफ भी कर दिया है तुम्हें... पर जिस रिश्ते की ढोल बजाये हो... अगर उसे... वह स्वीकार हुआ... तब मैं भी अपनी दिल की ज़ज्बात को स्वीकार कर लुंगी... बस...

फ्लैशबैक खतम

रुप - तो क्या तु इस बात से डिस्टर्ब्ड थी...
बनानी - ह्म्म्म्म...
रुप - देख तुने जो फैसला किया है... वह तेरा अपना है... मैं सच कहती हूँ... अगर वह मेरा अपना भाई भी होता... तब भी मैं उसकी सिफारिश हरगिज ना करती...
बनानी - मैं... जानती हूँ...
रुप - यह सिफारिशी वाला जो प्यार होता है ना... सिर्फ़ जवानी में ही किया जाता है... इसलिए मैं इसे सच्चा प्यार नहीं मनाती...
बनानी - अच्छा... अभी अभी तुने कहा कि तेरी शादी तय हो चुकी है... फिर सच्चे प्यार के बारे में... कैसे जानती है...
रुप - जानती नहीं हूँ... पर... समझती जरूर हूँ...
बनानी - अच्छा...
रुप - हाँ... प्यार या तो बचपन का सच्चा होता है... या फिर बुढ़ापे का... जवानी में भटकाव ज्यादा होता है.. सच्चाई कम होती है... क्यूंकि बचपन का प्यार आसमान ढूंढ लेता है... और बुढ़ापे का प्यार कभी जमीन नहीं छोड़ती है... बस जवानी के प्यार के हिस्से में... ना आसमान होता है... ना जमीन...
बनानी - वाव.. पता नहीं... तेरी बातों में कितना सच्चाई है... पर मान लेने को दिल करता है...
रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...
बनानी - नंदनी... सच सच बता... जिस कंनफिडेंट के साथ यह कह रही है... कहीं बचपन में... तुने किसी को...
रुप - (अपनी शर्माहट को छुपाते हुए) चल चलते हैं... क्लास में...
बनानी - (रुप की शर्माहट पकड़ लेती है) नहीं गए तो क्या हो जाएगा... (छेड़ते हुए) चल बता ना... कौन था... कैसा था...
रुप - (गालों पर लाली छा जाती है) तु चलती है कि नहीं...
बनानी - नहीं... अब मुझे जाननी है.. तेरे बचपन के सच्चे वाले प्यार के बारे में...
रुप - देख मुझे परेशान मत कर... प्लीज... चलते हैं ना क्लास...
बनानी - देख या तो मुझे सब बताएगी... या मैं.. सब को बुला कर ढिंढोरा पीटुंगी...
रुप - अच्छा... बताऊंगी... तुझे जरूर बताऊंगी... प्लीज अभी क्लास चलते हैं...
बनानी - ठीक है... पर याद रखना... वरना... मैं क्या करुँगी...
रुप - (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मेरी माँ... अब क्लास तो करलें हम पहले...

बनानी हँसने लगती है फिर कैन्टीन से निकल कर दोनों क्लास की ओर चलने लगते हैं l


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ESS ऑफिस में वीर अपनी कार लेकर आता है, गाड़ी को गेट के पास रोक कर गाड़ी से उतर कर गार्ड के हाथ में चाबी देता है और झूमते हुए ऑफिस के अंदर जाता है l गार्ड से लेकर स्टाफ सभी हैरानी से वीर की ओर देखने लगते हैं l वीर ऐसे झूमते हुए अपनी कैबिन की ओर जा रहा है जैसे वह कोई गाना सुन रहा है l झूमते झूमते हुए वह अपनी कैबिन के पास पहुँचता है और दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है l अंदर पहुँच कर दोनों बाहें फैला कर एक गहरी सांस लेता है फिर एक नजर अपनी कैबिन में हर कोने पर डालता है l उसके बाद वह जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l ऐसे में करीब दस मिनट गुजर जाते हैं l वह हैरान हो जाता है क्यूँकी अब तक अनु को उसके सामने आ जाना चाहिए था l
"वह क्यूँ नहीं आई"
टेबल पर रखे इंटरकॉम से अनु के इंटरकॉम पर डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - क्या हुआ... तुम्हें अब तक मेरे सामने.. मेरे पास होना चाहिए था...
अनु - जी... आपको अभी... क्या चाहिए...
वीर - (हैरान हो कर) क्या चाहिए... क्या मतलब है क्या चाहिए...
अनु - जी.. मेरा मतलब है... चाय कॉफी...
वीर - यह क्या नाटक है अनु...
अनु - ठीक है... मैं कॉफी लेकर आती हूँ... (इंटरकॉम पर क्रेडेल रख देती है)

अनु के इस तरह से बात करने और जवाब देने से वीर हैरान हो जाता है l उसके जबड़े भींच जाती हैं और दांत कड़कड़ आवाज के साथ पीसने लगता है l तभी हाथ में कॉफी लेकर अनु अंदर आती है, और वीर को बढ़ाती है l वीर अनु की चेहरे को देख कर कॉफी लेता है और टेबल पर रख देता है l

वीर - क्या हुआ...
अनु - कुछ.. कुछ नहीं राजकुमार जी...
वीर - मैंने पुछा... क्या... हुआ...
अनु - जी यह ऑफिस है... मेरी टेबल आपके कैबिन के बाहर है... मुझे सिर्फ तभी आना चाहिए... जब आपको कुछ चीजों की जरूरत हो...
वीर - (अपनी चेयर पर सीधा होकर बैठ जाता है) किसने कहा...
अनु - जी.. वह.. व ह ...
वीर - और जब मुझे खुशी में या दुख में... किसी दोस्त की जरूरत होगी... तब...
अनु - (अपनी वैनिटी बैग से दो स्माइली बॉल निकाल कर वीर को देती है)
वीर - (वह दो बॉल अनु के हाथ से लेता है और डस्टबीन में फेंक देता है) मैंने तुमसे वादा लिया था... और तुमने मुझे वादा भी किया था... मैं जब भी ज्यादा खुश हो जाऊँ... या ज्यादा दुखी हो जाऊँ... तुम मुझे गले से लगा लोगी...
अनु - (अपना सिर झुका लेती है और वीर नजरें मिलाने से कतराती है)
वीर - कौन आया था यहाँ...
अनु - जी... वह...
वीर - तुम्हें मैंने अपनी टर्म्स एंड कंडीशन पर नौकरी पर रखा है... यहाँ... इस कैबिन में.. मेरी शर्तें लागू हैं... तुम... मेरी पर्सनल सेक्रेटरी और असिस्टेंट हो... इसलिए अब बताओ... कौन आया था यहाँ...
अनु - (फिर भी चुप रहती है)
वीर - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) अनु..
अनु - (चौंक जाती है)
वीर - (अनु के बाहें पकड़ कर) अनु... तुम मेरी... सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त हो... यह... हमारी दोस्ती के बीच कौन आ गया अनु... प्लीज... कहो.. कौन है वह...
अनु - एक... एक शर्त पर...
वीर - मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजुर है...
अनु - आप उनसे झगड़ा नहीं करेंगे... बल्कि उनकी बातेँ मानेंगे...
वीर - मंजुर है...
अनु - आपसे युवराज जी मिलना चाहते थे... मुझे आपके कमरे में देख कर... बस इतना ही कहा... की पीएस का काम खयाल रखना है... पर तभी जब जरूरत हो... तभी... हर वक़्त कैबिन के अंदर होना जरूरी नहीं है....
वीर - ओ.. मैं.. मैं.. समझ गया... उन्होंने मुझे बुलाया है ना...
अनु - जी...
वीर - मैं... मैं उनसे अभी... मिलकर आता हूँ...
अनु - आपको हमारी दोस्ती का वास्ता... आप चिल्लाएंगे नहीं...
वीर - अपने दोस्त पर ना सही... क्या तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा नहीं...
अनु - है... खुद से ज्यादा... अपनी जान से ज्यादा...
वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है सीधे जा कर विक्रम के कैबिन में पहुँचता है l विक्रम के साथ वहाँ पर महांती भी बैठा हुआ मिलता है l

वीर - (खुद को काबु करते हुए) आप... आपने मुझे बुलाया...
विक्रम - हाँ राज कुमार... पर लगता है... मेरे बुलाने से... आप खुश नहीं हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... कहिए... क्या काम था...
विक्रम - क्या वगैर काम के... आप यहाँ नहीं आते...
वीर - नहीं... नहीं आता... क्यूंकि वगैर काम के... आपको कभी मेरी जरूरत पड़ी हो... ऐसा मुझे याद नहीं...
विक्रम - अगर आपके और मेरे बीच काम का रिश्ता है... तो आपके और आपके पीएस के बीच कौनसा रिश्ता है...
वीर - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भींच जाती हैं) वह मेरी पीएस कम असिस्टेंट है... बाय प्रोफेशन... और इकलौती दोस्त है... बाय डेस्टिनी...
विक्रम - कुछ देर से.. आप हम के वजाए मैं कह रहे हैं... क्या मैं सही सुन रहा हूँ...
वीर - जी...
विक्रम - क्यूँ...
वीर - हम दोनों की अपनी अपनी वजह है...
विक्रम - मैंने अपनी वजह आपसे छुपाया नहीं है...
वीर - और अभीतक मैंने अपनी वजह बताय नहीं है...
विक्रम - तो अभी बता दीजिए...
वीर - (एक गहरी सांस लेते हुए) मुझसे यह झूठे नक़ाब ढोया नहीं गया... जो रिश्ते नातों को किसी अहं के नीचे दबोच दे... खतम कर दे... इसलिए मैंने उस हम को ढोना छोड़ दिया... भैया...
विक्रम - (चौंक जाता है) क्या... क्या कहा आपने...
वीर - भैया... आप बार बार मुझे... आप ना कहें... तु कह सकते हैं... जैसे माँ कहती है... या फिर तुम... जैसे भाभी या रुप कहती है...
विक्रम - (आँखे चौड़ी हो जाती है) क्या... यह.. यह सब कब हुआ...
वीर - परसों... रुप के जन्मदिन पर...
विक्रम - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
वीर - अगर बातेँ हो गई... तो मैं जाऊँ...
विक्रम - हँ... हाँ... नहीं रुको एक मिनट... क्या इन सबके पीछे... आपकी वह पीएस है...
वीर - नहीं... वह मेरी दोस्त है... पुरी दुनिया में... मेरी इकलौती दोस्त है...
विक्रम - आपको दुनिया में... कोई और मिली नहीं... रंग... उसका फीका... बहुत ही आम सी दिखने वाली... वह... एक मामुली लड़की...
वीर - (अपनी उंगली विक्रम की ओर दिखाते हुए) बस... बस भैया... बस... वह मेरी दोस्त है... उसकी मान सम्मान... मेरी मान सम्मान... (विक्रम की आँखे फटी की फटी रह जाती है और वह खड़ा हो जाता है, उसे खड़ा होता देख महांती भी अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) अगर कोई काम हो... तो सीधे मुझे फोन कर बुला सकते हैं.... हाजिर हो जाऊँगा... चलता हूँ...

वीर इतना कह कर वहाँ से निकल जाता है l उसके जाने के बाद भी विक्रम हैरानी से दरवाजे की ओर देखता रह जाता है l

महांती - युवराज...
विक्रम - हँ...(होश में आते हुए) हाँ...... महांती... कुछ कहा तुमने...
महांती - राजकुमार चले गए...
विक्रम - यह... अभी जो हुआ... मतलब जो हुआ... वह क्या था... महांती...
महांती - (थोड़ा खरास लेते हुए) अहेम.. अहेम... राजकुमार जी को...
विक्रम - हाँ... राजकुमार जी को...
महांती - राजकुमार जी को... प्यार हो गया है...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती को देखता है)
महांती - हाँ... युवराज... यह प्यार ही है... जिसे राजकुमार दोस्ती कह रहे हैं...
विक्रम - कैसे... महांती... कैसे... एक.... मामुली सी लड़की से...
महांती - हमारे यहाँ लोकल में एक बात खूब बोली जाती है...
"भुख ना देखे बासी भात"
"प्यार ना देखे ऊँच नीच जात पात"
विक्रम - वह लड़की...
महांती - बहुत ही अच्छी लड़की है... मैंने पता किया है.... बहुत ही शरीफ... मासूम और भोली.... या यूं कहूँ कि... राजकुमार जी के चरित्र की पुरी उल्टी है... लड़की पुरब है तो राजकुमार जी पश्चिम हैं...
विक्रम - वह लड़की अच्छी है... मैं जानता हूँ...
महांती - क्या... कैसे...
विक्रम - (अपनी कान से माइक निकाल कर डस्टबीन में फेंकता है) मैंने कुछ देर पहले... राजकुमार जी के कैबिन में बग फिट कर आया था...
महांती - (सवालिया नजरों से देखता है)
विक्रम - अभी अभी उनके बीच हुए सारी बातेँ... मैंने सुनी है...
महांती - (हाँ मे अपना सिर हिलाता है)
विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...


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एक जीप यशपुर के रास्ते राजगड़ की ओर तेजी से भाग रही है l ड्राइविंग सीट पर रोणा हाथ में सिगरेट की धुआँ उड़ाते हुए स्टीयरिंग मोड़ रहा है और बगल में बल्लभ संभल कर बैठने की कोशिश कर रहा है l

बल्लभ - अबे संभाल... संभल कर... किस बात की जल्दी है तुझे... कोई टांग खोलके तेरा इंतजार कर रहा है क्या...
रोणा - नहीं... पर मुझे विश्व से मिलने की जल्दी है...
बल्लभ - अगर राजगड़ आया होगा... तो वह गांव में ही होगा... पर तुझे शायद मालुम ना हो... राजा साहब ने सात साल पहले ही... उसका गांव में हुक्का पानी बंद कर रखा है... गांव में तो घुसने से रहा...
रोणा - अगर वह नहीं मिला... तो उसकी बहन तो होगी... मैं उससे ज़मानत वसूल कर लूँगा...
बल्लभ - जैसे कल... उस औरत से वसूल रहा था...
रोणा - (शैतानी हँसी के साथ) हाँ... बिल्कुल वैसे ही...
बल्लभ - यह गलती से भी मत सोचना...
रोणा - क्यूँ...
बल्लभ - तुझे क्या.. तु सस्पेंड हो कर हेड क्वार्टर में छह महीने तक हाजिरी लगाता रहा... और छह महीने बाद... जहां पोस्टिंग मिला चला गया... कोर्ट के विश्व को सज़ा सुनाने के बाद... राजा साहब अपनी गाड़ी से वैदेही को बिठा कर बीच चौराहे में... उसे ले जाकर सात थप्पड़ मारे थे... वैदेही के बेहोश होने तक... उसके बाद उसे वहीँ छोड़ दिया... और अपने आदमियों से विश्व के वापस आने तक... वैदेही से दुर रहने का फरमान सुनाया....
रोणा - पर... अब तो विश्व छूट गया ना...
बल्लभ - हाँ... पर राजगड़ में राजा साहब की मिल्कियत से प्रसाद... उनके झूठन करने के बाद मिलता है... जानते हो ना...
रोणा - ह्म्म्म्म... पर मैं... टॉर्चर तो कर ही सकता हूँ... वरना सुकून कैसे मिलेगा...

इतने में थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे उन्हें गांव के दो आदमी दिखते हैं l उनमें से एक आकर रास्ते के बीच खड़ा हो जाता है और गाड़ी को रोकने की कोशिश करता है l एक आदमी के चेहरे पर बैंडेज बंधा हुआ है l उन्हें देख कर बल्लभ गाड़ी रुकवाता है l उनमें से किसी एक से

बल्लभ - अरे नरी... क्या हुआ तुझे... (रोणा से) यह राजा साहब के लोग हैं...
नरी - वह... मैं... गिर गया था...
बल्लभ - सच बोल...
नरी के साथ वाला - नहीं वकील साहब.. वैदेही ने इसके चेहरे पर.. दरांती चला दिया....
रोणा - क्या.. तो पुलिस में कंप्लेंट कर देते...
बल्लभ - कैसे करते यह कम्बख्त... इन्होंने ही छेड़ा होगा उसे... क्यूँ समरा... ठीक कह रहा हूँ ना... (वह दोनों अपना चेहरा झुका लेते हैं) अरे घबराओ नहीँ... यह(रोणा को दिखा कर) आज से राजगड़ थाने के अधिकारी हैं... बड़े पुराने साहब हैं.. राजा साहब ने खास तुम लोगों के लिए बुलाया है... इसलिए इन्हें सब सच सच बता दो...
वह दोनों - सलाम साहब...
रोणा - सलाम... कहो... वैदेही ने तुम पर क्यूँ हमला किया... सच बोलोगे... तो सब संभाल लुंगा...

वे दोनों पहले एक दुसरे को देखते हैं फिर बल्लभ की ओर देखते हैं l

बल्लभ - अरे बिंदास बोलो... इन साहब का भी वैदेही से... काम है.. घबराओ मत... बेझिझक खुल कर बोल दो...

समरा - साहब मैं बताता हूँ... यह नरी है... इसकी आँख बहुत दिनों से कीर्तनीया की बेटी मल्ली पर थी... इसलिए कीर्तनीया को पीने के लिए हमेशा पैसे देता था... पिछले महीने से अपना पैसा वापस मांग रहा था... कीर्तनीया के पास थे नहीं... इसलिए बच रहा था... आज सुबह यह ज़बरदस्ती कीर्तनीया के घर पहुँच गया... वहाँ जा कर अपने पैसों के लिए हंगामा खड़ा कर दिया... कीर्तनीया बहुत बिनती किया... हाथ जोड़े... और पैसे वापस देने के लिए तीन महीने की मोहलत मांगा... तो इसने एक शर्त रख दी...
रोणा - कैसी शर्त...
समरा - तीन महीने के लिए... इसके घर में मल्ली काम करने के लिए जाती...
रोणा - ओ... अच्छा... तो इसमें... वैदेही कहाँ से आ गई...
समरा - जैसे ही इसने अपना शर्त रखा... कीर्तनीया की बीवी कमली ने मल्ली को वैदेही के पास भगा दिया...


फ्लैशबैक

मल्ली भागते हुए वैदेही के दुकान पर पहुँचती है l मल्ली वैदेही को सारी बात बताती है l तभी उसके पीछे पीछे भागते हुए नरी वहाँ पहुँचता है l

वैदेही - बस... नरी बस... इस दुकान के अंदर मत आना... वह तुम्हारा हद है... लांघने की कोशिश भी ना करना... वरना... तुम्हें पचताने से कोई नहीं रोक पाएगा...
नरी - ओ... अच्छा... देखो तो.. कौन बोल रही है... रंग महल की रंडी साली...
वैदेही - फिर भी... तेरी औकात नहीं है... मल्ली को यहाँ से ले जाने की...
नरी - अच्छा... कौन रोकेगा मुझे... तु... (वहाँ पर कुछ छोटे बच्चे और कुछ औरतें खड़े थे उन्हें दिखा कर) या यह... तेरी फौजें... हा हा हा...
वैदेही - यह जब लड़ने पर आयेंगे... तब तुझ जैसों को छुपने के लिए सारा ब्रह्मांड कम पड़ जाएगा... पर कोई नहीं... तेरी औकात... तेरी हैसियत इतनी भी नहीं... की मेरे होते हुए... इसे हाथ भी लगा दे...
नरी - उई माँ... मैं तो डर गया.... रंग महल की इस रांड ने मुझे डरा दिया... (मल्ली से) एई लड़की... प्यार से मेरे साथ चल... वरना... तुझे बालों से खींचते हुए ले जाऊँगा....

मल्ली वैदेही के पीछे खड़ी हो जाती है l नरी बेपरवाह आगे बढ़ने लगता है l जैसे ही वैदेही के पास पहुँचता है वैदेही की एक जोरदार लात नरी के बीच टांगों में पड़ती है l नरी एक फुट ऊपर उछल कर अपने घुटने के बल गिरता है l मुहँ से गँ गँ की आवाज निकलने लगती है l चोट लगी जगह को दोनों हाथों से ढक कर पीड़ा भरी आँखों से वैदेही की तरफ देखने लगता है l ऐसा लगता है दर्द से उसकी आँखे उबल कर बाहर आ जाएंगी l फिर धीरे धीरे नरी की आँखे गुस्से से जलने लगती है वह उठ कर जल्दी से वैदेही पर झपट्टा मारता है l पर इस बार भी उससे देर हो जाती है l ना जाने कहाँ से वैदेही दरांती निकालती है और उतनी ही फुर्ती से चला देती है l इस बार नरी अपना चेहरा पकड़ कर नीचे गिर जाता है और छटपटाने लगता है l

नरी - आ... आ..ह.. साली कुत्तीआ... रंडी... आ...ह... आ.. आ.. ह..
वैदेही - कहा था ना... मेरे होते हुए... नहीं... रांड की लात झेल नहीं पाया... अब किसीको मुहँ भी दिखाने के लायक नहीं रहा.... और सुन... राजगड़ की हर घर की इज़्ज़त मेरी जान है... आँखे उठा कर कोई भी देखा... तो कसम खा कर कहती हूँ... उसकी गर्दन उड़ा दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

समरा - एक चीरा... बाईं आँख के ऊपर से होकर... नाक को चीरते हुए... दाएं गाल तक... पंद्रह स्टिच लगे हैं...
बल्लभ - ठीक है बैठ जाओ... हम राजगड़ ही जा रहे हैं...

वे दोनों जीप के पीछे बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद बल्लभ रोणा से

बल्लभ - देखा... वैदेही अब कितनी खतरनाक हो गई है... अब तो उसका भाई भी वापस आ गया होगा...
रोणा - तो क्या हुआ... क्या उखाड़ लेगा... आने दो उस हरामजादे को... दोनों भाई बहन की जिंदगी नर्क बना कर रख दूँगा...
समरा - क्या... उसका भाई विश्व आने वाला है...
बल्लभ - आने वाला है... वह तो तीन दिन पहले पहुँच गया होगा...
नरी - नहीं वकील साहब... विश्व आया होता तो हमें पता चल गया होता... अभी तक तो विश्व आया नहीं है...
बल्लभ - (रोणा से) ऐ रोणा... तु तो कह रहा था... वह तीन दिन पहले... छुट गया है...
रोणा - तुमको क्या लगता है प्रधान बाबु... मैंने झूठ कहा है... अगर विश्व गांव नहीं गया है... तो जरूर कहीं भाग गया है...
बल्लभ - हाँ... यह हो सकता है... भाग गया होगा... भागता नहीं.... तो करता क्या...

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शाम का समय
प्रतिभा के नए घर में l ड्रॉइंग रुम में जोडार एक सोफ़े पर बैठा हुआ है उसके सामने प्रतिभा कमरे के एक कोने से दुसरे कोने तक, जा रही है फिर वापस आ रही है l बीच बीच में वह घड़ी देख रही है l

जोडार - मिसेज सेनापति... प्लीज... आप परेशान ना हो... वह आ जाएंगे...
प्रतिभा - फोन पर बताया था... छह बजे तक पहुँच जाएंगे...
- तो छह बजा ही कहाँ है... (अंदर आते हुए तापस) घड़ी देख लो... अभी भी पांच मिनट बचे हैं... छह बजने के लिए...

तापस के पीछे पीछे विश्व कुछ कागजात हाथों में लिए विश्व अंदर आता है l

प्रतिभा - ठीक है.. ठीक है... पर फिर भी... इतना देर...
विश्व - माँ... ट्रैफिक... जानती हो ना... वह तो डैड आपसे डरते हैं... इसलिए इतनी जल्दी गाड़ी उड़ा कर लाए... वरना मैं तो सोच रहा था... आठ बज जाएंगे...
प्रतिभा - तु चुप रह... डैड का चमचा... (तापस से) आपको गाड़ी चलाना था... उड़ाना नहीं था...
तापस - (दोनों हाथ जोड़ कर) गलती हो गई भाग्यवान... आइंदा से खयाल रखूँगा...

प्रतिभा अपना मुहँ बना कर आँखे सिकुड़ कर देखने लगती है l उन दोनों के बीच की नोक झोंक को जोडार एंजॉय कर रहा था l

विश्व - ओके ओके... इस पर हम... जोडार साहब के जाने के बाद भी बात कर सकते हैं...
तापस - हाँ भाग्यवान... हमें सबसे पहले जोडार साहब को भगाना है...(जोडार से) प्लीज डोंट माइंड... उसके बाद हम पेट भरने तक लड़ सकते हैं...
जोडार - कमाल करते हो... सेनापति सर... मैं तो यहाँ से डिनर करके जाना चाहता था...
तापस - ओ... ऐसी बात थी... कोई बात नहीं... हम कल झगड़ लेंगे... क्यूँ भाग्यवान...

प्रतिभा का तमतमाता चेहरा देख कर तापस सकपका जाता है और चुपचाप एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

प्रतिभा - (अपनी दांत चबाते हुए) (और तापस की देख कर) तो प्रताप... तुझे सबूत मिल गए...
विश्व - हाँ माँ... मिले भी और हमने हासिल भी कर लिया है... (सोफ़े पर तापस के बगल में बैठते हुए) यह रहे... (कागजात दिखाते हुए) इन्हें हासिल करने में थोड़ा वक़्त लग गया....
प्रतिभा - यह कैसे कागजात हैं...
विश्व - वेट मशीन की रिपोर्ट.... यानी लोकल भाषा में... धर्म कांटा के रिपोर्ट...
जोडार - वेट मशीन की रिपोर्ट तो थी ना हमारे पास... फिर...
विश्व - जोडार साहब... आपका सामान कार्गो शिप से जब अनलोड हुई तब... वेट मशीन में चेक किया गया और सिंगापुर रिपोर्ट के साथ मैच किया गया... फिर गोदाम में सामान की कस्टम चेकिंग हुई... उसके बाद स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... अंतिम बार की वेट मशीन से चेक होने से पहले... सामान निकाल लिया गया... और आपके लिए खाली कंटेनर रिसीव करने के लिए छोड़ दिया गया...
जोडार - पर जो डेलीवेरी रिपोर्ट थी... वह सब एज पर रिसीवींग ही किया गया है...
विश्व - वह तेरह पन्ने की रिपोर्ट थी... जिसे इसलिए बनाया गया था... ताकि असली बात छुपाया जा सके...
जोडार - कौनसी बात...
विश्व - चलिए मैं आपको साजिश की पुरी कहानी डिटेल में बताता हूँ...
तो हुआ यूँ... कार्गो शिप से आपके चार कंटेनर उतारा जाता है, और वेट मशीन में वजन चेक कर के सिंगापुर रिपोर्ट से मैच किया गया... उसके बाद कस्टम चेकिंग के लिए गोदाम भेजा गया... वहाँ पर हर एक प्लाइवुड के वुडेन बॉक्स... और कार्ड बोर्ड बॉक्स खोल कर कस्टम क्लीयरेंस किया गया... क्लीयरेंस के बाद सभी कंटेनर को स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... जिसकी रख रखाव लीज पर एक प्राइवेट संस्था कर रही है... और यह बताने की कोई जरूरत नहीं... वह संस्था केके की है... और वहाँ पर सिक्युरिटी की इंतजाम ESS की है...
प्रतिभा - ओ... मतलब... इस साजिश में क्षेत्रपाल इस तरह से शामिल हुए हैं...
विश्व - कह नहीं सकते...
प्रतिभा - क्या मतलब कह नहीं सकते...
तापस - भाग्यवान ... तुम इतनी उतावली क्यूँ हो रही हो... पुरी कहानी तो सुन लो..
विश्व - तो चूंकि स्टॉक यार्ड की देख रेख एक निजी संस्था करती है... इसलिए उनकी ड्यूटी है... सामान बिल्कुल उसी तरह लौटाएँ... जैसा कस्टम अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया हो... और डेलीवेरी से पहले... अंतिम बार वेट मशीन की रिपोर्ट भी अटैच करे... पर... यहाँ थोड़ी सी चालाकी कि गयी...
जोडार - कस्टम अधिकारी के दिए रिपोर्ट के अनुरूप... उन्होंने सेम टू सेम रिपोर्ट बनाते बनाते... सिर्फ़ सेम प्लाइवुड वुडेन बॉक्स और सेम कार्ड बोर्ड बॉक्स की लोडिंग की बात लिखी गई... पर फिल्ड विथ द सेम मैटेरियल्स... यह नहीं लिखा... यही लाइन ठीक से समझ नहीं पाए थे... आपके पहले वाले वकील... और रिपोर्ट में फाइनल वेट मशीन रिपोर्ट अटैच भी नहीं किया गया... जिसको आपके वकील ने इग्नोर मारा था शायद... इसलिए... आपको कंटेनर तो मिले... वुडेन बॉक्स और कार्ड बोर्ड के साथ... मगर वगैर मैटेरियल्स के...
जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....
प्रतिभा - हाँ हाँ... हो जाएगा... कल दुपहर तक कोर्ट से ऑर्डर... मैं निकलवा लुंगी... परसों तक उन लोगों को नोटिस मिल जाएगा....
विश्व - बस... (जोडार से) आपका काम हो गया...

जोडार अपनी जगह से उठता है और विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l

जोडार - (विश्व के दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर) थैंक्यू... माय बॉय... थैंक्यू...
Shandaar update 😍😍
 

Lib am

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👉उनासीवां अपडेट
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मोबाइल की घंटी बजने पर रोणा की नींद टुटती है l नींद भरे आँखों को मुश्किल से खोल कर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है "प्रधान वकील" डिस्प्ले हो रहा है l

रोणा - हे.. हैलो..
बल्लभ - भोषड़ी के... मैं तेरा नौकर हूँ क्या बे... मुझसे अपनी पोस्टिंग की ऑर्डर रिसीव करने भेज कर... खुद रात भर किसकी चुत मार रहा था बे...
रोणा - अरे... प्रधान बाबु... गुस्सा क्यूँ कर रहे हो... वैसे हो कहाँ पर अभी...
बल्लभ - तु जिस लॉज में चुदाई का लुफ्त उठा रहा है... उसीके रिसेप्शन में तेरा इंतजार कर रहा हूँ...
रोणा - अरे... भाई एक मिनट... अभी तैयार हो कर नीचे आ रहा हूँ....

इतना कह कर रोणा फोन काट देता है और बिस्तर से नंगा उठ कर बाथरुम भागता है l अपना चेहरा धो कर वह जैसे ही बाहर आता है बिस्तर पर लेटी चादर में खुद को छुपाती एक औरत बोलती है

औरत - (बिनती करने के लहजे में) साब जी... आपने जैसा कहा... मैंने वैसा ही किया.. अब तो मेरे बेटे को छोड़ दीजिए... प्लीज...
रोणा - (उस औरत को बिस्तर से खिंच कर खड़ा करता है, और चादर खिंच कर फेंक देता है ) अरे... इतनी बढ़िया ज़मानत दी है तुने... तेरे बेटे को कैसे ना छोड़ुँ... (उस औरत को ऐसे चूमने लगता है जैसे खा रहा हो)
औरत - म्म्म्न... म्म्म्न.. आह...
रोणा - आह... क्या माल है... अभी भी.. मन नहीं भरा मेरा... (उसे छोड़ते हुए) जा... पीछे के रास्ते घर जा... अच्छे अच्छे पकवान बना... तेरा बेटा पहुँच जाएगा...

कह कर अपने कपड़े पहन लेता है और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर निकल कर सीधे रिसेप्शन में पहुँच जाता है l रिसेप्शन में बल्लभ को देख कर उससे गले मिल जाता है l

बल्लभ - रात भर क्या कर रहा था बे...
रोणा - एक बेचारा लड़का... एक्जाम में कपि सप्लाई करते पकड़ा गया था... उसकी फ्यूचर की बात थी... इसलिए रात भर उसकी माँ से ज़मानत ले रहा था...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो ज़मानत ले ली...
रोणा - तुमने मेरी राजगड़ पोस्टिंग की लेटर ले ली...
बल्लभ - (जेब से एक खाकी रंग का लिफाफा निकाल कर देते हुए) यह ले.. अच्छा.. क्या मैं भी देख लूँ... उसकी ज़मानत में क्या बाकी रह गया...
रोणा - प्रधान बाबु... यह बात तुम को पहले बताना चाहिए था... मैंने उसे पीछे के रास्ते से भेज दिया...
बल्लभ - चल कोई बात नहीं... जब तकदीर हो गांडु... क्या करेगा पाण्डु...
रोणा - पर यहाँ पाण्डु नहीं है... प्रधान है...

बल्लभ मुहँ बना कर रोणा को देखता है, रोणा उसे मुस्कराते हुए देखता है फिर दोनों हँसने लगते हैं

रोणा - चलो... प्रधान बाबु... चार्ज हैंड ओवर कर के... चलते हैं राजगड़... (रिसेप्शन में बैठा आदमी से) चलता हूँ... हिसाब सब खाते से मिटा देना... और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना...

कह कर रोणा बल्लभ को खिंचते हुए लॉज के बाहर ले जाता है l

रिसेप्शनीस्ट - कीड़े पड़ेंगे... साले... हरामजादे... तुझ पर कीड़े पड़ेंगे...

बाहर रोणा के जीप में दोनों बैठ जाते हैं और रोणा गाड़ी को दौड़ा देता है l

बल्लभ - बहुत नाम और रुतबा कमाया है यहाँ... आसानी से मालुम हो गया... थानेदार साहब कहाँ मिल सकते हैं...
रोणा - सब.... राजा साहब की महिमा है...
बल्लभ - एक बात कहूँ... जब इस जगह तु एक राजा की तरह रहता था... जिसे चाहे अपने नीचे ले आता है... फिर राजगड़ क्यूँ... क्यूँ जाना चाहता है...
रोणा - प्रधान बाबु... तुम्हें.... विश्व याद है... या भुला दिया है...
बल्लभ - हाँ... क्यूँ नहीं... उसीके वजह से तो पहली बार... हमें अपनी मांद से निकलना पड़ा... एक कस्बे का केस... पूरे राज्य का हो गया...
रोणा - कब रिहा हुआ मालुम है...
बल्लभ - क्या... विश्व रिहा हो गया...
रोणा - दो दिन पहले... आज तीसरा दिन है...
बल्लभ - व्हाट... इसका मतलब.. तु... विश्व की खबर रख रहा था...
रोणा - नहीं... मुझे बस उसकी रिहाई की... वह तारीख याद था... मैं जब खबर लेने पहुँचा... तब मालुम हुआ... की वह छूट कर जा चुका है...
बल्लभ - लगता है.... अगर दिख जाता... तो सारा खुन्नस निकाल कर ही मानता...
रोणा - हाँ.. मैं तो उसे तब मार देना चाहता था... पर... राजा साहब ने मुझे रोक दिया था... अब मैं राजगड़ अपनी खुन्नस उतारने जा रहा हूँ...
बल्लभ - ओ... तभी मैं सोचूँ.. यह राजा वाली जिंदगी को छोड़... तुझे गुलाम वाली जिंदगी की चुल क्यूँ मची है...
रोणा - (जबड़े भींच जाते हैं, और चेहरा कठोर हो जाता है मगर कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
बल्लभ - सच कहूँ तो... राजगड़ से दूर तु... अच्छी जिंदगी जी रहा है... वहाँ पहुँच कर जी हुजूरी के सिवा... कर ही क्या सकता है...
रोणा - उसने गाँव वालों के सामने... मेरे जबड़े पर घुसा जड़ा था... कुछ देर के लिए ही सही... मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया था... गिर कर उठ नहीं पाया था... इसलिए... मैं उसे मरवा देना चाहता था... पर राजा साहब ने उसे जिंदा रखने के लिए कहा... मैं... मैं मन मसोस कर रह गया था... पर अब नहीं... अब नहीं... मैं राजगड़ में उसकी जिंदगी नर्क से भी बदत्तर बना दूँगा...
बल्लभ - क्या इसलिए.. अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया...
रोणा - हाँ... जितना कमाना था.. कमा लिया... अब सिर्फ विश्व से खुन्नस बाकी रह गया है... उसे पुरा करना है...
बल्लभ - उसे मार कर...
रोणा - नहीं... उसकी जिंदगी.. इतना भयानक कर दूँगा... के वह मौत की भीख मांगेगा... देख लेना...
बल्लभ - (भयानक होते हुए रोणा की चेहरे को देख रहा था) क.. कैसे... करोगे...
रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

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ESS ऑफिस
वीर के कैबिन में दरवाजे के तरफ पीठ कर अनु हाथ में एक कपड़े का टुकड़ा लेकर टेबल और कुर्सी को पोंछ रही है और साथ साथ एक गाना भी गुनगुना रही है l

"तेरे बिना... जिया जाए ना...
तेरे बिना... जिया जाए ना
बिन तेरे... तेरे बिन... ओ साजना"

पोछने के बाद फ्लावरबाश में सजे फ़ूलों को फिर से सजाने लगती है l फिर उन फूलों पर पानी स्प्रे करती है l फिर उसके बाद लैंडलाइन फोन को चेक करती है उसमें रिंग टोन सुनाई दे रही है या नहीं l ऐसे करते वक़्त उसे लगता है जैसे कोई उसे देख रहा है l वह अचानक गाना रोक कर उस तरफ देखने लगती है तो देखती है दरवाजे के पास विक्रम खड़ा हुआ है l विक्रम को देखते ही वह बहुत नर्वस हो जाती है चेहरा झुका लेती है फिर कुछ सोचते हुए विक्रम को सैल्यूट कर सलामी देती है l

विक्रम - क्या नाम है तुम्हारा...
अनु - जी... वह..
विक्रम - यह कैसा नाम है..
अनु - जी... अनु... अनु.. है मेरा नाम...
विक्रम - सिर्फ़ अनु... कोई सर नेम नहीं है क्या...
अनु - जी है.. है ना...
विक्रम - क्या है...
अनु - जी... बारीक...
विक्रम - अब पुरा नाम कहो...
अनु - जी... अनुसूया बारीक...
विक्रम - अगली बार जब पूछा जाए... तो पुरा नाम बताना...
अनु - जी... जी युवराज...
विक्रम - ह्म्म्म्म... तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो...
अनु - जी... मैं सब ठीक है या नहीं... चेक कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... गाना भी गा रही थी...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - (चलते हुए आता है और वीर के चेयर पर बैठ जाता है ) वैसे तुम यहाँ कैसे आई...
अनु - (हैरान हो कर) जी... मैं आज ऑटो से...
विक्रम - मतलब... तुम्हारा इंटरव्यू कब हुआ... किसने ली... और यहाँ किस पोस्ट पर हो...
अनु - जी... एक बार हमारे बस्ती में... छोटे राजा जी आए थे... सबकी खैरियत पुछ रहे थे... उस दिन मेरी दादी ने मेरे लिए कुछ काम मांगा तो... छोटे राजा जी ने हमे उनके ऑफिस आने के लिए कहा था.. उनके ऑफिस में राजकुमार जी से मुलाकात हुई... तो उन्होंने हमे तुरंत नौकरी पर रख लिया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - (चुप रहती है)
विक्रम - मैंने पुछा कहाँ तक पढ़ी लिखी हो...
अनु - जी म.. म.. मैट्रिक... तक...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और यहाँ कौनसी पोस्ट पर हो...
अनु - जी... राजकुमार जी की.. पर्सनल सेक्रेटरी... कम असिस्टेंट...
विक्रम - क्या इसलिए... तुम राजकुमार जी की गैर हाजिरी में... उनके कमरे में घुसी रहती हो...
अनु - जी नहीं... ऐसी बात नहीं है... राजकुमार जी ने खुद कहा है कि... वह जब कमरे में आयें... उन्हें सब कुछ सही दिखना और मिलना चाहिए...
विक्रम - अच्छा... राजकुमार जी ने ऐसा कहा है तुमसे...
अनु - (अपना सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाती है)
विक्रम - और क्या क्या कहा है... राज कुमार जी ने...
अनु - जी जब भी वह कैबिन में हों... कॉफी उन्हें तैयार मिलना चाहिए... और उनके सारे कॉल पहले मैं अटेंड करूँ... चाहे मोबाइल हो या लैड लाइन... और डायरी में सब नोट करूँ... आख़िर में उन्हें सब बताऊँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
अनु - जी.. जी नहीं...
विक्रम - तुम्हें... उसके साथ कैसा लगता है...
अनु - (चौंक कर) जी... जी मैं समझी नहीं...
विक्रम - कभी डर नहीं लगता...
अनु - किससे...
विक्रम - राजकुमार से...
अनु - जी... उन्होंने कभी डराया ही नहीं...
विक्रम - तुम्हारे घर में कौन कौन हैं...
अनु - जी.. मेरा घर... मतलब...
विक्रम - मेरा मतलब है... घर में तुम्हारे साथ.. कौन कौन रहता है...
अनु - जी मेरे साथ कोई नहीं रहता... मैं अपनी दादी के साथ... दादी के पास रहती हूँ...
विक्रम - माँ बाप...
अनु - वह तो मेरे बचपन में ही चल बसे...
विक्रम - ओ... (उठते हुए) अच्छा राजकुमार जी आयें तो... उन्हें मेरे कैबिन में आने के लिए कह देना...
अनु - जी अच्छा...

विक्रम अनु को देखते हुए दरवाजे की ओर जाता है l दरवाजे की पास रुक जाता है और अनु की ओर मुड़कर

विक्रम - अनु... राजकुमार जी से... थोड़ी दूरी बना कर रहना... कोशिश करो... जितना बाहर बैठ सको तो बैठो... जब उन्हें जरूरत हो तभी उनके सामने जाओ...

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वीर की गाड़ी कॉलेज की पार्किंग में आती है l पहले रुप उतरती है उसके बाद दुसरी तरफ से वीर उतरता है l

रुप - अच्छा भैया... चलती हूँ...
वीर - ठीक है जा...
रुप - तुम क्लास नहीं करोगे...
वीर - देख सुधरा जरूर हूँ... मगर इतना भी नहीं... के क्लास में बैठ कर लेक्चर सुनूँ... तु जा... बस छुट्टी होने से पहले मुझे कॉल कर देना...
रुप - (हैरान हो कर) तो अभी.. तुम कहाँ जाओगे...
वीर - ऑफिस और कहाँ...
रुप - आर यु सीरियस...
वीर - क्यूँ... मैं तुझे सीरियस नहीं दिख रहा...
रुप - (कंफ्यूजन में, अपना सिर हिलाती तो है, पर हाँ में हिला रही है या ना में हिला रही है वीर यह समझ नहीं पाता)
वीर - यह सिर क्या इधर उधर हिला रही है... बोल हाँ या ना..
रुप - (ना में सिर हिलाते हुए) हाँ.. हाँ..
वीर - समझ गया... मैं समझ गया... तु जा अपनी क्लास कर.. मैं जाकर अपना ड्यूटी बजाता हूँ...

कह कर वीर गाड़ी घुमा कर चला जाता है, रुप भी मुड़ कर कैन्टीन की ओर जाने लगती है l देखती है लड़के उसे देखते ही दुम दबा कर भाग रहे हैं l वह कैन्टीन में पहुँचती है, सीधे जा कर अपनी ग्रुप के पास बैठ जाती है l वहाँ पर भी जितने भी लड़के थे, सबके सब कन्नी काट कर निकल जाते हैं l

रुप - यह क्या हो रहा है... सारे लड़के मुझे देख कर यूँ भाग क्यूँ रहे हैं....
दीप्ति - वेरी... सिंपल... लड़के जो भी तेरे लिए चोरी चोरी अरमान पाले बैठे थे...
तब्बसुम - सिर्फ बहन कहने पर जब रॉकी की सिर फुट सकती है... तो गलती से भी तेरे वीर भैया को मालुम हुआ...
इतिश्री - के कोई कम्बख्त तेरे लिए ख्वाब सजाये हैं...
भाश्वती - तो कहीं उसकी अर्थी ना सज जाए...

सभी लड़कियाँ एक दुसरे से हाइफाइ करते हुए हँसने लगती हैं l

तब्बसुम - वैसे.. एक बात बता... तुझे क्या पसंद है... पहले इश्क़ फिर शादी या... पहले शादी फिर इश्क़...
रुप - (एक भाव हीन मुस्कान के साथ) अपनी किस्मत में... यह कॉलेज वाला इश्क़ नहीं लिखा है... अपनी तो पहले शादी तय हुई... फिर हम कॉलेज में आए...
भाश्वती - ओ... मतलब तेरी... अंगेजमेंट हो गई है...
रुप - नहीं... फिक्स हो गई है... दसपल्ला राज घराने में... और सबसे इंट्रेस्टिंग बात यह है कि... उनके परिवार में... मुझे किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं पता..
सब - (एक साथ) व्हाट...
इतिश्री - यह कैसे...
दीप्ति - क्यूँ इस में अचरज क्या है... इस बात की क्या ग्यारंटी है कि हम जिससे नैन मटक्का करें... कल को हम उसी से ही शादी करें...
भाश्वती - बट शी इज़ फ्रोम रॉयल फॅमिली ना...
दीप्ति - सो व्हाट... सारे मैटर एक ही जगह पर ठहरती है... किसकी फॅमिली कितनी और किस हद तक कंजरवेटिव है...

कर्र्र्र्र्र्र्र्र

क्लास की बेल बजती है सभी अपनी जगह से उठ कर क्लास की ओर जाने लगते हैं, सिवाय रुप के

रुप - बनानी... (सभी रुक जाती हैं ) बस बनानी... जरा रुकना... तेरे पास कुछ काम है...

बाकी सभी लड़कियाँ चली जाती हैं बनानी वापस अपनी जगह बैठ जाती है l

रुप - क्या हुआ... आज पुरी डिस्कशन में... तु ख़ामोश रही... जब से आई हूँ... देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी हो... क्या बात है...
बनानी - (थोड़ी ऑकवर्ड फिल करते हुए) नहीं.. कुछ नहीं...
रुप - (उसके हाथ पकड़ कर) मुझसे भी नहीं बताएगी...
बनानी - मैं क्या करूं.. कुछ समझ में नहीं आ रहा है...
रुप - मतलब...
बनानी - आज बस स्टॉप में वह मिला..
रुप - कौन... एक.. एक मिनट... रॉकी...
बनानी - (चुप रहती है)
रुप - क्या हुआ...

फ्लैशबैक

बस स्टॉप

बनानी कॉलेज जाने के लिए बस का इंतजार कर रही है l तभी बाइक से रॉकी वहाँ पहुँचता है और बाइक एक साइड में लगा कर वहाँ खड़ा हो जाता है l बनानी थोड़ी अंकंफर्टेबल हो जाती है l फिर भी खुद को सम्भाल लेती है l थोड़ी देर बाद बस आती है, वहाँ पर मौजूद सभी लोग बस चढ़ने लगते हैं l बनानी भी जाने लगती है

रॉकी - बनानी... (बनानी पीछे मुड़ कर देखती है) क... क्या... दो मिनट.. दो मिनट के लिए रुक सकती हो.. प्लीज...
बनानी - क्यूँ..
रॉकी - सिर्फ़ दो मिनट... अगली बस से चली जाना... प्लीज...

बनानी रुक जाती है और बस चली जाती है l

रॉकी - थैंक्यू...
बनानी - जो भी कहना है जल्दी कहो... मुझे जाना है...
रॉकी - मैं सबसे पहले माफी माँगता हूँ... जो हुआ... जो भी हुआ... उन सबके लिए...
बनानी - ठीक है... और...
रॉकी - और... यह मेरा लास्ट ईयर है... उसके बाद मुझे पापा का बिजनैस संभालना है...
बनानी - अच्छी बात है... कंग्रेचुलेशन...
रॉकी - क्या मैं.. अगर तुम हाँ कहो तो... मैं अपनी मम्मी और पापा को लेकर तुम्हारे घर...
बनानी - किस लिए...
रॉकी - वह... मतलब.. श्.. श.. शादी...
बनानी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रॉकी - क्यूँ नहीं.. आख़िर प्यार करती हो.... तुम मुझसे...
बनानी - प्यार... कैसा प्यार... वह एक भ्रम था... टुट गया...
रॉकी - मैंने ऐसा क्या कर दिया है...
बनानी - क्या... कर दिया है... अपने बदले के लिए... तुमने मेरी जान की बाजी लगा दी... और पूछते हो क्या कर दिया है...
रॉकी - मैं... मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ... गलती सुधारना चाहता हूँ... प्लीज... सच्चे दिल से.... अपना प्रायश्चित करना चाहता हूँ...
बनानी - ओ... तुम यहाँ प्रायश्चित के लिए आए हो.. प्यार के लिए नहीं...
रॉकी - नहीं.. मेरा कहने का मतलब है कि... मैं भी तुम्हें चाहने लगा हूँ...
बनानी - तो.. तो क्या मैं खुश हो जाऊँ... नाचने लगूँ... झूमने गाने लगूँ....
रॉकी - प्लीज... एक मौका... दो.. प्लीज...
बनानी - जानते हो... तुम्हारी कमीना पन जानने के बावजूद.... नंदिनी ने तुम्हें क्यूँ छोड़ा था... वजह मैं थी... उसे मेरे अंदर की भावनाओं का कदर था... इसलिए जिस दिन... वह तुम्हें दिल से भाई मान कर गले लगा लेगी... उस दिन मैं... (तभी बस आने की हॉर्न बजती है) मेरी बस आ गई...
रॉकी - (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
बनानी - रॉकी... तुम जितने नंदिनी के गुनहगार हो.. उतने मेरे भी... उसने माफ भी कर दिया है तुम्हें... पर जिस रिश्ते की ढोल बजाये हो... अगर उसे... वह स्वीकार हुआ... तब मैं भी अपनी दिल की ज़ज्बात को स्वीकार कर लुंगी... बस...

फ्लैशबैक खतम

रुप - तो क्या तु इस बात से डिस्टर्ब्ड थी...
बनानी - ह्म्म्म्म...
रुप - देख तुने जो फैसला किया है... वह तेरा अपना है... मैं सच कहती हूँ... अगर वह मेरा अपना भाई भी होता... तब भी मैं उसकी सिफारिश हरगिज ना करती...
बनानी - मैं... जानती हूँ...
रुप - यह सिफारिशी वाला जो प्यार होता है ना... सिर्फ़ जवानी में ही किया जाता है... इसलिए मैं इसे सच्चा प्यार नहीं मनाती...
बनानी - अच्छा... अभी अभी तुने कहा कि तेरी शादी तय हो चुकी है... फिर सच्चे प्यार के बारे में... कैसे जानती है...
रुप - जानती नहीं हूँ... पर... समझती जरूर हूँ...
बनानी - अच्छा...
रुप - हाँ... प्यार या तो बचपन का सच्चा होता है... या फिर बुढ़ापे का... जवानी में भटकाव ज्यादा होता है.. सच्चाई कम होती है... क्यूंकि बचपन का प्यार आसमान ढूंढ लेता है... और बुढ़ापे का प्यार कभी जमीन नहीं छोड़ती है... बस जवानी के प्यार के हिस्से में... ना आसमान होता है... ना जमीन...
बनानी - वाव.. पता नहीं... तेरी बातों में कितना सच्चाई है... पर मान लेने को दिल करता है...
रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...
बनानी - नंदनी... सच सच बता... जिस कंनफिडेंट के साथ यह कह रही है... कहीं बचपन में... तुने किसी को...
रुप - (अपनी शर्माहट को छुपाते हुए) चल चलते हैं... क्लास में...
बनानी - (रुप की शर्माहट पकड़ लेती है) नहीं गए तो क्या हो जाएगा... (छेड़ते हुए) चल बता ना... कौन था... कैसा था...
रुप - (गालों पर लाली छा जाती है) तु चलती है कि नहीं...
बनानी - नहीं... अब मुझे जाननी है.. तेरे बचपन के सच्चे वाले प्यार के बारे में...
रुप - देख मुझे परेशान मत कर... प्लीज... चलते हैं ना क्लास...
बनानी - देख या तो मुझे सब बताएगी... या मैं.. सब को बुला कर ढिंढोरा पीटुंगी...
रुप - अच्छा... बताऊंगी... तुझे जरूर बताऊंगी... प्लीज अभी क्लास चलते हैं...
बनानी - ठीक है... पर याद रखना... वरना... मैं क्या करुँगी...
रुप - (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मेरी माँ... अब क्लास तो करलें हम पहले...

बनानी हँसने लगती है फिर कैन्टीन से निकल कर दोनों क्लास की ओर चलने लगते हैं l


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ESS ऑफिस में वीर अपनी कार लेकर आता है, गाड़ी को गेट के पास रोक कर गाड़ी से उतर कर गार्ड के हाथ में चाबी देता है और झूमते हुए ऑफिस के अंदर जाता है l गार्ड से लेकर स्टाफ सभी हैरानी से वीर की ओर देखने लगते हैं l वीर ऐसे झूमते हुए अपनी कैबिन की ओर जा रहा है जैसे वह कोई गाना सुन रहा है l झूमते झूमते हुए वह अपनी कैबिन के पास पहुँचता है और दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है l अंदर पहुँच कर दोनों बाहें फैला कर एक गहरी सांस लेता है फिर एक नजर अपनी कैबिन में हर कोने पर डालता है l उसके बाद वह जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l ऐसे में करीब दस मिनट गुजर जाते हैं l वह हैरान हो जाता है क्यूँकी अब तक अनु को उसके सामने आ जाना चाहिए था l
"वह क्यूँ नहीं आई"
टेबल पर रखे इंटरकॉम से अनु के इंटरकॉम पर डायल करता है l

अनु - हैलो...
वीर - क्या हुआ... तुम्हें अब तक मेरे सामने.. मेरे पास होना चाहिए था...
अनु - जी... आपको अभी... क्या चाहिए...
वीर - (हैरान हो कर) क्या चाहिए... क्या मतलब है क्या चाहिए...
अनु - जी.. मेरा मतलब है... चाय कॉफी...
वीर - यह क्या नाटक है अनु...
अनु - ठीक है... मैं कॉफी लेकर आती हूँ... (इंटरकॉम पर क्रेडेल रख देती है)

अनु के इस तरह से बात करने और जवाब देने से वीर हैरान हो जाता है l उसके जबड़े भींच जाती हैं और दांत कड़कड़ आवाज के साथ पीसने लगता है l तभी हाथ में कॉफी लेकर अनु अंदर आती है, और वीर को बढ़ाती है l वीर अनु की चेहरे को देख कर कॉफी लेता है और टेबल पर रख देता है l

वीर - क्या हुआ...
अनु - कुछ.. कुछ नहीं राजकुमार जी...
वीर - मैंने पुछा... क्या... हुआ...
अनु - जी यह ऑफिस है... मेरी टेबल आपके कैबिन के बाहर है... मुझे सिर्फ तभी आना चाहिए... जब आपको कुछ चीजों की जरूरत हो...
वीर - (अपनी चेयर पर सीधा होकर बैठ जाता है) किसने कहा...
अनु - जी.. वह.. व ह ...
वीर - और जब मुझे खुशी में या दुख में... किसी दोस्त की जरूरत होगी... तब...
अनु - (अपनी वैनिटी बैग से दो स्माइली बॉल निकाल कर वीर को देती है)
वीर - (वह दो बॉल अनु के हाथ से लेता है और डस्टबीन में फेंक देता है) मैंने तुमसे वादा लिया था... और तुमने मुझे वादा भी किया था... मैं जब भी ज्यादा खुश हो जाऊँ... या ज्यादा दुखी हो जाऊँ... तुम मुझे गले से लगा लोगी...
अनु - (अपना सिर झुका लेती है और वीर नजरें मिलाने से कतराती है)
वीर - कौन आया था यहाँ...
अनु - जी... वह...
वीर - तुम्हें मैंने अपनी टर्म्स एंड कंडीशन पर नौकरी पर रखा है... यहाँ... इस कैबिन में.. मेरी शर्तें लागू हैं... तुम... मेरी पर्सनल सेक्रेटरी और असिस्टेंट हो... इसलिए अब बताओ... कौन आया था यहाँ...
अनु - (फिर भी चुप रहती है)
वीर - (थोड़ी ऊंची आवाज़ में) अनु..
अनु - (चौंक जाती है)
वीर - (अनु के बाहें पकड़ कर) अनु... तुम मेरी... सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त हो... यह... हमारी दोस्ती के बीच कौन आ गया अनु... प्लीज... कहो.. कौन है वह...
अनु - एक... एक शर्त पर...
वीर - मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजुर है...
अनु - आप उनसे झगड़ा नहीं करेंगे... बल्कि उनकी बातेँ मानेंगे...
वीर - मंजुर है...
अनु - आपसे युवराज जी मिलना चाहते थे... मुझे आपके कमरे में देख कर... बस इतना ही कहा... की पीएस का काम खयाल रखना है... पर तभी जब जरूरत हो... तभी... हर वक़्त कैबिन के अंदर होना जरूरी नहीं है....
वीर - ओ.. मैं.. मैं.. समझ गया... उन्होंने मुझे बुलाया है ना...
अनु - जी...
वीर - मैं... मैं उनसे अभी... मिलकर आता हूँ...
अनु - आपको हमारी दोस्ती का वास्ता... आप चिल्लाएंगे नहीं...
वीर - अपने दोस्त पर ना सही... क्या तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा नहीं...
अनु - है... खुद से ज्यादा... अपनी जान से ज्यादा...
वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है सीधे जा कर विक्रम के कैबिन में पहुँचता है l विक्रम के साथ वहाँ पर महांती भी बैठा हुआ मिलता है l

वीर - (खुद को काबु करते हुए) आप... आपने मुझे बुलाया...
विक्रम - हाँ राज कुमार... पर लगता है... मेरे बुलाने से... आप खुश नहीं हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... कहिए... क्या काम था...
विक्रम - क्या वगैर काम के... आप यहाँ नहीं आते...
वीर - नहीं... नहीं आता... क्यूंकि वगैर काम के... आपको कभी मेरी जरूरत पड़ी हो... ऐसा मुझे याद नहीं...
विक्रम - अगर आपके और मेरे बीच काम का रिश्ता है... तो आपके और आपके पीएस के बीच कौनसा रिश्ता है...
वीर - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भींच जाती हैं) वह मेरी पीएस कम असिस्टेंट है... बाय प्रोफेशन... और इकलौती दोस्त है... बाय डेस्टिनी...
विक्रम - कुछ देर से.. आप हम के वजाए मैं कह रहे हैं... क्या मैं सही सुन रहा हूँ...
वीर - जी...
विक्रम - क्यूँ...
वीर - हम दोनों की अपनी अपनी वजह है...
विक्रम - मैंने अपनी वजह आपसे छुपाया नहीं है...
वीर - और अभीतक मैंने अपनी वजह बताय नहीं है...
विक्रम - तो अभी बता दीजिए...
वीर - (एक गहरी सांस लेते हुए) मुझसे यह झूठे नक़ाब ढोया नहीं गया... जो रिश्ते नातों को किसी अहं के नीचे दबोच दे... खतम कर दे... इसलिए मैंने उस हम को ढोना छोड़ दिया... भैया...
विक्रम - (चौंक जाता है) क्या... क्या कहा आपने...
वीर - भैया... आप बार बार मुझे... आप ना कहें... तु कह सकते हैं... जैसे माँ कहती है... या फिर तुम... जैसे भाभी या रुप कहती है...
विक्रम - (आँखे चौड़ी हो जाती है) क्या... यह.. यह सब कब हुआ...
वीर - परसों... रुप के जन्मदिन पर...
विक्रम - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
वीर - अगर बातेँ हो गई... तो मैं जाऊँ...
विक्रम - हँ... हाँ... नहीं रुको एक मिनट... क्या इन सबके पीछे... आपकी वह पीएस है...
वीर - नहीं... वह मेरी दोस्त है... पुरी दुनिया में... मेरी इकलौती दोस्त है...
विक्रम - आपको दुनिया में... कोई और मिली नहीं... रंग... उसका फीका... बहुत ही आम सी दिखने वाली... वह... एक मामुली लड़की...
वीर - (अपनी उंगली विक्रम की ओर दिखाते हुए) बस... बस भैया... बस... वह मेरी दोस्त है... उसकी मान सम्मान... मेरी मान सम्मान... (विक्रम की आँखे फटी की फटी रह जाती है और वह खड़ा हो जाता है, उसे खड़ा होता देख महांती भी अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) अगर कोई काम हो... तो सीधे मुझे फोन कर बुला सकते हैं.... हाजिर हो जाऊँगा... चलता हूँ...

वीर इतना कह कर वहाँ से निकल जाता है l उसके जाने के बाद भी विक्रम हैरानी से दरवाजे की ओर देखता रह जाता है l

महांती - युवराज...
विक्रम - हँ...(होश में आते हुए) हाँ...... महांती... कुछ कहा तुमने...
महांती - राजकुमार चले गए...
विक्रम - यह... अभी जो हुआ... मतलब जो हुआ... वह क्या था... महांती...
महांती - (थोड़ा खरास लेते हुए) अहेम.. अहेम... राजकुमार जी को...
विक्रम - हाँ... राजकुमार जी को...
महांती - राजकुमार जी को... प्यार हो गया है...
विक्रम - (हैरान हो कर महांती को देखता है)
महांती - हाँ... युवराज... यह प्यार ही है... जिसे राजकुमार दोस्ती कह रहे हैं...
विक्रम - कैसे... महांती... कैसे... एक.... मामुली सी लड़की से...
महांती - हमारे यहाँ लोकल में एक बात खूब बोली जाती है...
"भुख ना देखे बासी भात"
"प्यार ना देखे ऊँच नीच जात पात"
विक्रम - वह लड़की...
महांती - बहुत ही अच्छी लड़की है... मैंने पता किया है.... बहुत ही शरीफ... मासूम और भोली.... या यूं कहूँ कि... राजकुमार जी के चरित्र की पुरी उल्टी है... लड़की पुरब है तो राजकुमार जी पश्चिम हैं...
विक्रम - वह लड़की अच्छी है... मैं जानता हूँ...
महांती - क्या... कैसे...
विक्रम - (अपनी कान से माइक निकाल कर डस्टबीन में फेंकता है) मैंने कुछ देर पहले... राजकुमार जी के कैबिन में बग फिट कर आया था...
महांती - (सवालिया नजरों से देखता है)
विक्रम - अभी अभी उनके बीच हुए सारी बातेँ... मैंने सुनी है...
महांती - (हाँ मे अपना सिर हिलाता है)
विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...


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एक जीप यशपुर के रास्ते राजगड़ की ओर तेजी से भाग रही है l ड्राइविंग सीट पर रोणा हाथ में सिगरेट की धुआँ उड़ाते हुए स्टीयरिंग मोड़ रहा है और बगल में बल्लभ संभल कर बैठने की कोशिश कर रहा है l

बल्लभ - अबे संभाल... संभल कर... किस बात की जल्दी है तुझे... कोई टांग खोलके तेरा इंतजार कर रहा है क्या...
रोणा - नहीं... पर मुझे विश्व से मिलने की जल्दी है...
बल्लभ - अगर राजगड़ आया होगा... तो वह गांव में ही होगा... पर तुझे शायद मालुम ना हो... राजा साहब ने सात साल पहले ही... उसका गांव में हुक्का पानी बंद कर रखा है... गांव में तो घुसने से रहा...
रोणा - अगर वह नहीं मिला... तो उसकी बहन तो होगी... मैं उससे ज़मानत वसूल कर लूँगा...
बल्लभ - जैसे कल... उस औरत से वसूल रहा था...
रोणा - (शैतानी हँसी के साथ) हाँ... बिल्कुल वैसे ही...
बल्लभ - यह गलती से भी मत सोचना...
रोणा - क्यूँ...
बल्लभ - तुझे क्या.. तु सस्पेंड हो कर हेड क्वार्टर में छह महीने तक हाजिरी लगाता रहा... और छह महीने बाद... जहां पोस्टिंग मिला चला गया... कोर्ट के विश्व को सज़ा सुनाने के बाद... राजा साहब अपनी गाड़ी से वैदेही को बिठा कर बीच चौराहे में... उसे ले जाकर सात थप्पड़ मारे थे... वैदेही के बेहोश होने तक... उसके बाद उसे वहीँ छोड़ दिया... और अपने आदमियों से विश्व के वापस आने तक... वैदेही से दुर रहने का फरमान सुनाया....
रोणा - पर... अब तो विश्व छूट गया ना...
बल्लभ - हाँ... पर राजगड़ में राजा साहब की मिल्कियत से प्रसाद... उनके झूठन करने के बाद मिलता है... जानते हो ना...
रोणा - ह्म्म्म्म... पर मैं... टॉर्चर तो कर ही सकता हूँ... वरना सुकून कैसे मिलेगा...

इतने में थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे उन्हें गांव के दो आदमी दिखते हैं l उनमें से एक आकर रास्ते के बीच खड़ा हो जाता है और गाड़ी को रोकने की कोशिश करता है l एक आदमी के चेहरे पर बैंडेज बंधा हुआ है l उन्हें देख कर बल्लभ गाड़ी रुकवाता है l उनमें से किसी एक से

बल्लभ - अरे नरी... क्या हुआ तुझे... (रोणा से) यह राजा साहब के लोग हैं...
नरी - वह... मैं... गिर गया था...
बल्लभ - सच बोल...
नरी के साथ वाला - नहीं वकील साहब.. वैदेही ने इसके चेहरे पर.. दरांती चला दिया....
रोणा - क्या.. तो पुलिस में कंप्लेंट कर देते...
बल्लभ - कैसे करते यह कम्बख्त... इन्होंने ही छेड़ा होगा उसे... क्यूँ समरा... ठीक कह रहा हूँ ना... (वह दोनों अपना चेहरा झुका लेते हैं) अरे घबराओ नहीँ... यह(रोणा को दिखा कर) आज से राजगड़ थाने के अधिकारी हैं... बड़े पुराने साहब हैं.. राजा साहब ने खास तुम लोगों के लिए बुलाया है... इसलिए इन्हें सब सच सच बता दो...
वह दोनों - सलाम साहब...
रोणा - सलाम... कहो... वैदेही ने तुम पर क्यूँ हमला किया... सच बोलोगे... तो सब संभाल लुंगा...

वे दोनों पहले एक दुसरे को देखते हैं फिर बल्लभ की ओर देखते हैं l

बल्लभ - अरे बिंदास बोलो... इन साहब का भी वैदेही से... काम है.. घबराओ मत... बेझिझक खुल कर बोल दो...

समरा - साहब मैं बताता हूँ... यह नरी है... इसकी आँख बहुत दिनों से कीर्तनीया की बेटी मल्ली पर थी... इसलिए कीर्तनीया को पीने के लिए हमेशा पैसे देता था... पिछले महीने से अपना पैसा वापस मांग रहा था... कीर्तनीया के पास थे नहीं... इसलिए बच रहा था... आज सुबह यह ज़बरदस्ती कीर्तनीया के घर पहुँच गया... वहाँ जा कर अपने पैसों के लिए हंगामा खड़ा कर दिया... कीर्तनीया बहुत बिनती किया... हाथ जोड़े... और पैसे वापस देने के लिए तीन महीने की मोहलत मांगा... तो इसने एक शर्त रख दी...
रोणा - कैसी शर्त...
समरा - तीन महीने के लिए... इसके घर में मल्ली काम करने के लिए जाती...
रोणा - ओ... अच्छा... तो इसमें... वैदेही कहाँ से आ गई...
समरा - जैसे ही इसने अपना शर्त रखा... कीर्तनीया की बीवी कमली ने मल्ली को वैदेही के पास भगा दिया...


फ्लैशबैक

मल्ली भागते हुए वैदेही के दुकान पर पहुँचती है l मल्ली वैदेही को सारी बात बताती है l तभी उसके पीछे पीछे भागते हुए नरी वहाँ पहुँचता है l

वैदेही - बस... नरी बस... इस दुकान के अंदर मत आना... वह तुम्हारा हद है... लांघने की कोशिश भी ना करना... वरना... तुम्हें पचताने से कोई नहीं रोक पाएगा...
नरी - ओ... अच्छा... देखो तो.. कौन बोल रही है... रंग महल की रंडी साली...
वैदेही - फिर भी... तेरी औकात नहीं है... मल्ली को यहाँ से ले जाने की...
नरी - अच्छा... कौन रोकेगा मुझे... तु... (वहाँ पर कुछ छोटे बच्चे और कुछ औरतें खड़े थे उन्हें दिखा कर) या यह... तेरी फौजें... हा हा हा...
वैदेही - यह जब लड़ने पर आयेंगे... तब तुझ जैसों को छुपने के लिए सारा ब्रह्मांड कम पड़ जाएगा... पर कोई नहीं... तेरी औकात... तेरी हैसियत इतनी भी नहीं... की मेरे होते हुए... इसे हाथ भी लगा दे...
नरी - उई माँ... मैं तो डर गया.... रंग महल की इस रांड ने मुझे डरा दिया... (मल्ली से) एई लड़की... प्यार से मेरे साथ चल... वरना... तुझे बालों से खींचते हुए ले जाऊँगा....

मल्ली वैदेही के पीछे खड़ी हो जाती है l नरी बेपरवाह आगे बढ़ने लगता है l जैसे ही वैदेही के पास पहुँचता है वैदेही की एक जोरदार लात नरी के बीच टांगों में पड़ती है l नरी एक फुट ऊपर उछल कर अपने घुटने के बल गिरता है l मुहँ से गँ गँ की आवाज निकलने लगती है l चोट लगी जगह को दोनों हाथों से ढक कर पीड़ा भरी आँखों से वैदेही की तरफ देखने लगता है l ऐसा लगता है दर्द से उसकी आँखे उबल कर बाहर आ जाएंगी l फिर धीरे धीरे नरी की आँखे गुस्से से जलने लगती है वह उठ कर जल्दी से वैदेही पर झपट्टा मारता है l पर इस बार भी उससे देर हो जाती है l ना जाने कहाँ से वैदेही दरांती निकालती है और उतनी ही फुर्ती से चला देती है l इस बार नरी अपना चेहरा पकड़ कर नीचे गिर जाता है और छटपटाने लगता है l

नरी - आ... आ..ह.. साली कुत्तीआ... रंडी... आ...ह... आ.. आ.. ह..
वैदेही - कहा था ना... मेरे होते हुए... नहीं... रांड की लात झेल नहीं पाया... अब किसीको मुहँ भी दिखाने के लायक नहीं रहा.... और सुन... राजगड़ की हर घर की इज़्ज़त मेरी जान है... आँखे उठा कर कोई भी देखा... तो कसम खा कर कहती हूँ... उसकी गर्दन उड़ा दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

समरा - एक चीरा... बाईं आँख के ऊपर से होकर... नाक को चीरते हुए... दाएं गाल तक... पंद्रह स्टिच लगे हैं...
बल्लभ - ठीक है बैठ जाओ... हम राजगड़ ही जा रहे हैं...

वे दोनों जीप के पीछे बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद बल्लभ रोणा से

बल्लभ - देखा... वैदेही अब कितनी खतरनाक हो गई है... अब तो उसका भाई भी वापस आ गया होगा...
रोणा - तो क्या हुआ... क्या उखाड़ लेगा... आने दो उस हरामजादे को... दोनों भाई बहन की जिंदगी नर्क बना कर रख दूँगा...
समरा - क्या... उसका भाई विश्व आने वाला है...
बल्लभ - आने वाला है... वह तो तीन दिन पहले पहुँच गया होगा...
नरी - नहीं वकील साहब... विश्व आया होता तो हमें पता चल गया होता... अभी तक तो विश्व आया नहीं है...
बल्लभ - (रोणा से) ऐ रोणा... तु तो कह रहा था... वह तीन दिन पहले... छुट गया है...
रोणा - तुमको क्या लगता है प्रधान बाबु... मैंने झूठ कहा है... अगर विश्व गांव नहीं गया है... तो जरूर कहीं भाग गया है...
बल्लभ - हाँ... यह हो सकता है... भाग गया होगा... भागता नहीं.... तो करता क्या...

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शाम का समय
प्रतिभा के नए घर में l ड्रॉइंग रुम में जोडार एक सोफ़े पर बैठा हुआ है उसके सामने प्रतिभा कमरे के एक कोने से दुसरे कोने तक, जा रही है फिर वापस आ रही है l बीच बीच में वह घड़ी देख रही है l

जोडार - मिसेज सेनापति... प्लीज... आप परेशान ना हो... वह आ जाएंगे...
प्रतिभा - फोन पर बताया था... छह बजे तक पहुँच जाएंगे...
- तो छह बजा ही कहाँ है... (अंदर आते हुए तापस) घड़ी देख लो... अभी भी पांच मिनट बचे हैं... छह बजने के लिए...

तापस के पीछे पीछे विश्व कुछ कागजात हाथों में लिए विश्व अंदर आता है l

प्रतिभा - ठीक है.. ठीक है... पर फिर भी... इतना देर...
विश्व - माँ... ट्रैफिक... जानती हो ना... वह तो डैड आपसे डरते हैं... इसलिए इतनी जल्दी गाड़ी उड़ा कर लाए... वरना मैं तो सोच रहा था... आठ बज जाएंगे...
प्रतिभा - तु चुप रह... डैड का चमचा... (तापस से) आपको गाड़ी चलाना था... उड़ाना नहीं था...
तापस - (दोनों हाथ जोड़ कर) गलती हो गई भाग्यवान... आइंदा से खयाल रखूँगा...

प्रतिभा अपना मुहँ बना कर आँखे सिकुड़ कर देखने लगती है l उन दोनों के बीच की नोक झोंक को जोडार एंजॉय कर रहा था l

विश्व - ओके ओके... इस पर हम... जोडार साहब के जाने के बाद भी बात कर सकते हैं...
तापस - हाँ भाग्यवान... हमें सबसे पहले जोडार साहब को भगाना है...(जोडार से) प्लीज डोंट माइंड... उसके बाद हम पेट भरने तक लड़ सकते हैं...
जोडार - कमाल करते हो... सेनापति सर... मैं तो यहाँ से डिनर करके जाना चाहता था...
तापस - ओ... ऐसी बात थी... कोई बात नहीं... हम कल झगड़ लेंगे... क्यूँ भाग्यवान...

प्रतिभा का तमतमाता चेहरा देख कर तापस सकपका जाता है और चुपचाप एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

प्रतिभा - (अपनी दांत चबाते हुए) (और तापस की देख कर) तो प्रताप... तुझे सबूत मिल गए...
विश्व - हाँ माँ... मिले भी और हमने हासिल भी कर लिया है... (सोफ़े पर तापस के बगल में बैठते हुए) यह रहे... (कागजात दिखाते हुए) इन्हें हासिल करने में थोड़ा वक़्त लग गया....
प्रतिभा - यह कैसे कागजात हैं...
विश्व - वेट मशीन की रिपोर्ट.... यानी लोकल भाषा में... धर्म कांटा के रिपोर्ट...
जोडार - वेट मशीन की रिपोर्ट तो थी ना हमारे पास... फिर...
विश्व - जोडार साहब... आपका सामान कार्गो शिप से जब अनलोड हुई तब... वेट मशीन में चेक किया गया और सिंगापुर रिपोर्ट के साथ मैच किया गया... फिर गोदाम में सामान की कस्टम चेकिंग हुई... उसके बाद स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... अंतिम बार की वेट मशीन से चेक होने से पहले... सामान निकाल लिया गया... और आपके लिए खाली कंटेनर रिसीव करने के लिए छोड़ दिया गया...
जोडार - पर जो डेलीवेरी रिपोर्ट थी... वह सब एज पर रिसीवींग ही किया गया है...
विश्व - वह तेरह पन्ने की रिपोर्ट थी... जिसे इसलिए बनाया गया था... ताकि असली बात छुपाया जा सके...
जोडार - कौनसी बात...
विश्व - चलिए मैं आपको साजिश की पुरी कहानी डिटेल में बताता हूँ...
तो हुआ यूँ... कार्गो शिप से आपके चार कंटेनर उतारा जाता है, और वेट मशीन में वजन चेक कर के सिंगापुर रिपोर्ट से मैच किया गया... उसके बाद कस्टम चेकिंग के लिए गोदाम भेजा गया... वहाँ पर हर एक प्लाइवुड के वुडेन बॉक्स... और कार्ड बोर्ड बॉक्स खोल कर कस्टम क्लीयरेंस किया गया... क्लीयरेंस के बाद सभी कंटेनर को स्टॉक यार्ड भेज दिया गया... जिसकी रख रखाव लीज पर एक प्राइवेट संस्था कर रही है... और यह बताने की कोई जरूरत नहीं... वह संस्था केके की है... और वहाँ पर सिक्युरिटी की इंतजाम ESS की है...
प्रतिभा - ओ... मतलब... इस साजिश में क्षेत्रपाल इस तरह से शामिल हुए हैं...
विश्व - कह नहीं सकते...
प्रतिभा - क्या मतलब कह नहीं सकते...
तापस - भाग्यवान ... तुम इतनी उतावली क्यूँ हो रही हो... पुरी कहानी तो सुन लो..
विश्व - तो चूंकि स्टॉक यार्ड की देख रेख एक निजी संस्था करती है... इसलिए उनकी ड्यूटी है... सामान बिल्कुल उसी तरह लौटाएँ... जैसा कस्टम अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया हो... और डेलीवेरी से पहले... अंतिम बार वेट मशीन की रिपोर्ट भी अटैच करे... पर... यहाँ थोड़ी सी चालाकी कि गयी...
जोडार - कस्टम अधिकारी के दिए रिपोर्ट के अनुरूप... उन्होंने सेम टू सेम रिपोर्ट बनाते बनाते... सिर्फ़ सेम प्लाइवुड वुडेन बॉक्स और सेम कार्ड बोर्ड बॉक्स की लोडिंग की बात लिखी गई... पर फिल्ड विथ द सेम मैटेरियल्स... यह नहीं लिखा... यही लाइन ठीक से समझ नहीं पाए थे... आपके पहले वाले वकील... और रिपोर्ट में फाइनल वेट मशीन रिपोर्ट अटैच भी नहीं किया गया... जिसको आपके वकील ने इग्नोर मारा था शायद... इसलिए... आपको कंटेनर तो मिले... वुडेन बॉक्स और कार्ड बोर्ड के साथ... मगर वगैर मैटेरियल्स के...
जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....
प्रतिभा - हाँ हाँ... हो जाएगा... कल दुपहर तक कोर्ट से ऑर्डर... मैं निकलवा लुंगी... परसों तक उन लोगों को नोटिस मिल जाएगा....
विश्व - बस... (जोडार से) आपका काम हो गया...

जोडार अपनी जगह से उठता है और विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l

जोडार - (विश्व के दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर) थैंक्यू... माय बॉय... थैंक्यू...
वाह क्या मस्त अपडेट है, अनु और विक्रम का टकराना फिर वीर का अनु के लिए विक्रम का सामना करना। रोड़ा और बल्लभ का कमीनापन और विश्व का पहले केस में ही नो बॉल पर छक्का मार देना। बहुत ही जबरदस्त अपडेट। कहीं विश्व के राजगढ़ पहुंचने से पहले वैदेही के साथ कुछ हो तो नही जाएगा जिस की वजह से विश्व के खूंखार शेर बन जाएगा जो किसी को भी नही छोड़ता है।
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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nice update ..to ab rona ki entry ho gayi rajgadh me aur wo apni ayyashi chhodkar isliye rajgadh jana chahta tha kyunki vishw ko maarna ya tadpana chahta hai jiska mukhya karan hai vishw ka rona ko mukka maarna ..
vallabh ne saari jaankari de di rona ko aur nari ke jariye shayad wo vaidehi ko pareshan kar sakta hai .

vikram ne warn kiya anu ko ki veer ne sirf kaam ke waqt mile ,jisse anu ne bakhubi nibhaya .
par isse veer ko pareshan to hona hi tha aur ab vikram bhauchakka reh gaya veer ke badlaw ko dekhkar 🤣.

tapas aur vishw ne saari jaankari ikattha kar li hai jisse ab wo kk aur ess par case kar sakte hai .
 

avsji

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रोणा - (शैतानी मुस्कराहट के साथ) वह अब रजिस्टर्ड सजायाफ्ता मुजरिम है... राजगड़ में कहीं भी... कोई चवन्नी भी खो जाए... कैफ़ियत विश्व को देना होगा... हा हा हा हा हा

लगता है कि रोणा से ही खेत्रपाल के प्यादे बिछने शुरू होंगे।
बिना दुश्मन की ताक़त जाने वो उससे उलझने की भूल कर रहा है - मतलब अंजाम तो भुगतना ही पड़ेगा।

रुप - सच कह रही हूँ... क्यूंकि बचपन सच्चा होता है... और बुढ़ापे में कोई ख्वाहिशें नहीं होती... जवानी ही हमें भटकाती है... बहकाती है...

हाँ - एक हद तक सही बात है। बचपन का भोलापन और निश्छलता प्रेम के शुद्ध रूप को दिखा सकती है।
लेकिन आज कल के बच्चों को देखता हूँ, तो उनमें भोलापन दिखता ही नहीं! या तो मैं मूरख था, या फिर ये नई पीढ़ी ज़रुरत से कुछ ज्यादा ही शानी है।

वीर - (उसकी ओर देख कर मुस्कराता है) इतना भरोसा है... तो मुझे अकेला क्यूँ छोड़ दिया... (अनु अपना अपना चेहरा झुका लेती है) मेरा इंतजार करना...

वीर तो लाइन पर आ गया है। बढ़िया।

विक्रम - महांती... जानते हो... आज जिंदगी में... पहली बार... पहली बार मुझे डर का एहसास हुआ...(एक गहरी सांस लेते हुए) जिस लहजे में... मतलब मुझ पर वह चिल्लाए नहीं पर... जैसे राजकुमार बात कर रहे थे... मेरे अंदर... मैंने डर को... साफ महसुस किया... अब... ऐसा लग रहा है.. जैसे... कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है... तिनका तिनका बिखरने वाला है...

अगर इतनी ही समझ है, तो एक चूतियापे वाले मिशन पर क्यों है विक्रम?

जोडार - ओह माय गॉड...
विश्व - अब आप अपने मैटेरियल्स पर दावा ठोक सकते हैं... और हैवी कंपेनसेशन भी...
जोडार - तो इसमें हम पार्टी किन किन लोगों को बनायेंगे...
विश्व - केके... और ESS....

ये लगी (लगने वाली है) पहली चोट!
मामूली ही सही, लेकिन चोट तो है। अहंकारी को लगता है कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
उसी ठसके में वो अपना काम करता है।
लेकिन अहंकारी में सहनशीलता बहुत कम होती है। थोड़ी सी भी चोट, उसके लिए पर्याप्त होती है।

बहुत बढ़िया भाई साहेब! उम्मीद है कि छुट्टी मज़े से बीतीं।
इतनी गर्मी में देश में बाहर भी कहाँ जाएँ! सोच रहा हूँ कि बीवी बच्चों को कहीं बाहर घुमा लाऊँ।
 
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