तिहत्तरवां अपडेट
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देर रात दो बजे
काठजोड़ी नदी की रेतीली पठार, जहाँ बीच में काठजोड़ी नदी एक नाले के जितने पानी लिए बेह रही है l उस बहाव से थोडे ही दूर करीब करीब डेढ़ सौ से दो सौ ट्रक एक घेरा बनाए जमा हुए हैं l असल में यह जगह रेत खनन का इलाक़ा है l जहाँ रेत की खनन लाइसेंस व परमिट वाले करते तो हैं, साथ ही साथ बिना परमिट के भी खुदाई होती है l यहाँ हर महीने एक बार ऐसे जमावाड़ा होता रहता है l क्यूँकी यहाँ पूर्वी भारत के मशहूर अंडरग्राउंड फाइटस का आयोजन किया जाता है l पुलिस भी जानती है पर आँखे बंद करने के लिए बाध्य है क्यूंकि इस फाइट्स में ज्यादातर खनन माफिया इनवॉल्व होते हैं l एक तरह से अपनी दुश्मनी इस फाइटस के जरिए उतारते हैं l अभी कुछ रात ग्यारह बजे सुरु हुई कई फाइट्स सब अंतिम दौर में पहुँच चुके हैं l पाँच फाइटर अपने अपने राउंड में जीत कर दर्शकों के सामने अपने मसल्स दिखा रहे हैं l दर्शक मतलब खनन माफिया के ठेकेदार और खुदाई करने वाले मजदूर चिल्ला रहे हैं l कोई खुशियाँ मना रहा है तो कोई मातम l क्यूँकी बात पैसों की है l महीने की आखिर में मिले तनख्वाह किसीके दुगने या तोगुने हो गए हैं और कुछ बर्बाद ही गए हैं l यह हर महीने की कहानी है l हर महीने यही होता रहता है l पर कोई इसे नहीं रोकता l अचानक एक आदमी रिंग के अंदर एक चोंगा लेकर आता है l
आदमी - सुनिए सुनिए सुनिए.. साहबान मेहरबान कदरदान... सुनिए... आज... एक सिर फिरे ने अपनी मैयत की इंतजाम... यहाँ अभी अभी की है...
लोग - हो.. ओ.. ओ...
आदमी - उसने एक साथ इन पांचों को ललकारा है... एक के पंद्रह के भाव में... तो साथियों... माल कमाने का... सुनहरा मौका हाथ से जाने ना दीजिए... आइए आइए पैसा लगाइए...
लोग - कौन है...
आदमी - वह खुद को... द डेविल... कह रहा हैं...
लोग - (सब अंगूठा नीचे करते हुए) हू... उ... उ..
आदमी - तो क्या कहते हो साथियों... लगाते हो दाव...
लोग - हाँ....
फिर वह आदमी एक टेबल के पास जाता है जहाँ दाव लगाने वालों की रकम और नाम रजिस्ट्रेशन किया जाता है l उसके इशारा करते ही लोग टुट पड़ते हैं अपना नाम और रकम को रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए l पुरे आधे घंटे के बाद काउंटर क्लॉज किया जाता है l उसके बाद वही आदमी अपना चोंगा लेकर रिंग में आता है और उस रात के जीते हुए फाइटर्स को एक एक करके रिंग के अंदर बुलाता है l हर एक फाइटर के आगमन पर वहाँ पर मौजूद लोग ताली बजाते हुए चिल्ला कर उनका स्वागत करने के साथ साथ मनोबल भी बढ़ा रहे थे l सभी पाँचों फाइटर रिंग के अंदर अपनी अपनी मसल्स दिखा रहे थे l तभी वह आदमी अपनी चोंगा से
आदमी - अब इनसे लड़ने आ रहा है... द डेविल... लोगों... इसके बारे में कोई नहीं जानता... मगर इस मरदूत ने इन पाँचों को एक साथ ललकारा है... साथियों मजे की बात यह है कि... सिर्फ़ एक ही आदमी ने इस पर दाव लगाया है... बाकी सभी इसके खिलाफ दाव लगाया है...
लोग चिल्लाते रहते हैं, उनके चिल्लाने को नजर अंदाज करते हुए एक नौजवान आदमी आधा मास्क पहने हुए रिंग में आता है l लोग अपने अंगूठे को नीचे कर हू.. उ.. उ.. चिल्लाने लगते हैं l
रेफरी सबको रिंग के बीचों-बीच बुलाता है l और सबको अपनी बात कहता है खास कर डेविल को
रेफरी - देखो... कोई नियम नहीं है.... पर... सबमिशन अल्लाउड़ है... आगे तुम्हारी किस्मत...
उसके बाद वह उन लोगों से थोड़ा दूर जा कर व्हिसील बजाता है l व्हिसील के बजते ही वह पाँचों डेविल पर झपट्टा मारते हैं l डेविल उनसे खुद को बचा कर एक तरफ आ जाता है, वे पाँचों एक दुसरे को इशारा करते हुए डेविल के इर्द-गिर्द घेरा बनाते हैं l डेविल भी अपना पोजीशन बना कर उनके हमले की इंतजार करने लगता है l जैसे ही सामने से एक फाल्स हमला करता है डेविल पीछे की तरफ टर्न किक मारता है जिसे लगता है वह गिर जाता है फिर डेविल अपने बाएँ तरफ घुटने पर आकर टर्न किक मारता है तीसरा गिरता है, उसके गिरते ही वह उठता है अपनी घुटने को मोड़ कर चौथे की सीने में वार करता है फिर एक जम्प के साथ पहले और पाँचवे को एक साथ किक मारता है l इतने में लोगों का शोर थम जाता है l फाइट आगे बढ़ती है डेविल की फुर्ती के आगे वह पाँचों बेबस दिखते हैं सिर्फ़ पाँच मिनट बाद पाँचों नीचे गिरे कराह रहे थे l वहाँ पर मौजूद सभी का मुहँ और आंख खुला रह जाता है l रेफरी भी हैरान रह जाता है l वह बड़ी मुस्किल से रिंग में आता है और डेविल को विनर घोषणा करता है l तभी काउंटर में एक शूट बूट पहना आदमी जाता है l अपना जीता हुआ रकम ले कर चला जाता है l उधर विनर होते ही डेविल रिंग से गायब हो जाता है l लोग आपस में खुशफूसाने लगते हैं और कुछ आपस में लड़ने लग जाते हैं l
थोड़ी दूर पर काउंटर से अपना जीता हुआ पैसा लेने वाला एक खुली जीप में जा रहा था उसके बगल में बैठा डेविल उससे पूछता है
डेविल - तो महांती... तुम्हें यकीन था... मैं जीत जाऊँगा...
महांती - सौ फीसद... युवराज जी... सौ फीसद... मैं जानता था... आप ही जीतेंगे... या जितने वाले हैं...
विक्रम - तुम्हें मुझ पर इतना यकीन क्यूँ है...
महांती - आई नो ऑल अबाउच यु युवराज जी... यु कौन बिट एनी वन...
विक्रम - कभी कभी यही कंनफिडेंट डूबा देता है... तुम उस ओरायन मॉल के पार्किंग में होते... तो शायद... यह कहने से पहले कई बार सोचते...
महांती - आप इसलिये हारे ...क्यूंकि तब तक आपको मालुम ही नहीं था... की कोई आपको हरा सकता है... पर अब ऐसा नहीं होगा... मैं जानता हूँ...
विक्रम - खैर... तब कि तब देखी जाएगी... पर आज के लिए... बहुत बहुत शुक्रिया... मुझे सटिस्फेक्शन नहीं मिला पर... अच्छा लगा..
महांती - आप तो बहुत ही अच्छा लड़े... क्यूंकि वन टू फाईव लड़ना... वह भी प्रोफेशनल्स के साथ... सिर्फ़ पाँच मिनट के लिए... वाकई... आउट स्टेंडिंग...
विक्रम - महांती... बेशक यह लोग प्रोफेशनल हैं... पर मैं जिससे लड़ा था... उसकी चुस्ती, फुर्ती वन टू टेन के बराबर था... और उसके हिट का इम्पैक्ट... बहुत ही जबर्दस्त था...
महांती - आप अगर कह रहे हैं... तो मैं भी उससे मिलना चाहूँगा... (कुछ देर की चुप्पी के बाद) अब थोड़ी देर बाद सुबह हो जाएगी...
विक्रम - हाँ... हो तो जाएगी... फिर एक बार तलाशने के लिए.... एक नया दिन मिल जाएगा...
महांती - युवराज... ईफ यु डोंट माइंड...
युवराज - पूछो महांती... हम पार्टनर ही नहीं दोस्त भी हैं... और इस दुनिया में... मेरा एक ही तो दोस्त है...
महांती - थैंक्यू युवराज... मैं जानता हूँ... मॉल वाली... इंसीडेंट के बाद आप बहुत.. अपसेट हैं.. पर इतना भी मुश्किल नहीं है एक्सेप्ट करना...
विक्रम - (हल्का सा मुस्कराता है) बहुत मुस्किल हो जाता है... जब आपकी जान बचाने के लिए... आपकी पत्नी झोली फैला दे... गिड़गिड़ाए... उस एक पल में पुरुष होने का सारा दम्भ... टुट जाता है...
महांती - (चुप हो जाता है और गाड़ी चलाता रहता है) (कुछ देर बाद) युवराज... अगर वह ना मिला तो... मेरा मतलब है... अगर वह भाग गया हो तो... कहीं छुप गया हो तो...
विक्रम - (हल्का सा मुस्करा कर अपना सिर ना में हिलाता है) नहीं... महांती... वह भागा नहीं है... ना ही वह कहीं छुपा होगा... मैंने उसके आँखों में... राजा साहब के लिए भयंकर नफरत देखा है... उसी नफरत का इम्पैक्ट उसके हर वार में... मार में फिल किया था मैंने.... कभी मुझे खुद से बहुत प्यार था... आज उसके वजह से मैं अपने आपसे नफरत करने लगा हूँ...(आवाज कड़क होने लगती है) मेरी नफ़रत को मिटाने के लिए... उसे.... मेरे सामने आना ही होगा....
महांती - अगर आया... तो क्या उसे जान से मार देंगे....
विक्रम - हाँ... क्षेत्रपाल का दुश्मन... मेरा दुश्मन... पर उससे पहले... मैं... उसके चाहने वाले के आँखों में... उसके लिए खौफ देखना चाहूँगा... उसके लिए गिड़गिड़ाते हुए... देखना चाहूँगा... फिर उसे उसकी अंजाम तक पहुँचा दूँगा...
महांती - उसके चाहने वाले...
विक्रम - हाँ महांती हाँ... उसके चाहने वाले... उसके चाहत को आँखों में सजाने वाले... उसके सपने देखने वाले आँखे... उन आँखों में... उस नामुराद के लिए खौफ होगा.... तुम देखोगे महांती... तुम देखोगे....
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कहाँ खो गई राज कुमारी जी - अनाम पूछता है
रुप - हाँ...(जैसे जगती है) हाँ... नहीं... कहीं नहीं...
अनाम - तो बताइए... अभी मैंने क्या पढ़ाया है...
रुप - (कुछ नहीं कहती है फिर किसी खयालों में खो जाती है)
अनाम - राज कुमारी जी...
रुप - ओह ओ... क्या है...
अनाम - लगता है... आज आपका पढ़ने का मुड़ नहीं है... ठीक है... आगे की पढ़ाई फिर कभी करते हैं...
रुप - (वैसे ही खोई खोई हुई) पता नहीं... वह फिर कभी आएगा... या नहीं...
अनाम - राज कुमारी जी... आप... आपको कोई सदमा लगा है क्या...
रुप - नहीं... पर मुझे ऐसा... लग रहा है... की मेरी बारहवीं जनम दिन... मैं और तुम मना नहीं पाएंगे...
अनाम - क्यूँ...
रुप - क्यूंकि... मैं अब बच्ची नहीं हूँ...
अनाम - (हँसते हुए) अच्छा... तो एडल्ट हो गई हो...
रुप - (उसे घूरते हुए देखती है) मैं अब बारह साल की होने वाली हूँ... भले ही एडल्ट नहीं हुई... पर तुमसे ज्यादा एडलसेंस है मुझ में...
अनाम - (हँसते हुए) अच्छा.... ऐसी कौनसी ज्ञान... आप मुझसे ज्यादा रखती हैं....
रुप अपने दोनों होठों को आपस में दबा कर अंदर की ओर लेती है और अनाम को घूर कर देखती है
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... कहूँगी.. तो भी समझ नहीं पाओगे...
अनाम - (रुप को सीरियस देख कर) सॉरी... पर कुछ ही दिन की तो बात है... मैं चुप के से आऊंगा... और हमेशा की तरह बर्थ डे मनाएंगे...
रुप - (चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है) तुम्हारा... अब महल में आना जाना बंद कर दिया जाएगा... फिर हम कभी मिल नहीं पाएंगे... और (सिसकते हुए) मेरा जनम दिन... फिर कभी भी कोई नहीं मनाएगा...
अनाम - ऐसी बात नहीं है राजकुमारी जी... अगला जनम दिन हम जरूर मिलकर मनाएंगे...
रुप - मैं... बात को समझा नहीं पाऊँगी.. अनाम तुम महल में तब लाए गए... जब तुम... बचपन को छोड़ किशोर हो चले थे.... और मैं बचपन में थी... अब तुम किशोर से जवान हो चुके हो... और मेरा बचपन छूट गया है... किशोरी होने वाली हूँ...
अनाम - ओ... अब... कुछ कुछ समझा...
रुप - एक वादा करोगे...
अनाम - व.. वादा...
रुप - (हल्के से हँसते हुए) डर गए...
अनाम - हाँ... नहीं... नहीं.. बिल्कुल नहीं...
रुप - तो मांगू...
अनाम - क्या...
रुप - वादा....
अनाम - हाँ... हाँ... मांगीए...
रुप - अब मेरा जनम दिन नहीं मनेगा... पता नहीं कब... भगवान की मर्जी होगी... पर जब भी... अगर जनम दिन मनाने की नौबत आ जाए... तो वादा करो... तुम मेरे पास होगे... और वैसे ही मुझे अपने तरीके से शुभकामनाएं दोगे... जैसे अब तक दिए हो...
अनाम - (चुप हो जाता है, क्या कहे उसे समझ नहीं पाता)
रुप - (अपना हाथ बढ़ाती है) वादा करो...
रुप को लगती है अनाम कुछ कह रहा है पर उसे सुनाई नहीं दे रही है l पर उसके कानों में उसका नाम सुनाई देती है l
नंदिनी... नंदिनी... हैप्पी बर्थ डे... ऐ नंदिनी... उठो.. और कितना सोओगी...
रुप - (अपनी आँखे खोलने की कोशिश करते हुए) भा... भी... गुड मॉर्निंग...
शुभ्रा - गुड मॉर्निंग की बच्ची.... यह क्या... फोन स्विच ऑफ कर रखी हो... तुम्हारे सारे दोस्त भी तुम्हें विश करने की कोशिश कर रहे होंगे...
रुप - करने दीजिए भाभी... मैं तो सबसे स्पेशल से अपना बर्थ डे विश पाना चाहती थी... सो मिल गया मुझे...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... मैंने तुम्हारे लिए... नए कपड़े ले लिए थे... वार्डरोब में रख दिए हैं... नहा धो कर... एक परफेक्ट राजकुमारी बन कर नीचे आओ... आज हम एक बढ़िया सी मंदिर को जाएंगे...
रुप - आ...आ.. ह्... भाभी प्लीज... राजकुमारी नहीं... मुझे कोई स्पेशल नहीं बनना है... मैं यहाँ आम बनने आई हूँ...
शुभ्रा - तुम... साल के तीन सौ चौसठ दिन आम बने रहो... पर जनम दिन में... खास बनना चाहिए.. क्यूंकि यही तो एक दिन है... जो सब के बीच खास बना देता है... इस दिन आम से आम लड़की भी खास बन जाती है... अपने लिए... और किसी अपने के लिए... उसके बाद पुरी दुनिया के लिए...
रुप - (इम्प्रेस होते हुए) वाव भाभी... आपने ठीक कहा... एक जनम दिन ही होती है... जब कोई खास बन जाता है... हर आम शख्सियत... उस दिन बहुत खास.. यानी स्पेशल बन जाती है... ठीक है... जैसा आपने कहा है... बिल्कुल वैसे ही तैयार हो कर आऊंगी...
शुभ्रा - हाँ... बिल्कुल... ऐसे तैयार होना जैसे... आज पुरा ज़माना घायल हो जाए...
रुप - आ... आ.. ह्... भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ठीक है... ज़माने के लिए नहीं पर... किसी खास के लिए ही तैयार हो जाओ....
शुभ्रा - मेरा कोई खास नहीं है...
शुभ्रा - सच में...(अपनी भंवे नचाते हुए)
रुप - हाँ...(अपनी आँखे सिकुड़ कर)
शुभ्रा - झूठ...(मुस्कराते हुए)
रुप - अंह् हं.. भाभी... क्यूँ छेड़ रही हो...
शुभ्रा - अनाम के लिए...
रुप - (हैरानी से आँखे फैल जाती है) (हकलाते हुए) अ... अनाम...
शुभ्रा - तुम जागने से पहले... उसीका नाम बड़बड़ा रही थी...
रुप - क... क्य.. क्या...
शुभ्रा - (हँसते हुए) कम से कम उसको याद करते हुए... उसकी खयाल दिल में बसाते हुए... अपना शृंगार करना... क्या पता... आज के दिन... भगवान तुम्हारी ही मुराद पुरी कर दे....
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सेंट्रल जैल
सुबह सात बजे
विश्व नहा धो कर तैयार हो गया है l आज आखिरी बार स्नान के बाद जैल यूनीफॉर्म पहना था l रात को जैल सुपरिटेंडेंट जान निशार खान ने संत्री के हाथों विश्व के लिए कपड़े भेज दिया था l पर विश्व के मन में एक अलग ही भावनात्मक लगाव था इस जैल से और इस जैल यूनीफॉर्म से I वह आईने के सामने उस यूनीफॉर्म को देख रहा था और अपने उस सेल को देख रहा था l साढ़े छह साल इस कोठरी में रहा है l नजाने कितनी बार दर्द के मारे कराहता रहा है l यही तो वह कोठरी है जिसने उसकी दर्द को सुना है l अपनी ख़ामोशी से उसे दिलासा दिया है l उसकी ग्रैजुएशन की और लॉ की डिग्री के हासिल की गवाह है यह कमरा l एक गहरी सांस छोड़ते हुए अपनी सेल के बाहर आता है l
मंडल - क्या बात है विश्वा... आँखों में पानी...
विश्व - हाँ मंडल बाबु... यह जिंदगी कितनी लंबी है... कोई नहीं जानता... अभी अट्ठाइस साल का हूँ... कुछ महीनों में उनतीस का हो जाऊँगा... अपनी जिंदगी के अहम साल मैंने यहीँ बिताए हैं... अपनी अभी तक के जिंदगी के... एक चौथाई भाग मैंने यहीँ बिताए हैं... लोग यहाँ आकर बहुत कुछ खो देते हैं... पर मैं यहाँ आकर इतना कुछ पाया है... हासिल किया है कि... जैसे यह एक मंदिर है... सात साल की मेरी तपस्या रही... और मैं खाली हाथ नहीं... झोली भरके लिए जा रहा हूँ...
मंडल - बहुत अच्छे... बेटा... कहीं दुबारा आने का विचार तो नहीं पाल लिए...
विश्व - (हँसता है और मंडल की ओर देखता है)
मंडल - देखो विश्वा... समाज में कोई थाना कचहरी और हस्पताल को जाना पसंद नहीं करता... तुम भी इसको मान कर चलना...
विश्व - ठीक है मंडल बाबु... ठीक है...
मंडल - चलो... आज बाहर तक.. मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ...
विश्व - हाँ चलिए... वैसे... आपने हिमालय जाने का प्रोग्राम कैंसिल किया कि नहीं...
मंडल - अरे भाई कहाँ... मैं हर शाम को घर पहुँचता हूँ... मन में एक निर्णय लिए हुए... की जैसे ही सुबह होगी... मैं हिमालय को निकल जाऊँगा... पर...
विश्व - पर... पर क्या मंडल बाबु...
मंडल - यह मुई रात आती है... तो दिन भर किच किच करने वाली चुड़ैल... अप्सरा सी लगने लगती है... रात ऐसी बीतती है... जैसे कि स्वर्ग की सैर कर लिया हो...
विश्व - फिर...
मंडल - फिर क्या... रात की अप्सरा... दिन में फिर से किच किच करने वाली चुड़ैल बन जाती है...
विश्व - हा हा हा हा हा... (हँसने लगता है...
मंडल - (उसे हँसते हुए देख कर खुश होता है) बहुत अच्छे लग रहे हो... जब दिल से हँसते हो... ऐसे ही रहा करो...
विश्व - कैसे... मंडल बाबु... कैसे...
मंडल - क्यूँ.. क्या कोई प्रॉब्लम है...
विश्व - हाँ है ना... आप अपनी आह वापस लीजिए...
मंडल - जगन्नाथ जगन्नाथ... मैंने कौनसी आह लगाई तुम्हें...
विश्व - भुल गए... वह हिमालय.. वह..
मंडल - बस बस... याद आ गया मुझे... वह आह तो तुझे लगनी ही है...
विश्व - बस बस (कहकर हँसने लगता है)
मंडल - दुआ करता हूँ... तुम्हारे होठों से यह हँसी कभी ना जाए...
विश्व - बस मंडल बाबु... बस... आप अगर ऐसे प्यार दिखाओगे... तो मेरा जाना दूभर हो जाएगा...
मंडल - ना विश्वा ना... जाओ.. खुश हो कर जाओ... जो हासिल है... उसे काम में लगाओ... तुम बहुत नाम करोगे... (आवाज भर्रा जाती है) हमे... बहुत याद आओगे...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) मंडल बाबु...
मंडल - बीड़ी दारू की आदत तो है नहीं तुममे... वरना धुआँ उड़ाते वक़्त... या दारू छिड़कते हुए... हमें याद कर लेते...
विश्व - ऐसी बात नहीं है मंडल बाबु... मैं यहाँ किसीको भी नहीं भुल सकता... मैं आज जो भी हूँ... ऐसा बनाने में... सबने साथ दिया है...
मंडल - तभी तो... तुझे सी ऑफ करने आज ना सिर्फ सभी खाकी वाले... बल्कि सभी कैदी भी गेट तक जाने वाले हैं...
विश्व - (हैरान हो जाता है) क्या..
मंडल - हाँ... आज यहाँ का हीरो... सुपर स्टार जा रहा है... सी ऑफ तो बनता है ना बॉस...
यूहीं बात करते करते विश्व और मंडल मैदान से हो कर खान के ऑफिस तक जा रहे हैं l धीरे धीरे सारे कैदी उनके साथ हो लेते हैं विश्व से कोई हाथ मिला रहा है तो कोई गले से लग रहा है l पर सब के चेहरे पर दुख साफ नजर आ रहा है l ऐसे सबसे मिलते हुए खान के कैबिन में पहुँचता है l
खान - खुसामदीन विश्व प्रताप महापात्र... खुसामदीन...
विश्व - नमस्कार खान सर...
खान - नमस्कार विश्व बाबु...
विश्व - आप हमें बाबु कह रहे हैं...
खान - अभी... हम कह रहे हैं... बहुत जल्द पुरी ओड़िशा में... लोग यही कहने वाले हैं...
विश्व - बस... आपका आशीर्वाद है...
खान - ठीक है... तुम्हारा जो भी समान... वगैरह है... वह शाम तक... सेनापति के घर मैं खुद पहुँचाने आ जाऊँगा... फ़िलहाल... (एक पैकेट को दिखाते हुए) इसमें तुम्हारे लिए खास कपड़े हैं... प्रतिभा बहन ने भेजे हैं... इसे पहन कर बाहर जाना... मेरा वॉशरुम तैयार है... क्यूँ के वे लोग बाहर ही तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं...
विश्व कुछ नहीं कहता है मुस्कराते हुए चुपचाप पैकेट उठा कर वॉशरुम के अंदर चला जता है l और जब बाहर आता है सलवार कुर्ता पहने हुए था l खान उसके कंधे पर हाथ रख कर जैल के मुख्य द्वार से बाहर ले जाता है l बाहर विश्व कदम रखते ही उसके आँखों से आँसू गिर जाते हैं l वह देखता है बाहर कार के पास तापस और प्रतिभा और उसके चार दोस्त खड़े हुए हैं l वह पहचान तो जाता है पर आँखों में आँसूओं के वजह उसे सब धुँधला दिखने लगता है l प्रतिभा भाग कर उसके गले लग जाती है l विश्व भी प्रतिभा के गले लग कर रो देता है l
तापस - हम भी लाइन में हैं... (विश्व प्रतिभा से अलग हो कर तापस के गले लग जाता है)
सीलु - भाई... हम भी खड़े हैं राह में...
विश्व तापस से अलग होता है और अपनी बाहें खोल देता है, सारे दोस्त उसके उससे गले लग जाते हैं l
मिलू - अच्छा आंटी... विश्वा भाई का स्वागत... इन कपड़ों में क्यूँ.... हीरो है अपना भाई... हीरो जैसे कपड़े दे देती ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) तुम चार लफंडर... अपने अंकल के साथ घर पर स्वागत करने की तैयारी करो... हम माँ बेटे पहले मंदिर हो कर आयेंगे...
सीलु जिलु मिलु और टीलु के मुहँ ऐसे हों जाते हैं जैसे नीम चख लिया हो l प्रतिभा खिंच कर विश्व को गाड़ी में बिठा कर वहाँ से चल देती है l
खान - क्या भाई... भाभी तुम्हें बीच रास्ते पे छोड़ गई...
तापस - हाँ यार... अब मुझे इन चार लफंडरों को लेकर घर के बाहर डेरा ज़माना होगा...
सीलु - सर... आंटी कहे तो समझ में आती है... पर आप हमें लफंडर क्यूँ कह रहे हैं...(तापस उन्हें घूर कर देखता है तो चारों अपना चेहरा घुमा लेते हैं)
खान - (हँसते हुए) अच्छा... मैं शाम को मिलता हूँ...
खान तापस से हाथ मिलाता है और वापस जैल की ओर चल देता है l
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नीचे शुभ्रा सभी नौकर और नौकरानियों को बुला कर लाइन में खड़ा कर चुकी है l जब फोन पर रुप नीचे आने के लिए इजाजत मांगती है तो शुभ्रा उसे जल्दी आने को कहती है l
शुभ्रा - (सभी नौकरों से) देखो... आज राजकुमारी जी का जनम दिन है... जब वह नीचे आ जाएं उन्हें विश कर देना... ठीक...
सभी - जी...
कुछ ही देर में रुप नए कपड़े पहने सीढ़ियों से उतरती है l उसके नीचे उतरते ही सभी नौकर एक साथ
"हैप्पी बर्थ डे राजकुमारी जी"
रुप - (ख़ुश और हैरान हो कर) थैंक्यू...
शुभ्रा - नंदिनी... आज अपने जनम दिन पर इन यह दो... (कह कर कुछ लिफाफे रुप को देती है)
रुप एक एक करके सभी नौकरों को लिफाफा देती है l सबको को लिफाफा मिल जाने के बाद शुभ्रा आज सभी नौकरों को शाम तक छुट्टी दे देती है l सभी खुश होकर रुप को दुआएँ दे कर चले जाते हैं l
शुभ्रा - चलो निकलो...
रुप - कहाँ...
शुभ्रा - अरे बताया तो था... मंदिर..
रुप - ठीक है... पर कौनसा मंदिर... लिंगराज मंदिर... या जगन्नाथ मंदिर...
शुभ्रा - नहीं... कोई और मंदिर नहीं जाएंगे...
रुप - बताइए ना भाभी...
शुभ्रा - ओह ओ.. चलो पहले गाड़ी में बैठ जाओ... वहाँ पहुँच कर देख लेना... जान लेना
शुभ्रा रुप को खिंचते हुए बाहर ले जाती है और गाड़ी में बिठा देती है l फिर वह गाड़ी स्टार्ट कर के दी हैल के परिसर से बाहर निकाल कर रास्ते में दौड़ाने लगती है l गाड़ी के रफ्तार पकड़ते ही l
रुप - भाभी... थैंक्यू..
शुभ्रा - किस बात के लिए...
रुप - पहली बार अपनी बर्थ डे पर किसीको कुछ दिया मैंने... एक बात पूछूं..
शुभ्रा - हूँ... पूछो...
रुप - उन पैकेट्स में... क्या था...
शुभ्रा - ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपये...
रुप - ओ... अच्छा है... पर इतने पैसे..
शुभ्रा - एक राजकुमारी के लिए तो बहुत ही कम है... बचपन में मेरे जनम दिन पर... पापा मम्मी गरीबों में खाना... कंबल बांट दिया करते थे... मैंने हमारे घर के नौकरों में कुछ पैसे बांट दी...
रुप - भाभी... पहली बार... (भावुक हो कर) मुझे चाची माँ और अनाम के बाद... जिंदगी में... आप और... नौकर ही सही... पर घर के लोग जनम दिन की मुबारक बात दी है....
शुभ्रा - नंदिनी तुम रो रही हो... तुम्हारे आँखों में आंसू...
रुप - नहीं भाभी... यह वह खुशियाँ है... जो आज हद से ज्यादा मिली तो आँखों से छलक गए...
शुभ्रा - प्लीज आज तुम्हारा जनम दिन है...
रुप - हाँ है... पर मेरे जनम दिन से... ना मेरे बाप को.. ना मेरे भाइयों को कुछ लेने देना है... हूँ..ह्..
शुभ्रा - प्लीज नंदिनी... प्लीज... वैसे हम आज धबलेश्वर मंदिर जा रहे हैं....
(अब प्रतिभा और विश्व एवं शुभ्रा और रुप के बीच संवाद की खिचड़ी हो जाएगी, कृपया ध्यान से पढ़े और और समझने की प्रयत्न करें)
विश्व - क्या... धबलेश्वर... यह कहाँ है...
प्रतिभा - कटक से थोड़े दूर पर है... वह एक आईलैंड है... एक ज़माने में वहाँ पर नाव के जरिए ही जाया जा सकता था... फिर हैंगींग ब्रिज बना... अब तो पुल भी बन गया है...
विश्व - माँ... बात अगर मंदिर जाने की थी... तो हम.... लिंगराज मंदिर भी तो जा सकते थे...
शुभ्रा - हाँ जा तो सकते थे... पर चूँकि आज शिव चतुर्दशी है... इसलिए लिंगराज मंदिर में भीड़ बहुत रहेगी...
रुप - तो ऐसे में... हम किसी और शिव मंदिर भी तो जा सकते थे...
प्रतिभा - हाँ... जा तो सकते थे... पर आज वेरी वेरी स्पेशल डे है... इसलिए कोई स्पेशल मंदिर जाना तो बनता है...
विश्व - आपको क्या लगता है... वहाँ भीड़ नहीं होगी...
शुभ्रा - होगी... पर... हम जहां जा रहे हैं... वह जगह भी तो स्पेशल होना चाहिए...
रुप - आईलैंड के भीतर मंदिर है... यही स्पेशियलिटी है या कुछ और...
शुभ्रा - और है ना...
रुप - क्या...
प्रतिभा - वह शिव लिंग सफेद है... नैचुरली... संगे मर्मर की नहीं है... ना ही चुने की पत्थर की.... और वहाँ की मान्यता है... जो भी सच्चे मन से मांगता है... वहाँ से वह... खाली हाथ नहीं लौटता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... इतनी महिमा है...
प्रतिभा - और नहीं तो... तभी तो तुझे ले कर जा रही हूँ... बस तु सच्चे मन से... भगवान से प्रार्थना करना... मांगना... तुझे तेरा लक्ष हासिल हो...
ऐसे ही बातेँ करते करते दोनों गाड़ियां अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रही थी l
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वीर नहा धो कर तैयार हो कर जब नीचे आता है उसे कोई नहीं दिखता l इक्का दुक्का नौकर को छोड़ दें तो पुरा का पुरा नौकरों की टोली गायब l
वीर - (एक नौकर से) ऐ... आज कहाँ हैं सब के सब... कोई दिख नहीं रहा...
नौकर - वह राजकुमार जी... युवराणी जी ने सब को शाम तक छुट्टी दे दी हैं...
वीर - क्यूँ.. किस लिए...
नौकर आपस में एक दुसरे को देखते हुए l इतने साल हो गये हैं इन लोगों को इस घर में काम करते हुए l इतना तो मालुम ही है कि घर के सदस्यों में बात चित और संबंध में मिठास की कमी है l और आज जो हुआ घर में पहले कभी हुआ नहीं था l तनख्वाह हर महीने अच्छी मिल जाती थी पर घर में आज किसीके जनम दिन पर पैसे पहली बार मिला था l एक नौकर वीर से
नौकर - राजकुमार जी ... आज राजकुमारी जी का जनमदिन है... युवराणी जी आज इसी खुशी में... राजकुमारी जी के हाथ से हमें तोहफे दिलावाये...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... (फिर खुद को संभाल लेता) ठीक है... ठीक है...
इतना कह कर वीर बाहर निकल जाता है l अपनी गाड़ी स्टार्ट कर ESS ऑफिस की ओर चल देता है l गाड़ी में बैठे बैठे वह सोचने लगता है
"क्या... आज राजकुमारी की जनमदिन है..."
उसे याद नहीं आता कि कभी रुप की जनम दिन इससे पहले मनाया गया हो l उसका जनम दिन क्षेत्रपाल महल में मनाया जा रहा था यहाँ तक वह कलकत्ता में पढ़ने के बाद भी वापस आता था अपना, विक्रम का, भैरव, पिनाक और नागेंद्र के जनम दिन मनाने के लिए l पर उसे याद नहीं कि कभी उसकी माँ या उसकी बहन का जनम दिन मनाया गया हो l
"युवराणी ऐसा क्यूँ कर रही हैं... क्या उन्हें नहीं पता कि क्षेत्रपाल के घर में... कभी.. किसी लड़की की जनम दिन मनाया नहीं जाता... जहाँ तक मैं जानता हूँ... उन्होंने भी तो अपना जनम दिन कभी नहीं मनाया... फिर राजकुमारी का जनम दिन...."
फिर उसके अंदर से कोई झिंझोडता है
" क्यूँ... क्यूँ ना मनाए रुप अपना जनम दिन... अनु भी तो एक आम लड़की है... फ़िर भी बचपन में उसकी जनम दिन... वह अपने बाप के साथ मनाती थी... तुम भी तो उसके जनम दिन में उसके साथ.... उसके सुनहरे बचपन के गवाह बने थे....
ऐसे सोचते सोचते उसकी गाड़ी एक साइकिल पर जा रहे एक आदमी से हल्का सा टकरा जाता है l वीर ब्रेक लगा देता है पर फिर भी वह साइकिल वाला आदमी नीचे गिर जाता है l उसके नीचे गिरते ही आस पास जितने लोग थे सब इकट्ठा हो कर वीर की गाड़ी को घेर लेते हैं और कोई कोई उसके गाड़ी के बॉनेट पर घुसा मारते हुए गालियाँ बक ने लगते हैं l तभी कोई भीड़ में से वीर की गाड़ी को पहचान लेता है l वह चिल्लाने लगता है
"यह वीर सिंह क्षेत्रपाल जी की गाड़ी लग रही है"
सारी भीड़ को पहले शॉक लगता है l वह जो साइकिल वाला गिर गया था अपना साइकिल उठा कर भाग जाता है l उसके देखा देखी पुरी की पुरी भीड़ दो मिनट में गायब हो जाती है l
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मंदिर से थोड़ी दुर पार्किंग में प्रतिभा अपनी गाड़ी को रोकती है l गाड़ी से उतर कर विश्व हर तरफ अपना नजर घुमाता है l
विश्व - वाव... वाकई माँ... कितनी खुबसुरत जगह है... महानदी के बीचों-बीच... एक टापू पर...
प्रतिभा - तभी तो तुझे लेकर आई हूँ... तीस साल पहले यहाँ आने के लिए नाव का इस्तमाल किया जाता था... उसके बाद... रोप वे बनाया गया... और अब ब्रिज... पहले सहूलियतें कम हुआ करती थी... अब ज्यादा है...
विश्व चुपचाप सुनता है और अपना सिर हाँ में हिलाता है, तभी एक लाल रंग की लक्जरी कार पार्किंग से भी आगे निकल कर मंदिर की ओर धुल उड़ा कर जाता है l
विश्व - सहूलियतें फिर भी किसी किसी को कम पड़ते हैं...
प्रतिभा समझ जाती है, विश्व किसके ओर देख कर यह बात कही l
प्रतिभा - हाँ कुछ लोग... भगवान के दरबार में... और लोगों के सामने स्पेशल बनना चाहते हैं...
वह लाल रंग की गाड़ी मंदिर के पास एक जगह रुकती है l उसमें से रुप और शुभ्रा उतरते हैं l शुभ्रा वहाँ से किसी को फोन लगाती है l कुछ देर बाद एक ब्राह्मण आता है l शुभ्रा उसे नमस्कार करती है l
शुभ्रा - नमस्ते पंडित जी...
पंडित - नमस्कार शुभ्रा बेटा... (रुप की ओर देखते हुए) तो यह हैं... आपकी ननद... आइए... मैंने अंदर पूजा के सारे व्यवस्था कर दिया है...
शुभ्रा - जी पंडित जी... आप दक्षिणा की चिंता ना करें... आज इनका जनम दिन है... बस आपकी पूजा अच्छी होनी चाहिए...(रुप से) जाओ... नंदिनी... मैं बाहर ही हूँ... तुम अपनी पूजा खतम कर यहीँ आ जाना...
रुप - क्यूँ... क्यूँ भाभी... आप... आप नहीं जायेंगी...
शुभ्रा - (रुप को अपने पास खिंच कर उसके कान में धीरे से शब्दों को चबाते हुए कहता है) मेरी पीरियड चल रहा है... इसलिए तुम जाओ... मैंने बात कर के तुम्हारे लिए पहले से ही... सारा इंतजाम करवा दिया है...
रुप झिझकते हुए शुभ्रा से अलग हो कर पंडित के साथ मंदिर के अंदर चली जाती है l मंदिर के परिसर में उसे बहुत से सफेद और बैगनि रंग के कबूतर नजर आते हैं और कहीं कहीं उसे बंदर भी नजर आते हैं l मंदिर के प्रवेश द्वार से गर्भ गृह तक बाड़े लगाए गए हैं l लोग लाइन में अंदर जा रहे हैं पूजा करवा कर लाइन से बाहर जा रहे हैं l पंडित रुप को एक अलग रास्ते से मंदिर के गर्भ गृह के अंदर ले जा कर विधि से पूजा करवा देता है और उसके बाद रुप के हाथ में कुछ फुल और प्रसाद का थाली दे देता है और उसे बाहर जा कर इंतजार करने के लिए कहता है l रुप थाली हाथ में लिए बाहर निकलने की कोशिश करते हुए थोड़ी दूर आती है l उस वक़्त लोग लाइन में लग कर मंदिर के अंदर आ रहे होते हैं l तभी किसी श्रद्धालू के हाथ में जो पूजा वाली छोटी टोकरी थी उससे रुप की आँचल उलझ जाती है l जिसके वजह से आँचल को निकालने की कोशिश में उस श्रद्धालु से आँचल खिंच जाती है l जिसके वजह से रुप के हाथों से वह पूजा की थाली गिर जाती है l थाली के गिरते ही रुप ना आव देखती है ना ताव सीधे जा कर उस श्रद्धालु के कलर पकड़ कर एक थप्पड़ मार देती है l थप्पड़ की गूंज से सब उन दोनों के तरफ देखते हैं l रुप अचानक शॉक्ड हो जाती है l क्यूँकी जिसे वह थप्पड़ मारी थी वह कोई और नहीं विश्व था l हैरानी से उसकी आँखे बड़ी हो जाती है और अपनी दोनों हाथों से अपनी खुले हुए मुहँ को ढक लेती है l
- नंदिनी... (रुप उस आवाज़ के तरफ देखती है, वह प्रतिभा थी) यह मेरा बेटा है... प्रताप..
रुप - (चेहरा रोनी जैसी हो जाती है) नहीं... आंटी... म... मु.. मुझसे... वह गलती से...
और कुछ नहीं कह पाती वह फफक पड़ती है और सुबकती हुई बाहर की तरफ भाग जाती है l विश्व हैरान हो कर खुले मुहँ से अपना गाल सहलाते हुए रुप को भाग कर बाहर जाते हुए देखता है l तभी वह पंडित वहाँ पर आता है
पंडित - माफ करना बेटा... बिटिया को गलत फहमी हो गया था.
विश्व - (अब तक भौचक्का था चौंक कर) हँ... हाँ... वह... मैं समझ सकता हूँ..
प्रतिभा - मैं जानती हूँ उस लड़की को... पंडित जी... बहुत अच्छी लड़की है वह..
पंडित - हाँ बहन जी.. आज उस बिटिया का जन्मदिन है... बेचारी से एक अनचाहा अपराध हो गया... इसलिए उसका मन खराब हो गया है... आप उसके लिए कोई मैल.. मन में ना रखे... नहीं तो उसका जन्मदिन खराब जाएगा..
प्रतिभा - नहीं पंडित जी... हमारे मन में कोई मैल नहीं है... और कहा ना... मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ..
पंडित - धन्यबाद बहन जी...
कह कर वह पंडित थाली उठाता है और नीचे गिरे सामान सब समेटने लग जाता है, विश्व लाइन से बाहर आ जाता है और पंडित की मदत करने लगता है l सभी सामान उठा कर पंडित वहाँ से चला जाता है l विश्व बाड़े के बाहर खड़े हो कर प्रतिभा से
विश्व - आप उसे जानती हैं.
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) हूँ..
विश्व - नंदिनी... क्या यह वही हैं..
प्रतिभा - हूँ.. यह वही नंदिनी है... जिनसे मिल कर.... तु अप्राइज करना चाहता था..
विश्व - तो माँ आप... भगवान से... आपके लिए.. मेरे लिए... सबके लिए माँग लो.. मैं उनसे माफी मांग कर आता हूँ...(कह कर बाहर की ओर भाग जाता है)
प्रतिभा - अरे सुन तो... प्रताप... (तब तक विश्व भाग कर बाहर जा चुका था)
विश्व बाहर इधर उधर ढूंढने लगता है l हर तरफ ढूंढने के बाद उसे एक रेलींग पकड़े वही लड़की नदी की ओर देखते हुए पाता है l वह उसके पास बढ़ने लगता है l उन दोनों के बीच सैकड़ों कबूतर कुर्रेर्रु कुं करते हुए फडफडा कर इधर उधर हो रहे हैं l विश्व उसे देखते हुए उसके पास खड़ा हो जाता है l रुप को लगता है कोई उसके पास खड़ा है तो वह झट से मुड़ कर विश्व को देखती है और फिर अपना सर झुका कर वहाँ से जाने के लिए मुड़ती है
विश्व - नंदिनी जी.
रुप - (बिना मुड़े रुक जाती है)(उसकी धड़कने बढ़ जाती है l वह अपने दुपट्टे को उंगली में फंसा कर गांठ बांधने लगती है)
विश्व - सॉरी..
रुप - (विश्व की ओर बिना मुड़े) जी... मुझे आपसे सॉरी कहना चाहिए... प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए...
विश्व - ठीक है... एक काम करते हैं... आप मेरी माफी स्वीकार कर लीजिए... मैं आपका... हिसाब बराबर...
रुप - (हल्का सा शर्मा जाती है और उसके होठों पर छोटी सी मुस्कान खिल जाती है) जी... (इस बार भी वह विश्व को नहीं देखती है)
विश्व - वह मैं यह कह रहा था कि... आप बहुत अच्छा बोलती हैं... अच्छे और उच्च विचार रखती हैं... आपके भीतर एक विद्रोही चरित्र है... और क्या कहूँ... आप.. आप.. सच में... लाज़वाब हैं.. एक्स्ट्रा ऑर्डिनारी हैं... और और... (कुछ कह नहीं पाता)
रुप - (शर्म से उसके चेहरा लाल हो जाती है)(वह वहाँ से जाने की कोशिश करती है)
विश्व - रुकिए... (रुप रुक जाती है) आ.. आज... आपका जन्म दिन है... है ना...
रुप - (बिना पीछे मुड़े, बिना विश्व को देखे, अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
विश्व - मैं आपको जन्मदिन की बधाई देना चाहता हूँ... अगर आप बुरा ना मानें और... कुछ गलत ना सोचें... यह... यह इसे थामीये...
रुप कुछ हैरान हो कर पीछे मुड़ कर विश्व को देखती है फिर विश्व के हाथ में देखती है l विश्व के हाथ में एक दूध सी सफेद रंग का कबूतर है l रुप हैरान हो कर विश्व को देखती है
विश्व - नहीं नहीं.. मैं आपको यह कबूतर नहीं दे रहा हूँ... बस इस कबूतर को थोड़ी देर के लिए पकड़ीये..
रुप कुछ समझ नहीं पाती, वह विश्व की तरफ देखती है l विश्व अपने आंखों से इशारे से कबूतर पकड़ने के लिए कहता है l झिझकते हुए रूप उस कबूतर को पकड़ती है
विश्व - अब आप इस कबूतर को लेकर... (मंदिर की दीवार पर लगे रेलिंग को दिखा कर) इस रेलिंग के किनारे पर आइए...
कबूतर को पकड़े रुप विश्व के साथ रेलिंग के पास आती है
विश्व - अब आप अपनी आँखे बंद कर लीजिए..
अब रुप के मन में भी क्युरोसिटी जागने लगती है l वह अपनी आँखे बंद कर लेती है
विश्व - अब यूँ समझें.. कि आपने अपनी... आशाओं को, अरमानों को पंख दे दिया है... अब इसे उमंगों के आकाश में उड़ा दीजिए..
रुप हैरान हो कर विश्व को देखने लगती है
विश्व - ना... अपनी आँखे बंद करते हुए... इस कबूतर को उड़ा देना है..
रुप अपनी आँखे बंद करती है और एक गहरी सांस लेती है l उसके चेहरे पर एक अनजानी मुस्कान खिल जाती है और वह कुदते हुए कबूतर को आसमान में उड़ा देती है l वह कबूतर उड़ते हुए रुप के सिर पर चक्कर काटने लगती फिर थोड़ी देर बाद वहाँ पर मौजूद सभी कबूतर उड़ने लगते हैं और उड़ते उड़ते रुप के सिर पर कुछ चक्कर काटते हैं और फिर निकल जाते हैं, मंदिर के ऊपर चक्कर काटने लगते हैं l रुप के चेहरे पर हँसी और खुशी के साथ आँखों में आंसुओ के बूंद भी छलक पड़ती है
"अनाम
उसके मुहँ से यह शब्द निकल जाति है l वह जब अपने आस पास देखती है उसे विश्व कहीं नजर नहीं आता l
Jabardastt Updateee
Toh aakhir Vishwa ki saza khatam hogyi. Aur usi din khatam hui jisdin Roop ka janamdin thaa.
Janamdin ke mauke pe hi dono ki mulakat bhi hui par Roop se ek galti hogyi usne anjaane mein hi Vishwa ko thappad maardiya.
Ab dekhte hai aage kya hota hai.