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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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Naye update ki pratiksha mai

Intejaaar hai sarkar aapka....

Pratiksha hai agle update ki


Kala Nag Bhai

Please update
भाईयों
काम में व्यस्तता के कारण लेट हो गया हूँ
अभी लगभग लिख लिया है कुछ ही शेष है
कल शाम तक दे दूँगा
धन्यबाद
 

parkas

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भाईयों
काम में व्यस्तता के कारण लेट हो गया हूँ
अभी लगभग लिख लिया है कुछ ही शेष है
कल शाम तक दे दूँगा
धन्यबाद
Intezaar rahega...
 

Rajesh

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भाईयों
काम में व्यस्तता के कारण लेट हो गया हूँ
अभी लगभग लिख लिया है कुछ ही शेष है
कल शाम तक दे दूँगा
धन्यबाद
Bas intezaar hai bhai
 
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Kala Nag

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👉बयासीवां अपडेट
--------------------
सर्किट हाउस
कटक

कॉलिंग बेल के बजने से बल्लभ की नींद टुट जाती है और वह अपनी आँखे मलते हुए बेड पर उठ कर बैठ जाता है और इधर उधर देखने लगता है l रोणा खिड़की के पास खड़े हो कर बाहर देख रहा है l

बल्लभ - ऑए दारोगा... (छेड़ने के अंदाज में) किसे देख रहा है...
रोणा - कुछ नहीं यार ... आने वाले तूफान से जुझने की... सोच रहा हूँ...
बल्लभ - (चिढ़ते हुए) धत तेरे की... गया... गया आज पुरा दिन मेरा...

कह कर बल्लभ बेड से उठता है और दरवाज़ा खोलता है, बाहर खड़े अटेंडेंट के हाथ से न्यूज पेपर और चाय की ट्रॉली ले लेता है और अंदर आता है l

रोणा - वकील बाबु... (सीरियस हो कर) लगता है इन
सात सालों में... तुम्हारा दिमाग सिर्फ घास चर रहा है...
बल्लभ - ओ अच्छा... तो इन सात सालों में... तेरे दिमाग के घोड़े जैसे डर्वी के रेस में दौड़ रहे थे क्यूँ... साला... एक रांड ने झटका क्या दिया पुरे दिमाग़ का सिस्टम ही हिला दिया लगता है... उसकी बात को... इतना सीरियसली ले लिया है...
रोणा - (पीछे घुम कर बल्लभ की ओर देखता है) तुम मेरी बातों की गहराई को भांप नहीं पा रहे हो... शायद मैं समझा पाने में कामयाब नहीं हो पा रहा हूँ...
बल्लभ - (हाथ जोड़ कर) अच्छा दारोगा जी... जरा हमें भी आपके डर्वी दौड़ वाली ज्ञान से... परिचय करवाइये...
रोणा - (आकर बल्लभ के सामने बैठ जाता है) प्रधान बाबु... मेरे अंदर की फिलिंग यह कह रही है... विश्व को कहीं हम अंडर एस्टीमेट तो नहीं कर रहे हैं...
बल्लभ - (खीज कर) कैसे.... हाँ... बोल बोल कैसे...
रोणा - हमें हमेशा इतिहास से सबक लेना चाहिए... जरा सोचो... वकील बाबु... जरा सोचो... पीढ़ियों से... राजगड़ में.. सब कुछ वैसा का वैसा ही चल रहा था... की अचानक...एक बंदा... विश्व... विश्व नाम का एक बंदा... कुछ ऐसा करता है कि हम सबको... कटक आना पड़ता है... मतलब अदालत से राजा साहब के नाम समन निकलता है... क्या कभी किसीने सपने में भी सोचा था.. की राजा साहब के नाम पर... समन भी निकल सकता है...
बल्लभ - (चिढ़ते हुए) अरे यार... तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - (जैसे अतीत को याद करते हुए) सात साल पहले... एक डरी डरी सी लड़की... अचानक... अब पलट वार करने लगती है...
बल्लभ - आ... ह... उस वैदेही ने... तुझे कहीं तेरे उस स्पेशल जगह पर.. लात वात तो नहीं मार दी...
रोणा - (अपनी धुन में) मैं... अपनी पुलिस की जीप लेकर पहुँचा... जैसे उसे मालुम था... मैं एक दिन आऊंगा... उसे मालुम था मैं उसे क्या कहूँगा... उसने मुझसे जवाब में जो बातेँ कही... जैसे उसने उन सब बातों की तैयारी कर रखी थी... उसे मालुम था... मुझसे क्या कहना है... और इन सात सालों में... उसकी ऐसी कौन मासी आ गई... कहाँ से पैदा हो गई... वकील है वह...
बल्लभ - क्या..(हैरान हो कर) मासी...
रोणा - हाँ... उसी मासी ने मुझसे कहा.. कि... वैदेही ने अदालत में... एक हलफनामा दायर किया हुआ है... की कुछ लोगों से उसकी जान को खतरा है... उस हलफनामे के कुछ नामों में... मेरा नाम भी है...
बल्लभ - (हैरान हो कर) क्या...
रोणा - हाँ... उस पर उसकी साठ दिन वाली वह चैलेंज...
बल्लभ - यह मासी वाली बात... तुने मुझे बताया नहीं...
रोणा - वाव... की प्रेसिडेंट है... मतलब वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा की प्रेसीडेंट है...
बल्लभ - यह... यह क्या बला है...
रोणा - जरा सोचो वकील... जरा सोचो... यह कौन मासी है... जो वैदेही को कानूनी मदत और सहूलियतें पहुँचा सकती है... क्या विश्व से उसका कोई संबंध है...
बल्लभ - यार... तु मुझे कंफ्यूज कर रहा है...
रोणा - सात सालों में... वैदेही में अगर ऐसी ट्रांसफॉर्मेशन हुई है... तो विश्व में कैसा हुआ होगा...
बल्लभ - (जबड़े भींच कर चुप रहता है)
रोणा - प्रधान... यह बात तुम्हारे और मेरे बीच ही रहे... मुझे लग रहा है... राजा साहब से बहुत बड़ी गलती हो गई है... हो रही है... ऐसा... मुझे लगता है...
बल्लभ - (हकलाते हुए) क्या... क... क... किस बिनाह पर...
रोणा - बेशक... अपने रुतबे और अकड़ के चलते... राजासाहब विश्व की कोई खबर नहीं ली... कोई शुध नहीं ली... पर यही गलती... अब गले की फांस बनने वाली है...
बल्लभ - (चिढ़ जाता है ) अरे यार... वह रांड... कमीनी वैदेही ने.. इंग्लिश में क्या दो चार सेक्शन और क्लॉज की चुइंगम चबा डाली... तुने इसे सीरियसली ले लिया... मत भुल... विश्व सात साल जैल में रहा है... अगर उसके साथी दोस्त हुए भी होंगे तो कौन कौन... कुछ गुंडे.. छटे हुए बदमाश... और कौन... अगर वह कुछ तैयारी भी कर रहा है... तो भी... उसे पुरे सिस्टम में भिड़ना होगा... वह क्या उखाड़ लेगा... कुछ चोर बदमाशों की फैज लेकर... राजा साहब से लड़ेगा वह...

बल्लभ वार्डरॉब से एक ट्रैक शूट निकाल कर रोणा की ओर फेंकते हुए l

बल्लभ - जा.. जितने दिन हम यहाँ हैं... तु हर रोज जाकर मार्निंग वॉक करना... इस मामले में... यहाँ कोई मगज मारी नहीं करना... बाद में हम मिलकर जो हो सकेगा वह करेंगे...
रोणा - क्या... तुमको लगता है मैं पागल हो गया हूँ...
बल्लभ - नहीं... बस दिमाग हिल गया है तुम्हारा... वैदेही ने तुम्हें चार सौ चालीस का नहीं.. पुरे इलेवन केवी का झटका दिया है... अगर सात सालों में उन भाई बहन ने कुछ जुगाड़ लगाया भी है... तो भी सुन... इन सात सालों में राजा साहब का रुतबा और कद पहले से कई गुना बढ़ा है... तु खुद गवाह है... है ना... कैसे होम मिनिस्टर घुटने के बल रेंग कर नाक रगड़ी थी... तेरे सामने... हूँह्ह्... आने दो उस हराम जाते विश्व को... रोणा... वैदेही की जवाब ने तुझे बावरा कर दिया है... तु अब उन कीड़े मकौडों को... ओवर एस्टीमेट कर गया है... ओवर एस्टीमेट.... अबे राजा साहब तो दुर के चांद हैं... आज के दिन वह... (अपने एक बाल तोड़कर) हमारे बाल बराबर भी नहीं है... फूंक के उड़ा दूँगा उस हरामजादे को....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अपनी बेड रुम के वाल पर लगे आईने के सामने खड़े हो कर अपनी बाल पर कंघी चलाते चलाते अचानक विश्व रुक जाता है, फिर अपने हाथ को गर्दन के पीछे ले जाता है और कुछ सोचते हुए जहाँ नाम गुदा हुआ था उसी जगह हाथ को मलते हुए थोड़ा सीरियस हो जाता है l

क्यूँ... (प्रतिभा की आवाज़ सुनाई देता है) वह... याद आ रही है क्या...
विश्व - (चौंक कर दरवाजे की ओर देखता है) म्म्म... माँ..... त्त्त्त्त तुम.. क.. क.. कब आई...
प्रतिभा - हकला क्यूँ रहा है... जब तु अपने बाल संवार रहा था...
विश्व - वह.. माँ.. वह... असल में.. मैं..
प्रतिभा - अरे...(अंदर आते हुए) कुछ पुछा मैंने...
विश्व - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए)(अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... नहीं जानता...
प्रतिभा - अच्छा.... ठीक है... एक बात बता... (थोड़ी सीरियस हो कर) राजगड़ में क्या हो रहा है... कुछ खबर भी है तुझे... (कमरे में आकर) तु कभी पता करने की कोशिश भी कर रहा है... या नहीं...
विश्व - ( सीरियस हो कर) जानता हूँ... (कंघी रख कर) सब खबर है मुझे... (प्रतिभा को देखते हुए) इंस्पेक्टर रोणा वापस आ गया है... दीदी के पास भी गया था... सब पता है माँ... मुझे... सब खबर है...
प्रतिभा - अगर सबकी खबर रख रहा है... तो रुप.... रुप के बारे में...
विश्व - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं...
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - (नजरें चुराते हुए) पता नहीं... पर...
प्रतिभा - पर.. पर क्या...
विश्व - मैं... इस मामले में... आगे बढुं... तो कैसे बढुं... वह एक राजकुमारी हैं... समाज में ठाठ है उनकी... और आठ साल पहले जो था भी... वह उनका बचपन था... बचपना था... मैं... मैं किसी.... सपने में जीना नहीं चाहता... किसी थ्योरी पर यकीन नहीं करना चाहता... प्रैक्टिकल... मुझे नहीं लगता कि... मैं उनको याद भी हुंगा...
प्रतिभा - क्यूँ...
विश्व - माँ... (पॉज लेकर) मान लो... वह मेरे सामने होंगी... तो मैं.... खुदको... क्या... क्या कह कर अपनी पहचान बताऊँगा...(अपना हाथ आगे बढ़ा कर) हाय मैं... अनाम.. एक सजायाफ्ता मुजरिम... अभी कुछ ही दिन हुए हैं...
प्रतिभा - (चेहरा उतर जाता है) ओ... तो तु इस तरह से सोचता है...(एक सांस छोड़ते हुए) हूँ.... बात यह है.. कि... तेरे मन में गिल्ट है... शर्मिंदगी है... के तु जैल से लौटा है... तु इसलिए खुद को रुप के सामने खड़ा नहीं कर पा रहा...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो एक काम कर... अपने दिल से और गर्दन से... रुप नाम की बोझ को उतार दे... और किसी और लड़की के बारे में सोचना शुरु कर...
विश्व - माँ... (तुनक जाता है) यह... यह क्या कह रही हो...
प्रतिभा - (मुस्करा कर) देखा... तु खुद रुप की यादों में जकड़ा हुआ है... घिरा हुआ है... उसकी यादों से बचना नहीं चाहता... फिर... अपने मन में गिल्ट क्यूँ बढ़ा रहा है...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - बता... मुझे नहीं बतायेगा...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर पास के चेयर पर बिठाता है) (फिर प्रतिभा के सामने नीचे बैठ जाता है) माँ... सच कहता हूँ... महल छोड़ने के बाद... एक तरह से ...मैं.. राजकुमारी जी को...भुल चुका था... भुला दिया था... माँ...(प्रतिभा के हाथों को पकड़ लेता है) उस दिन अचानक मुझे वह याद आ गयीं...
प्रतिभा - तो क्या यही बात... तेरी दिल को दुखा रहा है...
विश्व - नहीं माँ... बात... बात कुछ और है...
प्रतिभा - कुछ और... कैसी बात... कौनसी बात...
विश्व - (अपनी नजरें झुका कर) माँ...(एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मुझे... ऐसा लगता है... मैं प्यार के मामले में... ईमानदार नहीं हूँ...
प्रतिभा - क्यूँ... ऐसा क्यूँ लगता है...
विश्व - वह... माँ.. मैं... (उठ कर प्रतिभा की तरफ पीठ कर खड़ा हो जाता है) मैं जब भी राजकुमारी जी को... अपनी आँखे बंद करके याद करने की कोशिश करता हूँ... तो... मेरे जेहन में... नंदिनी जी का अक्स अपने आप उभरने लगती है...
प्रतिभा - ओ... (मुस्कराते हुए) तो इसलिए किसी से भी शादी कर लेगा... (विश्व से) ऐ मेरी तरफ देख... (विश्व प्रतिभा की ओर मुड़ता है) पर नंदिनी जी से नहीं करेगा... हूँ... (भवें नचाते हुए) हूँ... हूँ..
विश्व - (अपना चेहरा घुमा लेता है)
प्रतिभा - क्या इस बात पर तुझे शर्मिंदगी महसुस हो रही है...
विश्व - (अपनी सिर झुका कर हाँ में सिर हिलाता है)
प्रतिभा - खैर...(उठते हुए) मैं तेरे शादी के पीछे नहीं पड़ुंगी... पर मुझसे जो वादा किया... वह भूलना मत... (दरवाजे की जाती है)
विश्व - कौनसा वादा...
प्रतिभा - ऐ... (पीछे मुड़ कर) किसी लड़की से दोस्ती करने की...
विश्व - किसी लड़की से क्यूँ... किसी लड़के से क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - तो कर ना... मैंने मना कब किया... पर तुझे एक लड़की को दोस्त बना कर... मेरे सामने लाना है बस...
विश्व - यह वादा मैंने नहीं किया था...
प्रतिभा - क्या कहा...
विश्व - (नारम पड़ते हुए) तुमने मुझसे मांगा था....
प्रतिभा - (आँखे दिखाते हुए) तो...
विश्व - ठीक है... गुस्सा मत करो... तीन हफ्ते का टाइम तो है ना...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... गुड बॉय... चल जल्दी चल... नास्ता कर ले...

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वीर अपने कपड़े पहन कर अपने पर डियो स्प्रे कर रहा था कि बेड पर पड़े उसका फोन बजने लगता है l वीर को अनु का नाम डिस्प्ले पर दिखता है तो वह भागते हुए फोन उठाता है

वीर - हैलो...
अनु - हैलो राजकुमार जी...
वीर - जी... अनु जी... राजकुमार ही बोल रहा हूँ..
अनु - आप.. मुझे युँ जी ना कहें...
वीर - क्यूँ ना कहें... आख़िर आपकी रुतबा... राजकुमार की पर्सनल अस्सिटेंट की जो है...
अनु - उँ हूँ.. हूँ हूँ... (एक मीठी हँसी के साथ) आप सुबह सुबह बहुत मज़ाक कर रहे हैं...
वीर - जी नहीं... मैं वाकई बहुत सीरियस हूँ... अनु जी..
अनु - प्लीज... आप मुझे... जी ना कहें...
वीर - क्यूँ...
अनु - जी वह...(रुक रुक कर) आप... जब मुझे... जी कहते हैं... तो ऐसा लगता है... जैसे आप हमसे... दूरी बना रहे हैं...
वीर - अरे... ऐसे कैसे... अनु जी...
अनु - प्लीज...
वीर - (हँसते हुए) अच्छा बोलो... फोन क्यूँ किया...
अनु - जी.. मैं यह कहने के लिए फोन किया... क्या... मैं आज एक दिन की छुट्टी ले लूँ...
वीर - क्या...(चौंक कर) किसलिए...
अनु - वह... दादी को... हस्पताल ले जाना है... उनकी दवाई लानी है...
वीर - क्या... दादी जी हालत इतनी खराब हो गई...
अनु - नहीं.. नहीं... उनकी रुटीन दवाई लानी है... आज वह मेरे साथ जा कर... डॉक्टर को दिखाना चाहती हैं...
वीर - (क्या जवाब दे उसे कुछ नहीं सूझता) (वह चुप रहता है)
अनु - राजकुमार जी... हैलो... राजकुमार जी...
वीर - हाँ...(चौंक कर) हाँ...(संभल कर) हाँ...
अनु - (खुश होते हुए) थैंक्यू... थैंक्यू.. राजकुमार जी... थैंक्यू...
वीर - कोई बात नहीं... (तब तक फोन कट चुका होता है)

तभी उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक होता है l वीर असमंजस सा दरवाजा खोलता है l

नौकर - राजकुमार जी... युवराणी नाश्ते पर आपको याद कर रही हैं...
वीर - हाँ चलो आ रहा हूँ...

नौकर चला जाता है वीर बुझे मन से झुके कंधों के साथ डायनिंग हॉल में आता है l शुभ्रा और रुप उसके इंतजार में बैठी हुई हैं l उसकी ऐसी दशा देख कर नास्ता लगाते हुए

शुभ्रा - क्या बात है वीर... क्या कोई जंग हार आए हो...
वीर - (संभल जाता है) भाभी... यह सुबह क्यूँ होती है... थोड़ी देर और सोने को मिल जाता ना...
रुप - कोई बात नहीं भाई... अगर सोना चाहते हो तो सो जाओ... मैं गुरु काका के साथ चली जाऊँगी...
वीर - आ हा हा हा... (चिढ़ाते हुए) ज्यादा स्मार्ट मत बन... तुझे रोज कॉलेज छोड़ने की प्रण लिया है... तो तुझे छोड़ने के बाद ही कुछ और सोचुंगा...
शुभ्रा - ठीक है... वैसे वीर... रुप आज ही जा रही है ना... ड्राइविंग सीखने...
वीर - (चौंक कर) क्या... आ... आपको इस चुहिया ने... सब बता दिया...
रुप - ऐ... चुहिया किसे बोला...
वीर - तुझे बोला... (शुभ्रा से) भाभी... इसी ने मुझे किसी को ना बोलने के लिए कह कर... देखो तुमको बता दिया...
शुभ्रा - तो क्या हुआ... यहाँ नंदिनी मेरी जिम्मेदारी है... उसकी हर बात का खबर मुझे होनी ही चाहिए कि नहीं... वरना मुझे फ़िकर होती रहेगी...
वीर - हूँ... हाँ भाभी... आज से यह ड्राइविंग सीखने जाएगी... पर भाभी कितना गलत है ना.. हम लोग कभी ड्राइविंग स्कुल गए ही नहीं... पर यह जाएगी...
शुभ्रा - ओ हो जाने दो ना... आखिर महल के बाहर किसीको दोस्त बनाया है... अपने दोस्तों के साथ एंजॉय कर लेने दो...
वीर - हाँ भाभी... यही सोच कर तो मैं भी मान गया...

जल्दी जल्दी नास्ता खतम कर लेने के बाद वीर और रुप शुभ्रा को बाय बोल कर निकल जाते हैं l गाड़ी में बैठने के बाद वीर गाड़ी विला से बाहर निकलता है l गाड़ी के अंदर

रुप - क्या हुआ है भैया...
वीर - (चौंकता है) क्क.. क्या... क्या हुआ है...
रुप - पुछ मैं रही हूँ...
वीर - कुछ नहीं... कुछ नहीं हुआ है...हे हे हे.... (हँसने की कोशिश करता है)
रुप - सच सच बताओ भैया... आप कल वाले वीर भैया नहीं लग रहे...
वीर - ऐ... सच सच बता.. मुझे फंसाने के लिए... कुछ और भी प्लानिंग चल रही है क्या... तेरे दिमाग में...
रुप - हाउ मिन...(बिदक कर) मैं तुम्हारी खैरियत पुछ रही थी... हूँ ह्..
वीर - अरे...(मनाते हुए) गुस्सा मत कर बहना...
रुप - तो बताओ... आज इतने डल क्यूँ हो...
वीर - (थोड़ा संभल कर) वह... मेरा जो दोस्त है ना... ऑफिस में...
रुप - हाँ... क्या हुआ उसे... हालत खराब है क्या उसकी...
वीर - आ ह्ह्ह्.. जवाब मुझे देने दे...
रुप - ओके.. ओके.. सॉरी...
वीर - उसने आज एक दिन की छुट्टी ली है... अब चूँकि वह नहीं आएगा तो... इसलिए मेरा ऑफिस जाने का मन नहीं कर रहा है...
रुप - तो ठीक है ना... आज तुम क्लास अटेंड कर लो...
वीर - नहीं... बिल्कुल नहीं... क्लास... बस यही तो मुझसे नहीं होगा...
रुप - तो माय डियर ब्रदर.. एक काम करो...
वीर - आप ना भाभी के लिए देवरानी... और मेरे लिए छोटी भाभी का इंतजाम करो...
वीर - व्हाट... पागल हो गई है क्या... यह कैसी बातेँ कर रही है... एक भाभी से दिल नहीं भर रहा तेरा... जो तुझे और एक भाभी की जरूरत है.... क्यूँ... किसलिए...
रुप - भैया... (मनाने के स्टाइल में) शुभ्रा भाभी तो मुझसे... बहुत.. बहुत प्यार करती हैं... पर एक भाभी ऐसी भी चाहिए... जो मुझसे लड़े... झगड़े... डांटे...
वीर - बस... बस.. ज्यादा ख्वाब देखने की जरूरत नहीं है... भैया और भाभी के बीच का रिश्ता देखा है... कैसा है... मुझे वैसा कुछ नहीं करना है...

कुछ देर तक गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l वीर को थोड़ा बुरा लगता है l

वीर - सॉरी..
रुप - कोई बात नहीं...
वीर - टॉपिक चेंज करें...
रुप - ठीक है...
वीर - अब बोलो...
रुप - क्या...
वीर - कुछ भी... सिवाय शादी... प्यार वाली बात छोड़ कर...
रुप - ठीक है... आप कुछ नए दोस्त बनाओ...
वीर - (हँसने लगता है) हा हा हा हा हा... वीर सिंह क्षेत्रपाल से कौन दोस्ती करेगा... वह भी सच्ची दोस्ती...
रुप - क्यूँ... क्यूँ नहीं करेगा...
वीर - नंदिनी... तु नहीं जानती... यहाँ एक मिनिस्टर हुआ करता था... उसका बेटा भैया का जिगरी दोस्त बना फिरता था... पर.... खैर... बस इतना याद रख मैंने दोस्ती का एक अलग रुप भी देखा है.... बड़े घर... बड़े नाम वालों की बीच पहचान हो सकती है... पर दोस्ती नहीं...
रुप - तो आपके ऑफिस में जो दोस्त है... वह..
वीर - उसे मैंने अपना दोस्त बनाया है....
रुप - ओ... तो एक काम करो... नए दोस्त के लिए... तुम क्षेत्रपाल को किनारे कर दो...
वीर - (हैरान हो कर) क्या...
रुप - हाँ... अगर सच्चे दोस्त तलाशने है... तो दोस्ती हो जाने के बाद क्षेत्रपाल को सामने लाओ... अपनी पर्सनल एक्सपेरियंस से कह रही हूँ...
वीर - (कुछ सोचते हुए चुप रहता है)
रुप - क्या हुआ... कहाँ खो गए...
वीर - हाँ... हाँ... ठीक है... ठीक है... लो कॉलेज आ गया...

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सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट की कैबिन में रोणा और बल्लभ दोनों टेबल के दुसरी तरफ बैठे हुए हैं l कैबिन के अंदर खान आता है l

खान - सॉरी जेंटलमेन... (अपनी चेयर पर बैठते हुए) आप लोगों को इंतजार करना पड़ा... मैं राउंड लेने चला गया था...
बल्लभ - इट्स ओके खान सर... कुछ काम से आए थे... काम हमारा है तो... इंतजार तो... बनता है...
खान - कहिए... मैं क्या मदत कर सकता हूँ...
बल्लभ - सर.. माय सेल्फ एडवोकेट प्रधान एंड ही इज़ इंस्पेक्टर इन चार्ज रोणा राजगड़ पोलिस स्टेशन...
खान - ओ नाइस मीटिंग यु जेंटलमेन... टेल मी व्हाट कैन आई डू फॉर यु...
बल्लभ - एक्चुयली... हम राजगड़ से आए हैं... एक सजायाफ्ता मुज़रिम के बारे में... पता लगाना चाहते हैं...
खान - ओ... अच्छा... ऐसा कोई मुजरिम है क्या अभी इस जैल में...
रोणा - नहीं... कुछ ही दिन पहले... वह रिहा हो गया है...
खान - ओ... अच्छा... क्या नाम है उसका...
रोणा - विश्व प्रताप महापात्र...
खान - हूँ... लगता है... किसी सरकारी मसले में उसकी तलाश है... क्यूँ... (वे दोनों चुप रहते हैं) क्या हुआ...
बल्लभ - देखिए खान साहब... हम अपने लिए उसके बारे में... जानना चाहते हैं... अगर आप कोई जानकारी दे पाते तो अच्छा होता...
खान - देखिए...(एक पॉज लेकर) प्रधान बाबु... और रोणा बाबु... कुछ कामों के तरीके होते हैं... अपने कायदे होते हैं... आप दोनों... कानून से जुड़े हुए हैं और जानकार भी हैं...
रोणा - साढ़े सात सौ करोड़ का लुटेरा... सजायाफ्ता... उसके लिए... प्रोटोकॉल फॉलो करने की क्या जरूरत है... हम बस इंफॉर्मेशन मांग रहे हैं...
खान - हाँ... जिस केस में विश्व प्रताप सजायाफ्ता हुआ... आप... उसी केस को ठीक से इनवेस्टिगेशन ना कर पाने के कारण... और निजी खुन्नस निकालने के कारण... छह महीने के लिए सस्पेंड हुए थे... ठीक कह रहा हूँ ना...

रोणा जबड़े भींच लेता है, बल्लभ बात को संभालने के लिए

बल्लभ - देखिए... खान साहब... कुछ जानकारी ही तो चाह रहे हैं...
खान - कैसी जानकारी...
बल्लभ - अभी तक विश्व जैल से छूटने के बाद भी... राजगड़ नहीं आया है...
खान - तो उसके रिश्तेदार ढूंढ रहे हैं क्या... राजगड़ थाने में कोई मिसींग रिपोर्ट दर्ज हुआ है क्या...
बल्लभ - नहीं... हम उसे ढूंढ रहे हैं...
खान - वजह...
बल्लभ - पुरे राजगड़ के इंट्रेस्ट के लिए...
खान - देखिए... बी फ्रैंक... मदत किस तरह की चाहते हैं...
बल्लभ - यही... के वह इन सात सालों में... वह क्या क्या कर रहा था... उसके कौन कौन दोस्त बने... वगैरह वगैरह...
खान - हूँ... मिस्टर प्रधान...आप जो भी जानना चाहते हैं... मैं ऑनऑफिसीयली बता सकता हूँ...
बल्लभ - थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...

खान बेल बजाता है l एक अर्दली अंदर आता है और खान को सैल्यूट मारता है l

खान - जाओ... एएसआई बिस्वाल से कहो... मैंने (एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर देते हुए) यह फाइल मंगवाया है...

अर्दली उसे सैल्यूट मार कर चला जाता है l उसके जाने के बाद थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है कमरे में l खान उन दिनों के देख रहा है उन दोनों में रोणा खान को घूर रहा है बल्लभ कमरे में इधर उधर अपनी नजर दौड़ा रहा है l करीब दस मिनट के बाद अर्दली एक फाइल ला कर खान को देता है और सलामी देकर चला जाता है l

खान - (फाइल खोल कर) प्रधान बाबु... मैं अभी तीन साढ़े तीन महीने पहले... यहाँ आकर चार्ज संभाला है... मुझसे पहले के इनचार्ज.. तापस सेनापति जी होते तो... आपको सारी चीजें विस्तार से बता सकते थे...
रोणा - (हैरान हो कर) क्यूँ... उनका ट्रांसफ़र हो गया क्या...
खान - आप जानते थे उन्हें...
रोणा - हाँ... नहीं... पर पहचानता था... खान - हूँ.... नहीं रोणा बाबु... उन्होंने वीआरएस ले लिया है....
बल्लभ - व्हाट... इतनी जल्दी...
खान - अब... भरी जवानी में उनका बेटा नहीं रहा... तो उनका मन उचट गया नौकरी से... इसलिए वीआरएस ले ली
बल्लभ - ओ... वेरी सैड...
खान - (फाइल दिखा कर) तो विश्व... यहाँ पुरे सात साल गुजारे... इस बीच जैल के कैदी सुधार कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया... स्किल अपग्रेड ट्रेनिंग के जरिये... कारपेंट्री, प्लंबिंग, वेल्डिंग, वायरिंग, मोटर मेकैनिक के साथ साथ मोटर वाइंडींग ट्रेनिंग भी लिया है.... इनमें मास्टरी के बाद... एनजीओ के जरिए कुछ काम करते हुए पैसे भी बनाए हैं... यह रही उसकी पुरी जानकारी... और कुछ...
रोणा - क्या...(हैरानी के साथ) जैल में वह यह सब कर रहा था...
खान - रिकॉर्ड के अनुसार... तो यही सब कर रहा था...
बल्लभ - अच्छा खान साहब... और कुछ जैसे... किसीके साथ ज्यादा घुलमिल कर रहता था... या
खान - नहीं... ऐसी कोई जानकारी मेरे पास तो नहीं है...
बल्लभ - किसी से झगड़ा वगैरह...
खान - ह्म्म्म्म.. झगड़ा तो नहीं था... पर...
रोणा - पर क्या...
खान - हाँ एक बार स्पोर्ट्स मीट हुआ था... तीन साल पहले... कबड्डी का मैच था... एक तरफ विश्व था... और एक तरफ... दी देन... हेल्थ मिनिस्टर ओंकार चेट्टी का लड़का यश था... आखिरी मिनट में... विश्व को यश और उसके साथी विश्व पर टुट पड़े... उस झपटा झपटी में विश्व घायल हो गया था और यश की जान चली गई थी... इंटर्नल इंक्वायरी में पता चला कि यह कि मौत ड्रग्स की ओवर डोज के वजह से हुई थी... सीसीटीवी के फुटेज से मालुम पड़ा कि वह ड्रग्स खुद मिनिस्टर साहब ने यश को मुहैया करायी थी... बस इस तरह से विश्व उस इंक्वायरी से बाहर निकला था...
बल्लभ - ओ... तो यश की मौत... ऐसे हुई थी... ह्म्म्म्म... अच्छा खान साहब और कुछ...
खान - उँ हुँ... बस इतना ही...
बल्लभ - कोई आइडिया है... अब वह कहाँ हो सकता है...
खान - ना... यह मैं नहीं जानता... वैसे भी... यहाँ कौन अपना पता छोड़कर जाता है...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... आपने ठीक कहा...
खान - और कुछ...
बल्लभ - जी नहीं... थैंक्यू... खान सर... बहुत बहुत शुक्रिया आपका...
खान - (हँसते हुए) ओह... इट्स माय प्लेजर...

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पिछले कुछ महीनों से वीर ऑफिस सिर्फ अनु के लिए ही जाता था l आज अनु नहीं आने वाली थी इसलिए वीर ऑफिस जाने के वजाए अपनी गाड़ी को एक मॉल की तरफ ले जाता है l उस मॉल में पहुँच कर गाड़ी को पार्किंग में लगाता है और उसके बाद उतर कर गाड़ी से टेक लगा कर खड़ा हो जाता है l फिर इधर उधर देखने लगता है l उसे अपने आसपास सब खाली खाली सा लगने लगता है l कुछ सोचने के बाद वह लिफ्ट की ओर बढ़ जाता है l लिफ्ट में पहले से ही एक बंदा था

बंदा - फूड कोर्ट...
वीर - कहीं भी ले जाओ यार...

बंदा लिफ्ट का बटन दबाता है l लिफ्ट फूड कोर्ट में पहुँच जाता है l वह बंदा लिफ्ट से निकल कर चला जात है, वीर अपने में खोया कॉफी डे के सामने एक खाली टेबल पर बैठ जाता है l अकेले बैठ कर अपने आप सोच में खो जाता है l कुछ देर बाद उसके सामने एक कोल्ड कॉफी की ग्लास रख कर वहीं लिफ्ट वाला बंदा बैठ जाता है l वीर देखता है बहुत ही हैंडसम लड़का जिंस और टी शर्ट पहने बहुत ही अट्रैक्टीव दिख रहा है l

लड़का - हैलो वीर... (कॉफी की ग्लास देते हुए) लो यह तुम्हारे लिए...(वीर हैरान हो कर देखता है) क्या हुआ... पार्किंग से देख रहा हूँ... परेशान लग रहे हो... और यह क्या आज अकेले...
वीर - (हैरानी भरे नजरों से उसे देखता है) क्या तुम.. मुझे पहचानते हो...
लड़का - ना... बस... तुम्हारा नाम जानता हूँ...
वीर - क्या हम... पहले भी कभी मिले हैं...
लड़का - हाँ... मिले हैं ना... बस एक बार... कुछ सेकंड्स के लिए...
वीर - तो तुम मुझे याद क्यूँ नहीं हो...
लड़का - इसलिए कि शायद तुम... उस वक़्त किसी बहुत ही खास के साथ थे.... एक आम आदमी से हुए मामुली मुलाकात को.. याद रखने की जरूरत नहीं पड़ी...
वीर - (कुछ सोचते हुए) मैं कौन सा खास हूँ... मैं भी तो बहुत आम हूँ...
लड़का - हाँ... (मुस्कराते हुए) पर तुम थे तो किसी.. (भवें नचा कर) खास के साथ...
वीर - (हैरानी से) यह तुम... किस दिन की बात कर रहे हो...
लड़का - अभी... ह्म्म्म्म... मुस्किल से शायद... डेढ़ महीने पहले... ओरायन मॉल के पार्किंग में... तुम.. गाड़ी पार्क करने के बाद गिरने वाले थे.. मैंने ही थाम लिया था तुमको...
वीर - ओह...
लड़का - आई थिंक... तुम उस दिन अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ थे... और मैं... अपनी माँ के साथ...
वीर - ओ.. हाँ हाँ हाँ... याद आया... क्या नाम बताया था तुमने...
लड़का - (हाथ बढ़ाते हुए) प्रताप...
वीर - (हाथ मिलाते हुए) वीर...
प्रताप - मालुम है यार... इसीलिए तो तुम्हारे लिए कोल्ड कॉफी लाया हूँ... पी लो...
वीर - तुमने यह कॉफी कब ऑर्डर की...
प्रताप - जब तुम किसी गहरी सोच में... लिफ्ट में घुसे... इस टेबल पर बैठ कर खोए हुए थे....
वीर - (कॉफी पीते हुए) कॉफी के लिए थैंक्स....
प्रताप - वैसे आज यहाँ... अकेले अकेले... मेरी बहन कहाँ है...
वीर - (हैरान हो कर) बहन... तु.. तुम्हारी बहन...
प्रताप - अरे यार... उस दिन उन मोहतरमा ने मुझे भाई साहब कहा था... तो हुई ना मेरी बहन... कहाँ हैं...
वीर - वह... एक्चुयली... उसकी दादी को मेडिकल लेकर गई हुई है... इसलिए...
प्रताप - ओ... क्या ज्यादा सीरियस बात है....
वीर - नहीं नहीं... कोई रुटीन चेक उप...
प्रताप - अच्छा.. तो इसलिए... अकेले अकेले... कहीं दिल नहीं लग रहा... ह्म्म्म्म...
वीर - (कुछ नहीं कहता है फिर ख़यालों में खो जाता है)
प्रताप - (कॉफी पीते हुए उसे देखता है) बहुत... मिस कर रहे हो उसे... यु आर मिसींग हर... लॉट...
वीर - (प्रताप की ओर देख कर उसे सवालिया नजर से देखता है)
प्रताप - ह्म्म्म्म्म्म्म्... तुम मुझे जिस तरह से देख रहे हो... उसमें ढेर सारे सवाल हैं... अपने बारे में.... राइट...
वीर - (कुछ जवाब देने के वजाए प्रताप को घूरने लगता है)
प्रताप - ह्म्म्म्म... बहुत कंफ्युज्ड हो... अपने अंदर की इस फिलिंग्स के बारे में... मतलब अभी तक तुमने उसे अपना हाल ए दिल बताया नहीं है...
वीर - तुम क्या चेहरा पढ़ लेते हो...
प्रताप - नहीं यार.. बस... तुम हम.. उम्र के जिस मोड़ से गुजर रहे हैं... उसीसे अंदाजा लगा लिया...
वीर - (अपनी नजरें फ़ेर लेता है) हाँ... बहुत कंफ्युज्ड हूँ...
प्रताप - मुझसे शेयर करो... एंड ट्रस्ट मी... आई कैन गिव यु गुड सजेशन...
वीर - तुम... तुम मुझे सजेस्ट करोगे...
प्रताप - क्यूँ... शक़ है तुम्हें... माय फ्रेंड... यही मेरा पेशा है... मैं इसके लिए चार्ज भी लेता हूँ... पर तुम्हारे लिए फ्री... एकदम फ्री...
वीर - (एक सांस अंदर खींच छोड़ते हुए, एक फीकी हँसी के साथ) जानते हो... यह प्यार... मोहब्बत....(पॉज लेकर) इन सब पर मैंने एक... ओपिनियन पाल रखा था...
प्रताप - कैसा ओपिनियन...
वीर - यही... की उम्र के इस मोड़ पर... ओपोजीट जेंडर के बीच जो अट्रैक्शन होती है... वह हमारे अंदर के हार्मोन्स के ज्यादा बहाव के कारण...
प्रताप - ह्म्म्म्म... वाह... बहुत ही बढ़िया ओपिनियन पाला था... फिर... फिर क्या हुआ...
वीर - यही तो... यही तो जानना है... क्या हुआ है... क्या हो रहा है... क्यूँ हो रहा है..
प्रताप - वेरी सिंपल... प्यार हुआ है... प्यार ही हो रहा है...
वीर - क्या यह तुम पर्सनल एक्सपेरियंस से बोल रहे हो... या तुक्का लगा रहे हो...
प्रताप - एक्सपेरियंस तो फ़िलहाल कर रहा हूँ... तुक्का लगाया नहीं है... यकीन से कह रहा हूँ... तुम्हें प्यार हो गया है...
वीर - क्यूँ... तुम भी किसीसे प्यार कर रहे हो...
प्रताप - (एक फीकी हँसी हँसते हुए) हाँ शायद...
वीर - हा हा हा... तुम खुद अपने फिलिंग से कंनफ्युज हो... और बात मेरी फिलिंग की कर रहे हो... हा हा हा...
प्रताप - यहीं तो चुक हो जाती है... मेरा प्यार एक तरफा है... पर तुम्हारा दो तरफा है...
प्रताप - हम अपनी आँखों से दुनिया को देखते हैं... इसलिए दुनिया को समझ सकते हैं... पर खुद को नहीं क्यूंकि... हम खुद को देख नहीं पाते....
वीर - तो आईने में ख़ुद को देख लो...
प्रताप - हा हा हा हा हा... आईना हर अक्स का उल्टा दिखाता है मेरे दोस्त... इसलिए मैं तुम्हारे बारे में डैम श्योर हूँ...
वीर - कैसे कह सकते हो..
प्रताप - ह्म्म्म्म... ठीक है... अपनी आँखे बंद करो...
वीर - क्यूँ...
प्रताप - अरे... करो यार... (वीर अपनी आँखे बंद करता है) अब उसे अपनी जेहन में लाओ... (पॉज लेने के बाद) सुनो वह तुम्हें आवाज़ दे रही है...

वीर के कानों में एक मीठी सी आवाज़ गूंजती है "राजकुमार"
वीर के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान खिल उठता है

प्रताप - ऐसा लग रहा है... जैसे कानों में मिश्री घुल रही है... है ना... (वीर कुछ नहीं कहता है पर उसके चेहरे पर रौनक थोड़ी बढ़ जाती है) उसके पास होने से... लग रहा है... जैसे रोयां रोयां महक सा जा रहा है... है ना... (वीर अपनी आँखे बंद किए हुए एक गहरी सांस लेता है जैसे कोई खुशबु ले रहा है) ऐसा लग रहा है जैसे... उसके आने से फूलों में जान आ जाती है... बाग खिल जाता है... मतलब सारा आलम चहकने लगता है.... चमकने लगता है....

कुछ देर की ख़ामोशी l वीर अपने ख़यालों में पुरी तरह खोया हुआ है l प्रताप उसे जगाता है

प्रताप - वीर... हे... वीर...
वीर - (अपनी आँखे खोल कर खीज कर प्रताप को देखता है) (जैसे प्रताप ने उसका ध्यान तोड़ दिया हो)
प्रताप - अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुमसे वह खो गई... है ना...
वीर - हाँ...
प्रताप - देखा... कितना प्यार कर रहे हो... (भवें नचा कर) क्या नाम है मेरी बहन का...
वीर - अनु...
प्रताप - वाव... जितना सुंदर नाम... उतनी ही सुंदर है वह...
वीर - (शर्माते हुए मुस्कराने लगता है) क्या सच में... मुझे... अनु से प्यार है...
प्रताप - बिल्कुल... बेहद... बेइंतहा... बेपनाह.. बेहिसाब...
वीर - कैसे... मुझ जैसा... किसी एक लड़की से... कोई एक लड़की... दुनिया में क्या इतनी खास हो सकती है... कैसे
प्रताप - प्यार... प्यार एक जनम का रिश्ता नहीं होता... जनम जनम का होता है...
वीर - बकवास...
प्रताप - अरे... प्यार के लिए... भगवान तकधरती पर उतर आते हैं.... पर भगवान हो कर भी कभी कभी किस्मत से हार जाते हैं...
वीर - (हैरान हो कर प्रताप को देखता है) हर रिश्ता... माँ.. बाप.. भाई.. बहन सब... सिर्फ... एक ही जनम के लिए साथ निभाने आते हैं... पर प्यार... हर जनम में साथ देने आता है... इसलिए जन्म जन्मांतर की की साथी कहा जाता है... प्यार एक रूहानी एहसास है... एक.. एक डिवाइन फिलिंग है... जिसके चलते शिव... अपनी सती के लिए खुद के भगवान होने को नकार ने पर अमादा हो जाते हैं... बिछोह के दर्द में राम... जंगल के हर पत्तों से... फूलों से... यहाँ तक कण कण से... सीता के बारे में पूछने लगते हैं... राधा के साथ पूजे जाने वाले... भगवान कृष्ण... भगवान होते हुए भी... राधा को ना पा सके... प्यार... है ही एक ऐसा.... रूहानी एहसास...
वीर - (सांसे तेज होने लगती हैं)
प्रताप - तुम्हें प्यार ही हुआ है... हो गया है...
वीर - ओह... ओह माय गॉड...
प्रताप - क्या हुआ...
वीर - मेरी.... माँ को... यह आभास हो गया था... पर मैंने नकार दिया था...
प्रताप - माँ जी को जरूर बताना... पर पहले... इजहार ए मोहब्बत तो कर लो...
वीर - (उत्सुकता से) कैसे...
प्रताप - देखो दोस्त... इसमें तुम अपना दिमाग लगाओ... आशिक हो... तो तुम्हारा इजहार ए मोहब्बत... अपने मोहब्बत के लिए... सबसे अलग... सबसे जुदा हो...
वीर - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
प्रताप - यह मोहब्बत है जनाब... अपने इश्क़ के लिए कुछ ऐसा करो... आने वाले कल के आशिकों के लिए... मिसाल बन जाओ...
वीर - अरे यार(हँसते हुए) कुल... कुल... एडवाइस दे रहे हो... या बहुत ही भारी भरकम वर्ड्स मुझ पर फेंक मार रहे हो... इतना वजन हम से उठाया ना जाएगा...
प्रताप - मैं बस इतना ही कहूँगा.... प्यार में थ्री डी का हमेशा इस्तमाल करो...
वीर - थ्री डी... यह क्या है...
प्रताप - डेडीकेशन डीटरमिनेश और डीवोशन...
वीर - मतलब... प्रताप - पहले प्यार को... डीटरमिनेट करो... उसके लिए अपना डेडीकेशन लगाओ... चूंकि यह रूहानी एहसास है... इसलिए इस डीवाइन की तरह लो... डीवोटि बन जाओ... आई मिन.... कुछ ऐसा करो... जो सिर्फ तुम ही कर सकते हो... प्यार किया है... तो अपने प्यार को सरप्राइज़ करो... इजहार ऐसा हो कि... उसे लगे कि दुनिया की सबसे बड़ी खुशी यही हो... अंतिम हो...
वीर - ओह माय गॉड... तुम जैसे कह रहे हो... मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए.... थैंक्स यार... (झट से वीर खड़ा हो जाता है) अबे साले उठ... खड़े हो जा...
प्रताप - (हैरान हो कर) क्या... क्या कहा...
वीर - अबे... बहन लगती है तेरी... तो साला हुआ ना तु मेरा...
प्रताप - अच्छा... तो तु ऐसे.. इस रास्ते पर आ गया... (हँसते हुए खड़ा हो जाता है)
वीर - (प्रताप के गले लग कर) थैंक्स दोस्त... मैं अपनी ही बनाए भंवर में भटक रहा था.. तुमने राह दिखाई है... मैं मंजिल जरूर हासिल करूंगा... (अलग हो कर) बाय...

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कॉलेज खतम हो चुका है l साढ़े तीन बज चुके हैं, रुप को आज भाश्वती के साथ ड्राइविंग स्कुल जाना है, इसलिए बस स्टॉप पर वह और भाश्वती खड़े बस का इंतजार कर रहे हैं l कुछ टपोरी टाइप के लड़के इन दोनों से दुर खड़े कमेंट्स पे कमेंट्स किए जा रहे हैं l रुप इग्नोर करती है पर भाश्वती से रहा नहीं जाता

भाश्वती - (रुप से) यार... तेरी आइडेंटिटी कार्ड देना...

रुप अपनी कार्ड दे देती है l भाश्वती कार्ड ले जा कर उन लड़कों के पास जाती है और कुछ बातेँ करने लगती है l कुछ ही देर में वह टपोरी वहाँ से भाग जाते हैं l उनके भाग जाने के बाद भाश्वती मुस्कराते हुए रुप के पास आती है l

रुप - क्या कहा उन लड़कों को...
भाश्वती - कुछ नहीं.. तेरा कार्ड दिखाया और उन्हें तेरा सरनेम दिखाया... बाकी... वह सब बड़े समझदार निकले... दुम दबा कर भाग गए... हा हा हा हा हा....
रुप - (उससे अपनी कार्ड छीनते हुए) तु ना... मैं अपनी पहचान छुपाने की कोशिश कर रही हूँ... और तु है कि... मेरी पहचान डिस्क्लोज कर रही है...
भाश्वती - सॉरी यार... इसके लिए सॉरी... (हँसते हुए) पर उन लफंगों को सबक सिखाने का यही तरीका था...
रुप - देख... अपनी भाई से कहलवा कर... उस ड्राइविंग स्कुल में.. मैंने अपना सरनेम छुपाया है... तु वहाँ भी डिस्क्लोज मत कर देना...
भाश्वती - (मुहँ बना कर) ठीक है... अच्छा एक बात बता... तुझे सिखाने वाले ना कम होंगे... ना सीखने के लिए गाड़ीयों की कमी होगी... फिर...
रुप - क्षेत्रपाल एक बंदिश है... उस नाम को छोड़ दिया... तो आजादी है... बंदिशों में सारा जहां मिल भी जाए... तो वह हासिल नहीं लगती... आजादी में कुछ भी... जरा सा भी मिल जाए... वह हासिल होती है...
भाश्वती - वाव... सुन कर अच्छा लगा... हाँ यह बात और है कि मुझे कुछ समझ में नहीं आया... हा हा हा हा हा...

रुप चिढ़ कर उसे मुहँ बना कर देखती है, भाश्वती उसे देख कर मासूम सा चेहरा बना कर देखती है और फिर दोनों हँसने लगते हैं l

भाश्वती - यार तुने आज बनानी को बहुत दौड़ा दिया...
रुप - हाँ उससे वादा लिया था... मेरी बचपन की बात किसीको ना बताये... पर...
भाश्वती - तो क्या हुआ... बताया तो अपनों को ही ना... हम छठी गैंग वाले... तेरे अपने नहीं हैं क्या...
रुप - हाँ अपने हो... उसने अपनों को ही बताया है... पर देख... तुम लोग इसको...
भाश्वती - अरे बाबा.. हम कहीं और डिस्क्लोज नहीं करेंगे... (अपनी थ्रोट पर हाथ रखकर) प्रॉमिस...
रुप - ठीक है... ठीक है...
भाश्वती - अच्छा... बचपन के बाद... तुझे अनाम कभी नहीं मिला... आई मिन कभी नहीं दिखा....
रुप - (जबड़े भींच कर भाश्वती को देखती है)
भाश्वती - ओके ओके ओके... जैसा कि बनानी ने डाऊट किया कि... सपोज... मेरा ज़बरदस्ती का भाई... अगर अनाम निकला तो...
रुप - तेरी यह आदत बहुत बुरी है... बार बार उसी बात को लेकर परेशान कर रही है... मैं खतरनाक नहीं हूँ... यह सिर्फ अनाम का कॉपी राइट तकिया कलाम तो नहीं हो सकता ना... हो सकता है... आज कल इम्प्रेस ज़माने के लिए लड़के बोलते हों...
भाश्वती - हाँ... होने को तो... बहुत कुछ हो सकता है...

इतने में एक बस हॉर्न बजाते हुए आता है l बस में बहुत भीड़ था और लड़कियाँ कम दिख रही थीं l यह दोनों चढ़ जाते हैं l लेडिज सीट पर दो मर्द बैठे थे I

रुप - (उन दो मर्दों से) एस्क्युज मी... यह लेडीज सीट है...
एक - (हँसते हुए) कोई नहीं... हम बस आगे उतरने वाले हैं...
रुप - ऑए... तो क्या लेडीज सीट पर बैठ जाओगे... यह लेडीज सीट है... लेडीज यहाँ खड़े हैं... बिना चु चपड़ के उठो यहाँ से...
दुसरा - ऑए... लड़की है... लड़की की तरह रह.... अगर नहीं उठे तो...
रुप - क्या... क्या कहा... (चिल्ला कर) लड़की... (दुसरे की कलर पकड़ कर) क्या कहा... (जोर से चिल्ला कर) ड्राइवर गाड़ी रोको.... कंडक्टर्र्र्र्र...

ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l कंडक्टर आता है, वह और सभी पैसेंजर उन दोनों पर चिल्लाने लगते हैं l शर्मिंदा हो कर दोनों सीट छोड़ देते हैं l भाश्वती खिड़की के पास बैठ जाती है और बगल में रुप बैठ जाती है l

भाश्वती - (धीमी आवाज में रुप की कानों में) तेरा ऐसा भी रुप हो सकता है... ऐसा तो हमारे ग्रुप में किसीको नहीं मालुम... और कौन कहेगा... के आज तु पहली बार बस से जा रही है...
रुप - (धीरे-धीरे) यह सब फ़िल्मों में.. टीवी सिरियल में देखा था... आजमा दिया...
भाश्वती - हाँ... पहली बार बस में... सबने एक गुंडी को देख लिया...
रुप - अब तु भी अपना मुहँ बंद कर.... वरना तुझ पर भी आजमाउंगी...


दोनों अपनी हँसी दबा कर एक दुसरे को मुस्कराते हुए देखते हैं l अगली स्टॉपेज पर वह दोनों लड़के उतर जाते हैं l उसी स्टॉपेज पर पसीने से लतपत बुरी तरह से थकी हुई एक बुढ़ी औरत उठती है अपने लिए सीट ढूंढती है l बस भले ही भरा हुआ तो नहीं था पर सीट कहीं भी खाली नहीं थी l

रुप - (अपनी सीट से उठ कर) आइए माँ जी... यहाँ बैठ जाइए...
औरत - नहीं बेटी... तुमको तकलीफ होगी...
रुप - नहीं माँ जी... कोई तकलीफ नहीं होगी... बल्कि खुशी होगी...

रुप उस औरत के पास जाती है और उसे खिंच कर अपनी सीट पर बिठा देती है l इतने में ड्राइवर झटके से गाड़ी आगे बढ़ा देता है l झटके के वजह से रुप पीछे की ओर गिरने को होती है कि तभी वह पीठ के बल किसी के पीठ पर टकराती है l फिर रुप संभल कर रेलिंग के ग्रीप पकड़ लेती है और पीछे मुड़ कर देखती है कोई लड़का है जो उसके तरफ पीठ किए खड़ा है l रुप के संभलते ही वह लड़का थोड़ी दूर जा कर खड़ा हो जाता है l

रुप - (उस लड़के से) एस्क्युज मी... (लड़का नहीं सुनता) (रुप रेलिंग पकड़ते हुए उसके पास जाती है) एस्क्युज मी...
लड़का - (हल्का सा मुहं घुमा कर) जी कहिए...
रुप - थैंक्यू...
लड़का - जी.. ठीक है... कोई बात नहीं...

रुप हैरान होती है कि वह लड़का बिना पीछे मुड़े उससे बात की l रुप भी अब आगे की ओर मुड़ जाती है l थोड़ी देर बाद बस रुकती है l उतरने वाले पैसेंजर्स पीछे से उतर जाते हैं और चढ़ने वाले सब आगे की तरफ से चढ़ने लगते हैं l इसलिए रुप अब पीछे की तरफ जाने लगती है उसे एक सीट पर वही लड़का बाहर की ओर देखते हुए चेहरा पीछे की ओर मोड़ कर बैठा हुआ दिखता है l उसकी बगल की खाली सीट में रुप बैठ जाती है l

गाड़ी आगे चलने लगती है l उसके अजीब ढंग से बैठना रुप को अखरता है l

रुप - एस्क्युज मी... (लड़का नहीं घुमता) ओ हैलो... मैं आपसे बात कर रही हूँ...
लड़का - (अपनी बांह से चेहरे को आधा ढकते हुए) जी...
रुप - (इस तरह चेहरा छुपा कर बात करने से हैरान होती है) आप... आराम से बैठिए... अगर परेशानी हो रही है... तो मैं खड़ी हो जाती हूँ...
लड़का - नहीं नहीं आप बैठिए.. मैं उठ जाता हूँ...
रुप - कमाल के लड़के हो... (चिल्ला कर) मुझसे तुमको परेशानी हो रही है क्या..
लड़का - (वैसे ही मुहँ छुपाते हुए) नहीं नहीं... आपसे किसी को परेशानी नहीं हो सकती... आप तो बहुत अच्छी हैं...
रुप - तो फिर ठीक से... आराम से बैठिए ना...
लड़का - नहीं नहीं मैं ऐसे ही ठीक हुँ...
रुप - उह्ह्ह्ह्... गो टु हैल.. देन...

थोड़ी देर बाद गाड़ी रुकती है l भाश्वती अपनी सीट से उठ कर चिल्लाती है
"नंदिनी... हमारा स्टॉप आ गया है... चल उतर"

रुप उस लड़के को गुस्से से घूरती है और भाश्वती के साथ उतर जाती है l दोनों एक साथ ड्राइविंग स्कुल की ओर जाने लगते हैं l रुप को उखड़े मुड़ में देख कर

भाश्वती - क्या हुआ... मदर टेरेसा... अपनी सीट ऑफर कर खड़ी हो गई... अब क्यूँ मुड़ खराब किए हुए है...
रुप - एक लड़का...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... एक लड़का... क्या किया उसने तेरे साथ...
रुप - अरे चुप... क्या अनाप शनाप बकती रहती है... ऐसा लगा जैसे वह लड़का... शायद मुझसे खुदको छुपा रहा था... शायद वह मुझे जानता है... और मैं भी शायद उसे जानती हूँ...
भाश्वती - तब तो पक्का तुने उसकी बैंड बजायी होगी... इसलिए बेचारा डर के मारे चेहरा छुपा रहा होगा... हा हा हा...

दोनों बातेँ करते करते ड्राइविंग स्कुल के अंदर आते हैं l रिसेप्शन से बात करने के बाद एक क्लास रूम नुमा कमरे में आते हैं l वहाँ पर कुछ और लड़कियाँ, औरतें और एक बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ मिलता है l वे दोनों भी अंदर जा कर बैठ जाते हैं l थोड़े इंतजार के वक़्त इंस्ट्रक्टर आता है और सब पर एक नजर डालता है l

इंस्ट्रक्टर - (हाथ में एक रजिस्टर लिए और अपना चश्मा दुरुस्त करते हुए) ह्म्म्म्म... तो... xxx ड्राइविंग स्कुल में.. आपका स्वागत है... हैलो... आई एम... रोहित.. बस रोहित... सिर्फ़ रोहित... आप सब भी अपना नाम ही यहाँ बताइयेगा... कोई सरनेम नहीं... कॉज... आप भले ही भिन्न भिन्न उम्र के हैं... पर हैं तो मेरे स्टूडेंट्स... इसलिए फॉर आवर कंफर्टे जोन... कोई अपना सरनेम यूज नहीं करेंगे... ओके... गुड... तो मैं रोहित... आप सबका इंस्ट्रक्टर...तो मैं आज देख पा रहा हूँ... कुछ लड़कियाँ... कुछ औरत... आई मिन... टु से... कुछ और बड़ी लड़कियाँ... और एक बुजुर्ग...
वह बुजुर्ग - (अपनी जबड़े भींच कर) क्या कहा....
इंस्ट्रक्टर - ओह्ह ओ... सॉरी... सॉरी अगेन.. मेरा मतलब है कि... सो मैनी लेडीज और... ऑनली जेंटलमेन.... पर (अपने हाथ में रजिस्टर देख कर) मेरे रजिस्टर के हिसाब से एक और जेंटलमेन होने चाहिए... शायद... और शायद वह नहीं आए हैं...

तभी एक लड़का भागते हुए आता है, उसे देख कर रुप को झटका सा लगता है उसका और भाश्वती दोनों मुहँ हैरानी से खुला का खुला रह जाता है l

लड़का - (थोड़ा सांस ऊपर नीचे करते हुए) आ गया... आ गया सर... प्रताप... माय सेल्फ प्रताप... प्रताप रिपोर्टिंग सर...
 

Abhay@1

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Oohh Ho ho kya setting ki hai janab NE vishwa ko veer ka frnd banane ki. And nandani ke kareeb lane ki....
I think naag bhai chahte hai ki veer and vikram dono vishwa ke saath khare ho jaye bhairav Singh ke khilaf... Usko uske hi parivar se duur krne ka plan hai.. Kiu naag Bhai sahi ya galat....
 
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