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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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इन्स्पेक्टर रोणा साहब के खुशी के दिन बीते रे भैया बीते.... अब अपने नाम के अनुरूप रोणे मतलब , रोने के दिन आ गए । पाप का घड़ा फूटने का समय बहुत नजदीक है ।
वैसे इन्स्पेक्टर रोणा और वैदेही के बीच का कन्वर्सेशन बहुत ही बेहतरीन था । जिस तरह से कानून के धाराओं का बखान किया जा रहा है उससे साफ लगता है कि आगे की लड़ाई दिमागी स्तर से लड़ी जायेगी । पुराने केस को फिर से रि ओपन किया जायेगा और अदालत में एक बार फिर से बहस का सिलसिला शुरू होगा ।
इस दरम्यान मुझे लगता है खून का कतरा बहेगा भी तो वो सिर्फ भैरव सिंह के प्यादों का । भैरव सिंह क्षेत्रपाल का बहता खून शायद हम क्लाइमेक्स में देखें !

बहुत बढ़िया अपडेट था ब्लैक नाग भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
 

Kala Nag

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इन्स्पेक्टर रोणा साहब के खुशी के दिन बीते रे भैया बीते.... अब अपने नाम के अनुरूप रोणे मतलब , रोने के दिन आ गए । पाप का घड़ा फूटने का समय बहुत नजदीक है ।
जी बिलकुल
वैसे इन्स्पेक्टर रोणा और वैदेही के बीच का कन्वर्सेशन बहुत ही बेहतरीन था । जिस तरह से कानून के धाराओं का बखान किया जा रहा है उससे साफ लगता है कि आगे की लड़ाई दिमागी स्तर से लड़ी जायेगी । पुराने केस को फिर से रि ओपन किया जायेगा और अदालत में एक बार फिर से बहस का सिलसिला शुरू होगा ।
हाँ केस रिओपन होगा
और उसीके सबूतों के जुगाड़ में लड़ाई शुरु होगा चालें चली जाएंगी
इस दरम्यान मुझे लगता है खून का कतरा बहेगा भी तो वो सिर्फ भैरव सिंह के प्यादों का । भैरव सिंह क्षेत्रपाल का बहता खून शायद हम क्लाइमेक्स में देखें !
बेशक
बहुत बढ़िया अपडेट था ब्लैक नाग भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
 

Kala Nag

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👉इक्यासीवां अपडेट
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इस बीच दो दिन बीत चुके हैं
सुबह सुबह तापस वकींग करने के लिए बाहर चला गया है l प्रतिभा अपना स्नान खतम कर लेने के बाद विश्व के कमरे में आती है तो देखती है विश्व बाथरुम में घुसा हुया है l पिछले दो दिनों से विश्व ने अपनी रुटीन को खुद गड़बड़ किया हुआ है l जैसे ही प्रतिभा का स्नान खतम होता है तभी विश्व अपने बाथरुम में घुस जाता है l दो दिन से विश्व अपना बिस्तर अब उठा नहीं रहा है l

प्रतिभा - ओ हो... क्या हो गया है इस लड़के को... दिन व दिन आलसी होता जा रहा है... ताड़ के पेड़ जितना लंबा हो गया है... पर देखो लाट साहब को... बिस्तर ना ठीक से बनाता है... ना उठाता है....
विश्व - (बाथरुम के अंदर से) सब सुनाई दे रहा है माँ...
प्रतिभा - हाँ तो... तुझे सुनाई दे.. इसलिए तो चिल्ला के कह रही हूँ...(बिस्तर उठा लेने के बाद) और खबर दार... जो किचन में आने की कोशिश की तो...
विश्व - जैसी आपकी आज्ञा माते...

प्रतिभा के चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है और वह पूजा घर की ओर चली जाती है l पूजा खतम कर वह ड्रॉइंग रुम में आकर दीवार पर लगे अपने और तापस के बीच मुस्कराता विश्व की बड़े से फोटो के सामने खड़ी होकर निहारने लगती है l फिर दीवार पर लगे उस फोटो के पीछे एक कैलेंडर निकालती है और इससे पहले उस पर सातवें दिन पर कलम से क्रॉस मार्क कर पाती विश्व वहाँ पहुँच कर उसे रोक देता है

विश्व - यह क्या है माँ... परसों सारे कैलेंडर मैंने ढूंढ ढूंढ कर फेंक दिए थे... यह कहाँ से आ गया फिर... क्यूँ ऐसा कर रही हो...
प्रतिभा - (सकपका जाती है) त... तेरा स्नान इतनी जल्दी खतम हो गया...
विश्व - हाँ... पर यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ...

प्रतिभा - (चुप हो जाती है)

विश्व प्रतिभा की हाथ पकड़ कर ड्रॉइंग रुम के सोफ़े पर बिठाता है और खुद उसके सामने घुटने पर बैठ जाता है l


विश्व - माँ... तुम... और दीदी... मेरी हिम्मत हो... और मेरी ढाल भी... कोई एक अगर कमजोर पड़ जाएगा... तो... जरा सोचो... मेरा क्या होगा...
प्रतिभा - (विश्व के मुहं पर हाथ रख कर) शुभ शुभ बोल... ऐसी बातेँ नहीं करते...
विश्व - (अपने मुहँ से प्रतिभा की हाथ निकाल कर) तुम अगर ऐसी बचकानी हरकतें करोगी... तो मैं कैसी बातेँ करूंगा... बोलो...
प्रतिभा - अच्छा अब उठ... और मेरे पास बैठ... (विश्व उठता है और प्रतिभा के बगल में बैठ जाता है) अब बता... इन दो दिनों में तुझे क्या हो गया है... बता...
विश्व - (मुहँ बना कर) कुछ नहीं हुआ है... मैंने सोचा... सिर्फ़ प्यार ही प्यार लुटाने वाली माँ... अगर मुझे गाली दे... तो... (मुस्करा कर) उसकी गाली कैसी रहेगी...
प्रतिभा - तो जान बुझ कर मुझे छेड़ रहा है...
विश्व - नहीं माँ... ऐसी बात नहीं... सिर्फ़ प्यार ही प्यार देखा है... गुस्सा भी कर रही हो... तो भी उसमें कितना प्यार है...
प्रतिभा - क्या तुझे मेरे प्यार पर शक़ है...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... पर लगता है... तुम्हें... अपने प्रताप पर भरोसा नहीं है...
प्रतिभा - यह... यह तु कैसी बातेँ कर रहा है...
विश्व - तो फिर यह कैलेंडर... उसमें दिन काटना क्या है माँ...
प्रतिभा - (चुप रहती है)
विश्व - माँ... मैं कितनी बार तुमसे अपना वादा दोहराऊँ... बोलो...(प्रतिभा उसे मुहँ बना कर देखती है) चलो आज तुमसे... फिर से वादा करता हूँ... मैं वापस आऊंगा... जरूर आऊंगा...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर भरोसा तुझ से नहीं... जिंदगी से उठने लगी है... पता नहीं कब बुलावा आ जाए...
विश्व - क्या माँ... अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुआ है... अगर तुम्हारा स्वयंवर रखा जाए... तो वरों की भीड़ लग जाएगी...
प्रतिभा - (विश्व की कान खिंचते हुए) बेशरम... अपनी माँ की स्वयंवर की बात कर रहा है...
विश्व - आह... आ.. माँ... मैं तो... ऐसे ही... आह... कह रहा था...
प्रतिभा - क्यूँ... क्यूँ कह रहा था...
विश्व - (अपना कान छुड़ा कर) आरे माँ... मैं यह कह रहा था कि... तुम अभी सौ साल और जिओगी....
प्रतिभा - और सौ साल तक मैं जी के करूंगी क्या...
विश्व - क्या बात कर रही हो... तुम्हें अपने पोते पोतियों की शादी नहीं करवानी है क्या...
प्रतिभा - (उसे भवें सिकुड़ कर देखती है)
विश्व - कुछ ज्यादा बोल गया क्या...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. बहुत ही ज्यादा...

विश्व - वह क्या है ना माँ... मैं तुम्हें... हमेशा खुश देखना चाहता हूँ... इसलिए मैं...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब यह भी बोल दे... मेरे लिए पोते पोती लाएगा कहाँ से...
विश्व - बस... मेरे काम खतम होते ही...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए विश्व के सिर पर हाथ फेरती है, और वहाँ से उठने लगती है) तो लाट साहब... काम खतम होते ही... आसमान से लाकर सीधे... मेरे गोदी में पोते पोती डाल देंगे... क्यूँ...
विश्व - क्या माँ...(प्रतिभा को दुबारा बिठाते हुए) मेरी बात पर तुमको यकीन नहीं...
प्रतिभा - (थोड़ी सीरियस हो कर) देख... बात अगर खेल खेल में... मज़ाक मजाक में शुरु हुई है... तो चल... एक सीरियस मोड़ पर खतम करते हैं...
विश्व - ठीक है.... खतम करते हैं... पर एक शर्त है... तुम अब फिरसे कैलेंडर पर.. दिन नहीं काटोगी...
प्रतिभा - ठीक है...
विश्व - वादा...
प्रतिभा - वादा...
विश्व - तो बताओ वह सीरियस मोड़ क्या है...
प्रतिभा - मुझे मेरे पोते पोतीओं को देखने के लिए... उनकी माँ को... मैं ढूंढुँ... या तु ढूंढेगा...

अब विश्व सकपका जाता है और हकलाने लगता है

विश्व - यह... क.. क... क्या... (उठ खड़ा होता है और सामने वाली सोफ़े पर बैठ जाता है) वह माँ... मैं.... वह... (कह नहीं पाता)
प्रतिभा - मैं समझ गई... ह्म्म्म्म... और उसमें मेरी सहमती भी है...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... क्या समझी तुम...
प्रतिभा - तेरे दिल पर.. इस बात का बोझ है... कहीं सच में... तेरी राजकुमारी... तेरा इंतजार तो नहीं कर रही...
विश्व - न... नहीं... ऐसी बात... पता नहीं... मैं... मैं नहीं जानता...
प्रतिभा - अच्छा मान ले... राजकुमारी... वाकई तेरी प्रतीक्षा में होगी... तो.. तब...

विश्व - (हैरान व परेशान हो कर प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - जो भी कहना.. दिल से... और आत्मा की गहराई से कहना...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है)
प्रतिभा - ठीक है... जब ज़वाब सूझे... आकर बता देना... (प्रतिभा उठ कर किचन की जाने लगती है)
विश्व - माँ... (प्रतिभा रुक जाती है) अगर...(पॉज लेकर) राजकुमारी जी... मेरे इंतजार में होंगे... तो... मैं वादा करता हूँ... इस घर में बहू बन कर... वही आयेंगी....
प्रतिभा - (खुश हो कर) मैं जानती हूँ...और मनाती भी हूँ... तु जो शर्मिला...(अपने पुराने मुड़ में आकर)और.. मॉमास बॉय बना हुआ है ना... उसके पीछे... वही राजकुमारी ही है...(थोड़े प्यार से) तु अपने आपसे लड़ रहा है... तु राजकुमारी के आँखों से गिरना नहीं चाहता है...
विश्व - बस माँ बस... पर माँ... तुम एक बात भुल रही हो... राजकुमारी... आठ साल पहले की अनाम को चाहती थी... और आज का अनाम... उस अनाम से काफी अलग है...
प्रतिभा - फिर भी मुझे यकीन है... राजकुमारी को.. तेरा इंतजार होगा...
विश्व - यह तुम कैसे कह सकती हो...
प्रतिभा - मेरी होने वाली बहु की भावनाओं को... अपनी भावनाओं से मेल करके तोल रही हूँ...
विश्व - पर माँ... वह एक राजकुमारी है... उन्हें बस हुकुम चलाना आता है... काम वाम कुछ भी नहीं आता होगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... जब उससे शादी हो जाएगी... तो तब मैं किचन को तेरे हवाले कर दूँगी...
विश्व - क्या... यानी घर का बाहर का काम भी मैं करूँ... और घर के अंदर का भी...
प्रतिभा - हाँ... तो क्या हुआ... आखिर राजकुमारी है वह... उन्हें हम महारानी की तरह रखेंगे...
विश्व - अच्छा.... फर्ज करो... उनकी शादी कहीं और हो गई हो तो...
प्रतिभा - (गुस्से से भवें सिकुड़ कर देखती है)
विश्व - आँहाँ... मैंने कहा... जस्ट फर्ज करो... मे.. बी...
प्रतिभा - (बीदक कर) तो फिर मैं जिस लड़की से कहूँगी... तु उससे शादी करेगा...

विश्व - तुम जिस लड़की से कहोगी... ठीक है... पर वह लड़की... (याद करने की कोशिश करते हुए) ह्म्म्म्म... हाँ नंदिनी... नंदिनी नहीं होनी चाहिए...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं होनी चाहिए....

विश्व - वह... वह मैं नहीं जानता... बस... राजकुमारी जी नहीं.. तो ना सही... पर वह नंदिनी नहीं...
प्रतिभा - अच्छा यह बात है... तो मेरी भी एक शर्त है....
विश्व - क्या...
प्रतिभा - तेरे पास तीन हफ्ते का वक़्त है... कम से कम किसी एक लड़की को दोस्त बना कर... मेरे सामने पेश कर...
विश्व - मतलब...
प्रतिभा - गर्ल फ्रेंड ना सही... किसी गर्ल को फ्रेंड बना कर तो मेरे सामने ला...
विश्व - क्या... डैड ने पहले से ही मेरी बैंड बजा कर रखी है... और तुम... अब... यह... यह कैसी शर्त है...
प्रतिभा - तो तु नहीं मानेगा...
विश्व - मानूँगा ना... क्यूँ नहीं मानूँगा... (रोनी सूरत बना कर) पर... यह कैसी शर्त है...
प्रतिभा - (खुस हो कर विश्व के गाल खिंचते हुए) मेरा सोना बेटा... (फिर लहजा बदल जाता है) अच्छा... यह बता... डैड ने क्या किया तेरे साथ...
विश्व - क्या किया मेरे साथ... यह पूछो क्या नहीं किया मेरे साथ...
प्रतिभा - ठीक है... क्या नहीं किया तेरे साथ...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - तो बोल ना... क्या हुआ....
विश्व - वह परसों मुझे घुमाते घूमते... भुवनेश्वर के xxx पब में जबरदस्ती लेकर गए थे...

फ्लैशबैक...

xxx पब के अंदर तेज म्युजिक बज रही है l

डांस फ्लोर पर कुछ जोड़ियां नाच रहे हैं l कुछ टेबल पर बैठे हुए हैं और कुछ बार काउंटर पर बैठे हुए हैं l

तापस - (हाथ में मॉकटेल ड्रिंक लिए) अपनी चारों तरफ देख... क्या महफ़िल सजी हुई है... रंग... खुशबु... रौनक... कैसा लग रहा है... यह सब तुझे...
विश्व - सब नकली... और बनावटी... हँसी नकली... ज़ज्बात नकली... ऐसा लग रहा है जैसे... सब ज़बरदस्ती खुश हो रहे हैं... या होने की कोशिश कर रहे हैं... यह एक आर्टिफिशल दुनिया...
तापस - (ऐसे बात करता है जैसे नशा चढ़ा हो) बस मेरे बाप बस... तुझे मैं यहाँ लाया था... ताकि तेरा दिल बहल जाए... पर तू तो प्रवचन चालू कर दिया...
विश्व - डैड... आप यह पियक्कड़ों जैसी बातें क्यूँ कर रहे हैं... मॉकटेल ही तो ले रहे हैं...
तापस - देख बेटा... बात पते की कह रहा हूँ... गांठ बांध ले... जिंदगी में दोस्त बना... तो जिंदगी हल्की लगेगी... वरना जिंदगी बहुत भारी और बोझ लगने लगेगी...

विश्व - तो मेरे पास तो हैं ना मेरे दोस्त...
तापस - नहीं समझेगा... यह बुड़बक नहीं समझेगा...

अब विश्व को शक़ होने लगता है और वह तापस से ग्लास लेकर पी लेता है l

विश्व - कमाल है.. यह तो मॉकटेल ही है... फिर इन्हें इतना नशा कैसे चढ़ गया... (तभी म्युजिक बंद हो जाती है) (सभी लोग डीजे की तरफ देखने लगते हैं वहाँ तापस डीजे से माइक मांग रहा है)
विश्व - हे भगवान (भाग कर डीजे के पास पहुँचता है) (पर तब तक)
तापस - द लेडीज एंड जेंटलमेन... अटेंशन प्लीज... पब में झूमने वालों... इसे देखो... यह मेरा बेटा... हट्टा कट्टा... छह फूटा मुस्टंडा... अभी तक... ना माँ का पल्लू छोड़ा है... ना बाप की उंगली... अरे.. जिस उम्र में... बेटा बाप को कंधे पर बिठा कर... तीर्थ घुमाता है... उस उम्र में... यह(खुदको दिखा कर) बाप.. इसको दुनिया दिखा रहा है... हूँह्...
विश्व - डैड... यह क्या कर रहे हैं...
तापस - यह है.. मेरा सबसे अच्छा बेटा... बिगड़ता बिल्कुल नहीं... हर माँ बाप का ड्रीम सन... बस प्यार करने के लिए ही बना है... यार कभी बिगड़ तो सही...
विश्व - बस.. (कह कर माइक छिन लेता है, और सबको) सॉरी... सॉरी...

फ्लैशबैक खतम

प्रतिभा हँसने लगती है l विश्व प्रतिभा को देख कर हँसने लगता है l

प्रतिभा - तो तुझे कुछ समझ आया...
विश्व - हाँ... तभी तो... दो दिन से घर... लेट नाइट को आ रहा हूँ... डैड को इंतजार करते देखता हूँ.. फ़िर डैड... दो मीठे गाली देते हैं... फिर वह चैन की नींद सो जाते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो बाप की दिल की समझ कर... जैसे बाप को खुश कर दिया... वैसे माँ की दिल की समझ कर... माँ की भी मुराद पूरी कर दे...
विश्व - (मुहँ बना कर) पर एक दिक्कत है...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं... अब कोई और ड्रामा नहीं...

विश्व - सच कह रहा हूँ माँ... आज कल की जो लड़कियाँ... हैं ना... बहुत... बहुत ही फास्ट हैं...
प्रतिभा - सो तो होने ही चाहिए ना...
विश्व - पर... मैं उनके जितना फास्ट नहीं हूँ ना माँ... और ना ही... उतना फास्ट बनना चाहता हूँ...
प्रतिभा - वह मुझे नहीं पता... तु एक लड़की से दोस्ती कर रहा है... और उसे मेरे सामने ला रहा है... किससे... कैसे... मुझे नहीं पता... (कह कर किचन की अंदर चली जाती है)

विश्व अपने सिर पर हाथ मारता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है
"हो गया बेड़ा गर्क"
वाह क्या मौका बनाया है "आ बैल मुझे मार"


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कैन्टीन में छठी गैंग के सारे सदस्य आपस में हँसी ठिठोली कर रहे हैं l पर उनमें एक सदस्या ग्रुप में नहीं थी भाश्वती l थोड़ी देर बाद भाश्वती पैर पटकती हुई आती है और धड़ाम से चेयर पर बैठ जाती है l सबकी हँसी मज़ाक वहीँ थम जाती है l सभी एक दूसरे को देख कर इशारों इशारों में सवाल करते हैं l "क्या हुआ"


भाश्वती तेज तेज सांस ले रही है l ऐसा लग रहा है कि जिस पर गुस्सा है अगर वह उसके सामने आ जाए तो उसे वह कच्चा चबा जाएगी l

रुप - लगता है मेरे सभी दोस्त... एक एक दिन की रूटीन बना कर... मुहँ फुलाने आती हैं.... क्या... आज भाश्वती की बारी है...

सभी दोस्त भाश्वती की ओर देखते हैं l भाश्वती भी सबको देखती है और हथियार डालने के अंदाज में

भाश्वती - सॉरी दोस्तों... कल से मेरा मुड़ खराब है.... अच्छा यार नंदिनी... यह बता मेरी ड्राइविंग ट्रेनिंग की सिफारिश का क्या हुआ....
रुप - (खुशी से चहकते हुए) अरे यार थैंक्यू.. थैंक्यू.. भाश्वती मेरी जान थैंक्यू...
सभी - ऑए... तुझे सिफारिश उसके लिए लाना था... तो लॉजिकली उसे तुझे थैंक्स कहना चाहिए...
रुप - हाँ पर मैंने इसमें छोटा सा गेम खेल लिया...
भाश्वती - कैसा गेम...

फ्लैशबैक

वीर गाड़ी की ब्रेक लगा कर हैरानी भरे नजरों से रुप को देखने लगता है l रुप अपनी अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर धीरे धीरे आँखे खोलती है l

वीर - क्या कहा... तुम... ड्राइविंग सीखने... ड्राइविंग स्कुल जाओगे...

रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - अरे बहना... हमारे इतने सारे गाड़ियां हैं... इतने सारे मुलाजिम हैं... कोई भी... तुम्हें... घर की ही मैदान में सीखा सकता है... इसके लिए ड्राइविंग स्कुल जाने की क्या जरूरत है...
रुप - क्या भैया... गाँव में भी... वगैर स्कुल गए... पढ़ाई की.. कुछ मजा नहीं आया... ड्राइविंग भी ऐसे.. नहीं भैया प्लीज..
वीर - देख रुप... यह जो ड्राइविंग है ना... (चुटकी बजा कर) यूँ.. दो दिन में सीख सकते हैं... उसके लिए... ड्राइविंग स्कुल... नहीं बिल्कुल नहीं...
रुप - (रूठ कर) ठीक है भैया... मैं आपसे बात नहीं करूंगी...
वीर - देख.. तु मुझे मरवाएगी एक दिन...
रुप - (खुस होते हुए) आ... ह.. थैंक्यू... थैंक्यू भैया... थैंक्यू...
वीर - अरे... किस बात के लिए थैंक्यू...
वीर - मेरी ड्राइविंग क्लास के लिए राजी होने के लिए...
रुप - ऐइ.. मैं कब राजी हुआ....तु ना... अपनी भाई की शराफत का नाजायज़ फायदा उठा रही है...
रुप - (मुहँ फूला कर) इसका मतलब तुम मेरा यह काम नहीं करोगे...
वीर - नहीं बिल्कुल नहीं... राजा साहब को मालुम हुआ तो... जानती है क्या होगा...
रुप - कैसे पता चलेगा... मैं और भाश्वती दोनों... चार से छह बजे तक... एक्स्ट्रा क्लास के नाम पर सीखेंगे... दो हफ्ते तक...
वीर - मतलब यह हुआ कि... तेरी सहेली... भाश्वती को सीखना है... उसके बहाने... तुझे तेरी रोटी सेकनी है...
रुप - रोटी नहीं सेकनी... ड्राइविंग सीखनी है...
वीर - तु ने पहले ही प्लान किया हुआ है...
रुप - (शरारत भरे अंदाज में) थैंक्यू... भैया...

वीर गुस्से से रुप को देखता है l रुप भी अपनी आँखे बड़ी करके वीर को देखती है I फिर दोनों हँसने लगते हैं l

रुप - थैंक्स भाई..
वीर - ठीक है...

फ्लैशबैक खतम

रुप - (खुशी से चहकते हुए) मैं भी अब तेरे साथ...(भाश्वती से) ड्राइविंग सीखने जाने वाली हूँ...

तब्बसुम - ओ... तो भाश्वती के नाम की नाव में... तु अपनी इरादों को पार लगा रही है...
रुप - तो... अररे... सिफारिश का कुछ तो फायदा हो... (भाश्वती से) हम कल शाम से xxx ड्राइविंग स्कूल जाएंगे... बारह दिन की ट्रेनिंग है...
इतिश्री - चलो अच्छा है... मतलब अगले सेशन में.. नंदिनी... खुद गाड़ी चला कर आएगी...
बनानी - हाँ.. उसके बाद हम सब नंदिनी की गाड़ी से... ड्राइविंग सीखेंगे...
तब्बसुम - वाव कितना मजा आएगा ना... हम बीएमडब्ल्यू... या मर्सिडीज से ड्राइविंग सीखेंगे...

सभी ये ये कर एक दुसरे से हाइ फाई करते हैं l पर भाश्वती किसीके साथ हाइ फाई नहीं करती l

रुप - अरे... अब क्या हुआ तुझे... क्या ड्राइविंग सीखने के बाद.... किसीको... गाड़ी के नीचे कुचलने का प्लान बना रही हो क्या.... (सभी हँसने लगते हैं)
भाश्वती - हाँ... (गुस्से में) और मैं उसे अपनी गाड़ी के नीचे कुचल कर मारूँगी... नहीं मरा तो दुबारा उस पर गाड़ी चला कर मारुंगी...

सब के सब चुप हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

बनानी - क्या बात है भाश्वती... क्या हुआ...
भाश्वती - (सबसे) क्या मैं... (आँखे बंद कर एक सांस छोड़ती है) यार बताओ... मैं... किस टाइप की लड़की हूँ...
रुप - क्या मतलब...
भाश्वती - क्या मतलब... क्या... मैं लड़की कैसी हूँ...
रुप - क्या हुआ है तुझे... किसने तेरे दिल को ठेस पहुंचाई है... तु बहुत अच्छी लड़की है...
दीप्ति - हाँ... अच्छी क्या... इंफैक्ट... हमारे ग्रुप में सबसे खूबसूरत लड़की तु ही है...

सभी अपनी अपनी जबड़े भींच कर और आँखे सिकुड़ कर दीप्ति को घूरने लगते हैं l दीप्ति सबको आँख मारते हुए रिक्वेस्ट करती है l सब गुस्से और बेमन से अपनी गर्दन हिला कर


इतिश्री - हाँ हाँ... दीप्ति ने ठीक कहा...
भाश्वती - तुम लोग वीटनेस हो... कितने लड़कों ने मुझे प्रपोज किया... हो ना...
इतिश्री - हाँ हम जानते हैं... तुने किसी को भी घास नहीं डाला...
भाश्वती - तो... कल तो... कल... (चुप हो जाती है)

सब के सब एक दुसरे को देखने लगते हैं l क्या रिएक्शन दें उन्हें समझ में नहीं आता l दीप्ति मोर्चा संभालती है

दीप्ति - देख... तु हमें पहले यह बता... हुआ क्या है... यूँ पहेलियाँ मत बुझा...
भाश्वती - बताऊंगी... पर यहाँ नहीं...
दीप्ति - तो फिर कहाँ बताएगी...
भाश्वती - चलो सब बटनीकल गार्डन चलते हैं... वहीँ बैठ कर सब बताऊंगी...
सभी - ठीक है

कह कर सब के सब बटनीकल गार्डन में पहुँचते हैं l भाश्वती बीच में बैठती है और सभी उसके इर्दगिर्द बैठ जाते हैं l

भाश्वती - हाँ... अब ठीक है.. तो सुनो फिर... तुम लोग तो जानते हो... मैं आजकल अपनी मेडिकल की तैयारी में लगी हुई हूँ... उसके लिए कोचिंग क्लास भी जा रही हूँ...

फ्लैशबैक


अपनी कोचिंग क्लास खतम करने के बाद भाश्वती सिटी बस से लौट रही थी l बीच रास्ते में अचानक बस का आगे वाला टायर ब्रस्ट हो जाता है l ड्राइवर, सड़क के किनारे गाड़ी रोक देता है l लोग हल्ला करने लगते हैं तो कन्डक्टर सबको पहले शांति बनाए रखने को कहता है l क्लीनर चेक करने के बाद कहता है कि एक्स्ट्रा टायर नहीं है तो कंडक्टर सारे पैसेंजर से या तो दूसरी गाड़ी आने तक रुकने के लिए कहता है या फिर सफर का आधा किराया लौटा देगा अगर कोई वहीँ उतर कर दुसरी व्यवस्था देख ले l कुछ लोग अपना आधा किराया ले कर उतर जाते हैं और ऑटो से चले जाते हैं l कुछ देर बाद जब दुसरी बस आने में देरी होती है तो भाश्वती भी अपना आधा किराया ले कर बाहर आसपास ऑटो ढूंढती है l उसे एक ऑटो मिल भी जाती है l भाश्वती उसे अपना पता बताती है l वह ऑटो वाला तुरंत तैयार हो जाता है l भाश्वती ऑटो में बैठ जाती है l थोड़ी दूर जाने के बाद ऑटो वाला उस ऑटो को एक जगह रोक देता है l इलाक़ा थोड़ा भीड़ भाड़ वाला था l भाश्वती को लगता है कि ऑटो वाले ने किसीको इशारा किया है l

भाश्वती - यह... यह ऑटो.. यहाँ पर क्यूँ रोक दी तुमने...
ऑटो वाला - कुछ नहीं मेम साहब... मेरा घर भी उसी तरफ है... जहां आप जा रही हैं... यहाँ मेरे भाई का व्यापार अभी बंद होने को है... इसलिए वह आते ही हम चले जाएंगे....

भाश्वती को थोड़ा शक़ होता है और थोड़ा थोड़ा डर भी लगने लगती है l वह मन ही मन निश्चय करती है अगर कुछ गलत लगेगी तो ऑटो से कुद जाएगी l उस ऑटो वाले का साथी आता है l भाश्वती उसके हाथ में एक काग़ज़ का पैकेट देखती है l वह समझ जाती है कि वह शराब की बोतल है और साथ में नॉनवेज खाने की खुशबु l वह साथी एक नजर पीछे देखता है और मुस्कराते हुए ऑटो वाले के बगल में बैठ जाता है l ऑटो वाला ऑटो स्टार्ट कर आगे बढ़ाने वाला ही होता है कि तभी एक नौजवान हैंडसम सा लड़का टी शर्ट और जिंस पहने ऑटो के सामने खड़ा हो जाता है l ऑटो वाला ब्रेक लगा देता है l ब्रेक लगते ही वह नौजवान आकार सीधे भाश्वती के पास बैठ जाता है l

ऑटो वाला - आप कौन हो साहब... यह ऑटो रिजर्व्ड है...
नौजवान - (भाश्वती से) क्या आपने इसे रिजर्व किया है...
भाश्वती - (ना में अपना सिर हिलाती है)

ऑटो वाले का साथी - ऐ... चल उतर...
नौजवान - (ऑटो वाले से) कौन है यह...
ऑटो वाला - भाई
साथी - जीजा...
नौजवान - जीजा भाई... यह कौनसा रिश्ता होता है बे...
साथी - (पीछे मुड़ कर) ऐ...

नौजवान अपने दोनों हाथों को मोड़ कर सिर के पीछे ले जाता है जिसके वजह से उसके बड़े बड़े डोले के विकराल आकार दिखने लगते हैं l उसके डोले देख कर उन दोनों की फटने लगती है l

ऑटोवाला - आ.. आप कहाँ उतरेंगे.. स... साहब...
नौजवान - यह ऑटो जा कहाँ रही है...
ऑटो वाला - xxx पुर
नौजवान - अरे... क्या इत्तेफाक है... मुझे भी वहीँ जाना है... चलो अब बाते बंद ऑटो को आगे बढ़ाओ...

ऑटोवाला ऑटो चला रहा है और बीच बीच में पीछे मुड़ कर देख रहा है l भाश्वती चुप चाप बैठी हुई है पर वह नौजवान अपनी मोबाइल में गेम खेल रहा है l थोड़ी देर बाद ऑटो रुक जाती है l


ऑटो वाला - सर... xxx पुर आ गया...
नौजवान - तो क्या हुआ बे... मेरा गेम खतम नहीं हुआ है... चल आगे बढ़ा...
ऑटो वाला - साहब... आपको तो यहीँ उतरना था ना...
नौजवान - हाँ था तो... पर मोबाइल पर गेम खतम नहीं हुआ है... चलो चलो... ऑटो को आगे बढ़ाओ...

ऑटो वाला और उसका साथी खीज जाते हैं ऑटो वाला मज़बूर होकर ऑटो आगे बढ़ाता है l नौजवान के होने से भाश्वती खुदको सुरक्षित समझ रही थी l नौजवान के उतरने से मना कर देने पर भाश्वती को अच्छा लगता है l उसके बाद ऑटो भाश्वती के बताए जगह पर आकर रुक जाती है l भाश्वती उतरती है और उसके साथ वह नौजवान भी उतर जाता है l दोनों अपना अपना किराया दे देते हैं l ऑटो वाला और उसका साथी बड़े बेमन से वहाँ से चले जाते हैं l

भाश्वती - थैंक्स...
नौजवान - क्यूँ... किसलिए...
भाश्वती - आपने जो किया... उसके लिए...
नौजवान - अरे कोई नहीं... पर ऐसे समय में... आपको अपनी सुरक्षित आवाजाही के लिए... बस से सफर करना चाहिए...
भाश्वती - जी... मैं बस से ही आ रही थी... पर... (भाश्वती सारी बात बताती है)
नौजवान - ओ... फिर भी... आपको दुसरी बस का इंतजार करना चाइये था...
भाश्वती - थैंक्स अगेन... वैसे आपको जाना कहाँ था... मेरे वजह से.. यहाँ तक आ गए...
नौजवान - कटक...
भाश्वती - व्हाट... कटक... आप भुवनेश्वर में क्या कर रहे हैं...
नौजवान - मैं... कटक जाने के लिए ही... उस चौक पे बस का वेट कर रहा था... पर ऑटो वाले ने जिस तरह से.... इशारा करते हुए अपने साथी को बुलाया... मुझे शक़ हुआ... इसलिए मैं यहाँ तक पहुँच गया...
भाश्वती - ओह.. अगेन थैंक्स अ लॉट...
नौजवान - अच्छा मैं चलता हूँ...
भाश्वती - (बिनती करते हुए) अगर यहाँ तक आए हैं... तो क्या... घर तक नहीं छोड़ेंगे...

नौजवान - (हैरान हो कर) जी... (कुछ सोचने के बाद) ह्म्म्म्म ठीक है... चलिए... (भाश्वती के साथ चलने लगता है)
भाश्वती - वैसे आप भुवनेश्वर में... क्या आप जॉब करते हैं...

नौजवान - अरे नहीं... घूमने... मैं घुमने आया था...
भाश्वती - क्या... तुम भुवनेश्वर... घुमने आए थे...
नौजवान - हाँ भी... और ना भी...
भाश्वती - (ना समझने की मुद्रा में) मतलब...
नौजवान - कल मेरे डैड के साथ यहाँ एक पब में घूमने आया था...
भाश्वती - अच्छा..
नौजवान - हाँ... एक्चुयली मैं... बहुत होम सिक हूँ... पेरेंट्स सिक भी हूँ... उनके वगैर कभी भी... और कहीं भी बाहर नहीं गया हूँ... इसलिए... उन्होंने मुझे सबके सामने भोंदु कहा...
भाश्वती - हा हा हा... (हँसने लगती है) ओ... तो जो टैग... तुम्हारे डैड ने लगाए हैं... उससे छुटकारा पाने के लिए भुवनेश्वर घूम रहे हो...
नौजवान - जी...

इतने में भाश्वती का घर आ जाता है l घर के बाहर पहुँचते ही

भाश्वती - यह रहा मेरा घर...
नौजवान - अच्छा... ठीक है... अब मैं चलता हूँ....
भाश्वती - अरे... ऐसे कैसे... आओ ना... चाय पीकर जाते...
नौजवान - नहीं... आज नहीं... फिर कभी... मैं... चलता हूँ... (वह जाने लगता है)
भाश्वती - एक मिनट... (वह रुक जाता है) फिर कभी... क्या मतलब है फिर कभी...
नौजवान - जी.. मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था...
भाश्वती - अब तक मैं समझ रही थी...(कड़क आवाज में) के तुम मेरे वजह से यहाँ आए हो... पर अब लग रहा है...(हँसते हुए) तुम मेरे लिए आए हो...
नौजवान - व्हाट...
भाश्वती - (मुस्करा कर) बाय द वे... आई... एम... (हाथ बढ़ा कर) भाश्वती...
नौजवान - (हाथ मिलाए वगैर) देखिए भाश्वती जी... एक बात... जो मुझे तुरंत समझ में आ रहा है... वह यह है कि... आप खुद में बहुत रिजर्व मेंटेन करती हैं.... अच्छी बात है... पर कुछ जगहों पर उतावले पन में... जल्दबाजी कर जाती हैं... जैसे कि ऐसे समय में... ऐसी परिस्थिति में... ऑटो में अकेली आना... थोड़ी देर और रुक जाती तो... दुसरे बस में आ सकती थीं...

भाश्वती - (अपना हाथ वापस लेते हुए) कहना क्या चाहते हो तुम... तुम्हें क्या लगता है... तुमने मुझे बचाया... माय फुट... यु नो वन थिंग... आई एम ठु गुड इन कराटे... ही.. या.. (एक पोजिशन दिखती है) ऑटो वाले की तरह... अकेली लड़की समझ कर कम मत आंकना... वह दो नमूने तुमको देख कर डर गए... ऐसा समझ रहे हो... ना... गलत फहमी है तुम्हारी... मैं... मैं बहुत ही ख़तरनाक चीज़ हूँ.... ह्म्म्म्म...
नौजवान - जी... मैं... समझ गया... आप बहुत खतरनाक हैं...

इतना कह कर वह नौजवान वहाँ से चलने लगता है l

भाश्वती - अररे... ऐसे क्यूँ चले जा रहे हो... अपने बारे में कुछ तो कहो...
नौजवान - (वापस भाश्वती के पास आकर) अपने बारे में... (मुस्कराते हुए) मैं चाहे जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... पर ख़तरनाक बिल्कुल नहीं हूँ... अपना खयाल रखियेगा भाश्वती बहन जी...

इतना कह कर वह नौजवान वहाँ से चला जाता है l

फ्लैशबैक खतम

सभी यह सुनने के बाद अपनी अपनी पेट पकड़ हँसने लगते हैं l


भाश्वती - मैं जानती थी... तुम सब मुझ पर हँसोगे... इसलिए मैंने तुम सबको यहाँ ले आई...

सब के सब हँसते हुए जमीन पर लेट जाते हैं और जमीन पर हँसते हुए मुक्का मरने लगते हैं l

भाश्वती - अगर ऐसे हँसते रहोगे... तो मैं यहाँ से उठ कर चली जाऊँगी...

भाश्वती की यह बात सुन कर सब बड़ी मुस्किल से अपनी हँसी रोकने की कोशिश करते हैं l पर इतने में बनानी से रहा नहीं जाता

बनानी - अच्छा भाश्वती... वह लड़का.. जाते जाते... क्या कहा था उसने...
भाश्वती - (दांत पिसते हुए) कहा ना बहनजी... (सब के सब हँसने लगते हैं)
बनानी - अरे नहीं... वह कुछ... खतरनाक वाली बात...
भाश्वती - यही की.. वह चाहे जैसे भी है... खतरनाक बिल्कुल नहीं है... पर तुझे क्यूँ उसके बारे में जानने की पड़ी है...
बनानी - कुछ नहीं... (रुप की तरफ देखती है और अपनी भवें नचा कर हँसने लगती है)
दीप्ति - (देख लेती है) ऐ... ज़रूर इसमें नंदिनी की कोई झोल है... जो बनानी जानती है...
रुप - नहीं नहीं... कोई झोल नहीं है... (बनानी को इशारे से ना करते हुए) सच में...

रुप वहाँ से उठ कर जाने लगती है पर सब बनानी को पकड़ लेते हैं l रुप वहाँ रुकती नहीं है बिना पीछे मुड़े मन ही मन यह बड़बड़ाते हुए भागने लगती है l
"इस बनानी को तो नहीं छोड़ेुंगी... कम्बख्त फंसा दिया आज मुझे.... सच ही कहते हैं... लड़की या औरत के पेट में कुछ रहता ही नहीं है....



×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

पुलिस की जीप, ड्राइविंग सीट पर इंस्पेक्टर रोणा और उसके बगल में बैठा बल्लभ I राजगड़ के रास्ते पर धुल उड़ाते हुए लोगों को, बस्तीओं को पीछे छोड़ चली जा रही है l पर जीप का रुख इस बार रंगमहल की ओर है l


रोणा - हमें किसलिए बुलाया गया होगा...
बल्लभ - मुझे लगता है... मुझसे महीने भर की जानकारी लेने... और तुझसे... तुने जो चौराहे पर जो झंडे गाड़े थे... शायद उसके लिए...
रोणा - यार डरा क्यूँ रहे हो...
बल्लभ - देख तु जहां भी रहा... पर जब भी... मजे करने की बात आई... तु हमेशा अपना हिस्सा ढूंढने राजगड़ आया... और जमकर मजे किया... पर इस बार तुने मजे लूटने के चक्कर में... कांड कर दिया... इसलिए तेरी क्लास तो बनती है...
रोणा - हाँ... यह बात तुने सही कही... चाहे जहां भी मेरी पोस्टिंग हुई... पर मैं... रंग महल से... और रंग महल मुझसे.. जुड़ा रहा...
बल्लभ - क्यूँ..
रोणा - क्यूँ मतलब... हम राजा साहब के वफादार हैं...
बल्लभ - नहीं... सिर्फ़ यही वजह नहीं है... राजा साहब के हुकुमत के नौ रत्नों में से हम.. एक एक हैं... जब तक चमक है... तब तक उंगलियों में सजते रहोगे... जिस दिन चमक फीका पड़ा... या टूटा... उस दिन कूड़ेदान में फेंक दिए जाएंगे... समझा...
रोणा - यार... राजा साहब के आगे मेरी यूँही फटी रहती है... सहारा के लिए... तुमको साथ लिए जाता हूँ... तुम हो कि... हमेशा मेरी फाड़ने के लिए तुले रहते हो...
बल्लभ - तो फिर कुछ करने की सोचने से पहले... इस काले कोट वाले से सलाह मशविरा कर लीआ करो...
रोणा - पता नहीं राजा साहब... मेरी क्या क्लास लेंगे...

बल्लभ - क्लास तो तेरी लेंगे जरूर... पर कैसे... साथ में मुझे बुलाया है... मतलब.. आज गेहूं के साथ घुन भी पिसेगा...
रोणा - एक बात है... राजा साहब की फरमान हो... तो झेलना आसान रहता है... पर उनका बात समझाने का तरीका... बहुत ही भयानक होता है...
बल्लभ - अबे... इसी बात पर तो मेरी हमेशा फटती रहती है...

ऐसे बात करते करते दोनों रंगमहल पहुंच जाते हैं l पहरेदार उनको रास्ता दिखाता है l एक बड़े से कमरे में भैरव सिंह अपनी आँखे मूँद कर, कच्छा पहने एक स्टूल पर बैठा हुआ है l तीन तीन पहलवान उसकी मालिश में लगे हुए हैं l एक हाथ की मालिश कर रहा है तो दुसरा पैर की और तीसरा कंधे की मालिश कर रहा है l वे दोनों वहाँ पर जाकर खड़े हो जाते हैं l पास खड़े भीमा खरासने लगता है l भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है I इन दोनों को देखते ही हाथ से रुकने को इशारा करता है l तीनों पहलवान रुक जाते हैं l

भैरव सिंह - क्या बात है रोणा... पोस्टिंग वाली दिन की खुशी... आज नहीं दिख रही... क्या हुआ...
रोणा - जी... वह... (सिर झुका कर इधर उधर देखने लगता है)
भैरव सिंह - खैर... बाद में बता देना... तो प्रधान... क्या समाचार है...
बल्लभ - जी... राजा साहब... हमारे सारे प्रोजेक्ट्स बहुत अच्छे से.. आगे बढ़ रहे हैं... कोई रुकावट कहीं से भी नहीं है...
भैरव सिंह - वह सब हम जानते हैं... ह्म्म्म्म (स्टूल से उठता है)... यह जानना हमारे लिए उतना... जरूरी नहीं है... वह बताओ... जो जानना हमारे लिए जरूरी है...
बल्लभ - जी... ऐसी... कोई खबर नहीं है...
भैरव सिंह - हूँ... तुम हमारे कौन हो...
बल्लभ - जी...
भैरव सिंह - तुम... हमारे कौन हो...
बल्लभ - जी.. ली.. लीगल एडवाइजर...
भैरव सिंह - भीमा...


भीमा कुछ नौकरों को लेकर भैरव सिंह के पास पहुंचाता है l सारे नौकर मिलकर भैरव सिंह को एक शिकारी वाला कपड़ा पहना देते हैं l

भैरव सिंह - (उन दोनों से) आओ आखेट पर चलें...

आखेट नाम सुनते ही दोनों की फटने लगती है l दोनों एक-दूसरे को देखने लगते हैं l भैरव सिंह आगे बढ़ चुका है l वे दोनों भीमा की ओर देखते हैं l भीमा उन्हें इशारे से भैरव सिंह के पीछे जाने के लिए कहता है l दोनों लाचार भैरव सिंह के पीछे पीछे आखेट मैदान के बालकनी में पहुँचते हैं l

भैरव सिंह - कल रात एक लाल रंग का काकड़ हिरण... हमारे मैदान में घुस आया... हमें बहुत भाया... पर... (भैरव सिंह रुक जाता है)
बल्लभ - (हिम्मत बटोरके) पर... पर क्या.. राजा साहब...
भैरव सिंह - जानते हो... मुझे ज़मीन पर चलने वाले जानवरों में लकड़बग्घे... और पानी के जानवरों में मगरमच्छ क्यूँ पसंद हैं...
दोनों - नहीं... (चेहरा और जिस्म पानी पानी हो चुका है)

भैरव सिंह - क्योंकि पुरी दुनिया में... इन्हीं दो जानवरों की जबड़े सबसे ज्यादा मजबुत होती हैं... और इनकी पाचन तंत्र... किसी भी जानवर का हड्डी तक को गला कर हज़म करा सकती है... (वे दोनों चुप रहते हैं, भैरव सिंह दो बार ताली बजाता है) (कुछ नौकर एक टेबल उठा कर लाते हैं, जिस पर तीन डायना 350 मल्टी शॉट एयर राइफल रखे हुए थे) उठाओ अपना अपना हथियार... मेरे साथ चलो शिकार करने...

भैरव सिंह एक राइफल उठा लेता है l वे दोनों भी एक एक राइफ़ल उठा लेते हैं l

रोणा - राजा साहब... हम शिकार किस चीज़ का करेंगे...
भैरव सिंह - बताया तो था... लाल काकड हिरण का... पर आज उसके चाहने वाले दो हैं... एक हम... और एक हमारा खाने वाला... ना शुक्र.. ना फर्माबर्दार... लकड़बग्घा...

वे दोनों कुछ समझ नहीं पाते l एक दुसरे का मुहँ ताकने लगते हैं l

भैरव सिंह - मैदान में पहले... हिरण को छोड़ा जाएगा... फिर एक कोने में लकड़बग्घा को छोड़ा जाएगा... और दुसरे कोने से हम उतरेंगे मैदान में... दोनों का लक्ष... काकड़ हिरण होगा... अब देखना है... वह हिरण किसके हिस्से आएगा...
रोणा - पर राजा साहब... यह गन तो.. चिड़िया मारने के लिए है... इसकी पैलेट्स .177 की है.. बेशक यह मल्टी शॉट वाला है... और इसकी रेंज पचास से साठ मीटर है... पर इससे जानवरों का शिकार... ना मुमकिन है... वह भी हिरण और लकड़बग्घा जैसी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बात तो... पते की की है तुमने... चलो आजमाके देखते हैं...


यह दोनों बालकनी में रह जाते हैं l भैरव सिंह मैदान में उतर चुका है l एक लाल रंग का काकड हिरण उछलते कूदते मैदान के बीचों-बीच भागने लगती है l और दुसरे तरफ से एक लकड़बग्घा भी आ जाता है l जैसे ही हिरण को लकड़बग्घा देखता है अपना भयानक चेहरा बना कर फौरन उसके तरफ भागने लगता है l हिरण भी उसे देख कर विपरीत दिशा में भागती है l भैरव सिंह लकड़बग्घे पर निशाना लगता है और शॉट पे शॉट लगाने लगता है l रोणा और बल्लभ बालकनी से ही हिरण पर निशाना लेते हैं, पर

भीमा- (उन्हें रोकते हुए) वह राजा साहब का शिकार है... उस पर नहीं...

वे दोनों देखते हैं पहले शॉट में लकड़बग्घा भागते हुए गिरता है l फिर उठता है लंगड़ाते हुए, और एक शॉट पिछले दो पैरों पर उच्छल ता है l फिर भी भागता है l इस तरह सात आठ शॉट्स पर गिरता रहता है l मतलब भैरव सिंह लकड़बग्घे के पैरों को निशाना बना कर शॉट लगा रहा है l कुछ और शॉट्स लगने के बाद लकड़बग्घा हिरण को छोड़ भैरव सिंह की ओर भागने लगता है l भैरव सिंह और शॉट मारने के वजाए राइफ़ल ताने खड़ा हो जाता है l लकड़बग्घा किसी रोते हुए शैतान का चेहरा लिए जीभ लह लहाते हुए भैरव सिंह की ओर बढ़ता जा रहा है l अचानक रोणा और बल्लभ बालकनी से अपनी अपनी गन से. 177 की छर्रों की बरसात शुरु कर देते हैं l लकड़बग्घा रुक जाता है और एक नजर बालकनी के उपर डालता है और इधर उधर हो कर बचने की कोशिश करने लगता है l फिर अचानक भैरव सिंह की तरफ मुड़ कर भागने लगता है और भैरव सिंह से कुछ फुट की दूरी पर रुक जाता है l रोणा और बल्लभ दोनों अपनी फायरिंग रोक देते हैं l उन्हें डर लगने लगता है कि कहीं राइफ़ल से निकलने वाली छर्रे भैरव सिंह को ना लग जाये l लकड़बग्घा अपना मुहँ फाड़ कर अचानक छलांग लगा देता है l भैरव सिंह पहले से ही तैयार था l अपनी गन का बैरेल लकड़बग्घे के मुहँ में घुसेड देता है और लगातार फायर करते जाता है l करीब डेढ़ मिनट की मुठभेड़ के बाद लकड़बग्घे के जबड़े में उस राइफ़ल की बैरेल था जो कि भैरव सिंह के हाथ की वुड स्टॉक से अलग हो कर उसके मुहँ में फंस कर रह गया था l वह लकड़बग्घा जबड़े में बैरेल को ले कर भैरव सिंह पर छलांग मारता है l भैरव सिंह अपने हाथ के वुड स्टॉक से लकड़बग्घे के कान के पास दे मारता है l दर्द के मारे लकड़बग्घा जमीन पर गिर कर छटपटाने लगता है और कान फाड़ देने वाली बड़ी भयानक आवाज करते हुए छटपटाने लगता है l भैरव सिंह उसे वहीँ तड़पता छोड़ बालकनी में पहुँचता है l रोणा और बल्लभ दोनों उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

भैरव सिंह - तो क्या देखा तुम लोगों ने... (दोनों चुप रहते हैं) नहीं समझे... ठीक है... जो चीज़ हमारी है... उस पर हमारा पालतू भी नजर डालने का हक नहीं रखता... जो गुस्ताखी करता है... उसे हम सीधी मौत नहीं देते... (एक कुर्सी पर बैठ कर) रोणा... तुम बताओ... तुमने क्या किया...
रोणा - र... राजा साहब... आपके जानकारी के वगैर यहाँ कोई सांस भी ना ले पाता होगा... यह मैं जानता हूँ... मैं वैदेही के पास इसलिए गया था... ताकि उसके भाई का पता जान सकूं...
भैरव सिंह - (भवें तन जाते हैं) क्यूँ...
रोणा - राजा साहब... विश्व छह दिन पहले रिहा हो चुका है... आज सातवां दिन है... पर अभीतक राजगड़ क्यूँ नहीं आया... अगर नहीं आया तो... कहाँ है.. यही जानना चाहता था... पर.. (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो बात यह थी... वैदेही का भाई विश्व... जैल से छूट गया है... ह्म्म्म्म... और वह... राजगड़ आया नहीं है...
रोणा - जी राजा साहब... आपने उसकी सजा खतम ना होने तक जानकारी ना रखने की हिदायत दी थी.. पर अब तो वह रिहा हो चुका है... इसलिए...

भैरव - ह्म्म्म्म... तो वैदेही ने क्या कहा..
रोणा - उ.. उस.. उसने.. मुझे... कानून की कुछ धाराएं बता कर... साठ दिन की मोहलत देकर... मुझे उल्टे पांव लौटा दिया...

भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... कोई हैरत की बात नहीं... आखिर उससे... इसी रंग महल में... नजाने कितने घाट का पानी जो पिया है... तो प्रधान... यह विश्व वाली खबर... तुमको क्यूँ नहीं हुई...
बल्लभ - वह... राजा साहब... मैं इस बारे में... वाकई भूल गया था... आपके दुश्मन के बारे में... मुझे पता करना चाहिए था...
भैरव सिंह - (कड़क आवाज़ में) दुश्मन नहीं है वह... हमसे दुश्मनी मोल ले... झेल ले... उतनी औकात किसी की नहीं है... हमारी दुश्मनी उठा सके... उतनी हैसियत नहीं रखता है कोई... फिर वह... हमारे पांव की जुती के धुल बराबर भी नहीं है... वह क्या दुश्मनी करेगा... ग़द्दार है वह... हमारी हुकुमत की... और उसकी सजा वही है... जो उस लकड़बग्घा की हुई...

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l दर्द से कराहते उस लकड़बग्घे को सभी देख रहे हैं l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी... राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या यह रोणा... क्या सोच रहा है... और तुम कहाँ तक इत्तेफ़ाक रख रहे हो...
बल्लभ - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) राजासाहब... एक कहावत है कि... एक छोटी सी चिंगारी... पुरे जंगल को ख़ाक कर सकती है...
भैरव सिंह - हूँ... तो क्या... विश्व... जैसा... घुटने में दिमाग रखने वाला... कोई प्लान भी बना सकता है...
रोणा - राजासाहब... विश्व... सात सालों तक.. गुंडे बदमाशों के बीच रहा है... बदले में जल रहा होगा... और छूटने के बाद... अभी तक... राजगड़ आया नहीं है... मतलब... कुछ तो उल्टा सीधा प्लान कर रहा है...
भैरव सिंह - हूँ... प्रधान... तुम्हें क्या लगता है...
बल्लभ - राजा साहब... हम सपोले को फन उठाने का मौका ही क्यूँ दें...
भैरव सिंह - ठीक है... रोणा... तुम... उस हरामी सुवर विश्व को ढूंढो...पता लगाओ... और प्रधान... यह साठ दिन वाला चक्कर क्या है... और क्या क्या खेल हो सकता है... उन सबकी लीगल पॉइंट ऑफ व्यू देखो...

दोनों - जी राजा साहब....


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ESS ऑफिस

विक्रम अपनी कैबिन में बैठ कर अपने डेस्क टॉप के स्क्रीन पर वीर की तस्वीरों को एक के बाद एक स्क्रॉल करते हुए देख रहा है l तभी दरवाजे पर दस्तक होता है l विक्रम देखता है महांती अपना सिर को अंदर कर देख रहा है l

विक्रम - हाँ... महांती... कम इन...
महांती - (अंदर आकर) युवराज जी... मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया...
विक्रम - नहीं... बिल्कुल नहीं... आज कल मैं... बिजी फॉर नथिंग हूँ... इसलिए कैसा डिस्टर्बांस...
महांती - लगता है... मैं... गलत टाइम पर आ गया...
विक्रम - नहीं महांती... नहीं... सही गलत कुछ नहीं होता... जो जच गया वह सही... जो ना जचे... वह सब गलत... जो अच्छा लगे वह सही... जो बुरा लगे वह गलत...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - मैं तुम्हें... बेकार में बोर कर रहा हूँ... है ना...
महांती - कोई बात नहीं है...
विक्रम - मुझसे चार साल छोटे हैं... राजकुमार... मैं जब पांच साल का था.. तब बोर्डिंग में गया था... पर राजकुमार जी को... जब वह तीन साल के थे... बोर्डिंग भेज दिया गया था.... मेरा अकेला पन दुर हो गया था... हम दोनों एक दुसरे के बहुत करीब हो गए... लेकिन इस रिश्ते में... मैं हमेशा जो कंधा ढूंढता था... वह मुझे राजकुमार जी दे देते थे... मैं हमेशा चाहता था कोई मुझे सुनें... राजकुमार जी मुझे सुनते थे... हमारे रिश्ते में... असल में वह बड़े भाई बन चुके थे... और मैं छोटा भाई... मुझे किसी से... जो गिला रहती थी... शिकायत रहती थी... उसे राजकुमार जी को कह देता था... वह सुनते भी थे... हर मोड़ पर मुझे... उनका साथ बखूबी मिला... पर आज मालुम हो रहा है... आज यह एहसास हो रहा है... मैं कभी भी उनके साथ था ही नहीं... उनको पास बिठा कर... कभी उनको सुना ही नहीं... शायद इसलिये आज वह... (चुप हो जाता है)
महांती - (कुछ देर की चुप्पी के बाद) अहेम... अहेम... (खरासता है)
विक्रम - ओह... हाँ महांती... अगेन सॉरी... कहो... किस लिए आए हो...
महांती - हमारे पास एक कोर्ट का ऑर्डर आया है...
विक्रम - (हैरान हो कर) हमारे पास... मतलब... किसके नाम पर...
महांती - ESS के नाम पर...

विक्रम की आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह हैरानी से महांती को देखने लगता है l

विक्रम - क्या... ESS के नाम पर... कोर्ट ऑर्डर...(लहजा बदल जाता है) किसने ऐसी हिमाकत की... किसलिए... कैसे...
महांती - जे ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर... स्वपन जोडार.... (विक्रम महांती को सवालिया नजर से देखता है) उसका केके के साथ लफड़ा था... हम लोग पार्सियली इनवल्व हो गए... जे ग्रुप का प्रोजेक्ट छह महीने से रुका पड़ा है... इसलिए उसने केके पर, हमें मिलाकर कंपेंसेशन पेनाल्टी चार्ज किया है...
विक्रम - मुझे ब्रीफ करो... हम लोग कब और कैसे इनवाल्व हुए...

महांती - युवराज जी... हमारे दम पर केके हमेशा... कोई भी बड़ा टेंडर हासिल कर लेता था... और उसे अपने हिसाब से... सबलेट करता था... पर थाईशन टावर की टेंडर... ई टेंडर प्रोसिजर में हुआ था... इसलिए... एल वन बिडिंग में... टर्म्स एंड कंडिशन के हिसाब से... टेंडर जे ग्रुप को मिला...
विक्रम - हूँ... तो हमारा रोल कहाँ शुरु होता है...
महांती - जी... उसके बाद... टेंडर खोने के बाद... केके अपने नाम पर सबलेट कराने की कोशिश की... पर जोडार नहीं माना... तो रेत.. सीमेंट.. छड़ें यहाँ तक लेबर सप्लाय तक... हर चीज़ में... केके अड़ंगा डाला... तो जोडार ने अल्टरनेट रास्ता इख्तियार किया...
विक्रम - जैसे...
महांती - रेत, सीमेंट, चिप्स, छडें सब.... सब कुछ उसने इम्पोर्ट किया... कलकत्ता से...
विक्रम - व्हाट... और लेबर...
महांती - लेबर... आसपास के गांव से जुगाड़ किया था...
विक्रम - हूँ... फिर हमारा रोल... यहाँ पर भी तो नहीं दिख रहा...
महांती - जी... युवराज... इसके बाद...
विक्रम - इसके बाद... क्या...
महांती - फिनिशिंग और इंटेरियर के लिए... जोडार ने सिंगापुर से चार कंटेनर समान मंगवाया था... जिसे केके ने हमारे लोगों के मदत से... गायब करा... और जोडार को खाली कंटेनर थमा दिया...
विक्रम - कैसे...

महांती पूरा प्रोसिजर बताता है l विक्रम सब सुन कर कुछ देर सोचता है l फिर

विक्रम - महांती... जोडार का वकील कौन है...
महांती - कोई... मिसेज प्रतिभा सेनापति...
विक्रम - व्हाट... क्या यह वही सेनापति हैं...
महांती - जी... युवराज... जिनके बेटे को यश ने...
विक्रम - हूँ... ठीक है... ठीक है... और हमारा वकील कौन है...
महांती - कोई नहीं... क्यूंकि हम अभी पार्टी बने हैं...
विक्रम - केके का वकील कौन है...
महांती - @#xxx कुमार है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... (कुछ देर विक्रम आँखे मूँद कर सोचमें डूब जाता है)
महांती - (फिरसे खरासता है) अहेम.. अहेम...

विक्रम - महांती... (अपनी कुर्सी से उठ कर) इस केस ने हमारे लिए एक मौका लेकर आया है... हमारे दुश्मन केके को बाहर लाने का.... तुम इस केके की वकील को पकड़ो... उसे अपने तरफ मिलाओ... इस पुरे कंस्पीरेसी में.. हमारी कोई भी इनवाल्वमेंट नहीं हैं... ऐसा कोई स्ट्रॉन्ग ड्राफ़्ट तैयार करो.... और सारी कंपेंसेशन केके पर डाल दो... और केस कुछ इस तरह से ट्विस्ट करवाओ... की अगर केके जोडार को कंपेंसेशन नहीं देता तो... वह और उसके सारे अकाउंट्स... ब्लैक लिस्ट होने के साथ साथ फ्रिज कर दिया जाएगा...
महांती - जी... मैं समझ गया युवराज... अपनी कंपनी और अकाउंट्स बचाने के लिए... उसे बाहर आना ही पड़ेगा...
विक्रम - हाँ... हो सकता है... वह कोर्ट में ऐफिडेविट देकर सामने आए... के उसकी जान को खतरा है... पर फिर भी... अभी जो छुपा हुआ है... वह मजबूरन बाहर निकलेगा... तब वह हराम का जना... हमें... सारा हिसाब देगा....
 
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इस बीच दो दिन बीत चुके हैं
सुबह सुबह तापस वकींग करने के लिए बाहर चला गया है l प्रतिभा अपना स्नान खतम कर लेने के बाद विश्व के कमरे में आती है तो देखती है विश्व बाथरुम में घुसा हुया है l पिछले दो दिनों से विश्व ने अपनी रुटीन को खुद गड़बड़ किया हुआ है l जैसे ही प्रतिभा का स्नान खतम होता है तभी विश्व अपने बाथरुम में घुस जाता है l दो दिन से विश्व अपना बिस्तर अब उठा नहीं रहा है l

प्रतिभा - ओ हो... क्या हो गया है इस लड़के को... दिन व दिन आलसी होता जा रहा है... ताड़ के पेड़ जितना लंबा हो गया है... पर देखो लाट साहब को... बिस्तर ना ठीक से बनाता है... ना उठाता है....
विश्व - (बाथरुम के अंदर से) सब सुनाई दे रहा है माँ...
प्रतिभा - हाँ तो... तुझे सुनाई दे.. इसलिए तो चिल्ला के कह रही हूँ...(बिस्तर उठा लेने के बाद) और खबर दार... जो किचन में आने की कोशिश की तो...
विश्व - जैसी आपकी आज्ञा माते...

प्रतिभा के चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है और वह पूजा घर की ओर चली जाती है l पूजा खतम कर वह ड्रॉइंग रुम में आकर दीवार पर लगे अपने और तापस के बीच मुस्कराता विश्व की बड़े से फोटो के सामने खड़ी होकर निहारने लगती है l फिर दीवार पर लगे उस फोटो के पीछे एक कैलेंडर निकालती है और इससे पहले उस पर सातवें दिन पर कलम से क्रॉस मार्क कर पाती विश्व वहाँ पहुँच कर उसे रोक देता है

विश्व - यह क्या है माँ... परसों सारे कैलेंडर मैंने ढूंढ ढूंढ कर फेंक दिए थे... यह कहाँ से आ गया फिर... क्यूँ ऐसा कर रही हो...
प्रतिभा - (सकपका जाती है) त... तेरा स्नान इतनी जल्दी खतम हो गया...
विश्व - हाँ... पर यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ...

प्रतिभा - (चुप हो जाती है)

विश्व प्रतिभा की हाथ पकड़ कर ड्रॉइंग रुम के सोफ़े पर बिठाता है और खुद उसके सामने घुटने पर बैठ जाता है l


विश्व - माँ... तुम... और दीदी... मेरी हिम्मत हो... और मेरी ढाल भी... कोई एक अगर कमजोर पड़ जाएगा... तो... जरा सोचो... मेरा क्या होगा...
प्रतिभा - (विश्व के मुहं पर हाथ रख कर) शुभ शुभ बोल... ऐसी बातेँ नहीं करते...
विश्व - (अपने मुहँ से प्रतिभा की हाथ निकाल कर) तुम अगर ऐसी बचकानी हरकतें करोगी... तो मैं कैसी बातेँ करूंगा... बोलो...
प्रतिभा - अच्छा अब उठ... और मेरे पास बैठ... (विश्व उठता है और प्रतिभा के बगल में बैठ जाता है) अब बता... इन दो दिनों में तुझे क्या हो गया है... बता...
विश्व - (मुहँ बना कर) कुछ नहीं हुआ है... मैंने सोचा... सिर्फ़ प्यार ही प्यार लुटाने वाली माँ... अगर मुझे गाली दे... तो... (मुस्करा कर) उसकी गाली कैसी रहेगी...
प्रतिभा - तो जान बुझ कर मुझे छेड़ रहा है...
विश्व - नहीं माँ... ऐसी बात नहीं... सिर्फ़ प्यार ही प्यार देखा है... गुस्सा भी कर रही हो... तो भी उसमें कितना प्यार है...
प्रतिभा - क्या तुझे मेरे प्यार पर शक़ है...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... पर लगता है... तुम्हें... अपने प्रताप पर भरोसा नहीं है...
प्रतिभा - यह... यह तु कैसी बातेँ कर रहा है...
विश्व - तो फिर यह कैलेंडर... उसमें दिन काटना क्या है माँ...
प्रतिभा - (चुप रहती है)
विश्व - माँ... मैं कितनी बार तुमसे अपना वादा दोहराऊँ... बोलो...(प्रतिभा उसे मुहँ बना कर देखती है) चलो आज तुमसे... फिर से वादा करता हूँ... मैं वापस आऊंगा... जरूर आऊंगा...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर भरोसा तुझ से नहीं... जिंदगी से उठने लगी है... पता नहीं कब बुलावा आ जाए...
विश्व - क्या माँ... अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुआ है... अगर तुम्हारा स्वयंवर रखा जाए... तो वरों की भीड़ लग जाएगी...
प्रतिभा - (विश्व की कान खिंचते हुए) बेशरम... अपनी माँ की स्वयंवर की बात कर रहा है...
विश्व - आह... आ.. माँ... मैं तो... ऐसे ही... आह... कह रहा था...
प्रतिभा - क्यूँ... क्यूँ कह रहा था...
विश्व - (अपना कान छुड़ा कर) आरे माँ... मैं यह कह रहा था कि... तुम अभी सौ साल और जिओगी....
प्रतिभा - और सौ साल तक मैं जी के करूंगी क्या...
विश्व - क्या बात कर रही हो... तुम्हें अपने पोते पोतियों की शादी नहीं करवानी है क्या...
प्रतिभा - (उसे भवें सिकुड़ कर देखती है)
विश्व - कुछ ज्यादा बोल गया क्या...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. बहुत ही ज्यादा...

विश्व - वह क्या है ना माँ... मैं तुम्हें... हमेशा खुश देखना चाहता हूँ... इसलिए मैं...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... अब यह भी बोल दे... मेरे लिए पोते पोती लाएगा कहाँ से...
विश्व - बस... मेरे काम खतम होते ही...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए विश्व के सिर पर हाथ फेरती है, और वहाँ से उठने लगती है) तो लाट साहब... काम खतम होते ही... आसमान से लाकर सीधे... मेरे गोदी में पोते पोती डाल देंगे... क्यूँ...
विश्व - क्या माँ...(प्रतिभा को दुबारा बिठाते हुए) मेरी बात पर तुमको यकीन नहीं...
प्रतिभा - (थोड़ी सीरियस हो कर) देख... बात अगर खेल खेल में... मज़ाक मजाक में शुरु हुई है... तो चल... एक सीरियस मोड़ पर खतम करते हैं...
विश्व - ठीक है.... खतम करते हैं... पर एक शर्त है... तुम अब फिरसे कैलेंडर पर.. दिन नहीं काटोगी...
प्रतिभा - ठीक है...
विश्व - वादा...
प्रतिभा - वादा...
विश्व - तो बताओ वह सीरियस मोड़ क्या है...
प्रतिभा - मुझे मेरे पोते पोतीओं को देखने के लिए... उनकी माँ को... मैं ढूंढुँ... या तु ढूंढेगा...

अब विश्व सकपका जाता है और हकलाने लगता है

विश्व - यह... क.. क... क्या... (उठ खड़ा होता है और सामने वाली सोफ़े पर बैठ जाता है) वह माँ... मैं.... वह... (कह नहीं पाता)
प्रतिभा - मैं समझ गई... ह्म्म्म्म... और उसमें मेरी सहमती भी है...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... क्या समझी तुम...
प्रतिभा - तेरे दिल पर.. इस बात का बोझ है... कहीं सच में... तेरी राजकुमारी... तेरा इंतजार तो नहीं कर रही...
विश्व - न... नहीं... ऐसी बात... पता नहीं... मैं... मैं नहीं जानता...
प्रतिभा - अच्छा मान ले... राजकुमारी... वाकई तेरी प्रतीक्षा में होगी... तो.. तब...

विश्व - (हैरान व परेशान हो कर प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - जो भी कहना.. दिल से... और आत्मा की गहराई से कहना...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है)
प्रतिभा - ठीक है... जब ज़वाब सूझे... आकर बता देना... (प्रतिभा उठ कर किचन की जाने लगती है)
विश्व - माँ... (प्रतिभा रुक जाती है) अगर...(पॉज लेकर) राजकुमारी जी... मेरे इंतजार में होंगे... तो... मैं वादा करता हूँ... इस घर में बहू बन कर... वही आयेंगी....
प्रतिभा - (खुश हो कर) मैं जानती हूँ...और मनाती भी हूँ... तु जो शर्मिला...(अपने पुराने मुड़ में आकर)और.. मॉमास बॉय बना हुआ है ना... उसके पीछे... वही राजकुमारी ही है...(थोड़े प्यार से) तु अपने आपसे लड़ रहा है... तु राजकुमारी के आँखों से गिरना नहीं चाहता है...
विश्व - बस माँ बस... पर माँ... तुम एक बात भुल रही हो... राजकुमारी... आठ साल पहले की अनाम को चाहती थी... और आज का अनाम... उस अनाम से काफी अलग है...
प्रतिभा - फिर भी मुझे यकीन है... राजकुमारी को.. तेरा इंतजार होगा...
विश्व - यह तुम कैसे कह सकती हो...
प्रतिभा - मेरी होने वाली बहु की भावनाओं को... अपनी भावनाओं से मेल करके तोल रही हूँ...
विश्व - पर माँ... वह एक राजकुमारी है... उन्हें बस हुकुम चलाना आता है... काम वाम कुछ भी नहीं आता होगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... जब उससे शादी हो जाएगी... तो तब मैं किचन को तेरे हवाले कर दूँगी...
विश्व - क्या... यानी घर का बाहर का काम भी मैं करूँ... और घर के अंदर का भी...
प्रतिभा - हाँ... तो क्या हुआ... आखिर राजकुमारी है वह... उन्हें हम महारानी की तरह रखेंगे...
विश्व - अच्छा.... फर्ज करो... उनकी शादी कहीं और हो गई हो तो...
प्रतिभा - (गुस्से से भवें सिकुड़ कर देखती है)
विश्व - आँहाँ... मैंने कहा... जस्ट फर्ज करो... मे.. बी...
प्रतिभा - (बीदक कर) तो फिर मैं जिस लड़की से कहूँगी... तु उससे शादी करेगा...

विश्व - तुम जिस लड़की से कहोगी... ठीक है... पर वह लड़की... (याद करने की कोशिश करते हुए) ह्म्म्म्म... हाँ नंदिनी... नंदिनी नहीं होनी चाहिए...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं होनी चाहिए....

विश्व - वह... वह मैं नहीं जानता... बस... राजकुमारी जी नहीं.. तो ना सही... पर वह नंदिनी नहीं...
प्रतिभा - अच्छा यह बात है... तो मेरी भी एक शर्त है....
विश्व - क्या...
प्रतिभा - तेरे पास तीन हफ्ते का वक़्त है... कम से कम किसी एक लड़की को दोस्त बना कर... मेरे सामने पेश कर...
विश्व - मतलब...
प्रतिभा - गर्ल फ्रेंड ना सही... किसी गर्ल को फ्रेंड बना कर तो मेरे सामने ला...
विश्व - क्या... डैड ने पहले से ही मेरी बैंड बजा कर रखी है... और तुम... अब... यह... यह कैसी शर्त है...
प्रतिभा - तो तु नहीं मानेगा...
विश्व - मानूँगा ना... क्यूँ नहीं मानूँगा... (रोनी सूरत बना कर) पर... यह कैसी शर्त है...
प्रतिभा - (खुस हो कर विश्व के गाल खिंचते हुए) मेरा सोना बेटा... (फिर लहजा बदल जाता है) अच्छा... यह बता... डैड ने क्या किया तेरे साथ...
विश्व - क्या किया मेरे साथ... यह पूछो क्या नहीं किया मेरे साथ...
प्रतिभा - ठीक है... क्या नहीं किया तेरे साथ...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - तो बोल ना... क्या हुआ....
विश्व - वह परसों मुझे घुमाते घूमते... भुवनेश्वर के xxx पब में जबरदस्ती लेकर गए थे...

फ्लैशबैक...

xxx पब के अंदर तेज म्युजिक बज रही है l

डांस फ्लोर पर कुछ जोड़ियां नाच रहे हैं l कुछ टेबल पर बैठे हुए हैं और कुछ बार काउंटर पर बैठे हुए हैं l

तापस - (हाथ में मॉकटेल ड्रिंक लिए) अपनी चारों तरफ देख... क्या महफ़िल सजी हुई है... रंग... खुशबु... रौनक... कैसा लग रहा है... यह सब तुझे...
विश्व - सब नकली... और बनावटी... हँसी नकली... ज़ज्बात नकली... ऐसा लग रहा है जैसे... सब ज़बरदस्ती खुश हो रहे हैं... या होने की कोशिश कर रहे हैं... यह एक आर्टिफिशल दुनिया...
तापस - (ऐसे बात करता है जैसे नशा चढ़ा हो) बस मेरे बाप बस... तुझे मैं यहाँ लाया था... ताकि तेरा दिल बहल जाए... पर तू तो प्रवचन चालू कर दिया...
विश्व - डैड... आप यह पियक्कड़ों जैसी बातें क्यूँ कर रहे हैं... मॉकटेल ही तो ले रहे हैं...
तापस - देख बेटा... बात पते की कह रहा हूँ... गांठ बांध ले... जिंदगी में दोस्त बना... तो जिंदगी हल्की लगेगी... वरना जिंदगी बहुत भारी और बोझ लगने लगेगी...

विश्व - तो मेरे पास तो हैं ना मेरे दोस्त...
तापस - नहीं समझेगा... यह बुड़बक नहीं समझेगा...

अब विश्व को शक़ होने लगता है और वह तापस से ग्लास लेकर पी लेता है l

विश्व - कमाल है.. यह तो मॉकटेल ही है... फिर इन्हें इतना नशा कैसे चढ़ गया... (तभी म्युजिक बंद हो जाती है) (सभी लोग डीजे की तरफ देखने लगते हैं वहाँ तापस डीजे से माइक मांग रहा है)
विश्व - हे भगवान (भाग कर डीजे के पास पहुँचता है) (पर तब तक)
तापस - द लेडीज एंड जेंटलमेन... अटेंशन प्लीज... पब में झूमने वालों... इसे देखो... यह मेरा बेटा... हट्टा कट्टा... छह फूटा मुस्टंडा... अभी तक... ना माँ का पल्लू छोड़ा है... ना बाप की उंगली... अरे.. जिस उम्र में... बेटा बाप को कंधे पर बिठा कर... तीर्थ घुमाता है... उस उम्र में... यह(खुदको दिखा कर) बाप.. इसको दुनिया दिखा रहा है... हूँह्...
विश्व - डैड... यह क्या कर रहे हैं...
तापस - यह है.. मेरा सबसे अच्छा बेटा... बिगड़ता बिल्कुल नहीं... हर माँ बाप का ड्रीम सन... बस प्यार करने के लिए ही बना है... यार कभी बिगड़ तो सही...
विश्व - बस.. (कह कर माइक छिन लेता है, और सबको) सॉरी... सॉरी...

फ्लैशबैक खतम

प्रतिभा हँसने लगती है l विश्व प्रतिभा को देख कर हँसने लगता है l

प्रतिभा - तो तुझे कुछ समझ आया...
विश्व - हाँ... तभी तो... दो दिन से घर... लेट नाइट को आ रहा हूँ... डैड को इंतजार करते देखता हूँ.. फ़िर डैड... दो मीठे गाली देते हैं... फिर वह चैन की नींद सो जाते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो बाप की दिल की समझ कर... जैसे बाप को खुश कर दिया... वैसे माँ की दिल की समझ कर... माँ की भी मुराद पूरी कर दे...
विश्व - (मुहँ बना कर) पर एक दिक्कत है...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं... अब कोई और ड्रामा नहीं...

विश्व - सच कह रहा हूँ माँ... आज कल की जो लड़कियाँ... हैं ना... बहुत... बहुत ही फास्ट हैं...
प्रतिभा - सो तो होने ही चाहिए ना...
विश्व - पर... मैं उनके जितना फास्ट नहीं हूँ ना माँ... और ना ही... उतना फास्ट बनना चाहता हूँ...
प्रतिभा - वह मुझे नहीं पता... तु एक लड़की से दोस्ती कर रहा है... और उसे मेरे सामने ला रहा है... किससे... कैसे... मुझे नहीं पता... (कह कर किचन की अंदर चली जाती है)

विश्व अपने सिर पर हाथ मारता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है
"हो गया बेड़ा गर्क"
वाह क्या मौका बनाया है "आ बैल मुझे मार"


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

कैन्टीन में छठी गैंग के सारे सदस्य आपस में हँसी ठिठोली कर रहे हैं l पर उनमें एक सदस्या ग्रुप में नहीं थी भाश्वती l थोड़ी देर बाद भाश्वती पैर पटकती हुई आती है और धड़ाम से चेयर पर बैठ जाती है l सबकी हँसी मज़ाक वहीँ थम जाती है l सभी एक दूसरे को देख कर इशारों इशारों में सवाल करते हैं l "क्या हुआ"


भाश्वती तेज तेज सांस ले रही है l ऐसा लग रहा है कि जिस पर गुस्सा है अगर वह उसके सामने आ जाए तो उसे वह कच्चा चबा जाएगी l

रुप - लगता है मेरे सभी दोस्त... एक एक दिन की रूटीन बना कर... मुहँ फुलाने आती हैं.... क्या... आज भाश्वती की बारी है...

सभी दोस्त भाश्वती की ओर देखते हैं l भाश्वती भी सबको देखती है और हथियार डालने के अंदाज में

भाश्वती - सॉरी दोस्तों... कल से मेरा मुड़ खराब है.... अच्छा यार नंदिनी... यह बता मेरी ड्राइविंग ट्रेनिंग की सिफारिश का क्या हुआ....
रुप - (खुशी से चहकते हुए) अरे यार थैंक्यू.. थैंक्यू.. भाश्वती मेरी जान थैंक्यू...
सभी - ऑए... तुझे सिफारिश उसके लिए लाना था... तो लॉजिकली उसे तुझे थैंक्स कहना चाहिए...
रुप - हाँ पर मैंने इसमें छोटा सा गेम खेल लिया...
भाश्वती - कैसा गेम...

फ्लैशबैक

वीर गाड़ी की ब्रेक लगा कर हैरानी भरे नजरों से रुप को देखने लगता है l रुप अपनी अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर धीरे धीरे आँखे खोलती है l

वीर - क्या कहा... तुम... ड्राइविंग सीखने... ड्राइविंग स्कुल जाओगे...

रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - अरे बहना... हमारे इतने सारे गाड़ियां हैं... इतने सारे मुलाजिम हैं... कोई भी... तुम्हें... घर की ही मैदान में सीखा सकता है... इसके लिए ड्राइविंग स्कुल जाने की क्या जरूरत है...
रुप - क्या भैया... गाँव में भी... वगैर स्कुल गए... पढ़ाई की.. कुछ मजा नहीं आया... ड्राइविंग भी ऐसे.. नहीं भैया प्लीज..
वीर - देख रुप... यह जो ड्राइविंग है ना... (चुटकी बजा कर) यूँ.. दो दिन में सीख सकते हैं... उसके लिए... ड्राइविंग स्कुल... नहीं बिल्कुल नहीं...
रुप - (रूठ कर) ठीक है भैया... मैं आपसे बात नहीं करूंगी...
वीर - देख.. तु मुझे मरवाएगी एक दिन...
रुप - (खुस होते हुए) आ... ह.. थैंक्यू... थैंक्यू भैया... थैंक्यू...
वीर - अरे... किस बात के लिए थैंक्यू...
वीर - मेरी ड्राइविंग क्लास के लिए राजी होने के लिए...
रुप - ऐइ.. मैं कब राजी हुआ....तु ना... अपनी भाई की शराफत का नाजायज़ फायदा उठा रही है...
रुप - (मुहँ फूला कर) इसका मतलब तुम मेरा यह काम नहीं करोगे...
वीर - नहीं बिल्कुल नहीं... राजा साहब को मालुम हुआ तो... जानती है क्या होगा...
रुप - कैसे पता चलेगा... मैं और भाश्वती दोनों... चार से छह बजे तक... एक्स्ट्रा क्लास के नाम पर सीखेंगे... दो हफ्ते तक...
वीर - मतलब यह हुआ कि... तेरी सहेली... भाश्वती को सीखना है... उसके बहाने... तुझे तेरी रोटी सेकनी है...
रुप - रोटी नहीं सेकनी... ड्राइविंग सीखनी है...
वीर - तु ने पहले ही प्लान किया हुआ है...
रुप - (शरारत भरे अंदाज में) थैंक्यू... भैया...

वीर गुस्से से रुप को देखता है l रुप भी अपनी आँखे बड़ी करके वीर को देखती है I फिर दोनों हँसने लगते हैं l

रुप - थैंक्स भाई..
वीर - ठीक है...

फ्लैशबैक खतम

रुप - (खुशी से चहकते हुए) मैं भी अब तेरे साथ...(भाश्वती से) ड्राइविंग सीखने जाने वाली हूँ...

तब्बसुम - ओ... तो भाश्वती के नाम की नाव में... तु अपनी इरादों को पार लगा रही है...
रुप - तो... अररे... सिफारिश का कुछ तो फायदा हो... (भाश्वती से) हम कल शाम से xxx ड्राइविंग स्कूल जाएंगे... बारह दिन की ट्रेनिंग है...
इतिश्री - चलो अच्छा है... मतलब अगले सेशन में.. नंदिनी... खुद गाड़ी चला कर आएगी...
बनानी - हाँ.. उसके बाद हम सब नंदिनी की गाड़ी से... ड्राइविंग सीखेंगे...
तब्बसुम - वाव कितना मजा आएगा ना... हम बीएमडब्ल्यू... या मर्सिडीज से ड्राइविंग सीखेंगे...

सभी ये ये कर एक दुसरे से हाइ फाई करते हैं l पर भाश्वती किसीके साथ हाइ फाई नहीं करती l

रुप - अरे... अब क्या हुआ तुझे... क्या ड्राइविंग सीखने के बाद.... किसीको... गाड़ी के नीचे कुचलने का प्लान बना रही हो क्या.... (सभी हँसने लगते हैं)
भाश्वती - हाँ... (गुस्से में) और मैं उसे अपनी गाड़ी के नीचे कुचल कर मारूँगी... नहीं मरा तो दुबारा उस पर गाड़ी चला कर मारुंगी...

सब के सब चुप हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

बनानी - क्या बात है भाश्वती... क्या हुआ...
भाश्वती - (सबसे) क्या मैं... (आँखे बंद कर एक सांस छोड़ती है) यार बताओ... मैं... किस टाइप की लड़की हूँ...
रुप - क्या मतलब...
भाश्वती - क्या मतलब... क्या... मैं लड़की कैसी हूँ...
रुप - क्या हुआ है तुझे... किसने तेरे दिल को ठेस पहुंचाई है... तु बहुत अच्छी लड़की है...
दीप्ति - हाँ... अच्छी क्या... इंफैक्ट... हमारे ग्रुप में सबसे खूबसूरत लड़की तु ही है...

सभी अपनी अपनी जबड़े भींच कर और आँखे सिकुड़ कर दीप्ति को घूरने लगते हैं l दीप्ति सबको आँख मारते हुए रिक्वेस्ट करती है l सब गुस्से और बेमन से अपनी गर्दन हिला कर


इतिश्री - हाँ हाँ... दीप्ति ने ठीक कहा...
भाश्वती - तुम लोग वीटनेस हो... कितने लड़कों ने मुझे प्रपोज किया... हो ना...
इतिश्री - हाँ हम जानते हैं... तुने किसी को भी घास नहीं डाला...
भाश्वती - तो... कल तो... कल... (चुप हो जाती है)

सब के सब एक दुसरे को देखने लगते हैं l क्या रिएक्शन दें उन्हें समझ में नहीं आता l दीप्ति मोर्चा संभालती है

दीप्ति - देख... तु हमें पहले यह बता... हुआ क्या है... यूँ पहेलियाँ मत बुझा...
भाश्वती - बताऊंगी... पर यहाँ नहीं...
दीप्ति - तो फिर कहाँ बताएगी...
भाश्वती - चलो सब बटनीकल गार्डन चलते हैं... वहीँ बैठ कर सब बताऊंगी...
सभी - ठीक है

कह कर सब के सब बटनीकल गार्डन में पहुँचते हैं l भाश्वती बीच में बैठती है और सभी उसके इर्दगिर्द बैठ जाते हैं l

भाश्वती - हाँ... अब ठीक है.. तो सुनो फिर... तुम लोग तो जानते हो... मैं आजकल अपनी मेडिकल की तैयारी में लगी हुई हूँ... उसके लिए कोचिंग क्लास भी जा रही हूँ...

फ्लैशबैक


अपनी कोचिंग क्लास खतम करने के बाद भाश्वती सिटी बस से लौट रही थी l बीच रास्ते में अचानक बस का आगे वाला टायर ब्रस्ट हो जाता है l ड्राइवर, सड़क के किनारे गाड़ी रोक देता है l लोग हल्ला करने लगते हैं तो कन्डक्टर सबको पहले शांति बनाए रखने को कहता है l क्लीनर चेक करने के बाद कहता है कि एक्स्ट्रा टायर नहीं है तो कंडक्टर सारे पैसेंजर से या तो दूसरी गाड़ी आने तक रुकने के लिए कहता है या फिर सफर का आधा किराया लौटा देगा अगर कोई वहीँ उतर कर दुसरी व्यवस्था देख ले l कुछ लोग अपना आधा किराया ले कर उतर जाते हैं और ऑटो से चले जाते हैं l कुछ देर बाद जब दुसरी बस आने में देरी होती है तो भाश्वती भी अपना आधा किराया ले कर बाहर आसपास ऑटो ढूंढती है l उसे एक ऑटो मिल भी जाती है l भाश्वती उसे अपना पता बताती है l वह ऑटो वाला तुरंत तैयार हो जाता है l भाश्वती ऑटो में बैठ जाती है l थोड़ी दूर जाने के बाद ऑटो वाला उस ऑटो को एक जगह रोक देता है l इलाक़ा थोड़ा भीड़ भाड़ वाला था l भाश्वती को लगता है कि ऑटो वाले ने किसीको इशारा किया है l

भाश्वती - यह... यह ऑटो.. यहाँ पर क्यूँ रोक दी तुमने...
ऑटो वाला - कुछ नहीं मेम साहब... मेरा घर भी उसी तरफ है... जहां आप जा रही हैं... यहाँ मेरे भाई का व्यापार अभी बंद होने को है... इसलिए वह आते ही हम चले जाएंगे....

भाश्वती को थोड़ा शक़ होता है और थोड़ा थोड़ा डर भी लगने लगती है l वह मन ही मन निश्चय करती है अगर कुछ गलत लगेगी तो ऑटो से कुद जाएगी l उस ऑटो वाले का साथी आता है l भाश्वती उसके हाथ में एक काग़ज़ का पैकेट देखती है l वह समझ जाती है कि वह शराब की बोतल है और साथ में नॉनवेज खाने की खुशबु l वह साथी एक नजर पीछे देखता है और मुस्कराते हुए ऑटो वाले के बगल में बैठ जाता है l ऑटो वाला ऑटो स्टार्ट कर आगे बढ़ाने वाला ही होता है कि तभी एक नौजवान हैंडसम सा लड़का टी शर्ट और जिंस पहने ऑटो के सामने खड़ा हो जाता है l ऑटो वाला ब्रेक लगा देता है l ब्रेक लगते ही वह नौजवान आकार सीधे भाश्वती के पास बैठ जाता है l

ऑटो वाला - आप कौन हो साहब... यह ऑटो रिजर्व्ड है...
नौजवान - (भाश्वती से) क्या आपने इसे रिजर्व किया है...
भाश्वती - (ना में अपना सिर हिलाती है)

ऑटो वाले का साथी - ऐ... चल उतर...
नौजवान - (ऑटो वाले से) कौन है यह...
ऑटो वाला - भाई
साथी - जीजा...
नौजवान - जीजा भाई... यह कौनसा रिश्ता होता है बे...
साथी - (पीछे मुड़ कर) ऐ...

नौजवान अपने दोनों हाथों को मोड़ कर सिर के पीछे ले जाता है जिसके वजह से उसके बड़े बड़े डोले के विकराल आकार दिखने लगते हैं l उसके डोले देख कर उन दोनों की फटने लगती है l

ऑटोवाला - आ.. आप कहाँ उतरेंगे.. स... साहब...
नौजवान - यह ऑटो जा कहाँ रही है...
ऑटो वाला - xxx पुर
नौजवान - अरे... क्या इत्तेफाक है... मुझे भी वहीँ जाना है... चलो अब बाते बंद ऑटो को आगे बढ़ाओ...

ऑटोवाला ऑटो चला रहा है और बीच बीच में पीछे मुड़ कर देख रहा है l भाश्वती चुप चाप बैठी हुई है पर वह नौजवान अपनी मोबाइल में गेम खेल रहा है l थोड़ी देर बाद ऑटो रुक जाती है l


ऑटो वाला - सर... xxx पुर आ गया...
नौजवान - तो क्या हुआ बे... मेरा गेम खतम नहीं हुआ है... चल आगे बढ़ा...
ऑटो वाला - साहब... आपको तो यहीँ उतरना था ना...
नौजवान - हाँ था तो... पर मोबाइल पर गेम खतम नहीं हुआ है... चलो चलो... ऑटो को आगे बढ़ाओ...

ऑटो वाला और उसका साथी खीज जाते हैं ऑटो वाला मज़बूर होकर ऑटो आगे बढ़ाता है l नौजवान के होने से भाश्वती खुदको सुरक्षित समझ रही थी l नौजवान के उतरने से मना कर देने पर भाश्वती को अच्छा लगता है l उसके बाद ऑटो भाश्वती के बताए जगह पर आकर रुक जाती है l भाश्वती उतरती है और उसके साथ वह नौजवान भी उतर जाता है l दोनों अपना अपना किराया दे देते हैं l ऑटो वाला और उसका साथी बड़े बेमन से वहाँ से चले जाते हैं l

भाश्वती - थैंक्स...
नौजवान - क्यूँ... किसलिए...
भाश्वती - आपने जो किया... उसके लिए...
नौजवान - अरे कोई नहीं... पर ऐसे समय में... आपको अपनी सुरक्षित आवाजाही के लिए... बस से सफर करना चाहिए...
भाश्वती - जी... मैं बस से ही आ रही थी... पर... (भाश्वती सारी बात बताती है)
नौजवान - ओ... फिर भी... आपको दुसरी बस का इंतजार करना चाइये था...
भाश्वती - थैंक्स अगेन... वैसे आपको जाना कहाँ था... मेरे वजह से.. यहाँ तक आ गए...
नौजवान - कटक...
भाश्वती - व्हाट... कटक... आप भुवनेश्वर में क्या कर रहे हैं...
नौजवान - मैं... कटक जाने के लिए ही... उस चौक पे बस का वेट कर रहा था... पर ऑटो वाले ने जिस तरह से.... इशारा करते हुए अपने साथी को बुलाया... मुझे शक़ हुआ... इसलिए मैं यहाँ तक पहुँच गया...
भाश्वती - ओह.. अगेन थैंक्स अ लॉट...
नौजवान - अच्छा मैं चलता हूँ...
भाश्वती - (बिनती करते हुए) अगर यहाँ तक आए हैं... तो क्या... घर तक नहीं छोड़ेंगे...

नौजवान - (हैरान हो कर) जी... (कुछ सोचने के बाद) ह्म्म्म्म ठीक है... चलिए... (भाश्वती के साथ चलने लगता है)
भाश्वती - वैसे आप भुवनेश्वर में... क्या आप जॉब करते हैं...

नौजवान - अरे नहीं... घूमने... मैं घुमने आया था...
भाश्वती - क्या... तुम भुवनेश्वर... घुमने आए थे...
नौजवान - हाँ भी... और ना भी...
भाश्वती - (ना समझने की मुद्रा में) मतलब...
नौजवान - कल मेरे डैड के साथ यहाँ एक पब में घूमने आया था...
भाश्वती - अच्छा..
नौजवान - हाँ... एक्चुयली मैं... बहुत होम सिक हूँ... पेरेंट्स सिक भी हूँ... उनके वगैर कभी भी... और कहीं भी बाहर नहीं गया हूँ... इसलिए... उन्होंने मुझे सबके सामने भोंदु कहा...
भाश्वती - हा हा हा... (हँसने लगती है) ओ... तो जो टैग... तुम्हारे डैड ने लगाए हैं... उससे छुटकारा पाने के लिए भुवनेश्वर घूम रहे हो...
नौजवान - जी...

इतने में भाश्वती का घर आ जाता है l घर के बाहर पहुँचते ही

भाश्वती - यह रहा मेरा घर...
नौजवान - अच्छा... ठीक है... अब मैं चलता हूँ....
भाश्वती - अरे... ऐसे कैसे... आओ ना... चाय पीकर जाते...
नौजवान - नहीं... आज नहीं... फिर कभी... मैं... चलता हूँ... (वह जाने लगता है)
भाश्वती - एक मिनट... (वह रुक जाता है) फिर कभी... क्या मतलब है फिर कभी...
नौजवान - जी.. मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था...
भाश्वती - अब तक मैं समझ रही थी...(कड़क आवाज में) के तुम मेरे वजह से यहाँ आए हो... पर अब लग रहा है...(हँसते हुए) तुम मेरे लिए आए हो...
नौजवान - व्हाट...
भाश्वती - (मुस्करा कर) बाय द वे... आई... एम... (हाथ बढ़ा कर) भाश्वती...
नौजवान - (हाथ मिलाए वगैर) देखिए भाश्वती जी... एक बात... जो मुझे तुरंत समझ में आ रहा है... वह यह है कि... आप खुद में बहुत रिजर्व मेंटेन करती हैं.... अच्छी बात है... पर कुछ जगहों पर उतावले पन में... जल्दबाजी कर जाती हैं... जैसे कि ऐसे समय में... ऐसी परिस्थिति में... ऑटो में अकेली आना... थोड़ी देर और रुक जाती तो... दुसरे बस में आ सकती थीं...

भाश्वती - (अपना हाथ वापस लेते हुए) कहना क्या चाहते हो तुम... तुम्हें क्या लगता है... तुमने मुझे बचाया... माय फुट... यु नो वन थिंग... आई एम ठु गुड इन कराटे... ही.. या.. (एक पोजिशन दिखती है) ऑटो वाले की तरह... अकेली लड़की समझ कर कम मत आंकना... वह दो नमूने तुमको देख कर डर गए... ऐसा समझ रहे हो... ना... गलत फहमी है तुम्हारी... मैं... मैं बहुत ही ख़तरनाक चीज़ हूँ.... ह्म्म्म्म...
नौजवान - जी... मैं... समझ गया... आप बहुत खतरनाक हैं...

इतना कह कर वह नौजवान वहाँ से चलने लगता है l

भाश्वती - अररे... ऐसे क्यूँ चले जा रहे हो... अपने बारे में कुछ तो कहो...
नौजवान - (वापस भाश्वती के पास आकर) अपने बारे में... (मुस्कराते हुए) मैं चाहे जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... पर ख़तरनाक बिल्कुल नहीं हूँ... अपना खयाल रखियेगा भाश्वती बहन जी...

इतना कह कर वह नौजवान वहाँ से चला जाता है l

फ्लैशबैक खतम

सभी यह सुनने के बाद अपनी अपनी पेट पकड़ हँसने लगते हैं l


भाश्वती - मैं जानती थी... तुम सब मुझ पर हँसोगे... इसलिए मैंने तुम सबको यहाँ ले आई...

सब के सब हँसते हुए जमीन पर लेट जाते हैं और जमीन पर हँसते हुए मुक्का मरने लगते हैं l

भाश्वती - अगर ऐसे हँसते रहोगे... तो मैं यहाँ से उठ कर चली जाऊँगी...

भाश्वती की यह बात सुन कर सब बड़ी मुस्किल से अपनी हँसी रोकने की कोशिश करते हैं l पर इतने में बनानी से रहा नहीं जाता

बनानी - अच्छा भाश्वती... वह लड़का.. जाते जाते... क्या कहा था उसने...
भाश्वती - (दांत पिसते हुए) कहा ना बहनजी... (सब के सब हँसने लगते हैं)
बनानी - अरे नहीं... वह कुछ... खतरनाक वाली बात...
भाश्वती - यही की.. वह चाहे जैसे भी है... खतरनाक बिल्कुल नहीं है... पर तुझे क्यूँ उसके बारे में जानने की पड़ी है...
बनानी - कुछ नहीं... (रुप की तरफ देखती है और अपनी भवें नचा कर हँसने लगती है)
दीप्ति - (देख लेती है) ऐ... ज़रूर इसमें नंदिनी की कोई झोल है... जो बनानी जानती है...
रुप - नहीं नहीं... कोई झोल नहीं है... (बनानी को इशारे से ना करते हुए) सच में...

रुप वहाँ से उठ कर जाने लगती है पर सब बनानी को पकड़ लेते हैं l रुप वहाँ रुकती नहीं है बिना पीछे मुड़े मन ही मन यह बड़बड़ाते हुए भागने लगती है l
"इस बनानी को तो नहीं छोड़ेुंगी... कम्बख्त फंसा दिया आज मुझे.... सच ही कहते हैं... लड़की या औरत के पेट में कुछ रहता ही नहीं है....



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पुलिस की जीप, ड्राइविंग सीट पर इंस्पेक्टर रोणा और उसके बगल में बैठा बल्लभ I राजगड़ के रास्ते पर धुल उड़ाते हुए लोगों को, बस्तीओं को पीछे छोड़ चली जा रही है l पर जीप का रुख इस बार रंगमहल की ओर है l


रोणा - हमें किसलिए बुलाया गया होगा...
बल्लभ - मुझे लगता है... मुझसे महीने भर की जानकारी लेने... और तुझसे... तुने जो चौराहे पर जो झंडे गाड़े थे... शायद उसके लिए...
रोणा - यार डरा क्यूँ रहे हो...
बल्लभ - देख तु जहां भी रहा... पर जब भी... मजे करने की बात आई... तु हमेशा अपना हिस्सा ढूंढने राजगड़ आया... और जमकर मजे किया... पर इस बार तुने मजे लूटने के चक्कर में... कांड कर दिया... इसलिए तेरी क्लास तो बनती है...
रोणा - हाँ... यह बात तुने सही कही... चाहे जहां भी मेरी पोस्टिंग हुई... पर मैं... रंग महल से... और रंग महल मुझसे.. जुड़ा रहा...
बल्लभ - क्यूँ..
रोणा - क्यूँ मतलब... हम राजा साहब के वफादार हैं...
बल्लभ - नहीं... सिर्फ़ यही वजह नहीं है... राजा साहब के हुकुमत के नौ रत्नों में से हम.. एक एक हैं... जब तक चमक है... तब तक उंगलियों में सजते रहोगे... जिस दिन चमक फीका पड़ा... या टूटा... उस दिन कूड़ेदान में फेंक दिए जाएंगे... समझा...
रोणा - यार... राजा साहब के आगे मेरी यूँही फटी रहती है... सहारा के लिए... तुमको साथ लिए जाता हूँ... तुम हो कि... हमेशा मेरी फाड़ने के लिए तुले रहते हो...
बल्लभ - तो फिर कुछ करने की सोचने से पहले... इस काले कोट वाले से सलाह मशविरा कर लीआ करो...
रोणा - पता नहीं राजा साहब... मेरी क्या क्लास लेंगे...

बल्लभ - क्लास तो तेरी लेंगे जरूर... पर कैसे... साथ में मुझे बुलाया है... मतलब.. आज गेहूं के साथ घुन भी पिसेगा...
रोणा - एक बात है... राजा साहब की फरमान हो... तो झेलना आसान रहता है... पर उनका बात समझाने का तरीका... बहुत ही भयानक होता है...
बल्लभ - अबे... इसी बात पर तो मेरी हमेशा फटती रहती है...

ऐसे बात करते करते दोनों रंगमहल पहुंच जाते हैं l पहरेदार उनको रास्ता दिखाता है l एक बड़े से कमरे में भैरव सिंह अपनी आँखे मूँद कर, कच्छा पहने एक स्टूल पर बैठा हुआ है l तीन तीन पहलवान उसकी मालिश में लगे हुए हैं l एक हाथ की मालिश कर रहा है तो दुसरा पैर की और तीसरा कंधे की मालिश कर रहा है l वे दोनों वहाँ पर जाकर खड़े हो जाते हैं l पास खड़े भीमा खरासने लगता है l भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है I इन दोनों को देखते ही हाथ से रुकने को इशारा करता है l तीनों पहलवान रुक जाते हैं l

भैरव सिंह - क्या बात है रोणा... पोस्टिंग वाली दिन की खुशी... आज नहीं दिख रही... क्या हुआ...
रोणा - जी... वह... (सिर झुका कर इधर उधर देखने लगता है)
भैरव सिंह - खैर... बाद में बता देना... तो प्रधान... क्या समाचार है...
बल्लभ - जी... राजा साहब... हमारे सारे प्रोजेक्ट्स बहुत अच्छे से.. आगे बढ़ रहे हैं... कोई रुकावट कहीं से भी नहीं है...
भैरव सिंह - वह सब हम जानते हैं... ह्म्म्म्म (स्टूल से उठता है)... यह जानना हमारे लिए उतना... जरूरी नहीं है... वह बताओ... जो जानना हमारे लिए जरूरी है...
बल्लभ - जी... ऐसी... कोई खबर नहीं है...
भैरव सिंह - हूँ... तुम हमारे कौन हो...
बल्लभ - जी...
भैरव सिंह - तुम... हमारे कौन हो...
बल्लभ - जी.. ली.. लीगल एडवाइजर...
भैरव सिंह - भीमा...


भीमा कुछ नौकरों को लेकर भैरव सिंह के पास पहुंचाता है l सारे नौकर मिलकर भैरव सिंह को एक शिकारी वाला कपड़ा पहना देते हैं l

भैरव सिंह - (उन दोनों से) आओ आखेट पर चलें...

आखेट नाम सुनते ही दोनों की फटने लगती है l दोनों एक-दूसरे को देखने लगते हैं l भैरव सिंह आगे बढ़ चुका है l वे दोनों भीमा की ओर देखते हैं l भीमा उन्हें इशारे से भैरव सिंह के पीछे जाने के लिए कहता है l दोनों लाचार भैरव सिंह के पीछे पीछे आखेट मैदान के बालकनी में पहुँचते हैं l

भैरव सिंह - कल रात एक लाल रंग का काकड़ हिरण... हमारे मैदान में घुस आया... हमें बहुत भाया... पर... (भैरव सिंह रुक जाता है)
बल्लभ - (हिम्मत बटोरके) पर... पर क्या.. राजा साहब...
भैरव सिंह - जानते हो... मुझे ज़मीन पर चलने वाले जानवरों में लकड़बग्घे... और पानी के जानवरों में मगरमच्छ क्यूँ पसंद हैं...
दोनों - नहीं... (चेहरा और जिस्म पानी पानी हो चुका है)

भैरव सिंह - क्योंकि पुरी दुनिया में... इन्हीं दो जानवरों की जबड़े सबसे ज्यादा मजबुत होती हैं... और इनकी पाचन तंत्र... किसी भी जानवर का हड्डी तक को गला कर हज़म करा सकती है... (वे दोनों चुप रहते हैं, भैरव सिंह दो बार ताली बजाता है) (कुछ नौकर एक टेबल उठा कर लाते हैं, जिस पर तीन डायना 350 मल्टी शॉट एयर राइफल रखे हुए थे) उठाओ अपना अपना हथियार... मेरे साथ चलो शिकार करने...

भैरव सिंह एक राइफल उठा लेता है l वे दोनों भी एक एक राइफ़ल उठा लेते हैं l

रोणा - राजा साहब... हम शिकार किस चीज़ का करेंगे...
भैरव सिंह - बताया तो था... लाल काकड हिरण का... पर आज उसके चाहने वाले दो हैं... एक हम... और एक हमारा खाने वाला... ना शुक्र.. ना फर्माबर्दार... लकड़बग्घा...

वे दोनों कुछ समझ नहीं पाते l एक दुसरे का मुहँ ताकने लगते हैं l

भैरव सिंह - मैदान में पहले... हिरण को छोड़ा जाएगा... फिर एक कोने में लकड़बग्घा को छोड़ा जाएगा... और दुसरे कोने से हम उतरेंगे मैदान में... दोनों का लक्ष... काकड़ हिरण होगा... अब देखना है... वह हिरण किसके हिस्से आएगा...
रोणा - पर राजा साहब... यह गन तो.. चिड़िया मारने के लिए है... इसकी पैलेट्स .177 की है.. बेशक यह मल्टी शॉट वाला है... और इसकी रेंज पचास से साठ मीटर है... पर इससे जानवरों का शिकार... ना मुमकिन है... वह भी हिरण और लकड़बग्घा जैसी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बात तो... पते की की है तुमने... चलो आजमाके देखते हैं...


यह दोनों बालकनी में रह जाते हैं l भैरव सिंह मैदान में उतर चुका है l एक लाल रंग का काकड हिरण उछलते कूदते मैदान के बीचों-बीच भागने लगती है l और दुसरे तरफ से एक लकड़बग्घा भी आ जाता है l जैसे ही हिरण को लकड़बग्घा देखता है अपना भयानक चेहरा बना कर फौरन उसके तरफ भागने लगता है l हिरण भी उसे देख कर विपरीत दिशा में भागती है l भैरव सिंह लकड़बग्घे पर निशाना लगता है और शॉट पे शॉट लगाने लगता है l रोणा और बल्लभ बालकनी से ही हिरण पर निशाना लेते हैं, पर

भीमा- (उन्हें रोकते हुए) वह राजा साहब का शिकार है... उस पर नहीं...

वे दोनों देखते हैं पहले शॉट में लकड़बग्घा भागते हुए गिरता है l फिर उठता है लंगड़ाते हुए, और एक शॉट पिछले दो पैरों पर उच्छल ता है l फिर भी भागता है l इस तरह सात आठ शॉट्स पर गिरता रहता है l मतलब भैरव सिंह लकड़बग्घे के पैरों को निशाना बना कर शॉट लगा रहा है l कुछ और शॉट्स लगने के बाद लकड़बग्घा हिरण को छोड़ भैरव सिंह की ओर भागने लगता है l भैरव सिंह और शॉट मारने के वजाए राइफ़ल ताने खड़ा हो जाता है l लकड़बग्घा किसी रोते हुए शैतान का चेहरा लिए जीभ लह लहाते हुए भैरव सिंह की ओर बढ़ता जा रहा है l अचानक रोणा और बल्लभ बालकनी से अपनी अपनी गन से. 177 की छर्रों की बरसात शुरु कर देते हैं l लकड़बग्घा रुक जाता है और एक नजर बालकनी के उपर डालता है और इधर उधर हो कर बचने की कोशिश करने लगता है l फिर अचानक भैरव सिंह की तरफ मुड़ कर भागने लगता है और भैरव सिंह से कुछ फुट की दूरी पर रुक जाता है l रोणा और बल्लभ दोनों अपनी फायरिंग रोक देते हैं l उन्हें डर लगने लगता है कि कहीं राइफ़ल से निकलने वाली छर्रे भैरव सिंह को ना लग जाये l लकड़बग्घा अपना मुहँ फाड़ कर अचानक छलांग लगा देता है l भैरव सिंह पहले से ही तैयार था l अपनी गन का बैरेल लकड़बग्घे के मुहँ में घुसेड देता है और लगातार फायर करते जाता है l करीब डेढ़ मिनट की मुठभेड़ के बाद लकड़बग्घे के जबड़े में उस राइफ़ल की बैरेल था जो कि भैरव सिंह के हाथ की वुड स्टॉक से अलग हो कर उसके मुहँ में फंस कर रह गया था l वह लकड़बग्घा जबड़े में बैरेल को ले कर भैरव सिंह पर छलांग मारता है l भैरव सिंह अपने हाथ के वुड स्टॉक से लकड़बग्घे के कान के पास दे मारता है l दर्द के मारे लकड़बग्घा जमीन पर गिर कर छटपटाने लगता है और कान फाड़ देने वाली बड़ी भयानक आवाज करते हुए छटपटाने लगता है l भैरव सिंह उसे वहीँ तड़पता छोड़ बालकनी में पहुँचता है l रोणा और बल्लभ दोनों उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

भैरव सिंह - तो क्या देखा तुम लोगों ने... (दोनों चुप रहते हैं) नहीं समझे... ठीक है... जो चीज़ हमारी है... उस पर हमारा पालतू भी नजर डालने का हक नहीं रखता... जो गुस्ताखी करता है... उसे हम सीधी मौत नहीं देते... (एक कुर्सी पर बैठ कर) रोणा... तुम बताओ... तुमने क्या किया...
रोणा - र... राजा साहब... आपके जानकारी के वगैर यहाँ कोई सांस भी ना ले पाता होगा... यह मैं जानता हूँ... मैं वैदेही के पास इसलिए गया था... ताकि उसके भाई का पता जान सकूं...
भैरव सिंह - (भवें तन जाते हैं) क्यूँ...
रोणा - राजा साहब... विश्व छह दिन पहले रिहा हो चुका है... आज सातवां दिन है... पर अभीतक राजगड़ क्यूँ नहीं आया... अगर नहीं आया तो... कहाँ है.. यही जानना चाहता था... पर.. (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो बात यह थी... वैदेही का भाई विश्व... जैल से छूट गया है... ह्म्म्म्म... और वह... राजगड़ आया नहीं है...
रोणा - जी राजा साहब... आपने उसकी सजा खतम ना होने तक जानकारी ना रखने की हिदायत दी थी.. पर अब तो वह रिहा हो चुका है... इसलिए...

भैरव - ह्म्म्म्म... तो वैदेही ने क्या कहा..
रोणा - उ.. उस.. उसने.. मुझे... कानून की कुछ धाराएं बता कर... साठ दिन की मोहलत देकर... मुझे उल्टे पांव लौटा दिया...

भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... कोई हैरत की बात नहीं... आखिर उससे... इसी रंग महल में... नजाने कितने घाट का पानी जो पिया है... तो प्रधान... यह विश्व वाली खबर... तुमको क्यूँ नहीं हुई...
बल्लभ - वह... राजा साहब... मैं इस बारे में... वाकई भूल गया था... आपके दुश्मन के बारे में... मुझे पता करना चाहिए था...
भैरव सिंह - (कड़क आवाज़ में) दुश्मन नहीं है वह... हमसे दुश्मनी मोल ले... झेल ले... उतनी औकात किसी की नहीं है... हमारी दुश्मनी उठा सके... उतनी हैसियत नहीं रखता है कोई... फिर वह... हमारे पांव की जुती के धुल बराबर भी नहीं है... वह क्या दुश्मनी करेगा... ग़द्दार है वह... हमारी हुकुमत की... और उसकी सजा वही है... जो उस लकड़बग्घा की हुई...

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l दर्द से कराहते उस लकड़बग्घे को सभी देख रहे हैं l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी... राजा साहब...
भैरव सिंह - क्या यह रोणा... क्या सोच रहा है... और तुम कहाँ तक इत्तेफ़ाक रख रहे हो...
बल्लभ - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) राजासाहब... एक कहावत है कि... एक छोटी सी चिंगारी... पुरे जंगल को ख़ाक कर सकती है...
भैरव सिंह - हूँ... तो क्या... विश्व... जैसा... घुटने में दिमाग रखने वाला... कोई प्लान भी बना सकता है...
रोणा - राजासाहब... विश्व... सात सालों तक.. गुंडे बदमाशों के बीच रहा है... बदले में जल रहा होगा... और छूटने के बाद... अभी तक... राजगड़ आया नहीं है... मतलब... कुछ तो उल्टा सीधा प्लान कर रहा है...
भैरव सिंह - हूँ... प्रधान... तुम्हें क्या लगता है...
बल्लभ - राजा साहब... हम सपोले को फन उठाने का मौका ही क्यूँ दें...
भैरव सिंह - ठीक है... रोणा... तुम... उस हरामी सुवर विश्व को ढूंढो...पता लगाओ... और प्रधान... यह साठ दिन वाला चक्कर क्या है... और क्या क्या खेल हो सकता है... उन सबकी लीगल पॉइंट ऑफ व्यू देखो...

दोनों - जी राजा साहब....


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ESS ऑफिस

विक्रम अपनी कैबिन में बैठ कर अपने डेस्क टॉप के स्क्रीन पर वीर की तस्वीरों को एक के बाद एक स्क्रॉल करते हुए देख रहा है l तभी दरवाजे पर दस्तक होता है l विक्रम देखता है महांती अपना सिर को अंदर कर देख रहा है l

विक्रम - हाँ... महांती... कम इन...
महांती - (अंदर आकर) युवराज जी... मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया...
विक्रम - नहीं... बिल्कुल नहीं... आज कल मैं... बिजी फॉर नथिंग हूँ... इसलिए कैसा डिस्टर्बांस...
महांती - लगता है... मैं... गलत टाइम पर आ गया...
विक्रम - नहीं महांती... नहीं... सही गलत कुछ नहीं होता... जो जच गया वह सही... जो ना जचे... वह सब गलत... जो अच्छा लगे वह सही... जो बुरा लगे वह गलत...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - मैं तुम्हें... बेकार में बोर कर रहा हूँ... है ना...
महांती - कोई बात नहीं है...
विक्रम - मुझसे चार साल छोटे हैं... राजकुमार... मैं जब पांच साल का था.. तब बोर्डिंग में गया था... पर राजकुमार जी को... जब वह तीन साल के थे... बोर्डिंग भेज दिया गया था.... मेरा अकेला पन दुर हो गया था... हम दोनों एक दुसरे के बहुत करीब हो गए... लेकिन इस रिश्ते में... मैं हमेशा जो कंधा ढूंढता था... वह मुझे राजकुमार जी दे देते थे... मैं हमेशा चाहता था कोई मुझे सुनें... राजकुमार जी मुझे सुनते थे... हमारे रिश्ते में... असल में वह बड़े भाई बन चुके थे... और मैं छोटा भाई... मुझे किसी से... जो गिला रहती थी... शिकायत रहती थी... उसे राजकुमार जी को कह देता था... वह सुनते भी थे... हर मोड़ पर मुझे... उनका साथ बखूबी मिला... पर आज मालुम हो रहा है... आज यह एहसास हो रहा है... मैं कभी भी उनके साथ था ही नहीं... उनको पास बिठा कर... कभी उनको सुना ही नहीं... शायद इसलिये आज वह... (चुप हो जाता है)
महांती - (कुछ देर की चुप्पी के बाद) अहेम... अहेम... (खरासता है)
विक्रम - ओह... हाँ महांती... अगेन सॉरी... कहो... किस लिए आए हो...
महांती - हमारे पास एक कोर्ट का ऑर्डर आया है...
विक्रम - (हैरान हो कर) हमारे पास... मतलब... किसके नाम पर...
महांती - ESS के नाम पर...

विक्रम की आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह हैरानी से महांती को देखने लगता है l

विक्रम - क्या... ESS के नाम पर... कोर्ट ऑर्डर...(लहजा बदल जाता है) किसने ऐसी हिमाकत की... किसलिए... कैसे...
महांती - जे ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर... स्वपन जोडार.... (विक्रम महांती को सवालिया नजर से देखता है) उसका केके के साथ लफड़ा था... हम लोग पार्सियली इनवल्व हो गए... जे ग्रुप का प्रोजेक्ट छह महीने से रुका पड़ा है... इसलिए उसने केके पर, हमें मिलाकर कंपेंसेशन पेनाल्टी चार्ज किया है...
विक्रम - मुझे ब्रीफ करो... हम लोग कब और कैसे इनवाल्व हुए...

महांती - युवराज जी... हमारे दम पर केके हमेशा... कोई भी बड़ा टेंडर हासिल कर लेता था... और उसे अपने हिसाब से... सबलेट करता था... पर थाईशन टावर की टेंडर... ई टेंडर प्रोसिजर में हुआ था... इसलिए... एल वन बिडिंग में... टर्म्स एंड कंडिशन के हिसाब से... टेंडर जे ग्रुप को मिला...
विक्रम - हूँ... तो हमारा रोल कहाँ शुरु होता है...
महांती - जी... उसके बाद... टेंडर खोने के बाद... केके अपने नाम पर सबलेट कराने की कोशिश की... पर जोडार नहीं माना... तो रेत.. सीमेंट.. छड़ें यहाँ तक लेबर सप्लाय तक... हर चीज़ में... केके अड़ंगा डाला... तो जोडार ने अल्टरनेट रास्ता इख्तियार किया...
विक्रम - जैसे...
महांती - रेत, सीमेंट, चिप्स, छडें सब.... सब कुछ उसने इम्पोर्ट किया... कलकत्ता से...
विक्रम - व्हाट... और लेबर...
महांती - लेबर... आसपास के गांव से जुगाड़ किया था...
विक्रम - हूँ... फिर हमारा रोल... यहाँ पर भी तो नहीं दिख रहा...
महांती - जी... युवराज... इसके बाद...
विक्रम - इसके बाद... क्या...
महांती - फिनिशिंग और इंटेरियर के लिए... जोडार ने सिंगापुर से चार कंटेनर समान मंगवाया था... जिसे केके ने हमारे लोगों के मदत से... गायब करा... और जोडार को खाली कंटेनर थमा दिया...
विक्रम - कैसे...

महांती पूरा प्रोसिजर बताता है l विक्रम सब सुन कर कुछ देर सोचता है l फिर

विक्रम - महांती... जोडार का वकील कौन है...
महांती - कोई... मिसेज प्रतिभा सेनापति...
विक्रम - व्हाट... क्या यह वही सेनापति हैं...
महांती - जी... युवराज... जिनके बेटे को यश ने...
विक्रम - हूँ... ठीक है... ठीक है... और हमारा वकील कौन है...
महांती - कोई नहीं... क्यूंकि हम अभी पार्टी बने हैं...
विक्रम - केके का वकील कौन है...
महांती - @#xxx कुमार है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... (कुछ देर विक्रम आँखे मूँद कर सोचमें डूब जाता है)
महांती - (फिरसे खरासता है) अहेम.. अहेम...

विक्रम - महांती... (अपनी कुर्सी से उठ कर) इस केस ने हमारे लिए एक मौका लेकर आया है... हमारे दुश्मन केके को बाहर लाने का.... तुम इस केके की वकील को पकड़ो... उसे अपने तरफ मिलाओ... इस पुरे कंस्पीरेसी में.. हमारी कोई भी इनवाल्वमेंट नहीं हैं... ऐसा कोई स्ट्रॉन्ग ड्राफ़्ट तैयार करो.... और सारी कंपेंसेशन केके पर डाल दो... और केस कुछ इस तरह से ट्विस्ट करवाओ... की अगर केके जोडार को कंपेंसेशन नहीं देता तो... वह और उसके सारे अकाउंट्स... ब्लैक लिस्ट होने के साथ साथ फ्रिज कर दिया जाएगा...
महांती - जी... मैं समझ गया युवराज... अपनी कंपनी और अकाउंट्स बचाने के लिए... उसे बाहर आना ही पड़ेगा...
विक्रम - हाँ... हो सकता है... वह कोर्ट में ऐफिडेविट देकर सामने आए... के उसकी जान को खतरा है... पर फिर भी... अभी जो छुपा हुआ है... वह मजबूरन बाहर निकलेगा... तब वह हराम का जना... हमें... सारा हिसाब देगा....
बहुत ही बहतरीन और लाज़वाब अपडेट 😍😍
 
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