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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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Kala Nag

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Mind blowing update bhai

Waiting for the next update

Happy holi bhai
आज ही आएगा
शायद दोपहर तक
 

Kala Nag

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पुष्पा और विनय का कत्ल कौन कर सकता है ? पहले लगा था शायद पुष्पा अपने भाई मृत्युंजय के साथ मिलकर क्षेत्रपाल के खिलाफ कोई साजिश रच रही हो ! लेकिन पुष्पा की मौत ने इसे गलत साबित कर दिया।
क्या वो अपने ही भाई के साजिश का शिकार हो गई है ?
पुष्पा और विनय की हत्या साजिशन ही हुई है
बहुत ही गहरी साजिश
अपने समय पर खुलेगा ज़रूर
वीर को इस वजह से डिप्रेस नही होना चाहिए था। आखिर वो क्षेत्रपाल था। लगता है अनू के प्रेम ने उसे कुछ ज्यादा ही दिवाना कर दिया है।
हाँ वह जब अच्छा बन रहा है उसका दिमाग उतना ही सो जा रहा है
और अनू का वीर को यह कहना कि वो पुष्पा के कातिल को जान से मार दे , भी उसके चरित्र के साथ मैच नही खाया। ऐसी बात वो लोग कहते है जो बहुत ही ज्यादा जुल्म के सताए होते है , जिनके अपने जो जान से बढ़कर होते है उनकी हत्या कर दी जाती है।
इसकी लाजिक आपको अगले अपडेट में मिलेगा
कानूनन सजा दिलाने की बात उसे कहनी चाहिए थी।
क्यूंकि विश्व भी तो वही कर रहा है।
विश्व की चरित्र और वीर की चरित्र में फर्क़ तो है
अब वीर की प्रेम कहानी परवान चढ़ चुकी है
इम्तिहानों का दौर आना बाकी है
रोणा का राम नाम सत्य होने मे शायद अब ज्यादा वक्त नही बचा है। लेकिन देखना यह है कि उसकी मृत्यु किस प्रकार होती है।
रोणा अभी मरने से रहा
पर विश्व उसे सजा ज़रूर देगा
एक अनोखी सजा
रोणा से कहीं अधिक डेंजरस प्रधान लगता है मुझे। जो दिमाग से काम करता है वो डेंजरस होगा ही।
हाँ प्रधान
है तो बहुत चालाक
तब्बसुम को कब और कैसे खोज लिया विश्व ने ? आखिर हुआ क्या था उसके साथ ?

बहुत खुबसूरत अपडेट बुज्जी भाई। आउटस्टैंडिंग अपडेट।
यह भी आपको अगले अपडेट में मालुम होगा
 

Kala Nag

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Gajab ka update bhai.....ab aap ka hath kuch thik Hua....
शुक्रिया मेरे दोस्त
मुझे लगता है हाथ ठीक है पर वजन दार उठाने को डॉक्टर ने मना किया है
वैसे इसी इक्कीस तारीख को प्लास्टर खोला जाएगा
 

Kala Nag

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Where are you bhai

Intjaar kar rahe hai Kala Nag bhai

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?


Kala Nag मित्र कैसे हो आप.. आपका हाथ कैसा है.. उम्मीद है कि जल्दी स्वस्थ हो कर आप अपने जीवन के कर्मक्षेत्र मे लौट कर पूरी मस्ती में मिलते लिखते हुए आनंद के साथ समय व्यतीत करते हुए हम पाठकों को भी आनंदित करते रहेगे...
💗 😍 💗

Waiting for the next update bro

Kala Nag Bhai,

Kaise ho aap? Hath thik huya ya nahi abhi tak?????????

Kaha ho nag bava

Kala Nag bhai how's your health now?
Hath thik hua ya nahi abhi tak?
भाई यों आप सबका प्यार और दुआओं का असर है
हाथ अब ठीक ही लग रहा है पर डॉक्टर ने इक्कीस तारीख को प्लास्टर खोलने को कहा है
सब्र किए हुए हो आप लोग अब तक उसके लिए शुक्रिया
आज दुपहर को अपडेट आएगा
 

Kala Nag

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👉एक सौ पच्चीसवां अपडेट
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वैदेही अपनी पूजा ख़तम करने के बाद चूल्हे की आरती उतारती है l आँखे मूँद कर प्रार्थना करने के बाद जब आँख खोल कर जब पीछे मुड़ती है तो सामने बच्चों की झुंड उसे खड़े ताकते हुए दिखते हैं l

वैदेही - क्या हुआ बच्चों... स्कुल नहीं गए आज...
बच्चे - (एक साथ) नहीं... छुट्टी है...
वैदेही - तो फिर...
एक बच्चा - मासी... मामा घर से क्यूँ नहीं निकल रहे...
वैदेही - अच्छा... तो तुम लोग अपने मामा के लिए पूछने आए हो यहाँ...
एक बच्चा - हाँ... वह हमें बहुत बढ़िया बढ़िया चॉकलेट देते हैं...
दुसरा बच्चा - (मुहँ बना कर) अरे कहाँ... सिर्फ एक बार ही तो दिया था...
तीसरा बच्चा - उसके बाद दिखे ही नहीं...
चौथा बच्चा - लगता है... चॉकलेट देने पड़ेंगे इसलिए छुपे हुए हैं... बाहर ही नहीं निकल रहे...
वैदेही - ऐ... खबरदार... मेरा भाई तुम छछूंदरों से क्यूँ डरेगा... बात अगर चॉकलेट की है... वह तो मैं भी तुम सबको दिला सकती हूँ...
एक बच्चा - नहीं मासी... वह तो हम जानते हैं... पर मामा ने कहा था... जब जी करे आ जाना.. पर उस घर के बाहर एक चमगादड़ पहरा देता है... जो हमें मामा से मिलने नहीं देता...
वैदेही - ओ तो बात ऐसी है... पर वह भी तो तुम लोगों का मामा लगता है...
बच्चा - ठीक है चमगादड़ मामा... हमें मामा से मिलने नहीं दे रहा है...
वैदेही - (उस बच्चे की कान पकड़ कर) ऐ... तु बहुत सयाना बन रहा है...
बच्चा - आह... आह... मासी... दुख रहा है...
वैदेही - (कान छोड़ कर) तुम्हारा मामा... तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बना रहा है... इसलिए घर से नहीं निकल रहा है... जाओ परसों सुबह तुम्हारा मामा तुम लोगों को... ढेर सारे चॉकलेट देगा... पर एक शर्त पर...
बच्चे - वह क्या है मासी...
वैदेही - जब तुम सब उस घर में जाओगे... वहाँ पर अच्छे अच्छे किताबे होंगी... पढ़ना पड़ेगा... तब जा कर वह तुम्हें चॉकलेट देगा...
बच्चा - क्या... हमें स्कुल के साथ साथ वहाँ भी पढ़ना पड़ेगा...
वैदेही - हाँ... पर... चॉकलेट भी तो मिलेगा... और हो सकता है... खिलौने भी मिले तुम सब को...
बच्चे - (खुशी से उछल कर) इये... ये.. ये...
वैदेही - ठीक है... अब तुम लोग जाओ... वर्ना... घर पर सब नाराज होंगे...

बच्चे तुरंत मुड़ कर वैदेही की दुकान से भाग जाते हैं l उन्हें खुशी से उछलते हुए जाते देख वैदेही के आँखे नम हो जाती हैं l पर होठों पर एक मुस्कान उभर जाती है l

गौरी - तु रो रही है... या हँस रही है...
वैदेही - (बच्चों को जाते हुए देखते हुए) खुश हो रही हूँ काकी... यह आँसू खुशी की भी है... और उम्मीद की भी...
गौरी - खुशी और उम्मीद... क्या मतलब हुआ इसका...
वैदेही - (गौरी की तरफ़ घूम कर) काकी... विशु... जिन गाँव वालों के लिए लड़ाई की तैयारी कर बैठा है... वही गाँव वाले उससे दूरी बनाए हुए हैं... पर उनके बच्चे...
गौरी - हाँ हाँ बच्चे हैं... पसंद तो करेंगे ही... पर... उसमें खुशी और उम्मीद वाली बात कहाँ है...
वैदेही - क्या काकी... इतनी सी बात भी नहीं समझ रही... जो आज हैं... उन्हें आने वाले कल की परवाह नहीं... पर जो कल हैं... वह अपने आज को दरकिनार कर... अपने कल से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं...

कह कर वैदेही गौरी की तरफ देखती है, गौरी की समझ में कुछ नहीं आया था, वह हैरान परेशान सा चेहरा बना कर समझने की कोशिश कर रही थी l वैदेही हँसते हुए अपना मोबाइल निकाल कर विश्व को कॉल लगाती है l कॉल लगते ही

वैदेही - विशु...
विश्व - हाँ दीदी...
वैदेही - यह क्या हो रहा है...
विश्व - (चौंक कर) क्या हो रहा है मतलब... (सीरियस हो कर) गाँव में कुछ हो गया क्या...
वैदेही - हाँ... हो तो रहा है...
विश्व - क्या.. क्या हो रहा है दीदी...
वैदेही - तेरे भांजे और भांजी.... रोज उमाकांत सर के यहाँ जा रहे थे... पर आज तुझे ढूंढते हुए मेरे पास आ गए...
विश्व - (इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए) ओ...
वैदेही - क्या ओ... अब उनके लिए तो तुझे आ ही जाना चाहिए...
विश्व - ठीक है दीदी... काम लगभग पुरा हो गया है... कल शाम को निकल रहा हूँ... परसों सुबह उनके साथ बहुत मस्ती मजा करूँगा...
वैदेही - ठीक है.. ठीक है... कर लेना मस्ती मज़ाक... उस दिन तु... तेरे दो बंदर और यह नन्हें छछूंदर... सबको लेकर आना... सबके लिए ढेर सारा खाना और पकवान बनाऊँगी...
विश्व - जरूर दीदी...
वैदेही - अच्छा... अब क्या कर रहा है...
विश्व - काम में हूँ... किसी का इंतज़ार कर रहा हूँ...
वैदेही - ठीक है... रखती हूँ फोन...
विश्व - जी दीदी...

फोन कट जाता है l xxxx कैफे में एक टेबल पर बैठा विश्व मोबाइल को जेब में वापस रखता है l उसे लगता है जैसे कोई उसके पीछे खड़ा है, वह मुड़ कर देखता है l

विश्व - (खड़े हो कर) अरे... वीर.. तुम कब आए...
वीर - (मुस्करा कर) बस कुछ ही देर हुए हैं... तुम मोबाइल पर अपनी दीदी से बात कर रहे थे... (दोनों हाथ मिलाते हैं और फिर गले से लग जाते हैं)
विश्व - आओ यार बैठ जाओ...
वीर - (विश्व के सामने बैठते हुए) मिलना चाहते थे...
विश्व - हाँ यार... तुमने जिस तरह से फोन पर बात की थी... मुझे बहुत बुरा लगा था... ऐसा लगा... जैसे.. तुम टुट से गए हो... पर अब लग रहा है... तुम उससे उभर कर आ गए हो...
वीर - हाँ यार... उस दिन वाक़ई मैं टुट गया था... पर आज... थोड़ा संभला हुआ हूँ...
विश्व - ह्म्म्म्म.. दिख रहा है... तुम्हारे चेहरे पर यह ताजगी... यह रौनक... जरूर अनु के वज़ह से होगी... अनु ने तुम्हारे अंदर से एक नए वीर को बाहर ले आई है...
वीर - हाँ कह तो तुम सौ फीसदी सही रहे हो... ऐसा लग रहा था... जैसे मैं अंधेरे में खो गया हूँ... अनु ने हाथ बढ़ाया... और अब मैं उजाले में हूँ.... पर...
विश्व - हाँ... क्या पर...
वीर - तुम्हें कैसे मालुम हुआ... यह सब अनु ने किया.... जब कि हादसे के बाद... मैं अपने दोस्त से दुखड़ा रो रहा था...
विश्व - (थोड़े देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) दोस्त ग़म बांट सकता है... पर ग़म से उबार नहीं सकता... दिलबर ग़म मिटा भी सकती है और ग़म के भंवर से निकाल भी सकती है... अभी तुम अपने में जिस ताजगी को लिए हुए दिख रहे हो... वह मुझसे नहीं हो पाता... इसलिए मैंने तुमसे अनु का जिक्र किया...
वीर - (मुस्कराते हुए) मान गया दोस्त... वाकई... जिंदगी और हालात... दोनों को तुम बहुत ही अच्छी तरह से समझ सकते हो...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच खामोशी छा जाती है l विश्व दो कॉफी की ऑर्डर करता है l दोनों समझ ही नहीं पाते एक दुसरे से क्या बात करें और बात चित का सिलसिला कहाँ से शुरु करें l वेटर दो कॉफी ग्लास टेबल पर रख कर चला जाता है l दोनों अपने अपने ग्लास उठा लेते हैं और कॉफी की चुस्की भरने लगते हैं l कुछ देर बाद

वीर - वैसे... तुम्हारी प्रेम कहानी की गाड़ी... कौनसी स्टेशन पहुँची...
विश्व - उनकी जिद थी... मेरे इजहार की... सो मैंने कर दी...
वीर - वाव... कैसे किया... कब और कहाँ...
विश्व - उनके घर में... (वगैर रुप और राजगड़ का नाम लिए जो हुआ था उसकी एक कहानी बना कर वीर को सुना देता है)
वीर - ओह माय गॉड... क्या बात है यार... व्हाट अ बिउटीफुल वे टु प्रपोज...
विश्व - थैंक्स...
वीर - तो... कब मिला रहे हो...
विश्व - (गले में कॉफी अटक जाता है और खांसने लगता है)
वीर - अरे... क्या हुआ...
विश्व - (खांसते हुए) लगता है... या तो कोई याद कर रहा है... या फिर... कोई अपने मन में जी भर के गालीयाँ दे रहा है...
वीर - याद तो समझ में आता है... पर.. गाली...
विश्व - (हँसते हुए) अरे यार ऐसा कहते हैं... सो मैंने भी कह दिया...
वीर - ओ अच्छा... तुम्हारी वाली... वाकई शेरनी है... तुम उससे डर कर प्यार इजहार किया लगता है...
विश्व - नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है यार... हमारा प्यार कहो या चाहत... बचपन से है... इजहार का रस्म तो अभी किया है...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... बचपन से...
विश्व - हाँ... मुझे तभी से... उनके रूठना... उनका बात बात पर गुस्सा करना... बस.. तभी से उनके नखरे उठाना... मुझे अच्छा लगता है...
वीर - कमाल की बात है... मैं अपनी अनु को... हिरनी या मोरनी की तरह देखता हूँ... और तुम हो कि..
विश्व - शेरनी... नकचढ़ी...
वीर - इस प्यार के मामले में... हमारी पसंद इतने अलग कैसे...
विश्व - पता नहीं... पर... हम इसे ऐसे समझ सकते हैं... मर्द या औरत चाहे कितना भी काबिल क्यूँ ना हो... कुछ कमियाँ.. कुछ खामियाँ तो होती ही हैं... उन कमी और खामियों को पुरा... हमारे हम सफर का प्यार और साथ करते हैं... एक अकेला हमेशा अधुरा ही रहता है... दोनों का मिलन उन्हें मुकम्मल कर देता है...
वीर - वाह... क्या बात कही... सीधे दिल में उतर गई... यानी अनु जितनी मासूम है... मैं उतना ही कन्नींग हूँ...
विश्व - यार मैं इस पर क्या कह सकता हूँ...
वीर - फिर भी एक सवाल तो मन में उठ रही है...
विश्व - कैसा सवाल...
वीर - (पिछले दिन अनु और उसके बीच हुए सारी बातें बताता है) अनु जैसी लड़की... किसीकी मौत की कामना कैसे कर सकती है...
विश्व - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) अनु ने कोई मौत की कामना नहीं करी है.... वह तुममे पुराने वीर को बाहर निकाला है... जो ना ही भटकता था... ना ही टूटता था... अनु ने इसलिए कहा... के टुटे हुए... बिखरे हुए वीर को समेट ने के लिए... उसके पास... अपने वही वीर को पाने के लिए... जिस वह फिदा हुई थी... यही एक रास्ता था... वीर... उसके पास... अनु ने तुम्हें एक लक्ष दिया है... एक टार्गेट दिया है... जिसे तुम्हें साधना है... हिट करना है...
वीर - (जबड़े भींच जाती है) ठीक कह रहे हो प्रताप... तुम ठीक कह रहे हो... कोई चांद मांगता है... कोई सितारे मांगते हैं.. आखिर अनु ने वह माँगा है... जो वीर दे सकता है... और वीर उसे जरूर देगा....

इस पर विश्व कुछ नहीं कहता l दोनों के दरमियान फिर से चुप्पी छा जाती है l बात को बदलने के लिए

वीर - वैसे तुम... कल शाम को निकल रहे हो... मैंने सुना... तुम अपनी दीदी से कह रहे थे...
विश्व - हाँ...
वीर - आज क्या क्या काम रह गया है तुम्हारा....
विश्व - आज... (एक पॉज लेकर) मुझे दो जन से मिलना है... एक से वादा करना है... और दुसरे से हिसाब करना है...
वीर - कमाल है... क्या बात है... इश्क के मामले में... हमारी पसंद भले ही अलग है... पर कुछ मामलों में हमारी सोच काफी मिलती है... मुझे भी आज दो जन से मिलना है... एक से वादा करना है... और दुसरे से हिसाब करना है....
विश्व - ओ... वाकई...
वीर - हाँ.. वैसे आज तुम्हारा काम पुरा हो जाएगा... तो तुम आज भी जा सकते थे...
विश्व - हाँ... जा तो सकता था... पर... मैंने डिसाइड किया है... जाने से पहले अपना पुरा दिन... अपनी नकचढ़ी के नाम कर देने के लिए...
वीर - हा हा हा... यार यह कमाल की रही... एक्जाक्टली मैं भी यही करने वाला हूँ... अनु और मैं... पुरा दिन कहीं आउटींग कर टाइम बिताएंगे....


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


xxxxx कॉलेज
कैंटीन में बनानी, भाश्वती इतिश्री और दीप्ति बैठे हुए हैं l सब के चेहरे पर एक मायूसी सी दिख रही है l क्यूंकि पहले उनके छटी गैंग से तब्बसुम दुर हुई और उसके बाद अब रुप भी कुछ दिनों से आ नहीं रही है l सेमीस्टर एक्जाम के लिए कुछ ही दिन शेष है l उसके बाद होली और गर्मी की छुट्टियाँ चालू हो जाएगी l चारों आपस में ऐसे ही दुख भरी बातेँ कर रहे हैं l तभी अचानक दीप्ति की आँखे कैंटीन की एंट्रेंस पर ठहर जाती है l रुप और तब्बसुम दोनों अंदर आ रहे थे l उन्हें देखते ही अपनी जगह से खुशी के मारे उछल पड़ती है l

दीप्ति - वाव... क्या बात है... लो पुरी हो गई हमारी छटी गैंग... ईयेयेये...

बाकी तीनों की नजर उनके तरफ घुम जाती है l रुप और तब्बसुम उसी टेबल के तरफ आकर अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l सब एक साथ सवालों की झड़ी लगा देते हैं कि रुप और तब्बसुम अपने अपने कान ढक लेते हैं l

भाश्वती - ऐ कान से ढक्कन हटाओ... वर्ना हम इतना चिल्लाएंगे की तुम दोनों के कान फट जाएंगे... (रुप से) यह बता... कल मेरी गाड़ी इसे (तब्बसुम) लाने के लिए ले गई थी....
रुप - हाँ यार... मेरी गाड़ी है कहाँ... वह तो भाभी की है... हमारी गैंग की सदस्य... हमारे किसी दोस्त की गाड़ी से आनी चाहिए कि नहीं...
सब - आह हा हा... वेरी फनी... (तब्बसुम से चिल्लाते हुए) अब तु अपने कान से हाथ हटा कर... तेरी कहानी बताएगी...
तब्ब्सुम - (अपने कान से हाथ निकालते हुए) ओके ओके... (अब रुप भी अपनी कान से हाथ निकालती है) मैं बताती हूँ... (सब तब्ब्सुम की ओर देखते हैं) हमारे परिवार पर एक मुसीबत आई... अबु ने घर पर इस बारे में कोई जिक्र नहीं किया... पहले घर मेरा कॉलेज आना बंद करवा दिया... और दो दिन बाद... अचानक घर आकर हमें हमारा सामान बांधने को कहा... हमने भी वही किया... फिर हम पुरे परिवार समेत अपना घर छोड़ कर ख़ुर्दा चले गए... एक दो बार मैंने कोशिश की... अपने दोस्तों को बताने की... पर अबु ने इजाजत नहीं दी... फिर फोन ही रख लिया... इतना तो साफ है कि... हम शायद किसी से छुप रहे थे... पर मुझे अभी तक पता नहीं... हमें जान का खतरा था... या किसी और चीज़ का... पर हम छुपे हुए थे... असल में हमने खुद को कैद कर लिया था... और खुद को छुपा रखा था दुनिया से.... ऐसे में कल शाम दरवाजे पर दस्तक हुई... मैजिक आई से कुछ नहीं दिखा... दरवाजा खोलने से भी डर लग रहा था... पर सच कहती हूँ... मेरे अंदर की गट फिलिंग कह रही थी... हो ना हो... मेरे दोस्तों में से कोई... मुझे ढूंढते हुए आया हो... अबु मना करते रहे... पर मैंने हिम्मत करके दरवाजा खोल दिया... सामने...
सब - (मुहँ खोले तब्बसुम की बात सुन रहे थे) हाँ हाँ... सामने...

तब्बसुम - सामने... (शरारती मुस्कान लेकर रुप की ओर देखते हुए) जीजाजी खड़े थे...
सब - (हैरानी से) हैं... जीजाजी.... (रुप तब्बसुम से अनुरोध करते हुए इशारा करती है, पर सबकी नजरों में आ जाती है) ओ... मतलब जिज्जी भी गई थी साथ में...
बनानी - (रुप से) ऐ तु चुप रह...
(तब्बसुम से) चल अब बता भी दे... कौन है हमारे जीजाजी...
तब्बसुम - सॉरी दोस्तों... मैंने वादा किया है...
सब - किससे...
तब्बसुम - जिज्जी से...
सब - (तब्बसुम की गर्दन पकड़ लेते हैं) चल चल बोल...
तब्बसुम - देखो... मैंने उनका नाम ना बताने के लिए वादा किया है....
दीप्ति - ओ... तो यह बात है... इश्क और मुश्क छुपाया जा रहा है... वह भी छटी गैंग से... सालियों से... जीजाजी की खबर छुपाया जा रहा है... ताकि व्याह के मंडप में... जुते ना चोरी हो जाए....
तब्बसुम - देखो... वह हम सबके जीजाजी हैं... पर भाश्वती के भाई हैं.. मतलब हमारी जिज्जी... भाश्वती की भाभी लगती हैं...
सब - क्या...

रुप झपट कर तब्बसुम को पकड़ कर उसके सिर पर टफली मारती है l

भाश्वती - (रुप से) क्यूँ ड्रामा कर रही है... हमें तो पहले से ही अंदेशा था... तुझे किसी लड़के के साथ इतना बेखौफ घुलते मिलते देखा नहीं था... प्रताप भैया से तुम जिस तरह से मिलती थी... हम सब उस बारे में... हमेशा गॉसिप किया करते थे... अब मान भी ले...

रुप का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है लु मुस्कराते हुए अपनी आँखे जोर से बंद कर चेहरा झुका लेती है l सब सहेलियाँ ताली मारने लगते हैं l रुप अपना चेहरा अपनी हाथों से छुपा लेती है l

सब - (तब्बसुम से) छोड़ो यह भरत मिलाप... अब बोलो... तुम्हें इतना डर क्यूँ था... जबकि हमारी दोस्त नंदिनी है... और... आज तुम कैसे यहाँ आ पाई...
तब्बसुम - पता नहीं... घर पर हम सब जनानीयाँ नंदिनी के साथ बातचीत करने में लग गए... पर प्रताप जी और मेरे अबु... अलग से... हमसे दुर लगभग घंटे भर तक बातचीत की... उसके बात अबु... तैयार हुए... वापस अपनी जॉब पर जाने के लिए... और मैं आज अपनी कॉलेज पर आ गई.... (रुप की हाथ पकड़ कर) मैं जानती हूँ... दोस्तों को... थैंक्स या सॉरी कहा नहीं जाता... पर फिर भी... थैंक्स... तुमने मुझे ढूंढ़ा... और हमें फिर से जिन्दगी में वापस ले आई...
रुप - यह क्या कह रही है... तुम सब मेरे लिए बहुत खास हो... सच कहूँ तो... सबसे पहले तुम... उसके बाद मेरा परिवार...
दीप्ति - वाकई यार... हम लोग इतने सीरियस नहीं हुए... जितना तुम हुई...
बनानी - हाँ यार... (तब्बसुम से) वैसे हैरानी की बात है कि तुझे मालुम नहीं है... क्यूँ तुम लोग छुपे हुए थे...
रुप - हाँ... यह बात तो है... अंकल जी से मैंने पुछा भी... पर अंकल बात टाल गए...
भाश्वती - पर तब्बसुम की बातों से लगता है... अंकल ने शायद प्रताप भैय्या से कहा होगा... भैया ने तुझे कुछ नहीं बताया...
रुप - बताया ना...
इतिश्री - देखो तो... तब से ड्रामा कर रही है...
रुप - ओ हो... पुरी बात सुनो पहले... मैंने जब प्रताप से पुछा... तो उन्होंने कहा कि... भाश्वती और सेक्शन शंकर का मैटर जैसा ही है... अंकल जी का... इसलिए प्रताप ने.. उन्हें दिलासा दिया तो अंकल खुद को बाहर लेकर आ गए....
दीप्ति - बस इतनी सी बात... वह कौन है... क्या है... अंकल अब तक किससे छुप रहे थे... कुछ भी नहीं बटाया...
रुप - नहीं... मुझे बस इतना कहा... आधा प्रॉब्लम सॉल्व हो गया है... बाकी आधा हो जाएगा... जब हो जाएगा... सबको मालूम हो जाएगा...
बनानी - (छेड़ते हुए) यानी बात तुझसे भी छुपा रहे हैं....
रुप - देखो... तुम जैसा समझना चाहो समझ सकते हो... मैं... तब्बसुम को ढूंढना चाहती थी... प्रताप ने मेरे लिए ढूंढ लिया... वज़ह जानना चाहा.. तो प्रताप ने प्रोफेशनल रिलेटेड बताया...
सब - व्हाट तब्बसुम की पापा जी का प्रॉब्लम... प्रताप के प्रोफेशनल रिलेटेड है...
रुप - हाँ... उसमें चौंकने वाली बात क्या है... प्रताप भी... मांजी की तरह... वकील हैं... लीगल एडवाइस और कंसल्टेंसी करते हैं... तो लगा अंकल को कोई लीगल प्रॉब्लम रहा होगा... किसी गुंडे टाइप आदमी से.... और उसे प्रताप लीगली हैंडल करेंगे... वैसे भी... हमें क्या करना है... जब अंकल जी के मन में अब डर ही नहीं रहा... हमारा छटी गैंग अब मुकम्मल हो गया है... यही बहुत है... अब फिर सेमीस्टर एक्जाम ख़तम होते ही... वेकेशन तक दुर रहेंगे...
बनानी - मतलब तु इसबार... होली... हमारे साथ नहीं खेलेगी...
रुप - (मुहँ बना कर) नहीं यार... इस बार की होली... मेरी भुवनेश्वर नहीं मनेगी... गाँव में मनेगी...


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xxxx हस्पताल के स्पेशल केबिन में एक बेड पर मृत्युंजय अधलेटा हुआ था l एक नर्स उसे खिला रही थी l तभी केबिन का दरवाजा खुलता है l नर्स और मृत्युंजय दोनों दरवाजे की तरफ देखते हैं l वीर हाथ में एक फाइल लिए अंदर आता है l वीर नर्स को इशारा करता है तो नर्स बाहर जाने लगती है l

मृत्युंजय - (नर्स से) आप रुकिए...
वीर - मुझे तुमसे बात करनी है... (नर्स से) इनके साथ कोई रिश्ता हो... तो रुकिए...

नर्स एस्क्यूज लेकर बाहर चली जाती है l उसके जाने के बाद वीर मृत्युंजय की ओर देखता है तो मृत्युंजय अपना चेहरा घुमा लेता है l वीर उसके सामने बैठ जाता है l

वीर - मैं जानता हूँ... तुम मुझसे नाराज हो... होना भी चाहिए... क्यूँकी... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूँ....
मृत्युंजय - (चुप रहता है)
वीर - मट्टू... तुम अभी मेरे साथ जिस तरह से पेश आ रहे हो... इसमें नाराजगी कम... नफरत ज्यादा दिख रहा है...
मृत्युंजय - (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) मैंने आपसे वादा नहीं माँगा था... आपने ही मुझसे वादा किया था... पुष्पा और विनय को ढूँढ निकालेंगे... उनकी शादी करा देंगे... जो दुख दर्द से भरा बदनामी हो रही थी... उस दाग को मिटा देंगे.... मैंने तो आपसे कहा भी नहीं था... मैं अपने दम पर... अपनी बहन को ढूँढ रहा था... पर...
वीर - ह्म्म्म्म... (पीड़ा भरी आवाज में) सच कहा तुमने... तुम पर जब जब कोई मुसीबत आई... तुमने अपने हिसाब से काम लिया... कभी भी मुझसे मदत नहीं माँगा...
मृत्युंजय - इसे विडंबना कहूँ या किस्मत... आप जब भी मेरे जीवन में आए... माफ कीजिएगा... मेरा परिवार और किस्मत तितर-बितर हो गया...
वीर - (उठ जाता है और मृत्युंजय की तरफ पीठ करके खड़ा हो जाता है) ठीक कहा तुमने... मैं भी हम दोनों के बारे में हो सोच रहा था... पता नहीं... मैं तुम्हारे किस्मत में आया... या तुम मेरी किस्मत में... पर सच्चाई यही है कि... तुम जब जब मेरे सामने आए... या मुझसे टकराए... मेरे जीवन में... कुछ अलग या यूँ कहूँ... बहुत अच्छा हुआ है... पर शायद मैं यह दावा... तुम्हारे लिए नहीं कर सकता... मेरी जिंदगी में जो हसीन बदलाव आए... शायद तुमसे मिलने के बाद ही आए... जो मेरे वज़ूद को पुरी तरह से बदल कर रख दिया...
मृत्युंजय - और शायद मेरी किस्मत को... अगर आप मेरी जिंदगी में ना आते... मैं अपनी बहन को ढूंढ कर वापस ला चुका होता... जिसे दुल्हन की तरह विदा करना चाहता था... अपने टूटे पैर के वज़ह से... उसकी अर्थी को कंधा दे ना पाया... इससे संतोष कर लिया... उसके चिता में आग दे पाया... (जबड़े सख्त हो जाते हैं) कितनी बेरहमी से मारा गया है... बेचारी ने क्या बिगाड़ा था किसीका... सीधे माथे पर... बीचों-बीच गोली मारकर हत्या कर दी गई...
वीर - हो सकता है... महानायक परिवार से दुश्मनी के चलते...
मृत्युंजय - मुझे बस इतना मालुम था... महानायक परिवार से दुश्मनी... आपकी थी...
वीर - (स्तब्ध हो जाता है) और इस लिए तुमने नतीजे पर पहुँच गए... की हत्या में मैं शामिल था...
मृत्युंजय - (चुप रहता है)
वीर - मेरे साथ... अनु और दादी भी थीं...
मृत्युंजय - इसलिए तो... मैं निश्चिंत नहीं हो पा रहा हूँ... मुझे... मुझे आप की जुबान... आपकी रुतबा पर भरोसा था... पर...
वीर - (मृत्युंजय की ओर मुड़ कर देखता है) ठीक कहा तुमने... मुझे भी अपनी जुबान और खानदानी रुतबा पर... भरोसा नहीं घमंड था... मैं अपने इस पहचान के दम पर... आत्म अभिमान से चूर था... पर... सब कुछ चकनाचूर हो गया... वह हादसा मेरी वज़ूद की धज्जिया उड़ा कर रख दिया...
मृत्युंजय - बस एक बात के लिए धन्यवाद है आपका... मेरी बहन की चिता में आग देने के लिए मेरी मदत करी...
वीर - (चुप रहता है)
मृत्युंजय - पर राजकुमार जी... मुझे माफ कर दीजियेगा... मैं... मैं अब और ESS में अपनी सेवा नहीं दे पाऊँगा...
वीर - (चुप रहता है और मृत्युंजय की बात पर सहमति से अपना सिर हिलाता है)
मृत्युंजय - क्या आप अपनी इसी ग्लानि को हल्का करने आए थे....
वीर - हाँ... पर और भी बहुत कुछ है... जो मैं यहाँ तुमसे कहने आया हूँ...
मृत्युंजय - (वीर को सवालिया नजर से देखता है)
वीर - देखो... मैं जानता था... तुम ऐसा ही कुछ करोगे... इसलिये... मैंने जाजपुर स्पंज फैक्ट्री में... एक अच्छी नौकरी की बंदोबस्त कर दिया है... (कह कर एक लिफ़ाफ़ा मृत्युंजय के बेड के पास वाले टेबल पर रख देता है) तुम जब चाहो जॉइन कर सकते हो... ESS से भी अच्छी पोस्ट है और सैलरी भी...
मृत्युंजय - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है और अपना मुहँ फ़ेर लेता है)
वीर - ESS के एडमिस्ट्रेशन ने हॉस्पिटल मैनेजमेंट से बात कर ली है.... तुम्हारे ट्रीटमेंट के सारे खर्च ESS बियर करेगी...
मृत्युंजय - (इसबार भी कोई जवाब नहीं देता)
वीर - देखो मट्टू... तुम चाहे मानों या ना मानों... पुष्पा की मौत मेरे उपर कर्ज है... एक बात बताओ... अगर उसके कातिल को मैं तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर दूँ... तो तुम क्या करोगे...
मृत्युंजय - (जबड़े और लहजा सख्त हो जाते हैं) मैं.. उसे अपने हाथों से... मौत की घाट उतार दूँगा....
वीर - जानते हो जीवन में पहली बार अनु ने मुझसे यही माँगा है... और यकीन मानों... मैं उसे दूँगा भी...
मृत्युंजय - (हैरानी से अपनी भवें सिकुड़ कर वीर की ओर देखता है)
वीर - अब मेरा एक लक्ष है... पुष्पा के कातिल को ढूंढना... (लहजा सख्त हो जाता है) जैसे ही वह मेरे सामने आयेगा... ना कानून ना अदालत... (अपने दोनों हाथों को देखते हुए, आँखों में खुन उतर आता है ) अपनी ईन दोनों हाथों से... ऐसी मौत दूँगा... के किसीने सोचा भी ना होगा...
मृत्युंजय - यह आप क्या कह रहे हैं... अनु ने ऐसा कहा है आपसे...
वीर - हाँ... मेरी अनु ने ऐसा कहा है... ख्वाहिश किया है... एक पल के लिए... मैं भी हैरान हो गया था... पर मुझे किसीने समझाया... के अनु ने ऐसा क्यूँ कहा... (मृत्युंजय की ओर देख कर) तुम अपनी नौकरी में लग जाओ... मैं आज तुमसे एक वादा करने आया हूँ... आज के बाद तुमसे मिलना नहीं होगा... पर जिस दिन मेरा और तुम्हारा दोबारा आमना सामना होगा... उस दिन मेरे पास पुष्पा के कातिल की जानकारी जरूर होगी... पुष्पा के क़ातिल को मैं ढूँढ के निकालूँगा... और उसे जैसी ख्वाहिश तुमने की है... बिल्कुल वैसी ही मौत उसे दूँगा... मट्टू... यह तुमसे वीर सिंह क्षेत्रपाल का वादा है...


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ओह ओ विश्व... आओ... बैठो... बोलो कैसे आना हुआ... (जोडार ने विश्व से कहा)
विश्व - (बैठते हुए) मैं कल जा रहा हूँ... फिर शायद... हफ्ते दस दिन बाद आऊँ... इसलिए एक औपचारिक मुलाकात के लिए आया था...
जोडार - ओह... रब्बीश... यह ऑफिस तुम्हारा भी है... बोलो सब ठीक हो गया...
विश्व - हाँ उसके लिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... अपनी मशीनरी से तब्बसुम को ढूंढने के लिए...
जोडार - आह... यह तो बहुत ही छोटी बात है... तुम मेरे लीगल एडवाइजर हो यार... इतना तो कर ही सकते हैं हम तुम्हारे लिए...
विश्व - फिर भी... सीसीटीवी कैमरा के फुटेज कहाँ पर एक्सेस हो रही है... उसकी लोकेशन ढूंढना...
जोडार - ओह... कम ऑन... तुम इन सबके बारे में जानते हो... जो ऑनलाइन हो जाता है... वह एक्सेसेबल और हैकेबल होता है... हमने बस वही किया...
विश्व - और एक बार थैंक्यू... मेरे घर के बाहर... सीसीटीवी और सिक्युरिटी अरेंजमेंट करवाने के लिए...
जोडार - अरे भाई... तुम तो थैंक्यू पर थैंक्यू दिए जा रहे हो... बड़ा एंबारसमेंट फिल हो रहा है... कोई शिकायत हो तो करो...
विश्व - ठीक है वह भी कर लेते हैं... जोडार साहब... क्या हमारी पहली मुलाकात में कोई कसर रह गया था...
जोडार - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) मतलब...
विश्व - मुझे जब आपने लीगल एडवायजर की जॉब ऑफर की... तो मैंने स्वीकार भी किया...
जोडार - हाँ... तुमने अपना टैलेंट भी दिखाया था...
विश्व - फिर भी लगता है... मैं आपको इम्प्रेस करने में ना कामयाब रहा...
जोडार - ऐसा क्यूँ कह रहे हो...
विश्व - जानते हैं... कहावत है... डॉक्टर और वकील से कुछ भी नहीं छुपाया जाता...
जोडार - (चेहरा और सीरियस हो जाता है) तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... की मैंने तुमसे कुछ छुपाया है...
विश्व - अगर छुपाया नहीं था... तो क्या... अभी भी मेरा इम्तिहान ले रहे हैं...
जोडार - देखो विश्व... बात को घुमाओ मत... क्या शिकायत है वह कहो...
विश्व - आप उस दिन अपना प्रोजेक्ट दिखाते दिखाते... कुछ कहना चाहते थे... पर चुप हो गए... मुझे भी एक फोन आया... मेरे दोस्त का.. पर इतना तो मैं समझ गया... हो ना हो... प्लॉट और प्रोजेक्ट को लेकर कोई समस्या है....
जोडार - ओ... ह्म्म्म्म... लगता है... तुम्हारे हाथ कुछ तगड़ी इन्फॉर्मेशन लगा है...
विश्व - हाँ...

जोडार चुप हो जाता है, विश्व बड़ी शांत दृष्टि से जोडार को देखे जा रहा था l जोडार अपनी सीट से उठ खड़ा होता है और खिड़की के पास जाकर खड़ा होता है l एक गहरी साँस छोड़ कर

जोडार - इस प्रोजेक्ट की अप्रूवल लेते वक़्त... छोटी मोटी परेशानियाँ आईं... पर यह सब पार्ट ऑफ बिजनेस... पर एक महीने के अंदर... कुछ हलचल दिखाई दी... मैंने अपने सोर्स से इनपुट लिया... तो एक नाम सामने आया... निर्मल सामल... पता किया... तो वह पहले कंस्ट्रक्शन लाइन में नहीं था... दुसरी बात... जिस प्लॉट पर वह अपनी किस्मत आजमा रहा है... वह कंट्रोवर्सीयल है.... उस पर कुछ लिटिगेशन है... रजिस्ट्रेशन करवाना मुश्किल है... पर बाद में खबर मिली के... इस मामले में... मेयर के ऑफिस की इंवॉल्वमेंट है... मैं सबसे पहले कंफर्म होना चाहता था... इसलिये बात को टाल गया था उस दिन...
विश्व - ह्म्म्म्म... पर बात आपको मुझसे कर लेनी चाहिए थी... क्यूँकी मेयर ऑफिस की इनवॉल्वमेंट यूँही नहीं हुआ है...
जोडार - (विश्व की तरफ हैरानी भरे नजर से देखते हुए) इसका मतलब तुम कहना चाहते हो...
विश्व - हाँ जोडार साहब... हाँ... कभी कभी हम अपनी नजर के दायरे में ही दुनिया को देखते हैं... जब कि नजरों से परे और नजरों के पीछे भी दुनिया बसती है... पलती है... जहां बहुत कुछ होता रहता है...
जोडार - (अपनी भवें सिकुड़ कर विश्व की ओर देखता है, विश्व अपनी सीट छोड़ खड़ा होता है)
विश्व - आप पर जो बेमौसमी मुसीबत आई है... उसकी वज़ह मैं हूँ...
जोडार - व्हाट....
विश्व - हाँ जोडार साहब हाँ... अब मुझे एक आदमी की व्यक्तित्व का सही पहचान हुआ है... एक वह जो सामने दिखता है... एक बेखौफ.. बेरहम... बेअदब... भैरव सिंह... पर असल में.. एक डरपोक... और सैडीस्ट... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) वह बाजी जब भी खेलता है... पत्ते जितने हाथ में रखता है... उतने ही.. अपनी आस्तीन में रखता है... वह सिर्फ बाजी जितने के लिए खेलता है....
जोडार - राजा साहब....
विश्व - हाँ...
जोडार - क्या... इसी एक महीने में... उन्हें कैसे... आई मिन...
विश्व - बहुत सोचने के बाद... कुछ हादसों से खुद को जोड़ कर देखने के बाद मुझे यह मालुम हुआ है.... के वह मेरी.. काबिलियत को परखना चाहता है... मापना चाहता है....
जोडार - तुम फिर से बात घुमा रहे हो...
विश्व - गाँव में... भैरव सिंह को मालूम पड़ता है... के मैं जैल से छूट चुका हूँ... और मेरी खोज खबर लेने के लिए... उसके दो कुत्ते कटक और भुवनेश्वर छानने लगे... तब भैरव सिंह का लॉ मिनिस्टर के बेटी की शादी रिसेप्शन पार्टी के दौरान... मेरे बारे में कुछ कुछ मालुम हुआ... उसे यह भी मालुम हुआ... के मैंने लॉ किया हुआ है... तब उसके कान खड़े हो गए... सिर्फ उन दोनों के दिए इंफॉर्मेशन पर उसे भरोसा नहीं हुआ.... तब उसने अपने कनेक्शन से.. अपने तरीके से इंफॉर्मेशन निकाला... डैड जैल सुपरिटेंडेंट थे... माँ का आना... मुझसे मिलना... कभी भी जैल में ऑफिसीयल नहीं था... बस आपका मुझसे मिलना... जैल रिकार्ड में रिकार्डुड था...
जोडार - ओ... मतलब राजा साहब... बहुत शातिर भी है और सतर्क भी....
विश्व - हाँ... उस दौरान आपका थायसन टावर का लिटिगेशन सॉल्व हुआ था...
जोडार - पर केस तो... मिसेज सेनापति जी के नाम पर थी...
विश्व - उसी पर आ रहा हूँ.... लॉ मिनिस्टर की रिसेप्शन पार्टी में... मेरा और भैरव सिंह का आमना सामना हुआ... प्रतिभा सेनापति जी के बेटे की तौर पर... उसे यह मालुम था... की सेनापति दंपति का बेटा इस दुनिया में नहीं है... उसने कड़ियां जोड़ने लगा... और बिल्कुल सही नतीजे पर पहुँच गया....
जोडार - ह्म्म्म्म... बहुत ही श्रुट आदमी है...
विश्व - है तो...
जोडार - क्या अब भी... उसकी नजर तुम पर है....
विश्व - नहीं... वह अब थायसन टावर का जो प्रॉब्लम सॉल्व हुआ है... या वह एक तुक्का है... यही जानना चाहता है... इसलिए आपके लिए प्रॉब्लम खड़ा कर... मुझे आजमा रहा है...
जोडार - पर एक लिटिगेशन वाली प्लॉट पर क्यूँ जुआ खेल रहा है...
विश्व - कौनसा उसका पैसा लग रहा है....
जोडार - एक मिनट एक मिनट... अंदर इतना बड़ा कांड हो रहा है... इतना सब कुछ तुम्हें कैसे मालुम हुआ..... और कब मालुम हुआ...
विश्व - जो लड़की गायब हुई थी... हम ने जिस लड़की को ढूँढ निकाला... उसीके वालिद से...
जोडार - व्हाट...
विश्व - हाँ... जोडार साहब... इत्तेफ़ाक हुआ भी बड़ी काम की... तब्बसुम नाज़ काजमी के पिता... आबिद ऊल रहमान काजमी... BDA (भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी) में लैंड सर्वे डिपार्टमेंट में हेड हैं...
जोडार - ओ... अब कुछ कुछ समझा... पर वह छुपा क्यूँ था...
विश्व - फॉलस रिपोर्ट दे नहीं सकते थे... ऊपर से राजा भैरव सिंह की डायरेक्ट इनवॉल्वमेंट थी... इसलिए डर के मारे कुछ दिन की छुट्टी ले कर खुद को गायब करवा दिया था...
जोडार - और अब...
विश्व - अब.. (हँस कर) मैंने उन्हें एक ड्राफ़्ट बना कर दिया है... उसे अपनी सर्वे रिपोर्ट में एटेच कर पेश करने को कहा है...
जोडार - इसका मतलब...
विश्व - उन पर कोई आंच नहीं आएगा... और निर्मल सामल को प्लॉट मिल जाएगा...
जोडार - क्या... (ऐसे उछलता है जैसे कोई सांप काटा हो) तुम मेरा लीगल प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए हो या... भैरव सिंह के...
विश्व - आप ने मुझे बात पुरी बताया नहीं... इस लिए... एक टेंपोररी सजा तो बनता ही है...
जोडार - अरे यार जानते हो... उनके प्रोजेक्ट के पीछे मंशा क्या है...
विश्व - जानता हूँ... अभी तो कहा... एक टेंपोररी झटका है... आपके लिए...
जोडार - (विश्व को हैरान हो कर देख रहा था, विश्व बड़ी शांत दिख रहा था) टेंपोररी झटका भी बड़ी जोर की लगी है.... तो... तो अब... उस प्लॉट का परमानेंट सोल्यूशन क्या...
विश्व - घबराइये मत... उन्होंने अभी अपना दाव चलना है... मैंने ऑलरेडी अपनी चल दी है...
जोडार - अगर वह प्लॉट रजिस्ट्रेशन हो गया... और उनका प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया... तो...
विश्व - मेरा वादा है जोडार साहब... जिस दिन उनकी प्रोजेक्ट नींव खोदी जाएगी... उसी दिन... उनका सारा खेल पलट जाएगा....
जोडार - (मुस्कराते हुए) लगता है... पूरा का पूरा चाल चल कर ही आए हो... उनका सारा खेल पलट जाएगा... ऐसा कुछ हींट तो दो...
विश्व - इस हफ्ते दस दिन में... एक मुशायरा होगा... नज्म ए शाम... जिस में... तब्बसुम नाज़ काजमी... अवार्ड जीतेंगी... तो आप श्योर हो जाना... खेल हो गया है...
जोडार - तो अब... तुम्हें थैंक्यू कहना मेरा बनता है...

जोडार हल्के से हँसते हुए अपनी कुर्सी पर जा बैठता है और विश्व को बैठने के लिए कहता है l विश्व बैठ जाता है l जोडार टेबल पर पड़े एक न्यूज पेपर को उठा कर विश्व को देते हुए l

जोडार - कल... xxxx जंक्शन पर यह जो कांड हुआ... तुमने ही करवाया है ना...


विश्व पेपर देखता है, हेड लाइन छपा हुआ था, "किन्नरों की टोली ने एक अनजान और बतमीज आदमी की जुलूस निकाली" हेड लाइन पढ़ते ही विश्व मुस्करा देता है, तभी जोडार टीवी पर नभ वाणी चैनल लगा देता है जहाँ पर सुप्रिया रथ किन्नरों की मुखिया कस्तुरी की इंटरव्यू ले रही थी

सुप्रिया - जी कस्तुरी जी... आपका इस विषय पर क्या राय है...
कस्तुरी - देखिए बहन जी... हम किन्नर हैं... तो इसमें हमारा क्या दोष... आखिर ईश्वर अपना ही रुप और स्वरुप देकर... हमें इस संसार में... आप ही की तरह भेजा है... ईश्वर ने हम पर विशेष अनुग्रह प्रदान किया है... के हमारी मौजूदगी से... खुशियों को किसीकी नजर नहीं लग सकती... इसी लिए... हर खुशी के अवसर पर हमें शामिल हो कर नाचने गाने के लिए बुलाया जाता है.... हम सबके बलाएँ हर लेते हैं और दुआओं से उस जीवन के क्षण को भर देते हैं... हमारे भगवान अर्द्धनारीश्वर हैं... उन्हीं की अराधना के लिए हम जितने भी किन्नर गण हैं.. सभी मिलकर उत्सव मनाने हेतु... सबका मनोरंजन करते हुए... चंदा इकट्ठा कर रहे थे... जब उस आदमी से हमारी एक साथी ने चंदा माँगा.. तो उस ने ना सिर्फ हमारी उस बहन को थप्पड़ मार दिया... ब्लकि कपड़े फाड़ कर जलील भी कर दिया... हम सबने उसे पकड़ कर अपने तरीके से... उसकी जुलूस निकाली और माफी मंगवा कर सजा दी....


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महानायक विला
केके का घर, एक बड़े से बैठक रुम में केके चहल रहा है, चेट्टी और रॉय दोनों बैठे हुए हैं l केके का चेहरा बहुत ही सख्त दिख रहा था l चहलते हुए अपनी मुट्ठी को हल्के हल्के हाथ पर मार रहा था l

चेट्टी - बैठ भी जाओ... कब तक ऐसे टहलते रहोगे...
केके - वह बदजात वीर... बाहर घुम रहा है... और तुम मुझे बैठने के लिए कह रहे हो...
रॉय - यह क्या केके साहब... नेताजी से तुम कह रहे हो...
केके - तु चुप भोषड़ी के... साले हरामी.... सिक्युरिटी ग्रुप चलाता है... पर तुझे मालुम नहीं पड़ा... मेरा बेटा... आर्कु में था...
चेट्टी - बस... केके.. जो दर्द तुम्हें अभी महसूस हो रहा है... उस दौर से अभी तक गुजर रहा हूँ... रही तुम्हारे बेटे की बात... तो सुनो... बेटा तुम्हारा छुपा हुआ था... ढूँढना आसान नहीं था...
केके - तो उस हराम खोर वीर को कैसे मालुम हुआ... जो वहाँ पहुँच गया था...
रॉय - इसलिए... के विनय जिस लड़की के साथ छुपा हुआ था... उसका भाई... ESS में सिक्युरिटी गार्ड है... हो सकता है... उसकी बहन ने उसे कॉन्टैक्ट किया हो... वर्ना... हमने रंगा को भेजा था... इतने दिन खाक छानने के बाद भी... उसे पता नहीं लगा था...

तभी बाहर से शोर शराबा सुनाई देता है l इनके बीच हो रही बात चित में बाधा पड़ती है l केके उस कमरे में खड़े एक आदमी से पूछता है l तो वह आदमी कमरे से बाहर चला जाता है l कुछ ही सेकेंड के बाद वह आदमी उड़ते हुए इन तीनों के बीच जो टी पोए था उस पर पीठ के बल गिरता है l तीनों दरवाजे की ओर देखते हैं l दरवाजे से वीर अपनी जेब में हाथ रखे अंदर आ रहा था l उसे सामने देखते ही केके का पारा बढ़ जाता है l वह गालियाँ बकते हुए अपने आदमियों को बुलाने लगता है l तब तक वीर इन तीनों के सामने खड़ा हो जाता है l तब तक घर में जितने भी गार्ड्स थे सभी वहाँ पर पहुँच जाते हैं l

केके - ख़तम कर दो इसे...

सभी गार्ड्स अपने अपने हाथ में रीवॉल्वर निकाल कर वीर पर तान देते हैं l वीर अपनी जेब से हाथ निकालता है l उसके दोनों हाथ में ग्रेनेड थे जिनके ट्रिगर पिन निकले हुए थे l उस कमरे में मौजूद सभी लोगों का मुहँ और आँख खुला रह जाता है l हैरानी और डर के मारे सब के पैर कांपने लगते हैं

वीर - (सभी गार्ड्स से) हम चारों को छोड़ कर सब के सब अभी के अभी बाहर निकल जाओ.... ( सारे गार्ड्स धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं, कमरे में अब सिर्फ चार लोग ही रह जाते हैं, वीर केके से) क्यूँ फट गई... (केके अपनी दांत पिसते हुए वीर को घूरने लगता है) जब तुझे... मैं प्लेट में मिलूँ... कच्चा चबा जाना... अब तुम सब से कुछ पूछने आया हूँ और कुछ बताने आया हूँ... बैठो सब...

वीर के इतने कहने के बाद तीनों बैठ जाते हैं l वीर भी हाथ में ग्रेनेड लिए हुए उन सबके सामने बैठ जाता है l डर और हैरानी चेट्टी और रॉय के चेहरे पर दिख रहा था पर केके अपने डर पर अब तक काबु पा चुका था l

वीर - (केके से) हाँ तो केके... पहले सवाल तुम्हारी तरफ से...
केके - तुम यहाँ क्यूँ आए हो...
वीर - बहुत ही बेकार सवाल... फिर भी जवाब तो देना बनता है... हिसाब करने... हिसाब लेने... मैं यह जानने आया हूँ... जिस बेटे के घर से चले जाने से... तुमने बिस्तर पकड़ लिए थे... जैसे ही मरने की खबर मिला... स्प्रिंग की तरह उछल कर... बेड से उठ कर... बिना देरी किए... पुलिस को मेरे खिलाफ शिकायत कर दी... कैसे... कैसे केके कैसे...
केके - (अपनी दांत पिसते हुए) मेरा बेटा जब मरा... तब तुम वायजाग में थे...
वीर - और तुम इस नतीजे पर पहुँच गए... के मैंने तुम्हारे बेटे का कत्ल कर दिया...
केके - हाँ...
वीर - कत्ल की वज़ह होनी चाहिए...
केके - (पहले चुप रहता है, फिर) वज़ह... तुमने उसका पीछा किया था... पुरी से... xxx होटल तक...
वीर - कत्ल कर देने तक... वज़ह पुछा है मैंने...
केके - वह तुम जानों...
वीर - क्यूँ चेट्टी... तुझे लगता है... मुझे अगर विनय मिल जाता... तो मैं उसका कत्ल कर देता...
ओंकार - (चुप रहता है)
वीर - हाँ... तुम सबको मारने की वज़ह तो है... पर जान से मारने तक कि नहीं... केके... चेट्टी तुम लोग बहुत दिनों तक... क्षेत्रपालों से जुड़े रहे... काम भी किया है... तुम लोगों को मालुम होना चाहिए कि क्षेत्रपाल जिसे जान से मारना चाहते हैं... उनके नाम ओ निसान दुनिया से मिटा देते हैं... उनकी हस्ती... उनकी वज़ूद तक... भारत के जन गणना के लिस्ट में भी नहीं मिलता... क्यूँ केके जानते हो ना... (केके चुप रहता है) तुम्हारे बनाए गए एन एच में नजाने कितने लाशें गड़ी हुई हैं... जानते हो ना... फिर भी... तुमने मुझ पर इल्जाम लगा दिया...
केके - मुझे बस इतना मालुम था... तुम विनय को ढूँढ रहे थे... तुम ही उसके पीछे लगे हुए थे...
वीर - हाँ... तुम्हारी बद किस्मत... एन एच के हर टोल नाके पर और वायजाग के रास्ते पर जो भी सीसीटीवी थे... उनमें मेरा चेहरा दिख गया था... इसलिए मैं बच गया...
चेट्टी - तो राजकुमार... तुम आए किसलिए हो...
वीर - यही बताने... के मुझे जिसे मारना होता है... मैं उसके घर में घुस कर मारता हूँ...
चेट्टी - तो हमें यहाँ मारने आए हो...
वीर - नहीं... वायजाग में जो हुआ... मैं थोड़ा कंफ्यूज हूँ... विनय किसकी दुश्मनी के चलते मारा गया... मेरी या तुम लोगों की...
चेट्टी - हमारी दुश्मनी तो तुमसे है...
वीर - यही तो मैं समझना चाहता हूँ... विनय के मरने से... मेरा कोई फायदा या नुकसान नहीं होता... तो उसके मरने से नुकसान किसको है... और फायदा किसे है...
केके - क्षेत्रपाल के दुश्मन का नुकसान हुआ है...
वीर - हाँ... पर... क्षेत्रपाल की दी जाने वाली मौत... बहुत ही खौफनाक होता है... और जिसने विनय और पुष्पा को मारा है... पॉइंट बैंक रेंज में... सिर पर मारा है... ऐसी मौत... क्षेत्रपाल नहीं देते.... (थोड़ी देर के लिए कमरे में चुप्पी छा जाती है, वीर अब चेट्टी से पूछता है) चेट्टी साहब... मैंने वायजाग में एक आदमी को देखा है... जहां तक मुझे खबर है... उसके सिर पर... आपका हाथ है...
चेट्टी - क्या बकते हो... किसके बारे में बात कर रहे हो...
वीर - रंगा... मैं उसी रंगा के बारे में कह रहा हूँ... जिसे आप ही लोगों ने.. मेरी भाभी पर छोड़ा था... क्यूँ रॉय... सही कह रहा हूँ ना... (केके और चेट्टी के साथ साथ रॉय को भी सांप सूँघ जाता है, किसी के मुहँ से कोई बोल नहीं फूटता है, वीर अपनी जगह से उठता है) केके... विनय को मैं कभी भी... मारना नहीं चाहता था.... पर हाँ... मैं उस तक पहुँचना चाहता था... क्यूंकि वह ऐसा कुछ जानता था... जिसे जानना मेरे लिए बहुत जरूरी था... अब वह बात रंगा जानता है या नहीं मैं नहीं जानता.... पर मैं उस तक पहुँचुंगा जरूर... जिन लोगों ने मुझे चक्कर में फंसाया है... उन सब को अब ढूंढ निकालूँगा और एक एक को... क्षेत्रपाल वाली सजा दूँगा...

यह कहते हुए वीर दरवाज़े तक आता है और दोनों ग्रेनेड इन तीनों के पास फेंक कर चल देता है लु यह तीनों अपनी अपनी कुर्सी को खिंच कर दीवार से सट जाते हैं l पर ग्रेनेड फटता नहीं है l तभी कुछ गार्ड्स अंदर आकर देखते हैं वह दो ग्रेनेड नकली थे l


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एक बेड पर रोणा नींद में छटपटा रहा था l शायद कोई बुरा सपना देख रहा था l उसका सारा शरीर पसीना पसीना हो गया था l छटपटाते छटपटाते अचानक रोणा बेड पर उठ बैठ जाता है l पास पड़े टावल से चेहरे पर पसीना पोंछता है l फिर पास के टेबल के पास जाकर जग से पानी पीता है l उसके बाद वह बाथरुम में जाता है l चेहरे पर थोड़ा पानी मारने लगता है l थोड़ी देर बाद अपना चेहरा टावल से पोछते हुए बाथरूम से बाहर निकालता है l तब उसे उसके बेड पर उसका मोबाइल की स्क्रीन में उजाला दिखता है l वह मोबाइल उठा कर देखता है व्हाट्साप पर एक अन्नोन नंबर से एक वीडियो शेयर हुआ है l वह वीडियो चलाता है

सुप्रिया - वह तो ठीक है... कस्तुरी जी... पर वह कौन था... जिसे आपने अपने तरीके से सजा भी दी... और जुलूस भी निकाला...
कस्तुरी - वह तो हम नहीं जानते बहन... पर था वह जो भी... ईश्वर की सृष्टि का अपमान था... इसलिये हमने वहाँ पर मौजूद सारे किन्नर मिलकर सजा दी... हमारे हिसाब से आपके पास कुछ नहीं तो... सीसीटीवी की फुटेज होना चाहिए...
सुप्रिया - अफसोस की बात है.. कस्तुरी जी... सख्त अफसोस की बात है... जो भी फुटेज हम मीडिया वालों को मिला है... उससे कुछ भी मालुम करना सम्भव नहीं हो पा रहा... क्या आपके किसी साथी ने कोई वीडियो शूट नहीं किया है...
कस्तुरी - नहीं बहन जी... हम तो एक विषय में व्यस्त थे... किसी तरह से उस शख्स से माफी मंगवाये और उसे सजा देकर बा इज़्ज़त छोड़ भी दिए... हाँ अगर उस शख्स को हमसे कोई शिकायत हो... तो हमारे विरुद्ध पुलिस में कंप्लेंट कर सकता है... अगर कानूनन हमसे कोई अपराध हुआ है... तो हम सजा भोगने के लिए तैयार हैं...
कस्तुरी - तो दर्शकों यह था सारा माजरा... कटक भुवनेश्वर के किन्नर समाज ने... किसी दोषी को पकड़ा और उसकी जुलूस निकाल कर सजा भी दी... यह वाक्या सड़कों पर मौजूद सभी ने देखा... पर किसीने उस शख्स को ना देखा ना पहचाना... तो रहीए ना बे खबर... फिर मिलेंगे ताजा खबर पर....

फिर स्क्रीन पर एक पाँच सेकेंड का टाइमर चलता है l पाँच, चार, तीन, दो, एक अब स्क्रीन पर कस्तुरी दिखती है l

कस्तुरी - कैसा है मेरा राजा... ले जो तेरे साथ हुआ... वह देख ले... ऊँम्म्म आँ... (चुम्मा फेंकती है)

अचानक वीडियो में दिखता है रोणा अपनी बुलेट पर बैठा सामने वाली कार पर नजर डाल रखा है l उसका बुलेट स्टार्ट में था, तभी कुछ किन्नर आते हैं और उसके बुलेट को घेर कर ताल मेल बना कर "बड़ी देर भी नंद लाला तेरी राह तके बृज वाला" गीत पर नाचने लगते हैं l कुछ सेकेंड बाद एक किन्नर रोणा के बुलेट की चाबी घुमा कर स्टार्ट बंद कर देती है l

आए हाय... देख क्या रहा है चिकने... हमारे भगवान की पूजा है... कितना खूब सूरत डांस किया हमने... तेरा मनोरंजन हुआ... चल पाँच सौ रुपया निकाल...
रोणा - ऐ चल हट...

कह कर चाबी घुमा कर सेल्फ स्टार्ट करता है, पर तभी वही किन्नर बुलेट की चाबी निकाल कर अपने ब्लाउज में रख लेती है l किन्नर की इस हरकत पर रोणा गुस्सा हो जाता है l

रोणा - ऐ... चाबी निकाल...
किन्नर - देख राजा... हम किन्नर हैं... बलाएँ ले लेती हैं... और दुआओं से बदनियत और बदनजर से बचाते हैं... तु पाँच सौ निकाल और हमारी दुआएँ लेता जा...
रोणा - (बुलेट की स्टैंड लगा कर) कमिनी कुत्तीआ... निकाल मेरी गाड़ी की चाबी...
दुसरी किन्नर - आए हाय... यह तो बदजुबान निकला... अब तो हम हजार लेंगे.. फिर चाबी देंगे...

अभी सिग्नल हरा हो जाता है और सभी गाडियाँ चलने लगती हैं l यह सब देख कर रोणा का पारा और ज्यादा चढ़ जाता है l वह उस किन्नर के ब्लाउज हाथ डाल देता है तो किन्नर उसका हाथ पकड़ लेती है तो रोणा उसके हाथ को पकड़ कर झटके से ब्लाउज फाड़ देता है पर उसे चाबी नहीं मिलता l लेकिन तब कुछ किन्नरों ने जोर जोर से एक ताल से ताली बजाने लगते हैं और कुछ किन्नर अपनी जुबान हल्के से निकाल कर मुहँ में उंगली डाल कर हुल हुल की आवाज निकाल कर चिल्लाने लगते हैं l यह देख कर रोणा अब डरने लगता है l धीरे धीरे किन्नरों का जमावड़ा बढ़ने लगता है l ताली के साथ साथ हुल हुल की आवाज बढ़ने लगता है l रोणा अब उन किन्नरों के घेरे में फंसा हुआ था, वह बाहर जाने की कोशिश करने लगा पर किन्नरों के गुस्से से तमतमाते चेहरे को देख उसकी हिम्मत अब जवाब देने लगा l तभी गुस्से से अपनी आँख नचाते हुए कस्तुरी पहुँचती है l अपना हाथ जब उठाती है तो सब एक साथ शांत हो जाते हैं l

कस्तुरी - हम जो भी हैं... जैसे भी हैं... इज़्ज़त तो रखते हैं... तुने ब्लाउज फाड़ने की हिम्मत कैसे किया...
रोणा - (गिड़गिड़ाते हुए) म्म्म्म्म.. म्म्म्म्म.. मुझे माफ़ कर दो... प्लीज जाने दो... मेरा बहुत जरूरी काम है...
कस्तुरी - गुनाह किया है तुने... सजा तो मिलेगी... (उस किन्नर से) क्या सजा देंगे इसे दुलारी...
दुलारी - जैसे को तैसा... इज़्ज़त के बदले इज़्ज़त.... मेरा चिर हरण हुआ है... इसका भी यही होगा... तमाशा मेरा बना है.. इसका जुलूस निकलेगा...
रोणा - (थोड़ा अकड़ दिखाते हुए) ऐ... बहुत हुआ... मैं.. मैं पुलिस वाला हूँ...
कस्तुरी - ओ तो पुलिस वाला है... तो बुला अपने साथियों को...

सभी किन्नर ताली बजाने लगते हैं और कुछ हुल हुल की आवाज निकालने लगते हैं l परिस्थिति को गंभीर होता देख रोणा हाथ जोड़ लेता है l कस्तुरी फिर से अपना हाथ उठाती है तो सारे किन्नर चुप हो जाते हैं l

रोणा - देखो... मुझसे बड़ी गलती हो गई... समाज में... मेरी बहुत इज़्ज़त है... अपमान हुआ तो... मैं किसी को मुहँ दिखाने के लायक नहीं रहूँगा... जितना भी चाहो तुम मुझसे पैसा लेलो... पर मुझे अभी यहाँ से जाने दो प्लीज...
कस्तुरी - अरी दुलारी... क्या कहती है तु...
दुलारी - कस्तुरी दीदी... हम बलाएँ लेती हैं... तो इसकी बेइज्जती क्यूँ करें...
रोणा - (खुश हो कर) शुक्रिया.. शुक्रिया...
दुलारी - चुप रह रे चिकने... बात तो पुरी हो जाने दे... (कस्तुरी से) दीदी इसका चिर हरण होगा... पर हमारे बीच... दुनिया वाले कोई ना देख पाएगा... जुलूस भी निकलेगा... सबको पता भी चलेगा... पर किसका जुलूस है... कोई नहीं जान पायेगा...
रोणा - (अकड़ दिखाते हुए ) ऐ... है... हेई.... यह.. यह क्या कह रही हो...

रोणा भागने की कोशिश करता है,पर वह हैरान हो जाता है, वह पाँच सौ के करीब किन्नरों से घिरा हुआ था l यह देख कर रोणा बुरी तरह से डर जाता है l अब रोनी सी सुरत बना कर हाथ जोड़ कर घुटनों पर बैठ जाता है l

दुलारी - देखा दीदी... भाग रहा था...
कस्तुरी - ऐ चिकने... अभी हम यहाँ पाँच सौ किन्नर हैं... जितना देर करेगा... हमारी गिनती बढ़ती जाएगी... इसलिए अब अपना चिर हरण तु खुद कर... और सम्भाल कर कपड़े अपने हाथ में ले... क्यूंकि अगर हम फाड़ने पर आ गए... तेरे बदन पर चमड़ी भी उतर जाएगी...

किन्नर अब एक ताल में ताली बजाने लगते हैं l रोणा की आँखे बहने लगती हैं पर इस वक़्त उस पर रहम खाने वाला या करने वाला कोई नहीं था l मजबूरन बड़ी मुश्किल से अपने कपड़े उतारता है l अब बदन पर सिर्फ लंगोट था l वह नहीं उतार पाता है l एक किन्नर वह कपड़े उसके हाथ से ले लेती है l और एक किन्नर उसीके बुलेट के चेन से ग्रीस निकाल कर अपनी सैंडल से रोणा के मुहँ पर मल देती है l

कस्तुरी - चल अब हमारे घेरे में... सुरक्षित आगे की जंक्शन तक चल.. वहीँ पर एक सुलभ शौचालय है.. उसके भीतर तक हम सबकी नजरों से बचा कर पहुँचा देंगे... तु अंदर जाकर अपने कपड़े पहन कर... गाड़ी लेकर फुट जाना... चल...

रोणा उनके घेरे में चलते हुए अगले जंक्शन तक काले मुहँ और अध नंगा जाता है l वादे के अनुसार उसे लेकर सुलभ शौचालय के अंदर सबके नजरों से छिपा कर पहुँचा देते हैं l वह अंदर अपना हुलिया दुरुस्त कर कपड़े पहन कर जब बाहर आता है l उसे कोई किन्नर नहीं दिखते हैं l

वीडियो ख़तम हो जाता है l रोणा गुस्से में मोबाइल दीवार की ओर फेंक देता है l मोबाइल टुकडों में टुट कर बिखर जाता है l वह फिर वार्डरोब के पास जाता है और होलस्टर में से रीवॉल्वर निकाल कर अपने मुहँ में डालता है, पर ट्रिगर दबा नहीं पाता l चिढ़ कर वह रीवॉल्वर भी बेड पर फेंक देता है l तभी उसके कान में एक आवाज सुनाई देती है l

चु चु चु चु चु... खुद को मारने के लिए भी गुर्दा चाहिए... तुझमें वह भी नहीं है... जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ...

यह सुनते ही वह झट से कमरे के लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे के एक कोने पर पड़े सोफ़े पर विश्व बैठा हुआ था l

रोणा - तुम...
विश्व - हाँ मैं...
रोणा - मतलब... यह सब...
विश्व - ह्म्म्म्म... मैंने ही करवाया...
रोणा - साले हरामी कुत्ते... बड़वे...

चिल्लाते हुए विश्व पर झपट्टा मारते हुए आता है, विश्व भी उतनी ही तेजी से सोफ़े से उठ कर घुमाकर एक स्पिन किक मारता है l रोणा छिटक कर अपने बेड पर पड़ता है l विश्व के किक से संभलने की कोशिश करने लगता है l विश्व एक चेयर को खिंच कर बेड के पास बैठ जाता है l

विश्व - तु अब जवान नहीं रहा... हराम जादे... कोई अंग टुटेगा तो जुड़ने में वक़्त लगेगा...
रोणा - (कराहते हुए) तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया...
विश्व - हा हा हा हा... बचकाना सवाल... तेरे साथ तो मैं बहुत कुछ कर सकता था.... सच कहूँ... जिस दिन तुने श्रीनु को मार दिया था... उसी दिन मैंने सोच लिया था... तुझे जान से मारने के लिए... पर... (चुप हो कर एक गहरी साँस लेता है) पर... किसी ने मुझसे वादा लिया... मैं अपने दुश्मनों को... कानूनन सजा दूँगा... इसलिए तुम हराम खोरों की टोली अब तक जिंदा है... वर्ना... अब तक तुम लोगों को... उपर पहुँचा चुका होता...
रोणा - गलत किया तुने मेरे साथ विश्वा... बहुत गलत किया... शेर चाहे कितना भी ताकतवर क्यूँ ना हो... जहरीले सांपों से दुर ही रहता है...
विश्व - बात तो तुने बहुत जंगली वाली कही... पर वह क्या है कि... सांपों के दाँतों को तोड़ना और फन को कुचलना मुझे अच्छी तरह से आती है... देख ना... मैंने तेरी कैसी गत बना दी है... तु सिर्फ फुंस फुंस कर सकता है... डंस नहीं सकता...
रोणा - मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था... तु साला सजायाफ्ता... और वह लड़की...
विश्व - हाँ सजायाफ्ता हूँ... पर इस शहर में मैं जितना कुछ कर सकता हूँ... तु या तेरा नाजायज बाप भैरव सिंह कुछ नहीं कर सकते.... तुने मेरी दीदी से बदजुबानी की... तुझे हस्पताल का बेड दिखाया... मेरी माँ से बदजुबानी की... तुझे गरम पानी से नहलाया... फिर तु कुत्ते का दुम... मेरी हमराही... मेरी हमदर्द... मेरी हमसाया... मेरी हमराज़... मेरी जान पर बदनीयती की... इसके लिए तुझे जान से मारना बनता था... पर चूँकि तुझे श्रीनु के हत्या के लिए सजा देनी है... इसलिए बस तुझे बेइज्जत कर छोड़ रहा हूँ...
रोणा - याद रखूँगा... इसका ऐसा बदला लूँगा... उस लड़की को...
विश्व - ना... इसके आगे कुछ मत बोल... वर्ना... अपनी जुबान से हाथ धो बैठेगा... उसके बारे में... बस इतना जानकारी रख... वह मेरी दिल की धड़कन है... इतनी जानकारी तेरी जिंदगी की जीवन रेखा है.... इससे आगे जिस दिन जानेगा.... उस दिन तेरा दिल अपने आप धड़कना छोड़ देगी... अब एक सलाह दे रहा हूँ... कल सुबह उठ कर जितनी जल्दी हो सके... राजगड़ वापस चला जा.... और मरते दम तक... कटक या भुवनेश्वर आना भी मत... क्यूंकि जिस दिन तु मुझे मालुम होगा के तु यहाँ आया है... उसी दिन... तेरा चिर हरण वायरल हो जाएगा... मीडिया के भेड़िए... तुझ पर टुट पड़ेंगे...
रोणा - भुल गया है तु... मैं क्या था... हल्के में लिया है तुने मुझे... बहुत भारी कीमत चुकाएगा... तु और तेरे चाहने वाले...
विश्व - फिर बकौती पेलने लग गया... चल बोल क्या कर लेगा तु...
रोणा - (रोणा की आँखे और आँखों की पेशियां थर्राने लगते हैं)
विश्व - चल मैं तुझे खुल्ला चैलेंज देता हूँ... जो तु बोल रहा है... या सोच रहा है... करके दिखा... पर मैं बोल रहा हूँ... तुझसे ना हो पायेगा... जानता है क्यूँ... क्यूंकि जुबान पर और इरादों पर अडिग रहने के लिए मर्द होना जरूरी है... (एक पॉज लेकर रोणा के आँखों में आँखे डाल कर) क्या तु मर्द है... (अपना सिर ना में हिलाते हुए) ना... नहीं है...
रोणा - (गुर्राते हुए) विश्वा...
विश्व - सुन बे... भैरव सिंह के सपोले... तु औरत है नहीं... मर्द अब रहा नहीं... और किन्नरों ने तेरी ऐसी ली है... ना तो तेरी हिजड़ों में भर्ती होगी... ना ही... नामर्दों में तेरी गिनती होगी... वह जो सरकारी कागजों में होता है ना... जेंडर वाले तीन कॉलम... तु अपने लिए सर्कार से चौथा कॉलम की सिफारिश कर... हो सकता है... तुझसे वही उखड़ जाए....

इतना कह कर विश्व कुर्सी से उठता है और बाहर जाने लगता है l विश्व के जाते ही रोणा बेड से उतर कर अपनी सर्विस रीवॉल्वर निकाल कर विश्व पर तान देता है l पर उससे ट्रिगर दबती नहीं है l वह आँखे मूँद लेता है तभी उसके कानों में विश्व की आवाज सुनाई देती है

विश्व - यह भी तुझसे नहीं होगा.... (रोणा अपनी आँखे खोलता है)मुझे मारने के लिए जो जिगर चाहिए... वह तुझ में नहीं है... इसलिए फ़ालतू के कोशिश मत कर... मिलते हैं... राजगड़ में...
 
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parkas

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शुक्रिया मेरे दोस्त
मुझे लगता है हाथ ठीक है पर वजन दार उठाने को डॉक्टर ने मना किया है
वैसे इसी इक्कीस तारीख को प्लास्टर खोला जाएगा
Take care...
 
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