• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
IMG-20211022-084409


*Index *
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
👉एक सौ दसवां अपडेट
------------------------
दरवाजा खोलते ही विश्व हैरान हो गया l एक आदमी कंधे पर टोकरे में राशन के सामान लादे खड़ा था l सिर पर पगड़ी था पर उसी पगड़ी के साफे से मुहँ ढका हुआ था l

आदमी - विश्व मुझे अंदर आने दो...
विश्व - (आवाज़ से पहचान लेता है) उदय चाचा... आप...
उदय - हाँ पहले अंदर तो आने दो...

विश्व रास्ते से हट जाता है l उदय अंदर आकर अपने कंधे से टोकरा नीचे रख देता है l

उदय - (वैदेही से) यह लो बेटी... राशन के कुछ सामान...
वैदेही - आप मुहँ छुपा कर... सामान क्यूँ लाए हैं...
उदय - बेटी... (हाथ जोड़ कर) तुमने आज मेरे ही नहीं... वहाँ पर खड़े सबके मुहँ पर कस के तमाचा मारा है... (एक पॉज लेकर) हाँ तुम हममे से एक हो... पर हम.... तुम्हारे जैसे नहीं है... हम भर पुर कोशिश यही करते रहते हैं... के कोई खतरा हमारे... जीवन या परिवार पर... कभी नहीं आए... इसलिए खतरे को दूर से देखकर... रास्ता बदल लेते हैं... क्या करें बेटी... इस मामले में... हम बहुत स्वार्थी हो गए हैं... हम कुछ लोग हैं... जो दुख तो बांट सकते हैं... पर पीड़ा या ज़ख़्म... नहीं बांट सकते... बेटी... कुछ जरूरत हो... तो विश्वा से कहला देना... पर कोशिश करो... घर से तुम.. कम ही निकला करो...

इतना कह कर उदय वहाँ से बिना पीछे देखे चला जाता है l विश्व उसे पुकारते हुए उदय के पीछे चला जाता है l वैदेही कमरे में उदय के बातों को सोचते हुए रह जाती है l कुछ समय बीत चुका था वैदेही यूँही सोच में गुम थी कि तभी घर में विश्व अपने पीठ पर श्रीनु को लटका कर अंदर आता है और उसके पीछे पीछे उमाकांत आता है l उमाकांत के हाथ में बड़ा सा टिफिन कैरेज था, जो वह वैदेही के तरफ बढ़ाता है, पर वैदेही उन्हें देख कर अपनी जगह पर बैठी हुई देखती रहती है l उमाकांत गौर से वैदेही को देखता है l वैदेही के चेहरे पर असमंजस सा भाव देखता है l

उमाकांत - क्या हुआ बेटी... किस असमंजस में हो
वैदेही - हाँ.. (चौंक कर) हाँ... वह... (टिफिन कैरेज लेते हुए) यह.. यह क्या है...
उमाकांत - हम्म्म... समझ गया... ठीक है जाओ... सबके लिए थाली लगा दो... हम सभी भूखे हैं... खाना खाते हुए बात करते हैं...

थाली लगाते वक़्त वैदेही विश्व और श्रीनु दोनों की बातों को ध्यान से सुनने लगती है l विश्व और श्रीनु किसी और भाषा में बात कर रहे थे l

वैदेही - (उमाकांत से) यह विशु... और श्रीनु... किस भाषा में बात कर रहे हैं...
उमाकांत - (मुस्कराते हुए) तेलुगु में...
वैदेही - क्या... (हैरान हो कर) यह दोनों कब यह भाषा सीखे...
उमाकांत - तुम भुल रही हो वैदेही... श्रीनु पारलाखेमुंडी में रह रहा था... सीमांत ओड़िशा और आंध्रा में... इसलिए वह तेलुगु अच्छी तरह से जानता था... मैं अपनी बेटी और दामाद के देहांत के बाद... जब श्रीनु को यहाँ लेकर आया... तब वह सिर्फ पाँच साल का था... तब वह हमेशा गुमसुम रहता था... विशु से उसकी गहरी दोस्ती हो गई... बदले में... वह विशु को तेलुगु सीखा दिया...
वैदेही - ओ... (फिर उन दोनों से) चलो चलो... तुम दोनों भी बैठो यहाँ... खाना लग गया है...

सब के खाना खतम हो जाता है l सब हाथ मुहँ साफ कर लेते हैं l विश्व और श्रीनु दोनों अंदर दुसरे कमरे में खेलने के लिए चले जाते हैं l वैदेही, जब बर्तन मांजने के लिए जाने को होती है तब उमाकांत उसे रोक देता है l

उमाकांत - तुम रुको वैदेही... (वैदेही के रुकने के बाद) विशु ने मुझे सब कुछ बताया... आज सुबह जो हुआ... और अभी कुछ देर पहले... उदय ने आकर जो किया या कहा.... (वैदेही चुप रहती है) देखो वैदेही... आज तुमने ना सिर्फ खुद को जिंदा किया... बल्कि विशु को भी... और कुछ गांव वालों की अंदर के जज्बातों को भी... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) तुम जल्दबाजी से कोई काम ना लो... सब होगा... धीरे धीरे... यहाँ हर कोई... अपने गुस्से को दबा कर... या यूँ कहो... उसे मार कर जी रहा है... क्यूंकि यह उन्हें... पीढ़ी दर पीढ़ी... विरासत में हासिल हुआ है... उनके अंदर की उस चिंगारी को भड़कने के लिए... एक दिन काफी नहीं है... समय लगेगा...
वैदेही - मैं जानती हूँ... सर... और मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है... आपने मुझसे ठीक कहा था... हर एक दिल में... अपने अकर्मण्यता के प्रति बेहद गुस्सा है... नाराजगी है... उसे तो बस दिशा देना है... जिस दिन वह गुस्सा नाराजगी अपनी दिशा पकड़ लेगी... उस दिन... आग और लावा का सैलाब टूटेगा... यह क्षेत्रपाल तितर बितर हो जाएगा....

यह कह कर वैदेही चुप हो जाती है l उमाकांत भी चुप ही रहता है l खेलते खेलते विश्व और श्रीनु दोनों बाहर आते हैं l

उमाकांत - यह देखो... एक वर्तमान है... तो दुसरा भविष्य... कितने निश्चिंत हैं.. जब कि इस घर के बाहर... यह निश्चिंतता का दायरा खतम हो जाता है... फिर जीवन अनिश्चितता में घिर जाता है....

उमाकांत का यह बात सुन कर विश्व मुड़ कर देखता है, और उमाकांत को देख कर पूछता है l

विश्व - क्या अनिश्चितता है सर...
उमाकांत - तुम्हारी दीदी ने... इस गांव के निश्चिंत भविष्य के लिए... कुछ सोचा है...
विश्व - अच्छा.... (वैदेही से) ऐसा क्या सोचा है... मेरे लिए दीदी...
वैदेही - तु अब ग्रैजुएशन करेगा...
विश्व - (चौंकते हुए) क्या... तुम होश में तो हो...
वैदेही - क्यूँ तुझे क्यूँ ऐसा लगा...
विश्व - वजह है... तुम शायद भुल रही हो... राजगड़ या यशपुर में कहीं भी कॉलेज नहीं है... आगे की पढ़ाई करने के लिए... बाहर जाना पड़ेगा... और अगर हम बाहर चले गए... तो इस मिट्टी से रिश्ता हमेशा के लिए टुट जाएगा...
उमाकांत - तु... गाँव में भी रहेगा और... ग्रैजुएशन भी करेगा...
विश्व - कैसे... और क्यूँ... राजगड़ से ताल्लुक रखने वाला कोई भी... ग्रेजुएट नहीं हो सकता... सिवाय क्षेत्रपाल परिवार के...
वैदेही - ऐसा तुझसे किसने कहा...
विश्व - किसने कहा मतलब... येही तो होता आ रहा है... हम सब इसके गवाह हैं... खुद उमाकांत सर भी तो ग्रेजुएट नहीं हैं...

वैदेही कुछ कहने को होती है कि उसे हाथ के इशारे से उमाकांत सर रोक देते हैं l फिर विश्व से

उमाकांत - अगर मैं ग्रैजुएशन करना चाहूँ तो... (विश्व हैरानी भरे नजर से देखता है) तो क्या तुम मेरे साथ... ग्रैजुएशन करोगे...
विश्व - यह... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं.. मेरा मतलब... मेरा तो ठीक है... पर आप इस उम्र में...
उमाकांत - माता सरस्वती वंदना के लिए... उम्र की कोई पड़ाव नहीं होता... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी... कभी भी साथ छोड़ सकती है... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - वह तो ठीक है मगर... मैं पढ़ूंगा कहाँ और कैसे...
उमाकांत - इग्नॉउ से.... घर बैठे रेगुलर कोर्स में... डीस्टेंस एजुकेशन के जरिए... ग्रैजुएशन किया जा सकता है...
वैदेही - हाँ यह बात मैंने कल ही... सर जी से पूछा था... तो सर ने यही रास्ता सुझाया था...
विश्व - (हैरानी के साथ) क्या....

मोबाइल की घंटी बहुत तेजी से बजने लगती है l विश्व की नींद टुट जाती है l विश्व झट से बिस्तर पर उठ कर बैठ जाता है l विश्व पहले बदहवास हो जाता है, फिर धीरे धीरे अपना होश संभालने लगता है l वह सपना देख रहा था, अपने अतीत को याद कर रहा था l यह बात समझ में आते ही एक गहरी सांस फूंकते हुए छोड़ता है l मोबाइल की घंटी बजते बजते रुक गई थी l मोबाइल हाथ में लेकर स्विच को दबाता है देखता है सुबह का पाँच बज रहा था l हैरान हो जाता है, एक मिस कॉल था, नंबर दिख रहा था पर कोई नाम नहीं था l सोच में पड़ गया, इतनी सुबह सुबह एक अनजान नंबर से कौन फोन कर सकता है l अपने मोबाइल हाथ में लेकर नंबर के बारे में सोच ही रहा था कि मोबाइल फिर से बजने लगता है l वही नंबर था, फोन उठाता है, एक लड़की की आवाज़

कॉल - उठ जाग मुसाफिर भोर भई...
विश्व - हैलो... कौन...
कॉल - (शिकायती लहजे में) क्या... तुम मुझे भुल गए... माँ जी ने तुम्हें कुछ नहीं बताया...

विश्व की आँखे हैरानी से बड़ी हो जातीं हैं l उसकी आवाज़ काम्पने लगती है l वह हकलाने लगता है l

विश्व - र... र... राजकुमारी... जी...
रुप - हा हा हा हा (खिल खिला कर हँसते हुए) हाँ... मैं ही बोल रही हूँ... अनाम... पर यह क्या... तुम तो फोन पर ही... नर्वस हो गए.... (शरारती अंदाज में) जब सामने देखोगे तो....
विश्व - (आवाज़ हलक में घुटने लगती है) आ... आप... इतनी सुबह... म्म्म्मु...झे...
रुप - हाँ हाँ सुबह सुबह... फोन किया... तुम्हें जगा दिया... (थोड़े गुस्से और नाराजगी भरे आवाज में, धमकाते हुए) क्यूँ... बुरा लगा...
विश्व - नहीं नहीं... बिल्कुल भी नहीं...
रुप - गुड...
विश्व - पर... आपने बताया नहीं... फोन क्यूँ किया...
रुप - अच्छा... तो जनाब को शिकायत है...
विश्व - नहीं... नहीं... ऐसी बात नहीं...
रुप - ठीक ठीक है... अभी से आदत डाल लो...
विश्व - क... कैसी आदत...
रुप - यही की... तुम्हारी नींद... हमेशा... मेरी आवाज़ सुन कर ही टुटेगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या... ऐ.. ऐसे कैसे हो सकता है...
रुप - क्यूँ नहीं हो सकता... अभी फोन पर आदत डाल लो... शादी के बाद तो यह रुटीन ही हो जाएगी....
विश्व - र.. राज.. कुमारी.. जी...
रुप - कहिए... अनाम जी...
विश्व - आप... राज कुमारी जी ही... हैं ना...
रुप - क्यूँ... तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
विश्व - ऐसा लग रहा है... जैसे आप...अपने जीभ के नीचे कुछ रख कर... आवाज बदल कर बात कर रहीं हैं...

रुप अपने कानों से फोन हटा कर जीभ दाँतों तले दबा कर अपनी सर पर खुद टफली मारती है l

रुप - (मन ही मन) कौन कहेगा... यही वह बेवकूफ है... (फिर विश्व से) वह क्या है ना... बचपन में... मुझसे तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त नहीं हुई... तुम्हारे जाने के बाद... मेरी गला बैठ गई थी... आवाज ही नहीं निकल रही थी... जब निकली... तो हकलाने लगी... अब डॉक्टर ने कहा कि... जीभ के नीचे छोटी सुपारी रख कर बातेँ करने के लिए... तब हकलाना पुरी तरह से गायब हो जाएगा... इसलिए मैं अपनी जीभ के नीचे छोटी सुपारी रख कर बात कर रही हूँ...
विश्व - ओ अच्छा....
रुप - तो अब समझ में आ गया ना...
विश्व - वह तो ठीक है... पर आज ही क्यूँ... कल सुबह भी तो आप फोन कर सकती थीं...
रुप - हाँ कर तो सकती थी... पर तुमसे नाराज जो थी...
विश्व - तो अब नाराजगी दुर कैसे हो गई...
रुप - कौन कहता है कि मेरी नाराजगी दुर हो गई....
विश्व - मतलब... मुझसे किस बात की नाराजगी...
रुप - तुमसे मतलब... मेरी मर्जी... मैं नाराज होती रहूँगी... हक है मेरा... तुम मुझे मनाते रहोगे... यह ड्यूटी है तुम्हारा...
विश्व - जी राजकुमारी जी... जी... क्या अब मैं फोन रखूँ...
रुप - क्यूँ... मैंने कहा क्या फोन रखने के लिए...
विश्व - (मुस्किल से आवाज दवा कर) तो... दो मिनट के लिए... मुझे इजाजत दीजिए...
रुप - क्यूँ... किस बात के लिए...
विश्व - बहुत... जोर की लगी है... बा.. थ... रूम जाना है...
रुप - हाँ तो जाओ ना... फोन पर बातेँ करते हुए जाओ... रोका किसने है...
विश्व - क्या... मैं.. ऐसे कैसे... फोन पर... आपके साथ... जा सकता हूँ...
रुप - ओ हैलो... मैं यहाँ राजगड़ में हूँ... तुम वहाँ कटक में हो... बातेँ ही करते रहना है... कौनसा तुम्हारे सामने हूँ... या मैं तुम्हें देख रही हूँ...
विश्व - (भीख मांगने के अंदाज में) प्लीज... राजकुमारी जी... प्लीज...
रुप - (मासूमियत के साथ) अनाम... क्या सच में... बड़ी जोर की लगी है...
विश्व - (रोनी आवाज में) हाँ राजकुमारी जी हाँ...
रुप - ओ... (शिकायत भरे लहजे में) मुझे लगा... तुम मुझसे बात टालने के लिए बहाना बना रहे थे...
विश्व - प्लीज राजकुमारी जी प्लीज... सिर्फ दो मिनट... दो मिनट के लिए... मुझे छोड़ दीजिए..
रुप - अररे... (तुनक कर) इजाजत तो ऐसे मांग रहे हो... जैसे मैंने तुम्हारे पैंट में... हाथ डाल कर... अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा है... जकड़ रखा है...
विश्व - हे भगवान... कितनी बेशर्मी से बात कर रहीं हैं आप...
रुप - (एक लंबी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म क्या करूँ... जब से तुम्हें जानती हूँ... तबसे तुम्हें शर्माते हुए ही देखा है... अब हम दोनों में से... किसी एक को इस बेशर्मी को उठाना पड़ेगा ना... अब जब मालुम हो गया... लड़के होने के बावजूद... तुमसे हो ना पाएगा... तो मजबूरन इस बेशर्मी का बोझ मुझे ही उठाना पड़ रहा है...
विश्व - आह्ह्ह्ह्...

विश्व से और बर्दास्त नहीं हो पाता, मोबाइल को बेड पर पटक कर बाथरुम में भाग जाता है l अपना टंकी खाली करने के बाद फ्लश कर बाहर आता है तो देखता है फोन कट चुका था l विश्व उस नंबर पर कॉल लगाने की कोशिश करता है पर वह लैंडलाइन से कुँ कुँ की आवाज़ रही थी l विश्व सोचने लगता है, क्रेडल पर माउथ पीस ठीक से रखा नहीं गया होगा शायद या फिर राजकुमारी गुस्से में फोन को पटक दिया होगा l
उधर हँसते हुए कॉर्डलेस को ऑफ करते हुए जब रुप मुड़ती है तो सामने दरवाजे पर सुषमा को देख कर ठिठक जाती है और कॉर्डलेस को अपने पीछे छुपाते हुए इधर उधर देखने लगती है l
सुषमा अंदर आ कर दरवाजा बंद कर देती है और रुप के पास आ कर अपना हाथ बढ़ा देती है l रुप अपनी सिर नीचे किए हुए कॉर्डलेस को सुषमा के हाथ में थमा देती है l

सुषमा - सुबह तड़के... तुम्हें कॉर्डलेस को उठा कर ले जाते हुए देखा... तो तुम्हारे पीछे पीछे यहाँ चली आई... (रुप चुपचाप सुन रही थी) (कुछ देर चुप रहने के बाद) तो... वह अनाम है... तुम जानती भी हो... उसकी क्या हैसियत थी इस महल में...
रुप - (अपनी नजरें सीधे सुषमा की नजरों से मिलाते हुए) जानती हूँ... आप से भी ज्यादा...
सुषमा - (रुप से इस तरह की जवाब से हैरान हो जाती है) रुप... तु जानती भी है... क्या कह रही है... तेरी शादी तय हो चुकी है...
रुप - माँ... बचपन से लेकर आज तक... आप मेरी माँ की जगह पर हैं... और मैं सच्चे दिल से... आपको अपनी माँ ही समझती हूँ... कुछ बातेँ... एक लड़की अपनी माँ से ही कह सकती है... इसलिए आज आपसे एक बात कह रही हूँ... मेरी किस्मत में... अनाम लिखा हुआ है... इसलिए वह मुझे भुवनेश्वर में मिल गया... इस घर से... मैं या तो लाश बनकर बाहर निकलुंगी... या फिर अनाम की अर्धांगिनी बन कर...
सुषमा - हे भगवान... (कह कर धप से रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) रुप... तेरे बचपन में... तेरी कुछ जिद मैं मान लिया करती थी... इसलिए अनाम को तेरे पास आने देती थी... पर उस वक़्त... मैं उसे तेरा बचपना समझ रही थी... तु... तु जानती है ना... वह किस हाल में रहता था... इस महल में...
रुप - नहीं... कभी देखा नहीं उसे... इस महल में कोई काम करते हुए... पर सुनी हूँ... उससे क्या क्या करवाया जाता था....
सुषमा - (गुस्से से जबड़े भींच कर) वाह क्या साजिश रचा है... इसका मतलब... वह नमक हराम... तुम्हें फांस कर... अपना बदला ऐसे ले रहा है...
रुप - नहीं चाची माँ... नहीं... अनाम तो मेरे बारे में... कुछ जानता भी नहीं है... उसे यह पता भी नहीं है... राजकुमारी है कौन...
सुषमा - (हैरान हो कर) क्या...
रुप - हाँ... चाची माँ.. हाँ... उसे मेरे बारे में... कोई जानकारी नहीं है...
सुषमा - तो...
रुप - बस... वह मुझे मिल गया... ऐसा मिला के मुझे अपनी किस्मत पर भरोसा होने लगा... हाँ मैं जानती हूँ... वह कभी इस महल के... कुत्ते की लीद उठाया करता था... पर आज उसका कद उसने खुद इतना बुलंद किया हुआ है कि... उसे देखने के लिए... हर घमंड से भरे सिरों को... अपना सिर और आँखे... उठा कर उसके तरफ देखना होगा....


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


विक्रम की नींद टूटती है l वह करवट बदलता है तो देखता है उसके बगल में अभी भी शुभ्रा सोई हुई है l विक्रम हैरान हो जाता है, बेशक शुभ्रा पर हमले के बाद से दोनों एक ही कमरे में, एक ही बेड पर सो रहे थे, पर दोनों के बीच में एक दूरी बरकरार थी l शुभ्रा ने अपने तरफ से इजाजत तो दे दी थी, पर विक्रम ही वह दूरी तय नहीं कर पाया था अब तक l विक्रम उठ बैठता है और गौर से शुभ्रा के चेहरे को देखने लगता है l कितनी खूब सूरत और मासूमियत से भरा चेहरा है उसका l उसके जेहन में वह चुलबुली अल्हड़ शुभ्रा का चेहरा घुमने लगती है l विक्रम धीरे धीरे शुभ्रा के चेहरे पर झुकने लगता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट खिलने लगती है, कुछ इंच की दूरी पर रुक जाता है, तभी बिजली सी कौंध जाती है उसके जेहन में शुभ्रा का वह चेहरा दिखने लगता है जब विश्व के सामने विक्रम के लिए शुभ्रा गिड़गिड़ा रही थी l विक्रम के जबड़े भींच जाती हैं, वह झट से अलग हो कर बेड से उतर कर कमरे के बाहर आता है l विक्रम और भी ज्यादा हैरान हो जाता है, घर में कोई नौकर दिख नहीं रहे थे I वह सीढ़ियों से उतरता है, डायनिंग हॉल में बेवजह नमस्ते के एक वॉल माउंटेड फैन घूम रही थी l अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाता है, कोई उसे नहीं दिखता, पर उसकी नजर डायनिंग टेबल पर फड़फड़ाता हुआ एक काग़ज़ पर अटकता है l हैरानी से आँखे सिकुड़ जाते हैं l विक्रम डायनिंग टेबल के पास पहुँच कर काग़ज़ को उठाता है l एक चिट्ठी था वीर ने विक्रम के नाम पर संदेश लिखा था l

"भैया...
यह मैसेज फोन पर भी दे सकता था l पर पता नहीं तुम फोन कब उठाते, कब देखते l चूंकि तुमसे और तुम्हारी आदतों से वाकिफ हूँ, इसलिए तुम्हारे लिए एक चिट्ठी पर संदेश लिख रहा हूँ l सच कहता हूँ भैया, लिखना बहुत ही मुश्किल भरा काम है l हाथ दुख गया मेरा, फिर भी लिखा है पढ़ लेना प्लीज l
कुछ गलतियाँ कर रहा हूँ l माफ कर देना l कल रात मैंने बड़ी मुस्किल से भाभी के पीने के पानी में नींद की गोली मिला दिया था l इसलिए भाभी आज सुबह देरी से उठेंगी l और कल रात से ही नौकरों को आज एक दिन की छुट्टी दे दिया है l
तुम कुछ मत सोचो बस भाभी के बारे में सोचो I
भैया तुमने भाभी को अपनी दुनिया में लाए, पर उनकी दुनिया कहीं खो गया है l यह वह तो नहीं हैं जिनसे तुमने प्यार किया था, जिनसे शादी किया था I तुम्हारे लिए मौका बनाने के लिए रुप ने कहा तो मैंने तुम दोनों के लिए मौका बना दिया है l
भैया आज तुम प्लीज भाभी के लिए चाय बनाओ, उनके कमरे में लेकर जाओ, उन्हें जगाओ,फिर...
फिर मैं क्या कहूँ, तुम बड़े हो मुझसे भी पहले प्यार की रेस जीते हो l अब अपने प्यार को जीत लो भैया l मैं तीन दिन के लिए अब घर पर नहीं आने वाला l रुप और मैं, जब हम दोनों घर पर लौटें हमे भाभी का हँसता हुआ चेहरा देखें l
वरना आपके बीच की यह दूरी, मुझे ताउम्र अपनी नजरों से गिराता रहेगा l
प्लीज भैया
अपने इस ना लायक भाई और सबसे प्यारी बहन के लिए भाभी के जीवन में खुशियाँ भर दो ना प्लीज I और हाँ मैंने आपकी भी दो दिन की छुट्टी अप्रूव कर दिया है l क्यूँकी आप तो जानते हैं अखिर कार ESS का सीईओ जो हूँ l

~ वीर ~

विक्रम के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है, वह वहीँ डायनिंग टेबल के पास बैठ जाता है, अपनी और शुभ्रा के बारे में सोचने लगता है l कुछ देर बाद वह उठता है और किचन के अंदर जाने लगता है l किचन के अंदर पहुँच कर देखता है चाय बनाने के लिए सभी सामान बाहर निकाल कर रखा हुआ है l 'वीर' उसके मुहँ से निकल जाता है और हँसने लगता है l विक्रम अपनी जेब टटोलता है फिर उसे मालुम होता है कि उसके पास मोबाइल नहीं है l वह भागते हुए बेड रुम में पहुँचता है l शुभ्रा बिल्कुल वैसे ही सोई हुई थी l अपना मोबाइल लेकर नीचे किचन में आता है और यु ट्यूब पर चाय बनाने की तरीका देखने लगता है l फिर वह चाय बनाने के बाद एक ट्रे पर केतली में चाय और एक छोटे से बाउल में सुगर क्यूब्स लेकर उपर जाता है l कमरे में पहुँच कर टेबल पर ट्रे को रख देता है l विक्रम शुभ्रा के पास बैठ जाता है और उसके गाल पर हाथ फेरते हुए हल्के से झिंझोड कर जगाने की कोशिश करता है l शुभ्रा की आँखे खुल जाती हैं l एक प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल उठती है

शुभ्रा - कितना प्यारा सपना है... विक्की आप मुझे जगा रहे हैं...

कह कर शुभ्रा विक की हाथ को अपने गाल पर पकड़ कर करवट बदल कर सो जाती है l एक पल के लिए विक्रम को बहुत अच्छा लगता है पर फिर वह थोड़ा गम्भीर हो कर अपना हाथ छुड़ाता है और वहाँ से उठ जाता है l उसके जेहन में विश्व के साथ भिड़ने वाली हादसा फिर से गुजरने लगती है l विक्रम शुभ्रा को आवाज़ देता है

विक्रम - शुब्बु... शुब्बु...
शुभ्रा - (उबासी लेते हुए अपनी आँखे खोलती फिर वह चौंक कर उठ कर बैठती है) वि... विक्की... आप...
विक्रम - हाँ... वह वीर ने सभी नौकरों को... शाम तक छुट्टी दे दिया है...
शुभ्रा - क्या... वीर ने... पर क्यूँ... कहाँ है वीर....
विक्रम - वह... पता नहीं... मैं आपके लिए यह...

कह कर चाय की ओर इशारा करता है l शुभ्रा हैरानी के साथ कभी चाय की ओर तो कभी विक्रम की ओर देखने लगती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


वीर गाड़ी चला रहा था l बगल में दादी बैठी हुई थी और पिछले सीट पर अनु बैठी हुई थी l ड्राइविंग करते हुए वीर रियर मिरर से अनु को देख कर गाड़ी ड्राइव कर रहा था l

दादी - इतनी सुबह सुबह... हमें जगा कर... अपने साथ... आप कहाँ ले जा रहे हैं... दामाद जी...
वीर - दादी... मैंने सोचा आपको... कम से कम... अपने राज्य की तीर्थ घुमा लाऊँ... इसलिए हम अभी सबसे पहले पुरी जा रहे हैं...
दादी - (अपना हाथ जोड़ कर) जय जगन्नाथ... जय जगन्नाथ... (फिर वीर की और देख कर) यह बात कल भी तो बता सकते थे... आप...
वीर - क्यूँ... आज कोई परेशानी है क्या...
दादी - आप समझे नहीं दामाद जी... कम से कम घर की चाबी मट्टू को दे आती...
वीर - दादी... यह मुझे बार बार आप आप... क्यूँ कह रहीं हैं... तुम भी तो कह सकती हैं...
दादी - नहीं राजकुमार जी... एक तो आप राजकुमार हैं... ऊपर से... होने वाले दामाद हैं... और हमारे परंपरा में... दामाद जी को आप ही संबोधन किया जाता है... पर अचानक युँ... जगन्नाथ धाम...
वीर - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर थोड़ा गम्भीर हो कर) दादी... कल आप ही ने तो बताया... की भैया और भाभी को एक दुसरे के साथ एक घर में बंद कर देने के लिए.... उन्हें एकांत देने के लिए....
दादी - हाँ कहा तो था... तो क्या हम इसलिए...
वीर - हाँ दादी... मेरे भैया... राजनीति... और सिक्युरिटी व्यस्त रहते हैं... की वह भाभी की तरफ ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं... मैंने आज उन्हें इतने बड़े घर में... एकांत कर दिया है...
दादी - अच्छा किया... पर हमें तुम पुरी क्यूँ लिए जा रहे हो...
वीर - (रियर मिरर में अनु को देखते हुए) दादी आपने मुझे वह सौगात दिया है कि... मैं कुछ भी करूँ आपके लिए... बहुत कम है... वैसे भी आपका... मेरे सिवा है कौन... और आपका ध्यान रखना और सेवा करना... मेरा फर्ज है...
दादी - हाँ यह बात तो आपने सही कहा... मेरा आपके सिवा कोई नहीं है... पर दामाद जी... बाकी कुछ... मैं समझ नहीं पाई...
वीर - बस दादी... आपका पुण्य बल बहुत है... आप मेरे भैया और भाभी के लिए.... प्रार्थना कीजिएगा... उनकी जीवन सुखमय हो जाएगा....
अनु - हाँ दादी... राजकुमार जी सच कह रहे हैं...
दादी - मैं सोच रही थी... अब तक तु चुप कैसे रही...

अनु झेंप जाती है और अपना चेहरा दादी की सीट के पीछे छुपाने लगती है l रियर मिरर में यह देख कर वीर हँस देता है l

वीर - अच्छा दादी... मट्टू को चाबी क्यूँ देती आप...
दादी - अरे बेटा... एक वही तो है... हमारे परिवार के निकट... वैसे भी... उस बस्ती में... उसका हमारे सिवा... और हमारा उसके और पुष्पा के सिवा कोई नहीं है ना... कम से कम घर पर नजर रखते...
अनु - हाँ... जैसे घर में... ख़ज़ाना गाड़ रखी हो...
दादी - तु चुप रह... सामाजिक बंधन में... पड़ोसी भी मायने रखते हैं...
वीर - हाँ... यह बात तो आपने सही कहा...
दादी - हाँ दामाद जी... वैसे भी... उसके साथ कुछ भी तो ठीक नहीं हुआ है... उसके पिता असमय चले गए... उसकी माँ भी उसके ऊपर... पुष्पा का बोझ डाल चली गई... पता नहीं... किस नामुराद की नजर लग गई... उस गरीब को...
अनु - किसकी नजर लग सकती है भला... दादी... तुम भी ना कभी कभी ऊलजलूल बातेँ करती हो...
दादी - तू चुप रह... अगर मट्टू की परिवार पर किसीकी नजर लगी है.... तो भगवान से प्रार्थना है कि.... उस बुरे नजर वाले के साथ भी बुरा ही हो...

चर्र्र्र्र् गाड़ी में ब्रेक लगाता है l सभी झटके के साथ आगे की ओर झुक जाते हैं l

दादी - (हैरानी के साथ) क्या... क्या हुआ बेटा...
वीर - कुछ... कुछ नहीं दादी... कुछ नहीं...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


डगडग.. डगडग... की आवाज सुनाई दे रही थी l थाने के अंदर अनिकेत रोणा अपने चेयर पर उँधा लेटा हुआ था l बदन पर सिर्फ बनियान था अपनी आँखे खोलता है l टेबल पर रखे बेल को बजाता है l एक हवलदार आकर उसे सलाम ठोकता है l

रोणा - यह बाहर... आवाज कैसी है...
हवलदार - साहब... एक सपेरा जा रहा था... हमने उसे रोक कर... साँपों का खेल दिखाने के लिए बोला... इसलिए वह थाने के बाहर खेल दिखा रहा है... और यह आवाज़.. उसके डमरू से आ रही...
रोणा - अच्छा...

इतना कह कर अपनी चेयर से उठता है और उसी हालत में हवलदार के साथ बाहर आता है l सपेरा साँपों को निकाल कर खेल दिखा रहा था l सपेरा तरह तरह के रंग बिरंगी सांप लाया था l वह कभी डमरू बजा कर तो कभी बिन बजा कर सांप का खेल दिखा रहा था l खेल खतम करने के बाद जब वह अपनी खेल समेट रहा था, रोणा उससे सवाल करता है

रोणा - कौन कौन से सांप लाया था...
सपेरा - जी साहब, श्वेत नाग... चम्पा नाग... पद्म नाग... अही राज... बोड़ा...
रोणा - ह्म्म्म्म... सबसे जहरीला कौनसा है...
सपेरा - जी... सब के सब... जहरीले हैं साहब...
रोणा - अच्छा... चल एक सांप को मेरे ऊपर छोड़...

सपेरा यह सुन कर हैरानी भरे नजरों से
रोणा की ओर देखने लगता है l ऐसी हालत सिर्फ सपेरा का नहीं था, बल्कि वहाँ पर मौजूद सभी पुलिस वालों की हालत भी वैसी ही थी l

रोणा - चल... जल्दी मेरे ऊपर एक जहरीले सांप का छोड़...
सपेरा - (डर के मारे हकलाते हुए) यह... यह क्या कह रहे हैं... साहब...
रोणा - अगर तूने अभी मुझ पर... एक सांप को नहीं छोड़ा... तो मैं आज तुझे यहाँ बंद कर दूँगा... ऐसा बंद करूँगा... के आखिरी सांस तेरे छूटेगी... पर तु नहीं छूटेगा...

सपेरा बड़ी मुश्किल से अपना थूक निगलता है और हाथ जोड़ कर रोणा के सामने गिड़गिड़ाने लगता है l

सपेरा - साहब... यह आपके लिए सांप होंगे... पर हमारे लिए बच्चे हैं... हमारे परिवार का हिस्सा... और हम किसी पर भी... ऐसा काम... कर ही नहीं सकते... और आप तो.. पुलिस के बड़े अधिकारी हैं...
रोणा - सुन बे हराम खोर... अभी के अभी... तूने अगर मुझ पर सांप नहीं छोड़ा... तो आज तेरा कोई भी बच्चा... टोकरे से निकल कर... तेरी ज़मानत नहीं कर पाएंगे...

सपेरा डरते डरते अपना एक टोकरा खोलता है l एक सांप को निकालता है और रोणा के सामने छोड़ देता है l सांप कुछ दूर रोणा के सामने जाता है फिर अचानक मुड़ कर पीछे जाने लगता है तो रोणा उस सांप के पुंछ पर पैर रख देता है l सांप पलट कर फन उठा कर डसने की कोशिश करती है l रोणा अपना पैर हटा लेता है l सांप फन उठा कर रोणा की ओर देखती है फिर जैसे ही मुड़ने को होती है रोणा उसके फन पर लात मारता है l सांप पुरे जोर से अपने फन से रोणा के पैर पर डसने की कोशिश करती है l ऐन वक़्त पर रोणा अपना पैर हटा लेता है, जैसे ही सांप का वार खाली जाता है, उसी वक़्त तेजी के साथ रोणा अपने पुलिसिया जुते से सांप के फन को कुचल देता है l सांप बहुत बुरी तरह से छटपटाने लगता है, सांप अपने जिस्म को बहुत बुरी तरह पटकने लगता है l सांप की यह दशा देख कर रोणा की आँखों में एक वीभत्स चमक दिखने लगता है, सांप के फन को कुचलते वक़्त रोणा का चेहरे पर एक भयानक, डरावना संतुष्टि झलकने लगता है l उसके चेहरे पर ऐसी शैतानी झलक देख कर वहाँ पर मौजूद सभी पुलिस कर्मी और वह सपेरा डर जाते हैं l तभी थाने के परिसर में तेजी से बल्लभ घुसता है और रोणा को झिंझोडने लगता है l

बल्लभ - रोणा... यह क्या कर रहा है...
रोणा - (उसी शैतानी तृप्ति के साथ) इस सपोले को... अपनी जुते से कुचल रहा हूँ...
बल्लभ - (फिर से झिंझोडते हुए) रोणा... होश में आओ...

कह कर रोणा को वहाँ से खिंच कर अंदर ले जाता है l कुछ पुलिस कर्मी अंदर आ रहे थे, तो उन्हें इशारे से बाहर ही रुकने के लिए बल्लभ कहता है l रोणा के चेंबर में लाकर बल्लभ रोणा को चेयर पर ज़बरदस्ती बिठा देता है और वहाँ टेबल पर रखे एक पानी के बोतल को रोणा के चेहरे पर उड़ेल देता है l

रोणा - आह्ह्ह... क्या... क्या कर रहा है....
बल्लभ - होश में ला रहा हूँ... अबे चमन चुतिए... क्या कर रहा था...
रोणा - देखा नहीं भोषड़ी के... सांप का सर कुचल रहा था...
बल्लभ - क्यूँ... साले... दिन व दिन... पागल होता जा रहा है... क्या...
रोणा - पागल... हाँ पागल... साला... पागल ही तो हो गया हूँ... उड़ता तीर अपने पिछवाड़े लेने की चूल मची थी... इसीलिए तो... राजा साहब से गुहार लगायी... और अपनी पोस्टिंग यहाँ राजगड़ में कारवाई... साला तब से... साला तब से... ना ठीक से नींद भर सोया... ना चैन भर जिया...
बल्लभ - ओ... तो बात यह है... विश्व तेरे दिल दिमाग जेहन पर छाया हुआ है...
रोणा - छाया हुआ है... साला हाथोड़ा बन कर कूट रहा है... (गहरी सोच में खोते हुए) कौन सोच सकता था... एक बेवकूफ़ सा... नालायक विश्व... जिसे हमने अपना मतलब साधने के लिए बकरा बनाया था.... वही हमें शिकार करने के लिए... खुद को तैयार कर लिया है....

फ्लैशबैक

आठ साल पहले क्षेत्रपाल महल

राज उद्यान में एक सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ है, उसके सिर पर छाता लिए पास भीमा खड़ा है l बगल में पड़े बेंच पर बल्लभ और रोणा के साथ दो और लोग बैठे हुए हैं l सामने नीचे दिलीप कर बैठा हुआ था l

भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो हमें अब क्या करना चाहिए तहसील दार... (बेंच पर बैठे एक शख्स से)
तहसील दार - मज़बूरी है... राजा साहब... हमने बहुत तिकड़म भिड़ाये हैं... पर अब बिना युटिलाइजेशन सर्टिफिकेट के... बाकी का पैसा... नहीं मिलने वाला... और ऊपर से पंचायत का टर्म भी खतम होने को है... और नियम के अनुसार... छह महीने पहले... हर तरह के फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन सीज किया गया है... अब नये सरपंच के सर्टिफिकेशन के बाद ही... बाकी का पैसा... रिलीज़ हो सकेगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम क्या कहते हो... कर...
दिलीप कर - ही ही ही... राजा साहब... आपका कुत्ता तो तैयार है... बस आपका आशीर्वाद चाहिए...
बेंच पर बैठा दुसरा शख्स- माफ़ी चाहूँगा राजा साहब... अगर आप बुरा ना मानें... तो..
भैरव सिंह - अब तुम क्या कहना चाहते हो... रेवेन्यू इंस्पेक्टर...
आर आई - राजा साहब... हमने बेशक... बहुत ही बढ़िया प्लान आजमा कर... पैसे बनाए हैं... पर अब जब फाइनल पेमेंट होनी है... मेरे हिसाब से... हमें दिलीप कर के वजाए... किसी और के बारे में सोचना चाहिए...
दिलीप कर - क्यूँ माई बाप.. क्यूँ...
भैरव सिंह - (दिलीप से) तुम चुप रहो... (आर आई से) तुम कहो... क्यूँ...
बल्लभ - मैं बताता हूँ... बीच में बोलने के लिए माफी चाहूँगा... पर आर आई की बात मैं समझ गया...
भैरव सिंह - ठीक है... हमें समझाओ...
बल्लभ - हम ने... फेक आधार कार्ड को जरिया बना कर... यह सब किया है... अगर कभी... खुदा ना खास्ता... इंक्वायरी हुई... तो वह नया सरपंच फंसना चाहिए....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम्हें लगता है... इस मैटर पर कभी भी इंक्वायरी हो सकती है...
बल्लभ - हाँ... शायद हो सकता है... क्यूंकि... यह मनरेगा का पैसा है... जिस पर युटिलाइजेशन सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है... जो यह सर्टिफिकेट देगा... वही फंसेगा...
रोणा - हाँ अगर नहीं फंसा तो... फंसाना ही पड़ेगा...
तहसील दार - पर ऐसा कच्चा दिमाग वाला है कौन...

सभी सोचने लगते हैं l अचानक भैरव सिंह की भवें तन जाती हैं l उसके चेहरे पर हल्का सा मुस्कान दिखने लगती है l

आर आई - लगता है... राजा साहब ने उस शख्स को ढूंढ लिया है...
दिलीप कर - आखिर... जौहरी की आँख रखते हैं राजा साहब... जरूर ढूंढ लिया होगा....
रोणा - सच में... वह कौन है राजा साहब...
भैरव सिंह - है एक... हमारे ही घर के टुकड़ों में पलने वाला कुत्ता... (कह कर अपनी सिंहासन से उठ खड़ा होता है) (उसे खड़ा होते देख सभी खड़े हो जाते हैं) आओ देखते हैं... उस कुत्ते को...

भैरव सिंह वहाँ से मुड़ कर जाने लगता है l उसके पीछे पीछे वहाँ पर मौजूद सभी चलने लगते हैं l महल को घेरे एक दीवार के पास विश्व क्षेत्रपाल महल का इकलौता कुत्ता टाइगर को शैम्पू लगा कर नहला रहा था l विश्व टाइगर को नहलाने में इतना व्यस्त था कि उसे एहसास भी नहीं होता कि उसके पास आकर कब भैरव सिंह और वे सब लोग खड़े हो गए हैं l भैरव सिंह देखता है, विश्व बड़े मगन से टाइगर को नहला रहा है और टाइगर भी अपना नहाने का मजा ले रहा था l जब विश्व टाइगर पर पानी डालने लगता है तभी उसे एहसास होता है कि कुछ लोग उसके पास खड़े हो कर उसे देख रहे हैं l विश्व नजरे घुमा कर देखता है और चौंक जाता है l

विश्व - र.. राजा साहब... आ... आप.. य.. यहाँ...
दिलीप - अबे ढक्कन... पुरा राजगड़ जब इनकी मिल्कियत है... तो यहाँ वहाँ क्या कर रहा है बे...
विश्व - जी... (अपनी नजरें झुका कर) माफ... माफ कर दीजिए...
रोणा - क्यूँ बे... किस बात की माफी... एक तो बत्तमीजी... ऊपर से सीना जोरी...
विश्व - (अपनी घुटने पर बैठ कर) गलती हो गई... राजा साहब...

इससे पहले कोई कुछ और कहता, भैरव सिंह अपना हाथ उठा कर सब को चुप होने का इशारा करता है l

भैरव सिंह - विश्वा... टाइगर का यह दुम सीधी क्यूँ नहीं है...

विश्व के साथ साथ वहाँ पर खड़े सभी लोग हैरान हो जाते हैं l

विश्व - राजा साहब... कुत्ते का दुम तो हमेशा टेढ़ा ही रहाता है...
भैरव सिंह - ना... हमे यह टेढ़ी दुम वाला कुत्ता पसंद नहीं आया... सीधा करो इसे...

विश्व और भी ज्यादा हैरान हो जाता है, वह अपनी आँख और मुहँ फाड़े भैरव सिंह को देखने लगता है l

भैरव सिंह - हमने कहा... इसकी दुम को सीधा करो...

विश्व अपनी हाथ में थोड़ा शैम्पू डालता है और टाइगर के पूंछ पर मलते हुए सीधा करने की कोशिश करता है l बड़े मायूसी भरे नजरों से भैरव सिंह की ओर देखता है l

भैरव सिंह - फिर से कोशिश करो...

विश्व फिर से हाथ में शैम्पू लेकर अब दोनों हाथों से कुत्ते के दुम पर मलने लगता है l और फिर दोनों हाथों से टाइगर के दुम को सीधा करने लगता है l इस बार संकोच के साथ भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - यह... दुम...
भैरव सिंह - कोई नहीं... जाओ... मैं इन्हें यही समझाने के लिए... लाया था... के कुत्ते का दुम कभी सीधा नहीं हो सकता... जाओ... टाइगर को अच्छी तरह से टावल में पोंछ कर... खाना खिला दो...
विश्व - जी राजा साहब...

विश्व इतना कह कर टाइगर को वहाँ से ले जाता है l उसके जाने के बाद भैरव सिंह पीछे मुड़ कर सबको देखता है

भैरव सिंह - कुछ समझे...
आर आई - जी समझ गया राजा साहब... यह वही कुत्ता है... जिसे हमें बलि का बकरा बनाना है...
तहसील दार - पर क्या यह.... अपना दुम सीधा रखेगा...
भैरव सिंह - यह मेरे दो पांव वाला कुत्ता है... जिसकी दुम हरदम सीधा ही रहेगा...
रोणा - वह तो ठीक है... राजा साहब... कहीं ऐसा ना हो... जिसे हम दुम समझ रहे हैं... कल को फन उठाने की कोशिश करे....
भैरव सिंह - तो सरकार ने तुम्हें जुते दिए किस लिए हैं... कुचल देना तुम्हारा काम है...

फ्लैशबैक खतम

बल्लभ - तो विश्व के गुस्से में... उस सपेरे के सांप को कुचल दिया तुने...
रोणा - हाँ... जरा सोच... यही था वह... कितना बेवक़ूफ़ दिखता था... अब हरामी का पिल्ला... प्लान बनाने लगा है... यही उसकी बहन थी... नजाने कितनी बार उसे नीचे लिटाया था... साली रो रही थी... गिड़गिड़ा रही थी... अपने भाई को छुड़ाने के लिए... लेकिन अब ऐसे फुत्कारती है... के (रुक जाता है)
बल्लभ - के तेरी गांव फटके चौबारा हो जाती है... अबे इसके लिए... असली सांप को कुचलने के लिए... तेरे पिछवाड़े कीड़े कुलबुला रहे थे क्या...
रोणा - क्यूँ थक रहा है... ठंड रख ठंड... मैं तो बस अपना गुस्सा शांत कर रहा था...
बल्लभ - अबे तुझे ठंड रखना चाहिए था... गुस्से में... बेवकूफ़ी कर रहा था... वह कहते हैं ना... सच्चाई... ईमानदारी... इंसाफ़ तभी हारते हैं... जब सामने वाला अव्वल दर्जे का... कमीना पन दिखाए....
रोणा - तो हूँ ना... मैं अव्वल दर्जे का कमीना...
बल्लभ - साले गांडु... सांप से उलझने में कौनसा कमीना पन दिखा रहा था बे...
रोणा - मैं जानता हूँ... सपेरे जिन सांपों के लेकर खेल दिखाते हैं... उनके दांत पहले ही तोड़ दिए होते हैं...

रोणा की इस बात के खुलासे पर बल्लभ का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शुभ्रा अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी l उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि सुबह की शुरुआत इतनी अच्छी हुई, विक्रम उसे जगाया और चाय की सर्व की I कितनी खुश हो गई थी वह विक्रम से ऐसे सरप्राइज़ पाकर पर जब फ्रेश होने के लिए बाथरुम गई आने के बाद कमरे में विक्रम नहीं था l पर तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज आया था l
"शुब्बु मेरी जान, चाय तो जैसे तैसे यु ट्यूब देख कर बना लिया, पर नास्ता बनाना मेरे बस में नहीं था l अब चूँकि वीर ने सभी नौकरों को शाम तक छुट्टी दे दी है, इसीलिए मैं हम दोनों के लिए नाश्ता लाने जा रहा हूँ l इंतजार करना"

बस इतना ही मैसेज छोड़ विक्रम कहीं बाहर चला गया था I नाश्ते का वक़्त गुजर चुका था पर विक्रम का कोई खबर नहीं थी l शुभ्रा जब भी फोन लगा रही थी विक्रम फोन को कट कर देता था l इस तरह से शुभ्रा धीरे धीरे चिढ़ने लगी थी l तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज की ट्यून बजने लगती है l शुभ्रा भाग कर आती है और मोबाइल उठा कर देखती है I मैसेज विक्रम का ही था l मैसेज खोल कर पढ़ती है

"जान वह घर हैल है... याद है हमारा पैराडाइज... खाना तैयार है... मैं तुम्हारा वहीँ पर इंतजार कर रहा हूँ... आ जाओ... तुम्हारा इंतजार है"

मैसेज पढ़ते ही शुभ्रा बहुत खुश हो जाती है l वह झटपट तैयार हो कर नीचे उतरती है l घर में चाबी लगाने के बाद गार्ड को चाबी देकर अपनी गाड़ी से पैराडाइज की ओर निकलती है l गाड़ी में वह बहुत खुश थी, अपने आप से शर्मा भी रही थी l खुद को सम्भालने की कोशिश कर रही थी l कहीं गाड़ी से बाहर यह दुनिया उसकी यह हालत देख ना लें l फिर कुछ सोचते हुए गाड़ी किनारे लगाती है और विक्रम को फोन लगाती है l विक्रम के फोन उठाते ही

विक्रम - हैलो जान क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं बस ऐसे ही...
विक्रम - अच्छा... तो बोलो...
शुभ्रा - विक्की...
विक्रम - हाँ जान...
शुभ्रा - पता नहीं... मैं सामने से पुछ पाऊँगी या नहीं.... इसलिए... आज अचानक इतनी सारी खुशियाँ... डर लग रहा है... कहीं किसी की नजर ना लग जाये...
विक्रम - हमारी ही खुशियों को... मेरी ही नजर लगी थी... आँखों पर धुल... मेरी नासमझी की ज़मी हुई थी.. आज आँखे साफ हुई हैं...
शुभ्रा - क्या यह खुशियां... यु हीं बरकरार रहेंगीं...
विक्रम - तुम्हारी कसम जान... बरकरार रहेगी...
शुभ्रा - (हँस देती है) मैं आ रही हूँ...
विक्रम - हाँ... जान आ जाओ...
" मैं एक अज़ीब सा नशे में हूँ...
पता नहीं कौनसी खुमार में हूँ...
तेरे आने से तड़प मीट जाएगी...
मैं एक ऐसी इंतजार में हूँ....
शुभ्रा - आ रही हूँ... हाँ मैं आ रही हूँ...

शुभ्रा की हाथ से फोन गिर जाता है l शुभ्रा उसे उठाने की कोशिश भी नहीं करती, गाड़ी स्टार्ट कर दौड़ा देती है l उधर फोन कटने के बाद विक्रम उस पेंट हाउस से बाहर आता है और सुबह जो हुआ उसे याद करने लगता है

फ्लैशबैक..

शुभ्रा हैरानी और खुशी के साथ चाय लेती है और फ्रेस होने के लिए बाथरुम में चली जाती है l तभी विक्रम के मोबाइल पर एक मैसेज आता है l विक्रम फोन पर देखता है डिस्प्ले पर दुश्मन लिखा हुआ था l विक्रम की आँखे फैल जाती हैं, मैसेज खोल कर पढ़ने लगता है l

"मैं... xxx पर टेबल नं २८ पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ... हिम्मत है तो आ जाओ..."

विक्रम यह मैसेज पढ़ते ही तैयार हो जाता है और शुभ्रा के मोबाइल पर नाश्ता लाने की मैसेज भेजने की सोचने लगता है और शुभ्रा का बाथरुम से निकलने का इंतजार करता है l जैसे ही बाथरुम का दरवाज़ा खुलने को होता है विक्रम कमरे से बाहर निकल कर मैसेज कर देता है l और नीचे गाड़ी लेकर अपनी xxx को चला जाता है l पंद्रह मिनट के बाद गाड़ी xxx के बाहर लगा कर उतरता है और सीधे टेबल नं २८ पर पहुँचता है I एक एक ओपन फ्लोट रेस्टोरेंट था l जो एक झील पर बना हुआ था l इतनी सुबह उस रेस्टोरेंट में लोगों की आवाजाही ना के बराबर थी l टेबल पर विश्व बैठा चाय पी रहा था l

विक्रम - क्यूँ बुलाया मुझे...
विश्व - पहले बैठ तो जाओ... (विक्रम के बैठने के बाद) बदला लेने के लिए... बड़े बेताब हो...
विक्रम - हाँ... (मुट्ठीयाँ भींच कर) कोई शक़...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं...
विक्रम - मुझे यहाँ बुलाने की वजह...
विश्व - तुम्हारा इंतजार खतम करने के लिए... एक बम्पर ऑफर लाया हूँ...
विक्रम - कैसा इंतजार... कैसा ऑफर...
विश्व - देखो... मैं आज राजगड़ जा रहा हूँ... पता नहीं फिर कब और किन हालातों में वापस आना हो... इसलिए... आज तुम चाहो तो... मुझ पर अपना सारा भड़ास निकाल सकते हो...
विक्रम - ऐसा क्यूँ...
विश्व - कर्ज किसी अपने का हो... तो उसके लिए दोबारा जन्म लिया जा सकता है.... पर कर्ज अगर दुश्मनी का हो... तो इसी जन्म में उतार देना चाहिए....
विक्रम - बड़े नेक विचार हैं... फिर भी यह कोई वजह नहीं लगती...
विश्व - हाँ नहीं है यह कोई वजह... (एक गहरी सांस फूंक मारते हुए छोड़ता है) पिछली बार जब हम मिले थे... तब तुमने एक बात कही थी... तुम पर... मेरी दुश्मनी का इस कदर असर है... के तुम अपने प्यार से भी ना प्यार कर पा रहे हो... ना निभा पा रहे हो...
विक्रम - (अपनी जबड़े भींच लेता है, और दांत पिसते हुए) तो...
विश्व - तुम्हारा वह प्यार... मेरा मतलब है... तुम्हारे उस प्यार का... मुझसे मुहँ जुबानी भाई बहन का रिस्ता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... आगे बोलो...
विश्व - मेरी दुश्मनी की वजह से... मेरी मुहँ बोली बहन की खुशियों में ग्रहण लग जाये... यह मुझे गंवारा नहीं हो पा रहा है....
विक्रम - ओ... तो उस रिश्ते के खातिर... तुम मुझसे पीटना चाहते हो...
विश्व - हाँ... पर यह पुरा सच नहीं है...
विक्रम - तो पुरा सच क्या है...
विश्व - याद है... हमारी इसी तरह की एक मुलाकात हुई थी... उसकी वजह याद है...
विक्रम - (चुप रहता है)
विश्व - मेरे माता पिता... मैं नहीं चाहता... तुम... या तुम्हारा कोई भी आदमी... मेरे गैर हाजिरी में... उनके आसपास भी फटके....
विक्रम - ओ... तो बात यह है...
विश्व - हाँ... ताकि तुम्हारे दिल में... मेरे लिए सारी भड़ास खतम हो जाए... तुम्हारी दुनिया खुशहाल रहे... और मेरी दुनिया महफूज...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) अच्छी प्लानिंग की हुई है तुमने... पर फिर भी... तुम्हें इतना तो इल्म होना ही चाहिए... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल... किसीसे खैरात नहीं लेता... हमारा हाथ हमेशा जमीन की तरफ देखती है... हम या तो देते हैं... या फिर छीनते हैं... आसमान की तरफ दिखा कर ना तो मांगने की आदत है... ना किसीसे कुछ लेने की...
विश्व - विक्रम... तुम (एक पॉज लेकर) स्प्लीट पर्सनालिटी के शिकार हो... तुम बहुत अच्छे हो जाते हो... जब जब क्षेत्रपाल वाला ऐनक उतार देते हो... तुम्हारे आगे झुक जाने को दिल करता है... पर जब क्षेत्रपाल का चश्मा चढ़ा लेते हो... तुम सोच भी नहीं सकते... तुम्हारे लिए कैसी कैसी सोच सामने वाले के दिलों दिमाग पर चलने लगती है...
विक्रम - मैं... दुनिया वालों की... सोच को... और दुनिया वालों के लिए अपनी नजरिए को... जुते के नीचे रखता हूँ...
विश्व - क्या तुम... जुते पहन कर घर के अंदर जाते हो...
विक्रम - व्हाट द फक...
विश्व - नहीं जाते ना... क्यूंकि जुते चाहे जितनी भी क़ीमती हो... रखना उसे बाहर ही होता है... अगर दुनिया वालों की सोच और दुनिया वालों के लिए अपनी नजरिये को जुते के नीचे रख देते हो... तो उस जुते की मैल को... घर के अंदर क्यूँ लेकर जाते हो... अपनों के लिए... दुनिया की और दुनिया के लिए... उस सोच और नजरिया को जुते के साथ... बाहर ही छोड़ दिया करो...

विक्रम एक दम से सुन हो जाता है l चुप हो जाता है, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पाती l

विश्व - विक्रम... (विक्रम का ध्यान टूटता है) मैं यहाँ... अपने माँ बाप के लिए तुमसे पीटने के लिए आया हूँ... भले ही वह मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... पर मैं नहीं चाहता उन पर आँच आए...
विक्रम - तुम बेफिक्र जा सकते हो विश्वा... तुम्हारी और मेरी दुश्मनी की आँच उन तक नहीं पहुँचेगी... और रही तुम्हारे और मेरे बीच का फैसला... वह होगा... एक दिन जरूर होगा... उस दिन तुम्हारे लिए कोई रोयेगा... गिड़गिड़ायेगा...
विश्व - ठीक है फिर... मैं अपने माँ बाप की फ़िक्र को जुते के नीचे रख कर जा रहा हूँ...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l विक्रम उसे जाते हुए देखता है l विक्रम अपने ख़यालों से वापस आता है उसका ध्यान बाहर रखे अपने जुतों पर जाता है l मन ही मन अपने आपसे कहने लगता है

"आज फिर से मुझ पर तुमने एक एहसान कर दिया है l जुतों के साथ क्या घर के बाहर रह जाना चाहिए और जुतों के वगैर क्या अंदर जाना चाहिए बता दिया"

यह सोचते सोचते विक्रम अंदर जाता है l डायनिंग टेबल पर बाउल रखे हुए हैं l बेड रुम में आज उसने अपनी हाथों से बेड को फूलों से सजाया है l तभी उसके कानों के पास एक ठंडी हवा गुजरने का आभास होता है, एक खुशबु उसके नथुनों में घुलने लगती है l झट से पीछे मुड़ कर देखता है l उसकी प्रियतमा खड़ी थी l ना छुपा पाने वाला एक आवेग, एक उल्लास अपने चेहरे पर लिए l विक्रम अपनी बाहें फैला देता है l भागते हुए शुभ्रा विक्रम के गले लग जाती है l शुभ्रा फफक रही थी दोनों एक दूसरे को बाहों में जोर से भींचे हुए थे I

शुभ्रा - (सुबकते हुए अटक अटक कर) विकी... यह सपना तो नहीं है ना...
विक्रम - नहीं जान... यही सच है... (शुभ्रा उससे अलग होने की कोशिश करती है, पर विक्रम उसे अलग होने नहीं देता) नहीं जान... आज मैं अपनी नजरों में इतना गिरा हुआ हूँ... के तुमसे नज़रें नहीं मिला पाऊँगा... बस यह दो लफ्ज़ कह सकता हूँ... पहले तो सॉरी... फिर थैंक्यू...
शुभ्रा - यह किस लिए विक्की...
विक्रम - सॉरी इसलिए... जब जब तुम्हें मेरी जरूरत थी... मैं तुम्हारे साथ नहीं था... थैंक्यू इसलिए... तुमने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा...

शुभ्रा बड़ी जोर से फफकने लगती है l विक्रम उसे अपने भीतर और समेटने की कोशिश करता है I शुभ्रा भी खुद को विक्रम के सीने में समा जाने की कोशिश करने लगती है l
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
Kala Nag मित्र सभी त्योहार पूर्ण हो गए हैं और नया उम्मीद है कि आप सभी के साथ उन्हें उत्सव के रूप में आनंदित हो कर मना लिए होगे... 😍
चलिए अब हम पाठकों के लिए भी समय निकाल कर कुछ बहुत ही मज़ेदार अध्याय को प्रकाशित कर एक आनंद की अनुभूति प्राप्त करने दे..


Waiting for the next update bro

Waiting sir jee

Kala Nag Bhai, agli update ka besabri se intezar he

Pratiksha agle bhag ki 😍🙏

Waiting for the update

Bhai story band kar do yaar

Kaha ho Bhai ?
Kam se kam ek msg ker ke bata to do ki ab update aayega bhi ya nahi

Waiting bhai

Arre Bhai koi dudh le ke aayo
Naag bhai ko dena padegaa..tabhi update milegaa


Kala Nag Bhai, is everything OK??????

Bhai koi problem hai kya
आप लोगों की गुस्सा नाराजगी सब कुछ जायज है मित्रों पर अभी नया अपडेट पोस्ट कर दिया हूँ
कोशिश करूँगा अगली बार फिर से देरी ना हो
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,867
32,739
259
nice update ..waise ye baat to sahi hai ki pura gaon itne jaldi bhairav ke khilaaf nahi ho sakta kyunki wo hai hi itna powerful ,jab normal log apne gaon ke sarpanch se hi nahi ulajhte hai apne pariwar ki sochkar to yaha sadiyo se sabko dabake rakha hai bhairav ke pariwar ne .
uday ne madad to kar di vaidehi ki par wo ye bhi nahi chahta ki uske pariwar par grahan lag jaaye khsetrapal naam ka .

roop ko pakad liya aaj sushma ne aur vishw ko galat kehne lagi par roop ne bata diya ki vishw ko pata nahi kuch bhi .
roop ka faisla ho gaya hai ki wo vishw ki dulhan banke ya phir lash banke haweli se jayegi .

veer ne achcha plan kiya tha vikram ke liye aur vikram usko follow bhi kar raha tha par har baar usko vishw ke saamne gidgidati huyi subhra yaad aa jati hai jisse uska pyar kamjor par jata hai .
waise vishw ne aayna to dikha diya vikram ko aur vikram bhi sab samajh chuka hai isliye subhra ko khush karne me lag gaya hai 😍.
veer to maje se dadi aur anu ko le jaa raha tha ghumane par jab dadi ki baate suni subbu ke pariwar ke baare me jab wo shraap de rahi thi to veer ko jhatka lagna hi tha 😁.

rona apna gussa nikalne me laga hai aur wo bhi saap ke upar ,kuch flashback yaad karke khudko hi kos raha hai .
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
nice update ..waise ye baat to sahi hai ki pura gaon itne jaldi bhairav ke khilaaf nahi ho sakta kyunki wo hai hi itna powerful ,jab normal log apne gaon ke sarpanch se hi nahi ulajhte hai apne pariwar ki sochkar to yaha sadiyo se sabko dabake rakha hai bhairav ke pariwar ne .
uday ne madad to kar di vaidehi ki par wo ye bhi nahi chahta ki uske pariwar par grahan lag jaaye khsetrapal naam ka .

roop ko pakad liya aaj sushma ne aur vishw ko galat kehne lagi par roop ne bata diya ki vishw ko pata nahi kuch bhi .
roop ka faisla ho gaya hai ki wo vishw ki dulhan banke ya phir lash banke haweli se jayegi .

veer ne achcha plan kiya tha vikram ke liye aur vikram usko follow bhi kar raha tha par har baar usko vishw ke saamne gidgidati huyi subhra yaad aa jati hai jisse uska pyar kamjor par jata hai .
waise vishw ne aayna to dikha diya vikram ko aur vikram bhi sab samajh chuka hai isliye subhra ko khush karne me lag gaya hai 😍.
veer to maje se dadi aur anu ko le jaa raha tha ghumane par jab dadi ki baate suni subbu ke pariwar ke baare me jab wo shraap de rahi thi to veer ko jhatka lagna hi tha 😁.

rona apna gussa nikalne me laga hai aur wo bhi saap ke upar ,kuch flashback yaad karke khudko hi kos raha hai .
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
बहुत दिनों के अंतराल के बाद अपडेट दिया है l अगले अपडेट में विश्व गांव पहुँच ही जाएगा
 

Surya_021

Active Member
1,390
3,444
158
👉एक सौ दसवां अपडेट
------------------------
दरवाजा खोलते ही विश्व हैरान हो गया l एक आदमी कंधे पर टोकरे में राशन के सामान लादे खड़ा था l सिर पर पगड़ी था पर उसी पगड़ी के साफे से मुहँ ढका हुआ था l

आदमी - विश्व मुझे अंदर आने दो...
विश्व - (आवाज़ से पहचान लेता है) उदय चाचा... आप...
उदय - हाँ पहले अंदर तो आने दो...

विश्व रास्ते से हट जाता है l उदय अंदर आकर अपने कंधे से टोकरा नीचे रख देता है l

उदय - (वैदेही से) यह लो बेटी... राशन के कुछ सामान...
वैदेही - आप मुहँ छुपा कर... सामान क्यूँ लाए हैं...
उदय - बेटी... (हाथ जोड़ कर) तुमने आज मेरे ही नहीं... वहाँ पर खड़े सबके मुहँ पर कस के तमाचा मारा है... (एक पॉज लेकर) हाँ तुम हममे से एक हो... पर हम.... तुम्हारे जैसे नहीं है... हम भर पुर कोशिश यही करते रहते हैं... के कोई खतरा हमारे... जीवन या परिवार पर... कभी नहीं आए... इसलिए खतरे को दूर से देखकर... रास्ता बदल लेते हैं... क्या करें बेटी... इस मामले में... हम बहुत स्वार्थी हो गए हैं... हम कुछ लोग हैं... जो दुख तो बांट सकते हैं... पर पीड़ा या ज़ख़्म... नहीं बांट सकते... बेटी... कुछ जरूरत हो... तो विश्वा से कहला देना... पर कोशिश करो... घर से तुम.. कम ही निकला करो...

इतना कह कर उदय वहाँ से बिना पीछे देखे चला जाता है l विश्व उसे पुकारते हुए उदय के पीछे चला जाता है l वैदेही कमरे में उदय के बातों को सोचते हुए रह जाती है l कुछ समय बीत चुका था वैदेही यूँही सोच में गुम थी कि तभी घर में विश्व अपने पीठ पर श्रीनु को लटका कर अंदर आता है और उसके पीछे पीछे उमाकांत आता है l उमाकांत के हाथ में बड़ा सा टिफिन कैरेज था, जो वह वैदेही के तरफ बढ़ाता है, पर वैदेही उन्हें देख कर अपनी जगह पर बैठी हुई देखती रहती है l उमाकांत गौर से वैदेही को देखता है l वैदेही के चेहरे पर असमंजस सा भाव देखता है l

उमाकांत - क्या हुआ बेटी... किस असमंजस में हो
वैदेही - हाँ.. (चौंक कर) हाँ... वह... (टिफिन कैरेज लेते हुए) यह.. यह क्या है...
उमाकांत - हम्म्म... समझ गया... ठीक है जाओ... सबके लिए थाली लगा दो... हम सभी भूखे हैं... खाना खाते हुए बात करते हैं...

थाली लगाते वक़्त वैदेही विश्व और श्रीनु दोनों की बातों को ध्यान से सुनने लगती है l विश्व और श्रीनु किसी और भाषा में बात कर रहे थे l

वैदेही - (उमाकांत से) यह विशु... और श्रीनु... किस भाषा में बात कर रहे हैं...
उमाकांत - (मुस्कराते हुए) तेलुगु में...
वैदेही - क्या... (हैरान हो कर) यह दोनों कब यह भाषा सीखे...
उमाकांत - तुम भुल रही हो वैदेही... श्रीनु पारलाखेमुंडी में रह रहा था... सीमांत ओड़िशा और आंध्रा में... इसलिए वह तेलुगु अच्छी तरह से जानता था... मैं अपनी बेटी और दामाद के देहांत के बाद... जब श्रीनु को यहाँ लेकर आया... तब वह सिर्फ पाँच साल का था... तब वह हमेशा गुमसुम रहता था... विशु से उसकी गहरी दोस्ती हो गई... बदले में... वह विशु को तेलुगु सीखा दिया...
वैदेही - ओ... (फिर उन दोनों से) चलो चलो... तुम दोनों भी बैठो यहाँ... खाना लग गया है...

सब के खाना खतम हो जाता है l सब हाथ मुहँ साफ कर लेते हैं l विश्व और श्रीनु दोनों अंदर दुसरे कमरे में खेलने के लिए चले जाते हैं l वैदेही, जब बर्तन मांजने के लिए जाने को होती है तब उमाकांत उसे रोक देता है l

उमाकांत - तुम रुको वैदेही... (वैदेही के रुकने के बाद) विशु ने मुझे सब कुछ बताया... आज सुबह जो हुआ... और अभी कुछ देर पहले... उदय ने आकर जो किया या कहा.... (वैदेही चुप रहती है) देखो वैदेही... आज तुमने ना सिर्फ खुद को जिंदा किया... बल्कि विशु को भी... और कुछ गांव वालों की अंदर के जज्बातों को भी... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) तुम जल्दबाजी से कोई काम ना लो... सब होगा... धीरे धीरे... यहाँ हर कोई... अपने गुस्से को दबा कर... या यूँ कहो... उसे मार कर जी रहा है... क्यूंकि यह उन्हें... पीढ़ी दर पीढ़ी... विरासत में हासिल हुआ है... उनके अंदर की उस चिंगारी को भड़कने के लिए... एक दिन काफी नहीं है... समय लगेगा...
वैदेही - मैं जानती हूँ... सर... और मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है... आपने मुझसे ठीक कहा था... हर एक दिल में... अपने अकर्मण्यता के प्रति बेहद गुस्सा है... नाराजगी है... उसे तो बस दिशा देना है... जिस दिन वह गुस्सा नाराजगी अपनी दिशा पकड़ लेगी... उस दिन... आग और लावा का सैलाब टूटेगा... यह क्षेत्रपाल तितर बितर हो जाएगा....

यह कह कर वैदेही चुप हो जाती है l उमाकांत भी चुप ही रहता है l खेलते खेलते विश्व और श्रीनु दोनों बाहर आते हैं l

उमाकांत - यह देखो... एक वर्तमान है... तो दुसरा भविष्य... कितने निश्चिंत हैं.. जब कि इस घर के बाहर... यह निश्चिंतता का दायरा खतम हो जाता है... फिर जीवन अनिश्चितता में घिर जाता है....

उमाकांत का यह बात सुन कर विश्व मुड़ कर देखता है, और उमाकांत को देख कर पूछता है l

विश्व - क्या अनिश्चितता है सर...
उमाकांत - तुम्हारी दीदी ने... इस गांव के निश्चिंत भविष्य के लिए... कुछ सोचा है...
विश्व - अच्छा.... (वैदेही से) ऐसा क्या सोचा है... मेरे लिए दीदी...
वैदेही - तु अब ग्रैजुएशन करेगा...
विश्व - (चौंकते हुए) क्या... तुम होश में तो हो...
वैदेही - क्यूँ तुझे क्यूँ ऐसा लगा...
विश्व - वजह है... तुम शायद भुल रही हो... राजगड़ या यशपुर में कहीं भी कॉलेज नहीं है... आगे की पढ़ाई करने के लिए... बाहर जाना पड़ेगा... और अगर हम बाहर चले गए... तो इस मिट्टी से रिश्ता हमेशा के लिए टुट जाएगा...
उमाकांत - तु... गाँव में भी रहेगा और... ग्रैजुएशन भी करेगा...
विश्व - कैसे... और क्यूँ... राजगड़ से ताल्लुक रखने वाला कोई भी... ग्रेजुएट नहीं हो सकता... सिवाय क्षेत्रपाल परिवार के...
वैदेही - ऐसा तुझसे किसने कहा...
विश्व - किसने कहा मतलब... येही तो होता आ रहा है... हम सब इसके गवाह हैं... खुद उमाकांत सर भी तो ग्रेजुएट नहीं हैं...

वैदेही कुछ कहने को होती है कि उसे हाथ के इशारे से उमाकांत सर रोक देते हैं l फिर विश्व से

उमाकांत - अगर मैं ग्रैजुएशन करना चाहूँ तो... (विश्व हैरानी भरे नजर से देखता है) तो क्या तुम मेरे साथ... ग्रैजुएशन करोगे...
विश्व - यह... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं.. मेरा मतलब... मेरा तो ठीक है... पर आप इस उम्र में...
उमाकांत - माता सरस्वती वंदना के लिए... उम्र की कोई पड़ाव नहीं होता... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी... कभी भी साथ छोड़ सकती है... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - वह तो ठीक है मगर... मैं पढ़ूंगा कहाँ और कैसे...
उमाकांत - इग्नॉउ से.... घर बैठे रेगुलर कोर्स में... डीस्टेंस एजुकेशन के जरिए... ग्रैजुएशन किया जा सकता है...
वैदेही - हाँ यह बात मैंने कल ही... सर जी से पूछा था... तो सर ने यही रास्ता सुझाया था...
विश्व - (हैरानी के साथ) क्या....

मोबाइल की घंटी बहुत तेजी से बजने लगती है l विश्व की नींद टुट जाती है l विश्व झट से बिस्तर पर उठ कर बैठ जाता है l विश्व पहले बदहवास हो जाता है, फिर धीरे धीरे अपना होश संभालने लगता है l वह सपना देख रहा था, अपने अतीत को याद कर रहा था l यह बात समझ में आते ही एक गहरी सांस फूंकते हुए छोड़ता है l मोबाइल की घंटी बजते बजते रुक गई थी l मोबाइल हाथ में लेकर स्विच को दबाता है देखता है सुबह का पाँच बज रहा था l हैरान हो जाता है, एक मिस कॉल था, नंबर दिख रहा था पर कोई नाम नहीं था l सोच में पड़ गया, इतनी सुबह सुबह एक अनजान नंबर से कौन फोन कर सकता है l अपने मोबाइल हाथ में लेकर नंबर के बारे में सोच ही रहा था कि मोबाइल फिर से बजने लगता है l वही नंबर था, फोन उठाता है, एक लड़की की आवाज़

कॉल - उठ जाग मुसाफिर भोर भई...
विश्व - हैलो... कौन...
कॉल - (शिकायती लहजे में) क्या... तुम मुझे भुल गए... माँ जी ने तुम्हें कुछ नहीं बताया...

विश्व की आँखे हैरानी से बड़ी हो जातीं हैं l उसकी आवाज़ काम्पने लगती है l वह हकलाने लगता है l

विश्व - र... र... राजकुमारी... जी...
रुप - हा हा हा हा (खिल खिला कर हँसते हुए) हाँ... मैं ही बोल रही हूँ... अनाम... पर यह क्या... तुम तो फोन पर ही... नर्वस हो गए.... (शरारती अंदाज में) जब सामने देखोगे तो....
विश्व - (आवाज़ हलक में घुटने लगती है) आ... आप... इतनी सुबह... म्म्म्मु...झे...
रुप - हाँ हाँ सुबह सुबह... फोन किया... तुम्हें जगा दिया... (थोड़े गुस्से और नाराजगी भरे आवाज में, धमकाते हुए) क्यूँ... बुरा लगा...
विश्व - नहीं नहीं... बिल्कुल भी नहीं...
रुप - गुड...
विश्व - पर... आपने बताया नहीं... फोन क्यूँ किया...
रुप - अच्छा... तो जनाब को शिकायत है...
विश्व - नहीं... नहीं... ऐसी बात नहीं...
रुप - ठीक ठीक है... अभी से आदत डाल लो...
विश्व - क... कैसी आदत...
रुप - यही की... तुम्हारी नींद... हमेशा... मेरी आवाज़ सुन कर ही टुटेगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या... ऐ.. ऐसे कैसे हो सकता है...
रुप - क्यूँ नहीं हो सकता... अभी फोन पर आदत डाल लो... शादी के बाद तो यह रुटीन ही हो जाएगी....
विश्व - र.. राज.. कुमारी.. जी...
रुप - कहिए... अनाम जी...
विश्व - आप... राज कुमारी जी ही... हैं ना...
रुप - क्यूँ... तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
विश्व - ऐसा लग रहा है... जैसे आप...अपने जीभ के नीचे कुछ रख कर... आवाज बदल कर बात कर रहीं हैं...

रुप अपने कानों से फोन हटा कर जीभ दाँतों तले दबा कर अपनी सर पर खुद टफली मारती है l

रुप - (मन ही मन) कौन कहेगा... यही वह बेवकूफ है... (फिर विश्व से) वह क्या है ना... बचपन में... मुझसे तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त नहीं हुई... तुम्हारे जाने के बाद... मेरी गला बैठ गई थी... आवाज ही नहीं निकल रही थी... जब निकली... तो हकलाने लगी... अब डॉक्टर ने कहा कि... जीभ के नीचे छोटी सुपारी रख कर बातेँ करने के लिए... तब हकलाना पुरी तरह से गायब हो जाएगा... इसलिए मैं अपनी जीभ के नीचे छोटी सुपारी रख कर बात कर रही हूँ...
विश्व - ओ अच्छा....
रुप - तो अब समझ में आ गया ना...
विश्व - वह तो ठीक है... पर आज ही क्यूँ... कल सुबह भी तो आप फोन कर सकती थीं...
रुप - हाँ कर तो सकती थी... पर तुमसे नाराज जो थी...
विश्व - तो अब नाराजगी दुर कैसे हो गई...
रुप - कौन कहता है कि मेरी नाराजगी दुर हो गई....
विश्व - मतलब... मुझसे किस बात की नाराजगी...
रुप - तुमसे मतलब... मेरी मर्जी... मैं नाराज होती रहूँगी... हक है मेरा... तुम मुझे मनाते रहोगे... यह ड्यूटी है तुम्हारा...
विश्व - जी राजकुमारी जी... जी... क्या अब मैं फोन रखूँ...
रुप - क्यूँ... मैंने कहा क्या फोन रखने के लिए...
विश्व - (मुस्किल से आवाज दवा कर) तो... दो मिनट के लिए... मुझे इजाजत दीजिए...
रुप - क्यूँ... किस बात के लिए...
विश्व - बहुत... जोर की लगी है... बा.. थ... रूम जाना है...
रुप - हाँ तो जाओ ना... फोन पर बातेँ करते हुए जाओ... रोका किसने है...
विश्व - क्या... मैं.. ऐसे कैसे... फोन पर... आपके साथ... जा सकता हूँ...
रुप - ओ हैलो... मैं यहाँ राजगड़ में हूँ... तुम वहाँ कटक में हो... बातेँ ही करते रहना है... कौनसा तुम्हारे सामने हूँ... या मैं तुम्हें देख रही हूँ...
विश्व - (भीख मांगने के अंदाज में) प्लीज... राजकुमारी जी... प्लीज...
रुप - (मासूमियत के साथ) अनाम... क्या सच में... बड़ी जोर की लगी है...
विश्व - (रोनी आवाज में) हाँ राजकुमारी जी हाँ...
रुप - ओ... (शिकायत भरे लहजे में) मुझे लगा... तुम मुझसे बात टालने के लिए बहाना बना रहे थे...
विश्व - प्लीज राजकुमारी जी प्लीज... सिर्फ दो मिनट... दो मिनट के लिए... मुझे छोड़ दीजिए..
रुप - अररे... (तुनक कर) इजाजत तो ऐसे मांग रहे हो... जैसे मैंने तुम्हारे पैंट में... हाथ डाल कर... अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा है... जकड़ रखा है...
विश्व - हे भगवान... कितनी बेशर्मी से बात कर रहीं हैं आप...
रुप - (एक लंबी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म क्या करूँ... जब से तुम्हें जानती हूँ... तबसे तुम्हें शर्माते हुए ही देखा है... अब हम दोनों में से... किसी एक को इस बेशर्मी को उठाना पड़ेगा ना... अब जब मालुम हो गया... लड़के होने के बावजूद... तुमसे हो ना पाएगा... तो मजबूरन इस बेशर्मी का बोझ मुझे ही उठाना पड़ रहा है...
विश्व - आह्ह्ह्ह्...

विश्व से और बर्दास्त नहीं हो पाता, मोबाइल को बेड पर पटक कर बाथरुम में भाग जाता है l अपना टंकी खाली करने के बाद फ्लश कर बाहर आता है तो देखता है फोन कट चुका था l विश्व उस नंबर पर कॉल लगाने की कोशिश करता है पर वह लैंडलाइन से कुँ कुँ की आवाज़ रही थी l विश्व सोचने लगता है, क्रेडल पर माउथ पीस ठीक से रखा नहीं गया होगा शायद या फिर राजकुमारी गुस्से में फोन को पटक दिया होगा l
उधर हँसते हुए कॉर्डलेस को ऑफ करते हुए जब रुप मुड़ती है तो सामने दरवाजे पर सुषमा को देख कर ठिठक जाती है और कॉर्डलेस को अपने पीछे छुपाते हुए इधर उधर देखने लगती है l
सुषमा अंदर आ कर दरवाजा बंद कर देती है और रुप के पास आ कर अपना हाथ बढ़ा देती है l रुप अपनी सिर नीचे किए हुए कॉर्डलेस को सुषमा के हाथ में थमा देती है l

सुषमा - सुबह तड़के... तुम्हें कॉर्डलेस को उठा कर ले जाते हुए देखा... तो तुम्हारे पीछे पीछे यहाँ चली आई... (रुप चुपचाप सुन रही थी) (कुछ देर चुप रहने के बाद) तो... वह अनाम है... तुम जानती भी हो... उसकी क्या हैसियत थी इस महल में...
रुप - (अपनी नजरें सीधे सुषमा की नजरों से मिलाते हुए) जानती हूँ... आप से भी ज्यादा...
सुषमा - (रुप से इस तरह की जवाब से हैरान हो जाती है) रुप... तु जानती भी है... क्या कह रही है... तेरी शादी तय हो चुकी है...
रुप - माँ... बचपन से लेकर आज तक... आप मेरी माँ की जगह पर हैं... और मैं सच्चे दिल से... आपको अपनी माँ ही समझती हूँ... कुछ बातेँ... एक लड़की अपनी माँ से ही कह सकती है... इसलिए आज आपसे एक बात कह रही हूँ... मेरी किस्मत में... अनाम लिखा हुआ है... इसलिए वह मुझे भुवनेश्वर में मिल गया... इस घर से... मैं या तो लाश बनकर बाहर निकलुंगी... या फिर अनाम की अर्धांगिनी बन कर...
सुषमा - हे भगवान... (कह कर धप से रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) रुप... तेरे बचपन में... तेरी कुछ जिद मैं मान लिया करती थी... इसलिए अनाम को तेरे पास आने देती थी... पर उस वक़्त... मैं उसे तेरा बचपना समझ रही थी... तु... तु जानती है ना... वह किस हाल में रहता था... इस महल में...
रुप - नहीं... कभी देखा नहीं उसे... इस महल में कोई काम करते हुए... पर सुनी हूँ... उससे क्या क्या करवाया जाता था....
सुषमा - (गुस्से से जबड़े भींच कर) वाह क्या साजिश रचा है... इसका मतलब... वह नमक हराम... तुम्हें फांस कर... अपना बदला ऐसे ले रहा है...
रुप - नहीं चाची माँ... नहीं... अनाम तो मेरे बारे में... कुछ जानता भी नहीं है... उसे यह पता भी नहीं है... राजकुमारी है कौन...
सुषमा - (हैरान हो कर) क्या...
रुप - हाँ... चाची माँ.. हाँ... उसे मेरे बारे में... कोई जानकारी नहीं है...
सुषमा - तो...
रुप - बस... वह मुझे मिल गया... ऐसा मिला के मुझे अपनी किस्मत पर भरोसा होने लगा... हाँ मैं जानती हूँ... वह कभी इस महल के... कुत्ते की लीद उठाया करता था... पर आज उसका कद उसने खुद इतना बुलंद किया हुआ है कि... उसे देखने के लिए... हर घमंड से भरे सिरों को... अपना सिर और आँखे... उठा कर उसके तरफ देखना होगा....


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


विक्रम की नींद टूटती है l वह करवट बदलता है तो देखता है उसके बगल में अभी भी शुभ्रा सोई हुई है l विक्रम हैरान हो जाता है, बेशक शुभ्रा पर हमले के बाद से दोनों एक ही कमरे में, एक ही बेड पर सो रहे थे, पर दोनों के बीच में एक दूरी बरकरार थी l शुभ्रा ने अपने तरफ से इजाजत तो दे दी थी, पर विक्रम ही वह दूरी तय नहीं कर पाया था अब तक l विक्रम उठ बैठता है और गौर से शुभ्रा के चेहरे को देखने लगता है l कितनी खूब सूरत और मासूमियत से भरा चेहरा है उसका l उसके जेहन में वह चुलबुली अल्हड़ शुभ्रा का चेहरा घुमने लगती है l विक्रम धीरे धीरे शुभ्रा के चेहरे पर झुकने लगता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट खिलने लगती है, कुछ इंच की दूरी पर रुक जाता है, तभी बिजली सी कौंध जाती है उसके जेहन में शुभ्रा का वह चेहरा दिखने लगता है जब विश्व के सामने विक्रम के लिए शुभ्रा गिड़गिड़ा रही थी l विक्रम के जबड़े भींच जाती हैं, वह झट से अलग हो कर बेड से उतर कर कमरे के बाहर आता है l विक्रम और भी ज्यादा हैरान हो जाता है, घर में कोई नौकर दिख नहीं रहे थे I वह सीढ़ियों से उतरता है, डायनिंग हॉल में बेवजह नमस्ते के एक वॉल माउंटेड फैन घूम रही थी l अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाता है, कोई उसे नहीं दिखता, पर उसकी नजर डायनिंग टेबल पर फड़फड़ाता हुआ एक काग़ज़ पर अटकता है l हैरानी से आँखे सिकुड़ जाते हैं l विक्रम डायनिंग टेबल के पास पहुँच कर काग़ज़ को उठाता है l एक चिट्ठी था वीर ने विक्रम के नाम पर संदेश लिखा था l

"भैया...
यह मैसेज फोन पर भी दे सकता था l पर पता नहीं तुम फोन कब उठाते, कब देखते l चूंकि तुमसे और तुम्हारी आदतों से वाकिफ हूँ, इसलिए तुम्हारे लिए एक चिट्ठी पर संदेश लिख रहा हूँ l सच कहता हूँ भैया, लिखना बहुत ही मुश्किल भरा काम है l हाथ दुख गया मेरा, फिर भी लिखा है पढ़ लेना प्लीज l
कुछ गलतियाँ कर रहा हूँ l माफ कर देना l कल रात मैंने बड़ी मुस्किल से भाभी के पीने के पानी में नींद की गोली मिला दिया था l इसलिए भाभी आज सुबह देरी से उठेंगी l और कल रात से ही नौकरों को आज एक दिन की छुट्टी दे दिया है l
तुम कुछ मत सोचो बस भाभी के बारे में सोचो I
भैया तुमने भाभी को अपनी दुनिया में लाए, पर उनकी दुनिया कहीं खो गया है l यह वह तो नहीं हैं जिनसे तुमने प्यार किया था, जिनसे शादी किया था I तुम्हारे लिए मौका बनाने के लिए रुप ने कहा तो मैंने तुम दोनों के लिए मौका बना दिया है l
भैया आज तुम प्लीज भाभी के लिए चाय बनाओ, उनके कमरे में लेकर जाओ, उन्हें जगाओ,फिर...
फिर मैं क्या कहूँ, तुम बड़े हो मुझसे भी पहले प्यार की रेस जीते हो l अब अपने प्यार को जीत लो भैया l मैं तीन दिन के लिए अब घर पर नहीं आने वाला l रुप और मैं, जब हम दोनों घर पर लौटें हमे भाभी का हँसता हुआ चेहरा देखें l
वरना आपके बीच की यह दूरी, मुझे ताउम्र अपनी नजरों से गिराता रहेगा l
प्लीज भैया
अपने इस ना लायक भाई और सबसे प्यारी बहन के लिए भाभी के जीवन में खुशियाँ भर दो ना प्लीज I और हाँ मैंने आपकी भी दो दिन की छुट्टी अप्रूव कर दिया है l क्यूँकी आप तो जानते हैं अखिर कार ESS का सीईओ जो हूँ l

~ वीर ~

विक्रम के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है, वह वहीँ डायनिंग टेबल के पास बैठ जाता है, अपनी और शुभ्रा के बारे में सोचने लगता है l कुछ देर बाद वह उठता है और किचन के अंदर जाने लगता है l किचन के अंदर पहुँच कर देखता है चाय बनाने के लिए सभी सामान बाहर निकाल कर रखा हुआ है l 'वीर' उसके मुहँ से निकल जाता है और हँसने लगता है l विक्रम अपनी जेब टटोलता है फिर उसे मालुम होता है कि उसके पास मोबाइल नहीं है l वह भागते हुए बेड रुम में पहुँचता है l शुभ्रा बिल्कुल वैसे ही सोई हुई थी l अपना मोबाइल लेकर नीचे किचन में आता है और यु ट्यूब पर चाय बनाने की तरीका देखने लगता है l फिर वह चाय बनाने के बाद एक ट्रे पर केतली में चाय और एक छोटे से बाउल में सुगर क्यूब्स लेकर उपर जाता है l कमरे में पहुँच कर टेबल पर ट्रे को रख देता है l विक्रम शुभ्रा के पास बैठ जाता है और उसके गाल पर हाथ फेरते हुए हल्के से झिंझोड कर जगाने की कोशिश करता है l शुभ्रा की आँखे खुल जाती हैं l एक प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल उठती है

शुभ्रा - कितना प्यारा सपना है... विक्की आप मुझे जगा रहे हैं...

कह कर शुभ्रा विक की हाथ को अपने गाल पर पकड़ कर करवट बदल कर सो जाती है l एक पल के लिए विक्रम को बहुत अच्छा लगता है पर फिर वह थोड़ा गम्भीर हो कर अपना हाथ छुड़ाता है और वहाँ से उठ जाता है l उसके जेहन में विश्व के साथ भिड़ने वाली हादसा फिर से गुजरने लगती है l विक्रम शुभ्रा को आवाज़ देता है

विक्रम - शुब्बु... शुब्बु...
शुभ्रा - (उबासी लेते हुए अपनी आँखे खोलती फिर वह चौंक कर उठ कर बैठती है) वि... विक्की... आप...
विक्रम - हाँ... वह वीर ने सभी नौकरों को... शाम तक छुट्टी दे दिया है...
शुभ्रा - क्या... वीर ने... पर क्यूँ... कहाँ है वीर....
विक्रम - वह... पता नहीं... मैं आपके लिए यह...

कह कर चाय की ओर इशारा करता है l शुभ्रा हैरानी के साथ कभी चाय की ओर तो कभी विक्रम की ओर देखने लगती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


वीर गाड़ी चला रहा था l बगल में दादी बैठी हुई थी और पिछले सीट पर अनु बैठी हुई थी l ड्राइविंग करते हुए वीर रियर मिरर से अनु को देख कर गाड़ी ड्राइव कर रहा था l

दादी - इतनी सुबह सुबह... हमें जगा कर... अपने साथ... आप कहाँ ले जा रहे हैं... दामाद जी...
वीर - दादी... मैंने सोचा आपको... कम से कम... अपने राज्य की तीर्थ घुमा लाऊँ... इसलिए हम अभी सबसे पहले पुरी जा रहे हैं...
दादी - (अपना हाथ जोड़ कर) जय जगन्नाथ... जय जगन्नाथ... (फिर वीर की और देख कर) यह बात कल भी तो बता सकते थे... आप...
वीर - क्यूँ... आज कोई परेशानी है क्या...
दादी - आप समझे नहीं दामाद जी... कम से कम घर की चाबी मट्टू को दे आती...
वीर - दादी... यह मुझे बार बार आप आप... क्यूँ कह रहीं हैं... तुम भी तो कह सकती हैं...
दादी - नहीं राजकुमार जी... एक तो आप राजकुमार हैं... ऊपर से... होने वाले दामाद हैं... और हमारे परंपरा में... दामाद जी को आप ही संबोधन किया जाता है... पर अचानक युँ... जगन्नाथ धाम...
वीर - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर थोड़ा गम्भीर हो कर) दादी... कल आप ही ने तो बताया... की भैया और भाभी को एक दुसरे के साथ एक घर में बंद कर देने के लिए.... उन्हें एकांत देने के लिए....
दादी - हाँ कहा तो था... तो क्या हम इसलिए...
वीर - हाँ दादी... मेरे भैया... राजनीति... और सिक्युरिटी व्यस्त रहते हैं... की वह भाभी की तरफ ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं... मैंने आज उन्हें इतने बड़े घर में... एकांत कर दिया है...
दादी - अच्छा किया... पर हमें तुम पुरी क्यूँ लिए जा रहे हो...
वीर - (रियर मिरर में अनु को देखते हुए) दादी आपने मुझे वह सौगात दिया है कि... मैं कुछ भी करूँ आपके लिए... बहुत कम है... वैसे भी आपका... मेरे सिवा है कौन... और आपका ध्यान रखना और सेवा करना... मेरा फर्ज है...
दादी - हाँ यह बात तो आपने सही कहा... मेरा आपके सिवा कोई नहीं है... पर दामाद जी... बाकी कुछ... मैं समझ नहीं पाई...
वीर - बस दादी... आपका पुण्य बल बहुत है... आप मेरे भैया और भाभी के लिए.... प्रार्थना कीजिएगा... उनकी जीवन सुखमय हो जाएगा....
अनु - हाँ दादी... राजकुमार जी सच कह रहे हैं...
दादी - मैं सोच रही थी... अब तक तु चुप कैसे रही...

अनु झेंप जाती है और अपना चेहरा दादी की सीट के पीछे छुपाने लगती है l रियर मिरर में यह देख कर वीर हँस देता है l

वीर - अच्छा दादी... मट्टू को चाबी क्यूँ देती आप...
दादी - अरे बेटा... एक वही तो है... हमारे परिवार के निकट... वैसे भी... उस बस्ती में... उसका हमारे सिवा... और हमारा उसके और पुष्पा के सिवा कोई नहीं है ना... कम से कम घर पर नजर रखते...
अनु - हाँ... जैसे घर में... ख़ज़ाना गाड़ रखी हो...
दादी - तु चुप रह... सामाजिक बंधन में... पड़ोसी भी मायने रखते हैं...
वीर - हाँ... यह बात तो आपने सही कहा...
दादी - हाँ दामाद जी... वैसे भी... उसके साथ कुछ भी तो ठीक नहीं हुआ है... उसके पिता असमय चले गए... उसकी माँ भी उसके ऊपर... पुष्पा का बोझ डाल चली गई... पता नहीं... किस नामुराद की नजर लग गई... उस गरीब को...
अनु - किसकी नजर लग सकती है भला... दादी... तुम भी ना कभी कभी ऊलजलूल बातेँ करती हो...
दादी - तू चुप रह... अगर मट्टू की परिवार पर किसीकी नजर लगी है.... तो भगवान से प्रार्थना है कि.... उस बुरे नजर वाले के साथ भी बुरा ही हो...

चर्र्र्र्र् गाड़ी में ब्रेक लगाता है l सभी झटके के साथ आगे की ओर झुक जाते हैं l

दादी - (हैरानी के साथ) क्या... क्या हुआ बेटा...
वीर - कुछ... कुछ नहीं दादी... कुछ नहीं...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


डगडग.. डगडग... की आवाज सुनाई दे रही थी l थाने के अंदर अनिकेत रोणा अपने चेयर पर उँधा लेटा हुआ था l बदन पर सिर्फ बनियान था अपनी आँखे खोलता है l टेबल पर रखे बेल को बजाता है l एक हवलदार आकर उसे सलाम ठोकता है l

रोणा - यह बाहर... आवाज कैसी है...
हवलदार - साहब... एक सपेरा जा रहा था... हमने उसे रोक कर... साँपों का खेल दिखाने के लिए बोला... इसलिए वह थाने के बाहर खेल दिखा रहा है... और यह आवाज़.. उसके डमरू से आ रही...
रोणा - अच्छा...

इतना कह कर अपनी चेयर से उठता है और उसी हालत में हवलदार के साथ बाहर आता है l सपेरा साँपों को निकाल कर खेल दिखा रहा था l सपेरा तरह तरह के रंग बिरंगी सांप लाया था l वह कभी डमरू बजा कर तो कभी बिन बजा कर सांप का खेल दिखा रहा था l खेल खतम करने के बाद जब वह अपनी खेल समेट रहा था, रोणा उससे सवाल करता है

रोणा - कौन कौन से सांप लाया था...
सपेरा - जी साहब, श्वेत नाग... चम्पा नाग... पद्म नाग... अही राज... बोड़ा...
रोणा - ह्म्म्म्म... सबसे जहरीला कौनसा है...
सपेरा - जी... सब के सब... जहरीले हैं साहब...
रोणा - अच्छा... चल एक सांप को मेरे ऊपर छोड़...

सपेरा यह सुन कर हैरानी भरे नजरों से
रोणा की ओर देखने लगता है l ऐसी हालत सिर्फ सपेरा का नहीं था, बल्कि वहाँ पर मौजूद सभी पुलिस वालों की हालत भी वैसी ही थी l

रोणा - चल... जल्दी मेरे ऊपर एक जहरीले सांप का छोड़...
सपेरा - (डर के मारे हकलाते हुए) यह... यह क्या कह रहे हैं... साहब...
रोणा - अगर तूने अभी मुझ पर... एक सांप को नहीं छोड़ा... तो मैं आज तुझे यहाँ बंद कर दूँगा... ऐसा बंद करूँगा... के आखिरी सांस तेरे छूटेगी... पर तु नहीं छूटेगा...

सपेरा बड़ी मुश्किल से अपना थूक निगलता है और हाथ जोड़ कर रोणा के सामने गिड़गिड़ाने लगता है l

सपेरा - साहब... यह आपके लिए सांप होंगे... पर हमारे लिए बच्चे हैं... हमारे परिवार का हिस्सा... और हम किसी पर भी... ऐसा काम... कर ही नहीं सकते... और आप तो.. पुलिस के बड़े अधिकारी हैं...
रोणा - सुन बे हराम खोर... अभी के अभी... तूने अगर मुझ पर सांप नहीं छोड़ा... तो आज तेरा कोई भी बच्चा... टोकरे से निकल कर... तेरी ज़मानत नहीं कर पाएंगे...

सपेरा डरते डरते अपना एक टोकरा खोलता है l एक सांप को निकालता है और रोणा के सामने छोड़ देता है l सांप कुछ दूर रोणा के सामने जाता है फिर अचानक मुड़ कर पीछे जाने लगता है तो रोणा उस सांप के पुंछ पर पैर रख देता है l सांप पलट कर फन उठा कर डसने की कोशिश करती है l रोणा अपना पैर हटा लेता है l सांप फन उठा कर रोणा की ओर देखती है फिर जैसे ही मुड़ने को होती है रोणा उसके फन पर लात मारता है l सांप पुरे जोर से अपने फन से रोणा के पैर पर डसने की कोशिश करती है l ऐन वक़्त पर रोणा अपना पैर हटा लेता है, जैसे ही सांप का वार खाली जाता है, उसी वक़्त तेजी के साथ रोणा अपने पुलिसिया जुते से सांप के फन को कुचल देता है l सांप बहुत बुरी तरह से छटपटाने लगता है, सांप अपने जिस्म को बहुत बुरी तरह पटकने लगता है l सांप की यह दशा देख कर रोणा की आँखों में एक वीभत्स चमक दिखने लगता है, सांप के फन को कुचलते वक़्त रोणा का चेहरे पर एक भयानक, डरावना संतुष्टि झलकने लगता है l उसके चेहरे पर ऐसी शैतानी झलक देख कर वहाँ पर मौजूद सभी पुलिस कर्मी और वह सपेरा डर जाते हैं l तभी थाने के परिसर में तेजी से बल्लभ घुसता है और रोणा को झिंझोडने लगता है l

बल्लभ - रोणा... यह क्या कर रहा है...
रोणा - (उसी शैतानी तृप्ति के साथ) इस सपोले को... अपनी जुते से कुचल रहा हूँ...
बल्लभ - (फिर से झिंझोडते हुए) रोणा... होश में आओ...

कह कर रोणा को वहाँ से खिंच कर अंदर ले जाता है l कुछ पुलिस कर्मी अंदर आ रहे थे, तो उन्हें इशारे से बाहर ही रुकने के लिए बल्लभ कहता है l रोणा के चेंबर में लाकर बल्लभ रोणा को चेयर पर ज़बरदस्ती बिठा देता है और वहाँ टेबल पर रखे एक पानी के बोतल को रोणा के चेहरे पर उड़ेल देता है l

रोणा - आह्ह्ह... क्या... क्या कर रहा है....
बल्लभ - होश में ला रहा हूँ... अबे चमन चुतिए... क्या कर रहा था...
रोणा - देखा नहीं भोषड़ी के... सांप का सर कुचल रहा था...
बल्लभ - क्यूँ... साले... दिन व दिन... पागल होता जा रहा है... क्या...
रोणा - पागल... हाँ पागल... साला... पागल ही तो हो गया हूँ... उड़ता तीर अपने पिछवाड़े लेने की चूल मची थी... इसीलिए तो... राजा साहब से गुहार लगायी... और अपनी पोस्टिंग यहाँ राजगड़ में कारवाई... साला तब से... साला तब से... ना ठीक से नींद भर सोया... ना चैन भर जिया...
बल्लभ - ओ... तो बात यह है... विश्व तेरे दिल दिमाग जेहन पर छाया हुआ है...
रोणा - छाया हुआ है... साला हाथोड़ा बन कर कूट रहा है... (गहरी सोच में खोते हुए) कौन सोच सकता था... एक बेवकूफ़ सा... नालायक विश्व... जिसे हमने अपना मतलब साधने के लिए बकरा बनाया था.... वही हमें शिकार करने के लिए... खुद को तैयार कर लिया है....

फ्लैशबैक

आठ साल पहले क्षेत्रपाल महल

राज उद्यान में एक सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ है, उसके सिर पर छाता लिए पास भीमा खड़ा है l बगल में पड़े बेंच पर बल्लभ और रोणा के साथ दो और लोग बैठे हुए हैं l सामने नीचे दिलीप कर बैठा हुआ था l

भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो हमें अब क्या करना चाहिए तहसील दार... (बेंच पर बैठे एक शख्स से)
तहसील दार - मज़बूरी है... राजा साहब... हमने बहुत तिकड़म भिड़ाये हैं... पर अब बिना युटिलाइजेशन सर्टिफिकेट के... बाकी का पैसा... नहीं मिलने वाला... और ऊपर से पंचायत का टर्म भी खतम होने को है... और नियम के अनुसार... छह महीने पहले... हर तरह के फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन सीज किया गया है... अब नये सरपंच के सर्टिफिकेशन के बाद ही... बाकी का पैसा... रिलीज़ हो सकेगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम क्या कहते हो... कर...
दिलीप कर - ही ही ही... राजा साहब... आपका कुत्ता तो तैयार है... बस आपका आशीर्वाद चाहिए...
बेंच पर बैठा दुसरा शख्स- माफ़ी चाहूँगा राजा साहब... अगर आप बुरा ना मानें... तो..
भैरव सिंह - अब तुम क्या कहना चाहते हो... रेवेन्यू इंस्पेक्टर...
आर आई - राजा साहब... हमने बेशक... बहुत ही बढ़िया प्लान आजमा कर... पैसे बनाए हैं... पर अब जब फाइनल पेमेंट होनी है... मेरे हिसाब से... हमें दिलीप कर के वजाए... किसी और के बारे में सोचना चाहिए...
दिलीप कर - क्यूँ माई बाप.. क्यूँ...
भैरव सिंह - (दिलीप से) तुम चुप रहो... (आर आई से) तुम कहो... क्यूँ...
बल्लभ - मैं बताता हूँ... बीच में बोलने के लिए माफी चाहूँगा... पर आर आई की बात मैं समझ गया...
भैरव सिंह - ठीक है... हमें समझाओ...
बल्लभ - हम ने... फेक आधार कार्ड को जरिया बना कर... यह सब किया है... अगर कभी... खुदा ना खास्ता... इंक्वायरी हुई... तो वह नया सरपंच फंसना चाहिए....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम्हें लगता है... इस मैटर पर कभी भी इंक्वायरी हो सकती है...
बल्लभ - हाँ... शायद हो सकता है... क्यूंकि... यह मनरेगा का पैसा है... जिस पर युटिलाइजेशन सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है... जो यह सर्टिफिकेट देगा... वही फंसेगा...
रोणा - हाँ अगर नहीं फंसा तो... फंसाना ही पड़ेगा...
तहसील दार - पर ऐसा कच्चा दिमाग वाला है कौन...

सभी सोचने लगते हैं l अचानक भैरव सिंह की भवें तन जाती हैं l उसके चेहरे पर हल्का सा मुस्कान दिखने लगती है l

आर आई - लगता है... राजा साहब ने उस शख्स को ढूंढ लिया है...
दिलीप कर - आखिर... जौहरी की आँख रखते हैं राजा साहब... जरूर ढूंढ लिया होगा....
रोणा - सच में... वह कौन है राजा साहब...
भैरव सिंह - है एक... हमारे ही घर के टुकड़ों में पलने वाला कुत्ता... (कह कर अपनी सिंहासन से उठ खड़ा होता है) (उसे खड़ा होते देख सभी खड़े हो जाते हैं) आओ देखते हैं... उस कुत्ते को...

भैरव सिंह वहाँ से मुड़ कर जाने लगता है l उसके पीछे पीछे वहाँ पर मौजूद सभी चलने लगते हैं l महल को घेरे एक दीवार के पास विश्व क्षेत्रपाल महल का इकलौता कुत्ता टाइगर को शैम्पू लगा कर नहला रहा था l विश्व टाइगर को नहलाने में इतना व्यस्त था कि उसे एहसास भी नहीं होता कि उसके पास आकर कब भैरव सिंह और वे सब लोग खड़े हो गए हैं l भैरव सिंह देखता है, विश्व बड़े मगन से टाइगर को नहला रहा है और टाइगर भी अपना नहाने का मजा ले रहा था l जब विश्व टाइगर पर पानी डालने लगता है तभी उसे एहसास होता है कि कुछ लोग उसके पास खड़े हो कर उसे देख रहे हैं l विश्व नजरे घुमा कर देखता है और चौंक जाता है l

विश्व - र.. राजा साहब... आ... आप.. य.. यहाँ...
दिलीप - अबे ढक्कन... पुरा राजगड़ जब इनकी मिल्कियत है... तो यहाँ वहाँ क्या कर रहा है बे...
विश्व - जी... (अपनी नजरें झुका कर) माफ... माफ कर दीजिए...
रोणा - क्यूँ बे... किस बात की माफी... एक तो बत्तमीजी... ऊपर से सीना जोरी...
विश्व - (अपनी घुटने पर बैठ कर) गलती हो गई... राजा साहब...

इससे पहले कोई कुछ और कहता, भैरव सिंह अपना हाथ उठा कर सब को चुप होने का इशारा करता है l

भैरव सिंह - विश्वा... टाइगर का यह दुम सीधी क्यूँ नहीं है...

विश्व के साथ साथ वहाँ पर खड़े सभी लोग हैरान हो जाते हैं l

विश्व - राजा साहब... कुत्ते का दुम तो हमेशा टेढ़ा ही रहाता है...
भैरव सिंह - ना... हमे यह टेढ़ी दुम वाला कुत्ता पसंद नहीं आया... सीधा करो इसे...

विश्व और भी ज्यादा हैरान हो जाता है, वह अपनी आँख और मुहँ फाड़े भैरव सिंह को देखने लगता है l

भैरव सिंह - हमने कहा... इसकी दुम को सीधा करो...

विश्व अपनी हाथ में थोड़ा शैम्पू डालता है और टाइगर के पूंछ पर मलते हुए सीधा करने की कोशिश करता है l बड़े मायूसी भरे नजरों से भैरव सिंह की ओर देखता है l

भैरव सिंह - फिर से कोशिश करो...

विश्व फिर से हाथ में शैम्पू लेकर अब दोनों हाथों से कुत्ते के दुम पर मलने लगता है l और फिर दोनों हाथों से टाइगर के दुम को सीधा करने लगता है l इस बार संकोच के साथ भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - यह... दुम...
भैरव सिंह - कोई नहीं... जाओ... मैं इन्हें यही समझाने के लिए... लाया था... के कुत्ते का दुम कभी सीधा नहीं हो सकता... जाओ... टाइगर को अच्छी तरह से टावल में पोंछ कर... खाना खिला दो...
विश्व - जी राजा साहब...

विश्व इतना कह कर टाइगर को वहाँ से ले जाता है l उसके जाने के बाद भैरव सिंह पीछे मुड़ कर सबको देखता है

भैरव सिंह - कुछ समझे...
आर आई - जी समझ गया राजा साहब... यह वही कुत्ता है... जिसे हमें बलि का बकरा बनाना है...
तहसील दार - पर क्या यह.... अपना दुम सीधा रखेगा...
भैरव सिंह - यह मेरे दो पांव वाला कुत्ता है... जिसकी दुम हरदम सीधा ही रहेगा...
रोणा - वह तो ठीक है... राजा साहब... कहीं ऐसा ना हो... जिसे हम दुम समझ रहे हैं... कल को फन उठाने की कोशिश करे....
भैरव सिंह - तो सरकार ने तुम्हें जुते दिए किस लिए हैं... कुचल देना तुम्हारा काम है...

फ्लैशबैक खतम

बल्लभ - तो विश्व के गुस्से में... उस सपेरे के सांप को कुचल दिया तुने...
रोणा - हाँ... जरा सोच... यही था वह... कितना बेवक़ूफ़ दिखता था... अब हरामी का पिल्ला... प्लान बनाने लगा है... यही उसकी बहन थी... नजाने कितनी बार उसे नीचे लिटाया था... साली रो रही थी... गिड़गिड़ा रही थी... अपने भाई को छुड़ाने के लिए... लेकिन अब ऐसे फुत्कारती है... के (रुक जाता है)
बल्लभ - के तेरी गांव फटके चौबारा हो जाती है... अबे इसके लिए... असली सांप को कुचलने के लिए... तेरे पिछवाड़े कीड़े कुलबुला रहे थे क्या...
रोणा - क्यूँ थक रहा है... ठंड रख ठंड... मैं तो बस अपना गुस्सा शांत कर रहा था...
बल्लभ - अबे तुझे ठंड रखना चाहिए था... गुस्से में... बेवकूफ़ी कर रहा था... वह कहते हैं ना... सच्चाई... ईमानदारी... इंसाफ़ तभी हारते हैं... जब सामने वाला अव्वल दर्जे का... कमीना पन दिखाए....
रोणा - तो हूँ ना... मैं अव्वल दर्जे का कमीना...
बल्लभ - साले गांडु... सांप से उलझने में कौनसा कमीना पन दिखा रहा था बे...
रोणा - मैं जानता हूँ... सपेरे जिन सांपों के लेकर खेल दिखाते हैं... उनके दांत पहले ही तोड़ दिए होते हैं...

रोणा की इस बात के खुलासे पर बल्लभ का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शुभ्रा अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी l उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि सुबह की शुरुआत इतनी अच्छी हुई, विक्रम उसे जगाया और चाय की सर्व की I कितनी खुश हो गई थी वह विक्रम से ऐसे सरप्राइज़ पाकर पर जब फ्रेश होने के लिए बाथरुम गई आने के बाद कमरे में विक्रम नहीं था l पर तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज आया था l
"शुब्बु मेरी जान, चाय तो जैसे तैसे यु ट्यूब देख कर बना लिया, पर नास्ता बनाना मेरे बस में नहीं था l अब चूँकि वीर ने सभी नौकरों को शाम तक छुट्टी दे दी है, इसीलिए मैं हम दोनों के लिए नाश्ता लाने जा रहा हूँ l इंतजार करना"

बस इतना ही मैसेज छोड़ विक्रम कहीं बाहर चला गया था I नाश्ते का वक़्त गुजर चुका था पर विक्रम का कोई खबर नहीं थी l शुभ्रा जब भी फोन लगा रही थी विक्रम फोन को कट कर देता था l इस तरह से शुभ्रा धीरे धीरे चिढ़ने लगी थी l तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज की ट्यून बजने लगती है l शुभ्रा भाग कर आती है और मोबाइल उठा कर देखती है I मैसेज विक्रम का ही था l मैसेज खोल कर पढ़ती है

"जान वह घर हैल है... याद है हमारा पैराडाइज... खाना तैयार है... मैं तुम्हारा वहीँ पर इंतजार कर रहा हूँ... आ जाओ... तुम्हारा इंतजार है"

मैसेज पढ़ते ही शुभ्रा बहुत खुश हो जाती है l वह झटपट तैयार हो कर नीचे उतरती है l घर में चाबी लगाने के बाद गार्ड को चाबी देकर अपनी गाड़ी से पैराडाइज की ओर निकलती है l गाड़ी में वह बहुत खुश थी, अपने आप से शर्मा भी रही थी l खुद को सम्भालने की कोशिश कर रही थी l कहीं गाड़ी से बाहर यह दुनिया उसकी यह हालत देख ना लें l फिर कुछ सोचते हुए गाड़ी किनारे लगाती है और विक्रम को फोन लगाती है l विक्रम के फोन उठाते ही

विक्रम - हैलो जान क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं बस ऐसे ही...
विक्रम - अच्छा... तो बोलो...
शुभ्रा - विक्की...
विक्रम - हाँ जान...
शुभ्रा - पता नहीं... मैं सामने से पुछ पाऊँगी या नहीं.... इसलिए... आज अचानक इतनी सारी खुशियाँ... डर लग रहा है... कहीं किसी की नजर ना लग जाये...
विक्रम - हमारी ही खुशियों को... मेरी ही नजर लगी थी... आँखों पर धुल... मेरी नासमझी की ज़मी हुई थी.. आज आँखे साफ हुई हैं...
शुभ्रा - क्या यह खुशियां... यु हीं बरकरार रहेंगीं...
विक्रम - तुम्हारी कसम जान... बरकरार रहेगी...
शुभ्रा - (हँस देती है) मैं आ रही हूँ...
विक्रम - हाँ... जान आ जाओ...
" मैं एक अज़ीब सा नशे में हूँ...
पता नहीं कौनसी खुमार में हूँ...
तेरे आने से तड़प मीट जाएगी...
मैं एक ऐसी इंतजार में हूँ....
शुभ्रा - आ रही हूँ... हाँ मैं आ रही हूँ...

शुभ्रा की हाथ से फोन गिर जाता है l शुभ्रा उसे उठाने की कोशिश भी नहीं करती, गाड़ी स्टार्ट कर दौड़ा देती है l उधर फोन कटने के बाद विक्रम उस पेंट हाउस से बाहर आता है और सुबह जो हुआ उसे याद करने लगता है

फ्लैशबैक..

शुभ्रा हैरानी और खुशी के साथ चाय लेती है और फ्रेस होने के लिए बाथरुम में चली जाती है l तभी विक्रम के मोबाइल पर एक मैसेज आता है l विक्रम फोन पर देखता है डिस्प्ले पर दुश्मन लिखा हुआ था l विक्रम की आँखे फैल जाती हैं, मैसेज खोल कर पढ़ने लगता है l

"मैं... xxx पर टेबल नं २८ पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ... हिम्मत है तो आ जाओ..."

विक्रम यह मैसेज पढ़ते ही तैयार हो जाता है और शुभ्रा के मोबाइल पर नाश्ता लाने की मैसेज भेजने की सोचने लगता है और शुभ्रा का बाथरुम से निकलने का इंतजार करता है l जैसे ही बाथरुम का दरवाज़ा खुलने को होता है विक्रम कमरे से बाहर निकल कर मैसेज कर देता है l और नीचे गाड़ी लेकर अपनी xxx को चला जाता है l पंद्रह मिनट के बाद गाड़ी xxx के बाहर लगा कर उतरता है और सीधे टेबल नं २८ पर पहुँचता है I एक एक ओपन फ्लोट रेस्टोरेंट था l जो एक झील पर बना हुआ था l इतनी सुबह उस रेस्टोरेंट में लोगों की आवाजाही ना के बराबर थी l टेबल पर विश्व बैठा चाय पी रहा था l

विक्रम - क्यूँ बुलाया मुझे...
विश्व - पहले बैठ तो जाओ... (विक्रम के बैठने के बाद) बदला लेने के लिए... बड़े बेताब हो...
विक्रम - हाँ... (मुट्ठीयाँ भींच कर) कोई शक़...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं...
विक्रम - मुझे यहाँ बुलाने की वजह...
विश्व - तुम्हारा इंतजार खतम करने के लिए... एक बम्पर ऑफर लाया हूँ...
विक्रम - कैसा इंतजार... कैसा ऑफर...
विश्व - देखो... मैं आज राजगड़ जा रहा हूँ... पता नहीं फिर कब और किन हालातों में वापस आना हो... इसलिए... आज तुम चाहो तो... मुझ पर अपना सारा भड़ास निकाल सकते हो...
विक्रम - ऐसा क्यूँ...
विश्व - कर्ज किसी अपने का हो... तो उसके लिए दोबारा जन्म लिया जा सकता है.... पर कर्ज अगर दुश्मनी का हो... तो इसी जन्म में उतार देना चाहिए....
विक्रम - बड़े नेक विचार हैं... फिर भी यह कोई वजह नहीं लगती...
विश्व - हाँ नहीं है यह कोई वजह... (एक गहरी सांस फूंक मारते हुए छोड़ता है) पिछली बार जब हम मिले थे... तब तुमने एक बात कही थी... तुम पर... मेरी दुश्मनी का इस कदर असर है... के तुम अपने प्यार से भी ना प्यार कर पा रहे हो... ना निभा पा रहे हो...
विक्रम - (अपनी जबड़े भींच लेता है, और दांत पिसते हुए) तो...
विश्व - तुम्हारा वह प्यार... मेरा मतलब है... तुम्हारे उस प्यार का... मुझसे मुहँ जुबानी भाई बहन का रिस्ता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... आगे बोलो...
विश्व - मेरी दुश्मनी की वजह से... मेरी मुहँ बोली बहन की खुशियों में ग्रहण लग जाये... यह मुझे गंवारा नहीं हो पा रहा है....
विक्रम - ओ... तो उस रिश्ते के खातिर... तुम मुझसे पीटना चाहते हो...
विश्व - हाँ... पर यह पुरा सच नहीं है...
विक्रम - तो पुरा सच क्या है...
विश्व - याद है... हमारी इसी तरह की एक मुलाकात हुई थी... उसकी वजह याद है...
विक्रम - (चुप रहता है)
विश्व - मेरे माता पिता... मैं नहीं चाहता... तुम... या तुम्हारा कोई भी आदमी... मेरे गैर हाजिरी में... उनके आसपास भी फटके....
विक्रम - ओ... तो बात यह है...
विश्व - हाँ... ताकि तुम्हारे दिल में... मेरे लिए सारी भड़ास खतम हो जाए... तुम्हारी दुनिया खुशहाल रहे... और मेरी दुनिया महफूज...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) अच्छी प्लानिंग की हुई है तुमने... पर फिर भी... तुम्हें इतना तो इल्म होना ही चाहिए... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल... किसीसे खैरात नहीं लेता... हमारा हाथ हमेशा जमीन की तरफ देखती है... हम या तो देते हैं... या फिर छीनते हैं... आसमान की तरफ दिखा कर ना तो मांगने की आदत है... ना किसीसे कुछ लेने की...
विश्व - विक्रम... तुम (एक पॉज लेकर) स्प्लीट पर्सनालिटी के शिकार हो... तुम बहुत अच्छे हो जाते हो... जब जब क्षेत्रपाल वाला ऐनक उतार देते हो... तुम्हारे आगे झुक जाने को दिल करता है... पर जब क्षेत्रपाल का चश्मा चढ़ा लेते हो... तुम सोच भी नहीं सकते... तुम्हारे लिए कैसी कैसी सोच सामने वाले के दिलों दिमाग पर चलने लगती है...
विक्रम - मैं... दुनिया वालों की... सोच को... और दुनिया वालों के लिए अपनी नजरिए को... जुते के नीचे रखता हूँ...
विश्व - क्या तुम... जुते पहन कर घर के अंदर जाते हो...
विक्रम - व्हाट द फक...
विश्व - नहीं जाते ना... क्यूंकि जुते चाहे जितनी भी क़ीमती हो... रखना उसे बाहर ही होता है... अगर दुनिया वालों की सोच और दुनिया वालों के लिए अपनी नजरिये को जुते के नीचे रख देते हो... तो उस जुते की मैल को... घर के अंदर क्यूँ लेकर जाते हो... अपनों के लिए... दुनिया की और दुनिया के लिए... उस सोच और नजरिया को जुते के साथ... बाहर ही छोड़ दिया करो...

विक्रम एक दम से सुन हो जाता है l चुप हो जाता है, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पाती l

विश्व - विक्रम... (विक्रम का ध्यान टूटता है) मैं यहाँ... अपने माँ बाप के लिए तुमसे पीटने के लिए आया हूँ... भले ही वह मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... पर मैं नहीं चाहता उन पर आँच आए...
विक्रम - तुम बेफिक्र जा सकते हो विश्वा... तुम्हारी और मेरी दुश्मनी की आँच उन तक नहीं पहुँचेगी... और रही तुम्हारे और मेरे बीच का फैसला... वह होगा... एक दिन जरूर होगा... उस दिन तुम्हारे लिए कोई रोयेगा... गिड़गिड़ायेगा...
विश्व - ठीक है फिर... मैं अपने माँ बाप की फ़िक्र को जुते के नीचे रख कर जा रहा हूँ...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l विक्रम उसे जाते हुए देखता है l विक्रम अपने ख़यालों से वापस आता है उसका ध्यान बाहर रखे अपने जुतों पर जाता है l मन ही मन अपने आपसे कहने लगता है

"आज फिर से मुझ पर तुमने एक एहसान कर दिया है l जुतों के साथ क्या घर के बाहर रह जाना चाहिए और जुतों के वगैर क्या अंदर जाना चाहिए बता दिया"

यह सोचते सोचते विक्रम अंदर जाता है l डायनिंग टेबल पर बाउल रखे हुए हैं l बेड रुम में आज उसने अपनी हाथों से बेड को फूलों से सजाया है l तभी उसके कानों के पास एक ठंडी हवा गुजरने का आभास होता है, एक खुशबु उसके नथुनों में घुलने लगती है l झट से पीछे मुड़ कर देखता है l उसकी प्रियतमा खड़ी थी l ना छुपा पाने वाला एक आवेग, एक उल्लास अपने चेहरे पर लिए l विक्रम अपनी बाहें फैला देता है l भागते हुए शुभ्रा विक्रम के गले लग जाती है l शुभ्रा फफक रही थी दोनों एक दूसरे को बाहों में जोर से भींचे हुए थे I

शुभ्रा - (सुबकते हुए अटक अटक कर) विकी... यह सपना तो नहीं है ना...
विक्रम - नहीं जान... यही सच है... (शुभ्रा उससे अलग होने की कोशिश करती है, पर विक्रम उसे अलग होने नहीं देता) नहीं जान... आज मैं अपनी नजरों में इतना गिरा हुआ हूँ... के तुमसे नज़रें नहीं मिला पाऊँगा... बस यह दो लफ्ज़ कह सकता हूँ... पहले तो सॉरी... फिर थैंक्यू...
शुभ्रा - यह किस लिए विक्की...
विक्रम - सॉरी इसलिए... जब जब तुम्हें मेरी जरूरत थी... मैं तुम्हारे साथ नहीं था... थैंक्यू इसलिए... तुमने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा...

शुभ्रा बड़ी जोर से फफकने लगती है l विक्रम उसे अपने भीतर और समेटने की कोशिश करता है I शुभ्रा भी खुद को विक्रम के सीने में समा जाने की कोशिश करने लगती है l
Bahut hi Shandaar update bhai 😍😍
 
Top