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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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मजे से बीती भी और अभी हालात बहुत खराब भी हो गई है परिवार के हर एक सदस्य को अभी सर्दी और बुखार हो गया है
ज़रूरत से ज्यादा लोड लेने के वजह से

ओहहो, ये कैसी छुट्टियां कि लोड कम होने के बजाय बढ़ गया😢
खयाल रखें

ज़रूर पर ध्यान रखियेगा गर्मी बहुत है पानी की कमी शरीर को ना हो जाए
वरना हालत मेरी परिवार की जैसी हो जाएगी

देश में नहीं, कहीं बाहर जाएँगे
 

Kala Nag

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क्या बात ! क्या बात ! क्या बात !
आखिरी अपडेट ने तो मेरा मन ही मोह लिया । पहले , बनानी और नंदिनी का कन्वर्सेशन जो बचपन , जवानी और बुढ़ापे की अवस्था में प्रेम को लेकर था और फिर विक्रम और वीर का वो कन्वर्सेशन जिसमें पहली बार वीर बगावत की मुद्रा में दिखा..... क्या कहने ! आउटस्टैंडिंग ।
धन्यबाद धन्यबाद धन्यबाद
खासकर विक्रम और वीर के बीच में जो भी बातें हुई , उसका एक एक वर्ड्स मैंने भरपूर एंज्वाय किया ।
इसके बाद जोडार साहब को कहानी में जोड़कर एक व्यापारिक गतिविधियों को भी शामिल कर दिया । और यह एक ऐसा व्यापार है जिसे सभी समझ भी नहीं सकते । लेकिन यह हम जानते हैं कि वो एक बड़े उद्योगपति हैं तो स्वाभाविक है कि व्यापार भी उसी स्तर का ही होगा । बहुत खुबसरती के साथ उस विषय पर अपडेट दिया है आपने ।
थैंक्स भाई
जहां तक मेरा मानना है.... प्रेम करने की कोई खास उम्र नहीं होती ।‌‌ प्रेम एक एहसास है जो दिमाग से नहीं दिल से होता है । जवानी में अक्सर लोगों की भावनाएं ज्यादा उछाल मारना शुरू कर देती है इसलिए कहीं कहीं गलतियां कर बैठते हैं लोग । बचपन अबोध होता है... नासमझी होती है... नादान होता है इसलिए अगर गलती हो भी जाए तो इनके लिए कोई बुरा महसूस नहीं करता । और प्रौढ़ावस्था मैच्योरिटी को दर्शाता है इसलिए इस अवस्था में लोग काफी सोच विचार कर कोई कदम उठाते हैं ।
प्रेम में वासना नहीं प्रार्थना होता है ।
यह संग्रह नहीं बांटना होता है ।
प्रेम उपासना भी है और इबादत भी ।
और सबसे बड़ी बात यह निस्वार्थ भाव से होता है ।
जी यह बात आपने सही कही
बहुत खुबसूरत अपडेट था भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
फिर से धन्यबाद और आभार
मेरे कुछ मित्र हैं कुछ समीक्षक हैं विचारक है टिप्पणी कार हैं जिनकी टिप्पणीओं का प्रतीक्षा रहती है
आप निःसंदेह उनमें से एक हैं
हर अपडेट के साथ मेरा यह प्रयास रहता है मैं आपके अपेक्षाओं पर खरा उतर सकूँ
 

Kala Nag

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ओहहो, ये कैसी छुट्टियां कि लोड कम होने के बजाय बढ़ गया😢
खयाल रखें
क्या करें तीन साल बाद बच्चे छुट्टियों पर गए थे इसलिए उनकी और मेरी माँ की बातों का खयाल रखना पड़ा
देश में नहीं, कहीं बाहर जाएँगे
मेरी आंतरिक शुभ कामनाएँ
 

Kala Nag

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👉अस्सीवां अपडेट
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आसमान में बिजली चमक रही है बीच बीच में बादलों की गड़गड़ाने आवाज़ आ रही है l तेज तेज हवाएं चलने लगती है वातावरण कुछ ऐसा हो जाता है कि दुर दुर तक ना आदमी ना आदम का जात, कोई भी नजर नहीं आ रहा l ऐसे में हल्की हल्की बूंदा बांदी भी शुरु हो जाती है l एक लड़की भागते हुए एक पेड़ के नीचे अपना सिर छुपाने के लिए चली जाती है l हवाएं जोर पकड़ने लगती है l उस लड़की की चुनरी उड़ने लगती है l लड़की अपनी चुनरी को संभालती है l बूंदा बांदी धीरे धीरे बढ़कर बारिस का रुप लेने लगती है l लड़की परेशान हो कर इधर उधर देखने लगती है l कुछ दुरी पर उसे एक बंद दुकान दिखती है लड़की भाग कर उस दुकान की बारेंदे में पहुँच जाती है l बारेंदे में पहले से ही कुछ आवारा कुत्ते पनाह लिए हुए थे l लड़की डरते डरते हुए बारेंदे के एक कोने में सिमट कर खड़ी हो जाती है l कुछ समय ऐसे ही गुजर जाते हैं l उसी दुकान के सामने एक खुली छत वाली जीप आकर रुकती है l उसमें से कुछ लड़के हाथो में बियर की बोतल लिए उतरते हैं और उसी दुकान के बारेंदे में पहुँच जाते हैं l उन लड़कों को वह लड़की दिख जाती है l भीगी हुई गिले बालों के साथ उस लड़की को देख कर लड़के आपस में आँख मारते हुए इशारा करते हैं l उनके इरादों को वह लड़की भांप जाती है l वह अपने में और भी सिमट जाती है l उस लड़की की हालत देख कर उन लड़कों पर कुत्ते गुर्राने और भौंकने लगते हैं l वह लड़के एक पल के लिए ठिठक जाते हैं फिर वह लड़के अपने हाथ में जो बियर बोतल लाए थे नीचे फोड़ने लगते हैं l बियर बोतल की फूटने की आवाज़ और कांच के बिखरने से वह कुत्ते डर के मारे भाग जाते हैं l वह लड़की और भी डर जाती है l वह भी भागने की कोशिश करती है कि उसकी दुपट्टा एक लड़के के हाथ में आ जाती है l लड़की रोने लगती है

लड़की - छोड़.. छोड़ दो मुझे...
लड़का - अरे अभी पकड़ा कहाँ है जान... पहले पकड़ में तो आओ... फिर हम छोड़ ही देंगे...
लड़की - (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज... मुझे जाने दो... मुझे खराब मत करो...

लड़के उसे गिड़गिड़ाता देख कर कह कहे लगाते हैं l लड़की अचानक रोना बंद कर चिल्लाने लगती है

"राजकुमार... आप कहाँ हैं... मुझे बचा लीजिए प्लीज"

वह लड़के और भी जोर से कह कहे लगाते हैं l तभी एक घोड़े की हीनहीनाने की आवाज आती है l सभी उस आवाज की तरफ देखने लगते हैं, बिजली बार बार चमकने लगती है l उसी बिजली की चमक में दिखता है, कि तेजी से दौड़ती हूई घोड़े पर एक नकाबपोश उन्हीं के तरफ चला आ रहा है l वह नकाबपोश घोड़े से उतरता है बिना किसी से सवाल जवाब किए उन लड़कों को मारने लगता है l वह अकेला ही उन सब पर भारी पड़ता है l वह लड़के बिना पीछे मुड़े वहाँ से भाग जाते हैं l उनके भागते ही वह नकाबपोश अपने घोड़े पर चढ़ जाता है l घोड़े को चलाते हुए उस लड़की के तरफ अपना हाथ बढ़ाता है l वह लड़की भी नकाबपोश की हाथ थाम लेती है l नकाबपोश एक झटके में ही उस लड़की को आगे उठा कर अपनी गोद में बिठा देता है l वह लड़की बिना पलकें झुकाए उस घुड़ सवार को देखने लगती है l घोड़ा तेजी से भागता रहता है लड़की अपना हाथ बढ़ा कर उस नकाबपोश के चेहरे से नकाब हटाती है l

लड़की - राजकुमार... आप... आप आ गए... मेरे लिए...
राजकुमार - हाँ अनु... हाँ... मैं... तुम्हारा वीर... तुम्हारे लिए... कहीं भी जा सकता हूँ... किसी भी हद तक जा सकता हूँ...

घन घोर बारिश में भी अनु की आँखे छलक पड़ती हैं l भागते हुए घोड़े को एक जगह वीर रोकता है l

वीर - तुम्हें क्या लगा अनु... मैं नहीं आऊंगा...
अनु - (खुशी के मारे मुस्कराने की कोशिश करती है) मुझे.... पता नहीं था... की आप मेरे लिए...
वीर - क्या... तुम्हें अपने प्यार पर इतना भी भरोसा नहीं है... ठीक है... मैं तुम्हारे लिए किस हद तक जा सकता हूँ... अभी बताता हूँ...

इससे पहले अनु कुछ सोच पाती कह पाती, वीर अपना होंठ अनु की होठों पर रख देता है l अनु अपनी आँखे बंद कर लेती है

तभी उसकी पिछवाड़े पर एक मार पड़ती है l अनु चौंक कर उठ जाती है l देखती है उसकी दादी हाथ में झाड़ू लिए उसके बिस्तर के पास ही खड़ी है l

अनु - (अपनी पिछवाड़े पर हाथ फेरते हुए) क्या दादी... खाली फोकट में जगा दिया...
दादी - सुरज सिर पर चढ़ने को है... महारानी बताएंगी... ऑफिस कब जाओगे...
अनु - क्या.... (वह चौंक कर अपनी मोबाइल पर वक़्त देखती है) क्या दादी... सिर्फ सात ही तो बजे हैं...
दादी - तो क्या हुआ महारानी... नौकरी पर नहीं जाना है क्या...
अनु - एक दो दिन लेट हो जाने से... क्या फर्क़ पड़ जाएगा...
दादी - क्यूँ लेट होना चाहती है...
अनु - हमेशा कहाँ दादी... बस आज ही... बस आज मैं लेट होना चाहती थी...
दादी - हे भगवान... क्यूँ आज कोई खास बात है क्या...

अनु अपनी दादी को अपने पास बिठा देती है और बगल से उसके गले में अपनी बाहें डाल देती है l अपनी दादी के कंधे पर अपना सिर रख कर

अनु - बड़ा ही प्यारा सपना देख रही थी दादी...
दादी - सपना... हमारे भाग में सपना कहाँ हैं... बेटी... सपना ही था... कौनसा सच हो जाएगा...
अनु - ठीक कहा दादी... सपना था... सच तो होने से रहा... पर थोड़ी देर देख लेने से... उसकी मिठास का एहसास पुरा दिन बना देता है...
दादी - अच्छा... इतना अच्छा और मीठा सपना था...
अनु - हाँ दादी... इतना मीठा.. की... क्या कहूँ..
दादी - अच्छा... मुझे भी बता... क्या सपना था...
अनु - (हड़बड़ा जाती है) वह.. मेरा प्रोमोशन होगया... और मेरी तनख्वाह भी बढ़ गई... हमारे पास अब कोई कमी नहीं है... सिर्फ़ खुशियां ही खुशियां है...
दादी - (अनु की हाथ छुड़ा कर) बस बस... ऐसे सपने मत देखा कर... यह नौकरी भी बड़ी मिन्नत और भीख से मिली है... इसे बचाए रख... और ऐसे सपने मत पाल... जो कभी सच नहीं होंगे...
अनु - (चेहरा बुझ जाता है) जानती हूँ दादी... जानती हूँ... मुझे अपनी आँचल का दायरा मालुम है... मेरे कदम वहाँ तक नहीं जाएंगे... जहां मेरी आँचल की छाँव खतम होता हो...
दादी - (बड़े प्यार से अनु के चेहरे पर हाथ फेरते हुए) शाबाश मेरी बच्ची.. शाबाश... मुझे मेरे परवरिश पर पुरा भरोसा है... खैर (बात बदलने की चक्कर में) ऑफिस में... सब कैसा चल रहा है...
अनु - (मुस्करा कर देखती है) (दादी अपना चेहरा दुसरी तरफ कर लेती है) दादी... मैंने अभी अभी कहा ना... मुझे अपना दायरा मालुम है... (दादी मुस्कराने की कोशिश करते हुए वहाँ से चली जाती है) (दादी के जाने के बाद) पर मेरी हालत एक पतंगे की तरह हो गई है दादी... और वह लॉ की तरह जल रहे हैं... मुझे उसने मिल जाना है... उन पर मीट जाना है... शायद यही मेरी नियति है... और मुझे यह नियति स्वीकार भी है...

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जोब्रा बैरेज से छोड़े जा रहे पानी के धार के पास आधी गिली रेत पर नंगे पैरों पर तापस तेजी से चल रहा है l थोड़ी देर बाद उसके साथ साथ विश्व कदम मिला कर चलने लगता है l

तापस - (विश्व की ओर देखते हुए) क्यूँ बर्खुर्दार... छत पर सुबह की कसरत कम पड़ गया क्या... यहाँ मेरे साथ वॉकींग करने आ गये... ऐसे रेत पर नंगे पैर वॉकींग की जाती है... जुते पहन कर नहीं...
विश्व - क्यूँ...
तापस - सुबह नंगे पैर... या तो घास पर.... या फिर सूखे रेत पर चलने से.. शरीर के सारे एक्युप्रेशर पॉइंट्स ऐक्टिव हो जाते हैं...
विश्व - वाव... तभी... तभी मैं सोचूँ... आप डे बाइ डे... इतने यंग और इनर्जेटिक कैसे होते जा रहे हैं...
तास - क्या मतलब है तेरा... इससे पहले मैं बुढ़ा लग रहा था क्या...
विश्व - (अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए) ना ना... मैं आपके बारे में.. ऐसा कैसे सोच सकता हूँ..
तापस - तो सिर ऐसे क्यूँ हिला रहा है...
विश्व - वह सुबह कसरत करते हुए गर्दन अकड़ गया था... इसलिए गड़बड़ हो रहा है...
तापस - गड़बड़ के बच्चे... मुझे छेड़ रहा है...

विश्व भागता है और तापस उसे दौड़ाने लगता है l विश्व तेजी से वहाँ भाग जाता है l तापस भागते भागते थक कर एक पत्थर पर हांफते हुए बैठ जाता है l जब तक तापस की सांसे नॉर्मल होता है तब विश्व एक नारियल लेकर पहुँचता है और तापस को देता है l

तापस - यह क्या है...
विश्व - क्या हुआ डैड... आँखों में कोई प्रॉब्लम है क्या... नारियल है यह...
तापस - तु फिर से मुझे छेड़ने लगा...
विश्व - हा हा हा... सॉरी डैड... ले लीजिए... पर आपका सवाल गलत था...
तापस - मैं इसलिए पुछा... सुबह सुबह यह नारियल पानी का क्या चक्कर है...
विश्व - डैड... इस में नेचुरल ग्लूकोज़ और इम्युनिटी बूस्टर है...
तापस - (नारियल पानी पीते हुए) तुझे कैसे पता...
विश्व - पाँच साल... जैल के लाइब्रेरी में इस तरह के ज्ञान प्राप्त कर रहा था... जानते हैं डैड... आर्मी में कमांडोज को... सबसे विपरित परिस्थितियों में... सलाईन के रूप में नारियल पानी चढ़ाया जाता है...
तापस - (नारियल पानी खतम करने के बाद) हम्म.. यह ज्ञान भी क्या तुझे... लाइब्रेरी में मिला है...
विश्व - हाँ...
तापस - खैर यह बता... तु मेरे पीछे यहाँ क्यूँ आया...
विश्व - क्या करूँ डैड... सुबह कसरत करने के बाद... खुद को कैसे बिजी रखूँ... नाश्ता बनाने की सोचा था... पर...
तापस - तेरी माँ ने मना कर दिया होगा...
विश्व - हाँ.. समझ में नहीं आया.. इसलिए यहाँ आ गया... माँ.. मुझे किचन में घुसने ही नहीं देती...
तापस - (मुस्करा कर) आ बैठ.. (पत्थर पर जगह दिखाते हुए) यहाँ... (विश्व के बैठने के बाद) हम दोनों सुबह... शायद एक साथ उठते हैं... पर मैं अपना बिस्तर नहीं उठाता... यह कोई मेन इगो नहीं है... गलती से एक दिन मैंने उठने के बाद... अपना बिस्तर उठा लिया था... सोचा तेरी माँ इम्प्रेस हो जाएगी... पर हुआ एकदम उल्टा... पुरे दो दिन तक मुझसे बात चित बंद कर दिया था... तुम्हारी माँ ने...
विश्व - क्या... फिर तो आपने कभी ऐसी गलती दोहराया नहीं होगा...
तापस - किया था...
विश्व - क्या... आपने गलती फिर से दोहराया था...
तापस - हाँ... यार... एक दिन... कोर्ट से आते आते देर हो गई थी... तो सोचा... मैं खाना बना दूँ...
विश्व - क्या... (हैरानी जताते हुए) आप और खाना... सीरियसली... डैड...
तापस - ऐ... खाना बनाने के मामले में... मैं तुझसे बीस हूँ... समझा...
विश्व - तो फिर माँ... नाराज क्यूँ हो गई...
तापस - क्यूँ के मैंने खाना बना दिया था... उसने यह कहते हुए घर सिर पर उठा लिया था... की मेरा प्यार उसके लिए कम हो गया है... मुझे उसके हाथ का खाना अब पसंद नहीं आ रहा....
विश्व - व्हाट... सच में....
तापस - हाँ... कुछ मामलों में... औरतों को समझना बहुत ही मुश्किल है... शायद ना-मुमकिन... (एक पॉज ले कर) वह रात में पता नहीं कितनी बार उठती है.... तेरे कमरे में जाति है.... तुझे नजर भर देखती है... सुबह जल्दी उठकर तेरे कमरे में जाति है... तुझे सोया देख कर बहुत खुश हो जाती है.... फिर नहाने चली जाति है... तब तक तु उठ चुका होता है... अपना बिस्तर उठा चुका होता है और कसरत करने छत पर चला गया होता है.... वह वापस आकर... पूजा पाठ करती है... फिर पुजा खतम होने के बाद... अपने कमरे में... पूजा घर में... और किचन में.. कैलेंडर से... एक दिन काटती है.. फिर से गिनती है... कहीं गिनती गलत तो नहीं हो गई है... (विश्व की ओर देख कर) तुझसे दूर होने से डर रही है... जब कि वह जानती है... छब्बीस दिनों के बाद... तुझे जाना ही है... इसलिए वह रोज तेरे पसंद की खाना बनाकर तुझे खिलती रहती है....

विश्व चुप हो जाता है और अपनी ख़यालों में खो जाता है l फिर संभल कर

विश्व - पर डैड... मैंने वचन भी तो दिया है... मैं सब कुछ खतम हो जाने के बाद... हमेशा के लिए... माँ के पास रुक जाऊँगा...
तापस - हाँ... जानता हूँ... पर आने वाले कल को... तु जिन लोगों से भिड़ने वाला है... उसके बारे में सोच सोच कर तेरी माँ.. परेशान रहती है... तुने मना कर रखा है... वरना अब तक भैरव सिंह की नींद... तेरी माँ कब की उड़ा चुकी होती...
विश्व - जानता हूँ... डैड... जानता हूँ... अब भैरव सिंह के अहं के नीचे... कोई और रौंदा नहीं जाएगा... अगर आप या माँ उसके नजर में या चपेट में आ गए... तो मैं खुद को कभी... कभी भी माफ नहीं कर पाऊँगा... वह मेरा... मुझसे कहीं ज्यादा.... मेरी दीदी का गुनहगार है... उसकी सजा तो उसे मिलेगी ही...
तापस - हाँ.. मिलनी चाहिए... पर तुझे याद तो है ना... तुने अपनी माँ से क्या वादा किया है...
विश्व - हाँ...(विश्व का चेहरा कठोर हो जाता है) इसलिए तो... हाथ बांधे रुका हुआ हूँ... भैरव सिंह को सजा कानूनन होगी...
तापस - गुड... अच्छा चल... तेरी माँ हमारा इंतजार कर रही होगी...
विश्व - जी...

फिर दोनों उठते हैं और घाट की चलने लगते हैं l

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वैदेही अपनी आँखे बंद कर कुछ मंत्र पढ़ती है और एक बड़ा सा कर्पूर अपने दाहिने हाथ में ले कर उसमें आग लगाती है l फिर कर्पूर को चूल्हे के चारों ओर घुमाती है और फिर गोबर के कंडे से भरे चूल्हे में जलती कर्पूर डाल देती है l

वैदेही - काकी जाओ गल्ले पर बैठ जाओ... थोड़ी देर बाद नाश्ते के लिए भीड़ लग जाएगी यहाँ...
गौरी - काहे के लिए गल्ले पर बैठुँ... आधे तो अभी भी... उधारी पर खा रहे हैं... बाकी... सब की तारण हार बन बैठी है... किसको कोई दुख हुआ कि नहीँ... कमर में साड़ी ठूंस कर पहुँच जाती है... उनके लिए लड़ने के लिए... बचाने के लिए...
वैदेही - (मुस्करा देती है और अपने काम में लग जाती है)
गौरी - मुस्करा क्यूँ रही है... मैंने कौनसा चुटकुला सुनाया है...
वैदेही - (फिर भी मुस्कराती रहती है और चुप रहती है)
गौरी - हूँ.. ह्... मेरी हर बात को हँस कर उड़ा देती है... अगर बुरा लगे तो कहना... मैं अपना मुहँ सी लुंगी...
वैदेही - (गौरी की तरफ घुम कर) क्यूँ सी लोगी अपना मुहँ... (गौरी के पास जाकर) एक तु ही तो है काकी... जो हक़ से मुझे गाली देती है... यह हक़ मैं तुमसे क्यूँ छिनुँ...
गौरी - बस बस... बहुत हो गया... कभी मेरी बात मानें तो सही...

कह कर गौरी जा कर गल्ले पर बैठ जाती है l वैदेही भी अपने काम में लग जाती है l धीरे धीरे लोग चाय नाश्ते के लिए जमा होने लगते हैं l कुछ देर बाद एक पुलिस की जीप आकर रुकती है l वहाँ पर मौजूद सबकी नजर जीप के अंदर बैठे ऑफिसर पर जाता है l कुछ एक के लिए वह एक नया ऑफिसर था पर बहुतों के लिए वह कोई अंजान नहीं था l जिन लोगों ने उसे पहचान लिया उन सबके खौफ के मारे रोंगटे खड़े हो गए l वह कोई और नहीं था, वह था इंस्पेक्टर रोणा l एक शैतानी हँसी के साथ गाड़ी से नीचे उतरता है और एक कांस्टेबल को इशारा करता है I कांस्टेबल वैदेही के दुकान में आता है और दरवाज़े पर डंडा मारता है l


कांस्टेबल - एई... लड़की...
वैदेही - क्या बात है... कांस्टेबल साहब...
कांस्टेबल - चलो... बाहर... साहब ने बुलाया है...
वैदेही - ठीक है चलिए...

कांस्टेबल आगे आगे जाता है और इतने में वैदेही अपनी मोबाइल से एक फोन लगाती है l जैसे ही फोन लग जाती है उसे अपने पल्लू में छुपा कर आगे बढ़ती है l

रोणा - आओ... वैदेही... आओ... कैसी हो... इन सात सालों में अपनी बदन का बड़ा खयाल रखा है... बहुत गदरा गई हो...
वैदेही - (जबड़े भींच जाते हैं) कहो... इंस्पेक्टर... क्यूँ बुलाया मुझे...
रोणा - किसीने तेरे खिलाफ कंप्लेंट की है... इसीलिए तुझे अरेस्ट करने आया हूँ...
वैदेही - अच्छा... कौन है वह सज्जन पुरुष...
रोणा - नरी... नरी नामका.. एक जिम्मेदार नागरिक ने तुम्हारे खिलाफ अभियोग किया है... इसलिए तुझे मैं यहाँ गिरफ्तार करने आया हूँ... इसलिए अब यह दुकान बंद कर.... और मेरे साथ... अपने ससुराल चल...
वैदेही - अच्छा... बड़ी जल्दी है तुझे... मुझे मेरे ससुराल भेजने की...
रोणा - कमीनी... एक पुलिस अधिकारी से कैसे बात की जाती है... तुझे पता नहीं...
वैदेही - (अपनी दाँतों को चबाते हुए) यह बात तुझ पर भी लागू होती है कमीने... तु किसी आम नागरिक के साथ ऐसे बात नहीं कर सकता.... और बिना वारंट के... मुझे यहाँ से तु... ले नहीं जा सकता...
रोणा - अच्छा... तो तु मुझे कानून दिखाएगी... ह्म्म्म्म... चल तुझे कानून का एक सबक सिखाता हूँ... सन 1973 की संशोधित चैप्टर पांच के सेक्शन 41 से 60... एक पुलिस अधिकारी को बिना वारंट मक्तुल को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है...
वैदेही - (मुस्कराती है) अच्छा... पर उस संशोधित चैप्टर पांच एवं चार कहती है... की वह अपराधी पुलिस के संज्ञान में सामुहिक अपराध किया हो... या किसी संगठित अपराध से जुड़ा हुआ हो... या अदालत ने... जिसे दोषी करार दिया हो... उसे ही बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.... और जहां तक मुझे मालुम हो रहा है... मैं इन
मामलों में कहीं नहीं आ रही...

वैदेही के यह बात कहने पर सारे पुलिस वालों का मुहँ खुला रह जाता है l रोणा अपने चारों ओर देखता है फिर अपने कंधे को झटका देते हुए l

रोणा - कमीनी... मुझे... मुझे कानून पढ़ायेगी... मुझे... तेरे खिलाफ नरी ने कंप्लेंट किया है... अपनी जान का खतरा बताया है...
वैदेही - अच्छा... एक हट्टा कट्टा बांका गबरु मर्द को... रंग महल की रंडी से खतरा है... अगर रिटीन कंप्लेंट है... तो इतना नाटक क्यूँ कर रहा है...

रोणा हैरान हो कर वैदेही को देखने लगता है l उसे यकीन ही नहीं होता है कि यह वही वैदेही है जो आँखों में आँखे डाल कर सीना तान कर रोणा से बात कर रही है l कुछ देर पॉज लेने के बाद

रोणा - (अपने सिपाहियों से) अरेस्ट करो इसे... बहुत जुबान चला रही है... कमीनी साली...

सिपाही जैसे ही आगे बढ़ते हैं l ठीक उसी समय वैदेही थोड़ी ऊंची आवाज में कहती है

वैदेही - एकर्डींग टू इंडियन क्रिमिनल लॉ प्रोसीजर... सेक्शन 47 क्लॉज 2
सेक्शन 51 क्लॉज 2
सेक्शन 50 एंड 57.... एंड... एज पर सुप्रीम कोर्ट जजमेंट 1983...
अगर किसी औरत पर कोई केस बनती है... तो उसे गिरफ्तार करने का अधिकार कानून सिर्फ महिला पुलिस को देती है...

सारे कांस्टेबल जो वैदेही के तरफ बढ़ रहे थे, सब के सब रुक जाते हैं l सबसे ज्यादा हैरान रोणा होता है l उसकी आँखे फटी के फटी रह जाता है l

रोणा - (हकलाते हुए) को... को... कोई परेशानी नहीं है... गिरफ्तार करो इसे... जो भी होगा... मैं देख लूँगा...

वैदेही - एक मिनट... एक मिनट... तुम्हारे इस इंस्पेक्टर को कुछ और भी बताना है... एक मिनट... (वैदेही अपना मोबाइल निकालती है और उसे स्पीकर पर डालती है) मासी... वह अब आपको सुन पा रहा है...
प्रतिभा - (फोन से) सुनो इंस्पेक्टर.... मत भूलो... तुम छह महीने के लिए.. क्यूँ सस्पेंड हुए थे... अदालत तुम्हारे केरियर और कैरेक्टर पर दाग लगा चुकी है... इसलिए तुम्हारा कोई भी गलत कदम... ना सिर्फ तुम्हारी नौकरी छिन लेगी... बल्कि तुम्हें ताउम्र सलाखों के पीछे सड़ने के लिए छोड़ देगी.... वैसे भी तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ... वैदेही ने अदालत में अपनी जान का खतरा बता कर एक हलफनामा दाखिल किया है... उस हलफनामे में तुम्हारा भी नाम है... और सुनो मैं वाव की प्रेसिडेंट हूँ... मतलब वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा की प्रेसिडेंट... इसलिए जो भी करना आगे पीछे सोच समझ कर करना.... (वैदेही से) घबरा मत बेटा... अगर तेरे माथे पर बल भी पड़ा... वह इंस्पेक्टर अपनी वर्दी उतरवा कर हर्जाना भरेगा...
वैदेही - जी मासी...

वैदेही फिर अकड़ के साथ रोणा की ओर देखती है l रोणा अब तक जो हुआ उसे समझने की कोशिश करता है l वह नर्वस हो कर अपना जुबान होठों पर फेरने लगता है l वहाँ पर मौजूद सभी लोग भी बड़ी ही हैरानी के साथ वैदेही की देखते हैं l किस तरह एक अटूट चट्टान की तरह रोणा की सामने खड़ी हो कर चुनौती दे रही है l

वैदेही - सुन बे इंस्पेक्टर... अब यहां से दफा हो जा... आज का दिन तो तेरा खराब गया... अगर सच में तु मर्द है... और अगर सच में... तु जिसका सरनेम लेकर घुम रहा है... उसीका बेटा है.... और अपने पेंट के नीचे... अपना ही लौड़ा लेकर घूम रहा है.... तो दो महीने के लिए रुक जा... क्यूंकि दो महीने के बाद तेरा... तेरे बाप से मुलाकात होगी... उसके सामने तू अपने को मर्द साबित करना... अब जा यहां से...

रोणा अपने सिपाहियों को इशारा करता है और सभी जीप में बैठ कर वापस चले जाते हैं l उनके जाते ही, वैदेही प्रतिभा को फोन लगाती है

प्रतिभा - कैसी है मेरी बच्ची...
वैदेही - मैं ठीक हुँ मासी... पर यह हलफनामा... क्या है...
प्रतिभा - झूठ बोल दिया उसे... पर लगता है... अब हलफनामा सच में दायर करनी पड़ेगी...
वैदेही - (हँसते हुए) उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी... मैं उस इंस्पेक्टर की नस नस से वाकिफ़ हूँ... डरपोक और फट्टु है... वह दो महीने के लिए ख़ामोश रहेगा...
प्रतिभा - सिर्फ़ दो महीने के लिए... फिर...
वैदेही - क्या मासी... उसके बाद मेरे पास... मेरे साथ विशु होगा ना...
प्रतिभा - (एक झटका सा फिल करती है) हँ... हाँ... हाँ... ठीक कहा तुने...
वैदेही - अच्छा मासी... अब मैं फोन काटती हूँ... बाद में बात करती हूँ...

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हाथ में फोन लिए किसी खयाल में खोई हुई थी प्रतिभा l उसका ध्यान टूटता है जब विश्व उसे पुकारता है l

विश्व - माँ... क्या हुआ... कहाँ खो गई हो...
प्रतिभा - हाँ... कु... कुछ नहीं... (विश्व उसके सामने घुटने पर बैठा हुआ है) (संभल कर, एक गहरी सांस लेते हुए) सुबह सुबह कहाँ गया था....
विश्व - यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ...
प्रतिभा - (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) (फिर प्यार से विश्व के चेहरे पर हाथ फेरते हुए मुस्करा देती है) कुछ बातेँ... इतनी निजी होतीं हैं... जिसे खुद से भी बांटा नहीं जा सकता है... जा फ्रेश हो जा... मैं नाश्ता लगा देती हूँ... तेरी नाश्ता खतम होने के बाद.... मैं.... कोर्ट चली जाऊँगी....

विश्व और कुछ नहीं कहता है वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चला जाता है l तापस इशारे से पूछता है

तापस - (इशारे से) क्या हुआ...
प्रतिभा - (इशारे से) नहीं कुछ नहीं....

प्रतिभा उठ कर वहाँ से चली जाती है पर अपना फोन वहीँ टेबल पर छोड़ जाती है l तापस उस फोन में कल डिटेल्स में वैदेही का नंबर देखता है और कुछ समझने की कोशिश करता है l फिर प्रतिभा से

तापस - अरे भाग्यवान...
प्रतिभा - जी...
तापस - तुमने... प्रताप के लिए कुछ सोचा है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आते हुए) क्या... क्या सोचना है...
तापस - यही के... उसका टाइम पास कैसे होगा... वगैरह.. वगैरह...
प्रतिभा - नहीं... ऐसा तो मैंने कुछ... नहीं सोचा है... क्या आपने सोचा है...
तापस - नहीं... वैसे कुछ खास नहीं... सोच रहा था कि... उसे थोड़े बहुत पैसे दे कर... कटक... भुवनेश्वर और पुरी... घूमने के लिए भेज दिया जाए...
प्रतिभा - (भवें सिकुड़ कर तापस को देखती है)
तापस - मेरे कहने का मतलब है... लड़का है... जवान है... थोड़ा घुम फिर लेगा... तो उसे भी अच्छा लगेगा...
प्रतिभा - (टेबल पर नाश्ता लगाते हुए) ठीक है... जैसा आप ठीक समझे...

तापस भी चुप रहता है और वह भी सोच में गुम हो जाता है l


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कॉलेज की ओर वीर अपनी गाड़ी ले जा रहा है l उसके बगल में रुप बैठी हुई है l

रुप - अच्छा भाई... आज भी तुम क्लास में नहीं जाओगे...
वीर - क्या बात है बहना... मेरी क्लास के बारे में... बहुत सोच रही है...
रुप - बात ऐसी नहीं है... मेरा मतलब है कि... तुम ESS ऑफिस में कैसे वक़्त बिताते हो... यहाँ तुम्हें दोस्त मिल जाते...
वीर - देख बहना... मैं ESS ऑफिस उसी दोस्त के लिए ही जाता हूँ...
रुप - (हैरान हो कर) मतलब तुम्हारा कोई दोस्त है...
वीर - क्यूँ... मेरा कोई दोस्त नहीं हो सकता है क्या...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है... मेरा कहने का मतलब है कि... कॉलेज में किसीको दोस्त नहीं बनाया... पर ESS ऑफिस में....
वीर - चल तेरा कंफुजन दूर करता हूँ... बीते छह सालों में... मैंने यहाँ... चाहे लेक्चरर हो... या स्टूडेंट... सब पर रौब झाड़ा है... सबको डराया है... और बहुतों से मन चाहा काम लिया है... अब जिनसे काम लिया है... उनसे दोस्ती करना... मेरे लिए मुस्किल है...
रुप - ह्म्म्म्म... तो भैया... अब तो आपका फाइनल एक्जाम हो जाएगा... उसके बाद....
वीर - उसके बाद...(एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देखते हैं... वैसे... (एक पॉज लेकर) तु पूछना कुछ चाहती थी... और पुछ कुछ और रही है... चल पुछ... क्या पूछना चाहती है...
रुप - वह... भैया... वह... मैं... मेरा मतलब है कि...
वीर - हाँ हाँ... घबरा मत... बिंदास बोल...
रुप - (बहुत जल्दी से आँखे मूँद कर) क्या मैं खुद गाड़ी चला कर कॉलेज आऊँ....

वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है और रुप की तरफ देखता है l रुप धीरे धीरे अपनी आँखे खोल कर वीर की और देखती है l वीर उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहा है l

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शाम का समय

हा हा हा हा हा हा हा.... ओ... हो हो हो हो हो... (हाथ में शराब का ग्लास लिए ठहाके के साथ बल्लभ हँस रहा है)
रोणा - (ग्लास में शराब उड़ेलते हुए) उड़ा लो... उड़ा लो... मेरा मजाक उड़ा लो...
बल्लभ - अबे भूतनी के... तुझे बोला किसने था... उस छप्पन छुरी से पंगा लेने की...
रोणा - वाकई... इन सात सालों में... बहुत कुछ बदल गया है.... वह डरी डरी सी वैदेही नहीं थी... एक रणचंडी थी... खौफ का नामों निसान नहीं था उसके चेहरे पर.... उल्टा... साला मुझे ही ज्ञान पेले जा रही थी....
बल्लभ - खैर... अब तो तुझे... उसकी ताकत का अंदाजा हो चुका होगा... अगली बार पुरी तैयारी के साथ धर दबोचना...
रोणा - हूँ....
बल्लभ - लगता है मेरा एडवाइस... तेरे मन को नहीं भाया...
रोणा - नहीं... बात ऐसी नहीं है....(शराब की सीप लेते हुए) उसने एक फोन लगाया... वर्किंग वुमन एसोसिएशन ओड़िशा की प्रेसिडेंट को.... वह प्रेसिडेंट एक एडवोकेट भी है... कानून के उपर बहुत अच्छा पाठ पढ़ाया है वैदेही को... और उस कमीनी वैदेही ने... अपनी जान का खतरा बता कर ऐफिडेविट दाखिल किया है.... कमीनी मेरी सोच से भी बहुत तेज निकली है....
बल्लभ - तो क्या हुआ... जी लेने दे... उसे कुछ दिन चैन से... फिर हम भी ऐसा कानूनी पैंतरा आजमाएंगे... की उसकी शुभ चिंतक की आँखे फटी की फटी रह जाएगी...
रोणा - हमने विश्व को फ़साने के लिए भी... बहुत जुगाड़ लगाया था... पर हाथ मैं आया क्या... ढेला... वह तो किस्मत अच्छी थी... जयंत को लुढ़का दिया गया... मैं वरना....
बल्लभ - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) हूँ.... ठीक कह रहा है... इस बार हम जो भी करेंगे... बहुत सोच समझकर करेंगे... (रोणा की ओर देखते हुए) क्या बात है... अभी भी किस सोच में है...
रोणा - सोच रहा हूँ... वैदेही ने मुझे साठ दिन की चैलेंज क्यूँ दी....
बल्लभ - क्या... यह तु क्या कह रहा है....
रोणा - देखो वकील साहब... जरा सोचो... विश्व जैल से छूट तो गया है... पर अभीतक राजगड़ आया नहीं है... वैदेही का यह रुप.... साठ दिन के बाद... मान लो विश्व आ गया... तब ऐसा क्या हो सकता है...
बल्लभ - तुझे क्यूँ लगता है कि... विश्व... साठ दिन बाद आयेगा....
रोणा - क्यूंकि साठ दिन के बाद... मैं अपने बाप से मिलने वाला हूँ...
बल्लभ - व्हाट... ग्लास पे ग्लास मैं पिए जा रहा हूँ... नशा तुझे क्यूँ हो रहा है...
रोणा - आने वाले दिनों के लिए वैदेही के पास अपनी तैयारी है... तो क्या विश्व बिना तैयारी के आएगा.... (अपना सिर ना में हिलाते हुए) ना... नहीं...
बल्लभ - तु बेकार में उसे भाव दे रहा है... साला दौ कड़ी का मुजरिम है वह... सजायाफ्ता है वह.... वह क्या तैयारी लेकर आएगा....
रोणा - शतरंज में... किसी भी खाने को कमजोर नहीं समझना चाहिए... कभी कभी प्यादा भी शह और मात दे सकता है....
बल्लभ - (एक ग्लास शराब गटकते हुए) ह्म्म्म्म... अब तेरी बातों से मुझे भी कुछ.... कुछ शॉक लगने लगा है...
रोणा - कैसा शॉक...
बल्लभ - रुप... यानी राजगड़ उन्नयन परिषद की केस अभी भी क्लॉज नहीं हुआ है... और आज की डेट के हिसाब से... और छह महीने यह केस जिंदा रहेगा.... अगर इस छह महीने के अंदर किसीने... पीआईएल डाल दिया.... तो... बोतल में बंद जिनी फिर से बाहर निकलेगा....
रोणा - (अपनी ग्लास को नीचे पटकते हुए) तभी... तभी मैं सोचूँ... वह कमीनी इतना कंनफिडेंट क्यूँ है.... मतलब इन साठ दिनों में इस केस पर कोई खास वकील ही पीआईएल दाखिल करेगा...
बल्लभ - अगर तेरा अंदाजा सही है... तो हमें राजा साहब को खबर करना होगा....
रोणा - नहीं... यह केस हम संभाल सकते हैं... हम ही अपने लेवल पर इसको निपटायेंगे....
बल्लभ - कैसे निपटाओगे....
रोणा - मैं कटक और भुवनेश्वर की ख़ाक छान मरूंगा... विश्व को तलाश करूंगा... मैं हंड्रेड पर्सेंट श्योर हूँ... विश्व अभी या तो कटक में... या फिर भुवनेश्वर में कहीं है...
 
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