एक सौ सत्रहवां अपडेट
--------------------------
क्षेत्रपाल महल में हर जगह अंधेरा छाया हुआ है l कहीं कहीं महल के गलियारों में मद्धिम रौशनी दिख रही है l महल के सभी प्रमुख कमरों में अंधेरा तो है पर जिन कमरों में महल के सदस्य सोये हुए हैं उन्हीं कमरों में नाइट् बल्ब जल रहे हैं l क्यूंकि सभी सोये हुए हैं इसलिए महल के बाहर सभी पहरेदार अपनी अपनी जगह बना कर सोने की कोशिश में हैं l पर अंतर्महल में, रुप के कमरे में, पलंक के ऊपर सिर्फ विश्व सोया हुआ है, टकटकी लगाए दो आँखे उसे देखे जा रही थी l कमरे में इस कदर खामोशी पसरी हुई थी के रुप को अपनी धड़कने साफ सुनाई दे रही थी l रुप की इस तरह से विश्व को रोकना विश्व को अच्छा नहीं लगा था l वह रात को ही चले जाना चाहता था, पर रुप ने जिद करके रोक लिया था l बड़ी मुश्किल से विश्व को पलंक पर ले जा कर सुलाया था l विश्व को देख कर रुप हँस दे रही थी l क्यूंकि इतने ना नुकुर करने के बाद भी विश्व घोड़े बेच कर सोया हुआ था l रुप उन दोनों के बीच हुए बातों को याद करने लगती है l
टीलु को फोन पर सुबह चार बजे आने को बोल कर जब रुप फोन काट दिया और मोबाइल को अपनी कुर्ती के जेब में रख लेती है, तब हैरानी से मुहँ फाड़े विश्व उसे देखने लगता है l कुछ देर के लिए उनके बीच खामोशी छा गई थी l
विश्व - (खामोशी को तोड़ते हुए, धीमी आवाज में) एक बात पूछूं...
रुप - हूँ...
विश्व - वह... मेरी मोबाइल आपने क्यूँ रख ली...
रुप - ताकि तुम्हारा दोस्त... जब फोन करे... तो वह फोन मैं उठाऊँ...
विश्व - क्यूँ..
रुप - क्या ऐसे नीचे फ़र्श पर बैठ कर बातेँ करेंगे... (रूप उठते हुए अपनी बेड पर बैठ जाती है) ताकि एज यूज़वल सुबह सबसे पहले तुम्हें मैं जगाऊँ... (अपने हाथ से बेड पर बैठने के लिए इशारा करती है)
विश्व - वह तो ठीक है... पर आज रात आपने मुझे क्यूँ रोक लिया...
रुप - ढेर सारी बातेँ करने के लिए... और बहुत कुछ बातेँ जानने के लिए...
विश्व - क्या वह चैट से... या फोन से नहीं हो सकती थी...
रुप - (मुहँ बनाते हुए, मासूमियत के साथ) अपनी नकचढ़ी से बात करने से डरते हो क्या...
विश्व - हाँ...(फिर अपना सिर हिलाते हुए) नहीं.. नहीं... (फिर नॉर्मल हो कर) पता नहीं...
रुप - डफर... उल्लु... बेवक़ूफ़...
विश्व - (अपना सिर खुजाते हुए) सो तो मैं हूँ...
रुप - अच्छा यह बताओ... मुझसे डर क्यूँ रहे हो...
विश्व - वह... (चुप हो जाता है)
रुप - (अपनी आँखे सिकुड़ कर तेज तेज साँसे लेते हुए) ह्म्म्म्म...(विश्व झट से उसके सामने बेड पर बैठ जाता है) हम्म्म... अब बोलो... मैं सुन रही हूँ...
विश्व - आप... आप बहुत फास्ट हो... आपके स्पीड से मैच करना बड़ी मुश्किल का काम है...
रुप - फास्ट ना होऊँ तो क्या करूँ.... मेरी शादी जो तय हो चुकी है...
विश्व - अगर शादी तय हो चुकी है... तो फिर... आपको टेंशन क्यूँ नहीं है...
रुप - वह इसलिए कि... मैं जानती हूँ... तुम मेरी शादी होने नहीं दोगे...
विश्व - इतना विश्वास...
रुप - और नहीं तो... मत भूलो... तुमसे अपना शादी का वादा जो लिया है...
विश्व - हाँ सो तो है...
रुप - अच्छा यह बताओ... तुमने मुझे पहचाना कब...
विश्व - जब आपको दो नौकरानी हाथों में मोमबत्ती लिए... साथ लिए जा रहे थे...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म... और तुम नहीं पूछोगे... मैंने तुम्हें कब पहचाना...
विश्व - वह आपको पहचानते ही जान गया... और वह थप्पड़ भी याद आ गया... पर यह जानना जरूर चाहूँगा कैसे...
रुप - तुम नहीं समझोगे... इट्स अ गर्ल थिंग...
विश्व - कहिये ना... प्लीज...
रुप - (शर्माते हुए) वह... तुम तो जानते ही हो... मैं बचपन से ही... हमेशा तुम्हारे गले लग जाती थी... बे वज़ह ही... बस जैसे ही उस रात को तुम्हारे गले लग गई... मेरे नथुनों में एक जानी पहचानी जिस्मानी खुशबु घुल गई... जो बचपन से ही मुझे मदहोश किया करती थी... बस उससे पहचान ली...
विश्व - ओ... ग़ज़ब है...
रुप - (मुहँ बनाते हुए) कहा था ना... तुम नहीं समझोगे... हूँह्ह्ह्...
विश्व - (हकलाते हुए) नहीं नहीं ऐसी बात नहीं...
रुप - और हाँ.. एक बात और भी है...
विश्व - क्या...
रुप - तुम्हारे सीने से लग जाने की जो फितरत थी ना मेरी... वह इसलिए थी के मुझे हमेशा से तुम्हारे दिल की धड़कन सुनना बहुत अच्छा लगता था... (कहते कहते खो जाती है) क्यूंकि मुझे उस धड़कन में... मेरा नाम सुनाई देता था...
विश्व - (हैरानी से) क्या...
इस तरह बातों का सिलसिला बढ़ता ही जाता है l कुछ देर बाद विश्व को जबरदस्ती बेड पर लिटा कर उसके बगल में विश्व के सीने में सिर रख कर रुप लेट जाती है l पहले पहले तो विश्व को नींद नहीं आई पर ज्यूं ज्यूं रात बढ़ती गई विश्व धीरे धीरे नींद की आगोश में चला गया l पर रुप को नींद नहीं रही थी l फिर भी वह विश्व के सीने पर सिर रख कर लेटी रही l जब उसके कानों में विश्व की हल्की खर्राटे सुनाई दी तब वह धीरे से विश्व से अलग हुई और विश्व के पास बैठ कर उसे निहारने लगी l फिर विश्व की वह मोबाइल अपनी कुर्ती की जेब से निकाल कर कॉल लिस्ट छानने लगती है l लास्ट रिसीव कॉल टीलु की देखती है l उसे वह मैसेज कर देती है
"तुम सुबह सुबह कोई जोखिम मत उठाना l मैं घर अपने आप चला आऊंगा"
जैसे ही उसे मैसेज डेलीवर होता दिखती है l वह मोबाइल को स्विच ऑफ कर देती है l मोबाइल को बेड के एक किनारे फेंक कर विश्व को निहारने लगती है l फिर अचानक उसकी नजर दीवार पर लगे घड़ी पर जाती है, चार बजने को थे l वह खुद पर हँस देती है और अपनी सिर पर एक टफली मारती है l धीरे से विश्व के पास पहुँचती है और विश्व के सीने पर सिर रख कर विश्व को पकड़ कर सोने लगती है l पर इतने में विश्व की नींद टुट जाती है l वह देखता है रुप उसके सीने पर सिर रख कर सोई हुई है l वह हड़बड़ा जाता है और हैरान हो जाता है l विश्व थोड़ा हील कर सरकने की कोशिश करता है l रुप थोड़ी कसमसा जाती है पर अपनी आँखे नहीं खोलती l विश्व अब उससे अलग हो जाता है और कमरे में फैले मद्धिम रौशनी में रुप को निहारने लगता है l
"कितनी सुंदर लग रही हैं, कितनी मासूम लग रही हैं l कौन मानेगा इतनी मासूम चेहरे के पीछे नाक में दम करने वाली एक नकचढ़ी भी हो सकती है l"
विश्व के मन में यह खयाल आते ही वह हँस देता है l विश्व रुप के चेहरे पर झुकता है, विश्व की साँसे और धड़कन तेज हो जाती हैं l थरथराते हाथों से रुप की चेहरे पर लटों को हटाता है, और बढ़े हुए धड़कनों के साथ झुक कर रुप के माथे पर एक चुंबन जड़ देता है l चूम कर जैसे ही अपना चेहरा उठाता है तो देखता है रुप के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छाई हुई है l विश्व समझ जाता है रुप जागी हुई है l विश्व हड़बड़ाहट के साथ बेड से दुसरे किनारे उतर जाता है l रुप अपने चेहरे पर दमकती मुस्कान के साथ उठ बैठती है l
विश्व - आप तो जाग रही हैं...
रुप - हूँ...
अब विश्व का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे कि उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो l
रुप - अरे... इसमे एंबारस होने की क्या बात है... (कह कर विश्व के पास खड़ी हो जाती है)
विश्व - वह मैं आपको...
रुप - (विश्व की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर) जानते हो... मैं रात भर सोई नहीं... मुझे नींद ही नहीं आई... क्यूंकि तुम्हारे साथ यह पल मेरे लिए बहुत क़ीमती है... और यह खुशी इतनी बड़ी थी के... आँखों में नींद ही नहीं उतर पाई... कहीं यह सपना तो नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
रुप - (विश्व की हाथों को अपने गालों पर रख देती है, और विश्व की आँखों में झाँक कर) आज तुम कोई भी सीमा लांघ जाते तो मैं बिल्कुल नहीं रोकती... हाँ थोड़ा दुख जरूर होता... पर फिर भी मैं तुम्हें हरगिज नहीं रोकती... मेरा दिल मेरे पास है ही नहीं... वह तो बचपन में ही तुम्हें दे दी थी... पर आज तुमने मुझे हर तरीके से जीत लिया है... मेरा तन मन और आत्मा तुम पर न्यौछावर है.... (विश्व की हाथों को चूमते हुए) तुम चाहते तो मेरे होठों पर... या गालों को चूम सकते थे... पर मेरे माथे पर चूमा... (चहकते हुए) बहुत अच्छा लगा...
विश्व - (उसे एक बेवक़ूफ़ की तरह सुने जा रहा था) ओ... अच्छा...
रुप - ह्म्म्म्म... (विश्व के दोनों गालों को खिंचते हुए) हाँ मेरे बेवक़ूफ़...
रुप विश्व की गाल छोड़ देती है l विश्व शर्माते हुए रुप से अपनी नजरें चुराने लगता है और घड़ी की ओर देखने लगता है l
रुप - हाय... कितना शर्मिला है मेरा दिलबर... (गुस्से वाली लहजे में) इसीलिए मुझे बेशर्मी दिखानी पड़ती है... हूँह्ह्... (जाकर बेड के दुसरी तरफ मुहँ फूला कर बैठती है)
विश्व - (भाग कर उसके पास मनाने के लिए पहुँचता है) वह... वह... (उसके सामने घुटने पर बैठ कर) नाराज मत होइए... वह क्या है कि... मुझे कोई एक्सपेरियंस नहीं है ना...
रुप - क्या... व्हाट डु यु मीन... मतलब मेरा बहुत एक्सपीरियंस है....
इतना कह कर रुप अपनी कमर पर हाथ रखकर खड़ी हो जाती है l विश्व को गुस्से में घूरते हुए अपनी लटों पर फूँक मारती है l विश्व पहले अपने मुहँ पर हाथ रख देता है फिर अपने गालों पर चाटें मारने लगता है l विश्व की ऐसी हालत देख कर रुप हँस देती है और हँसते हुए फिर से बैठ जाती है l
विश्व - अब मैं जितनी देर और यहाँ रहूँगा... उतना ही फंसता जाऊँगा... यह कमबख्त टीलु भी ना... अब तक फोन नहीं किया...
रुप - नहीं करेगा...
विश्व - क्यूँ...
रुप - मैंने उसे कुछ भी ना करने के लिए तुम्हारे नाम पर... तुम्हारे मोबाइल से ही उसे मैसेज कर दिया है...
विश्व - क्या... पर क्यूँ... और मैं जाऊँगा कब... और कैसे...
रुप - ओह ओ... क्या बच्चों जैसे हरकतें कर रहे हो... (एटीट्यूड के साथ) तुम... रुप नगर के... रुप महल में... रुप के साथ... रुप के कक्ष में हो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) मुझे मेरी परवाह नहीं है... मुझे मेरे प्यार की परवाह है... कहीं मेरी वज़ह से वह रुसवा ना हो जाए...
रुप विश्व की हाथों को पकड़ कर उठाती है और उसे ले जा कर आईने के सामने वाली कुर्सी पर बिठाती है, आईने को अच्छी तरह से साफ करती है और विश्व के पीछे आकर उसके ऊपर अपना पूरा भार डाल देती है और अपनी गाल को विश्व की गाल से रगड़ते हुए और आईने में विश्व देखते हुए
रुप - तुम्हारा प्यार कभी रुसवा नहीं होगा... मैं जानती हूँ... पर आज तुम जिस रास्ते से जाओगे... वहाँ पर बिल्कुल भी पहरा नहीं होगा...
विश्व - कहाँ से...
रुप - भूल गए... मेरे इसी कमरे से... मुझे बाहर निकाल कर... तुमने मुझे गाँव में लेकर गए थे...
विश्व - हाँ... पर शायद वह आठ या नौ साल पहले की बात है...
रुप - तो क्या हुआ... असल में... आज छोटे राजा जी आ रहे हैं... और राजा साहब भी रंग महल में हैं... इसलिये आज की ज्यादातर पहरेदारी बाहर की ओर होगी...
विश्व - ओ... क्या इसीलिए आपने टीलु से... सुबह ना आने के लिए कहा...
रुप - हाँ... मैं नहीं चाहती... जो कोई भी तुमसे जुड़ा हो... वह कभी किसी खतरे में पड़े...
विश्व - (विश्व की हाथ अपने आप रुप के चेहरे पर पहुँच जाता है, और प्यार से) आप बहुत अच्छी हो... बढ़िया सोच लेती हो...
रुप - सो तो मैं हूँ... कोई शक़... और जानते हो... मुझे इस बात का बहुत घमंड भी है...
विश्व - शक... बिल्कुल नहीं... अच्छा यह बताईये... मुझे यहाँ क्यूँ बिठा कर रखा है...
रुप - (मासूमियत के साथ) क्यूँ... नहीं बैठ सकते...
विश्व - बात ऐसी नहीं है...
रुप - तो फिर कैसी है...
विश्व - वह...कैसे कहूँ... मुझे... वह... बाथरुम जाना है...
रुप - (विश्व को छोड़ खड़ी हो जाती है) हाँ तो जाओ ना... मेरा बाथरूम तो है ना... पर यहाँ आकर दुबारा बैठ जाना...
विश्व - (उठ कर जा रहा था, के मुड़ कर) क्यूँ... (रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर, कमर पर हाथ रखकर घूर कर देखने लगती है) ठीक है... ठीक है आता हूँ...
कह कर विश्व बाथरूम में घुस जाता है l हल्का होने के बाद विश्व हाथ मुहँ धो कर बाहर आता है l देखता है रुप अपनी हँसी रोकने की कोशिश कर रही है l विश्व नीचे अपनी पेंट पर नजर डालता है, सब ठीक था फिर रुप क्यूँ हँस रही है l वह इशारे से कारण पूछता है l रुप हँसी को दबाते हुए अपना सिर ना में हिलाती है और आईने के सामने वाली कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करती है l विश्व कुछ सोचते हुए कुर्सी पर बैठ जाता है, आईने में रुप को देखता है वह अभी भी अपनी हँसी को रोक रही थी l इशारे से फिर से पूछता है l
रुप - (अपनी हँसी को काबु में करते हुए) वह हम लड़कियाँ भी ना... अपने दोस्तों के बीच कुछ नॉनवेज बातेँ करते रहते हैं... तो वह.. एक बात याद आ गई... (कह कर हँस देती है)
विश्व - क्या... कैसी बातेँ...
रुप - (अपनी जबड़े भींच कर आँखे सिकुड़ कर) क्यूँ... हम लड़कियों की बात क्यूँ जानना चाहते हो...
विश्व - ओ समझ गया... इट्स अ गर्ल थिंग...
रुप - हाँ है तो... (मुस्कराते हुए) पर कोई नहीं... मैं तुम्हारे साथ शेयर कर सकती हूँ...
विश्व - अच्छा... बड़ी कृपा होगी...
रुप - वह... (शर्माते हुए) हम हैं ना... मुझे शर्म आती है...
विश्व - चलो आपको शर्म तो आया... ठीक है... मत बताइए...
रुप - (बिदक कर) अरे...
विश्व - ठीक है... ठीक है... बताईये...
रुप - हाँ... (शर्माते हुए) एक बार ना... दीप्ति बोल रही थी... वह पेशाब करते वक़्त... ल़डकियों की आवाज़ होती है... पर लड़कों की आवाज़ नहीं होती... पूछो क्यूँ...
विश्व - (उसे आँख और मुहँ फाड़े देखने लगता है) क्यूँ...
रुप - (अटक अटक कर समझाते हुए) वह इसलिए... शारीरिक सरंचना के चलते... प्रकृति ने... पुरुष को नैचुरल साइलेंसर दिया है.... (हँसते हुए) पर दीप्ति गलत थी...
विश्व - अच्छा... वह कैसे....
रुप - तुम्हारा लगता है... ब्लैडर फूल था... जिस प्रेसर से... पेशाब किए... मेरे कानों तक आवाज़ आ रही थी... शुर्र्र्र्र्र्ररर... हा हा हा...
विश्व - हे भगवान... ऐसी बातेँ भी गर्ल थिंग होती हैं...
रुप - (बिदक कर) क्यूँ... तुम लड़के भी आपस में ऐसी बातेँ नहीं करते होगे क्या...
विश्व - टॉपिक चेंज करें...
रुप - ठीक है... ठीक है... कौनसी टॉपिक...
विश्व - मैं यहाँ... इस मिरर के सामने क्यूँ बैठा हुआ हूँ...
रुप - एक मिनट.... (विश्व को एक टावल ओढ़ देती है, और ड्रयर से एक इलेक्ट्रिक ट्रीमर निकाल कर) आज तुम्हारा हेर कट होने वाला है...
विश्व - (चौंक कर खड़ा हो जाता है) क्या.. मेरा मतलब है क्यूँ...
रुप - बैठो... चुप चाप बैठो... (विश्व अपना मुहँ बंद कर सिर झुका कर बैठ जाता है, रुप ट्रीमर ऑन कर चलाते हुए) जो नाम बरसों पहले गुदवाया था... अब उस नाम का छुपने का वक़्त ख़तम हो गया...
कुछ देर बाद ट्रीमर बंद हो जाती है l रुप को जैसे ही अपना नाम दिखती है वह भावुक हो जाती है और झुक कर अपने नाम के गूदे हुए जगह पर चूम लेती है l विश्व के गले के पीछे भीगे नर्म होठों की एहसास होते ही चेहरा उठा कर देखता है रुप ने ट्रीमर बड़ी अच्छी तरीके से चलाई थी l बालों का नुकसान मालुम नहीं पड़ रहा था l चूम लेने के बाद रुप नम आँखों से फिर से पीछे लद जाती है l
विश्व - क्या मेरे प्यार की आँखों में जो आँसू हैं... वह भी गर्ल थिंग है..
रुप - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
विश्व रुप को अलग करता फिर टावल को निकाल देता है l रुप की ओर देखने लगता है l रुप इस बार बड़ी भावुकता वश विश्व के सीने से लग जाती है l
रुप - मैं बहुत जिद्दी हूँ ना.. बहुत बुरी भी... है ना.. तुम्हें मुझ पर कभी गुस्सा नहीं आता...
विश्व - पता नहीं आप क्या हो मगर... जो भी हो... जैसी भी हो... बहुत प्यारी हो... मेरी नकचढ़ी हो....
रुप - (सिसकते हुए विश्व को कस लेती है) तुमको मुझ पर कभी भी गुस्सा नहीं आता...
विश्व - नहीं... ब्लकि प्यार आता... बहुत...
रुप - (नम आँखों से मुस्कराते हुए विश्व की आँखों में झाँक कर) कितना...
विश्व - इतना के... दो आँखों में क्या... दो जहां में समाए ना जितना...
रुप का चेहरा खिल जाता है वह फिर से आँखे मूँद कर विश्व के सीने से चिपक जाती है l
विश्व - राजकुमारी जी...
रुप - हूँ...
विश्व - देखिए... सुबह भी हो गई है... अब तो जाने दीजिए... उजाला फैलने वाली है...
रुप - (विश्व से अलग होते हुए) फिर कब मिलेंगे...
विश्व - मिलेंगे जरूर... पर महल में नहीं... कहीं बाहर...
रुप - ठीक है.... अब अगली मुलाकात या तो कटक में... या भुवनेश्वर में होगी...
विश्व - ह्म्म्म्म... आप और कितने दिन रुकेंगी...
रुप - अब जब मिलना नहीं होगा तो रुकना मेरे लिए ठीक नहीं... मैं आज ही चली जाऊँगी...
विश्व - ठीक है... तो अब मैं जाऊँ...
रुप - एक बात कहूँ...
विश्व - हाँ कहिये...
रुप - मुझे इसी घर से... तुम्हारे साथ बाहर जाना है...
विश्व - (उसे देख कर कुछ देर स्तब्ध हो जाता है) ठीक है... जब हमेशा के लिए ले जाना होगा... मैं आपको इसी महल से ले जाऊँगा... अब जाऊँ
रुप - एक मिनट... (रुप विश्व को मोबाइल देकर) यह लो... (फिर थोड़ी चिंतित हो कर) संभल कर... प्लीज...
विश्व - बात मेरी जान... मेरे प्यार की है... इसलिए आपकी खिड़की से अंतर्महल से बाहर जा रहा हूँ... यह मेरी ससुराल है... यह दामाद अपने स्टाइल से जाएगा... जाऊँगा इस क्षेत्रपाल महल से... बाहर के दरवाजे से ही... वह भी सुबह की उजाले में...
रुप - नहीं...
विश्व - श्श्श.... (रुप के होंठो पर उंगली रख देता है) यहाँ इस महल में आया हूँ... तो कुछ कर के ही जाऊँगा... क्षेत्रपाल के अहंकार के शीशे में... एक खरोंच बना कर जाऊँगा... मुझ पर भरोसा है ना...
रुप अपना सिर हिला कर अपनी सहमति देती है l विश्व खिड़की के पास जाता है तो रुप भाग कर पीछे से उसके गले से लग जाती है l
रुप - मुझे डर लग रहा है... अगर तुम्हें कुछ हो गया... तो... तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊँगी...
विश्व - (मुड़ता है) कुछ नहीं होगा... हाँ इतना जरूर होगा कि... बस महल की पहरेदारी कस जाएगी... कड़ी हो जाएगी...
रुप - फिर... तुम मुझसे मिलने यहाँ नहीं आओगे...
विश्व - नहीं... इस बार जब भी आऊंगा... सामने की दरवाजे से आऊंगा...
रुप - ठीक है...
विश्व खिड़की से कूद कर नीचे चला जाता है l रुप की धड़कनें बढ़ जाती हैं l कुछ देर बाद विश्व रुप की आँखों से ओझल हो जाता है l रुप कुछ सोचते हुए खिड़की बंद कर देती है और आकार अपनी बेड पर लेट जाती है l ना चाहते हुए भी उसकी पलकें भारी होने लगती है और वह नींद की आगोश में चली जाती है l
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
प्रमुख महल के मुख्य कोठरी में नागेंद्र गहरी नींद में सोया हुआ था l ठक ठक ठक जैसी आवाज नागेंद्र के कानों में पड़ती है l नींद में उस आवाज को नजरअंदाज करता है l पर लगातार वह आवाज उसके नींद में खलल डाल रही थी l वह चिढ़ कर अपने बेड के पास रखे बेल को बजाने के लिए हाथ बढ़ाता है l पर वह बेल उसके हाथ नहीं लगती l वह चिड़चिड़ा हो कर अपनी आँखे खोलता है l तो देखता है नौकरों को बुलाने के लिए जो बेल रखी होती है वह नहीं दिखता l नागेंद्र करवट बदल कर बैठने की कोशिश करता है l तब एक मजबूत हाथ उसे उठा कर पीछे तकिया लगा कर बिठाता है और वह शख्स पास पड़े चेयर पर बैठ कर अपने दोनों पैरों को सीधा कर नागेंद्र के तरफ बेड पर रख कर दोनों पैरों को आपस में टकराता है l जिससे ठक ठक ठक आवाज निकलने लगता है l
उस आवाज से नागेंद्र की आँखें हैरानी से फैल जाती हैं l वह नज़रें उठा कर सामने बैठे शख्स को देखने लगता है l अच्छे कपड़े और क़ीमती जुतों के साथ बैठा उसके तरफ पैर कर बैठा हुआ है l नागेंद्र को बहुत गुस्सा आता है, दांत पीसने लगता है और उसके जबड़े भींच जाती हैं l आखों के नीचे की पेशियां थर्राने लगते हैं l
शख्स - कमाल की नींद सो रहे हो... बड़े राजा... पर अभी जागने का वक़्त आ गया है... सुबह जो हो गया है...
नागेंद्र - (दांत पिसते हुए) कौन हो तुम...
शख्स - यूँ तो मेहनत कस लोग.. घोड़े बेच कर सोते हैं... पर तुम जैसे... मुफ्त खोर... लुफ्त खोर.. हराम खोर... खर्राटों के घोड़े दौड़ा कर सोते हैं... कमाल है...
नागेंद्र - हम ने पुछा... कौन हो तुम...
शख्स - तुम्हारे कुछ कुकर्मों के... चश्मदीद गवाह... भूत पूर्व सरपंच...
नागेंद्र - ओ... वि... विश्व...
विश्व - हाँ... मैं विश्व... क्या करेगा... चिल्लाएगा... चीखेगा... नौकरों को बुलाएगा...
नागेंद्र कुछ कह नहीं पाता l बेहद नफरत भरी नजर से विश्व की ओर देखने लगता है l तेज तेज साँस लेने लगता है और उसके लकवा ग्रस्त मुहँ टेढ़ा हो कर लार की धार बहने लगता है l
विश्व - चु चु चु.. क्या हालत बन गई है तेरी... ना हाथ ठीक से काम कर रहा है ना जिस्म... ना ही मुहँ... बातेँ भी मुश्किल से समझ में आ रही है... कितना बेबस हो गया है... ना खाने से बनता होगा... ना पिछवाड़े धोने से... दोनों के लिए... किसी और का सहारा बनता होगा... है ना...
नागेंद्र - अंदर कैसे आए...
विश्व - सीधे दरवाजे से... यही सोच रहा है ना... किसीने क्यूँ नहीं रोका... यही भरम तो तोड़ने और नींद से जगाने आया हूँ... बहुत सो लिए... अब और नहीं... तुम्हारे नींद की दुनिया में पुर्ण विराम लगाने आया हूँ...
नागेंद्र - तुम जानते हो... किससे बात कर रहे हो... हमारी हैसियत का अंदाजा होनी चाहिए तुम्हें...
विश्व - है... बहुत अच्छी तरह से है... तभी तो... जुते तुम्हारे मुहँ के तरफ़ रख कर बात कर रहा हूँ...
नागेंद्र - यहाँ क्यूँ आए हो...
विश्व - तुमने मुझे अपनी कुकर्मो की गवाह बनाया था... अब तुम्हें गवाह बनना है... मेरे प्रतिशोध की... और क्षेत्रपाल साम्राज्य के बर्बादी की...
नागेंद्र - तुम कर क्या लोगे... कायर... बुजदिल... मेरे बेड से बेल ले लिए...
विश्व - वह क्या है कि... तुम लोगों में... धैर्य की बहुत कमी है... कुछ सुनना नहीं चाहते... सिर्फ अपना ही सुनाने लगते हो... इसलिये मैंने तुम्हें अपना सुनाने आया हूँ... और रही कायर या बुजदिल होने की बात... आया तो अंधेरे में था... पर जाऊँगा... तुम्हारे लोगों के बीच से... सीधे दरवाजे से... वह भी उजाले में....
नागेंद्र - गुस्ताख... तुम्हें यह गुस्ताखी बहुत महंगी पड़ेगी...
विश्व - सात साल... जिंदगी के क़ीमती सात साल... जैल में रह कर आया हूँ... उससे भी महंगा क्या दे सकते हो.... और देने के लिए... किससे कहोगे... अपने पैदा किए सपोलों से... या उनके पाले हुए कुत्तों से...
नागेंद्र - बात किससे कर रहे हो... एक अपाहिज से... मर्दानगी दिखा रहे हो...
विश्व - ना... एक मज़बूर हराम जादे से... जो जिंदगी भर दूसरों की मजबूरियों पर... मर्दानगी झाड़ता रहा... और आज अपनी मजबूरी का रोना रो रहा है... याद कर... कितने मासूम लोगों को अपनी गुरूर के चलते रौंदा है...
नागेंद्र - तो तु उन सबका बदला लेने आया है...
विश्व - हाँ... जैसे अभी तेरे मुहँ पर तुझे जलील कर के यहाँ से जाने वाला हूँ... और तु अपनी इस ज़लालत का बदला लेने के लिए... अपने सपोलों से कहेगा...
नागेंद्र का जिस्म थर्राने लगता है l वह तेज तेज साँस लेने लगता है l उसका शरीर एक तरफ अकड़ने लगता है l पर विश्व वैसे ही उसके सामने बैठा रहता है और घूरता रहता है l
विश्व - ना... इतना जल्दी मत कर... अपनी नसों में बह रहे खून की बहाव को काबु में रख... तुझे बहुत कुछ देखना है... उसके बाद तुझे मरना है..
नागेंद्र - मेरा भी वादा है... तुझे कुत्ते की मौत मारते देखे बिना... मैं नहीं मरने वाला...
विश्व - वादा मुझसे नहीं... खुद कर... क्यूंकि मैं तुम क्षेत्रपालों के हाथ से मरने वाला नहीं हूँ.. पर तुम लोगों की बर्बादी मेरे ही हाथों होगी... यह बात उतनी ही सच्ची है... जितना कि पूर्व में सूरज का निकलना....
विश्व मुस्कराते हुए अपनी जगह से उठता है और नागेंद्र के हाथों में बेल दे कर बाहर निकलता है l नागेंद्र बेल को दबा देता है l असल में सारे नौकर और नौकरानियों की आँख लगी हुई थी l जैसे ही विश्व कमरे से बाहर निकलता है वह नौकर और नौकरानियों को भाग कर आते हुए देखता है l सबसे आगे वाले नौकर को रोक कर
विश्व - क्या हुआ... कहाँ भागे जा रहे हो..
नौकर - (विश्व की ओर बिना ध्यान दिए) बड़े राजा सहाब बुला रहे हैं... (कहते हुए भाग जाता है)
विश्व बड़े आराम से प्रमुख महल से निकल कर दीवाने खास से दीवाने आम हो कर बाहर आता है l देखता है किसी के स्वागत के लिए सभी पहरेदार और नौकर खड़े हुए हैं l विश्व सीढ़ियां उतरने लगता है कि तभी पिनाक सिंह की गाड़ी आकर रुकती है l तब तक विश्व वहाँ पहुँच कर गाड़ी का दरवाजा खोलता है l पिनाक गाड़ी से उतरता है l पिनाक विश्व की ओर देखता है और उसकी भवें सिकुड़ जाती हैं l विश्व का पहनावा और अंदाज से पिनाक उसे घूरने लगता है l
पिनाक - तुम...
विश्व - मेहमान हूँ...
पिनाक - मेहमान... किस के...
विश्व - यह आपको... बड़े राजा सहाब बतायेंगे... वैसे भी.. वह सुबह सुबह जागते ही आपको याद कर रहे थे...
पिनाक - अच्छा...
कह कर सीढ़ियां चढ़ने लगता है सीढ़ियां चढ़ते हुए वह एक बार पीछे मुड़ कर देखता है l विश्व बड़े आराम से चलते हुए बाहर की ओर चला जा रहा था l थोड़ी देर के लिए पिनाक ठहरता है फिर कुछ सोचते हुए प्रमुख महल की ओर जाने लगता है l
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
सरकारी आवास
पोलिस थाने से कुछ दुर
रोणा सिर्फ लोअर पहन कर चेयर पर बैठा बैठा सोया हुआ था l उसके कानों में कुछ आवाजें सुनाई देती हैं तो बड़ी मुश्किल से अपनी पलकें खोल कर सामने कुछ बंदों को देखता है l शनिया और भूरा अपने पलटन के साथ बरामदे पर खड़े होकर आपस में फुस फुसफुसा रहे हैं l रोणा के आँखे खोलता देख
भूरा - श्श्श्श्... सहाब उठ रहे हैं...
सब रोणा को जागा देख चुप हो जाते हैं l रोणा चेयर से उठता है और अपनी आलस तोड़ते हुए
रोणा - क्यूँ बे हरामियों.. सुबह सुबह मेरी नींद खराब करने आए हो... या मेरा दिन...
भूरा - आपसे सलाह लेने आए हैं...
रोणा - गलत जगह पर आए हो... सलाह... प्रधान देता है... लगता है... वैदेही ने इस बार तुम सबकी सुलगाई नहीं है... ब्लकि काट कर हाथ में दे दी है...
शनिया और भूरा और उनके पलटन एक दुसरे को देखते हैं l उनकी यह रिऐक्शन देख कर
रोणा - बोला था... चाहे वैदेही हो या विश्व... उनके इलाके में मत जाओ... कुछ ऐसा करो के वह तुम्हारे इलाके में आए... तब हम कानूनी दाव खेलेंगे...
भूरा - साहब यही समझने तो आए हैं...
रोणा - अच्छा... इतनी सुबह सुबह... मादरचोदों... मैं घर में नंगा मरा जा रहा हूँ... नहाया धोया भी नहीं... (सभी चुप रहते हैं) सालों हरामियों... जिस वक़्त लोटा लिए नदी या कनाल किनारे होना चाहिए तुम लोगों को.... उस टाइम मेरे घर में संढास करने आए हों क्या....
शनिया - साहब आपकी परेशानी समझ गया... आप हमारी भी समझ जाओ...
रोणा - बे लौवडे... तु समझ गया ... क्या समझ गया बे...
शनिया - साहब... (अपनी नाक पर हाथ लगा कर इशारे से) सब समझ कर... इंतजाम भी कर दूंगा.... (रोणा अपनी भवें तन कर शनिया को देखता है) हाँ साहब...
रोणा - ह्म्म्म्म... लगता है तुम्हारा समस्या कुछ बड़ी है... बैठो सब...
रोणा अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और उसके सामने नीचे फ़र्श पर शनिया और भूरा के साथ साथ उसके साथी भी बैठ जाते हैं l
रोणा - एक वक़्त था... रंग महल से झूठन मिल जाता था... पर तीन चार महीनों से वहाँ भी अकाल पड़ा हुआ है... कभी कभी गाँव में मुहँ मार लिया करता था... पर ना जाने क्यूँ... आज कल गाँव की औरतें... पता नहीं अपने बदन पर क्या मलती हैं... इतना बदबू मारती हैं... की पाँच मिनट भी पास खड़ा नहीं रह सकते... तब से... हाथ से काम चलाना पड़ रहा है... (शनिया को देख कर) बोलो कहाँ से अरेंज करोगे...
शनिया - राजगड़ या यशपुर से ना सही... देवगड़... सोनपुर से तो ला ही सकते हैं...
रोणा - (चेहरे पर दमक आ जाती है) तो हरामियों... पहले क्यूँ नहीं बोला....
भूरा - अभी तो बोला हमने
रोणा - ह्म्म्म्म... क्या समस्या है तुम लोगों की... वैदेही ने क्या कर दिया...
भूरा - इस बार... वैदेही ने नहीं....
रोणा - फिर....
शनिया - जी वह... (कुछ कह नहीं पाता कनखियों से भूरा को देखता है)
रोणा - कहीं... विश्वा... (सब सिर हिला कर हाँ में कहते हैं) (अब रोणा भी अपनी जगह पर सीधा हो कर बैठ जाता है) क्या किया उसने...
बीते रात जो भी गुजरा था भट्टी में सब भूरा बता देता है l सब सुनने के बाद रोणा कुछ सोच में पड़ जाता है l
रोणा - अच्छा दिखाओ... विश्वा ने क्या काग़ज़ दिया तुम लोगों को... (शनिया एक काग़ज़ देता है) यह तो... एकुंबरेंस सर्टिफिकेट है... तो आचार्य बुढऊ... मरने से पहले... अपना घर और जमीन विश्वा के नाम कर दिया था... यह एकुंबरेंस सर्टिफिकेट तो हफ्ते भर पहले का है...
शनिया - अब यह सब तो हमें कुछ समझ में नहीं आया.... पर विश्वा के आये दो दिन हुए हैं...
रोणा - पर उसने जैल से निकलने के बाद से ही... अपना जाल फैला दिया है...
भूरा - अब आप ही बताइए... हम क्या करें...
रोणा - छोड़ना मत... कब्जा किए बैठे हो... तो कब्जा बनाए रखो...
सत्तू - बिल्कुल ठीक साहब... मैं भी शनिया भाई को यही कह रहा था... उससे डरने की कोई वज़ह भी नहीं दिखता...
रोणा सत्तू की ओर देखता है तो सत्तू अपनी मुहँ पर उंगली रख कर चुप हो जाता है l
शनिया - साहब... सोचा तो मैंने यही था... काट कर भट्टी में ही झोंक देना चाहिए था...
रोणा - तो मादरचोद... काटा क्यूँ नहीं...
शनिया - ऐन मौके पर... आपकी बातेँ याद आ गयी... आप बोले थे... वह बहुत बड़ा लड़ाका है...
रोणा - तो... तुम लोग कौन-से कम हो... रोज गोश्त और दारु चढ़ाते रहते ही हो... राजा साहब के लश्कर के... तुम सब भी तो एक एक सालार हो...
शनिया - वह तो ठीक है... साहब... असल बात यह है कि... मैंने उसकी आँखों में जरा सा भी डर नहीं देखा... उसकी बात करने के लहजे में... मौत की सर्द महसूस हो रही थी...
रोणा - तो ऐसे बोलो ना... उसकी बातों से ही... तुम लोगों की फट गई... इसलिए लात खाने से पहले मेरे पास आ गए...
भूरा - बात वह भी नहीं है...
रोणा - तो फिर क्या बात है...
भूरा - उसने बड़ी आसानी से कहा... की सीधे तरीके से घर और जगह खाली नहीं की... तो पुलिस लेकर आएगा...
रोणा - और तुम सब उसके इसी बात से डर गए...
शनिया - अब आप ही बताइए... उसका क्या इलाज करना है...
रोणा - वह रह कहाँ रहा है...
भूरा - अपने मरहूम बाप के घर में...
रोणा - (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... आज रात को ही... उसके घर में उसकी चिता सजा दो... पुरी ताकत के साथ... समझे... पुरी ताकत के साथ... ताकि वह साठवां घंटा ना आ पाए... बाकी सारी खाना पूर्ति... मैं कल वहाँ पहुँच कर पुरा कर दूँगा....
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
रुप गहरी नींद में थी
उसके दरवाजे पर दस्तक सुन कर वह उबासी लेकर उठती है और दरवाजा खोलती है l सामने चेहरे पर परेशानी लिए सुषमा खड़ी थी l सुषमा को परेशान देख कर रुप थोड़ी हैरान होती है l रुप दरवाजे से हट जाती है सुषमा अंदर आती है l
सुषमा - दरवाजा बंद कर दो...
रुप यह सुन कर हैरान होती है और दरवाजा बंद कर देती है l सुषमा रुप की ओर मुड़ती है
सुषमा - यह... अनाम... अनाम ही विश्वा है ना...
रुप - (आँखे फैल जाती है) जी... पर हुआ क्या माँ...
सुषमा - हे भगवान... (अपने सिर पर हाथ रखकर)
रुप - (सुषमा की हालत देख कर रुप भी थोड़ी सहम जाती है) क्या.. क्या हुआ माँ... कुछ बुरा हुआ है क्या...
सुषमा - बुरा... बहुत बुरा हुआ है... जानती है... वह सुबह सुबह महल में आ गया था... बड़े राजा जी के कमरे में चला गया था...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... फिर... फिर क्या हुआ...
सुषमा - होना क्या था... क्षेत्रपाल के अहं को... गुरुर को... क्षेत्रपाल नाम की मूछों पर... अपने पंजे से घायल कर चला गया है...
रुप - (इत्मिनान भरे लहजे में) ओह... तो चला गया... पर आपको कैसे शक़ हुआ... के वही अनाम है...
सुषमा - मुझे कहाँ शक़ होता... वह तो सुबह सुबह मैं छोटे राजा जी को स्वागत करने जा ही रही थी के... बड़े राजा जी के कमरे से बेल की आवाज सुनकर सभी नौकर भागे... तो मैं भी एक नौकरानी के साथ बड़े राजा जी के कमरे में पहुँची...
कहते हुए सुबह हुई घटना को बताने लगती है
गुस्से में नागेंद्र बेल बजाये जा रहा था l सभी नौकर और नौकरानियां वहाँ पर आकर खड़े हो चुके थे l पर फिर भी नागेंद्र बेल की स्विच को अंगूठे में दबा रखा था l गुस्से में उसका चेहरा इस कदर तमतमा रहा था कि वहाँ पर मौजूद सभी डर कर वहीँ जम गए थे l कुछ देर बाद वहाँ पिनाक भी पहुँचता है l पिनाक को देखने के बाद नागेंद्र बेल का स्विच छोड़ देता है l
नागेंद्र - (पिनाक से) राजा को बुलाओ...
पिनाक - क्या...
नागेंद्र - (गुर्राते हुए) बुलाओ...
पिनाक - जी... जी... अभी बुलाता हूँ...
नागेंद्र - इन सब नालायकों को निकालो यहाँ से...
सुषमा - (सभी नौकरों से) चलो चलो सभी यहाँ से....
नागेंद्र - छोटी रानी... आप भी जाएं...
सुषमा वहाँ से सब नौकरों को निकाल कर खुद भी बाहर चली जाती है और बाहर परेशानी के साथ टहल ने लगती है l क्यूंकि उसे कुछ भी मालुम नहीं है क्या हुआ है, नागेंद्र क्यूँ भड़का हुआ है l भैरव सिंह को बुलाया गया है मतलब कुछ सीरियस बात हो सकती है l उसे अचानक ध्यान आती है बीते कल को जब वीर की बात भैरव सिंह कर रहा था तब वह उसकी तरफ भी देख रहा था l कहीं बात वीर से ताल्लुक तो नहीं l उसके जेहन में वीर का खयाल आते ही सुषमा और भी ज्यादा परेशान हो जाती है l आधे घंटे देर बाद भैरव सिंह वहाँ पहुँचता है l भैरव सिंह सुषमा की ओर देखे वगैर सीधे नागेंद्र के कमरे में चला जाता है l सुषमा अपनी उत्सुकता के वश कमरे के बाहर दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करती है l
पिनाक - (गुस्से में) राजा साहब... वह हरामजादा विश्वा... बड़ा कांड कर गया है...
भैरव सिंह - विश्व... क्या कांड कर दिया...
पिनाक - महल में आकर... हमारे अहं को चैलेंज... कर गया है...
भैरव - क्या महल आकर...
पिनाक - हाँ राजा साहब... सुबह सुबह अंधेरे में... महल के भीतर ऐसे आया था... जैसे उसीका घर हो... और यहाँ बड़े राजा जी को जो मुहँ में आया बक कर गया है....
भैरव सिंह, नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र तकिये के सहारे बेड के हेड रेस्ट से टेक् लगाए बैठा था l उसका चेहरा साफ बता रहा था विश्व की बातों से वह किस कदर अपमानित महसुस कर रहा है l पिनाक सारी बातेँ बताता है जो उसे नागेंद्र से पता चला था l
पिनाक - उस हराम खोर की हिम्मत तो देखिये... हमारे महल में आकर हमें चुनती दी है... अब उसका क्या करना है... आप फैसला कीजिए...
भैरव सिंह - फ़िलहाल... महल की पहरेदारी को कड़ी करना है... और कुछ दिनों के लिए चुप रहना है...
पिनाक - यह... (हैरानी के साथ) यह आप क्या कह रहे हैं... हम तो कहते हैं... रोणा से कहलवा कर उसकी थाने में अच्छी खातिरदारी करते हैं....
भैरव - आप गरम दिमाग से सोच रहे हैं... थोड़ा ठंडे दिमाग से काम लीजिये... उसने यह किया तो क्यूँ किया...
पिनाक - हमें नीचा दिखाने के लिए...
भैरव सिंह - किसके सामने...
पिनाक - लोगों के सामने...
भैरव सिंह - जो लोग अब तक कुछ नहीं जानते... उनके सामने...
पिनाक - (चुप हो जाता है)
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... राजा साहब आगे बोलिए...
भैरव सिंह - वह हमें उकसा रहा है... वह एक आरटीआई कार्यकर्ता है... वकालत की डिग्री है उसके पास है... हमारे लिए गाँव वालों के दिल में खौफ है... इसीलिए गाँव में उसका हुक्का पानी बंद है... अब हमने कुछ भी किया तो... लोगों को मालुम होगा... चर्चा का विषय बनेगा... और विश्वा यही चाहता है...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो क्या हम चुप रहेंगे...
भैरव - नहीं... मौके का इंतज़ार करेंगे...
पिनाक - मौका... हमें मौका बनाना चाहिए...
भैरव - बनाएंगे... मगर कोई जल्दबाजी नहीं...
पिनाक - पर क्यूँ...
भैरव - वह इसलिए... के पीढियों दर पीढ़ी जिस महल के तरफ पीठ कर कोई गया नहीं... उसी महल में वह यह कांड कर गया है... वह जिससे भी जिक्र करेगा... कोई उसका यकीन नहीं करेगा... अगर बदले में हम कुछ करेंगे... तो लोग चर्चा करने लगेंगे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... आप बिल्कुल सही कह रहे हैं... राजा साहब... पर ऐसा लगता है... जैसे हमे आज किसीने हरा कर गया है...
पिनाक - उस हरामजादे को... महल की इतनी जानकारी कैसे है... के बड़े राजा जी के कमरे में इतनी आसानी से पहुँच गया...
भैरव सिंह - आप भूल रहे हो... वह... एक मात्र नौकर था... जिसका अंतर्महल तक प्रवेश था... और रही हारने की बात... हम हारे नहीं हैं... थोड़ी असावधानी हुई है... बरसाती चींटी है वह... जिसकी उड़ान... पल दो पल की होती है... बाज की उड़ान को उससे क्या...
पिनाक - फिर भी इतरा रहा होगा... अपनी इस जीत पर...
नागेंद्र - राजा साहब सही फर्मा रहे हैं... हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे... जिससे हमारी साख पर लोगों की नजरों में बट्टा लगे... पर ऐसा कुछ करेंगे... जिससे उस विश्व की रुह तक कांप जाए...
ये नकचड़ी और बेवकूफ का मासूम प्यार और उसकी छोटी छोटी चाहते। नकचडी का विश्व को 4 बजे तक रोकना, टीलू को ना आने का बोलना, खट्टी मीठी यादें ताजा करना, पुराने वादे दोहराना और नक्चड़ी का बेवकूफ के सीने पर सर रख कर लेटना।
जिस तरह विश्व ने रूप के माथे को चूमा वो विश्व के प्यार के साथ उसका रूप के लिए वही राजकुमारी वाले सम्मान को दर्शाता है और यही छोटी छोटी बाते विश्व को विश्व और रूप का वो बगावत की हद तक जाने वाला प्यार बनाती है। सबसे ज्यादा निश्चलता तो इस बात से दिखती है कि विश्व आज भी रूप को आप कहके बुलाते है रूप विश्व को तुम कह कर। ये वो पावन प्रेम है जो जिद्द से शुरू हुआ, दिलो की गहराई तक पहुंचा और अब एक दूसरे की आत्मा तक समा चुका है।
जिस तरह से विश्व ने नागेंद्र को जलील किया है उसके बाद तो इस घटिया इंसान को खुद की लार में डूब कर मर जाना चाहिए मगर इन क्षेत्रपालो में इतनी भी गैरत कहां है? जिस तरह से विश्व ने अपना खेल खेला है वो इनके झूठे अंहकार को ठेस पहुंचाने के लिए काफी है। जिस तरह विश्व महल से निकला वो बिलकुल ऐसा था जैसे He owned that place.
भूरा एंड पार्टी बहुंच गए रोड़ा से सलाह लेने मगर उन बेचारों को क्या बता की जो खुद विश्व से 2 बार अपनी मरम्मत करवा चुका है और अब वो खुद इन सब को अपनी मंदबुद्धि का परिचय दे रहा है। अब पता नही विश्व के हत्थे चढ़ कर कौन सा दंड प्राप्त करते है।
í
विश्व की पहली मुलाकात ने महल की ईंट से ईंट बजा दी है और अब ये फर्जी राजा अपनी फर्जी ताकत के नशे में चूर चूर हो कर भी अपनी स्तिथि नही समझ आ रही है।
बहुत ही शानदार अपडेट
बहुत ही शानदार अपडेट।