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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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👉एक सौ आठवां अपडेट
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कटक बार एसोसिएशन ऑफिस से निकल कर प्रतिभा बाहर पार्किंग में आती है l गाड़ी के पास उसे तापस खड़ा हुआ दिखता है l

प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी... आज हमारा इंतजार हो रहा है...
तापस - क्यूँ... क्या मैंने कभी तुम्हारा इंतजार नहीं किया है...
प्रतिभा - हाँ... कॉलेज के दिनों में... फिर... नौकरी के शुरुआत में... और आज...
तापस - हैलो... वकील साहिबा... आप भुल रही हैं... हम बहुत सी जगह पर... आपका इंतजार करते रहे हैं... और आज भी कर रहे हैं...
प्रतिभा - अच्छा जी... जरा बतायेंगे...
तापस - इसमे बताने वाली बात कहाँ से आई... यह तो रोज की बात है... किसी पार्टी में जाना हो.. या कोई फिल्म... इंतजार आज भी... हम ही करते हैं... और तो और किसी शॉपिंग मॉल में... आपकी शॉपिंग खतम होने तक का... इंतजार करते ही रहते हैं....
प्रतिभा - (भवें सिकुड़ कर, अपनी दांत पिसते हुए) हो गया...
तापस - हाँ... हो ही गया समझो...
प्रतिभा - तो चलें...
तापस - हाँ... चलो चले... दुर कहीं..
प्यार के लिए.. यह जगह ठीक नहीं...
प्रतिभा - आह्ह्ह्ह...

प्रतिभा गाड़ी की चाबी तापस को देती है, तापस गाड़ी का दरवाजा खोलता है और ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l प्रतिभा भी दरवाजा खोल कर बगल वाली सीट पर बैठ जाता है l तापस गाड़ी को कोर्ट की कंपाउंड से निकाल कर त्रिशूलीया रोड पर दौड़ाने लगता है l तापस कनखियों से देखता है प्रतिभा का पारा चढ़ा हुआ है l

तापस - क्या बात है जान... गुस्सा क्यूँ हो...
प्रतिभा - (थोड़ी गुस्से में) हाँ हाँ... हमेशा मैंने ही आपको इंतजार करवाया है ना... जैसे मैंने कभी आपका इंतजार नहीं किया...
तापस - ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा... हम जानते हैं.. जानेमन.. आपको भी हमारी इंतजार करते हुए... हमने भी देखा है..
प्रतिभा - अच्छा... जरा बताने की जहमत करेंगे... जरा हम भी तो देखें.. हमारा किया हुआ इंतजार... आपको कैसे याद है...
तापस - हाँ याद है.. बल्कि आपका इंतजार... यादगार रहा है... पहली इंतजार... आपकी... हमने खतम की... आपके घर... आपके दर बारात ले कर... और दुसरा इंतजार... हम बिलकुल टाइम पर पहुँचे थे... सुहाग के सेज पर...

प्रतिभा के हाथ में जो फाइलें थी उनसे वह तापस को मारने लगती है l

तापस - आह... ओह... उह... वाह.. आहा... ओहो.. वाह वाह...
प्रतिभा - (चिढ़ कर रुक जाती है) क्या आप मुझे... सताने की मुड़ बना कर आए हैं...
तापस - नहीं जान... आपको मनाने के लिए आए हैं...
प्रतिभा - आज मैं मानने वाली नहीं हूँ...
तापस - (गाते हुए) ऐ मेरी सोला बदन...
तुमको इस दिल की कसम...
रूठा ना करो...
रूठा ना करो...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) क्या बात है... सेनापति जी... आज तो आप... बिन पंखे के उड़ रहे हैं... बहुत रोमांटिक हुए जा रहे हैं....
तापस - (थोड़े उदास हो कर) क्या करें जानेमन... कल प्रताप अपने गांव चला जाएगा... फिर एक घर... दो जिंदगी... और इंतजार... इसलिए आदत डाल रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो दर्द बिछड़ने की है... प्रताप से...

तापस चुप रहता है l चेहरा उसका गम्भीर हो जाता है l वह प्रतिभा की ओर देखे वगैर गाड़ी चलाता रहता है l

प्रतिभा - सेनापति जी... मैंने कुछ पूछा आपसे...
तापस - हाँ... यही है... जान... क्या तुम्हें दर्द नहीं हो रहा है...
प्रतिभा - हाँ दर्द होता... अगर वह हमेशा के लिए... हमसे दुर जा रहा होता... तो...


गाड़ी रुक जाती है l प्रतिभा देखती है एक रेस्टोरेंट के सामने तापस ने गाड़ी को रोका है l

तापस - चलो उतरो... कुछ पल आपस में बांटते हैं...
प्रतिभा - ठीक है... चलिए....

दोनों गाड़ी से उतर कर रेस्टोरेंट के एक कोने वाली टेबल पर बैठ जाते हैं l तापस वेटर को बुला कर खाने का ऑर्डर देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - तो... सेनापति जी... पहले बताइए... आप टेंशन में हैं... या ग़म में...
तापस - पता नहीं... या फिर दोनों... (एक पॉज लेकर) जान... क्या तुम... प्रताप से... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - समझ गई... आप क्या कहना चाहते हैं... पर यह नियति है... आपको डर है... कहीं मुझे सदमा ना लग जाये... जैसे कि पिछली बार... प्रत्युष के समय हुआ था... पागल सी... बावरी सी... नहीं... इस बार.. ऐसा कुछ भी नहीं होगा...

इतने में वेटर खाना लाकर टेबल पर दोनों के प्लेट पर लगा देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - आपको.. इसी बात का डर था ना... आई मीन... है ना...
तापस - (हल्के से सिर हिला कर हाँ कहता है)
प्रतिभा - मैंने... प्रताप से वादा तो लीआ है ना... वह हर वीकएंड में... या दस बारह दिनों में आता रहेगा... और जब भी... जोडार साहब का काम निकलेगा... वह तब तब तो आता ही रहेगा...
तापस - हाँ... पर... प्रताप की प्रायॉरिटी... राजगड़ और... वहाँ पर हुए.. या हो रहे केसेस होंगे... हम.. सेकंडरी होंगे...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... हम रहेंगे तो उसके अपने ही ना...
तापस - (एक अनचाही आवाज में) हाँ...
प्रतिभा - देखिए... सेनापति जी... हम इस बात को... यूँ समझने की कोशिश करें...
तापस - कैसे...
प्रतिभा - मान लीजिए... प्रताप कहीं बाहर जॉब कर रहा है... तो... तब तो आपको कोई चिंता नहीं करनी चाहिए...
तापस - (मुस्कराते हुए निवाला खाते हुए) मुझे लगा था... तुम बहुत टेंशन में होगी... पर तुम तो... एकदम से रिलैक्स हो...
तापस - क्यूँ ना होऊँ... आखिर बेटे के साथ बहु भी मिल गई है...

तापस के गले में खाना अटक जाता है l उसको खांसी होने लगती है l पानी पीने के थोड़ी देर बाद वह थोड़ा नॉर्मल होता है l

तापस - अरे हाँ... मैं तो पूछना भूल ही गया... यह बहु वाला चैप्टर क्या है... कहाँ से आया... और वह भी क्षेत्रपाल की बेटी...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हाँ... है ना मजेदार बात...
तापस - पर मुझे जहां तक याद है... तुम्हें तो वह नंदिनी बहुत पसंद थी ना...
प्रतिभा - (अपनी हँसी की दबाते हुए, अपना सिर आगे ले जाती है और) नंदिनी ही रुप है...
तापस - (तेज करेंट लगने जैसा चौंकता है) क्या...
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसती है)
तापस - क्या प्रताप जानता है...
प्रतिभा - (हँसते हुए) नहीं...
तापस - क्या...
प्रतिभा - हाँ... नहीं जानता... के नंदिनी ही... रुप है...
तापस - मतलब... जब से उसकी दोस्ती नंदिनी से हुई है... नंदिनी तभी से उसे बेवक़ूफ़ बना रही है...
प्रतिभा - जी नहीं...
तापस - यह क्या झोल है... तुम मुझे कंफ्युज कर रही हो...
प्रतिभा - अरे.. पहले पुरी बात तो सुन लिया करो...
तापस - पुरी बात...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पुरी बात... (तापस अब चुप रहता है) जिस रात को... प्रताप गया था ना.. सुकुमार और गायत्री के शादी की साल गिरह की मुबारक बात देने... उसी रात नंदिनी को पता चला... कि... प्रताप ही... उसका अनाम है...
तापस - अ.. नाम..
प्रतिभा - हाँ.. अनाम...

तापस अपना माथा पकड़ लेता है और अपना सिर झटकने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

प्रतिभा - क्या हुआ...
तापस - तुम माँ बेटे... मुझसे बहुत कुछ छुपाया है... मैं... उसे होटेलों में.. क्लबों में लेके जाता था... के वह लड़की पटाये... जब कि उसके पास... पहले से ही... पटी पटाइ थी...
प्रतिभा - वैसे... आपको इस बात का दुख है... या शिकायत...
तापस - दोनों... और तुम दोनों... मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं...
प्रतिभा - अरे... यह तो मुझे भी कुछ ही दिन पहले मालुम पड़ा...
तापस - अच्छा... तब तो ठीक है... पर (एक पॉज लेकर) मुहब्बत किया भी किससे.. अपने कट्टर दुश्मन की.... बेटी से... (कह कर अचानक चुप हो जाता है)
प्रतिभा - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गए....
तापस - (रुक रुक कर) वह... नंदिनी... क्या सच में... प्रताप को चाहती है... या... भैरव सिंह की... कोई गंदी चाल है...
प्रतिभा - (बिदक कर) क्या...

प्रतिभा ने यह चिल्ला कर पूछा था l रेस्टोरेंट में सभी लोग प्रतिभा और तापस की ओर देखने लगते हैं l

तापस - श्श्श... (धीमे) क्या... क्या कर रही हो... सब देख रहे हैं...
प्रतिभा - (धीमी आवाज में) क्या... कहा आपने...
तापस - अरे.. मैंने तो... एक तुक्का भीड़ाया था...
प्रतिभा - आप ना यह पुलिसिया दिमाग चलाना बंद करो... अभी आप पुलिस में नहीं हैं... (फिर थोड़ी संजीदा हो कर) कुछ बातेँ... दिल और जज्बातों की होती है... प्रताप भी बचपन से ही... रुप से प्यार करता था... बस वह खुद को समझा नहीं पा रहा था... रुप... रुप तो बचपन से ही... प्रताप को बेइन्तेहा चाहती थी... दोनों को किस्मत ने अलग किया... और दोनों को किस्मत ने... एक खूबसूरत मोड़ पर मिलाया है... रुप ने तो अपनी दिल की सुन ली... बस प्रताप का बाकी है... उसे अपने दिल की सुनने के लिए...
तापस - लेकिन कब... प्रताप तो कल चला जाएगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... रुप उसके लिए पहले से ही... राजगड़ चली गई होगी.. या फिर चली गई है...
तापस - मतलब... तुम्हारे साथ... रुप ने बहुत कुछ प्लान बना लिया है... (प्रतिभा मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... मुझे लगता है... प्रताप के लिए एक बड़ा काम रह गया है... वैदेही को कंविंस करना...
प्रतिभा - नहीं... प्रताप के लिए सिर्फ़... अपनी राजकुमारी को ढूंढना... और प्रपोज करना बाकी रह गया है... आई एम डैम श्योर... अब तक तो... वैदेही से मिलकर को रुप ने सब कुछ बता दिया होगा...
तापस - क्या...

हैरानी और शॉक से चिल्ला पड़ता है l क्यूँकी यह खबर उसके लिए बहुत बड़ा झटका था l उसके चिल्लाने से रेस्टोरेंट में मौजूद सभी लोग तापस की ओर देखने लगते हैं l

प्रतिभा - श्श्श... (धीमे) क्या कर रहे हैं आप... लोग देख रहे हैं...
तापस - (धीमे, दबी आवाज में) तुम लोगों ने टीम बना कर... खिचड़ी पका चुके हो... और मुझे अब बता रही हो...
प्रतिभा - अरे.. कल ही तो पता चला... और बोलने का मौका मिला ही कब... वैसे भी... रुप का... वैदेही के बारे में जानना और मिलना... बहुत ही जरूरी था...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, और बड़ी संजीदगी के साथ) रुप भी बचपन में... बहुत कुछ खोया था... सबसे अहम... उसने अपनी माँ को खोया था... जिसकी वजह... वह एक ऐसी औरत को मान रही थी... जिसके चलते... उसके सिर से... माँ की साया हट गया था... यह बात और है कि उस औरत के बारे में... ना वह जानती थी... ना उससे कभी मिली थी... पर चूंकि उस औरत के... उनके जीवन में आने के बाद... रुप अनाथ हो गई थी... इसलिए उस अनजान औरत से... बेहद नफरत कर रही थी... पर जब उस औरत के बारे में... कल मैंने उसे बताया... तब उस औरत के लिए... रुप के मन में... असीम श्रद्धा, अनुकंपा और सम्वेदना के साथ-साथ असीम सम्मान भी जाग उठा... रुप उसी औरत से मिलने राजगड़ गई है... लगे हाथ... हमारे प्रताप की टांग भी खिंचेगी...
तापस - ओह... तो यह बात है...

खाना खतम हो चुका था, वेटर बिल लेकर आता है l तापस बिल चुकाने के बाद दोनों बाहर आकर गाड़ी में बैठते हैं l गाड़ी में प्रतिभा, वैदेही को फोन लगाती है और स्पीकर पर डाल देती है l

वैदेही - हाँ मासी... नमस्ते... कैसी हो आप...
प्रतिभा - मैं तो ठीक हुँ... यह बता... कैसी लगी तेरी बहु...
वैदेही - लाखों में नहीं... करोड़ों में एक है... अभी अभी मासी... यहाँ से गई है... बचपना अभी भी... कूट कूट कर भरा हुआ है उसमें... विशु ने उसका नाम ठीक ही रखा है.... नकचढ़ी... हा हा हा हा हा...
प्रतिभा - हा हा हा हा... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने... और...
वैदेही - तुम यकीन नहीं करोगी मासी... काकी की पसीने छुड़ा दिए... उस नकचढ़ी ने... पर... दिल की बहुत ही अच्छी है... बेचारा विशु... उसके बारे में... पुरी तरह से नहीं जानता...
प्रतिभा - हाँ... जब जान लेगा... तब देखेंगे... कैसे रिऐक्ट करता है...
वैदेही - हाँ... वह तो है... पर मासी... तुमने यह जानने के लिए तो फोन नहीं किया ना...
प्रतिभा - नहीं... (कुछ देर के लिए दोनों तरफ चुप्पी छा जाती है) उसने... तुम्हें सारी बातें बताई....
वैदेही - समझी... हाँ मासी... उसने अपने दिल की सारी बातें बता दी... मेरे बारे में... अपने सारी ख़यालात... खोल कर रख दिया... बचपन से लेकर आज तक... वह क्यूँ अपने पिता से नफरत करती है... जब उसके बारे में... तुमसे सुनी... और उससे मिलने के बाद... मेरे दिल को सुकून मिला है कि मैं क्या कहूँ... (आवाज़ भर्राने लगती है) मुझे खुद से शिकायत रहती थी... एक ग्लानि मन में रहती थी... मेरे वजह से... विशु की जिंदगी... क्या से क्या हो गई... उसके बचपन के सभी दोस्त.. अपना घर बसा लिए हैं... पर मेरा भाई... पर विधाता का विधान देखो मासी... विशु की जीवन में... जो लड़की आई है... उसके कट्टर दुश्मन की बेटी है वह... किस तरह से... कैसे न्याय कर रहा है विधाता... अब तो मैं निश्चिंत हूँ... यह महासंग्राम जीत पर ही खतम होगी... न्याय पर ही खतम होगी...

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क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुप की गाड़ी प्रवेश करती है l आशा के अनुरुप द्वार पर नजर उतारने की थाली लिए नौकरों के साथ सुषमा खड़ी थी l गुरु के गाड़ी पोर्टीको में लगाते ही गार्ड्स दौड़कर आते हैं और गाड़ी की पिछला दरवाजा खोलते हैं l रुप उतरती है और सुषमा के सामने खड़ी हो जाती है l सुषमा, पहले थाली में कर्पूर जला कर रुप की नजर उतारती है फिर कुछ नोट निकाल कर रुप की चारो तरफ घुमाती है और नौकरों में बांट देती है, और नौकरानियों से रुप की सामान रुप के कमरे में पहुँचाने को कहती है l

सुषमा - (रुप से) आओ राज कुमारी... बड़े दिनों बाद आए...
रुप - (सुषमा के साथ चलते हुए) हाँ छोटी रानी माँ... बड़े दिनों बाद... क्या करूँ... आप वहाँ आ नहीं पाती... और...
सुषमा - ठीक है... ठीक है... पहले बड़े राजा साहब जी से आशीर्वाद ले लीजिए...

दोनों नागेंद्र के कमरे के बाहर आकर खड़े होते हैं l सुषमा रुप को वहीँ ठहरने के लिए कह कर अंदर जाती है और कुछ देर बाद बाहर आती है l

सुषमा - आइए राजकुमारी...

रुप और सुषमा दोनों अंदर आते हैं l रुप देखती है नागेंद्र बेड की हेड रेस्ट पर पीठ टिकाये बैठा हुआ था l बेड के दोनों तरफ कुछ नौकर और नौकरानियां खड़े हुए हैं l

नागेंद्र - (बेहद गंभीर आवाज़ में) कैसी हैं आप... राजकुमारी जी... (लकवा ग्रस्त होने की वजह से जीभ बमुस्किल साथ दे रही थी)

अपने दादाजी को देखते ही रुप की आँखों में वैदेही का चेहरा घुमने लगती है l अपनी नजरें झुका लेती है और अपनी भावों को काबु करने की कोशिश करने लगती है l

सुषमा - राजकुमारी... (रुप की कंधे पर हाथ रखकर) बड़े राजा साहब पूछ रहे हैं...
रुप - (चौंक कर) जी... जी.. (संभल कर) जी आपका आशीर्वाद है... (अपनी नजरें झुका लेती है)
नागेंद्र - अच्छी बात है... आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है...
रुप - जी.. बढ़िया...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... खयाल रहे... पढ़ाई के बाद... आपको... दसपल्ला परिवार में जाना है... क्षेत्रपाल परिवार का मान सम्मान और गौरव लेकर...

रुप अपनी नजरें नहीं उठाती सिर नीचे झुका हुआ था l जबड़े और आँखे उसके भींच जाती हैं l अपनी सांसो को काबु करते हुए

रुप - जी बिल्कुल... बड़े राजा साहब जी... हम आपके पद चिन्ह को अनुसरण करेंगे... आप ही की तरह इस वंश की गौरव पताका को... आकाश में उड़ाते रहेंगे...
नागेंद्र - बहुत अच्छे... अब आप अपने कक्ष में जा सकती हैं.. (सुषमा से) छोटी रानी आप कुछ समय के लिए रुकिए यहां पर...
सुषमा - जी बड़े राजा साहब...

फिर सुषमा इशारा करती है, रुप वहाँ से निकल जाती है l रुप के पीछे कुछ नौकरानियां चले जाते हैं l उन सबके जाते ही

सुषमा - जी कहिए.. बड़े राजा साहब...
नागेंद्र - हमें राजकुमारी की वार्तालाप में... असंतुष्टि महसुस हुई है... हमें उनकी उत्तर में... हमसे ना पसंदगी साफ दिखा है....
सुषमा - नहीं बड़े राजा जी... हमें तो... कहीं से भी ऐसा नहीं लगा...
नागेंद्र - हमारे हाथ पैर जवाब दे गए हैं... आँखे धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं... और कान साथ छोड़ दूर जा रहे हैं... पर अंदर से सामने वाले की बातों से.. उसे समझने की क्षमता अभी भी रखते हैं...
सुषमा - बड़े राजा साहब... मैंने रुप को बचपन से पाला है... वह बत्तमिज तो हरगिज नहीं हो सकती...
नागेंद्र - वह बत्तमिज है... ऐसा हमने नहीं कहा... हम उसे नापसंद हैं.. यह हमने महसूस किया...
सुषमा - नापसंद या नाराजगी... शायद इसलिये भी हो सकती है कि... उसे शहर जाने की कोई इच्छा नहीं थी... पर उसे भेजा गया...
नागेंद्र - नहीं.... बात कुछ और है... राजकुमारी... वंश की गौरव की बात कह नहीं रही थी... बल्कि... ताने मार रही थी....
सुषमा - बड़े राजा जी... मैं... मैं उनसे पूछ कर देखती हूँ...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... अभी आप जा सकती हैं...
सुषमा - जी... जी राजा साहब...

कह कर सुषमा नागेंद्र से इजाजत लेकर उस कमरे से बाहर आती है और सीधे रुप के कमरे में पहुँचती है I सुषमा देखती है रुप बहुत गंभीर चेहरा बना कर अपने बेड पर बैठी हुई है l रुप जैसे ही सुषमा को देखती है खुद को नॉर्मल करने की और अपने होंठो पर मुस्कराहट कोशिश करती है l सुषमा अंदर आकर दरवाजा बंद करती है, फिर रुप के करीब आ कर बैठ जाती है और रुप को गौर से देखने लगती है l सुषमा के ऐसे देखने पर रुप हड़बड़ा जाती है

रुप - (हकलाते हुए) आप ऐसे क्यूँ देख रही हैं चाची माँ...
सुषमा - तुम जानती हो... बड़े राजा साहब जी से मेरी क्या बात हुई...
रुप - बात उन्होंने की है... आपसे.. वह भी मुझे अपने कमरे से बाहर भेज कर... मुझे कैसे पता चलेगा... उन्होंने आपसे क्या बात कही...
सुषमा - मेरी इस छोटी सी सवाल पर... तुमने इतना बड़ा जवाब दिया... यह तुम्हारे भीतर की बदलाव की भाषा है... जिसे बड़े राजा साहब ने पढ़ लिया... (रुप चुप रहती है) तुमने उनसे गलत कुछ भी नहीं कहा... पर लहजा... और जवाब से उन्हें मालुम पड़ गया... वह रुप जो यहाँ... अपनी कमरे में दुबकी रहती थी... किताबों में खोई रहती थी... जो भुवनेश्वर पढ़ने गई थी... यह रुप... वह नहीं है... यह रुप अब प्रतिक्रिया देने लगी है... (रुप असमंजस सी भाव से इधर उधर देखने लगती है) क्या हुआ रुप...
रुप - (सुषमा की नजरों से नजर मिलाते हुए, कुछ देर देखती है) चाची माँ... उम्र ढलती है... लोग बीमार होते हैं... उम्र और बीमारी के वजह से... इंसान का शरीर.. उसका साथ छोड़ने लगता है... पर बड़े राजा साहब को देख कर आपको क्या लगता है...

सुषमा रुप की बातों को समझ नहीं पाती, वह अपनी भवें उठा कर रुप की ओर ऐसे देखती है जैसे कह रही हो बात को समझाओ l

रुप - कुछ लोग जो ढलती उम्र में इस तरह से बिस्तर पकड़ लेते हैं... वह उम्र या बीमारी के चलते नहीं... बल्कि... लोगों के श्राप और बद्दुआ के चलते.. उनकी हालत ऐसी हो जाती है....

रुप की इस जवाब से सुषमा की आँखे फैल जाती हैं l हैरानी के चलते मुहँ खुल जाता है l

सुषमा - यह तुम... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो रुप...
रुप - मैंने कुछ सच्चाई सुनी... कुछ सच्चाई देखी... और उस सच्चाई को संज्ञान लेते हुए... अब देख रही हूँ... समझ भी रही हूँ...
सुषमा - (हैरानी भरी आवाज में) बड़े राजा साहब ने.. सही अनुमान लगाया... तुम थोड़ी नहीं... बहुत हद तक बदल गई हो... तुम्हारे तेवर... और लहजे में... बगावत झलक रही है.... (थोड़ी नरम पड़ कर समझाते हुए) इस राह में... इतनी तेजी से मत भागो रुप... के सामने जब रोड़ा आए... तो मुहँ के बल गिरो... (फिर अचानक बेड से उठ खड़ी होती है और कमरे में चहल कदम करने लगती है, फिर मुड़ कर रुप से) तुम यहाँ क्यूँ आई हो रुप...
रुप - आपसे मिलना था...
सुषमा - मुझसे...
रुप - हाँ चाची माँ... जीवन में कभी कभी ऐसे मोड़ आते हैं... जब बच्चों को.. माँ की गोद में सिर रखने के लिए... माँ की आंचल में ख़ुद को छुपाने के लिए... माँ की कंधे के सहारे सिसकने के लिए... और ग़मों से खुद छुड़ाने के लिए माँ की सीने से लग जाने के लिए... (कह कर रुप सुषमा के गले से लग जाती है)

सुषमा - (रुप के बालों में हाथ फेरते हुए) रुप... कहीं तुझे किसीसे... प्यार तो नहीं हो गया है...

रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है जो सुषमा को अपने कंधे पर साफ महसुस करती है l उसकी हाँ को समझते ही डर और हैरानी से सुषमा की आँखे बड़ी हो जातीं हैं l सुषमा तुरंत रुप को खुद से अलग करती है l

सुषमा - र्र्र्र्र्र्र्रुप... यह तुम... क्या कह रही हो...
रुप - आपने... वीर भैया का भी हिम्मत बढ़ाया था...
सुषमा - (धप कर रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) वीर लड़का है... मर्द है... वह लड़ लेगा... उसकी शादी भी तय नहीं हुई है.... पर तुम्हारी शादी... तय हो चुकी है... वीर संभाल लेगा... पर तुम... क्षेत्रपाल की आँधी का मुकाबला कैसे करोगी...

रुप चुप रहती है, कोई जवाब नहीं देती l कमरे में चुप्पी छाई हुई थी l इतनी चुप्पी की एक दुसरे को अपनी अपनी साँसों की आवाज सुनाई दे रही थी l

सुषमा - (ठंडी आवाज में) क्या... वह लड़का.. तुम्हारे कॉलेज से है... (रुप अपना सिर हिला कर ना कहती है) क्या वह बहुत पैसे वाला है...... मतलब कोई खानदानी... या बड़े घराने से ताल्लुक रखता है...

रूप अपना सिर हिला कर ना कहती है, सुषमा अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ लेती है l

सुषमा - रुप... क्या समाज में... उसका कोई रुतबा भी है.... (रुप फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है) ओह... रुप... तेरी इस बगावत में... तेरा साथ कौन देगा... क्षेत्रपाल के अहं के आँधी से... कौन तुझे बचाएगा...
रुप - वही... जिससे मैंने चाहा है... वही मेरा साथ देगा...
सुषमा - ना समाज में हैसियत... ना कोई रुतबा... वह कैसे... क्षेत्रपाल की आँधी से टकरायेगा....
रुप - हाँ... वह एक ऐसे चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ा हो जाएगा... के दुनिया की कोई भी आँधी कैसे भी उससे टकराए... बिखर कर चूर चूर हो जाएगी...
सुषमा - इतना विश्वास... कौन है वह... जो क्षेत्रपाल से टकरायेगा...
रुप - चाची माँ... मैं अभी आपसे... कुछ भी नहीं कह सकती... पर इतना जरूर कहती हूँ... बहुत जल्दी आपको मालुम हो जाएगा.... और यकीन भी... के क्षेत्रपालों को... वही घुटनों पर ला सकता है...

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xxx मॉल से निकल कर विश्व बाहर बाहर रोड पर आता है l विश्व रोड के दूसरी तरफ बस स्टॉप तक जाने के लिए ट्रैफ़िक क्रॉस पर जा कर खड़ा होता है l चूंकि रोड बाई सेक्ट था वह ट्रैफिक के जेब्रा क्रॉस के पास खड़ा था I ज्यूं ही ट्रैफिक पर रेड लाइट जलता है गाडियाँ रुक जाती हैं, विश्व ट्रैफिक क्रॉस कर रोड के दुसरे तरफ बस स्टॉप पर पहुँच जाता है और वहाँ खड़े हो कर बस का इंतजार करने लगता है l एक बस आता है पर विश्व उस पर नहीं चढ़ता l बस के जाने के बाद विश्व वहाँ पर बेंच पर बैठ कर अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगता है l इस बीच दो और बस वहाँ से गुजर चुके थे l जब चौथा बस आकर रुकता है विश्व उस बस में चढ़ता है और आगे एक खाली सीट पर जा कर बैठ जाता है l बस में बैठे बैठे मोबाइल फोन पर स्क्रीन स्क्रोल करते हुए अपना वक़्त बिताने लगता है कि तभी बस में हल्ला शुरु हो जाता है l बस में बैठे सभी लोग शोर की ओर देखने लगते हैं I ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l दो आदमियों के बीच किसी बात को लेकर पहले कहासुनी हुई फिर झगड़ा शुरु हो गई थी l कंडक्टर उनके बीच आकर झगड़ा सुलझाने की कोशिश करता है l पर चूंकि गाड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी, विश्व चिढ़ कर बस से उतर जाता है, और सामने जा रही बस में भागते हुए चढ़ जाता है l बस में थोड़ी भीड़ थी, इसलिए थोड़ी दुर जाकर निको पार्क जंक्शन के पास उतर जाता है l वहाँ से पैदल चलते हुए बस स्टॉप पर बैठ कर मोबाइल निकाल कर वक़्त बिताने लगता है l करीब करीब बीस पच्चीस मिनट के बाद उसके सामने हेल्मेट पहने एक बाइक सवार आकर रुकता है l विश्व अपना मोबाइल जेब में रख कर उस बाइक वाले के पीछे बैठ जाता है l बाइक वहाँ से चल देता है l कुछ देर बाद वह बाइक एक रेस्टोरेंट के पास रुकती है l विश्व और वह बाइकर भी उतरता है l

विश्व - अब हेल्मेट क्यूँ पहने हुए है...

वह बाइकर अपना हेल्मेट निकालता है l सीलु, अपने जबड़े को मलते हुए विश्व के साथ टेबल पर बैठ जाता है l

विश्व - बड़ी जोर की लगी क्या...
सीलु - आह.. (कराहते हुए) कमबख्त का हाथ था या हाथोड़ा... आह... जबड़ा हिला कर रख दिया...
विश्व - सॉरी यार... पर मैंने तुम्हें उसका ध्यान भटकाने के लिए कहा था... तुमने उससे झगड़ा क्यूँ मोल लिया...
सीलु - सोचा था कहासुनी में काम हो जाएगा... लेकिन निकला साला ढीठ... इसलिए धक्कामुक्की किया... पर हरामी ने... मेरा जबड़ा हिला कर ही माना...
विश्व - सॉरी यार..
सीलु - अरे... कोई नहीं भाई... तुम्हारे लिए कुछ भी... वैसे... यह चेट्टी और केके वाला प्रकरण... दोस्ताना नहीं रहा...
विश्व - नहीं... ना दोस्ताना... ना विश्वास भरा...
सीलु - ऐसा क्यूँ...
विश्व - ऐसे लोग... बड़े सयाने बने फिरते हैं... और बड़े मतलब परस्त होते हैं..
सीलु - हाँ.. पर तुम्हारे पीछे... आदमी छोड़ने का क्या मतलब...
विश्व - यह लोग बहुत खोखले होते हैं... पर ऊपर से खुद को मजबूत दिखाते हैं... मतलब परस्त इतने की... ना कीचड़ में उतरना है... ना पैर धोने हैं... पर कमल का फूल... हर हाल में चाहिए...
सीलु - भाई... यह फिलासफी वाली बात... दिमाग के पल्ले पड़ता नहीं है... सीधे सीधे समझाओ ना भाई...
विश्व - ठीक है... मैं किन किन से मिलता हूँ... मेरे पीछे कौन कौन है... वगैरह..
सीलु - पहले खाने का ऑर्डर करते हैं... खाते खाते बात करते हैं...
विश्व - हाँ... यही सही रहेगा...

विश्व वेटर को बुलाता है l सीलु की मन पसंद का खाना और अपने लिए सादा खाना ऑर्डर करता है I कुछ देर बाद खाना सर्व हो जाता है l सीलु खाने पर टुट पड़ता है l विश्व भी चुप चाप खाना शुरु करता है l आधी खाने के बाद सीलु विश्व से पूछता है

सीलु - हाँ भाई.. कुछ कह रहे थे...
विश्व - यार... तुम पहले पेट भर लो...फिर शांति से बात करते हैं...
सीलु - नहीं भाई ऐसी बात नहीं है... पहले जो ठूंसा वह पेट ठंडा करने के लिए था... अब जो ठूंस रहा हूँ... वह पेट भरने के लिए... (विश्व की हँसी निकल जाती है) हाँ भाई... अब मैं शांति से सुन सकता हूँ...
विश्व - ठीक है सुनो फिर... इन दिनों जो भी मुझे ढूंढ ढूंढ कर... मेरे मदद को सामने आए हैं... सब के अपने अपने मतलब हैं... सबसे पहले नभ वाणी की न्यूज चैनल की सम्पादक... सुप्रिया रथ.... उसकी अपनी वाज़िब वजह है... पर सवाल है... उसे अंदर की खबर लगी कैसे...
सीलु - क्यूँ वह रिपोर्टर है... उसके अपने कंटेक्ट होंगे...
विश्व - नहीं... उसके पीछे... जरूर रूलिंग पार्टी का कोई है... जो खुद को पर्दे के पीछे रखे हुए है...
सीलु - अच्छा... पर यहाँ केके के पीछे भी तो... चेट्टी है...
विश्व - हाँ है... क्यूंकि दोनों तरफ... पोलिटिकल राईवलरी है...
सीलु - भाई... तुमने तो आसानी से पता लगा लिया था... केके के पीछे कौन है... पर सुप्रिया के पीछे कौन है... यह क्यूँ नहीं ढूंढ पाए...
विश्व - केके... श्रुट है... कन्नींग है... पर कुछ मामलों में... वह कच्चा है... सुप्रिया ना कन्नींग है... ना श्रुट है... पर प्रोफेशनल है... उसने मुझसे कुछ छुपाया नहीं है... हाँ कुछ बातेँ बताया नहीं है... पर केके... चालाक बनने की कोशिश में... बेवकूफ़ी कर जाता है...
सीलु - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
विश्व - क्या सोच रहे हो...
सीलु - यही के... मदत करने वाले... खुद को पर्दे के पीछे क्यूँ रख रहे हैं...
विश्व - वजह वही है... जैसे मैं तुम लोगों को पर्दे के पीछे रखना चाहता हूँ...
सीलु - मतलब...
विश्व - देखो... भैरव सिंह से दुश्मनी... मतलब... अपने आगे पीछे मिला कर सात पुश्तों की कुर्बानी...
सीलु - हा हा हा हा... मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा... ना मेरे आगे कोई है... ना पीछे कोई था... बस अपने साथ तुम हो... और तुम्हारा... वह बाल भी बांका नहीं कर पाएगा...
विश्व - तुम्हारा यह सोच गलत भी हो सकता है...
सीलु - खैर.. वह हम बाद में सोचेंगे... पहले यह तो बताओ...
विश्व - क्या...
सीलु - यही के... यह लोग अपने अपने समाज में... इलाके में... अच्छी खासी रुतबा रखते होंगे... तो राजा से सीधे सीधे... क्यूँ नहीं भीड़ रहे हैं...
विश्व - वह इसलिए... की उन सबकी... कोई दुखती नस पर राजा... अपना पैर जमा कर रखा होगा...
सीलु - तभी... तभी यह लोग सामने ना आ कर... तुम्हें सामने रखे हुए हैं...
विश्व - हाँ... यही बात है...
सीलु - ठीक है... पर... यह चेट्टी... उसकी कौनसी कमजोरी होगी...
विश्व - पता नहीं... पर यह भी है... उसे मुझ पर यकीन नहीं है... इसलिए उसने अपने आप... सात साल पहले का किस्सा छेड़ दिया...
सीलु - यकीन न करने की वजह...
विश्व - यश... उसका बेटा... चेट्टी को अच्छी तरह से मालूम था... यश मुझे मार कर एक्सीडेंट दिखाना चाहता था... पर रिजल्ट उल्टा हो गया... मेरी जगह.. उसका बेटा मारा गया... उसके बाद... उसीने... इंटरनल इनवेस्टिगेशन को... प्रभावित करने की कोशिश की... पर वह तो डैड... सीसीटीवी फुटेज... और पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट लेकर अड़ गए... वरना... यश की मौत को... मर्डर साबित करने के लिए... कोई कसर नहीं छोड़ा था...
सीलु - ओ... तो यह बात है...
विश्व - हाँ...
सीलु - तो भाई... इन लोगों की... क्या हमारी टीम में जरूरत है... मेरा मतलब है कि... क्या यह लोग हमारी मदत करेंगे...
विश्व - देखा जाए तो... इनकी जरूरत है भी... और नहीं भी...
सीलु - यह क्या बात हुई...
विश्व - यह लोग अभी हमारे साथ हैं... मैं... भैरव सिंह के लिए... एक दलदल बना रहा हूँ... मान लो... ज्यूं ज्यूं... भैरव सिंह फंसता जाएगा... त्यों त्यों.. यह लोग... हमारे साथ छोड़ कर... पीठ पर सवारी करने लगेंगे... और जब भैरव सिंह गले तक धंस जाएगा... उन लोगों को हमारी कोई जरूरत नहीं रहेगी... बिल्कुल उस कएन की तरह... टॉस के बाद मैच में....
सीलु - केके... तो तुम्हारे पीछे आदमी छोड़ रखा था... पर क्या सुप्रिया...
विश्व - नहीं... सुप्रिया के जरिए... जो भी मुझ पर नजर रखने की कोशिश कर रहा है... उसके हिसाब से... माँ और डैड ही मेरी कमजोर कड़ी हैं... पर चेट्टी यहाँ पर चालाक निकला... अखिर दल दल और कीचड़ में रहने की.. तगड़ा एक्सपीरियंस जो है उसके पास.. इसलिए मेरे मददगार कौन कौन हो सकता है... यह जानने के लिए ही... मेरे पीछे आदमी लगाया था...
सीलु - ओ तेरी...

खाना खतम हो चुका था l विश्व पेमेंट करने के साथ साथ वेटर को टीप देता है l दोनों बाहर निकलते हैं l

सीलु - अच्छा भाई... कल निकलना है... कोई और प्रोग्राम भी है क्या...
विश्व - नहीं... तुम जाओ... कल बस में मिलते हैं... पर सीट अलग अलग होनी चाहिए...
सीलु - ठीक है...

कह कर सीलु अपना बाइक स्टार्ट करता है और वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद विश्व पैदल ही आगे बढ़ने लगता है l थोड़ी दूर जाने के बाद वह देखता है, बुड्ढी के बाल बेचने वाले के पास एक लड़की आती है, उसके गोद में एक छोटा सा लड़का था l लड़की शायद दस ग्यारह साल की होगी और वह लड़का चार पांच साल का होगा l लड़की एक बुड्ढी की बाल खरीद कर अपने भाई को देती है, और वहाँ से जाने लगती है l विश्व उसे रोक कर

विश्व - (लड़की से) बेटी... तुमने क्यूँ नहीं ली...
लड़की - (विश्व को हैरानी से देखती है) वह.. मेरे दांत में कीड़े पड़ जाएंगे... इसलिए...
विश्व - (मुस्करा कर) तुम्हारे भाई के दांत में नहीं लगेंगे...
लड़की - (बिल्कुल सयानी बन कर) अभी इसके दांत गिर रहे हैं... दोबारा जब उठेंगे... यह नहीं खाएगा... (अपने भाई से) है ना... मेरे भाई... नहीं खाएगा ना मेरे भाई...

उसकी बात सुन कर, और अपने भाई से बात करते देख विश्व मुस्करा देता है पर उसके आँखों के कोने में आँसू चमकने लगते हैं l विश्व उस बुड्ढी के बाल बेचने वाले से कहता है

विश्व - भैया... इस लड़की को भी... एक बुड्ढी के बाल दे दो... मैं पैसे देता हूँ...
लड़की - नहीं नहीं अंकल... मुझे नहीं चाहिए...
बुड्ढी के बाल बेचने वाला - झूट बोल रही है साहब... पैसे नहीं हैं इसके पास...
विश्व - (लड़की से) कोई बात नहीं है बेटा... लेलो... आज तुम्हें देख कर.... मुझे मेरी दीदी याद आ गयी... वह भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है....

इतने में वह बुड्ढी के बाल बना कर दे देता है l विश्व उस लड़की को दे देता है वह लड़की एक दमकती हुई मुस्कान के साथ बुड्ढी के बाल ले लेती है और वहाँ से अपने भाई का हाथ थामे चली जाती है l विश्व उन्हें एक लगाव के भाव से जाते हुए देखता है, कैसे बहन अपने भाई को समझा रही है और भाई बुड्ढी के बाल खाते हुए अपना सिर हिला रहा है l उन दोनों को देखते देखते विश्व अपनी यादों में खो जाता है,

विश्व अपने घर में वापस आकर देखता है घर का दरवाजा बंद है तो वह दरवाजा खटखटाता है पर उसके खटखटाने से दरवाजा खुल जाता है, वह डर के मारे घर के अंदर जाता है और चिल्लाने लगता है

दीदी... दीदी...

घर के कमरे में वैदेही को ना पा कर बाहर जाने को हो ही रहा था के तभी बाहर से वैदेही घर के अंदर आती है l

विश्व - दी... दीदी...
वैदेही - क्या हुआ...
विश्व - तुम... घर को.. इस तरह छोड़ कर...
वैदेही - उमाकांत सर जी के यहाँ गई थी...
विश्व - उमाकांत सर के यहाँ... वह भी इतनी रात को...
वैदेही - पहले तु बता... सुबह का गया अब आ रहा है... मेरे खाने की बारे में... सोचा भी था कुछ...

विश्व को खयाल आया, विश्व तो घर से निकल गया था कल्लू के बुलावे पर महल चला गया था I और पुरी तरह से वैदेही के बारे में भुल ही गया था l यह समझ में आते ही शर्मिंदगी से अपने में गड़ जाता है l

विश्व - म.. माफ कर दो दीदी... सात साल बाद मिली भी तो.. मैं... (कुछ कह नहीं पाता, उसके आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं)
वैदेही - ना.. ना मेरे भाई ना.. दिल पे मत ले... मैं सर जी के यहाँ से... हम दोनों के लिए... रात का खाना लाई हूँ...
विश्व - तुम्हें मेरे बारे में खयाल रहा... पर मैं बेग़ैरत... तुमको ही भूल गया... (फफक पड़ता है)

वैदेही उसके पास जाती है और उसके आँखों से आँसू पोंछती है l विश्व की हाथ खिंच कर चटाई बिछा कर थाली लगाती है और खाना परोसती है l विश्व का हाथ खाने तक जाता तो है पर निवाला बना नहीं पाता, यह देख कर वैदेही अपने हांथों से निवाला बना कर विश्व को खिलाने लगती है l विश्व के आग्रह पर वैदेही भी खाना खाने लगती है l खाना खतम हो जाने के बाद वैदेही थाली उठाती है l बर्तन माँज कर रखने के बाद

वैदेही - अच्छा... तेरे पास कुछ पैसे हैं...
विश्व - हाँ हैं.. पर कितना....
वैदेही - राशन लाना है... इसलिए...
विश्व - वह मैं... बल्लु से कह देता हूँ... कल वह राशन छोड़ जाएगा...
वैदेही - नहीं... मैं कल खुद जाऊँगी... राशन लाने...
विश्व - नहीं दीदी... तुम क्यूँ जाओगी... बल्लु ला देगा ना...
वैदेही - मैंने कहा ना... कल मैं खुद राशन लाऊँगी...
विश्व - तो ठीक है... कल हम मिलकर जाएंगे...
वैदेही - नहीं... मैं अकेली जाऊँगी...
विश्व - क्यूँ दीदी.. क्यूँ...
वैदेही - खुद को जिंदा करने के लिए...
विश्व - क्या...
वैदेही - मैं जानती हूँ... तु क्यूँ डर रहा है... पर मत भूल... मेरे कंधों पर बैठ कर... दुनिया को तुने देखा और पहचाना... (एक पॉज लेकर) ठीक है... सब यहाँ मर चुके हैं... यहाँ कोई हसती खिलती बस्ती नहीं है... श्मशान है यह... मरघट है... मुर्दों की बस्ती है... मरे हुए ज़ज्बात हैं... पर किसी को तो जागना होगा... अगर कोई नहीं जागेगा... तो इन्हें जगायेगा कौन...
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखने लगता है) यह... यह क्या कह रही हो दीदी...
वैदेही - हाँ मेरे भाई... खुन का रिश्ता... चार दीवारी तक सिमट जाता है... पर कुछ रिश्ते मुहँ बोले होते हैं... पर उनमें ज़ज्बात... खुन के रिश्ते जितने मजबुत होते हैं... पीढ़ी दर पीढ़ी... उनकी अकर्मण्यता... उनके जज्बातों पर परत बन कर... उन्हें रिश्ते नातों से दूर कर दिया... अब वह परत को हटाना है... उनके भीतर के उन जज्बातों में जान भरनी है... जिंदा करना है... लेकिन उससे पहले... खुद को तो जिंदा करना पड़ेगा ना...
विश्व - तुम्हारी कोई भी बात... मेरे समझ में नहीं आया... पर जो भी हो... कल तुम अकेली नहीं जाओगी... मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगा...
वैदेही - ठीक है... पर कल कुछ भी हो जाए... तु किसी से भी नहीं उलझेगा... ना ही किसी से.. झगड़ा करेगा... तु कल बुत बन कर देखेगा और सुनेगा... बस...
विश्व - नहीं दीदी... यह मुझसे नहीं होगा...
वैदेही - क्या तु... मेरे लिए इतना भी नहीं करेगा... (विश्व चुप रहता है) (उसे चुप देख कर) ठीक है... जब मेरा भाई ही... मेरा साथ नहीं दे रहा है... मैं इन गांव वालों से क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - नहीं दीदी... इतना बड़ा इल्ज़ाम ना लगाओ मुझ पर... ठीक है... मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा... जरूर मानूँगा...

वैदेही खुश हो कर विश्व के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है l और उसे सो जाने के लिए कहती है l विश्व चारपाई पर वैदेही को सुला कर खुद जमीन पर बिछौना लगा कर सो जाता है l पर उसके आँखों में नींद कहाँ थी l कल बीच गांव में क्या होगा यही सोच सोच कर उसके आँखों से नींद गायब थी I रात भर करवटें बदल बदल कर सोने की कोशिश करता है l पर आधी रात के बाद उसे नींद आती है l सुबह नींद टुट जाती है जब विश्व के कान में जगन्नाथ सुप्रभात मंत्र पड़ता है

नीलाद्रौ शंखमध्ये शतदलकमले रत्नसिंहासनस्थं
सर्वालंकारयुक्तं नवघन रुचिरं संयुतं चाग्रजेन ।
भद्राया वामभागे रथचरणयुतं ब्रह्मरुद्रेन्द्रवंद्यं
वेदानां सारमीशं सुजनपरिवृतं ब्रह्मदारुं स्मरामि l

यह मंत्र सुने विश्व को सात साल हो गये थे l वह जाग कर बैठ जाता है l आरती करने के बाद विश्व को तैयार होने के लिए कहती है l विश्व जल्दी से जाता है और तैयार हो कर कपड़े बदल कर वैदेही के सामने खड़ा हो जाता है l
वैदेही एक थैला विश्व को थमा देती है और दोनों भाई बहन बाहर निकल जाते हैं अपने घर के लिए राशन लाने l विश्व वैदेही के साथ जा रहा था, पर अपना चेहरा झुकाए, पुरी कोशिश कर रहा था लोगों की नजरों की धार से खुद को बचा रहा था l वह लोग जो इन सात सालों में विश्व को अनाथ के रुप में जाने थे, वैदेही के आ जाने से और उसके अतीत के बारे में भैरव सिंह के आदमियों के वजह से जान लेने के बाद विश्व और वैदेही को एक घृणित नजर से देख रहे थे l कुछ दूर चलने के बाद दोनों भाई बहन एक राशन की दुकान पर पहुँचते हैं l

वैदेही - नमस्ते उदय मौसा...

दुकान दार वैदेही को गौर से देखता है और पहचानने की कोशिश करता है l विश्व अपना चेहरा झुकाए वैदेही के पीछे खुद को छुपा रहा था l

उदय - कौन हो तुम बेटी...
वैदेही - जी मैं वैदेही... वैदेही महापात्र... श्री रघुनाथ महापात्र और श्री मती सरला महापात्र की बेटी... और (अपने पीछे से विश्व को सामने ला खड़ा करते हुए) विश्व प्रताप महापात्र की बड़ी बहन...
 

Sidd19

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Surya_021

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👉एक सौ आठवां अपडेट
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कटक बार एसोसिएशन ऑफिस से निकल कर प्रतिभा बाहर पार्किंग में आती है l गाड़ी के पास उसे तापस खड़ा हुआ दिखता है l

प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी... आज हमारा इंतजार हो रहा है...
तापस - क्यूँ... क्या मैंने कभी तुम्हारा इंतजार नहीं किया है...
प्रतिभा - हाँ... कॉलेज के दिनों में... फिर... नौकरी के शुरुआत में... और आज...
तापस - हैलो... वकील साहिबा... आप भुल रही हैं... हम बहुत सी जगह पर... आपका इंतजार करते रहे हैं... और आज भी कर रहे हैं...
प्रतिभा - अच्छा जी... जरा बतायेंगे...
तापस - इसमे बताने वाली बात कहाँ से आई... यह तो रोज की बात है... किसी पार्टी में जाना हो.. या कोई फिल्म... इंतजार आज भी... हम ही करते हैं... और तो और किसी शॉपिंग मॉल में... आपकी शॉपिंग खतम होने तक का... इंतजार करते ही रहते हैं....
प्रतिभा - (भवें सिकुड़ कर, अपनी दांत पिसते हुए) हो गया...
तापस - हाँ... हो ही गया समझो...
प्रतिभा - तो चलें...
तापस - हाँ... चलो चले... दुर कहीं..
प्यार के लिए.. यह जगह ठीक नहीं...
प्रतिभा - आह्ह्ह्ह...

प्रतिभा गाड़ी की चाबी तापस को देती है, तापस गाड़ी का दरवाजा खोलता है और ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l प्रतिभा भी दरवाजा खोल कर बगल वाली सीट पर बैठ जाता है l तापस गाड़ी को कोर्ट की कंपाउंड से निकाल कर त्रिशूलीया रोड पर दौड़ाने लगता है l तापस कनखियों से देखता है प्रतिभा का पारा चढ़ा हुआ है l

तापस - क्या बात है जान... गुस्सा क्यूँ हो...
प्रतिभा - (थोड़ी गुस्से में) हाँ हाँ... हमेशा मैंने ही आपको इंतजार करवाया है ना... जैसे मैंने कभी आपका इंतजार नहीं किया...
तापस - ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा... हम जानते हैं.. जानेमन.. आपको भी हमारी इंतजार करते हुए... हमने भी देखा है..
प्रतिभा - अच्छा... जरा बताने की जहमत करेंगे... जरा हम भी तो देखें.. हमारा किया हुआ इंतजार... आपको कैसे याद है...
तापस - हाँ याद है.. बल्कि आपका इंतजार... यादगार रहा है... पहली इंतजार... आपकी... हमने खतम की... आपके घर... आपके दर बारात ले कर... और दुसरा इंतजार... हम बिलकुल टाइम पर पहुँचे थे... सुहाग के सेज पर...

प्रतिभा के हाथ में जो फाइलें थी उनसे वह तापस को मारने लगती है l

तापस - आह... ओह... उह... वाह.. आहा... ओहो.. वाह वाह...
प्रतिभा - (चिढ़ कर रुक जाती है) क्या आप मुझे... सताने की मुड़ बना कर आए हैं...
तापस - नहीं जान... आपको मनाने के लिए आए हैं...
प्रतिभा - आज मैं मानने वाली नहीं हूँ...
तापस - (गाते हुए) ऐ मेरी सोला बदन...
तुमको इस दिल की कसम...
रूठा ना करो...
रूठा ना करो...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) क्या बात है... सेनापति जी... आज तो आप... बिन पंखे के उड़ रहे हैं... बहुत रोमांटिक हुए जा रहे हैं....
तापस - (थोड़े उदास हो कर) क्या करें जानेमन... कल प्रताप अपने गांव चला जाएगा... फिर एक घर... दो जिंदगी... और इंतजार... इसलिए आदत डाल रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो दर्द बिछड़ने की है... प्रताप से...

तापस चुप रहता है l चेहरा उसका गम्भीर हो जाता है l वह प्रतिभा की ओर देखे वगैर गाड़ी चलाता रहता है l

प्रतिभा - सेनापति जी... मैंने कुछ पूछा आपसे...
तापस - हाँ... यही है... जान... क्या तुम्हें दर्द नहीं हो रहा है...
प्रतिभा - हाँ दर्द होता... अगर वह हमेशा के लिए... हमसे दुर जा रहा होता... तो...


गाड़ी रुक जाती है l प्रतिभा देखती है एक रेस्टोरेंट के सामने तापस ने गाड़ी को रोका है l

तापस - चलो उतरो... कुछ पल आपस में बांटते हैं...
प्रतिभा - ठीक है... चलिए....

दोनों गाड़ी से उतर कर रेस्टोरेंट के एक कोने वाली टेबल पर बैठ जाते हैं l तापस वेटर को बुला कर खाने का ऑर्डर देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - तो... सेनापति जी... पहले बताइए... आप टेंशन में हैं... या ग़म में...
तापस - पता नहीं... या फिर दोनों... (एक पॉज लेकर) जान... क्या तुम... प्रताप से... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - समझ गई... आप क्या कहना चाहते हैं... पर यह नियति है... आपको डर है... कहीं मुझे सदमा ना लग जाये... जैसे कि पिछली बार... प्रत्युष के समय हुआ था... पागल सी... बावरी सी... नहीं... इस बार.. ऐसा कुछ भी नहीं होगा...

इतने में वेटर खाना लाकर टेबल पर दोनों के प्लेट पर लगा देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - आपको.. इसी बात का डर था ना... आई मीन... है ना...
तापस - (हल्के से सिर हिला कर हाँ कहता है)
प्रतिभा - मैंने... प्रताप से वादा तो लीआ है ना... वह हर वीकएंड में... या दस बारह दिनों में आता रहेगा... और जब भी... जोडार साहब का काम निकलेगा... वह तब तब तो आता ही रहेगा...
तापस - हाँ... पर... प्रताप की प्रायॉरिटी... राजगड़ और... वहाँ पर हुए.. या हो रहे केसेस होंगे... हम.. सेकंडरी होंगे...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... हम रहेंगे तो उसके अपने ही ना...
तापस - (एक अनचाही आवाज में) हाँ...
प्रतिभा - देखिए... सेनापति जी... हम इस बात को... यूँ समझने की कोशिश करें...
तापस - कैसे...
प्रतिभा - मान लीजिए... प्रताप कहीं बाहर जॉब कर रहा है... तो... तब तो आपको कोई चिंता नहीं करनी चाहिए...
तापस - (मुस्कराते हुए निवाला खाते हुए) मुझे लगा था... तुम बहुत टेंशन में होगी... पर तुम तो... एकदम से रिलैक्स हो...
तापस - क्यूँ ना होऊँ... आखिर बेटे के साथ बहु भी मिल गई है...

तापस के गले में खाना अटक जाता है l उसको खांसी होने लगती है l पानी पीने के थोड़ी देर बाद वह थोड़ा नॉर्मल होता है l

तापस - अरे हाँ... मैं तो पूछना भूल ही गया... यह बहु वाला चैप्टर क्या है... कहाँ से आया... और वह भी क्षेत्रपाल की बेटी...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हाँ... है ना मजेदार बात...
तापस - पर मुझे जहां तक याद है... तुम्हें तो वह नंदिनी बहुत पसंद थी ना...
प्रतिभा - (अपनी हँसी की दबाते हुए, अपना सिर आगे ले जाती है और) नंदिनी ही रुप है...
तापस - (तेज करेंट लगने जैसा चौंकता है) क्या...
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसती है)
तापस - क्या प्रताप जानता है...
प्रतिभा - (हँसते हुए) नहीं...
तापस - क्या...
प्रतिभा - हाँ... नहीं जानता... के नंदिनी ही... रुप है...
तापस - मतलब... जब से उसकी दोस्ती नंदिनी से हुई है... नंदिनी तभी से उसे बेवक़ूफ़ बना रही है...
प्रतिभा - जी नहीं...
तापस - यह क्या झोल है... तुम मुझे कंफ्युज कर रही हो...
प्रतिभा - अरे.. पहले पुरी बात तो सुन लिया करो...
तापस - पुरी बात...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पुरी बात... (तापस अब चुप रहता है) जिस रात को... प्रताप गया था ना.. सुकुमार और गायत्री के शादी की साल गिरह की मुबारक बात देने... उसी रात नंदिनी को पता चला... कि... प्रताप ही... उसका अनाम है...
तापस - अ.. नाम..
प्रतिभा - हाँ.. अनाम...

तापस अपना माथा पकड़ लेता है और अपना सिर झटकने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

प्रतिभा - क्या हुआ...
तापस - तुम माँ बेटे... मुझसे बहुत कुछ छुपाया है... मैं... उसे होटेलों में.. क्लबों में लेके जाता था... के वह लड़की पटाये... जब कि उसके पास... पहले से ही... पटी पटाइ थी...
प्रतिभा - वैसे... आपको इस बात का दुख है... या शिकायत...
तापस - दोनों... और तुम दोनों... मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं...
प्रतिभा - अरे... यह तो मुझे भी कुछ ही दिन पहले मालुम पड़ा...
तापस - अच्छा... तब तो ठीक है... पर (एक पॉज लेकर) मुहब्बत किया भी किससे.. अपने कट्टर दुश्मन की.... बेटी से... (कह कर अचानक चुप हो जाता है)
प्रतिभा - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गए....
तापस - (रुक रुक कर) वह... नंदिनी... क्या सच में... प्रताप को चाहती है... या... भैरव सिंह की... कोई गंदी चाल है...
प्रतिभा - (बिदक कर) क्या...

प्रतिभा ने यह चिल्ला कर पूछा था l रेस्टोरेंट में सभी लोग प्रतिभा और तापस की ओर देखने लगते हैं l

तापस - श्श्श... (धीमे) क्या... क्या कर रही हो... सब देख रहे हैं...
प्रतिभा - (धीमी आवाज में) क्या... कहा आपने...
तापस - अरे.. मैंने तो... एक तुक्का भीड़ाया था...
प्रतिभा - आप ना यह पुलिसिया दिमाग चलाना बंद करो... अभी आप पुलिस में नहीं हैं... (फिर थोड़ी संजीदा हो कर) कुछ बातेँ... दिल और जज्बातों की होती है... प्रताप भी बचपन से ही... रुप से प्यार करता था... बस वह खुद को समझा नहीं पा रहा था... रुप... रुप तो बचपन से ही... प्रताप को बेइन्तेहा चाहती थी... दोनों को किस्मत ने अलग किया... और दोनों को किस्मत ने... एक खूबसूरत मोड़ पर मिलाया है... रुप ने तो अपनी दिल की सुन ली... बस प्रताप का बाकी है... उसे अपने दिल की सुनने के लिए...
तापस - लेकिन कब... प्रताप तो कल चला जाएगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... रुप उसके लिए पहले से ही... राजगड़ चली गई होगी.. या फिर चली गई है...
तापस - मतलब... तुम्हारे साथ... रुप ने बहुत कुछ प्लान बना लिया है... (प्रतिभा मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... मुझे लगता है... प्रताप के लिए एक बड़ा काम रह गया है... वैदेही को कंविंस करना...
प्रतिभा - नहीं... प्रताप के लिए सिर्फ़... अपनी राजकुमारी को ढूंढना... और प्रपोज करना बाकी रह गया है... आई एम डैम श्योर... अब तक तो... वैदेही से मिलकर को रुप ने सब कुछ बता दिया होगा...
तापस - क्या...

हैरानी और शॉक से चिल्ला पड़ता है l क्यूँकी यह खबर उसके लिए बहुत बड़ा झटका था l उसके चिल्लाने से रेस्टोरेंट में मौजूद सभी लोग तापस की ओर देखने लगते हैं l

प्रतिभा - श्श्श... (धीमे) क्या कर रहे हैं आप... लोग देख रहे हैं...
तापस - (धीमे, दबी आवाज में) तुम लोगों ने टीम बना कर... खिचड़ी पका चुके हो... और मुझे अब बता रही हो...
प्रतिभा - अरे.. कल ही तो पता चला... और बोलने का मौका मिला ही कब... वैसे भी... रुप का... वैदेही के बारे में जानना और मिलना... बहुत ही जरूरी था...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, और बड़ी संजीदगी के साथ) रुप भी बचपन में... बहुत कुछ खोया था... सबसे अहम... उसने अपनी माँ को खोया था... जिसकी वजह... वह एक ऐसी औरत को मान रही थी... जिसके चलते... उसके सिर से... माँ की साया हट गया था... यह बात और है कि उस औरत के बारे में... ना वह जानती थी... ना उससे कभी मिली थी... पर चूंकि उस औरत के... उनके जीवन में आने के बाद... रुप अनाथ हो गई थी... इसलिए उस अनजान औरत से... बेहद नफरत कर रही थी... पर जब उस औरत के बारे में... कल मैंने उसे बताया... तब उस औरत के लिए... रुप के मन में... असीम श्रद्धा, अनुकंपा और सम्वेदना के साथ-साथ असीम सम्मान भी जाग उठा... रुप उसी औरत से मिलने राजगड़ गई है... लगे हाथ... हमारे प्रताप की टांग भी खिंचेगी...
तापस - ओह... तो यह बात है...

खाना खतम हो चुका था, वेटर बिल लेकर आता है l तापस बिल चुकाने के बाद दोनों बाहर आकर गाड़ी में बैठते हैं l गाड़ी में प्रतिभा, वैदेही को फोन लगाती है और स्पीकर पर डाल देती है l

वैदेही - हाँ मासी... नमस्ते... कैसी हो आप...
प्रतिभा - मैं तो ठीक हुँ... यह बता... कैसी लगी तेरी बहु...
वैदेही - लाखों में नहीं... करोड़ों में एक है... अभी अभी मासी... यहाँ से गई है... बचपना अभी भी... कूट कूट कर भरा हुआ है उसमें... विशु ने उसका नाम ठीक ही रखा है.... नकचढ़ी... हा हा हा हा हा...
प्रतिभा - हा हा हा हा... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने... और...
वैदेही - तुम यकीन नहीं करोगी मासी... काकी की पसीने छुड़ा दिए... उस नकचढ़ी ने... पर... दिल की बहुत ही अच्छी है... बेचारा विशु... उसके बारे में... पुरी तरह से नहीं जानता...
प्रतिभा - हाँ... जब जान लेगा... तब देखेंगे... कैसे रिऐक्ट करता है...
वैदेही - हाँ... वह तो है... पर मासी... तुमने यह जानने के लिए तो फोन नहीं किया ना...
प्रतिभा - नहीं... (कुछ देर के लिए दोनों तरफ चुप्पी छा जाती है) उसने... तुम्हें सारी बातें बताई....
वैदेही - समझी... हाँ मासी... उसने अपने दिल की सारी बातें बता दी... मेरे बारे में... अपने सारी ख़यालात... खोल कर रख दिया... बचपन से लेकर आज तक... वह क्यूँ अपने पिता से नफरत करती है... जब उसके बारे में... तुमसे सुनी... और उससे मिलने के बाद... मेरे दिल को सुकून मिला है कि मैं क्या कहूँ... (आवाज़ भर्राने लगती है) मुझे खुद से शिकायत रहती थी... एक ग्लानि मन में रहती थी... मेरे वजह से... विशु की जिंदगी... क्या से क्या हो गई... उसके बचपन के सभी दोस्त.. अपना घर बसा लिए हैं... पर मेरा भाई... पर विधाता का विधान देखो मासी... विशु की जीवन में... जो लड़की आई है... उसके कट्टर दुश्मन की बेटी है वह... किस तरह से... कैसे न्याय कर रहा है विधाता... अब तो मैं निश्चिंत हूँ... यह महासंग्राम जीत पर ही खतम होगी... न्याय पर ही खतम होगी...

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क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुप की गाड़ी प्रवेश करती है l आशा के अनुरुप द्वार पर नजर उतारने की थाली लिए नौकरों के साथ सुषमा खड़ी थी l गुरु के गाड़ी पोर्टीको में लगाते ही गार्ड्स दौड़कर आते हैं और गाड़ी की पिछला दरवाजा खोलते हैं l रुप उतरती है और सुषमा के सामने खड़ी हो जाती है l सुषमा, पहले थाली में कर्पूर जला कर रुप की नजर उतारती है फिर कुछ नोट निकाल कर रुप की चारो तरफ घुमाती है और नौकरों में बांट देती है, और नौकरानियों से रुप की सामान रुप के कमरे में पहुँचाने को कहती है l

सुषमा - (रुप से) आओ राज कुमारी... बड़े दिनों बाद आए...
रुप - (सुषमा के साथ चलते हुए) हाँ छोटी रानी माँ... बड़े दिनों बाद... क्या करूँ... आप वहाँ आ नहीं पाती... और...
सुषमा - ठीक है... ठीक है... पहले बड़े राजा साहब जी से आशीर्वाद ले लीजिए...

दोनों नागेंद्र के कमरे के बाहर आकर खड़े होते हैं l सुषमा रुप को वहीँ ठहरने के लिए कह कर अंदर जाती है और कुछ देर बाद बाहर आती है l

सुषमा - आइए राजकुमारी...

रुप और सुषमा दोनों अंदर आते हैं l रुप देखती है नागेंद्र बेड की हेड रेस्ट पर पीठ टिकाये बैठा हुआ था l बेड के दोनों तरफ कुछ नौकर और नौकरानियां खड़े हुए हैं l

नागेंद्र - (बेहद गंभीर आवाज़ में) कैसी हैं आप... राजकुमारी जी... (लकवा ग्रस्त होने की वजह से जीभ बमुस्किल साथ दे रही थी)

अपने दादाजी को देखते ही रुप की आँखों में वैदेही का चेहरा घुमने लगती है l अपनी नजरें झुका लेती है और अपनी भावों को काबु करने की कोशिश करने लगती है l

सुषमा - राजकुमारी... (रुप की कंधे पर हाथ रखकर) बड़े राजा साहब पूछ रहे हैं...
रुप - (चौंक कर) जी... जी.. (संभल कर) जी आपका आशीर्वाद है... (अपनी नजरें झुका लेती है)
नागेंद्र - अच्छी बात है... आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है...
रुप - जी.. बढ़िया...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... खयाल रहे... पढ़ाई के बाद... आपको... दसपल्ला परिवार में जाना है... क्षेत्रपाल परिवार का मान सम्मान और गौरव लेकर...

रुप अपनी नजरें नहीं उठाती सिर नीचे झुका हुआ था l जबड़े और आँखे उसके भींच जाती हैं l अपनी सांसो को काबु करते हुए

रुप - जी बिल्कुल... बड़े राजा साहब जी... हम आपके पद चिन्ह को अनुसरण करेंगे... आप ही की तरह इस वंश की गौरव पताका को... आकाश में उड़ाते रहेंगे...
नागेंद्र - बहुत अच्छे... अब आप अपने कक्ष में जा सकती हैं.. (सुषमा से) छोटी रानी आप कुछ समय के लिए रुकिए यहां पर...
सुषमा - जी बड़े राजा साहब...

फिर सुषमा इशारा करती है, रुप वहाँ से निकल जाती है l रुप के पीछे कुछ नौकरानियां चले जाते हैं l उन सबके जाते ही

सुषमा - जी कहिए.. बड़े राजा साहब...
नागेंद्र - हमें राजकुमारी की वार्तालाप में... असंतुष्टि महसुस हुई है... हमें उनकी उत्तर में... हमसे ना पसंदगी साफ दिखा है....
सुषमा - नहीं बड़े राजा जी... हमें तो... कहीं से भी ऐसा नहीं लगा...
नागेंद्र - हमारे हाथ पैर जवाब दे गए हैं... आँखे धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं... और कान साथ छोड़ दूर जा रहे हैं... पर अंदर से सामने वाले की बातों से.. उसे समझने की क्षमता अभी भी रखते हैं...
सुषमा - बड़े राजा साहब... मैंने रुप को बचपन से पाला है... वह बत्तमिज तो हरगिज नहीं हो सकती...
नागेंद्र - वह बत्तमिज है... ऐसा हमने नहीं कहा... हम उसे नापसंद हैं.. यह हमने महसूस किया...
सुषमा - नापसंद या नाराजगी... शायद इसलिये भी हो सकती है कि... उसे शहर जाने की कोई इच्छा नहीं थी... पर उसे भेजा गया...
नागेंद्र - नहीं.... बात कुछ और है... राजकुमारी... वंश की गौरव की बात कह नहीं रही थी... बल्कि... ताने मार रही थी....
सुषमा - बड़े राजा जी... मैं... मैं उनसे पूछ कर देखती हूँ...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... अभी आप जा सकती हैं...
सुषमा - जी... जी राजा साहब...

कह कर सुषमा नागेंद्र से इजाजत लेकर उस कमरे से बाहर आती है और सीधे रुप के कमरे में पहुँचती है I सुषमा देखती है रुप बहुत गंभीर चेहरा बना कर अपने बेड पर बैठी हुई है l रुप जैसे ही सुषमा को देखती है खुद को नॉर्मल करने की और अपने होंठो पर मुस्कराहट कोशिश करती है l सुषमा अंदर आकर दरवाजा बंद करती है, फिर रुप के करीब आ कर बैठ जाती है और रुप को गौर से देखने लगती है l सुषमा के ऐसे देखने पर रुप हड़बड़ा जाती है

रुप - (हकलाते हुए) आप ऐसे क्यूँ देख रही हैं चाची माँ...
सुषमा - तुम जानती हो... बड़े राजा साहब जी से मेरी क्या बात हुई...
रुप - बात उन्होंने की है... आपसे.. वह भी मुझे अपने कमरे से बाहर भेज कर... मुझे कैसे पता चलेगा... उन्होंने आपसे क्या बात कही...
सुषमा - मेरी इस छोटी सी सवाल पर... तुमने इतना बड़ा जवाब दिया... यह तुम्हारे भीतर की बदलाव की भाषा है... जिसे बड़े राजा साहब ने पढ़ लिया... (रुप चुप रहती है) तुमने उनसे गलत कुछ भी नहीं कहा... पर लहजा... और जवाब से उन्हें मालुम पड़ गया... वह रुप जो यहाँ... अपनी कमरे में दुबकी रहती थी... किताबों में खोई रहती थी... जो भुवनेश्वर पढ़ने गई थी... यह रुप... वह नहीं है... यह रुप अब प्रतिक्रिया देने लगी है... (रुप असमंजस सी भाव से इधर उधर देखने लगती है) क्या हुआ रुप...
रुप - (सुषमा की नजरों से नजर मिलाते हुए, कुछ देर देखती है) चाची माँ... उम्र ढलती है... लोग बीमार होते हैं... उम्र और बीमारी के वजह से... इंसान का शरीर.. उसका साथ छोड़ने लगता है... पर बड़े राजा साहब को देख कर आपको क्या लगता है...

सुषमा रुप की बातों को समझ नहीं पाती, वह अपनी भवें उठा कर रुप की ओर ऐसे देखती है जैसे कह रही हो बात को समझाओ l

रुप - कुछ लोग जो ढलती उम्र में इस तरह से बिस्तर पकड़ लेते हैं... वह उम्र या बीमारी के चलते नहीं... बल्कि... लोगों के श्राप और बद्दुआ के चलते.. उनकी हालत ऐसी हो जाती है....

रुप की इस जवाब से सुषमा की आँखे फैल जाती हैं l हैरानी के चलते मुहँ खुल जाता है l

सुषमा - यह तुम... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो रुप...
रुप - मैंने कुछ सच्चाई सुनी... कुछ सच्चाई देखी... और उस सच्चाई को संज्ञान लेते हुए... अब देख रही हूँ... समझ भी रही हूँ...
सुषमा - (हैरानी भरी आवाज में) बड़े राजा साहब ने.. सही अनुमान लगाया... तुम थोड़ी नहीं... बहुत हद तक बदल गई हो... तुम्हारे तेवर... और लहजे में... बगावत झलक रही है.... (थोड़ी नरम पड़ कर समझाते हुए) इस राह में... इतनी तेजी से मत भागो रुप... के सामने जब रोड़ा आए... तो मुहँ के बल गिरो... (फिर अचानक बेड से उठ खड़ी होती है और कमरे में चहल कदम करने लगती है, फिर मुड़ कर रुप से) तुम यहाँ क्यूँ आई हो रुप...
रुप - आपसे मिलना था...
सुषमा - मुझसे...
रुप - हाँ चाची माँ... जीवन में कभी कभी ऐसे मोड़ आते हैं... जब बच्चों को.. माँ की गोद में सिर रखने के लिए... माँ की आंचल में ख़ुद को छुपाने के लिए... माँ की कंधे के सहारे सिसकने के लिए... और ग़मों से खुद छुड़ाने के लिए माँ की सीने से लग जाने के लिए... (कह कर रुप सुषमा के गले से लग जाती है)

सुषमा - (रुप के बालों में हाथ फेरते हुए) रुप... कहीं तुझे किसीसे... प्यार तो नहीं हो गया है...

रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है जो सुषमा को अपने कंधे पर साफ महसुस करती है l उसकी हाँ को समझते ही डर और हैरानी से सुषमा की आँखे बड़ी हो जातीं हैं l सुषमा तुरंत रुप को खुद से अलग करती है l

सुषमा - र्र्र्र्र्र्र्रुप... यह तुम... क्या कह रही हो...
रुप - आपने... वीर भैया का भी हिम्मत बढ़ाया था...
सुषमा - (धप कर रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) वीर लड़का है... मर्द है... वह लड़ लेगा... उसकी शादी भी तय नहीं हुई है.... पर तुम्हारी शादी... तय हो चुकी है... वीर संभाल लेगा... पर तुम... क्षेत्रपाल की आँधी का मुकाबला कैसे करोगी...

रुप चुप रहती है, कोई जवाब नहीं देती l कमरे में चुप्पी छाई हुई थी l इतनी चुप्पी की एक दुसरे को अपनी अपनी साँसों की आवाज सुनाई दे रही थी l

सुषमा - (ठंडी आवाज में) क्या... वह लड़का.. तुम्हारे कॉलेज से है... (रुप अपना सिर हिला कर ना कहती है) क्या वह बहुत पैसे वाला है...... मतलब कोई खानदानी... या बड़े घराने से ताल्लुक रखता है...

रूप अपना सिर हिला कर ना कहती है, सुषमा अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ लेती है l

सुषमा - रुप... क्या समाज में... उसका कोई रुतबा भी है.... (रुप फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है) ओह... रुप... तेरी इस बगावत में... तेरा साथ कौन देगा... क्षेत्रपाल के अहं के आँधी से... कौन तुझे बचाएगा...
रुप - वही... जिससे मैंने चाहा है... वही मेरा साथ देगा...
सुषमा - ना समाज में हैसियत... ना कोई रुतबा... वह कैसे... क्षेत्रपाल की आँधी से टकरायेगा....
रुप - हाँ... वह एक ऐसे चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ा हो जाएगा... के दुनिया की कोई भी आँधी कैसे भी उससे टकराए... बिखर कर चूर चूर हो जाएगी...
सुषमा - इतना विश्वास... कौन है वह... जो क्षेत्रपाल से टकरायेगा...
रुप - चाची माँ... मैं अभी आपसे... कुछ भी नहीं कह सकती... पर इतना जरूर कहती हूँ... बहुत जल्दी आपको मालुम हो जाएगा.... और यकीन भी... के क्षेत्रपालों को... वही घुटनों पर ला सकता है...

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xxx मॉल से निकल कर विश्व बाहर बाहर रोड पर आता है l विश्व रोड के दूसरी तरफ बस स्टॉप तक जाने के लिए ट्रैफ़िक क्रॉस पर जा कर खड़ा होता है l चूंकि रोड बाई सेक्ट था वह ट्रैफिक के जेब्रा क्रॉस के पास खड़ा था I ज्यूं ही ट्रैफिक पर रेड लाइट जलता है गाडियाँ रुक जाती हैं, विश्व ट्रैफिक क्रॉस कर रोड के दुसरे तरफ बस स्टॉप पर पहुँच जाता है और वहाँ खड़े हो कर बस का इंतजार करने लगता है l एक बस आता है पर विश्व उस पर नहीं चढ़ता l बस के जाने के बाद विश्व वहाँ पर बेंच पर बैठ कर अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगता है l इस बीच दो और बस वहाँ से गुजर चुके थे l जब चौथा बस आकर रुकता है विश्व उस बस में चढ़ता है और आगे एक खाली सीट पर जा कर बैठ जाता है l बस में बैठे बैठे मोबाइल फोन पर स्क्रीन स्क्रोल करते हुए अपना वक़्त बिताने लगता है कि तभी बस में हल्ला शुरु हो जाता है l बस में बैठे सभी लोग शोर की ओर देखने लगते हैं I ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l दो आदमियों के बीच किसी बात को लेकर पहले कहासुनी हुई फिर झगड़ा शुरु हो गई थी l कंडक्टर उनके बीच आकर झगड़ा सुलझाने की कोशिश करता है l पर चूंकि गाड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी, विश्व चिढ़ कर बस से उतर जाता है, और सामने जा रही बस में भागते हुए चढ़ जाता है l बस में थोड़ी भीड़ थी, इसलिए थोड़ी दुर जाकर निको पार्क जंक्शन के पास उतर जाता है l वहाँ से पैदल चलते हुए बस स्टॉप पर बैठ कर मोबाइल निकाल कर वक़्त बिताने लगता है l करीब करीब बीस पच्चीस मिनट के बाद उसके सामने हेल्मेट पहने एक बाइक सवार आकर रुकता है l विश्व अपना मोबाइल जेब में रख कर उस बाइक वाले के पीछे बैठ जाता है l बाइक वहाँ से चल देता है l कुछ देर बाद वह बाइक एक रेस्टोरेंट के पास रुकती है l विश्व और वह बाइकर भी उतरता है l

विश्व - अब हेल्मेट क्यूँ पहने हुए है...

वह बाइकर अपना हेल्मेट निकालता है l सीलु, अपने जबड़े को मलते हुए विश्व के साथ टेबल पर बैठ जाता है l

विश्व - बड़ी जोर की लगी क्या...
सीलु - आह.. (कराहते हुए) कमबख्त का हाथ था या हाथोड़ा... आह... जबड़ा हिला कर रख दिया...
विश्व - सॉरी यार... पर मैंने तुम्हें उसका ध्यान भटकाने के लिए कहा था... तुमने उससे झगड़ा क्यूँ मोल लिया...
सीलु - सोचा था कहासुनी में काम हो जाएगा... लेकिन निकला साला ढीठ... इसलिए धक्कामुक्की किया... पर हरामी ने... मेरा जबड़ा हिला कर ही माना...
विश्व - सॉरी यार..
सीलु - अरे... कोई नहीं भाई... तुम्हारे लिए कुछ भी... वैसे... यह चेट्टी और केके वाला प्रकरण... दोस्ताना नहीं रहा...
विश्व - नहीं... ना दोस्ताना... ना विश्वास भरा...
सीलु - ऐसा क्यूँ...
विश्व - ऐसे लोग... बड़े सयाने बने फिरते हैं... और बड़े मतलब परस्त होते हैं..
सीलु - हाँ.. पर तुम्हारे पीछे... आदमी छोड़ने का क्या मतलब...
विश्व - यह लोग बहुत खोखले होते हैं... पर ऊपर से खुद को मजबूत दिखाते हैं... मतलब परस्त इतने की... ना कीचड़ में उतरना है... ना पैर धोने हैं... पर कमल का फूल... हर हाल में चाहिए...
सीलु - भाई... यह फिलासफी वाली बात... दिमाग के पल्ले पड़ता नहीं है... सीधे सीधे समझाओ ना भाई...
विश्व - ठीक है... मैं किन किन से मिलता हूँ... मेरे पीछे कौन कौन है... वगैरह..
सीलु - पहले खाने का ऑर्डर करते हैं... खाते खाते बात करते हैं...
विश्व - हाँ... यही सही रहेगा...

विश्व वेटर को बुलाता है l सीलु की मन पसंद का खाना और अपने लिए सादा खाना ऑर्डर करता है I कुछ देर बाद खाना सर्व हो जाता है l सीलु खाने पर टुट पड़ता है l विश्व भी चुप चाप खाना शुरु करता है l आधी खाने के बाद सीलु विश्व से पूछता है

सीलु - हाँ भाई.. कुछ कह रहे थे...
विश्व - यार... तुम पहले पेट भर लो...फिर शांति से बात करते हैं...
सीलु - नहीं भाई ऐसी बात नहीं है... पहले जो ठूंसा वह पेट ठंडा करने के लिए था... अब जो ठूंस रहा हूँ... वह पेट भरने के लिए... (विश्व की हँसी निकल जाती है) हाँ भाई... अब मैं शांति से सुन सकता हूँ...
विश्व - ठीक है सुनो फिर... इन दिनों जो भी मुझे ढूंढ ढूंढ कर... मेरे मदद को सामने आए हैं... सब के अपने अपने मतलब हैं... सबसे पहले नभ वाणी की न्यूज चैनल की सम्पादक... सुप्रिया रथ.... उसकी अपनी वाज़िब वजह है... पर सवाल है... उसे अंदर की खबर लगी कैसे...
सीलु - क्यूँ वह रिपोर्टर है... उसके अपने कंटेक्ट होंगे...
विश्व - नहीं... उसके पीछे... जरूर रूलिंग पार्टी का कोई है... जो खुद को पर्दे के पीछे रखे हुए है...
सीलु - अच्छा... पर यहाँ केके के पीछे भी तो... चेट्टी है...
विश्व - हाँ है... क्यूंकि दोनों तरफ... पोलिटिकल राईवलरी है...
सीलु - भाई... तुमने तो आसानी से पता लगा लिया था... केके के पीछे कौन है... पर सुप्रिया के पीछे कौन है... यह क्यूँ नहीं ढूंढ पाए...
विश्व - केके... श्रुट है... कन्नींग है... पर कुछ मामलों में... वह कच्चा है... सुप्रिया ना कन्नींग है... ना श्रुट है... पर प्रोफेशनल है... उसने मुझसे कुछ छुपाया नहीं है... हाँ कुछ बातेँ बताया नहीं है... पर केके... चालाक बनने की कोशिश में... बेवकूफ़ी कर जाता है...
सीलु - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
विश्व - क्या सोच रहे हो...
सीलु - यही के... मदत करने वाले... खुद को पर्दे के पीछे क्यूँ रख रहे हैं...
विश्व - वजह वही है... जैसे मैं तुम लोगों को पर्दे के पीछे रखना चाहता हूँ...
सीलु - मतलब...
विश्व - देखो... भैरव सिंह से दुश्मनी... मतलब... अपने आगे पीछे मिला कर सात पुश्तों की कुर्बानी...
सीलु - हा हा हा हा... मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा... ना मेरे आगे कोई है... ना पीछे कोई था... बस अपने साथ तुम हो... और तुम्हारा... वह बाल भी बांका नहीं कर पाएगा...
विश्व - तुम्हारा यह सोच गलत भी हो सकता है...
सीलु - खैर.. वह हम बाद में सोचेंगे... पहले यह तो बताओ...
विश्व - क्या...
सीलु - यही के... यह लोग अपने अपने समाज में... इलाके में... अच्छी खासी रुतबा रखते होंगे... तो राजा से सीधे सीधे... क्यूँ नहीं भीड़ रहे हैं...
विश्व - वह इसलिए... की उन सबकी... कोई दुखती नस पर राजा... अपना पैर जमा कर रखा होगा...
सीलु - तभी... तभी यह लोग सामने ना आ कर... तुम्हें सामने रखे हुए हैं...
विश्व - हाँ... यही बात है...
सीलु - ठीक है... पर... यह चेट्टी... उसकी कौनसी कमजोरी होगी...
विश्व - पता नहीं... पर यह भी है... उसे मुझ पर यकीन नहीं है... इसलिए उसने अपने आप... सात साल पहले का किस्सा छेड़ दिया...
सीलु - यकीन न करने की वजह...
विश्व - यश... उसका बेटा... चेट्टी को अच्छी तरह से मालूम था... यश मुझे मार कर एक्सीडेंट दिखाना चाहता था... पर रिजल्ट उल्टा हो गया... मेरी जगह.. उसका बेटा मारा गया... उसके बाद... उसीने... इंटरनल इनवेस्टिगेशन को... प्रभावित करने की कोशिश की... पर वह तो डैड... सीसीटीवी फुटेज... और पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट लेकर अड़ गए... वरना... यश की मौत को... मर्डर साबित करने के लिए... कोई कसर नहीं छोड़ा था...
सीलु - ओ... तो यह बात है...
विश्व - हाँ...
सीलु - तो भाई... इन लोगों की... क्या हमारी टीम में जरूरत है... मेरा मतलब है कि... क्या यह लोग हमारी मदत करेंगे...
विश्व - देखा जाए तो... इनकी जरूरत है भी... और नहीं भी...
सीलु - यह क्या बात हुई...
विश्व - यह लोग अभी हमारे साथ हैं... मैं... भैरव सिंह के लिए... एक दलदल बना रहा हूँ... मान लो... ज्यूं ज्यूं... भैरव सिंह फंसता जाएगा... त्यों त्यों.. यह लोग... हमारे साथ छोड़ कर... पीठ पर सवारी करने लगेंगे... और जब भैरव सिंह गले तक धंस जाएगा... उन लोगों को हमारी कोई जरूरत नहीं रहेगी... बिल्कुल उस कएन की तरह... टॉस के बाद मैच में....
सीलु - केके... तो तुम्हारे पीछे आदमी छोड़ रखा था... पर क्या सुप्रिया...
विश्व - नहीं... सुप्रिया के जरिए... जो भी मुझ पर नजर रखने की कोशिश कर रहा है... उसके हिसाब से... माँ और डैड ही मेरी कमजोर कड़ी हैं... पर चेट्टी यहाँ पर चालाक निकला... अखिर दल दल और कीचड़ में रहने की.. तगड़ा एक्सपीरियंस जो है उसके पास.. इसलिए मेरे मददगार कौन कौन हो सकता है... यह जानने के लिए ही... मेरे पीछे आदमी लगाया था...
सीलु - ओ तेरी...

खाना खतम हो चुका था l विश्व पेमेंट करने के साथ साथ वेटर को टीप देता है l दोनों बाहर निकलते हैं l

सीलु - अच्छा भाई... कल निकलना है... कोई और प्रोग्राम भी है क्या...
विश्व - नहीं... तुम जाओ... कल बस में मिलते हैं... पर सीट अलग अलग होनी चाहिए...
सीलु - ठीक है...

कह कर सीलु अपना बाइक स्टार्ट करता है और वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद विश्व पैदल ही आगे बढ़ने लगता है l थोड़ी दूर जाने के बाद वह देखता है, बुड्ढी के बाल बेचने वाले के पास एक लड़की आती है, उसके गोद में एक छोटा सा लड़का था l लड़की शायद दस ग्यारह साल की होगी और वह लड़का चार पांच साल का होगा l लड़की एक बुड्ढी की बाल खरीद कर अपने भाई को देती है, और वहाँ से जाने लगती है l विश्व उसे रोक कर

विश्व - (लड़की से) बेटी... तुमने क्यूँ नहीं ली...
लड़की - (विश्व को हैरानी से देखती है) वह.. मेरे दांत में कीड़े पड़ जाएंगे... इसलिए...
विश्व - (मुस्करा कर) तुम्हारे भाई के दांत में नहीं लगेंगे...
लड़की - (बिल्कुल सयानी बन कर) अभी इसके दांत गिर रहे हैं... दोबारा जब उठेंगे... यह नहीं खाएगा... (अपने भाई से) है ना... मेरे भाई... नहीं खाएगा ना मेरे भाई...

उसकी बात सुन कर, और अपने भाई से बात करते देख विश्व मुस्करा देता है पर उसके आँखों के कोने में आँसू चमकने लगते हैं l विश्व उस बुड्ढी के बाल बेचने वाले से कहता है

विश्व - भैया... इस लड़की को भी... एक बुड्ढी के बाल दे दो... मैं पैसे देता हूँ...
लड़की - नहीं नहीं अंकल... मुझे नहीं चाहिए...
बुड्ढी के बाल बेचने वाला - झूट बोल रही है साहब... पैसे नहीं हैं इसके पास...
विश्व - (लड़की से) कोई बात नहीं है बेटा... लेलो... आज तुम्हें देख कर.... मुझे मेरी दीदी याद आ गयी... वह भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है....

इतने में वह बुड्ढी के बाल बना कर दे देता है l विश्व उस लड़की को दे देता है वह लड़की एक दमकती हुई मुस्कान के साथ बुड्ढी के बाल ले लेती है और वहाँ से अपने भाई का हाथ थामे चली जाती है l विश्व उन्हें एक लगाव के भाव से जाते हुए देखता है, कैसे बहन अपने भाई को समझा रही है और भाई बुड्ढी के बाल खाते हुए अपना सिर हिला रहा है l उन दोनों को देखते देखते विश्व अपनी यादों में खो जाता है,

विश्व अपने घर में वापस आकर देखता है घर का दरवाजा बंद है तो वह दरवाजा खटखटाता है पर उसके खटखटाने से दरवाजा खुल जाता है, वह डर के मारे घर के अंदर जाता है और चिल्लाने लगता है

दीदी... दीदी...

घर के कमरे में वैदेही को ना पा कर बाहर जाने को हो ही रहा था के तभी बाहर से वैदेही घर के अंदर आती है l

विश्व - दी... दीदी...
वैदेही - क्या हुआ...
विश्व - तुम... घर को.. इस तरह छोड़ कर...
वैदेही - उमाकांत सर जी के यहाँ गई थी...
विश्व - उमाकांत सर के यहाँ... वह भी इतनी रात को...
वैदेही - पहले तु बता... सुबह का गया अब आ रहा है... मेरे खाने की बारे में... सोचा भी था कुछ...

विश्व को खयाल आया, विश्व तो घर से निकल गया था कल्लू के बुलावे पर महल चला गया था I और पुरी तरह से वैदेही के बारे में भुल ही गया था l यह समझ में आते ही शर्मिंदगी से अपने में गड़ जाता है l

विश्व - म.. माफ कर दो दीदी... सात साल बाद मिली भी तो.. मैं... (कुछ कह नहीं पाता, उसके आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं)
वैदेही - ना.. ना मेरे भाई ना.. दिल पे मत ले... मैं सर जी के यहाँ से... हम दोनों के लिए... रात का खाना लाई हूँ...
विश्व - तुम्हें मेरे बारे में खयाल रहा... पर मैं बेग़ैरत... तुमको ही भूल गया... (फफक पड़ता है)

वैदेही उसके पास जाती है और उसके आँखों से आँसू पोंछती है l विश्व की हाथ खिंच कर चटाई बिछा कर थाली लगाती है और खाना परोसती है l विश्व का हाथ खाने तक जाता तो है पर निवाला बना नहीं पाता, यह देख कर वैदेही अपने हांथों से निवाला बना कर विश्व को खिलाने लगती है l विश्व के आग्रह पर वैदेही भी खाना खाने लगती है l खाना खतम हो जाने के बाद वैदेही थाली उठाती है l बर्तन माँज कर रखने के बाद

वैदेही - अच्छा... तेरे पास कुछ पैसे हैं...
विश्व - हाँ हैं.. पर कितना....
वैदेही - राशन लाना है... इसलिए...
विश्व - वह मैं... बल्लु से कह देता हूँ... कल वह राशन छोड़ जाएगा...
वैदेही - नहीं... मैं कल खुद जाऊँगी... राशन लाने...
विश्व - नहीं दीदी... तुम क्यूँ जाओगी... बल्लु ला देगा ना...
वैदेही - मैंने कहा ना... कल मैं खुद राशन लाऊँगी...
विश्व - तो ठीक है... कल हम मिलकर जाएंगे...
वैदेही - नहीं... मैं अकेली जाऊँगी...
विश्व - क्यूँ दीदी.. क्यूँ...
वैदेही - खुद को जिंदा करने के लिए...
विश्व - क्या...
वैदेही - मैं जानती हूँ... तु क्यूँ डर रहा है... पर मत भूल... मेरे कंधों पर बैठ कर... दुनिया को तुने देखा और पहचाना... (एक पॉज लेकर) ठीक है... सब यहाँ मर चुके हैं... यहाँ कोई हसती खिलती बस्ती नहीं है... श्मशान है यह... मरघट है... मुर्दों की बस्ती है... मरे हुए ज़ज्बात हैं... पर किसी को तो जागना होगा... अगर कोई नहीं जागेगा... तो इन्हें जगायेगा कौन...
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखने लगता है) यह... यह क्या कह रही हो दीदी...
वैदेही - हाँ मेरे भाई... खुन का रिश्ता... चार दीवारी तक सिमट जाता है... पर कुछ रिश्ते मुहँ बोले होते हैं... पर उनमें ज़ज्बात... खुन के रिश्ते जितने मजबुत होते हैं... पीढ़ी दर पीढ़ी... उनकी अकर्मण्यता... उनके जज्बातों पर परत बन कर... उन्हें रिश्ते नातों से दूर कर दिया... अब वह परत को हटाना है... उनके भीतर के उन जज्बातों में जान भरनी है... जिंदा करना है... लेकिन उससे पहले... खुद को तो जिंदा करना पड़ेगा ना...
विश्व - तुम्हारी कोई भी बात... मेरे समझ में नहीं आया... पर जो भी हो... कल तुम अकेली नहीं जाओगी... मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगा...
वैदेही - ठीक है... पर कल कुछ भी हो जाए... तु किसी से भी नहीं उलझेगा... ना ही किसी से.. झगड़ा करेगा... तु कल बुत बन कर देखेगा और सुनेगा... बस...
विश्व - नहीं दीदी... यह मुझसे नहीं होगा...
वैदेही - क्या तु... मेरे लिए इतना भी नहीं करेगा... (विश्व चुप रहता है) (उसे चुप देख कर) ठीक है... जब मेरा भाई ही... मेरा साथ नहीं दे रहा है... मैं इन गांव वालों से क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - नहीं दीदी... इतना बड़ा इल्ज़ाम ना लगाओ मुझ पर... ठीक है... मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा... जरूर मानूँगा...

वैदेही खुश हो कर विश्व के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है l और उसे सो जाने के लिए कहती है l विश्व चारपाई पर वैदेही को सुला कर खुद जमीन पर बिछौना लगा कर सो जाता है l पर उसके आँखों में नींद कहाँ थी l कल बीच गांव में क्या होगा यही सोच सोच कर उसके आँखों से नींद गायब थी I रात भर करवटें बदल बदल कर सोने की कोशिश करता है l पर आधी रात के बाद उसे नींद आती है l सुबह नींद टुट जाती है जब विश्व के कान में जगन्नाथ सुप्रभात मंत्र पड़ता है

नीलाद्रौ शंखमध्ये शतदलकमले रत्नसिंहासनस्थं
सर्वालंकारयुक्तं नवघन रुचिरं संयुतं चाग्रजेन ।
भद्राया वामभागे रथचरणयुतं ब्रह्मरुद्रेन्द्रवंद्यं
वेदानां सारमीशं सुजनपरिवृतं ब्रह्मदारुं स्मरामि l

यह मंत्र सुने विश्व को सात साल हो गये थे l वह जाग कर बैठ जाता है l आरती करने के बाद विश्व को तैयार होने के लिए कहती है l विश्व जल्दी से जाता है और तैयार हो कर कपड़े बदल कर वैदेही के सामने खड़ा हो जाता है l
वैदेही एक थैला विश्व को थमा देती है और दोनों भाई बहन बाहर निकल जाते हैं अपने घर के लिए राशन लाने l विश्व वैदेही के साथ जा रहा था, पर अपना चेहरा झुकाए, पुरी कोशिश कर रहा था लोगों की नजरों की धार से खुद को बचा रहा था l वह लोग जो इन सात सालों में विश्व को अनाथ के रुप में जाने थे, वैदेही के आ जाने से और उसके अतीत के बारे में भैरव सिंह के आदमियों के वजह से जान लेने के बाद विश्व और वैदेही को एक घृणित नजर से देख रहे थे l कुछ दूर चलने के बाद दोनों भाई बहन एक राशन की दुकान पर पहुँचते हैं l

वैदेही - नमस्ते उदय मौसा...

दुकान दार वैदेही को गौर से देखता है और पहचानने की कोशिश करता है l विश्व अपना चेहरा झुकाए वैदेही के पीछे खुद को छुपा रहा था l

उदय - कौन हो तुम बेटी...
वैदेही - जी मैं वैदेही... वैदेही महापात्र... श्री रघुनाथ महापात्र और श्री मती सरला महापात्र की बेटी... और (अपने पीछे से विश्व को सामने ला खड़ा करते हुए) विश्व प्रताप महापात्र की बड़ी बहन...
Superb update 🥰🥰
 
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Kala Nag भाई, इंडेक्स पोस्ट को पिन कर दो ताकि इंडेक्स हर पेज पर आ जाए और बार बार इंडेक्स के लिए पहले पेज पर ना जाना पड़े.
 
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👉एक सौ आठवां अपडेट
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कटक बार एसोसिएशन ऑफिस से निकल कर प्रतिभा बाहर पार्किंग में आती है l गाड़ी के पास उसे तापस खड़ा हुआ दिखता है l

प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी... आज हमारा इंतजार हो रहा है...
तापस - क्यूँ... क्या मैंने कभी तुम्हारा इंतजार नहीं किया है...
प्रतिभा - हाँ... कॉलेज के दिनों में... फिर... नौकरी के शुरुआत में... और आज...
तापस - हैलो... वकील साहिबा... आप भुल रही हैं... हम बहुत सी जगह पर... आपका इंतजार करते रहे हैं... और आज भी कर रहे हैं...
प्रतिभा - अच्छा जी... जरा बतायेंगे...
तापस - इसमे बताने वाली बात कहाँ से आई... यह तो रोज की बात है... किसी पार्टी में जाना हो.. या कोई फिल्म... इंतजार आज भी... हम ही करते हैं... और तो और किसी शॉपिंग मॉल में... आपकी शॉपिंग खतम होने तक का... इंतजार करते ही रहते हैं....
प्रतिभा - (भवें सिकुड़ कर, अपनी दांत पिसते हुए) हो गया...
तापस - हाँ... हो ही गया समझो...
प्रतिभा - तो चलें...
तापस - हाँ... चलो चले... दुर कहीं..
प्यार के लिए.. यह जगह ठीक नहीं...
प्रतिभा - आह्ह्ह्ह...

प्रतिभा गाड़ी की चाबी तापस को देती है, तापस गाड़ी का दरवाजा खोलता है और ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l प्रतिभा भी दरवाजा खोल कर बगल वाली सीट पर बैठ जाता है l तापस गाड़ी को कोर्ट की कंपाउंड से निकाल कर त्रिशूलीया रोड पर दौड़ाने लगता है l तापस कनखियों से देखता है प्रतिभा का पारा चढ़ा हुआ है l

तापस - क्या बात है जान... गुस्सा क्यूँ हो...
प्रतिभा - (थोड़ी गुस्से में) हाँ हाँ... हमेशा मैंने ही आपको इंतजार करवाया है ना... जैसे मैंने कभी आपका इंतजार नहीं किया...
तापस - ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा... हम जानते हैं.. जानेमन.. आपको भी हमारी इंतजार करते हुए... हमने भी देखा है..
प्रतिभा - अच्छा... जरा बताने की जहमत करेंगे... जरा हम भी तो देखें.. हमारा किया हुआ इंतजार... आपको कैसे याद है...
तापस - हाँ याद है.. बल्कि आपका इंतजार... यादगार रहा है... पहली इंतजार... आपकी... हमने खतम की... आपके घर... आपके दर बारात ले कर... और दुसरा इंतजार... हम बिलकुल टाइम पर पहुँचे थे... सुहाग के सेज पर...

प्रतिभा के हाथ में जो फाइलें थी उनसे वह तापस को मारने लगती है l

तापस - आह... ओह... उह... वाह.. आहा... ओहो.. वाह वाह...
प्रतिभा - (चिढ़ कर रुक जाती है) क्या आप मुझे... सताने की मुड़ बना कर आए हैं...
तापस - नहीं जान... आपको मनाने के लिए आए हैं...
प्रतिभा - आज मैं मानने वाली नहीं हूँ...
तापस - (गाते हुए) ऐ मेरी सोला बदन...
तुमको इस दिल की कसम...
रूठा ना करो...
रूठा ना करो...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) क्या बात है... सेनापति जी... आज तो आप... बिन पंखे के उड़ रहे हैं... बहुत रोमांटिक हुए जा रहे हैं....
तापस - (थोड़े उदास हो कर) क्या करें जानेमन... कल प्रताप अपने गांव चला जाएगा... फिर एक घर... दो जिंदगी... और इंतजार... इसलिए आदत डाल रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो दर्द बिछड़ने की है... प्रताप से...

तापस चुप रहता है l चेहरा उसका गम्भीर हो जाता है l वह प्रतिभा की ओर देखे वगैर गाड़ी चलाता रहता है l

प्रतिभा - सेनापति जी... मैंने कुछ पूछा आपसे...
तापस - हाँ... यही है... जान... क्या तुम्हें दर्द नहीं हो रहा है...
प्रतिभा - हाँ दर्द होता... अगर वह हमेशा के लिए... हमसे दुर जा रहा होता... तो...


गाड़ी रुक जाती है l प्रतिभा देखती है एक रेस्टोरेंट के सामने तापस ने गाड़ी को रोका है l

तापस - चलो उतरो... कुछ पल आपस में बांटते हैं...
प्रतिभा - ठीक है... चलिए....

दोनों गाड़ी से उतर कर रेस्टोरेंट के एक कोने वाली टेबल पर बैठ जाते हैं l तापस वेटर को बुला कर खाने का ऑर्डर देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - तो... सेनापति जी... पहले बताइए... आप टेंशन में हैं... या ग़म में...
तापस - पता नहीं... या फिर दोनों... (एक पॉज लेकर) जान... क्या तुम... प्रताप से... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - समझ गई... आप क्या कहना चाहते हैं... पर यह नियति है... आपको डर है... कहीं मुझे सदमा ना लग जाये... जैसे कि पिछली बार... प्रत्युष के समय हुआ था... पागल सी... बावरी सी... नहीं... इस बार.. ऐसा कुछ भी नहीं होगा...

इतने में वेटर खाना लाकर टेबल पर दोनों के प्लेट पर लगा देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - आपको.. इसी बात का डर था ना... आई मीन... है ना...
तापस - (हल्के से सिर हिला कर हाँ कहता है)
प्रतिभा - मैंने... प्रताप से वादा तो लीआ है ना... वह हर वीकएंड में... या दस बारह दिनों में आता रहेगा... और जब भी... जोडार साहब का काम निकलेगा... वह तब तब तो आता ही रहेगा...
तापस - हाँ... पर... प्रताप की प्रायॉरिटी... राजगड़ और... वहाँ पर हुए.. या हो रहे केसेस होंगे... हम.. सेकंडरी होंगे...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... हम रहेंगे तो उसके अपने ही ना...
तापस - (एक अनचाही आवाज में) हाँ...
प्रतिभा - देखिए... सेनापति जी... हम इस बात को... यूँ समझने की कोशिश करें...
तापस - कैसे...
प्रतिभा - मान लीजिए... प्रताप कहीं बाहर जॉब कर रहा है... तो... तब तो आपको कोई चिंता नहीं करनी चाहिए...
तापस - (मुस्कराते हुए निवाला खाते हुए) मुझे लगा था... तुम बहुत टेंशन में होगी... पर तुम तो... एकदम से रिलैक्स हो...
तापस - क्यूँ ना होऊँ... आखिर बेटे के साथ बहु भी मिल गई है...

तापस के गले में खाना अटक जाता है l उसको खांसी होने लगती है l पानी पीने के थोड़ी देर बाद वह थोड़ा नॉर्मल होता है l

तापस - अरे हाँ... मैं तो पूछना भूल ही गया... यह बहु वाला चैप्टर क्या है... कहाँ से आया... और वह भी क्षेत्रपाल की बेटी...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हाँ... है ना मजेदार बात...
तापस - पर मुझे जहां तक याद है... तुम्हें तो वह नंदिनी बहुत पसंद थी ना...
प्रतिभा - (अपनी हँसी की दबाते हुए, अपना सिर आगे ले जाती है और) नंदिनी ही रुप है...
तापस - (तेज करेंट लगने जैसा चौंकता है) क्या...
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसती है)
तापस - क्या प्रताप जानता है...
प्रतिभा - (हँसते हुए) नहीं...
तापस - क्या...
प्रतिभा - हाँ... नहीं जानता... के नंदिनी ही... रुप है...
तापस - मतलब... जब से उसकी दोस्ती नंदिनी से हुई है... नंदिनी तभी से उसे बेवक़ूफ़ बना रही है...
प्रतिभा - जी नहीं...
तापस - यह क्या झोल है... तुम मुझे कंफ्युज कर रही हो...
प्रतिभा - अरे.. पहले पुरी बात तो सुन लिया करो...
तापस - पुरी बात...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पुरी बात... (तापस अब चुप रहता है) जिस रात को... प्रताप गया था ना.. सुकुमार और गायत्री के शादी की साल गिरह की मुबारक बात देने... उसी रात नंदिनी को पता चला... कि... प्रताप ही... उसका अनाम है...
तापस - अ.. नाम..
प्रतिभा - हाँ.. अनाम...

तापस अपना माथा पकड़ लेता है और अपना सिर झटकने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

प्रतिभा - क्या हुआ...
तापस - तुम माँ बेटे... मुझसे बहुत कुछ छुपाया है... मैं... उसे होटेलों में.. क्लबों में लेके जाता था... के वह लड़की पटाये... जब कि उसके पास... पहले से ही... पटी पटाइ थी...
प्रतिभा - वैसे... आपको इस बात का दुख है... या शिकायत...
तापस - दोनों... और तुम दोनों... मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं...
प्रतिभा - अरे... यह तो मुझे भी कुछ ही दिन पहले मालुम पड़ा...
तापस - अच्छा... तब तो ठीक है... पर (एक पॉज लेकर) मुहब्बत किया भी किससे.. अपने कट्टर दुश्मन की.... बेटी से... (कह कर अचानक चुप हो जाता है)
प्रतिभा - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गए....
तापस - (रुक रुक कर) वह... नंदिनी... क्या सच में... प्रताप को चाहती है... या... भैरव सिंह की... कोई गंदी चाल है...
प्रतिभा - (बिदक कर) क्या...

प्रतिभा ने यह चिल्ला कर पूछा था l रेस्टोरेंट में सभी लोग प्रतिभा और तापस की ओर देखने लगते हैं l

तापस - श्श्श... (धीमे) क्या... क्या कर रही हो... सब देख रहे हैं...
प्रतिभा - (धीमी आवाज में) क्या... कहा आपने...
तापस - अरे.. मैंने तो... एक तुक्का भीड़ाया था...
प्रतिभा - आप ना यह पुलिसिया दिमाग चलाना बंद करो... अभी आप पुलिस में नहीं हैं... (फिर थोड़ी संजीदा हो कर) कुछ बातेँ... दिल और जज्बातों की होती है... प्रताप भी बचपन से ही... रुप से प्यार करता था... बस वह खुद को समझा नहीं पा रहा था... रुप... रुप तो बचपन से ही... प्रताप को बेइन्तेहा चाहती थी... दोनों को किस्मत ने अलग किया... और दोनों को किस्मत ने... एक खूबसूरत मोड़ पर मिलाया है... रुप ने तो अपनी दिल की सुन ली... बस प्रताप का बाकी है... उसे अपने दिल की सुनने के लिए...
तापस - लेकिन कब... प्रताप तो कल चला जाएगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... रुप उसके लिए पहले से ही... राजगड़ चली गई होगी.. या फिर चली गई है...
तापस - मतलब... तुम्हारे साथ... रुप ने बहुत कुछ प्लान बना लिया है... (प्रतिभा मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... मुझे लगता है... प्रताप के लिए एक बड़ा काम रह गया है... वैदेही को कंविंस करना...
प्रतिभा - नहीं... प्रताप के लिए सिर्फ़... अपनी राजकुमारी को ढूंढना... और प्रपोज करना बाकी रह गया है... आई एम डैम श्योर... अब तक तो... वैदेही से मिलकर को रुप ने सब कुछ बता दिया होगा...
तापस - क्या...

हैरानी और शॉक से चिल्ला पड़ता है l क्यूँकी यह खबर उसके लिए बहुत बड़ा झटका था l उसके चिल्लाने से रेस्टोरेंट में मौजूद सभी लोग तापस की ओर देखने लगते हैं l

प्रतिभा - श्श्श... (धीमे) क्या कर रहे हैं आप... लोग देख रहे हैं...
तापस - (धीमे, दबी आवाज में) तुम लोगों ने टीम बना कर... खिचड़ी पका चुके हो... और मुझे अब बता रही हो...
प्रतिभा - अरे.. कल ही तो पता चला... और बोलने का मौका मिला ही कब... वैसे भी... रुप का... वैदेही के बारे में जानना और मिलना... बहुत ही जरूरी था...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, और बड़ी संजीदगी के साथ) रुप भी बचपन में... बहुत कुछ खोया था... सबसे अहम... उसने अपनी माँ को खोया था... जिसकी वजह... वह एक ऐसी औरत को मान रही थी... जिसके चलते... उसके सिर से... माँ की साया हट गया था... यह बात और है कि उस औरत के बारे में... ना वह जानती थी... ना उससे कभी मिली थी... पर चूंकि उस औरत के... उनके जीवन में आने के बाद... रुप अनाथ हो गई थी... इसलिए उस अनजान औरत से... बेहद नफरत कर रही थी... पर जब उस औरत के बारे में... कल मैंने उसे बताया... तब उस औरत के लिए... रुप के मन में... असीम श्रद्धा, अनुकंपा और सम्वेदना के साथ-साथ असीम सम्मान भी जाग उठा... रुप उसी औरत से मिलने राजगड़ गई है... लगे हाथ... हमारे प्रताप की टांग भी खिंचेगी...
तापस - ओह... तो यह बात है...

खाना खतम हो चुका था, वेटर बिल लेकर आता है l तापस बिल चुकाने के बाद दोनों बाहर आकर गाड़ी में बैठते हैं l गाड़ी में प्रतिभा, वैदेही को फोन लगाती है और स्पीकर पर डाल देती है l

वैदेही - हाँ मासी... नमस्ते... कैसी हो आप...
प्रतिभा - मैं तो ठीक हुँ... यह बता... कैसी लगी तेरी बहु...
वैदेही - लाखों में नहीं... करोड़ों में एक है... अभी अभी मासी... यहाँ से गई है... बचपना अभी भी... कूट कूट कर भरा हुआ है उसमें... विशु ने उसका नाम ठीक ही रखा है.... नकचढ़ी... हा हा हा हा हा...
प्रतिभा - हा हा हा हा... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने... और...
वैदेही - तुम यकीन नहीं करोगी मासी... काकी की पसीने छुड़ा दिए... उस नकचढ़ी ने... पर... दिल की बहुत ही अच्छी है... बेचारा विशु... उसके बारे में... पुरी तरह से नहीं जानता...
प्रतिभा - हाँ... जब जान लेगा... तब देखेंगे... कैसे रिऐक्ट करता है...
वैदेही - हाँ... वह तो है... पर मासी... तुमने यह जानने के लिए तो फोन नहीं किया ना...
प्रतिभा - नहीं... (कुछ देर के लिए दोनों तरफ चुप्पी छा जाती है) उसने... तुम्हें सारी बातें बताई....
वैदेही - समझी... हाँ मासी... उसने अपने दिल की सारी बातें बता दी... मेरे बारे में... अपने सारी ख़यालात... खोल कर रख दिया... बचपन से लेकर आज तक... वह क्यूँ अपने पिता से नफरत करती है... जब उसके बारे में... तुमसे सुनी... और उससे मिलने के बाद... मेरे दिल को सुकून मिला है कि मैं क्या कहूँ... (आवाज़ भर्राने लगती है) मुझे खुद से शिकायत रहती थी... एक ग्लानि मन में रहती थी... मेरे वजह से... विशु की जिंदगी... क्या से क्या हो गई... उसके बचपन के सभी दोस्त.. अपना घर बसा लिए हैं... पर मेरा भाई... पर विधाता का विधान देखो मासी... विशु की जीवन में... जो लड़की आई है... उसके कट्टर दुश्मन की बेटी है वह... किस तरह से... कैसे न्याय कर रहा है विधाता... अब तो मैं निश्चिंत हूँ... यह महासंग्राम जीत पर ही खतम होगी... न्याय पर ही खतम होगी...

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क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुप की गाड़ी प्रवेश करती है l आशा के अनुरुप द्वार पर नजर उतारने की थाली लिए नौकरों के साथ सुषमा खड़ी थी l गुरु के गाड़ी पोर्टीको में लगाते ही गार्ड्स दौड़कर आते हैं और गाड़ी की पिछला दरवाजा खोलते हैं l रुप उतरती है और सुषमा के सामने खड़ी हो जाती है l सुषमा, पहले थाली में कर्पूर जला कर रुप की नजर उतारती है फिर कुछ नोट निकाल कर रुप की चारो तरफ घुमाती है और नौकरों में बांट देती है, और नौकरानियों से रुप की सामान रुप के कमरे में पहुँचाने को कहती है l

सुषमा - (रुप से) आओ राज कुमारी... बड़े दिनों बाद आए...
रुप - (सुषमा के साथ चलते हुए) हाँ छोटी रानी माँ... बड़े दिनों बाद... क्या करूँ... आप वहाँ आ नहीं पाती... और...
सुषमा - ठीक है... ठीक है... पहले बड़े राजा साहब जी से आशीर्वाद ले लीजिए...

दोनों नागेंद्र के कमरे के बाहर आकर खड़े होते हैं l सुषमा रुप को वहीँ ठहरने के लिए कह कर अंदर जाती है और कुछ देर बाद बाहर आती है l

सुषमा - आइए राजकुमारी...

रुप और सुषमा दोनों अंदर आते हैं l रुप देखती है नागेंद्र बेड की हेड रेस्ट पर पीठ टिकाये बैठा हुआ था l बेड के दोनों तरफ कुछ नौकर और नौकरानियां खड़े हुए हैं l

नागेंद्र - (बेहद गंभीर आवाज़ में) कैसी हैं आप... राजकुमारी जी... (लकवा ग्रस्त होने की वजह से जीभ बमुस्किल साथ दे रही थी)

अपने दादाजी को देखते ही रुप की आँखों में वैदेही का चेहरा घुमने लगती है l अपनी नजरें झुका लेती है और अपनी भावों को काबु करने की कोशिश करने लगती है l

सुषमा - राजकुमारी... (रुप की कंधे पर हाथ रखकर) बड़े राजा साहब पूछ रहे हैं...
रुप - (चौंक कर) जी... जी.. (संभल कर) जी आपका आशीर्वाद है... (अपनी नजरें झुका लेती है)
नागेंद्र - अच्छी बात है... आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है...
रुप - जी.. बढ़िया...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... खयाल रहे... पढ़ाई के बाद... आपको... दसपल्ला परिवार में जाना है... क्षेत्रपाल परिवार का मान सम्मान और गौरव लेकर...

रुप अपनी नजरें नहीं उठाती सिर नीचे झुका हुआ था l जबड़े और आँखे उसके भींच जाती हैं l अपनी सांसो को काबु करते हुए

रुप - जी बिल्कुल... बड़े राजा साहब जी... हम आपके पद चिन्ह को अनुसरण करेंगे... आप ही की तरह इस वंश की गौरव पताका को... आकाश में उड़ाते रहेंगे...
नागेंद्र - बहुत अच्छे... अब आप अपने कक्ष में जा सकती हैं.. (सुषमा से) छोटी रानी आप कुछ समय के लिए रुकिए यहां पर...
सुषमा - जी बड़े राजा साहब...

फिर सुषमा इशारा करती है, रुप वहाँ से निकल जाती है l रुप के पीछे कुछ नौकरानियां चले जाते हैं l उन सबके जाते ही

सुषमा - जी कहिए.. बड़े राजा साहब...
नागेंद्र - हमें राजकुमारी की वार्तालाप में... असंतुष्टि महसुस हुई है... हमें उनकी उत्तर में... हमसे ना पसंदगी साफ दिखा है....
सुषमा - नहीं बड़े राजा जी... हमें तो... कहीं से भी ऐसा नहीं लगा...
नागेंद्र - हमारे हाथ पैर जवाब दे गए हैं... आँखे धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं... और कान साथ छोड़ दूर जा रहे हैं... पर अंदर से सामने वाले की बातों से.. उसे समझने की क्षमता अभी भी रखते हैं...
सुषमा - बड़े राजा साहब... मैंने रुप को बचपन से पाला है... वह बत्तमिज तो हरगिज नहीं हो सकती...
नागेंद्र - वह बत्तमिज है... ऐसा हमने नहीं कहा... हम उसे नापसंद हैं.. यह हमने महसूस किया...
सुषमा - नापसंद या नाराजगी... शायद इसलिये भी हो सकती है कि... उसे शहर जाने की कोई इच्छा नहीं थी... पर उसे भेजा गया...
नागेंद्र - नहीं.... बात कुछ और है... राजकुमारी... वंश की गौरव की बात कह नहीं रही थी... बल्कि... ताने मार रही थी....
सुषमा - बड़े राजा जी... मैं... मैं उनसे पूछ कर देखती हूँ...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... अभी आप जा सकती हैं...
सुषमा - जी... जी राजा साहब...

कह कर सुषमा नागेंद्र से इजाजत लेकर उस कमरे से बाहर आती है और सीधे रुप के कमरे में पहुँचती है I सुषमा देखती है रुप बहुत गंभीर चेहरा बना कर अपने बेड पर बैठी हुई है l रुप जैसे ही सुषमा को देखती है खुद को नॉर्मल करने की और अपने होंठो पर मुस्कराहट कोशिश करती है l सुषमा अंदर आकर दरवाजा बंद करती है, फिर रुप के करीब आ कर बैठ जाती है और रुप को गौर से देखने लगती है l सुषमा के ऐसे देखने पर रुप हड़बड़ा जाती है

रुप - (हकलाते हुए) आप ऐसे क्यूँ देख रही हैं चाची माँ...
सुषमा - तुम जानती हो... बड़े राजा साहब जी से मेरी क्या बात हुई...
रुप - बात उन्होंने की है... आपसे.. वह भी मुझे अपने कमरे से बाहर भेज कर... मुझे कैसे पता चलेगा... उन्होंने आपसे क्या बात कही...
सुषमा - मेरी इस छोटी सी सवाल पर... तुमने इतना बड़ा जवाब दिया... यह तुम्हारे भीतर की बदलाव की भाषा है... जिसे बड़े राजा साहब ने पढ़ लिया... (रुप चुप रहती है) तुमने उनसे गलत कुछ भी नहीं कहा... पर लहजा... और जवाब से उन्हें मालुम पड़ गया... वह रुप जो यहाँ... अपनी कमरे में दुबकी रहती थी... किताबों में खोई रहती थी... जो भुवनेश्वर पढ़ने गई थी... यह रुप... वह नहीं है... यह रुप अब प्रतिक्रिया देने लगी है... (रुप असमंजस सी भाव से इधर उधर देखने लगती है) क्या हुआ रुप...
रुप - (सुषमा की नजरों से नजर मिलाते हुए, कुछ देर देखती है) चाची माँ... उम्र ढलती है... लोग बीमार होते हैं... उम्र और बीमारी के वजह से... इंसान का शरीर.. उसका साथ छोड़ने लगता है... पर बड़े राजा साहब को देख कर आपको क्या लगता है...

सुषमा रुप की बातों को समझ नहीं पाती, वह अपनी भवें उठा कर रुप की ओर ऐसे देखती है जैसे कह रही हो बात को समझाओ l

रुप - कुछ लोग जो ढलती उम्र में इस तरह से बिस्तर पकड़ लेते हैं... वह उम्र या बीमारी के चलते नहीं... बल्कि... लोगों के श्राप और बद्दुआ के चलते.. उनकी हालत ऐसी हो जाती है....

रुप की इस जवाब से सुषमा की आँखे फैल जाती हैं l हैरानी के चलते मुहँ खुल जाता है l

सुषमा - यह तुम... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो रुप...
रुप - मैंने कुछ सच्चाई सुनी... कुछ सच्चाई देखी... और उस सच्चाई को संज्ञान लेते हुए... अब देख रही हूँ... समझ भी रही हूँ...
सुषमा - (हैरानी भरी आवाज में) बड़े राजा साहब ने.. सही अनुमान लगाया... तुम थोड़ी नहीं... बहुत हद तक बदल गई हो... तुम्हारे तेवर... और लहजे में... बगावत झलक रही है.... (थोड़ी नरम पड़ कर समझाते हुए) इस राह में... इतनी तेजी से मत भागो रुप... के सामने जब रोड़ा आए... तो मुहँ के बल गिरो... (फिर अचानक बेड से उठ खड़ी होती है और कमरे में चहल कदम करने लगती है, फिर मुड़ कर रुप से) तुम यहाँ क्यूँ आई हो रुप...
रुप - आपसे मिलना था...
सुषमा - मुझसे...
रुप - हाँ चाची माँ... जीवन में कभी कभी ऐसे मोड़ आते हैं... जब बच्चों को.. माँ की गोद में सिर रखने के लिए... माँ की आंचल में ख़ुद को छुपाने के लिए... माँ की कंधे के सहारे सिसकने के लिए... और ग़मों से खुद छुड़ाने के लिए माँ की सीने से लग जाने के लिए... (कह कर रुप सुषमा के गले से लग जाती है)

सुषमा - (रुप के बालों में हाथ फेरते हुए) रुप... कहीं तुझे किसीसे... प्यार तो नहीं हो गया है...

रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है जो सुषमा को अपने कंधे पर साफ महसुस करती है l उसकी हाँ को समझते ही डर और हैरानी से सुषमा की आँखे बड़ी हो जातीं हैं l सुषमा तुरंत रुप को खुद से अलग करती है l

सुषमा - र्र्र्र्र्र्र्रुप... यह तुम... क्या कह रही हो...
रुप - आपने... वीर भैया का भी हिम्मत बढ़ाया था...
सुषमा - (धप कर रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) वीर लड़का है... मर्द है... वह लड़ लेगा... उसकी शादी भी तय नहीं हुई है.... पर तुम्हारी शादी... तय हो चुकी है... वीर संभाल लेगा... पर तुम... क्षेत्रपाल की आँधी का मुकाबला कैसे करोगी...

रुप चुप रहती है, कोई जवाब नहीं देती l कमरे में चुप्पी छाई हुई थी l इतनी चुप्पी की एक दुसरे को अपनी अपनी साँसों की आवाज सुनाई दे रही थी l

सुषमा - (ठंडी आवाज में) क्या... वह लड़का.. तुम्हारे कॉलेज से है... (रुप अपना सिर हिला कर ना कहती है) क्या वह बहुत पैसे वाला है...... मतलब कोई खानदानी... या बड़े घराने से ताल्लुक रखता है...

रूप अपना सिर हिला कर ना कहती है, सुषमा अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ लेती है l

सुषमा - रुप... क्या समाज में... उसका कोई रुतबा भी है.... (रुप फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है) ओह... रुप... तेरी इस बगावत में... तेरा साथ कौन देगा... क्षेत्रपाल के अहं के आँधी से... कौन तुझे बचाएगा...
रुप - वही... जिससे मैंने चाहा है... वही मेरा साथ देगा...
सुषमा - ना समाज में हैसियत... ना कोई रुतबा... वह कैसे... क्षेत्रपाल की आँधी से टकरायेगा....
रुप - हाँ... वह एक ऐसे चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ा हो जाएगा... के दुनिया की कोई भी आँधी कैसे भी उससे टकराए... बिखर कर चूर चूर हो जाएगी...
सुषमा - इतना विश्वास... कौन है वह... जो क्षेत्रपाल से टकरायेगा...
रुप - चाची माँ... मैं अभी आपसे... कुछ भी नहीं कह सकती... पर इतना जरूर कहती हूँ... बहुत जल्दी आपको मालुम हो जाएगा.... और यकीन भी... के क्षेत्रपालों को... वही घुटनों पर ला सकता है...

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xxx मॉल से निकल कर विश्व बाहर बाहर रोड पर आता है l विश्व रोड के दूसरी तरफ बस स्टॉप तक जाने के लिए ट्रैफ़िक क्रॉस पर जा कर खड़ा होता है l चूंकि रोड बाई सेक्ट था वह ट्रैफिक के जेब्रा क्रॉस के पास खड़ा था I ज्यूं ही ट्रैफिक पर रेड लाइट जलता है गाडियाँ रुक जाती हैं, विश्व ट्रैफिक क्रॉस कर रोड के दुसरे तरफ बस स्टॉप पर पहुँच जाता है और वहाँ खड़े हो कर बस का इंतजार करने लगता है l एक बस आता है पर विश्व उस पर नहीं चढ़ता l बस के जाने के बाद विश्व वहाँ पर बेंच पर बैठ कर अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगता है l इस बीच दो और बस वहाँ से गुजर चुके थे l जब चौथा बस आकर रुकता है विश्व उस बस में चढ़ता है और आगे एक खाली सीट पर जा कर बैठ जाता है l बस में बैठे बैठे मोबाइल फोन पर स्क्रीन स्क्रोल करते हुए अपना वक़्त बिताने लगता है कि तभी बस में हल्ला शुरु हो जाता है l बस में बैठे सभी लोग शोर की ओर देखने लगते हैं I ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l दो आदमियों के बीच किसी बात को लेकर पहले कहासुनी हुई फिर झगड़ा शुरु हो गई थी l कंडक्टर उनके बीच आकर झगड़ा सुलझाने की कोशिश करता है l पर चूंकि गाड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी, विश्व चिढ़ कर बस से उतर जाता है, और सामने जा रही बस में भागते हुए चढ़ जाता है l बस में थोड़ी भीड़ थी, इसलिए थोड़ी दुर जाकर निको पार्क जंक्शन के पास उतर जाता है l वहाँ से पैदल चलते हुए बस स्टॉप पर बैठ कर मोबाइल निकाल कर वक़्त बिताने लगता है l करीब करीब बीस पच्चीस मिनट के बाद उसके सामने हेल्मेट पहने एक बाइक सवार आकर रुकता है l विश्व अपना मोबाइल जेब में रख कर उस बाइक वाले के पीछे बैठ जाता है l बाइक वहाँ से चल देता है l कुछ देर बाद वह बाइक एक रेस्टोरेंट के पास रुकती है l विश्व और वह बाइकर भी उतरता है l

विश्व - अब हेल्मेट क्यूँ पहने हुए है...

वह बाइकर अपना हेल्मेट निकालता है l सीलु, अपने जबड़े को मलते हुए विश्व के साथ टेबल पर बैठ जाता है l

विश्व - बड़ी जोर की लगी क्या...
सीलु - आह.. (कराहते हुए) कमबख्त का हाथ था या हाथोड़ा... आह... जबड़ा हिला कर रख दिया...
विश्व - सॉरी यार... पर मैंने तुम्हें उसका ध्यान भटकाने के लिए कहा था... तुमने उससे झगड़ा क्यूँ मोल लिया...
सीलु - सोचा था कहासुनी में काम हो जाएगा... लेकिन निकला साला ढीठ... इसलिए धक्कामुक्की किया... पर हरामी ने... मेरा जबड़ा हिला कर ही माना...
विश्व - सॉरी यार..
सीलु - अरे... कोई नहीं भाई... तुम्हारे लिए कुछ भी... वैसे... यह चेट्टी और केके वाला प्रकरण... दोस्ताना नहीं रहा...
विश्व - नहीं... ना दोस्ताना... ना विश्वास भरा...
सीलु - ऐसा क्यूँ...
विश्व - ऐसे लोग... बड़े सयाने बने फिरते हैं... और बड़े मतलब परस्त होते हैं..
सीलु - हाँ.. पर तुम्हारे पीछे... आदमी छोड़ने का क्या मतलब...
विश्व - यह लोग बहुत खोखले होते हैं... पर ऊपर से खुद को मजबूत दिखाते हैं... मतलब परस्त इतने की... ना कीचड़ में उतरना है... ना पैर धोने हैं... पर कमल का फूल... हर हाल में चाहिए...
सीलु - भाई... यह फिलासफी वाली बात... दिमाग के पल्ले पड़ता नहीं है... सीधे सीधे समझाओ ना भाई...
विश्व - ठीक है... मैं किन किन से मिलता हूँ... मेरे पीछे कौन कौन है... वगैरह..
सीलु - पहले खाने का ऑर्डर करते हैं... खाते खाते बात करते हैं...
विश्व - हाँ... यही सही रहेगा...

विश्व वेटर को बुलाता है l सीलु की मन पसंद का खाना और अपने लिए सादा खाना ऑर्डर करता है I कुछ देर बाद खाना सर्व हो जाता है l सीलु खाने पर टुट पड़ता है l विश्व भी चुप चाप खाना शुरु करता है l आधी खाने के बाद सीलु विश्व से पूछता है

सीलु - हाँ भाई.. कुछ कह रहे थे...
विश्व - यार... तुम पहले पेट भर लो...फिर शांति से बात करते हैं...
सीलु - नहीं भाई ऐसी बात नहीं है... पहले जो ठूंसा वह पेट ठंडा करने के लिए था... अब जो ठूंस रहा हूँ... वह पेट भरने के लिए... (विश्व की हँसी निकल जाती है) हाँ भाई... अब मैं शांति से सुन सकता हूँ...
विश्व - ठीक है सुनो फिर... इन दिनों जो भी मुझे ढूंढ ढूंढ कर... मेरे मदद को सामने आए हैं... सब के अपने अपने मतलब हैं... सबसे पहले नभ वाणी की न्यूज चैनल की सम्पादक... सुप्रिया रथ.... उसकी अपनी वाज़िब वजह है... पर सवाल है... उसे अंदर की खबर लगी कैसे...
सीलु - क्यूँ वह रिपोर्टर है... उसके अपने कंटेक्ट होंगे...
विश्व - नहीं... उसके पीछे... जरूर रूलिंग पार्टी का कोई है... जो खुद को पर्दे के पीछे रखे हुए है...
सीलु - अच्छा... पर यहाँ केके के पीछे भी तो... चेट्टी है...
विश्व - हाँ है... क्यूंकि दोनों तरफ... पोलिटिकल राईवलरी है...
सीलु - भाई... तुमने तो आसानी से पता लगा लिया था... केके के पीछे कौन है... पर सुप्रिया के पीछे कौन है... यह क्यूँ नहीं ढूंढ पाए...
विश्व - केके... श्रुट है... कन्नींग है... पर कुछ मामलों में... वह कच्चा है... सुप्रिया ना कन्नींग है... ना श्रुट है... पर प्रोफेशनल है... उसने मुझसे कुछ छुपाया नहीं है... हाँ कुछ बातेँ बताया नहीं है... पर केके... चालाक बनने की कोशिश में... बेवकूफ़ी कर जाता है...
सीलु - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
विश्व - क्या सोच रहे हो...
सीलु - यही के... मदत करने वाले... खुद को पर्दे के पीछे क्यूँ रख रहे हैं...
विश्व - वजह वही है... जैसे मैं तुम लोगों को पर्दे के पीछे रखना चाहता हूँ...
सीलु - मतलब...
विश्व - देखो... भैरव सिंह से दुश्मनी... मतलब... अपने आगे पीछे मिला कर सात पुश्तों की कुर्बानी...
सीलु - हा हा हा हा... मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा... ना मेरे आगे कोई है... ना पीछे कोई था... बस अपने साथ तुम हो... और तुम्हारा... वह बाल भी बांका नहीं कर पाएगा...
विश्व - तुम्हारा यह सोच गलत भी हो सकता है...
सीलु - खैर.. वह हम बाद में सोचेंगे... पहले यह तो बताओ...
विश्व - क्या...
सीलु - यही के... यह लोग अपने अपने समाज में... इलाके में... अच्छी खासी रुतबा रखते होंगे... तो राजा से सीधे सीधे... क्यूँ नहीं भीड़ रहे हैं...
विश्व - वह इसलिए... की उन सबकी... कोई दुखती नस पर राजा... अपना पैर जमा कर रखा होगा...
सीलु - तभी... तभी यह लोग सामने ना आ कर... तुम्हें सामने रखे हुए हैं...
विश्व - हाँ... यही बात है...
सीलु - ठीक है... पर... यह चेट्टी... उसकी कौनसी कमजोरी होगी...
विश्व - पता नहीं... पर यह भी है... उसे मुझ पर यकीन नहीं है... इसलिए उसने अपने आप... सात साल पहले का किस्सा छेड़ दिया...
सीलु - यकीन न करने की वजह...
विश्व - यश... उसका बेटा... चेट्टी को अच्छी तरह से मालूम था... यश मुझे मार कर एक्सीडेंट दिखाना चाहता था... पर रिजल्ट उल्टा हो गया... मेरी जगह.. उसका बेटा मारा गया... उसके बाद... उसीने... इंटरनल इनवेस्टिगेशन को... प्रभावित करने की कोशिश की... पर वह तो डैड... सीसीटीवी फुटेज... और पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट लेकर अड़ गए... वरना... यश की मौत को... मर्डर साबित करने के लिए... कोई कसर नहीं छोड़ा था...
सीलु - ओ... तो यह बात है...
विश्व - हाँ...
सीलु - तो भाई... इन लोगों की... क्या हमारी टीम में जरूरत है... मेरा मतलब है कि... क्या यह लोग हमारी मदत करेंगे...
विश्व - देखा जाए तो... इनकी जरूरत है भी... और नहीं भी...
सीलु - यह क्या बात हुई...
विश्व - यह लोग अभी हमारे साथ हैं... मैं... भैरव सिंह के लिए... एक दलदल बना रहा हूँ... मान लो... ज्यूं ज्यूं... भैरव सिंह फंसता जाएगा... त्यों त्यों.. यह लोग... हमारे साथ छोड़ कर... पीठ पर सवारी करने लगेंगे... और जब भैरव सिंह गले तक धंस जाएगा... उन लोगों को हमारी कोई जरूरत नहीं रहेगी... बिल्कुल उस कएन की तरह... टॉस के बाद मैच में....
सीलु - केके... तो तुम्हारे पीछे आदमी छोड़ रखा था... पर क्या सुप्रिया...
विश्व - नहीं... सुप्रिया के जरिए... जो भी मुझ पर नजर रखने की कोशिश कर रहा है... उसके हिसाब से... माँ और डैड ही मेरी कमजोर कड़ी हैं... पर चेट्टी यहाँ पर चालाक निकला... अखिर दल दल और कीचड़ में रहने की.. तगड़ा एक्सपीरियंस जो है उसके पास.. इसलिए मेरे मददगार कौन कौन हो सकता है... यह जानने के लिए ही... मेरे पीछे आदमी लगाया था...
सीलु - ओ तेरी...

खाना खतम हो चुका था l विश्व पेमेंट करने के साथ साथ वेटर को टीप देता है l दोनों बाहर निकलते हैं l

सीलु - अच्छा भाई... कल निकलना है... कोई और प्रोग्राम भी है क्या...
विश्व - नहीं... तुम जाओ... कल बस में मिलते हैं... पर सीट अलग अलग होनी चाहिए...
सीलु - ठीक है...

कह कर सीलु अपना बाइक स्टार्ट करता है और वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद विश्व पैदल ही आगे बढ़ने लगता है l थोड़ी दूर जाने के बाद वह देखता है, बुड्ढी के बाल बेचने वाले के पास एक लड़की आती है, उसके गोद में एक छोटा सा लड़का था l लड़की शायद दस ग्यारह साल की होगी और वह लड़का चार पांच साल का होगा l लड़की एक बुड्ढी की बाल खरीद कर अपने भाई को देती है, और वहाँ से जाने लगती है l विश्व उसे रोक कर

विश्व - (लड़की से) बेटी... तुमने क्यूँ नहीं ली...
लड़की - (विश्व को हैरानी से देखती है) वह.. मेरे दांत में कीड़े पड़ जाएंगे... इसलिए...
विश्व - (मुस्करा कर) तुम्हारे भाई के दांत में नहीं लगेंगे...
लड़की - (बिल्कुल सयानी बन कर) अभी इसके दांत गिर रहे हैं... दोबारा जब उठेंगे... यह नहीं खाएगा... (अपने भाई से) है ना... मेरे भाई... नहीं खाएगा ना मेरे भाई...

उसकी बात सुन कर, और अपने भाई से बात करते देख विश्व मुस्करा देता है पर उसके आँखों के कोने में आँसू चमकने लगते हैं l विश्व उस बुड्ढी के बाल बेचने वाले से कहता है

विश्व - भैया... इस लड़की को भी... एक बुड्ढी के बाल दे दो... मैं पैसे देता हूँ...
लड़की - नहीं नहीं अंकल... मुझे नहीं चाहिए...
बुड्ढी के बाल बेचने वाला - झूट बोल रही है साहब... पैसे नहीं हैं इसके पास...
विश्व - (लड़की से) कोई बात नहीं है बेटा... लेलो... आज तुम्हें देख कर.... मुझे मेरी दीदी याद आ गयी... वह भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है....

इतने में वह बुड्ढी के बाल बना कर दे देता है l विश्व उस लड़की को दे देता है वह लड़की एक दमकती हुई मुस्कान के साथ बुड्ढी के बाल ले लेती है और वहाँ से अपने भाई का हाथ थामे चली जाती है l विश्व उन्हें एक लगाव के भाव से जाते हुए देखता है, कैसे बहन अपने भाई को समझा रही है और भाई बुड्ढी के बाल खाते हुए अपना सिर हिला रहा है l उन दोनों को देखते देखते विश्व अपनी यादों में खो जाता है,

विश्व अपने घर में वापस आकर देखता है घर का दरवाजा बंद है तो वह दरवाजा खटखटाता है पर उसके खटखटाने से दरवाजा खुल जाता है, वह डर के मारे घर के अंदर जाता है और चिल्लाने लगता है

दीदी... दीदी...

घर के कमरे में वैदेही को ना पा कर बाहर जाने को हो ही रहा था के तभी बाहर से वैदेही घर के अंदर आती है l

विश्व - दी... दीदी...
वैदेही - क्या हुआ...
विश्व - तुम... घर को.. इस तरह छोड़ कर...
वैदेही - उमाकांत सर जी के यहाँ गई थी...
विश्व - उमाकांत सर के यहाँ... वह भी इतनी रात को...
वैदेही - पहले तु बता... सुबह का गया अब आ रहा है... मेरे खाने की बारे में... सोचा भी था कुछ...

विश्व को खयाल आया, विश्व तो घर से निकल गया था कल्लू के बुलावे पर महल चला गया था I और पुरी तरह से वैदेही के बारे में भुल ही गया था l यह समझ में आते ही शर्मिंदगी से अपने में गड़ जाता है l

विश्व - म.. माफ कर दो दीदी... सात साल बाद मिली भी तो.. मैं... (कुछ कह नहीं पाता, उसके आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं)
वैदेही - ना.. ना मेरे भाई ना.. दिल पे मत ले... मैं सर जी के यहाँ से... हम दोनों के लिए... रात का खाना लाई हूँ...
विश्व - तुम्हें मेरे बारे में खयाल रहा... पर मैं बेग़ैरत... तुमको ही भूल गया... (फफक पड़ता है)

वैदेही उसके पास जाती है और उसके आँखों से आँसू पोंछती है l विश्व की हाथ खिंच कर चटाई बिछा कर थाली लगाती है और खाना परोसती है l विश्व का हाथ खाने तक जाता तो है पर निवाला बना नहीं पाता, यह देख कर वैदेही अपने हांथों से निवाला बना कर विश्व को खिलाने लगती है l विश्व के आग्रह पर वैदेही भी खाना खाने लगती है l खाना खतम हो जाने के बाद वैदेही थाली उठाती है l बर्तन माँज कर रखने के बाद

वैदेही - अच्छा... तेरे पास कुछ पैसे हैं...
विश्व - हाँ हैं.. पर कितना....
वैदेही - राशन लाना है... इसलिए...
विश्व - वह मैं... बल्लु से कह देता हूँ... कल वह राशन छोड़ जाएगा...
वैदेही - नहीं... मैं कल खुद जाऊँगी... राशन लाने...
विश्व - नहीं दीदी... तुम क्यूँ जाओगी... बल्लु ला देगा ना...
वैदेही - मैंने कहा ना... कल मैं खुद राशन लाऊँगी...
विश्व - तो ठीक है... कल हम मिलकर जाएंगे...
वैदेही - नहीं... मैं अकेली जाऊँगी...
विश्व - क्यूँ दीदी.. क्यूँ...
वैदेही - खुद को जिंदा करने के लिए...
विश्व - क्या...
वैदेही - मैं जानती हूँ... तु क्यूँ डर रहा है... पर मत भूल... मेरे कंधों पर बैठ कर... दुनिया को तुने देखा और पहचाना... (एक पॉज लेकर) ठीक है... सब यहाँ मर चुके हैं... यहाँ कोई हसती खिलती बस्ती नहीं है... श्मशान है यह... मरघट है... मुर्दों की बस्ती है... मरे हुए ज़ज्बात हैं... पर किसी को तो जागना होगा... अगर कोई नहीं जागेगा... तो इन्हें जगायेगा कौन...
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखने लगता है) यह... यह क्या कह रही हो दीदी...
वैदेही - हाँ मेरे भाई... खुन का रिश्ता... चार दीवारी तक सिमट जाता है... पर कुछ रिश्ते मुहँ बोले होते हैं... पर उनमें ज़ज्बात... खुन के रिश्ते जितने मजबुत होते हैं... पीढ़ी दर पीढ़ी... उनकी अकर्मण्यता... उनके जज्बातों पर परत बन कर... उन्हें रिश्ते नातों से दूर कर दिया... अब वह परत को हटाना है... उनके भीतर के उन जज्बातों में जान भरनी है... जिंदा करना है... लेकिन उससे पहले... खुद को तो जिंदा करना पड़ेगा ना...
विश्व - तुम्हारी कोई भी बात... मेरे समझ में नहीं आया... पर जो भी हो... कल तुम अकेली नहीं जाओगी... मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगा...
वैदेही - ठीक है... पर कल कुछ भी हो जाए... तु किसी से भी नहीं उलझेगा... ना ही किसी से.. झगड़ा करेगा... तु कल बुत बन कर देखेगा और सुनेगा... बस...
विश्व - नहीं दीदी... यह मुझसे नहीं होगा...
वैदेही - क्या तु... मेरे लिए इतना भी नहीं करेगा... (विश्व चुप रहता है) (उसे चुप देख कर) ठीक है... जब मेरा भाई ही... मेरा साथ नहीं दे रहा है... मैं इन गांव वालों से क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - नहीं दीदी... इतना बड़ा इल्ज़ाम ना लगाओ मुझ पर... ठीक है... मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा... जरूर मानूँगा...

वैदेही खुश हो कर विश्व के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है l और उसे सो जाने के लिए कहती है l विश्व चारपाई पर वैदेही को सुला कर खुद जमीन पर बिछौना लगा कर सो जाता है l पर उसके आँखों में नींद कहाँ थी l कल बीच गांव में क्या होगा यही सोच सोच कर उसके आँखों से नींद गायब थी I रात भर करवटें बदल बदल कर सोने की कोशिश करता है l पर आधी रात के बाद उसे नींद आती है l सुबह नींद टुट जाती है जब विश्व के कान में जगन्नाथ सुप्रभात मंत्र पड़ता है

नीलाद्रौ शंखमध्ये शतदलकमले रत्नसिंहासनस्थं
सर्वालंकारयुक्तं नवघन रुचिरं संयुतं चाग्रजेन ।
भद्राया वामभागे रथचरणयुतं ब्रह्मरुद्रेन्द्रवंद्यं
वेदानां सारमीशं सुजनपरिवृतं ब्रह्मदारुं स्मरामि l

यह मंत्र सुने विश्व को सात साल हो गये थे l वह जाग कर बैठ जाता है l आरती करने के बाद विश्व को तैयार होने के लिए कहती है l विश्व जल्दी से जाता है और तैयार हो कर कपड़े बदल कर वैदेही के सामने खड़ा हो जाता है l
वैदेही एक थैला विश्व को थमा देती है और दोनों भाई बहन बाहर निकल जाते हैं अपने घर के लिए राशन लाने l विश्व वैदेही के साथ जा रहा था, पर अपना चेहरा झुकाए, पुरी कोशिश कर रहा था लोगों की नजरों की धार से खुद को बचा रहा था l वह लोग जो इन सात सालों में विश्व को अनाथ के रुप में जाने थे, वैदेही के आ जाने से और उसके अतीत के बारे में भैरव सिंह के आदमियों के वजह से जान लेने के बाद विश्व और वैदेही को एक घृणित नजर से देख रहे थे l कुछ दूर चलने के बाद दोनों भाई बहन एक राशन की दुकान पर पहुँचते हैं l

वैदेही - नमस्ते उदय मौसा...

दुकान दार वैदेही को गौर से देखता है और पहचानने की कोशिश करता है l विश्व अपना चेहरा झुकाए वैदेही के पीछे खुद को छुपा रहा था l

उदय - कौन हो तुम बेटी...
वैदेही - जी मैं वैदेही... वैदेही महापात्र... श्री रघुनाथ महापात्र और श्री मती सरला महापात्र की बेटी... और (अपने पीछे से विश्व को सामने ला खड़ा करते हुए) विश्व प्रताप महापात्र की बड़ी बहन...
उफ्फ ये मोहब्बत, तापस का सड़क छाप रोमियो की तरह प्रतिभा को रिझाना और प्रतिभा का दो टूक जवाब दे कर उसको हवा से जमीन पर पटक देना, तापस का छीछोरी शायरी करना और प्रतिभा का उसकी और उसकी शायरी दोनो की हवा निकल देना और आखिर में, तापस का अपने घुटनों पर आ जाना। क्या ही मस्त दृश्य होता है दोनो की नोक झोंक का। बेचारा तापस हर बार मां बेटा का शिकार बन जाता है।

खैर आज की बात से तापस को ये संतुष्टि हुई कि इस बार अगर किसी वजह से विश्व को कुछ हुआ तो भी प्रतिभा नही टूटेगी वहीं प्रतिभा को विश्वास है कि विश्व इस बार जरूर जीतेगा क्यों की इतने लोगो का विश्वास, आशीर्वाद और उनका अनुभव उसके साथ है। मगर जैसा हर बड़े संग्राम में होता है यहां भी वही हो रहा है की दो बड़े पक्षों की लड़ाई में छोटे मोटे जंगली सियार और कुत्ते भी घात लगा कर बैठे है कि कब उन्हें मौका मिले और वो लोग अपनी बाजी चल सके। ये सुप्रिया रथ के पीछे कहीं शुभ्रा के पिता तो नही है जो क्षेत्रपाल खानदान से अपनी बेइज्जती और बेटी के दुखो का बदला लेना चाहता हो?

रूप घर पहुंच भी गई और अपने तेवर भी दिखा दिए मगर नागेंद्र को शक हो ही गया की कुछ तो गड़बड़ है और जब सुषमा ने पूछा तो वो आशंका सही साबित हुई। मगर ये लोग अभी ये नही जानते की रूप ने जिसे चुना है वो एक ज्वालामुखी है जो अपने अंदर की आग से सब कुछ जला हर उसकी राख से नई सृष्टि को जन्म देता है और यही वैदेही और विश्व का एकमात्र लक्ष्य है राजगढ़ को क्षेत्रपाल के काले शासन से मुक्ति दिला कर एक नए समाज का निर्माण करना जहां किसी गरीब, लाचार और असहाय पर कोई अन्याय और अत्याचार ना हो और सबको जीने का एक समान अधिकार को।

विश्व और उसके ये चार जिगरी सच में बेमिसाल है एक सच्ची दोस्ती के लिए सब अपनी जान की बाजी भी लगा ने को तैयार है। मगर इस युद्ध में और चालों के बीच इनकी दोस्ती भीं फिर से परखी जाएगी।

विश्व और वैदेही का पिछले जीवन के दृश्य एक भय सा पैदा कर देते है पढ़ने से पहले की पता नही इस बार कौन सा कष्ट, कौन सा दर्द और कौन सी बेइज्जती सहनी पड़ेगी इन मासूमों को जिन्होंने बिना किसी जुर्म के उम्र कैद की सजा पाई है। बस एक छोटा सा अनुरोध है Kala Nag बुज्जी भाई कि ये पुरानी यादों के दृश्यों को थोड़ा जल्दी समाप्त कर देना क्योंकि उनका वो दर्द ज्यादा पढ़ा नहीं जायेगा।

भावनो और शब्दो के इस अतुलनीय जादूगर को बहुत बहुत धन्यवाद इस सुंदर चित्र निर्माण के लिए।

विश्व और वैदेही के जीवन पर ये गजल याद आ गई

जीते रहने की सज़ा दे ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी
अब तो मरने की दुआ दे ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

मैं तो अब उकता गया हूँ क्या यही है कायनात
बस ये आईना हटा दे ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

ढूँढने निकला था तुझको और ख़ुद को खो दिया
तू ही अब मेरा पता दे ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

या मुझे एहसास की इस क़ैद से कर दे रिहा

वरना दीवाना बना दे ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी
 

parkas

Well-Known Member
31,688
68,293
303
👉एक सौ आठवां अपडेट
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कटक बार एसोसिएशन ऑफिस से निकल कर प्रतिभा बाहर पार्किंग में आती है l गाड़ी के पास उसे तापस खड़ा हुआ दिखता है l

प्रतिभा - क्या बात है सेनापति जी... आज हमारा इंतजार हो रहा है...
तापस - क्यूँ... क्या मैंने कभी तुम्हारा इंतजार नहीं किया है...
प्रतिभा - हाँ... कॉलेज के दिनों में... फिर... नौकरी के शुरुआत में... और आज...
तापस - हैलो... वकील साहिबा... आप भुल रही हैं... हम बहुत सी जगह पर... आपका इंतजार करते रहे हैं... और आज भी कर रहे हैं...
प्रतिभा - अच्छा जी... जरा बतायेंगे...
तापस - इसमे बताने वाली बात कहाँ से आई... यह तो रोज की बात है... किसी पार्टी में जाना हो.. या कोई फिल्म... इंतजार आज भी... हम ही करते हैं... और तो और किसी शॉपिंग मॉल में... आपकी शॉपिंग खतम होने तक का... इंतजार करते ही रहते हैं....
प्रतिभा - (भवें सिकुड़ कर, अपनी दांत पिसते हुए) हो गया...
तापस - हाँ... हो ही गया समझो...
प्रतिभा - तो चलें...
तापस - हाँ... चलो चले... दुर कहीं..
प्यार के लिए.. यह जगह ठीक नहीं...
प्रतिभा - आह्ह्ह्ह...

प्रतिभा गाड़ी की चाबी तापस को देती है, तापस गाड़ी का दरवाजा खोलता है और ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l प्रतिभा भी दरवाजा खोल कर बगल वाली सीट पर बैठ जाता है l तापस गाड़ी को कोर्ट की कंपाउंड से निकाल कर त्रिशूलीया रोड पर दौड़ाने लगता है l तापस कनखियों से देखता है प्रतिभा का पारा चढ़ा हुआ है l

तापस - क्या बात है जान... गुस्सा क्यूँ हो...
प्रतिभा - (थोड़ी गुस्से में) हाँ हाँ... हमेशा मैंने ही आपको इंतजार करवाया है ना... जैसे मैंने कभी आपका इंतजार नहीं किया...
तापस - ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा... हम जानते हैं.. जानेमन.. आपको भी हमारी इंतजार करते हुए... हमने भी देखा है..
प्रतिभा - अच्छा... जरा बताने की जहमत करेंगे... जरा हम भी तो देखें.. हमारा किया हुआ इंतजार... आपको कैसे याद है...
तापस - हाँ याद है.. बल्कि आपका इंतजार... यादगार रहा है... पहली इंतजार... आपकी... हमने खतम की... आपके घर... आपके दर बारात ले कर... और दुसरा इंतजार... हम बिलकुल टाइम पर पहुँचे थे... सुहाग के सेज पर...

प्रतिभा के हाथ में जो फाइलें थी उनसे वह तापस को मारने लगती है l

तापस - आह... ओह... उह... वाह.. आहा... ओहो.. वाह वाह...
प्रतिभा - (चिढ़ कर रुक जाती है) क्या आप मुझे... सताने की मुड़ बना कर आए हैं...
तापस - नहीं जान... आपको मनाने के लिए आए हैं...
प्रतिभा - आज मैं मानने वाली नहीं हूँ...
तापस - (गाते हुए) ऐ मेरी सोला बदन...
तुमको इस दिल की कसम...
रूठा ना करो...
रूठा ना करो...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) क्या बात है... सेनापति जी... आज तो आप... बिन पंखे के उड़ रहे हैं... बहुत रोमांटिक हुए जा रहे हैं....
तापस - (थोड़े उदास हो कर) क्या करें जानेमन... कल प्रताप अपने गांव चला जाएगा... फिर एक घर... दो जिंदगी... और इंतजार... इसलिए आदत डाल रहा हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो दर्द बिछड़ने की है... प्रताप से...

तापस चुप रहता है l चेहरा उसका गम्भीर हो जाता है l वह प्रतिभा की ओर देखे वगैर गाड़ी चलाता रहता है l

प्रतिभा - सेनापति जी... मैंने कुछ पूछा आपसे...
तापस - हाँ... यही है... जान... क्या तुम्हें दर्द नहीं हो रहा है...
प्रतिभा - हाँ दर्द होता... अगर वह हमेशा के लिए... हमसे दुर जा रहा होता... तो...


गाड़ी रुक जाती है l प्रतिभा देखती है एक रेस्टोरेंट के सामने तापस ने गाड़ी को रोका है l

तापस - चलो उतरो... कुछ पल आपस में बांटते हैं...
प्रतिभा - ठीक है... चलिए....

दोनों गाड़ी से उतर कर रेस्टोरेंट के एक कोने वाली टेबल पर बैठ जाते हैं l तापस वेटर को बुला कर खाने का ऑर्डर देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - तो... सेनापति जी... पहले बताइए... आप टेंशन में हैं... या ग़म में...
तापस - पता नहीं... या फिर दोनों... (एक पॉज लेकर) जान... क्या तुम... प्रताप से... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - समझ गई... आप क्या कहना चाहते हैं... पर यह नियति है... आपको डर है... कहीं मुझे सदमा ना लग जाये... जैसे कि पिछली बार... प्रत्युष के समय हुआ था... पागल सी... बावरी सी... नहीं... इस बार.. ऐसा कुछ भी नहीं होगा...

इतने में वेटर खाना लाकर टेबल पर दोनों के प्लेट पर लगा देता है l वेटर के जाने के बाद

प्रतिभा - आपको.. इसी बात का डर था ना... आई मीन... है ना...
तापस - (हल्के से सिर हिला कर हाँ कहता है)
प्रतिभा - मैंने... प्रताप से वादा तो लीआ है ना... वह हर वीकएंड में... या दस बारह दिनों में आता रहेगा... और जब भी... जोडार साहब का काम निकलेगा... वह तब तब तो आता ही रहेगा...
तापस - हाँ... पर... प्रताप की प्रायॉरिटी... राजगड़ और... वहाँ पर हुए.. या हो रहे केसेस होंगे... हम.. सेकंडरी होंगे...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... हम रहेंगे तो उसके अपने ही ना...
तापस - (एक अनचाही आवाज में) हाँ...
प्रतिभा - देखिए... सेनापति जी... हम इस बात को... यूँ समझने की कोशिश करें...
तापस - कैसे...
प्रतिभा - मान लीजिए... प्रताप कहीं बाहर जॉब कर रहा है... तो... तब तो आपको कोई चिंता नहीं करनी चाहिए...
तापस - (मुस्कराते हुए निवाला खाते हुए) मुझे लगा था... तुम बहुत टेंशन में होगी... पर तुम तो... एकदम से रिलैक्स हो...
तापस - क्यूँ ना होऊँ... आखिर बेटे के साथ बहु भी मिल गई है...

तापस के गले में खाना अटक जाता है l उसको खांसी होने लगती है l पानी पीने के थोड़ी देर बाद वह थोड़ा नॉर्मल होता है l

तापस - अरे हाँ... मैं तो पूछना भूल ही गया... यह बहु वाला चैप्टर क्या है... कहाँ से आया... और वह भी क्षेत्रपाल की बेटी...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हाँ... है ना मजेदार बात...
तापस - पर मुझे जहां तक याद है... तुम्हें तो वह नंदिनी बहुत पसंद थी ना...
प्रतिभा - (अपनी हँसी की दबाते हुए, अपना सिर आगे ले जाती है और) नंदिनी ही रुप है...
तापस - (तेज करेंट लगने जैसा चौंकता है) क्या...
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसती है)
तापस - क्या प्रताप जानता है...
प्रतिभा - (हँसते हुए) नहीं...
तापस - क्या...
प्रतिभा - हाँ... नहीं जानता... के नंदिनी ही... रुप है...
तापस - मतलब... जब से उसकी दोस्ती नंदिनी से हुई है... नंदिनी तभी से उसे बेवक़ूफ़ बना रही है...
प्रतिभा - जी नहीं...
तापस - यह क्या झोल है... तुम मुझे कंफ्युज कर रही हो...
प्रतिभा - अरे.. पहले पुरी बात तो सुन लिया करो...
तापस - पुरी बात...
प्रतिभा - हाँ हाँ... पुरी बात... (तापस अब चुप रहता है) जिस रात को... प्रताप गया था ना.. सुकुमार और गायत्री के शादी की साल गिरह की मुबारक बात देने... उसी रात नंदिनी को पता चला... कि... प्रताप ही... उसका अनाम है...
तापस - अ.. नाम..
प्रतिभा - हाँ.. अनाम...

तापस अपना माथा पकड़ लेता है और अपना सिर झटकने लगता है l उसकी ऐसी हालत देख कर

प्रतिभा - क्या हुआ...
तापस - तुम माँ बेटे... मुझसे बहुत कुछ छुपाया है... मैं... उसे होटेलों में.. क्लबों में लेके जाता था... के वह लड़की पटाये... जब कि उसके पास... पहले से ही... पटी पटाइ थी...
प्रतिभा - वैसे... आपको इस बात का दुख है... या शिकायत...
तापस - दोनों... और तुम दोनों... मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं...
प्रतिभा - अरे... यह तो मुझे भी कुछ ही दिन पहले मालुम पड़ा...
तापस - अच्छा... तब तो ठीक है... पर (एक पॉज लेकर) मुहब्बत किया भी किससे.. अपने कट्टर दुश्मन की.... बेटी से... (कह कर अचानक चुप हो जाता है)
प्रतिभा - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गए....
तापस - (रुक रुक कर) वह... नंदिनी... क्या सच में... प्रताप को चाहती है... या... भैरव सिंह की... कोई गंदी चाल है...
प्रतिभा - (बिदक कर) क्या...

प्रतिभा ने यह चिल्ला कर पूछा था l रेस्टोरेंट में सभी लोग प्रतिभा और तापस की ओर देखने लगते हैं l

तापस - श्श्श... (धीमे) क्या... क्या कर रही हो... सब देख रहे हैं...
प्रतिभा - (धीमी आवाज में) क्या... कहा आपने...
तापस - अरे.. मैंने तो... एक तुक्का भीड़ाया था...
प्रतिभा - आप ना यह पुलिसिया दिमाग चलाना बंद करो... अभी आप पुलिस में नहीं हैं... (फिर थोड़ी संजीदा हो कर) कुछ बातेँ... दिल और जज्बातों की होती है... प्रताप भी बचपन से ही... रुप से प्यार करता था... बस वह खुद को समझा नहीं पा रहा था... रुप... रुप तो बचपन से ही... प्रताप को बेइन्तेहा चाहती थी... दोनों को किस्मत ने अलग किया... और दोनों को किस्मत ने... एक खूबसूरत मोड़ पर मिलाया है... रुप ने तो अपनी दिल की सुन ली... बस प्रताप का बाकी है... उसे अपने दिल की सुनने के लिए...
तापस - लेकिन कब... प्रताप तो कल चला जाएगा...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... रुप उसके लिए पहले से ही... राजगड़ चली गई होगी.. या फिर चली गई है...
तापस - मतलब... तुम्हारे साथ... रुप ने बहुत कुछ प्लान बना लिया है... (प्रतिभा मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... मुझे लगता है... प्रताप के लिए एक बड़ा काम रह गया है... वैदेही को कंविंस करना...
प्रतिभा - नहीं... प्रताप के लिए सिर्फ़... अपनी राजकुमारी को ढूंढना... और प्रपोज करना बाकी रह गया है... आई एम डैम श्योर... अब तक तो... वैदेही से मिलकर को रुप ने सब कुछ बता दिया होगा...
तापस - क्या...

हैरानी और शॉक से चिल्ला पड़ता है l क्यूँकी यह खबर उसके लिए बहुत बड़ा झटका था l उसके चिल्लाने से रेस्टोरेंट में मौजूद सभी लोग तापस की ओर देखने लगते हैं l

प्रतिभा - श्श्श... (धीमे) क्या कर रहे हैं आप... लोग देख रहे हैं...
तापस - (धीमे, दबी आवाज में) तुम लोगों ने टीम बना कर... खिचड़ी पका चुके हो... और मुझे अब बता रही हो...
प्रतिभा - अरे.. कल ही तो पता चला... और बोलने का मौका मिला ही कब... वैसे भी... रुप का... वैदेही के बारे में जानना और मिलना... बहुत ही जरूरी था...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए, और बड़ी संजीदगी के साथ) रुप भी बचपन में... बहुत कुछ खोया था... सबसे अहम... उसने अपनी माँ को खोया था... जिसकी वजह... वह एक ऐसी औरत को मान रही थी... जिसके चलते... उसके सिर से... माँ की साया हट गया था... यह बात और है कि उस औरत के बारे में... ना वह जानती थी... ना उससे कभी मिली थी... पर चूंकि उस औरत के... उनके जीवन में आने के बाद... रुप अनाथ हो गई थी... इसलिए उस अनजान औरत से... बेहद नफरत कर रही थी... पर जब उस औरत के बारे में... कल मैंने उसे बताया... तब उस औरत के लिए... रुप के मन में... असीम श्रद्धा, अनुकंपा और सम्वेदना के साथ-साथ असीम सम्मान भी जाग उठा... रुप उसी औरत से मिलने राजगड़ गई है... लगे हाथ... हमारे प्रताप की टांग भी खिंचेगी...
तापस - ओह... तो यह बात है...

खाना खतम हो चुका था, वेटर बिल लेकर आता है l तापस बिल चुकाने के बाद दोनों बाहर आकर गाड़ी में बैठते हैं l गाड़ी में प्रतिभा, वैदेही को फोन लगाती है और स्पीकर पर डाल देती है l

वैदेही - हाँ मासी... नमस्ते... कैसी हो आप...
प्रतिभा - मैं तो ठीक हुँ... यह बता... कैसी लगी तेरी बहु...
वैदेही - लाखों में नहीं... करोड़ों में एक है... अभी अभी मासी... यहाँ से गई है... बचपना अभी भी... कूट कूट कर भरा हुआ है उसमें... विशु ने उसका नाम ठीक ही रखा है.... नकचढ़ी... हा हा हा हा हा...
प्रतिभा - हा हा हा हा... बिल्कुल... ठीक कहा तुमने... और...
वैदेही - तुम यकीन नहीं करोगी मासी... काकी की पसीने छुड़ा दिए... उस नकचढ़ी ने... पर... दिल की बहुत ही अच्छी है... बेचारा विशु... उसके बारे में... पुरी तरह से नहीं जानता...
प्रतिभा - हाँ... जब जान लेगा... तब देखेंगे... कैसे रिऐक्ट करता है...
वैदेही - हाँ... वह तो है... पर मासी... तुमने यह जानने के लिए तो फोन नहीं किया ना...
प्रतिभा - नहीं... (कुछ देर के लिए दोनों तरफ चुप्पी छा जाती है) उसने... तुम्हें सारी बातें बताई....
वैदेही - समझी... हाँ मासी... उसने अपने दिल की सारी बातें बता दी... मेरे बारे में... अपने सारी ख़यालात... खोल कर रख दिया... बचपन से लेकर आज तक... वह क्यूँ अपने पिता से नफरत करती है... जब उसके बारे में... तुमसे सुनी... और उससे मिलने के बाद... मेरे दिल को सुकून मिला है कि मैं क्या कहूँ... (आवाज़ भर्राने लगती है) मुझे खुद से शिकायत रहती थी... एक ग्लानि मन में रहती थी... मेरे वजह से... विशु की जिंदगी... क्या से क्या हो गई... उसके बचपन के सभी दोस्त.. अपना घर बसा लिए हैं... पर मेरा भाई... पर विधाता का विधान देखो मासी... विशु की जीवन में... जो लड़की आई है... उसके कट्टर दुश्मन की बेटी है वह... किस तरह से... कैसे न्याय कर रहा है विधाता... अब तो मैं निश्चिंत हूँ... यह महासंग्राम जीत पर ही खतम होगी... न्याय पर ही खतम होगी...

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क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुप की गाड़ी प्रवेश करती है l आशा के अनुरुप द्वार पर नजर उतारने की थाली लिए नौकरों के साथ सुषमा खड़ी थी l गुरु के गाड़ी पोर्टीको में लगाते ही गार्ड्स दौड़कर आते हैं और गाड़ी की पिछला दरवाजा खोलते हैं l रुप उतरती है और सुषमा के सामने खड़ी हो जाती है l सुषमा, पहले थाली में कर्पूर जला कर रुप की नजर उतारती है फिर कुछ नोट निकाल कर रुप की चारो तरफ घुमाती है और नौकरों में बांट देती है, और नौकरानियों से रुप की सामान रुप के कमरे में पहुँचाने को कहती है l

सुषमा - (रुप से) आओ राज कुमारी... बड़े दिनों बाद आए...
रुप - (सुषमा के साथ चलते हुए) हाँ छोटी रानी माँ... बड़े दिनों बाद... क्या करूँ... आप वहाँ आ नहीं पाती... और...
सुषमा - ठीक है... ठीक है... पहले बड़े राजा साहब जी से आशीर्वाद ले लीजिए...

दोनों नागेंद्र के कमरे के बाहर आकर खड़े होते हैं l सुषमा रुप को वहीँ ठहरने के लिए कह कर अंदर जाती है और कुछ देर बाद बाहर आती है l

सुषमा - आइए राजकुमारी...

रुप और सुषमा दोनों अंदर आते हैं l रुप देखती है नागेंद्र बेड की हेड रेस्ट पर पीठ टिकाये बैठा हुआ था l बेड के दोनों तरफ कुछ नौकर और नौकरानियां खड़े हुए हैं l

नागेंद्र - (बेहद गंभीर आवाज़ में) कैसी हैं आप... राजकुमारी जी... (लकवा ग्रस्त होने की वजह से जीभ बमुस्किल साथ दे रही थी)

अपने दादाजी को देखते ही रुप की आँखों में वैदेही का चेहरा घुमने लगती है l अपनी नजरें झुका लेती है और अपनी भावों को काबु करने की कोशिश करने लगती है l

सुषमा - राजकुमारी... (रुप की कंधे पर हाथ रखकर) बड़े राजा साहब पूछ रहे हैं...
रुप - (चौंक कर) जी... जी.. (संभल कर) जी आपका आशीर्वाद है... (अपनी नजरें झुका लेती है)
नागेंद्र - अच्छी बात है... आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है...
रुप - जी.. बढ़िया...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... खयाल रहे... पढ़ाई के बाद... आपको... दसपल्ला परिवार में जाना है... क्षेत्रपाल परिवार का मान सम्मान और गौरव लेकर...

रुप अपनी नजरें नहीं उठाती सिर नीचे झुका हुआ था l जबड़े और आँखे उसके भींच जाती हैं l अपनी सांसो को काबु करते हुए

रुप - जी बिल्कुल... बड़े राजा साहब जी... हम आपके पद चिन्ह को अनुसरण करेंगे... आप ही की तरह इस वंश की गौरव पताका को... आकाश में उड़ाते रहेंगे...
नागेंद्र - बहुत अच्छे... अब आप अपने कक्ष में जा सकती हैं.. (सुषमा से) छोटी रानी आप कुछ समय के लिए रुकिए यहां पर...
सुषमा - जी बड़े राजा साहब...

फिर सुषमा इशारा करती है, रुप वहाँ से निकल जाती है l रुप के पीछे कुछ नौकरानियां चले जाते हैं l उन सबके जाते ही

सुषमा - जी कहिए.. बड़े राजा साहब...
नागेंद्र - हमें राजकुमारी की वार्तालाप में... असंतुष्टि महसुस हुई है... हमें उनकी उत्तर में... हमसे ना पसंदगी साफ दिखा है....
सुषमा - नहीं बड़े राजा जी... हमें तो... कहीं से भी ऐसा नहीं लगा...
नागेंद्र - हमारे हाथ पैर जवाब दे गए हैं... आँखे धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं... और कान साथ छोड़ दूर जा रहे हैं... पर अंदर से सामने वाले की बातों से.. उसे समझने की क्षमता अभी भी रखते हैं...
सुषमा - बड़े राजा साहब... मैंने रुप को बचपन से पाला है... वह बत्तमिज तो हरगिज नहीं हो सकती...
नागेंद्र - वह बत्तमिज है... ऐसा हमने नहीं कहा... हम उसे नापसंद हैं.. यह हमने महसूस किया...
सुषमा - नापसंद या नाराजगी... शायद इसलिये भी हो सकती है कि... उसे शहर जाने की कोई इच्छा नहीं थी... पर उसे भेजा गया...
नागेंद्र - नहीं.... बात कुछ और है... राजकुमारी... वंश की गौरव की बात कह नहीं रही थी... बल्कि... ताने मार रही थी....
सुषमा - बड़े राजा जी... मैं... मैं उनसे पूछ कर देखती हूँ...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... अभी आप जा सकती हैं...
सुषमा - जी... जी राजा साहब...

कह कर सुषमा नागेंद्र से इजाजत लेकर उस कमरे से बाहर आती है और सीधे रुप के कमरे में पहुँचती है I सुषमा देखती है रुप बहुत गंभीर चेहरा बना कर अपने बेड पर बैठी हुई है l रुप जैसे ही सुषमा को देखती है खुद को नॉर्मल करने की और अपने होंठो पर मुस्कराहट कोशिश करती है l सुषमा अंदर आकर दरवाजा बंद करती है, फिर रुप के करीब आ कर बैठ जाती है और रुप को गौर से देखने लगती है l सुषमा के ऐसे देखने पर रुप हड़बड़ा जाती है

रुप - (हकलाते हुए) आप ऐसे क्यूँ देख रही हैं चाची माँ...
सुषमा - तुम जानती हो... बड़े राजा साहब जी से मेरी क्या बात हुई...
रुप - बात उन्होंने की है... आपसे.. वह भी मुझे अपने कमरे से बाहर भेज कर... मुझे कैसे पता चलेगा... उन्होंने आपसे क्या बात कही...
सुषमा - मेरी इस छोटी सी सवाल पर... तुमने इतना बड़ा जवाब दिया... यह तुम्हारे भीतर की बदलाव की भाषा है... जिसे बड़े राजा साहब ने पढ़ लिया... (रुप चुप रहती है) तुमने उनसे गलत कुछ भी नहीं कहा... पर लहजा... और जवाब से उन्हें मालुम पड़ गया... वह रुप जो यहाँ... अपनी कमरे में दुबकी रहती थी... किताबों में खोई रहती थी... जो भुवनेश्वर पढ़ने गई थी... यह रुप... वह नहीं है... यह रुप अब प्रतिक्रिया देने लगी है... (रुप असमंजस सी भाव से इधर उधर देखने लगती है) क्या हुआ रुप...
रुप - (सुषमा की नजरों से नजर मिलाते हुए, कुछ देर देखती है) चाची माँ... उम्र ढलती है... लोग बीमार होते हैं... उम्र और बीमारी के वजह से... इंसान का शरीर.. उसका साथ छोड़ने लगता है... पर बड़े राजा साहब को देख कर आपको क्या लगता है...

सुषमा रुप की बातों को समझ नहीं पाती, वह अपनी भवें उठा कर रुप की ओर ऐसे देखती है जैसे कह रही हो बात को समझाओ l

रुप - कुछ लोग जो ढलती उम्र में इस तरह से बिस्तर पकड़ लेते हैं... वह उम्र या बीमारी के चलते नहीं... बल्कि... लोगों के श्राप और बद्दुआ के चलते.. उनकी हालत ऐसी हो जाती है....

रुप की इस जवाब से सुषमा की आँखे फैल जाती हैं l हैरानी के चलते मुहँ खुल जाता है l

सुषमा - यह तुम... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो रुप...
रुप - मैंने कुछ सच्चाई सुनी... कुछ सच्चाई देखी... और उस सच्चाई को संज्ञान लेते हुए... अब देख रही हूँ... समझ भी रही हूँ...
सुषमा - (हैरानी भरी आवाज में) बड़े राजा साहब ने.. सही अनुमान लगाया... तुम थोड़ी नहीं... बहुत हद तक बदल गई हो... तुम्हारे तेवर... और लहजे में... बगावत झलक रही है.... (थोड़ी नरम पड़ कर समझाते हुए) इस राह में... इतनी तेजी से मत भागो रुप... के सामने जब रोड़ा आए... तो मुहँ के बल गिरो... (फिर अचानक बेड से उठ खड़ी होती है और कमरे में चहल कदम करने लगती है, फिर मुड़ कर रुप से) तुम यहाँ क्यूँ आई हो रुप...
रुप - आपसे मिलना था...
सुषमा - मुझसे...
रुप - हाँ चाची माँ... जीवन में कभी कभी ऐसे मोड़ आते हैं... जब बच्चों को.. माँ की गोद में सिर रखने के लिए... माँ की आंचल में ख़ुद को छुपाने के लिए... माँ की कंधे के सहारे सिसकने के लिए... और ग़मों से खुद छुड़ाने के लिए माँ की सीने से लग जाने के लिए... (कह कर रुप सुषमा के गले से लग जाती है)

सुषमा - (रुप के बालों में हाथ फेरते हुए) रुप... कहीं तुझे किसीसे... प्यार तो नहीं हो गया है...

रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है जो सुषमा को अपने कंधे पर साफ महसुस करती है l उसकी हाँ को समझते ही डर और हैरानी से सुषमा की आँखे बड़ी हो जातीं हैं l सुषमा तुरंत रुप को खुद से अलग करती है l

सुषमा - र्र्र्र्र्र्र्रुप... यह तुम... क्या कह रही हो...
रुप - आपने... वीर भैया का भी हिम्मत बढ़ाया था...
सुषमा - (धप कर रुप की बेड पर बैठ जाती है) (रुप की ओर देख कर) वीर लड़का है... मर्द है... वह लड़ लेगा... उसकी शादी भी तय नहीं हुई है.... पर तुम्हारी शादी... तय हो चुकी है... वीर संभाल लेगा... पर तुम... क्षेत्रपाल की आँधी का मुकाबला कैसे करोगी...

रुप चुप रहती है, कोई जवाब नहीं देती l कमरे में चुप्पी छाई हुई थी l इतनी चुप्पी की एक दुसरे को अपनी अपनी साँसों की आवाज सुनाई दे रही थी l

सुषमा - (ठंडी आवाज में) क्या... वह लड़का.. तुम्हारे कॉलेज से है... (रुप अपना सिर हिला कर ना कहती है) क्या वह बहुत पैसे वाला है...... मतलब कोई खानदानी... या बड़े घराने से ताल्लुक रखता है...

रूप अपना सिर हिला कर ना कहती है, सुषमा अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ लेती है l

सुषमा - रुप... क्या समाज में... उसका कोई रुतबा भी है.... (रुप फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है) ओह... रुप... तेरी इस बगावत में... तेरा साथ कौन देगा... क्षेत्रपाल के अहं के आँधी से... कौन तुझे बचाएगा...
रुप - वही... जिससे मैंने चाहा है... वही मेरा साथ देगा...
सुषमा - ना समाज में हैसियत... ना कोई रुतबा... वह कैसे... क्षेत्रपाल की आँधी से टकरायेगा....
रुप - हाँ... वह एक ऐसे चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ा हो जाएगा... के दुनिया की कोई भी आँधी कैसे भी उससे टकराए... बिखर कर चूर चूर हो जाएगी...
सुषमा - इतना विश्वास... कौन है वह... जो क्षेत्रपाल से टकरायेगा...
रुप - चाची माँ... मैं अभी आपसे... कुछ भी नहीं कह सकती... पर इतना जरूर कहती हूँ... बहुत जल्दी आपको मालुम हो जाएगा.... और यकीन भी... के क्षेत्रपालों को... वही घुटनों पर ला सकता है...

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xxx मॉल से निकल कर विश्व बाहर बाहर रोड पर आता है l विश्व रोड के दूसरी तरफ बस स्टॉप तक जाने के लिए ट्रैफ़िक क्रॉस पर जा कर खड़ा होता है l चूंकि रोड बाई सेक्ट था वह ट्रैफिक के जेब्रा क्रॉस के पास खड़ा था I ज्यूं ही ट्रैफिक पर रेड लाइट जलता है गाडियाँ रुक जाती हैं, विश्व ट्रैफिक क्रॉस कर रोड के दुसरे तरफ बस स्टॉप पर पहुँच जाता है और वहाँ खड़े हो कर बस का इंतजार करने लगता है l एक बस आता है पर विश्व उस पर नहीं चढ़ता l बस के जाने के बाद विश्व वहाँ पर बेंच पर बैठ कर अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगता है l इस बीच दो और बस वहाँ से गुजर चुके थे l जब चौथा बस आकर रुकता है विश्व उस बस में चढ़ता है और आगे एक खाली सीट पर जा कर बैठ जाता है l बस में बैठे बैठे मोबाइल फोन पर स्क्रीन स्क्रोल करते हुए अपना वक़्त बिताने लगता है कि तभी बस में हल्ला शुरु हो जाता है l बस में बैठे सभी लोग शोर की ओर देखने लगते हैं I ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l दो आदमियों के बीच किसी बात को लेकर पहले कहासुनी हुई फिर झगड़ा शुरु हो गई थी l कंडक्टर उनके बीच आकर झगड़ा सुलझाने की कोशिश करता है l पर चूंकि गाड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी, विश्व चिढ़ कर बस से उतर जाता है, और सामने जा रही बस में भागते हुए चढ़ जाता है l बस में थोड़ी भीड़ थी, इसलिए थोड़ी दुर जाकर निको पार्क जंक्शन के पास उतर जाता है l वहाँ से पैदल चलते हुए बस स्टॉप पर बैठ कर मोबाइल निकाल कर वक़्त बिताने लगता है l करीब करीब बीस पच्चीस मिनट के बाद उसके सामने हेल्मेट पहने एक बाइक सवार आकर रुकता है l विश्व अपना मोबाइल जेब में रख कर उस बाइक वाले के पीछे बैठ जाता है l बाइक वहाँ से चल देता है l कुछ देर बाद वह बाइक एक रेस्टोरेंट के पास रुकती है l विश्व और वह बाइकर भी उतरता है l

विश्व - अब हेल्मेट क्यूँ पहने हुए है...

वह बाइकर अपना हेल्मेट निकालता है l सीलु, अपने जबड़े को मलते हुए विश्व के साथ टेबल पर बैठ जाता है l

विश्व - बड़ी जोर की लगी क्या...
सीलु - आह.. (कराहते हुए) कमबख्त का हाथ था या हाथोड़ा... आह... जबड़ा हिला कर रख दिया...
विश्व - सॉरी यार... पर मैंने तुम्हें उसका ध्यान भटकाने के लिए कहा था... तुमने उससे झगड़ा क्यूँ मोल लिया...
सीलु - सोचा था कहासुनी में काम हो जाएगा... लेकिन निकला साला ढीठ... इसलिए धक्कामुक्की किया... पर हरामी ने... मेरा जबड़ा हिला कर ही माना...
विश्व - सॉरी यार..
सीलु - अरे... कोई नहीं भाई... तुम्हारे लिए कुछ भी... वैसे... यह चेट्टी और केके वाला प्रकरण... दोस्ताना नहीं रहा...
विश्व - नहीं... ना दोस्ताना... ना विश्वास भरा...
सीलु - ऐसा क्यूँ...
विश्व - ऐसे लोग... बड़े सयाने बने फिरते हैं... और बड़े मतलब परस्त होते हैं..
सीलु - हाँ.. पर तुम्हारे पीछे... आदमी छोड़ने का क्या मतलब...
विश्व - यह लोग बहुत खोखले होते हैं... पर ऊपर से खुद को मजबूत दिखाते हैं... मतलब परस्त इतने की... ना कीचड़ में उतरना है... ना पैर धोने हैं... पर कमल का फूल... हर हाल में चाहिए...
सीलु - भाई... यह फिलासफी वाली बात... दिमाग के पल्ले पड़ता नहीं है... सीधे सीधे समझाओ ना भाई...
विश्व - ठीक है... मैं किन किन से मिलता हूँ... मेरे पीछे कौन कौन है... वगैरह..
सीलु - पहले खाने का ऑर्डर करते हैं... खाते खाते बात करते हैं...
विश्व - हाँ... यही सही रहेगा...

विश्व वेटर को बुलाता है l सीलु की मन पसंद का खाना और अपने लिए सादा खाना ऑर्डर करता है I कुछ देर बाद खाना सर्व हो जाता है l सीलु खाने पर टुट पड़ता है l विश्व भी चुप चाप खाना शुरु करता है l आधी खाने के बाद सीलु विश्व से पूछता है

सीलु - हाँ भाई.. कुछ कह रहे थे...
विश्व - यार... तुम पहले पेट भर लो...फिर शांति से बात करते हैं...
सीलु - नहीं भाई ऐसी बात नहीं है... पहले जो ठूंसा वह पेट ठंडा करने के लिए था... अब जो ठूंस रहा हूँ... वह पेट भरने के लिए... (विश्व की हँसी निकल जाती है) हाँ भाई... अब मैं शांति से सुन सकता हूँ...
विश्व - ठीक है सुनो फिर... इन दिनों जो भी मुझे ढूंढ ढूंढ कर... मेरे मदद को सामने आए हैं... सब के अपने अपने मतलब हैं... सबसे पहले नभ वाणी की न्यूज चैनल की सम्पादक... सुप्रिया रथ.... उसकी अपनी वाज़िब वजह है... पर सवाल है... उसे अंदर की खबर लगी कैसे...
सीलु - क्यूँ वह रिपोर्टर है... उसके अपने कंटेक्ट होंगे...
विश्व - नहीं... उसके पीछे... जरूर रूलिंग पार्टी का कोई है... जो खुद को पर्दे के पीछे रखे हुए है...
सीलु - अच्छा... पर यहाँ केके के पीछे भी तो... चेट्टी है...
विश्व - हाँ है... क्यूंकि दोनों तरफ... पोलिटिकल राईवलरी है...
सीलु - भाई... तुमने तो आसानी से पता लगा लिया था... केके के पीछे कौन है... पर सुप्रिया के पीछे कौन है... यह क्यूँ नहीं ढूंढ पाए...
विश्व - केके... श्रुट है... कन्नींग है... पर कुछ मामलों में... वह कच्चा है... सुप्रिया ना कन्नींग है... ना श्रुट है... पर प्रोफेशनल है... उसने मुझसे कुछ छुपाया नहीं है... हाँ कुछ बातेँ बताया नहीं है... पर केके... चालाक बनने की कोशिश में... बेवकूफ़ी कर जाता है...
सीलु - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
विश्व - क्या सोच रहे हो...
सीलु - यही के... मदत करने वाले... खुद को पर्दे के पीछे क्यूँ रख रहे हैं...
विश्व - वजह वही है... जैसे मैं तुम लोगों को पर्दे के पीछे रखना चाहता हूँ...
सीलु - मतलब...
विश्व - देखो... भैरव सिंह से दुश्मनी... मतलब... अपने आगे पीछे मिला कर सात पुश्तों की कुर्बानी...
सीलु - हा हा हा हा... मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा... ना मेरे आगे कोई है... ना पीछे कोई था... बस अपने साथ तुम हो... और तुम्हारा... वह बाल भी बांका नहीं कर पाएगा...
विश्व - तुम्हारा यह सोच गलत भी हो सकता है...
सीलु - खैर.. वह हम बाद में सोचेंगे... पहले यह तो बताओ...
विश्व - क्या...
सीलु - यही के... यह लोग अपने अपने समाज में... इलाके में... अच्छी खासी रुतबा रखते होंगे... तो राजा से सीधे सीधे... क्यूँ नहीं भीड़ रहे हैं...
विश्व - वह इसलिए... की उन सबकी... कोई दुखती नस पर राजा... अपना पैर जमा कर रखा होगा...
सीलु - तभी... तभी यह लोग सामने ना आ कर... तुम्हें सामने रखे हुए हैं...
विश्व - हाँ... यही बात है...
सीलु - ठीक है... पर... यह चेट्टी... उसकी कौनसी कमजोरी होगी...
विश्व - पता नहीं... पर यह भी है... उसे मुझ पर यकीन नहीं है... इसलिए उसने अपने आप... सात साल पहले का किस्सा छेड़ दिया...
सीलु - यकीन न करने की वजह...
विश्व - यश... उसका बेटा... चेट्टी को अच्छी तरह से मालूम था... यश मुझे मार कर एक्सीडेंट दिखाना चाहता था... पर रिजल्ट उल्टा हो गया... मेरी जगह.. उसका बेटा मारा गया... उसके बाद... उसीने... इंटरनल इनवेस्टिगेशन को... प्रभावित करने की कोशिश की... पर वह तो डैड... सीसीटीवी फुटेज... और पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट लेकर अड़ गए... वरना... यश की मौत को... मर्डर साबित करने के लिए... कोई कसर नहीं छोड़ा था...
सीलु - ओ... तो यह बात है...
विश्व - हाँ...
सीलु - तो भाई... इन लोगों की... क्या हमारी टीम में जरूरत है... मेरा मतलब है कि... क्या यह लोग हमारी मदत करेंगे...
विश्व - देखा जाए तो... इनकी जरूरत है भी... और नहीं भी...
सीलु - यह क्या बात हुई...
विश्व - यह लोग अभी हमारे साथ हैं... मैं... भैरव सिंह के लिए... एक दलदल बना रहा हूँ... मान लो... ज्यूं ज्यूं... भैरव सिंह फंसता जाएगा... त्यों त्यों.. यह लोग... हमारे साथ छोड़ कर... पीठ पर सवारी करने लगेंगे... और जब भैरव सिंह गले तक धंस जाएगा... उन लोगों को हमारी कोई जरूरत नहीं रहेगी... बिल्कुल उस कएन की तरह... टॉस के बाद मैच में....
सीलु - केके... तो तुम्हारे पीछे आदमी छोड़ रखा था... पर क्या सुप्रिया...
विश्व - नहीं... सुप्रिया के जरिए... जो भी मुझ पर नजर रखने की कोशिश कर रहा है... उसके हिसाब से... माँ और डैड ही मेरी कमजोर कड़ी हैं... पर चेट्टी यहाँ पर चालाक निकला... अखिर दल दल और कीचड़ में रहने की.. तगड़ा एक्सपीरियंस जो है उसके पास.. इसलिए मेरे मददगार कौन कौन हो सकता है... यह जानने के लिए ही... मेरे पीछे आदमी लगाया था...
सीलु - ओ तेरी...

खाना खतम हो चुका था l विश्व पेमेंट करने के साथ साथ वेटर को टीप देता है l दोनों बाहर निकलते हैं l

सीलु - अच्छा भाई... कल निकलना है... कोई और प्रोग्राम भी है क्या...
विश्व - नहीं... तुम जाओ... कल बस में मिलते हैं... पर सीट अलग अलग होनी चाहिए...
सीलु - ठीक है...

कह कर सीलु अपना बाइक स्टार्ट करता है और वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद विश्व पैदल ही आगे बढ़ने लगता है l थोड़ी दूर जाने के बाद वह देखता है, बुड्ढी के बाल बेचने वाले के पास एक लड़की आती है, उसके गोद में एक छोटा सा लड़का था l लड़की शायद दस ग्यारह साल की होगी और वह लड़का चार पांच साल का होगा l लड़की एक बुड्ढी की बाल खरीद कर अपने भाई को देती है, और वहाँ से जाने लगती है l विश्व उसे रोक कर

विश्व - (लड़की से) बेटी... तुमने क्यूँ नहीं ली...
लड़की - (विश्व को हैरानी से देखती है) वह.. मेरे दांत में कीड़े पड़ जाएंगे... इसलिए...
विश्व - (मुस्करा कर) तुम्हारे भाई के दांत में नहीं लगेंगे...
लड़की - (बिल्कुल सयानी बन कर) अभी इसके दांत गिर रहे हैं... दोबारा जब उठेंगे... यह नहीं खाएगा... (अपने भाई से) है ना... मेरे भाई... नहीं खाएगा ना मेरे भाई...

उसकी बात सुन कर, और अपने भाई से बात करते देख विश्व मुस्करा देता है पर उसके आँखों के कोने में आँसू चमकने लगते हैं l विश्व उस बुड्ढी के बाल बेचने वाले से कहता है

विश्व - भैया... इस लड़की को भी... एक बुड्ढी के बाल दे दो... मैं पैसे देता हूँ...
लड़की - नहीं नहीं अंकल... मुझे नहीं चाहिए...
बुड्ढी के बाल बेचने वाला - झूट बोल रही है साहब... पैसे नहीं हैं इसके पास...
विश्व - (लड़की से) कोई बात नहीं है बेटा... लेलो... आज तुम्हें देख कर.... मुझे मेरी दीदी याद आ गयी... वह भी बिल्कुल तुम्हारी तरह है....

इतने में वह बुड्ढी के बाल बना कर दे देता है l विश्व उस लड़की को दे देता है वह लड़की एक दमकती हुई मुस्कान के साथ बुड्ढी के बाल ले लेती है और वहाँ से अपने भाई का हाथ थामे चली जाती है l विश्व उन्हें एक लगाव के भाव से जाते हुए देखता है, कैसे बहन अपने भाई को समझा रही है और भाई बुड्ढी के बाल खाते हुए अपना सिर हिला रहा है l उन दोनों को देखते देखते विश्व अपनी यादों में खो जाता है,

विश्व अपने घर में वापस आकर देखता है घर का दरवाजा बंद है तो वह दरवाजा खटखटाता है पर उसके खटखटाने से दरवाजा खुल जाता है, वह डर के मारे घर के अंदर जाता है और चिल्लाने लगता है

दीदी... दीदी...

घर के कमरे में वैदेही को ना पा कर बाहर जाने को हो ही रहा था के तभी बाहर से वैदेही घर के अंदर आती है l

विश्व - दी... दीदी...
वैदेही - क्या हुआ...
विश्व - तुम... घर को.. इस तरह छोड़ कर...
वैदेही - उमाकांत सर जी के यहाँ गई थी...
विश्व - उमाकांत सर के यहाँ... वह भी इतनी रात को...
वैदेही - पहले तु बता... सुबह का गया अब आ रहा है... मेरे खाने की बारे में... सोचा भी था कुछ...

विश्व को खयाल आया, विश्व तो घर से निकल गया था कल्लू के बुलावे पर महल चला गया था I और पुरी तरह से वैदेही के बारे में भुल ही गया था l यह समझ में आते ही शर्मिंदगी से अपने में गड़ जाता है l

विश्व - म.. माफ कर दो दीदी... सात साल बाद मिली भी तो.. मैं... (कुछ कह नहीं पाता, उसके आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं)
वैदेही - ना.. ना मेरे भाई ना.. दिल पे मत ले... मैं सर जी के यहाँ से... हम दोनों के लिए... रात का खाना लाई हूँ...
विश्व - तुम्हें मेरे बारे में खयाल रहा... पर मैं बेग़ैरत... तुमको ही भूल गया... (फफक पड़ता है)

वैदेही उसके पास जाती है और उसके आँखों से आँसू पोंछती है l विश्व की हाथ खिंच कर चटाई बिछा कर थाली लगाती है और खाना परोसती है l विश्व का हाथ खाने तक जाता तो है पर निवाला बना नहीं पाता, यह देख कर वैदेही अपने हांथों से निवाला बना कर विश्व को खिलाने लगती है l विश्व के आग्रह पर वैदेही भी खाना खाने लगती है l खाना खतम हो जाने के बाद वैदेही थाली उठाती है l बर्तन माँज कर रखने के बाद

वैदेही - अच्छा... तेरे पास कुछ पैसे हैं...
विश्व - हाँ हैं.. पर कितना....
वैदेही - राशन लाना है... इसलिए...
विश्व - वह मैं... बल्लु से कह देता हूँ... कल वह राशन छोड़ जाएगा...
वैदेही - नहीं... मैं कल खुद जाऊँगी... राशन लाने...
विश्व - नहीं दीदी... तुम क्यूँ जाओगी... बल्लु ला देगा ना...
वैदेही - मैंने कहा ना... कल मैं खुद राशन लाऊँगी...
विश्व - तो ठीक है... कल हम मिलकर जाएंगे...
वैदेही - नहीं... मैं अकेली जाऊँगी...
विश्व - क्यूँ दीदी.. क्यूँ...
वैदेही - खुद को जिंदा करने के लिए...
विश्व - क्या...
वैदेही - मैं जानती हूँ... तु क्यूँ डर रहा है... पर मत भूल... मेरे कंधों पर बैठ कर... दुनिया को तुने देखा और पहचाना... (एक पॉज लेकर) ठीक है... सब यहाँ मर चुके हैं... यहाँ कोई हसती खिलती बस्ती नहीं है... श्मशान है यह... मरघट है... मुर्दों की बस्ती है... मरे हुए ज़ज्बात हैं... पर किसी को तो जागना होगा... अगर कोई नहीं जागेगा... तो इन्हें जगायेगा कौन...
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखने लगता है) यह... यह क्या कह रही हो दीदी...
वैदेही - हाँ मेरे भाई... खुन का रिश्ता... चार दीवारी तक सिमट जाता है... पर कुछ रिश्ते मुहँ बोले होते हैं... पर उनमें ज़ज्बात... खुन के रिश्ते जितने मजबुत होते हैं... पीढ़ी दर पीढ़ी... उनकी अकर्मण्यता... उनके जज्बातों पर परत बन कर... उन्हें रिश्ते नातों से दूर कर दिया... अब वह परत को हटाना है... उनके भीतर के उन जज्बातों में जान भरनी है... जिंदा करना है... लेकिन उससे पहले... खुद को तो जिंदा करना पड़ेगा ना...
विश्व - तुम्हारी कोई भी बात... मेरे समझ में नहीं आया... पर जो भी हो... कल तुम अकेली नहीं जाओगी... मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगा...
वैदेही - ठीक है... पर कल कुछ भी हो जाए... तु किसी से भी नहीं उलझेगा... ना ही किसी से.. झगड़ा करेगा... तु कल बुत बन कर देखेगा और सुनेगा... बस...
विश्व - नहीं दीदी... यह मुझसे नहीं होगा...
वैदेही - क्या तु... मेरे लिए इतना भी नहीं करेगा... (विश्व चुप रहता है) (उसे चुप देख कर) ठीक है... जब मेरा भाई ही... मेरा साथ नहीं दे रहा है... मैं इन गांव वालों से क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - नहीं दीदी... इतना बड़ा इल्ज़ाम ना लगाओ मुझ पर... ठीक है... मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा... जरूर मानूँगा...

वैदेही खुश हो कर विश्व के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है l और उसे सो जाने के लिए कहती है l विश्व चारपाई पर वैदेही को सुला कर खुद जमीन पर बिछौना लगा कर सो जाता है l पर उसके आँखों में नींद कहाँ थी l कल बीच गांव में क्या होगा यही सोच सोच कर उसके आँखों से नींद गायब थी I रात भर करवटें बदल बदल कर सोने की कोशिश करता है l पर आधी रात के बाद उसे नींद आती है l सुबह नींद टुट जाती है जब विश्व के कान में जगन्नाथ सुप्रभात मंत्र पड़ता है

नीलाद्रौ शंखमध्ये शतदलकमले रत्नसिंहासनस्थं
सर्वालंकारयुक्तं नवघन रुचिरं संयुतं चाग्रजेन ।
भद्राया वामभागे रथचरणयुतं ब्रह्मरुद्रेन्द्रवंद्यं
वेदानां सारमीशं सुजनपरिवृतं ब्रह्मदारुं स्मरामि l

यह मंत्र सुने विश्व को सात साल हो गये थे l वह जाग कर बैठ जाता है l आरती करने के बाद विश्व को तैयार होने के लिए कहती है l विश्व जल्दी से जाता है और तैयार हो कर कपड़े बदल कर वैदेही के सामने खड़ा हो जाता है l
वैदेही एक थैला विश्व को थमा देती है और दोनों भाई बहन बाहर निकल जाते हैं अपने घर के लिए राशन लाने l विश्व वैदेही के साथ जा रहा था, पर अपना चेहरा झुकाए, पुरी कोशिश कर रहा था लोगों की नजरों की धार से खुद को बचा रहा था l वह लोग जो इन सात सालों में विश्व को अनाथ के रुप में जाने थे, वैदेही के आ जाने से और उसके अतीत के बारे में भैरव सिंह के आदमियों के वजह से जान लेने के बाद विश्व और वैदेही को एक घृणित नजर से देख रहे थे l कुछ दूर चलने के बाद दोनों भाई बहन एक राशन की दुकान पर पहुँचते हैं l

वैदेही - नमस्ते उदय मौसा...

दुकान दार वैदेही को गौर से देखता है और पहचानने की कोशिश करता है l विश्व अपना चेहरा झुकाए वैदेही के पीछे खुद को छुपा रहा था l

उदय - कौन हो तुम बेटी...
वैदेही - जी मैं वैदेही... वैदेही महापात्र... श्री रघुनाथ महापात्र और श्री मती सरला महापात्र की बेटी... और (अपने पीछे से विश्व को सामने ला खड़ा करते हुए) विश्व प्रताप महापात्र की बड़ी बहन...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 
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