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एक सौ उनचासवाँ अपडेट
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रात भर आसमान बरस रही थी, या शायद रो रही थी l रुक ही नहीं रही थी l निरंतर बरसात हो रही थी l राजगड़ में कुछ आँखे ऐसी भी थीं जो सोई नहीं थीं l विक्रम के मन में बैचैनी थी वह वापस चले जाना चाहता था पर अनवरत वर्षा उसे महल में रोक दिया था l अपने कमरे से निकालता है और चारों और अपनी नजर घुमाता है l कभी नौकरों चाकरों से घिरे रहने वाला भरे रहने वाला यह महल कानून की अलमवरदरों के मर्जी के बदोलत कुछ नौकर ही महल में ठहरे हुए हैं l अभी सभी के सभी नींद में सोये हुए हैं l विक्रम चलते चलते कुछ दुर चल कर दीवान ए आम में पहुँचता है l वहाँ पहुँचते ही विक्रम हैरान हो जाता है, क्यूंकि सोफ़े पर उसे सुषमा बैठी दिखती है l सुषमा भी उसे देख लेती है और उससे सवाल करती है
सुषमा - सोया नहीं बेटा..
विक्रम - नहीं माँ... पता नहीं नींद क्यूँ नहीं आ रही है... पर आप.. आप क्यूँ जाग रही हैं...
सुषमा - पता नहीं... आज दिल शाम से ही बैठा जा रहा है... इस बिन मौसम की बरसात को देख कर ऐसा लगता है... जैसे यह काले काले बादल... एक के बाद एक बुरी ख़बरों की समाचार बरसा रहे हैं... ऐसा लग रहा है जैसे... यह बरस नहीं रहे हैं... हमारी बेबसी पर तरस खा कर रो रहे हैं...
विक्रम - (जाकर सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुझे नींद क्यूँ नहीं आई.. तु तो थका हारा आया था...
विक्रम - पता नहीं क्यूँ... मुझे ऐसा लग रहा है जैसे... कोई मेरी अंतरात्मा को झिंझोड रहा है... कह रहा है.. मुझे यहाँ आना नहीं चाहिए था...
सुषमा - पर तेरा आना जरूरी था बेटा... तुम सही समय पर आए... वर्ना... आज रुप की बहुत बुरी हालत हो जाती...
विक्रम - आज मैंने रुप की... एक अलग रुप देखा... कोई खौफ नहीं था उसकी आँखों में... जैसे वह मरने के लिए तैयार थी... कितना बदल गई है...
सुषमा - हाँ बदल तो गई है...
विक्रम - हाँ माँ... कितना बदल गई है... जब भुवनेश्वर गई थी... बेज़ान गूंगी गुड़िया सी थी... पर अब..
सुषमा - अनाम... अनाम, वज़ह है उसकी हिम्मत पीछे..
विक्रम - अनाम...
सुषमा - हाँ... अनाम... जिसे तुम प्रताप के नाम से जानते हो...
विक्रम - ओह.. हाँ... शुब्बु ने बताया था... (थोड़ी देर की खामोशी) अच्छा माँ... आप को कभी भी नहीं लगा... प्रताप और रुप के बीच का प्यार का...
सुषमा - मुझे कुछ ही दिनों में पता चल गया था... उन दोनों के बीच पल रहे मासूम प्यार के बारे में... पर मुझे मालूम नहीं था... उनका यह प्यार एक दिन अंजाम तक पहुँच भी पाएगा...
विक्रम - क्यूँ... मतलब... ऐसा क्यूँ लगा था आपको...
सुषमा - विक्रम... तुम्हें वह रात तो याद होगी... जिस रात तुम्हारी माँ हम सबको छोड़ कर चली गई... उस वक़्त तुम सिर्फ़ दस या ग्यारह साल के थे... तुम समझदार तो हो ही गए थे... इसलिए खुद को संभाल लिए... पर रुप... चौबीसों घंटे अपनी माँ से चिपटी लिपटी... एक दम से अनाथ हो गई थी... मैंने उसे संभालने की पुरी कोशिश की पर... उस हादसे की सदमे से बाहर नहीं निकाल पाई... वह डरी सहमी बेज़ान गुड़िया सी बन गई थी... राजा साहब ने एक काम तो अच्छा किया... प्रताप को अनाम बना कर उसकी पढ़ाई का जिम्मा दे दिया... ज्यों ही प्रताप रुप की जिंदगी में आया... उस बेज़ान सी गुड़िया में जान आ गई... अपनी डर से बाहर निकली... हर दिन हर पल खुद को... कमरे में कैद कर रखती थी... पर वह फूलों सी खिलती... चिड़ियों सी चहकती... जब प्रताप उसके सामने... उसके साथ होता था... उससे जिद करती... प्रताप भी दिलों जान से... रुप की जिद को पुरा करने में लग जाता था... मैं गवाह हूँ... प्रताप के हर उस तोहफे का.. जो उसने रुप के जन्म दिन पर दिया करता था... (अब सुषमा रुप के हर एक जन्म दिन की बात कहने लगती है)
विक्रम - आपने कभी रोका नहीं...
सुषमा - नहीं... क्यूँकी मैं समझती थी... यह सब एक दिन रुक जाएगा... क्यूँकी प्रताप अपनी बचपन को छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... वहीँ रुप बचपन से निकल कर किशोरी बन रही थी... और एक दिन यह सब बंद भी हो गया... रुप फिर से पुरानी वाली रुप बन गई... खुद को कमरे में बंद कर लिया और पढ़ने लगी... पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था... उसके जीवन में फिर अनाम आया... मगर प्रताप के रुप में... रुप के अंदर की वह चुलबुली अल्हड जिद्दी लड़की फिर से बाहर निकलने लगी.... उसने प्रताप को पहचान लिया था... अब वह फिर से अपनी प्रताप से जिद करने लगी... प्रताप आज भी उसकी जिद को तरजीह देता है... उसे पूरा करता है... (सुषमा अब चुप हो जाती है, विक्रम भी थोड़ी देर के लिए चुप रहता है, फिर थोड़ी देर के बाद)
विक्रम - हाँ... रुप में फिर से जान आ गई थी... उसने हैल नाम की नर्क में भी जान फूँक दी थी... जो रिश्ते मर चुके थे... उन्हें फिर से जिंदा कर दिया था... आज अगर हम भाई बहन... माँ बेटे की रिश्ते में बंधे हुए हैं... उसकी वज़ह रुप ही है... (फ़िर थोड़ी देर के लिए चुप्पी) हम सबके जीवन में... प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में प्रताप का बड़ा योगदान है... वीर का एकलौता दोस्त... वीर के लिए भी बहुत कुछ किया है उसने... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ... वह दोस्त है... या दुश्मन...
इस बात की सुषमा कोई जवाब नहीं देती l विक्रम भी आगे उससे कुछ पूछता नहीं l बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी l सुबह होने वाली भी थी, इतने में बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज आती है l
सुषमा - देखो... बातों बातों में रात बीत गई... बारिश भी अब रुक रही है...
विक्रम - हाँ पर इतनी सुबह सुबह.. कौन आ सकता है...
दोनों के कानों में नौकरों की भाग दौड़ करने की आवाज़ सुनाई देने लगती है l कुछ देर बाद एक नौकर अंदर आता है इनके सामने झुक कर रास्ता बनाते हुए अंदर चला जाता है l इन्हें समझते देर नहीं लगती के नौकर भैरव सिंह के कमरे की ओर जा रहा है l दुसरा नौकर इनके पास आकर खड़ा होता है l
विक्रम - कौन आए हैं... राजा साहब को जगाने के लिए क्यों गए हैं...
नौकर - छोटे राजा जी आए हैं... राजा साहब जी से... दिवान ए खास में मिलना चाहते हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... इस वक़्त... दिवान ए खास में...
विक्रम तेजी से दिवान ए खास की ओर जाने लगता है l किसी अपशकुन की आशंका से सुषमा भी दिवान ए खास की ओर जाने लगती है l विक्रम कमरे में पहुँच कर देखता है, पिनाक के चेहरे पर एक खुशी छलक रही थी l सुषमा कमरे के बाहर रुक जाती है l विक्रम को देखते ही पिनाक के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आती है l
विक्रम - छोटे राजा जी... आप इतनी सुबह... यहाँ..
पिनाक - क्यूँ.. हमें घर छोड़ने की कोई आदेश थी क्या... परिवार पर मुसीबत आई है... तो राजा साहब के बगल में... खड़े होकर सामना करने आए हैं...
तभी एक नौकर भागते हुए आता है और भैरव सिंह के आने की सूचना देता है l और फिर कमरे से बाहर की ओर चला जाता है l थोड़ी ही देर में कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देखते ही पिनाक खुश हो कर
पिनाक - राजा साहब... हम अभिनंदन के योग्य काम कर आए हैं...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... आप जानते हैं... इस समय आप दिवान ए खास में... आप हमसे क्या कह रहे हैं...
पिनाक - जी राजा साहब... हम अपनी खुशी को दबा कर... रात भर... बारिश की परवाह न करते हुए... आपसे वह खबर और खुशी दोनों बांटने आए हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है) ठीक है... पहले विराजे...
पिनाक - (बैठ जाता है) युवराज आप भी बैठिए... आपका तो जानना बहुत जरूरी है...
भैरव सिंह - अब भूमिका बाँधना बंद कीजिए... बात क्या है पहले यह बताइए...
पिनाक - राजा साहब.. माना के कुछ पल के लिए हम गर्दिश में घिरे हुए हैं... पर यह खबर आपको खुश कर देगी... यह निश्चिंत है... रही यह जो कुछ पल का मौसम खराब हुआ है... बहुत जल्द यह वक़्त भी गुजर जाएगा...
विक्रम - आपकी बातों में... लफ्जों गहराई झलक रही है... बात क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - राजा साहब... हमने बहुत कोशिश की थी... हमारे खानदान के दामन में... लिच की तरह चिपकी हुई दाग को छुड़ाने की... नाकाम रहे... फिर उस हराम खोर विश्व प्रताप को चोट पहुँचाने के लिए... हमने वह सेनापति दंपति को उठाने की कोशिश करी पर... किसी तीसरे ने हमारी मंशा पर पानी फ़ेर दी... तब हम खार खा कर रह गए... उस दिन... राजा साहब... उसी दिन... राजकुमार ने... (अपने हाथ में सूखे ज़ख़्म को देखते हुए) हमारे अहं... हमारे गरुर को घायल कर दिया था... ऐसा ज़ख़्म दिया था... (सूखे ज़ख़्म को देखते हुए, मुट्ठी भिंच लेता है, आँखे और चेहरा सख्त हो जाता है) हमारी रुह घायल हो गया था...
जिस लहजे में पिनाक ने यह बात कही थी कमरे में ख़ामोशी पसर जाती है l बाहर खड़ी सुषमा की आँखे सम्भावित आशंका से अपनी मुहँ पर हाथ रख लेती है l
पिनाक - (विक्रम से) युवराज... आज अगर आप भुवनेश्वर में होते... तो हम शायद कभी कामयाब नहीं हो पाते...
विक्रम - क्या मतलब है आपका...
पिनाक - हा हा हा हा हा... युवराज... हमारी जिंदगी शतरंज की तरह है... शाह तब तक सुरक्षित है... जब तक उसके हिफाज़त में प्यादे अपनी खानों में होते हैं... एक खाना खाली हुआ... के शाह ख़तम... खेल ख़तम... (अब विक्रम को भी अनहोनी की आशंका होने लगती है, वह हैरानी के मारे पिनाक की ओर देखने लगता है) आप यहाँ अपने प्यादों सहारे पैराडाइज को छोड़ आए थे... हमने अपना काम आसानी से कर आए...
विक्रम - मतलब...
पिनाक - (भैरव सिंह की ओर देख कर) राजा साहब... अनु नाम की दाग को हमने हमेशा हमेशा के लिए... मिटा दिया है...
विक्रम - क्या... (कह कर उठ खड़ा होता है)
सुषमा - नहीं... (चीख कर अंदर आती है) नहीं.. यह नहीं हो सकता... कहिये यह झूठ है...
पिनाक - ओ... तो आप छुप छुप कर सब सुन रही थी... हा हा हा... हम क्षेत्रपाल हैं... ऐसी बातों को... झूठ में नहीं बोलते...
सुषमा - यह आपने क्या कर दिया... वीर तो सब कुछ छोड़ चुका था... फिर भी आपको दया नहीं आई... अखिर आपका खुन है वह...
पिनाक - उसी खुन ने... हमारा खुन बहा कर... अपना खुन का रंग दिखाया था... पहचान करवाया था... हमने उसे... यह जता दिया... के हम उसके.. बाप हैं...
सुषमा -(तड़प कर) क्या...
पिनाक - हाँ छोटी रानी हाँ... यह देखिए... (अपना सूखा हुआ ज़ख़्म दिखा कर) यह ज़ख़्म दिया था राजकुमार ने... हमने उन्हें अपनी औलाद होने से नकार दिया था... तो उन्होंने बड़ी डींगे हांक कर कहा था... के एक दिन हमारे बेटे बन कर दिखाएंगे... वह मौका हमने अनु को उनके जिंदगी से हटा कर दिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... क्या आप सच कह रहे हैं...
पिनाक - राजा साहब... हमने कसम खाई थी... जब तक... उस दो कौड़ी की रखैल को.. राजकुमार जी के जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए ना हटा दें... तब तक... ना राजगड़ में कदम रखेंगे... ना अपना शकल दिखायेंगे...
भैरव सिंह - शाबाश छोटे राजा जी... अब तक सब बुरा ही बुरा हो रहा था... आपने अच्छी खबर की शुरुआत की है... तो अब सब अच्छा ही होता जाएगा... शाबाश...
पिनाक - शुक्रिया राजा साहब...
सुषमा - (रुंधे गले से) विक्रम... वीर ने क्या किया होगा...
पिनाक - क्या किया होगा हूंह... या तो कपड़े फाड़ कर रो रहे होंगे... या फिर हमारे नाम पर पुलिस में केस किए होंगे...
विक्रम जाकर कमरे में लगी टीवी को ऑन करता है और रिमोट से न्यूज लगाता है l यह देख कर पिनाक विक्रम से पूछता है l
पिनाक - यह टीवी क्यूँ लगा रहे हैं आप...
विक्रम - मामला क्षेत्रपाल से जुड़ा है... तो बात साधारण तो नहीं होगी... अब तक स्टेट में तहलका मच गया होगा...
तब न्यूज टीवी पर चलने लगती है l नभ वाणी न्यूज चैनल पर सुप्रिया न्यूज ब्रीफिंग में जो कहने लगी उसे कमरे में मौजूद चारों लोग सुनने लगे l
"कल रात से सारा शहर स्तब्ध है l एक गरीब लड़की, माली साही की बस्ती में रहने वाली लड़की, जिसका कुछ दिनों पहले अपहरण हो गया था l जिसकी रक्षा करने के लिए कानून को विवश होना पड़ा l उसी लड़की की हत्या हो गई है l अविश्वसनीय पर सच यही है l हत्यारा भी कौन...?
वही जिसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी l जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा किया था l वीर... वीर सिंह क्षेत्रपाल l जिसने सारे ज़माने के आगे अनु का हाथ थामा l पुलिस ने उसे अनु की हत्या में अभियुक्त बना कर गिरफ्तार कर लिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l"
पिनाक - (चीखता है) यह.. यह क्या कह रही है यह... पुलिस को तो मुझे ढूंढना चाहिए था... यह वीर...
भैरव सिंह - आप थोड़ी देर के लिए शांत हो जाइए... पुरी खबर क्या है जानने दीजिए...
न्यूज ब्रीफिंग में :—
सुप्रिया - आइए.. हमारे सम्वाददाता से... इस बात की पुष्टि करते हैं... हाँ तो अरुण... इस मामले में आपने क्या जानकारी हासिल की... क्या हमारे साथ साझा करेंगे...
अरुण - जी सुप्रिया.. हमने अपनी सूत्रों से... अब तक हुए हर घटनाक्रम के बारे में जो जानकारी प्राप्त की हैं... उसके अनुसार...
कल शाम को ××××× पुलिस स्टेशन इनचार्ज के पास फोन आया था कि ××××इलाके में बन रही एक बिल्डिंग में एक हत्या हुई है l हैरानी की बात यह है कि यह फोन खुद वीर सिंह ने ही किया था l मौका ए वारदात पर जब पुलिस पहुँची तो वीर सिंह अनु की लाश के पास ही था l पुलिस ने हत्या में हुई हत्यार बरामद कर ली है l क्राइम स्पॉट को सील कर दिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l आगे की कार्रवाई क्या होगी यह बाद में मालुम होगा l "
पिनाक कमरे में रखी एक ऐस ट्रे उठा कर टीवी पर फेंक मारता है l टीवी की स्क्रीन टुट जाता है l जहां यह खबर पिनाक को अस्तव्यस्त कर दिया था वहीँ यह खबर भैरव सिंह को हैरान कर दिया था और विक्रम के साथ साथ सुषमा को स्तब्ध कर दिया था l
पिनाक - यह... यह क्या कर दिया वीर ने... राजा साहब अनर्थ हो गया... मैंने तो सोचा था... वीर मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा... पर इसने तो... सारा इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया... मुझे जाना होगा... मुझे जाना होगा... मुझे वीर को बचाना होगा...
कमरे में हर कोई मौन था सिवाय पिनाक के l पिनाक पागलों की तरह बक बक करने लगा था l
पिनाक - यह.. यह मुझसे क्या हो गया राजा साहब.. वीर खुद को अनु की कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवा दिया... नहीं नहीं मुझे जाना होगा.. राजा साहब मैं निकालता हूँ... मुझे सच बताना होगा... वीर को बचाना होगा...
एक झन्नाटेदार थप्पड़ पिनाक के गाल पर पड़ती है l पिनाक कुछ दुर जा कर गिरता है l सुषमा और विक्रम जो सदमें के कारण बुत बन कर खड़े हुए थे l उनका ध्यान थप्पड़ की आवाज सुन कर पिनाक की ओर जाता है l यह थप्पड़ भैरव सिंह ने मारा था
भैरव सिंह - यह क्या पागलपन लगा रखा है.... होश में आइये छोटे राजा जी... होश में आइये...
पिनाक - हमारे घर का चिराग जहां बुझने को है... वहाँ मैं कैसे होश में रह सकता हूँ...
भैरव सिंह - अगर आप होश में नहीं रहेंगे... तो... छोटे राजा जी... सारे तंत्र... हमारे खिलाफ तलवार ताने तैयार बैठे हैं... एक छोटी सी गलती... हमारी पुरी दुनिया को तबाह कर देगी... हम वकील कर सकते हैं... वीर को बाहर ला सकते हैं...
पिनाक - कैसे राजा साहब कैसे... वीर ने खुद को अनु की कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करवाया है... अगर हम लोग अभी उसके पास नहीं गए... तो... उसे हम खो देंगे... नहीं नहीं... मैं उसे खो नहीं सकता... (सुषमा की ओर मुड़ कर) छोटी रानी... आप तैयार हो जाओ... वीर मुझसे बात नहीं करेगा... पर आपसे बात करेगा... आपकी बात मानेगा... चलिए चलिए... जल्दी चलिए...
इस बार भैरव सिंह पिनाक की गिरेबान को पकड़ कर अपनी तरफ खिंचता है और दो तीन थप्पड़ लगा देता है l फिर पिनाक की गर्दन पकड़ कर उसे एक कुर्सी पर बिठा देता है l
भैरव सिंह - चुप... बिल्कुल चुप.. कब से कह रहे हैं... थोड़ा शांत... थोड़ा शांत.. सुनाई नहीं दे रहा... क्षेत्रपाल हो आप... किसी ड्रामा कंपनी के भांड नहीं हैं... समझे... ना आप जाएंगे... (सुषमा से) ना ही आप...
सुषमा - हम क्यूँ ना जाएं...
भैरव सिंह - आप अपनी सीमा लाँघ रहे हैं...
सुषमा - हमारा बेटा मुसीबत में है... और आप कह रहे हैं.. हम अपनी औलाद के पास ना जाएं...
भैरव सिंह - हाँ... अभी आप दोनों में से कोई कहीं नहीं जाएगा...
पिनाक - (कुर्सी से उठ कर) मैं जाऊँगा...
एक और थप्पड़ लगती है उसके गाल पर l इस बार पिनाक हैरान हो कर भैरव सिंह की ओर देखता है और कहता है
पिनाक - आप मेरी भावनाओं पर ऐसे क्यूँ प्रतिक्रिया दे रहे हैं... अपराध हुआ है मुझसे... उस अपराध की बेदी पर बलि... मेरा बेटा चढ़ रहा है...
भैरव सिंह - जब से न्यूज देखा है.... तब से एक ही रट लगाए हुए हैं... मेरा बेटा मेरा बेटा... यह अचानक अपने बेटे पर इतना प्यार क्यूँ उमड़ रहा है... हमें तो याद नहीं आ रहा... कभी वीर के लिए... आपको खयाल करते हुए...
पिनाक - हाँ हाँ... नहीं किया कभी खयाल... पर आज जब देखा... मेरे अपराध की कीमत वह अपनी जान देकर चुका रहा है... तो मुझसे रहा नहीं जा रहा है... पहली बार एहसास हो रहा है... मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है... मैं अब यह गलती सुधरना चाहता हूँ... अपनी गलती की सजा मैं भुगतना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - आपसे कोई गलती नहीं हुई है... गलती वीर से हुई है.. और वीर अगर सजा भुगतना चाहता है... तो भुगतने दीजिए...
पिनाक - क्या... क्या कहा आपने... गलती वीर से हुई.. सजा उसे भुगतने दूँ... क्या गलती हो गई वीर से... जिसकी सजा वीर भुगतेगा...
भैरव सिंह - गलती नहीं अपराध... एक राह चलती रंडी को हमारे खानदान की माथे पर बिठा रहा था...
पिनाक - अच्छा... वीर ने प्यार किया तो अपराध हो गया... और विक्रम ने प्यार किया तो...
भैरव सिंह - (एक और थप्पड़ मारता है) विक्रम नहीं युवराज... युवराज ने किसी गंदी नाली की कीड़े को... हमारे खानदान की माथे पर नहीं सजाया था... जिस पार्टी की टिकट पर भुवनेश्वर की मेयर बने हुए हैं... उसी पार्टी की प्रेसिडेंट थे वह...
पिनाक - ओह... तो इससे खानदान की कोई मर्यादा हानि नहीं हुई... जब कि आपके यहाँ ब्याहने से उनकी मर्यादा की ऐसी हानि हुई... के वह पार्टी और पदवी छोड़.. अपने गाँव चले गए...
भैरव सिंह - गुस्ताख... (फिर से हाथ उठाता है, पर इसबार पिनाक भैरव सिंह का हाथ रोक देता है)
पिनाक - बस... अपने अपने बड़े होने का बहुत फायदा उठा लिया बस... (भैरव सिंह का हाथ छिटक देता है)
भैरव सिंह - यह तुमने क्या किया... यह आज तक कभी इस खानदान में नहीं हुआ था...
पिनाक - हमारे साथ... बहुत कुछ पहली बार हो रहा है राजा साहब... पहली बार... इस घर में पुलिस आई... पहली बार... आप नजरबंद हुए... पहली बार... हमारा घर का चिराग... आज सलाखों के पीछे गया है... पहली बार... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैंने कभी उसे बेटे जैसा प्यार नहीं किया... आज मेरा प्यार बाहर आ गया है... पहली बार... (आवाज़ सख्त कर) इसलिए आज आप मुझे नहीं रोक सकते...
भैरव सिंह एक लात मारता है, पिनाक कुर्सी पर हो कर उल्टी दिशा में गिर जाता है l इस बार पिनाक बहुत ही हैरान हो कर भैरव सिंह को देखता है l सुषमा इस बार भागते हुए पिनाक के पास आती है और उसे उठने में मदत करती है l
भैरव सिंह - यूँ आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो... बहुत गा रहे थे... पहली बार पहली बार... इसलिए लात भी पड़ी है तुम पर पहली बार... और खबरदार कर रहे हैं... अगर बाहर गए... तो सौगंध है आपने खानदान की... यहीं के यहीं जिंदा गाड़ देंगे... कब से समझा रहे हैं... हमारे दुश्मन बहुत सक्रिय हो गए हैं... उन्हें एक कमजोर कड़ी का तलाश है... तुम उनके हत्थे चढ़ गए... तो बरसों का कमाया हुआ... किया धरा सब मिट्टी में मिल जाएगा...
पिनाक - कमाया हुआ... जब खानदान का भविष्य ही सलाखों के पीछे खतरे में है... वह अगर सूली पर चढ़ गया... तो यह जितना कमाया है... उसे खाएगा कौन...
भैरव सिंह - तो और एक ब्याह लेना... जितने चाहे उतने भविष्य निकाल लेना...
पिनाक - भैरव सिंह... (भैरव सिंह की आँखे फैल जाती हैं) हाँ... भैरव सिंह... यह भी पहली बार हो रहा है... आज तुमने मुझे मेरी ही नजरों से गिरा दिया... मैं कितना कमजर्फ हूँ.. हरामी हूँ... यह आज जता दिया... तुमने मुझे जिस राह पर चलाया... आँखे मूँद कर चलता रहा... भला बुरा कुछ नहीं देखा... जिस चश्मे से दुनिया को दिखाया... मैं देखता रहा... इसलिए अपनी औलाद को... अपने जिगर के टुकड़े को... प्यार तक नहीं कर पाया... उसके दिल की ख्वाहिश तक को... तुम्हारे अहंकार की भेट चढ़ा दी मैंने... आज मेरे रगों में बहते खून ने आवाज़ दी है... पर उस आवाज़ को भी... मैं आज आखिरी बार तुम्हारे अहंकार की बेदी पर भेंट चढ़ा रहा हूँ... ठीक है... मैं नहीं जाऊँगा... इसी दिवान ए खास के एक कोने में (नीचे बैठ जाता है) ऐसे ही बैठा रहूँगा... मैं वादा करता हूँ भैरव सिंह... जब तक मुझे मेरा वीर यहाँ से लेकर नहीं जाएगा... तब तक... मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा...
कमरे में मरघट सा सन्नाटा छा जाती है l क्यूँकी आज जो भी हुआ इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी l क्षेत्रपाल महल के परिसर में वैदेही ने भैरव सिंह को नाम से पुकारा था और आज उसके अपने छोटे भाई ने बग़ावती तेवर दिखाते हुए भैरव सिंह का नाम लिया था l कमरे के एक कोने में नीचे फर्श पर पिनाक बैठ गया था l पिनाक पहले सुषमा की ओर देख कर
पिनाक - सुषमा जी... मैं आपका बहुत बड़ा अपराधी हूँ... मुझे आज जो सजा मिली है... वह मेरी अपनी कमाई हुई है... फिर भी आप मुझे क्षमा कर दें... (अपना हाथ जोड़ देता है, सुषमा के आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, विक्रम से) विक्रम... मेरा बेटा अकेला है... बचपन से लेकर आज तक... तुम उसके साथ साया बन कर रहे हो... जैसा जी मैंने इस महल के मालिक को वचन दिया है... मेरे वीर को ले आओ.. वही मुझे इस महल से ले जाएगा... प्लीज... मेरे वीर को ले आओ...
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तीन दिन बाद
कटक में सेनापति दंपति के घर में बैठक कमरे में प्रतिभा के सामने शुभ्रा और विक्रम बैठे हुए हैं l शुभ्रा की आँखे नम थीं l विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी आ गई थी l चेहरा उदास था आँखे काले दिख रहे थे l
प्रतिभा - कहो विक्रम... कैसे आना हुआ...
विक्रम - (दर्द भरी आवाज़ में) क्या कहूँ माँ जी... वीर तीन दिन की जुडिशरी कस्टडी में है... कल उसकी पेशी है... मैंने उससे मिलने की कोशिश की थी... पर वह मुझसे भी नहीं मिल रहा है... मैं उसके लिए वकील खड़ा करना चाहता हूँ... पर वह मुझसे बात करना तो दुर... मिलना भी नहीं चाहता...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे लगा था... वीर तुमसे मिलेगा... तो तुमसे भी नहीं मिल रहा है...
विक्रम - तुमसे भी मतलब...
प्रतिभा - प्रताप... प्रताप भी उससे मिलने की तीन दिन से कोशिश कर रहा है... पर वीर उससे मिल नहीं रहा है.. इस बात को लेकर प्रताप जितना दुखी है... उतना ही परेशान भी है...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप तीन दिन से... मिलने की कोशिश कर रहा है...
प्रतिभा - उसमें हैरान होने वाली क्या बात है विक्रम... आखिर वीर प्रताप का दोस्त है... जब दोस्त मुसीबत में हो... तो प्रताप आएगा ही...
विक्रम - हाँ... पर वह आया कब...
प्रतिभा - दूसरे दिन की सुबह... जब वीर अरेस्ट हुआ... तभी मुझे खबर मिल चुकी थी... मैंने बिना देरी किए प्रताप को फोन कर बुला लिया... वह भी बिना देरी किए पहुँच भी गया...
शुभ्रा - तब तो प्रताप जरुर वीर को बचा लेंगे...
प्रतिभा - जल्दबाजी मत करो शुभ्रा... जल्दबाजी मत करो... मत भूलो.. वीर ने खुद स्टेट मेंट दी है... की अनु का कत्ल उसी ने किया है... और वह अपने डिफेंस के लिए कोई वकील लेने से इंकार कर दिया है... इसलिए जल्दबाजी मत करो...
विक्रम - माँजी... आप तो जानती हैं ना... वीर अनु का कत्ल नहीं कर सकता...
प्रतिभा - जानती ही नहीं मानतीं भी हूँ... पर कानून कैसे समझाएं...
विक्रम तीन दिन पहले राजगड़ जो भी कुछ हुआ सब बताता है l सब सुनने के बाद प्रतिभा विक्रम से कहती है l
प्रतिभा - तुम्हारे कहने का मतलब समझ गई विक्रम... यह एक ऑनर किलिंग है... जिसकी सजा अपने ऊपर लेकर... वीर अपने पिता को सजा देना चाह रहा है...
विक्रम - जी... चाचा जी आना तो चाहते थे... अपनी सफ़ाई देना चाहते थे... पर...
तभी घर के अंदर तीन शख्स प्रवेश करते हैं l तापस, खान और विश्व l तीनों के चेहरे उतरे हुए थे l तीनों को देख कर शुभ्रा और विक्रम अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l तापस उन्हें बैठने के लिए इशारा करता है l अब कमरे में सभी अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l पर सभी अपने अपने में खोए हुए हैं l कमरे में ऐसी खामोशी थी के मानों कमरे में कोई है ही नहीं l कुछ देर बाद खामोशी तोड़ते हुए प्रतिभा पूछती है l
प्रतिभा - क्या हुआ प्रताप... तुम गए थे... कुछ हुआ...
विश्व - इतनी कोशिशों के बावजूद... वीर मिलने से मना कर रहा है... मिले तो बात बनें...
विक्रम - एक बात समझ में नहीं आई... उसे... सेंट्रल जेल में रखने के बजाय... झारपड़ा सब जेल में क्यूँ रखा गया है...
विश्व - हाँ यह सवाल तो मेरे मन में भी उठा था... इसलिए खान सर की मदत से झारपड़ा जेल गया था... वीर से मिलने... पर उसने मिलने से मना कर दिया...
शुभ्रा - (रोते हुए) है भगवान... जब मुसीबत आई तो इस तरह...
प्रतिभा - शांत हो जाओ शुभ्रा...
शुभ्रा - नहीं माँ जी आप नहीं जानती... उस दिन वह कितना खुश था... पिता बनने की खुशी... किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा था... पर... (विक्रम उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलासा देने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - हम जानते हैं शुभ्रा... हम सब जानते हैं... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट देखा है हमने... खैर अब रोने धोने से कुछ नहीं होगा... प्रताप... क्या सोचा है तुमने... पुलिस ने तो चार्ज शीट तैयार कर चुकी होगी...
विश्व - हाँ माँ... मैं इसलिए डैड और खान सर को लेकर गया था... क्राइम सीन पर बरामद हुए सभी चीजें... घर में बरामद हुए सभी चीजें... वीर की रिटीन स्टेटमेंट... सब चेक कर ली है... वीर चाहे कितना भी अपने उपर इल्ज़ाम ले... बचाया उसे फिर भी जा सकता है...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन था... तुम कुछ ना कुछ ढूँढ ही लोगे... फिर भी.. एक सवाल का ज़वाब... अभी तक नहीं मिला... वीर को सेंट्रल जेल के बजाय... सब जेल में क्यूँ जुडिशरी कस्टडी दी गई... वीर जो भी हो... कोई छोटी पर्सनालिटी तो नहीं है...
खान - इस मामले में... जो भी मुझे लग रहा है... इस कत्ल के पीछे सिर्फ ऑनर किलिंग ही नहीं है... और भी कुछ है...
तापस - हाँ भाग्यवान... अगर वीर सेंट्रल जेल में होता... उसके मना करने के बावजूद... विक्रम या विश्व उससे मुलाकात कर सकते थे... यह बात उन्हें मालुम था... इसलिए जब उन्होंने देखा वीर ने सारे इल्ज़ाम अपने उपर ले लिया है... तब उन्होंने यह चाल चली है... के अगले पेशी तक... वीर झारपड़ा जेल में ही रहे....
प्रतिभा - मतलब वह लोग... विक्रम और प्रताप से वीर को दुर रखना चाह रहे हैं... तो क्या सचमुच वीर मिलने से इंकार कर रहा है... या...
खान - नहीं वीर सचमुच मिलने से मना कर रहा है... इसलिए तो आज मैं भी गया था झारपड़ा जेल में...
विक्रम - तो उसे सब जेल में रखने का कारण... मेरा मतलब है... अगर हमारी जेल के अंदर मुलाकात हो जाती तो...
खान - तो तुम लोगो के बीच जो भी बातचीत हुई होती... उन्हें खबर मिल गया होता...
शुभ्रा - आखिरकार वह लोग हैं कौन...
विश्व - पता लग जाता... अगर वीर हमसे बातचीत कर लेता...
विक्रम - तो अब... अब आगे क्या होगा...
विश्व - कल वीर की पेशी होगी... पुलिस... वीर की इकवालिया बयान को मैच कराते हुए... क्राइम सीन में बरामद हुए सबूतों से मिलान कर... एक थ्योरी पेश करेगी... उसे आधार बना कर... प्रोसिक्यूटर वीर को एक्युस्ड बनाएगा और अदालत से सजा की माँग करेगा...
विक्रम - और हम... हम क्या करें...
विश्व - हम वही करेंगे... जो हमें करना चाहिए...
विक्रम अपनी जगह से खड़ा हो जाता है, विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाता है l विश्व थोड़ा हैरान हो कर विक्रम को देखता है और फिर विश्व विक्रम से हाथ मिलाता है l
विक्रम - तुम वाकई वीर के बहुत अच्छे दोस्त हो... एक वक़्त था जब उसे मुझे पर भरोसा करता था... पर जब से तुमसे दोस्ती हुई... मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा करने लगा था... तुम्हारे लिए मुझसे... यहाँ तक चाचा जी से भी लड़ गया था... और तुम भी उसके एक आवाज़ पर उसके पास... उसके साथ खड़े मिले...
विश्व - पर इस बार उसने मुझे बुलाया नहीं था...
विक्रम - क्यूँकी उसे उतना मौका मिला ही नहीं था...
विश्व - पर फिर भी... मुझे थोड़ा अंदाजा लगा लेना चाहिए था... गलती मुझसे हुई तो है..
विक्रम - हम इंसान हैं प्रताप... हमारी सोच... हमारी पहुँच की... एक हद होती है... वह हद अगर लाँघ गए... तो हम इंसान ना कहलाते...
विश्व - (चुप रहता है, विक्रम अब दोनों हाथों से विश्व का हाथ पकड़ लेता है ) प्रताप... मैंने वादा किया है... अपनी चाची माँ और चाचा जी से... वीर को वापस ले जाने के लिए... (आँखों में आँसू आ जाते हैं) प्लीज यार... कुछ करो...
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
कटक हाई कोर्ट
विश्व और विक्रम कोर्ट के कॉरिडोर में वीर के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं l बाहर सभी न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी न्यूज ब्रीफिंग में लगे हुए हैं l पुलिस बेरीगेट कर घेरा बंदी कर चुकी है l कुछ देर बाद पुलिस की वैन कोर्ट के परिसर में आती है l वैन का दरवाज़ा खुलता है, हाथ कड़ी में वीर वैन से उतरता है l बाल बिखरे हुए थे दाढ़ी बढ़ी हुई थी l आँखे एकदम से भाव शून्य लग रहे थे l पुलीस वीर को कॉरिडोर से लेकर जाने लगती है l विश्व और विक्रम वीर से फिर से बात करने की कोशिश करते हैं पर वीर कोई जवाब दिए वगैर उन्हें बिना देखे चला जाता है l विक्रम के आँख तैरने लगते हैं, विश्व उसके कंधे पर हाथ रखकर कोर्ट रुम की जाने के लिए इशारा करता है l
कोर्ट रुम में मीडिया वाले बहुत थे, आम लोगों की संख्या कम थीं l विश्व और विक्रम अपनी अपनी जगह बना कर बैठ जाते हैं l थोड़ी देर बाद ज़ज आता है l उसके आते ही सभी खड़े हो जाते हैं l ज़ज् बैठने के बाद गावेल लेकर टेबल पर मारता है
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... सब अपने अपने स्थान ग्रहण करें... (सभी लोग बैठ जाते हैं) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...
रीडर अपनी जगह से उठता है और ज़ज को एक फाइल सौंप देता है l ज़ज फाइल देखने के बाद रीडर को इशारा करता है l
ज़ज - केस नंबर ××××... मुल्जिम को पेश किया जाये... (पुलिस वीर को लाकर कटघरे में खड़ा कर देती है) प्रोसिक्यूशन... अपनी तहरीर पेश करें... (प्रोसिक्यूटर अपनी जगह से उठ कर)
प्रोसिक्यूटर - येस माय लॉर्ड... माय लॉर्ड... मुल्जिम के कटघरे में जो शख्स खड़ा है... वह एक बड़े खानदान का बिगड़ा हुआ रईस जादा है... नाम... वीर सिंह क्षेत्रपाल... माय लॉर्ड... क्षेत्रपाल... यह नाम... उस नाम के पीछे का शख्सियत क्या है... कौन है यह कहना... अनावश्यक है... पर यह नौजवान लड़का उस खानदान से नाता रखता है... जाहिर है... दौलत और रुतबा इसे विरासत में मिला है... इसी दौलत की घमंड और रुतबे की दम पर... इसने... एक लड़की... जिसका नाम था अनुसूया दास... जो इनकी ESS की ऑफिस में... इसकी पर्सनल सेक्रेटरी कम असिस्टेंट के रुप में काम कर रही थी... उस गरीब लड़की को... इसने शादी का झांसा दे कर... अपने जाल में फंसाया... फिर जब इसे पता चला... की वह लड़की गर्भवती है... जैसा कि आप देख सकते हैं... पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में... जाहिर हो चुका है... इसने उस लड़की को अपने रास्ते से हटा दिया... इस बात की पुष्टि के लिए... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर... अरविंद कुमार को गवाही के लिए बुलाना चाहता हूँ...
ज़ज - इजाज़त है... (हॉकर की आवाज पर इनवेस्टिगेशन ऑफिसर अरविंद गवाही वाले कटघरे में आता है)
प्रोसिक्यूटर - इंस्पेक्टर... क्या आप इस केस में... रौशनी डाल सकते हैं...
अरविंद - जी वकील साहब... माय लॉर्ड... ×××× तारीख शाम के साढ़े छह बजे... थाने पर कॉल आया... के... एक आधी बनी हुई बिल्डिंग में... तीसरी मंजिल पर... एक खुन हो गया है... तो मैंने अपने साथियों को लेकर जब मौका ए वारदात पर पहुँचा... तब देखा के... मुल्जिम उस लड़की को अपने बाहों में लेकर बैठा हुआ था... हमने जब कत्ल और कातिल के बारे में पुछा... तो इसी ने बताया... की कातिल यह खुद है और... इसी ने उस लड़की का कत्ल कर दिया है...
प्रोसिक्यूटर - ह्म्म्म्म... फिर उसके बाद...
अरविंद - फिर हमने... इसे गिरफ्तार किया... और तफ्तीश शुरु कर दिया... तफ्तीश के बाद... चार्ज फाइल कर पेश कर दी...
ज़ज - हूँ... दिख रहा है... आपने दो जगहों को क्राइम स्पॉट बनाया है...
अरविंद - जी...
ज़ज - आपने तफ़तीश में जो भी कुछ रिपोर्ट बनाया है... अब विस्तार से कोर्ट को बतायें...
अरविंद - जी माय लॉर्ड... हमें जो कॉल आया था... वह मुल्जिम के फोन से ही आया था... मुल्जिम अपनी इकबालिया जुर्म के बाद से अब तक चुप्पी साधे हुआ है... इस लिए... हमें अपने तरीके से... छानबीन करनी पड़ी.. यह मुल्जिम और वह लड़की... पैराडाइज अपार्टमेंट के पेंट हाऊस में रहते थे... हमने वहाँ पर हाता पाई के निसान भी देखा था... जब पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट आई... तब हम उस रिपोर्ट के आधार पर हमने यह थ्योरी बनाई... के लड़की बहुत खुश हो कर अपने गर्भ संचार की खबर दी होगी... मुल्जिम इस खबर से घबरा गया होगा... फिर वहीँ पर उस लड़की को मारने की कोशिश की होगी... वह लड़की बच कर किसी गाड़ी से लिफ्ट लेकर भागी होगी... तब यह मुल्जिम राह गुज़रते एक बाइक सवार से बाइक छिन कर उस गाड़ी का पीछा किया होगा... वह गाड़ी शायद कुछ देर के लिए उस बिल्डिंग के नीचे खराब हो गई होगी... तब लड़की अपनी जान बचाने के लिए उपर भागी होगी... मुल्जिम तीसरी मंजिल पर उस लड़की को दबोचा होगा... और फिर...
ज़ज - हूँ... आपकी थ्योरी सब संभावना पर आधार है इंस्पेक्टर...
अरविंद - माय लॉर्ड... मौका ए वारदात पर हथियार मिले हैं... एक खंजर और एक रिवॉल्वर... और हमारी तफ्तीश की फाइनल रिपोर्ट पर... मुल्जिम ने अपनी स्वीकृति के साथ दस्तखत किया है... इसलिए हमारी तरफ से तफ़तीश पुरा है...
ज़ज - ह्म्म्म्म... (फाइल देखते हुए) तो आपकी रिपोर्ट... मुल्जिम का कबूलनामा है...
अरविंद - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - डिफेंस के तरफ से कौन लॉयर है...
प्रोसिक्यूटर - नहीं योर ऑनर... डिफेंस की तरफ़ से कोई लॉयर नहीं है...
ज़ज - ह्वाट... (वीर सिंह से) वीर सिंह... आपने अभी तक कोई लॉयर नियुक्त नहीं किया है... या कोई तैयार नहीं है... (वीर अपना चेहरा झुका कर नीचे की ओर देखते हुए जवाब देता है)
वीर - ज़ज साहब... मैं नहीं चाहता... अदालत का क़ीमती वक़्त खराब हो... मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया है... आप मुझे फांसी की सजा सुना कर न्याय कीजिए...
विक्रम - (खड़ा हो जाता है) नहीं... वीर यह तुम्हें क्या हो गया है...
ज़ज - (गावेल को टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर ऑर्डर...
विक्रम - ज़ज साहब... यह मेरा छोटा भाई है... यह खुन इसने नहीं किया है... यह गुनाह कबूल नहीं किया है... बल्कि आत्महत्या कर रहा है...
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आप चुप रहिए... जब आप से पुछा जाएगा... आप तभी कह सकते हैं... यूँ बीच में कह कर कारवाई में बाधा उत्पन्न करेंगे तो अदालत आपको यहाँ से निकाल देगी...
विक्रम कुछ कहना चाहता था पर विश्व उसे रोक देता है और खुद खड़े होकर ज़ज से कहता है l
विश्व - योर ऑनर.. अगर आपकी इजाजत हो... तो मैं इस केस में कुछ रौशनी डाल सकता हूँ...
ज़ज - आपकी तारीफ़...
विश्व - जी मैं... विश्व प्रताप महापात्र... (ज़ज के सामने जाकर अपना लॉ की डिग्री और लाइसेंस नंबर की कागजात देते हुए) मैं एक वकील भी हूँ... और यह मेरी डिग्री और वकालत नामा...
जज - (कागजात देखने के बाद) ह्म्म्म्म... तो मिस्टर विश्व प्रताप... आप इस केश में क्या रौशनी डाल सकते हैं...
विश्व - योर ऑनर... जैसे कि आपने देखा... मुल्जिम ने अपने लिए कोई डिफेंस लॉयर नियुक्त नहीं किया है... इसका मतलब यह हुआ है कि... उस लड़की की मौत ने... मुल्जिम को अंदर से इतना तोड़ दिया है कि... यह अब जीना नहीं चाहता है... मर जाना चाहता है...
प्रोसिक्यूटर - यह क्या लॉजिक हुई...
विश्व - योर ऑनर... अभी आपने ही देखा है... की अपने आप को गिरफ्तार करवाने के बाद... वीर ने पुरी तरह से चुप्पी साध ली थी... जिसके वज़ह से पुलिस ने जो भी इनवेस्टिगेशन किया है... सब कुछ संभावना पर ठहर गया है... और हाँ... वीर ने भी कोई विरोध नहीं किया है... पर यह सारे संभावनाएं हैं... जो कि वास्तविकता से कोसों दुर है...
ज़ज - तो आप वीर की पैरवी करना चाहते हैं...
विश्व - येस योर ऑनर... विथ योर परमिशन...
प्रोसिक्यूटर - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर... यह कैसे हो सकता है... मुल्जिम ने कोई वकील अपने लिए नियुक्त नहीं किया है... और उसने किसी भी संभावना को नकारा नहीं है... और अपना गुनाह कबूल कर लिया है... फिर...
ज़ज - मिस्टर प्रोसिक्यूटर... क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अदालत मुल्जिम को केवल इसलिए सजा दे दे... के उसने इकबाल ए जुर्म कर दिया है... बिना डिफेंस के सुने... अदालत किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दे सकती... कानून के जानकार होने के नाते यह आप जानते होंगे...
प्रोसिक्यूटर - जी... पर मुल्जिम ने इन्हें नियुक्त नहीं किया है...
जज - अदालत न्याय के लिए होती है मिस्टर प्रोसिक्यूटर... अगर विश्व प्रताप... आज यह साबित करने में कामयाब हो गए... के केस में सच्चाइ अभी भी छुपी हुई है... जिसे बाहर लाना आवश्यक है... तो इससे न्याय की जीत होगी... क्या आप नहीं चाहते के मक्तुला और मुल्जिम दोनों के साथ न्याय हो...
प्रोसिक्यूटर - जी जरूर चाहता हूँ...
जज - देन ऑब्जेक्शन ओवर रुल्ड... प्लीज सीट डाउन... (प्रोसिक्यूटर बैठ जाता है) मिस्टर विश्व प्रताप... अदालत आपको तागिद करती है... आप इस केस में... इस केस के ताल्लुक तहरीर पेश करेंगे... अगर आप नाकाम रहे... तो आप पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की तहत कारवाई होगी...
विश्व - मुझे मंजुर है योर ऑनर... एंड थैंक्यू फॉर एलॉव मी...
ज़ज - आप अपनी तहरीर पेश करें...
विश्व - माय लॉर्ड... जैसा कि सरकारी वकील ने कहा कि... यह शख्स जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है... एक बड़े घराने से ताल्लुक रखता है... दौलत और रुतबे की कोई कमी नहीं... तो क्या वकील साहब बतायेंगे... के क्यूँ मुल्जिम वीर सिंह ने... अपने डिफेंस के लिए वकील नहीं किया... अगर चाहते तो... वकीलों की फौज खड़े कर सकते थे...
प्रोसिक्यूटर - मैं... मैं क्यूँ इस बाबत कोई टिप्पणी करूँ...
वीर - मैं बस आपकी राय जानना चाहता हूँ...
प्रोसिक्यूटर - माय लॉर्ड... मैं मिस्टर विश्व पर छोड़ता हूँ... वह जो चाहें दलील पेश कर सकते हैं... पर मुझे नहीं लगता... केस में इस पर कोई बहस होनी चाहिए... बात सबूतों की होनी चाहिए... जो कि सभी वीर सिंह के खिलाफ खुल कर गवाही दे रहे हैं...
विश्व - ठीक है... माय लॉर्ड... अगर बात सबूतों पर ही करनी है... तो मैं इंवेस्टिगेशन ऑफिसर मिस्टर अरविंद कुमार को विटनेस बॉक्स में बुलाना चाहता हूँ... (अरविंद फिर से विटनेस बॉक्स में आता है) तो इंस्पेक्टर साहब... आपके तफ्तीश के मुताबिक... क्राइम के दो स्पॉट थे... पहला... पैराडाइज के पेंट हाऊस... और दुसरा ×××× बिल्डिंग के तीसरी मंजिल पर...
अरविंद - जी...
विश्व - तो इंस्पेक्टर साहब... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... कत्ल का हथियार क्या था...
अरविंद - जी... खंजर...
विश्व - क्या उसमें... मुल्जिम के उंगलियों के निसान थे...
अरविंद - (चुप रहता है)
विश्व - आप चुप क्यों हो गए अरविंद सर... आप ही ने अदालत में रिपोर्ट दाखिल की है...
प्रोसिक्यूटर - मिस्टर विश्व... आपके पास रिपोर्ट की कॉपी कैसे आई...
विश्व - यह कैसा सवाल है... हम बात सबूतों पर कर रहे हैं... सबूतों पर बात खत्म हो जाने दीजिए... मैं आपको पुरी जानकारी दे दूँगा... हाँ तो अरविंद साहब... मैंने आपसे पुछा... क्या उस खंजर पर... मुल्जिम के उंगलियों के निशान थे...
अरविंद - नहीं... पर चूँकि मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया था... तो... (चुप हो जाता है)
विश्व - ठीक है... आई कैन अंडरस्टांड... खैर आप जब क्राइम स्पॉट पर पहुँचे तब आपने क्या देखा...
अरविंद - जैसा कि मैंने पहले भी बताया... के हम जब मौका ए वारदात पर पहुँचे... मुल्जिम मक्तुला को गोद में लिए बैठा हुआ था...
विश्व - और आपने उसके बाद क्राइम स्पॉट सीज की होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वारदात की जगह पर जो भी मिला होगा... उसकी आपने फोटो खिंची होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वहाँ... आपको कत्ल की हथियार के साथ साथ... और क्या क्या मिला क्या अदालत को बतायेंगे...
अरविंद - जी एक रिवॉल्वर मिला... जिसके तीन राउंड फायर हो चुके थे... पर मौका ए वारदात पर हमको... सिर्फ दो गोलियाँ मिली... एक दीवार में धंसी हुई थी... और दुसरी... नीचे कंस्ट्रक्शन साइड की रेत में... और उस गन में... मुल्जिम के उंगलियों निशान मिले... और तो और... मुल्जिम के हाथ में गन पाउडर भी मिला...
विश्व - ह्म्म्म्म... माय लॉर्ड... क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है... वारदात की जगह पर तीन राउंड फायर किया गया रिवॉल्वर मिलता है... जिस पर मुल्जिम के उँगलियों के निशान भी मिलते हैं... पर मक्तुला की कत्ल रिवॉल्वर से नहीं... खंजर से हुई है...
विश्व की इस खुलासे से जज पुलिस के द्वारा सौंपी गई फाइल को फिर से देखने लगता है l अदालत के दर्शकों वाली दीर्घा में बैठे आम लोग और मीडिया वाले भी खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l फाइल को जांचने के बाद जज अपनी गावेल को टेबल पर मारता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... (अदालत में चुप्पी छा जाती है) (अरविंद से) इंस्पेक्टर... मैंने पहले ही कहा था... आपने अपनी केस को सम्भावनाओं के आधार पर तैयार किए हैं... आपके पास पुख्ता सबूत केवल यह है कि... मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया है... (अरविंद शर्मिंदा होता है) ह्म्म्म्म विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं... इस कत्ल में कोई और भी इंवॉल्व है...
विश्व - जी योर ऑनर... अगर पुलिस... वीर की इकबालिया बयान को दर किनार कर तफ्तीश की होती... तो इस कत्ल के आड़ में छिपे हुए हैं... उनके पास पहुँच चुकी होती... पर अफसोस... पुलिस ने अपनी लापरवाही और बेफिक्री के चलते एक सबुत को खो बैठी...
अरविंद - यह... यह सच नहीं है माय लॉर्ड... हमने दोनों वारदात की जगह से जो भी सबूत इकठ्ठा किया था... बाकायदा उसकी लिस्ट बनाया और अदालत में जमा किया है योर ऑनर...
जज - मिस्टर विश्व... माना के आपने एक अच्छी पॉइंट निकाल कर सामने लाया है... पर यह तो आप पुलिस संस्था पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं...
विश्व - नहीं योर ऑनर... मैं इतनी बड़ी धृष्टता नहीं कर सकता... पर मैं अरविंद जी से पूछना चाहता हूँ... अदालत में जमा करने से पहले... जो सबूत मौका ए वारदात से बारामत की गई... उसकी लिस्ट और... अदालत में पेश की गई लिस्ट का मिलान कर बतायें... (इस बार अरविंद और भी शर्मिंदा होता है और अपना सिर नीचे झुका लेता है)
जज - मिस्टर अरविंद...
अरविंद - आ.. आ.. आई एम सॉरी... ज़ज साहब... मुझसे बहुत बड़ी चुक हो गई है... असल में जब वीर सिंह ने कत्ल का इल्ज़ाम स्वीकर लिया... और हमारी किसी भी आरोप का किसी भी तरह से विरोध नहीं किया... इसलिए... मैंने उस सबूत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया...
जज - वह कौनसा सबूत था मिस्टर अरविंद...
अरविंद - (शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लेता है, उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती)
विश्व - एक सोने की ब्रैसलेट योर ऑनर... और यह ब्रैसलेट उस हाथ से निकल गिरा था योर ऑनर... जिसके हाथ... अनुसूया के खुन से रंगे थे...
यह सुनते ही वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं l यह हालत ना सिर्फ वीर की थी बल्कि अदालत में मौजूद सभी की आँखे हैरानी के मारे फैली हुई थी l
जज - यह आप किस आधार पर कह सकते हैं विश्व प्रताप...
विश्व - माय लॉर्ड... वारदात की जगह सील कर लेने के बाद... फॉरेंसिक टीम हर एक जगह की बारीकी से फोटो लेती है... आप के पास उस फाइल में देख सकते हैं... एक पिलर के नीचे... खुन पड़ा हुआ है... और उसके पास एक सोने की ब्रैसलेट भी गिरा हुआ है... फॉरेंसिक टीम ने... जाँच के बाद... सारे सबूत इकट्ठा कर लिस्ट बना कर पुलिस के हवाले कर दिया था... पर इन्हीं तीन दिनों के अंदर... पुलिस की स्टोर से... वह सोने की ब्रैसलेट गायब कर दी गई...
जज फाइल में उस एनेक्सचर पर जाता है जिन में वारदात की जगह की फोटो थे l उन फोटो में से एक फोटो में पिलर के नीचे खून और खून के पास सोने की ब्रैसलेट साफ दिख रहा था l जज अब अरविंद पर गुस्सा हो कर
जज - यह क्या है अरविंद... इतनी बड़ी लापरवाही... अगर खुदा ना खास्ता कल को अगर मुल्जिम को सजा हो गई होती और बाद में उसकी बेगुनाह साबित हो जाता... तो...
अरविंद - आई एम अगैंन सॉरी माय लॉर्ड...
जज - विश्व प्रताप की इस पैरवी पर आपकी क्या राय है प्रोसिक्यूटर...
प्रोसिक्यूटर - माफी चाहूँगा योर ऑनर... अब केस को फिर से छानबीन करने के लिए पुलिस को आदेश करें... मैं इस वक़्त बस इतना ही कह सकता हूँ...
जज - ठीक है... आज इस केस पर विश्व ने जिस तरह से रौशनी डाली है... अदालत उनका आभार प्रकट करता है... यह अदालत पुलिस को आदेश देता है... की जल्द से जल्द... उस बैसलेट की मालिक को ढूँढ कर सामने लाये... और वीर सिंह से अनुरोध करती है... आप अगले तारीख तक अपने लिए एक वकील को नियुक्त करें... अथवा अदालत विश्व प्रताप को ही आपकी वकील के रुप में नियुक्त करेगी... आज की कारवाई को यहीँ पर स्थगित करते हुए... अगले पंद्रह दिन की तारीख को मुकर्रर कर... अदालत बर्खास्त की जा रही है.... द कोर्ट इज़ एडजॉर्न...
एक सौ उनचासवाँ अपडेट
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रात भर आसमान बरस रही थी, या शायद रो रही थी l रुक ही नहीं रही थी l निरंतर बरसात हो रही थी l राजगड़ में कुछ आँखे ऐसी भी थीं जो सोई नहीं थीं l विक्रम के मन में बैचैनी थी वह वापस चले जाना चाहता था पर अनवरत वर्षा उसे महल में रोक दिया था l अपने कमरे से निकालता है और चारों और अपनी नजर घुमाता है l कभी नौकरों चाकरों से घिरे रहने वाला भरे रहने वाला यह महल कानून की अलमवरदरों के मर्जी के बदोलत कुछ नौकर ही महल में ठहरे हुए हैं l अभी सभी के सभी नींद में सोये हुए हैं l विक्रम चलते चलते कुछ दुर चल कर दीवान ए आम में पहुँचता है l वहाँ पहुँचते ही विक्रम हैरान हो जाता है, क्यूंकि सोफ़े पर उसे सुषमा बैठी दिखती है l सुषमा भी उसे देख लेती है और उससे सवाल करती है
सुषमा - सोया नहीं बेटा..
विक्रम - नहीं माँ... पता नहीं नींद क्यूँ नहीं आ रही है... पर आप.. आप क्यूँ जाग रही हैं...
सुषमा - पता नहीं... आज दिल शाम से ही बैठा जा रहा है... इस बिन मौसम की बरसात को देख कर ऐसा लगता है... जैसे यह काले काले बादल... एक के बाद एक बुरी ख़बरों की समाचार बरसा रहे हैं... ऐसा लग रहा है जैसे... यह बरस नहीं रहे हैं... हमारी बेबसी पर तरस खा कर रो रहे हैं...
विक्रम - (जाकर सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुझे नींद क्यूँ नहीं आई.. तु तो थका हारा आया था...
विक्रम - पता नहीं क्यूँ... मुझे ऐसा लग रहा है जैसे... कोई मेरी अंतरात्मा को झिंझोड रहा है... कह रहा है.. मुझे यहाँ आना नहीं चाहिए था...
सुषमा - पर तेरा आना जरूरी था बेटा... तुम सही समय पर आए... वर्ना... आज रुप की बहुत बुरी हालत हो जाती...
विक्रम - आज मैंने रुप की... एक अलग रुप देखा... कोई खौफ नहीं था उसकी आँखों में... जैसे वह मरने के लिए तैयार थी... कितना बदल गई है...
सुषमा - हाँ बदल तो गई है...
विक्रम - हाँ माँ... कितना बदल गई है... जब भुवनेश्वर गई थी... बेज़ान गूंगी गुड़िया सी थी... पर अब..
सुषमा - अनाम... अनाम, वज़ह है उसकी हिम्मत पीछे..
विक्रम - अनाम...
सुषमा - हाँ... अनाम... जिसे तुम प्रताप के नाम से जानते हो...
विक्रम - ओह.. हाँ... शुब्बु ने बताया था... (थोड़ी देर की खामोशी) अच्छा माँ... आप को कभी भी नहीं लगा... प्रताप और रुप के बीच का प्यार का...
सुषमा - मुझे कुछ ही दिनों में पता चल गया था... उन दोनों के बीच पल रहे मासूम प्यार के बारे में... पर मुझे मालूम नहीं था... उनका यह प्यार एक दिन अंजाम तक पहुँच भी पाएगा...
विक्रम - क्यूँ... मतलब... ऐसा क्यूँ लगा था आपको...
सुषमा - विक्रम... तुम्हें वह रात तो याद होगी... जिस रात तुम्हारी माँ हम सबको छोड़ कर चली गई... उस वक़्त तुम सिर्फ़ दस या ग्यारह साल के थे... तुम समझदार तो हो ही गए थे... इसलिए खुद को संभाल लिए... पर रुप... चौबीसों घंटे अपनी माँ से चिपटी लिपटी... एक दम से अनाथ हो गई थी... मैंने उसे संभालने की पुरी कोशिश की पर... उस हादसे की सदमे से बाहर नहीं निकाल पाई... वह डरी सहमी बेज़ान गुड़िया सी बन गई थी... राजा साहब ने एक काम तो अच्छा किया... प्रताप को अनाम बना कर उसकी पढ़ाई का जिम्मा दे दिया... ज्यों ही प्रताप रुप की जिंदगी में आया... उस बेज़ान सी गुड़िया में जान आ गई... अपनी डर से बाहर निकली... हर दिन हर पल खुद को... कमरे में कैद कर रखती थी... पर वह फूलों सी खिलती... चिड़ियों सी चहकती... जब प्रताप उसके सामने... उसके साथ होता था... उससे जिद करती... प्रताप भी दिलों जान से... रुप की जिद को पुरा करने में लग जाता था... मैं गवाह हूँ... प्रताप के हर उस तोहफे का.. जो उसने रुप के जन्म दिन पर दिया करता था... (अब सुषमा रुप के हर एक जन्म दिन की बात कहने लगती है)
विक्रम - आपने कभी रोका नहीं...
सुषमा - नहीं... क्यूँकी मैं समझती थी... यह सब एक दिन रुक जाएगा... क्यूँकी प्रताप अपनी बचपन को छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... वहीँ रुप बचपन से निकल कर किशोरी बन रही थी... और एक दिन यह सब बंद भी हो गया... रुप फिर से पुरानी वाली रुप बन गई... खुद को कमरे में बंद कर लिया और पढ़ने लगी... पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था... उसके जीवन में फिर अनाम आया... मगर प्रताप के रुप में... रुप के अंदर की वह चुलबुली अल्हड जिद्दी लड़की फिर से बाहर निकलने लगी.... उसने प्रताप को पहचान लिया था... अब वह फिर से अपनी प्रताप से जिद करने लगी... प्रताप आज भी उसकी जिद को तरजीह देता है... उसे पूरा करता है... (सुषमा अब चुप हो जाती है, विक्रम भी थोड़ी देर के लिए चुप रहता है, फिर थोड़ी देर के बाद)
विक्रम - हाँ... रुप में फिर से जान आ गई थी... उसने हैल नाम की नर्क में भी जान फूँक दी थी... जो रिश्ते मर चुके थे... उन्हें फिर से जिंदा कर दिया था... आज अगर हम भाई बहन... माँ बेटे की रिश्ते में बंधे हुए हैं... उसकी वज़ह रुप ही है... (फ़िर थोड़ी देर के लिए चुप्पी) हम सबके जीवन में... प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में प्रताप का बड़ा योगदान है... वीर का एकलौता दोस्त... वीर के लिए भी बहुत कुछ किया है उसने... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ... वह दोस्त है... या दुश्मन...
इस बात की सुषमा कोई जवाब नहीं देती l विक्रम भी आगे उससे कुछ पूछता नहीं l बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी l सुबह होने वाली भी थी, इतने में बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज आती है l
सुषमा - देखो... बातों बातों में रात बीत गई... बारिश भी अब रुक रही है...
विक्रम - हाँ पर इतनी सुबह सुबह.. कौन आ सकता है...
दोनों के कानों में नौकरों की भाग दौड़ करने की आवाज़ सुनाई देने लगती है l कुछ देर बाद एक नौकर अंदर आता है इनके सामने झुक कर रास्ता बनाते हुए अंदर चला जाता है l इन्हें समझते देर नहीं लगती के नौकर भैरव सिंह के कमरे की ओर जा रहा है l दुसरा नौकर इनके पास आकर खड़ा होता है l
विक्रम - कौन आए हैं... राजा साहब को जगाने के लिए क्यों गए हैं...
नौकर - छोटे राजा जी आए हैं... राजा साहब जी से... दिवान ए खास में मिलना चाहते हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... इस वक़्त... दिवान ए खास में...
विक्रम तेजी से दिवान ए खास की ओर जाने लगता है l किसी अपशकुन की आशंका से सुषमा भी दिवान ए खास की ओर जाने लगती है l विक्रम कमरे में पहुँच कर देखता है, पिनाक के चेहरे पर एक खुशी छलक रही थी l सुषमा कमरे के बाहर रुक जाती है l विक्रम को देखते ही पिनाक के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आती है l
विक्रम - छोटे राजा जी... आप इतनी सुबह... यहाँ..
पिनाक - क्यूँ.. हमें घर छोड़ने की कोई आदेश थी क्या... परिवार पर मुसीबत आई है... तो राजा साहब के बगल में... खड़े होकर सामना करने आए हैं...
तभी एक नौकर भागते हुए आता है और भैरव सिंह के आने की सूचना देता है l और फिर कमरे से बाहर की ओर चला जाता है l थोड़ी ही देर में कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देखते ही पिनाक खुश हो कर
पिनाक - राजा साहब... हम अभिनंदन के योग्य काम कर आए हैं...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... आप जानते हैं... इस समय आप दिवान ए खास में... आप हमसे क्या कह रहे हैं...
पिनाक - जी राजा साहब... हम अपनी खुशी को दबा कर... रात भर... बारिश की परवाह न करते हुए... आपसे वह खबर और खुशी दोनों बांटने आए हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है) ठीक है... पहले विराजे...
पिनाक - (बैठ जाता है) युवराज आप भी बैठिए... आपका तो जानना बहुत जरूरी है...
भैरव सिंह - अब भूमिका बाँधना बंद कीजिए... बात क्या है पहले यह बताइए...
पिनाक - राजा साहब.. माना के कुछ पल के लिए हम गर्दिश में घिरे हुए हैं... पर यह खबर आपको खुश कर देगी... यह निश्चिंत है... रही यह जो कुछ पल का मौसम खराब हुआ है... बहुत जल्द यह वक़्त भी गुजर जाएगा...
विक्रम - आपकी बातों में... लफ्जों गहराई झलक रही है... बात क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - राजा साहब... हमने बहुत कोशिश की थी... हमारे खानदान के दामन में... लिच की तरह चिपकी हुई दाग को छुड़ाने की... नाकाम रहे... फिर उस हराम खोर विश्व प्रताप को चोट पहुँचाने के लिए... हमने वह सेनापति दंपति को उठाने की कोशिश करी पर... किसी तीसरे ने हमारी मंशा पर पानी फ़ेर दी... तब हम खार खा कर रह गए... उस दिन... राजा साहब... उसी दिन... राजकुमार ने... (अपने हाथ में सूखे ज़ख़्म को देखते हुए) हमारे अहं... हमारे गरुर को घायल कर दिया था... ऐसा ज़ख़्म दिया था... (सूखे ज़ख़्म को देखते हुए, मुट्ठी भिंच लेता है, आँखे और चेहरा सख्त हो जाता है) हमारी रुह घायल हो गया था...
जिस लहजे में पिनाक ने यह बात कही थी कमरे में ख़ामोशी पसर जाती है l बाहर खड़ी सुषमा की आँखे सम्भावित आशंका से अपनी मुहँ पर हाथ रख लेती है l
पिनाक - (विक्रम से) युवराज... आज अगर आप भुवनेश्वर में होते... तो हम शायद कभी कामयाब नहीं हो पाते...
विक्रम - क्या मतलब है आपका...
पिनाक - हा हा हा हा हा... युवराज... हमारी जिंदगी शतरंज की तरह है... शाह तब तक सुरक्षित है... जब तक उसके हिफाज़त में प्यादे अपनी खानों में होते हैं... एक खाना खाली हुआ... के शाह ख़तम... खेल ख़तम... (अब विक्रम को भी अनहोनी की आशंका होने लगती है, वह हैरानी के मारे पिनाक की ओर देखने लगता है) आप यहाँ अपने प्यादों सहारे पैराडाइज को छोड़ आए थे... हमने अपना काम आसानी से कर आए...
विक्रम - मतलब...
पिनाक - (भैरव सिंह की ओर देख कर) राजा साहब... अनु नाम की दाग को हमने हमेशा हमेशा के लिए... मिटा दिया है...
विक्रम - क्या... (कह कर उठ खड़ा होता है)
सुषमा - नहीं... (चीख कर अंदर आती है) नहीं.. यह नहीं हो सकता... कहिये यह झूठ है...
पिनाक - ओ... तो आप छुप छुप कर सब सुन रही थी... हा हा हा... हम क्षेत्रपाल हैं... ऐसी बातों को... झूठ में नहीं बोलते...
सुषमा - यह आपने क्या कर दिया... वीर तो सब कुछ छोड़ चुका था... फिर भी आपको दया नहीं आई... अखिर आपका खुन है वह...
पिनाक - उसी खुन ने... हमारा खुन बहा कर... अपना खुन का रंग दिखाया था... पहचान करवाया था... हमने उसे... यह जता दिया... के हम उसके.. बाप हैं...
सुषमा -(तड़प कर) क्या...
पिनाक - हाँ छोटी रानी हाँ... यह देखिए... (अपना सूखा हुआ ज़ख़्म दिखा कर) यह ज़ख़्म दिया था राजकुमार ने... हमने उन्हें अपनी औलाद होने से नकार दिया था... तो उन्होंने बड़ी डींगे हांक कर कहा था... के एक दिन हमारे बेटे बन कर दिखाएंगे... वह मौका हमने अनु को उनके जिंदगी से हटा कर दिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... क्या आप सच कह रहे हैं...
पिनाक - राजा साहब... हमने कसम खाई थी... जब तक... उस दो कौड़ी की रखैल को.. राजकुमार जी के जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए ना हटा दें... तब तक... ना राजगड़ में कदम रखेंगे... ना अपना शकल दिखायेंगे...
भैरव सिंह - शाबाश छोटे राजा जी... अब तक सब बुरा ही बुरा हो रहा था... आपने अच्छी खबर की शुरुआत की है... तो अब सब अच्छा ही होता जाएगा... शाबाश...
पिनाक - शुक्रिया राजा साहब...
सुषमा - (रुंधे गले से) विक्रम... वीर ने क्या किया होगा...
पिनाक - क्या किया होगा हूंह... या तो कपड़े फाड़ कर रो रहे होंगे... या फिर हमारे नाम पर पुलिस में केस किए होंगे...
विक्रम जाकर कमरे में लगी टीवी को ऑन करता है और रिमोट से न्यूज लगाता है l यह देख कर पिनाक विक्रम से पूछता है l
पिनाक - यह टीवी क्यूँ लगा रहे हैं आप...
विक्रम - मामला क्षेत्रपाल से जुड़ा है... तो बात साधारण तो नहीं होगी... अब तक स्टेट में तहलका मच गया होगा...
तब न्यूज टीवी पर चलने लगती है l नभ वाणी न्यूज चैनल पर सुप्रिया न्यूज ब्रीफिंग में जो कहने लगी उसे कमरे में मौजूद चारों लोग सुनने लगे l
"कल रात से सारा शहर स्तब्ध है l एक गरीब लड़की, माली साही की बस्ती में रहने वाली लड़की, जिसका कुछ दिनों पहले अपहरण हो गया था l जिसकी रक्षा करने के लिए कानून को विवश होना पड़ा l उसी लड़की की हत्या हो गई है l अविश्वसनीय पर सच यही है l हत्यारा भी कौन...?
वही जिसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी l जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा किया था l वीर... वीर सिंह क्षेत्रपाल l जिसने सारे ज़माने के आगे अनु का हाथ थामा l पुलिस ने उसे अनु की हत्या में अभियुक्त बना कर गिरफ्तार कर लिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l"
पिनाक - (चीखता है) यह.. यह क्या कह रही है यह... पुलिस को तो मुझे ढूंढना चाहिए था... यह वीर...
भैरव सिंह - आप थोड़ी देर के लिए शांत हो जाइए... पुरी खबर क्या है जानने दीजिए...
न्यूज ब्रीफिंग में :—
सुप्रिया - आइए.. हमारे सम्वाददाता से... इस बात की पुष्टि करते हैं... हाँ तो अरुण... इस मामले में आपने क्या जानकारी हासिल की... क्या हमारे साथ साझा करेंगे...
अरुण - जी सुप्रिया.. हमने अपनी सूत्रों से... अब तक हुए हर घटनाक्रम के बारे में जो जानकारी प्राप्त की हैं... उसके अनुसार...
कल शाम को ××××× पुलिस स्टेशन इनचार्ज के पास फोन आया था कि ××××इलाके में बन रही एक बिल्डिंग में एक हत्या हुई है l हैरानी की बात यह है कि यह फोन खुद वीर सिंह ने ही किया था l मौका ए वारदात पर जब पुलिस पहुँची तो वीर सिंह अनु की लाश के पास ही था l पुलिस ने हत्या में हुई हत्यार बरामद कर ली है l क्राइम स्पॉट को सील कर दिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l आगे की कार्रवाई क्या होगी यह बाद में मालुम होगा l "
पिनाक कमरे में रखी एक ऐस ट्रे उठा कर टीवी पर फेंक मारता है l टीवी की स्क्रीन टुट जाता है l जहां यह खबर पिनाक को अस्तव्यस्त कर दिया था वहीँ यह खबर भैरव सिंह को हैरान कर दिया था और विक्रम के साथ साथ सुषमा को स्तब्ध कर दिया था l
पिनाक - यह... यह क्या कर दिया वीर ने... राजा साहब अनर्थ हो गया... मैंने तो सोचा था... वीर मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा... पर इसने तो... सारा इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया... मुझे जाना होगा... मुझे जाना होगा... मुझे वीर को बचाना होगा...
कमरे में हर कोई मौन था सिवाय पिनाक के l पिनाक पागलों की तरह बक बक करने लगा था l
पिनाक - यह.. यह मुझसे क्या हो गया राजा साहब.. वीर खुद को अनु की कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवा दिया... नहीं नहीं मुझे जाना होगा.. राजा साहब मैं निकालता हूँ... मुझे सच बताना होगा... वीर को बचाना होगा...
एक झन्नाटेदार थप्पड़ पिनाक के गाल पर पड़ती है l पिनाक कुछ दुर जा कर गिरता है l सुषमा और विक्रम जो सदमें के कारण बुत बन कर खड़े हुए थे l उनका ध्यान थप्पड़ की आवाज सुन कर पिनाक की ओर जाता है l यह थप्पड़ भैरव सिंह ने मारा था
भैरव सिंह - यह क्या पागलपन लगा रखा है.... होश में आइये छोटे राजा जी... होश में आइये...
पिनाक - हमारे घर का चिराग जहां बुझने को है... वहाँ मैं कैसे होश में रह सकता हूँ...
भैरव सिंह - अगर आप होश में नहीं रहेंगे... तो... छोटे राजा जी... सारे तंत्र... हमारे खिलाफ तलवार ताने तैयार बैठे हैं... एक छोटी सी गलती... हमारी पुरी दुनिया को तबाह कर देगी... हम वकील कर सकते हैं... वीर को बाहर ला सकते हैं...
पिनाक - कैसे राजा साहब कैसे... वीर ने खुद को अनु की कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करवाया है... अगर हम लोग अभी उसके पास नहीं गए... तो... उसे हम खो देंगे... नहीं नहीं... मैं उसे खो नहीं सकता... (सुषमा की ओर मुड़ कर) छोटी रानी... आप तैयार हो जाओ... वीर मुझसे बात नहीं करेगा... पर आपसे बात करेगा... आपकी बात मानेगा... चलिए चलिए... जल्दी चलिए...
इस बार भैरव सिंह पिनाक की गिरेबान को पकड़ कर अपनी तरफ खिंचता है और दो तीन थप्पड़ लगा देता है l फिर पिनाक की गर्दन पकड़ कर उसे एक कुर्सी पर बिठा देता है l
भैरव सिंह - चुप... बिल्कुल चुप.. कब से कह रहे हैं... थोड़ा शांत... थोड़ा शांत.. सुनाई नहीं दे रहा... क्षेत्रपाल हो आप... किसी ड्रामा कंपनी के भांड नहीं हैं... समझे... ना आप जाएंगे... (सुषमा से) ना ही आप...
सुषमा - हम क्यूँ ना जाएं...
भैरव सिंह - आप अपनी सीमा लाँघ रहे हैं...
सुषमा - हमारा बेटा मुसीबत में है... और आप कह रहे हैं.. हम अपनी औलाद के पास ना जाएं...
भैरव सिंह - हाँ... अभी आप दोनों में से कोई कहीं नहीं जाएगा...
पिनाक - (कुर्सी से उठ कर) मैं जाऊँगा...
एक और थप्पड़ लगती है उसके गाल पर l इस बार पिनाक हैरान हो कर भैरव सिंह की ओर देखता है और कहता है
पिनाक - आप मेरी भावनाओं पर ऐसे क्यूँ प्रतिक्रिया दे रहे हैं... अपराध हुआ है मुझसे... उस अपराध की बेदी पर बलि... मेरा बेटा चढ़ रहा है...
भैरव सिंह - जब से न्यूज देखा है.... तब से एक ही रट लगाए हुए हैं... मेरा बेटा मेरा बेटा... यह अचानक अपने बेटे पर इतना प्यार क्यूँ उमड़ रहा है... हमें तो याद नहीं आ रहा... कभी वीर के लिए... आपको खयाल करते हुए...
पिनाक - हाँ हाँ... नहीं किया कभी खयाल... पर आज जब देखा... मेरे अपराध की कीमत वह अपनी जान देकर चुका रहा है... तो मुझसे रहा नहीं जा रहा है... पहली बार एहसास हो रहा है... मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है... मैं अब यह गलती सुधरना चाहता हूँ... अपनी गलती की सजा मैं भुगतना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - आपसे कोई गलती नहीं हुई है... गलती वीर से हुई है.. और वीर अगर सजा भुगतना चाहता है... तो भुगतने दीजिए...
पिनाक - क्या... क्या कहा आपने... गलती वीर से हुई.. सजा उसे भुगतने दूँ... क्या गलती हो गई वीर से... जिसकी सजा वीर भुगतेगा...
भैरव सिंह - गलती नहीं अपराध... एक राह चलती रंडी को हमारे खानदान की माथे पर बिठा रहा था...
पिनाक - अच्छा... वीर ने प्यार किया तो अपराध हो गया... और विक्रम ने प्यार किया तो...
भैरव सिंह - (एक और थप्पड़ मारता है) विक्रम नहीं युवराज... युवराज ने किसी गंदी नाली की कीड़े को... हमारे खानदान की माथे पर नहीं सजाया था... जिस पार्टी की टिकट पर भुवनेश्वर की मेयर बने हुए हैं... उसी पार्टी की प्रेसिडेंट थे वह...
पिनाक - ओह... तो इससे खानदान की कोई मर्यादा हानि नहीं हुई... जब कि आपके यहाँ ब्याहने से उनकी मर्यादा की ऐसी हानि हुई... के वह पार्टी और पदवी छोड़.. अपने गाँव चले गए...
भैरव सिंह - गुस्ताख... (फिर से हाथ उठाता है, पर इसबार पिनाक भैरव सिंह का हाथ रोक देता है)
पिनाक - बस... अपने अपने बड़े होने का बहुत फायदा उठा लिया बस... (भैरव सिंह का हाथ छिटक देता है)
भैरव सिंह - यह तुमने क्या किया... यह आज तक कभी इस खानदान में नहीं हुआ था...
पिनाक - हमारे साथ... बहुत कुछ पहली बार हो रहा है राजा साहब... पहली बार... इस घर में पुलिस आई... पहली बार... आप नजरबंद हुए... पहली बार... हमारा घर का चिराग... आज सलाखों के पीछे गया है... पहली बार... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैंने कभी उसे बेटे जैसा प्यार नहीं किया... आज मेरा प्यार बाहर आ गया है... पहली बार... (आवाज़ सख्त कर) इसलिए आज आप मुझे नहीं रोक सकते...
भैरव सिंह एक लात मारता है, पिनाक कुर्सी पर हो कर उल्टी दिशा में गिर जाता है l इस बार पिनाक बहुत ही हैरान हो कर भैरव सिंह को देखता है l सुषमा इस बार भागते हुए पिनाक के पास आती है और उसे उठने में मदत करती है l
भैरव सिंह - यूँ आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो... बहुत गा रहे थे... पहली बार पहली बार... इसलिए लात भी पड़ी है तुम पर पहली बार... और खबरदार कर रहे हैं... अगर बाहर गए... तो सौगंध है आपने खानदान की... यहीं के यहीं जिंदा गाड़ देंगे... कब से समझा रहे हैं... हमारे दुश्मन बहुत सक्रिय हो गए हैं... उन्हें एक कमजोर कड़ी का तलाश है... तुम उनके हत्थे चढ़ गए... तो बरसों का कमाया हुआ... किया धरा सब मिट्टी में मिल जाएगा...
पिनाक - कमाया हुआ... जब खानदान का भविष्य ही सलाखों के पीछे खतरे में है... वह अगर सूली पर चढ़ गया... तो यह जितना कमाया है... उसे खाएगा कौन...
भैरव सिंह - तो और एक ब्याह लेना... जितने चाहे उतने भविष्य निकाल लेना...
पिनाक - भैरव सिंह... (भैरव सिंह की आँखे फैल जाती हैं) हाँ... भैरव सिंह... यह भी पहली बार हो रहा है... आज तुमने मुझे मेरी ही नजरों से गिरा दिया... मैं कितना कमजर्फ हूँ.. हरामी हूँ... यह आज जता दिया... तुमने मुझे जिस राह पर चलाया... आँखे मूँद कर चलता रहा... भला बुरा कुछ नहीं देखा... जिस चश्मे से दुनिया को दिखाया... मैं देखता रहा... इसलिए अपनी औलाद को... अपने जिगर के टुकड़े को... प्यार तक नहीं कर पाया... उसके दिल की ख्वाहिश तक को... तुम्हारे अहंकार की भेट चढ़ा दी मैंने... आज मेरे रगों में बहते खून ने आवाज़ दी है... पर उस आवाज़ को भी... मैं आज आखिरी बार तुम्हारे अहंकार की बेदी पर भेंट चढ़ा रहा हूँ... ठीक है... मैं नहीं जाऊँगा... इसी दिवान ए खास के एक कोने में (नीचे बैठ जाता है) ऐसे ही बैठा रहूँगा... मैं वादा करता हूँ भैरव सिंह... जब तक मुझे मेरा वीर यहाँ से लेकर नहीं जाएगा... तब तक... मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा...
कमरे में मरघट सा सन्नाटा छा जाती है l क्यूँकी आज जो भी हुआ इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी l क्षेत्रपाल महल के परिसर में वैदेही ने भैरव सिंह को नाम से पुकारा था और आज उसके अपने छोटे भाई ने बग़ावती तेवर दिखाते हुए भैरव सिंह का नाम लिया था l कमरे के एक कोने में नीचे फर्श पर पिनाक बैठ गया था l पिनाक पहले सुषमा की ओर देख कर
पिनाक - सुषमा जी... मैं आपका बहुत बड़ा अपराधी हूँ... मुझे आज जो सजा मिली है... वह मेरी अपनी कमाई हुई है... फिर भी आप मुझे क्षमा कर दें... (अपना हाथ जोड़ देता है, सुषमा के आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, विक्रम से) विक्रम... मेरा बेटा अकेला है... बचपन से लेकर आज तक... तुम उसके साथ साया बन कर रहे हो... जैसा जी मैंने इस महल के मालिक को वचन दिया है... मेरे वीर को ले आओ.. वही मुझे इस महल से ले जाएगा... प्लीज... मेरे वीर को ले आओ...
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तीन दिन बाद
कटक में सेनापति दंपति के घर में बैठक कमरे में प्रतिभा के सामने शुभ्रा और विक्रम बैठे हुए हैं l शुभ्रा की आँखे नम थीं l विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी आ गई थी l चेहरा उदास था आँखे काले दिख रहे थे l
प्रतिभा - कहो विक्रम... कैसे आना हुआ...
विक्रम - (दर्द भरी आवाज़ में) क्या कहूँ माँ जी... वीर तीन दिन की जुडिशरी कस्टडी में है... कल उसकी पेशी है... मैंने उससे मिलने की कोशिश की थी... पर वह मुझसे भी नहीं मिल रहा है... मैं उसके लिए वकील खड़ा करना चाहता हूँ... पर वह मुझसे बात करना तो दुर... मिलना भी नहीं चाहता...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे लगा था... वीर तुमसे मिलेगा... तो तुमसे भी नहीं मिल रहा है...
विक्रम - तुमसे भी मतलब...
प्रतिभा - प्रताप... प्रताप भी उससे मिलने की तीन दिन से कोशिश कर रहा है... पर वीर उससे मिल नहीं रहा है.. इस बात को लेकर प्रताप जितना दुखी है... उतना ही परेशान भी है...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप तीन दिन से... मिलने की कोशिश कर रहा है...
प्रतिभा - उसमें हैरान होने वाली क्या बात है विक्रम... आखिर वीर प्रताप का दोस्त है... जब दोस्त मुसीबत में हो... तो प्रताप आएगा ही...
विक्रम - हाँ... पर वह आया कब...
प्रतिभा - दूसरे दिन की सुबह... जब वीर अरेस्ट हुआ... तभी मुझे खबर मिल चुकी थी... मैंने बिना देरी किए प्रताप को फोन कर बुला लिया... वह भी बिना देरी किए पहुँच भी गया...
शुभ्रा - तब तो प्रताप जरुर वीर को बचा लेंगे...
प्रतिभा - जल्दबाजी मत करो शुभ्रा... जल्दबाजी मत करो... मत भूलो.. वीर ने खुद स्टेट मेंट दी है... की अनु का कत्ल उसी ने किया है... और वह अपने डिफेंस के लिए कोई वकील लेने से इंकार कर दिया है... इसलिए जल्दबाजी मत करो...
विक्रम - माँजी... आप तो जानती हैं ना... वीर अनु का कत्ल नहीं कर सकता...
प्रतिभा - जानती ही नहीं मानतीं भी हूँ... पर कानून कैसे समझाएं...
विक्रम तीन दिन पहले राजगड़ जो भी कुछ हुआ सब बताता है l सब सुनने के बाद प्रतिभा विक्रम से कहती है l
प्रतिभा - तुम्हारे कहने का मतलब समझ गई विक्रम... यह एक ऑनर किलिंग है... जिसकी सजा अपने ऊपर लेकर... वीर अपने पिता को सजा देना चाह रहा है...
विक्रम - जी... चाचा जी आना तो चाहते थे... अपनी सफ़ाई देना चाहते थे... पर...
तभी घर के अंदर तीन शख्स प्रवेश करते हैं l तापस, खान और विश्व l तीनों के चेहरे उतरे हुए थे l तीनों को देख कर शुभ्रा और विक्रम अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l तापस उन्हें बैठने के लिए इशारा करता है l अब कमरे में सभी अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l पर सभी अपने अपने में खोए हुए हैं l कमरे में ऐसी खामोशी थी के मानों कमरे में कोई है ही नहीं l कुछ देर बाद खामोशी तोड़ते हुए प्रतिभा पूछती है l
प्रतिभा - क्या हुआ प्रताप... तुम गए थे... कुछ हुआ...
विश्व - इतनी कोशिशों के बावजूद... वीर मिलने से मना कर रहा है... मिले तो बात बनें...
विक्रम - एक बात समझ में नहीं आई... उसे... सेंट्रल जेल में रखने के बजाय... झारपड़ा सब जेल में क्यूँ रखा गया है...
विश्व - हाँ यह सवाल तो मेरे मन में भी उठा था... इसलिए खान सर की मदत से झारपड़ा जेल गया था... वीर से मिलने... पर उसने मिलने से मना कर दिया...
शुभ्रा - (रोते हुए) है भगवान... जब मुसीबत आई तो इस तरह...
प्रतिभा - शांत हो जाओ शुभ्रा...
शुभ्रा - नहीं माँ जी आप नहीं जानती... उस दिन वह कितना खुश था... पिता बनने की खुशी... किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा था... पर... (विक्रम उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलासा देने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - हम जानते हैं शुभ्रा... हम सब जानते हैं... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट देखा है हमने... खैर अब रोने धोने से कुछ नहीं होगा... प्रताप... क्या सोचा है तुमने... पुलिस ने तो चार्ज शीट तैयार कर चुकी होगी...
विश्व - हाँ माँ... मैं इसलिए डैड और खान सर को लेकर गया था... क्राइम सीन पर बरामद हुए सभी चीजें... घर में बरामद हुए सभी चीजें... वीर की रिटीन स्टेटमेंट... सब चेक कर ली है... वीर चाहे कितना भी अपने उपर इल्ज़ाम ले... बचाया उसे फिर भी जा सकता है...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन था... तुम कुछ ना कुछ ढूँढ ही लोगे... फिर भी.. एक सवाल का ज़वाब... अभी तक नहीं मिला... वीर को सेंट्रल जेल के बजाय... सब जेल में क्यूँ जुडिशरी कस्टडी दी गई... वीर जो भी हो... कोई छोटी पर्सनालिटी तो नहीं है...
खान - इस मामले में... जो भी मुझे लग रहा है... इस कत्ल के पीछे सिर्फ ऑनर किलिंग ही नहीं है... और भी कुछ है...
तापस - हाँ भाग्यवान... अगर वीर सेंट्रल जेल में होता... उसके मना करने के बावजूद... विक्रम या विश्व उससे मुलाकात कर सकते थे... यह बात उन्हें मालुम था... इसलिए जब उन्होंने देखा वीर ने सारे इल्ज़ाम अपने उपर ले लिया है... तब उन्होंने यह चाल चली है... के अगले पेशी तक... वीर झारपड़ा जेल में ही रहे....
प्रतिभा - मतलब वह लोग... विक्रम और प्रताप से वीर को दुर रखना चाह रहे हैं... तो क्या सचमुच वीर मिलने से इंकार कर रहा है... या...
खान - नहीं वीर सचमुच मिलने से मना कर रहा है... इसलिए तो आज मैं भी गया था झारपड़ा जेल में...
विक्रम - तो उसे सब जेल में रखने का कारण... मेरा मतलब है... अगर हमारी जेल के अंदर मुलाकात हो जाती तो...
खान - तो तुम लोगो के बीच जो भी बातचीत हुई होती... उन्हें खबर मिल गया होता...
शुभ्रा - आखिरकार वह लोग हैं कौन...
विश्व - पता लग जाता... अगर वीर हमसे बातचीत कर लेता...
विक्रम - तो अब... अब आगे क्या होगा...
विश्व - कल वीर की पेशी होगी... पुलिस... वीर की इकवालिया बयान को मैच कराते हुए... क्राइम सीन में बरामद हुए सबूतों से मिलान कर... एक थ्योरी पेश करेगी... उसे आधार बना कर... प्रोसिक्यूटर वीर को एक्युस्ड बनाएगा और अदालत से सजा की माँग करेगा...
विक्रम - और हम... हम क्या करें...
विश्व - हम वही करेंगे... जो हमें करना चाहिए...
विक्रम अपनी जगह से खड़ा हो जाता है, विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाता है l विश्व थोड़ा हैरान हो कर विक्रम को देखता है और फिर विश्व विक्रम से हाथ मिलाता है l
विक्रम - तुम वाकई वीर के बहुत अच्छे दोस्त हो... एक वक़्त था जब उसे मुझे पर भरोसा करता था... पर जब से तुमसे दोस्ती हुई... मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा करने लगा था... तुम्हारे लिए मुझसे... यहाँ तक चाचा जी से भी लड़ गया था... और तुम भी उसके एक आवाज़ पर उसके पास... उसके साथ खड़े मिले...
विश्व - पर इस बार उसने मुझे बुलाया नहीं था...
विक्रम - क्यूँकी उसे उतना मौका मिला ही नहीं था...
विश्व - पर फिर भी... मुझे थोड़ा अंदाजा लगा लेना चाहिए था... गलती मुझसे हुई तो है..
विक्रम - हम इंसान हैं प्रताप... हमारी सोच... हमारी पहुँच की... एक हद होती है... वह हद अगर लाँघ गए... तो हम इंसान ना कहलाते...
विश्व - (चुप रहता है, विक्रम अब दोनों हाथों से विश्व का हाथ पकड़ लेता है ) प्रताप... मैंने वादा किया है... अपनी चाची माँ और चाचा जी से... वीर को वापस ले जाने के लिए... (आँखों में आँसू आ जाते हैं) प्लीज यार... कुछ करो...
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
कटक हाई कोर्ट
विश्व और विक्रम कोर्ट के कॉरिडोर में वीर के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं l बाहर सभी न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी न्यूज ब्रीफिंग में लगे हुए हैं l पुलिस बेरीगेट कर घेरा बंदी कर चुकी है l कुछ देर बाद पुलिस की वैन कोर्ट के परिसर में आती है l वैन का दरवाज़ा खुलता है, हाथ कड़ी में वीर वैन से उतरता है l बाल बिखरे हुए थे दाढ़ी बढ़ी हुई थी l आँखे एकदम से भाव शून्य लग रहे थे l पुलीस वीर को कॉरिडोर से लेकर जाने लगती है l विश्व और विक्रम वीर से फिर से बात करने की कोशिश करते हैं पर वीर कोई जवाब दिए वगैर उन्हें बिना देखे चला जाता है l विक्रम के आँख तैरने लगते हैं, विश्व उसके कंधे पर हाथ रखकर कोर्ट रुम की जाने के लिए इशारा करता है l
कोर्ट रुम में मीडिया वाले बहुत थे, आम लोगों की संख्या कम थीं l विश्व और विक्रम अपनी अपनी जगह बना कर बैठ जाते हैं l थोड़ी देर बाद ज़ज आता है l उसके आते ही सभी खड़े हो जाते हैं l ज़ज् बैठने के बाद गावेल लेकर टेबल पर मारता है
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... सब अपने अपने स्थान ग्रहण करें... (सभी लोग बैठ जाते हैं) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...
रीडर अपनी जगह से उठता है और ज़ज को एक फाइल सौंप देता है l ज़ज फाइल देखने के बाद रीडर को इशारा करता है l
ज़ज - केस नंबर ××××... मुल्जिम को पेश किया जाये... (पुलिस वीर को लाकर कटघरे में खड़ा कर देती है) प्रोसिक्यूशन... अपनी तहरीर पेश करें... (प्रोसिक्यूटर अपनी जगह से उठ कर)
प्रोसिक्यूटर - येस माय लॉर्ड... माय लॉर्ड... मुल्जिम के कटघरे में जो शख्स खड़ा है... वह एक बड़े खानदान का बिगड़ा हुआ रईस जादा है... नाम... वीर सिंह क्षेत्रपाल... माय लॉर्ड... क्षेत्रपाल... यह नाम... उस नाम के पीछे का शख्सियत क्या है... कौन है यह कहना... अनावश्यक है... पर यह नौजवान लड़का उस खानदान से नाता रखता है... जाहिर है... दौलत और रुतबा इसे विरासत में मिला है... इसी दौलत की घमंड और रुतबे की दम पर... इसने... एक लड़की... जिसका नाम था अनुसूया दास... जो इनकी ESS की ऑफिस में... इसकी पर्सनल सेक्रेटरी कम असिस्टेंट के रुप में काम कर रही थी... उस गरीब लड़की को... इसने शादी का झांसा दे कर... अपने जाल में फंसाया... फिर जब इसे पता चला... की वह लड़की गर्भवती है... जैसा कि आप देख सकते हैं... पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में... जाहिर हो चुका है... इसने उस लड़की को अपने रास्ते से हटा दिया... इस बात की पुष्टि के लिए... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर... अरविंद कुमार को गवाही के लिए बुलाना चाहता हूँ...
ज़ज - इजाज़त है... (हॉकर की आवाज पर इनवेस्टिगेशन ऑफिसर अरविंद गवाही वाले कटघरे में आता है)
प्रोसिक्यूटर - इंस्पेक्टर... क्या आप इस केस में... रौशनी डाल सकते हैं...
अरविंद - जी वकील साहब... माय लॉर्ड... ×××× तारीख शाम के साढ़े छह बजे... थाने पर कॉल आया... के... एक आधी बनी हुई बिल्डिंग में... तीसरी मंजिल पर... एक खुन हो गया है... तो मैंने अपने साथियों को लेकर जब मौका ए वारदात पर पहुँचा... तब देखा के... मुल्जिम उस लड़की को अपने बाहों में लेकर बैठा हुआ था... हमने जब कत्ल और कातिल के बारे में पुछा... तो इसी ने बताया... की कातिल यह खुद है और... इसी ने उस लड़की का कत्ल कर दिया है...
प्रोसिक्यूटर - ह्म्म्म्म... फिर उसके बाद...
अरविंद - फिर हमने... इसे गिरफ्तार किया... और तफ्तीश शुरु कर दिया... तफ्तीश के बाद... चार्ज फाइल कर पेश कर दी...
ज़ज - हूँ... दिख रहा है... आपने दो जगहों को क्राइम स्पॉट बनाया है...
अरविंद - जी...
ज़ज - आपने तफ़तीश में जो भी कुछ रिपोर्ट बनाया है... अब विस्तार से कोर्ट को बतायें...
अरविंद - जी माय लॉर्ड... हमें जो कॉल आया था... वह मुल्जिम के फोन से ही आया था... मुल्जिम अपनी इकबालिया जुर्म के बाद से अब तक चुप्पी साधे हुआ है... इस लिए... हमें अपने तरीके से... छानबीन करनी पड़ी.. यह मुल्जिम और वह लड़की... पैराडाइज अपार्टमेंट के पेंट हाऊस में रहते थे... हमने वहाँ पर हाता पाई के निसान भी देखा था... जब पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट आई... तब हम उस रिपोर्ट के आधार पर हमने यह थ्योरी बनाई... के लड़की बहुत खुश हो कर अपने गर्भ संचार की खबर दी होगी... मुल्जिम इस खबर से घबरा गया होगा... फिर वहीँ पर उस लड़की को मारने की कोशिश की होगी... वह लड़की बच कर किसी गाड़ी से लिफ्ट लेकर भागी होगी... तब यह मुल्जिम राह गुज़रते एक बाइक सवार से बाइक छिन कर उस गाड़ी का पीछा किया होगा... वह गाड़ी शायद कुछ देर के लिए उस बिल्डिंग के नीचे खराब हो गई होगी... तब लड़की अपनी जान बचाने के लिए उपर भागी होगी... मुल्जिम तीसरी मंजिल पर उस लड़की को दबोचा होगा... और फिर...
ज़ज - हूँ... आपकी थ्योरी सब संभावना पर आधार है इंस्पेक्टर...
अरविंद - माय लॉर्ड... मौका ए वारदात पर हथियार मिले हैं... एक खंजर और एक रिवॉल्वर... और हमारी तफ्तीश की फाइनल रिपोर्ट पर... मुल्जिम ने अपनी स्वीकृति के साथ दस्तखत किया है... इसलिए हमारी तरफ से तफ़तीश पुरा है...
ज़ज - ह्म्म्म्म... (फाइल देखते हुए) तो आपकी रिपोर्ट... मुल्जिम का कबूलनामा है...
अरविंद - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - डिफेंस के तरफ से कौन लॉयर है...
प्रोसिक्यूटर - नहीं योर ऑनर... डिफेंस की तरफ़ से कोई लॉयर नहीं है...
ज़ज - ह्वाट... (वीर सिंह से) वीर सिंह... आपने अभी तक कोई लॉयर नियुक्त नहीं किया है... या कोई तैयार नहीं है... (वीर अपना चेहरा झुका कर नीचे की ओर देखते हुए जवाब देता है)
वीर - ज़ज साहब... मैं नहीं चाहता... अदालत का क़ीमती वक़्त खराब हो... मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया है... आप मुझे फांसी की सजा सुना कर न्याय कीजिए...
विक्रम - (खड़ा हो जाता है) नहीं... वीर यह तुम्हें क्या हो गया है...
ज़ज - (गावेल को टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर ऑर्डर...
विक्रम - ज़ज साहब... यह मेरा छोटा भाई है... यह खुन इसने नहीं किया है... यह गुनाह कबूल नहीं किया है... बल्कि आत्महत्या कर रहा है...
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आप चुप रहिए... जब आप से पुछा जाएगा... आप तभी कह सकते हैं... यूँ बीच में कह कर कारवाई में बाधा उत्पन्न करेंगे तो अदालत आपको यहाँ से निकाल देगी...
विक्रम कुछ कहना चाहता था पर विश्व उसे रोक देता है और खुद खड़े होकर ज़ज से कहता है l
विश्व - योर ऑनर.. अगर आपकी इजाजत हो... तो मैं इस केस में कुछ रौशनी डाल सकता हूँ...
ज़ज - आपकी तारीफ़...
विश्व - जी मैं... विश्व प्रताप महापात्र... (ज़ज के सामने जाकर अपना लॉ की डिग्री और लाइसेंस नंबर की कागजात देते हुए) मैं एक वकील भी हूँ... और यह मेरी डिग्री और वकालत नामा...
जज - (कागजात देखने के बाद) ह्म्म्म्म... तो मिस्टर विश्व प्रताप... आप इस केश में क्या रौशनी डाल सकते हैं...
विश्व - योर ऑनर... जैसे कि आपने देखा... मुल्जिम ने अपने लिए कोई डिफेंस लॉयर नियुक्त नहीं किया है... इसका मतलब यह हुआ है कि... उस लड़की की मौत ने... मुल्जिम को अंदर से इतना तोड़ दिया है कि... यह अब जीना नहीं चाहता है... मर जाना चाहता है...
प्रोसिक्यूटर - यह क्या लॉजिक हुई...
विश्व - योर ऑनर... अभी आपने ही देखा है... की अपने आप को गिरफ्तार करवाने के बाद... वीर ने पुरी तरह से चुप्पी साध ली थी... जिसके वज़ह से पुलिस ने जो भी इनवेस्टिगेशन किया है... सब कुछ संभावना पर ठहर गया है... और हाँ... वीर ने भी कोई विरोध नहीं किया है... पर यह सारे संभावनाएं हैं... जो कि वास्तविकता से कोसों दुर है...
ज़ज - तो आप वीर की पैरवी करना चाहते हैं...
विश्व - येस योर ऑनर... विथ योर परमिशन...
प्रोसिक्यूटर - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर... यह कैसे हो सकता है... मुल्जिम ने कोई वकील अपने लिए नियुक्त नहीं किया है... और उसने किसी भी संभावना को नकारा नहीं है... और अपना गुनाह कबूल कर लिया है... फिर...
ज़ज - मिस्टर प्रोसिक्यूटर... क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अदालत मुल्जिम को केवल इसलिए सजा दे दे... के उसने इकबाल ए जुर्म कर दिया है... बिना डिफेंस के सुने... अदालत किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दे सकती... कानून के जानकार होने के नाते यह आप जानते होंगे...
प्रोसिक्यूटर - जी... पर मुल्जिम ने इन्हें नियुक्त नहीं किया है...
जज - अदालत न्याय के लिए होती है मिस्टर प्रोसिक्यूटर... अगर विश्व प्रताप... आज यह साबित करने में कामयाब हो गए... के केस में सच्चाइ अभी भी छुपी हुई है... जिसे बाहर लाना आवश्यक है... तो इससे न्याय की जीत होगी... क्या आप नहीं चाहते के मक्तुला और मुल्जिम दोनों के साथ न्याय हो...
प्रोसिक्यूटर - जी जरूर चाहता हूँ...
जज - देन ऑब्जेक्शन ओवर रुल्ड... प्लीज सीट डाउन... (प्रोसिक्यूटर बैठ जाता है) मिस्टर विश्व प्रताप... अदालत आपको तागिद करती है... आप इस केस में... इस केस के ताल्लुक तहरीर पेश करेंगे... अगर आप नाकाम रहे... तो आप पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की तहत कारवाई होगी...
विश्व - मुझे मंजुर है योर ऑनर... एंड थैंक्यू फॉर एलॉव मी...
ज़ज - आप अपनी तहरीर पेश करें...
विश्व - माय लॉर्ड... जैसा कि सरकारी वकील ने कहा कि... यह शख्स जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है... एक बड़े घराने से ताल्लुक रखता है... दौलत और रुतबे की कोई कमी नहीं... तो क्या वकील साहब बतायेंगे... के क्यूँ मुल्जिम वीर सिंह ने... अपने डिफेंस के लिए वकील नहीं किया... अगर चाहते तो... वकीलों की फौज खड़े कर सकते थे...
प्रोसिक्यूटर - मैं... मैं क्यूँ इस बाबत कोई टिप्पणी करूँ...
वीर - मैं बस आपकी राय जानना चाहता हूँ...
प्रोसिक्यूटर - माय लॉर्ड... मैं मिस्टर विश्व पर छोड़ता हूँ... वह जो चाहें दलील पेश कर सकते हैं... पर मुझे नहीं लगता... केस में इस पर कोई बहस होनी चाहिए... बात सबूतों की होनी चाहिए... जो कि सभी वीर सिंह के खिलाफ खुल कर गवाही दे रहे हैं...
विश्व - ठीक है... माय लॉर्ड... अगर बात सबूतों पर ही करनी है... तो मैं इंवेस्टिगेशन ऑफिसर मिस्टर अरविंद कुमार को विटनेस बॉक्स में बुलाना चाहता हूँ... (अरविंद फिर से विटनेस बॉक्स में आता है) तो इंस्पेक्टर साहब... आपके तफ्तीश के मुताबिक... क्राइम के दो स्पॉट थे... पहला... पैराडाइज के पेंट हाऊस... और दुसरा ×××× बिल्डिंग के तीसरी मंजिल पर...
अरविंद - जी...
विश्व - तो इंस्पेक्टर साहब... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... कत्ल का हथियार क्या था...
अरविंद - जी... खंजर...
विश्व - क्या उसमें... मुल्जिम के उंगलियों के निसान थे...
अरविंद - (चुप रहता है)
विश्व - आप चुप क्यों हो गए अरविंद सर... आप ही ने अदालत में रिपोर्ट दाखिल की है...
प्रोसिक्यूटर - मिस्टर विश्व... आपके पास रिपोर्ट की कॉपी कैसे आई...
विश्व - यह कैसा सवाल है... हम बात सबूतों पर कर रहे हैं... सबूतों पर बात खत्म हो जाने दीजिए... मैं आपको पुरी जानकारी दे दूँगा... हाँ तो अरविंद साहब... मैंने आपसे पुछा... क्या उस खंजर पर... मुल्जिम के उंगलियों के निशान थे...
अरविंद - नहीं... पर चूँकि मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया था... तो... (चुप हो जाता है)
विश्व - ठीक है... आई कैन अंडरस्टांड... खैर आप जब क्राइम स्पॉट पर पहुँचे तब आपने क्या देखा...
अरविंद - जैसा कि मैंने पहले भी बताया... के हम जब मौका ए वारदात पर पहुँचे... मुल्जिम मक्तुला को गोद में लिए बैठा हुआ था...
विश्व - और आपने उसके बाद क्राइम स्पॉट सीज की होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वारदात की जगह पर जो भी मिला होगा... उसकी आपने फोटो खिंची होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वहाँ... आपको कत्ल की हथियार के साथ साथ... और क्या क्या मिला क्या अदालत को बतायेंगे...
अरविंद - जी एक रिवॉल्वर मिला... जिसके तीन राउंड फायर हो चुके थे... पर मौका ए वारदात पर हमको... सिर्फ दो गोलियाँ मिली... एक दीवार में धंसी हुई थी... और दुसरी... नीचे कंस्ट्रक्शन साइड की रेत में... और उस गन में... मुल्जिम के उंगलियों निशान मिले... और तो और... मुल्जिम के हाथ में गन पाउडर भी मिला...
विश्व - ह्म्म्म्म... माय लॉर्ड... क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है... वारदात की जगह पर तीन राउंड फायर किया गया रिवॉल्वर मिलता है... जिस पर मुल्जिम के उँगलियों के निशान भी मिलते हैं... पर मक्तुला की कत्ल रिवॉल्वर से नहीं... खंजर से हुई है...
विश्व की इस खुलासे से जज पुलिस के द्वारा सौंपी गई फाइल को फिर से देखने लगता है l अदालत के दर्शकों वाली दीर्घा में बैठे आम लोग और मीडिया वाले भी खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l फाइल को जांचने के बाद जज अपनी गावेल को टेबल पर मारता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... (अदालत में चुप्पी छा जाती है) (अरविंद से) इंस्पेक्टर... मैंने पहले ही कहा था... आपने अपनी केस को सम्भावनाओं के आधार पर तैयार किए हैं... आपके पास पुख्ता सबूत केवल यह है कि... मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया है... (अरविंद शर्मिंदा होता है) ह्म्म्म्म विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं... इस कत्ल में कोई और भी इंवॉल्व है...
विश्व - जी योर ऑनर... अगर पुलिस... वीर की इकबालिया बयान को दर किनार कर तफ्तीश की होती... तो इस कत्ल के आड़ में छिपे हुए हैं... उनके पास पहुँच चुकी होती... पर अफसोस... पुलिस ने अपनी लापरवाही और बेफिक्री के चलते एक सबुत को खो बैठी...
अरविंद - यह... यह सच नहीं है माय लॉर्ड... हमने दोनों वारदात की जगह से जो भी सबूत इकठ्ठा किया था... बाकायदा उसकी लिस्ट बनाया और अदालत में जमा किया है योर ऑनर...
जज - मिस्टर विश्व... माना के आपने एक अच्छी पॉइंट निकाल कर सामने लाया है... पर यह तो आप पुलिस संस्था पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं...
विश्व - नहीं योर ऑनर... मैं इतनी बड़ी धृष्टता नहीं कर सकता... पर मैं अरविंद जी से पूछना चाहता हूँ... अदालत में जमा करने से पहले... जो सबूत मौका ए वारदात से बारामत की गई... उसकी लिस्ट और... अदालत में पेश की गई लिस्ट का मिलान कर बतायें... (इस बार अरविंद और भी शर्मिंदा होता है और अपना सिर नीचे झुका लेता है)
जज - मिस्टर अरविंद...
अरविंद - आ.. आ.. आई एम सॉरी... ज़ज साहब... मुझसे बहुत बड़ी चुक हो गई है... असल में जब वीर सिंह ने कत्ल का इल्ज़ाम स्वीकर लिया... और हमारी किसी भी आरोप का किसी भी तरह से विरोध नहीं किया... इसलिए... मैंने उस सबूत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया...
जज - वह कौनसा सबूत था मिस्टर अरविंद...
अरविंद - (शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लेता है, उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती)
विश्व - एक सोने की ब्रैसलेट योर ऑनर... और यह ब्रैसलेट उस हाथ से निकल गिरा था योर ऑनर... जिसके हाथ... अनुसूया के खुन से रंगे थे...
यह सुनते ही वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं l यह हालत ना सिर्फ वीर की थी बल्कि अदालत में मौजूद सभी की आँखे हैरानी के मारे फैली हुई थी l
जज - यह आप किस आधार पर कह सकते हैं विश्व प्रताप...
विश्व - माय लॉर्ड... वारदात की जगह सील कर लेने के बाद... फॉरेंसिक टीम हर एक जगह की बारीकी से फोटो लेती है... आप के पास उस फाइल में देख सकते हैं... एक पिलर के नीचे... खुन पड़ा हुआ है... और उसके पास एक सोने की ब्रैसलेट भी गिरा हुआ है... फॉरेंसिक टीम ने... जाँच के बाद... सारे सबूत इकट्ठा कर लिस्ट बना कर पुलिस के हवाले कर दिया था... पर इन्हीं तीन दिनों के अंदर... पुलिस की स्टोर से... वह सोने की ब्रैसलेट गायब कर दी गई...
जज फाइल में उस एनेक्सचर पर जाता है जिन में वारदात की जगह की फोटो थे l उन फोटो में से एक फोटो में पिलर के नीचे खून और खून के पास सोने की ब्रैसलेट साफ दिख रहा था l जज अब अरविंद पर गुस्सा हो कर
जज - यह क्या है अरविंद... इतनी बड़ी लापरवाही... अगर खुदा ना खास्ता कल को अगर मुल्जिम को सजा हो गई होती और बाद में उसकी बेगुनाह साबित हो जाता... तो...
अरविंद - आई एम अगैंन सॉरी माय लॉर्ड...
जज - विश्व प्रताप की इस पैरवी पर आपकी क्या राय है प्रोसिक्यूटर...
प्रोसिक्यूटर - माफी चाहूँगा योर ऑनर... अब केस को फिर से छानबीन करने के लिए पुलिस को आदेश करें... मैं इस वक़्त बस इतना ही कह सकता हूँ...
जज - ठीक है... आज इस केस पर विश्व ने जिस तरह से रौशनी डाली है... अदालत उनका आभार प्रकट करता है... यह अदालत पुलिस को आदेश देता है... की जल्द से जल्द... उस बैसलेट की मालिक को ढूँढ कर सामने लाये... और वीर सिंह से अनुरोध करती है... आप अगले तारीख तक अपने लिए एक वकील को नियुक्त करें... अथवा अदालत विश्व प्रताप को ही आपकी वकील के रुप में नियुक्त करेगी... आज की कारवाई को यहीँ पर स्थगित करते हुए... अगले पंद्रह दिन की तारीख को मुकर्रर कर... अदालत बर्खास्त की जा रही है.... द कोर्ट इज़ एडजॉर्न...
एक सौ उनचासवाँ अपडेट
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रात भर आसमान बरस रही थी, या शायद रो रही थी l रुक ही नहीं रही थी l निरंतर बरसात हो रही थी l राजगड़ में कुछ आँखे ऐसी भी थीं जो सोई नहीं थीं l विक्रम के मन में बैचैनी थी वह वापस चले जाना चाहता था पर अनवरत वर्षा उसे महल में रोक दिया था l अपने कमरे से निकालता है और चारों और अपनी नजर घुमाता है l कभी नौकरों चाकरों से घिरे रहने वाला भरे रहने वाला यह महल कानून की अलमवरदरों के मर्जी के बदोलत कुछ नौकर ही महल में ठहरे हुए हैं l अभी सभी के सभी नींद में सोये हुए हैं l विक्रम चलते चलते कुछ दुर चल कर दीवान ए आम में पहुँचता है l वहाँ पहुँचते ही विक्रम हैरान हो जाता है, क्यूंकि सोफ़े पर उसे सुषमा बैठी दिखती है l सुषमा भी उसे देख लेती है और उससे सवाल करती है
सुषमा - सोया नहीं बेटा..
विक्रम - नहीं माँ... पता नहीं नींद क्यूँ नहीं आ रही है... पर आप.. आप क्यूँ जाग रही हैं...
सुषमा - पता नहीं... आज दिल शाम से ही बैठा जा रहा है... इस बिन मौसम की बरसात को देख कर ऐसा लगता है... जैसे यह काले काले बादल... एक के बाद एक बुरी ख़बरों की समाचार बरसा रहे हैं... ऐसा लग रहा है जैसे... यह बरस नहीं रहे हैं... हमारी बेबसी पर तरस खा कर रो रहे हैं...
विक्रम - (जाकर सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुझे नींद क्यूँ नहीं आई.. तु तो थका हारा आया था...
विक्रम - पता नहीं क्यूँ... मुझे ऐसा लग रहा है जैसे... कोई मेरी अंतरात्मा को झिंझोड रहा है... कह रहा है.. मुझे यहाँ आना नहीं चाहिए था...
सुषमा - पर तेरा आना जरूरी था बेटा... तुम सही समय पर आए... वर्ना... आज रुप की बहुत बुरी हालत हो जाती...
विक्रम - आज मैंने रुप की... एक अलग रुप देखा... कोई खौफ नहीं था उसकी आँखों में... जैसे वह मरने के लिए तैयार थी... कितना बदल गई है...
सुषमा - हाँ बदल तो गई है...
विक्रम - हाँ माँ... कितना बदल गई है... जब भुवनेश्वर गई थी... बेज़ान गूंगी गुड़िया सी थी... पर अब..
सुषमा - अनाम... अनाम, वज़ह है उसकी हिम्मत पीछे..
विक्रम - अनाम...
सुषमा - हाँ... अनाम... जिसे तुम प्रताप के नाम से जानते हो...
विक्रम - ओह.. हाँ... शुब्बु ने बताया था... (थोड़ी देर की खामोशी) अच्छा माँ... आप को कभी भी नहीं लगा... प्रताप और रुप के बीच का प्यार का...
सुषमा - मुझे कुछ ही दिनों में पता चल गया था... उन दोनों के बीच पल रहे मासूम प्यार के बारे में... पर मुझे मालूम नहीं था... उनका यह प्यार एक दिन अंजाम तक पहुँच भी पाएगा...
विक्रम - क्यूँ... मतलब... ऐसा क्यूँ लगा था आपको...
सुषमा - विक्रम... तुम्हें वह रात तो याद होगी... जिस रात तुम्हारी माँ हम सबको छोड़ कर चली गई... उस वक़्त तुम सिर्फ़ दस या ग्यारह साल के थे... तुम समझदार तो हो ही गए थे... इसलिए खुद को संभाल लिए... पर रुप... चौबीसों घंटे अपनी माँ से चिपटी लिपटी... एक दम से अनाथ हो गई थी... मैंने उसे संभालने की पुरी कोशिश की पर... उस हादसे की सदमे से बाहर नहीं निकाल पाई... वह डरी सहमी बेज़ान गुड़िया सी बन गई थी... राजा साहब ने एक काम तो अच्छा किया... प्रताप को अनाम बना कर उसकी पढ़ाई का जिम्मा दे दिया... ज्यों ही प्रताप रुप की जिंदगी में आया... उस बेज़ान सी गुड़िया में जान आ गई... अपनी डर से बाहर निकली... हर दिन हर पल खुद को... कमरे में कैद कर रखती थी... पर वह फूलों सी खिलती... चिड़ियों सी चहकती... जब प्रताप उसके सामने... उसके साथ होता था... उससे जिद करती... प्रताप भी दिलों जान से... रुप की जिद को पुरा करने में लग जाता था... मैं गवाह हूँ... प्रताप के हर उस तोहफे का.. जो उसने रुप के जन्म दिन पर दिया करता था... (अब सुषमा रुप के हर एक जन्म दिन की बात कहने लगती है)
विक्रम - आपने कभी रोका नहीं...
सुषमा - नहीं... क्यूँकी मैं समझती थी... यह सब एक दिन रुक जाएगा... क्यूँकी प्रताप अपनी बचपन को छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... वहीँ रुप बचपन से निकल कर किशोरी बन रही थी... और एक दिन यह सब बंद भी हो गया... रुप फिर से पुरानी वाली रुप बन गई... खुद को कमरे में बंद कर लिया और पढ़ने लगी... पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था... उसके जीवन में फिर अनाम आया... मगर प्रताप के रुप में... रुप के अंदर की वह चुलबुली अल्हड जिद्दी लड़की फिर से बाहर निकलने लगी.... उसने प्रताप को पहचान लिया था... अब वह फिर से अपनी प्रताप से जिद करने लगी... प्रताप आज भी उसकी जिद को तरजीह देता है... उसे पूरा करता है... (सुषमा अब चुप हो जाती है, विक्रम भी थोड़ी देर के लिए चुप रहता है, फिर थोड़ी देर के बाद)
विक्रम - हाँ... रुप में फिर से जान आ गई थी... उसने हैल नाम की नर्क में भी जान फूँक दी थी... जो रिश्ते मर चुके थे... उन्हें फिर से जिंदा कर दिया था... आज अगर हम भाई बहन... माँ बेटे की रिश्ते में बंधे हुए हैं... उसकी वज़ह रुप ही है... (फ़िर थोड़ी देर के लिए चुप्पी) हम सबके जीवन में... प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में प्रताप का बड़ा योगदान है... वीर का एकलौता दोस्त... वीर के लिए भी बहुत कुछ किया है उसने... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ... वह दोस्त है... या दुश्मन...
इस बात की सुषमा कोई जवाब नहीं देती l विक्रम भी आगे उससे कुछ पूछता नहीं l बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी l सुबह होने वाली भी थी, इतने में बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज आती है l
सुषमा - देखो... बातों बातों में रात बीत गई... बारिश भी अब रुक रही है...
विक्रम - हाँ पर इतनी सुबह सुबह.. कौन आ सकता है...
दोनों के कानों में नौकरों की भाग दौड़ करने की आवाज़ सुनाई देने लगती है l कुछ देर बाद एक नौकर अंदर आता है इनके सामने झुक कर रास्ता बनाते हुए अंदर चला जाता है l इन्हें समझते देर नहीं लगती के नौकर भैरव सिंह के कमरे की ओर जा रहा है l दुसरा नौकर इनके पास आकर खड़ा होता है l
विक्रम - कौन आए हैं... राजा साहब को जगाने के लिए क्यों गए हैं...
नौकर - छोटे राजा जी आए हैं... राजा साहब जी से... दिवान ए खास में मिलना चाहते हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... इस वक़्त... दिवान ए खास में...
विक्रम तेजी से दिवान ए खास की ओर जाने लगता है l किसी अपशकुन की आशंका से सुषमा भी दिवान ए खास की ओर जाने लगती है l विक्रम कमरे में पहुँच कर देखता है, पिनाक के चेहरे पर एक खुशी छलक रही थी l सुषमा कमरे के बाहर रुक जाती है l विक्रम को देखते ही पिनाक के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आती है l
विक्रम - छोटे राजा जी... आप इतनी सुबह... यहाँ..
पिनाक - क्यूँ.. हमें घर छोड़ने की कोई आदेश थी क्या... परिवार पर मुसीबत आई है... तो राजा साहब के बगल में... खड़े होकर सामना करने आए हैं...
तभी एक नौकर भागते हुए आता है और भैरव सिंह के आने की सूचना देता है l और फिर कमरे से बाहर की ओर चला जाता है l थोड़ी ही देर में कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देखते ही पिनाक खुश हो कर
पिनाक - राजा साहब... हम अभिनंदन के योग्य काम कर आए हैं...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... आप जानते हैं... इस समय आप दिवान ए खास में... आप हमसे क्या कह रहे हैं...
पिनाक - जी राजा साहब... हम अपनी खुशी को दबा कर... रात भर... बारिश की परवाह न करते हुए... आपसे वह खबर और खुशी दोनों बांटने आए हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है) ठीक है... पहले विराजे...
पिनाक - (बैठ जाता है) युवराज आप भी बैठिए... आपका तो जानना बहुत जरूरी है...
भैरव सिंह - अब भूमिका बाँधना बंद कीजिए... बात क्या है पहले यह बताइए...
पिनाक - राजा साहब.. माना के कुछ पल के लिए हम गर्दिश में घिरे हुए हैं... पर यह खबर आपको खुश कर देगी... यह निश्चिंत है... रही यह जो कुछ पल का मौसम खराब हुआ है... बहुत जल्द यह वक़्त भी गुजर जाएगा...
विक्रम - आपकी बातों में... लफ्जों गहराई झलक रही है... बात क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - राजा साहब... हमने बहुत कोशिश की थी... हमारे खानदान के दामन में... लिच की तरह चिपकी हुई दाग को छुड़ाने की... नाकाम रहे... फिर उस हराम खोर विश्व प्रताप को चोट पहुँचाने के लिए... हमने वह सेनापति दंपति को उठाने की कोशिश करी पर... किसी तीसरे ने हमारी मंशा पर पानी फ़ेर दी... तब हम खार खा कर रह गए... उस दिन... राजा साहब... उसी दिन... राजकुमार ने... (अपने हाथ में सूखे ज़ख़्म को देखते हुए) हमारे अहं... हमारे गरुर को घायल कर दिया था... ऐसा ज़ख़्म दिया था... (सूखे ज़ख़्म को देखते हुए, मुट्ठी भिंच लेता है, आँखे और चेहरा सख्त हो जाता है) हमारी रुह घायल हो गया था...
जिस लहजे में पिनाक ने यह बात कही थी कमरे में ख़ामोशी पसर जाती है l बाहर खड़ी सुषमा की आँखे सम्भावित आशंका से अपनी मुहँ पर हाथ रख लेती है l
पिनाक - (विक्रम से) युवराज... आज अगर आप भुवनेश्वर में होते... तो हम शायद कभी कामयाब नहीं हो पाते...
विक्रम - क्या मतलब है आपका...
पिनाक - हा हा हा हा हा... युवराज... हमारी जिंदगी शतरंज की तरह है... शाह तब तक सुरक्षित है... जब तक उसके हिफाज़त में प्यादे अपनी खानों में होते हैं... एक खाना खाली हुआ... के शाह ख़तम... खेल ख़तम... (अब विक्रम को भी अनहोनी की आशंका होने लगती है, वह हैरानी के मारे पिनाक की ओर देखने लगता है) आप यहाँ अपने प्यादों सहारे पैराडाइज को छोड़ आए थे... हमने अपना काम आसानी से कर आए...
विक्रम - मतलब...
पिनाक - (भैरव सिंह की ओर देख कर) राजा साहब... अनु नाम की दाग को हमने हमेशा हमेशा के लिए... मिटा दिया है...
विक्रम - क्या... (कह कर उठ खड़ा होता है)
सुषमा - नहीं... (चीख कर अंदर आती है) नहीं.. यह नहीं हो सकता... कहिये यह झूठ है...
पिनाक - ओ... तो आप छुप छुप कर सब सुन रही थी... हा हा हा... हम क्षेत्रपाल हैं... ऐसी बातों को... झूठ में नहीं बोलते...
सुषमा - यह आपने क्या कर दिया... वीर तो सब कुछ छोड़ चुका था... फिर भी आपको दया नहीं आई... अखिर आपका खुन है वह...
पिनाक - उसी खुन ने... हमारा खुन बहा कर... अपना खुन का रंग दिखाया था... पहचान करवाया था... हमने उसे... यह जता दिया... के हम उसके.. बाप हैं...
सुषमा -(तड़प कर) क्या...
पिनाक - हाँ छोटी रानी हाँ... यह देखिए... (अपना सूखा हुआ ज़ख़्म दिखा कर) यह ज़ख़्म दिया था राजकुमार ने... हमने उन्हें अपनी औलाद होने से नकार दिया था... तो उन्होंने बड़ी डींगे हांक कर कहा था... के एक दिन हमारे बेटे बन कर दिखाएंगे... वह मौका हमने अनु को उनके जिंदगी से हटा कर दिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... क्या आप सच कह रहे हैं...
पिनाक - राजा साहब... हमने कसम खाई थी... जब तक... उस दो कौड़ी की रखैल को.. राजकुमार जी के जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए ना हटा दें... तब तक... ना राजगड़ में कदम रखेंगे... ना अपना शकल दिखायेंगे...
भैरव सिंह - शाबाश छोटे राजा जी... अब तक सब बुरा ही बुरा हो रहा था... आपने अच्छी खबर की शुरुआत की है... तो अब सब अच्छा ही होता जाएगा... शाबाश...
पिनाक - शुक्रिया राजा साहब...
सुषमा - (रुंधे गले से) विक्रम... वीर ने क्या किया होगा...
पिनाक - क्या किया होगा हूंह... या तो कपड़े फाड़ कर रो रहे होंगे... या फिर हमारे नाम पर पुलिस में केस किए होंगे...
विक्रम जाकर कमरे में लगी टीवी को ऑन करता है और रिमोट से न्यूज लगाता है l यह देख कर पिनाक विक्रम से पूछता है l
पिनाक - यह टीवी क्यूँ लगा रहे हैं आप...
विक्रम - मामला क्षेत्रपाल से जुड़ा है... तो बात साधारण तो नहीं होगी... अब तक स्टेट में तहलका मच गया होगा...
तब न्यूज टीवी पर चलने लगती है l नभ वाणी न्यूज चैनल पर सुप्रिया न्यूज ब्रीफिंग में जो कहने लगी उसे कमरे में मौजूद चारों लोग सुनने लगे l
"कल रात से सारा शहर स्तब्ध है l एक गरीब लड़की, माली साही की बस्ती में रहने वाली लड़की, जिसका कुछ दिनों पहले अपहरण हो गया था l जिसकी रक्षा करने के लिए कानून को विवश होना पड़ा l उसी लड़की की हत्या हो गई है l अविश्वसनीय पर सच यही है l हत्यारा भी कौन...?
वही जिसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी l जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा किया था l वीर... वीर सिंह क्षेत्रपाल l जिसने सारे ज़माने के आगे अनु का हाथ थामा l पुलिस ने उसे अनु की हत्या में अभियुक्त बना कर गिरफ्तार कर लिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l"
पिनाक - (चीखता है) यह.. यह क्या कह रही है यह... पुलिस को तो मुझे ढूंढना चाहिए था... यह वीर...
भैरव सिंह - आप थोड़ी देर के लिए शांत हो जाइए... पुरी खबर क्या है जानने दीजिए...
न्यूज ब्रीफिंग में :—
सुप्रिया - आइए.. हमारे सम्वाददाता से... इस बात की पुष्टि करते हैं... हाँ तो अरुण... इस मामले में आपने क्या जानकारी हासिल की... क्या हमारे साथ साझा करेंगे...
अरुण - जी सुप्रिया.. हमने अपनी सूत्रों से... अब तक हुए हर घटनाक्रम के बारे में जो जानकारी प्राप्त की हैं... उसके अनुसार...
कल शाम को ××××× पुलिस स्टेशन इनचार्ज के पास फोन आया था कि ××××इलाके में बन रही एक बिल्डिंग में एक हत्या हुई है l हैरानी की बात यह है कि यह फोन खुद वीर सिंह ने ही किया था l मौका ए वारदात पर जब पुलिस पहुँची तो वीर सिंह अनु की लाश के पास ही था l पुलिस ने हत्या में हुई हत्यार बरामद कर ली है l क्राइम स्पॉट को सील कर दिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l आगे की कार्रवाई क्या होगी यह बाद में मालुम होगा l "
पिनाक कमरे में रखी एक ऐस ट्रे उठा कर टीवी पर फेंक मारता है l टीवी की स्क्रीन टुट जाता है l जहां यह खबर पिनाक को अस्तव्यस्त कर दिया था वहीँ यह खबर भैरव सिंह को हैरान कर दिया था और विक्रम के साथ साथ सुषमा को स्तब्ध कर दिया था l
पिनाक - यह... यह क्या कर दिया वीर ने... राजा साहब अनर्थ हो गया... मैंने तो सोचा था... वीर मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा... पर इसने तो... सारा इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया... मुझे जाना होगा... मुझे जाना होगा... मुझे वीर को बचाना होगा...
कमरे में हर कोई मौन था सिवाय पिनाक के l पिनाक पागलों की तरह बक बक करने लगा था l
पिनाक - यह.. यह मुझसे क्या हो गया राजा साहब.. वीर खुद को अनु की कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवा दिया... नहीं नहीं मुझे जाना होगा.. राजा साहब मैं निकालता हूँ... मुझे सच बताना होगा... वीर को बचाना होगा...
एक झन्नाटेदार थप्पड़ पिनाक के गाल पर पड़ती है l पिनाक कुछ दुर जा कर गिरता है l सुषमा और विक्रम जो सदमें के कारण बुत बन कर खड़े हुए थे l उनका ध्यान थप्पड़ की आवाज सुन कर पिनाक की ओर जाता है l यह थप्पड़ भैरव सिंह ने मारा था
भैरव सिंह - यह क्या पागलपन लगा रखा है.... होश में आइये छोटे राजा जी... होश में आइये...
पिनाक - हमारे घर का चिराग जहां बुझने को है... वहाँ मैं कैसे होश में रह सकता हूँ...
भैरव सिंह - अगर आप होश में नहीं रहेंगे... तो... छोटे राजा जी... सारे तंत्र... हमारे खिलाफ तलवार ताने तैयार बैठे हैं... एक छोटी सी गलती... हमारी पुरी दुनिया को तबाह कर देगी... हम वकील कर सकते हैं... वीर को बाहर ला सकते हैं...
पिनाक - कैसे राजा साहब कैसे... वीर ने खुद को अनु की कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करवाया है... अगर हम लोग अभी उसके पास नहीं गए... तो... उसे हम खो देंगे... नहीं नहीं... मैं उसे खो नहीं सकता... (सुषमा की ओर मुड़ कर) छोटी रानी... आप तैयार हो जाओ... वीर मुझसे बात नहीं करेगा... पर आपसे बात करेगा... आपकी बात मानेगा... चलिए चलिए... जल्दी चलिए...
इस बार भैरव सिंह पिनाक की गिरेबान को पकड़ कर अपनी तरफ खिंचता है और दो तीन थप्पड़ लगा देता है l फिर पिनाक की गर्दन पकड़ कर उसे एक कुर्सी पर बिठा देता है l
भैरव सिंह - चुप... बिल्कुल चुप.. कब से कह रहे हैं... थोड़ा शांत... थोड़ा शांत.. सुनाई नहीं दे रहा... क्षेत्रपाल हो आप... किसी ड्रामा कंपनी के भांड नहीं हैं... समझे... ना आप जाएंगे... (सुषमा से) ना ही आप...
सुषमा - हम क्यूँ ना जाएं...
भैरव सिंह - आप अपनी सीमा लाँघ रहे हैं...
सुषमा - हमारा बेटा मुसीबत में है... और आप कह रहे हैं.. हम अपनी औलाद के पास ना जाएं...
भैरव सिंह - हाँ... अभी आप दोनों में से कोई कहीं नहीं जाएगा...
पिनाक - (कुर्सी से उठ कर) मैं जाऊँगा...
एक और थप्पड़ लगती है उसके गाल पर l इस बार पिनाक हैरान हो कर भैरव सिंह की ओर देखता है और कहता है
पिनाक - आप मेरी भावनाओं पर ऐसे क्यूँ प्रतिक्रिया दे रहे हैं... अपराध हुआ है मुझसे... उस अपराध की बेदी पर बलि... मेरा बेटा चढ़ रहा है...
भैरव सिंह - जब से न्यूज देखा है.... तब से एक ही रट लगाए हुए हैं... मेरा बेटा मेरा बेटा... यह अचानक अपने बेटे पर इतना प्यार क्यूँ उमड़ रहा है... हमें तो याद नहीं आ रहा... कभी वीर के लिए... आपको खयाल करते हुए...
पिनाक - हाँ हाँ... नहीं किया कभी खयाल... पर आज जब देखा... मेरे अपराध की कीमत वह अपनी जान देकर चुका रहा है... तो मुझसे रहा नहीं जा रहा है... पहली बार एहसास हो रहा है... मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है... मैं अब यह गलती सुधरना चाहता हूँ... अपनी गलती की सजा मैं भुगतना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - आपसे कोई गलती नहीं हुई है... गलती वीर से हुई है.. और वीर अगर सजा भुगतना चाहता है... तो भुगतने दीजिए...
पिनाक - क्या... क्या कहा आपने... गलती वीर से हुई.. सजा उसे भुगतने दूँ... क्या गलती हो गई वीर से... जिसकी सजा वीर भुगतेगा...
भैरव सिंह - गलती नहीं अपराध... एक राह चलती रंडी को हमारे खानदान की माथे पर बिठा रहा था...
पिनाक - अच्छा... वीर ने प्यार किया तो अपराध हो गया... और विक्रम ने प्यार किया तो...
भैरव सिंह - (एक और थप्पड़ मारता है) विक्रम नहीं युवराज... युवराज ने किसी गंदी नाली की कीड़े को... हमारे खानदान की माथे पर नहीं सजाया था... जिस पार्टी की टिकट पर भुवनेश्वर की मेयर बने हुए हैं... उसी पार्टी की प्रेसिडेंट थे वह...
पिनाक - ओह... तो इससे खानदान की कोई मर्यादा हानि नहीं हुई... जब कि आपके यहाँ ब्याहने से उनकी मर्यादा की ऐसी हानि हुई... के वह पार्टी और पदवी छोड़.. अपने गाँव चले गए...
भैरव सिंह - गुस्ताख... (फिर से हाथ उठाता है, पर इसबार पिनाक भैरव सिंह का हाथ रोक देता है)
पिनाक - बस... अपने अपने बड़े होने का बहुत फायदा उठा लिया बस... (भैरव सिंह का हाथ छिटक देता है)
भैरव सिंह - यह तुमने क्या किया... यह आज तक कभी इस खानदान में नहीं हुआ था...
पिनाक - हमारे साथ... बहुत कुछ पहली बार हो रहा है राजा साहब... पहली बार... इस घर में पुलिस आई... पहली बार... आप नजरबंद हुए... पहली बार... हमारा घर का चिराग... आज सलाखों के पीछे गया है... पहली बार... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैंने कभी उसे बेटे जैसा प्यार नहीं किया... आज मेरा प्यार बाहर आ गया है... पहली बार... (आवाज़ सख्त कर) इसलिए आज आप मुझे नहीं रोक सकते...
भैरव सिंह एक लात मारता है, पिनाक कुर्सी पर हो कर उल्टी दिशा में गिर जाता है l इस बार पिनाक बहुत ही हैरान हो कर भैरव सिंह को देखता है l सुषमा इस बार भागते हुए पिनाक के पास आती है और उसे उठने में मदत करती है l
भैरव सिंह - यूँ आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो... बहुत गा रहे थे... पहली बार पहली बार... इसलिए लात भी पड़ी है तुम पर पहली बार... और खबरदार कर रहे हैं... अगर बाहर गए... तो सौगंध है आपने खानदान की... यहीं के यहीं जिंदा गाड़ देंगे... कब से समझा रहे हैं... हमारे दुश्मन बहुत सक्रिय हो गए हैं... उन्हें एक कमजोर कड़ी का तलाश है... तुम उनके हत्थे चढ़ गए... तो बरसों का कमाया हुआ... किया धरा सब मिट्टी में मिल जाएगा...
पिनाक - कमाया हुआ... जब खानदान का भविष्य ही सलाखों के पीछे खतरे में है... वह अगर सूली पर चढ़ गया... तो यह जितना कमाया है... उसे खाएगा कौन...
भैरव सिंह - तो और एक ब्याह लेना... जितने चाहे उतने भविष्य निकाल लेना...
पिनाक - भैरव सिंह... (भैरव सिंह की आँखे फैल जाती हैं) हाँ... भैरव सिंह... यह भी पहली बार हो रहा है... आज तुमने मुझे मेरी ही नजरों से गिरा दिया... मैं कितना कमजर्फ हूँ.. हरामी हूँ... यह आज जता दिया... तुमने मुझे जिस राह पर चलाया... आँखे मूँद कर चलता रहा... भला बुरा कुछ नहीं देखा... जिस चश्मे से दुनिया को दिखाया... मैं देखता रहा... इसलिए अपनी औलाद को... अपने जिगर के टुकड़े को... प्यार तक नहीं कर पाया... उसके दिल की ख्वाहिश तक को... तुम्हारे अहंकार की भेट चढ़ा दी मैंने... आज मेरे रगों में बहते खून ने आवाज़ दी है... पर उस आवाज़ को भी... मैं आज आखिरी बार तुम्हारे अहंकार की बेदी पर भेंट चढ़ा रहा हूँ... ठीक है... मैं नहीं जाऊँगा... इसी दिवान ए खास के एक कोने में (नीचे बैठ जाता है) ऐसे ही बैठा रहूँगा... मैं वादा करता हूँ भैरव सिंह... जब तक मुझे मेरा वीर यहाँ से लेकर नहीं जाएगा... तब तक... मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा...
कमरे में मरघट सा सन्नाटा छा जाती है l क्यूँकी आज जो भी हुआ इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी l क्षेत्रपाल महल के परिसर में वैदेही ने भैरव सिंह को नाम से पुकारा था और आज उसके अपने छोटे भाई ने बग़ावती तेवर दिखाते हुए भैरव सिंह का नाम लिया था l कमरे के एक कोने में नीचे फर्श पर पिनाक बैठ गया था l पिनाक पहले सुषमा की ओर देख कर
पिनाक - सुषमा जी... मैं आपका बहुत बड़ा अपराधी हूँ... मुझे आज जो सजा मिली है... वह मेरी अपनी कमाई हुई है... फिर भी आप मुझे क्षमा कर दें... (अपना हाथ जोड़ देता है, सुषमा के आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, विक्रम से) विक्रम... मेरा बेटा अकेला है... बचपन से लेकर आज तक... तुम उसके साथ साया बन कर रहे हो... जैसा जी मैंने इस महल के मालिक को वचन दिया है... मेरे वीर को ले आओ.. वही मुझे इस महल से ले जाएगा... प्लीज... मेरे वीर को ले आओ...
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
तीन दिन बाद
कटक में सेनापति दंपति के घर में बैठक कमरे में प्रतिभा के सामने शुभ्रा और विक्रम बैठे हुए हैं l शुभ्रा की आँखे नम थीं l विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी आ गई थी l चेहरा उदास था आँखे काले दिख रहे थे l
प्रतिभा - कहो विक्रम... कैसे आना हुआ...
विक्रम - (दर्द भरी आवाज़ में) क्या कहूँ माँ जी... वीर तीन दिन की जुडिशरी कस्टडी में है... कल उसकी पेशी है... मैंने उससे मिलने की कोशिश की थी... पर वह मुझसे भी नहीं मिल रहा है... मैं उसके लिए वकील खड़ा करना चाहता हूँ... पर वह मुझसे बात करना तो दुर... मिलना भी नहीं चाहता...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे लगा था... वीर तुमसे मिलेगा... तो तुमसे भी नहीं मिल रहा है...
विक्रम - तुमसे भी मतलब...
प्रतिभा - प्रताप... प्रताप भी उससे मिलने की तीन दिन से कोशिश कर रहा है... पर वीर उससे मिल नहीं रहा है.. इस बात को लेकर प्रताप जितना दुखी है... उतना ही परेशान भी है...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप तीन दिन से... मिलने की कोशिश कर रहा है...
प्रतिभा - उसमें हैरान होने वाली क्या बात है विक्रम... आखिर वीर प्रताप का दोस्त है... जब दोस्त मुसीबत में हो... तो प्रताप आएगा ही...
विक्रम - हाँ... पर वह आया कब...
प्रतिभा - दूसरे दिन की सुबह... जब वीर अरेस्ट हुआ... तभी मुझे खबर मिल चुकी थी... मैंने बिना देरी किए प्रताप को फोन कर बुला लिया... वह भी बिना देरी किए पहुँच भी गया...
शुभ्रा - तब तो प्रताप जरुर वीर को बचा लेंगे...
प्रतिभा - जल्दबाजी मत करो शुभ्रा... जल्दबाजी मत करो... मत भूलो.. वीर ने खुद स्टेट मेंट दी है... की अनु का कत्ल उसी ने किया है... और वह अपने डिफेंस के लिए कोई वकील लेने से इंकार कर दिया है... इसलिए जल्दबाजी मत करो...
विक्रम - माँजी... आप तो जानती हैं ना... वीर अनु का कत्ल नहीं कर सकता...
प्रतिभा - जानती ही नहीं मानतीं भी हूँ... पर कानून कैसे समझाएं...
विक्रम तीन दिन पहले राजगड़ जो भी कुछ हुआ सब बताता है l सब सुनने के बाद प्रतिभा विक्रम से कहती है l
प्रतिभा - तुम्हारे कहने का मतलब समझ गई विक्रम... यह एक ऑनर किलिंग है... जिसकी सजा अपने ऊपर लेकर... वीर अपने पिता को सजा देना चाह रहा है...
विक्रम - जी... चाचा जी आना तो चाहते थे... अपनी सफ़ाई देना चाहते थे... पर...
तभी घर के अंदर तीन शख्स प्रवेश करते हैं l तापस, खान और विश्व l तीनों के चेहरे उतरे हुए थे l तीनों को देख कर शुभ्रा और विक्रम अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l तापस उन्हें बैठने के लिए इशारा करता है l अब कमरे में सभी अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l पर सभी अपने अपने में खोए हुए हैं l कमरे में ऐसी खामोशी थी के मानों कमरे में कोई है ही नहीं l कुछ देर बाद खामोशी तोड़ते हुए प्रतिभा पूछती है l
प्रतिभा - क्या हुआ प्रताप... तुम गए थे... कुछ हुआ...
विश्व - इतनी कोशिशों के बावजूद... वीर मिलने से मना कर रहा है... मिले तो बात बनें...
विक्रम - एक बात समझ में नहीं आई... उसे... सेंट्रल जेल में रखने के बजाय... झारपड़ा सब जेल में क्यूँ रखा गया है...
विश्व - हाँ यह सवाल तो मेरे मन में भी उठा था... इसलिए खान सर की मदत से झारपड़ा जेल गया था... वीर से मिलने... पर उसने मिलने से मना कर दिया...
शुभ्रा - (रोते हुए) है भगवान... जब मुसीबत आई तो इस तरह...
प्रतिभा - शांत हो जाओ शुभ्रा...
शुभ्रा - नहीं माँ जी आप नहीं जानती... उस दिन वह कितना खुश था... पिता बनने की खुशी... किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा था... पर... (विक्रम उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलासा देने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - हम जानते हैं शुभ्रा... हम सब जानते हैं... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट देखा है हमने... खैर अब रोने धोने से कुछ नहीं होगा... प्रताप... क्या सोचा है तुमने... पुलिस ने तो चार्ज शीट तैयार कर चुकी होगी...
विश्व - हाँ माँ... मैं इसलिए डैड और खान सर को लेकर गया था... क्राइम सीन पर बरामद हुए सभी चीजें... घर में बरामद हुए सभी चीजें... वीर की रिटीन स्टेटमेंट... सब चेक कर ली है... वीर चाहे कितना भी अपने उपर इल्ज़ाम ले... बचाया उसे फिर भी जा सकता है...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन था... तुम कुछ ना कुछ ढूँढ ही लोगे... फिर भी.. एक सवाल का ज़वाब... अभी तक नहीं मिला... वीर को सेंट्रल जेल के बजाय... सब जेल में क्यूँ जुडिशरी कस्टडी दी गई... वीर जो भी हो... कोई छोटी पर्सनालिटी तो नहीं है...
खान - इस मामले में... जो भी मुझे लग रहा है... इस कत्ल के पीछे सिर्फ ऑनर किलिंग ही नहीं है... और भी कुछ है...
तापस - हाँ भाग्यवान... अगर वीर सेंट्रल जेल में होता... उसके मना करने के बावजूद... विक्रम या विश्व उससे मुलाकात कर सकते थे... यह बात उन्हें मालुम था... इसलिए जब उन्होंने देखा वीर ने सारे इल्ज़ाम अपने उपर ले लिया है... तब उन्होंने यह चाल चली है... के अगले पेशी तक... वीर झारपड़ा जेल में ही रहे....
प्रतिभा - मतलब वह लोग... विक्रम और प्रताप से वीर को दुर रखना चाह रहे हैं... तो क्या सचमुच वीर मिलने से इंकार कर रहा है... या...
खान - नहीं वीर सचमुच मिलने से मना कर रहा है... इसलिए तो आज मैं भी गया था झारपड़ा जेल में...
विक्रम - तो उसे सब जेल में रखने का कारण... मेरा मतलब है... अगर हमारी जेल के अंदर मुलाकात हो जाती तो...
खान - तो तुम लोगो के बीच जो भी बातचीत हुई होती... उन्हें खबर मिल गया होता...
शुभ्रा - आखिरकार वह लोग हैं कौन...
विश्व - पता लग जाता... अगर वीर हमसे बातचीत कर लेता...
विक्रम - तो अब... अब आगे क्या होगा...
विश्व - कल वीर की पेशी होगी... पुलिस... वीर की इकवालिया बयान को मैच कराते हुए... क्राइम सीन में बरामद हुए सबूतों से मिलान कर... एक थ्योरी पेश करेगी... उसे आधार बना कर... प्रोसिक्यूटर वीर को एक्युस्ड बनाएगा और अदालत से सजा की माँग करेगा...
विक्रम - और हम... हम क्या करें...
विश्व - हम वही करेंगे... जो हमें करना चाहिए...
विक्रम अपनी जगह से खड़ा हो जाता है, विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाता है l विश्व थोड़ा हैरान हो कर विक्रम को देखता है और फिर विश्व विक्रम से हाथ मिलाता है l
विक्रम - तुम वाकई वीर के बहुत अच्छे दोस्त हो... एक वक़्त था जब उसे मुझे पर भरोसा करता था... पर जब से तुमसे दोस्ती हुई... मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा करने लगा था... तुम्हारे लिए मुझसे... यहाँ तक चाचा जी से भी लड़ गया था... और तुम भी उसके एक आवाज़ पर उसके पास... उसके साथ खड़े मिले...
विश्व - पर इस बार उसने मुझे बुलाया नहीं था...
विक्रम - क्यूँकी उसे उतना मौका मिला ही नहीं था...
विश्व - पर फिर भी... मुझे थोड़ा अंदाजा लगा लेना चाहिए था... गलती मुझसे हुई तो है..
विक्रम - हम इंसान हैं प्रताप... हमारी सोच... हमारी पहुँच की... एक हद होती है... वह हद अगर लाँघ गए... तो हम इंसान ना कहलाते...
विश्व - (चुप रहता है, विक्रम अब दोनों हाथों से विश्व का हाथ पकड़ लेता है ) प्रताप... मैंने वादा किया है... अपनी चाची माँ और चाचा जी से... वीर को वापस ले जाने के लिए... (आँखों में आँसू आ जाते हैं) प्लीज यार... कुछ करो...
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
कटक हाई कोर्ट
विश्व और विक्रम कोर्ट के कॉरिडोर में वीर के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं l बाहर सभी न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी न्यूज ब्रीफिंग में लगे हुए हैं l पुलिस बेरीगेट कर घेरा बंदी कर चुकी है l कुछ देर बाद पुलिस की वैन कोर्ट के परिसर में आती है l वैन का दरवाज़ा खुलता है, हाथ कड़ी में वीर वैन से उतरता है l बाल बिखरे हुए थे दाढ़ी बढ़ी हुई थी l आँखे एकदम से भाव शून्य लग रहे थे l पुलीस वीर को कॉरिडोर से लेकर जाने लगती है l विश्व और विक्रम वीर से फिर से बात करने की कोशिश करते हैं पर वीर कोई जवाब दिए वगैर उन्हें बिना देखे चला जाता है l विक्रम के आँख तैरने लगते हैं, विश्व उसके कंधे पर हाथ रखकर कोर्ट रुम की जाने के लिए इशारा करता है l
कोर्ट रुम में मीडिया वाले बहुत थे, आम लोगों की संख्या कम थीं l विश्व और विक्रम अपनी अपनी जगह बना कर बैठ जाते हैं l थोड़ी देर बाद ज़ज आता है l उसके आते ही सभी खड़े हो जाते हैं l ज़ज् बैठने के बाद गावेल लेकर टेबल पर मारता है
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... सब अपने अपने स्थान ग्रहण करें... (सभी लोग बैठ जाते हैं) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...
रीडर अपनी जगह से उठता है और ज़ज को एक फाइल सौंप देता है l ज़ज फाइल देखने के बाद रीडर को इशारा करता है l
ज़ज - केस नंबर ××××... मुल्जिम को पेश किया जाये... (पुलिस वीर को लाकर कटघरे में खड़ा कर देती है) प्रोसिक्यूशन... अपनी तहरीर पेश करें... (प्रोसिक्यूटर अपनी जगह से उठ कर)
प्रोसिक्यूटर - येस माय लॉर्ड... माय लॉर्ड... मुल्जिम के कटघरे में जो शख्स खड़ा है... वह एक बड़े खानदान का बिगड़ा हुआ रईस जादा है... नाम... वीर सिंह क्षेत्रपाल... माय लॉर्ड... क्षेत्रपाल... यह नाम... उस नाम के पीछे का शख्सियत क्या है... कौन है यह कहना... अनावश्यक है... पर यह नौजवान लड़का उस खानदान से नाता रखता है... जाहिर है... दौलत और रुतबा इसे विरासत में मिला है... इसी दौलत की घमंड और रुतबे की दम पर... इसने... एक लड़की... जिसका नाम था अनुसूया दास... जो इनकी ESS की ऑफिस में... इसकी पर्सनल सेक्रेटरी कम असिस्टेंट के रुप में काम कर रही थी... उस गरीब लड़की को... इसने शादी का झांसा दे कर... अपने जाल में फंसाया... फिर जब इसे पता चला... की वह लड़की गर्भवती है... जैसा कि आप देख सकते हैं... पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में... जाहिर हो चुका है... इसने उस लड़की को अपने रास्ते से हटा दिया... इस बात की पुष्टि के लिए... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर... अरविंद कुमार को गवाही के लिए बुलाना चाहता हूँ...
ज़ज - इजाज़त है... (हॉकर की आवाज पर इनवेस्टिगेशन ऑफिसर अरविंद गवाही वाले कटघरे में आता है)
प्रोसिक्यूटर - इंस्पेक्टर... क्या आप इस केस में... रौशनी डाल सकते हैं...
अरविंद - जी वकील साहब... माय लॉर्ड... ×××× तारीख शाम के साढ़े छह बजे... थाने पर कॉल आया... के... एक आधी बनी हुई बिल्डिंग में... तीसरी मंजिल पर... एक खुन हो गया है... तो मैंने अपने साथियों को लेकर जब मौका ए वारदात पर पहुँचा... तब देखा के... मुल्जिम उस लड़की को अपने बाहों में लेकर बैठा हुआ था... हमने जब कत्ल और कातिल के बारे में पुछा... तो इसी ने बताया... की कातिल यह खुद है और... इसी ने उस लड़की का कत्ल कर दिया है...
प्रोसिक्यूटर - ह्म्म्म्म... फिर उसके बाद...
अरविंद - फिर हमने... इसे गिरफ्तार किया... और तफ्तीश शुरु कर दिया... तफ्तीश के बाद... चार्ज फाइल कर पेश कर दी...
ज़ज - हूँ... दिख रहा है... आपने दो जगहों को क्राइम स्पॉट बनाया है...
अरविंद - जी...
ज़ज - आपने तफ़तीश में जो भी कुछ रिपोर्ट बनाया है... अब विस्तार से कोर्ट को बतायें...
अरविंद - जी माय लॉर्ड... हमें जो कॉल आया था... वह मुल्जिम के फोन से ही आया था... मुल्जिम अपनी इकबालिया जुर्म के बाद से अब तक चुप्पी साधे हुआ है... इस लिए... हमें अपने तरीके से... छानबीन करनी पड़ी.. यह मुल्जिम और वह लड़की... पैराडाइज अपार्टमेंट के पेंट हाऊस में रहते थे... हमने वहाँ पर हाता पाई के निसान भी देखा था... जब पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट आई... तब हम उस रिपोर्ट के आधार पर हमने यह थ्योरी बनाई... के लड़की बहुत खुश हो कर अपने गर्भ संचार की खबर दी होगी... मुल्जिम इस खबर से घबरा गया होगा... फिर वहीँ पर उस लड़की को मारने की कोशिश की होगी... वह लड़की बच कर किसी गाड़ी से लिफ्ट लेकर भागी होगी... तब यह मुल्जिम राह गुज़रते एक बाइक सवार से बाइक छिन कर उस गाड़ी का पीछा किया होगा... वह गाड़ी शायद कुछ देर के लिए उस बिल्डिंग के नीचे खराब हो गई होगी... तब लड़की अपनी जान बचाने के लिए उपर भागी होगी... मुल्जिम तीसरी मंजिल पर उस लड़की को दबोचा होगा... और फिर...
ज़ज - हूँ... आपकी थ्योरी सब संभावना पर आधार है इंस्पेक्टर...
अरविंद - माय लॉर्ड... मौका ए वारदात पर हथियार मिले हैं... एक खंजर और एक रिवॉल्वर... और हमारी तफ्तीश की फाइनल रिपोर्ट पर... मुल्जिम ने अपनी स्वीकृति के साथ दस्तखत किया है... इसलिए हमारी तरफ से तफ़तीश पुरा है...
ज़ज - ह्म्म्म्म... (फाइल देखते हुए) तो आपकी रिपोर्ट... मुल्जिम का कबूलनामा है...
अरविंद - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - डिफेंस के तरफ से कौन लॉयर है...
प्रोसिक्यूटर - नहीं योर ऑनर... डिफेंस की तरफ़ से कोई लॉयर नहीं है...
ज़ज - ह्वाट... (वीर सिंह से) वीर सिंह... आपने अभी तक कोई लॉयर नियुक्त नहीं किया है... या कोई तैयार नहीं है... (वीर अपना चेहरा झुका कर नीचे की ओर देखते हुए जवाब देता है)
वीर - ज़ज साहब... मैं नहीं चाहता... अदालत का क़ीमती वक़्त खराब हो... मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया है... आप मुझे फांसी की सजा सुना कर न्याय कीजिए...
विक्रम - (खड़ा हो जाता है) नहीं... वीर यह तुम्हें क्या हो गया है...
ज़ज - (गावेल को टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर ऑर्डर...
विक्रम - ज़ज साहब... यह मेरा छोटा भाई है... यह खुन इसने नहीं किया है... यह गुनाह कबूल नहीं किया है... बल्कि आत्महत्या कर रहा है...
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आप चुप रहिए... जब आप से पुछा जाएगा... आप तभी कह सकते हैं... यूँ बीच में कह कर कारवाई में बाधा उत्पन्न करेंगे तो अदालत आपको यहाँ से निकाल देगी...
विक्रम कुछ कहना चाहता था पर विश्व उसे रोक देता है और खुद खड़े होकर ज़ज से कहता है l
विश्व - योर ऑनर.. अगर आपकी इजाजत हो... तो मैं इस केस में कुछ रौशनी डाल सकता हूँ...
ज़ज - आपकी तारीफ़...
विश्व - जी मैं... विश्व प्रताप महापात्र... (ज़ज के सामने जाकर अपना लॉ की डिग्री और लाइसेंस नंबर की कागजात देते हुए) मैं एक वकील भी हूँ... और यह मेरी डिग्री और वकालत नामा...
जज - (कागजात देखने के बाद) ह्म्म्म्म... तो मिस्टर विश्व प्रताप... आप इस केश में क्या रौशनी डाल सकते हैं...
विश्व - योर ऑनर... जैसे कि आपने देखा... मुल्जिम ने अपने लिए कोई डिफेंस लॉयर नियुक्त नहीं किया है... इसका मतलब यह हुआ है कि... उस लड़की की मौत ने... मुल्जिम को अंदर से इतना तोड़ दिया है कि... यह अब जीना नहीं चाहता है... मर जाना चाहता है...
प्रोसिक्यूटर - यह क्या लॉजिक हुई...
विश्व - योर ऑनर... अभी आपने ही देखा है... की अपने आप को गिरफ्तार करवाने के बाद... वीर ने पुरी तरह से चुप्पी साध ली थी... जिसके वज़ह से पुलिस ने जो भी इनवेस्टिगेशन किया है... सब कुछ संभावना पर ठहर गया है... और हाँ... वीर ने भी कोई विरोध नहीं किया है... पर यह सारे संभावनाएं हैं... जो कि वास्तविकता से कोसों दुर है...
ज़ज - तो आप वीर की पैरवी करना चाहते हैं...
विश्व - येस योर ऑनर... विथ योर परमिशन...
प्रोसिक्यूटर - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर... यह कैसे हो सकता है... मुल्जिम ने कोई वकील अपने लिए नियुक्त नहीं किया है... और उसने किसी भी संभावना को नकारा नहीं है... और अपना गुनाह कबूल कर लिया है... फिर...
ज़ज - मिस्टर प्रोसिक्यूटर... क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अदालत मुल्जिम को केवल इसलिए सजा दे दे... के उसने इकबाल ए जुर्म कर दिया है... बिना डिफेंस के सुने... अदालत किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दे सकती... कानून के जानकार होने के नाते यह आप जानते होंगे...
प्रोसिक्यूटर - जी... पर मुल्जिम ने इन्हें नियुक्त नहीं किया है...
जज - अदालत न्याय के लिए होती है मिस्टर प्रोसिक्यूटर... अगर विश्व प्रताप... आज यह साबित करने में कामयाब हो गए... के केस में सच्चाइ अभी भी छुपी हुई है... जिसे बाहर लाना आवश्यक है... तो इससे न्याय की जीत होगी... क्या आप नहीं चाहते के मक्तुला और मुल्जिम दोनों के साथ न्याय हो...
प्रोसिक्यूटर - जी जरूर चाहता हूँ...
जज - देन ऑब्जेक्शन ओवर रुल्ड... प्लीज सीट डाउन... (प्रोसिक्यूटर बैठ जाता है) मिस्टर विश्व प्रताप... अदालत आपको तागिद करती है... आप इस केस में... इस केस के ताल्लुक तहरीर पेश करेंगे... अगर आप नाकाम रहे... तो आप पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की तहत कारवाई होगी...
विश्व - मुझे मंजुर है योर ऑनर... एंड थैंक्यू फॉर एलॉव मी...
ज़ज - आप अपनी तहरीर पेश करें...
विश्व - माय लॉर्ड... जैसा कि सरकारी वकील ने कहा कि... यह शख्स जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है... एक बड़े घराने से ताल्लुक रखता है... दौलत और रुतबे की कोई कमी नहीं... तो क्या वकील साहब बतायेंगे... के क्यूँ मुल्जिम वीर सिंह ने... अपने डिफेंस के लिए वकील नहीं किया... अगर चाहते तो... वकीलों की फौज खड़े कर सकते थे...
प्रोसिक्यूटर - मैं... मैं क्यूँ इस बाबत कोई टिप्पणी करूँ...
वीर - मैं बस आपकी राय जानना चाहता हूँ...
प्रोसिक्यूटर - माय लॉर्ड... मैं मिस्टर विश्व पर छोड़ता हूँ... वह जो चाहें दलील पेश कर सकते हैं... पर मुझे नहीं लगता... केस में इस पर कोई बहस होनी चाहिए... बात सबूतों की होनी चाहिए... जो कि सभी वीर सिंह के खिलाफ खुल कर गवाही दे रहे हैं...
विश्व - ठीक है... माय लॉर्ड... अगर बात सबूतों पर ही करनी है... तो मैं इंवेस्टिगेशन ऑफिसर मिस्टर अरविंद कुमार को विटनेस बॉक्स में बुलाना चाहता हूँ... (अरविंद फिर से विटनेस बॉक्स में आता है) तो इंस्पेक्टर साहब... आपके तफ्तीश के मुताबिक... क्राइम के दो स्पॉट थे... पहला... पैराडाइज के पेंट हाऊस... और दुसरा ×××× बिल्डिंग के तीसरी मंजिल पर...
अरविंद - जी...
विश्व - तो इंस्पेक्टर साहब... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... कत्ल का हथियार क्या था...
अरविंद - जी... खंजर...
विश्व - क्या उसमें... मुल्जिम के उंगलियों के निसान थे...
अरविंद - (चुप रहता है)
विश्व - आप चुप क्यों हो गए अरविंद सर... आप ही ने अदालत में रिपोर्ट दाखिल की है...
प्रोसिक्यूटर - मिस्टर विश्व... आपके पास रिपोर्ट की कॉपी कैसे आई...
विश्व - यह कैसा सवाल है... हम बात सबूतों पर कर रहे हैं... सबूतों पर बात खत्म हो जाने दीजिए... मैं आपको पुरी जानकारी दे दूँगा... हाँ तो अरविंद साहब... मैंने आपसे पुछा... क्या उस खंजर पर... मुल्जिम के उंगलियों के निशान थे...
अरविंद - नहीं... पर चूँकि मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया था... तो... (चुप हो जाता है)
विश्व - ठीक है... आई कैन अंडरस्टांड... खैर आप जब क्राइम स्पॉट पर पहुँचे तब आपने क्या देखा...
अरविंद - जैसा कि मैंने पहले भी बताया... के हम जब मौका ए वारदात पर पहुँचे... मुल्जिम मक्तुला को गोद में लिए बैठा हुआ था...
विश्व - और आपने उसके बाद क्राइम स्पॉट सीज की होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वारदात की जगह पर जो भी मिला होगा... उसकी आपने फोटो खिंची होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वहाँ... आपको कत्ल की हथियार के साथ साथ... और क्या क्या मिला क्या अदालत को बतायेंगे...
अरविंद - जी एक रिवॉल्वर मिला... जिसके तीन राउंड फायर हो चुके थे... पर मौका ए वारदात पर हमको... सिर्फ दो गोलियाँ मिली... एक दीवार में धंसी हुई थी... और दुसरी... नीचे कंस्ट्रक्शन साइड की रेत में... और उस गन में... मुल्जिम के उंगलियों निशान मिले... और तो और... मुल्जिम के हाथ में गन पाउडर भी मिला...
विश्व - ह्म्म्म्म... माय लॉर्ड... क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है... वारदात की जगह पर तीन राउंड फायर किया गया रिवॉल्वर मिलता है... जिस पर मुल्जिम के उँगलियों के निशान भी मिलते हैं... पर मक्तुला की कत्ल रिवॉल्वर से नहीं... खंजर से हुई है...
विश्व की इस खुलासे से जज पुलिस के द्वारा सौंपी गई फाइल को फिर से देखने लगता है l अदालत के दर्शकों वाली दीर्घा में बैठे आम लोग और मीडिया वाले भी खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l फाइल को जांचने के बाद जज अपनी गावेल को टेबल पर मारता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... (अदालत में चुप्पी छा जाती है) (अरविंद से) इंस्पेक्टर... मैंने पहले ही कहा था... आपने अपनी केस को सम्भावनाओं के आधार पर तैयार किए हैं... आपके पास पुख्ता सबूत केवल यह है कि... मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया है... (अरविंद शर्मिंदा होता है) ह्म्म्म्म विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं... इस कत्ल में कोई और भी इंवॉल्व है...
विश्व - जी योर ऑनर... अगर पुलिस... वीर की इकबालिया बयान को दर किनार कर तफ्तीश की होती... तो इस कत्ल के आड़ में छिपे हुए हैं... उनके पास पहुँच चुकी होती... पर अफसोस... पुलिस ने अपनी लापरवाही और बेफिक्री के चलते एक सबुत को खो बैठी...
अरविंद - यह... यह सच नहीं है माय लॉर्ड... हमने दोनों वारदात की जगह से जो भी सबूत इकठ्ठा किया था... बाकायदा उसकी लिस्ट बनाया और अदालत में जमा किया है योर ऑनर...
जज - मिस्टर विश्व... माना के आपने एक अच्छी पॉइंट निकाल कर सामने लाया है... पर यह तो आप पुलिस संस्था पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं...
विश्व - नहीं योर ऑनर... मैं इतनी बड़ी धृष्टता नहीं कर सकता... पर मैं अरविंद जी से पूछना चाहता हूँ... अदालत में जमा करने से पहले... जो सबूत मौका ए वारदात से बारामत की गई... उसकी लिस्ट और... अदालत में पेश की गई लिस्ट का मिलान कर बतायें... (इस बार अरविंद और भी शर्मिंदा होता है और अपना सिर नीचे झुका लेता है)
जज - मिस्टर अरविंद...
अरविंद - आ.. आ.. आई एम सॉरी... ज़ज साहब... मुझसे बहुत बड़ी चुक हो गई है... असल में जब वीर सिंह ने कत्ल का इल्ज़ाम स्वीकर लिया... और हमारी किसी भी आरोप का किसी भी तरह से विरोध नहीं किया... इसलिए... मैंने उस सबूत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया...
जज - वह कौनसा सबूत था मिस्टर अरविंद...
अरविंद - (शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लेता है, उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती)
विश्व - एक सोने की ब्रैसलेट योर ऑनर... और यह ब्रैसलेट उस हाथ से निकल गिरा था योर ऑनर... जिसके हाथ... अनुसूया के खुन से रंगे थे...
यह सुनते ही वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं l यह हालत ना सिर्फ वीर की थी बल्कि अदालत में मौजूद सभी की आँखे हैरानी के मारे फैली हुई थी l
जज - यह आप किस आधार पर कह सकते हैं विश्व प्रताप...
विश्व - माय लॉर्ड... वारदात की जगह सील कर लेने के बाद... फॉरेंसिक टीम हर एक जगह की बारीकी से फोटो लेती है... आप के पास उस फाइल में देख सकते हैं... एक पिलर के नीचे... खुन पड़ा हुआ है... और उसके पास एक सोने की ब्रैसलेट भी गिरा हुआ है... फॉरेंसिक टीम ने... जाँच के बाद... सारे सबूत इकट्ठा कर लिस्ट बना कर पुलिस के हवाले कर दिया था... पर इन्हीं तीन दिनों के अंदर... पुलिस की स्टोर से... वह सोने की ब्रैसलेट गायब कर दी गई...
जज फाइल में उस एनेक्सचर पर जाता है जिन में वारदात की जगह की फोटो थे l उन फोटो में से एक फोटो में पिलर के नीचे खून और खून के पास सोने की ब्रैसलेट साफ दिख रहा था l जज अब अरविंद पर गुस्सा हो कर
जज - यह क्या है अरविंद... इतनी बड़ी लापरवाही... अगर खुदा ना खास्ता कल को अगर मुल्जिम को सजा हो गई होती और बाद में उसकी बेगुनाह साबित हो जाता... तो...
अरविंद - आई एम अगैंन सॉरी माय लॉर्ड...
जज - विश्व प्रताप की इस पैरवी पर आपकी क्या राय है प्रोसिक्यूटर...
प्रोसिक्यूटर - माफी चाहूँगा योर ऑनर... अब केस को फिर से छानबीन करने के लिए पुलिस को आदेश करें... मैं इस वक़्त बस इतना ही कह सकता हूँ...
जज - ठीक है... आज इस केस पर विश्व ने जिस तरह से रौशनी डाली है... अदालत उनका आभार प्रकट करता है... यह अदालत पुलिस को आदेश देता है... की जल्द से जल्द... उस बैसलेट की मालिक को ढूँढ कर सामने लाये... और वीर सिंह से अनुरोध करती है... आप अगले तारीख तक अपने लिए एक वकील को नियुक्त करें... अथवा अदालत विश्व प्रताप को ही आपकी वकील के रुप में नियुक्त करेगी... आज की कारवाई को यहीँ पर स्थगित करते हुए... अगले पंद्रह दिन की तारीख को मुकर्रर कर... अदालत बर्खास्त की जा रही है.... द कोर्ट इज़ एडजॉर्न...
एक सौ उनचासवाँ अपडेट
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रात भर आसमान बरस रही थी, या शायद रो रही थी l रुक ही नहीं रही थी l निरंतर बरसात हो रही थी l राजगड़ में कुछ आँखे ऐसी भी थीं जो सोई नहीं थीं l विक्रम के मन में बैचैनी थी वह वापस चले जाना चाहता था पर अनवरत वर्षा उसे महल में रोक दिया था l अपने कमरे से निकालता है और चारों और अपनी नजर घुमाता है l कभी नौकरों चाकरों से घिरे रहने वाला भरे रहने वाला यह महल कानून की अलमवरदरों के मर्जी के बदोलत कुछ नौकर ही महल में ठहरे हुए हैं l अभी सभी के सभी नींद में सोये हुए हैं l विक्रम चलते चलते कुछ दुर चल कर दीवान ए आम में पहुँचता है l वहाँ पहुँचते ही विक्रम हैरान हो जाता है, क्यूंकि सोफ़े पर उसे सुषमा बैठी दिखती है l सुषमा भी उसे देख लेती है और उससे सवाल करती है
सुषमा - सोया नहीं बेटा..
विक्रम - नहीं माँ... पता नहीं नींद क्यूँ नहीं आ रही है... पर आप.. आप क्यूँ जाग रही हैं...
सुषमा - पता नहीं... आज दिल शाम से ही बैठा जा रहा है... इस बिन मौसम की बरसात को देख कर ऐसा लगता है... जैसे यह काले काले बादल... एक के बाद एक बुरी ख़बरों की समाचार बरसा रहे हैं... ऐसा लग रहा है जैसे... यह बरस नहीं रहे हैं... हमारी बेबसी पर तरस खा कर रो रहे हैं...
विक्रम - (जाकर सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुझे नींद क्यूँ नहीं आई.. तु तो थका हारा आया था...
विक्रम - पता नहीं क्यूँ... मुझे ऐसा लग रहा है जैसे... कोई मेरी अंतरात्मा को झिंझोड रहा है... कह रहा है.. मुझे यहाँ आना नहीं चाहिए था...
सुषमा - पर तेरा आना जरूरी था बेटा... तुम सही समय पर आए... वर्ना... आज रुप की बहुत बुरी हालत हो जाती...
विक्रम - आज मैंने रुप की... एक अलग रुप देखा... कोई खौफ नहीं था उसकी आँखों में... जैसे वह मरने के लिए तैयार थी... कितना बदल गई है...
सुषमा - हाँ बदल तो गई है...
विक्रम - हाँ माँ... कितना बदल गई है... जब भुवनेश्वर गई थी... बेज़ान गूंगी गुड़िया सी थी... पर अब..
सुषमा - अनाम... अनाम, वज़ह है उसकी हिम्मत पीछे..
विक्रम - अनाम...
सुषमा - हाँ... अनाम... जिसे तुम प्रताप के नाम से जानते हो...
विक्रम - ओह.. हाँ... शुब्बु ने बताया था... (थोड़ी देर की खामोशी) अच्छा माँ... आप को कभी भी नहीं लगा... प्रताप और रुप के बीच का प्यार का...
सुषमा - मुझे कुछ ही दिनों में पता चल गया था... उन दोनों के बीच पल रहे मासूम प्यार के बारे में... पर मुझे मालूम नहीं था... उनका यह प्यार एक दिन अंजाम तक पहुँच भी पाएगा...
विक्रम - क्यूँ... मतलब... ऐसा क्यूँ लगा था आपको...
सुषमा - विक्रम... तुम्हें वह रात तो याद होगी... जिस रात तुम्हारी माँ हम सबको छोड़ कर चली गई... उस वक़्त तुम सिर्फ़ दस या ग्यारह साल के थे... तुम समझदार तो हो ही गए थे... इसलिए खुद को संभाल लिए... पर रुप... चौबीसों घंटे अपनी माँ से चिपटी लिपटी... एक दम से अनाथ हो गई थी... मैंने उसे संभालने की पुरी कोशिश की पर... उस हादसे की सदमे से बाहर नहीं निकाल पाई... वह डरी सहमी बेज़ान गुड़िया सी बन गई थी... राजा साहब ने एक काम तो अच्छा किया... प्रताप को अनाम बना कर उसकी पढ़ाई का जिम्मा दे दिया... ज्यों ही प्रताप रुप की जिंदगी में आया... उस बेज़ान सी गुड़िया में जान आ गई... अपनी डर से बाहर निकली... हर दिन हर पल खुद को... कमरे में कैद कर रखती थी... पर वह फूलों सी खिलती... चिड़ियों सी चहकती... जब प्रताप उसके सामने... उसके साथ होता था... उससे जिद करती... प्रताप भी दिलों जान से... रुप की जिद को पुरा करने में लग जाता था... मैं गवाह हूँ... प्रताप के हर उस तोहफे का.. जो उसने रुप के जन्म दिन पर दिया करता था... (अब सुषमा रुप के हर एक जन्म दिन की बात कहने लगती है)
विक्रम - आपने कभी रोका नहीं...
सुषमा - नहीं... क्यूँकी मैं समझती थी... यह सब एक दिन रुक जाएगा... क्यूँकी प्रताप अपनी बचपन को छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... वहीँ रुप बचपन से निकल कर किशोरी बन रही थी... और एक दिन यह सब बंद भी हो गया... रुप फिर से पुरानी वाली रुप बन गई... खुद को कमरे में बंद कर लिया और पढ़ने लगी... पर किस्मत को कुछ और ही मंजुर था... उसके जीवन में फिर अनाम आया... मगर प्रताप के रुप में... रुप के अंदर की वह चुलबुली अल्हड जिद्दी लड़की फिर से बाहर निकलने लगी.... उसने प्रताप को पहचान लिया था... अब वह फिर से अपनी प्रताप से जिद करने लगी... प्रताप आज भी उसकी जिद को तरजीह देता है... उसे पूरा करता है... (सुषमा अब चुप हो जाती है, विक्रम भी थोड़ी देर के लिए चुप रहता है, फिर थोड़ी देर के बाद)
विक्रम - हाँ... रुप में फिर से जान आ गई थी... उसने हैल नाम की नर्क में भी जान फूँक दी थी... जो रिश्ते मर चुके थे... उन्हें फिर से जिंदा कर दिया था... आज अगर हम भाई बहन... माँ बेटे की रिश्ते में बंधे हुए हैं... उसकी वज़ह रुप ही है... (फ़िर थोड़ी देर के लिए चुप्पी) हम सबके जीवन में... प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में प्रताप का बड़ा योगदान है... वीर का एकलौता दोस्त... वीर के लिए भी बहुत कुछ किया है उसने... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ... वह दोस्त है... या दुश्मन...
इस बात की सुषमा कोई जवाब नहीं देती l विक्रम भी आगे उससे कुछ पूछता नहीं l बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी l सुबह होने वाली भी थी, इतने में बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज आती है l
सुषमा - देखो... बातों बातों में रात बीत गई... बारिश भी अब रुक रही है...
विक्रम - हाँ पर इतनी सुबह सुबह.. कौन आ सकता है...
दोनों के कानों में नौकरों की भाग दौड़ करने की आवाज़ सुनाई देने लगती है l कुछ देर बाद एक नौकर अंदर आता है इनके सामने झुक कर रास्ता बनाते हुए अंदर चला जाता है l इन्हें समझते देर नहीं लगती के नौकर भैरव सिंह के कमरे की ओर जा रहा है l दुसरा नौकर इनके पास आकर खड़ा होता है l
विक्रम - कौन आए हैं... राजा साहब को जगाने के लिए क्यों गए हैं...
नौकर - छोटे राजा जी आए हैं... राजा साहब जी से... दिवान ए खास में मिलना चाहते हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटे राजा जी... इस वक़्त... दिवान ए खास में...
विक्रम तेजी से दिवान ए खास की ओर जाने लगता है l किसी अपशकुन की आशंका से सुषमा भी दिवान ए खास की ओर जाने लगती है l विक्रम कमरे में पहुँच कर देखता है, पिनाक के चेहरे पर एक खुशी छलक रही थी l सुषमा कमरे के बाहर रुक जाती है l विक्रम को देखते ही पिनाक के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आती है l
विक्रम - छोटे राजा जी... आप इतनी सुबह... यहाँ..
पिनाक - क्यूँ.. हमें घर छोड़ने की कोई आदेश थी क्या... परिवार पर मुसीबत आई है... तो राजा साहब के बगल में... खड़े होकर सामना करने आए हैं...
तभी एक नौकर भागते हुए आता है और भैरव सिंह के आने की सूचना देता है l और फिर कमरे से बाहर की ओर चला जाता है l थोड़ी ही देर में कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देखते ही पिनाक खुश हो कर
पिनाक - राजा साहब... हम अभिनंदन के योग्य काम कर आए हैं...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... आप जानते हैं... इस समय आप दिवान ए खास में... आप हमसे क्या कह रहे हैं...
पिनाक - जी राजा साहब... हम अपनी खुशी को दबा कर... रात भर... बारिश की परवाह न करते हुए... आपसे वह खबर और खुशी दोनों बांटने आए हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है) ठीक है... पहले विराजे...
पिनाक - (बैठ जाता है) युवराज आप भी बैठिए... आपका तो जानना बहुत जरूरी है...
भैरव सिंह - अब भूमिका बाँधना बंद कीजिए... बात क्या है पहले यह बताइए...
पिनाक - राजा साहब.. माना के कुछ पल के लिए हम गर्दिश में घिरे हुए हैं... पर यह खबर आपको खुश कर देगी... यह निश्चिंत है... रही यह जो कुछ पल का मौसम खराब हुआ है... बहुत जल्द यह वक़्त भी गुजर जाएगा...
विक्रम - आपकी बातों में... लफ्जों गहराई झलक रही है... बात क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - राजा साहब... हमने बहुत कोशिश की थी... हमारे खानदान के दामन में... लिच की तरह चिपकी हुई दाग को छुड़ाने की... नाकाम रहे... फिर उस हराम खोर विश्व प्रताप को चोट पहुँचाने के लिए... हमने वह सेनापति दंपति को उठाने की कोशिश करी पर... किसी तीसरे ने हमारी मंशा पर पानी फ़ेर दी... तब हम खार खा कर रह गए... उस दिन... राजा साहब... उसी दिन... राजकुमार ने... (अपने हाथ में सूखे ज़ख़्म को देखते हुए) हमारे अहं... हमारे गरुर को घायल कर दिया था... ऐसा ज़ख़्म दिया था... (सूखे ज़ख़्म को देखते हुए, मुट्ठी भिंच लेता है, आँखे और चेहरा सख्त हो जाता है) हमारी रुह घायल हो गया था...
जिस लहजे में पिनाक ने यह बात कही थी कमरे में ख़ामोशी पसर जाती है l बाहर खड़ी सुषमा की आँखे सम्भावित आशंका से अपनी मुहँ पर हाथ रख लेती है l
पिनाक - (विक्रम से) युवराज... आज अगर आप भुवनेश्वर में होते... तो हम शायद कभी कामयाब नहीं हो पाते...
विक्रम - क्या मतलब है आपका...
पिनाक - हा हा हा हा हा... युवराज... हमारी जिंदगी शतरंज की तरह है... शाह तब तक सुरक्षित है... जब तक उसके हिफाज़त में प्यादे अपनी खानों में होते हैं... एक खाना खाली हुआ... के शाह ख़तम... खेल ख़तम... (अब विक्रम को भी अनहोनी की आशंका होने लगती है, वह हैरानी के मारे पिनाक की ओर देखने लगता है) आप यहाँ अपने प्यादों सहारे पैराडाइज को छोड़ आए थे... हमने अपना काम आसानी से कर आए...
विक्रम - मतलब...
पिनाक - (भैरव सिंह की ओर देख कर) राजा साहब... अनु नाम की दाग को हमने हमेशा हमेशा के लिए... मिटा दिया है...
विक्रम - क्या... (कह कर उठ खड़ा होता है)
सुषमा - नहीं... (चीख कर अंदर आती है) नहीं.. यह नहीं हो सकता... कहिये यह झूठ है...
पिनाक - ओ... तो आप छुप छुप कर सब सुन रही थी... हा हा हा... हम क्षेत्रपाल हैं... ऐसी बातों को... झूठ में नहीं बोलते...
सुषमा - यह आपने क्या कर दिया... वीर तो सब कुछ छोड़ चुका था... फिर भी आपको दया नहीं आई... अखिर आपका खुन है वह...
पिनाक - उसी खुन ने... हमारा खुन बहा कर... अपना खुन का रंग दिखाया था... पहचान करवाया था... हमने उसे... यह जता दिया... के हम उसके.. बाप हैं...
सुषमा -(तड़प कर) क्या...
पिनाक - हाँ छोटी रानी हाँ... यह देखिए... (अपना सूखा हुआ ज़ख़्म दिखा कर) यह ज़ख़्म दिया था राजकुमार ने... हमने उन्हें अपनी औलाद होने से नकार दिया था... तो उन्होंने बड़ी डींगे हांक कर कहा था... के एक दिन हमारे बेटे बन कर दिखाएंगे... वह मौका हमने अनु को उनके जिंदगी से हटा कर दिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... क्या आप सच कह रहे हैं...
पिनाक - राजा साहब... हमने कसम खाई थी... जब तक... उस दो कौड़ी की रखैल को.. राजकुमार जी के जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए ना हटा दें... तब तक... ना राजगड़ में कदम रखेंगे... ना अपना शकल दिखायेंगे...
भैरव सिंह - शाबाश छोटे राजा जी... अब तक सब बुरा ही बुरा हो रहा था... आपने अच्छी खबर की शुरुआत की है... तो अब सब अच्छा ही होता जाएगा... शाबाश...
पिनाक - शुक्रिया राजा साहब...
सुषमा - (रुंधे गले से) विक्रम... वीर ने क्या किया होगा...
पिनाक - क्या किया होगा हूंह... या तो कपड़े फाड़ कर रो रहे होंगे... या फिर हमारे नाम पर पुलिस में केस किए होंगे...
विक्रम जाकर कमरे में लगी टीवी को ऑन करता है और रिमोट से न्यूज लगाता है l यह देख कर पिनाक विक्रम से पूछता है l
पिनाक - यह टीवी क्यूँ लगा रहे हैं आप...
विक्रम - मामला क्षेत्रपाल से जुड़ा है... तो बात साधारण तो नहीं होगी... अब तक स्टेट में तहलका मच गया होगा...
तब न्यूज टीवी पर चलने लगती है l नभ वाणी न्यूज चैनल पर सुप्रिया न्यूज ब्रीफिंग में जो कहने लगी उसे कमरे में मौजूद चारों लोग सुनने लगे l
"कल रात से सारा शहर स्तब्ध है l एक गरीब लड़की, माली साही की बस्ती में रहने वाली लड़की, जिसका कुछ दिनों पहले अपहरण हो गया था l जिसकी रक्षा करने के लिए कानून को विवश होना पड़ा l उसी लड़की की हत्या हो गई है l अविश्वसनीय पर सच यही है l हत्यारा भी कौन...?
वही जिसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी l जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा किया था l वीर... वीर सिंह क्षेत्रपाल l जिसने सारे ज़माने के आगे अनु का हाथ थामा l पुलिस ने उसे अनु की हत्या में अभियुक्त बना कर गिरफ्तार कर लिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l"
पिनाक - (चीखता है) यह.. यह क्या कह रही है यह... पुलिस को तो मुझे ढूंढना चाहिए था... यह वीर...
भैरव सिंह - आप थोड़ी देर के लिए शांत हो जाइए... पुरी खबर क्या है जानने दीजिए...
न्यूज ब्रीफिंग में :—
सुप्रिया - आइए.. हमारे सम्वाददाता से... इस बात की पुष्टि करते हैं... हाँ तो अरुण... इस मामले में आपने क्या जानकारी हासिल की... क्या हमारे साथ साझा करेंगे...
अरुण - जी सुप्रिया.. हमने अपनी सूत्रों से... अब तक हुए हर घटनाक्रम के बारे में जो जानकारी प्राप्त की हैं... उसके अनुसार...
कल शाम को ××××× पुलिस स्टेशन इनचार्ज के पास फोन आया था कि ××××इलाके में बन रही एक बिल्डिंग में एक हत्या हुई है l हैरानी की बात यह है कि यह फोन खुद वीर सिंह ने ही किया था l मौका ए वारदात पर जब पुलिस पहुँची तो वीर सिंह अनु की लाश के पास ही था l पुलिस ने हत्या में हुई हत्यार बरामद कर ली है l क्राइम स्पॉट को सील कर दिया है l आज वीर सिंह को अदालत में पेश किया जाएगा l आगे की कार्रवाई क्या होगी यह बाद में मालुम होगा l "
पिनाक कमरे में रखी एक ऐस ट्रे उठा कर टीवी पर फेंक मारता है l टीवी की स्क्रीन टुट जाता है l जहां यह खबर पिनाक को अस्तव्यस्त कर दिया था वहीँ यह खबर भैरव सिंह को हैरान कर दिया था और विक्रम के साथ साथ सुषमा को स्तब्ध कर दिया था l
पिनाक - यह... यह क्या कर दिया वीर ने... राजा साहब अनर्थ हो गया... मैंने तो सोचा था... वीर मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा... पर इसने तो... सारा इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया... मुझे जाना होगा... मुझे जाना होगा... मुझे वीर को बचाना होगा...
कमरे में हर कोई मौन था सिवाय पिनाक के l पिनाक पागलों की तरह बक बक करने लगा था l
पिनाक - यह.. यह मुझसे क्या हो गया राजा साहब.. वीर खुद को अनु की कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवा दिया... नहीं नहीं मुझे जाना होगा.. राजा साहब मैं निकालता हूँ... मुझे सच बताना होगा... वीर को बचाना होगा...
एक झन्नाटेदार थप्पड़ पिनाक के गाल पर पड़ती है l पिनाक कुछ दुर जा कर गिरता है l सुषमा और विक्रम जो सदमें के कारण बुत बन कर खड़े हुए थे l उनका ध्यान थप्पड़ की आवाज सुन कर पिनाक की ओर जाता है l यह थप्पड़ भैरव सिंह ने मारा था
भैरव सिंह - यह क्या पागलपन लगा रखा है.... होश में आइये छोटे राजा जी... होश में आइये...
पिनाक - हमारे घर का चिराग जहां बुझने को है... वहाँ मैं कैसे होश में रह सकता हूँ...
भैरव सिंह - अगर आप होश में नहीं रहेंगे... तो... छोटे राजा जी... सारे तंत्र... हमारे खिलाफ तलवार ताने तैयार बैठे हैं... एक छोटी सी गलती... हमारी पुरी दुनिया को तबाह कर देगी... हम वकील कर सकते हैं... वीर को बाहर ला सकते हैं...
पिनाक - कैसे राजा साहब कैसे... वीर ने खुद को अनु की कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करवाया है... अगर हम लोग अभी उसके पास नहीं गए... तो... उसे हम खो देंगे... नहीं नहीं... मैं उसे खो नहीं सकता... (सुषमा की ओर मुड़ कर) छोटी रानी... आप तैयार हो जाओ... वीर मुझसे बात नहीं करेगा... पर आपसे बात करेगा... आपकी बात मानेगा... चलिए चलिए... जल्दी चलिए...
इस बार भैरव सिंह पिनाक की गिरेबान को पकड़ कर अपनी तरफ खिंचता है और दो तीन थप्पड़ लगा देता है l फिर पिनाक की गर्दन पकड़ कर उसे एक कुर्सी पर बिठा देता है l
भैरव सिंह - चुप... बिल्कुल चुप.. कब से कह रहे हैं... थोड़ा शांत... थोड़ा शांत.. सुनाई नहीं दे रहा... क्षेत्रपाल हो आप... किसी ड्रामा कंपनी के भांड नहीं हैं... समझे... ना आप जाएंगे... (सुषमा से) ना ही आप...
सुषमा - हम क्यूँ ना जाएं...
भैरव सिंह - आप अपनी सीमा लाँघ रहे हैं...
सुषमा - हमारा बेटा मुसीबत में है... और आप कह रहे हैं.. हम अपनी औलाद के पास ना जाएं...
भैरव सिंह - हाँ... अभी आप दोनों में से कोई कहीं नहीं जाएगा...
पिनाक - (कुर्सी से उठ कर) मैं जाऊँगा...
एक और थप्पड़ लगती है उसके गाल पर l इस बार पिनाक हैरान हो कर भैरव सिंह की ओर देखता है और कहता है
पिनाक - आप मेरी भावनाओं पर ऐसे क्यूँ प्रतिक्रिया दे रहे हैं... अपराध हुआ है मुझसे... उस अपराध की बेदी पर बलि... मेरा बेटा चढ़ रहा है...
भैरव सिंह - जब से न्यूज देखा है.... तब से एक ही रट लगाए हुए हैं... मेरा बेटा मेरा बेटा... यह अचानक अपने बेटे पर इतना प्यार क्यूँ उमड़ रहा है... हमें तो याद नहीं आ रहा... कभी वीर के लिए... आपको खयाल करते हुए...
पिनाक - हाँ हाँ... नहीं किया कभी खयाल... पर आज जब देखा... मेरे अपराध की कीमत वह अपनी जान देकर चुका रहा है... तो मुझसे रहा नहीं जा रहा है... पहली बार एहसास हो रहा है... मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई है... मैं अब यह गलती सुधरना चाहता हूँ... अपनी गलती की सजा मैं भुगतना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - आपसे कोई गलती नहीं हुई है... गलती वीर से हुई है.. और वीर अगर सजा भुगतना चाहता है... तो भुगतने दीजिए...
पिनाक - क्या... क्या कहा आपने... गलती वीर से हुई.. सजा उसे भुगतने दूँ... क्या गलती हो गई वीर से... जिसकी सजा वीर भुगतेगा...
भैरव सिंह - गलती नहीं अपराध... एक राह चलती रंडी को हमारे खानदान की माथे पर बिठा रहा था...
पिनाक - अच्छा... वीर ने प्यार किया तो अपराध हो गया... और विक्रम ने प्यार किया तो...
भैरव सिंह - (एक और थप्पड़ मारता है) विक्रम नहीं युवराज... युवराज ने किसी गंदी नाली की कीड़े को... हमारे खानदान की माथे पर नहीं सजाया था... जिस पार्टी की टिकट पर भुवनेश्वर की मेयर बने हुए हैं... उसी पार्टी की प्रेसिडेंट थे वह...
पिनाक - ओह... तो इससे खानदान की कोई मर्यादा हानि नहीं हुई... जब कि आपके यहाँ ब्याहने से उनकी मर्यादा की ऐसी हानि हुई... के वह पार्टी और पदवी छोड़.. अपने गाँव चले गए...
भैरव सिंह - गुस्ताख... (फिर से हाथ उठाता है, पर इसबार पिनाक भैरव सिंह का हाथ रोक देता है)
पिनाक - बस... अपने अपने बड़े होने का बहुत फायदा उठा लिया बस... (भैरव सिंह का हाथ छिटक देता है)
भैरव सिंह - यह तुमने क्या किया... यह आज तक कभी इस खानदान में नहीं हुआ था...
पिनाक - हमारे साथ... बहुत कुछ पहली बार हो रहा है राजा साहब... पहली बार... इस घर में पुलिस आई... पहली बार... आप नजरबंद हुए... पहली बार... हमारा घर का चिराग... आज सलाखों के पीछे गया है... पहली बार... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैंने कभी उसे बेटे जैसा प्यार नहीं किया... आज मेरा प्यार बाहर आ गया है... पहली बार... (आवाज़ सख्त कर) इसलिए आज आप मुझे नहीं रोक सकते...
भैरव सिंह एक लात मारता है, पिनाक कुर्सी पर हो कर उल्टी दिशा में गिर जाता है l इस बार पिनाक बहुत ही हैरान हो कर भैरव सिंह को देखता है l सुषमा इस बार भागते हुए पिनाक के पास आती है और उसे उठने में मदत करती है l
भैरव सिंह - यूँ आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो... बहुत गा रहे थे... पहली बार पहली बार... इसलिए लात भी पड़ी है तुम पर पहली बार... और खबरदार कर रहे हैं... अगर बाहर गए... तो सौगंध है आपने खानदान की... यहीं के यहीं जिंदा गाड़ देंगे... कब से समझा रहे हैं... हमारे दुश्मन बहुत सक्रिय हो गए हैं... उन्हें एक कमजोर कड़ी का तलाश है... तुम उनके हत्थे चढ़ गए... तो बरसों का कमाया हुआ... किया धरा सब मिट्टी में मिल जाएगा...
पिनाक - कमाया हुआ... जब खानदान का भविष्य ही सलाखों के पीछे खतरे में है... वह अगर सूली पर चढ़ गया... तो यह जितना कमाया है... उसे खाएगा कौन...
भैरव सिंह - तो और एक ब्याह लेना... जितने चाहे उतने भविष्य निकाल लेना...
पिनाक - भैरव सिंह... (भैरव सिंह की आँखे फैल जाती हैं) हाँ... भैरव सिंह... यह भी पहली बार हो रहा है... आज तुमने मुझे मेरी ही नजरों से गिरा दिया... मैं कितना कमजर्फ हूँ.. हरामी हूँ... यह आज जता दिया... तुमने मुझे जिस राह पर चलाया... आँखे मूँद कर चलता रहा... भला बुरा कुछ नहीं देखा... जिस चश्मे से दुनिया को दिखाया... मैं देखता रहा... इसलिए अपनी औलाद को... अपने जिगर के टुकड़े को... प्यार तक नहीं कर पाया... उसके दिल की ख्वाहिश तक को... तुम्हारे अहंकार की भेट चढ़ा दी मैंने... आज मेरे रगों में बहते खून ने आवाज़ दी है... पर उस आवाज़ को भी... मैं आज आखिरी बार तुम्हारे अहंकार की बेदी पर भेंट चढ़ा रहा हूँ... ठीक है... मैं नहीं जाऊँगा... इसी दिवान ए खास के एक कोने में (नीचे बैठ जाता है) ऐसे ही बैठा रहूँगा... मैं वादा करता हूँ भैरव सिंह... जब तक मुझे मेरा वीर यहाँ से लेकर नहीं जाएगा... तब तक... मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा...
कमरे में मरघट सा सन्नाटा छा जाती है l क्यूँकी आज जो भी हुआ इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी l क्षेत्रपाल महल के परिसर में वैदेही ने भैरव सिंह को नाम से पुकारा था और आज उसके अपने छोटे भाई ने बग़ावती तेवर दिखाते हुए भैरव सिंह का नाम लिया था l कमरे के एक कोने में नीचे फर्श पर पिनाक बैठ गया था l पिनाक पहले सुषमा की ओर देख कर
पिनाक - सुषमा जी... मैं आपका बहुत बड़ा अपराधी हूँ... मुझे आज जो सजा मिली है... वह मेरी अपनी कमाई हुई है... फिर भी आप मुझे क्षमा कर दें... (अपना हाथ जोड़ देता है, सुषमा के आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, विक्रम से) विक्रम... मेरा बेटा अकेला है... बचपन से लेकर आज तक... तुम उसके साथ साया बन कर रहे हो... जैसा जी मैंने इस महल के मालिक को वचन दिया है... मेरे वीर को ले आओ.. वही मुझे इस महल से ले जाएगा... प्लीज... मेरे वीर को ले आओ...
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तीन दिन बाद
कटक में सेनापति दंपति के घर में बैठक कमरे में प्रतिभा के सामने शुभ्रा और विक्रम बैठे हुए हैं l शुभ्रा की आँखे नम थीं l विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी आ गई थी l चेहरा उदास था आँखे काले दिख रहे थे l
प्रतिभा - कहो विक्रम... कैसे आना हुआ...
विक्रम - (दर्द भरी आवाज़ में) क्या कहूँ माँ जी... वीर तीन दिन की जुडिशरी कस्टडी में है... कल उसकी पेशी है... मैंने उससे मिलने की कोशिश की थी... पर वह मुझसे भी नहीं मिल रहा है... मैं उसके लिए वकील खड़ा करना चाहता हूँ... पर वह मुझसे बात करना तो दुर... मिलना भी नहीं चाहता...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे लगा था... वीर तुमसे मिलेगा... तो तुमसे भी नहीं मिल रहा है...
विक्रम - तुमसे भी मतलब...
प्रतिभा - प्रताप... प्रताप भी उससे मिलने की तीन दिन से कोशिश कर रहा है... पर वीर उससे मिल नहीं रहा है.. इस बात को लेकर प्रताप जितना दुखी है... उतना ही परेशान भी है...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... प्रताप तीन दिन से... मिलने की कोशिश कर रहा है...
प्रतिभा - उसमें हैरान होने वाली क्या बात है विक्रम... आखिर वीर प्रताप का दोस्त है... जब दोस्त मुसीबत में हो... तो प्रताप आएगा ही...
विक्रम - हाँ... पर वह आया कब...
प्रतिभा - दूसरे दिन की सुबह... जब वीर अरेस्ट हुआ... तभी मुझे खबर मिल चुकी थी... मैंने बिना देरी किए प्रताप को फोन कर बुला लिया... वह भी बिना देरी किए पहुँच भी गया...
शुभ्रा - तब तो प्रताप जरुर वीर को बचा लेंगे...
प्रतिभा - जल्दबाजी मत करो शुभ्रा... जल्दबाजी मत करो... मत भूलो.. वीर ने खुद स्टेट मेंट दी है... की अनु का कत्ल उसी ने किया है... और वह अपने डिफेंस के लिए कोई वकील लेने से इंकार कर दिया है... इसलिए जल्दबाजी मत करो...
विक्रम - माँजी... आप तो जानती हैं ना... वीर अनु का कत्ल नहीं कर सकता...
प्रतिभा - जानती ही नहीं मानतीं भी हूँ... पर कानून कैसे समझाएं...
विक्रम तीन दिन पहले राजगड़ जो भी कुछ हुआ सब बताता है l सब सुनने के बाद प्रतिभा विक्रम से कहती है l
प्रतिभा - तुम्हारे कहने का मतलब समझ गई विक्रम... यह एक ऑनर किलिंग है... जिसकी सजा अपने ऊपर लेकर... वीर अपने पिता को सजा देना चाह रहा है...
विक्रम - जी... चाचा जी आना तो चाहते थे... अपनी सफ़ाई देना चाहते थे... पर...
तभी घर के अंदर तीन शख्स प्रवेश करते हैं l तापस, खान और विश्व l तीनों के चेहरे उतरे हुए थे l तीनों को देख कर शुभ्रा और विक्रम अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l तापस उन्हें बैठने के लिए इशारा करता है l अब कमरे में सभी अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l पर सभी अपने अपने में खोए हुए हैं l कमरे में ऐसी खामोशी थी के मानों कमरे में कोई है ही नहीं l कुछ देर बाद खामोशी तोड़ते हुए प्रतिभा पूछती है l
प्रतिभा - क्या हुआ प्रताप... तुम गए थे... कुछ हुआ...
विश्व - इतनी कोशिशों के बावजूद... वीर मिलने से मना कर रहा है... मिले तो बात बनें...
विक्रम - एक बात समझ में नहीं आई... उसे... सेंट्रल जेल में रखने के बजाय... झारपड़ा सब जेल में क्यूँ रखा गया है...
विश्व - हाँ यह सवाल तो मेरे मन में भी उठा था... इसलिए खान सर की मदत से झारपड़ा जेल गया था... वीर से मिलने... पर उसने मिलने से मना कर दिया...
शुभ्रा - (रोते हुए) है भगवान... जब मुसीबत आई तो इस तरह...
प्रतिभा - शांत हो जाओ शुभ्रा...
शुभ्रा - नहीं माँ जी आप नहीं जानती... उस दिन वह कितना खुश था... पिता बनने की खुशी... किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा था... पर... (विक्रम उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलासा देने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - हम जानते हैं शुभ्रा... हम सब जानते हैं... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट देखा है हमने... खैर अब रोने धोने से कुछ नहीं होगा... प्रताप... क्या सोचा है तुमने... पुलिस ने तो चार्ज शीट तैयार कर चुकी होगी...
विश्व - हाँ माँ... मैं इसलिए डैड और खान सर को लेकर गया था... क्राइम सीन पर बरामद हुए सभी चीजें... घर में बरामद हुए सभी चीजें... वीर की रिटीन स्टेटमेंट... सब चेक कर ली है... वीर चाहे कितना भी अपने उपर इल्ज़ाम ले... बचाया उसे फिर भी जा सकता है...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन था... तुम कुछ ना कुछ ढूँढ ही लोगे... फिर भी.. एक सवाल का ज़वाब... अभी तक नहीं मिला... वीर को सेंट्रल जेल के बजाय... सब जेल में क्यूँ जुडिशरी कस्टडी दी गई... वीर जो भी हो... कोई छोटी पर्सनालिटी तो नहीं है...
खान - इस मामले में... जो भी मुझे लग रहा है... इस कत्ल के पीछे सिर्फ ऑनर किलिंग ही नहीं है... और भी कुछ है...
तापस - हाँ भाग्यवान... अगर वीर सेंट्रल जेल में होता... उसके मना करने के बावजूद... विक्रम या विश्व उससे मुलाकात कर सकते थे... यह बात उन्हें मालुम था... इसलिए जब उन्होंने देखा वीर ने सारे इल्ज़ाम अपने उपर ले लिया है... तब उन्होंने यह चाल चली है... के अगले पेशी तक... वीर झारपड़ा जेल में ही रहे....
प्रतिभा - मतलब वह लोग... विक्रम और प्रताप से वीर को दुर रखना चाह रहे हैं... तो क्या सचमुच वीर मिलने से इंकार कर रहा है... या...
खान - नहीं वीर सचमुच मिलने से मना कर रहा है... इसलिए तो आज मैं भी गया था झारपड़ा जेल में...
विक्रम - तो उसे सब जेल में रखने का कारण... मेरा मतलब है... अगर हमारी जेल के अंदर मुलाकात हो जाती तो...
खान - तो तुम लोगो के बीच जो भी बातचीत हुई होती... उन्हें खबर मिल गया होता...
शुभ्रा - आखिरकार वह लोग हैं कौन...
विश्व - पता लग जाता... अगर वीर हमसे बातचीत कर लेता...
विक्रम - तो अब... अब आगे क्या होगा...
विश्व - कल वीर की पेशी होगी... पुलिस... वीर की इकवालिया बयान को मैच कराते हुए... क्राइम सीन में बरामद हुए सबूतों से मिलान कर... एक थ्योरी पेश करेगी... उसे आधार बना कर... प्रोसिक्यूटर वीर को एक्युस्ड बनाएगा और अदालत से सजा की माँग करेगा...
विक्रम - और हम... हम क्या करें...
विश्व - हम वही करेंगे... जो हमें करना चाहिए...
विक्रम अपनी जगह से खड़ा हो जाता है, विश्व के पास आता है l विश्व भी खड़ा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाता है l विश्व थोड़ा हैरान हो कर विक्रम को देखता है और फिर विश्व विक्रम से हाथ मिलाता है l
विक्रम - तुम वाकई वीर के बहुत अच्छे दोस्त हो... एक वक़्त था जब उसे मुझे पर भरोसा करता था... पर जब से तुमसे दोस्ती हुई... मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा करने लगा था... तुम्हारे लिए मुझसे... यहाँ तक चाचा जी से भी लड़ गया था... और तुम भी उसके एक आवाज़ पर उसके पास... उसके साथ खड़े मिले...
विश्व - पर इस बार उसने मुझे बुलाया नहीं था...
विक्रम - क्यूँकी उसे उतना मौका मिला ही नहीं था...
विश्व - पर फिर भी... मुझे थोड़ा अंदाजा लगा लेना चाहिए था... गलती मुझसे हुई तो है..
विक्रम - हम इंसान हैं प्रताप... हमारी सोच... हमारी पहुँच की... एक हद होती है... वह हद अगर लाँघ गए... तो हम इंसान ना कहलाते...
विश्व - (चुप रहता है, विक्रम अब दोनों हाथों से विश्व का हाथ पकड़ लेता है ) प्रताप... मैंने वादा किया है... अपनी चाची माँ और चाचा जी से... वीर को वापस ले जाने के लिए... (आँखों में आँसू आ जाते हैं) प्लीज यार... कुछ करो...
×_____×_____×_____×_____×_____×_____×
कटक हाई कोर्ट
विश्व और विक्रम कोर्ट के कॉरिडोर में वीर के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं l बाहर सभी न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी न्यूज ब्रीफिंग में लगे हुए हैं l पुलिस बेरीगेट कर घेरा बंदी कर चुकी है l कुछ देर बाद पुलिस की वैन कोर्ट के परिसर में आती है l वैन का दरवाज़ा खुलता है, हाथ कड़ी में वीर वैन से उतरता है l बाल बिखरे हुए थे दाढ़ी बढ़ी हुई थी l आँखे एकदम से भाव शून्य लग रहे थे l पुलीस वीर को कॉरिडोर से लेकर जाने लगती है l विश्व और विक्रम वीर से फिर से बात करने की कोशिश करते हैं पर वीर कोई जवाब दिए वगैर उन्हें बिना देखे चला जाता है l विक्रम के आँख तैरने लगते हैं, विश्व उसके कंधे पर हाथ रखकर कोर्ट रुम की जाने के लिए इशारा करता है l
कोर्ट रुम में मीडिया वाले बहुत थे, आम लोगों की संख्या कम थीं l विश्व और विक्रम अपनी अपनी जगह बना कर बैठ जाते हैं l थोड़ी देर बाद ज़ज आता है l उसके आते ही सभी खड़े हो जाते हैं l ज़ज् बैठने के बाद गावेल लेकर टेबल पर मारता है
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... सब अपने अपने स्थान ग्रहण करें... (सभी लोग बैठ जाते हैं) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...
रीडर अपनी जगह से उठता है और ज़ज को एक फाइल सौंप देता है l ज़ज फाइल देखने के बाद रीडर को इशारा करता है l
ज़ज - केस नंबर ××××... मुल्जिम को पेश किया जाये... (पुलिस वीर को लाकर कटघरे में खड़ा कर देती है) प्रोसिक्यूशन... अपनी तहरीर पेश करें... (प्रोसिक्यूटर अपनी जगह से उठ कर)
प्रोसिक्यूटर - येस माय लॉर्ड... माय लॉर्ड... मुल्जिम के कटघरे में जो शख्स खड़ा है... वह एक बड़े खानदान का बिगड़ा हुआ रईस जादा है... नाम... वीर सिंह क्षेत्रपाल... माय लॉर्ड... क्षेत्रपाल... यह नाम... उस नाम के पीछे का शख्सियत क्या है... कौन है यह कहना... अनावश्यक है... पर यह नौजवान लड़का उस खानदान से नाता रखता है... जाहिर है... दौलत और रुतबा इसे विरासत में मिला है... इसी दौलत की घमंड और रुतबे की दम पर... इसने... एक लड़की... जिसका नाम था अनुसूया दास... जो इनकी ESS की ऑफिस में... इसकी पर्सनल सेक्रेटरी कम असिस्टेंट के रुप में काम कर रही थी... उस गरीब लड़की को... इसने शादी का झांसा दे कर... अपने जाल में फंसाया... फिर जब इसे पता चला... की वह लड़की गर्भवती है... जैसा कि आप देख सकते हैं... पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में... जाहिर हो चुका है... इसने उस लड़की को अपने रास्ते से हटा दिया... इस बात की पुष्टि के लिए... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर... अरविंद कुमार को गवाही के लिए बुलाना चाहता हूँ...
ज़ज - इजाज़त है... (हॉकर की आवाज पर इनवेस्टिगेशन ऑफिसर अरविंद गवाही वाले कटघरे में आता है)
प्रोसिक्यूटर - इंस्पेक्टर... क्या आप इस केस में... रौशनी डाल सकते हैं...
अरविंद - जी वकील साहब... माय लॉर्ड... ×××× तारीख शाम के साढ़े छह बजे... थाने पर कॉल आया... के... एक आधी बनी हुई बिल्डिंग में... तीसरी मंजिल पर... एक खुन हो गया है... तो मैंने अपने साथियों को लेकर जब मौका ए वारदात पर पहुँचा... तब देखा के... मुल्जिम उस लड़की को अपने बाहों में लेकर बैठा हुआ था... हमने जब कत्ल और कातिल के बारे में पुछा... तो इसी ने बताया... की कातिल यह खुद है और... इसी ने उस लड़की का कत्ल कर दिया है...
प्रोसिक्यूटर - ह्म्म्म्म... फिर उसके बाद...
अरविंद - फिर हमने... इसे गिरफ्तार किया... और तफ्तीश शुरु कर दिया... तफ्तीश के बाद... चार्ज फाइल कर पेश कर दी...
ज़ज - हूँ... दिख रहा है... आपने दो जगहों को क्राइम स्पॉट बनाया है...
अरविंद - जी...
ज़ज - आपने तफ़तीश में जो भी कुछ रिपोर्ट बनाया है... अब विस्तार से कोर्ट को बतायें...
अरविंद - जी माय लॉर्ड... हमें जो कॉल आया था... वह मुल्जिम के फोन से ही आया था... मुल्जिम अपनी इकबालिया जुर्म के बाद से अब तक चुप्पी साधे हुआ है... इस लिए... हमें अपने तरीके से... छानबीन करनी पड़ी.. यह मुल्जिम और वह लड़की... पैराडाइज अपार्टमेंट के पेंट हाऊस में रहते थे... हमने वहाँ पर हाता पाई के निसान भी देखा था... जब पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट आई... तब हम उस रिपोर्ट के आधार पर हमने यह थ्योरी बनाई... के लड़की बहुत खुश हो कर अपने गर्भ संचार की खबर दी होगी... मुल्जिम इस खबर से घबरा गया होगा... फिर वहीँ पर उस लड़की को मारने की कोशिश की होगी... वह लड़की बच कर किसी गाड़ी से लिफ्ट लेकर भागी होगी... तब यह मुल्जिम राह गुज़रते एक बाइक सवार से बाइक छिन कर उस गाड़ी का पीछा किया होगा... वह गाड़ी शायद कुछ देर के लिए उस बिल्डिंग के नीचे खराब हो गई होगी... तब लड़की अपनी जान बचाने के लिए उपर भागी होगी... मुल्जिम तीसरी मंजिल पर उस लड़की को दबोचा होगा... और फिर...
ज़ज - हूँ... आपकी थ्योरी सब संभावना पर आधार है इंस्पेक्टर...
अरविंद - माय लॉर्ड... मौका ए वारदात पर हथियार मिले हैं... एक खंजर और एक रिवॉल्वर... और हमारी तफ्तीश की फाइनल रिपोर्ट पर... मुल्जिम ने अपनी स्वीकृति के साथ दस्तखत किया है... इसलिए हमारी तरफ से तफ़तीश पुरा है...
ज़ज - ह्म्म्म्म... (फाइल देखते हुए) तो आपकी रिपोर्ट... मुल्जिम का कबूलनामा है...
अरविंद - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - डिफेंस के तरफ से कौन लॉयर है...
प्रोसिक्यूटर - नहीं योर ऑनर... डिफेंस की तरफ़ से कोई लॉयर नहीं है...
ज़ज - ह्वाट... (वीर सिंह से) वीर सिंह... आपने अभी तक कोई लॉयर नियुक्त नहीं किया है... या कोई तैयार नहीं है... (वीर अपना चेहरा झुका कर नीचे की ओर देखते हुए जवाब देता है)
वीर - ज़ज साहब... मैं नहीं चाहता... अदालत का क़ीमती वक़्त खराब हो... मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया है... आप मुझे फांसी की सजा सुना कर न्याय कीजिए...
विक्रम - (खड़ा हो जाता है) नहीं... वीर यह तुम्हें क्या हो गया है...
ज़ज - (गावेल को टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर ऑर्डर...
विक्रम - ज़ज साहब... यह मेरा छोटा भाई है... यह खुन इसने नहीं किया है... यह गुनाह कबूल नहीं किया है... बल्कि आत्महत्या कर रहा है...
ज़ज - ऑर्डर ऑर्डर... आप चुप रहिए... जब आप से पुछा जाएगा... आप तभी कह सकते हैं... यूँ बीच में कह कर कारवाई में बाधा उत्पन्न करेंगे तो अदालत आपको यहाँ से निकाल देगी...
विक्रम कुछ कहना चाहता था पर विश्व उसे रोक देता है और खुद खड़े होकर ज़ज से कहता है l
विश्व - योर ऑनर.. अगर आपकी इजाजत हो... तो मैं इस केस में कुछ रौशनी डाल सकता हूँ...
ज़ज - आपकी तारीफ़...
विश्व - जी मैं... विश्व प्रताप महापात्र... (ज़ज के सामने जाकर अपना लॉ की डिग्री और लाइसेंस नंबर की कागजात देते हुए) मैं एक वकील भी हूँ... और यह मेरी डिग्री और वकालत नामा...
जज - (कागजात देखने के बाद) ह्म्म्म्म... तो मिस्टर विश्व प्रताप... आप इस केश में क्या रौशनी डाल सकते हैं...
विश्व - योर ऑनर... जैसे कि आपने देखा... मुल्जिम ने अपने लिए कोई डिफेंस लॉयर नियुक्त नहीं किया है... इसका मतलब यह हुआ है कि... उस लड़की की मौत ने... मुल्जिम को अंदर से इतना तोड़ दिया है कि... यह अब जीना नहीं चाहता है... मर जाना चाहता है...
प्रोसिक्यूटर - यह क्या लॉजिक हुई...
विश्व - योर ऑनर... अभी आपने ही देखा है... की अपने आप को गिरफ्तार करवाने के बाद... वीर ने पुरी तरह से चुप्पी साध ली थी... जिसके वज़ह से पुलिस ने जो भी इनवेस्टिगेशन किया है... सब कुछ संभावना पर ठहर गया है... और हाँ... वीर ने भी कोई विरोध नहीं किया है... पर यह सारे संभावनाएं हैं... जो कि वास्तविकता से कोसों दुर है...
ज़ज - तो आप वीर की पैरवी करना चाहते हैं...
विश्व - येस योर ऑनर... विथ योर परमिशन...
प्रोसिक्यूटर - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर... यह कैसे हो सकता है... मुल्जिम ने कोई वकील अपने लिए नियुक्त नहीं किया है... और उसने किसी भी संभावना को नकारा नहीं है... और अपना गुनाह कबूल कर लिया है... फिर...
ज़ज - मिस्टर प्रोसिक्यूटर... क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अदालत मुल्जिम को केवल इसलिए सजा दे दे... के उसने इकबाल ए जुर्म कर दिया है... बिना डिफेंस के सुने... अदालत किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दे सकती... कानून के जानकार होने के नाते यह आप जानते होंगे...
प्रोसिक्यूटर - जी... पर मुल्जिम ने इन्हें नियुक्त नहीं किया है...
जज - अदालत न्याय के लिए होती है मिस्टर प्रोसिक्यूटर... अगर विश्व प्रताप... आज यह साबित करने में कामयाब हो गए... के केस में सच्चाइ अभी भी छुपी हुई है... जिसे बाहर लाना आवश्यक है... तो इससे न्याय की जीत होगी... क्या आप नहीं चाहते के मक्तुला और मुल्जिम दोनों के साथ न्याय हो...
प्रोसिक्यूटर - जी जरूर चाहता हूँ...
जज - देन ऑब्जेक्शन ओवर रुल्ड... प्लीज सीट डाउन... (प्रोसिक्यूटर बैठ जाता है) मिस्टर विश्व प्रताप... अदालत आपको तागिद करती है... आप इस केस में... इस केस के ताल्लुक तहरीर पेश करेंगे... अगर आप नाकाम रहे... तो आप पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की तहत कारवाई होगी...
विश्व - मुझे मंजुर है योर ऑनर... एंड थैंक्यू फॉर एलॉव मी...
ज़ज - आप अपनी तहरीर पेश करें...
विश्व - माय लॉर्ड... जैसा कि सरकारी वकील ने कहा कि... यह शख्स जो मुल्जिम के कटघरे में खड़ा है... एक बड़े घराने से ताल्लुक रखता है... दौलत और रुतबे की कोई कमी नहीं... तो क्या वकील साहब बतायेंगे... के क्यूँ मुल्जिम वीर सिंह ने... अपने डिफेंस के लिए वकील नहीं किया... अगर चाहते तो... वकीलों की फौज खड़े कर सकते थे...
प्रोसिक्यूटर - मैं... मैं क्यूँ इस बाबत कोई टिप्पणी करूँ...
वीर - मैं बस आपकी राय जानना चाहता हूँ...
प्रोसिक्यूटर - माय लॉर्ड... मैं मिस्टर विश्व पर छोड़ता हूँ... वह जो चाहें दलील पेश कर सकते हैं... पर मुझे नहीं लगता... केस में इस पर कोई बहस होनी चाहिए... बात सबूतों की होनी चाहिए... जो कि सभी वीर सिंह के खिलाफ खुल कर गवाही दे रहे हैं...
विश्व - ठीक है... माय लॉर्ड... अगर बात सबूतों पर ही करनी है... तो मैं इंवेस्टिगेशन ऑफिसर मिस्टर अरविंद कुमार को विटनेस बॉक्स में बुलाना चाहता हूँ... (अरविंद फिर से विटनेस बॉक्स में आता है) तो इंस्पेक्टर साहब... आपके तफ्तीश के मुताबिक... क्राइम के दो स्पॉट थे... पहला... पैराडाइज के पेंट हाऊस... और दुसरा ×××× बिल्डिंग के तीसरी मंजिल पर...
अरविंद - जी...
विश्व - तो इंस्पेक्टर साहब... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में... कत्ल का हथियार क्या था...
अरविंद - जी... खंजर...
विश्व - क्या उसमें... मुल्जिम के उंगलियों के निसान थे...
अरविंद - (चुप रहता है)
विश्व - आप चुप क्यों हो गए अरविंद सर... आप ही ने अदालत में रिपोर्ट दाखिल की है...
प्रोसिक्यूटर - मिस्टर विश्व... आपके पास रिपोर्ट की कॉपी कैसे आई...
विश्व - यह कैसा सवाल है... हम बात सबूतों पर कर रहे हैं... सबूतों पर बात खत्म हो जाने दीजिए... मैं आपको पुरी जानकारी दे दूँगा... हाँ तो अरविंद साहब... मैंने आपसे पुछा... क्या उस खंजर पर... मुल्जिम के उंगलियों के निशान थे...
अरविंद - नहीं... पर चूँकि मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया था... तो... (चुप हो जाता है)
विश्व - ठीक है... आई कैन अंडरस्टांड... खैर आप जब क्राइम स्पॉट पर पहुँचे तब आपने क्या देखा...
अरविंद - जैसा कि मैंने पहले भी बताया... के हम जब मौका ए वारदात पर पहुँचे... मुल्जिम मक्तुला को गोद में लिए बैठा हुआ था...
विश्व - और आपने उसके बाद क्राइम स्पॉट सीज की होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वारदात की जगह पर जो भी मिला होगा... उसकी आपने फोटो खिंची होगी...
अरविंद - जी...
विश्व - वहाँ... आपको कत्ल की हथियार के साथ साथ... और क्या क्या मिला क्या अदालत को बतायेंगे...
अरविंद - जी एक रिवॉल्वर मिला... जिसके तीन राउंड फायर हो चुके थे... पर मौका ए वारदात पर हमको... सिर्फ दो गोलियाँ मिली... एक दीवार में धंसी हुई थी... और दुसरी... नीचे कंस्ट्रक्शन साइड की रेत में... और उस गन में... मुल्जिम के उंगलियों निशान मिले... और तो और... मुल्जिम के हाथ में गन पाउडर भी मिला...
विश्व - ह्म्म्म्म... माय लॉर्ड... क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है... वारदात की जगह पर तीन राउंड फायर किया गया रिवॉल्वर मिलता है... जिस पर मुल्जिम के उँगलियों के निशान भी मिलते हैं... पर मक्तुला की कत्ल रिवॉल्वर से नहीं... खंजर से हुई है...
विश्व की इस खुलासे से जज पुलिस के द्वारा सौंपी गई फाइल को फिर से देखने लगता है l अदालत के दर्शकों वाली दीर्घा में बैठे आम लोग और मीडिया वाले भी खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l फाइल को जांचने के बाद जज अपनी गावेल को टेबल पर मारता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... (अदालत में चुप्पी छा जाती है) (अरविंद से) इंस्पेक्टर... मैंने पहले ही कहा था... आपने अपनी केस को सम्भावनाओं के आधार पर तैयार किए हैं... आपके पास पुख्ता सबूत केवल यह है कि... मुल्जिम ने अपना गुनाह कबुल कर लिया है... (अरविंद शर्मिंदा होता है) ह्म्म्म्म विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं... इस कत्ल में कोई और भी इंवॉल्व है...
विश्व - जी योर ऑनर... अगर पुलिस... वीर की इकबालिया बयान को दर किनार कर तफ्तीश की होती... तो इस कत्ल के आड़ में छिपे हुए हैं... उनके पास पहुँच चुकी होती... पर अफसोस... पुलिस ने अपनी लापरवाही और बेफिक्री के चलते एक सबुत को खो बैठी...
अरविंद - यह... यह सच नहीं है माय लॉर्ड... हमने दोनों वारदात की जगह से जो भी सबूत इकठ्ठा किया था... बाकायदा उसकी लिस्ट बनाया और अदालत में जमा किया है योर ऑनर...
जज - मिस्टर विश्व... माना के आपने एक अच्छी पॉइंट निकाल कर सामने लाया है... पर यह तो आप पुलिस संस्था पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं...
विश्व - नहीं योर ऑनर... मैं इतनी बड़ी धृष्टता नहीं कर सकता... पर मैं अरविंद जी से पूछना चाहता हूँ... अदालत में जमा करने से पहले... जो सबूत मौका ए वारदात से बारामत की गई... उसकी लिस्ट और... अदालत में पेश की गई लिस्ट का मिलान कर बतायें... (इस बार अरविंद और भी शर्मिंदा होता है और अपना सिर नीचे झुका लेता है)
जज - मिस्टर अरविंद...
अरविंद - आ.. आ.. आई एम सॉरी... ज़ज साहब... मुझसे बहुत बड़ी चुक हो गई है... असल में जब वीर सिंह ने कत्ल का इल्ज़ाम स्वीकर लिया... और हमारी किसी भी आरोप का किसी भी तरह से विरोध नहीं किया... इसलिए... मैंने उस सबूत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया...
जज - वह कौनसा सबूत था मिस्टर अरविंद...
अरविंद - (शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लेता है, उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती)
विश्व - एक सोने की ब्रैसलेट योर ऑनर... और यह ब्रैसलेट उस हाथ से निकल गिरा था योर ऑनर... जिसके हाथ... अनुसूया के खुन से रंगे थे...
यह सुनते ही वीर की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं l यह हालत ना सिर्फ वीर की थी बल्कि अदालत में मौजूद सभी की आँखे हैरानी के मारे फैली हुई थी l
जज - यह आप किस आधार पर कह सकते हैं विश्व प्रताप...
विश्व - माय लॉर्ड... वारदात की जगह सील कर लेने के बाद... फॉरेंसिक टीम हर एक जगह की बारीकी से फोटो लेती है... आप के पास उस फाइल में देख सकते हैं... एक पिलर के नीचे... खुन पड़ा हुआ है... और उसके पास एक सोने की ब्रैसलेट भी गिरा हुआ है... फॉरेंसिक टीम ने... जाँच के बाद... सारे सबूत इकट्ठा कर लिस्ट बना कर पुलिस के हवाले कर दिया था... पर इन्हीं तीन दिनों के अंदर... पुलिस की स्टोर से... वह सोने की ब्रैसलेट गायब कर दी गई...
जज फाइल में उस एनेक्सचर पर जाता है जिन में वारदात की जगह की फोटो थे l उन फोटो में से एक फोटो में पिलर के नीचे खून और खून के पास सोने की ब्रैसलेट साफ दिख रहा था l जज अब अरविंद पर गुस्सा हो कर
जज - यह क्या है अरविंद... इतनी बड़ी लापरवाही... अगर खुदा ना खास्ता कल को अगर मुल्जिम को सजा हो गई होती और बाद में उसकी बेगुनाह साबित हो जाता... तो...
अरविंद - आई एम अगैंन सॉरी माय लॉर्ड...
जज - विश्व प्रताप की इस पैरवी पर आपकी क्या राय है प्रोसिक्यूटर...
प्रोसिक्यूटर - माफी चाहूँगा योर ऑनर... अब केस को फिर से छानबीन करने के लिए पुलिस को आदेश करें... मैं इस वक़्त बस इतना ही कह सकता हूँ...
जज - ठीक है... आज इस केस पर विश्व ने जिस तरह से रौशनी डाली है... अदालत उनका आभार प्रकट करता है... यह अदालत पुलिस को आदेश देता है... की जल्द से जल्द... उस बैसलेट की मालिक को ढूँढ कर सामने लाये... और वीर सिंह से अनुरोध करती है... आप अगले तारीख तक अपने लिए एक वकील को नियुक्त करें... अथवा अदालत विश्व प्रताप को ही आपकी वकील के रुप में नियुक्त करेगी... आज की कारवाई को यहीँ पर स्थगित करते हुए... अगले पंद्रह दिन की तारीख को मुकर्रर कर... अदालत बर्खास्त की जा रही है.... द कोर्ट इज़ एडजॉर्न...