अठानवेवां अपडेट
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जोब्रा ब्रिज के पास महानदी के पानी के धार पर गिले रेतीले जमीन पर नंगे पाँव तापस तेजी से चल रहा था l अपनी घड़ी देख कर चलना बंद कर हमेशा की तरह उस पत्थर के पास पहुँचता है और पत्थर पर बैठ जाता है l उसके बैठते ही नारियल के साथ एक हाथ प्रकट होता है l तापस नारियल को लेकर स्ट्रॉ से पानी पीने लगता है l पानी खतम होते ही नारियल अपने बैठे हुए पत्थर के किनारे फेंक देता है l
तापस - मैं अपना वकींग खतम कर अभी अभी यहाँ पहुँचा... लगता है... मेरी रूटीन को मुझसे ज्यादा और बेहतर समझते हो.
विश्व - हाँ..
तापस - बस एक बात बताओ..
विश्व - जी पूछिये..
तापस - तुम यह भूत की तरह कैसे प्रकट हो गए..
विश्व - मतलब..
तापस - मतलब... मैं.. एक लय में... इस पत्थर की ओर आ रहा था... तुम मुझे कहीं भी नहीं दिखे... पर जैसे ही बैठा... तुम्हारा नारियल वाला हाथ प्रकट हो गया..
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... आप किसी सोच में खोए हुए थे..
तापस - अच्छा... ऐसा क्या..
विश्व - हूँ... मुझे तो ऐसा ही लगा..
तापस - नहीं... तुम गलत हो...
विश्व - तो फिर ठीक है... चलिए... पानी पर पत्थर उछालते हैं....
विश्व कुछ छोटे-छोटे पत्थर तापस की ओर बढ़ा देता है l तापस जो बड़े से पत्थर पर बैठा हुआ था वह उतर कर पत्थर को पानी के सतह पर फेंकता है l पर पत्थर उछलने के वजाए डुब जाती है l फिर विश्व एक पत्थर फेंकता है, पत्थर पाँच से सात बार उछलते हुए कुछ दूर तैर कर डुब जाता है
तापस - ह्म्म्म्म... शायद तुम ठीक कह रहे हो.
विश्व - क्या मैं... वजह जान सकता हूँ..
तापस - (चुप रहता है
विश्व - हूँ... तो वजह... परसों रात की पार्टी... है ना..
तापस - (अपने हाथ में एक पत्थर लेता है फिर से फेंकता है, इस बार भी वही होता है) शायद... हाँ..
विश्व - किस लिए..
तापस - (मुड़ कर विश्व की ओर देखता है, फिर अपना चेहरा नदी की ओर करते हुए) भैरव सिंह ने... जो तुम्हारे साथ किया... उसके खिलाफ तुम्हारे भीतर... गुस्सा और बदले की लावा को धधकते... मैंने देखा है... तुम मानों या ना मानों... उसकी आँच को... हमने महसूस किया है... तुम्हारे उसके सामने जाने से... हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है... क्यूंकि वह एक ना एक दिन... होना ही है... एक नहीं कई बार... तुम दोनों एक दुसरे के आमने सामने होगे.... पर डर है... कहीं तुम... अपना आपा ना खो बैठो... (थोड़ी देर के लिए चुप हो कर) और... यह कैसा भावनात्मक रिश्ता है... तुम दोनों के बीच... जिसके दायरे से... ना तुम निकल सकते हो... ना वह....
विश्व चुप चाप सुन रहा था l जैसे ही तापस अपनी बात पुरी करता है l विश्व एक गहरी सांस छोड़ता है l उसकी सांसे एकदम से थर्रा जाती है l वह फिर एक पत्थर उठा कर फेंकता है l पानी पर छह सात बार उछलते हुए पत्थर कुछ दूर तैर कर डुब जाती है
विश्व - डैड... आपकी और माँ की डर बेबुनियाद नहीं है... हाँ... जब मैं अदालत में दोषी करार दिआ गया... तब मेरे अंदर एक ही सोच थी... जिस दिन बाहर निकालूँगा... कुछ भी करके... उस भैरव सिंह को जान से मार दूँगा.... (चुप हो जाता है, जबड़े भिंच जाती हैं) पर... मैं शुक्र गुज़ार हूँ... अपने उन तमाम गुरुओं का... जिनके वजह से... मैं... आज ऐसा हूँ... और आप यह क्यूँ भूल रहे हैं... मैंने माँ से वादा किया है... किसी की जान नहीं लूँगा... तो जाहिर सी बात है... मैं भैरव सिंह को जान से तो नहीं मरूंगा.
तापस - लॉ मिनिस्टर... तुम्हारी माँ को पर्सनली इंविटेशन आकर दे गया है... ना सिर्फ़ नाम चीन वकील होने के नाते... बल्कि वाव और वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की प्रेसिडेंट को दिया है... जाहिर है... कारण पोलिटिकल है... तुम्हारी माँ को कर्टसी के नाते जाना चाहिए था... पर जैसे ही मालुम हुआ... भैरव सिंह भी अपने परिवार के साथ आ रहा है... तब से तुम्हारी माँ के मन में द्वंद चल रहा था... इससे पहले कि वह किसी निर्णय में पहुंच पाती... कल फिर से लॉ मिनिस्टर ने फोन किया था... हम उसी पर डिस्कस कर रहे थे कि तुम वहाँ आ धमके....
विश्व - हूँ... फिर...
तापस - फिर वह अकेली जाए... ऐसा प्लान कर रहे थे... पर हम जानते थे... बाद में तुम्हें मालुम हो ही जाता... की उस पार्टी में... भैरव सिंह आ रहा है... पता नहीं... उस वक़्त तुम क्या और कैसे रिएक्ट करते...
इतना कह कर तापस चुप हो जाता है l विश्व उसे एक पत्थर देता है l तापस फेंकता है, इस बार पत्थर उछलता तो नहीं पर थोड़ा तैर कर डुब जाता है
विश्व - भैरव सिंह का सबसे बड़ा उपकार... या सबसे बड़ी गलती... उसने मुझे जिंदा छोड़ दिया... (एक क्षण की चुप्पी के बाद) मुझे जिंदा छोड़ने से पहले... उसने... खानदानी विरासत के साथ साथ... उसके हाथ की कठपुतली बनें सिस्टम का मिलाजुला... एक विश्वरुप दिखाया था... (कहते कहते खो सा जाता है) वह ऊंचाई पर खड़ा था... उसने मुझसे कहा था... की उसके खानदान के रौब और रुतबे ने.... उसे वह बुलंदी दी है... की मैं क्या... मेरे सात पुश्तों की रीढ़ की हड्डी टुट जाएंगी... अगर उसके तरफ नजर उठा कर देखने की.... कोशिश की... (फिर अपने में लौट कर, तापस की ओर देखते हुए ) उसने मुझे जिंदा इसीलिये छोड़ा था... की मैं उस विश्वरुप के खौफ में... ताउम्र भागता रहूँ... डैड... भैरव सिंह की... यही गुरुर... यही अहंकार... जिसे... उसने अपनी ताकत बनाए रखा है... वह.. जो उसके निगाह की बराबर या बुलंद नहीं होता... उसे ना तो अपनी दोस्ती की बराबर समझता है... ना दुश्मनी के लायक.... वह सिर्फ उन्हें याद रखता है... जो दोस्त होते हैं.. दुश्मन होते हैं... अपने होते हैं... या फिर गुलाम होते हैं..
तापस - क्या मतलब हुआ इसका... तुम भी तो उसके दुश्मन हो...
विश्व - (हँसता है) हा हा हा हा... नहीं डैड... नहीं... मैं वह कीड़ा हूँ... जिसे उसने अपने जुती से... कब का मसल चुका है... हा हा हा हा... वह मुझे हरगिज नहीं पहचानेगा.... अगर पहचान भी लेगा... तब भी... वह जाहिर नहीं करेगा....
तापस - यह तुम कैसे कह सकते हो..
विश्व - वह इसलिए.. (चेहरे के भाव अचानक से कठोर हो जाते हैं) के मैं उसे... बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ... उसने अगर मेरी पहचान जाहिर की... तो यह उसकी बहुत बड़ी हार होगी... क्यूंकि उसके नजर में... मैं उसका ना तो दोस्त हूँ... ना ही दुश्मन... और ना ही जरखरा गुलाम...
तापस विश्व के चेहरे को देखता है l विश्व का चेहरा भाव हीन और सपाट दिख रहा था l बिल्कुल वैसे ही जैसे जैल में अधिक तर समय रहा करता था l विश्व एक पत्थर फेंकता है l हर बार की तरह पत्थर उछलता हुआ जा कर डूब जाता है
तापस - तुम... उसके साथ... करना क्या चाहते हो..
विश्व - (मुस्कराते हुए तापस की ओर देखता है) उसे... उसे मैं एक आम आदमी का... जो अपने माथे पर से पसीना पोंछ कर पेट भरने वाले का विश्वरुप दिखाना चाहता हूँ डैड... एक आम आदमी... हाँ....एक आम आदमी का खौफ... उसके भीतर भर देना चाहता हूँ डैड... जिन गालियों में... दीदी को चुड़ैल बता कर दौड़ाया था... लोगों से पत्थर फीकवाया था... उन्हीं गालियों में... वह दौड़ेगा... लोग उसे दौड़ायेंगे... पत्थर फेंकेंगे...
तापस - ऐसा कहानियों में होता है...
विश्व - कहानियाँ भी हकीकत का आईना होता है... मैं... उसे वह आईना दिखाऊंगा.... उसका चेहरा... कितना गंदा और भद्दा है... उसे एहसास कराऊंगा...
तापस - किन से... राजगड़ के लोगों से... जो पीढ़ियों से... दुबके हुए हैं...
विश्व - हाँ...
तापस - फिर तो राह मुश्किल है... मंजिल बहुत दुर है....
विश्व - तब मैं अकेला था... नादान था...
तापस - तो अब क्या सयाने हो गए हो..
विश्व - कोई शक....
तापस - पता नहीं...
विश्व - लीजिए... (हाथ में एक पत्थर दे कर) ठीक है कंफर्म कर लीजिए... उछला तो मैं कामयाब होऊँगा... डुबा तो...
तापस झट से विश्व के हाथ से पत्थर लेता है और अपनी पुरी ताकत लगा कर पानी के सतह पर तिरछा फेंकता है l पत्थर कई बार उछलते हुए दुर दुर जा कर अंत में कुछ दुर तैर कर डुब जाता है l तापस मुस्कराते हुए विश्व को देखता है और जवाब में विश्व भी मुस्करा देता है
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रातोंरात अपना मुहल्ला छोड़ कर एक नए घर में हफ्ते के लिए अनु को लेकर उसकी दादी और उनके साथ मृत्युंजय और पुष्पा भी आए हैं l वह दो मंजिला घर था, ऊपर के पोर्शन में मकान के मालिक रहते हैं और नीचे के पोर्शन में दो बेडरुम हॉल किचन वाले घर में यह चार सदस्य सात दिनों के लिए दस हजार के भाड़े पर रुके हुए हैं l मायूसी भरी नजरों से अनु खिड़की के पास खड़े हो कर से बाहर झाँक रही थी l
दादी - लड़के वालों को खबर भिजवा दी है... वह कल यहाँ तुझे देखने आयेंगे....
अनु -(चुप रहती है)
दादी - कुछ बोला मैंने तुझसे...
अनु - सुन लिया दादी....
अनु ने बस इतना ही कहा पर दादी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अनु उसे कहीं दुर बहुत दुर से ज़वाब दे रही है l
दादी - (थोड़ी नरम पड़ते हुए) देख... दादी हूँ तेरी... दुश्मन नहीं हूँ... मुझे तेरी चिंता है.... तुझे लग रहा होगा... के मैं जल्दबाजी कर रही हूँ... पर... पर मेरी मज़बूरी है...
अनु - (दादी की तरफ पलटती है) मुझे कोई शिकायत नहीं है दादी.... (एक मायूसी भरा मगर सपाट सा जवाब) मुझे तुम्हारा हर फैसला मंजूर है.... मैंने देखा है... बचपन से... तुमको मेरे लिए... दुनिया से लड़ते हुए... इसलिए तुम कहीं से भी गलत नहीं हो सकती....
दादी - यह ताना है... या शिकायत...
अनु - नहीं दादी... मैंने अभी अभी कहा ना... मुझे तुम्हारा हर फैसला मंजुर है...
दादी - तु सच कह रही है.... मुझसे कोई गिला या शिकवा तो नहीं...
अनु - कैसा गिला... क्यूँ करूँ शिकवा... हाँ... बस जरा सा दुख है... (कह कर खिड़की की बाहर की ओर देखती है)
दादी - दुख.... कैसा दुख...
अनु - तुम जिंदगी भर... मुझे सीने से लगा कर फिरती रही... अपनी जिंदगी की... अपने शरीर की... एक हिस्से की तरह... पर आज अचानक से... मैं बोझ हो गई....
दादी - (थोड़ी देर के चुप्पी के बाद) जब तु माँ बनेगी... तब तुझे मालुम होगा... हम जिस समाज में रहते हैं... उसी समाज से बचने के लिए... उसी समाज के सहारे... कुछ रीति रवायतों को अंजाम देना पड़ता है...
अनु - हूँ...
दादी - देख मेरी बच्ची... मनाती हूँ... मैंने जल्दबाजी की है.... पर मैं तुझे सुरक्षित देखना चाहती हूँ....
अनु - हूँ...
दादी - क्या हूँ... कुछ तो बोल...
अनु - क्या बोलूँ दादी...
दादी - देख मैं जानती हूँ... तुझे गुस्सा है... तो जाहिर तो कर...
अनु - (दादी की ओर देखती है और मुस्कराने की कोशिश करते हुए) गुस्सा नहीं है दादी... गुस्सा नहीं है... दुख है मुझे... तुमने मुझे और राजकुमार जी को गुनहगार ठहरा तो दिया... पर सफाई का मौका तक नहीं दिया... फिर भी मुझे शिकायत नहीं है... मैंने कहा ना... तुमको मेरे लिए... दुनिया से जुझते देखा है... इसलिए मेरी भला बुरा सब... फैसला करने का हक तुम्हारा है... और मुझे मंजूर भी है...
कह कर फिर से अपना चेहरा मोड़ देती है और खिड़की से बाहर की ओर देखने लगती है l दादी अपनी जगह से उठ कर कमरे से बाहर जाती है l बाहर के ड्रॉइंग रुम के कमरे में पहुँच कर देखती है मृत्युंजय कुछ टेंशन में है और चहल कदम कर रहा है l
दादी - क्या बात है... मट्टू...
मृत्युंजय - (रुक कर खड़ा हो जाता है) कुछ नहीं दादी... इतनी जल्दबाजी में... दस हजार खर्च कर... हफ्ते के लिए... क्या यहाँ आना जरूरी था...
दादी - हाँ... जरूरी था... पर यह बता... तु क्यूँ... हमारे साथ यहाँ रहने आ गया...
मृत्युंजय - दादी... वहाँ... तुम नहीं रहती... अनु भी ना रहती... फिर पुष्पा की देखभाल कौन करता....
दादी - ह्म्म्म्म... ठीक कह रहा है... अच्छा... लड़के वालों को खबर कर दी है...
मृत्युंजय - हाँ दादी... कर दी है... वह लोग दुपहर को आयेंगे... और हमारे साथ खाना कर ही जायेंगे....
दादी चुप हो जाती है और वहाँ पर पड़े एक कुर्सी पर धप कर बैठ जाती है l
मृत्युंजय - क्या हुआ दादी...
दादी - पता नहीं मट्टू... कभी कभी खुद से उलझ रही हूँ... कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही हूँ... मट्टू... क्या मैं सही कर रही हूँ...
मृत्युंजय - (झिझकते हुए) अब... मैं इसपर क्या कहूँ दादी... जब अनु की जगह पुष्पा को रख कर सोचने लगता हूँ... तब लगता है... हाँ आप सही कर रही हो... इसलिए तो... आपके हर फैसले के साथ खड़ा हूँ... क्यूंकि आपने हम से ज्यादा दुनिया देखी है... भला बुरा... हमसे ज्यादा आप समझते हैं... इससे ज्यादा... मैं क्या कहूँ...
दादी - शुक्रिया बेटा... उधेडबुन में थी... तेरी बातों से... थोड़ी हिम्मत मिल गई...
इतने में एक छोटी सी स्कुल जाने वाली लड़की स्कुल के कपड़ों में उछलकूद करती हुई, भागती हुई अंदर आती है l यह दोनों देखते हैं, वह मकान मालिक की लड़की थी l वह लड़की इन दोनों को घूर कर देखती है और मुस्कराते हुए
लड़की - किसकी शादी होने वाली है...
अब तक दादी का चेहरा जो मुरझाया हुए था, लड़की की बात सुनते ही चेहरे पर जान आ जाती है l
दादी - मेरी पोती की... क्या नाम है तेरा...
लड़की - गुड्डु... गुड्डु नाम है मेरा... वैसे कल खाने पीने की पार्टी होगी ना...
दादी - हाँ जरूर करेंगे...
गुड्डु - आइस क्रीम और चाकलेट भी...
दादी - हाँ... जरूर करेंगे.. तेरे लिए... ढेर सारी आइस क्रीम और चाकलेट लाएंगे...
गुड्डु - अच्छा... वह दीदी कहाँ हैं... जिनकी शादी होगी...
दादी - देखना है तुझे...
गुड्डु - हाँ...
दादी - जा... (हाथ से इशारा करते हुए) उस कमरे में है...
गुड्डु - अच्छा... (कह कर कमरे की ओर भाग जाती है)
कमरे में आकर गुड्डु देखती है एक लड़की खिड़की से बाहर झाँक रही है l
"दीदी" आवाज़ सुन कर अनु पलट कर देखती है एक छोटी सी लड़की स्कुल ड्रेस में खड़ी हो कर देख रही है l
गुड्डु - अररे... दीदी आप... आपकी शादी हो रही है...
अनु - (भाव हीन चेहरे से उसे देख कर अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
गुड्डु - ह्म्म्म्म... आप खुश नहीं लग रही हो... लगता है... आपकी शादी... उन भैया से नहीं हो रही है...
यह सुनते ही अनु को झटका सा लगता है l वह हैरान हो कर उस लड़की को देखती है l
अनु - क.. क.. क्या... क्या कहा..
गुड्डु - मैंने कहा... लगता है... आपकी... (अपनी हाथ को पीछे मोड़ कर इशारा करते हुए) उन भैया से शादी नहीं हो रही है...
अनु - तुम मुझे जानती हो...
गुड्डु - हाँ...
अनु - और उन्हें...
गुड्डु - हाँ...
अनु के मुरझाई आंखों में अचानक से जान आ जाती है l वह अपनी घुटनों में बैठ जाती है और गुड्डु की तरफ अपनी बाहें फैला देती है l गुड्डु भी भागते हुए अनु की गले लग जाती है l गुड्डु की गले से लगते ही अनु की रुलाई फुट पड़ती है
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आखें कब की खुल चुकीं थी, नींद कब की टुट चुकी थी पर रुप अपनी बेड पर तकिया को गले लगा कर लेटी लेटी गहरी सोच में खोई हुई थी l शुभ्रा कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर आती है और रुप के सामने खड़ी हो जाती है l रुप को गौर से देखती है, रुप अपनी सोच में इस कदर खोई हुई है कि उसके पास शुभ्रा का होने का जरा सा भी एहसास नहीं होता l
शुभ्रा - क्या बात है राजकुमारी जी...
रुप - (होश में आती है, शुभ्रा को अपने सामने इतने पास देख कर हड़बड़ा जाती है और झट से उठ बैठती है) भाभी... आप... आप कब आई...
शुभ्रा - हूँ... आई तो मैं कुछ देर पहले ही... पर लगता है राजकुमारी जी किसी के ख़यालों में... दुनिया जहान भुलाए बैठे हैं....
रुप - आह्ह्ह्ह... भाभी... सुबह सुबह... यह क्या मज़ाक है...
शुभ्रा - मज़ाक नहीं है...
रुप - फिर... यह राजकुमारी राजकुमारी क्या है...
शुभ्रा - बता दूंगी... पहले यह बताओ... कॉलेज क्यूँ बंद रखा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - तुम्हारे दोस्त बार बार फोन पर पुछ रहे हैं... तुमने फोन बंद कर रखा है... इसलिए सारी शिकायतें.... मेरी फोन पर आ रही है...
रुप - (भोली चेहरा बना कर) सॉरी भाभी....
शुभ्रा - अब इतना भी क्या गुस्सा... तीन दिन हो गए हैं... तुमने उस रात के बाद... फोन स्विच ऑफ कर रखा है....
रुप - (झिझकते हुए अपनी नजरें चुराते हुए) वह भाभी... उस रात को... अनाम... मेरा मतलब है... प्रताप ने फोन किया था... मैंने गुस्से में आकर... फोन... (जल्दी से) दीवार पर दे मारा था... (फिर तकिया से अपना चेहरा छुपा लेती है)
शुभ्रा - (चौंक कर झटके के साथ) क्या....
रुप धीरे धीरे अपनी चेहरे से तकिया हटाती है और जीभ निकाल कर अपने दांतों तले दबा कर चेहरा नीचे कर लेती है l
शुभ्रा - (खुदको नॉर्मल करते हुए) हम्म.. यह अवतार... नंदिनी के तो नहीं हो सकते हैं... मतलब समझ में आ गया... जैसे ही अनाम प्रकट हुए... राजकुमारी भी बाहर निकल आईं...
रुप - भाभी प्लीज... यह बार बार राजकुमारी कह कर ना बुलाएं...
शुभ्रा - पर यह हफ्ता... हमें आपको बड़े अदब के साथ... राजकुमारी कह कर बुलाना पड़ेगा...
रुप - क्यूँ...
शुभ्रा - वह... (रुक जाती है)
रुप - हाँ... वह...
शुभ्रा - चाची माँ ने बताया था... की परसों... एक शादी की रिसेप्शन अटेंड करने... पुरा क्षेत्रपाल परिवार जाएगा...
रुप - ओ... पर क्षेत्रपाल परिवार की औरतें... कभी इस तरह की पार्टीयोँ में नहीं जाती...
शुभ्रा - हाँ... पर इस बार... हम सब जाएंगे... तुम... मैं और चाची माँ भी...
रुप - (चौंकते हुए) क्या... (फिर शुभ्रा से) भाभी... एक मिनट...
इतना कह कर रुप अपनी बेड छोड़ कर बाथरुम जाती है, अपनी चेहरे पर अच्छी तरह से पानी डाल कर चेहरा साफ करती है l फिर टावल से चेहरा पोछते हुए शुभ्रा के पास बैठ कर
रुप - हाँ भाभी... मैं शायद नींद में थी... अब बोलो...
शुभ्रा - क्या बोलो... तुम कोई नींद में नहीं थी... हम सब सच में... परसों शादी की रिसेप्शन अटेंड करने जा रहे हैं... पुरा क्षेत्रपाल परिवार...
रुप - ओ... तो इसलिए आप हमें... राजकुमारी कह रही थी...
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए) देखा अब आप मैं छोड़ कर हम पर आ गई...
रुप - हाँ युवराणी जी...
शुभ्रा - (हँस देती है) हाँ राजकुमारी जी...
रुप - हाँ तो हमें वहाँ... अपने चेहरे पर... झूठा रौब... अहंकार का मुखौटा लिए...लोगों पर अपना रौब झाड़ने के लिए... जाएंगे...
शुभ्रा - हाँ...
रुप - पर भाभी... हम जा किसके.. रिसेप्शन में हैं...
शुभ्रा - कानून मंत्री... उनकी बेटी की शादी की रिसेप्शन है...
रुप - ओ... तो यह एक पोलिटिकल बात है... ह्म्म्म्म... लगता है... बहुत जल्द इलेक्शन होने वाले हैं...
शुभ्रा - नहीं... बात ऐसी नहीं है... बात कुछ और है...
रुप - (हैरान हो कर) कुछ और मतलब....
शुभ्रा - (बेड से उठ जाती है) उस पार्टी में... हम सबका जाना जितना जरूरी नहीं है... तुम्हारा वहाँ जाना बहुत जरूरी है...
रुप - (भवें सिकुड़ लेती है) भाभी... इतनी देर से... आप पहेली पर पहेली बुझा रहे हो... बेहतर होगा... आप मुद्दे पर आ जाओ...
शुभ्रा - (खरासते हुए) अहेम.. अहेम... तुम्हें उस पार्टी में ले जाने के लिए... राजा साहब से... किसीने दरख्वास्त की है...
रुप - कौन...
शुभ्रा - वही... जिनके घराने में... तुम्हारा रिश्ता तय हुआ है... दसपल्ला के राज परिवार आ रहे हैं....
रुप अपने बिस्तर से उठ कर ऐसे खड़ी हो जाती है के मानों कोई बिच्छु उसे काट लिया l पहले तो शॉक से उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l फिर बड़ी मुस्किल से
रुप - भ..भाभी...
शुभ्रा - हाँ नंदिनी... (एक गहरी सांस लेते हुए) तुम मेंटली प्रिपैर रहो... आने वाले कुछ दिनों में... शायद ऐसे शॉक लग सकते हैं....
रुप कुछ सोचते हुए अपनी दाहिनी हाथ की अंगूठे की नाखुन को दांतों से काटते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है l
रुप - (धीरे से पूछती है) भाभी... भैया....
शुभ्रा - तुम्हारे दोनों भाइयों को समझाते हुए... नाश्ता करवा कर भेज दिया मैंने...
रुप - क्या कहा उनसे...
शुभ्रा - यही की... कल रात तुम बहुत थकी हुई थी... इसलिए आज तुम्हें कोई ना जगाए... तब तुम्हारे भैया ने कहा कि... राजकुमारी जी को सोने दें... क्या हो जाएगा... तीन दिन कॉलेज नहीं गईं तो...
रुप - यह... दसपल्ला राज परिवार.. पालिटिक्स में भी हैं क्या...
शुभ्रा - हाँ... गजेंद्र सिंह देव... स्टेट के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर हैं... वह भी सपरिवार आ रहे हैं... अपने बेटे.. दिव्य शंकर सिंह देव को साथ लेकर... आई थिंक... तुम्हें याद होने चाहिए थे... आखिर तुम्हारे होने वाले इन लॉज हैं...
रुप अपने बाएं हाथ पर अपना सिर रख कर बैठ जाती है l उसके अंदर की छटपटाहट शुभ्रा को साफ महसूस होती है l
शुभ्रा - नंदिनी... तुम्हारे लिए फैसले का वक़्त आ गया है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - एक राह... बहुत आसान है... अगर... राजा साहब के अनुसार... उनकी बातों पर अमल करो...
पर दुसरा रास्ता... बहुत ही मुश्किल भरा होगा... शायद दर्द से भी भरा...
रुप - (फिर भी चुप रहती है)
शुभ्रा - मुझे लगता है... तुम थोड़ी ओवर रिएक्ट कर गई.... उस पर अपना मोबाइल भी तोड़ दिया तुमने.... (रुप की ओर देखते हुए) तुम क्या सोच रही हो....
रुप - भाभी... मेरे पास दो वर्ष टाइम है... क्यूंकि मेरी ग्रेजुएशन से पहले... मेरी शादी नहीं होगी... यह मेरे लिए एडवांटेज है... (एक पॉज लेने के बाद, शुभ्रा की ओर देखते हुए) भाभी... क्या आप मेरे लिए... एक नया हैंडसेट ला देंगी... प्लीज...
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ESS ऑफिस
विक्रम अपनी कैबिन में चहल पहल कर रहा है l और बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l थोड़ी देर बाद कमरे में महांती कमरे में आता है l
महांती - आप कुछ टेंशन में लग रहे हैं...
विक्रम - हाँ... महांती... कल तुम शाम को बताओगे कह कर... आज मिल रहे हो...
महांती - युवराज जी... मुझे कुछ खबर मिली... पर सोचा शायद आप नाहक परेशान होंगे... इसलिए आज बताने के लिए सोच कर आया हूँ....
विक्रम - (महांती को घूर कर देखता है) कल सुबह तुम टेंशन में थे... और अब कह रहे हो... हम नाहक परेशान होंगे... क्या मतलब हुआ आपका...
महांती - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, फिर अपना सिर हिला कर कुछ निश्चय करते हुए) युवराज... हम जानते हैं... की राजा साहब ने होम मिनिस्टर से जैसा डील किया... शायद सरकारी मेकानिजम उनके खिलाफ ना जाए... पर... (कहते कहते रुक जाता है)
विक्रम - क्या हुआ है महांती...
महांती - क्या हम बैठ कर बातेँ करें...
विक्रम - ओह... सॉरी... सॉरी महांती... हाँ.. आओ बैठते हैं...
फिर दोनों अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं l महांती उसके बाद भी चुप रहता है l उसकी चुप्पी देख कर विक्रम की टेंशन और भी बढ़ जाता है l
विक्रम - अरे महांती बाबु... कुछ तो बोलिए...
महांती - युवराज... आप जानते हैं... पिछले बीस बाइस दिनों से... इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... और.. एडवोकेट बल्लभ प्रधान... दोनों भुवनेश्वर में हैं...
विक्रम - क्या....
महांती - हाँ... इस बीच... रोणा हसपीटालाइज हुआ था... और उसे देखने... छोटे राजाजी भी गए थे...
विक्रम - (कुछ सोचने के बाद) क्या इसमें... टेंशन वाली कोई बात है...
महांती - मैंने भी यही सोचा... शायद कोई बात नहीं होगी... पर शनिवार रात को... फाइटिंग नाइट को... काठजोड़ी के रेत पर देखा था.... तब मैंने चुपके से उनकी फोटो ले ली थी... उनके साथ एक मुजरिम को देखा था... छानबीन के बाद मालुम पड़ा... वह टोनी था... एक चिंदी मुजरिम... पर रोणा और प्रधान पर नजर रखा और राजगड़ से जो खबर मिला... उससे पता चला कि... यह दोनों... राजा साहब से मिलने के बाद ही... भुवनेश्वर आए हैं... पर ताज्जुब की बात है... हमसे ना मिले... ना ही हमें खबर किया...
विक्रम - हो सकता है... उनका कोई निजी मसला हो...
महांती - मुझे भी यही लगा... पर तहकीकात के दौरान मुझे यह भी पता चला... कि जिस होटल में रुके हुए हैं... उसी होटल में... रोणा पर दुबारा हमला हुआ...
विक्रम - क्या हमला...
महांती - हाँ...
विक्रम - कमाल है... फिर भी हमे खबर नहीं किया...
महांती - हाँ यही तो... मैंने अब कि बार... उनपर नजर रखना शुरु कर दिया था... उनके साथ एक और ऑफिसर मिलने जाया करता था... होम सेक्रेटेरीयट का श्रीधर परीड़ा...
विक्रम - अब यह कौन है...
महांती - मैं भी लग गया यही जानने के लिए...
विक्रम - अच्छा... तो क्या जाना तुमने....
महांती - यह तिकड़ी... सात साल पहले एक केस के सिलसिले में इकट्ठे हुए थे...
विक्रम - कैसा केस...
महांती - रुप... यानी राजगड़ उन्नयन परिषद में... आधार कार्ड के जरिए... साढ़े सात सौ करोड़ का घोटाला हुआ था... उस घोटाले में... एक को सजा मिली थी... (महांती चुप हो जाता है)
विक्रम - चुप क्यूँ हो गए....
महांती - इस केस में राजा साहब एक गवाह थे... जिस दिन राजा साहब की गवाही होनी थी... उसी दिन... उस एक्युश्ड का वकील... हार्ट अटैक के चलते... भरी अदालत में ही चल बसा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... फिर...
महांती - फिर... उस एक्युश्ड ने फिर कोई वकील हायर नहीं किया... और उसे सजा हो गई...
विक्रम - तो... कंस्पीरेसी क्या है...
महांती - युवराज... आप समझ सकते हैं... शायद वह एक्युश्ड... बेगुनाह था...
विक्रम - यह तुम कैसे कह सकते हो...
महांती - (मुस्कराते हुए कहता है) युवराज... याद है... जिस दिन मैंने अपना ऑफर कुबूल किया था... उस दिन आपने मुझसे एक बात कही थी...
विक्रम - क्या...
महांती - यही... की आप क्षेत्रपाल कोई अच्छे लोग नहीं हैं...
विक्रम - हाँ... याद आया... और जवाब में तुमने कहा था... अच्छे लोगों से तुम्हें डर लगता है...
महांती - हाँ... उसके बाद हमने... यह ESS की सल्तनत खड़ी की... सिक्युरिटी सर्विस तो सेकंडरी थी... प्राइमरी तो... हर संस्थान पर नजर रखना... और उन्हीं संस्थानों में अंदर तक घुसना... और बिना किसी इनवेस्टमेंट के... हर संस्थान में हिस्सेदार बनना...
विक्रम - तुम कहना क्या चाहते हो महांती....
महांती - यही... के वह रुप वाला स्कैम.. फैब्रिकेटड था...
विक्रम चुप था, क्यूंकि वह समझ चुका था महांती की यह बात झूठ हो ही नहीं सकती थी l क्यूँकी पैसों के खातिर ही तो ओड़िशा के आधे से ज्यादा जगहों पर सिक्युरिटी देने के साथ साथ हर एक संस्थान में हिस्सेदार हैं l
महांती - (खरासते हुए) अहेम.. अहेम...
विक्रम - (अपनी सोच से बाहर निकलता है) यह कोई टेंशन वाली... बात नहीं हो सकती...
महांती - हाँ... पहले पहले मुझे भी यही लगा... पर जब छानबीन की... तो खतरा मुझे साफ दिखने लगा...
विक्रम की आँखें चौड़ी हो जातीं हैं, वह हैरानी के साथ महांती को देखता है l
महांती - उस एक्युश्ड से खतरा हो सकता है... ऐसा सोच कर ही... रोणा और प्रधान... छुप छुप कर... तहकीकात कर रहे थे... शायद...
विक्रम - (हैरानी के साथ) उस एक्युश्ड से खतरा...
महांती - हाँ... उस एक्युश्ड ने... हाल फ़िलहाल में... हाई कोर्ट... और होम मिनिस्ट्री में... आरटीआई फाइल किया है...
विक्रम - क्या... क्या फाइल किया है...
महांती - राइट टु इंफॉर्मेशन...
विक्रम - क्या इंफॉर्मेशन मांगा है उसने...
महांती - रुप के फ्रॉड में... एक्युश्डों की और गवाहों की लिस्ट... और होम मिनिस्ट्री से... अब तक की जांच की डिवेलपमेंट...
विक्रम - अब तक की जांच की डिवेलपमेंट मतलब...
महांती - अदालत ने... एसआईटी को बंद नहीं किया था... और सच्चाई यही है... की एसआईटी ने आगे जांच भी नहीं किया...
विक्रम - ह्म्म्म्म... बात तो गंभीर है... यह एक्युशड है कौन...
महांती - जब अदालत ने सजा सुनाई थी... तब वह एक्स सरपंच विश्व प्रताप महापात्र था...
विक्रम - था... व्हाट डु यु मीन बाय था...
महांती - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह सजा से पहले... एक्स सरपंच... विश्व प्रताप महापात्र था... सजा के बाद... वह विश्व प्रताप महापात्र बीए एलएलबी है...
विक्रम - व्हाट... क्या मतलब हुआ इसका...
महांती - उसने.. जैल में रह कर... अपनी ग्रैजुएशन के साथ साथ एलएलबी की भी डिग्री हासिल कर ली...
कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l विक्रम कुछ सोचने के बाद
विक्रम - बात सात साल पुराना है... जाहिर सी बात है...तब हमें इंवाल्व नहीं किया गया था... पर अब.. बात अगर इतनी सीरियस है... तो हमें खबर क्यूँ नहीं किया गया...
महांती - शायद केस को सीरियसली नहीं लिया गया था... या गया है...
विक्रम - अगर राजा साहब ने इसे सीरियसली नहीं लिया है... तो हम क्यूँ परेशान हो रहे हैं...
महांती - इसी लिए तो मैं दुविधा में हूँ... क्यूंकि अब सात साल पहले का केस उछाल कौन रहा है... वही... जिसे सजा सुनाई गई थी... उसने जैल में रह कर... राइट टू एजुकेशन के तहत... एलएलबी की डिग्री हासिल की है... सिर्फ और सिर्फ इसी केस के लिए.... अभी पांच दिन पहले ही उसने आरटीआई फाइल किया है...
विक्रम - वह क्या कर सकता है...
महांती - पीआईएल... पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन... फाइल करेगा... मतलब जहां राजा साहब की गवाही रुक गई थी... केस फिर से... वहीँ से शुरु होगा...
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कॉफी डे के स्टॉल में वीर एक टेबल पर बैठा हुआ है l मायूस सा चेहरा बना कर अपने ही अंदर खोया हुआ है l तभी उसके सामने विश्व आकर बैठ जाता है l फिर भी वीर की ध्यान नहीं टूटता है l विश्व अपना हाथ ले कर वीर के चेहरे के सामने चुटकी बजाता है l वीर का ध्यान टूटता है और वह विश्व की ओर देखता है l
विश्व - क्या हुआ यार... बड़े खोए... खोए से लग रहे हो...
वीर - (चेहरा बहुत गंभीर हो जाता है) यार... कभी कभी लगता है... मैं पहले सही था... यह प्यार और इश्क... बहुत खराब चीज़ है... इंसान को कमजोर कर देता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... बात दार्शनिक हो रहा है...
वीर - हाँ यार... मैं... उसे कहने के लिए... तड़प रहा हूँ... पर ऐसा लगता है... तकदीर मुझे बुरी तरह से आज़मा रही है....
विश्व - ऐ भाई... क्या हुआ है... बोल तो सही...
वीर पिछले हफ्ते और इसी हफ्ते हुए सारी व्याक्या विश्व को बताता है l सब सुनने के बाद
विश्व - हम्म्म... सच में... पर बात तो दो दिन पहले की है... इन दो दिन में... ट्राय नहीं किया...
वीर - कहाँ यार... मैं फोन कर रहा हूँ... पर उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा है...
विश्व - (सोच में पड़ जाता है) स्विच ऑफ आ रहा है... पर क्यूँ...
इतने में कॉफी डे के सर्विस बॉय दो पेपर के डिस्पोजेबल ग्लास में कॉफी दे कर चला जाता है l दोनों दोस्त कॉफी हाथ में लेकर सीप भरने लगते हैं l
वीर - कुछ पुछ रहे थे...
विश्व - हाँ... पर तुमसे नहीं... खुद से...
वीर - तुम्हारी वाली भी स्विच ऑफ कर रखी है क्या...
विश्व के गले में कॉफी अटक जाता है और खांसने लगता है l उसकी खांसी बंद हो जाती है l
वीर - हाँ... तुम्हारी वाली भी स्विच ऑफ कर रखी है मतलब...
विश्व - नहीं ऐसी बात नहीं है...
वीर - सभी लड़कियां... होती ही ऐसी हैं...
विश्व - नहीं यार... ऐसी बात नहीं है... तुम्हें उसके घर जा कर पता करना चाहिए....
वीर - करता... पर... (रुक जाता है) उसकी हर बातेँ मुझे कंफ्युज कर देती हैं...
विश्व - कैसा कंफ्युजन...
वीर - कभी कभी लगती है... की वह मुझे पसंद करती है... (कह कर रुक जाता है)
विश्व - और कभी कभी...
वीर - पता नहीं यार... तुम अपनी बताओ...
विश्व - क्या बताऊँ यार... सच में... ल़डकियों को समझना मुश्किल है... नामुमकिन है...
वीर - हाँ... मैं भी तो यही कह रहा हूँ... लगता है... तुम्हारी शेरनी ने पंजा मारा है...
विश्व - हाँ... नहीं.. नहीं... ऐसा कुछ नहीं हुआ है... पर तुम्हारी वाली तो... हिरनी है...
वीर - हिरनी... या मेरी हीर... शायद मैं उसका रांझा नहीं हूँ...
विश्व - उसकी आँखे...
वीर - (अपनी आँखे बंद कर) हीरे से जड़े उसके नैन बड़े...
विश्व - उसकी बातेँ... मिश्री की डलियाँ...
विश्व - उसकी जुल्फें...
वीर - काली बदरा...
विश्व - उसका चेहरा...
वीर - चौदहवीं का चांद...
विश्व - उसकी साँसे...
वीर - महकती फूल...
विश्व - कौन...
वीर - अनु...
विश्व चुप हो जाता है l जब कुछ देर तक वीर को विश्व की आवाज सुनाई नहीं देती वह अपनी आँखे खोल कर विश्व की ओर देखता है l विश्व उसे देख कर मुस्करा रहा है l
वीर - तो मेरे मजे ले रहे थे...
विश्व - नहीं... एक आशिक की ज़ज्बात की गहराई को महसूस कर रहा था...
वीर - ठीक है... अब मेरी बारी...
विश्व - क्या... कैसी बारी...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
विश्व - क्यूँ..
वीर - कर ना यार...
विश्व - ठीक है... (कह कर अपनी आँखे बंद कर लेता है)
वीर - उसकी आँखे...
विश्व - सागर सी.. गहराई छुपाये हुए...
वीर - उसकी बातेँ...
विश्व - नीम सी कड़वी... पर शहद सा एहसास देता है...
वीर - उसकी जुल्फें...
विश्व - एक झरना... जो जम गया हो...
वीर - उसका चेहरा...
विश्व - सुरज मुखी सा... तेज... जो अंधेरे को रौशन कर दे...
वीर - उसकी सांसे...
विश्व - चंदन सी... जो तन बदन और मन को महका दे...
वीर - कौन...
विश्व - (आँखे बंद थी पर होंटों पर मुस्कराहट आ जाती है) नकचढ़ी...
वीर - क्या...
विश्व - (हड़बड़ा कर) क्या... क्या हुआ...
वीर - नकचढ़ी... यह कैसा नाम है...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... मैंने नकचढ़ी कहा...
वीर - हाँ... यह कैसा नाम है... नकचढ़ी
विश्व - ओ... (बात को संभालते हुए) दर असल... वह शेरनी है ना... (कह कर विश्व चुप हो जाता है)
वीर, विश्व को घूरता है l विश्व पता नहीं क्यूँ पर वीर से नजरें चुराने लगता है l फिर दोनों की नजरें मिलती है और दोनों हँसने लगते हैं l
वीर - यार गजब है... नकचढ़ी (कह कर हँसने लगता है)
पर हँसते हँसते वीर रुक जाता है और चेहरे पर फिरसे मायूसी छा जाती है l
विश्व - (वीर के हाथ पर अपना हाथ रख कर) यार मायूस मत हो...
वीर - उसने फोन स्विच ऑफ कर दिया है यार... जब कि मैंने उससे वादा लिया था... हमेशा मेरी खैर खबर पूछते रहने के लिए...
विश्व - तेरी ही ऑफिस में काम करती है ना...
वीर - हाँ यार... पर दो दिन से आई नहीं है...
विश्व - तो घर जा उसके...
वीर - कैसे जाऊँ... उसके दिल में... मेरे लिए कुछ है भी या नहीं... मैं नहीं जानता यार... (कहते हुए वीर की आँखों के कोने भीगने लगते हैं)
विश्व - (उसकी ऐसी हालत देख कर बात बदलने के लिए) अच्छा... तेरी अनु के साथ... सबसे खूबसूरत पल कौनसा था...
विश्व की इस सवाल से वीर के चेहरे पर एक चमक आ जाती है l वह मुस्कराते हुए वह अनु की जन्मदिन वाली सारी बातेँ बता देता है l सब कुछ सुनने के बाद
विश्व - अरे बेवक़ूफ़... वह तुझसे बेइंतहा प्यार करती है... उसने इजहार भी किया है... तु समझ कैसे नहीं पाया...
वीर - (चौंक कर) क्या... कब... कैसे...
विश्व - अरे बेवक़ूफ़... जिस लड़की का हीरो उसका बाप हो... उसकी हमेशा ख्वाहिश रहती है कि उसका चाहने वाले में... वही वाला केयर टेकिंग गुण हो... जो उसके बाप में था... एक अनाथ... कंजरवेटिव एटमोस्पीयर में पल बढ़ कर आने वाली... और कैसे अपने प्यार का इजहार करती...
वीर - (हैरानी से उसका मुहँ खुला रह जाता है)
विश्व - वह दुनिया में अपने बाप से सबसे ज्यादा प्यार करती थी... आम तौर पर केयरिंग के मामले में... एक लड़की की हीरो उसका बाप ही होता है... उसके बाद वही सब गुण अपने होने वाले पति में ढूंढती है... अरे मूर्ख... तुझसे अपनी बाप की बात कह कर... और कैसे कह पाती...
वीर अचानक से अपनी कुर्सी से उठ जाता है l उसके आँखे बहने लगे थे l पर चेहरे पर असीम खुशी की चमक के साथ l विश्व भी खड़ा हो जाता है तो वीर उसे जोर से गले लग जाता है l
वीर - थैंक्स यार... थैंक्स... अब मैं अपनी प्यार का इजहार करने जा रहा हूँ... थैंक्स...
इतना कह कर वीर वहाँ से निकल जाता है l वीर के जाते ही विश्व का हाथ अपने आप उसकी आँख पर पहुँच जाता है l क्यूँकी विश्व की आँखे भी बह रही थी l अपनी आँसू पोछते हुए मुस्करा देता है और उसके मुहँ से दो शब्द निकल जाते हैं
"बेस्ट ऑफ लक मेरे दोस्त... बेस्ट ऑफ लक"
सभी अपनी दुनिया, अपनी परेशानियों और अपने दिल की लगी में फंसे हुए है। इस बात पर अपने एक मनपसंद गाने की लाइन याद आ गई...
वीर की नजरो से
मैं तो बड़ा नादाँ था, समझा नहीं प्यार क्या है
करता रहा आवारगी, न जाने कैसी वफ़ा है
जंजीर से कोई कभी, दिल को नहीं बांध पाए
तक़दीर से चाहत मिले, दौलत नहीं काम आये
कम न हो उम्र भर, प्यार की बेख़ुदी
लगी लगी है ये दिल की लगी, न समझो इसे दिल्लगी
लगी लगी है ये दिल की लगी, न समझो इसे दिल्लगी
विश्व रूप की नजरो से और शायद अनु की नजरो से भी
जब प्यार हो दिल में बसा, जन्नत लगे सारा जहाँ
सबसे बड़ा धनवान वो, जिसको मिले उल्फ़त यहाँ
जो प्यार में दे जिंदगी, चाहत पे कुर्बान हो
मुश्किल से वो हमदम मिले, जिसे दिल की पहचान हो
इश्क तो है खुदा, इश्क ही बंदगी
लगी लगी है ये दिल की लगी, न समझो इसे दिल्लगी
लगी लगी है ये दिल की लगी, न समझो इसे दिल्लगी
तापस विश्व और भैरव की मुलाकात को लेकर परेशान है और विश्व अपने लक्ष्य को लेकर। रूप अपने भविष्य की दिशा और अपने दिल की लगन को लेकर दोराहे पर खड़ी है। अनु बेचारी एक तरफ दादी के प्रेम, निस्वार्थ त्याग और कष्टों को लेकर दुखी तो दूसरी तरफ अपने पहले प्रेम के पूरे ना हों पाने के संशय से भयभीत है। हर कोई गमगीन है, दिल के हाथो मजबूर है मगर फिर भी फैसले तो लेने ही पड़ेंगे।
महंती ने विक्रम को विश्व के केस के बारे में, रोड़ा, प्रधान और परीदा के बारे में बता कर विक्रम के लिए एक और पेंचीदा मामला कड़ा कर दिया है क्योंकि अपने बाप की मर्जी के बिना वो कुछ कर नही सकता और जो भी महंती ने बताया है वो कुछ भी सामान्य नही है।
हर तरफ भसड़ मची है अब देखना है की ये परतें कैसे खुलती है। अदभुत लेखन और अपडेट।