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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

Bhai रविवार की रात खत्म होने वाली है l

कुछ आशा है क्या अपडेट की????
क्या करूँ भाई कभी कभी लिख तो लेता हूँ पर एडिटिंग के साथ रिरायटींग करते वक़्त उलझ जाता हूँ l कोशिश यही है कि आज अभी एक दो घंटे के भीतर पोस्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ
 

Kala Nag

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👉एक सौ इकसठवाँ अपडेट
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राज्य के बहु चर्चित राजगड़ मल्टिपल को-ऑपरेटिव सोसाइटी आर्थिक व आपराधिक मामलों पर आज स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई शुरु किया गया l अदालत में प्रोसिक्यूशन के लिए वादी पक्ष के गवाह, वकील विश्व प्रताप महापात्र और इस केस में तहकीकात करने वाले एक्जिक्युटीव मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री जी उपस्थित थे, केस के शुरुआत में वादी पक्ष के वकील विश्व प्रताप महापात्र ने केस के संबंधित गवाह और मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री की कानूनी सुरक्षा की मांग की l जिस पर अदालत शायद कल अपना फैसला सुनाए l पर अपनी डिफेंस स्वयं करने की मांग कर स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को यशपुर लाने वाले राजगड़ के राजा, सम्मानीय राजा साहब श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी निजी कारण उल्लेख कर कोर्ट की कारवाई को अतिरिक्त सात दिन आगे करने के लिए अनुरोध किया है l
हमने जब वह निजी कारण के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की तो सूत्रों से पता चला है कि बीते कल उनकी सुपुत्री की मंगनी तय की गई थी l पर ऐन मौके पर मंगनी की रस्म के कुछ ही समय पूर्व वर लापता हो गए हैं l आश्चर्य की बात यह है कि वर वधु से उम्र में काफी बड़े हैं और कटक भुवनेश्वर ट्विन सिटी के नामचीन बिल्डर हैं, श्री कमल कांत महानायक उर्फ केके l पर हैरानी की बात यह है कि राजगड़ के गाँव वाले इसे मंगनी के बजाय शादी कह रहे थे l और वर शादी की मंडप छोड़ कर भाग गया है l खैर जो भी हो इतना अवश्य सच है की राजगड़ के महल में एक अनुष्ठान हो रहा था पर उसमें वर की अनुपस्थिति के कारण बाधा उत्पन्न हो गया l यह निःसंदेह किसी भी पिता के लिए दुःख का कारण है l इसलिए अदालत राजा साहब को मनःस्थिति को समझते हुए इस केस में रियायत बरतने के लिए निर्णय किया है l कल अदालत उन्हें कितने दिन की रियायत देती है यह पता चलेगा l पर चूँकि राज महल से वर लापता हुआ है और राजा साहब ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी है, अदालत ने पुलिस को अतिशीघ्र इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है l
पुलिस ने भी अपनी तहकीकात तेज कर दी है l अब तक के लिए इतना ही l मैं सुप्रिया कुमारी रथ प्राइम टाइम बुलेटिन नभ वाणी से l नमस्कार

वैदेही टीवी बंद कर देती है l पीछे मुड़ कर देखती है विश्वा और उसके सारे दोस्त खाना खा रहे थे l पाँचों की ध्यान सिर्फ खाने पर थी l वैदेही उनसे अपना ध्यान हटा कर गौरी की तरफ देखती है l गौरी बड़ी गहरी चिंतन में खोई हुई थी l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या सोच रही हो... कहाँ खो गई हो...
गौरी - (अपनी सोच से बाहर आती है) नहीं... कुछ भी तो नहीं...
वैदेही - सुबह से देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी रहने लगी हो...
टीलु - क्यूँ नहीं रहेगी बोलो... अरे दीदी... हम सब दावत खाने चले गए... बुढ़िया को यहीं छोड़ गए... कम से कम... कुछ पकवान तो लाने चाहिए थे ना...
गौरी - मुहँ बंद कर नाशपीटे...

टीलु खी खी कर हँसने लगता है l पर गौरी की चेहरा देख कर वैदेही टीलु के तरफ देख कर आँखे दिखा कर चुप रहने के लिए कहती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी...
गौरी - (वैदेही की तरफ़ देख कर) वैदेही... मैंने... इन क्षेत्रपालों की दरिंदगी देखी है... तुमने झेला भी है... तुम सांप पर विश्वास कर सकती हो... पर इन क्षेत्रपालों को... हरगिज नहीं..
वैदेही - पर अब हुआ क्या है काकी...
गौरी - देखना... राजा कुछ ना कुछ करके... केस की सुनवाई को... खिंचता जाएगा... और धीरे धीरे अपने दुश्मनों को... निपटाता जाएगा... तुझे क्या लगता है... वह दूल्हा जो ग़ायब है... वह कभी मिलेगा... नहीं... वह अब कभी भी... दुनिया के सामने नहीं आएगा... क्यूँकी... मैं दावे के साथ कह सकती हूँ... वह अब तक... आखेट गृह के जानवरों का निवाला बन चुका होगा...
विश्व - (खाना खा चुका था, हाथ धो कर वैदेही के पल्लू से हाथ साफ करते हुए) तो काकी... क्या आपको... उस वर के गायब होने का दुख है...
गौरी - नहीं... शायद हाँ... ऐसा लग रहा है... जैसे कोई बवंडर आने वाला है... जिसके लिए... राजा ने दरवाजा खोल दिया है... कई जिंदगियां अब तहस नहस होने वाले हैं...
विश्वा - काकी... अगर वह केके... अब इस दुनिया में नहीं है... तो यह भी सच है कि... उसकी मौत की मातम मनाने वाला कोई है भी नहीं... और वह कोई संत महात्मा तो था नहीं... बेग़ैरत... बेईमान... मतलब परस्त था... बुढ़ापे में... राजा जैसे सांप की बात मान कर... एक कम उम्र की लड़की से शादी करने बेशरमो की तरह दौड़ा चला आया...
सीलु - हाँ... उसके साथ जो भी हुआ होगा... वह उसकी कर्मों का फल होगा... वही उसकी किस्मत में लिखा था... जिसे उसीने ही चुना था...
टीलु - हाँ... (वैदेही की पल्लू से अपना हाथ पोछते हुए) वह कहावत है ना... सांप की फन से... जो अपना पिछवाड़ा खुजाएगा... वह यम दर्शन किए बिना कहाँ जाएगा...
वैदेही - यह कहाँ की कहावत है...
टीलु - क्या दीदी... आपने कभी सुना नहीं...
सीलु - (टीलु के सिर के पीछे एक टफली मार कर) हमने भी नहीं सुना... किसने कहा था... कब कहा था...
टीलु - तुझे भी नहीं पता... एक महान... आदमी ने कहा था...
विश्व - ऐ.. ज्यादा सीन मत बना... अब बोलो कौन महान आदमी था...
टीलु - क्या... मैंने था... कह दिया... सॉरी सॉरी... एक महान आदमी ने कहा है...
वैदेही - ओ... अब मैं समझ गई... और वह महान आदमी तु है...
टीलु - वाह दीदी वाह.. (सबसे) देखा... दीदी समझ गई...

विश्व और बाकी मिलकर टीलु झुका कर दो चार घुसे बरसा देते हैं l वैदेही उन सबको रोकती है l टीलु वैदेही के पीछे छिप जाता है l तभी दास सादे कपड़े में वहाँ पर आता है l

विश्व - क्या बात है दास बाबु... आप... अचानक यहाँ..
दास - तुम लोगों की बातेँ बाहर तक सुनाई दे रही थी... बात तो सच है... केके गायब है... मुझे उसे ढूढ़ना है... और रिपोर्ट बना कर... अदालत में पेश करना है...
विश्व - आपने जैसा रिपोर्ट... अनिकेत रोणा पर बनाया था... वैसा ही रिपोर्ट इस गुमशुदगी पर बना कर अदालत में पेश कर दीजिए...
दास - यह लास्ट ऑप्शन है... क्या और कोई रास्ता है... इस
बार... भैरव सिंह... मुझ पर हावी होने की कोशिश करा है... मैं ज़वाब में उस पर हावी होना चाहता हूँ...
विश्व - दास बाबु... रिपोर्ट एक दिन में नहीं बनती... आप भी कुछ दिनों की मोहलत मांगिये... फिर तहकीकात शुरु कीजिए... क्यूँकी... भैरव सिंह ने... एसपी ऑफिस से... केके की जान को खतरा बता कर... पुलिस को बाराती बनाया था... पर केके तो... महल के भीतर से गायब हुआ है ना... वह भी... भैरव सिंह के अपने सिक्युरिटी के बीच...
दास - (मुस्करा देता है) समझ गया... मुझे क्या करना है... अच्छी तरह से समझ गया...

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अगले दिन सुबह क्षेत्रपाल महल के छत पर व्हीलचेयर पर नागेंद्र सिंह को बिठा कर कुछ नौकर रुप के दिखाए जगह पर रख देते हैं l रुप सबको नीचे जाने के लिए कहती है, जो नौकर नागेंद्र को लाए थे वह सब नीचे चले जाते हैं l रुप व्हीलचेयर को धकेल कर छत पर थोड़ी दूर लेकर आती है l जहां से पूरा गाँव दिख रहा था l सुबह की नरम धूप के रंग में रंगी गाँव बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था l

रुप - (चहकते हुए) देखो दादाजी... कितना सुंदर यह गाँव है... पर दूर से... (चेहरा संजीदा हो जाता है) आप लोगों की... झूठी अहं के चलते... इस गाँव की अंदर की पिंजर... ढांचा और जिंदगी... बदसूरत हो गई है... पर... पर अब बदलेगा... या यूँ कहूँ... बदल रहा है... (नागेंद्र की तरफ मुड़ कर) क्यूँकी अब इस महल की रौनक छूट रहा है... जाहिर है... वह रौनक... खुशियाँ... अब धीरे धीरे... गाँव में बसने वाली है... या यूँ कहूँ... शायद... बसने लगी है...

लकवाग्रस्त अपाहिज सा नागेंद्र की ओर मुस्कराते हुए रुप देखती है l नागेंद्र के आँखों में रुप के लिए गुस्सा झलक रहा था l रुप नागेंद्र की भावनाओं को दरकिनार कर नागेंद्र से कहती है l

रुप - दादाजी... आपमें ना... ताकत बहुत है... बेकार में मुझ पर गुस्सा कर... ताकत को जाया कर रहे हो... इसी गुस्से को... अगर खड़े होने के लिए... इस्तमाल किए होते... तो शायद.. अब तक खड़े भी हो गए होते... (नागेंद्र अपनी टेढ़ी मुहँ से गुँ गुँ कर रुप को झिड़कने लगता है) वैसे... जानते हैं... मैं पिछले दो दिनों से बहुत खुश हूँ... अपनी खुशी को आज मैं आपके साथ बाँटने इस छत पर लाई हूँ... अगर चाची या भाभी होतीं... तो उनसे यह खुशी शेयर कर रही होती... बार बार कर रही होती... नाच रही होती झूम रही होती... वह क्या है ना... लड़कियाँ अपनी खुशी को... ज्यादा देर तक पेट में... दबा कर नहीं रख सकती... इसलिए किसी को भी... बता देना बहुत जरूरी होता है... अब इस महल में... आप से बेस्ट कौन हैं... जिनसे अपनी दिल की बात कही जाए... और सबसे छुपाई भी जाए.... जानते हैं... राजा साहब... मेरे अनाम... पर अपनी भड़ास... अपनी खीज निकालने के लिए... ओर अपनी बेटी को.. उसकी नाफरमानी और बदतमीजी को... सबक सिखाने के लिए... एक बुढ़े लंगुर से शादी तय कर दी थी... हूँह्ह... मुझे और मेरे अनाम को नीचा दिखाने के लिए... मेरे दोस्तों को कटक और भुवनेश्वर से झूठ बोल कर उठा लाए थे... क्यूँकी जाहिर है... इस शादी के खिलाफ विक्रम भैया... चाचा चाची सभी थे... राजा साहब को यह लगा... उनकी इस कदम पर... सब मेरे लिए पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाएंगे... पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ... जो जो रस्में... भैया... चाचा चाची को निभाने चाहिए थे... उन्हीं रस्मों को निभाने के लिए... मेरे दोस्तों से कहा गया... पर वह कहते हैं ना... बाप से बढ़कर बेटा... विकी भैया ने ऐसा खेल खेला... के राजा साहब को जब पता चलेगा... यकीन मानिये दादा जी... उनको तो हार्ट अटैक आ जाएगा...
भैया ने इस खेल में... मेरे दोस्तों को भी शामिल कर दिया... और जानते हैं... अनाम के दोस्त... उस चिरकुट लंगुर को... महल अंदर आए और महल में ही कहीं छुपा दिया... जिसे राजा साहब... अपने नाकारे निकम्मे पहरेदारों के साथ... इंस्पेक्टर दास को लेकर... अंदर ढूढ़ने लगे... तभी... भैया ने मेरे भाई होने का रस्म अदा किया... आह...(झूम कर घूम जाती है) क्या कहूँ दादाजी... पहले तो भैया ने गाँव वालों को वहाँ से भगा दिया... ताकि कोई गवाह ना बन जाएं... फिर.. चाची से नए जुते लेकर... अनाम को पहना दिया... हा हा हा... अनाम भी भौचक्का रह गया... क्यूँकी अनाम तक को पता नहीं था... क्या हो रहा था... चाचा ने अपनी जेब से खंजर निकाल कर अनाम के हाथों में थमा दिया... चाची के पास मेरे सहेलियाँ भागते हुए आईं... आरती और तिलक की थाली दी... चाची ने अनाम की आरती उतारी और तिलक भी लगाया... तब तक... अंदर से इंस्पेक्टर भी आ गया... अपने साथ लाए फोर्स को... विवाह बेदी तक... दो लाइन में खड़ा कर दिया... और अनाम को... वैदेही दीदी ने... हाथ थाम कर... उन पुलिस वालों के बीच से लेकर आईं... मेरे बगल में बिठा दिया... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हूँ ह्म्म्म्म... वैदेही... आपको... याद है ना दादाजी... पाईकराय खानदान की अंतिम चराग... जिसकी आह अब क्षेत्रपाल घर परिवार सबको जला रही है... खैर... फ़िर भैया ने... (चहकते हुए) पंडित से... जल्दी जल्दी मंत्र पढ़वाया... फटा फट... जल्दी जल्दी... बिल्कुल राजधानी एक्सप्रेस की तरह... फ़िर अग्नि के फेरे भी लगवा दिए... और... (गले में मंगलसूत्र निकाल कर दिखाती है, और अपनी भौंहे नचा कर) अनाम मेरे गले में मंगलसूत्र पहना दिया... अब मैं... क्षेत्रपाल नहीं रही... मैं अब... (बड़े एटीट्यूड के साथ) रुप नंदिनी विश्व प्रताप महापात्र हूँ... अब मैं विश्व की हो गई हूँ... हम अब विश्वरूप हैं... विश्वरूप...

नागेंद्र की आँखे बड़ी और फैली हुई दिखने लगी थी l मुहँ फाड़े हैरत भरे नजरों से रूप को अबतक सुने जा रहा था l उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह कोई असंभव सी बात सुन लिया हो l रुप मुस्कराते हुए पूछती है

रुप - आपकी हालत समझ सकती हूँ... आपको यकीन नहीं हो रहा है... पर यह सच है... उतना ही सच... जितना कि सूरज का निकलना... हमारी साँसे चलना... यह देखिए... (अपनी बालों के बीच छुपाये माँग की सिंदूर को दिखाती है) मैं अब... इस घर में... विश्व प्रताप की व्याहता हूँ...

नागेंद्र अब उबलने लगता है l गहरी गहरी साँसे चलनी लगती है l शरीर का ज्यादातर हिस्सा काम नहीं कर रहा था पर फिर भी वह व्हीलचेयर से उठने की कोशिश कर रहा था l मानों उठ कर रुप की गला दबोच लेगा l रुप नागेंद्र की असहायता देख कर सहानुभूति के साथ कहती है l

रुप - दादाजी... मुझे समझ में नहीं आ रहा... आपको किस बात का गुरुर है... ना हाथ आपके साथ है... ना आपके पैर... ना ताकत... आपका दिन शुरु होता है... तो उन लोगों के रहमोकरम से... जिनकी जिंदगियों को अपने बर्बाद कर दिया था.... सिर्फ साँस और एहसास ही तो आपके साथ है... वर्ना... आपकी इसी गुरुर ने... आपसे... आपका दूसरा बेटा... बहु... और पोते को... दूर कर दिया... बड़ा पोता और बहू भी अब कभी इस महल में वापस नहीं आयेंगे... पर भरोसा रखिए... इस केस के खत्म होने तक... और ज्यादा से ज्यादा... अट्ठाइस दिन... सिर्फ तब तक इस महल की मेहमान हूँ... उसके बाद भी... अगर राजा साहब को सजा हो जाती है... और आपका साँस आपके साथ दे... मैं आपको अपने साथ ले जाऊँगी और सेवा करती रहूँगी... आपकी आखरी साँस तक... दादाजी मैं आपको तड़पाने के लिए ना यह सब किया है... ना ही आप लोगों से कोई बदला लेने... मैंने बस अपने हिस्से की जमीन... अपने हिस्से का आसमान ले लिया है... जो मेरा था... मेरी किस्मत में लिखा था... और आप लोग मुझे कभी नहीं दे सकते थे...

अब नागेंद्र का मुहँ एक ओर थोड़ा टेढ़ा हो गया था l गुस्से के कारण किसी सांप की तरह फुत्कार रहा था l उसकी टेढ़े मुहँ से लार बहने लगा था l रुप नागेंद्र की ऐसी हालत देख कर थोड़ा डर जाती है और भागते हुए नीचे नौकरों को बुलाने जाती है l थोड़ी देर बाद कुछ नौकर ऊपर आते हैं और नागेंद्र को उसके कमरे में ले जाते हैं और उसके बिस्तर पर सुला देते हैं l नागेंद्र अभी भी गहरी गहरी साँसे ले रहा था l रुप उसके माथे पर हाथ फेरती है l कुछ देर बाद कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देख कर रुप नागेंद्र को छोड़ कर उठ जाती है और बेड के सिरहाने एक किनारे पर खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - उनकी हवा पानी बदलने के लिए... नौकरों की मदत से... छत पर ले गई थी...
भैरव सिंह - तुम भूल कैसे गई... अंतर्महल में रहने वाली... नौकरों के सामने नहीं जाती...
रुप - महल में... जब मैंने... आपकी मुहँ से... हम का रुतबा खो बैठी.. और तुम पर आ गई... इसलिए शायद... दासी बराबर हो गई... और वैसे भी... केके साहब से आपने लगभग रिश्ता जोड़ ही दिया था... अगर शादी हो गई होती... तो अंतर्महल वाली बंधन से थोड़ी आजादी होती...
भैरव सिंह - (बात बदल कर) छत पर... बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - शायद... अपनी लाचारी और बेबसी पर उन्हें गुस्सा आया...
भैरव सिंह - गुस्सा... किस बात पर... तुमने उन्हें ऐसा क्या कहा...
रुप - मैंने... मैंने उन्हें... सब सच बताया... एक एक शब्द... अक्षरश सच बताया...
भैरव सिंह - ऐसा कौनसा सच बता दिया... जिस पर उन्हें अपनी लाचारी और बेबसी पर गुस्सा आया...
रुप - वही... परसों सुबह से लेकर देर शाम तक... महल में जो भी कुछ हुआ... अक्षरश सब बता दिया... बड़े राजा जी की घर में... शहनाई बज रही थी... पर उस जलसे में... उन्हें कोई पूछने वाला तक नहीं था... अगर वह मंडप के पास होते... जो भी हुआ अपनी आँखों से देख सकते थे...
भैरव सिंह - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, चेहरा सख्त हो जाती है)
रुप - बड़े राजा जी से विस्तार से कहा तो उन्हें गुस्सा आया... पर... आपको क्यूँ गुस्सा आ गया... क्या आपको लगता है... कुछ जानना बाकी रह गया इसलिए... आप चाहें तो... विस्तार से... आपको भी कह सकती हूँ...
भैरव सिंह - (दबी आवाज में) बदजात... जुबान बंद रख...
रुप - कुछ सच्चाई सुनी नहीं जा सकती... कुछ झेली नहीं जा सकती...
भैरव सिंह - अभी हारे नहीं हैं हम... बस इतने पर इतरा रही हो...
रुप - ना... हरगिज नहीं... बस अपनी किस्मत पर इतरा रही हूँ... वह किस्मत जो आपने लिखने की कोशिश की... पर कलम टुट गया...
भैरव सिंह - मत भूलो... यहाँ किस्मत हम लिखा करते हैं... परसों वही हुआ... जिसकी किस्मत में जो लिखा था...
रुप - वही तो कह रही हूँ... परसों मेरे साथ वही हुआ... जो मेरी किस्मत में लिखा हुआ था... और वह भी हुआ... जो आपने नहीं लिखा था...
भैरव सिंह - (अपनी दांत पिसते हुए) अब तुम... यहाँ से जा सकती हो...
रुप - जी... जैसी आपकी मर्जी...

रुप कमरे से निकल जाती है l भैरव सिंह एक कुर्सी खिंच कर नागेंद्र के बगल में बैठ जाता है l रुप ने उसे एक तरह से गुस्सा दिला गई थी l इसलिए पहले वह खुद को नॉर्मल करता है फिर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र गहरी गहरी साँसें ले रहा था l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... अगर आप नाराज हैं... की परसों की बातेँ ही नहीं... बल्कि इन कुछ दिनों में जो भी कुछ हुआ... हमने आपसे जिक्र नहीं किया... तो आपकी नाराजगी जायज है... पर हम... रुप के मन में... थोड़ा डर बिठाना चाहते थे... और यह दिखाना चाहते थे... हम जब चाहें... उसकी किस्मत को... ठिकाने लगा सकते हैं... बाकी कुछ ऐसे लोग थे... जिन्हें हम सबक पढ़ाना चाहते थे... (उठ जाता है और बिस्तर के छोर पर आकर खड़ा होता है) थोड़ा गलत तो हुआ... पर... असल में... हम चाहते थे... विश्व... इतना मजबूर हो जाए... वह रुप नंदिनी के लिए... खुल कर सामने आ जाए... पर ऐसा... हो नहीं पाया... हम इस शादी की आड़ में... केके को ठिकाने लगाना चाहते थे... बस वही हो गया...

इतना कह कर भैरव सिंह चुप हो कर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र की होंठ खुले थे लार बहती जा रही थी और आँखे नम थीं l क्यूँकी उसे एहसास हो रहा था, विश्व और रुप की चोरी की शादी और उसमें उसीके परिवार का शामिल होने के बारे में भैरव सिंह या उसके आदमियों को कुछ भी मालूम नहीं है l और सबसे अहम बात यह कांड क्षेत्रपाल महल की परिसर में पुलिस की देख रेख में हुआ था l रुप ने सच कहा था नागेंद्र ना सिर्फ लाचार था और बेबस भी था l सब जानते हुए भी भैरव सिंह को अवगत नहीं करा सकता था l इसलिए नागेंद्र की आँखे नम थीं l नागेंद्र अपनी आँखे बंद कर लेता है l भैरव सिंह समझता है, विश्व ने जिस तरह से उसकी सोच को मात दे कर केके को छुपा दिया वह भी उसीकी महल में, शायद इसी बात से नागेंद्र दुखी है l कमरे से बाहर आता है कुछ नौकरों को नागेंद्र के पास जाने की हिदायत दे कर अपनी रणनीतिक कमरे की ओर जाता है l बीच रास्ते में भीमा आकर सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - क्या बात है...
भीमा - दारोगा आया है... आपसे मिलने...
भैरव सिंह - तुमने वज़ह पूछी...
भीमा - जी हुकुम... वह केके के बारे में कुछ बताने आया है...


भैरव सिंह अपनी भौंहे सिकुड़ कर सोचने लगता है फिर अपना सिर हिला कर दीवान ए आम कमरे में जाता है l भीमा उसके पीछे पीछे चल देता है l कमरे में पहुँच कर देखता है दास एक आदम कद फोटो के सामने खड़ा था l वह भैरव सिंह की फोटो थी जिसमें भैरव सिंह हाथ में गन लिए एक मरे हुए शेर के सिर पर पैर रख कर खड़ा था l आहट पा कर दास पीछे मुड़ता है l

भैरव सिंह - कहो इंस्पेक्टर... कैसे आना हुआ...
दास - आपने... कल सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी थी... और अपने वक़ील के हाथों... अदालत में... दोपहर को... हम ही पर... नाकारी का इल्ज़ाम लगवा दिया..
भैरव सिंह - कुल इंस्पेक्टर कुल... लगता है... बहुत गर्म हो रहे हो... भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - जरा पंखा तेज चालाओ... इतनी तेज चालाओ.. के आज इंस्पेक्टर साहब की गर्मी उतर जाए... (भीमा कमरे में लगे सारे पंखे चला देता है) बैठिए... इंस्पेक्टर साहब... (कह कर भैरव सिंह बैठ जाता है)
दास - माफ़ कीजिए राजा साहब... जब मैं ड्यूटी पर होता हूँ... तब किसी के साथ... बैठ नहीं सकता... खास कर वह अगर... कोर्ट में मुल्जिम हो...
भैरव सिंह - अच्छा... तो अब आप ड्यूटी पर हैं... कहिये.. कौनसी ड्यूटी बजाने आए हैं...
दास - फिलहाल तो आपकी बजाने आया हूँ...
भैरव सिंह - (कुर्सी की आर्म रेस्ट को कसके पकड़ लेता है) इंस्पेक्टर...
दास - आई मीन... आप ही की ड्यूटी बजाने आया हूँ... आपने परसों अदालत में... प्रधान के हाथों... बड़ी चालाकी से... क्या झूठ बोला... शादी नहीं... मंगनी थी... मंगनी से केके की गुमशुदगी में... पुलिस को गवाह बना दिया... और जज ने भी... आपकी केस में सुनवाई की एक्सटेंशन के लिए... हमसे रिपोर्ट माँग की है...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... गलत क्या कहा है... आप ही के सामने तो केके गायब हुआ है...
दास - ना... हमारे आँखों के सामने नहीं... आपके महल के भीतर से... जिसकी सिक्युरिटी... आप ही के प्रबंधन में थी... हम तो... बाराती थे... बारात को... महल के द्वार तक पहुँचाना ही हमारा जिम्मा था...
भैरव सिंह - फिर भी आप जानते हैं... आपने तो ढूँढा भी था... कमरे में क्या... केके बाथरुम में भी नहीं मिला था...
दास - कमरे में नहीं मिला... बाथरुम में भी नहीं मिला... पर इसका मतलब यह तो नहीं... के केके... उसी कमरे में था... महल में पच्चीस से ज्यादा कमरे हैं... क्या पता... आपने ही उसे किसी और कमरे में बंद कर दिया हो... और पुलिस को गुमराह कर रहे हों...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... (गुर्राते हुए) यह बताओ... केके के बारे में... क्या जानकारी लाए हो...
दास - अरे जानकारी कहाँ... तहकीकात तो अब शुरु होगा... उसके लिए... मैं खास ऑर्डर लेकर आया हूँ...
भैरव सिंह - (भौंहे सिकुड़ कर) खास ऑर्डर...
दास - जी राजा साहब... आपकी एफआईआर को हमने बहुत सीरियसली लिया है... हमारे पास जो भी सबूत थे... उन्हें अदालत में पेश कर... केके को ढूंढने के लिए... खास परमिशन ले ली है... (कह कर एक काग़ज़ अपनी जेब से निकालता है) उस दिन महल की सेक्यूरिटी... आप ही की... ESS के गार्ड्स और उनका इनचार्ज अमिताभ रॉय कर रहा था... इसलिए जब तक सबकी पूछताछ नहीं हो जाती... तब तक यह लोग आपके महल की पहरेदारी नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - (कुर्सी से उठ खड़ा होता है) ह्व़ाट डु यू मीन... यह महल है... क्षेत्रपाल महल... तुम इस महल की सिक्युरिटी हटाने की बात कर रहे हो...
दास - जी राजा साहब... पर यकीन रखिए... उनसे केवल पूछताछ होगी... उसके बाद ही कोई निष्कर्ष निकलेगा... केके जी का अगवा हुआ है... या भाग गए हैं... (काग़ज़ को भैरव सिंह के हाथ में देते हुए) आप चाहें तो... एडवोकेट प्रधान से... वेरीफाए कर सकते हैं...

भैरव सिंह काग़ज़ लेकर पढ़ता है और दास की ओर देखता है l दास के चेहरे पर किसी भी तरह का कोई भाव नहीं दिख रहा था l

भैरव सिंह - तो फिर इस महल की सिक्युरिटी...
दास - हम हैं... पब्लिक सर्वेंट... मैं दो कांस्टेबलों को... आपकी महल की सिक्युरिटी के लिए कह दूंगा... (भैरव सिंह की मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, दांत के पीसने से कड़ कड़ की आवाज़ आने लगती है)
भीमा - हुक्म... आप कहें तो... इसे यहीँ महल में जिंदा गाड़ दूँगा...
दास - (भीमा के तरफ पलटता है) ओले ओले ओले... तेरे को गुस्सा आया... मैं यहाँ पूरी बंदोबस्त करके आया हूँ... पिछली बार की बातेँ भूल गया क्या... (भैरव सिंह के तरफ मुड़ कर) राजा साहब... आपकी सारी सिक्युरिटी टीम.. क्षेत्रपाल महल से दूर... रंग महल में रहेगी... चूंकि लोग बहुत हैं... हम लॉकअप में नहीं रख सकते... और जब तक... उनसे पूछताछ पूरी नहीं हो जाती... तब तक... इस महल के आसपास.. कोई दिखना नहीं चाहिए... बड़े राजा जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में... दो ज़न रात को... राजकुमारी जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में और दो जन रात को... आपके लिए... थोड़ा रिलैक्स है... आप चार चार जन रख सकते हैं... रसोई के लिए भी चार चार लोग शिफ्ट के हिसाब से... और महल की सुरक्षा की आप चिंता मत कीजिए... इतने दिनों में... इतना जो जान ही गया हूँ... राजगड़ में सुरक्षा महल को नहीं... बल्कि... राजगड़ को महल वालों से... चाहिए... फिर भी... मैं दो दो कांस्टेबल डिप्लॉय कर दूँगा... आई थिंक... आप सब समझ गए...
भैरव सिंह - अच्छी... तरह से...
दास - तो ठीक है... मैंने आपको जो हमारी एसओपी दे दिया है... उसे आप फॉलो कर... मुझे खबर कीजिए... उसके बाद... मैं रिपोर्ट की तैयारी करूँगा... (मुड़ कर जाने लगता है, तभी कमरे में बल्लभ प्रवेश करता है l बल्लभ को देख कर भैरव सिंह दास को रोकता है)
भैरव सिंह - एक मिनट... (दास रुक जाता है) तुमने कोर्ट से यह ऑर्डर कैसे हासिल की...
दास - ओ... तो वकील साहब को देख कर... आपके मन में यह प्रश्न ऊँघा...
बल्लभ - कैसा ऑर्डर राजा साहब...

भैरव सिंह वह काग़ज़ बल्लभ को थमा देता है l बल्लभ उस ऑर्डर को देख कर हैरान होता है और दास से पूछता है l

बल्लभ - यह.. यह ऑर्डर कब ली...
दास - वकील साहब... आप लीगल एड्स वाईरस हैं... आई मीन एडवाइजर हैं... आप पैवेलियन में रह कर कमेंट्री कर सकते हैं... असली खेल तो... मैदान में खिलाड़ी खेलता है... आप भूल रहे हैं... कोऑपरेटिव सोसाईटी की केस में... ईंवेस्टीगेशन इंचार्ज... एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट नरोत्तम पत्री हैं... उनकी भी अपनी एडमिनिस्ट्रेटिव पावर हैं... जिनको एक्जीक्युट कर के... कोर्ट की ऑर्डर की बेस पर... यह ऑर्डर ले लिया गया... (बल्लभ एक झिझक भरी नजर से भैरव सिंह को देखता है)
भैरव सिंह - तो इस ऑर्डर के पीछे का खिलाड़ी... विश्वा है...
दास - वाह... राजा साहब... वाह... ओके... अब मैं चलता हूँ... (फिर से जाने को होता है, इस बार भी भैरव सिंह की आवाज़ सुन कर रुक जाता है)
भैरव सिंह - दास... तुम्हें नहीं लगता... तुम बहुत तेजी से भाग रहे हो... उस रास्ते पर... जो बहुत फिसलन भरा है... जिसे विश्वा ने बनाया है... (एक पॉज लेकर) कभी भी... गिर सकते हो... मुहँ के बल... जब उठने की कोशिश करोगे... कमर टूट चुकी होगी...
दास - (मुस्करा कर) राजा साहब... अब लगता है... मुझे कुछ देर के लिए... ड्यूटी से बाहर जाकर बात करनी चाहिए... (भैरव सिंह के सामने एक कुर्सी के सामने आ जाता है) क्या मैं अब... बैठ सकता हूँ... (भैरव सिंह कुछ नहीं कहता पर फिर भी दास बैठ जाता है) राजा साहब... मैं अब आपसे जो कहूँ... उसे ध्यान से... सुनिएगा... और गौर कीजिएगा... विश्वा गिरफ्तार हो चुका था... रुप फाउंडेशन के केस में... जैल में अपनी सजा काट रहा था... तब आपकी और ओंकार चेट्टी की दोस्ती परवान चढ़ रही थी... प्रत्यक्ष राजनीति में आपकी दखल बढ़ने लगी थी... तब लगभग... पाँच साल पहले... जगत पुर के मस्जिद से... कुछ लोग... चीनी माउजर और कुछ असलाह बारुद के साथ गिरफ्तार हुए थे... उन्हें भुवनेश्वर सेंट्रल जैल मैं रखा गया था... एक स्पेशल सेल बना कर उसमें रखा गया था... उन्हें मिडिया आतंकवादी कह कर प्रचार कर रहा था... उस समय... आपकी सलाह पर... तत्कालीन मुख्यमंत्री जी नेतृत्व में... भुवनेश्वर में... वाइब्रेंट भुवनेश्वर का आयोजन किया गया था... याद है... (कमरे में दास जिस अंदाज से कह रहा था, खामोशी के साथ सब सुन रहे थे l ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों उस कमरे में दास के सिवा कोई है ही नहीं l एक पॉज लेकर) याद होगा ही... उसी दिन... जैल पर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ... पर अफसोस... उस जैल मैं कैद आतंकी के साथ... उसे बचाने आए सभी आतंकी... पुलिस की काउंटर अटैक में मारे गए...
भैरव सिंह - तुम कहानी कह रहे हो... या बकचोदी कर रहे हो...
दास - पुलिस वालों को... उस आतंकी हमले को नाकाम करने के लिए... वाह वाही.. प्रमोशन और मेडल मिला... पर असल में... उस वाह वाही या.. मेडल का असली हकदार... विश्व प्रताप था... (भैरव सिंह और बल्लभ की आँखें चौड़ी हो जाती है) एक अकेले विश्वा ने... ना सिर्फ सारे आतंकीयों को.. खत्म किया.. बल्कि पुलिस कैजुअल्टी को जीरो किया... पर बदले में... ना नाम लिया... ना इनाम... हमने कोशिश भी बहुत की... उसे नाम... पहचान और इनाम देने के लिए... पर उसने एक बात कहा था... उमाकांत सर जी की गवाही... झूठी ना हो जाए... उनके लिए ही... सजा पूरी करना चाहता है...
भैरव सिंह - इस कहानी का मतलब क्या है... इंस्पेक्टर...
दास - हमने एक इंक्वायरी कमिटी बैठाई थी... जिसमें हमें यह मालूम हुआ था... के वे लोग.. जो आतंकी की पहचान लिए मरे... सब आप ही के आदमी थे... आपने.. चेट्टी के बेटे... यश के साथ मिलकर... ईलीगल ड्रग्स तस्करी किया करते थे... मामला बहुत ऊपर तक पहुँचा था... पर चूँकि आपके पास... कुछ ऑफिसरों के... सीडी वगैरह था... धीरे धीरे केस को... दबाव के चलते डायल्युट हो गया था... उसके बाद... आपकी और चेट्टी के रिश्ते में दरार आई... और यह ड्रग्स का धंधा भी बंद हो गया...
बल्लभ - इस कहानी का... इस केस से क्या मतलब है दास बाबु...
दास - मैंने विश्वा की लकीर को बढ़ते देखा है... वह जब कुछ भी नहीं था... अकेला था... तब आपकी धंधे की वाट लगा चुका है... तो आज वह क्या कर सकता है.. यह सोचिए...
बल्लभ - कुछ नहीं कर सकता वह... जब सिस्टम और सरकार हमारी जेब में है...
दास - पूरी तरह से नहीं... जैसे कि मैं... सिस्टम में हूँ... पर सच्च के साथ हूँ... और विश्वा... सच के साथ खड़ा है... वक़्त बदलता है... राजा साहब...
भैरव सिंह - फिर भी... क्या कर लोगे...
दास - राजा साहब... एक वक़्त था... जब विश्वा दिन रात... आपके बारे में सोचता था... पर आज देखिए... आप... आपका पूरा कुनवा... विश्वा के बारे में... दिन रात सोच रहे हैं... राजा साहब... विश्वा आपके दिमाग में... जिंदगी में... हर एक जगह में घुसा हुआ है... बेस्ट ऑफ लॉक...

कह कर दास अपनी जगह से उठ जाता है और बाहर की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के कानों में दास के आखिरी लफ्ज़ गूँज रहा था l एक गहरी साँस लेकर अपनी कुर्सी से उठता है और तेजी से उस कमरे की ओर जाता है जिस कमरे में केके शादी के समय कपड़े बदलने गया था l पीछे पीछे भीमा और बल्लभ भागते हुए जा पहुँचते हैं l भैरव सिंह कमरे को अच्छी तरह से मुआयना करता है l फिर बालकनी जाकर नीचे की ओर देखता है, फिर मुड़ कर बाथरुम में जाता है और दीवार पर लगे आईने में झाँकता है फिर टैप खोल कर अपने मुहँ पर पानी की छींटे मारता फिर भीगे चेहरे से आईने को देखता है l फिर वह बाथरुम से निकल कर कमरे में आता है l कमरे में एक कुर्सी पर बैठ जाता है और हँसने लगता है, "हा हा हा हा हा... " उसकी हँसी देख कर भीमा और बल्लभ हैरान होते हैं l किसी अनहोनी की आशंका के चलते एक दुसरे की ओर देखने लगते हैं l थोड़ी देर के बाद बल्लभ हिम्मत कर के भैरव सिंह से पूछता है l

बल्लभ - राजा साहब...
भैरव सिंह - (हँसी तो नहीं रुकती पर धीमी हो जाती है और बल्लभ की ओर सवालिया नजर से देखता है)
बल्लभ - क्या कोई अनहोनी हो गई...
भैरव सिंह - हाँ प्रधान हाँ... विश्वा ने... हमारे घर... रिश्तों में.. और लोगों में घुसपैठ कर रखा है... अब हमारे समझ में आया... विश्वा... राजगड़ में.. कैसे कामयाब रहा...
बल्लभ - मैं कुछ समझा नहीं...
भैरव सिंह - सिस्टम में दो फाड़ है... एक हिस्सा.. विश्वा के लिए काम कर रहा है... और दूसरा हमारा... जिससे हम कम करवा रहे हैं... परिवार में घुसपैठ... तुम जानते हो... पर सबसे अहम बात... हमारे आदमियों में... उसके आदमी भी हैं... (भीमा और बल्लभ चौंकते हैं)
भीमा - क्या... हमारे आदमियों के बीच... विश्वा का आदमी... यह कैसे हो सकता है हुकुम...
भैरव सिंह - हो सकता है नहीं... हो गया है... जब से विश्वा गाँव लौटा है... उसका हर एक वार... सटीक बैठ रहा है... विश्वा कितनी आसानी से... अपना घर हासिल कर लिया... कैसे पंचायत ऑफिस में घुस कर... आसानी से... तुम सबको धो डाला... फिर... अनिकेत रोणा को... कितनी खूबी से... हमारे ही हाथों से हटा दिया... अब इस शादी में... कितनी आसानी से... केके के कमरे में... उसके बंदे पहुँचते हैं... और हमारी ही आँखों के नीचे से गायब कर देते हैं...
भीमा - पर... केके ग़ायब कहाँ हुआ... वह तो बाथरुम में बंद था... हमसे इंस्पेक्टर ने झूठ बोला... इसलिए हम ढूंढ नहीं पाए...
भैरव सिंह - हा हा हा हा...
बल्लभ - क्यूँकी... इंस्पेक्टर दाशरथी दास... विश्व के लिए राजगड़ आया है.... उसका दोस्त... उसका हमदर्द है...
भैरव सिंह - बिल्कुल... पर सवाल है... वह चार बंदे.. जिन्होंने केके को... ग़ायब किया... वह जो भी थे... महल में अंदर कैसे आए... उन्हें कैसे मालूम हुआ... केके कौन-से कमरे में है... क्या बिना किसी अंदर वाले की मदत से... यह मुमकिन था...

कमरे में सन्नाटा छा जाती है l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है l भीमा की हलक सूखने लगता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हु.. हुकुम...
भैरव सिंह - महल के बाहर की पहरेदारी... रॉय की जिम्मे थी... पर अंदर की...
भीमा - हुक... हुकुम... हमारे सारे आदमी वफादार हैं... सबको हमने परखा हुआ है...
भैरव सिंह - आपने सारे परखे हुए आदमियों को बुलाओ....

भीमा उल्टे पाँव बाहर जाता है l उसके जाते ही भैरव सिंह उठ खड़ा होता है और बल्लभ की ओर देख कर कहता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी राजा साहब..
भैरव सिंह - एक सिस्टम... कभी अगर अपडेट ना किया गया हो... तो वह सिस्टम... एक ना एक दिन... करप्ट हो ही जाता है...
बल्लभ - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - विश्वा हम पर हावी इसलिए नहीं हो पाया... के हम पुरानी सिस्टम में सड़ रहे थे... बल्कि हमारी सिस्टम में... विश्व ने वाईरस डाल दिया था... अब वक़्त आ गया है... सिस्टम को अपडेट... नहीं तो... अपग्रेड करना पड़ेगा...
बल्लभ - राजा साहब.... क्या आपको पता चल गया है... वह कौन था... जिसने... दुश्मन के लिए... अंदर से... दरवाजा खोला था...
भैरव सिंह - हाँ... प्रधान... अब तुम भी उसे पहचान जाओगे... और समझ जाओगे...

बल्लभ यह सुन कर चुप हो जाता है l थोड़ी देर बाद भीमा अपने सारे लोगों के साथ कमरे में आता है l उन्हें देख कर भैरव सिंह भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - क्या सब आ गए...
भीमा - नहीं पर यह सारे मेरे बंदे हैं... बाकी जो भी हमसे जुड़ा हुआ है... सबको यही देखते हैं..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... सोच समझ कर जवाब दो... क्या तुम्हारे सभी आदमी आ गए हैं...
भीमा - जी सिर्फ सत्तू नहीं दिख रहा है... लगता है... रंग महल में... केके साहब का अंजाम देख कर... किसी ठर्रे की दुकान में... लुढ़का हुआ होगा...

भैरव सिंह के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है और वह बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ की आँखे हैरत से फैल जाती है और मुहँ खुल जाती है l

बल्लभ - (भीमा से) यह सत्तू... तुम्हारे साथ कब से है... भीमा..
भीमा - यही करीब तीन... या साढ़े तीन साल से...
बल्लभ - वह इतनी जल्दी... तुम लोगों से जुड़ा... और इस काबिल भी हो गया... के तुम उससे... अपने साथ हर काम में... काम लेते रहे...

बल्लभ के इस सवाल पर भीमा का भी मुहँ खुला रह जाता है l वह शुकुरा और शनिया की ओर देखने लगता है l

बल्लभ - सत्तू... कहाँ है... शनिया...
शनिया - वह कल पीने जाएगा बोला था... पर कल से दिख नहीं रहा है... हमें लगा.... (चुप हो जाता है)
बल्लभ - क्या लगा...
शनिया - वकील बाबु... हम सत्तू पर कैसे शक कर सकते हैं... जब जब विश्वा से... लड़ाई हुई... वह हमारे साथ... कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था...
बल्लभ - ठीक है... तुम्हारी बात मान लेते हैं... पर... तुममें से जब भी कोई विश्वा के हाथों पीटा... क्या सत्तू को भी... विश्वा के हाथों पीटते... देखा...


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वैदेही की दुकान में सत्तू बैठा हुआ था l उसके इर्द गिर्द विश्व और उसके साथी घेर कर बैठे हुए थे l

वैदेही - (सत्तू से) तो... तुझे लगता है... महल में तेरी पोल पट्टी खुल चुकी होगी...
सत्तू - हाँ...
सीलु - नहीं... मुझे नहीं लगता...
सत्तू - राजा को दूर से ही सही... जितना देखा है... जितना आंका है... इतना तो कह सकता हूँ... उस जैसा गलीच... नीच... काईंया... कमीना... कोई नहीं हो सकता...
विश्व - तब तो... तुझे राजगड़ ही नहीं... यशपुर भी छोड़ कर चले जाना चाहिए...
सत्तू - नहीं... मेरे पास... भागने के लिए... कोई वज़ह है ही नहीं...
वैदेही - पर तु रहेगा कहाँ...
सत्तू - दीदी... मुझे तुम अपना नौकर रख लो... मैं बर्तन माँज लूँगा... टेबल साफ कर दिया करूँगा...
वैदेही - फिर भी... तेरी जान को खतरा है...
सत्तू - जानता हूँ... भैरव सिंह अब चोट खाया हुआ सांप है... पर मेरे पास... जीने के लिए वज़ह भी तो होना चाहिए... मैं तो बदला लेने... उसे मारने के लिए... भीमा और शनिया से जुड़ा... पर... महल के भीतर... साढ़े तीन साल में... इन्हीं कुछ दिनों में जा पाया... पर तब भी... मैं उसके आसपास फटक भी नहीं पाया...
विश्व - ऐसा क्यूँ सोच रहा है... तुने बदला नहीं लिया... राजा से उसके खास आदमी... इंस्पेक्टर रोणा को मरवाया... भीमा के साथ रह कर... ना जाने कितनी बार... राजा को मुहँ की खाने पर मजबूर कर दिया... और अब... केके...
टीलु - हाँ राजा ने कभी सोचा भी नहीं होगा... जिस आस्तीन को अपनी बांह में चढ़ाया है... उसी आस्तीन ने उसके बांह को काट दिया है...
मीलु - हाँ... हम सब बस अनुमान लगा रहे हैं... के राजा को पता चल गया होगा...
जिलु - हाँ... तुझे बिल्कुल यहाँ नहीं आना चाहिए था... मैं तो कहता हूँ... उन्हें शक़ होने से पहले... तुझे महल वापस चले जाना चाहिए...
विश्व - नहीं... अगर मन में बात उठी है... तो कहीं ना कहीं सच होगी... अगर सत्तू को कुछ हो गया... तो हम लोग भी... खुद को माफ नहीं कर पाएंगे...
सत्तू - मुझे मेरी फिक्र नहीं है विशु भाई... मैं बस मरने से पहले... राजा का दर्दनाक अंत देखना चाहता हूँ... अभी भी मरने को तैयार हूँ... अगर परसों... विशु भाई और राजकुमारी जी की शादी की बात खुल जाती... तो भैरव सिंह के लिए.. शर्मनाक और दर्दनाक जरूर होती...
वैदेही - तुम्हीं ने अभी बताया ना... भैरव सिंह बहुत कमीना है...
सत्तू - हाँ..
वैदेही - तो समझ लो... अभी वक़्त आया नहीं...
टीलु - पर क्यूँ दीदी... हमें वह दिमागी तौर पर दबाना चाहता है... यह बात सामने आ जाती... तो भैरव सिंह दिमाग से और भी कमजोर हो जाता...
वैदेही - नहीं... तुम लोग भैरव सिंह को नहीं जानते... जितना मैं जानती हूँ... (एक गहरी साँस लेती है फिर) रंग महल में जब... मुझे रौंदा जा रहा था... तब बीच बचाव करने मेरी माँ आई थी... तब मेरी माँ ने पूछा था क्यूँ... भैरव सिंह ने जवाब दिया था... जिस पेड़ को वह लगाया है... उसका फल खाना उसका हक् बनता है... तब मेरी माँ ने उसे ललकारते हुए... नंदिनी की बात छेड़ी थी... जिसे सुनने के बाद... भैरव सिंह ने... मेरी माँ को मेरे ही आँखों के सामने मार डाला था... (वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है और दर्द भी झलकने लगता है पर आँसू नहीं निकलते) (वैदेही की अतीत सामने आते ही विश्व की जबड़े भिंच जाती हैं, एक पॉज लेकर) आज नंदिनी... सुरक्षित महल में इसलिए है... क्यूँकी अभी तक भैरव सिंह को गुमान है... की नंदिनी भैरव सिंह की बेटी है... जिस दिन उसे मालूम पड़ा कि नंदिनी... विशु की पत्नी है.. तब उसके मन से... नंदिनी के लिए... जो कुछ भी भावना है... सब कुछ खत्म हो जायेगा... राजा अपनों के लिए कुछ करे ना करे... पर जिससे दुश्मन मान लेता है... उसके लिए... वह... (चुप हो जाती है)
सत्तू - ओ... माफ करना दीदी... पर अभी भी... राजकुमारी जी का महल में रहना कहाँ तक ठीक है...
वैदेही - इस केस में विशु की ही जीत होगी.. यह सबको मालूम है... राजा को भी... और कम से कम तब तक... नंदिनी एक बेटी की तरह... उस महल में रहना चाहती है... रहना भी चाहिए...
सत्तू - ठीक है दीदी... आपने सोचा है... तो ठीक ही सोचा होगा...
वैदेही - हाँ... और मैंने यह भी सोचा है कि तुम अभी विशु के साथ... बच्चों के लिए जो लाइब्रेरी बनाया गया है... वहीँ पर कुछ दिन के लिए छुप जाओ...
सत्तू - छुपना... क्यों दीदी...
सीलु - अबे ढक्कन... तु छुपा रह... तु भी सलामत रहेगा... और दीदी भी सलामत रहेगी... समझा...
विश्व - तुम सब चुप रहोगे... (सत्तू से) एक काम करो... तुम अब.. मेरे साथ... उमाकांत सर के घर चलो... फ़िलहाल के लिए... बाद में सोचते हैं... क्या करना होगा...
वैदेही - हाँ यही सही रहेगा.. तुम विशु के साथ जाओ.... हम थोड़ा जायजा लेते हैं... तुम्हारा राजगड़ में रहना... तुम्हारे लिए कितना हानिकारक हो सकता है...

सत्तू उठ नहीं रहा था l विश्वा उसे ज़बरदस्ती अपने साथ खिंच कर दुकान से ले जाता है l उनके जाने के बाद सीलु वैदेही से पूछता है l

सीलु - दीदी... इस सत्तूका क्या इतिहास है... और इसे आप... कब से जानती हैं...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ती है) तुम लोग विशु के अतीत को कितना जानते हो...
टीलु - शायद... सब कुछ... इसलिये तो हम समझ नहीं पाए... हमारे मैदान में... सत्तू कबसे खेल रहा था... वह भी मिस्टर एक्स बन कर...
जिलु - हाँ... हम सब डेढ़ सालों से लगे हुए थे... पर कभी इसे नहीं पहचान पाए...
वैदेही - वह इसलिए... की सत्तू की कहानी... पाँच साल पहले शुरु होती है... और उसको राजा से... अपने प्यार का बदला चाहिए था... इसलिए वह भीमा से जुड़ गया था...
सब - क्या...
वैदेही - हाँ... इसलिए पुछा... विशु के अतीत को कितना जानते हो...
सीलु - दीदी आप बताती जाओ... हम देखते हैं... हमें क्या पता नहीं है...
वैदेही - दिलीप कुमार कर... मानीया गाँव का सरपंच था...
सब - हाँ हम जानते हैं...
वैदेही - उसकी सबसे छोटी बेटी... जिसकी बलि... क्षेत्रपाल महल की रस्म में ले ली गई थी..

वैदेही बताती है कि वह साढ़े पाँच साल पहले जब विश्व से मिलने भुवनेश्वर जा रही थी विश्व की ग्रैजुएट होने पर बधाई देने जा रही थी l बस स्टैंड में दिलीप कुमार कर की बीवी कल्याणी उसे रोक कर कैपिटल हस्पताल लेकर जाती है जहां दिलीप कर अपनी आखरी साँस ले रहा था l वहीँ पर वैदेही को मालूम होता है कि कैसे भैरव सिंह ने अपना काम निकल जाने के बाद दिलीप कर को छोड़ दिया था l जिसके वज़ह से दिलीप कर लकवा ग्रस्त हो गया था l उसके इलाज के वक़्त उसकी बड़ी बेटी और बेटा सारी दौलत लेकर भाग गए थे l जब उसकी पत्नी कल्याणी भैरव सिंह से मदत माँगने गई थी तब भैरव सिंह ने उसकी छोटी बेटी को विक्रम के क्षेत्रपाल बनने की रस्म की भेट चढ़ा दी गई थी, और वहीँ पर दिलीप कर से मालूम हुआ था कि जयंत राउत जी की हत्या यश ने की थी l और सत्तू वही लड़का था जिसकी शादी दिलीप कर की बेटी से तय हुई थी पर दिलीप कर की जान बचाने के लिए रंग महल की रस्म के बदले पैसा लाकर अपनी माँ को दिया था और हमेशा के लिए रंग महल में रह गई थी l सत्तू उस वक़्त हस्पताल में इनकी देखरेख कर रहा था l दिलीप कर के मौत के बाद उसकी बेटी को वापस पाने के लिए भीमा के गिरोह में शामिल होने के लिए बड़ी कोशिश की l उसे कामयाबी तीन साल पहले मिली l पर उसे एक दिन मालूम हुआ कि उसकी मंगेतर ने किसी कारण से आत्महत्या कर ली थी l उसीका बदला लेने के लिए ताक में था l वह भैरव सिंह को मार देना चाहता था l पर कभी इतना हिम्मत जुटा नहीं पाया l एक दिन वैदेही ने उसे शनिया के साथ पहचान लिया था l उसके बाद मौका मिलने पर वैदेही ने ही विश्व का साथ देने के लिए राजी कर लिया था l सब सुनने के बाद

सीलु - ओ... पर दीदी यह गलत बात है...
वैदेही - क्या गलत है...
मीलु - हाँ... आपको हमें उसके बारे में कह देना चाहिए था... और उसको हमारे बारे में...
वैदेही - उसे... सिर्फ विशु के बारे में पता था... और विशु को उसके बारे में... एक वही था... जो हमें खबर कर देता था... की भैरव सिंह किसको... हमारी जासूसी करने भेजा है... विशु उसी हिसाब से अपनी तैयारी कर लेता था...
टीलु - तो यह विशु भाई की गलती है... विशु भाई को हमें बता देना चाहिए था...
वैदेही - तुम लोगों को तब बताया गया... जब जरूरत हुई... तुम लोगों के बारे में भी तो... विशु ने मुझे बहुत देर बाद कही थी... (चारों चुप हो जाते हैं) विशु को... सबकी फिक्र रहता है... जिस बात को जब खोलना है... तब खोलता है... क्यूँकी अगर सारी बातेँ खुल जाए... तो पता नहीं किस पर क्या खतरा हो जाए...

तभी शनिया, शुकुरा अपने कुछ साथियों के साथ वैदेही के दुकान पर आते हैं l वैदेही के साथ इन चारों को देख कर थोड़ा ठिठकते हैं l

शनिया - सत्तू कहाँ होगा...
वैदेही - अपनी अम्मा से जाके पूछ ना...
शनिया - देख हमें खबर है... वह यहाँ आया हुआ था... इसलिए तुझे... प्यार से पूछ रहे हैं...
सीलु - दीदी नहीं कहेगी... तो क्या उखाड़ लोगे बे...
शनिया - ओ... विश्वा ने तेरी वकालत करने के लिए... अपने कुत्ते छोड़ रखे हैं... (चारों उठ खड़े हो जाते हैं) (वैदेही उन्हें हाथ दिखा कर शांत रहने के लिए इशारा करती है)
वैदेही - शनिया... यह तु भी जानता है... मैं एक अकेली तुम लोगों के लिए काफी हूँ... इन्हें ललकार मत... वर्ना तु आया मर्दाना लिबास में... पर जाएगा... जनाना कपड़ों में...
शुकुरा - देख वैदेही... हम बस इतना जानने आए हैं... सत्तू यहाँ आया था या नहीं... अगर आया था... तो अब कहाँ गया...
वैदेही - यह एक दुकान है... दिख नहीं रहा है क्या... यहाँ तेरी तरह लोग आते हैं और चले जाते हैं... वह भी आया था... चला गया... अब कहाँ गया... उसे मुझे क्या...
शुकुरा - देख वैदेही... बात राजा सहाब की है... उसने राजा साहब से गद्दारी की है... राजा साहब.. उसे ढूंढने और उनके सामने पेश करने के लिए कहा है...
शनिया - हमें खबर मिली थी... सत्तू कुछ देर पहले तेरे दुकान में था... इससे पहले कि राजा साहब का गुस्सा तुम और तुम्हारे भाई पर उतरे... बेहतर होगा कि तु सत्तू का पता बता दे...
टीलु - ओए ढक्कनों... इतनी जल्दी भूल गए... तुम्हारे राजा जिस कुर्सी पर बैठ कर तुम लोगों को हांकता है ना.. दीदी ने उसे तुम लोगों के आँखों के सामने राजा को उसी कुर्सी से उतारकर... खुद बैठी थी और तुम्हारे राजा को हांकी थी...
मील - हाँ यह सारे गुड़ गोबर... जल्दी भूल जाते हैं... कहो तो हम अभी के अभी याद दिला दें...
शनिया - बस वैदेही... हम सब समझ गए... हमें बस शक़ था... तुमने उसे यकीन में बदल दिया... कोई नहीं... वैसे भी तुमसे मेरा पुराना हिसाब बाकी है... (कह कर अपने चेहरे पर एक कटे दाग पर हाथ फेरता है) एक दिन... सूद समेत लौटाऊंगा...

तभी सब विश्व को आते देखते हैं l वे लोग धीरे धीरे खिसक जाते हैं l विश्व दुकान पर पहुँच कर शनिया और उसके गुर्गों को जाते हुए देखता है l फिर अपनी दीदी और दोस्तों को देख कर पूछता है

विश्व - यह किस लिए आए थे...
वैदेही - सत्तू की सच्चाई को.. पक्का करने आए थे...
विश्व - इसका मतलब... सत्तू सही समय पर... महल से निकल गया...
वैदेही - हाँ...
सीलु - और भी कुछ हुआ है विश्व भाई... (विश्व सीलु की ओर देखता है)
वैदेही - कुछ नहीं हुआ है... तुम लोग खामख्वाह... बात का बतंगड बना रहे हो...
विश्व - टीलु... क्या हुआ...
टीलु - शनिया... अपना पुछ लेकर आया था... दीदी को धमकी देकर गया है... यह बात और है... तुमको देखते ही... अपनी दुम दबा कर भाग गया... (शनिया जिस रास्ते लौट गया था विश्व की नजर वहाँ पर टिक जाता है)
वैदेही - अब तु उस तरफ क्यूँ देख रहा है...
विश्व - मैं यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ... के इन्हें अपनी शक को पक्का करने के लिए... यहाँ क्यूँ आना पड़ा... क्यूँकी गाँव में हमारे सिवा... राजा का खिलाफत तो कोई करेगा नहीं... और जाहिर सी बात है... जो राजा के खिलाफ जाएगा... वह हमारे खेमे में होगा... फिर...
वैदेही - कुछ नहीं... यह उनकी खुजली है... जब होने लगती है... यहाँ आकर मिटा कर जाते हैं...
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) यह लोग राजा के खोटे सिक्के सही.... कायर हैं... बुजदिल हैं... उस पर... मक्कार है... जितनी सावधानी राजा से रख रहे हैं... उतनी ही इनसे भी रखना होगा...
वैदेही - यह लोग क्या हैं... मैं जानती हूँ... पिछले सात सालों से... इनसे लोहा ले रही हूँ... और आज अचानक तु... क्यूँ फिक्र मंद होने लगा है...
विश्व - दीदी... दुश्मन अगर बहादुर हो तो विश्वास किया जा सकता है... पर अगर कायर और मक्कार हो... तो सावधानी जरूरी हो जाता है... क्यूँकी ऐसे लोग... सामने से नहीं पीठ पर वार करते हैं...
वैदेही - अब तु मुझे समझायेगा... यह लोग कैसे हैं...
सीलु - ओ हो... अब तुम और दीदी किस बात पर बहस करने लग गए...
विश्व - देखो... इस बार मैं जब भी केस के सिलसिले में यशपुर जाऊँ... तब तुम लोग दीदी के पास रुकना...
मीलु - हाँ समझ गए... पर तुम शायद भूल रहे हो... गवाहों के लिस्ट में... हमारा भी नाम है...
जिलु - तो ऐसा करते हैं... हम जब भी यशपुर या कहीं भी बाहर जाएंगे... दीदी को साथ ले जाएंगे...
वैदेही - चुप रहो तुम लोग... यह क्या बहकी बहकी बातेँ करने लग गए... कुछ छछूंदर आए थे... चले गए... जो मेरे भाई को देख कर ही भाग गए... वह लोग क्या हो कर लेंगे... और हम यहाँ किस विषय पर बात कर रहे थे... और बात कहाँ जा रहा है...
विश्व - दीदी... मुझे तुम्हारी चिंता है...
वैदेही - मैंने कहा ना बस... (अपनी एक टेबल के ड्रॉयर खोल कर एक दरांती और दो हाथ लंबा कुल्हाड़ी निकालती है) अब तक... मैं इन्हें अपने साथ लेकर... इनसे लोहा ले रखा था... उनमें इतना भी दम नहीं है... इनसे पार पा जाएं... (वैदेही देखती है पाँचो उसे गौर से देख रहे थे, फर्क़ बस इतना था कि सिवाय विश्व के चारों बेवक़ूफ़ों की तरह मुहँ फाड़े देख रहे थे) क्यूँ टीलु...
टीलु - (होश में आता है) जी... जी दीदी...
वैदेही - (विश्व से) हमने अपनी जान बचाने के लिए... यह लड़ाई छेड़ी नहीं थी विशु... इस लड़ाई का मकसद अलग है... गाँव के हर जान में सोये हुए पुरुषार्थ को जगाना है... अगर इसके लिए... यह लड़ाई हमारी बलि ले भी ले...
विश्व - दीदी...
वैदेही - अरे बात तो पूरी करने दे... अगर इस बीच मुझे कुछ हो जाए... तब बिना मेरी बहु के... मेरी लाश को उठने मत देना..
विश्व - दीदी...

गुस्से से पैर पटक कर चला जाता है l वैदेही उसे आवाज देती रह जाती है l विश्व के चारों दोस्त वहीँ पर खड़े रह जाते हैं l विश्व के आँखों से ओझल होने के बाद पुलिस की गाड़ी आकर दुकान के आगे रुकती है l गाड़ी से दास उतरता है l

वैदेही - अरे दास बाबु... आप... अभी...
दास - जी... मैं विश्व से मिलने आया था...
वैदेही - वह तो अब... नदी किनारे गया होगा...
दास - अभी.. पर क्यूँ...
वैदेही - जब भी नाराज होता है... या परेशान होता है... ढलती सूरज की ओर देख कर खुद को शांत करने की कोशिश करता है..
दास - ओ अच्छा...
वैदेही - कोई खास काम था..
दास - जरूरी तो नहीं पर... केस के सिलसिले में... कुछ कहना था...
सीलु - आज आप बात ना ही करो तो अच्छा रहेगा... आज भाई का मुड़ बिगड़ गया है... (सीलु दुकान में जो हुआ कहने लगता है)
दास - बात तो उसने सही कहा है वैदेही जी... बहादुर और चालक दुश्मन अलग होते हैं... कायर और मक्कार अलग... बेशक राजा को अपनी हार दिख रहा है... पर यह भी सच है... जो जिंदगी... वह जिया है... उसे बचाने के लिए... हर कोशिश करेगा... किसी भी हद तक जाएगा... अभी तक विश्व की कोई कमजोरी.. राजा के हाथ नहीं लगी है... तो जाहिर है.. उसकी नजर... अब आप पर होगी...
टीलु - इंस्पेक्टर साहब... अगर बात इतनी ही गम्भीर है... तो हम दीदी के आसपास रहेंगे...
दास - हाँ... मैं एक काम करता हूँ... कांस्टेबल जगन को भी कह देता हूँ... वह भी आसपास रहेगा...
वैदेही - लो... अब आप भी...
दास - जी वैदेही जी... यह लड़ाई सबसे महत्त्वपूर्ण हैं... इसमें विश्व की हार होनी नहीं चाहए...
वैदेही - मैं मानती हूँ... पर...
दास - नहीं वैदेही जी... राजा हमेशा एक बात कहता है... या यूँ कहूँ के... मानता है... के उसके बराबर कोई नहीं है... बात सच है... विश्व की शख्सियत राजा से अलग है... विश्व जहां सच के लिए खड़ा है... वहीँ राजा... झूठ और अहं के लिए खड़ा है... विश्व बेशक शातिरपना अपनाता है... पर दिल से साफ है... वहीँ राजा... झूठ मक्कारी कमीनापन से शातिरपना अपनाता है...
 

kas1709

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राज्य के बहु चर्चित राजगड़ मल्टिपल को-ऑपरेटिव सोसाइटी आर्थिक व आपराधिक मामलों पर आज स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई शुरु किया गया l अदालत में प्रोसिक्यूशन के लिए वादी पक्ष के गवाह, वकील विश्व प्रताप महापात्र और इस केस में तहकीकात करने वाले एक्जिक्युटीव मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री जी उपस्थित थे, केस के शुरुआत में वादी पक्ष के वकील विश्व प्रताप महापात्र ने केस के संबंधित गवाह और मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री की कानूनी सुरक्षा की मांग की l जिस पर अदालत शायद कल अपना फैसला सुनाए l पर अपनी डिफेंस स्वयं करने की मांग कर स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को यशपुर लाने वाले राजगड़ के राजा, सम्मानीय राजा साहब श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी निजी कारण उल्लेख कर कोर्ट की कारवाई को अतिरिक्त सात दिन आगे करने के लिए अनुरोध किया है l
हमने जब वह निजी कारण के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की तो सूत्रों से पता चला है कि बीते कल उनकी सुपुत्री की मंगनी तय की गई थी l पर ऐन मौके पर मंगनी की रस्म के कुछ ही समय पूर्व वर लापता हो गए हैं l आश्चर्य की बात यह है कि वर वधु से उम्र में काफी बड़े हैं और कटक भुवनेश्वर ट्विन सिटी के नामचीन बिल्डर हैं, श्री कमल कांत महानायक उर्फ केके l पर हैरानी की बात यह है कि राजगड़ के गाँव वाले इसे मंगनी के बजाय शादी कह रहे थे l और वर शादी की मंडप छोड़ कर भाग गया है l खैर जो भी हो इतना अवश्य सच है की राजगड़ के महल में एक अनुष्ठान हो रहा था पर उसमें वर की अनुपस्थिति के कारण बाधा उत्पन्न हो गया l यह निःसंदेह किसी भी पिता के लिए दुःख का कारण है l इसलिए अदालत राजा साहब को मनःस्थिति को समझते हुए इस केस में रियायत बरतने के लिए निर्णय किया है l कल अदालत उन्हें कितने दिन की रियायत देती है यह पता चलेगा l पर चूँकि राज महल से वर लापता हुआ है और राजा साहब ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी है, अदालत ने पुलिस को अतिशीघ्र इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है l
पुलिस ने भी अपनी तहकीकात तेज कर दी है l अब तक के लिए इतना ही l मैं सुप्रिया कुमारी रथ प्राइम टाइम बुलेटिन नभ वाणी से l नमस्कार

वैदेही टीवी बंद कर देती है l पीछे मुड़ कर देखती है विश्वा और उसके सारे दोस्त खाना खा रहे थे l पाँचों की ध्यान सिर्फ खाने पर थी l वैदेही उनसे अपना ध्यान हटा कर गौरी की तरफ देखती है l गौरी बड़ी गहरी चिंतन में खोई हुई थी l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या सोच रही हो... कहाँ खो गई हो...
गौरी - (अपनी सोच से बाहर आती है) नहीं... कुछ भी तो नहीं...
वैदेही - सुबह से देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी रहने लगी हो...
टीलु - क्यूँ नहीं रहेगी बोलो... अरे दीदी... हम सब दावत खाने चले गए... बुढ़िया को यहीं छोड़ गए... कम से कम... कुछ पकवान तो लाने चाहिए थे ना...
गौरी - मुहँ बंद कर नाशपीटे...

टीलु खी खी कर हँसने लगता है l पर गौरी की चेहरा देख कर वैदेही टीलु के तरफ देख कर आँखे दिखा कर चुप रहने के लिए कहती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी...
गौरी - (वैदेही की तरफ़ देख कर) वैदेही... मैंने... इन क्षेत्रपालों की दरिंदगी देखी है... तुमने झेला भी है... तुम सांप पर विश्वास कर सकती हो... पर इन क्षेत्रपालों को... हरगिज नहीं..
वैदेही - पर अब हुआ क्या है काकी...
गौरी - देखना... राजा कुछ ना कुछ करके... केस की सुनवाई को... खिंचता जाएगा... और धीरे धीरे अपने दुश्मनों को... निपटाता जाएगा... तुझे क्या लगता है... वह दूल्हा जो ग़ायब है... वह कभी मिलेगा... नहीं... वह अब कभी भी... दुनिया के सामने नहीं आएगा... क्यूँकी... मैं दावे के साथ कह सकती हूँ... वह अब तक... आखेट गृह के जानवरों का निवाला बन चुका होगा...
विश्व - (खाना खा चुका था, हाथ धो कर वैदेही के पल्लू से हाथ साफ करते हुए) तो काकी... क्या आपको... उस वर के गायब होने का दुख है...
गौरी - नहीं... शायद हाँ... ऐसा लग रहा है... जैसे कोई बवंडर आने वाला है... जिसके लिए... राजा ने दरवाजा खोल दिया है... कई जिंदगियां अब तहस नहस होने वाले हैं...
विश्वा - काकी... अगर वह केके... अब इस दुनिया में नहीं है... तो यह भी सच है कि... उसकी मौत की मातम मनाने वाला कोई है भी नहीं... और वह कोई संत महात्मा तो था नहीं... बेग़ैरत... बेईमान... मतलब परस्त था... बुढ़ापे में... राजा जैसे सांप की बात मान कर... एक कम उम्र की लड़की से शादी करने बेशरमो की तरह दौड़ा चला आया...
सीलु - हाँ... उसके साथ जो भी हुआ होगा... वह उसकी कर्मों का फल होगा... वही उसकी किस्मत में लिखा था... जिसे उसीने ही चुना था...
टीलु - हाँ... (वैदेही की पल्लू से अपना हाथ पोछते हुए) वह कहावत है ना... सांप की फन से... जो अपना पिछवाड़ा खुजाएगा... वह यम दर्शन किए बिना कहाँ जाएगा...
वैदेही - यह कहाँ की कहावत है...
टीलु - क्या दीदी... आपने कभी सुना नहीं...
सीलु - (टीलु के सिर के पीछे एक टफली मार कर) हमने भी नहीं सुना... किसने कहा था... कब कहा था...
टीलु - तुझे भी नहीं पता... एक महान... आदमी ने कहा था...
विश्व - ऐ.. ज्यादा सीन मत बना... अब बोलो कौन महान आदमी था...
टीलु - क्या... मैंने था... कह दिया... सॉरी सॉरी... एक महान आदमी ने कहा है...
वैदेही - ओ... अब मैं समझ गई... और वह महान आदमी तु है...
टीलु - वाह दीदी वाह.. (सबसे) देखा... दीदी समझ गई...

विश्व और बाकी मिलकर टीलु झुका कर दो चार घुसे बरसा देते हैं l वैदेही उन सबको रोकती है l टीलु वैदेही के पीछे छिप जाता है l तभी दास सादे कपड़े में वहाँ पर आता है l

विश्व - क्या बात है दास बाबु... आप... अचानक यहाँ..
दास - तुम लोगों की बातेँ बाहर तक सुनाई दे रही थी... बात तो सच है... केके गायब है... मुझे उसे ढूढ़ना है... और रिपोर्ट बना कर... अदालत में पेश करना है...
विश्व - आपने जैसा रिपोर्ट... अनिकेत रोणा पर बनाया था... वैसा ही रिपोर्ट इस गुमशुदगी पर बना कर अदालत में पेश कर दीजिए...
दास - यह लास्ट ऑप्शन है... क्या और कोई रास्ता है... इस
बार... भैरव सिंह... मुझ पर हावी होने की कोशिश करा है... मैं ज़वाब में उस पर हावी होना चाहता हूँ...
विश्व - दास बाबु... रिपोर्ट एक दिन में नहीं बनती... आप भी कुछ दिनों की मोहलत मांगिये... फिर तहकीकात शुरु कीजिए... क्यूँकी... भैरव सिंह ने... एसपी ऑफिस से... केके की जान को खतरा बता कर... पुलिस को बाराती बनाया था... पर केके तो... महल के भीतर से गायब हुआ है ना... वह भी... भैरव सिंह के अपने सिक्युरिटी के बीच...
दास - (मुस्करा देता है) समझ गया... मुझे क्या करना है... अच्छी तरह से समझ गया...

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अगले दिन सुबह क्षेत्रपाल महल के छत पर व्हीलचेयर पर नागेंद्र सिंह को बिठा कर कुछ नौकर रुप के दिखाए जगह पर रख देते हैं l रुप सबको नीचे जाने के लिए कहती है, जो नौकर नागेंद्र को लाए थे वह सब नीचे चले जाते हैं l रुप व्हीलचेयर को धकेल कर छत पर थोड़ी दूर लेकर आती है l जहां से पूरा गाँव दिख रहा था l सुबह की नरम धूप के रंग में रंगी गाँव बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था l

रुप - (चहकते हुए) देखो दादाजी... कितना सुंदर यह गाँव है... पर दूर से... (चेहरा संजीदा हो जाता है) आप लोगों की... झूठी अहं के चलते... इस गाँव की अंदर की पिंजर... ढांचा और जिंदगी... बदसूरत हो गई है... पर... पर अब बदलेगा... या यूँ कहूँ... बदल रहा है... (नागेंद्र की तरफ मुड़ कर) क्यूँकी अब इस महल की रौनक छूट रहा है... जाहिर है... वह रौनक... खुशियाँ... अब धीरे धीरे... गाँव में बसने वाली है... या यूँ कहूँ... शायद... बसने लगी है...

लकवाग्रस्त अपाहिज सा नागेंद्र की ओर मुस्कराते हुए रुप देखती है l नागेंद्र के आँखों में रुप के लिए गुस्सा झलक रहा था l रुप नागेंद्र की भावनाओं को दरकिनार कर नागेंद्र से कहती है l

रुप - दादाजी... आपमें ना... ताकत बहुत है... बेकार में मुझ पर गुस्सा कर... ताकत को जाया कर रहे हो... इसी गुस्से को... अगर खड़े होने के लिए... इस्तमाल किए होते... तो शायद.. अब तक खड़े भी हो गए होते... (नागेंद्र अपनी टेढ़ी मुहँ से गुँ गुँ कर रुप को झिड़कने लगता है) वैसे... जानते हैं... मैं पिछले दो दिनों से बहुत खुश हूँ... अपनी खुशी को आज मैं आपके साथ बाँटने इस छत पर लाई हूँ... अगर चाची या भाभी होतीं... तो उनसे यह खुशी शेयर कर रही होती... बार बार कर रही होती... नाच रही होती झूम रही होती... वह क्या है ना... लड़कियाँ अपनी खुशी को... ज्यादा देर तक पेट में... दबा कर नहीं रख सकती... इसलिए किसी को भी... बता देना बहुत जरूरी होता है... अब इस महल में... आप से बेस्ट कौन हैं... जिनसे अपनी दिल की बात कही जाए... और सबसे छुपाई भी जाए.... जानते हैं... राजा साहब... मेरे अनाम... पर अपनी भड़ास... अपनी खीज निकालने के लिए... ओर अपनी बेटी को.. उसकी नाफरमानी और बदतमीजी को... सबक सिखाने के लिए... एक बुढ़े लंगुर से शादी तय कर दी थी... हूँह्ह... मुझे और मेरे अनाम को नीचा दिखाने के लिए... मेरे दोस्तों को कटक और भुवनेश्वर से झूठ बोल कर उठा लाए थे... क्यूँकी जाहिर है... इस शादी के खिलाफ विक्रम भैया... चाचा चाची सभी थे... राजा साहब को यह लगा... उनकी इस कदम पर... सब मेरे लिए पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाएंगे... पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ... जो जो रस्में... भैया... चाचा चाची को निभाने चाहिए थे... उन्हीं रस्मों को निभाने के लिए... मेरे दोस्तों से कहा गया... पर वह कहते हैं ना... बाप से बढ़कर बेटा... विकी भैया ने ऐसा खेल खेला... के राजा साहब को जब पता चलेगा... यकीन मानिये दादा जी... उनको तो हार्ट अटैक आ जाएगा...
भैया ने इस खेल में... मेरे दोस्तों को भी शामिल कर दिया... और जानते हैं... अनाम के दोस्त... उस चिरकुट लंगुर को... महल अंदर आए और महल में ही कहीं छुपा दिया... जिसे राजा साहब... अपने नाकारे निकम्मे पहरेदारों के साथ... इंस्पेक्टर दास को लेकर... अंदर ढूढ़ने लगे... तभी... भैया ने मेरे भाई होने का रस्म अदा किया... आह...(झूम कर घूम जाती है) क्या कहूँ दादाजी... पहले तो भैया ने गाँव वालों को वहाँ से भगा दिया... ताकि कोई गवाह ना बन जाएं... फिर.. चाची से नए जुते लेकर... अनाम को पहना दिया... हा हा हा... अनाम भी भौचक्का रह गया... क्यूँकी अनाम तक को पता नहीं था... क्या हो रहा था... चाचा ने अपनी जेब से खंजर निकाल कर अनाम के हाथों में थमा दिया... चाची के पास मेरे सहेलियाँ भागते हुए आईं... आरती और तिलक की थाली दी... चाची ने अनाम की आरती उतारी और तिलक भी लगाया... तब तक... अंदर से इंस्पेक्टर भी आ गया... अपने साथ लाए फोर्स को... विवाह बेदी तक... दो लाइन में खड़ा कर दिया... और अनाम को... वैदेही दीदी ने... हाथ थाम कर... उन पुलिस वालों के बीच से लेकर आईं... मेरे बगल में बिठा दिया... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हूँ ह्म्म्म्म... वैदेही... आपको... याद है ना दादाजी... पाईकराय खानदान की अंतिम चराग... जिसकी आह अब क्षेत्रपाल घर परिवार सबको जला रही है... खैर... फ़िर भैया ने... (चहकते हुए) पंडित से... जल्दी जल्दी मंत्र पढ़वाया... फटा फट... जल्दी जल्दी... बिल्कुल राजधानी एक्सप्रेस की तरह... फ़िर अग्नि के फेरे भी लगवा दिए... और... (गले में मंगलसूत्र निकाल कर दिखाती है, और अपनी भौंहे नचा कर) अनाम मेरे गले में मंगलसूत्र पहना दिया... अब मैं... क्षेत्रपाल नहीं रही... मैं अब... (बड़े एटीट्यूड के साथ) रुप नंदिनी विश्व प्रताप महापात्र हूँ... अब मैं विश्व की हो गई हूँ... हम अब विश्वरूप हैं... विश्वरूप...

नागेंद्र की आँखे बड़ी और फैली हुई दिखने लगी थी l मुहँ फाड़े हैरत भरे नजरों से रूप को अबतक सुने जा रहा था l उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह कोई असंभव सी बात सुन लिया हो l रुप मुस्कराते हुए पूछती है

रुप - आपकी हालत समझ सकती हूँ... आपको यकीन नहीं हो रहा है... पर यह सच है... उतना ही सच... जितना कि सूरज का निकलना... हमारी साँसे चलना... यह देखिए... (अपनी बालों के बीच छुपाये माँग की सिंदूर को दिखाती है) मैं अब... इस घर में... विश्व प्रताप की व्याहता हूँ...

नागेंद्र अब उबलने लगता है l गहरी गहरी साँसे चलनी लगती है l शरीर का ज्यादातर हिस्सा काम नहीं कर रहा था पर फिर भी वह व्हीलचेयर से उठने की कोशिश कर रहा था l मानों उठ कर रुप की गला दबोच लेगा l रुप नागेंद्र की असहायता देख कर सहानुभूति के साथ कहती है l

रुप - दादाजी... मुझे समझ में नहीं आ रहा... आपको किस बात का गुरुर है... ना हाथ आपके साथ है... ना आपके पैर... ना ताकत... आपका दिन शुरु होता है... तो उन लोगों के रहमोकरम से... जिनकी जिंदगियों को अपने बर्बाद कर दिया था.... सिर्फ साँस और एहसास ही तो आपके साथ है... वर्ना... आपकी इसी गुरुर ने... आपसे... आपका दूसरा बेटा... बहु... और पोते को... दूर कर दिया... बड़ा पोता और बहू भी अब कभी इस महल में वापस नहीं आयेंगे... पर भरोसा रखिए... इस केस के खत्म होने तक... और ज्यादा से ज्यादा... अट्ठाइस दिन... सिर्फ तब तक इस महल की मेहमान हूँ... उसके बाद भी... अगर राजा साहब को सजा हो जाती है... और आपका साँस आपके साथ दे... मैं आपको अपने साथ ले जाऊँगी और सेवा करती रहूँगी... आपकी आखरी साँस तक... दादाजी मैं आपको तड़पाने के लिए ना यह सब किया है... ना ही आप लोगों से कोई बदला लेने... मैंने बस अपने हिस्से की जमीन... अपने हिस्से का आसमान ले लिया है... जो मेरा था... मेरी किस्मत में लिखा था... और आप लोग मुझे कभी नहीं दे सकते थे...

अब नागेंद्र का मुहँ एक ओर थोड़ा टेढ़ा हो गया था l गुस्से के कारण किसी सांप की तरह फुत्कार रहा था l उसकी टेढ़े मुहँ से लार बहने लगा था l रुप नागेंद्र की ऐसी हालत देख कर थोड़ा डर जाती है और भागते हुए नीचे नौकरों को बुलाने जाती है l थोड़ी देर बाद कुछ नौकर ऊपर आते हैं और नागेंद्र को उसके कमरे में ले जाते हैं और उसके बिस्तर पर सुला देते हैं l नागेंद्र अभी भी गहरी गहरी साँसे ले रहा था l रुप उसके माथे पर हाथ फेरती है l कुछ देर बाद कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देख कर रुप नागेंद्र को छोड़ कर उठ जाती है और बेड के सिरहाने एक किनारे पर खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - उनकी हवा पानी बदलने के लिए... नौकरों की मदत से... छत पर ले गई थी...
भैरव सिंह - तुम भूल कैसे गई... अंतर्महल में रहने वाली... नौकरों के सामने नहीं जाती...
रुप - महल में... जब मैंने... आपकी मुहँ से... हम का रुतबा खो बैठी.. और तुम पर आ गई... इसलिए शायद... दासी बराबर हो गई... और वैसे भी... केके साहब से आपने लगभग रिश्ता जोड़ ही दिया था... अगर शादी हो गई होती... तो अंतर्महल वाली बंधन से थोड़ी आजादी होती...
भैरव सिंह - (बात बदल कर) छत पर... बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - शायद... अपनी लाचारी और बेबसी पर उन्हें गुस्सा आया...
भैरव सिंह - गुस्सा... किस बात पर... तुमने उन्हें ऐसा क्या कहा...
रुप - मैंने... मैंने उन्हें... सब सच बताया... एक एक शब्द... अक्षरश सच बताया...
भैरव सिंह - ऐसा कौनसा सच बता दिया... जिस पर उन्हें अपनी लाचारी और बेबसी पर गुस्सा आया...
रुप - वही... परसों सुबह से लेकर देर शाम तक... महल में जो भी कुछ हुआ... अक्षरश सब बता दिया... बड़े राजा जी की घर में... शहनाई बज रही थी... पर उस जलसे में... उन्हें कोई पूछने वाला तक नहीं था... अगर वह मंडप के पास होते... जो भी हुआ अपनी आँखों से देख सकते थे...
भैरव सिंह - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, चेहरा सख्त हो जाती है)
रुप - बड़े राजा जी से विस्तार से कहा तो उन्हें गुस्सा आया... पर... आपको क्यूँ गुस्सा आ गया... क्या आपको लगता है... कुछ जानना बाकी रह गया इसलिए... आप चाहें तो... विस्तार से... आपको भी कह सकती हूँ...
भैरव सिंह - (दबी आवाज में) बदजात... जुबान बंद रख...
रुप - कुछ सच्चाई सुनी नहीं जा सकती... कुछ झेली नहीं जा सकती...
भैरव सिंह - अभी हारे नहीं हैं हम... बस इतने पर इतरा रही हो...
रुप - ना... हरगिज नहीं... बस अपनी किस्मत पर इतरा रही हूँ... वह किस्मत जो आपने लिखने की कोशिश की... पर कलम टुट गया...
भैरव सिंह - मत भूलो... यहाँ किस्मत हम लिखा करते हैं... परसों वही हुआ... जिसकी किस्मत में जो लिखा था...
रुप - वही तो कह रही हूँ... परसों मेरे साथ वही हुआ... जो मेरी किस्मत में लिखा हुआ था... और वह भी हुआ... जो आपने नहीं लिखा था...
भैरव सिंह - (अपनी दांत पिसते हुए) अब तुम... यहाँ से जा सकती हो...
रुप - जी... जैसी आपकी मर्जी...

रुप कमरे से निकल जाती है l भैरव सिंह एक कुर्सी खिंच कर नागेंद्र के बगल में बैठ जाता है l रुप ने उसे एक तरह से गुस्सा दिला गई थी l इसलिए पहले वह खुद को नॉर्मल करता है फिर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र गहरी गहरी साँसें ले रहा था l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... अगर आप नाराज हैं... की परसों की बातेँ ही नहीं... बल्कि इन कुछ दिनों में जो भी कुछ हुआ... हमने आपसे जिक्र नहीं किया... तो आपकी नाराजगी जायज है... पर हम... रुप के मन में... थोड़ा डर बिठाना चाहते थे... और यह दिखाना चाहते थे... हम जब चाहें... उसकी किस्मत को... ठिकाने लगा सकते हैं... बाकी कुछ ऐसे लोग थे... जिन्हें हम सबक पढ़ाना चाहते थे... (उठ जाता है और बिस्तर के छोर पर आकर खड़ा होता है) थोड़ा गलत तो हुआ... पर... असल में... हम चाहते थे... विश्व... इतना मजबूर हो जाए... वह रुप नंदिनी के लिए... खुल कर सामने आ जाए... पर ऐसा... हो नहीं पाया... हम इस शादी की आड़ में... केके को ठिकाने लगाना चाहते थे... बस वही हो गया...

इतना कह कर भैरव सिंह चुप हो कर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र की होंठ खुले थे लार बहती जा रही थी और आँखे नम थीं l क्यूँकी उसे एहसास हो रहा था, विश्व और रुप की चोरी की शादी और उसमें उसीके परिवार का शामिल होने के बारे में भैरव सिंह या उसके आदमियों को कुछ भी मालूम नहीं है l और सबसे अहम बात यह कांड क्षेत्रपाल महल की परिसर में पुलिस की देख रेख में हुआ था l रुप ने सच कहा था नागेंद्र ना सिर्फ लाचार था और बेबस भी था l सब जानते हुए भी भैरव सिंह को अवगत नहीं करा सकता था l इसलिए नागेंद्र की आँखे नम थीं l नागेंद्र अपनी आँखे बंद कर लेता है l भैरव सिंह समझता है, विश्व ने जिस तरह से उसकी सोच को मात दे कर केके को छुपा दिया वह भी उसीकी महल में, शायद इसी बात से नागेंद्र दुखी है l कमरे से बाहर आता है कुछ नौकरों को नागेंद्र के पास जाने की हिदायत दे कर अपनी रणनीतिक कमरे की ओर जाता है l बीच रास्ते में भीमा आकर सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - क्या बात है...
भीमा - दारोगा आया है... आपसे मिलने...
भैरव सिंह - तुमने वज़ह पूछी...
भीमा - जी हुकुम... वह केके के बारे में कुछ बताने आया है...


भैरव सिंह अपनी भौंहे सिकुड़ कर सोचने लगता है फिर अपना सिर हिला कर दीवान ए आम कमरे में जाता है l भीमा उसके पीछे पीछे चल देता है l कमरे में पहुँच कर देखता है दास एक आदम कद फोटो के सामने खड़ा था l वह भैरव सिंह की फोटो थी जिसमें भैरव सिंह हाथ में गन लिए एक मरे हुए शेर के सिर पर पैर रख कर खड़ा था l आहट पा कर दास पीछे मुड़ता है l

भैरव सिंह - कहो इंस्पेक्टर... कैसे आना हुआ...
दास - आपने... कल सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी थी... और अपने वक़ील के हाथों... अदालत में... दोपहर को... हम ही पर... नाकारी का इल्ज़ाम लगवा दिया..
भैरव सिंह - कुल इंस्पेक्टर कुल... लगता है... बहुत गर्म हो रहे हो... भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - जरा पंखा तेज चालाओ... इतनी तेज चालाओ.. के आज इंस्पेक्टर साहब की गर्मी उतर जाए... (भीमा कमरे में लगे सारे पंखे चला देता है) बैठिए... इंस्पेक्टर साहब... (कह कर भैरव सिंह बैठ जाता है)
दास - माफ़ कीजिए राजा साहब... जब मैं ड्यूटी पर होता हूँ... तब किसी के साथ... बैठ नहीं सकता... खास कर वह अगर... कोर्ट में मुल्जिम हो...
भैरव सिंह - अच्छा... तो अब आप ड्यूटी पर हैं... कहिये.. कौनसी ड्यूटी बजाने आए हैं...
दास - फिलहाल तो आपकी बजाने आया हूँ...
भैरव सिंह - (कुर्सी की आर्म रेस्ट को कसके पकड़ लेता है) इंस्पेक्टर...
दास - आई मीन... आप ही की ड्यूटी बजाने आया हूँ... आपने परसों अदालत में... प्रधान के हाथों... बड़ी चालाकी से... क्या झूठ बोला... शादी नहीं... मंगनी थी... मंगनी से केके की गुमशुदगी में... पुलिस को गवाह बना दिया... और जज ने भी... आपकी केस में सुनवाई की एक्सटेंशन के लिए... हमसे रिपोर्ट माँग की है...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... गलत क्या कहा है... आप ही के सामने तो केके गायब हुआ है...
दास - ना... हमारे आँखों के सामने नहीं... आपके महल के भीतर से... जिसकी सिक्युरिटी... आप ही के प्रबंधन में थी... हम तो... बाराती थे... बारात को... महल के द्वार तक पहुँचाना ही हमारा जिम्मा था...
भैरव सिंह - फिर भी आप जानते हैं... आपने तो ढूँढा भी था... कमरे में क्या... केके बाथरुम में भी नहीं मिला था...
दास - कमरे में नहीं मिला... बाथरुम में भी नहीं मिला... पर इसका मतलब यह तो नहीं... के केके... उसी कमरे में था... महल में पच्चीस से ज्यादा कमरे हैं... क्या पता... आपने ही उसे किसी और कमरे में बंद कर दिया हो... और पुलिस को गुमराह कर रहे हों...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... (गुर्राते हुए) यह बताओ... केके के बारे में... क्या जानकारी लाए हो...
दास - अरे जानकारी कहाँ... तहकीकात तो अब शुरु होगा... उसके लिए... मैं खास ऑर्डर लेकर आया हूँ...
भैरव सिंह - (भौंहे सिकुड़ कर) खास ऑर्डर...
दास - जी राजा साहब... आपकी एफआईआर को हमने बहुत सीरियसली लिया है... हमारे पास जो भी सबूत थे... उन्हें अदालत में पेश कर... केके को ढूंढने के लिए... खास परमिशन ले ली है... (कह कर एक काग़ज़ अपनी जेब से निकालता है) उस दिन महल की सेक्यूरिटी... आप ही की... ESS के गार्ड्स और उनका इनचार्ज अमिताभ रॉय कर रहा था... इसलिए जब तक सबकी पूछताछ नहीं हो जाती... तब तक यह लोग आपके महल की पहरेदारी नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - (कुर्सी से उठ खड़ा होता है) ह्व़ाट डु यू मीन... यह महल है... क्षेत्रपाल महल... तुम इस महल की सिक्युरिटी हटाने की बात कर रहे हो...
दास - जी राजा साहब... पर यकीन रखिए... उनसे केवल पूछताछ होगी... उसके बाद ही कोई निष्कर्ष निकलेगा... केके जी का अगवा हुआ है... या भाग गए हैं... (काग़ज़ को भैरव सिंह के हाथ में देते हुए) आप चाहें तो... एडवोकेट प्रधान से... वेरीफाए कर सकते हैं...

भैरव सिंह काग़ज़ लेकर पढ़ता है और दास की ओर देखता है l दास के चेहरे पर किसी भी तरह का कोई भाव नहीं दिख रहा था l

भैरव सिंह - तो फिर इस महल की सिक्युरिटी...
दास - हम हैं... पब्लिक सर्वेंट... मैं दो कांस्टेबलों को... आपकी महल की सिक्युरिटी के लिए कह दूंगा... (भैरव सिंह की मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, दांत के पीसने से कड़ कड़ की आवाज़ आने लगती है)
भीमा - हुक्म... आप कहें तो... इसे यहीँ महल में जिंदा गाड़ दूँगा...
दास - (भीमा के तरफ पलटता है) ओले ओले ओले... तेरे को गुस्सा आया... मैं यहाँ पूरी बंदोबस्त करके आया हूँ... पिछली बार की बातेँ भूल गया क्या... (भैरव सिंह के तरफ मुड़ कर) राजा साहब... आपकी सारी सिक्युरिटी टीम.. क्षेत्रपाल महल से दूर... रंग महल में रहेगी... चूंकि लोग बहुत हैं... हम लॉकअप में नहीं रख सकते... और जब तक... उनसे पूछताछ पूरी नहीं हो जाती... तब तक... इस महल के आसपास.. कोई दिखना नहीं चाहिए... बड़े राजा जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में... दो ज़न रात को... राजकुमारी जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में और दो जन रात को... आपके लिए... थोड़ा रिलैक्स है... आप चार चार जन रख सकते हैं... रसोई के लिए भी चार चार लोग शिफ्ट के हिसाब से... और महल की सुरक्षा की आप चिंता मत कीजिए... इतने दिनों में... इतना जो जान ही गया हूँ... राजगड़ में सुरक्षा महल को नहीं... बल्कि... राजगड़ को महल वालों से... चाहिए... फिर भी... मैं दो दो कांस्टेबल डिप्लॉय कर दूँगा... आई थिंक... आप सब समझ गए...
भैरव सिंह - अच्छी... तरह से...
दास - तो ठीक है... मैंने आपको जो हमारी एसओपी दे दिया है... उसे आप फॉलो कर... मुझे खबर कीजिए... उसके बाद... मैं रिपोर्ट की तैयारी करूँगा... (मुड़ कर जाने लगता है, तभी कमरे में बल्लभ प्रवेश करता है l बल्लभ को देख कर भैरव सिंह दास को रोकता है)
भैरव सिंह - एक मिनट... (दास रुक जाता है) तुमने कोर्ट से यह ऑर्डर कैसे हासिल की...
दास - ओ... तो वकील साहब को देख कर... आपके मन में यह प्रश्न ऊँघा...
बल्लभ - कैसा ऑर्डर राजा साहब...


भैरव सिंह वह काग़ज़ बल्लभ को थमा देता है l बल्लभ उस ऑर्डर को देख कर हैरान होता है और दास से पूछता है l

बल्लभ - यह.. यह ऑर्डर कब ली...
दास - वकील साहब... आप लीगल एड्स वाईरस हैं... आई मीन एडवाइजर हैं... आप पैवेलियन में रह कर कमेंट्री कर सकते हैं... असली खेल तो... मैदान में खिलाड़ी खेलता है... आप भूल रहे हैं... कोऑपरेटिव सोसाईटी की केस में... ईंवेस्टीगेशन इंचार्ज... एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट नरोत्तम पत्री हैं... उनकी भी अपनी एडमिनिस्ट्रेटिव पावर हैं... जिनको एक्जीक्युट कर के... कोर्ट की ऑर्डर की बेस पर... यह ऑर्डर ले लिया गया... (बल्लभ एक झिझक भरी नजर से भैरव सिंह को देखता है)
भैरव सिंह - तो इस ऑर्डर के पीछे का खिलाड़ी... विश्वा है...
दास - वाह... राजा साहब... वाह... ओके... अब मैं चलता हूँ... (फिर से जाने को होता है, इस बार भी भैरव सिंह की आवाज़ सुन कर रुक जाता है)
भैरव सिंह - दास... तुम्हें नहीं लगता... तुम बहुत तेजी से भाग रहे हो... उस रास्ते पर... जो बहुत फिसलन भरा है... जिसे विश्वा ने बनाया है... (एक पॉज लेकर) कभी भी... गिर सकते हो... मुहँ के बल... जब उठने की कोशिश करोगे... कमर टूट चुकी होगी...
दास - (मुस्करा कर) राजा साहब... अब लगता है... मुझे कुछ देर के लिए... ड्यूटी से बाहर जाकर बात करनी चाहिए... (भैरव सिंह के सामने एक कुर्सी के सामने आ जाता है) क्या मैं अब... बैठ सकता हूँ... (भैरव सिंह कुछ नहीं कहता पर फिर भी दास बैठ जाता है) राजा साहब... मैं अब आपसे जो कहूँ... उसे ध्यान से... सुनिएगा... और गौर कीजिएगा... विश्वा गिरफ्तार हो चुका था... रुप फाउंडेशन के केस में... जैल में अपनी सजा काट रहा था... तब आपकी और ओंकार चेट्टी की दोस्ती परवान चढ़ रही थी... प्रत्यक्ष राजनीति में आपकी दखल बढ़ने लगी थी... तब लगभग... पाँच साल पहले... जगत पुर के मस्जिद से... कुछ लोग... चीनी माउजर और कुछ असलाह बारुद के साथ गिरफ्तार हुए थे... उन्हें भुवनेश्वर सेंट्रल जैल मैं रखा गया था... एक स्पेशल सेल बना कर उसमें रखा गया था... उन्हें मिडिया आतंकवादी कह कर प्रचार कर रहा था... उस समय... आपकी सलाह पर... तत्कालीन मुख्यमंत्री जी नेतृत्व में... भुवनेश्वर में... वाइब्रेंट भुवनेश्वर का आयोजन किया गया था... याद है... (कमरे में दास जिस अंदाज से कह रहा था, खामोशी के साथ सब सुन रहे थे l ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों उस कमरे में दास के सिवा कोई है ही नहीं l एक पॉज लेकर) याद होगा ही... उसी दिन... जैल पर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ... पर अफसोस... उस जैल मैं कैद आतंकी के साथ... उसे बचाने आए सभी आतंकी... पुलिस की काउंटर अटैक में मारे गए...
भैरव सिंह - तुम कहानी कह रहे हो... या बकचोदी कर रहे हो...
दास - पुलिस वालों को... उस आतंकी हमले को नाकाम करने के लिए... वाह वाही.. प्रमोशन और मेडल मिला... पर असल में... उस वाह वाही या.. मेडल का असली हकदार... विश्व प्रताप था... (भैरव सिंह और बल्लभ की आँखें चौड़ी हो जाती है) एक अकेले विश्वा ने... ना सिर्फ सारे आतंकीयों को.. खत्म किया.. बल्कि पुलिस कैजुअल्टी को जीरो किया... पर बदले में... ना नाम लिया... ना इनाम... हमने कोशिश भी बहुत की... उसे नाम... पहचान और इनाम देने के लिए... पर उसने एक बात कहा था... उमाकांत सर जी की गवाही... झूठी ना हो जाए... उनके लिए ही... सजा पूरी करना चाहता है...
भैरव सिंह - इस कहानी का मतलब क्या है... इंस्पेक्टर...
दास - हमने एक इंक्वायरी कमिटी बैठाई थी... जिसमें हमें यह मालूम हुआ था... के वे लोग.. जो आतंकी की पहचान लिए मरे... सब आप ही के आदमी थे... आपने.. चेट्टी के बेटे... यश के साथ मिलकर... ईलीगल ड्रग्स तस्करी किया करते थे... मामला बहुत ऊपर तक पहुँचा था... पर चूँकि आपके पास... कुछ ऑफिसरों के... सीडी वगैरह था... धीरे धीरे केस को... दबाव के चलते डायल्युट हो गया था... उसके बाद... आपकी और चेट्टी के रिश्ते में दरार आई... और यह ड्रग्स का धंधा भी बंद हो गया...
बल्लभ - इस कहानी का... इस केस से क्या मतलब है दास बाबु...
दास - मैंने विश्वा की लकीर को बढ़ते देखा है... वह जब कुछ भी नहीं था... अकेला था... तब आपकी धंधे की वाट लगा चुका है... तो आज वह क्या कर सकता है.. यह सोचिए...
बल्लभ - कुछ नहीं कर सकता वह... जब सिस्टम और सरकार हमारी जेब में है...
दास - पूरी तरह से नहीं... जैसे कि मैं... सिस्टम में हूँ... पर सच्च के साथ हूँ... और विश्वा... सच के साथ खड़ा है... वक़्त बदलता है... राजा साहब...
भैरव सिंह - फिर भी... क्या कर लोगे...
दास - राजा साहब... एक वक़्त था... जब विश्वा दिन रात... आपके बारे में सोचता था... पर आज देखिए... आप... आपका पूरा कुनवा... विश्वा के बारे में... दिन रात सोच रहे हैं... राजा साहब... विश्वा आपके दिमाग में... जिंदगी में... हर एक जगह में घुसा हुआ है... बेस्ट ऑफ लॉक...

कह कर दास अपनी जगह से उठ जाता है और बाहर की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के कानों में दास के आखिरी लफ्ज़ गूँज रहा था l एक गहरी साँस लेकर अपनी कुर्सी से उठता है और तेजी से उस कमरे की ओर जाता है जिस कमरे में केके शादी के समय कपड़े बदलने गया था l पीछे पीछे भीमा और बल्लभ भागते हुए जा पहुँचते हैं l भैरव सिंह कमरे को अच्छी तरह से मुआयना करता है l फिर बालकनी जाकर नीचे की ओर देखता है, फिर मुड़ कर बाथरुम में जाता है और दीवार पर लगे आईने में झाँकता है फिर टैप खोल कर अपने मुहँ पर पानी की छींटे मारता फिर भीगे चेहरे से आईने को देखता है l फिर वह बाथरुम से निकल कर कमरे में आता है l कमरे में एक कुर्सी पर बैठ जाता है और हँसने लगता है, "हा हा हा हा हा... " उसकी हँसी देख कर भीमा और बल्लभ हैरान होते हैं l किसी अनहोनी की आशंका के चलते एक दुसरे की ओर देखने लगते हैं l थोड़ी देर के बाद बल्लभ हिम्मत कर के भैरव सिंह से पूछता है l

बल्लभ - राजा साहब...
भैरव सिंह - (हँसी तो नहीं रुकती पर धीमी हो जाती है और बल्लभ की ओर सवालिया नजर से देखता है)
बल्लभ - क्या कोई अनहोनी हो गई...
भैरव सिंह - हाँ प्रधान हाँ... विश्वा ने... हमारे घर... रिश्तों में.. और लोगों में घुसपैठ कर रखा है... अब हमारे समझ में आया... विश्वा... राजगड़ में.. कैसे कामयाब रहा...
बल्लभ - मैं कुछ समझा नहीं...
भैरव सिंह - सिस्टम में दो फाड़ है... एक हिस्सा.. विश्वा के लिए काम कर रहा है... और दूसरा हमारा... जिससे हम कम करवा रहे हैं... परिवार में घुसपैठ... तुम जानते हो... पर सबसे अहम बात... हमारे आदमियों में... उसके आदमी भी हैं... (भीमा और बल्लभ चौंकते हैं)
भीमा - क्या... हमारे आदमियों के बीच... विश्वा का आदमी... यह कैसे हो सकता है हुकुम...
भैरव सिंह - हो सकता है नहीं... हो गया है... जब से विश्वा गाँव लौटा है... उसका हर एक वार... सटीक बैठ रहा है... विश्वा कितनी आसानी से... अपना घर हासिल कर लिया... कैसे पंचायत ऑफिस में घुस कर... आसानी से... तुम सबको धो डाला... फिर... अनिकेत रोणा को... कितनी खूबी से... हमारे ही हाथों से हटा दिया... अब इस शादी में... कितनी आसानी से... केके के कमरे में... उसके बंदे पहुँचते हैं... और हमारी ही आँखों के नीचे से गायब कर देते हैं...
भीमा - पर... केके ग़ायब कहाँ हुआ... वह तो बाथरुम में बंद था... हमसे इंस्पेक्टर ने झूठ बोला... इसलिए हम ढूंढ नहीं पाए...
भैरव सिंह - हा हा हा हा...
बल्लभ - क्यूँकी... इंस्पेक्टर दाशरथी दास... विश्व के लिए राजगड़ आया है.... उसका दोस्त... उसका हमदर्द है...
भैरव सिंह - बिल्कुल... पर सवाल है... वह चार बंदे.. जिन्होंने केके को... ग़ायब किया... वह जो भी थे... महल में अंदर कैसे आए... उन्हें कैसे मालूम हुआ... केके कौन-से कमरे में है... क्या बिना किसी अंदर वाले की मदत से... यह मुमकिन था...

कमरे में सन्नाटा छा जाती है l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है l भीमा की हलक सूखने लगता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हु.. हुकुम...
भैरव सिंह - महल के बाहर की पहरेदारी... रॉय की जिम्मे थी... पर अंदर की...
भीमा - हुक... हुकुम... हमारे सारे आदमी वफादार हैं... सबको हमने परखा हुआ है...
भैरव सिंह - आपने सारे परखे हुए आदमियों को बुलाओ....

भीमा उल्टे पाँव बाहर जाता है l उसके जाते ही भैरव सिंह उठ खड़ा होता है और बल्लभ की ओर देख कर कहता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी राजा साहब..
भैरव सिंह - एक सिस्टम... कभी अगर अपडेट ना किया गया हो... तो वह सिस्टम... एक ना एक दिन... करप्ट हो ही जाता है...
बल्लभ - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - विश्वा हम पर हावी इसलिए नहीं हो पाया... के हम पुरानी सिस्टम में सड़ रहे थे... बल्कि हमारी सिस्टम में... विश्व ने वाईरस डाल दिया था... अब वक़्त आ गया है... सिस्टम को अपडेट... नहीं तो... अपग्रेड करना पड़ेगा...
बल्लभ - राजा साहब.... क्या आपको पता चल गया है... वह कौन था... जिसने... दुश्मन के लिए... अंदर से... दरवाजा खोला था...
भैरव सिंह - हाँ... प्रधान... अब तुम भी उसे पहचान जाओगे... और समझ जाओगे...

बल्लभ यह सुन कर चुप हो जाता है l थोड़ी देर बाद भीमा अपने सारे लोगों के साथ कमरे में आता है l उन्हें देख कर भैरव सिंह भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - क्या सब आ गए...
भीमा - नहीं पर यह सारे मेरे बंदे हैं... बाकी जो भी हमसे जुड़ा हुआ है... सबको यही देखते हैं..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... सोच समझ कर जवाब दो... क्या तुम्हारे सभी आदमी आ गए हैं...
भीमा - जी सिर्फ सत्तू नहीं दिख रहा है... लगता है... रंग महल में... केके साहब का अंजाम देख कर... किसी ठर्रे की दुकान में... लुढ़का हुआ होगा...

भैरव सिंह के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है और वह बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ की आँखे हैरत से फैल जाती है और मुहँ खुल जाती है l

बल्लभ - (भीमा से) यह सत्तू... तुम्हारे साथ कब से है... भीमा..
भीमा - यही करीब तीन... या साढ़े तीन साल से...
बल्लभ - वह इतनी जल्दी... तुम लोगों से जुड़ा... और इस काबिल भी हो गया... के तुम उससे... अपने साथ हर काम में... काम लेते रहे...

बल्लभ के इस सवाल पर भीमा का भी मुहँ खुला रह जाता है l वह शुकुरा और शनिया की ओर देखने लगता है l

बल्लभ - सत्तू... कहाँ है... शनिया...
शनिया - वह कल पीने जाएगा बोला था... पर कल से दिख नहीं रहा है... हमें लगा.... (चुप हो जाता है)
बल्लभ - क्या लगा...
शनिया - वकील बाबु... हम सत्तू पर कैसे शक कर सकते हैं... जब जब विश्वा से... लड़ाई हुई... वह हमारे साथ... कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था...
बल्लभ - ठीक है... तुम्हारी बात मान लेते हैं... पर... तुममें से जब भी कोई विश्वा के हाथों पीटा... क्या सत्तू को भी... विश्वा के हाथों पीटते... देखा...



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वैदेही की दुकान में सत्तू बैठा हुआ था l उसके इर्द गिर्द विश्व और उसके साथी घेर कर बैठे हुए थे l

वैदेही - (सत्तू से) तो... तुझे लगता है... महल में तेरी पोल पट्टी खुल चुकी होगी...
सत्तू - हाँ...
सीलु - नहीं... मुझे नहीं लगता...
सत्तू - राजा को दूर से ही सही... जितना देखा है... जितना आंका है... इतना तो कह सकता हूँ... उस जैसा गलीच... नीच... काईंया... कमीना... कोई नहीं हो सकता...
विश्व - तब तो... तुझे राजगड़ ही नहीं... यशपुर भी छोड़ कर चले जाना चाहिए...
सत्तू - नहीं... मेरे पास... भागने के लिए... कोई वज़ह है ही नहीं...
वैदेही - पर तु रहेगा कहाँ...
सत्तू - दीदी... मुझे तुम अपना नौकर रख लो... मैं बर्तन माँज लूँगा... टेबल साफ कर दिया करूँगा...
वैदेही - फिर भी... तेरी जान को खतरा है...
सत्तू - जानता हूँ... भैरव सिंह अब चोट खाया हुआ सांप है... पर मेरे पास... जीने के लिए वज़ह भी तो होना चाहिए... मैं तो बदला लेने... उसे मारने के लिए... भीमा और शनिया से जुड़ा... पर... महल के भीतर... साढ़े तीन साल में... इन्हीं कुछ दिनों में जा पाया... पर तब भी... मैं उसके आसपास फटक भी नहीं पाया...
विश्व - ऐसा क्यूँ सोच रहा है... तुने बदला नहीं लिया... राजा से उसके खास आदमी... इंस्पेक्टर रोणा को मरवाया... भीमा के साथ रह कर... ना जाने कितनी बार... राजा को मुहँ की खाने पर मजबूर कर दिया... और अब... केके...
टीलु - हाँ राजा ने कभी सोचा भी नहीं होगा... जिस आस्तीन को अपनी बांह में चढ़ाया है... उसी आस्तीन ने उसके बांह को काट दिया है...
मीलु - हाँ... हम सब बस अनुमान लगा रहे हैं... के राजा को पता चल गया होगा...
जिलु - हाँ... तुझे बिल्कुल यहाँ नहीं आना चाहिए था... मैं तो कहता हूँ... उन्हें शक़ होने से पहले... तुझे महल वापस चले जाना चाहिए...
विश्व - नहीं... अगर मन में बात उठी है... तो कहीं ना कहीं सच होगी... अगर सत्तू को कुछ हो गया... तो हम लोग भी... खुद को माफ नहीं कर पाएंगे...
सत्तू - मुझे मेरी फिक्र नहीं है विशु भाई... मैं बस मरने से पहले... राजा का दर्दनाक अंत देखना चाहता हूँ... अभी भी मरने को तैयार हूँ... अगर परसों... विशु भाई और राजकुमारी जी की शादी की बात खुल जाती... तो भैरव सिंह के लिए.. शर्मनाक और दर्दनाक जरूर होती...
वैदेही - तुम्हीं ने अभी बताया ना... भैरव सिंह बहुत कमीना है...
सत्तू - हाँ..
वैदेही - तो समझ लो... अभी वक़्त आया नहीं...
टीलु - पर क्यूँ दीदी... हमें वह दिमागी तौर पर दबाना चाहता है... यह बात सामने आ जाती... तो भैरव सिंह दिमाग से और भी कमजोर हो जाता...
वैदेही - नहीं... तुम लोग भैरव सिंह को नहीं जानते... जितना मैं जानती हूँ... (एक गहरी साँस लेती है फिर) रंग महल में जब... मुझे रौंदा जा रहा था... तब बीच बचाव करने मेरी माँ आई थी... तब मेरी माँ ने पूछा था क्यूँ... भैरव सिंह ने जवाब दिया था... जिस पेड़ को वह लगाया है... उसका फल खाना उसका हक् बनता है... तब मेरी माँ ने उसे ललकारते हुए... नंदिनी की बात छेड़ी थी... जिसे सुनने के बाद... भैरव सिंह ने... मेरी माँ को मेरे ही आँखों के सामने मार डाला था... (वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है और दर्द भी झलकने लगता है पर आँसू नहीं निकलते) (वैदेही की अतीत सामने आते ही विश्व की जबड़े भिंच जाती हैं, एक पॉज लेकर) आज नंदिनी... सुरक्षित महल में इसलिए है... क्यूँकी अभी तक भैरव सिंह को गुमान है... की नंदिनी भैरव सिंह की बेटी है... जिस दिन उसे मालूम पड़ा कि नंदिनी... विशु की पत्नी है.. तब उसके मन से... नंदिनी के लिए... जो कुछ भी भावना है... सब कुछ खत्म हो जायेगा... राजा अपनों के लिए कुछ करे ना करे... पर जिससे दुश्मन मान लेता है... उसके लिए... वह... (चुप हो जाती है)
सत्तू - ओ... माफ करना दीदी... पर अभी भी... राजकुमारी जी का महल में रहना कहाँ तक ठीक है...
वैदेही - इस केस में विशु की ही जीत होगी.. यह सबको मालूम है... राजा को भी... और कम से कम तब तक... नंदिनी एक बेटी की तरह... उस महल में रहना चाहती है... रहना भी चाहिए...
सत्तू - ठीक है दीदी... आपने सोचा है... तो ठीक ही सोचा होगा...
वैदेही - हाँ... और मैंने यह भी सोचा है कि तुम अभी विशु के साथ... बच्चों के लिए जो लाइब्रेरी बनाया गया है... वहीँ पर कुछ दिन के लिए छुप जाओ...
सत्तू - छुपना... क्यों दीदी...
सीलु - अबे ढक्कन... तु छुपा रह... तु भी सलामत रहेगा... और दीदी भी सलामत रहेगी... समझा...
विश्व - तुम सब चुप रहोगे... (सत्तू से) एक काम करो... तुम अब.. मेरे साथ... उमाकांत सर के घर चलो... फ़िलहाल के लिए... बाद में सोचते हैं... क्या करना होगा...
वैदेही - हाँ यही सही रहेगा.. तुम विशु के साथ जाओ.... हम थोड़ा जायजा लेते हैं... तुम्हारा राजगड़ में रहना... तुम्हारे लिए कितना हानिकारक हो सकता है...

सत्तू उठ नहीं रहा था l विश्वा उसे ज़बरदस्ती अपने साथ खिंच कर दुकान से ले जाता है l उनके जाने के बाद सीलु वैदेही से पूछता है l

सीलु - दीदी... इस सत्तूका क्या इतिहास है... और इसे आप... कब से जानती हैं...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ती है) तुम लोग विशु के अतीत को कितना जानते हो...
टीलु - शायद... सब कुछ... इसलिये तो हम समझ नहीं पाए... हमारे मैदान में... सत्तू कबसे खेल रहा था... वह भी मिस्टर एक्स बन कर...
जिलु - हाँ... हम सब डेढ़ सालों से लगे हुए थे... पर कभी इसे नहीं पहचान पाए...
वैदेही - वह इसलिए... की सत्तू की कहानी... पाँच साल पहले शुरु होती है... और उसको राजा से... अपने प्यार का बदला चाहिए था... इसलिए वह भीमा से जुड़ गया था...
सब - क्या...
वैदेही - हाँ... इसलिए पुछा... विशु के अतीत को कितना जानते हो...
सीलु - दीदी आप बताती जाओ... हम देखते हैं... हमें क्या पता नहीं है...
वैदेही - दिलीप कुमार कर... मानीया गाँव का सरपंच था...
सब - हाँ हम जानते हैं...
वैदेही - उसकी सबसे छोटी बेटी... जिसकी बलि... क्षेत्रपाल महल की रस्म में ले ली गई थी..

वैदेही बताती है कि वह साढ़े पाँच साल पहले जब विश्व से मिलने भुवनेश्वर जा रही थी विश्व की ग्रैजुएट होने पर बधाई देने जा रही थी l बस स्टैंड में दिलीप कुमार कर की बीवी कल्याणी उसे रोक कर कैपिटल हस्पताल लेकर जाती है जहां दिलीप कर अपनी आखरी साँस ले रहा था l वहीँ पर वैदेही को मालूम होता है कि कैसे भैरव सिंह ने अपना काम निकल जाने के बाद दिलीप कर को छोड़ दिया था l जिसके वज़ह से दिलीप कर लकवा ग्रस्त हो गया था l उसके इलाज के वक़्त उसकी बड़ी बेटी और बेटा सारी दौलत लेकर भाग गए थे l जब उसकी पत्नी कल्याणी भैरव सिंह से मदत माँगने गई थी तब भैरव सिंह ने उसकी छोटी बेटी को विक्रम के क्षेत्रपाल बनने की रस्म की भेट चढ़ा दी गई थी, और वहीँ पर दिलीप कर से मालूम हुआ था कि जयंत राउत जी की हत्या यश ने की थी l और सत्तू वही लड़का था जिसकी शादी दिलीप कर की बेटी से तय हुई थी पर दिलीप कर की जान बचाने के लिए रंग महल की रस्म के बदले पैसा लाकर अपनी माँ को दिया था और हमेशा के लिए रंग महल में रह गई थी l सत्तू उस वक़्त हस्पताल में इनकी देखरेख कर रहा था l दिलीप कर के मौत के बाद उसकी बेटी को वापस पाने के लिए भीमा के गिरोह में शामिल होने के लिए बड़ी कोशिश की l उसे कामयाबी तीन साल पहले मिली l पर उसे एक दिन मालूम हुआ कि उसकी मंगेतर ने किसी कारण से आत्महत्या कर ली थी l उसीका बदला लेने के लिए ताक में था l वह भैरव सिंह को मार देना चाहता था l पर कभी इतना हिम्मत जुटा नहीं पाया l एक दिन वैदेही ने उसे शनिया के साथ पहचान लिया था l उसके बाद मौका मिलने पर वैदेही ने ही विश्व का साथ देने के लिए राजी कर लिया था l सब सुनने के बाद

सीलु - ओ... पर दीदी यह गलत बात है...
वैदेही - क्या गलत है...
मीलु - हाँ... आपको हमें उसके बारे में कह देना चाहिए था... और उसको हमारे बारे में...
वैदेही - उसे... सिर्फ विशु के बारे में पता था... और विशु को उसके बारे में... एक वही था... जो हमें खबर कर देता था... की भैरव सिंह किसको... हमारी जासूसी करने भेजा है... विशु उसी हिसाब से अपनी तैयारी कर लेता था...
टीलु - तो यह विशु भाई की गलती है... विशु भाई को हमें बता देना चाहिए था...
वैदेही - तुम लोगों को तब बताया गया... जब जरूरत हुई... तुम लोगों के बारे में भी तो... विशु ने मुझे बहुत देर बाद कही थी... (चारों चुप हो जाते हैं) विशु को... सबकी फिक्र रहता है... जिस बात को जब खोलना है... तब खोलता है... क्यूँकी अगर सारी बातेँ खुल जाए... तो पता नहीं किस पर क्या खतरा हो जाए...

तभी शनिया, शुकुरा अपने कुछ साथियों के साथ वैदेही के दुकान पर आते हैं l वैदेही के साथ इन चारों को देख कर थोड़ा ठिठकते हैं l

शनिया - सत्तू कहाँ होगा...
वैदेही - अपनी अम्मा से जाके पूछ ना...
शनिया - देख हमें खबर है... वह यहाँ आया हुआ था... इसलिए तुझे... प्यार से पूछ रहे हैं...
सीलु - दीदी नहीं कहेगी... तो क्या उखाड़ लोगे बे...
शनिया - ओ... विश्वा ने तेरी वकालत करने के लिए... अपने कुत्ते छोड़ रखे हैं... (चारों उठ खड़े हो जाते हैं) (वैदेही उन्हें हाथ दिखा कर शांत रहने के लिए इशारा करती है)
वैदेही - शनिया... यह तु भी जानता है... मैं एक अकेली तुम लोगों के लिए काफी हूँ... इन्हें ललकार मत... वर्ना तु आया मर्दाना लिबास में... पर जाएगा... जनाना कपड़ों में...
शुकुरा - देख वैदेही... हम बस इतना जानने आए हैं... सत्तू यहाँ आया था या नहीं... अगर आया था... तो अब कहाँ गया...
वैदेही - यह एक दुकान है... दिख नहीं रहा है क्या... यहाँ तेरी तरह लोग आते हैं और चले जाते हैं... वह भी आया था... चला गया... अब कहाँ गया... उसे मुझे क्या...
शुकुरा - देख वैदेही... बात राजा सहाब की है... उसने राजा साहब से गद्दारी की है... राजा साहब.. उसे ढूंढने और उनके सामने पेश करने के लिए कहा है...
शनिया - हमें खबर मिली थी... सत्तू कुछ देर पहले तेरे दुकान में था... इससे पहले कि राजा साहब का गुस्सा तुम और तुम्हारे भाई पर उतरे... बेहतर होगा कि तु सत्तू का पता बता दे...
टीलु - ओए ढक्कनों... इतनी जल्दी भूल गए... तुम्हारे राजा जिस कुर्सी पर बैठ कर तुम लोगों को हांकता है ना.. दीदी ने उसे तुम लोगों के आँखों के सामने राजा को उसी कुर्सी से उतारकर... खुद बैठी थी और तुम्हारे राजा को हांकी थी...
मील - हाँ यह सारे गुड़ गोबर... जल्दी भूल जाते हैं... कहो तो हम अभी के अभी याद दिला दें...
शनिया - बस वैदेही... हम सब समझ गए... हमें बस शक़ था... तुमने उसे यकीन में बदल दिया... कोई नहीं... वैसे भी तुमसे मेरा पुराना हिसाब बाकी है... (कह कर अपने चेहरे पर एक कटे दाग पर हाथ फेरता है) एक दिन... सूद समेत लौटाऊंगा...


तभी सब विश्व को आते देखते हैं l वे लोग धीरे धीरे खिसक जाते हैं l विश्व दुकान पर पहुँच कर शनिया और उसके गुर्गों को जाते हुए देखता है l फिर अपनी दीदी और दोस्तों को देख कर पूछता है

विश्व - यह किस लिए आए थे...
वैदेही - सत्तू की सच्चाई को.. पक्का करने आए थे...
विश्व - इसका मतलब... सत्तू सही समय पर... महल से निकल गया...
वैदेही - हाँ...
सीलु - और भी कुछ हुआ है विश्व भाई... (विश्व सीलु की ओर देखता है)
वैदेही - कुछ नहीं हुआ है... तुम लोग खामख्वाह... बात का बतंगड बना रहे हो...
विश्व - टीलु... क्या हुआ...
टीलु - शनिया... अपना पुछ लेकर आया था... दीदी को धमकी देकर गया है... यह बात और है... तुमको देखते ही... अपनी दुम दबा कर भाग गया... (शनिया जिस रास्ते लौट गया था विश्व की नजर वहाँ पर टिक जाता है)
वैदेही - अब तु उस तरफ क्यूँ देख रहा है...
विश्व - मैं यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ... के इन्हें अपनी शक को पक्का करने के लिए... यहाँ क्यूँ आना पड़ा... क्यूँकी गाँव में हमारे सिवा... राजा का खिलाफत तो कोई करेगा नहीं... और जाहिर सी बात है... जो राजा के खिलाफ जाएगा... वह हमारे खेमे में होगा... फिर...
वैदेही - कुछ नहीं... यह उनकी खुजली है... जब होने लगती है... यहाँ आकर मिटा कर जाते हैं...
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) यह लोग राजा के खोटे सिक्के सही.... कायर हैं... बुजदिल हैं... उस पर... मक्कार है... जितनी सावधानी राजा से रख रहे हैं... उतनी ही इनसे भी रखना होगा...
वैदेही - यह लोग क्या हैं... मैं जानती हूँ... पिछले सात सालों से... इनसे लोहा ले रही हूँ... और आज अचानक तु... क्यूँ फिक्र मंद होने लगा है...
विश्व - दीदी... दुश्मन अगर बहादुर हो तो विश्वास किया जा सकता है... पर अगर कायर और मक्कार हो... तो सावधानी जरूरी हो जाता है... क्यूँकी ऐसे लोग... सामने से नहीं पीठ पर वार करते हैं...
वैदेही - अब तु मुझे समझायेगा... यह लोग कैसे हैं...
सीलु - ओ हो... अब तुम और दीदी किस बात पर बहस करने लग गए...
विश्व - देखो... इस बार मैं जब भी केस के सिलसिले में यशपुर जाऊँ... तब तुम लोग दीदी के पास रुकना...
मीलु - हाँ समझ गए... पर तुम शायद भूल रहे हो... गवाहों के लिस्ट में... हमारा भी नाम है...
जिलु - तो ऐसा करते हैं... हम जब भी यशपुर या कहीं भी बाहर जाएंगे... दीदी को साथ ले जाएंगे...
वैदेही - चुप रहो तुम लोग... यह क्या बहकी बहकी बातेँ करने लग गए... कुछ छछूंदर आए थे... चले गए... जो मेरे भाई को देख कर ही भाग गए... वह लोग क्या हो कर लेंगे... और हम यहाँ किस विषय पर बात कर रहे थे... और बात कहाँ जा रहा है...
विश्व - दीदी... मुझे तुम्हारी चिंता है...
वैदेही - मैंने कहा ना बस... (अपनी एक टेबल के ड्रॉयर खोल कर एक दरांती और दो हाथ लंबा कुल्हाड़ी निकालती है) अब तक... मैं इन्हें अपने साथ लेकर... इनसे लोहा ले रखा था... उनमें इतना भी दम नहीं है... इनसे पार पा जाएं... (वैदेही देखती है पाँचो उसे गौर से देख रहे थे, फर्क़ बस इतना था कि सिवाय विश्व के चारों बेवक़ूफ़ों की तरह मुहँ फाड़े देख रहे थे) क्यूँ टीलु...
टीलु - (होश में आता है) जी... जी दीदी...
वैदेही - (विश्व से) हमने अपनी जान बचाने के लिए... यह लड़ाई छेड़ी नहीं थी विशु... इस लड़ाई का मकसद अलग है... गाँव के हर जान में सोये हुए पुरुषार्थ को जगाना है... अगर इसके लिए... यह लड़ाई हमारी बलि ले भी ले...
विश्व - दीदी...
वैदेही - अरे बात तो पूरी करने दे... अगर इस बीच मुझे कुछ हो जाए... तब बिना मेरी बहु के... मेरी लाश को उठने मत देना..
विश्व - दीदी...

गुस्से से पैर पटक कर चला जाता है l वैदेही उसे आवाज देती रह जाती है l विश्व के चारों दोस्त वहीँ पर खड़े रह जाते हैं l विश्व के आँखों से ओझल होने के बाद पुलिस की गाड़ी आकर दुकान के आगे रुकती है l गाड़ी से दास उतरता है l

वैदेही - अरे दास बाबु... आप... अभी...
दास - जी... मैं विश्व से मिलने आया था...
वैदेही - वह तो अब... नदी किनारे गया होगा...
दास - अभी.. पर क्यूँ...
वैदेही - जब भी नाराज होता है... या परेशान होता है... ढलती सूरज की ओर देख कर खुद को शांत करने की कोशिश करता है..
दास - ओ अच्छा...
वैदेही - कोई खास काम था..
दास - जरूरी तो नहीं पर... केस के सिलसिले में... कुछ कहना था...
सीलु - आज आप बात ना ही करो तो अच्छा रहेगा... आज भाई का मुड़ बिगड़ गया है... (सीलु दुकान में जो हुआ कहने लगता है)
दास - बात तो उसने सही कहा है वैदेही जी... बहादुर और चालक दुश्मन अलग होते हैं... कायर और मक्कार अलग... बेशक राजा को अपनी हार दिख रहा है... पर यह भी सच है... जो जिंदगी... वह जिया है... उसे बचाने के लिए... हर कोशिश करेगा... किसी भी हद तक जाएगा... अभी तक विश्व की कोई कमजोरी.. राजा के हाथ नहीं लगी है... तो जाहिर है.. उसकी नजर... अब आप पर होगी...
टीलु - इंस्पेक्टर साहब... अगर बात इतनी ही गम्भीर है... तो हम दीदी के आसपास रहेंगे...
दास - हाँ... मैं एक काम करता हूँ... कांस्टेबल जगन को भी कह देता हूँ... वह भी आसपास रहेगा...
वैदेही - लो... अब आप भी...
दास - जी वैदेही जी... यह लड़ाई सबसे महत्त्वपूर्ण हैं... इसमें विश्व की हार होनी नहीं चाहए...
वैदेही - मैं मानती हूँ... पर...
दास - नहीं वैदेही जी... राजा हमेशा एक बात कहता है... या यूँ कहूँ के... मानता है... के उसके बराबर कोई नहीं है... बात सच है... विश्व की शख्सियत राजा से अलग है... विश्व जहां सच के लिए खड़ा है... वहीँ राजा... झूठ और अहं के लिए खड़ा है... विश्व बेशक शातिरपना अपनाता है... पर दिल से साफ है... वहीँ राजा... झूठ मक्कारी कमीनापन से शातिरपना अपनाता है...
Nice update....
 
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parkas

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👉एक सौ इकसठवाँ अपडेट
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राज्य के बहु चर्चित राजगड़ मल्टिपल को-ऑपरेटिव सोसाइटी आर्थिक व आपराधिक मामलों पर आज स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई शुरु किया गया l अदालत में प्रोसिक्यूशन के लिए वादी पक्ष के गवाह, वकील विश्व प्रताप महापात्र और इस केस में तहकीकात करने वाले एक्जिक्युटीव मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री जी उपस्थित थे, केस के शुरुआत में वादी पक्ष के वकील विश्व प्रताप महापात्र ने केस के संबंधित गवाह और मैजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री की कानूनी सुरक्षा की मांग की l जिस पर अदालत शायद कल अपना फैसला सुनाए l पर अपनी डिफेंस स्वयं करने की मांग कर स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को यशपुर लाने वाले राजगड़ के राजा, सम्मानीय राजा साहब श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी निजी कारण उल्लेख कर कोर्ट की कारवाई को अतिरिक्त सात दिन आगे करने के लिए अनुरोध किया है l
हमने जब वह निजी कारण के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की तो सूत्रों से पता चला है कि बीते कल उनकी सुपुत्री की मंगनी तय की गई थी l पर ऐन मौके पर मंगनी की रस्म के कुछ ही समय पूर्व वर लापता हो गए हैं l आश्चर्य की बात यह है कि वर वधु से उम्र में काफी बड़े हैं और कटक भुवनेश्वर ट्विन सिटी के नामचीन बिल्डर हैं, श्री कमल कांत महानायक उर्फ केके l पर हैरानी की बात यह है कि राजगड़ के गाँव वाले इसे मंगनी के बजाय शादी कह रहे थे l और वर शादी की मंडप छोड़ कर भाग गया है l खैर जो भी हो इतना अवश्य सच है की राजगड़ के महल में एक अनुष्ठान हो रहा था पर उसमें वर की अनुपस्थिति के कारण बाधा उत्पन्न हो गया l यह निःसंदेह किसी भी पिता के लिए दुःख का कारण है l इसलिए अदालत राजा साहब को मनःस्थिति को समझते हुए इस केस में रियायत बरतने के लिए निर्णय किया है l कल अदालत उन्हें कितने दिन की रियायत देती है यह पता चलेगा l पर चूँकि राज महल से वर लापता हुआ है और राजा साहब ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी है, अदालत ने पुलिस को अतिशीघ्र इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है l
पुलिस ने भी अपनी तहकीकात तेज कर दी है l अब तक के लिए इतना ही l मैं सुप्रिया कुमारी रथ प्राइम टाइम बुलेटिन नभ वाणी से l नमस्कार

वैदेही टीवी बंद कर देती है l पीछे मुड़ कर देखती है विश्वा और उसके सारे दोस्त खाना खा रहे थे l पाँचों की ध्यान सिर्फ खाने पर थी l वैदेही उनसे अपना ध्यान हटा कर गौरी की तरफ देखती है l गौरी बड़ी गहरी चिंतन में खोई हुई थी l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या सोच रही हो... कहाँ खो गई हो...
गौरी - (अपनी सोच से बाहर आती है) नहीं... कुछ भी तो नहीं...
वैदेही - सुबह से देख रही हूँ... तुम खोई खोई सी रहने लगी हो...
टीलु - क्यूँ नहीं रहेगी बोलो... अरे दीदी... हम सब दावत खाने चले गए... बुढ़िया को यहीं छोड़ गए... कम से कम... कुछ पकवान तो लाने चाहिए थे ना...
गौरी - मुहँ बंद कर नाशपीटे...

टीलु खी खी कर हँसने लगता है l पर गौरी की चेहरा देख कर वैदेही टीलु के तरफ देख कर आँखे दिखा कर चुप रहने के लिए कहती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी...
गौरी - (वैदेही की तरफ़ देख कर) वैदेही... मैंने... इन क्षेत्रपालों की दरिंदगी देखी है... तुमने झेला भी है... तुम सांप पर विश्वास कर सकती हो... पर इन क्षेत्रपालों को... हरगिज नहीं..
वैदेही - पर अब हुआ क्या है काकी...
गौरी - देखना... राजा कुछ ना कुछ करके... केस की सुनवाई को... खिंचता जाएगा... और धीरे धीरे अपने दुश्मनों को... निपटाता जाएगा... तुझे क्या लगता है... वह दूल्हा जो ग़ायब है... वह कभी मिलेगा... नहीं... वह अब कभी भी... दुनिया के सामने नहीं आएगा... क्यूँकी... मैं दावे के साथ कह सकती हूँ... वह अब तक... आखेट गृह के जानवरों का निवाला बन चुका होगा...
विश्व - (खाना खा चुका था, हाथ धो कर वैदेही के पल्लू से हाथ साफ करते हुए) तो काकी... क्या आपको... उस वर के गायब होने का दुख है...
गौरी - नहीं... शायद हाँ... ऐसा लग रहा है... जैसे कोई बवंडर आने वाला है... जिसके लिए... राजा ने दरवाजा खोल दिया है... कई जिंदगियां अब तहस नहस होने वाले हैं...
विश्वा - काकी... अगर वह केके... अब इस दुनिया में नहीं है... तो यह भी सच है कि... उसकी मौत की मातम मनाने वाला कोई है भी नहीं... और वह कोई संत महात्मा तो था नहीं... बेग़ैरत... बेईमान... मतलब परस्त था... बुढ़ापे में... राजा जैसे सांप की बात मान कर... एक कम उम्र की लड़की से शादी करने बेशरमो की तरह दौड़ा चला आया...
सीलु - हाँ... उसके साथ जो भी हुआ होगा... वह उसकी कर्मों का फल होगा... वही उसकी किस्मत में लिखा था... जिसे उसीने ही चुना था...
टीलु - हाँ... (वैदेही की पल्लू से अपना हाथ पोछते हुए) वह कहावत है ना... सांप की फन से... जो अपना पिछवाड़ा खुजाएगा... वह यम दर्शन किए बिना कहाँ जाएगा...
वैदेही - यह कहाँ की कहावत है...
टीलु - क्या दीदी... आपने कभी सुना नहीं...
सीलु - (टीलु के सिर के पीछे एक टफली मार कर) हमने भी नहीं सुना... किसने कहा था... कब कहा था...
टीलु - तुझे भी नहीं पता... एक महान... आदमी ने कहा था...
विश्व - ऐ.. ज्यादा सीन मत बना... अब बोलो कौन महान आदमी था...
टीलु - क्या... मैंने था... कह दिया... सॉरी सॉरी... एक महान आदमी ने कहा है...
वैदेही - ओ... अब मैं समझ गई... और वह महान आदमी तु है...
टीलु - वाह दीदी वाह.. (सबसे) देखा... दीदी समझ गई...

विश्व और बाकी मिलकर टीलु झुका कर दो चार घुसे बरसा देते हैं l वैदेही उन सबको रोकती है l टीलु वैदेही के पीछे छिप जाता है l तभी दास सादे कपड़े में वहाँ पर आता है l

विश्व - क्या बात है दास बाबु... आप... अचानक यहाँ..
दास - तुम लोगों की बातेँ बाहर तक सुनाई दे रही थी... बात तो सच है... केके गायब है... मुझे उसे ढूढ़ना है... और रिपोर्ट बना कर... अदालत में पेश करना है...
विश्व - आपने जैसा रिपोर्ट... अनिकेत रोणा पर बनाया था... वैसा ही रिपोर्ट इस गुमशुदगी पर बना कर अदालत में पेश कर दीजिए...
दास - यह लास्ट ऑप्शन है... क्या और कोई रास्ता है... इस
बार... भैरव सिंह... मुझ पर हावी होने की कोशिश करा है... मैं ज़वाब में उस पर हावी होना चाहता हूँ...
विश्व - दास बाबु... रिपोर्ट एक दिन में नहीं बनती... आप भी कुछ दिनों की मोहलत मांगिये... फिर तहकीकात शुरु कीजिए... क्यूँकी... भैरव सिंह ने... एसपी ऑफिस से... केके की जान को खतरा बता कर... पुलिस को बाराती बनाया था... पर केके तो... महल के भीतर से गायब हुआ है ना... वह भी... भैरव सिंह के अपने सिक्युरिटी के बीच...
दास - (मुस्करा देता है) समझ गया... मुझे क्या करना है... अच्छी तरह से समझ गया...

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अगले दिन सुबह क्षेत्रपाल महल के छत पर व्हीलचेयर पर नागेंद्र सिंह को बिठा कर कुछ नौकर रुप के दिखाए जगह पर रख देते हैं l रुप सबको नीचे जाने के लिए कहती है, जो नौकर नागेंद्र को लाए थे वह सब नीचे चले जाते हैं l रुप व्हीलचेयर को धकेल कर छत पर थोड़ी दूर लेकर आती है l जहां से पूरा गाँव दिख रहा था l सुबह की नरम धूप के रंग में रंगी गाँव बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था l

रुप - (चहकते हुए) देखो दादाजी... कितना सुंदर यह गाँव है... पर दूर से... (चेहरा संजीदा हो जाता है) आप लोगों की... झूठी अहं के चलते... इस गाँव की अंदर की पिंजर... ढांचा और जिंदगी... बदसूरत हो गई है... पर... पर अब बदलेगा... या यूँ कहूँ... बदल रहा है... (नागेंद्र की तरफ मुड़ कर) क्यूँकी अब इस महल की रौनक छूट रहा है... जाहिर है... वह रौनक... खुशियाँ... अब धीरे धीरे... गाँव में बसने वाली है... या यूँ कहूँ... शायद... बसने लगी है...

लकवाग्रस्त अपाहिज सा नागेंद्र की ओर मुस्कराते हुए रुप देखती है l नागेंद्र के आँखों में रुप के लिए गुस्सा झलक रहा था l रुप नागेंद्र की भावनाओं को दरकिनार कर नागेंद्र से कहती है l

रुप - दादाजी... आपमें ना... ताकत बहुत है... बेकार में मुझ पर गुस्सा कर... ताकत को जाया कर रहे हो... इसी गुस्से को... अगर खड़े होने के लिए... इस्तमाल किए होते... तो शायद.. अब तक खड़े भी हो गए होते... (नागेंद्र अपनी टेढ़ी मुहँ से गुँ गुँ कर रुप को झिड़कने लगता है) वैसे... जानते हैं... मैं पिछले दो दिनों से बहुत खुश हूँ... अपनी खुशी को आज मैं आपके साथ बाँटने इस छत पर लाई हूँ... अगर चाची या भाभी होतीं... तो उनसे यह खुशी शेयर कर रही होती... बार बार कर रही होती... नाच रही होती झूम रही होती... वह क्या है ना... लड़कियाँ अपनी खुशी को... ज्यादा देर तक पेट में... दबा कर नहीं रख सकती... इसलिए किसी को भी... बता देना बहुत जरूरी होता है... अब इस महल में... आप से बेस्ट कौन हैं... जिनसे अपनी दिल की बात कही जाए... और सबसे छुपाई भी जाए.... जानते हैं... राजा साहब... मेरे अनाम... पर अपनी भड़ास... अपनी खीज निकालने के लिए... ओर अपनी बेटी को.. उसकी नाफरमानी और बदतमीजी को... सबक सिखाने के लिए... एक बुढ़े लंगुर से शादी तय कर दी थी... हूँह्ह... मुझे और मेरे अनाम को नीचा दिखाने के लिए... मेरे दोस्तों को कटक और भुवनेश्वर से झूठ बोल कर उठा लाए थे... क्यूँकी जाहिर है... इस शादी के खिलाफ विक्रम भैया... चाचा चाची सभी थे... राजा साहब को यह लगा... उनकी इस कदम पर... सब मेरे लिए पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाएंगे... पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ... जो जो रस्में... भैया... चाचा चाची को निभाने चाहिए थे... उन्हीं रस्मों को निभाने के लिए... मेरे दोस्तों से कहा गया... पर वह कहते हैं ना... बाप से बढ़कर बेटा... विकी भैया ने ऐसा खेल खेला... के राजा साहब को जब पता चलेगा... यकीन मानिये दादा जी... उनको तो हार्ट अटैक आ जाएगा...
भैया ने इस खेल में... मेरे दोस्तों को भी शामिल कर दिया... और जानते हैं... अनाम के दोस्त... उस चिरकुट लंगुर को... महल अंदर आए और महल में ही कहीं छुपा दिया... जिसे राजा साहब... अपने नाकारे निकम्मे पहरेदारों के साथ... इंस्पेक्टर दास को लेकर... अंदर ढूढ़ने लगे... तभी... भैया ने मेरे भाई होने का रस्म अदा किया... आह...(झूम कर घूम जाती है) क्या कहूँ दादाजी... पहले तो भैया ने गाँव वालों को वहाँ से भगा दिया... ताकि कोई गवाह ना बन जाएं... फिर.. चाची से नए जुते लेकर... अनाम को पहना दिया... हा हा हा... अनाम भी भौचक्का रह गया... क्यूँकी अनाम तक को पता नहीं था... क्या हो रहा था... चाचा ने अपनी जेब से खंजर निकाल कर अनाम के हाथों में थमा दिया... चाची के पास मेरे सहेलियाँ भागते हुए आईं... आरती और तिलक की थाली दी... चाची ने अनाम की आरती उतारी और तिलक भी लगाया... तब तक... अंदर से इंस्पेक्टर भी आ गया... अपने साथ लाए फोर्स को... विवाह बेदी तक... दो लाइन में खड़ा कर दिया... और अनाम को... वैदेही दीदी ने... हाथ थाम कर... उन पुलिस वालों के बीच से लेकर आईं... मेरे बगल में बिठा दिया... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हूँ ह्म्म्म्म... वैदेही... आपको... याद है ना दादाजी... पाईकराय खानदान की अंतिम चराग... जिसकी आह अब क्षेत्रपाल घर परिवार सबको जला रही है... खैर... फ़िर भैया ने... (चहकते हुए) पंडित से... जल्दी जल्दी मंत्र पढ़वाया... फटा फट... जल्दी जल्दी... बिल्कुल राजधानी एक्सप्रेस की तरह... फ़िर अग्नि के फेरे भी लगवा दिए... और... (गले में मंगलसूत्र निकाल कर दिखाती है, और अपनी भौंहे नचा कर) अनाम मेरे गले में मंगलसूत्र पहना दिया... अब मैं... क्षेत्रपाल नहीं रही... मैं अब... (बड़े एटीट्यूड के साथ) रुप नंदिनी विश्व प्रताप महापात्र हूँ... अब मैं विश्व की हो गई हूँ... हम अब विश्वरूप हैं... विश्वरूप...

नागेंद्र की आँखे बड़ी और फैली हुई दिखने लगी थी l मुहँ फाड़े हैरत भरे नजरों से रूप को अबतक सुने जा रहा था l उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वह कोई असंभव सी बात सुन लिया हो l रुप मुस्कराते हुए पूछती है

रुप - आपकी हालत समझ सकती हूँ... आपको यकीन नहीं हो रहा है... पर यह सच है... उतना ही सच... जितना कि सूरज का निकलना... हमारी साँसे चलना... यह देखिए... (अपनी बालों के बीच छुपाये माँग की सिंदूर को दिखाती है) मैं अब... इस घर में... विश्व प्रताप की व्याहता हूँ...

नागेंद्र अब उबलने लगता है l गहरी गहरी साँसे चलनी लगती है l शरीर का ज्यादातर हिस्सा काम नहीं कर रहा था पर फिर भी वह व्हीलचेयर से उठने की कोशिश कर रहा था l मानों उठ कर रुप की गला दबोच लेगा l रुप नागेंद्र की असहायता देख कर सहानुभूति के साथ कहती है l

रुप - दादाजी... मुझे समझ में नहीं आ रहा... आपको किस बात का गुरुर है... ना हाथ आपके साथ है... ना आपके पैर... ना ताकत... आपका दिन शुरु होता है... तो उन लोगों के रहमोकरम से... जिनकी जिंदगियों को अपने बर्बाद कर दिया था.... सिर्फ साँस और एहसास ही तो आपके साथ है... वर्ना... आपकी इसी गुरुर ने... आपसे... आपका दूसरा बेटा... बहु... और पोते को... दूर कर दिया... बड़ा पोता और बहू भी अब कभी इस महल में वापस नहीं आयेंगे... पर भरोसा रखिए... इस केस के खत्म होने तक... और ज्यादा से ज्यादा... अट्ठाइस दिन... सिर्फ तब तक इस महल की मेहमान हूँ... उसके बाद भी... अगर राजा साहब को सजा हो जाती है... और आपका साँस आपके साथ दे... मैं आपको अपने साथ ले जाऊँगी और सेवा करती रहूँगी... आपकी आखरी साँस तक... दादाजी मैं आपको तड़पाने के लिए ना यह सब किया है... ना ही आप लोगों से कोई बदला लेने... मैंने बस अपने हिस्से की जमीन... अपने हिस्से का आसमान ले लिया है... जो मेरा था... मेरी किस्मत में लिखा था... और आप लोग मुझे कभी नहीं दे सकते थे...

अब नागेंद्र का मुहँ एक ओर थोड़ा टेढ़ा हो गया था l गुस्से के कारण किसी सांप की तरह फुत्कार रहा था l उसकी टेढ़े मुहँ से लार बहने लगा था l रुप नागेंद्र की ऐसी हालत देख कर थोड़ा डर जाती है और भागते हुए नीचे नौकरों को बुलाने जाती है l थोड़ी देर बाद कुछ नौकर ऊपर आते हैं और नागेंद्र को उसके कमरे में ले जाते हैं और उसके बिस्तर पर सुला देते हैं l नागेंद्र अभी भी गहरी गहरी साँसे ले रहा था l रुप उसके माथे पर हाथ फेरती है l कुछ देर बाद कमरे में भैरव सिंह आता है l भैरव सिंह को देख कर रुप नागेंद्र को छोड़ कर उठ जाती है और बेड के सिरहाने एक किनारे पर खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - उनकी हवा पानी बदलने के लिए... नौकरों की मदत से... छत पर ले गई थी...
भैरव सिंह - तुम भूल कैसे गई... अंतर्महल में रहने वाली... नौकरों के सामने नहीं जाती...
रुप - महल में... जब मैंने... आपकी मुहँ से... हम का रुतबा खो बैठी.. और तुम पर आ गई... इसलिए शायद... दासी बराबर हो गई... और वैसे भी... केके साहब से आपने लगभग रिश्ता जोड़ ही दिया था... अगर शादी हो गई होती... तो अंतर्महल वाली बंधन से थोड़ी आजादी होती...
भैरव सिंह - (बात बदल कर) छत पर... बड़े राजा जी को क्या हुआ...
रुप - शायद... अपनी लाचारी और बेबसी पर उन्हें गुस्सा आया...
भैरव सिंह - गुस्सा... किस बात पर... तुमने उन्हें ऐसा क्या कहा...
रुप - मैंने... मैंने उन्हें... सब सच बताया... एक एक शब्द... अक्षरश सच बताया...
भैरव सिंह - ऐसा कौनसा सच बता दिया... जिस पर उन्हें अपनी लाचारी और बेबसी पर गुस्सा आया...
रुप - वही... परसों सुबह से लेकर देर शाम तक... महल में जो भी कुछ हुआ... अक्षरश सब बता दिया... बड़े राजा जी की घर में... शहनाई बज रही थी... पर उस जलसे में... उन्हें कोई पूछने वाला तक नहीं था... अगर वह मंडप के पास होते... जो भी हुआ अपनी आँखों से देख सकते थे...
भैरव सिंह - (जबड़े और मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, चेहरा सख्त हो जाती है)
रुप - बड़े राजा जी से विस्तार से कहा तो उन्हें गुस्सा आया... पर... आपको क्यूँ गुस्सा आ गया... क्या आपको लगता है... कुछ जानना बाकी रह गया इसलिए... आप चाहें तो... विस्तार से... आपको भी कह सकती हूँ...
भैरव सिंह - (दबी आवाज में) बदजात... जुबान बंद रख...
रुप - कुछ सच्चाई सुनी नहीं जा सकती... कुछ झेली नहीं जा सकती...
भैरव सिंह - अभी हारे नहीं हैं हम... बस इतने पर इतरा रही हो...
रुप - ना... हरगिज नहीं... बस अपनी किस्मत पर इतरा रही हूँ... वह किस्मत जो आपने लिखने की कोशिश की... पर कलम टुट गया...
भैरव सिंह - मत भूलो... यहाँ किस्मत हम लिखा करते हैं... परसों वही हुआ... जिसकी किस्मत में जो लिखा था...
रुप - वही तो कह रही हूँ... परसों मेरे साथ वही हुआ... जो मेरी किस्मत में लिखा हुआ था... और वह भी हुआ... जो आपने नहीं लिखा था...
भैरव सिंह - (अपनी दांत पिसते हुए) अब तुम... यहाँ से जा सकती हो...
रुप - जी... जैसी आपकी मर्जी...

रुप कमरे से निकल जाती है l भैरव सिंह एक कुर्सी खिंच कर नागेंद्र के बगल में बैठ जाता है l रुप ने उसे एक तरह से गुस्सा दिला गई थी l इसलिए पहले वह खुद को नॉर्मल करता है फिर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र गहरी गहरी साँसें ले रहा था l

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... अगर आप नाराज हैं... की परसों की बातेँ ही नहीं... बल्कि इन कुछ दिनों में जो भी कुछ हुआ... हमने आपसे जिक्र नहीं किया... तो आपकी नाराजगी जायज है... पर हम... रुप के मन में... थोड़ा डर बिठाना चाहते थे... और यह दिखाना चाहते थे... हम जब चाहें... उसकी किस्मत को... ठिकाने लगा सकते हैं... बाकी कुछ ऐसे लोग थे... जिन्हें हम सबक पढ़ाना चाहते थे... (उठ जाता है और बिस्तर के छोर पर आकर खड़ा होता है) थोड़ा गलत तो हुआ... पर... असल में... हम चाहते थे... विश्व... इतना मजबूर हो जाए... वह रुप नंदिनी के लिए... खुल कर सामने आ जाए... पर ऐसा... हो नहीं पाया... हम इस शादी की आड़ में... केके को ठिकाने लगाना चाहते थे... बस वही हो गया...

इतना कह कर भैरव सिंह चुप हो कर नागेंद्र की ओर देखता है l नागेंद्र की होंठ खुले थे लार बहती जा रही थी और आँखे नम थीं l क्यूँकी उसे एहसास हो रहा था, विश्व और रुप की चोरी की शादी और उसमें उसीके परिवार का शामिल होने के बारे में भैरव सिंह या उसके आदमियों को कुछ भी मालूम नहीं है l और सबसे अहम बात यह कांड क्षेत्रपाल महल की परिसर में पुलिस की देख रेख में हुआ था l रुप ने सच कहा था नागेंद्र ना सिर्फ लाचार था और बेबस भी था l सब जानते हुए भी भैरव सिंह को अवगत नहीं करा सकता था l इसलिए नागेंद्र की आँखे नम थीं l नागेंद्र अपनी आँखे बंद कर लेता है l भैरव सिंह समझता है, विश्व ने जिस तरह से उसकी सोच को मात दे कर केके को छुपा दिया वह भी उसीकी महल में, शायद इसी बात से नागेंद्र दुखी है l कमरे से बाहर आता है कुछ नौकरों को नागेंद्र के पास जाने की हिदायत दे कर अपनी रणनीतिक कमरे की ओर जाता है l बीच रास्ते में भीमा आकर सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - क्या बात है...
भीमा - दारोगा आया है... आपसे मिलने...
भैरव सिंह - तुमने वज़ह पूछी...
भीमा - जी हुकुम... वह केके के बारे में कुछ बताने आया है...


भैरव सिंह अपनी भौंहे सिकुड़ कर सोचने लगता है फिर अपना सिर हिला कर दीवान ए आम कमरे में जाता है l भीमा उसके पीछे पीछे चल देता है l कमरे में पहुँच कर देखता है दास एक आदम कद फोटो के सामने खड़ा था l वह भैरव सिंह की फोटो थी जिसमें भैरव सिंह हाथ में गन लिए एक मरे हुए शेर के सिर पर पैर रख कर खड़ा था l आहट पा कर दास पीछे मुड़ता है l

भैरव सिंह - कहो इंस्पेक्टर... कैसे आना हुआ...
दास - आपने... कल सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी थी... और अपने वक़ील के हाथों... अदालत में... दोपहर को... हम ही पर... नाकारी का इल्ज़ाम लगवा दिया..
भैरव सिंह - कुल इंस्पेक्टर कुल... लगता है... बहुत गर्म हो रहे हो... भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - जरा पंखा तेज चालाओ... इतनी तेज चालाओ.. के आज इंस्पेक्टर साहब की गर्मी उतर जाए... (भीमा कमरे में लगे सारे पंखे चला देता है) बैठिए... इंस्पेक्टर साहब... (कह कर भैरव सिंह बैठ जाता है)
दास - माफ़ कीजिए राजा साहब... जब मैं ड्यूटी पर होता हूँ... तब किसी के साथ... बैठ नहीं सकता... खास कर वह अगर... कोर्ट में मुल्जिम हो...
भैरव सिंह - अच्छा... तो अब आप ड्यूटी पर हैं... कहिये.. कौनसी ड्यूटी बजाने आए हैं...
दास - फिलहाल तो आपकी बजाने आया हूँ...
भैरव सिंह - (कुर्सी की आर्म रेस्ट को कसके पकड़ लेता है) इंस्पेक्टर...
दास - आई मीन... आप ही की ड्यूटी बजाने आया हूँ... आपने परसों अदालत में... प्रधान के हाथों... बड़ी चालाकी से... क्या झूठ बोला... शादी नहीं... मंगनी थी... मंगनी से केके की गुमशुदगी में... पुलिस को गवाह बना दिया... और जज ने भी... आपकी केस में सुनवाई की एक्सटेंशन के लिए... हमसे रिपोर्ट माँग की है...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... गलत क्या कहा है... आप ही के सामने तो केके गायब हुआ है...
दास - ना... हमारे आँखों के सामने नहीं... आपके महल के भीतर से... जिसकी सिक्युरिटी... आप ही के प्रबंधन में थी... हम तो... बाराती थे... बारात को... महल के द्वार तक पहुँचाना ही हमारा जिम्मा था...
भैरव सिंह - फिर भी आप जानते हैं... आपने तो ढूँढा भी था... कमरे में क्या... केके बाथरुम में भी नहीं मिला था...
दास - कमरे में नहीं मिला... बाथरुम में भी नहीं मिला... पर इसका मतलब यह तो नहीं... के केके... उसी कमरे में था... महल में पच्चीस से ज्यादा कमरे हैं... क्या पता... आपने ही उसे किसी और कमरे में बंद कर दिया हो... और पुलिस को गुमराह कर रहे हों...
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर... (गुर्राते हुए) यह बताओ... केके के बारे में... क्या जानकारी लाए हो...
दास - अरे जानकारी कहाँ... तहकीकात तो अब शुरु होगा... उसके लिए... मैं खास ऑर्डर लेकर आया हूँ...
भैरव सिंह - (भौंहे सिकुड़ कर) खास ऑर्डर...
दास - जी राजा साहब... आपकी एफआईआर को हमने बहुत सीरियसली लिया है... हमारे पास जो भी सबूत थे... उन्हें अदालत में पेश कर... केके को ढूंढने के लिए... खास परमिशन ले ली है... (कह कर एक काग़ज़ अपनी जेब से निकालता है) उस दिन महल की सेक्यूरिटी... आप ही की... ESS के गार्ड्स और उनका इनचार्ज अमिताभ रॉय कर रहा था... इसलिए जब तक सबकी पूछताछ नहीं हो जाती... तब तक यह लोग आपके महल की पहरेदारी नहीं कर सकते...
भैरव सिंह - (कुर्सी से उठ खड़ा होता है) ह्व़ाट डु यू मीन... यह महल है... क्षेत्रपाल महल... तुम इस महल की सिक्युरिटी हटाने की बात कर रहे हो...
दास - जी राजा साहब... पर यकीन रखिए... उनसे केवल पूछताछ होगी... उसके बाद ही कोई निष्कर्ष निकलेगा... केके जी का अगवा हुआ है... या भाग गए हैं... (काग़ज़ को भैरव सिंह के हाथ में देते हुए) आप चाहें तो... एडवोकेट प्रधान से... वेरीफाए कर सकते हैं...

भैरव सिंह काग़ज़ लेकर पढ़ता है और दास की ओर देखता है l दास के चेहरे पर किसी भी तरह का कोई भाव नहीं दिख रहा था l

भैरव सिंह - तो फिर इस महल की सिक्युरिटी...
दास - हम हैं... पब्लिक सर्वेंट... मैं दो कांस्टेबलों को... आपकी महल की सिक्युरिटी के लिए कह दूंगा... (भैरव सिंह की मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, दांत के पीसने से कड़ कड़ की आवाज़ आने लगती है)
भीमा - हुक्म... आप कहें तो... इसे यहीँ महल में जिंदा गाड़ दूँगा...
दास - (भीमा के तरफ पलटता है) ओले ओले ओले... तेरे को गुस्सा आया... मैं यहाँ पूरी बंदोबस्त करके आया हूँ... पिछली बार की बातेँ भूल गया क्या... (भैरव सिंह के तरफ मुड़ कर) राजा साहब... आपकी सारी सिक्युरिटी टीम.. क्षेत्रपाल महल से दूर... रंग महल में रहेगी... चूंकि लोग बहुत हैं... हम लॉकअप में नहीं रख सकते... और जब तक... उनसे पूछताछ पूरी नहीं हो जाती... तब तक... इस महल के आसपास.. कोई दिखना नहीं चाहिए... बड़े राजा जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में... दो ज़न रात को... राजकुमारी जी की देख भाल के लिए... दो जन दिन में और दो जन रात को... आपके लिए... थोड़ा रिलैक्स है... आप चार चार जन रख सकते हैं... रसोई के लिए भी चार चार लोग शिफ्ट के हिसाब से... और महल की सुरक्षा की आप चिंता मत कीजिए... इतने दिनों में... इतना जो जान ही गया हूँ... राजगड़ में सुरक्षा महल को नहीं... बल्कि... राजगड़ को महल वालों से... चाहिए... फिर भी... मैं दो दो कांस्टेबल डिप्लॉय कर दूँगा... आई थिंक... आप सब समझ गए...
भैरव सिंह - अच्छी... तरह से...
दास - तो ठीक है... मैंने आपको जो हमारी एसओपी दे दिया है... उसे आप फॉलो कर... मुझे खबर कीजिए... उसके बाद... मैं रिपोर्ट की तैयारी करूँगा... (मुड़ कर जाने लगता है, तभी कमरे में बल्लभ प्रवेश करता है l बल्लभ को देख कर भैरव सिंह दास को रोकता है)
भैरव सिंह - एक मिनट... (दास रुक जाता है) तुमने कोर्ट से यह ऑर्डर कैसे हासिल की...
दास - ओ... तो वकील साहब को देख कर... आपके मन में यह प्रश्न ऊँघा...
बल्लभ - कैसा ऑर्डर राजा साहब...


भैरव सिंह वह काग़ज़ बल्लभ को थमा देता है l बल्लभ उस ऑर्डर को देख कर हैरान होता है और दास से पूछता है l

बल्लभ - यह.. यह ऑर्डर कब ली...
दास - वकील साहब... आप लीगल एड्स वाईरस हैं... आई मीन एडवाइजर हैं... आप पैवेलियन में रह कर कमेंट्री कर सकते हैं... असली खेल तो... मैदान में खिलाड़ी खेलता है... आप भूल रहे हैं... कोऑपरेटिव सोसाईटी की केस में... ईंवेस्टीगेशन इंचार्ज... एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट नरोत्तम पत्री हैं... उनकी भी अपनी एडमिनिस्ट्रेटिव पावर हैं... जिनको एक्जीक्युट कर के... कोर्ट की ऑर्डर की बेस पर... यह ऑर्डर ले लिया गया... (बल्लभ एक झिझक भरी नजर से भैरव सिंह को देखता है)
भैरव सिंह - तो इस ऑर्डर के पीछे का खिलाड़ी... विश्वा है...
दास - वाह... राजा साहब... वाह... ओके... अब मैं चलता हूँ... (फिर से जाने को होता है, इस बार भी भैरव सिंह की आवाज़ सुन कर रुक जाता है)
भैरव सिंह - दास... तुम्हें नहीं लगता... तुम बहुत तेजी से भाग रहे हो... उस रास्ते पर... जो बहुत फिसलन भरा है... जिसे विश्वा ने बनाया है... (एक पॉज लेकर) कभी भी... गिर सकते हो... मुहँ के बल... जब उठने की कोशिश करोगे... कमर टूट चुकी होगी...
दास - (मुस्करा कर) राजा साहब... अब लगता है... मुझे कुछ देर के लिए... ड्यूटी से बाहर जाकर बात करनी चाहिए... (भैरव सिंह के सामने एक कुर्सी के सामने आ जाता है) क्या मैं अब... बैठ सकता हूँ... (भैरव सिंह कुछ नहीं कहता पर फिर भी दास बैठ जाता है) राजा साहब... मैं अब आपसे जो कहूँ... उसे ध्यान से... सुनिएगा... और गौर कीजिएगा... विश्वा गिरफ्तार हो चुका था... रुप फाउंडेशन के केस में... जैल में अपनी सजा काट रहा था... तब आपकी और ओंकार चेट्टी की दोस्ती परवान चढ़ रही थी... प्रत्यक्ष राजनीति में आपकी दखल बढ़ने लगी थी... तब लगभग... पाँच साल पहले... जगत पुर के मस्जिद से... कुछ लोग... चीनी माउजर और कुछ असलाह बारुद के साथ गिरफ्तार हुए थे... उन्हें भुवनेश्वर सेंट्रल जैल मैं रखा गया था... एक स्पेशल सेल बना कर उसमें रखा गया था... उन्हें मिडिया आतंकवादी कह कर प्रचार कर रहा था... उस समय... आपकी सलाह पर... तत्कालीन मुख्यमंत्री जी नेतृत्व में... भुवनेश्वर में... वाइब्रेंट भुवनेश्वर का आयोजन किया गया था... याद है... (कमरे में दास जिस अंदाज से कह रहा था, खामोशी के साथ सब सुन रहे थे l ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों उस कमरे में दास के सिवा कोई है ही नहीं l एक पॉज लेकर) याद होगा ही... उसी दिन... जैल पर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ... पर अफसोस... उस जैल मैं कैद आतंकी के साथ... उसे बचाने आए सभी आतंकी... पुलिस की काउंटर अटैक में मारे गए...
भैरव सिंह - तुम कहानी कह रहे हो... या बकचोदी कर रहे हो...
दास - पुलिस वालों को... उस आतंकी हमले को नाकाम करने के लिए... वाह वाही.. प्रमोशन और मेडल मिला... पर असल में... उस वाह वाही या.. मेडल का असली हकदार... विश्व प्रताप था... (भैरव सिंह और बल्लभ की आँखें चौड़ी हो जाती है) एक अकेले विश्वा ने... ना सिर्फ सारे आतंकीयों को.. खत्म किया.. बल्कि पुलिस कैजुअल्टी को जीरो किया... पर बदले में... ना नाम लिया... ना इनाम... हमने कोशिश भी बहुत की... उसे नाम... पहचान और इनाम देने के लिए... पर उसने एक बात कहा था... उमाकांत सर जी की गवाही... झूठी ना हो जाए... उनके लिए ही... सजा पूरी करना चाहता है...
भैरव सिंह - इस कहानी का मतलब क्या है... इंस्पेक्टर...
दास - हमने एक इंक्वायरी कमिटी बैठाई थी... जिसमें हमें यह मालूम हुआ था... के वे लोग.. जो आतंकी की पहचान लिए मरे... सब आप ही के आदमी थे... आपने.. चेट्टी के बेटे... यश के साथ मिलकर... ईलीगल ड्रग्स तस्करी किया करते थे... मामला बहुत ऊपर तक पहुँचा था... पर चूँकि आपके पास... कुछ ऑफिसरों के... सीडी वगैरह था... धीरे धीरे केस को... दबाव के चलते डायल्युट हो गया था... उसके बाद... आपकी और चेट्टी के रिश्ते में दरार आई... और यह ड्रग्स का धंधा भी बंद हो गया...
बल्लभ - इस कहानी का... इस केस से क्या मतलब है दास बाबु...
दास - मैंने विश्वा की लकीर को बढ़ते देखा है... वह जब कुछ भी नहीं था... अकेला था... तब आपकी धंधे की वाट लगा चुका है... तो आज वह क्या कर सकता है.. यह सोचिए...
बल्लभ - कुछ नहीं कर सकता वह... जब सिस्टम और सरकार हमारी जेब में है...
दास - पूरी तरह से नहीं... जैसे कि मैं... सिस्टम में हूँ... पर सच्च के साथ हूँ... और विश्वा... सच के साथ खड़ा है... वक़्त बदलता है... राजा साहब...
भैरव सिंह - फिर भी... क्या कर लोगे...
दास - राजा साहब... एक वक़्त था... जब विश्वा दिन रात... आपके बारे में सोचता था... पर आज देखिए... आप... आपका पूरा कुनवा... विश्वा के बारे में... दिन रात सोच रहे हैं... राजा साहब... विश्वा आपके दिमाग में... जिंदगी में... हर एक जगह में घुसा हुआ है... बेस्ट ऑफ लॉक...

कह कर दास अपनी जगह से उठ जाता है और बाहर की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के कानों में दास के आखिरी लफ्ज़ गूँज रहा था l एक गहरी साँस लेकर अपनी कुर्सी से उठता है और तेजी से उस कमरे की ओर जाता है जिस कमरे में केके शादी के समय कपड़े बदलने गया था l पीछे पीछे भीमा और बल्लभ भागते हुए जा पहुँचते हैं l भैरव सिंह कमरे को अच्छी तरह से मुआयना करता है l फिर बालकनी जाकर नीचे की ओर देखता है, फिर मुड़ कर बाथरुम में जाता है और दीवार पर लगे आईने में झाँकता है फिर टैप खोल कर अपने मुहँ पर पानी की छींटे मारता फिर भीगे चेहरे से आईने को देखता है l फिर वह बाथरुम से निकल कर कमरे में आता है l कमरे में एक कुर्सी पर बैठ जाता है और हँसने लगता है, "हा हा हा हा हा... " उसकी हँसी देख कर भीमा और बल्लभ हैरान होते हैं l किसी अनहोनी की आशंका के चलते एक दुसरे की ओर देखने लगते हैं l थोड़ी देर के बाद बल्लभ हिम्मत कर के भैरव सिंह से पूछता है l

बल्लभ - राजा साहब...
भैरव सिंह - (हँसी तो नहीं रुकती पर धीमी हो जाती है और बल्लभ की ओर सवालिया नजर से देखता है)
बल्लभ - क्या कोई अनहोनी हो गई...
भैरव सिंह - हाँ प्रधान हाँ... विश्वा ने... हमारे घर... रिश्तों में.. और लोगों में घुसपैठ कर रखा है... अब हमारे समझ में आया... विश्वा... राजगड़ में.. कैसे कामयाब रहा...
बल्लभ - मैं कुछ समझा नहीं...
भैरव सिंह - सिस्टम में दो फाड़ है... एक हिस्सा.. विश्वा के लिए काम कर रहा है... और दूसरा हमारा... जिससे हम कम करवा रहे हैं... परिवार में घुसपैठ... तुम जानते हो... पर सबसे अहम बात... हमारे आदमियों में... उसके आदमी भी हैं... (भीमा और बल्लभ चौंकते हैं)
भीमा - क्या... हमारे आदमियों के बीच... विश्वा का आदमी... यह कैसे हो सकता है हुकुम...
भैरव सिंह - हो सकता है नहीं... हो गया है... जब से विश्वा गाँव लौटा है... उसका हर एक वार... सटीक बैठ रहा है... विश्वा कितनी आसानी से... अपना घर हासिल कर लिया... कैसे पंचायत ऑफिस में घुस कर... आसानी से... तुम सबको धो डाला... फिर... अनिकेत रोणा को... कितनी खूबी से... हमारे ही हाथों से हटा दिया... अब इस शादी में... कितनी आसानी से... केके के कमरे में... उसके बंदे पहुँचते हैं... और हमारी ही आँखों के नीचे से गायब कर देते हैं...
भीमा - पर... केके ग़ायब कहाँ हुआ... वह तो बाथरुम में बंद था... हमसे इंस्पेक्टर ने झूठ बोला... इसलिए हम ढूंढ नहीं पाए...
भैरव सिंह - हा हा हा हा...
बल्लभ - क्यूँकी... इंस्पेक्टर दाशरथी दास... विश्व के लिए राजगड़ आया है.... उसका दोस्त... उसका हमदर्द है...
भैरव सिंह - बिल्कुल... पर सवाल है... वह चार बंदे.. जिन्होंने केके को... ग़ायब किया... वह जो भी थे... महल में अंदर कैसे आए... उन्हें कैसे मालूम हुआ... केके कौन-से कमरे में है... क्या बिना किसी अंदर वाले की मदत से... यह मुमकिन था...

कमरे में सन्नाटा छा जाती है l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है l भीमा की हलक सूखने लगता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी.. जी... हु.. हुकुम...
भैरव सिंह - महल के बाहर की पहरेदारी... रॉय की जिम्मे थी... पर अंदर की...
भीमा - हुक... हुकुम... हमारे सारे आदमी वफादार हैं... सबको हमने परखा हुआ है...
भैरव सिंह - आपने सारे परखे हुए आदमियों को बुलाओ....

भीमा उल्टे पाँव बाहर जाता है l उसके जाते ही भैरव सिंह उठ खड़ा होता है और बल्लभ की ओर देख कर कहता है l

भैरव सिंह - प्रधान...
बल्लभ - जी राजा साहब..
भैरव सिंह - एक सिस्टम... कभी अगर अपडेट ना किया गया हो... तो वह सिस्टम... एक ना एक दिन... करप्ट हो ही जाता है...
बल्लभ - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - विश्वा हम पर हावी इसलिए नहीं हो पाया... के हम पुरानी सिस्टम में सड़ रहे थे... बल्कि हमारी सिस्टम में... विश्व ने वाईरस डाल दिया था... अब वक़्त आ गया है... सिस्टम को अपडेट... नहीं तो... अपग्रेड करना पड़ेगा...
बल्लभ - राजा साहब.... क्या आपको पता चल गया है... वह कौन था... जिसने... दुश्मन के लिए... अंदर से... दरवाजा खोला था...
भैरव सिंह - हाँ... प्रधान... अब तुम भी उसे पहचान जाओगे... और समझ जाओगे...

बल्लभ यह सुन कर चुप हो जाता है l थोड़ी देर बाद भीमा अपने सारे लोगों के साथ कमरे में आता है l उन्हें देख कर भैरव सिंह भीमा से पूछता है l

भैरव सिंह - क्या सब आ गए...
भीमा - नहीं पर यह सारे मेरे बंदे हैं... बाकी जो भी हमसे जुड़ा हुआ है... सबको यही देखते हैं..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... सोच समझ कर जवाब दो... क्या तुम्हारे सभी आदमी आ गए हैं...
भीमा - जी सिर्फ सत्तू नहीं दिख रहा है... लगता है... रंग महल में... केके साहब का अंजाम देख कर... किसी ठर्रे की दुकान में... लुढ़का हुआ होगा...

भैरव सिंह के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है और वह बल्लभ की ओर देखने लगता है l बल्लभ की आँखे हैरत से फैल जाती है और मुहँ खुल जाती है l

बल्लभ - (भीमा से) यह सत्तू... तुम्हारे साथ कब से है... भीमा..
भीमा - यही करीब तीन... या साढ़े तीन साल से...
बल्लभ - वह इतनी जल्दी... तुम लोगों से जुड़ा... और इस काबिल भी हो गया... के तुम उससे... अपने साथ हर काम में... काम लेते रहे...

बल्लभ के इस सवाल पर भीमा का भी मुहँ खुला रह जाता है l वह शुकुरा और शनिया की ओर देखने लगता है l

बल्लभ - सत्तू... कहाँ है... शनिया...
शनिया - वह कल पीने जाएगा बोला था... पर कल से दिख नहीं रहा है... हमें लगा.... (चुप हो जाता है)
बल्लभ - क्या लगा...
शनिया - वकील बाबु... हम सत्तू पर कैसे शक कर सकते हैं... जब जब विश्वा से... लड़ाई हुई... वह हमारे साथ... कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था...
बल्लभ - ठीक है... तुम्हारी बात मान लेते हैं... पर... तुममें से जब भी कोई विश्वा के हाथों पीटा... क्या सत्तू को भी... विश्वा के हाथों पीटते... देखा...



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वैदेही की दुकान में सत्तू बैठा हुआ था l उसके इर्द गिर्द विश्व और उसके साथी घेर कर बैठे हुए थे l

वैदेही - (सत्तू से) तो... तुझे लगता है... महल में तेरी पोल पट्टी खुल चुकी होगी...
सत्तू - हाँ...
सीलु - नहीं... मुझे नहीं लगता...
सत्तू - राजा को दूर से ही सही... जितना देखा है... जितना आंका है... इतना तो कह सकता हूँ... उस जैसा गलीच... नीच... काईंया... कमीना... कोई नहीं हो सकता...
विश्व - तब तो... तुझे राजगड़ ही नहीं... यशपुर भी छोड़ कर चले जाना चाहिए...
सत्तू - नहीं... मेरे पास... भागने के लिए... कोई वज़ह है ही नहीं...
वैदेही - पर तु रहेगा कहाँ...
सत्तू - दीदी... मुझे तुम अपना नौकर रख लो... मैं बर्तन माँज लूँगा... टेबल साफ कर दिया करूँगा...
वैदेही - फिर भी... तेरी जान को खतरा है...
सत्तू - जानता हूँ... भैरव सिंह अब चोट खाया हुआ सांप है... पर मेरे पास... जीने के लिए वज़ह भी तो होना चाहिए... मैं तो बदला लेने... उसे मारने के लिए... भीमा और शनिया से जुड़ा... पर... महल के भीतर... साढ़े तीन साल में... इन्हीं कुछ दिनों में जा पाया... पर तब भी... मैं उसके आसपास फटक भी नहीं पाया...
विश्व - ऐसा क्यूँ सोच रहा है... तुने बदला नहीं लिया... राजा से उसके खास आदमी... इंस्पेक्टर रोणा को मरवाया... भीमा के साथ रह कर... ना जाने कितनी बार... राजा को मुहँ की खाने पर मजबूर कर दिया... और अब... केके...
टीलु - हाँ राजा ने कभी सोचा भी नहीं होगा... जिस आस्तीन को अपनी बांह में चढ़ाया है... उसी आस्तीन ने उसके बांह को काट दिया है...
मीलु - हाँ... हम सब बस अनुमान लगा रहे हैं... के राजा को पता चल गया होगा...
जिलु - हाँ... तुझे बिल्कुल यहाँ नहीं आना चाहिए था... मैं तो कहता हूँ... उन्हें शक़ होने से पहले... तुझे महल वापस चले जाना चाहिए...
विश्व - नहीं... अगर मन में बात उठी है... तो कहीं ना कहीं सच होगी... अगर सत्तू को कुछ हो गया... तो हम लोग भी... खुद को माफ नहीं कर पाएंगे...
सत्तू - मुझे मेरी फिक्र नहीं है विशु भाई... मैं बस मरने से पहले... राजा का दर्दनाक अंत देखना चाहता हूँ... अभी भी मरने को तैयार हूँ... अगर परसों... विशु भाई और राजकुमारी जी की शादी की बात खुल जाती... तो भैरव सिंह के लिए.. शर्मनाक और दर्दनाक जरूर होती...
वैदेही - तुम्हीं ने अभी बताया ना... भैरव सिंह बहुत कमीना है...
सत्तू - हाँ..
वैदेही - तो समझ लो... अभी वक़्त आया नहीं...
टीलु - पर क्यूँ दीदी... हमें वह दिमागी तौर पर दबाना चाहता है... यह बात सामने आ जाती... तो भैरव सिंह दिमाग से और भी कमजोर हो जाता...
वैदेही - नहीं... तुम लोग भैरव सिंह को नहीं जानते... जितना मैं जानती हूँ... (एक गहरी साँस लेती है फिर) रंग महल में जब... मुझे रौंदा जा रहा था... तब बीच बचाव करने मेरी माँ आई थी... तब मेरी माँ ने पूछा था क्यूँ... भैरव सिंह ने जवाब दिया था... जिस पेड़ को वह लगाया है... उसका फल खाना उसका हक् बनता है... तब मेरी माँ ने उसे ललकारते हुए... नंदिनी की बात छेड़ी थी... जिसे सुनने के बाद... भैरव सिंह ने... मेरी माँ को मेरे ही आँखों के सामने मार डाला था... (वैदेही का चेहरा सख्त हो जाता है और दर्द भी झलकने लगता है पर आँसू नहीं निकलते) (वैदेही की अतीत सामने आते ही विश्व की जबड़े भिंच जाती हैं, एक पॉज लेकर) आज नंदिनी... सुरक्षित महल में इसलिए है... क्यूँकी अभी तक भैरव सिंह को गुमान है... की नंदिनी भैरव सिंह की बेटी है... जिस दिन उसे मालूम पड़ा कि नंदिनी... विशु की पत्नी है.. तब उसके मन से... नंदिनी के लिए... जो कुछ भी भावना है... सब कुछ खत्म हो जायेगा... राजा अपनों के लिए कुछ करे ना करे... पर जिससे दुश्मन मान लेता है... उसके लिए... वह... (चुप हो जाती है)
सत्तू - ओ... माफ करना दीदी... पर अभी भी... राजकुमारी जी का महल में रहना कहाँ तक ठीक है...
वैदेही - इस केस में विशु की ही जीत होगी.. यह सबको मालूम है... राजा को भी... और कम से कम तब तक... नंदिनी एक बेटी की तरह... उस महल में रहना चाहती है... रहना भी चाहिए...
सत्तू - ठीक है दीदी... आपने सोचा है... तो ठीक ही सोचा होगा...
वैदेही - हाँ... और मैंने यह भी सोचा है कि तुम अभी विशु के साथ... बच्चों के लिए जो लाइब्रेरी बनाया गया है... वहीँ पर कुछ दिन के लिए छुप जाओ...
सत्तू - छुपना... क्यों दीदी...
सीलु - अबे ढक्कन... तु छुपा रह... तु भी सलामत रहेगा... और दीदी भी सलामत रहेगी... समझा...
विश्व - तुम सब चुप रहोगे... (सत्तू से) एक काम करो... तुम अब.. मेरे साथ... उमाकांत सर के घर चलो... फ़िलहाल के लिए... बाद में सोचते हैं... क्या करना होगा...
वैदेही - हाँ यही सही रहेगा.. तुम विशु के साथ जाओ.... हम थोड़ा जायजा लेते हैं... तुम्हारा राजगड़ में रहना... तुम्हारे लिए कितना हानिकारक हो सकता है...

सत्तू उठ नहीं रहा था l विश्वा उसे ज़बरदस्ती अपने साथ खिंच कर दुकान से ले जाता है l उनके जाने के बाद सीलु वैदेही से पूछता है l

सीलु - दीदी... इस सत्तूका क्या इतिहास है... और इसे आप... कब से जानती हैं...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ती है) तुम लोग विशु के अतीत को कितना जानते हो...
टीलु - शायद... सब कुछ... इसलिये तो हम समझ नहीं पाए... हमारे मैदान में... सत्तू कबसे खेल रहा था... वह भी मिस्टर एक्स बन कर...
जिलु - हाँ... हम सब डेढ़ सालों से लगे हुए थे... पर कभी इसे नहीं पहचान पाए...
वैदेही - वह इसलिए... की सत्तू की कहानी... पाँच साल पहले शुरु होती है... और उसको राजा से... अपने प्यार का बदला चाहिए था... इसलिए वह भीमा से जुड़ गया था...
सब - क्या...
वैदेही - हाँ... इसलिए पुछा... विशु के अतीत को कितना जानते हो...
सीलु - दीदी आप बताती जाओ... हम देखते हैं... हमें क्या पता नहीं है...
वैदेही - दिलीप कुमार कर... मानीया गाँव का सरपंच था...
सब - हाँ हम जानते हैं...
वैदेही - उसकी सबसे छोटी बेटी... जिसकी बलि... क्षेत्रपाल महल की रस्म में ले ली गई थी..

वैदेही बताती है कि वह साढ़े पाँच साल पहले जब विश्व से मिलने भुवनेश्वर जा रही थी विश्व की ग्रैजुएट होने पर बधाई देने जा रही थी l बस स्टैंड में दिलीप कुमार कर की बीवी कल्याणी उसे रोक कर कैपिटल हस्पताल लेकर जाती है जहां दिलीप कर अपनी आखरी साँस ले रहा था l वहीँ पर वैदेही को मालूम होता है कि कैसे भैरव सिंह ने अपना काम निकल जाने के बाद दिलीप कर को छोड़ दिया था l जिसके वज़ह से दिलीप कर लकवा ग्रस्त हो गया था l उसके इलाज के वक़्त उसकी बड़ी बेटी और बेटा सारी दौलत लेकर भाग गए थे l जब उसकी पत्नी कल्याणी भैरव सिंह से मदत माँगने गई थी तब भैरव सिंह ने उसकी छोटी बेटी को विक्रम के क्षेत्रपाल बनने की रस्म की भेट चढ़ा दी गई थी, और वहीँ पर दिलीप कर से मालूम हुआ था कि जयंत राउत जी की हत्या यश ने की थी l और सत्तू वही लड़का था जिसकी शादी दिलीप कर की बेटी से तय हुई थी पर दिलीप कर की जान बचाने के लिए रंग महल की रस्म के बदले पैसा लाकर अपनी माँ को दिया था और हमेशा के लिए रंग महल में रह गई थी l सत्तू उस वक़्त हस्पताल में इनकी देखरेख कर रहा था l दिलीप कर के मौत के बाद उसकी बेटी को वापस पाने के लिए भीमा के गिरोह में शामिल होने के लिए बड़ी कोशिश की l उसे कामयाबी तीन साल पहले मिली l पर उसे एक दिन मालूम हुआ कि उसकी मंगेतर ने किसी कारण से आत्महत्या कर ली थी l उसीका बदला लेने के लिए ताक में था l वह भैरव सिंह को मार देना चाहता था l पर कभी इतना हिम्मत जुटा नहीं पाया l एक दिन वैदेही ने उसे शनिया के साथ पहचान लिया था l उसके बाद मौका मिलने पर वैदेही ने ही विश्व का साथ देने के लिए राजी कर लिया था l सब सुनने के बाद

सीलु - ओ... पर दीदी यह गलत बात है...
वैदेही - क्या गलत है...
मीलु - हाँ... आपको हमें उसके बारे में कह देना चाहिए था... और उसको हमारे बारे में...
वैदेही - उसे... सिर्फ विशु के बारे में पता था... और विशु को उसके बारे में... एक वही था... जो हमें खबर कर देता था... की भैरव सिंह किसको... हमारी जासूसी करने भेजा है... विशु उसी हिसाब से अपनी तैयारी कर लेता था...
टीलु - तो यह विशु भाई की गलती है... विशु भाई को हमें बता देना चाहिए था...
वैदेही - तुम लोगों को तब बताया गया... जब जरूरत हुई... तुम लोगों के बारे में भी तो... विशु ने मुझे बहुत देर बाद कही थी... (चारों चुप हो जाते हैं) विशु को... सबकी फिक्र रहता है... जिस बात को जब खोलना है... तब खोलता है... क्यूँकी अगर सारी बातेँ खुल जाए... तो पता नहीं किस पर क्या खतरा हो जाए...

तभी शनिया, शुकुरा अपने कुछ साथियों के साथ वैदेही के दुकान पर आते हैं l वैदेही के साथ इन चारों को देख कर थोड़ा ठिठकते हैं l

शनिया - सत्तू कहाँ होगा...
वैदेही - अपनी अम्मा से जाके पूछ ना...
शनिया - देख हमें खबर है... वह यहाँ आया हुआ था... इसलिए तुझे... प्यार से पूछ रहे हैं...
सीलु - दीदी नहीं कहेगी... तो क्या उखाड़ लोगे बे...
शनिया - ओ... विश्वा ने तेरी वकालत करने के लिए... अपने कुत्ते छोड़ रखे हैं... (चारों उठ खड़े हो जाते हैं) (वैदेही उन्हें हाथ दिखा कर शांत रहने के लिए इशारा करती है)
वैदेही - शनिया... यह तु भी जानता है... मैं एक अकेली तुम लोगों के लिए काफी हूँ... इन्हें ललकार मत... वर्ना तु आया मर्दाना लिबास में... पर जाएगा... जनाना कपड़ों में...
शुकुरा - देख वैदेही... हम बस इतना जानने आए हैं... सत्तू यहाँ आया था या नहीं... अगर आया था... तो अब कहाँ गया...
वैदेही - यह एक दुकान है... दिख नहीं रहा है क्या... यहाँ तेरी तरह लोग आते हैं और चले जाते हैं... वह भी आया था... चला गया... अब कहाँ गया... उसे मुझे क्या...
शुकुरा - देख वैदेही... बात राजा सहाब की है... उसने राजा साहब से गद्दारी की है... राजा साहब.. उसे ढूंढने और उनके सामने पेश करने के लिए कहा है...
शनिया - हमें खबर मिली थी... सत्तू कुछ देर पहले तेरे दुकान में था... इससे पहले कि राजा साहब का गुस्सा तुम और तुम्हारे भाई पर उतरे... बेहतर होगा कि तु सत्तू का पता बता दे...
टीलु - ओए ढक्कनों... इतनी जल्दी भूल गए... तुम्हारे राजा जिस कुर्सी पर बैठ कर तुम लोगों को हांकता है ना.. दीदी ने उसे तुम लोगों के आँखों के सामने राजा को उसी कुर्सी से उतारकर... खुद बैठी थी और तुम्हारे राजा को हांकी थी...
मील - हाँ यह सारे गुड़ गोबर... जल्दी भूल जाते हैं... कहो तो हम अभी के अभी याद दिला दें...
शनिया - बस वैदेही... हम सब समझ गए... हमें बस शक़ था... तुमने उसे यकीन में बदल दिया... कोई नहीं... वैसे भी तुमसे मेरा पुराना हिसाब बाकी है... (कह कर अपने चेहरे पर एक कटे दाग पर हाथ फेरता है) एक दिन... सूद समेत लौटाऊंगा...


तभी सब विश्व को आते देखते हैं l वे लोग धीरे धीरे खिसक जाते हैं l विश्व दुकान पर पहुँच कर शनिया और उसके गुर्गों को जाते हुए देखता है l फिर अपनी दीदी और दोस्तों को देख कर पूछता है

विश्व - यह किस लिए आए थे...
वैदेही - सत्तू की सच्चाई को.. पक्का करने आए थे...
विश्व - इसका मतलब... सत्तू सही समय पर... महल से निकल गया...
वैदेही - हाँ...
सीलु - और भी कुछ हुआ है विश्व भाई... (विश्व सीलु की ओर देखता है)
वैदेही - कुछ नहीं हुआ है... तुम लोग खामख्वाह... बात का बतंगड बना रहे हो...
विश्व - टीलु... क्या हुआ...
टीलु - शनिया... अपना पुछ लेकर आया था... दीदी को धमकी देकर गया है... यह बात और है... तुमको देखते ही... अपनी दुम दबा कर भाग गया... (शनिया जिस रास्ते लौट गया था विश्व की नजर वहाँ पर टिक जाता है)
वैदेही - अब तु उस तरफ क्यूँ देख रहा है...
विश्व - मैं यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ... के इन्हें अपनी शक को पक्का करने के लिए... यहाँ क्यूँ आना पड़ा... क्यूँकी गाँव में हमारे सिवा... राजा का खिलाफत तो कोई करेगा नहीं... और जाहिर सी बात है... जो राजा के खिलाफ जाएगा... वह हमारे खेमे में होगा... फिर...
वैदेही - कुछ नहीं... यह उनकी खुजली है... जब होने लगती है... यहाँ आकर मिटा कर जाते हैं...
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) यह लोग राजा के खोटे सिक्के सही.... कायर हैं... बुजदिल हैं... उस पर... मक्कार है... जितनी सावधानी राजा से रख रहे हैं... उतनी ही इनसे भी रखना होगा...
वैदेही - यह लोग क्या हैं... मैं जानती हूँ... पिछले सात सालों से... इनसे लोहा ले रही हूँ... और आज अचानक तु... क्यूँ फिक्र मंद होने लगा है...
विश्व - दीदी... दुश्मन अगर बहादुर हो तो विश्वास किया जा सकता है... पर अगर कायर और मक्कार हो... तो सावधानी जरूरी हो जाता है... क्यूँकी ऐसे लोग... सामने से नहीं पीठ पर वार करते हैं...
वैदेही - अब तु मुझे समझायेगा... यह लोग कैसे हैं...
सीलु - ओ हो... अब तुम और दीदी किस बात पर बहस करने लग गए...
विश्व - देखो... इस बार मैं जब भी केस के सिलसिले में यशपुर जाऊँ... तब तुम लोग दीदी के पास रुकना...
मीलु - हाँ समझ गए... पर तुम शायद भूल रहे हो... गवाहों के लिस्ट में... हमारा भी नाम है...
जिलु - तो ऐसा करते हैं... हम जब भी यशपुर या कहीं भी बाहर जाएंगे... दीदी को साथ ले जाएंगे...
वैदेही - चुप रहो तुम लोग... यह क्या बहकी बहकी बातेँ करने लग गए... कुछ छछूंदर आए थे... चले गए... जो मेरे भाई को देख कर ही भाग गए... वह लोग क्या हो कर लेंगे... और हम यहाँ किस विषय पर बात कर रहे थे... और बात कहाँ जा रहा है...
विश्व - दीदी... मुझे तुम्हारी चिंता है...
वैदेही - मैंने कहा ना बस... (अपनी एक टेबल के ड्रॉयर खोल कर एक दरांती और दो हाथ लंबा कुल्हाड़ी निकालती है) अब तक... मैं इन्हें अपने साथ लेकर... इनसे लोहा ले रखा था... उनमें इतना भी दम नहीं है... इनसे पार पा जाएं... (वैदेही देखती है पाँचो उसे गौर से देख रहे थे, फर्क़ बस इतना था कि सिवाय विश्व के चारों बेवक़ूफ़ों की तरह मुहँ फाड़े देख रहे थे) क्यूँ टीलु...
टीलु - (होश में आता है) जी... जी दीदी...
वैदेही - (विश्व से) हमने अपनी जान बचाने के लिए... यह लड़ाई छेड़ी नहीं थी विशु... इस लड़ाई का मकसद अलग है... गाँव के हर जान में सोये हुए पुरुषार्थ को जगाना है... अगर इसके लिए... यह लड़ाई हमारी बलि ले भी ले...
विश्व - दीदी...
वैदेही - अरे बात तो पूरी करने दे... अगर इस बीच मुझे कुछ हो जाए... तब बिना मेरी बहु के... मेरी लाश को उठने मत देना..
विश्व - दीदी...

गुस्से से पैर पटक कर चला जाता है l वैदेही उसे आवाज देती रह जाती है l विश्व के चारों दोस्त वहीँ पर खड़े रह जाते हैं l विश्व के आँखों से ओझल होने के बाद पुलिस की गाड़ी आकर दुकान के आगे रुकती है l गाड़ी से दास उतरता है l

वैदेही - अरे दास बाबु... आप... अभी...
दास - जी... मैं विश्व से मिलने आया था...
वैदेही - वह तो अब... नदी किनारे गया होगा...
दास - अभी.. पर क्यूँ...
वैदेही - जब भी नाराज होता है... या परेशान होता है... ढलती सूरज की ओर देख कर खुद को शांत करने की कोशिश करता है..
दास - ओ अच्छा...
वैदेही - कोई खास काम था..
दास - जरूरी तो नहीं पर... केस के सिलसिले में... कुछ कहना था...
सीलु - आज आप बात ना ही करो तो अच्छा रहेगा... आज भाई का मुड़ बिगड़ गया है... (सीलु दुकान में जो हुआ कहने लगता है)
दास - बात तो उसने सही कहा है वैदेही जी... बहादुर और चालक दुश्मन अलग होते हैं... कायर और मक्कार अलग... बेशक राजा को अपनी हार दिख रहा है... पर यह भी सच है... जो जिंदगी... वह जिया है... उसे बचाने के लिए... हर कोशिश करेगा... किसी भी हद तक जाएगा... अभी तक विश्व की कोई कमजोरी.. राजा के हाथ नहीं लगी है... तो जाहिर है.. उसकी नजर... अब आप पर होगी...
टीलु - इंस्पेक्टर साहब... अगर बात इतनी ही गम्भीर है... तो हम दीदी के आसपास रहेंगे...
दास - हाँ... मैं एक काम करता हूँ... कांस्टेबल जगन को भी कह देता हूँ... वह भी आसपास रहेगा...
वैदेही - लो... अब आप भी...
दास - जी वैदेही जी... यह लड़ाई सबसे महत्त्वपूर्ण हैं... इसमें विश्व की हार होनी नहीं चाहए...
वैदेही - मैं मानती हूँ... पर...
दास - नहीं वैदेही जी... राजा हमेशा एक बात कहता है... या यूँ कहूँ के... मानता है... के उसके बराबर कोई नहीं है... बात सच है... विश्व की शख्सियत राजा से अलग है... विश्व जहां सच के लिए खड़ा है... वहीँ राजा... झूठ और अहं के लिए खड़ा है... विश्व बेशक शातिरपना अपनाता है... पर दिल से साफ है... वहीँ राजा... झूठ मक्कारी कमीनापन से शातिरपना अपनाता है...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

Ajju Landwalia

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👉एक सौ साठवाँ अपडेट
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विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l

विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...

कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l

विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...

विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l

विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...

रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है

विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...


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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l

भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...

ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l

भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...

कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद

भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...

इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l

रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...

भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है

भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...

सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l

भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...

सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...

केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l

बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...

सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l

केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...

यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...

केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l

भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...

यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है

केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...

इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l

भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...

भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l

भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...

भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l


केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...

तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l

भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...


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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l

ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...

कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l

ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...

विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद

ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..

तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
Mind Blowing, Superb, Amazaing

Maan gaye Kala Nag Bhai,

Kya mast update di..................gazab bhai.........maja aa gaya
 

dhparikh

Well-Known Member
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👉एक सौ साठवाँ अपडेट
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विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l

विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...

कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l

विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...

विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l

विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...

रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है

विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...


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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l

भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...

ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l

भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...

कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद

भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...

इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l

रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...

भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है

भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...

सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l

भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...

सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...

केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l

बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...

सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l

केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...

यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...

केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l

भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...

यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है

केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...

इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l

भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...

भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l

भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...

भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l


केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...

तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l

भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...


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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l

ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...

कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l

ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...

विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद

ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..

तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
Nice update....
 
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