• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
IMG-20211022-084409


*Index *
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
Intjaar kar rahe hai bhai

Intezaar rahega Kala Nag bhai....


Waiting for update

Waiting for the next update bro

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

Pratiksha hai
मित्रों
कल सुबह दस बजे पोस्ट करूंगा
कुछ एडिटिंग चल रही है
फाइनल आउट पुट कल पोस्ट कर पाउंगा
आज के लिए माफ कर दें
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,739
8,861
158
मित्रों
कल सुबह दस बजे पोस्ट करूंगा
कुछ एडिटिंग चल रही है
फाइनल आउट पुट कल पोस्ट कर पाउंगा
आज के लिए माफ कर दें
Intjaar kar siwa kar bhi kya sakte hai.....



Waiting eagerly
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
569
3,788
138
Merry Christmas Love GIF by Red and Howling
 
  • Like
Reactions: Ajju Landwalia

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
159
👉एक सौ अठारहवां अपडेट
-----------------------------


शाम ढल चुकी थी
रंग महल में के उद्यान में बड़े से दरी की शतरंज के बिसात के एक तरफ भैरव सिंह खड़ा है और दूसरी तरफ भीमा खड़ा है l चूंकि गोटीयाँ चालों के हिसाब से खानों पर जमे हुए हैं l दोनों तरफ चेहरे पर तनाव के भाव हैं पर कारण दोनों के अलग अलग हैं l भीमा अपनी चालें संभल कर चल रहा है कहीं कोई चाल भैरव सिंह के उपर भारी ना पड़ जाए l पर फिर भी आज भैरव सिंह मन में कुछ और सोच रहा है शायद, इसलिए उसकी चालें किसी खिलाड़ी के तरह नहीं ब्लकि किसी नौसिखिए की तरह खेल रहा है l जिससे भीमा बहुत परेशान हो रहा है और डर इतना के उसके पसीने छूट रहे हैं l अचानक भैरव सिंह गुर्राने लगता है,

भैरव सिंह - भीमा... आज तुम हमें हराओ...
भीमा - (हैरान हो कर भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - हम आज हारना चाहते हैं... इसलिए सही चाल चलो... अगर हरा दोगे... इनाम पाओगे... और अगर हार गए... तो सजा पाओगे...
भीमा - (कुछ कह नहीं पाता, बेवक़ूफ़ की तरह मुहँ फाड़े भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - अगर खेल नहीं सकते... जाओ किसी और को बुलाओ...
भीमा - जी हुकुम... (हकलाते हुए) मैं.. मैं खेलुंगा... मैं खेलुंगा हुकुम...
भैरव सिंह - ठीक है... अपनी चाल चलो...

अब भीमा जितने के लिए गोटियाँ चलाने लगता है l भैरव सिंह भी संभल कर खेलने की कोशिश करता है l धीरे धीरे खेल में भीमा भैरव सिंह पर हावी होने लगता है l भैरव सिंह के एक एक करके प्यादे, ऊंट घोड़े हाती बिसात से बाहर होने लगते हैं l ज्यूं ज्यूं खेल आगे बढ़ते जा रहा था त्यों त्यों भैरव सिंह का पारा चढ़ता जा रहा था l उधर भीमा खुश हो रहा था उसका एक घोड़ा दो ऊंट और वजीर बचे हुए थे पर भैरव सिंह के पास सिर्फ शाह बचा हुआ था और चलने के लिए सोलह खाने बाकी थे l ऐसे में भीमा अपना सिर उठा कर एक नजर भैरव सिंह को देखता है l उसके चेहरे से गुस्सा और नाराजगी को देखते ही भीमा की फटने लगती है l वह मन ही मन दुआ करने लगता है के किसी तरह यह खेल आगे ना बढ़े l कोई ऐसा चमत्कार हो जिससे यह खेल यहीं बीच में ही रुक जाए l उसकी किस्मत अच्छी थी l उस वक़्त एक गाड़ी उसी जगह पर पहुँचती है l भीमा भाग कर जाता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से पिनाक उतरता है l संभावित हार के तनाव से भैरव सिंह भी तमतमाया हुआ था l पिनाक को देख कर वह भी थोड़ा आश्वस्त होता है l पिनाक आँखों से कुछ इशारा कराता है जिसे भीमा भी देख लेता है पर उसे वह अनदेखा करना अपने लिए बेहतर मानता है l पिनाक और भैरव सिंह दोनों रंग महल के अंदर मैयखाने के अंदर जाने लगते हैं l पीछे पीछे भीमा भी चलने लगता है तो

भैरव सिंह - तुम यहीँ पर रुको भीमा.... जब बुलाया जाए... तब अंदर आ जाना...
भीमा - जी... जी हुकुम...

कह कर भीमा वहीँ रुक जाता है l अब दोनों क्षेत्रपाल रंग महल के मैय खाने की ओर बढ़ने लगते हैं l

भैरव - (चलते हुए) तो.. अब बड़े राजाजी की तबीयत कैसी है...
पिनाक - अब ठीक है... दौरा जोर का पड़ा था...
भैरव - ह्म्म्म्म...

दोनों मैयखाने में पहुँचते हैं l वहाँ पर एक टेबल पर पहले से ही शराब के बोतल और ग्लास सजे हुए थे l दोनों अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं l पिनाक पेग बना कर भैरव सिंह को देता है और खुद भी लेता है l

पिनाक - आपने सुबह समझा दिया... तो हमें लगा... बड़े राजा जी... समझ गए... पर विश्व अपनी हरकत से बड़े राजा साहब के दिल व दिमाग पर चोट कर गया था... इसलिए उसी बात को बार बार अपनी जेहन में सोच सोच कर... उनकी बीपी एबनॉरमल हो गई...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - (अपनी दांत पिसते हुए) यह... यह विश्वा ने... ठीक नहीं किया... बड़े राजा जी की ओर... अपना जुते रख कर बात की...
भैरव सिंह - बड़े राजा जी की ओर नहीं... उनके चेहरे की ओर... या यूं कहो जुते उनके मुहँ पर रख कर बात की...
पिनाक - (हैरान हो कर देखते हुए) यह... यह कहते हुए भी... हमारा जुबान लड़खड़ा रहा है... और आप ना सिर्फ आसानी से कह रहे हैं... ब्लकि... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - रुक क्यूँ गए... छोटे राजा जी... ब्लकि...
पिनाक - (कुछ नहीं कहता)
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... (खड़ा हो जाता है) जिस दिन उस कमज़र्फ विश्वा को सजा हुई... उस दिन हम उसकी बहन वैदेही को कटक से अपने साथ राजगड़ तक उठा ले आए थे...
पिनाक - जी... जानते हैं... अपने उस पर बीच चौराहे पर थप्पड़ों पर थप्पड़ जड़े थे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... पर बात उस दिन की नहीं है... बात है... उस दिन से... जिस दिन इस रंग महल में वैदेही लाई गई थी...

कहते कहते भैरव सिंह रुक जाता है l पिनाक भी कोई जवाब नहीं देता है ना ही कोई सवाल करता है l अपना पेग ख़तम करता है l फिर कहना चालू करता है l

भैरव सिंह - उसी दिन से... हमने मिलकर उसकी जिस्म को कई बार नोचा है... उसकी आत्मा को कई बार रौंदा... मगर जब भी हमने उसकी चेहरे को देखा... दर्द तो दिखा पर... हमे लगा... जैसे हम कभी उससे जीते ही नहीं... उस कमिनी ने हमारे हर इरादों पर पानी फेरा है... एक बात जो हमें बहुत दिनों बाद मालुम हुआ... उसने हस्पताल में ऑपरेशन के दौरान... अपनी बच्चे दानी को निकलवा दिया था... इस तरह से... पहली बार में ही... हमें ऐसा हराया था कि... उसके बाद कभी जीत महसुस ही नहीं कर पाए.... उसे जलील करने के लिए... दर्द देने के लिए... विश्वा को सजा हो जाने के बाद... राजगड़ के बीच चौराहे पर हम... थप्पड़ मारते हुए जलील करते रहे... पर...
पिनाक - पर...
भैरव सिंह - पर उस दिन... उस थप्पड़ के साथ साथ कुछ और भी हुआ था...
पिनाक - क्या...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा... हाँ... उसने हर थप्पड़ पर एक एक करके सात बद्दुआ दी थी... सात चैलेंज हमारे लिए... पर सात मिशन थे विश्व के लिए...
पिनाक - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - उसने कहा था... हम क्षेत्रपालों को... सपनों से भी बुरा दिन... हमें... विश्वा दिखाएगा... शायद... विश्वा... उसी को मिशन बना कर महल में आया था...
पिनाक - महल में घुसने के लिए... हिम्मत चाहिए.... अगर हमारे पहरेदार अलर्ट होते तो....
भैरव सिंह - (पिनाक की बातों को बीच में काट कर) पहरेदार नहीं... हमने नौकर पाले हैं...
पिनाक - क्या आप... उसे इतनी आसानी से छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - हाँ.... फ़िलहाल के लिए... हाँ...
पिनाक - क्यूँ...
भैरव सिंह - हम अपने पालतूओं से क्या कहेंगे... के विश्वा आया था... हमारे महल में... (फिर से पेग उठा कर पिता है) छोटे राजा... जो बांस जितना मोटा होता है... वह बांस अंदर से उतना ही खोखला होता है... यहाँ के शैतान... सरकार... सिस्टम... सब हमारे दम पर वज़ूद में हैं... हमने खुद को... उस ऊँचाई पर रखा हुआ है... की कोई हमारी तरफ गर्दन उठा कर नहीं देखता... क्यूंकि अगर देखेगा... तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... पर विश्वा आकर हम क्षेत्रपाल के मूछों पर पंजा मार दिया.... तो जरा सोचिए... लोगों की नजर में.... उस ऊंचाई से लुढ़कने में कितनी देर लगेगी...
पिनाक - ओ... तो इसी वज़ह से... आपने... उस हरामखोर के पीछे लोग नहीं छोड़े...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
पिनाक - बड़े राजा जी को दिलासा कैसे देंगे...
भैरव सिंह - देंगे... जरूर देंगे... विश्वा... अपने मिशन में है... कभी ना कभी... वह हमारे लोगों के साथ भी उलझेगा... तब हमारे लोग उसे संभाल लेंगे...
पिनाक - अगर नहीं संभल पाए तो...
भैरव सिंह - (भवें सिकुड़ कर पिनाक की ओर देखता है)
पिनाक - वह... रोणा कह रहा था... आपको याद होगा... विश्वा किस काबिल है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... अहंकार जो विरासत में मिली है... हमारी नसों में दौड़ रही है... रौब और रुतबा हमारी मूछों की ताव है... शायद इसी के गुरुर में... हम वैदेही से वादा कर बैठे... उस हरामखोर विश्वा पर ध्यान नहीं देंगे... जो अब हमें हमारी गलती का एहसास दिला रहा है...
पिनाक - यह आप ऐसे क्यूँ कह रहे हैं... वह क्या... उसकी औकात क्या... उसकी मिशन से वह क्या कर लेगा... क्या है उसका मिशन...
भैरव सिंह - जिन लोगों को हम जुतों के नीचे रखते हैं... जुतों के नीचे रौंदा करते हैं... उन्हीं लोगों के पैरों को... वह हमारी जुतों में डालेगा...
पिनाक - क्या... इतना सबकुछ जान कर आप खामोश क्यूँ हैं... वह धीरे धीरे हमारे लोगों को चैलेंज करेगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हम भी यही चाहते हैं... वह अब हमारे पालतूओं से भिड़े... उस हरामजादे की की खबर... हमारे पालतूओं के जरिए... हम तक पहुँचे... तब हम उसके खिलाफ कोई कारवाई के लिए सीधे कदम उठा सकते हैं....

फिर दोनों के बीच कुछ देर के लिए लिए खामोशी छा जाती है l पिनाक देखता है भैरव सिंह कुछ खो सा गया है l

पिनाक - अब आप किस सोच में हैं...
भैरव सिंह - सोच रहे हैं.. एक महीना विश्व था कहाँ पर... वह दिखता कैसा है... क्या इस बीच उसका और हमारा... कभी आमना सामना हुआ है...
पिनाक - (खड़ा होता है) जी... हुआ है...
भैरव सिंह - (हैरानी भरे नजर से पिनाक को देखता है)
पिनाक - लॉ मिनिस्टर विजय जेना की बेटी के रिसेप्शन में... जो आपसे जुबान लड़ा रहा था...

भैरव सिंह की आँखे बड़ी हो जाती है l उसे झटका सा लगता है l फिर अचानक उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l उसके हाथ ग्लास पर कसने लगते हैं l फिर टक कड़च की आवाज के साथ ग्लास टुट जाती है l

पिनाक - रा... राजा साहब...
भैरव सिंह - यह आपको कब मालुम हुआ...
पिनाक - आज ही... सुबह उसको महल से जाते हुए देखा था... नाम नहीं जानते थे.... पर जब बड़े राजा जी ने कहा कि वह विश्वा था... तब हमें याद आया था.. की वह...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... वह उस दिन एक औरत के साथ आया था... माँ.. माँ कह रहा था उसे....

भैरव सिंह झट से पास रखे एक बेल को बजाता है, भीमा भागते हुए अंदर आता है l

भीमा - हुकुम....
भैरव सिंह - कॉर्डलेस लेकर आओ...

भीमा एक किनारे जा कर कॉर्डलेस उठा कर लाता है और भैरव सिंह को देता है l भैरव सिंह उसमें एक नंबर डायल करता है l कुछ देर बाद

भैरव सिंह - हैलो...
- xxxxx
भैरव सिंह - एक औरत के बारे में... पता करो... वाव... मतलब... वर्किंग वुमन्स एसोसिएशन ओडिशा की प्रेसिडेंट है वह... हमें उसके बारे में... दो दिन के भीतर सारी जानकारी चाहिए....
-xxxxxxx

भैरव सिंह फोन काट कर रख देता है l उसकी आँखों में एक चमक दिखने लगता है l

पिनाक - यह... आप किससे बात कर रहे थे...
भैरव सिंह - यह वही है... जिसके एक खबर के वज़ह से.... आप यहाँ बुलाए गए हैं... बात घर की है... कभी भी निपटा सकते हैं.... फ़िलहाल बाहर की बात पर गौर करना है... एक लिंक मिल जाए... तो कब और कैसे निपटाना है... यह तय करना है...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

द हैल
डिनर टेबल पर विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं l एक दुसरे के आँखों में झांकते हुए खाना खा रहे हैं l शुभ्रा नजरें मिलाती है, फिर शर्मा कर नजरें चुरा लेती है, पर विक्रम चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लिए शुभ्रा घूर रहा था l दोनों को यह एहसास गुदगुदा रहा था l

विक्रम - कितना प्यारा लग रहा है यह एहसास.... है ना..
शुभ्रा - (शर्माते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
विक्रम - वैसे थैंक्यु...
शुभ्रा - (हैरान हो कर देखती है) क्यूँ.. किस बात के लिए...
विक्रम - नौकरों को बाहर भेजने के लिए...
शुभ्रा - (शर्मा कर चेहरा झुका लेती है) क्यूँ आपको अच्छा नहीं लगा...
विक्रम - बहुत... बहुत अच्छा लग रहा है... हर पल यह एहसास जितना पुराना होने लगता है... फिर से नया नया सा महसुस होने लगता है...
शुभ्रा - (खुद को थोड़ा संभालती है) पर... हम हरदम तो ऐसे नहीं रह सकते....
विक्रम - हाँ... इस घर के दो और सदस्य अभी आने को हैं... फिर शायद ऐसा मौका मिले ना मिले...
शुभ्रा - हाँ...
विक्रम - फिर भी... सबके सामने... उस वक़्त में भी... कुछ लम्हे चुरा लेंगे...
शुभ्रा - अच्छा...
विक्रम - हूँ.. देख लेना...
शुभ्रा - वैसे विक्की.. आपको ऐसा नहीं लगता... हम रिश्ते में और उम्र में बेशक... अपने छोटों से बड़े हैं... पर वे दोनों हमसे ज्यादा मेच्यॉर हैं... हमें पास लाने के लिए... क्या कुछ नहीं किया उन्होंने...
विक्रम - हाँ... सबसे ज्यादा... हमारी रुप... उसने कभी कोशिश करना नहीं छोड़ा... उसीने वीर को वर्गलाया और उसीके मदत से... यह सब किया...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं...
विक्रम - शुब्बु... मेरी जान... वीर को... मैं उतना ही जानता हूँ... जितना कि खुद को... यह सब रुप का ही किया धरा है...
शुभ्रा - सच कह रहे हैं आप... मेरी एक ही तो सहेली है वह...
विक्रम - हाँ... उसकी भी तो आप ही एक सहेली हैं...
शुभ्रा - महल में वह कैसी रहती थी... मैं नहीं जानती... पर वह इस घर की जान है... उसके आने के बाद ही तो... हम मिल बैठ कर खाना खा रहे हैं...
विक्रम - वैसे भी... इस टेबल को छोड़ और कहीं और मिलकर नहीं बैठ पाते... बातेँ नहीं कर पाते....
शुभ्रा - हाँ वैसे... पता नहीं... और कितने दिन गांव में रहेगी... उसके बिना यह घर... घर नहीं लग रहा है...

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज दोनों के कानों में पड़ती है l दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखते हैं, एक दुसरे को जेहन में एक ही सवाल था l इस वक़्त कौन हो सकता था l तभी डोर बेल बजती है l शुभ्रा उठ कर जाती है और दरवाजा खोलती है l कोई नहीं दिखता के तभी "भौ" की आवाज से चौंक जाती है l सामने रुप खड़ी थी l

रुप - भाभी... (चिल्लाते हुए शुभ्रा की दोनों हाथों को पकड़ कर घूमने लगती है)
शुभ्रा - नंदिनी... आरे... रुको... आह... देखो... तुम तो गिरोगी... मुझे भी गिराओगी...

रुप को इस तरह से चहकते और खुश होता देख विक्रम बहुत खुश होता है पर साथ साथ हैरान भी होता है l

विक्रम - नंदिनी...

रुप रुक जाती है और शुभ्रा को छोड़ विक्रम के पास जाती है और उसके गले लग जाती है l

विक्रम - क्या बात है नंदिनी... आज तुम बहुत अलग लग रही हो...
वीर - मैं भी जब से मिला हूँ... यही महसुस कर रहा हूँ... बिल्कुल एक छोटी बच्ची की तरह... (सामान और लगेज अंदर लाते हुए, शुभ्रा से) कैसी हैं आप भाभी...
विक्रम - अरे वीर तुम...
वीर - हाँ भैया.. (रुप की ओर इशारा करते हुए) शाम को मुझे इस आफत की पुड़िया.. शरारती गुड़िया का फोन आया.. की रात को खाने के वक़्त तक हमें घर पहुँचना है... तो बस यह मुझे यहाँ तक ले आई...
शुभ्रा - चलो अच्छा हुआ... सच कहूँ तो खाने के टेबल पर तुम लोगों को ही हम याद कर रहे थे...
रुप - सच भाभी... (बड़ी मासूमियत के साथ) वैसे... हम गलत वक़्त पर तो नहीं आ गए ना...
शुभ्रा - अरे नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (बड़ी भोली बनते हुए) मेरा मतलब है... हम कबाब में हड्डी तो नहीं बन गए ना...
शुभ्रा - (रुप की कान पकड़ कर) नंदिनी की बच्ची...
रुप - आह... आह भैया बचाओ...

शुभ्रा छोड़ देती है l दोनों भाई रुप के इस अंदाज व शरारत पर मुस्कराने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा नंदिनी... तुम शायद दो पहर को निकली होगी... आज ही क्यूँ आई... अगर आना ही होता... तो सुबह निकलती या फिर... कल सुबह निकलती....

रुप की चहकती चेहरा शांत हो जाती है l चेहरे पर भाव बदल जाती है l ऐसा लगता है जैसे कुछ कहते ना बन पा रहा था l विक्रम और व वीर दोनों एक दुसरे की ओर देखते हैं l

विक्रम - क्या हुआ नंदिनी... कुछ गलत हुआ है क्या...
रुप - (अटक अटक कर) वह भैया... आज सुबह ही महल में... हंगामा हो गया... कोई कांड हो गया... मुझे माहौल ठीक नहीं लगा तो... छोटी माँ से इजाजत लेकर चली आई...
विक्रम - क्या... कैसा हंगामा...
वीर - कांड...

रुप वगैर विश्व का नाम लिए और रात की बात को छुपा कर जैसा जैसा सुषमा ने बताया था, रुप नागेंद्र के साथ जो कुछ हुआ सब बता देती है l

रुप - पता नहीं भैया... क्या होगा... या होने वाला है... मैं इसलिए वहाँ के टेन्शन से बचने के लिए... छोटी माँ से कह कर तुरंत चली आई...
शुभ्रा - अच्छा... जो हुआ... जैसा हुआ... क्यूँ हुआ... वह सब हम खाने के बाद सोचेंगे... या उस पर बात करेंगे... चलो पहले खाना खा लेते हैं...
वीर - हाँ... हाँ... पहले खाना खा लेते हैं... फिर सोचते हैं...

पुरी बात सुनने के बाद से ही विक्रम गहरी सोच में खोया हुआ था l यह बात टेबल पर तीनों नोटिस कर लेते हैं l बात तो घुमाने के लिए

रुप - अच्छा भाभी... नौकर नहीं दिख रहे हैं...
शुभ्रा - वह इसलिए कि मैंने फैसला किया है.. अब किचन में.. मैं ही खाना पकाउंगी... नौकर बस सिर्फ साफ सफाई देखेंगे....
वीर - वाह भाभी वाह... क्या बात है... मतलब... अब से घर में सिर्फ आपके हाथ का ही खाना मिलेगा...
शुभ्रा - हाँ... चाहे पसंद करो या ना करो...
वीर - अरे क्या बात कर रही हैं आप... खाना तो अमृत लग रहा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म मस्का लगा रहे हो....
वीर - नहीं भाभी... सच कह रहा हूँ... कसम से...
शुभ्रा - तो फिर ठीक है...

खाने के टेबल पर इस तरह की बातेँ चल रही थी l पर विक्रम खामोश था, वह कुछ सोच रहा था l तीनों महसूस तो कर पा रहे थे पर विक्रम से पुछ नहीं पा रहे थे l खाना ख़तम होते ही शुभ्रा रुप को इशारा करती है l दोनों बर्तन समेट कर किचन के अंदर चले जाते हैं l उनके जाने के बाद ड्रॉइंग रूम में विक्रम और वीर आते हैं l

वीर - क्या बात है भैया... महल में क्या हुआ जानकर तुम बहुत गहरे सोच में चले गए...
विक्रम - वीर... महल में जो घुस आया था... तुम जानते हो या अंदाजा भी है... वह कौन था...
वीर - नहीं...
विक्रम - (वीर की ओर देखते हुए) मुझे लगा... तुम जानते होगे... खैर... वह तुम्हारा दोस्त... विश्व प्रताप था...

वीर को झटका सा लगता है l उसका मुहँ खुला रह जाता है l वह हैरान हो कर विक्रम की ओर देखने लगता है l

विक्रम - उसने अपना काम शुरु कर दिया है...
वीर - (सीरियस हो कर) तो क्या तुम प्रताप को रोकने जाओगे...
विक्रम - प्रताप का और मेरा तब तक सामना नहीं हो सकता या होगा... जब तक राजा साहब नहीं चाहेंगे... जब तक राजा साहब को यह लगेगा.. उनके लोग उसे संभाल लेंगे... तब तक राजा साहब मुझे मैदान में उतरने के लिए नहीं कहेंगे... (चुप हो जाता है) (एक गहरी साँस लेते हुए) अभी तो नहीं पर... कभी न कभी सामना तो होना ही है...
वीर - तो आपको लगता है... उसे राजा साहब के लोग संभाल नहीं पाएंगे...
विक्रम - नहीं... उसे कोई संभाल नहीं पाएगा...

उधर किचन में शुभ्रा बर्तन माँज रही थी l बर्तन माँजते हुए एक एक रुप के हाथों में दे रही थी l रुप उसे कपड़े से साफ करते हुए रैक में रख रही थी l

शुभ्रा - तो... तुम्हारे अनाम ने... आखिर तुम्हें प्रपोज कर ही दिया...
रुप - ह्म्म्म्म... कर ही दिया... पर आपको कैसे मालुम हुआ...
शुभ्रा - तुम गई थी... उसीके लिए ही ना... पर संभल कर रहना...
रुप - क्यूँ... किससे...
शुभ्रा - तुमसे तुम्हारी खुशियाँ नहीं संभल रही है.... और चेहरा रंग देख कर कोई भी बता सकता है... यह रंग प्यार के हैं... (
रुप - (शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - बहुत ही... खास तरीके से... प्रपोज किया होगा...
रुप - (शर्म के साथ साथ चहकते हुए) हाँ भाभी... क्या बताऊँ... क्या स्टाइल में इजहार किया...
शुभ्रा - तुम्हें प्रपोज करने के बाद... अनाम बड़े राजा जी के पास गया था ना... (रुप का चेहरा उतर जाता है, सिर झुका कर हाँ कहती है) देखो नंदिनी... महल में विश्व ने ही वह कांड किया.. इस बात को विक्की भी अच्छी तरह से भांप गए हैं.... अब लगता है... नियति बहुत जल्द उन्हें एक दुसरे के सामने खड़ा कर देगी... तब.. (आवाज भारी हो जाती है) हम किसके साथ खड़े होंगे.... सोच सकती हो.... मेरी तो एक राह होगी... पर तुम खुद को शायद दोराहे पर पाओ...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


गौरी सो चुकी थी l वैदेही सारे काम निपटा कर सोने के लिए चारपाई तक पहुँची ही थी के दरवाजे पर दस्तक होने लगती है l वैदेही जाकर दरवाजा खोलती है l सामने लक्ष्मी डरी सहमी खड़ी थी l

वैदेही - लक्ष्मी... क्या हुआ... इतनी घबराई हुई क्यूँ हो... हरिया ने कुछ किया क्या...
लक्ष्मी - (घर के अंदर आ जाती है, और हांफते हुए) दीदी... वह आज दारु के ठेके से पी कर आए थे... नशे में कुछ बड़बड़ा रहे थे... वह सुन कर मैं आपको बताने आ गई...
वैदेही - एक मिनट रुको... मैं पानी लाती हूँ.. तुम उसके बाद मुझे सब कुछ बताओ...
लक्ष्मी - नहीं.. नहीं दीदी... (वैदेही की हाथ पकड़ लेती है) आप विश्वा भाई को खबर करो...
वैदेही - (चौंक कर) क्या... विश्वा... क्या खबर करना है...
लक्ष्मी - यह नशे में ठेके पर सुन कर आए हैं... और वही बड़बड़ाते हुए कह रहे थे...
वैदेही - क्या कहा हरिया ने...
लक्ष्मी - शनिया, भूरा सत्तू... सब आज रात विश्वा भाई को मारने के लिए मंसूबा पाले हुए हैं...
वैदेही - ओह... तो यह बात है...
लक्ष्मी - हाँ दीदी... जल्दी करो... कोई अनर्थ ना हो जाए...
वैदेही - एक मिनट... (वैदेही अंदर जा कर एक पानी की ग्लास लक्ष्मी को देती है) ले पी ले...
लक्ष्मी - (हैरान हो जाती है) दीदी... उधर विश्वा भाई खतरे में है...
वैदेही - तु अब घर जा... हो सके तो... आज अपनी बस्ती में.. मुहल्ले में सबको जागरण करने के लिए कह दे...
लक्ष्मी - क्यूँ... दीदी...
वैदेही - जो पीढ़ी दर पीढ़ी ना देख पाए... आज वह तुम सब लोग देखने वाले हो... आज विश्वा... राजा के आदमियों को गली गली चौराहा चौराहा दौड़ा दौड़ा कर मारेगा...
लक्ष्मी - (गुस्सा हो जाती है) दीदी... पागलपन की भी हद होती है... तुम्हारा मुझ पर इतने उपकार हैं.. की जन्मों तक उतार ना पाऊँ... इसलिए रात के अंधेरे में... राजा के हुकुम को किनारे कर तुम्हें आगाह करने आई थी... पर तुम.. किस दुनिया में जी रही हो... या भूल गई... राजा ने विश्वा का क्या हालत बनाई थी...
वैदेही - (मुस्कराते हुए) पागलपन ही सही... पर वह सब धीरे धीरे होने वाला है या हो रहा है... जो मैंने तुझे कहा... जरा सोच आज से पहले किसी ने सोचा था... के राजा का हुकुम की नाफरमानी कोई कर सकता है... रात के अंधेरे में ही सही... तुने तो किया ना... जब यह हो गया है... तो वह भी होगा... जा... आज की रात बहुत खास होने वाला है... कुछ लोगों की किस्मत और करम दोनों ही फूटने वाले हैं आज रात....
लक्ष्मी - (गुस्से में) मेरी ही मती मारी गई थी... जो तुम्हें आगाह करने आई थी... जा रही हूँ...

कह कर बिना पीछे मुड़े लक्ष्मी चली जाती है l वैदेही दरवाजा बंद कर देती है और अपनी आँखे मूँद कर हाथ जोड़ कर मन ही मन विश्व की खैरियत के लिए भगवान को प्रार्थना करने लगती है l जब आँखे खोलती है तो सामने गौरी खड़ी थी l

गौरी - लक्ष्मी तुझे आगाह कर गई... पर तुने उसे भगा दिया... और अब भगवान से प्रार्थना कर रही हो...
वैदेही - काकी... मुझे अपने विशु पर पुरा भरोसा है... मुझे डर बिलकुल नहीं है..
काकी - क्यूँ झूठ बोल रही है... भगवान से उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना नहीं कर रही थी...
वैदेही - हाँ कर रही थी... पर उसकी रक्षा के लिए ही नहीं... उसकी विजय के लिए भी...
गौरी - इतना भरोसा...
वैदेही - हाँ काकी... उसके कारनामों से मैं वाकिफ़ हूँ... पर यहाँ कोई नहीं है... और वह इन सब मामलों में... अपने गुरु से आगे है...
गौरी - अच्छा...
वैदेही - हाँ काकी... विशु जिस दिन जैल से छुटा था.. उसी दिन उसके गुरु का फोन आया था... और उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया था... विश्वा हर मुसीबत के लिए तैयार हो कर ही जैल से निकला है... तुम बस देखती जाओ... कल से राजगड़ का इतिहास और भूगोल बदलने वाला है...

गौरी देखती है वैदेही बहुत ही आत्मविश्वास के साथ अपनी चारपाई की ओर बढ़े जा रही थी l गौरी भी ऊपर हाथ उठा कर प्रार्थना करती है

गौरी - हे भगवान इस अभागिन की विश्वास की लाज रखना...

उसी वक़्त कहीं दूर से किसी कुत्ते की रोने की आवाज आती है l विश्व के घर से कुछ दूर शनिया और उसके साथी इकट्ठे होते हैं l

सत्तू - शनिया भाई... अब क्या करना है...
शनिया - केरोसिन लाए हो..
भूरा - हाँ भाई... मशाल भी...
शनिया - बहुत अच्छे... साले सोये हुए होंगे... पहले घर के चारो तरफ केरोसीन डाल देंगे फिर आग लगा कर बाहर घात लगा कर छुपे होंगे... अगर वह घर से निकलने की कोशिश की... तो उस हरामजादे को... बाहर काट कर बोटी बोटी कर फिर से आग में फेंक देंगे....
भूरा - बढ़िया... बिल्कुल वैसे ही करेंगे...
सत्तू - क्या भाई... एक अकेले को हम इतना क्यूँ भाव दे रहे हैं... चलो ना साले को घर से निकाल कर पहले खूब धुनाई करते हैं... फिर उसकी चिता सजाते हैं...
शनिया - (सत्तू की गर्दन पकड़ लेता है) सुन बे भोषड़ी के... रोणा साहब ने जितना कहा है उतना ही कर... अपना दिमाग ज्यादा मत चला...
सत्तू - (कराहते हुए) जी... जी भाई... अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो...
शनिया - (उसका गर्दन छोड़ते हुए) अबे ढक्कन... रोणा साहब सब संभाल लेंगे... क्यूँकी यह काम सिर्फ हमारे लिए नहीं... रोणा साहब के इज़्ज़त के लिए भी करना है....


फिर सब धीरे धीरे विश्व के घर की ओर बढ़ने लगते हैं l कुछ दुर पर सब रुक जाते हैं l शनिया एक बंदे को केरोसीन से भरी टीन का डिब्बा देकर घर के पास जाकर छिड़कने के लिए भेजता है l वह बंदा टीन का डिब्बा लेकर घर के पास पहुँच कर ढक्कन खोल कर जैसे ही बरामदे के पास कदम बढ़ाता है उसके मुहँ से चीख निकल जाती है, वह अपने मुहँ पर हाथ रख कर लड़खड़ाते हुए पीछे आता है l

शनिया - क्या हुआ...
बंदा - (कराहते हुए) कोई कील चुभ गई है...
सत्तू - क्यूँ बे... फटा जुता पहन कर आया है क्या...
बंदा - नहीं पर जुते के अंदर से ही घुस गया है... (कह कर जुते के साथ साथ चुभी कील को निकालता है) आह...

शनिया एक दुसरे बंदे को भेजता है l वह भी जब घर के दरवाजे तक पहुँचता है उसकी भी वही हालत होती है l पर इस बार थोड़ा ज्यादा होता है l जिस कंफीडेंट के साथ गया था, जैसे ही उसका जुता छेद कर एक कील पैर में घुस गया था इसलिए वह लड़खड़ा कर गिर जाने के वज़ह से उसके पिछवाड़े तसरीफ़ में भी कील घुस जाते हैं l वह दर्द के मारे चीखने लगता है l सारे बंदे चौंक कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l कुछ उसे उठाने जाने को होते हैं कि शनिया उन्हें रोक देता है l तभी विश्वा के घर का दरवाज़ा खुलता है l विश्व के साथ साथ टीलु भी बाहर आता है l टीलु के हाथ में एक लोहे का रॉड जैसा था l विश्व और टीलु दोनों खड़ाऊ पहने हुए थे l उनके पैरों में जुते थे और जुतो के नीचे खड़ाऊ देख कर शनिया समझ जाता है कि विश्वा पहले ही उनके लिए तैयार बैठा था l

विश्व - अरे शनिया भाई... मुझे मेरे घर का हक लौटाने के लिए... रात को ही क्यों चुना... आपने क्यूँ तकलीफ की... और भी आठ घंटे बाकी हैं... सुबह आकर मैं ले जाता ना...
शनिया - इतनी तैयारी... मतलब तुझे अंदाजा था... के हम आने वाले हैं...
विश्व - हाँ... कोई शक... तुम लोगों के साथ... तुम लोगों के बीच रह कर... बचपन से जवान हुआ हूँ... तुम लोगों के रग रग से वाकिफ हूँ... तुम सब छक्के हो... जिनका मर्द... राजा भैरव सिंह है...
शनिया - तु तो बड़ा मर्द है ना... तो घर के आसपास कीलें क्यूँ बिछा रखे हैं...
विश्व - अरे शनिया भाई... यह कीलें.... दो टके के लुच्चों के लिए था... मुझे थोड़े ना पता था... उनसे भी गया गुजरा टुच्चे यहाँ फंसेंगे...
भूरा - तो कीलें हटा... आज तेरा खेल ख़तम कर के ही यहाँ से हम जाएंगे...
विश्व - हाँ जाओगे तो जरूर... क्यूंकि तुम लोगों को उमाकांत सर जी घर... मेरे हवाले जो करना है...
सत्तू - बच्चे... कल का सुबह देखेगा... तब जाकर घर लेगा ना...
विश्व - अरे सत्तू भैया... यह रात कहाँ इतनी लंबी होने वाली है... बस थोड़ी देर और... मैं भी देखूँगा... तुम सब भी देखोगे... जाओ यार जाओ... क्यूँ अपनी खाट खड़ी रखना चाहते हो..
शनिया - जुबान लंबी चल रही है... मगर जिगर छोटी... डर लग रहा है क्या...
विश्व - तुम सालों को... पुलिस से डर नहीं लगता... अरे हाँ... तुम लोगों का अम्मा का यार है ना... थानेदार... कोई नहीं... यह भरम भी अब दुर हो जाएगा... (टीलु से) टीलु मेरे भाई... यह सारी कीलें हटा दो यार...

टीलु अपने हाथ में रॉड लेकर चारों तरफ घुमाने लगता है l टिक टाक की आवाज करते हुए कीलें उस रॉड से चिपकने लगते हैं l मतलब वह एक लंबा सा चुंबक था जिसके मदत से कीलें हटा कर जमा करने लगता है l थोड़ी देर बाद टीलु किनारे खड़ा हो जाता है l शनिया का एक बंदा हाथ में एक डंडा लिए तभी विश्व की ओर भागते हुए हमला कर देता है l विश्व झुक कर एक घुसा उसके पेट में जड़ देता है l कुछ देर के लिए वह बंदा किसी पुतले की तरह अकड़ कर खड़ा रह जाता है फिर एक कटे पेड़ की तरह गिर जाता है l यह देख कर सभी जो विश्व को मारने आए थे सब के सब हैरान हो जाते हैं l

शनिया - अब कीलें भी नहीं हैं... मशाल वाली डंडे फेंक कर... अपनी अपनी हथियार निकालो... और काट डालों कुत्ते को..

कह कर शनिया अपना एक धार धार हथियार निकालता है l उसके देखा देखी सभी अपने अपने हथियार निकाल लेते हैं l सभी एक साथ मिलकर विश्व पर हमला बोल देते हैं l बिजली की फुर्ती से खुद को बचाते हुए विश्व उनके बीच से गुजर कर उल्टे दिशा में खड़ा हो जाता है l सबकी वार खाली गया था l शनिया अब पुरी तरह से पागल हो जाता है l वह सबको इशारा करता है l उसका इशारा समझ कर सब विश्व के चारों तरफ घेरा बना कर घेर लेते हैं l विश्व अपना पोजिशन लेता है l फिर उन सबको छका कर अपने पैरों का जादुई पैंतरा आजमाने लगता है l इससे पहले के शनिया और उसके साथी कुछ समझ पाते सबके हाथों से हथियार छिटक कर दुर जाकर गिरते हैं l इतने में आसपास के घरों की खिड़कियाँ खुलने लगते हैं l लोग दुबक कर बाहर हो रहे घटना को देख रहे थे l शनिया को जैसे ही यह एहसास होता है कि लोग देखने लगे हैं तो वह विश्व पर झपट पड़ता है और विश्व को पीछे से पकड़ लेता है l उसके दूसरे साथी भी विश्व पर टुट पड़ते हैं, पर विश्व अपने सिर को पीछे की ओर झटका देता है जिससे शनिया का नाक टुट जाता और विश्व उसके पकड़ से छूट जाता है l फिर विश्व एक के बाद एक को बारी बारी करके मारते हुए पटखनी देने लगता है l सब के सब नीचे गिर कर छटपटाने लगते हैं l तब तक आसपास के लोग अपने घर से निकल कर हाथों में टॉर्च लेकर सब कुछ देख रहे थे l शनिया और उसके बंदे समझ चुके थे विश्व से उलझना कितना घातक है l विश्व लोगों के सामने उनका इज़्ज़त का कबाड़ा निकाल चुका था l आखिर राजा साहब के लोग हैं l फिर भी शनिया एक आखिरी कोशिश करता है l पास पड़े मशाल की लकड़ी उठा कर हमला करता है l यह वार भी बेकार जाता है l विश्व शनिया का हाथ पकड़ कर उसके हाथ से वह डंडा छिन लेता है, फिर शनिया हाथ मरोड़ कर उसके पिछवाड़े पर चलाने लगता है l विश्व के हर मार पर शनिया मेंढक की तरह उछलने लगता है l उसे मार खाता देख कर शनिया के साथी भागने लगते हैं l शनिया अपने साथियों को उसे छोड़ भागते हुए देख कर विश्व के सामने गिड़गिड़ाने लगता है

शनिया - विश्वा भाई.. छोड़ दे भाई... प्लीज...
विश्वा - एक शर्त पर...
शनिया - मुझे सभी शर्तें मंजुर है...
विश्व - तुम अपने साथियों के पीछे उन्हें मारते मारते हुए भागोगे... मैं तुम्हारे पीछे भागुंगा... तुमसे अगर कोई छुटा... तो मैं तुम्हें वहीँ यह डंडा टूटने तक कुटुंगा...
शनिया - जी भाई...

विश्व शनिया को छोड़ देता है l शनिया नीचे पड़े एक डंडा उठाता है और भूरा सत्तू और दूसरों के पीछे भागने लगता है l उन सबके पीछे विश्व भी भागता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

सुबह हो चुका है
आज की सुबह राजगड़ थाने के लिए कुछ अलग थी l
राजगड़ आदर्श थाने में आज सुबह सुबह अच्छे से तैयार हो कर बन ढं कर इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था l सारे स्टाफ़ देख रहे थे रोणा मन ही मन खुश हो रहा था l एक कांस्टेबल उसके पास आता है

कांस्टेबल - सर... आज आप बहुत खुश लग रहे हैं...

रोणा कांस्टेबल को घूरने लगता है तो कांस्टेबल सकपका जाता है l उसे सकपकाता देख रोणा खुल कर हँसने लगता है l

रोणा - राजगड़ में फिरसे चार्ज लेने के बाद... आज मुझे पहली बार खुशी मिलने वाली है...
कांस्टेबल - (चुप रहता है)
रोणा - अबे पूछना... कैसी खुशी...
कांस्टेबल - कैसी खुशी सर...
रोणा - (अपनी फटी आवाज़ में गाने लगता है) जिसका मुझे... था इंतजार...
जिसके लिए दिल... था बेकरार...
वह घड़ी आ गई आ गई आज...
हद से आगे दारु पीना है और
मुर्गी तन्दूरी दबा के खाना है...
कांस्टेबल - सर... वह तो आप रोज खाते हैं...
रोणा - (बिदक कर) तो... (फिर मुस्कराते हुए) आज पहली बार... बरसों बाद थाने में केस दर्ज होगी... और हम आज फिल्ड भी जाएंगे...
कांस्टेबल - तहकीकात के लिए...
रोणा - अबे नहीं बे... पंचनामा करने के लिए... हा हा हा हा..

अचानक उसके हँसी में ब्रेक लग जाता है l क्यूंकि दरवाजे पर एक सुदर्शन नौजवान खड़ा था l रोणा उसे गौर से देखने लगता है l देखते देखते उसकी आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं l

रोणा - विश्वा... (हैरानी से उसके मुहँ से बस इतना ही निकल पाया)
विश्व - अरे दरोगा जी नमस्ते... कमाल है आपने तो मुझे पहचान लिया...
रोणा - (हड़बड़ा जाता है, अटक अटक कर) तुम यहाँ... कैसे... मेरा मतलब है... क्यूँ...
विश्व - लगता है... मुझे यहाँ देख कर... आपकी खुशियों में पानी गिर गया...
रोणा - (खुद को संभाल कर कड़क आवाज में) यहाँ क्यूँ आए हो...
विश्व - जाहिर है... थाने में कोई... पार्टी करने आता तो नहीं... केस दर्ज करने आया हूँ...
रोणा - की... किस के खिलाफ...
विश्व - अरे दरोगा जी... पहले केस तो जान लीजिए... हो सकता है... आप यूँ.. (चुटकी बजाते हुए) चुटकियों में समाधान भी कर दें...
रोणा - ठीक है... क्या केस है...
विश्व - ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी... कुछ लोग मेरी प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी कब्जा जमाए बैठे हैं... आपको बस उसे छुड़ाना है...
रोणा - ओये... मैं किसीके बाप का नौकर नहीं हूँ... इंस्पेक्टर हूँ... समझा... इंस्पेक्टर... चल दफा हो जा यहाँ से...
विश्व - मिस्टर इंस्पेक्टर... आप अभी 1981 के पुलिस ऐक्ट का सेक्शन 29 का उलंघन कर रहे हैं... आप मुझसे तमीज से बात करें... वर्ना मैं आपके खिलाफ आईपीसी के धारा 323, 504, 506 और 330 के तहत सीधे अदालत जा कर केस दर्ज कर सकता हूँ... सोच लीजिए...
रोणा - (विश्व को कुछ देर तक घूरता है, फिर) कांस्टेबल... इन साहबका केस फाइल करो... रिलेटेड सारे डॉक्युमेंट्स कलेक्ट करो...
विश्व - अरे सर... केस दर्ज करने से पहले... आप डॉक्युमेंट्स देख लें... और उसे छुड़ाने की कोशिश कीजिए... मुझे पुरा विश्वास है कि... वह लोग हम जैसे साधारण नागरिकों को अनदेखा तो कर सकते हैं.... पर आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ आदर्श थाने के इंचार्ज को तो अनदेखा नहीं करेंगे... आपकी इज्जत के खातिर... वे लोग ज़रूर मेरी प्रॉपर्टी मुझे सौंप देंगे...
रोणा - (अपने हलक से थूक गटकता है, फिर भी वह खुद को संभलता है) मिस्टर लॉयर... आप भुल रहे हैं... यह जो ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी का केश दर्ज कराना चाहते हैं... यह एक सिविल केस है... इसमें पुलिस की भूमिका नहीं होती... सिविल कोर्ट की भूमिका होती है...
विश्व - वाव क्या बात है सर... मुझे नहीं मालुम था... आपको मेरी वकालत की डिग्री के बारे में जानकारी है... वाव वाव वाव... पुलिस इंस्पेक्टर हो तो... आपके जैसा... वर्ना ना हो....
रोणा - ह्म्म्म्म... तो जाइए... अपना केस फाइल करो और... जितनी जल्दी हो सके... यहाँ से जाओ...
विश्व - ना... जाना तो आपको मेरे साथ होगा... मेरी प्रॉपर्टी को छुड़ाने के लिए...
रोणा - (भड़क जाता है) विश्वा... मैंने पहले भी कहा है... मैं इंस्पेक्टर हूँ... किसीके बाप का नौकर नहीं...
विश्व - जी सर... मिस्टर इंस्पेक्टर... आप नौकर ही हैं... डोंट फॉरगेट यु आर अ पब्लिक सर्वेंट... कोई भी सिविल केस दर्ज होने से पहले... पुलिस के पास तीन भूमिका होती है... नेगोसिएशन.., मेडिएशन और आर्बिट्रेशन... इससे पहले कि यह केस कोर्ट तक जाए... आप अपनी भूमिका से बच नहीं सकते... मिस्टर इंस्पेक्टर...
रोणा - (अंदर ही अंदर उबल रहा था पर बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले हुए था) देखो विश्व... तुम जिनके खिलाफ केस दर्ज करना चाहते हो... वह लोग... बहुत खतरनाक लोग हैं... बेहतर होगा... तुम इस केस की एफआईआर करो... और कोर्ट जाओ...
विश्व - फिर से कमाल कर दिया आपने... मैंने तो अभी तक किसीका नाम भी नहीं लिया... पर आपको मालुम हो ही गया.. मेरी प्रॉपर्टी पर किसका कब्जा है...

रोणा को सांप सूँघ जाता है l वह क्या कहे उसे समझ में ही नहीं आ रहा था l रोणा को एहसास होता है कि उसके कान के बगल में पसीने की धार बहने लगी है l रुमाल लेकर पोछने लगता है l

रोणा - वह... वह मैंने अंदाजा लगाया...
विश्व - मतलब... आदर्श थाने की अवॉर्ड जितने वाले थानेदार के राज में... प्रॉपर्टी कौन और कबसे कब्जाए हुए हैं... मिस्टर इंस्पेक्टर आपको मालुम है...
रोणा - (भड़क कर) इनॉफ... पहले तुम्हें उनके पास जाना चाहिए था... उन्हें अपने तौर पर कंविंस करना चाहिए था...
विश्व - अब थाने आया हूँ तो जाहिर है... वह सब कर आया हूँ... वह पहला स्टेप था... अब दुसरा स्टेप है कि... आप या तो उन्हें थाने बुलाएं... या फिर मेरे साथ मेरी प्रॉपर्टी तक चलें और उन्हें वहीँ पर कानून समझाएं... मुझे पुरा यकीन है... आप समझायेंगे... तो वह लोग खुशी खुशी मुझे मेरी प्रॉपर्टी लौटा देंगे....

रोणा के मुहँ से अब कोई बोल नहीं फूटती l वह खड़ा होता है और अपना कैप पहनता है l कांस्टेबल को गाड़ी निकालने के लिए कहता है l

रोणा - कहते हैं... नया नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है.... आइए... नए नए वकील साहब... आपकी यह इच्छा भी पुरी कर देते हैं...
विश्व - जी शुक्रिया इंस्पेक्टर...

कांस्टेबल पुलिस की जीप निकालता है l आगे रोणा बैठ जाता है और विश्व दो और कांस्टेबल के साथ पीछे बैठ जाता है l गाड़ी सीधे जाकर उमाकांत के घर के सामने रुकती है l रोणा देखता है आज भट्टी में कुछ हो नहीं रहा है, लोग भी नदारत हैं l वह सवालिया नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व कुछ सोच में खोया हुआ था l

रोणा - क्या सोच रहे हो वकील बाबु...
विश्व - यही के... मैंने किसीको अड्रेस बताया भी नहीं... पर पुलिस की गाड़ी बिल्कुल सही जगह रुकी...
रोणा - (सकपका जाता है, गाड़ी से उतर कर भट्टी के तरफ देख कर आवाज देता है) ऐ... कोई है यहाँ पर...

दरवाजा खुलता है l सत्तू बाहर निकलता है, थोड़ा पैर चौड़ा कर चल रहा था, जैसे उसके पिछवाड़े में कोई फोड़ा हुआ हो l सत्तू रोणा को देखते ही सलाम ठोकता है l

सत्तू - सलाम साब...
रोणा - इस भट्टी का मालिक कौन है...
सत्तू - जी... शनिया भाई...
रोणा - ह्म्म्म्म... बुलाओ उसको...
सत्तू - जी साब...

कह कर सत्तू अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद शनिया और उसके चेले चपाटे सब बाहर निकलते हैं l रोणा देखता है सभी की चालें बदली हुई है, सारे के सारे सत्तू के जैसे पैर को चौड़ा कर चल रहे हैं l रोणा को देख कर शनिया पहले सलाम ठोकता है l

शनिया - कहिए सर कैसे आना हुआ...
रोणा - विश्वा... (आवाज देता है, विश्व गाड़ी से उतर कर उनके पास आता है) इनकी शिकायत है... यह जगह इनकी है... तुमने इनकी जगह पर गैर कानूनी कब्जा किए बैठे हो...
शनिया - (अकड़ दिखाते हुए) क्या सबूत है... यह जगह इसकी है... यह जगह खाली था... इसलिए हम तो बस देख भाल कर रहे हैं...
रोणा - (मन ही मन खुश हो जाता है) देखो... इनके पास कागजात हैं... (विश्व को देख कर) क्यूँ है ना...
विश्व - (डरते हुए) जी... जी सर... जी... मेरे पास... ओनरशिप डीड... एकुंबरेंस सर्टिफिकेट और प्रॉपर्टी टैक्स के रिसीप्ट हैं... यह.. यह देखिए... (कुछ कागजात निकाल कर दिखाता है)
रोणा - (मन ही मन खीज कर शनिया से) देखा... इनके पास कागजात है... अब तुम बताओ... किस बिनाह पर... यह जगह कब्जाए बैठे हो...
शनिया - ओ सहाब... (पुरे अकड़ के साथ) यहाँ क्या पुराण खोल कर बैठे हो... तुमको क्या करना है... क्या चाहिए वह पहले बोलो... और हाँ यह मत भुलो... हम राजा साहब के आदमी हैं...
रोणा - (मन ही मन बहुत खुश होता है, अपनी खुशी को छुपाते हुए) चूंकि यह जगह इनकी है... इसलिये मेरी सलाह है... कानूनन इनकी जगह... इन्हें लौटा दो...
शनिया - क्या... क्या कहा... आपकी सलाह... ह्म्म्म्म... ठीक है... हम आपकी सलाह मानते हैं... और इनको इनकी जगह देकर जा रहे हैं...

यह सुन कर रोणा को जबरदस्त झटका लगता है l वह हक्काबक्का हो कर बेवक़ूफ़ की तरह शनिया को देखने लगता है l शनिया विश्व के पास जाता है और एक चाबियों का गुच्छा दे देता है l पर विश्व को उंगली दिखा कर अकड़ के साथ कहता है l

शनिया - हम कानून का सम्मान करते हैं... चूंकि थानेदार साहब ने कहा... इसलिए उनकी बात मान कर यह जगह कानूनन तुम्हें लौटा रहे हैं...

विश्व - (फड़फड़ाते हुए रोनी आवाज में) बड़ी मेहरबानी शनिया भाई... इस बात पर तो... रोणा साहब के लिए एक जिंदाबाद बनता है...
बोलो रोणा साहब की
शनिया और साथी - जिंदाबाद...
विश्व - आदर्श थाने के प्रभारी की
शनिया साथी - जिंदाबाद...
विश्व - न्याय प्रिय इंस्पेक्टर की...
शनिया साथी - जिंदाबाद...

विश्व और शनिया के जिंदाबाद की नारों के बीच रोणा समझने की कोशिश कर रहा था l क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है l
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,856
32,685
259
kamaal ka update .maja aa gaya 🤣🤣.. bhairav soch me hi gum hai aur bheema ka fati padi thi ,jeet bhi nahi sakta aur haar bhi .
pinak ko sab bata diya kaise vaidehi ne challenge kiya tha 7 thappado ke badle bhairav ko .bhairav ko to pata hi nahi ki vishw kaisa dikhta hai par jab pinak ne bataya tab detail nikalne ko kaha pratibha ke baare me .

shubra aur vikram maje me nashta kar rahe the ,pyar bhari najro se ek dusre ko dekhte huye 😍😍..

roop ko yaad kiya aur roop hajir ho gayi ,aur usse hi pata chala ki nagendra ke saath kya hua ,vikram ko pata hai aisa kaam ek hi insan kar sakta hai aur veer ko bhi ye bata diya .
jab tak bhairav na kahe tab tak vikram ladhai me shamil nahi hoga aur usko ye bji pata hai ki vishw ka saamna koi nahi kar sakta .

shubra jaan gayi ki roop ko propose kar diya vishw ne aur nagendr ko bhi usine dhamkaya hoga ,,roop ko aagah kar diya ki uske chehre se sab jaahir ho raha hai ki wo pyar me padi hai .
shubra to vikram ka hi saath degi par roop ko dono me se ek ka chunaw karna padega jo sabse mushkil honewala hai .

laxmi aagah karne aayi par vaidehi ko kisi fikr me naa dekhkar gussa hokar chali gayi .
shaniya ke logo ke saath ekdum sahi kiya vishw ne 🤣🤣..
ab bahut se logo ne bhi dekh liya hai ki raja ke aadmiyo ki peet diya hai vishw ne jisse shaniya ki to koi ijjat bachi hi nahi .

baaki rona ke saath sahi hua 🤣🤣.. usko laga vishw ka kaam tamam ho gaya hoga ,aur shaniya ki akad ke baat karna aur achanak kabja lauta dena rona ke liye kisi shock se kam nahi tha 🤣..
 

parkas

Well-Known Member
31,620
68,185
303
👉एक सौ अठारहवां अपडेट
-----------------------------


शाम ढल चुकी थी
रंग महल में के उद्यान में बड़े से दरी की शतरंज के बिसात के एक तरफ भैरव सिंह खड़ा है और दूसरी तरफ भीमा खड़ा है l चूंकि गोटीयाँ चालों के हिसाब से खानों पर जमे हुए हैं l दोनों तरफ चेहरे पर तनाव के भाव हैं पर कारण दोनों के अलग अलग हैं l भीमा अपनी चालें संभल कर चल रहा है कहीं कोई चाल भैरव सिंह के उपर भारी ना पड़ जाए l पर फिर भी आज भैरव सिंह मन में कुछ और सोच रहा है शायद, इसलिए उसकी चालें किसी खिलाड़ी के तरह नहीं ब्लकि किसी नौसिखिए की तरह खेल रहा है l जिससे भीमा बहुत परेशान हो रहा है और डर इतना के उसके पसीने छूट रहे हैं l अचानक भैरव सिंह गुर्राने लगता है,

भैरव सिंह - भीमा... आज तुम हमें हराओ...
भीमा - (हैरान हो कर भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - हम आज हारना चाहते हैं... इसलिए सही चाल चलो... अगर हरा दोगे... इनाम पाओगे... और अगर हार गए... तो सजा पाओगे...
भीमा - (कुछ कह नहीं पाता, बेवक़ूफ़ की तरह मुहँ फाड़े भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - अगर खेल नहीं सकते... जाओ किसी और को बुलाओ...
भीमा - जी हुकुम... (हकलाते हुए) मैं.. मैं खेलुंगा... मैं खेलुंगा हुकुम...
भैरव सिंह - ठीक है... अपनी चाल चलो...

अब भीमा जितने के लिए गोटियाँ चलाने लगता है l भैरव सिंह भी संभल कर खेलने की कोशिश करता है l धीरे धीरे खेल में भीमा भैरव सिंह पर हावी होने लगता है l भैरव सिंह के एक एक करके प्यादे, ऊंट घोड़े हाती बिसात से बाहर होने लगते हैं l ज्यूं ज्यूं खेल आगे बढ़ते जा रहा था त्यों त्यों भैरव सिंह का पारा चढ़ता जा रहा था l उधर भीमा खुश हो रहा था उसका एक घोड़ा दो ऊंट और वजीर बचे हुए थे पर भैरव सिंह के पास सिर्फ शाह बचा हुआ था और चलने के लिए सोलह खाने बाकी थे l ऐसे में भीमा अपना सिर उठा कर एक नजर भैरव सिंह को देखता है l उसके चेहरे से गुस्सा और नाराजगी को देखते ही भीमा की फटने लगती है l वह मन ही मन दुआ करने लगता है के किसी तरह यह खेल आगे ना बढ़े l कोई ऐसा चमत्कार हो जिससे यह खेल यहीं बीच में ही रुक जाए l उसकी किस्मत अच्छी थी l उस वक़्त एक गाड़ी उसी जगह पर पहुँचती है l भीमा भाग कर जाता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से पिनाक उतरता है l संभावित हार के तनाव से भैरव सिंह भी तमतमाया हुआ था l पिनाक को देख कर वह भी थोड़ा आश्वस्त होता है l पिनाक आँखों से कुछ इशारा कराता है जिसे भीमा भी देख लेता है पर उसे वह अनदेखा करना अपने लिए बेहतर मानता है l पिनाक और भैरव सिंह दोनों रंग महल के अंदर मैयखाने के अंदर जाने लगते हैं l पीछे पीछे भीमा भी चलने लगता है तो

भैरव सिंह - तुम यहीँ पर रुको भीमा.... जब बुलाया जाए... तब अंदर आ जाना...
भीमा - जी... जी हुकुम...

कह कर भीमा वहीँ रुक जाता है l अब दोनों क्षेत्रपाल रंग महल के मैय खाने की ओर बढ़ने लगते हैं l

भैरव - (चलते हुए) तो.. अब बड़े राजाजी की तबीयत कैसी है...
पिनाक - अब ठीक है... दौरा जोर का पड़ा था...
भैरव - ह्म्म्म्म...

दोनों मैयखाने में पहुँचते हैं l वहाँ पर एक टेबल पर पहले से ही शराब के बोतल और ग्लास सजे हुए थे l दोनों अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं l पिनाक पेग बना कर भैरव सिंह को देता है और खुद भी लेता है l

पिनाक - आपने सुबह समझा दिया... तो हमें लगा... बड़े राजा जी... समझ गए... पर विश्व अपनी हरकत से बड़े राजा साहब के दिल व दिमाग पर चोट कर गया था... इसलिए उसी बात को बार बार अपनी जेहन में सोच सोच कर... उनकी बीपी एबनॉरमल हो गई...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - (अपनी दांत पिसते हुए) यह... यह विश्वा ने... ठीक नहीं किया... बड़े राजा जी की ओर... अपना जुते रख कर बात की...
भैरव सिंह - बड़े राजा जी की ओर नहीं... उनके चेहरे की ओर... या यूं कहो जुते उनके मुहँ पर रख कर बात की...
पिनाक - (हैरान हो कर देखते हुए) यह... यह कहते हुए भी... हमारा जुबान लड़खड़ा रहा है... और आप ना सिर्फ आसानी से कह रहे हैं... ब्लकि... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - रुक क्यूँ गए... छोटे राजा जी... ब्लकि...
पिनाक - (कुछ नहीं कहता)
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... (खड़ा हो जाता है) जिस दिन उस कमज़र्फ विश्वा को सजा हुई... उस दिन हम उसकी बहन वैदेही को कटक से अपने साथ राजगड़ तक उठा ले आए थे...
पिनाक - जी... जानते हैं... अपने उस पर बीच चौराहे पर थप्पड़ों पर थप्पड़ जड़े थे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... पर बात उस दिन की नहीं है... बात है... उस दिन से... जिस दिन इस रंग महल में वैदेही लाई गई थी...

कहते कहते भैरव सिंह रुक जाता है l पिनाक भी कोई जवाब नहीं देता है ना ही कोई सवाल करता है l अपना पेग ख़तम करता है l फिर कहना चालू करता है l

भैरव सिंह - उसी दिन से... हमने मिलकर उसकी जिस्म को कई बार नोचा है... उसकी आत्मा को कई बार रौंदा... मगर जब भी हमने उसकी चेहरे को देखा... दर्द तो दिखा पर... हमे लगा... जैसे हम कभी उससे जीते ही नहीं... उस कमिनी ने हमारे हर इरादों पर पानी फेरा है... एक बात जो हमें बहुत दिनों बाद मालुम हुआ... उसने हस्पताल में ऑपरेशन के दौरान... अपनी बच्चे दानी को निकलवा दिया था... इस तरह से... पहली बार में ही... हमें ऐसा हराया था कि... उसके बाद कभी जीत महसुस ही नहीं कर पाए.... उसे जलील करने के लिए... दर्द देने के लिए... विश्वा को सजा हो जाने के बाद... राजगड़ के बीच चौराहे पर हम... थप्पड़ मारते हुए जलील करते रहे... पर...
पिनाक - पर...
भैरव सिंह - पर उस दिन... उस थप्पड़ के साथ साथ कुछ और भी हुआ था...
पिनाक - क्या...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा... हाँ... उसने हर थप्पड़ पर एक एक करके सात बद्दुआ दी थी... सात चैलेंज हमारे लिए... पर सात मिशन थे विश्व के लिए...
पिनाक - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - उसने कहा था... हम क्षेत्रपालों को... सपनों से भी बुरा दिन... हमें... विश्वा दिखाएगा... शायद... विश्वा... उसी को मिशन बना कर महल में आया था...
पिनाक - महल में घुसने के लिए... हिम्मत चाहिए.... अगर हमारे पहरेदार अलर्ट होते तो....
भैरव सिंह - (पिनाक की बातों को बीच में काट कर) पहरेदार नहीं... हमने नौकर पाले हैं...
पिनाक - क्या आप... उसे इतनी आसानी से छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - हाँ.... फ़िलहाल के लिए... हाँ...
पिनाक - क्यूँ...
भैरव सिंह - हम अपने पालतूओं से क्या कहेंगे... के विश्वा आया था... हमारे महल में... (फिर से पेग उठा कर पिता है) छोटे राजा... जो बांस जितना मोटा होता है... वह बांस अंदर से उतना ही खोखला होता है... यहाँ के शैतान... सरकार... सिस्टम... सब हमारे दम पर वज़ूद में हैं... हमने खुद को... उस ऊँचाई पर रखा हुआ है... की कोई हमारी तरफ गर्दन उठा कर नहीं देखता... क्यूंकि अगर देखेगा... तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... पर विश्वा आकर हम क्षेत्रपाल के मूछों पर पंजा मार दिया.... तो जरा सोचिए... लोगों की नजर में.... उस ऊंचाई से लुढ़कने में कितनी देर लगेगी...
पिनाक - ओ... तो इसी वज़ह से... आपने... उस हरामखोर के पीछे लोग नहीं छोड़े...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
पिनाक - बड़े राजा जी को दिलासा कैसे देंगे...
भैरव सिंह - देंगे... जरूर देंगे... विश्वा... अपने मिशन में है... कभी ना कभी... वह हमारे लोगों के साथ भी उलझेगा... तब हमारे लोग उसे संभाल लेंगे...
पिनाक - अगर नहीं संभल पाए तो...
भैरव सिंह - (भवें सिकुड़ कर पिनाक की ओर देखता है)
पिनाक - वह... रोणा कह रहा था... आपको याद होगा... विश्वा किस काबिल है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... अहंकार जो विरासत में मिली है... हमारी नसों में दौड़ रही है... रौब और रुतबा हमारी मूछों की ताव है... शायद इसी के गुरुर में... हम वैदेही से वादा कर बैठे... उस हरामखोर विश्वा पर ध्यान नहीं देंगे... जो अब हमें हमारी गलती का एहसास दिला रहा है...
पिनाक - यह आप ऐसे क्यूँ कह रहे हैं... वह क्या... उसकी औकात क्या... उसकी मिशन से वह क्या कर लेगा... क्या है उसका मिशन...
भैरव सिंह - जिन लोगों को हम जुतों के नीचे रखते हैं... जुतों के नीचे रौंदा करते हैं... उन्हीं लोगों के पैरों को... वह हमारी जुतों में डालेगा...
पिनाक - क्या... इतना सबकुछ जान कर आप खामोश क्यूँ हैं... वह धीरे धीरे हमारे लोगों को चैलेंज करेगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हम भी यही चाहते हैं... वह अब हमारे पालतूओं से भिड़े... उस हरामजादे की की खबर... हमारे पालतूओं के जरिए... हम तक पहुँचे... तब हम उसके खिलाफ कोई कारवाई के लिए सीधे कदम उठा सकते हैं....

फिर दोनों के बीच कुछ देर के लिए लिए खामोशी छा जाती है l पिनाक देखता है भैरव सिंह कुछ खो सा गया है l

पिनाक - अब आप किस सोच में हैं...
भैरव सिंह - सोच रहे हैं.. एक महीना विश्व था कहाँ पर... वह दिखता कैसा है... क्या इस बीच उसका और हमारा... कभी आमना सामना हुआ है...
पिनाक - (खड़ा होता है) जी... हुआ है...
भैरव सिंह - (हैरानी भरे नजर से पिनाक को देखता है)
पिनाक - लॉ मिनिस्टर विजय जेना की बेटी के रिसेप्शन में... जो आपसे जुबान लड़ा रहा था...


भैरव सिंह की आँखे बड़ी हो जाती है l उसे झटका सा लगता है l फिर अचानक उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l उसके हाथ ग्लास पर कसने लगते हैं l फिर टक कड़च की आवाज के साथ ग्लास टुट जाती है l

पिनाक - रा... राजा साहब...
भैरव सिंह - यह आपको कब मालुम हुआ...
पिनाक - आज ही... सुबह उसको महल से जाते हुए देखा था... नाम नहीं जानते थे.... पर जब बड़े राजा जी ने कहा कि वह विश्वा था... तब हमें याद आया था.. की वह...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... वह उस दिन एक औरत के साथ आया था... माँ.. माँ कह रहा था उसे....

भैरव सिंह झट से पास रखे एक बेल को बजाता है, भीमा भागते हुए अंदर आता है l

भीमा - हुकुम....
भैरव सिंह - कॉर्डलेस लेकर आओ...

भीमा एक किनारे जा कर कॉर्डलेस उठा कर लाता है और भैरव सिंह को देता है l भैरव सिंह उसमें एक नंबर डायल करता है l कुछ देर बाद

भैरव सिंह - हैलो...
- xxxxx
भैरव सिंह - एक औरत के बारे में... पता करो... वाव... मतलब... वर्किंग वुमन्स एसोसिएशन ओडिशा की प्रेसिडेंट है वह... हमें उसके बारे में... दो दिन के भीतर सारी जानकारी चाहिए....
-xxxxxxx

भैरव सिंह फोन काट कर रख देता है l उसकी आँखों में एक चमक दिखने लगता है l

पिनाक - यह... आप किससे बात कर रहे थे...
भैरव सिंह - यह वही है... जिसके एक खबर के वज़ह से.... आप यहाँ बुलाए गए हैं... बात घर की है... कभी भी निपटा सकते हैं.... फ़िलहाल बाहर की बात पर गौर करना है... एक लिंक मिल जाए... तो कब और कैसे निपटाना है... यह तय करना है...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

द हैल
डिनर टेबल पर विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं l एक दुसरे के आँखों में झांकते हुए खाना खा रहे हैं l शुभ्रा नजरें मिलाती है, फिर शर्मा कर नजरें चुरा लेती है, पर विक्रम चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लिए शुभ्रा घूर रहा था l दोनों को यह एहसास गुदगुदा रहा था l

विक्रम - कितना प्यारा लग रहा है यह एहसास.... है ना..
शुभ्रा - (शर्माते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
विक्रम - वैसे थैंक्यु...
शुभ्रा - (हैरान हो कर देखती है) क्यूँ.. किस बात के लिए...
विक्रम - नौकरों को बाहर भेजने के लिए...
शुभ्रा - (शर्मा कर चेहरा झुका लेती है) क्यूँ आपको अच्छा नहीं लगा...
विक्रम - बहुत... बहुत अच्छा लग रहा है... हर पल यह एहसास जितना पुराना होने लगता है... फिर से नया नया सा महसुस होने लगता है...
शुभ्रा - (खुद को थोड़ा संभालती है) पर... हम हरदम तो ऐसे नहीं रह सकते....
विक्रम - हाँ... इस घर के दो और सदस्य अभी आने को हैं... फिर शायद ऐसा मौका मिले ना मिले...
शुभ्रा - हाँ...
विक्रम - फिर भी... सबके सामने... उस वक़्त में भी... कुछ लम्हे चुरा लेंगे...
शुभ्रा - अच्छा...
विक्रम - हूँ.. देख लेना...
शुभ्रा - वैसे विक्की.. आपको ऐसा नहीं लगता... हम रिश्ते में और उम्र में बेशक... अपने छोटों से बड़े हैं... पर वे दोनों हमसे ज्यादा मेच्यॉर हैं... हमें पास लाने के लिए... क्या कुछ नहीं किया उन्होंने...
विक्रम - हाँ... सबसे ज्यादा... हमारी रुप... उसने कभी कोशिश करना नहीं छोड़ा... उसीने वीर को वर्गलाया और उसीके मदत से... यह सब किया...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं...
विक्रम - शुब्बु... मेरी जान... वीर को... मैं उतना ही जानता हूँ... जितना कि खुद को... यह सब रुप का ही किया धरा है...
शुभ्रा - सच कह रहे हैं आप... मेरी एक ही तो सहेली है वह...
विक्रम - हाँ... उसकी भी तो आप ही एक सहेली हैं...
शुभ्रा - महल में वह कैसी रहती थी... मैं नहीं जानती... पर वह इस घर की जान है... उसके आने के बाद ही तो... हम मिल बैठ कर खाना खा रहे हैं...
विक्रम - वैसे भी... इस टेबल को छोड़ और कहीं और मिलकर नहीं बैठ पाते... बातेँ नहीं कर पाते....
शुभ्रा - हाँ वैसे... पता नहीं... और कितने दिन गांव में रहेगी... उसके बिना यह घर... घर नहीं लग रहा है...

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज दोनों के कानों में पड़ती है l दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखते हैं, एक दुसरे को जेहन में एक ही सवाल था l इस वक़्त कौन हो सकता था l तभी डोर बेल बजती है l शुभ्रा उठ कर जाती है और दरवाजा खोलती है l कोई नहीं दिखता के तभी "भौ" की आवाज से चौंक जाती है l सामने रुप खड़ी थी l

रुप - भाभी... (चिल्लाते हुए शुभ्रा की दोनों हाथों को पकड़ कर घूमने लगती है)
शुभ्रा - नंदिनी... आरे... रुको... आह... देखो... तुम तो गिरोगी... मुझे भी गिराओगी...

रुप को इस तरह से चहकते और खुश होता देख विक्रम बहुत खुश होता है पर साथ साथ हैरान भी होता है l

विक्रम - नंदिनी...

रुप रुक जाती है और शुभ्रा को छोड़ विक्रम के पास जाती है और उसके गले लग जाती है l

विक्रम - क्या बात है नंदिनी... आज तुम बहुत अलग लग रही हो...
वीर - मैं भी जब से मिला हूँ... यही महसुस कर रहा हूँ... बिल्कुल एक छोटी बच्ची की तरह... (सामान और लगेज अंदर लाते हुए, शुभ्रा से) कैसी हैं आप भाभी...
विक्रम - अरे वीर तुम...
वीर - हाँ भैया.. (रुप की ओर इशारा करते हुए) शाम को मुझे इस आफत की पुड़िया.. शरारती गुड़िया का फोन आया.. की रात को खाने के वक़्त तक हमें घर पहुँचना है... तो बस यह मुझे यहाँ तक ले आई...
शुभ्रा - चलो अच्छा हुआ... सच कहूँ तो खाने के टेबल पर तुम लोगों को ही हम याद कर रहे थे...
रुप - सच भाभी... (बड़ी मासूमियत के साथ) वैसे... हम गलत वक़्त पर तो नहीं आ गए ना...
शुभ्रा - अरे नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (बड़ी भोली बनते हुए) मेरा मतलब है... हम कबाब में हड्डी तो नहीं बन गए ना...
शुभ्रा - (रुप की कान पकड़ कर) नंदिनी की बच्ची...
रुप - आह... आह भैया बचाओ...

शुभ्रा छोड़ देती है l दोनों भाई रुप के इस अंदाज व शरारत पर मुस्कराने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा नंदिनी... तुम शायद दो पहर को निकली होगी... आज ही क्यूँ आई... अगर आना ही होता... तो सुबह निकलती या फिर... कल सुबह निकलती....

रुप की चहकती चेहरा शांत हो जाती है l चेहरे पर भाव बदल जाती है l ऐसा लगता है जैसे कुछ कहते ना बन पा रहा था l विक्रम और व वीर दोनों एक दुसरे की ओर देखते हैं l

विक्रम - क्या हुआ नंदिनी... कुछ गलत हुआ है क्या...
रुप - (अटक अटक कर) वह भैया... आज सुबह ही महल में... हंगामा हो गया... कोई कांड हो गया... मुझे माहौल ठीक नहीं लगा तो... छोटी माँ से इजाजत लेकर चली आई...
विक्रम - क्या... कैसा हंगामा...
वीर - कांड...

रुप वगैर विश्व का नाम लिए और रात की बात को छुपा कर जैसा जैसा सुषमा ने बताया था, रुप नागेंद्र के साथ जो कुछ हुआ सब बता देती है l

रुप - पता नहीं भैया... क्या होगा... या होने वाला है... मैं इसलिए वहाँ के टेन्शन से बचने के लिए... छोटी माँ से कह कर तुरंत चली आई...
शुभ्रा - अच्छा... जो हुआ... जैसा हुआ... क्यूँ हुआ... वह सब हम खाने के बाद सोचेंगे... या उस पर बात करेंगे... चलो पहले खाना खा लेते हैं...
वीर - हाँ... हाँ... पहले खाना खा लेते हैं... फिर सोचते हैं...

पुरी बात सुनने के बाद से ही विक्रम गहरी सोच में खोया हुआ था l यह बात टेबल पर तीनों नोटिस कर लेते हैं l बात तो घुमाने के लिए

रुप - अच्छा भाभी... नौकर नहीं दिख रहे हैं...
शुभ्रा - वह इसलिए कि मैंने फैसला किया है.. अब किचन में.. मैं ही खाना पकाउंगी... नौकर बस सिर्फ साफ सफाई देखेंगे....
वीर - वाह भाभी वाह... क्या बात है... मतलब... अब से घर में सिर्फ आपके हाथ का ही खाना मिलेगा...
शुभ्रा - हाँ... चाहे पसंद करो या ना करो...
वीर - अरे क्या बात कर रही हैं आप... खाना तो अमृत लग रहा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म मस्का लगा रहे हो....
वीर - नहीं भाभी... सच कह रहा हूँ... कसम से...
शुभ्रा - तो फिर ठीक है...

खाने के टेबल पर इस तरह की बातेँ चल रही थी l पर विक्रम खामोश था, वह कुछ सोच रहा था l तीनों महसूस तो कर पा रहे थे पर विक्रम से पुछ नहीं पा रहे थे l खाना ख़तम होते ही शुभ्रा रुप को इशारा करती है l दोनों बर्तन समेट कर किचन के अंदर चले जाते हैं l उनके जाने के बाद ड्रॉइंग रूम में विक्रम और वीर आते हैं l

वीर - क्या बात है भैया... महल में क्या हुआ जानकर तुम बहुत गहरे सोच में चले गए...
विक्रम - वीर... महल में जो घुस आया था... तुम जानते हो या अंदाजा भी है... वह कौन था...
वीर - नहीं...
विक्रम - (वीर की ओर देखते हुए) मुझे लगा... तुम जानते होगे... खैर... वह तुम्हारा दोस्त... विश्व प्रताप था...

वीर को झटका सा लगता है l उसका मुहँ खुला रह जाता है l वह हैरान हो कर विक्रम की ओर देखने लगता है l

विक्रम - उसने अपना काम शुरु कर दिया है...
वीर - (सीरियस हो कर) तो क्या तुम प्रताप को रोकने जाओगे...
विक्रम - प्रताप का और मेरा तब तक सामना नहीं हो सकता या होगा... जब तक राजा साहब नहीं चाहेंगे... जब तक राजा साहब को यह लगेगा.. उनके लोग उसे संभाल लेंगे... तब तक राजा साहब मुझे मैदान में उतरने के लिए नहीं कहेंगे... (चुप हो जाता है) (एक गहरी साँस लेते हुए) अभी तो नहीं पर... कभी न कभी सामना तो होना ही है...
वीर - तो आपको लगता है... उसे राजा साहब के लोग संभाल नहीं पाएंगे...
विक्रम - नहीं... उसे कोई संभाल नहीं पाएगा...

उधर किचन में शुभ्रा बर्तन माँज रही थी l बर्तन माँजते हुए एक एक रुप के हाथों में दे रही थी l रुप उसे कपड़े से साफ करते हुए रैक में रख रही थी l

शुभ्रा - तो... तुम्हारे अनाम ने... आखिर तुम्हें प्रपोज कर ही दिया...
रुप - ह्म्म्म्म... कर ही दिया... पर आपको कैसे मालुम हुआ...
शुभ्रा - तुम गई थी... उसीके लिए ही ना... पर संभल कर रहना...
रुप - क्यूँ... किससे...
शुभ्रा - तुमसे तुम्हारी खुशियाँ नहीं संभल रही है.... और चेहरा रंग देख कर कोई भी बता सकता है... यह रंग प्यार के हैं... (
रुप - (शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - बहुत ही... खास तरीके से... प्रपोज किया होगा...
रुप - (शर्म के साथ साथ चहकते हुए) हाँ भाभी... क्या बताऊँ... क्या स्टाइल में इजहार किया...
शुभ्रा - तुम्हें प्रपोज करने के बाद... अनाम बड़े राजा जी के पास गया था ना... (रुप का चेहरा उतर जाता है, सिर झुका कर हाँ कहती है) देखो नंदिनी... महल में विश्व ने ही वह कांड किया.. इस बात को विक्की भी अच्छी तरह से भांप गए हैं.... अब लगता है... नियति बहुत जल्द उन्हें एक दुसरे के सामने खड़ा कर देगी... तब.. (आवाज भारी हो जाती है) हम किसके साथ खड़े होंगे.... सोच सकती हो.... मेरी तो एक राह होगी... पर तुम खुद को शायद दोराहे पर पाओ...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


गौरी सो चुकी थी l वैदेही सारे काम निपटा कर सोने के लिए चारपाई तक पहुँची ही थी के दरवाजे पर दस्तक होने लगती है l वैदेही जाकर दरवाजा खोलती है l सामने लक्ष्मी डरी सहमी खड़ी थी l

वैदेही - लक्ष्मी... क्या हुआ... इतनी घबराई हुई क्यूँ हो... हरिया ने कुछ किया क्या...
लक्ष्मी - (घर के अंदर आ जाती है, और हांफते हुए) दीदी... वह आज दारु के ठेके से पी कर आए थे... नशे में कुछ बड़बड़ा रहे थे... वह सुन कर मैं आपको बताने आ गई...
वैदेही - एक मिनट रुको... मैं पानी लाती हूँ.. तुम उसके बाद मुझे सब कुछ बताओ...
लक्ष्मी - नहीं.. नहीं दीदी... (वैदेही की हाथ पकड़ लेती है) आप विश्वा भाई को खबर करो...
वैदेही - (चौंक कर) क्या... विश्वा... क्या खबर करना है...
लक्ष्मी - यह नशे में ठेके पर सुन कर आए हैं... और वही बड़बड़ाते हुए कह रहे थे...
वैदेही - क्या कहा हरिया ने...
लक्ष्मी - शनिया, भूरा सत्तू... सब आज रात विश्वा भाई को मारने के लिए मंसूबा पाले हुए हैं...
वैदेही - ओह... तो यह बात है...
लक्ष्मी - हाँ दीदी... जल्दी करो... कोई अनर्थ ना हो जाए...
वैदेही - एक मिनट... (वैदेही अंदर जा कर एक पानी की ग्लास लक्ष्मी को देती है) ले पी ले...
लक्ष्मी - (हैरान हो जाती है) दीदी... उधर विश्वा भाई खतरे में है...
वैदेही - तु अब घर जा... हो सके तो... आज अपनी बस्ती में.. मुहल्ले में सबको जागरण करने के लिए कह दे...
लक्ष्मी - क्यूँ... दीदी...
वैदेही - जो पीढ़ी दर पीढ़ी ना देख पाए... आज वह तुम सब लोग देखने वाले हो... आज विश्वा... राजा के आदमियों को गली गली चौराहा चौराहा दौड़ा दौड़ा कर मारेगा...
लक्ष्मी - (गुस्सा हो जाती है) दीदी... पागलपन की भी हद होती है... तुम्हारा मुझ पर इतने उपकार हैं.. की जन्मों तक उतार ना पाऊँ... इसलिए रात के अंधेरे में... राजा के हुकुम को किनारे कर तुम्हें आगाह करने आई थी... पर तुम.. किस दुनिया में जी रही हो... या भूल गई... राजा ने विश्वा का क्या हालत बनाई थी...
वैदेही - (मुस्कराते हुए) पागलपन ही सही... पर वह सब धीरे धीरे होने वाला है या हो रहा है... जो मैंने तुझे कहा... जरा सोच आज से पहले किसी ने सोचा था... के राजा का हुकुम की नाफरमानी कोई कर सकता है... रात के अंधेरे में ही सही... तुने तो किया ना... जब यह हो गया है... तो वह भी होगा... जा... आज की रात बहुत खास होने वाला है... कुछ लोगों की किस्मत और करम दोनों ही फूटने वाले हैं आज रात....
लक्ष्मी - (गुस्से में) मेरी ही मती मारी गई थी... जो तुम्हें आगाह करने आई थी... जा रही हूँ...

कह कर बिना पीछे मुड़े लक्ष्मी चली जाती है l वैदेही दरवाजा बंद कर देती है और अपनी आँखे मूँद कर हाथ जोड़ कर मन ही मन विश्व की खैरियत के लिए भगवान को प्रार्थना करने लगती है l जब आँखे खोलती है तो सामने गौरी खड़ी थी l

गौरी - लक्ष्मी तुझे आगाह कर गई... पर तुने उसे भगा दिया... और अब भगवान से प्रार्थना कर रही हो...
वैदेही - काकी... मुझे अपने विशु पर पुरा भरोसा है... मुझे डर बिलकुल नहीं है..
काकी - क्यूँ झूठ बोल रही है... भगवान से उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना नहीं कर रही थी...
वैदेही - हाँ कर रही थी... पर उसकी रक्षा के लिए ही नहीं... उसकी विजय के लिए भी...
गौरी - इतना भरोसा...
वैदेही - हाँ काकी... उसके कारनामों से मैं वाकिफ़ हूँ... पर यहाँ कोई नहीं है... और वह इन सब मामलों में... अपने गुरु से आगे है...
गौरी - अच्छा...
वैदेही - हाँ काकी... विशु जिस दिन जैल से छुटा था.. उसी दिन उसके गुरु का फोन आया था... और उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया था... विश्वा हर मुसीबत के लिए तैयार हो कर ही जैल से निकला है... तुम बस देखती जाओ... कल से राजगड़ का इतिहास और भूगोल बदलने वाला है...

गौरी देखती है वैदेही बहुत ही आत्मविश्वास के साथ अपनी चारपाई की ओर बढ़े जा रही थी l गौरी भी ऊपर हाथ उठा कर प्रार्थना करती है

गौरी - हे भगवान इस अभागिन की विश्वास की लाज रखना...

उसी वक़्त कहीं दूर से किसी कुत्ते की रोने की आवाज आती है l विश्व के घर से कुछ दूर शनिया और उसके साथी इकट्ठे होते हैं l

सत्तू - शनिया भाई... अब क्या करना है...
शनिया - केरोसिन लाए हो..
भूरा - हाँ भाई... मशाल भी...
शनिया - बहुत अच्छे... साले सोये हुए होंगे... पहले घर के चारो तरफ केरोसीन डाल देंगे फिर आग लगा कर बाहर घात लगा कर छुपे होंगे... अगर वह घर से निकलने की कोशिश की... तो उस हरामजादे को... बाहर काट कर बोटी बोटी कर फिर से आग में फेंक देंगे....
भूरा - बढ़िया... बिल्कुल वैसे ही करेंगे...
सत्तू - क्या भाई... एक अकेले को हम इतना क्यूँ भाव दे रहे हैं... चलो ना साले को घर से निकाल कर पहले खूब धुनाई करते हैं... फिर उसकी चिता सजाते हैं...
शनिया - (सत्तू की गर्दन पकड़ लेता है) सुन बे भोषड़ी के... रोणा साहब ने जितना कहा है उतना ही कर... अपना दिमाग ज्यादा मत चला...
सत्तू - (कराहते हुए) जी... जी भाई... अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो...
शनिया - (उसका गर्दन छोड़ते हुए) अबे ढक्कन... रोणा साहब सब संभाल लेंगे... क्यूँकी यह काम सिर्फ हमारे लिए नहीं... रोणा साहब के इज़्ज़त के लिए भी करना है....


फिर सब धीरे धीरे विश्व के घर की ओर बढ़ने लगते हैं l कुछ दुर पर सब रुक जाते हैं l शनिया एक बंदे को केरोसीन से भरी टीन का डिब्बा देकर घर के पास जाकर छिड़कने के लिए भेजता है l वह बंदा टीन का डिब्बा लेकर घर के पास पहुँच कर ढक्कन खोल कर जैसे ही बरामदे के पास कदम बढ़ाता है उसके मुहँ से चीख निकल जाती है, वह अपने मुहँ पर हाथ रख कर लड़खड़ाते हुए पीछे आता है l

शनिया - क्या हुआ...
बंदा - (कराहते हुए) कोई कील चुभ गई है...
सत्तू - क्यूँ बे... फटा जुता पहन कर आया है क्या...
बंदा - नहीं पर जुते के अंदर से ही घुस गया है... (कह कर जुते के साथ साथ चुभी कील को निकालता है) आह...

शनिया एक दुसरे बंदे को भेजता है l वह भी जब घर के दरवाजे तक पहुँचता है उसकी भी वही हालत होती है l पर इस बार थोड़ा ज्यादा होता है l जिस कंफीडेंट के साथ गया था, जैसे ही उसका जुता छेद कर एक कील पैर में घुस गया था इसलिए वह लड़खड़ा कर गिर जाने के वज़ह से उसके पिछवाड़े तसरीफ़ में भी कील घुस जाते हैं l वह दर्द के मारे चीखने लगता है l सारे बंदे चौंक कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l कुछ उसे उठाने जाने को होते हैं कि शनिया उन्हें रोक देता है l तभी विश्वा के घर का दरवाज़ा खुलता है l विश्व के साथ साथ टीलु भी बाहर आता है l टीलु के हाथ में एक लोहे का रॉड जैसा था l विश्व और टीलु दोनों खड़ाऊ पहने हुए थे l उनके पैरों में जुते थे और जुतो के नीचे खड़ाऊ देख कर शनिया समझ जाता है कि विश्वा पहले ही उनके लिए तैयार बैठा था l

विश्व - अरे शनिया भाई... मुझे मेरे घर का हक लौटाने के लिए... रात को ही क्यों चुना... आपने क्यूँ तकलीफ की... और भी आठ घंटे बाकी हैं... सुबह आकर मैं ले जाता ना...
शनिया - इतनी तैयारी... मतलब तुझे अंदाजा था... के हम आने वाले हैं...
विश्व - हाँ... कोई शक... तुम लोगों के साथ... तुम लोगों के बीच रह कर... बचपन से जवान हुआ हूँ... तुम लोगों के रग रग से वाकिफ हूँ... तुम सब छक्के हो... जिनका मर्द... राजा भैरव सिंह है...
शनिया - तु तो बड़ा मर्द है ना... तो घर के आसपास कीलें क्यूँ बिछा रखे हैं...
विश्व - अरे शनिया भाई... यह कीलें.... दो टके के लुच्चों के लिए था... मुझे थोड़े ना पता था... उनसे भी गया गुजरा टुच्चे यहाँ फंसेंगे...
भूरा - तो कीलें हटा... आज तेरा खेल ख़तम कर के ही यहाँ से हम जाएंगे...
विश्व - हाँ जाओगे तो जरूर... क्यूंकि तुम लोगों को उमाकांत सर जी घर... मेरे हवाले जो करना है...
सत्तू - बच्चे... कल का सुबह देखेगा... तब जाकर घर लेगा ना...
विश्व - अरे सत्तू भैया... यह रात कहाँ इतनी लंबी होने वाली है... बस थोड़ी देर और... मैं भी देखूँगा... तुम सब भी देखोगे... जाओ यार जाओ... क्यूँ अपनी खाट खड़ी रखना चाहते हो..
शनिया - जुबान लंबी चल रही है... मगर जिगर छोटी... डर लग रहा है क्या...
विश्व - तुम सालों को... पुलिस से डर नहीं लगता... अरे हाँ... तुम लोगों का अम्मा का यार है ना... थानेदार... कोई नहीं... यह भरम भी अब दुर हो जाएगा... (टीलु से) टीलु मेरे भाई... यह सारी कीलें हटा दो यार...

टीलु अपने हाथ में रॉड लेकर चारों तरफ घुमाने लगता है l टिक टाक की आवाज करते हुए कीलें उस रॉड से चिपकने लगते हैं l मतलब वह एक लंबा सा चुंबक था जिसके मदत से कीलें हटा कर जमा करने लगता है l थोड़ी देर बाद टीलु किनारे खड़ा हो जाता है l शनिया का एक बंदा हाथ में एक डंडा लिए तभी विश्व की ओर भागते हुए हमला कर देता है l विश्व झुक कर एक घुसा उसके पेट में जड़ देता है l कुछ देर के लिए वह बंदा किसी पुतले की तरह अकड़ कर खड़ा रह जाता है फिर एक कटे पेड़ की तरह गिर जाता है l यह देख कर सभी जो विश्व को मारने आए थे सब के सब हैरान हो जाते हैं l

शनिया - अब कीलें भी नहीं हैं... मशाल वाली डंडे फेंक कर... अपनी अपनी हथियार निकालो... और काट डालों कुत्ते को..

कह कर शनिया अपना एक धार धार हथियार निकालता है l उसके देखा देखी सभी अपने अपने हथियार निकाल लेते हैं l सभी एक साथ मिलकर विश्व पर हमला बोल देते हैं l बिजली की फुर्ती से खुद को बचाते हुए विश्व उनके बीच से गुजर कर उल्टे दिशा में खड़ा हो जाता है l सबकी वार खाली गया था l शनिया अब पुरी तरह से पागल हो जाता है l वह सबको इशारा करता है l उसका इशारा समझ कर सब विश्व के चारों तरफ घेरा बना कर घेर लेते हैं l विश्व अपना पोजिशन लेता है l फिर उन सबको छका कर अपने पैरों का जादुई पैंतरा आजमाने लगता है l इससे पहले के शनिया और उसके साथी कुछ समझ पाते सबके हाथों से हथियार छिटक कर दुर जाकर गिरते हैं l इतने में आसपास के घरों की खिड़कियाँ खुलने लगते हैं l लोग दुबक कर बाहर हो रहे घटना को देख रहे थे l शनिया को जैसे ही यह एहसास होता है कि लोग देखने लगे हैं तो वह विश्व पर झपट पड़ता है और विश्व को पीछे से पकड़ लेता है l उसके दूसरे साथी भी विश्व पर टुट पड़ते हैं, पर विश्व अपने सिर को पीछे की ओर झटका देता है जिससे शनिया का नाक टुट जाता और विश्व उसके पकड़ से छूट जाता है l फिर विश्व एक के बाद एक को बारी बारी करके मारते हुए पटखनी देने लगता है l सब के सब नीचे गिर कर छटपटाने लगते हैं l तब तक आसपास के लोग अपने घर से निकल कर हाथों में टॉर्च लेकर सब कुछ देख रहे थे l शनिया और उसके बंदे समझ चुके थे विश्व से उलझना कितना घातक है l विश्व लोगों के सामने उनका इज़्ज़त का कबाड़ा निकाल चुका था l आखिर राजा साहब के लोग हैं l फिर भी शनिया एक आखिरी कोशिश करता है l पास पड़े मशाल की लकड़ी उठा कर हमला करता है l यह वार भी बेकार जाता है l विश्व शनिया का हाथ पकड़ कर उसके हाथ से वह डंडा छिन लेता है, फिर शनिया हाथ मरोड़ कर उसके पिछवाड़े पर चलाने लगता है l विश्व के हर मार पर शनिया मेंढक की तरह उछलने लगता है l उसे मार खाता देख कर शनिया के साथी भागने लगते हैं l शनिया अपने साथियों को उसे छोड़ भागते हुए देख कर विश्व के सामने गिड़गिड़ाने लगता है

शनिया - विश्वा भाई.. छोड़ दे भाई... प्लीज...
विश्वा - एक शर्त पर...
शनिया - मुझे सभी शर्तें मंजुर है...
विश्व - तुम अपने साथियों के पीछे उन्हें मारते मारते हुए भागोगे... मैं तुम्हारे पीछे भागुंगा... तुमसे अगर कोई छुटा... तो मैं तुम्हें वहीँ यह डंडा टूटने तक कुटुंगा...
शनिया - जी भाई...

विश्व शनिया को छोड़ देता है l शनिया नीचे पड़े एक डंडा उठाता है और भूरा सत्तू और दूसरों के पीछे भागने लगता है l उन सबके पीछे विश्व भी भागता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

सुबह हो चुका है
आज की सुबह राजगड़ थाने के लिए कुछ अलग थी l
राजगड़ आदर्श थाने में आज सुबह सुबह अच्छे से तैयार हो कर बन ढं कर इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था l सारे स्टाफ़ देख रहे थे रोणा मन ही मन खुश हो रहा था l एक कांस्टेबल उसके पास आता है

कांस्टेबल - सर... आज आप बहुत खुश लग रहे हैं...

रोणा कांस्टेबल को घूरने लगता है तो कांस्टेबल सकपका जाता है l उसे सकपकाता देख रोणा खुल कर हँसने लगता है l

रोणा - राजगड़ में फिरसे चार्ज लेने के बाद... आज मुझे पहली बार खुशी मिलने वाली है...
कांस्टेबल - (चुप रहता है)
रोणा - अबे पूछना... कैसी खुशी...
कांस्टेबल - कैसी खुशी सर...
रोणा - (अपनी फटी आवाज़ में गाने लगता है) जिसका मुझे... था इंतजार...
जिसके लिए दिल... था बेकरार...
वह घड़ी आ गई आ गई आज...
हद से आगे दारु पीना है और
मुर्गी तन्दूरी दबा के खाना है...
कांस्टेबल - सर... वह तो आप रोज खाते हैं...
रोणा - (बिदक कर) तो... (फिर मुस्कराते हुए) आज पहली बार... बरसों बाद थाने में केस दर्ज होगी... और हम आज फिल्ड भी जाएंगे...
कांस्टेबल - तहकीकात के लिए...
रोणा - अबे नहीं बे... पंचनामा करने के लिए... हा हा हा हा..

अचानक उसके हँसी में ब्रेक लग जाता है l क्यूंकि दरवाजे पर एक सुदर्शन नौजवान खड़ा था l रोणा उसे गौर से देखने लगता है l देखते देखते उसकी आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं l

रोणा - विश्वा... (हैरानी से उसके मुहँ से बस इतना ही निकल पाया)
विश्व - अरे दरोगा जी नमस्ते... कमाल है आपने तो मुझे पहचान लिया...
रोणा - (हड़बड़ा जाता है, अटक अटक कर) तुम यहाँ... कैसे... मेरा मतलब है... क्यूँ...
विश्व - लगता है... मुझे यहाँ देख कर... आपकी खुशियों में पानी गिर गया...
रोणा - (खुद को संभाल कर कड़क आवाज में) यहाँ क्यूँ आए हो...
विश्व - जाहिर है... थाने में कोई... पार्टी करने आता तो नहीं... केस दर्ज करने आया हूँ...
रोणा - की... किस के खिलाफ...
विश्व - अरे दरोगा जी... पहले केस तो जान लीजिए... हो सकता है... आप यूँ.. (चुटकी बजाते हुए) चुटकियों में समाधान भी कर दें...
रोणा - ठीक है... क्या केस है...
विश्व - ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी... कुछ लोग मेरी प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी कब्जा जमाए बैठे हैं... आपको बस उसे छुड़ाना है...
रोणा - ओये... मैं किसीके बाप का नौकर नहीं हूँ... इंस्पेक्टर हूँ... समझा... इंस्पेक्टर... चल दफा हो जा यहाँ से...
विश्व - मिस्टर इंस्पेक्टर... आप अभी 1981 के पुलिस ऐक्ट का सेक्शन 29 का उलंघन कर रहे हैं... आप मुझसे तमीज से बात करें... वर्ना मैं आपके खिलाफ आईपीसी के धारा 323, 504, 506 और 330 के तहत सीधे अदालत जा कर केस दर्ज कर सकता हूँ... सोच लीजिए...
रोणा - (विश्व को कुछ देर तक घूरता है, फिर) कांस्टेबल... इन साहबका केस फाइल करो... रिलेटेड सारे डॉक्युमेंट्स कलेक्ट करो...
विश्व - अरे सर... केस दर्ज करने से पहले... आप डॉक्युमेंट्स देख लें... और उसे छुड़ाने की कोशिश कीजिए... मुझे पुरा विश्वास है कि... वह लोग हम जैसे साधारण नागरिकों को अनदेखा तो कर सकते हैं.... पर आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ आदर्श थाने के इंचार्ज को तो अनदेखा नहीं करेंगे... आपकी इज्जत के खातिर... वे लोग ज़रूर मेरी प्रॉपर्टी मुझे सौंप देंगे...
रोणा - (अपने हलक से थूक गटकता है, फिर भी वह खुद को संभलता है) मिस्टर लॉयर... आप भुल रहे हैं... यह जो ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी का केश दर्ज कराना चाहते हैं... यह एक सिविल केस है... इसमें पुलिस की भूमिका नहीं होती... सिविल कोर्ट की भूमिका होती है...
विश्व - वाव क्या बात है सर... मुझे नहीं मालुम था... आपको मेरी वकालत की डिग्री के बारे में जानकारी है... वाव वाव वाव... पुलिस इंस्पेक्टर हो तो... आपके जैसा... वर्ना ना हो....
रोणा - ह्म्म्म्म... तो जाइए... अपना केस फाइल करो और... जितनी जल्दी हो सके... यहाँ से जाओ...
विश्व - ना... जाना तो आपको मेरे साथ होगा... मेरी प्रॉपर्टी को छुड़ाने के लिए...
रोणा - (भड़क जाता है) विश्वा... मैंने पहले भी कहा है... मैं इंस्पेक्टर हूँ... किसीके बाप का नौकर नहीं...
विश्व - जी सर... मिस्टर इंस्पेक्टर... आप नौकर ही हैं... डोंट फॉरगेट यु आर अ पब्लिक सर्वेंट... कोई भी सिविल केस दर्ज होने से पहले... पुलिस के पास तीन भूमिका होती है... नेगोसिएशन.., मेडिएशन और आर्बिट्रेशन... इससे पहले कि यह केस कोर्ट तक जाए... आप अपनी भूमिका से बच नहीं सकते... मिस्टर इंस्पेक्टर...
रोणा - (अंदर ही अंदर उबल रहा था पर बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले हुए था) देखो विश्व... तुम जिनके खिलाफ केस दर्ज करना चाहते हो... वह लोग... बहुत खतरनाक लोग हैं... बेहतर होगा... तुम इस केस की एफआईआर करो... और कोर्ट जाओ...
विश्व - फिर से कमाल कर दिया आपने... मैंने तो अभी तक किसीका नाम भी नहीं लिया... पर आपको मालुम हो ही गया.. मेरी प्रॉपर्टी पर किसका कब्जा है...

रोणा को सांप सूँघ जाता है l वह क्या कहे उसे समझ में ही नहीं आ रहा था l रोणा को एहसास होता है कि उसके कान के बगल में पसीने की धार बहने लगी है l रुमाल लेकर पोछने लगता है l

रोणा - वह... वह मैंने अंदाजा लगाया...
विश्व - मतलब... आदर्श थाने की अवॉर्ड जितने वाले थानेदार के राज में... प्रॉपर्टी कौन और कबसे कब्जाए हुए हैं... मिस्टर इंस्पेक्टर आपको मालुम है...
रोणा - (भड़क कर) इनॉफ... पहले तुम्हें उनके पास जाना चाहिए था... उन्हें अपने तौर पर कंविंस करना चाहिए था...
विश्व - अब थाने आया हूँ तो जाहिर है... वह सब कर आया हूँ... वह पहला स्टेप था... अब दुसरा स्टेप है कि... आप या तो उन्हें थाने बुलाएं... या फिर मेरे साथ मेरी प्रॉपर्टी तक चलें और उन्हें वहीँ पर कानून समझाएं... मुझे पुरा यकीन है... आप समझायेंगे... तो वह लोग खुशी खुशी मुझे मेरी प्रॉपर्टी लौटा देंगे....

रोणा के मुहँ से अब कोई बोल नहीं फूटती l वह खड़ा होता है और अपना कैप पहनता है l कांस्टेबल को गाड़ी निकालने के लिए कहता है l

रोणा - कहते हैं... नया नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है.... आइए... नए नए वकील साहब... आपकी यह इच्छा भी पुरी कर देते हैं...
विश्व - जी शुक्रिया इंस्पेक्टर...

कांस्टेबल पुलिस की जीप निकालता है l आगे रोणा बैठ जाता है और विश्व दो और कांस्टेबल के साथ पीछे बैठ जाता है l गाड़ी सीधे जाकर उमाकांत के घर के सामने रुकती है l रोणा देखता है आज भट्टी में कुछ हो नहीं रहा है, लोग भी नदारत हैं l वह सवालिया नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व कुछ सोच में खोया हुआ था l

रोणा - क्या सोच रहे हो वकील बाबु...
विश्व - यही के... मैंने किसीको अड्रेस बताया भी नहीं... पर पुलिस की गाड़ी बिल्कुल सही जगह रुकी...
रोणा - (सकपका जाता है, गाड़ी से उतर कर भट्टी के तरफ देख कर आवाज देता है) ऐ... कोई है यहाँ पर...

दरवाजा खुलता है l सत्तू बाहर निकलता है, थोड़ा पैर चौड़ा कर चल रहा था, जैसे उसके पिछवाड़े में कोई फोड़ा हुआ हो l सत्तू रोणा को देखते ही सलाम ठोकता है l

सत्तू - सलाम साब...
रोणा - इस भट्टी का मालिक कौन है...
सत्तू - जी... शनिया भाई...
रोणा - ह्म्म्म्म... बुलाओ उसको...
सत्तू - जी साब...

कह कर सत्तू अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद शनिया और उसके चेले चपाटे सब बाहर निकलते हैं l रोणा देखता है सभी की चालें बदली हुई है, सारे के सारे सत्तू के जैसे पैर को चौड़ा कर चल रहे हैं l रोणा को देख कर शनिया पहले सलाम ठोकता है l

शनिया - कहिए सर कैसे आना हुआ...
रोणा - विश्वा... (आवाज देता है, विश्व गाड़ी से उतर कर उनके पास आता है) इनकी शिकायत है... यह जगह इनकी है... तुमने इनकी जगह पर गैर कानूनी कब्जा किए बैठे हो...
शनिया - (अकड़ दिखाते हुए) क्या सबूत है... यह जगह इसकी है... यह जगह खाली था... इसलिए हम तो बस देख भाल कर रहे हैं...
रोणा - (मन ही मन खुश हो जाता है) देखो... इनके पास कागजात हैं... (विश्व को देख कर) क्यूँ है ना...
विश्व - (डरते हुए) जी... जी सर... जी... मेरे पास... ओनरशिप डीड... एकुंबरेंस सर्टिफिकेट और प्रॉपर्टी टैक्स के रिसीप्ट हैं... यह.. यह देखिए... (कुछ कागजात निकाल कर दिखाता है)
रोणा - (मन ही मन खीज कर शनिया से) देखा... इनके पास कागजात है... अब तुम बताओ... किस बिनाह पर... यह जगह कब्जाए बैठे हो...
शनिया - ओ सहाब... (पुरे अकड़ के साथ) यहाँ क्या पुराण खोल कर बैठे हो... तुमको क्या करना है... क्या चाहिए वह पहले बोलो... और हाँ यह मत भुलो... हम राजा साहब के आदमी हैं...
रोणा - (मन ही मन बहुत खुश होता है, अपनी खुशी को छुपाते हुए) चूंकि यह जगह इनकी है... इसलिये मेरी सलाह है... कानूनन इनकी जगह... इन्हें लौटा दो...
शनिया - क्या... क्या कहा... आपकी सलाह... ह्म्म्म्म... ठीक है... हम आपकी सलाह मानते हैं... और इनको इनकी जगह देकर जा रहे हैं...

यह सुन कर रोणा को जबरदस्त झटका लगता है l वह हक्काबक्का हो कर बेवक़ूफ़ की तरह शनिया को देखने लगता है l शनिया विश्व के पास जाता है और एक चाबियों का गुच्छा दे देता है l पर विश्व को उंगली दिखा कर अकड़ के साथ कहता है l

शनिया - हम कानून का सम्मान करते हैं... चूंकि थानेदार साहब ने कहा... इसलिए उनकी बात मान कर यह जगह कानूनन तुम्हें लौटा रहे हैं...

विश्व - (फड़फड़ाते हुए रोनी आवाज में) बड़ी मेहरबानी शनिया भाई... इस बात पर तो... रोणा साहब के लिए एक जिंदाबाद बनता है...
बोलो रोणा साहब की
शनिया और साथी - जिंदाबाद...
विश्व - आदर्श थाने के प्रभारी की
शनिया साथी - जिंदाबाद...
विश्व - न्याय प्रिय इंस्पेक्टर की...
शनिया साथी - जिंदाबाद...

विश्व और शनिया के जिंदाबाद की नारों के बीच रोणा समझने की कोशिश कर रहा था l क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है l
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 
Top