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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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parkas

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मित्रों सज्जनों
आज संभव ही नहीं हो पाया है
कल एक मेगा अपडेट पोस्ट कर दूँगा
पर उसके बाद सात दिन का विराम होगा
ऑफिस के काम से कलकत्ता जाना पड़ रहा है लौटने के बाद
धन्यबाद और आभार
Intezaar rahega Kala Nag bhai...
 
  • Love
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Rajesh

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👉छियासीवां अपडेट
----------------------
शाम को द हैल के डायनिंग हॉल में घर के चारों सदस्य डिनर कर रहे हैं l एक तरफ वीर और विक्रम बैठे हुए हैं और दुसरी तरफ शुभ्रा और रुप दोनों बैठे हुए हैं l वीर अपनी धुन में मस्त अपनी प्लेट से खाना खाए जा रहा है l विक्रम हर निवाला मुहँ में लेते हुए शुभ्रा को निहारे जा रहा है l शुभ्रा को विक्रम का यूँ उसे निहारते रहना अंदर ही अंदर अच्छा लग रहा है पर वह अपने चेहरे पर खुशी को आने नहीं दे रही है l बीच बीच में शुभ्रा नजर उठा कर विक्रम को देखती l जब दोनों की नजरें मिलती है विक्रम के होठों पर मुस्कराहट नाच उठती है l शुभ्रा अपनी नजरें फ़ेर रुप की ओर देखती है l रुप खोई खोई सी अपना निवाला तोड़ कर मुहँ में डाल रही है l शुभ्रा उसे कोहनी मारती है l रुप हड़बड़ा कर शुभ्रा को देखती है l

शुभ्रा (इशारे से पूछती है) - क्या हुआ..
रुप - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... कुछ नहीं..

डिनर खतम होते ही सभी अपने अपने कमरे की ओर जाते हैं l शुभ्रा जब अपने कमरे की दरवाजे पर पहुँचती है तो देखती है एक गुलाब का फुल और एक छोटा सा खत रखा हुआ है l शुभ्रा अपनी नजरें घुमा कर देखती है I जब वह समझ जाती है कोई नहीं देख रहा तो वह गुलाब का फुल और चिट्ठी लेकर अंदर चली जाती है l अंदर बेड पर रख कर वार्डरोब से अपनी नाइट गाउन निकाल कर कपड़े बदलती है l अचानक उसे रुप की याद आती है तो वह अपने कमरे से निकल कर रुप की कमरे के बाहर खड़ी हो जाती है l कुछ सोचने के बाद दरवाजा खटखटाती है l दरवाजा खुला ही था दरवाजा धीरे से खुल जाता है l शुभ्रा देखती है बेड के हेड बोर्ड पर रुप अपना पीठ टिकाए बैठ कर छत को घुर रही है l शुभ्रा धीरे से आकर रुप के सामने बैठ जाती है

शुभ्रा - नंदिनी.
रुप - (चौंक कर) हँ.. हाँ.. हाँ भाभी...
शुभ्रा - क्या बात है... आज तुम इतना खोई खोई क्यूँ हो..
रुप - कु.. कुछ नहीं भाभी..
शुभ्रा - ठीक है... अगर बताना नहीं चाहती हो तो...(उठते हुए) मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ लेती है) भाभी प्लीज... आप ऐसे मत जाओ.. प्लीज..
शुभ्रा - (बैठते हुए) अब तुम मुझे बता नहीं रही हो... तो मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - रुको भाभी..

कह कर रुप अपनी बेड से उठती है और अपने कमरे की दरवाजे को बंद कर देती है और लौट कर शुभ्रा के सामने बैठ जाती फिर अपना सिर शुभ्रा के गोद में रख देती है

शुभ्रा - (रुप के सिर को सहलाते हुए) क्या हुआ नंदिनी.
रुप - पता नहीं भाभी... मैं अंदर ही अंदर अपने आपसे लड़ रही हूँ... मैं रोज आईने के सामने खड़े होकर... खुद से एक वादा करती हूँ... पर शाम ढलते ढलते... मैं खुद को कोसने लगती हूँ... कभी कभी लगता है... की मैं खुश हूँ... पर वजह से अनजान हूँ... कुछ बातेँ हैं... जो मैं स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ...(चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरते हुए) कहीं यह सब... प्रताप से तो जुड़ा नहीं है....
रुप - (शुभ्रा के गोद में ही अपना मुहँ नीचे की ओर दबा देती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या तुम अपसेट हो..
रुप - (उठ कर बैठ जाती है) (दुसरी और मुहँ कर देती है
शुभ्रा - अब कुछ बोलोगी भी..
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ठीक है भाभी... (थोड़ी देर चुप रहकर) मैं क्या करूँ... कुछ समझ में नहीं आ रहा... मैं... हर रोज सुबह अपने आप से वादा करती हूँ... के.. प्रताप से नहीं मिलूंगी... अगर मिलूंगी... तो बात नहीं करूंगी... पर शाम आते आते खुद को कोसने लगती हूँ... क्यूँ.. क्यूँ... मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ... जैसे वह एक चुंबक है... मैं उसके तरफ खिंची चली जा रही हूँ...वह पहल नहीं करता... पहल मुझसे ही हो जाती है... (असमंजस सी नजर से शुभ्रा को देखने लगती है)
शुभ्रा - हूँम्म्म्म... फिर से पूछती हूँ... क्यूँ...
रुप - वह... जब भी सामने आता है... बातेँ करता है... तो मुझे लगता है कि... वह अनाम है... पर जब यह बात याद आता है... की उसके माँ बाप हैं... तब आपने आप से जद्दोजहद करने लगती हूँ... कभी कभी... एक पल के लिए लगता है कि हां... मैं उसे जान गई हूँ... तभी उसकी शख्सियत का और एक चेहरा... सामने आ जाता है... तब दिल और दिमाग में जंग छिड़ जाती है... क्या यह अनाम हो सकता है... इसी कशमकश के भंवर में घिरी रहती हूँ...
शुभ्रा - हूँम्म्म्म्म्... तो तुम्हें प्रताप बुरी तरह से डिस्टर्ब करने लगा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - तो ड्राइविंग स्कुल में छह दिन हो गए... इस हफ्ते का कोटा खतम हो गया... अगले हफ्ते के छह दिन बाद तुम्हें लाइसेंस भी मिल जाएगा...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - हूँ... बातेँ घुमाने से भी फायदा नहीं हो रहा है...
रुप - कभी कभी लगता है कि... प्रताप का गला दबा दूँ.... इतना मारूं... इतना मारूं... के
शुभ्रा - के...
रुप - पता नहीं क्या करूँ....

शुभ्रा हँसने लगती है l रुप खीज जाती है l शुभ्रा अपनी हँसी रोक कर रुप से

शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... जिस दिन तुम्हारे बड़े भैया आए... उस दिन तुम बड़ी खुश भी थी और खोई खोई भी थी... मैंने जब पूछा... तब तुमने कहा कि कोई चैलेंज जीता था...
रुप - अच्छा वह... (एक मुस्कान आ जाती है) उस दिन... मैं विक्रम भैया से मिलकर आने के बाद... (शुभ्रा को उस दिन की बस में हुई सारी बातें बताती है)
शुभ्रा - ओ... तो तुमने शरारत भी की थी उस दिन...
रुप - ही ही ही...(हँसती है)
शुभ्रा - खैर यह बताओ चैलेंज क्या था...
रुप - हम दोनों एक घंटे पहले पहुंच गए थे...

फ्लैशबैक

विश्व और रुप अपने क्लास में बैठे हुए थे l रोहित उन्हें क्लास में देख कर

रोहित - क्या मैं सपना देख रहा हूँ.. या जाग रहा हूँ... यु टू... इतने जल्दी कैसे...
विश्व - जी वह... मेरा काम जल्दी खतम हो गया था इसलिए...
रुप - जी मेरा भी...
रोहित - ओ.. तो यहाँ क्या कर रहे हो... तो आओ फील्ड में गाड़ी कैसे मूव हो रहे हैं... देखते हैं आओ...
विश्व - हमारी तो वर्चुअल लर्निंग चल रही है ना...
रोहित - तो क्या हुआ... गाड़ी मैं चलाउंगा... तुम दोनों बैठ कर... गियर और स्टियरिंग के साथ एबीसी कैसे ऑपरेट किया जाता है... मेरे साथ देखोगे आओ...
विश्व - एबीसी... मतलब...
रोहित - एक्सीलेटर, ब्रेक एंड क्लॉच... समझ में आ गया...
विश्व - जी...
रोहित - देन कॉम ऑन...

विश्व और रुप दोनों उठ कर रोहित के साथ ग्राउंड में पहुँचते हैं l रोहित एक मारुति 800 में ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है उसके बगल वाले सीट में विश्व बैठ जाता है और पीछे वाली सीट के बीच में रुप बैठ जाती है l रोहित गाड़ी स्टार्ट करने के बाद एक राउंड लगा कर गाड़ी रोक देता है l तभी उसके फोन पर एक कॉल आता है l रोहित गाड़ी से उतर कर फोन पर बात करते हुए ऑफिस के तरफ भागता है l वहीँ पर विश्व और रुप रह जाते हैं l

विश्व - आगे बैठने का फायदा हुआ है मुझे... कम से कम... आज आपसे ज्यादा सीख गया...
रुप - (तुनक कर) अच्छा... ऐसा क्या सीख लिया आपने...
विश्व - रोहित... स्टीयरिंग से लेकर गियर तक... जो भी कर रहा था... मैंने सब देख लिया...
रुप - ओ... तो इसका मतलब... आपने गाड़ी चलाना सीख लिया.. क्यूँ..
विश्व - नहीं ऐसी बात नहीं है... शायद मुझे ऐसा कहना नहीं चाहिए था...
रुप - हाँ.. आपको यह कहना चाहिए था... की हम दोनों ने आज मिलकर जो भी सीख... बढ़िया रहा...
विश्व - पिछली सीट पर... आपको सब दिख रहा था क्या...
रुप - दिख भले ही ना रहा हो... रोहित जोर जोर से बोल कर जितना भी बताया... बहुत बताया...
विश्व - (हँसकर छेड़ने के अंदाज में) ना.. नहीं... सिर्फ़ बता देने से... आप जान गई... सीख गई...
रुप - (जबड़े भींच कर जोर जोर से सांस लेने लगी, और दांत पिसते हुए ) हाँ सीख गई...
विश्व - अच्छा... (कार को दिखाते हुए) यह रही गाड़ी... चाबी भी लगी हुई है... जाइए... एक राउंड फिल्ड के लगा कर तो आइये...
रुप - क्यूँ...
विश्व - देखा...
रुप - क्या...
विश्व - यही.. के आप पीछे हट रही हैं...
रुप - अगर मैंने गाड़ी घुमा कर यहीँ पर पार्क करा दिया तो...
विश्व - तो... (हकलाने लगता है) तो.. तो.. तो.. मैं आज बैठ कर क्लास नहीं अटेंड करूँगा...
रुप - ठीक है...

रुप अपना वैनिटी विश्व को थमा देती है और गाड़ी के भीतर बैठ कर गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए चाबी घुमाती है l गाड़ी स्टार्ट हो जाती है l गियर रियर पर लेकर गाड़ी पार्क से निकालती है और गाड़ी को लेकर ग्राउंड का एक चक्कर लगा कर वापस पार्क कर देती है l गाड़ी से उतर कर विश्व के पास आती है l विश्व की आँखे हैरानी से बड़ी हो गई थीं और मुहँ खुला हुआ था l रुप उसके सामने खड़ी होती है और अपनी उंगली विश्व के ठुड्डी पर रखते हुए
"प्रताप बाबु अपना मुहँ तो बंद करो"

फिर अपना वैनिटी बैग लेकर
'हूँह्'
कहते हुए क्लास की ओर जाते जाते रुक जाती है और बिना पीछे देखे
"तुम अपनी जुबान पर टिके रहना, हुँह्ह्.."
कह कर चली जाती है l

फ्लैशबैक में विराम

शुभ्रा - तुमने...(हैरान हो कर) दुसरे दिन ही गाड़ी चाला लिया...
रुप - भाभी... चैलेंज के लिए हाँ तो कर दिया... पर गाड़ी के अंदर अगर प्रताप बैठा होता ना... वह हँस हँस कर लोट पोट हो गया होता...
शुभ्रा - क्या...
रुप - हाँ भाभी... मैं गाड़ी के अंदर.. रोते रोते डरते डरते... भगवान नाम लेकर ड्राइव कर रही थी... गाड़ी पार्क करने के बाद... प्रताप से अपना वैनिटी बैग लेकर... बिना पीछे मुड़े वहाँ से चल दी... कहीं और थोड़ी देर रुकती... तो उसे मेरी हालत का अंदाजा हो गया होता....
शुभ्रा - ओ... हा हा हा हा हा हा... (शुभ्रा हँसने लगती है)

रुप भी शुभ्रा के साथ मुस्करा देती है और फिर शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l

शुभ्रा - (अपनी हँसी रोक कर) और... उस दिन प्रताप खडे हो कर क्लास किया क्या...

फ्लैशबैक

क्लास में सभी अपनी अपनी कुर्सी में बैठे हुए हैं l पर विश्व अपनी जगह पर खड़ा है l

सुकुमार - क्या बात है प्रताप बेटा... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं अंकल... आज मेरा व्रत है... आज मुझे खड़े हो रहना होगा...
सुकुमार - व्रत... कैसा व्रत...
विश्व - हनुमान जी का व्रत...
सुकुमार - पता नहीं आज कल के बच्चे... क्या क्या व्रत करते रहते हैं... अरे इस उम्र में... अच्छी पत्नी के लिए व्रत रखो... वह भी शिव मंदिर में जा कर... हनुमान जी का व्रत किस लिए...
विश्व - अच्छी सेहत और ताकत के लिए...

तभी क्लास के अंदर रोहित आता है l सभी क्लास के भीतर बैठे हुए हैं पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है l

रहित - अरे प्रताप... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं रोहित... मैं आज बैठ नहीं सकता...
रोहित - क्यूँ...
रुप - वह असल में...
रोहित - तुम क्यूँ बोल रही हो... आई आस्क्ड हिम ना..
रुप - बट आई नो हिज प्रॉब्लम... ही वोंट टेल यु...
रोहित - रियल्ली... क्यूँ प्रताप... क्या बात है...
विश्व - (मुस्कराते हुए) क.. कुछ नहीं रोहित... सी इज़ जस्ट कीड्डींग...
रुप - नो रहित... आई एम क्वाइट सीरियस...
रोहित - देन यु टेल मि....
रुप - (प्रताप की ओर देखती है, प्रताप उसे अपना सिर हिला कर ना बोलने को कहता है) रोहित... प्रताप को... पाइल्स है...
विश्व और रोहित - व्हाट...
विश्व - रोहित... यह झूठ बोल रहीं हैं...
रुप - व्हाट... मैं झूठ बोलूंगी... सी रोहित... खाली बस में भी खड़े खड़े आए हैं...
रोहित - वन मिनट... प्रताप... तुम तो क्लास में बैठे हुए थे ना... और ड्राइविंग के टाइम... मेरे पास... मेरे साथ बैठे थे...
रुप - ऑफकोर्स रोहित... पर तुम्हारी ड्राइविंग टेक्नीक देख कर... उनकी पाइल्स फट कर निकल गई...

फ्लैशबैक विराम

शुभ्रा अपनी पेट पकड़ कर हँसती है l रुप भी उसे हँसते देख कर उसके साथ हँसने लगती है l

शुभ्रा - ओह... गॉड... (हैरानी भरी लहजे में) नंदिनी... आम तौर पर... लड़के ल़डकियों को छेड़ते हैं... तुम तो... ओह माय गॉड... तुममें यह एंगेल भी है...
रुप - (हौले से मुस्करा देती है)
शुभ्रा - बेचारा प्रताप... तुमने उसका क्या हाल बना दिया था उस दिन... वह तुमसे नाराज नहीं हुआ...
रुप - (शर्मा कर सिर झुकाते हुए) नहीं भाभी...
शुभ्रा - अच्छा... मतलब तुममें दोस्ती बरकार रहा...
रुप - दोस्ती... वह तो कल हुई... वह भी पहल करते हुए मैंने की...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... मतलब... ड्राइविंग स्कुल में चार दिनों के बाद.... तुम्हारे और प्रताप के बीच दोस्ती हुई.... (एक गहरी सांस लेते हुए थोड़ी देर चुप हो कर) खैर... दोस्ती के बाद तुमनें प्रताप का ऐसा कौनसा पहलु देख लिया... की तुम उसे समझ नहीं पाई....

रुप शुभ्रा की ओर देखती है और

फ्लैशबैक

भाश्वती और रुप एक जगह बैठे हुए हैं l भाश्वती सुबक रही है l

रुप - (चिढ़ कर, उठ खड़ी होती है) अरे यार... पंद्रह मिनट हो गए हैं... तुझे रोते हुए... अब तो मुझे बता दे क्या हुआ है... मुझसे कैसी मदत चाहिए तुझे....
भाश्वती - वही... जो पहले दिन स्कुल आते हुए... मैंने बस स्टॉप में किया था... तेरी आइडेंटिटी का इस्तमाल...
रुप - व्हाट... पर क्यूँ... तुने ही तो बताया... वह ऑटो वाला और उसका साथी तुझे स्टॉल्क नहीं कर रहे हैं... फिर...
भाश्वती - उसी हरामी के वजह से तो... अब मैं बड़ी मुसीबत में फंस गई हूँ...
रुप - क्या... क्या किया इस बार उसने...

भाश्वती कुछ कहने के वजाए सुबकने लगती है l रुप उसके बगल में बैठ जाती है और भाश्वती को रोते हुए देखती है l फिर अपनी हथेली में अपनी चेहरे को लेकर कोहनी को घुटने पर रख कर भाश्वती की चुप होने की इंतजार करने लगती है l कुछ देर बाद भाश्वती का सुबकना थम जाता है l

भाश्वती - कितनी डफर है तु... रो रही हूँ... कम से कम पीठ को मेरी थपथपा सकती थी...
रुप - बस कर... रो लेने से ग़म हो या दर्द... दुर तो नहीं होती पर हल्का जरूर हो जाती है... इसलिए तुझे मैंने रोने दिया... अब बता क्या हुआ...
भाश्वती - उस दिन प्रताप के वजह से वह ऑटो वाला और उसका साथी... अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए... तो रोज स्टॉल्क करने लगे... मैं इग्नोर करती रही... उनका हिम्मत दो दिन पहले बहुत बढ़ गया था... परसों की बात है... मैं ड्राइविंग स्कुल से लौट कर घर जा रही थी... ठीक हमारे घर के गली की मोड़ पर मेरे सामने खड़े हो गए... फब्तीयाँ कसने लगे... मैं फिर भी इग्नोर करते हुए आगे बढ़ रही थी कि अचानक एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया... मैं छुड़ाने की कोशिश करने लगी... जब छुड़ा नहीं पाई तो चिल्लाने लगी... अंकल... आंटी... काका... काकी... बबलु... दिनेश भैया... मेरी चीख सुन कर... हमारे कालोनी के सारे लोग इकट्टा हो गए... फिर भी.. वह हरामी कुत्ते अपनी हेकड़ी दिखाने से बाज ना आए... फिर तो लोगों ने आव देखा ना ताव... ऐसी मरम्मत की... के मुझे लगा वह कमबख्त फिर कभी मुझे क्या और किसी लड़की को नहीं छोड़ेंगे... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं गलत थी... उन लोगों ने एक बेवकूफी भरा कदम उठाया... जो मेरी गर्दन पर आ गई...
रुप - क्या किया उन्होंने...
भाश्वती - उन्होंने मुझे डराकर राजी कराने के चक्कर में... उस इलाके की गुंडे को मुझे डराने के लिए सुपारी दी...
रुप - (चौंक कर) व्हाट...
भाश्वती - हूँ...
रुप - तो क्या वह गुंडा... तुझे डराने आया...
भाश्वती - डराने आता तो ठीक था... पर कुछ और हो गया...
रुप - ओ हो... तु सस्पेंस क्यूँ बढ़ा रही है...

भाश्वती रुप की ओर देखती है
एक छोटा सा फ्लैशबैक

भाश्वती कॉलेज जाने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी है l एक आदमी उसके पास चल कर आता है l वह आदमी सफेद कपड़ों में था, गले में उसके सोने का चेन था वह भी बहुत मोटा I उसके शर्ट के कलर उठा हुआ था I तेल से सने बालों को कंघी किया हुआ था और आँखों में काला चश्मा चढ़ाए हुए था l

आदमी - वाव.. यह चिरकुट लोग बोले थे मेरे को... तु एक झकास आईटॉम है... साले झूठ बोले थे मेरे को... तु आईटॉम नहीं बल्कि अटॉम बॉम्ब है...
भाश्वती - ऐ मिस्टर... माइंड योर टंग... क्या बकवास किए जा रहे हो...
आदमी - आह... क्या मस्त आवाज है तेरी... वह इंग्लिश में क्या बोलते हैं... हाँ.. हनी... बिल्कुल वही...
भाश्वती - बकवास बंद करोगे... या चिल्ला कर इकट्ठा करूँ लोगों को...
आदमी - ऐ छप्पन छुरी... मैं इधर तेरी मदत को आया है... यह देख...

अपनी उंगलियों को मोड़ कर जीभ के नीचे रख कर सिटी बजाता है, दूर खड़े एक वैन से कुछ मवाली टाइप के लोग उतरते हैं, उन्हें देख कर वह आदमी चिल्ला कर

आदमी - उन दो चिरकुट को यहाँ लेकर आओ...

उसके आदमी ऑटो वाले को और उसके साथी को इन दोनों के पास लेकर आते हैं l

आदमी - (ऑटो वाले से) क्या रे.. यही लड़की है क्या...
ऑटो वाला - हाँ... शंकर भाई.. यही वह नकचढ़ी लड़की है...
शंकर - (एक झन्नाटे दार थप्पड़ रसीद कर देता है) भाभी बोल बे कुत्ते...
ऑटो वाला - (अपना गाल सहलाते हुए) यह क्या शंकर भाई... मैंने तो आपसे सब कुछ बोला था... सिर्फ इसे डराने के लिए... पैसे भी दिए थे...
शंकर - (दोनों हाथों से उसके कलर पकड़ कर अपने तरफ खींच कर) सुन बे... यह आज से मेरी आईटॉम है... और फिर कभी इसके आस पास दिखा भी ना... तो तेरे इतने टुकड़े करूंगा... के चील कौवे बटोरते बटोरते थक जाएंगे... (फिर उसे धक्का देता है) चल जा इधर से... तेरे वजह से यह मेरे को मिली.. इसी खुशी में... तेरे को जिंदा छोड़ रहा हूँ... (अपने जेब से रिवॉल्वर निकाल ऑटो वाले को दिखाते हुए) अगली बार तु मेरे को... इस गली में छोड़... शहर में भी दिखना नहीं चाहिए क्या... वरना दौड़ा दौड़ा कर तुझे ठोक दूँगा... चल भाग यहाँ से...

ऑटो वाला और उसका साथी दोनों वहाँ से बिना पीछे मुड़े दुम दबा कर भाग जाते हैं l यह सब जो हो रहा था, अब तक भाश्वती के सिर के ऊपर से जा रहा था पर जब उसने शंकर के हाथ रिवॉल्वर देखी तब बात को कुछ कुछ समझने लगी I

शंकर - ऐ... क्या नाम है तेरा...
भाश्वती - (कहलाते हुए) ज..ज. जी.. भ.. भ.. भाश्वती...
शंकर - तेरा नाम मेरे जुबान पे चढ़ नहीं रहा... कई नहीं... मैं तेरे को बाती बुलाएगा... हाँ तो बाती... कौनसे कॉलेज में पढ़ती है...
भाश्वती - XXXX कॉलेज...
शंकर - ठीक है... कल से मैं तेरे को अपनी गाड़ी में बिठा कर कॉलेज में छोड़ेगा... और लाएगा...
भाश्वती - क.. क.. क्यूँ...
शंकर - क्यूंकि आज से तु मेरी है... इस शहर में कोई नहीं है... जो मेरे पर हाथ डाले या पंगा ले... क्यूं के पुरा शहर मेरे को... सेक्शन शंकर के नाम से जानता है...
भाश्वती - (रुलाई फुट जाती है)
शंकर - ठीक है... रो मत... मैं तेरे को इतवार तक टाइम देता है... सोम वार से मैं ही तेरे को कालेज में छोड़ेगा और लाएगा... गाड़ी बोले तो... बाइक... समझी क्या...

भाश्वती की फ्लैशबैक खतम

रुप - वह तो तुझे सोमवार से छोड़ेगा बोला था ना... फिर तु आज क्यों कॉलेज नहीं आई..
भाश्वती - समझने की कोशिश कर... मैं... कल से शॉक में थी... मम्मी को भी अभी तक नहीं बताया है... अगर बताया तो... (रोते हुए) पता नहीं उन पर क्या गुज़रेगी...
रुप - ओ... इसके लिए... तु मेरी आइडेंटिटी का फ़ायदा उठाना चाहती है...
भाश्वती - (सुबकते हुए) हूँ...
रुप - आइडेंटिटी से बढ़िया है कि... यह मैटर मैं वीर भैया को कह दूँ...
भाश्वती - तु कुछ भी कर यार... मुझे बस उस सेक्शन शंकर से छुटकारा दिला दे... तुझे यकीन है... तेरे वीर भैया... उससे भिड़ने को तैयार हो जाएंगे...
रुप - पता नहीं... पर बताना तो पड़ेगा ही... उसके बाद कैसे रिएक्ट करेंगे... यह भी देखना पड़ेगा...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l इन दोनों की हरकतें दुर से विश्व देख रहा था I उसे याद आता है बस में भाश्वती का चेहरा डर और दुख के वजह से उतरा हुआ था, और उसे दो लड़कों ने छेड़ने की कोशिश भी किया था l एक गहरी सांस छोड़ते हुए उन दोनों की तरफ उसका कदम बढ़ जाता है l

विश्व - मैं आई डिस्टर्ब यु.. (रुप और भाश्वती दोनों उसके ओर देखते हैं)
रुप - जी कहिए...
विश्व - (भाश्वती के सामने एड़ियों पर बैठ कर) आज जब से देख रहा हूँ... तब से इस ख़तरनाक शेरनी का चेहरा उतरा हुआ है... मैं समझ सकता हूँ... समस्या के पीछे वह लड़के जरूर थे... अगर हाँ... तो बताओ मुझे...
भाश्वती - (बिदक जाती है) तुम्हें बताने से क्या होगा... जिस तरह वह लोग तुम्हें मारे... वह सेक्शन शंकर भी मारेगा... या मार देगा...
विश्व - (नाम सुनते ही कुछ सोचने लगता है) सेक्शन शंकर... इसका पुरा नाम शंकर गौड़ है ना...
भाश्वती - हाँ...
विश्व - अच्छा... बताओगी क्या हुआ...

भाश्वती वही सब बातेँ दोहराती है जो उसने रुप को कहा था l सब सुनने के बाद

विश्व - ह्म्म्म्म... तब तो वह मेरी ही बात समझेगा... समझ जाएगा...
भाश्वती - पागल हो गए हो तुम... तुम जानते भी हो... वह क्या है...
विश्व - अच्छी तरह से... मैंने तुम्हें जुबानी बहन नहीं कहा है... माना भी है... (खड़े हो कर) अगर भरोसा कर सको तो अपने इस भाई पर भरोसा करो...
रुप - (खड़ी हो जाती है) हो... यह हम दो दोस्तों की प्रॉब्लम है... तुम कहाँ से बीच में घुस गए...
विश्व - (एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए) कुछ मैटर... बॉयज कैन हैंडल बेटर देन गर्ल...
रुप - (गुस्से से विश्व की कलर पकड़ लेती है) हाउ डैर यु... (धकेलते हुए) हम लड़कियों को कमजोर कहने की...
विश्व - (पीछे हटते हुए) मैंने ऐसा कब कहा.. मैंने बस इतना कहा कि कुछ मैटर हम लड़के... अच्छे से डील कर सकते हैं...
रुप - (धकेलते हुए)ऐ... मैं तुमको इस मैटर में घुसने नहीं दूंगी...
विश्व - (पीछे हटते हुए) पर क्यूँ...
रुप - (आगे बढ़ते हुए) क्यूंकि... वह मेरी दोस्त है... उसने सारी प्रॉब्लम... मुझे पहले बताया है... तुम क्यूँ बीच में टपक पड़े... और.... और तुम मेरे दोस्त भी तो नहीं हो...
विश्व - (रुक जाता है) तो ठीक है... बना लीजिए... मुझे अपना दोस्त...
रुप - (हैरान हो कर) क.. क्क्या...
विश्व - मैंने कहा... फिर बना लीजिये मुझे अपना दोस्त...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l रुप लंबी लंबी सांसे लेने लगती है l दोनों की नजरें आपस में मिलती है और ठहर जाती है l इसका आभास होते ही दोनों अपनी अपनी नजरें हटा लेते हैं l फिर रुप अपना दाहिना हाथ कलर से हटा कर विश्व की ओर बढ़ा कर

रुप - ट्..ठीक है... दोस्त...
विश्व - (मुस्कराते हुए) वाह... क्या दोस्ती बनाई जा रही है... एक हाथ में मेरा गिरेबान पकड़े हुए हैं... और दुसरा हाथ दोस्ती के लिये बढ़ा रहे हैं...

रुप को जैसे ही एहसास होता है वह झट से अपना हाथ विश्व के कलर से हटा देती है l थोड़ी असमंजस सी हो जाती है, फिर खुद को संभालते हुए

रुप - ओ ह्... ओके... ठीक है... यह लो... (अपना हाथ बढ़ाती है) दोस्त...
विश्व - (कुछ सोचता है फिर मुस्कराते हुए) दोस्त... (हाथ मिला देता है)

फ्लैशबैक में विराम

शुभ्रा - रुको रुको... (हँसते हुए हैरानी भरे आवाज में) तुमने पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की... वह भी उसके शर्ट की कलर पकड़ कर... हा हा हा हा हा हा... वाह क्या अनोखा स्टाइल है दोस्ती करने की... हा हा हा हा...
रुप - (बिदक कर) हुँह्हँह्... आपको हँसी आ रही है... मुझे उस वक़्त कितना एंबार्समेंट फिल हो रहा था... जानती हैं...
शुभ्रा - ओह.. नंदिनी... दिस इज़ अल्टीमेट... एक नायाब दोस्ती की आगाज़...
रुप - भाभी... आपने अगर मुझे ऐसे ही छेड़ा... तो.. तो मैं नहीं बताऊंगी...
शुभ्रा - (अपनी हँसी रोकते हुए) ओके ओके... ह्म्म्म्म... आगे क्या हुआ...

फ्लैशबैक

दोस्ती के लिये हाथ मिलाने के बाद दोनों फिर भाश्वती के पास आते हैं l

विश्व - तो... आज शाम मैं और तुम... शंकर गौड़ के पास जाएंगे.... तुम्हारे आँखों के सामने उसे समझाउंगा... देखना... वह फिर कभी तुम्हें क्या... किसी और लड़की को परेशान नहीं करेगा...
भाश्वती - (हैरानी से आँखे फैला कर) क्या... मैं उससे छुटकारा पाने की सोच रही हूँ... तुम मुझे उसके पास लेकर जाना चाहते हो...
रुप - हाँ... हम उसके पास क्यों जाएं...
विश्व - उसकी हरकतों को बंद करवाने के लिए... उसके पास तो जाना ही पड़ेगा ना...
रुप - ओ...(भाश्वती कुछ कहने को होती है) चुप... तु चुप... (विश्व से) एक मिनट... (कह कर भाश्वती को विश्व से थोड़ी दुर लेकर जाती है) तु ऐसे क्यूँ रिएक्ट कर रही है...
भाश्वती - यह मार खाने वाला... शंकर को कैसे समझायेगा...
रुप - तुझे... मुझ पर भरोसा है ना...
भाश्वती - हाँ..
रुप - तो सुन... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... (फिर वह विश्व की तरफ देखती है)

विश्व उन दोनों को जिज्ञासा भरे नजरों से देख रहा था l भाश्वती को लेकर रुप विश्व के पास आती है l

रुप - तो हम स्कुल के बाद जाएंगे...
विश्व - आप क्यूँ जाएंगी...
रुप - ओ हैलो... यह मेरी दोस्त है... अगर मैं नहीं गई... तो यह भी नहीं जाएगी...

विश्व भाश्वती की ओर सवालिया नजरों से देखता है l

भाश्वती - हाँ... मेरी भी यही शर्त है...
विश्व - ठीक है...

ड्राइविंग सेशन खतम होते ही विश्व रुप और भाश्वती स्कुल के बाहर आते हैं l विश्व एक ऑटो को रुकवाता है l ऑटो के रुकते ही दोनों को बुलाता है l

भाश्वती - नंदिनी... फिर से सोच लेते हैं यार... यह हमें मरवाएगा...
रुप - तु फिक्र क्यूँ कर रही है... मैं तेरे साथ हूँ ना... इस पर नहीं तो मुझ पर तो भरोसा रख...
भाश्वती - ठीक है...

दोनों ऑटो में आकर बैठते हैं l विश्व आगे ड्राइवर के पास बैठ जाता है और उसे एक अड्रेस देकर चलने के लिए कहता है l

भाश्वती - (धीरे से रुप से) लगता है... यह सेक्शन शंकर के बारे में... अच्छी तरह से जानता है...देख ना... उसका अड्रेस तक जानता है..
रुप - तु थोड़ी देर... अपना बक बक बंद कर... मैंने तुझसे पहले ही कहा था... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - कैसे... मैंने देखा है... उनके हाथों इसे पीट्ते हुए...
रुप - हाँ... और वह मार खाने के खुशी में... सिटी मारते हुए आया था... है ना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप भी भाश्वती से और बातचीत ना करने के लिए ऑटो से बाहर देखने लगती है l करीब बीस मिनट के बाद ऑटो एक ऑफिस के आगे रुकती है l ऑफिस के गेट पर लगे एक बड़े से आर्क में कला निकेतन प्रोडक्शन ऑफिस लिखा हुआ है l बाहर गेट पर दरवान उन्हें रोकता है विश्व देखता है दरवान के सीने पर RGSS लिखा हुआ है l विश्व दरवान को दोनों लड़कियाँ दिखा कर कुछ कहता है, तो वह दरवान फौरन अंदर जाता है l फिर थोड़ी देर बाद भागते हुए गेट खोल देता है l तीनों अब अंदर आ जाते हैं l एक दो तीन मवाली टाइप के मुस्टंडे इन लोगों के पास भाग कर आते हैं l उनमें से एक भाश्वती से

एक - आइए.. भाभी आइए... भाई आपके राह में... पलकें बिछाये बैठे हैं...

इतना सुन कर भाश्वती गुस्से से अपनी जबड़े भींच कर पहले विश्व की तरफ और फिर रुप को देखती है l विश्व अपनी आँखे बंद करके अपना सिर हिलाता है जैसे इशारे में कहा हो कि
"फिक्र ना करो.. मैं हूँ ना"
रुप भी विश्व की तरह अपनी आँखे बंद कर सिर हिला कर दिलासा देती है
"घबरा मत.. मैं हूँ ना"

तीनों कमर के ऊँचाई के बराबर एजबेस्टस के दीवार पर कांच से बने एक ऑफिस के चैम्बर में आते हैं l तीनों एक नजर घुमाते हैं l दीवार पर एक वेल्वेट बोर्ड लगा हुआ जिस पर कुछ टीवी सीरियल और म्युजिक एल्बम के पोस्टर लगे हुए हैं l एक तरफ सोफा सेट है और उसके सामने एक टेबल पर पैर फैलाए शंकर बैठा हुआ है वही सफेद कपड़े, गले में मोटा सा सोने की चेन और आँखों पर काला चश्मा l

शंकर - देख लिया... बढ़िया है ना... मेरा यह ऑफिस... पुरे भुवनेश्वर में.. मेरे इस ऑफिस चर्चे हैं... पूछो क्यूँ...(अपने चेयर से उठता है और सबके सामने आकर टेबल पर पिछवाड़ा टीका कर खड़ा रहता है) क्यूँ के वह दुसरे लोग होते हैं... जो ऑफिस के बंद कमरे में... छुप के काम करते हैं... मैं इधर सबकुछ खुल्लमखुला करता है... इसलिए कमर के हाइट तक एजबेस्टस है... बाकी पुरा का पुरा काँच है... (तीनों चुप रहते हैं, शंकर भाश्वती से) डार्लिंग... तेरे को मेरा ऑफिस ही देखना था... तो बोल देती... मैं गाड़ी भिजवाता... पर तेरे साथ यह नमूना और यह पटाखा कौन हैं...

भाश्वती को बहुत डर लग रहा था l वह खुद को कोस रही थी क्यों उसने विश्व और रुप की बात मान कर यहाँ आई l वह सिर झुकाए खड़ी रहती है l

विश्व - जी... मैं इनका भाई हूँ... और इस बारे में... आपसे बात करने आया हूँ...
शंकर - ओ... हे हे.. हे हे हे हे... मैं तो सोचा था लौंडीया नमकीन निकलेगी... मेरे ही ऑफिस में... मेरे से मांडवली करने अपने भाई को साथ लाई है... अरे वाह... तु तो तीखी भी है... अब तो मजा ही आ जाएगा... (विश्व से) मैं जानता है इसको... इसके पुरे खानदान को... इसका भाई फॉरेन गया है... (अपनी आवाज कड़क कर के) ऐ... इस शहर में... मैं ही सबका भाई है... पर इस छम्मकछल्लो के लिए सैंया है... इसलिए मेरे सामने कोई भाई गिरी नहीं क्या...
विश्व - देखिए... मैं आपको समझाने आया हूँ...
शंकर - पर मैं समझेगा कायकु... अब समझना तेरे को है... मैं क्या चीज़ है...

इतना कह कर शंकर टेबल पर रखे एक बेल को बजाता है l कुछ ही सेकंड में दस से बारह लोग अंदर आकर इन सबको घेर कर खड़े हो जाते हैं l शंकर उन लोगों इशारा करता है तो वह लोग एक साथ विश्व को पकड़ लेते हैं l

विश्व - (गिड़गिड़ाते हुए) शंकर भाई.. मुझे सिर्फ दो मिनट का टाइम दीजिए... मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ.. सिर्फ दो मिनट... उसके बाद आपके जो मन में आये वह कीजिए...

शंकर इशारा करता है l वह सारे लोग विश्व को छोड़ देते हैं और बाहर चले जाते हैं l यह सब देख कर रुप के माथे पर शिकन पड़ जाती है l

विश्व - (रुप और भाश्वती की ओर देख कर) प्लीज... आप लोग भी बाहर जाएं... मैं शंकर भाई से बात करूंगा... प्लीज...

रुप और भाश्वती का हैरानी से मुहँ खुला का खुला रह जाती है l वह भारी कदमों में चेंबर के बाहर चले जाते हैं l अब कमरे में सिर्फ दो लोग हैं शंकर और विश्व l बाहर आकर भाश्वती और रुप खड़ी हो कर कांच दीवार पार जो हो रहा है उसे देखते हैं l

भाश्वती - बड़ी बड़ी फेंक रही थी... आई कैन बेट ऑन हिम... देखा हमारे ही सामने कैसे गिड़गिड़ाया... वह मुझे क्या बचाएगा...
रुप - (काँच के पार विश्व और शंकर को देखते हुए) मैं भी हैरान हूँ... यह सुरज पश्चिम से कैसे निकल रहा है...
भाश्वती - क्या मतलब... तुम पहले कभी प्रताप से मिली हो...
रुप - (संभल कर) नहीं... बिल्कुल नहीं... खैर अगर यह फैल होता भी है... तो भी घबरा मत... वीर भैया या विक्रम भैया किसी को भी बुला लुंगी...
भाश्वती - तेरे वजह से हिम्मत कर आई हूँ... वह देख... प्रताप हाथ जोड़ रहा है..


उधर चेंबर के अंदर विश्व हाथ जोड़ कर शंकर के सामने खड़ा हो जाता है l उसे हाथ जोड़ कर खड़ा देख कर शंकर हँसता है और

शंकर - हाँ बे... मेरी लैला का भाई... साले कुत्ते भोंक... क्या भोंकना है तुझे... तु घबरा मत... यह चेंबर साउंड प्रूफ भी है...
विश्व - अहेम... अहेम... (खरासते हुए गला ठीक करता है) शंकर भाई... उर्फ़ सेक्शन शंकर... उर्फ़... संकर्षण मुदुली...
शंकर - (चौंक कर) क्या... क्या बोला तुमने...
विश्व - सोलह साल का संकर्षण मुदुली... गंजाम जिले के सोरडा गांव का निवासी... एक दिन ट्रेन के लूटपाट के केस में दोषी पाया जाता है... उसे अदालत ब्रह्मपुर जुवेनाइल जैल भेज देती है... उसी जैल में बालिग़ होने तक रुकना था पर.... डॉक्यूमेंट्स के गलती के चलते छह महीना ज्यादा सजा काट गया... एक दिन खाने को लेकर वार्डेन के साथ कहा सुनी हो जाती है... संकर्षण उस वार्डेन के सिर पर डंडा मार कर भाग जाता है... क्यूंकि उस वार से वार्डेन की मौत हो जाती है.... भागते भागते आ पहुँचता है... भुवनेश्वर में... किस्मत से उसकी रंगा नाम के आदमी से मुलाकात होती है... इसबार वह अपना नाम... शंकर गौड़ बताता है... और अपने बाप ओंकार चेट्टी से मिलवाता है... और चेट्टी केके से... केके उसे अपने लेबर सप्लाई का सुपरवाइजर बना देता है... धीरे धीरे कंस्ट्रक्शन लेबर यूनियन बना कर उनका लीडर बन जाता है... शंकर गौड़ से सेक्शन शंकर.... उसके बाद शंकर की दोस्ती केके के लड़के विनय से होती है... विनय फ़िल्मों का दिवाना था... तुम उसके साथ मिलकर यह कला निकेतन प्रॉडक्शन हाउस बनाया है... नए टैलेंट को बढावा देने के नाम पर... नए नए लड़कियों को फंसा कर अपने नीचे लाते हो....
शंकर - (विश्व को मुहँ फाड़े सुन रहा था) यह... यह सब... तुम कैसे जानते हो...
विश्व - (वैसे ही हाथ जोड़े) एक दिन ब्रह्मपुर पुलिस संकर्षण को ढूंढ़ते हुए भुवनेश्वर आई... उसी वक़्त शंकर गौड़... एक पुराने केस में... भुवनेश्वर पुलिस के आगे सरेंडर करते हैं... और ट्रायल के लिए रिमांड खतम होने तक सेंट्रल जैल में ठहराया जाता है... हाँ यह बात और है... वह केस भी नकली था और उस केस में नाम दर्ज इंसान भी नकली था... ब्रह्मपुर पुलिस के हाथों कुछ नहीं लगा... और तुम शंकर गौड़ हो... यह स्थापित हो गया... तुम्हारा काम बन चुका था... फिर भी डर तो था... के कहीं तुम्हारे उंगलियों के निशान पुलिस के सामने ना आ जाए... इसलिए हमेशा इसी कोशिश में रहते हो... हर वक़्त ग्लॉव्स पहने रहते हो... जैसे अभी पहने हुए हो... (शंकर अपने हाथों को देखता है) जैल में था... अपना नाजायज़ बाप रंगा का काम अधूरा था... इसलिए सेंट्रल जैल के एक कैदी को शंकर ने ललकारा... वह इग्नोर करता रहा... फिर शंकर और उसके साथियों ने हर मौके पर... उस कैदी को माँ बहन की गाली बकने लगे... वह मजबूर होकर शंकर का चैलेंज एक्सेप्ट किया... जैल की मशहूर फाइट... साटर डे स्कैरी नाइट साल्यूशन... फाइट में शंकर तेजी से हाथ चलाए पर यह क्या... उसे लगना तो दूर छु भी नहीं पाए... फिर शंकर के साथी भी मैदान में उतर कर उस कैदी से भीड़ गए... बिल्कुल रंगा की साथ हुई घटना का... एक्शन रिप्ले करने... वह कैदी शंकर को लात मारा... शंकर उड़ते हुए गिरा... उसके बाद एक घुसा पेट पर मारा... शंकर.... मुहं से खून की उल्टी करते हुए कटे हुए पेड़ की तरह गिर गया... वह कैदी एक जग पानी लाकर शंकर को होश में आने तक छींट मारता रहा... शंकर होश में आया... जब शंकर आँखे खोला... उसके सिर के उपर उस कैदी बैठा देख कर... डर के मारे मूत दिया... याद है...
शंकर - (अपनी हलक से थूक बड़ी मुश्किल से निगलता है)
विश्व - वह कैदी तुम पर झुका... तुम्हारे सिर के बालों को पकड़ कर तुम्हारे चेहरे को उठाया... और तुम्हारे कानों में... तुम्हारी कुंडली की राशी नक्षत्र कहने के बाद... चेतावनी दी... दोबारा कभी मत दिखना... वरना जिस नाम का आधार कार्ड बना कर सरकार के जनगणना लिस्ट में से झाँक रहा है... उसी लिस्ट से हमेशा के लिए गायब हो जाएगा.... याद है...

शंकर के चेहरे पर पसीने की धारें बहने लग गई l वह रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछता है फिर विश्व के आगे घुटने पर आ जाता है l

शंकर - व... वी.. विश्वा भाई... म... म.. मुझे माफ़ कर दो... मैं... मैं... आपको पहचान नहीं पाया... आपके बाल छोटे हो गए हैं... और चेहरे पर दाढ़ी नहीं है... पहचान नहीं पाया...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर, और आवाज़ कड़क कर) मैंने यह भी कहा था... मेरा नाम... कभी अपने जुबान पर मत लाना...
शंकर - ग.ग.गलती हो गई भाई... अभी जुबान पर आपका नाम... कभी नहीं आएगा...

काँच के दीवार के पर शंकर को हाथ जोड़ कर खड़े हुए विश्व के सामने घुटने टेक कर बैठे हुए देख कर रुप और भाश्वती दोनों की आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह देखते हैं विश्व अपनी जगह से आगे बढ़ता है और दरवाजा खोल कर उन्हें अंदर बुलाता है l रुप और भाश्वती अंदर जाते हैं l

विश्व - शंकर भाई... यह रही (भाश्वती को दिखाते हुए) यह मेरी बहन...

इतना कह कर विश्व टेबल के पास जाता है और टेबल पर रखे उस बेल को बजाता है l बेल बजते ही शंकर खड़ा हो जाता है l तभी दरवाजा खोल कर दस बारह आदमी चेंबर में घुस जाते हैं और विश्व को कस के पकड़ लेते हैं l

शंकर - (चिल्ला कर) छोड़.. इन्हें.. छोड़ो... (सबकी पकड़ ढीली हो जाती है) अबे... हराम खोरों... मैं कहता हूँ छोड़ो...

सब के सब विश्व को छोड़ देते हैं l शंकर अपना हाथ जोड़ कर भाश्वती के सामने खड़ा हो जाता है l

शंकर - बहन... माफ कर दो बहन... प्लीज...

भाश्वती रुप की ओर देखती है और दोनों एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखते हैं और विश्व के पास सट कर खड़े होते हैं l

शंकर - (भाश्वती से) देखिए बहन... आज से आप मेरी बहन हुईं... अगर आपको कभी कोई तकलीफ हुई... तो (विश्व से) इन भाई साहब को तकलीफ मत दीजिए... मुझे... मुझे बोलिए... मैं... मैं सब ठीक कर दूँगा... बस आप इतना कह दीजिए की मुझे माफ कर दिया....

कमरे में मौजूद सभी लोगों को शंकर को भाश्वती के सामने ऐसे गिड़गिड़ाते हुए देख कर शॉक लगता है l रुप और भाश्वती भी एक दुसरे को देखने लगते हैं l

शंकर - प्लीज बहन प्लीज...
भाश्वती - (होश में आ कर) हाँ... हाँ.. माफ किया...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) अच्छा शंकर भाई... अपना खयाल रखना... और कहा सुना माफ करना...

इतना कह कर विश्व रुप और भाश्वती को लेकर बाहर चला जाता है l उन लोगों के आँखों से ओझल होते ही पास पड़े सोफ़े पर शंकर बैठ जाता है l उसके गुर्गों में एक आदमी पूछता है


एक - क्या भाई... यह कौन था...
शंकर - वह... वह उस लड़की का भाई था... मतलब मेरा भाई... मेरा मतलब तुम सबका भाई...

बाहर पहुँचने के बाद रुप विश्व के सामने खड़ी हो जाती है l विश्व देखता है रुप की आँखों में बहुत से सवाल हैं l विश्व अपनी नजरें फ़ेर लेता है l

रुप - तुमने ऐसा क्या कहा... कि वह घुटनों पर आ गया...
विश्व - मैंने उसे... सब सच कहा...
रुप - कैसा सच...
विश्व - मैंने कहा कि... मेरी माँ एक वकील है... और कामकाजी महिलाओं के संस्थान की अध्यक्षा हैं... और दो चार कानून के सेक्शन बताया... तो वह घुटनों पर आ गया...
रुप - (चिल्ला कर) क्या मैं तुम्हें बेवकुफ दिखती हूँ...
विश्व - अरे (भाश्वती से) अच्छा बहन तुम ही बताओ... मैं शंकर दादा के समाने हाथ जोड़ कर बात कर रहा था... या नहीं...
भाश्वती - हाँ... आप जोड़ कर खड़े थे... (रुप से) सही कह रहे हैं यार...

रुप विश्व के सामने हट जाती है l तीनों थोड़ी दुर चलने के बाद एक ऑटो करते हैं और भाश्वती के गली का पता बताते हैं l ऑटो भाश्वती के घर के सामने रुकती है l भाश्वती उतर कर विश्व को देखती है l विश्व ऑटो वाले को पैसे देकर विदा कर देता है l ऑटो वाले के जाते ही भाश्वती भाग कर विश्व के गले लग जाती है l

भाश्वती - थैंक्स भैया... (सुबकने लगती है)
विश्व - अरे प्रॉब्लम तो सॉल्व हो गया ना... फिर रो क्यूँ रही हो...
भाश्वती - (सुबकती रहती है)
विश्व - सच कहूँ तो मैं... उस शंकर दादा को थैंक्स कह रहा था...
भाश्वती - (हैरान हो कर विश्व को देखती है)
विश्व - अगर वह यह सब नहीं करता... तो मुझे यह नकचढ़ी बहन कैसे मिलती...
भाश्वती - आँह्.. ह्.. ह्

विश्व को अपने बैग से मारने लगती है, विश्व भी मार लगने से दर्द होने की ऐक्टिंग करता है l

भाश्वती - बस भैया... उस दिन मैंने चाय के लिए पुछा... तुम आए नहीं... पर आज नहीं जाने दूंगी....

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो प्रताप बाबु... उस शंकर को घुटने पर ला दिए...
रुप - यही तो... उसने ऐसा क्या कहा.... की एक पोलिटिकल गुंडा... जिसके पीछे पुलिस भी खड़ी है और पॉलिटिशियन भी... वह विश्व के सामने क्यूँ डर गया... और इतना डरा की.... भाश्वती को बहन कह दिया....
शुभ्रा - हम्म... फिर... फिर क्या हुआ...
रुप - फिर होना क्या था भाभी... मैंने प्लान करके प्रताप को बाहर पहले भेज दिया... बाद में गुरू काका को बुला कर घर आ गई...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - (झिझकते हुए) वह इसलिए... की मैं अपनी आइडेंटिटी छुपाना चाहती थी... प्रताप से...
शुभ्रा - ओ... अच्छा... यह तो हुई कल की बात.... आज क्या हुआ...
रुप - आज... आज तो वह कमीनी भाश्वती... पुरे कॉलेज में... उछल उछल कर... फुदक फुदक कर... अपने नए भाई.... प्रताप के बारे में सबको बता रही थी...
शुभ्रा - तो...
रुप - तो क्या.. तो कुछ नहीं... सबने प्लान बनाया है... सोमवार को प्रताप से मिलने जाएंगे... हमारे साथ... ड्राइविंग स्कुल में...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... ड्राइविंग स्कुल में... आज क्या हुआ...
रुप - मैं पुरी की पुरी सेशन... उससे आज दुर रही... ना उसके पास गई... ना उससे बात की...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - क्यूँ... क्या मतलब क्यूँ...
शुभ्रा - तुमने पहल करी... उससे दोस्ती की.. अब उससे बात भी नहीं करना चाहती... क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं जब भी उसे देखती हूँ... मेरे अंदर... अजीब सी कशमकश शुरु हो जाती है.... जैसे उसके अंदर से अनाम झांक रहा है... ऐसा मुझे लगता है... उसकी नजर... उसकी बातेँ... ऐसा लगता है... जैसे... अनाम ही मुझसे बातेँ कर रहा है... उसे देखते ही... मैं बिल्कुल अपने बचपन वाली हरकतें करने लगती हूँ... फिर अपने अंदर एक जंग लड़ती रहती हूँ... नहीं नहीं... यह अनाम नहीं हो सकता...
शुभ्रा - फर्ज करो... अगर यह अनाम हुआ तो...
रुप - कैसे... अनाम में इतनी हिम्मत कभी था ही नहीं... थोड़ा डरपोक सा था...
शुभ्रा - नंदिनी... उससे बिछड़े आठ बरस हो चुके हैं... यहाँ दुनिया एक पल में बदल जाती है... एक काम करो... वह अनाम है या नहीं... कंफर्म करो...
रुप - कैसे...
शुभ्रा - उसके गर्दन के पीछे तुम्हारा नाम गुदा है या नहीं... देख लो...
रुप - भाभी... आप मज़ाक कर रही हैं...
शुभ्रा - नहीं तो... तुम युँ तड़पने के वजाए... खुद को एस्क्युज करने के वजाए... आने वाले हफ्ते में कंफर्म करने की कोशिश करो... प्यार तुम्हारा है... दिल तुम्हारा है... और जिंदगी भी तुम्हारी है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - (उसे चुप देख कर) अच्छा... अब तुम सो जाओ... रात बहुत हो चुकी है...

इतना कह कर शुभ्रा वहाँ से चली जाती है l रुप कमरे की लाइट बुझा देती है l तभी खिड़की से चांद की रौशनी को आते देख कर बालकनी को जाति है और चौदहवीं के चांद को देखने लगती है l रुप के मुहँ से अपने आप निकल जाता है l

"अनाम"

वहीँ एक और शहर कटक में विश्व छत पर बैठा विश्व चांद की ओर देख रहा है l उसे महसूस होता है कि कोई इसके पीछे है l

विश्व - (बिना पीछे मुड़े) माँ.. तुम सोई नहीँ...
प्रतिभा - (उसके पास आकर बैठते हुए) क्यूँ उस चांद को घूर रहा है... उसमें वह नहीँ दिखेगी तुझे... अगर वह चंद्रमुखी होती तो जरूर दिखती... पर वह तो सुरज मुखी है... चांद में कैसे दिखेगी...
विश्व - माँ... प्लीज... तुम नंदिनी जी का नाम लेकर छेड़ो मत...
प्रतिभा - अरे... मैंने तो नाम लिया ही नहीं... मैं तो बस... राजकुमारी रुप की बात कर रही थी...
विश्व - ओह... सॉरी माँ...
प्रतिभा - अरे... इसमें सॉरी की क्या बात है... वैसे.. मैं सच में... नंदिनी के नामसे ही छेड़ रही थी...
विश्व - (मुस्करा देता है) माँ... (प्रतिभा के गोद में सिर रख देता है)
प्रतिभा - अच्छा यह बता... इतनी रात को... क्यूँ याद कर रहा है उसे... अपनी दिल की हालत अपनी माँ से कहने के वजाए... उस मुए चांद को कह रहा है...
विश्व - (झट से प्रतिभा के गोद से अपना सिर उठा कर) माँ... तुम मुझे फिर से छेड़ रही हो...
प्रतिभा - छेड़ नहीं रही हूँ... अपने बेटे की दिल का हाल जानना चाहती हूँ...
विश्व - क्या कहूँ माँ... जब भी नंदिनी जी को देखता हूँ.. मन में अंतर्द्वंद शुरु हो जाता है... उनकी बातेँ... बोलने का अंदाज... उनका गुस्सा... हुकुम देने का तरीका सब... सब ऐसा लगता है जैसे.. राजकुमारी जी हों... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... फर्ज कर... अगर वह सच में... राजकुमारी रुप सिंह हुई तो...
विश्व - (प्रतिभा की ओर देखता है) नहीं माँ... यह वह हो नहीं सकती...
प्रतिभा - यह हो सकती हैं... ऐसा तु मान नहीं पा रहा है... या मानना नहीं चाहता...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - अच्छा... तु ऐसे तड़पने के वजाए... कंफर्म क्यूँ नहीं कर लेता...
विश्व - (एक असमंजस सी चुप्पी साध लेता है)
प्रतिभा - सच तो यह है कि... तु खुद रुप के सामने जाना नहीं चाहता... क्यूंकि तेरी लड़ाई भैरव सिंह से है... क्षेत्रपाल के वज़ूद से है... और रुप उस वज़ूद से जुड़ी हुई है... तु लड़ाई छोड़ नहीं सकता... और छोड़ेगा भी नहीं... बस इस लड़ाई के बीच... तु रुप को देखना नहीं चाहता... क्यूंकि इस लड़ाई के लिए तु खुद को रुप के सामने जस्टीफाई करना नहीं चाहता... है ना...
विश्व - (कुछ देर की खामोशी के बाद) माँ... (प्रतिभा की ओर देखते हुए) तुम सच कह रही हो... सच्चाई यही है कि... मैं इस लड़ाई खतम होने तक... राजकुमारी जी के सामने नहीं जाना चाहता था... पर मेरी जिंदगी में नंदिनी जी... एक आँधी की तरह आ गई हैं... मैं उनसे बचना चाहता हूँ... पर उनकी कशिश ऐसी है... की चुंबक की तरह खिंचा चला जा रहा हूँ... मैं हर सुबह अपने आप से वादा करता हूँ... फिर शाम ढलते ढलते खुद से खीज ने लगता हूँ...
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) सुन... अपनी दिल की आवाज़ सुन... कोई तो रास्ता होगा... तु ढूँढ... पता लगा... के वह नंदिनी ही है... या रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... पता कर...

कह कर प्रतिभा विश्व के पास से उठ जाती है और वहाँ से जाने लगती है l विश्व वहीँ बैठा रहता है और चांद की ओर देखने लगता है, उसके मुहं से अपने आप निकल जाता है
"राजकुमारी"
Ultimate update bro maza aa gaya



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Kala Nag

Mr. X
Prime
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159
👉सतासीवां अपडेट
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एल्बो क्लॉचर के सहारे चलने की थोड़ी प्रैक्टिस कर लेने के बाद रोणा अपने केबिन में पड़े सोफ़े पर फैल कर बैठ जाता है और देखता है उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठा बल्लभ किसी के साथ मोबाइल चैटिंग में व्यस्त है l

रोणा - क्यूँ भई... वकील साहब... कटक में... कोई नैन मटक्का हो गई है क्या...किसी फूलझड़ी के साथ...
बल्लभ - (मोबाइल पर चैटिंग बंद कर रोणा को घूरते हुए) सुन बे दारोगा... मैं तेरे जैसा ठरकी नहीं हूँ... तु अपनी नैन सेंकने गया था... देख... अपने ऊपर क्या लाया है... साला हस्पताल में सड़ रहा है... और मुझे भी यहाँ अपने साथ सड़ा रहा है...
रोणा - (सड़ा हुआ मुहँ कर) याद मत दिला यार... यहाँ नर्सों को भी घूरने से डर लग रहा है... पता नहीं... कौन कब कहाँ से आकर बजा जाए...
बल्लभ - चल... थोड़ी अक्ल तो आई... वैसे... मैं तेरे ही काम में बिजी हूँ...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा काम...
बल्लभ - भुल गया... वैदेही की मासी...
रोणा - (झटका खा कर, सीधा हो कर बैठ जाता है ) मना किया था तुझे... बे भुतनी के... हम पर नजर हो सकती है शायद....
बल्लभ - फिक्र मत कर... जब राजा साहब जी के हर ईलीगल काम को लीगलाइज तरीके से हैंडल करना जानता हूँ... तो यहाँ लीगल तरीके से खबर कैसे निकालना है... कौनसा मुस्किल काम था... यहाँ जो वह... विश्व या जो कोई भी हो.. उसका अगर कोई खबरी है भी... तो ... उसके नाक के नीचे से ख़बर आएगी हम तक...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा तीस मार खान है... जो यहाँ... हम तक खबर पहुँचाएगा....
बल्लभ - (घड़ी देखते हुए) बस कुछ देर और... तु भी अच्छी तरह से जानता है उसे... बुलाया है उसको... वह आता ही होगा...

रोणा सोच में पड़ जाता है l कौन हो सकता है वह बंदा जो बल्लभ के हाथ लग गया l तभी एक आदमी स्लेटी रंग के सफारी शूट पहने हाथ में गुलदस्ता लिए अंदर आता है और रोणा के हाथ में देते हुए

आदमी - हैलो... रोणा... (एक नजर रोणा पर डालते हुए) हाल तो तेरा दिख ही रहा है... और पक्के से कह सकता हूँ... चाल भी लड़खड़ा रहा होगा... क्यूंकि हाथ में यह... एल्बो क्लॉचर है...
रोणा - हे..ऐ..ई... ( गुलदस्ता लेते हुए) मैं... तुम्हें जानता हूँ... अच्छी तरह से... पर...
आदमी - कोई नहीं... आखिर सात साल जो बीत गए... तब के बिछड़े अब मिल रहे हैं...
बल्लभ - (रोणा से) अबे दारोगा... इसे तु भुल कैसे गया... कितनी रातें रंग महल में... बोतल लुढ़काये हैं... और बेटियाँ बांटे हैं, इसके साथ...
आदमी - रिलेक्स प्रधान रिलेक्स... यह पहचान गया है... बस नाम जुबान पर नहीं आ पा रहा है...
रोणा - (झटके के साथ) हाँ.. हाँ... याद आया... याद आया... श्रीधर परीड़ा... एएसपी होम सेक्रेटरीयट... (हाथ मिलाने को हाथ आगे बढ़ाता है)
परीडा - देखा... पहचान गया ना... (कह कर हाथ मिलाता है)

वह भी एक सोफ़े पर बैठ जाता है l और नजरें घुमा कर कैबिन को अच्छी तरह से देखता है l

परीड़ा - यार यह हस्पताल है... या फाइव स्टार होटल...
रोणा - अबे राजा साहब के आदमी हैं... हमें उनके स्टेटस का खयाल रखना पड़ता है...
परीड़ा - हाँ... सात पुश्तों तक के लिए... कमा कर तो नहीं.... जमा कर जरूर रखे होगे....
रोणा - क्यूँ ...तुने नहीं कमाया... सॉरी जमा किया...
परीडा - कहाँ यार... सिर्फ सात साल पहले... रुप फाउंडेशन की इंक्वायरी के टाइम ही... जितना मिला था... अदालत ने भले ही एसआईटी को बहाल रखा... पर एसआईटी तभी से... पैरालाइज हो कर पड़ा है... और कोई दुसरा केस हाथ में आया ही नहीं...
रोणा - हूँ... वैसे तेरा होम मिनिस्टर तो... बड़ा फुदक रहा था..
परीडा - हाँ... बुढ़उ को गर्मी जो चढ़ी थी... उतरवाने गया था... राजा साहब ने उसकी ऐसी ली... की अब औकात में आ गया है... तुम लोगों को यकीन नहीं होगा.. साला अब जुते पहनना छोड़ दिया है... नंगे पैर ही आना जाना कर रहा है....
रोणा - ओ तेरी...
बल्लभ - रिलेक्स... रिलेक्स... हम उस मुद्दे पर बात कर लें... जिसके लिए... मैंने तुम्हें इंफॉर्म किया था...
परीडा - हाँ.. हाँ.. वह... वाव की प्रेसीडेंट की खबर ना...
रोणा - हाँ... मतलब वकील ने तुझे सब कुछ बता दिया है...
परीडा - हाँ... पर सब कुछ या कुछ कुछ... यह मैं नहीं जानता...
रोणा - तो... यह वैदेही की मासी... असल में है कौन... ऐसी कौनसी रौब या रुतबा रखती है वह...
परीडा - पहली बात... वैदेही उसे मासी किस रिश्ते से बुला रही है... यह मैं नहीं जानता... पर वह औरत कटक और भुवनेश्वर में बहुत बड़ी नामचीन हस्ती है... बहुत रुतबा रखती है... ज्यादातर काम काजी महिलाएँ... उसे मासी... दीदी... बहन जी... बुलाते हैं... और वैदेही... उन कामकाजी महिलाओं में से एक हो सकती है...

रोणा और बल्लभ दोनों के हैरानी के मारे जबड़े खुल जाते हैं l असमंजस हो कर एक दुसरे को देखते हैं l

बल्लभ - (परीड़ा से) वह एडवोकेट ही है ना... या... उससे भी बड़ी तोप है...
परीडा - तोप ही समझो... और अब नाम सुनोगे... तो बिजली का ऐसा झटका लगेगा... की और भी ज्यादा शॉक से चौंक जाओगे...
रोणा - अच्छा... क्या नाम है उसका...
परीडा - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति...
रोणा - (अपने दिमाग पर जोर देते हुए) प्रतिभा... सेनापति... हे ई.. हे ई.. यह नाम कुछ... सुना हुआ सा लग रहा है...
बल्लभ - हाँ... (जैसे उसे याद आ गया) हाँ... मुझे याद... है... रुप फाउंडेशन घोटाले में... यह सरकारी वकील थी... विश्व के खिलाफ...
रोणा - (झटका खाते हुए) क्या... तो फिर उसका... वैदेही से... क्या नाता...
परीडा - हूँम्म्म्म्म्... यह तो मैं नहीं जानता... पर हो सकता है.. वर्किंग वुमन होने के नाते... कोई कैजुअल जान पहचान हो...
रोणा - कैजुअल... अबे फोन पर मेरी फाड़ दी उसने... सिर्फ फोन पर...
परीड़ा - ओ तेरी... हालत तब से ऐसी है क्या... हा हा हा हा...
रोणा - (भड़क कर) चुप बे... (फिर कुछ सोचने की मुद्रा में) एडवोकेट सेनापति... पब्लिक प्रोसिक्यूटर थी ना... फिर ऑल ऑफ सडन...
परीडा - कुछ भी ऑल ऑफ सडन नहीं है... मुझे लगता है अगर तुम पुरी तरह से नहीं.. तो पर्सीयली जानते होगे... (बल्लभ और रोणा दोनों परीड़ा को घुर कर देखते हैं) वह खुद... चश्मदीद गवाह होने के बावजुद... अपनी बेटे की कत्ल की केस को... कोर्ट के चौखट तक भी नहीं पहुँचा पाई... और उसका वजह था... यश वर्धन चेट्टी.... और अपना यह पुरा सिस्टम... उसके बाद वह अपनी पीपी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया... यश वर्धन के केस में उनकी इतनी बदनामी हुई.... इतनी फजीहत हुई थी... के... बार एसोसिएशन से भी इस्तीफा देने की सोच लिया था... पर.... उस दौरान सेंट्रल जैल में एक दंगा हुआ था... तुम लोग जानते होगे... पुरी ओड़िशा में तहलका मच गया था... उस दंगा में शामिल... बाहर के और अंदर के... सारे क्रिमिनल्स मारे गए थे... उस इंसीडेंट के कुछ दिनों बाद... वह दुबारा से कोर्ट में आईं... फिर उन्होंने अपनी ऐसी पहचान बनाई ... की... कोर्ट में उनके बहस में आग ही आग बरसने लगे... जिन्होंने कभी जयंत सर को देखा था... वह बेझिझक प्रतिभा जी को देख कर कह सकते हैं... की... प्रतिभा जी जयंत सर के फीमेल वर्जन हैं... और इन्हीं चार सालों में... वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की प्रेसिडेंट बनीं... बार एसोसिएशन की सेक्रेटरी और.... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट भी बन गई हैं... बेशक... पैसों के मामलों में तो नहीं... पर नाम, शोहरत और रुतबे में... वह आज एक बहुत बड़ी हस्ती हैं... अगर बिना पीपीइ के मेरा मतलब है कि... बिना पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वीपमेंट के छुओगे... तो चार सो चालीस वोल्ट बिजली की जितनी... तुमको शॉक लगेगी...

इतना कह कर परीड़ा चुप हो जाता है l कैबिन में एकदम से मरघट के जितनी सन्नाटा पसर जाता है l ऐसी के कमरे में भी बल्लभ के माथे पर बल और पसीना साफ दिखने लगता है l

रोणा - (अपनी सोच से बाहर आकर बल्लभ को देख कर) क्या हुआ वकील... ऐसी में भी तेरी ऐसी की तैसी हो गई... तेरे पसीने छूट रहे हैं...
बल्लभ - श्श्श्श्...(अपनी आँखे मूँद कर) इस निशब्दता को सुनो... गौर से सुनो...(पॉज लेकर) यह निशब्दता कितना भयंकर है महसुस करो... श्श्श्श... (रोणा और परीड़ा हैरान हो कर बल्लभ को देखने लगते हैं, कुछ देर की खामोशी के बाद) मुझे इस निशब्दता के पीछे.... कुछ आहट महसुस हो रही है... सुनाई दे रही है.... (रोणा और परीड़ा दोनों अब एक दुसरे को देखने लगते हैं) (बल्लभ अपनी आँखे खोल कर) दारोगा... तु कितना सही है... यह मैं नहीं जानता... पर तु पुरी तरह से गलत नहीं है... इस वैदेही और मासी का... आपस में क्या रिश्ता है... विश्व का उससे क्या लेना देना है... पता लगाना पड़ेगा...
परीड़ा - क्या... विश्व का... एडवोकेट प्रतिभा से रिश्ता... क्या रिश्ता हो सकता है... विश्व तो... शायद अभी यही पंद्रह दिन हुए... जैल से छुटा है...
रोणा - पर वह अभी तक राजगड़ आया नहीं है... क्यूँ... जब कि उसकी बहन ने मुझे... साठ दिन की चैलेंज दे रही है... किसके दम पर... विश्व के... या प्रतिभा के...
परीड़ा - वैदेही हुल दे रही है... समझ में आ रहा है... विश्व बदला लेने की सोच रहा होगा... यह हो सकता है... पर प्रतिभा... राजा सहाब के खिलाफ...
बल्लभ - अभी तक हम यह नहीं जानते हैं कि... प्रतिभा राजा साहब के खिलाफ है... अगर वह खिलाफ पाई गई... तो कटक से गायब कर ली जाएगी... और रंग महल के आखेट गृह में फेंक दी जाएगी... लकड़बग्घे या मगरमच्छ की निवाला बन जाएगी... पर तब... जब वह जिस ऐफिडेविट की बात कर रही है... उसमें राजा साहब के नाम हुआ तो... शायद...
परीड़ा - वह किसलिए... हो सकता है... उसमें राजा साहब का नाम ना हो... तुम लोगों का नाम हो...
बल्लभ - हाँ... हो भी सकता है... यही तो पता लगाना है... वैदेही के लिए प्रतिभा मैदान में आ गई... किस रिश्ते से... प्रोफेशनल या पर्सनल... और प्रतिभा तो.. विश्व को सजा दिलाई थी... इसके बावजूद वैदेही उसकी मदत ले रही है... और उसीके द्वारा... अपनी जान का खतरा बता कर अदालत में... हलफनामा दायर किया है...
परीडा - तो तुम लोग... अब... करना क्या चाहते हो...
बल्लभ - एक मुलाकात... एडवोकेट प्रतिभा जी से मुलाकात...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... या एडवोकेट प्रतिभा से...
बल्लभ - मतलब...
परीड़ा - कौनसे ऑफिस में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलना है... तो तुम्हें छुट्टी के दिन... या फिर रात को उनके घर जाना पड़ेगा... और अगर वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... तो शाम चार से सात बजे के अंदर... चौधरी बाजार के वाव ऑफिस में मुलाकात कर सकते हो... पर स्टील... मैं सजेस्ट करूँगा... हैंडल वीथ केयर... वरना... पता नहीं... (रोणा को देखते हुए) तेरी यह हालत किसने की है... पर वहाँ कुछ भी गड़बड़ हुई... तो लेने के देने पड़ जाओगे...
रोणा - तु डरा रहा है...
परीडा - नहीं आगाह कर रहा हूँ... तुम दोनों उससे मिलोगे... किस लिए... क्या बात करोगे... वह तुम्हें क्यूँ कर कोई जानकारी देगी... बोलो...

बल्लभ और रोणा दोनों सोच में पड़ जाते हैं l क्यूँकी परीड़ा ने बात बिल्कुल सही कहा था l दोनों परीड़ा के तरफ देखते हैं l

रोणा - अभी इस वक़्त... कहाँ हो सकती है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... अदालत में... आपनी किसी केस की बहस में... पक्का आग उगल रही होगी...

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अदालत में जज कुछ कागजात देख रहे हैं l मुल्जिम के कटघरे में एक युवक खड़ा है l उसके पहनावे से वह एक रईस घर से प्रतीत हो रहा है l दुसरी तरफ गवाह के कटघरे में एक औरत खड़ी है l उसी औरत के तरफ अदालत में एक पालना है और उसमें एक बच्चा शायद नौ या दस महिने का होगा मुहँ में दुध का बॉटल लिए लेटा हुआ है और अदालत में केस को लेकर लोग आपस में बहस के साथ शोर शराबा कर रहे हैं l उन लोगों के बीच विश्व और तापस भी बैठे हुए हैं l विश्व के हाथ में एक पत्तल का थैली है जिसमें से वह एक जलेबी निकाल कर खाता है l

तापस - अरे बेशरम... कुछ तो शर्म रख... अदालत के अंदर... जलेबी... क्यूँ...
विश्व - मुझे पता है... माँ यह केस भी आसानी से जीत जाएगी... इसलिए... मुहँ पहले से ही मीठा कर रहा हूँ...
तापस - मैनर नाम की कोई चीज़ होती है...
विश्व - (खाते खाते रुक जाता है और तापस की ओर देख कर) बिल्कुल सही कह रहे हैं डैड... (फिर खाना चालू करते हुए) और वह मेरे अंदर कूट कूट के भरा है... (तापस गुस्से से आँखे सिकुड़ कर देखता है) यह आखिरी है...
जज - (गैवेल लेकर टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर.. ऑर्डर... (अदालत में खामोशी छा जाती है) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...

एक वकील अपनी जगह से उठ कर जज के सामने आकर खड़ा होता है l

वकील - माय लॉर्ड... (अपनी कुर्सी से उठ कर) वीथ योर परमीशन... मे आई...
जज - आप तो बचाव पक्ष के वकील हैं...
वकील - जी माय लॉर्ड... पर अभियोजन पक्ष ने आज की कारवाई के लिए अपना वकील बदल लिया है... जब कि यह केस खतम होने को आई है... आज... जब अदालत में... इस केस की सुनवाई आगे बढ़ेगी... और केस खतम होगी... माय लॉर्ड... हम अभियोजन पक्ष में होंगे... और यह... जो मासूम सा चेहरा लेकर गवाह के कटघरे में खड़ी है... मिस निशा... वह खुद को बचाने के लिए... अपनी वकील साहिबा को कहेगी.... रोएगी... गिड़गिड़ाएगी...
जज - अभियोजन पक्ष को क्या कोई ऐतराज है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ खड़ी होती है, मुस्कराते हुए ) जी नहीं... बिल्कुल भी नहीं... माय लॉर्ड... बल्कि मैं मेरे फाजिल दोस्त जिन तथ्यों पर.... बहस को सामने रख कर अब तक केस को यहाँ तक पहुँचा चुके हैं... मैं पढ़ चुकी हूँ.. हाँ अगर वह कुछ और पेश करना चाहते हैं... मैं देखना जरूर चाहूँगी....
जज - ठीक है... (वकील से) परमिशन ग्रांटेड़... यु मे प्रोसीड...
वकील - थैंक्यू... थैंक्यू.. माय लॉर्ड... इस केस पर हम बहुत बार बहस कर चुके हैं... और मैंने... हर एक बार यह साबित किया है... की यह जो मासूम सी दिखने वाली लड़की... अपने जेंडर की नाजायज फायदा उठाया है... बेचारी निशा... गरीब घर में जन्मी... एक महत्वाकांक्षी लड़की... बचपन से ही... आँखों में बड़े बड़े सपने लिए हुए... इस शहर में आई थी... मेरे क्लाइंट... जैसा कि सभी जानते हैं... मिस्टर अनिरुद्ध पाल... xxxx मॉल के मालिक हैं... करोड़ों के मालिक... इन पर डोरे डालना शुरू करती है... पर कामयाब ना हो सकीं... उसके मंसूबों को पाल साहब अच्छी तरह से जान गए... इसलिए डेढ़ साल पहले ही... नौकरी से निकाल दिया... पर यह लड़की मिस निशा... पता नहीं... कुछ समय के लिए किसकी मिसेज बनीं... फिर ... एक बच्चे को लाकर... मिस्टर पाल पर बच्चे के बाप होने का आरोप लगाती है... जब कि उसके पास इसका कोई सबूत नहीं है... ना कोई फोन रिकॉर्ड... ना कोई चैटिंग की रिकॉर्ड... ना कोई गिफ्ट... ना कोई लेटर... यहाँ तक कि... माय लॉर्ड.. कोई गवाह भी नहीं है... जो इसके लिए गवाही दे... के मिस्टर पाल साहब का.. इस लड़की से कोई संबंद्ध है... योर ओनर... मेरे क्लाइंट इस शहर के एक प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति हैं... उनके पिता श्री संतोष पाल... जो यहाँ लोगों बीच मौजूद हैं... वह राजनीतिक गलियारों में भी अच्छी खासी पहुँच रखते हैं... ऐसे में मैं दावे के साथ कह सकता हूँ... यह मेरे क्लाइंट के साथ... उनकी छबी खराब करने के लिए... विरोधियों की रची गई चाल है... और यह लड़की... उन विरोधियों के साथ है... मोहरा है...
लड़की - (चिल्ला कर) नहीं जज साहब... यह वकील साहब झूठ बोल रहे हैं...
जज - ऑर्डर... ऑर्डर... (लड़की से) जब आपको बोलने को कहा जाए... आप तब तक चुप ही रहें... (वकील से) पात्र बाबु... अपनी बहस में और कोई दलील देना चाहेंगे...
वकील पात्र - हाँ माय लॉर्ड... आज जब केस की अंतिम सुनवाई हो... तब पाल परिवार के तरफ से... डीफेम केस शूट किया जाए... क्यूंकि माय लॉर्ड... अभी तक... अभियोजन पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है... की मिस्टर पाल और निशा जी के मध्य कोई संबंद्ध है... इसलिए मैं... मेरे फाजिल दोस्त... वकील साहिबा को सलाह देना चाहूँगा... बेहतर है कि वह.. अभी से हार मान ले... जो कि इस केस में नई नई घुसी हैं... और इस केस पर बहस करके अपना और कोर्ट का वक़्त जाया ना करें... (कह कर प्रतिभा को देख कर नीचा दिखाने वाली मुस्कराहट के साथ बैठ जाता है)
प्रतिभा - (पात्र को मुस्करा कर देखती है और बड़ी आत्मविश्वास के साथ अपनी जगह से उठती है) माय लॉर्ड... मैं इस केस में नई हूँ... इससे पहले वाले वकील से अपना केस लाकर... मेरी क्लाइंट ने मुझे सौंपा है... और पुरी स्टडी करने के बाद... मेरे फाजिल दोस्त से पूछना चाहूँगी... के क्यूँ... मिस्टर पाल डीएनए टेस्ट के लिए मना कर रहे हैं...
वकील पात्र - (अपनी जगह से उठ कर) वह इसलिए माय लॉर्ड... अगर मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट के लिए राजी हो जाएं... तो कल हर राह चलती लड़की अपने हाथ में बच्चा लिए कोर्ट के परिसर में आ कर .. किसी ना किसी दौलत मंद और इज़्ज़त दार आदमी को कोर्ट घसिटेंगी... और यह एक चलन बन जाएगा योर ओनर... मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट से... ना तो घबरा रहे हैं... ना ही मना कर रहे हैं... पर... पहले कोर्ट में यह किसी तरह से स्थापित तो हो... के इनके मध्य कोई संबंद्ध था... (कह कर बैठ जाता है)
जज - इस पर आप क्या कहना चाहेंगी प्रतिभा जी...

प्रतिभा वकील पात्र को देखती है, पात्र प्रतिभा को देख कर ऐसे मुस्कराता है जैसे वह खिल्ली उड़ा रहा हो l

प्रतिभा - यस योर ओनर... (अनिरुद्ध के पास चल कर जाती है) मिस्टर अनिरुद्ध पाल... क्या आप भगवान पर विश्वास करते हैं...
पाल - (अपना नीचला होठ को जीभ से गिला करते हुए) ओवीयोस्ली... यहाँ कौन है... या कितने होंगे जो... भगवान भरोसा ना करते हों...
प्रतिभा - हूँ... और यह भी मानते हैं.. की उनके दरबार में... कोई ना इंसाफ़ी नहीं होगी...
अनिरुद्ध - जी यह सच है...
पात्र - माय लॉर्ड...(अपनी जगह से उठ कर) वकील साहिबा को यह याद दिलाया जाए कि... यह समाज के बनाए कानूनी अदालत है... यहाँ उपरवाला नहीं... सबूतों को मध्य नजर रख कर... आप इंसाफ़ करने वाले हैं...
प्रतिभा - येस माय लॉर्ड... ना मैं भुली हूँ... ना यह मैं किसीको भुलने दूंगी... मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि... जिसका कोई नहीं होता... उसका भगवान का साथ होता है.... जब इंसाफ़ झूठे गवाह और सबूतों पर डगमगाने लगे... तब भगवान चमत्कार कर देते हैं... बस हमें उसकी पहचान होनी चाहिए... देट्स इट...
जज - प्रोसिड...
प्रतिभा - थैंक्यू माय लॉर्ड.... (दांत पिसते हुए पात्र बैठ जाता है) तो अनिरुद्ध.. अब देखते हैं... भगवान पर आपकी श्रद्धा और विश्वास कितना अटूट है... (फिर जज की तरफ घूम कर) माय लॉर्ड... किसीसे प्रेम परिणय करना... और गर्भवती बना कर छोड़ देना... यह पुरुष व्यवस्थित समाज में आदिम काल से चला आ रहा है... और उस समाज में जो पकडा जाता है... वह व्यभिचारी होता है... और जो पकड़ नहीं जाता है... वह संस्कारी... समाज का ठेकेदार हो जाता है... एक उदाहरण... मैं एक ऐतिहासिक मिथक से उठा कर प्रस्तुत करती हूँ... एक राजा... आखेट के लिए जंगल में आता है... उसे एक सुंदर सी स्त्री दिखती है... वह उसके समक्ष प्रेम निवेदन करता है... फिर प्रेम परिणय कर के... स्मृति के स्वरुप एक मुद्रिका देकर चला जाता है.... काल क्रम में वह स्त्री गर्भवती होती है... उसे उसके परिवार वाले लेकर राजा के पास लेकर जाते हैं... वह राजा पहचान ने से इंकार कर देता है... और विडंबना यह हुई... की उस स्त्री से वह मुद्रिका भी खो गई... आगे जो हुआ वह इतिहास है... और आज... आज जो यहाँ होगा वह भी इतिहास ही होगा... की आइंदा कोई दुष्यंत किसी शकुंतला के साथ ऐसा करने से पहले... सौ बार सोचेगा... यह जनाब... अपना डीएनए सैंपल देने से इंकार कर रहे हैं... की यह जो लड़की गवाह की कटघरे में खड़ी है... झूठी है... और यह जनाब इतने पैसे वाले हैं कि... अगर डीएनए सैंपल दे देंगे... तो लड़किया की होड़ लग जाएगी... की इस इंसान की डीएनए मांग करने लग जाएंगे... इसलिए डीएनए परीक्षण तभी हो सकता है... जब अनिरुद्ध और निशा के मध्य संबंद्ध स्थापित हो... इसलिए मैं वकील पात्र बाबु से.. और पाल बाबु से पुछ रही हूँ... अनुवांशिक या वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक गुण या आदत या चिन्ह... ऐसा होता है या नहीं...(प्रतिभा वकील पात्र की ओर देखती है)
पात्र - (कुछ सोच कर) हाँ.. होता है...
पाल - (प्रतिभा की ओर देख कर) हाँ होता है...

प्रतिभा पालने के पास जाती है और अपना मोबाइल निकालती है l बच्चे के मुहँ से दूध की बोतल निकाल कर बच्चे पर फोकस कर वीडियो शूट करती है l लोगों के बीच बैठा विश्व फिर थैली से जलेबी निकाल कर तापस को देता है l

तापस - (दबी जुबान से) यह क्या है...
विश्व - (दबी जुबान से) जलेबी... मुहँ मीठा कीजिए... माँ... केस जीत गई...
तापस - कैसे... अभी सुनवाई पुरी नहीं हुई है...
विश्व - बस हो गया समझिए...

तापस विश्व के हाथ से जलेबी लेकर खाता है l वीडियो शूट करने के बाद प्रतिभा उस वीडियो को वकील पात्र को फॉरवर्ड करती है l

प्रतिभा - माय लॉर्ड... जैसा कि मैंने कहा था... की अनुवांशिक गुण... आदत या चिन्ह होते हैं... जो पीढ़ियों से... एक पीढ़ी से दुसरी पीढ़ी तीसरी पीढ़ी... यहाँ तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक्सटेंड होती रहती है... (मोबाइल को जज की ओर बढ़ाते हुए) योर ओनर... जैसा कि अनिरुद्ध ने कहा... की उन्हें ऊपर वाले पर विश्वास है... तो मैं यह उनके साथ पुरी दुनिया और समाज से कहना चाहती हूँ.. उपर वाले की लाठी बे आवाज़ होती है... और अभी उनकी लाठी चल गई है... मैंने अभी आपके सामने इस बच्चे की वीडियो शूट किया है... आप इस बच्चे की हरकत और मुल्जिम के कटघरे में खड़े अनिरुद्ध पाल और यहाँ लोगों के बीच बैठे उनके पिताजी संतोष पाल जी के आदतों पर गौर करें... प्लीज... (राइटर प्रतिभा के हाथ से मोबाइल ले कर जज को देता है) प्लीज... (वकील पात्र को देखने के लिए कहती है)

जज और वकील पात्र वीडियो देखते हैं l बच्चा बार बार अपनी नीचला होंठ को जीभ से भिगो रहा है l जज अनिरुद्ध को देखता है l अनिरुद्ध भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l और लोगों के बीच बैठा अनिरुद्ध के पिता संतोष भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l वकील पात्र के माथे पर पर पसीने की बूंदे दिखने लगती हैं l वह कांपते हाथों से अपना मोबाइल टेबल पर रख देता है l वीडियो देखने के बाद जज के जबड़े कस जाते हैं l इधर लोगों में खुसुर-पुसुर शुरु हो जाती है l

जज - ऑर्डर ऑर्डर... यह वीडियो देखने के बाद... पात्र बाबु... क्या कहेंगे...
पात्र - (बड़ी मुस्किल से अपनी जगह से खड़े हो कर) माय सबमिशन योर ओनर... अदालत जो ठीक समझे...

पात्र की बात सुन कर अनिरुद्ध और उसके परिवार वालों के चेहरे उतर जाते हैं l

जज - (अनिरुद्ध से) मिस्टर अनिरुद्ध... या तो आप इसी अदालत में... अपना संबंद्ध निशा जी के साथ... स्वीकार करें... या फिर अभी के अभी अपना डीएनए सैंपल देने के लिए तैयार हो जाएं... और अदालत आपको आगाह करती है... डीएनए मैच होने पर... आपके लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान करेगी...
अनिरुद्ध - (सूखे हुए गले से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) मु..मुझे... निशा के साथ अपना संबंद्ध स्वीकार है... मैं (चेहरा झुका कर) निशा से... अपने परिवार से और अदालत से माफ़ी मांगता हूँ...

लोग यह सब सुन कर खुसुर-पुसुर शुरु कर देते हैं l विश्व तापस के हाथ पकड़ कर खिंच कर बाहर ले जाता है l बाहर आने के बाद

तापस - कम से कम जजमेंट तो रुक जाते...
विश्व - कोई फायदा नहीं होता... माँ को सब बधाईयाँ देते रहते... फिर मीडिया वाले... हमारा नंबर आते आते शाम हो जाती...
तापस - तेरी माँ से मिले वगैर जा रहे हैं... देखना... रात को घर में घुसने नहीं देगी... या फिर खाने नहीं देगी...
विश्व - ऐसा कुछ नहीं होगा... उल्टा हमें मिठाई खिलायेगी...
तापस - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की इस केस के पीछे का सारा तिकड़म... मैंने भिड़ाया है..

दोनों चलते चलते कार के पास पहुँचते हैं l कार में बैठने के बाद l तापस गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l

तापस - इसका मतलब तु xxxx मॉल को अपने दोस्त से मिलने या... कॉफी पीने नहीं जाता था...
विश्व - जाता था... पर मेरे लिए यह केस भी उतनी ही इंपोर्टेंट थी...
तापस - और वहाँ जा कर वह कौनसी आदत ढूंढ निकाली... जो तेरी माँ ने वीडियो शूट कर जज को दिखाया...
विश्व - पाल बाप बेटे में एक आदत थी कि... हर कुछ सेकंड के इंटरवल में अपने निचले होंठ को अपनी जीभ से गिला करते हैं...
तापस - ओ... तो अपनी जीभ से निचला होंठ गिला करने की यह आदत... उस बच्चे में भी है...
विश्व - नहीं है...
तापस - (चर्र्र्र्र् गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... फिर जज को वीडियो में वह आदत दिखा कैसे...
विश्व - (हँसता है) लीजिये पहले यह जलेबी खाइए... और गाड़ी को किसी अच्छे रेस्तरां में ले चलिए..
तापस - (गाड़ी को फिर से आगे बढ़ाता है) अब बताओ... क्या तिकड़म किया तुने...
विश्व - डैड... क्या आप मानते हैं... इस केस में... निशा सही थी... और वह अनिरुद्ध गलत..
तापस - हाँ... पर तुने किया क्या और कैसे...
विश्व - जलेबी से...
तापस - जलेबी से... क्या मतलब...
विश्व - मैंने उस बच्चे के ठुड्डी के जरा से ऊपर और निचले होंठ के ज़रा सा नीचे... मैंने जलेबी की चासनी लगा दिया...
तापस - क्या... (फिर से गाड़ी में ब्रेक लगाता है)
विश्व - आप यह बार बार ब्रेक क्यूँ मार रहे हो... (तापस फिर से गाड़ी को आगे बढ़ाता है) माँ ने जैसे ही बच्चे के मुहँ से बोतल हटाया... बच्चा अपना जीभ बाहर निकाल कर ढूंढने लगता है... उसे अपने जीभ के नीचे मीठा मिलने से बार बार अपने निचले होंठ को गिला करने लगा... और माँ उसका वही विडिओ बना कर... जज साहब और पात्र बाबु को दिखा दिया...
तास - अरे बाप रे... इतना बड़ा तिकड़म भिड़ाया तुने... (विश्व मुस्करा कर देखता है) सुन... आगे जो तेरे बारे में... जान जाएंगे... कोई अपने मॉल में घुसने नहीं देंगे...

विश्व हँसने लगता है और उसके साथ साथ तापस भी हँसने लगता है l

तास - तो तेरा दोस्त आज भी इंतजार कर रहा होगा...
विश्व - हाँ... शायद...
तापस - क्यूँ... तुने बताया नहीं... आज तुझे काम है... जा नहीं सकता...
विश्व - बताया तो था... पर वह बोला कि... आदत हो गई है... इसलिए कॉफी पी कर ऑफिस चला जाएगा...
तापस - वह तेरे बारे में... सबकुछ जानता है...
विश्व - नहीं...
तापस - क्यूँ...
विश्व - वह मुझसे जितना खुला... मैंने उसे अपने बारे में... उतना ही बताया...
तापस - मतलब वह तुझसे कुछ छुपा रहा है...
विश्व - इंटेश्नली तो नहीं... पर... शायद उसकी कोई मजबूरी है...


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वीर अपनी गाड़ी में ESS ऑफिस में पहुँचता है l गाड़ी कंपाउंड के अंदर आते ही स्टार्ट बंद कर गार्ड को चाबी दे देता है गाड़ी को पार्क करने के लिए l फिर तेजी से चलते हुए अपने कैबिन में आता है l कमरा रुम फ्रेशनर की खुशबु से महक रहा था l बाहर से आज वह चिढ़ कर आया था, पर कमरे में पहुँचते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l एक सुकून भरा गहरी सांस ले कर सांस छोड़ते हुए अपनी आँखे खोलता है l सामने मुस्कराहट से दमकती हुए चेहरे के साथ अनु खड़ी हुई दिखती है l अनु उसे ही देख कर मुस्कुरा रही थी l इतनी सादगी के वीर अनु को देखते ही खो गया l


अनु - राजकुमार जी...
वीर - (होश में आता है) हाँ... हाँ..
अनु - आप कुछ सोच में थे शायद...
वीर - हाँ... मैं.. मैं सोच ही रहा था... के अनु... हमेशा इतनी खुश कैसा रह लेती है ...
अनु - (शर्मा कर नीचे अपनी पांव की तरफ देखने लगती है) मैं तो... रोज खुश रहती हूँ...
वीर - हाँ.. (उसके पांव को देखता है, अनु अपनी पांव से फर्श कुरेद रही थी) हाँ... यह बात तो सही है... तुम्हें कभी मायूस होते हुए देखा ही नहीं...
अनु - ऐसा नहीं है... मैं मायूस भी रहती थी... पर यहाँ नौकरी मिलने के बाद.... वह...क्या है ना... मेरे बाबा मुझे हमेशा कहा करते थे... कोई भी समय हो... मुस्कराते रहने के लिए... ताकि मुस्कराहट के सामने... तकलीफें हार जाएं.. और खुशियां आयें तो कभी ना जाए...
वीर - वाह... कितनी अच्छी और सच्ची बातेँ कहा करते थे... तुम्हारे पिताजी...
अनु - (मुस्कान के साथ अपना सिर झुका लेती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - जी राजकुमार जी...
वीर - मेरा कोई फोन आया था...
अनु - लैंड लाइन पर तो नहीं आया... बाकी... मोबाइल तो आपके पास है...
वीर - हूँ...
अनु - मैं आपके लिए कॉफी बनाऊँ...
वीर - नहीं... बाहर पीकर आया हूँ...
अनु - (हैरानी भरे आवाज में) पी.. कर... आए हैं...
वीर - अरे.. अरे... पीकर आया हूँ मतलब... कॉफी पीकर आया हूँ... (अनु का चेहरा उतर जाता है) (वीर को उसका उतरा हुआ चेहरा बर्दास्त नहीं होता) पर जानती हो अनु... तुम्हारे कॉफी में जो जादू भरा स्वाद है ना... वह बाहर के किसी भी कॉफी के दुकान में नहीं... (अनु का चेहरा खिल उठता है)
अनु - तो... आपके लिए कॉफी लाऊँ...
वीर - हाँ ... पर साथ खाने के लिए कुछ बना सकती हो...
अनु - मैं... फ्रेंच टोस्ट बनाऊँ...
वीर - (हैरान हो कर) तुम जानती हो...
अनु - (शर्मा कर) हूँ...
वीर - कैसे... मतलब तुम्हारे घर में...
अनु - नहीं नहीं... वह मैं.. यु ट्युब में देख कर...
वीर - ओ... मोबाइल का अच्छा उपयोग हो रहा है... ह्म्म्म्म..
अनु - (मुस्कराते हुए अपनी सिर नीचे कर लेती है)
वीर - अच्छा जाओ... मेरे लिए कुछ फ्रेंच टोस्ट और एक गरमा गरम कॉफी लेकर आओ...
अनु - (चहकते हुए) जी... अभी लाई... (कह कर वहाँ से चली जाती है)

वीर उसको जाते हुए देख रहा था l उसकी चाल बहुत ही आम थी रोज की तरह, पर उस चाल में छुपी चंचलता वीर को साफ दिख रहा था l अनु की ऐसी हालत देख कर वीर के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगता है l वह डिस्प्ले पर माँ देखता है l


वीर - (फोन उठा कर) हैलो... माँ...
सुषमा - वीर... कैसा है तु.. सेहत तो ठीक है ना...
वीर - हाँ... हाँ.. माँ.. हाँ...
सुषमा - तो फिर रोज बात करेगा बोला था... उसका क्या हुआ...
वीर - ओह सॉरी माँ...
सुषमा - माँ को भुल गया था ना...
वीर - क्या बात कर रही हो माँ...
सुषमा - रहने दे रहने दे... सब समझती हूँ... अब तुझे एक नया दोस्त भी मिल गया है... है ना...
वीर - हाँ... पर उससे तुम्हें भुलाने का क्या संबंद्ध...
सुषमा - हूँ... खैर... क्या.. ऑफिस में है...
वीर - हाँ...
सुषमा - ह्म्म्म्म... यानी आज कल बहुत बिजी है...
वीर - वह माँ... मैं तुमसे माफी माँगता हूँ...
सुषमा - चल छोड़.. मैं तो मज़ाक कर रही थी...
वीर - फिर भी...(आवाज़ भर्रा जाती है) सच ही कहा... पर माँ सच कहता हूँ... मैं तुम्हें भुला नहीं हूँ...
सुषमा - मारूंगी तुझे... कभी मिला तो कान खिचुंगी तेरा...
वीर - हाँ माँ खींचना.. जरूर खींचना...
सुषमा - अब बस... तु मुझे भी रुलाने लग गया... फोन बंद कर दूंगी... देख...
वीर - नहीं माँ नहीं... प्लीज... फोन बंद मत करना...
सुषमा - अच्छा सुन... पता नहीं तुझे याद भी है या नहीं... तीन दिन बाद तेरा जन्म दिन है... एक काम कर... मेरे पास आजा... माँ बेटे मिल कर तेरा जन्म दिन मनाएंगे...
वीर - कैसे.... माँ.. वहाँ...
सुषमा - यहाँ इस बार कोई नहीं होगा... ना राजा साहब... ना छोटे राजा... वह जरूरी काम से दिल्ली जा रहे हैं...
वीर - तो फिर तुम यहाँ आ जाओ ना...
सुषमा - बड़े राजा जी को छोड़ कर मैं कैसे आऊँ... बोलो..
वीर - अरे माँ.. एक रात के लिए... किसी नर्स का बंदोबस्त कर एक दिन के लिए आ जाओ ना...
सुषमा - कैसे वीर..
वीर - कभी कभी तुम यहाँ आती हो ना...
सुषमा - हाँ पर...
वीर - प्लीज माँ... मैं... (शर्माते हुए) मैं तुम को किसी से मिलावाना चाहता हूँ...
सुषमा - (खुश होते हुए) हूँम्म्म्म्म्... मतलब.. मैंने तुमसे जो पुछा था... वह सच है... है ना...
विश्व - (शर्माते हुए बड़ी मुश्किल से) हूँम्म्म्म्म्...
सुषमा - (खुश होते हुए) क्या नाम है... मेरी बहु का...
वीर - (बहुत तेजी से) अनु...
सुषमा - आह... कितना प्यारा नाम है... सुंदर भी उतनी ही होगी... है ना...
वीर - हाँ... बहुत ही सुंदर है माँ... बिल्कुल कोई देवी जैसी...
सुषमा - तो एक काम कर... उसे लेकर यहाँ आजा...
वीर - माँ... तुम हम लोगों से वादा लेती हो... राजगड़ कभी ना जाने के लिए... और तुम खुद राजगड़ बुला रही हो... वैसे भी... मैंने उसे अभी तक कहा नहीं है...
सुषमा - क्या नहीं कहा है...
वीर - माँ... वह मैं... मतलब कैसे...
सुषमा - क्या.. तुने अभी तक... उसे पसंद करता है.. प्यार करता है.. बताया नहीं...
वीर - नहीं... नहीं बताया है माँ..
सुषमा - क्यूँ...
वीर - पता नहीं माँ... क्यूँ... मेरी जुबान उसकी.. मासूम चेहरा देख कर... लकवा मार जाती है...
सुषमा - (हँसते हुए) सच्चा प्यार जो करने लगा है...
वीर - माँ... प्लीज आओगी ना...
सुषमा - नहीं...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं माँ...
सुषमा - मैं आऊंगी जरूर... पर सीधे अपने बहु से मिलने...
वीर - तो मेरा जन्मदिन...
सुषमा - अगर अपने जन्मदिन से पहले... उसे अपने प्यार की इजहार कर... मना लेगा तो... मैं जरूर आऊंगी..
वीर - माँ... पर..
सुषमा - ऊँ हूँ.. जिसके वजह से... मुझे मेरा वीर मिला है... मुझे अब वह मेरे वीर के लिए.. वीर के साथ भी चाहिए...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या...
वीर - कह तो दूँ... पर डर भी बहुत लग रहा है...
सुषमा - डर... किसलिए...
वीर - वह... वह बहुत... गरीब घर से है माँ... भैया का प्यार क्षेत्रपाल महल में स्वीकार कर लिया गया... पर...
सुषमा - (आवाज़ में चिंता साफ महसुस हो रही थी) गरीब मतलब...
वीर - गरीब माँ... उसकी सिर्फ दादी है... उसके माता पिता कोई नहीं हैं...
सुषमा - (थोड़ा गंभीर हो कर) वीर... सच सच बता... तु उसे कितना चाहता है....
वीर - बहुत... माँ बहुत... शायद... उसके वगैर मैं मर जाऊँ... पर उसके वगैर मैं जी नहीं सकता...
सुषमा - इतना चाहता है...
वीर - (चुप रहता है)
सुषमा - तो बेटा यह मैं तुझ पर छोड़ती हूँ... तेरी जिंदगी है... पर अपनी माँ की बात याद रखना... अगर उसका हाथ थामता है तो उसका साथ कभी मत छोड़ना...
वीर - माँ... अगर मैं कभी अकेला पड़ गया तो...
सुषमा - तो वह तेरा साथ देगी... और मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ रहेगी...
वीर - थैंक्यू माँ...
सुषमा - चल... माँ को थैंक्यू बोलता है...
वीर - मेरे मन में... थोड़ा डर था... अब नहीं है... मैं उसे कल ही बता दूँगा...
सुषमा - आज क्यूँ नहीं...
वीर - (शर्मा कर) वह... मैं उस पल को बहुत खास बनाना चाहता हूँ...
सुषमा - ओ...
वीर - माँ... जन्म दिन पर आओगी ना...
सुषमा - नहीं... मैं अभी भी... छोटे राजा जी और राजा साहब को जवाब नहीं दे सकती...
वीर - (रुक रुक कर) तो... फिर...
सुषमा - देख बेटा... मैं तेरे पास रहूँ या ना रहूँ... पर तु अभी जिस रास्ते पर चल रहा है... उससे मत भटकना... जानता है... तु अनु से अपने प्यार की इजहार क्यूँ नहीं कर पाया... क्यूंकि तु क्षेत्रपाल से जुड़ा हुआ है... तु जैसे ही उससे अपने प्यार का इजहार करेगा... तुझसे क्षेत्रपाल से टुट जाएगा... हो सकता है... वह तेरी आजादी भी हो.... और बर्बादी भी...

वीर और सुषमा के वार्तालाप में चुप्पी छा जाती है l

सुषमा - (खामोशी को तोड़ते हुए) वीर...
वीर - हाँ... हाँ माँ...
सुषमा - तु चुप क्यूँ हो गया...
वीर - मैं... फैसला ले रहा था...
सुषमा - कैसा फैसला...
वीर - मैं कल ही उसे अपने दिल की बात कहूँगा... उसके बाद जो होना होगा... देखा जाएगा...
सुषमा - तो फिर ठीक है... कल रात मुझे फोन कर बताना...
वीर - ठीक है माँ...

जब फोन से कोई जवाब नहीं आता वीर अपने फोन को देखता है तो फोन कट चुका था I वह सुषमा के कहे बातों को सोचने लगता है l तभी उसके कमरे का दरवाजा खुलता है l वह देखता है कि सामने एक ट्रे में कुछ टोस्ट और कॉफी की ग्लास लिए अनु अंदर आ रही है l अनु को अंदर आते देख वीर अपने सोच से बाहर आ जाता है l अनु ट्रे को वीर के सामने रख देती है l वीर एक टोस्ट उठाता है और कॉफी की ग्लास से कॉफी की सीप लेते हुए अनु को देखता है l यूँ तो अनु उसे हमेशा की तरह ही देख रही थी पर वीर को अनु के भीतर की खुशी को महसुस करता है,क्यूंकि अनु की चेहरा खुशी से दमक रही थी l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

विश्व बस से उतर कर भागता है l आज वह बीस मिनट लेट हो गया था I तभी उसका फोन बजने लगता है l विश्व डिस्प्ले पर वीर देखता है फोन उठाता है

विश्व - हाँ.. हैलो..
वीर - कहाँ हो यार..
विश्व - कल बताया तो था... आज मैं अपने काम में बिजी रहने वाला हूँ...
वीर - क्या करूँ... एक बात है... जो मैं तुमसे शेयर करना चाहता था... इसलिए तुम्हें फोन लगाया है...
विश्व - हाँ बोल..
वीर - मैं... कल उसे प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व -(खुश होते हुए) वाव... कंग्राट्स...
वीर - थैंक्स यार...
विश्व - एक बात पुछुँ..
वीर - हाँ पुछ..
विश्व - ऐसे कैसे... ऑल ऑफ सडन...
वीर - वह... एक्चुयली मैंने माँ से अनु के बारे में बात की... माँ ने ही मुझे रास्ता सुझाया...
विश्व - हाँ... तभी... देखा... जब दोस्त से भी काम ना बनें... कुछ ना सूझे... माँ बाप से ही पुछना चाहिए... वह अंधेरे में जगमगाते रौशनी के तरह होते हैं...
वीर - बिल्कुल ठीक कहा मेरे दोस्त... अभी कुछ देर पहले... माँ से बात की... तो मालुम हुआ कि... मुझे क्या करना चाहिए...
विश्व - ओ... तो.. कैसे प्रपोज करने वाला है... अनु को कुछ आभास कराया है क्या...
वीर - नहीं बिल्कुल नहीं... वह नहीं जानती है... कल का दिन उसके लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज है...
विश्व - (उछलते हुए) कैरी ऑन माय फ्रेंड... कैरी ऑन... माय बेस्ट विश..
वीर - थैंक्स यार... (फोन बंद कर देता है)

विश्व खुशी के साथ जब ग्राउंड पहुँचता है तो देखता है एक बेंच पर सुकुमार और नंदिनी बैठ कर बातेँ कर रहे हैं और विश्व गौर करता है सुकुमार के बातेँ करते हुए चेहरे पर दर्द उभर रहा है जो शायद रुप से कह कर साझा कर अपना दर्द कम कर रहा है l तभी विश्व देखता है एक ल़डकियों का गैंग विश्व को देख कर उसके तरफ भागी चली आ रही हैं l उस ग्रुप में सबसे आगे भाश्वती थी l इतने सारे लड़कियों को अपने चारों तरफ देख कर विश्व नर्वस फिल करता है l

भाश्वती - हाय भैया...
विश्व - हा... हाय... (लड़कियों को देख कर) यह.. यह सब...
भाश्वती - यह..(चहकते हुए) यह मेरे दोस्त हैं... (विश्व के गले लगते हुए) और यह सब... मेरे भैया से मिलने आए हैं...
विश्व - ओ.. है. हैलो...
सब - (एक साथ) हाय...
विश्व - ओ.. हाँ... हाय..
दीप्ति - हैलो.. भाश्वती के भाई... आप नर्वस ना हों... मैं दीप्ति... और यह इतिश्री... यह बनानी.. और यह तब्बसुम...
सभी - हाय...
विश्व - हाय..
दीप्ति - वाव... भाश्वती ने पहले आपको प्रपोज किया था... मतलब वह उस वक़्त... गलत नहीं थी...
विश्व - अच्छा... वह किस लिए...
इतिश्री - आप दिखते ही हो... इतने डैसींग... हैंडसम... (आहें भरते हुए) कोई भी लड़की फ्लैट हो जाए... (सभी लड़कियाँ हँसने लगते हैं)
विश्व - ओ अच्छा.. थ.. थ.. थैंक्स...

विश्व को लड़कियों के घेरे में नर्वस देख कर रुप मुस्करा देती है l फिर अपने दोस्तों के पास पहुँचकर पर रुप विश्व को देखती है l विश्व रुप को देख कर आँखों से इशारे में बिनती करता है ल़डकियों से बचाने के लिए l रुप अपन सिर हिला कर अपने दोस्त और विश्व से

रुप - तो.. हो गया.. इंट्रोडक्शन...
विश्व - हाँ हाँ... हो गया...
सभी - हाँ... हमारा भी हो गया...
रुप - (अपने सभी दोस्तों से) तो... अब तुम लोग जाओ... हमें ड्राइविंग सीखने दो... हूँ..
दीप्ति - क्यूँ... हम तुम लोगों की क्लास नहीं देख सकते क्या...
रुप - नहीं... तुमने शायद बाहर बोर्ड पर लिखा पढ़ा नहीं है... आउट साइडर नट एलाउड..
इतिश्री - अरे यह क्या बात हुई... हम जब मिलकर यहाँ आए हैं... तो यहाँ से मिलकर जाते ना...
बनानी - हाँ यार...
दीप्ति - ह्म्म्म्म... अच्छा यह बात है... (चिल्ला कर) हु इज़ द इंस्ट्रक्टर हियर...
रुप - अरे इंस्ट्रक्टर को क्यूँ बुला रही है...
दीप्ति - तु रुक... और मजा देख...
रोहित - (भागते हुए देखता है) यस मिस यस... आई एम रोहित.. द इंस्ट्रक्टर...
दीप्ति - (मुस्कराते हुए) यह नंदिनी... और भाश्वती... हमारे दोस्त हैं... उनकी लर्निंग वीथ सेफ्टी... देख रहे हैं... अगर हमें पसंद आया तो... आपके स्कुल को चार लर्नर मिलेंगे...
रोहित - वाव... ज़रूर.. जरूर.. आप देख सकती हैं...
दीप्ति - थैंक्यू... रोहित... (कहकर अपनी आँखे नचा कर रुप को देखती है)

रोहित उन लोगों को वहीँ छोड़ कर एक कार के चला जाता है l रुप की जबड़ें भींच जाती है l लड़कियाँ विश्व के साथ बातेँ ज़माने लग जाती हैं और रुप पैर पटक कर रोहित के पास चली जाती है और उसके पास खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद रुप देखती है सभी लड़कियाँ विश्व को बाय कह कर मैदान से बाहर जा रही हैं I रुप हैरान हो जाती है l उन लोगों के जाने के बाद विश्व रुप की ओर देखता है और उसके पास जाता है l

विश्व - हैलो..
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे) हैलो...
विश्व - आप मेरी दोस्त हैं... आप मुझे वहीँ फंसा हुआ छोड़ कैसे आ गई...
रुप - क्या करती... आपसे दोस्ती जुम्मा जुम्मा चार ही दिन हुए हैं... वे मेरे भी दोस्त हैं... और वह मैं जबसे भुवनेश्वर आई हूँ तब से दोस्त हैं...

तभी भाश्वती उन दोनों के पास बड़ी एक्साइट हो कर पहुँचती है l

रुप - क्या बात है.. ऐसा क्या हो गया कि... उछलती हुई आ रही है...
भाश्वती - क्या... भैया ने तुझे अभी तक इंवाइट नहीं किया..

रुप सवालिया नजरों से विश्व को देखती है l विश्व झेंप कर नज़रें चुराता है l

रुप - किस बात की इंवीटेशन...
भाश्वती - परसों ट्रेनिंग के बाद भैया... हमें... मतलब पुरी छठी गैंग को.. अपने घर लेकर जाएंगे...

तभी रोहित आता है और इन तीनों से - एक गाड़ी खाली है.. आओ तुममें से कोई प्रैक्टिस के लिए...
भाश्वती - मैं जाती हूँ... मैं... (कह कर भाश्वती वहाँ से चली जाती है)

भाश्वती के जाने के बाद रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देखने लगती है l विश्व अपनी नजरें फ़ेर कर खिसकने लगता है l रुप उसके सामने खड़ी हो जाती है l

रुप - तो मिस्टर कन्हैया... घर पर गोपियों को निमंत्रण दिए हैं क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा भड़क कर) क्या कन्हैया... क्या गोपी... मैंने इशारे से मदत मांगी... पर आपने नहीं की... तो उनसे छुटकारा पाने के लिए... कह दिया... परसों... सबको अपनी माँ से मिलवाने ले जाऊँगा... हूँह्.. (कह कर मुहँ फ़ेर देता है)
रुप - (थोड़ा नरम पड़ते हुए) वह भी तो मेरे दोस्त थे...
विश्व - (रुप को नरम पड़ता देख विश्व मन ही मन खुश होता है, पर जाहिर नहीं करता, जब देखता है रुप का चेहरा उतर गया है, उसे ठीक नहीं लगता) सॉरी...
रुप - (चौंकती है) क्या..
विश्व - सॉरी.. मुझे आप पर भड़कना नहीं चाहिए था...
रुप - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) इट.. इट्स ओके... मैं भी तो आप पर बेवजह भड़कती रहती हूँ...
विश्व - आप का भड़कना चलेगा... आपके चेहरे पर शूट करता है... पर मुझे... उँहुँ... बिल्कुल शूट नहीं करता... शक़्ल बंदर जैसी हो जाती है मेरी....
रुप - हा हा हा हा हा हा... (यह सुन कर हँस देती है, रुप की हँसी विश्व के दिल में एक हलचल मचा देती है, हँसते हँसते रुप जब विश्व को देखती है विश्व झेंप कर मुहँ दुसरी तरफ कर देता है, रुप उसकी नजर को पकड़ लेती है, बात बदलने के लिए) क्या.... मैं भी इंवाइटेड हूँ...
विश्व - ऑफकोर्स... आप के बिना तो मैं घर में... घुस भी नहीं सकता...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ...
विश्व - अरे मेरी माँ... आपकी जबरा फैन है... और वह जानती है... की मैं आपके साथ यहाँ गाड़ी चलाना सीख रहा हूँ... आपके दोस्तों को आपके वगैर लेकर गया... तो माँ मुझे घर में घुसने नहीं देगी....

विश्व की यह बात सुन कर रुप फिरसे हँसने लगती है, इस बार भी विश्व की वही हालत हो जाती है l

विश्व - (खुद को नॉर्मल करते हुए) वह सुकुमार अंकल... आप से क्या बात कर रहे थे...
रुप - अरे हाँ... पर... (तुनक कर) मैं तुम्हें क्यूँ बताऊँ...
विश्व - हम दोस्त नहीं है क्या...
रुप - अच्छा... कितने दिन हुए हमारे बीच दोस्ती के...
विश्व - आँम्म्उँ..... चार... चार दिन...
रुप - चार दिन की दोस्ती में... मैं तुम्हें.. तुम कह रही हूँ... पर तुम मुझे आप कह रहे हो... क्यूँ...
विश्व - (अटक अटक कर) वह..आप.. लड़की... हैं..
रुप - भाश्वती भी तो लड़की है...
विश्व - हाँ है तो... पर उसके साथ... बहन भाई का रिस्ता है...
रुप - यानी अपनी बहन से.. तु या तुम कह सकते हो...
विश्व - देखिए.. तु या तुम... करीबियों से कह सकते हैं... या फिर दुश्मनों से... पर आप में सम्मान होता है... और आप तो सम्मान के हकदार हो... लायक हो...
रुप - (ख़ामोश हो जाती है और वहाँ से जाने लगती है)
विश्व - नंदिनी जी...
रुप - (पीछे मुड़ कर) जी... कहिए.. क्या कहना चाहते हैं आप...
विश्व - अरे... आप मुझे आप क्यूँ कह रहे हैं...
रुप - आप मुझे आप कहें... और मैं आपको तुम कहूँ... ठीक नहीं लगता... आप भी तो सम्मान के अधिकारी हैं...
विश्व - पर मुझे आपसे तुम सुनना अच्छा लगता है... अगर आप मुझे आप कहेंगी... तो... मुझे लगेगा आप नाराज हैं...
रुप - हमें जो देखेंगे... सुनेंगे.. वह क्या सोचेंगे.. लड़का कितना तहजीब वाला है और लड़की.. लड़की कितनी घमंडी है...
विश्व - ऐसा भी तो सोच सकते हैं... की लड़की कोई राजकुमारी है... और लड़का एक आम... (कहते कहते रुक जाता है, और मन ही मन खुद को कोसने लगता है) अबे क्या कर रहा है... यह नंदिनी हैं.. राजकुमारी नहीं...

रुप को भी राजकुमारी सुन कर झटका सा लगता है l खुद को संभालते हुए

रुप - क्क्क्या... क्या कहा...
विश्व - (खुद को संभाल कर) वह.. आपकी एपीयरेंस ही ऐसी है... आपको कोई राजकुमारी होनी चाहिए... (रुप वहाँ से जाने लगती है) नंदिनी जी...
रुप - (फिर से रुक कर) अब क्या है...
विश्व - आपने बताया नहीं... सुकुमार अंकल से आप क्या बातेँ कर रही थीं...
रुप - (एक गहरी सांस लेते हुए) प्रताप जी... आप अपना मोबाइल नंबर दीजिए... यह एक खास बात है... मैं आपको कॉल कर बताऊंगी...
विश्व - फोन पर क्यूँ... अभी क्यूँ नहीं...
रुप - अरे... अभी अभी तो आपने मुझे प्रमोट किया है... राजकुमारी जी के पोस्ट पर... एक राजकुमारी में इतनी एटीट्यूड तो होनी ही चाहिए...
विश्व - फिर आपने मुझे डेमोशन क्यूँ दे दिया... तुम से आप कह कर...
रुप - यह भी मैं फोन पर बताऊँगी...
विश्व - नंदिनी जी... नंदिनी जी... (पुकारता रह जाता है)
 

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Ajju Landwalia

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Behatreen Update bhai,

Vishwa ka dimag behad sharp he aaj court me ye bhi prove ho gaya........

Anu aur Vir ka pyar, Vir ko kshetrapal ke tag se hamesha ke liye alag kar dega aur apne baap aur chacha se nafrat use free me milegi....

Vishwa aur Rup ka pyar ab parwan chadhne hi wala he, lekin maja to jab aayega jab dono ki real identity samne aayegi....

Rona and party ka Pratibha se aamna samna hoga, ye scene bhi kaafi rochak hone wala he

Ab ek week ka gap he to, super mega update post karna aap
 

Battu

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👉सतासीवां अपडेट
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एल्बो क्लॉचर के सहारे चलने की थोड़ी प्रैक्टिस कर लेने के बाद रोणा अपने केबिन में पड़े सोफ़े पर फैल कर बैठ जाता है और देखता है उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठा बल्लभ किसी के साथ मोबाइल चैटिंग में व्यस्त है l

रोणा - क्यूँ भई... वकील साहब... कटक में... कोई नैन मटक्का हो गई है क्या...किसी फूलझड़ी के साथ...
बल्लभ - (मोबाइल पर चैटिंग बंद कर रोणा को घूरते हुए) सुन बे दारोगा... मैं तेरे जैसा ठरकी नहीं हूँ... तु अपनी नैन सेंकने गया था... देख... अपने ऊपर क्या लाया है... साला हस्पताल में सड़ रहा है... और मुझे भी यहाँ अपने साथ सड़ा रहा है...
रोणा - (सड़ा हुआ मुहँ कर) याद मत दिला यार... यहाँ नर्सों को भी घूरने से डर लग रहा है... पता नहीं... कौन कब कहाँ से आकर बजा जाए...
बल्लभ - चल... थोड़ी अक्ल तो आई... वैसे... मैं तेरे ही काम में बिजी हूँ...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा काम...
बल्लभ - भुल गया... वैदेही की मासी...
रोणा - (झटका खा कर, सीधा हो कर बैठ जाता है ) मना किया था तुझे... बे भुतनी के... हम पर नजर हो सकती है शायद....
बल्लभ - फिक्र मत कर... जब राजा साहब जी के हर ईलीगल काम को लीगलाइज तरीके से हैंडल करना जानता हूँ... तो यहाँ लीगल तरीके से खबर कैसे निकालना है... कौनसा मुस्किल काम था... यहाँ जो वह... विश्व या जो कोई भी हो.. उसका अगर कोई खबरी है भी... तो ... उसके नाक के नीचे से ख़बर आएगी हम तक...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा तीस मार खान है... जो यहाँ... हम तक खबर पहुँचाएगा....
बल्लभ - (घड़ी देखते हुए) बस कुछ देर और... तु भी अच्छी तरह से जानता है उसे... बुलाया है उसको... वह आता ही होगा...

रोणा सोच में पड़ जाता है l कौन हो सकता है वह बंदा जो बल्लभ के हाथ लग गया l तभी एक आदमी स्लेटी रंग के सफारी शूट पहने हाथ में गुलदस्ता लिए अंदर आता है और रोणा के हाथ में देते हुए

आदमी - हैलो... रोणा... (एक नजर रोणा पर डालते हुए) हाल तो तेरा दिख ही रहा है... और पक्के से कह सकता हूँ... चाल भी लड़खड़ा रहा होगा... क्यूंकि हाथ में यह... एल्बो क्लॉचर है...
रोणा - हे..ऐ..ई... ( गुलदस्ता लेते हुए) मैं... तुम्हें जानता हूँ... अच्छी तरह से... पर...
आदमी - कोई नहीं... आखिर सात साल जो बीत गए... तब के बिछड़े अब मिल रहे हैं...
बल्लभ - (रोणा से) अबे दारोगा... इसे तु भुल कैसे गया... कितनी रातें रंग महल में... बोतल लुढ़काये हैं... और बेटियाँ बांटे हैं, इसके साथ...
आदमी - रिलेक्स प्रधान रिलेक्स... यह पहचान गया है... बस नाम जुबान पर नहीं आ पा रहा है...
रोणा - (झटके के साथ) हाँ.. हाँ... याद आया... याद आया... श्रीधर परीड़ा... एएसपी होम सेक्रेटरीयट... (हाथ मिलाने को हाथ आगे बढ़ाता है)
परीडा - देखा... पहचान गया ना... (कह कर हाथ मिलाता है)

वह भी एक सोफ़े पर बैठ जाता है l और नजरें घुमा कर कैबिन को अच्छी तरह से देखता है l

परीड़ा - यार यह हस्पताल है... या फाइव स्टार होटल...
रोणा - अबे राजा साहब के आदमी हैं... हमें उनके स्टेटस का खयाल रखना पड़ता है...
परीड़ा - हाँ... सात पुश्तों तक के लिए... कमा कर तो नहीं.... जमा कर जरूर रखे होगे....
रोणा - क्यूँ ...तुने नहीं कमाया... सॉरी जमा किया...
परीडा - कहाँ यार... सिर्फ सात साल पहले... रुप फाउंडेशन की इंक्वायरी के टाइम ही... जितना मिला था... अदालत ने भले ही एसआईटी को बहाल रखा... पर एसआईटी तभी से... पैरालाइज हो कर पड़ा है... और कोई दुसरा केस हाथ में आया ही नहीं...
रोणा - हूँ... वैसे तेरा होम मिनिस्टर तो... बड़ा फुदक रहा था..
परीडा - हाँ... बुढ़उ को गर्मी जो चढ़ी थी... उतरवाने गया था... राजा साहब ने उसकी ऐसी ली... की अब औकात में आ गया है... तुम लोगों को यकीन नहीं होगा.. साला अब जुते पहनना छोड़ दिया है... नंगे पैर ही आना जाना कर रहा है....
रोणा - ओ तेरी...
बल्लभ - रिलेक्स... रिलेक्स... हम उस मुद्दे पर बात कर लें... जिसके लिए... मैंने तुम्हें इंफॉर्म किया था...
परीडा - हाँ.. हाँ.. वह... वाव की प्रेसीडेंट की खबर ना...
रोणा - हाँ... मतलब वकील ने तुझे सब कुछ बता दिया है...
परीडा - हाँ... पर सब कुछ या कुछ कुछ... यह मैं नहीं जानता...
रोणा - तो... यह वैदेही की मासी... असल में है कौन... ऐसी कौनसी रौब या रुतबा रखती है वह...
परीडा - पहली बात... वैदेही उसे मासी किस रिश्ते से बुला रही है... यह मैं नहीं जानता... पर वह औरत कटक और भुवनेश्वर में बहुत बड़ी नामचीन हस्ती है... बहुत रुतबा रखती है... ज्यादातर काम काजी महिलाएँ... उसे मासी... दीदी... बहन जी... बुलाते हैं... और वैदेही... उन कामकाजी महिलाओं में से एक हो सकती है...

रोणा और बल्लभ दोनों के हैरानी के मारे जबड़े खुल जाते हैं l असमंजस हो कर एक दुसरे को देखते हैं l

बल्लभ - (परीड़ा से) वह एडवोकेट ही है ना... या... उससे भी बड़ी तोप है...
परीडा - तोप ही समझो... और अब नाम सुनोगे... तो बिजली का ऐसा झटका लगेगा... की और भी ज्यादा शॉक से चौंक जाओगे...
रोणा - अच्छा... क्या नाम है उसका...
परीडा - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति...
रोणा - (अपने दिमाग पर जोर देते हुए) प्रतिभा... सेनापति... हे ई.. हे ई.. यह नाम कुछ... सुना हुआ सा लग रहा है...
बल्लभ - हाँ... (जैसे उसे याद आ गया) हाँ... मुझे याद... है... रुप फाउंडेशन घोटाले में... यह सरकारी वकील थी... विश्व के खिलाफ...
रोणा - (झटका खाते हुए) क्या... तो फिर उसका... वैदेही से... क्या नाता...
परीडा - हूँम्म्म्म्म्... यह तो मैं नहीं जानता... पर हो सकता है.. वर्किंग वुमन होने के नाते... कोई कैजुअल जान पहचान हो...
रोणा - कैजुअल... अबे फोन पर मेरी फाड़ दी उसने... सिर्फ फोन पर...
परीड़ा - ओ तेरी... हालत तब से ऐसी है क्या... हा हा हा हा...
रोणा - (भड़क कर) चुप बे... (फिर कुछ सोचने की मुद्रा में) एडवोकेट सेनापति... पब्लिक प्रोसिक्यूटर थी ना... फिर ऑल ऑफ सडन...
परीडा - कुछ भी ऑल ऑफ सडन नहीं है... मुझे लगता है अगर तुम पुरी तरह से नहीं.. तो पर्सीयली जानते होगे... (बल्लभ और रोणा दोनों परीड़ा को घुर कर देखते हैं) वह खुद... चश्मदीद गवाह होने के बावजुद... अपनी बेटे की कत्ल की केस को... कोर्ट के चौखट तक भी नहीं पहुँचा पाई... और उसका वजह था... यश वर्धन चेट्टी.... और अपना यह पुरा सिस्टम... उसके बाद वह अपनी पीपी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया... यश वर्धन के केस में उनकी इतनी बदनामी हुई.... इतनी फजीहत हुई थी... के... बार एसोसिएशन से भी इस्तीफा देने की सोच लिया था... पर.... उस दौरान सेंट्रल जैल में एक दंगा हुआ था... तुम लोग जानते होगे... पुरी ओड़िशा में तहलका मच गया था... उस दंगा में शामिल... बाहर के और अंदर के... सारे क्रिमिनल्स मारे गए थे... उस इंसीडेंट के कुछ दिनों बाद... वह दुबारा से कोर्ट में आईं... फिर उन्होंने अपनी ऐसी पहचान बनाई ... की... कोर्ट में उनके बहस में आग ही आग बरसने लगे... जिन्होंने कभी जयंत सर को देखा था... वह बेझिझक प्रतिभा जी को देख कर कह सकते हैं... की... प्रतिभा जी जयंत सर के फीमेल वर्जन हैं... और इन्हीं चार सालों में... वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की प्रेसिडेंट बनीं... बार एसोसिएशन की सेक्रेटरी और.... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट भी बन गई हैं... बेशक... पैसों के मामलों में तो नहीं... पर नाम, शोहरत और रुतबे में... वह आज एक बहुत बड़ी हस्ती हैं... अगर बिना पीपीइ के मेरा मतलब है कि... बिना पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वीपमेंट के छुओगे... तो चार सो चालीस वोल्ट बिजली की जितनी... तुमको शॉक लगेगी...

इतना कह कर परीड़ा चुप हो जाता है l कैबिन में एकदम से मरघट के जितनी सन्नाटा पसर जाता है l ऐसी के कमरे में भी बल्लभ के माथे पर बल और पसीना साफ दिखने लगता है l

रोणा - (अपनी सोच से बाहर आकर बल्लभ को देख कर) क्या हुआ वकील... ऐसी में भी तेरी ऐसी की तैसी हो गई... तेरे पसीने छूट रहे हैं...
बल्लभ - श्श्श्श्...(अपनी आँखे मूँद कर) इस निशब्दता को सुनो... गौर से सुनो...(पॉज लेकर) यह निशब्दता कितना भयंकर है महसुस करो... श्श्श्श... (रोणा और परीड़ा हैरान हो कर बल्लभ को देखने लगते हैं, कुछ देर की खामोशी के बाद) मुझे इस निशब्दता के पीछे.... कुछ आहट महसुस हो रही है... सुनाई दे रही है.... (रोणा और परीड़ा दोनों अब एक दुसरे को देखने लगते हैं) (बल्लभ अपनी आँखे खोल कर) दारोगा... तु कितना सही है... यह मैं नहीं जानता... पर तु पुरी तरह से गलत नहीं है... इस वैदेही और मासी का... आपस में क्या रिश्ता है... विश्व का उससे क्या लेना देना है... पता लगाना पड़ेगा...
परीड़ा - क्या... विश्व का... एडवोकेट प्रतिभा से रिश्ता... क्या रिश्ता हो सकता है... विश्व तो... शायद अभी यही पंद्रह दिन हुए... जैल से छुटा है...
रोणा - पर वह अभी तक राजगड़ आया नहीं है... क्यूँ... जब कि उसकी बहन ने मुझे... साठ दिन की चैलेंज दे रही है... किसके दम पर... विश्व के... या प्रतिभा के...
परीड़ा - वैदेही हुल दे रही है... समझ में आ रहा है... विश्व बदला लेने की सोच रहा होगा... यह हो सकता है... पर प्रतिभा... राजा सहाब के खिलाफ...
बल्लभ - अभी तक हम यह नहीं जानते हैं कि... प्रतिभा राजा साहब के खिलाफ है... अगर वह खिलाफ पाई गई... तो कटक से गायब कर ली जाएगी... और रंग महल के आखेट गृह में फेंक दी जाएगी... लकड़बग्घे या मगरमच्छ की निवाला बन जाएगी... पर तब... जब वह जिस ऐफिडेविट की बात कर रही है... उसमें राजा साहब के नाम हुआ तो... शायद...
परीड़ा - वह किसलिए... हो सकता है... उसमें राजा साहब का नाम ना हो... तुम लोगों का नाम हो...
बल्लभ - हाँ... हो भी सकता है... यही तो पता लगाना है... वैदेही के लिए प्रतिभा मैदान में आ गई... किस रिश्ते से... प्रोफेशनल या पर्सनल... और प्रतिभा तो.. विश्व को सजा दिलाई थी... इसके बावजूद वैदेही उसकी मदत ले रही है... और उसीके द्वारा... अपनी जान का खतरा बता कर अदालत में... हलफनामा दायर किया है...
परीडा - तो तुम लोग... अब... करना क्या चाहते हो...
बल्लभ - एक मुलाकात... एडवोकेट प्रतिभा जी से मुलाकात...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... या एडवोकेट प्रतिभा से...
बल्लभ - मतलब...
परीड़ा - कौनसे ऑफिस में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलना है... तो तुम्हें छुट्टी के दिन... या फिर रात को उनके घर जाना पड़ेगा... और अगर वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... तो शाम चार से सात बजे के अंदर... चौधरी बाजार के वाव ऑफिस में मुलाकात कर सकते हो... पर स्टील... मैं सजेस्ट करूँगा... हैंडल वीथ केयर... वरना... पता नहीं... (रोणा को देखते हुए) तेरी यह हालत किसने की है... पर वहाँ कुछ भी गड़बड़ हुई... तो लेने के देने पड़ जाओगे...
रोणा - तु डरा रहा है...
परीडा - नहीं आगाह कर रहा हूँ... तुम दोनों उससे मिलोगे... किस लिए... क्या बात करोगे... वह तुम्हें क्यूँ कर कोई जानकारी देगी... बोलो...

बल्लभ और रोणा दोनों सोच में पड़ जाते हैं l क्यूँकी परीड़ा ने बात बिल्कुल सही कहा था l दोनों परीड़ा के तरफ देखते हैं l

रोणा - अभी इस वक़्त... कहाँ हो सकती है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... अदालत में... आपनी किसी केस की बहस में... पक्का आग उगल रही होगी...

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अदालत में जज कुछ कागजात देख रहे हैं l मुल्जिम के कटघरे में एक युवक खड़ा है l उसके पहनावे से वह एक रईस घर से प्रतीत हो रहा है l दुसरी तरफ गवाह के कटघरे में एक औरत खड़ी है l उसी औरत के तरफ अदालत में एक पालना है और उसमें एक बच्चा शायद नौ या दस महिने का होगा मुहँ में दुध का बॉटल लिए लेटा हुआ है और अदालत में केस को लेकर लोग आपस में बहस के साथ शोर शराबा कर रहे हैं l उन लोगों के बीच विश्व और तापस भी बैठे हुए हैं l विश्व के हाथ में एक पत्तल का थैली है जिसमें से वह एक जलेबी निकाल कर खाता है l

तापस - अरे बेशरम... कुछ तो शर्म रख... अदालत के अंदर... जलेबी... क्यूँ...
विश्व - मुझे पता है... माँ यह केस भी आसानी से जीत जाएगी... इसलिए... मुहँ पहले से ही मीठा कर रहा हूँ...
तापस - मैनर नाम की कोई चीज़ होती है...
विश्व - (खाते खाते रुक जाता है और तापस की ओर देख कर) बिल्कुल सही कह रहे हैं डैड... (फिर खाना चालू करते हुए) और वह मेरे अंदर कूट कूट के भरा है... (तापस गुस्से से आँखे सिकुड़ कर देखता है) यह आखिरी है...
जज - (गैवेल लेकर टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर.. ऑर्डर... (अदालत में खामोशी छा जाती है) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...

एक वकील अपनी जगह से उठ कर जज के सामने आकर खड़ा होता है l

वकील - माय लॉर्ड... (अपनी कुर्सी से उठ कर) वीथ योर परमीशन... मे आई...
जज - आप तो बचाव पक्ष के वकील हैं...
वकील - जी माय लॉर्ड... पर अभियोजन पक्ष ने आज की कारवाई के लिए अपना वकील बदल लिया है... जब कि यह केस खतम होने को आई है... आज... जब अदालत में... इस केस की सुनवाई आगे बढ़ेगी... और केस खतम होगी... माय लॉर्ड... हम अभियोजन पक्ष में होंगे... और यह... जो मासूम सा चेहरा लेकर गवाह के कटघरे में खड़ी है... मिस निशा... वह खुद को बचाने के लिए... अपनी वकील साहिबा को कहेगी.... रोएगी... गिड़गिड़ाएगी...
जज - अभियोजन पक्ष को क्या कोई ऐतराज है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ खड़ी होती है, मुस्कराते हुए ) जी नहीं... बिल्कुल भी नहीं... माय लॉर्ड... बल्कि मैं मेरे फाजिल दोस्त जिन तथ्यों पर.... बहस को सामने रख कर अब तक केस को यहाँ तक पहुँचा चुके हैं... मैं पढ़ चुकी हूँ.. हाँ अगर वह कुछ और पेश करना चाहते हैं... मैं देखना जरूर चाहूँगी....
जज - ठीक है... (वकील से) परमिशन ग्रांटेड़... यु मे प्रोसीड...
वकील - थैंक्यू... थैंक्यू.. माय लॉर्ड... इस केस पर हम बहुत बार बहस कर चुके हैं... और मैंने... हर एक बार यह साबित किया है... की यह जो मासूम सी दिखने वाली लड़की... अपने जेंडर की नाजायज फायदा उठाया है... बेचारी निशा... गरीब घर में जन्मी... एक महत्वाकांक्षी लड़की... बचपन से ही... आँखों में बड़े बड़े सपने लिए हुए... इस शहर में आई थी... मेरे क्लाइंट... जैसा कि सभी जानते हैं... मिस्टर अनिरुद्ध पाल... xxxx मॉल के मालिक हैं... करोड़ों के मालिक... इन पर डोरे डालना शुरू करती है... पर कामयाब ना हो सकीं... उसके मंसूबों को पाल साहब अच्छी तरह से जान गए... इसलिए डेढ़ साल पहले ही... नौकरी से निकाल दिया... पर यह लड़की मिस निशा... पता नहीं... कुछ समय के लिए किसकी मिसेज बनीं... फिर ... एक बच्चे को लाकर... मिस्टर पाल पर बच्चे के बाप होने का आरोप लगाती है... जब कि उसके पास इसका कोई सबूत नहीं है... ना कोई फोन रिकॉर्ड... ना कोई चैटिंग की रिकॉर्ड... ना कोई गिफ्ट... ना कोई लेटर... यहाँ तक कि... माय लॉर्ड.. कोई गवाह भी नहीं है... जो इसके लिए गवाही दे... के मिस्टर पाल साहब का.. इस लड़की से कोई संबंद्ध है... योर ओनर... मेरे क्लाइंट इस शहर के एक प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति हैं... उनके पिता श्री संतोष पाल... जो यहाँ लोगों बीच मौजूद हैं... वह राजनीतिक गलियारों में भी अच्छी खासी पहुँच रखते हैं... ऐसे में मैं दावे के साथ कह सकता हूँ... यह मेरे क्लाइंट के साथ... उनकी छबी खराब करने के लिए... विरोधियों की रची गई चाल है... और यह लड़की... उन विरोधियों के साथ है... मोहरा है...
लड़की - (चिल्ला कर) नहीं जज साहब... यह वकील साहब झूठ बोल रहे हैं...
जज - ऑर्डर... ऑर्डर... (लड़की से) जब आपको बोलने को कहा जाए... आप तब तक चुप ही रहें... (वकील से) पात्र बाबु... अपनी बहस में और कोई दलील देना चाहेंगे...
वकील पात्र - हाँ माय लॉर्ड... आज जब केस की अंतिम सुनवाई हो... तब पाल परिवार के तरफ से... डीफेम केस शूट किया जाए... क्यूंकि माय लॉर्ड... अभी तक... अभियोजन पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है... की मिस्टर पाल और निशा जी के मध्य कोई संबंद्ध है... इसलिए मैं... मेरे फाजिल दोस्त... वकील साहिबा को सलाह देना चाहूँगा... बेहतर है कि वह.. अभी से हार मान ले... जो कि इस केस में नई नई घुसी हैं... और इस केस पर बहस करके अपना और कोर्ट का वक़्त जाया ना करें... (कह कर प्रतिभा को देख कर नीचा दिखाने वाली मुस्कराहट के साथ बैठ जाता है)
प्रतिभा - (पात्र को मुस्करा कर देखती है और बड़ी आत्मविश्वास के साथ अपनी जगह से उठती है) माय लॉर्ड... मैं इस केस में नई हूँ... इससे पहले वाले वकील से अपना केस लाकर... मेरी क्लाइंट ने मुझे सौंपा है... और पुरी स्टडी करने के बाद... मेरे फाजिल दोस्त से पूछना चाहूँगी... के क्यूँ... मिस्टर पाल डीएनए टेस्ट के लिए मना कर रहे हैं...
वकील पात्र - (अपनी जगह से उठ कर) वह इसलिए माय लॉर्ड... अगर मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट के लिए राजी हो जाएं... तो कल हर राह चलती लड़की अपने हाथ में बच्चा लिए कोर्ट के परिसर में आ कर .. किसी ना किसी दौलत मंद और इज़्ज़त दार आदमी को कोर्ट घसिटेंगी... और यह एक चलन बन जाएगा योर ओनर... मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट से... ना तो घबरा रहे हैं... ना ही मना कर रहे हैं... पर... पहले कोर्ट में यह किसी तरह से स्थापित तो हो... के इनके मध्य कोई संबंद्ध था... (कह कर बैठ जाता है)
जज - इस पर आप क्या कहना चाहेंगी प्रतिभा जी...

प्रतिभा वकील पात्र को देखती है, पात्र प्रतिभा को देख कर ऐसे मुस्कराता है जैसे वह खिल्ली उड़ा रहा हो l

प्रतिभा - यस योर ओनर... (अनिरुद्ध के पास चल कर जाती है) मिस्टर अनिरुद्ध पाल... क्या आप भगवान पर विश्वास करते हैं...
पाल - (अपना नीचला होठ को जीभ से गिला करते हुए) ओवीयोस्ली... यहाँ कौन है... या कितने होंगे जो... भगवान भरोसा ना करते हों...
प्रतिभा - हूँ... और यह भी मानते हैं.. की उनके दरबार में... कोई ना इंसाफ़ी नहीं होगी...
अनिरुद्ध - जी यह सच है...
पात्र - माय लॉर्ड...(अपनी जगह से उठ कर) वकील साहिबा को यह याद दिलाया जाए कि... यह समाज के बनाए कानूनी अदालत है... यहाँ उपरवाला नहीं... सबूतों को मध्य नजर रख कर... आप इंसाफ़ करने वाले हैं...
प्रतिभा - येस माय लॉर्ड... ना मैं भुली हूँ... ना यह मैं किसीको भुलने दूंगी... मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि... जिसका कोई नहीं होता... उसका भगवान का साथ होता है.... जब इंसाफ़ झूठे गवाह और सबूतों पर डगमगाने लगे... तब भगवान चमत्कार कर देते हैं... बस हमें उसकी पहचान होनी चाहिए... देट्स इट...
जज - प्रोसिड...
प्रतिभा - थैंक्यू माय लॉर्ड.... (दांत पिसते हुए पात्र बैठ जाता है) तो अनिरुद्ध.. अब देखते हैं... भगवान पर आपकी श्रद्धा और विश्वास कितना अटूट है... (फिर जज की तरफ घूम कर) माय लॉर्ड... किसीसे प्रेम परिणय करना... और गर्भवती बना कर छोड़ देना... यह पुरुष व्यवस्थित समाज में आदिम काल से चला आ रहा है... और उस समाज में जो पकडा जाता है... वह व्यभिचारी होता है... और जो पकड़ नहीं जाता है... वह संस्कारी... समाज का ठेकेदार हो जाता है... एक उदाहरण... मैं एक ऐतिहासिक मिथक से उठा कर प्रस्तुत करती हूँ... एक राजा... आखेट के लिए जंगल में आता है... उसे एक सुंदर सी स्त्री दिखती है... वह उसके समक्ष प्रेम निवेदन करता है... फिर प्रेम परिणय कर के... स्मृति के स्वरुप एक मुद्रिका देकर चला जाता है.... काल क्रम में वह स्त्री गर्भवती होती है... उसे उसके परिवार वाले लेकर राजा के पास लेकर जाते हैं... वह राजा पहचान ने से इंकार कर देता है... और विडंबना यह हुई... की उस स्त्री से वह मुद्रिका भी खो गई... आगे जो हुआ वह इतिहास है... और आज... आज जो यहाँ होगा वह भी इतिहास ही होगा... की आइंदा कोई दुष्यंत किसी शकुंतला के साथ ऐसा करने से पहले... सौ बार सोचेगा... यह जनाब... अपना डीएनए सैंपल देने से इंकार कर रहे हैं... की यह जो लड़की गवाह की कटघरे में खड़ी है... झूठी है... और यह जनाब इतने पैसे वाले हैं कि... अगर डीएनए सैंपल दे देंगे... तो लड़किया की होड़ लग जाएगी... की इस इंसान की डीएनए मांग करने लग जाएंगे... इसलिए डीएनए परीक्षण तभी हो सकता है... जब अनिरुद्ध और निशा के मध्य संबंद्ध स्थापित हो... इसलिए मैं वकील पात्र बाबु से.. और पाल बाबु से पुछ रही हूँ... अनुवांशिक या वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक गुण या आदत या चिन्ह... ऐसा होता है या नहीं...(प्रतिभा वकील पात्र की ओर देखती है)
पात्र - (कुछ सोच कर) हाँ.. होता है...
पाल - (प्रतिभा की ओर देख कर) हाँ होता है...

प्रतिभा पालने के पास जाती है और अपना मोबाइल निकालती है l बच्चे के मुहँ से दूध की बोतल निकाल कर बच्चे पर फोकस कर वीडियो शूट करती है l लोगों के बीच बैठा विश्व फिर थैली से जलेबी निकाल कर तापस को देता है l

तापस - (दबी जुबान से) यह क्या है...
विश्व - (दबी जुबान से) जलेबी... मुहँ मीठा कीजिए... माँ... केस जीत गई...
तापस - कैसे... अभी सुनवाई पुरी नहीं हुई है...
विश्व - बस हो गया समझिए...

तापस विश्व के हाथ से जलेबी लेकर खाता है l वीडियो शूट करने के बाद प्रतिभा उस वीडियो को वकील पात्र को फॉरवर्ड करती है l

प्रतिभा - माय लॉर्ड... जैसा कि मैंने कहा था... की अनुवांशिक गुण... आदत या चिन्ह होते हैं... जो पीढ़ियों से... एक पीढ़ी से दुसरी पीढ़ी तीसरी पीढ़ी... यहाँ तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक्सटेंड होती रहती है... (मोबाइल को जज की ओर बढ़ाते हुए) योर ओनर... जैसा कि अनिरुद्ध ने कहा... की उन्हें ऊपर वाले पर विश्वास है... तो मैं यह उनके साथ पुरी दुनिया और समाज से कहना चाहती हूँ.. उपर वाले की लाठी बे आवाज़ होती है... और अभी उनकी लाठी चल गई है... मैंने अभी आपके सामने इस बच्चे की वीडियो शूट किया है... आप इस बच्चे की हरकत और मुल्जिम के कटघरे में खड़े अनिरुद्ध पाल और यहाँ लोगों के बीच बैठे उनके पिताजी संतोष पाल जी के आदतों पर गौर करें... प्लीज... (राइटर प्रतिभा के हाथ से मोबाइल ले कर जज को देता है) प्लीज... (वकील पात्र को देखने के लिए कहती है)

जज और वकील पात्र वीडियो देखते हैं l बच्चा बार बार अपनी नीचला होंठ को जीभ से भिगो रहा है l जज अनिरुद्ध को देखता है l अनिरुद्ध भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l और लोगों के बीच बैठा अनिरुद्ध के पिता संतोष भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l वकील पात्र के माथे पर पर पसीने की बूंदे दिखने लगती हैं l वह कांपते हाथों से अपना मोबाइल टेबल पर रख देता है l वीडियो देखने के बाद जज के जबड़े कस जाते हैं l इधर लोगों में खुसुर-पुसुर शुरु हो जाती है l

जज - ऑर्डर ऑर्डर... यह वीडियो देखने के बाद... पात्र बाबु... क्या कहेंगे...
पात्र - (बड़ी मुस्किल से अपनी जगह से खड़े हो कर) माय सबमिशन योर ओनर... अदालत जो ठीक समझे...

पात्र की बात सुन कर अनिरुद्ध और उसके परिवार वालों के चेहरे उतर जाते हैं l

जज - (अनिरुद्ध से) मिस्टर अनिरुद्ध... या तो आप इसी अदालत में... अपना संबंद्ध निशा जी के साथ... स्वीकार करें... या फिर अभी के अभी अपना डीएनए सैंपल देने के लिए तैयार हो जाएं... और अदालत आपको आगाह करती है... डीएनए मैच होने पर... आपके लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान करेगी...
अनिरुद्ध - (सूखे हुए गले से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) मु..मुझे... निशा के साथ अपना संबंद्ध स्वीकार है... मैं (चेहरा झुका कर) निशा से... अपने परिवार से और अदालत से माफ़ी मांगता हूँ...

लोग यह सब सुन कर खुसुर-पुसुर शुरु कर देते हैं l विश्व तापस के हाथ पकड़ कर खिंच कर बाहर ले जाता है l बाहर आने के बाद

तापस - कम से कम जजमेंट तो रुक जाते...
विश्व - कोई फायदा नहीं होता... माँ को सब बधाईयाँ देते रहते... फिर मीडिया वाले... हमारा नंबर आते आते शाम हो जाती...
तापस - तेरी माँ से मिले वगैर जा रहे हैं... देखना... रात को घर में घुसने नहीं देगी... या फिर खाने नहीं देगी...
विश्व - ऐसा कुछ नहीं होगा... उल्टा हमें मिठाई खिलायेगी...
तापस - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की इस केस के पीछे का सारा तिकड़म... मैंने भिड़ाया है..

दोनों चलते चलते कार के पास पहुँचते हैं l कार में बैठने के बाद l तापस गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l

तापस - इसका मतलब तु xxxx मॉल को अपने दोस्त से मिलने या... कॉफी पीने नहीं जाता था...
विश्व - जाता था... पर मेरे लिए यह केस भी उतनी ही इंपोर्टेंट थी...
तापस - और वहाँ जा कर वह कौनसी आदत ढूंढ निकाली... जो तेरी माँ ने वीडियो शूट कर जज को दिखाया...
विश्व - पाल बाप बेटे में एक आदत थी कि... हर कुछ सेकंड के इंटरवल में अपने निचले होंठ को अपनी जीभ से गिला करते हैं...
तापस - ओ... तो अपनी जीभ से निचला होंठ गिला करने की यह आदत... उस बच्चे में भी है...
विश्व - नहीं है...
तापस - (चर्र्र्र्र् गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... फिर जज को वीडियो में वह आदत दिखा कैसे...
विश्व - (हँसता है) लीजिये पहले यह जलेबी खाइए... और गाड़ी को किसी अच्छे रेस्तरां में ले चलिए..
तापस - (गाड़ी को फिर से आगे बढ़ाता है) अब बताओ... क्या तिकड़म किया तुने...
विश्व - डैड... क्या आप मानते हैं... इस केस में... निशा सही थी... और वह अनिरुद्ध गलत..
तापस - हाँ... पर तुने किया क्या और कैसे...
विश्व - जलेबी से...
तापस - जलेबी से... क्या मतलब...
विश्व - मैंने उस बच्चे के ठुड्डी के जरा से ऊपर और निचले होंठ के ज़रा सा नीचे... मैंने जलेबी की चासनी लगा दिया...
तापस - क्या... (फिर से गाड़ी में ब्रेक लगाता है)
विश्व - आप यह बार बार ब्रेक क्यूँ मार रहे हो... (तापस फिर से गाड़ी को आगे बढ़ाता है) माँ ने जैसे ही बच्चे के मुहँ से बोतल हटाया... बच्चा अपना जीभ बाहर निकाल कर ढूंढने लगता है... उसे अपने जीभ के नीचे मीठा मिलने से बार बार अपने निचले होंठ को गिला करने लगा... और माँ उसका वही विडिओ बना कर... जज साहब और पात्र बाबु को दिखा दिया...
तास - अरे बाप रे... इतना बड़ा तिकड़म भिड़ाया तुने... (विश्व मुस्करा कर देखता है) सुन... आगे जो तेरे बारे में... जान जाएंगे... कोई अपने मॉल में घुसने नहीं देंगे...

विश्व हँसने लगता है और उसके साथ साथ तापस भी हँसने लगता है l

तास - तो तेरा दोस्त आज भी इंतजार कर रहा होगा...
विश्व - हाँ... शायद...
तापस - क्यूँ... तुने बताया नहीं... आज तुझे काम है... जा नहीं सकता...
विश्व - बताया तो था... पर वह बोला कि... आदत हो गई है... इसलिए कॉफी पी कर ऑफिस चला जाएगा...
तापस - वह तेरे बारे में... सबकुछ जानता है...
विश्व - नहीं...
तापस - क्यूँ...
विश्व - वह मुझसे जितना खुला... मैंने उसे अपने बारे में... उतना ही बताया...
तापस - मतलब वह तुझसे कुछ छुपा रहा है...
विश्व - इंटेश्नली तो नहीं... पर... शायद उसकी कोई मजबूरी है...


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वीर अपनी गाड़ी में ESS ऑफिस में पहुँचता है l गाड़ी कंपाउंड के अंदर आते ही स्टार्ट बंद कर गार्ड को चाबी दे देता है गाड़ी को पार्क करने के लिए l फिर तेजी से चलते हुए अपने कैबिन में आता है l कमरा रुम फ्रेशनर की खुशबु से महक रहा था l बाहर से आज वह चिढ़ कर आया था, पर कमरे में पहुँचते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l एक सुकून भरा गहरी सांस ले कर सांस छोड़ते हुए अपनी आँखे खोलता है l सामने मुस्कराहट से दमकती हुए चेहरे के साथ अनु खड़ी हुई दिखती है l अनु उसे ही देख कर मुस्कुरा रही थी l इतनी सादगी के वीर अनु को देखते ही खो गया l


अनु - राजकुमार जी...
वीर - (होश में आता है) हाँ... हाँ..
अनु - आप कुछ सोच में थे शायद...
वीर - हाँ... मैं.. मैं सोच ही रहा था... के अनु... हमेशा इतनी खुश कैसा रह लेती है ...
अनु - (शर्मा कर नीचे अपनी पांव की तरफ देखने लगती है) मैं तो... रोज खुश रहती हूँ...
वीर - हाँ.. (उसके पांव को देखता है, अनु अपनी पांव से फर्श कुरेद रही थी) हाँ... यह बात तो सही है... तुम्हें कभी मायूस होते हुए देखा ही नहीं...
अनु - ऐसा नहीं है... मैं मायूस भी रहती थी... पर यहाँ नौकरी मिलने के बाद.... वह...क्या है ना... मेरे बाबा मुझे हमेशा कहा करते थे... कोई भी समय हो... मुस्कराते रहने के लिए... ताकि मुस्कराहट के सामने... तकलीफें हार जाएं.. और खुशियां आयें तो कभी ना जाए...
वीर - वाह... कितनी अच्छी और सच्ची बातेँ कहा करते थे... तुम्हारे पिताजी...
अनु - (मुस्कान के साथ अपना सिर झुका लेती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - जी राजकुमार जी...
वीर - मेरा कोई फोन आया था...
अनु - लैंड लाइन पर तो नहीं आया... बाकी... मोबाइल तो आपके पास है...
वीर - हूँ...
अनु - मैं आपके लिए कॉफी बनाऊँ...
वीर - नहीं... बाहर पीकर आया हूँ...
अनु - (हैरानी भरे आवाज में) पी.. कर... आए हैं...
वीर - अरे.. अरे... पीकर आया हूँ मतलब... कॉफी पीकर आया हूँ... (अनु का चेहरा उतर जाता है) (वीर को उसका उतरा हुआ चेहरा बर्दास्त नहीं होता) पर जानती हो अनु... तुम्हारे कॉफी में जो जादू भरा स्वाद है ना... वह बाहर के किसी भी कॉफी के दुकान में नहीं... (अनु का चेहरा खिल उठता है)
अनु - तो... आपके लिए कॉफी लाऊँ...
वीर - हाँ ... पर साथ खाने के लिए कुछ बना सकती हो...
अनु - मैं... फ्रेंच टोस्ट बनाऊँ...
वीर - (हैरान हो कर) तुम जानती हो...
अनु - (शर्मा कर) हूँ...
वीर - कैसे... मतलब तुम्हारे घर में...
अनु - नहीं नहीं... वह मैं.. यु ट्युब में देख कर...
वीर - ओ... मोबाइल का अच्छा उपयोग हो रहा है... ह्म्म्म्म..
अनु - (मुस्कराते हुए अपनी सिर नीचे कर लेती है)
वीर - अच्छा जाओ... मेरे लिए कुछ फ्रेंच टोस्ट और एक गरमा गरम कॉफी लेकर आओ...
अनु - (चहकते हुए) जी... अभी लाई... (कह कर वहाँ से चली जाती है)

वीर उसको जाते हुए देख रहा था l उसकी चाल बहुत ही आम थी रोज की तरह, पर उस चाल में छुपी चंचलता वीर को साफ दिख रहा था l अनु की ऐसी हालत देख कर वीर के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगता है l वह डिस्प्ले पर माँ देखता है l


वीर - (फोन उठा कर) हैलो... माँ...
सुषमा - वीर... कैसा है तु.. सेहत तो ठीक है ना...
वीर - हाँ... हाँ.. माँ.. हाँ...
सुषमा - तो फिर रोज बात करेगा बोला था... उसका क्या हुआ...
वीर - ओह सॉरी माँ...
सुषमा - माँ को भुल गया था ना...
वीर - क्या बात कर रही हो माँ...
सुषमा - रहने दे रहने दे... सब समझती हूँ... अब तुझे एक नया दोस्त भी मिल गया है... है ना...
वीर - हाँ... पर उससे तुम्हें भुलाने का क्या संबंद्ध...
सुषमा - हूँ... खैर... क्या.. ऑफिस में है...
वीर - हाँ...
सुषमा - ह्म्म्म्म... यानी आज कल बहुत बिजी है...
वीर - वह माँ... मैं तुमसे माफी माँगता हूँ...
सुषमा - चल छोड़.. मैं तो मज़ाक कर रही थी...
वीर - फिर भी...(आवाज़ भर्रा जाती है) सच ही कहा... पर माँ सच कहता हूँ... मैं तुम्हें भुला नहीं हूँ...
सुषमा - मारूंगी तुझे... कभी मिला तो कान खिचुंगी तेरा...
वीर - हाँ माँ खींचना.. जरूर खींचना...
सुषमा - अब बस... तु मुझे भी रुलाने लग गया... फोन बंद कर दूंगी... देख...
वीर - नहीं माँ नहीं... प्लीज... फोन बंद मत करना...
सुषमा - अच्छा सुन... पता नहीं तुझे याद भी है या नहीं... तीन दिन बाद तेरा जन्म दिन है... एक काम कर... मेरे पास आजा... माँ बेटे मिल कर तेरा जन्म दिन मनाएंगे...
वीर - कैसे.... माँ.. वहाँ...
सुषमा - यहाँ इस बार कोई नहीं होगा... ना राजा साहब... ना छोटे राजा... वह जरूरी काम से दिल्ली जा रहे हैं...
वीर - तो फिर तुम यहाँ आ जाओ ना...
सुषमा - बड़े राजा जी को छोड़ कर मैं कैसे आऊँ... बोलो..
वीर - अरे माँ.. एक रात के लिए... किसी नर्स का बंदोबस्त कर एक दिन के लिए आ जाओ ना...
सुषमा - कैसे वीर..
वीर - कभी कभी तुम यहाँ आती हो ना...
सुषमा - हाँ पर...
वीर - प्लीज माँ... मैं... (शर्माते हुए) मैं तुम को किसी से मिलावाना चाहता हूँ...
सुषमा - (खुश होते हुए) हूँम्म्म्म्म्... मतलब.. मैंने तुमसे जो पुछा था... वह सच है... है ना...
विश्व - (शर्माते हुए बड़ी मुश्किल से) हूँम्म्म्म्म्...
सुषमा - (खुश होते हुए) क्या नाम है... मेरी बहु का...
वीर - (बहुत तेजी से) अनु...
सुषमा - आह... कितना प्यारा नाम है... सुंदर भी उतनी ही होगी... है ना...
वीर - हाँ... बहुत ही सुंदर है माँ... बिल्कुल कोई देवी जैसी...
सुषमा - तो एक काम कर... उसे लेकर यहाँ आजा...
वीर - माँ... तुम हम लोगों से वादा लेती हो... राजगड़ कभी ना जाने के लिए... और तुम खुद राजगड़ बुला रही हो... वैसे भी... मैंने उसे अभी तक कहा नहीं है...
सुषमा - क्या नहीं कहा है...
वीर - माँ... वह मैं... मतलब कैसे...
सुषमा - क्या.. तुने अभी तक... उसे पसंद करता है.. प्यार करता है.. बताया नहीं...
वीर - नहीं... नहीं बताया है माँ..
सुषमा - क्यूँ...
वीर - पता नहीं माँ... क्यूँ... मेरी जुबान उसकी.. मासूम चेहरा देख कर... लकवा मार जाती है...
सुषमा - (हँसते हुए) सच्चा प्यार जो करने लगा है...
वीर - माँ... प्लीज आओगी ना...
सुषमा - नहीं...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं माँ...
सुषमा - मैं आऊंगी जरूर... पर सीधे अपने बहु से मिलने...
वीर - तो मेरा जन्मदिन...
सुषमा - अगर अपने जन्मदिन से पहले... उसे अपने प्यार की इजहार कर... मना लेगा तो... मैं जरूर आऊंगी..
वीर - माँ... पर..
सुषमा - ऊँ हूँ.. जिसके वजह से... मुझे मेरा वीर मिला है... मुझे अब वह मेरे वीर के लिए.. वीर के साथ भी चाहिए...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या...
वीर - कह तो दूँ... पर डर भी बहुत लग रहा है...
सुषमा - डर... किसलिए...
वीर - वह... वह बहुत... गरीब घर से है माँ... भैया का प्यार क्षेत्रपाल महल में स्वीकार कर लिया गया... पर...
सुषमा - (आवाज़ में चिंता साफ महसुस हो रही थी) गरीब मतलब...
वीर - गरीब माँ... उसकी सिर्फ दादी है... उसके माता पिता कोई नहीं हैं...
सुषमा - (थोड़ा गंभीर हो कर) वीर... सच सच बता... तु उसे कितना चाहता है....
वीर - बहुत... माँ बहुत... शायद... उसके वगैर मैं मर जाऊँ... पर उसके वगैर मैं जी नहीं सकता...
सुषमा - इतना चाहता है...
वीर - (चुप रहता है)
सुषमा - तो बेटा यह मैं तुझ पर छोड़ती हूँ... तेरी जिंदगी है... पर अपनी माँ की बात याद रखना... अगर उसका हाथ थामता है तो उसका साथ कभी मत छोड़ना...
वीर - माँ... अगर मैं कभी अकेला पड़ गया तो...
सुषमा - तो वह तेरा साथ देगी... और मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ रहेगी...
वीर - थैंक्यू माँ...
सुषमा - चल... माँ को थैंक्यू बोलता है...
वीर - मेरे मन में... थोड़ा डर था... अब नहीं है... मैं उसे कल ही बता दूँगा...
सुषमा - आज क्यूँ नहीं...
वीर - (शर्मा कर) वह... मैं उस पल को बहुत खास बनाना चाहता हूँ...
सुषमा - ओ...
वीर - माँ... जन्म दिन पर आओगी ना...
सुषमा - नहीं... मैं अभी भी... छोटे राजा जी और राजा साहब को जवाब नहीं दे सकती...
वीर - (रुक रुक कर) तो... फिर...
सुषमा - देख बेटा... मैं तेरे पास रहूँ या ना रहूँ... पर तु अभी जिस रास्ते पर चल रहा है... उससे मत भटकना... जानता है... तु अनु से अपने प्यार की इजहार क्यूँ नहीं कर पाया... क्यूंकि तु क्षेत्रपाल से जुड़ा हुआ है... तु जैसे ही उससे अपने प्यार का इजहार करेगा... तुझसे क्षेत्रपाल से टुट जाएगा... हो सकता है... वह तेरी आजादी भी हो.... और बर्बादी भी...

वीर और सुषमा के वार्तालाप में चुप्पी छा जाती है l

सुषमा - (खामोशी को तोड़ते हुए) वीर...
वीर - हाँ... हाँ माँ...
सुषमा - तु चुप क्यूँ हो गया...
वीर - मैं... फैसला ले रहा था...
सुषमा - कैसा फैसला...
वीर - मैं कल ही उसे अपने दिल की बात कहूँगा... उसके बाद जो होना होगा... देखा जाएगा...
सुषमा - तो फिर ठीक है... कल रात मुझे फोन कर बताना...
वीर - ठीक है माँ...

जब फोन से कोई जवाब नहीं आता वीर अपने फोन को देखता है तो फोन कट चुका था I वह सुषमा के कहे बातों को सोचने लगता है l तभी उसके कमरे का दरवाजा खुलता है l वह देखता है कि सामने एक ट्रे में कुछ टोस्ट और कॉफी की ग्लास लिए अनु अंदर आ रही है l अनु को अंदर आते देख वीर अपने सोच से बाहर आ जाता है l अनु ट्रे को वीर के सामने रख देती है l वीर एक टोस्ट उठाता है और कॉफी की ग्लास से कॉफी की सीप लेते हुए अनु को देखता है l यूँ तो अनु उसे हमेशा की तरह ही देख रही थी पर वीर को अनु के भीतर की खुशी को महसुस करता है,क्यूंकि अनु की चेहरा खुशी से दमक रही थी l


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विश्व बस से उतर कर भागता है l आज वह बीस मिनट लेट हो गया था I तभी उसका फोन बजने लगता है l विश्व डिस्प्ले पर वीर देखता है फोन उठाता है

विश्व - हाँ.. हैलो..
वीर - कहाँ हो यार..
विश्व - कल बताया तो था... आज मैं अपने काम में बिजी रहने वाला हूँ...
वीर - क्या करूँ... एक बात है... जो मैं तुमसे शेयर करना चाहता था... इसलिए तुम्हें फोन लगाया है...
विश्व - हाँ बोल..
वीर - मैं... कल उसे प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व -(खुश होते हुए) वाव... कंग्राट्स...
वीर - थैंक्स यार...
विश्व - एक बात पुछुँ..
वीर - हाँ पुछ..
विश्व - ऐसे कैसे... ऑल ऑफ सडन...
वीर - वह... एक्चुयली मैंने माँ से अनु के बारे में बात की... माँ ने ही मुझे रास्ता सुझाया...
विश्व - हाँ... तभी... देखा... जब दोस्त से भी काम ना बनें... कुछ ना सूझे... माँ बाप से ही पुछना चाहिए... वह अंधेरे में जगमगाते रौशनी के तरह होते हैं...
वीर - बिल्कुल ठीक कहा मेरे दोस्त... अभी कुछ देर पहले... माँ से बात की... तो मालुम हुआ कि... मुझे क्या करना चाहिए...
विश्व - ओ... तो.. कैसे प्रपोज करने वाला है... अनु को कुछ आभास कराया है क्या...
वीर - नहीं बिल्कुल नहीं... वह नहीं जानती है... कल का दिन उसके लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज है...
विश्व - (उछलते हुए) कैरी ऑन माय फ्रेंड... कैरी ऑन... माय बेस्ट विश..
वीर - थैंक्स यार... (फोन बंद कर देता है)

विश्व खुशी के साथ जब ग्राउंड पहुँचता है तो देखता है एक बेंच पर सुकुमार और नंदिनी बैठ कर बातेँ कर रहे हैं और विश्व गौर करता है सुकुमार के बातेँ करते हुए चेहरे पर दर्द उभर रहा है जो शायद रुप से कह कर साझा कर अपना दर्द कम कर रहा है l तभी विश्व देखता है एक ल़डकियों का गैंग विश्व को देख कर उसके तरफ भागी चली आ रही हैं l उस ग्रुप में सबसे आगे भाश्वती थी l इतने सारे लड़कियों को अपने चारों तरफ देख कर विश्व नर्वस फिल करता है l

भाश्वती - हाय भैया...
विश्व - हा... हाय... (लड़कियों को देख कर) यह.. यह सब...
भाश्वती - यह..(चहकते हुए) यह मेरे दोस्त हैं... (विश्व के गले लगते हुए) और यह सब... मेरे भैया से मिलने आए हैं...
विश्व - ओ.. है. हैलो...
सब - (एक साथ) हाय...
विश्व - ओ.. हाँ... हाय..
दीप्ति - हैलो.. भाश्वती के भाई... आप नर्वस ना हों... मैं दीप्ति... और यह इतिश्री... यह बनानी.. और यह तब्बसुम...
सभी - हाय...
विश्व - हाय..
दीप्ति - वाव... भाश्वती ने पहले आपको प्रपोज किया था... मतलब वह उस वक़्त... गलत नहीं थी...
विश्व - अच्छा... वह किस लिए...
इतिश्री - आप दिखते ही हो... इतने डैसींग... हैंडसम... (आहें भरते हुए) कोई भी लड़की फ्लैट हो जाए... (सभी लड़कियाँ हँसने लगते हैं)
विश्व - ओ अच्छा.. थ.. थ.. थैंक्स...

विश्व को लड़कियों के घेरे में नर्वस देख कर रुप मुस्करा देती है l फिर अपने दोस्तों के पास पहुँचकर पर रुप विश्व को देखती है l विश्व रुप को देख कर आँखों से इशारे में बिनती करता है ल़डकियों से बचाने के लिए l रुप अपन सिर हिला कर अपने दोस्त और विश्व से

रुप - तो.. हो गया.. इंट्रोडक्शन...
विश्व - हाँ हाँ... हो गया...
सभी - हाँ... हमारा भी हो गया...
रुप - (अपने सभी दोस्तों से) तो... अब तुम लोग जाओ... हमें ड्राइविंग सीखने दो... हूँ..
दीप्ति - क्यूँ... हम तुम लोगों की क्लास नहीं देख सकते क्या...
रुप - नहीं... तुमने शायद बाहर बोर्ड पर लिखा पढ़ा नहीं है... आउट साइडर नट एलाउड..
इतिश्री - अरे यह क्या बात हुई... हम जब मिलकर यहाँ आए हैं... तो यहाँ से मिलकर जाते ना...
बनानी - हाँ यार...
दीप्ति - ह्म्म्म्म... अच्छा यह बात है... (चिल्ला कर) हु इज़ द इंस्ट्रक्टर हियर...
रुप - अरे इंस्ट्रक्टर को क्यूँ बुला रही है...
दीप्ति - तु रुक... और मजा देख...
रोहित - (भागते हुए देखता है) यस मिस यस... आई एम रोहित.. द इंस्ट्रक्टर...
दीप्ति - (मुस्कराते हुए) यह नंदिनी... और भाश्वती... हमारे दोस्त हैं... उनकी लर्निंग वीथ सेफ्टी... देख रहे हैं... अगर हमें पसंद आया तो... आपके स्कुल को चार लर्नर मिलेंगे...
रोहित - वाव... ज़रूर.. जरूर.. आप देख सकती हैं...
दीप्ति - थैंक्यू... रोहित... (कहकर अपनी आँखे नचा कर रुप को देखती है)

रोहित उन लोगों को वहीँ छोड़ कर एक कार के चला जाता है l रुप की जबड़ें भींच जाती है l लड़कियाँ विश्व के साथ बातेँ ज़माने लग जाती हैं और रुप पैर पटक कर रोहित के पास चली जाती है और उसके पास खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद रुप देखती है सभी लड़कियाँ विश्व को बाय कह कर मैदान से बाहर जा रही हैं I रुप हैरान हो जाती है l उन लोगों के जाने के बाद विश्व रुप की ओर देखता है और उसके पास जाता है l

विश्व - हैलो..
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे) हैलो...
विश्व - आप मेरी दोस्त हैं... आप मुझे वहीँ फंसा हुआ छोड़ कैसे आ गई...
रुप - क्या करती... आपसे दोस्ती जुम्मा जुम्मा चार ही दिन हुए हैं... वे मेरे भी दोस्त हैं... और वह मैं जबसे भुवनेश्वर आई हूँ तब से दोस्त हैं...

तभी भाश्वती उन दोनों के पास बड़ी एक्साइट हो कर पहुँचती है l

रुप - क्या बात है.. ऐसा क्या हो गया कि... उछलती हुई आ रही है...
भाश्वती - क्या... भैया ने तुझे अभी तक इंवाइट नहीं किया..

रुप सवालिया नजरों से विश्व को देखती है l विश्व झेंप कर नज़रें चुराता है l

रुप - किस बात की इंवीटेशन...
भाश्वती - परसों ट्रेनिंग के बाद भैया... हमें... मतलब पुरी छठी गैंग को.. अपने घर लेकर जाएंगे...

तभी रोहित आता है और इन तीनों से - एक गाड़ी खाली है.. आओ तुममें से कोई प्रैक्टिस के लिए...
भाश्वती - मैं जाती हूँ... मैं... (कह कर भाश्वती वहाँ से चली जाती है)

भाश्वती के जाने के बाद रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देखने लगती है l विश्व अपनी नजरें फ़ेर कर खिसकने लगता है l रुप उसके सामने खड़ी हो जाती है l

रुप - तो मिस्टर कन्हैया... घर पर गोपियों को निमंत्रण दिए हैं क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा भड़क कर) क्या कन्हैया... क्या गोपी... मैंने इशारे से मदत मांगी... पर आपने नहीं की... तो उनसे छुटकारा पाने के लिए... कह दिया... परसों... सबको अपनी माँ से मिलवाने ले जाऊँगा... हूँह्.. (कह कर मुहँ फ़ेर देता है)
रुप - (थोड़ा नरम पड़ते हुए) वह भी तो मेरे दोस्त थे...
विश्व - (रुप को नरम पड़ता देख विश्व मन ही मन खुश होता है, पर जाहिर नहीं करता, जब देखता है रुप का चेहरा उतर गया है, उसे ठीक नहीं लगता) सॉरी...
रुप - (चौंकती है) क्या..
विश्व - सॉरी.. मुझे आप पर भड़कना नहीं चाहिए था...
रुप - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) इट.. इट्स ओके... मैं भी तो आप पर बेवजह भड़कती रहती हूँ...
विश्व - आप का भड़कना चलेगा... आपके चेहरे पर शूट करता है... पर मुझे... उँहुँ... बिल्कुल शूट नहीं करता... शक़्ल बंदर जैसी हो जाती है मेरी....
रुप - हा हा हा हा हा हा... (यह सुन कर हँस देती है, रुप की हँसी विश्व के दिल में एक हलचल मचा देती है, हँसते हँसते रुप जब विश्व को देखती है विश्व झेंप कर मुहँ दुसरी तरफ कर देता है, रुप उसकी नजर को पकड़ लेती है, बात बदलने के लिए) क्या.... मैं भी इंवाइटेड हूँ...
विश्व - ऑफकोर्स... आप के बिना तो मैं घर में... घुस भी नहीं सकता...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ...
विश्व - अरे मेरी माँ... आपकी जबरा फैन है... और वह जानती है... की मैं आपके साथ यहाँ गाड़ी चलाना सीख रहा हूँ... आपके दोस्तों को आपके वगैर लेकर गया... तो माँ मुझे घर में घुसने नहीं देगी....

विश्व की यह बात सुन कर रुप फिरसे हँसने लगती है, इस बार भी विश्व की वही हालत हो जाती है l

विश्व - (खुद को नॉर्मल करते हुए) वह सुकुमार अंकल... आप से क्या बात कर रहे थे...
रुप - अरे हाँ... पर... (तुनक कर) मैं तुम्हें क्यूँ बताऊँ...
विश्व - हम दोस्त नहीं है क्या...
रुप - अच्छा... कितने दिन हुए हमारे बीच दोस्ती के...
विश्व - आँम्म्उँ..... चार... चार दिन...
रुप - चार दिन की दोस्ती में... मैं तुम्हें.. तुम कह रही हूँ... पर तुम मुझे आप कह रहे हो... क्यूँ...
विश्व - (अटक अटक कर) वह..आप.. लड़की... हैं..
रुप - भाश्वती भी तो लड़की है...
विश्व - हाँ है तो... पर उसके साथ... बहन भाई का रिस्ता है...
रुप - यानी अपनी बहन से.. तु या तुम कह सकते हो...
विश्व - देखिए.. तु या तुम... करीबियों से कह सकते हैं... या फिर दुश्मनों से... पर आप में सम्मान होता है... और आप तो सम्मान के हकदार हो... लायक हो...
रुप - (ख़ामोश हो जाती है और वहाँ से जाने लगती है)
विश्व - नंदिनी जी...
रुप - (पीछे मुड़ कर) जी... कहिए.. क्या कहना चाहते हैं आप...
विश्व - अरे... आप मुझे आप क्यूँ कह रहे हैं...
रुप - आप मुझे आप कहें... और मैं आपको तुम कहूँ... ठीक नहीं लगता... आप भी तो सम्मान के अधिकारी हैं...
विश्व - पर मुझे आपसे तुम सुनना अच्छा लगता है... अगर आप मुझे आप कहेंगी... तो... मुझे लगेगा आप नाराज हैं...
रुप - हमें जो देखेंगे... सुनेंगे.. वह क्या सोचेंगे.. लड़का कितना तहजीब वाला है और लड़की.. लड़की कितनी घमंडी है...
विश्व - ऐसा भी तो सोच सकते हैं... की लड़की कोई राजकुमारी है... और लड़का एक आम... (कहते कहते रुक जाता है, और मन ही मन खुद को कोसने लगता है) अबे क्या कर रहा है... यह नंदिनी हैं.. राजकुमारी नहीं...

रुप को भी राजकुमारी सुन कर झटका सा लगता है l खुद को संभालते हुए

रुप - क्क्क्या... क्या कहा...
विश्व - (खुद को संभाल कर) वह.. आपकी एपीयरेंस ही ऐसी है... आपको कोई राजकुमारी होनी चाहिए... (रुप वहाँ से जाने लगती है) नंदिनी जी...
रुप - (फिर से रुक कर) अब क्या है...
विश्व - आपने बताया नहीं... सुकुमार अंकल से आप क्या बातेँ कर रही थीं...
रुप - (एक गहरी सांस लेते हुए) प्रताप जी... आप अपना मोबाइल नंबर दीजिए... यह एक खास बात है... मैं आपको कॉल कर बताऊंगी...
विश्व - फोन पर क्यूँ... अभी क्यूँ नहीं...
रुप - अरे... अभी अभी तो आपने मुझे प्रमोट किया है... राजकुमारी जी के पोस्ट पर... एक राजकुमारी में इतनी एटीट्यूड तो होनी ही चाहिए...
विश्व - फिर आपने मुझे डेमोशन क्यूँ दे दिया... तुम से आप कह कर...
रुप - यह भी मैं फोन पर बताऊँगी...
विश्व - नंदिनी जी... नंदिनी जी... (पुकारता रह जाता है)
वाह मज़ेदार शानदार प्रस्तुति। नाग भाई आपकी लेखनी का क्या कहना। हर कहानी में सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर जीत होती है। हीरो अपनी हेरोइन से मिलता ही है। बहुत लोगो की नकारात्मकता खत्म होती है और जो सही मार्ग पर ना आ पाए उन्हें खत्म होना पड़ता है। यही हमारे शास्त्रों, काव्यों, आज के उपन्यासों, आज की मूवीज में और आपकी कहानी में भी है। कोई नया नही पर इस कहानी को जिस हिसाब से प्रस्तुत किया जा रहा है जो पत्रो का चित्रण और चरित्र का वर्णन है वो शानदार है। मेने पहले भी कहा था अपने पूर्व कमेंट में कि वीर औऱ विक्रम बदलेंगे और आपने अनु से वीर की मुलाकात कर शुरवात कर दी थी साथ मे विश्वप्रताप जैसा दोस्त और माँ का गाइडेंस भी मिल गया अब वो सही राह पकड़ने वाला है। आज प्रताप ने सबको घर बुलावा दे कर अपने और रूप की पहचान के लिए एक मौका बना ही लिया है। द्रोणा, वकील और परिडा की सोच के घोड़े भी सही दिशा में दौड़ रहे है देखते है वे क्या उखाड़ लेते है क्योंकि अब अपना हीरो पूरी तरह से रेडी है और साथ मे उसके मा पाप भी।
 

parkas

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303
👉सतासीवां अपडेट
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एल्बो क्लॉचर के सहारे चलने की थोड़ी प्रैक्टिस कर लेने के बाद रोणा अपने केबिन में पड़े सोफ़े पर फैल कर बैठ जाता है और देखता है उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठा बल्लभ किसी के साथ मोबाइल चैटिंग में व्यस्त है l

रोणा - क्यूँ भई... वकील साहब... कटक में... कोई नैन मटक्का हो गई है क्या...किसी फूलझड़ी के साथ...
बल्लभ - (मोबाइल पर चैटिंग बंद कर रोणा को घूरते हुए) सुन बे दारोगा... मैं तेरे जैसा ठरकी नहीं हूँ... तु अपनी नैन सेंकने गया था... देख... अपने ऊपर क्या लाया है... साला हस्पताल में सड़ रहा है... और मुझे भी यहाँ अपने साथ सड़ा रहा है...
रोणा - (सड़ा हुआ मुहँ कर) याद मत दिला यार... यहाँ नर्सों को भी घूरने से डर लग रहा है... पता नहीं... कौन कब कहाँ से आकर बजा जाए...
बल्लभ - चल... थोड़ी अक्ल तो आई... वैसे... मैं तेरे ही काम में बिजी हूँ...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा काम...
बल्लभ - भुल गया... वैदेही की मासी...
रोणा - (झटका खा कर, सीधा हो कर बैठ जाता है ) मना किया था तुझे... बे भुतनी के... हम पर नजर हो सकती है शायद....
बल्लभ - फिक्र मत कर... जब राजा साहब जी के हर ईलीगल काम को लीगलाइज तरीके से हैंडल करना जानता हूँ... तो यहाँ लीगल तरीके से खबर कैसे निकालना है... कौनसा मुस्किल काम था... यहाँ जो वह... विश्व या जो कोई भी हो.. उसका अगर कोई खबरी है भी... तो ... उसके नाक के नीचे से ख़बर आएगी हम तक...
रोणा - अच्छा... ऐसा कौनसा तीस मार खान है... जो यहाँ... हम तक खबर पहुँचाएगा....
बल्लभ - (घड़ी देखते हुए) बस कुछ देर और... तु भी अच्छी तरह से जानता है उसे... बुलाया है उसको... वह आता ही होगा...

रोणा सोच में पड़ जाता है l कौन हो सकता है वह बंदा जो बल्लभ के हाथ लग गया l तभी एक आदमी स्लेटी रंग के सफारी शूट पहने हाथ में गुलदस्ता लिए अंदर आता है और रोणा के हाथ में देते हुए

आदमी - हैलो... रोणा... (एक नजर रोणा पर डालते हुए) हाल तो तेरा दिख ही रहा है... और पक्के से कह सकता हूँ... चाल भी लड़खड़ा रहा होगा... क्यूंकि हाथ में यह... एल्बो क्लॉचर है...
रोणा - हे..ऐ..ई... ( गुलदस्ता लेते हुए) मैं... तुम्हें जानता हूँ... अच्छी तरह से... पर...
आदमी - कोई नहीं... आखिर सात साल जो बीत गए... तब के बिछड़े अब मिल रहे हैं...
बल्लभ - (रोणा से) अबे दारोगा... इसे तु भुल कैसे गया... कितनी रातें रंग महल में... बोतल लुढ़काये हैं... और बेटियाँ बांटे हैं, इसके साथ...
आदमी - रिलेक्स प्रधान रिलेक्स... यह पहचान गया है... बस नाम जुबान पर नहीं आ पा रहा है...
रोणा - (झटके के साथ) हाँ.. हाँ... याद आया... याद आया... श्रीधर परीड़ा... एएसपी होम सेक्रेटरीयट... (हाथ मिलाने को हाथ आगे बढ़ाता है)
परीडा - देखा... पहचान गया ना... (कह कर हाथ मिलाता है)

वह भी एक सोफ़े पर बैठ जाता है l और नजरें घुमा कर कैबिन को अच्छी तरह से देखता है l

परीड़ा - यार यह हस्पताल है... या फाइव स्टार होटल...
रोणा - अबे राजा साहब के आदमी हैं... हमें उनके स्टेटस का खयाल रखना पड़ता है...
परीड़ा - हाँ... सात पुश्तों तक के लिए... कमा कर तो नहीं.... जमा कर जरूर रखे होगे....
रोणा - क्यूँ ...तुने नहीं कमाया... सॉरी जमा किया...
परीडा - कहाँ यार... सिर्फ सात साल पहले... रुप फाउंडेशन की इंक्वायरी के टाइम ही... जितना मिला था... अदालत ने भले ही एसआईटी को बहाल रखा... पर एसआईटी तभी से... पैरालाइज हो कर पड़ा है... और कोई दुसरा केस हाथ में आया ही नहीं...
रोणा - हूँ... वैसे तेरा होम मिनिस्टर तो... बड़ा फुदक रहा था..
परीडा - हाँ... बुढ़उ को गर्मी जो चढ़ी थी... उतरवाने गया था... राजा साहब ने उसकी ऐसी ली... की अब औकात में आ गया है... तुम लोगों को यकीन नहीं होगा.. साला अब जुते पहनना छोड़ दिया है... नंगे पैर ही आना जाना कर रहा है....
रोणा - ओ तेरी...
बल्लभ - रिलेक्स... रिलेक्स... हम उस मुद्दे पर बात कर लें... जिसके लिए... मैंने तुम्हें इंफॉर्म किया था...
परीडा - हाँ.. हाँ.. वह... वाव की प्रेसीडेंट की खबर ना...
रोणा - हाँ... मतलब वकील ने तुझे सब कुछ बता दिया है...
परीडा - हाँ... पर सब कुछ या कुछ कुछ... यह मैं नहीं जानता...
रोणा - तो... यह वैदेही की मासी... असल में है कौन... ऐसी कौनसी रौब या रुतबा रखती है वह...
परीडा - पहली बात... वैदेही उसे मासी किस रिश्ते से बुला रही है... यह मैं नहीं जानता... पर वह औरत कटक और भुवनेश्वर में बहुत बड़ी नामचीन हस्ती है... बहुत रुतबा रखती है... ज्यादातर काम काजी महिलाएँ... उसे मासी... दीदी... बहन जी... बुलाते हैं... और वैदेही... उन कामकाजी महिलाओं में से एक हो सकती है...

रोणा और बल्लभ दोनों के हैरानी के मारे जबड़े खुल जाते हैं l असमंजस हो कर एक दुसरे को देखते हैं l

बल्लभ - (परीड़ा से) वह एडवोकेट ही है ना... या... उससे भी बड़ी तोप है...
परीडा - तोप ही समझो... और अब नाम सुनोगे... तो बिजली का ऐसा झटका लगेगा... की और भी ज्यादा शॉक से चौंक जाओगे...
रोणा - अच्छा... क्या नाम है उसका...
परीडा - एडवोकेट प्रतिभा सेनापति...
रोणा - (अपने दिमाग पर जोर देते हुए) प्रतिभा... सेनापति... हे ई.. हे ई.. यह नाम कुछ... सुना हुआ सा लग रहा है...
बल्लभ - हाँ... (जैसे उसे याद आ गया) हाँ... मुझे याद... है... रुप फाउंडेशन घोटाले में... यह सरकारी वकील थी... विश्व के खिलाफ...
रोणा - (झटका खाते हुए) क्या... तो फिर उसका... वैदेही से... क्या नाता...
परीडा - हूँम्म्म्म्म्... यह तो मैं नहीं जानता... पर हो सकता है.. वर्किंग वुमन होने के नाते... कोई कैजुअल जान पहचान हो...
रोणा - कैजुअल... अबे फोन पर मेरी फाड़ दी उसने... सिर्फ फोन पर...
परीड़ा - ओ तेरी... हालत तब से ऐसी है क्या... हा हा हा हा...
रोणा - (भड़क कर) चुप बे... (फिर कुछ सोचने की मुद्रा में) एडवोकेट सेनापति... पब्लिक प्रोसिक्यूटर थी ना... फिर ऑल ऑफ सडन...
परीडा - कुछ भी ऑल ऑफ सडन नहीं है... मुझे लगता है अगर तुम पुरी तरह से नहीं.. तो पर्सीयली जानते होगे... (बल्लभ और रोणा दोनों परीड़ा को घुर कर देखते हैं) वह खुद... चश्मदीद गवाह होने के बावजुद... अपनी बेटे की कत्ल की केस को... कोर्ट के चौखट तक भी नहीं पहुँचा पाई... और उसका वजह था... यश वर्धन चेट्टी.... और अपना यह पुरा सिस्टम... उसके बाद वह अपनी पीपी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया... यश वर्धन के केस में उनकी इतनी बदनामी हुई.... इतनी फजीहत हुई थी... के... बार एसोसिएशन से भी इस्तीफा देने की सोच लिया था... पर.... उस दौरान सेंट्रल जैल में एक दंगा हुआ था... तुम लोग जानते होगे... पुरी ओड़िशा में तहलका मच गया था... उस दंगा में शामिल... बाहर के और अंदर के... सारे क्रिमिनल्स मारे गए थे... उस इंसीडेंट के कुछ दिनों बाद... वह दुबारा से कोर्ट में आईं... फिर उन्होंने अपनी ऐसी पहचान बनाई ... की... कोर्ट में उनके बहस में आग ही आग बरसने लगे... जिन्होंने कभी जयंत सर को देखा था... वह बेझिझक प्रतिभा जी को देख कर कह सकते हैं... की... प्रतिभा जी जयंत सर के फीमेल वर्जन हैं... और इन्हीं चार सालों में... वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की प्रेसिडेंट बनीं... बार एसोसिएशन की सेक्रेटरी और.... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट भी बन गई हैं... बेशक... पैसों के मामलों में तो नहीं... पर नाम, शोहरत और रुतबे में... वह आज एक बहुत बड़ी हस्ती हैं... अगर बिना पीपीइ के मेरा मतलब है कि... बिना पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वीपमेंट के छुओगे... तो चार सो चालीस वोल्ट बिजली की जितनी... तुमको शॉक लगेगी...

इतना कह कर परीड़ा चुप हो जाता है l कैबिन में एकदम से मरघट के जितनी सन्नाटा पसर जाता है l ऐसी के कमरे में भी बल्लभ के माथे पर बल और पसीना साफ दिखने लगता है l

रोणा - (अपनी सोच से बाहर आकर बल्लभ को देख कर) क्या हुआ वकील... ऐसी में भी तेरी ऐसी की तैसी हो गई... तेरे पसीने छूट रहे हैं...
बल्लभ - श्श्श्श्...(अपनी आँखे मूँद कर) इस निशब्दता को सुनो... गौर से सुनो...(पॉज लेकर) यह निशब्दता कितना भयंकर है महसुस करो... श्श्श्श... (रोणा और परीड़ा हैरान हो कर बल्लभ को देखने लगते हैं, कुछ देर की खामोशी के बाद) मुझे इस निशब्दता के पीछे.... कुछ आहट महसुस हो रही है... सुनाई दे रही है.... (रोणा और परीड़ा दोनों अब एक दुसरे को देखने लगते हैं) (बल्लभ अपनी आँखे खोल कर) दारोगा... तु कितना सही है... यह मैं नहीं जानता... पर तु पुरी तरह से गलत नहीं है... इस वैदेही और मासी का... आपस में क्या रिश्ता है... विश्व का उससे क्या लेना देना है... पता लगाना पड़ेगा...
परीड़ा - क्या... विश्व का... एडवोकेट प्रतिभा से रिश्ता... क्या रिश्ता हो सकता है... विश्व तो... शायद अभी यही पंद्रह दिन हुए... जैल से छुटा है...
रोणा - पर वह अभी तक राजगड़ आया नहीं है... क्यूँ... जब कि उसकी बहन ने मुझे... साठ दिन की चैलेंज दे रही है... किसके दम पर... विश्व के... या प्रतिभा के...
परीड़ा - वैदेही हुल दे रही है... समझ में आ रहा है... विश्व बदला लेने की सोच रहा होगा... यह हो सकता है... पर प्रतिभा... राजा सहाब के खिलाफ...
बल्लभ - अभी तक हम यह नहीं जानते हैं कि... प्रतिभा राजा साहब के खिलाफ है... अगर वह खिलाफ पाई गई... तो कटक से गायब कर ली जाएगी... और रंग महल के आखेट गृह में फेंक दी जाएगी... लकड़बग्घे या मगरमच्छ की निवाला बन जाएगी... पर तब... जब वह जिस ऐफिडेविट की बात कर रही है... उसमें राजा साहब के नाम हुआ तो... शायद...
परीड़ा - वह किसलिए... हो सकता है... उसमें राजा साहब का नाम ना हो... तुम लोगों का नाम हो...
बल्लभ - हाँ... हो भी सकता है... यही तो पता लगाना है... वैदेही के लिए प्रतिभा मैदान में आ गई... किस रिश्ते से... प्रोफेशनल या पर्सनल... और प्रतिभा तो.. विश्व को सजा दिलाई थी... इसके बावजूद वैदेही उसकी मदत ले रही है... और उसीके द्वारा... अपनी जान का खतरा बता कर अदालत में... हलफनामा दायर किया है...
परीडा - तो तुम लोग... अब... करना क्या चाहते हो...
बल्लभ - एक मुलाकात... एडवोकेट प्रतिभा जी से मुलाकात...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... या एडवोकेट प्रतिभा से...
बल्लभ - मतलब...
परीड़ा - कौनसे ऑफिस में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलना है... तो तुम्हें छुट्टी के दिन... या फिर रात को उनके घर जाना पड़ेगा... और अगर वाव की प्रेसिडेंट से मिलना है... तो शाम चार से सात बजे के अंदर... चौधरी बाजार के वाव ऑफिस में मुलाकात कर सकते हो... पर स्टील... मैं सजेस्ट करूँगा... हैंडल वीथ केयर... वरना... पता नहीं... (रोणा को देखते हुए) तेरी यह हालत किसने की है... पर वहाँ कुछ भी गड़बड़ हुई... तो लेने के देने पड़ जाओगे...
रोणा - तु डरा रहा है...
परीडा - नहीं आगाह कर रहा हूँ... तुम दोनों उससे मिलोगे... किस लिए... क्या बात करोगे... वह तुम्हें क्यूँ कर कोई जानकारी देगी... बोलो...

बल्लभ और रोणा दोनों सोच में पड़ जाते हैं l क्यूँकी परीड़ा ने बात बिल्कुल सही कहा था l दोनों परीड़ा के तरफ देखते हैं l

रोणा - अभी इस वक़्त... कहाँ हो सकती है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... अदालत में... आपनी किसी केस की बहस में... पक्का आग उगल रही होगी...

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अदालत में जज कुछ कागजात देख रहे हैं l मुल्जिम के कटघरे में एक युवक खड़ा है l उसके पहनावे से वह एक रईस घर से प्रतीत हो रहा है l दुसरी तरफ गवाह के कटघरे में एक औरत खड़ी है l उसी औरत के तरफ अदालत में एक पालना है और उसमें एक बच्चा शायद नौ या दस महिने का होगा मुहँ में दुध का बॉटल लिए लेटा हुआ है और अदालत में केस को लेकर लोग आपस में बहस के साथ शोर शराबा कर रहे हैं l उन लोगों के बीच विश्व और तापस भी बैठे हुए हैं l विश्व के हाथ में एक पत्तल का थैली है जिसमें से वह एक जलेबी निकाल कर खाता है l

तापस - अरे बेशरम... कुछ तो शर्म रख... अदालत के अंदर... जलेबी... क्यूँ...
विश्व - मुझे पता है... माँ यह केस भी आसानी से जीत जाएगी... इसलिए... मुहँ पहले से ही मीठा कर रहा हूँ...
तापस - मैनर नाम की कोई चीज़ होती है...
विश्व - (खाते खाते रुक जाता है और तापस की ओर देख कर) बिल्कुल सही कह रहे हैं डैड... (फिर खाना चालू करते हुए) और वह मेरे अंदर कूट कूट के भरा है... (तापस गुस्से से आँखे सिकुड़ कर देखता है) यह आखिरी है...
जज - (गैवेल लेकर टेबल पर मारते हुए) ऑर्डर.. ऑर्डर... (अदालत में खामोशी छा जाती है) अदालत की कारवाई शुरु की जाए...

एक वकील अपनी जगह से उठ कर जज के सामने आकर खड़ा होता है l

वकील - माय लॉर्ड... (अपनी कुर्सी से उठ कर) वीथ योर परमीशन... मे आई...
जज - आप तो बचाव पक्ष के वकील हैं...
वकील - जी माय लॉर्ड... पर अभियोजन पक्ष ने आज की कारवाई के लिए अपना वकील बदल लिया है... जब कि यह केस खतम होने को आई है... आज... जब अदालत में... इस केस की सुनवाई आगे बढ़ेगी... और केस खतम होगी... माय लॉर्ड... हम अभियोजन पक्ष में होंगे... और यह... जो मासूम सा चेहरा लेकर गवाह के कटघरे में खड़ी है... मिस निशा... वह खुद को बचाने के लिए... अपनी वकील साहिबा को कहेगी.... रोएगी... गिड़गिड़ाएगी...
जज - अभियोजन पक्ष को क्या कोई ऐतराज है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ खड़ी होती है, मुस्कराते हुए ) जी नहीं... बिल्कुल भी नहीं... माय लॉर्ड... बल्कि मैं मेरे फाजिल दोस्त जिन तथ्यों पर.... बहस को सामने रख कर अब तक केस को यहाँ तक पहुँचा चुके हैं... मैं पढ़ चुकी हूँ.. हाँ अगर वह कुछ और पेश करना चाहते हैं... मैं देखना जरूर चाहूँगी....
जज - ठीक है... (वकील से) परमिशन ग्रांटेड़... यु मे प्रोसीड...
वकील - थैंक्यू... थैंक्यू.. माय लॉर्ड... इस केस पर हम बहुत बार बहस कर चुके हैं... और मैंने... हर एक बार यह साबित किया है... की यह जो मासूम सी दिखने वाली लड़की... अपने जेंडर की नाजायज फायदा उठाया है... बेचारी निशा... गरीब घर में जन्मी... एक महत्वाकांक्षी लड़की... बचपन से ही... आँखों में बड़े बड़े सपने लिए हुए... इस शहर में आई थी... मेरे क्लाइंट... जैसा कि सभी जानते हैं... मिस्टर अनिरुद्ध पाल... xxxx मॉल के मालिक हैं... करोड़ों के मालिक... इन पर डोरे डालना शुरू करती है... पर कामयाब ना हो सकीं... उसके मंसूबों को पाल साहब अच्छी तरह से जान गए... इसलिए डेढ़ साल पहले ही... नौकरी से निकाल दिया... पर यह लड़की मिस निशा... पता नहीं... कुछ समय के लिए किसकी मिसेज बनीं... फिर ... एक बच्चे को लाकर... मिस्टर पाल पर बच्चे के बाप होने का आरोप लगाती है... जब कि उसके पास इसका कोई सबूत नहीं है... ना कोई फोन रिकॉर्ड... ना कोई चैटिंग की रिकॉर्ड... ना कोई गिफ्ट... ना कोई लेटर... यहाँ तक कि... माय लॉर्ड.. कोई गवाह भी नहीं है... जो इसके लिए गवाही दे... के मिस्टर पाल साहब का.. इस लड़की से कोई संबंद्ध है... योर ओनर... मेरे क्लाइंट इस शहर के एक प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति हैं... उनके पिता श्री संतोष पाल... जो यहाँ लोगों बीच मौजूद हैं... वह राजनीतिक गलियारों में भी अच्छी खासी पहुँच रखते हैं... ऐसे में मैं दावे के साथ कह सकता हूँ... यह मेरे क्लाइंट के साथ... उनकी छबी खराब करने के लिए... विरोधियों की रची गई चाल है... और यह लड़की... उन विरोधियों के साथ है... मोहरा है...
लड़की - (चिल्ला कर) नहीं जज साहब... यह वकील साहब झूठ बोल रहे हैं...
जज - ऑर्डर... ऑर्डर... (लड़की से) जब आपको बोलने को कहा जाए... आप तब तक चुप ही रहें... (वकील से) पात्र बाबु... अपनी बहस में और कोई दलील देना चाहेंगे...
वकील पात्र - हाँ माय लॉर्ड... आज जब केस की अंतिम सुनवाई हो... तब पाल परिवार के तरफ से... डीफेम केस शूट किया जाए... क्यूंकि माय लॉर्ड... अभी तक... अभियोजन पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है... की मिस्टर पाल और निशा जी के मध्य कोई संबंद्ध है... इसलिए मैं... मेरे फाजिल दोस्त... वकील साहिबा को सलाह देना चाहूँगा... बेहतर है कि वह.. अभी से हार मान ले... जो कि इस केस में नई नई घुसी हैं... और इस केस पर बहस करके अपना और कोर्ट का वक़्त जाया ना करें... (कह कर प्रतिभा को देख कर नीचा दिखाने वाली मुस्कराहट के साथ बैठ जाता है)
प्रतिभा - (पात्र को मुस्करा कर देखती है और बड़ी आत्मविश्वास के साथ अपनी जगह से उठती है) माय लॉर्ड... मैं इस केस में नई हूँ... इससे पहले वाले वकील से अपना केस लाकर... मेरी क्लाइंट ने मुझे सौंपा है... और पुरी स्टडी करने के बाद... मेरे फाजिल दोस्त से पूछना चाहूँगी... के क्यूँ... मिस्टर पाल डीएनए टेस्ट के लिए मना कर रहे हैं...
वकील पात्र - (अपनी जगह से उठ कर) वह इसलिए माय लॉर्ड... अगर मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट के लिए राजी हो जाएं... तो कल हर राह चलती लड़की अपने हाथ में बच्चा लिए कोर्ट के परिसर में आ कर .. किसी ना किसी दौलत मंद और इज़्ज़त दार आदमी को कोर्ट घसिटेंगी... और यह एक चलन बन जाएगा योर ओनर... मेरे क्लाइंट डीएनए टेस्ट से... ना तो घबरा रहे हैं... ना ही मना कर रहे हैं... पर... पहले कोर्ट में यह किसी तरह से स्थापित तो हो... के इनके मध्य कोई संबंद्ध था... (कह कर बैठ जाता है)
जज - इस पर आप क्या कहना चाहेंगी प्रतिभा जी...

प्रतिभा वकील पात्र को देखती है, पात्र प्रतिभा को देख कर ऐसे मुस्कराता है जैसे वह खिल्ली उड़ा रहा हो l

प्रतिभा - यस योर ओनर... (अनिरुद्ध के पास चल कर जाती है) मिस्टर अनिरुद्ध पाल... क्या आप भगवान पर विश्वास करते हैं...
पाल - (अपना नीचला होठ को जीभ से गिला करते हुए) ओवीयोस्ली... यहाँ कौन है... या कितने होंगे जो... भगवान भरोसा ना करते हों...
प्रतिभा - हूँ... और यह भी मानते हैं.. की उनके दरबार में... कोई ना इंसाफ़ी नहीं होगी...
अनिरुद्ध - जी यह सच है...
पात्र - माय लॉर्ड...(अपनी जगह से उठ कर) वकील साहिबा को यह याद दिलाया जाए कि... यह समाज के बनाए कानूनी अदालत है... यहाँ उपरवाला नहीं... सबूतों को मध्य नजर रख कर... आप इंसाफ़ करने वाले हैं...
प्रतिभा - येस माय लॉर्ड... ना मैं भुली हूँ... ना यह मैं किसीको भुलने दूंगी... मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि... जिसका कोई नहीं होता... उसका भगवान का साथ होता है.... जब इंसाफ़ झूठे गवाह और सबूतों पर डगमगाने लगे... तब भगवान चमत्कार कर देते हैं... बस हमें उसकी पहचान होनी चाहिए... देट्स इट...
जज - प्रोसिड...
प्रतिभा - थैंक्यू माय लॉर्ड.... (दांत पिसते हुए पात्र बैठ जाता है) तो अनिरुद्ध.. अब देखते हैं... भगवान पर आपकी श्रद्धा और विश्वास कितना अटूट है... (फिर जज की तरफ घूम कर) माय लॉर्ड... किसीसे प्रेम परिणय करना... और गर्भवती बना कर छोड़ देना... यह पुरुष व्यवस्थित समाज में आदिम काल से चला आ रहा है... और उस समाज में जो पकडा जाता है... वह व्यभिचारी होता है... और जो पकड़ नहीं जाता है... वह संस्कारी... समाज का ठेकेदार हो जाता है... एक उदाहरण... मैं एक ऐतिहासिक मिथक से उठा कर प्रस्तुत करती हूँ... एक राजा... आखेट के लिए जंगल में आता है... उसे एक सुंदर सी स्त्री दिखती है... वह उसके समक्ष प्रेम निवेदन करता है... फिर प्रेम परिणय कर के... स्मृति के स्वरुप एक मुद्रिका देकर चला जाता है.... काल क्रम में वह स्त्री गर्भवती होती है... उसे उसके परिवार वाले लेकर राजा के पास लेकर जाते हैं... वह राजा पहचान ने से इंकार कर देता है... और विडंबना यह हुई... की उस स्त्री से वह मुद्रिका भी खो गई... आगे जो हुआ वह इतिहास है... और आज... आज जो यहाँ होगा वह भी इतिहास ही होगा... की आइंदा कोई दुष्यंत किसी शकुंतला के साथ ऐसा करने से पहले... सौ बार सोचेगा... यह जनाब... अपना डीएनए सैंपल देने से इंकार कर रहे हैं... की यह जो लड़की गवाह की कटघरे में खड़ी है... झूठी है... और यह जनाब इतने पैसे वाले हैं कि... अगर डीएनए सैंपल दे देंगे... तो लड़किया की होड़ लग जाएगी... की इस इंसान की डीएनए मांग करने लग जाएंगे... इसलिए डीएनए परीक्षण तभी हो सकता है... जब अनिरुद्ध और निशा के मध्य संबंद्ध स्थापित हो... इसलिए मैं वकील पात्र बाबु से.. और पाल बाबु से पुछ रही हूँ... अनुवांशिक या वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक गुण या आदत या चिन्ह... ऐसा होता है या नहीं...(प्रतिभा वकील पात्र की ओर देखती है)
पात्र - (कुछ सोच कर) हाँ.. होता है...
पाल - (प्रतिभा की ओर देख कर) हाँ होता है...

प्रतिभा पालने के पास जाती है और अपना मोबाइल निकालती है l बच्चे के मुहँ से दूध की बोतल निकाल कर बच्चे पर फोकस कर वीडियो शूट करती है l लोगों के बीच बैठा विश्व फिर थैली से जलेबी निकाल कर तापस को देता है l

तापस - (दबी जुबान से) यह क्या है...
विश्व - (दबी जुबान से) जलेबी... मुहँ मीठा कीजिए... माँ... केस जीत गई...
तापस - कैसे... अभी सुनवाई पुरी नहीं हुई है...
विश्व - बस हो गया समझिए...

तापस विश्व के हाथ से जलेबी लेकर खाता है l वीडियो शूट करने के बाद प्रतिभा उस वीडियो को वकील पात्र को फॉरवर्ड करती है l

प्रतिभा - माय लॉर्ड... जैसा कि मैंने कहा था... की अनुवांशिक गुण... आदत या चिन्ह होते हैं... जो पीढ़ियों से... एक पीढ़ी से दुसरी पीढ़ी तीसरी पीढ़ी... यहाँ तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक्सटेंड होती रहती है... (मोबाइल को जज की ओर बढ़ाते हुए) योर ओनर... जैसा कि अनिरुद्ध ने कहा... की उन्हें ऊपर वाले पर विश्वास है... तो मैं यह उनके साथ पुरी दुनिया और समाज से कहना चाहती हूँ.. उपर वाले की लाठी बे आवाज़ होती है... और अभी उनकी लाठी चल गई है... मैंने अभी आपके सामने इस बच्चे की वीडियो शूट किया है... आप इस बच्चे की हरकत और मुल्जिम के कटघरे में खड़े अनिरुद्ध पाल और यहाँ लोगों के बीच बैठे उनके पिताजी संतोष पाल जी के आदतों पर गौर करें... प्लीज... (राइटर प्रतिभा के हाथ से मोबाइल ले कर जज को देता है) प्लीज... (वकील पात्र को देखने के लिए कहती है)

जज और वकील पात्र वीडियो देखते हैं l बच्चा बार बार अपनी नीचला होंठ को जीभ से भिगो रहा है l जज अनिरुद्ध को देखता है l अनिरुद्ध भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l और लोगों के बीच बैठा अनिरुद्ध के पिता संतोष भी अपना निचला होंठ जीभ से गिला कर रहा है l वकील पात्र के माथे पर पर पसीने की बूंदे दिखने लगती हैं l वह कांपते हाथों से अपना मोबाइल टेबल पर रख देता है l वीडियो देखने के बाद जज के जबड़े कस जाते हैं l इधर लोगों में खुसुर-पुसुर शुरु हो जाती है l

जज - ऑर्डर ऑर्डर... यह वीडियो देखने के बाद... पात्र बाबु... क्या कहेंगे...
पात्र - (बड़ी मुस्किल से अपनी जगह से खड़े हो कर) माय सबमिशन योर ओनर... अदालत जो ठीक समझे...

पात्र की बात सुन कर अनिरुद्ध और उसके परिवार वालों के चेहरे उतर जाते हैं l

जज - (अनिरुद्ध से) मिस्टर अनिरुद्ध... या तो आप इसी अदालत में... अपना संबंद्ध निशा जी के साथ... स्वीकार करें... या फिर अभी के अभी अपना डीएनए सैंपल देने के लिए तैयार हो जाएं... और अदालत आपको आगाह करती है... डीएनए मैच होने पर... आपके लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान करेगी...
अनिरुद्ध - (सूखे हुए गले से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकाल कर) मु..मुझे... निशा के साथ अपना संबंद्ध स्वीकार है... मैं (चेहरा झुका कर) निशा से... अपने परिवार से और अदालत से माफ़ी मांगता हूँ...

लोग यह सब सुन कर खुसुर-पुसुर शुरु कर देते हैं l विश्व तापस के हाथ पकड़ कर खिंच कर बाहर ले जाता है l बाहर आने के बाद

तापस - कम से कम जजमेंट तो रुक जाते...
विश्व - कोई फायदा नहीं होता... माँ को सब बधाईयाँ देते रहते... फिर मीडिया वाले... हमारा नंबर आते आते शाम हो जाती...
तापस - तेरी माँ से मिले वगैर जा रहे हैं... देखना... रात को घर में घुसने नहीं देगी... या फिर खाने नहीं देगी...
विश्व - ऐसा कुछ नहीं होगा... उल्टा हमें मिठाई खिलायेगी...
तापस - क्यूँ...
विश्व - क्यूँ की इस केस के पीछे का सारा तिकड़म... मैंने भिड़ाया है..

दोनों चलते चलते कार के पास पहुँचते हैं l कार में बैठने के बाद l तापस गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l

तापस - इसका मतलब तु xxxx मॉल को अपने दोस्त से मिलने या... कॉफी पीने नहीं जाता था...
विश्व - जाता था... पर मेरे लिए यह केस भी उतनी ही इंपोर्टेंट थी...
तापस - और वहाँ जा कर वह कौनसी आदत ढूंढ निकाली... जो तेरी माँ ने वीडियो शूट कर जज को दिखाया...
विश्व - पाल बाप बेटे में एक आदत थी कि... हर कुछ सेकंड के इंटरवल में अपने निचले होंठ को अपनी जीभ से गिला करते हैं...
तापस - ओ... तो अपनी जीभ से निचला होंठ गिला करने की यह आदत... उस बच्चे में भी है...
विश्व - नहीं है...
तापस - (चर्र्र्र्र् गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... फिर जज को वीडियो में वह आदत दिखा कैसे...
विश्व - (हँसता है) लीजिये पहले यह जलेबी खाइए... और गाड़ी को किसी अच्छे रेस्तरां में ले चलिए..
तापस - (गाड़ी को फिर से आगे बढ़ाता है) अब बताओ... क्या तिकड़म किया तुने...
विश्व - डैड... क्या आप मानते हैं... इस केस में... निशा सही थी... और वह अनिरुद्ध गलत..
तापस - हाँ... पर तुने किया क्या और कैसे...
विश्व - जलेबी से...
तापस - जलेबी से... क्या मतलब...
विश्व - मैंने उस बच्चे के ठुड्डी के जरा से ऊपर और निचले होंठ के ज़रा सा नीचे... मैंने जलेबी की चासनी लगा दिया...
तापस - क्या... (फिर से गाड़ी में ब्रेक लगाता है)
विश्व - आप यह बार बार ब्रेक क्यूँ मार रहे हो... (तापस फिर से गाड़ी को आगे बढ़ाता है) माँ ने जैसे ही बच्चे के मुहँ से बोतल हटाया... बच्चा अपना जीभ बाहर निकाल कर ढूंढने लगता है... उसे अपने जीभ के नीचे मीठा मिलने से बार बार अपने निचले होंठ को गिला करने लगा... और माँ उसका वही विडिओ बना कर... जज साहब और पात्र बाबु को दिखा दिया...
तास - अरे बाप रे... इतना बड़ा तिकड़म भिड़ाया तुने... (विश्व मुस्करा कर देखता है) सुन... आगे जो तेरे बारे में... जान जाएंगे... कोई अपने मॉल में घुसने नहीं देंगे...

विश्व हँसने लगता है और उसके साथ साथ तापस भी हँसने लगता है l

तास - तो तेरा दोस्त आज भी इंतजार कर रहा होगा...
विश्व - हाँ... शायद...
तापस - क्यूँ... तुने बताया नहीं... आज तुझे काम है... जा नहीं सकता...
विश्व - बताया तो था... पर वह बोला कि... आदत हो गई है... इसलिए कॉफी पी कर ऑफिस चला जाएगा...
तापस - वह तेरे बारे में... सबकुछ जानता है...
विश्व - नहीं...
तापस - क्यूँ...
विश्व - वह मुझसे जितना खुला... मैंने उसे अपने बारे में... उतना ही बताया...
तापस - मतलब वह तुझसे कुछ छुपा रहा है...
विश्व - इंटेश्नली तो नहीं... पर... शायद उसकी कोई मजबूरी है...


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वीर अपनी गाड़ी में ESS ऑफिस में पहुँचता है l गाड़ी कंपाउंड के अंदर आते ही स्टार्ट बंद कर गार्ड को चाबी दे देता है गाड़ी को पार्क करने के लिए l फिर तेजी से चलते हुए अपने कैबिन में आता है l कमरा रुम फ्रेशनर की खुशबु से महक रहा था l बाहर से आज वह चिढ़ कर आया था, पर कमरे में पहुँचते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l एक सुकून भरा गहरी सांस ले कर सांस छोड़ते हुए अपनी आँखे खोलता है l सामने मुस्कराहट से दमकती हुए चेहरे के साथ अनु खड़ी हुई दिखती है l अनु उसे ही देख कर मुस्कुरा रही थी l इतनी सादगी के वीर अनु को देखते ही खो गया l


अनु - राजकुमार जी...
वीर - (होश में आता है) हाँ... हाँ..
अनु - आप कुछ सोच में थे शायद...
वीर - हाँ... मैं.. मैं सोच ही रहा था... के अनु... हमेशा इतनी खुश कैसा रह लेती है ...
अनु - (शर्मा कर नीचे अपनी पांव की तरफ देखने लगती है) मैं तो... रोज खुश रहती हूँ...
वीर - हाँ.. (उसके पांव को देखता है, अनु अपनी पांव से फर्श कुरेद रही थी) हाँ... यह बात तो सही है... तुम्हें कभी मायूस होते हुए देखा ही नहीं...
अनु - ऐसा नहीं है... मैं मायूस भी रहती थी... पर यहाँ नौकरी मिलने के बाद.... वह...क्या है ना... मेरे बाबा मुझे हमेशा कहा करते थे... कोई भी समय हो... मुस्कराते रहने के लिए... ताकि मुस्कराहट के सामने... तकलीफें हार जाएं.. और खुशियां आयें तो कभी ना जाए...
वीर - वाह... कितनी अच्छी और सच्ची बातेँ कहा करते थे... तुम्हारे पिताजी...
अनु - (मुस्कान के साथ अपना सिर झुका लेती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - जी राजकुमार जी...
वीर - मेरा कोई फोन आया था...
अनु - लैंड लाइन पर तो नहीं आया... बाकी... मोबाइल तो आपके पास है...
वीर - हूँ...
अनु - मैं आपके लिए कॉफी बनाऊँ...
वीर - नहीं... बाहर पीकर आया हूँ...
अनु - (हैरानी भरे आवाज में) पी.. कर... आए हैं...
वीर - अरे.. अरे... पीकर आया हूँ मतलब... कॉफी पीकर आया हूँ... (अनु का चेहरा उतर जाता है) (वीर को उसका उतरा हुआ चेहरा बर्दास्त नहीं होता) पर जानती हो अनु... तुम्हारे कॉफी में जो जादू भरा स्वाद है ना... वह बाहर के किसी भी कॉफी के दुकान में नहीं... (अनु का चेहरा खिल उठता है)
अनु - तो... आपके लिए कॉफी लाऊँ...
वीर - हाँ ... पर साथ खाने के लिए कुछ बना सकती हो...
अनु - मैं... फ्रेंच टोस्ट बनाऊँ...
वीर - (हैरान हो कर) तुम जानती हो...
अनु - (शर्मा कर) हूँ...
वीर - कैसे... मतलब तुम्हारे घर में...
अनु - नहीं नहीं... वह मैं.. यु ट्युब में देख कर...
वीर - ओ... मोबाइल का अच्छा उपयोग हो रहा है... ह्म्म्म्म..
अनु - (मुस्कराते हुए अपनी सिर नीचे कर लेती है)
वीर - अच्छा जाओ... मेरे लिए कुछ फ्रेंच टोस्ट और एक गरमा गरम कॉफी लेकर आओ...
अनु - (चहकते हुए) जी... अभी लाई... (कह कर वहाँ से चली जाती है)

वीर उसको जाते हुए देख रहा था l उसकी चाल बहुत ही आम थी रोज की तरह, पर उस चाल में छुपी चंचलता वीर को साफ दिख रहा था l अनु की ऐसी हालत देख कर वीर के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगता है l वह डिस्प्ले पर माँ देखता है l


वीर - (फोन उठा कर) हैलो... माँ...
सुषमा - वीर... कैसा है तु.. सेहत तो ठीक है ना...
वीर - हाँ... हाँ.. माँ.. हाँ...
सुषमा - तो फिर रोज बात करेगा बोला था... उसका क्या हुआ...
वीर - ओह सॉरी माँ...
सुषमा - माँ को भुल गया था ना...
वीर - क्या बात कर रही हो माँ...
सुषमा - रहने दे रहने दे... सब समझती हूँ... अब तुझे एक नया दोस्त भी मिल गया है... है ना...
वीर - हाँ... पर उससे तुम्हें भुलाने का क्या संबंद्ध...
सुषमा - हूँ... खैर... क्या.. ऑफिस में है...
वीर - हाँ...
सुषमा - ह्म्म्म्म... यानी आज कल बहुत बिजी है...
वीर - वह माँ... मैं तुमसे माफी माँगता हूँ...
सुषमा - चल छोड़.. मैं तो मज़ाक कर रही थी...
वीर - फिर भी...(आवाज़ भर्रा जाती है) सच ही कहा... पर माँ सच कहता हूँ... मैं तुम्हें भुला नहीं हूँ...
सुषमा - मारूंगी तुझे... कभी मिला तो कान खिचुंगी तेरा...
वीर - हाँ माँ खींचना.. जरूर खींचना...
सुषमा - अब बस... तु मुझे भी रुलाने लग गया... फोन बंद कर दूंगी... देख...
वीर - नहीं माँ नहीं... प्लीज... फोन बंद मत करना...
सुषमा - अच्छा सुन... पता नहीं तुझे याद भी है या नहीं... तीन दिन बाद तेरा जन्म दिन है... एक काम कर... मेरे पास आजा... माँ बेटे मिल कर तेरा जन्म दिन मनाएंगे...
वीर - कैसे.... माँ.. वहाँ...
सुषमा - यहाँ इस बार कोई नहीं होगा... ना राजा साहब... ना छोटे राजा... वह जरूरी काम से दिल्ली जा रहे हैं...
वीर - तो फिर तुम यहाँ आ जाओ ना...
सुषमा - बड़े राजा जी को छोड़ कर मैं कैसे आऊँ... बोलो..
वीर - अरे माँ.. एक रात के लिए... किसी नर्स का बंदोबस्त कर एक दिन के लिए आ जाओ ना...
सुषमा - कैसे वीर..
वीर - कभी कभी तुम यहाँ आती हो ना...
सुषमा - हाँ पर...
वीर - प्लीज माँ... मैं... (शर्माते हुए) मैं तुम को किसी से मिलावाना चाहता हूँ...
सुषमा - (खुश होते हुए) हूँम्म्म्म्म्... मतलब.. मैंने तुमसे जो पुछा था... वह सच है... है ना...
विश्व - (शर्माते हुए बड़ी मुश्किल से) हूँम्म्म्म्म्...
सुषमा - (खुश होते हुए) क्या नाम है... मेरी बहु का...
वीर - (बहुत तेजी से) अनु...
सुषमा - आह... कितना प्यारा नाम है... सुंदर भी उतनी ही होगी... है ना...
वीर - हाँ... बहुत ही सुंदर है माँ... बिल्कुल कोई देवी जैसी...
सुषमा - तो एक काम कर... उसे लेकर यहाँ आजा...
वीर - माँ... तुम हम लोगों से वादा लेती हो... राजगड़ कभी ना जाने के लिए... और तुम खुद राजगड़ बुला रही हो... वैसे भी... मैंने उसे अभी तक कहा नहीं है...
सुषमा - क्या नहीं कहा है...
वीर - माँ... वह मैं... मतलब कैसे...
सुषमा - क्या.. तुने अभी तक... उसे पसंद करता है.. प्यार करता है.. बताया नहीं...
वीर - नहीं... नहीं बताया है माँ..
सुषमा - क्यूँ...
वीर - पता नहीं माँ... क्यूँ... मेरी जुबान उसकी.. मासूम चेहरा देख कर... लकवा मार जाती है...
सुषमा - (हँसते हुए) सच्चा प्यार जो करने लगा है...
वीर - माँ... प्लीज आओगी ना...
सुषमा - नहीं...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं माँ...
सुषमा - मैं आऊंगी जरूर... पर सीधे अपने बहु से मिलने...
वीर - तो मेरा जन्मदिन...
सुषमा - अगर अपने जन्मदिन से पहले... उसे अपने प्यार की इजहार कर... मना लेगा तो... मैं जरूर आऊंगी..
वीर - माँ... पर..
सुषमा - ऊँ हूँ.. जिसके वजह से... मुझे मेरा वीर मिला है... मुझे अब वह मेरे वीर के लिए.. वीर के साथ भी चाहिए...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या...
वीर - कह तो दूँ... पर डर भी बहुत लग रहा है...
सुषमा - डर... किसलिए...
वीर - वह... वह बहुत... गरीब घर से है माँ... भैया का प्यार क्षेत्रपाल महल में स्वीकार कर लिया गया... पर...
सुषमा - (आवाज़ में चिंता साफ महसुस हो रही थी) गरीब मतलब...
वीर - गरीब माँ... उसकी सिर्फ दादी है... उसके माता पिता कोई नहीं हैं...
सुषमा - (थोड़ा गंभीर हो कर) वीर... सच सच बता... तु उसे कितना चाहता है....
वीर - बहुत... माँ बहुत... शायद... उसके वगैर मैं मर जाऊँ... पर उसके वगैर मैं जी नहीं सकता...
सुषमा - इतना चाहता है...
वीर - (चुप रहता है)
सुषमा - तो बेटा यह मैं तुझ पर छोड़ती हूँ... तेरी जिंदगी है... पर अपनी माँ की बात याद रखना... अगर उसका हाथ थामता है तो उसका साथ कभी मत छोड़ना...
वीर - माँ... अगर मैं कभी अकेला पड़ गया तो...
सुषमा - तो वह तेरा साथ देगी... और मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ रहेगी...
वीर - थैंक्यू माँ...
सुषमा - चल... माँ को थैंक्यू बोलता है...
वीर - मेरे मन में... थोड़ा डर था... अब नहीं है... मैं उसे कल ही बता दूँगा...
सुषमा - आज क्यूँ नहीं...
वीर - (शर्मा कर) वह... मैं उस पल को बहुत खास बनाना चाहता हूँ...
सुषमा - ओ...
वीर - माँ... जन्म दिन पर आओगी ना...
सुषमा - नहीं... मैं अभी भी... छोटे राजा जी और राजा साहब को जवाब नहीं दे सकती...
वीर - (रुक रुक कर) तो... फिर...
सुषमा - देख बेटा... मैं तेरे पास रहूँ या ना रहूँ... पर तु अभी जिस रास्ते पर चल रहा है... उससे मत भटकना... जानता है... तु अनु से अपने प्यार की इजहार क्यूँ नहीं कर पाया... क्यूंकि तु क्षेत्रपाल से जुड़ा हुआ है... तु जैसे ही उससे अपने प्यार का इजहार करेगा... तुझसे क्षेत्रपाल से टुट जाएगा... हो सकता है... वह तेरी आजादी भी हो.... और बर्बादी भी...

वीर और सुषमा के वार्तालाप में चुप्पी छा जाती है l

सुषमा - (खामोशी को तोड़ते हुए) वीर...
वीर - हाँ... हाँ माँ...
सुषमा - तु चुप क्यूँ हो गया...
वीर - मैं... फैसला ले रहा था...
सुषमा - कैसा फैसला...
वीर - मैं कल ही उसे अपने दिल की बात कहूँगा... उसके बाद जो होना होगा... देखा जाएगा...
सुषमा - तो फिर ठीक है... कल रात मुझे फोन कर बताना...
वीर - ठीक है माँ...

जब फोन से कोई जवाब नहीं आता वीर अपने फोन को देखता है तो फोन कट चुका था I वह सुषमा के कहे बातों को सोचने लगता है l तभी उसके कमरे का दरवाजा खुलता है l वह देखता है कि सामने एक ट्रे में कुछ टोस्ट और कॉफी की ग्लास लिए अनु अंदर आ रही है l अनु को अंदर आते देख वीर अपने सोच से बाहर आ जाता है l अनु ट्रे को वीर के सामने रख देती है l वीर एक टोस्ट उठाता है और कॉफी की ग्लास से कॉफी की सीप लेते हुए अनु को देखता है l यूँ तो अनु उसे हमेशा की तरह ही देख रही थी पर वीर को अनु के भीतर की खुशी को महसुस करता है,क्यूंकि अनु की चेहरा खुशी से दमक रही थी l


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विश्व बस से उतर कर भागता है l आज वह बीस मिनट लेट हो गया था I तभी उसका फोन बजने लगता है l विश्व डिस्प्ले पर वीर देखता है फोन उठाता है

विश्व - हाँ.. हैलो..
वीर - कहाँ हो यार..
विश्व - कल बताया तो था... आज मैं अपने काम में बिजी रहने वाला हूँ...
वीर - क्या करूँ... एक बात है... जो मैं तुमसे शेयर करना चाहता था... इसलिए तुम्हें फोन लगाया है...
विश्व - हाँ बोल..
वीर - मैं... कल उसे प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व -(खुश होते हुए) वाव... कंग्राट्स...
वीर - थैंक्स यार...
विश्व - एक बात पुछुँ..
वीर - हाँ पुछ..
विश्व - ऐसे कैसे... ऑल ऑफ सडन...
वीर - वह... एक्चुयली मैंने माँ से अनु के बारे में बात की... माँ ने ही मुझे रास्ता सुझाया...
विश्व - हाँ... तभी... देखा... जब दोस्त से भी काम ना बनें... कुछ ना सूझे... माँ बाप से ही पुछना चाहिए... वह अंधेरे में जगमगाते रौशनी के तरह होते हैं...
वीर - बिल्कुल ठीक कहा मेरे दोस्त... अभी कुछ देर पहले... माँ से बात की... तो मालुम हुआ कि... मुझे क्या करना चाहिए...
विश्व - ओ... तो.. कैसे प्रपोज करने वाला है... अनु को कुछ आभास कराया है क्या...
वीर - नहीं बिल्कुल नहीं... वह नहीं जानती है... कल का दिन उसके लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज है...
विश्व - (उछलते हुए) कैरी ऑन माय फ्रेंड... कैरी ऑन... माय बेस्ट विश..
वीर - थैंक्स यार... (फोन बंद कर देता है)

विश्व खुशी के साथ जब ग्राउंड पहुँचता है तो देखता है एक बेंच पर सुकुमार और नंदिनी बैठ कर बातेँ कर रहे हैं और विश्व गौर करता है सुकुमार के बातेँ करते हुए चेहरे पर दर्द उभर रहा है जो शायद रुप से कह कर साझा कर अपना दर्द कम कर रहा है l तभी विश्व देखता है एक ल़डकियों का गैंग विश्व को देख कर उसके तरफ भागी चली आ रही हैं l उस ग्रुप में सबसे आगे भाश्वती थी l इतने सारे लड़कियों को अपने चारों तरफ देख कर विश्व नर्वस फिल करता है l

भाश्वती - हाय भैया...
विश्व - हा... हाय... (लड़कियों को देख कर) यह.. यह सब...
भाश्वती - यह..(चहकते हुए) यह मेरे दोस्त हैं... (विश्व के गले लगते हुए) और यह सब... मेरे भैया से मिलने आए हैं...
विश्व - ओ.. है. हैलो...
सब - (एक साथ) हाय...
विश्व - ओ.. हाँ... हाय..
दीप्ति - हैलो.. भाश्वती के भाई... आप नर्वस ना हों... मैं दीप्ति... और यह इतिश्री... यह बनानी.. और यह तब्बसुम...
सभी - हाय...
विश्व - हाय..
दीप्ति - वाव... भाश्वती ने पहले आपको प्रपोज किया था... मतलब वह उस वक़्त... गलत नहीं थी...
विश्व - अच्छा... वह किस लिए...
इतिश्री - आप दिखते ही हो... इतने डैसींग... हैंडसम... (आहें भरते हुए) कोई भी लड़की फ्लैट हो जाए... (सभी लड़कियाँ हँसने लगते हैं)
विश्व - ओ अच्छा.. थ.. थ.. थैंक्स...

विश्व को लड़कियों के घेरे में नर्वस देख कर रुप मुस्करा देती है l फिर अपने दोस्तों के पास पहुँचकर पर रुप विश्व को देखती है l विश्व रुप को देख कर आँखों से इशारे में बिनती करता है ल़डकियों से बचाने के लिए l रुप अपन सिर हिला कर अपने दोस्त और विश्व से

रुप - तो.. हो गया.. इंट्रोडक्शन...
विश्व - हाँ हाँ... हो गया...
सभी - हाँ... हमारा भी हो गया...
रुप - (अपने सभी दोस्तों से) तो... अब तुम लोग जाओ... हमें ड्राइविंग सीखने दो... हूँ..
दीप्ति - क्यूँ... हम तुम लोगों की क्लास नहीं देख सकते क्या...
रुप - नहीं... तुमने शायद बाहर बोर्ड पर लिखा पढ़ा नहीं है... आउट साइडर नट एलाउड..
इतिश्री - अरे यह क्या बात हुई... हम जब मिलकर यहाँ आए हैं... तो यहाँ से मिलकर जाते ना...
बनानी - हाँ यार...
दीप्ति - ह्म्म्म्म... अच्छा यह बात है... (चिल्ला कर) हु इज़ द इंस्ट्रक्टर हियर...
रुप - अरे इंस्ट्रक्टर को क्यूँ बुला रही है...
दीप्ति - तु रुक... और मजा देख...
रोहित - (भागते हुए देखता है) यस मिस यस... आई एम रोहित.. द इंस्ट्रक्टर...
दीप्ति - (मुस्कराते हुए) यह नंदिनी... और भाश्वती... हमारे दोस्त हैं... उनकी लर्निंग वीथ सेफ्टी... देख रहे हैं... अगर हमें पसंद आया तो... आपके स्कुल को चार लर्नर मिलेंगे...
रोहित - वाव... ज़रूर.. जरूर.. आप देख सकती हैं...
दीप्ति - थैंक्यू... रोहित... (कहकर अपनी आँखे नचा कर रुप को देखती है)

रोहित उन लोगों को वहीँ छोड़ कर एक कार के चला जाता है l रुप की जबड़ें भींच जाती है l लड़कियाँ विश्व के साथ बातेँ ज़माने लग जाती हैं और रुप पैर पटक कर रोहित के पास चली जाती है और उसके पास खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद रुप देखती है सभी लड़कियाँ विश्व को बाय कह कर मैदान से बाहर जा रही हैं I रुप हैरान हो जाती है l उन लोगों के जाने के बाद विश्व रुप की ओर देखता है और उसके पास जाता है l

विश्व - हैलो..
रुप - (विश्व की ओर बिना देखे) हैलो...
विश्व - आप मेरी दोस्त हैं... आप मुझे वहीँ फंसा हुआ छोड़ कैसे आ गई...
रुप - क्या करती... आपसे दोस्ती जुम्मा जुम्मा चार ही दिन हुए हैं... वे मेरे भी दोस्त हैं... और वह मैं जबसे भुवनेश्वर आई हूँ तब से दोस्त हैं...

तभी भाश्वती उन दोनों के पास बड़ी एक्साइट हो कर पहुँचती है l

रुप - क्या बात है.. ऐसा क्या हो गया कि... उछलती हुई आ रही है...
भाश्वती - क्या... भैया ने तुझे अभी तक इंवाइट नहीं किया..

रुप सवालिया नजरों से विश्व को देखती है l विश्व झेंप कर नज़रें चुराता है l

रुप - किस बात की इंवीटेशन...
भाश्वती - परसों ट्रेनिंग के बाद भैया... हमें... मतलब पुरी छठी गैंग को.. अपने घर लेकर जाएंगे...

तभी रोहित आता है और इन तीनों से - एक गाड़ी खाली है.. आओ तुममें से कोई प्रैक्टिस के लिए...
भाश्वती - मैं जाती हूँ... मैं... (कह कर भाश्वती वहाँ से चली जाती है)

भाश्वती के जाने के बाद रुप अपनी आँखे सिकुड़ कर विश्व को देखने लगती है l विश्व अपनी नजरें फ़ेर कर खिसकने लगता है l रुप उसके सामने खड़ी हो जाती है l

रुप - तो मिस्टर कन्हैया... घर पर गोपियों को निमंत्रण दिए हैं क्यूँ...
विश्व - (थोड़ा भड़क कर) क्या कन्हैया... क्या गोपी... मैंने इशारे से मदत मांगी... पर आपने नहीं की... तो उनसे छुटकारा पाने के लिए... कह दिया... परसों... सबको अपनी माँ से मिलवाने ले जाऊँगा... हूँह्.. (कह कर मुहँ फ़ेर देता है)
रुप - (थोड़ा नरम पड़ते हुए) वह भी तो मेरे दोस्त थे...
विश्व - (रुप को नरम पड़ता देख विश्व मन ही मन खुश होता है, पर जाहिर नहीं करता, जब देखता है रुप का चेहरा उतर गया है, उसे ठीक नहीं लगता) सॉरी...
रुप - (चौंकती है) क्या..
विश्व - सॉरी.. मुझे आप पर भड़कना नहीं चाहिए था...
रुप - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) इट.. इट्स ओके... मैं भी तो आप पर बेवजह भड़कती रहती हूँ...
विश्व - आप का भड़कना चलेगा... आपके चेहरे पर शूट करता है... पर मुझे... उँहुँ... बिल्कुल शूट नहीं करता... शक़्ल बंदर जैसी हो जाती है मेरी....
रुप - हा हा हा हा हा हा... (यह सुन कर हँस देती है, रुप की हँसी विश्व के दिल में एक हलचल मचा देती है, हँसते हँसते रुप जब विश्व को देखती है विश्व झेंप कर मुहँ दुसरी तरफ कर देता है, रुप उसकी नजर को पकड़ लेती है, बात बदलने के लिए) क्या.... मैं भी इंवाइटेड हूँ...
विश्व - ऑफकोर्स... आप के बिना तो मैं घर में... घुस भी नहीं सकता...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ...
विश्व - अरे मेरी माँ... आपकी जबरा फैन है... और वह जानती है... की मैं आपके साथ यहाँ गाड़ी चलाना सीख रहा हूँ... आपके दोस्तों को आपके वगैर लेकर गया... तो माँ मुझे घर में घुसने नहीं देगी....

विश्व की यह बात सुन कर रुप फिरसे हँसने लगती है, इस बार भी विश्व की वही हालत हो जाती है l

विश्व - (खुद को नॉर्मल करते हुए) वह सुकुमार अंकल... आप से क्या बात कर रहे थे...
रुप - अरे हाँ... पर... (तुनक कर) मैं तुम्हें क्यूँ बताऊँ...
विश्व - हम दोस्त नहीं है क्या...
रुप - अच्छा... कितने दिन हुए हमारे बीच दोस्ती के...
विश्व - आँम्म्उँ..... चार... चार दिन...
रुप - चार दिन की दोस्ती में... मैं तुम्हें.. तुम कह रही हूँ... पर तुम मुझे आप कह रहे हो... क्यूँ...
विश्व - (अटक अटक कर) वह..आप.. लड़की... हैं..
रुप - भाश्वती भी तो लड़की है...
विश्व - हाँ है तो... पर उसके साथ... बहन भाई का रिस्ता है...
रुप - यानी अपनी बहन से.. तु या तुम कह सकते हो...
विश्व - देखिए.. तु या तुम... करीबियों से कह सकते हैं... या फिर दुश्मनों से... पर आप में सम्मान होता है... और आप तो सम्मान के हकदार हो... लायक हो...
रुप - (ख़ामोश हो जाती है और वहाँ से जाने लगती है)
विश्व - नंदिनी जी...
रुप - (पीछे मुड़ कर) जी... कहिए.. क्या कहना चाहते हैं आप...
विश्व - अरे... आप मुझे आप क्यूँ कह रहे हैं...
रुप - आप मुझे आप कहें... और मैं आपको तुम कहूँ... ठीक नहीं लगता... आप भी तो सम्मान के अधिकारी हैं...
विश्व - पर मुझे आपसे तुम सुनना अच्छा लगता है... अगर आप मुझे आप कहेंगी... तो... मुझे लगेगा आप नाराज हैं...
रुप - हमें जो देखेंगे... सुनेंगे.. वह क्या सोचेंगे.. लड़का कितना तहजीब वाला है और लड़की.. लड़की कितनी घमंडी है...
विश्व - ऐसा भी तो सोच सकते हैं... की लड़की कोई राजकुमारी है... और लड़का एक आम... (कहते कहते रुक जाता है, और मन ही मन खुद को कोसने लगता है) अबे क्या कर रहा है... यह नंदिनी हैं.. राजकुमारी नहीं...

रुप को भी राजकुमारी सुन कर झटका सा लगता है l खुद को संभालते हुए

रुप - क्क्क्या... क्या कहा...
विश्व - (खुद को संभाल कर) वह.. आपकी एपीयरेंस ही ऐसी है... आपको कोई राजकुमारी होनी चाहिए... (रुप वहाँ से जाने लगती है) नंदिनी जी...
रुप - (फिर से रुक कर) अब क्या है...
विश्व - आपने बताया नहीं... सुकुमार अंकल से आप क्या बातेँ कर रही थीं...
रुप - (एक गहरी सांस लेते हुए) प्रताप जी... आप अपना मोबाइल नंबर दीजिए... यह एक खास बात है... मैं आपको कॉल कर बताऊंगी...
विश्व - फोन पर क्यूँ... अभी क्यूँ नहीं...
रुप - अरे... अभी अभी तो आपने मुझे प्रमोट किया है... राजकुमारी जी के पोस्ट पर... एक राजकुमारी में इतनी एटीट्यूड तो होनी ही चाहिए...
विश्व - फिर आपने मुझे डेमोशन क्यूँ दे दिया... तुम से आप कह कर...
रुप - यह भी मैं फोन पर बताऊँगी...
विश्व - नंदिनी जी... नंदिनी जी... (पुकारता रह जाता है)
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update.....
 
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