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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Last edited:

Prashant gautam

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Bhaisaab mja aa gya .
Aapki story XF ki one of the best hai
Mai to phle update se hi fanho gya tha aapka .
Vese kal ka or aaj wala dono update hi saandar the . Har caracter ki aoni ek dilchasp kahani hai .. ab dkhte hai aage kya hota hai .. fingers crossed
 

Kala Nag

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Bhaisaab mja aa gya .
Aapki story XF ki one of the best hai
Mai to phle update se hi fanho gya tha aapka .
Vese kal ka or aaj wala dono update hi saandar the . Har caracter ki aoni ek dilchasp kahani hai .. ab dkhte hai aage kya hota hai .. fingers crossed
बहुत बहुत धन्यबाद मित्र
आपको पसंद आ रहा है
यही बहुत है
कहानी में चरित्रों को स्थापित करना बहुत ही जरूरी है
क्यूंकि आगे चरित्रों के मध्य द्वंद और टकराव होगा
इसलिए हीरो को उनसे भी बेहतर होना पड़ेगा
 

Kala Nag

Mr. X
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👉तेईसवां अपडेट
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कुछ दिनों बाद
राजगड़ में अपने घर के बाहर बरांदे पर दीवार के सहारे टेक लगा कर वैदेही बैठी हुई है l तभी गांव की एक औरत प्रमिला अपने बेटे गुल्लु को मारने के लिए भाग रही है l गुल्लु भागते हुए वैदेही के पास आता है l

गुल्लु - मौसी... मौसी बचाओ... मुझे.. (कह कर वैदेही के पीछे छुप जाता है)
प्रमिला वैदेही के पास नहीं आती, वह वैदेही से थोड़ी दूर खड़ी हो कर
प्रमिला - ऐ... गुल्लु... बाहर आ...
वैदेही - थोड़ी देर इसे यहीं रहने दे ना प्रमिला....
प्रमिला - देख वैदेही... तेरा एक साल के लिए और तेरे भाई का... पांच साल के लिए इस गांव के बड़ो ने, तुम लोगों का हुक्का पानी बंद करा रखा है..... मुझे अगर किसीने तुझसे बात करते देख लिया.... तो तु जानती है.... हमारा भी हुक्का पानी बंद हो सकता है.... इसलिए तु गुल्लु को भेज दे... मैं हाथ जोड़ती हूँ....
यह सुनकर वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l अपना सर हिलाते हुए और अपनी आँखों से आँसू पोछने के बाद, वैदेही - ठीक है प्रमिला तु जा यहाँ से... मैं कुछ देर बाद गुल्लु को तेरे पास भेज दूंगी....
प्रमिला - ठीक है वैदेही.... मैं जाती हूँ... और माफ कर देना मुझे... तेरी इस दुख की घड़ी में.... तेरा साथ नहीं दे पा रही हूँ...
वैदेही - कोई बात नहीं... इतना कह कर वैदेही चुप हो जाती है l प्रमिला वहाँ से अपने घर चली जाती है l वैदेही अपने पीछे से गुल्लु को खिंच कर बाहर लाती है और पूछती है,
वैदेही - क्यूँ रे... क्यूँ अपने माँ को परेशान कर रहा है....
गुल्लु - कहाँ मौसी.... मैं तो अपने किताब में से एक सवाल पूछा.... बदले में माँ मेरी पिटाई करने उठ पड़ी... इसलिए मैं भी पिटाई से बचने के लिए..... वहाँ से भाग आया....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ऐसा क्या सवाल पूछ लिया तुमने... जो तेरी माँ को जवाब में... झाड़ु उठाना पड़ा....
गुल्लु - मौसी... हमारे किताब में लिखा है... हमारे राज्य में... बारह मास में.. तेरह पर्व मनाते हैं... और जिन जिन पर्व के दिन हमें छुट्टी दी जाती है.... वह हम अपने गांव में क्यूँ नहीं मनाते... जिस तरह किताबों में लिखा है....
वैदेही - (कुछ देर शुन हो जाती है) कौन कौन से पर्व गुल्लु....
गुल्लु - जैसे गणपति पूजा, रथयात्रा, दशहरा, दीवाली, होली..... हमारे गांव में यह सब क्यूँ नहीं मनाया जाता है....
गुल्लु यह सवाल सुन कर वैदेही को कुछ ज़वाब नहीं सूझती है l
गुल्लु - बोलो ना मौसी.. जैसे किताबों में लिखा है... हमारे यहां वैसे क्यूँ नहीं मनाया जाता....
वैदेही - क्यूँ के हमारे राजगड़ में... भगवान वनवास में हैं... जैसे राम जी वन वास हुआ था ना... और राम जी तो चौदह वर्ष के बाद आ गए थे.... पर हमारे भगवान.... देखना एक दिन जरूर आयेंगे.... जरूर आयेंगे (उसके गालों को सहलाते हुए) और तु ज़रूर देखेगा.. अब जा अपने माँ के पास...
गुल्लु वहाँ से चला जाता है, उसी वक़्त एक डाकिया आकर एक रजिस्ट्री चिट्ठी दे कर वैदेही से दस्तख़त ले कर चला जाता है l

वैदेही चिट्ठी खोल कर पढ़ती है और पढ़ते पढ़ते खुशी से झूम उठती है l वह तुरंत बरंदा से उठ कर घर के अंदर जाती है और घर के मंदिर में माथा टेकती है l फिर अपने कुछ सामान पैकिंग कर घर में ताला लगा कर बाहर निकल जाती है राजगड़ की बस स्टैंड की ओर l
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विक्रम अपने कमरे में बैठा खिड़की की ओर देखते हुए, एक अंगुठी को अपने उंगली में घुमा रहा है और किसी ख़यालों में खोया हुआ है l तभी उस कमरे में इंटरकॉम बजने लगती है तो उसका खयाल टूटता है, वह इंटरकॉम उठाता है l

- युवराज...
विक्रम - जी छोटे राजा जी.....
पिनाक - आप हमारे कमरे में आने का कष्ट करेंगे... ब्रोकर आया है... प्लॉट और घर की बात करने....
विक्रम - जी अभी उपस्थित हो रहे हैं....
विक्रम इंटरकॉम रख देता है और उठ कर पिनाक के कमरे की ओर चला जाता है l पहुंच कर देखता है, दरवाजा खुला है l
पिनाक - (अंदर से) आइए युवराज.... आइए... आपका ही इंतजार हो रहा है....
विक्रम अंदर आकर देखता है एक आदमी अपने काख के नीचे एक काला बैग दबाये खड़ा है और उसके हाथ में एक फाइल भी है l विक्रम सीधे जा कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम के बैठते ही,
ब्रोकर एक घर की कुछ फोटोस् रख देता है, और कहता है - युवराज जी.... यह देखिए... यह भुवनेश्वर के राज भवन से दस किलोमीटर दूर ***विहार में है.... इस घर में एक बुढ़े दंपति रहा करते थे.... पिछले साल उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे.... जो विदेश में सेटलड हैं... उन्होंने मुझे इसे बेचने को कहा है... यह घर और इसके आसपास के जगह पूरे डेढ़ एकड़ का है....
विक्रम - ह्म्म्म्म अच्छी जगह है....इलाक़ा भी काफी पॉश इलाक़ा है.... आपको आर्किटेक्चर को भी साथ लेकर आना चाहिए था... ब्रोकर महाशय...
ब्रोकर - युवराज जी... उसे भी लाया हूँ.... वह नीचे लॉबी में बैठा हुआ है....
विक्रम - तो फिर... उसे नीचे क्यूँ छोड़ आए...
ब्रोकर - वो... अगर... आपको यह घर... पसंद ना आता... तो उसका यहाँ होना बेकार हो जाता.....
विक्रम - ठीक है... बुलाओ उसे....
ब्रोकर अपना मोबाइल निकाल कर किसीको फोन मिलाता है, और फोन पर उसे ऊपर कमरा नंबर *** को आने को कहता है l कुछ देर बाद एक अधेड़ उम्र का आदमी उस कमरे में आता है l सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है l
विक्रम - आइए... आर्किटेक्चर जी... आपको इस घर में कुछ बदलाव करने हैं....

आर्किटेक्चर - जी युवराज जी... कहिए आपको क्या चाहिए... मैं आपको डिजाइन बना कर जल्दी ही आपकी सेवा में पेश करूंगा....
विक्रम - हम... राजवंशी हैं.... महलों की आदत है हमे... इसलिए... ध्यान रहे घर, बाहर से चाहे कैसा भी दिखे.... पर अंदर से महल जैसी फिलिंग आनी चाहिए....
आर्किटेक्चर - जी... युवराज...
विक्रम - हाँ.. जैसे कि एक राज महल में होता है... दिवान ए खास यानी प्राइवेट ड्रॉइंग रूम और दिवाने आम यानी पब्लिक मीटिंग हॉल... ऐसा इस घर में एक्स्ट्रा बनाएं.... जो इस घर से अटैचड हो...
आर्किटेक्चर - जी युवराज और....
विक्रम - एक जीम भी कुछ ऐसे डिजाइन करो.....बाहर के लोग अगर हॉल के वजाए जीम में मिलना चाहे तो.... बाहर से प्रवेश करें और... घर के लोग अंदर से....
आर्किटेक्चर - जी बेहतर...
विक्रम - कितने दिन में प्लान दे सकते हैं....
आर्किटेक्चर - युवराज जी... अभी तक मैंने सिर्फ पेपर और फोटो में घर को देखा है.... मुझे ऑन द स्पॉट जाकर... आईडीआ लेनी होगी.... फिर कम से कम दस या पंद्रह दिन...
विक्रम - (दोनों से) ठीक है आप दोनों आपस में तालमेल बिठा कर.... प्रॉपर्टी हैंडओवर और डिजाइन फाइनल कर आज से पंद्रह दिन बाद यहाँ पर आयें....
दोनों - जी बेहतर... (कह कर दोनों चले जाते हैं)
पिनाक - क्या बात है युवराज... आजकल आप जितनी तेजी से काम कर रहे हैं... उतने ही खोए खोए रहने लगे हैं....
विक्रम अपनी उंगली में पहने उस अंगुठी को देखते हुए
विक्रम - नहीं तो...
पिनाक - यह अंगुठी... आपके हाथ में.. कब ली...
विक्रम - हाल ही में बनवाया है...
पिनाक - ह्म्म्म्म मोती की लगती है.... कोई खास मोती है क्या...
विक्रम - बहुत ही खास... जब से यह मेरी जिंदगी में आयी है... सारे काम सिर्फ हो ही नहीं रहे हैं.... बल्कि दौड़ रहे हैं....
पिनाक - ह्म्म्म्म तो यह बात है.... लकी पर्ल है...
विक्रम - (हंसता है, और कहता है) पर्ल नहीं है... प्लास्टिक फाइबर की है....
पिनाक - (हैरान हो कर) व्हाट....
विक्रम - पर यह हमारे लिए कोहिनूर से भी महंगा है...
पिनाक - क्या.... एक मामूली सी प्लास्टिक फाइबर...

विक्रम - (बीच में टोक कर) यह मेरी लकी चार्म है.....
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वैदेही बस से कटक में पहुंच कर एक ऑटो से सीधे हाईकोर्ट के पास एक एक छोटे से घर में पहुंचती है l उस घर के दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा हुआ है l उस नेम प्लेट में नाम - 'जयंत कुमार राउत ' लिखा हुआ है l पर वैदेही को कॉलिंग बेल कहीं नहीं मिलती तो दरवाजा खटखटाती है l
अंदर से आवाज़ आती है
- सुश्री वैदेही महापात्र अंदर आ जाइए....
वैदेही हैरानी के साथ दरवाजे को धक्का दे कर अंदर आती है l अंदर एक अधेड़ उम्र का एक आदमी साधारण वेश भूसा में बेंत के सोफ़े पर बैठ कर कुछ फाइलें चेक कर रहा है l वह आदमी अपना चश्मा दुरुस्त करता है और वैदेही की ओर देखता है l
आदमी - आइए वैदेही जी आइए....
वैदेही - आप...
आदमी - मैं ही हूँ जयंत... हैरान मत होइए... मैं आपके यहां आने के बारे में... कैसे इतनी सटीकता से जान गया....
वैदेही - जी....
आदमी - बैठिए... क्यूंकि मैं अपने घर में.. केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था....
बेंत की चेयर को दिखा कर वैदेही को बैठने लिए कहता है पर वैदेही बैठने के लिए झिझकती है l
जयंत - वैदेही जी... यह मेरा गरीब खाना है.... और सरकार ने मुझे आपके भाई के तरफ से लड़ने के लिए नियुक्त किया है.... मैंने ही आपको रजिस्ट्री के जरिए लेटर किया था... आपसे भेंट करने के लिए....
वैदेही - जी आपके मिले चिट्ठी से... मुझे मालुम हो गया था...
जयंत - फिर आपको झिझक किस बात की है....
वैदेही चुप रहती है, शायद जयंत उसकी झिझक को समझ जाता है l
जयंत - वैदेही जी... बेशक यह केस बहुत बड़ा है.... पर मेरे क़ाबिलियत पर शक ना करें... वैसे मैं कोई सेल्स मैन तो नहीं हूँ... जो अपनी प्रोडक्ट सर्विस की ग्यारंटी दूँ.... पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ.... मैं अपना सौ फीसद दे कर आपके भाई को बचाने के लिए प्रयास करूँगा.... और वैदेही जी... मैं वकील बड़ा घर या गाड़ी वाला नहीं हूँ... पर विश्वास रखें... बहुत बड़ा नाम वाला, बहुत बड़ा जिगर वाला हूँ....
वैदेही अपना झिझक को थोड़ा कम करते हुए बैठ जाती है l
वैदेही के बैठने के बाद,
जयंत - मेरे यहाँ वैसे कोई नहीं आता.... जो अभी आया है..... उसे मैंने ही बुलाया है... इसलिए आपने दस्तक दी... तो मैं यह समझ गया आप ही होंगी....
वैदेही - ओ...
जयंत - (फाइलों पर ध्यान गडाते हुए) आप मेरे वेश भूसा या परिधान पर मत जाइए.... आपके भाई के केस के प्रति मैं ईमानदार रहूँगा.... बस इतना ही कह सकता हूँ...
यह सुनने के बाद, वैदेही एक उम्मीद भरी नजरों से जयंत को देख कर अपनी होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
जयंत - तो.... वैदेही जी... जैसे ही मुझे सरकारी आदेश प्राप्त हुआ... मैं तुरंत अपने काम में लग गया... और मैंने इस केस के संबंधित सारे कागजात हासिल किए.... जिन्हें पुलिस के चार्ज शीट के आधार पर... प्रोसिक्यूशन के वकील ने अभियोजन पक्ष के तरफ से तैयार कर कोर्ट में दाख़िल किए थे....
वैदेही - जी...
जयंत - आपको क्या लगता है.... वैदेही जी... आपके केस लेने से सारे वकील मना क्यूँ करने लगे.....
वैदेही - सभी यह समझ रहे हैं... की हमारे पास पैसे हैं.. और हमसे उन पैसों में से अपना हिस्सा मांग रहे थे....
जयंत - ह्म्म्म्म स्वाभाविक है.... यह सच भी है.... पर इस सच का और एक दूसरा पक्ष भी है....
वैदेही - (हैरानी से जयंत को देखते हुए) जी....दूसरा....
जयंत - जी हां वैदेही जी.... यह केस नहीं है... एक आग का गोला है... जिससे हाथ ही नहीं... पुरा कैरियर भी जल सकता है... इसलिए इस केस से ज्यादतर वकीलों ने दूरी बनाना.. अपने लिए सही समझा....
वैदेही चुप रहती है, जयंत उससे कुछ ज़वाब ना पा कर,
जयंत - वैदेही जी... मैंने कुछ कहा...
वैदेही - जी...
जयंत - खैर... अब मैं इस केस के बावत... चंद सवालात आपसे करूंगा... और आप मुझे.. सही सही ज़वाब दीजिएगा....
वैदेही - जी पूछिए...
जयंत एक डायरी निकालता है और उसमें कुछ लिखता है, फ़िर एक छोटा सा टेप रिकार्डर निकल कर वैदेही के सामने रख देता है l
जयंत - हाँ तो वैदेही जी... आपके भाई.. श्री विश्व प्रताप महापात्र कहाँ तक पढ़े लिखे हैं....
वैदेही - जी वह इंटर में टॉप लिया था पूरे यश पुर में....
जयंत - ग्रैजुएशन क्यूँ नही कि....
वैदेही - राजगड़ में कोई कॉलेज नहीं है.... इसलिए उस प्रांत में कोई भी ग्रैजुएट नहीं हैं...
जयंत - क्यूँ... कोई दूर जा कर... उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की... किसीने...
वैदेही - राजगड़ में... ग्रैजुएट होना केवल राज परिवार का अधिकार है...
जयंत - ओ... अच्छा... अगर कोई ग्रैजुएशन करना चाहे तो...
वैदेही - तो उसे राजगड़ छोड़ना पड़ेगा.... और राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना पड़ेगा..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही जी... आपका भाई गांव में सरपंच बनने से पहले क्या करते थे....
वैदेही - हमारी आमदनी अपने खेतों से हो जाती थी.... और कभी कभी राजा साहब जी घर में भी काम करता था...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा विश्व जी को सरपंच बनने का खयाल कैसे आया....
वैदेही - आया नहीं था वकील साहब... उसके दिमाग में डाला गया था...
जयंत - डाला गया था... मतलब...
वैदेही - एक दिन राजा साहब ने उसे... महल से उसके लिए बुलावा भेजा.... जब वह पहुंचा तो... गांव की बेहतरी के लिए उसे सरपंच बनने को कहा....
जयंत - ओ... तो यहाँ भी राज परिवार... ह्म्म्म्म
वैदेही - हाँ.... वकील साहब.... विश्व की नॉमिनेशन फाइल के वक्त राजा साहब उसके प्रॉपोजर भी थे....
जयंत - वाव... इंट्रेस्टिंग... अच्छा... वैदेही जी... चलिए एक काम करते हैं....
वैदेही उसे सवालिया दृष्टि से देखती है l
जयंत - हम अभी के अभी... सेंट्रल जैल जाएंगे.... और आपकी उपस्थिति में विश्व जी से भी कुछ जानकारी हासिल करेंगे.... फिर उसके बाद आप अपने गांव चले जाइएगा... और सुनवाई के दिन हाजिर हो जाइएगा.....
इतना कह कर अपने एक बैग में सारी फाइलें भर देता है l टेप रिकार्डर ऑफ कर देता है... और एक काले रंग के कोट निकाल कर पहन लेता है l वैदेही उसे हैरानी से देख रही है, कैसे अभी सवाल ज़वाब करने के बाद अचानक विश्व से मिलने भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार भी हो गया है l
जयंत - तो.. वैदेही जी चलें....
वैदेही - जी... जी चलिए....
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जैल में कुछ सिंटेक्स के पानी की टंकीयों के नीचे सिमेंट के फर्श पर विश्व, बालू के साथ मिल कर कबंल धो रहा है l एक संत्री उसके पास आता है और कहता है,
-विश्व, अरे ओ विश्व.....(विश्व उसकी आवाज सुनकर रुक जाता है) तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बुला रहे हैं...
विश्व कंबल धोने का काम बालू के हवाले कर संत्री के साथ तापस के चैम्बर में पहुंचता है l
तापस - हाँ ... विश्व.. आओ.. आओ... तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी वकील ले कर आई है...
विश्व - क्या...
तापस - क्यूँ.. तुम्हें खुशी नहीं हुई....
विश्व - (पसीने को पोछते हुए) खुशी.... पता... नहीं...
तापस - वह एक नामी और माने हुए वकील हैं.... तुम्हारे लिए सरकार के तरफ से नियुक्त किए गए हैं.... उनकी हमे खास हिदायत है... के वह , तुम्हारी और तुम्हारी दीदी के साथ मीटिंग करेंगे... अकेले में... इसलिए मैंने तुम लोगों की मीटिंग की अरेंजमेंट उपर लाइब्रेरी में कर दिया है....
विश्व कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ अपना सिर हिला कर तापस की ओर देखता है l
तापस - अरे... वे लोग तुम्हारा लाइब्रेरी में इंतजार कर रहे हैं... और तुम्हारे वकील साहब का स्ट्रिक्टली इंस्ट्रक्शन है... वहाँ पर तुम तीनों के अलावा कोई और ना हो.... इसलिए तुम खुद लाइब्रेरी में अकेले जाओ...
विश्व फिर मुड़ कर लाइब्रेरी की ओर जाता है l उपर पहुच कर देखता है, लाइब्रेरी में टेबल के एक तरफ वैदेही और बीच में एक आदमी काले कोट में बैठा हुआ है l विश्व दरवाजे के पास रुक जाता है,
जयंत - आओ विश्व आओ.... मेरा नाम जयंत कुमार राउत है.... सरकार ने मुझे ही, इस साढ़े सात सौ करोड़ घोटाले की अदालती कार्यवाही में..... तुम्हारी पैरवी करने के लिए नियुक्त किया है.....
विश्व यह सुनकर जयंत को हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है,
जयंत - हमारे यहाँ आने की कारण... तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बता चुके होंगे....
विश्व अपना सर हिला कर हामी भरता है l
जयंत - अरे.. यहाँ आकर बैठो... कब तक खड़े रहोगे...
विश्व आकर दोनों के पास बैठ टेबल के दुसरे तरफ बैठ जाता है l
जयंत - हाँ.. तो विश्व... अभी तुम राज्य में बहुत मशहूर व्यक्तित्व हो चुके हो... जानते ही होगे.... अब चौबीसों घंटे.... तुम्हारे सुरक्षा के लिए.... तुम्हारे आगे पीछे पुलिस... घर घर में... चर्चा में रखने के लिए मीडिया वाले... और तुम्हें गाली दे दे कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए पालिटिसियन... सब तुम्हारे ही कारण व्यस्त हैं...
विश्व को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगता, उसकी सांसे भारी होने लगती है, नथुनों से जोर जोर से सांस लेने की कोशिश करता है, बड़ी मुश्किल से अपना रुलाई रोके रखता है l
अपनी पैनी दृष्टि से विश्व के हालात को गौर कर रहा है जयंत l वैदेही की भी अनुरूप हालत है l
जयंत - रिलैक्स विश्व... रिलैक्स... तुम्हें अदालत में.. इससे भी ज्यादा तीखे तानों से और सवालों का सामना करना पड़ेगा...
विश्व खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l
जयंत - हाँ तो विश्व... केस पर चर्चा करें....
विश्व अपना भारी सर हिलाकर हामी भरता है l
जयंत - विश्व... मुझे तुम अपने पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर कुछ कहो...
विश्व - (जयंत को बिना देखे) मेरे पिताजी का नाम स्वर्गीय श्री रघुनाथ महापात्र है... और माता जी का नाम स्वर्गीय सरला महापात्र है.... और यह जो यहाँ बैठी हैं... वह मेरी बड़ी बहन सुश्री वैदेही महापात्र है....
जयंत - हाँ... इनके बारे में जानकारी है मुझे...
विश्व - मेरे पिता यशपुर इरिगेशन डिपार्टमेंट में क्लर्क थे.... वे राजगड़ में इसी सिलसिले में ट्रांसफर हो कर आए थे... उनके समय में एक नहर का काम शुरू हुआ.... जब मैं तेरह वर्ष का था... तभी वह इस संसार को छोड़ कर चले गए...उसके बाद...
जयंत - ह्म्म्म्म मतलब छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए.... तो तुमने इंटर कैसे पूरा किया...
विश्व - उमाकांत आचार्य सर के वजह से... वे हमारे पाइकपडा वार्ड में हमारे ही पड़ोसी और पारिवारिक मित्र थे...
जयंत - थे मतलब...
विश्व - जी वे हमारे पंचायत समिति के सभ्य भी थे.... पर मेरे सरपंच बनने के तीन महीने बाद ही... नदी किनारे में सांप के काटने से चल बसे....
जयंत - ओह... अछा... ह्म्म्म्म... हाँ... तुम दोनों अपने पिता के गुजरने के बाद.... गुजारा कैसे किया....
विश्व, वैदेही को देखता है l वैदेही कुछ ऑन-कंफर्टेबल सी दीखने लगती है l
विश्व - (जयंत के आँखों में देखते हुए) जी मैं बाबा के गुजर जाने के बाद... राजा साहब के यहाँ काम कर अपना गुजारा करता था....
जयंत - ओ... ह्म्म्म्म... तो तुम राजा साहब जी के मुलाजिम थे....
विश्व - जी... पर पिछले दो सालों से नहीं....
जयंत - क्यूँ..... जब कि वह तो चुनाव में तुम्हारे प्रपोजर थे....
विश्व - जी बस.. मैं अपने खेतों में काम कर आत्मनिर्भर बनना चाहता था....
जयंत - ओ... अच्छा... आत्मनिर्भर... ह्म्म्म्म फिर यह इलेक्शन लड़ने का विचार कैसे आया....
विश्व - वह राजा साहब ने एक बार महल बुला कर... खड़े होने के लिय समझाया था....
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... वैसे... क्या समझाया था..
विश्व - यही के... तुम युवक हो.... इसलिए अब तक विकास से महरूम... अपने गांव के विकास के लिए आगे आना चाहिए....
जयंत - ओ... इसलिए तुम आगे आए... और इतने आगे निकल गए.... के सब अब तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं... ह्म्म्म्म...
च्छा... तुम्हारा नॉमिनेशन पेपर में सेकंडर कौन था....
विश्व - जी आचार्य सर... मतलब... उमाकांत आचार्य सर....
जयंत - हाँ... जो आगे चलकर... सांप के काटने से... सिधार गए.... ह्म्म्म्म... वैसे विश्व... तुमने ग्रैजुएशन क्यूँ नहीं की....
वैदेही कुछ कहने को होती है, पर जयंत अपना हाथ दिखा कर वैदेही को कहने से रोक देता है l
विश्व - हमारे राजगड़ में डिग्री कॉलेज नहीं है.... और जिसे डिग्री चाहिए होता है.... उसे राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना होता है...
जयंत - क्यूँ.. ऐसा क्यूँ...
विश्व - डिग्री पढ़ने का और हासिल करने का सिर्फ एक ही परिवार को हक़ है... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार का... किसी भी क्षेत्र में कोई भी राजगड़ वासी क्षेत्रपाल परिवार के बराबरी पर नहीं आने चाहिए.....
जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है.....
विश्व - पर मैंने करेसपंडिंग में इग्नू के जरिए बीए की शुरुआत कर ली थी....
जयंत - क्या... कब... पर तुम्हारे पंचायत चुनाव के डीक्लेयर फॉर्म में क्वालिफीकेशन कॉलम में इंटर विज्ञान भरा है...
विश्व - जी इसलिए.. क्यूँ की तब मैं इग्नू में केवल जॉइन हुआ था....
जयंत - ह्म्म्म्म... ठीक है... विश्व... मुझे जो जानना था... मैंने जान लिया... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों भाई बहन हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं,
वैदेही - यह... यह क्या वकील साहब.... अपने तो विश्व से कुछ पूछा ही नहीं.... उसके अतीत के बारे में... उसके साथ हुए धोखे और अत्याचार के बारे में....
जयंत - (एक दम से भाव हीन तरीके से) मुझे किसकी कहानी को जानने में... कोई दिलचस्पी नहीं है.... क्यूंकि मैं नहीं चाहता... अपने क्लाइंट के प्रति सम्वेदना या सहानुभूति रखूं.... या फिर इमोशनली अटैच होऊँ...
वैदेही का चेहरा मुर्झा जाता है, और उसका सर दुख के मारे झुक जाती है l
जयंत - देखो.... कानून अंधा होता है.... उसे न्याय के लिए सबूत और गवाह चाहिए.... मैंने विश्व के खिलाफ चार्ज शीट से लेकर सबूत और गवाहों के रिकॉर्ड किए गए बयान देख व पढ़ चुका हूँ... और यक़ीन मानो... विश्व के विरुद्ध इतने संगठित रूप से कागजीय सबूतों को बनाया गया है.. (इतना कह कर जयंत अपने कुर्सी से उठ जाता है)
की विश्व इस केस में अभिमन्यु बन चुका है... हमारे पास कोई सबूत नहीं है... केवल और केवल दलीलें हैं.... जिनके आधार पर सबूतों को और गवाहों को झुठलाना है....पर विश्व... मैं.. तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूँ... के मैं पूरी कोशिश करूंगा....
वैदेही और विश्व जयंत को सुन रहे थे l वैदेही से अब रहा नहीं जाता, वह गुस्से में मायूसी के साथ रोते हुए,
वैदेही - वकील साहब... आप विश्व से मिले... क्या जाना... उसके बारे में... के उसके घर घर में चर्चे हैं... इसलिए के उसने साढ़े सात सौ करोड़ रुपए लुटे हैं... पुलिस उसके हिफाज़त में आगे पीछे दौड़ रही है... इसलिए , की वह साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का लुटेरा है.... राजनीतिक गलियारों में विश्व को सजा देने के लिए होड़ लगी हुई है... क्यूँ... इसलिए कि विश्व साढ़े सात सौ करोड़ लुटा है.... मैं... दर दर भटकती रही... वकील तलाश करती रही... और सरकार ने आपको मेरे विश्व के लिए नियुक्त किया... क्या यह सुनने के लिए.... की विश्व की हालत अभिमन्यु जैसे है.... (वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है) यह मेरा भाई ही नहीं मेरा बेटा भी है..... आपसे कुछ उम्मीद थी... पर....
जयंत - उम्मीद... मुझसे... क्यूँ... किसलिए.... क्यूंकि मैं विश्व का वकील हूँ इसलिए.....
जयंत दोनों को देखता है और वे दोनों भी जयंत को देखते हैं फिर,
जयंत - मैंने तुम्हें पहले ही कहा था... की मैं कोई सेल्स मैन नहीं हूँ... जो किसी प्रोडक्ट की सर्विस की ग्यारंटी देता फिरूँ...
और विश्व के बारे में मुझे क्या जानना चाहिए... यह तुम मुझे बताओगी..... वैसे तुम यह अपनी रोना रो रो कर दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो... के दुनिया में... सबसे दुखी आत्मा तुम हो.... ताकि दुनिया की ध्यान तुम्हारी तरफ हो जाए... लोग तुम्हारे दुख से दुखी हो कर, आह.. आ.. ओह.. ओ... चु चु... करे... अरे इसका मतलब तो यह हुआ... की तुम लोग दुनिया वालों से सिंपथी चाहते हो... ना कि न्याय....
यह बात सुन कर वैदेही चुप हो जाती है और उसके साथ विश्व भी शुन हो जाता है l
जयंत - विश्व पर इल्ज़ाम संगीन है... सबूत और गवाह भरपूर है.... पर विश्व या तुम्हारे पास है क्या.... सिवाय अपना दुखड़ा रोने और दिखाने के..... मैं यहां सिर्फ़ अपने तरफ से विश्व को परख ने आया था.... और विश्व ने अपने आचार व विचार से प्रभावित किया है... मैंने उसे उसके माँ बाप के बारे में पूछा.... तो उसने भले ही स्वर्गीय शब्द लगाया पर उनके लिए हैं कहा..... थे कहीं पर भी नहीं कहा... थे शब्द सिर्फ़ आचार्य सर के लिए कहा था... बस यही काफी था... मेरे लिए... उसकी भावनाओं को समझने के लिए....
जयंत इतना कह कर चुप हो गया और दोनों के तरफ देखने लगा l दोनों जयंत को देख ऐसे आँखे फाड़े देख रहे थे जैसे आश्चर्य चकित हो कर सुन नहीं देख रहे हो l
जयंत - देखो विश्व... इस दुनिया में उम्मीद सिर्फ़ खुद से रखो... और विश्वास भी तुम खुद पर करो.... क्यूंकि किसको अपना समझ कर उम्मीद या विश्वास लगाए बैठोगे... तो जब दोनों टूटेंगी.... तब तुम भी टूट जाओगे.... जरा सोचो.. जिन्होंने तुमसे दुश्मनी करते हुए... तुमको फंसाया है... वह निस्संदेह बहुत ताकतवर हैं... पर तुम कहां से कम हो उनसे.... अगर तुम ताकतवर ना होते... क्या तुम उनसे टकराते.... उनको तुम्हारे भीतर के ताकत का अंदाजा है.... पर तुम्हें क्यूँ नहीं है....
विश्व और वैदेही जयंत को शांत हो कर सुन रहे हैं l लाइब्रेरी में शांति ऐसी छाई है जैसे बर्षों से उस कमरे में कोई नहीं है l
जयंत - अंत में विश्व... मैं यह फ़िर से कहूँगा.... तुम्हारे लिए... मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ....तुम चाहो तो... सरकार से वकील बदलने के लिए दरख्वास्त कर सकते हो....
विश्व - (एक आत्मविश्वास भरे स्वर में) नहीं... बिल्कुल नहीं.... वकील साहब...अब अंजाम चाहे कुछ भी हो... मेरा यह केस... अब आप ही लड़ेंगे....
जयंत - तुम फिर सोच लो....
वैदेही - नहीं वकील साहब नहीं.... आपने ठीक कहा.... कमजोरों की तरह... हम अपनी आँसू और ज़ख़्म दिखा कर... दुनिया से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं.... लेकिन अब और नहीं.... अब अंजाम जो चाहे हो.... अब हमे सहानुभूति नहीं चाहिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... वकील साहब...
जयंत - ठीक है... वैदेही... मेरा यहाँ काम समाप्त हो चुका है.... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों - जी वकील साहब
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टीवी पर न्यूज चल रही है,
"आज मंत्रालय में कैबिनेट की अहम बैठक हुई.... जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अब राजगढ़ मनरेगा घोटाले पर सुनवाई.... बिना देरी के अदालती कार्यवाही को लगातार करवाने पर चर्चा हुइ.... इस बाबत कैबिनेट में पास हुई यह प्रस्ताव को तुरंत राज्यपाल जी तक पहुंचा दिया गया है.... अब जानकार कह रहे हैं... उच्च न्यायालय को कल तक राज्यपाल जी से पत्र मिल जाएगा.... और हमारे सूत्रों के अनुसार अभियुक्त विश्व के पक्ष रखने के लिए सरकार ने अपने क्षेत्र के अनुभवी वक़ील श्री जयंत कुमार राउत को नियुक्त किया है.... यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के वकील दोनों ही सरकारी हैं और दोनों के तर्को से न्यायलय में... न्याय की नई परिभाषा कैसे लिखी जाएगी..... "
प्रतिभा टीवी ऑफ कर देती है और बड़बड़ाने लगती है
- छी... इनकी न्यूज ब्रीफिंग देखो... ऐसे चटखारे लगा कर बोल रहे हैं... जैसे अगली कड़ी में सिमर अपने ससुराल में बिरियानी में कौनसी मसाला डालेगी....
प्रत्युष वहीं बैठा हुआ था, अपनी माँ को बड़बड़ाते देख हंसने लगता है l प्रतिभा देखती है कि प्रत्युष पेट पकड़ कर सोफ़े पर लोटपोट हो कर हंस रहा है l यह देख प्रतिभा और भी चिढ़ जाती है l
प्रतिभा - बड़ा हंस रहा है... मैंने कोई जोक मारा है क्या...
प्रत्युष - अरे माँ.... जहां तक मुझे मालूम है... आप कभी सास बहु वाली टीवी सीरिअल देखती नहीं है.... पर आज... आप ससुराल सिमर वाली सिमर की बिरियानी याद कर रहे हो... हो हो हो..
प्रतिभा - आगे कुछ भी बोला तो... ठीक है... इसबार रात को लेट आने पर अपने डैड को बुलाना... दरवाजा खोलने के लिए....
प्रत्युष - (अपनी जगह से उठ कर धर्मेंद्र के स्टाइल में) माँ... एक सिमर की बात क्या छेड़ दी... तुमने मुझे इतना पराया कर दिया.... क्या लगती है आखिर यह सिमर तुम्हारी.... जिसकी बिरियानी के ख़ातिर अपने बेटे को... उसके हिटलर बाप के हवाले कर रही हो...
इतने में किसीने पीछे से उसके कान पकड़ता है l
प्रत्युष - कौन है... देख नहीं रहे हो... राज माता शिवगामी से उनका सुपुत्र बाहुबली बात कर रहा है....
आवाज - मैं.. बाहुबली का हिटलर बाप बोल रहा हूँ...
प्रत्युष - डैड.... थोड़ा तो डरीये... झाँसी रानी के सामने उसके बेटे के कान खींचना... कितना बड़ा दुशाहस... है... जानते हैं...
तापस - वह तो बाद की बात है.... पहले यह बता... यह हिटलर किसका बाप है... बाहुबली का... या दामोदर का...
प्रत्युष - डैड... आह.. आप कान छोड़ोगे... तो बोलूंगा ना....
तापस कान छोड़ देता है l इनकी अब तक यह हरकत देख कर प्रतिभा हंस रही थी l
तापस - हाँ तो लाट साहब बोलिए... हिटलर किसका बाप था....
प्रत्युष - वह तो मुझे नहीं पता.... पर इतना जरूर पता है... बाहुबली का बाप कटप्पा नहीं था....
इतना कह कर प्रत्युष वहाँ से भाग कर अपने कमरे में घुस जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है l यह देखकर प्रतिभा की हंसी फुट जाती है l वह सोफ़े पर बैठ कर पेट पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगती है l तापस प्रतिभा को ऐसे देखता है जैसे उसने बेहत खट्टी इमली खा लिया हो l
तापस - देखा भाग्यवान.... आपका लाडला कैसे... मेरा टांग खिंच रहा है....
प्रतिभा - (सोफ़े से उठ कर तापस को गले लगा कर) इस जादू की झप्पी से... ठंडा हो जाइए सेनापति जी... कुछ देर पहले... मेरा मुड़ उखड़ा हुआ था.... आपके लाट साहब ने मुझे हंसाने के लिए ऐसा किया....
तापस - (प्रतिभा को गले से लगा कर) जानता हूँ... जान.... मैं भी तो उसकी नटखट ठिठोलीयों के लिए यह सब करता हूँ...
प्रतिभा - भगवान उसे लंबी उम्र दे... वह बहुत नाम कमाए.... बस और कुछ नहीं...
 

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कुछ दिनों बाद
राजगड़ में अपने घर के बाहर बरांदे पर दीवार के सहारे टेक लगा कर वैदेही बैठी हुई है l तभी गांव की एक औरत प्रमिला अपने बेटे गुल्लु को मारने के लिए भाग रही है l गुल्लु भागते हुए वैदेही के पास आता है l

गुल्लु - मौसी... मौसी बचाओ... मुझे.. (कह कर वैदेही के पीछे छुप जाता है)
प्रमिला वैदेही के पास नहीं आती, वह वैदेही से थोड़ी दूर खड़ी हो कर
प्रमिला - ऐ... गुल्लु... बाहर आ...
वैदेही - थोड़ी देर इसे यहीं रहने दे ना प्रमिला....
प्रमिला - देख वैदेही... तेरा एक साल के लिए और तेरे भाई का... पांच साल के लिए इस गांव के बड़ो ने, तुम लोगों का हुक्का पानी बंद करा रखा है..... मुझे अगर किसीने तुझसे बात करते देख लिया.... तो तु जानती है.... हमारा भी हुक्का पानी बंद हो सकता है.... इसलिए तु गुल्लु को भेज दे... मैं हाथ जोड़ती हूँ....
यह सुनकर वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l अपना सर हिलाते हुए और अपनी आँखों से आँसू पोछने के बाद, वैदेही - ठीक है प्रमिला तु जा यहाँ से... मैं कुछ देर बाद गुल्लु को तेरे पास भेज दूंगी....
प्रमिला - ठीक है वैदेही.... मैं जाती हूँ... और माफ कर देना मुझे... तेरी इस दुख की घड़ी में.... तेरा साथ नहीं दे पा रही हूँ...
वैदेही - कोई बात नहीं... इतना कह कर वैदेही चुप हो जाती है l प्रमिला वहाँ से अपने घर चली जाती है l वैदेही अपने पीछे से गुल्लु को खिंच कर बाहर लाती है और पूछती है,
वैदेही - क्यूँ रे... क्यूँ अपने माँ को परेशान कर रहा है....
गुल्लु - कहाँ मौसी.... मैं तो अपने किताब में से एक सवाल पूछा.... बदले में माँ मेरी पिटाई करने उठ पड़ी... इसलिए मैं भी पिटाई से बचने के लिए..... वहाँ से भाग आया....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ऐसा क्या सवाल पूछ लिया तुमने... जो तेरी माँ को जवाब में... झाड़ु उठाना पड़ा....
गुल्लु - मौसी... हमारे किताब में लिखा है... हमारे राज्य में... बारह मास में.. तेरह पर्व मनाते हैं... और जिन जिन पर्व के दिन हमें छुट्टी दी जाती है.... वह हम अपने गांव में क्यूँ नहीं मनाते... जिस तरह किताबों में लिखा है....
वैदेही - (कुछ देर शुन हो जाती है) कौन कौन से पर्व गुल्लु....
गुल्लु - जैसे गणपति पूजा, रथयात्रा, दशहरा, दीवाली, होली..... हमारे गांव में यह सब क्यूँ नहीं मनाया जाता है....
गुल्लु यह सवाल सुन कर वैदेही को कुछ ज़वाब नहीं सूझती है l
गुल्लु - बोलो ना मौसी.. जैसे किताबों में लिखा है... हमारे यहां वैसे क्यूँ नहीं मनाया जाता....
वैदेही - क्यूँ के हमारे राजगड़ में... भगवान वनवास में हैं... जैसे राम जी वन वास हुआ था ना... और राम जी तो चौदह वर्ष के बाद आ गए थे.... पर हमारे भगवान.... देखना एक दिन जरूर आयेंगे.... जरूर आयेंगे (उसके गालों को सहलाते हुए) और तु ज़रूर देखेगा.. अब जा अपने माँ के पास...
गुल्लु वहाँ से चला जाता है, उसी वक़्त एक डाकिया आकर एक रजिस्ट्री चिट्ठी दे कर वैदेही से दस्तख़त ले कर चला जाता है l

वैदेही चिट्ठी खोल कर पढ़ती है और पढ़ते पढ़ते खुशी से झूम उठती है l वह तुरंत बरंदा से उठ कर घर के अंदर जाती है और घर के मंदिर में माथा टेकती है l फिर अपने कुछ सामान पैकिंग कर घर में ताला लगा कर बाहर निकल जाती है राजगड़ की बस स्टैंड की ओर l
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विक्रम अपने कमरे में बैठा खिड़की की ओर देखते हुए, एक अंगुठी को अपने उंगली में घुमा रहा है और किसी ख़यालों में खोया हुआ है l तभी उस कमरे में इंटरकॉम बजने लगती है तो उसका खयाल टूटता है, वह इंटरकॉम उठाता है l

- युवराज...
विक्रम - जी छोटे राजा जी.....
पिनाक - आप हमारे कमरे में आने का कष्ट करेंगे... ब्रोकर आया है... प्लॉट और घर की बात करने....
विक्रम - जी अभी उपस्थित हो रहे हैं....
विक्रम इंटरकॉम रख देता है और उठ कर पिनाक के कमरे की ओर चला जाता है l पहुंच कर देखता है, दरवाजा खुला है l
पिनाक - (अंदर से) आइए युवराज.... आइए... आपका ही इंतजार हो रहा है....
विक्रम अंदर आकर देखता है एक आदमी अपने काख के नीचे एक काला बैग दबाये खड़ा है और उसके हाथ में एक फाइल भी है l विक्रम सीधे जा कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम के बैठते ही,
ब्रोकर एक घर की कुछ फोटोस् रख देता है, और कहता है - युवराज जी.... यह देखिए... यह भुवनेश्वर के राज भवन से दस किलोमीटर दूर ***विहार में है.... इस घर में एक बुढ़े दंपति रहा करते थे.... पिछले साल उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे.... जो विदेश में सेटलड हैं... उन्होंने मुझे इसे बेचने को कहा है... यह घर और इसके आसपास के जगह पूरे डेढ़ एकड़ का है....
विक्रम - ह्म्म्म्म अच्छी जगह है....इलाक़ा भी काफी पॉश इलाक़ा है.... आपको आर्किटेक्चर को भी साथ लेकर आना चाहिए था... ब्रोकर महाशय...
ब्रोकर - युवराज जी... उसे भी लाया हूँ.... वह नीचे लॉबी में बैठा हुआ है....
विक्रम - तो फिर... उसे नीचे क्यूँ छोड़ आए...
ब्रोकर - वो... अगर... आपको यह घर... पसंद ना आता... तो उसका यहाँ होना बेकार हो जाता.....
विक्रम - ठीक है... बुलाओ उसे....
ब्रोकर अपना मोबाइल निकाल कर किसीको फोन मिलाता है, और फोन पर उसे ऊपर कमरा नंबर *** को आने को कहता है l कुछ देर बाद एक अधेड़ उम्र का आदमी उस कमरे में आता है l सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है l
विक्रम - आइए... आर्किटेक्चर जी... आपको इस घर में कुछ बदलाव करने हैं....

आर्किटेक्चर - जी युवराज जी... कहिए आपको क्या चाहिए... मैं आपको डिजाइन बना कर जल्दी ही आपकी सेवा में पेश करूंगा....
विक्रम - हम... राजवंशी हैं.... महलों की आदत है हमे... इसलिए... ध्यान रहे घर, बाहर से चाहे कैसा भी दिखे.... पर अंदर से महल जैसी फिलिंग आनी चाहिए....
आर्किटेक्चर - जी... युवराज...
विक्रम - हाँ.. जैसे कि एक राज महल में होता है... दिवान ए खास यानी प्राइवेट ड्रॉइंग रूम और दिवाने आम यानी पब्लिक मीटिंग हॉल... ऐसा इस घर में एक्स्ट्रा बनाएं.... जो इस घर से अटैचड हो...
आर्किटेक्चर - जी युवराज और....
विक्रम - एक जीम भी कुछ ऐसे डिजाइन करो.....बाहर के लोग अगर हॉल के वजाए जीम में मिलना चाहे तो.... बाहर से प्रवेश करें और... घर के लोग अंदर से....
आर्किटेक्चर - जी बेहतर...
विक्रम - कितने दिन में प्लान दे सकते हैं....
आर्किटेक्चर - युवराज जी... अभी तक मैंने सिर्फ पेपर और फोटो में घर को देखा है.... मुझे ऑन द स्पॉट जाकर... आईडीआ लेनी होगी.... फिर कम से कम दस या पंद्रह दिन...
विक्रम - (दोनों से) ठीक है आप दोनों आपस में तालमेल बिठा कर.... प्रॉपर्टी हैंडओवर और डिजाइन फाइनल कर आज से पंद्रह दिन बाद यहाँ पर आयें....
दोनों - जी बेहतर... (कह कर दोनों चले जाते हैं)
पिनाक - क्या बात है युवराज... आजकल आप जितनी तेजी से काम कर रहे हैं... उतने ही खोए खोए रहने लगे हैं....
विक्रम अपनी उंगली में पहने उस अंगुठी को देखते हुए
विक्रम - नहीं तो...
पिनाक - यह अंगुठी... आपके हाथ में.. कब ली...
विक्रम - हाल ही में बनवाया है...
पिनाक - ह्म्म्म्म मोती की लगती है.... कोई खास मोती है क्या...
विक्रम - बहुत ही खास... जब से यह मेरी जिंदगी में आयी है... सारे काम सिर्फ हो ही नहीं रहे हैं.... बल्कि दौड़ रहे हैं....
पिनाक - ह्म्म्म्म तो यह बात है.... लकी पर्ल है...
विक्रम - (हंसता है, और कहता है) पर्ल नहीं है... प्लास्टिक फाइबर की है....
पिनाक - (हैरान हो कर) व्हाट....
विक्रम - पर यह हमारे लिए कोहिनूर से भी महंगा है...
पिनाक - क्या.... एक मामूली सी प्लास्टिक फाइबर...

विक्रम - (बीच में टोक कर) यह मेरी लकी चार्म है.....
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वैदेही बस से कटक में पहुंच कर एक ऑटो से सीधे हाईकोर्ट के पास एक एक छोटे से घर में पहुंचती है l उस घर के दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा हुआ है l उस नेम प्लेट में नाम - 'जयंत कुमार राउत ' लिखा हुआ है l पर वैदेही को कॉलिंग बेल कहीं नहीं मिलती तो दरवाजा खटखटाती है l
अंदर से आवाज़ आती है
- सुश्री वैदेही महापात्र अंदर आ जाइए....
वैदेही हैरानी के साथ दरवाजे को धक्का दे कर अंदर आती है l अंदर एक अधेड़ उम्र का एक आदमी साधारण वेश भूसा में बेंत के सोफ़े पर बैठ कर कुछ फाइलें चेक कर रहा है l वह आदमी अपना चश्मा दुरुस्त करता है और वैदेही की ओर देखता है l
आदमी - आइए वैदेही जी आइए....
वैदेही - आप...
आदमी - मैं ही हूँ जयंत... हैरान मत होइए... मैं आपके यहां आने के बारे में... कैसे इतनी सटीकता से जान गया....
वैदेही - जी....
आदमी - बैठिए... क्यूंकि मैं अपने घर में.. केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था....
बेंत की चेयर को दिखा कर वैदेही को बैठने लिए कहता है पर वैदेही बैठने के लिए झिझकती है l
जयंत - वैदेही जी... यह मेरा गरीब खाना है.... और सरकार ने मुझे आपके भाई के तरफ से लड़ने के लिए नियुक्त किया है.... मैंने ही आपको रजिस्ट्री के जरिए लेटर किया था... आपसे भेंट करने के लिए....
वैदेही - जी आपके मिले चिट्ठी से... मुझे मालुम हो गया था...
जयंत - फिर आपको झिझक किस बात की है....
वैदेही चुप रहती है, शायद जयंत उसकी झिझक को समझ जाता है l
जयंत - वैदेही जी... बेशक यह केस बहुत बड़ा है.... पर मेरे क़ाबिलियत पर शक ना करें... वैसे मैं कोई सेल्स मैन तो नहीं हूँ... जो अपनी प्रोडक्ट सर्विस की ग्यारंटी दूँ.... पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ.... मैं अपना सौ फीसद दे कर आपके भाई को बचाने के लिए प्रयास करूँगा.... और वैदेही जी... मैं वकील बड़ा घर या गाड़ी वाला नहीं हूँ... पर विश्वास रखें... बहुत बड़ा नाम वाला, बहुत बड़ा जिगर वाला हूँ....
वैदेही अपना झिझक को थोड़ा कम करते हुए बैठ जाती है l
वैदेही के बैठने के बाद,
जयंत - मेरे यहाँ वैसे कोई नहीं आता.... जो अभी आया है..... उसे मैंने ही बुलाया है... इसलिए आपने दस्तक दी... तो मैं यह समझ गया आप ही होंगी....
वैदेही - ओ...
जयंत - (फाइलों पर ध्यान गडाते हुए) आप मेरे वेश भूसा या परिधान पर मत जाइए.... आपके भाई के केस के प्रति मैं ईमानदार रहूँगा.... बस इतना ही कह सकता हूँ...
यह सुनने के बाद, वैदेही एक उम्मीद भरी नजरों से जयंत को देख कर अपनी होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
जयंत - तो.... वैदेही जी... जैसे ही मुझे सरकारी आदेश प्राप्त हुआ... मैं तुरंत अपने काम में लग गया... और मैंने इस केस के संबंधित सारे कागजात हासिल किए.... जिन्हें पुलिस के चार्ज शीट के आधार पर... प्रोसिक्यूशन के वकील ने अभियोजन पक्ष के तरफ से तैयार कर कोर्ट में दाख़िल किए थे....
वैदेही - जी...
जयंत - आपको क्या लगता है.... वैदेही जी... आपके केस लेने से सारे वकील मना क्यूँ करने लगे.....
वैदेही - सभी यह समझ रहे हैं... की हमारे पास पैसे हैं.. और हमसे उन पैसों में से अपना हिस्सा मांग रहे थे....
जयंत - ह्म्म्म्म स्वाभाविक है.... यह सच भी है.... पर इस सच का और एक दूसरा पक्ष भी है....
वैदेही - (हैरानी से जयंत को देखते हुए) जी....दूसरा....
जयंत - जी हां वैदेही जी.... यह केस नहीं है... एक आग का गोला है... जिससे हाथ ही नहीं... पुरा कैरियर भी जल सकता है... इसलिए इस केस से ज्यादतर वकीलों ने दूरी बनाना.. अपने लिए सही समझा....
वैदेही चुप रहती है, जयंत उससे कुछ ज़वाब ना पा कर,
जयंत - वैदेही जी... मैंने कुछ कहा...
वैदेही - जी...
जयंत - खैर... अब मैं इस केस के बावत... चंद सवालात आपसे करूंगा... और आप मुझे.. सही सही ज़वाब दीजिएगा....
वैदेही - जी पूछिए...
जयंत एक डायरी निकालता है और उसमें कुछ लिखता है, फ़िर एक छोटा सा टेप रिकार्डर निकल कर वैदेही के सामने रख देता है l
जयंत - हाँ तो वैदेही जी... आपके भाई.. श्री विश्व प्रताप महापात्र कहाँ तक पढ़े लिखे हैं....
वैदेही - जी वह इंटर में टॉप लिया था पूरे यश पुर में....
जयंत - ग्रैजुएशन क्यूँ नही कि....
वैदेही - राजगड़ में कोई कॉलेज नहीं है.... इसलिए उस प्रांत में कोई भी ग्रैजुएट नहीं हैं...
जयंत - क्यूँ... कोई दूर जा कर... उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की... किसीने...
वैदेही - राजगड़ में... ग्रैजुएट होना केवल राज परिवार का अधिकार है...
जयंत - ओ... अच्छा... अगर कोई ग्रैजुएशन करना चाहे तो...
वैदेही - तो उसे राजगड़ छोड़ना पड़ेगा.... और राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना पड़ेगा..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही जी... आपका भाई गांव में सरपंच बनने से पहले क्या करते थे....
वैदेही - हमारी आमदनी अपने खेतों से हो जाती थी.... और कभी कभी राजा साहब जी घर में भी काम करता था...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा विश्व जी को सरपंच बनने का खयाल कैसे आया....
वैदेही - आया नहीं था वकील साहब... उसके दिमाग में डाला गया था...
जयंत - डाला गया था... मतलब...
वैदेही - एक दिन राजा साहब ने उसे... महल से उसके लिए बुलावा भेजा.... जब वह पहुंचा तो... गांव की बेहतरी के लिए उसे सरपंच बनने को कहा....
जयंत - ओ... तो यहाँ भी राज परिवार... ह्म्म्म्म
वैदेही - हाँ.... वकील साहब.... विश्व की नॉमिनेशन फाइल के वक्त राजा साहब उसके प्रॉपोजर भी थे....
जयंत - वाव... इंट्रेस्टिंग... अच्छा... वैदेही जी... चलिए एक काम करते हैं....
वैदेही उसे सवालिया दृष्टि से देखती है l
जयंत - हम अभी के अभी... सेंट्रल जैल जाएंगे.... और आपकी उपस्थिति में विश्व जी से भी कुछ जानकारी हासिल करेंगे.... फिर उसके बाद आप अपने गांव चले जाइएगा... और सुनवाई के दिन हाजिर हो जाइएगा.....
इतना कह कर अपने एक बैग में सारी फाइलें भर देता है l टेप रिकार्डर ऑफ कर देता है... और एक काले रंग के कोट निकाल कर पहन लेता है l वैदेही उसे हैरानी से देख रही है, कैसे अभी सवाल ज़वाब करने के बाद अचानक विश्व से मिलने भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार भी हो गया है l
जयंत - तो.. वैदेही जी चलें....
वैदेही - जी... जी चलिए....
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जैल में कुछ सिंटेक्स के पानी की टंकीयों के नीचे सिमेंट के फर्श पर विश्व, बालू के साथ मिल कर कबंल धो रहा है l एक संत्री उसके पास आता है और कहता है,
-विश्व, अरे ओ विश्व.....(विश्व उसकी आवाज सुनकर रुक जाता है) तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बुला रहे हैं...
विश्व कंबल धोने का काम बालू के हवाले कर संत्री के साथ तापस के चैम्बर में पहुंचता है l
तापस - हाँ ... विश्व.. आओ.. आओ... तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी वकील ले कर आई है...
विश्व - क्या...
तापस - क्यूँ.. तुम्हें खुशी नहीं हुई....
विश्व - (पसीने को पोछते हुए) खुशी.... पता... नहीं...
तापस - वह एक नामी और माने हुए वकील हैं.... तुम्हारे लिए सरकार के तरफ से नियुक्त किए गए हैं.... उनकी हमे खास हिदायत है... के वह , तुम्हारी और तुम्हारी दीदी के साथ मीटिंग करेंगे... अकेले में... इसलिए मैंने तुम लोगों की मीटिंग की अरेंजमेंट उपर लाइब्रेरी में कर दिया है....
विश्व कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ अपना सिर हिला कर तापस की ओर देखता है l
तापस - अरे... वे लोग तुम्हारा लाइब्रेरी में इंतजार कर रहे हैं... और तुम्हारे वकील साहब का स्ट्रिक्टली इंस्ट्रक्शन है... वहाँ पर तुम तीनों के अलावा कोई और ना हो.... इसलिए तुम खुद लाइब्रेरी में अकेले जाओ...
विश्व फिर मुड़ कर लाइब्रेरी की ओर जाता है l उपर पहुच कर देखता है, लाइब्रेरी में टेबल के एक तरफ वैदेही और बीच में एक आदमी काले कोट में बैठा हुआ है l विश्व दरवाजे के पास रुक जाता है,
जयंत - आओ विश्व आओ.... मेरा नाम जयंत कुमार राउत है.... सरकार ने मुझे ही, इस साढ़े सात सौ करोड़ घोटाले की अदालती कार्यवाही में..... तुम्हारी पैरवी करने के लिए नियुक्त किया है.....
विश्व यह सुनकर जयंत को हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है,
जयंत - हमारे यहाँ आने की कारण... तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बता चुके होंगे....
विश्व अपना सर हिला कर हामी भरता है l
जयंत - अरे.. यहाँ आकर बैठो... कब तक खड़े रहोगे...
विश्व आकर दोनों के पास बैठ टेबल के दुसरे तरफ बैठ जाता है l
जयंत - हाँ.. तो विश्व... अभी तुम राज्य में बहुत मशहूर व्यक्तित्व हो चुके हो... जानते ही होगे.... अब चौबीसों घंटे.... तुम्हारे सुरक्षा के लिए.... तुम्हारे आगे पीछे पुलिस... घर घर में... चर्चा में रखने के लिए मीडिया वाले... और तुम्हें गाली दे दे कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए पालिटिसियन... सब तुम्हारे ही कारण व्यस्त हैं...
विश्व को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगता, उसकी सांसे भारी होने लगती है, नथुनों से जोर जोर से सांस लेने की कोशिश करता है, बड़ी मुश्किल से अपना रुलाई रोके रखता है l
अपनी पैनी दृष्टि से विश्व के हालात को गौर कर रहा है जयंत l वैदेही की भी अनुरूप हालत है l
जयंत - रिलैक्स विश्व... रिलैक्स... तुम्हें अदालत में.. इससे भी ज्यादा तीखे तानों से और सवालों का सामना करना पड़ेगा...
विश्व खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l
जयंत - हाँ तो विश्व... केस पर चर्चा करें....
विश्व अपना भारी सर हिलाकर हामी भरता है l
जयंत - विश्व... मुझे तुम अपने पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर कुछ कहो...
विश्व - (जयंत को बिना देखे) मेरे पिताजी का नाम स्वर्गीय श्री रघुनाथ महापात्र है... और माता जी का नाम स्वर्गीय सरला महापात्र है.... और यह जो यहाँ बैठी हैं... वह मेरी बड़ी बहन सुश्री वैदेही महापात्र है....
जयंत - हाँ... इनके बारे में जानकारी है मुझे...
विश्व - मेरे पिता यशपुर इरिगेशन डिपार्टमेंट में क्लर्क थे.... वे राजगड़ में इसी सिलसिले में ट्रांसफर हो कर आए थे... उनके समय में एक नहर का काम शुरू हुआ.... जब मैं तेरह वर्ष का था... तभी वह इस संसार को छोड़ कर चले गए...उसके बाद...
जयंत - ह्म्म्म्म मतलब छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए.... तो तुमने इंटर कैसे पूरा किया...
विश्व - उमाकांत आचार्य सर के वजह से... वे हमारे पाइकपडा वार्ड में हमारे ही पड़ोसी और पारिवारिक मित्र थे...
जयंत - थे मतलब...
विश्व - जी वे हमारे पंचायत समिति के सभ्य भी थे.... पर मेरे सरपंच बनने के तीन महीने बाद ही... नदी किनारे में सांप के काटने से चल बसे....
जयंत - ओह... अछा... ह्म्म्म्म... हाँ... तुम दोनों अपने पिता के गुजरने के बाद.... गुजारा कैसे किया....
विश्व, वैदेही को देखता है l वैदेही कुछ ऑन-कंफर्टेबल सी दीखने लगती है l
विश्व - (जयंत के आँखों में देखते हुए) जी मैं बाबा के गुजर जाने के बाद... राजा साहब के यहाँ काम कर अपना गुजारा करता था....
जयंत - ओ... ह्म्म्म्म... तो तुम राजा साहब जी के मुलाजिम थे....
विश्व - जी... पर पिछले दो सालों से नहीं....
जयंत - क्यूँ..... जब कि वह तो चुनाव में तुम्हारे प्रपोजर थे....
विश्व - जी बस.. मैं अपने खेतों में काम कर आत्मनिर्भर बनना चाहता था....
जयंत - ओ... अच्छा... आत्मनिर्भर... ह्म्म्म्म फिर यह इलेक्शन लड़ने का विचार कैसे आया....
विश्व - वह राजा साहब ने एक बार महल बुला कर... खड़े होने के लिय समझाया था....
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... वैसे... क्या समझाया था..
विश्व - यही के... तुम युवक हो.... इसलिए अब तक विकास से महरूम... अपने गांव के विकास के लिए आगे आना चाहिए....
जयंत - ओ... इसलिए तुम आगे आए... और इतने आगे निकल गए.... के सब अब तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं... ह्म्म्म्म...
च्छा... तुम्हारा नॉमिनेशन पेपर में सेकंडर कौन था....
विश्व - जी आचार्य सर... मतलब... उमाकांत आचार्य सर....
जयंत - हाँ... जो आगे चलकर... सांप के काटने से... सिधार गए.... ह्म्म्म्म... वैसे विश्व... तुमने ग्रैजुएशन क्यूँ नहीं की....
वैदेही कुछ कहने को होती है, पर जयंत अपना हाथ दिखा कर वैदेही को कहने से रोक देता है l
विश्व - हमारे राजगड़ में डिग्री कॉलेज नहीं है.... और जिसे डिग्री चाहिए होता है.... उसे राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना होता है...
जयंत - क्यूँ.. ऐसा क्यूँ...
विश्व - डिग्री पढ़ने का और हासिल करने का सिर्फ एक ही परिवार को हक़ है... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार का... किसी भी क्षेत्र में कोई भी राजगड़ वासी क्षेत्रपाल परिवार के बराबरी पर नहीं आने चाहिए.....
जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है.....
विश्व - पर मैंने करेसपंडिंग में इग्नू के जरिए बीए की शुरुआत कर ली थी....
जयंत - क्या... कब... पर तुम्हारे पंचायत चुनाव के डीक्लेयर फॉर्म में क्वालिफीकेशन कॉलम में इंटर विज्ञान भरा है...
विश्व - जी इसलिए.. क्यूँ की तब मैं इग्नू में केवल जॉइन हुआ था....
जयंत - ह्म्म्म्म... ठीक है... विश्व... मुझे जो जानना था... मैंने जान लिया... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों भाई बहन हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं,
वैदेही - यह... यह क्या वकील साहब.... अपने तो विश्व से कुछ पूछा ही नहीं.... उसके अतीत के बारे में... उसके साथ हुए धोखे और अत्याचार के बारे में....
जयंत - (एक दम से भाव हीन तरीके से) मुझे किसकी कहानी को जानने में... कोई दिलचस्पी नहीं है.... क्यूंकि मैं नहीं चाहता... अपने क्लाइंट के प्रति सम्वेदना या सहानुभूति रखूं.... या फिर इमोशनली अटैच होऊँ...
वैदेही का चेहरा मुर्झा जाता है, और उसका सर दुख के मारे झुक जाती है l
जयंत - देखो.... कानून अंधा होता है.... उसे न्याय के लिए सबूत और गवाह चाहिए.... मैंने विश्व के खिलाफ चार्ज शीट से लेकर सबूत और गवाहों के रिकॉर्ड किए गए बयान देख व पढ़ चुका हूँ... और यक़ीन मानो... विश्व के विरुद्ध इतने संगठित रूप से कागजीय सबूतों को बनाया गया है.. (इतना कह कर जयंत अपने कुर्सी से उठ जाता है)
की विश्व इस केस में अभिमन्यु बन चुका है... हमारे पास कोई सबूत नहीं है... केवल और केवल दलीलें हैं.... जिनके आधार पर सबूतों को और गवाहों को झुठलाना है....पर विश्व... मैं.. तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूँ... के मैं पूरी कोशिश करूंगा....
वैदेही और विश्व जयंत को सुन रहे थे l वैदेही से अब रहा नहीं जाता, वह गुस्से में मायूसी के साथ रोते हुए,
वैदेही - वकील साहब... आप विश्व से मिले... क्या जाना... उसके बारे में... के उसके घर घर में चर्चे हैं... इसलिए के उसने साढ़े सात सौ करोड़ रुपए लुटे हैं... पुलिस उसके हिफाज़त में आगे पीछे दौड़ रही है... इसलिए , की वह साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का लुटेरा है.... राजनीतिक गलियारों में विश्व को सजा देने के लिए होड़ लगी हुई है... क्यूँ... इसलिए कि विश्व साढ़े सात सौ करोड़ लुटा है.... मैं... दर दर भटकती रही... वकील तलाश करती रही... और सरकार ने आपको मेरे विश्व के लिए नियुक्त किया... क्या यह सुनने के लिए.... की विश्व की हालत अभिमन्यु जैसे है.... (वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है) यह मेरा भाई ही नहीं मेरा बेटा भी है..... आपसे कुछ उम्मीद थी... पर....
जयंत - उम्मीद... मुझसे... क्यूँ... किसलिए.... क्यूंकि मैं विश्व का वकील हूँ इसलिए.....
जयंत दोनों को देखता है और वे दोनों भी जयंत को देखते हैं फिर,
जयंत - मैंने तुम्हें पहले ही कहा था... की मैं कोई सेल्स मैन नहीं हूँ... जो किसी प्रोडक्ट की सर्विस की ग्यारंटी देता फिरूँ...
और विश्व के बारे में मुझे क्या जानना चाहिए... यह तुम मुझे बताओगी..... वैसे तुम यह अपनी रोना रो रो कर दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो... के दुनिया में... सबसे दुखी आत्मा तुम हो.... ताकि दुनिया की ध्यान तुम्हारी तरफ हो जाए... लोग तुम्हारे दुख से दुखी हो कर, आह.. आ.. ओह.. ओ... चु चु... करे... अरे इसका मतलब तो यह हुआ... की तुम लोग दुनिया वालों से सिंपथी चाहते हो... ना कि न्याय....
यह बात सुन कर वैदेही चुप हो जाती है और उसके साथ विश्व भी शुन हो जाता है l
जयंत - विश्व पर इल्ज़ाम संगीन है... सबूत और गवाह भरपूर है.... पर विश्व या तुम्हारे पास है क्या.... सिवाय अपना दुखड़ा रोने और दिखाने के..... मैं यहां सिर्फ़ अपने तरफ से विश्व को परख ने आया था.... और विश्व ने अपने आचार व विचार से प्रभावित किया है... मैंने उसे उसके माँ बाप के बारे में पूछा.... तो उसने भले ही स्वर्गीय शब्द लगाया पर उनके लिए हैं कहा..... थे कहीं पर भी नहीं कहा... थे शब्द सिर्फ़ आचार्य सर के लिए कहा था... बस यही काफी था... मेरे लिए... उसकी भावनाओं को समझने के लिए....
जयंत इतना कह कर चुप हो गया और दोनों के तरफ देखने लगा l दोनों जयंत को देख ऐसे आँखे फाड़े देख रहे थे जैसे आश्चर्य चकित हो कर सुन नहीं देख रहे हो l
जयंत - देखो विश्व... इस दुनिया में उम्मीद सिर्फ़ खुद से रखो... और विश्वास भी तुम खुद पर करो.... क्यूंकि किसको अपना समझ कर उम्मीद या विश्वास लगाए बैठोगे... तो जब दोनों टूटेंगी.... तब तुम भी टूट जाओगे.... जरा सोचो.. जिन्होंने तुमसे दुश्मनी करते हुए... तुमको फंसाया है... वह निस्संदेह बहुत ताकतवर हैं... पर तुम कहां से कम हो उनसे.... अगर तुम ताकतवर ना होते... क्या तुम उनसे टकराते.... उनको तुम्हारे भीतर के ताकत का अंदाजा है.... पर तुम्हें क्यूँ नहीं है....
विश्व और वैदेही जयंत को शांत हो कर सुन रहे हैं l लाइब्रेरी में शांति ऐसी छाई है जैसे बर्षों से उस कमरे में कोई नहीं है l
जयंत - अंत में विश्व... मैं यह फ़िर से कहूँगा.... तुम्हारे लिए... मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ....तुम चाहो तो... सरकार से वकील बदलने के लिए दरख्वास्त कर सकते हो....
विश्व - (एक आत्मविश्वास भरे स्वर में) नहीं... बिल्कुल नहीं.... वकील साहब...अब अंजाम चाहे कुछ भी हो... मेरा यह केस... अब आप ही लड़ेंगे....
जयंत - तुम फिर सोच लो....
वैदेही - नहीं वकील साहब नहीं.... आपने ठीक कहा.... कमजोरों की तरह... हम अपनी आँसू और ज़ख़्म दिखा कर... दुनिया से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं.... लेकिन अब और नहीं.... अब अंजाम जो चाहे हो.... अब हमे सहानुभूति नहीं चाहिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... वकील साहब...
जयंत - ठीक है... वैदेही... मेरा यहाँ काम समाप्त हो चुका है.... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों - जी वकील साहब
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टीवी पर न्यूज चल रही है,
"आज मंत्रालय में कैबिनेट की अहम बैठक हुई.... जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अब राजगढ़ मनरेगा घोटाले पर सुनवाई.... बिना देरी के अदालती कार्यवाही को लगातार करवाने पर चर्चा हुइ.... इस बाबत कैबिनेट में पास हुई यह प्रस्ताव को तुरंत राज्यपाल जी तक पहुंचा दिया गया है.... अब जानकार कह रहे हैं... उच्च न्यायालय को कल तक राज्यपाल जी से पत्र मिल जाएगा.... और हमारे सूत्रों के अनुसार अभियुक्त विश्व के पक्ष रखने के लिए सरकार ने अपने क्षेत्र के अनुभवी वक़ील श्री जयंत कुमार राउत को नियुक्त किया है.... यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के वकील दोनों ही सरकारी हैं और दोनों के तर्को से न्यायलय में... न्याय की नई परिभाषा कैसे लिखी जाएगी..... "
प्रतिभा टीवी ऑफ कर देती है और बड़बड़ाने लगती है
- छी... इनकी न्यूज ब्रीफिंग देखो... ऐसे चटखारे लगा कर बोल रहे हैं... जैसे अगली कड़ी में सिमर अपने ससुराल में बिरियानी में कौनसी मसाला डालेगी....
प्रत्युष वहीं बैठा हुआ था, अपनी माँ को बड़बड़ाते देख हंसने लगता है l प्रतिभा देखती है कि प्रत्युष पेट पकड़ कर सोफ़े पर लोटपोट हो कर हंस रहा है l यह देख प्रतिभा और भी चिढ़ जाती है l
प्रतिभा - बड़ा हंस रहा है... मैंने कोई जोक मारा है क्या...
प्रत्युष - अरे माँ.... जहां तक मुझे मालूम है... आप कभी सास बहु वाली टीवी सीरिअल देखती नहीं है.... पर आज... आप ससुराल सिमर वाली सिमर की बिरियानी याद कर रहे हो... हो हो हो..
प्रतिभा - आगे कुछ भी बोला तो... ठीक है... इसबार रात को लेट आने पर अपने डैड को बुलाना... दरवाजा खोलने के लिए....
प्रत्युष - (अपनी जगह से उठ कर धर्मेंद्र के स्टाइल में) माँ... एक सिमर की बात क्या छेड़ दी... तुमने मुझे इतना पराया कर दिया.... क्या लगती है आखिर यह सिमर तुम्हारी.... जिसकी बिरियानी के ख़ातिर अपने बेटे को... उसके हिटलर बाप के हवाले कर रही हो...
इतने में किसीने पीछे से उसके कान पकड़ता है l
प्रत्युष - कौन है... देख नहीं रहे हो... राज माता शिवगामी से उनका सुपुत्र बाहुबली बात कर रहा है....
आवाज - मैं.. बाहुबली का हिटलर बाप बोल रहा हूँ...
प्रत्युष - डैड.... थोड़ा तो डरीये... झाँसी रानी के सामने उसके बेटे के कान खींचना... कितना बड़ा दुशाहस... है... जानते हैं...
तापस - वह तो बाद की बात है.... पहले यह बता... यह हिटलर किसका बाप है... बाहुबली का... या दामोदर का...
प्रत्युष - डैड... आह.. आप कान छोड़ोगे... तो बोलूंगा ना....
तापस कान छोड़ देता है l इनकी अब तक यह हरकत देख कर प्रतिभा हंस रही थी l
तापस - हाँ तो लाट साहब बोलिए... हिटलर किसका बाप था....
प्रत्युष - वह तो मुझे नहीं पता.... पर इतना जरूर पता है... बाहुबली का बाप कटप्पा नहीं था....
इतना कह कर प्रत्युष वहाँ से भाग कर अपने कमरे में घुस जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है l यह देखकर प्रतिभा की हंसी फुट जाती है l वह सोफ़े पर बैठ कर पेट पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगती है l तापस प्रतिभा को ऐसे देखता है जैसे उसने बेहत खट्टी इमली खा लिया हो l
तापस - देखा भाग्यवान.... आपका लाडला कैसे... मेरा टांग खिंच रहा है....
प्रतिभा - (सोफ़े से उठ कर तापस को गले लगा कर) इस जादू की झप्पी से... ठंडा हो जाइए सेनापति जी... कुछ देर पहले... मेरा मुड़ उखड़ा हुआ था.... आपके लाट साहब ने मुझे हंसाने के लिए ऐसा किया....
तापस - (प्रतिभा को गले से लगा कर) जानता हूँ... जान.... मैं भी तो उसकी नटखट ठिठोलीयों के लिए यह सब करता हूँ...
प्रतिभा - भगवान उसे लंबी उम्र दे... वह बहुत नाम कमाए.... बस और कुछ नहीं...
Nice and awesome update...
 

Loki.

Loki..😈
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👉तेईसवां अपडेट
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कुछ दिनों बाद
राजगड़ में अपने घर के बाहर बरांदे पर दीवार के सहारे टेक लगा कर वैदेही बैठी हुई है l तभी गांव की एक औरत प्रमिला अपने बेटे गुल्लु को मारने के लिए भाग रही है l गुल्लु भागते हुए वैदेही के पास आता है l

गुल्लु - मौसी... मौसी बचाओ... मुझे.. (कह कर वैदेही के पीछे छुप जाता है)
प्रमिला वैदेही के पास नहीं आती, वह वैदेही से थोड़ी दूर खड़ी हो कर
प्रमिला - ऐ... गुल्लु... बाहर आ...
वैदेही - थोड़ी देर इसे यहीं रहने दे ना प्रमिला....
प्रमिला - देख वैदेही... तेरा एक साल के लिए और तेरे भाई का... पांच साल के लिए इस गांव के बड़ो ने, तुम लोगों का हुक्का पानी बंद करा रखा है..... मुझे अगर किसीने तुझसे बात करते देख लिया.... तो तु जानती है.... हमारा भी हुक्का पानी बंद हो सकता है.... इसलिए तु गुल्लु को भेज दे... मैं हाथ जोड़ती हूँ....
यह सुनकर वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l अपना सर हिलाते हुए और अपनी आँखों से आँसू पोछने के बाद, वैदेही - ठीक है प्रमिला तु जा यहाँ से... मैं कुछ देर बाद गुल्लु को तेरे पास भेज दूंगी....
प्रमिला - ठीक है वैदेही.... मैं जाती हूँ... और माफ कर देना मुझे... तेरी इस दुख की घड़ी में.... तेरा साथ नहीं दे पा रही हूँ...
वैदेही - कोई बात नहीं... इतना कह कर वैदेही चुप हो जाती है l प्रमिला वहाँ से अपने घर चली जाती है l वैदेही अपने पीछे से गुल्लु को खिंच कर बाहर लाती है और पूछती है,
वैदेही - क्यूँ रे... क्यूँ अपने माँ को परेशान कर रहा है....
गुल्लु - कहाँ मौसी.... मैं तो अपने किताब में से एक सवाल पूछा.... बदले में माँ मेरी पिटाई करने उठ पड़ी... इसलिए मैं भी पिटाई से बचने के लिए..... वहाँ से भाग आया....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ऐसा क्या सवाल पूछ लिया तुमने... जो तेरी माँ को जवाब में... झाड़ु उठाना पड़ा....
गुल्लु - मौसी... हमारे किताब में लिखा है... हमारे राज्य में... बारह मास में.. तेरह पर्व मनाते हैं... और जिन जिन पर्व के दिन हमें छुट्टी दी जाती है.... वह हम अपने गांव में क्यूँ नहीं मनाते... जिस तरह किताबों में लिखा है....
वैदेही - (कुछ देर शुन हो जाती है) कौन कौन से पर्व गुल्लु....
गुल्लु - जैसे गणपति पूजा, रथयात्रा, दशहरा, दीवाली, होली..... हमारे गांव में यह सब क्यूँ नहीं मनाया जाता है....
गुल्लु यह सवाल सुन कर वैदेही को कुछ ज़वाब नहीं सूझती है l
गुल्लु - बोलो ना मौसी.. जैसे किताबों में लिखा है... हमारे यहां वैसे क्यूँ नहीं मनाया जाता....
वैदेही - क्यूँ के हमारे राजगड़ में... भगवान वनवास में हैं... जैसे राम जी वन वास हुआ था ना... और राम जी तो चौदह वर्ष के बाद आ गए थे.... पर हमारे भगवान.... देखना एक दिन जरूर आयेंगे.... जरूर आयेंगे (उसके गालों को सहलाते हुए) और तु ज़रूर देखेगा.. अब जा अपने माँ के पास...
गुल्लु वहाँ से चला जाता है, उसी वक़्त एक डाकिया आकर एक रजिस्ट्री चिट्ठी दे कर वैदेही से दस्तख़त ले कर चला जाता है l

वैदेही चिट्ठी खोल कर पढ़ती है और पढ़ते पढ़ते खुशी से झूम उठती है l वह तुरंत बरंदा से उठ कर घर के अंदर जाती है और घर के मंदिर में माथा टेकती है l फिर अपने कुछ सामान पैकिंग कर घर में ताला लगा कर बाहर निकल जाती है राजगड़ की बस स्टैंड की ओर l
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विक्रम अपने कमरे में बैठा खिड़की की ओर देखते हुए, एक अंगुठी को अपने उंगली में घुमा रहा है और किसी ख़यालों में खोया हुआ है l तभी उस कमरे में इंटरकॉम बजने लगती है तो उसका खयाल टूटता है, वह इंटरकॉम उठाता है l

- युवराज...
विक्रम - जी छोटे राजा जी.....
पिनाक - आप हमारे कमरे में आने का कष्ट करेंगे... ब्रोकर आया है... प्लॉट और घर की बात करने....
विक्रम - जी अभी उपस्थित हो रहे हैं....
विक्रम इंटरकॉम रख देता है और उठ कर पिनाक के कमरे की ओर चला जाता है l पहुंच कर देखता है, दरवाजा खुला है l
पिनाक - (अंदर से) आइए युवराज.... आइए... आपका ही इंतजार हो रहा है....
विक्रम अंदर आकर देखता है एक आदमी अपने काख के नीचे एक काला बैग दबाये खड़ा है और उसके हाथ में एक फाइल भी है l विक्रम सीधे जा कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम के बैठते ही,
ब्रोकर एक घर की कुछ फोटोस् रख देता है, और कहता है - युवराज जी.... यह देखिए... यह भुवनेश्वर के राज भवन से दस किलोमीटर दूर ***विहार में है.... इस घर में एक बुढ़े दंपति रहा करते थे.... पिछले साल उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे.... जो विदेश में सेटलड हैं... उन्होंने मुझे इसे बेचने को कहा है... यह घर और इसके आसपास के जगह पूरे डेढ़ एकड़ का है....
विक्रम - ह्म्म्म्म अच्छी जगह है....इलाक़ा भी काफी पॉश इलाक़ा है.... आपको आर्किटेक्चर को भी साथ लेकर आना चाहिए था... ब्रोकर महाशय...
ब्रोकर - युवराज जी... उसे भी लाया हूँ.... वह नीचे लॉबी में बैठा हुआ है....
विक्रम - तो फिर... उसे नीचे क्यूँ छोड़ आए...
ब्रोकर - वो... अगर... आपको यह घर... पसंद ना आता... तो उसका यहाँ होना बेकार हो जाता.....
विक्रम - ठीक है... बुलाओ उसे....
ब्रोकर अपना मोबाइल निकाल कर किसीको फोन मिलाता है, और फोन पर उसे ऊपर कमरा नंबर *** को आने को कहता है l कुछ देर बाद एक अधेड़ उम्र का आदमी उस कमरे में आता है l सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है l
विक्रम - आइए... आर्किटेक्चर जी... आपको इस घर में कुछ बदलाव करने हैं....

आर्किटेक्चर - जी युवराज जी... कहिए आपको क्या चाहिए... मैं आपको डिजाइन बना कर जल्दी ही आपकी सेवा में पेश करूंगा....
विक्रम - हम... राजवंशी हैं.... महलों की आदत है हमे... इसलिए... ध्यान रहे घर, बाहर से चाहे कैसा भी दिखे.... पर अंदर से महल जैसी फिलिंग आनी चाहिए....
आर्किटेक्चर - जी... युवराज...
विक्रम - हाँ.. जैसे कि एक राज महल में होता है... दिवान ए खास यानी प्राइवेट ड्रॉइंग रूम और दिवाने आम यानी पब्लिक मीटिंग हॉल... ऐसा इस घर में एक्स्ट्रा बनाएं.... जो इस घर से अटैचड हो...
आर्किटेक्चर - जी युवराज और....
विक्रम - एक जीम भी कुछ ऐसे डिजाइन करो.....बाहर के लोग अगर हॉल के वजाए जीम में मिलना चाहे तो.... बाहर से प्रवेश करें और... घर के लोग अंदर से....
आर्किटेक्चर - जी बेहतर...
विक्रम - कितने दिन में प्लान दे सकते हैं....
आर्किटेक्चर - युवराज जी... अभी तक मैंने सिर्फ पेपर और फोटो में घर को देखा है.... मुझे ऑन द स्पॉट जाकर... आईडीआ लेनी होगी.... फिर कम से कम दस या पंद्रह दिन...
विक्रम - (दोनों से) ठीक है आप दोनों आपस में तालमेल बिठा कर.... प्रॉपर्टी हैंडओवर और डिजाइन फाइनल कर आज से पंद्रह दिन बाद यहाँ पर आयें....
दोनों - जी बेहतर... (कह कर दोनों चले जाते हैं)
पिनाक - क्या बात है युवराज... आजकल आप जितनी तेजी से काम कर रहे हैं... उतने ही खोए खोए रहने लगे हैं....
विक्रम अपनी उंगली में पहने उस अंगुठी को देखते हुए
विक्रम - नहीं तो...
पिनाक - यह अंगुठी... आपके हाथ में.. कब ली...
विक्रम - हाल ही में बनवाया है...
पिनाक - ह्म्म्म्म मोती की लगती है.... कोई खास मोती है क्या...
विक्रम - बहुत ही खास... जब से यह मेरी जिंदगी में आयी है... सारे काम सिर्फ हो ही नहीं रहे हैं.... बल्कि दौड़ रहे हैं....
पिनाक - ह्म्म्म्म तो यह बात है.... लकी पर्ल है...
विक्रम - (हंसता है, और कहता है) पर्ल नहीं है... प्लास्टिक फाइबर की है....
पिनाक - (हैरान हो कर) व्हाट....
विक्रम - पर यह हमारे लिए कोहिनूर से भी महंगा है...
पिनाक - क्या.... एक मामूली सी प्लास्टिक फाइबर...

विक्रम - (बीच में टोक कर) यह मेरी लकी चार्म है.....
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वैदेही बस से कटक में पहुंच कर एक ऑटो से सीधे हाईकोर्ट के पास एक एक छोटे से घर में पहुंचती है l उस घर के दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा हुआ है l उस नेम प्लेट में नाम - 'जयंत कुमार राउत ' लिखा हुआ है l पर वैदेही को कॉलिंग बेल कहीं नहीं मिलती तो दरवाजा खटखटाती है l
अंदर से आवाज़ आती है
- सुश्री वैदेही महापात्र अंदर आ जाइए....
वैदेही हैरानी के साथ दरवाजे को धक्का दे कर अंदर आती है l अंदर एक अधेड़ उम्र का एक आदमी साधारण वेश भूसा में बेंत के सोफ़े पर बैठ कर कुछ फाइलें चेक कर रहा है l वह आदमी अपना चश्मा दुरुस्त करता है और वैदेही की ओर देखता है l
आदमी - आइए वैदेही जी आइए....
वैदेही - आप...
आदमी - मैं ही हूँ जयंत... हैरान मत होइए... मैं आपके यहां आने के बारे में... कैसे इतनी सटीकता से जान गया....
वैदेही - जी....
आदमी - बैठिए... क्यूंकि मैं अपने घर में.. केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था....
बेंत की चेयर को दिखा कर वैदेही को बैठने लिए कहता है पर वैदेही बैठने के लिए झिझकती है l
जयंत - वैदेही जी... यह मेरा गरीब खाना है.... और सरकार ने मुझे आपके भाई के तरफ से लड़ने के लिए नियुक्त किया है.... मैंने ही आपको रजिस्ट्री के जरिए लेटर किया था... आपसे भेंट करने के लिए....
वैदेही - जी आपके मिले चिट्ठी से... मुझे मालुम हो गया था...
जयंत - फिर आपको झिझक किस बात की है....
वैदेही चुप रहती है, शायद जयंत उसकी झिझक को समझ जाता है l
जयंत - वैदेही जी... बेशक यह केस बहुत बड़ा है.... पर मेरे क़ाबिलियत पर शक ना करें... वैसे मैं कोई सेल्स मैन तो नहीं हूँ... जो अपनी प्रोडक्ट सर्विस की ग्यारंटी दूँ.... पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ.... मैं अपना सौ फीसद दे कर आपके भाई को बचाने के लिए प्रयास करूँगा.... और वैदेही जी... मैं वकील बड़ा घर या गाड़ी वाला नहीं हूँ... पर विश्वास रखें... बहुत बड़ा नाम वाला, बहुत बड़ा जिगर वाला हूँ....
वैदेही अपना झिझक को थोड़ा कम करते हुए बैठ जाती है l
वैदेही के बैठने के बाद,
जयंत - मेरे यहाँ वैसे कोई नहीं आता.... जो अभी आया है..... उसे मैंने ही बुलाया है... इसलिए आपने दस्तक दी... तो मैं यह समझ गया आप ही होंगी....
वैदेही - ओ...
जयंत - (फाइलों पर ध्यान गडाते हुए) आप मेरे वेश भूसा या परिधान पर मत जाइए.... आपके भाई के केस के प्रति मैं ईमानदार रहूँगा.... बस इतना ही कह सकता हूँ...
यह सुनने के बाद, वैदेही एक उम्मीद भरी नजरों से जयंत को देख कर अपनी होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
जयंत - तो.... वैदेही जी... जैसे ही मुझे सरकारी आदेश प्राप्त हुआ... मैं तुरंत अपने काम में लग गया... और मैंने इस केस के संबंधित सारे कागजात हासिल किए.... जिन्हें पुलिस के चार्ज शीट के आधार पर... प्रोसिक्यूशन के वकील ने अभियोजन पक्ष के तरफ से तैयार कर कोर्ट में दाख़िल किए थे....
वैदेही - जी...
जयंत - आपको क्या लगता है.... वैदेही जी... आपके केस लेने से सारे वकील मना क्यूँ करने लगे.....
वैदेही - सभी यह समझ रहे हैं... की हमारे पास पैसे हैं.. और हमसे उन पैसों में से अपना हिस्सा मांग रहे थे....
जयंत - ह्म्म्म्म स्वाभाविक है.... यह सच भी है.... पर इस सच का और एक दूसरा पक्ष भी है....
वैदेही - (हैरानी से जयंत को देखते हुए) जी....दूसरा....
जयंत - जी हां वैदेही जी.... यह केस नहीं है... एक आग का गोला है... जिससे हाथ ही नहीं... पुरा कैरियर भी जल सकता है... इसलिए इस केस से ज्यादतर वकीलों ने दूरी बनाना.. अपने लिए सही समझा....
वैदेही चुप रहती है, जयंत उससे कुछ ज़वाब ना पा कर,
जयंत - वैदेही जी... मैंने कुछ कहा...
वैदेही - जी...
जयंत - खैर... अब मैं इस केस के बावत... चंद सवालात आपसे करूंगा... और आप मुझे.. सही सही ज़वाब दीजिएगा....
वैदेही - जी पूछिए...
जयंत एक डायरी निकालता है और उसमें कुछ लिखता है, फ़िर एक छोटा सा टेप रिकार्डर निकल कर वैदेही के सामने रख देता है l
जयंत - हाँ तो वैदेही जी... आपके भाई.. श्री विश्व प्रताप महापात्र कहाँ तक पढ़े लिखे हैं....
वैदेही - जी वह इंटर में टॉप लिया था पूरे यश पुर में....
जयंत - ग्रैजुएशन क्यूँ नही कि....
वैदेही - राजगड़ में कोई कॉलेज नहीं है.... इसलिए उस प्रांत में कोई भी ग्रैजुएट नहीं हैं...
जयंत - क्यूँ... कोई दूर जा कर... उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की... किसीने...
वैदेही - राजगड़ में... ग्रैजुएट होना केवल राज परिवार का अधिकार है...
जयंत - ओ... अच्छा... अगर कोई ग्रैजुएशन करना चाहे तो...
वैदेही - तो उसे राजगड़ छोड़ना पड़ेगा.... और राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना पड़ेगा..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही जी... आपका भाई गांव में सरपंच बनने से पहले क्या करते थे....
वैदेही - हमारी आमदनी अपने खेतों से हो जाती थी.... और कभी कभी राजा साहब जी घर में भी काम करता था...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा विश्व जी को सरपंच बनने का खयाल कैसे आया....
वैदेही - आया नहीं था वकील साहब... उसके दिमाग में डाला गया था...
जयंत - डाला गया था... मतलब...
वैदेही - एक दिन राजा साहब ने उसे... महल से उसके लिए बुलावा भेजा.... जब वह पहुंचा तो... गांव की बेहतरी के लिए उसे सरपंच बनने को कहा....
जयंत - ओ... तो यहाँ भी राज परिवार... ह्म्म्म्म
वैदेही - हाँ.... वकील साहब.... विश्व की नॉमिनेशन फाइल के वक्त राजा साहब उसके प्रॉपोजर भी थे....
जयंत - वाव... इंट्रेस्टिंग... अच्छा... वैदेही जी... चलिए एक काम करते हैं....
वैदेही उसे सवालिया दृष्टि से देखती है l
जयंत - हम अभी के अभी... सेंट्रल जैल जाएंगे.... और आपकी उपस्थिति में विश्व जी से भी कुछ जानकारी हासिल करेंगे.... फिर उसके बाद आप अपने गांव चले जाइएगा... और सुनवाई के दिन हाजिर हो जाइएगा.....
इतना कह कर अपने एक बैग में सारी फाइलें भर देता है l टेप रिकार्डर ऑफ कर देता है... और एक काले रंग के कोट निकाल कर पहन लेता है l वैदेही उसे हैरानी से देख रही है, कैसे अभी सवाल ज़वाब करने के बाद अचानक विश्व से मिलने भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार भी हो गया है l
जयंत - तो.. वैदेही जी चलें....
वैदेही - जी... जी चलिए....
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जैल में कुछ सिंटेक्स के पानी की टंकीयों के नीचे सिमेंट के फर्श पर विश्व, बालू के साथ मिल कर कबंल धो रहा है l एक संत्री उसके पास आता है और कहता है,
-विश्व, अरे ओ विश्व.....(विश्व उसकी आवाज सुनकर रुक जाता है) तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बुला रहे हैं...
विश्व कंबल धोने का काम बालू के हवाले कर संत्री के साथ तापस के चैम्बर में पहुंचता है l
तापस - हाँ ... विश्व.. आओ.. आओ... तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी वकील ले कर आई है...
विश्व - क्या...
तापस - क्यूँ.. तुम्हें खुशी नहीं हुई....
विश्व - (पसीने को पोछते हुए) खुशी.... पता... नहीं...
तापस - वह एक नामी और माने हुए वकील हैं.... तुम्हारे लिए सरकार के तरफ से नियुक्त किए गए हैं.... उनकी हमे खास हिदायत है... के वह , तुम्हारी और तुम्हारी दीदी के साथ मीटिंग करेंगे... अकेले में... इसलिए मैंने तुम लोगों की मीटिंग की अरेंजमेंट उपर लाइब्रेरी में कर दिया है....
विश्व कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ अपना सिर हिला कर तापस की ओर देखता है l
तापस - अरे... वे लोग तुम्हारा लाइब्रेरी में इंतजार कर रहे हैं... और तुम्हारे वकील साहब का स्ट्रिक्टली इंस्ट्रक्शन है... वहाँ पर तुम तीनों के अलावा कोई और ना हो.... इसलिए तुम खुद लाइब्रेरी में अकेले जाओ...
विश्व फिर मुड़ कर लाइब्रेरी की ओर जाता है l उपर पहुच कर देखता है, लाइब्रेरी में टेबल के एक तरफ वैदेही और बीच में एक आदमी काले कोट में बैठा हुआ है l विश्व दरवाजे के पास रुक जाता है,
जयंत - आओ विश्व आओ.... मेरा नाम जयंत कुमार राउत है.... सरकार ने मुझे ही, इस साढ़े सात सौ करोड़ घोटाले की अदालती कार्यवाही में..... तुम्हारी पैरवी करने के लिए नियुक्त किया है.....
विश्व यह सुनकर जयंत को हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है,
जयंत - हमारे यहाँ आने की कारण... तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बता चुके होंगे....
विश्व अपना सर हिला कर हामी भरता है l
जयंत - अरे.. यहाँ आकर बैठो... कब तक खड़े रहोगे...
विश्व आकर दोनों के पास बैठ टेबल के दुसरे तरफ बैठ जाता है l
जयंत - हाँ.. तो विश्व... अभी तुम राज्य में बहुत मशहूर व्यक्तित्व हो चुके हो... जानते ही होगे.... अब चौबीसों घंटे.... तुम्हारे सुरक्षा के लिए.... तुम्हारे आगे पीछे पुलिस... घर घर में... चर्चा में रखने के लिए मीडिया वाले... और तुम्हें गाली दे दे कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए पालिटिसियन... सब तुम्हारे ही कारण व्यस्त हैं...
विश्व को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगता, उसकी सांसे भारी होने लगती है, नथुनों से जोर जोर से सांस लेने की कोशिश करता है, बड़ी मुश्किल से अपना रुलाई रोके रखता है l
अपनी पैनी दृष्टि से विश्व के हालात को गौर कर रहा है जयंत l वैदेही की भी अनुरूप हालत है l
जयंत - रिलैक्स विश्व... रिलैक्स... तुम्हें अदालत में.. इससे भी ज्यादा तीखे तानों से और सवालों का सामना करना पड़ेगा...
विश्व खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l
जयंत - हाँ तो विश्व... केस पर चर्चा करें....
विश्व अपना भारी सर हिलाकर हामी भरता है l
जयंत - विश्व... मुझे तुम अपने पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर कुछ कहो...
विश्व - (जयंत को बिना देखे) मेरे पिताजी का नाम स्वर्गीय श्री रघुनाथ महापात्र है... और माता जी का नाम स्वर्गीय सरला महापात्र है.... और यह जो यहाँ बैठी हैं... वह मेरी बड़ी बहन सुश्री वैदेही महापात्र है....
जयंत - हाँ... इनके बारे में जानकारी है मुझे...
विश्व - मेरे पिता यशपुर इरिगेशन डिपार्टमेंट में क्लर्क थे.... वे राजगड़ में इसी सिलसिले में ट्रांसफर हो कर आए थे... उनके समय में एक नहर का काम शुरू हुआ.... जब मैं तेरह वर्ष का था... तभी वह इस संसार को छोड़ कर चले गए...उसके बाद...
जयंत - ह्म्म्म्म मतलब छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए.... तो तुमने इंटर कैसे पूरा किया...
विश्व - उमाकांत आचार्य सर के वजह से... वे हमारे पाइकपडा वार्ड में हमारे ही पड़ोसी और पारिवारिक मित्र थे...
जयंत - थे मतलब...
विश्व - जी वे हमारे पंचायत समिति के सभ्य भी थे.... पर मेरे सरपंच बनने के तीन महीने बाद ही... नदी किनारे में सांप के काटने से चल बसे....
जयंत - ओह... अछा... ह्म्म्म्म... हाँ... तुम दोनों अपने पिता के गुजरने के बाद.... गुजारा कैसे किया....
विश्व, वैदेही को देखता है l वैदेही कुछ ऑन-कंफर्टेबल सी दीखने लगती है l
विश्व - (जयंत के आँखों में देखते हुए) जी मैं बाबा के गुजर जाने के बाद... राजा साहब के यहाँ काम कर अपना गुजारा करता था....
जयंत - ओ... ह्म्म्म्म... तो तुम राजा साहब जी के मुलाजिम थे....
विश्व - जी... पर पिछले दो सालों से नहीं....
जयंत - क्यूँ..... जब कि वह तो चुनाव में तुम्हारे प्रपोजर थे....
विश्व - जी बस.. मैं अपने खेतों में काम कर आत्मनिर्भर बनना चाहता था....
जयंत - ओ... अच्छा... आत्मनिर्भर... ह्म्म्म्म फिर यह इलेक्शन लड़ने का विचार कैसे आया....
विश्व - वह राजा साहब ने एक बार महल बुला कर... खड़े होने के लिय समझाया था....
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... वैसे... क्या समझाया था..
विश्व - यही के... तुम युवक हो.... इसलिए अब तक विकास से महरूम... अपने गांव के विकास के लिए आगे आना चाहिए....
जयंत - ओ... इसलिए तुम आगे आए... और इतने आगे निकल गए.... के सब अब तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं... ह्म्म्म्म...
च्छा... तुम्हारा नॉमिनेशन पेपर में सेकंडर कौन था....
विश्व - जी आचार्य सर... मतलब... उमाकांत आचार्य सर....
जयंत - हाँ... जो आगे चलकर... सांप के काटने से... सिधार गए.... ह्म्म्म्म... वैसे विश्व... तुमने ग्रैजुएशन क्यूँ नहीं की....
वैदेही कुछ कहने को होती है, पर जयंत अपना हाथ दिखा कर वैदेही को कहने से रोक देता है l
विश्व - हमारे राजगड़ में डिग्री कॉलेज नहीं है.... और जिसे डिग्री चाहिए होता है.... उसे राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना होता है...
जयंत - क्यूँ.. ऐसा क्यूँ...
विश्व - डिग्री पढ़ने का और हासिल करने का सिर्फ एक ही परिवार को हक़ है... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार का... किसी भी क्षेत्र में कोई भी राजगड़ वासी क्षेत्रपाल परिवार के बराबरी पर नहीं आने चाहिए.....
जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है.....
विश्व - पर मैंने करेसपंडिंग में इग्नू के जरिए बीए की शुरुआत कर ली थी....
जयंत - क्या... कब... पर तुम्हारे पंचायत चुनाव के डीक्लेयर फॉर्म में क्वालिफीकेशन कॉलम में इंटर विज्ञान भरा है...
विश्व - जी इसलिए.. क्यूँ की तब मैं इग्नू में केवल जॉइन हुआ था....
जयंत - ह्म्म्म्म... ठीक है... विश्व... मुझे जो जानना था... मैंने जान लिया... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों भाई बहन हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं,
वैदेही - यह... यह क्या वकील साहब.... अपने तो विश्व से कुछ पूछा ही नहीं.... उसके अतीत के बारे में... उसके साथ हुए धोखे और अत्याचार के बारे में....
जयंत - (एक दम से भाव हीन तरीके से) मुझे किसकी कहानी को जानने में... कोई दिलचस्पी नहीं है.... क्यूंकि मैं नहीं चाहता... अपने क्लाइंट के प्रति सम्वेदना या सहानुभूति रखूं.... या फिर इमोशनली अटैच होऊँ...
वैदेही का चेहरा मुर्झा जाता है, और उसका सर दुख के मारे झुक जाती है l
जयंत - देखो.... कानून अंधा होता है.... उसे न्याय के लिए सबूत और गवाह चाहिए.... मैंने विश्व के खिलाफ चार्ज शीट से लेकर सबूत और गवाहों के रिकॉर्ड किए गए बयान देख व पढ़ चुका हूँ... और यक़ीन मानो... विश्व के विरुद्ध इतने संगठित रूप से कागजीय सबूतों को बनाया गया है.. (इतना कह कर जयंत अपने कुर्सी से उठ जाता है)
की विश्व इस केस में अभिमन्यु बन चुका है... हमारे पास कोई सबूत नहीं है... केवल और केवल दलीलें हैं.... जिनके आधार पर सबूतों को और गवाहों को झुठलाना है....पर विश्व... मैं.. तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूँ... के मैं पूरी कोशिश करूंगा....
वैदेही और विश्व जयंत को सुन रहे थे l वैदेही से अब रहा नहीं जाता, वह गुस्से में मायूसी के साथ रोते हुए,
वैदेही - वकील साहब... आप विश्व से मिले... क्या जाना... उसके बारे में... के उसके घर घर में चर्चे हैं... इसलिए के उसने साढ़े सात सौ करोड़ रुपए लुटे हैं... पुलिस उसके हिफाज़त में आगे पीछे दौड़ रही है... इसलिए , की वह साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का लुटेरा है.... राजनीतिक गलियारों में विश्व को सजा देने के लिए होड़ लगी हुई है... क्यूँ... इसलिए कि विश्व साढ़े सात सौ करोड़ लुटा है.... मैं... दर दर भटकती रही... वकील तलाश करती रही... और सरकार ने आपको मेरे विश्व के लिए नियुक्त किया... क्या यह सुनने के लिए.... की विश्व की हालत अभिमन्यु जैसे है.... (वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है) यह मेरा भाई ही नहीं मेरा बेटा भी है..... आपसे कुछ उम्मीद थी... पर....
जयंत - उम्मीद... मुझसे... क्यूँ... किसलिए.... क्यूंकि मैं विश्व का वकील हूँ इसलिए.....
जयंत दोनों को देखता है और वे दोनों भी जयंत को देखते हैं फिर,
जयंत - मैंने तुम्हें पहले ही कहा था... की मैं कोई सेल्स मैन नहीं हूँ... जो किसी प्रोडक्ट की सर्विस की ग्यारंटी देता फिरूँ...
और विश्व के बारे में मुझे क्या जानना चाहिए... यह तुम मुझे बताओगी..... वैसे तुम यह अपनी रोना रो रो कर दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो... के दुनिया में... सबसे दुखी आत्मा तुम हो.... ताकि दुनिया की ध्यान तुम्हारी तरफ हो जाए... लोग तुम्हारे दुख से दुखी हो कर, आह.. आ.. ओह.. ओ... चु चु... करे... अरे इसका मतलब तो यह हुआ... की तुम लोग दुनिया वालों से सिंपथी चाहते हो... ना कि न्याय....
यह बात सुन कर वैदेही चुप हो जाती है और उसके साथ विश्व भी शुन हो जाता है l
जयंत - विश्व पर इल्ज़ाम संगीन है... सबूत और गवाह भरपूर है.... पर विश्व या तुम्हारे पास है क्या.... सिवाय अपना दुखड़ा रोने और दिखाने के..... मैं यहां सिर्फ़ अपने तरफ से विश्व को परख ने आया था.... और विश्व ने अपने आचार व विचार से प्रभावित किया है... मैंने उसे उसके माँ बाप के बारे में पूछा.... तो उसने भले ही स्वर्गीय शब्द लगाया पर उनके लिए हैं कहा..... थे कहीं पर भी नहीं कहा... थे शब्द सिर्फ़ आचार्य सर के लिए कहा था... बस यही काफी था... मेरे लिए... उसकी भावनाओं को समझने के लिए....
जयंत इतना कह कर चुप हो गया और दोनों के तरफ देखने लगा l दोनों जयंत को देख ऐसे आँखे फाड़े देख रहे थे जैसे आश्चर्य चकित हो कर सुन नहीं देख रहे हो l
जयंत - देखो विश्व... इस दुनिया में उम्मीद सिर्फ़ खुद से रखो... और विश्वास भी तुम खुद पर करो.... क्यूंकि किसको अपना समझ कर उम्मीद या विश्वास लगाए बैठोगे... तो जब दोनों टूटेंगी.... तब तुम भी टूट जाओगे.... जरा सोचो.. जिन्होंने तुमसे दुश्मनी करते हुए... तुमको फंसाया है... वह निस्संदेह बहुत ताकतवर हैं... पर तुम कहां से कम हो उनसे.... अगर तुम ताकतवर ना होते... क्या तुम उनसे टकराते.... उनको तुम्हारे भीतर के ताकत का अंदाजा है.... पर तुम्हें क्यूँ नहीं है....
विश्व और वैदेही जयंत को शांत हो कर सुन रहे हैं l लाइब्रेरी में शांति ऐसी छाई है जैसे बर्षों से उस कमरे में कोई नहीं है l
जयंत - अंत में विश्व... मैं यह फ़िर से कहूँगा.... तुम्हारे लिए... मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ....तुम चाहो तो... सरकार से वकील बदलने के लिए दरख्वास्त कर सकते हो....
विश्व - (एक आत्मविश्वास भरे स्वर में) नहीं... बिल्कुल नहीं.... वकील साहब...अब अंजाम चाहे कुछ भी हो... मेरा यह केस... अब आप ही लड़ेंगे....
जयंत - तुम फिर सोच लो....
वैदेही - नहीं वकील साहब नहीं.... आपने ठीक कहा.... कमजोरों की तरह... हम अपनी आँसू और ज़ख़्म दिखा कर... दुनिया से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं.... लेकिन अब और नहीं.... अब अंजाम जो चाहे हो.... अब हमे सहानुभूति नहीं चाहिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... वकील साहब...
जयंत - ठीक है... वैदेही... मेरा यहाँ काम समाप्त हो चुका है.... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों - जी वकील साहब
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टीवी पर न्यूज चल रही है,
"आज मंत्रालय में कैबिनेट की अहम बैठक हुई.... जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अब राजगढ़ मनरेगा घोटाले पर सुनवाई.... बिना देरी के अदालती कार्यवाही को लगातार करवाने पर चर्चा हुइ.... इस बाबत कैबिनेट में पास हुई यह प्रस्ताव को तुरंत राज्यपाल जी तक पहुंचा दिया गया है.... अब जानकार कह रहे हैं... उच्च न्यायालय को कल तक राज्यपाल जी से पत्र मिल जाएगा.... और हमारे सूत्रों के अनुसार अभियुक्त विश्व के पक्ष रखने के लिए सरकार ने अपने क्षेत्र के अनुभवी वक़ील श्री जयंत कुमार राउत को नियुक्त किया है.... यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के वकील दोनों ही सरकारी हैं और दोनों के तर्को से न्यायलय में... न्याय की नई परिभाषा कैसे लिखी जाएगी..... "
प्रतिभा टीवी ऑफ कर देती है और बड़बड़ाने लगती है
- छी... इनकी न्यूज ब्रीफिंग देखो... ऐसे चटखारे लगा कर बोल रहे हैं... जैसे अगली कड़ी में सिमर अपने ससुराल में बिरियानी में कौनसी मसाला डालेगी....
प्रत्युष वहीं बैठा हुआ था, अपनी माँ को बड़बड़ाते देख हंसने लगता है l प्रतिभा देखती है कि प्रत्युष पेट पकड़ कर सोफ़े पर लोटपोट हो कर हंस रहा है l यह देख प्रतिभा और भी चिढ़ जाती है l
प्रतिभा - बड़ा हंस रहा है... मैंने कोई जोक मारा है क्या...
प्रत्युष - अरे माँ.... जहां तक मुझे मालूम है... आप कभी सास बहु वाली टीवी सीरिअल देखती नहीं है.... पर आज... आप ससुराल सिमर वाली सिमर की बिरियानी याद कर रहे हो... हो हो हो..
प्रतिभा - आगे कुछ भी बोला तो... ठीक है... इसबार रात को लेट आने पर अपने डैड को बुलाना... दरवाजा खोलने के लिए....
प्रत्युष - (अपनी जगह से उठ कर धर्मेंद्र के स्टाइल में) माँ... एक सिमर की बात क्या छेड़ दी... तुमने मुझे इतना पराया कर दिया.... क्या लगती है आखिर यह सिमर तुम्हारी.... जिसकी बिरियानी के ख़ातिर अपने बेटे को... उसके हिटलर बाप के हवाले कर रही हो...
इतने में किसीने पीछे से उसके कान पकड़ता है l
प्रत्युष - कौन है... देख नहीं रहे हो... राज माता शिवगामी से उनका सुपुत्र बाहुबली बात कर रहा है....
आवाज - मैं.. बाहुबली का हिटलर बाप बोल रहा हूँ...
प्रत्युष - डैड.... थोड़ा तो डरीये... झाँसी रानी के सामने उसके बेटे के कान खींचना... कितना बड़ा दुशाहस... है... जानते हैं...
तापस - वह तो बाद की बात है.... पहले यह बता... यह हिटलर किसका बाप है... बाहुबली का... या दामोदर का...
प्रत्युष - डैड... आह.. आप कान छोड़ोगे... तो बोलूंगा ना....
तापस कान छोड़ देता है l इनकी अब तक यह हरकत देख कर प्रतिभा हंस रही थी l
तापस - हाँ तो लाट साहब बोलिए... हिटलर किसका बाप था....
प्रत्युष - वह तो मुझे नहीं पता.... पर इतना जरूर पता है... बाहुबली का बाप कटप्पा नहीं था....
इतना कह कर प्रत्युष वहाँ से भाग कर अपने कमरे में घुस जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है l यह देखकर प्रतिभा की हंसी फुट जाती है l वह सोफ़े पर बैठ कर पेट पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगती है l तापस प्रतिभा को ऐसे देखता है जैसे उसने बेहत खट्टी इमली खा लिया हो l
तापस - देखा भाग्यवान.... आपका लाडला कैसे... मेरा टांग खिंच रहा है....
प्रतिभा - (सोफ़े से उठ कर तापस को गले लगा कर) इस जादू की झप्पी से... ठंडा हो जाइए सेनापति जी... कुछ देर पहले... मेरा मुड़ उखड़ा हुआ था.... आपके लाट साहब ने मुझे हंसाने के लिए ऐसा किया....
तापस - (प्रतिभा को गले से लगा कर) जानता हूँ... जान.... मैं भी तो उसकी नटखट ठिठोलीयों के लिए यह सब करता हूँ...
प्रतिभा - भगवान उसे लंबी उम्र दे... वह बहुत नाम कमाए.... बस और कुछ नहीं...
Awesome update
 

Kala Nag

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Nice and awesome update...
धन्यबाद बंधु
आपका मेरे पेज पर आना और कमेंट करना मेरे भीतर के उत्साह को कई गुना बढ़ा देता है
इसलिए मैं आगे लिखने के लिए बाध्य हो जाता हूँ
 

Kala Nag

Mr. X
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Awesome update
आपका बहुत बहुत धन्यबाद
आप इसी तरह मेरे कहानी के साथ जुड़े रहें और कमेंट्स के जरिए मेरे उत्साह को बढ़ाते रहें
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
 

Jaguaar

Well-Known Member
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👉तेईसवां अपडेट
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कुछ दिनों बाद
राजगड़ में अपने घर के बाहर बरांदे पर दीवार के सहारे टेक लगा कर वैदेही बैठी हुई है l तभी गांव की एक औरत प्रमिला अपने बेटे गुल्लु को मारने के लिए भाग रही है l गुल्लु भागते हुए वैदेही के पास आता है l

गुल्लु - मौसी... मौसी बचाओ... मुझे.. (कह कर वैदेही के पीछे छुप जाता है)
प्रमिला वैदेही के पास नहीं आती, वह वैदेही से थोड़ी दूर खड़ी हो कर
प्रमिला - ऐ... गुल्लु... बाहर आ...
वैदेही - थोड़ी देर इसे यहीं रहने दे ना प्रमिला....
प्रमिला - देख वैदेही... तेरा एक साल के लिए और तेरे भाई का... पांच साल के लिए इस गांव के बड़ो ने, तुम लोगों का हुक्का पानी बंद करा रखा है..... मुझे अगर किसीने तुझसे बात करते देख लिया.... तो तु जानती है.... हमारा भी हुक्का पानी बंद हो सकता है.... इसलिए तु गुल्लु को भेज दे... मैं हाथ जोड़ती हूँ....
यह सुनकर वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l अपना सर हिलाते हुए और अपनी आँखों से आँसू पोछने के बाद, वैदेही - ठीक है प्रमिला तु जा यहाँ से... मैं कुछ देर बाद गुल्लु को तेरे पास भेज दूंगी....
प्रमिला - ठीक है वैदेही.... मैं जाती हूँ... और माफ कर देना मुझे... तेरी इस दुख की घड़ी में.... तेरा साथ नहीं दे पा रही हूँ...
वैदेही - कोई बात नहीं... इतना कह कर वैदेही चुप हो जाती है l प्रमिला वहाँ से अपने घर चली जाती है l वैदेही अपने पीछे से गुल्लु को खिंच कर बाहर लाती है और पूछती है,
वैदेही - क्यूँ रे... क्यूँ अपने माँ को परेशान कर रहा है....
गुल्लु - कहाँ मौसी.... मैं तो अपने किताब में से एक सवाल पूछा.... बदले में माँ मेरी पिटाई करने उठ पड़ी... इसलिए मैं भी पिटाई से बचने के लिए..... वहाँ से भाग आया....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ऐसा क्या सवाल पूछ लिया तुमने... जो तेरी माँ को जवाब में... झाड़ु उठाना पड़ा....
गुल्लु - मौसी... हमारे किताब में लिखा है... हमारे राज्य में... बारह मास में.. तेरह पर्व मनाते हैं... और जिन जिन पर्व के दिन हमें छुट्टी दी जाती है.... वह हम अपने गांव में क्यूँ नहीं मनाते... जिस तरह किताबों में लिखा है....
वैदेही - (कुछ देर शुन हो जाती है) कौन कौन से पर्व गुल्लु....
गुल्लु - जैसे गणपति पूजा, रथयात्रा, दशहरा, दीवाली, होली..... हमारे गांव में यह सब क्यूँ नहीं मनाया जाता है....
गुल्लु यह सवाल सुन कर वैदेही को कुछ ज़वाब नहीं सूझती है l
गुल्लु - बोलो ना मौसी.. जैसे किताबों में लिखा है... हमारे यहां वैसे क्यूँ नहीं मनाया जाता....
वैदेही - क्यूँ के हमारे राजगड़ में... भगवान वनवास में हैं... जैसे राम जी वन वास हुआ था ना... और राम जी तो चौदह वर्ष के बाद आ गए थे.... पर हमारे भगवान.... देखना एक दिन जरूर आयेंगे.... जरूर आयेंगे (उसके गालों को सहलाते हुए) और तु ज़रूर देखेगा.. अब जा अपने माँ के पास...
गुल्लु वहाँ से चला जाता है, उसी वक़्त एक डाकिया आकर एक रजिस्ट्री चिट्ठी दे कर वैदेही से दस्तख़त ले कर चला जाता है l

वैदेही चिट्ठी खोल कर पढ़ती है और पढ़ते पढ़ते खुशी से झूम उठती है l वह तुरंत बरंदा से उठ कर घर के अंदर जाती है और घर के मंदिर में माथा टेकती है l फिर अपने कुछ सामान पैकिंग कर घर में ताला लगा कर बाहर निकल जाती है राजगड़ की बस स्टैंड की ओर l
____×_______×_______×_______

विक्रम अपने कमरे में बैठा खिड़की की ओर देखते हुए, एक अंगुठी को अपने उंगली में घुमा रहा है और किसी ख़यालों में खोया हुआ है l तभी उस कमरे में इंटरकॉम बजने लगती है तो उसका खयाल टूटता है, वह इंटरकॉम उठाता है l

- युवराज...
विक्रम - जी छोटे राजा जी.....
पिनाक - आप हमारे कमरे में आने का कष्ट करेंगे... ब्रोकर आया है... प्लॉट और घर की बात करने....
विक्रम - जी अभी उपस्थित हो रहे हैं....
विक्रम इंटरकॉम रख देता है और उठ कर पिनाक के कमरे की ओर चला जाता है l पहुंच कर देखता है, दरवाजा खुला है l
पिनाक - (अंदर से) आइए युवराज.... आइए... आपका ही इंतजार हो रहा है....
विक्रम अंदर आकर देखता है एक आदमी अपने काख के नीचे एक काला बैग दबाये खड़ा है और उसके हाथ में एक फाइल भी है l विक्रम सीधे जा कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम के बैठते ही,
ब्रोकर एक घर की कुछ फोटोस् रख देता है, और कहता है - युवराज जी.... यह देखिए... यह भुवनेश्वर के राज भवन से दस किलोमीटर दूर ***विहार में है.... इस घर में एक बुढ़े दंपति रहा करते थे.... पिछले साल उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे.... जो विदेश में सेटलड हैं... उन्होंने मुझे इसे बेचने को कहा है... यह घर और इसके आसपास के जगह पूरे डेढ़ एकड़ का है....
विक्रम - ह्म्म्म्म अच्छी जगह है....इलाक़ा भी काफी पॉश इलाक़ा है.... आपको आर्किटेक्चर को भी साथ लेकर आना चाहिए था... ब्रोकर महाशय...
ब्रोकर - युवराज जी... उसे भी लाया हूँ.... वह नीचे लॉबी में बैठा हुआ है....
विक्रम - तो फिर... उसे नीचे क्यूँ छोड़ आए...
ब्रोकर - वो... अगर... आपको यह घर... पसंद ना आता... तो उसका यहाँ होना बेकार हो जाता.....
विक्रम - ठीक है... बुलाओ उसे....
ब्रोकर अपना मोबाइल निकाल कर किसीको फोन मिलाता है, और फोन पर उसे ऊपर कमरा नंबर *** को आने को कहता है l कुछ देर बाद एक अधेड़ उम्र का आदमी उस कमरे में आता है l सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार होता है l
विक्रम - आइए... आर्किटेक्चर जी... आपको इस घर में कुछ बदलाव करने हैं....

आर्किटेक्चर - जी युवराज जी... कहिए आपको क्या चाहिए... मैं आपको डिजाइन बना कर जल्दी ही आपकी सेवा में पेश करूंगा....
विक्रम - हम... राजवंशी हैं.... महलों की आदत है हमे... इसलिए... ध्यान रहे घर, बाहर से चाहे कैसा भी दिखे.... पर अंदर से महल जैसी फिलिंग आनी चाहिए....
आर्किटेक्चर - जी... युवराज...
विक्रम - हाँ.. जैसे कि एक राज महल में होता है... दिवान ए खास यानी प्राइवेट ड्रॉइंग रूम और दिवाने आम यानी पब्लिक मीटिंग हॉल... ऐसा इस घर में एक्स्ट्रा बनाएं.... जो इस घर से अटैचड हो...
आर्किटेक्चर - जी युवराज और....
विक्रम - एक जीम भी कुछ ऐसे डिजाइन करो.....बाहर के लोग अगर हॉल के वजाए जीम में मिलना चाहे तो.... बाहर से प्रवेश करें और... घर के लोग अंदर से....
आर्किटेक्चर - जी बेहतर...
विक्रम - कितने दिन में प्लान दे सकते हैं....
आर्किटेक्चर - युवराज जी... अभी तक मैंने सिर्फ पेपर और फोटो में घर को देखा है.... मुझे ऑन द स्पॉट जाकर... आईडीआ लेनी होगी.... फिर कम से कम दस या पंद्रह दिन...
विक्रम - (दोनों से) ठीक है आप दोनों आपस में तालमेल बिठा कर.... प्रॉपर्टी हैंडओवर और डिजाइन फाइनल कर आज से पंद्रह दिन बाद यहाँ पर आयें....
दोनों - जी बेहतर... (कह कर दोनों चले जाते हैं)
पिनाक - क्या बात है युवराज... आजकल आप जितनी तेजी से काम कर रहे हैं... उतने ही खोए खोए रहने लगे हैं....
विक्रम अपनी उंगली में पहने उस अंगुठी को देखते हुए
विक्रम - नहीं तो...
पिनाक - यह अंगुठी... आपके हाथ में.. कब ली...
विक्रम - हाल ही में बनवाया है...
पिनाक - ह्म्म्म्म मोती की लगती है.... कोई खास मोती है क्या...
विक्रम - बहुत ही खास... जब से यह मेरी जिंदगी में आयी है... सारे काम सिर्फ हो ही नहीं रहे हैं.... बल्कि दौड़ रहे हैं....
पिनाक - ह्म्म्म्म तो यह बात है.... लकी पर्ल है...
विक्रम - (हंसता है, और कहता है) पर्ल नहीं है... प्लास्टिक फाइबर की है....
पिनाक - (हैरान हो कर) व्हाट....
विक्रम - पर यह हमारे लिए कोहिनूर से भी महंगा है...
पिनाक - क्या.... एक मामूली सी प्लास्टिक फाइबर...

विक्रम - (बीच में टोक कर) यह मेरी लकी चार्म है.....
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वैदेही बस से कटक में पहुंच कर एक ऑटो से सीधे हाईकोर्ट के पास एक एक छोटे से घर में पहुंचती है l उस घर के दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा हुआ है l उस नेम प्लेट में नाम - 'जयंत कुमार राउत ' लिखा हुआ है l पर वैदेही को कॉलिंग बेल कहीं नहीं मिलती तो दरवाजा खटखटाती है l
अंदर से आवाज़ आती है
- सुश्री वैदेही महापात्र अंदर आ जाइए....
वैदेही हैरानी के साथ दरवाजे को धक्का दे कर अंदर आती है l अंदर एक अधेड़ उम्र का एक आदमी साधारण वेश भूसा में बेंत के सोफ़े पर बैठ कर कुछ फाइलें चेक कर रहा है l वह आदमी अपना चश्मा दुरुस्त करता है और वैदेही की ओर देखता है l
आदमी - आइए वैदेही जी आइए....
वैदेही - आप...
आदमी - मैं ही हूँ जयंत... हैरान मत होइए... मैं आपके यहां आने के बारे में... कैसे इतनी सटीकता से जान गया....
वैदेही - जी....
आदमी - बैठिए... क्यूंकि मैं अपने घर में.. केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था....
बेंत की चेयर को दिखा कर वैदेही को बैठने लिए कहता है पर वैदेही बैठने के लिए झिझकती है l
जयंत - वैदेही जी... यह मेरा गरीब खाना है.... और सरकार ने मुझे आपके भाई के तरफ से लड़ने के लिए नियुक्त किया है.... मैंने ही आपको रजिस्ट्री के जरिए लेटर किया था... आपसे भेंट करने के लिए....
वैदेही - जी आपके मिले चिट्ठी से... मुझे मालुम हो गया था...
जयंत - फिर आपको झिझक किस बात की है....
वैदेही चुप रहती है, शायद जयंत उसकी झिझक को समझ जाता है l
जयंत - वैदेही जी... बेशक यह केस बहुत बड़ा है.... पर मेरे क़ाबिलियत पर शक ना करें... वैसे मैं कोई सेल्स मैन तो नहीं हूँ... जो अपनी प्रोडक्ट सर्विस की ग्यारंटी दूँ.... पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ.... मैं अपना सौ फीसद दे कर आपके भाई को बचाने के लिए प्रयास करूँगा.... और वैदेही जी... मैं वकील बड़ा घर या गाड़ी वाला नहीं हूँ... पर विश्वास रखें... बहुत बड़ा नाम वाला, बहुत बड़ा जिगर वाला हूँ....
वैदेही अपना झिझक को थोड़ा कम करते हुए बैठ जाती है l
वैदेही के बैठने के बाद,
जयंत - मेरे यहाँ वैसे कोई नहीं आता.... जो अभी आया है..... उसे मैंने ही बुलाया है... इसलिए आपने दस्तक दी... तो मैं यह समझ गया आप ही होंगी....
वैदेही - ओ...
जयंत - (फाइलों पर ध्यान गडाते हुए) आप मेरे वेश भूसा या परिधान पर मत जाइए.... आपके भाई के केस के प्रति मैं ईमानदार रहूँगा.... बस इतना ही कह सकता हूँ...
यह सुनने के बाद, वैदेही एक उम्मीद भरी नजरों से जयंत को देख कर अपनी होठों पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
जयंत - तो.... वैदेही जी... जैसे ही मुझे सरकारी आदेश प्राप्त हुआ... मैं तुरंत अपने काम में लग गया... और मैंने इस केस के संबंधित सारे कागजात हासिल किए.... जिन्हें पुलिस के चार्ज शीट के आधार पर... प्रोसिक्यूशन के वकील ने अभियोजन पक्ष के तरफ से तैयार कर कोर्ट में दाख़िल किए थे....
वैदेही - जी...
जयंत - आपको क्या लगता है.... वैदेही जी... आपके केस लेने से सारे वकील मना क्यूँ करने लगे.....
वैदेही - सभी यह समझ रहे हैं... की हमारे पास पैसे हैं.. और हमसे उन पैसों में से अपना हिस्सा मांग रहे थे....
जयंत - ह्म्म्म्म स्वाभाविक है.... यह सच भी है.... पर इस सच का और एक दूसरा पक्ष भी है....
वैदेही - (हैरानी से जयंत को देखते हुए) जी....दूसरा....
जयंत - जी हां वैदेही जी.... यह केस नहीं है... एक आग का गोला है... जिससे हाथ ही नहीं... पुरा कैरियर भी जल सकता है... इसलिए इस केस से ज्यादतर वकीलों ने दूरी बनाना.. अपने लिए सही समझा....
वैदेही चुप रहती है, जयंत उससे कुछ ज़वाब ना पा कर,
जयंत - वैदेही जी... मैंने कुछ कहा...
वैदेही - जी...
जयंत - खैर... अब मैं इस केस के बावत... चंद सवालात आपसे करूंगा... और आप मुझे.. सही सही ज़वाब दीजिएगा....
वैदेही - जी पूछिए...
जयंत एक डायरी निकालता है और उसमें कुछ लिखता है, फ़िर एक छोटा सा टेप रिकार्डर निकल कर वैदेही के सामने रख देता है l
जयंत - हाँ तो वैदेही जी... आपके भाई.. श्री विश्व प्रताप महापात्र कहाँ तक पढ़े लिखे हैं....
वैदेही - जी वह इंटर में टॉप लिया था पूरे यश पुर में....
जयंत - ग्रैजुएशन क्यूँ नही कि....
वैदेही - राजगड़ में कोई कॉलेज नहीं है.... इसलिए उस प्रांत में कोई भी ग्रैजुएट नहीं हैं...
जयंत - क्यूँ... कोई दूर जा कर... उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की... किसीने...
वैदेही - राजगड़ में... ग्रैजुएट होना केवल राज परिवार का अधिकार है...
जयंत - ओ... अच्छा... अगर कोई ग्रैजुएशन करना चाहे तो...
वैदेही - तो उसे राजगड़ छोड़ना पड़ेगा.... और राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना पड़ेगा..
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही जी... आपका भाई गांव में सरपंच बनने से पहले क्या करते थे....
वैदेही - हमारी आमदनी अपने खेतों से हो जाती थी.... और कभी कभी राजा साहब जी घर में भी काम करता था...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा विश्व जी को सरपंच बनने का खयाल कैसे आया....
वैदेही - आया नहीं था वकील साहब... उसके दिमाग में डाला गया था...
जयंत - डाला गया था... मतलब...
वैदेही - एक दिन राजा साहब ने उसे... महल से उसके लिए बुलावा भेजा.... जब वह पहुंचा तो... गांव की बेहतरी के लिए उसे सरपंच बनने को कहा....
जयंत - ओ... तो यहाँ भी राज परिवार... ह्म्म्म्म
वैदेही - हाँ.... वकील साहब.... विश्व की नॉमिनेशन फाइल के वक्त राजा साहब उसके प्रॉपोजर भी थे....
जयंत - वाव... इंट्रेस्टिंग... अच्छा... वैदेही जी... चलिए एक काम करते हैं....
वैदेही उसे सवालिया दृष्टि से देखती है l
जयंत - हम अभी के अभी... सेंट्रल जैल जाएंगे.... और आपकी उपस्थिति में विश्व जी से भी कुछ जानकारी हासिल करेंगे.... फिर उसके बाद आप अपने गांव चले जाइएगा... और सुनवाई के दिन हाजिर हो जाइएगा.....
इतना कह कर अपने एक बैग में सारी फाइलें भर देता है l टेप रिकार्डर ऑफ कर देता है... और एक काले रंग के कोट निकाल कर पहन लेता है l वैदेही उसे हैरानी से देख रही है, कैसे अभी सवाल ज़वाब करने के बाद अचानक विश्व से मिलने भुवनेश्वर जाने के लिए तैयार भी हो गया है l
जयंत - तो.. वैदेही जी चलें....
वैदेही - जी... जी चलिए....
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जैल में कुछ सिंटेक्स के पानी की टंकीयों के नीचे सिमेंट के फर्श पर विश्व, बालू के साथ मिल कर कबंल धो रहा है l एक संत्री उसके पास आता है और कहता है,
-विश्व, अरे ओ विश्व.....(विश्व उसकी आवाज सुनकर रुक जाता है) तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बुला रहे हैं...
विश्व कंबल धोने का काम बालू के हवाले कर संत्री के साथ तापस के चैम्बर में पहुंचता है l
तापस - हाँ ... विश्व.. आओ.. आओ... तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी वकील ले कर आई है...
विश्व - क्या...
तापस - क्यूँ.. तुम्हें खुशी नहीं हुई....
विश्व - (पसीने को पोछते हुए) खुशी.... पता... नहीं...
तापस - वह एक नामी और माने हुए वकील हैं.... तुम्हारे लिए सरकार के तरफ से नियुक्त किए गए हैं.... उनकी हमे खास हिदायत है... के वह , तुम्हारी और तुम्हारी दीदी के साथ मीटिंग करेंगे... अकेले में... इसलिए मैंने तुम लोगों की मीटिंग की अरेंजमेंट उपर लाइब्रेरी में कर दिया है....
विश्व कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ अपना सिर हिला कर तापस की ओर देखता है l
तापस - अरे... वे लोग तुम्हारा लाइब्रेरी में इंतजार कर रहे हैं... और तुम्हारे वकील साहब का स्ट्रिक्टली इंस्ट्रक्शन है... वहाँ पर तुम तीनों के अलावा कोई और ना हो.... इसलिए तुम खुद लाइब्रेरी में अकेले जाओ...
विश्व फिर मुड़ कर लाइब्रेरी की ओर जाता है l उपर पहुच कर देखता है, लाइब्रेरी में टेबल के एक तरफ वैदेही और बीच में एक आदमी काले कोट में बैठा हुआ है l विश्व दरवाजे के पास रुक जाता है,
जयंत - आओ विश्व आओ.... मेरा नाम जयंत कुमार राउत है.... सरकार ने मुझे ही, इस साढ़े सात सौ करोड़ घोटाले की अदालती कार्यवाही में..... तुम्हारी पैरवी करने के लिए नियुक्त किया है.....
विश्व यह सुनकर जयंत को हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है,
जयंत - हमारे यहाँ आने की कारण... तुमको सुपरिटेंडेंट साहब बता चुके होंगे....
विश्व अपना सर हिला कर हामी भरता है l
जयंत - अरे.. यहाँ आकर बैठो... कब तक खड़े रहोगे...
विश्व आकर दोनों के पास बैठ टेबल के दुसरे तरफ बैठ जाता है l
जयंत - हाँ.. तो विश्व... अभी तुम राज्य में बहुत मशहूर व्यक्तित्व हो चुके हो... जानते ही होगे.... अब चौबीसों घंटे.... तुम्हारे सुरक्षा के लिए.... तुम्हारे आगे पीछे पुलिस... घर घर में... चर्चा में रखने के लिए मीडिया वाले... और तुम्हें गाली दे दे कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए पालिटिसियन... सब तुम्हारे ही कारण व्यस्त हैं...
विश्व को यह सब सुन कर बहुत बुरा लगता, उसकी सांसे भारी होने लगती है, नथुनों से जोर जोर से सांस लेने की कोशिश करता है, बड़ी मुश्किल से अपना रुलाई रोके रखता है l
अपनी पैनी दृष्टि से विश्व के हालात को गौर कर रहा है जयंत l वैदेही की भी अनुरूप हालत है l
जयंत - रिलैक्स विश्व... रिलैक्स... तुम्हें अदालत में.. इससे भी ज्यादा तीखे तानों से और सवालों का सामना करना पड़ेगा...
विश्व खुद को सम्भालने की कोशिश करता है l
जयंत - हाँ तो विश्व... केस पर चर्चा करें....
विश्व अपना भारी सर हिलाकर हामी भरता है l
जयंत - विश्व... मुझे तुम अपने पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर कुछ कहो...
विश्व - (जयंत को बिना देखे) मेरे पिताजी का नाम स्वर्गीय श्री रघुनाथ महापात्र है... और माता जी का नाम स्वर्गीय सरला महापात्र है.... और यह जो यहाँ बैठी हैं... वह मेरी बड़ी बहन सुश्री वैदेही महापात्र है....
जयंत - हाँ... इनके बारे में जानकारी है मुझे...
विश्व - मेरे पिता यशपुर इरिगेशन डिपार्टमेंट में क्लर्क थे.... वे राजगड़ में इसी सिलसिले में ट्रांसफर हो कर आए थे... उनके समय में एक नहर का काम शुरू हुआ.... जब मैं तेरह वर्ष का था... तभी वह इस संसार को छोड़ कर चले गए...उसके बाद...
जयंत - ह्म्म्म्म मतलब छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए.... तो तुमने इंटर कैसे पूरा किया...
विश्व - उमाकांत आचार्य सर के वजह से... वे हमारे पाइकपडा वार्ड में हमारे ही पड़ोसी और पारिवारिक मित्र थे...
जयंत - थे मतलब...
विश्व - जी वे हमारे पंचायत समिति के सभ्य भी थे.... पर मेरे सरपंच बनने के तीन महीने बाद ही... नदी किनारे में सांप के काटने से चल बसे....
जयंत - ओह... अछा... ह्म्म्म्म... हाँ... तुम दोनों अपने पिता के गुजरने के बाद.... गुजारा कैसे किया....
विश्व, वैदेही को देखता है l वैदेही कुछ ऑन-कंफर्टेबल सी दीखने लगती है l
विश्व - (जयंत के आँखों में देखते हुए) जी मैं बाबा के गुजर जाने के बाद... राजा साहब के यहाँ काम कर अपना गुजारा करता था....
जयंत - ओ... ह्म्म्म्म... तो तुम राजा साहब जी के मुलाजिम थे....
विश्व - जी... पर पिछले दो सालों से नहीं....
जयंत - क्यूँ..... जब कि वह तो चुनाव में तुम्हारे प्रपोजर थे....
विश्व - जी बस.. मैं अपने खेतों में काम कर आत्मनिर्भर बनना चाहता था....
जयंत - ओ... अच्छा... आत्मनिर्भर... ह्म्म्म्म फिर यह इलेक्शन लड़ने का विचार कैसे आया....
विश्व - वह राजा साहब ने एक बार महल बुला कर... खड़े होने के लिय समझाया था....
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... वैसे... क्या समझाया था..
विश्व - यही के... तुम युवक हो.... इसलिए अब तक विकास से महरूम... अपने गांव के विकास के लिए आगे आना चाहिए....
जयंत - ओ... इसलिए तुम आगे आए... और इतने आगे निकल गए.... के सब अब तुम्हारे पीछे पड़े हुए हैं... ह्म्म्म्म...
च्छा... तुम्हारा नॉमिनेशन पेपर में सेकंडर कौन था....
विश्व - जी आचार्य सर... मतलब... उमाकांत आचार्य सर....
जयंत - हाँ... जो आगे चलकर... सांप के काटने से... सिधार गए.... ह्म्म्म्म... वैसे विश्व... तुमने ग्रैजुएशन क्यूँ नहीं की....
वैदेही कुछ कहने को होती है, पर जयंत अपना हाथ दिखा कर वैदेही को कहने से रोक देता है l
विश्व - हमारे राजगड़ में डिग्री कॉलेज नहीं है.... और जिसे डिग्री चाहिए होता है.... उसे राजगड़ से हमेशा के लिए रिस्ता तोड़ना होता है...
जयंत - क्यूँ.. ऐसा क्यूँ...
विश्व - डिग्री पढ़ने का और हासिल करने का सिर्फ एक ही परिवार को हक़ है... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार का... किसी भी क्षेत्र में कोई भी राजगड़ वासी क्षेत्रपाल परिवार के बराबरी पर नहीं आने चाहिए.....
जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है.....
विश्व - पर मैंने करेसपंडिंग में इग्नू के जरिए बीए की शुरुआत कर ली थी....
जयंत - क्या... कब... पर तुम्हारे पंचायत चुनाव के डीक्लेयर फॉर्म में क्वालिफीकेशन कॉलम में इंटर विज्ञान भरा है...
विश्व - जी इसलिए.. क्यूँ की तब मैं इग्नू में केवल जॉइन हुआ था....
जयंत - ह्म्म्म्म... ठीक है... विश्व... मुझे जो जानना था... मैंने जान लिया... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों भाई बहन हैरानी से एक दूसरे को देखते हैं,
वैदेही - यह... यह क्या वकील साहब.... अपने तो विश्व से कुछ पूछा ही नहीं.... उसके अतीत के बारे में... उसके साथ हुए धोखे और अत्याचार के बारे में....
जयंत - (एक दम से भाव हीन तरीके से) मुझे किसकी कहानी को जानने में... कोई दिलचस्पी नहीं है.... क्यूंकि मैं नहीं चाहता... अपने क्लाइंट के प्रति सम्वेदना या सहानुभूति रखूं.... या फिर इमोशनली अटैच होऊँ...
वैदेही का चेहरा मुर्झा जाता है, और उसका सर दुख के मारे झुक जाती है l
जयंत - देखो.... कानून अंधा होता है.... उसे न्याय के लिए सबूत और गवाह चाहिए.... मैंने विश्व के खिलाफ चार्ज शीट से लेकर सबूत और गवाहों के रिकॉर्ड किए गए बयान देख व पढ़ चुका हूँ... और यक़ीन मानो... विश्व के विरुद्ध इतने संगठित रूप से कागजीय सबूतों को बनाया गया है.. (इतना कह कर जयंत अपने कुर्सी से उठ जाता है)
की विश्व इस केस में अभिमन्यु बन चुका है... हमारे पास कोई सबूत नहीं है... केवल और केवल दलीलें हैं.... जिनके आधार पर सबूतों को और गवाहों को झुठलाना है....पर विश्व... मैं.. तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूँ... के मैं पूरी कोशिश करूंगा....
वैदेही और विश्व जयंत को सुन रहे थे l वैदेही से अब रहा नहीं जाता, वह गुस्से में मायूसी के साथ रोते हुए,
वैदेही - वकील साहब... आप विश्व से मिले... क्या जाना... उसके बारे में... के उसके घर घर में चर्चे हैं... इसलिए के उसने साढ़े सात सौ करोड़ रुपए लुटे हैं... पुलिस उसके हिफाज़त में आगे पीछे दौड़ रही है... इसलिए , की वह साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का लुटेरा है.... राजनीतिक गलियारों में विश्व को सजा देने के लिए होड़ लगी हुई है... क्यूँ... इसलिए कि विश्व साढ़े सात सौ करोड़ लुटा है.... मैं... दर दर भटकती रही... वकील तलाश करती रही... और सरकार ने आपको मेरे विश्व के लिए नियुक्त किया... क्या यह सुनने के लिए.... की विश्व की हालत अभिमन्यु जैसे है.... (वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है) यह मेरा भाई ही नहीं मेरा बेटा भी है..... आपसे कुछ उम्मीद थी... पर....
जयंत - उम्मीद... मुझसे... क्यूँ... किसलिए.... क्यूंकि मैं विश्व का वकील हूँ इसलिए.....
जयंत दोनों को देखता है और वे दोनों भी जयंत को देखते हैं फिर,
जयंत - मैंने तुम्हें पहले ही कहा था... की मैं कोई सेल्स मैन नहीं हूँ... जो किसी प्रोडक्ट की सर्विस की ग्यारंटी देता फिरूँ...
और विश्व के बारे में मुझे क्या जानना चाहिए... यह तुम मुझे बताओगी..... वैसे तुम यह अपनी रोना रो रो कर दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो... के दुनिया में... सबसे दुखी आत्मा तुम हो.... ताकि दुनिया की ध्यान तुम्हारी तरफ हो जाए... लोग तुम्हारे दुख से दुखी हो कर, आह.. आ.. ओह.. ओ... चु चु... करे... अरे इसका मतलब तो यह हुआ... की तुम लोग दुनिया वालों से सिंपथी चाहते हो... ना कि न्याय....
यह बात सुन कर वैदेही चुप हो जाती है और उसके साथ विश्व भी शुन हो जाता है l
जयंत - विश्व पर इल्ज़ाम संगीन है... सबूत और गवाह भरपूर है.... पर विश्व या तुम्हारे पास है क्या.... सिवाय अपना दुखड़ा रोने और दिखाने के..... मैं यहां सिर्फ़ अपने तरफ से विश्व को परख ने आया था.... और विश्व ने अपने आचार व विचार से प्रभावित किया है... मैंने उसे उसके माँ बाप के बारे में पूछा.... तो उसने भले ही स्वर्गीय शब्द लगाया पर उनके लिए हैं कहा..... थे कहीं पर भी नहीं कहा... थे शब्द सिर्फ़ आचार्य सर के लिए कहा था... बस यही काफी था... मेरे लिए... उसकी भावनाओं को समझने के लिए....
जयंत इतना कह कर चुप हो गया और दोनों के तरफ देखने लगा l दोनों जयंत को देख ऐसे आँखे फाड़े देख रहे थे जैसे आश्चर्य चकित हो कर सुन नहीं देख रहे हो l
जयंत - देखो विश्व... इस दुनिया में उम्मीद सिर्फ़ खुद से रखो... और विश्वास भी तुम खुद पर करो.... क्यूंकि किसको अपना समझ कर उम्मीद या विश्वास लगाए बैठोगे... तो जब दोनों टूटेंगी.... तब तुम भी टूट जाओगे.... जरा सोचो.. जिन्होंने तुमसे दुश्मनी करते हुए... तुमको फंसाया है... वह निस्संदेह बहुत ताकतवर हैं... पर तुम कहां से कम हो उनसे.... अगर तुम ताकतवर ना होते... क्या तुम उनसे टकराते.... उनको तुम्हारे भीतर के ताकत का अंदाजा है.... पर तुम्हें क्यूँ नहीं है....
विश्व और वैदेही जयंत को शांत हो कर सुन रहे हैं l लाइब्रेरी में शांति ऐसी छाई है जैसे बर्षों से उस कमरे में कोई नहीं है l
जयंत - अंत में विश्व... मैं यह फ़िर से कहूँगा.... तुम्हारे लिए... मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.... इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ....तुम चाहो तो... सरकार से वकील बदलने के लिए दरख्वास्त कर सकते हो....
विश्व - (एक आत्मविश्वास भरे स्वर में) नहीं... बिल्कुल नहीं.... वकील साहब...अब अंजाम चाहे कुछ भी हो... मेरा यह केस... अब आप ही लड़ेंगे....
जयंत - तुम फिर सोच लो....
वैदेही - नहीं वकील साहब नहीं.... आपने ठीक कहा.... कमजोरों की तरह... हम अपनी आँसू और ज़ख़्म दिखा कर... दुनिया से सहानुभूति की उम्मीद कर रहे हैं.... लेकिन अब और नहीं.... अब अंजाम जो चाहे हो.... अब हमे सहानुभूति नहीं चाहिए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया... वकील साहब...
जयंत - ठीक है... वैदेही... मेरा यहाँ काम समाप्त हो चुका है.... अब हम अदालत में मिलेंगे....
दोनों - जी वकील साहब
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टीवी पर न्यूज चल रही है,
"आज मंत्रालय में कैबिनेट की अहम बैठक हुई.... जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अब राजगढ़ मनरेगा घोटाले पर सुनवाई.... बिना देरी के अदालती कार्यवाही को लगातार करवाने पर चर्चा हुइ.... इस बाबत कैबिनेट में पास हुई यह प्रस्ताव को तुरंत राज्यपाल जी तक पहुंचा दिया गया है.... अब जानकार कह रहे हैं... उच्च न्यायालय को कल तक राज्यपाल जी से पत्र मिल जाएगा.... और हमारे सूत्रों के अनुसार अभियुक्त विश्व के पक्ष रखने के लिए सरकार ने अपने क्षेत्र के अनुभवी वक़ील श्री जयंत कुमार राउत को नियुक्त किया है.... यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अभियोजन पक्ष और अभियुक्त पक्ष के वकील दोनों ही सरकारी हैं और दोनों के तर्को से न्यायलय में... न्याय की नई परिभाषा कैसे लिखी जाएगी..... "
प्रतिभा टीवी ऑफ कर देती है और बड़बड़ाने लगती है
- छी... इनकी न्यूज ब्रीफिंग देखो... ऐसे चटखारे लगा कर बोल रहे हैं... जैसे अगली कड़ी में सिमर अपने ससुराल में बिरियानी में कौनसी मसाला डालेगी....
प्रत्युष वहीं बैठा हुआ था, अपनी माँ को बड़बड़ाते देख हंसने लगता है l प्रतिभा देखती है कि प्रत्युष पेट पकड़ कर सोफ़े पर लोटपोट हो कर हंस रहा है l यह देख प्रतिभा और भी चिढ़ जाती है l
प्रतिभा - बड़ा हंस रहा है... मैंने कोई जोक मारा है क्या...
प्रत्युष - अरे माँ.... जहां तक मुझे मालूम है... आप कभी सास बहु वाली टीवी सीरिअल देखती नहीं है.... पर आज... आप ससुराल सिमर वाली सिमर की बिरियानी याद कर रहे हो... हो हो हो..
प्रतिभा - आगे कुछ भी बोला तो... ठीक है... इसबार रात को लेट आने पर अपने डैड को बुलाना... दरवाजा खोलने के लिए....
प्रत्युष - (अपनी जगह से उठ कर धर्मेंद्र के स्टाइल में) माँ... एक सिमर की बात क्या छेड़ दी... तुमने मुझे इतना पराया कर दिया.... क्या लगती है आखिर यह सिमर तुम्हारी.... जिसकी बिरियानी के ख़ातिर अपने बेटे को... उसके हिटलर बाप के हवाले कर रही हो...
इतने में किसीने पीछे से उसके कान पकड़ता है l
प्रत्युष - कौन है... देख नहीं रहे हो... राज माता शिवगामी से उनका सुपुत्र बाहुबली बात कर रहा है....
आवाज - मैं.. बाहुबली का हिटलर बाप बोल रहा हूँ...
प्रत्युष - डैड.... थोड़ा तो डरीये... झाँसी रानी के सामने उसके बेटे के कान खींचना... कितना बड़ा दुशाहस... है... जानते हैं...
तापस - वह तो बाद की बात है.... पहले यह बता... यह हिटलर किसका बाप है... बाहुबली का... या दामोदर का...
प्रत्युष - डैड... आह.. आप कान छोड़ोगे... तो बोलूंगा ना....
तापस कान छोड़ देता है l इनकी अब तक यह हरकत देख कर प्रतिभा हंस रही थी l
तापस - हाँ तो लाट साहब बोलिए... हिटलर किसका बाप था....
प्रत्युष - वह तो मुझे नहीं पता.... पर इतना जरूर पता है... बाहुबली का बाप कटप्पा नहीं था....
इतना कह कर प्रत्युष वहाँ से भाग कर अपने कमरे में घुस जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है l यह देखकर प्रतिभा की हंसी फुट जाती है l वह सोफ़े पर बैठ कर पेट पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगती है l तापस प्रतिभा को ऐसे देखता है जैसे उसने बेहत खट्टी इमली खा लिया हो l
तापस - देखा भाग्यवान.... आपका लाडला कैसे... मेरा टांग खिंच रहा है....
प्रतिभा - (सोफ़े से उठ कर तापस को गले लगा कर) इस जादू की झप्पी से... ठंडा हो जाइए सेनापति जी... कुछ देर पहले... मेरा मुड़ उखड़ा हुआ था.... आपके लाट साहब ने मुझे हंसाने के लिए ऐसा किया....
तापस - (प्रतिभा को गले से लगा कर) जानता हूँ... जान.... मैं भी तो उसकी नटखट ठिठोलीयों के लिए यह सब करता हूँ...
प्रतिभा - भगवान उसे लंबी उम्र दे... वह बहुत नाम कमाए.... बस और कुछ नहीं...
Superb Updatee
 
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