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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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👉एक सौ सैंतीसवाँ अपडेट
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बल्लभ तेजी से भागते हुए कमरे के आगे खड़ा हो जाता है l दरवाज़ा बंद नहीं था, पर्दा हटा कर अंदर झाँकता है अंदर अभी भी अंधेरा था l अपना गला खराश कर अपनी मौजूदगी जाहिर करता है पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता l मज़बूर हो कर आवाज़ देता है

बल्लभ - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
- आँ... कौन..

अंदर से एक घुटी हुई थकी हुई आवाज़ आती है l यह आवाज पिनाक सिंह की थी, बल्लभ अंदर नहीं जाता, वहीं दरवाजे पर खड़े रह कर बोलता है

बल्लभ - छोटे राजा जी... मैं प्रधान...
पिनाक - क्यूँ आया है... नकारा वकील...
बल्लभ - मुझसे जितना बन पड़ा किया तो था... बस आपने जिसे काम सौंप रखा था... उससे हुआ नहीं...
पिनाक - हाँ... मैंने जिससे भी कोई काम दिया... सबके सब नकारा निठल्ले निकले... वह साला हरामी अभी तक मेरे सामने नहीं आया है... जब मेरे सामने आयेगा... उसका गला... (हांफते हुए) रेत दूँगा... (फिर कुछ सेकेंड में खुद को सम्भालने के बाद) क्यूँ आए हो... तुम तो राजा साहब के साथ... चले गए थे ना...
बल्लभ - वह राजा साहब... कल रात को ही... राजगड़ चले गए हैं...
पिनाक - तो तुम क्यूँ नहीं गए...
बल्लभ - वह... (चुप हो जाता है)
पिनाक - बोल बे भोषड़ी के बोल...
बल्लभ - मैं थोड़ा अंदर आकर बात करूँ....
पिनाक - (कुछ देर की पॉज लेने के बाद) आ जाओ...

बल्लभ अंदर आता है तो उसके पैर में एक बोतल ठोकर लगती है l लुढ़कने की आवाज़ आती है l वह लड़खड़ाता है तो दरवाजे के पास जा कर बिजली की स्विच को ऑन करता है l लाइट जलने के बाद पिनाक अपनी आँखे मूँद लेता है जैसे चुँधीया गया हो l

पिनाक - आह... भोषड़ी के... लाइट क्यूँ जलाई...
बल्लभ - वह मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...
पिनाक - अच्छा ठीक है... जल्दी बक... क्या बकने आया था...

बल्लभ देखता है रात की पार्टी वाली कपड़े में ही पिनाक टेबल लगा कर रात भर शराब पिया है शायद l उसके शूट के सारे बटन खुले हुए हैं l कमरे में तीन या चार बोतल लुढ़क रहे हैं l

पिनाक - ऐ हरामी... जल्दी बक...
बल्लभ - वह मैं यह कह रहा था... राजा साहब सीधे पार्टी से निकलते ही... राजगड़ को रवाना हो गए...
पिनाक - हाँ बोला था... आगे बोल... तु क्यूँ नहीं गया...
बल्लभ - वह मुझे दो दिन तक रुकने के लिए कहा है....
पिनाक - (अपना चेहरा उठाता है और एक टूटी हुई हँसी हँसता है) क्या सिर्फ यही बताने आया था...
बल्लभ - हाँ... पर खबर और भी है...
पिनाक - हाँ वह भी बता देना... पर तुझे दो दिन के लिए रुकने के लिए क्यूँ कहा...
बल्लभ - क्यूंकि दो दिन बाद... सामल एंड ग्रुप की... वह सनशाइन प्रोजेक्ट की भू पूजन है...
पिनाक - हा हा हा हा हा...(हँसते हुए) मतलब राजा साहब को यकीन हो गया है... वह जमीन जिसको सामल को दिलवाने के लिए... तुने इतने पापड़ बेले... वह सारे गुड़ गोबर हो गया है...
बल्लभ - यह आप क्या कह रहे हैं... मैंने सामल को जमीन की पट्टा निकलवा कर दिया है...
पिनाक - तुने प्लान भी बढ़िया बनाया था... पुलिस वालों को जेब में ले लिया था... मीडिया वालों को भी... फिर... अनु पार्टी में पहुँच गई ना... (आवाज़ को चबाते हुए) उस हरामजादे विश्वा के वज़ह से... उसकी चाल के आगे हम सब मात खा गए...
बल्लभ - पर... हम ने तो सारी जमीनों की डीसप्युट दुर कर... रजिस्ट्री भी करा ली है... फिर कैसे विश्वा काम रोक सकता है...
पिनाक - बस यही तो तुझे देखना है... क्यूँकी अब जंग शुरु हो चुकी है... उसकी अपनी तैयारी है... हमें अब तैयार होना है... (बल्लभ अपनी भवें सिकुड़ लेता है) तुझे क्या लगता है... विश्वा राजकुमार का मदत कर रहा है... यह राजा साहब को मालुम नहीं था... अच्छे तरह से जानते थे... बस इतना समझ ले... कल की आने वाली जंग के लिए... हमारी काबिलियत परख रहे थे... हम नाकामयाब रहे... अब तेरी क़ाबिलियत की बारी है...
बल्लभ - क्या...
पिनाक - हाँ प्रधान हाँ... अब तु अपनी तसरीफ की सोच...
बल्लभ - इतनी बारीकी से काम किया है... जमीन भी सामल के नाम पर रजिस्ट्रेशन हो चुका है... फिर...
पिनाक - रजिस्ट्रेशन नहीं बे लीज... लीज बोल लीज... यहीं... विश्वा की दिमाग की परख होगी... खेर... वह तेरी किस्मत... पहले तु बता... यहाँ सिर्फ़ यह बताने तो आया नहीं...
बल्लभ - वह कल रात... उस लड़की अनु की दादी का देहांत हो गया है... आज सुबह उसकी अंत्येष्टि के लिए श्मशान ले गए हैं... और उसकी अंत्येष्टि... राजकुमार करने जा रहे हैं...
पिनाक - ओ... साली बुढ़िया से खुशी बर्दास्त नहीं हुआ... इसलिए चल बसी...
बल्लभ - छोटे राजा साहब...
पिनाक - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - अब मैं जाऊँ...
पिनाक - हाँ जाओ... और जाते जाते लाइट बंद करते जाना...
बल्लभ - क्यूँ राजा साहब... सुबह भी तो हो रही है...
पिनाक - कल से मेरी जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा है.... इसलिए उजाले से मुझे अब परेशानी हो रही है...
बल्लभ - बुरा ना मानें तो एक सवाल पूछूं...
पिनाक - हाँ पूछ ले...
बल्लभ - कब तक...
पिनाक - मतलब...
बल्लभ - आप ही ने कहा जंग छिड़ चुकी है...
पिनाक - हाँ जंग छिड़ चुकी है... ज़द में सब आयेंगे... पर पहले अपने घर की सफाई की बहुत जरूरी है... देखा नहीं दुश्मन ने कैसे हमारे कमजोर नस पर वार किया... मुझे क्या करना है... मैं जानता हूँ... और वह कर लेने के बाद ही राजगड़ वापस लौटुंगा... पर तु अपनी सोच... दो दिन बाद... तुझे अपना मुहँ काला करवा कर राजगड़ जाना है...
बल्लभ - नहीं मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा...
पिनाक - प्रधान... शतरंज के बिसात पर... तु अपनी चाल चल चुका है... इसलिए तुझे लग रहा है... तेरे मोहरे महफ़ूज़ हैं... पर आज... अभी मेरी छटी इंद्रिय कह रही है... तेरे शाह को मात मिल चुकी है...

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चर्र्र्र्र्र्र्र्र् आवाज़ करते हुए एक गाड़ी श्मशान के बाहर रुकती है l गाड़ी से सेनापति दंपति और विश्व उतरते हैं l श्मशान के बाहर कुछ लोगों का मजमा लगा हुआ था l पुलिस के कुछ कर्मचारी और सुभाष सतपती भी मौजूद था l मीडिया वाले भले ही नहीं थे पर सुप्रिया वहीँ पर थी l अनु रो रही थी, उसे सुप्रिया संभाल रही थी l वीर चिता के पास कर्मकांड के लिबास में तैयारी कर रहा था l प्रतिभा जैसे ही अनु के पास पहुँचती है, अनु सुप्रिया को छोड़ प्रतिभा के गले लग जाती है l विश्व और तापस सुभाष के पास आते हैं l सुभाष तापस को सैल्यूट करता है l

विश्व - यह क्या... मतलब कैसे हो गया...
सुभाष - कल शाम को पार्टी से... जब वीर और अनु घर पहुँचे तब घर के आगे भीड़ लगी हुई थी... पर चूँकि प्लान ही ऐसा था कि शाम तक अनु की खबर किसीको होने नहीं दिया गया था... इसलिए बस्ती में रहने वाले एक शख्स ने लोकल पुलिस स्टेशन में खबर करी... इत्तेफ़ाक से पुलिस और वीर एक साथ पहुँचे थे... बेड पर दादी सोई हुई लग रही थी... हस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टर ने डिकलैर कर दी...
तापस - रीजन...
सुभाष - कार्डियक अरेष्ट...
तापस - ओ...
सुभाष - हाँ कत्ल या साजिश की कोई निशानी नहीं थी... डॉक्टर ने कहा उम्र भी हो गई थी... ऐसे में यह नॉर्मल है....
तापस - ह्म्म्म्म...

इस दौरान वीर चिता में आग लगा चुका था l यह देख कर अनु जोर जोर से रोने लगी थी l ठीक उसी समय एक और गाड़ी वहाँ पर आकर रुकती है l गाड़ी में से सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वे तीनों जैसे ही अनु के पास पहुँचते हैं अनु रोते हुए चिता की ओर इशारा करती हुई रोने लगती है l सुषमा उसे सहारा देती है l

सुप्रिया - विश्वा...

विश्व सुप्रिया की तरफ देखता है l सुप्रिया उसे इशारे से पास बुला रही है l वह सुप्रिया के पास जाता है साथ में तापस और सुभाष भी आते हैं l

सुप्रिया - सीचुएशन थोड़ा पैनिक हो गया है... अब बात पुलिस और मीडिया पर आ गई है... लोग तरह तरह की बातेँ करने लगे हैं...
विश्व - हाँ समझ सकता हूँ... पर मुझे लगता है... तुमने अपने हिस्से का रोल ठीक से निभाया है...
सुप्रिया - हाँ... वेसे... सुभाष जी ने भी बहुत पापड़ बेले हैं रात भर...
तापस - देखो बेटी... मैं एहसानमंद रहूँगा तुम्हारे और सतपती के... विश्व की बात रखने के लिए... तुम लोगों ने अपने ऊपर थोड़ी निंदा ली है...
सुभाष - यह क्या कह रहे हैं सर... आप तो मेरे आइडल रहे हैं... और विश्व ने उस दिन जो किया था... उसके लिए... इतना तो बनता तो था...
विश्व - थैंक्स... यह मेरे लिए जिस तरह से आप लोगों ने... पर्सनली सिचुएशन को अपने ऊपर लेकर नॉर्मलाइज किया... उसके लिए थैंक्स...
सुभाष - हाँ उसके लिए सुप्रिया जी को थैंक्स तो बनता है... क्यूँकी जैसे ही खबर फैली दादी मर गई है... लोग पुलिस की नाकारे और निकम्मे पन की चर्चा करनी शुरु कर दी थी... यह तो सुप्रिया जी ने अपनी न्यूज के जरिए... अनु को ढूँढ लाने का श्रेय.. और गुनहगारों को पकड़ने का श्रेय हमें दी... इसलिए डिपार्टमेंट में हमारी इज़्ज़त बच गई... हाँ इस बात का दुख रहा... दादी... शाम को ही चल बसी...

इनकी बातेँ चल रही थी कि वीर वहाँ पहुँचता है l वीर की आँखे नम थीं l वह सीधे आकर विश्व के गले लग जाता है l यह दृश्य सुषमा देख रही थी l विश्व वीर के पीठ पर हाथ फेरते हुए दिलासा दे रहा था l कुछ देर बाद वीर विश्व से अलग होता है l अनु को लेकर सभी औरतें अनु को लेकर इन लोगों के पास आते हैं l

विश्व - सुन कर बहुत दुख हुआ...
वीर - हाँ दुख तो मुझे भी बहुत हुआ.... पर एक आत्म संतोष है... अनु को सही सलामत दादी के सामने खड़ा कर पाया...
विश्व - अब... सुना है... तुमने घर भी छोड़ दिया है...
वीर - हाँ... पता नहीं... अब अनु को लेकर कहाँ जाऊँगा...
सुभाष - क्यूँ अनु अपनी घर पर रह सकती है ना... हाँ तुम शायद उस बस्ती में... उसकी खोली में नहीं रह सकते... तुम्हें आदत जो नहीं है...
वीर - नहीं ऐसी बात नहीं है... कल मैंने निश्चय कर लिया था... अनु से शादी कर जब तक कुछ जुगाड़ नहीं हो जाता तब तक... अनु और दादी के साथ... उनकी ही बस्ती में रूकुंगा... पर...
विश्व - पर क्या...
वीर - अब माली साही बस्ती में... हालात कुछ और हो गई है...
विश्व - क्या मतलब...
वीर - अनु के नाम पर... बाते फैल गई है... कल दादी की लाश तक कोई आ नहीं रहा था... पर ताने सुनाई दे रही थी... बेवजह की ताने... बेमतलब की ताने...
विश्व - ओह... तो फिर...

बेबसी से अपना सिर ना में हिला कर अपनी मायूसी जाहिर करता है l तब प्रतिभा कहती है

प्रतिभा - यह कोई प्रॉब्लम नहीं है... अनु को मैं अपने साथ रख लुंगी... वैसे भी... मेरी कोई बेटी नहीं है... (तापस से) क्यूँ जी... क्या कहते हो...
तापस - बहुत अच्छा फैसला किया है तुमने...
विश्व - हाँ माँ बहुत बढ़िया फैसला किया तुमने... (वीर की ओर देख कर) क्यूँ वीर...
वीर - नहीं... यह सफर... अब मेरा और अनु का है... मैंने दादी से वादा किया था... अनु को कभी भी मैं अकेला नहीं छोड़ सकता हूँ...
प्रतिभा - अरे... अनु कहाँ अकेली होगी... हमारे साथ रहेगी और हम उसके साथ रहेंगे...
वीर - अच्छी विचार है आंटी जी... पर (हाथ जोड़ कर) मैं अपनी जिम्मेदारी किसी और के कंधे पर नहीं डाल सकता...
तापस - पर वीर सहाब... अभी तो आपके खुद के रहने के वांदे हैं...
वीर - जी हाँ अंकल जी... खैर आप सभी बड़े हैं... मैं फैसला अनु पर छोड़ रहा हूँ.... उसे अगर आपके साथ रुकने से कोई ऐतराज ना हो तो... मुझे कोई शिकायत नहीं होगी...
प्रतिभा - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... (अनु से) क्यूँ अनु बेटी... रहोगी ना मेरे साथ... (सभी लोग गौर से अनु की ओर देखने लगते हैं, थोड़ी झिझक के साथ अनु जवाब देती है)
अनु - जैसे कि राजकुमार जी ने कहा... यह इम्तिहान उनका और मेरा है... और मेरा पुरा खयाल रखने के लिए... उन्होंने दादी से वादा किया था... मेरा साथ ना छोड़ने के लिए... भरोसा दिया था... इसीलिए तो... उन्होंने मेरे लिए... अपनी दुनिया छोड़ दी... अब जब इतनी बड़ी दुनिया में... वह अकेले सफर पर निकले हैं... मैं उन्हें अकेला कैसे छोड़ सकती हूँ.... यह जहां रहेंगे... उनकी साया बन कर मैं उनके साथ रहूंगी...

थोड़ी देर के लिए वहाँ पर खामोशी पसर जाती है l खामोशी को तोड़ते हुए प्रतिभा अनु से कहती है l

प्रतिभा - शाबाश बेटी शाबाश... तो यह तय हुआ... के तुम दोनों हमारे यहाँ रुकोगे....
वीर - नहीं आंटी... नहीं... आप यह भुल रही हैं... मैंने भले ही क्षेत्रपाल से नाता तोड़ दिया है... पर क्षेत्रपाल मुझे या मुझसे जुड़े किसी को भी नहीं छोड़ेंगे... मैं नहीं चाहता... उस आंच के दायरे में... आप या अंकल आयें... अगर ऐसा हुआ तो... मैं प्रताप को कभी मुहँ दिखा नहीं पाऊँगा...
विश्व - नहीं ऐसा कुछ नहीं...
वीर - (अपना हाथ उठा कर विश्व को कुछ और बोलने से रोक देता है) प्रताप... बस यार... बस...
विश्व - नहीं मेरा कहने का मतलब है....
सुषमा - वीर सही कह रहा है...

सबका ध्यान सुषमा की तरफ चली जाती है l सुषमा फिर से प्रतिभा और विश्व से कहती है

सुषमा - वीर सही कह रहा है... असल में सही मायने में... वीर का जन्म कल ही हुआ है... अब वह दुनिया को देखेगा... चलने की कोशिश में... गिरेगा... हर कदम पर ठोकरें मिलेगी... फिर वह संभलेगा... फिर दुनिया के सामने तन कर खड़ा होगा...(सभी कुछ देर के लिए स्तब्ध हो जाते हैं) अनु ने भी जो फैसला किया है... सही किया है...

अनु आकर सुषमा के गले लग जाती है l सुषमा के यह कह लेने पर प्रतिभा, तापस और विश्व एक दुसरे को ताकते रह जाते हैं l इतने में शुभ्रा वीर और अनु से कहती है

शुभ्रा - वीर.. अनु तुम दोनों मेरे साथ आओ...
वीर - नहीं भाभी... मैं उस हैल में वापस नहीं जाऊँगा...
शुभ्रा - तुम दोनों को मैं उस हैल में लेकर जाऊँगी भी नहीं... (मुस्कराते हुए) विश्वास रखो मुझ पर... आओ मेरे साथ...

वीर थोड़ा असमंजस सा होता है और सुषमा की ओर देखता है l सुषमा उसके पास आकर उसके पीठ पर हाथ रखते हुए

सुषमा - जाओ वीर... तुम्हारे भाभी के साथ जाओ...
वीर - पर माँ..
सुषमा - बात अगर तुम्हारे अकेले की होती तो... मैं कुछ ना कहती... पर बात मेरी बहु की है... इसलिए... इस वक़्त तुम अनु को लेकर अपने भाभी के साथ जाओ... (रुप से) हाँ रुप... तुम भी जाओ इनके साथ...
रुप - जी... जी माँ... और आप...
सुषमा - मुझे वीर के इस दोस्त से कुछ बातेँ करनी है... (प्रतिभा की ओर देख कर) अगर आप बुरा ना मानें... तो... अकेले में...
रुप - माँ आप को हम यहाँ अकेले कैसे छोड़ कर जाएं...
सुभाष - मैं प्रॉब्लम सॉल्व कर देता हूँ... मैं तापस सर को अपने साथ लेकर घर पर ड्रॉप कर देता हूँ... सुप्रिया जी प्रतिभा मैम को... कोर्ट में ड्रॉप कर देंगी.... विश्व मैम की गाड़ी अपने पास रख ले... जब मीटिंग खत्म हो जाएगी... तब विश्व रानी साहिबा को उनके घर पर ड्रॉप कर देगा... क्यों...
सुप्रिया - ठीक है... वीर... रुप और शुभ्रा जी एक गाड़ी में चले जाएं... अनु को लेकर मैं और मैम उनके पीछे पीछे जाते हैं... अनु को ड्रॉप करने के बाद हम कटक चले जाएंगे... क्यूँ मैंम...
प्रतिभा - ठीक है...

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ड्रॉइंग रुम में एक सोफ़े पर बैठा बल्लभ इंतजार कर रहा था l कुछ देर बाद निर्मल सामल आता है l उसकी हालत नॉर्मल नहीं लग रही थी l बाल बिखरे हुए थे और आँखे थकी हुई लग रही थी l

बल्लभ - गुड मॉर्निंग सामल साहब...
निर्मल - हूं ह्म्म्म्म... गुड मॉर्निंग..
बल्लभ - लगता है आप रात भर सोये नहीं...
निर्मल - हाँ... नींद ही नहीं आई...
बल्लभ - क्यूँ डर के मारे या...
निर्मल - (आँखे गुस्से से फैल जाते हैं और जबड़े भींच जाती हैं) डर... किस बात का डर... प्रधान बाबु... मैं निर्मल सामल हूँ... अपनी यह हस्ती ऐसे ही नहीं बनाया है मैंने...
बल्लभ - सॉरी मैं यहाँ आपको डराने के लिए नहीं आया था.... मैं बस ऐसे ही पूछ बैठा... चूंकि आप रात भर...
निर्मल - एक ग्लानि भाव था मन में... इसलिए सो नहीं पाया...
बल्लभ - ग्लानि भाव...
निर्मल - हाँ... राजा साहब के लिए भी... और अपनी बेटी के लिए भी... (इस बार बल्लभ चुप रहता है) राजा साहब खुद रिश्ता लेकर आए थे... मैंने ना आगे देखा ना पीछे... अपनी रजामंदी दे दी... कास के अपनी बेटी से पूछ कर बताया होता... तो यह नौबत ही नहीं आई होती... बाहर की बात और है प्रधान बाबु... अपनी ही घर में... अपनी ही बेटी से नजरें चुराना पड़ रहा है... यह तकलीफ तुम नहीं समझोगे.... उसके लिए एक बेटी का बाप होना चाहिए...
बल्लभ - आ... आई एम सॉरी... सामल बाबु...
निर्मल - वैसे... तुम किस लिए आए थे... क्या उस जमीन के बारे में...
बल्लभ - हाँ.. मैं वह.. यह कहने आया था... के... पर्सनल रिलेशन और प्रोफेशनल रिलेशन को मिक्स मत कीजिए... यह प्रोजेक्ट नहीं रुकनी चाहिए...
निर्मल - मैं एक बिजनैस मैन हूँ प्रधान बाबु... अभी आपने जो मुझसे कहा... यही बात मैं राजा सहाब तक पहुँचाना चाहता था... जो हुआ... उसे दिल पर ना लें... पर्सनली ना सही... प्रोफेशनली हम एक दुसरे के साथ दे और ले सकते हैं...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... इसका मतलब आप सब पहले से ही सोच रखा है...
निर्मल - (भवें सिकुड़ जाते हैं) क्या मतलब है आपका प्रधान बाबु... क्या कहना चाहते हैं आप...
बल्लभ - कुछ नहीं... मुझे लगा कि आपको दुख होगा... रिश्ता ना बन पाने पर...
निर्मल - वह दुख तो था... प्रधान बाबु... पर...
बल्लभ - था... मतलब अब नहीं है...
निर्मल - नहीं... अब नहीं है... (बल्लभ कुछ कहना चाहता था पर हाथ के इशारे से निर्मल उसे टोकते हुए) प्रधान बाबु... हर कोई जानता है... क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों के चरित्र को... पर सामने मुहँ पर कोई कहता नहीं है... समाज में प्रतिष्ठा के लिए... रुतबे के लिए थोड़ी देर के लिए... अपने बाप होने की बात को भूल गया था... पर मेरी बेटी सस्मीता ने रिश्ते को नकार कर मेरी बुद्धि पर पड़े मिट्टी को साफ कर दी... वैसे भी... वीर ने अपना फैसला सुना दिया ज़माने के सामने... और इतना तो आप भी जानते होंगे... मानते होंगे... वीर सिंह को फैसला बदलवाने पर खुद राजा साहब भी मजबूर नहीं कर सकते.... रही बिजनैस की बात... राजा साहब मुझे पहले बिजनैस की ऑफर की थी... रिश्ते की नहीं... वैसे भी... सन साइन प्रोजेक्ट के मामले में... मैं बहुत आगे आ गया हूँ... पैसा भी बहुत लग चुका है... इसलिए यह मेरी तरफ से सुझाव है... प्रोफेशन और पर्सनल रिश्तों को अलग रखते हैं... हाँ अगर उनकी प्रोजेक्ट में खलल डालने का कोई विचार हो तो... मैं इस प्रोजेक्ट से अपना हाथ खिंच सकता हूँ... सोच लूँगा थोड़ा नुकसान उठा लिया...

इतना कह कर निर्मल चुप हो जाता है l बल्लभ जो निर्मल की बातों को सुने जा रहा था वह एक दम से स्तब्ध रह जाता है l जब उसे एहसास होता है कि निर्मल चुप हो गया है बल्लभ अपना गला खरासता है और कहना शुरु करता है

बल्लभ - आहेम.. आहेम... आप तो पक्के बिजनैस मैन निकले सामल बाबु... अपने सब कुछ नाप तोल कर नहीं... बल्कि साफ साफ कह दिया... खैर... कुछ बातेँ मैं क्लियर कर देना सही समझता हूँ... देखिए सामल बाबु... राजा साहब आपको भुवनेश्वर में इसलिए लाए ताकि आप कमल कांत उर्फ केके की जगह ब्रांड बन जाएं... फ़िलहाल जो हुआ, राजा साहब और छोटे राजा जी उसके शॉक में हैं... उनकी कोई मंशा नहीं है यह प्रोजेक्ट बंद हो... बस वह चाहते हैं कि... आप जोडार ग्रुप को घुटने पर ले आयें... ताकि वह ओडिशा छोड़ कर वापस बंगाल भाग जाए... और रही आपका बहुत पैसा लगा है... तो आप इतना तो मान लीजिए... अरबों की प्लॉट को महज कुछ करोड़ों में हासिल किया है आपने... और इसके पीछे राजा साहब की एहसान को मत भूलिएगा... पर... (इतना कर कर अपनी बातों पर बल्लभ ब्रेक लगा देता है)
निर्मल - इसीलिये तो कहा प्रोफेशन को पर्सनल रिश्ते ना घोलें... और मैंने कभी इंकार भी नहीं किया और ना ही भुला हूँ... वह जमीन कैसे मिला है... उसके लिए आप लोगों ने क्या क्या पापड़ बेले हैं... वर्ना मुझे निन्यानबे साल की लीज नहीं मिलती... रही जोडार ग्रुप की... तो मैंने प्रोफेशनली उन्हीं की सिक्युरिटी ग्रुप की देख रेख में भूमि पूजन का प्रोग्राम रखा है..
बल्लभ - व्हाट... आई मिन वाव... पर...
निर्मल - फिर पर...
बल्लभ - हाँ सामल बाबु... आप आज अगर राजा साहब के दोस्त हैं... तो उनसे दुश्मनी रखने वालों की नजर में आप तो खटकेंगे ही... कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी ना हो इसलिए मैं आपको आगाह करने आया था...
निर्मल - क्या... जमीन की लीज मिल जाने पर भी... आपको लगता है... कोई डिस्टर्बांस होगा...
बल्लभ - मुझे तो नहीं लगता... कानूनन कोई अड़चन होगी... पर पता नहीं और कुछ... आई मिन..
निर्मल - इसीलिये तो मैंने जोडार ग्रुप सेक्यूरिटी हायर किया है... परसों की भू पूजन के लिए... आप इत्मिनान रखिए... उस दिन किसी प्रकार की... बाधा नहीं आएगी...

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शुभ्रा रुप के साथ अनु और वीर को लेकर xxxx अपार्टमेंट के पार्किंग एरिया में आती है l उनके पीछे पीछे सुप्रिया और प्रतिभा भी पहुँचते हैं l

वीर - भाभी... यह आप मुझे कहाँ ले आईं...
शुभ्रा - (भवें सिकुड़ कर मजाकिया लहजे में) तुम्हें... मैं तुम दोनों को लाई हूँ...
वीर - ओ हाँ... मतलब हमें यहाँ कहाँ लाईं हैं...
शुभ्रा - तुम ही ने तो कहा था... तुम्हें वापस हैल में नहीं जाना... इसलिए मैं तुम दोनों को... एक छोटे से पैराडाइज को लेकर आई हूँ...
वीर - क्या... पैराडाइज...
शुभ्रा - श्श्श्... अब और कोई सवाल नहीं... चुप चाप मेरे साथ चलो... (प्रतिभा और सुप्रिया से) आप भी आइए...

सभी लिफ्ट में सवार हो जाते हैं l अपार्टमेंट की छत पर लिफ्ट पहुँचती है l सभी देखते हैं छत पर एक पेंट हाउस था, जिसकी दरवाजे के पास दीवार पर पैराडाइज लिखा हुआ एक प्लेट लगा हुआ था l शुभ्रा चाबी निकाल कर दरवाजा खोलती है l जब सभी अंदर आने को होते हैं तभी शुभ्रा अनु और वीर को दरवाजे पर रोक देती है l दोनों हैरान हो कर शुभ्रा को देखते हैं l शुभ्रा मुस्कराते हुए अंदर जाती है और एक थाली में दीप और आरती लेकर आती है l दोनों की नजर उतारती है फिर दोनों को अपने अपने दाहिने पैर को आगे कर अंदर आने को कहती है l वीर और अनु दोनों थोड़े झिझकते हुए अंदर आते हैं l उनके अंदर आते ही रुप खुशी के मारे ताली बजाने लगती है l

वीर - भाभी... यह घर...
शुभ्रा - यह मेरा घर है... आज इसे मैं अपनी देवरानी को सौंप रही हूँ.. (यह कह कर घर की चाबी अनु के हाथ में देती है, पर अनु चाबी लेने से कतराती है)
प्रतिभा - रख लो बेटी रख लो... (अनु चाबी रख लेती है)
वीर - भाभी... यह...
शुभ्रा - देखो मैं जानती हूँ... अभी तुम्हारा खुन उबाल मार रहा है... पर तुम कल तक क्या थे... और आज क्या हो... दुनिया से आजमाइश करने निकले हो... तुम्हें किसीका साथ भी नहीं चाहिए... पर यह मत भूलो... (अनु के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुमसे... एक जिंदगी जुड़ी हुई है... जिसकी हिफाजत का वादा... उसके दादी से तुमने किया है... (वीर चुप रहता है) देखो... इस घर पर... किसी भी क्षेत्रपाल का कोई हक नहीं है... यह मेरी पैराडाइज है... जिसे अब मैं तुम दोनों के हवाले कर रही हूँ... यकीन मानों... तुम्हारे हर ख्वाहिश... हर ख्वाब यहाँ पर पुरा होगा...

वीर के आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं l वह अपनी ज़ज्बात काबु नहीं कर पाता घुटनों पर आकर शुभ्रा के पैर पकड़ लेता है l

वीर - मुझे माफ कर दो भाभी... मैं तुम्हारे इस प्यार के लायक नहीं हूँ... मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ... मैंने तुम्हारे खिलाफ कभी षड्यंत्र किया था...
शुभ्रा - शशश्श्... (वीर को उठाते हुए) वीर... अगर तुमने कुछ किया भी था... वह मैं सुनना नहीं चाहती... तुम्हारा और मेरा रिश्ता भाभी और देवर का है... मत भूलो... यह रिश्ता माँ और बेटे के समान होता है... बेटा कुछ गलती करे... तो माँ माफ कर देती है... वैसे भी... मुझे तुमसे कभी गिला था ही नहीं... इसलिए कुछ भी मत कहो... मैं तुमसे कोई गिला रखना भी नहीं चाहती...
वीर - पर भाभी...
शुभ्रा - कहा ना... मैं कुछ सुनना नहीं चाहती... अब यह घर तुम दोनों के हवाले... यहाँ पर तुम दोनों अपनी दुनिया बसाना....
प्रतिभा - वाह बेटी वाह... आज वाकई मैं तुमसे बहुत प्रभावित हो गई... तुम्हारे बारे में किसी से सुना करती थी... आज साक्षात देख भी लिया... (इतना सुनने के बाद रुप अपनी नजरें घुमा लेती है)
सुप्रिया - वाकई... जिनके बीच पली बढ़ी... वही लोग जब मुसीबत आई तो अनु का साथ छोड़ दिया... अनु को अकेला कर दर दर ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया... पर वीर ने अनु का साथ नहीं छोड़ा... और (शुभ्रा से) आपने इन्हें ठोकर खाने से बचा लिया...
शुभ्रा - अच्छा... चलिए अब हम चलते हैं... इन दो प्यार के परिंदों को... इनके घोंसले में छोड़ कर चलते हैं...
सुप्रिया - हाँ हाँ... चलिए...

सभी लोग वीर और अनु को वहाँ पर छोड़ कर चले जाते हैं l वीर और अनु उस घर में असमंजस सा खड़े रह जाते हैं l

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विश्व की गाड़ी दौड़ी जा रही थी, बगल में सुषमा चुपचाप बैठी हुई थी l गाड़ी अब शहर से दुर अंगुल रोड पर आ चुकी थी l महानदी ब्रिज के पार होते ही एक सुनसान बियाबान जगह देख कर सुषमा विश्व को गाड़ी रोकने के लिए इशारा करती है l विश्व गाड़ी रोक देता है l सुषमा गाड़ी से उतर कर बाहर एक किनारे खड़ी हो जाती है और बियाबान के परे सूरज की रौशनी से चमकती हुई बहती महानदी को देख रही होती है l विश्व भी गाड़ी से उतर कर सुषमा के बगल में खड़े हो कर वही दृश्य को देखने लगता है l

विश्व - आपके मन में बहुत से सवाल हैं... पर कहाँ से कैसे शुरू करें.. इस बात पर आपको असमंजस है...
सुषमा - (विश्व की ओर देखती है) हाँ तुमने सही कहा... सवाल इतने हैं कि पूछो ही मत... पर जवाब... जवाब के लिए ना तो तुम्हारे पास वक़्त है... ना ही मेरे पास... (एक पॉज लेकर) तुम... अनाम हो ना...
विश्व - जी... (बेबाकी से जवाब देता है)
सुषमा - तुम चाहते क्या हो अनाम...
विश्व - मैं आपका मतलब नहीं समझा...
सुषमा - हूंह्... तुम्हारा इकलौता मकसद है... क्षेत्रपाल को मिटाना... चाहे कुछ भी हो... कैसे भी हो... क्या इसीलिए... रुप से प्यार का नाटक और वीर से दोस्ती का नाटक कर रहे हो...
विश्व - अब आप मुझ पर साजिश का इल्ज़ाम लगा रही हैं...
सुषमा - हाँ शायद... यह तुम क्षेत्रपाल से किस तरह का बदला लेना चाहते हो... अगर उन्हें मिटाना ही चाहते हो तो... सामने से वार क्यूँ नहीं कर रहे.. पीठ पीछे वीर और रुप के आड़ में... क्यूँ वार कर रहे हो...
विश्व - आप हाइपर हो रहीं हैं...
सुषमा - हाँ हो रही हूँ... मानतीं हूँ.. तुम्हारे साथ... क्षेत्रपाल सही नहीं किए.... पर यह किस तरह का बदला लेना चाहते हो...
विश्व - वीर... आपके परिवार से अलग हुआ... इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है...
सुषमा - मामला वीर और क्षेत्रपाल के बीच था... तुम क्यों बीच में घुस आए...
विश्व - मैं घुसा नहीं हूँ... वीर ने आवाज दी... मैं आ गया... इससे पहले बात को आप आगे बढ़ाएँ... मैं कुछ कहूँ...
सुषमा - कहो...
विश्व - आपकी नाराजगी किससे है... मुझसे... या आपके बच्चों से... या फिर अपने आपसे...
सुषमा - (चुप रहती है)
विश्व - आपके आँखों के सामने ही बड़ा हुआ हूँ... मैं आपके आँखों के सामने उतना रहा हूँ... जितना कभी वीर नहीं रहा आपके सामने... क्या आपको लगता है... मैं कोई साज़िश कर सकता हूँ... (सुषमा चुप रहती है, पर विश्व के बोलने के लहजे में धीरे धीरे कड़क पन छाने लगता है) हाँ मैं जितना क्षेत्रपालों के बारे में जानता गया... मेरी दीदी के साथ हुए अन्याय के बारे में जानता गया... मुझे क्षेत्रपालों से नफरत होती गई... और जब मुझे फंसा कर जैल भिजवा दिया... तब मेरे पास सिर्फ एक ही लक्ष रह गया... बदला... बदला सिर्फ बदला... यकीन जानिए... मैं जैल में रह कर मुजरिमों के बीच रह कर.. जुर्म की दुनिया के हर दाव पेच से वाकिफ हूँ... खुद को भैरव सिंह को मिटाने के लिए तैयार कर लिया था... आप जिस औरत से इजाजत लेकर मुझे यहाँ लेकर आई हैं... अगर वह ना होतीं... तो यकीनन मैं क्षेत्रपाल महल में घुस कर... भैरव सिंह का सिर काट कर... गांव की गालियों में ठोकर मारते हुए पुलिस स्टेशन गया होता... मेरी माँ... मुहँ बोली माँ... उन्होंने.. मुझसे वादा लिया... भैरव सिंह क्षेत्रपाल को कानूनन सजा दिलाने के लिए... इसलिए... भैरव सिंह अभी तक सलामत है... और तो और मेरी बहन... वैदेही... जिसकी जिंदगी को नर्क बना दिया गया था... उसने मुझे अपनी रंजिश को भूल जाने के लिए कहा.. और इस लड़ाई को अपनी बजाय.... लोगों की लड़ाई में तब्दील करने के लिए बोली... यही वज़ह है कि भैरव सिंह अभी तक अपनी साँसे ले पा रहा है... (लहजा थोड़ा नर्म पड़ता है) रानी माँ... मैं इतना कमजर्फ, कमीना और गिरा हुआ नहीं हूँ... जो बदले के लिए... वीर या अनु को सीडी बनाऊँ... वीर से दोस्ती इत्तेफाक था.... और राजकुमारी से प्रेम बचपन का था... और उन दोनों को मेरे बारे में सबकुछ पता भी तो है... फिर यह इल्ज़ाम मुझपर आप क्यूँ लगा रही हैं...

इस सवाल के साथ विश्व चुप हो जाता है l सुषमा क्या कहे, उसे कुछ जवाब सूझ नहीं रही थी l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सुषमा कहने लगती है

सुषमा - जिंदगी भर घुटती रही... आज मन किया... वह घुटन... वह दर्द सब बाहर निकाल दूँ... किसी पर चीखना चाह रही थी... चिल्लाना चाह रही थी... पर किस पर... कैसे... इसलिए तुम पर ऐसे अपनी घुटन को... भड़ास के रुप में तुम पर उतार दिया... दिल पर मत ले लेना...
विश्व - नहीं... नहीं लिया... पर आप यह सब कहने या करने तो नहीं आई होंगी ना... इसलिए जो कहने आई थी... वह कहिये...
सुषमा - बहुत समझदार हो... अनाम... वीर बचपन से... विक्रम के करीब रहा है... परिवार के किसी भी सदस्य से ज्यादा विक्रम से उसे लगाव है... फिर भी... जब मुसीबत में आया... उसने विक्रम के बजाय तुम्हें आवाज दिया... और तुम पहुँच भी गए...
विश्व - दोस्ती जो कि है...
सुषमा - हाँ... पर अनाम... वीर का सफर और इम्तिहान अभी शुरु ही हुआ है... आगे और भी मुसीबतें आयेंगी... (रुक जाती है l
विश्व - हाँ हाँ आगे बताईये...
सुषमा - तुम अपनी मकसद में होगे... कहीं उसकी पुकार तुम्हारे राह में रोड़ा बन कर आया तो...
विश्व - तब भी.. एक दोस्त... अपनी दोस्ती निभाएगा...
सुषमा - और रुप...
विश्व - रानी माँ... राजकुमारी जी का मेरे जीवन में आना... तब हुआ... जब मैं अपने बचपन से आगे बढ़ रहा था... और वह बचपन में कदम रख रही थीं... जुदा तब हुए... जब वह बचपन छोड़ रही थी... मैं जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... सच कहूँ तो... मैं भुला चुका था उन्हें... वह दुबारा... मेरी जिंदगी में... एक बहार बन कर वापस आई हैं... मेरी जिंदगी पर सिर्फ उन्हीं कि हुकूमत चल सकती है.. बस....
सुषमा - (थोड़ा मुस्कराते हुए) बहुत प्यार करते हो रुप से... ह्म्म्म्म...
विश्व - हाँ...
सुषमा - अब जब वीर की वाक्या सामने है... क्या तुम्हें लगता है... तुम दोनों की राह आसान होगी...
विश्व - नहीं होगा... पर शायद उसकी नौबत ना आए... क्या पता क्षेत्रपाल आने वाले समय में... अपनी ही उलझन में उलझ जाएं...
सुषमा - हाँ... हो सकता है... पर तुम विक्रम को भूल रहे हो... उसे जब तुम्हारे और रुप के बारे में... मालुम होगा... तब उसकी दुश्मनी महंगी पड़ सकती है...
विश्व - दोस्ती बेशकीमती होती है... प्यार अनमोल होता है... और दुश्मनी महंगी ही होनी चाहिए... पर फ़िलहाल मुझे विक्रम से कोई खतरा नहीं है...
सुषमा - ऐसा क्यूँ...
विश्व - अभी विक्रम की कंधे और सिर दोनों... मेरे एहसान के आगे झुके हुए हैं... जिस दिन वह एहसान का बोझ उतर जाएगा... उस दिन विक्रम मुझपर पलटवार करेगा...

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रंग महल में अपनी ही तस्वीर के सामने भैरव सिंह खड़ा था l तस्वीर में वह एक सिंहासन पर बैठा हुआ था, बाएं हाथ में तलवार था और दाहिना पैर एक शेर के सिर रखा था l बड़ी ही रौब दार तस्वीर थी l अपनी दांत को पिसते हुए अपनी तस्वीर को घूरे जा रहा था l अचानक उसे एक हँसी सुनाई देने लगती है l अपनी नजर चारों ओर घुमाता है, उसे कोई नजर नहीं आता l फिर उसका ध्यान अपनी ही तस्वीर पर ठहर जाता है l उसके आँखों के सामने तसवीर में उसका अक्स जिवंत हो जाता है l

भैरव सिंह - (हैरानी के मारे) कौन हो तुम...
तस्वीर - हा हा हा हा... क्यूँ मुझे नहीं पहचान पा रहे... मैं तुम हूँ...
भैरव सिंह - तुम यहाँ क्यूँ आए हो...
तस्वीर - मैं आया ही कब था... मैं तो तब से हूँ... जब से तुम हो...
भैरव सिंह - ठीक है ठीक है... अकेला छोड़ दो हमें... जाओ यहाँ से...
तस्वीर - हम... यह हम क्या है..
भैरव सिंह - हम... हम क्षेत्रपाल हैं...
तस्वीर - अब इस पहचान पर ग्रहण लगने लगा है... तुम्हारे वृक्ष से डाली अब कटने लगा है... कहीं यह उस वैदेही के श्राप की वज़ह से तो नहीं... यही सोच रहे हो ना...
भैरव सिंह - हाँ...
तस्वीर - कहीं तुमने अपने दुश्मनों को जिंदा छोड़ कर गलती तो नहीं कर बैठे...
भैरव सिंह - हमसे दुश्मनी का लोहा कौन उठा सकता है...
तस्वीर - विश्व प्रताप महापात्र... यही नाम है ना उसका... उसने गाँव वालों के सामने... तुम्हारे आदमियों को दौड़ा दौड़ा कर मारा... अब तुम्हारा परिवार तुमसे टुट रहा है... जैसा वैदेही ने कहा था... वैसा ही हो रहा है...
भैरव सिंह - यह महज इत्तेफाक है... हमारे टुकड़ों में पलने वाला कुत्ता... हमारे ही झूठन पर पलने वाला... उसकी औकात क्या है... उसकी बिसात क्या है...
तस्वीर - हाँ ठीक कहा तुमने... उसने सुबह तड़के घर में घुस कर बड़े राजा को आँख दिखा कर महल से निकला था... भूल गए... अब राजकुमार वीर की मदत कर... उस दो कौड़ी लड़की को ढूँढ कर.... अब वीर को तुम्हारे खानदान से अलग कर दिया... और अब उसने आज रुप फाउंडेशन केस में पीआईएल दाख़िल कर दिया है...
भैरव सिंह - हाँ हाँ उसने ऐसा किया है... और अब उसकी सजा भी उसे मिलेगी...
तस्वीर - हाँ उसे सजा दो... ऐसा सजा... ताकि बरसों बरस तक फिर कोई विश्वा पैदा ना हो पाए...
भैरव सिंह - हाँ अब ऐसा ही होगा... इसबार कोई रहम नहीं होगी... (तभी दरवाजे पर दस्तक होती है, अपनी ख़यालों से भैरव सिंह बाहर आता है और दरवाजे की ओर देखता है जो बंद था) कौन है...
बाहर से आवाज आती है - दरोगा सहाब आए हैं हुकुम...
भैरव सिंह - ठीक है... भेजो उसे...

कुछ देर बाद दरवाजा खुलता है l रोणा अंदर आता है l आते ही भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l भैरव सिंह एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठ जाता है l

रोणा - आपने याद किया हुकुम...
भैरव सिंह - हाँ दरोगा... अब वक़्त आ गया है... शतरंज पर अपनी चाल चलने की...
रोणा - मैं समझा नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - दरोगा... तुम जानते हो... हम उस चींटी तक को नहीं मसलते... जिसकी औकात हमें काटने तक कि ना हो...
रोणा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - तुम समझ रहे हो... हम किसकी बात कर रहे हैं...
रोणा - जी हुकुम... मैं अभी अभी न्यूज देख कर आ रहा हूँ... विश्व ने... रुप फाउंडेशन केस पर... दोबारा सुनवाई के लिए... पीआईएल दाखिल किया है...
भैरव सिंह - और...
रोणा - और अभी जो भुवनेश्वर हुआ है... उसका सारा ब्यौरा मुझे प्रधान से मिल चुका है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... अब तुम्हें लगता होगा... उस दिन हमने तुम्हें रोक कर बड़ी गलती कर दी थी...
रोणा - नहीं राजा साहब... झूठ नहीं बोलूंगा... पहले लगा तो था... पर अब लग रहा है... उस सांप का सिर कुचलने में बहुत मज़ा आएगा... जो सांप जितना जहरीला हो...
भैरव सिंह - तो... कब से काम पर लगोगे...
रोणा - बस प्रधान को आ जाने दीजिए... हम दोनों मिलकर... विश्व को ऐसा मजा चखायेंगे की... उसकी सात पुस्तें याद रखेंगी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... दो दिन बाद... प्रधान मुहँ लटका कर आ जाएगा... तब तुम दोनों अपनी सौ फीसद देकर देख लेना...
रोणा - प्रधान... मुहँ लटका कर आएगा... गुस्ताखी माफ... हुकुम पर क्यूँ...
भैरव सिंह - परसों जब आये... तो इसीसे पुछ लेना... एक बात हमेशा याद रखो दरोगा... दुश्मन पर वार तब करो... जब उसके ताकत का तुम्हें पुरा अंदाजा हो... हमें यह कहते हुए कोई असमंजस नहीं है... हमने विश्व को कम कर आंका था... अब तुम्हें और प्रधान को उसकी ताकत का अंदाजा हो गया होगा.... इसलिए अब वार करने के लिए... पुरी तरह से तैयार रहो...
रोणा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा... हम तुम्हें पुरी आजादी देते हैं... जो भी करना है करो... मगर उस गंदी नाली के कीड़े को उसकी औकात दिखा दो...
रोणा - जी हुकुम ऐसा ही होगा...
भैरव सिंह - रोणा यह पहली बार है... की किसीके वज़ह से... हमारे माथे पर शिकन पड़ा है... Ham यह बात किसी और से कहेंगे तो इससे हमारी कमजोरी जाहिर होगी... इसलिए अगर तुमने यह कर दिया... तो यह रंग महल पुरी तरह से तुम्हें सौंप देंगे...
रोणा - जी... (आखें हैरानी के मारे फैल जाते हैं)
भैरव सिंह - हाँ दरोगा हाँ... तुम ऐश करना मरते दम तक... इतनी दौलत भी देंगे....
रोणा - जी... (एक अंदरुनी खुशी के साथ)
भैरव सिंह - पर याद रहे... यह बात सिर्फ तुम्हारे और हमारे बीच ही रहनी चाहिए... जो करो जैसा करो... तुम्हें आजादी होगी... कोई रुकावट नहीं होगी... पर अंजाम वह होना चाहिए... जो हमें दिखे...
रोणा - जी हुकुम... (एक पॉज लेकर) हुकुम... अगर आप बुरा ना माने तो... तो...
भैरव सिंह - पूछो क्या पूछना चाहते हो...
रोणा - यह काम आप... युवराज से भी करा सकते थे...
भैरव सिंह - दरोगा... बेटे के रौब के पीछे बात का रुतबा होता है... और हमें यह एहसास मत दिलाओ... के हमने एक गलत आदमी से... सौदा तय किया है...
रोणा - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... आपने आज मुझे इतनी इज़्ज़त दी है... तो वादा करता हूँ... सिर कटा कर भी उस हराम खोर विश्व को नेस्तनाबूद कर दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... अब तुम जा सकते हो... पर याद रहे... यह बात हम दोनों की बीच रहे... कोई तीसरा जानेगा... तो तुम्हारी खैर नहीं...
रोणा - जी समझ गया..

कह कर रोणा रंग महल से बाहर आता है l आते ही अपनी जीप पर बैठ कर महल से निकल जाता है l अपने गाड़ी की रियर मिरर से रंग महल को बड़े चाव से देख रहा होता है l कुछ दूर बाद अपनी जीप को रोकता है और उतर कर रंग महल को देखता है l अपनी जेब से मोबाइल निकालता है और उसमें एक फोटो देखने लगता है l वह फोटो विश्व और रुप की थी जिसे खिंच कर लेनिन ने भेजा था l रोणा फोटो को एनलार्ज करता है जिससे विश्व फोटो से गायब हो जाता है, और सिर्फ रुप दिखने लगती है l

रोणा - हँसले... तेरी किस्मत में जितनी हँसी लिखी है हँसले... तेरे विश्वा को अब कुत्ते की मौत मारूंगा... और तेरी इसी रंग महल में उतारूंगा... कसम है... तु जिंदगी भर मेरी रंडी बनकर रहेगी... क्यूँकी अब किस्मत भी मेरे साथ है... हा हा हा हा हा...

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पैराडाइज
वन बीएचके पेंट हाऊस था l एक ही बेड पर वीर और अनु सोये हुए थे l कमरे में मद्धिम रौशनी को फैलते हुए एक नाइट बल्ब जल रहा था l दोनों के दरमियान कुछ फासला था l वीर की आँखों में नींद नहीं थी जबकि अनु सो चुकी थी l वीर अनु की तरफ पलटता है, अनु कुर्मी सलवार में थी और वीर की तरफ चेहरा कर पीठ के बल सोई हुई थी l वीर की आँखे अनु के चेहरे पर टिक जाती है l दुनिया जहान से बेख़बर कोई शिकवा या शिकायत नहीं किसी मासूम बच्चे की तरह नींद में खोई हुई है l वीर के चेहरे पर एक मुस्कान उभर जाती है l तभी अनु करवट बदलती है और वीर की तरफ पलट जाती है l ऐसे में अनु के गले के नीचे कुर्ती से स्तनों का उभार क्लीवेज दिखने लगती है l वीर यह दृश्य देख कर अपनी थूक निगलता है l तभी उसकी नजर फिसलता है, देखता है कमर के पास अनु की कुर्ती थोड़ी अस्तव्यस्त हो गई है जिसके कारण अनु की गोल गहरी नाभि साफ दिख रही थी l यह देख कर वीर का मुहँ खुला का खुला रह जाता है l वह अनु की तरफ देखता है l अनु सोई हुई थी l वीर की धड़कने अचानक रफ्तार पकड़ने लगती है l वह अपनी थरथराती हाथ को धीरे धीरे आगे बढ़ाता है और अनु के नाभि के करीब रोक देता है l वीर फिर से अनु के चेहरे की ओर देखता है, अनु अभी भी निश्चित होकर सोई हुई है l धीरे से अनु की नाभि को सहलाता है l अनु थोड़ी कुनकुनाते हुए करवट बदलती है और पीठ के बल सो जाती है l वीर अपना हाथ खिंच लेता है l फिर अपनी जगह पर बैठ जाता है, अनु की ओर देखता है, अनु नींद में है यह निश्चिंत होने पर बेड से उतरता है और बाहर छत पर आजाता है l आगे बढ़ कर छत के किनारे पर आ खड़ा होता है l रेलिंग पर हाथ रख कर कभी आसमान की और तो कभी नीचे स्ट्रीट लाइट में जगमगाते सड़कों को देख रहा था l अचानक वह चौंकता है जब वह अपने कंधे पर किसीके हाथ को महसुस करता है l पीछे मुड़कर देखता है, अनु थी l

वीर - ओह... तुम... तुम सोई नहीं...
अनु - यही सवाल मैं आपसे करूँ तो...
वीर - वह मुझे नींद नहीं आ रही थी...
अनु - झूठे....
वीर - सच में... वर्ना सोचो... मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ...
अनु - (गौर से वीर की आँखों में झांकते हुए) कोई बात है... जिससे आप नाराज हैं... वही नाराजगी... आपको सोने नहीं दे रही है...
वीर - नाराज... नहीं मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ...
अनु - सच में...
वीर - हाँ... क्यूँ... तुम्हें क्यूँ ऐसा लग रहा है कि मैं किसी से नाराज हूँ...
अनु - किसी से नहीं... बल्कि... आप खुद से नाराज हो...
वीर - (कुछ देर के लिए वीर चुप हो जाता है) कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाह रही हो... के मैं अपनी पिछली जिंदगी के वज़ह से खुद से नाराज हूँ... या फिर खुद को वर्तमान में नहीं ढाल पा रहा हूँ.. इसलिए नाराज हूँ...
अनु - नहीं ऐसी बात नहीं है... (अनु वीर की दोनों हाथों को अपने गालों पर लेती है) आप... अपने आप से लड़ रहे हैं... हैं ना...
वीर - (अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - आपने ज़माने के सामने मुझे अपनाया है... ज़माने के आगे मेरा हाथ थामा है... इसी लिए तो... भाभी जी ने... अपना पैराडाइज हमें सौंप दिया है... भले ही... संसार की नजर में व्याह नहीं हुआ हमारा... फिर भी... एक घर में... एक ही कमरे में... हमें आशीर्वाद के साथ रहने दिया है.... बेशक हम हादसों से गुजर कर आए हैं... तूफान झेल कर आए हैं... पर आए तो हम एक आसरे में ही है ना...
वीर - बस... बस... बस रुक जाओ... कितनी बातें कर रही हो...
अनु - नहीं... मुझे बात पुरा कर लेने दीजिये... आप अपने आपसे लड़ रहे हैं.. जुझ रहे हैं... इतनी हादसों से गुज़री जिंदगी के इस मुकाम पर... दो पल के प्यार में बीताने से डर रहे हैं... हैं ना...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो कर) हाँ... मैं लड रहा हूँ खुद से... जुझ रहा हूँ खुद से... प्यार और हवस के बीच के फासले को ढूँढ रहा हूँ... वक़्त और बेवक्त में फर्क़ बांट रहा हूँ...
अनु - क्यों...
वीर - अभी अभी तुमने कहा ना... हम तूफान से गुजरे हैं... हादसों से निकल कर आए हैं... तभी दिल में उठ रहे यह ज़ज्बात... मुझे गुनाह का एहसास करा रहे हैं... दादी की चिता में आग सुबह ही लगाई है... चिता की आग बुझी भी नहीं होगी के.. तेरहवीं तक रुक नहीं पा रहा और...
अनु - समझी...(अनु वीर के गले लग जाती है) आप को जितना जाना... आप उससे भी बढ़ कर निकले... मेरे आँखों में आपका कद कितना ऊँचा हो गया है क्या कहूँ... खुद को कहीं नहीं पा रही हूँ...
वीर - (अनु को बाहों में ऊपर उठा कर अपने बराबर ले आता है, अनु के पैर हवा में झूलने लगती हैं ) यह लो तुम मेरे बराबर... मेरे साथ... मेरे सामने हो...
अनु - (मुस्कराते हुए वीर के गले लग जाती है) कितनी खुशी है... लगता है यहीं जिंदगी है... आपकी बाहों में मौत भी आ जाए... तो कोई ग़म नहीं...
वीर -(अनु के चेहरे को सामने लाकर) ऐ... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही है... मैंने तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है... और तु मुझे छोड़ने की बात कर रही है...

अनु मुस्कराते हुए अपनी माथे को वीर के माथे पर रखती है और धीरे धीरे वीर के होंठो पर एक चुंबन जड़ कर फिर से वीर के गले से जोर से लग जाती है और बहुत धीरे से "आई लव यू" कहती है l

वीर - (अचानक से चौंकता है) है... क्या कहा तुमने अभी...
अनु - क्या...
वीर - ऐ.. मैं बहरा नहीं हूँ... (अनु को उतार देता है)
अनु - कुछ भी तो नहीं... ज़रूर आपके कान बजे होंगे...
वीर - देख अनु... आज तु बच नहीं सकती... आज कहा है... तो खुलकर बोलना... कान में जरा सी अमृत डाल कर अब मना करना... देख बिल्कुल ठीक नहीं...
अनु - कहूँगी कहूँगी...
वीर - तो कह ना...
अनु - मुझे आपसे प्यार है...
वीर - अरे यार... हिंदी में नहीं... अँग्रेजी में...
अनु - मुझे आपसे प्यार है... था और रहेगा... जिस दिन यह प्यार हद से गुजरेगा... उस दिन कहूँगी...
वीर - तो आज क्यूँ कहा...
अनु - क्यूंकि... आज आप पर प्यार हद से ज्यादा आ रहा था... इसलिए... (अनु जीभ दिखा कर भागती है)
वीर - तेरी तो...

अनु भागती है और वीर उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागता है l कुछ ही देर में वीर अनु को पकड़ लेता है और उसे घर की दीवार से सटा देता है l दोनों की साँसे ऊपर नीचे हो रही थी l दोनों एक दूसरे की आँखों में खोए हुए थे l कब एक दूसरे के होंठ आपस में मिल गए दोनों को मालुम भी ना हो सका l ऊपर आसमान में चंद्रमा अपनी रौशनी बिखेर रही थी और नीचे दो प्रेमी जोड़े धीरे धीरे अपने प्रेम में मगन हो कर डूबने लगे l

जल्दी जल्दी बहुत कुछ हो गया भाई!
इतना तो पता ही था कि अनु को कुछ बिगड़ने वाला नहीं - लेकिन जिस तरह से वो हुआ, बड़ा अच्छा लगा।
लेकिन अफ़सोस, कि उसकी दादी अनु की शादी देखने के लिए जीवित नहीं रही। कोई बात नहीं - वो एक 'फ़िलर' किरदार थीं, इसलिए कोई बात नहीं।
वीर अब पूरी तरह से अपने परिवार से अलग हो गया है। लेकिन, सुषमा जी का कहना सही है - विश्व के लिए सबसे बड़ी दिक्कत विक्रम की ही तरफ़ से आने वाली है। अपने खानदान की ज़मीनी हैसियत और असलियत जानने के बाद भी!
मुझे पूरा विश्वास है कि विश्व अगर किसी का खून करेगा, तो रोणा का ही। ये ही वो एक शख़्श है जो बार बार पिट कर भी नहीं समझ रहा है। और अब उसकी स्थिति साफ़ है।

सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी भाई, वो यह कि आप अब पहले से बेहतर हैं। आशा थी कि आपसे कहीं अधिक विस्तार में बातें सुनने जानने को मिलेंगी। लेकिन कोई बात नहीं।
हमारे सभी मित्र सुख से हों, स्वस्थ हों, बस यही सबसे बड़ी बात है! :)
 

Rajesh

Well-Known Member
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👉एक सौ सैंतीसवाँ अपडेट
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बल्लभ तेजी से भागते हुए कमरे के आगे खड़ा हो जाता है l दरवाज़ा बंद नहीं था, पर्दा हटा कर अंदर झाँकता है अंदर अभी भी अंधेरा था l अपना गला खराश कर अपनी मौजूदगी जाहिर करता है पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता l मज़बूर हो कर आवाज़ देता है

बल्लभ - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
- आँ... कौन..

अंदर से एक घुटी हुई थकी हुई आवाज़ आती है l यह आवाज पिनाक सिंह की थी, बल्लभ अंदर नहीं जाता, वहीं दरवाजे पर खड़े रह कर बोलता है

बल्लभ - छोटे राजा जी... मैं प्रधान...
पिनाक - क्यूँ आया है... नकारा वकील...
बल्लभ - मुझसे जितना बन पड़ा किया तो था... बस आपने जिसे काम सौंप रखा था... उससे हुआ नहीं...
पिनाक - हाँ... मैंने जिससे भी कोई काम दिया... सबके सब नकारा निठल्ले निकले... वह साला हरामी अभी तक मेरे सामने नहीं आया है... जब मेरे सामने आयेगा... उसका गला... (हांफते हुए) रेत दूँगा... (फिर कुछ सेकेंड में खुद को सम्भालने के बाद) क्यूँ आए हो... तुम तो राजा साहब के साथ... चले गए थे ना...
बल्लभ - वह राजा साहब... कल रात को ही... राजगड़ चले गए हैं...
पिनाक - तो तुम क्यूँ नहीं गए...
बल्लभ - वह... (चुप हो जाता है)
पिनाक - बोल बे भोषड़ी के बोल...
बल्लभ - मैं थोड़ा अंदर आकर बात करूँ....
पिनाक - (कुछ देर की पॉज लेने के बाद) आ जाओ...

बल्लभ अंदर आता है तो उसके पैर में एक बोतल ठोकर लगती है l लुढ़कने की आवाज़ आती है l वह लड़खड़ाता है तो दरवाजे के पास जा कर बिजली की स्विच को ऑन करता है l लाइट जलने के बाद पिनाक अपनी आँखे मूँद लेता है जैसे चुँधीया गया हो l

पिनाक - आह... भोषड़ी के... लाइट क्यूँ जलाई...
बल्लभ - वह मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...
पिनाक - अच्छा ठीक है... जल्दी बक... क्या बकने आया था...

बल्लभ देखता है रात की पार्टी वाली कपड़े में ही पिनाक टेबल लगा कर रात भर शराब पिया है शायद l उसके शूट के सारे बटन खुले हुए हैं l कमरे में तीन या चार बोतल लुढ़क रहे हैं l

पिनाक - ऐ हरामी... जल्दी बक...
बल्लभ - वह मैं यह कह रहा था... राजा साहब सीधे पार्टी से निकलते ही... राजगड़ को रवाना हो गए...
पिनाक - हाँ बोला था... आगे बोल... तु क्यूँ नहीं गया...
बल्लभ - वह मुझे दो दिन तक रुकने के लिए कहा है....
पिनाक - (अपना चेहरा उठाता है और एक टूटी हुई हँसी हँसता है) क्या सिर्फ यही बताने आया था...
बल्लभ - हाँ... पर खबर और भी है...
पिनाक - हाँ वह भी बता देना... पर तुझे दो दिन के लिए रुकने के लिए क्यूँ कहा...
बल्लभ - क्यूंकि दो दिन बाद... सामल एंड ग्रुप की... वह सनशाइन प्रोजेक्ट की भू पूजन है...
पिनाक - हा हा हा हा हा...(हँसते हुए) मतलब राजा साहब को यकीन हो गया है... वह जमीन जिसको सामल को दिलवाने के लिए... तुने इतने पापड़ बेले... वह सारे गुड़ गोबर हो गया है...
बल्लभ - यह आप क्या कह रहे हैं... मैंने सामल को जमीन की पट्टा निकलवा कर दिया है...
पिनाक - तुने प्लान भी बढ़िया बनाया था... पुलिस वालों को जेब में ले लिया था... मीडिया वालों को भी... फिर... अनु पार्टी में पहुँच गई ना... (आवाज़ को चबाते हुए) उस हरामजादे विश्वा के वज़ह से... उसकी चाल के आगे हम सब मात खा गए...
बल्लभ - पर... हम ने तो सारी जमीनों की डीसप्युट दुर कर... रजिस्ट्री भी करा ली है... फिर कैसे विश्वा काम रोक सकता है...
पिनाक - बस यही तो तुझे देखना है... क्यूँकी अब जंग शुरु हो चुकी है... उसकी अपनी तैयारी है... हमें अब तैयार होना है... (बल्लभ अपनी भवें सिकुड़ लेता है) तुझे क्या लगता है... विश्वा राजकुमार का मदत कर रहा है... यह राजा साहब को मालुम नहीं था... अच्छे तरह से जानते थे... बस इतना समझ ले... कल की आने वाली जंग के लिए... हमारी काबिलियत परख रहे थे... हम नाकामयाब रहे... अब तेरी क़ाबिलियत की बारी है...
बल्लभ - क्या...
पिनाक - हाँ प्रधान हाँ... अब तु अपनी तसरीफ की सोच...
बल्लभ - इतनी बारीकी से काम किया है... जमीन भी सामल के नाम पर रजिस्ट्रेशन हो चुका है... फिर...
पिनाक - रजिस्ट्रेशन नहीं बे लीज... लीज बोल लीज... यहीं... विश्वा की दिमाग की परख होगी... खेर... वह तेरी किस्मत... पहले तु बता... यहाँ सिर्फ़ यह बताने तो आया नहीं...
बल्लभ - वह कल रात... उस लड़की अनु की दादी का देहांत हो गया है... आज सुबह उसकी अंत्येष्टि के लिए श्मशान ले गए हैं... और उसकी अंत्येष्टि... राजकुमार करने जा रहे हैं...
पिनाक - ओ... साली बुढ़िया से खुशी बर्दास्त नहीं हुआ... इसलिए चल बसी...
बल्लभ - छोटे राजा साहब...
पिनाक - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - अब मैं जाऊँ...
पिनाक - हाँ जाओ... और जाते जाते लाइट बंद करते जाना...
बल्लभ - क्यूँ राजा साहब... सुबह भी तो हो रही है...
पिनाक - कल से मेरी जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा है.... इसलिए उजाले से मुझे अब परेशानी हो रही है...
बल्लभ - बुरा ना मानें तो एक सवाल पूछूं...
पिनाक - हाँ पूछ ले...
बल्लभ - कब तक...
पिनाक - मतलब...
बल्लभ - आप ही ने कहा जंग छिड़ चुकी है...
पिनाक - हाँ जंग छिड़ चुकी है... ज़द में सब आयेंगे... पर पहले अपने घर की सफाई की बहुत जरूरी है... देखा नहीं दुश्मन ने कैसे हमारे कमजोर नस पर वार किया... मुझे क्या करना है... मैं जानता हूँ... और वह कर लेने के बाद ही राजगड़ वापस लौटुंगा... पर तु अपनी सोच... दो दिन बाद... तुझे अपना मुहँ काला करवा कर राजगड़ जाना है...
बल्लभ - नहीं मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा...
पिनाक - प्रधान... शतरंज के बिसात पर... तु अपनी चाल चल चुका है... इसलिए तुझे लग रहा है... तेरे मोहरे महफ़ूज़ हैं... पर आज... अभी मेरी छटी इंद्रिय कह रही है... तेरे शाह को मात मिल चुकी है...

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चर्र्र्र्र्र्र्र्र् आवाज़ करते हुए एक गाड़ी श्मशान के बाहर रुकती है l गाड़ी से सेनापति दंपति और विश्व उतरते हैं l श्मशान के बाहर कुछ लोगों का मजमा लगा हुआ था l पुलिस के कुछ कर्मचारी और सुभाष सतपती भी मौजूद था l मीडिया वाले भले ही नहीं थे पर सुप्रिया वहीँ पर थी l अनु रो रही थी, उसे सुप्रिया संभाल रही थी l वीर चिता के पास कर्मकांड के लिबास में तैयारी कर रहा था l प्रतिभा जैसे ही अनु के पास पहुँचती है, अनु सुप्रिया को छोड़ प्रतिभा के गले लग जाती है l विश्व और तापस सुभाष के पास आते हैं l सुभाष तापस को सैल्यूट करता है l

विश्व - यह क्या... मतलब कैसे हो गया...
सुभाष - कल शाम को पार्टी से... जब वीर और अनु घर पहुँचे तब घर के आगे भीड़ लगी हुई थी... पर चूँकि प्लान ही ऐसा था कि शाम तक अनु की खबर किसीको होने नहीं दिया गया था... इसलिए बस्ती में रहने वाले एक शख्स ने लोकल पुलिस स्टेशन में खबर करी... इत्तेफ़ाक से पुलिस और वीर एक साथ पहुँचे थे... बेड पर दादी सोई हुई लग रही थी... हस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टर ने डिकलैर कर दी...
तापस - रीजन...
सुभाष - कार्डियक अरेष्ट...
तापस - ओ...
सुभाष - हाँ कत्ल या साजिश की कोई निशानी नहीं थी... डॉक्टर ने कहा उम्र भी हो गई थी... ऐसे में यह नॉर्मल है....
तापस - ह्म्म्म्म...

इस दौरान वीर चिता में आग लगा चुका था l यह देख कर अनु जोर जोर से रोने लगी थी l ठीक उसी समय एक और गाड़ी वहाँ पर आकर रुकती है l गाड़ी में से सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वे तीनों जैसे ही अनु के पास पहुँचते हैं अनु रोते हुए चिता की ओर इशारा करती हुई रोने लगती है l सुषमा उसे सहारा देती है l

सुप्रिया - विश्वा...

विश्व सुप्रिया की तरफ देखता है l सुप्रिया उसे इशारे से पास बुला रही है l वह सुप्रिया के पास जाता है साथ में तापस और सुभाष भी आते हैं l

सुप्रिया - सीचुएशन थोड़ा पैनिक हो गया है... अब बात पुलिस और मीडिया पर आ गई है... लोग तरह तरह की बातेँ करने लगे हैं...
विश्व - हाँ समझ सकता हूँ... पर मुझे लगता है... तुमने अपने हिस्से का रोल ठीक से निभाया है...
सुप्रिया - हाँ... वेसे... सुभाष जी ने भी बहुत पापड़ बेले हैं रात भर...
तापस - देखो बेटी... मैं एहसानमंद रहूँगा तुम्हारे और सतपती के... विश्व की बात रखने के लिए... तुम लोगों ने अपने ऊपर थोड़ी निंदा ली है...
सुभाष - यह क्या कह रहे हैं सर... आप तो मेरे आइडल रहे हैं... और विश्व ने उस दिन जो किया था... उसके लिए... इतना तो बनता तो था...
विश्व - थैंक्स... यह मेरे लिए जिस तरह से आप लोगों ने... पर्सनली सिचुएशन को अपने ऊपर लेकर नॉर्मलाइज किया... उसके लिए थैंक्स...
सुभाष - हाँ उसके लिए सुप्रिया जी को थैंक्स तो बनता है... क्यूँकी जैसे ही खबर फैली दादी मर गई है... लोग पुलिस की नाकारे और निकम्मे पन की चर्चा करनी शुरु कर दी थी... यह तो सुप्रिया जी ने अपनी न्यूज के जरिए... अनु को ढूँढ लाने का श्रेय.. और गुनहगारों को पकड़ने का श्रेय हमें दी... इसलिए डिपार्टमेंट में हमारी इज़्ज़त बच गई... हाँ इस बात का दुख रहा... दादी... शाम को ही चल बसी...

इनकी बातेँ चल रही थी कि वीर वहाँ पहुँचता है l वीर की आँखे नम थीं l वह सीधे आकर विश्व के गले लग जाता है l यह दृश्य सुषमा देख रही थी l विश्व वीर के पीठ पर हाथ फेरते हुए दिलासा दे रहा था l कुछ देर बाद वीर विश्व से अलग होता है l अनु को लेकर सभी औरतें अनु को लेकर इन लोगों के पास आते हैं l

विश्व - सुन कर बहुत दुख हुआ...
वीर - हाँ दुख तो मुझे भी बहुत हुआ.... पर एक आत्म संतोष है... अनु को सही सलामत दादी के सामने खड़ा कर पाया...
विश्व - अब... सुना है... तुमने घर भी छोड़ दिया है...
वीर - हाँ... पता नहीं... अब अनु को लेकर कहाँ जाऊँगा...
सुभाष - क्यूँ अनु अपनी घर पर रह सकती है ना... हाँ तुम शायद उस बस्ती में... उसकी खोली में नहीं रह सकते... तुम्हें आदत जो नहीं है...
वीर - नहीं ऐसी बात नहीं है... कल मैंने निश्चय कर लिया था... अनु से शादी कर जब तक कुछ जुगाड़ नहीं हो जाता तब तक... अनु और दादी के साथ... उनकी ही बस्ती में रूकुंगा... पर...
विश्व - पर क्या...
वीर - अब माली साही बस्ती में... हालात कुछ और हो गई है...
विश्व - क्या मतलब...
वीर - अनु के नाम पर... बाते फैल गई है... कल दादी की लाश तक कोई आ नहीं रहा था... पर ताने सुनाई दे रही थी... बेवजह की ताने... बेमतलब की ताने...
विश्व - ओह... तो फिर...

बेबसी से अपना सिर ना में हिला कर अपनी मायूसी जाहिर करता है l तब प्रतिभा कहती है

प्रतिभा - यह कोई प्रॉब्लम नहीं है... अनु को मैं अपने साथ रख लुंगी... वैसे भी... मेरी कोई बेटी नहीं है... (तापस से) क्यूँ जी... क्या कहते हो...
तापस - बहुत अच्छा फैसला किया है तुमने...
विश्व - हाँ माँ बहुत बढ़िया फैसला किया तुमने... (वीर की ओर देख कर) क्यूँ वीर...
वीर - नहीं... यह सफर... अब मेरा और अनु का है... मैंने दादी से वादा किया था... अनु को कभी भी मैं अकेला नहीं छोड़ सकता हूँ...
प्रतिभा - अरे... अनु कहाँ अकेली होगी... हमारे साथ रहेगी और हम उसके साथ रहेंगे...
वीर - अच्छी विचार है आंटी जी... पर (हाथ जोड़ कर) मैं अपनी जिम्मेदारी किसी और के कंधे पर नहीं डाल सकता...
तापस - पर वीर सहाब... अभी तो आपके खुद के रहने के वांदे हैं...
वीर - जी हाँ अंकल जी... खैर आप सभी बड़े हैं... मैं फैसला अनु पर छोड़ रहा हूँ.... उसे अगर आपके साथ रुकने से कोई ऐतराज ना हो तो... मुझे कोई शिकायत नहीं होगी...
प्रतिभा - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... (अनु से) क्यूँ अनु बेटी... रहोगी ना मेरे साथ... (सभी लोग गौर से अनु की ओर देखने लगते हैं, थोड़ी झिझक के साथ अनु जवाब देती है)
अनु - जैसे कि राजकुमार जी ने कहा... यह इम्तिहान उनका और मेरा है... और मेरा पुरा खयाल रखने के लिए... उन्होंने दादी से वादा किया था... मेरा साथ ना छोड़ने के लिए... भरोसा दिया था... इसीलिए तो... उन्होंने मेरे लिए... अपनी दुनिया छोड़ दी... अब जब इतनी बड़ी दुनिया में... वह अकेले सफर पर निकले हैं... मैं उन्हें अकेला कैसे छोड़ सकती हूँ.... यह जहां रहेंगे... उनकी साया बन कर मैं उनके साथ रहूंगी...

थोड़ी देर के लिए वहाँ पर खामोशी पसर जाती है l खामोशी को तोड़ते हुए प्रतिभा अनु से कहती है l

प्रतिभा - शाबाश बेटी शाबाश... तो यह तय हुआ... के तुम दोनों हमारे यहाँ रुकोगे....
वीर - नहीं आंटी... नहीं... आप यह भुल रही हैं... मैंने भले ही क्षेत्रपाल से नाता तोड़ दिया है... पर क्षेत्रपाल मुझे या मुझसे जुड़े किसी को भी नहीं छोड़ेंगे... मैं नहीं चाहता... उस आंच के दायरे में... आप या अंकल आयें... अगर ऐसा हुआ तो... मैं प्रताप को कभी मुहँ दिखा नहीं पाऊँगा...
विश्व - नहीं ऐसा कुछ नहीं...
वीर - (अपना हाथ उठा कर विश्व को कुछ और बोलने से रोक देता है) प्रताप... बस यार... बस...
विश्व - नहीं मेरा कहने का मतलब है....
सुषमा - वीर सही कह रहा है...

सबका ध्यान सुषमा की तरफ चली जाती है l सुषमा फिर से प्रतिभा और विश्व से कहती है

सुषमा - वीर सही कह रहा है... असल में सही मायने में... वीर का जन्म कल ही हुआ है... अब वह दुनिया को देखेगा... चलने की कोशिश में... गिरेगा... हर कदम पर ठोकरें मिलेगी... फिर वह संभलेगा... फिर दुनिया के सामने तन कर खड़ा होगा...(सभी कुछ देर के लिए स्तब्ध हो जाते हैं) अनु ने भी जो फैसला किया है... सही किया है...

अनु आकर सुषमा के गले लग जाती है l सुषमा के यह कह लेने पर प्रतिभा, तापस और विश्व एक दुसरे को ताकते रह जाते हैं l इतने में शुभ्रा वीर और अनु से कहती है

शुभ्रा - वीर.. अनु तुम दोनों मेरे साथ आओ...
वीर - नहीं भाभी... मैं उस हैल में वापस नहीं जाऊँगा...
शुभ्रा - तुम दोनों को मैं उस हैल में लेकर जाऊँगी भी नहीं... (मुस्कराते हुए) विश्वास रखो मुझ पर... आओ मेरे साथ...

वीर थोड़ा असमंजस सा होता है और सुषमा की ओर देखता है l सुषमा उसके पास आकर उसके पीठ पर हाथ रखते हुए

सुषमा - जाओ वीर... तुम्हारे भाभी के साथ जाओ...
वीर - पर माँ..
सुषमा - बात अगर तुम्हारे अकेले की होती तो... मैं कुछ ना कहती... पर बात मेरी बहु की है... इसलिए... इस वक़्त तुम अनु को लेकर अपने भाभी के साथ जाओ... (रुप से) हाँ रुप... तुम भी जाओ इनके साथ...
रुप - जी... जी माँ... और आप...
सुषमा - मुझे वीर के इस दोस्त से कुछ बातेँ करनी है... (प्रतिभा की ओर देख कर) अगर आप बुरा ना मानें... तो... अकेले में...
रुप - माँ आप को हम यहाँ अकेले कैसे छोड़ कर जाएं...
सुभाष - मैं प्रॉब्लम सॉल्व कर देता हूँ... मैं तापस सर को अपने साथ लेकर घर पर ड्रॉप कर देता हूँ... सुप्रिया जी प्रतिभा मैम को... कोर्ट में ड्रॉप कर देंगी.... विश्व मैम की गाड़ी अपने पास रख ले... जब मीटिंग खत्म हो जाएगी... तब विश्व रानी साहिबा को उनके घर पर ड्रॉप कर देगा... क्यों...
सुप्रिया - ठीक है... वीर... रुप और शुभ्रा जी एक गाड़ी में चले जाएं... अनु को लेकर मैं और मैम उनके पीछे पीछे जाते हैं... अनु को ड्रॉप करने के बाद हम कटक चले जाएंगे... क्यूँ मैंम...
प्रतिभा - ठीक है...

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ड्रॉइंग रुम में एक सोफ़े पर बैठा बल्लभ इंतजार कर रहा था l कुछ देर बाद निर्मल सामल आता है l उसकी हालत नॉर्मल नहीं लग रही थी l बाल बिखरे हुए थे और आँखे थकी हुई लग रही थी l

बल्लभ - गुड मॉर्निंग सामल साहब...
निर्मल - हूं ह्म्म्म्म... गुड मॉर्निंग..
बल्लभ - लगता है आप रात भर सोये नहीं...
निर्मल - हाँ... नींद ही नहीं आई...
बल्लभ - क्यूँ डर के मारे या...
निर्मल - (आँखे गुस्से से फैल जाते हैं और जबड़े भींच जाती हैं) डर... किस बात का डर... प्रधान बाबु... मैं निर्मल सामल हूँ... अपनी यह हस्ती ऐसे ही नहीं बनाया है मैंने...
बल्लभ - सॉरी मैं यहाँ आपको डराने के लिए नहीं आया था.... मैं बस ऐसे ही पूछ बैठा... चूंकि आप रात भर...
निर्मल - एक ग्लानि भाव था मन में... इसलिए सो नहीं पाया...
बल्लभ - ग्लानि भाव...
निर्मल - हाँ... राजा साहब के लिए भी... और अपनी बेटी के लिए भी... (इस बार बल्लभ चुप रहता है) राजा साहब खुद रिश्ता लेकर आए थे... मैंने ना आगे देखा ना पीछे... अपनी रजामंदी दे दी... कास के अपनी बेटी से पूछ कर बताया होता... तो यह नौबत ही नहीं आई होती... बाहर की बात और है प्रधान बाबु... अपनी ही घर में... अपनी ही बेटी से नजरें चुराना पड़ रहा है... यह तकलीफ तुम नहीं समझोगे.... उसके लिए एक बेटी का बाप होना चाहिए...
बल्लभ - आ... आई एम सॉरी... सामल बाबु...
निर्मल - वैसे... तुम किस लिए आए थे... क्या उस जमीन के बारे में...
बल्लभ - हाँ.. मैं वह.. यह कहने आया था... के... पर्सनल रिलेशन और प्रोफेशनल रिलेशन को मिक्स मत कीजिए... यह प्रोजेक्ट नहीं रुकनी चाहिए...
निर्मल - मैं एक बिजनैस मैन हूँ प्रधान बाबु... अभी आपने जो मुझसे कहा... यही बात मैं राजा सहाब तक पहुँचाना चाहता था... जो हुआ... उसे दिल पर ना लें... पर्सनली ना सही... प्रोफेशनली हम एक दुसरे के साथ दे और ले सकते हैं...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... इसका मतलब आप सब पहले से ही सोच रखा है...
निर्मल - (भवें सिकुड़ जाते हैं) क्या मतलब है आपका प्रधान बाबु... क्या कहना चाहते हैं आप...
बल्लभ - कुछ नहीं... मुझे लगा कि आपको दुख होगा... रिश्ता ना बन पाने पर...
निर्मल - वह दुख तो था... प्रधान बाबु... पर...
बल्लभ - था... मतलब अब नहीं है...
निर्मल - नहीं... अब नहीं है... (बल्लभ कुछ कहना चाहता था पर हाथ के इशारे से निर्मल उसे टोकते हुए) प्रधान बाबु... हर कोई जानता है... क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों के चरित्र को... पर सामने मुहँ पर कोई कहता नहीं है... समाज में प्रतिष्ठा के लिए... रुतबे के लिए थोड़ी देर के लिए... अपने बाप होने की बात को भूल गया था... पर मेरी बेटी सस्मीता ने रिश्ते को नकार कर मेरी बुद्धि पर पड़े मिट्टी को साफ कर दी... वैसे भी... वीर ने अपना फैसला सुना दिया ज़माने के सामने... और इतना तो आप भी जानते होंगे... मानते होंगे... वीर सिंह को फैसला बदलवाने पर खुद राजा साहब भी मजबूर नहीं कर सकते.... रही बिजनैस की बात... राजा साहब मुझे पहले बिजनैस की ऑफर की थी... रिश्ते की नहीं... वैसे भी... सन साइन प्रोजेक्ट के मामले में... मैं बहुत आगे आ गया हूँ... पैसा भी बहुत लग चुका है... इसलिए यह मेरी तरफ से सुझाव है... प्रोफेशन और पर्सनल रिश्तों को अलग रखते हैं... हाँ अगर उनकी प्रोजेक्ट में खलल डालने का कोई विचार हो तो... मैं इस प्रोजेक्ट से अपना हाथ खिंच सकता हूँ... सोच लूँगा थोड़ा नुकसान उठा लिया...

इतना कह कर निर्मल चुप हो जाता है l बल्लभ जो निर्मल की बातों को सुने जा रहा था वह एक दम से स्तब्ध रह जाता है l जब उसे एहसास होता है कि निर्मल चुप हो गया है बल्लभ अपना गला खरासता है और कहना शुरु करता है

बल्लभ - आहेम.. आहेम... आप तो पक्के बिजनैस मैन निकले सामल बाबु... अपने सब कुछ नाप तोल कर नहीं... बल्कि साफ साफ कह दिया... खैर... कुछ बातेँ मैं क्लियर कर देना सही समझता हूँ... देखिए सामल बाबु... राजा साहब आपको भुवनेश्वर में इसलिए लाए ताकि आप कमल कांत उर्फ केके की जगह ब्रांड बन जाएं... फ़िलहाल जो हुआ, राजा साहब और छोटे राजा जी उसके शॉक में हैं... उनकी कोई मंशा नहीं है यह प्रोजेक्ट बंद हो... बस वह चाहते हैं कि... आप जोडार ग्रुप को घुटने पर ले आयें... ताकि वह ओडिशा छोड़ कर वापस बंगाल भाग जाए... और रही आपका बहुत पैसा लगा है... तो आप इतना तो मान लीजिए... अरबों की प्लॉट को महज कुछ करोड़ों में हासिल किया है आपने... और इसके पीछे राजा साहब की एहसान को मत भूलिएगा... पर... (इतना कर कर अपनी बातों पर बल्लभ ब्रेक लगा देता है)
निर्मल - इसीलिये तो कहा प्रोफेशन को पर्सनल रिश्ते ना घोलें... और मैंने कभी इंकार भी नहीं किया और ना ही भुला हूँ... वह जमीन कैसे मिला है... उसके लिए आप लोगों ने क्या क्या पापड़ बेले हैं... वर्ना मुझे निन्यानबे साल की लीज नहीं मिलती... रही जोडार ग्रुप की... तो मैंने प्रोफेशनली उन्हीं की सिक्युरिटी ग्रुप की देख रेख में भूमि पूजन का प्रोग्राम रखा है..
बल्लभ - व्हाट... आई मिन वाव... पर...
निर्मल - फिर पर...
बल्लभ - हाँ सामल बाबु... आप आज अगर राजा साहब के दोस्त हैं... तो उनसे दुश्मनी रखने वालों की नजर में आप तो खटकेंगे ही... कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी ना हो इसलिए मैं आपको आगाह करने आया था...
निर्मल - क्या... जमीन की लीज मिल जाने पर भी... आपको लगता है... कोई डिस्टर्बांस होगा...
बल्लभ - मुझे तो नहीं लगता... कानूनन कोई अड़चन होगी... पर पता नहीं और कुछ... आई मिन..
निर्मल - इसीलिये तो मैंने जोडार ग्रुप सेक्यूरिटी हायर किया है... परसों की भू पूजन के लिए... आप इत्मिनान रखिए... उस दिन किसी प्रकार की... बाधा नहीं आएगी...

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शुभ्रा रुप के साथ अनु और वीर को लेकर xxxx अपार्टमेंट के पार्किंग एरिया में आती है l उनके पीछे पीछे सुप्रिया और प्रतिभा भी पहुँचते हैं l

वीर - भाभी... यह आप मुझे कहाँ ले आईं...
शुभ्रा - (भवें सिकुड़ कर मजाकिया लहजे में) तुम्हें... मैं तुम दोनों को लाई हूँ...
वीर - ओ हाँ... मतलब हमें यहाँ कहाँ लाईं हैं...
शुभ्रा - तुम ही ने तो कहा था... तुम्हें वापस हैल में नहीं जाना... इसलिए मैं तुम दोनों को... एक छोटे से पैराडाइज को लेकर आई हूँ...
वीर - क्या... पैराडाइज...
शुभ्रा - श्श्श्... अब और कोई सवाल नहीं... चुप चाप मेरे साथ चलो... (प्रतिभा और सुप्रिया से) आप भी आइए...

सभी लिफ्ट में सवार हो जाते हैं l अपार्टमेंट की छत पर लिफ्ट पहुँचती है l सभी देखते हैं छत पर एक पेंट हाउस था, जिसकी दरवाजे के पास दीवार पर पैराडाइज लिखा हुआ एक प्लेट लगा हुआ था l शुभ्रा चाबी निकाल कर दरवाजा खोलती है l जब सभी अंदर आने को होते हैं तभी शुभ्रा अनु और वीर को दरवाजे पर रोक देती है l दोनों हैरान हो कर शुभ्रा को देखते हैं l शुभ्रा मुस्कराते हुए अंदर जाती है और एक थाली में दीप और आरती लेकर आती है l दोनों की नजर उतारती है फिर दोनों को अपने अपने दाहिने पैर को आगे कर अंदर आने को कहती है l वीर और अनु दोनों थोड़े झिझकते हुए अंदर आते हैं l उनके अंदर आते ही रुप खुशी के मारे ताली बजाने लगती है l

वीर - भाभी... यह घर...
शुभ्रा - यह मेरा घर है... आज इसे मैं अपनी देवरानी को सौंप रही हूँ.. (यह कह कर घर की चाबी अनु के हाथ में देती है, पर अनु चाबी लेने से कतराती है)
प्रतिभा - रख लो बेटी रख लो... (अनु चाबी रख लेती है)
वीर - भाभी... यह...
शुभ्रा - देखो मैं जानती हूँ... अभी तुम्हारा खुन उबाल मार रहा है... पर तुम कल तक क्या थे... और आज क्या हो... दुनिया से आजमाइश करने निकले हो... तुम्हें किसीका साथ भी नहीं चाहिए... पर यह मत भूलो... (अनु के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुमसे... एक जिंदगी जुड़ी हुई है... जिसकी हिफाजत का वादा... उसके दादी से तुमने किया है... (वीर चुप रहता है) देखो... इस घर पर... किसी भी क्षेत्रपाल का कोई हक नहीं है... यह मेरी पैराडाइज है... जिसे अब मैं तुम दोनों के हवाले कर रही हूँ... यकीन मानों... तुम्हारे हर ख्वाहिश... हर ख्वाब यहाँ पर पुरा होगा...

वीर के आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं l वह अपनी ज़ज्बात काबु नहीं कर पाता घुटनों पर आकर शुभ्रा के पैर पकड़ लेता है l

वीर - मुझे माफ कर दो भाभी... मैं तुम्हारे इस प्यार के लायक नहीं हूँ... मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ... मैंने तुम्हारे खिलाफ कभी षड्यंत्र किया था...
शुभ्रा - शशश्श्... (वीर को उठाते हुए) वीर... अगर तुमने कुछ किया भी था... वह मैं सुनना नहीं चाहती... तुम्हारा और मेरा रिश्ता भाभी और देवर का है... मत भूलो... यह रिश्ता माँ और बेटे के समान होता है... बेटा कुछ गलती करे... तो माँ माफ कर देती है... वैसे भी... मुझे तुमसे कभी गिला था ही नहीं... इसलिए कुछ भी मत कहो... मैं तुमसे कोई गिला रखना भी नहीं चाहती...
वीर - पर भाभी...
शुभ्रा - कहा ना... मैं कुछ सुनना नहीं चाहती... अब यह घर तुम दोनों के हवाले... यहाँ पर तुम दोनों अपनी दुनिया बसाना....
प्रतिभा - वाह बेटी वाह... आज वाकई मैं तुमसे बहुत प्रभावित हो गई... तुम्हारे बारे में किसी से सुना करती थी... आज साक्षात देख भी लिया... (इतना सुनने के बाद रुप अपनी नजरें घुमा लेती है)
सुप्रिया - वाकई... जिनके बीच पली बढ़ी... वही लोग जब मुसीबत आई तो अनु का साथ छोड़ दिया... अनु को अकेला कर दर दर ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया... पर वीर ने अनु का साथ नहीं छोड़ा... और (शुभ्रा से) आपने इन्हें ठोकर खाने से बचा लिया...
शुभ्रा - अच्छा... चलिए अब हम चलते हैं... इन दो प्यार के परिंदों को... इनके घोंसले में छोड़ कर चलते हैं...
सुप्रिया - हाँ हाँ... चलिए...

सभी लोग वीर और अनु को वहाँ पर छोड़ कर चले जाते हैं l वीर और अनु उस घर में असमंजस सा खड़े रह जाते हैं l

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विश्व की गाड़ी दौड़ी जा रही थी, बगल में सुषमा चुपचाप बैठी हुई थी l गाड़ी अब शहर से दुर अंगुल रोड पर आ चुकी थी l महानदी ब्रिज के पार होते ही एक सुनसान बियाबान जगह देख कर सुषमा विश्व को गाड़ी रोकने के लिए इशारा करती है l विश्व गाड़ी रोक देता है l सुषमा गाड़ी से उतर कर बाहर एक किनारे खड़ी हो जाती है और बियाबान के परे सूरज की रौशनी से चमकती हुई बहती महानदी को देख रही होती है l विश्व भी गाड़ी से उतर कर सुषमा के बगल में खड़े हो कर वही दृश्य को देखने लगता है l

विश्व - आपके मन में बहुत से सवाल हैं... पर कहाँ से कैसे शुरू करें.. इस बात पर आपको असमंजस है...
सुषमा - (विश्व की ओर देखती है) हाँ तुमने सही कहा... सवाल इतने हैं कि पूछो ही मत... पर जवाब... जवाब के लिए ना तो तुम्हारे पास वक़्त है... ना ही मेरे पास... (एक पॉज लेकर) तुम... अनाम हो ना...
विश्व - जी... (बेबाकी से जवाब देता है)
सुषमा - तुम चाहते क्या हो अनाम...
विश्व - मैं आपका मतलब नहीं समझा...
सुषमा - हूंह्... तुम्हारा इकलौता मकसद है... क्षेत्रपाल को मिटाना... चाहे कुछ भी हो... कैसे भी हो... क्या इसीलिए... रुप से प्यार का नाटक और वीर से दोस्ती का नाटक कर रहे हो...
विश्व - अब आप मुझ पर साजिश का इल्ज़ाम लगा रही हैं...
सुषमा - हाँ शायद... यह तुम क्षेत्रपाल से किस तरह का बदला लेना चाहते हो... अगर उन्हें मिटाना ही चाहते हो तो... सामने से वार क्यूँ नहीं कर रहे.. पीठ पीछे वीर और रुप के आड़ में... क्यूँ वार कर रहे हो...
विश्व - आप हाइपर हो रहीं हैं...
सुषमा - हाँ हो रही हूँ... मानतीं हूँ.. तुम्हारे साथ... क्षेत्रपाल सही नहीं किए.... पर यह किस तरह का बदला लेना चाहते हो...
विश्व - वीर... आपके परिवार से अलग हुआ... इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है...
सुषमा - मामला वीर और क्षेत्रपाल के बीच था... तुम क्यों बीच में घुस आए...
विश्व - मैं घुसा नहीं हूँ... वीर ने आवाज दी... मैं आ गया... इससे पहले बात को आप आगे बढ़ाएँ... मैं कुछ कहूँ...
सुषमा - कहो...
विश्व - आपकी नाराजगी किससे है... मुझसे... या आपके बच्चों से... या फिर अपने आपसे...
सुषमा - (चुप रहती है)
विश्व - आपके आँखों के सामने ही बड़ा हुआ हूँ... मैं आपके आँखों के सामने उतना रहा हूँ... जितना कभी वीर नहीं रहा आपके सामने... क्या आपको लगता है... मैं कोई साज़िश कर सकता हूँ... (सुषमा चुप रहती है, पर विश्व के बोलने के लहजे में धीरे धीरे कड़क पन छाने लगता है) हाँ मैं जितना क्षेत्रपालों के बारे में जानता गया... मेरी दीदी के साथ हुए अन्याय के बारे में जानता गया... मुझे क्षेत्रपालों से नफरत होती गई... और जब मुझे फंसा कर जैल भिजवा दिया... तब मेरे पास सिर्फ एक ही लक्ष रह गया... बदला... बदला सिर्फ बदला... यकीन जानिए... मैं जैल में रह कर मुजरिमों के बीच रह कर.. जुर्म की दुनिया के हर दाव पेच से वाकिफ हूँ... खुद को भैरव सिंह को मिटाने के लिए तैयार कर लिया था... आप जिस औरत से इजाजत लेकर मुझे यहाँ लेकर आई हैं... अगर वह ना होतीं... तो यकीनन मैं क्षेत्रपाल महल में घुस कर... भैरव सिंह का सिर काट कर... गांव की गालियों में ठोकर मारते हुए पुलिस स्टेशन गया होता... मेरी माँ... मुहँ बोली माँ... उन्होंने.. मुझसे वादा लिया... भैरव सिंह क्षेत्रपाल को कानूनन सजा दिलाने के लिए... इसलिए... भैरव सिंह अभी तक सलामत है... और तो और मेरी बहन... वैदेही... जिसकी जिंदगी को नर्क बना दिया गया था... उसने मुझे अपनी रंजिश को भूल जाने के लिए कहा.. और इस लड़ाई को अपनी बजाय.... लोगों की लड़ाई में तब्दील करने के लिए बोली... यही वज़ह है कि भैरव सिंह अभी तक अपनी साँसे ले पा रहा है... (लहजा थोड़ा नर्म पड़ता है) रानी माँ... मैं इतना कमजर्फ, कमीना और गिरा हुआ नहीं हूँ... जो बदले के लिए... वीर या अनु को सीडी बनाऊँ... वीर से दोस्ती इत्तेफाक था.... और राजकुमारी से प्रेम बचपन का था... और उन दोनों को मेरे बारे में सबकुछ पता भी तो है... फिर यह इल्ज़ाम मुझपर आप क्यूँ लगा रही हैं...

इस सवाल के साथ विश्व चुप हो जाता है l सुषमा क्या कहे, उसे कुछ जवाब सूझ नहीं रही थी l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सुषमा कहने लगती है

सुषमा - जिंदगी भर घुटती रही... आज मन किया... वह घुटन... वह दर्द सब बाहर निकाल दूँ... किसी पर चीखना चाह रही थी... चिल्लाना चाह रही थी... पर किस पर... कैसे... इसलिए तुम पर ऐसे अपनी घुटन को... भड़ास के रुप में तुम पर उतार दिया... दिल पर मत ले लेना...
विश्व - नहीं... नहीं लिया... पर आप यह सब कहने या करने तो नहीं आई होंगी ना... इसलिए जो कहने आई थी... वह कहिये...
सुषमा - बहुत समझदार हो... अनाम... वीर बचपन से... विक्रम के करीब रहा है... परिवार के किसी भी सदस्य से ज्यादा विक्रम से उसे लगाव है... फिर भी... जब मुसीबत में आया... उसने विक्रम के बजाय तुम्हें आवाज दिया... और तुम पहुँच भी गए...
विश्व - दोस्ती जो कि है...
सुषमा - हाँ... पर अनाम... वीर का सफर और इम्तिहान अभी शुरु ही हुआ है... आगे और भी मुसीबतें आयेंगी... (रुक जाती है l
विश्व - हाँ हाँ आगे बताईये...
सुषमा - तुम अपनी मकसद में होगे... कहीं उसकी पुकार तुम्हारे राह में रोड़ा बन कर आया तो...
विश्व - तब भी.. एक दोस्त... अपनी दोस्ती निभाएगा...
सुषमा - और रुप...
विश्व - रानी माँ... राजकुमारी जी का मेरे जीवन में आना... तब हुआ... जब मैं अपने बचपन से आगे बढ़ रहा था... और वह बचपन में कदम रख रही थीं... जुदा तब हुए... जब वह बचपन छोड़ रही थी... मैं जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था... सच कहूँ तो... मैं भुला चुका था उन्हें... वह दुबारा... मेरी जिंदगी में... एक बहार बन कर वापस आई हैं... मेरी जिंदगी पर सिर्फ उन्हीं कि हुकूमत चल सकती है.. बस....
सुषमा - (थोड़ा मुस्कराते हुए) बहुत प्यार करते हो रुप से... ह्म्म्म्म...
विश्व - हाँ...
सुषमा - अब जब वीर की वाक्या सामने है... क्या तुम्हें लगता है... तुम दोनों की राह आसान होगी...
विश्व - नहीं होगा... पर शायद उसकी नौबत ना आए... क्या पता क्षेत्रपाल आने वाले समय में... अपनी ही उलझन में उलझ जाएं...
सुषमा - हाँ... हो सकता है... पर तुम विक्रम को भूल रहे हो... उसे जब तुम्हारे और रुप के बारे में... मालुम होगा... तब उसकी दुश्मनी महंगी पड़ सकती है...
विश्व - दोस्ती बेशकीमती होती है... प्यार अनमोल होता है... और दुश्मनी महंगी ही होनी चाहिए... पर फ़िलहाल मुझे विक्रम से कोई खतरा नहीं है...
सुषमा - ऐसा क्यूँ...
विश्व - अभी विक्रम की कंधे और सिर दोनों... मेरे एहसान के आगे झुके हुए हैं... जिस दिन वह एहसान का बोझ उतर जाएगा... उस दिन विक्रम मुझपर पलटवार करेगा...

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रंग महल में अपनी ही तस्वीर के सामने भैरव सिंह खड़ा था l तस्वीर में वह एक सिंहासन पर बैठा हुआ था, बाएं हाथ में तलवार था और दाहिना पैर एक शेर के सिर रखा था l बड़ी ही रौब दार तस्वीर थी l अपनी दांत को पिसते हुए अपनी तस्वीर को घूरे जा रहा था l अचानक उसे एक हँसी सुनाई देने लगती है l अपनी नजर चारों ओर घुमाता है, उसे कोई नजर नहीं आता l फिर उसका ध्यान अपनी ही तस्वीर पर ठहर जाता है l उसके आँखों के सामने तसवीर में उसका अक्स जिवंत हो जाता है l

भैरव सिंह - (हैरानी के मारे) कौन हो तुम...
तस्वीर - हा हा हा हा... क्यूँ मुझे नहीं पहचान पा रहे... मैं तुम हूँ...
भैरव सिंह - तुम यहाँ क्यूँ आए हो...
तस्वीर - मैं आया ही कब था... मैं तो तब से हूँ... जब से तुम हो...
भैरव सिंह - ठीक है ठीक है... अकेला छोड़ दो हमें... जाओ यहाँ से...
तस्वीर - हम... यह हम क्या है..
भैरव सिंह - हम... हम क्षेत्रपाल हैं...
तस्वीर - अब इस पहचान पर ग्रहण लगने लगा है... तुम्हारे वृक्ष से डाली अब कटने लगा है... कहीं यह उस वैदेही के श्राप की वज़ह से तो नहीं... यही सोच रहे हो ना...
भैरव सिंह - हाँ...
तस्वीर - कहीं तुमने अपने दुश्मनों को जिंदा छोड़ कर गलती तो नहीं कर बैठे...
भैरव सिंह - हमसे दुश्मनी का लोहा कौन उठा सकता है...
तस्वीर - विश्व प्रताप महापात्र... यही नाम है ना उसका... उसने गाँव वालों के सामने... तुम्हारे आदमियों को दौड़ा दौड़ा कर मारा... अब तुम्हारा परिवार तुमसे टुट रहा है... जैसा वैदेही ने कहा था... वैसा ही हो रहा है...
भैरव सिंह - यह महज इत्तेफाक है... हमारे टुकड़ों में पलने वाला कुत्ता... हमारे ही झूठन पर पलने वाला... उसकी औकात क्या है... उसकी बिसात क्या है...
तस्वीर - हाँ ठीक कहा तुमने... उसने सुबह तड़के घर में घुस कर बड़े राजा को आँख दिखा कर महल से निकला था... भूल गए... अब राजकुमार वीर की मदत कर... उस दो कौड़ी लड़की को ढूँढ कर.... अब वीर को तुम्हारे खानदान से अलग कर दिया... और अब उसने आज रुप फाउंडेशन केस में पीआईएल दाख़िल कर दिया है...
भैरव सिंह - हाँ हाँ उसने ऐसा किया है... और अब उसकी सजा भी उसे मिलेगी...
तस्वीर - हाँ उसे सजा दो... ऐसा सजा... ताकि बरसों बरस तक फिर कोई विश्वा पैदा ना हो पाए...
भैरव सिंह - हाँ अब ऐसा ही होगा... इसबार कोई रहम नहीं होगी... (तभी दरवाजे पर दस्तक होती है, अपनी ख़यालों से भैरव सिंह बाहर आता है और दरवाजे की ओर देखता है जो बंद था) कौन है...
बाहर से आवाज आती है - दरोगा सहाब आए हैं हुकुम...
भैरव सिंह - ठीक है... भेजो उसे...

कुछ देर बाद दरवाजा खुलता है l रोणा अंदर आता है l आते ही भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकता है l भैरव सिंह एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठ जाता है l

रोणा - आपने याद किया हुकुम...
भैरव सिंह - हाँ दरोगा... अब वक़्त आ गया है... शतरंज पर अपनी चाल चलने की...
रोणा - मैं समझा नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - दरोगा... तुम जानते हो... हम उस चींटी तक को नहीं मसलते... जिसकी औकात हमें काटने तक कि ना हो...
रोणा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - तुम समझ रहे हो... हम किसकी बात कर रहे हैं...
रोणा - जी हुकुम... मैं अभी अभी न्यूज देख कर आ रहा हूँ... विश्व ने... रुप फाउंडेशन केस पर... दोबारा सुनवाई के लिए... पीआईएल दाखिल किया है...
भैरव सिंह - और...
रोणा - और अभी जो भुवनेश्वर हुआ है... उसका सारा ब्यौरा मुझे प्रधान से मिल चुका है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... अब तुम्हें लगता होगा... उस दिन हमने तुम्हें रोक कर बड़ी गलती कर दी थी...
रोणा - नहीं राजा साहब... झूठ नहीं बोलूंगा... पहले लगा तो था... पर अब लग रहा है... उस सांप का सिर कुचलने में बहुत मज़ा आएगा... जो सांप जितना जहरीला हो...
भैरव सिंह - तो... कब से काम पर लगोगे...
रोणा - बस प्रधान को आ जाने दीजिए... हम दोनों मिलकर... विश्व को ऐसा मजा चखायेंगे की... उसकी सात पुस्तें याद रखेंगी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... दो दिन बाद... प्रधान मुहँ लटका कर आ जाएगा... तब तुम दोनों अपनी सौ फीसद देकर देख लेना...
रोणा - प्रधान... मुहँ लटका कर आएगा... गुस्ताखी माफ... हुकुम पर क्यूँ...
भैरव सिंह - परसों जब आये... तो इसीसे पुछ लेना... एक बात हमेशा याद रखो दरोगा... दुश्मन पर वार तब करो... जब उसके ताकत का तुम्हें पुरा अंदाजा हो... हमें यह कहते हुए कोई असमंजस नहीं है... हमने विश्व को कम कर आंका था... अब तुम्हें और प्रधान को उसकी ताकत का अंदाजा हो गया होगा.... इसलिए अब वार करने के लिए... पुरी तरह से तैयार रहो...
रोणा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - रोणा... हम तुम्हें पुरी आजादी देते हैं... जो भी करना है करो... मगर उस गंदी नाली के कीड़े को उसकी औकात दिखा दो...
रोणा - जी हुकुम ऐसा ही होगा...
भैरव सिंह - रोणा यह पहली बार है... की किसीके वज़ह से... हमारे माथे पर शिकन पड़ा है... Ham यह बात किसी और से कहेंगे तो इससे हमारी कमजोरी जाहिर होगी... इसलिए अगर तुमने यह कर दिया... तो यह रंग महल पुरी तरह से तुम्हें सौंप देंगे...
रोणा - जी... (आखें हैरानी के मारे फैल जाते हैं)
भैरव सिंह - हाँ दरोगा हाँ... तुम ऐश करना मरते दम तक... इतनी दौलत भी देंगे....
रोणा - जी... (एक अंदरुनी खुशी के साथ)
भैरव सिंह - पर याद रहे... यह बात सिर्फ तुम्हारे और हमारे बीच ही रहनी चाहिए... जो करो जैसा करो... तुम्हें आजादी होगी... कोई रुकावट नहीं होगी... पर अंजाम वह होना चाहिए... जो हमें दिखे...
रोणा - जी हुकुम... (एक पॉज लेकर) हुकुम... अगर आप बुरा ना माने तो... तो...
भैरव सिंह - पूछो क्या पूछना चाहते हो...
रोणा - यह काम आप... युवराज से भी करा सकते थे...
भैरव सिंह - दरोगा... बेटे के रौब के पीछे बात का रुतबा होता है... और हमें यह एहसास मत दिलाओ... के हमने एक गलत आदमी से... सौदा तय किया है...
रोणा - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... आपने आज मुझे इतनी इज़्ज़त दी है... तो वादा करता हूँ... सिर कटा कर भी उस हराम खोर विश्व को नेस्तनाबूद कर दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... अब तुम जा सकते हो... पर याद रहे... यह बात हम दोनों की बीच रहे... कोई तीसरा जानेगा... तो तुम्हारी खैर नहीं...
रोणा - जी समझ गया..

कह कर रोणा रंग महल से बाहर आता है l आते ही अपनी जीप पर बैठ कर महल से निकल जाता है l अपने गाड़ी की रियर मिरर से रंग महल को बड़े चाव से देख रहा होता है l कुछ दूर बाद अपनी जीप को रोकता है और उतर कर रंग महल को देखता है l अपनी जेब से मोबाइल निकालता है और उसमें एक फोटो देखने लगता है l वह फोटो विश्व और रुप की थी जिसे खिंच कर लेनिन ने भेजा था l रोणा फोटो को एनलार्ज करता है जिससे विश्व फोटो से गायब हो जाता है, और सिर्फ रुप दिखने लगती है l

रोणा - हँसले... तेरी किस्मत में जितनी हँसी लिखी है हँसले... तेरे विश्वा को अब कुत्ते की मौत मारूंगा... और तेरी इसी रंग महल में उतारूंगा... कसम है... तु जिंदगी भर मेरी रंडी बनकर रहेगी... क्यूँकी अब किस्मत भी मेरे साथ है... हा हा हा हा हा...

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पैराडाइज
वन बीएचके पेंट हाऊस था l एक ही बेड पर वीर और अनु सोये हुए थे l कमरे में मद्धिम रौशनी को फैलते हुए एक नाइट बल्ब जल रहा था l दोनों के दरमियान कुछ फासला था l वीर की आँखों में नींद नहीं थी जबकि अनु सो चुकी थी l वीर अनु की तरफ पलटता है, अनु कुर्मी सलवार में थी और वीर की तरफ चेहरा कर पीठ के बल सोई हुई थी l वीर की आँखे अनु के चेहरे पर टिक जाती है l दुनिया जहान से बेख़बर कोई शिकवा या शिकायत नहीं किसी मासूम बच्चे की तरह नींद में खोई हुई है l वीर के चेहरे पर एक मुस्कान उभर जाती है l तभी अनु करवट बदलती है और वीर की तरफ पलट जाती है l ऐसे में अनु के गले के नीचे कुर्ती से स्तनों का उभार क्लीवेज दिखने लगती है l वीर यह दृश्य देख कर अपनी थूक निगलता है l तभी उसकी नजर फिसलता है, देखता है कमर के पास अनु की कुर्ती थोड़ी अस्तव्यस्त हो गई है जिसके कारण अनु की गोल गहरी नाभि साफ दिख रही थी l यह देख कर वीर का मुहँ खुला का खुला रह जाता है l वह अनु की तरफ देखता है l अनु सोई हुई थी l वीर की धड़कने अचानक रफ्तार पकड़ने लगती है l वह अपनी थरथराती हाथ को धीरे धीरे आगे बढ़ाता है और अनु के नाभि के करीब रोक देता है l वीर फिर से अनु के चेहरे की ओर देखता है, अनु अभी भी निश्चित होकर सोई हुई है l धीरे से अनु की नाभि को सहलाता है l अनु थोड़ी कुनकुनाते हुए करवट बदलती है और पीठ के बल सो जाती है l वीर अपना हाथ खिंच लेता है l फिर अपनी जगह पर बैठ जाता है, अनु की ओर देखता है, अनु नींद में है यह निश्चिंत होने पर बेड से उतरता है और बाहर छत पर आजाता है l आगे बढ़ कर छत के किनारे पर आ खड़ा होता है l रेलिंग पर हाथ रख कर कभी आसमान की और तो कभी नीचे स्ट्रीट लाइट में जगमगाते सड़कों को देख रहा था l अचानक वह चौंकता है जब वह अपने कंधे पर किसीके हाथ को महसुस करता है l पीछे मुड़कर देखता है, अनु थी l

वीर - ओह... तुम... तुम सोई नहीं...
अनु - यही सवाल मैं आपसे करूँ तो...
वीर - वह मुझे नींद नहीं आ रही थी...
अनु - झूठे....
वीर - सच में... वर्ना सोचो... मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ...
अनु - (गौर से वीर की आँखों में झांकते हुए) कोई बात है... जिससे आप नाराज हैं... वही नाराजगी... आपको सोने नहीं दे रही है...
वीर - नाराज... नहीं मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ...
अनु - सच में...
वीर - हाँ... क्यूँ... तुम्हें क्यूँ ऐसा लग रहा है कि मैं किसी से नाराज हूँ...
अनु - किसी से नहीं... बल्कि... आप खुद से नाराज हो...
वीर - (कुछ देर के लिए वीर चुप हो जाता है) कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाह रही हो... के मैं अपनी पिछली जिंदगी के वज़ह से खुद से नाराज हूँ... या फिर खुद को वर्तमान में नहीं ढाल पा रहा हूँ.. इसलिए नाराज हूँ...
अनु - नहीं ऐसी बात नहीं है... (अनु वीर की दोनों हाथों को अपने गालों पर लेती है) आप... अपने आप से लड़ रहे हैं... हैं ना...
वीर - (अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - आपने ज़माने के सामने मुझे अपनाया है... ज़माने के आगे मेरा हाथ थामा है... इसी लिए तो... भाभी जी ने... अपना पैराडाइज हमें सौंप दिया है... भले ही... संसार की नजर में व्याह नहीं हुआ हमारा... फिर भी... एक घर में... एक ही कमरे में... हमें आशीर्वाद के साथ रहने दिया है.... बेशक हम हादसों से गुजर कर आए हैं... तूफान झेल कर आए हैं... पर आए तो हम एक आसरे में ही है ना...
वीर - बस... बस... बस रुक जाओ... कितनी बातें कर रही हो...
अनु - नहीं... मुझे बात पुरा कर लेने दीजिये... आप अपने आपसे लड़ रहे हैं.. जुझ रहे हैं... इतनी हादसों से गुज़री जिंदगी के इस मुकाम पर... दो पल के प्यार में बीताने से डर रहे हैं... हैं ना...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो कर) हाँ... मैं लड रहा हूँ खुद से... जुझ रहा हूँ खुद से... प्यार और हवस के बीच के फासले को ढूँढ रहा हूँ... वक़्त और बेवक्त में फर्क़ बांट रहा हूँ...
अनु - क्यों...
वीर - अभी अभी तुमने कहा ना... हम तूफान से गुजरे हैं... हादसों से निकल कर आए हैं... तभी दिल में उठ रहे यह ज़ज्बात... मुझे गुनाह का एहसास करा रहे हैं... दादी की चिता में आग सुबह ही लगाई है... चिता की आग बुझी भी नहीं होगी के.. तेरहवीं तक रुक नहीं पा रहा और...
अनु - समझी...(अनु वीर के गले लग जाती है) आप को जितना जाना... आप उससे भी बढ़ कर निकले... मेरे आँखों में आपका कद कितना ऊँचा हो गया है क्या कहूँ... खुद को कहीं नहीं पा रही हूँ...
वीर - (अनु को बाहों में ऊपर उठा कर अपने बराबर ले आता है, अनु के पैर हवा में झूलने लगती हैं ) यह लो तुम मेरे बराबर... मेरे साथ... मेरे सामने हो...
अनु - (मुस्कराते हुए वीर के गले लग जाती है) कितनी खुशी है... लगता है यहीं जिंदगी है... आपकी बाहों में मौत भी आ जाए... तो कोई ग़म नहीं...
वीर -(अनु के चेहरे को सामने लाकर) ऐ... ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही है... मैंने तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है... और तु मुझे छोड़ने की बात कर रही है...

अनु मुस्कराते हुए अपनी माथे को वीर के माथे पर रखती है और धीरे धीरे वीर के होंठो पर एक चुंबन जड़ कर फिर से वीर के गले से जोर से लग जाती है और बहुत धीरे से "आई लव यू" कहती है l

वीर - (अचानक से चौंकता है) है... क्या कहा तुमने अभी...
अनु - क्या...
वीर - ऐ.. मैं बहरा नहीं हूँ... (अनु को उतार देता है)
अनु - कुछ भी तो नहीं... ज़रूर आपके कान बजे होंगे...
वीर - देख अनु... आज तु बच नहीं सकती... आज कहा है... तो खुलकर बोलना... कान में जरा सी अमृत डाल कर अब मना करना... देख बिल्कुल ठीक नहीं...
अनु - कहूँगी कहूँगी...
वीर - तो कह ना...
अनु - मुझे आपसे प्यार है...
वीर - अरे यार... हिंदी में नहीं... अँग्रेजी में...
अनु - मुझे आपसे प्यार है... था और रहेगा... जिस दिन यह प्यार हद से गुजरेगा... उस दिन कहूँगी...
वीर - तो आज क्यूँ कहा...
अनु - क्यूंकि... आज आप पर प्यार हद से ज्यादा आ रहा था... इसलिए... (अनु जीभ दिखा कर भागती है)
वीर - तेरी तो...

अनु भागती है और वीर उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागता है l कुछ ही देर में वीर अनु को पकड़ लेता है और उसे घर की दीवार से सटा देता है l दोनों की साँसे ऊपर नीचे हो रही थी l दोनों एक दूसरे की आँखों में खोए हुए थे l कब एक दूसरे के होंठ आपस में मिल गए दोनों को मालुम भी ना हो सका l ऊपर आसमान में चंद्रमा अपनी रौशनी बिखेर रही थी और नीचे दो प्रेमी जोड़े धीरे धीरे अपने प्रेम में मगन हो कर डूबने लगे l
Bahut hi shandaar mazedaar update hai bhai maza aa gaya hai

Waiting for next update
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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lovely update ..anu ki dadi ka dehant ho gaya ye jaankar bahut bura laga .
veer ne saare kriyakarm kar diye ek bete ki tarah .
sushma ka veer se baat karna jisse aisa laga ki usko shak ho raha hai vishwa pe ki wo roop aur veer ko kathputli banake kshetrpal se jung ladh raha hai par vishwa ne bhi apni baate sahi se samjha di sushma ko .

ab ye rona kaise veer ko target karta hai ye dekhna hai ,waise offer to mast diya hai bhairav ne usko .
veer aur anu ka faisla ekdam sahi hai alag rehne ka ,kisiki madad na lene ka ,dadi se vaada kiya hai anu ko sambhalne ka .

vikram abhi kuch karega nahi ye baat pata hai vishwa ko kyunki vikram bhi ek powerful insan hai jo tab tak vaar nahi karega jab tak vishwa ka karja uske sar se naa hat jaaye jo shubhra ko bachakar kiya tha vishwa ne .
 
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जब जब आप कोई अपडेट लेकर आते हो तो हमे मंत्रमुग्ध कर देते हो । दुख इस बात का है कि ऐसे बेहतरीन अपडेट इन दिनो आने कम हो गए है। लेकिन इस के लिए हम आप को दोष नही देते । सभी की अपनी ड्युटी होती है , कर्म होते है , प्राथमिकता होती है , पारिवारिक मसले होते है इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक भी है।

इस अपडेट मे भी एक बार फिर से बेहतरीन कन्वर्सेशन सुषमा जी और विश्वा का था। बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने।
इसके बाद अनु और वीर के रूमानियत भरे पल ने भी हमारा मन मोह लिया।
यही खासियत है आपकी , आप जहां कहानी मे थ्रिल पैदा करके हमे रोमांचित कर देते हो वहीं जब रूमानियत भरे पर आते है तो हमारा दिल गुदगुदाने पर मजबूर कर देते हो।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट बुज्जी भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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आदरणीय मित्रों avsji SANJU ( V. R. ) Rajesh Ajju Landwalia KEKIUS MAXIMUS prakash Vickyabhi आदि मेरे सभी मित्रों

अपनी जीवन की मनोदशा लिख रहा हूँ संक्षिप्त में, मेरे जीवन में एक शुन्य स्थान हो गया है जिसकी पूर्ति लगभग असंभव है l मैंने एक गहरे मित्र को खो दिया है l उसके साथ मेरी मित्रता पच्चीस वर्ष की थी l पहले हम कलकत्ता में RRB exam के दौरान धर्मताला के एक स्कुल में हुआ था l मुलाकात बहुत ही यादगार था क्यूंकि दोनों ही धर्मताला बस स्टैंड में पेशाब करते हुए पोलिस के द्वारा पकड़े गए थे और फाइन भरे थे l फिर हमारी मुलाकात सिकंदराबाद RRB exam के दौरान स्टेशन पर मुलाकात हुई थी l बीते मुलाकात की याद को ताजा कर दोनों बहुत हँसे थे l खैर तीसरी बार हमारी मुलाकात उस इंटरव्यू में हुई थी जिस के बाद हमें नौकरी मिली थी l एक PSU में l उसके बाद दोनों का मेडिकल चेकअप एक ही दिन हुआ और जॉइनींग भी एक ही दिन हुई l कमाल की बात यह रही कि हमारी पोस्टिंग एक ही एरिया में हुई l थर्मल पावर प्लांट में l

हाँ यह बात और है कि उसकी शादी पहले हुई और मेरी शादी तीन साल बाद l दोनों की क्वार्टर अगल-बगल में मिली हुई थी l बाद में जब बड़ी क्वार्टर मिली तो मैं सेक्टर वन में रह गया और वह सेक्टर तीन को चला गया l

मैं स्वभाव से थोड़ा आलसी हूँ, वह हमेशा मॉर्निंग वॉक और इवनींग वॉक के लिए मुझे जबरदस्ती घर से लेकर जाता था l प्लांट में दोनों की जब भी एरिया में मुलाकात होती थी तब हमारे बीच हमेशा स्लैंग लैंग्वेज ईस्तेमाल किया करते थे l हम किसी ना किसी तरह प्लान कर के हर रविवार को A शिफ्ट ड्युटी पर आ जाते थे l दोनों एक एरिया में ड्युटी डलवा कर उस दिन थोड़ी शराब और मटन की रसोई किया करते थे l यह सिलसिला बाइस सालों तक चलता रहा l फिर कुछ हफ्ते पहले उसे ब्रेन हमरैज हुआ और ऑपरेशन टेबल पर ही चल बसा l बाइस साल की रेगुलर रुटीन अब पुरी तरह से डिस्टर्ब हो गया है l अब मैं ड्यूटी स्पॉट पर खामोश ही रहता हूँ l अब मैंने अपना ऑफ भी बदलवा दिया है l पहले शुक्र वार था अब संडे को ले लिया है l

ऐसी मेरी स्थिति थी यार l इसलिए पेज पर बड़ी मुश्किल से ही आ पा रहा था l

खैर शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
कोशीश में हूँ खुद को फिर से पटरी पर लाने की l बहुत जल्द आ जाऊँगा l
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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आदरणीय मित्रों avsji SANJU ( V. R. ) Rajesh Ajju Landwalia KEKIUS MAXIMUS prakash Vickyabhi आदि मेरे सभी मित्रों

अपनी जीवन की मनोदशा लिख रहा हूँ संक्षिप्त में, मेरे जीवन में एक शुन्य स्थान हो गया है जिसकी पूर्ति लगभग असंभव है l मैंने एक गहरे मित्र को खो दिया है l उसके साथ मेरी मित्रता पच्चीस वर्ष की थी l पहले हम कलकत्ता में RRB exam के दौरान धर्मताला के एक स्कुल में हुआ था l मुलाकात बहुत ही यादगार था क्यूंकि दोनों ही धर्मताला बस स्टैंड में पेशाब करते हुए पोलिस के द्वारा पकड़े गए थे और फाइन भरे थे l फिर हमारी मुलाकात सिकंदराबाद RRB exam के दौरान स्टेशन पर मुलाकात हुई थी l बीते मुलाकात की याद को ताजा कर दोनों बहुत हँसे थे l खैर तीसरी बार हमारी मुलाकात उस इंटरव्यू में हुई थी जिस के बाद हमें नौकरी मिली थी l एक PSU में l उसके बाद दोनों का मेडिकल चेकअप एक ही दिन हुआ और जॉइनींग भी एक ही दिन हुई l कमाल की बात यह रही कि हमारी पोस्टिंग एक ही एरिया में हुई l थर्मल पावर प्लांट में l

हाँ यह बात और है कि उसकी शादी पहले हुई और मेरी शादी तीन साल बाद l दोनों की क्वार्टर अगल-बगल में मिली हुई थी l बाद में जब बड़ी क्वार्टर मिली तो मैं सेक्टर वन में रह गया और वह सेक्टर तीन को चला गया l

मैं स्वभाव से थोड़ा आलसी हूँ, वह हमेशा मॉर्निंग वॉक और इवनींग वॉक के लिए मुझे जबरदस्ती घर से लेकर जाता था l प्लांट में दोनों की जब भी एरिया में मुलाकात होती थी तब हमारे बीच हमेशा स्लैंग लैंग्वेज ईस्तेमाल किया करते थे l हम किसी ना किसी तरह प्लान कर के हर रविवार को A शिफ्ट ड्युटी पर आ जाते थे l दोनों एक एरिया में ड्युटी डलवा कर उस दिन थोड़ी शराब और मटन की रसोई किया करते थे l यह सिलसिला बाइस सालों तक चलता रहा l फिर कुछ हफ्ते पहले उसे ब्रेन हमरैज हुआ और ऑपरेशन टेबल पर ही चल बसा l बाइस साल की रेगुलर रुटीन अब पुरी तरह से डिस्टर्ब हो गया है l अब मैं ड्यूटी स्पॉट पर खामोश ही रहता हूँ l अब मैंने अपना ऑफ भी बदलवा दिया है l पहले शुक्र वार था अब संडे को ले लिया है l

ऐसी मेरी स्थिति थी यार l इसलिए पेज पर बड़ी मुश्किल से ही आ पा रहा था l

खैर शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
कोशीश में हूँ खुद को फिर से पटरी पर लाने की l बहुत जल्द आ जाऊँगा l

प्रिय भाई - आशंका तो अवश्य ही थी कि कुछ अनर्थ ही हुआ है। यही कारण था कि दो मैसेज भेजने के बाद मैं चुप रह गया।
ऐसे समय में किसी को परेशान करना भी तो उचित नहीं होता न!
आपकी मनोदशा मैं भली भाँति समझ सकता हूँ। ईश्वर आपके मित्र को अपने चरणों में स्थान दें, और उनके परिवार को इस घोर विपदा को सहन करने की शक्ति दें।
आपके अनन्य मित्र का यूँ जाना उनके परिवार और आपके लिए अपूरणीय क्षति तो अवश्य ही है। किन्तु ईश्वर की कृपा से उनके बिना रह पाना संभव है।
अपने मन को दृढ़ करें - और अगर की भड़ाँस निकालने का मन हो, तो मैसेज में लिख भेंजे। इतना तो कर ही सकते हैं हम!
अपना ध्यान रखें।
 
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आदरणीय मित्रों avsji SANJU ( V. R. ) Rajesh Ajju Landwalia KEKIUS MAXIMUS prakash Vickyabhi आदि मेरे सभी मित्रों

अपनी जीवन की मनोदशा लिख रहा हूँ संक्षिप्त में, मेरे जीवन में एक शुन्य स्थान हो गया है जिसकी पूर्ति लगभग असंभव है l मैंने एक गहरे मित्र को खो दिया है l उसके साथ मेरी मित्रता पच्चीस वर्ष की थी l पहले हम कलकत्ता में RRB exam के दौरान धर्मताला के एक स्कुल में हुआ था l मुलाकात बहुत ही यादगार था क्यूंकि दोनों ही धर्मताला बस स्टैंड में पेशाब करते हुए पोलिस के द्वारा पकड़े गए थे और फाइन भरे थे l फिर हमारी मुलाकात सिकंदराबाद RRB exam के दौरान स्टेशन पर मुलाकात हुई थी l बीते मुलाकात की याद को ताजा कर दोनों बहुत हँसे थे l खैर तीसरी बार हमारी मुलाकात उस इंटरव्यू में हुई थी जिस के बाद हमें नौकरी मिली थी l एक PSU में l उसके बाद दोनों का मेडिकल चेकअप एक ही दिन हुआ और जॉइनींग भी एक ही दिन हुई l कमाल की बात यह रही कि हमारी पोस्टिंग एक ही एरिया में हुई l थर्मल पावर प्लांट में l

हाँ यह बात और है कि उसकी शादी पहले हुई और मेरी शादी तीन साल बाद l दोनों की क्वार्टर अगल-बगल में मिली हुई थी l बाद में जब बड़ी क्वार्टर मिली तो मैं सेक्टर वन में रह गया और वह सेक्टर तीन को चला गया l

मैं स्वभाव से थोड़ा आलसी हूँ, वह हमेशा मॉर्निंग वॉक और इवनींग वॉक के लिए मुझे जबरदस्ती घर से लेकर जाता था l प्लांट में दोनों की जब भी एरिया में मुलाकात होती थी तब हमारे बीच हमेशा स्लैंग लैंग्वेज ईस्तेमाल किया करते थे l हम किसी ना किसी तरह प्लान कर के हर रविवार को A शिफ्ट ड्युटी पर आ जाते थे l दोनों एक एरिया में ड्युटी डलवा कर उस दिन थोड़ी शराब और मटन की रसोई किया करते थे l यह सिलसिला बाइस सालों तक चलता रहा l फिर कुछ हफ्ते पहले उसे ब्रेन हमरैज हुआ और ऑपरेशन टेबल पर ही चल बसा l बाइस साल की रेगुलर रुटीन अब पुरी तरह से डिस्टर्ब हो गया है l अब मैं ड्यूटी स्पॉट पर खामोश ही रहता हूँ l अब मैंने अपना ऑफ भी बदलवा दिया है l पहले शुक्र वार था अब संडे को ले लिया है l

ऐसी मेरी स्थिति थी यार l इसलिए पेज पर बड़ी मुश्किल से ही आ पा रहा था l

खैर शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
कोशीश में हूँ खुद को फिर से पटरी पर लाने की l बहुत जल्द आ जाऊँगा l
आदमी मुसाफिर है , आता है जाता है ।
आते जाते रास्ते मे यादें छोड़ जाता है। ।
मृत्यु पर किस का जोर ! सभी को वहीं जाना है । किसी की आज तो किसी की कल की बारी है।
बस प्रिय जनों की यादें रह जाती है। यही जीवन है भाई। हम इंसान है और हम सभी मोह माया से बंधे हुए है।
कुछ दिन प्रभु का स्मरण करें। वही सर्व शक्तिमान है।
प्रभु आपके दोस्त की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करें।
मुझे विश्वास है आप जल्द इस सदमे से दूर होंगे।
 

great....

just silence.....🤫
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I hope ki ap jald hi is dukh se nipat loge aur firse normal ho jaoge.........

ham to musafir hai is khubsurat safar ke... ab koyi safar ke akhiri padav tak chalte hai koi bich me jan buj kar sath chhod dete hai aur kai humsafar aise bhi hote hai jisme dono taraf sath nibhane ki koshis rahti hai par ye kambkhat vakt sath nibhne nahi deta....

get well soon man.
 

Rajesh

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आदरणीय मित्रों avsji SANJU ( V. R. ) Rajesh Ajju Landwalia KEKIUS MAXIMUS prakash Vickyabhi आदि मेरे सभी मित्रों

अपनी जीवन की मनोदशा लिख रहा हूँ संक्षिप्त में, मेरे जीवन में एक शुन्य स्थान हो गया है जिसकी पूर्ति लगभग असंभव है l मैंने एक गहरे मित्र को खो दिया है l उसके साथ मेरी मित्रता पच्चीस वर्ष की थी l पहले हम कलकत्ता में RRB exam के दौरान धर्मताला के एक स्कुल में हुआ था l मुलाकात बहुत ही यादगार था क्यूंकि दोनों ही धर्मताला बस स्टैंड में पेशाब करते हुए पोलिस के द्वारा पकड़े गए थे और फाइन भरे थे l फिर हमारी मुलाकात सिकंदराबाद RRB exam के दौरान स्टेशन पर मुलाकात हुई थी l बीते मुलाकात की याद को ताजा कर दोनों बहुत हँसे थे l खैर तीसरी बार हमारी मुलाकात उस इंटरव्यू में हुई थी जिस के बाद हमें नौकरी मिली थी l एक PSU में l उसके बाद दोनों का मेडिकल चेकअप एक ही दिन हुआ और जॉइनींग भी एक ही दिन हुई l कमाल की बात यह रही कि हमारी पोस्टिंग एक ही एरिया में हुई l थर्मल पावर प्लांट में l

हाँ यह बात और है कि उसकी शादी पहले हुई और मेरी शादी तीन साल बाद l दोनों की क्वार्टर अगल-बगल में मिली हुई थी l बाद में जब बड़ी क्वार्टर मिली तो मैं सेक्टर वन में रह गया और वह सेक्टर तीन को चला गया l

मैं स्वभाव से थोड़ा आलसी हूँ, वह हमेशा मॉर्निंग वॉक और इवनींग वॉक के लिए मुझे जबरदस्ती घर से लेकर जाता था l प्लांट में दोनों की जब भी एरिया में मुलाकात होती थी तब हमारे बीच हमेशा स्लैंग लैंग्वेज ईस्तेमाल किया करते थे l हम किसी ना किसी तरह प्लान कर के हर रविवार को A शिफ्ट ड्युटी पर आ जाते थे l दोनों एक एरिया में ड्युटी डलवा कर उस दिन थोड़ी शराब और मटन की रसोई किया करते थे l यह सिलसिला बाइस सालों तक चलता रहा l फिर कुछ हफ्ते पहले उसे ब्रेन हमरैज हुआ और ऑपरेशन टेबल पर ही चल बसा l बाइस साल की रेगुलर रुटीन अब पुरी तरह से डिस्टर्ब हो गया है l अब मैं ड्यूटी स्पॉट पर खामोश ही रहता हूँ l अब मैंने अपना ऑफ भी बदलवा दिया है l पहले शुक्र वार था अब संडे को ले लिया है l

ऐसी मेरी स्थिति थी यार l इसलिए पेज पर बड़ी मुश्किल से ही आ पा रहा था l

खैर शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
कोशीश में हूँ खुद को फिर से पटरी पर लाने की l बहुत जल्द आ जाऊँगा l
Ye Jan kar bahut dukh hua ki aapka ek bahut hi dil ke karib rehne wala Mitra ab is sansar me nahi rahe

Sabke jivan me ek vyakti ya dost aisa aata hai jo jivan me aage badhne ke liye housla deta hai ek dusre ke dukh baantta hai
Jo hum kisi aur ke sath share nahi kar sakte woh hum uske sath share kar lete aise dost jivan me bahut hi kam aate hai
Uske achanak se is tarah chale jane se dukh to hoga hi

Par saare gam ko bhula kar aage badhne ko hi jivan kehte hai dost aur isse shayad Jo aapke dost ab is duniya me nahi hai wo bhi aapko aage badhta dekh bahut khush honge


Aapke dost jaha kahi bhi hai bhagwan unke aatma ko shanti pradan kare yahi bhagwan se duaa karte hai
 
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