भाई जी, अपने
Kala Nag भाई इतनी मेहनत कर के इतना बढ़िया प्रस्तुतिकरण करते हैं, तो बिना कुछ लिखे, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए जाना चोरी करने जैसा महसूस होता है।
इतनी अच्छी भाषा, इतना अच्छा मनोरंजन! जो लिखता हूँ, वो कम पड़ता है।
पाठकों को चाहिए कि और कुछ नहीं, तो लेखक के समय के लिए (अगर हमने उनकी कहानी पढ़ ली है) उनको धन्यवाद तो देना ही चाहिए।
हाँ - कहानी से कहीं साथ छूट गया, तो अलग बात है।
लेकिन यहाँ तो ऐसे ऐसे लुच्चे बैठे हैं कि प्रतिक्रिया करना तो दूर, अपडेट न देने की स्थिति में ऐसी ठसक दिखाते हैं, कि जैसे उन्होंने आपको रुपए दिए हुए हों!
चोट्टई की इन्तहां!
सत्य कह रहे हैं
पर क्या करें एक एडिक्शन सा हो गया है
ना लिखूँ या ना सोचूँ तो अजीब सा लगने लगता है
खुद को व्यस्त रखना बहुत आवश्यक भी तो है
जी भाई, वो मैं समझ सकता हूँ; लेकिन हाथ पर अधिक स्ट्रेस डालने से रिकवरी में दिक्कत और देरी दोनों होगी।
इसलिए फिलहाल स्वास्थ्य पर ही ध्यान दें
वीर बहुत ही तेज दिमाग का हुआ करता था पर अब वह भावनाओं में बहने वाला मुर्ख हो गया है
हाँ भाई जब तक वीर क्षेत्रपाल था तब वह रेत में से सुई भी ढूंढ लेता था l अब प्रॉब्लम यह है कि वह अनु के रंग में रंग गया है l रही बात विक्रम की वह अब अपना दिमाग दौडायेगा
सब कुछ सही जा रहा था पर जिंदगी ने फिर से करवट ली है l बेवजह शुभ्रा और विक्रम के बीच फिर से वही दूरियाँ आ गई है
वीर और विक्रम की कहानी विरोधाभासों से भरी लगती है।
लेकिन फिर भी विक्रम के पास कम से कम अपने प्रेम को पाना, और उसको सहेजना सहज है।
वीर के लिए तो पूरी की पूरी राह ही कांटों भरी है!
क्षेत्रपाल की किला वीर के वज़ह से ही ढहने वाला है l जैसे कि पहले ही बताया था l हर एक का हिसाब होगा l कुछ एक का विश्व करेगा तो कुछ एक का भाग्य
हाँ! इसीलिए सब बड़ा रोचक है
अब केवल षड्यंत्र ही षडयंत्र चल रहा है l सांप और सीढ़ी वाला खेल l
थैंक्स शुक्रिया आभार और धन्यवाद
साथ बने रहें! और जल्दी से ठीक हो जाएँ!
इस बार कहानी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हैं, या नहीं?