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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....


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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
 

Jaguaar

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👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....



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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
Awesome Updateeee

Maza aagaya padh ke

Update ki koi khash jaldi nhi thi. Pura thik hoke bhi update de sakte the.
 

avsji

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Supreme
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भाई साहब, सबसे पहली बात यह कि आपको पूरी तरह से केवल रिकवरी पर ध्यान देना चाहिए, और किसी बात पर नहीं।
यहाँ लिखने का आपको एक पैसे का कोई लाभ नहीं है। और जहाँ तक हम पाठकों की बात है, हम पहले इस बात से संतुष्ट और प्रसन्न होंगे कि आपकी तबियत और स्वास्थ्य दुरुस्त हालत में हैं। चोटिल अवस्था में तो काम पर से भी छुट्टी मिल जाती है, और वो भी paid!
इसलिए स्वास्थ्य लाभ पर ध्यान दीजिए; बाकी सब होता रहेगा! :)

भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...

यह मैं अक्सर सोचता हूँ - ख़ास तौर पर जब मैं हरामी नेताओं को देखता हूँ (मतलब सभी नेता)!
स्साले जीवन भर केवल हरामीपंथी करते रहते हैं, फिर भी बड़े मौज से रहते हैं। फिर एक दिन मर जाते हैं।
न तो किसी बात का दंड मिलता है इनको, और न ही किसी प्रकार की समस्या होती है। स्वास्थ्य समस्या होने पर हमारे ही पैसे से इन मादरचो* का इलाज भी किया जाता है।
मतलब हमारी ही गाँ* मार कर ये पूरी मौज करते हैं और फिर निकल लेते हैं। या तो हमारी बददुआएँ कमज़ोर हैं, या फिर यह सब केवल हम लोगों के मन-बहलाव का जरिया है।
खैर, मैं यहाँ बेवजह का रोना नहीं रोऊँगा - बस यही कहूंगा, कि मैं भी यही सोचता हूँ! अक्सर!

तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...

आहो! सौ टके की बात :)

विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...

हाँ - अब विश्व को भी खटका हो गया है।
सही है - जब तक छड़ा बना घूम रहा था, तब तक कोई समस्या नहीं।
लेकिन अपने सबसे क़ीमती assets - मतलब अपने परिवार का ध्यान आता है, तब डर लगना लाज़मी ही है।

तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

पता नहीं क्यों इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है।
वैसे तापस और प्रतिभा अच्छे लोग हैं। इनके साथ कुछ बुरा होगा, तो बहुत बुरा लगेगा।

एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l

हाँ - वीर के आँखों पर पट्टी बँधी हुई है। अनु के कारण वो अनु से जुड़े हर व्यक्ति को क्लीन चिट देना चाहता है।
समझना ज़रूरी है कि अनु अलग है, और बाकी लोग अलग।

विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

हाँ! मुझे भी मोहंती की मृत्यु का बुरा लगा।
लेकिन फिर जिस तरह की संगत थी उसकी, कभी न कभी कुछ बुरा होना स्वाभाविक था उसके साथ।

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...

अह ओह! ये तो वीर की क्रेडिबिलिटी ही कम पड़ गई विक्रम के सामने!
बात ठीक भी है - जिनको बिना किसी चेकिंग के लिवाया गया है, उनकी जाँच आवश्यक है।
विक्रम ठीक सोच रहा है। लेकिन इस जूनून में वो फिर से अपने परिवार की ख़ुशियों का सत्यानाश करने वाला है।

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l

हाँ - बात बनाने में समय लगता है, लेकिन बिगड़ने में बिलकुल भी नहीं।

रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...

अब ये क्या नया शुरू हो गया?
ये रूप भी खुजली मास्टर है! हा हा हा!

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

ये दरोगा कूटा जाने वाला है अब - अच्छे से।
इस बार उसको बेनिफिट ऑफ़ डाउट नहीं मिलेगा। अबकी पिटेगा, तो उठेगा नहीं।

वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...

सबसे पहली बात का कुछ कुछ समाधान यहाँ है। केवल कुछ ही लोगों को अपने पाप का परिणाम अपने जीवन में भुगतना पड़ता है (सभी को नहीं).
दुर्भाग्य से वीर वो आदमी निकला। कम से कम उसको अपनी माँ और अपनी प्रेमिका का प्यार तो मिल रहा है।

वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...

हम्म्म। अब समस्या गहरी हो गई है।


अंत में -- बहुत बहुत बढ़िया भाई! बहुत बहुत बढ़िया!
आपके स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। अपडेट इत्यादि की चिंता न कीजिए!
 

Luckyloda

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👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....


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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
Bhut shandaar update........



Iss update m bhut kuch chupa hua laga..........



Last m pushpa aur vinay ki mout....




Bhut besabri se agle update ka intezaar kar raha hu....
 

Surya_021

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👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....


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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
Superb update 😍😍😍😍😍
 

parkas

Prime
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भाईयों दोस्तों मित्रों बंधुओं
क्षमा कर देना
मेरे ऑफिस में मेरे साथ छोटा सा एक्सीडेंट हो गया
लगता है आज कल मेरे ग्रह नक्षत्र कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं
दाएं हाथ में फ्रैक्चर है इसलिये बाएं हाथ में जितना हो सका टाइप कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
कोशीश करूंगा हर सात या आठवे दिन पर अपडेट लाने की l
जब हाथ पुरी तरह ठीक हो जाएगा तब मैं आपके सामने अपडेट निरंतर अन्तराल में प्रस्तुत करता रहूँगा
Take care your health Kala Nag bhai....
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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Nice updates👍
👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....



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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
 

parkas

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👉एक सौ तेईसवां अपडेट
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डॉक्टर भागते हुए नागेंद्र के कमरे में आता है l नागेंद्र को दौरा पड़ा था, बिस्तर पर छटपटा रहा था l डॉक्टर उसे एक इंजेक्शन देते हैं जिससे नागेंद्र का छटपटाहट कम हो जाता है l नागेंद्र का छटपटाना कम होते ही भैरव सिंह कमरे में पड़े एक सोफ़े पर बैठ जाता है l उसके आसपास घर के नौकर चाकर खड़े हुए हैं l पलंक के पास सुषमा खड़ी सब देख रही थी l थोड़ी देर बाद डॉक्टर भैरव सिंह के पास आकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्या हुआ डॉक्टर...
डॉक्टर - पता नहीं क्यूँ... बड़े राजा जी को लगातार... अब दौरे आने लगे हैं... यह फ्रीक्वेंसी उनके लिए घातक होता जा रहा है... सदमा तो नहीं कह सकता... पर लगता है... कोई आघात लगा है... जिसे याद करते हुए छटपटा जाते हैं... जिसका साइड इफेक्ट उन पर पड़ रहा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... साइड इफेक्ट... मसलन...
डॉक्टर - उनका हाथ पैर जितना चल रहा था... आई एम सॉरी... वह धीरे धीरे...

उसके बाद डॉक्टर कहता तो जाता है पर भैरव सिंह को कुछ भी सुनाई नहीं देता l उसके जेहन में कुछ याद आने लगता है l

उमाकांत को पकड़ कर भैरव सिंह के आगे भीमा और उसके आदमी फेंक देते हैं l उमाकांत हांफते हुए भैरव सिंह की ओर देखता है, जिसका जबड़ा भींचा हुआ था l भैरव सिंह के बगल में नागेंद्र और दुसरे तरफ पिनाक बैठा हुआ था l

पिनाक - चु चु चु चुचु... क्या हालत हो गई है मास्टर... बात समझ में क्यूँ नहीं आई... हम से पंगा लेने चला था तु... इतनी चूल मची है तेरी...
उमाकांत - जो पाप तुम लोगों ने मुझसे करवाये... उसका प्रायश्चित करने जा रहा था...
नागेंद्र - (उमाकांत के सामने एक काग़ज़ फेंकते हुए) यह... इसी काग़ज़ के दम पर...

उमाकांत देखता है वह एक दस्तावेजी चिट्ठी था जो उसने तहसीलदार को लिखा था l वह काग़ज़ देख कर हैरान हो जाता है l

उमाकांत - यह... यह चिट्ठी...
भैरव - तहसीलदार हमारा वफादार है... उसीने हमें दिया है... क्या लिखा था उसमें... तुझे सदर तहसील के सामने अनशन करने की इजाजत दी जाए... ह्म्म्म्म...
उमाकांत - (खड़े हो कर) हाँ... ताकि तुम लोग जो अंधेरगर्दी मचाये हुए हो... वह दुनिया को पता चले...
नागेंद्र - पर अफ़सोस... दुनिया को तेरी मौत का पता चलेगा...

यह सुनते ही उमाकांत भागने की कोशिश करता है l पर भीमा के आदमी उसे पकड़ लेते हैं l खुद छुड़ाने की कोशिश करता है l भैरव सिंह उसे छोड़ने के लिए इशारा करता है l भीमा और उसके साथी जैसे ही उमाकांत को छोड़ते हैं l उमाकांत इस बार भैरव सिंह पर झपटता है l इसबार भी उसे भीमा के लोग पकड़ लेते हैं l

नागेंद्र - बहुत छटपटा रहा है...
उमाकांत - हाँ... ताकि तुम लोगों को मार सकूँ...
नागेंद्र - अच्छा... (भीमा और उसके साथियों से) ऐ... छोड़ो उसे... हम भी देखें... कितनी ताकत रखता है यह बुड्ढा...

इस बार सब उमाकांत को छोड़ देते हैं l जैसे ही भागते हुए उमाकांत नागेंद्र के पास पहुँचता है, नागेंद्र खड़े हो कर एक जोरदार लात मारता है, जिससे उमाकांत छिटक कर दुर जा गिरता है l नागेंद्र उसके पास चलकर आता है l एक पांव से उमाकांत के हाथ कुचल कर दुसरे पांव को उमाकांत के सीने पर रखता है l

नागेन्द्र - वाकई... बड़ी हिम्मत जुटा लिया है तुने... क्षेत्रपाल महल में... क्षेत्रपाल को मारने के लिए झपट पड़ा...
उमाकांत - (हांफते हुए दर्द से) क्षेत्रपाल... आक थू... सांप... सांप हो तुम लोग... जो अपनी अहंकार की कुंडली में यशपुर और राजगड़ की खुशियों को जकड़े रखे हो... इसलिए... कुचलना चाहता था... क्षेत्रपाल के फन को...
नागेंद्र - (चेहरा तमतमा जाता है) पर हमारे पैरों के नीचे तो कुचला तु पड़ा है... तुझे आज मरना होगा... आज तुने हिम्मत की है... क्षेत्रपाल पर पलटने की... तुझे देख कर लोग आगे ऐसा करने की जुर्रत करें... उससे पहले तुझे मरना होगा...
उमाकांत - आरे... आज तो मैं पलट कर आया हूँ... कल को कोई ना कोई क्षेत्रपाल महल में सीना ठोक कर घुसेगा... तुम्हारी हुकूमत को झिंझोड देगा... एक नहीं कई बार आएगा... उसके साथ और कई आयेंगे... आते ही रहेंगे... जब सब साथ आयेंगे... तब यह महल ज़मीनदोस हो जाएगा...
नागेंद्र - बोलने दिया... तो बहुत बोल गया... मन में इतना जहर है... तो तेरी मौत जहर से होनी चाहिए... भीमा.. (चिल्लाता है)
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (अपनी पैरों की जोर उमाकांत के हाथ और सीने पर बढ़ाते हुए) इसके टांग में सांप काटने वाला एक ज़ख़्म बना... उसके बाद उस ज़ख़्म में... जहर अच्छी तरह से मल दे... उसके बाद थोड़ा जहर इसके हलक मे उतार भी दे...
भीमा - जी हुकुम...
नागेंद्र - (उमाकांत से) गिरा हुआ है कि पैरों से कुचलना पड़ रह है... अपनी हाथों से मौत देना चाहते हैं... पर क्या करें... उसके लिए भी... झुकना पड़ता... जो हमें कत्तई मंजुर नहीं...
उमाकांत - मैंने अगर जीवन में कुछ भी अच्छा किया है... उसके एवज में... भगवान से यह माँगता हूँ... तेरे यह हाथ और पैर ज़वाब दे जाए... मरने से पहले बहुत तड़पे...
नागेंद्र - अबे... यहाँ के भगवान हम हैं... हा हा हा हा... और तेरी मंशा कभी पुरी नहीं होगी... हा हा हा...


राजा साहब... राजा साहब...
भैरव सिंह - (अपनी खयालों से बाहर आता है) हाँ... हाँ डॉक्टर...
डॉक्टर - जितना हो सके इनके दिमाग को एंगेज रखिए... उनका ध्यान भटकाने की कोशिश कीजिए...
भैरव सिंह - ओके डॉक्टर... तुम जा सकते हो...

डॉक्टर हैरान हो जाता है और आगे कुछ कहे वगैर चुप चाप अपना बैग उठा कर चल देता है l भैरव सिंह भीमा को इशारा करता है l भीमा और उसके साथी डॉक्टर के साथ बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह सुषमा को भी अपने हाथ से इशारा कर बाहर जाने के लिए कहता है l सुषमा जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह और नागेंद्र रह जाते हैं l भैरव सिंह नागेंद्र के पास बैठ कर

भैरव सिंह - बड़े राजा जी... आपको अभी मरना नहीं है... कुछ भी हो जाए... मरना नहीं है... मैं आपको विश्व की बर्बादी दिखाऊंगा... तब तक आपको जिंदा रहना ही होगा... मैंने हर दिशा से अपनी चाल चल दी है... किसी ना किसी जाल में फंसेगा... फिर जैसा आप चाहते हैं.. वैसा ही मौत उसे देंगे... बस तब तक... आप जिंदा रहिए... आप मरना भी चाहेंगे... तब भी... मैं आपको मरने नहीं दूँगा...

कह कर भैरव सिंह उस कमरे से बाहर निकल कर सीधे दिवान ए खास में पहुँचता है l जहां पर पहले से ही भीमा इंतजार कर रहा था l

भैरव सिंह - (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
भैरव सिंह - खैर... हमें ऐसा क्यूँ लग रहा है... तुम आज कल कुछ ख़बर निकाल नहीं पा रहे हो...
भीमा - (चौंकते हुए) जी... जी मैं नहीं समझा...
भैरव सिंह - महल में... नौकरों के बीच कुछ ना कुछ कानाफूसी हो रही है... गाँव में कानाफूसी हो रही है... तुम्हें कुछ भी मालुम नहीं है....
भीमा - (कुछ नहीं कह पाता, अपनी नजरें चुराने लगता है, क्यूँकी उसे लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) जी.. वह... मैं...
भैरव सिंह - तुम्हारा काम... जानते हो ना... क्या वह हम करें....
भीमा - जी... जी नहीं हुकुम... जी नहीं...
भैरव सिंह - उस दिन... महल में कोई आया था... बड़े राजा जी के कमरे में.... घर के नौकरों के बीच यह कानाफूसी चल रही है... क्या तुमने नहीं सुनी...
भीमा - हुकुम... मैं.. वह... नहीं... नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह कानाफूसी गलियारों तक फैल चुकी होगी... क्या तुम्हें... तुम्हारे राजा का इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं...
भीमा - (सिर झुका कर चुप चाप खड़ा होता है)
भैरव सिंह - क्या हम तुम पर भरोसा करना छोड़ दें..
भीमा - नहीं हुकुम नहीं... मैं... मैं पुरी जानकारी जुटा कर आपको बताता हूँ...
भैरव सिंह - क्या... सिर्फ बताओगे....
भीमा - नहीं राजा साहब.. उसे आपके कदमों में लाकर पटक दूँगा...
भैरव सिंह - ठीक है... जाओ... जल्दी करो....



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अपना वॉकींग ख़तम कर घर में पहुँचता है तापस l जुते उतार कर ड्रॉइंग रूम में दाखिल होता है l कान में उसके पुजा की घंटियाँ सुनाई देती है l वह पंखा चालू कर सोफ़े पर बैठ जाता है और टी पोए पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगता है l तभी एक हाथ नारियल थामे उसके और अखबार के बीच आ जाता है l वह उछल कर अपनी नजर घुमा कर देखता है, प्रतिभा थी l चेहरा ऐसा बन जाता है जैसे निंबु चबा लिया हो l

प्रतिभा - नारियल पानी दे रही थी... मुहँ तो ऐसे बना रहे हो जैसे करेला का जूस दे रही हूँ...
तापस - वह तो ठीक है भाग्यवान... पर यह सुबह सुबह... नारियल का पानी...
प्रतिभा - अरे... जानते हो... इसमें नैचुरल इम्युनीटी बूस्टर है... सुबह सुबह पसीना बहाने के बाद अगर इसे पियोगे... ताजगी महसुस करोगे...
तापस - अच्छा... यह आपसे किसने कह दिया...
प्रतिभा - इन्टरनेट पर... पर यह बताइए... नारियल देख कर बड़े खुशी से उछल पड़े थे... मुझे देख कर मुहँ क्यूँ बन गया है....
तापस - (नारियल लेकर स्ट्रॉ से पीने लगता है)
प्रतिभा - चोर के दाढ़ी में तिनका...
तापस - (रुक कर) मेरी दाढ़ी ही नहीं है... (फिर पीने लगता है)
प्रतिभा - पर हाथ में नारियल तो है...
तापस - क्या मतलब है तुम्हारा...
प्रतिभा - दिल में क्या सोच रहे थे... कम से कम जाहिर तो कर देते...
तापस - (नारियल का पानी ख़तम करने के बाद, एक गहरी साँस छोड़ते हुए) आरे... भाग्यवान नारियल देख कर ऐसा लगा... के शायद लाट साहब आ गए... पर...
प्रतिभा - जी बिल्कुल सही अंदाजा लगाया है आपने... आपका लाट साहब आज सुबह तड़के पहुँच गए...
तापस - (खुशी के मारे उछलते हुए) क्या...
प्रतिभा - (खिलखिला कर हँसते हुए) हाँ हाँ... यह रहा...

विश्व ड्रॉइंग रुम में आता है और तापस के पैर छूता है l तापस उसे उठा कर अपने गले लगा लेता है l

प्रतिभा - बस बस... सारा प्यार अभी लुटा दोगे क्या.. तीन दिन तक रुकेगा...
तापस - यार यह गलत है... तुम माँ बेटे मिलकर मुझे अभी तक बेवक़ूफ़ बना रहे थे...

यह सुन कर विश्व और प्रतिभा दोनों हँस देते हैं l तापस विश्व से अलग होता है, दोनों सोफ़े पर बैठ जाते हैं l

तापस - (विश्व से) अगर सुबह ही आ गया तो... जोब्रा जॉगिंग फिल्ड में आ जाता...
विश्व - सोचा तो यही था... माँ से पहले मिल लूँ फिर जाऊँगा... पर माँ ने मुझे बाहर जाने ही नहीं दिया...
तापस - (प्रतिभा से) क्यूँ जी अभी आप ने किस खुशी में सारा प्यार लुटा दिया...
प्रतिभा - हो गया... माँ बेटे की प्यार में... कोई सीमा थोड़े ही ना होता है...
तापस - तो... बाप बेटे के प्यार में होता है...
विश्व - ओ हो... यह क्या बहस शुरू कर दिया आप दोनों ने... डैड... चलिए... यहीँ पास वाले चौक से... पनीर वनिर लाते हैं...
प्रतिभा - ऐ... सिर्फ पनीर के लिए... बाप को साथ लिए क्यूँ जा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक तो तुम्हारे साथ था... डैड के साथ थोड़ा बाहर हो आऊँ... लगेगा जैसे मैं अपना रूटीन जी रहा हूँ... वर्ना लगेगा... जैसे मैं अभी मेहमान बन कर घर आया हूँ...
प्रतिभा - (मुहँ बना कर) ठीक है... जाओ...

प्रतिभा से इजाजत मिलते ही तापस और विश्व घर से निकलते हैं l दोनों पास के चौक के और जाने लगते हैं l

विश्व - मानना पड़ेगा... आप एक्टिंग बहुत बढ़िया कर लेते हो... आप अंदर आते ही मेरे जुते देख लिए थे... और माँ के हाथ में नारियल देखते ही समझ भी चुके थे... फिर भी जाहिर होने नहीं दिया...
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
विश्व - अच्छा...
तापस - हाँ... बहुत जल्द तुम्हें भी यह समझ में आ जायेगा... तुम आए हो... यह खबर देते हुए... मैं तुम्हारी माँ की खुशी देख रहा था... तुम नहीं जानते... ईन कुछ दिनों में उसकी हालत कैसी थी... बेशक वह तुमसे फोन पर बात कर लिया करती थी.. पर उसके आखें जो ढूंढ रही थी... उसे आज मिल गया... उसके आँखों में यह खुशी देखने के लिए... मैं हज़ारों बार बेवक़ूफ़ बनने का नाटक कर सकता हूँ... (विश्व चुप रहता है) अब बोलो... मुझे बाहर क्यूँ बुलाया... क्या कहना चाहते हो...
विश्व - डैड... आपने जो रिवर्वल रखा है... वह... हमेशा अपने पास रखियेगा...
तापस - और...
विश्व - आई एम सीरियस...
तापस - आई नो... (तापस अपनी ट्रैक शूट के अंदर होल्स्टर में रखे रिवर्वल दिखाता है)
विश्व - वाव...
तापस - ह्म्म्म्म... अब बताओ...
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
विश्व - (हैरान हो कर) तो... क्या मतलब तो... मैं नहीं चाहता था... के भैरव सिंह के आदमीयों से इतनी जल्दी भिड़ंत हो... पर.. हो गया... तभी से मुझे हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है...
तापस - सो तो होनी ही चाहिए...
विश्व - इसलिए... मुझे आप अपना मोबाइल दीजियेगा... मैं उसमें एक सॉफ्टवेयर डाल दूँगा...
तापस - किसलिए...
विश्व - डैड... मैंने जोडार साहब से कहलवा कर... हमारे घर के बाहर और कॉलोनी के एंट्रेंस और एक्जिट पर... सीसीटीवी इंस्टाल करवाया है... अगर कभी कोई रेकी कर रहा हो या कोई एक्शन करने की कोशिश भी करे तो आप अलर्ट हो जाएं...
तापस - ओ... अच्छा... बच्चे मुझे मालूम है... इसलिये मैं भी अपनी पुलिसिया तरीका आजमाते हुए... अपनी तैयारी में हूँ..
विश्व - तैयारी... कैसी तैयारी...
तापस - वह क्या है ना... महान अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग का पालन किया है...
विश्व - डैड... यह क्या पहेली बुझा रहे हैं...
तापस - रिस्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं... और नाम है... खैर छोड़ो.... मैं भी अपनी तैयारी में हूँ... (सड़क के किनारे म्युनिसिपल्टी की सीमेंट की बेंच पर बैठ कर) आओ थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ...
विश्व - डैड... हमें पनीर लेकर भी जाना है...
तापस - अरे यार... बैठो तो सही...

विश्व बैठ जाता है l तापस पास के पार्क में पहरा दे रहे एक गार्ड को इशारे से बुलाता है l गार्ड खुश होते हुए तापस के पास आकर खड़े हो कर सैल्यूट मारता है l

गार्ड - जी सर...
तापस - (अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे देते हुए) जाओ आधा किलो पनीर ले आओ... (वह गार्ड पैसे लेकर भाग जाता है)
विश्व - मैं कुछ समझा नहीं....
तापस - तुम्हारे राजगड़ जाने के बाद... मुझे अंदाजा हो गया था... तुम नंदिनी से जरूर मिलोगे... उसके बाद भैरव सिंह को हमारे रिश्ते का आभास हो जाएगा... इसलिये हमारे इस सोसाइटी की पहरेदारी पर जो गार्ड्स हैं... उनके साथ मैंने दोस्ती कर ली है... यह लोग मेरे घर के बाहर और आसपास नजर रखे होते हैं... और दिन भर की खबर देते रहते हैं...
विश्व - ओ... कुछ फायदा मिला है...
तापस - इन कुछ दिनों में... एक दो बंदे... मेरे घर की रेकी किए हैं... और मैं अपनी तैयारी में हूँ...
विश्व - (तापस के हाथ पर अपना हाथ रखकर) डैड... खतरा आप पर नहीं आएगा... मैं आप तक आने नहीं दूँगा...
तापस - जानता हूँ... तुम हो वहाँ पर... पर हमारी खबर रख रहे होगे... कुछ भी हुआ... तो यहाँ के लिए तुम्हारे पास बैकअप प्लान होगा...
विश्व - हाँ... और तब तक के लिए...
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...

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वीर अपनी गाड़ी को ESS ऑफिस के पार्किंग में रोकता है l गाड़ी के अंदर दादी और अनु दोनों बैठे हुए हैं l

अनु - आपने गाड़ी यहाँ पर क्यूँ रोकी...
वीर - कुछ नहीं सिर्फ दस मिनट... आप लोग यहाँ बैठो... मैं गाड़ी को स्टार्ट में रख रहा हूँ.... मैं थोड़ा भईया से बोल कर आता हूँ...
दादी - ठीक है बेटा जाओ...

वीर गाड़ी से उतरता है और ऑफिस के अंदर जाता है l आज सभी ऑफिस के स्टाफ के चेहरे पर दुख साफ दिख रहा था l क्यूंकि उनका ट्रेनर, मेंटर, बॉस, डायरेक्ट अशोक महांती उनके बीच नहीं रहा l सभी स्टाफ वीर को देख कर सैल्यूट करते हैं l वीर भी सबको जवाब देते हुए विक्रम के केबिन में पहुँचता है l केबिन में विक्रम नहीं था l वॉशरूम के बहते नल की आवाज से वीर को पता लगता है कि विक्रम वॉशरूम में है l वीर देखता है पुरा कमरा बिखरा पड़ा है l फ़र्श पर कुछ काग़ज़ बिखरे पड़े हैं l एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है l विक्रम कमरे के अंदर आता है l

वीर - गुड मॉर्निंग भैया...
विक्रम - (कोई जवाब नहीं देता)
वीर - तुम रात को घर नहीं आए... हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे थे...
विक्रम - ह्म्म्म्म... कुछ काम से आए हो...
वीर - भैया... अभी अभी तो घर सजने लगा था... संवरने लगा था...
विक्रम - वह घर बसने से पहले... यह ऑफिस बना था... और इस ऑफिस को जिसने अपनी कंधे पर उठा कर बसाया था... बनाया था... वह नहीं रहा... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं उसका कर्जदार हूँ... मैं उसके मातम में हूँ...
वीर - सॉरी भैया... महांती के जाने से ग़म में हम भी हैं...
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...

वीर कुछ नहीं कह पाता l क्यूंकि विक्रम ने सच कहा था l महांती बेशक उम्र में बड़ा था पर विक्रम का गहरा दोस्त था l कुछ बातेँ शायद विक्रम ने कभी वीर को ना बताया हो पर विक्रम अपनी सारी बातेँ महांती को जरूर बताता था l विक्रम फिर से कहना चालू करता है

विक्रम - हम सिर्फ राजगड़ और उसके आसपास के कुछ एमपी और एमएलए के दम पर... स्टेट पालिटिक्स पर हावी थे... पर ESS बनने के बाद... हम स्टेट पालिटिक्स पर रूल करने लगे... इसी ESS के दम पर... हम ESS के प्रोटेक्शन के आड़ में... हर किसीके ऑफिस से लेकर बेड रुम तक पहुँच गए... यह सब महांती के बदौलत ही हो पाया... आज हम स्टेट पर हुकूमत कर रहे हैं... हमारी इस रुतबे का आर्किटेक्चर महांती... हमारे बीच नहीं रहा... जानते हो... मैं पहली बार... महांती के मदत से... शुब्बु जी के एमएलए क्वार्टर में घुसा था... मेरे हर सुख और दुख में महांती मेरे बगल में... मेरे साये की तरह रहा.... और आज भी... वह हमारे बीच नहीं हैं... तो हमारे लिए ही नहीं है...
वीर - जानता हूँ भैया... जानता हूँ... मुझे भी उतना ही दुख है...
विक्रम - महांती की हत्या हुई है... (चेहरा सख्त हो जाता है) मुझे उसकी हत्या का बदला लेना है... मुझे महांती की हत्या का बदला चाहिए....
वीर - ठीक है भैया... हम बदला लेंगे... पर आप यहाँ... और भाभी वहाँ...
विक्रम - वह मेरी अर्धांगिनी है... (ग्लास बोर्ड के सामने आकर खड़ा होता है) मेरे दुख को बहुत अच्छी तरह से समझेगी... अब मेरा एक ही लक्ष है... महांती के कातिल को ढूंढना और उसे सजा देना... (भेदी के ऊपर मार्कर पेन से एक गोल घुमाता है)

फिर विक्रम अपने टेबल पर आकर ड्रॉयर खोल कर एक फाइल निकाल कर वीर की ओर बढ़ा देता है l वीर की आँखें सिकुड़ जाती हैं l वीर फाइल लेकर देखता है l पहले ही पन्ने पर मृत्युंजय के साथ कुछ और नाम लिखे हुए हैं l

वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
वीर - ठीक है... आपकी बातेँ ठीक हो सकती हैं... पर उसमें मृत्युंजय का नाम भी है... वह घायल है...
विक्रम - उसके ठीक होने तक... सभी खर्च ESS उठा रही है...
वीर - पर निकालना... यह कहाँ तक जायज है...
विक्रम - उसके घायल हो जाने से... उस पर मेरा शक कम नहीं हो जाता...
वीर - भैया... आप तो जानते हैं ना... उसके साथ क्या क्या हुआ है... मैं ऐसे कैसे उसे ESS से निकाल दूँ...
विक्रम - ठीक है... तो मैं सबको नौकरी से निकाल दूँगा...
वीर - भैया... लगता है आप पागल हो रहे हैं... अगर हम सबको ऐसे निकाल देंगे... तो हमारे लोगों के बीच एक गलत मेसेज जाएगा... फुट पड़ सकती है...
विक्रम - उन लोगों को... ESS से निकाल कर.. किसी और जगह नौकरी पर लगाया जा सकता है... वैसे भी... हम जिन कंपनियों को कहेंगे... वे लोग अच्छी तनख्वाह पर... उन्हें रख लेंगे... पर.. यह लोग ESS में नहीं रहेंगे...

यह सब सुन कर वीर को झटका सा लगता है l वह विक्रम की ओर देखता है विक्रम के चेहरे पर बहुत सख्त और निर्णायक भाव दिख रहे थे l वीर को बैठने के लिए इशारा करता है l वीर हिचकिचाते हुए बैठता है l

विक्रम - वीर... मैं जानता हूँ... तुम्हें यह बात अच्छी नहीं लगी... पर मैंने फैसला कर लिया है... इन सबकी जिंदगी खराब नहीं होगी.. उसकी व्यवस्था कर दी जाएगी... पर यह लोग ESS में नहीं रहेंगे... महांती का सारा काम अब मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ... क्यूंकि एक बात अच्छी तरह से जान लो... यह ESS है... इसलिए राजधानी में अपना धाक है... और मैं इस ESS को ना टूटने दूँगा ना बिखरने...
वीर - फिर आपकी पोलिटिकल केरियर....
विक्रम - इस बार की इलेक्शन में... मैं नहीं तुम लड़ोगे... हमारी पार्टी की युवा नेता के रूप में...
वीर - (उछल पड़ता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं कैसे लड़ सकता हूँ... और आप... आप क्या सर्फ ESS में लगे रहेंगे...
विक्रम - हाँ... मेरा लक्ष अब सिर्फ एक ही है... क्षेत्रपाल के हुकुमत की राह को नीष्कंटक बनाऊँगा... कोई भेदी नहीं आएगा... ना घर से... ना बाहर से... (वीर की ओर देखते हुए) वैसे तुम इस वक़्त यूँ तैयार हो कर....
वीर - हाँ... वह... महांती का अधुरा काम... पुरा करने जा रहा हूँ...
विक्रम - (हैरानी से) क्या मतलब...
वीर - तुम शायद भुल रहे हो... महांती ने मृत्युंजय की बहन का पता लगाने का जिम्मा भी लिया था...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... मैं उसकी बहन पुष्पा और विनय को लाने जा रहा हूँ...

विक्रम कोई जवाब नहीं देता कुछ सोच में पड़ जाता है l वीर उसे यूँ सोचते हुए देख पूछता है l

वीर - क्या सोच रहे हो भैया....
विक्रम - (जैसे जागते हुए) हाँ... कुछ... कुछ नहीं...
वीर - भैया मैं जानता हूँ... महांती का यूँ हमारे बीच से जाना... आपसे बर्दास्त नहीं हो पा रहा है... आपकी दिल की हालत... मैं महसूस कर पा रहा हूँ... पर... आपने अभी जो फैसला लिया है... उनमें से क्या मृत्युंजय का नाम नहीं काट सकते...
विक्रम - तुम जाओ वीर... अभी उसके लिए... टाईम है... जैसा कि तुमने कहा... महांती का अधूरा काम... जाओ पुरा कर आओ...
वीर - ठीक है भैया...

वीर वह फाइल वहीँ रख कर केबिन से बाहर निकल जाता है l बाहर वह गहरी सोच में डूबा अपनी गाड़ी के पास पहुँचता है l गाड़ी का डोर खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी... आप ऐसे खोए खोए क्यूँ हैं...
वीर - हाँ... हाँ आँ... हाँ... वह.. भैया कह रहे थे... ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए... पर मैंने कहा मैं... मैनेज कर लूँगा...
अनु - ओह... तो जल्दी चलिए ना... पता नहीं पुष्पा किस हालत में होगी... कहाँ होगी...
वीर - कोई नहीं... हम शाम तक पहुँच जाएंगे... वह जरूर वापस आएगी... तुम और दादी जो हो... उसे मनाने के लिए... उसकी बेवकूफी को... समझाने वाले... वह जरूर आएगी...

वीर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा देता है राजमार्ग की ओर विशाखापट्टनम के लिए l

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द हैल के ड्रॉइंग रूम में दो जन रुप और शुभ्रा अपने अपने खयालों में गुम थे l शुभ्रा दुखी थी वह अच्छी तरह से जानती थी विक्रम के लिए महांती क्या मायने रखता था l उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके दिल की बाग में जब बहारों के फूल खिलने लगे तभी यह हादसा हो गया था l अब एक तरह से विक्रम और उसके बीच दूरियाँ वापस वैसा ही हो गया था जैसा पहले था l तब भी एक दूसरे के लिए प्यार बहुत था अब भी है पर फर्क़ बस इतना था विक्रम इस बार अपना एक साथी को खोया था जो शुभ्रा के बाद उसे अजीज था l उधर रुप भी खोई खोई सी है l उसके राजगड़ जाने से पहले ही तब्बसुम कॉलेज नहीं आई थी अब भी वह नहीं आ रही है l तब्बसुम का फोन स्विच ऑफ ही आ रही है l तभी दोनों का ध्यान टूटता है l रुप की मोबाइल बजने लगती है l रुप देखती है फोन भाश्वती की थी l

रुप - (फोन पीक करती है) हैलो...
भाश्वती - हाँ मैं आ गई.... बाहर हूँ...
रुप - ठीक है... थोड़ी देर रुक... मैं आ रही हूँ... (रुप फोन काट देती है)
शुभ्रा - कहाँ जा रही हो...
रुप - वह भाभी... मेरी एक दोस्त है ना... तब्बसुम...
शुभ्रा - हाँ क्या हुआ उसे...
रुप - यही तो पता लगाना है... क्या हुआ है उसे... मेरे राजगड़ जाने से पहले से ही... उसका कॉलेज आना बंद है... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है.... (इजाजत मांगने की तरीके से) मैं... जाऊँ...
शुभ्रा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म...

रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l उधर रुप शुभ्रा की गाड़ी निकाल कर बाहर आती है उसे भाश्वती दिख जाती है l उसे बिठा कर रुप गाड़ी आगे बढ़ा देती है l

रुप - उसका पता जानती है...
भाश्वती - हाँ... कॉलेज की फाइल से पता लगा कर आई हूँ... यूनिट सिक्स श्री विहार कॉलोनी में...
रुप - तो चल... आज पता लगाते हैं...

रुप गाड़ी दौड़ा कर यूनिट सिक्स पहुँच जाती है l पूछते पूछते एक घर के सामने आ पहुँचते हैं l घर के सामने वाली गेट पर ताला लगा हुआ है और टू लेट की बोर्ड लगी हुई है l यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं l

भाश्वती - यह क्या घर खाली कर कहाँ गए हैं... और यह टू लेट बोर्ड...
रुप - जरूर कुछ गड़बड़ है... टू लेट का बोर्ड तो लगा हुआ है... पर बोर्ड में रेफरेंस के लिए... ना तो किसीका नाम है... ना ही कोई नंबर...
भाश्वती - अरे हाँ... इसका क्या मतलब हुआ...
रुप - या तो किसी बाहर वाले से छिप रहे हैं... या फिर यहाँ के लोगों से... और यहाँ आसपास के लोगों को इस बोर्ड के जरिए बेवक़ूफ़ बना रहे हैं...
भाश्वती - तो अब हम क्या करें...
रुप - पता तो मैं लगा कर ही रहूंगी... हो ना हो... तब्बसुम और उसकी फॅमिली... खतरे में हैं... शायद किसीसे ख़ुद को छुपा कर बचा रहे हैं....
भाश्वती - कमाल है... तु उसकी दोस्त है... तु चाहेगी तो... उसकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती...
रुप - शायद खतरा... बहुत बड़ा हो...
भाश्वती - तो... अब हम क्या करें... हमारी छटी गैंग तो बिखर रही है...
रुप - फ़िलहाल के लिए तो... वापस चलते हैं... मुझे इस बारे में किसी से सलाह लेना है...

वापस गाड़ी में बैठ जाते हैं l रुप मायूसी के साथ गाड़ी वापस मोड़ देती है l रुप गाड़ी चलाते हुए कुछ सोचने लगती है l भाश्वती से रहा नहीं जाता l

भाश्वती - अच्छा नंदिनी... तुम्हारे यहाँ भी तो कुछ प्रॉब्लम चल रही है.... तुम किससे बात करोगी...
रुप - (भाश्वती की ओर देखती है) फ़िलहाल मुझे श्योर तो होने दे...
भाश्वती - किस बात पर...
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... क्या मतलब है तुम्हारा...
रुप - यह बाद में बताऊँगी... मुझे किसी से आज मिलना भी है... और उससे मदद भी लूँगी... (भाश्वती कुछ कहने को होती है, रुप उसे रोक कर) और कुछ मत पुछ मुझसे... कल शाम तक कुछ ना कुछ खबर निकाल ही लूँगी... देखना...

भाश्वती चुप हो जाती है l रुप वापस गाड़ी को मुख्य रास्ते पर ले आती है l

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शाम का समय
एक बड़ा सा कंस्ट्रक्शन साइट पर दो सिक्युरिटी गार्ड वाली गाड़ियों के बीच एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है l गार्ड्स उतर कर उस बड़ी गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से जोडार और विश्व उतरते हैं l

जोडार - यह रहा हमारा नया प्रोजेक्ट... नंदन ग्रुप सोसाईटी...
विश्व - ह्म्म्म्म... बहुत बढ़िया... तो यह है... जोडार ग्रुप की नई वेंचर...
जोडार - हाँ... यह सात एकड़ पर फैला बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है... कम से कम तीन सौ फ्लैट्स बनेंगे... लोगों को अच्छी रेट पर मिलेगा... पर...
विश्व - हैरान हो जाता है... यह आखिर में पर क्यूँ कहा आपने...
जोडार - कुछ नहीं... बस ऐसे ही मुहँ से निकल गया... वैसे तुम्हारे फोन पर... सीसी टीवी का ऐप लोड करवा दिया है ना...
विश्व - हाँ... पर मुझे उस पर का जवाब नहीं मिला...
जोडार - मैंने बक्शी जगबंधु विहार के एंट्रेंस और एक्जिट पाइंट पर... और सेनापति जी के घर के बाहर.... और सबसे खास बात... वाव ऑफिस के बाहर भी सीसी टीवी लगवा दिया है... तुम्हें हर दम मोबाइल पर अलर्ट मिल जाएगी... और हमारे ऑफिस के सर्वर में इसकी आर्काइव भी बना दिया है... तुम जब चाहो... जोडार ग्रुप के सर्वर से जुड़ कर आर्काइव खंगाल सकते हो....
विश्व - शुक्रिया... इतनी लंबी बात... बहुत ही शॉर्ट कर्ट में समझाने के लिए... पर आप अभी भी उस पर पर नहीं आए...
जोडार - विश्वा... मेरे मन में कुछ खटक रहा है... मैंने अपनी सोर्स को ऐक्टिव कर दिया है... अगर कोई पछड़ा सामने आया तो... तुम तो हो ना... मेरे लीगल एडवाइजर...

विश्व जोडार को घूर कर देखने लगता है l जोडार के चेहरे पर कोई चिंता की बात नहीं देख पाता l पर उसे लगता है कुछ तो बात है जिसे जोडार छुपा रहा है l जोडार जिस तरह से जोडार को घूर रहा था जोडार बात को बदलने के लिए विश्व से कहता है l

जोडार - अरे यार... आई एम नट ईन पैनिक... मुझे भी अपने दम पर कुछ प्रॉब्लम सॉल्व करने दो... नाक के ऊपर पानी जाने नहीं दूँगा... विश्वास रखो... उससे पहले मैं तुमसे सलाह या फिर काम दोनों लूँगा...
विश्व - ठीक है...
जोडार - अब बताओ... यह जगह कैसी है...
विश्व - बहुत ही बढ़िया जगह है... प्लानिंग देख कर पता चलता है कि इसकी डिमांड जरूर रहेगी...
जोडार - थैंक्स... अच्छा अब तक शायद तुम्हारी माँ घर आ चुकी होंगी...
विश्व - हाँ... शायद...
जोडार - मोबाइल में देख कर कहो... पिक्चर की क्वालिटी कैसी है...
विश्व - (हँस देता है) क्या जोडार साहब आप भी ना...
जोडार - ओह कॉम ऑन यार... जोडार ग्रुप की मुख्य उपलब्धी... कस्टमर संतुष्टी होती है... और तुम तो हमारी संस्था के लीगल एडवाइजर हो...

विश्व हँसते हँसते अपना मोबाइल निकाल कर सीसीटीवी वाला साईट खोलता है l वीडियो को देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी हँसी मद्धिम पड़ने लगता है और भवें सिकुड़ने लगते हैं l

जोडार - फोर एक्स जुम फैसिलिटी डाला है... जुम करके देख सकते हो...

विश्व फौरन एक वीडियो पर टाप कर उसकी जुम बढ़ा कर देखता है l सेनापति घर के सामने उसे एक शख्स साफ दिखने लगता है l

विश्व - (हैरानी से) रोणा...
जोडार - रोणा... कौन रोणा...
विश्व - इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... राजगड़ थाने की प्रभारी... यहाँ क्या कर रहा है...
जोडार - हो सकता है... तुम्हारे पीछे पीछे आया हो...
विश्व - नहीं... मेरा यहाँ आना अभीतक राजगड़ में मेरे किसी भी दुश्मन को नहीं मालुम...
जोडार - क्या... तो फिर...
विश्व - (सोचने लगता है) बीस दिन पहले... मेरे बारे में जानकारी लेने के लिए... माँ के पास आया था... पर अब किस लिए... एक मिनट...

विश्व पिछले दिन का वीडियो आर्काइव से निकाल कर देखता है l फिर वाव ऑफिस की विडियो फास्ट फॉरवर्ड कर देखने लगता है l जैसे जैसे वीडियो देखने लगता है उसकी आँखे हैरानी से फैलने लगती है l

जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...

तभी विश्व की फोन बजने लगती है l स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l विश्व घड़ी देखता है शाम के सात बज रहे थे l

विश्व - (जोडार से) एसक्यूज मी सर...
जोडार - ओके ओके...

विश्व रुप से बात करने के लिए एक किनारे पर जाता है कि फोन कट जाता है l वह रुप को वापस कॉल लगा ही रहा था कि उसकी फोन दुबारा बजने लगती है l पर इसबार स्क्रीन पर वीर डिस्प्ले हो रहा था l विश्व फोन उठाता है l

विश्व - हैलो वीर... व्हाट ए सरप्राइज... बहुत दिनों बाद... हाँ...
वीर - (बड़ी दर्द भरी आवाज में) यार प्रताप... एक बात पूछनी थी...
विश्व - (वीर की आवाज से उसके दर्द का एहसास हो जाता है) वीर... क्या हुआ... कहाँ हो तुम...
वीर - मैं... इस वक़्त... बहुत दूर हूँ...
विश्व - तुम्हारी आवाज से लग रहा है कि तुम बहुत परेशान हो... टुटे हुए लग रहे हो...
वीर - (आवाज़ भर्रा जाता है) हाँ यार टुट गया हूँ... अंधेरे में खो गया हूँ... कोई नहीं सूझा... यहाँ तक माँ भी नहीं... बस यार तुम याद आये...
विश्व - वीर... वीर.. वीर... प्लीज... क्या हुआ बताओ यार... कहाँ हो... कहो तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ...
वीर - नहीं यार... तुम्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए आठ घंटे लगेंगे...
विश्व - कहाँ हो... और क्या हो गया है...
वीर - एक बात बता दे यार प्लीज... बस एक बात...
विश्व - पूछो...
वीर - हमें दिल की सुननी चाहिए या दिमाग की...
विश्व - दिल की...
वीर - फिर दिल से इंसान धोका कैसे खाता है...
विश्व - दिल को धोखा हो सकता है... पर दिल कभी धोखा नहीं देता...
वीर - मान लो दिल से निकली आवाज बार बार धोखा दे जाए तो क्या तब भी... दिल की सुननी चाहिए...
विश्व - हाँ दिल की ही सुननी चाहिए... मैं फिर से कहता हूँ... दिल कभी धोखा नहीं देता... दिल को धोका हो सकता है.... क्या अनु ने...
वीर - नहीं... नहीं यार नहीं.. अनु है... तभी तो जिंदा हूँ.. नहीं तो आज जो हुआ... मैं खुद को ख़तम कर देना चाहता था...
विश्व - क्या हुआ वीर... ऐसा क्या हुआ... जो मेरे यार की दिल को तोड़ कर रख दिया है...
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
विश्व - वीर... प्लीज... क्या हुआ बता दो यार...

फिर वीर संक्षेप में बहुत कुछ छुपा कर मृत्युंजय की कहानी विश्व को बताता है l और बताता है क्यों और किसके साथ कैसे विशाखापट्टनम आया हुआ है l

विश्व - तो क्या पुष्पा नहीं मिली..
वीर - मिली... पर...
विश्व - पर क्या वीर...
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and awesome update.....
 

Assassin

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



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