भाई साहब, सबसे पहली बात यह कि आपको पूरी तरह से केवल रिकवरी पर ध्यान देना चाहिए, और किसी बात पर नहीं।
यहाँ लिखने का आपको एक पैसे का कोई लाभ नहीं है। और जहाँ तक हम पाठकों की बात है, हम पहले इस बात से संतुष्ट और प्रसन्न होंगे कि आपकी तबियत और स्वास्थ्य दुरुस्त हालत में हैं। चोटिल अवस्था में तो काम पर से भी छुट्टी मिल जाती है, और वो भी paid!
इसलिए स्वास्थ्य लाभ पर ध्यान दीजिए; बाकी सब होता रहेगा!
भैरव सिंह - यह दुआएँ... बद्दुआएँ... कुछ होता है क्या....
भीमा - पता नहीं हुकुम...
यह मैं अक्सर सोचता हूँ - ख़ास तौर पर जब मैं हरामी नेताओं को देखता हूँ (मतलब सभी नेता)!
स्साले जीवन भर केवल हरामीपंथी करते रहते हैं, फिर भी बड़े मौज से रहते हैं। फिर एक दिन मर जाते हैं।
न तो किसी बात का दंड मिलता है इनको, और न ही किसी प्रकार की समस्या होती है। स्वास्थ्य समस्या होने पर हमारे ही पैसे से इन मादरचो* का इलाज भी किया जाता है।
मतलब हमारी ही गाँ* मार कर ये पूरी मौज करते हैं और फिर निकल लेते हैं। या तो हमारी बददुआएँ कमज़ोर हैं, या फिर यह सब केवल हम लोगों के मन-बहलाव का जरिया है।
खैर, मैं यहाँ बेवजह का रोना नहीं रोऊँगा - बस यही कहूंगा, कि मैं भी यही सोचता हूँ! अक्सर!
तापस - (मुस्करा देता है) लाट साहब... कुछ कुछ जगहों पर... अपनी जीवन साथी से हारने पर बहुत खुशी मिलती है...
आहो! सौ टके की बात
विश्व - (झिझकते हुए अटक अटक कर) क्या... क्या बताऊँ डैड... बस यही.. के... आप तैयार रहिएगा... माँ के साथ ही आते जाते रहिएगा... मेरा मतलब है...
तापस - हाँ हाँ जानता हूँ... तुम्हारे कारनामें... वैदेही तेरी माँ को बताती रहती है... और तुम्हारी माँ मुझे डरते हुए... सुनाती रहती है... मुझे परिणाम का अंदाजा है... तो...
हाँ - अब विश्व को भी खटका हो गया है।
सही है - जब तक छड़ा बना घूम रहा था, तब तक कोई समस्या नहीं।
लेकिन अपने सबसे क़ीमती assets - मतलब अपने परिवार का ध्यान आता है, तब डर लगना लाज़मी ही है।
तापस - फ़िकर मत करो... एक्स कॉप हूँ... जिंदगी में... कई कुम्भींग ऑपरेशन किए हैं मैंने... भले ही नौकरी में नहीं हूँ पर अलर्ट रहता ही हूँ...
पता नहीं क्यों इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है।
वैसे तापस और प्रतिभा अच्छे लोग हैं। इनके साथ कुछ बुरा होगा, तो बहुत बुरा लगेगा।
एक ग्लास बोर्ड पर एक जगह पर भेदी लिखा हुआ है उसके इर्द गिर्द कुछ रेखाएं खिंची हुई हैं l उन रेखाओं के बीच वीर को मृत्युंजय का नाम दिखता है l उसका नाम देखकर वीर की आँखें हैरानी से फैल जाता है l
हाँ - वीर के आँखों पर पट्टी बँधी हुई है। अनु के कारण वो अनु से जुड़े हर व्यक्ति को क्लीन चिट देना चाहता है।
समझना ज़रूरी है कि अनु अलग है, और बाकी लोग अलग।
विक्रम - मेरा और महांती का रिश्ता अलग था वीर... वह मेरा गाइड था... पार्टनर था... और सबसे बढ़कर... इस दुनिया में... मेरा इकलौता दोस्त था...
हाँ! मुझे भी मोहंती की मृत्यु का बुरा लगा।
लेकिन फिर जिस तरह की संगत थी उसकी, कभी न कभी कुछ बुरा होना स्वाभाविक था उसके साथ।
वीर - यह... यह क्या है भैया...
विक्रम - इनमें वह सारे नाम हैं... जिनक लिए तुमने सिफारिश की थी... सिवाय अनु के...
वीर - मैं समझा नहीं...
विक्रम - इन लोगों को पांच पांच लाख देकर... ESS से निकाल रहा हूँ...
वीर - ( चौंक जाता है) यह... यह क्या कह रहे हैं...
विक्रम - ESS में जितने भी भर्ती हुए थे... सबको महांती ने अच्छी तरह से चेक किया था... सिवाय उन नामों के... जिन्हें तुमने रीकमेंड किया था... और भेदीए पर... महांती को इन्हीं लोगों पर डाऊट था...
अह ओह! ये तो वीर की क्रेडिबिलिटी ही कम पड़ गई विक्रम के सामने!
बात ठीक भी है - जिनको बिना किसी चेकिंग के लिवाया गया है, उनकी जाँच आवश्यक है।
विक्रम ठीक सोच रहा है। लेकिन इस जूनून में वो फिर से अपने परिवार की ख़ुशियों का सत्यानाश करने वाला है।
रुप बाहर की ओर चली जाती है l उसके जाने के बाद शुभ्रा उस ड्रॉइंग रूम में अकेली रह जाती है l वह मायूस सी कमरे के चारो तरफ देखती है क्यूंकि सब कुछ सही हो जाने के बाद फिर से जिंदगी उसी मोड़ पर पहुँच गई थी l
हाँ - बात बनाने में समय लगता है, लेकिन बिगड़ने में बिलकुल भी नहीं।
रुप - यही की... तब्बसुम श्री विहार में नहीं है...
अब ये क्या नया शुरू हो गया?
ये रूप भी खुजली मास्टर है! हा हा हा!
जोडार - क्या हुआ विश्वा...
विश्व - कुछ नहीं जोडार साहब... यह कल से माँ के पीछे लगा हुआ है... मतलब इसे किसी और की तलाश है... जिसे माँ से कोई ना कोई ताल्लुक है... (सोच में पड़ जाता है) कौन हो सकता है...
ये दरोगा कूटा जाने वाला है अब - अच्छे से।
इस बार उसको बेनिफिट ऑफ़ डाउट नहीं मिलेगा। अबकी पिटेगा, तो उठेगा नहीं।
वीर - जब से... मुझे यह एहसास हुआ है... के मुझे प्यार हुआ है... तब से ज़माने में ठोकर नसीब हो रहे हैं... जानते हो... मैं जब सिर्फ क्षेत्रपाल था... तब मुझे परवाह किसीकी नहीं थी... पर जब से परवाह करने लगा हूँ... पता नहीं क्यूँ... ठोकर पे ठोकर खाने लगा हूँ... यार मैं बहुत बुरा था... मेरे बुराई की ज़द में जो भी आए... उनको संवारने की कोशिश में... मुझे जिंदगी कड़वे अनुभव करवा रही है...
सबसे पहली बात का कुछ कुछ समाधान यहाँ है। केवल कुछ ही लोगों को अपने पाप का परिणाम अपने जीवन में भुगतना पड़ता है (सभी को नहीं).
दुर्भाग्य से वीर वो आदमी निकला। कम से कम उसको अपनी माँ और अपनी प्रेमिका का प्यार तो मिल रहा है।
वीर - जब तक हम पुष्पा की खबर निकाल कर आर्कु पहुँचे... तो वहाँ पर हमें पता चला... किसी ने... पुष्पा और विनय को... गोली मार दी है.... दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं...
हम्म्म। अब समस्या गहरी हो गई है।
अंत में -- बहुत बहुत बढ़िया भाई! बहुत बहुत बढ़िया!
आपके स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। अपडेट इत्यादि की चिंता न कीजिए!