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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
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Kala Nag

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जगमग जगमग शानदार प्रदर्शन के साथ दी गई समीक्षा हमेशा से ही इंतजार रहता है हर कहानी मे
वैसे एक विषयवस्तु है कुछ बहुत ही उच्च स्तरीय समीक्षकों की प्रतिक्रियाएं हमने एक मापदंड बना दिया है कहानियों को चुनने व पढ़ने का...
जय हो 💗💓😍🙏
यही जगमग शब्द का ही जादू है
के हमारा सफर यहाँ तक आ पहुँची है
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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मित्र मेरे भाई मुझे लगता है यहाँ हर लेखक को अपनी कहानी में SANJU ( V. R. ) भाई की समीक्षा की प्रतीक्षा रहती है
वैसे मुझे मेरे कहानी में Lib am भाई और Death Kiñg भाई की समीक्षा का भी प्रतीक्षा है
देखते हैं कब उनके दर्शन मिलते हैं
bahut kam aise reader hai jo kahani ki sahi samiksha karte hai ..
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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👉एक सौ छब्बीसवां अपडेट
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सुबह हो रही थी, सूरज अपने नियमित समय पर पूर्व आकाश से निकल रहा था l धीरे धीरे अंधेरा छट रहा था l एक बस्ती के एक कोने में एक बड़ा सा घर है l जिसके एक कमरे में टोनी उर्फ लेनिन लुंगी में अपने बिस्तर पर दिन दुनिया से बेख़बर पेट के बल सोया हुआ था l तभी उसके कमरे का दरवाजे पर लगातार दस्तक होने लगती है l वह चिढ़ कर अपने बिस्तर से उठता है और गुस्से में तमतमाते हुए दरवाजा खोलता है l सामने उसका ही आदमी था l

टोनी - (उबासी लेकर अपनी आँख मलते हुए) क्या हुआ बे... सुबह सुबह कौन तेरी माँ चोद दिया... भोषड़ी के... जो मेरा नींद खराब करने आ गया...
आदमी - भाई... वह दारोगा रोणा आया है... तुमको पुछ रहा है...

उसके इतने बोलने भर से ही टोनी के आँख से नींद छु मन्तर हो जाता है l

टोनी - क्या... क.. कब... कब आया...
आदमी - अभी अभी... अपनी जीप से आया है... मैंने उसे नीचे बिठा दिया है...
टोनी - (अपना लुंगी सही करता है और शर्ट के बटन ठीक करते हुए) यह सला मरदुत.. यहाँ मरने आया है... या मेरी जान लेने... (अपने आदमी से) चल चलते हैं...

दोनों तेजी से सीढियों से उतर कर नीचे आते हैं l टोनी देखता है बड़े गम्भीर मुद्रा में रोणा बैठा हुआ है l टोनी उसके सामने खड़ा हो कर सलाम ठोकता है l

टोनी - अरे साब आप... यहाँ... मुझे खबर भिजवा देते... सेवा में हाजिर हो जाता...
रोणा - (अपने में खोया हुआ था, टोनी को कोई जवाब नहीं देता)
टोनी - साब... रोणा साब...
रोणा - (चौंक कर) हाँ..
टोनी - मैं कह रहा था... आप यहाँ... अचानक... सब ठीक तो है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं, दांत पीसने लगता है कि कड़ कड़ की आवाज सुनाई देने लगती है) हूँ...

टोनी समझ जाता है कुछ तो हुआ है वह अपने आदमी को इशारा कर बाहर भेज देता है l उस आदमी के जाते ही टोनी एक कुर्सी खिंच कर रोणा के बगल में बैठ जाता है l

टोनी - साब... अब इस कमरे में.. सिर्फ हम दोनों ही हैं... आसपास कोई भी नहीं है... कोई हुकुम हो तो बोलिए... अभी बजा देता हूँ...
रोणा - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हुकुम... अब तु क्या हुकुम बज़ाएगा... जब अपनी ही ऐसी बजी हुई है... के (चुप हो जाता है)

रोणा अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है और कमरे में लगी एक बड़े से आईने के सामने खड़ा होता है l अपने चेहरे को घूरने लगता है l घूरते घूरते उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l आँखे बड़ी मगर गुस्से से लाल होने लगता है पास रखे मेज पर से फ्लावर वॉश उठा कर आईने पर फेंक मारता है l आईना टुकड़ों में बिखर जाता है l उसका यह रुप देख कर टोनी डर जाता है और अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l रोना उसी मेज पर सिर झुकाए हांफ रहा था l

रोणा - जानता है कुछ ऐसा हुआ है... के अपना चेहरा आईने में देखते हुए घिन आ रही है... (टोनी की ओर मुड़ता है, टोनी को खड़ा हुआ देख कर ) बैठ जाओ... (टोनी बैठ जाता है) क्या आज रात तक... मैं रुक सकता हूँ...
टोनी - (लड़खड़ाती हुई आवाज में) आ... आपका ही घर है... साब...
रोणा - (टोनी के पास बैठ कर, एक गहरी साँस छोड़ कर) मुझे... विश्वा के बारे में... फिर से पुरी जानकरी दे...
टोनी - (हैरानी के साथ) क्या... मेरा मतलब है... बताया तो था आपको मैंने...
रोणा - हाँ... पर ठीक से सुना नहीं था... अपनी जेहन में उतारा नहीं था... अपने बड़े मर्द होने का घमंड का चश्मा नाक पर बिठा कर... कान को पकड़ रखा था... उसी से दुनिया को देख रहा था... तोल रहा था... इसलिये अपने दुश्मन को कम कर आंक बैठा था... उसने मुझे एहसास दिलाया है... के मैं उसके सोच और नजर आगे कहीं ठहरता ही नहीं हूँ... इसलिए मुझे अब अच्छे से बता... एक एक बात... उसके बारे में...

टोनी पहले मुहँ खोले रोणा को देखे जा रहा था, फिर जैसे ही रोणा उसके तरफ टेढ़ी नजर से देखा वह बिना देरी किए अपने और विश्व के बारे में जैल में जो भी गुजरा था सब कुछ बताने लगता है l रोणा भी उसके एक एक बात को आँख मूँद कर बड़े ध्यान से सुन रहा था l टोनी अपनी बात ख़तम कर चुप हो जाता है, पर रोणा की आँखे अभी भी बंद ही थी l

टोनी - साब... (रोणा अपनी आँखे खोलता है)
रोणा - तेरी सारी कहानी में... पहले उससे दुश्मनी रंगा ने की थी... पर उसने रंगा को बहुत जबरदस्त जवाब दिया... एक नहीं दो बार... उसके बाद... उसकी दोस्ती और शागिर्दी डैनी से हुई... फिर... उसकी पढ़ाई... फिर किसी ना किसी कैदी से झगड़ा और मांडवली...
टोनी - जी...
रोणा - एक आदमी... जैल में रह कर... जिसका ना आगे कोई है... ना कोई पीछे... क्या वह अपना कोई नेट वर्क खड़ा कर सकता है... वह भी बहुत जबरदस्त...
टोनी - साब... बात क्या है बताइए...

रोणा एक न्यूज पेपर निकाल कर पटकता है, जिसमें एक अनजान शख्स को किन्नरों के द्वारा जुलूस निकाले जाने की खबर छपी थी l

रोणा - एक परफेक्ट प्लान... अपने शिकार के लिए... शिकार को ललचाना... उसके लिए जगह तय करना... उसे तीन सौ चार सौ किन्नरों द्वारा अपमानित करना... गाँव के गँवार विश्व से कैसे सम्भव हो सकता है..
टोनी - सम्भव हो सकता है... अगर वह... डैनी का शागिर्द हो... रोणा साब... मैं बस इतना कहूँगा... विश्व जितना दिखता है... उससे कहीं ज्यादा छुपा हुआ है... उसे पुरी तरह एक्सप्लोर करना मुश्किल है... (रोणा उसे भवें सिकुड़ कर देखने लगता है) हाँ रोणा साहब... वह डैनी का पक्का चेला है... डैनी ने उसे एक बार कहा था...
देखो कुछ दिखाओ कुछ...
कहो कुछ... करो कुछ...
सोचो कुछ... समझाओ कुछ
इसी बात को विश्वा ने गाँठ बाँध ली...
रोणा - ह्म्म्म्म... वाकई... जितना मैंने उसे देखा है... समझा है... वह उससे कहीं ज्यादा गहराई में है...

कुछ देर के लिए रोणा खामोश हो जाता है l टोनी भी उससे कोई सवाल नहीं करता है l फ़िर रोणा बोलना शुरु करता है l

रोणा - उसे मैंने लड़ते हुए देखा नहीं है... पर इतना तो जान गया हूँ... कि वह अकेला बीस पच्चीस पर भारी पड़ता है... सात साल कैदियों और मुजरिमों के बीच रहा है... उस पर अब वकील भी है... दिमाग बहुत चलता है उसका... ऐसा नहीं कि मुझे... खतरे का एहसास नहीं था... पर मैं सीरियस नहीं था... उसने मुझे एक बहुत बड़ी सीख दि है... जिससे मेरा पुरा वज़ूद को ही बदल कर रख दिया है... उसने मेरी मर्दानगी पर ऐसा चोट मारा है कि... अब मैं मर्द हो कर भी.. मर्द नहीं रहा... (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) जब अपने बिस्तर पर किसी लड़की को सोचता हूँ...(लहजा सख्त हो जाता है) तो मेरी मर्दानगी... मेरा मज़ाक उड़ाने लगता है.... इसलिए अब उसे एक सिख देना है मुझे...
टोनी - (हैरान हो कर सुन रहा था) क्या आ. आआप उसे सीख देंगे...
रोणा - हाँ... उसे सीख में यह बताना जरूरी है... के डर और शर्म की भी अपनी एक पैमाना होता है... जब जरुरत ज्यादा उड़ेल दिया जाता है... तो पैमाना छलक जाता है... और वह ऐसा छलकता है... के ख़तम ही हो जाता है... फिर वह शख्स निडर और बेशर्म हो जाता... (टोनी चुप रह कर सुन रहा था, टोनी से ) कुछ कहेगा नहीं...
टोनी - साब... अगर विश्वा से... अपनी दुश्मनी बरकरार रखना चाहते हैं... तो रखिए... पर मुझे इन सब में... मत घसीटें.. मैंने पहले भी कहा था आपको...
रोणा - हाँ हाँ... याद है मुझे... विश्वा किसी एक को मारने की कसम खाई है... तु वह दुसरा नहीं बनना चाहते...
टोनी - हाँ नहीं बनना चाहता... लगता है... मेरी पुरी बात को... आप ठीक से समझ नहीं पाए... पुलिस वाले हो... सोचा था समझ गए होगे...
रोणा - क्या मतलब है तेरा...
टोनी - यही की... विश्वा.... एक खुन पहले ही कर चुका है... और तब तक दुसरा खुन नहीं करेगा... जब तक... उसका सब्र जबाव ना दे दे...
रोणा - (चौंक कर उछल जाता है) क्या... विश्वा पहले से ही खुन कर चुका है...
टोनी - जी हाँ रोणा साब... सबको लगता है... यश वर्धन चेट्टी की मौत एक हादसा था... ड्रग्स का ओवर डॉस और हार्ट पल्स हाइपर हो कर रुकने की वज़ह से वह मरा.... पर रोणा साहब... उस हादसे के वक़्त मैं वहीँ पर था... और मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता.. वह हादसा नहीं... हत्या थी...
रोणा - (आँखे फैल जाती हैं, मुहँ खुला रह जाता है)
टोनी - हाँ रोणा साहब... वह एक परफेक्ट प्लान्ड मर्डर था... इतना परफेक्ट... के चारों तरफ पुलिस वाले थे... वहाँ पर मौजूद हर कोई उस हादसे का चश्मदीद गवाह थे... उस हादसे की वीडियो रिकॉर्डिंग भी बनी थी... सीसीटीवी और मेडिकल रिपोर्ट तक... विश्वा के बेगुनाही के लिए गावही दिए... जरा सोचिए... जैल के अंदर.. एक सजायाफ्ता कैदी... कितनी आसानी से खुन कर दिया...
रोणा - यह बात तूने नई बताई... अगर वह मर्डर था... तो तूने उसके खिलाफ गवाही क्यूँ नहीं दी... तेरी तो दुश्मनी थी उससे...
टोनी - विश्वा जब किसी को टार्गेट करता है... कई दिनों से प्लानिंग के तहत उसके लिए ट्रैप बनाता है... फिर उसे अपनी ट्रैप में ले लेता है.... बाहर यश का बाप... इतना ताकतवर शख्सियत... जिसने कई एक्सपर्ट खड़े किए थे... पर इंटरनल इंक्वायरी में... सब विश्व को बेगुनाह मानने को मजबूर हो गए... के ओंकार का बेटा यश हादसे के चलते मारा गया... यहाँ तक ओंकार भी...
रोणा - (अविश्वास भरे लहजे में) विश्वा ने यश को मारा... पर कैसे... क्यूँ...
टोनी - जब यश विश्व के गर्दन पर चोक बना कर पीठ के बल लेट गया... हम सब बाहर थे... हमें यकीन हो गया कि विश्व मरने वाला है... तभी यश हमें बुलाया... विश्व को पकड़ने के लिए... सबसे पहले मैंने छलांग लगाई थी... तभी विश्व पलट गया... और मैं... यश पर गिरा था... तब विश्व ने यश से कहा... "यह जयंत सर के नाम पर तुझे कुत्ते की मौत मुबारक" .... बाद में जब वह मुझे धमकाया था... तभी बोला था... के वह जानता था... की यश... विश्व से दोस्ती के आड़ में... डबल क्रॉस कर रहा था...
रोणा - ओ... तो यश उसका पहला और आखिरी खुन है... ह्म्म्म्म... बड़ा यकीन है उसे खुद पर.... पर उसे जयंत राउत की मौत का पता कैसे चला...
टोनी - वह तो मैं नहीं जानता... पर विश्वा को खुद पर यकीन करने की वज़ह है रोणा साहब... पहली बात... वह डैनी भाई का शागिर्द है.... और दुसरी बात डैनी भाई पर विश्वा का एहसान बाकी है... और विश्वा जानता है... डैनी भाई विश्वा पर कोई आंच नहीं आने देंगे... आप के पास खबर भी तो होगी... विश्वा अपना ग्रैजुएशन... डैनी की वकील जयंत चौधरी के वज़ह से ही पुरा कर पाया था... इसलिए डैनी भाई की तरह कोई नेट वर्क खड़ा करना... विश्वा के लिए कोई बड़ी बात नहीं है... (रोणा चुप रहता है) रोणा साब... मैं यह सब आपको डराने के लिए नहीं कह रहा हूँ... पर सच यह है कि... मैं सच में दुसरा नहीं बनना चाहता हूँ...
रोणा - ह्म्म्म्म... ठीक है समझ गया... मैं यहाँ किसी और काम से आया था... एक आखिरी काम... जो तुम्हें मेरे लिए करना होगा...
टोनी - जी बोलिए साब...
रोणा - शाम को जाने से पहले बता दूँगा....


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बड़बिल
कैजुअल माइनिंग वर्कर की बस्ती में तीन गाडियों का काफिला आकर रुकती है l आगे वाली और पीछे वाली गाड़ी में रॉय ग्रुप सिक्युरिटी के गार्ड्स थे और बीच वाले गाड़ी में से तीन ज़न उतरते हैं रॉय, चेट्टी और हाथ में छड़ी लेकर केके l उन तीनों का रास्ता बना कर कुछ गार्ड्स आगे आगे चलते हैं और वह तीनों उन गार्ड्स को फॉलो करते हुए एक छोटे से घर के सामने पहुँचते हैं l कुछ गार्ड्स अंदर जाते हैं और रंगा को पकड़ कर खिंचते हुए बाहर लाते हैं l रंगा केके के सामने घुटने पर बैठ जाता है l

रंगा - मैंने... (गिड़गिड़ाते हुए) कुछ नहीं किया केके साहब... मैंने कुछ भी नहीं किया...
केके - मुझे कुछ सवालों के जवाब चाहिए...
रंगा - जी... जी मालिक...
केके - तुझे कैसे मालुम पड़ा... मेरा बेटा आर्कु में था...
रंगा - मुझे... रॉय साहब ने कहा था...

केके रॉय की ओर देखता है l रॉय अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l केके हैरान जितना होता है उतना ही गुस्सा हो जाता है l अपनी छड़ी से गुप्ती निकालता है तो सामने चेट्टी आ जाता है l

चेट्टी - कुछ भी गलत करने से पहले... बात को पुरी तरह जान लो... बात अगर तुम्हारे बेटे की इन्फॉर्मेशन छुपाने की है... इसका जवाब मेरे पास है...
केके - क्या जवाब है...
चेट्टी - अंदर चलें.... या तमाशा यहाँ बाहर ही बनाए रखें...

केके अपनी छड़ी में गुप्ती को रख देता है l रंगा को लेकर सब घर के अंदर आते हैं l बाहर जो गार्ड्स थे इन लोगों को देख रहे भीड़ को हटाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गार्ड दरवाजे को बंद कर देता है

रंगा - केके साहब... जरा सोचिए... मैंने जाने अनजाने में सही क्षेत्रपालों से दुश्मनी ले ली है... तो ऐसे में... मैं जिसके छत्रछाया में हिफाजत में हूँ... उनसे गद्दारी... नमक हरामी कैसे कर सकता हूँ....
चेट्टी - हाँ केके... जिस वक़्त हमें तुम्हारे बेटे की खबर लगी... तब तुम इस हालत में नहीं थे कि हम यह बात तुमसे शेयर कर सकें...
रॉय - हाँ... केके साहब... आर्कु में विनय का मोबाइल कुछ देर के लिए ऑन हो गया था... हमारे लोग विनय की मोबाइल को ट्रेस करने में लगे हुए थे.... इसलिए लोकेशन की जानकारी हाथ लग गई... पर हमें डर था... कहीं दुबारा हाथ लगने से पहले विनय qभाग ना जाए... इसलिए हमने रंगा को वायजाग भेजा... विनय का लोकेशन कंफर्म करने और उस पर नजर रखने के लिए... ताकि जब आपकी हालत में थोड़ा सुधार आए... तब हम सब मिलकर विनय को वापस ला पाएं....
रंगा - केके साहब... आर्कु में... सब मिला कर... डेढ़ सौ के करीब लॉज, होटल और रिसॉर्ट हैं... हर एक में मैं ढूंढ रहा था... पर यकीन मानिये केके साहब... मैं उन्हें ढूंढ नहीं पाया... और जिस दिन मुझे खबर लगी... उस दिन... (रुक जाता है, आगे कुछ नहीं कहता)
केके - उस दिन क्या हुआ... मुझे विस्तार से बताओ...
रंगा - सारे होटल और लॉज छान मारने के बाद... बोराकेव के तरफ़ जाने का फैसला किया... एक गाड़ी कर जब बोराकेव में हिल व्यू लॉज में पहुँचा... तब देखा बहुत सारे लोग वहाँ पर जमा हुए थे... मैं वहाँ जा कर जब इंक्वायरी कर ही रहा था कि... तब पुलिस वालों के साथ वीर... और उसके साथ एक लड़की और एक बुढ़िया आ पहुँचे थे... मैं कुछ देर तक वहाँ पर अपना चेहरा छुपाए खड़ा रहा... वहीँ मुझे मालुम हुआ कि... विनय बाबु और.... (चुप हो जाता है)

केके टूटे मन से सब सुन रहा था l जब रंगा रुक जाता है तब केके रंगा की चेहरे की ओर देखता है l डरा सहमा सा दिख रहा था l

केके - मतलब... वीर सही कह रहा था... (चलते हुए दीवार तक पहुँचता है और एक मुक्का मारता है) किसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारी है...
चेट्टी - यही तो हमें पता लगानी है... देखो केके... परिस्थिति ने हमें अब एक ही नाव पर सवार कर दिया है... जवान बेटे को खो देना....
केके - आपका बेटा हादसे के चलते मरा था चेट्टी बाबु.... पर मेरे बेटे को किसीने पॉइंट ब्लैंक पर सिर के बीचोबीच शूट कर मारा है... ऐसा कोई दग़ाबाज़... या फिर बदला लेने की ख्वाहिश पालने वाला कर सकता है...
रॉय - आप बिल्कुल सही कह रहे हैं... पॉइंट ब्लैंक पर सिर को निशाना बनाने वाला... या तो पक्का दुश्मन हो सकता है... या फिर कोई जान पहचान वाला आस्तीन का सांप हो सकता है...
चेट्टी - तो फिर पता लगाओ... वह कौन सांप है... जो हमारे ही घर में... हमारी ही दुध पी रहा है और हमें डस रहा है...
केके - मैं और मेरा पुरा नेट वर्क इसी काम में जुटे हुए हैं...
चेट्टी - रिजल्ट चाहिए रॉय... रिजल्ट... वर्ना... हम इधर क्षेत्रपाल से दुश्मनी उठाए हुए हैं... और अंदर कोई हमें खोखला कर रहा है...

कुछ देर के लिए सब चुप हो जाते हैं l पर केके किसी गहरी सोच में खोया हुआ था l उसे देख कर चेट्टी पूछता है l

चेट्टी - क्या बात है केके... फिर किस सोच में पड़ गए...
केके - आज की दौर में... हमारा एक ही दुश्मन है... जो हमें मिटाने की मंसूबा पाल सकता है... क्षेत्रपाल... पर मैंने उनके साथ सात सालों तक काम किया है... जैसा कि वीर ने कहा... यह उनका तरीका नहीं है... (इन सबके तरफ देख कर) फिर... फिर यह कौन हो सकता है... उसका मकसद क्या है... उसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारा है... या किसी और की दुश्मनी....
चेट्टी - सवाल वाजिब है... पर इस वक़्त इन सारे सवालों का कोई जवाब नहीं है... (रॉय से) एक काम करो... यह जो लड़की पुष्पा... और उसके भाई के बारे में पता करो... कहीं उनकी... किसी से दुश्मनी तो नहीं.... और हो सके तो... विनय के सारे दोस्त और दुश्मनों के बारे में पता करो...
रॉय - यस सर...
चेट्टी - केके... माना के मेरे बेटे के मरने की वज़ह... और तुम्हारे बेटे के मरने की वज़ह अलग है... पर... (केके के कंधे पर हाथ रखकर) इस उम्र में... जवान बेटे का खोना... उसका दर्द मैं समझ सकता हूँ... इसलिए यह दर्द और ज़ख्म का जो भी जिम्मेदार है... हम उसे नहीं छोड़ेंगे...

केके एक कृतज्ञता भरी नजर से चेट्टी को देखते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रख देता है l


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दीवार पर लगे स्क्रीन पर हस्पताल का सीसीटीवी की फुटेज चल रहा था l विक्रम अपने केबिन में बैठा उसे गौर से देख रहा था l ऐसे में विक्रम के केबिन का दरवाजा खुलता है l वीर बाहर रुक कर विक्रम से पूछता है l

वीर - तुमने मुझे बुलाया....
विक्रम - अंदर आ जाओ... (वीर अंदर आता है) मेरे कमरे में आने के लिए.... तुम कब से परमिशन लेने लग गए... बैठो....
वीर - (बैठते हुए) अपना एटिट्यूड सुधार रहा हूँ... जेंटलमेन बनने की कोशिश कर रहा हूँ....
विक्रम - हाँ तुम जब से जेंटलमेन बन रहे हो... तब से दुनिया तुम्हारी दुश्मन बनती जा रही है.... क्या तुम कल हस्पताल गए थे...
वीर - हाँ... क्यूँ क्या हुआ...
विक्रम - मृत्युंजय से मिलने...
वीर - हाँ...

विक्रम चुप रहता है और वीर की ओर एक टक देखता रहता है l वीर अपनी ओर ऐसे घूरे जाने पर थोड़ा असहज महसूस करता है l

वीर - क्या हुआ भैया... मुझसे कोई गलती हो गया क्या...
विक्रम - पता नहीं...
वीर - तो फिर तुम मुझे ऐसे क्यूँ घूर रहे हो....
विक्रम - तुम्हारे... मृत्युंजय से मिलने के कुछ घंटे बाद... मृत्युंजय अपना डिस्चार्ज करवा कर चला गया है....
वीर - (चौंक कर) व्हाट...
विक्रम - हाँ...
वीर - पर वह गया कहाँ...
विक्रम - यही तो कारण है... के मैं हैरान भी हूँ और परेशान भी हूँ...
वीर - मतलब....
विक्रम - टुटे हुए पैर से उसने अपना डिस्चार्ज ही नहीं करवाया... बल्कि उसने खुद को गायब भी करवा लिया है... ना वह अपनी पुरानी बस्ती में गया है... ना ही... नए पते पर...
वीर - क्या... वह.. (बोलते बोलते रुक जाता है)
विक्रम - ह्म्म्म्म हूँ... अपनी बात पूरी करो...
वीर - क्या वह अभी भी आपके शक़ के दायरे में है...
विक्रम - (अपनी चेयर छोड़ कर केबिन के बीच टहलते हुए) देखो वीर... महांती के मौत से... मैं पागल हो गया हूँ... इसलिए यह सवाल मुझसे ना ही करो तो बेहतर होगा....
वीर - ठीक है... नहीं करता कोई सवाल... अब पूछो मुझसे क्या जानना चाहते हो...
विक्रम - तुम अचानक से मृत्युंजय से मिलने क्यूँ गए...
वीर - तुम ही तो चाहते थे... जो लोग मेरे वज़ह से ESS में जॉइन हुए थे... उन्हें कोई दुसरा ऑप्शन दूँ... मैंने उसे जाजपुर स्पंज फैक्ट्री में सुपरवाइजर की पोस्ट की नौकरी का लेटर थमा कर आया था...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
वीर - और... और क्या... बस इतना की... मैं उसकी बहन पुष्पा के कातिलों को ढूँढ कर अपनी तरीके से सजा दूँगा....यह वादा कर आया था....

विक्रम उसे चुपचाप देखे जा रहा था l वीर को विक्रम का ऐसे देखना अस्वाभाविक लग रहा था l

वीर - अब क्या हुआ भैया... तुम मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
विक्रम - देख रहा हूँ... हमारे फटे क्या कम हैं... जो तुम दूसरों के फटे में घुस रहे हो...
वीर - जो कहना है... सीधे सीधे कहो ना...
विक्रम - (एक चिट्ठी वीर को देकर) यह लो... मृत्युंजय ने तुम्हारे लिए... मेडिकल रिसेप्शन में छोड़ा था...

वीर वह चिट्ठी खोलता है, देखता है मृत्युंजय ने उसके नाम चिट्ठी लिखा है, वह पढ़ने लगता है l

"आदरणीय राजकुमार जी, मुझ जैसा बदकिस्मत और मनहूस आदमी दुनिया में कहीं नहीं होगा l पार्टी के प्रति वफादार रहते हुए मेरे पिता छोटी मोटी व्यापार करते हुए घर चला रहे थे l एक दिन पता नहीं किससे रूठ कर वह आत्महत्या कर बैठे l आपकी कृपा दृष्टी रही के आपने मुझे रोजगार दिया, ताकि हमारे घर की चूल्हा कभी बंद ना हो l उसके बाद मेरी माँ ने किसी तरह खुद को सम्भाला पर कुछ ही दिनों के अन्तराल में वह भी चल बसी l उस समय आप पास खड़े हो कर बहुत सहायता की l पर बदकिस्मती पीछा नहीं छोड़ा ऐसे दुख के समय में मेरी बहन मुझे अकेला छोड़ अपनी जीवन की तलाश में किसी को साथ लेकर चली गई l पुष्पा ऐसी गई के जब मिली चिता में लेटी हुई मिली l उसकी हत्या कर दी गई l आपने कसम खाई है कि उसके हत्यारों को छोड़ेंगे नहीं पर राजकुमार जी बहन वह मेरी थी, उसकी हत्या का वारिस भी मैं ही हूँ l इसलिए मैं अपने तरीके से उसके हत्यारों को ढूँढुंगा और अपने हाथों से उसे सजा दूँगा l आखिर पुष्पा की राखी का कर्ज है मुझ पर l
आपने हमेशा एक सच्चे मालिक की तरह मेरे बगल में खड़े रहे, खयाल रखा पर मेरा एक आग्रह है, अनुरोध है, प्रार्थना है कि इस मामले से दुर रहें l
प्रतिशोध मेरा है l दोषी भी मेरा है l उसे तलाश करना और अपने हाथों से सजा देना मेरा अधिकार है l कृपया मुझे मेरे अधिकार से वंचित ना करें l मैं आपसे वादा करता हूँ उस हत्यारे को मैं आपके सामने लाऊँगा l तब आप निर्णय करें उसे कैसी सजा दी जाए l
बस आपके शुभकामनाओं के साथ मैं आपसे विदा ले रहा हूँ l

मृत्युंजय

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मेयर ऑफिस के परिसर में बल्लभ अपनी गाड़ी पार्क करता है औऱ जल्दी से अपना ब्रीफकेस उठा कर जल्दी जल्दी पिनाक के चेंबर की ओर जाने लगता है l रिसेप्शन से अपने आने की खबर पहुँचाने के लिए कहता है l थोड़ी देर बाद रिसेप्शन उसे अंदर जाने के लिए कहती है l वह जब चेंबर के अंदर पहुँचता है तो देखता है पिनाक के सामने एक शख्स बैठा हुआ है l जिसका पहनावा उसके दौलत मंद और प्रतिष्ठित होने की बात को दर्शा रही थी l

पिनाक - आओ प्रधान आओ.. बड़े सही समय पर आए हो... इनसे मिलो.... आप हैं... श्री निर्मल सामल... हमारे होने वाले समधी... (परिचय पाते ही बल्लभ हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है) और सामल बाबु... यह है... एडवोकेट बल्लभ प्रधान... हमारे सारे लीगल ईलीगल काम देखता है...
निर्मल - ओ... तो इस वक़्त यहाँ लीगल काम से आए हैं... या...
बल्लभ - मैं आया तो आप ही के काम से हूँ... मेरे पास ईलीगल कुछ नहीं होता है... क्यूँ के सारे कामों को लीगल बनाना ही मेरा काम है...
निर्मल - ओ हो... बहुत अच्छे...
पिनाक - बैठ जाओ प्रधान... (बल्लभ बैठ जाता है) तुम जिस तरह से बात रख रहे हो... लगता है निर्मल बाबु का... काम करके ही आए हो... या हो जाने वाला है...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी... सारे प्रॉब्लम सॉल्व...
निर्मल - क्या... आई कांट विलीव...
बल्लभ - आप विश्वास कर लीजिए निर्मल बाबु.... मैंने कहा ना... मैं जो भी काम उठाता हूँ... उसे लीगल बना देता हूँ... अब उस छह एकड़ जमीन का रजिस्ट्रेशन कब कराना है... मुहूर्त निकालिए...
निर्मल - इतनी आसानी से... बुरा ना मानना प्रधान बाबु... जहां तक मुझे याद है... BDA का लैंड सर्वेयर... गायब था... अपनी ऑफिस में बिना कोई इन्फॉर्मेशन के... फिर...
बल्लभ - आपने सौ फीसद सही कहा सामल बाबु पर आज सुबह ही... सर्वेयर काजमी जॉइन हुआ है... और जॉइन होते ही उसने अपना रिपोर्ट अटैच कर दे दिया है...
निर्मल - (कुछ सोच में पड़ जाता है) इतनी आसानी से...
पिनाक - आपको तो खुश होना चाहिए सामल बाबु... क्या कामयाबी पर यकीन नहीं हो रहा है... या.. पच नहीं रहा..
निर्मल - छोटे राजा जी... मैं खानदानी व्यापारी हूँ... व्यापार में कुछ बातेँ हमें पर्सनल एक्सपेरीयंस है... उसके आधार पर कह सकता हूँ... जो आसानी से हासिल हो जाए... वह ज्यादा देर तक टिकता नहीं है... ज़रूर उसमें कोई छुपा हुआ गडबड़ होगी....
पिनाक - सामल बाबु... आप यह भुल रहे हो... इस काम में... क्षेत्रपाल इंवॉल्व हैं... हासिल होना ही था... और यह लंबा टिकेगा भी... (बल्लभ की ओर दिखाते हुए) और यह आदमी इन्हीं चीजों में माहिर है...
बल्लभ - सामल बाबु... आप अब क्षेत्रपाल खानदान से जुड़ने वाले हैं... तो मैं कैसे आपका मान गिरने दे सकता हूँ... BDA ऑफिस में प्रमुख अधिकारी हमारा ही आदमी है... उसके जरिए... उस काजमी पर दबाव डाल कर सर्वे रिपोर्ट पास करवाया है... आप यकीन रखिए... अब कोई परेशानी नहीं है....
निर्मल - थैंक्यू प्रधान बाबु थैंक्यू... (पिनाक की ओर देख कर) आपने तो हमारी बड़ी परेशानी हल कर दी...
पिनाक - आप हमारे होने वाले समधी हैं... इतना तो कर्तव्य बनता है और हक भी...

निर्मल सामल के चेहरे पर खुशी कुछ देर दिखती है फिर धीरे धीरे चेहरा गम्भीर हो जाता है l यह देख कर पिनाक उससे सवाल करता है l

पिनाक - क्या हुआ सामल बाबु... हमने कुछ गलत बोल गए क्या...
निर्मल - नहीं छोटे राजा जी... बल्कि यह तो हमारा सौभाग्य है कि राजा साहब ने हमें अपने बराबर खड़ा किया और... हमारी बेटी का हाथ आपके बेटे के लिए माँगा...
पिनाक - फिर... फिर आपके चेहरे पर वह रौनक नहीं दिखाई दे रही है जो होनी चाहिए....
निर्मल - छोटे राजा जी... हम अपने इलाके से बाहर व्यापार फैलाना चाहते थे.... राजा साहब के कहने पर हम भुवनेश्वर आए... जो जगह हमें दिखाई गई... और जो प्रोजेक्ट हमें दी गई है.... वह लिटिगेटेड थी... चूंकि सस्ते में हो सकती थी... इसलिए पसंद भी आई... राजा साहब ने पुरा बीड़ा उठाया... हमें यह जगह दिलवाने के लिए... रिश्ता भी जोड़ा... इसलिए मना नहीं कर पाए... पर...
पिनाक - जब आप हमसे जुड़ ही गए हैं... फिर पर कैसा...
निर्मल - हम जानते हैं... आप राजाओं के परिवार से ताल्लुक रखते हैं... कुछ रस्में रिवाज, कुछ शौक... रजवाड़ों के जैसे होते हैं... (पॉज)
पिनाक - हाँ तो...
निर्मल - (झिझकते हुए) हम सुने हैं... आपके रंग महल के बारे में... (पॉज)
पिनाक - खुलकर कहिये सामल बाबु....
निर्मल - देखिए... हम इन सबके आदि नहीं हैं... और हमें कोई ऐतराज भी नहीं है... हम अपनी बिटिया को समझा सकते हैं... पर...
पिनाक - आपका यह पर ख़तम ही नहीं हो रहा है सामल बाबु...
निर्मल - जब राजा साहब ने विवाह का प्रस्ताव रखा... तो माफ कीजिएगा... हमने राजकुमार जी की... खबर ली थी...
पिनाक - कैसी खबर...
निर्मल - देखिए छोटे राजा जी... अब मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ... राजकुमार जी अपने संग एक लड़की को लिये घूमते हैं... मुझे लगता है.. आप भी शायद जानते हैं... हम राजवंशी नहीं हैं... हमें ऐसी बातों का आदत नहीं है... मैं नहीं चाहता कि कल को मेरी बेटी को कोई पछतावा हो... हमने अपनी बच्ची को बड़े नाज़ों संस्कारों के साथ पाला है... (पॉज)
पिनाक - आगे बढ़ीये...

फिर यकायक निर्मल का लहजा बदल जाता है l आवाज में कड़क पन और भारी पन उतर आता है l

निर्मल - हम चाहते हैं... विवाह एक महीने के अंदर हो जाए... और उससे पहले... वह नीचि और ओछी जात की लड़की... हमारे होने वाले जमाई बाबु के जीवन से निकल जाए....
पिनाक - आपने ठीक कहा सामल बाबु... पर जैसा कि आपने कहा... के हम राजवंशी हैं... मान लीजिए... विवाह के बाद भी... राजकुमार किसी के साथ एंगेज मिले... तो...
निर्मल - वह विवाह की बाद की बात होगी... और मेरी बेटी बिल्कुल वैसे ही अपना धर्म निभाएगी जैसे... क्षेत्रपाल परिवार में... दुसरी औरतें...
पिनाक - ठीक है... हम समझ गए... आप निश्चिंत हो कर जाएं... और विवाह की तैयारियाँ करें... आपका काम हो जाएगा...
निर्मल - शुक्रिया छोटे राजा साहब...
पिनाक - इसमें शुक्रिया कैसी समधी ही... अब बेहतर होगा आप भी हमें समधी जी ही कहें...
निर्मल - जी छोटे रा..... सॉरी आई मीन... समधी जी...
पिनाक - (बल्लभ से) प्रधान...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम हमारे समधी जी को अपने साथ ले जाओ... उन्हें क्या करना है... अच्छी तरह से समझा दो...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...

फिर निर्मल सामल और बल्लभ अपनी अपनी जगह से उठते हैं और पिनाक से औपचारिकता वाली विदाई लेकर चेंबर से बाहर निकल जाते हैं l उनके जाते ही पिनाक अपना मोबाइल निकालता है और एक कॉल करता है l


पिनाक - कहाँ हो तुम...
- @#@#===#&@
पिनाक - हाँ हाँ ठीक है... याद है तुमने एक बार कहा था...

- @#@#===#&@
अब टाइम आ गया है वह करने का..
- @#@#===#&@
पिनाक - देखो तुम कैसे करोगे... क्या करोगे मुझे कोई मतलब नहीं है... यह काम हफ्ते दस दिन के भीतर हो जाना चाहिए...
- @#@#===#&@
पिनाक - अगर तुम यह काम कर देते हो... तो जितना पैसा मांगोगे मिलेगा...
- @#@#===#&@
पिनाक - ठीक है...

कह कर अपना फोन काट देता है l फोन कटते ही उसके चेहरे पर खौफनाक गुस्सा उभरने लगता है l


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ठंडी हवाएं बह रही है l अनु की लटें चेहरे पर उड़ रही है और अनु बार बार अपनी लटों को अपनी कानो के पीछे ले जा रही थी l वीर की नजरें बिना पलकें झुकाए एक टक उसे देखे जा रहा है l चंद्रभागा की रेतीली पठार पर कुछ प्रेम के जोड़े अपने में मगन थे l शाम का वक़्त, सुरज ढलने में अभी भी वक़्त है l पर आज की समा जितनी रूमानी लग रही थी उतना ही मासूम भी लग रहा था l वीर का अपनी ओर ऐसे देखने से अनु के गालों पर शर्म की लाली छा रही थी l

अनु - आप कब से मुझे ऐसे देखे जा रहे हैं...
वीर - क्या करूँ... तुम हो ही ऐसी...
अनु - रोज ही तो आप मुझे देखते हैं...
वीर - तुम रोज मुझे नई सी लगती हो...
अनु - प्लीज... आप... मुझे ऐसे... यूँ ना देखिए...
वीर - (शरारती लहजे में) फिर कैसे देखूँ...
अनु - (कुछ नहीं कह पाती, मन ही मन मुस्कराते हुए अपना सिर झुका लेती है)
वीर - हाय... एक और कुदरत... एक और तुम... दोनों को उपर वाले ने कितनी सिद्दत से तराशा है... पर फिर भी कुदरत से मन भर जाता है और तुम पर नजर ठहर जाता है...
अनु - (अपनी अंदर की खुसी को ज़ब्त करते हुए) एक बात पूछूं...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु - आप... मुझे यहाँ क्यूँ ले कर आए... हम किसी मॉल में भी तो जा सकते थे...
वीर - क्यूँ तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - बहुत... पर अगर हम मॉल में होते... तो शायद हम बातेँ कर रहे होते...
वीर - ना... आज तो तुम्हें जी भर कर देखने का मन कर रहा है...
अनु - अच्छा... तो बातेँ कब करेंगे...
वीर - कर ही तो रहे हैं...
अनु - कहाँ... बातेँ मैं कर रही हूँ...
वीर - वही तो... एक अप्सरा मेरे सामने बैठी है... जिसके मुहँ से शहद ही शहद टपक रही है... कुदरत का करिश्मा है... देख रहा हूँ... उसके गाल बिल्कुल सेव के जैसे लाल हैं... जी कर रहा है.. चबा जाऊँ... (अनु अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लेती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - थैंक्यू...
अनु - (हैरानी के साथ अपने चेहरे से हाथ हटाते हुए) वह क्यूँ...
वीर - मैं खो गया था... तुमने ही मुझे ढूंढ लिया... मैं बिखर गया था... तुमने ही मुझे समेट लिया...
अनु - इसके लिए आप मुझे थैंक्स तो कहिये... मुझे खुशी है कि... मेरे राजकुमार फिर से वापस मिल गए...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - यह तुम्हारा मट्टू भाई से जान पहचान कब से है...
अनु - बताया तो था... जब हम एक साथ नौकरी करने लगे... उसके बाद... कुछ दिनों बाद मट्टू भैया और उनके माता जी और पुष्पा हमारे मुहल्ले में रहने आए थे...
वीर - ओ...
अनु - क्यूँ क्या हुआ...
वीर - क्या पुष्पा तुम्हारे बहुत करीब थी...
अनु - सच कहूँ तो हाँ... मेरी कोई सहेली नहीं थी... हमारे बस्ती में... वह एक छोटी बहन... एक सहेली बन कर आई थी...
वीर - क्या इसी लिए तुमने मुझसे... उसके क़ातिल को सजा देने के लिए कहा...
अनु - हाँ भी और नहीं भी...
वीर - मतलब...
अनु - पुष्पा के साथ जो हुआ... उसके लिए आप खुद को ही जिम्मेदार मान रहे थे... आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी... इसलिए.. मैंने... आपको... उस ग़म से उबारने के लिए... ऐसा कहा...
वीर - (मुस्करा देता है)
अनु - (झिझकते हुए) क्या आपको... बुरा लगा...
वीर - (अनु के दोनों हाथ अपने हाथ में लेकर) ओ अनु... मेरी प्यारी अनु... जानती हो... तुम्हारा मुहँ बोला भाई भी यही कह रहा था...
अनु - (हैरानी से) मेरा मुहँ बोला भाई... मतलब मट्टू भैया...
वीर - अरे नहीं... ह्म्म्म्म याद है.... ओरायन मॉल के पार्किंग में... मैं गिर रहा था... तब एक बंदे ने मुझे सम्भाला था... तब तुमने उसे भाई कहा था...
अनु - (याद करते हुए) हाँ हाँ...
वीर - वह अब मेरा दोस्त है... बहुत ही अच्छा दोस्त... उसने जो कहा था... तुमने भी बिल्कुल वही कहा....
अनु - (अपना सिर शर्मा कर झुका लेती है)
वीर - अनु...
अनु - हूं...
वीर - तुम अगर बात बात पर इस तरह से शर्मा कर लाल होती रहोगी... तो...
अनु - तो..
वीर - तो... जी चाहता है कि मैं तुम्हें अभी के अभी चूम लूँ... (अनु शर्मा कर अपनी हाथ छुड़ाने की कोशिश करता है, पर वीर नहीं छोड़ता)
अनु - राजकुमार जी... प्लीज...
वीर - अरे... इसमें प्लीज कहने की क्या जरूरत है... लो अभी चूम लेता हूँ...
अनु - आह... नहीं.. (अपना चेहरा शर्म के मारे फ़ेर लेती है)
वीर - अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल शादी कर लेते हैं...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है)
वीर - अब रहा नहीं जाता... अब तो एक ही ख्वाहिश जोर मार रही है...
अनु - (गाल और होंठ फड़फड़ा रहे थे पर बोल ना फुट पाई)
वीर - पुछ ना... क्या है ख्वाहिश...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) कैसी ख्वाहिश...
वीर - मैं हर सुबह जब अपनी आँखे खोलुँ तो तु मेरी बाहों में हो... और जब नींद से पहले अपनी अपनी आँखे मूँद लूँ... तो तेरा चेहरा देखते हुए सो जाऊँ... (अपना चेहरा अनु के पास लाता है, अनु की सांसे तेजी से चलने लगती हैं और उसकी धड़कनें बढ़ जाती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल... शादी कर लेते हैं यार... इसी हफ्ते दस दिन में...
अनु - ह्म्म्म्म....
वीर - (खुशी के मारे) सच में...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - वाव... इस खुशी में तुझे चूम लूँ...
अनु - नहीं...
वीर - क्या... क्यूँ नहीं...
अनु - नहीं मेरा मतलब है... शायद मैंने अभी अभी नंदिनी जी को देखा...
वीर - क्या... (मुड़ कर देखने लगता है) कहाँ...
अनु - सच कह रही हूँ... मैंने देखा... नंदिनी जी किसी के साथ दिखीं... मेरा मतलब है... (अटक अटक कर) किसी.. लड़के के साथ...
वीर - (एक ठंडी रिस्पॉन्स के साथ) अच्छा...
अनु - (थोड़ी चहक कर) चलिए ना...
वीर - कहाँ...
अनु - नंदिनी जी को रंगे हाथ पकड़ने...
वीर - नहीं...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी बहन कोई अपराध नहीं कर रही है... उसने माँ से आशीर्वाद भी ले लिया है... हाँ यह बात और है कि उसने अभी तक उस लड़के के बारे में कहा नहीं है... पर वह किसी के प्यार में है... मैं यह जानता हूँ... उसने खुद मुझसे कहा था... और यह भी बताया था कि... वक़्त आने पर मुझसे मिलवायेगी...
अनु - पर भाई होने के नाते कुछ कर्तव्य होता है आपका... आपने कहा कि उसे जानते नहीं हैं... कहीं... मेरा मतलब है... (अटक जाती है)
वीर - अनु... मैं शायद तुम्हारे लायक भी नहीं... पर क्या तुम मुझसे प्यार करके शर्म सार हो...
अनु - नहीं...
वीर - वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... हमारे घर में... रिश्तों की अहमियत और पहचान उसे सबसे ज्यादा है... और उसने माँ से आशीर्वाद ले लिया है... तो वह कभी गलत नहीं हो सकती... (अनु का मुहँ लटक जाता है) अनु... मैं जानता हूँ... तुम उसे रंगे हाथ पकड़ना क्यूँ चाहती हो... तुम उसकी भाभी हो... उसे चौंकाना चाहती हो... पर अभी नहीं फिर कभी... अभी नंदिनी को उसके प्यार का थ्रिल महसुस करने दो...
अनु - आपको नंदिनी जी पर इतना भरोसा है...
वीर - हाँ... है...
अनु - मेरा भविष्य क्या होगा मैं नहीं जानती... पर जो भी होगा मुझे स्वीकार होगा... पर नंदिनी जी.... जहां तक मुझे पता है... उनकी शादी तय हो चुकी है... और आपकी बातों से लग रहा है... यह वह नहीं हैं... जिनसे उनकी शादी तय हुई है...
वीर - ओ... अब समझा... तुम खुल कर पूछो अनु...
अनु - आप शायद मेरे लिए अपने परिवार से लड़ जाएंगे... आप मर्द हैं... पर नंदिनी...
वीर - (मुस्कराते हुए) वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... उसने जिसको चुना है... इतना यकीन के साथ कह सकता हूँ... वह नंदिनी के लिए ना सिर्फ क्षेत्रपाल से... बल्कि दुनिया से भी टकराने की कुव्वत रखता होगा... नंदिनी पर कोई आंच भी आने नहीं देगा....

उधर रुप विश्व के हाथ को खींचते हुए भाग रही थी l विश्व भी हैरानी के साथ उसके पीछे भाग रहा था l कुछ दुर जाने के बाद रुप अब हांफने लगी थी l तब विश्व उसे रोकता है

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपने किसे देख लिया...
रुप - कुछ नहीं... वह जगह ठीक नहीं था... इसलिये...
विश्व - झूठ... आपने जरूर वहाँ पर किसी को देख लिया है...
रुप - ओ हो... अब चलो भी...
विश्व - अरे कहाँ... इतना दूर तो भाग कर आ गए... और देखिए... हम जहां पर थे कुछ कुछ जोड़े थे वहाँ पर... पर यहां.. कोई नहीं है... और शायद किसीके आने की संभावना भी नहीं है...
रुप - ऐ... क्या मतलब किसी की आने की संभावना नहीं है...
विश्व - (हकलाते हुए) मैं... मैं क्या सोच सकता हूँ... मैं तो बस यह कह रहा था... के हमें भी उस तरफ जाना चाहिए...
रुप - ओए... बस बस बहुत हुआ.. हाँ... हम यहीं कहीं बैठेंगे... और बातेँ करेंगे... समझे...
विश्व - जी ज़रूर... जैसी आपकी मर्जी...
रुप - हाँ हाँ सब तो मेरी मर्जी है... तुम यहाँ क्या घास चरने आए हो...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - अरे... अकेले हैं...
विश्व - हाँ तभी तो... साथ कुछ पल बिताने आए हैं...
रुप - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक कहा... हूंह्ह्ह...

कह कर रुप अपना मुहँ मोड़ कर आगे निकल जाती है l विश्व कुछ समझ नहीं पाता और उसके पीछे चलने लगता है l एक जगह पर नदी के किनारे छोटे छोटे मछली पकड़ने वाले कुछ नावें बंधी हुई थीं l वहीँ नाव के पास एक चार या पांच साल की एक लड़की रेत से एक घर बना रही थी l उसके बगल में दो लड़के खिलौने वाले बंदूक से एक दुसरे के पीछे भाग रहे थे l उन्हें देखते हुए रुप एक पत्थर पर बैठ जाती है l विश्व उसके बगल में बैठ जाता है l

विश्व - राजकुमारी जी... आप नाराज क्यूँ हैं..
रुप - हमें प्यार में पड़े कितने साल हुए...
विश्व - साल... या दिन...
रुप - क्या दिन... हूंह्ह्ह... बचपन का प्यार है...
विश्व - हाँ वह तो है... पर इजहार तो अभी अभी हुआ है ना...
रुप - तो...
विश्व - ओ हो.. मैं समझ नहीं पा रहा..
रुप - बेवक़ूफ़... फट्टु...
विश्व - फट्टु... कैसे...
रुप - अरे शाम सुहानी है... समा मस्तानी है... सुरज ढ़लने को है... ऐसे में...
विश्व - हाँ ऐसे में...
रुप - आ... ह्ह्ह्ह्...
विश्व - (मुस्करा देता है) गुस्सा आपके नाक पर बहुत अच्छा लगता है... मेरी नकचढ़ी...

तभी अचानक रेत पर खेल रही उस छोटी सी बच्ची की रोने की आवाज़ आती है l दोनों उस तरफ देखते हैं l वह लड़के खेल खेल में उस लड़की की रेत के घर पर चढ़ गए थे l जिसके वज़ह से वह घर टुट गई थी l तभी उस लड़की के रोने से वह दोनों लड़के अपने खिलौने बंदूक को लेकर भाग जाते हैं l यह देख कर विश्व और रुप दोनों कुछ देर के लिए हतप्रभ हो जाते हैं l

रुप - ओह... बेचारी लड़की.. कितनी मेहनत से वह घर बनाई थी... लड़के तोड़ कर भाग गए देखोना...
विश्व - हाँ भाग गए... हम समझदार इंसानों को आईना दिखा कर भाग गए...
रुप - क्या मतलब...
विश्व - वह लड़की कुदरत से अपना बसेरा बना रही थी... और वह लड़के आज के समाज के अक्स थे... जो हर चीज़ से असंतुष्ट थे... कहने को बंदूक हमारी सुरक्षा के लिए बनाई गई है... पर हमें असुरक्षा किससे है... इंसानों से ही ना... हम इंसान ही इंसान के दुश्मन हैं... और ऐसे समाज में... बंदूक जैसे हथियार समाज के मापदंड बन गए हैं... जिसके हाथ में बंदूक रहा वह शोषक बन गया... जो बंदूक के आगे रहा वह शोषित बन गया... आंदोलन हमेशा बंदूक के आगे वाला करता है... वह साम्यवाद के लिए शोषक से बंदूक छीनता है... पर फिर उसी बंदूक के प्रभाव में.. खुद शोषक बन जाता है... इसी खेल में... ऐसे कई कुदरती घरौंदे रौंद दिए जाते हैं...
रुप - (एक टक विश्व को सुने जा रही थी) वाव... क्या बात है...
विश्व - संगत का असर है...
रुप - संगत... किसकी संगत...
विश्व - मुझ पर मेरी नकचढ़ी की संगत...
रुप - अच्छा जी... वैसे मैंने क्या कर दिया जो आप इतना प्रभावित हो गए...
विश्व - भुल गईं... उस रेडियो एफएम पर आपने किस तरह से... समाज का एक हिस्सा बताया था...
रुप - ओ..
विश्व - जी
रुप - ठीक है... मैं इस बात की क्रेडिट ले लेती हूँ... पर फिर भी... मैं तुमसे नाराज हूँ...
विश्व - आपकी नाराजगी सिर आँखों पर... पर यह तो बताइए... आप किससे डर कर इस तरफ आ गईं...
रुप - डर... कैसा डर... मैं तो इसलिए तुम्हें यहाँ लेकर आई... ताकि...
विश्व - हाँ ताकि...
रुप - वह कहते हैं ना.....
दुनिया की नजरों से छुपके मिलें...
लगता है डर कोई देख ना लें...
विश्व - ओ... अच्छा.. (अचानक कुछ सोच कर) एक मिनट एक मिनट... कहीं आप वीर और अनु को देख कर तो नहीं भाग आईं...
रुप - क्या.... मतलब तुमने उन्हें देख लिया...
विश्व - नहीं... पर इसका मतलब वह लोग यहीँ कहीं हैं...
रुप - अब मेरा सारा मुड़ फुर्र हो गया है... चलो यहाँ से चलते हैं...
विश्व - क्यूँ...
रुप - कहीं वीर भैया यहाँ आ गए तो...
विश्व - अगर वह अभी तक नहीं आया... तो वह अब भी नहीं आएगा...
रुप - फिर भी... चलोना यहाँ से...

रुप फिर से विश्व की हाथ खिंच कर उठाती है और दोनों अपनी गाड़ी को जहां पर पार्क किए थे वहाँ पहुँच कर जल्दी से गाड़ी में बैठ कर गाड़ी घुमा लेते हैं l गाड़ी के भीतर दोनों खामोश थे l कुछ देर बाद रुप गाड़ी को मुख्य सड़क से निकाल कर एक गली नुमा सड़क पर चलाने लगती है फिर एक जगह गाड़ी रोकती है l

रुप - तुम्हें कैसे मालुम पड़ा...
विश्व - क्या...
रुप - यही की... वीर भैया और अनु भाभी यहाँ पर आए हैं...
विश्व - नहीं बस अंदाजा लगाया...
रुप - कैसे...
विश्व - क्यूंकि हम कल मिले थे... और वीर कह रहा था... की आज का पुरा दिन वह अनु के साथ बिताना चाहता है...
रुप - ओह...
विश्व - क्यूँ आप नहीं चाहतीं... के वीर को हमारे बारे में पता चले...
रुप - नहीं ऐसी बात नहीं है... वीर भैया को मालुम तो है कि मुझे किसीसे प्यार है... मैंने माँ को अनाम बताया है... बस बड़ी भाभी को पुरी बात मालुम है... मैं मौका ढूंढ रही हूँ... जब वीर भैया से तुम्हारे बारे में कहूँ... पर उससे पहले नहीं...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो बात यह है... अगर मैं यह कहूँ के... (रुक जाता है)
रुप - हाँ.. के...
विश्व - वीर को हमारे बारे में... पता चल गया है... तो...
रुप - (हैरानी से) क्या... कैसे...
विश्व - वह मेरे बारे में बहुत कुछ जानता है... के मैं एक ऊँचे घराने की लड़की से प्यार करता हूँ... मैं राजगड़ से हूँ... और कल ही उसने... मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ आपका नाम देख पढ़ लिया था...
रुप - व्हाट....
विश्व - हाँ... आपकी मेहरबानी जो थी... याद है... (अपनी बालों पर हाथ फेरते हुए) आपने मेरे बाल कुतर दिए थे... ताकि आपको आपका नाम मेरे गर्दन पर दिखे... कल ही मुझे वीर के बातों से अंदाजा हो गया था... की उसने मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ नाम पढ़ लिया था... और वह हमारे बारे में जान गया है...
रुप - ओह...

फिर कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप की मुट्ठी स्टीयरिंग पर कसने और रगड़ने लगती है l

विश्व - क्या हुआ... डर लग रहा है...
रुप - नहीं... पर... सोच रही हूँ... अगर वीर भैया को मालुम हो गया है... तो उनका विहैव आगे कैसा होगा.... मैं कैसे उनके सामने जाऊँगी...
विश्व - अपने भाई के आप बहुत करीब हो.. और मुझे लगता है... उसे हमारा रिश्ता स्वीकार है...
रुप - ठीक है... देखते हैं... क्या होता है आगे...

कह कर गाड़ी को घुमा कर मुख्य रास्ते पर ले आती है और शहर की और चलने लगती है l

रुप - अच्छा एक और बात पूछूं...
विश्व - जी जरूर...
रुप - उस आदमी का क्या हुआ.. जिसे xxxx जंक्शन पर किन्नरों ने घेरा था...
विश्व - न्यूज नहीं देखा आपने..
रुप - देखा था... पर... मैं तुमसे जानना चाहती हूँ... कहीं इस हरकत से खफा हो कर... वह फिर से स्टॉक करने लगा तो...
विश्व - आप डर रही हो क्या...
रुप - डरे मेरी जुती... पर अगर मान लो वह कुछ करने की कोशिश की तो...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) राजकुमारी जी... मैंने उसके लिए एक मर्यादा का जीवन रेखा खिंच दिया है.... अगर वह बाज नहीं आया... वह मर्यादा रेखा लांघने की कोशिश की.... तो इसकी जीवन रेखा मीट जाएगा... पर आप पर जरा सा भी आंच नहीं आएगा...

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शाम को टोनी अचानक उस कमरे में घुस जाता है जहाँ अनिकेत रोणा ठहरा हुआ था l पर अंदर का दृश्य देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l आईने के सामने पुलिस के लिबास में रोणा था पर उसके कान में बालि और नाक में नथ लगा हुआ था l उस वक़्त रोणा अपने होंठ पर लिपस्टिक लगा रहा था l

रोणा - आओ... टोनी आओ... (टोनी की ओर मुड़ कर) ऐसे फटे आँख से क्या देख रहे हो...
टोनी - यह क्या... मेरा मतलब है... ठीक है... आपके जेहन पर चोट गम्भीर लगा है... पर...
रोणा - तु जानता है... मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ...
टोनी - (अपना सिर ना में हिलाता है)
रोणा - तुझसे एक काम है... और उस काम को तुझे करना है......
टोनी - साब... आपका मुझ पर बड़ा उपकार रहा है... पर अगर यह काम विश्व के ताल्लुक है... तो माफ़ी चाहूँगा... मैं... मैं नहीं कर सकता...

टोनी के इंकार से रोणा का बांई आँख का भवां तन जाता है l वह अपना पुलिसिया बेल्ट निकाल कर बेल्ट की मेटल वाले लॉक से आईने पर मारता है l आईना कई टुकड़ों में बिखर जाता है l एक बड़ा सा टुकड़ा रोणा नीचे से उठाता है और टोनी खिंच कर उसके गले में लगा देता l यह सब इतना अचानक होता है कि टोनी अगर समझ भी जाता तो वहाँ से भाग चुका होता l पर अब वह रोणा के रहमोकरम पर था l

रोणा - सुन बे भोषड़ी के... साले बांग्लादेशी... मैंने अगर तेरी आइडेंटिटी बदली है... तो उसके सारे सबूतों का एक फाइल भी बना कर रखी है... अगर मैंने उसे थोड़ी देर में फोन नहीं किया... तो वह फाइल सीबीआई के दफ्तर में पहुँच जाएगी...

कह कर रोणा टोनी को छोड़ देता है और एक धक्का देता है l टोनी एक चेयर पर पीठ के बल गिर कर बैठ जाता है l रोणा उसके सामने एक चेयर खिंच कर बैठ जाता है l

रोणा - देख विश्वा ने मुझे क्या बना दिया है... मैं नहीं जानता... मैं औरत तो हूँ नहीं... उसने मर्द छोड़ा नहीं... हिजड़ों में भी मेरी भर्ती होने से रही... इसलिए मैं अकेले में ऐसा बना फिर रहा हूँ... (लहजा अचानक भयंकर हो जाता है) अब बोल... तु करेगा या...
टोनी - साब... करूँगा... पर यह करने के बाद... आपको मुझे एक नई आइडेंटिटी देनी होगी... क्यूँ की... मैं विश्वा को जितना जानता हूँ... वह मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेगा...
रोणा - (गुस्से में चिल्लाते हुए) आ.. ह्ह्ह्ह्... विश्वा.. विश्वा विश्वा... जैसे वह कोई हौव्वा बन गया है...
टोनी - आपके साथ क्या किया... आपने देख तो लिया है...
रोणा - वह इसलिए... के मुझ अकेले के खिलाफ... उसने टीम वर्क से काम लिया... अब बारी मेरी है... मैं उसके खिलाफ अपनी टीम को उतारूंगा... भले ही अंत में मेरा नाम उछले... पर मुझे अब इंतकाम लेना है...
टोनी - ठीक है... पर आपने मुझे अभी तक दुसरे आइडेंटिटी के बारे कुछ कहा नहीं है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं) ठीक है... जैसे ही तुम अपना काम पुरा कर दोगे... तुम्हें तुम्हारा नया आइडेंटिटी मिल जाएगा...
टोनी - ठीक है रोणा साब... काम क्या है... कहिये...

रोणा अपने जेब से मोबाइल निकालता है और कई फोटोस दिखाता है, जिसमें रुप प्रतिभा के साथ बात कर रही थी l यह सारे फोटो उसने बार काउंसिल के बार एसोसिएशन चेंबर के बाहर कैंटीन से खिंचा था l रुप की फोटो देख कर टोनी की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह सवालिया नजर से रोणा की ओर देखता है l

रोणा - मुझे इस लड़की के बारे में... सब कुछ जानना है... इसकी पुरी कुंडली मुझे लाकर देना है तुझे...
टोनी - बुरा ना माने तो एक सवाल पूछूं...
रोणा - हाँ पुछ ले...
टोनी - विश्वा का इस लड़की से क्या नाता है...
रोणा - यह लड़की विश्वा की माशुका है...
टोनी - क्या... (झटके के साथ अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) क.. क.. क्या कहा आपने...
रोणा - बे मादरचोद... यह लड़की विश्वा की माशुका है... इसे अपने नीचे लाकर... मुझे विश्वा से बदला लेना है...

यह सुन कर टोनी की आँखे और मुहँ दोनों खुले के खुले रह जाते हैं l वह जेब से आपना रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोछने लगता है l यह सब रोणा भी देख रहा था, वह चिढ़ कर पूछता है l

रोणा - तुझे भी तो विश्वा से बदला लेना था... अब जब मौका मिला है... तो सोच क्या रहा है...
टोनी - मैं सोच नहीं रहा हूँ... बल्कि अपना अंजाम के बारे में.. इंट्युशन कर रहा हूँ... रोणा साब... मुझसे वादा कीजिए... जैसे ही मैं इस लड़की की डिटेल्स ला कर दूँगा... आप उसी वक़्त मुझे मेरा नया आइडेंटिटी दे देंगे... और यह मेरा आपके लिए आखिरी काम होगा.... उसके बाद ना मैं आपसे मिलूंगा ना ही मुझसे आप...
रोणा - देख लड़कियाँ... औरतें मेरी कमजोरी हैं... उन्हें देख कर मेरी लार टपकती रहती है... पर मैंने विश्वा से भी ज्यादा दुनिया देखी है... कोई भी इंविंसीवल नहीं होता... अगर हम चाल सही चलें... तो विश्वा हमारे सामने कहीं नहीं ठहर पाएगा...
टोनी - मुझे दिलासा मत दीजिए... बस वादा कीजिए... वर्ना मुझसे नहीं होगा...
रोणा - ठीक है... तु भी क्या याद रखेगा... चल वादा किया... यह तेरा आखिरी काम होगा... उसके बाद तु अपना नए आइडेंटिटी को लेकर हिन्दुस्तान में कहीं भी चला जा... ना तु मुझसे मिलेगा... ना मैं तुझसे मिलूंगा...
टोनी - ठीक है साब... आप लड़की के बारे में जितना भी जानते हैं... मुझे कहिये... मैं आगे की जानकारी निकाल लूँगा...
रोणा - गुड... अब आए ना लाइन पे... लड़की का नाम नंदिनी है... उसकी या उसके फॅमिली की एक गाड़ी है... पुरानी फिएट पद्मिनी... गाड़ी का नंबर xxxxxx... शायद उसकी वकालत से कोई नाता है... नहीं भी हो सकता है... उसकी एक्स जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति और उसकी पत्नी प्रतिभा सेनापति से अच्छे तालुकात हैं... बस इससे आगे की जानकारी तुझे निकलनी है...
टोनी - जी समझ गया... आपको सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - कितने दिन लगेंगे तुझे...
टोनी - यह आप पर निर्भर है... आप मुझे जितनी जल्दी नई आईडेंटिटी देंगे... उतनी ही जल्दी आपको इस नंदिनी की सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - ओह... ओ... गेम... मुझसे गेम...
टोनी - गेम नहीं रोणा साब... बचाव... मुझे इस मामले में... किसी भी सूरत में... विश्वा के हाथ नहीं लगनी...
रोणा - इतनी फट रही है तेरी...
टोनी - फटी तो आपकी भी थी... भुल रहे हैं आप... उसीकी जानकारी लेने तो महीने भर पहले... मुझे भुवनेश्वर बुलाया था...
रोणा - फटी नहीं थी मेरी... तैयारी करना चाहता था...
टोनी - पर आपकी तैयारी कोई काम नहीं आई होगी... (इस पर रोणा कुछ नहीं कहता) आप मुझे व्हाटस्आप पर फोटो भेज दीजिए...

रोणा बिना देरी किए फोटो को टोनी के मोबाइल पर भेज देता है l फोटो मिल जाने के बाद टोनी बाहर की ओर जाने लगता है, अचानक दरवाजे पर रुक जाता है और रोणा की ओर मुड़ कर

टोनी - रोणा साब... विश्वा के बारे में एक आखिरी बात आपसे कहना चाहता हूँ... वह आपकी नजर में... कंविक्टेड क्रिमिनल है... जिसने लॉ पढ़ा है... पर मैं जितना भी जान सका हूँ... वह लॉ पढ़ा हुआ एक क्रिमिनल है... परफेक्शन के साथ कानून के दायरे में रह कर क्राइम ऐसे करता है... की कानून उसके आगे बेबस हो जाता है...
Nice updates👍🎉
 

Rajesh

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👉एक सौ छब्बीसवां अपडेट
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सुबह हो रही थी, सूरज अपने नियमित समय पर पूर्व आकाश से निकल रहा था l धीरे धीरे अंधेरा छट रहा था l एक बस्ती के एक कोने में एक बड़ा सा घर है l जिसके एक कमरे में टोनी उर्फ लेनिन लुंगी में अपने बिस्तर पर दिन दुनिया से बेख़बर पेट के बल सोया हुआ था l तभी उसके कमरे का दरवाजे पर लगातार दस्तक होने लगती है l वह चिढ़ कर अपने बिस्तर से उठता है और गुस्से में तमतमाते हुए दरवाजा खोलता है l सामने उसका ही आदमी था l

टोनी - (उबासी लेकर अपनी आँख मलते हुए) क्या हुआ बे... सुबह सुबह कौन तेरी माँ चोद दिया... भोषड़ी के... जो मेरा नींद खराब करने आ गया...
आदमी - भाई... वह दारोगा रोणा आया है... तुमको पुछ रहा है...

उसके इतने बोलने भर से ही टोनी के आँख से नींद छु मन्तर हो जाता है l

टोनी - क्या... क.. कब... कब आया...
आदमी - अभी अभी... अपनी जीप से आया है... मैंने उसे नीचे बिठा दिया है...
टोनी - (अपना लुंगी सही करता है और शर्ट के बटन ठीक करते हुए) यह सला मरदुत.. यहाँ मरने आया है... या मेरी जान लेने... (अपने आदमी से) चल चलते हैं...

दोनों तेजी से सीढियों से उतर कर नीचे आते हैं l टोनी देखता है बड़े गम्भीर मुद्रा में रोणा बैठा हुआ है l टोनी उसके सामने खड़ा हो कर सलाम ठोकता है l

टोनी - अरे साब आप... यहाँ... मुझे खबर भिजवा देते... सेवा में हाजिर हो जाता...
रोणा - (अपने में खोया हुआ था, टोनी को कोई जवाब नहीं देता)
टोनी - साब... रोणा साब...
रोणा - (चौंक कर) हाँ..
टोनी - मैं कह रहा था... आप यहाँ... अचानक... सब ठीक तो है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं, दांत पीसने लगता है कि कड़ कड़ की आवाज सुनाई देने लगती है) हूँ...

टोनी समझ जाता है कुछ तो हुआ है वह अपने आदमी को इशारा कर बाहर भेज देता है l उस आदमी के जाते ही टोनी एक कुर्सी खिंच कर रोणा के बगल में बैठ जाता है l

टोनी - साब... अब इस कमरे में.. सिर्फ हम दोनों ही हैं... आसपास कोई भी नहीं है... कोई हुकुम हो तो बोलिए... अभी बजा देता हूँ...
रोणा - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हुकुम... अब तु क्या हुकुम बज़ाएगा... जब अपनी ही ऐसी बजी हुई है... के (चुप हो जाता है)

रोणा अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है और कमरे में लगी एक बड़े से आईने के सामने खड़ा होता है l अपने चेहरे को घूरने लगता है l घूरते घूरते उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l आँखे बड़ी मगर गुस्से से लाल होने लगता है पास रखे मेज पर से फ्लावर वॉश उठा कर आईने पर फेंक मारता है l आईना टुकड़ों में बिखर जाता है l उसका यह रुप देख कर टोनी डर जाता है और अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l रोना उसी मेज पर सिर झुकाए हांफ रहा था l

रोणा - जानता है कुछ ऐसा हुआ है... के अपना चेहरा आईने में देखते हुए घिन आ रही है... (टोनी की ओर मुड़ता है, टोनी को खड़ा हुआ देख कर ) बैठ जाओ... (टोनी बैठ जाता है) क्या आज रात तक... मैं रुक सकता हूँ...
टोनी - (लड़खड़ाती हुई आवाज में) आ... आपका ही घर है... साब...
रोणा - (टोनी के पास बैठ कर, एक गहरी साँस छोड़ कर) मुझे... विश्वा के बारे में... फिर से पुरी जानकरी दे...
टोनी - (हैरानी के साथ) क्या... मेरा मतलब है... बताया तो था आपको मैंने...
रोणा - हाँ... पर ठीक से सुना नहीं था... अपनी जेहन में उतारा नहीं था... अपने बड़े मर्द होने का घमंड का चश्मा नाक पर बिठा कर... कान को पकड़ रखा था... उसी से दुनिया को देख रहा था... तोल रहा था... इसलिये अपने दुश्मन को कम कर आंक बैठा था... उसने मुझे एहसास दिलाया है... के मैं उसके सोच और नजर आगे कहीं ठहरता ही नहीं हूँ... इसलिए मुझे अब अच्छे से बता... एक एक बात... उसके बारे में...

टोनी पहले मुहँ खोले रोणा को देखे जा रहा था, फिर जैसे ही रोणा उसके तरफ टेढ़ी नजर से देखा वह बिना देरी किए अपने और विश्व के बारे में जैल में जो भी गुजरा था सब कुछ बताने लगता है l रोणा भी उसके एक एक बात को आँख मूँद कर बड़े ध्यान से सुन रहा था l टोनी अपनी बात ख़तम कर चुप हो जाता है, पर रोणा की आँखे अभी भी बंद ही थी l

टोनी - साब... (रोणा अपनी आँखे खोलता है)
रोणा - तेरी सारी कहानी में... पहले उससे दुश्मनी रंगा ने की थी... पर उसने रंगा को बहुत जबरदस्त जवाब दिया... एक नहीं दो बार... उसके बाद... उसकी दोस्ती और शागिर्दी डैनी से हुई... फिर... उसकी पढ़ाई... फिर किसी ना किसी कैदी से झगड़ा और मांडवली...
टोनी - जी...
रोणा - एक आदमी... जैल में रह कर... जिसका ना आगे कोई है... ना कोई पीछे... क्या वह अपना कोई नेट वर्क खड़ा कर सकता है... वह भी बहुत जबरदस्त...
टोनी - साब... बात क्या है बताइए...

रोणा एक न्यूज पेपर निकाल कर पटकता है, जिसमें एक अनजान शख्स को किन्नरों के द्वारा जुलूस निकाले जाने की खबर छपी थी l

रोणा - एक परफेक्ट प्लान... अपने शिकार के लिए... शिकार को ललचाना... उसके लिए जगह तय करना... उसे तीन सौ चार सौ किन्नरों द्वारा अपमानित करना... गाँव के गँवार विश्व से कैसे सम्भव हो सकता है..
टोनी - सम्भव हो सकता है... अगर वह... डैनी का शागिर्द हो... रोणा साब... मैं बस इतना कहूँगा... विश्व जितना दिखता है... उससे कहीं ज्यादा छुपा हुआ है... उसे पुरी तरह एक्सप्लोर करना मुश्किल है... (रोणा उसे भवें सिकुड़ कर देखने लगता है) हाँ रोणा साहब... वह डैनी का पक्का चेला है... डैनी ने उसे एक बार कहा था...
देखो कुछ दिखाओ कुछ...
कहो कुछ... करो कुछ...
सोचो कुछ... समझाओ कुछ
इसी बात को विश्वा ने गाँठ बाँध ली...
रोणा - ह्म्म्म्म... वाकई... जितना मैंने उसे देखा है... समझा है... वह उससे कहीं ज्यादा गहराई में है...

कुछ देर के लिए रोणा खामोश हो जाता है l टोनी भी उससे कोई सवाल नहीं करता है l फ़िर रोणा बोलना शुरु करता है l

रोणा - उसे मैंने लड़ते हुए देखा नहीं है... पर इतना तो जान गया हूँ... कि वह अकेला बीस पच्चीस पर भारी पड़ता है... सात साल कैदियों और मुजरिमों के बीच रहा है... उस पर अब वकील भी है... दिमाग बहुत चलता है उसका... ऐसा नहीं कि मुझे... खतरे का एहसास नहीं था... पर मैं सीरियस नहीं था... उसने मुझे एक बहुत बड़ी सीख दि है... जिससे मेरा पुरा वज़ूद को ही बदल कर रख दिया है... उसने मेरी मर्दानगी पर ऐसा चोट मारा है कि... अब मैं मर्द हो कर भी.. मर्द नहीं रहा... (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) जब अपने बिस्तर पर किसी लड़की को सोचता हूँ...(लहजा सख्त हो जाता है) तो मेरी मर्दानगी... मेरा मज़ाक उड़ाने लगता है.... इसलिए अब उसे एक सिख देना है मुझे...
टोनी - (हैरान हो कर सुन रहा था) क्या आ. आआप उसे सीख देंगे...
रोणा - हाँ... उसे सीख में यह बताना जरूरी है... के डर और शर्म की भी अपनी एक पैमाना होता है... जब जरुरत ज्यादा उड़ेल दिया जाता है... तो पैमाना छलक जाता है... और वह ऐसा छलकता है... के ख़तम ही हो जाता है... फिर वह शख्स निडर और बेशर्म हो जाता... (टोनी चुप रह कर सुन रहा था, टोनी से ) कुछ कहेगा नहीं...
टोनी - साब... अगर विश्वा से... अपनी दुश्मनी बरकरार रखना चाहते हैं... तो रखिए... पर मुझे इन सब में... मत घसीटें.. मैंने पहले भी कहा था आपको...
रोणा - हाँ हाँ... याद है मुझे... विश्वा किसी एक को मारने की कसम खाई है... तु वह दुसरा नहीं बनना चाहते...
टोनी - हाँ नहीं बनना चाहता... लगता है... मेरी पुरी बात को... आप ठीक से समझ नहीं पाए... पुलिस वाले हो... सोचा था समझ गए होगे...
रोणा - क्या मतलब है तेरा...
टोनी - यही की... विश्वा.... एक खुन पहले ही कर चुका है... और तब तक दुसरा खुन नहीं करेगा... जब तक... उसका सब्र जबाव ना दे दे...
रोणा - (चौंक कर उछल जाता है) क्या... विश्वा पहले से ही खुन कर चुका है...
टोनी - जी हाँ रोणा साब... सबको लगता है... यश वर्धन चेट्टी की मौत एक हादसा था... ड्रग्स का ओवर डॉस और हार्ट पल्स हाइपर हो कर रुकने की वज़ह से वह मरा.... पर रोणा साहब... उस हादसे के वक़्त मैं वहीँ पर था... और मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता.. वह हादसा नहीं... हत्या थी...
रोणा - (आँखे फैल जाती हैं, मुहँ खुला रह जाता है)
टोनी - हाँ रोणा साहब... वह एक परफेक्ट प्लान्ड मर्डर था... इतना परफेक्ट... के चारों तरफ पुलिस वाले थे... वहाँ पर मौजूद हर कोई उस हादसे का चश्मदीद गवाह थे... उस हादसे की वीडियो रिकॉर्डिंग भी बनी थी... सीसीटीवी और मेडिकल रिपोर्ट तक... विश्वा के बेगुनाही के लिए गावही दिए... जरा सोचिए... जैल के अंदर.. एक सजायाफ्ता कैदी... कितनी आसानी से खुन कर दिया...
रोणा - यह बात तूने नई बताई... अगर वह मर्डर था... तो तूने उसके खिलाफ गवाही क्यूँ नहीं दी... तेरी तो दुश्मनी थी उससे...
टोनी - विश्वा जब किसी को टार्गेट करता है... कई दिनों से प्लानिंग के तहत उसके लिए ट्रैप बनाता है... फिर उसे अपनी ट्रैप में ले लेता है.... बाहर यश का बाप... इतना ताकतवर शख्सियत... जिसने कई एक्सपर्ट खड़े किए थे... पर इंटरनल इंक्वायरी में... सब विश्व को बेगुनाह मानने को मजबूर हो गए... के ओंकार का बेटा यश हादसे के चलते मारा गया... यहाँ तक ओंकार भी...
रोणा - (अविश्वास भरे लहजे में) विश्वा ने यश को मारा... पर कैसे... क्यूँ...
टोनी - जब यश विश्व के गर्दन पर चोक बना कर पीठ के बल लेट गया... हम सब बाहर थे... हमें यकीन हो गया कि विश्व मरने वाला है... तभी यश हमें बुलाया... विश्व को पकड़ने के लिए... सबसे पहले मैंने छलांग लगाई थी... तभी विश्व पलट गया... और मैं... यश पर गिरा था... तब विश्व ने यश से कहा... "यह जयंत सर के नाम पर तुझे कुत्ते की मौत मुबारक" .... बाद में जब वह मुझे धमकाया था... तभी बोला था... के वह जानता था... की यश... विश्व से दोस्ती के आड़ में... डबल क्रॉस कर रहा था...
रोणा - ओ... तो यश उसका पहला और आखिरी खुन है... ह्म्म्म्म... बड़ा यकीन है उसे खुद पर.... पर उसे जयंत राउत की मौत का पता कैसे चला...
टोनी - वह तो मैं नहीं जानता... पर विश्वा को खुद पर यकीन करने की वज़ह है रोणा साहब... पहली बात... वह डैनी भाई का शागिर्द है.... और दुसरी बात डैनी भाई पर विश्वा का एहसान बाकी है... और विश्वा जानता है... डैनी भाई विश्वा पर कोई आंच नहीं आने देंगे... आप के पास खबर भी तो होगी... विश्वा अपना ग्रैजुएशन... डैनी की वकील जयंत चौधरी के वज़ह से ही पुरा कर पाया था... इसलिए डैनी भाई की तरह कोई नेट वर्क खड़ा करना... विश्वा के लिए कोई बड़ी बात नहीं है... (रोणा चुप रहता है) रोणा साब... मैं यह सब आपको डराने के लिए नहीं कह रहा हूँ... पर सच यह है कि... मैं सच में दुसरा नहीं बनना चाहता हूँ...
रोणा - ह्म्म्म्म... ठीक है समझ गया... मैं यहाँ किसी और काम से आया था... एक आखिरी काम... जो तुम्हें मेरे लिए करना होगा...
टोनी - जी बोलिए साब...
रोणा - शाम को जाने से पहले बता दूँगा....


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बड़बिल
कैजुअल माइनिंग वर्कर की बस्ती में तीन गाडियों का काफिला आकर रुकती है l आगे वाली और पीछे वाली गाड़ी में रॉय ग्रुप सिक्युरिटी के गार्ड्स थे और बीच वाले गाड़ी में से तीन ज़न उतरते हैं रॉय, चेट्टी और हाथ में छड़ी लेकर केके l उन तीनों का रास्ता बना कर कुछ गार्ड्स आगे आगे चलते हैं और वह तीनों उन गार्ड्स को फॉलो करते हुए एक छोटे से घर के सामने पहुँचते हैं l कुछ गार्ड्स अंदर जाते हैं और रंगा को पकड़ कर खिंचते हुए बाहर लाते हैं l रंगा केके के सामने घुटने पर बैठ जाता है l

रंगा - मैंने... (गिड़गिड़ाते हुए) कुछ नहीं किया केके साहब... मैंने कुछ भी नहीं किया...
केके - मुझे कुछ सवालों के जवाब चाहिए...
रंगा - जी... जी मालिक...
केके - तुझे कैसे मालुम पड़ा... मेरा बेटा आर्कु में था...
रंगा - मुझे... रॉय साहब ने कहा था...

केके रॉय की ओर देखता है l रॉय अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l केके हैरान जितना होता है उतना ही गुस्सा हो जाता है l अपनी छड़ी से गुप्ती निकालता है तो सामने चेट्टी आ जाता है l

चेट्टी - कुछ भी गलत करने से पहले... बात को पुरी तरह जान लो... बात अगर तुम्हारे बेटे की इन्फॉर्मेशन छुपाने की है... इसका जवाब मेरे पास है...
केके - क्या जवाब है...
चेट्टी - अंदर चलें.... या तमाशा यहाँ बाहर ही बनाए रखें...

केके अपनी छड़ी में गुप्ती को रख देता है l रंगा को लेकर सब घर के अंदर आते हैं l बाहर जो गार्ड्स थे इन लोगों को देख रहे भीड़ को हटाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गार्ड दरवाजे को बंद कर देता है

रंगा - केके साहब... जरा सोचिए... मैंने जाने अनजाने में सही क्षेत्रपालों से दुश्मनी ले ली है... तो ऐसे में... मैं जिसके छत्रछाया में हिफाजत में हूँ... उनसे गद्दारी... नमक हरामी कैसे कर सकता हूँ....
चेट्टी - हाँ केके... जिस वक़्त हमें तुम्हारे बेटे की खबर लगी... तब तुम इस हालत में नहीं थे कि हम यह बात तुमसे शेयर कर सकें...
रॉय - हाँ... केके साहब... आर्कु में विनय का मोबाइल कुछ देर के लिए ऑन हो गया था... हमारे लोग विनय की मोबाइल को ट्रेस करने में लगे हुए थे.... इसलिए लोकेशन की जानकारी हाथ लग गई... पर हमें डर था... कहीं दुबारा हाथ लगने से पहले विनय qभाग ना जाए... इसलिए हमने रंगा को वायजाग भेजा... विनय का लोकेशन कंफर्म करने और उस पर नजर रखने के लिए... ताकि जब आपकी हालत में थोड़ा सुधार आए... तब हम सब मिलकर विनय को वापस ला पाएं....
रंगा - केके साहब... आर्कु में... सब मिला कर... डेढ़ सौ के करीब लॉज, होटल और रिसॉर्ट हैं... हर एक में मैं ढूंढ रहा था... पर यकीन मानिये केके साहब... मैं उन्हें ढूंढ नहीं पाया... और जिस दिन मुझे खबर लगी... उस दिन... (रुक जाता है, आगे कुछ नहीं कहता)
केके - उस दिन क्या हुआ... मुझे विस्तार से बताओ...
रंगा - सारे होटल और लॉज छान मारने के बाद... बोराकेव के तरफ़ जाने का फैसला किया... एक गाड़ी कर जब बोराकेव में हिल व्यू लॉज में पहुँचा... तब देखा बहुत सारे लोग वहाँ पर जमा हुए थे... मैं वहाँ जा कर जब इंक्वायरी कर ही रहा था कि... तब पुलिस वालों के साथ वीर... और उसके साथ एक लड़की और एक बुढ़िया आ पहुँचे थे... मैं कुछ देर तक वहाँ पर अपना चेहरा छुपाए खड़ा रहा... वहीँ मुझे मालुम हुआ कि... विनय बाबु और.... (चुप हो जाता है)

केके टूटे मन से सब सुन रहा था l जब रंगा रुक जाता है तब केके रंगा की चेहरे की ओर देखता है l डरा सहमा सा दिख रहा था l

केके - मतलब... वीर सही कह रहा था... (चलते हुए दीवार तक पहुँचता है और एक मुक्का मारता है) किसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारी है...
चेट्टी - यही तो हमें पता लगानी है... देखो केके... परिस्थिति ने हमें अब एक ही नाव पर सवार कर दिया है... जवान बेटे को खो देना....
केके - आपका बेटा हादसे के चलते मरा था चेट्टी बाबु.... पर मेरे बेटे को किसीने पॉइंट ब्लैंक पर सिर के बीचोबीच शूट कर मारा है... ऐसा कोई दग़ाबाज़... या फिर बदला लेने की ख्वाहिश पालने वाला कर सकता है...
रॉय - आप बिल्कुल सही कह रहे हैं... पॉइंट ब्लैंक पर सिर को निशाना बनाने वाला... या तो पक्का दुश्मन हो सकता है... या फिर कोई जान पहचान वाला आस्तीन का सांप हो सकता है...
चेट्टी - तो फिर पता लगाओ... वह कौन सांप है... जो हमारे ही घर में... हमारी ही दुध पी रहा है और हमें डस रहा है...
केके - मैं और मेरा पुरा नेट वर्क इसी काम में जुटे हुए हैं...
चेट्टी - रिजल्ट चाहिए रॉय... रिजल्ट... वर्ना... हम इधर क्षेत्रपाल से दुश्मनी उठाए हुए हैं... और अंदर कोई हमें खोखला कर रहा है...

कुछ देर के लिए सब चुप हो जाते हैं l पर केके किसी गहरी सोच में खोया हुआ था l उसे देख कर चेट्टी पूछता है l

चेट्टी - क्या बात है केके... फिर किस सोच में पड़ गए...
केके - आज की दौर में... हमारा एक ही दुश्मन है... जो हमें मिटाने की मंसूबा पाल सकता है... क्षेत्रपाल... पर मैंने उनके साथ सात सालों तक काम किया है... जैसा कि वीर ने कहा... यह उनका तरीका नहीं है... (इन सबके तरफ देख कर) फिर... फिर यह कौन हो सकता है... उसका मकसद क्या है... उसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारा है... या किसी और की दुश्मनी....
चेट्टी - सवाल वाजिब है... पर इस वक़्त इन सारे सवालों का कोई जवाब नहीं है... (रॉय से) एक काम करो... यह जो लड़की पुष्पा... और उसके भाई के बारे में पता करो... कहीं उनकी... किसी से दुश्मनी तो नहीं.... और हो सके तो... विनय के सारे दोस्त और दुश्मनों के बारे में पता करो...
रॉय - यस सर...
चेट्टी - केके... माना के मेरे बेटे के मरने की वज़ह... और तुम्हारे बेटे के मरने की वज़ह अलग है... पर... (केके के कंधे पर हाथ रखकर) इस उम्र में... जवान बेटे का खोना... उसका दर्द मैं समझ सकता हूँ... इसलिए यह दर्द और ज़ख्म का जो भी जिम्मेदार है... हम उसे नहीं छोड़ेंगे...

केके एक कृतज्ञता भरी नजर से चेट्टी को देखते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रख देता है l


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दीवार पर लगे स्क्रीन पर हस्पताल का सीसीटीवी की फुटेज चल रहा था l विक्रम अपने केबिन में बैठा उसे गौर से देख रहा था l ऐसे में विक्रम के केबिन का दरवाजा खुलता है l वीर बाहर रुक कर विक्रम से पूछता है l

वीर - तुमने मुझे बुलाया....
विक्रम - अंदर आ जाओ... (वीर अंदर आता है) मेरे कमरे में आने के लिए.... तुम कब से परमिशन लेने लग गए... बैठो....
वीर - (बैठते हुए) अपना एटिट्यूड सुधार रहा हूँ... जेंटलमेन बनने की कोशिश कर रहा हूँ....
विक्रम - हाँ तुम जब से जेंटलमेन बन रहे हो... तब से दुनिया तुम्हारी दुश्मन बनती जा रही है.... क्या तुम कल हस्पताल गए थे...
वीर - हाँ... क्यूँ क्या हुआ...
विक्रम - मृत्युंजय से मिलने...
वीर - हाँ...

विक्रम चुप रहता है और वीर की ओर एक टक देखता रहता है l वीर अपनी ओर ऐसे घूरे जाने पर थोड़ा असहज महसूस करता है l

वीर - क्या हुआ भैया... मुझसे कोई गलती हो गया क्या...
विक्रम - पता नहीं...
वीर - तो फिर तुम मुझे ऐसे क्यूँ घूर रहे हो....
विक्रम - तुम्हारे... मृत्युंजय से मिलने के कुछ घंटे बाद... मृत्युंजय अपना डिस्चार्ज करवा कर चला गया है....
वीर - (चौंक कर) व्हाट...
विक्रम - हाँ...
वीर - पर वह गया कहाँ...
विक्रम - यही तो कारण है... के मैं हैरान भी हूँ और परेशान भी हूँ...
वीर - मतलब....
विक्रम - टुटे हुए पैर से उसने अपना डिस्चार्ज ही नहीं करवाया... बल्कि उसने खुद को गायब भी करवा लिया है... ना वह अपनी पुरानी बस्ती में गया है... ना ही... नए पते पर...
वीर - क्या... वह.. (बोलते बोलते रुक जाता है)
विक्रम - ह्म्म्म्म हूँ... अपनी बात पूरी करो...
वीर - क्या वह अभी भी आपके शक़ के दायरे में है...
विक्रम - (अपनी चेयर छोड़ कर केबिन के बीच टहलते हुए) देखो वीर... महांती के मौत से... मैं पागल हो गया हूँ... इसलिए यह सवाल मुझसे ना ही करो तो बेहतर होगा....
वीर - ठीक है... नहीं करता कोई सवाल... अब पूछो मुझसे क्या जानना चाहते हो...
विक्रम - तुम अचानक से मृत्युंजय से मिलने क्यूँ गए...
वीर - तुम ही तो चाहते थे... जो लोग मेरे वज़ह से ESS में जॉइन हुए थे... उन्हें कोई दुसरा ऑप्शन दूँ... मैंने उसे जाजपुर स्पंज फैक्ट्री में सुपरवाइजर की पोस्ट की नौकरी का लेटर थमा कर आया था...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
वीर - और... और क्या... बस इतना की... मैं उसकी बहन पुष्पा के कातिलों को ढूँढ कर अपनी तरीके से सजा दूँगा....यह वादा कर आया था....

विक्रम उसे चुपचाप देखे जा रहा था l वीर को विक्रम का ऐसे देखना अस्वाभाविक लग रहा था l

वीर - अब क्या हुआ भैया... तुम मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
विक्रम - देख रहा हूँ... हमारे फटे क्या कम हैं... जो तुम दूसरों के फटे में घुस रहे हो...
वीर - जो कहना है... सीधे सीधे कहो ना...
विक्रम - (एक चिट्ठी वीर को देकर) यह लो... मृत्युंजय ने तुम्हारे लिए... मेडिकल रिसेप्शन में छोड़ा था...

वीर वह चिट्ठी खोलता है, देखता है मृत्युंजय ने उसके नाम चिट्ठी लिखा है, वह पढ़ने लगता है l

"आदरणीय राजकुमार जी, मुझ जैसा बदकिस्मत और मनहूस आदमी दुनिया में कहीं नहीं होगा l पार्टी के प्रति वफादार रहते हुए मेरे पिता छोटी मोटी व्यापार करते हुए घर चला रहे थे l एक दिन पता नहीं किससे रूठ कर वह आत्महत्या कर बैठे l आपकी कृपा दृष्टी रही के आपने मुझे रोजगार दिया, ताकि हमारे घर की चूल्हा कभी बंद ना हो l उसके बाद मेरी माँ ने किसी तरह खुद को सम्भाला पर कुछ ही दिनों के अन्तराल में वह भी चल बसी l उस समय आप पास खड़े हो कर बहुत सहायता की l पर बदकिस्मती पीछा नहीं छोड़ा ऐसे दुख के समय में मेरी बहन मुझे अकेला छोड़ अपनी जीवन की तलाश में किसी को साथ लेकर चली गई l पुष्पा ऐसी गई के जब मिली चिता में लेटी हुई मिली l उसकी हत्या कर दी गई l आपने कसम खाई है कि उसके हत्यारों को छोड़ेंगे नहीं पर राजकुमार जी बहन वह मेरी थी, उसकी हत्या का वारिस भी मैं ही हूँ l इसलिए मैं अपने तरीके से उसके हत्यारों को ढूँढुंगा और अपने हाथों से उसे सजा दूँगा l आखिर पुष्पा की राखी का कर्ज है मुझ पर l
आपने हमेशा एक सच्चे मालिक की तरह मेरे बगल में खड़े रहे, खयाल रखा पर मेरा एक आग्रह है, अनुरोध है, प्रार्थना है कि इस मामले से दुर रहें l
प्रतिशोध मेरा है l दोषी भी मेरा है l उसे तलाश करना और अपने हाथों से सजा देना मेरा अधिकार है l कृपया मुझे मेरे अधिकार से वंचित ना करें l मैं आपसे वादा करता हूँ उस हत्यारे को मैं आपके सामने लाऊँगा l तब आप निर्णय करें उसे कैसी सजा दी जाए l
बस आपके शुभकामनाओं के साथ मैं आपसे विदा ले रहा हूँ l

मृत्युंजय

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मेयर ऑफिस के परिसर में बल्लभ अपनी गाड़ी पार्क करता है औऱ जल्दी से अपना ब्रीफकेस उठा कर जल्दी जल्दी पिनाक के चेंबर की ओर जाने लगता है l रिसेप्शन से अपने आने की खबर पहुँचाने के लिए कहता है l थोड़ी देर बाद रिसेप्शन उसे अंदर जाने के लिए कहती है l वह जब चेंबर के अंदर पहुँचता है तो देखता है पिनाक के सामने एक शख्स बैठा हुआ है l जिसका पहनावा उसके दौलत मंद और प्रतिष्ठित होने की बात को दर्शा रही थी l

पिनाक - आओ प्रधान आओ.. बड़े सही समय पर आए हो... इनसे मिलो.... आप हैं... श्री निर्मल सामल... हमारे होने वाले समधी... (परिचय पाते ही बल्लभ हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है) और सामल बाबु... यह है... एडवोकेट बल्लभ प्रधान... हमारे सारे लीगल ईलीगल काम देखता है...
निर्मल - ओ... तो इस वक़्त यहाँ लीगल काम से आए हैं... या...
बल्लभ - मैं आया तो आप ही के काम से हूँ... मेरे पास ईलीगल कुछ नहीं होता है... क्यूँ के सारे कामों को लीगल बनाना ही मेरा काम है...
निर्मल - ओ हो... बहुत अच्छे...
पिनाक - बैठ जाओ प्रधान... (बल्लभ बैठ जाता है) तुम जिस तरह से बात रख रहे हो... लगता है निर्मल बाबु का... काम करके ही आए हो... या हो जाने वाला है...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी... सारे प्रॉब्लम सॉल्व...
निर्मल - क्या... आई कांट विलीव...
बल्लभ - आप विश्वास कर लीजिए निर्मल बाबु.... मैंने कहा ना... मैं जो भी काम उठाता हूँ... उसे लीगल बना देता हूँ... अब उस छह एकड़ जमीन का रजिस्ट्रेशन कब कराना है... मुहूर्त निकालिए...
निर्मल - इतनी आसानी से... बुरा ना मानना प्रधान बाबु... जहां तक मुझे याद है... BDA का लैंड सर्वेयर... गायब था... अपनी ऑफिस में बिना कोई इन्फॉर्मेशन के... फिर...
बल्लभ - आपने सौ फीसद सही कहा सामल बाबु पर आज सुबह ही... सर्वेयर काजमी जॉइन हुआ है... और जॉइन होते ही उसने अपना रिपोर्ट अटैच कर दे दिया है...
निर्मल - (कुछ सोच में पड़ जाता है) इतनी आसानी से...
पिनाक - आपको तो खुश होना चाहिए सामल बाबु... क्या कामयाबी पर यकीन नहीं हो रहा है... या.. पच नहीं रहा..
निर्मल - छोटे राजा जी... मैं खानदानी व्यापारी हूँ... व्यापार में कुछ बातेँ हमें पर्सनल एक्सपेरीयंस है... उसके आधार पर कह सकता हूँ... जो आसानी से हासिल हो जाए... वह ज्यादा देर तक टिकता नहीं है... ज़रूर उसमें कोई छुपा हुआ गडबड़ होगी....
पिनाक - सामल बाबु... आप यह भुल रहे हो... इस काम में... क्षेत्रपाल इंवॉल्व हैं... हासिल होना ही था... और यह लंबा टिकेगा भी... (बल्लभ की ओर दिखाते हुए) और यह आदमी इन्हीं चीजों में माहिर है...
बल्लभ - सामल बाबु... आप अब क्षेत्रपाल खानदान से जुड़ने वाले हैं... तो मैं कैसे आपका मान गिरने दे सकता हूँ... BDA ऑफिस में प्रमुख अधिकारी हमारा ही आदमी है... उसके जरिए... उस काजमी पर दबाव डाल कर सर्वे रिपोर्ट पास करवाया है... आप यकीन रखिए... अब कोई परेशानी नहीं है....
निर्मल - थैंक्यू प्रधान बाबु थैंक्यू... (पिनाक की ओर देख कर) आपने तो हमारी बड़ी परेशानी हल कर दी...
पिनाक - आप हमारे होने वाले समधी हैं... इतना तो कर्तव्य बनता है और हक भी...

निर्मल सामल के चेहरे पर खुशी कुछ देर दिखती है फिर धीरे धीरे चेहरा गम्भीर हो जाता है l यह देख कर पिनाक उससे सवाल करता है l

पिनाक - क्या हुआ सामल बाबु... हमने कुछ गलत बोल गए क्या...
निर्मल - नहीं छोटे राजा जी... बल्कि यह तो हमारा सौभाग्य है कि राजा साहब ने हमें अपने बराबर खड़ा किया और... हमारी बेटी का हाथ आपके बेटे के लिए माँगा...
पिनाक - फिर... फिर आपके चेहरे पर वह रौनक नहीं दिखाई दे रही है जो होनी चाहिए....
निर्मल - छोटे राजा जी... हम अपने इलाके से बाहर व्यापार फैलाना चाहते थे.... राजा साहब के कहने पर हम भुवनेश्वर आए... जो जगह हमें दिखाई गई... और जो प्रोजेक्ट हमें दी गई है.... वह लिटिगेटेड थी... चूंकि सस्ते में हो सकती थी... इसलिए पसंद भी आई... राजा साहब ने पुरा बीड़ा उठाया... हमें यह जगह दिलवाने के लिए... रिश्ता भी जोड़ा... इसलिए मना नहीं कर पाए... पर...
पिनाक - जब आप हमसे जुड़ ही गए हैं... फिर पर कैसा...
निर्मल - हम जानते हैं... आप राजाओं के परिवार से ताल्लुक रखते हैं... कुछ रस्में रिवाज, कुछ शौक... रजवाड़ों के जैसे होते हैं... (पॉज)
पिनाक - हाँ तो...
निर्मल - (झिझकते हुए) हम सुने हैं... आपके रंग महल के बारे में... (पॉज)
पिनाक - खुलकर कहिये सामल बाबु....
निर्मल - देखिए... हम इन सबके आदि नहीं हैं... और हमें कोई ऐतराज भी नहीं है... हम अपनी बिटिया को समझा सकते हैं... पर...
पिनाक - आपका यह पर ख़तम ही नहीं हो रहा है सामल बाबु...
निर्मल - जब राजा साहब ने विवाह का प्रस्ताव रखा... तो माफ कीजिएगा... हमने राजकुमार जी की... खबर ली थी...
पिनाक - कैसी खबर...
निर्मल - देखिए छोटे राजा जी... अब मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ... राजकुमार जी अपने संग एक लड़की को लिये घूमते हैं... मुझे लगता है.. आप भी शायद जानते हैं... हम राजवंशी नहीं हैं... हमें ऐसी बातों का आदत नहीं है... मैं नहीं चाहता कि कल को मेरी बेटी को कोई पछतावा हो... हमने अपनी बच्ची को बड़े नाज़ों संस्कारों के साथ पाला है... (पॉज)
पिनाक - आगे बढ़ीये...

फिर यकायक निर्मल का लहजा बदल जाता है l आवाज में कड़क पन और भारी पन उतर आता है l

निर्मल - हम चाहते हैं... विवाह एक महीने के अंदर हो जाए... और उससे पहले... वह नीचि और ओछी जात की लड़की... हमारे होने वाले जमाई बाबु के जीवन से निकल जाए....
पिनाक - आपने ठीक कहा सामल बाबु... पर जैसा कि आपने कहा... के हम राजवंशी हैं... मान लीजिए... विवाह के बाद भी... राजकुमार किसी के साथ एंगेज मिले... तो...
निर्मल - वह विवाह की बाद की बात होगी... और मेरी बेटी बिल्कुल वैसे ही अपना धर्म निभाएगी जैसे... क्षेत्रपाल परिवार में... दुसरी औरतें...
पिनाक - ठीक है... हम समझ गए... आप निश्चिंत हो कर जाएं... और विवाह की तैयारियाँ करें... आपका काम हो जाएगा...
निर्मल - शुक्रिया छोटे राजा साहब...
पिनाक - इसमें शुक्रिया कैसी समधी ही... अब बेहतर होगा आप भी हमें समधी जी ही कहें...
निर्मल - जी छोटे रा..... सॉरी आई मीन... समधी जी...
पिनाक - (बल्लभ से) प्रधान...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम हमारे समधी जी को अपने साथ ले जाओ... उन्हें क्या करना है... अच्छी तरह से समझा दो...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...

फिर निर्मल सामल और बल्लभ अपनी अपनी जगह से उठते हैं और पिनाक से औपचारिकता वाली विदाई लेकर चेंबर से बाहर निकल जाते हैं l उनके जाते ही पिनाक अपना मोबाइल निकालता है और एक कॉल करता है l


पिनाक - कहाँ हो तुम...
- @#@#===#&@
पिनाक - हाँ हाँ ठीक है... याद है तुमने एक बार कहा था...

- @#@#===#&@
अब टाइम आ गया है वह करने का..
- @#@#===#&@
पिनाक - देखो तुम कैसे करोगे... क्या करोगे मुझे कोई मतलब नहीं है... यह काम हफ्ते दस दिन के भीतर हो जाना चाहिए...
- @#@#===#&@
पिनाक - अगर तुम यह काम कर देते हो... तो जितना पैसा मांगोगे मिलेगा...
- @#@#===#&@
पिनाक - ठीक है...

कह कर अपना फोन काट देता है l फोन कटते ही उसके चेहरे पर खौफनाक गुस्सा उभरने लगता है l


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ठंडी हवाएं बह रही है l अनु की लटें चेहरे पर उड़ रही है और अनु बार बार अपनी लटों को अपनी कानो के पीछे ले जा रही थी l वीर की नजरें बिना पलकें झुकाए एक टक उसे देखे जा रहा है l चंद्रभागा की रेतीली पठार पर कुछ प्रेम के जोड़े अपने में मगन थे l शाम का वक़्त, सुरज ढलने में अभी भी वक़्त है l पर आज की समा जितनी रूमानी लग रही थी उतना ही मासूम भी लग रहा था l वीर का अपनी ओर ऐसे देखने से अनु के गालों पर शर्म की लाली छा रही थी l

अनु - आप कब से मुझे ऐसे देखे जा रहे हैं...
वीर - क्या करूँ... तुम हो ही ऐसी...
अनु - रोज ही तो आप मुझे देखते हैं...
वीर - तुम रोज मुझे नई सी लगती हो...
अनु - प्लीज... आप... मुझे ऐसे... यूँ ना देखिए...
वीर - (शरारती लहजे में) फिर कैसे देखूँ...
अनु - (कुछ नहीं कह पाती, मन ही मन मुस्कराते हुए अपना सिर झुका लेती है)
वीर - हाय... एक और कुदरत... एक और तुम... दोनों को उपर वाले ने कितनी सिद्दत से तराशा है... पर फिर भी कुदरत से मन भर जाता है और तुम पर नजर ठहर जाता है...
अनु - (अपनी अंदर की खुसी को ज़ब्त करते हुए) एक बात पूछूं...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु - आप... मुझे यहाँ क्यूँ ले कर आए... हम किसी मॉल में भी तो जा सकते थे...
वीर - क्यूँ तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - बहुत... पर अगर हम मॉल में होते... तो शायद हम बातेँ कर रहे होते...
वीर - ना... आज तो तुम्हें जी भर कर देखने का मन कर रहा है...
अनु - अच्छा... तो बातेँ कब करेंगे...
वीर - कर ही तो रहे हैं...
अनु - कहाँ... बातेँ मैं कर रही हूँ...
वीर - वही तो... एक अप्सरा मेरे सामने बैठी है... जिसके मुहँ से शहद ही शहद टपक रही है... कुदरत का करिश्मा है... देख रहा हूँ... उसके गाल बिल्कुल सेव के जैसे लाल हैं... जी कर रहा है.. चबा जाऊँ... (अनु अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लेती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - थैंक्यू...
अनु - (हैरानी के साथ अपने चेहरे से हाथ हटाते हुए) वह क्यूँ...
वीर - मैं खो गया था... तुमने ही मुझे ढूंढ लिया... मैं बिखर गया था... तुमने ही मुझे समेट लिया...
अनु - इसके लिए आप मुझे थैंक्स तो कहिये... मुझे खुशी है कि... मेरे राजकुमार फिर से वापस मिल गए...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - यह तुम्हारा मट्टू भाई से जान पहचान कब से है...
अनु - बताया तो था... जब हम एक साथ नौकरी करने लगे... उसके बाद... कुछ दिनों बाद मट्टू भैया और उनके माता जी और पुष्पा हमारे मुहल्ले में रहने आए थे...
वीर - ओ...
अनु - क्यूँ क्या हुआ...
वीर - क्या पुष्पा तुम्हारे बहुत करीब थी...
अनु - सच कहूँ तो हाँ... मेरी कोई सहेली नहीं थी... हमारे बस्ती में... वह एक छोटी बहन... एक सहेली बन कर आई थी...
वीर - क्या इसी लिए तुमने मुझसे... उसके क़ातिल को सजा देने के लिए कहा...
अनु - हाँ भी और नहीं भी...
वीर - मतलब...
अनु - पुष्पा के साथ जो हुआ... उसके लिए आप खुद को ही जिम्मेदार मान रहे थे... आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी... इसलिए.. मैंने... आपको... उस ग़म से उबारने के लिए... ऐसा कहा...
वीर - (मुस्करा देता है)
अनु - (झिझकते हुए) क्या आपको... बुरा लगा...
वीर - (अनु के दोनों हाथ अपने हाथ में लेकर) ओ अनु... मेरी प्यारी अनु... जानती हो... तुम्हारा मुहँ बोला भाई भी यही कह रहा था...
अनु - (हैरानी से) मेरा मुहँ बोला भाई... मतलब मट्टू भैया...
वीर - अरे नहीं... ह्म्म्म्म याद है.... ओरायन मॉल के पार्किंग में... मैं गिर रहा था... तब एक बंदे ने मुझे सम्भाला था... तब तुमने उसे भाई कहा था...
अनु - (याद करते हुए) हाँ हाँ...
वीर - वह अब मेरा दोस्त है... बहुत ही अच्छा दोस्त... उसने जो कहा था... तुमने भी बिल्कुल वही कहा....
अनु - (अपना सिर शर्मा कर झुका लेती है)
वीर - अनु...
अनु - हूं...
वीर - तुम अगर बात बात पर इस तरह से शर्मा कर लाल होती रहोगी... तो...
अनु - तो..
वीर - तो... जी चाहता है कि मैं तुम्हें अभी के अभी चूम लूँ... (अनु शर्मा कर अपनी हाथ छुड़ाने की कोशिश करता है, पर वीर नहीं छोड़ता)
अनु - राजकुमार जी... प्लीज...
वीर - अरे... इसमें प्लीज कहने की क्या जरूरत है... लो अभी चूम लेता हूँ...
अनु - आह... नहीं.. (अपना चेहरा शर्म के मारे फ़ेर लेती है)
वीर - अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल शादी कर लेते हैं...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है)
वीर - अब रहा नहीं जाता... अब तो एक ही ख्वाहिश जोर मार रही है...
अनु - (गाल और होंठ फड़फड़ा रहे थे पर बोल ना फुट पाई)
वीर - पुछ ना... क्या है ख्वाहिश...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) कैसी ख्वाहिश...
वीर - मैं हर सुबह जब अपनी आँखे खोलुँ तो तु मेरी बाहों में हो... और जब नींद से पहले अपनी अपनी आँखे मूँद लूँ... तो तेरा चेहरा देखते हुए सो जाऊँ... (अपना चेहरा अनु के पास लाता है, अनु की सांसे तेजी से चलने लगती हैं और उसकी धड़कनें बढ़ जाती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल... शादी कर लेते हैं यार... इसी हफ्ते दस दिन में...
अनु - ह्म्म्म्म....
वीर - (खुशी के मारे) सच में...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - वाव... इस खुशी में तुझे चूम लूँ...
अनु - नहीं...
वीर - क्या... क्यूँ नहीं...
अनु - नहीं मेरा मतलब है... शायद मैंने अभी अभी नंदिनी जी को देखा...
वीर - क्या... (मुड़ कर देखने लगता है) कहाँ...
अनु - सच कह रही हूँ... मैंने देखा... नंदिनी जी किसी के साथ दिखीं... मेरा मतलब है... (अटक अटक कर) किसी.. लड़के के साथ...
वीर - (एक ठंडी रिस्पॉन्स के साथ) अच्छा...
अनु - (थोड़ी चहक कर) चलिए ना...
वीर - कहाँ...
अनु - नंदिनी जी को रंगे हाथ पकड़ने...
वीर - नहीं...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी बहन कोई अपराध नहीं कर रही है... उसने माँ से आशीर्वाद भी ले लिया है... हाँ यह बात और है कि उसने अभी तक उस लड़के के बारे में कहा नहीं है... पर वह किसी के प्यार में है... मैं यह जानता हूँ... उसने खुद मुझसे कहा था... और यह भी बताया था कि... वक़्त आने पर मुझसे मिलवायेगी...
अनु - पर भाई होने के नाते कुछ कर्तव्य होता है आपका... आपने कहा कि उसे जानते नहीं हैं... कहीं... मेरा मतलब है... (अटक जाती है)
वीर - अनु... मैं शायद तुम्हारे लायक भी नहीं... पर क्या तुम मुझसे प्यार करके शर्म सार हो...
अनु - नहीं...
वीर - वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... हमारे घर में... रिश्तों की अहमियत और पहचान उसे सबसे ज्यादा है... और उसने माँ से आशीर्वाद ले लिया है... तो वह कभी गलत नहीं हो सकती... (अनु का मुहँ लटक जाता है) अनु... मैं जानता हूँ... तुम उसे रंगे हाथ पकड़ना क्यूँ चाहती हो... तुम उसकी भाभी हो... उसे चौंकाना चाहती हो... पर अभी नहीं फिर कभी... अभी नंदिनी को उसके प्यार का थ्रिल महसुस करने दो...
अनु - आपको नंदिनी जी पर इतना भरोसा है...
वीर - हाँ... है...
अनु - मेरा भविष्य क्या होगा मैं नहीं जानती... पर जो भी होगा मुझे स्वीकार होगा... पर नंदिनी जी.... जहां तक मुझे पता है... उनकी शादी तय हो चुकी है... और आपकी बातों से लग रहा है... यह वह नहीं हैं... जिनसे उनकी शादी तय हुई है...
वीर - ओ... अब समझा... तुम खुल कर पूछो अनु...
अनु - आप शायद मेरे लिए अपने परिवार से लड़ जाएंगे... आप मर्द हैं... पर नंदिनी...
वीर - (मुस्कराते हुए) वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... उसने जिसको चुना है... इतना यकीन के साथ कह सकता हूँ... वह नंदिनी के लिए ना सिर्फ क्षेत्रपाल से... बल्कि दुनिया से भी टकराने की कुव्वत रखता होगा... नंदिनी पर कोई आंच भी आने नहीं देगा....

उधर रुप विश्व के हाथ को खींचते हुए भाग रही थी l विश्व भी हैरानी के साथ उसके पीछे भाग रहा था l कुछ दुर जाने के बाद रुप अब हांफने लगी थी l तब विश्व उसे रोकता है

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपने किसे देख लिया...
रुप - कुछ नहीं... वह जगह ठीक नहीं था... इसलिये...
विश्व - झूठ... आपने जरूर वहाँ पर किसी को देख लिया है...
रुप - ओ हो... अब चलो भी...
विश्व - अरे कहाँ... इतना दूर तो भाग कर आ गए... और देखिए... हम जहां पर थे कुछ कुछ जोड़े थे वहाँ पर... पर यहां.. कोई नहीं है... और शायद किसीके आने की संभावना भी नहीं है...
रुप - ऐ... क्या मतलब किसी की आने की संभावना नहीं है...
विश्व - (हकलाते हुए) मैं... मैं क्या सोच सकता हूँ... मैं तो बस यह कह रहा था... के हमें भी उस तरफ जाना चाहिए...
रुप - ओए... बस बस बहुत हुआ.. हाँ... हम यहीं कहीं बैठेंगे... और बातेँ करेंगे... समझे...
विश्व - जी ज़रूर... जैसी आपकी मर्जी...
रुप - हाँ हाँ सब तो मेरी मर्जी है... तुम यहाँ क्या घास चरने आए हो...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - अरे... अकेले हैं...
विश्व - हाँ तभी तो... साथ कुछ पल बिताने आए हैं...
रुप - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक कहा... हूंह्ह्ह...

कह कर रुप अपना मुहँ मोड़ कर आगे निकल जाती है l विश्व कुछ समझ नहीं पाता और उसके पीछे चलने लगता है l एक जगह पर नदी के किनारे छोटे छोटे मछली पकड़ने वाले कुछ नावें बंधी हुई थीं l वहीँ नाव के पास एक चार या पांच साल की एक लड़की रेत से एक घर बना रही थी l उसके बगल में दो लड़के खिलौने वाले बंदूक से एक दुसरे के पीछे भाग रहे थे l उन्हें देखते हुए रुप एक पत्थर पर बैठ जाती है l विश्व उसके बगल में बैठ जाता है l

विश्व - राजकुमारी जी... आप नाराज क्यूँ हैं..
रुप - हमें प्यार में पड़े कितने साल हुए...
विश्व - साल... या दिन...
रुप - क्या दिन... हूंह्ह्ह... बचपन का प्यार है...
विश्व - हाँ वह तो है... पर इजहार तो अभी अभी हुआ है ना...
रुप - तो...
विश्व - ओ हो.. मैं समझ नहीं पा रहा..
रुप - बेवक़ूफ़... फट्टु...
विश्व - फट्टु... कैसे...
रुप - अरे शाम सुहानी है... समा मस्तानी है... सुरज ढ़लने को है... ऐसे में...
विश्व - हाँ ऐसे में...
रुप - आ... ह्ह्ह्ह्...
विश्व - (मुस्करा देता है) गुस्सा आपके नाक पर बहुत अच्छा लगता है... मेरी नकचढ़ी...

तभी अचानक रेत पर खेल रही उस छोटी सी बच्ची की रोने की आवाज़ आती है l दोनों उस तरफ देखते हैं l वह लड़के खेल खेल में उस लड़की की रेत के घर पर चढ़ गए थे l जिसके वज़ह से वह घर टुट गई थी l तभी उस लड़की के रोने से वह दोनों लड़के अपने खिलौने बंदूक को लेकर भाग जाते हैं l यह देख कर विश्व और रुप दोनों कुछ देर के लिए हतप्रभ हो जाते हैं l

रुप - ओह... बेचारी लड़की.. कितनी मेहनत से वह घर बनाई थी... लड़के तोड़ कर भाग गए देखोना...
विश्व - हाँ भाग गए... हम समझदार इंसानों को आईना दिखा कर भाग गए...
रुप - क्या मतलब...
विश्व - वह लड़की कुदरत से अपना बसेरा बना रही थी... और वह लड़के आज के समाज के अक्स थे... जो हर चीज़ से असंतुष्ट थे... कहने को बंदूक हमारी सुरक्षा के लिए बनाई गई है... पर हमें असुरक्षा किससे है... इंसानों से ही ना... हम इंसान ही इंसान के दुश्मन हैं... और ऐसे समाज में... बंदूक जैसे हथियार समाज के मापदंड बन गए हैं... जिसके हाथ में बंदूक रहा वह शोषक बन गया... जो बंदूक के आगे रहा वह शोषित बन गया... आंदोलन हमेशा बंदूक के आगे वाला करता है... वह साम्यवाद के लिए शोषक से बंदूक छीनता है... पर फिर उसी बंदूक के प्रभाव में.. खुद शोषक बन जाता है... इसी खेल में... ऐसे कई कुदरती घरौंदे रौंद दिए जाते हैं...
रुप - (एक टक विश्व को सुने जा रही थी) वाव... क्या बात है...
विश्व - संगत का असर है...
रुप - संगत... किसकी संगत...
विश्व - मुझ पर मेरी नकचढ़ी की संगत...
रुप - अच्छा जी... वैसे मैंने क्या कर दिया जो आप इतना प्रभावित हो गए...
विश्व - भुल गईं... उस रेडियो एफएम पर आपने किस तरह से... समाज का एक हिस्सा बताया था...
रुप - ओ..
विश्व - जी
रुप - ठीक है... मैं इस बात की क्रेडिट ले लेती हूँ... पर फिर भी... मैं तुमसे नाराज हूँ...
विश्व - आपकी नाराजगी सिर आँखों पर... पर यह तो बताइए... आप किससे डर कर इस तरफ आ गईं...
रुप - डर... कैसा डर... मैं तो इसलिए तुम्हें यहाँ लेकर आई... ताकि...
विश्व - हाँ ताकि...
रुप - वह कहते हैं ना.....
दुनिया की नजरों से छुपके मिलें...
लगता है डर कोई देख ना लें...
विश्व - ओ... अच्छा.. (अचानक कुछ सोच कर) एक मिनट एक मिनट... कहीं आप वीर और अनु को देख कर तो नहीं भाग आईं...
रुप - क्या.... मतलब तुमने उन्हें देख लिया...
विश्व - नहीं... पर इसका मतलब वह लोग यहीँ कहीं हैं...
रुप - अब मेरा सारा मुड़ फुर्र हो गया है... चलो यहाँ से चलते हैं...
विश्व - क्यूँ...
रुप - कहीं वीर भैया यहाँ आ गए तो...
विश्व - अगर वह अभी तक नहीं आया... तो वह अब भी नहीं आएगा...
रुप - फिर भी... चलोना यहाँ से...

रुप फिर से विश्व की हाथ खिंच कर उठाती है और दोनों अपनी गाड़ी को जहां पर पार्क किए थे वहाँ पहुँच कर जल्दी से गाड़ी में बैठ कर गाड़ी घुमा लेते हैं l गाड़ी के भीतर दोनों खामोश थे l कुछ देर बाद रुप गाड़ी को मुख्य सड़क से निकाल कर एक गली नुमा सड़क पर चलाने लगती है फिर एक जगह गाड़ी रोकती है l

रुप - तुम्हें कैसे मालुम पड़ा...
विश्व - क्या...
रुप - यही की... वीर भैया और अनु भाभी यहाँ पर आए हैं...
विश्व - नहीं बस अंदाजा लगाया...
रुप - कैसे...
विश्व - क्यूंकि हम कल मिले थे... और वीर कह रहा था... की आज का पुरा दिन वह अनु के साथ बिताना चाहता है...
रुप - ओह...
विश्व - क्यूँ आप नहीं चाहतीं... के वीर को हमारे बारे में पता चले...
रुप - नहीं ऐसी बात नहीं है... वीर भैया को मालुम तो है कि मुझे किसीसे प्यार है... मैंने माँ को अनाम बताया है... बस बड़ी भाभी को पुरी बात मालुम है... मैं मौका ढूंढ रही हूँ... जब वीर भैया से तुम्हारे बारे में कहूँ... पर उससे पहले नहीं...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो बात यह है... अगर मैं यह कहूँ के... (रुक जाता है)
रुप - हाँ.. के...
विश्व - वीर को हमारे बारे में... पता चल गया है... तो...
रुप - (हैरानी से) क्या... कैसे...
विश्व - वह मेरे बारे में बहुत कुछ जानता है... के मैं एक ऊँचे घराने की लड़की से प्यार करता हूँ... मैं राजगड़ से हूँ... और कल ही उसने... मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ आपका नाम देख पढ़ लिया था...
रुप - व्हाट....
विश्व - हाँ... आपकी मेहरबानी जो थी... याद है... (अपनी बालों पर हाथ फेरते हुए) आपने मेरे बाल कुतर दिए थे... ताकि आपको आपका नाम मेरे गर्दन पर दिखे... कल ही मुझे वीर के बातों से अंदाजा हो गया था... की उसने मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ नाम पढ़ लिया था... और वह हमारे बारे में जान गया है...
रुप - ओह...

फिर कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप की मुट्ठी स्टीयरिंग पर कसने और रगड़ने लगती है l

विश्व - क्या हुआ... डर लग रहा है...
रुप - नहीं... पर... सोच रही हूँ... अगर वीर भैया को मालुम हो गया है... तो उनका विहैव आगे कैसा होगा.... मैं कैसे उनके सामने जाऊँगी...
विश्व - अपने भाई के आप बहुत करीब हो.. और मुझे लगता है... उसे हमारा रिश्ता स्वीकार है...
रुप - ठीक है... देखते हैं... क्या होता है आगे...

कह कर गाड़ी को घुमा कर मुख्य रास्ते पर ले आती है और शहर की और चलने लगती है l

रुप - अच्छा एक और बात पूछूं...
विश्व - जी जरूर...
रुप - उस आदमी का क्या हुआ.. जिसे xxxx जंक्शन पर किन्नरों ने घेरा था...
विश्व - न्यूज नहीं देखा आपने..
रुप - देखा था... पर... मैं तुमसे जानना चाहती हूँ... कहीं इस हरकत से खफा हो कर... वह फिर से स्टॉक करने लगा तो...
विश्व - आप डर रही हो क्या...
रुप - डरे मेरी जुती... पर अगर मान लो वह कुछ करने की कोशिश की तो...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) राजकुमारी जी... मैंने उसके लिए एक मर्यादा का जीवन रेखा खिंच दिया है.... अगर वह बाज नहीं आया... वह मर्यादा रेखा लांघने की कोशिश की.... तो इसकी जीवन रेखा मीट जाएगा... पर आप पर जरा सा भी आंच नहीं आएगा...

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शाम को टोनी अचानक उस कमरे में घुस जाता है जहाँ अनिकेत रोणा ठहरा हुआ था l पर अंदर का दृश्य देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l आईने के सामने पुलिस के लिबास में रोणा था पर उसके कान में बालि और नाक में नथ लगा हुआ था l उस वक़्त रोणा अपने होंठ पर लिपस्टिक लगा रहा था l

रोणा - आओ... टोनी आओ... (टोनी की ओर मुड़ कर) ऐसे फटे आँख से क्या देख रहे हो...
टोनी - यह क्या... मेरा मतलब है... ठीक है... आपके जेहन पर चोट गम्भीर लगा है... पर...
रोणा - तु जानता है... मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ...
टोनी - (अपना सिर ना में हिलाता है)
रोणा - तुझसे एक काम है... और उस काम को तुझे करना है......
टोनी - साब... आपका मुझ पर बड़ा उपकार रहा है... पर अगर यह काम विश्व के ताल्लुक है... तो माफ़ी चाहूँगा... मैं... मैं नहीं कर सकता...

टोनी के इंकार से रोणा का बांई आँख का भवां तन जाता है l वह अपना पुलिसिया बेल्ट निकाल कर बेल्ट की मेटल वाले लॉक से आईने पर मारता है l आईना कई टुकड़ों में बिखर जाता है l एक बड़ा सा टुकड़ा रोणा नीचे से उठाता है और टोनी खिंच कर उसके गले में लगा देता l यह सब इतना अचानक होता है कि टोनी अगर समझ भी जाता तो वहाँ से भाग चुका होता l पर अब वह रोणा के रहमोकरम पर था l

रोणा - सुन बे भोषड़ी के... साले बांग्लादेशी... मैंने अगर तेरी आइडेंटिटी बदली है... तो उसके सारे सबूतों का एक फाइल भी बना कर रखी है... अगर मैंने उसे थोड़ी देर में फोन नहीं किया... तो वह फाइल सीबीआई के दफ्तर में पहुँच जाएगी...

कह कर रोणा टोनी को छोड़ देता है और एक धक्का देता है l टोनी एक चेयर पर पीठ के बल गिर कर बैठ जाता है l रोणा उसके सामने एक चेयर खिंच कर बैठ जाता है l

रोणा - देख विश्वा ने मुझे क्या बना दिया है... मैं नहीं जानता... मैं औरत तो हूँ नहीं... उसने मर्द छोड़ा नहीं... हिजड़ों में भी मेरी भर्ती होने से रही... इसलिए मैं अकेले में ऐसा बना फिर रहा हूँ... (लहजा अचानक भयंकर हो जाता है) अब बोल... तु करेगा या...
टोनी - साब... करूँगा... पर यह करने के बाद... आपको मुझे एक नई आइडेंटिटी देनी होगी... क्यूँ की... मैं विश्वा को जितना जानता हूँ... वह मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेगा...
रोणा - (गुस्से में चिल्लाते हुए) आ.. ह्ह्ह्ह्... विश्वा.. विश्वा विश्वा... जैसे वह कोई हौव्वा बन गया है...
टोनी - आपके साथ क्या किया... आपने देख तो लिया है...
रोणा - वह इसलिए... के मुझ अकेले के खिलाफ... उसने टीम वर्क से काम लिया... अब बारी मेरी है... मैं उसके खिलाफ अपनी टीम को उतारूंगा... भले ही अंत में मेरा नाम उछले... पर मुझे अब इंतकाम लेना है...
टोनी - ठीक है... पर आपने मुझे अभी तक दुसरे आइडेंटिटी के बारे कुछ कहा नहीं है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं) ठीक है... जैसे ही तुम अपना काम पुरा कर दोगे... तुम्हें तुम्हारा नया आइडेंटिटी मिल जाएगा...
टोनी - ठीक है रोणा साब... काम क्या है... कहिये...

रोणा अपने जेब से मोबाइल निकालता है और कई फोटोस दिखाता है, जिसमें रुप प्रतिभा के साथ बात कर रही थी l यह सारे फोटो उसने बार काउंसिल के बार एसोसिएशन चेंबर के बाहर कैंटीन से खिंचा था l रुप की फोटो देख कर टोनी की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह सवालिया नजर से रोणा की ओर देखता है l

रोणा - मुझे इस लड़की के बारे में... सब कुछ जानना है... इसकी पुरी कुंडली मुझे लाकर देना है तुझे...
टोनी - बुरा ना माने तो एक सवाल पूछूं...
रोणा - हाँ पुछ ले...
टोनी - विश्वा का इस लड़की से क्या नाता है...
रोणा - यह लड़की विश्वा की माशुका है...
टोनी - क्या... (झटके के साथ अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) क.. क.. क्या कहा आपने...
रोणा - बे मादरचोद... यह लड़की विश्वा की माशुका है... इसे अपने नीचे लाकर... मुझे विश्वा से बदला लेना है...

यह सुन कर टोनी की आँखे और मुहँ दोनों खुले के खुले रह जाते हैं l वह जेब से आपना रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोछने लगता है l यह सब रोणा भी देख रहा था, वह चिढ़ कर पूछता है l

रोणा - तुझे भी तो विश्वा से बदला लेना था... अब जब मौका मिला है... तो सोच क्या रहा है...
टोनी - मैं सोच नहीं रहा हूँ... बल्कि अपना अंजाम के बारे में.. इंट्युशन कर रहा हूँ... रोणा साब... मुझसे वादा कीजिए... जैसे ही मैं इस लड़की की डिटेल्स ला कर दूँगा... आप उसी वक़्त मुझे मेरा नया आइडेंटिटी दे देंगे... और यह मेरा आपके लिए आखिरी काम होगा.... उसके बाद ना मैं आपसे मिलूंगा ना ही मुझसे आप...
रोणा - देख लड़कियाँ... औरतें मेरी कमजोरी हैं... उन्हें देख कर मेरी लार टपकती रहती है... पर मैंने विश्वा से भी ज्यादा दुनिया देखी है... कोई भी इंविंसीवल नहीं होता... अगर हम चाल सही चलें... तो विश्वा हमारे सामने कहीं नहीं ठहर पाएगा...
टोनी - मुझे दिलासा मत दीजिए... बस वादा कीजिए... वर्ना मुझसे नहीं होगा...
रोणा - ठीक है... तु भी क्या याद रखेगा... चल वादा किया... यह तेरा आखिरी काम होगा... उसके बाद तु अपना नए आइडेंटिटी को लेकर हिन्दुस्तान में कहीं भी चला जा... ना तु मुझसे मिलेगा... ना मैं तुझसे मिलूंगा...
टोनी - ठीक है साब... आप लड़की के बारे में जितना भी जानते हैं... मुझे कहिये... मैं आगे की जानकारी निकाल लूँगा...
रोणा - गुड... अब आए ना लाइन पे... लड़की का नाम नंदिनी है... उसकी या उसके फॅमिली की एक गाड़ी है... पुरानी फिएट पद्मिनी... गाड़ी का नंबर xxxxxx... शायद उसकी वकालत से कोई नाता है... नहीं भी हो सकता है... उसकी एक्स जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति और उसकी पत्नी प्रतिभा सेनापति से अच्छे तालुकात हैं... बस इससे आगे की जानकारी तुझे निकलनी है...
टोनी - जी समझ गया... आपको सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - कितने दिन लगेंगे तुझे...
टोनी - यह आप पर निर्भर है... आप मुझे जितनी जल्दी नई आईडेंटिटी देंगे... उतनी ही जल्दी आपको इस नंदिनी की सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - ओह... ओ... गेम... मुझसे गेम...
टोनी - गेम नहीं रोणा साब... बचाव... मुझे इस मामले में... किसी भी सूरत में... विश्वा के हाथ नहीं लगनी...
रोणा - इतनी फट रही है तेरी...
टोनी - फटी तो आपकी भी थी... भुल रहे हैं आप... उसीकी जानकारी लेने तो महीने भर पहले... मुझे भुवनेश्वर बुलाया था...
रोणा - फटी नहीं थी मेरी... तैयारी करना चाहता था...
टोनी - पर आपकी तैयारी कोई काम नहीं आई होगी... (इस पर रोणा कुछ नहीं कहता) आप मुझे व्हाटस्आप पर फोटो भेज दीजिए...

रोणा बिना देरी किए फोटो को टोनी के मोबाइल पर भेज देता है l फोटो मिल जाने के बाद टोनी बाहर की ओर जाने लगता है, अचानक दरवाजे पर रुक जाता है और रोणा की ओर मुड़ कर

टोनी - रोणा साब... विश्वा के बारे में एक आखिरी बात आपसे कहना चाहता हूँ... वह आपकी नजर में... कंविक्टेड क्रिमिनल है... जिसने लॉ पढ़ा है... पर मैं जितना भी जान सका हूँ... वह लॉ पढ़ा हुआ एक क्रिमिनल है... परफेक्शन के साथ कानून के दायरे में रह कर क्राइम ऐसे करता है... की कानून उसके आगे बेबस हो जाता है...
bahut hi shandaar update hai bhai maza aa gaya
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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👉एक सौ छब्बीसवां अपडेट
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सुबह हो रही थी, सूरज अपने नियमित समय पर पूर्व आकाश से निकल रहा था l धीरे धीरे अंधेरा छट रहा था l एक बस्ती के एक कोने में एक बड़ा सा घर है l जिसके एक कमरे में टोनी उर्फ लेनिन लुंगी में अपने बिस्तर पर दिन दुनिया से बेख़बर पेट के बल सोया हुआ था l तभी उसके कमरे का दरवाजे पर लगातार दस्तक होने लगती है l वह चिढ़ कर अपने बिस्तर से उठता है और गुस्से में तमतमाते हुए दरवाजा खोलता है l सामने उसका ही आदमी था l

टोनी - (उबासी लेकर अपनी आँख मलते हुए) क्या हुआ बे... सुबह सुबह कौन तेरी माँ चोद दिया... भोषड़ी के... जो मेरा नींद खराब करने आ गया...
आदमी - भाई... वह दारोगा रोणा आया है... तुमको पुछ रहा है...

उसके इतने बोलने भर से ही टोनी के आँख से नींद छु मन्तर हो जाता है l

टोनी - क्या... क.. कब... कब आया...
आदमी - अभी अभी... अपनी जीप से आया है... मैंने उसे नीचे बिठा दिया है...
टोनी - (अपना लुंगी सही करता है और शर्ट के बटन ठीक करते हुए) यह सला मरदुत.. यहाँ मरने आया है... या मेरी जान लेने... (अपने आदमी से) चल चलते हैं...

दोनों तेजी से सीढियों से उतर कर नीचे आते हैं l टोनी देखता है बड़े गम्भीर मुद्रा में रोणा बैठा हुआ है l टोनी उसके सामने खड़ा हो कर सलाम ठोकता है l

टोनी - अरे साब आप... यहाँ... मुझे खबर भिजवा देते... सेवा में हाजिर हो जाता...
रोणा - (अपने में खोया हुआ था, टोनी को कोई जवाब नहीं देता)
टोनी - साब... रोणा साब...
रोणा - (चौंक कर) हाँ..
टोनी - मैं कह रहा था... आप यहाँ... अचानक... सब ठीक तो है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं, दांत पीसने लगता है कि कड़ कड़ की आवाज सुनाई देने लगती है) हूँ...

टोनी समझ जाता है कुछ तो हुआ है वह अपने आदमी को इशारा कर बाहर भेज देता है l उस आदमी के जाते ही टोनी एक कुर्सी खिंच कर रोणा के बगल में बैठ जाता है l

टोनी - साब... अब इस कमरे में.. सिर्फ हम दोनों ही हैं... आसपास कोई भी नहीं है... कोई हुकुम हो तो बोलिए... अभी बजा देता हूँ...
रोणा - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हुकुम... अब तु क्या हुकुम बज़ाएगा... जब अपनी ही ऐसी बजी हुई है... के (चुप हो जाता है)

रोणा अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है और कमरे में लगी एक बड़े से आईने के सामने खड़ा होता है l अपने चेहरे को घूरने लगता है l घूरते घूरते उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l आँखे बड़ी मगर गुस्से से लाल होने लगता है पास रखे मेज पर से फ्लावर वॉश उठा कर आईने पर फेंक मारता है l आईना टुकड़ों में बिखर जाता है l उसका यह रुप देख कर टोनी डर जाता है और अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है l रोना उसी मेज पर सिर झुकाए हांफ रहा था l

रोणा - जानता है कुछ ऐसा हुआ है... के अपना चेहरा आईने में देखते हुए घिन आ रही है... (टोनी की ओर मुड़ता है, टोनी को खड़ा हुआ देख कर ) बैठ जाओ... (टोनी बैठ जाता है) क्या आज रात तक... मैं रुक सकता हूँ...
टोनी - (लड़खड़ाती हुई आवाज में) आ... आपका ही घर है... साब...
रोणा - (टोनी के पास बैठ कर, एक गहरी साँस छोड़ कर) मुझे... विश्वा के बारे में... फिर से पुरी जानकरी दे...
टोनी - (हैरानी के साथ) क्या... मेरा मतलब है... बताया तो था आपको मैंने...
रोणा - हाँ... पर ठीक से सुना नहीं था... अपनी जेहन में उतारा नहीं था... अपने बड़े मर्द होने का घमंड का चश्मा नाक पर बिठा कर... कान को पकड़ रखा था... उसी से दुनिया को देख रहा था... तोल रहा था... इसलिये अपने दुश्मन को कम कर आंक बैठा था... उसने मुझे एहसास दिलाया है... के मैं उसके सोच और नजर आगे कहीं ठहरता ही नहीं हूँ... इसलिए मुझे अब अच्छे से बता... एक एक बात... उसके बारे में...

टोनी पहले मुहँ खोले रोणा को देखे जा रहा था, फिर जैसे ही रोणा उसके तरफ टेढ़ी नजर से देखा वह बिना देरी किए अपने और विश्व के बारे में जैल में जो भी गुजरा था सब कुछ बताने लगता है l रोणा भी उसके एक एक बात को आँख मूँद कर बड़े ध्यान से सुन रहा था l टोनी अपनी बात ख़तम कर चुप हो जाता है, पर रोणा की आँखे अभी भी बंद ही थी l

टोनी - साब... (रोणा अपनी आँखे खोलता है)
रोणा - तेरी सारी कहानी में... पहले उससे दुश्मनी रंगा ने की थी... पर उसने रंगा को बहुत जबरदस्त जवाब दिया... एक नहीं दो बार... उसके बाद... उसकी दोस्ती और शागिर्दी डैनी से हुई... फिर... उसकी पढ़ाई... फिर किसी ना किसी कैदी से झगड़ा और मांडवली...
टोनी - जी...
रोणा - एक आदमी... जैल में रह कर... जिसका ना आगे कोई है... ना कोई पीछे... क्या वह अपना कोई नेट वर्क खड़ा कर सकता है... वह भी बहुत जबरदस्त...
टोनी - साब... बात क्या है बताइए...

रोणा एक न्यूज पेपर निकाल कर पटकता है, जिसमें एक अनजान शख्स को किन्नरों के द्वारा जुलूस निकाले जाने की खबर छपी थी l

रोणा - एक परफेक्ट प्लान... अपने शिकार के लिए... शिकार को ललचाना... उसके लिए जगह तय करना... उसे तीन सौ चार सौ किन्नरों द्वारा अपमानित करना... गाँव के गँवार विश्व से कैसे सम्भव हो सकता है..
टोनी - सम्भव हो सकता है... अगर वह... डैनी का शागिर्द हो... रोणा साब... मैं बस इतना कहूँगा... विश्व जितना दिखता है... उससे कहीं ज्यादा छुपा हुआ है... उसे पुरी तरह एक्सप्लोर करना मुश्किल है... (रोणा उसे भवें सिकुड़ कर देखने लगता है) हाँ रोणा साहब... वह डैनी का पक्का चेला है... डैनी ने उसे एक बार कहा था...
देखो कुछ दिखाओ कुछ...
कहो कुछ... करो कुछ...
सोचो कुछ... समझाओ कुछ
इसी बात को विश्वा ने गाँठ बाँध ली...
रोणा - ह्म्म्म्म... वाकई... जितना मैंने उसे देखा है... समझा है... वह उससे कहीं ज्यादा गहराई में है...

कुछ देर के लिए रोणा खामोश हो जाता है l टोनी भी उससे कोई सवाल नहीं करता है l फ़िर रोणा बोलना शुरु करता है l

रोणा - उसे मैंने लड़ते हुए देखा नहीं है... पर इतना तो जान गया हूँ... कि वह अकेला बीस पच्चीस पर भारी पड़ता है... सात साल कैदियों और मुजरिमों के बीच रहा है... उस पर अब वकील भी है... दिमाग बहुत चलता है उसका... ऐसा नहीं कि मुझे... खतरे का एहसास नहीं था... पर मैं सीरियस नहीं था... उसने मुझे एक बहुत बड़ी सीख दि है... जिससे मेरा पुरा वज़ूद को ही बदल कर रख दिया है... उसने मेरी मर्दानगी पर ऐसा चोट मारा है कि... अब मैं मर्द हो कर भी.. मर्द नहीं रहा... (अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) जब अपने बिस्तर पर किसी लड़की को सोचता हूँ...(लहजा सख्त हो जाता है) तो मेरी मर्दानगी... मेरा मज़ाक उड़ाने लगता है.... इसलिए अब उसे एक सिख देना है मुझे...
टोनी - (हैरान हो कर सुन रहा था) क्या आ. आआप उसे सीख देंगे...
रोणा - हाँ... उसे सीख में यह बताना जरूरी है... के डर और शर्म की भी अपनी एक पैमाना होता है... जब जरुरत ज्यादा उड़ेल दिया जाता है... तो पैमाना छलक जाता है... और वह ऐसा छलकता है... के ख़तम ही हो जाता है... फिर वह शख्स निडर और बेशर्म हो जाता... (टोनी चुप रह कर सुन रहा था, टोनी से ) कुछ कहेगा नहीं...
टोनी - साब... अगर विश्वा से... अपनी दुश्मनी बरकरार रखना चाहते हैं... तो रखिए... पर मुझे इन सब में... मत घसीटें.. मैंने पहले भी कहा था आपको...
रोणा - हाँ हाँ... याद है मुझे... विश्वा किसी एक को मारने की कसम खाई है... तु वह दुसरा नहीं बनना चाहते...
टोनी - हाँ नहीं बनना चाहता... लगता है... मेरी पुरी बात को... आप ठीक से समझ नहीं पाए... पुलिस वाले हो... सोचा था समझ गए होगे...
रोणा - क्या मतलब है तेरा...
टोनी - यही की... विश्वा.... एक खुन पहले ही कर चुका है... और तब तक दुसरा खुन नहीं करेगा... जब तक... उसका सब्र जबाव ना दे दे...
रोणा - (चौंक कर उछल जाता है) क्या... विश्वा पहले से ही खुन कर चुका है...
टोनी - जी हाँ रोणा साब... सबको लगता है... यश वर्धन चेट्टी की मौत एक हादसा था... ड्रग्स का ओवर डॉस और हार्ट पल्स हाइपर हो कर रुकने की वज़ह से वह मरा.... पर रोणा साहब... उस हादसे के वक़्त मैं वहीँ पर था... और मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता.. वह हादसा नहीं... हत्या थी...
रोणा - (आँखे फैल जाती हैं, मुहँ खुला रह जाता है)
टोनी - हाँ रोणा साहब... वह एक परफेक्ट प्लान्ड मर्डर था... इतना परफेक्ट... के चारों तरफ पुलिस वाले थे... वहाँ पर मौजूद हर कोई उस हादसे का चश्मदीद गवाह थे... उस हादसे की वीडियो रिकॉर्डिंग भी बनी थी... सीसीटीवी और मेडिकल रिपोर्ट तक... विश्वा के बेगुनाही के लिए गावही दिए... जरा सोचिए... जैल के अंदर.. एक सजायाफ्ता कैदी... कितनी आसानी से खुन कर दिया...
रोणा - यह बात तूने नई बताई... अगर वह मर्डर था... तो तूने उसके खिलाफ गवाही क्यूँ नहीं दी... तेरी तो दुश्मनी थी उससे...
टोनी - विश्वा जब किसी को टार्गेट करता है... कई दिनों से प्लानिंग के तहत उसके लिए ट्रैप बनाता है... फिर उसे अपनी ट्रैप में ले लेता है.... बाहर यश का बाप... इतना ताकतवर शख्सियत... जिसने कई एक्सपर्ट खड़े किए थे... पर इंटरनल इंक्वायरी में... सब विश्व को बेगुनाह मानने को मजबूर हो गए... के ओंकार का बेटा यश हादसे के चलते मारा गया... यहाँ तक ओंकार भी...
रोणा - (अविश्वास भरे लहजे में) विश्वा ने यश को मारा... पर कैसे... क्यूँ...
टोनी - जब यश विश्व के गर्दन पर चोक बना कर पीठ के बल लेट गया... हम सब बाहर थे... हमें यकीन हो गया कि विश्व मरने वाला है... तभी यश हमें बुलाया... विश्व को पकड़ने के लिए... सबसे पहले मैंने छलांग लगाई थी... तभी विश्व पलट गया... और मैं... यश पर गिरा था... तब विश्व ने यश से कहा... "यह जयंत सर के नाम पर तुझे कुत्ते की मौत मुबारक" .... बाद में जब वह मुझे धमकाया था... तभी बोला था... के वह जानता था... की यश... विश्व से दोस्ती के आड़ में... डबल क्रॉस कर रहा था...
रोणा - ओ... तो यश उसका पहला और आखिरी खुन है... ह्म्म्म्म... बड़ा यकीन है उसे खुद पर.... पर उसे जयंत राउत की मौत का पता कैसे चला...
टोनी - वह तो मैं नहीं जानता... पर विश्वा को खुद पर यकीन करने की वज़ह है रोणा साहब... पहली बात... वह डैनी भाई का शागिर्द है.... और दुसरी बात डैनी भाई पर विश्वा का एहसान बाकी है... और विश्वा जानता है... डैनी भाई विश्वा पर कोई आंच नहीं आने देंगे... आप के पास खबर भी तो होगी... विश्वा अपना ग्रैजुएशन... डैनी की वकील जयंत चौधरी के वज़ह से ही पुरा कर पाया था... इसलिए डैनी भाई की तरह कोई नेट वर्क खड़ा करना... विश्वा के लिए कोई बड़ी बात नहीं है... (रोणा चुप रहता है) रोणा साब... मैं यह सब आपको डराने के लिए नहीं कह रहा हूँ... पर सच यह है कि... मैं सच में दुसरा नहीं बनना चाहता हूँ...
रोणा - ह्म्म्म्म... ठीक है समझ गया... मैं यहाँ किसी और काम से आया था... एक आखिरी काम... जो तुम्हें मेरे लिए करना होगा...
टोनी - जी बोलिए साब...
रोणा - शाम को जाने से पहले बता दूँगा....


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बड़बिल
कैजुअल माइनिंग वर्कर की बस्ती में तीन गाडियों का काफिला आकर रुकती है l आगे वाली और पीछे वाली गाड़ी में रॉय ग्रुप सिक्युरिटी के गार्ड्स थे और बीच वाले गाड़ी में से तीन ज़न उतरते हैं रॉय, चेट्टी और हाथ में छड़ी लेकर केके l उन तीनों का रास्ता बना कर कुछ गार्ड्स आगे आगे चलते हैं और वह तीनों उन गार्ड्स को फॉलो करते हुए एक छोटे से घर के सामने पहुँचते हैं l कुछ गार्ड्स अंदर जाते हैं और रंगा को पकड़ कर खिंचते हुए बाहर लाते हैं l रंगा केके के सामने घुटने पर बैठ जाता है l

रंगा - मैंने... (गिड़गिड़ाते हुए) कुछ नहीं किया केके साहब... मैंने कुछ भी नहीं किया...
केके - मुझे कुछ सवालों के जवाब चाहिए...
रंगा - जी... जी मालिक...
केके - तुझे कैसे मालुम पड़ा... मेरा बेटा आर्कु में था...
रंगा - मुझे... रॉय साहब ने कहा था...

केके रॉय की ओर देखता है l रॉय अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l केके हैरान जितना होता है उतना ही गुस्सा हो जाता है l अपनी छड़ी से गुप्ती निकालता है तो सामने चेट्टी आ जाता है l

चेट्टी - कुछ भी गलत करने से पहले... बात को पुरी तरह जान लो... बात अगर तुम्हारे बेटे की इन्फॉर्मेशन छुपाने की है... इसका जवाब मेरे पास है...
केके - क्या जवाब है...
चेट्टी - अंदर चलें.... या तमाशा यहाँ बाहर ही बनाए रखें...

केके अपनी छड़ी में गुप्ती को रख देता है l रंगा को लेकर सब घर के अंदर आते हैं l बाहर जो गार्ड्स थे इन लोगों को देख रहे भीड़ को हटाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गार्ड दरवाजे को बंद कर देता है

रंगा - केके साहब... जरा सोचिए... मैंने जाने अनजाने में सही क्षेत्रपालों से दुश्मनी ले ली है... तो ऐसे में... मैं जिसके छत्रछाया में हिफाजत में हूँ... उनसे गद्दारी... नमक हरामी कैसे कर सकता हूँ....
चेट्टी - हाँ केके... जिस वक़्त हमें तुम्हारे बेटे की खबर लगी... तब तुम इस हालत में नहीं थे कि हम यह बात तुमसे शेयर कर सकें...
रॉय - हाँ... केके साहब... आर्कु में विनय का मोबाइल कुछ देर के लिए ऑन हो गया था... हमारे लोग विनय की मोबाइल को ट्रेस करने में लगे हुए थे.... इसलिए लोकेशन की जानकारी हाथ लग गई... पर हमें डर था... कहीं दुबारा हाथ लगने से पहले विनय qभाग ना जाए... इसलिए हमने रंगा को वायजाग भेजा... विनय का लोकेशन कंफर्म करने और उस पर नजर रखने के लिए... ताकि जब आपकी हालत में थोड़ा सुधार आए... तब हम सब मिलकर विनय को वापस ला पाएं....
रंगा - केके साहब... आर्कु में... सब मिला कर... डेढ़ सौ के करीब लॉज, होटल और रिसॉर्ट हैं... हर एक में मैं ढूंढ रहा था... पर यकीन मानिये केके साहब... मैं उन्हें ढूंढ नहीं पाया... और जिस दिन मुझे खबर लगी... उस दिन... (रुक जाता है, आगे कुछ नहीं कहता)
केके - उस दिन क्या हुआ... मुझे विस्तार से बताओ...
रंगा - सारे होटल और लॉज छान मारने के बाद... बोराकेव के तरफ़ जाने का फैसला किया... एक गाड़ी कर जब बोराकेव में हिल व्यू लॉज में पहुँचा... तब देखा बहुत सारे लोग वहाँ पर जमा हुए थे... मैं वहाँ जा कर जब इंक्वायरी कर ही रहा था कि... तब पुलिस वालों के साथ वीर... और उसके साथ एक लड़की और एक बुढ़िया आ पहुँचे थे... मैं कुछ देर तक वहाँ पर अपना चेहरा छुपाए खड़ा रहा... वहीँ मुझे मालुम हुआ कि... विनय बाबु और.... (चुप हो जाता है)

केके टूटे मन से सब सुन रहा था l जब रंगा रुक जाता है तब केके रंगा की चेहरे की ओर देखता है l डरा सहमा सा दिख रहा था l

केके - मतलब... वीर सही कह रहा था... (चलते हुए दीवार तक पहुँचता है और एक मुक्का मारता है) किसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारी है...
चेट्टी - यही तो हमें पता लगानी है... देखो केके... परिस्थिति ने हमें अब एक ही नाव पर सवार कर दिया है... जवान बेटे को खो देना....
केके - आपका बेटा हादसे के चलते मरा था चेट्टी बाबु.... पर मेरे बेटे को किसीने पॉइंट ब्लैंक पर सिर के बीचोबीच शूट कर मारा है... ऐसा कोई दग़ाबाज़... या फिर बदला लेने की ख्वाहिश पालने वाला कर सकता है...
रॉय - आप बिल्कुल सही कह रहे हैं... पॉइंट ब्लैंक पर सिर को निशाना बनाने वाला... या तो पक्का दुश्मन हो सकता है... या फिर कोई जान पहचान वाला आस्तीन का सांप हो सकता है...
चेट्टी - तो फिर पता लगाओ... वह कौन सांप है... जो हमारे ही घर में... हमारी ही दुध पी रहा है और हमें डस रहा है...
केके - मैं और मेरा पुरा नेट वर्क इसी काम में जुटे हुए हैं...
चेट्टी - रिजल्ट चाहिए रॉय... रिजल्ट... वर्ना... हम इधर क्षेत्रपाल से दुश्मनी उठाए हुए हैं... और अंदर कोई हमें खोखला कर रहा है...

कुछ देर के लिए सब चुप हो जाते हैं l पर केके किसी गहरी सोच में खोया हुआ था l उसे देख कर चेट्टी पूछता है l

चेट्टी - क्या बात है केके... फिर किस सोच में पड़ गए...
केके - आज की दौर में... हमारा एक ही दुश्मन है... जो हमें मिटाने की मंसूबा पाल सकता है... क्षेत्रपाल... पर मैंने उनके साथ सात सालों तक काम किया है... जैसा कि वीर ने कहा... यह उनका तरीका नहीं है... (इन सबके तरफ देख कर) फिर... फिर यह कौन हो सकता है... उसका मकसद क्या है... उसने मुझसे अपनी दुश्मनी उतारा है... या किसी और की दुश्मनी....
चेट्टी - सवाल वाजिब है... पर इस वक़्त इन सारे सवालों का कोई जवाब नहीं है... (रॉय से) एक काम करो... यह जो लड़की पुष्पा... और उसके भाई के बारे में पता करो... कहीं उनकी... किसी से दुश्मनी तो नहीं.... और हो सके तो... विनय के सारे दोस्त और दुश्मनों के बारे में पता करो...
रॉय - यस सर...
चेट्टी - केके... माना के मेरे बेटे के मरने की वज़ह... और तुम्हारे बेटे के मरने की वज़ह अलग है... पर... (केके के कंधे पर हाथ रखकर) इस उम्र में... जवान बेटे का खोना... उसका दर्द मैं समझ सकता हूँ... इसलिए यह दर्द और ज़ख्म का जो भी जिम्मेदार है... हम उसे नहीं छोड़ेंगे...

केके एक कृतज्ञता भरी नजर से चेट्टी को देखते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रख देता है l


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दीवार पर लगे स्क्रीन पर हस्पताल का सीसीटीवी की फुटेज चल रहा था l विक्रम अपने केबिन में बैठा उसे गौर से देख रहा था l ऐसे में विक्रम के केबिन का दरवाजा खुलता है l वीर बाहर रुक कर विक्रम से पूछता है l

वीर - तुमने मुझे बुलाया....
विक्रम - अंदर आ जाओ... (वीर अंदर आता है) मेरे कमरे में आने के लिए.... तुम कब से परमिशन लेने लग गए... बैठो....
वीर - (बैठते हुए) अपना एटिट्यूड सुधार रहा हूँ... जेंटलमेन बनने की कोशिश कर रहा हूँ....
विक्रम - हाँ तुम जब से जेंटलमेन बन रहे हो... तब से दुनिया तुम्हारी दुश्मन बनती जा रही है.... क्या तुम कल हस्पताल गए थे...
वीर - हाँ... क्यूँ क्या हुआ...
विक्रम - मृत्युंजय से मिलने...
वीर - हाँ...

विक्रम चुप रहता है और वीर की ओर एक टक देखता रहता है l वीर अपनी ओर ऐसे घूरे जाने पर थोड़ा असहज महसूस करता है l

वीर - क्या हुआ भैया... मुझसे कोई गलती हो गया क्या...
विक्रम - पता नहीं...
वीर - तो फिर तुम मुझे ऐसे क्यूँ घूर रहे हो....
विक्रम - तुम्हारे... मृत्युंजय से मिलने के कुछ घंटे बाद... मृत्युंजय अपना डिस्चार्ज करवा कर चला गया है....
वीर - (चौंक कर) व्हाट...
विक्रम - हाँ...
वीर - पर वह गया कहाँ...
विक्रम - यही तो कारण है... के मैं हैरान भी हूँ और परेशान भी हूँ...
वीर - मतलब....
विक्रम - टुटे हुए पैर से उसने अपना डिस्चार्ज ही नहीं करवाया... बल्कि उसने खुद को गायब भी करवा लिया है... ना वह अपनी पुरानी बस्ती में गया है... ना ही... नए पते पर...
वीर - क्या... वह.. (बोलते बोलते रुक जाता है)
विक्रम - ह्म्म्म्म हूँ... अपनी बात पूरी करो...
वीर - क्या वह अभी भी आपके शक़ के दायरे में है...
विक्रम - (अपनी चेयर छोड़ कर केबिन के बीच टहलते हुए) देखो वीर... महांती के मौत से... मैं पागल हो गया हूँ... इसलिए यह सवाल मुझसे ना ही करो तो बेहतर होगा....
वीर - ठीक है... नहीं करता कोई सवाल... अब पूछो मुझसे क्या जानना चाहते हो...
विक्रम - तुम अचानक से मृत्युंजय से मिलने क्यूँ गए...
वीर - तुम ही तो चाहते थे... जो लोग मेरे वज़ह से ESS में जॉइन हुए थे... उन्हें कोई दुसरा ऑप्शन दूँ... मैंने उसे जाजपुर स्पंज फैक्ट्री में सुपरवाइजर की पोस्ट की नौकरी का लेटर थमा कर आया था...
विक्रम - ह्म्म्म्म... और...
वीर - और... और क्या... बस इतना की... मैं उसकी बहन पुष्पा के कातिलों को ढूँढ कर अपनी तरीके से सजा दूँगा....यह वादा कर आया था....

विक्रम उसे चुपचाप देखे जा रहा था l वीर को विक्रम का ऐसे देखना अस्वाभाविक लग रहा था l

वीर - अब क्या हुआ भैया... तुम मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
विक्रम - देख रहा हूँ... हमारे फटे क्या कम हैं... जो तुम दूसरों के फटे में घुस रहे हो...
वीर - जो कहना है... सीधे सीधे कहो ना...
विक्रम - (एक चिट्ठी वीर को देकर) यह लो... मृत्युंजय ने तुम्हारे लिए... मेडिकल रिसेप्शन में छोड़ा था...

वीर वह चिट्ठी खोलता है, देखता है मृत्युंजय ने उसके नाम चिट्ठी लिखा है, वह पढ़ने लगता है l

"आदरणीय राजकुमार जी, मुझ जैसा बदकिस्मत और मनहूस आदमी दुनिया में कहीं नहीं होगा l पार्टी के प्रति वफादार रहते हुए मेरे पिता छोटी मोटी व्यापार करते हुए घर चला रहे थे l एक दिन पता नहीं किससे रूठ कर वह आत्महत्या कर बैठे l आपकी कृपा दृष्टी रही के आपने मुझे रोजगार दिया, ताकि हमारे घर की चूल्हा कभी बंद ना हो l उसके बाद मेरी माँ ने किसी तरह खुद को सम्भाला पर कुछ ही दिनों के अन्तराल में वह भी चल बसी l उस समय आप पास खड़े हो कर बहुत सहायता की l पर बदकिस्मती पीछा नहीं छोड़ा ऐसे दुख के समय में मेरी बहन मुझे अकेला छोड़ अपनी जीवन की तलाश में किसी को साथ लेकर चली गई l पुष्पा ऐसी गई के जब मिली चिता में लेटी हुई मिली l उसकी हत्या कर दी गई l आपने कसम खाई है कि उसके हत्यारों को छोड़ेंगे नहीं पर राजकुमार जी बहन वह मेरी थी, उसकी हत्या का वारिस भी मैं ही हूँ l इसलिए मैं अपने तरीके से उसके हत्यारों को ढूँढुंगा और अपने हाथों से उसे सजा दूँगा l आखिर पुष्पा की राखी का कर्ज है मुझ पर l
आपने हमेशा एक सच्चे मालिक की तरह मेरे बगल में खड़े रहे, खयाल रखा पर मेरा एक आग्रह है, अनुरोध है, प्रार्थना है कि इस मामले से दुर रहें l
प्रतिशोध मेरा है l दोषी भी मेरा है l उसे तलाश करना और अपने हाथों से सजा देना मेरा अधिकार है l कृपया मुझे मेरे अधिकार से वंचित ना करें l मैं आपसे वादा करता हूँ उस हत्यारे को मैं आपके सामने लाऊँगा l तब आप निर्णय करें उसे कैसी सजा दी जाए l
बस आपके शुभकामनाओं के साथ मैं आपसे विदा ले रहा हूँ l

मृत्युंजय

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मेयर ऑफिस के परिसर में बल्लभ अपनी गाड़ी पार्क करता है औऱ जल्दी से अपना ब्रीफकेस उठा कर जल्दी जल्दी पिनाक के चेंबर की ओर जाने लगता है l रिसेप्शन से अपने आने की खबर पहुँचाने के लिए कहता है l थोड़ी देर बाद रिसेप्शन उसे अंदर जाने के लिए कहती है l वह जब चेंबर के अंदर पहुँचता है तो देखता है पिनाक के सामने एक शख्स बैठा हुआ है l जिसका पहनावा उसके दौलत मंद और प्रतिष्ठित होने की बात को दर्शा रही थी l

पिनाक - आओ प्रधान आओ.. बड़े सही समय पर आए हो... इनसे मिलो.... आप हैं... श्री निर्मल सामल... हमारे होने वाले समधी... (परिचय पाते ही बल्लभ हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है) और सामल बाबु... यह है... एडवोकेट बल्लभ प्रधान... हमारे सारे लीगल ईलीगल काम देखता है...
निर्मल - ओ... तो इस वक़्त यहाँ लीगल काम से आए हैं... या...
बल्लभ - मैं आया तो आप ही के काम से हूँ... मेरे पास ईलीगल कुछ नहीं होता है... क्यूँ के सारे कामों को लीगल बनाना ही मेरा काम है...
निर्मल - ओ हो... बहुत अच्छे...
पिनाक - बैठ जाओ प्रधान... (बल्लभ बैठ जाता है) तुम जिस तरह से बात रख रहे हो... लगता है निर्मल बाबु का... काम करके ही आए हो... या हो जाने वाला है...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी... सारे प्रॉब्लम सॉल्व...
निर्मल - क्या... आई कांट विलीव...
बल्लभ - आप विश्वास कर लीजिए निर्मल बाबु.... मैंने कहा ना... मैं जो भी काम उठाता हूँ... उसे लीगल बना देता हूँ... अब उस छह एकड़ जमीन का रजिस्ट्रेशन कब कराना है... मुहूर्त निकालिए...
निर्मल - इतनी आसानी से... बुरा ना मानना प्रधान बाबु... जहां तक मुझे याद है... BDA का लैंड सर्वेयर... गायब था... अपनी ऑफिस में बिना कोई इन्फॉर्मेशन के... फिर...
बल्लभ - आपने सौ फीसद सही कहा सामल बाबु पर आज सुबह ही... सर्वेयर काजमी जॉइन हुआ है... और जॉइन होते ही उसने अपना रिपोर्ट अटैच कर दे दिया है...
निर्मल - (कुछ सोच में पड़ जाता है) इतनी आसानी से...
पिनाक - आपको तो खुश होना चाहिए सामल बाबु... क्या कामयाबी पर यकीन नहीं हो रहा है... या.. पच नहीं रहा..
निर्मल - छोटे राजा जी... मैं खानदानी व्यापारी हूँ... व्यापार में कुछ बातेँ हमें पर्सनल एक्सपेरीयंस है... उसके आधार पर कह सकता हूँ... जो आसानी से हासिल हो जाए... वह ज्यादा देर तक टिकता नहीं है... ज़रूर उसमें कोई छुपा हुआ गडबड़ होगी....
पिनाक - सामल बाबु... आप यह भुल रहे हो... इस काम में... क्षेत्रपाल इंवॉल्व हैं... हासिल होना ही था... और यह लंबा टिकेगा भी... (बल्लभ की ओर दिखाते हुए) और यह आदमी इन्हीं चीजों में माहिर है...
बल्लभ - सामल बाबु... आप अब क्षेत्रपाल खानदान से जुड़ने वाले हैं... तो मैं कैसे आपका मान गिरने दे सकता हूँ... BDA ऑफिस में प्रमुख अधिकारी हमारा ही आदमी है... उसके जरिए... उस काजमी पर दबाव डाल कर सर्वे रिपोर्ट पास करवाया है... आप यकीन रखिए... अब कोई परेशानी नहीं है....
निर्मल - थैंक्यू प्रधान बाबु थैंक्यू... (पिनाक की ओर देख कर) आपने तो हमारी बड़ी परेशानी हल कर दी...
पिनाक - आप हमारे होने वाले समधी हैं... इतना तो कर्तव्य बनता है और हक भी...

निर्मल सामल के चेहरे पर खुशी कुछ देर दिखती है फिर धीरे धीरे चेहरा गम्भीर हो जाता है l यह देख कर पिनाक उससे सवाल करता है l

पिनाक - क्या हुआ सामल बाबु... हमने कुछ गलत बोल गए क्या...
निर्मल - नहीं छोटे राजा जी... बल्कि यह तो हमारा सौभाग्य है कि राजा साहब ने हमें अपने बराबर खड़ा किया और... हमारी बेटी का हाथ आपके बेटे के लिए माँगा...
पिनाक - फिर... फिर आपके चेहरे पर वह रौनक नहीं दिखाई दे रही है जो होनी चाहिए....
निर्मल - छोटे राजा जी... हम अपने इलाके से बाहर व्यापार फैलाना चाहते थे.... राजा साहब के कहने पर हम भुवनेश्वर आए... जो जगह हमें दिखाई गई... और जो प्रोजेक्ट हमें दी गई है.... वह लिटिगेटेड थी... चूंकि सस्ते में हो सकती थी... इसलिए पसंद भी आई... राजा साहब ने पुरा बीड़ा उठाया... हमें यह जगह दिलवाने के लिए... रिश्ता भी जोड़ा... इसलिए मना नहीं कर पाए... पर...
पिनाक - जब आप हमसे जुड़ ही गए हैं... फिर पर कैसा...
निर्मल - हम जानते हैं... आप राजाओं के परिवार से ताल्लुक रखते हैं... कुछ रस्में रिवाज, कुछ शौक... रजवाड़ों के जैसे होते हैं... (पॉज)
पिनाक - हाँ तो...
निर्मल - (झिझकते हुए) हम सुने हैं... आपके रंग महल के बारे में... (पॉज)
पिनाक - खुलकर कहिये सामल बाबु....
निर्मल - देखिए... हम इन सबके आदि नहीं हैं... और हमें कोई ऐतराज भी नहीं है... हम अपनी बिटिया को समझा सकते हैं... पर...
पिनाक - आपका यह पर ख़तम ही नहीं हो रहा है सामल बाबु...
निर्मल - जब राजा साहब ने विवाह का प्रस्ताव रखा... तो माफ कीजिएगा... हमने राजकुमार जी की... खबर ली थी...
पिनाक - कैसी खबर...
निर्मल - देखिए छोटे राजा जी... अब मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ... राजकुमार जी अपने संग एक लड़की को लिये घूमते हैं... मुझे लगता है.. आप भी शायद जानते हैं... हम राजवंशी नहीं हैं... हमें ऐसी बातों का आदत नहीं है... मैं नहीं चाहता कि कल को मेरी बेटी को कोई पछतावा हो... हमने अपनी बच्ची को बड़े नाज़ों संस्कारों के साथ पाला है... (पॉज)
पिनाक - आगे बढ़ीये...

फिर यकायक निर्मल का लहजा बदल जाता है l आवाज में कड़क पन और भारी पन उतर आता है l

निर्मल - हम चाहते हैं... विवाह एक महीने के अंदर हो जाए... और उससे पहले... वह नीचि और ओछी जात की लड़की... हमारे होने वाले जमाई बाबु के जीवन से निकल जाए....
पिनाक - आपने ठीक कहा सामल बाबु... पर जैसा कि आपने कहा... के हम राजवंशी हैं... मान लीजिए... विवाह के बाद भी... राजकुमार किसी के साथ एंगेज मिले... तो...
निर्मल - वह विवाह की बाद की बात होगी... और मेरी बेटी बिल्कुल वैसे ही अपना धर्म निभाएगी जैसे... क्षेत्रपाल परिवार में... दुसरी औरतें...
पिनाक - ठीक है... हम समझ गए... आप निश्चिंत हो कर जाएं... और विवाह की तैयारियाँ करें... आपका काम हो जाएगा...
निर्मल - शुक्रिया छोटे राजा साहब...
पिनाक - इसमें शुक्रिया कैसी समधी ही... अब बेहतर होगा आप भी हमें समधी जी ही कहें...
निर्मल - जी छोटे रा..... सॉरी आई मीन... समधी जी...
पिनाक - (बल्लभ से) प्रधान...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम हमारे समधी जी को अपने साथ ले जाओ... उन्हें क्या करना है... अच्छी तरह से समझा दो...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी...

फिर निर्मल सामल और बल्लभ अपनी अपनी जगह से उठते हैं और पिनाक से औपचारिकता वाली विदाई लेकर चेंबर से बाहर निकल जाते हैं l उनके जाते ही पिनाक अपना मोबाइल निकालता है और एक कॉल करता है l


पिनाक - कहाँ हो तुम...
- @#@#===#&@
पिनाक - हाँ हाँ ठीक है... याद है तुमने एक बार कहा था...

- @#@#===#&@
अब टाइम आ गया है वह करने का..
- @#@#===#&@
पिनाक - देखो तुम कैसे करोगे... क्या करोगे मुझे कोई मतलब नहीं है... यह काम हफ्ते दस दिन के भीतर हो जाना चाहिए...
- @#@#===#&@
पिनाक - अगर तुम यह काम कर देते हो... तो जितना पैसा मांगोगे मिलेगा...
- @#@#===#&@
पिनाक - ठीक है...

कह कर अपना फोन काट देता है l फोन कटते ही उसके चेहरे पर खौफनाक गुस्सा उभरने लगता है l


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ठंडी हवाएं बह रही है l अनु की लटें चेहरे पर उड़ रही है और अनु बार बार अपनी लटों को अपनी कानो के पीछे ले जा रही थी l वीर की नजरें बिना पलकें झुकाए एक टक उसे देखे जा रहा है l चंद्रभागा की रेतीली पठार पर कुछ प्रेम के जोड़े अपने में मगन थे l शाम का वक़्त, सुरज ढलने में अभी भी वक़्त है l पर आज की समा जितनी रूमानी लग रही थी उतना ही मासूम भी लग रहा था l वीर का अपनी ओर ऐसे देखने से अनु के गालों पर शर्म की लाली छा रही थी l

अनु - आप कब से मुझे ऐसे देखे जा रहे हैं...
वीर - क्या करूँ... तुम हो ही ऐसी...
अनु - रोज ही तो आप मुझे देखते हैं...
वीर - तुम रोज मुझे नई सी लगती हो...
अनु - प्लीज... आप... मुझे ऐसे... यूँ ना देखिए...
वीर - (शरारती लहजे में) फिर कैसे देखूँ...
अनु - (कुछ नहीं कह पाती, मन ही मन मुस्कराते हुए अपना सिर झुका लेती है)
वीर - हाय... एक और कुदरत... एक और तुम... दोनों को उपर वाले ने कितनी सिद्दत से तराशा है... पर फिर भी कुदरत से मन भर जाता है और तुम पर नजर ठहर जाता है...
अनु - (अपनी अंदर की खुसी को ज़ब्त करते हुए) एक बात पूछूं...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु - आप... मुझे यहाँ क्यूँ ले कर आए... हम किसी मॉल में भी तो जा सकते थे...
वीर - क्यूँ तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा...
अनु - बहुत... पर अगर हम मॉल में होते... तो शायद हम बातेँ कर रहे होते...
वीर - ना... आज तो तुम्हें जी भर कर देखने का मन कर रहा है...
अनु - अच्छा... तो बातेँ कब करेंगे...
वीर - कर ही तो रहे हैं...
अनु - कहाँ... बातेँ मैं कर रही हूँ...
वीर - वही तो... एक अप्सरा मेरे सामने बैठी है... जिसके मुहँ से शहद ही शहद टपक रही है... कुदरत का करिश्मा है... देख रहा हूँ... उसके गाल बिल्कुल सेव के जैसे लाल हैं... जी कर रहा है.. चबा जाऊँ... (अनु अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लेती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - थैंक्यू...
अनु - (हैरानी के साथ अपने चेहरे से हाथ हटाते हुए) वह क्यूँ...
वीर - मैं खो गया था... तुमने ही मुझे ढूंढ लिया... मैं बिखर गया था... तुमने ही मुझे समेट लिया...
अनु - इसके लिए आप मुझे थैंक्स तो कहिये... मुझे खुशी है कि... मेरे राजकुमार फिर से वापस मिल गए...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - यह तुम्हारा मट्टू भाई से जान पहचान कब से है...
अनु - बताया तो था... जब हम एक साथ नौकरी करने लगे... उसके बाद... कुछ दिनों बाद मट्टू भैया और उनके माता जी और पुष्पा हमारे मुहल्ले में रहने आए थे...
वीर - ओ...
अनु - क्यूँ क्या हुआ...
वीर - क्या पुष्पा तुम्हारे बहुत करीब थी...
अनु - सच कहूँ तो हाँ... मेरी कोई सहेली नहीं थी... हमारे बस्ती में... वह एक छोटी बहन... एक सहेली बन कर आई थी...
वीर - क्या इसी लिए तुमने मुझसे... उसके क़ातिल को सजा देने के लिए कहा...
अनु - हाँ भी और नहीं भी...
वीर - मतलब...
अनु - पुष्पा के साथ जो हुआ... उसके लिए आप खुद को ही जिम्मेदार मान रहे थे... आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी... इसलिए.. मैंने... आपको... उस ग़म से उबारने के लिए... ऐसा कहा...
वीर - (मुस्करा देता है)
अनु - (झिझकते हुए) क्या आपको... बुरा लगा...
वीर - (अनु के दोनों हाथ अपने हाथ में लेकर) ओ अनु... मेरी प्यारी अनु... जानती हो... तुम्हारा मुहँ बोला भाई भी यही कह रहा था...
अनु - (हैरानी से) मेरा मुहँ बोला भाई... मतलब मट्टू भैया...
वीर - अरे नहीं... ह्म्म्म्म याद है.... ओरायन मॉल के पार्किंग में... मैं गिर रहा था... तब एक बंदे ने मुझे सम्भाला था... तब तुमने उसे भाई कहा था...
अनु - (याद करते हुए) हाँ हाँ...
वीर - वह अब मेरा दोस्त है... बहुत ही अच्छा दोस्त... उसने जो कहा था... तुमने भी बिल्कुल वही कहा....
अनु - (अपना सिर शर्मा कर झुका लेती है)
वीर - अनु...
अनु - हूं...
वीर - तुम अगर बात बात पर इस तरह से शर्मा कर लाल होती रहोगी... तो...
अनु - तो..
वीर - तो... जी चाहता है कि मैं तुम्हें अभी के अभी चूम लूँ... (अनु शर्मा कर अपनी हाथ छुड़ाने की कोशिश करता है, पर वीर नहीं छोड़ता)
अनु - राजकुमार जी... प्लीज...
वीर - अरे... इसमें प्लीज कहने की क्या जरूरत है... लो अभी चूम लेता हूँ...
अनु - आह... नहीं.. (अपना चेहरा शर्म के मारे फ़ेर लेती है)
वीर - अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल शादी कर लेते हैं...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है)
वीर - अब रहा नहीं जाता... अब तो एक ही ख्वाहिश जोर मार रही है...
अनु - (गाल और होंठ फड़फड़ा रहे थे पर बोल ना फुट पाई)
वीर - पुछ ना... क्या है ख्वाहिश...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) कैसी ख्वाहिश...
वीर - मैं हर सुबह जब अपनी आँखे खोलुँ तो तु मेरी बाहों में हो... और जब नींद से पहले अपनी अपनी आँखे मूँद लूँ... तो तेरा चेहरा देखते हुए सो जाऊँ... (अपना चेहरा अनु के पास लाता है, अनु की सांसे तेजी से चलने लगती हैं और उसकी धड़कनें बढ़ जाती है) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - चल... शादी कर लेते हैं यार... इसी हफ्ते दस दिन में...
अनु - ह्म्म्म्म....
वीर - (खुशी के मारे) सच में...
अनु - (शर्मा कर अपना सिर हाँ में हिलाती है)
वीर - वाव... इस खुशी में तुझे चूम लूँ...
अनु - नहीं...
वीर - क्या... क्यूँ नहीं...
अनु - नहीं मेरा मतलब है... शायद मैंने अभी अभी नंदिनी जी को देखा...
वीर - क्या... (मुड़ कर देखने लगता है) कहाँ...
अनु - सच कह रही हूँ... मैंने देखा... नंदिनी जी किसी के साथ दिखीं... मेरा मतलब है... (अटक अटक कर) किसी.. लड़के के साथ...
वीर - (एक ठंडी रिस्पॉन्स के साथ) अच्छा...
अनु - (थोड़ी चहक कर) चलिए ना...
वीर - कहाँ...
अनु - नंदिनी जी को रंगे हाथ पकड़ने...
वीर - नहीं...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी बहन कोई अपराध नहीं कर रही है... उसने माँ से आशीर्वाद भी ले लिया है... हाँ यह बात और है कि उसने अभी तक उस लड़के के बारे में कहा नहीं है... पर वह किसी के प्यार में है... मैं यह जानता हूँ... उसने खुद मुझसे कहा था... और यह भी बताया था कि... वक़्त आने पर मुझसे मिलवायेगी...
अनु - पर भाई होने के नाते कुछ कर्तव्य होता है आपका... आपने कहा कि उसे जानते नहीं हैं... कहीं... मेरा मतलब है... (अटक जाती है)
वीर - अनु... मैं शायद तुम्हारे लायक भी नहीं... पर क्या तुम मुझसे प्यार करके शर्म सार हो...
अनु - नहीं...
वीर - वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... हमारे घर में... रिश्तों की अहमियत और पहचान उसे सबसे ज्यादा है... और उसने माँ से आशीर्वाद ले लिया है... तो वह कभी गलत नहीं हो सकती... (अनु का मुहँ लटक जाता है) अनु... मैं जानता हूँ... तुम उसे रंगे हाथ पकड़ना क्यूँ चाहती हो... तुम उसकी भाभी हो... उसे चौंकाना चाहती हो... पर अभी नहीं फिर कभी... अभी नंदिनी को उसके प्यार का थ्रिल महसुस करने दो...
अनु - आपको नंदिनी जी पर इतना भरोसा है...
वीर - हाँ... है...
अनु - मेरा भविष्य क्या होगा मैं नहीं जानती... पर जो भी होगा मुझे स्वीकार होगा... पर नंदिनी जी.... जहां तक मुझे पता है... उनकी शादी तय हो चुकी है... और आपकी बातों से लग रहा है... यह वह नहीं हैं... जिनसे उनकी शादी तय हुई है...
वीर - ओ... अब समझा... तुम खुल कर पूछो अनु...
अनु - आप शायद मेरे लिए अपने परिवार से लड़ जाएंगे... आप मर्द हैं... पर नंदिनी...
वीर - (मुस्कराते हुए) वह नंदिनी है अनु... नंदिनी... उसने जिसको चुना है... इतना यकीन के साथ कह सकता हूँ... वह नंदिनी के लिए ना सिर्फ क्षेत्रपाल से... बल्कि दुनिया से भी टकराने की कुव्वत रखता होगा... नंदिनी पर कोई आंच भी आने नहीं देगा....

उधर रुप विश्व के हाथ को खींचते हुए भाग रही थी l विश्व भी हैरानी के साथ उसके पीछे भाग रहा था l कुछ दुर जाने के बाद रुप अब हांफने लगी थी l तब विश्व उसे रोकता है

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपने किसे देख लिया...
रुप - कुछ नहीं... वह जगह ठीक नहीं था... इसलिये...
विश्व - झूठ... आपने जरूर वहाँ पर किसी को देख लिया है...
रुप - ओ हो... अब चलो भी...
विश्व - अरे कहाँ... इतना दूर तो भाग कर आ गए... और देखिए... हम जहां पर थे कुछ कुछ जोड़े थे वहाँ पर... पर यहां.. कोई नहीं है... और शायद किसीके आने की संभावना भी नहीं है...
रुप - ऐ... क्या मतलब किसी की आने की संभावना नहीं है...
विश्व - (हकलाते हुए) मैं... मैं क्या सोच सकता हूँ... मैं तो बस यह कह रहा था... के हमें भी उस तरफ जाना चाहिए...
रुप - ओए... बस बस बहुत हुआ.. हाँ... हम यहीं कहीं बैठेंगे... और बातेँ करेंगे... समझे...
विश्व - जी ज़रूर... जैसी आपकी मर्जी...
रुप - हाँ हाँ सब तो मेरी मर्जी है... तुम यहाँ क्या घास चरने आए हो...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - अरे... अकेले हैं...
विश्व - हाँ तभी तो... साथ कुछ पल बिताने आए हैं...
रुप - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक कहा... हूंह्ह्ह...

कह कर रुप अपना मुहँ मोड़ कर आगे निकल जाती है l विश्व कुछ समझ नहीं पाता और उसके पीछे चलने लगता है l एक जगह पर नदी के किनारे छोटे छोटे मछली पकड़ने वाले कुछ नावें बंधी हुई थीं l वहीँ नाव के पास एक चार या पांच साल की एक लड़की रेत से एक घर बना रही थी l उसके बगल में दो लड़के खिलौने वाले बंदूक से एक दुसरे के पीछे भाग रहे थे l उन्हें देखते हुए रुप एक पत्थर पर बैठ जाती है l विश्व उसके बगल में बैठ जाता है l

विश्व - राजकुमारी जी... आप नाराज क्यूँ हैं..
रुप - हमें प्यार में पड़े कितने साल हुए...
विश्व - साल... या दिन...
रुप - क्या दिन... हूंह्ह्ह... बचपन का प्यार है...
विश्व - हाँ वह तो है... पर इजहार तो अभी अभी हुआ है ना...
रुप - तो...
विश्व - ओ हो.. मैं समझ नहीं पा रहा..
रुप - बेवक़ूफ़... फट्टु...
विश्व - फट्टु... कैसे...
रुप - अरे शाम सुहानी है... समा मस्तानी है... सुरज ढ़लने को है... ऐसे में...
विश्व - हाँ ऐसे में...
रुप - आ... ह्ह्ह्ह्...
विश्व - (मुस्करा देता है) गुस्सा आपके नाक पर बहुत अच्छा लगता है... मेरी नकचढ़ी...

तभी अचानक रेत पर खेल रही उस छोटी सी बच्ची की रोने की आवाज़ आती है l दोनों उस तरफ देखते हैं l वह लड़के खेल खेल में उस लड़की की रेत के घर पर चढ़ गए थे l जिसके वज़ह से वह घर टुट गई थी l तभी उस लड़की के रोने से वह दोनों लड़के अपने खिलौने बंदूक को लेकर भाग जाते हैं l यह देख कर विश्व और रुप दोनों कुछ देर के लिए हतप्रभ हो जाते हैं l

रुप - ओह... बेचारी लड़की.. कितनी मेहनत से वह घर बनाई थी... लड़के तोड़ कर भाग गए देखोना...
विश्व - हाँ भाग गए... हम समझदार इंसानों को आईना दिखा कर भाग गए...
रुप - क्या मतलब...
विश्व - वह लड़की कुदरत से अपना बसेरा बना रही थी... और वह लड़के आज के समाज के अक्स थे... जो हर चीज़ से असंतुष्ट थे... कहने को बंदूक हमारी सुरक्षा के लिए बनाई गई है... पर हमें असुरक्षा किससे है... इंसानों से ही ना... हम इंसान ही इंसान के दुश्मन हैं... और ऐसे समाज में... बंदूक जैसे हथियार समाज के मापदंड बन गए हैं... जिसके हाथ में बंदूक रहा वह शोषक बन गया... जो बंदूक के आगे रहा वह शोषित बन गया... आंदोलन हमेशा बंदूक के आगे वाला करता है... वह साम्यवाद के लिए शोषक से बंदूक छीनता है... पर फिर उसी बंदूक के प्रभाव में.. खुद शोषक बन जाता है... इसी खेल में... ऐसे कई कुदरती घरौंदे रौंद दिए जाते हैं...
रुप - (एक टक विश्व को सुने जा रही थी) वाव... क्या बात है...
विश्व - संगत का असर है...
रुप - संगत... किसकी संगत...
विश्व - मुझ पर मेरी नकचढ़ी की संगत...
रुप - अच्छा जी... वैसे मैंने क्या कर दिया जो आप इतना प्रभावित हो गए...
विश्व - भुल गईं... उस रेडियो एफएम पर आपने किस तरह से... समाज का एक हिस्सा बताया था...
रुप - ओ..
विश्व - जी
रुप - ठीक है... मैं इस बात की क्रेडिट ले लेती हूँ... पर फिर भी... मैं तुमसे नाराज हूँ...
विश्व - आपकी नाराजगी सिर आँखों पर... पर यह तो बताइए... आप किससे डर कर इस तरफ आ गईं...
रुप - डर... कैसा डर... मैं तो इसलिए तुम्हें यहाँ लेकर आई... ताकि...
विश्व - हाँ ताकि...
रुप - वह कहते हैं ना.....
दुनिया की नजरों से छुपके मिलें...
लगता है डर कोई देख ना लें...
विश्व - ओ... अच्छा.. (अचानक कुछ सोच कर) एक मिनट एक मिनट... कहीं आप वीर और अनु को देख कर तो नहीं भाग आईं...
रुप - क्या.... मतलब तुमने उन्हें देख लिया...
विश्व - नहीं... पर इसका मतलब वह लोग यहीँ कहीं हैं...
रुप - अब मेरा सारा मुड़ फुर्र हो गया है... चलो यहाँ से चलते हैं...
विश्व - क्यूँ...
रुप - कहीं वीर भैया यहाँ आ गए तो...
विश्व - अगर वह अभी तक नहीं आया... तो वह अब भी नहीं आएगा...
रुप - फिर भी... चलोना यहाँ से...

रुप फिर से विश्व की हाथ खिंच कर उठाती है और दोनों अपनी गाड़ी को जहां पर पार्क किए थे वहाँ पहुँच कर जल्दी से गाड़ी में बैठ कर गाड़ी घुमा लेते हैं l गाड़ी के भीतर दोनों खामोश थे l कुछ देर बाद रुप गाड़ी को मुख्य सड़क से निकाल कर एक गली नुमा सड़क पर चलाने लगती है फिर एक जगह गाड़ी रोकती है l

रुप - तुम्हें कैसे मालुम पड़ा...
विश्व - क्या...
रुप - यही की... वीर भैया और अनु भाभी यहाँ पर आए हैं...
विश्व - नहीं बस अंदाजा लगाया...
रुप - कैसे...
विश्व - क्यूंकि हम कल मिले थे... और वीर कह रहा था... की आज का पुरा दिन वह अनु के साथ बिताना चाहता है...
रुप - ओह...
विश्व - क्यूँ आप नहीं चाहतीं... के वीर को हमारे बारे में पता चले...
रुप - नहीं ऐसी बात नहीं है... वीर भैया को मालुम तो है कि मुझे किसीसे प्यार है... मैंने माँ को अनाम बताया है... बस बड़ी भाभी को पुरी बात मालुम है... मैं मौका ढूंढ रही हूँ... जब वीर भैया से तुम्हारे बारे में कहूँ... पर उससे पहले नहीं...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो बात यह है... अगर मैं यह कहूँ के... (रुक जाता है)
रुप - हाँ.. के...
विश्व - वीर को हमारे बारे में... पता चल गया है... तो...
रुप - (हैरानी से) क्या... कैसे...
विश्व - वह मेरे बारे में बहुत कुछ जानता है... के मैं एक ऊँचे घराने की लड़की से प्यार करता हूँ... मैं राजगड़ से हूँ... और कल ही उसने... मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ आपका नाम देख पढ़ लिया था...
रुप - व्हाट....
विश्व - हाँ... आपकी मेहरबानी जो थी... याद है... (अपनी बालों पर हाथ फेरते हुए) आपने मेरे बाल कुतर दिए थे... ताकि आपको आपका नाम मेरे गर्दन पर दिखे... कल ही मुझे वीर के बातों से अंदाजा हो गया था... की उसने मेरे गर्दन के पीछे गुदा हुआ नाम पढ़ लिया था... और वह हमारे बारे में जान गया है...
रुप - ओह...

फिर कुछ देर के लिए दोनों के बीच चुप्पी छा जाती है l रुप की मुट्ठी स्टीयरिंग पर कसने और रगड़ने लगती है l

विश्व - क्या हुआ... डर लग रहा है...
रुप - नहीं... पर... सोच रही हूँ... अगर वीर भैया को मालुम हो गया है... तो उनका विहैव आगे कैसा होगा.... मैं कैसे उनके सामने जाऊँगी...
विश्व - अपने भाई के आप बहुत करीब हो.. और मुझे लगता है... उसे हमारा रिश्ता स्वीकार है...
रुप - ठीक है... देखते हैं... क्या होता है आगे...

कह कर गाड़ी को घुमा कर मुख्य रास्ते पर ले आती है और शहर की और चलने लगती है l

रुप - अच्छा एक और बात पूछूं...
विश्व - जी जरूर...
रुप - उस आदमी का क्या हुआ.. जिसे xxxx जंक्शन पर किन्नरों ने घेरा था...
विश्व - न्यूज नहीं देखा आपने..
रुप - देखा था... पर... मैं तुमसे जानना चाहती हूँ... कहीं इस हरकत से खफा हो कर... वह फिर से स्टॉक करने लगा तो...
विश्व - आप डर रही हो क्या...
रुप - डरे मेरी जुती... पर अगर मान लो वह कुछ करने की कोशिश की तो...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) राजकुमारी जी... मैंने उसके लिए एक मर्यादा का जीवन रेखा खिंच दिया है.... अगर वह बाज नहीं आया... वह मर्यादा रेखा लांघने की कोशिश की.... तो इसकी जीवन रेखा मीट जाएगा... पर आप पर जरा सा भी आंच नहीं आएगा...

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शाम को टोनी अचानक उस कमरे में घुस जाता है जहाँ अनिकेत रोणा ठहरा हुआ था l पर अंदर का दृश्य देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l आईने के सामने पुलिस के लिबास में रोणा था पर उसके कान में बालि और नाक में नथ लगा हुआ था l उस वक़्त रोणा अपने होंठ पर लिपस्टिक लगा रहा था l

रोणा - आओ... टोनी आओ... (टोनी की ओर मुड़ कर) ऐसे फटे आँख से क्या देख रहे हो...
टोनी - यह क्या... मेरा मतलब है... ठीक है... आपके जेहन पर चोट गम्भीर लगा है... पर...
रोणा - तु जानता है... मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ...
टोनी - (अपना सिर ना में हिलाता है)
रोणा - तुझसे एक काम है... और उस काम को तुझे करना है......
टोनी - साब... आपका मुझ पर बड़ा उपकार रहा है... पर अगर यह काम विश्व के ताल्लुक है... तो माफ़ी चाहूँगा... मैं... मैं नहीं कर सकता...

टोनी के इंकार से रोणा का बांई आँख का भवां तन जाता है l वह अपना पुलिसिया बेल्ट निकाल कर बेल्ट की मेटल वाले लॉक से आईने पर मारता है l आईना कई टुकड़ों में बिखर जाता है l एक बड़ा सा टुकड़ा रोणा नीचे से उठाता है और टोनी खिंच कर उसके गले में लगा देता l यह सब इतना अचानक होता है कि टोनी अगर समझ भी जाता तो वहाँ से भाग चुका होता l पर अब वह रोणा के रहमोकरम पर था l

रोणा - सुन बे भोषड़ी के... साले बांग्लादेशी... मैंने अगर तेरी आइडेंटिटी बदली है... तो उसके सारे सबूतों का एक फाइल भी बना कर रखी है... अगर मैंने उसे थोड़ी देर में फोन नहीं किया... तो वह फाइल सीबीआई के दफ्तर में पहुँच जाएगी...

कह कर रोणा टोनी को छोड़ देता है और एक धक्का देता है l टोनी एक चेयर पर पीठ के बल गिर कर बैठ जाता है l रोणा उसके सामने एक चेयर खिंच कर बैठ जाता है l

रोणा - देख विश्वा ने मुझे क्या बना दिया है... मैं नहीं जानता... मैं औरत तो हूँ नहीं... उसने मर्द छोड़ा नहीं... हिजड़ों में भी मेरी भर्ती होने से रही... इसलिए मैं अकेले में ऐसा बना फिर रहा हूँ... (लहजा अचानक भयंकर हो जाता है) अब बोल... तु करेगा या...
टोनी - साब... करूँगा... पर यह करने के बाद... आपको मुझे एक नई आइडेंटिटी देनी होगी... क्यूँ की... मैं विश्वा को जितना जानता हूँ... वह मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेगा...
रोणा - (गुस्से में चिल्लाते हुए) आ.. ह्ह्ह्ह्... विश्वा.. विश्वा विश्वा... जैसे वह कोई हौव्वा बन गया है...
टोनी - आपके साथ क्या किया... आपने देख तो लिया है...
रोणा - वह इसलिए... के मुझ अकेले के खिलाफ... उसने टीम वर्क से काम लिया... अब बारी मेरी है... मैं उसके खिलाफ अपनी टीम को उतारूंगा... भले ही अंत में मेरा नाम उछले... पर मुझे अब इंतकाम लेना है...
टोनी - ठीक है... पर आपने मुझे अभी तक दुसरे आइडेंटिटी के बारे कुछ कहा नहीं है...
रोणा - (जबड़े सख्त हो जाते हैं) ठीक है... जैसे ही तुम अपना काम पुरा कर दोगे... तुम्हें तुम्हारा नया आइडेंटिटी मिल जाएगा...
टोनी - ठीक है रोणा साब... काम क्या है... कहिये...

रोणा अपने जेब से मोबाइल निकालता है और कई फोटोस दिखाता है, जिसमें रुप प्रतिभा के साथ बात कर रही थी l यह सारे फोटो उसने बार काउंसिल के बार एसोसिएशन चेंबर के बाहर कैंटीन से खिंचा था l रुप की फोटो देख कर टोनी की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह सवालिया नजर से रोणा की ओर देखता है l

रोणा - मुझे इस लड़की के बारे में... सब कुछ जानना है... इसकी पुरी कुंडली मुझे लाकर देना है तुझे...
टोनी - बुरा ना माने तो एक सवाल पूछूं...
रोणा - हाँ पुछ ले...
टोनी - विश्वा का इस लड़की से क्या नाता है...
रोणा - यह लड़की विश्वा की माशुका है...
टोनी - क्या... (झटके के साथ अपनी जगह से उठ खड़ा होता है) क.. क.. क्या कहा आपने...
रोणा - बे मादरचोद... यह लड़की विश्वा की माशुका है... इसे अपने नीचे लाकर... मुझे विश्वा से बदला लेना है...

यह सुन कर टोनी की आँखे और मुहँ दोनों खुले के खुले रह जाते हैं l वह जेब से आपना रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोछने लगता है l यह सब रोणा भी देख रहा था, वह चिढ़ कर पूछता है l

रोणा - तुझे भी तो विश्वा से बदला लेना था... अब जब मौका मिला है... तो सोच क्या रहा है...
टोनी - मैं सोच नहीं रहा हूँ... बल्कि अपना अंजाम के बारे में.. इंट्युशन कर रहा हूँ... रोणा साब... मुझसे वादा कीजिए... जैसे ही मैं इस लड़की की डिटेल्स ला कर दूँगा... आप उसी वक़्त मुझे मेरा नया आइडेंटिटी दे देंगे... और यह मेरा आपके लिए आखिरी काम होगा.... उसके बाद ना मैं आपसे मिलूंगा ना ही मुझसे आप...
रोणा - देख लड़कियाँ... औरतें मेरी कमजोरी हैं... उन्हें देख कर मेरी लार टपकती रहती है... पर मैंने विश्वा से भी ज्यादा दुनिया देखी है... कोई भी इंविंसीवल नहीं होता... अगर हम चाल सही चलें... तो विश्वा हमारे सामने कहीं नहीं ठहर पाएगा...
टोनी - मुझे दिलासा मत दीजिए... बस वादा कीजिए... वर्ना मुझसे नहीं होगा...
रोणा - ठीक है... तु भी क्या याद रखेगा... चल वादा किया... यह तेरा आखिरी काम होगा... उसके बाद तु अपना नए आइडेंटिटी को लेकर हिन्दुस्तान में कहीं भी चला जा... ना तु मुझसे मिलेगा... ना मैं तुझसे मिलूंगा...
टोनी - ठीक है साब... आप लड़की के बारे में जितना भी जानते हैं... मुझे कहिये... मैं आगे की जानकारी निकाल लूँगा...
रोणा - गुड... अब आए ना लाइन पे... लड़की का नाम नंदिनी है... उसकी या उसके फॅमिली की एक गाड़ी है... पुरानी फिएट पद्मिनी... गाड़ी का नंबर xxxxxx... शायद उसकी वकालत से कोई नाता है... नहीं भी हो सकता है... उसकी एक्स जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति और उसकी पत्नी प्रतिभा सेनापति से अच्छे तालुकात हैं... बस इससे आगे की जानकारी तुझे निकलनी है...
टोनी - जी समझ गया... आपको सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - कितने दिन लगेंगे तुझे...
टोनी - यह आप पर निर्भर है... आप मुझे जितनी जल्दी नई आईडेंटिटी देंगे... उतनी ही जल्दी आपको इस नंदिनी की सारी जानकारी मिल जाएंगी...
रोणा - ओह... ओ... गेम... मुझसे गेम...
टोनी - गेम नहीं रोणा साब... बचाव... मुझे इस मामले में... किसी भी सूरत में... विश्वा के हाथ नहीं लगनी...
रोणा - इतनी फट रही है तेरी...
टोनी - फटी तो आपकी भी थी... भुल रहे हैं आप... उसीकी जानकारी लेने तो महीने भर पहले... मुझे भुवनेश्वर बुलाया था...
रोणा - फटी नहीं थी मेरी... तैयारी करना चाहता था...
टोनी - पर आपकी तैयारी कोई काम नहीं आई होगी... (इस पर रोणा कुछ नहीं कहता) आप मुझे व्हाटस्आप पर फोटो भेज दीजिए...

रोणा बिना देरी किए फोटो को टोनी के मोबाइल पर भेज देता है l फोटो मिल जाने के बाद टोनी बाहर की ओर जाने लगता है, अचानक दरवाजे पर रुक जाता है और रोणा की ओर मुड़ कर

टोनी - रोणा साब... विश्वा के बारे में एक आखिरी बात आपसे कहना चाहता हूँ... वह आपकी नजर में... कंविक्टेड क्रिमिनल है... जिसने लॉ पढ़ा है... पर मैं जितना भी जान सका हूँ... वह लॉ पढ़ा हुआ एक क्रिमिनल है... परफेक्शन के साथ कानून के दायरे में रह कर क्राइम ऐसे करता है... की कानून उसके आगे बेबस हो जाता है...

अरे भाई! यह अपडेट मिस कर दिया!
आज पढ़ कर बताता हूँ - लेकिन जानता हूँ, बेहतरीन अपडेट होगा, हमेशा के ही जैसे!!
आप कैसे हैं? उम्मीद है अब रिकवरी थोड़ा तेज हो रही होगी?
 

ASR

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Divine
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Kala Nag मित्र किधर हो पलके बिछाए इन्तेज़ार कर रहे हैं 😚
💗 😍 वायदा किए थे अब निरन्तर अपडेटेड प्रकाशित होते रहेगे...
💗 😍 💗 👑
 
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