चेट्टी और रॉय के बीच का संवाद बड़ा बढ़िया था। चेट्टी भैरव के सताए लोगों को इकट्ठा कर के अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। लेकिन एक आदमी, जिसका सब कुछ (अपने लड़के के रूप में) जाता रहा है, उसको अपना उल्लू क्या सीधा करना? उसके पास अब खोने को क्या बचा? वो तो सीधी लड़ाई लड़ सकता है न? इसलिए मुझे चेट्टी का व्यवहार अजीब ही लगता है।
मुझे अरकु वैली के बारे में पता है। बड़ी सुन्दर जगह है। कॉफ़ी प्लांटेशन हैं यहाँ। ऊटी या कह लीजिए कूर्ग जैसा!
यार ये लोग चाहे कितने ही बड़े रजवाड़े हों, खाते गरीबों वाला ही खाना हैं (आलू टोस्ट)! हा हा हा हा हा हा! वैसे रूप निखार जी झूठ भी बोलने लगीं हैं। छठी गैंग की दुहाई दे कर ससुराल घूमने जाने लगीं हैं। बढ़िया है!
विक्रम कैसा लल्लू है - प्यार का तो समझ गया, लेकिन आदमी गलत समझा। दसपल्ला के राजकुमार से शायद रूप की मुलाकात ही नहीं हुई, और अगर हुई भी तो बस क्षण भर की। इतने में किसी को घंटा प्यार होता है! उधर विक्रम कम से कम ज्यादा सटीक निशाना मार सका - गलत वो भी है, लेकिन सही मायने में सटीक। कम से कम रूप और रॉकी का आपस में कोई मेल जोल तो है।
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...
हाँ - एक अँधा दूसरे को रास्ता दिखा रहा था।
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
थ्री डी? डबल डी तो सुना है! लेकिन ये वाला नया था। और उसके भी दो दो फुल-फॉर्म्स निकले! हा हा!
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
हरिया गज़ब का चूतिया आदमी है। अरे भाई, जिनसे तुम्हारी फटती है, विश्व ने उनको ही मारा है।
लिहाज़ा, तुम्हारी विश्व से भी फटनी चाहिए! साले में कोई लॉजिकल रीजनिंग ही नहीं!
हा हा!
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
यहाँ पर टीलू गलत है - विश्व कभी गाँव वालों में से था, लेकिन अब नहीं। उसका कायाकल्प हो गया।
गाँव वाले विश्व की मौत कब की हो गई।
इसलिए उसको अपने में से एक मानना गाँव वालों की भी गलती होगी।
उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...
बहुत सही! हाँ - यही तो मैं कह रहा हूँ। कालीन की तरह भैरव सिंह के सामने बिछ कर गांव वाले भी उसी के सपोर्ट में हैं, लिहाज़ा, वो भी विश्व के ही दुश्मन हैं।
कोई भी विश्व के बारे में चुगलखोरी कर सकता है। उनसे सतर्क रह कर रहने की आवश्यकता है।
जब तक उनकी रीढ़ न पैदा हो, उन पर एक पैसे का भरोसा करना मूर्खता है।
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
हा हा हा हा हा हा हा हा हा!!!! अनु और उसका भोलापन!
गज़ब का डायलॉग है भाई! गज़ब का!
हा हा हा!
वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l
अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...
हाँ भाई! डरते क्यों हो? चूम लो!
मैंने “संयोग का सुहाग” में लिखा था -
"चुम्बन भी एक अद्भुत वस्तु है - चुम्बन की प्रक्रिया में आपका कुछ अंश दूसरे की त्वचा में समां जाता है, सदा के लिए। सदा के लिए इसलिए कहा क्योंकि आप चुम्बन समाप्त हो जाने के बाद भी उसको हमेशा महसूस कर सकते हैं। यह एक चमत्कारिक क्रिया है, जिसमें प्रेम के संकेतों का इतने अंतरंग प्रकार से आदान प्रदान होता है। संभव है कि इसी कारण बहुत सारे लोग चुम्बन करते समय अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। "
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
तापस अंकल और प्रतिभा आंटी - इनकी नोक झोंक मस्त होती है।
मेरी कहानी में होते, तो इनका भी एक सीन लिखता!
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
रूप निखार साबुन!
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...
हा हा हा हा! तापस अंकल का रिएक्शन!
बेचारे अपने ही घर में हर चीज़ से अनभिज्ञ हैं!
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
आएं? डॉक्टर? भाई, MBBS की एंट्री इण्टर के बाद होती है।
ये रूप निखार तो पहले से ही कॉलेज में पढ़ रही है। अब कैसे डॉक्टर?
हाँ - कम्पाउण्डर अवश्य बन सकती है!
तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में
अरे रे रे!
तापस जी वाला हाल ही अपने विश्व का होने वाला है।
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
बस, यही छुपाने वाली गलती ही सबसे बड़ी चूक साबित होगी भैरव सिंह की कंपनी की।
अच्छा है अपने हीरो के लिए।
न जाने जैसे ये अपडेट छूट गया था भाई जी! क्या बड़ा, और क्या बढ़िया अपडेट दिया है आपने। आनंद आ गया।
बढ़िया संवाद, वापस ही सारे (लगभग) मुख्य पात्र, और सबकी अपनी अपनी समस्याएँ!
मस्त!