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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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एक और लाजबाव प्रस्तुति । एक और बेहतरीन अपडेट।
धन्यबाद SANJU ( V. R. ) भाई
क्या बात है नाग भाई ! आप तो सच में छा गए । यह फोरम आप को और आप की इस खुबसूरत रचना को कभी भुला नहीं पायेगा ।
इस इज़्ज़त अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यबाद
ड्राइविंग स्कूल वाला अध्याय तो कमाल का लिखा है आपने । सभी लोगों का इंट्रोडक्शन....खास तौर पर भाश्वति का , किसी का मर्डर करने के लिए वो ड्राइविंग सीख रही है....🤣🤣
और सुकुमार साहब का ड्राइविंग सिखने की वजह बताना.... दिल को छू गया ।
आउटस्टैंडिंग वर्क नाग भाई ।
थैंक्स SANJU ( V. R. ) भाई आपकी यह एक खासियत है कहानी के हर पत्रों के चरित्र और संवाद को भी परखते हैं l सुकुमार साहब का चरित्र वजह बनेगी विश्व और रुप के निकट होने की
विक्रम और महांति की योजना रंग तो लाई पर ओंकार चेट्टी और कमलकांत ने भी अच्छी खासी होमवर्क कर रखा है ।
हाँ ताकत और दिमाग का खेल है सामने अगर प्रतिद्वंदी क्षेत्रपाल हो तो उनके शत्रु भी चाल उसी के अनुसार व अनुरुप चलते हैं
विक्रम की मनोदशा हमें क्लियर समझ आ रहा है लेकिन इसका जिम्मेदार भी तो वो खुद ही है । अपने आंखों से क्षेत्रपाल का चस्मा उतारे तो समझ आए न !
सही कहा
मुझे प्रेम कहानी वह मजेदार लगता है जब लड़का और लड़की प्रेम डोर में बंधने से पहले आपस में खुब नोंकझोंक करते हैं । थोड़ी बहुत मस्तियां होती है तो थोड़ा शरारत । थोड़ा फनी हों तो थोड़ा कामेडी । ताकि बाद में जब वो प्रेम बंधन में बंध जाए तो उन दिनों की यादें यदा कदा उनके चेहरे पर मुस्कान लाता रहे और उनके साथ साथ हम रीडर्स को भी ।
अभी आने वाले अपडेट्स में ऐसा ही कुछ दृश्य परिदृश्य होने वाले हैं
बहुत ही खूबसूरत अपडेट था नाग भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
SANJU ( V. R. ) भाई यही वह लाइन व शब्द हैं जो मुझे आपके समीक्षा के साथ साथ विश्लेषण में मन को प्रसन्न चित्त कर देता है
 

Kala Nag

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Pratiksha hai agle update ki
भाईयों अपडेट तैयार है पर उसपर फिनिशिंग टच दे रहा हूँ
आज तो संभव नहीं है पर कल सुबह नौ बजे तक पोस्ट कर दूँगा
धन्यबाद और आभार तह दिल से
 

parkas

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भाईयों अपडेट तैयार है पर उसपर फिनिशिंग टच दे रहा हूँ
आज तो संभव नहीं है पर कल सुबह नौ बजे तक पोस्ट कर दूँगा
धन्यबाद और आभार तह दिल से
Besavari se intezaar rahega Kala Nag bhai....
 
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Aryanv

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Kala Nag

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👉चौरासीवां अपडेट (1)
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सुबह का समय
सुरज अभी तक पुरी तरह से निकला नहीं है फिर भी चारो तरफ प्रयाप्त उजाला बिखरा हुआ है l कटक शहर के रिंग रोड पर बच्चों से लेकर बुढ़े तक जॉगिंग और वकींग कर रहे हैं l जेब्रा बैरेज के सौ गेट में से सिर्फ एक ही गेट खुला है l जिस तरफ पानी जा रही है उसी तरफ के गिले रेत पर तापस नंगे पांव चलते हुए अपनी वकींग खतम कर अपनी जुतों के पास पहुँचता है I जुते उठा कर पानी के धार के पास जाता है l वहीं एक पत्थर पर बैठ कर अपने दोनों पाँवों को पानी में डुबो देता है l तभी उसके आँखों के सामने एक हाथ में नारियल दिखाई देता है

तापस - (नारियल लेते हुए) तो... लाटसाहाब की जॉगिंग खतम हो गई.
विश्व - ( बगल में और एक पत्थर पर बैठते हुए) जी... अभी अभी खतम करके पहुँचा हूँ..
तास - ह्म्म्म्म... आज सुबह बहुत जल्दी उठकर चला गया... मैंने सोचा शायद जॉगिंग के बाद... मुझे जॉइन करेगा... पर अब आ रहा है...
विश्व - आज ज़म कर भाग दौड़ की है... कभी कभी स्टेमिना चेक करना बहुत जरूरी होता है....
तापस - अच्छा... (स्ट्रॉ से नारियल पानी पीते हुए) ह्म्म्म्म... तो... कल अपनी माँ को दिन भर की राम कहानी सुनाई..
विश्व - कहाँ... लगभग बता ही चुका था... के तभी... बीच में जोडार साहब का फोन आ गया... और वहीँ पर कहानी फ्लो रुक गई... वैसे... बताने लायक बाकी कुछ था ही नहीं...
तापस - अच्छा... जोडार ने क्या कहा...
विश्व - (खड़ा हो जाता है, एक पत्थर उठा कर पानी के सतह पर फेंकता है) (वह पत्थर चार बार उछल कर पानी के सतह पर थोड़ी दुर फिसल कर डूब जाता है) कुछ खास नहीं...
तापस - मतलब
विश्व - वही... जोडार साहब वही कहा... जैसा मैंने एक्स्पेक्ट किया था...
तापस - ओ... मतलब... क्षेत्रपाल बच निकले...
विश्व - हाँ... पुरा का पुरा मामला... अब केके पर आ गया है... और सबसे अहम बात... वह जज के सामने... कंपेंनसेशन आमाउंट का ड्राफ़्ट... जोडार साहब को देगा....
तापस - ह्म्म्म्म... अरे वाह... यह तो तुम्हारे लिए... अच्छा ही गया... पहला केस... लीगल एडवाइज... और ज़बरदस्त कामयाबी... कंग्रेचुलेशन..
विश्व - हाँ... पर... ताज्जुब इस बात का है... केके जैसा आदमी... इतनी आसानी से... कंपेंनसेशन देने के लिए तैयार हो गया... खुद फिजिकली आकर जज के सामने... ड्राफ़्ट दे रहा है.. इसलिए यह मेरे लिए... एक ऐंटी क्लाइमेक्स रहा...
तापस - ओ... खैर लेट्स चेंज द टॉपिक.... ड्राइविंग स्कुल में... लर्न शुरू किया कि नहीं...
विश्व - कहाँ डैड... कल सिर्फ वर्चुअल लर्निंग हुआ... वह भी सिर्फ तीन गियर पर...
तापस - (हैरानी भरी आवाज में) वर्चुअल...
विश्व - हाँ... वह जो होता है ना... मॉल के गेम जॉन में... वैसा ही कुछ... थोड़ा एडवान्स्ड.. फॉर डी टेक्नॉलॉजी...
तापस - व्हाट... कम्बख्त इतने पैसे ऐंठ रहे हैं... वर्चुअल में सिखाने के लिए...
विश्व - (तापस की ओर घुमते हुए) डैड... कल ही लर्निंग लाइसेंस के लिए हमारा फोटो सेशन हुआ... आज भी हम वर्चुअल में सीखेंगे... कल तक हमें लर्निंग लाइसेंस देने के बाद ही... एक इंस्ट्रक्टर के साथ गाड़ी देंगे...
तापस - अच्छा तो ऐसी बात है... (नारियल पानी खतम हो चुका था, इसलिए नारियल फेंकते हुए) वक़्त कितना बदल गया है... हमारे ज़माने में... अलग हुआ करता था.. और अब देखो... खैर छोड़ो... वह हुर वाली क्या बला है... कल तुम्हारी माँ बहुत खुश थी...
विश्व - (हँसता है)हूँ हूँ हूँ हूँ... (चेहरा घुमा लेता है और बहते पानी के तरफ देखने लगता है) कुछ नहीं डैड... एक लड़की... (पॉज लेकर) बहुत ही अच्छी है...
तापस - (मुस्कराता है) ओ... तभी... तुम्हारी माँ इतनी खुश है....
विश्व - क्या डैड... आप भी... माँ को तो प्रीज्युम करना अच्छा लगता है... पर.. आप भी...
तास - ठीक है... ठीक है... और... आज का क्या प्रोग्राम है तुम्हारा...
विश्व - कुछ नहीं... वही...सेम.. सिमीलार... कल की तरह...
तापस - (अपना सिर हिलाते हुए चुप रहता है)
विश्व - (तापस के चेहरे को देखते हुए) आप कल मस्ती के मुड़ में.. रात को बाहर गए... पर जब रात को लौटे... टेंशन में थे.. क्यूँ...
तापस - नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं... तुम्हें गलत फहमी हो रही है...
विश्व - आप...(पानी की ओर देखते हुए) अच्छी तरह से जानते थे... ड्रॉइंग रुम में... हम जो भी बात कर रहे थे... सब कुछ माँ को सुनाई दे रहा था... आपका ऐसा कहना... माँ का आप पर गुस्सा होना... फिर आप बहाने से बाहर चले गए... (तापस की ओर देखते हुए) खान सर से मिलने...
तापस - (हैरान हो कर विश्व को घूरने लगता है)
विश्व - खान सर... कल कटक आए थे... आपको खबर भिजवाई थी... इसीलिए आप चालाकी से... बहाना बना कर इवनिंग वक के नाम पर चले गये...
तापस - तुम... मुझ पर नजर रख रहे हो... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हो...
विश्व - आप भी तो मुझ पर नजर रख रहे हैं... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हैं.... मेरी हर मूवमेंट पर.. नजर रख रहे हैं... मेरी हर खैर खबर रखने के लिए...
तापस - (खड़ा हो जाता है, हकलाते हुए) मैं... तु.. तु.. तुम पर नजर क.. क्यूँ.. रखूं... क.. क.. कोई तो वजह हो...
विश्व - वजह... वही है... जिस वजह से... आपने घर भुवनेश्वर के वजाए... कटक में लिया... आपको डर था... और अभी भी है... कहीं मेरा आमना सामना... क्षेत्रपाल के लौंडे से ना हो जाए...
तापस - (थोड़ा परेशान दिखने लगता है) मैं नहीं चाहता था... की तुम्हारी दुश्मनों की लिस्ट में गिनती बढ़े... पर... हालात ने..
विश्व - आपने वीआरएस ले लिया... अपना सर्विस रिवाल्वर सरेंडर कर दिया... यह माँ को मालुम है... पर एक लाइसेंसी पॉकेट माउजर,.. उसके साथ नाइन एम एम बुलेट्स के तीन मैग्ज़ीन... और यह बात... माँ को बिल्कुल भी मालुम नहीं है.... ऐसा क्यूँ....
तापस - (नजरें चुराने लगता है) मैं... वह... तुम्हें.. वि.. विक्रम से खतरा....
विश्व - कुछ नहीं हुआ है... कुछ भी नहीं होगा.... उसके पास अपना बेशक एक प्राइवेट आर्मी है... सरकारी मशीनरी में पहुँच है... फिर भी... उसने मुझे तलाशने के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है...
तापस - फिर भी..(सीरियस हो कर) वह क्षेत्रपाल है... भुला तो नहीं होगा...
विश्व - नहीं... नहीं भुला होगा... जानता हूँ... वह मुझसे अपनी निजी खुन्नस निकालने की सोच रहा होगा... ढूँढ रहा होगा... पर...
तापस - (हैरानी से आँखे फैल जाती है)
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) पर जो भी हो... मुझ तक ही हो... मुझे ही हो... आप, माँ या दीदी तक तो (अपना सिर ना में हिला कर) हरगिज नहीं.... जितना डेमेज होना था... हो चुका... अब ...नो मोर डेमेज...

तापस और विश्व के बीच कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l तापस देखता है विश्व का चेहरा बहुर गम्भीर हो गया है और उसके चेहरे पर जरा भी, कोई शिकन तक नहीं है l तभी एक कुत्ते की भौंकने आवाज़ उन दोनों का ध्यान उस तरफ खिंचता है l एक आदमी अपने लेब्र्डर कुत्ते के साथ वकींग करते हुए जा रहा था

तापस - (संभल कर भारी आवाज में) तुम...और हम... बहुत कुछ खो चुके हैं... इतना खो चुके हैं... की... (पॉज लेकर, विश्व की ओर देखते हुए) तुममें शायद ज़ब्त करने की हिम्मत हो... पर प्रताप... हम में और नहीं है...
विश्व - (तापस को एक सपाट भाव से देखता है)
तास - (उस आदमी और उसके कुत्ते को देख कर) जानते हो... कुछ पालतू कुत्ते... आवारा बनकर पागलों की तरह... शहर के गालियों मैं.. चौराहों में... हर कोने में तुम्हें ढूंढ रहे हैं...
विश्व - कुत्ते कभी पागलों की तरह नहीं घुमते... कुत्ते जो पागल हो जाते हैं... वही पागलों की तरह घुमते हैं... और उनका इलाज... या तो म्युनिसिपल वाले करते हैं... या फिर पब्लिक... (तापस हैरान हो कर विश्व की ओर देखने लगता है)


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वीर गाड़ी चला रहा है और रुप बाहर की ओर देख रही है l दोनों जब से गाड़ी के अंदर बैठे हुए हैं तब से शांत बैठे हुए हैं l कोई किसीसे बात नहीं कर रहा है l वजह दोनों के अलग हैं l दोनों को एक-दूसरे के हालत का अंदाजा नहीं है l जहां वीर अंदर ही अंदर खुश है और उसका मुड़ अच्छा है वहीँ रुप अंदर से थोड़ी मायूस और परेशान सी है l आखिर कार ख़ामोशी तोड़ते हुए

वीर - अच्छा नंदिनी... एक बात बता... कल तेरा ड्राइविंग सेशन कैसा गया...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) बढ़िया...
वीर - अच्छा... शाबाश... गुड... वैसे कल रात को जब लौटा... तो तुम और भाभी... आपस में क्या बातेँ कर रही थी...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - नहीं... मुझे लगा... मुझसे कुछ छिपाने वाली बात थी शायद...
रुप - तुमको ऐसा क्यूँ लगा भैया...
वीर - मुझे लगा बस...
रुप - (एक गहरी सांस लेकर) कुछ बातेँ.... हम ल़डकियों की बेहद पर्सनल होती हैं...
वीर - ओ... हाँ... शायद...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) क्या बात है भैया... आज बहुत खुश लग रहे हो... कल भी जब आए थे... बड़े खुश लग रहे थे...
वीर - अररे हाँ.. अरे यार... तुझे बताना तो भूल ही गया... वैसे... कुछ हम लड़कों की भी बेहद पर्सनल बातेँ होती हैं.... पर फिर भी... इतनी भी पर्सनल नहीं है... चल तुझे बता ही देता हूँ...(चहकते हुए) जानती है.. कल ना... जैसा तुने कहा था... मैंने बिल्कुल वैसा ही किया.. और... (खुशी के साथ) एक नया दोस्त बनाया है...
रुप - बहुत अच्छे...(एक सपाट सा जवाब देकर फिर बाहर की ओर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ... तुझे मेरे नए दोस्त के बारे में जान कर खुशी नहीं हुई क्या...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) हूँ... खुश हूँ...
वीर - अच्छा... तो चेहरा उस तरफ किए क्यूँ बैठी है...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) तो क्या है भैया... क्या तुम अब ऑफिस के वजाए... उस नए दोस्त के पास जाने वाले हो...
वीर - हाँ... (खुश हो कर) हाँ... अरे वाह... बहन हो तो तेरी जैसी... देखा.. मैं कहाँ और क्यूँ जाने वाला हूँ... झट से बता दिया...
रुप - भैया... (सपाट भाव से) मैंने जस्ट तुक्का लगाया... अब बताओ... कहाँ और क्यूँ जा रहे हो...
वीर - क्या बताऊँ... कल एक्सीडेंटली हम मिले... हमने एक दुसरे का नाम भी जान लिया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज नहीं किया... इसलिए उसका फोन नंबर लेने जा रहा हूँ...
रुप - फोन नंबर लेने जा रहे हो... इतना खास है क्या वह...
वीर - और नहीं तो... अररे... वह दोस्त नहीं... लाइट है... अंधेरे में भटकने नहीं देता... रास्ता दिखाता है...
रुप - (जीज्ञासा भरे अंदाज़े में) वह दोस्त.... कोई लड़की है क्या...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) तुम्हें ऐसा क्यों लगा...
रुप - तुम जिस तरह से... डेसक्रीप्शन दे रहे थे... मुझे लगा कोई लड़की होगी...
वीर - नंदिनी... मुझसे ...कोई लड़की क्यूँ दोस्ती करेगी... वह एक बॉय है.. एक डैसींग हैंडसम हंक...
रुप - भैया... आर यु सीरियस...
वीर - है... है... तु मेरे बारे में ऐसा सोचती है... अरे... ऐसे कैसे सोच सकती है... दोस्ती की है... बस दोस्ती... हे भगवान यह लड़की ऐसी भी सोचती है...
रुप - (हँस देती है) ओ हो हो हो हो... सॉरी... सॉरी भैया... वैसे... क्या वह तुम्हारी पुरी आईडेंटिटी जानता है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है) नहीं...
रुप - ओ... (कुछ देर की पॉज के बाद) आज ही मिलना है क्या... उस... नए दोस्त से...
वीर - हाँ... वह जो अंग्रेजी में एक कहावत है ना...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
रुप - ओ... हो.. वैसे नीड किसकी है...
वीर - मेरी...

रुप कुछ सोच में पड़ जाती है फिर अचानक उसकी आँखे चमकने लगती हैं l वह वीर से कहती है

रुप - (हड़बड़ाहट के साथ चिल्लाने लगती है) भैया... भैया... भैया..
वीर - क... क्या हुआ...
रुप - (चहकते हुए) वाह भैया... वाह.. क्या बात कही तुमने.... वाह
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - हाँ... सच ही तो कहा... (रुप की ओर देखता है, रुप के चेहरे पर उसे एक चमक दिखती है जैसे उसे कुछ मिल गया हो) क्या... क्या बात है... इस कहावत में ऐसा क्या था...
रुप - भैया... मुझे ना... प्लीज तुम विक्रम भैया के पास छोड़ दो....
वीर - (चर्र्र्र्र्र्र्.. गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... (फिर गाड़ी को एक किनारे लगाने के बाद) क्या... क्या कहा तुमने... तुम विक्रम भैया के पास जाओगी...
रुप - हाँ... प्लीज... मुझे उनके पास ले चलो ना...
वीर - क्यूँ...
रुप - (खीज कर) क्यूँ मतलब... वह मेरे भाई हैं.. मैं उनके पास क्यूँ नहीं जा सकती...
वीर - नहीं... मैंने तो ऐसा नहीँ कहा... क्या यह पर्सनल है...
रुप - (वीर की ओर मुड़ कर) नहीं...
वीर - तो मुझे... बता तो सकती हो...

रुप सीधा होकर बैठ जाती है l कुछ देर की चुप्पी के बाद वीर की ओर देखती है l वीर को उसकी आँखों में आसुओं की हल्की चमक दिखती है l

वीर - (सीरियस हो जाता है) नंदिनी... क्या हुआ... सुबह से देख रहा हूँ... आज तुम खोई हुई हो... कभी खुश हो जाती हो... तो कभी इमोशनल... तो कभी.... क्या बात है... कॉलेज में कोई परेशानी है... तो मुझे बता सकती हो... आई कैन सॉल्व...
रुप - भैया... ऐसा कुछ भी नहीं है... कॉलेज हो या बाहर... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है...
वीर - फिर.. तुम विक्रम भैया से क्यूँ मिलना चाहती हो...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ कर समझाने की कोशिश में) भैया... वह जहां हम ठहरे हुए हैं... उसे द हैल कहा जाता है... फिर भी.. उस घर में... मैं खुश हूँ... तुम खुश हो... तुम मैं भाभी और छोटी माँ... हम हमारी आपसी बंधन में बंध गए हैं... पर कभी सोचा है... या देखा है... भाभी को... या भैया को खुश होते हुए... भाभी... जिनसे सात जन्मों की बंधन में बंधी हुई हैं... उनके बीच की दूरी के बारे में...
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - भाभी खुश हैं या होती हैं... क्यूंकि वह हमारी खुशियों का सहारा लेती हैं... लेकिन वह अंदर से खाली हैं... एक भयानक सूनापन है... वह अपने अंदर की ग़म से घिरे हुए हैं... ग़म को भुलाने के लिए.... हम से जुड़े हुए हैं... पर असल बात यह है कि... भाभी बहुत दुखी हैं... और भैया भी...
वीर - (अपना चेहरा मोड़ कर बाहर की ओर देखते हुए) यह... यह उनकी पर्सनल मैटर है...
रुप - हाँ है... पर अभी अभी तुमने एक बात कही...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - इस कहावत से... उनकी निजी मैटर का क्या संबंद्ध है....
रुप - हाँ है... संबंद्ध है... क्यूंकि आज के दिन भाभी की इकलौती सखी सहेली दोस्त... सिर्फ़ मैं ही हूँ... मुझसे उनका दुख देखा नहीं जा रहा है... इसलिए अब मुझे ही कुछ करना है...
वीर - (रुप की ओर बिना देखे) क्या तुम... विक्रम भैया से... बात कर पाओगी... इस बारे में...
रुप - हाँ करूंगी...
वीर - (कुछ देर की पॉज के बाद) ठीक है... चलो... मैं तुम्हें ऑफिस लिए चलता हूँ...
रुप - पर भैया... एक और बात...
वीर - (हैरान हो कर रुप की ओर देखता है)
रुप - तुम बस मुझे ऑफिस के बाहर ड्रॉप कर... चले जाओगे...
वीर - व्हाट...
रुप - चौंकिए मत भैया... आखिर... मैं अपने बड़े भाई के पास जा रही हूँ...

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एक हस्पताल के कमरे में बेड पर रोणा बेहोशी की हालत में लेटा हुआ है l उसका ट्रैक शूट हाथ के पास और दाहिने पैर के पास फटा हुआ है l दायीं तरफ का चेहरा और जबड़ा भी दायीं तरफ सूजा हुआ है l दायीं आँख के पास चोट के कारण आँख पुरा बंद है और बायीं आँख के पास चोट कम लगी है l कमरे में एक पुलिस वाला है और उसके पास बल्लभ खड़ा है l दोनों वह डॉक्टर को जांच करते हुए देख रहा है l डॉक्टर रोणा को इंजेक्शन देता है, और नर्स को कुछ हिदायत दे कर बल्लभ से

डॉक्टर - आप मरीज़ के... क्या लगते हैं...
बल्लभ - दोस्त... दोस्त हूँ... और बाय प्रोफेशन... एडवोकेट...
डॉक्टर - ठीक है... अच्छी बात है... मैंने मरीज़ को पेन किलर इंजेक्शन दे दिया है... बस रिपोर्ट आने दीजिए... देखते हैं कितना सीरियस है...
बल्लभ - मरहम पट्टी तो कुछ दिख नहीं रहा है... चोट जो भी लगी है... वह सिर्फ चेहरे पर दिख रही है...
डॉक्टर - नो... इनके बॉडी के कुछ हिस्सों में... जहां जहां चोट लगी है... वहाँ के मसल्स क्रैंप हो गए हैं... कहीं अंदरुनी चोट ना लगी हो... इसलिए हमने स्कैनिंग कर दिया है... रिपोर्ट आने दीजिए... फिर देखते हैं...
बल्लभ - ठीक है... ठीक है... डॉक्टर... रिपोर्ट कब तक आ जाएगी...
डॉक्टर - बस एक आध घंटे में... पर आई थींक... इस पर हम शाम को बात करें तो ठीक रहेगा....
बल्लभ - ओके... एंड... थैंक्यू डॉक्टर... वैसे कब तक होश आ जाएगा...
डॉक्टर - बस.. अभी कुछ ही देर में... आ जाना चाहिए... ओके... कुछ जरूरी हुआ तो... मुझे इंफॉर्मे कीजिएगा...

इतना कह कर डॉक्टर वहाँ से चला जाता है l उस के जाते ही पुलिस वाले से

बल्लभ - थैंक्यू... साहू बाबु.. थैंक्यू वेरी मच... बिल्कुल सही टाइम पर मेडिकल लाने के लिए और... मुझे खबर करने के लिए...
पुलिस - ओह के सर... यह तो मेरा ड्यूटी था...
बल्लभ - वैसे आपने मुझे कॉन्टैक्ट कैसे किया...
साहू - मुझे एक फोन आया था... कि एक पुलिस वाले के साथ मार पीट हुआ है... वह xxxx में बेहोश पड़ा है... वह सर्किट हाउस के @ रुम में अपने वकील दोस्त के साथ रह रहा था... आगे... आप समझ सकते हैं...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... थैंक्यू अगेन... आपको क्या लगता है...
साहू - शायद किसीने... कोई निजी दुश्मनी उतारा है... बहुत मार पीट के बाद... शायद छोड़ दिया... हमें जिसने भी... फोन पर इत्तिला दी... इन्हें और आपको अच्छी तरह से जानता था...
बल्लभ - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
साहू - क्या हुआ सर...
बल्लभ - अगर आपको इत्तिला देने वाला हमें पहचानता था... तो उसीने इंस्पेक्टर रोणा को... हस्पताल में लेकर क्यूँ नहीं गया...
साहू - ह्म्म्म्म... पॉइंट तो है...

तभी रोणा के कराहने की आवाज सुनाई देती है l

साहू - लगता है इन्हें होश आ रहा है...

दोनों रोणा के पास आते हैं l नर्स रोणा की नब्ज चेक करने के बाद डॉक्टर को बुलाने बाहर चली जाती है

बल्लभ - अनिकेत... हैलो... सुनाई दे रहा है...
रोणा - (कराहते हुए, बड़ी मुश्किल से ) हाँ...
साहू - क्या आप मुझे स्टेटमेंट दे सकते हैं...

रोणा हैरानी भरे नजरों से अपनी चारों तरफ देखता है और थोड़ा संभल कर उठने की कोशिश करता है l साहू बेड फ़ोल्ड व्हील को घुमाता है l तो रोणा का शरीर पीठ के बल बैठने की पोजिशन में आ जाता है l

रोणा - मैं... यहाँ... (बहुत मुश्किल से हलक से आवाज निकलती है) कैसे...
बल्लभ - यह इंस्पेक्टर साहू... माल गोदाम थाने के अधिकारी... इन्हें खबर मिलते ही... तुम्हें हस्पताल पहुँचाया और मुझे खबर किया...
रोणा - आह... थैंक्यू.. इंस्पेक्टर... थैंक्यू...
साहु - आप भी पुलिस वाले हो... और मैं भी... खैर... क्या आप अभी स्टेटमेंट दे सकते हैं... या मैं बाद में आऊँ...
रोणा - हाँ... आह... हाँ... (जबड़ा मुश्किल से हिल पा रहा था)
साहू - (सरकारी काग़ज़ निकाल कर रोणा के पास बैठ जाता है) हाँ बोलिए...
रोणा - इंस्पेक्टर... तुम किस एरिया के इंचार्ज हो ...
बल्लभ - क्यूँ क्या हुआ... बताया तो था तुझे... माल गोदाम थाना...
रोणा - जबकि मेरे साथ जो कांड हुआ... वह इलाक़ा... कैंटनमेंट थाने के अंडर आता है...
बल्लभ - मतलब... तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... के.. पुरा का पुरा कांड... प्लॉटेड था... प्री प्लान्ड था...
साहू - क्या... (हैरान होते हुए)... प्लॉटेड था... कैसे... कौन...
रोणा - (फिर चुप हो जाता है)
बल्लभ - कुछ पुछा साहू बाबु ने...
रोणा - मैं... उसका... चेहरा नहीं देख पाया... पर एक का शकल याद है मुझे... जो भी हुआ... वह प्री प्लान्ड ही था...

फ्लैशबैक

जॉगिंग के लिए ट्रैक शूट और बुट पहन कर रोणा सर्किट हाउस से निकल कर वकींग करते हुए सुबह सुबह गड़गड़ीया के मैदान में पहुँचता है l सुरज अभी निकला नहीं था पर अंधेरा छट चुका था l मैदान में हर तरफ मर्द, औरत, बच्चें,लड़के, लड़कियाँ वकिंग के साथ साथ जॉगिंग भी कर रहे हैं l रोणा भी एक जगह पहुँच कर जॉगिंग शुरु करता है l कुछ दूर भागने के बाद वह धीरे धीरे चलने लगता है l उसके सामने दो लड़कियाँ टी शर्ट और लेग्गींस पहने चल रही थीं l दोनों के टी शर्ट थोड़ी छोटी लग रही थी, शायद वह दोनों अपने शरीर की हर कटाव को दिखाने का शौक था l चल ऐसे रहे थे जैसे अपना पिछवाड़ा दिखा कर ललचा रहे हों l रोणा भी उनका पिछवाड़ा देखते हुए उन दोनों के सही दूरी बना कर पीछे चलने लगता है l इतने में एक बंदा भागते हुए पहले रोणा को ओवर टेक् करता है फिर उन दो ल़डकियों के आगे जाते वक़्त उसका नोटों से भरा बटुआ गिर जाता है l ऐसे में एक लड़की झुकती है बटुआ उठाने के लिए तो उसका पिछवाड़ा रोणा के आगे उभर कर दिखने लगता है l रोणा की आँखे चमकने लगतीं है उसका मुहँ खुला रह जाता है l ठीक उसी वक़्त उसे पीछे से धक्का लगता है जिससे वह आगे की ओर फिसलते गिरते हुए उस लड़की के पिछवाड़े पर दोनों हाथ रख कर गिरने से बच जाता है l वह लड़की उठती है और घूम कर रोणा को देखती है और थप्पड़ मार देती है l उसके साथ जो लड़की थी वह चिल्ला चिल्ला कर लोगों को इकट्ठा करने लगती है l जैसे जैसे लोग जमा होने लगते हैं, रोणा की हालत खराब होने लगता है l वह दोनों ल़डकियों के पैर पकड़ लेता है

रोणा - बेटी.. बेटी... बहन बहन.. प्लीज.. मुझे माफ कर दो.. जो भी हुआ एक्सीडेंटली हुआ... इंटेंशनली नहीं.. प्लीज प्लीज...

तभी एक लड़का वहाँ पहुँचता है और वह सभी लोगों से कहता है

लड़का - देखो... कितना बे ग़ैरत और बे शर्म है... जलील लीच कमीना है... पैर छू कर गिड़गिड़ाने के बहाने... ल़डकियों को हाथ लगाना नहीं छोड़ रहा है...
रोणा - (उस लड़के से) ऐ.. ऐ... यह क्या बात कर रहे हो... मैं इनसे दिल से माफी मांग रहा हूँ...
लड़का - एक शर्त पर... यह लड़की.. तुमको और एक चांटा मारेगी...
रोणा - (बिदक कर) अरे.. यह क्या कह रहे हो.. बहुत जलील हो चुका हूँ... मैं.. मैं एक पुलिस वाला हूँ...
लड़का - लो.. यह तो पुलिस वाला निकला... अपनी नौकरी के धौंस में यह लड़कियों के शरीर पर इधर उधर हाथ मारता फिर रहा है... अगर पुलिस वाले से ही हमारी माँ बहन बेटी सुरक्षित नहीं हैं... तो हम समाज में रहने वाले... गुंडे मवलियों से क्या उम्मीद करें... इसको सबक सिखाना जरूरी है... मारो साले को...
रोणा - ऐ... (उठ कर खड़ा होते हुए) खबर दार... किसीने मुझे हाथ लगाया तो...देखो... मैं फिर से कह रहा हूँ... मैं पुलिस वाला हूँ... इंस्पेक्टर हूँ...
लड़का - देखा.. देखा कैसे यह अपनी वर्दी का धौंस जमा रहा है... मारो साले को...

इतना कह कर वह लड़का नीचे झुक जाता है, दोनों हाथों से रेत उठा कर रोणा के आँखों में फेंक देता है l रोणा चिल्लाने लगता है उस लड़के के साथ साथ कुछ और लोग मिलकर रोणा की सुताई शुरु कर देते हैं l रोणा देख नहीं पता कि कौन उसे मार रहा है पर उसे एहसास हो जाता है कि तीन चार बंदे मिलकर उसे कूट रहे हैं l मार खाते खाते रोणा नीचे गिर जाता है l तभी उसके सिर के पास झुक कर एक बंदा एड़ियों पर बैठता है l रोणा अपना सिर उठा कर देखने की कोशिश करता ही है कि उसके आँख के बगल में एक जोरदार घुसा लगता है l उस घुसे से रोणा जमीन चाटने लगता है l फिर उठने की कोशिश करता है और एक जोरदार घुसा उसी जगह पर लगती है l उसकी नज़रें धुंधली हो जाती है, उसी धुंधली नजर से फिर भी देखने की कोशिश करता है l एक बंदा सभी लोगों को वहाँ से भगाने लगता है और दुसरा बंदा रोणा के हाथ से घड़ी, उँगलियों से अंगूठियां और गले से चेन निकलने लगता है l पर उसे घुसा मारने वाला बंदा कुछ दूर पर खड़ा हो कर देख रहा है l सारे लोग वहाँ से जा चुके थे और दूसरा बंदा घड़ी, चेन और अंगूठियां निकाल लेने के बाद रोणा के कान में...

बंदा - सुन बे... बेटी चोद.. बहन चोद... मादरचोद.... पुलिस वाला है ना... अगर केस बने... तो लूटमार का केस बनाना समझा...(अपने साथी से) यार मालदार बकरा है... आज रात दारू की पार्टी मस्त जमेगी...
रोणा - (दर्द से कराहते हुए) सालों... एक पुलिस वाले पर हाथ उठाया है... याद रखना...
बंदा - बस बस... हम तुझे याद रखें ना रखें.. पर तु जरूर हमें याद रखेगा... अभी तेरी फिनिशिंग सुताई जो बाकी है... वह हमारा बॉस करेंगे...

दोनों बंदे रोणा को खड़ा करते हैं l वह तीसरा चल कर आता है और रोणा के सामने खड़ा होता है l अपनी धुंधली नजर से भी रोणा समझ जाता है कि बंदा अपना चेहरा रुमाल से ढका हुआ है l पहले वह रोणा को तीन चार झन्नाटेदार थप्पड़ मारता है l

रोणा - (ताकत लगा कर चिल्लाते हुए) साले.. हरामी.... कुत्ते...

आगे वह कुछ और बोल नहीं पाता l वह मारने वाला बंदा कभी रोणा के चेहरे पर, कभी पेट में, कभी जांघें पर, कभी कंधे के नीचे बहुत तेजी से घुसों की बरसात करने लगता है l इससे पहले रोणा कुछ और समझ पाता, इतने मार इतनी जल्दी में कि वह और झेल नहीं पता नीचे गिर जाता है l दोनों बंदे उसके बॉस को रोकते हैं l तीनों वहाँ से रोणा को छोड़ कर जाने लगते हैं कि उनका बॉस पीछे मुड़ता है और वापस दौड़ते हुए आ कर रोणा के पेट पर जोर से लात मारता है l

फ्लैशबैक खतम

रोणा - जब आँखे खुली... तो खुद को यहाँ पाया...
साहू - ह्म्म्म्म... बहुत ही कंफ्यूजींग है... यह राहज़नी केस लगती है..
रोणा - हाँ लूटमार का केस ही दर्ज कर दीजिए... पर मैं जानता हूँ कोई फायदा नहीं है...
बल्लभ - तुम्हें लगता है कि यह प्लॉटेड था... हो सकता है कि तुम्हारा पैर फिसला हो... तुम्हें लगा हो कि तुम्हें किसीने धक्का मारा...
रोणा - मैं कोई दूध पिता बच्चा नहीं हूँ... तुम भूल रहे हो.. साहू बाबु माल गोदाम थाने का इंचार्ज है... जब कि यह पुरा का पुरा कांड... कैंटनमेंट थाने के इलाके में हुआ है...
बल्लभ - फिर सीन में... साहू बाबु कैसे आया...
साहू - बेहोशी के हालात में... इन्हें कुछ दुर उठा कर ले गए होंगे... माल गोदाम इलाके के करीब... और मेरी ही मोबाइल फोन पर खबर किया गया....
बल्लभ - ह्म्म्म्म... लगता है किसीने जमकर खुन्नस निकाला है... पर है कौन...
रोणा - पता नहीं.....

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ESS ऑफिस के एंट्रेंस से कुछ दुर वीर गाड़ी रोक देता है l

वीर - क्या मैं भी चलूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं खुद विक्रम भैया से बात करना चाहती हूँ... (कह कर उतर जाती है) मैं... अपने भाई के पास जा रही हूँ... किसी कसाई खाने में नहीं... आप निश्चिंत हो कर जाओ...
वीर - ठीक है... मैं गार्ड्स को बोल देता हूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ... मैं चली जाऊँगी... आप बस अपने दोस्त के पास जाओ...
वीर - ठीक है...

वीर कुछ सोचते हुए गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l रुप वीर की गाड़ी को ओझल होते हुए देखती है l वीर की गाड़ी के ओझल होते ही रुप ऑफिस के एंट्रेंस के सामने आकर खड़ी होती है l ऊपर आर्क में लिखे एक्जीक्युटिव सिक्यूरिटी सर्विस पर नजर डालती है, फिर वह अंदर जाने लगती है l बाहर खड़े दो गार्ड्स उसे रोकते हैं l वह हैरान हो कर गार्ड्स को देखती है l

रुप - (एक गार्ड से) मुझे रोका क्यूँ ...
गार्ड - ऐ लड़की... तुम हो कौन... किससे मिलना है तुम्हें... अंदर जाने के लिए इजाजत लेनी पड़ती है...
रुप - ठीक है... तो फिर जाओ... मेरे भैया विक्रम सिंह से कहो... उनकी बहन... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल आई है...

गार्ड्स दोनों रुप की पुरा नाम सुनते ही डर के मारे कांपने लगते हैं l उनमें से एक गार्ड रुप को सैल्यूट करता है l

एक गार्ड - रा.. राज कुमारी जी आआप... यहाँ...
रुप - कहा ना... मेरे भाई से कहो... मैं अपने भाई से मिलने आई हूँ... जाओ जल्दी उन्हें खबर करो...
गार्ड - जी... जी.. (कह कर गेट के इंटरकम से अंदर की सिक्युरिटी को खबर करता है)

कुछ ही देर में एंट्रेंस का गेट खुल जाता है l गार्डेस रुप को अंदर जाने के लिए कहते हैं l रुप अंदर जाती है l कुछ लड़की गार्ड्स के लिबास में जो थीं वह भागते हुए रुप के पास आतीं हैं और रुप के आसपास घेरा बनाते हुए अंदर ले जाती हैं l उसका रास्ता बनाते हुए विक्रम के कैबिन के सामने खड़ा कर देते हैं और अंदर जाने के लिए कहते हैं I रुप को दरवाजे पर नेम प्लेट देखती है चमकीले अक्षरों में उपर छोटे अक्षरों में विक्रम सिंह और नीचे बड़े बड़े अक्षरों में क्षेत्रपाल लिखा हुआ है l दरवाजे को धकेल कर पहले अंदर झाँकती है l कोई नहीं दिखता है l उसे वॉशरुम से कुछ आवाजें सुनाई देती हैं l वह अंदर आजाती है और टेबल के पास खड़ी हो जाती है l कुछ देर बाद विक्रम रुप के सामने खड़ा हो जाता है l रुप देखती है विक्रम के बाल संवरे नहीं है और चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी है l रुप को उसका हालत देख कर अंदाजा हो जाता है कि विक्रम रात भर सोया नहीं है l दोनों एक दूसरे को देखते रहते हैं फिर अचानक

विक्रम - क... कैसे आना हुआ आपका... राजकुमारी...
रुप - (कहने की बहुत कोशिश करती है पर आवाज हलक में ही रह जाती है)
विक्रम - (समझ जाता है कि रुप नर्वस है) राजकुमारी... आप पहले बैठ जाएं (विक्रम खुद एक कुर्सी को आगे लाकर इशारा करता है) (रुप के बैठते ही वह भी एक चेयर खिंच कर रुप के सामने बैठ जाता है) घबराइये नहीं... आप ही का ऑफिस है...
रुप - जी...
विक्रम - वाव... कितनी मीठी आवाज है आपकी... कितने दिन.. नहीं... कितने सालों बाद... हम.. (रुक जाता है) छोड़िए..(इटरकम ऑन करता है) जल्दी से कुछ ठंडा भेजो.... (रुप से) कहिए... कैसे आना हुआ...
रुप - (अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है) आप... आप घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं... भैया...

विक्रम को झटका लगता है l वह उठ खड़ा हो जाता है l क्या कहे उसे कुछ नहीं सूझता l

विक्रम - भैया... मैं इस शब्द के लायक नहीं हूँ राजकुमारी...
रुप - आप लायक हैं... या नहीं...(रोते हुए) मुझे कोई मतलब नहीं है... बस आज मुझे बताइए... घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं...
विक्रम - यह....यह आपने.. कैसा सवाल पूछ लिया...
रुप - भैया... घर में... एक जान.. दो आँखे आपकी राह तक रही हैं... जानते हैं ना आप... कम से कम... उनके खातिर तो आप आ जाते...
विक्रम - अभी..(आवाज़ थर्रा जाती है) उसका टाइम नहीं आया है...
रुप - क्यूँ... क्यूँ नहीं आया है... एक और भाभी तड़प रहे हैं... और एक ओर आप... क्यूँ...
विक्रम - (अपनी नजरें फ़ेर कर, चेयर से उठ जाता है) आप... आप समझ नहीं पाएँगी... बच्ची हैं आप...
रुप - (चिल्ला कर उठ खड़ी होती है) बच्ची नहीं हूँ मैं... भाभी की सखी हूँ... सहेली हूँ... मैं उनकी...

विक्रम रुप को ऐसे चिल्लाते हुए पहली देख व सुन रहा था l रुप की नए रुप को देख कर चौंक जाता है l

रुप - ठीक है... तो बताइए... कल रात आप दरवाजे के पास क्यूँ आए थे... और वापस क्यूँ लौट गए थे....
विक्रम - (रुप की ओर हैरान हो कर देखता है) मैं.. मैं नहीं गया था...
रुप - झूठ... आप आए थे... और फिर वापस भी चले गए... भैया... क्यूँ..
विक्रम - (फिर चौंकता है)(पर कुछ कह नहीं पाता)
रुप - हाँ भैया...
विक्रम - (बड़ी मुश्किल से) यह... आपको कैसे मालुम...
रुप - (अपनी वैनिटी बैग से एक टैबलेट निकालती है) भैया... आप भूल रहे हो... घर के हर एक्सटर्नल पॉइंट में सीसीटीवी लगी है... (कह कर टैबलेट चलाती है) और सर्विलांस की आसेस... भाभी की टैबलेट में भी है...

टैबलेट में दिखता है विक्रम का कार द हैल के परिसर में आकर रुकती है l गाड़ी से उतर कर दरवाजे के बाहर आकर खड़ा हो जाता है l दरवाजे पर दोनों हाथ रख कर अपना सिर दरवाजे पर रखता है l कुछ देर उसी पोजीशन में रहता है फिर जल्दी से उतर कर गाड़ी स्टार्ट कर के निकल जाता है l रुप टैबलेट ऑफ कर देती है l

विक्रम - (भारी आवाज में) वहाँ... किसीको भी मेरा... इंतजार ही कहाँ है...
रुप - झूठ... सरासर झूठ... आपके आने का एहसास भाभी को हो गया था... नींद से उठ कर भागी थी दरवाजे तक... दरवाजे के पास खड़ी रहीं.. उन्हें इंतजार था... की शायद आप से उनके पुकारे जाने की... पर आप ख़ामोशी के साथ आए... और ख़ामोशी को छोड़ कर चले गए...

विक्रम हैरान हो जाता है रुप की इस खुलासे से l धप कर बैठ जाता है l

रुप - उन्हें रोज रोते.. तड़पते देख रही हूँ भैया... आपके इंतजार में... आपने उनसे जो वादे किए थे...वह वादे... क्यूँ नहीं निभा रहे हैं...
विक्रम - निभा ही तो रहा हूँ... मैंने वादा किया था... चाहे कुछ भी हो जाए... मुझ पर रूठने का हक़ उनको होगा... पर मैं कभी उनसे नहीं रूठुंगा....
रुप - आपने... और एक वादा भी किया था...
विक्रम - (रुप की ओर देखते हुए) और कौनसा वादा... यह जो दूरी... उन्होंने ही बनाया है...
रुप - ना... बिल्कुल नहीं... यह दूरी आपने बनाया है... इसके जिम्मेदार आप ही हैं... रही वादे की बात... आपने कहा था... के आप उन्हें... मनाना कभी नहीं छोड़ेंगे... तब तक मनाते रहेंगे... जब तक जब तक वह मान ना जाएं... अब आप बताओ भैया... शादी के बाद वह आपसे रूठ गईं... पर आपने... कब कब उन्हें मनाया... कितनी बार मनाया....

रुप की कहे हर एक शब्द विक्रम के सिर पर हथोड़े की तरह लग रहा था l

रुप - वह आपके लिए... सबकुछ छोड़ आयीं... पर आपकी खता के लिए उनका रूठना... वह उनका हक़ था... जिसे आपने ही उन्हें दिया था... बस... आपने अपना वादा नहीं निभाया.... उन्हें कभी नहीं मनाया...

रुप टैबलेट को अपनी बैग में रख कर विक्रम की ओर देखती है l

रुप - आपसे उम्र में छोटी हूँ... तजुर्बे में भी... आपसे ऊंची आवाज में बात की... उसके लिए माफ़ कर दीजियेगा... (कह कर जाने को होती है, फिर मुड़ कर) भैया... आपकी और भाभी का प्यार बेमिसाल है... वह आज भी आपकी इंतजार में हैं... आपके बीच जो भी गलत फहमी है उसे दूर करना आपका फर्ज है... पहल तो आपको ही करनी होगी... और आपसे ही होनी चाहिए है... (कह कर दरवाजे के पास जाती है, फिर वहीँ रुक कर वापस विक्रम की ओर देख कर) चले आओ भैया... प्लीज...

रुप चली गई l कमरे में अकेला विक्रम कुर्सी पर बैठा आँसू भरे आँखों में दरवाजे की ओर देख रहा है l उसके कानों में रुप के कही हर एक बात गूंज रही है l
 

Jaguaar

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सुबह का समय
सुरज अभी तक पुरी तरह से निकला नहीं है फिर भी चारो तरफ प्रयाप्त उजाला बिखरा हुआ है l कटक शहर के रिंग रोड पर बच्चों से लेकर बुढ़े तक जॉगिंग और वकींग कर रहे हैं l जेब्रा बैरेज के सौ गेट में से सिर्फ एक ही गेट खुला है l जिस तरफ पानी जा रही है उसी तरफ के गिले रेत पर तापस नंगे पांव चलते हुए अपनी वकींग खतम कर अपनी जुतों के पास पहुँचता है I जुते उठा कर पानी के धार के पास जाता है l वहीं एक पत्थर पर बैठ कर अपने दोनों पाँवों को पानी में डुबो देता है l तभी उसके आँखों के सामने एक हाथ में नारियल दिखाई देता है

तापस - (नारियल लेते हुए) तो... लाटसाहाब की जॉगिंग खतम हो गई.
विश्व - ( बगल में और एक पत्थर पर बैठते हुए) जी... अभी अभी खतम करके पहुँचा हूँ..
तास - ह्म्म्म्म... आज सुबह बहुत जल्दी उठकर चला गया... मैंने सोचा शायद जॉगिंग के बाद... मुझे जॉइन करेगा... पर अब आ रहा है...
विश्व - आज ज़म कर भाग दौड़ की है... कभी कभी स्टेमिना चेक करना बहुत जरूरी होता है....
तापस - अच्छा... (स्ट्रॉ से नारियल पानी पीते हुए) ह्म्म्म्म... तो... कल अपनी माँ को दिन भर की राम कहानी सुनाई..
विश्व - कहाँ... लगभग बता ही चुका था... के तभी... बीच में जोडार साहब का फोन आ गया... और वहीँ पर कहानी फ्लो रुक गई... वैसे... बताने लायक बाकी कुछ था ही नहीं...
तापस - अच्छा... जोडार ने क्या कहा...
विश्व - (खड़ा हो जाता है, एक पत्थर उठा कर पानी के सतह पर फेंकता है) (वह पत्थर चार बार उछल कर पानी के सतह पर थोड़ी दुर फिसल कर डूब जाता है) कुछ खास नहीं...
तापस - मतलब
विश्व - वही... जोडार साहब वही कहा... जैसा मैंने एक्स्पेक्ट किया था...
तापस - ओ... मतलब... क्षेत्रपाल बच निकले...
विश्व - हाँ... पुरा का पुरा मामला... अब केके पर आ गया है... और सबसे अहम बात... वह जज के सामने... कंपेंनसेशन आमाउंट का ड्राफ़्ट... जोडार साहब को देगा....
तापस - ह्म्म्म्म... अरे वाह... यह तो तुम्हारे लिए... अच्छा ही गया... पहला केस... लीगल एडवाइज... और ज़बरदस्त कामयाबी... कंग्रेचुलेशन..
विश्व - हाँ... पर... ताज्जुब इस बात का है... केके जैसा आदमी... इतनी आसानी से... कंपेंनसेशन देने के लिए तैयार हो गया... खुद फिजिकली आकर जज के सामने... ड्राफ़्ट दे रहा है.. इसलिए यह मेरे लिए... एक ऐंटी क्लाइमेक्स रहा...
तापस - ओ... खैर लेट्स चेंज द टॉपिक.... ड्राइविंग स्कुल में... लर्न शुरू किया कि नहीं...
विश्व - कहाँ डैड... कल सिर्फ वर्चुअल लर्निंग हुआ... वह भी सिर्फ तीन गियर पर...
तापस - (हैरानी भरी आवाज में) वर्चुअल...
विश्व - हाँ... वह जो होता है ना... मॉल के गेम जॉन में... वैसा ही कुछ... थोड़ा एडवान्स्ड.. फॉर डी टेक्नॉलॉजी...
तापस - व्हाट... कम्बख्त इतने पैसे ऐंठ रहे हैं... वर्चुअल में सिखाने के लिए...
विश्व - (तापस की ओर घुमते हुए) डैड... कल ही लर्निंग लाइसेंस के लिए हमारा फोटो सेशन हुआ... आज भी हम वर्चुअल में सीखेंगे... कल तक हमें लर्निंग लाइसेंस देने के बाद ही... एक इंस्ट्रक्टर के साथ गाड़ी देंगे...
तापस - अच्छा तो ऐसी बात है... (नारियल पानी खतम हो चुका था, इसलिए नारियल फेंकते हुए) वक़्त कितना बदल गया है... हमारे ज़माने में... अलग हुआ करता था.. और अब देखो... खैर छोड़ो... वह हुर वाली क्या बला है... कल तुम्हारी माँ बहुत खुश थी...
विश्व - (हँसता है)हूँ हूँ हूँ हूँ... (चेहरा घुमा लेता है और बहते पानी के तरफ देखने लगता है) कुछ नहीं डैड... एक लड़की... (पॉज लेकर) बहुत ही अच्छी है...
तापस - (मुस्कराता है) ओ... तभी... तुम्हारी माँ इतनी खुश है....
विश्व - क्या डैड... आप भी... माँ को तो प्रीज्युम करना अच्छा लगता है... पर.. आप भी...
तास - ठीक है... ठीक है... और... आज का क्या प्रोग्राम है तुम्हारा...
विश्व - कुछ नहीं... वही...सेम.. सिमीलार... कल की तरह...
तापस - (अपना सिर हिलाते हुए चुप रहता है)
विश्व - (तापस के चेहरे को देखते हुए) आप कल मस्ती के मुड़ में.. रात को बाहर गए... पर जब रात को लौटे... टेंशन में थे.. क्यूँ...
तापस - नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं... तुम्हें गलत फहमी हो रही है...
विश्व - आप...(पानी की ओर देखते हुए) अच्छी तरह से जानते थे... ड्रॉइंग रुम में... हम जो भी बात कर रहे थे... सब कुछ माँ को सुनाई दे रहा था... आपका ऐसा कहना... माँ का आप पर गुस्सा होना... फिर आप बहाने से बाहर चले गए... (तापस की ओर देखते हुए) खान सर से मिलने...
तापस - (हैरान हो कर विश्व को घूरने लगता है)
विश्व - खान सर... कल कटक आए थे... आपको खबर भिजवाई थी... इसीलिए आप चालाकी से... बहाना बना कर इवनिंग वक के नाम पर चले गये...
तापस - तुम... मुझ पर नजर रख रहे हो... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हो...
विश्व - आप भी तो मुझ पर नजर रख रहे हैं... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हैं.... मेरी हर मूवमेंट पर.. नजर रख रहे हैं... मेरी हर खैर खबर रखने के लिए...
तापस - (खड़ा हो जाता है, हकलाते हुए) मैं... तु.. तु.. तुम पर नजर क.. क्यूँ.. रखूं... क.. क.. कोई तो वजह हो...
विश्व - वजह... वही है... जिस वजह से... आपने घर भुवनेश्वर के वजाए... कटक में लिया... आपको डर था... और अभी भी है... कहीं मेरा आमना सामना... क्षेत्रपाल के लौंडे से ना हो जाए...
तापस - (थोड़ा परेशान दिखने लगता है) मैं नहीं चाहता था... की तुम्हारी दुश्मनों की लिस्ट में गिनती बढ़े... पर... हालात ने..
विश्व - आपने वीआरएस ले लिया... अपना सर्विस रिवाल्वर सरेंडर कर दिया... यह माँ को मालुम है... पर एक लाइसेंसी पॉकेट माउजर,.. उसके साथ नाइन एम एम बुलेट्स के तीन मैग्ज़ीन... और यह बात... माँ को बिल्कुल भी मालुम नहीं है.... ऐसा क्यूँ....
तापस - (नजरें चुराने लगता है) मैं... वह... तुम्हें.. वि.. विक्रम से खतरा....
विश्व - कुछ नहीं हुआ है... कुछ भी नहीं होगा.... उसके पास अपना बेशक एक प्राइवेट आर्मी है... सरकारी मशीनरी में पहुँच है... फिर भी... उसने मुझे तलाशने के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है...
तापस - फिर भी..(सीरियस हो कर) वह क्षेत्रपाल है... भुला तो नहीं होगा...
विश्व - नहीं... नहीं भुला होगा... जानता हूँ... वह मुझसे अपनी निजी खुन्नस निकालने की सोच रहा होगा... ढूँढ रहा होगा... पर...
तापस - (हैरानी से आँखे फैल जाती है)
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) पर जो भी हो... मुझ तक ही हो... मुझे ही हो... आप, माँ या दीदी तक तो (अपना सिर ना में हिला कर) हरगिज नहीं.... जितना डेमेज होना था... हो चुका... अब ...नो मोर डेमेज...

तापस और विश्व के बीच कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l तापस देखता है विश्व का चेहरा बहुर गम्भीर हो गया है और उसके चेहरे पर जरा भी, कोई शिकन तक नहीं है l तभी एक कुत्ते की भौंकने आवाज़ उन दोनों का ध्यान उस तरफ खिंचता है l एक आदमी अपने लेब्र्डर कुत्ते के साथ वकींग करते हुए जा रहा था

तापस - (संभल कर भारी आवाज में) तुम...और हम... बहुत कुछ खो चुके हैं... इतना खो चुके हैं... की... (पॉज लेकर, विश्व की ओर देखते हुए) तुममें शायद ज़ब्त करने की हिम्मत हो... पर प्रताप... हम में और नहीं है...
विश्व - (तापस को एक सपाट भाव से देखता है)
तास - (उस आदमी और उसके कुत्ते को देख कर) जानते हो... कुछ पालतू कुत्ते... आवारा बनकर पागलों की तरह... शहर के गालियों मैं.. चौराहों में... हर कोने में तुम्हें ढूंढ रहे हैं...
विश्व - कुत्ते कभी पागलों की तरह नहीं घुमते... कुत्ते जो पागल हो जाते हैं... वही पागलों की तरह घुमते हैं... और उनका इलाज... या तो म्युनिसिपल वाले करते हैं... या फिर पब्लिक... (तापस हैरान हो कर विश्व की ओर देखने लगता है)


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वीर गाड़ी चला रहा है और रुप बाहर की ओर देख रही है l दोनों जब से गाड़ी के अंदर बैठे हुए हैं तब से शांत बैठे हुए हैं l कोई किसीसे बात नहीं कर रहा है l वजह दोनों के अलग हैं l दोनों को एक-दूसरे के हालत का अंदाजा नहीं है l जहां वीर अंदर ही अंदर खुश है और उसका मुड़ अच्छा है वहीँ रुप अंदर से थोड़ी मायूस और परेशान सी है l आखिर कार ख़ामोशी तोड़ते हुए

वीर - अच्छा नंदिनी... एक बात बता... कल तेरा ड्राइविंग सेशन कैसा गया...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) बढ़िया...
वीर - अच्छा... शाबाश... गुड... वैसे कल रात को जब लौटा... तो तुम और भाभी... आपस में क्या बातेँ कर रही थी...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - नहीं... मुझे लगा... मुझसे कुछ छिपाने वाली बात थी शायद...
रुप - तुमको ऐसा क्यूँ लगा भैया...
वीर - मुझे लगा बस...
रुप - (एक गहरी सांस लेकर) कुछ बातेँ.... हम ल़डकियों की बेहद पर्सनल होती हैं...
वीर - ओ... हाँ... शायद...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) क्या बात है भैया... आज बहुत खुश लग रहे हो... कल भी जब आए थे... बड़े खुश लग रहे थे...
वीर - अररे हाँ.. अरे यार... तुझे बताना तो भूल ही गया... वैसे... कुछ हम लड़कों की भी बेहद पर्सनल बातेँ होती हैं.... पर फिर भी... इतनी भी पर्सनल नहीं है... चल तुझे बता ही देता हूँ...(चहकते हुए) जानती है.. कल ना... जैसा तुने कहा था... मैंने बिल्कुल वैसा ही किया.. और... (खुशी के साथ) एक नया दोस्त बनाया है...
रुप - बहुत अच्छे...(एक सपाट सा जवाब देकर फिर बाहर की ओर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ... तुझे मेरे नए दोस्त के बारे में जान कर खुशी नहीं हुई क्या...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) हूँ... खुश हूँ...
वीर - अच्छा... तो चेहरा उस तरफ किए क्यूँ बैठी है...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) तो क्या है भैया... क्या तुम अब ऑफिस के वजाए... उस नए दोस्त के पास जाने वाले हो...
वीर - हाँ... (खुश हो कर) हाँ... अरे वाह... बहन हो तो तेरी जैसी... देखा.. मैं कहाँ और क्यूँ जाने वाला हूँ... झट से बता दिया...
रुप - भैया... (सपाट भाव से) मैंने जस्ट तुक्का लगाया... अब बताओ... कहाँ और क्यूँ जा रहे हो...
वीर - क्या बताऊँ... कल एक्सीडेंटली हम मिले... हमने एक दुसरे का नाम भी जान लिया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज नहीं किया... इसलिए उसका फोन नंबर लेने जा रहा हूँ...
रुप - फोन नंबर लेने जा रहे हो... इतना खास है क्या वह...
वीर - और नहीं तो... अररे... वह दोस्त नहीं... लाइट है... अंधेरे में भटकने नहीं देता... रास्ता दिखाता है...
रुप - (जीज्ञासा भरे अंदाज़े में) वह दोस्त.... कोई लड़की है क्या...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) तुम्हें ऐसा क्यों लगा...
रुप - तुम जिस तरह से... डेसक्रीप्शन दे रहे थे... मुझे लगा कोई लड़की होगी...
वीर - नंदिनी... मुझसे ...कोई लड़की क्यूँ दोस्ती करेगी... वह एक बॉय है.. एक डैसींग हैंडसम हंक...
रुप - भैया... आर यु सीरियस...
वीर - है... है... तु मेरे बारे में ऐसा सोचती है... अरे... ऐसे कैसे सोच सकती है... दोस्ती की है... बस दोस्ती... हे भगवान यह लड़की ऐसी भी सोचती है...
रुप - (हँस देती है) ओ हो हो हो हो... सॉरी... सॉरी भैया... वैसे... क्या वह तुम्हारी पुरी आईडेंटिटी जानता है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है) नहीं...
रुप - ओ... (कुछ देर की पॉज के बाद) आज ही मिलना है क्या... उस... नए दोस्त से...
वीर - हाँ... वह जो अंग्रेजी में एक कहावत है ना...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
रुप - ओ... हो.. वैसे नीड किसकी है...
वीर - मेरी...

रुप कुछ सोच में पड़ जाती है फिर अचानक उसकी आँखे चमकने लगती हैं l वह वीर से कहती है

रुप - (हड़बड़ाहट के साथ चिल्लाने लगती है) भैया... भैया... भैया..
वीर - क... क्या हुआ...
रुप - (चहकते हुए) वाह भैया... वाह.. क्या बात कही तुमने.... वाह
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - हाँ... सच ही तो कहा... (रुप की ओर देखता है, रुप के चेहरे पर उसे एक चमक दिखती है जैसे उसे कुछ मिल गया हो) क्या... क्या बात है... इस कहावत में ऐसा क्या था...
रुप - भैया... मुझे ना... प्लीज तुम विक्रम भैया के पास छोड़ दो....
वीर - (चर्र्र्र्र्र्र्.. गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... (फिर गाड़ी को एक किनारे लगाने के बाद) क्या... क्या कहा तुमने... तुम विक्रम भैया के पास जाओगी...
रुप - हाँ... प्लीज... मुझे उनके पास ले चलो ना...
वीर - क्यूँ...
रुप - (खीज कर) क्यूँ मतलब... वह मेरे भाई हैं.. मैं उनके पास क्यूँ नहीं जा सकती...
वीर - नहीं... मैंने तो ऐसा नहीँ कहा... क्या यह पर्सनल है...
रुप - (वीर की ओर मुड़ कर) नहीं...
वीर - तो मुझे... बता तो सकती हो...

रुप सीधा होकर बैठ जाती है l कुछ देर की चुप्पी के बाद वीर की ओर देखती है l वीर को उसकी आँखों में आसुओं की हल्की चमक दिखती है l

वीर - (सीरियस हो जाता है) नंदिनी... क्या हुआ... सुबह से देख रहा हूँ... आज तुम खोई हुई हो... कभी खुश हो जाती हो... तो कभी इमोशनल... तो कभी.... क्या बात है... कॉलेज में कोई परेशानी है... तो मुझे बता सकती हो... आई कैन सॉल्व...
रुप - भैया... ऐसा कुछ भी नहीं है... कॉलेज हो या बाहर... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है...
वीर - फिर.. तुम विक्रम भैया से क्यूँ मिलना चाहती हो...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ कर समझाने की कोशिश में) भैया... वह जहां हम ठहरे हुए हैं... उसे द हैल कहा जाता है... फिर भी.. उस घर में... मैं खुश हूँ... तुम खुश हो... तुम मैं भाभी और छोटी माँ... हम हमारी आपसी बंधन में बंध गए हैं... पर कभी सोचा है... या देखा है... भाभी को... या भैया को खुश होते हुए... भाभी... जिनसे सात जन्मों की बंधन में बंधी हुई हैं... उनके बीच की दूरी के बारे में...
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - भाभी खुश हैं या होती हैं... क्यूंकि वह हमारी खुशियों का सहारा लेती हैं... लेकिन वह अंदर से खाली हैं... एक भयानक सूनापन है... वह अपने अंदर की ग़म से घिरे हुए हैं... ग़म को भुलाने के लिए.... हम से जुड़े हुए हैं... पर असल बात यह है कि... भाभी बहुत दुखी हैं... और भैया भी...
वीर - (अपना चेहरा मोड़ कर बाहर की ओर देखते हुए) यह... यह उनकी पर्सनल मैटर है...
रुप - हाँ है... पर अभी अभी तुमने एक बात कही...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - इस कहावत से... उनकी निजी मैटर का क्या संबंद्ध है....
रुप - हाँ है... संबंद्ध है... क्यूंकि आज के दिन भाभी की इकलौती सखी सहेली दोस्त... सिर्फ़ मैं ही हूँ... मुझसे उनका दुख देखा नहीं जा रहा है... इसलिए अब मुझे ही कुछ करना है...
वीर - (रुप की ओर बिना देखे) क्या तुम... विक्रम भैया से... बात कर पाओगी... इस बारे में...
रुप - हाँ करूंगी...
वीर - (कुछ देर की पॉज के बाद) ठीक है... चलो... मैं तुम्हें ऑफिस लिए चलता हूँ...
रुप - पर भैया... एक और बात...
वीर - (हैरान हो कर रुप की ओर देखता है)
रुप - तुम बस मुझे ऑफिस के बाहर ड्रॉप कर... चले जाओगे...
वीर - व्हाट...
रुप - चौंकिए मत भैया... आखिर... मैं अपने बड़े भाई के पास जा रही हूँ...

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एक हस्पताल के कमरे में बेड पर रोणा बेहोशी की हालत में लेटा हुआ है l उसका ट्रैक शूट हाथ के पास और दाहिने पैर के पास फटा हुआ है l दायीं तरफ का चेहरा और जबड़ा भी दायीं तरफ सूजा हुआ है l दायीं आँख के पास चोट के कारण आँख पुरा बंद है और बायीं आँख के पास चोट कम लगी है l कमरे में एक पुलिस वाला है और उसके पास बल्लभ खड़ा है l दोनों वह डॉक्टर को जांच करते हुए देख रहा है l डॉक्टर रोणा को इंजेक्शन देता है, और नर्स को कुछ हिदायत दे कर बल्लभ से

डॉक्टर - आप मरीज़ के... क्या लगते हैं...
बल्लभ - दोस्त... दोस्त हूँ... और बाय प्रोफेशन... एडवोकेट...
डॉक्टर - ठीक है... अच्छी बात है... मैंने मरीज़ को पेन किलर इंजेक्शन दे दिया है... बस रिपोर्ट आने दीजिए... देखते हैं कितना सीरियस है...
बल्लभ - मरहम पट्टी तो कुछ दिख नहीं रहा है... चोट जो भी लगी है... वह सिर्फ चेहरे पर दिख रही है...
डॉक्टर - नो... इनके बॉडी के कुछ हिस्सों में... जहां जहां चोट लगी है... वहाँ के मसल्स क्रैंप हो गए हैं... कहीं अंदरुनी चोट ना लगी हो... इसलिए हमने स्कैनिंग कर दिया है... रिपोर्ट आने दीजिए... फिर देखते हैं...
बल्लभ - ठीक है... ठीक है... डॉक्टर... रिपोर्ट कब तक आ जाएगी...
डॉक्टर - बस एक आध घंटे में... पर आई थींक... इस पर हम शाम को बात करें तो ठीक रहेगा....
बल्लभ - ओके... एंड... थैंक्यू डॉक्टर... वैसे कब तक होश आ जाएगा...
डॉक्टर - बस.. अभी कुछ ही देर में... आ जाना चाहिए... ओके... कुछ जरूरी हुआ तो... मुझे इंफॉर्मे कीजिएगा...

इतना कह कर डॉक्टर वहाँ से चला जाता है l उस के जाते ही पुलिस वाले से

बल्लभ - थैंक्यू... साहू बाबु.. थैंक्यू वेरी मच... बिल्कुल सही टाइम पर मेडिकल लाने के लिए और... मुझे खबर करने के लिए...
पुलिस - ओह के सर... यह तो मेरा ड्यूटी था...
बल्लभ - वैसे आपने मुझे कॉन्टैक्ट कैसे किया...
साहू - मुझे एक फोन आया था... कि एक पुलिस वाले के साथ मार पीट हुआ है... वह xxxx में बेहोश पड़ा है... वह सर्किट हाउस के @ रुम में अपने वकील दोस्त के साथ रह रहा था... आगे... आप समझ सकते हैं...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... थैंक्यू अगेन... आपको क्या लगता है...
साहू - शायद किसीने... कोई निजी दुश्मनी उतारा है... बहुत मार पीट के बाद... शायद छोड़ दिया... हमें जिसने भी... फोन पर इत्तिला दी... इन्हें और आपको अच्छी तरह से जानता था...
बल्लभ - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
साहू - क्या हुआ सर...
बल्लभ - अगर आपको इत्तिला देने वाला हमें पहचानता था... तो उसीने इंस्पेक्टर रोणा को... हस्पताल में लेकर क्यूँ नहीं गया...
साहू - ह्म्म्म्म... पॉइंट तो है...

तभी रोणा के कराहने की आवाज सुनाई देती है l

साहू - लगता है इन्हें होश आ रहा है...

दोनों रोणा के पास आते हैं l नर्स रोणा की नब्ज चेक करने के बाद डॉक्टर को बुलाने बाहर चली जाती है

बल्लभ - अनिकेत... हैलो... सुनाई दे रहा है...
रोणा - (कराहते हुए, बड़ी मुश्किल से ) हाँ...
साहू - क्या आप मुझे स्टेटमेंट दे सकते हैं...

रोणा हैरानी भरे नजरों से अपनी चारों तरफ देखता है और थोड़ा संभल कर उठने की कोशिश करता है l साहू बेड फ़ोल्ड व्हील को घुमाता है l तो रोणा का शरीर पीठ के बल बैठने की पोजिशन में आ जाता है l

रोणा - मैं... यहाँ... (बहुत मुश्किल से हलक से आवाज निकलती है) कैसे...
बल्लभ - यह इंस्पेक्टर साहू... माल गोदाम थाने के अधिकारी... इन्हें खबर मिलते ही... तुम्हें हस्पताल पहुँचाया और मुझे खबर किया...
रोणा - आह... थैंक्यू.. इंस्पेक्टर... थैंक्यू...
साहु - आप भी पुलिस वाले हो... और मैं भी... खैर... क्या आप अभी स्टेटमेंट दे सकते हैं... या मैं बाद में आऊँ...
रोणा - हाँ... आह... हाँ... (जबड़ा मुश्किल से हिल पा रहा था)
साहू - (सरकारी काग़ज़ निकाल कर रोणा के पास बैठ जाता है) हाँ बोलिए...
रोणा - इंस्पेक्टर... तुम किस एरिया के इंचार्ज हो ...
बल्लभ - क्यूँ क्या हुआ... बताया तो था तुझे... माल गोदाम थाना...
रोणा - जबकि मेरे साथ जो कांड हुआ... वह इलाक़ा... कैंटनमेंट थाने के अंडर आता है...
बल्लभ - मतलब... तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... के.. पुरा का पुरा कांड... प्लॉटेड था... प्री प्लान्ड था...
साहू - क्या... (हैरान होते हुए)... प्लॉटेड था... कैसे... कौन...
रोणा - (फिर चुप हो जाता है)
बल्लभ - कुछ पुछा साहू बाबु ने...
रोणा - मैं... उसका... चेहरा नहीं देख पाया... पर एक का शकल याद है मुझे... जो भी हुआ... वह प्री प्लान्ड ही था...

फ्लैशबैक

जॉगिंग के लिए ट्रैक शूट और बुट पहन कर रोणा सर्किट हाउस से निकल कर वकींग करते हुए सुबह सुबह गड़गड़ीया के मैदान में पहुँचता है l सुरज अभी निकला नहीं था पर अंधेरा छट चुका था l मैदान में हर तरफ मर्द, औरत, बच्चें,लड़के, लड़कियाँ वकिंग के साथ साथ जॉगिंग भी कर रहे हैं l रोणा भी एक जगह पहुँच कर जॉगिंग शुरु करता है l कुछ दूर भागने के बाद वह धीरे धीरे चलने लगता है l उसके सामने दो लड़कियाँ टी शर्ट और लेग्गींस पहने चल रही थीं l दोनों के टी शर्ट थोड़ी छोटी लग रही थी, शायद वह दोनों अपने शरीर की हर कटाव को दिखाने का शौक था l चल ऐसे रहे थे जैसे अपना पिछवाड़ा दिखा कर ललचा रहे हों l रोणा भी उनका पिछवाड़ा देखते हुए उन दोनों के सही दूरी बना कर पीछे चलने लगता है l इतने में एक बंदा भागते हुए पहले रोणा को ओवर टेक् करता है फिर उन दो ल़डकियों के आगे जाते वक़्त उसका नोटों से भरा बटुआ गिर जाता है l ऐसे में एक लड़की झुकती है बटुआ उठाने के लिए तो उसका पिछवाड़ा रोणा के आगे उभर कर दिखने लगता है l रोणा की आँखे चमकने लगतीं है उसका मुहँ खुला रह जाता है l ठीक उसी वक़्त उसे पीछे से धक्का लगता है जिससे वह आगे की ओर फिसलते गिरते हुए उस लड़की के पिछवाड़े पर दोनों हाथ रख कर गिरने से बच जाता है l वह लड़की उठती है और घूम कर रोणा को देखती है और थप्पड़ मार देती है l उसके साथ जो लड़की थी वह चिल्ला चिल्ला कर लोगों को इकट्ठा करने लगती है l जैसे जैसे लोग जमा होने लगते हैं, रोणा की हालत खराब होने लगता है l वह दोनों ल़डकियों के पैर पकड़ लेता है

रोणा - बेटी.. बेटी... बहन बहन.. प्लीज.. मुझे माफ कर दो.. जो भी हुआ एक्सीडेंटली हुआ... इंटेंशनली नहीं.. प्लीज प्लीज...

तभी एक लड़का वहाँ पहुँचता है और वह सभी लोगों से कहता है

लड़का - देखो... कितना बे ग़ैरत और बे शर्म है... जलील लीच कमीना है... पैर छू कर गिड़गिड़ाने के बहाने... ल़डकियों को हाथ लगाना नहीं छोड़ रहा है...
रोणा - (उस लड़के से) ऐ.. ऐ... यह क्या बात कर रहे हो... मैं इनसे दिल से माफी मांग रहा हूँ...
लड़का - एक शर्त पर... यह लड़की.. तुमको और एक चांटा मारेगी...
रोणा - (बिदक कर) अरे.. यह क्या कह रहे हो.. बहुत जलील हो चुका हूँ... मैं.. मैं एक पुलिस वाला हूँ...
लड़का - लो.. यह तो पुलिस वाला निकला... अपनी नौकरी के धौंस में यह लड़कियों के शरीर पर इधर उधर हाथ मारता फिर रहा है... अगर पुलिस वाले से ही हमारी माँ बहन बेटी सुरक्षित नहीं हैं... तो हम समाज में रहने वाले... गुंडे मवलियों से क्या उम्मीद करें... इसको सबक सिखाना जरूरी है... मारो साले को...
रोणा - ऐ... (उठ कर खड़ा होते हुए) खबर दार... किसीने मुझे हाथ लगाया तो...देखो... मैं फिर से कह रहा हूँ... मैं पुलिस वाला हूँ... इंस्पेक्टर हूँ...
लड़का - देखा.. देखा कैसे यह अपनी वर्दी का धौंस जमा रहा है... मारो साले को...

इतना कह कर वह लड़का नीचे झुक जाता है, दोनों हाथों से रेत उठा कर रोणा के आँखों में फेंक देता है l रोणा चिल्लाने लगता है उस लड़के के साथ साथ कुछ और लोग मिलकर रोणा की सुताई शुरु कर देते हैं l रोणा देख नहीं पता कि कौन उसे मार रहा है पर उसे एहसास हो जाता है कि तीन चार बंदे मिलकर उसे कूट रहे हैं l मार खाते खाते रोणा नीचे गिर जाता है l तभी उसके सिर के पास झुक कर एक बंदा एड़ियों पर बैठता है l रोणा अपना सिर उठा कर देखने की कोशिश करता ही है कि उसके आँख के बगल में एक जोरदार घुसा लगता है l उस घुसे से रोणा जमीन चाटने लगता है l फिर उठने की कोशिश करता है और एक जोरदार घुसा उसी जगह पर लगती है l उसकी नज़रें धुंधली हो जाती है, उसी धुंधली नजर से फिर भी देखने की कोशिश करता है l एक बंदा सभी लोगों को वहाँ से भगाने लगता है और दुसरा बंदा रोणा के हाथ से घड़ी, उँगलियों से अंगूठियां और गले से चेन निकलने लगता है l पर उसे घुसा मारने वाला बंदा कुछ दूर पर खड़ा हो कर देख रहा है l सारे लोग वहाँ से जा चुके थे और दूसरा बंदा घड़ी, चेन और अंगूठियां निकाल लेने के बाद रोणा के कान में...

बंदा - सुन बे... बेटी चोद.. बहन चोद... मादरचोद.... पुलिस वाला है ना... अगर केस बने... तो लूटमार का केस बनाना समझा...(अपने साथी से) यार मालदार बकरा है... आज रात दारू की पार्टी मस्त जमेगी...
रोणा - (दर्द से कराहते हुए) सालों... एक पुलिस वाले पर हाथ उठाया है... याद रखना...
बंदा - बस बस... हम तुझे याद रखें ना रखें.. पर तु जरूर हमें याद रखेगा... अभी तेरी फिनिशिंग सुताई जो बाकी है... वह हमारा बॉस करेंगे...

दोनों बंदे रोणा को खड़ा करते हैं l वह तीसरा चल कर आता है और रोणा के सामने खड़ा होता है l अपनी धुंधली नजर से भी रोणा समझ जाता है कि बंदा अपना चेहरा रुमाल से ढका हुआ है l पहले वह रोणा को तीन चार झन्नाटेदार थप्पड़ मारता है l

रोणा - (ताकत लगा कर चिल्लाते हुए) साले.. हरामी.... कुत्ते...

आगे वह कुछ और बोल नहीं पाता l वह मारने वाला बंदा कभी रोणा के चेहरे पर, कभी पेट में, कभी जांघें पर, कभी कंधे के नीचे बहुत तेजी से घुसों की बरसात करने लगता है l इससे पहले रोणा कुछ और समझ पाता, इतने मार इतनी जल्दी में कि वह और झेल नहीं पता नीचे गिर जाता है l दोनों बंदे उसके बॉस को रोकते हैं l तीनों वहाँ से रोणा को छोड़ कर जाने लगते हैं कि उनका बॉस पीछे मुड़ता है और वापस दौड़ते हुए आ कर रोणा के पेट पर जोर से लात मारता है l

फ्लैशबैक खतम

रोणा - जब आँखे खुली... तो खुद को यहाँ पाया...
साहू - ह्म्म्म्म... बहुत ही कंफ्यूजींग है... यह राहज़नी केस लगती है..
रोणा - हाँ लूटमार का केस ही दर्ज कर दीजिए... पर मैं जानता हूँ कोई फायदा नहीं है...
बल्लभ - तुम्हें लगता है कि यह प्लॉटेड था... हो सकता है कि तुम्हारा पैर फिसला हो... तुम्हें लगा हो कि तुम्हें किसीने धक्का मारा...
रोणा - मैं कोई दूध पिता बच्चा नहीं हूँ... तुम भूल रहे हो.. साहू बाबु माल गोदाम थाने का इंचार्ज है... जब कि यह पुरा का पुरा कांड... कैंटनमेंट थाने के इलाके में हुआ है...
बल्लभ - फिर सीन में... साहू बाबु कैसे आया...
साहू - बेहोशी के हालात में... इन्हें कुछ दुर उठा कर ले गए होंगे... माल गोदाम इलाके के करीब... और मेरी ही मोबाइल फोन पर खबर किया गया....
बल्लभ - ह्म्म्म्म... लगता है किसीने जमकर खुन्नस निकाला है... पर है कौन...
रोणा - पता नहीं.....

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ESS ऑफिस के एंट्रेंस से कुछ दुर वीर गाड़ी रोक देता है l

वीर - क्या मैं भी चलूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं खुद विक्रम भैया से बात करना चाहती हूँ... (कह कर उतर जाती है) मैं... अपने भाई के पास जा रही हूँ... किसी कसाई खाने में नहीं... आप निश्चिंत हो कर जाओ...
वीर - ठीक है... मैं गार्ड्स को बोल देता हूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ... मैं चली जाऊँगी... आप बस अपने दोस्त के पास जाओ...
वीर - ठीक है...

वीर कुछ सोचते हुए गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l रुप वीर की गाड़ी को ओझल होते हुए देखती है l वीर की गाड़ी के ओझल होते ही रुप ऑफिस के एंट्रेंस के सामने आकर खड़ी होती है l ऊपर आर्क में लिखे एक्जीक्युटिव सिक्यूरिटी सर्विस पर नजर डालती है, फिर वह अंदर जाने लगती है l बाहर खड़े दो गार्ड्स उसे रोकते हैं l वह हैरान हो कर गार्ड्स को देखती है l

रुप - (एक गार्ड से) मुझे रोका क्यूँ ...
गार्ड - ऐ लड़की... तुम हो कौन... किससे मिलना है तुम्हें... अंदर जाने के लिए इजाजत लेनी पड़ती है...
रुप - ठीक है... तो फिर जाओ... मेरे भैया विक्रम सिंह से कहो... उनकी बहन... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल आई है...

गार्ड्स दोनों रुप की पुरा नाम सुनते ही डर के मारे कांपने लगते हैं l उनमें से एक गार्ड रुप को सैल्यूट करता है l

एक गार्ड - रा.. राज कुमारी जी आआप... यहाँ...
रुप - कहा ना... मेरे भाई से कहो... मैं अपने भाई से मिलने आई हूँ... जाओ जल्दी उन्हें खबर करो...
गार्ड - जी... जी.. (कह कर गेट के इंटरकम से अंदर की सिक्युरिटी को खबर करता है)

कुछ ही देर में एंट्रेंस का गेट खुल जाता है l गार्डेस रुप को अंदर जाने के लिए कहते हैं l रुप अंदर जाती है l कुछ लड़की गार्ड्स के लिबास में जो थीं वह भागते हुए रुप के पास आतीं हैं और रुप के आसपास घेरा बनाते हुए अंदर ले जाती हैं l उसका रास्ता बनाते हुए विक्रम के कैबिन के सामने खड़ा कर देते हैं और अंदर जाने के लिए कहते हैं I रुप को दरवाजे पर नेम प्लेट देखती है चमकीले अक्षरों में उपर छोटे अक्षरों में विक्रम सिंह और नीचे बड़े बड़े अक्षरों में क्षेत्रपाल लिखा हुआ है l दरवाजे को धकेल कर पहले अंदर झाँकती है l कोई नहीं दिखता है l उसे वॉशरुम से कुछ आवाजें सुनाई देती हैं l वह अंदर आजाती है और टेबल के पास खड़ी हो जाती है l कुछ देर बाद विक्रम रुप के सामने खड़ा हो जाता है l रुप देखती है विक्रम के बाल संवरे नहीं है और चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी है l रुप को उसका हालत देख कर अंदाजा हो जाता है कि विक्रम रात भर सोया नहीं है l दोनों एक दूसरे को देखते रहते हैं फिर अचानक

विक्रम - क... कैसे आना हुआ आपका... राजकुमारी...
रुप - (कहने की बहुत कोशिश करती है पर आवाज हलक में ही रह जाती है)
विक्रम - (समझ जाता है कि रुप नर्वस है) राजकुमारी... आप पहले बैठ जाएं (विक्रम खुद एक कुर्सी को आगे लाकर इशारा करता है) (रुप के बैठते ही वह भी एक चेयर खिंच कर रुप के सामने बैठ जाता है) घबराइये नहीं... आप ही का ऑफिस है...
रुप - जी...
विक्रम - वाव... कितनी मीठी आवाज है आपकी... कितने दिन.. नहीं... कितने सालों बाद... हम.. (रुक जाता है) छोड़िए..(इटरकम ऑन करता है) जल्दी से कुछ ठंडा भेजो.... (रुप से) कहिए... कैसे आना हुआ...
रुप - (अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है) आप... आप घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं... भैया...

विक्रम को झटका लगता है l वह उठ खड़ा हो जाता है l क्या कहे उसे कुछ नहीं सूझता l

विक्रम - भैया... मैं इस शब्द के लायक नहीं हूँ राजकुमारी...
रुप - आप लायक हैं... या नहीं...(रोते हुए) मुझे कोई मतलब नहीं है... बस आज मुझे बताइए... घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं...
विक्रम - यह....यह आपने.. कैसा सवाल पूछ लिया...
रुप - भैया... घर में... एक जान.. दो आँखे आपकी राह तक रही हैं... जानते हैं ना आप... कम से कम... उनके खातिर तो आप आ जाते...
विक्रम - अभी..(आवाज़ थर्रा जाती है) उसका टाइम नहीं आया है...
रुप - क्यूँ... क्यूँ नहीं आया है... एक और भाभी तड़प रहे हैं... और एक ओर आप... क्यूँ...
विक्रम - (अपनी नजरें फ़ेर कर, चेयर से उठ जाता है) आप... आप समझ नहीं पाएँगी... बच्ची हैं आप...
रुप - (चिल्ला कर उठ खड़ी होती है) बच्ची नहीं हूँ मैं... भाभी की सखी हूँ... सहेली हूँ... मैं उनकी...

विक्रम रुप को ऐसे चिल्लाते हुए पहली देख व सुन रहा था l रुप की नए रुप को देख कर चौंक जाता है l

रुप - ठीक है... तो बताइए... कल रात आप दरवाजे के पास क्यूँ आए थे... और वापस क्यूँ लौट गए थे....
विक्रम - (रुप की ओर हैरान हो कर देखता है) मैं.. मैं नहीं गया था...
रुप - झूठ... आप आए थे... और फिर वापस भी चले गए... भैया... क्यूँ..
विक्रम - (फिर चौंकता है)(पर कुछ कह नहीं पाता)
रुप - हाँ भैया...
विक्रम - (बड़ी मुश्किल से) यह... आपको कैसे मालुम...
रुप - (अपनी वैनिटी बैग से एक टैबलेट निकालती है) भैया... आप भूल रहे हो... घर के हर एक्सटर्नल पॉइंट में सीसीटीवी लगी है... (कह कर टैबलेट चलाती है) और सर्विलांस की आसेस... भाभी की टैबलेट में भी है...

टैबलेट में दिखता है विक्रम का कार द हैल के परिसर में आकर रुकती है l गाड़ी से उतर कर दरवाजे के बाहर आकर खड़ा हो जाता है l दरवाजे पर दोनों हाथ रख कर अपना सिर दरवाजे पर रखता है l कुछ देर उसी पोजीशन में रहता है फिर जल्दी से उतर कर गाड़ी स्टार्ट कर के निकल जाता है l रुप टैबलेट ऑफ कर देती है l

विक्रम - (भारी आवाज में) वहाँ... किसीको भी मेरा... इंतजार ही कहाँ है...
रुप - झूठ... सरासर झूठ... आपके आने का एहसास भाभी को हो गया था... नींद से उठ कर भागी थी दरवाजे तक... दरवाजे के पास खड़ी रहीं.. उन्हें इंतजार था... की शायद आप से उनके पुकारे जाने की... पर आप ख़ामोशी के साथ आए... और ख़ामोशी को छोड़ कर चले गए...

विक्रम हैरान हो जाता है रुप की इस खुलासे से l धप कर बैठ जाता है l

रुप - उन्हें रोज रोते.. तड़पते देख रही हूँ भैया... आपके इंतजार में... आपने उनसे जो वादे किए थे...वह वादे... क्यूँ नहीं निभा रहे हैं...
विक्रम - निभा ही तो रहा हूँ... मैंने वादा किया था... चाहे कुछ भी हो जाए... मुझ पर रूठने का हक़ उनको होगा... पर मैं कभी उनसे नहीं रूठुंगा....
रुप - आपने... और एक वादा भी किया था...
विक्रम - (रुप की ओर देखते हुए) और कौनसा वादा... यह जो दूरी... उन्होंने ही बनाया है...
रुप - ना... बिल्कुल नहीं... यह दूरी आपने बनाया है... इसके जिम्मेदार आप ही हैं... रही वादे की बात... आपने कहा था... के आप उन्हें... मनाना कभी नहीं छोड़ेंगे... तब तक मनाते रहेंगे... जब तक जब तक वह मान ना जाएं... अब आप बताओ भैया... शादी के बाद वह आपसे रूठ गईं... पर आपने... कब कब उन्हें मनाया... कितनी बार मनाया....

रुप की कहे हर एक शब्द विक्रम के सिर पर हथोड़े की तरह लग रहा था l

रुप - वह आपके लिए... सबकुछ छोड़ आयीं... पर आपकी खता के लिए उनका रूठना... वह उनका हक़ था... जिसे आपने ही उन्हें दिया था... बस... आपने अपना वादा नहीं निभाया.... उन्हें कभी नहीं मनाया...

रुप टैबलेट को अपनी बैग में रख कर विक्रम की ओर देखती है l

रुप - आपसे उम्र में छोटी हूँ... तजुर्बे में भी... आपसे ऊंची आवाज में बात की... उसके लिए माफ़ कर दीजियेगा... (कह कर जाने को होती है, फिर मुड़ कर) भैया... आपकी और भाभी का प्यार बेमिसाल है... वह आज भी आपकी इंतजार में हैं... आपके बीच जो भी गलत फहमी है उसे दूर करना आपका फर्ज है... पहल तो आपको ही करनी होगी... और आपसे ही होनी चाहिए है... (कह कर दरवाजे के पास जाती है, फिर वहीँ रुक कर वापस विक्रम की ओर देख कर) चले आओ भैया... प्लीज...

रुप चली गई l कमरे में अकेला विक्रम कुर्सी पर बैठा आँसू भरे आँखों में दरवाजे की ओर देख रहा है l उसके कानों में रुप के कही हर एक बात गूंज रही है l
Bahot hi jabardastt Updatee thaa. Bahot maza aaya padh kar. Mujhe toh lagta hai Rona ko Vishwa aur uske unn chaar saathiyon ne hi maara hai Vaidehi se badtameezi karne ke badle mein.

Idher Roop ka Vikram ke paas jaana sabse achha laga mujhee. Woh part padhkar sabse jyaada maza aaya.
 

Battu

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सुबह का समय
सुरज अभी तक पुरी तरह से निकला नहीं है फिर भी चारो तरफ प्रयाप्त उजाला बिखरा हुआ है l कटक शहर के रिंग रोड पर बच्चों से लेकर बुढ़े तक जॉगिंग और वकींग कर रहे हैं l जेब्रा बैरेज के सौ गेट में से सिर्फ एक ही गेट खुला है l जिस तरफ पानी जा रही है उसी तरफ के गिले रेत पर तापस नंगे पांव चलते हुए अपनी वकींग खतम कर अपनी जुतों के पास पहुँचता है I जुते उठा कर पानी के धार के पास जाता है l वहीं एक पत्थर पर बैठ कर अपने दोनों पाँवों को पानी में डुबो देता है l तभी उसके आँखों के सामने एक हाथ में नारियल दिखाई देता है

तापस - (नारियल लेते हुए) तो... लाटसाहाब की जॉगिंग खतम हो गई.
विश्व - ( बगल में और एक पत्थर पर बैठते हुए) जी... अभी अभी खतम करके पहुँचा हूँ..
तास - ह्म्म्म्म... आज सुबह बहुत जल्दी उठकर चला गया... मैंने सोचा शायद जॉगिंग के बाद... मुझे जॉइन करेगा... पर अब आ रहा है...
विश्व - आज ज़म कर भाग दौड़ की है... कभी कभी स्टेमिना चेक करना बहुत जरूरी होता है....
तापस - अच्छा... (स्ट्रॉ से नारियल पानी पीते हुए) ह्म्म्म्म... तो... कल अपनी माँ को दिन भर की राम कहानी सुनाई..
विश्व - कहाँ... लगभग बता ही चुका था... के तभी... बीच में जोडार साहब का फोन आ गया... और वहीँ पर कहानी फ्लो रुक गई... वैसे... बताने लायक बाकी कुछ था ही नहीं...
तापस - अच्छा... जोडार ने क्या कहा...
विश्व - (खड़ा हो जाता है, एक पत्थर उठा कर पानी के सतह पर फेंकता है) (वह पत्थर चार बार उछल कर पानी के सतह पर थोड़ी दुर फिसल कर डूब जाता है) कुछ खास नहीं...
तापस - मतलब
विश्व - वही... जोडार साहब वही कहा... जैसा मैंने एक्स्पेक्ट किया था...
तापस - ओ... मतलब... क्षेत्रपाल बच निकले...
विश्व - हाँ... पुरा का पुरा मामला... अब केके पर आ गया है... और सबसे अहम बात... वह जज के सामने... कंपेंनसेशन आमाउंट का ड्राफ़्ट... जोडार साहब को देगा....
तापस - ह्म्म्म्म... अरे वाह... यह तो तुम्हारे लिए... अच्छा ही गया... पहला केस... लीगल एडवाइज... और ज़बरदस्त कामयाबी... कंग्रेचुलेशन..
विश्व - हाँ... पर... ताज्जुब इस बात का है... केके जैसा आदमी... इतनी आसानी से... कंपेंनसेशन देने के लिए तैयार हो गया... खुद फिजिकली आकर जज के सामने... ड्राफ़्ट दे रहा है.. इसलिए यह मेरे लिए... एक ऐंटी क्लाइमेक्स रहा...
तापस - ओ... खैर लेट्स चेंज द टॉपिक.... ड्राइविंग स्कुल में... लर्न शुरू किया कि नहीं...
विश्व - कहाँ डैड... कल सिर्फ वर्चुअल लर्निंग हुआ... वह भी सिर्फ तीन गियर पर...
तापस - (हैरानी भरी आवाज में) वर्चुअल...
विश्व - हाँ... वह जो होता है ना... मॉल के गेम जॉन में... वैसा ही कुछ... थोड़ा एडवान्स्ड.. फॉर डी टेक्नॉलॉजी...
तापस - व्हाट... कम्बख्त इतने पैसे ऐंठ रहे हैं... वर्चुअल में सिखाने के लिए...
विश्व - (तापस की ओर घुमते हुए) डैड... कल ही लर्निंग लाइसेंस के लिए हमारा फोटो सेशन हुआ... आज भी हम वर्चुअल में सीखेंगे... कल तक हमें लर्निंग लाइसेंस देने के बाद ही... एक इंस्ट्रक्टर के साथ गाड़ी देंगे...
तापस - अच्छा तो ऐसी बात है... (नारियल पानी खतम हो चुका था, इसलिए नारियल फेंकते हुए) वक़्त कितना बदल गया है... हमारे ज़माने में... अलग हुआ करता था.. और अब देखो... खैर छोड़ो... वह हुर वाली क्या बला है... कल तुम्हारी माँ बहुत खुश थी...
विश्व - (हँसता है)हूँ हूँ हूँ हूँ... (चेहरा घुमा लेता है और बहते पानी के तरफ देखने लगता है) कुछ नहीं डैड... एक लड़की... (पॉज लेकर) बहुत ही अच्छी है...
तापस - (मुस्कराता है) ओ... तभी... तुम्हारी माँ इतनी खुश है....
विश्व - क्या डैड... आप भी... माँ को तो प्रीज्युम करना अच्छा लगता है... पर.. आप भी...
तास - ठीक है... ठीक है... और... आज का क्या प्रोग्राम है तुम्हारा...
विश्व - कुछ नहीं... वही...सेम.. सिमीलार... कल की तरह...
तापस - (अपना सिर हिलाते हुए चुप रहता है)
विश्व - (तापस के चेहरे को देखते हुए) आप कल मस्ती के मुड़ में.. रात को बाहर गए... पर जब रात को लौटे... टेंशन में थे.. क्यूँ...
तापस - नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं... तुम्हें गलत फहमी हो रही है...
विश्व - आप...(पानी की ओर देखते हुए) अच्छी तरह से जानते थे... ड्रॉइंग रुम में... हम जो भी बात कर रहे थे... सब कुछ माँ को सुनाई दे रहा था... आपका ऐसा कहना... माँ का आप पर गुस्सा होना... फिर आप बहाने से बाहर चले गए... (तापस की ओर देखते हुए) खान सर से मिलने...
तापस - (हैरान हो कर विश्व को घूरने लगता है)
विश्व - खान सर... कल कटक आए थे... आपको खबर भिजवाई थी... इसीलिए आप चालाकी से... बहाना बना कर इवनिंग वक के नाम पर चले गये...
तापस - तुम... मुझ पर नजर रख रहे हो... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हो...
विश्व - आप भी तो मुझ पर नजर रख रहे हैं... मेरे पीछे आदमी छोड़ रखे हैं.... मेरी हर मूवमेंट पर.. नजर रख रहे हैं... मेरी हर खैर खबर रखने के लिए...
तापस - (खड़ा हो जाता है, हकलाते हुए) मैं... तु.. तु.. तुम पर नजर क.. क्यूँ.. रखूं... क.. क.. कोई तो वजह हो...
विश्व - वजह... वही है... जिस वजह से... आपने घर भुवनेश्वर के वजाए... कटक में लिया... आपको डर था... और अभी भी है... कहीं मेरा आमना सामना... क्षेत्रपाल के लौंडे से ना हो जाए...
तापस - (थोड़ा परेशान दिखने लगता है) मैं नहीं चाहता था... की तुम्हारी दुश्मनों की लिस्ट में गिनती बढ़े... पर... हालात ने..
विश्व - आपने वीआरएस ले लिया... अपना सर्विस रिवाल्वर सरेंडर कर दिया... यह माँ को मालुम है... पर एक लाइसेंसी पॉकेट माउजर,.. उसके साथ नाइन एम एम बुलेट्स के तीन मैग्ज़ीन... और यह बात... माँ को बिल्कुल भी मालुम नहीं है.... ऐसा क्यूँ....
तापस - (नजरें चुराने लगता है) मैं... वह... तुम्हें.. वि.. विक्रम से खतरा....
विश्व - कुछ नहीं हुआ है... कुछ भी नहीं होगा.... उसके पास अपना बेशक एक प्राइवेट आर्मी है... सरकारी मशीनरी में पहुँच है... फिर भी... उसने मुझे तलाशने के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है...
तापस - फिर भी..(सीरियस हो कर) वह क्षेत्रपाल है... भुला तो नहीं होगा...
विश्व - नहीं... नहीं भुला होगा... जानता हूँ... वह मुझसे अपनी निजी खुन्नस निकालने की सोच रहा होगा... ढूँढ रहा होगा... पर...
तापस - (हैरानी से आँखे फैल जाती है)
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) पर जो भी हो... मुझ तक ही हो... मुझे ही हो... आप, माँ या दीदी तक तो (अपना सिर ना में हिला कर) हरगिज नहीं.... जितना डेमेज होना था... हो चुका... अब ...नो मोर डेमेज...

तापस और विश्व के बीच कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l तापस देखता है विश्व का चेहरा बहुर गम्भीर हो गया है और उसके चेहरे पर जरा भी, कोई शिकन तक नहीं है l तभी एक कुत्ते की भौंकने आवाज़ उन दोनों का ध्यान उस तरफ खिंचता है l एक आदमी अपने लेब्र्डर कुत्ते के साथ वकींग करते हुए जा रहा था

तापस - (संभल कर भारी आवाज में) तुम...और हम... बहुत कुछ खो चुके हैं... इतना खो चुके हैं... की... (पॉज लेकर, विश्व की ओर देखते हुए) तुममें शायद ज़ब्त करने की हिम्मत हो... पर प्रताप... हम में और नहीं है...
विश्व - (तापस को एक सपाट भाव से देखता है)
तास - (उस आदमी और उसके कुत्ते को देख कर) जानते हो... कुछ पालतू कुत्ते... आवारा बनकर पागलों की तरह... शहर के गालियों मैं.. चौराहों में... हर कोने में तुम्हें ढूंढ रहे हैं...
विश्व - कुत्ते कभी पागलों की तरह नहीं घुमते... कुत्ते जो पागल हो जाते हैं... वही पागलों की तरह घुमते हैं... और उनका इलाज... या तो म्युनिसिपल वाले करते हैं... या फिर पब्लिक... (तापस हैरान हो कर विश्व की ओर देखने लगता है)


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वीर गाड़ी चला रहा है और रुप बाहर की ओर देख रही है l दोनों जब से गाड़ी के अंदर बैठे हुए हैं तब से शांत बैठे हुए हैं l कोई किसीसे बात नहीं कर रहा है l वजह दोनों के अलग हैं l दोनों को एक-दूसरे के हालत का अंदाजा नहीं है l जहां वीर अंदर ही अंदर खुश है और उसका मुड़ अच्छा है वहीँ रुप अंदर से थोड़ी मायूस और परेशान सी है l आखिर कार ख़ामोशी तोड़ते हुए

वीर - अच्छा नंदिनी... एक बात बता... कल तेरा ड्राइविंग सेशन कैसा गया...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) बढ़िया...
वीर - अच्छा... शाबाश... गुड... वैसे कल रात को जब लौटा... तो तुम और भाभी... आपस में क्या बातेँ कर रही थी...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - नहीं... मुझे लगा... मुझसे कुछ छिपाने वाली बात थी शायद...
रुप - तुमको ऐसा क्यूँ लगा भैया...
वीर - मुझे लगा बस...
रुप - (एक गहरी सांस लेकर) कुछ बातेँ.... हम ल़डकियों की बेहद पर्सनल होती हैं...
वीर - ओ... हाँ... शायद...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) क्या बात है भैया... आज बहुत खुश लग रहे हो... कल भी जब आए थे... बड़े खुश लग रहे थे...
वीर - अररे हाँ.. अरे यार... तुझे बताना तो भूल ही गया... वैसे... कुछ हम लड़कों की भी बेहद पर्सनल बातेँ होती हैं.... पर फिर भी... इतनी भी पर्सनल नहीं है... चल तुझे बता ही देता हूँ...(चहकते हुए) जानती है.. कल ना... जैसा तुने कहा था... मैंने बिल्कुल वैसा ही किया.. और... (खुशी के साथ) एक नया दोस्त बनाया है...
रुप - बहुत अच्छे...(एक सपाट सा जवाब देकर फिर बाहर की ओर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ... तुझे मेरे नए दोस्त के बारे में जान कर खुशी नहीं हुई क्या...
रुप - (बिना वीर की ओर देखे) हूँ... खुश हूँ...
वीर - अच्छा... तो चेहरा उस तरफ किए क्यूँ बैठी है...
रुप - (वीर की ओर देखते हुए) तो क्या है भैया... क्या तुम अब ऑफिस के वजाए... उस नए दोस्त के पास जाने वाले हो...
वीर - हाँ... (खुश हो कर) हाँ... अरे वाह... बहन हो तो तेरी जैसी... देखा.. मैं कहाँ और क्यूँ जाने वाला हूँ... झट से बता दिया...
रुप - भैया... (सपाट भाव से) मैंने जस्ट तुक्का लगाया... अब बताओ... कहाँ और क्यूँ जा रहे हो...
वीर - क्या बताऊँ... कल एक्सीडेंटली हम मिले... हमने एक दुसरे का नाम भी जान लिया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज नहीं किया... इसलिए उसका फोन नंबर लेने जा रहा हूँ...
रुप - फोन नंबर लेने जा रहे हो... इतना खास है क्या वह...
वीर - और नहीं तो... अररे... वह दोस्त नहीं... लाइट है... अंधेरे में भटकने नहीं देता... रास्ता दिखाता है...
रुप - (जीज्ञासा भरे अंदाज़े में) वह दोस्त.... कोई लड़की है क्या...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) तुम्हें ऐसा क्यों लगा...
रुप - तुम जिस तरह से... डेसक्रीप्शन दे रहे थे... मुझे लगा कोई लड़की होगी...
वीर - नंदिनी... मुझसे ...कोई लड़की क्यूँ दोस्ती करेगी... वह एक बॉय है.. एक डैसींग हैंडसम हंक...
रुप - भैया... आर यु सीरियस...
वीर - है... है... तु मेरे बारे में ऐसा सोचती है... अरे... ऐसे कैसे सोच सकती है... दोस्ती की है... बस दोस्ती... हे भगवान यह लड़की ऐसी भी सोचती है...
रुप - (हँस देती है) ओ हो हो हो हो... सॉरी... सॉरी भैया... वैसे... क्या वह तुम्हारी पुरी आईडेंटिटी जानता है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाता है) नहीं...
रुप - ओ... (कुछ देर की पॉज के बाद) आज ही मिलना है क्या... उस... नए दोस्त से...
वीर - हाँ... वह जो अंग्रेजी में एक कहावत है ना...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
रुप - ओ... हो.. वैसे नीड किसकी है...
वीर - मेरी...

रुप कुछ सोच में पड़ जाती है फिर अचानक उसकी आँखे चमकने लगती हैं l वह वीर से कहती है

रुप - (हड़बड़ाहट के साथ चिल्लाने लगती है) भैया... भैया... भैया..
वीर - क... क्या हुआ...
रुप - (चहकते हुए) वाह भैया... वाह.. क्या बात कही तुमने.... वाह
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - हाँ... सच ही तो कहा... (रुप की ओर देखता है, रुप के चेहरे पर उसे एक चमक दिखती है जैसे उसे कुछ मिल गया हो) क्या... क्या बात है... इस कहावत में ऐसा क्या था...
रुप - भैया... मुझे ना... प्लीज तुम विक्रम भैया के पास छोड़ दो....
वीर - (चर्र्र्र्र्र्र्.. गाड़ी में ब्रेक लगाते हुए) क्या... (फिर गाड़ी को एक किनारे लगाने के बाद) क्या... क्या कहा तुमने... तुम विक्रम भैया के पास जाओगी...
रुप - हाँ... प्लीज... मुझे उनके पास ले चलो ना...
वीर - क्यूँ...
रुप - (खीज कर) क्यूँ मतलब... वह मेरे भाई हैं.. मैं उनके पास क्यूँ नहीं जा सकती...
वीर - नहीं... मैंने तो ऐसा नहीँ कहा... क्या यह पर्सनल है...
रुप - (वीर की ओर मुड़ कर) नहीं...
वीर - तो मुझे... बता तो सकती हो...

रुप सीधा होकर बैठ जाती है l कुछ देर की चुप्पी के बाद वीर की ओर देखती है l वीर को उसकी आँखों में आसुओं की हल्की चमक दिखती है l

वीर - (सीरियस हो जाता है) नंदिनी... क्या हुआ... सुबह से देख रहा हूँ... आज तुम खोई हुई हो... कभी खुश हो जाती हो... तो कभी इमोशनल... तो कभी.... क्या बात है... कॉलेज में कोई परेशानी है... तो मुझे बता सकती हो... आई कैन सॉल्व...
रुप - भैया... ऐसा कुछ भी नहीं है... कॉलेज हो या बाहर... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है...
वीर - फिर.. तुम विक्रम भैया से क्यूँ मिलना चाहती हो...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ कर समझाने की कोशिश में) भैया... वह जहां हम ठहरे हुए हैं... उसे द हैल कहा जाता है... फिर भी.. उस घर में... मैं खुश हूँ... तुम खुश हो... तुम मैं भाभी और छोटी माँ... हम हमारी आपसी बंधन में बंध गए हैं... पर कभी सोचा है... या देखा है... भाभी को... या भैया को खुश होते हुए... भाभी... जिनसे सात जन्मों की बंधन में बंधी हुई हैं... उनके बीच की दूरी के बारे में...
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - भाभी खुश हैं या होती हैं... क्यूंकि वह हमारी खुशियों का सहारा लेती हैं... लेकिन वह अंदर से खाली हैं... एक भयानक सूनापन है... वह अपने अंदर की ग़म से घिरे हुए हैं... ग़म को भुलाने के लिए.... हम से जुड़े हुए हैं... पर असल बात यह है कि... भाभी बहुत दुखी हैं... और भैया भी...
वीर - (अपना चेहरा मोड़ कर बाहर की ओर देखते हुए) यह... यह उनकी पर्सनल मैटर है...
रुप - हाँ है... पर अभी अभी तुमने एक बात कही...
अ फ्रेंड इन नीड...
अ फ्रेंड इन डीड...
वीर - इस कहावत से... उनकी निजी मैटर का क्या संबंद्ध है....
रुप - हाँ है... संबंद्ध है... क्यूंकि आज के दिन भाभी की इकलौती सखी सहेली दोस्त... सिर्फ़ मैं ही हूँ... मुझसे उनका दुख देखा नहीं जा रहा है... इसलिए अब मुझे ही कुछ करना है...
वीर - (रुप की ओर बिना देखे) क्या तुम... विक्रम भैया से... बात कर पाओगी... इस बारे में...
रुप - हाँ करूंगी...
वीर - (कुछ देर की पॉज के बाद) ठीक है... चलो... मैं तुम्हें ऑफिस लिए चलता हूँ...
रुप - पर भैया... एक और बात...
वीर - (हैरान हो कर रुप की ओर देखता है)
रुप - तुम बस मुझे ऑफिस के बाहर ड्रॉप कर... चले जाओगे...
वीर - व्हाट...
रुप - चौंकिए मत भैया... आखिर... मैं अपने बड़े भाई के पास जा रही हूँ...

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एक हस्पताल के कमरे में बेड पर रोणा बेहोशी की हालत में लेटा हुआ है l उसका ट्रैक शूट हाथ के पास और दाहिने पैर के पास फटा हुआ है l दायीं तरफ का चेहरा और जबड़ा भी दायीं तरफ सूजा हुआ है l दायीं आँख के पास चोट के कारण आँख पुरा बंद है और बायीं आँख के पास चोट कम लगी है l कमरे में एक पुलिस वाला है और उसके पास बल्लभ खड़ा है l दोनों वह डॉक्टर को जांच करते हुए देख रहा है l डॉक्टर रोणा को इंजेक्शन देता है, और नर्स को कुछ हिदायत दे कर बल्लभ से

डॉक्टर - आप मरीज़ के... क्या लगते हैं...
बल्लभ - दोस्त... दोस्त हूँ... और बाय प्रोफेशन... एडवोकेट...
डॉक्टर - ठीक है... अच्छी बात है... मैंने मरीज़ को पेन किलर इंजेक्शन दे दिया है... बस रिपोर्ट आने दीजिए... देखते हैं कितना सीरियस है...
बल्लभ - मरहम पट्टी तो कुछ दिख नहीं रहा है... चोट जो भी लगी है... वह सिर्फ चेहरे पर दिख रही है...
डॉक्टर - नो... इनके बॉडी के कुछ हिस्सों में... जहां जहां चोट लगी है... वहाँ के मसल्स क्रैंप हो गए हैं... कहीं अंदरुनी चोट ना लगी हो... इसलिए हमने स्कैनिंग कर दिया है... रिपोर्ट आने दीजिए... फिर देखते हैं...
बल्लभ - ठीक है... ठीक है... डॉक्टर... रिपोर्ट कब तक आ जाएगी...
डॉक्टर - बस एक आध घंटे में... पर आई थींक... इस पर हम शाम को बात करें तो ठीक रहेगा....
बल्लभ - ओके... एंड... थैंक्यू डॉक्टर... वैसे कब तक होश आ जाएगा...
डॉक्टर - बस.. अभी कुछ ही देर में... आ जाना चाहिए... ओके... कुछ जरूरी हुआ तो... मुझे इंफॉर्मे कीजिएगा...

इतना कह कर डॉक्टर वहाँ से चला जाता है l उस के जाते ही पुलिस वाले से

बल्लभ - थैंक्यू... साहू बाबु.. थैंक्यू वेरी मच... बिल्कुल सही टाइम पर मेडिकल लाने के लिए और... मुझे खबर करने के लिए...
पुलिस - ओह के सर... यह तो मेरा ड्यूटी था...
बल्लभ - वैसे आपने मुझे कॉन्टैक्ट कैसे किया...
साहू - मुझे एक फोन आया था... कि एक पुलिस वाले के साथ मार पीट हुआ है... वह xxxx में बेहोश पड़ा है... वह सर्किट हाउस के @ रुम में अपने वकील दोस्त के साथ रह रहा था... आगे... आप समझ सकते हैं...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... थैंक्यू अगेन... आपको क्या लगता है...
साहू - शायद किसीने... कोई निजी दुश्मनी उतारा है... बहुत मार पीट के बाद... शायद छोड़ दिया... हमें जिसने भी... फोन पर इत्तिला दी... इन्हें और आपको अच्छी तरह से जानता था...
बल्लभ - (कुछ सोच में पड़ जाता है)
साहू - क्या हुआ सर...
बल्लभ - अगर आपको इत्तिला देने वाला हमें पहचानता था... तो उसीने इंस्पेक्टर रोणा को... हस्पताल में लेकर क्यूँ नहीं गया...
साहू - ह्म्म्म्म... पॉइंट तो है...

तभी रोणा के कराहने की आवाज सुनाई देती है l

साहू - लगता है इन्हें होश आ रहा है...

दोनों रोणा के पास आते हैं l नर्स रोणा की नब्ज चेक करने के बाद डॉक्टर को बुलाने बाहर चली जाती है

बल्लभ - अनिकेत... हैलो... सुनाई दे रहा है...
रोणा - (कराहते हुए, बड़ी मुश्किल से ) हाँ...
साहू - क्या आप मुझे स्टेटमेंट दे सकते हैं...

रोणा हैरानी भरे नजरों से अपनी चारों तरफ देखता है और थोड़ा संभल कर उठने की कोशिश करता है l साहू बेड फ़ोल्ड व्हील को घुमाता है l तो रोणा का शरीर पीठ के बल बैठने की पोजिशन में आ जाता है l

रोणा - मैं... यहाँ... (बहुत मुश्किल से हलक से आवाज निकलती है) कैसे...
बल्लभ - यह इंस्पेक्टर साहू... माल गोदाम थाने के अधिकारी... इन्हें खबर मिलते ही... तुम्हें हस्पताल पहुँचाया और मुझे खबर किया...
रोणा - आह... थैंक्यू.. इंस्पेक्टर... थैंक्यू...
साहु - आप भी पुलिस वाले हो... और मैं भी... खैर... क्या आप अभी स्टेटमेंट दे सकते हैं... या मैं बाद में आऊँ...
रोणा - हाँ... आह... हाँ... (जबड़ा मुश्किल से हिल पा रहा था)
साहू - (सरकारी काग़ज़ निकाल कर रोणा के पास बैठ जाता है) हाँ बोलिए...
रोणा - इंस्पेक्टर... तुम किस एरिया के इंचार्ज हो ...
बल्लभ - क्यूँ क्या हुआ... बताया तो था तुझे... माल गोदाम थाना...
रोणा - जबकि मेरे साथ जो कांड हुआ... वह इलाक़ा... कैंटनमेंट थाने के अंडर आता है...
बल्लभ - मतलब... तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... के.. पुरा का पुरा कांड... प्लॉटेड था... प्री प्लान्ड था...
साहू - क्या... (हैरान होते हुए)... प्लॉटेड था... कैसे... कौन...
रोणा - (फिर चुप हो जाता है)
बल्लभ - कुछ पुछा साहू बाबु ने...
रोणा - मैं... उसका... चेहरा नहीं देख पाया... पर एक का शकल याद है मुझे... जो भी हुआ... वह प्री प्लान्ड ही था...

फ्लैशबैक

जॉगिंग के लिए ट्रैक शूट और बुट पहन कर रोणा सर्किट हाउस से निकल कर वकींग करते हुए सुबह सुबह गड़गड़ीया के मैदान में पहुँचता है l सुरज अभी निकला नहीं था पर अंधेरा छट चुका था l मैदान में हर तरफ मर्द, औरत, बच्चें,लड़के, लड़कियाँ वकिंग के साथ साथ जॉगिंग भी कर रहे हैं l रोणा भी एक जगह पहुँच कर जॉगिंग शुरु करता है l कुछ दूर भागने के बाद वह धीरे धीरे चलने लगता है l उसके सामने दो लड़कियाँ टी शर्ट और लेग्गींस पहने चल रही थीं l दोनों के टी शर्ट थोड़ी छोटी लग रही थी, शायद वह दोनों अपने शरीर की हर कटाव को दिखाने का शौक था l चल ऐसे रहे थे जैसे अपना पिछवाड़ा दिखा कर ललचा रहे हों l रोणा भी उनका पिछवाड़ा देखते हुए उन दोनों के सही दूरी बना कर पीछे चलने लगता है l इतने में एक बंदा भागते हुए पहले रोणा को ओवर टेक् करता है फिर उन दो ल़डकियों के आगे जाते वक़्त उसका नोटों से भरा बटुआ गिर जाता है l ऐसे में एक लड़की झुकती है बटुआ उठाने के लिए तो उसका पिछवाड़ा रोणा के आगे उभर कर दिखने लगता है l रोणा की आँखे चमकने लगतीं है उसका मुहँ खुला रह जाता है l ठीक उसी वक़्त उसे पीछे से धक्का लगता है जिससे वह आगे की ओर फिसलते गिरते हुए उस लड़की के पिछवाड़े पर दोनों हाथ रख कर गिरने से बच जाता है l वह लड़की उठती है और घूम कर रोणा को देखती है और थप्पड़ मार देती है l उसके साथ जो लड़की थी वह चिल्ला चिल्ला कर लोगों को इकट्ठा करने लगती है l जैसे जैसे लोग जमा होने लगते हैं, रोणा की हालत खराब होने लगता है l वह दोनों ल़डकियों के पैर पकड़ लेता है

रोणा - बेटी.. बेटी... बहन बहन.. प्लीज.. मुझे माफ कर दो.. जो भी हुआ एक्सीडेंटली हुआ... इंटेंशनली नहीं.. प्लीज प्लीज...

तभी एक लड़का वहाँ पहुँचता है और वह सभी लोगों से कहता है

लड़का - देखो... कितना बे ग़ैरत और बे शर्म है... जलील लीच कमीना है... पैर छू कर गिड़गिड़ाने के बहाने... ल़डकियों को हाथ लगाना नहीं छोड़ रहा है...
रोणा - (उस लड़के से) ऐ.. ऐ... यह क्या बात कर रहे हो... मैं इनसे दिल से माफी मांग रहा हूँ...
लड़का - एक शर्त पर... यह लड़की.. तुमको और एक चांटा मारेगी...
रोणा - (बिदक कर) अरे.. यह क्या कह रहे हो.. बहुत जलील हो चुका हूँ... मैं.. मैं एक पुलिस वाला हूँ...
लड़का - लो.. यह तो पुलिस वाला निकला... अपनी नौकरी के धौंस में यह लड़कियों के शरीर पर इधर उधर हाथ मारता फिर रहा है... अगर पुलिस वाले से ही हमारी माँ बहन बेटी सुरक्षित नहीं हैं... तो हम समाज में रहने वाले... गुंडे मवलियों से क्या उम्मीद करें... इसको सबक सिखाना जरूरी है... मारो साले को...
रोणा - ऐ... (उठ कर खड़ा होते हुए) खबर दार... किसीने मुझे हाथ लगाया तो...देखो... मैं फिर से कह रहा हूँ... मैं पुलिस वाला हूँ... इंस्पेक्टर हूँ...
लड़का - देखा.. देखा कैसे यह अपनी वर्दी का धौंस जमा रहा है... मारो साले को...

इतना कह कर वह लड़का नीचे झुक जाता है, दोनों हाथों से रेत उठा कर रोणा के आँखों में फेंक देता है l रोणा चिल्लाने लगता है उस लड़के के साथ साथ कुछ और लोग मिलकर रोणा की सुताई शुरु कर देते हैं l रोणा देख नहीं पता कि कौन उसे मार रहा है पर उसे एहसास हो जाता है कि तीन चार बंदे मिलकर उसे कूट रहे हैं l मार खाते खाते रोणा नीचे गिर जाता है l तभी उसके सिर के पास झुक कर एक बंदा एड़ियों पर बैठता है l रोणा अपना सिर उठा कर देखने की कोशिश करता ही है कि उसके आँख के बगल में एक जोरदार घुसा लगता है l उस घुसे से रोणा जमीन चाटने लगता है l फिर उठने की कोशिश करता है और एक जोरदार घुसा उसी जगह पर लगती है l उसकी नज़रें धुंधली हो जाती है, उसी धुंधली नजर से फिर भी देखने की कोशिश करता है l एक बंदा सभी लोगों को वहाँ से भगाने लगता है और दुसरा बंदा रोणा के हाथ से घड़ी, उँगलियों से अंगूठियां और गले से चेन निकलने लगता है l पर उसे घुसा मारने वाला बंदा कुछ दूर पर खड़ा हो कर देख रहा है l सारे लोग वहाँ से जा चुके थे और दूसरा बंदा घड़ी, चेन और अंगूठियां निकाल लेने के बाद रोणा के कान में...

बंदा - सुन बे... बेटी चोद.. बहन चोद... मादरचोद.... पुलिस वाला है ना... अगर केस बने... तो लूटमार का केस बनाना समझा...(अपने साथी से) यार मालदार बकरा है... आज रात दारू की पार्टी मस्त जमेगी...
रोणा - (दर्द से कराहते हुए) सालों... एक पुलिस वाले पर हाथ उठाया है... याद रखना...
बंदा - बस बस... हम तुझे याद रखें ना रखें.. पर तु जरूर हमें याद रखेगा... अभी तेरी फिनिशिंग सुताई जो बाकी है... वह हमारा बॉस करेंगे...

दोनों बंदे रोणा को खड़ा करते हैं l वह तीसरा चल कर आता है और रोणा के सामने खड़ा होता है l अपनी धुंधली नजर से भी रोणा समझ जाता है कि बंदा अपना चेहरा रुमाल से ढका हुआ है l पहले वह रोणा को तीन चार झन्नाटेदार थप्पड़ मारता है l

रोणा - (ताकत लगा कर चिल्लाते हुए) साले.. हरामी.... कुत्ते...

आगे वह कुछ और बोल नहीं पाता l वह मारने वाला बंदा कभी रोणा के चेहरे पर, कभी पेट में, कभी जांघें पर, कभी कंधे के नीचे बहुत तेजी से घुसों की बरसात करने लगता है l इससे पहले रोणा कुछ और समझ पाता, इतने मार इतनी जल्दी में कि वह और झेल नहीं पता नीचे गिर जाता है l दोनों बंदे उसके बॉस को रोकते हैं l तीनों वहाँ से रोणा को छोड़ कर जाने लगते हैं कि उनका बॉस पीछे मुड़ता है और वापस दौड़ते हुए आ कर रोणा के पेट पर जोर से लात मारता है l

फ्लैशबैक खतम

रोणा - जब आँखे खुली... तो खुद को यहाँ पाया...
साहू - ह्म्म्म्म... बहुत ही कंफ्यूजींग है... यह राहज़नी केस लगती है..
रोणा - हाँ लूटमार का केस ही दर्ज कर दीजिए... पर मैं जानता हूँ कोई फायदा नहीं है...
बल्लभ - तुम्हें लगता है कि यह प्लॉटेड था... हो सकता है कि तुम्हारा पैर फिसला हो... तुम्हें लगा हो कि तुम्हें किसीने धक्का मारा...
रोणा - मैं कोई दूध पिता बच्चा नहीं हूँ... तुम भूल रहे हो.. साहू बाबु माल गोदाम थाने का इंचार्ज है... जब कि यह पुरा का पुरा कांड... कैंटनमेंट थाने के इलाके में हुआ है...
बल्लभ - फिर सीन में... साहू बाबु कैसे आया...
साहू - बेहोशी के हालात में... इन्हें कुछ दुर उठा कर ले गए होंगे... माल गोदाम इलाके के करीब... और मेरी ही मोबाइल फोन पर खबर किया गया....
बल्लभ - ह्म्म्म्म... लगता है किसीने जमकर खुन्नस निकाला है... पर है कौन...
रोणा - पता नहीं.....

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ESS ऑफिस के एंट्रेंस से कुछ दुर वीर गाड़ी रोक देता है l

वीर - क्या मैं भी चलूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं खुद विक्रम भैया से बात करना चाहती हूँ... (कह कर उतर जाती है) मैं... अपने भाई के पास जा रही हूँ... किसी कसाई खाने में नहीं... आप निश्चिंत हो कर जाओ...
वीर - ठीक है... मैं गार्ड्स को बोल देता हूँ...
रुप - नहीं भैया... मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ... मैं चली जाऊँगी... आप बस अपने दोस्त के पास जाओ...
वीर - ठीक है...

वीर कुछ सोचते हुए गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l रुप वीर की गाड़ी को ओझल होते हुए देखती है l वीर की गाड़ी के ओझल होते ही रुप ऑफिस के एंट्रेंस के सामने आकर खड़ी होती है l ऊपर आर्क में लिखे एक्जीक्युटिव सिक्यूरिटी सर्विस पर नजर डालती है, फिर वह अंदर जाने लगती है l बाहर खड़े दो गार्ड्स उसे रोकते हैं l वह हैरान हो कर गार्ड्स को देखती है l

रुप - (एक गार्ड से) मुझे रोका क्यूँ ...
गार्ड - ऐ लड़की... तुम हो कौन... किससे मिलना है तुम्हें... अंदर जाने के लिए इजाजत लेनी पड़ती है...
रुप - ठीक है... तो फिर जाओ... मेरे भैया विक्रम सिंह से कहो... उनकी बहन... रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल आई है...

गार्ड्स दोनों रुप की पुरा नाम सुनते ही डर के मारे कांपने लगते हैं l उनमें से एक गार्ड रुप को सैल्यूट करता है l

एक गार्ड - रा.. राज कुमारी जी आआप... यहाँ...
रुप - कहा ना... मेरे भाई से कहो... मैं अपने भाई से मिलने आई हूँ... जाओ जल्दी उन्हें खबर करो...
गार्ड - जी... जी.. (कह कर गेट के इंटरकम से अंदर की सिक्युरिटी को खबर करता है)

कुछ ही देर में एंट्रेंस का गेट खुल जाता है l गार्डेस रुप को अंदर जाने के लिए कहते हैं l रुप अंदर जाती है l कुछ लड़की गार्ड्स के लिबास में जो थीं वह भागते हुए रुप के पास आतीं हैं और रुप के आसपास घेरा बनाते हुए अंदर ले जाती हैं l उसका रास्ता बनाते हुए विक्रम के कैबिन के सामने खड़ा कर देते हैं और अंदर जाने के लिए कहते हैं I रुप को दरवाजे पर नेम प्लेट देखती है चमकीले अक्षरों में उपर छोटे अक्षरों में विक्रम सिंह और नीचे बड़े बड़े अक्षरों में क्षेत्रपाल लिखा हुआ है l दरवाजे को धकेल कर पहले अंदर झाँकती है l कोई नहीं दिखता है l उसे वॉशरुम से कुछ आवाजें सुनाई देती हैं l वह अंदर आजाती है और टेबल के पास खड़ी हो जाती है l कुछ देर बाद विक्रम रुप के सामने खड़ा हो जाता है l रुप देखती है विक्रम के बाल संवरे नहीं है और चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी है l रुप को उसका हालत देख कर अंदाजा हो जाता है कि विक्रम रात भर सोया नहीं है l दोनों एक दूसरे को देखते रहते हैं फिर अचानक

विक्रम - क... कैसे आना हुआ आपका... राजकुमारी...
रुप - (कहने की बहुत कोशिश करती है पर आवाज हलक में ही रह जाती है)
विक्रम - (समझ जाता है कि रुप नर्वस है) राजकुमारी... आप पहले बैठ जाएं (विक्रम खुद एक कुर्सी को आगे लाकर इशारा करता है) (रुप के बैठते ही वह भी एक चेयर खिंच कर रुप के सामने बैठ जाता है) घबराइये नहीं... आप ही का ऑफिस है...
रुप - जी...
विक्रम - वाव... कितनी मीठी आवाज है आपकी... कितने दिन.. नहीं... कितने सालों बाद... हम.. (रुक जाता है) छोड़िए..(इटरकम ऑन करता है) जल्दी से कुछ ठंडा भेजो.... (रुप से) कहिए... कैसे आना हुआ...
रुप - (अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है) आप... आप घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं... भैया...

विक्रम को झटका लगता है l वह उठ खड़ा हो जाता है l क्या कहे उसे कुछ नहीं सूझता l

विक्रम - भैया... मैं इस शब्द के लायक नहीं हूँ राजकुमारी...
रुप - आप लायक हैं... या नहीं...(रोते हुए) मुझे कोई मतलब नहीं है... बस आज मुझे बताइए... घर क्यूँ नहीं आ रहे हैं...
विक्रम - यह....यह आपने.. कैसा सवाल पूछ लिया...
रुप - भैया... घर में... एक जान.. दो आँखे आपकी राह तक रही हैं... जानते हैं ना आप... कम से कम... उनके खातिर तो आप आ जाते...
विक्रम - अभी..(आवाज़ थर्रा जाती है) उसका टाइम नहीं आया है...
रुप - क्यूँ... क्यूँ नहीं आया है... एक और भाभी तड़प रहे हैं... और एक ओर आप... क्यूँ...
विक्रम - (अपनी नजरें फ़ेर कर, चेयर से उठ जाता है) आप... आप समझ नहीं पाएँगी... बच्ची हैं आप...
रुप - (चिल्ला कर उठ खड़ी होती है) बच्ची नहीं हूँ मैं... भाभी की सखी हूँ... सहेली हूँ... मैं उनकी...

विक्रम रुप को ऐसे चिल्लाते हुए पहली देख व सुन रहा था l रुप की नए रुप को देख कर चौंक जाता है l

रुप - ठीक है... तो बताइए... कल रात आप दरवाजे के पास क्यूँ आए थे... और वापस क्यूँ लौट गए थे....
विक्रम - (रुप की ओर हैरान हो कर देखता है) मैं.. मैं नहीं गया था...
रुप - झूठ... आप आए थे... और फिर वापस भी चले गए... भैया... क्यूँ..
विक्रम - (फिर चौंकता है)(पर कुछ कह नहीं पाता)
रुप - हाँ भैया...
विक्रम - (बड़ी मुश्किल से) यह... आपको कैसे मालुम...
रुप - (अपनी वैनिटी बैग से एक टैबलेट निकालती है) भैया... आप भूल रहे हो... घर के हर एक्सटर्नल पॉइंट में सीसीटीवी लगी है... (कह कर टैबलेट चलाती है) और सर्विलांस की आसेस... भाभी की टैबलेट में भी है...

टैबलेट में दिखता है विक्रम का कार द हैल के परिसर में आकर रुकती है l गाड़ी से उतर कर दरवाजे के बाहर आकर खड़ा हो जाता है l दरवाजे पर दोनों हाथ रख कर अपना सिर दरवाजे पर रखता है l कुछ देर उसी पोजीशन में रहता है फिर जल्दी से उतर कर गाड़ी स्टार्ट कर के निकल जाता है l रुप टैबलेट ऑफ कर देती है l

विक्रम - (भारी आवाज में) वहाँ... किसीको भी मेरा... इंतजार ही कहाँ है...
रुप - झूठ... सरासर झूठ... आपके आने का एहसास भाभी को हो गया था... नींद से उठ कर भागी थी दरवाजे तक... दरवाजे के पास खड़ी रहीं.. उन्हें इंतजार था... की शायद आप से उनके पुकारे जाने की... पर आप ख़ामोशी के साथ आए... और ख़ामोशी को छोड़ कर चले गए...

विक्रम हैरान हो जाता है रुप की इस खुलासे से l धप कर बैठ जाता है l

रुप - उन्हें रोज रोते.. तड़पते देख रही हूँ भैया... आपके इंतजार में... आपने उनसे जो वादे किए थे...वह वादे... क्यूँ नहीं निभा रहे हैं...
विक्रम - निभा ही तो रहा हूँ... मैंने वादा किया था... चाहे कुछ भी हो जाए... मुझ पर रूठने का हक़ उनको होगा... पर मैं कभी उनसे नहीं रूठुंगा....
रुप - आपने... और एक वादा भी किया था...
विक्रम - (रुप की ओर देखते हुए) और कौनसा वादा... यह जो दूरी... उन्होंने ही बनाया है...
रुप - ना... बिल्कुल नहीं... यह दूरी आपने बनाया है... इसके जिम्मेदार आप ही हैं... रही वादे की बात... आपने कहा था... के आप उन्हें... मनाना कभी नहीं छोड़ेंगे... तब तक मनाते रहेंगे... जब तक जब तक वह मान ना जाएं... अब आप बताओ भैया... शादी के बाद वह आपसे रूठ गईं... पर आपने... कब कब उन्हें मनाया... कितनी बार मनाया....

रुप की कहे हर एक शब्द विक्रम के सिर पर हथोड़े की तरह लग रहा था l

रुप - वह आपके लिए... सबकुछ छोड़ आयीं... पर आपकी खता के लिए उनका रूठना... वह उनका हक़ था... जिसे आपने ही उन्हें दिया था... बस... आपने अपना वादा नहीं निभाया.... उन्हें कभी नहीं मनाया...

रुप टैबलेट को अपनी बैग में रख कर विक्रम की ओर देखती है l

रुप - आपसे उम्र में छोटी हूँ... तजुर्बे में भी... आपसे ऊंची आवाज में बात की... उसके लिए माफ़ कर दीजियेगा... (कह कर जाने को होती है, फिर मुड़ कर) भैया... आपकी और भाभी का प्यार बेमिसाल है... वह आज भी आपकी इंतजार में हैं... आपके बीच जो भी गलत फहमी है उसे दूर करना आपका फर्ज है... पहल तो आपको ही करनी होगी... और आपसे ही होनी चाहिए है... (कह कर दरवाजे के पास जाती है, फिर वहीँ रुक कर वापस विक्रम की ओर देख कर) चले आओ भैया... प्लीज...

रुप चली गई l कमरे में अकेला विक्रम कुर्सी पर बैठा आँसू भरे आँखों में दरवाजे की ओर देख रहा है l उसके कानों में रुप के कही हर एक बात गूंज रही है l
Nice update
 
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