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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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Kala Nag मित्र अब तो पूरी गतिशील हो गई है रचना व कई नए दाव पेच, रोमांचक मुकाबले रोमांस से परिपूर्ण दिल मज़ा आ रहा है पढ़ने में..
अगले घटनाक्रम के इंतजार में...
 

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag मित्र अब तो पूरी गतिशील हो गई है रचना व कई नए दाव पेच, रोमांचक मुकाबले रोमांस से परिपूर्ण दिल मज़ा आ रहा है पढ़ने में..
अगले घटनाक्रम के इंतजार में...
बस मेरे भाई आप इसी तरह मेरे साथ जुड़े रहें और अपनी बहुमूल्य कमेंट्स के जरिए मेरा उत्साह बढ़ाते रहें
धन्यबाद और आभार
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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👉तिरासीवां अपडेट
--------------------
शाम का समय
ESS ट्रेनिंग सेंटर
एक हॉल में छत से झूल रहे पंच बैग पर विक्रम पंच बरसा रहा है l धप धप धप की आवाज़ हॉल के अंदर गूँज रही है l पुरे हॉल में सिर्फ पंच बैग के पास ही एक फोकस लाइट गिर रही है l पुरा का पुरा हॉल अंधेरा में डुबा हुआ है l पंच की रफ्तार धीरे धीरे थमने लगती है l पंच मारते मारते विक्रम थकने लगता है, विक्रम फिर रुक जाता है और पंच बैग को अपनी बाहों में लेकर आँखे मूँद लेता है और अपनी साँसों को दुरुस्त करने लगता है l इतने में उसकी कानों में जुतों की आवाज करीब आते हुए सुनाई देती है l ठक ठक करती वह जुतों की आवाज उसके करीब आकर रुक जाती है l

विक्रम - (आँखे मूँदे हुए) आओ महांती... कहो क्या खबर है...
महांती - युवराज... आप आँखे मूँदे हुए हैं... फिर भी... आपको कैसे मालुम हुआ.... कि यह मैं ही हूँ....
विक्रम - यहाँ तक सिर्फ़ दो ही लोग आ सकते हैं... एक तुम और दुसरे राजकुमार... तीसरा कोई कभी यहाँ आया ही नहीं...(एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए पंच बैग को छोड़ देता है) खैर... अपनी आने की वजह बताओ... (कह कर एक रिंग के अंदर जा कर बॉक्सिंग के स्टांस में खड़ा हो जाता है)
महांती - एक खास खबर है... पर कितना बुरा और कितना अच्छा.... यह आप तय लीजिए...
विक्रम - (हवा में पंच उछालते हुए) खबर क्या है बोलो....महांती...
महांती - युवराज... हमारा हलफनामा... अदालत ने स्वीकार कर लिया है... (विक्रम महांती के तरफ मुड़ कर देखता है) और ऑर्डर हमारे मन माफिक ही निकला है...
विक्रम - (महांती के पास आकर) ऑर्डर में क्या निकला है....
महांती - यही... के कमल कांत महानायक को... फिजिकली अदालत में पेश होना पड़ेगा... उसे अपने स्टॉक यार्ड से... जोडार का माल छुड़ाना पड़ेगा... और साथ साथ जज के सामने जोडार को कंपेनसेशन का डेढ़ सौ करोड़ का ड्राफ़्ट... हैंड ओवर करना पड़ेगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर है....
महांती - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए)यह आधी खबर है...
विक्रम - (पंच रोकते हुए महांती को देख कर) पुरी ख़बर क्या है....
महांती - ताज्जुब की बात यह है कि... केके अदालत में हाजिर हो कर... ड्राफ़्ट देने को तैयार हो गया है...
विक्रम - (जोश के साथ) यह मारा... अब बचके कहाँ जाएगा... कब आ रहा है वह...
महांती - आज से ठीक दस दिनों के बाद... उसने अदालत में ओवर... टेलीफोनीक कन्वर्शन में अग्रि किया है...
विक्रम - वाकई...
महांती - पर...
विक्रम - पर क्या महांती...
महांती - और एक मजेदार बात भी है...
विक्रम - मजेदार बात... कैसी मजेदार बात...
महांती - ऑर्डर निकलने के फौरन बाद... अपने वकील के मदत से... अदालत में उसने... फैक्स के जरिए एक हलफनामा दायर किया.... कि उसकी जोडार के लिए कोई खराब मंशा नहीं थी... जो हुआ है... वह गलत फ़हमी हो सकता है... या फिर किसी तीसरे पक्ष की साजिश भी हो सकता है.... इसलिए फ़िलहाल तो वह कंपेनसेशन दे देगा... पर वह इस कांड की इंक्वायरी वह जरुर कराएगा... जिसके वजह से उसकी जान को खतरा हो सकता है... इसलिए जब तक वह कटक या भुवनेश्वर में रहेगा... तब तक अदालत उसे और उसके परिवार को... सरकारी प्रोटेक्शन मुहैया कराए...
विक्रम - हूँ.. हूँ.. हूँ.. हा हा हा हा हा हा हा हा... (हँसते हुए ताली बजाने लगता है) वाव... वाव.. वाव... क्या प्लान बनाया है... केके ने वाव... हा हा हा हा हा हा...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - (हँसी रोक लेता है और अचानक से उसके चेहरे की भाव बदलने लगती है) वाकई... महांती... केके ने बड़ी अच्छी चाल चली है...
महांती - जी युवराज... हम उसे भुवनेश्वर लाने में कामयाब तो हो गए... पर उसने भी अपनी चाल चल ही दी...
विक्रम - ह्म्म्म्म...(टर्न बक्कल के पास आकर रिंग एप्रन रोप को मुट्ठी में पकड़ कर) मरता क्या ना करता... महांती... यह चाल उसके दिमाग की नहीं है...
महांती - मैं भी यही समझ रहा था... यह आइडिया... किसी ऐसे आदमी ने दी होगी... जिसकी सरकारी तंत्रों में थोड़ी बहुत दखल होगी...
विक्रम - ओंकार चेट्टी... भले ही वह इंडिपेंडेंट हारा है... पर था तो कैबिनेट मिनिस्टर ही... उसके अपने कनेक्शन्स होंगे ही...
महांती - जी युवराज... अब लड़ाई... ताकत... दिमाग और रुतबे की होगी... अब सामने केके होगा... और पीछे... ओंकार चेट्टी...
विक्रम - (अपनी जबड़े भींच कर) ह्म्म्म्म... यह खेल अब अलग लेवल पर पहुँच गया है... वह कुत्ता केके... हमारा नाम तो लेगा नहीं... पर अपनी जान को खतरा बता कर... वह सरकारी सुरक्षा के साथ साथ... मीडिया अटेंशन भी हासिल कर लेगा...
महांती - जी युवराज... आई थींक... वह ऑलमोस्ट कर चुका है...
विक्रम - हूँ... शतरंज पर चाल... पहले उसने चला... फिर हम... अब उसने फिर से चाल चल दी है... अब हमें.... जवाब भी... उसके माकूल देना होगा...

रिंग से उतर कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है और महांती को बैठने के लिए इशारा करता है l महांती उसके सामने बैठ जाता है l पास पड़े टावल से अपने चेहरे पर पसीना पोंछता है l

विक्रम - तुम्हें क्या लगता है महांती... हमें क्या करना चाहिए...
महांती - फ़िलहाल... एक क्लोज चैम्बर डिस्कशन... आप.. मैं और राजकुमार...
विक्रम - मैं भी यही सोच रहा था... इस मैटर से फिलहाल... छोटे राजा जी को दुर ही रखें...

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सर्किट हाउस
कटक

जिस कमरे में ठहरे हुए हैं रोणा और बल्लभ, उसी कमरे के, पीछे वाले लॉन में मद्धिम रौशनी बिखेरती एक लैम्प पोस्ट के नीचे एक टेबल लगा हुआ है l वकील बल्लभ प्रधान और इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा बैठ कर चखने के साथ साथ शराब पी रहे हैं l बल्लभ टेबल पर झुका हुआ है पर रोणा चेयर पर बैठ कर आसमान की देख रहा है l

बल्लभ - (थोड़े नशे में) हाँ अब तारे गिनना ही बाकी रह गया है... साले तु... सात साल के लिए... राजगड़ क्या छोड़ा... बड़ा डरपोक बन गया...
रोणा - (चुप चाप अपना ग्लास खाली करता है)
बल्लभ - वैदेही के... देह की ज़मानत लेने गया था.... हा हा हा हा... साले... तेरे पिछवाड़े लात मार कर भगा दिया तुझे...
रोणा - (चुप चाप अपने ग्लास में लगा हुआ है)
बल्लभ - विश्व... उस हरामजादे की... पांच पैसे की औकात नहीं... साले तु उसको बढ़ा चढ़ा कर... सौ रुपये की बता रहा था... साला... दौ... दौ कड़ी का भी नहीं निकला... हा हा हा हा... प्लम्बर, कापेंटर और नजाने क्या क्या...
रोणा - (अपना ग्लास रख कर) वकील... तुझे नशा ज्यादा हो गया है...
बल्लभ - अबे चुप... (चिढ़ाते हुए) वैदेही का अगर ऐसा ट्रांसफ़रमेशन हुआ है... तो विश्व का क्या हुआ होगा... देख लिया ना... साला... हरामी.. ट्रांसफ़र्म हुआ है... प्लम्बर.. कार्पेंटर में.... हा हा हा हा...
रोणा - बस वकील... बस... खुशी के मारे तु बहुत पी गया है... ना जुबान... ना खुशी... कुछ भी नहीं संभल रहा है तुझसे...
बल्लभ - हाँ... (खड़ा हो जाता है) नहीं संभल रहा मुझसे... जबकि तुझे... (रोणा की तरफ हाथ दिखा कर) तुझे सबसे ज्यादा खुश होना चाहिए था... और मुझसे भी ज्यादा पीना चाहिए था...(बैठ जाता है)
रोणा - सात सालों में... तुम लोगों ने एक ही काम किया... आँखें मूँदे रहे... खाए पीए... और अजगर की तरह डकार लिए वगैर... अपनी मांद में पड़े रहे... बाहर अपनी खिड़की से झाँक कर बदलती दुनिया को देखा ही नहीं...
बल्लभ - अरे यार... यह फिरसे शुरु हो गया...क्या तुझे... उस जैलर पर यकीन नहीं...
रोणा - नहीं...
बल्लभ - व्हाट... क्यूँ... तुझे लगता है कि... खान झूठ बोला है...
रोणा - नहीं... सच बोला है... पर आधा ही... बाकी आधा या तो वह जानता नहीं... या फिर छुपा गया...
बल्लभ - यह तु कैसे कह सकता है..
रोणा - सबक... इतिहास से...
बल्लभ - कैसा सबक... कैसा इतिहास...
रोणा - विश्व का कोई नहीं था... सारी दुनिया उस पर थु थु कर रही थी... ऐसे में उसे... एडवोकेट जयंत राउत का बखूबी साथ मिला... क्या लगता था जयंत उसका... पर उसने मरते दम तक विश्व का साथ नहीं छोड़ा...
बल्लभ - तो...
रोणा - हमें... साजिश करनी पड़ी... यह तु भी जानता है वकील... अगर जयंत मारा ना गया होता... तो इस केस में हम लोगों का क्या हश्र हुआ होता...
बल्लभ - (चुप हो जाता है)
रोणा - यह भी मत भुल... जयंत ने अपनी सारी कमाई.. उन भाई बहन के नाम कर मर गया...
बल्लभ - (नशा काफूर होने लगा था) तो...
रोणा - हमने जो तरीका अपनाया... वह एक आम तरीका है... अब खास तरीका अपनाने का टाइम आ गया है...
बल्लभ - क्या... क्या मतलब है तेरा...
रोणा - बहुत ही पुराना तरीका है...
बल्लभ - कौनसा तरीका...
रोणा - अपना कंटेक्ट का इस्तमाल करेंगे... इन सात सालों में... सेंट्रल जैल में... लंबे जाने वाले कैदियों की लिस्ट.... और पोस्टिंग में काम करने वाले पुलिस वालों की लिस्ट... तुझे हासिल करना है...
बल्लभ - इससे क्या होगा...
रोणा - कोई तो ऐसा मिल जाएगा... जो हमारे चैनल में फिट हो जाएगा... उसे जो चाहिए... हम उसे देंगे... शराब... शबाब... और चमड़ी वाली कबाब.. बदले में वह मुझे विश्व की... इंफॉर्मेशन देगा...
बल्लभ - ऑए दारोगा... तु सच में पागल हो गया है...
रोणा - नहीं... मैं कंन्फर्म होना चाहता हूँ... खान सही बोल रहा है...
बल्लभ - (रोणा को घूरते हुए चुप हो जाता है)
रोणा - बोलो... निकलोगे मेरे लिए वह लिस्ट...
बल्लभ - एक बात... सिर्फ़ एक बात...
रोणा - हाँ... पुछ..
बल्लभ - तु इतना डेस्पेरेट क्यों है...
रोणा - इसलिए... कि हम... राजा साहब के... दो अनमोल रत्न हैं... जिस दिन टुटे... या चमक फीकी पड़ गई... उस दिन हम... डस्टबीन में फेंक दिए जाएंगे...
बल्लभ - (नशा अब पुरी तरह से उतर जाता है और सीरियस हो कर) मतलब... तु वाकई सीरियस है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - लिस्ट... शायद कल शाम तक मिल जाएगा... मुझे पुलिस हेडक्वार्टर में... अपने बंदे से बात करना पड़ेगा...
रोणा - तो कर...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... कल मैं तेरा यह काम कर दूँगा... और भी किसीको ढूँढना था ना...
रोणा - हाँ... मासी... वैदेही की उस प्यारी मासी को ढूँढ़ना है... तु उसकी फ़िकर मत कर... वह मैं कल ढूंढ ही लूँगा... तु बस हेडक्वार्टर वाली काम करदे मेरा....
बल्लभ - (बहुत सीरियस हो जाता है) ठीक है... अब हम पुरे कमफर्मेशन के साथ ही... वापस राजगड़ जायेंगे...
रोणा - अब तु भी सीरियस हो गया...
बल्लभ - हाँ... राजा साहब का काम है... कोई चूक नहीं रहना चाहिए....
रोणा - शाबाश... यह हुई ना बात... अब चल जल्दी से सो जाते हैं... सुबह ताजा हो कर काम पर लग जाएंगे...
बल्लभ - नहीं यार... मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है... अभी तो शाम ढल रही है... रात अभी बाकी है...
मैखाने में जाम भरा हुआ है....
पैमाना छलकना बाकी है....
रोणा - वाह रे ग़ालिब के जमाई वाह... तो मुझे भी कौनसी सुबह जल्दी उठने की आदत थी.. बस यहाँ पर लगी.. और भोषड़ी के... तुने लगाया... जल्दी उठ कर... जॉगिंग करने से... दिल दिमाग बहुत तरो-ताजा हो जाता है...
बल्लभ - आज ही जॉगिंग को गया... और जॉगिंग तुझे इतना भा गया...
रोणा - हाँ यार... सुबह सुबह... स्किन फिट ट्रैक शूट में... यहाँ की लड़कियाँ... औरतें जिस तरह से... अपनी चौड़े चौड़े पिछवाड़े को दिखा कर जॉगिंग करते हैं ना... साला लौड़ा और साँस... दोनों को संभालना मुश्किल हो जाता है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए रोणा को देखता है)
रोणा - कल की शाम... हमारे नाम...
खुब जमायेंगे रंग
जब मिल बैठेंगे संग
कमीने तीन
मैं... तुम... और (शराब की बोतल उठा कर) इस बोतल में बंद जिन....

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अनु - राजकुमार जी...
वीर - जी अनु जी..
अनु - ओ हो... प्लीज... आप.. मुझे जी ना कहिए...
वीर - (हँसते हुए) ठीक है अनु... बोलो क्या हुआ...
अनु - वह... शाम हो गई है... मैं जाऊँ...
वीर - कहाँ...
अनु - जी... घर...
वीर - अभी...
अनु - जी शाम हो गई है...
वीर - ठीक है... (अनु जाने लगती है) अनु... (बुलाता है)
अनु - जी... (पीछे मुड़ कर वीर को देखती है)

वीर अपने टेबल पर से अपने थरथराते हुए हाथों से एक गुलाब का फूल उठाता है और कर अनु के तरफ बढ़ाता है l

अनु - यह.. किस.. लिए... राज... कुमार जी...
वीर - वह मैं तुमसे... मेरा मतलब है... अनु..
अनु - जी...
वीर - वह.. वह... छी... (अपने ख़यालों से बाहर आकर, अपना सिर आईने पर दे मारता है) (जब दर्द होता है) आह... (अपने चारों तरफ देखता है, अपनी ही कैबिन के वॉशरुम में था वह) ओह माय गॉड... मैं सपना देख रहा था... वह भी खड़े खड़े... छी... साला सपने में या ख़यालों भी... उसे... आई लव यू... नहीं कह पाया... छी..

वीर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है और फिर अपने चेहरे पर पानी की छिटें मारने लगता है l

वीर - दो पहर से शाम हो चुकी है... जब रिहर्सल ही ठीक से नहीं हो पा रहा है... तो क्या ख़ाक उसे कह पाऊँगा....

तभी उसकी मोबाइल बजने लगती है l डिस्प्ले में भैया दिखता है l

वीर - हैलो...
विक्रम - हैलो राजकुमार...
वीर - जी...
विक्रम - आप कहाँ हैं इस वक़्त...
वीर - अपने कैबिन में...
विक्रम - क्या...(चौंक कर) आप... अभीतक ऑफिस में हैं...
वीर - हाँ.. तो क्या हुआ...
विक्रम - नहीं... कुछ नहीं... वह.. एक सीरियस मैटर पर बात करना चाहते हैं... मैं और महांती... आपका कांफ्रेंस हॉल में इंतजार कर रहे हैं...
वीर - ठीक है.. मैं दो मिनट में आता हूँ..

वीर कॉल कट करता है और और अपने कैबिन में ताला लगा कर की-स्टैंड में चाबी रख देता है और कांफ्रेंस हॉल में पहुँचता है l हॉल में महांती और विक्रम बैठे हुए हैं l वीर भी उनके सामने बैठ जाता है l

विक्रम - तो महांती... अब तक की जो भी जानकारी है... राजकुमार को बताओ...

महांती वही सब बातेँ दोहराता है, जो विक्रम को उसने बताया था l सब सुनने के बाद वीर कुछ देर सोचता है l

विक्रम - क्या हुआ.. किस सोच में खो गए...
वीर - वक़्त के साथ साथ हम... ताकतवर हो रहे हैं... या कमज़ोर...
विक्रम - क्या मतलब है तुम्हारा...
वीर - हमने अपनी आर्मी खड़ा किया.. कुछ इस तरह से हाइप बनाया... के सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन हम पर डीपेंड हो जाये... ताकि हमसे दुश्मनी करने की कोई सोचे ही ना... पर कमाल है... आज हमारे दुश्मनी का मंसूबा पालने वाले... सिस्टम का ही सहारा ले रहे हैं...
महांती - आपने ठीक कहा राजकुमार... हमसे बचने की कोशिश करने वाले सिस्टम की आड़ ले रहे हैं...
विक्रम - ठीक है... अब हमें क्या करना चाहिए...
वीर - हमें.. सिस्टम के बीच... सिस्टम के भीतर घुसना चाहिए...
महांती - राजकुमार... यह इतना आसान नहीं है... हमें... हमारे दुश्मनों से लेकर... मीडिया तक वाच कर रहा होगा...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा है राजकुमार... सब जानते हैं... हम किसीसे डरते नहीं हैं... हम कुछ ऐसा कर नहीं सकते... जिससे यह लोग समझने लगें की हम डर गए या... डरने लगे हैं...
वीर - डरा तो सकते हैं...

विक्रम और महांती पहले एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मतलब
वीर - केके ने यह कटक आकर.. अदालत के अंदर ड्राफ़्ट देने का ड्रामा... सब इसलिए कर रहा है... ताकि हम खुल्लमखुल्ला उस पर हाथ ना डाल पाएं... खुल्लमखुल्ला ना सही तो चोरी छुपे ही सही...
विक्रम - पर उसके लिए... हमें या तो उसका इंतजार करना पड़ेगा... या फिर उसके पास जाना पड़ेगा...
वीर - नियम कहता है... के शिकार के लिए शिकारी को... इंतजार करना ही पड़ता है...
महांती - पर वह ऐसा शिकार है... जो जानता है... उसका शिकारी कौन है... इसलिए इस मामले में... क्या वह भी ऐसा कुछ... सोचा नहीं होगा...
वीर - शायद... सोच लिया हो...
विक्रम - मतलब...
वीर - जब तक... वह कोर्ट में अपना काम नहीं खतम कर देता... वह हमें... एंगेज रखेगा...

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l विक्रम और महांती कुछ सोचने लगते हैं l तभी वीर की फोन बजने लगती है l

विक्रम - (चिढ़ कर) यह क्या है राजकुमार... कांफ्रेंस हॉल में... आपको फोन म्यूट पर रखना चाहिए था...
वीर - (अपना डिस्पले विक्रम को दिखाते हुए) भाभी जी का कॉल है... एक मिनट... (कॉल उठा कर) हाँ भाभी...
शुभ्रा - वीर... शाम हो गई है... कब तक आओगे... मैं और नंदिनी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं... तुम्हारे आने के बाद ही हम खाना खाएंगे...
वीर - भाभी बस थोड़ी देर और... एक मीटिंग में हूँ...
शुभ्रा - ओके जल्दी आना...
वीर - जी भाभी...

उधर से शुभ्रा कॉल कट कर देती है l बेशक फोन स्पीकर पर नहीं था पर कांफ्रेंस हॉल में इतनी ख़ामोशी थी कि विक्रम को शुभ्रा की सारी बातेँ सुनाई दे रही थी l

वीर - ओह सॉरी भैया...
विक्रम - (वीर की ओर गौर से देखते हुए) बहुत... बदल गए हो... राजकुमार...
वीर - बदलना जरूरी था भैया... याद है भैया... आपने एक दिन कहा था... हमारे या तो मुलाजिम हो सकते हैं... या फिर दुश्मन... हमारा कभी कोई दोस्त नहीं हो सकता....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता, आँखे बड़ी करते हुए वीर को देखता है)
वीर - कल तक मेरी सिर्फ एक ही दोस्त थी... पर आज मुझे एक और दोस्त मिलगया...
विक्रम - नया दोस्त...
वीर - हाँ भैया... आज ऐसे ही xxx मॉल को चला गया था... (फिर वीर अपनी और प्रताप की मुलाकात के बारे में सब कहता है, पर अनु और प्यार वाली बात छुपा देता है) क्या दोस्त मिला... पहली बार ऐसा लगा...(अपनी बाहें फैला कर) जैसे सच में कुछ मिल गया...अंधेरे में भटकते राही को... रौशनी मिल गया... (अचानक चेहरे का भाव बदल जाता है) ओह शिट...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या हुआ...
वीर - हमने एक दूसरे को अपना नाम तो बताया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज करना तो भूल ही गए... (वीर खड़ा हो जाता है) ओके भैया... भाभी और नंदिनी... खाने पर मेरा इंतजार कर रहे हैं... और मुझे भूख भी जोर की लगी है... चलता हूँ... बाय...

वीर कमरे से चला जाता है l विक्रम एक गहरी सांस छोड़ता है l महांती देखता है विक्रम के आँखों में आंसू की बूंद चमक रही है l

महांती - क्या हुआ युवराज जी...
विक्रम - (अपना चेहरा घुमा लेता है) कुछ नहीं महांती... जो गैर जरूरी हो जाए... उसको... कोई याद नहीं करता... किसीको इंतजार नहीं रहता...

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ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर तापस बैठ कर पेपर पढ़ रहा है l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में चहल कदम कर रही है l फिर प्रतिभा जल्दी से आकर तापस के हाथों से पेपर छिन कर सामने टेबल पर पटकते हुए

प्रतिभा - इस पेपर को कम से कम सौ बार पढ़ चुके होंगे... और क्या बाकी रह गया है जो अभी भी छान रहे हैं...
तापस - ओहो भाग्यवान... आख़िर तुम्हें क्या चाहिए...
प्रतिभा - (घड़ी की ओर इशारा करते हुए) घड़ी देखिए... आपका लाट साहब अभी तक आए नहीं हैं... आपके वजह से वह देर रात को घर लौट रहा है...
तापस - ओ हो... भाग्यवान... भगवान से डरों... जरा भगवान से डरो... वह सिर्फ़ दो दिन ही लेट आया था.. अभी दो दिन से तो टाइम पर आ रहा है ना....
प्रतिभा - फिर भी... आप हैं ना... अच्छे लड़के को बिगाड़ रहे हैं...
तापस - ओ हो... अभी टाइम ही क्या हुआ है... आठ ही तो बजे हैं... खाने के टाइम से पहले पहुँच जाएगा...
प्रतिभा - हाँ.... पहुँच जाएगा... मैं पूछती हूँ... उसे ड्राइविंग स्कुल में जॉइन करने की क्या जरूरत थी... मैं या आप सीखा नहीं सकते थे उसे...
तापस - भाग्यवान... वह सुबह का नास्ता और रात का खाना हमारे साथ खाता है... बाकी समय उसे यह शहर और शहरी वातावरण को समझने दो... कहीं ना कहीं उसे एंगेज रखना है... वरना... यु नो वेरी वेल... एन आईडील माइंड इज़ अलवेज अ डेविल माइंड...
प्रतिभा - हो गया... हो गया आपका... वह प्रताप है... उसे कोई बुराई छू नहीं सकती...
तापस - तो फिर तुम्हें किस बात का डर है...
प्रतिभा - अगर... उसे किसी चुड़ैल की नजर लग गई तो...
तापस - अरे... जाने जिगर जानेमन...
तुमको क्यूँ है.. इस बात का वहम...
तुम्हारे प्रताप पर चुड़ैलों की नहीं... परियों की नजर लगने वाली है...
प्रतिभा - कर दी ना गुड़ का गोबर... मैं परेशान हूँ कहीं नजर नहीं लग जाये... तुम नजर लग जाने की बात कर रहे हो...
विश्व - क्या बात है माँ...(अंदर आते हुए) किस नजर की बात कर रही हो...
प्रतिभा - (खुश हो कर) आ गया... (गुस्सा दिखाते हुए) इतना लेट क्यों...
विश्व - (घड़ी की ओर देख कर) कहाँ माँ.. आठ बज कर दस मिनट ही हुए हैं...
प्रतिभा - फिर भी दस मिनट तो लेट है ना...
विश्व - माँ... बस और ऑटो पर तो मेरा कंट्रोल नहीं है ना..
प्रतिभा - अच्छा ठीक है... चल मुहँ हाथ धो ले.. मैं खाना लगाती हूँ...
तापस - पहले खाना बना तो लो... फिर लगा देना...
प्रतिभा - हाँ हाँ... बना दूंगी... कितना टाइम लगेगा... चुटकी बजाते ही हो जाएगा...
तापस - तो जाओ भाग्यवान... किचन में जा कर चुटकी बजाओ....
प्रतिभा - (गुस्से में मुहं बना कर) हूँ.ह्ह्... जा रही हूँ... (कह कर किचन में चली जाती है)
तापस - (विश्व से) वहाँ खड़े हो कर क्या देख रहे हो लाटसाहब... (अपने पास इशारा करते हुए) यहाँ आओ.. बैठो...

विश्व वहाँ जा कर तापस के बगल वाले चेयर पर बैठ जाता है l तापस की पीठ किचन की तरफ होता है l

तापस - तो... जनाब का दिन कैसा गया...
विश्व - पता नहीं डैड... अच्छा भी नहीं सकता... और बुरा भी नहीं कह सकता...
तापस - क्यूँ... कुछ ऑनएक्सपेक्टेड इंसिडेंट या एक्सीडेंट हुआ क्या...
विश्व - पता नहीं... क्या हुआ... एक दोस्त मिला... और एक... (पॉज लेकर) हुर भी मिलीं...
तापस - वाव... वेरी गुड... तेरी माँ... चुड़ैल चुड़ैल की रट लगाए जा रही थी...
विश्व - (हैरान हो कर) चुड़ैल... मतलब ...
तापस - अरे अभी अभी तेरी माँ... तेरी लेट आने की वजह चुड़ैलों कों बता रही थी... (विश्व का मुहँ खुला रह जाता है) अच्छा पहले यह बता... वह नया दोस्त कौन था...
विश्व - कौन दोस्त...
तापस - अरे... अभी अभी तो तुने बताया... के तुझे एक दोस्त मिला...
विश्व - हाँ वह... उससे आज से चालीस दिन पहले मिला था... ओरायन मॉल के पार्किंग में...
तापस - (उछल पड़ता है) क्या... तुने जिससे मार पीट की थी...
विश्व - नहीं वह तो क्षेत्रपाल का बेटा था.. यह अलग है.. वीर नाम है उसका... उस दिन अपने गर्ल फ्रेंड के साथ आया था... पर आज वह अकेला था... (उसके बाद वीर से मुलाकात की सारी बातेँ बताता है)
तापस - वाह बेटे.. बहुत अच्छे... खुद से तो एक भी पटी नहीं.. जनाब दुसरों को... इश्क़ पर ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - डैड... आपको पता है... आईएएस की कोचिंग क्लासेस कौन लेते हैं...
तापस - कौन...
विश्व - वह लोग... जो आईएएस की एक्जाम बार बार अटेंड करने के बाद भी पाते नहीं हैं... जेईई एंट्रेंस की कोचिंग... ज्यादातर वही लोग देते हैं... जो असल में फैल हुए होते हैं...
तापस - बस कर बाप... बस कर... बहुत ही घटिया एक्जांपल दे रहा है... और वह.. चु.. चुड़ैल वाली...
विश्व - क्या...
तापस - सॉरी सॉरी... वह परी... मतलब उस हुर की बात बता...
विश्व - पता नहीं डैड... उसे हुर कहूँ या... परी कहूँ.. या... शेरनी... या फिर रण चंडी...
तापस - ओ हो.. इतने भयंकर विशेषताएं देख ली तुने.. एक खूबसूरत चेहरे के पीछे...
विश्व - भयंकर मतलब...
तापस - अब तुझसे... क्या कहूँ... मर्द हमेशा... शेर होता है.... ह्म्म्म्म.. शेर ही होता है... पर... औरत शेरनी नहीं होती...
विश्व - वह कैसे...
तापस - वह ऐसे मेरे शेर... की मर्द को... शेर ही होना चाहिए... और वह शेर ही होता है... पर औरत... शेर की सवारी करने वालो शेरावाली होती है.... हो जाती है... समझा...
विश्व - हाँ समझ गया... पर यह आप किस बिनाह पर कह रहे हैं...
तापस - पर्सनल... इट्स माय एक्सपेरियंस... माय सन... पर्सनल एक्सपेरियंस...
विश्व - (अचानक खड़े हो कर, किचन की तरफ देख कर) नहीं माँ... मैंने कुछ नहीं सुना...

तापस झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, प्रतिभा उसे ऐसे देख रही है जैसे उसे कच्चा चबा जाएगी l

तापस - (हकलाते हुए) जान.. मैं तो तारीफ कर रहा था... यु नो...

प्रतिभा अपनी मुहँ का पाउट बना कर आँखे सिकुड़ कर जोर जोर से सांसे लेते हुए तापस को देखने लगती है l

तापस - अच्छा जान... मैं यहीं.. थोड़ा इवनींग वर्किग कर आता हूँ... ठीक है..

वहाँ से ऐसे गायब हो जाता है जैसे गधे के सिर से शिंग l प्रतिभा विश्व को देखती है l

विश्व - (मनाने के अंदाज में) माँ... डैड तो आपकी तारीफ ही कर रहे थे...
प्रतिभा - तारीफ कर रहे थे... या... वुमन टॉर्चर्ड मेन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट की तरह बात कर रहे थे...
विश्व - नहीं माँ... वह तो कह रहे थे... मेरी माँ.. (हाथ जोड़ कर घुटने पर बैठ कर) माता जगदंबे... है...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) डैड के बच्चे... चल चल खतम कर... अपना ड्रामा... चल मुझे बता आगे क्या हुआ...
विश्व - वह खाने का क्या हुआ...
प्रतिभा - चल चल... बहाने मत बना... मैं जानती हूँ... तेरे डैड जब तक नहीं आयेंगे... तु खाना नहीं खाएगा....
विश्व - (मुस्कराकर प्रतिभा को देखता है) अच्छा माँ... तुम सब सुन रही थी ना...
प्रतिभा - हाँ... सब सुनाई दे रहा था... चल अब मुझे उस परी के बारे में बता...
विश्व - डैड को तो आ जाने दो माँ..

प्रतिभा - नहीं.. तेरे डैड... अपना हिस्सा सुन चुके हैं... यह परी या हुर वाला हिस्सा मेरा है... यह मैं सुनूँगी...

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नौकरों को डायनिंग टेबल पर खाना सब रख देने के लिए कहती है शुभ्रा l नौकर भी खाने की बाउल टेबल पर रख देते हैं l शुभ्रा सभी नौकरों को उनके क्वार्टर को विदा कर देती है l सबके जाने के बाद शुभ्रा देखती है अभी तक रुप नीचे नहीं आई है तो घड़ी देखती है, और फिर कुछ सोचते हुए रुप की कमरे की जाती है l कमरे में पहुँच कर देखती है कि रुप की आँखे दीवार की ओर टिकी हुई है, मतलब अपनी ही ख़यालों में खोई हुई है l शुभ्रा आती है और धीरे से उसके सामने बैठ जाती है l फिर भी रुप की ध्यान नहीं टूटती l

शुभ्रा - अहेम.. अहेम.. अहेम... (खरासते हुए आवाज़ निकालती है)
रुप - (चौंक कर) अरे भाभी... आप.. आप कब आईं...
शुभ्रा - ( मुस्कराते हुए) पुरा एक घंटा हो गया...
रुप - (शर्मिंदा होते हुए) क्या भाभी... आप भी ना...
शुभ्रा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... क्या नंदिनी... तुम किस ख्यालों में खोई हुई थी... या... किसके ख़यालों में खो गई थी...
रुप - आ ह.. ह्.. (खीज कर) भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके ओके... तो बताओ मेरी प्यारी ननद जी... आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यूँ है...
रुप - आज ना... एक लंगुर मिला... उसीके वजह से... थोड़ी डिस्टर्ब हूँ...
शुभ्रा - ओ हो हो.. आज इस हुर को कोई... लंगुर मिला...
रुप - आह्ह्ह्ह्... भाभी...
शुभ्रा - अरे... तुम्हीं ने तो कहा... लंगुर के बारे में... अब तुम्हें हुर ना कहें तो किसे कहेंगे...
रुप - (अपनी दांत पिसते हुए मुहँ को पाउट बना कर देखती है)
शुभ्रा - अरे बाप रे.. इतना गुस्सा... (अपनी कान पकड़ते हुए) अच्छा बाबा... माफ करो... और जो मन में है उसे साफ करो...

(पाठकों अब एक छोटा सा फ्लैशबैक होगा जो रुप शुभ्रा को और विश्व प्रतिभा को बतायेंगे, और वह फ्लैशबैक पैरालली इन चार चरित्रों में विवरण के साथ बताई जाएगी)

प्रतिभा - चलो चलो... जल्दी बताओ क्या हुआ...
विश्व - माँ... मैं ड्राइविंग स्कुल के लिए एक सिटी बस में बैठ कर आराम से जा रहा था... आगे चार स्टॉपेज पर दो लड़कियाँ उठीं... लेडिज सीट पर दो मर्द बैठे हुए थे... उन दोनों में से एक लड़की उनको वहाँ से उठने के लिए कहा... वह नहीं उठे... तो उस लड़की ने एक का कलर पकड़ कर बहुत हंगामा किया... कंडक्टर उन दो मर्दों को लेकर वहाँ से उठा कर... उन ल़डकियों की सीट दी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म वेरी गुड... बहुत... बहादुर लड़की है... हूँ.. फिर क्या हुआ...
विश्व - फिर अगले स्टॉपेज पर कुछ पैसेंजर उतर गए... और कुछ पैसेंजर चढ़े... उनमें से एक.. बेचारी बुढ़ी औरत थी... जिसे देखते ही... वह लड़की अपनी सीट से उठ कर उस औरत को सीट दे दी...
प्रतिभा - वाह... बहुत अच्छा... फिर..
विश्व - ठीक उसी समय में... ड्राइवर ने झटके से गाड़ी आगे बढ़ा दी... जिसके वजह से वह लड़की पीछे गिरने को हुई... तब मैं अपनी सीट छोड़ कर... उनको पीठ कर खड़ा हो गया... जिसके वजह से वह संभल गई... पर इतने में मेरी सीट पर कोई बैठ गया...
प्रतिभा - हम्म्म... अच्छे कामों की ऐसी कीमत होती है बेटा... तो क्या उस लड़की को पता चला... की तेरे वजह से वह संभल गई... वरना गिर सकती थी...
विश्व - हाँ पता चला ना उनको...

रुप - मैंने उसे थैंक्स कहा... पर मुआ.. मुहँ छुपाए... बिना मुझसे देखे बात कर रहा था...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ मुहँ छुपा रहा था...
रुप - मुझे क्या पता...
शुभ्रा - ठीक है ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या... क्यूँ की हर स्टॉपेज पर... लोग चढ़ते थे और उतरते भी थे...इसलिए मैं धीरे-धीरे पीछे जा कर देखा एक सीट खाली थी... पर वहाँ पर वही बंदर बैठा हुआ था... मुहँ छुपा रहा था... मैं बैठ गई... और उसे आराम से बैठने के लिए कहा... पर वह हम लोग उतरने तक... ना चेहरा दिखाया... ना आराम से बैठा...
शुभ्रा - व्हाट... इस दौरान... तुम लोगों में... कोई बातचीत भी नहीं हुई...
रुप - हुई.. मैंने की... के आप आराम से बैठ जाइए... वह कहा जी मैं ठीक हुँ... मैंने कहा... कि अगर कोई परेशानी हो रही है तो उठ जाती हूँ... तो कहा... नहीं नहीं... ( चिढ़ाने के अंदाज में) नहीं आप बहुत अच्छी हैं...
शुभ्रा - तो तुमने उसे क्या कहा...
रुप - (अपनी जबड़े भींच कर) गो टू हैल...

प्रतिभा - वह तो कहेगी ही... वह समझी होगी.. तु.. एटीट्यूड दिखा रहा है... इसलिए जहन्नुम भेज दी...
विश्व - चुप हो जाता है...
प्रतिभा - अब आगे बोल... क्या हुआ..
विश्व - फिर वह अपनी स्टॉपेज पर उतर जातीं हैं... बस आगे निकल जाता है... थोड़ी देर बाद मुझे मालुम पड़ता है कि.. मेरी स्टॉपेज पीछे छूट गई है... मैंने बस को रुकवाया... फिर भागते हुए ड्राइविंग स्कुल में पहुँचा... तब... जब इंस्ट्रक्टर अटेंडेंस ले रहा था...

शुभ्रा - व्हाट... वह प्रताप था...
रुप - हाँ भाभी... वह प्रताप था...
शुभ्रा - मतलब वह भी... ड्राइविंग सीखने गया था.... फिर... फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक

रोहित - सो.. यु आर मिस्टर प्रताप... ह्म्म्म्म.. यु नो वन थिंग... फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ अलवेज लास्ट इम्प्रेशन... ह्म्म्म्म..
प्रताप - सॉरी सर...
रोहित - ओके... प्लीज.. कम इन... एंड यु मे टेक् योर सीट...

प्रताप अंदर बैठने आता है पर नंदिनी और भाश्वती को देख कर रुक जाता है l प्रताप का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l

रोहित - क्या हुआ... यहाँ क्यूँ खड़े हो गए...
विश्व - सर... क्या मैं.. सही स्कुल के सही क्लास में आया हूँ...
रोहित - यह कोई यूनिवर्सिटी या बड़ा सा कॉलेज नहीं है... जो क्लास ढूंढते फिरोगे... गो एंड सीट डाउन...

उन्हीं स्टूडेंट्स के बीच वह बुजुर्ग खड़े होते हैं और प्रताप को अपने पास बैठने के लिए कहते हैं l प्रताप उन्हें हैरान हो कर देखता है l

बुजुर्ग - अरे बेटा... भूल गए... वह आइसक्रीम पार्लर में... तुमने मेरी पत्नी को... गले से लगाया था...
प्रताप - हाँ.. हाँ.. अंकल जी... माँ जी कैसी हैं...
रोहित - एस्क्युज मी... यह हाल चाल आप ग्राउंड में एक दुसरे से पुछ लीजिए... पर यहाँ नहीं...
प्रताप - (उन बुजुर्ग के पास बैठने के बाद) ओके सर...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - ओह.. तो वह बुजुर्ग तुम्हें अच्छी तरह से याद रखे हुए थे...

नंदिनी - हाँ भाभी... यह वही अंकल थे... जिनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते हैं... इसलिए प्रताप उनकी पत्नी को गले लगा लिया था....
शुभ्रा - हाँ.. उस दिन यह देख कर... खड़ी हो कर तुमने ताली बजाई थी.. यह मुझे याद है...
नंदिनी - भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके.. फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक


नंदिनी - (भाश्वती के कान में धीरे से) यह वही है.. बस में मेरे पास बैठा था... अपना मुहँ छुपा रहा था... पर क्यूँ...
भाश्वती - (धीरे से) मेरे वजह से...
नंदिनी - क्या...
भाश्वती - यही तो वह बंदा था.. जिसने मुझे मेरे घर तक छोड़ा था...
नंदिनी - ओ...
रोहित - सो... अब मैं आप सबका परिचय जानना चाहूँगा... कम ऑन... मैं रैंडमली एक एक से पूछूँगा... आप अपना परिचय दें... और आपके लिए... ड्राइविंग सीखना क्यों जरूरी है यह भी बतायें...

क्लास में सीखने वाले आठ लोग थे l छह लड़कियाँ और दो मर्द l एक के बाद एक अपना परिचय देते हुए ड्राइविंग सीखने की वजह बता रहे थे l

रोहित - हाँ तो... आप अपने बारे में बताएं...
नंदिनी - जी... हैलो एवरी वन... मेरा नाम नंदिनी है.. मैं आज के दौर की लड़की हूँ... किसी भी मामले में... मैं खुद को मर्दों के पीछे देखना नहीं चाहती.. इसलिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - (चौंकते हुए) क्या वह नंदिनी थी...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (खुशी से चहकते हुए) फिर.. फिर क्या हुआ

फ्लैशबैक

रोहित - ओ... ब्रावो... ब्रावो... वेरीगुड... और तुम... (प्रताप से) तुम अपने बारे में कहो...
प्रताप - जी... मैं प्रताप.. मैं... हमेशा से लेट रहा हूँ.. आज भी लेट आया था... आप सब जानते हैं... खैर मैं ड्राइविंग इसलिए सीखना चाहता हूँ... ताकि मैं ड्राइविंग सीट पर बैठुं... और मेरे पीछे वाले सीट पर मेरे माँ बाप बैठें...

प्रताप की बातेँ सुन कर वह बुजुर्ग ताली बजाता है l

रोहित - ओके... ओके... इट सउंड्स वेरी गुड... तो हमारे बीच एक मॉमास् बॉय है... ह्म्म्म्म... खैर नेक्स्ट...(भाश्वती से) अब आप बताएं...
भाश्वती - हाय... मैं भाश्वती... (अपनी दांत पिसते हुए) कल तक मेरी गाड़ी सीखने की मकसद कुछ और था... और अब कुछ और है...
रोहित - वेल वेल वेल.. क्या बताना चाहोगी.. क्या मकसद था... और अब क्या है...
भाश्वती - मेरे भाई कार्गो शिप में रेडियो ऑफिसर हैं... साल में छह महीने बाहर रहते हैं... डैड डीपीएस प्रिन्सिपल हैं... फ़िलहाल सिंगापुर में हैं... तो घर में जो कार है... वह बेकार ना हो जाए... इसलिए सीखना चाहती थी...
रोहित - और अब...
भाश्वती - (अपने दांत पिसते हुए, हाथों को जोर से मलते हुए) अब... अब मैं खतरनाक हो गई हूँ... (प्रताप को देख कर) जो खतरनाक नहीं है... उसे कुचलने के लिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - व्हाट... किसी को कुचलने के लिए सीखेगी...
विश्व - हाँ.. मुझे... कुचलने के लिए...

शुभ्रा - क्या प्रताप को कुचलने के लिए... क्या वह प्रताप को पहले से ही जानती है... प्रताप ने कुछ गलत किया था क्या...
रुप - पता नहीं...
शुभ्रा - मतलब...

रुप शुभ्रा को और उधर विश्व प्रतिभा को भाश्वती की कहानी सुनाते हैं l वह सुन कर पहले तो शुन हो जाते हैं फिर जोर जोर से हँसने लगते हैं l

प्रतिभा - ओह गॉड... क्या इसलिए कह रहा था... लड़कियां बहुत फास्ट हैं...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) ओ हो हो हो हो... गॉड... बेचारी का दिल जो तोड़ा था...
विश्व - उसे बहन ही तो कहा था...

शुभ्रा - हाँ कहा था... मतलब वह भाश्वती की स्पीड देख कर डर गया था... हा हा हा हा हा हा...
रुप - हाँ... शायद...
शुभ्रा - फिर इंस्ट्रक्टर ने क्या कहा...

फ्लैशबैक

रोहित - ओह माय गॉड... हम यहां गाड़ी चलाना सिखाते हैं.... तुम मर्डर करने की बात कर रही हो...
बुजुर्ग - ओह कम ऑन रोहित... सी इज़ किडींग... डोंट टेक हर सीरियसली...
रोहित - ओके ओके... मैं आपसे कह देना चाहता हूँ... की आप लोगों को आज... लर्निंग लाइसेंस... प्रोवाइड किया जाएगा... आपकी सक्सेस फूल ट्रेनिंग के बाद... आप हमारी सर्टिफिकेट लेकर आरटीओ ऑफिस में टेस्ट देकर लाइसेंस हासिल कर सकते हैं... सो (बुजुर्ग से) अब आप बाकी हैं... आप... अपने बारे में बताएं...
बुजुर्ग - श्योर... माय नेम इज़ सुकुमार... मैं साठ साल का हूँ... मेरे लिए ड्राइविंग लाइसेंस एक अचीवमेंट होगी... एक ऐसी अचीवमेंट... जिस पर फर्क़ किया जाए...
रोहित - ओह रियली.. एक्सप्लेन हाउ...
सुकुमार - जी जरूर... एक बच्चा... जब पहली बार चलना सीखता है... वह बहुत खुश होता है... क्यूंकि वह उसकी अचीवमेंट होती है... किसी गरीब स्टूडेंट को आईएएस मिल जाए... वह उसके लिए अचीवमेंट होता है... किसीकी कप्तानी में वर्ल्ड कप जीतना... उस कप्तान के लिए अचीवमेंट होता है... जैसा कि मैंने कहा कि... मैं अब साठ साल का हूँ... मैं अपनी जिंदगी में कभी खराब स्टूडेंट नहीं था.. पर अच्छा भी नहीं था... इसलिए जिंदगी और अचीवमेंट्स सभी कुछ एवरेज ही रहा... अब तक की सबसे बड़ी अचीवमेंट यह रही.. कि मेरी हम राज... मेरी हम कदम.. मेरी हम दर्द... मेरी जीवन संगिनी मेरे साथ है... बस बच्चे हमें छोड़ गए... इसलिए उसीके लिए.. ड्राइविंग सिखाना चाहता हूँ... एक गाड़ी खरीद कर ... उसके साथ एक लंबी ड्राइव पर जाना चाहता हूँ... मैं साठ साल का हूँ... इस उम्र में ज्यादातर लोगों की ड्राइविंग लाइसेंस रिनीउ भी नहीं हो पाती... मैं इसी उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना चाहता हूँ... यह मेरे लिए... अचीवमेंट होगा... अचीवमेंट


Kala Nag Bhai,

Bahut hi umda update he, full of emotions......

Vikram se jyada ab bhi Vir mature lagta he mujhe,

Anu aur Vir ki love story abhi tal raftar nahi pakad payi he.....

Prathibha aur Tapas ka Vishwa ke prati lagaw ab kuch jayada hi badh gaya he, jo ki mujhe lagta he in tiono ke liye hi musibat paida kar sakta he..

Rona aur Pradhan ab sahi track par chal pade he, ab inko malum hoga Vishwa ka Vishwarup

Vikram ke man me abhi bhi Shubhra ko lekar kuch galat fehmiya lag rahi he.....

Vishwa aur Rup ki love story ab thoda thoda aage badhegi aisa lagta he.........



Waiting for the next update
 

Kala Nag

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Kala Nag Bhai,

Bahut hi umda update he, full of emotions......
थैंक्स Ajju Landwalia
Vikram se jyada ab bhi Vir mature lagta he mujhe,
वह तो है ही और रीयलीस्टिक भी है
Anu aur Vir ki love story abhi tal raftar nahi pakad payi he.....
हा हा हा पकड़ेगी मेरे भाई पकड़ेगी इनकी प्रेम कहानी एक हाईलाइट है
Prathibha aur Tapas ka Vishwa ke prati lagaw ab kuch jayada hi badh gaya he, jo ki mujhe lagta he in tiono ke liye hi musibat paida kar sakta he..
विश्व है ना
Rona aur Pradhan ab sahi track par chal pade he, ab inko malum hoga Vishwa ka Vishwarup
हाँ ट्रैक तो उन्होंने सही पकड़े हैं पर चौकन्ना नहीं हैं
Vikram ke man me abhi bhi Shubhra ko lekar kuch galat fehmiya lag rahi he.....
गलतफहीम तो नहीं कह सकते हैं हाँ उनकी बीच की ग़लत फ़हमी दुर नहीं हुई है
Vishwa aur Rup ki love story ab thoda thoda aage badhegi aisa lagta he.........
ज़रूर भाई आखिर कहानी के नायक और नायिका जो ठहरे
Waiting for the next update
उसी पर लेख लिख रहा हूँ, और कोशिश कर रहा हूँ जल्दी लाने के लिए
 

parkas

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👉तिरासीवां अपडेट
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शाम का समय
ESS ट्रेनिंग सेंटर
एक हॉल में छत से झूल रहे पंच बैग पर विक्रम पंच बरसा रहा है l धप धप धप की आवाज़ हॉल के अंदर गूँज रही है l पुरे हॉल में सिर्फ पंच बैग के पास ही एक फोकस लाइट गिर रही है l पुरा का पुरा हॉल अंधेरा में डुबा हुआ है l पंच की रफ्तार धीरे धीरे थमने लगती है l पंच मारते मारते विक्रम थकने लगता है, विक्रम फिर रुक जाता है और पंच बैग को अपनी बाहों में लेकर आँखे मूँद लेता है और अपनी साँसों को दुरुस्त करने लगता है l इतने में उसकी कानों में जुतों की आवाज करीब आते हुए सुनाई देती है l ठक ठक करती वह जुतों की आवाज उसके करीब आकर रुक जाती है l

विक्रम - (आँखे मूँदे हुए) आओ महांती... कहो क्या खबर है...
महांती - युवराज... आप आँखे मूँदे हुए हैं... फिर भी... आपको कैसे मालुम हुआ.... कि यह मैं ही हूँ....
विक्रम - यहाँ तक सिर्फ़ दो ही लोग आ सकते हैं... एक तुम और दुसरे राजकुमार... तीसरा कोई कभी यहाँ आया ही नहीं...(एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए पंच बैग को छोड़ देता है) खैर... अपनी आने की वजह बताओ... (कह कर एक रिंग के अंदर जा कर बॉक्सिंग के स्टांस में खड़ा हो जाता है)
महांती - एक खास खबर है... पर कितना बुरा और कितना अच्छा.... यह आप तय लीजिए...
विक्रम - (हवा में पंच उछालते हुए) खबर क्या है बोलो....महांती...
महांती - युवराज... हमारा हलफनामा... अदालत ने स्वीकार कर लिया है... (विक्रम महांती के तरफ मुड़ कर देखता है) और ऑर्डर हमारे मन माफिक ही निकला है...
विक्रम - (महांती के पास आकर) ऑर्डर में क्या निकला है....
महांती - यही... के कमल कांत महानायक को... फिजिकली अदालत में पेश होना पड़ेगा... उसे अपने स्टॉक यार्ड से... जोडार का माल छुड़ाना पड़ेगा... और साथ साथ जज के सामने जोडार को कंपेनसेशन का डेढ़ सौ करोड़ का ड्राफ़्ट... हैंड ओवर करना पड़ेगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर है....
महांती - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए)यह आधी खबर है...
विक्रम - (पंच रोकते हुए महांती को देख कर) पुरी ख़बर क्या है....
महांती - ताज्जुब की बात यह है कि... केके अदालत में हाजिर हो कर... ड्राफ़्ट देने को तैयार हो गया है...
विक्रम - (जोश के साथ) यह मारा... अब बचके कहाँ जाएगा... कब आ रहा है वह...
महांती - आज से ठीक दस दिनों के बाद... उसने अदालत में ओवर... टेलीफोनीक कन्वर्शन में अग्रि किया है...
विक्रम - वाकई...
महांती - पर...
विक्रम - पर क्या महांती...
महांती - और एक मजेदार बात भी है...
विक्रम - मजेदार बात... कैसी मजेदार बात...
महांती - ऑर्डर निकलने के फौरन बाद... अपने वकील के मदत से... अदालत में उसने... फैक्स के जरिए एक हलफनामा दायर किया.... कि उसकी जोडार के लिए कोई खराब मंशा नहीं थी... जो हुआ है... वह गलत फ़हमी हो सकता है... या फिर किसी तीसरे पक्ष की साजिश भी हो सकता है.... इसलिए फ़िलहाल तो वह कंपेनसेशन दे देगा... पर वह इस कांड की इंक्वायरी वह जरुर कराएगा... जिसके वजह से उसकी जान को खतरा हो सकता है... इसलिए जब तक वह कटक या भुवनेश्वर में रहेगा... तब तक अदालत उसे और उसके परिवार को... सरकारी प्रोटेक्शन मुहैया कराए...
विक्रम - हूँ.. हूँ.. हूँ.. हा हा हा हा हा हा हा हा... (हँसते हुए ताली बजाने लगता है) वाव... वाव.. वाव... क्या प्लान बनाया है... केके ने वाव... हा हा हा हा हा हा...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - (हँसी रोक लेता है और अचानक से उसके चेहरे की भाव बदलने लगती है) वाकई... महांती... केके ने बड़ी अच्छी चाल चली है...
महांती - जी युवराज... हम उसे भुवनेश्वर लाने में कामयाब तो हो गए... पर उसने भी अपनी चाल चल ही दी...
विक्रम - ह्म्म्म्म...(टर्न बक्कल के पास आकर रिंग एप्रन रोप को मुट्ठी में पकड़ कर) मरता क्या ना करता... महांती... यह चाल उसके दिमाग की नहीं है...
महांती - मैं भी यही समझ रहा था... यह आइडिया... किसी ऐसे आदमी ने दी होगी... जिसकी सरकारी तंत्रों में थोड़ी बहुत दखल होगी...
विक्रम - ओंकार चेट्टी... भले ही वह इंडिपेंडेंट हारा है... पर था तो कैबिनेट मिनिस्टर ही... उसके अपने कनेक्शन्स होंगे ही...
महांती - जी युवराज... अब लड़ाई... ताकत... दिमाग और रुतबे की होगी... अब सामने केके होगा... और पीछे... ओंकार चेट्टी...
विक्रम - (अपनी जबड़े भींच कर) ह्म्म्म्म... यह खेल अब अलग लेवल पर पहुँच गया है... वह कुत्ता केके... हमारा नाम तो लेगा नहीं... पर अपनी जान को खतरा बता कर... वह सरकारी सुरक्षा के साथ साथ... मीडिया अटेंशन भी हासिल कर लेगा...
महांती - जी युवराज... आई थींक... वह ऑलमोस्ट कर चुका है...
विक्रम - हूँ... शतरंज पर चाल... पहले उसने चला... फिर हम... अब उसने फिर से चाल चल दी है... अब हमें.... जवाब भी... उसके माकूल देना होगा...

रिंग से उतर कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है और महांती को बैठने के लिए इशारा करता है l महांती उसके सामने बैठ जाता है l पास पड़े टावल से अपने चेहरे पर पसीना पोंछता है l

विक्रम - तुम्हें क्या लगता है महांती... हमें क्या करना चाहिए...
महांती - फ़िलहाल... एक क्लोज चैम्बर डिस्कशन... आप.. मैं और राजकुमार...
विक्रम - मैं भी यही सोच रहा था... इस मैटर से फिलहाल... छोटे राजा जी को दुर ही रखें...

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सर्किट हाउस
कटक

जिस कमरे में ठहरे हुए हैं रोणा और बल्लभ, उसी कमरे के, पीछे वाले लॉन में मद्धिम रौशनी बिखेरती एक लैम्प पोस्ट के नीचे एक टेबल लगा हुआ है l वकील बल्लभ प्रधान और इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा बैठ कर चखने के साथ साथ शराब पी रहे हैं l बल्लभ टेबल पर झुका हुआ है पर रोणा चेयर पर बैठ कर आसमान की देख रहा है l

बल्लभ - (थोड़े नशे में) हाँ अब तारे गिनना ही बाकी रह गया है... साले तु... सात साल के लिए... राजगड़ क्या छोड़ा... बड़ा डरपोक बन गया...
रोणा - (चुप चाप अपना ग्लास खाली करता है)
बल्लभ - वैदेही के... देह की ज़मानत लेने गया था.... हा हा हा हा... साले... तेरे पिछवाड़े लात मार कर भगा दिया तुझे...
रोणा - (चुप चाप अपने ग्लास में लगा हुआ है)
बल्लभ - विश्व... उस हरामजादे की... पांच पैसे की औकात नहीं... साले तु उसको बढ़ा चढ़ा कर... सौ रुपये की बता रहा था... साला... दौ... दौ कड़ी का भी नहीं निकला... हा हा हा हा... प्लम्बर, कापेंटर और नजाने क्या क्या...
रोणा - (अपना ग्लास रख कर) वकील... तुझे नशा ज्यादा हो गया है...
बल्लभ - अबे चुप... (चिढ़ाते हुए) वैदेही का अगर ऐसा ट्रांसफ़रमेशन हुआ है... तो विश्व का क्या हुआ होगा... देख लिया ना... साला... हरामी.. ट्रांसफ़र्म हुआ है... प्लम्बर.. कार्पेंटर में.... हा हा हा हा...
रोणा - बस वकील... बस... खुशी के मारे तु बहुत पी गया है... ना जुबान... ना खुशी... कुछ भी नहीं संभल रहा है तुझसे...
बल्लभ - हाँ... (खड़ा हो जाता है) नहीं संभल रहा मुझसे... जबकि तुझे... (रोणा की तरफ हाथ दिखा कर) तुझे सबसे ज्यादा खुश होना चाहिए था... और मुझसे भी ज्यादा पीना चाहिए था...(बैठ जाता है)
रोणा - सात सालों में... तुम लोगों ने एक ही काम किया... आँखें मूँदे रहे... खाए पीए... और अजगर की तरह डकार लिए वगैर... अपनी मांद में पड़े रहे... बाहर अपनी खिड़की से झाँक कर बदलती दुनिया को देखा ही नहीं...
बल्लभ - अरे यार... यह फिरसे शुरु हो गया...क्या तुझे... उस जैलर पर यकीन नहीं...
रोणा - नहीं...
बल्लभ - व्हाट... क्यूँ... तुझे लगता है कि... खान झूठ बोला है...
रोणा - नहीं... सच बोला है... पर आधा ही... बाकी आधा या तो वह जानता नहीं... या फिर छुपा गया...
बल्लभ - यह तु कैसे कह सकता है..
रोणा - सबक... इतिहास से...
बल्लभ - कैसा सबक... कैसा इतिहास...
रोणा - विश्व का कोई नहीं था... सारी दुनिया उस पर थु थु कर रही थी... ऐसे में उसे... एडवोकेट जयंत राउत का बखूबी साथ मिला... क्या लगता था जयंत उसका... पर उसने मरते दम तक विश्व का साथ नहीं छोड़ा...
बल्लभ - तो...
रोणा - हमें... साजिश करनी पड़ी... यह तु भी जानता है वकील... अगर जयंत मारा ना गया होता... तो इस केस में हम लोगों का क्या हश्र हुआ होता...
बल्लभ - (चुप हो जाता है)
रोणा - यह भी मत भुल... जयंत ने अपनी सारी कमाई.. उन भाई बहन के नाम कर मर गया...
बल्लभ - (नशा काफूर होने लगा था) तो...
रोणा - हमने जो तरीका अपनाया... वह एक आम तरीका है... अब खास तरीका अपनाने का टाइम आ गया है...
बल्लभ - क्या... क्या मतलब है तेरा...
रोणा - बहुत ही पुराना तरीका है...
बल्लभ - कौनसा तरीका...
रोणा - अपना कंटेक्ट का इस्तमाल करेंगे... इन सात सालों में... सेंट्रल जैल में... लंबे जाने वाले कैदियों की लिस्ट.... और पोस्टिंग में काम करने वाले पुलिस वालों की लिस्ट... तुझे हासिल करना है...
बल्लभ - इससे क्या होगा...
रोणा - कोई तो ऐसा मिल जाएगा... जो हमारे चैनल में फिट हो जाएगा... उसे जो चाहिए... हम उसे देंगे... शराब... शबाब... और चमड़ी वाली कबाब.. बदले में वह मुझे विश्व की... इंफॉर्मेशन देगा...
बल्लभ - ऑए दारोगा... तु सच में पागल हो गया है...
रोणा - नहीं... मैं कंन्फर्म होना चाहता हूँ... खान सही बोल रहा है...
बल्लभ - (रोणा को घूरते हुए चुप हो जाता है)
रोणा - बोलो... निकलोगे मेरे लिए वह लिस्ट...
बल्लभ - एक बात... सिर्फ़ एक बात...
रोणा - हाँ... पुछ..
बल्लभ - तु इतना डेस्पेरेट क्यों है...
रोणा - इसलिए... कि हम... राजा साहब के... दो अनमोल रत्न हैं... जिस दिन टुटे... या चमक फीकी पड़ गई... उस दिन हम... डस्टबीन में फेंक दिए जाएंगे...
बल्लभ - (नशा अब पुरी तरह से उतर जाता है और सीरियस हो कर) मतलब... तु वाकई सीरियस है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - लिस्ट... शायद कल शाम तक मिल जाएगा... मुझे पुलिस हेडक्वार्टर में... अपने बंदे से बात करना पड़ेगा...
रोणा - तो कर...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... कल मैं तेरा यह काम कर दूँगा... और भी किसीको ढूँढना था ना...
रोणा - हाँ... मासी... वैदेही की उस प्यारी मासी को ढूँढ़ना है... तु उसकी फ़िकर मत कर... वह मैं कल ढूंढ ही लूँगा... तु बस हेडक्वार्टर वाली काम करदे मेरा....
बल्लभ - (बहुत सीरियस हो जाता है) ठीक है... अब हम पुरे कमफर्मेशन के साथ ही... वापस राजगड़ जायेंगे...
रोणा - अब तु भी सीरियस हो गया...
बल्लभ - हाँ... राजा साहब का काम है... कोई चूक नहीं रहना चाहिए....
रोणा - शाबाश... यह हुई ना बात... अब चल जल्दी से सो जाते हैं... सुबह ताजा हो कर काम पर लग जाएंगे...
बल्लभ - नहीं यार... मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है... अभी तो शाम ढल रही है... रात अभी बाकी है...
मैखाने में जाम भरा हुआ है....
पैमाना छलकना बाकी है....
रोणा - वाह रे ग़ालिब के जमाई वाह... तो मुझे भी कौनसी सुबह जल्दी उठने की आदत थी.. बस यहाँ पर लगी.. और भोषड़ी के... तुने लगाया... जल्दी उठ कर... जॉगिंग करने से... दिल दिमाग बहुत तरो-ताजा हो जाता है...
बल्लभ - आज ही जॉगिंग को गया... और जॉगिंग तुझे इतना भा गया...
रोणा - हाँ यार... सुबह सुबह... स्किन फिट ट्रैक शूट में... यहाँ की लड़कियाँ... औरतें जिस तरह से... अपनी चौड़े चौड़े पिछवाड़े को दिखा कर जॉगिंग करते हैं ना... साला लौड़ा और साँस... दोनों को संभालना मुश्किल हो जाता है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए रोणा को देखता है)
रोणा - कल की शाम... हमारे नाम...
खुब जमायेंगे रंग
जब मिल बैठेंगे संग
कमीने तीन
मैं... तुम... और (शराब की बोतल उठा कर) इस बोतल में बंद जिन....

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अनु - राजकुमार जी...
वीर - जी अनु जी..
अनु - ओ हो... प्लीज... आप.. मुझे जी ना कहिए...
वीर - (हँसते हुए) ठीक है अनु... बोलो क्या हुआ...
अनु - वह... शाम हो गई है... मैं जाऊँ...
वीर - कहाँ...
अनु - जी... घर...
वीर - अभी...
अनु - जी शाम हो गई है...
वीर - ठीक है... (अनु जाने लगती है) अनु... (बुलाता है)
अनु - जी... (पीछे मुड़ कर वीर को देखती है)

वीर अपने टेबल पर से अपने थरथराते हुए हाथों से एक गुलाब का फूल उठाता है और कर अनु के तरफ बढ़ाता है l

अनु - यह.. किस.. लिए... राज... कुमार जी...
वीर - वह मैं तुमसे... मेरा मतलब है... अनु..
अनु - जी...
वीर - वह.. वह... छी... (अपने ख़यालों से बाहर आकर, अपना सिर आईने पर दे मारता है) (जब दर्द होता है) आह... (अपने चारों तरफ देखता है, अपनी ही कैबिन के वॉशरुम में था वह) ओह माय गॉड... मैं सपना देख रहा था... वह भी खड़े खड़े... छी... साला सपने में या ख़यालों भी... उसे... आई लव यू... नहीं कह पाया... छी..

वीर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है और फिर अपने चेहरे पर पानी की छिटें मारने लगता है l

वीर - दो पहर से शाम हो चुकी है... जब रिहर्सल ही ठीक से नहीं हो पा रहा है... तो क्या ख़ाक उसे कह पाऊँगा....

तभी उसकी मोबाइल बजने लगती है l डिस्प्ले में भैया दिखता है l

वीर - हैलो...
विक्रम - हैलो राजकुमार...
वीर - जी...
विक्रम - आप कहाँ हैं इस वक़्त...
वीर - अपने कैबिन में...
विक्रम - क्या...(चौंक कर) आप... अभीतक ऑफिस में हैं...
वीर - हाँ.. तो क्या हुआ...
विक्रम - नहीं... कुछ नहीं... वह.. एक सीरियस मैटर पर बात करना चाहते हैं... मैं और महांती... आपका कांफ्रेंस हॉल में इंतजार कर रहे हैं...
वीर - ठीक है.. मैं दो मिनट में आता हूँ..

वीर कॉल कट करता है और और अपने कैबिन में ताला लगा कर की-स्टैंड में चाबी रख देता है और कांफ्रेंस हॉल में पहुँचता है l हॉल में महांती और विक्रम बैठे हुए हैं l वीर भी उनके सामने बैठ जाता है l

विक्रम - तो महांती... अब तक की जो भी जानकारी है... राजकुमार को बताओ...

महांती वही सब बातेँ दोहराता है, जो विक्रम को उसने बताया था l सब सुनने के बाद वीर कुछ देर सोचता है l

विक्रम - क्या हुआ.. किस सोच में खो गए...
वीर - वक़्त के साथ साथ हम... ताकतवर हो रहे हैं... या कमज़ोर...
विक्रम - क्या मतलब है तुम्हारा...
वीर - हमने अपनी आर्मी खड़ा किया.. कुछ इस तरह से हाइप बनाया... के सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन हम पर डीपेंड हो जाये... ताकि हमसे दुश्मनी करने की कोई सोचे ही ना... पर कमाल है... आज हमारे दुश्मनी का मंसूबा पालने वाले... सिस्टम का ही सहारा ले रहे हैं...
महांती - आपने ठीक कहा राजकुमार... हमसे बचने की कोशिश करने वाले सिस्टम की आड़ ले रहे हैं...
विक्रम - ठीक है... अब हमें क्या करना चाहिए...
वीर - हमें.. सिस्टम के बीच... सिस्टम के भीतर घुसना चाहिए...
महांती - राजकुमार... यह इतना आसान नहीं है... हमें... हमारे दुश्मनों से लेकर... मीडिया तक वाच कर रहा होगा...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा है राजकुमार... सब जानते हैं... हम किसीसे डरते नहीं हैं... हम कुछ ऐसा कर नहीं सकते... जिससे यह लोग समझने लगें की हम डर गए या... डरने लगे हैं...
वीर - डरा तो सकते हैं...

विक्रम और महांती पहले एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मतलब
वीर - केके ने यह कटक आकर.. अदालत के अंदर ड्राफ़्ट देने का ड्रामा... सब इसलिए कर रहा है... ताकि हम खुल्लमखुल्ला उस पर हाथ ना डाल पाएं... खुल्लमखुल्ला ना सही तो चोरी छुपे ही सही...
विक्रम - पर उसके लिए... हमें या तो उसका इंतजार करना पड़ेगा... या फिर उसके पास जाना पड़ेगा...
वीर - नियम कहता है... के शिकार के लिए शिकारी को... इंतजार करना ही पड़ता है...
महांती - पर वह ऐसा शिकार है... जो जानता है... उसका शिकारी कौन है... इसलिए इस मामले में... क्या वह भी ऐसा कुछ... सोचा नहीं होगा...
वीर - शायद... सोच लिया हो...
विक्रम - मतलब...
वीर - जब तक... वह कोर्ट में अपना काम नहीं खतम कर देता... वह हमें... एंगेज रखेगा...

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l विक्रम और महांती कुछ सोचने लगते हैं l तभी वीर की फोन बजने लगती है l

विक्रम - (चिढ़ कर) यह क्या है राजकुमार... कांफ्रेंस हॉल में... आपको फोन म्यूट पर रखना चाहिए था...
वीर - (अपना डिस्पले विक्रम को दिखाते हुए) भाभी जी का कॉल है... एक मिनट... (कॉल उठा कर) हाँ भाभी...
शुभ्रा - वीर... शाम हो गई है... कब तक आओगे... मैं और नंदिनी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं... तुम्हारे आने के बाद ही हम खाना खाएंगे...
वीर - भाभी बस थोड़ी देर और... एक मीटिंग में हूँ...
शुभ्रा - ओके जल्दी आना...
वीर - जी भाभी...

उधर से शुभ्रा कॉल कट कर देती है l बेशक फोन स्पीकर पर नहीं था पर कांफ्रेंस हॉल में इतनी ख़ामोशी थी कि विक्रम को शुभ्रा की सारी बातेँ सुनाई दे रही थी l

वीर - ओह सॉरी भैया...
विक्रम - (वीर की ओर गौर से देखते हुए) बहुत... बदल गए हो... राजकुमार...
वीर - बदलना जरूरी था भैया... याद है भैया... आपने एक दिन कहा था... हमारे या तो मुलाजिम हो सकते हैं... या फिर दुश्मन... हमारा कभी कोई दोस्त नहीं हो सकता....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता, आँखे बड़ी करते हुए वीर को देखता है)
वीर - कल तक मेरी सिर्फ एक ही दोस्त थी... पर आज मुझे एक और दोस्त मिलगया...
विक्रम - नया दोस्त...
वीर - हाँ भैया... आज ऐसे ही xxx मॉल को चला गया था... (फिर वीर अपनी और प्रताप की मुलाकात के बारे में सब कहता है, पर अनु और प्यार वाली बात छुपा देता है) क्या दोस्त मिला... पहली बार ऐसा लगा...(अपनी बाहें फैला कर) जैसे सच में कुछ मिल गया...अंधेरे में भटकते राही को... रौशनी मिल गया... (अचानक चेहरे का भाव बदल जाता है) ओह शिट...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या हुआ...
वीर - हमने एक दूसरे को अपना नाम तो बताया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज करना तो भूल ही गए... (वीर खड़ा हो जाता है) ओके भैया... भाभी और नंदिनी... खाने पर मेरा इंतजार कर रहे हैं... और मुझे भूख भी जोर की लगी है... चलता हूँ... बाय...

वीर कमरे से चला जाता है l विक्रम एक गहरी सांस छोड़ता है l महांती देखता है विक्रम के आँखों में आंसू की बूंद चमक रही है l

महांती - क्या हुआ युवराज जी...
विक्रम - (अपना चेहरा घुमा लेता है) कुछ नहीं महांती... जो गैर जरूरी हो जाए... उसको... कोई याद नहीं करता... किसीको इंतजार नहीं रहता...

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ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर तापस बैठ कर पेपर पढ़ रहा है l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में चहल कदम कर रही है l फिर प्रतिभा जल्दी से आकर तापस के हाथों से पेपर छिन कर सामने टेबल पर पटकते हुए

प्रतिभा - इस पेपर को कम से कम सौ बार पढ़ चुके होंगे... और क्या बाकी रह गया है जो अभी भी छान रहे हैं...
तापस - ओहो भाग्यवान... आख़िर तुम्हें क्या चाहिए...
प्रतिभा - (घड़ी की ओर इशारा करते हुए) घड़ी देखिए... आपका लाट साहब अभी तक आए नहीं हैं... आपके वजह से वह देर रात को घर लौट रहा है...
तापस - ओ हो... भाग्यवान... भगवान से डरों... जरा भगवान से डरो... वह सिर्फ़ दो दिन ही लेट आया था.. अभी दो दिन से तो टाइम पर आ रहा है ना....
प्रतिभा - फिर भी... आप हैं ना... अच्छे लड़के को बिगाड़ रहे हैं...
तापस - ओ हो... अभी टाइम ही क्या हुआ है... आठ ही तो बजे हैं... खाने के टाइम से पहले पहुँच जाएगा...
प्रतिभा - हाँ.... पहुँच जाएगा... मैं पूछती हूँ... उसे ड्राइविंग स्कुल में जॉइन करने की क्या जरूरत थी... मैं या आप सीखा नहीं सकते थे उसे...
तापस - भाग्यवान... वह सुबह का नास्ता और रात का खाना हमारे साथ खाता है... बाकी समय उसे यह शहर और शहरी वातावरण को समझने दो... कहीं ना कहीं उसे एंगेज रखना है... वरना... यु नो वेरी वेल... एन आईडील माइंड इज़ अलवेज अ डेविल माइंड...
प्रतिभा - हो गया... हो गया आपका... वह प्रताप है... उसे कोई बुराई छू नहीं सकती...
तापस - तो फिर तुम्हें किस बात का डर है...
प्रतिभा - अगर... उसे किसी चुड़ैल की नजर लग गई तो...
तापस - अरे... जाने जिगर जानेमन...
तुमको क्यूँ है.. इस बात का वहम...
तुम्हारे प्रताप पर चुड़ैलों की नहीं... परियों की नजर लगने वाली है...
प्रतिभा - कर दी ना गुड़ का गोबर... मैं परेशान हूँ कहीं नजर नहीं लग जाये... तुम नजर लग जाने की बात कर रहे हो...
विश्व - क्या बात है माँ...(अंदर आते हुए) किस नजर की बात कर रही हो...
प्रतिभा - (खुश हो कर) आ गया... (गुस्सा दिखाते हुए) इतना लेट क्यों...
विश्व - (घड़ी की ओर देख कर) कहाँ माँ.. आठ बज कर दस मिनट ही हुए हैं...
प्रतिभा - फिर भी दस मिनट तो लेट है ना...
विश्व - माँ... बस और ऑटो पर तो मेरा कंट्रोल नहीं है ना..
प्रतिभा - अच्छा ठीक है... चल मुहँ हाथ धो ले.. मैं खाना लगाती हूँ...
तापस - पहले खाना बना तो लो... फिर लगा देना...
प्रतिभा - हाँ हाँ... बना दूंगी... कितना टाइम लगेगा... चुटकी बजाते ही हो जाएगा...
तापस - तो जाओ भाग्यवान... किचन में जा कर चुटकी बजाओ....
प्रतिभा - (गुस्से में मुहं बना कर) हूँ.ह्ह्... जा रही हूँ... (कह कर किचन में चली जाती है)
तापस - (विश्व से) वहाँ खड़े हो कर क्या देख रहे हो लाटसाहब... (अपने पास इशारा करते हुए) यहाँ आओ.. बैठो...

विश्व वहाँ जा कर तापस के बगल वाले चेयर पर बैठ जाता है l तापस की पीठ किचन की तरफ होता है l

तापस - तो... जनाब का दिन कैसा गया...
विश्व - पता नहीं डैड... अच्छा भी नहीं सकता... और बुरा भी नहीं कह सकता...
तापस - क्यूँ... कुछ ऑनएक्सपेक्टेड इंसिडेंट या एक्सीडेंट हुआ क्या...
विश्व - पता नहीं... क्या हुआ... एक दोस्त मिला... और एक... (पॉज लेकर) हुर भी मिलीं...
तापस - वाव... वेरी गुड... तेरी माँ... चुड़ैल चुड़ैल की रट लगाए जा रही थी...
विश्व - (हैरान हो कर) चुड़ैल... मतलब ...
तापस - अरे अभी अभी तेरी माँ... तेरी लेट आने की वजह चुड़ैलों कों बता रही थी... (विश्व का मुहँ खुला रह जाता है) अच्छा पहले यह बता... वह नया दोस्त कौन था...
विश्व - कौन दोस्त...
तापस - अरे... अभी अभी तो तुने बताया... के तुझे एक दोस्त मिला...
विश्व - हाँ वह... उससे आज से चालीस दिन पहले मिला था... ओरायन मॉल के पार्किंग में...
तापस - (उछल पड़ता है) क्या... तुने जिससे मार पीट की थी...
विश्व - नहीं वह तो क्षेत्रपाल का बेटा था.. यह अलग है.. वीर नाम है उसका... उस दिन अपने गर्ल फ्रेंड के साथ आया था... पर आज वह अकेला था... (उसके बाद वीर से मुलाकात की सारी बातेँ बताता है)
तापस - वाह बेटे.. बहुत अच्छे... खुद से तो एक भी पटी नहीं.. जनाब दुसरों को... इश्क़ पर ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - डैड... आपको पता है... आईएएस की कोचिंग क्लासेस कौन लेते हैं...
तापस - कौन...
विश्व - वह लोग... जो आईएएस की एक्जाम बार बार अटेंड करने के बाद भी पाते नहीं हैं... जेईई एंट्रेंस की कोचिंग... ज्यादातर वही लोग देते हैं... जो असल में फैल हुए होते हैं...
तापस - बस कर बाप... बस कर... बहुत ही घटिया एक्जांपल दे रहा है... और वह.. चु.. चुड़ैल वाली...
विश्व - क्या...
तापस - सॉरी सॉरी... वह परी... मतलब उस हुर की बात बता...
विश्व - पता नहीं डैड... उसे हुर कहूँ या... परी कहूँ.. या... शेरनी... या फिर रण चंडी...
तापस - ओ हो.. इतने भयंकर विशेषताएं देख ली तुने.. एक खूबसूरत चेहरे के पीछे...
विश्व - भयंकर मतलब...
तापस - अब तुझसे... क्या कहूँ... मर्द हमेशा... शेर होता है.... ह्म्म्म्म.. शेर ही होता है... पर... औरत शेरनी नहीं होती...
विश्व - वह कैसे...
तापस - वह ऐसे मेरे शेर... की मर्द को... शेर ही होना चाहिए... और वह शेर ही होता है... पर औरत... शेर की सवारी करने वालो शेरावाली होती है.... हो जाती है... समझा...
विश्व - हाँ समझ गया... पर यह आप किस बिनाह पर कह रहे हैं...
तापस - पर्सनल... इट्स माय एक्सपेरियंस... माय सन... पर्सनल एक्सपेरियंस...
विश्व - (अचानक खड़े हो कर, किचन की तरफ देख कर) नहीं माँ... मैंने कुछ नहीं सुना...

तापस झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, प्रतिभा उसे ऐसे देख रही है जैसे उसे कच्चा चबा जाएगी l

तापस - (हकलाते हुए) जान.. मैं तो तारीफ कर रहा था... यु नो...

प्रतिभा अपनी मुहँ का पाउट बना कर आँखे सिकुड़ कर जोर जोर से सांसे लेते हुए तापस को देखने लगती है l

तापस - अच्छा जान... मैं यहीं.. थोड़ा इवनींग वर्किग कर आता हूँ... ठीक है..

वहाँ से ऐसे गायब हो जाता है जैसे गधे के सिर से शिंग l प्रतिभा विश्व को देखती है l

विश्व - (मनाने के अंदाज में) माँ... डैड तो आपकी तारीफ ही कर रहे थे...
प्रतिभा - तारीफ कर रहे थे... या... वुमन टॉर्चर्ड मेन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट की तरह बात कर रहे थे...
विश्व - नहीं माँ... वह तो कह रहे थे... मेरी माँ.. (हाथ जोड़ कर घुटने पर बैठ कर) माता जगदंबे... है...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) डैड के बच्चे... चल चल खतम कर... अपना ड्रामा... चल मुझे बता आगे क्या हुआ...
विश्व - वह खाने का क्या हुआ...
प्रतिभा - चल चल... बहाने मत बना... मैं जानती हूँ... तेरे डैड जब तक नहीं आयेंगे... तु खाना नहीं खाएगा....
विश्व - (मुस्कराकर प्रतिभा को देखता है) अच्छा माँ... तुम सब सुन रही थी ना...
प्रतिभा - हाँ... सब सुनाई दे रहा था... चल अब मुझे उस परी के बारे में बता...
विश्व - डैड को तो आ जाने दो माँ..

प्रतिभा - नहीं.. तेरे डैड... अपना हिस्सा सुन चुके हैं... यह परी या हुर वाला हिस्सा मेरा है... यह मैं सुनूँगी...

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नौकरों को डायनिंग टेबल पर खाना सब रख देने के लिए कहती है शुभ्रा l नौकर भी खाने की बाउल टेबल पर रख देते हैं l शुभ्रा सभी नौकरों को उनके क्वार्टर को विदा कर देती है l सबके जाने के बाद शुभ्रा देखती है अभी तक रुप नीचे नहीं आई है तो घड़ी देखती है, और फिर कुछ सोचते हुए रुप की कमरे की जाती है l कमरे में पहुँच कर देखती है कि रुप की आँखे दीवार की ओर टिकी हुई है, मतलब अपनी ही ख़यालों में खोई हुई है l शुभ्रा आती है और धीरे से उसके सामने बैठ जाती है l फिर भी रुप की ध्यान नहीं टूटती l

शुभ्रा - अहेम.. अहेम.. अहेम... (खरासते हुए आवाज़ निकालती है)
रुप - (चौंक कर) अरे भाभी... आप.. आप कब आईं...
शुभ्रा - ( मुस्कराते हुए) पुरा एक घंटा हो गया...
रुप - (शर्मिंदा होते हुए) क्या भाभी... आप भी ना...
शुभ्रा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... क्या नंदिनी... तुम किस ख्यालों में खोई हुई थी... या... किसके ख़यालों में खो गई थी...
रुप - आ ह.. ह्.. (खीज कर) भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके ओके... तो बताओ मेरी प्यारी ननद जी... आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यूँ है...
रुप - आज ना... एक लंगुर मिला... उसीके वजह से... थोड़ी डिस्टर्ब हूँ...
शुभ्रा - ओ हो हो.. आज इस हुर को कोई... लंगुर मिला...
रुप - आह्ह्ह्ह्... भाभी...
शुभ्रा - अरे... तुम्हीं ने तो कहा... लंगुर के बारे में... अब तुम्हें हुर ना कहें तो किसे कहेंगे...
रुप - (अपनी दांत पिसते हुए मुहँ को पाउट बना कर देखती है)
शुभ्रा - अरे बाप रे.. इतना गुस्सा... (अपनी कान पकड़ते हुए) अच्छा बाबा... माफ करो... और जो मन में है उसे साफ करो...

(पाठकों अब एक छोटा सा फ्लैशबैक होगा जो रुप शुभ्रा को और विश्व प्रतिभा को बतायेंगे, और वह फ्लैशबैक पैरालली इन चार चरित्रों में विवरण के साथ बताई जाएगी)

प्रतिभा - चलो चलो... जल्दी बताओ क्या हुआ...
विश्व - माँ... मैं ड्राइविंग स्कुल के लिए एक सिटी बस में बैठ कर आराम से जा रहा था... आगे चार स्टॉपेज पर दो लड़कियाँ उठीं... लेडिज सीट पर दो मर्द बैठे हुए थे... उन दोनों में से एक लड़की उनको वहाँ से उठने के लिए कहा... वह नहीं उठे... तो उस लड़की ने एक का कलर पकड़ कर बहुत हंगामा किया... कंडक्टर उन दो मर्दों को लेकर वहाँ से उठा कर... उन ल़डकियों की सीट दी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म वेरी गुड... बहुत... बहादुर लड़की है... हूँ.. फिर क्या हुआ...
विश्व - फिर अगले स्टॉपेज पर कुछ पैसेंजर उतर गए... और कुछ पैसेंजर चढ़े... उनमें से एक.. बेचारी बुढ़ी औरत थी... जिसे देखते ही... वह लड़की अपनी सीट से उठ कर उस औरत को सीट दे दी...
प्रतिभा - वाह... बहुत अच्छा... फिर..
विश्व - ठीक उसी समय में... ड्राइवर ने झटके से गाड़ी आगे बढ़ा दी... जिसके वजह से वह लड़की पीछे गिरने को हुई... तब मैं अपनी सीट छोड़ कर... उनको पीठ कर खड़ा हो गया... जिसके वजह से वह संभल गई... पर इतने में मेरी सीट पर कोई बैठ गया...
प्रतिभा - हम्म्म... अच्छे कामों की ऐसी कीमत होती है बेटा... तो क्या उस लड़की को पता चला... की तेरे वजह से वह संभल गई... वरना गिर सकती थी...
विश्व - हाँ पता चला ना उनको...

रुप - मैंने उसे थैंक्स कहा... पर मुआ.. मुहँ छुपाए... बिना मुझसे देखे बात कर रहा था...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ मुहँ छुपा रहा था...
रुप - मुझे क्या पता...
शुभ्रा - ठीक है ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या... क्यूँ की हर स्टॉपेज पर... लोग चढ़ते थे और उतरते भी थे...इसलिए मैं धीरे-धीरे पीछे जा कर देखा एक सीट खाली थी... पर वहाँ पर वही बंदर बैठा हुआ था... मुहँ छुपा रहा था... मैं बैठ गई... और उसे आराम से बैठने के लिए कहा... पर वह हम लोग उतरने तक... ना चेहरा दिखाया... ना आराम से बैठा...
शुभ्रा - व्हाट... इस दौरान... तुम लोगों में... कोई बातचीत भी नहीं हुई...
रुप - हुई.. मैंने की... के आप आराम से बैठ जाइए... वह कहा जी मैं ठीक हुँ... मैंने कहा... कि अगर कोई परेशानी हो रही है तो उठ जाती हूँ... तो कहा... नहीं नहीं... ( चिढ़ाने के अंदाज में) नहीं आप बहुत अच्छी हैं...
शुभ्रा - तो तुमने उसे क्या कहा...
रुप - (अपनी जबड़े भींच कर) गो टू हैल...

प्रतिभा - वह तो कहेगी ही... वह समझी होगी.. तु.. एटीट्यूड दिखा रहा है... इसलिए जहन्नुम भेज दी...
विश्व - चुप हो जाता है...
प्रतिभा - अब आगे बोल... क्या हुआ..
विश्व - फिर वह अपनी स्टॉपेज पर उतर जातीं हैं... बस आगे निकल जाता है... थोड़ी देर बाद मुझे मालुम पड़ता है कि.. मेरी स्टॉपेज पीछे छूट गई है... मैंने बस को रुकवाया... फिर भागते हुए ड्राइविंग स्कुल में पहुँचा... तब... जब इंस्ट्रक्टर अटेंडेंस ले रहा था...

शुभ्रा - व्हाट... वह प्रताप था...
रुप - हाँ भाभी... वह प्रताप था...
शुभ्रा - मतलब वह भी... ड्राइविंग सीखने गया था.... फिर... फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक

रोहित - सो.. यु आर मिस्टर प्रताप... ह्म्म्म्म.. यु नो वन थिंग... फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ अलवेज लास्ट इम्प्रेशन... ह्म्म्म्म..
प्रताप - सॉरी सर...
रोहित - ओके... प्लीज.. कम इन... एंड यु मे टेक् योर सीट...

प्रताप अंदर बैठने आता है पर नंदिनी और भाश्वती को देख कर रुक जाता है l प्रताप का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l

रोहित - क्या हुआ... यहाँ क्यूँ खड़े हो गए...
विश्व - सर... क्या मैं.. सही स्कुल के सही क्लास में आया हूँ...
रोहित - यह कोई यूनिवर्सिटी या बड़ा सा कॉलेज नहीं है... जो क्लास ढूंढते फिरोगे... गो एंड सीट डाउन...

उन्हीं स्टूडेंट्स के बीच वह बुजुर्ग खड़े होते हैं और प्रताप को अपने पास बैठने के लिए कहते हैं l प्रताप उन्हें हैरान हो कर देखता है l

बुजुर्ग - अरे बेटा... भूल गए... वह आइसक्रीम पार्लर में... तुमने मेरी पत्नी को... गले से लगाया था...
प्रताप - हाँ.. हाँ.. अंकल जी... माँ जी कैसी हैं...
रोहित - एस्क्युज मी... यह हाल चाल आप ग्राउंड में एक दुसरे से पुछ लीजिए... पर यहाँ नहीं...
प्रताप - (उन बुजुर्ग के पास बैठने के बाद) ओके सर...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - ओह.. तो वह बुजुर्ग तुम्हें अच्छी तरह से याद रखे हुए थे...

नंदिनी - हाँ भाभी... यह वही अंकल थे... जिनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते हैं... इसलिए प्रताप उनकी पत्नी को गले लगा लिया था....
शुभ्रा - हाँ.. उस दिन यह देख कर... खड़ी हो कर तुमने ताली बजाई थी.. यह मुझे याद है...
नंदिनी - भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके.. फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक


नंदिनी - (भाश्वती के कान में धीरे से) यह वही है.. बस में मेरे पास बैठा था... अपना मुहँ छुपा रहा था... पर क्यूँ...
भाश्वती - (धीरे से) मेरे वजह से...
नंदिनी - क्या...
भाश्वती - यही तो वह बंदा था.. जिसने मुझे मेरे घर तक छोड़ा था...
नंदिनी - ओ...
रोहित - सो... अब मैं आप सबका परिचय जानना चाहूँगा... कम ऑन... मैं रैंडमली एक एक से पूछूँगा... आप अपना परिचय दें... और आपके लिए... ड्राइविंग सीखना क्यों जरूरी है यह भी बतायें...

क्लास में सीखने वाले आठ लोग थे l छह लड़कियाँ और दो मर्द l एक के बाद एक अपना परिचय देते हुए ड्राइविंग सीखने की वजह बता रहे थे l

रोहित - हाँ तो... आप अपने बारे में बताएं...
नंदिनी - जी... हैलो एवरी वन... मेरा नाम नंदिनी है.. मैं आज के दौर की लड़की हूँ... किसी भी मामले में... मैं खुद को मर्दों के पीछे देखना नहीं चाहती.. इसलिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - (चौंकते हुए) क्या वह नंदिनी थी...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (खुशी से चहकते हुए) फिर.. फिर क्या हुआ

फ्लैशबैक

रोहित - ओ... ब्रावो... ब्रावो... वेरीगुड... और तुम... (प्रताप से) तुम अपने बारे में कहो...
प्रताप - जी... मैं प्रताप.. मैं... हमेशा से लेट रहा हूँ.. आज भी लेट आया था... आप सब जानते हैं... खैर मैं ड्राइविंग इसलिए सीखना चाहता हूँ... ताकि मैं ड्राइविंग सीट पर बैठुं... और मेरे पीछे वाले सीट पर मेरे माँ बाप बैठें...

प्रताप की बातेँ सुन कर वह बुजुर्ग ताली बजाता है l

रोहित - ओके... ओके... इट सउंड्स वेरी गुड... तो हमारे बीच एक मॉमास् बॉय है... ह्म्म्म्म... खैर नेक्स्ट...(भाश्वती से) अब आप बताएं...
भाश्वती - हाय... मैं भाश्वती... (अपनी दांत पिसते हुए) कल तक मेरी गाड़ी सीखने की मकसद कुछ और था... और अब कुछ और है...
रोहित - वेल वेल वेल.. क्या बताना चाहोगी.. क्या मकसद था... और अब क्या है...
भाश्वती - मेरे भाई कार्गो शिप में रेडियो ऑफिसर हैं... साल में छह महीने बाहर रहते हैं... डैड डीपीएस प्रिन्सिपल हैं... फ़िलहाल सिंगापुर में हैं... तो घर में जो कार है... वह बेकार ना हो जाए... इसलिए सीखना चाहती थी...
रोहित - और अब...
भाश्वती - (अपने दांत पिसते हुए, हाथों को जोर से मलते हुए) अब... अब मैं खतरनाक हो गई हूँ... (प्रताप को देख कर) जो खतरनाक नहीं है... उसे कुचलने के लिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - व्हाट... किसी को कुचलने के लिए सीखेगी...
विश्व - हाँ.. मुझे... कुचलने के लिए...

शुभ्रा - क्या प्रताप को कुचलने के लिए... क्या वह प्रताप को पहले से ही जानती है... प्रताप ने कुछ गलत किया था क्या...
रुप - पता नहीं...
शुभ्रा - मतलब...

रुप शुभ्रा को और उधर विश्व प्रतिभा को भाश्वती की कहानी सुनाते हैं l वह सुन कर पहले तो शुन हो जाते हैं फिर जोर जोर से हँसने लगते हैं l

प्रतिभा - ओह गॉड... क्या इसलिए कह रहा था... लड़कियां बहुत फास्ट हैं...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) ओ हो हो हो हो... गॉड... बेचारी का दिल जो तोड़ा था...
विश्व - उसे बहन ही तो कहा था...

शुभ्रा - हाँ कहा था... मतलब वह भाश्वती की स्पीड देख कर डर गया था... हा हा हा हा हा हा...
रुप - हाँ... शायद...
शुभ्रा - फिर इंस्ट्रक्टर ने क्या कहा...

फ्लैशबैक

रोहित - ओह माय गॉड... हम यहां गाड़ी चलाना सिखाते हैं.... तुम मर्डर करने की बात कर रही हो...
बुजुर्ग - ओह कम ऑन रोहित... सी इज़ किडींग... डोंट टेक हर सीरियसली...
रोहित - ओके ओके... मैं आपसे कह देना चाहता हूँ... की आप लोगों को आज... लर्निंग लाइसेंस... प्रोवाइड किया जाएगा... आपकी सक्सेस फूल ट्रेनिंग के बाद... आप हमारी सर्टिफिकेट लेकर आरटीओ ऑफिस में टेस्ट देकर लाइसेंस हासिल कर सकते हैं... सो (बुजुर्ग से) अब आप बाकी हैं... आप... अपने बारे में बताएं...
बुजुर्ग - श्योर... माय नेम इज़ सुकुमार... मैं साठ साल का हूँ... मेरे लिए ड्राइविंग लाइसेंस एक अचीवमेंट होगी... एक ऐसी अचीवमेंट... जिस पर फर्क़ किया जाए...
रोहित - ओह रियली.. एक्सप्लेन हाउ...
सुकुमार - जी जरूर... एक बच्चा... जब पहली बार चलना सीखता है... वह बहुत खुश होता है... क्यूंकि वह उसकी अचीवमेंट होती है... किसी गरीब स्टूडेंट को आईएएस मिल जाए... वह उसके लिए अचीवमेंट होता है... किसीकी कप्तानी में वर्ल्ड कप जीतना... उस कप्तान के लिए अचीवमेंट होता है... जैसा कि मैंने कहा कि... मैं अब साठ साल का हूँ... मैं अपनी जिंदगी में कभी खराब स्टूडेंट नहीं था.. पर अच्छा भी नहीं था... इसलिए जिंदगी और अचीवमेंट्स सभी कुछ एवरेज ही रहा... अब तक की सबसे बड़ी अचीवमेंट यह रही.. कि मेरी हम राज... मेरी हम कदम.. मेरी हम दर्द... मेरी जीवन संगिनी मेरे साथ है... बस बच्चे हमें छोड़ गए... इसलिए उसीके लिए.. ड्राइविंग सिखाना चाहता हूँ... एक गाड़ी खरीद कर ... उसके साथ एक लंबी ड्राइव पर जाना चाहता हूँ... मैं साठ साल का हूँ... इस उम्र में ज्यादातर लोगों की ड्राइविंग लाइसेंस रिनीउ भी नहीं हो पाती... मैं इसी उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना चाहता हूँ... यह मेरे लिए... अचीवमेंट होगा... अचीवमेंट
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update.....
 

Kala Nag

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Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update.....
थैंक्स parkas भाई
आपकी बक्शी इज़्ज़त और हौसला है जो सफर यहाँ तक आ पहुंची है
बस भाई सफर मंजिल पर पहुँचने तक साथ दीजिए
 

Rajesh

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👉तिरासीवां अपडेट
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शाम का समय
ESS ट्रेनिंग सेंटर
एक हॉल में छत से झूल रहे पंच बैग पर विक्रम पंच बरसा रहा है l धप धप धप की आवाज़ हॉल के अंदर गूँज रही है l पुरे हॉल में सिर्फ पंच बैग के पास ही एक फोकस लाइट गिर रही है l पुरा का पुरा हॉल अंधेरा में डुबा हुआ है l पंच की रफ्तार धीरे धीरे थमने लगती है l पंच मारते मारते विक्रम थकने लगता है, विक्रम फिर रुक जाता है और पंच बैग को अपनी बाहों में लेकर आँखे मूँद लेता है और अपनी साँसों को दुरुस्त करने लगता है l इतने में उसकी कानों में जुतों की आवाज करीब आते हुए सुनाई देती है l ठक ठक करती वह जुतों की आवाज उसके करीब आकर रुक जाती है l

विक्रम - (आँखे मूँदे हुए) आओ महांती... कहो क्या खबर है...
महांती - युवराज... आप आँखे मूँदे हुए हैं... फिर भी... आपको कैसे मालुम हुआ.... कि यह मैं ही हूँ....
विक्रम - यहाँ तक सिर्फ़ दो ही लोग आ सकते हैं... एक तुम और दुसरे राजकुमार... तीसरा कोई कभी यहाँ आया ही नहीं...(एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए पंच बैग को छोड़ देता है) खैर... अपनी आने की वजह बताओ... (कह कर एक रिंग के अंदर जा कर बॉक्सिंग के स्टांस में खड़ा हो जाता है)
महांती - एक खास खबर है... पर कितना बुरा और कितना अच्छा.... यह आप तय लीजिए...
विक्रम - (हवा में पंच उछालते हुए) खबर क्या है बोलो....महांती...
महांती - युवराज... हमारा हलफनामा... अदालत ने स्वीकार कर लिया है... (विक्रम महांती के तरफ मुड़ कर देखता है) और ऑर्डर हमारे मन माफिक ही निकला है...
विक्रम - (महांती के पास आकर) ऑर्डर में क्या निकला है....
महांती - यही... के कमल कांत महानायक को... फिजिकली अदालत में पेश होना पड़ेगा... उसे अपने स्टॉक यार्ड से... जोडार का माल छुड़ाना पड़ेगा... और साथ साथ जज के सामने जोडार को कंपेनसेशन का डेढ़ सौ करोड़ का ड्राफ़्ट... हैंड ओवर करना पड़ेगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर है....
महांती - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए)यह आधी खबर है...
विक्रम - (पंच रोकते हुए महांती को देख कर) पुरी ख़बर क्या है....
महांती - ताज्जुब की बात यह है कि... केके अदालत में हाजिर हो कर... ड्राफ़्ट देने को तैयार हो गया है...
विक्रम - (जोश के साथ) यह मारा... अब बचके कहाँ जाएगा... कब आ रहा है वह...
महांती - आज से ठीक दस दिनों के बाद... उसने अदालत में ओवर... टेलीफोनीक कन्वर्शन में अग्रि किया है...
विक्रम - वाकई...
महांती - पर...
विक्रम - पर क्या महांती...
महांती - और एक मजेदार बात भी है...
विक्रम - मजेदार बात... कैसी मजेदार बात...
महांती - ऑर्डर निकलने के फौरन बाद... अपने वकील के मदत से... अदालत में उसने... फैक्स के जरिए एक हलफनामा दायर किया.... कि उसकी जोडार के लिए कोई खराब मंशा नहीं थी... जो हुआ है... वह गलत फ़हमी हो सकता है... या फिर किसी तीसरे पक्ष की साजिश भी हो सकता है.... इसलिए फ़िलहाल तो वह कंपेनसेशन दे देगा... पर वह इस कांड की इंक्वायरी वह जरुर कराएगा... जिसके वजह से उसकी जान को खतरा हो सकता है... इसलिए जब तक वह कटक या भुवनेश्वर में रहेगा... तब तक अदालत उसे और उसके परिवार को... सरकारी प्रोटेक्शन मुहैया कराए...
विक्रम - हूँ.. हूँ.. हूँ.. हा हा हा हा हा हा हा हा... (हँसते हुए ताली बजाने लगता है) वाव... वाव.. वाव... क्या प्लान बनाया है... केके ने वाव... हा हा हा हा हा हा...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - (हँसी रोक लेता है और अचानक से उसके चेहरे की भाव बदलने लगती है) वाकई... महांती... केके ने बड़ी अच्छी चाल चली है...
महांती - जी युवराज... हम उसे भुवनेश्वर लाने में कामयाब तो हो गए... पर उसने भी अपनी चाल चल ही दी...
विक्रम - ह्म्म्म्म...(टर्न बक्कल के पास आकर रिंग एप्रन रोप को मुट्ठी में पकड़ कर) मरता क्या ना करता... महांती... यह चाल उसके दिमाग की नहीं है...
महांती - मैं भी यही समझ रहा था... यह आइडिया... किसी ऐसे आदमी ने दी होगी... जिसकी सरकारी तंत्रों में थोड़ी बहुत दखल होगी...
विक्रम - ओंकार चेट्टी... भले ही वह इंडिपेंडेंट हारा है... पर था तो कैबिनेट मिनिस्टर ही... उसके अपने कनेक्शन्स होंगे ही...
महांती - जी युवराज... अब लड़ाई... ताकत... दिमाग और रुतबे की होगी... अब सामने केके होगा... और पीछे... ओंकार चेट्टी...
विक्रम - (अपनी जबड़े भींच कर) ह्म्म्म्म... यह खेल अब अलग लेवल पर पहुँच गया है... वह कुत्ता केके... हमारा नाम तो लेगा नहीं... पर अपनी जान को खतरा बता कर... वह सरकारी सुरक्षा के साथ साथ... मीडिया अटेंशन भी हासिल कर लेगा...
महांती - जी युवराज... आई थींक... वह ऑलमोस्ट कर चुका है...
विक्रम - हूँ... शतरंज पर चाल... पहले उसने चला... फिर हम... अब उसने फिर से चाल चल दी है... अब हमें.... जवाब भी... उसके माकूल देना होगा...

रिंग से उतर कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है और महांती को बैठने के लिए इशारा करता है l महांती उसके सामने बैठ जाता है l पास पड़े टावल से अपने चेहरे पर पसीना पोंछता है l

विक्रम - तुम्हें क्या लगता है महांती... हमें क्या करना चाहिए...
महांती - फ़िलहाल... एक क्लोज चैम्बर डिस्कशन... आप.. मैं और राजकुमार...
विक्रम - मैं भी यही सोच रहा था... इस मैटर से फिलहाल... छोटे राजा जी को दुर ही रखें...

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सर्किट हाउस
कटक

जिस कमरे में ठहरे हुए हैं रोणा और बल्लभ, उसी कमरे के, पीछे वाले लॉन में मद्धिम रौशनी बिखेरती एक लैम्प पोस्ट के नीचे एक टेबल लगा हुआ है l वकील बल्लभ प्रधान और इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा बैठ कर चखने के साथ साथ शराब पी रहे हैं l बल्लभ टेबल पर झुका हुआ है पर रोणा चेयर पर बैठ कर आसमान की देख रहा है l

बल्लभ - (थोड़े नशे में) हाँ अब तारे गिनना ही बाकी रह गया है... साले तु... सात साल के लिए... राजगड़ क्या छोड़ा... बड़ा डरपोक बन गया...
रोणा - (चुप चाप अपना ग्लास खाली करता है)
बल्लभ - वैदेही के... देह की ज़मानत लेने गया था.... हा हा हा हा... साले... तेरे पिछवाड़े लात मार कर भगा दिया तुझे...
रोणा - (चुप चाप अपने ग्लास में लगा हुआ है)
बल्लभ - विश्व... उस हरामजादे की... पांच पैसे की औकात नहीं... साले तु उसको बढ़ा चढ़ा कर... सौ रुपये की बता रहा था... साला... दौ... दौ कड़ी का भी नहीं निकला... हा हा हा हा... प्लम्बर, कापेंटर और नजाने क्या क्या...
रोणा - (अपना ग्लास रख कर) वकील... तुझे नशा ज्यादा हो गया है...
बल्लभ - अबे चुप... (चिढ़ाते हुए) वैदेही का अगर ऐसा ट्रांसफ़रमेशन हुआ है... तो विश्व का क्या हुआ होगा... देख लिया ना... साला... हरामी.. ट्रांसफ़र्म हुआ है... प्लम्बर.. कार्पेंटर में.... हा हा हा हा...
रोणा - बस वकील... बस... खुशी के मारे तु बहुत पी गया है... ना जुबान... ना खुशी... कुछ भी नहीं संभल रहा है तुझसे...
बल्लभ - हाँ... (खड़ा हो जाता है) नहीं संभल रहा मुझसे... जबकि तुझे... (रोणा की तरफ हाथ दिखा कर) तुझे सबसे ज्यादा खुश होना चाहिए था... और मुझसे भी ज्यादा पीना चाहिए था...(बैठ जाता है)
रोणा - सात सालों में... तुम लोगों ने एक ही काम किया... आँखें मूँदे रहे... खाए पीए... और अजगर की तरह डकार लिए वगैर... अपनी मांद में पड़े रहे... बाहर अपनी खिड़की से झाँक कर बदलती दुनिया को देखा ही नहीं...
बल्लभ - अरे यार... यह फिरसे शुरु हो गया...क्या तुझे... उस जैलर पर यकीन नहीं...
रोणा - नहीं...
बल्लभ - व्हाट... क्यूँ... तुझे लगता है कि... खान झूठ बोला है...
रोणा - नहीं... सच बोला है... पर आधा ही... बाकी आधा या तो वह जानता नहीं... या फिर छुपा गया...
बल्लभ - यह तु कैसे कह सकता है..
रोणा - सबक... इतिहास से...
बल्लभ - कैसा सबक... कैसा इतिहास...
रोणा - विश्व का कोई नहीं था... सारी दुनिया उस पर थु थु कर रही थी... ऐसे में उसे... एडवोकेट जयंत राउत का बखूबी साथ मिला... क्या लगता था जयंत उसका... पर उसने मरते दम तक विश्व का साथ नहीं छोड़ा...
बल्लभ - तो...
रोणा - हमें... साजिश करनी पड़ी... यह तु भी जानता है वकील... अगर जयंत मारा ना गया होता... तो इस केस में हम लोगों का क्या हश्र हुआ होता...
बल्लभ - (चुप हो जाता है)
रोणा - यह भी मत भुल... जयंत ने अपनी सारी कमाई.. उन भाई बहन के नाम कर मर गया...
बल्लभ - (नशा काफूर होने लगा था) तो...
रोणा - हमने जो तरीका अपनाया... वह एक आम तरीका है... अब खास तरीका अपनाने का टाइम आ गया है...
बल्लभ - क्या... क्या मतलब है तेरा...
रोणा - बहुत ही पुराना तरीका है...
बल्लभ - कौनसा तरीका...
रोणा - अपना कंटेक्ट का इस्तमाल करेंगे... इन सात सालों में... सेंट्रल जैल में... लंबे जाने वाले कैदियों की लिस्ट.... और पोस्टिंग में काम करने वाले पुलिस वालों की लिस्ट... तुझे हासिल करना है...
बल्लभ - इससे क्या होगा...
रोणा - कोई तो ऐसा मिल जाएगा... जो हमारे चैनल में फिट हो जाएगा... उसे जो चाहिए... हम उसे देंगे... शराब... शबाब... और चमड़ी वाली कबाब.. बदले में वह मुझे विश्व की... इंफॉर्मेशन देगा...
बल्लभ - ऑए दारोगा... तु सच में पागल हो गया है...
रोणा - नहीं... मैं कंन्फर्म होना चाहता हूँ... खान सही बोल रहा है...
बल्लभ - (रोणा को घूरते हुए चुप हो जाता है)
रोणा - बोलो... निकलोगे मेरे लिए वह लिस्ट...
बल्लभ - एक बात... सिर्फ़ एक बात...
रोणा - हाँ... पुछ..
बल्लभ - तु इतना डेस्पेरेट क्यों है...
रोणा - इसलिए... कि हम... राजा साहब के... दो अनमोल रत्न हैं... जिस दिन टुटे... या चमक फीकी पड़ गई... उस दिन हम... डस्टबीन में फेंक दिए जाएंगे...
बल्लभ - (नशा अब पुरी तरह से उतर जाता है और सीरियस हो कर) मतलब... तु वाकई सीरियस है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - लिस्ट... शायद कल शाम तक मिल जाएगा... मुझे पुलिस हेडक्वार्टर में... अपने बंदे से बात करना पड़ेगा...
रोणा - तो कर...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... कल मैं तेरा यह काम कर दूँगा... और भी किसीको ढूँढना था ना...
रोणा - हाँ... मासी... वैदेही की उस प्यारी मासी को ढूँढ़ना है... तु उसकी फ़िकर मत कर... वह मैं कल ढूंढ ही लूँगा... तु बस हेडक्वार्टर वाली काम करदे मेरा....
बल्लभ - (बहुत सीरियस हो जाता है) ठीक है... अब हम पुरे कमफर्मेशन के साथ ही... वापस राजगड़ जायेंगे...
रोणा - अब तु भी सीरियस हो गया...
बल्लभ - हाँ... राजा साहब का काम है... कोई चूक नहीं रहना चाहिए....
रोणा - शाबाश... यह हुई ना बात... अब चल जल्दी से सो जाते हैं... सुबह ताजा हो कर काम पर लग जाएंगे...
बल्लभ - नहीं यार... मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है... अभी तो शाम ढल रही है... रात अभी बाकी है...
मैखाने में जाम भरा हुआ है....
पैमाना छलकना बाकी है....
रोणा - वाह रे ग़ालिब के जमाई वाह... तो मुझे भी कौनसी सुबह जल्दी उठने की आदत थी.. बस यहाँ पर लगी.. और भोषड़ी के... तुने लगाया... जल्दी उठ कर... जॉगिंग करने से... दिल दिमाग बहुत तरो-ताजा हो जाता है...
बल्लभ - आज ही जॉगिंग को गया... और जॉगिंग तुझे इतना भा गया...
रोणा - हाँ यार... सुबह सुबह... स्किन फिट ट्रैक शूट में... यहाँ की लड़कियाँ... औरतें जिस तरह से... अपनी चौड़े चौड़े पिछवाड़े को दिखा कर जॉगिंग करते हैं ना... साला लौड़ा और साँस... दोनों को संभालना मुश्किल हो जाता है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए रोणा को देखता है)
रोणा - कल की शाम... हमारे नाम...
खुब जमायेंगे रंग
जब मिल बैठेंगे संग
कमीने तीन
मैं... तुम... और (शराब की बोतल उठा कर) इस बोतल में बंद जिन....

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अनु - राजकुमार जी...
वीर - जी अनु जी..
अनु - ओ हो... प्लीज... आप.. मुझे जी ना कहिए...
वीर - (हँसते हुए) ठीक है अनु... बोलो क्या हुआ...
अनु - वह... शाम हो गई है... मैं जाऊँ...
वीर - कहाँ...
अनु - जी... घर...
वीर - अभी...
अनु - जी शाम हो गई है...
वीर - ठीक है... (अनु जाने लगती है) अनु... (बुलाता है)
अनु - जी... (पीछे मुड़ कर वीर को देखती है)

वीर अपने टेबल पर से अपने थरथराते हुए हाथों से एक गुलाब का फूल उठाता है और कर अनु के तरफ बढ़ाता है l

अनु - यह.. किस.. लिए... राज... कुमार जी...
वीर - वह मैं तुमसे... मेरा मतलब है... अनु..
अनु - जी...
वीर - वह.. वह... छी... (अपने ख़यालों से बाहर आकर, अपना सिर आईने पर दे मारता है) (जब दर्द होता है) आह... (अपने चारों तरफ देखता है, अपनी ही कैबिन के वॉशरुम में था वह) ओह माय गॉड... मैं सपना देख रहा था... वह भी खड़े खड़े... छी... साला सपने में या ख़यालों भी... उसे... आई लव यू... नहीं कह पाया... छी..

वीर अपने गालों पर थप्पड़ मारने लगता है और फिर अपने चेहरे पर पानी की छिटें मारने लगता है l

वीर - दो पहर से शाम हो चुकी है... जब रिहर्सल ही ठीक से नहीं हो पा रहा है... तो क्या ख़ाक उसे कह पाऊँगा....

तभी उसकी मोबाइल बजने लगती है l डिस्प्ले में भैया दिखता है l

वीर - हैलो...
विक्रम - हैलो राजकुमार...
वीर - जी...
विक्रम - आप कहाँ हैं इस वक़्त...
वीर - अपने कैबिन में...
विक्रम - क्या...(चौंक कर) आप... अभीतक ऑफिस में हैं...
वीर - हाँ.. तो क्या हुआ...
विक्रम - नहीं... कुछ नहीं... वह.. एक सीरियस मैटर पर बात करना चाहते हैं... मैं और महांती... आपका कांफ्रेंस हॉल में इंतजार कर रहे हैं...
वीर - ठीक है.. मैं दो मिनट में आता हूँ..

वीर कॉल कट करता है और और अपने कैबिन में ताला लगा कर की-स्टैंड में चाबी रख देता है और कांफ्रेंस हॉल में पहुँचता है l हॉल में महांती और विक्रम बैठे हुए हैं l वीर भी उनके सामने बैठ जाता है l

विक्रम - तो महांती... अब तक की जो भी जानकारी है... राजकुमार को बताओ...

महांती वही सब बातेँ दोहराता है, जो विक्रम को उसने बताया था l सब सुनने के बाद वीर कुछ देर सोचता है l

विक्रम - क्या हुआ.. किस सोच में खो गए...
वीर - वक़्त के साथ साथ हम... ताकतवर हो रहे हैं... या कमज़ोर...
विक्रम - क्या मतलब है तुम्हारा...
वीर - हमने अपनी आर्मी खड़ा किया.. कुछ इस तरह से हाइप बनाया... के सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन हम पर डीपेंड हो जाये... ताकि हमसे दुश्मनी करने की कोई सोचे ही ना... पर कमाल है... आज हमारे दुश्मनी का मंसूबा पालने वाले... सिस्टम का ही सहारा ले रहे हैं...
महांती - आपने ठीक कहा राजकुमार... हमसे बचने की कोशिश करने वाले सिस्टम की आड़ ले रहे हैं...
विक्रम - ठीक है... अब हमें क्या करना चाहिए...
वीर - हमें.. सिस्टम के बीच... सिस्टम के भीतर घुसना चाहिए...
महांती - राजकुमार... यह इतना आसान नहीं है... हमें... हमारे दुश्मनों से लेकर... मीडिया तक वाच कर रहा होगा...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा है राजकुमार... सब जानते हैं... हम किसीसे डरते नहीं हैं... हम कुछ ऐसा कर नहीं सकते... जिससे यह लोग समझने लगें की हम डर गए या... डरने लगे हैं...
वीर - डरा तो सकते हैं...

विक्रम और महांती पहले एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मतलब
वीर - केके ने यह कटक आकर.. अदालत के अंदर ड्राफ़्ट देने का ड्रामा... सब इसलिए कर रहा है... ताकि हम खुल्लमखुल्ला उस पर हाथ ना डाल पाएं... खुल्लमखुल्ला ना सही तो चोरी छुपे ही सही...
विक्रम - पर उसके लिए... हमें या तो उसका इंतजार करना पड़ेगा... या फिर उसके पास जाना पड़ेगा...
वीर - नियम कहता है... के शिकार के लिए शिकारी को... इंतजार करना ही पड़ता है...
महांती - पर वह ऐसा शिकार है... जो जानता है... उसका शिकारी कौन है... इसलिए इस मामले में... क्या वह भी ऐसा कुछ... सोचा नहीं होगा...
वीर - शायद... सोच लिया हो...
विक्रम - मतलब...
वीर - जब तक... वह कोर्ट में अपना काम नहीं खतम कर देता... वह हमें... एंगेज रखेगा...

कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा जाती है l विक्रम और महांती कुछ सोचने लगते हैं l तभी वीर की फोन बजने लगती है l

विक्रम - (चिढ़ कर) यह क्या है राजकुमार... कांफ्रेंस हॉल में... आपको फोन म्यूट पर रखना चाहिए था...
वीर - (अपना डिस्पले विक्रम को दिखाते हुए) भाभी जी का कॉल है... एक मिनट... (कॉल उठा कर) हाँ भाभी...
शुभ्रा - वीर... शाम हो गई है... कब तक आओगे... मैं और नंदिनी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं... तुम्हारे आने के बाद ही हम खाना खाएंगे...
वीर - भाभी बस थोड़ी देर और... एक मीटिंग में हूँ...
शुभ्रा - ओके जल्दी आना...
वीर - जी भाभी...

उधर से शुभ्रा कॉल कट कर देती है l बेशक फोन स्पीकर पर नहीं था पर कांफ्रेंस हॉल में इतनी ख़ामोशी थी कि विक्रम को शुभ्रा की सारी बातेँ सुनाई दे रही थी l

वीर - ओह सॉरी भैया...
विक्रम - (वीर की ओर गौर से देखते हुए) बहुत... बदल गए हो... राजकुमार...
वीर - बदलना जरूरी था भैया... याद है भैया... आपने एक दिन कहा था... हमारे या तो मुलाजिम हो सकते हैं... या फिर दुश्मन... हमारा कभी कोई दोस्त नहीं हो सकता....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता, आँखे बड़ी करते हुए वीर को देखता है)
वीर - कल तक मेरी सिर्फ एक ही दोस्त थी... पर आज मुझे एक और दोस्त मिलगया...
विक्रम - नया दोस्त...
वीर - हाँ भैया... आज ऐसे ही xxx मॉल को चला गया था... (फिर वीर अपनी और प्रताप की मुलाकात के बारे में सब कहता है, पर अनु और प्यार वाली बात छुपा देता है) क्या दोस्त मिला... पहली बार ऐसा लगा...(अपनी बाहें फैला कर) जैसे सच में कुछ मिल गया...अंधेरे में भटकते राही को... रौशनी मिल गया... (अचानक चेहरे का भाव बदल जाता है) ओह शिट...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या हुआ...
वीर - हमने एक दूसरे को अपना नाम तो बताया... पर... फोन नंबर एक्सचेंज करना तो भूल ही गए... (वीर खड़ा हो जाता है) ओके भैया... भाभी और नंदिनी... खाने पर मेरा इंतजार कर रहे हैं... और मुझे भूख भी जोर की लगी है... चलता हूँ... बाय...

वीर कमरे से चला जाता है l विक्रम एक गहरी सांस छोड़ता है l महांती देखता है विक्रम के आँखों में आंसू की बूंद चमक रही है l

महांती - क्या हुआ युवराज जी...
विक्रम - (अपना चेहरा घुमा लेता है) कुछ नहीं महांती... जो गैर जरूरी हो जाए... उसको... कोई याद नहीं करता... किसीको इंतजार नहीं रहता...

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ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर तापस बैठ कर पेपर पढ़ रहा है l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में चहल कदम कर रही है l फिर प्रतिभा जल्दी से आकर तापस के हाथों से पेपर छिन कर सामने टेबल पर पटकते हुए

प्रतिभा - इस पेपर को कम से कम सौ बार पढ़ चुके होंगे... और क्या बाकी रह गया है जो अभी भी छान रहे हैं...
तापस - ओहो भाग्यवान... आख़िर तुम्हें क्या चाहिए...
प्रतिभा - (घड़ी की ओर इशारा करते हुए) घड़ी देखिए... आपका लाट साहब अभी तक आए नहीं हैं... आपके वजह से वह देर रात को घर लौट रहा है...
तापस - ओ हो... भाग्यवान... भगवान से डरों... जरा भगवान से डरो... वह सिर्फ़ दो दिन ही लेट आया था.. अभी दो दिन से तो टाइम पर आ रहा है ना....
प्रतिभा - फिर भी... आप हैं ना... अच्छे लड़के को बिगाड़ रहे हैं...
तापस - ओ हो... अभी टाइम ही क्या हुआ है... आठ ही तो बजे हैं... खाने के टाइम से पहले पहुँच जाएगा...
प्रतिभा - हाँ.... पहुँच जाएगा... मैं पूछती हूँ... उसे ड्राइविंग स्कुल में जॉइन करने की क्या जरूरत थी... मैं या आप सीखा नहीं सकते थे उसे...
तापस - भाग्यवान... वह सुबह का नास्ता और रात का खाना हमारे साथ खाता है... बाकी समय उसे यह शहर और शहरी वातावरण को समझने दो... कहीं ना कहीं उसे एंगेज रखना है... वरना... यु नो वेरी वेल... एन आईडील माइंड इज़ अलवेज अ डेविल माइंड...
प्रतिभा - हो गया... हो गया आपका... वह प्रताप है... उसे कोई बुराई छू नहीं सकती...
तापस - तो फिर तुम्हें किस बात का डर है...
प्रतिभा - अगर... उसे किसी चुड़ैल की नजर लग गई तो...
तापस - अरे... जाने जिगर जानेमन...
तुमको क्यूँ है.. इस बात का वहम...
तुम्हारे प्रताप पर चुड़ैलों की नहीं... परियों की नजर लगने वाली है...
प्रतिभा - कर दी ना गुड़ का गोबर... मैं परेशान हूँ कहीं नजर नहीं लग जाये... तुम नजर लग जाने की बात कर रहे हो...
विश्व - क्या बात है माँ...(अंदर आते हुए) किस नजर की बात कर रही हो...
प्रतिभा - (खुश हो कर) आ गया... (गुस्सा दिखाते हुए) इतना लेट क्यों...
विश्व - (घड़ी की ओर देख कर) कहाँ माँ.. आठ बज कर दस मिनट ही हुए हैं...
प्रतिभा - फिर भी दस मिनट तो लेट है ना...
विश्व - माँ... बस और ऑटो पर तो मेरा कंट्रोल नहीं है ना..
प्रतिभा - अच्छा ठीक है... चल मुहँ हाथ धो ले.. मैं खाना लगाती हूँ...
तापस - पहले खाना बना तो लो... फिर लगा देना...
प्रतिभा - हाँ हाँ... बना दूंगी... कितना टाइम लगेगा... चुटकी बजाते ही हो जाएगा...
तापस - तो जाओ भाग्यवान... किचन में जा कर चुटकी बजाओ....
प्रतिभा - (गुस्से में मुहं बना कर) हूँ.ह्ह्... जा रही हूँ... (कह कर किचन में चली जाती है)
तापस - (विश्व से) वहाँ खड़े हो कर क्या देख रहे हो लाटसाहब... (अपने पास इशारा करते हुए) यहाँ आओ.. बैठो...

विश्व वहाँ जा कर तापस के बगल वाले चेयर पर बैठ जाता है l तापस की पीठ किचन की तरफ होता है l

तापस - तो... जनाब का दिन कैसा गया...
विश्व - पता नहीं डैड... अच्छा भी नहीं सकता... और बुरा भी नहीं कह सकता...
तापस - क्यूँ... कुछ ऑनएक्सपेक्टेड इंसिडेंट या एक्सीडेंट हुआ क्या...
विश्व - पता नहीं... क्या हुआ... एक दोस्त मिला... और एक... (पॉज लेकर) हुर भी मिलीं...
तापस - वाव... वेरी गुड... तेरी माँ... चुड़ैल चुड़ैल की रट लगाए जा रही थी...
विश्व - (हैरान हो कर) चुड़ैल... मतलब ...
तापस - अरे अभी अभी तेरी माँ... तेरी लेट आने की वजह चुड़ैलों कों बता रही थी... (विश्व का मुहँ खुला रह जाता है) अच्छा पहले यह बता... वह नया दोस्त कौन था...
विश्व - कौन दोस्त...
तापस - अरे... अभी अभी तो तुने बताया... के तुझे एक दोस्त मिला...
विश्व - हाँ वह... उससे आज से चालीस दिन पहले मिला था... ओरायन मॉल के पार्किंग में...
तापस - (उछल पड़ता है) क्या... तुने जिससे मार पीट की थी...
विश्व - नहीं वह तो क्षेत्रपाल का बेटा था.. यह अलग है.. वीर नाम है उसका... उस दिन अपने गर्ल फ्रेंड के साथ आया था... पर आज वह अकेला था... (उसके बाद वीर से मुलाकात की सारी बातेँ बताता है)
तापस - वाह बेटे.. बहुत अच्छे... खुद से तो एक भी पटी नहीं.. जनाब दुसरों को... इश्क़ पर ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - डैड... आपको पता है... आईएएस की कोचिंग क्लासेस कौन लेते हैं...
तापस - कौन...
विश्व - वह लोग... जो आईएएस की एक्जाम बार बार अटेंड करने के बाद भी पाते नहीं हैं... जेईई एंट्रेंस की कोचिंग... ज्यादातर वही लोग देते हैं... जो असल में फैल हुए होते हैं...
तापस - बस कर बाप... बस कर... बहुत ही घटिया एक्जांपल दे रहा है... और वह.. चु.. चुड़ैल वाली...
विश्व - क्या...
तापस - सॉरी सॉरी... वह परी... मतलब उस हुर की बात बता...
विश्व - पता नहीं डैड... उसे हुर कहूँ या... परी कहूँ.. या... शेरनी... या फिर रण चंडी...
तापस - ओ हो.. इतने भयंकर विशेषताएं देख ली तुने.. एक खूबसूरत चेहरे के पीछे...
विश्व - भयंकर मतलब...
तापस - अब तुझसे... क्या कहूँ... मर्द हमेशा... शेर होता है.... ह्म्म्म्म.. शेर ही होता है... पर... औरत शेरनी नहीं होती...
विश्व - वह कैसे...
तापस - वह ऐसे मेरे शेर... की मर्द को... शेर ही होना चाहिए... और वह शेर ही होता है... पर औरत... शेर की सवारी करने वालो शेरावाली होती है.... हो जाती है... समझा...
विश्व - हाँ समझ गया... पर यह आप किस बिनाह पर कह रहे हैं...
तापस - पर्सनल... इट्स माय एक्सपेरियंस... माय सन... पर्सनल एक्सपेरियंस...
विश्व - (अचानक खड़े हो कर, किचन की तरफ देख कर) नहीं माँ... मैंने कुछ नहीं सुना...

तापस झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है, प्रतिभा उसे ऐसे देख रही है जैसे उसे कच्चा चबा जाएगी l

तापस - (हकलाते हुए) जान.. मैं तो तारीफ कर रहा था... यु नो...

प्रतिभा अपनी मुहँ का पाउट बना कर आँखे सिकुड़ कर जोर जोर से सांसे लेते हुए तापस को देखने लगती है l

तापस - अच्छा जान... मैं यहीं.. थोड़ा इवनींग वर्किग कर आता हूँ... ठीक है..

वहाँ से ऐसे गायब हो जाता है जैसे गधे के सिर से शिंग l प्रतिभा विश्व को देखती है l

विश्व - (मनाने के अंदाज में) माँ... डैड तो आपकी तारीफ ही कर रहे थे...
प्रतिभा - तारीफ कर रहे थे... या... वुमन टॉर्चर्ड मेन एसोसिएशन की प्रेसिडेंट की तरह बात कर रहे थे...
विश्व - नहीं माँ... वह तो कह रहे थे... मेरी माँ.. (हाथ जोड़ कर घुटने पर बैठ कर) माता जगदंबे... है...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) डैड के बच्चे... चल चल खतम कर... अपना ड्रामा... चल मुझे बता आगे क्या हुआ...
विश्व - वह खाने का क्या हुआ...
प्रतिभा - चल चल... बहाने मत बना... मैं जानती हूँ... तेरे डैड जब तक नहीं आयेंगे... तु खाना नहीं खाएगा....
विश्व - (मुस्कराकर प्रतिभा को देखता है) अच्छा माँ... तुम सब सुन रही थी ना...
प्रतिभा - हाँ... सब सुनाई दे रहा था... चल अब मुझे उस परी के बारे में बता...
विश्व - डैड को तो आ जाने दो माँ..

प्रतिभा - नहीं.. तेरे डैड... अपना हिस्सा सुन चुके हैं... यह परी या हुर वाला हिस्सा मेरा है... यह मैं सुनूँगी...

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नौकरों को डायनिंग टेबल पर खाना सब रख देने के लिए कहती है शुभ्रा l नौकर भी खाने की बाउल टेबल पर रख देते हैं l शुभ्रा सभी नौकरों को उनके क्वार्टर को विदा कर देती है l सबके जाने के बाद शुभ्रा देखती है अभी तक रुप नीचे नहीं आई है तो घड़ी देखती है, और फिर कुछ सोचते हुए रुप की कमरे की जाती है l कमरे में पहुँच कर देखती है कि रुप की आँखे दीवार की ओर टिकी हुई है, मतलब अपनी ही ख़यालों में खोई हुई है l शुभ्रा आती है और धीरे से उसके सामने बैठ जाती है l फिर भी रुप की ध्यान नहीं टूटती l

शुभ्रा - अहेम.. अहेम.. अहेम... (खरासते हुए आवाज़ निकालती है)
रुप - (चौंक कर) अरे भाभी... आप.. आप कब आईं...
शुभ्रा - ( मुस्कराते हुए) पुरा एक घंटा हो गया...
रुप - (शर्मिंदा होते हुए) क्या भाभी... आप भी ना...
शुभ्रा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... क्या नंदिनी... तुम किस ख्यालों में खोई हुई थी... या... किसके ख़यालों में खो गई थी...
रुप - आ ह.. ह्.. (खीज कर) भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके ओके... तो बताओ मेरी प्यारी ननद जी... आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यूँ है...
रुप - आज ना... एक लंगुर मिला... उसीके वजह से... थोड़ी डिस्टर्ब हूँ...
शुभ्रा - ओ हो हो.. आज इस हुर को कोई... लंगुर मिला...
रुप - आह्ह्ह्ह्... भाभी...
शुभ्रा - अरे... तुम्हीं ने तो कहा... लंगुर के बारे में... अब तुम्हें हुर ना कहें तो किसे कहेंगे...
रुप - (अपनी दांत पिसते हुए मुहँ को पाउट बना कर देखती है)
शुभ्रा - अरे बाप रे.. इतना गुस्सा... (अपनी कान पकड़ते हुए) अच्छा बाबा... माफ करो... और जो मन में है उसे साफ करो...

(पाठकों अब एक छोटा सा फ्लैशबैक होगा जो रुप शुभ्रा को और विश्व प्रतिभा को बतायेंगे, और वह फ्लैशबैक पैरालली इन चार चरित्रों में विवरण के साथ बताई जाएगी)

प्रतिभा - चलो चलो... जल्दी बताओ क्या हुआ...
विश्व - माँ... मैं ड्राइविंग स्कुल के लिए एक सिटी बस में बैठ कर आराम से जा रहा था... आगे चार स्टॉपेज पर दो लड़कियाँ उठीं... लेडिज सीट पर दो मर्द बैठे हुए थे... उन दोनों में से एक लड़की उनको वहाँ से उठने के लिए कहा... वह नहीं उठे... तो उस लड़की ने एक का कलर पकड़ कर बहुत हंगामा किया... कंडक्टर उन दो मर्दों को लेकर वहाँ से उठा कर... उन ल़डकियों की सीट दी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म वेरी गुड... बहुत... बहादुर लड़की है... हूँ.. फिर क्या हुआ...
विश्व - फिर अगले स्टॉपेज पर कुछ पैसेंजर उतर गए... और कुछ पैसेंजर चढ़े... उनमें से एक.. बेचारी बुढ़ी औरत थी... जिसे देखते ही... वह लड़की अपनी सीट से उठ कर उस औरत को सीट दे दी...
प्रतिभा - वाह... बहुत अच्छा... फिर..
विश्व - ठीक उसी समय में... ड्राइवर ने झटके से गाड़ी आगे बढ़ा दी... जिसके वजह से वह लड़की पीछे गिरने को हुई... तब मैं अपनी सीट छोड़ कर... उनको पीठ कर खड़ा हो गया... जिसके वजह से वह संभल गई... पर इतने में मेरी सीट पर कोई बैठ गया...
प्रतिभा - हम्म्म... अच्छे कामों की ऐसी कीमत होती है बेटा... तो क्या उस लड़की को पता चला... की तेरे वजह से वह संभल गई... वरना गिर सकती थी...
विश्व - हाँ पता चला ना उनको...

रुप - मैंने उसे थैंक्स कहा... पर मुआ.. मुहँ छुपाए... बिना मुझसे देखे बात कर रहा था...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ मुहँ छुपा रहा था...
रुप - मुझे क्या पता...
शुभ्रा - ठीक है ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या... क्यूँ की हर स्टॉपेज पर... लोग चढ़ते थे और उतरते भी थे...इसलिए मैं धीरे-धीरे पीछे जा कर देखा एक सीट खाली थी... पर वहाँ पर वही बंदर बैठा हुआ था... मुहँ छुपा रहा था... मैं बैठ गई... और उसे आराम से बैठने के लिए कहा... पर वह हम लोग उतरने तक... ना चेहरा दिखाया... ना आराम से बैठा...
शुभ्रा - व्हाट... इस दौरान... तुम लोगों में... कोई बातचीत भी नहीं हुई...
रुप - हुई.. मैंने की... के आप आराम से बैठ जाइए... वह कहा जी मैं ठीक हुँ... मैंने कहा... कि अगर कोई परेशानी हो रही है तो उठ जाती हूँ... तो कहा... नहीं नहीं... ( चिढ़ाने के अंदाज में) नहीं आप बहुत अच्छी हैं...
शुभ्रा - तो तुमने उसे क्या कहा...
रुप - (अपनी जबड़े भींच कर) गो टू हैल...

प्रतिभा - वह तो कहेगी ही... वह समझी होगी.. तु.. एटीट्यूड दिखा रहा है... इसलिए जहन्नुम भेज दी...
विश्व - चुप हो जाता है...
प्रतिभा - अब आगे बोल... क्या हुआ..
विश्व - फिर वह अपनी स्टॉपेज पर उतर जातीं हैं... बस आगे निकल जाता है... थोड़ी देर बाद मुझे मालुम पड़ता है कि.. मेरी स्टॉपेज पीछे छूट गई है... मैंने बस को रुकवाया... फिर भागते हुए ड्राइविंग स्कुल में पहुँचा... तब... जब इंस्ट्रक्टर अटेंडेंस ले रहा था...

शुभ्रा - व्हाट... वह प्रताप था...
रुप - हाँ भाभी... वह प्रताप था...
शुभ्रा - मतलब वह भी... ड्राइविंग सीखने गया था.... फिर... फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक

रोहित - सो.. यु आर मिस्टर प्रताप... ह्म्म्म्म.. यु नो वन थिंग... फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ अलवेज लास्ट इम्प्रेशन... ह्म्म्म्म..
प्रताप - सॉरी सर...
रोहित - ओके... प्लीज.. कम इन... एंड यु मे टेक् योर सीट...

प्रताप अंदर बैठने आता है पर नंदिनी और भाश्वती को देख कर रुक जाता है l प्रताप का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l

रोहित - क्या हुआ... यहाँ क्यूँ खड़े हो गए...
विश्व - सर... क्या मैं.. सही स्कुल के सही क्लास में आया हूँ...
रोहित - यह कोई यूनिवर्सिटी या बड़ा सा कॉलेज नहीं है... जो क्लास ढूंढते फिरोगे... गो एंड सीट डाउन...

उन्हीं स्टूडेंट्स के बीच वह बुजुर्ग खड़े होते हैं और प्रताप को अपने पास बैठने के लिए कहते हैं l प्रताप उन्हें हैरान हो कर देखता है l

बुजुर्ग - अरे बेटा... भूल गए... वह आइसक्रीम पार्लर में... तुमने मेरी पत्नी को... गले से लगाया था...
प्रताप - हाँ.. हाँ.. अंकल जी... माँ जी कैसी हैं...
रोहित - एस्क्युज मी... यह हाल चाल आप ग्राउंड में एक दुसरे से पुछ लीजिए... पर यहाँ नहीं...
प्रताप - (उन बुजुर्ग के पास बैठने के बाद) ओके सर...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - ओह.. तो वह बुजुर्ग तुम्हें अच्छी तरह से याद रखे हुए थे...

नंदिनी - हाँ भाभी... यह वही अंकल थे... जिनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते हैं... इसलिए प्रताप उनकी पत्नी को गले लगा लिया था....
शुभ्रा - हाँ.. उस दिन यह देख कर... खड़ी हो कर तुमने ताली बजाई थी.. यह मुझे याद है...
नंदिनी - भाभी प्लीज...
शुभ्रा - ओके ओके.. फिर क्या हुआ...

फ्लैशबैक


नंदिनी - (भाश्वती के कान में धीरे से) यह वही है.. बस में मेरे पास बैठा था... अपना मुहँ छुपा रहा था... पर क्यूँ...
भाश्वती - (धीरे से) मेरे वजह से...
नंदिनी - क्या...
भाश्वती - यही तो वह बंदा था.. जिसने मुझे मेरे घर तक छोड़ा था...
नंदिनी - ओ...
रोहित - सो... अब मैं आप सबका परिचय जानना चाहूँगा... कम ऑन... मैं रैंडमली एक एक से पूछूँगा... आप अपना परिचय दें... और आपके लिए... ड्राइविंग सीखना क्यों जरूरी है यह भी बतायें...

क्लास में सीखने वाले आठ लोग थे l छह लड़कियाँ और दो मर्द l एक के बाद एक अपना परिचय देते हुए ड्राइविंग सीखने की वजह बता रहे थे l

रोहित - हाँ तो... आप अपने बारे में बताएं...
नंदिनी - जी... हैलो एवरी वन... मेरा नाम नंदिनी है.. मैं आज के दौर की लड़की हूँ... किसी भी मामले में... मैं खुद को मर्दों के पीछे देखना नहीं चाहती.. इसलिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - (चौंकते हुए) क्या वह नंदिनी थी...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (खुशी से चहकते हुए) फिर.. फिर क्या हुआ

फ्लैशबैक

रोहित - ओ... ब्रावो... ब्रावो... वेरीगुड... और तुम... (प्रताप से) तुम अपने बारे में कहो...
प्रताप - जी... मैं प्रताप.. मैं... हमेशा से लेट रहा हूँ.. आज भी लेट आया था... आप सब जानते हैं... खैर मैं ड्राइविंग इसलिए सीखना चाहता हूँ... ताकि मैं ड्राइविंग सीट पर बैठुं... और मेरे पीछे वाले सीट पर मेरे माँ बाप बैठें...

प्रताप की बातेँ सुन कर वह बुजुर्ग ताली बजाता है l

रोहित - ओके... ओके... इट सउंड्स वेरी गुड... तो हमारे बीच एक मॉमास् बॉय है... ह्म्म्म्म... खैर नेक्स्ट...(भाश्वती से) अब आप बताएं...
भाश्वती - हाय... मैं भाश्वती... (अपनी दांत पिसते हुए) कल तक मेरी गाड़ी सीखने की मकसद कुछ और था... और अब कुछ और है...
रोहित - वेल वेल वेल.. क्या बताना चाहोगी.. क्या मकसद था... और अब क्या है...
भाश्वती - मेरे भाई कार्गो शिप में रेडियो ऑफिसर हैं... साल में छह महीने बाहर रहते हैं... डैड डीपीएस प्रिन्सिपल हैं... फ़िलहाल सिंगापुर में हैं... तो घर में जो कार है... वह बेकार ना हो जाए... इसलिए सीखना चाहती थी...
रोहित - और अब...
भाश्वती - (अपने दांत पिसते हुए, हाथों को जोर से मलते हुए) अब... अब मैं खतरनाक हो गई हूँ... (प्रताप को देख कर) जो खतरनाक नहीं है... उसे कुचलने के लिए सीखना चाहती हूँ...

फ्लैशबैक में विराम

प्रतिभा - व्हाट... किसी को कुचलने के लिए सीखेगी...
विश्व - हाँ.. मुझे... कुचलने के लिए...

शुभ्रा - क्या प्रताप को कुचलने के लिए... क्या वह प्रताप को पहले से ही जानती है... प्रताप ने कुछ गलत किया था क्या...
रुप - पता नहीं...
शुभ्रा - मतलब...

रुप शुभ्रा को और उधर विश्व प्रतिभा को भाश्वती की कहानी सुनाते हैं l वह सुन कर पहले तो शुन हो जाते हैं फिर जोर जोर से हँसने लगते हैं l

प्रतिभा - ओह गॉड... क्या इसलिए कह रहा था... लड़कियां बहुत फास्ट हैं...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) ओ हो हो हो हो... गॉड... बेचारी का दिल जो तोड़ा था...
विश्व - उसे बहन ही तो कहा था...

शुभ्रा - हाँ कहा था... मतलब वह भाश्वती की स्पीड देख कर डर गया था... हा हा हा हा हा हा...
रुप - हाँ... शायद...
शुभ्रा - फिर इंस्ट्रक्टर ने क्या कहा...

फ्लैशबैक

रोहित - ओह माय गॉड... हम यहां गाड़ी चलाना सिखाते हैं.... तुम मर्डर करने की बात कर रही हो...
बुजुर्ग - ओह कम ऑन रोहित... सी इज़ किडींग... डोंट टेक हर सीरियसली...
रोहित - ओके ओके... मैं आपसे कह देना चाहता हूँ... की आप लोगों को आज... लर्निंग लाइसेंस... प्रोवाइड किया जाएगा... आपकी सक्सेस फूल ट्रेनिंग के बाद... आप हमारी सर्टिफिकेट लेकर आरटीओ ऑफिस में टेस्ट देकर लाइसेंस हासिल कर सकते हैं... सो (बुजुर्ग से) अब आप बाकी हैं... आप... अपने बारे में बताएं...
बुजुर्ग - श्योर... माय नेम इज़ सुकुमार... मैं साठ साल का हूँ... मेरे लिए ड्राइविंग लाइसेंस एक अचीवमेंट होगी... एक ऐसी अचीवमेंट... जिस पर फर्क़ किया जाए...
रोहित - ओह रियली.. एक्सप्लेन हाउ...
सुकुमार - जी जरूर... एक बच्चा... जब पहली बार चलना सीखता है... वह बहुत खुश होता है... क्यूंकि वह उसकी अचीवमेंट होती है... किसी गरीब स्टूडेंट को आईएएस मिल जाए... वह उसके लिए अचीवमेंट होता है... किसीकी कप्तानी में वर्ल्ड कप जीतना... उस कप्तान के लिए अचीवमेंट होता है... जैसा कि मैंने कहा कि... मैं अब साठ साल का हूँ... मैं अपनी जिंदगी में कभी खराब स्टूडेंट नहीं था.. पर अच्छा भी नहीं था... इसलिए जिंदगी और अचीवमेंट्स सभी कुछ एवरेज ही रहा... अब तक की सबसे बड़ी अचीवमेंट यह रही.. कि मेरी हम राज... मेरी हम कदम.. मेरी हम दर्द... मेरी जीवन संगिनी मेरे साथ है... बस बच्चे हमें छोड़ गए... इसलिए उसीके लिए.. ड्राइविंग सिखाना चाहता हूँ... एक गाड़ी खरीद कर ... उसके साथ एक लंबी ड्राइव पर जाना चाहता हूँ... मैं साठ साल का हूँ... इस उम्र में ज्यादातर लोगों की ड्राइविंग लाइसेंस रिनीउ भी नहीं हो पाती... मैं इसी उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना चाहता हूँ... यह मेरे लिए... अचीवमेंट होगा... अचीवमेंट
Bahut hi shandaar update hai bhai maza aa gaya




Waiting for the next update bro
 
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