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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
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*Index *
 
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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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👉एक सौ तेरहवां अपडेट
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रोणा की बातेँ सुन कर विश्व अपनी आँखे बंद कर श्रीनु की लाश को अपने बाहों में भींच लेता है l

विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर) मुझे माफ कर दे श्रीनु... मुझे माफ कर दे... जो मौत मेरे हिस्से थी... वह मैंने तुझे दे दी... मुझे माफ कर दे...
रोणा - हाँ.. यह तुने बिल्कुल सही कहा... जो कुत्ते की मौत तुझे मरना चाहिए था... इस लड़के को मिला... तु क्या समझा... तु तेलुगु में बात करेगा... तो एसआईटी ऑफिसर श्रीधर को शक नहीं होगा...
विश्व - (हैरान हो कर) एस... आईटी..
रोणा - हाँ... अब तेरे से इतना बड़ा कांड हुआ है... तो कुछ ना कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा ना... (लहजा बदल जाता है) तुझे समझाया गया था... ज्यादा दिमाग मत चला... पर तु नहीं माना... (चिट्ठियां निकाल कर दिखाते हुए) इन्हें... तु इस पिल्ले से पोस्ट करवा दिया था... पर ऐन वक़्त पर... श्रीधर मुझे खबर कर दिया... और मैं इसे पकड़ कर महल ले गया... हा हा हा... बहुत ही नाजुक पिल्ला था... राजा साहब ने अपने जुते से कुचल कर... पर लोक इसके नाना के पास भेज दिया... हा हा हा...

विश्व और जोर से श्रीनु की लाश को जाकड़ लेता है l उसकी ऐसी हालत देख कर रोणा उससे कहता है l

रोणा - ऐ... अब बहुत हो गया... हाँ.. चल लाश को छोड़ अभी... पुलिस को पंचनामा करना है... साला मनहूस... जब से सरपंच बना है... मेरी पुलिस स्टेशन और मेरे कैरियर पर दाग लगने शुरु हो गए... इसका भी सांप काटने का रिपोर्ट बनाना है... (विश्व फिर भी अपने से श्रीनु की लाश को नहीं छोड़ता) (रोणा अपने स्टाफ से) ऐ अलग करो इसे.... (वहाँ पर मौजूद लोगों से) ऐ तुम लोगों को... पंचनामे पर दस्तखत करने हैं...
विश्व - ख़बरदार... (चिल्लाता है) (सभी रुक जाते हैं) बस... बहुत हो गया... अब इस लाश की पोस्ट मोर्टेम होगी... और कातिल कौन है... उसे ढूंढ निकाला जाएगा...
रोणा - बे मादरचोद... साले हरामी... पुलिस वाले को... बता रहा है... क़ातिल को ढूंढ निकालेगा... ह्म्म्म्म... चल बता... कैसे...
विश्व - मत भुल.. मैं सरपंच हूँ... मैं इस शव को... अभी यशपुर ले जाऊँगा... वहाँ बीच रास्ते पर शव रख कर... धरना दूँगा...
रोणा - अरे बाप रे... तुझे तो मैंने बेवक़ूफ़ समझा था... तुझे तो दिमाग भी चलाना आता है... ह्म्म्म्म... (अपने स्टाफ से) पहले इस हरामी को पकड़ो...

सभी स्टाफ विश्व को पकड़ लेते हैं l विश्व छटपटा रहा होता है l रोणा लाश की मुआयना करता है फिर विश्व को देख कर मुस्कराते हुए

रोणा - आज तुझे एक महत्वपूर्ण कानूनी सबक सिखाऊँगा... क़ातिल सजा देने के लिए.. तीन चीजों की जरूरत है... पहला लाश... दुसरा... गवाह... और तीसरा हत्या का तरीका.... लेकिन अगर लाश ही ना मिले.... तो कत्ल कभी साबित नहीं हो पाता... आज यह... (श्रीनु की लाश दिखा कर) रंग महल के मगरमच्छों का निवाला बनेगा...
विश्व - (चिल्लाता है) नहीं... नहीं रोणा बाबु नहीं... मैं कुछ नहीं करूंगा... प्लीज... मुझे श्रीनु का शव दे दीजिए... मैं वादा करता हूँ... मैं इसके शव का दाह संस्कार कर दूँगा... (गिड़गिड़ा कर रोते हुए) प्लीज... रोणा बाबु प्लीज...
रोणा - ना कुत्ते ना... एक बार... बगावत करने की सोच लिया है... आज नहीं तो कल करेगा ही... ना... इसकी लाश तो... मगरमच्छों को खिलाई जाएगी...
विश्व - नहीं... या आआआ.... (चिल्लाता है)

विश्व अपनी पुरी ताकत लगा कर झटका देता है l पुलिस वाले जो उसे पकड़े हुए थे सब दूर जा कर गिरते हैं l इससे पहले कि क्या हुआ रोणा कुछ समझ पाता विश्व तब तक उसके पास पहुँच कर एक जोरदार घुसा जड़ देता है l रोणा उड़ते हुए हवा में दुर जाकर गिरता है l वहाँ पर मौजूद लोग हैरान हो जाते हैं l विश्व पर दो तीन कांस्टेबल टुट पड़ते हैं l विश्व बहुत उग्र हो चुका था, उसे वह तीन कांस्टेबल भी काबु नहीं कर पाए, उससे छिटक कर दुर जा गिरे I फिर सभी मौजूद कांस्टेबल और हबलदार विश्व को पकड़ लेते हैं और विश्व को नीचे गिरा देते हैं l तब तक रोणा अपना जबड़ा मलते हुए संभल कर उठता है l रोणा अपने चारों तरफ देखता है लोग मुहँ फाड़े देख रहे हैं l

रोणा - यहाँ पर क्या देख रहे हो... दफा हो जाओ यहाँ से...

सभी लोग वहाँ से जल्दी जल्दी खिसक लेते हैं l अब उस जगह पर विश्व, और पुलिस वाले ही थे l

रोणा - साले... हरामी... कुत्ते... आह... जबड़ा हिला दिया मेरा... (अपने स्टाफ से) ऐ... आज एक एक करके इसे मारो... तब तक मारो... जब तक तुम लोग तक ना जाओ... और एक बात... चेहरे पर बिल्कुल भी नहीं....

उसके बाद विश्व को पाँच बंदे पकड़ते हैं और एक एक करके विश्व को मारने लगते हैं l जब सब थक जाते हैं तब रोणा विश्व को मारना शुरु करता है l तभी वैदेही भागते हुए आती है और रोणा के पैरों पर गिर जाती है l

वैदेही - (रोते गिड़गिड़ाते हुए) मेरे भाई को मत मारो... छोड़ दो उसे...
रोणा - आ गई रंडी... (वैदेही को बालों समेत उठा कर) सुना है शनीया को ज़मानत दे कर अपने भाई को बचाया था... कसम से... मुड़ तो है... पर साला वक़्त नहीं है... कोई ना... फिर कभी...

वैदेही को एक जोरदार थप्पड़ मार देता है, वैदेही दो तीन घेरा घुम कर नीचे गिरती है l उधर विश्व की हालत भी खराब हो चुकी थी l विश्व भी बेहोश हो कर गिर जाता है l कुछ देर बाद कुछ गाँव वाले जो वैदेही के खबर कर उसके पीछे पीछे आए थे पर छुपे हुए थे l वे लोग वैदेही संभालते हैं और विश्व को उठा कर घर में पहुँचा देते हैं l वैदेही तुरंत जा कर पानी की लोटा लाती है और विश्व के उपर छिटकती है l विश्व कराहते हुए अपनी आँखे खोलता है l खुद को वैदेही और कुछ गाँव वालों से घिरा हुआ पाता है l

वैदेही - (रोते हुए) यह... क्या हो गया है विशु... हम... हम अब यहाँ नहीं रहेंगे... हम यह गाँव छोड़ कर चले जाएंगे...
विश्व - आह.. नहीं... (उठने की कोशिश करते हुए)
वैदेही - (अपना रोना रोक कर) क्यूँ... क्यूँ उठ रहा है....
विश्व - (उठ बैठता है) दीदी.. अब तुम्हारा विशु... जिंदा नहीं है... मर चुका है... (उठने लगता है)
वैदेही - विशु... यह क्या कह रहा है... (उसे रोकने की कोशिश करते हुए) और कहाँ जाना चाहता है...
विश्व - या तो आज जिंदा होना है... या फिर हमेशा के लिए मर जाना है...
वैदेही - नहीं... मैं गलत थी.. हम सब गलत थे... हमें अब किसीसे नहीं लड़ना.. किसीके लिए नहीं लड़ना...

विश्व थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है और फिर अपनी दीदी की ओर देखने लगता है l वैदेही देखती है विश्व का चेहरा एक दम से भाव शून्य दिख रहा है l

विश्व - मैं किसी और की लड़ाई नहीं लड़ने जा रहा... अपनी लड़ाई को अंजाम देने जा रहा हूँ... श्रीनु... एक बारह साल का बच्चा... जिसने मेरी मौत को अपने ऊपर ले लिया... जब तक जिंदा रहूँगा... तब तक वह एक बोझ... मुझे जीने नहीं देगी... मैं अपनी गुरु दक्षिणा का मान नहीं रख पाया... इसलिए मुझे जाने दो दीदी... अगर लौटा... तो... इस गाँव में वह सब दुबारा नहीं दोहराया जाएगा... वरना... समझ लो... मैं कभी इस दुनिया में था ही नहीं....

विश्व ने जिस सपाट भाव से यह बात कही थी l वैदेही के पाँव जम गए l वहाँ पर मौजूद लोग और वैदेही उसे जाते हुए देख रहे थे l धीरे धीरे विश्व वैदेही और लोगों के नजरों से ओझल होता चला जाता है l

फ्लैशबैक से लौट कर

वैदेही - उस दिन विशु... यहाँ से गया... आज तक नहीं लौटा... आज आ रहा है... तो क्यूँ ना खुशी मनाऊँ...
गौरी - (अपनी आँखों से आँसू पोछते हुए) सच... कितनी पीड़ा दाई है... विशु की कहानी...
वैदेही - हाँ काकी... सब सोच रहे हैं... वह राजा से लड़ रहा है... पर सच तो यह है कि... वह खुद अपनी नाकारा वज़ूद से लड़ रहा है... अपने अंदर उस शख्सियत से लड़ रहा है... जिसे वह मरते दम तक माफ नहीं कर पाएगा... और खुदको सजा देने के लिए ही... विशु राजा के सल्तनत... हुकूमत से टकरा गया....


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राजगड़ का थाना l रोज की रूटीन के तहत अनिकेत रोणा टेबल पर टांगे रख कर और अपनी कुर्सी पर फैल कर लेटा हुआ था l उसके बदन पर शर्ट नहीं था और टेबल पर खाली शराब की बोतलें और एक ग्लास लुढ़क रहे थे l शनीया और उसके साथी यह सब देख कर एक दुसरे को देखते हैं l

भूरा - (शनीया के कानों में फूस फुसा कर) क्या नौकरी है... बदन पर खाकी... और टेबल पर साकी...

जम्हाई लेते हुए अधखुले आँखों से रोणा इन सबको देखता है l अपने दोनों हाथों को मोड़ कर अपने सिर के पीछे रख कर

रोणा - शनीया.. तु यहाँ.. अपनी मंडली को लेकर... क्या... वैदेही ने... फिर से तेरी फाड़ी क्या रे...
शनीया - नहीं साहब... इस बार उसने... उसके भाई के वजह से किस किस की फटी... बता रही थी...

रोणा अपनी टांगे टेबल पर हटाता है और अपनी हाथों को सिर के पीछे से निकाल कर हैंड रेस्ट पर रखते हुए सीधा हो कर बैठता है l

रोणा - मतलब सुबह सुबह... वैदेही से अपना पिछवाड़ा सुलगा कर आए हो... और धुआँ... यहाँ थाने में छोड़ने आए हो...
भूरा - साहब... एक वक़्त था... जब हम सिर्फ राजगड़ में ही नहीं... पचास पचास कोष तक जितने भी शहर गाँव कस्बे हैं... शेर बने फिरते थे... पर इन सात सालों में... हम बाहर तो शेर ही हैं... सिवाय उस कमीनी रंडी वैदेही के आगे....
रोणा - ह्म्म्म्म... तो... अपना दुखड़ा रोने मेरे पास आए हो...
शनीया - नहीं साहब... जिस तोड़ में उसने कहा कि.... विश्वा ने तुम्हारे खाकी वाले साहब को एक नहीं दो बार पेला है... पुछ कर देखो बोला... वह कितना सच बोल रही है... यही पता करने आए थे...
रोणा - मादरचोदों... मुझे समझ क्या रखा है तुम लोगों ने...
शनीया - चाकर... राजा साहब के... बिल्कुल हमारी तरह... बस दर्जा आपका हमसे ज्यादा है....
भूरा - वरना... इस हमाम में... हमारे जितने आप भी नंगे हैं...
शनीया - हाँ... और फर्क़ बस इतना है... हमारा लंगोट का नाड़ा ढीला नहीं हुआ है... तुम्हारा तो...
रोणा - बस... हरामीयों... बहुत झा़टे सुलगा लिए मेरे... अब एक लफ्ज़ और मुहँ से निकाला... तो डंडा पीछे घुसेड़ कर मुहँ से निकालूँगा...

शनीया, भूरा और उनके चेले चपाटे सब चुप हो जाते हैं l रोणा अपनी कुर्सी से उठ कर वॉशरुम में जाता है, मुहँ में पानी डालता है फिर टावल से चेहरा साफ करते हुए बाहर आता है l

रोणा - पहले यह बताओ... यहाँ आए किस लिए हो...
भूरा - वह आज वैदेही ने... अन्नछत्र खोला है...
रोना - अच्छा...
शनीया - हाँ... सुना है... विश्वा आज.. वापस आ रहा है...

रोणा यह सुन कर कुछ देर के लिए चुप रहता है, और उन्हें घूरते हुए पूछता है l

रोणा - ह्म्म्म्म... मिठाई भी साथ लाए हो क्या... सालों खबर ऐसे दे रहे हो... जैसे तुम्हारा बाप लौट कर आ रहा है...

फिर कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l शनीया देखता है इस खबर के बाद रोणा कुछ बैचैन हो जाता है l

शनीया - क्या हुआ साहब...
रोणा - यह तुम लोगों को कब मालुम हुआ... के विश्वा आज आ रहा है...
शनीया - प्रधान बाबु से... और शायद उन्हें आपने ही बताया था...
रोणा - कुछ बातेँ... तुम लोग समझ सको तो समझ जाओ... विश्वा या उसके बहन से उलझना चाहते हो... तो उन्हें इतना मजबूर करो... के वे लोग... अपनी दायरे से बाहर निकले... इतना उकसाओ के वे तुम्हारे इलाके में आ कर तुम लोगों से उलझे... झगड़ा करे... तब... उन दोनों को हम कानूनी पछाड़ दे सकते हैं...
भूरा - यह आप कह रहे हैं... हम राजा साहब के लोग हैं... और राजा साहब यहां के भगवान हैं...
रोणा - भगवान का भी एक हद होता है... यह दोनों भाई बहन... राजा साहब के काबु नहीं आने वाले....
शनीया - वह तो इसलिए... क्यूंकि राजा साहब ने कहा था... के सात साल तक... वैदेही को कुछ ना हो... और जब विश्वा आएगा... दोनों भाई बहन को मिला कर ऐसी सजा देंगे... के फिर कभी इस मिट्टी में... विश्वा या वैदेही जनम नहीं लेंगे...
रोणा - हाँ तब... जब विश्वा... वही पुराना वाला विश्वा होता...
शनीया - अब क्या उसके दो सिंग चार हाथ निकल आए हैं...
रोणा - सात साल पहले... विश्वा कुत्ते के दुम पर शैम्पू लगाता था... सीधा करने के लिए... सात साल बाद वकील बन कर लौट रहा है... हम सबको सीधा करने...
शनीया - सात साल पहले... हमारे लंगोट साफ किया करता था... हमारे दंडे में तेल लगाया करता था...
रोणा - सात साल बाद... तुम जैसे सौ सौ पहलवान... उसके आगे पानी भरोगे...
भूरा - क्या... वह जैल गया था... या पहलवानी सीखने...
रोणा - तुम सब गोबर दिमाग... बस इतना समझो... उन दो भाई बहन को... खुद से उलझाओगे... तो अपने इलाके में... ना कि उनके इलाके में... तब हम मिलकर उनको सबक सिखा पाएंगे....
शनीया - रोणा साहब... क्या विश्वा सच में इतना बड़ा तोप है...

रोणा की जबड़े भींच जाते हैं और अपनी आँखे मूँद लेता है, उसे लेनिन की कही बातेँ याद आने लगता है l अपनी आँखे खोलता है और शनीया से कहता है l

रोणा - यकीन तो तुम लोगों को भी है... फटी भी तुम लोगों की भी है... क्यूंकि वैदेही की बातों पर यकीन करने के बाद ही आए हो... और मुझ से मोहर लगवाने... कास... कास के राजा साहब... उस दिन मेरी बात मान गए होते... तो आज हम सबकी यूँ फट नहीं रही होती...

फ्लैशबैक

महल के दिवान ए खास में सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ है l बगल में रोणा, बल्लभ और श्रीधर तीनों बैठे हुए हैं l भीमा और कुछ पहलवान हाथ बांधे खड़े हुए हैं l शराब की ग्लास हाथ में लिए अपनी माथे को ग्लास पर हल्का सा रगड़ते हुए

भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... प्रधान... इस केस में... हमें अपनी नवरत्नों में चार रत्न खो दिए...
बल्लभ - जब तक चले... अपने सिक्का चलाया... और... जब खोटे हुए... तब आपने हटा दिया...
भैरव सिंह - हाँ प्रधान... पर यह खुन खराबा... हमें जरा भी पसंद नहीं... हम तो अपनी मर्जी की जीना चाहते हैं... अपनी मर्जी की राह चलना चाहते हैं... पर कुछ लोग बिल्ली बन कर... हमारी रास्ता काटते हैं... तब मजबूरन... हमें उन्हें अपने रास्ते से हटाना पड़ता है...
बल्लभ - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - अब उस बच्चे का क्या कसूर था... बेचारा बारह साल का ही तो था... मगर विश्व की हराम खोरी... उसे मरवा दिया... ऊपर से यह रोणा... मगरमच्छों का निवाला बना दिया... (अपना अंगूठा दिखाते हुए) गुड... बहुत अच्छे...
रोणा - जी आपकी सेवा में... कुछ भी...
भैरव सिंह - तुम हमारे काम आ रहे हो... इसलिए... हमारे बगल में बैठे हुए हो...
रोणा - (भीमा और उसके साथ खड़े हुए पहलवानों के तरफ इशारा करते हुए) तो यह लोग... खड़े क्यूँ हैं...
भैरव सिंह - यह लोग रत्न नहीं हैं... गुलाम हैं... वफादार... गुलाम...
श्रीधर - विश्व भी तो आपका गुलाम था...
भैरव सिंह - हाँ... वफादारी की घी... उससे हज़म ना हुई... हम पर पलटने की कोशिश की...
रोणा - वैसे... इलाज तो मैंने कर दिया है... पर समझ में नहीं आ रहा... इस केस में जुड़े जिसने भी चूं किया... उसे आपने रंग महल में लाकर... लकड़बग्घों के आगे फिकवा दिया... पर विश्वा को अभी तक जिंदा क्यूँ रखा है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... जिंदा क्यूँ रखा है... (बल्लभ की ओर देखता है और) वह क्या है कि... कुछ लोगों की तकलीफें... हमें बड़ी सुकून देती हैं... विश्वा अब उन लोगों में से है... वह जितना छटपटाता है... हमें उतना ही मजा आता है...
रोणा - मुझे लगता है... हमें विश्वा को भी रंग महल के जानवरों के आगे डाल देना चाहिए... (तभी सबको टाइगर की भोंक ने की आवाज सुनाई देती है)
श्रीधर - नहीं... अभी उसका वक़्त नहीं आया है.. उसने रुप फाउंडेशन केस को... ऊपर उछालने की कोशिश की है... हमें यह नहीं पता... सिर्फ यही वह सात लेटर थे... या कोई और...बहुत बड़ी रकम है... राजा साहब... यह केस तो डायलुट नहीं होगा... अगर हम सबको फरार दिखाते हैं... तो हो सकता है... केस सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए...
बल्लभ - हाँ... फ़िलहाल विश्व का जिंदा रहना जरूरी है... अगर केस हमारे हाथ रही... तो हम कुछ जोड़ तोड़ कर सकते हैं... इसलिए एक ऐसा मकड़ जाल बिछायेंगे... की विश्व पूरी तरह से फंस जाएगा... हाँ... हमे वक़्त भी लेना होगा और जल्दी से काम भी लेना होगा.... ताकि केस परफेक्ट बन जाए... उसके बाद हम उसे मरवा सकते हैं...

टाइगर के लगातार भोंक ने से भैरव सिंह और दुसरे लोगों के बातचीत में खलल पड़ती है l

भैरव सिंह - यह टाइगर क्यूँ चिल्ला रहा है...

तभी एक पहरेदार दौड़ कर आता है और भैरव सिंह के आगे सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

पहरेदार - हुकुम...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... क्या हुआ...
पहरेदार - वह विश्वा... पता नहीं कैसे महल में आ गया... और बैठक के अंदर... तोड़ फोड़ करने की कोशिश कर रहा था... पकड़ा गया है... दबोच लिया गया है....
भैरव सिंह - (रोणा की ओर देखता है)
रोणा - (हड़बड़ाहट के साथ) मैंने तो उसकी तबीयत से धुलाई की थी...
भैरव सिंह - (उस पहरेदार से) टाइगर कितना वफादार है... चोर के आने से... मालिक को सावधान कर रहा है... (यह सुनते ही भीमा तेजी से बैठक की ओर चला जाता है)
पहरेदार - माफी हुकुम...
भैरव सिंह - क्या बात है...
पहरेदार - (हकलाते हुए) हू... हुकुम.. वह... टाइगर... हम पर हमला कर रहा है... (भैरव सिंह की भवें तन जाती है) हमने टाइगर को भी दबोच रखा है... पर वह बेकाबू हो रहा है... इसलिए हम विश्व पर... हाथ नहीं चला पा रहे हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... अभी कोई ठुकाई मत करो उसकी..... हम भी तो देखें... दोनों कुत्तों की नमक हरामी... किस ऊंचाई तक उछल रहा है....

भैरव सिंह अपनी सिंहासन से उठ जाता है और बैठक की जाने लगता है l बैठक में विश्व को दस हट्टे कट्टे पहलवान दबोच रखे हुए हैं
इतने में भैरव सिंह महल के सीढियों से नीचे उतर कर आता है l उसके पीछे पीछे रोणा, बल्लभ और श्रीधर भी उतरते हैं l टाइगर छटपटाते हुए उन पहलवानों पर भोंके जा रहा था l

भैरव सिंह, विश्व से

भैरव सिंह - तेरी इतनी खातिरदारी हुई... फिर भी तेरी हैकड़ी नहीं गई... तेरी गर्मी भी नहीं उतरी... अबे हराम के जने... पुरे यशपुर में लोग जिस चौखट के बाहर ही अपना घुटने व नाक रगड़ कर... बिना पीठ दिखाए वापस लौट जाते हैं... तुने हिम्मत कैसे की... इसे लांघ कर भीतर आने की... और यहाँ तोड़ फोड़ मचाने की....

विश्व उन पहलवानों के चंगुल से छूटने की कोशिश करता है l इतने में भीमा विश्व को एक घूंसा मारता है जिसके वजह से वह विश्व का शरीर कुछ देर के लिए शांत हो जाता है l जिसे देखकर भैरव सिंह के चेहरे का भाव और कठोर हो जाता है, फिर विश्व से

भैरव सिंह - बहुत छटपटा रहा है... मुझ तक पहुंचने के लिए... बे हरामी... सुवर की औलाद... तू मेरा क्या कर लेगा... या कर पाएगा...

इतना कह कर वह पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और पहलवानों को इशारे से विश्व को छोड़ने के लिए इशारा करता है l

विश्व के छूटते ही नीचे गिर जाता है बड़ी मुश्किल से अपना सर उठा कर भैरव सिंह के तरफ देखता है l जैसे तैसे खड़ा होता है और पूरी ताकत लगा कर कुर्सी पर बैठे भैरव सिंह पर छलांग लगा देता है l पर विश्व का शरीर हवा में ही अटक जाता है l वह देखता है कि उसे हवा में ही वही दस पहलवान फिर से हवा में दबोच रखा है l विश्व हवा में हाथ मारने लगता है पर उसके हाथ उस कुर्सी पर बैठे भैरव सिंह तक नहीं पहुंच पाते l यह देखकर भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी सर्द मुस्कराहट नाच उठता है l जिससे विश्व भड़क कर चिल्लाता है

विश्व - भैरव सिंह......

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा-ज - जी हुकुम....
भैरव सिंह - हम कौन हैं...
भीमा- मालिक,... मालिक आप हमारे माईबाप हैं,.... अन्न दाता हैं हमारे... आप तो हमारे पालन हार हैं...
भैरव सिंह - देख हराम के जने... देख... यह है हमारी शख्सियत... हम पूरे यशपुर के भगवान हैं... और हमारा नाम लेकर... हमे सिर्फ वही बुला सकता है... जिसकी हमसे या तो दोस्ती हो या दुश्मनी.... वरना पूरे स्टेट में हमे राजा साहब कह कर बुलाया जाता है.... तू यह कैसे भूल गया बे कुत्ते... गंदी नाली के कीड़े...

विश्व - (चिल्लाता है) आ - आ हा......... हा.. आ
भैरव सिंह - चर्बी उतर गई मगर... अभी भी तेरी गर्मी उतरी नहीं है... जब चीटियों के पर निकल आए... तो उन्हें बचने के लिए उड़ना चाहिए... ना कि बाज से पंजे लड़ाने चाहिए....
छिपकली अगर पानी में गिर जाए... तो पानी से निकलने की कोशिश करनी चाहिए... ना कि मगरमच्छ को ललकारे... तेरी औकात क्या है बे.... ना हमसे दोस्ती की हैसियत है... ना ही दुश्मनी की औकात है तेरी... किस बिनाह पर तुने हम से दुश्मनी करने की सोच लिया.... हाँ... आज अगर हमे छू भी लेता... तो हमारे बराबर हो जाता... कम-से-कम दुश्मनी के लिए....

विश्व अपना सिर उठाकर देखने की कोशिश करता है ठीक उसी समय उसके जबड़े पर भीमा घूंसा जड़ देता है l विश्व के मुहँ से खून की धार निकलने लगता है l

भैरव सिंह - हम तक पहुंचते पहुंचते... हमारी पहली ही पंक्ति पर तेरी ऐसी दशा है... तो सोच हम तक पहुंचने के लिए तुझे कितने सारे पंक्तियाँ भेदने होंगे... और उन्हें तोड़ कर हम तक कैसे पहुँचेगा... चल आज हम तुझे हमारी सारी पंक्तियों के बारे जानकारी देते हैं... तुझे मालूम तो था... तू किससे टकराने की ज़ुर्रत कर रहा है... पर मालूम नहीं था तुझे.. कि वह हस्ती... क्या शख्सियत रखता है... आज तु भैरव सिंह क्षेत्रपाल का विश्वरूप देखेगा... आज तुझे मालूम होगा जिससे टकराने की तूने ग़लती से सोच लीआ था.... उसके विश्वरूप के सैलाब के सामने तेरी हस्ती तेरा वज़ूद तिनके की तरह कैसे बह जाएगा....
विश्व - (छटपटाते हुए चिल्लाता है) या... आ... सीढ़ियों के ऊपर खड़े हो जाने से... यह मत सोच लेना हवाओं का रुख तेरे साथ है... हवाओं का रुख बदलेगा...तु यहाँ होगा... और मैं वहाँ...
भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, उसका चेहरा थर्राने लगता) हमने किसी से इतनी बात ना कि... ना किसी की इतनी बात सुनी... हमारे जुते की धुल के बराबर भी नहीं... आँख.. जुबान और हरकत से... हमें चुनौती देने की कोशिश की है... इससे पहले कि तेरी हिम्मत... मिसाल बन जाए...
रोणा - माफी राजा साहब... इसकी नमक हरामी की एक ही सजा होनी चाहिए.... कुत्ते जैसी मौत...
भैरव सिंह - हूँ.... आज इसकी वह जो गत होगी... जिसकी मिसाल बनेगी... प्रधान... रोणा...
बल्लभ और रोणा - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आज... तुम लोगों के हवाले... इसे किया जाता है...
रोणा - अभी एनकाउंटर किए देता हूँ इसका...

रोणा अपनी होलस्टोर से रिवॉल्वर निकाल लेता है के तभी बहुत देर से भोंक रहे टाइगर की चेन टुट जाता है और वह भागते हुए रोणा के रिवॉल्वर वाले हाथ को काट कर पकड़ लेता है l भीमा आकर टाइगर को रोणा से अलग करता है और उसके मुहँ को कस के पकड़ लेता है l

भैरव सिंह - नहीं... गोली पहले इस चार पैर वाले कुत्ते को मारो... जिसने अपनी मालिक को यह एहसास दिलाया... कुत्ते चाहे चार पैर वाले हों... या दो पैर वाले... कुत्ते गद्दारी ही करते हैं...

रोणा भौचक्का रह जाता है l वह भैरव सिंह की देखता है l उसकी जलती आँखे देख कर वह समझ जाता है l टाइगर पर रिवॉल्वर चला देता है, टाइगर ढेर हो जाता है l

भैरव सिंह - इसे जिंदा रहना है... ध्यान रहे... अब इसकी जान... नहीं जाने ना पाए... टांग उठा कर महल में घुस तो आया है... पर अपनी टांगों पर महल से जाने ना पाए... इसकी हालत ऐसी बना दो.. के जैल से छूट कर... राजगड़ के गालियों में भीख मांगता फिरे...
रोणा - जैसी आपकी हुकुम... राजा साहब... भीमा... पेट के बल सुला दो इसे...

भीमा और उसके साथी विश्व को पेट के बल सुला देते हैं l सोफ़े पर पड़े एक कुशन को रोणा उठाता है और विश्व की दाहिनी टांग पर रख कर कुशन पर रिवॉल्वर की नाल लगाता है और गोली चला देता है l

फ्लैशबैक खतम

भैरव सिंह की निशाना चूक जाता है फायरिंग यार्ड में l बगल में भीमा और बल्लभ दोनों खड़े थे l भैरव सिंह बंदूक की नाल को अच्छी तरह से जाँचता है l

भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - आज निशाना नहीं लग रहा है...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - गाँव में कुछ हुआ है... या होने वाला है...
भीमा - पता नहीं हुकुम...(भैरव सिंह भीमा की ओर सवालिया नजर से देखता है) अभी.. शनीया या भूरा से... पता कर बताता हूँ... (कह कर वहाँ से चला जाता है)

भैरव सिंह फिर से अपनी बंदूक में गोली भरता है और गोली चलाने लगता है l इस बार भी गोली नहीं लगती l भैरव सिंह का चेहरा कठोर हो जाता है l

बल्लभ - लगता है... आज आपका ध्यान भटक रहा है...
भैरव सिंह - (चुप रहता है, बंदूक को फिर से परखने लगता है)
बल्लभ - या फिर ऐसी कोई बात है... जो आपके मन में खटक रहा है... इसलिए आप ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं...
भैरव सिंह - तुम दोनों... भुवनेश्वर में खाक छानते रहे... फिर भी... कुछ पता लगा नहीं पाए... हमने मिहिर को भेजा था... हमारे परिवार के बारे में... जानकारी इकट्ठा करने के लिए... उसका भी कोई खबर नहीं आया है....

तभी भागते हुए वहाँ भीमा पहुँचता है, और अपना हाथ बांधे सिर झुकाए खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - तुम्हें देख कर लगता है... कोई मनहूस खबर लाए हो... बताओ...
भीमा - जी हुकुम... वह... (चुप हो जाता है)

भैरव सिंह भीमा को गुस्से में देखता है l उसके भींचे जबड़ों से दांत पीसने से कट कट की आवाज़ सुनाई देने लगता है l

भीमा - (डर के मारे, एक ही सांस में) वह, वैदेही ने आज अन्नछत्र खोला है.. आज विश्व आ रहा है...


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वैदेही अपनी दुकान में रसोई में बहुत व्यस्त है l उसके साथ कुछ औरतें और बच्चे भी सब्जी काटने और छीलने में मदत कर रहे हैं l चूंकि कोई ग्राहक आए नहीं थे, इसलिए गौरी गल्ले से उठ कर बाहर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी...
गौरी - कहाँ जाऊँगी... काम तो मुझे कुछ करने नहीं देती... सुबह जो कांड हुआ... उसके वजह से नाश्ते के लिए... कोई ग्राहक आया भी नहीं....
वैदेही - तो ठीक है ना काकी... आज नाश्ते का और दुपहर खाने का... पहला निवाला... मेरा विशु ही खाएगा...
गौरी - हाँ हाँ ठीक है... पर मुझे तो मेरी कमर सीधा करने दे...

कह कर गौरी बाहर निकल जाती है l उसे जाते देख वैदेही मुस्करा कर अपनी काम में लग जाती है l उधर गौरी बाहर आकर अपनी कमर सीधी करते हुए थोड़ी आगे जाती है l वह देखती है एक खूबसूरत नौजवान वैदेही की दुकान की ओर देखे जा रहा है l उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट दिख रही है और आँखों में नमी l गौरी उसके पास जाती है गौर से देखती है I सुंदर सौम्य और सुदर्शन नौजवान l उसे घेरे हुए गाँव के कुछ बच्चे खड़े निहार रहे हैं l

गौरी - विशु... तु विशु ही है ना...
विश्व - जी काकी...
गौरी - तु कब से यहाँ है...
विश्व - कुछ ही देर हुआ है... बहुत दिनों बाद... अपनी ही गाँव में... अपनी दीदी को देख रहा हूँ... बहुत खुशी महसूस हो रही है... अच्छा लग रहा है...
गौरी - (भर्राई आवाज में चिल्लाते हुए) व.. वैदेही... देख... तेरा विशु आया है...

वैदेही भागते हुए दुकान से निकलती है और विश्व को देख कर स्तब्ध हो जाती है l विश्व के हाथ से बैग छूट जाती है l दोनों एक दूसरे की तरफ बढ़ते हैं अचानक एक दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं l विश्व झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है और वैदेही के पैर पकड़ लेता है l वैदेही भी अपने भाई के सिर को अपने पेट से लगा लेती है l दोनों रो रहे हैं l इनको देखने वाले हर आँखे रो रही थी l इतने में गौरी एक सफेद कद्दू में आरती लाकर इन दोनों के पास खड़ी हो जाती है l

गौरी - बहुत हुआ... अब उठो भी तुम दोनों...

वैदेही विश्व की सिर को छोड़ती है l विश्व खड़ा होता है l गौरी आरती उतार कर कद्दू नीचे पटक देती है l वैदेही विश्व को खिंच कर दुकान के अंदर ले जाती है l तब तक कुछ औरतें विश्व के लिए नाश्ते की थाली बना चुके थे l वैदेही उनसे थाली लेकर विश्व को अपने हाथों से खाना खिलाने लगती है l विश्व भी बड़े चाव से खाना वैदेही को थाली से निवाला तोड़ कर खिलाने लगता है l यह दृश्य देखने वाले दुकान के अंदर भीतर ही भीतर बहुत खुश हो रहे थे l
जब खाना खतम हुआ तभी सबकी कानों में ढोल और खंजरी की आवाज सुनाई देती है l

"सुनों सुनों सुनों राजा साहब की फरमान है l आज से सात वर्ष पहले विश्व प्रताप महापात्र की, इस गाँव से हुक्का पानी बंद किया गया है... जो भी उसके साथ किसी भी प्रकार का सम्बंध रखेगा,... इस गाँव से उसका भी हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा... याद रहे... याद रहे... यह यशपुर के भगवान... राजगड़ के भगवान... राजा भैरव सिंह की फरमान है....
Nice updates🎉👍
 
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Rajesh

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संघर्ष होगा द्वंद भी होगा पर विश्व से किसीकी हत्या नहीं होगी यही सत्य है
पर जिसको भी जैसी सजा मिलेगी उम्मीद है सब पाठकों को उससे संतुष्टि अवश्य मिलेगी
विश्व की प्रमुख टार्गेट भैरव सिंह ही है और दुसरे उसके चलते बलि भी चढ़ेंगे
अभी इन सब झोल में मत भूलिए विश्व रुप की मिलन भी है
इसलिये थोड़ा वक़्त ले रहा हूँ
भावनात्मक कहानी में किसी भी पात्र से कोई अन्याय ना हो इसके लिए प्रयत्नशील भी हूँ
बहुत से पाठक कुछ बातों में सही अनुमान लगाया है और अब समय आ गया है कि उससे पर्दा उठाया जाए इसलिए भी समय लाग रहा है
Koi baat nahi hai bhai aap waqt le sakte ho basharte update shandaar honi chahiye
 
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Kala Nag

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👉 एक सौ चौदहवां अपडेट
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नागेंद्र का दुपहर के खाने का वक़्त हो चुका था l सुषमा घड़ी देख कर बहुत देर से पढ़ रही धर्म ग्रंथ को टेबल पर रख देती है और अपने कमरे से निकल कर अंतर्महल से बाहर निकल कर प्रमुख महल की ओर जाती है l रास्ते में उसे रुप थोड़ी दुख और गुस्से में आती हुई दिखाई देती है l

सुषमा - क्या हुआ राज कुमारी... ऐसी उखड़ी हुई क्यूँ हो...
रुप - (अपने उदास भरे चेहरे पर बेमन से मुस्कान लाते हुए) कुछ नहीं रानी माँ...
सुषमा - झूठ बोल रही हो...
रुप - नहीं... ऐसी कोई बात है...
सुषमा - अच्छा अपनी कमरे में ही खाना मंगवा लेना... हमारे लिए भी... हम बड़े राजा जी के पास हाजरी दे कर आते हैं...
रुप - जी... जी चाची माँ...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) अच्छा जाओ... (रुप जाने लगती है, सुषमा पीछे से आवाज देकर) हमारे लिए लिए इंतजार करना....
रुप - जी... चाची माँ...

कह कर रुप वहाँ से चली जाती है l सुषमा कुछ सोचते हुए रुप को जाते हुए देखती है फिर वापस मुड़ कर प्रमुख महल में नागेंद्र की कमरे में आती है l सुषमा के पीछे पीछे फूड ट्रॉली पर खाना लेकर नौकर पहुँचते हैं l यह हर एक दिन की रुटीन था l नागेंद्र एक फोल्डिंग बेड़ पर लेटा हुआ था l सुषमा को देख कर उसे समझ में आ गया कि उसका खाना खाने का समय हो गया l
वह उठ कर बैठने की कोशिश करता है l सुषमा और दुसरे नौकर नागेन्द्र को सीधा कर बिठाते हैं, और उसके कमर के ऊपर एक डेस्क लगाते हैं l उसी डेस्क पर सुषमा नागेन्द्र के लिए खाने की थाली लगाती है और सुषमा उस थाली में निवाले बनाने लगती है जिसे एक एक कर के नागेंद्र खाने लगता है l उसी वक़्त एक नौकर भागते हुए आता है

नौकर - हुकुम... राजा सहाब पधार रहे हैं...

यह सुन कर सुषमा निवाला बनाना छोड़ कर एक किनारे खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह अंदर आता है l

नागेंद्र - (अपनी लकवे ग्रस्त आवाज में) आइए... राजा...
भैरव सिंह - (नागेंद्र के पैर छूने के बाद) आपने याद किया...
नागेंद्र - हाँ...
भैरव सिंह - जी कहिये....
नागेंद्र - एकांत.... (सारे नौकर वहाँ से चले जाते हैं) हमने आपसे कहा था... और आज हमें महसूस भी हुआ... राजकुमारी कुछ बदली बदली हैं... आपने कुछ खोज खबर ली... क्यूँ...

भैरव सिंह सुषमा की ओर देखता है l सुषमा की भवें जिज्ञासा वश सिकुड़ गई थी l

नागेंद्र - हमने आपसे कुछ पुछा है राजा जी... कोई ऐसी बात हुई... तो छोटी रानी जी को भी जानना चाहिए...
भैरव सिंह - फिलहाल... राजकुमारी जी के बारे में... ज्यादा कुछ जानकारी मिली नहीं... पर... (चुप हो जाता है)
नागेंद्र - बात को पुरा कीजिए...
भैरव सिंह - राजकुमार वीर सिंह... अपने साथ एक लड़की और उसकी दादी को लेकर घुम रहे हैं.... (सुषमा की आँखे फैल जाती हैं, भैरव सिंह उसकी हालत को देख रहा था)
नागेंद्र - तो...
भैरव सिंह - वह खबरी कह रहा था... राजकुमार इस विषय में... बहुत गम्भीर हैं...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... उसकी लड़की की कोई पहचान...
भैरव सिंह - छोटी जात की है... और बहुत गरीब भी...
नागेंद्र - तो फिर... आप चिंता ना करें... राजकुमार अपना खाली समय बिताने के लिए... उस लड़की का इस्तमाल कर रहे होंगे...
भैरव सिंह - हमने भी यही कहा... पर खबरी का कुछ और ही कहना था...
नागेंद्र - रंग महल के शौकीन... हमारे ही वंश के खून पर हमें कोई संदेह नहीं है... (भैरव सिंह चुप रहता है) अच्छाई से हमारा कोई नाता नहीं... बुराई में हमारी कोई सानी नहीं... और बुरी बातेँ समझने में हमें ना दिक्कत होती है.... ना ही देर... खैर... (सुषमा से) छोटी रानी जी... आप छोटे राजा जी को बुलावा भेजिए...
सुषमा - (कोई जवाब नहीं देती)
नागेंद्र - छोटी रानी...
सुषमा - (चौंक जाती है) जी... जी..
नागेंद्र - हमने आपसे कुछ कहा...
सुषमा - जी जरूर...
नागेंद्र - अब आप जाइए...

सुषमा अपना सिर झुका कर वहाँ से बाहर निकल जाती है l उसके जाते ही नागेंद्र, भैरव सिंह से सवाल करता है l

नागेंद्र - आप हमें जो खबर दी... उसकी वजन इतना नहीं है कि आप परेशान लगें... बात क्या है...
भैरव सिंह - हम परेशान बिल्कुल नहीं हैं... हाँ हम थोड़े उत्सुक हैं....
नागेंद्र - किस बात की उत्सुकता....
भैरव सिंह - वह... हराम का पिल्ला... विश्व प्रताप... आज गाँव में लौट आया है...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसमें उत्सुकता क्या है...
भैरव - वह हमसे दुश्मनी करने के लिए... मरा जा रहा है... (नागेंद्र चुप रह कर सुन रहा था) हमने सात साल तक... उससे अपना ध्यान क्या हटाया.... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार के बाद...
उसने... जैल में रह कर... दो दो डिग्रियाँ हासिल कर लिया है... एक ग्रेजुएशन का... दुसरा वकालत का.... उसके बाद... उसने आरटीआई कोर्ट में... और गृह मंत्रालय में दाखिल किया है... रुप फाउंडेशन के बारे कुछ जानकारी इकट्ठा करने के लिए.... अपने वकालत की डिग्री के दम पर..... वह इस केस को फिर से उछालेगा...

नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसे मरवा क्यूँ नहीं देते... सरकार को दिखा देते की वह गायब हो गया है... जैसे आज तक... हमने उन सभी के साथ किया... जो हमसे... दुश्मनी का मंसूबा पाले हुए थे...
भैरव - प्रधान कह रहा था... वह अब आरटीआई ऐक्टिविस्ट है... उसे कुछ हुआ तो... इस केस को एसआईटी से निकाल कर... सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया जाएगा...
नागेंद्र - तो क्या डर लग रहा है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... डर... वह भी राजा भैरव सिंह को...
नागेंद्र - फिर...
भैरव सिंह - जिज्ञासा...
नागेंद्र - सिर पर चढ़ना... और दिमाग में उतर जाना अलग होता है... (भैरव सिंह नागेंद्र की तरफ देखता है) एक छोटा और ओछा जानवर पैर छोड़ कर सिर चढ़ जाए... तो उसे मार देना चाहिए... पर आपने उसे मारा नहीं... ठीक है... फिर भी उसकी इतनी औकात तो नहीं होनी चाहिए... की क्षेत्रपाल के सिर पर चढ़ जाए...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
नागेंद्र - राजा जी... वह विश्व... एक क्लर्क... रघुनाथ का बेटा... उसे औकात से ज्यादा भाव मत दीजिये... वह नमक हराम कुत्ता है... उसे दुश्मन ना बनायें...
भैरव सिंह - जोश... ज़ज्बात... नशा... जिज्ञासा... और दुश्मन... जब सिर चढ़कर नाचते हैं... तो औकात भुला देते हैं... जब दिमाग में उतर जाते हैं... तो.... तो अपनी उम्र और ताकत बढ़ा जाते हैं... और विश्व के के लिए... हमारे मन में जिज्ञासा है... ना कि दिमाग में.... हमें इंतजार है... उसके पहले चाल का...


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विश्व अपनी नजरें छुपा रहा था l वैदेही गुस्से में तमतमा रही थी l गौरी भी थोड़ी उदास लग रही थी l विश्व माहौल को नॉर्मल करने के लिए

विश्व - दीदी...
वैदेही - चुप कर... बात मत कर मुझसे...
विश्व - (गौरी से) काकी...
गौरी - ना बाबा... मुझसे तुम कोई उम्मीद मत करो...
विश्व - ओ हो... मैंने क्या गलत कहा...

तभी दुकान के बाहर एक पागल सा दिखने वाला आदमी आवाज देता है "दीदी"

वैदेही उसे देख कर झटपट एक खाने की थाली तैयार करती है और उस पागल को बाहर बेंच पर बिठा कर थाली दे देती है l वह पागल बड़े चाव से खाना खाने लगता है l वैदेही दौड़ कर जाती है और एक पानी की ग्लास उस पागल के पास रख देती है l

विश्व - (गौरी से) यह... यह कौन है... काकी...
गौरी - पता नहीं... कौन है... कहाँ से आया है... एक साल हो गये शायद... एक दिन दुकान के बाहर... वैदेही ने उसे सबको खाते हुए देखा.... तो वैदेही उसी दिन से... उसे ऐसे ही एक थाली दे देती है... नाम का पता नहीं... उसकी बेवक़ूफ़ाना हरकत देख कर... वैदेही उसे बुद्धू बुलाती है...

गौरी कह लेने के बाद जब अपनी नजरें घुमा कर देखती है विश्व की आँखे नम हो चुकी थी l

गौरी - क्या हुआ विशु... तेरे आँखों में आँसू...
विश्व - (अपनी आँखों से पानी पोछते हुए) कुछ नहीं काकी... भगवान ने हमें भाई बहन बना दिया है... पर सच तो यह है कि... वह माँ से कम कहाँ है...
गौरी - हाँ... यह तुने सही कहा... जरा सोच... वह तेरे खातिर जिए जा रही है... और तु कह रहा है... यहाँ नहीं रहेगा... जा कर अपने घर में रहेगा...

तब तक बुद्धू का खाना ख़तम हो चुका था l वह अपना हाथ मुहँ धो कर उसी बेंच पर लेट जाता है l वैदेही ने इन दोनों की बातेँ सुन चुकी थी इसलिए अंदर आते ही

वैदेही - (विश्व से) जानता है... उस घर को पहले... राजा के सपोले कब्जा कर बैठे थे... पर अब... सच मुच के सांप रह रहे हैं... वैसे भी... वह घर... दुसरे घरों से अलग थलग है... अब टूट फुट भी गया है... रहने के लिए... घर को मर्रमत करना पड़ेगा...
विश्व - तो कर लूँगा ना...
वैदेही - मतलब तु सांपों के बीच रहेगा... नहीं मानेगा...
विश्व - दीदी... सांप वहीँ कुंडली मार कर रहते हैं... जहां गुप्त धन हो.... वह हमारा घर है.... जहां यादें और खुशियों का खजाना भरा पड़ा है... जो छीन गया है... उसे दुबारा से हासिल करना है... वह चाहे किस्मत से हो... या राजा से...

विश्व कुछ इस ढंग से कहा था कि वैदेही से जवाब देते ना बन पाया l वह धप से बैठ जाती है l विश्व उसके करीब आता है और उसके पास बैठ कर

विश्व - मैं जब गाँव में आ रहा था... तब यह भी देखा... उमाकांत सर की घर को... राजा के गुंडों ने कब्जा कर... दारु की भट्टी बना रखा है... अब दीदी... शुरुआत तो करनी ही है... तो अपने घर से क्यूँ नहीं...

वैदेही विश्व से कुछ नहीं कह पाती l बड़े बेमन से विश्व को देखती है l विश्व की चेहरा देखने के बाद

वैदेही - ठीक है... पर तु अकेले...
विश्व - (बेंच पर लेटा बुद्धू की ओर देखता है) दीदी... इस बुद्धू का भी तो घर नहीं होगा ना... क्यूँ ना... इसे मैं अपने साथ रख लूँ...
वैदेही - पता नहीं... रात को यह कहाँ चला जाता है... इसे तो बस खाने के वक़्त ही देख पाती हूँ...
विश्व - कोई बात नहीं... तुम उसमें मुझे देख कर ही खाना खिलाती हो ना...
वैदेही - (मुस्करा कर सिर हाँ में हिलाती है)
विश्व - अब मैं भी इस बुद्धू को... अपने जैसा बनाने की कोशिश करूंगा... आखिर राजा ने... हुक्का पानी बंद कर दिया है... तो इसे अक्लमंद करते हुए... अपना वक़्त बीताऊँगा....
गौरी - (उदास और हैरान होते हुए) तो क्या तु... यहाँ नहीं आएगा...
विश्व - क्यूँ नहीं आऊंगा... हुक्का पानी गाँव वालों से बंद है... अपनी दीदी से तो नहीं... चार वक़्त का खाना खाने आता रहूँगा...

वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l वह विश्व के सिर पर हाथ घुमा कर बलाएँ लेकर दुआ देने लगती है l

गौरी - हूँम्म्म्म... अब वैदेही ने इजाजत दे दी... तो अब मैं क्या बोलूँ...
वैदेही - कुछ मत बोलो काकी... अब मुझे भी ठीक लाग रहा है... विशु का घर में रह कर... वहीँ से शुरुआत करना ठीक ही है...
विश्व - तो दीदी... इस बुद्धू को तैयार करो... मेरे साथ जाएगा... शाम तक घर की हालत... कुछ सुधार लेंगे... फिर धीरे धीरे... घर को मर्रमत भी कर देंगे... (लहजा कठोर हो जाता है) फिर... घर से निकल कर... पुरे राजगड़ की मर्रमत भी कर देंगे...

वैदेही अपनी जगह से उठ खड़ी होती है और बाहर जाने लगती है l

विश्व - दीदी... कुछ कहा नहीं तुमने...
वैदेही - (विश्व की ओर मुड़ कर) अरे... इस बुद्धू को तेरे साथ जाने के लिए.. तैयार भी तो करना है...

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रुप - क्या हुआ चाची माँ... जब से कमरे में आए हैं... बहुत परेशान दिख रहे हैं...
सुषमा - (अपनी सोच में जो खोई हुई थी चौंक कर रुप की और देखती है) क्या... क्या कहा तुमने...
रुप - मेरी परेशानी पूछने आई थीं... पर खुद इतने परेशान दिख रहे हैं... क्या हुआ चाची माँ...
सुषमा - पहले तुम बताओ... बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात हुई... जिससे तुम्हारा मुड़ एक दम से उखड़ा हुआ था...
रुप - (झिझक के साथ सिर झुका कर चुप रहती है l
सुषमा - देखो रुप... तुम जब आगे की पढ़ाई के लिए... इस महल से निकली थी... एक दम किसी डरी सहमी सी हिरण की तरह थीं... पर अब तुम अपनी ही छवि की विपरित हो... ऐसे में... बड़े राजा को तुम पर संदेह होना स्वाभाविक है...
रुप - आप बताइए चाची माँ... आप मुझे किस रूप में देखना चाहेंगी.... वह पहली वाली डरी सहमी सी रुप को... या इस राजकुमारी को...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरते हुए) सच कहूँ... मुझे तुम्हारा यही रुप बहुत पसंद है... इस रूप में... तुम्हारा मासूमियत और चुलबुला पन निखर कर आया है... पर रुप क्यूँ नहीं... राजकुमारी क्यूँ...
रुप - क्यूंकि... जो इस महल में थी... वह रुप नंदिनी थी... अब आप जिसे देख रहे हो... वह किसी की राजकुमारी है... पर क्षेत्रपाल नहीं...

सुषमा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं l वह उठ कर खड़ी हो जाती है l

सुषमा - हे... भगवान... अब क्या होने वाला है... (रुप की ओर मुड़ कर) बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात चित हुई...
रुप - चाची माँ... मैं आज एक पोती बन कर... बड़े राजा जी के पास गई थी... सोचा थोड़ी सेवा कर लूँ... उनके पैर दबा दूँ... अपनी हाथों से खाना खिला दूँ पर...
सुषमा - पर... पर क्या...
रुप - पर मैंने जब अपनी मनसा बताई... तो उन्होंने मुझे टोक दिया... कहा इन सबके लिए नौकर... चाकर हैं...
सुषमा - फिर...
रुप - फिर... बड़े राजा जी ने कहा... आप हैं उनके देखभाल के लिए... मैं ज्यादा कुछ ना सोचूँ...
सुषमा - बस इतनी सी बात को दिल पर ले गई...
रुप - यह बात मेरे दिल पर नहीं लगी चाची माँ... (आवाज़ में दर्द उभर आता है) उन्होंने कहा.... की चार पीढ़ियों के बाद घर में लकड़ी हुई है... इसका मतलब यह नहीं कि... मैं कोई दायरा लांघ जाऊँ... अगर दसपल्ला राज घराने को छोड़ किसी और के बारे में... भुवनेश्वर में... रह रहे किसी के बारे सोच भी रही हूँ... तो यह भी नहीं देखेंगे.. की मैं.. चार पीढ़ियों के बाद क्षेत्रपाल परिवार में आई हूँ...
सुषमा - देखा... मैंने तो पहले ही कहा था... ऐसा कोई वहम मन में मत पालो...
रुप - पर अभी तो कहा आपने... मेरा यह रुप आपको बहुत पसंद है...
सुषमा - ओह... रुप... तुम्हें अगर मनमानी ही करनी थी.. तो राजगड़ लौट कर क्यूँ आई... मना किया था तुम सब को....
रुप - हाँ... एक्जाक्ट यह तो नहीं.. पर ऐसा ही कुछ बड़े राजा जी ने पुछा...
सुषमा - क्या... क्या पुछा....
रुप - उन्होंने कहा कि... कसम खा कर कहूँ कि... भुवनेश्वर में... मैं कोई मनमानी नहीं कर रही हूँ... मतलब किसीसे कोई चक्कर तो नहीं...
सुषमा - तो तुमने क्या कहा...
रुप - मैंने कसम खा कर कहा कि... मेरी ना तो कॉलेज में... ना ही भुवनेश्वर में किसीसे कोई चक्कर नहीं है...
सुषमा - (उसे शक़ की नजरों से देखने लगती है)
रुप - मैं सच कह रही हूँ चाची...(एक शरारती मुस्कराहट के साथ) मेरा चक्कर तो एक राजगड़ वाले से है... और वह भुवनेश्वर में नहीं... कटक में रहता है...
सुषमा - क्या...(अपनी दोनों हाथों से कानों को ढकते हुए) हे भगवान... यह बच्चे... पता नहीं... क्या क्या दिन दिखाएंगे...

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विश्व अपने टुटे फूटे घर में बुद्धू के साथ घुसता है l अपना बैग रख देता है और पीछे मुड़ कर बुद्धू को घर का दरवाज़ा बंद करने का इशारा करता है l बुद्धू दरवाजा बंद कर जब पीछे मुड़ता है तो देखता है विश्व के हाथ में एक छड़ी है l

बुद्धू - भाई... यह छड़ी क्या मेरे लिए है...
विश्व - हाँ... कोई शक़... तुम्हारे लिए ही है... टीलु... तुम्हें मार जो खिलानी है...
टीलु - क्या भाई... अभी अभी तो दीदी के हाथों से जमकर खाया है... अभी पेट में जगह बची नहीं है...

विश्व टीलु पर झपटता है, टीलु भी उससे बचने के लिए घर के अंदर इधर उधर भागने लगता है l पर जल्दी ही वह थक जाता है और नीचे फर्श पर बैठ जाता है l

टीलु - बस भाई बस... मुझसे और भागा ना जाएगा...

विश्व हँसते हुए उसके पास खड़ा हो जाता है और छड़ी फेंककर अपना हाथ बढ़ाता है l टीलु उसका हाथ पकड़ लेता है और विश्व उसे खिंच कर उठा लेता है और अपने गले से लगा लेता है l

विश्व - शुक्रिया मेरे भाई...
टीलु - क्या भाई... भाई हो कर भाई को शुक्रिया बोलते हो..
विश्व - (टीलु से अलग होते हुए) शुक्रिया तो बनता है... मेरी दीदी के आसपास रह कर उनका देखभाल जो कर रहा था...
टीलु - तुम अपना भाई हो... तो इस नाते वह भी मेरी दीदी हुई ना... और कसम से... उनके हाथों से खाना खाने के... इस जनम का मतलब ही निकल गया...

विश्व फिर से उसे गले से लगा लेता है l थोड़ी देर बाद दोनों अलग होते हैं l

विश्व - पर तुम्हें पागल बनने की क्या जरूरत थी...
टीलु - कोई आम आदमी होता... तो पकड़ लिया जाता... पागल था... इस लिए सबकी नजरों से बचा रहा...
विश्व - ह्म्म्म्म... (विश्व घर में नजर घुमा रहा था)
टीलु - क्या देख रहे हो भाई...
विश्व - दीदी बोल रही थी... घर पर सांप है... पर ऐसा लग नहीं रहा.... और घर में... बहुत गंदगी होगी... ऐसा भी कहा... पर घर के अंदर से... ऐसा कुछ लगता नहीं.... यहां पर... (टीलु की ओर देखता है, टीलु मुस्करा रहा था) ह्म्म्म्म... मतलब... इन सबके पीछे... तुमने जरूर... कोई ना कोई कांड किया है....
टीलु - ही ही ही... वह भाई...
विश्व - अब बता भी दो...
टीलु - वह भाई... मैं जब गाँव में आया तब मुझे मालुम हुआ... जब एक दिन दीदी होटल बंद कर... घर में थीं... तब यह शनिया और उसके ठुल्ले... दुकान में आग लगा दिया था... इस लिए... दीदी घर छोड़ कर दुकान में रहने लगीं तो... तब वह सब हराम खोर इस घर पर कब्जा कर लिया था... य़ह सब सुन कर मैं बहुत गुस्से में आ गया... इसलिए एक दिन जब रात को वे सब हरामी सोये हुए थे... मैं सीलु और जिलु के जरिए... पानी के सांपों को इकट्ठा किया... और एक दिन रात में... इस घर में छोड़ दिया था... साले... शनिया और उसके सपोले... असली... पर बिना जहर वाले सांपों को देख कर रातों रात भाग गए... फिर मैं मौका देख कर सीलु और जिलु के जरिए.... लगातर सांपों को घर में छोड़ता रहा... इसलिए वे लोग डर कर दोबारा कभी लौट कर नहीं आए...
विश्व - और अभी...
टीलु - अभी सांप नहीं हैं... मैंने तीन दिन पहले ही तसल्ली कर ली है...
विश्व - हाँ देख कर लग भी रहा है... और यह साफ सफाई...
टीलु - ही ही ही... मैं वह... तीन रातों से... चुपके चुपके कर रहा था... भाई... मैंने घर पर सभी समान पहले से ही रख दिया है... हम आराम से कुछ ही दिनों में... घर पुरा कर लेंगे...
विश्व - ठीक है... मुझसे पहले ही... तुम्हारा दिमाग बहुत चला हैं यहाँ...
टीलु - हाँ... (थोड़ा उदास हो कर) पर उमाकांत सर जी के घर में... यह आइडिया... काम नहीं करता... इसलिए...
विश्व - कोई नहीं... उस घर के लिए... मैंने अलग सोचा है... चलो... पहले इसे... आज रात सोने लायक तो बना दें...

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दादी - इतना कुछ हो गया... तुने हमे इस लायक भी ना समझा... की अपना दुख हमसे कह सके... (हस्पताल के एक बेड पर लेटे मृत्युंजय से)
मृत्युंजय - ऐसी बात नहीं है दादी... जब मैं आपको बता पाता... तब तक आप लोग... घर से जा चुके थे....
अनु - पर... मट्टू भैया... आप हमें फोन तो कर सकते थे ना...
मृत्युंजय - हाँ... कर सकता था... (चेहरे पर दर्द उभर आता है) पर कहता क्या... माँ को गुजरे कुछ ही दिन हुए हैं... और मेरी बहन किसी लफंगा... ऐयाश... रईसजादा के साथ भाग गई है...

कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा जाता है l वीर देखता है मृत्युंजय के आँखे भीगी हुई है l वीर उसके पास जा कर कंधे पर हाथ रखता है l

वीर - आई आम सॉरी...
मृत्युंजय - किस लिए राज कुमार जी... किस लिए... आप क्यूँ सॉरी... सॉरी तो मैं हूँ... अपनी किस्मत से... इन कुछ महीनों में... हर कोई मेरा साथ छोड़ कर जा रहे हैं... पहले पिताजी... आत्महत्या कर ली... माँ की... दिल की धड़कन रुक गई... और अब... बहन... मेरी छोटी बहन... मुझे छोड़ कर... भाग गई...

जवाब में वीर कुछ कह नहीं पाता, मृत्युंजय की हर एक अल्फाज़ में दर्द टपक रही थी और हर दर्द वीर के अंदर चोट पहुँचा रही थी l

वीर - तुम घबराओ मत मृत्युंजय... तुम्हारे इस ज़ख़्म पर मरहम लगेगी... इस दर्द की दवा होगी.... मैं तुमसे वादा करता हूँ... पुष्पा.... महानायक परिवार की बहु बनेगी... उसके साथ कोई हादसा नहीं होगी.... यह मेरा वादा है...
मृत्युंजय - नहीं राज कुमार जी नहीं... यह मेरे परिवार का मैटर है... आप क्यूँ तकलीफ़ लेंगे...
अनु - क्या बात कर रहे हो मट्टू भाई... हम सब... राजकुमार जी के मुलाजिम ही नहीं.... उनके विरासत का हिस्सा हैं...
दादी - हाँ मट्टू बेटा... अनु ठीक कह रही है... (वीर से, हाथ जोड़ कर) आप पुष्पा को भी... मेरी पोती समझ कर... उसके साथ जैसे न्याय हो... ज़रूर देखियेगा...
वीर - (दादी की हाथ पकड़ लेता है) यह क्या कर रही हैं आप दादी... आपका हुकुम सिर आँखों पर... अब वह विनय किसी पाताल में भी छुपा हो... उसे ढूंढ निकालूँगा... मृत्युंजय और उसकी बहन को... उचित न्याय दिलवाउंगा...
मृत्युंजय - (बहुत भावुक हो कर, रोते हुए) आपका किस तरह से शुक्रिया अदा करूँ... मैं समझ नहीं पा रहा...
वीर - कोई शुक्रिया अदा मत करो... मुझे तुम्हारे लिए कुछ करना है... इसलिए करूंगा...
मृत्युंजय - थैंक्यू... राजकुमार जी थैंक्यू... (हाथ जोड़ देता है l

वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l मृत्युंजय वीर के हाथों को अपने माथे से लगा कर सुबकने लगता है l क्षण सब के लिए भावुक था l सब कोशिश कर रहे थे मृत्युंजय किसी तरह शांत हो जाए l तभी

महांती - वह तो सब ठीक है मृत्युंजय... पर एक बात समझ में नहीं आई... तुम उस होटल में पहुँचे कैसे.... क्या उस वक़्त... पुष्पा भी वहाँ थी...
मृत्युंजय - वह मैं... असल में... पुष्पा की मोबाइल पर... एक चैट देखा था... जब याद आया... तो उसीके आधार पर... उस होटल में पहुँचा...
महांती - ह्म्म्म्म... बात कुछ जच नहीं रही है... विनय जैसा अरब पति ऐयाश... इतनी छोटी होटल में... पुष्पा के साथ...
मृत्युंजय - जी वह मैं कैसे बता सकता हूँ...
अनु - हाँ सर... मट्टू भैया कैसे बता सकते हैं....
वीर - तुम कहना क्या चाहते हो महांती...
महांती - अगर बात प्यार की है... तो महानायक परिवार का इकलौता विनय... अपने बाप के सामने पुष्पा को खड़ा क्यूँ नहीं किया....
वीर - तुम भुल रहे हो... वह एक ऐयाश है...
महांती - जी... है तो... पर वह होटल... उसके स्टैंडर्ड से कहीं नीचे है...
वीर - अब किसके मन में क्या है... हम कैसे सोच सकते हैं... शायद... यही कारण हो... के सब उसे... उसके स्टैंडर्ड के हिसाब से... ढूंढते रहे... और वह... मिले ना...
महांती - चलिए... आपकी बात मान लेते हैं... (मृत्युंजय से) तुम्हें उसने बेहोश कब किया...
मृत्युंजय - रात के xxx बजे...
महांती - तब तुम क्या कर रहे थे... क्या तुम्हारी मौजूदगी के बारे में... पुष्पा जानती थी...
मृत्युंजय - मैं चैट के आधार पर शाम को वहाँ पहुँचा था... विनय के लोगों ने मुझे बाँध दिया था... और मेरे मुहँ पर कपड़े ठूँस दिए थे... रात के बारह बजे तक अचानक मेरे पास विनय आया और मुझे क्लोरोफॉर्म सूंघा दिया... फिर जब आँख खुली... खुद को हस्पताल में पाया...
महांती - क्या तुमने पुलिस को चैट के बारे में बताया था...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - नहीं... तुमने नहीं बताया... पुलिस... विनय के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करते हुए पहुंचीं थी... क्यूंकि अगर तुमने चैट के बारे में कहा होता... तो तुम मौका ए वारदात पर... पुलिस के साथ पहुँचे होते...
मृत्युंजय - सर... मैंने पुष्पा की मोबाइल फोन को... पुलिस स्टेशन में अपना बयान दे कर... जमा कर दिया था... हम बहुत छोटे लोग हैं... पुलिस को बाध्य तो नहीं कर सकते... इसलिए कंप्लेंट के बात भी... मैं अपने तरीके से... पुष्पा को ढूंढ रहा था...
महांती - तब तो.. तुम्हें...
वीर - इनॉफ... महांती... यह पुलिस का मामला है... लिव इट..
महांती - राजकुमार.... अभी आपने मृत्युंजय को प्रॉमिस किया है... पुष्पा को ढूंढने के लिए... इसलिए मैं कड़ियों को जोड़ रहा था...
वीर - ठीक है... मृत्युंजय ने जो स्टेटमेंट पुलिस को दिया है... उसीके बेस पर... हम अपना इनवेस्टिगेशन करेंगे... अरे देखो इसे... अपनी बहन की जुदाई से... किस कदर टूटा हुआ है... (मृत्युंजय से) आई आम सॉरी अगैन... तुम आराम करो... हम लोग कुछ ना कुछ जरूर करेंगे....

मृत्युंजय हल्का सा मुस्कान के साथ अपना सिर हाँ में हिलाता है l सभी उसे दिलासा देते हुए विदा लेते हैं l सबके चले जाने के बाद गहरी सोच में डूबते हुए, पास टेबल पर से एक सेब उठा कर मृत्युंजय खाने लगता है कि उसकी नजर बाहर दरवाजे पर खड़े महांती प़र ठहर जाती है जो उसे शक़ की नजरों से घूरे जा रहा था l
 

Lib am

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👉 एक सौ चौदहवां अपडेट
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नागेंद्र का दुपहर के खाने का वक़्त हो चुका था l सुषमा घड़ी देख कर बहुत देर से पढ़ रही धर्म ग्रंथ को टेबल पर रख देती है और अपने कमरे से निकल कर अंतर्महल से बाहर निकल कर प्रमुख महल की ओर जाती है l रास्ते में उसे रुप थोड़ी दुख और गुस्से में आती हुई दिखाई देती है l

सुषमा - क्या हुआ राज कुमारी... ऐसी उखड़ी हुई क्यूँ हो...
रुप - (अपने उदास भरे चेहरे पर बेमन से मुस्कान लाते हुए) कुछ नहीं रानी माँ...
सुषमा - झूठ बोल रही हो...
रुप - नहीं... ऐसी कोई बात है...
सुषमा - अच्छा अपनी कमरे में ही खाना मंगवा लेना... हमारे लिए भी... हम बड़े राजा जी के पास हाजरी दे कर आते हैं...
रुप - जी... जी चाची माँ...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) अच्छा जाओ... (रुप जाने लगती है, सुषमा पीछे से आवाज देकर) हमारे लिए लिए इंतजार करना....
रुप - जी... चाची माँ...

कह कर रुप वहाँ से चली जाती है l सुषमा कुछ सोचते हुए रुप को जाते हुए देखती है फिर वापस मुड़ कर प्रमुख महल में नागेंद्र की कमरे में आती है l सुषमा के पीछे पीछे फूड ट्रॉली पर खाना लेकर नौकर पहुँचते हैं l यह हर एक दिन की रुटीन था l नागेंद्र एक फोल्डिंग बेड़ पर लेटा हुआ था l सुषमा को देख कर उसे समझ में आ गया कि उसका खाना खाने का समय हो गया l
वह उठ कर बैठने की कोशिश करता है l सुषमा और दुसरे नौकर नागेन्द्र को सीधा कर बिठाते हैं, और उसके कमर के ऊपर एक डेस्क लगाते हैं l उसी डेस्क पर सुषमा नागेन्द्र के लिए खाने की थाली लगाती है और सुषमा उस थाली में निवाले बनाने लगती है जिसे एक एक कर के नागेंद्र खाने लगता है l उसी वक़्त एक नौकर भागते हुए आता है

नौकर - हुकुम... राजा सहाब पधार रहे हैं...

यह सुन कर सुषमा निवाला बनाना छोड़ कर एक किनारे खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह अंदर आता है l

नागेंद्र - (अपनी लकवे ग्रस्त आवाज में) आइए... राजा...
भैरव सिंह - (नागेंद्र के पैर छूने के बाद) आपने याद किया...
नागेंद्र - हाँ...
भैरव सिंह - जी कहिये....
नागेंद्र - एकांत.... (सारे नौकर वहाँ से चले जाते हैं) हमने आपसे कहा था... और आज हमें महसूस भी हुआ... राजकुमारी कुछ बदली बदली हैं... आपने कुछ खोज खबर ली... क्यूँ...

भैरव सिंह सुषमा की ओर देखता है l सुषमा की भवें जिज्ञासा वश सिकुड़ गई थी l

नागेंद्र - हमने आपसे कुछ पुछा है राजा जी... कोई ऐसी बात हुई... तो छोटी रानी जी को भी जानना चाहिए...
भैरव सिंह - फिलहाल... राजकुमारी जी के बारे में... ज्यादा कुछ जानकारी मिली नहीं... पर... (चुप हो जाता है)
नागेंद्र - बात को पुरा कीजिए...
भैरव सिंह - राजकुमार वीर सिंह... अपने साथ एक लड़की और उसकी दादी को लेकर घुम रहे हैं.... (सुषमा की आँखे फैल जाती हैं, भैरव सिंह उसकी हालत को देख रहा था)
नागेंद्र - तो...
भैरव सिंह - वह खबरी कह रहा था... राजकुमार इस विषय में... बहुत गम्भीर हैं...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... उसकी लड़की की कोई पहचान...
भैरव सिंह - छोटी जात की है... और बहुत गरीब भी...
नागेंद्र - तो फिर... आप चिंता ना करें... राजकुमार अपना खाली समय बिताने के लिए... उस लड़की का इस्तमाल कर रहे होंगे...
भैरव सिंह - हमने भी यही कहा... पर खबरी का कुछ और ही कहना था...
नागेंद्र - रंग महल के शौकीन... हमारे ही वंश के खून पर हमें कोई संदेह नहीं है... (भैरव सिंह चुप रहता है) अच्छाई से हमारा कोई नाता नहीं... बुराई में हमारी कोई सानी नहीं... और बुरी बातेँ समझने में हमें ना दिक्कत होती है.... ना ही देर... खैर... (सुषमा से) छोटी रानी जी... आप छोटे राजा जी को बुलावा भेजिए...
सुषमा - (कोई जवाब नहीं देती)
नागेंद्र - छोटी रानी...
सुषमा - (चौंक जाती है) जी... जी..
नागेंद्र - हमने आपसे कुछ कहा...
सुषमा - जी जरूर...
नागेंद्र - अब आप जाइए...

सुषमा अपना सिर झुका कर वहाँ से बाहर निकल जाती है l उसके जाते ही नागेंद्र, भैरव सिंह से सवाल करता है l

नागेंद्र - आप हमें जो खबर दी... उसकी वजन इतना नहीं है कि आप परेशान लगें... बात क्या है...
भैरव सिंह - हम परेशान बिल्कुल नहीं हैं... हाँ हम थोड़े उत्सुक हैं....
नागेंद्र - किस बात की उत्सुकता....
भैरव सिंह - वह... हराम का पिल्ला... विश्व प्रताप... आज गाँव में लौट आया है...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसमें उत्सुकता क्या है...
भैरव - वह हमसे दुश्मनी करने के लिए... मरा जा रहा है... (नागेंद्र चुप रह कर सुन रहा था) हमने सात साल तक... उससे अपना ध्यान क्या हटाया.... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार के बाद...
उसने... जैल में रह कर... दो दो डिग्रियाँ हासिल कर लिया है... एक ग्रेजुएशन का... दुसरा वकालत का.... उसके बाद... उसने आरटीआई कोर्ट में... और गृह मंत्रालय में दाखिल किया है... रुप फाउंडेशन के बारे कुछ जानकारी इकट्ठा करने के लिए.... अपने वकालत की डिग्री के दम पर..... वह इस केस को फिर से उछालेगा...

नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसे मरवा क्यूँ नहीं देते... सरकार को दिखा देते की वह गायब हो गया है... जैसे आज तक... हमने उन सभी के साथ किया... जो हमसे... दुश्मनी का मंसूबा पाले हुए थे...
भैरव - प्रधान कह रहा था... वह अब आरटीआई ऐक्टिविस्ट है... उसे कुछ हुआ तो... इस केस को एसआईटी से निकाल कर... सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया जाएगा...
नागेंद्र - तो क्या डर लग रहा है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... डर... वह भी राजा भैरव सिंह को...
नागेंद्र - फिर...
भैरव सिंह - जिज्ञासा...
नागेंद्र - सिर पर चढ़ना... और दिमाग में उतर जाना अलग होता है... (भैरव सिंह नागेंद्र की तरफ देखता है) एक छोटा और ओछा जानवर पैर छोड़ कर सिर चढ़ जाए... तो उसे मार देना चाहिए... पर आपने उसे मारा नहीं... ठीक है... फिर भी उसकी इतनी औकात तो नहीं होनी चाहिए... की क्षेत्रपाल के सिर पर चढ़ जाए...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
नागेंद्र - राजा जी... वह विश्व... एक क्लर्क... रघुनाथ का बेटा... उसे औकात से ज्यादा भाव मत दीजिये... वह नमक हराम कुत्ता है... उसे दुश्मन ना बनायें...
भैरव सिंह - जोश... ज़ज्बात... नशा... जिज्ञासा... और दुश्मन... जब सिर चढ़कर नाचते हैं... तो औकात भुला देते हैं... जब दिमाग में उतर जाते हैं... तो.... तो अपनी उम्र और ताकत बढ़ा जाते हैं... और विश्व के के लिए... हमारे मन में जिज्ञासा है... ना कि दिमाग में.... हमें इंतजार है... उसके पहले चाल का...


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विश्व अपनी नजरें छुपा रहा था l वैदेही गुस्से में तमतमा रही थी l गौरी भी थोड़ी उदास लग रही थी l विश्व माहौल को नॉर्मल करने के लिए

विश्व - दीदी...
वैदेही - चुप कर... बात मत कर मुझसे...
विश्व - (गौरी से) काकी...
गौरी - ना बाबा... मुझसे तुम कोई उम्मीद मत करो...
विश्व - ओ हो... मैंने क्या गलत कहा...

तभी दुकान के बाहर एक पागल सा दिखने वाला आदमी आवाज देता है "दीदी"

वैदेही उसे देख कर झटपट एक खाने की थाली तैयार करती है और उस पागल को बाहर बेंच पर बिठा कर थाली दे देती है l वह पागल बड़े चाव से खाना खाने लगता है l वैदेही दौड़ कर जाती है और एक पानी की ग्लास उस पागल के पास रख देती है l

विश्व - (गौरी से) यह... यह कौन है... काकी...
गौरी - पता नहीं... कौन है... कहाँ से आया है... एक साल हो गये शायद... एक दिन दुकान के बाहर... वैदेही ने उसे सबको खाते हुए देखा.... तो वैदेही उसी दिन से... उसे ऐसे ही एक थाली दे देती है... नाम का पता नहीं... उसकी बेवक़ूफ़ाना हरकत देख कर... वैदेही उसे बुद्धू बुलाती है...

गौरी कह लेने के बाद जब अपनी नजरें घुमा कर देखती है विश्व की आँखे नम हो चुकी थी l

गौरी - क्या हुआ विशु... तेरे आँखों में आँसू...
विश्व - (अपनी आँखों से पानी पोछते हुए) कुछ नहीं काकी... भगवान ने हमें भाई बहन बना दिया है... पर सच तो यह है कि... वह माँ से कम कहाँ है...
गौरी - हाँ... यह तुने सही कहा... जरा सोच... वह तेरे खातिर जिए जा रही है... और तु कह रहा है... यहाँ नहीं रहेगा... जा कर अपने घर में रहेगा...

तब तक बुद्धू का खाना ख़तम हो चुका था l वह अपना हाथ मुहँ धो कर उसी बेंच पर लेट जाता है l वैदेही ने इन दोनों की बातेँ सुन चुकी थी इसलिए अंदर आते ही

वैदेही - (विश्व से) जानता है... उस घर को पहले... राजा के सपोले कब्जा कर बैठे थे... पर अब... सच मुच के सांप रह रहे हैं... वैसे भी... वह घर... दुसरे घरों से अलग थलग है... अब टूट फुट भी गया है... रहने के लिए... घर को मर्रमत करना पड़ेगा...
विश्व - तो कर लूँगा ना...
वैदेही - मतलब तु सांपों के बीच रहेगा... नहीं मानेगा...
विश्व - दीदी... सांप वहीँ कुंडली मार कर रहते हैं... जहां गुप्त धन हो.... वह हमारा घर है.... जहां यादें और खुशियों का खजाना भरा पड़ा है... जो छीन गया है... उसे दुबारा से हासिल करना है... वह चाहे किस्मत से हो... या राजा से...

विश्व कुछ इस ढंग से कहा था कि वैदेही से जवाब देते ना बन पाया l वह धप से बैठ जाती है l विश्व उसके करीब आता है और उसके पास बैठ कर

विश्व - मैं जब गाँव में आ रहा था... तब यह भी देखा... उमाकांत सर की घर को... राजा के गुंडों ने कब्जा कर... दारु की भट्टी बना रखा है... अब दीदी... शुरुआत तो करनी ही है... तो अपने घर से क्यूँ नहीं...

वैदेही विश्व से कुछ नहीं कह पाती l बड़े बेमन से विश्व को देखती है l विश्व की चेहरा देखने के बाद

वैदेही - ठीक है... पर तु अकेले...
विश्व - (बेंच पर लेटा बुद्धू की ओर देखता है) दीदी... इस बुद्धू का भी तो घर नहीं होगा ना... क्यूँ ना... इसे मैं अपने साथ रख लूँ...
वैदेही - पता नहीं... रात को यह कहाँ चला जाता है... इसे तो बस खाने के वक़्त ही देख पाती हूँ...
विश्व - कोई बात नहीं... तुम उसमें मुझे देख कर ही खाना खिलाती हो ना...
वैदेही - (मुस्करा कर सिर हाँ में हिलाती है)
विश्व - अब मैं भी इस बुद्धू को... अपने जैसा बनाने की कोशिश करूंगा... आखिर राजा ने... हुक्का पानी बंद कर दिया है... तो इसे अक्लमंद करते हुए... अपना वक़्त बीताऊँगा....
गौरी - (उदास और हैरान होते हुए) तो क्या तु... यहाँ नहीं आएगा...
विश्व - क्यूँ नहीं आऊंगा... हुक्का पानी गाँव वालों से बंद है... अपनी दीदी से तो नहीं... चार वक़्त का खाना खाने आता रहूँगा...

वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l वह विश्व के सिर पर हाथ घुमा कर बलाएँ लेकर दुआ देने लगती है l

गौरी - हूँम्म्म्म... अब वैदेही ने इजाजत दे दी... तो अब मैं क्या बोलूँ...
वैदेही - कुछ मत बोलो काकी... अब मुझे भी ठीक लाग रहा है... विशु का घर में रह कर... वहीँ से शुरुआत करना ठीक ही है...
विश्व - तो दीदी... इस बुद्धू को तैयार करो... मेरे साथ जाएगा... शाम तक घर की हालत... कुछ सुधार लेंगे... फिर धीरे धीरे... घर को मर्रमत भी कर देंगे... (लहजा कठोर हो जाता है) फिर... घर से निकल कर... पुरे राजगड़ की मर्रमत भी कर देंगे...

वैदेही अपनी जगह से उठ खड़ी होती है और बाहर जाने लगती है l

विश्व - दीदी... कुछ कहा नहीं तुमने...
वैदेही - (विश्व की ओर मुड़ कर) अरे... इस बुद्धू को तेरे साथ जाने के लिए.. तैयार भी तो करना है...

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रुप - क्या हुआ चाची माँ... जब से कमरे में आए हैं... बहुत परेशान दिख रहे हैं...
सुषमा - (अपनी सोच में जो खोई हुई थी चौंक कर रुप की और देखती है) क्या... क्या कहा तुमने...
रुप - मेरी परेशानी पूछने आई थीं... पर खुद इतने परेशान दिख रहे हैं... क्या हुआ चाची माँ...
सुषमा - पहले तुम बताओ... बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात हुई... जिससे तुम्हारा मुड़ एक दम से उखड़ा हुआ था...
रुप - (झिझक के साथ सिर झुका कर चुप रहती है l
सुषमा - देखो रुप... तुम जब आगे की पढ़ाई के लिए... इस महल से निकली थी... एक दम किसी डरी सहमी सी हिरण की तरह थीं... पर अब तुम अपनी ही छवि की विपरित हो... ऐसे में... बड़े राजा को तुम पर संदेह होना स्वाभाविक है...
रुप - आप बताइए चाची माँ... आप मुझे किस रूप में देखना चाहेंगी.... वह पहली वाली डरी सहमी सी रुप को... या इस राजकुमारी को...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरते हुए) सच कहूँ... मुझे तुम्हारा यही रुप बहुत पसंद है... इस रूप में... तुम्हारा मासूमियत और चुलबुला पन निखर कर आया है... पर रुप क्यूँ नहीं... राजकुमारी क्यूँ...
रुप - क्यूंकि... जो इस महल में थी... वह रुप नंदिनी थी... अब आप जिसे देख रहे हो... वह किसी की राजकुमारी है... पर क्षेत्रपाल नहीं...

सुषमा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं l वह उठ कर खड़ी हो जाती है l

सुषमा - हे... भगवान... अब क्या होने वाला है... (रुप की ओर मुड़ कर) बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात चित हुई...
रुप - चाची माँ... मैं आज एक पोती बन कर... बड़े राजा जी के पास गई थी... सोचा थोड़ी सेवा कर लूँ... उनके पैर दबा दूँ... अपनी हाथों से खाना खिला दूँ पर...
सुषमा - पर... पर क्या...
रुप - पर मैंने जब अपनी मनसा बताई... तो उन्होंने मुझे टोक दिया... कहा इन सबके लिए नौकर... चाकर हैं...
सुषमा - फिर...
रुप - फिर... बड़े राजा जी ने कहा... आप हैं उनके देखभाल के लिए... मैं ज्यादा कुछ ना सोचूँ...
सुषमा - बस इतनी सी बात को दिल पर ले गई...
रुप - यह बात मेरे दिल पर नहीं लगी चाची माँ... (आवाज़ में दर्द उभर आता है) उन्होंने कहा.... की चार पीढ़ियों के बाद घर में लकड़ी हुई है... इसका मतलब यह नहीं कि... मैं कोई दायरा लांघ जाऊँ... अगर दसपल्ला राज घराने को छोड़ किसी और के बारे में... भुवनेश्वर में... रह रहे किसी के बारे सोच भी रही हूँ... तो यह भी नहीं देखेंगे.. की मैं.. चार पीढ़ियों के बाद क्षेत्रपाल परिवार में आई हूँ...
सुषमा - देखा... मैंने तो पहले ही कहा था... ऐसा कोई वहम मन में मत पालो...
रुप - पर अभी तो कहा आपने... मेरा यह रुप आपको बहुत पसंद है...
सुषमा - ओह... रुप... तुम्हें अगर मनमानी ही करनी थी.. तो राजगड़ लौट कर क्यूँ आई... मना किया था तुम सब को....
रुप - हाँ... एक्जाक्ट यह तो नहीं.. पर ऐसा ही कुछ बड़े राजा जी ने पुछा...
सुषमा - क्या... क्या पुछा....
रुप - उन्होंने कहा कि... कसम खा कर कहूँ कि... भुवनेश्वर में... मैं कोई मनमानी नहीं कर रही हूँ... मतलब किसीसे कोई चक्कर तो नहीं...
सुषमा - तो तुमने क्या कहा...
रुप - मैंने कसम खा कर कहा कि... मेरी ना तो कॉलेज में... ना ही भुवनेश्वर में किसीसे कोई चक्कर नहीं है...
सुषमा - (उसे शक़ की नजरों से देखने लगती है)
रुप - मैं सच कह रही हूँ चाची...(एक शरारती मुस्कराहट के साथ) मेरा चक्कर तो एक राजगड़ वाले से है... और वह भुवनेश्वर में नहीं... कटक में रहता है...
सुषमा - क्या...(अपनी दोनों हाथों से कानों को ढकते हुए) हे भगवान... यह बच्चे... पता नहीं... क्या क्या दिन दिखाएंगे...

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विश्व अपने टुटे फूटे घर में बुद्धू के साथ घुसता है l अपना बैग रख देता है और पीछे मुड़ कर बुद्धू को घर का दरवाज़ा बंद करने का इशारा करता है l बुद्धू दरवाजा बंद कर जब पीछे मुड़ता है तो देखता है विश्व के हाथ में एक छड़ी है l

बुद्धू - भाई... यह छड़ी क्या मेरे लिए है...
विश्व - हाँ... कोई शक़... तुम्हारे लिए ही है... टीलु... तुम्हें मार जो खिलानी है...
टीलु - क्या भाई... अभी अभी तो दीदी के हाथों से जमकर खाया है... अभी पेट में जगह बची नहीं है...

विश्व टीलु पर झपटता है, टीलु भी उससे बचने के लिए घर के अंदर इधर उधर भागने लगता है l पर जल्दी ही वह थक जाता है और नीचे फर्श पर बैठ जाता है l

टीलु - बस भाई बस... मुझसे और भागा ना जाएगा...

विश्व हँसते हुए उसके पास खड़ा हो जाता है और छड़ी फेंककर अपना हाथ बढ़ाता है l टीलु उसका हाथ पकड़ लेता है और विश्व उसे खिंच कर उठा लेता है और अपने गले से लगा लेता है l

विश्व - शुक्रिया मेरे भाई...
टीलु - क्या भाई... भाई हो कर भाई को शुक्रिया बोलते हो..
विश्व - (टीलु से अलग होते हुए) शुक्रिया तो बनता है... मेरी दीदी के आसपास रह कर उनका देखभाल जो कर रहा था...
टीलु - तुम अपना भाई हो... तो इस नाते वह भी मेरी दीदी हुई ना... और कसम से... उनके हाथों से खाना खाने के... इस जनम का मतलब ही निकल गया...

विश्व फिर से उसे गले से लगा लेता है l थोड़ी देर बाद दोनों अलग होते हैं l

विश्व - पर तुम्हें पागल बनने की क्या जरूरत थी...
टीलु - कोई आम आदमी होता... तो पकड़ लिया जाता... पागल था... इस लिए सबकी नजरों से बचा रहा...
विश्व - ह्म्म्म्म... (विश्व घर में नजर घुमा रहा था)
टीलु - क्या देख रहे हो भाई...
विश्व - दीदी बोल रही थी... घर पर सांप है... पर ऐसा लग नहीं रहा.... और घर में... बहुत गंदगी होगी... ऐसा भी कहा... पर घर के अंदर से... ऐसा कुछ लगता नहीं.... यहां पर... (टीलु की ओर देखता है, टीलु मुस्करा रहा था) ह्म्म्म्म... मतलब... इन सबके पीछे... तुमने जरूर... कोई ना कोई कांड किया है....
टीलु - ही ही ही... वह भाई...
विश्व - अब बता भी दो...
टीलु - वह भाई... मैं जब गाँव में आया तब मुझे मालुम हुआ... जब एक दिन दीदी होटल बंद कर... घर में थीं... तब यह शनिया और उसके ठुल्ले... दुकान में आग लगा दिया था... इस लिए... दीदी घर छोड़ कर दुकान में रहने लगीं तो... तब वह सब हराम खोर इस घर पर कब्जा कर लिया था... य़ह सब सुन कर मैं बहुत गुस्से में आ गया... इसलिए एक दिन जब रात को वे सब हरामी सोये हुए थे... मैं सीलु और जिलु के जरिए... पानी के सांपों को इकट्ठा किया... और एक दिन रात में... इस घर में छोड़ दिया था... साले... शनिया और उसके सपोले... असली... पर बिना जहर वाले सांपों को देख कर रातों रात भाग गए... फिर मैं मौका देख कर सीलु और जिलु के जरिए.... लगातर सांपों को घर में छोड़ता रहा... इसलिए वे लोग डर कर दोबारा कभी लौट कर नहीं आए...
विश्व - और अभी...
टीलु - अभी सांप नहीं हैं... मैंने तीन दिन पहले ही तसल्ली कर ली है...
विश्व - हाँ देख कर लग भी रहा है... और यह साफ सफाई...
टीलु - ही ही ही... मैं वह... तीन रातों से... चुपके चुपके कर रहा था... भाई... मैंने घर पर सभी समान पहले से ही रख दिया है... हम आराम से कुछ ही दिनों में... घर पुरा कर लेंगे...
विश्व - ठीक है... मुझसे पहले ही... तुम्हारा दिमाग बहुत चला हैं यहाँ...
टीलु - हाँ... (थोड़ा उदास हो कर) पर उमाकांत सर जी के घर में... यह आइडिया... काम नहीं करता... इसलिए...
विश्व - कोई नहीं... उस घर के लिए... मैंने अलग सोचा है... चलो... पहले इसे... आज रात सोने लायक तो बना दें...

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दादी - इतना कुछ हो गया... तुने हमे इस लायक भी ना समझा... की अपना दुख हमसे कह सके... (हस्पताल के एक बेड पर लेटे मृत्युंजय से)
मृत्युंजय - ऐसी बात नहीं है दादी... जब मैं आपको बता पाता... तब तक आप लोग... घर से जा चुके थे....
अनु - पर... मट्टू भैया... आप हमें फोन तो कर सकते थे ना...
मृत्युंजय - हाँ... कर सकता था... (चेहरे पर दर्द उभर आता है) पर कहता क्या... माँ को गुजरे कुछ ही दिन हुए हैं... और मेरी बहन किसी लफंगा... ऐयाश... रईसजादा के साथ भाग गई है...

कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा जाता है l वीर देखता है मृत्युंजय के आँखे भीगी हुई है l वीर उसके पास जा कर कंधे पर हाथ रखता है l

वीर - आई आम सॉरी...
मृत्युंजय - किस लिए राज कुमार जी... किस लिए... आप क्यूँ सॉरी... सॉरी तो मैं हूँ... अपनी किस्मत से... इन कुछ महीनों में... हर कोई मेरा साथ छोड़ कर जा रहे हैं... पहले पिताजी... आत्महत्या कर ली... माँ की... दिल की धड़कन रुक गई... और अब... बहन... मेरी छोटी बहन... मुझे छोड़ कर... भाग गई...

जवाब में वीर कुछ कह नहीं पाता, मृत्युंजय की हर एक अल्फाज़ में दर्द टपक रही थी और हर दर्द वीर के अंदर चोट पहुँचा रही थी l

वीर - तुम घबराओ मत मृत्युंजय... तुम्हारे इस ज़ख़्म पर मरहम लगेगी... इस दर्द की दवा होगी.... मैं तुमसे वादा करता हूँ... पुष्पा.... महानायक परिवार की बहु बनेगी... उसके साथ कोई हादसा नहीं होगी.... यह मेरा वादा है...
मृत्युंजय - नहीं राज कुमार जी नहीं... यह मेरे परिवार का मैटर है... आप क्यूँ तकलीफ़ लेंगे...
अनु - क्या बात कर रहे हो मट्टू भाई... हम सब... राजकुमार जी के मुलाजिम ही नहीं.... उनके विरासत का हिस्सा हैं...
दादी - हाँ मट्टू बेटा... अनु ठीक कह रही है... (वीर से, हाथ जोड़ कर) आप पुष्पा को भी... मेरी पोती समझ कर... उसके साथ जैसे न्याय हो... ज़रूर देखियेगा...
वीर - (दादी की हाथ पकड़ लेता है) यह क्या कर रही हैं आप दादी... आपका हुकुम सिर आँखों पर... अब वह विनय किसी पाताल में भी छुपा हो... उसे ढूंढ निकालूँगा... मृत्युंजय और उसकी बहन को... उचित न्याय दिलवाउंगा...
मृत्युंजय - (बहुत भावुक हो कर, रोते हुए) आपका किस तरह से शुक्रिया अदा करूँ... मैं समझ नहीं पा रहा...
वीर - कोई शुक्रिया अदा मत करो... मुझे तुम्हारे लिए कुछ करना है... इसलिए करूंगा...
मृत्युंजय - थैंक्यू... राजकुमार जी थैंक्यू... (हाथ जोड़ देता है l

वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l मृत्युंजय वीर के हाथों को अपने माथे से लगा कर सुबकने लगता है l क्षण सब के लिए भावुक था l सब कोशिश कर रहे थे मृत्युंजय किसी तरह शांत हो जाए l तभी

महांती - वह तो सब ठीक है मृत्युंजय... पर एक बात समझ में नहीं आई... तुम उस होटल में पहुँचे कैसे.... क्या उस वक़्त... पुष्पा भी वहाँ थी...
मृत्युंजय - वह मैं... असल में... पुष्पा की मोबाइल पर... एक चैट देखा था... जब याद आया... तो उसीके आधार पर... उस होटल में पहुँचा...
महांती - ह्म्म्म्म... बात कुछ जच नहीं रही है... विनय जैसा अरब पति ऐयाश... इतनी छोटी होटल में... पुष्पा के साथ...
मृत्युंजय - जी वह मैं कैसे बता सकता हूँ...
अनु - हाँ सर... मट्टू भैया कैसे बता सकते हैं....
वीर - तुम कहना क्या चाहते हो महांती...
महांती - अगर बात प्यार की है... तो महानायक परिवार का इकलौता विनय... अपने बाप के सामने पुष्पा को खड़ा क्यूँ नहीं किया....
वीर - तुम भुल रहे हो... वह एक ऐयाश है...
महांती - जी... है तो... पर वह होटल... उसके स्टैंडर्ड से कहीं नीचे है...
वीर - अब किसके मन में क्या है... हम कैसे सोच सकते हैं... शायद... यही कारण हो... के सब उसे... उसके स्टैंडर्ड के हिसाब से... ढूंढते रहे... और वह... मिले ना...
महांती - चलिए... आपकी बात मान लेते हैं... (मृत्युंजय से) तुम्हें उसने बेहोश कब किया...
मृत्युंजय - रात के xxx बजे...
महांती - तब तुम क्या कर रहे थे... क्या तुम्हारी मौजूदगी के बारे में... पुष्पा जानती थी...
मृत्युंजय - मैं चैट के आधार पर शाम को वहाँ पहुँचा था... विनय के लोगों ने मुझे बाँध दिया था... और मेरे मुहँ पर कपड़े ठूँस दिए थे... रात के बारह बजे तक अचानक मेरे पास विनय आया और मुझे क्लोरोफॉर्म सूंघा दिया... फिर जब आँख खुली... खुद को हस्पताल में पाया...
महांती - क्या तुमने पुलिस को चैट के बारे में बताया था...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - नहीं... तुमने नहीं बताया... पुलिस... विनय के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करते हुए पहुंचीं थी... क्यूंकि अगर तुमने चैट के बारे में कहा होता... तो तुम मौका ए वारदात पर... पुलिस के साथ पहुँचे होते...
मृत्युंजय - सर... मैंने पुष्पा की मोबाइल फोन को... पुलिस स्टेशन में अपना बयान दे कर... जमा कर दिया था... हम बहुत छोटे लोग हैं... पुलिस को बाध्य तो नहीं कर सकते... इसलिए कंप्लेंट के बात भी... मैं अपने तरीके से... पुष्पा को ढूंढ रहा था...
महांती - तब तो.. तुम्हें...
वीर - इनॉफ... महांती... यह पुलिस का मामला है... लिव इट..
महांती - राजकुमार.... अभी आपने मृत्युंजय को प्रॉमिस किया है... पुष्पा को ढूंढने के लिए... इसलिए मैं कड़ियों को जोड़ रहा था...
वीर - ठीक है... मृत्युंजय ने जो स्टेटमेंट पुलिस को दिया है... उसीके बेस पर... हम अपना इनवेस्टिगेशन करेंगे... अरे देखो इसे... अपनी बहन की जुदाई से... किस कदर टूटा हुआ है... (मृत्युंजय से) आई आम सॉरी अगैन... तुम आराम करो... हम लोग कुछ ना कुछ जरूर करेंगे....

मृत्युंजय हल्का सा मुस्कान के साथ अपना सिर हाँ में हिलाता है l सभी उसे दिलासा देते हुए विदा लेते हैं l सबके चले जाने के बाद गहरी सोच में डूबते हुए, पास टेबल पर से एक सेब उठा कर मृत्युंजय खाने लगता है कि उसकी नजर बाहर दरवाजे पर खड़े महांती प़र ठहर जाती है जो उसे शक़ की नजरों से घूरे जा रहा था l
राजकुमारी जी के तेवर से क्षेत्रपाल नाम के कुत्तों के पिछवाड़े में मिर्च लग चुकी है तभी कोई उसको धमकी दे रहा है तो कोई कसम खिला रहा है।

टीलू ने क्या मस्त दिमाग लगाया, वैदेही की रक्षा और घर को बचाने का। वैसे भी गंदी नाली के कीड़ों के लिए सांप से बेहतर कुछ भी नही है। इसी घर के काग़ज़ दिए थे तापस ने बस स्टैंड पर विश्व को।

बेचारी सुषमा फंस गई है बुरी तरह से, एक तरफ वीर और दूसरी तरफ रुप की बातो से। अब पता नही कैसे वो इन दोनो के रिश्ता को संभालेगी?

मट्टू ही वो घर का भेदी है जो ESS और क्षेत्रपाल खासतौर पर वीर की बैंड बाजा रहा है दुश्मनों के साथ मिल कर। ऐसा क्यों लग रहा है की मट्टू की मां ने मरने से पहले मट्टू को सच बता दिया हो और अब वो अपना बदला वीर के प्यार को दाव पर लगा कर ले रहा है? मगर महंती भी पुराना चावल है और उसके शक की सुई अटक चुकी है मट्टू पर। मगर क्या महंती अपना शक सही साबित कर पाएगा मट्टू का झूठ साबित करके?

पता नही क्यों अब अनु और दादी भी मट्टू से मिली हुई नजर आ रही है? दादी को वीर के बारे में सब पता था फिर भी वो अनु को वीर के पास नौकरी दिलवाने ले गई क्योंकी मट्टू पहले से वहां पर काम कर रहा था। मट्टू और दादी का परिवार एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहे है। वीर को जानते हुए भी अनु का भोलेपन का दिखावा करके वीर की हरकतों में साथ देते हुए उसे अपनी तरफ आकर्षित करना। हर जगह वीर से मट्टू और उसके परिवार के लिए मदद मांगना।

हो सकता हैं कि मैं गलत सोच रहा हूं मगर तटस्थ हो कर अगर देखा जाए तो ये सारे बिंदु अनु और दादी की तरफ भी इशारा कर रहे है। क्योंकि अगर ये सच हुआ तो ये क्षेत्रपाल खानदान पर बहुत बड़ी चोट होगी। मगर साथ ही ये बात भी नजर आती है कि हो सकता है मट्टू जानबूझ कर अनु और दादी का इस्तेमाल कर रहा हो बिना उनको किसी शक में डाले।

बहुत ही रोचक अपडेट Kala Nag बुज्जी भाई, मगर इस बार अपडेट थोड़ा छोटा लगा ।
 
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Devilrudra

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👉 एक सौ चौदहवां अपडेट
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नागेंद्र का दुपहर के खाने का वक़्त हो चुका था l सुषमा घड़ी देख कर बहुत देर से पढ़ रही धर्म ग्रंथ को टेबल पर रख देती है और अपने कमरे से निकल कर अंतर्महल से बाहर निकल कर प्रमुख महल की ओर जाती है l रास्ते में उसे रुप थोड़ी दुख और गुस्से में आती हुई दिखाई देती है l

सुषमा - क्या हुआ राज कुमारी... ऐसी उखड़ी हुई क्यूँ हो...
रुप - (अपने उदास भरे चेहरे पर बेमन से मुस्कान लाते हुए) कुछ नहीं रानी माँ...
सुषमा - झूठ बोल रही हो...
रुप - नहीं... ऐसी कोई बात है...
सुषमा - अच्छा अपनी कमरे में ही खाना मंगवा लेना... हमारे लिए भी... हम बड़े राजा जी के पास हाजरी दे कर आते हैं...
रुप - जी... जी चाची माँ...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) अच्छा जाओ... (रुप जाने लगती है, सुषमा पीछे से आवाज देकर) हमारे लिए लिए इंतजार करना....
रुप - जी... चाची माँ...

कह कर रुप वहाँ से चली जाती है l सुषमा कुछ सोचते हुए रुप को जाते हुए देखती है फिर वापस मुड़ कर प्रमुख महल में नागेंद्र की कमरे में आती है l सुषमा के पीछे पीछे फूड ट्रॉली पर खाना लेकर नौकर पहुँचते हैं l यह हर एक दिन की रुटीन था l नागेंद्र एक फोल्डिंग बेड़ पर लेटा हुआ था l सुषमा को देख कर उसे समझ में आ गया कि उसका खाना खाने का समय हो गया l
वह उठ कर बैठने की कोशिश करता है l सुषमा और दुसरे नौकर नागेन्द्र को सीधा कर बिठाते हैं, और उसके कमर के ऊपर एक डेस्क लगाते हैं l उसी डेस्क पर सुषमा नागेन्द्र के लिए खाने की थाली लगाती है और सुषमा उस थाली में निवाले बनाने लगती है जिसे एक एक कर के नागेंद्र खाने लगता है l उसी वक़्त एक नौकर भागते हुए आता है

नौकर - हुकुम... राजा सहाब पधार रहे हैं...

यह सुन कर सुषमा निवाला बनाना छोड़ कर एक किनारे खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह अंदर आता है l

नागेंद्र - (अपनी लकवे ग्रस्त आवाज में) आइए... राजा...
भैरव सिंह - (नागेंद्र के पैर छूने के बाद) आपने याद किया...
नागेंद्र - हाँ...
भैरव सिंह - जी कहिये....
नागेंद्र - एकांत.... (सारे नौकर वहाँ से चले जाते हैं) हमने आपसे कहा था... और आज हमें महसूस भी हुआ... राजकुमारी कुछ बदली बदली हैं... आपने कुछ खोज खबर ली... क्यूँ...

भैरव सिंह सुषमा की ओर देखता है l सुषमा की भवें जिज्ञासा वश सिकुड़ गई थी l

नागेंद्र - हमने आपसे कुछ पुछा है राजा जी... कोई ऐसी बात हुई... तो छोटी रानी जी को भी जानना चाहिए...
भैरव सिंह - फिलहाल... राजकुमारी जी के बारे में... ज्यादा कुछ जानकारी मिली नहीं... पर... (चुप हो जाता है)
नागेंद्र - बात को पुरा कीजिए...
भैरव सिंह - राजकुमार वीर सिंह... अपने साथ एक लड़की और उसकी दादी को लेकर घुम रहे हैं.... (सुषमा की आँखे फैल जाती हैं, भैरव सिंह उसकी हालत को देख रहा था)
नागेंद्र - तो...
भैरव सिंह - वह खबरी कह रहा था... राजकुमार इस विषय में... बहुत गम्भीर हैं...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... उसकी लड़की की कोई पहचान...
भैरव सिंह - छोटी जात की है... और बहुत गरीब भी...
नागेंद्र - तो फिर... आप चिंता ना करें... राजकुमार अपना खाली समय बिताने के लिए... उस लड़की का इस्तमाल कर रहे होंगे...
भैरव सिंह - हमने भी यही कहा... पर खबरी का कुछ और ही कहना था...
नागेंद्र - रंग महल के शौकीन... हमारे ही वंश के खून पर हमें कोई संदेह नहीं है... (भैरव सिंह चुप रहता है) अच्छाई से हमारा कोई नाता नहीं... बुराई में हमारी कोई सानी नहीं... और बुरी बातेँ समझने में हमें ना दिक्कत होती है.... ना ही देर... खैर... (सुषमा से) छोटी रानी जी... आप छोटे राजा जी को बुलावा भेजिए...
सुषमा - (कोई जवाब नहीं देती)
नागेंद्र - छोटी रानी...
सुषमा - (चौंक जाती है) जी... जी..
नागेंद्र - हमने आपसे कुछ कहा...
सुषमा - जी जरूर...
नागेंद्र - अब आप जाइए...

सुषमा अपना सिर झुका कर वहाँ से बाहर निकल जाती है l उसके जाते ही नागेंद्र, भैरव सिंह से सवाल करता है l

नागेंद्र - आप हमें जो खबर दी... उसकी वजन इतना नहीं है कि आप परेशान लगें... बात क्या है...
भैरव सिंह - हम परेशान बिल्कुल नहीं हैं... हाँ हम थोड़े उत्सुक हैं....
नागेंद्र - किस बात की उत्सुकता....
भैरव सिंह - वह... हराम का पिल्ला... विश्व प्रताप... आज गाँव में लौट आया है...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसमें उत्सुकता क्या है...
भैरव - वह हमसे दुश्मनी करने के लिए... मरा जा रहा है... (नागेंद्र चुप रह कर सुन रहा था) हमने सात साल तक... उससे अपना ध्यान क्या हटाया.... राजगड़ में... क्षेत्रपाल परिवार के बाद...
उसने... जैल में रह कर... दो दो डिग्रियाँ हासिल कर लिया है... एक ग्रेजुएशन का... दुसरा वकालत का.... उसके बाद... उसने आरटीआई कोर्ट में... और गृह मंत्रालय में दाखिल किया है... रुप फाउंडेशन के बारे कुछ जानकारी इकट्ठा करने के लिए.... अपने वकालत की डिग्री के दम पर..... वह इस केस को फिर से उछालेगा...

नागेंद्र - ह्म्म्म्म... तो उसे मरवा क्यूँ नहीं देते... सरकार को दिखा देते की वह गायब हो गया है... जैसे आज तक... हमने उन सभी के साथ किया... जो हमसे... दुश्मनी का मंसूबा पाले हुए थे...
भैरव - प्रधान कह रहा था... वह अब आरटीआई ऐक्टिविस्ट है... उसे कुछ हुआ तो... इस केस को एसआईटी से निकाल कर... सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया जाएगा...
नागेंद्र - तो क्या डर लग रहा है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... डर... वह भी राजा भैरव सिंह को...
नागेंद्र - फिर...
भैरव सिंह - जिज्ञासा...
नागेंद्र - सिर पर चढ़ना... और दिमाग में उतर जाना अलग होता है... (भैरव सिंह नागेंद्र की तरफ देखता है) एक छोटा और ओछा जानवर पैर छोड़ कर सिर चढ़ जाए... तो उसे मार देना चाहिए... पर आपने उसे मारा नहीं... ठीक है... फिर भी उसकी इतनी औकात तो नहीं होनी चाहिए... की क्षेत्रपाल के सिर पर चढ़ जाए...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
नागेंद्र - राजा जी... वह विश्व... एक क्लर्क... रघुनाथ का बेटा... उसे औकात से ज्यादा भाव मत दीजिये... वह नमक हराम कुत्ता है... उसे दुश्मन ना बनायें...
भैरव सिंह - जोश... ज़ज्बात... नशा... जिज्ञासा... और दुश्मन... जब सिर चढ़कर नाचते हैं... तो औकात भुला देते हैं... जब दिमाग में उतर जाते हैं... तो.... तो अपनी उम्र और ताकत बढ़ा जाते हैं... और विश्व के के लिए... हमारे मन में जिज्ञासा है... ना कि दिमाग में.... हमें इंतजार है... उसके पहले चाल का...


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विश्व अपनी नजरें छुपा रहा था l वैदेही गुस्से में तमतमा रही थी l गौरी भी थोड़ी उदास लग रही थी l विश्व माहौल को नॉर्मल करने के लिए

विश्व - दीदी...
वैदेही - चुप कर... बात मत कर मुझसे...
विश्व - (गौरी से) काकी...
गौरी - ना बाबा... मुझसे तुम कोई उम्मीद मत करो...
विश्व - ओ हो... मैंने क्या गलत कहा...

तभी दुकान के बाहर एक पागल सा दिखने वाला आदमी आवाज देता है "दीदी"

वैदेही उसे देख कर झटपट एक खाने की थाली तैयार करती है और उस पागल को बाहर बेंच पर बिठा कर थाली दे देती है l वह पागल बड़े चाव से खाना खाने लगता है l वैदेही दौड़ कर जाती है और एक पानी की ग्लास उस पागल के पास रख देती है l

विश्व - (गौरी से) यह... यह कौन है... काकी...
गौरी - पता नहीं... कौन है... कहाँ से आया है... एक साल हो गये शायद... एक दिन दुकान के बाहर... वैदेही ने उसे सबको खाते हुए देखा.... तो वैदेही उसी दिन से... उसे ऐसे ही एक थाली दे देती है... नाम का पता नहीं... उसकी बेवक़ूफ़ाना हरकत देख कर... वैदेही उसे बुद्धू बुलाती है...

गौरी कह लेने के बाद जब अपनी नजरें घुमा कर देखती है विश्व की आँखे नम हो चुकी थी l

गौरी - क्या हुआ विशु... तेरे आँखों में आँसू...
विश्व - (अपनी आँखों से पानी पोछते हुए) कुछ नहीं काकी... भगवान ने हमें भाई बहन बना दिया है... पर सच तो यह है कि... वह माँ से कम कहाँ है...
गौरी - हाँ... यह तुने सही कहा... जरा सोच... वह तेरे खातिर जिए जा रही है... और तु कह रहा है... यहाँ नहीं रहेगा... जा कर अपने घर में रहेगा...

तब तक बुद्धू का खाना ख़तम हो चुका था l वह अपना हाथ मुहँ धो कर उसी बेंच पर लेट जाता है l वैदेही ने इन दोनों की बातेँ सुन चुकी थी इसलिए अंदर आते ही

वैदेही - (विश्व से) जानता है... उस घर को पहले... राजा के सपोले कब्जा कर बैठे थे... पर अब... सच मुच के सांप रह रहे हैं... वैसे भी... वह घर... दुसरे घरों से अलग थलग है... अब टूट फुट भी गया है... रहने के लिए... घर को मर्रमत करना पड़ेगा...
विश्व - तो कर लूँगा ना...
वैदेही - मतलब तु सांपों के बीच रहेगा... नहीं मानेगा...
विश्व - दीदी... सांप वहीँ कुंडली मार कर रहते हैं... जहां गुप्त धन हो.... वह हमारा घर है.... जहां यादें और खुशियों का खजाना भरा पड़ा है... जो छीन गया है... उसे दुबारा से हासिल करना है... वह चाहे किस्मत से हो... या राजा से...

विश्व कुछ इस ढंग से कहा था कि वैदेही से जवाब देते ना बन पाया l वह धप से बैठ जाती है l विश्व उसके करीब आता है और उसके पास बैठ कर

विश्व - मैं जब गाँव में आ रहा था... तब यह भी देखा... उमाकांत सर की घर को... राजा के गुंडों ने कब्जा कर... दारु की भट्टी बना रखा है... अब दीदी... शुरुआत तो करनी ही है... तो अपने घर से क्यूँ नहीं...

वैदेही विश्व से कुछ नहीं कह पाती l बड़े बेमन से विश्व को देखती है l विश्व की चेहरा देखने के बाद

वैदेही - ठीक है... पर तु अकेले...
विश्व - (बेंच पर लेटा बुद्धू की ओर देखता है) दीदी... इस बुद्धू का भी तो घर नहीं होगा ना... क्यूँ ना... इसे मैं अपने साथ रख लूँ...
वैदेही - पता नहीं... रात को यह कहाँ चला जाता है... इसे तो बस खाने के वक़्त ही देख पाती हूँ...
विश्व - कोई बात नहीं... तुम उसमें मुझे देख कर ही खाना खिलाती हो ना...
वैदेही - (मुस्करा कर सिर हाँ में हिलाती है)
विश्व - अब मैं भी इस बुद्धू को... अपने जैसा बनाने की कोशिश करूंगा... आखिर राजा ने... हुक्का पानी बंद कर दिया है... तो इसे अक्लमंद करते हुए... अपना वक़्त बीताऊँगा....
गौरी - (उदास और हैरान होते हुए) तो क्या तु... यहाँ नहीं आएगा...
विश्व - क्यूँ नहीं आऊंगा... हुक्का पानी गाँव वालों से बंद है... अपनी दीदी से तो नहीं... चार वक़्त का खाना खाने आता रहूँगा...

वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l वह विश्व के सिर पर हाथ घुमा कर बलाएँ लेकर दुआ देने लगती है l

गौरी - हूँम्म्म्म... अब वैदेही ने इजाजत दे दी... तो अब मैं क्या बोलूँ...
वैदेही - कुछ मत बोलो काकी... अब मुझे भी ठीक लाग रहा है... विशु का घर में रह कर... वहीँ से शुरुआत करना ठीक ही है...
विश्व - तो दीदी... इस बुद्धू को तैयार करो... मेरे साथ जाएगा... शाम तक घर की हालत... कुछ सुधार लेंगे... फिर धीरे धीरे... घर को मर्रमत भी कर देंगे... (लहजा कठोर हो जाता है) फिर... घर से निकल कर... पुरे राजगड़ की मर्रमत भी कर देंगे...

वैदेही अपनी जगह से उठ खड़ी होती है और बाहर जाने लगती है l

विश्व - दीदी... कुछ कहा नहीं तुमने...
वैदेही - (विश्व की ओर मुड़ कर) अरे... इस बुद्धू को तेरे साथ जाने के लिए.. तैयार भी तो करना है...

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रुप - क्या हुआ चाची माँ... जब से कमरे में आए हैं... बहुत परेशान दिख रहे हैं...
सुषमा - (अपनी सोच में जो खोई हुई थी चौंक कर रुप की और देखती है) क्या... क्या कहा तुमने...
रुप - मेरी परेशानी पूछने आई थीं... पर खुद इतने परेशान दिख रहे हैं... क्या हुआ चाची माँ...
सुषमा - पहले तुम बताओ... बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात हुई... जिससे तुम्हारा मुड़ एक दम से उखड़ा हुआ था...
रुप - (झिझक के साथ सिर झुका कर चुप रहती है l
सुषमा - देखो रुप... तुम जब आगे की पढ़ाई के लिए... इस महल से निकली थी... एक दम किसी डरी सहमी सी हिरण की तरह थीं... पर अब तुम अपनी ही छवि की विपरित हो... ऐसे में... बड़े राजा को तुम पर संदेह होना स्वाभाविक है...
रुप - आप बताइए चाची माँ... आप मुझे किस रूप में देखना चाहेंगी.... वह पहली वाली डरी सहमी सी रुप को... या इस राजकुमारी को...
सुषमा - (बड़े प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरते हुए) सच कहूँ... मुझे तुम्हारा यही रुप बहुत पसंद है... इस रूप में... तुम्हारा मासूमियत और चुलबुला पन निखर कर आया है... पर रुप क्यूँ नहीं... राजकुमारी क्यूँ...
रुप - क्यूंकि... जो इस महल में थी... वह रुप नंदिनी थी... अब आप जिसे देख रहे हो... वह किसी की राजकुमारी है... पर क्षेत्रपाल नहीं...

सुषमा की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं l वह उठ कर खड़ी हो जाती है l

सुषमा - हे... भगवान... अब क्या होने वाला है... (रुप की ओर मुड़ कर) बड़े राजा जी से... तुम्हारी क्या बात चित हुई...
रुप - चाची माँ... मैं आज एक पोती बन कर... बड़े राजा जी के पास गई थी... सोचा थोड़ी सेवा कर लूँ... उनके पैर दबा दूँ... अपनी हाथों से खाना खिला दूँ पर...
सुषमा - पर... पर क्या...
रुप - पर मैंने जब अपनी मनसा बताई... तो उन्होंने मुझे टोक दिया... कहा इन सबके लिए नौकर... चाकर हैं...
सुषमा - फिर...
रुप - फिर... बड़े राजा जी ने कहा... आप हैं उनके देखभाल के लिए... मैं ज्यादा कुछ ना सोचूँ...
सुषमा - बस इतनी सी बात को दिल पर ले गई...
रुप - यह बात मेरे दिल पर नहीं लगी चाची माँ... (आवाज़ में दर्द उभर आता है) उन्होंने कहा.... की चार पीढ़ियों के बाद घर में लकड़ी हुई है... इसका मतलब यह नहीं कि... मैं कोई दायरा लांघ जाऊँ... अगर दसपल्ला राज घराने को छोड़ किसी और के बारे में... भुवनेश्वर में... रह रहे किसी के बारे सोच भी रही हूँ... तो यह भी नहीं देखेंगे.. की मैं.. चार पीढ़ियों के बाद क्षेत्रपाल परिवार में आई हूँ...
सुषमा - देखा... मैंने तो पहले ही कहा था... ऐसा कोई वहम मन में मत पालो...
रुप - पर अभी तो कहा आपने... मेरा यह रुप आपको बहुत पसंद है...
सुषमा - ओह... रुप... तुम्हें अगर मनमानी ही करनी थी.. तो राजगड़ लौट कर क्यूँ आई... मना किया था तुम सब को....
रुप - हाँ... एक्जाक्ट यह तो नहीं.. पर ऐसा ही कुछ बड़े राजा जी ने पुछा...
सुषमा - क्या... क्या पुछा....
रुप - उन्होंने कहा कि... कसम खा कर कहूँ कि... भुवनेश्वर में... मैं कोई मनमानी नहीं कर रही हूँ... मतलब किसीसे कोई चक्कर तो नहीं...
सुषमा - तो तुमने क्या कहा...
रुप - मैंने कसम खा कर कहा कि... मेरी ना तो कॉलेज में... ना ही भुवनेश्वर में किसीसे कोई चक्कर नहीं है...
सुषमा - (उसे शक़ की नजरों से देखने लगती है)
रुप - मैं सच कह रही हूँ चाची...(एक शरारती मुस्कराहट के साथ) मेरा चक्कर तो एक राजगड़ वाले से है... और वह भुवनेश्वर में नहीं... कटक में रहता है...
सुषमा - क्या...(अपनी दोनों हाथों से कानों को ढकते हुए) हे भगवान... यह बच्चे... पता नहीं... क्या क्या दिन दिखाएंगे...

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विश्व अपने टुटे फूटे घर में बुद्धू के साथ घुसता है l अपना बैग रख देता है और पीछे मुड़ कर बुद्धू को घर का दरवाज़ा बंद करने का इशारा करता है l बुद्धू दरवाजा बंद कर जब पीछे मुड़ता है तो देखता है विश्व के हाथ में एक छड़ी है l

बुद्धू - भाई... यह छड़ी क्या मेरे लिए है...
विश्व - हाँ... कोई शक़... तुम्हारे लिए ही है... टीलु... तुम्हें मार जो खिलानी है...
टीलु - क्या भाई... अभी अभी तो दीदी के हाथों से जमकर खाया है... अभी पेट में जगह बची नहीं है...

विश्व टीलु पर झपटता है, टीलु भी उससे बचने के लिए घर के अंदर इधर उधर भागने लगता है l पर जल्दी ही वह थक जाता है और नीचे फर्श पर बैठ जाता है l

टीलु - बस भाई बस... मुझसे और भागा ना जाएगा...

विश्व हँसते हुए उसके पास खड़ा हो जाता है और छड़ी फेंककर अपना हाथ बढ़ाता है l टीलु उसका हाथ पकड़ लेता है और विश्व उसे खिंच कर उठा लेता है और अपने गले से लगा लेता है l

विश्व - शुक्रिया मेरे भाई...
टीलु - क्या भाई... भाई हो कर भाई को शुक्रिया बोलते हो..
विश्व - (टीलु से अलग होते हुए) शुक्रिया तो बनता है... मेरी दीदी के आसपास रह कर उनका देखभाल जो कर रहा था...
टीलु - तुम अपना भाई हो... तो इस नाते वह भी मेरी दीदी हुई ना... और कसम से... उनके हाथों से खाना खाने के... इस जनम का मतलब ही निकल गया...

विश्व फिर से उसे गले से लगा लेता है l थोड़ी देर बाद दोनों अलग होते हैं l

विश्व - पर तुम्हें पागल बनने की क्या जरूरत थी...
टीलु - कोई आम आदमी होता... तो पकड़ लिया जाता... पागल था... इस लिए सबकी नजरों से बचा रहा...
विश्व - ह्म्म्म्म... (विश्व घर में नजर घुमा रहा था)
टीलु - क्या देख रहे हो भाई...
विश्व - दीदी बोल रही थी... घर पर सांप है... पर ऐसा लग नहीं रहा.... और घर में... बहुत गंदगी होगी... ऐसा भी कहा... पर घर के अंदर से... ऐसा कुछ लगता नहीं.... यहां पर... (टीलु की ओर देखता है, टीलु मुस्करा रहा था) ह्म्म्म्म... मतलब... इन सबके पीछे... तुमने जरूर... कोई ना कोई कांड किया है....
टीलु - ही ही ही... वह भाई...
विश्व - अब बता भी दो...
टीलु - वह भाई... मैं जब गाँव में आया तब मुझे मालुम हुआ... जब एक दिन दीदी होटल बंद कर... घर में थीं... तब यह शनिया और उसके ठुल्ले... दुकान में आग लगा दिया था... इस लिए... दीदी घर छोड़ कर दुकान में रहने लगीं तो... तब वह सब हराम खोर इस घर पर कब्जा कर लिया था... य़ह सब सुन कर मैं बहुत गुस्से में आ गया... इसलिए एक दिन जब रात को वे सब हरामी सोये हुए थे... मैं सीलु और जिलु के जरिए... पानी के सांपों को इकट्ठा किया... और एक दिन रात में... इस घर में छोड़ दिया था... साले... शनिया और उसके सपोले... असली... पर बिना जहर वाले सांपों को देख कर रातों रात भाग गए... फिर मैं मौका देख कर सीलु और जिलु के जरिए.... लगातर सांपों को घर में छोड़ता रहा... इसलिए वे लोग डर कर दोबारा कभी लौट कर नहीं आए...
विश्व - और अभी...
टीलु - अभी सांप नहीं हैं... मैंने तीन दिन पहले ही तसल्ली कर ली है...
विश्व - हाँ देख कर लग भी रहा है... और यह साफ सफाई...
टीलु - ही ही ही... मैं वह... तीन रातों से... चुपके चुपके कर रहा था... भाई... मैंने घर पर सभी समान पहले से ही रख दिया है... हम आराम से कुछ ही दिनों में... घर पुरा कर लेंगे...
विश्व - ठीक है... मुझसे पहले ही... तुम्हारा दिमाग बहुत चला हैं यहाँ...
टीलु - हाँ... (थोड़ा उदास हो कर) पर उमाकांत सर जी के घर में... यह आइडिया... काम नहीं करता... इसलिए...
विश्व - कोई नहीं... उस घर के लिए... मैंने अलग सोचा है... चलो... पहले इसे... आज रात सोने लायक तो बना दें...

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दादी - इतना कुछ हो गया... तुने हमे इस लायक भी ना समझा... की अपना दुख हमसे कह सके... (हस्पताल के एक बेड पर लेटे मृत्युंजय से)
मृत्युंजय - ऐसी बात नहीं है दादी... जब मैं आपको बता पाता... तब तक आप लोग... घर से जा चुके थे....
अनु - पर... मट्टू भैया... आप हमें फोन तो कर सकते थे ना...
मृत्युंजय - हाँ... कर सकता था... (चेहरे पर दर्द उभर आता है) पर कहता क्या... माँ को गुजरे कुछ ही दिन हुए हैं... और मेरी बहन किसी लफंगा... ऐयाश... रईसजादा के साथ भाग गई है...

कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा जाता है l वीर देखता है मृत्युंजय के आँखे भीगी हुई है l वीर उसके पास जा कर कंधे पर हाथ रखता है l

वीर - आई आम सॉरी...
मृत्युंजय - किस लिए राज कुमार जी... किस लिए... आप क्यूँ सॉरी... सॉरी तो मैं हूँ... अपनी किस्मत से... इन कुछ महीनों में... हर कोई मेरा साथ छोड़ कर जा रहे हैं... पहले पिताजी... आत्महत्या कर ली... माँ की... दिल की धड़कन रुक गई... और अब... बहन... मेरी छोटी बहन... मुझे छोड़ कर... भाग गई...

जवाब में वीर कुछ कह नहीं पाता, मृत्युंजय की हर एक अल्फाज़ में दर्द टपक रही थी और हर दर्द वीर के अंदर चोट पहुँचा रही थी l

वीर - तुम घबराओ मत मृत्युंजय... तुम्हारे इस ज़ख़्म पर मरहम लगेगी... इस दर्द की दवा होगी.... मैं तुमसे वादा करता हूँ... पुष्पा.... महानायक परिवार की बहु बनेगी... उसके साथ कोई हादसा नहीं होगी.... यह मेरा वादा है...
मृत्युंजय - नहीं राज कुमार जी नहीं... यह मेरे परिवार का मैटर है... आप क्यूँ तकलीफ़ लेंगे...
अनु - क्या बात कर रहे हो मट्टू भाई... हम सब... राजकुमार जी के मुलाजिम ही नहीं.... उनके विरासत का हिस्सा हैं...
दादी - हाँ मट्टू बेटा... अनु ठीक कह रही है... (वीर से, हाथ जोड़ कर) आप पुष्पा को भी... मेरी पोती समझ कर... उसके साथ जैसे न्याय हो... ज़रूर देखियेगा...
वीर - (दादी की हाथ पकड़ लेता है) यह क्या कर रही हैं आप दादी... आपका हुकुम सिर आँखों पर... अब वह विनय किसी पाताल में भी छुपा हो... उसे ढूंढ निकालूँगा... मृत्युंजय और उसकी बहन को... उचित न्याय दिलवाउंगा...
मृत्युंजय - (बहुत भावुक हो कर, रोते हुए) आपका किस तरह से शुक्रिया अदा करूँ... मैं समझ नहीं पा रहा...
वीर - कोई शुक्रिया अदा मत करो... मुझे तुम्हारे लिए कुछ करना है... इसलिए करूंगा...
मृत्युंजय - थैंक्यू... राजकुमार जी थैंक्यू... (हाथ जोड़ देता है l

वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l मृत्युंजय वीर के हाथों को अपने माथे से लगा कर सुबकने लगता है l क्षण सब के लिए भावुक था l सब कोशिश कर रहे थे मृत्युंजय किसी तरह शांत हो जाए l तभी

महांती - वह तो सब ठीक है मृत्युंजय... पर एक बात समझ में नहीं आई... तुम उस होटल में पहुँचे कैसे.... क्या उस वक़्त... पुष्पा भी वहाँ थी...
मृत्युंजय - वह मैं... असल में... पुष्पा की मोबाइल पर... एक चैट देखा था... जब याद आया... तो उसीके आधार पर... उस होटल में पहुँचा...
महांती - ह्म्म्म्म... बात कुछ जच नहीं रही है... विनय जैसा अरब पति ऐयाश... इतनी छोटी होटल में... पुष्पा के साथ...
मृत्युंजय - जी वह मैं कैसे बता सकता हूँ...
अनु - हाँ सर... मट्टू भैया कैसे बता सकते हैं....
वीर - तुम कहना क्या चाहते हो महांती...
महांती - अगर बात प्यार की है... तो महानायक परिवार का इकलौता विनय... अपने बाप के सामने पुष्पा को खड़ा क्यूँ नहीं किया....
वीर - तुम भुल रहे हो... वह एक ऐयाश है...
महांती - जी... है तो... पर वह होटल... उसके स्टैंडर्ड से कहीं नीचे है...
वीर - अब किसके मन में क्या है... हम कैसे सोच सकते हैं... शायद... यही कारण हो... के सब उसे... उसके स्टैंडर्ड के हिसाब से... ढूंढते रहे... और वह... मिले ना...
महांती - चलिए... आपकी बात मान लेते हैं... (मृत्युंजय से) तुम्हें उसने बेहोश कब किया...
मृत्युंजय - रात के xxx बजे...
महांती - तब तुम क्या कर रहे थे... क्या तुम्हारी मौजूदगी के बारे में... पुष्पा जानती थी...
मृत्युंजय - मैं चैट के आधार पर शाम को वहाँ पहुँचा था... विनय के लोगों ने मुझे बाँध दिया था... और मेरे मुहँ पर कपड़े ठूँस दिए थे... रात के बारह बजे तक अचानक मेरे पास विनय आया और मुझे क्लोरोफॉर्म सूंघा दिया... फिर जब आँख खुली... खुद को हस्पताल में पाया...
महांती - क्या तुमने पुलिस को चैट के बारे में बताया था...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - नहीं... तुमने नहीं बताया... पुलिस... विनय के मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करते हुए पहुंचीं थी... क्यूंकि अगर तुमने चैट के बारे में कहा होता... तो तुम मौका ए वारदात पर... पुलिस के साथ पहुँचे होते...
मृत्युंजय - सर... मैंने पुष्पा की मोबाइल फोन को... पुलिस स्टेशन में अपना बयान दे कर... जमा कर दिया था... हम बहुत छोटे लोग हैं... पुलिस को बाध्य तो नहीं कर सकते... इसलिए कंप्लेंट के बात भी... मैं अपने तरीके से... पुष्पा को ढूंढ रहा था...
महांती - तब तो.. तुम्हें...
वीर - इनॉफ... महांती... यह पुलिस का मामला है... लिव इट..
महांती - राजकुमार.... अभी आपने मृत्युंजय को प्रॉमिस किया है... पुष्पा को ढूंढने के लिए... इसलिए मैं कड़ियों को जोड़ रहा था...
वीर - ठीक है... मृत्युंजय ने जो स्टेटमेंट पुलिस को दिया है... उसीके बेस पर... हम अपना इनवेस्टिगेशन करेंगे... अरे देखो इसे... अपनी बहन की जुदाई से... किस कदर टूटा हुआ है... (मृत्युंजय से) आई आम सॉरी अगैन... तुम आराम करो... हम लोग कुछ ना कुछ जरूर करेंगे....

मृत्युंजय हल्का सा मुस्कान के साथ अपना सिर हाँ में हिलाता है l सभी उसे दिलासा देते हुए विदा लेते हैं l सबके चले जाने के बाद गहरी सोच में डूबते हुए, पास टेबल पर से एक सेब उठा कर मृत्युंजय खाने लगता है कि उसकी नजर बाहर दरवाजे पर खड़े महांती प़र ठहर जाती है जो उसे शक़ की नजरों से घूरे जा रहा था l
Nice👍
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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राजकुमारी जी के तेवर से क्षेत्रपाल नाम के कुत्तों के पिछवाड़े में मिर्च लग चुकी है तभी कोई उसको धमकी दे रहा है तो कोई कसम खिला रहा है।

टीलू ने क्या मस्त दिमाग लगाया, वैदेही की रक्षा और घर को बचाने का। वैसे भी गंदी नाली के कीड़ों के लिए सांप से बेहतर कुछ भी नही है। इसी घर के काग़ज़ दिए थे तापस ने बस स्टैंड पर विश्व को।

बेचारी सुषमा फंस गई है बुरी तरह से, एक तरफ वीर और दूसरी तरफ रुप की बातो से। अब पता नही कैसे वो इन दोनो के रिश्ता को संभालेगी?

मट्टू ही वो घर का भेदी है जो ESS और क्षेत्रपाल खासतौर पर वीर की बैंड बाजा रहा है दुश्मनों के साथ मिल कर। ऐसा क्यों लग रहा है की मट्टू की मां ने मरने से पहले मट्टू को सच बता दिया हो और अब वो अपना बदला वीर के प्यार को दाव पर लगा कर ले रहा है? मगर महंती भी पुराना चावल है और उसके शक की सुई अटक चुकी है मट्टू पर। मगर क्या महंती अपना शक सही साबित कर पाएगा मट्टू का झूठ साबित करके?

पता नही क्यों अब अनु और दादी भी मट्टू से मिली हुई नजर आ रही है? दादी को वीर के बारे में सब पता था फिर भी वो अनु को वीर के पास नौकरी दिलवाने ले गई क्योंकी मट्टू पहले से वहां पर काम कर रहा था। मट्टू और दादी का परिवार एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहे है। वीर को जानते हुए भी अनु का भोलेपन का दिखावा करके वीर की हरकतों में साथ देते हुए उसे अपनी तरफ आकर्षित करना। हर जगह वीर से मट्टू और उसके परिवार के लिए मदद मांगना।

हो सकता हैं कि मैं गलत सोच रहा हूं मगर तटस्थ हो कर अगर देखा जाए तो ये सारे बिंदु अनु और दादी की तरफ भी इशारा कर रहे है। क्योंकि अगर ये सच हुआ तो ये क्षेत्रपाल खानदान पर बहुत बड़ी चोट होगी। मगर साथ ही ये बात भी नजर आती है कि हो सकता है मट्टू जानबूझ कर अनु और दादी का इस्तेमाल कर रहा हो बिना उनको किसी शक में डाले।

बहुत ही रोचक अपडेट Kala Nag बुज्जी भाई, मगर इस बार अपडेट थोड़ा छोटा लगा ।
एक बात तो पक्की है मट्टू मृत्युंजय ही वीर कांड का भेदी है...
सदाबहार प्रतिक्रिया 💖😎😍
 
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