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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag मित्र कैसे हो आप.. आपका हाथ कैसा है.. उम्मीद है कि जल्दी स्वस्थ हो कर आप अपने जीवन के कर्मक्षेत्र मे लौट कर पूरी मस्ती में मिलते लिखते हुए आनंद के साथ समय व्यतीत करते हुए हम पाठकों को भी आनंदित करते रहेगे...
💗 😍 💗
 

nikhilbramhane

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👉एक सौ चौबीसवां अपडेट
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दो दिन बाद

यशपुर

टीलु रोज की तरह अखबार लेने आया है l उसी दुकान से अखबार लेकर बिना किसी को देखे आगे बढ़ जाता है l तहसील ऑफिस के सामने एक चाय की दुकान पर पहुँच कर खड़ा हो जाता है l कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद उस चाय की दुकान में आता है और एक चाय का प्याली माँग कर पीते हुए एक जगह पर नजर डाल कर देखने लगता है l

-पीठ कर खड़ा क्यूँ है... कहीं चेहरा काला करवाके आया है क्या...
टीलु - बे सड़े चाय के पत्ती... ताकि हमारे बीच क्या बात हो रहा है... किसीको भनक ना लगे... वैसे भी मैं जिलु का इंतजार कर रहा हूँ... जहां से यह पेपर ला रहा हूँ... देख रहा हूँ... कहीं कोई मेरा पीछा तो नहीं कर रहा... वह भी देख रहा हूँ... पता नहीं यह जिलु कहाँ मर गया...
- बे हरामी... जिंदा इंसान को क्यूँ मार रहा है... कमिने जितेंद्र बोल... जिलु नहीं... और यह क्या कह रहा है बे... सड़े चाय की पत्ती... भोषड़ी के... पढ़ना नहीं आता क्या तुझे... मीलन टी स्टॉल... (जी हां यह मीलु था)
टीलु - कमिने भाव ऐसा खा रहा है जैसे कोई फाइव स्टार होटल हो...
मीलु - ह्म्म्म्म... लगता है... सुबह सुबह दिमाग गरम है...
टीलु - हाँ यार... विशु भाई ने खबर करा है... उन्हें लौटने में दो तीन दिन और देरी हो सकती है...
मीलु - ओ... तो इसलिए तेरा मुड़ उखड़ा हुआ है...
टीलु - नहीं इसलिए नहीं... भाई ने कहा... गाँव में उनकी प्रॉक्सी प्रेजेंस बनाए रखने के लिए... मैं बेचारा सीलु को वहीँ उसी काम में भीड़ा कर आया हूँ... वह विशु भाई का ड्रेस पहन कर उमाकांत सर की घर मरम्मत में लगा हुआ है... असल प्रॉब्लम यह है कि... विशु भाई ने गाँव के कुछ बच्चों से दोस्ती किया है... साले वह ठीगने चवनी छाप बंदर... कभी कभी उमाकांत सर के यहाँ विशु भाई को ढूंढते आ टपकते हैं... उनको मैनेज करने में दिन में तारे नजर आने लगते हैं...
मीलु - कुछ भी कर... किस्मत तो तेरी हमसे अच्छी है... भाई के पास भी रहता है... दीदी से भी मिल लेता है... उनकी हाथों की खाना भी खाता है...
टीलु - हाँ यह बात तो है... यार एक बात कहूँ... दीदी ना साक्षात अन्नपूर्णा देवी हैं... जो भी उनके पास जाता है... उसे पेट भर खिला कर ही छोड़ती हैं... गाँव में कुछ लोग उनसे डरते हैं... कुछ लोग नफरत भी करते हैं... पर ज्यादातर औरतें उनकी बहुत इज़्ज़त करते हैं... आखिर उनके घरों की इज़्ज़त बचाने के लिए... दीदी किसी भी हद तक चली जाती हैं...
मीलु - हाँ भुतनी के... यह बात तेरे मुहँ से सेंकड़ों बार सुना है मैंने... मैं इधर एक साल से... झक मारते हुए खबर निकालने की कोशिश में हूँ और उधर जिलु... वह भी अपनी कोशिश में लगा हुआ है...
जिलु - (वहाँ आते हुए) पर रिजल्ट... वही नील बटे सन्नाटा...
मीलु - कमिने... हरामी साले... कुत्ते... सौ साल जीयेगा ... घुटनों पर... एड़ी पर रेंगते हुए... छाती पकड़ कर खांसते हुए... बीमार हो कर... सड़ सड़ कर मरेगा...
जिलु - साले हरामी... बद्दुआ के सिवा कुछ नहीं है तेरे पास...
मीलु - है ना... यह ले तेरे लिए... स्पेशल मलाई वाला चाय...
जिलु - (चाय लेते हुए, टीलु की ओर इशारा करते हुए) इसे क्या हुआ है...
मीलु - बेचारा भाई की काम को मैनेज करते हुए... हांफ रहा है...
टीलु - हाँ हाँ... उड़ा लो मज़ाक मेरा... जानते हो... भाई के पीछे चार चार जासूस लगे हुए हैं... उन सबको अभी तक छका रहा हूँ... इस पर भाई को और दो या तीन दिन लगेंगे... खैर मेरी छोड़ो... तुम लोग कहाँ तक पहुँचे...

थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा जाती है l टीलु उनके तरफ घूमता है दोनों के चेहरे पर हारा हुआ भाव देखता है l

टीलु - क्या हुआ...
जिलु - पहली बात... हम यहाँ पर लोकल नहीं हैं... बड़ी मुश्किल से अपनी पहचान छुपाए हुए हैं... सच बात तो यह है कि... हम मगरमच्छों से भरे तालाब में से घुस कर कमल के फूल ढूँढ रहे हैं...
मीलु - और मजेदार बात क्या है जानता है... कमल के फूल दिख भी रहे हैं... पर ना उन तक पहुँच पाएंगे... ना ही उन्हें तोड़ पायेंगे...
टीलु - मतलब...
जिलु - विशु भाई को अच्छे से मालूम था... और हमें आगाह भी किया था... यह लोग बहुत ही शातिर हैं... पुरानी कोई भी गलती नहीं दोहरा रहे हैं.... पर लाख करोड़ की हेरा फेरी हो रही है... वह भी कानूनन... जायज तरीके से....
टीलु - बे... लाख करोड़ नहीं... लाखों करोड़ों बोल...
जिलु - चुप बे... मैं लाखों करोड़ों की बात नहीं कर रहा हूँ... बल्कि कई लाख करोड़ की बातेँ कर रहा हूँ...
जिलु - (हकलाते हुए) क्क्क्.. क्या.. उसमे जीरो कितने होते होंगे...
मीलु - विशु भाई की इतिहास से उन्होंने जबरदस्त सबक ली है... अपने साथ साथ पुरे सिस्टम को भी लपेटे में ले रखा है... अपने चारों तरफ एक भयानक तिलिस्म बना रखा है...
टीलु - ह्म्म्म्म... जाहिर है... इन सब खेल में... पुराने पापी खिलाड़ी हैं...
मीलु - हाँ... और इन सबके खेल का बही खाता हिसाब लेकर बैठा हुआ वकील बल्लभ प्रधान है...
टीले - तो विशु भाई को... मैं क्या बोलूँ फिर...
जिलु - उनसे कहना... हमें अभी तक सतह का भान तो है... पर गहराई का अंदाजा तक नहीं है... अब जितनी भी इन्फॉर्मेशन है... सब उनके सामने हम खोलेंगे... फिर भाई जो बोलेंगे... जैसा बोलेंगे... हम वैसा ही करेंगे

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बल्लभ अपना बैग पैक कर रहा था l बिस्तर पर लेटे लेटे उसे बैग पैक करते हुए रोणा देख रहा था l


रोणा - (आलस भरे लहजे में) अरे यार... कुछ दिन और रुक तो जाता...
बल्लभ - नहीं... मुझे तेरे इस फालतू के काम में कोई दिलचस्पी नहीं... वैसे भी... इतने दिनों में तुझे वह मिली तो नहीं...
रोणा - मुझे नहीं मिली इसलिए खीज कर जा रहा है क्या...
बल्लभ - नहीं... अभी के लिए... मुझे छोटे राजा जी ने बुलाया है... पहले उनसे मिल लूँगा... उसके बाद... सीधे राजगड़...
रोणा - (थोड़ी हैरानी जताते हुए) छोटे राजा जी... तुझे किसलिए बुलाया है...
बल्लभ - (अपना सामान पैक कर लेने के बाद, पास पड़े चेयर पर बैठ जाता है) मुझे क्या पता... पर ऐसा लग रहा है... राजा साहब के परिवार वालों के ग्रह ठीक नहीं चल रहे हैं... शायद...
रोणा - (अब सीधा हो जाता है) हाँ यार... मुझे भी यही लग रहा है... युवराज जी की हुकुमत का सिपाह-सालार क्या गया... गुमसुम हो कर ऑफिस में बंद हो गए हैं... सोचा था... कोई कहानी बना कर उस लड़की के पीछे ESS को छोड़ दूँ... पर...
बल्लभ - तु फिर उस लड़की की चक्कर में कुलबुला रहा है... तु तो कह रहा था... तु टोनी से मदत लेगा...
रोणा - क्या करूँ यार... लड़की के बारे में क्या कहता.... मेरे और तेरे सिवाय किसीने देखा कहाँ है...
बल्लभ - देख तुने इतने दिन देख लिया... लड़की ना तो कोर्ट जा रही है... ना ही वाव ऑफिस और ना ही घर पर... वह शायद कहीं ओर से आयी थी... तेरे हिसाब से मान लें... तो वह इंटरेंशीप में आयी थी... इंटरेंशीप ख़तम... चली गई...
रोणा - (बिदक कर) अरे ऐसे कैसे चली गई... (अपनी गाल को सहलाते हुए) वगैर हिसाब किताब किए....
बल्लभ - देख मैं कहता हूँ... यह सब भूल जा... और मेरे साथ वापस चल... हमें आने वाले खतरे के लिए तैयार होना है...
रोणा - (भवें सिकुड़ कर) कैसा खतरा...
बल्लभ - तु इतने दिनों से उस लड़की को ढूँढ रहा था... तब मैं भी अपने काम में लगा हुआ था...
रोणा - तु कौन से काम में लगा हुआ था बे...
बल्लभ - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, और रोणा को घूर कर देखने लगता है)
रोणा - क्यूँ... ऐसा क्या गलत पुछ लिया मैंने...
बल्लभ - या तो तु सच में पागल हो गया है... या फिर लड़की की मोह ने तेरी सोचने समझने की शक्ति छिन ली है...
रोणा - क्या बकवास कर रहा है...
बल्लभ - तु और मैं... आज से तकरीबन दो महीने पहले... भुवनेश्वर क्यूँ आए थे... याद है...

रोणा - विश्वा...
बल्लभ - हाँ... मैं तब तेरी खिल्ली उड़ाता था... पर धीरे धीरे... कुछ ही दिनों में.... उसने हमें दिन में तारे दिखाने शुरु कर दिया था... जब मुझे यह मालुम हुआ... के विश्वा... सेनापति दंपति का मुहँ बोला बेटा था... तब मेरे समझ में आ गया... के उस दिन हमें सेनापति के घर में विश्वा क्यूँ नहीं मिला... मैं सिर्फ इस गलत फ़हमी में था... के उसे वकालत का लाइसेंस नहीं मिलेगा... पर मैंने बार काउंसिल में अपने सोर्सेस इस्तमाल करने के बाद... पता लगा... उसने एआइबीइ एंट्रेंस अटेंड कर चुका है.... यानी उसे लाइसेंस मिलने में... कुछ ही दिन बाकी है.... इसका मतलब समझ रहा है... इसका मतलब यह है कि... आने वाले कल जो जंग छिड़ेगा उसमें वह अकेला नहीं होगा....
रोणा - मतलब....
बल्लभ - तु अभी भी नहीं समझ पाया.... वह एक सजायाफ्ता कैदी था... वगैर बार काउंसिल के रीकमेंड के... वह एंट्रेंस में बैठ ही नहीं सकता था... यानी विश्वा का मदत सिर्फ सेनापति दंपति ही नहीं कर रहे हैं... बल्कि उसकी जंग ए मैदान को... पर्दे के पीछे कोई तैयार भी कर रहा है... कितने मालुम नहीं... या यूँ कहें... कोई उसे क्षेत्रपाल के खिलाफ हथियार बना कर तैयार कर रहे हैं...

रोणा कुछ सोचते हुए अपनी जगह से उठ जाता है, और कमरे में टहलने लगता है l बल्लभ भी अपनी जगह से उठता है और अपना सामान उठा कर चलने को तैयार होता है l

बल्लभ - चलेगा मेरे साथ...
रोणा - (बल्लभ की तरफ देख कर) नहीं... तु जा... मैं दो तीन दिन बाद आता हूँ...
बल्लभ - मतलब... तु उस लड़की का चक्कर छोड़ेगा नहीं...
रोणा - जब इतने दिन देख लिया... तो एक दो दिन और सही...
बल्लभ - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) क्यूँ...
रोणा - मैं एक खास एंगेल से सोच रहा हूँ....
बल्लभ - कैसा एंगल...
रोणा - अगर उस लड़की का... विश्वा से कुछ लेना देना हुआ तो...
बल्लभ - हाँ उसकी लेना देना... तभी मालूम होगा ना... जब तु उसे और विश्वा को एक साथ देखेगा....
रोणा - एक कहावत है... कहीं पे ज़ख़्म... कहीं पे दर्द...
बल्लभ - बस... तु वाकई पागल हो गया है... मैं जा रहा हूँ...
रोणा - ठीक है जा... पर जाते जाते एक बात बता... जब पुरा शासन... प्रशासन... राजा साहब के हाथ में ही नहीं... बल्कि पूरा का पूरा उनकी मुट्ठी में है... तब भी क्या विश्व कुछ कर सकता है...
बल्लभ - हाँ मानता हूँ... पूरा का पूरा सिस्टम राजा साहब के मुट्टी में है... पर यह बात भी याद रख... रेत मुट्ठी से ही फिसलती है... (जाने को तैयार हो कर) जाते जाते... मुझे अभी तक जो समझ में आया... वह यह... कि... विश्वा सतह पर जितना दिख रहा है... वह उससे भी कहीं ज्यादा गहरा है... मुझे उसकी गहराई का अंदाजा नहीं है... अगर उसे हराना है... तो खुद को इतना गहरा बनाना है कि... जब उसे होश आए तब उसे लगे... कि हमारी गहराई उसके सोच से परे है... (कह कर पलट कर जाते जाते फिर से रुक जाता है) हाँ एक और बात... जंग में पहले प्यादे मारे जाते हैं... राजा साहब हम जैसों के घेरे में... चक्रव्यूह के भीतर महफ़ूज़ हैं... जब हमला होगा... तो घेरे के पहले दस्ते ज़द में आ जाएंगे... हमारी मज़बूरी यह है कि... या तो लड़ना है... या फिर मरना है... पर भाग नहीं सकते.... और तु अच्छी तरह से जानता है... राजा साहब को अपने लश्कर में... हारे हुए सालार मंजुर नहीं है... मुझे अपनी तैयारी करनी है... वैसे भी... मेरे हिस्से सलाह मशविरा देना है... जंग तुझे लड़नी है... सोच ले...

इतना कह कर बल्लभ वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद रोणा अपनी जगह पर बैठ जाता है और मन ही मन बुदबुदाने लगता है

- हाँ... तेरे हिस्से दिमाग है... मेरे हिस्से हाथ पैर... पर क्या करूँ... हूँ तो लौंडी बाज... दाव लगा दिया है... किस्मत क्या पत्ता बिछायेगी देखते हैं....



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जोब्रा बैरेज के नीचे महानदी के रेट पर बने वॅक वे पर लोग सुबह सुबह अपना अपना वकींग कर रहे हैं l पर वॅक वे छोड़ कर एक जगह पानी के किनारे एक पत्थर पर विश्व बैठा गहरी सोच में खोया हुआ था l वॅकींग ख़तम कर विश्व को यूँ गम्भीर मुद्रा में देख कर अपना तापस अपना वॅकींग रोक कर एक नारियल पानी बेचने वाले के पास सीधे जाता है और दो नारियल खरीद कर विश्व के पास पहुँचता है l विश्व अपनी आँखों के सामने नारियल देख कर थोड़ा चौंकता है फिर नारियल लेकर पीने लगता है l

तापस - तुम्हारे दो दिन और रुकने की खबर से.... तुम्हारी माँ बहुत खुश है... (विश्व चुप रहता है) पर मैं जानता हूँ... तुम दो वज़ह से रुके हो... (पानी ख़तम होते ही नारियल नीचे रख कर तापस की ओर देखता है) पहली वज़ह इंस्पेक्टर रोणा... (विश्व नज़रें फ़ेर कर नदी की ओर देखता है) और दूसरी वज़ह ज़रूर प्रोफेशनल होगा... यानी जोडार ग्रुप.... क्यूँ सही कह रहा हूँ ना...
विश्व - आप को अगर मैंने बताया ना होता... तो रोणा की बात आप कहाँ जान पाते...
तापस - मालुम तो हो गया होता... हाँ वह रोणा है... यह मालुम करने में थोड़ा वक़्त लगता... (विश्व चुप रहता है) अरे यार कोई तुम्हारी माँ को स्टॉक कर रहा है... इस बात पर गुस्सा हो...
विश्व - वह माँ को स्टॉक नहीं कर रहा है... उसकी मंशा कुछ और है...
तापस - मैं भी यही कह रहा हूँ... तुम्हारी माँ को उससे फ़िलहाल कोई खतरा नहीं है... मुझे लगता है... तुम्हारी माँ पर नजर रखते हुए... या तो राजा साहब के लिए रेकी कर रहा है... या फिर वह किसी और को ढूँढ रहा है...
विश्व - नहीं भैरव सिंह इस सरकारी छछूंदर से माँ की रेकी नहीं करवाएगा... उसके लिए भैरव सिंह के पास.. अलग से खाए पिए लोग हैं... (तापस की ओर देखते हुए) डैड... क्या मैं कुछ मिस कर रहा हूँ... मेरा मतलब है...
तापस - पता नहीं... पर...(चुप हो जाता है, फिर) खैर... जोडार ग्रुप की क्या परेशानी है...
विश्व - उस दिन मुझे अपना नया कंस्ट्रक्शन साइट्स दिखा रहे थे... दिखाते दिखाते... कुछ बोलते बोलते रुक गए... कोई तो प्रॉब्लम है.... पर उस पर वह श्योर नहीं हैं.... शायद इसीलिए... मुझसे पूरी बात कही नहीं... मैं पूछ पाता के तब...
तापस - हाँ तब...
विश्व - (वीर की पूरी बात कहने लगता है, तापस उसकी बातों को गौर से सुनता है और हैरान होने के भाव से विश्व की ओर देखने लगता है) आप मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हैं....
तापस - यह एक स्पेशल सरप्राइज पैकेज था मेरे लिए... एक परिवार के नेक्स्ट जेनरेशन के तीन सदस्यों से तुम्हारा अब अद्भुत रिश्ता है... पहले वाले से दुश्मनी... दुसरे वाले से दोस्ती... और... तीसरी वाली से प्यार...
विश्व - डैड... आप मेरी खींचाई कर रहे हैं...
तापस - अरे कहाँ... वैसे तुम्हारे यही तीन प्रॉब्लम हैं या कुछ एड़ीश्नल प्रॉब्लम भी है...
विश्व - है तो... पर उसका समाधान हो गया है...
तापस - लो... प्रॉब्लम था... और बताया भी नहीं...
विश्व - नहीं... ऐसी बात नहीं है... एक्चुयली यही पहला प्रॉब्लम था... जो राजकुमारी जी... मेरा मतलब है नंदिनी जी ने सॉल्व करने कहा था...
तापस - पर कहा क्या था...
विश्व - डैड... क्या आपको याद है... नंदिनी जी की एक दोस्त हमारे घर पर आई थी... तब्बसुम...
तापस - नहीं... मुझे याद नहीं... पर फिर भी बताओ.. क्या हुआ उसका...
विश्व - कुछ दिनों से वह लापता थी... कटी कटी थी अपनी दोस्तों से... अपनी शहर से...
तापस - तो तुमने उसका पता लगा लिया...
विश्व - हाँ... और नंदिनी जी को आज उनके पास ले जाने वाला हूँ...
तापस - ओ... क्या नंदिनी को मालुम है...
विश्व - नहीं उनको सरप्राइज देना चाहता हूँ... उन्हें अचानक उनकी दोस्त के आगे खड़ा करके...
तापस - ह्म्म्म्म अच्छी बात है... वैसे वीर की भी कोई मदत कर नहीं सकते तुम...
विश्व - नहीं... वीर अब जिस हालत में है... जिस सदमे में है... उसे अनु ही निकाल सकती है... मैंने नंदिनी जी को भी यही कहा है... उम्मीद है... अनु की मदत से वीर उबर जाएगा...
तापस - ह्म्म्म्म... (चुप हो जाता है)
विश्व - डैड... अब आपने सब कुछ सुन लिया... और मुझे लगता है... आपको शायद अंदाजा है... वह लम्पट रोणा माँ के आड़ में किसको स्टॉक कर रहा है...
तापस - मुझे अंदाजा है... पर मैं कंफ्यूज भी हूँ...
विश्व - पहले आप अपना अंदाजा जताइये... मैं आपका कंफ्यूजन दुर कर दूँगा...
तापस - ठीक है... पहले मुझे यह बताओ... क्या भैरव सिंह के खाए पीए... क्षेत्रपाल खानदान की औरतों को पहचानते होंगे... या नहीं...

विश्व की आँखे फैल जाते हैं l तापस की बात से वह अचानक अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

विश्व - डैड... उस दिन जब रोणा और प्रधान हमारे घर आए थे... क्या हुआ था...
तापस - असल में मैं भी नहीं जानता था... पर जिस दिन नंदिनी गाँव से लौट कर घर पर आई थी... उस दिन बातों बातों में मालुम हुआ कि... (रुक जाता है)
विश्व - क्या मालुम हुआ...
तापस - (उस दिन प्रतिभा और रोणा के बीच हुई सारी बातेँ और रुप का रोणा को थप्पड़ मारने की सारी बातेँ बता देता है) मुझे हैरानी इस बात पर हुई... के भैरव सिंह के तलवे चाटने वाला कुत्ता रोणा... अपनी ही मालिक की बेटी को क्यूँ नहीं पहचाना या पहचान नहीं पाया...
विश्व - (जबड़े सख्त हो जाते हैं) वह इसलिए... की रोणा बाहर का कुत्ता है... और बाहर के कुत्ते की सरहद... घर की चौखट तक होती है... घर के औरतों के बारे में कोई नहीं जानता... क्यूंकि क्षेत्रपाल की औरतों की दुनिया अंतर्महल होता है... वहाँ तक कोई मर्द नहीं जाते...
तापस - ह्म्म्म्म... तब तो यह पक्का है कि वह... (चुप हो जाता है) क्यूँ ना उसकी पोल हम किसी तरह नंदिनी के भाइयों के सामने खोल दें...
विश्व - (कड़े लहजे में) नहीं... वह सेनापति के घर में... सेनापति घर की इज़्ज़त पर नजर खराब किए हुए है... सज़ा तो मैं उसे दूँगा... उसकी खराब नज़र और खराब नीयत की....

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द हैल

नहा धो कर विक्रम बाथ रुम से निकलता है l कमरे में बेड पर उसके लिए कपड़े रखे हुए थे l अपनी नजरें घुमाता है पर उसे शुभ्रा कहीं नजर आती है l वह सोचने लगता है शायद शुभ्रा नास्ता बनाने के लिए किचन गई होगी l दो दिन से घर में आ तो रहा है पर देर रात से और सुबह देर तक सोता रहता है l महांती के मरने के बाद उसके और शुभ्रा के दरमियान अनचाहा दूरी आ गई है l शुभ्रा अपनी तरफ से रिश्ता निभा रही है पर विक्रम ? विक्रम अपना सिर झटकता है और एक गहरी साँस छोड़ कर कपड़े पहने लगता है l तैयार होने के बाद विक्रम घड़ी देखता है, नौ बज रहे थे l जल्दी जल्दी कमरे से निकल कर वह नीचे आता है और डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है l टेबल पर बाउल रखे हुए थे जो कि ढके हुए थे l उसे हैरानी होती है घर में कोई शोर शराबा नहीं था l वह अपनी नजरें घुमाता है पर कोई नजर नहीं आ रहा था l ना शुभ्रा, ना रुप ना ही वीर l वीर का तो उसे समझ है, वीर जब से विशाखापट्टनम से लौटा कर मेडिकल गया था मृत्युंजय से मिलने l उसके बाद से ही वीर ने खुद को कमरे में बंद कर रखा है l जब मृत्युंजय को उसकी बहन की मारे जाने की खबर दी थी, मृत्युंजय वीर को बहुत गली दी, उसके ग़ैरत की धज्जियाँ उड़ा दिया था l वीर चुप चाप सब सुनता रहा और सिर झुकाए हस्पताल से निकला था l इस बीच केके ने वीर पर ही अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम लगा दिया था l जब से वीर में बदलाव आया है उसके बाद वीर के लिए यह हालत पहली बार थी l गहरा जेहनी सदमा और दिली धक्के ने उसे कमरे में बंद होने के लिए मजबूर कर दिया l पर घर की औरतें कहाँ गई, कोई भी नजर नहीं आ रही हैं l तभी एक नौकर पास आता है और विक्रम के आगे थाली लगाने लगता है l

विक्रम - (उस नौकर से) युवराणी दिखाई नहीं दे रही हैं...
नौकर - जी युवराणी राजकुमारी जी के साथ सुबह सुबह कार में कहीं गए हैं... मैं खाना लगा दूँ...
विक्रम - नहीं...

कह कर वह डायनिंग टेबल से उठ कर ड्रॉइंग रुम में आता है l वहाँ सोफ़े पर बैठ कर कुछ दिनों में उनके साथ हो रहे घटनाओं के बारे में सोचने लगता है l सात सालों में सजा सजाया हुकूमत की नींव अब हिलने लगी है l कोई एक दुश्मन नहीं है l दुश्मनों की फौज है, पता नहीं कौन कहाँ से वार कर रहे हैं l अब धीरे धीरे चोट गहरी होती जा रही है l इन कुछ दिनों में कुछ अच्छा हुआ था l रिश्तों में नई जान बसने लगी थी पर फिर ना जाने किसकी नजर लग गई l वह सारे खुशनुमा पल पानी की बुलबुलों की तरह गायब हो रहे हैं l

ऐसे ही सोच में खोया हुआ था कि अभी मुख्य दरवाजा खुलता है l अंदर शुभ्रा और रुप अपने साथ अनु को लेकर आए थे l विक्रम उन तीनों को देख कर हैरानी के साथ उठ खड़ा होता है l वह तीनों भी दरवाजे पर ठिठक जाते हैं l

शुभ्रा - एक मिनट... (रुप से) तुम अपनी छोटी भाभी के साथ यहीँ रुको... मैं आरती की थाली लेकर आती हूँ...

शुभ्रा विक्रम को देखते हुए अंदर चली जाती है l उसके जाने के बाद विक्रम अनु की ओर देखता है l अनु उसे झिझकते हुए नमस्ते करती है l ज़वाब में विक्रम भी उसे नमस्ते करता है l तभी आरती की थाली लेकर शुभ्रा आती है, अनु की आरती उतारती है l

शुभ्रा - (अनु से) अब अपना दाहिना पैर को आगे करते हुए अंदर आओ... (शर्म और झिझक के साथ अनु अंदर आती है) (रुप से) अनु को वीर के पास ले जाओ...

अनु को रुप को अपने साथ लेकर अंदर चली जाती है l इतना सब कुछ हो रहा था पर किसीके भी चेहरे पर उत्साह या खुशी नजर नहीं आ रही थी l अनु और रुप के जाने के बाद विक्रम शुभ्रा की ओर सवालिया नजर से देखता है l

शुभ्रा - वीर गहरे सदमे में हैं... उन्हें पुष्पा को ना बचा पाने की मलाल थी... उस पर मृत्युंजय ने.. ना जाने क्या क्या तोहमत लगा दिया... अपनी दी जुबान पर खरे उतर ना पाने का दुख क्या कम था... उन पर केके ने अपने बेटे की खून का इल्ज़ाम लगा दिया... हर तरफ से टुट गए हैं बेचारे...
विक्रम - (उसी हैरानी भाव में) हाँ ठीक है... पर अनु...
शुभ्रा - एक दिन तो उसे आना ही था... पर वीर के लिए आज अनु का आना बहुत जरूरी था... क्यूंकि वीर तक हमारी आवाज नहीं पहुँच रही है... उन्हें आवाज देकर वापस अनु ही ला सकती है...
विक्रम - (चुप रहता है)

शुभ्रा विक्रम से कोई जवाब ना पाकर वह ड्रॉइंग रुम से निकल कर डायनिंग हॉल की ओर चली जाती है l उधर वीर के कमरे की दरवाज़ा धक्का दे कर रुप खोलती है l दोनों अंदर आते हैं l वीर अपनी बालकनी में इन दोनों के तरफ पीठ कर खड़ा था l रुप अनु की कंधे पर हाथ रखती है l अनु भीगी आँखों से रुप की ओर देखती है l फिर रुप उस कमरे से निकल कर चली जाती है l

अनु - (बड़ी मुश्किल से कांपती हुई आवाज में) रा... राज कुमार... जी...

वीर के जिस्म में हरकत होती है l जैसे उसे इसी आवाज की कई दिनों से प्रतीक्षा थी l वह अनु की तरफ मुड़ता है l अनु देखती है वीर के चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई है और शायद उस दिन से सोया नहीं है l उसके आँखों के चारों तरफ काले रंग दिख रहे थे l वीर की बांह अपने आप खुल जाता है l अनु सुबकती हुई भाग कर वीर के गले लग जाती है l दोनों एक-दूसरे के बाहों में जकड़े हुए थे, खामोश थे, दोनों की आँखे भीगी हुई थी l सुबकते हुए अनु वीर से पूछती है

अनु - यह क्या हाल बना रखा है आपने....
वीर - ज़माने ने मुझे तोड़ कर रख दिया.... बिखर जाता... तुमने आकर मुझे समेट लिया... ऐसा लग रहा था... जैसे अंधेरे में भटक रहा हूँ... पर तुम्हारी बाहों में आकर मुझे रोशनी मिल रही है....

कुछ देर तक दोनों ऐसे ही एक दूसरे के बाहों में खोए रहे l तभी दरवाजे पर दस्तक होती है तो दोनों एक-दूसरे से अलग होते हैं l

अनु - मैं देखती हूँ...

वीर के होंटों पर एक मुस्कान आ जाती है l अनु दरवाजा खोल कर देखती है बाहर नाश्ते की ट्रॉली के साथ शुभ्रा खड़ी थी l जैसे ही अनु बाहर आती है आँखों से ट्रॉली की ओर दिखती है और खाने की इशारा कर चली जाती है l अनु ट्रॉली को खिंच कर कमरे में लाती है, देखती है वीर उसे एक सुकून की मुस्कराहट के साथ उसे देख रहा है l

अनु - ऐसे क्या देख रहे हैं...
वीर - अच्छा लगा....
अनु - मैं समझी नहीं...
वीर - तुमने इसे अपना घर माना और हक जता कर कहा... मैं देखती हूँ... यह सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा...
अनु - (मुस्करा देती है, और नाश्ते के लिए थाली लगाने लगती है)
वीर - (अचानक गम्भीर हो कर) अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - तुम मेरे पास हमेशा के लिए आ जाओ...
अनु - (वीर की ओर देख कर) मैं आपकी ही तो हूँ...
वीर - नहीं ऐसे नहीं... रात को अपनी आँखे मूँदने से पहले... सुबह अपनी आँखे खोलने के बाद... तुम्हें अपनी बाहों में देखना चाहता हूँ... चली आओ यार... अब यह अकेलापन... सहा नहीं जाता...
अनु - मैं यहाँ आ जाऊँ... यह आपके हाथ में है...
वीर - (अनु की हाथ पकड़ कर) चलो... अभी भाभी से बात करते हैं...
अनु - (अपना हाथ छुड़ा कर) राजकुमार जी... कोई अपना अगर जिंदगी से चाला जाता है... कम से कम उसकी मातम ख़तम तो होने दीजिए... मट्टू भैया और पुष्पा से मुहँ जुबानी ही सही... मेरी उनसे बहन का रिश्ता था...
वीर - (मुहँ लटका कर) सॉरी अनु... सॉरी...
अनु - सॉरी ना कहिये...
वीर - हाँ ठीक कहा... तुमसे सॉरी नहीं कहना चाहिए... तुमसे तो थैंक्स कहना चाहिए...
अनु - थैंक्स... वह किसलिए...
वीर - तुमने यहाँ आकर... वाकई मुझे सम्भाल लिया... इसलिए...
अनु - (झिझकते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हाँ अनु...
अनु - एक वचन मांगू...
वीर - (हैरानी से अनु की तरफ देख कर) क्या तुम्हें मुझ पर शक है...
अनु - इतना बड़ा इल्ज़ाम ना लगाईये मुझ पर...
वीर - फिर... (अनु का सिर झुक जाता है) ठीक है... मांग लो वचन... पर याद रखो... मैं मृत्युंजय से किया हुआ वादा निभा नहीं पाया...
अनु - (गम्भीर हो जाती है) मैं जानती हूँ... पर मैं यह जरुर मानती हूँ... आप हारे नहीं थे.. हराए गए थे...
वीर - मैं खुद विश्वास खो बैठा हूँ अनु...
अनु - आपकी अनु आपसे कुछ माँग रही है...
वीर - (अपना सिर हिलाते हुए) मांग लो अनु... मांग लो... तुमसे किया हुआ वादा... हर हाल में पूरा करूंगा... वर्ना यह दुनिया छोड़ कर नहीं जाऊँगा...
अनु - तो वादा कीजिए... जिसने भी पुष्पा और विनय को मारा है... आप उसे अपने हाथों से सजा देंगे... (अपना हाथ आगे कर) वादा कीजिए...
वीर - (हैरान होकर अनु को देखता है) यह तुम कह रही हो... किसी को मारने के लिए...
अनु - मैंने आपसे वादा माँगा है...
वीर - (अनु के हाथ पर अपना हाथ रखकर) वादा किया... जब तक पुष्पा और विनय की कातिलों को... मौत की नींद ना सुला दूँ... मैं अपनी मौत को भी अपने पास फटकने नहीं दूँगा...

अनु वीर के गले लग जाती है l वीर भी उसे अपने में भींच लेता है l अनु रोने लगती है

अनु - कितनी मासूम थी पुष्पा... पता नहीं किसकी नजर लग गई... उसके कातिलों को आप अपने हाथों से सजा दीजियेगा... राज कुमार जी... अपने हाथों से सजा दीजियेगा...

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बारंग रिसॉर्ट

अपने कमरे में पिनाक टहल रहा है l उसके सामने हाथ बांधे बल्लभ खड़ा है l टहलते टहलते पिनाक खिड़की के पास खड़े हो कर बाहर देखता है l

बल्लभ - छोटे राजा जी... आप इतने परेशान क्यूँ लग रहे हैं...
पिनाक - प्रधान... अब क्या बताऊँ... हम... राजकुमार की शादी की बात चला रहे थे... पर ऐन वक़्त पर... केके ने उन पर अपने बेटे की हत्या का आरोप मढ दिया...
बल्लभ - यह कोई बात नहीं हुई... राजकुमार जी को पुलिस ने क्लीन चिट भी तो दे दिया...
पिनाक - हाँ पर तुम समझ नहीं रहे हो...
बल्लभ - क्या शादी की बात किसी राजघराने से हो रही थी...
पिनाक - अरे नहीं... वैसे भी... अब कहाँ बचे हैं अच्छे राज घराने... हमारी नजरों में.. एक इंडस्ट्रीयलीस्ट था... उसके अपने झारसुगड़ा और राउरकेला एरिया में... चौदह स्पंज आइरन फैक्ट्री हैं...
बल्लभ - ओ... कहीं आप मशहूर इंडस्ट्रीयलीस्ट निर्मल सामल जी की बात तो नहीं कर रहे... जो अभी भुवनेश्वर में... अपनी नई कंस्ट्रक्शन कंपनी खोलने वाले हैं...
पिनाक - हाँ... इकलौती बेटी है उनकी... अच्छी खासी धाक भी है उस इलाके में... राजकुमार जी के राजनीतिक आधिपत्य और विस्तार के लिए... सामल एक अच्छा विकल्प था...
बल्लभ - अभी भी कुछ बिगड़ा कहाँ है... आप अच्छे से सम्भाल सकते हैं... उन्हें समझा सकते हैं...
पिनाक - इसी लिए तो तुम्हें बुलाया है... वैसे तुम... रोणा के साथ आए थे ना... कहाँ है वह कमबख्त...
बल्लभ - वह अपनी छुट्टियाँ मना रहा है...
पिनाक - और तुम... तुम क्या कर रहे थे...
बल्लभ - मैं राजा साहब के... आपके सारे एसेट्स के प्रॉपर्टी टैक्स वेरिफाई कर दिया... और सब चेक भी कर लिया...
पिनाक - गुड...
बल्लभ - थैंक्यू... अब बताइए... मुझे क्या करना है...

पिनाक अपने वार्डरोब के पास जाता है l वार्डरोब खोल कर वहाँ से एक फाइल निकाल कर बल्लभ के हाथ में दे देता है l पिनाक एक चेयर पर बैठ जाता है

पिनाक - तुम भी बैठ जाओ... और फाइल को अच्छे से चेक करो...

बल्लभ पिनाक के सामने वाले एक चेयर पर बैठ जाता है l और फाइल चेक करने लगता है l थोड़ी देर बाद

बल्लभ - यह... यह थोड़ा मुश्किल भरा काम है...
पिनाक - मालुम है...
बल्लभ - यह सामल बाबु जिस जगह पर हाथ मार रहे हैं... वह तो पूरी तरह डीसप्युटेड लैंड है... फ्यूचर में प्रॉब्लम हो सकती है...
पिनाक - नहीं होगा... तुम भूल रहे हो... हम यहाँ के मेयर हैं... वैसे भी... सामल को कंस्ट्रक्शन लाइन में सफल बनाने का श्रेय... राजा साहब लेना चाहते हैं... उनकी लड़की से रिश्ते की बात भी राजा साहब ने छेड़ी थी... पर अब केके के अलीगेशन के बाद... वह थोड़ा झिझक रहा है... पर इसी डीसप्युटेड लैंड में उसके पैसे फंसे हुए हैं... हम उसकी पैसे वापस निकलवा सकते हैं... पर हम चाहते हैं कि वह उस लैंड को हासिल कर ले...
बल्लभ - आपने तो सिस्टम से बहुत कुछ करवा दिया है...
पिनाक - हाँ... बस एक जगह क्लियरेंस नहीं मिल पाया है... फिर भी हम क्लियर करवा देंगे...
बल्लभ - तो फिर... प्रॉब्लम...
पिनाक - उस प्रॉपर्टी के सामने... एक बहुत बड़ा पार्टी है... वह टांग अड़ा सकता है...
बल्लभ - तो मुझे क्या करना है...
पिनाक - उसके सामने वाले पार्टी ऑब्जेक्शन करेगा... तुम हमारी सारी प्रॉपर्टी डीसप्युट डील करते हो...
बल्लभ - समझ गया... ठीक है... मैं देखता हूँ... उस प्रॉपर्टी पर कौन कौन से डीसप्युट हो सकते हैं... और कैसे डायल्युट किया जाएगा... मैं इस काम शुरु कर देता हूँ...
पिनाक - गुड... अगर यह काम हो गया... समझो राजा साहब तुम्हें बहुत अच्छा इनाम देंगे... क्यूंकि हमारे घराने के साथ एक और ताक़तवर घराना जुड़ेगा...
बल्लभ - जी जरूर...
पिनाक - हाँ और एक बात... यह काम तुम जितना छुपा कर करो उतना अच्छा है... तुम्हारे पास वक़्त सिर्फ पंद्रह दिन है... कोई भी कानूनी पचड़ा नहीं आनी चाहिए...
बल्लभ - छोटे राजा जी... कुछ कामों में... आई एम प्रोफेशनल... इसमें मुझे कोई मात नहीं दे सकता...
पिनाक - इसी लिए तो... यह काम तुम्हें दिया जा रहा है... वर्ना भुवनेश्वर या कटक में.. बड़े से बड़े वकीलों की फौज तैयार बैठी है... और हाँ... सामने वाली पार्टी को अभी डाऊट है... अगर उसे भनक लगी... तो रोड़े डाल सकता है...
बल्लभ - कोई नहीं छोटे राजा साहब... मैं यह डील फाइनल करवा कर ही दम लूँगा...

कह कह फाइल को अपनी बैग में रखता है और जाने के लिए खड़ा होता है l

पिनाक - कहाँ जाओगे... वापस राजगड़..
बल्लभ - नहीं... अभी राजगड़ नहीं... यह डील फाइनल करवा कर सोलहवें दिन ही राजगड़ के लिए निकालूँगा...
पिनाक - तो...
बल्लभ - अभी में रोणा के यहाँ जाऊँगा....
पिनाक - क्या... रोणा दिन भर कमरे में पड़ा ही रहता है क्या...
बल्लभ - नहीं... अभी वह अपने काम के लिए... निकल गया होगा...


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कटक हाई कोर्ट

मधुसूदन बार काउंसिल में एक बड़े से हॉल के एक किनारे एक टेबल पर प्रतिभा कुछ किताबें और फाइलों में घुसी पड़ी है l उस हॉल में बहुत से वकीलों की जमावड़ा है l सारे के सारे आपस छोटी छोटी ग्रुप बना कर गप्पे लड़ा रहे थे l दुर से कैन्टीन की टेबल पर बैठा एक शख्स प्रतिभा पर नजर गड़ाए चाय पी रहा था l इतने में वह शख्स देखता है प्रतिभा अपनी फोन की डिस्प्ले देखती है फिर खुश होकर कॉल पीक कर बात करने लगती है l वह शख्स देखता प्रतिभा फोन पर बात करते करते अचानक चहक कर उठ खड़ी होती है, अपनी फाइल और किताब पास खड़े एक शख्स को थमा कर काउंसिल हॉल से बाहर की ओर चल देती है l वह शख्स अपनी चाय की ग्लास वहीँ रख कर बराबर दूरी बना कर प्रतिभा के पीछे चल देता है l बाहर कार पार्किंग की प्रतिभा जाती है जहां पर सैकड़ों गाड़ियां पार्क हुई रखी थी l तभी एक लाल रंग की गाड़ी की ड्राइविंग सीट से एक लड़की हाथ हिलाते हुए उतरती है l प्रतिभा की ओर माँ कह कर इशारा करती है l प्रतिभा भी उसे देख कर खुशी के हाथ हिलाते हुए उसकी तरफ जल्दी जल्दी जाने लगती है और उसके पास पहुँच कर गले से लगा लेती है l वह शख्स जो दूर एक कोने से देख रहा था, उस लड़की को देखते ही उसके आँखों में चमक आ जाती है l उसके चेहरे पर एक शैतानी रौनक छा जाती है l प्रतिभा उस लड़की को बार काउंसिल के उसी हॉल में लाती है और अपने सहकर्मियों से परिचय करवाती है l पर वह शख्स बाहर कैंटीन में खड़े होकर यह सब देख देख रहा था l प्रतिभा कुछ लोगों के पास खड़े होकर जब उस लड़की की पहचान करवा रही थी l तब वह शख्स अपनी जेब से एक सर्जिकल मास्क निकाल कर चेहरे पर लगा लेता है और उसी हॉल के अंदर जा कर कुछ दूरी पर पड़े एक खाली कुर्सी पर इस कोशिश में बैठ जाता है के शायद उसे उनकी बातेँ सुनाई दे l पर दूरी की वज़ह से और आसपास हो रहे शोर शराबा से उसे उनकी बातेँ ठीक से सुनाई नहीं देती है l बस उसे अंदाजा हो जाता है कि उस लड़की का नाम नंदिनी है जो प्रतिभा बार बार ले रही थी l कुछ देर बैठने के बाद प्रतिभा के पास सफेद कपड़े में एक आदमी आता है और कुछ कहता है l प्रतिभा अपनी कुछ फाइलें और कुछ किताबें उस आदमी को पकड़ा कर खड़ी होती है तो नंदिनी उससे इजाजत मांगती है तो प्रतिभा भी खुशी से उसे गले लगा कर जाने को कहती है l प्रतिभा उस आदमी के साथ कोर्ट की तरफ चली जाती है और नंदिनी अपनी गाड़ी की तरफ पार्किंग की ओर जाती है l उसके पीछे पीछे दूरी बनाए हुए वह शख्स जा रहा था l उसे थोड़ी हैरानी होती है नंदिनी इस बार ड्राइविंग सीट के बजाय ड्राइवर के बगल में बैठ जाती है l उस शख्स को समझ में नहीं आता कि उतरते वक़्त नंदिनी गाड़ी में अकेली थी और ड्राइविंग सीट से उतरी थी पर अब नंदिनी की गाड़ी में एक आदमी वह कौन हो सकता है l वह इतना सोच रहा था कि नंदिनी की लाल रंग की गाड़ी पार्किंग से निकलने लगती है l वह हैरान और परेशान हो कर "है" "है" चिल्लाता है l पर उस गाड़ी पर कोई असर नहीं होता l वह शख्स दौड़ कर बाइक पार्किंग की ओर जाता है और एक बाइक निकाल कर नंदिनी की गाड़ी का पीछा करने लगता है l

गाड़ी के अंदर

नंदिनी - यह क्या अनाम... मुझे कुछ समझ में नहीं आया... माँ से तो घर पर भी मिल सकती थी... यूँ कोर्ट में...
विश्व - आपने ऐसे सरप्राइज दिया... माँ खुश हुई कि नहीं...
रुप - हाँ हुई तो... बहुत बहुत खुश हुई... पर... तुम फिर भी... हम किसी रेस्टोरेंट में या मॉल में भी तो मिल सकते थे...
विश्व - क्यूँ हमारा ऐसे मिलना आपको पसंद नहीं आया...
रुप - हाँ... पता नहीं... पर एक थ्रिल सी फिल हो रही है... तुम्हारे कहे अनुसार... मैं और भाभी अनु भाभी को लाने उनके घर गए थे... और तुमने सच कहा था... अनु भाभी ने आज वीर भैया के चेहरे पर... एक ताजगी ले आई... फिर तुमने फोन किया... के हम कोर्ट में मिलेंगे... पर कंडीशन यह रखा... के गाड़ी में चाबी छोड़ दूँ... मैंने वैसा ही किया... पता नहीं तुम क्या चाहते थे... पर एक अनजानी सी थ्रिल फिल हुआ...

विश्व गाड़ी चलाते वक़्त बराबर मिरर देख रहा था l रुप के इतने कहने पर जब विश्व ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तब रुप बिदक जाती है l

रुप - मैं अपनी फिलिंग बता रही हूँ... तुम हो के ध्यान ही नहीं दे रहे हो...
विश्व - (अपना मोबाइल शर्ट की जेब से निकालता है और रुप को दिखा कर) इस आदमी को... क्या आप पहचानती हैं...
रुप - (मोबाइल पर फोटो को देख कर) ह्म्म्म्म... शायद... अरे हाँ... याद आया... यह ना एक बार...
विश्व - बस बस... बाकी मैं जानता हूँ...
रुप - पर तुम इसके बारे में मुझसे क्यूँ पूछ रहे थे... यह तो उस दिन माँ के पास आया था...
विश्व - यह कुछ दिनों से माँ की रेकी कर रहा था... वज़ह मैं जान गया था... बस कंफर्म करना बाकी था... सो आज कर लिया...
रुप - क्या मतलब क्या कंफर्म कर लिया...
विश्व - यह इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा है.... आपको ढूंढ रहा है... अपना बेइज्जती का बदला लेने... बस आप उसे आज तक मिल नहीं रही थी... आज आप उसे दिख गई... तो अब वह हमारे पीछे लगा है... वह बुलेट पर...
रुप - (चौंक कर) क्या...
विश्व - और मजे की बात बताऊँ... यह राजगड़ से है... पर इसे पता नहीं... आप क्षेत्रपाल घराने की इज़्ज़त हो...

रुप यह सुन कर चौंकती है और पीछे मूड कर देखती है l एक बंदा बुलेट से पीछा कर रहा था, पर सिर पर हेल्मेट पहना हुआ था l रुप का चेहरा उतर जाता है l यह देख कर विश्व पूछता है

विश्व - क्या हुआ... डर लगा...
रुप - नहीं... डर कैसा... उसे अगर मेरी पहचान मालूम होता... तो वह थोड़े ना मेरे पीछे पड़ता... मुझे उसकी क्या... किसी की भी फिक्र नहीं है.... तुम मेरे साथ हो... मौत भी मुझे छु नहीं सकती... पर...
विश्व - हाँ पर...
रुप - अनाम... कुछ दिन हुए... हमारे परिवार पर आफत ही आफत आ रहे हैं... जो हमारे वज़ूद को झिंझोड रहे हैं... पहले बड़े भाई की जिंदगी में हादसा हुआ... तो वह हमसे जेहनी तौर से दूर हो गए... फिर वीर भैया के साथ हादसा हुआ... तो वह खुद को हम से दुनिया से दुर कर बैठे थे... अगर मेरे साथ कोई हादसा हुआ तो... (आँखों में आँसू तैर जाते हैं) मैं खुद को... खुद से हारना नहीं चाहती...
विश्व - आप फिक्र ना करो... मैं हूँ ना... मेरे होते हुए आपकी जिंदगी में कोई दुख भी नहीं आएगा...

रुप इतना सुन कर भावुक हो जाती है और खुशी के मारे विश्व के गले लग जाती है l

विश्व - अरे आप कर क्या रही हैं... मैं... मैं गाड़ी चला रहा हूँ...
रुप - हाँ हाँ मालूम है... तुम गाड़ी चला रहे हो... पर हम जा कहाँ रहे हैं...
विश्व - आपकी सहेली... तब्बसुम के पास...
रुप - क्या... मतलब तुमने उसे ढूंढ लिया....
विश्व - हाँ... आपकी फर्माइश थी... कैसे ना ढूंढता....
रुप - ह्म्म्म्म वेरी फनी...


विश्व ट्रैफ़िक पर रेड सिग्नल देख कर गाड़ी रोकता है l उसके ठीक पीछे रोणा अपना बुलेट रोकता है l यह सब रुप देख कर विश्व से कहती है

रुप - ह्म्म्म्म... तुम्हारे होते हुए मेरे पास दुख भी फटक नहीं सकता... तो यह कमबख्त हमारे पीछे क्यूँ लगा है...
विश्व - मैंने इसकी यहीं पर अरेंजमेंट किया है... बस कुछ सेकेंड और....

रुप देखती है कुछ किन्नर आकर सिग्नल पर रुके लोगों से पैसे मांगते हैं l कुछ लोग देते हैं और कुछ लोग नहीं l विश्व एक किन्नर को पास बुला कर पाँच सौ रुपये का नोट देता है और कहता है

विश्व - इन मोहतरमा की नजर उतार दीजिए...

वह किन्नर रुप के पास जाकर कर रुप की नजर उतारती है l तभी सिग्नल हरा हो जाता है l विश्व गाड़ी आगे बढ़ा देता है l रुप देखती है उनके गाड़ी के पीछे वह बुलेट वाला नहीं था l

रुप - चलो पीछा छुटा... अब हमारे पीछे वह नहीं आ रहा...
विश्व - कैसे आएगा... किन्नरों ने अभी अभी जो आपका नजर उतारा है....
रुप - (हैरान हो कर) क्या... वह किन्नर उसे रोकने आए थे...
विश्व - हाँ... और कैसे... यह आज शाम की न्युज चैनल में या कल की अखबार में जान लीजियेगा...
Bhai vishwarup ka 124 ke baad next update kab aayega
Bahot hi acchi storie hai
 
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