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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Battu

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
बहुत ही शानदार और दमदार अपडेट दिया भाई। आज का अपडेट पढ़ कर मज़ा ही आ गया दिल खुश हो गया। इतने प्यारे अपडेट के लिए आपका धन्यवाद। आज के इस भाग में प्यार की बहार बहुत ज्यादा बही है। फिज़ाओ में प्यार के जुगनू बहुत ज्यादा ही जगमगा रहे है। वीर का अनु से प्यार भरी बात करना। द हैल में चारो का साथ बैठ कर हसी ठिठोली करना। वीर और रूप की बातचीत भी सुपरहिट ही थी बस चेट्टी का रॉय के साथ रोना थोड़ा माहौल दूसरी तरफ ले गया था, विश्वा का गांव वालों को हड़काना भी अच्छा था और सेनापति जी के घर का तो क्या ही कहना एक दम Awesome था और लास्ट में रोणा और वल्लभ की बातचीत शानिया ग्रुप के साथ क्या शानदार रही कि हँसी की फुहार ही छूट गयी। कुल मिला कर कंप्लीट पैकेज।
 

Jaguaar

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
Jabardasttt Updateee
 

Devilrudra

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
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Lib am

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👉एक सौ अठारहवां अपडेट
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शाम ढल चुकी थी
रंग महल में के उद्यान में बड़े से दरी की शतरंज के बिसात के एक तरफ भैरव सिंह खड़ा है और दूसरी तरफ भीमा खड़ा है l चूंकि गोटीयाँ चालों के हिसाब से खानों पर जमे हुए हैं l दोनों तरफ चेहरे पर तनाव के भाव हैं पर कारण दोनों के अलग अलग हैं l भीमा अपनी चालें संभल कर चल रहा है कहीं कोई चाल भैरव सिंह के उपर भारी ना पड़ जाए l पर फिर भी आज भैरव सिंह मन में कुछ और सोच रहा है शायद, इसलिए उसकी चालें किसी खिलाड़ी के तरह नहीं ब्लकि किसी नौसिखिए की तरह खेल रहा है l जिससे भीमा बहुत परेशान हो रहा है और डर इतना के उसके पसीने छूट रहे हैं l अचानक भैरव सिंह गुर्राने लगता है,

भैरव सिंह - भीमा... आज तुम हमें हराओ...
भीमा - (हैरान हो कर भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - हम आज हारना चाहते हैं... इसलिए सही चाल चलो... अगर हरा दोगे... इनाम पाओगे... और अगर हार गए... तो सजा पाओगे...
भीमा - (कुछ कह नहीं पाता, बेवक़ूफ़ की तरह मुहँ फाड़े भैरव सिंह को देखने लगता है)
भैरव सिंह - अगर खेल नहीं सकते... जाओ किसी और को बुलाओ...
भीमा - जी हुकुम... (हकलाते हुए) मैं.. मैं खेलुंगा... मैं खेलुंगा हुकुम...
भैरव सिंह - ठीक है... अपनी चाल चलो...

अब भीमा जितने के लिए गोटियाँ चलाने लगता है l भैरव सिंह भी संभल कर खेलने की कोशिश करता है l धीरे धीरे खेल में भीमा भैरव सिंह पर हावी होने लगता है l भैरव सिंह के एक एक करके प्यादे, ऊंट घोड़े हाती बिसात से बाहर होने लगते हैं l ज्यूं ज्यूं खेल आगे बढ़ते जा रहा था त्यों त्यों भैरव सिंह का पारा चढ़ता जा रहा था l उधर भीमा खुश हो रहा था उसका एक घोड़ा दो ऊंट और वजीर बचे हुए थे पर भैरव सिंह के पास सिर्फ शाह बचा हुआ था और चलने के लिए सोलह खाने बाकी थे l ऐसे में भीमा अपना सिर उठा कर एक नजर भैरव सिंह को देखता है l उसके चेहरे से गुस्सा और नाराजगी को देखते ही भीमा की फटने लगती है l वह मन ही मन दुआ करने लगता है के किसी तरह यह खेल आगे ना बढ़े l कोई ऐसा चमत्कार हो जिससे यह खेल यहीं बीच में ही रुक जाए l उसकी किस्मत अच्छी थी l उस वक़्त एक गाड़ी उसी जगह पर पहुँचती है l भीमा भाग कर जाता है और गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से पिनाक उतरता है l संभावित हार के तनाव से भैरव सिंह भी तमतमाया हुआ था l पिनाक को देख कर वह भी थोड़ा आश्वस्त होता है l पिनाक आँखों से कुछ इशारा कराता है जिसे भीमा भी देख लेता है पर उसे वह अनदेखा करना अपने लिए बेहतर मानता है l पिनाक और भैरव सिंह दोनों रंग महल के अंदर मैयखाने के अंदर जाने लगते हैं l पीछे पीछे भीमा भी चलने लगता है तो

भैरव सिंह - तुम यहीँ पर रुको भीमा.... जब बुलाया जाए... तब अंदर आ जाना...
भीमा - जी... जी हुकुम...

कह कर भीमा वहीँ रुक जाता है l अब दोनों क्षेत्रपाल रंग महल के मैय खाने की ओर बढ़ने लगते हैं l

भैरव - (चलते हुए) तो.. अब बड़े राजाजी की तबीयत कैसी है...
पिनाक - अब ठीक है... दौरा जोर का पड़ा था...
भैरव - ह्म्म्म्म...

दोनों मैयखाने में पहुँचते हैं l वहाँ पर एक टेबल पर पहले से ही शराब के बोतल और ग्लास सजे हुए थे l दोनों अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं l पिनाक पेग बना कर भैरव सिंह को देता है और खुद भी लेता है l

पिनाक - आपने सुबह समझा दिया... तो हमें लगा... बड़े राजा जी... समझ गए... पर विश्व अपनी हरकत से बड़े राजा साहब के दिल व दिमाग पर चोट कर गया था... इसलिए उसी बात को बार बार अपनी जेहन में सोच सोच कर... उनकी बीपी एबनॉरमल हो गई...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - (अपनी दांत पिसते हुए) यह... यह विश्वा ने... ठीक नहीं किया... बड़े राजा जी की ओर... अपना जुते रख कर बात की...
भैरव सिंह - बड़े राजा जी की ओर नहीं... उनके चेहरे की ओर... या यूं कहो जुते उनके मुहँ पर रख कर बात की...
पिनाक - (हैरान हो कर देखते हुए) यह... यह कहते हुए भी... हमारा जुबान लड़खड़ा रहा है... और आप ना सिर्फ आसानी से कह रहे हैं... ब्लकि... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - रुक क्यूँ गए... छोटे राजा जी... ब्लकि...
पिनाक - (कुछ नहीं कहता)
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... (खड़ा हो जाता है) जिस दिन उस कमज़र्फ विश्वा को सजा हुई... उस दिन हम उसकी बहन वैदेही को कटक से अपने साथ राजगड़ तक उठा ले आए थे...
पिनाक - जी... जानते हैं... अपने उस पर बीच चौराहे पर थप्पड़ों पर थप्पड़ जड़े थे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... पर बात उस दिन की नहीं है... बात है... उस दिन से... जिस दिन इस रंग महल में वैदेही लाई गई थी...

कहते कहते भैरव सिंह रुक जाता है l पिनाक भी कोई जवाब नहीं देता है ना ही कोई सवाल करता है l अपना पेग ख़तम करता है l फिर कहना चालू करता है l

भैरव सिंह - उसी दिन से... हमने मिलकर उसकी जिस्म को कई बार नोचा है... उसकी आत्मा को कई बार रौंदा... मगर जब भी हमने उसकी चेहरे को देखा... दर्द तो दिखा पर... हमे लगा... जैसे हम कभी उससे जीते ही नहीं... उस कमिनी ने हमारे हर इरादों पर पानी फेरा है... एक बात जो हमें बहुत दिनों बाद मालुम हुआ... उसने हस्पताल में ऑपरेशन के दौरान... अपनी बच्चे दानी को निकलवा दिया था... इस तरह से... पहली बार में ही... हमें ऐसा हराया था कि... उसके बाद कभी जीत महसुस ही नहीं कर पाए.... उसे जलील करने के लिए... दर्द देने के लिए... विश्वा को सजा हो जाने के बाद... राजगड़ के बीच चौराहे पर हम... थप्पड़ मारते हुए जलील करते रहे... पर...
पिनाक - पर...
भैरव सिंह - पर उस दिन... उस थप्पड़ के साथ साथ कुछ और भी हुआ था...
पिनाक - क्या...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा... हाँ... उसने हर थप्पड़ पर एक एक करके सात बद्दुआ दी थी... सात चैलेंज हमारे लिए... पर सात मिशन थे विश्व के लिए...
पिनाक - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - उसने कहा था... हम क्षेत्रपालों को... सपनों से भी बुरा दिन... हमें... विश्वा दिखाएगा... शायद... विश्वा... उसी को मिशन बना कर महल में आया था...
पिनाक - महल में घुसने के लिए... हिम्मत चाहिए.... अगर हमारे पहरेदार अलर्ट होते तो....
भैरव सिंह - (पिनाक की बातों को बीच में काट कर) पहरेदार नहीं... हमने नौकर पाले हैं...
पिनाक - क्या आप... उसे इतनी आसानी से छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - हाँ.... फ़िलहाल के लिए... हाँ...
पिनाक - क्यूँ...
भैरव सिंह - हम अपने पालतूओं से क्या कहेंगे... के विश्वा आया था... हमारे महल में... (फिर से पेग उठा कर पिता है) छोटे राजा... जो बांस जितना मोटा होता है... वह बांस अंदर से उतना ही खोखला होता है... यहाँ के शैतान... सरकार... सिस्टम... सब हमारे दम पर वज़ूद में हैं... हमने खुद को... उस ऊँचाई पर रखा हुआ है... की कोई हमारी तरफ गर्दन उठा कर नहीं देखता... क्यूंकि अगर देखेगा... तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... पर विश्वा आकर हम क्षेत्रपाल के मूछों पर पंजा मार दिया.... तो जरा सोचिए... लोगों की नजर में.... उस ऊंचाई से लुढ़कने में कितनी देर लगेगी...
पिनाक - ओ... तो इसी वज़ह से... आपने... उस हरामखोर के पीछे लोग नहीं छोड़े...
भैरव सिंह - (चुप रहता है)
पिनाक - बड़े राजा जी को दिलासा कैसे देंगे...
भैरव सिंह - देंगे... जरूर देंगे... विश्वा... अपने मिशन में है... कभी ना कभी... वह हमारे लोगों के साथ भी उलझेगा... तब हमारे लोग उसे संभाल लेंगे...
पिनाक - अगर नहीं संभल पाए तो...
भैरव सिंह - (भवें सिकुड़ कर पिनाक की ओर देखता है)
पिनाक - वह... रोणा कह रहा था... आपको याद होगा... विश्वा किस काबिल है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... अहंकार जो विरासत में मिली है... हमारी नसों में दौड़ रही है... रौब और रुतबा हमारी मूछों की ताव है... शायद इसी के गुरुर में... हम वैदेही से वादा कर बैठे... उस हरामखोर विश्वा पर ध्यान नहीं देंगे... जो अब हमें हमारी गलती का एहसास दिला रहा है...
पिनाक - यह आप ऐसे क्यूँ कह रहे हैं... वह क्या... उसकी औकात क्या... उसकी मिशन से वह क्या कर लेगा... क्या है उसका मिशन...
भैरव सिंह - जिन लोगों को हम जुतों के नीचे रखते हैं... जुतों के नीचे रौंदा करते हैं... उन्हीं लोगों के पैरों को... वह हमारी जुतों में डालेगा...
पिनाक - क्या... इतना सबकुछ जान कर आप खामोश क्यूँ हैं... वह धीरे धीरे हमारे लोगों को चैलेंज करेगा...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हम भी यही चाहते हैं... वह अब हमारे पालतूओं से भिड़े... उस हरामजादे की की खबर... हमारे पालतूओं के जरिए... हम तक पहुँचे... तब हम उसके खिलाफ कोई कारवाई के लिए सीधे कदम उठा सकते हैं....

फिर दोनों के बीच कुछ देर के लिए लिए खामोशी छा जाती है l पिनाक देखता है भैरव सिंह कुछ खो सा गया है l

पिनाक - अब आप किस सोच में हैं...
भैरव सिंह - सोच रहे हैं.. एक महीना विश्व था कहाँ पर... वह दिखता कैसा है... क्या इस बीच उसका और हमारा... कभी आमना सामना हुआ है...
पिनाक - (खड़ा होता है) जी... हुआ है...
भैरव सिंह - (हैरानी भरे नजर से पिनाक को देखता है)
पिनाक - लॉ मिनिस्टर विजय जेना की बेटी के रिसेप्शन में... जो आपसे जुबान लड़ा रहा था...


भैरव सिंह की आँखे बड़ी हो जाती है l उसे झटका सा लगता है l फिर अचानक उसके चेहरे का भाव बदलने लगता है l उसके हाथ ग्लास पर कसने लगते हैं l फिर टक कड़च की आवाज के साथ ग्लास टुट जाती है l

पिनाक - रा... राजा साहब...
भैरव सिंह - यह आपको कब मालुम हुआ...
पिनाक - आज ही... सुबह उसको महल से जाते हुए देखा था... नाम नहीं जानते थे.... पर जब बड़े राजा जी ने कहा कि वह विश्वा था... तब हमें याद आया था.. की वह...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... वह उस दिन एक औरत के साथ आया था... माँ.. माँ कह रहा था उसे....

भैरव सिंह झट से पास रखे एक बेल को बजाता है, भीमा भागते हुए अंदर आता है l

भीमा - हुकुम....
भैरव सिंह - कॉर्डलेस लेकर आओ...

भीमा एक किनारे जा कर कॉर्डलेस उठा कर लाता है और भैरव सिंह को देता है l भैरव सिंह उसमें एक नंबर डायल करता है l कुछ देर बाद

भैरव सिंह - हैलो...
- xxxxx
भैरव सिंह - एक औरत के बारे में... पता करो... वाव... मतलब... वर्किंग वुमन्स एसोसिएशन ओडिशा की प्रेसिडेंट है वह... हमें उसके बारे में... दो दिन के भीतर सारी जानकारी चाहिए....
-xxxxxxx

भैरव सिंह फोन काट कर रख देता है l उसकी आँखों में एक चमक दिखने लगता है l

पिनाक - यह... आप किससे बात कर रहे थे...
भैरव सिंह - यह वही है... जिसके एक खबर के वज़ह से.... आप यहाँ बुलाए गए हैं... बात घर की है... कभी भी निपटा सकते हैं.... फ़िलहाल बाहर की बात पर गौर करना है... एक लिंक मिल जाए... तो कब और कैसे निपटाना है... यह तय करना है...

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द हैल
डिनर टेबल पर विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं l एक दुसरे के आँखों में झांकते हुए खाना खा रहे हैं l शुभ्रा नजरें मिलाती है, फिर शर्मा कर नजरें चुरा लेती है, पर विक्रम चेहरे पर एक शरारती मुस्कान लिए शुभ्रा घूर रहा था l दोनों को यह एहसास गुदगुदा रहा था l

विक्रम - कितना प्यारा लग रहा है यह एहसास.... है ना..
शुभ्रा - (शर्माते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
विक्रम - वैसे थैंक्यु...
शुभ्रा - (हैरान हो कर देखती है) क्यूँ.. किस बात के लिए...
विक्रम - नौकरों को बाहर भेजने के लिए...
शुभ्रा - (शर्मा कर चेहरा झुका लेती है) क्यूँ आपको अच्छा नहीं लगा...
विक्रम - बहुत... बहुत अच्छा लग रहा है... हर पल यह एहसास जितना पुराना होने लगता है... फिर से नया नया सा महसुस होने लगता है...
शुभ्रा - (खुद को थोड़ा संभालती है) पर... हम हरदम तो ऐसे नहीं रह सकते....
विक्रम - हाँ... इस घर के दो और सदस्य अभी आने को हैं... फिर शायद ऐसा मौका मिले ना मिले...
शुभ्रा - हाँ...
विक्रम - फिर भी... सबके सामने... उस वक़्त में भी... कुछ लम्हे चुरा लेंगे...
शुभ्रा - अच्छा...
विक्रम - हूँ.. देख लेना...
शुभ्रा - वैसे विक्की.. आपको ऐसा नहीं लगता... हम रिश्ते में और उम्र में बेशक... अपने छोटों से बड़े हैं... पर वे दोनों हमसे ज्यादा मेच्यॉर हैं... हमें पास लाने के लिए... क्या कुछ नहीं किया उन्होंने...
विक्रम - हाँ... सबसे ज्यादा... हमारी रुप... उसने कभी कोशिश करना नहीं छोड़ा... उसीने वीर को वर्गलाया और उसीके मदत से... यह सब किया...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं...
विक्रम - शुब्बु... मेरी जान... वीर को... मैं उतना ही जानता हूँ... जितना कि खुद को... यह सब रुप का ही किया धरा है...
शुभ्रा - सच कह रहे हैं आप... मेरी एक ही तो सहेली है वह...
विक्रम - हाँ... उसकी भी तो आप ही एक सहेली हैं...
शुभ्रा - महल में वह कैसी रहती थी... मैं नहीं जानती... पर वह इस घर की जान है... उसके आने के बाद ही तो... हम मिल बैठ कर खाना खा रहे हैं...
विक्रम - वैसे भी... इस टेबल को छोड़ और कहीं और मिलकर नहीं बैठ पाते... बातेँ नहीं कर पाते....
शुभ्रा - हाँ वैसे... पता नहीं... और कितने दिन गांव में रहेगी... उसके बिना यह घर... घर नहीं लग रहा है...

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज दोनों के कानों में पड़ती है l दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखते हैं, एक दुसरे को जेहन में एक ही सवाल था l इस वक़्त कौन हो सकता था l तभी डोर बेल बजती है l शुभ्रा उठ कर जाती है और दरवाजा खोलती है l कोई नहीं दिखता के तभी "भौ" की आवाज से चौंक जाती है l सामने रुप खड़ी थी l

रुप - भाभी... (चिल्लाते हुए शुभ्रा की दोनों हाथों को पकड़ कर घूमने लगती है)
शुभ्रा - नंदिनी... आरे... रुको... आह... देखो... तुम तो गिरोगी... मुझे भी गिराओगी...

रुप को इस तरह से चहकते और खुश होता देख विक्रम बहुत खुश होता है पर साथ साथ हैरान भी होता है l

विक्रम - नंदिनी...

रुप रुक जाती है और शुभ्रा को छोड़ विक्रम के पास जाती है और उसके गले लग जाती है l

विक्रम - क्या बात है नंदिनी... आज तुम बहुत अलग लग रही हो...
वीर - मैं भी जब से मिला हूँ... यही महसुस कर रहा हूँ... बिल्कुल एक छोटी बच्ची की तरह... (सामान और लगेज अंदर लाते हुए, शुभ्रा से) कैसी हैं आप भाभी...
विक्रम - अरे वीर तुम...
वीर - हाँ भैया.. (रुप की ओर इशारा करते हुए) शाम को मुझे इस आफत की पुड़िया.. शरारती गुड़िया का फोन आया.. की रात को खाने के वक़्त तक हमें घर पहुँचना है... तो बस यह मुझे यहाँ तक ले आई...
शुभ्रा - चलो अच्छा हुआ... सच कहूँ तो खाने के टेबल पर तुम लोगों को ही हम याद कर रहे थे...
रुप - सच भाभी... (बड़ी मासूमियत के साथ) वैसे... हम गलत वक़्त पर तो नहीं आ गए ना...
शुभ्रा - अरे नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (बड़ी भोली बनते हुए) मेरा मतलब है... हम कबाब में हड्डी तो नहीं बन गए ना...
शुभ्रा - (रुप की कान पकड़ कर) नंदिनी की बच्ची...
रुप - आह... आह भैया बचाओ...

शुभ्रा छोड़ देती है l दोनों भाई रुप के इस अंदाज व शरारत पर मुस्कराने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा नंदिनी... तुम शायद दो पहर को निकली होगी... आज ही क्यूँ आई... अगर आना ही होता... तो सुबह निकलती या फिर... कल सुबह निकलती....

रुप की चहकती चेहरा शांत हो जाती है l चेहरे पर भाव बदल जाती है l ऐसा लगता है जैसे कुछ कहते ना बन पा रहा था l विक्रम और व वीर दोनों एक दुसरे की ओर देखते हैं l

विक्रम - क्या हुआ नंदिनी... कुछ गलत हुआ है क्या...
रुप - (अटक अटक कर) वह भैया... आज सुबह ही महल में... हंगामा हो गया... कोई कांड हो गया... मुझे माहौल ठीक नहीं लगा तो... छोटी माँ से इजाजत लेकर चली आई...
विक्रम - क्या... कैसा हंगामा...
वीर - कांड...

रुप वगैर विश्व का नाम लिए और रात की बात को छुपा कर जैसा जैसा सुषमा ने बताया था, रुप नागेंद्र के साथ जो कुछ हुआ सब बता देती है l

रुप - पता नहीं भैया... क्या होगा... या होने वाला है... मैं इसलिए वहाँ के टेन्शन से बचने के लिए... छोटी माँ से कह कर तुरंत चली आई...
शुभ्रा - अच्छा... जो हुआ... जैसा हुआ... क्यूँ हुआ... वह सब हम खाने के बाद सोचेंगे... या उस पर बात करेंगे... चलो पहले खाना खा लेते हैं...
वीर - हाँ... हाँ... पहले खाना खा लेते हैं... फिर सोचते हैं...

पुरी बात सुनने के बाद से ही विक्रम गहरी सोच में खोया हुआ था l यह बात टेबल पर तीनों नोटिस कर लेते हैं l बात तो घुमाने के लिए

रुप - अच्छा भाभी... नौकर नहीं दिख रहे हैं...
शुभ्रा - वह इसलिए कि मैंने फैसला किया है.. अब किचन में.. मैं ही खाना पकाउंगी... नौकर बस सिर्फ साफ सफाई देखेंगे....
वीर - वाह भाभी वाह... क्या बात है... मतलब... अब से घर में सिर्फ आपके हाथ का ही खाना मिलेगा...
शुभ्रा - हाँ... चाहे पसंद करो या ना करो...
वीर - अरे क्या बात कर रही हैं आप... खाना तो अमृत लग रहा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म मस्का लगा रहे हो....
वीर - नहीं भाभी... सच कह रहा हूँ... कसम से...
शुभ्रा - तो फिर ठीक है...

खाने के टेबल पर इस तरह की बातेँ चल रही थी l पर विक्रम खामोश था, वह कुछ सोच रहा था l तीनों महसूस तो कर पा रहे थे पर विक्रम से पुछ नहीं पा रहे थे l खाना ख़तम होते ही शुभ्रा रुप को इशारा करती है l दोनों बर्तन समेट कर किचन के अंदर चले जाते हैं l उनके जाने के बाद ड्रॉइंग रूम में विक्रम और वीर आते हैं l

वीर - क्या बात है भैया... महल में क्या हुआ जानकर तुम बहुत गहरे सोच में चले गए...
विक्रम - वीर... महल में जो घुस आया था... तुम जानते हो या अंदाजा भी है... वह कौन था...
वीर - नहीं...
विक्रम - (वीर की ओर देखते हुए) मुझे लगा... तुम जानते होगे... खैर... वह तुम्हारा दोस्त... विश्व प्रताप था...

वीर को झटका सा लगता है l उसका मुहँ खुला रह जाता है l वह हैरान हो कर विक्रम की ओर देखने लगता है l

विक्रम - उसने अपना काम शुरु कर दिया है...
वीर - (सीरियस हो कर) तो क्या तुम प्रताप को रोकने जाओगे...
विक्रम - प्रताप का और मेरा तब तक सामना नहीं हो सकता या होगा... जब तक राजा साहब नहीं चाहेंगे... जब तक राजा साहब को यह लगेगा.. उनके लोग उसे संभाल लेंगे... तब तक राजा साहब मुझे मैदान में उतरने के लिए नहीं कहेंगे... (चुप हो जाता है) (एक गहरी साँस लेते हुए) अभी तो नहीं पर... कभी न कभी सामना तो होना ही है...
वीर - तो आपको लगता है... उसे राजा साहब के लोग संभाल नहीं पाएंगे...
विक्रम - नहीं... उसे कोई संभाल नहीं पाएगा...

उधर किचन में शुभ्रा बर्तन माँज रही थी l बर्तन माँजते हुए एक एक रुप के हाथों में दे रही थी l रुप उसे कपड़े से साफ करते हुए रैक में रख रही थी l

शुभ्रा - तो... तुम्हारे अनाम ने... आखिर तुम्हें प्रपोज कर ही दिया...
रुप - ह्म्म्म्म... कर ही दिया... पर आपको कैसे मालुम हुआ...
शुभ्रा - तुम गई थी... उसीके लिए ही ना... पर संभल कर रहना...
रुप - क्यूँ... किससे...
शुभ्रा - तुमसे तुम्हारी खुशियाँ नहीं संभल रही है.... और चेहरा रंग देख कर कोई भी बता सकता है... यह रंग प्यार के हैं... (
रुप - (शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - बहुत ही... खास तरीके से... प्रपोज किया होगा...
रुप - (शर्म के साथ साथ चहकते हुए) हाँ भाभी... क्या बताऊँ... क्या स्टाइल में इजहार किया...
शुभ्रा - तुम्हें प्रपोज करने के बाद... अनाम बड़े राजा जी के पास गया था ना... (रुप का चेहरा उतर जाता है, सिर झुका कर हाँ कहती है) देखो नंदिनी... महल में विश्व ने ही वह कांड किया.. इस बात को विक्की भी अच्छी तरह से भांप गए हैं.... अब लगता है... नियति बहुत जल्द उन्हें एक दुसरे के सामने खड़ा कर देगी... तब.. (आवाज भारी हो जाती है) हम किसके साथ खड़े होंगे.... सोच सकती हो.... मेरी तो एक राह होगी... पर तुम खुद को शायद दोराहे पर पाओ...

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गौरी सो चुकी थी l वैदेही सारे काम निपटा कर सोने के लिए चारपाई तक पहुँची ही थी के दरवाजे पर दस्तक होने लगती है l वैदेही जाकर दरवाजा खोलती है l सामने लक्ष्मी डरी सहमी खड़ी थी l

वैदेही - लक्ष्मी... क्या हुआ... इतनी घबराई हुई क्यूँ हो... हरिया ने कुछ किया क्या...
लक्ष्मी - (घर के अंदर आ जाती है, और हांफते हुए) दीदी... वह आज दारु के ठेके से पी कर आए थे... नशे में कुछ बड़बड़ा रहे थे... वह सुन कर मैं आपको बताने आ गई...
वैदेही - एक मिनट रुको... मैं पानी लाती हूँ.. तुम उसके बाद मुझे सब कुछ बताओ...
लक्ष्मी - नहीं.. नहीं दीदी... (वैदेही की हाथ पकड़ लेती है) आप विश्वा भाई को खबर करो...
वैदेही - (चौंक कर) क्या... विश्वा... क्या खबर करना है...
लक्ष्मी - यह नशे में ठेके पर सुन कर आए हैं... और वही बड़बड़ाते हुए कह रहे थे...
वैदेही - क्या कहा हरिया ने...
लक्ष्मी - शनिया, भूरा सत्तू... सब आज रात विश्वा भाई को मारने के लिए मंसूबा पाले हुए हैं...
वैदेही - ओह... तो यह बात है...
लक्ष्मी - हाँ दीदी... जल्दी करो... कोई अनर्थ ना हो जाए...
वैदेही - एक मिनट... (वैदेही अंदर जा कर एक पानी की ग्लास लक्ष्मी को देती है) ले पी ले...
लक्ष्मी - (हैरान हो जाती है) दीदी... उधर विश्वा भाई खतरे में है...
वैदेही - तु अब घर जा... हो सके तो... आज अपनी बस्ती में.. मुहल्ले में सबको जागरण करने के लिए कह दे...
लक्ष्मी - क्यूँ... दीदी...
वैदेही - जो पीढ़ी दर पीढ़ी ना देख पाए... आज वह तुम सब लोग देखने वाले हो... आज विश्वा... राजा के आदमियों को गली गली चौराहा चौराहा दौड़ा दौड़ा कर मारेगा...
लक्ष्मी - (गुस्सा हो जाती है) दीदी... पागलपन की भी हद होती है... तुम्हारा मुझ पर इतने उपकार हैं.. की जन्मों तक उतार ना पाऊँ... इसलिए रात के अंधेरे में... राजा के हुकुम को किनारे कर तुम्हें आगाह करने आई थी... पर तुम.. किस दुनिया में जी रही हो... या भूल गई... राजा ने विश्वा का क्या हालत बनाई थी...
वैदेही - (मुस्कराते हुए) पागलपन ही सही... पर वह सब धीरे धीरे होने वाला है या हो रहा है... जो मैंने तुझे कहा... जरा सोच आज से पहले किसी ने सोचा था... के राजा का हुकुम की नाफरमानी कोई कर सकता है... रात के अंधेरे में ही सही... तुने तो किया ना... जब यह हो गया है... तो वह भी होगा... जा... आज की रात बहुत खास होने वाला है... कुछ लोगों की किस्मत और करम दोनों ही फूटने वाले हैं आज रात....
लक्ष्मी - (गुस्से में) मेरी ही मती मारी गई थी... जो तुम्हें आगाह करने आई थी... जा रही हूँ...

कह कर बिना पीछे मुड़े लक्ष्मी चली जाती है l वैदेही दरवाजा बंद कर देती है और अपनी आँखे मूँद कर हाथ जोड़ कर मन ही मन विश्व की खैरियत के लिए भगवान को प्रार्थना करने लगती है l जब आँखे खोलती है तो सामने गौरी खड़ी थी l

गौरी - लक्ष्मी तुझे आगाह कर गई... पर तुने उसे भगा दिया... और अब भगवान से प्रार्थना कर रही हो...
वैदेही - काकी... मुझे अपने विशु पर पुरा भरोसा है... मुझे डर बिलकुल नहीं है..
काकी - क्यूँ झूठ बोल रही है... भगवान से उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना नहीं कर रही थी...
वैदेही - हाँ कर रही थी... पर उसकी रक्षा के लिए ही नहीं... उसकी विजय के लिए भी...
गौरी - इतना भरोसा...
वैदेही - हाँ काकी... उसके कारनामों से मैं वाकिफ़ हूँ... पर यहाँ कोई नहीं है... और वह इन सब मामलों में... अपने गुरु से आगे है...
गौरी - अच्छा...
वैदेही - हाँ काकी... विशु जिस दिन जैल से छुटा था.. उसी दिन उसके गुरु का फोन आया था... और उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया था... विश्वा हर मुसीबत के लिए तैयार हो कर ही जैल से निकला है... तुम बस देखती जाओ... कल से राजगड़ का इतिहास और भूगोल बदलने वाला है...

गौरी देखती है वैदेही बहुत ही आत्मविश्वास के साथ अपनी चारपाई की ओर बढ़े जा रही थी l गौरी भी ऊपर हाथ उठा कर प्रार्थना करती है

गौरी - हे भगवान इस अभागिन की विश्वास की लाज रखना...

उसी वक़्त कहीं दूर से किसी कुत्ते की रोने की आवाज आती है l विश्व के घर से कुछ दूर शनिया और उसके साथी इकट्ठे होते हैं l

सत्तू - शनिया भाई... अब क्या करना है...
शनिया - केरोसिन लाए हो..
भूरा - हाँ भाई... मशाल भी...
शनिया - बहुत अच्छे... साले सोये हुए होंगे... पहले घर के चारो तरफ केरोसीन डाल देंगे फिर आग लगा कर बाहर घात लगा कर छुपे होंगे... अगर वह घर से निकलने की कोशिश की... तो उस हरामजादे को... बाहर काट कर बोटी बोटी कर फिर से आग में फेंक देंगे....
भूरा - बढ़िया... बिल्कुल वैसे ही करेंगे...
सत्तू - क्या भाई... एक अकेले को हम इतना क्यूँ भाव दे रहे हैं... चलो ना साले को घर से निकाल कर पहले खूब धुनाई करते हैं... फिर उसकी चिता सजाते हैं...
शनिया - (सत्तू की गर्दन पकड़ लेता है) सुन बे भोषड़ी के... रोणा साहब ने जितना कहा है उतना ही कर... अपना दिमाग ज्यादा मत चला...
सत्तू - (कराहते हुए) जी... जी भाई... अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो...
शनिया - (उसका गर्दन छोड़ते हुए) अबे ढक्कन... रोणा साहब सब संभाल लेंगे... क्यूँकी यह काम सिर्फ हमारे लिए नहीं... रोणा साहब के इज़्ज़त के लिए भी करना है....


फिर सब धीरे धीरे विश्व के घर की ओर बढ़ने लगते हैं l कुछ दुर पर सब रुक जाते हैं l शनिया एक बंदे को केरोसीन से भरी टीन का डिब्बा देकर घर के पास जाकर छिड़कने के लिए भेजता है l वह बंदा टीन का डिब्बा लेकर घर के पास पहुँच कर ढक्कन खोल कर जैसे ही बरामदे के पास कदम बढ़ाता है उसके मुहँ से चीख निकल जाती है, वह अपने मुहँ पर हाथ रख कर लड़खड़ाते हुए पीछे आता है l

शनिया - क्या हुआ...
बंदा - (कराहते हुए) कोई कील चुभ गई है...
सत्तू - क्यूँ बे... फटा जुता पहन कर आया है क्या...
बंदा - नहीं पर जुते के अंदर से ही घुस गया है... (कह कर जुते के साथ साथ चुभी कील को निकालता है) आह...

शनिया एक दुसरे बंदे को भेजता है l वह भी जब घर के दरवाजे तक पहुँचता है उसकी भी वही हालत होती है l पर इस बार थोड़ा ज्यादा होता है l जिस कंफीडेंट के साथ गया था, जैसे ही उसका जुता छेद कर एक कील पैर में घुस गया था इसलिए वह लड़खड़ा कर गिर जाने के वज़ह से उसके पिछवाड़े तसरीफ़ में भी कील घुस जाते हैं l वह दर्द के मारे चीखने लगता है l सारे बंदे चौंक कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l कुछ उसे उठाने जाने को होते हैं कि शनिया उन्हें रोक देता है l तभी विश्वा के घर का दरवाज़ा खुलता है l विश्व के साथ साथ टीलु भी बाहर आता है l टीलु के हाथ में एक लोहे का रॉड जैसा था l विश्व और टीलु दोनों खड़ाऊ पहने हुए थे l उनके पैरों में जुते थे और जुतो के नीचे खड़ाऊ देख कर शनिया समझ जाता है कि विश्वा पहले ही उनके लिए तैयार बैठा था l

विश्व - अरे शनिया भाई... मुझे मेरे घर का हक लौटाने के लिए... रात को ही क्यों चुना... आपने क्यूँ तकलीफ की... और भी आठ घंटे बाकी हैं... सुबह आकर मैं ले जाता ना...
शनिया - इतनी तैयारी... मतलब तुझे अंदाजा था... के हम आने वाले हैं...
विश्व - हाँ... कोई शक... तुम लोगों के साथ... तुम लोगों के बीच रह कर... बचपन से जवान हुआ हूँ... तुम लोगों के रग रग से वाकिफ हूँ... तुम सब छक्के हो... जिनका मर्द... राजा भैरव सिंह है...
शनिया - तु तो बड़ा मर्द है ना... तो घर के आसपास कीलें क्यूँ बिछा रखे हैं...
विश्व - अरे शनिया भाई... यह कीलें.... दो टके के लुच्चों के लिए था... मुझे थोड़े ना पता था... उनसे भी गया गुजरा टुच्चे यहाँ फंसेंगे...
भूरा - तो कीलें हटा... आज तेरा खेल ख़तम कर के ही यहाँ से हम जाएंगे...
विश्व - हाँ जाओगे तो जरूर... क्यूंकि तुम लोगों को उमाकांत सर जी घर... मेरे हवाले जो करना है...
सत्तू - बच्चे... कल का सुबह देखेगा... तब जाकर घर लेगा ना...
विश्व - अरे सत्तू भैया... यह रात कहाँ इतनी लंबी होने वाली है... बस थोड़ी देर और... मैं भी देखूँगा... तुम सब भी देखोगे... जाओ यार जाओ... क्यूँ अपनी खाट खड़ी रखना चाहते हो..
शनिया - जुबान लंबी चल रही है... मगर जिगर छोटी... डर लग रहा है क्या...
विश्व - तुम सालों को... पुलिस से डर नहीं लगता... अरे हाँ... तुम लोगों का अम्मा का यार है ना... थानेदार... कोई नहीं... यह भरम भी अब दुर हो जाएगा... (टीलु से) टीलु मेरे भाई... यह सारी कीलें हटा दो यार...

टीलु अपने हाथ में रॉड लेकर चारों तरफ घुमाने लगता है l टिक टाक की आवाज करते हुए कीलें उस रॉड से चिपकने लगते हैं l मतलब वह एक लंबा सा चुंबक था जिसके मदत से कीलें हटा कर जमा करने लगता है l थोड़ी देर बाद टीलु किनारे खड़ा हो जाता है l शनिया का एक बंदा हाथ में एक डंडा लिए तभी विश्व की ओर भागते हुए हमला कर देता है l विश्व झुक कर एक घुसा उसके पेट में जड़ देता है l कुछ देर के लिए वह बंदा किसी पुतले की तरह अकड़ कर खड़ा रह जाता है फिर एक कटे पेड़ की तरह गिर जाता है l यह देख कर सभी जो विश्व को मारने आए थे सब के सब हैरान हो जाते हैं l

शनिया - अब कीलें भी नहीं हैं... मशाल वाली डंडे फेंक कर... अपनी अपनी हथियार निकालो... और काट डालों कुत्ते को..

कह कर शनिया अपना एक धार धार हथियार निकालता है l उसके देखा देखी सभी अपने अपने हथियार निकाल लेते हैं l सभी एक साथ मिलकर विश्व पर हमला बोल देते हैं l बिजली की फुर्ती से खुद को बचाते हुए विश्व उनके बीच से गुजर कर उल्टे दिशा में खड़ा हो जाता है l सबकी वार खाली गया था l शनिया अब पुरी तरह से पागल हो जाता है l वह सबको इशारा करता है l उसका इशारा समझ कर सब विश्व के चारों तरफ घेरा बना कर घेर लेते हैं l विश्व अपना पोजिशन लेता है l फिर उन सबको छका कर अपने पैरों का जादुई पैंतरा आजमाने लगता है l इससे पहले के शनिया और उसके साथी कुछ समझ पाते सबके हाथों से हथियार छिटक कर दुर जाकर गिरते हैं l इतने में आसपास के घरों की खिड़कियाँ खुलने लगते हैं l लोग दुबक कर बाहर हो रहे घटना को देख रहे थे l शनिया को जैसे ही यह एहसास होता है कि लोग देखने लगे हैं तो वह विश्व पर झपट पड़ता है और विश्व को पीछे से पकड़ लेता है l उसके दूसरे साथी भी विश्व पर टुट पड़ते हैं, पर विश्व अपने सिर को पीछे की ओर झटका देता है जिससे शनिया का नाक टुट जाता और विश्व उसके पकड़ से छूट जाता है l फिर विश्व एक के बाद एक को बारी बारी करके मारते हुए पटखनी देने लगता है l सब के सब नीचे गिर कर छटपटाने लगते हैं l तब तक आसपास के लोग अपने घर से निकल कर हाथों में टॉर्च लेकर सब कुछ देख रहे थे l शनिया और उसके बंदे समझ चुके थे विश्व से उलझना कितना घातक है l विश्व लोगों के सामने उनका इज़्ज़त का कबाड़ा निकाल चुका था l आखिर राजा साहब के लोग हैं l फिर भी शनिया एक आखिरी कोशिश करता है l पास पड़े मशाल की लकड़ी उठा कर हमला करता है l यह वार भी बेकार जाता है l विश्व शनिया का हाथ पकड़ कर उसके हाथ से वह डंडा छिन लेता है, फिर शनिया हाथ मरोड़ कर उसके पिछवाड़े पर चलाने लगता है l विश्व के हर मार पर शनिया मेंढक की तरह उछलने लगता है l उसे मार खाता देख कर शनिया के साथी भागने लगते हैं l शनिया अपने साथियों को उसे छोड़ भागते हुए देख कर विश्व के सामने गिड़गिड़ाने लगता है

शनिया - विश्वा भाई.. छोड़ दे भाई... प्लीज...
विश्वा - एक शर्त पर...
शनिया - मुझे सभी शर्तें मंजुर है...
विश्व - तुम अपने साथियों के पीछे उन्हें मारते मारते हुए भागोगे... मैं तुम्हारे पीछे भागुंगा... तुमसे अगर कोई छुटा... तो मैं तुम्हें वहीँ यह डंडा टूटने तक कुटुंगा...
शनिया - जी भाई...

विश्व शनिया को छोड़ देता है l शनिया नीचे पड़े एक डंडा उठाता है और भूरा सत्तू और दूसरों के पीछे भागने लगता है l उन सबके पीछे विश्व भी भागता है l

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सुबह हो चुका है
आज की सुबह राजगड़ थाने के लिए कुछ अलग थी l
राजगड़ आदर्श थाने में आज सुबह सुबह अच्छे से तैयार हो कर बन ढं कर इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था l सारे स्टाफ़ देख रहे थे रोणा मन ही मन खुश हो रहा था l एक कांस्टेबल उसके पास आता है

कांस्टेबल - सर... आज आप बहुत खुश लग रहे हैं...

रोणा कांस्टेबल को घूरने लगता है तो कांस्टेबल सकपका जाता है l उसे सकपकाता देख रोणा खुल कर हँसने लगता है l

रोणा - राजगड़ में फिरसे चार्ज लेने के बाद... आज मुझे पहली बार खुशी मिलने वाली है...
कांस्टेबल - (चुप रहता है)
रोणा - अबे पूछना... कैसी खुशी...
कांस्टेबल - कैसी खुशी सर...
रोणा - (अपनी फटी आवाज़ में गाने लगता है) जिसका मुझे... था इंतजार...
जिसके लिए दिल... था बेकरार...
वह घड़ी आ गई आ गई आज...
हद से आगे दारु पीना है और
मुर्गी तन्दूरी दबा के खाना है...
कांस्टेबल - सर... वह तो आप रोज खाते हैं...
रोणा - (बिदक कर) तो... (फिर मुस्कराते हुए) आज पहली बार... बरसों बाद थाने में केस दर्ज होगी... और हम आज फिल्ड भी जाएंगे...
कांस्टेबल - तहकीकात के लिए...
रोणा - अबे नहीं बे... पंचनामा करने के लिए... हा हा हा हा..

अचानक उसके हँसी में ब्रेक लग जाता है l क्यूंकि दरवाजे पर एक सुदर्शन नौजवान खड़ा था l रोणा उसे गौर से देखने लगता है l देखते देखते उसकी आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं l

रोणा - विश्वा... (हैरानी से उसके मुहँ से बस इतना ही निकल पाया)
विश्व - अरे दरोगा जी नमस्ते... कमाल है आपने तो मुझे पहचान लिया...
रोणा - (हड़बड़ा जाता है, अटक अटक कर) तुम यहाँ... कैसे... मेरा मतलब है... क्यूँ...
विश्व - लगता है... मुझे यहाँ देख कर... आपकी खुशियों में पानी गिर गया...
रोणा - (खुद को संभाल कर कड़क आवाज में) यहाँ क्यूँ आए हो...
विश्व - जाहिर है... थाने में कोई... पार्टी करने आता तो नहीं... केस दर्ज करने आया हूँ...
रोणा - की... किस के खिलाफ...
विश्व - अरे दरोगा जी... पहले केस तो जान लीजिए... हो सकता है... आप यूँ.. (चुटकी बजाते हुए) चुटकियों में समाधान भी कर दें...
रोणा - ठीक है... क्या केस है...
विश्व - ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी... कुछ लोग मेरी प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी कब्जा जमाए बैठे हैं... आपको बस उसे छुड़ाना है...
रोणा - ओये... मैं किसीके बाप का नौकर नहीं हूँ... इंस्पेक्टर हूँ... समझा... इंस्पेक्टर... चल दफा हो जा यहाँ से...
विश्व - मिस्टर इंस्पेक्टर... आप अभी 1981 के पुलिस ऐक्ट का सेक्शन 29 का उलंघन कर रहे हैं... आप मुझसे तमीज से बात करें... वर्ना मैं आपके खिलाफ आईपीसी के धारा 323, 504, 506 और 330 के तहत सीधे अदालत जा कर केस दर्ज कर सकता हूँ... सोच लीजिए...
रोणा - (विश्व को कुछ देर तक घूरता है, फिर) कांस्टेबल... इन साहबका केस फाइल करो... रिलेटेड सारे डॉक्युमेंट्स कलेक्ट करो...
विश्व - अरे सर... केस दर्ज करने से पहले... आप डॉक्युमेंट्स देख लें... और उसे छुड़ाने की कोशिश कीजिए... मुझे पुरा विश्वास है कि... वह लोग हम जैसे साधारण नागरिकों को अनदेखा तो कर सकते हैं.... पर आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ आदर्श थाने के इंचार्ज को तो अनदेखा नहीं करेंगे... आपकी इज्जत के खातिर... वे लोग ज़रूर मेरी प्रॉपर्टी मुझे सौंप देंगे...
रोणा - (अपने हलक से थूक गटकता है, फिर भी वह खुद को संभलता है) मिस्टर लॉयर... आप भुल रहे हैं... यह जो ईलीगल पोजेशन प्रॉपर्टी का केश दर्ज कराना चाहते हैं... यह एक सिविल केस है... इसमें पुलिस की भूमिका नहीं होती... सिविल कोर्ट की भूमिका होती है...
विश्व - वाव क्या बात है सर... मुझे नहीं मालुम था... आपको मेरी वकालत की डिग्री के बारे में जानकारी है... वाव वाव वाव... पुलिस इंस्पेक्टर हो तो... आपके जैसा... वर्ना ना हो....
रोणा - ह्म्म्म्म... तो जाइए... अपना केस फाइल करो और... जितनी जल्दी हो सके... यहाँ से जाओ...
विश्व - ना... जाना तो आपको मेरे साथ होगा... मेरी प्रॉपर्टी को छुड़ाने के लिए...
रोणा - (भड़क जाता है) विश्वा... मैंने पहले भी कहा है... मैं इंस्पेक्टर हूँ... किसीके बाप का नौकर नहीं...
विश्व - जी सर... मिस्टर इंस्पेक्टर... आप नौकर ही हैं... डोंट फॉरगेट यु आर अ पब्लिक सर्वेंट... कोई भी सिविल केस दर्ज होने से पहले... पुलिस के पास तीन भूमिका होती है... नेगोसिएशन.., मेडिएशन और आर्बिट्रेशन... इससे पहले कि यह केस कोर्ट तक जाए... आप अपनी भूमिका से बच नहीं सकते... मिस्टर इंस्पेक्टर...
रोणा - (अंदर ही अंदर उबल रहा था पर बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले हुए था) देखो विश्व... तुम जिनके खिलाफ केस दर्ज करना चाहते हो... वह लोग... बहुत खतरनाक लोग हैं... बेहतर होगा... तुम इस केस की एफआईआर करो... और कोर्ट जाओ...
विश्व - फिर से कमाल कर दिया आपने... मैंने तो अभी तक किसीका नाम भी नहीं लिया... पर आपको मालुम हो ही गया.. मेरी प्रॉपर्टी पर किसका कब्जा है...

रोणा को सांप सूँघ जाता है l वह क्या कहे उसे समझ में ही नहीं आ रहा था l रोणा को एहसास होता है कि उसके कान के बगल में पसीने की धार बहने लगी है l रुमाल लेकर पोछने लगता है l

रोणा - वह... वह मैंने अंदाजा लगाया...
विश्व - मतलब... आदर्श थाने की अवॉर्ड जितने वाले थानेदार के राज में... प्रॉपर्टी कौन और कबसे कब्जाए हुए हैं... मिस्टर इंस्पेक्टर आपको मालुम है...
रोणा - (भड़क कर) इनॉफ... पहले तुम्हें उनके पास जाना चाहिए था... उन्हें अपने तौर पर कंविंस करना चाहिए था...
विश्व - अब थाने आया हूँ तो जाहिर है... वह सब कर आया हूँ... वह पहला स्टेप था... अब दुसरा स्टेप है कि... आप या तो उन्हें थाने बुलाएं... या फिर मेरे साथ मेरी प्रॉपर्टी तक चलें और उन्हें वहीँ पर कानून समझाएं... मुझे पुरा यकीन है... आप समझायेंगे... तो वह लोग खुशी खुशी मुझे मेरी प्रॉपर्टी लौटा देंगे....

रोणा के मुहँ से अब कोई बोल नहीं फूटती l वह खड़ा होता है और अपना कैप पहनता है l कांस्टेबल को गाड़ी निकालने के लिए कहता है l

रोणा - कहते हैं... नया नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है.... आइए... नए नए वकील साहब... आपकी यह इच्छा भी पुरी कर देते हैं...
विश्व - जी शुक्रिया इंस्पेक्टर...

कांस्टेबल पुलिस की जीप निकालता है l आगे रोणा बैठ जाता है और विश्व दो और कांस्टेबल के साथ पीछे बैठ जाता है l गाड़ी सीधे जाकर उमाकांत के घर के सामने रुकती है l रोणा देखता है आज भट्टी में कुछ हो नहीं रहा है, लोग भी नदारत हैं l वह सवालिया नजर से विश्व की ओर देखता है l विश्व कुछ सोच में खोया हुआ था l

रोणा - क्या सोच रहे हो वकील बाबु...
विश्व - यही के... मैंने किसीको अड्रेस बताया भी नहीं... पर पुलिस की गाड़ी बिल्कुल सही जगह रुकी...
रोणा - (सकपका जाता है, गाड़ी से उतर कर भट्टी के तरफ देख कर आवाज देता है) ऐ... कोई है यहाँ पर...

दरवाजा खुलता है l सत्तू बाहर निकलता है, थोड़ा पैर चौड़ा कर चल रहा था, जैसे उसके पिछवाड़े में कोई फोड़ा हुआ हो l सत्तू रोणा को देखते ही सलाम ठोकता है l

सत्तू - सलाम साब...
रोणा - इस भट्टी का मालिक कौन है...
सत्तू - जी... शनिया भाई...
रोणा - ह्म्म्म्म... बुलाओ उसको...
सत्तू - जी साब...

कह कर सत्तू अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद शनिया और उसके चेले चपाटे सब बाहर निकलते हैं l रोणा देखता है सभी की चालें बदली हुई है, सारे के सारे सत्तू के जैसे पैर को चौड़ा कर चल रहे हैं l रोणा को देख कर शनिया पहले सलाम ठोकता है l

शनिया - कहिए सर कैसे आना हुआ...
रोणा - विश्वा... (आवाज देता है, विश्व गाड़ी से उतर कर उनके पास आता है) इनकी शिकायत है... यह जगह इनकी है... तुमने इनकी जगह पर गैर कानूनी कब्जा किए बैठे हो...
शनिया - (अकड़ दिखाते हुए) क्या सबूत है... यह जगह इसकी है... यह जगह खाली था... इसलिए हम तो बस देख भाल कर रहे हैं...
रोणा - (मन ही मन खुश हो जाता है) देखो... इनके पास कागजात हैं... (विश्व को देख कर) क्यूँ है ना...
विश्व - (डरते हुए) जी... जी सर... जी... मेरे पास... ओनरशिप डीड... एकुंबरेंस सर्टिफिकेट और प्रॉपर्टी टैक्स के रिसीप्ट हैं... यह.. यह देखिए... (कुछ कागजात निकाल कर दिखाता है)
रोणा - (मन ही मन खीज कर शनिया से) देखा... इनके पास कागजात है... अब तुम बताओ... किस बिनाह पर... यह जगह कब्जाए बैठे हो...
शनिया - ओ सहाब... (पुरे अकड़ के साथ) यहाँ क्या पुराण खोल कर बैठे हो... तुमको क्या करना है... क्या चाहिए वह पहले बोलो... और हाँ यह मत भुलो... हम राजा साहब के आदमी हैं...
रोणा - (मन ही मन बहुत खुश होता है, अपनी खुशी को छुपाते हुए) चूंकि यह जगह इनकी है... इसलिये मेरी सलाह है... कानूनन इनकी जगह... इन्हें लौटा दो...
शनिया - क्या... क्या कहा... आपकी सलाह... ह्म्म्म्म... ठीक है... हम आपकी सलाह मानते हैं... और इनको इनकी जगह देकर जा रहे हैं...

यह सुन कर रोणा को जबरदस्त झटका लगता है l वह हक्काबक्का हो कर बेवक़ूफ़ की तरह शनिया को देखने लगता है l शनिया विश्व के पास जाता है और एक चाबियों का गुच्छा दे देता है l पर विश्व को उंगली दिखा कर अकड़ के साथ कहता है l

शनिया - हम कानून का सम्मान करते हैं... चूंकि थानेदार साहब ने कहा... इसलिए उनकी बात मान कर यह जगह कानूनन तुम्हें लौटा रहे हैं...

विश्व - (फड़फड़ाते हुए रोनी आवाज में) बड़ी मेहरबानी शनिया भाई... इस बात पर तो... रोणा साहब के लिए एक जिंदाबाद बनता है...
बोलो रोणा साहब की
शनिया और साथी - जिंदाबाद...
विश्व - आदर्श थाने के प्रभारी की
शनिया साथी - जिंदाबाद...
विश्व - न्याय प्रिय इंस्पेक्टर की...
शनिया साथी - जिंदाबाद...

विश्व और शनिया के जिंदाबाद की नारों के बीच रोणा समझने की कोशिश कर रहा था l क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है l
बेचारा भैरव, विश्व ने पहले तो उसके पिछवाड़े में छतरी डाल दी और इसने जोश में भीमा को आदेश दे दिया उस छतरी का बटन खोलने का और जब बीमा बटन दबाने वाला था तो भैरव को याद आया कि अगर बटन दबा तो उसके पिछवाड़े में मोर पंख निकल आएंगे मगर पिनाक ने आ कर उसको बचा लिया।

नागेंद्र हरामी को जोर का झटका जोर से लगा और वो नर्क के टोल गेट से थोड़ा ही पहले और यमराज ने चाहा तो जल्दी ही उसका नरक बुलावा आने ही वाला है। भैरव वो अब वो सात थप्पड़ और उनसे लगी बददुआएं याद आ गई मतलब अब डर आ चुका है दिल में और जल्द ही हावी भी होगा।

रूप वापस आ गई अपने बेवकूफ से अपना ख्वाब पूरा करवा कर। मगर अब विक्रम बैचेन है आने वाली विश्व समय में विश्व से मुठभेड़ को लेकर मगर वीर अपने निर्णय पर अटल है। शुभ्रा ने अपना पक्ष बता ही दिया है और दो रहे पर खड़े होने बस विक्रम और रूप मगर रूप को अपना फैसला पता है।

आज विश्व ने साम दाम दण्ड भेद सब प्रयोग कर दिए उमाकांत जी का घर वापस लाने के लिए और भैरव के सभी लंगूर अंगूर के चक्कर में गांव में अपना पिछवाड़ा लाल करवा बैठे और फिर विश्व ने ऐसा चक्कर चलाया की अब रोड़ा की चार चोक सोलह होने वाली है जब भैरव को पता चलेगा की याने विश्व की रिपोर्ट भी दर्ज की और घर भी खाली करवा दिया।

दिल खुश हो गया अपडेट पढ़ कर।
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
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हा हा
भाई कहानी में हर तरह के रंग होने चाहिए
इस कहानी में तापस और प्रतिभा का प्रमुख भूमिका है
 
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