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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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sunoanuj

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Bahut hee adhbhut hai aapki lekhni… aisa laga jaise sab kuch mere samne hi raha bhavanayen ek ke baad ek … update ko pahdhte hue aankhen bhi gili ho gai 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Lib am

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👉चौरासीवां अपडेट (2)
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xxxx मॉल के कॉफी डे स्टॉल के सामने एक टेबल पर बैठ कर वीर अपने आप में खोया हुआ था l चेहरे से लग रहा था जैसे वह किसी से नाराज था l बार बार अपनी मुट्ठी को मसल रहा था l बेशक रुप को अपनी ऑफिस से थोड़ी दूर उतार कर यहाँ चला आया था और वीर उस बात को लेकर असमंजस में था l विक्रम कैसा रिएक्ट किया होगा I कहीं रुप डर तो नहीं गई होगी, अगर डरी होगी तो, बेचारी रो पड़ी होगी l इसी सोच में घिरा वीर अपना फोन निकाल कर रुप को फोन लगाता है l फोन लगते ही

वीर - हैलो...
रुप - (अपना सुबकना बंद कर) हाँ... हाँ भाई बोलो...
वीर - तु... तु रो रही है... (आवाज कड़क कर) विक्रम भैया ने कुछ कहा क्या...
रुप - नहीं भैया नहीं... उन्होंने कुछ भी नहीं कहा... यह तो... मैं खुशी के मारे रो रही हूँ...
वीर - क्या...
रुप - हाँ... हाँ भैया.. हाँ...
वीर - तु रो रही है... और कह रही है... खुशी के मारे...
रुप - ही ही ही... (हँस कर) भैया... जब से मैंने होश संभाला था... (रोते और हँसते) तब से ना कभी भी तुमसे या विक्रम भैया से बात नहीं की थी मैंने... हाँ कभी कभी तुम या भैया कुछ बोल देते थे... पर मैंने कभी भी बात शुरु नहीं की थी... तुमने तो अपने तरफ से शुरु की... पर आज... सच कहती हूँ... बहुत डर लगा था मुझे... पर... पता नहीं... कैसे... मैंने कैसे हिम्मत कर ली... और बात भी कर ली... बस... इसी बात की खुशी.... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही है भैया...
वीर - तु... तु कहाँ है... बोल... अभी... अभी मैं.. आता हूँ तेरे पास...
रुप - नहीं भैया नहीं... यह कैसी भावना है... नहीं जान पा रही हूँ भैया... इस फिलिंग्स को क्या कहूँ... नहीं समझ पा रही हूँ... रो रही हूँ... हँस भी रही हूँ... दर्द सा महसुस हो रहा है... पर उससे कहीं ज्यादा गुदगुदा रहा है... मैं ठीक हुँ... मैं ठीक हुँ भैया... वैसे... थैंक्स भैया...
वीर - थैंक्स... वह किसलिए...
रुप - हे हे हे... (हँसते हुए) मेरे जन्म दिन पर... तुम मेरे लिए भाई का तोहफा बन कर आए...
वीर - अब तु मुझे रुलाएगी क्या... तु भी तो उसी दिन मुझे प्यारी बहन बन कर तोहफे में मिली... इस बात के लिए मैं तुझे थैंक्स कहता हूँ...
रुप - सच.. सच कह रही हूँ भैया... जबसे आप भाई बन कर मेरी जिंदगी में आए हो... मेरी ना... हिम्मत सौ गुना... नहीं नहीं... बल्कि हजार गुना बढ़ गई है... सच... भाई अगर हिम्मत बन कर खड़ा हो जाए... तो कोई भी बहन दुनिया को जीत सकती है...
वीर - चल झूठी... रॉकी को सबक सिखाने के लिए जब गई थी... मैं कहाँ तेरे साथ था... तब तो बड़ी शेरनी बन कर गई थी...
रुप - तब भी मुझे इस बात की हिम्मत थी... के मैं वीर सिंह की बहन हूँ....
वीर - बस बस... बस कर.. वरना... मैं सचमुच रो दूँगा...
रुप - ओके... फोन रखती हूँ... बाय..
वीर - ऐ रुक रुक...
रुप - हाँ...
वीर - तु है अभी कहाँ... और कॉलेज कैसे जाएगी...
रुप - भैया... अभी सभी विक्रम भैया से लड़ कर आयी हूँ... बच्ची नहीं हूँ मैं... डोंट वरी भैया... आज मुझे इस खुशी के साथ पुरा दिन गुजारना है...
वीर - तो...
रुप - तो आज मुझे खुद तय करने दो... कॉलेज और ड्राइविंग स्कुल का सफर... अब रखूं फोन...
वीर - हाँ... चल रख... बाय...
रुप - बाय भैया...

वीर जज्बाती हो जाता है l उसे अंदर ही अंदर अच्छा लगने लगता है l अपने चारों तरफ नजर दौड़ता है l लगभग हर एक टेबल पर प्रेम के जोड़े बैठे हैं, और सभी एक ही ग्लास में से कॉफी पी रहे हैं और एक-दूसरे से बातेँ करते हुए मुस्करा रहे हैं l उन सभी जोड़ों को देख कर वीर मन ही मन मुस्कराता है l अपनी घड़ी देखता है फिर वह लिफ्ट की ओर देखता है l उसे सीढियों से प्रताप को आते देखता है l प्रताप उसे दूर से हाथ हिला कर इशारे से हाय करता है l जवाब में वीर भी हाय का इशारा करता है l प्रताप उसके सामने बैठते ही सर्विस बॉय दो कॉफी की ग्लास उनके सामने रख देता है l

प्रताप - अरे... कॉफी पहले से ही ऑर्डर कर रखा था क्या...
वीर - हाँ...
प्रताप - मतलब... कौन आने वाला था... या थी...
वीर - यह कॉफी उसीको सर्व हुई है... जिसके लिए ऑर्डर हुई थी...
प्रताप - ओ.. थैंक्स... मेरे लिए... वाव... भई मैं आऊंगा... ऐसा तुम्हें सपना आया था क्या...
वीर - हाँ... ऐसा ही कुछ...

दोनों कॉफी पीने लगते हैं l फ़िर दोनों अपने आस-पास नजरें घुमाते हैं l

प्रताप - ह्म्म्म्म... इसका मतलब... तुम्हें मेरा इंतजार था... किसलिए भाई...
वीर - मैं एक दिन... इन्हीं बगुलों के बीच अपनी हंसीनी के साथ... यहाँ... नहीं तो कहीं और सही... पर एक ही ग्लास से कॉफी पीना चाहता हूँ...
प्रताप - उम्म्.... बहुत ही नेक विचार है.... केरी ऑन माय फ्रेंड... केरी ऑन...
वीर - वह तो मैं उठा ही लूँगा... पर गुरु ज्ञान तो तुम्हीं दे सकते हो... इस मामले में... मुझे तुम्हारी मदद चाहिए....
प्रताप - मेरी मदत... अरे... मैं क्या मदद कर सकता हूँ...
वीर - अररे... मुझे प्यार हुआ है... यह तो एहसास करा दिया... अब इजहार करने में... मेरी मदद करो...
प्रताप - देखो भाई... यह एक ऐसा रास्ता है... मैं फिर से कहता हूँ... डोंट फॉलो एनी वन... चाहे वह मजनू हो... या रांझा... यु मेक योर ऑव्न रोड... राह भी तुम्हारी... और मंजिल भी तुम्हारी....
वीर - तुम्हारी बात सही है... पर... तुम नहीं समझ सकते... मेरी हालत अभी क्या है...
प्रताप - अच्छा... तो समझाओ...
वीर - (एका एक चुप हो जाता है) (असंमनजस सा हो जाता है, कहाँ से शुरु करे और कैसे शुरु करे)
प्रताप - (कुछ देर उसको देखने के बाद) लगता है... बड़ी विषम परिस्थिति में हो...
वीर - (प्रताप की ओर देखते हुए) हाँ... हाँ.. एक्चुयली... मैं बहुत आसान समझ रहा था...
प्रताप - क्या...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो कर) आई लव यु कहना...
प्रताप - (वीर को हैरान हो कर देखने लगता है)
वीर - बहुत... भारी है... बहुत मुश्किल है... इस आई लव यु को उठाना... जब इसे उठाना... जताना... बताना... इतना मुश्किल है.. तो निभाना कितना मुश्किल होगा...
प्रताप - (वीर की बातेँ सुन कर कुछ सोचने लगता है)
वीर - प्रताप...
प्रताप - हाँ... हाँ.. बोलो...
वीर - मैं और क्या बोलूँ... अब... तुम्हीं बताओ... मैं उसे कैसे आई लव यु कहूँ... ताकि वह इंप्रेस हो जाए...
प्रताप - इंप्रेस... किस बात के लिये इंप्रेस... इंप्रेशन नौकरी के लिए ज़माना होता है... प्यार के लिए नहीं... मुझे लगता है... इंप्रेशन गलत शब्द है... प्यार के लिए...
वीर - (हैरान हो कर) कैसे...
प्रताप - इंप्रेशन से ईमेज बनता है... देखने की नज़रिया बदलता है... पर यहाँ मामला दिल का है... इंप्रेशन एक मैच्योर्ड शब्द है... और मेरा मानना है कि... प्यार इंसान के अंदर के बच्चे को जगा देता है... जिसकी हर बात... हर ज़ज्बात... बहुत ही मासूम होता है... वह आकाश ढूंढ लेता... पर जमीन नहीं छोड़ता...
वीर - वाव... तो... मुझे क्या करना चाहिए...
प्रताप - (कुछ सोचते हुए) अगर तुम उसे सही से समझते हो... तो गौर करो.. वह किन बातों से खुश होती है... उसे वही खुशियाँ... एक का सौ बना कर दो... एक बात याद रखना... जो भी करना... तुम्हीं करना... और ऐसे करना... जो वह भी समझे... के ऐसा सिर्फ और सिर्फ तुम्हीं कर सकते थे... कोई और नहीं...
वीर - मतलब...
प्रताप - देखो... अपने प्रेमी के मुहँ से... आई लव यु सुनना... एक लड़की के लिए... बहुत ही खास मौका... या पल होता है... उसे तुम कितना खास कर सकते हो... या बना सकते हो... यह तुम पर है...
वीर - (आँखे फाड़े प्रताप को देखे जा रहा था)
प्रताप - देखो वीर... मैं यह तो जानता ही हूँ... अनु तुमसे प्यार करती है... और शायद तुम भी जानते हो... समझते हो... एक बात याद रखना... तुम्हारा प्यार का इजहार... उसके जीवन का सबसे अनमोल क्षण होगा...(वीर को देख कर) क्या हुआ...
वीर - पता नहीं यार... तुम्हारी बातेँ सुन कर मुझे लगा... जैसे मेरे अंदर... कोई बिजली सी दौड़ गई...
वीर - हाँ... यही तो प्यार है... तो मेरे दोस्त... प्यार विश्वास का दुसरा नाम है... और विश्वास उसे कहते हैं... जो.... पत्थर में भगवान को ढूंढ लेता है...
वीर - (प्रताप को एक जम्हाई लेते हुए स्टूडेंट की तरह देखते हुए) यार एक बात कहूँ... तुम्हारी बातेँ जोश तो भर देती है... पर समझ में कुछ नहीं आया...
प्रताप - (मुस्कराते हुए) इंसान चाहे कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो जाए... उसके अंदर हमेशा एक बच्चा होता है... तुम अनु के भीतर की उस बच्चे को ढूंढो और उसे खुश करो... उसके बाद यह तीन अनमोल शब्द कहना... भारी नहीं लगेंगे...
वीर - वाव... अब कुछ kchu समझ में आ गया... थैंक्स.. थैंक्स यार...

वीर उठ कर जाने लगता है के अचानक रुक जाता है l

प्रताप - क्या हुआ...
वीर - यार कल जल्दबाजी में भुल गया था... आज भी भुल जाता... तुम्हारा फोन नंबर दो यार...
प्रताप - अररे हाँ...

उसके बाद दोनों अपने अपने फोन नंबर एक्सचेंज कर लेते हैं l वीर उसे बाय कह कर चला जाता है l

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हस्पताल के उसी रुम में एक नर्स रोणा को ट्यूब की जरिए जूस पिलाती है, उसके बाद दवा देती है और उसे आराम करने को कह कर खाने की थाली ले कर चली जाती है l यह सब सोफ़े पर बैठ बल्लभ देख रहा था l नर्स के जाते ही वह रोणा के पास आता है l

बल्लभ - प्राइवेट हस्पतालों की बात ही कुछ और है नहीं...
रोणा - (सुजा हुआ जबड़ा हिला कर मुश्किल से कहता है) स.. साले... कमीने.. मैं यहाँ बेड पर पड़ा हुआ हूँ... मेरे घाव और दर्द के इलाज में... यह प्राइवेट और गवर्नमेंट कहाँ से आया बे...
बल्लभ - साले... कितनी बढ़िया बढ़िया नर्स हैं यहाँ... मैं तो पीछे उसका बम्पर देख रहा था वहाँ से... तु तो आगे से बड़े बड़े... हूँउम्म... मजे हो रहे थे तेरे... हा हा हा हा...
रोणा - मादरचोद... तु यहाँ मेरा मज़ाक उड़ा रहा है...
बल्लभ - मैं... मजाक उड़ा रहा हूँ... भोषड़ी के... मैं वहाँ बैठ कर सब देख रहा था... तेरे कमर के नीचे वाला तंबु का बैलेंस बिगड़ने से... हिल रहा था... साले... कमीने मुझे लगता है... इसलिए कोई नर्स यहाँ तेरे पास नहीं रह रही है... कुछ जरूरत पड़ा... तो मुझे बाहर जाकर बुलाना पड़ रहा है...
रोणा - अबे यह नेचुरल है बे...
बल्लभ - हाँ... सौ फीसद नेचुरल ही है... सुबह भी गए थे ना.... दुर्लभ नेचुरल पिछवाड़ा का दर्शन के लिए....
हो गयी सुलभ कुटाई... आ गए सूजा हुआ थोबड़ा लिए... वह सब नेचुरल ही था...
रोणा - कहा ना... वह सब प्लान्ड था...
बल्लभ - हाँ प्लान्ड था... पर किया किसने... एक मिनट... कहीं यह उस लड़के की करतूत तो नहीं...
रोणा - किस लड़के की...
बल्लभ - अबे वही... जिसे एक्जाम में कॉपी सप्लाई के जुर्म में लॉकअप में रखा था.. और जिसकी माँ से रात भर ज़मानत ले रहा था...
रोणा - नहीं... वह नहीं था...
बल्लभ - क्यूँ नहीं हो सकता....
रोणा - वह एक बच्चा है... और मुझे पकड़ कर मारने वाले बच्चे नहीं थे...
बल्लभ - तो... कौन हो सकते हैं...
रोणा - (चुप रहता है और अपनी अधखुले दायीं आँख से बल्लभ को देखने लगता है)
बल्लभ - तेरी खिड़की इसतरह से बंद है कि... तु देख क्यूँ रहा है... कुछ समझ में नहीं आ रहा है...

तभी बल्लभ की फोन बजने लगती है l फोन निकाल कर बल्लभ देखता है छोटे राजा डिस्प्ले हो रहा था l

बल्लभ - हैलो...
पिनाक - हाँ... प्रधान... तुम लोग कटक कब आए...
बल्लभ - जी... परसों रात को...
पिनाक - तो हमें ख़बर क्यूँ नहीं की...
बल्लभ - जी... वह कुछ पर्सनल इंफॉर्मेशन कलेक्शन था... पर आपको कैसे मालुम हुआ... हमारे यहाँ आने की किसीको खबर नहीं थी...
पिनाक - क्यूँ... कोई सीक्रेट विजिट था क्या...
बल्लभ - जी...
पिनाक - तो फिर सर्किट हाउस में ठहरने की क्या जरूरत थी.... सरकारी खाते से... मुफ्त की खाने और पीने के लिए...
बल्लभ - जी ऐसी बात नहीं है....
पिनाक - अभी हो कहाँ पर...
बल्लभ - जी... xxxx हस्पताल में...
पिनाक - क्यूँ... तुम्हें क्या हो गया...
बल्लभ - जी मुझे नहीं... वह... इंस्पेक्टर रोणा को...
पिनाक - व्हाट... उसे क्या हुआ...
बल्लभ - जी... राहजनी... रास्ते में लूटपाट.... (बल्लभ सारी बातेँ बता देता है)
पिनाक - कोई केस वगैरह...
बल्लभ - वह... माल गोदाम थाने का इंचार्ज... साहू... इस केस की छानबीन कर रहा है....
पिनाक - ठीक है... हम कुछ ही देर में... xxxx हस्पताल पहुँच रहे हैं...
बल्लभ - जी...

फोन कट जाता है तो बल्लभ फोन को अपने जेब में वापस रख देता है l रोणा की ओर देखता है l

रोणा - मेरे पीटने की खबर... छोटे राजा जी को ऐसे सुनाया... जैसे मुझे राष्ट्रपति से वीरता का पुरस्कार मिलने वाला हो...
बल्लभ - देख यार... जब छोटे राजा जी को मालूम है... तो बता देना मैंने ठीक समझा... अब... साहू छानबीन कर रहा है... कुछ ना कुछ तो पता चल ही जाएगा...
रोणा - कुछ नहीं पता कर पाएगा...
बल्लभ - तुम यह कैसे कह सकते हो...
रोणा - (चुप रहता है)
बल्लभ - (उसकी चुप्पी को देख कर कुछ सोचता है और अचानक उसकी आँखे बड़ी हो जाती है) कहीं तुम... यह तो कहना नहीं चाहते... की इन सब के पीछे विश्व है...
रोणा - (चुप्पी के साथ अपना सिर हाँ में हिलाता है)
बल्लभ - यह... यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो... तुमने ही तो पुलिस को स्टेटमेंट दिया है... उस लड़के का चेहरा रुमाल से ढका हुआ था... अब जो दिखा नहीं... तुम उसका नाम कैसे ले सकते हो...
रोणा - इसलिए... कि मेरे चेहरे की हालत लगभग वही हुआ है... जैसा मैंने विश्व का किया था... और मेरी दाहिना टांग... मसल क्रैम्प के वजह से काम नहीं कर रहा है... हिलाने की कोशिश करता हूँ... तो पांव बहुत दर्द करने लगता है...
बल्लभ - अरे यार... कोई इत्तेफ़ाक भी तो हो सकता है...
रोणा - हाँ अगर मार सिर्फ चेहरे पर और पेट पर लगती... उसने मेरे बायें जांघ को कुछ नहीं किया... सिर्फ़ दाहिने जांघ पर बहुत मारता रहा...
बल्लभ - तो इस वजह से... तु यह समझने लग गया... कि वह विश्व है.. जिसने... तुझे जी भर के धोया है....
रोणा - हाँ... क्यूंकि... उसके सिवा कोई है ही नहीं... जो मुझ पर अपना खुन्नस... इस कदर निकाले...
बल्लभ - ठीक है... पर विश्वा... ऐसा करेगा... मेरा मतलब है... अगर सच में यह राहजनी का केस निकला तो...
रोणा - तु अपने हिसाब से सोच... सोचने की तुझे आजादी है... चल तेरी इफ और बट इस तरफ लाता हूँ... अगर वह विश्व हुआ तो...
बल्लभ - अरे यार नाराज मत हो... अच्छा चल... एक पल के लिए मान भी लिया... कि वह विश्वा है... तो
रोणा - तो... उसने यह जता दिया कि हम सब उसके नजर में हैं... पर वह नहीं...
बल्लभ - क्या...
रोणा - हम उसे यहाँ ढूंढने आए जरूर हैं... पर उसकी नजर हम पर है... हम उस तक नहीं पहुँच सकते... पर वह हम तक जरूर पहुँचेगा...

बल्लभ के आँखे बड़ी हो जाती हैं और कान खड़े हो जाते हैं l एक अंदरुनी डर का एहसास होता है l बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से थूक निगलता है l

बल्लभ - अगर वह विश्वा है... तो... यहाँ कटक में क्या कर रहा है...
रोणा - तैयारी... कुछ ना कुछ... तैयारी ही कर रहा है...
बल्लभ - किस चीज़ की तैयारी...
रोणा - यही तो जानने हम आए हैं यहाँ...
बल्लभ - तुने जैसा कहा... कि हम उसके नजर में हो सकते हैं... क्या राजगड़ में भी... वह हम पर नजर रख रहा होगा...
रोणा - पता नहीं... पर... अगर यह बात सही है... तो उसकी तैयारी कुछ बड़ा करने की है...
बल्लभ - अनिकेत... अगर तेरी बात में जरा भी सच्चाई होगी... हालांकि मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है.... तो इतना जरूर कहूँगा... के मैंने उसे... बहुत कम कर आंका है....

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एक बस स्टॉप पर रुप खड़ी बस का इंतजार कर रही है l तीन लफंगे टपोरी टाइप के लड़के उस बस स्टॉप में रुप को देखे जा रहे हैं और हल्का हल्का कमेंट्स किए जा रहे हैं l उनकी बातों को इग्नोर करते हुए रुप बस का इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद एक सिटी बस वहाँ आती है रुप बस के अंदर चली जाती है l पीछे पीछे वह लड़के भी बस में चढ़ जाते हैं l रुप लेडीज सीट के पास जाकर खड़ी हो जाती है l वह लड़के भी रुप से कुछ दूरी बना कर खड़े हो जाते हैं l अगली स्टॉप पर एक लेडीज सीट खाली हो जाती है l रुप जाकर वहाँ बैठ जाती है और इधर उधर देखने लगती है l जब कोई और लड़की उसे नहीं दिखती वह अपना वैनिटी बैग अपने बगल में सीट पर रख देती है l तभी उसे प्रताप दिखता है, प्रताप उसी स्टॉपेज पर बस चढ़ता है l प्रताप बस के अंदर आकर नजर घुमा कर अपने लिए सीट ढूंढता है l पर उसे नजर नहीं आता तो वह खड़ा रहता है l तभी उसकी नजर लेडीज सीट पर बैठे रुप पर पड़ती है जो उसीके तरफ देख रही थी l प्रताप उसको देख कर हल्का सा मुस्करा देता है, जवाब में रुप भी बहुत हल्का सा मुस्करा देती है l रुप अपनी वैनिटी बैग उठा कर अपनी चेहरे को अपने कंधे पर हल्का सा झुका कर अपने पास बैठने के लिए इशारा करती है l प्रताप मुस्कराते हुए हल्का सा अपने बाएं गाल पर हाथ फेरते हुए सिर हिला कर ना कहता है l रुप अपनी नाक को होठों के साथ मुहँ मोड़ कर अपनी बैग वापस सीट रख देती है l तभी जो लड़के रुप को फॉलो करते हुए बस पर चढ़े थे वह सभी रुप को घुरते हुए भद्दी हँसी हँसते हुए एक दुसरे को इशारा करने लगते हैं l इतने में उनमें से एक रुप के पास जा कर

एक - हैलो मिस... (रुप उसे घूर कर देखती है) क्या तुम अपनी बैग यहाँ से निकलोगी....
रुप - क्यूँ...
एक - क्यूंकि ... यह सीट खाली है...
रुप - तो...
एक - तो... तो... तुम अकेली हो... पर दो सीट पर कब्जाए बैठी हो... जब कि यहाँ पर और भी पैसेंजर हैं.... जो कि खड़े हुए हैं...
रुप - ऐ... मिस्टर... यह लेडीज सीट है...
एक - तो क्या हुआ... जेन्ट्स सीट में अगर लेडीज शेयर कर बैठ सकते हैं... तो लेडीज सीट हम क्यूँ नहीं शेयर कर सकते...
रुप - ओ... अच्छा... इस बस में... कौनसी सीट जेन्ट्स के लिए है... और कहाँ पर लिखा हुआ है... बताओ...

वह एक इधर उधर देखने लगता है l और कहता है
- जहां लेडीज लिखा नहीं है... वह जेन्ट्स की है...
रुप - अच्छा... तो एमएलए या दीव्यांगों के लिए क्यूँ नहीं... और सीनियर सिटिजन के लिए क्यूँ नहीं...

वह एक खीज जाता है l क्यूँकी उन दोनों की बहस पुरा बस सुन रहा था और सभी लोग मजे भी ले रहे थे l वह खुद का पोपट बनता देख रुप को उंगली दिखा कर
- ऐ... लड़की.. तु अपनी लड़की होने की फायदा मत उठा... लड़कों से बात करने की तमीज नहीं है तुझमें...

रुप बैठे बैठे उसकी उंगली पकड़ कर उपर की ओर मोड़ कर उसीके तरफ मरोड़ देती है l वह लड़का घुटने पर आ जाता है और चिल्लाने लगता है l उसके साथी रुप की और बढ़ने लगते हैं l रुप उसकी उंगली को और जोर से झटक देती है l वह लड़का और जोर से छटपटाते हुए चिल्लाने लगता है l जिसे देख कर उसके साथी रुक जाते हैं l

रुप - किसको तमीज नहीं है...
वह एक - सॉरी... सॉरी... हममें तमीज नहीं है...

रुप झटके से उसे छोड़ देती है l वह अपनी उंगली को जोर से हिला कर फूँक मारने लगता है और रुप को खा जाने वाले नजर से देखता है l तभी स्टॉपेज आ जाता है l वह लड़का झट से रुप का बैग उठा कर भागने की कोशिश करता है पर तभी उसे विश्व टंगड़ी मार देता है l वह लड़का बैग के साथ मुहँ के बल गिरता है l रुप अपनी जगह से उठती है और दोनों हाथों से उस लड़के की सिर के बाल पकड़ कर नोचने लगती है

रुप - कमीने... लुच्चे... चोर कहीं के...
वह लड़का - आ आ.. आह.. बचाओ... कोई मुझे बचाओ...

वह जो लड़के रुप के साथ उठे थे वह सभी रुप के पास आते हैं

उनमें से एक - बहन जी बहन जी... इसे हम संभाल लेंगे.. आप अपनी जगह पर बैठ जाइए...

रुप वापस अपनी जगह पर बैठ जाती है l वह सारे लड़के उस एक को लेकर नीचे उतरते हैं l और बिना पीछे देखे वहाँ से भाग जाते हैं l गाड़ी फिर से चलने लगती है l रुप इस बार प्रताप को घुर कर देखती है l प्रताप उसे हैरान हो कर मुहँ फाड़े देख रहा है l रुप इस बार फिर से अपनी वैनिटी बैग उठा कर अपनी पलकें झपका देती है l विश्व अपना हाथ अपने बाएं गाल पर रख देता है l रुप अपनी जबड़े भींच कर विश्व को देखती है I विश्व चुप चाप आकर रुप की बगल में बैठ जाता है l उसके बैठते ही रूप मुस्करा कर चेहरा घुमा कर बाहर की ओर देखने लगती है l फिर थोड़ी देर बाद इशारे से विश्व को साइड होने के लिए कहती है l विश्व अपना पैर साइड कर देता है l रुप हँसते हुए सीट से उठ कर बस के पीछे की चली जाती है l विश्व खिड़की से देखता है ड्राइविंग स्कुल वाली जंक्शन आगई तो वह भी हड़बड़ा कर सीट से उठ जाता है और पीछे की ओर जा कर रुप के पीछे खड़ा हो जाता है l गाड़ी के रुकते ही दोनों उतर जाते हैं l उतरने के बाद दोनों एक-दूसरे को देखते हुए पहले मुस्कराने लगते हैं फिर हँसने लगते हैं l

विश्व - तो... आप शरारत भी कर लेती हैं... मुझे उल्लू बना दिया...
रुप - मैंने आपको पहले बुलाया था... आप आए क्यूँ नहीं...
विश्व - क्या करूँ... (अपने बाएं गाल पर हाथ रखते हुए) जब भी हम मिले हैं... कोई ना कोई आपसे पीट ही रहा है...
रुप - हा हा हा... सिर्फ आपको छोड़ कर... गलती उनकी रही है... वैसे... लेकिन आज पुरी गलती आपकी है...
विश्व - वह क्यूँ...
रुप - मैंने बुलाया था आपको... पर आप आए नहीं...
विश्व - अरे... आप ही ने तो कल दो बंदों की ट्युशन ली थी... गाड़ी में कलर पकड़ कर.... लेडीज सीट... वगैरह वगैरह...
रुप - हा हा हा... (खिल खिला कर हँसने लगती है)

थोड़ी देर के लिए विश्व रुप की हँसी में खो जाता है, रुप को यह आभास होते ही हँसी रोक देती है और शर्म से अपना चेहरा घुमा लेती है l

विश्व - (बात बदलने के लिए) वैसे आज आप यहाँ इतनी जल्दी... और आपकी वह दोस्त...
रुप - मेरी दोस्त... ना... आपकी मुहँ बोली बहन...
विश्व - (मुस्करा देता है) हाँ वही...
रुप - बता दूँगी... आप बताइए... आज आप जल्दी क्यूँ और किसलिए...
विश्व - मेरा दिन भर कुछ काम ही नहीं है... माँ के कोर्ट जाने के बाद... डैड अपनी पेंशन और पोस्ट रिटायर्मेंट के दुसरे बेनिफिट के लिए... ट्रेजरी ऑफिस चले जाते हैं... तो अकेला बोर हो रहा था... इसलिए दोस्त को ढूंढते हुए... उसके पास दो पल बिताया... और उसके जाने के बाद... सीधे यहाँ आ गया... और... आप...
रुप - मैं अपने भाई से मिलने... उनके ऑफिस गई थी... तो वहाँ पर थोड़ी देर हो गई... इसलिए कॉलेज ना जा कर यहाँ आ गई...

दोनों फिर ख़ामोश हो जाते हैं l चलते चलते उनकी मंजिल ड्राइविंग स्कुल आ जाती है l


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वीर अपने कैबिन में आते ही अंदर अनु को कॉफी बनाते देखता है l अनु की पीठ उसकी तरफ है वह पीछे एक प्यारी सी मुस्कान के साथ मुड़ कर वीर को देखती है l उसकी मुस्कान देख कर वीर का दिल और जोर से धड़कने लगता है l

अनु - आप शायद... लंच बाहर से कर आए हैं...
वीर - नहीं अभी तक तो नहीं... पर मैं जब भी आता हूँ... तुम्हें पहले कॉफी बनाते हुए देखता हूँ...
अनु - (अपनी बड़ी बड़ी काली आँखे मीट मीट करते हुए वीर के तरफ घुम कर ) मुझे लगा... आप को अभी कॉफी की जरूरत होगी...
वीर - (अपने मन में) मुझे कॉफी की नहीं.... तेरी तलब है)
अनु - राज कुमार जी....
वीर - (चौंक कर) हाँ.... हाँ...
अनु - (कॉफी देते हुए) यह लीजिए...
वीर कॉफी की सीप लेते हुए कुछ सोचता है, फिर मन ही मन मुस्कराने लगता है l अनु उसे यूँ अपने आप मुस्कराते हुए देख कर

अनु - राज कुमार जी... कुछ खास बात है क्या...
वीर - (अनु की मासूमियत भरी सुंदरता में खोने लगता है)
अनु - राज कुमार जी... (वीर फिर चौंकता है) आज... आप बहुत खोए खोए लग रहे हैं...

वीर कॉफी की ग्लास को टेबल पर रख देता है और अपने कैबिन के बीचों-बीच आकर आँखे बंद करते हुए सिर को छत की और कर अपनी बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l एक गहरी सांस लेते हुए अनु की देखता है l

वीर - मैं आज बहुत खुश हूँ अनु...
अनु - (ख़ुश हो कर, जिज्ञासा भरी लहजे में ) किस लिए राज कुमार जी...
वीर - (अनु की चेहरे की ओर देखते हुए) मैं बहुत... बहुत... बहुत ही ज्यादा खुश हूँ अनु... बहुत ज्यादा खुश हूँ...
अनु - (हँसते हुए) हाँ राज कुमार जी... पर किस लिए...
वीर - (अपने मन में) अरे मेरी ट्यूब लाइट... समझती क्यूँ नहीं...
अनु - (जिज्ञासा से अपनी बड़ी बड़ी आँखों से वीर की ओर देख कर जवाब के इंतजार में है)
वीर - (अनु की आँखों में झाँक कर) ओ हो अनु... (समझाने के लहजे में) मैं आज बहुत खुश हूँ... यह खुशी मुझसे संभले नहीं संभल रहा....

अनु को अब समझ में आ जाता है l उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता है l अपनी नीचे की होंठ को दांतों तले दबा कर वीर की और देखने की कोशिश करती है l अपनी कान के पास लटों को पीछे की ओर ले जाती है l अपनी पैर से फर्श पर कुरेदने लगती है l वीर अनु की मनोदशा समझ जाता है l

वीर - अनु... (बुलाता है)

अनु अपना सिर उठा कर वीर को देखती है l वीर फिर से अपनी बाहें फैला कर अनु की ओर देखता है l अनु धीरे से आगे बढ़ती है, आगे बढ़ती है, वीर के करीब आकर खड़ी हो जाती है l वीर की धड़कने बढ़ जाती हैं l उसे अपनी दिल की धक धक साफ सुनाई दे रही थी l अचानक अनु कमरे से भाग जाती है l वीर का चेहरा पहले उतर जाता है और फिर मुस्कराते हुए अपनी सिर पर टफली मारता है l उधर अनु भागते हुए बाहर के वॉशरुम में घुस जाती है l वह वॉशरुम के अंदर दरवाजा बंद करने के बाद उससे पीठ के बल सट कर अपनी आंखें बंद कर बहुत तेज तेज सांस ले रही थी l कुछ देर बार वह वॉशरुम के आईने के सामने खड़ी हो जाती है l अपनी चेहरे की परछाई को भी शर्म के मारे देख नहीं पा रही थी l फिर शर्म से लज्जा कर अपनी मोबाइल निकालती है जिसकी स्क्रीन पर वीर की तस्वीर दिखती है और उस तस्वीर को कहने लगती है l

अनु - राजकुमार जी... आप क्यूँ नहीं समझ रहे हैं... मैं एक लड़की हूँ... मैं कैसे पहल करूँ... आप अगर मुझे गले लगा भी लेते... मैं कहाँ रोक लेती आपको... मैं तो आपकी ही हूँ... पर हमेशा पहल आपको ही करनी होगी... हूँ...


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हस्पताल में रोणा बेड पर लेटा हुआ है l पिनाक कमरे में सोफ़े पर बैठा हुआ है और बल्लभ उसके पास खड़ा है और सुबह की बातेँ पिनाक को बता रहा है l

पिनाक - ह्म्म्म्म... (खड़े हो कर रोणा के पास जा कर ) ठीक है... मैंने माल गोदाम सीआई को बुलाया है... वह आता ही होगा... देखते हैं... उसने क्या पता किया है...
रोणा - (कराहते हुए) छोटे राजा जी... आप बेकार में परेशान हो रहे हैं... हमारी जॉब में ऐसा होता है... किसकी पुरानी दुश्मनी रही होगी...
पिनाक - रोणा... भीमा ने हमें बताया था... राजा साहब से मिलने के बाद... तुम लोग... राजगड़ से निकले थे... पर कहाँ... यह राजा साहब ने भीमा से भी जिक्र नहीं किया था... इसलिए तो हमें मालूम भी ना हुआ... कि तुम दोनों... राजा साहब के काम से कटक आए हो... देखो राजा साहब का काम है... बीच में रुकना नहीं चाहिए... अब तुम आराम करो.... (बल्लभ से) हाँ तो प्रधान... अब बोलो... किस काम के लिए कटक आए हो...

बल्लभ रोणा की ओर देखता है l रोणा बल्लभ को सिर हिला कर इशारे से कुछ ना कहने को कहता है l तभी कमरे का दरवाज़ा खुलता है एक नर्स बड़ा सा गुलदस्ता ले कर आती है और एक बॉक्स के साथ एक ग्रीटिंग कार्ड दे कर "सर किसीने रिसेप्शन में आपके लिए यह गुलदस्ता और यह बॉक्स दे कर" गेट वेल सुन सर" कहने के लिए कहा है"
इतना कह कर नर्स चली जाती है l रोणा से कार्ड लेकर बल्लभ खोल कर देखता है उसमें भी गेट वेल सुन लिखा हुआ है पर भेजने वाले का नाम पता कुछ भी नहीं है l

बल्लभ - यह रोणा का ज़रूर कोई चाहने वाला होगा...
पिनाक - हूँम्म्... खैर छोड़ो.. मैंने तुमसे कुछ पूछा था...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी... वह हम दरअसल यहाँ... (रोणा की ओर देखता है, रोणा इशारे से मना करता है) असल में... किसी को ढूंढने आए हैं...
पिनाक - किसे...
बल्लभ - वह.. उसकी लास्ट पोस्टिंग में... रोणा का किसी से झगड़ा हो गया था... जैल में डाल दिया था... अब उसने रोणा को चैलेंज किया.. तो हम उसे पकड़ने... राजा साहब से परमिशन ले कर आए हैं...
पिनाक - ओ.. तभी... तभी मैं सोचूँ... राजा साहब को ऐसा कौनसा काम पड़ गया कि मुझसे कुछ कहा भी नहीं...

तभी दरवाजा खोल कर एक पुलिस ऑफिसर अंदर आता है और पिनाक को सैल्यूट मारता है l

पिनाक - आओ इंस्पेक्टर... बताओ क्या डेवलपमेंट है...
इंस्पेक्टर - डेवलपमेंट... किस बारे में डेवलपमेंट...
पिनाक - अरे... सुबह तुम्ही ने इसकी स्टेटमेंट ली थी ना...
इंस्पेक्टर - (हैरानी से रोणा को देख कर) नो सर... मैंने कोई स्टेटमेंट नहीं ली...
पिनाक - तुम इंस्पेक्टर साहू ही हो ना...
इंस्पेक्टर - ऑफकोर्स... छोटे राजा जी... आई आम इंस्पेक्टर इन चार्ज... मालगोदाम पुलिस स्टेशन... सनातन साहू

साहू नाम सुन कर बल्लभ और रोणा हैरान हो जाते हैं और एक दुसरे को देखने लगते हैं l

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शाम को ड्रॉइंग हॉल में सोफ़े पर बैठ कर शुभ्रा दरवाज़े पर नजर गड़ाए हुए है l क्यूँकी रुप की आने का वक़्त हो चुका था I
"टिंग टोंग"
नौकरानी भागते हुए जाती है दरवाजा खोलती है l रुप अंदर आती है अपने आप में हँसती हुई शुभ्रा की ओर देखे वगैर ऊपर अपने कमरे की ओर चली जाती है l

शुभ्रा - क्या हो गया इस लड़की को... कोई हाय नहीं... कोई हैलो नहीं...

तभी डोर बेल फिर से बजती है l नौकरानी फिर से भाग कर दरवाज़ा खोलती है l वीर अंदर आता है वह भी बिल्कुल रुप की ही तरह अपने आप में मुस्कराते हुए झूमते हुए बिना शुभ्रा की ओर देखे अपने कमरे की ओर चला जाता है l

शुभ्रा - यह भी... आज इन दोनों भाई बहन को क्या हो गया...

डायनिंग टेबल पर तीनों बैठे हुए हैं I शुभ्रा को लगता है कि दोनों बहुत खुश हैं l

शुभ्रा - क्या बात है... आज तुम दोनों किसी अलग दुनिया में हो... या किसी अलग दुनिया से आए हो...
रुप - मतलब...
शुभ्रा - अररे... आज शाम को तुम दोनों घर तो आए... पर मुझे किसीने हाय हैलो भी नहीं कहा... क्यूँ...
वीर - ओ... एक्चुयली भाभी... मैं एक केस पर खुद स्टडी कर रहा हूँ... बड़ी मेहनत से खुद वह सिरा ढूँढा है... इसलिए कुछ ज्यादा ही खुश था... सॉरी... उम्म्म्म्म...
शुभ्रा - (रुप से तुम्हारी क्या स्टोरी है) वह... भाभी... आज ना ड्राइविंग स्कुल में बहुत मज़ा आया... वह मैं एक चैलेंज जीत गई... इसलिए...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... अच्छा...

अचानक शुभ्रा चुप हो जाती है l हैरान हो कर ड्रॉइंग हॉल की तरफ देखती है और उठ खड़ी हो जाती है l वीर और रुप हैरान हो जाते हैं वह भी उठ खड़े हो जाते हैं l वीर कुछ पूछने को होता है कि रुप इशारे से रोक देती है l शुभ्रा ड्रॉइंग हॉल की तरफ चली जाती है l

वीर - (धीरे से) यह भाभी को क्या हो गया...
रुप - आई बेट... भैया आए होंगे...
वीर - व्हाट... तुम यह कैसे कह सकती हो...
रुप - भाभी... भैया की आहट दूर से भी पहचान जाती हैं...
वीर - अच्छा...

वे दोनों जाकर शुभ्रा के पास खड़े होते हैं l
"टिंग टोंग"
डोर बेल बजती है l नौकरानी दौड़ कर दरवाज़ा खोल देती है l विक्रम अंदर आता है l रुप और वीर उसे देख कर हैरान हो जाते हैं l सेव्ड चेहरा, तलवार की धार सी मूँछ और सफेद रंग के शूट में विक्रम बहुत ही आकर्षक दिख रहा था l शुभ्रा की ओर देखता है l
अभी तो वीर प्रताप से दोस्ती निभा रहा है मगर तब क्या होगा जब उसे पता चलेगा की वो तो क्षेत्रपाल खानदान का सबसे बड़ा दुश्मन है और रूप का बचपन का प्यार। क्या वीर अनु का प्यार क्षेत्रपाल खानदान को कबूल होगा? विश्व सही कहता है की रूप हमेशा झांसी की रानी ही बनी रहती है। विक्रम भी आज वापस आया है तो देखते है कि क्या विराम माफी मांग कर शुभ्रा को माना पता है और अपनी कसम निभा पाता है या नहीं? बेहतरीन अपडेट।
 

Rajesh

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👉चौरासीवां अपडेट (2)
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xxxx मॉल के कॉफी डे स्टॉल के सामने एक टेबल पर बैठ कर वीर अपने आप में खोया हुआ था l चेहरे से लग रहा था जैसे वह किसी से नाराज था l बार बार अपनी मुट्ठी को मसल रहा था l बेशक रुप को अपनी ऑफिस से थोड़ी दूर उतार कर यहाँ चला आया था और वीर उस बात को लेकर असमंजस में था l विक्रम कैसा रिएक्ट किया होगा I कहीं रुप डर तो नहीं गई होगी, अगर डरी होगी तो, बेचारी रो पड़ी होगी l इसी सोच में घिरा वीर अपना फोन निकाल कर रुप को फोन लगाता है l फोन लगते ही

वीर - हैलो...
रुप - (अपना सुबकना बंद कर) हाँ... हाँ भाई बोलो...
वीर - तु... तु रो रही है... (आवाज कड़क कर) विक्रम भैया ने कुछ कहा क्या...
रुप - नहीं भैया नहीं... उन्होंने कुछ भी नहीं कहा... यह तो... मैं खुशी के मारे रो रही हूँ...
वीर - क्या...
रुप - हाँ... हाँ भैया.. हाँ...
वीर - तु रो रही है... और कह रही है... खुशी के मारे...
रुप - ही ही ही... (हँस कर) भैया... जब से मैंने होश संभाला था... (रोते और हँसते) तब से ना कभी भी तुमसे या विक्रम भैया से बात नहीं की थी मैंने... हाँ कभी कभी तुम या भैया कुछ बोल देते थे... पर मैंने कभी भी बात शुरु नहीं की थी... तुमने तो अपने तरफ से शुरु की... पर आज... सच कहती हूँ... बहुत डर लगा था मुझे... पर... पता नहीं... कैसे... मैंने कैसे हिम्मत कर ली... और बात भी कर ली... बस... इसी बात की खुशी.... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही है भैया...
वीर - तु... तु कहाँ है... बोल... अभी... अभी मैं.. आता हूँ तेरे पास...
रुप - नहीं भैया नहीं... यह कैसी भावना है... नहीं जान पा रही हूँ भैया... इस फिलिंग्स को क्या कहूँ... नहीं समझ पा रही हूँ... रो रही हूँ... हँस भी रही हूँ... दर्द सा महसुस हो रहा है... पर उससे कहीं ज्यादा गुदगुदा रहा है... मैं ठीक हुँ... मैं ठीक हुँ भैया... वैसे... थैंक्स भैया...
वीर - थैंक्स... वह किसलिए...
रुप - हे हे हे... (हँसते हुए) मेरे जन्म दिन पर... तुम मेरे लिए भाई का तोहफा बन कर आए...
वीर - अब तु मुझे रुलाएगी क्या... तु भी तो उसी दिन मुझे प्यारी बहन बन कर तोहफे में मिली... इस बात के लिए मैं तुझे थैंक्स कहता हूँ...
रुप - सच.. सच कह रही हूँ भैया... जबसे आप भाई बन कर मेरी जिंदगी में आए हो... मेरी ना... हिम्मत सौ गुना... नहीं नहीं... बल्कि हजार गुना बढ़ गई है... सच... भाई अगर हिम्मत बन कर खड़ा हो जाए... तो कोई भी बहन दुनिया को जीत सकती है...
वीर - चल झूठी... रॉकी को सबक सिखाने के लिए जब गई थी... मैं कहाँ तेरे साथ था... तब तो बड़ी शेरनी बन कर गई थी...
रुप - तब भी मुझे इस बात की हिम्मत थी... के मैं वीर सिंह की बहन हूँ....
वीर - बस बस... बस कर.. वरना... मैं सचमुच रो दूँगा...
रुप - ओके... फोन रखती हूँ... बाय..
वीर - ऐ रुक रुक...
रुप - हाँ...
वीर - तु है अभी कहाँ... और कॉलेज कैसे जाएगी...
रुप - भैया... अभी सभी विक्रम भैया से लड़ कर आयी हूँ... बच्ची नहीं हूँ मैं... डोंट वरी भैया... आज मुझे इस खुशी के साथ पुरा दिन गुजारना है...
वीर - तो...
रुप - तो आज मुझे खुद तय करने दो... कॉलेज और ड्राइविंग स्कुल का सफर... अब रखूं फोन...
वीर - हाँ... चल रख... बाय...
रुप - बाय भैया...

वीर जज्बाती हो जाता है l उसे अंदर ही अंदर अच्छा लगने लगता है l अपने चारों तरफ नजर दौड़ता है l लगभग हर एक टेबल पर प्रेम के जोड़े बैठे हैं, और सभी एक ही ग्लास में से कॉफी पी रहे हैं और एक-दूसरे से बातेँ करते हुए मुस्करा रहे हैं l उन सभी जोड़ों को देख कर वीर मन ही मन मुस्कराता है l अपनी घड़ी देखता है फिर वह लिफ्ट की ओर देखता है l उसे सीढियों से प्रताप को आते देखता है l प्रताप उसे दूर से हाथ हिला कर इशारे से हाय करता है l जवाब में वीर भी हाय का इशारा करता है l प्रताप उसके सामने बैठते ही सर्विस बॉय दो कॉफी की ग्लास उनके सामने रख देता है l

प्रताप - अरे... कॉफी पहले से ही ऑर्डर कर रखा था क्या...
वीर - हाँ...
प्रताप - मतलब... कौन आने वाला था... या थी...
वीर - यह कॉफी उसीको सर्व हुई है... जिसके लिए ऑर्डर हुई थी...
प्रताप - ओ.. थैंक्स... मेरे लिए... वाव... भई मैं आऊंगा... ऐसा तुम्हें सपना आया था क्या...
वीर - हाँ... ऐसा ही कुछ...

दोनों कॉफी पीने लगते हैं l फ़िर दोनों अपने आस-पास नजरें घुमाते हैं l

प्रताप - ह्म्म्म्म... इसका मतलब... तुम्हें मेरा इंतजार था... किसलिए भाई...
वीर - मैं एक दिन... इन्हीं बगुलों के बीच अपनी हंसीनी के साथ... यहाँ... नहीं तो कहीं और सही... पर एक ही ग्लास से कॉफी पीना चाहता हूँ...
प्रताप - उम्म्.... बहुत ही नेक विचार है.... केरी ऑन माय फ्रेंड... केरी ऑन...
वीर - वह तो मैं उठा ही लूँगा... पर गुरु ज्ञान तो तुम्हीं दे सकते हो... इस मामले में... मुझे तुम्हारी मदद चाहिए....
प्रताप - मेरी मदत... अरे... मैं क्या मदद कर सकता हूँ...
वीर - अररे... मुझे प्यार हुआ है... यह तो एहसास करा दिया... अब इजहार करने में... मेरी मदद करो...
प्रताप - देखो भाई... यह एक ऐसा रास्ता है... मैं फिर से कहता हूँ... डोंट फॉलो एनी वन... चाहे वह मजनू हो... या रांझा... यु मेक योर ऑव्न रोड... राह भी तुम्हारी... और मंजिल भी तुम्हारी....
वीर - तुम्हारी बात सही है... पर... तुम नहीं समझ सकते... मेरी हालत अभी क्या है...
प्रताप - अच्छा... तो समझाओ...
वीर - (एका एक चुप हो जाता है) (असंमनजस सा हो जाता है, कहाँ से शुरु करे और कैसे शुरु करे)
प्रताप - (कुछ देर उसको देखने के बाद) लगता है... बड़ी विषम परिस्थिति में हो...
वीर - (प्रताप की ओर देखते हुए) हाँ... हाँ.. एक्चुयली... मैं बहुत आसान समझ रहा था...
प्रताप - क्या...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो कर) आई लव यु कहना...
प्रताप - (वीर को हैरान हो कर देखने लगता है)
वीर - बहुत... भारी है... बहुत मुश्किल है... इस आई लव यु को उठाना... जब इसे उठाना... जताना... बताना... इतना मुश्किल है.. तो निभाना कितना मुश्किल होगा...
प्रताप - (वीर की बातेँ सुन कर कुछ सोचने लगता है)
वीर - प्रताप...
प्रताप - हाँ... हाँ.. बोलो...
वीर - मैं और क्या बोलूँ... अब... तुम्हीं बताओ... मैं उसे कैसे आई लव यु कहूँ... ताकि वह इंप्रेस हो जाए...
प्रताप - इंप्रेस... किस बात के लिये इंप्रेस... इंप्रेशन नौकरी के लिए ज़माना होता है... प्यार के लिए नहीं... मुझे लगता है... इंप्रेशन गलत शब्द है... प्यार के लिए...
वीर - (हैरान हो कर) कैसे...
प्रताप - इंप्रेशन से ईमेज बनता है... देखने की नज़रिया बदलता है... पर यहाँ मामला दिल का है... इंप्रेशन एक मैच्योर्ड शब्द है... और मेरा मानना है कि... प्यार इंसान के अंदर के बच्चे को जगा देता है... जिसकी हर बात... हर ज़ज्बात... बहुत ही मासूम होता है... वह आकाश ढूंढ लेता... पर जमीन नहीं छोड़ता...
वीर - वाव... तो... मुझे क्या करना चाहिए...
प्रताप - (कुछ सोचते हुए) अगर तुम उसे सही से समझते हो... तो गौर करो.. वह किन बातों से खुश होती है... उसे वही खुशियाँ... एक का सौ बना कर दो... एक बात याद रखना... जो भी करना... तुम्हीं करना... और ऐसे करना... जो वह भी समझे... के ऐसा सिर्फ और सिर्फ तुम्हीं कर सकते थे... कोई और नहीं...
वीर - मतलब...
प्रताप - देखो... अपने प्रेमी के मुहँ से... आई लव यु सुनना... एक लड़की के लिए... बहुत ही खास मौका... या पल होता है... उसे तुम कितना खास कर सकते हो... या बना सकते हो... यह तुम पर है...
वीर - (आँखे फाड़े प्रताप को देखे जा रहा था)
प्रताप - देखो वीर... मैं यह तो जानता ही हूँ... अनु तुमसे प्यार करती है... और शायद तुम भी जानते हो... समझते हो... एक बात याद रखना... तुम्हारा प्यार का इजहार... उसके जीवन का सबसे अनमोल क्षण होगा...(वीर को देख कर) क्या हुआ...
वीर - पता नहीं यार... तुम्हारी बातेँ सुन कर मुझे लगा... जैसे मेरे अंदर... कोई बिजली सी दौड़ गई...
वीर - हाँ... यही तो प्यार है... तो मेरे दोस्त... प्यार विश्वास का दुसरा नाम है... और विश्वास उसे कहते हैं... जो.... पत्थर में भगवान को ढूंढ लेता है...
वीर - (प्रताप को एक जम्हाई लेते हुए स्टूडेंट की तरह देखते हुए) यार एक बात कहूँ... तुम्हारी बातेँ जोश तो भर देती है... पर समझ में कुछ नहीं आया...
प्रताप - (मुस्कराते हुए) इंसान चाहे कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो जाए... उसके अंदर हमेशा एक बच्चा होता है... तुम अनु के भीतर की उस बच्चे को ढूंढो और उसे खुश करो... उसके बाद यह तीन अनमोल शब्द कहना... भारी नहीं लगेंगे...
वीर - वाव... अब कुछ kchu समझ में आ गया... थैंक्स.. थैंक्स यार...

वीर उठ कर जाने लगता है के अचानक रुक जाता है l

प्रताप - क्या हुआ...
वीर - यार कल जल्दबाजी में भुल गया था... आज भी भुल जाता... तुम्हारा फोन नंबर दो यार...
प्रताप - अररे हाँ...

उसके बाद दोनों अपने अपने फोन नंबर एक्सचेंज कर लेते हैं l वीर उसे बाय कह कर चला जाता है l

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हस्पताल के उसी रुम में एक नर्स रोणा को ट्यूब की जरिए जूस पिलाती है, उसके बाद दवा देती है और उसे आराम करने को कह कर खाने की थाली ले कर चली जाती है l यह सब सोफ़े पर बैठ बल्लभ देख रहा था l नर्स के जाते ही वह रोणा के पास आता है l

बल्लभ - प्राइवेट हस्पतालों की बात ही कुछ और है नहीं...
रोणा - (सुजा हुआ जबड़ा हिला कर मुश्किल से कहता है) स.. साले... कमीने.. मैं यहाँ बेड पर पड़ा हुआ हूँ... मेरे घाव और दर्द के इलाज में... यह प्राइवेट और गवर्नमेंट कहाँ से आया बे...
बल्लभ - साले... कितनी बढ़िया बढ़िया नर्स हैं यहाँ... मैं तो पीछे उसका बम्पर देख रहा था वहाँ से... तु तो आगे से बड़े बड़े... हूँउम्म... मजे हो रहे थे तेरे... हा हा हा हा...
रोणा - मादरचोद... तु यहाँ मेरा मज़ाक उड़ा रहा है...
बल्लभ - मैं... मजाक उड़ा रहा हूँ... भोषड़ी के... मैं वहाँ बैठ कर सब देख रहा था... तेरे कमर के नीचे वाला तंबु का बैलेंस बिगड़ने से... हिल रहा था... साले... कमीने मुझे लगता है... इसलिए कोई नर्स यहाँ तेरे पास नहीं रह रही है... कुछ जरूरत पड़ा... तो मुझे बाहर जाकर बुलाना पड़ रहा है...
रोणा - अबे यह नेचुरल है बे...
बल्लभ - हाँ... सौ फीसद नेचुरल ही है... सुबह भी गए थे ना.... दुर्लभ नेचुरल पिछवाड़ा का दर्शन के लिए....
हो गयी सुलभ कुटाई... आ गए सूजा हुआ थोबड़ा लिए... वह सब नेचुरल ही था...
रोणा - कहा ना... वह सब प्लान्ड था...
बल्लभ - हाँ प्लान्ड था... पर किया किसने... एक मिनट... कहीं यह उस लड़के की करतूत तो नहीं...
रोणा - किस लड़के की...
बल्लभ - अबे वही... जिसे एक्जाम में कॉपी सप्लाई के जुर्म में लॉकअप में रखा था.. और जिसकी माँ से रात भर ज़मानत ले रहा था...
रोणा - नहीं... वह नहीं था...
बल्लभ - क्यूँ नहीं हो सकता....
रोणा - वह एक बच्चा है... और मुझे पकड़ कर मारने वाले बच्चे नहीं थे...
बल्लभ - तो... कौन हो सकते हैं...
रोणा - (चुप रहता है और अपनी अधखुले दायीं आँख से बल्लभ को देखने लगता है)
बल्लभ - तेरी खिड़की इसतरह से बंद है कि... तु देख क्यूँ रहा है... कुछ समझ में नहीं आ रहा है...

तभी बल्लभ की फोन बजने लगती है l फोन निकाल कर बल्लभ देखता है छोटे राजा डिस्प्ले हो रहा था l

बल्लभ - हैलो...
पिनाक - हाँ... प्रधान... तुम लोग कटक कब आए...
बल्लभ - जी... परसों रात को...
पिनाक - तो हमें ख़बर क्यूँ नहीं की...
बल्लभ - जी... वह कुछ पर्सनल इंफॉर्मेशन कलेक्शन था... पर आपको कैसे मालुम हुआ... हमारे यहाँ आने की किसीको खबर नहीं थी...
पिनाक - क्यूँ... कोई सीक्रेट विजिट था क्या...
बल्लभ - जी...
पिनाक - तो फिर सर्किट हाउस में ठहरने की क्या जरूरत थी.... सरकारी खाते से... मुफ्त की खाने और पीने के लिए...
बल्लभ - जी ऐसी बात नहीं है....
पिनाक - अभी हो कहाँ पर...
बल्लभ - जी... xxxx हस्पताल में...
पिनाक - क्यूँ... तुम्हें क्या हो गया...
बल्लभ - जी मुझे नहीं... वह... इंस्पेक्टर रोणा को...
पिनाक - व्हाट... उसे क्या हुआ...
बल्लभ - जी... राहजनी... रास्ते में लूटपाट.... (बल्लभ सारी बातेँ बता देता है)
पिनाक - कोई केस वगैरह...
बल्लभ - वह... माल गोदाम थाने का इंचार्ज... साहू... इस केस की छानबीन कर रहा है....
पिनाक - ठीक है... हम कुछ ही देर में... xxxx हस्पताल पहुँच रहे हैं...
बल्लभ - जी...

फोन कट जाता है तो बल्लभ फोन को अपने जेब में वापस रख देता है l रोणा की ओर देखता है l

रोणा - मेरे पीटने की खबर... छोटे राजा जी को ऐसे सुनाया... जैसे मुझे राष्ट्रपति से वीरता का पुरस्कार मिलने वाला हो...
बल्लभ - देख यार... जब छोटे राजा जी को मालूम है... तो बता देना मैंने ठीक समझा... अब... साहू छानबीन कर रहा है... कुछ ना कुछ तो पता चल ही जाएगा...
रोणा - कुछ नहीं पता कर पाएगा...
बल्लभ - तुम यह कैसे कह सकते हो...
रोणा - (चुप रहता है)
बल्लभ - (उसकी चुप्पी को देख कर कुछ सोचता है और अचानक उसकी आँखे बड़ी हो जाती है) कहीं तुम... यह तो कहना नहीं चाहते... की इन सब के पीछे विश्व है...
रोणा - (चुप्पी के साथ अपना सिर हाँ में हिलाता है)
बल्लभ - यह... यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो... तुमने ही तो पुलिस को स्टेटमेंट दिया है... उस लड़के का चेहरा रुमाल से ढका हुआ था... अब जो दिखा नहीं... तुम उसका नाम कैसे ले सकते हो...
रोणा - इसलिए... कि मेरे चेहरे की हालत लगभग वही हुआ है... जैसा मैंने विश्व का किया था... और मेरी दाहिना टांग... मसल क्रैम्प के वजह से काम नहीं कर रहा है... हिलाने की कोशिश करता हूँ... तो पांव बहुत दर्द करने लगता है...
बल्लभ - अरे यार... कोई इत्तेफ़ाक भी तो हो सकता है...
रोणा - हाँ अगर मार सिर्फ चेहरे पर और पेट पर लगती... उसने मेरे बायें जांघ को कुछ नहीं किया... सिर्फ़ दाहिने जांघ पर बहुत मारता रहा...
बल्लभ - तो इस वजह से... तु यह समझने लग गया... कि वह विश्व है.. जिसने... तुझे जी भर के धोया है....
रोणा - हाँ... क्यूंकि... उसके सिवा कोई है ही नहीं... जो मुझ पर अपना खुन्नस... इस कदर निकाले...
बल्लभ - ठीक है... पर विश्वा... ऐसा करेगा... मेरा मतलब है... अगर सच में यह राहजनी का केस निकला तो...
रोणा - तु अपने हिसाब से सोच... सोचने की तुझे आजादी है... चल तेरी इफ और बट इस तरफ लाता हूँ... अगर वह विश्व हुआ तो...
बल्लभ - अरे यार नाराज मत हो... अच्छा चल... एक पल के लिए मान भी लिया... कि वह विश्वा है... तो
रोणा - तो... उसने यह जता दिया कि हम सब उसके नजर में हैं... पर वह नहीं...
बल्लभ - क्या...
रोणा - हम उसे यहाँ ढूंढने आए जरूर हैं... पर उसकी नजर हम पर है... हम उस तक नहीं पहुँच सकते... पर वह हम तक जरूर पहुँचेगा...

बल्लभ के आँखे बड़ी हो जाती हैं और कान खड़े हो जाते हैं l एक अंदरुनी डर का एहसास होता है l बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से थूक निगलता है l

बल्लभ - अगर वह विश्वा है... तो... यहाँ कटक में क्या कर रहा है...
रोणा - तैयारी... कुछ ना कुछ... तैयारी ही कर रहा है...
बल्लभ - किस चीज़ की तैयारी...
रोणा - यही तो जानने हम आए हैं यहाँ...
बल्लभ - तुने जैसा कहा... कि हम उसके नजर में हो सकते हैं... क्या राजगड़ में भी... वह हम पर नजर रख रहा होगा...
रोणा - पता नहीं... पर... अगर यह बात सही है... तो उसकी तैयारी कुछ बड़ा करने की है...
बल्लभ - अनिकेत... अगर तेरी बात में जरा भी सच्चाई होगी... हालांकि मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है.... तो इतना जरूर कहूँगा... के मैंने उसे... बहुत कम कर आंका है....

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एक बस स्टॉप पर रुप खड़ी बस का इंतजार कर रही है l तीन लफंगे टपोरी टाइप के लड़के उस बस स्टॉप में रुप को देखे जा रहे हैं और हल्का हल्का कमेंट्स किए जा रहे हैं l उनकी बातों को इग्नोर करते हुए रुप बस का इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद एक सिटी बस वहाँ आती है रुप बस के अंदर चली जाती है l पीछे पीछे वह लड़के भी बस में चढ़ जाते हैं l रुप लेडीज सीट के पास जाकर खड़ी हो जाती है l वह लड़के भी रुप से कुछ दूरी बना कर खड़े हो जाते हैं l अगली स्टॉप पर एक लेडीज सीट खाली हो जाती है l रुप जाकर वहाँ बैठ जाती है और इधर उधर देखने लगती है l जब कोई और लड़की उसे नहीं दिखती वह अपना वैनिटी बैग अपने बगल में सीट पर रख देती है l तभी उसे प्रताप दिखता है, प्रताप उसी स्टॉपेज पर बस चढ़ता है l प्रताप बस के अंदर आकर नजर घुमा कर अपने लिए सीट ढूंढता है l पर उसे नजर नहीं आता तो वह खड़ा रहता है l तभी उसकी नजर लेडीज सीट पर बैठे रुप पर पड़ती है जो उसीके तरफ देख रही थी l प्रताप उसको देख कर हल्का सा मुस्करा देता है, जवाब में रुप भी बहुत हल्का सा मुस्करा देती है l रुप अपनी वैनिटी बैग उठा कर अपनी चेहरे को अपने कंधे पर हल्का सा झुका कर अपने पास बैठने के लिए इशारा करती है l प्रताप मुस्कराते हुए हल्का सा अपने बाएं गाल पर हाथ फेरते हुए सिर हिला कर ना कहता है l रुप अपनी नाक को होठों के साथ मुहँ मोड़ कर अपनी बैग वापस सीट रख देती है l तभी जो लड़के रुप को फॉलो करते हुए बस पर चढ़े थे वह सभी रुप को घुरते हुए भद्दी हँसी हँसते हुए एक दुसरे को इशारा करने लगते हैं l इतने में उनमें से एक रुप के पास जा कर

एक - हैलो मिस... (रुप उसे घूर कर देखती है) क्या तुम अपनी बैग यहाँ से निकलोगी....
रुप - क्यूँ...
एक - क्यूंकि ... यह सीट खाली है...
रुप - तो...
एक - तो... तो... तुम अकेली हो... पर दो सीट पर कब्जाए बैठी हो... जब कि यहाँ पर और भी पैसेंजर हैं.... जो कि खड़े हुए हैं...
रुप - ऐ... मिस्टर... यह लेडीज सीट है...
एक - तो क्या हुआ... जेन्ट्स सीट में अगर लेडीज शेयर कर बैठ सकते हैं... तो लेडीज सीट हम क्यूँ नहीं शेयर कर सकते...
रुप - ओ... अच्छा... इस बस में... कौनसी सीट जेन्ट्स के लिए है... और कहाँ पर लिखा हुआ है... बताओ...

वह एक इधर उधर देखने लगता है l और कहता है
- जहां लेडीज लिखा नहीं है... वह जेन्ट्स की है...
रुप - अच्छा... तो एमएलए या दीव्यांगों के लिए क्यूँ नहीं... और सीनियर सिटिजन के लिए क्यूँ नहीं...

वह एक खीज जाता है l क्यूँकी उन दोनों की बहस पुरा बस सुन रहा था और सभी लोग मजे भी ले रहे थे l वह खुद का पोपट बनता देख रुप को उंगली दिखा कर
- ऐ... लड़की.. तु अपनी लड़की होने की फायदा मत उठा... लड़कों से बात करने की तमीज नहीं है तुझमें...

रुप बैठे बैठे उसकी उंगली पकड़ कर उपर की ओर मोड़ कर उसीके तरफ मरोड़ देती है l वह लड़का घुटने पर आ जाता है और चिल्लाने लगता है l उसके साथी रुप की और बढ़ने लगते हैं l रुप उसकी उंगली को और जोर से झटक देती है l वह लड़का और जोर से छटपटाते हुए चिल्लाने लगता है l जिसे देख कर उसके साथी रुक जाते हैं l

रुप - किसको तमीज नहीं है...
वह एक - सॉरी... सॉरी... हममें तमीज नहीं है...

रुप झटके से उसे छोड़ देती है l वह अपनी उंगली को जोर से हिला कर फूँक मारने लगता है और रुप को खा जाने वाले नजर से देखता है l तभी स्टॉपेज आ जाता है l वह लड़का झट से रुप का बैग उठा कर भागने की कोशिश करता है पर तभी उसे विश्व टंगड़ी मार देता है l वह लड़का बैग के साथ मुहँ के बल गिरता है l रुप अपनी जगह से उठती है और दोनों हाथों से उस लड़के की सिर के बाल पकड़ कर नोचने लगती है

रुप - कमीने... लुच्चे... चोर कहीं के...
वह लड़का - आ आ.. आह.. बचाओ... कोई मुझे बचाओ...

वह जो लड़के रुप के साथ उठे थे वह सभी रुप के पास आते हैं

उनमें से एक - बहन जी बहन जी... इसे हम संभाल लेंगे.. आप अपनी जगह पर बैठ जाइए...

रुप वापस अपनी जगह पर बैठ जाती है l वह सारे लड़के उस एक को लेकर नीचे उतरते हैं l और बिना पीछे देखे वहाँ से भाग जाते हैं l गाड़ी फिर से चलने लगती है l रुप इस बार प्रताप को घुर कर देखती है l प्रताप उसे हैरान हो कर मुहँ फाड़े देख रहा है l रुप इस बार फिर से अपनी वैनिटी बैग उठा कर अपनी पलकें झपका देती है l विश्व अपना हाथ अपने बाएं गाल पर रख देता है l रुप अपनी जबड़े भींच कर विश्व को देखती है I विश्व चुप चाप आकर रुप की बगल में बैठ जाता है l उसके बैठते ही रूप मुस्करा कर चेहरा घुमा कर बाहर की ओर देखने लगती है l फिर थोड़ी देर बाद इशारे से विश्व को साइड होने के लिए कहती है l विश्व अपना पैर साइड कर देता है l रुप हँसते हुए सीट से उठ कर बस के पीछे की चली जाती है l विश्व खिड़की से देखता है ड्राइविंग स्कुल वाली जंक्शन आगई तो वह भी हड़बड़ा कर सीट से उठ जाता है और पीछे की ओर जा कर रुप के पीछे खड़ा हो जाता है l गाड़ी के रुकते ही दोनों उतर जाते हैं l उतरने के बाद दोनों एक-दूसरे को देखते हुए पहले मुस्कराने लगते हैं फिर हँसने लगते हैं l

विश्व - तो... आप शरारत भी कर लेती हैं... मुझे उल्लू बना दिया...
रुप - मैंने आपको पहले बुलाया था... आप आए क्यूँ नहीं...
विश्व - क्या करूँ... (अपने बाएं गाल पर हाथ रखते हुए) जब भी हम मिले हैं... कोई ना कोई आपसे पीट ही रहा है...
रुप - हा हा हा... सिर्फ आपको छोड़ कर... गलती उनकी रही है... वैसे... लेकिन आज पुरी गलती आपकी है...
विश्व - वह क्यूँ...
रुप - मैंने बुलाया था आपको... पर आप आए नहीं...
विश्व - अरे... आप ही ने तो कल दो बंदों की ट्युशन ली थी... गाड़ी में कलर पकड़ कर.... लेडीज सीट... वगैरह वगैरह...
रुप - हा हा हा... (खिल खिला कर हँसने लगती है)

थोड़ी देर के लिए विश्व रुप की हँसी में खो जाता है, रुप को यह आभास होते ही हँसी रोक देती है और शर्म से अपना चेहरा घुमा लेती है l

विश्व - (बात बदलने के लिए) वैसे आज आप यहाँ इतनी जल्दी... और आपकी वह दोस्त...
रुप - मेरी दोस्त... ना... आपकी मुहँ बोली बहन...
विश्व - (मुस्करा देता है) हाँ वही...
रुप - बता दूँगी... आप बताइए... आज आप जल्दी क्यूँ और किसलिए...
विश्व - मेरा दिन भर कुछ काम ही नहीं है... माँ के कोर्ट जाने के बाद... डैड अपनी पेंशन और पोस्ट रिटायर्मेंट के दुसरे बेनिफिट के लिए... ट्रेजरी ऑफिस चले जाते हैं... तो अकेला बोर हो रहा था... इसलिए दोस्त को ढूंढते हुए... उसके पास दो पल बिताया... और उसके जाने के बाद... सीधे यहाँ आ गया... और... आप...
रुप - मैं अपने भाई से मिलने... उनके ऑफिस गई थी... तो वहाँ पर थोड़ी देर हो गई... इसलिए कॉलेज ना जा कर यहाँ आ गई...

दोनों फिर ख़ामोश हो जाते हैं l चलते चलते उनकी मंजिल ड्राइविंग स्कुल आ जाती है l


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वीर अपने कैबिन में आते ही अंदर अनु को कॉफी बनाते देखता है l अनु की पीठ उसकी तरफ है वह पीछे एक प्यारी सी मुस्कान के साथ मुड़ कर वीर को देखती है l उसकी मुस्कान देख कर वीर का दिल और जोर से धड़कने लगता है l

अनु - आप शायद... लंच बाहर से कर आए हैं...
वीर - नहीं अभी तक तो नहीं... पर मैं जब भी आता हूँ... तुम्हें पहले कॉफी बनाते हुए देखता हूँ...
अनु - (अपनी बड़ी बड़ी काली आँखे मीट मीट करते हुए वीर के तरफ घुम कर ) मुझे लगा... आप को अभी कॉफी की जरूरत होगी...
वीर - (अपने मन में) मुझे कॉफी की नहीं.... तेरी तलब है)
अनु - राज कुमार जी....
वीर - (चौंक कर) हाँ.... हाँ...
अनु - (कॉफी देते हुए) यह लीजिए...
वीर कॉफी की सीप लेते हुए कुछ सोचता है, फिर मन ही मन मुस्कराने लगता है l अनु उसे यूँ अपने आप मुस्कराते हुए देख कर

अनु - राज कुमार जी... कुछ खास बात है क्या...
वीर - (अनु की मासूमियत भरी सुंदरता में खोने लगता है)
अनु - राज कुमार जी... (वीर फिर चौंकता है) आज... आप बहुत खोए खोए लग रहे हैं...

वीर कॉफी की ग्लास को टेबल पर रख देता है और अपने कैबिन के बीचों-बीच आकर आँखे बंद करते हुए सिर को छत की और कर अपनी बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l एक गहरी सांस लेते हुए अनु की देखता है l

वीर - मैं आज बहुत खुश हूँ अनु...
अनु - (ख़ुश हो कर, जिज्ञासा भरी लहजे में ) किस लिए राज कुमार जी...
वीर - (अनु की चेहरे की ओर देखते हुए) मैं बहुत... बहुत... बहुत ही ज्यादा खुश हूँ अनु... बहुत ज्यादा खुश हूँ...
अनु - (हँसते हुए) हाँ राज कुमार जी... पर किस लिए...
वीर - (अपने मन में) अरे मेरी ट्यूब लाइट... समझती क्यूँ नहीं...
अनु - (जिज्ञासा से अपनी बड़ी बड़ी आँखों से वीर की ओर देख कर जवाब के इंतजार में है)
वीर - (अनु की आँखों में झाँक कर) ओ हो अनु... (समझाने के लहजे में) मैं आज बहुत खुश हूँ... यह खुशी मुझसे संभले नहीं संभल रहा....

अनु को अब समझ में आ जाता है l उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता है l अपनी नीचे की होंठ को दांतों तले दबा कर वीर की और देखने की कोशिश करती है l अपनी कान के पास लटों को पीछे की ओर ले जाती है l अपनी पैर से फर्श पर कुरेदने लगती है l वीर अनु की मनोदशा समझ जाता है l

वीर - अनु... (बुलाता है)

अनु अपना सिर उठा कर वीर को देखती है l वीर फिर से अपनी बाहें फैला कर अनु की ओर देखता है l अनु धीरे से आगे बढ़ती है, आगे बढ़ती है, वीर के करीब आकर खड़ी हो जाती है l वीर की धड़कने बढ़ जाती हैं l उसे अपनी दिल की धक धक साफ सुनाई दे रही थी l अचानक अनु कमरे से भाग जाती है l वीर का चेहरा पहले उतर जाता है और फिर मुस्कराते हुए अपनी सिर पर टफली मारता है l उधर अनु भागते हुए बाहर के वॉशरुम में घुस जाती है l वह वॉशरुम के अंदर दरवाजा बंद करने के बाद उससे पीठ के बल सट कर अपनी आंखें बंद कर बहुत तेज तेज सांस ले रही थी l कुछ देर बार वह वॉशरुम के आईने के सामने खड़ी हो जाती है l अपनी चेहरे की परछाई को भी शर्म के मारे देख नहीं पा रही थी l फिर शर्म से लज्जा कर अपनी मोबाइल निकालती है जिसकी स्क्रीन पर वीर की तस्वीर दिखती है और उस तस्वीर को कहने लगती है l

अनु - राजकुमार जी... आप क्यूँ नहीं समझ रहे हैं... मैं एक लड़की हूँ... मैं कैसे पहल करूँ... आप अगर मुझे गले लगा भी लेते... मैं कहाँ रोक लेती आपको... मैं तो आपकी ही हूँ... पर हमेशा पहल आपको ही करनी होगी... हूँ...


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हस्पताल में रोणा बेड पर लेटा हुआ है l पिनाक कमरे में सोफ़े पर बैठा हुआ है और बल्लभ उसके पास खड़ा है और सुबह की बातेँ पिनाक को बता रहा है l

पिनाक - ह्म्म्म्म... (खड़े हो कर रोणा के पास जा कर ) ठीक है... मैंने माल गोदाम सीआई को बुलाया है... वह आता ही होगा... देखते हैं... उसने क्या पता किया है...
रोणा - (कराहते हुए) छोटे राजा जी... आप बेकार में परेशान हो रहे हैं... हमारी जॉब में ऐसा होता है... किसकी पुरानी दुश्मनी रही होगी...
पिनाक - रोणा... भीमा ने हमें बताया था... राजा साहब से मिलने के बाद... तुम लोग... राजगड़ से निकले थे... पर कहाँ... यह राजा साहब ने भीमा से भी जिक्र नहीं किया था... इसलिए तो हमें मालूम भी ना हुआ... कि तुम दोनों... राजा साहब के काम से कटक आए हो... देखो राजा साहब का काम है... बीच में रुकना नहीं चाहिए... अब तुम आराम करो.... (बल्लभ से) हाँ तो प्रधान... अब बोलो... किस काम के लिए कटक आए हो...

बल्लभ रोणा की ओर देखता है l रोणा बल्लभ को सिर हिला कर इशारे से कुछ ना कहने को कहता है l तभी कमरे का दरवाज़ा खुलता है एक नर्स बड़ा सा गुलदस्ता ले कर आती है और एक बॉक्स के साथ एक ग्रीटिंग कार्ड दे कर "सर किसीने रिसेप्शन में आपके लिए यह गुलदस्ता और यह बॉक्स दे कर" गेट वेल सुन सर" कहने के लिए कहा है"
इतना कह कर नर्स चली जाती है l रोणा से कार्ड लेकर बल्लभ खोल कर देखता है उसमें भी गेट वेल सुन लिखा हुआ है पर भेजने वाले का नाम पता कुछ भी नहीं है l

बल्लभ - यह रोणा का ज़रूर कोई चाहने वाला होगा...
पिनाक - हूँम्म्... खैर छोड़ो.. मैंने तुमसे कुछ पूछा था...
बल्लभ - जी छोटे राजा जी... वह हम दरअसल यहाँ... (रोणा की ओर देखता है, रोणा इशारे से मना करता है) असल में... किसी को ढूंढने आए हैं...
पिनाक - किसे...
बल्लभ - वह.. उसकी लास्ट पोस्टिंग में... रोणा का किसी से झगड़ा हो गया था... जैल में डाल दिया था... अब उसने रोणा को चैलेंज किया.. तो हम उसे पकड़ने... राजा साहब से परमिशन ले कर आए हैं...
पिनाक - ओ.. तभी... तभी मैं सोचूँ... राजा साहब को ऐसा कौनसा काम पड़ गया कि मुझसे कुछ कहा भी नहीं...

तभी दरवाजा खोल कर एक पुलिस ऑफिसर अंदर आता है और पिनाक को सैल्यूट मारता है l

पिनाक - आओ इंस्पेक्टर... बताओ क्या डेवलपमेंट है...
इंस्पेक्टर - डेवलपमेंट... किस बारे में डेवलपमेंट...
पिनाक - अरे... सुबह तुम्ही ने इसकी स्टेटमेंट ली थी ना...
इंस्पेक्टर - (हैरानी से रोणा को देख कर) नो सर... मैंने कोई स्टेटमेंट नहीं ली...
पिनाक - तुम इंस्पेक्टर साहू ही हो ना...
इंस्पेक्टर - ऑफकोर्स... छोटे राजा जी... आई आम इंस्पेक्टर इन चार्ज... मालगोदाम पुलिस स्टेशन... सनातन साहू

साहू नाम सुन कर बल्लभ और रोणा हैरान हो जाते हैं और एक दुसरे को देखने लगते हैं l

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शाम को ड्रॉइंग हॉल में सोफ़े पर बैठ कर शुभ्रा दरवाज़े पर नजर गड़ाए हुए है l क्यूँकी रुप की आने का वक़्त हो चुका था I
"टिंग टोंग"
नौकरानी भागते हुए जाती है दरवाजा खोलती है l रुप अंदर आती है अपने आप में हँसती हुई शुभ्रा की ओर देखे वगैर ऊपर अपने कमरे की ओर चली जाती है l

शुभ्रा - क्या हो गया इस लड़की को... कोई हाय नहीं... कोई हैलो नहीं...

तभी डोर बेल फिर से बजती है l नौकरानी फिर से भाग कर दरवाज़ा खोलती है l वीर अंदर आता है वह भी बिल्कुल रुप की ही तरह अपने आप में मुस्कराते हुए झूमते हुए बिना शुभ्रा की ओर देखे अपने कमरे की ओर चला जाता है l

शुभ्रा - यह भी... आज इन दोनों भाई बहन को क्या हो गया...

डायनिंग टेबल पर तीनों बैठे हुए हैं I शुभ्रा को लगता है कि दोनों बहुत खुश हैं l

शुभ्रा - क्या बात है... आज तुम दोनों किसी अलग दुनिया में हो... या किसी अलग दुनिया से आए हो...
रुप - मतलब...
शुभ्रा - अररे... आज शाम को तुम दोनों घर तो आए... पर मुझे किसीने हाय हैलो भी नहीं कहा... क्यूँ...
वीर - ओ... एक्चुयली भाभी... मैं एक केस पर खुद स्टडी कर रहा हूँ... बड़ी मेहनत से खुद वह सिरा ढूँढा है... इसलिए कुछ ज्यादा ही खुश था... सॉरी... उम्म्म्म्म...
शुभ्रा - (रुप से तुम्हारी क्या स्टोरी है) वह... भाभी... आज ना ड्राइविंग स्कुल में बहुत मज़ा आया... वह मैं एक चैलेंज जीत गई... इसलिए...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... अच्छा...

अचानक शुभ्रा चुप हो जाती है l हैरान हो कर ड्रॉइंग हॉल की तरफ देखती है और उठ खड़ी हो जाती है l वीर और रुप हैरान हो जाते हैं वह भी उठ खड़े हो जाते हैं l वीर कुछ पूछने को होता है कि रुप इशारे से रोक देती है l शुभ्रा ड्रॉइंग हॉल की तरफ चली जाती है l

वीर - (धीरे से) यह भाभी को क्या हो गया...
रुप - आई बेट... भैया आए होंगे...
वीर - व्हाट... तुम यह कैसे कह सकती हो...
रुप - भाभी... भैया की आहट दूर से भी पहचान जाती हैं...
वीर - अच्छा...

वे दोनों जाकर शुभ्रा के पास खड़े होते हैं l
"टिंग टोंग"
डोर बेल बजती है l नौकरानी दौड़ कर दरवाज़ा खोल देती है l विक्रम अंदर आता है l रुप और वीर उसे देख कर हैरान हो जाते हैं l सेव्ड चेहरा, तलवार की धार सी मूँछ और सफेद रंग के शूट में विक्रम बहुत ही आकर्षक दिख रहा था l शुभ्रा की ओर देखता है l
Wah wah kya shaandar update hai bhai maza aa gaya

Akhir Vikram the hell me laut kar aa hi gaya

Aur idhar Veer ki prem ki rail gadi patri par daud hi padi akhir daude bhi kyo na shikh jo Vishwa de raha hai

Dusri taraf taraf vishwa aur rup me baat chit ka silsila bhi dheere dheere shuru ho gaya hai

Inspector Rona ko kis agyat chahne wale ne get well soon ke sath guldasta bhijwaya hai
Kahi wo vishwa hi to nahi

Aur sabse jyada chaukane wali baat to yah ki jo inspector subah sahu Bankar aaya tha woh kon tha
Yah soch kar to Rona aur Pradhan ka dimaag hi ghum gaya hoga

Ab Pradhan bhi Rona ke sath sur me sur milayega vishwa ko dhundhne aur shayad ab pitne ki bari Pradhan ki hi hai

Superb update hai bhai maza aa gaya



Waiting for the next update bro
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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159
Wah wah kya shaandar update hai bhai maza aa gaya
धन्यबाद Rajesh भाई
Akhir Vikram the hell me laut kar aa hi gaya
वक़्त जो आ गया है कहीं गुल खिलेंगे कहीं कांटे उगेंगे
Aur idhar Veer ki prem ki rail gadi patri par daud hi padi akhir daude bhi kyo na shikh jo Vishwa de raha hai
हाँ विश्व उसे राह दिखा रहा है और वीर उसी राह में दौड़ता जा रहा है
Dusri taraf taraf vishwa aur rup me baat chit ka silsila bhi dheere dheere shuru ho gaya hai
हाँ फिर भी अभी एक दुसरे से अनजान हैं
Inspector Rona ko kis agyat chahne wale ne get well soon ke sath guldasta bhijwaya hai
Kahi wo vishwa hi to nahi
यह भी अगले आने वाले समय में मालुम हो जाएगा
Aur sabse jyada chaukane wali baat to yah ki jo inspector subah sahu Bankar aaya tha woh kon tha
Yah soch kar to Rona aur Pradhan ka dimaag hi ghum gaya hoga
हाँ उनका दिमाग का दही बन गया है
Ab Pradhan bhi Rona ke sath sur me sur milayega vishwa ko dhundhne aur shayad ab pitne ki bari Pradhan ki hi hai

Superb update hai bhai maza aa gaya
यह भी आने वाले समय पर छोड़ देते हैं
Waiting for the next update bro
थैंक्स Rajesh भाई
 
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