अंततः नंदिनी के जन्मदिन का भाग आ ही गया, काफी समय से इस प्रकरण की प्रतीक्षा थी कहानी में। इसके भी दो कारण थे, पहला विश्व की रिहाई और दूसरा “विश्व–रूप" की पहली औपचारिक भेंट। विश्व का जेल से रिहा होना, काफी भाव विभोर करने वाला भाग था वो। मंडल बाबू और विश्व के बीच की बातचीत दिल को छू गई। 7 वर्षों तक विश्व जेल में रहा है, बहुत लंबा समय होता है ये किसी के साथ भी भावनात्मक रूप से जुड़ जाने के लिए। हालांकि, खान को अधिक समय नही हुआ है विश्व से मिले, परंतु स्पष्ट रूप से उसका भी विश्व के साथ एक जुड़ाव देखा जा सकता है। तापस और प्रतिभा के साथ सीलू, टीलू, मिलु और जिलू भी विश्व के स्वागत में जेल के बाहर मौजूद थे। लगा ही था के इन चारों और विश्व की मित्रता आगे तक कायम रहने वाली है। आश्चर्यजनक नही होगा यदि कुछ समय बाद डैनी का भी दोबारा कहानी में आगमन हो जाए। वैसे, डैनी को लेकर मेरे मन में एक शंका ज़रूर है, अभी उसका ज़िक्र नही करूंगा, देखते हैं वो सही होती है या नही।
शुभ्रा अभी तक एक कुशल गृहणी और एक बेहद ही सुंदर सीरत की मालकिन के रूप में कहानी में नज़र आई है। उसका नंदिनी को अपनी ननद की जगह छोटी बहन मानना, उसे वो प्रेम देना जो उसे “क्षेत्रपाल" नामक पिंजरे में कभी नहीं मिला, उसके भावों को.. उसके मन की स्तिथि को समझना, शुभ्रा हर तरह से नंदिनी को वो सब देने की कोशिश में जुटी है, जो कहीं न कहीं वो खुद खो चुकी है। क्षेत्रपाल उपनाम जैसे ही शुभ्रा के नाम के संग जुड़ा उसका जीवन तो पलट ही गया था, और उसके बाद उसके और विक्रम के बीच आई वो अघोषित दूरियां, शुभ्रा के अकेलेपन को नंदिनी की ज़रूरत थी और नंदिनी को शायद शुभ्रा की। दोनों का ये बंधन सत्य में अद्भुत है, और इसमें कोई शंका नही के यदि कोई नंदिनी को आज सबसे अधिक समझता है तो वो शुभ्रा है है।
शुभ्रा का नंदिनी के जन्मदिन पर उसकी सभी बातें मानना, क्षेत्रपाल परिवार की प्रथा जानते हुए भी नंदिनी का जन्मदिन मनाना, नंदिनी के दिल में उस “अनाम" खालीपन को समझना, ये सभी केवल और केवल इसी बात को पुख्ता करते हैं। खैर, वीर को नंदिनी के जन्मदिन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, अब इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नही था। ये सभी पात्र एक परिवार से जुड़े होने की बजाए, केवल एक उपनाम से जुड़े हुए हैं, इन सभी के बीच खून का रिश्ता जरूर है, पर वो सभी रिश्ते रक्त–रंजित हो चुके हैं, कितने ही बेगुनाहों की चीखें, कितनी ही नादान और बेकसूर लड़कियों की सिसकियां, और कितने ही सद्पुरुषों के रक्त से रंगी हैं “क्षेत्रपाल" खानदान की जड़ें। निश्चित, ही इन सभी के बीच केवल नाम मात्र का ही रिश्ता है।
खैर, एक बार फिर पूरी तरह से स्पष्ट सा हो गया के जब भी कभी, वीर को अनु और क्षेत्रपाल उपनाम में चुनाव करना होगा,उसके लिए फैसला बिल्कुल भी कठिन नही होने वाला। अनु के किरदार में वो सभी गुण हैं जो वीर को बगावत पर उतार ही देंगे। काफी रोमांचक होगा देखना जब वीर और विक्रम दोनो ही भैरव सिंह की आंखों में आंखें डालकर अपना विद्रोह दर्ज करेंगे और वहीं रूप विश्व की बाहों में समाए खड़ी होगी।
इधर भाग्य एक बार फिर विश्व और नंदिनी को साथ ले ही आया, पूरे राज्य में सैकड़ों मंदिर होंगे, परंतु जब भाग्य में मिलना लिखा हो तब ऐसा ही होता है। शुभ्रा ने रूप के लिए और प्रतिभा ने विश्व के लिए एक ही मंदिर का चुनाव किया। (बहरहाल, जिस बारीकी से आपने मंदिर के इतिहास का वर्णन किया, वो काफी बढ़िया लगा मुझे। स्पष्ट है के आपको उस मंदिर के बारे में पूर्ण जानकारी होगी,तभी ये संभव हुआ।

) एक थप्पड़ से दोनो की मुलाकात का आगाज़ हुआ। एक छोटी सी गलतफहमी के चलते नंदिनी ने विश्व का गाल लाल कर दिया। (खैर, ये तो भविष्य में भी होना है विश्व के साथ, अच्छा है अभी से आदत डाल ले।

) उसके बाद की दोनो के बीच की बातचीत बेहद ही सुंदर तरीके से लिखी आपने। विश्व का रूप के पास जाना, रूप का ग्लानि महसूस करना, विश्व का उसे सामान्य करना... इसके बाद विश्व का उसे एक अनोखे तरीके से जन्मदिन की बधाई देना और उसे आज़दी का मतलब समझाना, सत्य में वो सब आपने बेहद उम्दा तरीके से लिखा।
प्रतिभा का विश्व को नंदिनी के नाम से, और शुभ्रा का रूप को “अनाम" के नाम से छेड़ना, स्वतः ही चेहरे पर मुस्कान ला देने वाला प्रकरण था। इसके बाद जो भाग लिखा आपने, उसके लिए जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम ही होगी। विश्व का सालों तक अलग – अलग और अनोखे तरीको से रूप का जन्मदिन मनाना, उसके लिए वो सभी इंतजाम करना, सब कुछ बेहद ही खूबसूरत था। रूप का भी विश्व पर अपना हक जताना, उसकी गर्दन पर अपना नाम गुदवा देना, उसे अपनी बातों से डराना, उस समय अधिक आयु नही थी उसकी, पर ये साफ हो गया के दोनो के बीच एक गहरा बंधन था या कहूं के अब भी है। रूप निश्चित ही “अनाम" से प्यार करती है, और प्रतिभा – विश्व की बातों से साफ हो गया के वो भी राजकुमारी से बेहद मोहब्बत करता है। दोनो ने अनजाने में एक – दूसरे से दूर रहने का फैसला तो कर लिया है, अब देखते हैं के दोनो कितना सफल हो पाते हैं।
इधर, विक्रम की खुदसे ही एक जंग जारी है, वो खुदको बेहतर बनाने में लगा है और नदी के किनारे हुई उस लड़ाई से साफ है के उसने खुदको बेहतर तो किया ही है, पर क्या वो विश्व को टक्कर देने लायक हो गया है या नही, ये सवाल सबसे महत्वपूर्ण है। इधर, वैदैही भी विश्व से बात कर खुदको संभाल ना सकी, और उसकी आंखें भी बह गई। उसका दुख तो भैरव सिंह की मौत के साथ ही कम होगा,देखते हैं विश्व कब राजगढ़ के लिए निकलेगा और क्या होगा जब भैरव और विश्व आमने – सामने होंगे। भैरव वहीं का वहीं है पर विश्व अब कुछ और बन चुका है, और विश्व की असलियत से अनजान होना भैरव के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
रॉकी ने मूर्खता की किताब का बेहद गहन अध्ययन किया है, और अच्छी तरह से उसमें लिखी बातों का अनुसरण भी कर रहा है। कोई कितना बड़ा मूर्ख हो सकता है? रॉकी इस बात का जीता जागता उदाहरण है। पहले अपनी मूर्खता पर खुशकिस्मती से उसकी जान बची, भाग्य था उसका के वीर या विक्रम को उसकी हरकतों की भनक तक नहीं हुई पर इस बार वो कब्रिस्तान में अपने लिए जगह खरीद कर आया है। जब नंदिनी ने उसे एक बार सही से समझा दिया के उसे अब केवल खुदसे और खुदके व्यवहार से ही मतलब रखना चाहिए, पता नही क्यों ये सूअर फिर भी उसके पीछे पड़ा है। अब भाई – बहन का नया नाटक लाया है। वीर वहीं मौजूद है,अब केवल और केवल एक ही सूरत में रॉकी बचता दिख रहा है, यदि नंदिनी इसके कहे मुताबिक उसे गले लगा ले। देखते हैं आगे क्या होता है।
गृह मंत्री वाले प्रकरण में एक बार फिर भैरव सिंह की दहशत और ताकत की झलक दिख गई। विश्व के लिए आसान नहीं होगा भैरव को पतन की ओर भेजना। अब विश्व शायद अपने पहले केस पर भी ध्यान देगा।
अपने भावों को शब्दों के रूप में पिरोना, और फिर ये सुनिश्चित करना के पाठक पढ़ते समय, उन शब्दों को भावों के रूप में महसूस कर सकें, यही एक साधारण और असाधारण लेखक के बीच का अंतर होता है। पहले भी मैने कहा है के निश्चित तौर पर
Kala Nag भाई, आप एक अद्भुत लेखक हैं और अब रूप के सभी जन्मदिन के विषय को आपने जिस तरह प्रस्तुत किया, पहले तो इस प्रकार के अलग – अलग विचार उत्पन्न करना और फिर उन्हें इतनी शालीनता से प्रस्तुत करना। कोई दोराय नहीं है इस बात में की आपकी ये कहानी, इस वक्त इस फोरम पर मौजूद सबसे बेहतरीन कहानियों में से एक है और आगे चलकर जब वीर–अनु और विश्व–रूप की प्रेम कहानियां गति पकड़ेंगी, विश्व और भैरव की टक्कर होगी... इस कहानी में असाधारण क्षमताएं हैं और यदि आप आगे भी यूंही लिखते रहे तो एक बार फिर इस बात में कोई दोराय नहीं के समाप्ति के वक्त तक इस कहानी का दर्जा और भी बढ़ जाएगा।
अद्भुत लेखन कौशल
Kala Nag भाई।
अगले भाग की प्रतीक्षा में।