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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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sunoanuj

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Bahut hi behtarin update … no words to appreciate your writing skills… 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Lib am

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👉इकसठवां अपडेट
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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l


"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
क्या जबरदस्त और खतरनाक अपडेट है। मजा आ गया। विश्व को मां और डैड दोनो मिल गए और सेनापति दंपत्ति को अपना बेटा।
रूप को भी एक उम्मीद जागी है और शुभ्रा को भी मगर कारण दोनो के अलग है। रूप शायद अनाम की उम्मीद में है अब शुभ्रा विक्रम के बदलाव की उम्मीद में।
बहुत खूब।
 
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Kala Nag

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Bahut hi behtarin update … no words to appreciate your writing skills… 👏🏻👏🏻👏🏻
आपका इतना कह देना ही मेरे लिए बहुत मायने रखता है
धन्यबाद बहुत बहुत धन्यबाद
 
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Kala Nag

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क्या जबरदस्त और खतरनाक अपडेट है। मजा आ गया। विश्व को मां और डैड दोनो मिल गए और सेनापति दंपत्ति को अपना बेटा।
रूप को भी एक उम्मीद जागी है और शुभ्रा को भी मगर कारण दोनो के अलग है। रूप शायद अनाम की उम्मीद में है अब शुभ्रा विक्रम के बदलाव की उम्मीद में।
बहुत खूब।
बिल्कुल सही कहा आपने
पर यहाँ शुभ्रा का इंतजार थोड़ा लंबा है
 

Rajesh

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Bahut hi
👉सत्ताईसवां अपडेट
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प्रतिभा सुबह सुबह तापस और प्रत्युष को चाय नाश्ता दे कर डायनिंग टेबल पर अपनी चाय की कप लेकर बैठ जाती है l दोनों बाप बेटे गौर करते हैं, प्रतिभा चाय की कप में शुगर क्यूब डाल कर चम्मच से घोल रही है, और उसका ध्यान कहीं और है l
प्रत्युष, तापस को आखों के इशारे से प्रतिभा को दिखा कर पूछता है - माँ को क्या हुआ है,
तापस अपने कंधे उचका कर और मुहं पिचका कर इशारे से कहता है - मुझे नहीं पता
प्रत्युष फिर अपनी माँ को गौर से देखता है, अभी भी प्रतिभा चम्मच को चाय में हिला रही है l प्रत्युष अपनी गले का खारास ठीक करता है l फ़िर भी प्रतिभा का ध्यान नहीं टूटती l
प्रत्युष - माँ...
प्रतिभा - (चौंक कर) हाँ... क... क्या.. कहा..
प्रत्युष - अरे माँ.... क्या हुआ है... आपको आज... आपका ध्यान कहाँ है....
प्रतिभा - क.. कुछ.. (अपना सर ना में हिलाते हुए) कुछ नहीं....
प्रत्युष - डैड... आपको कुछ मालूम है...
तापस - ऑफकोर्स माय सन... मैं जानता हूं....
प्रतिभा - खीज कर... अच्छा तो जानते हैं आप...
प्रत्युष - आप रुको मॉम... अभी थोड़ी देर पहले डैड ने मुझसे झूठ कहा था....
तापस - मैंने कब झूठ बोला.... वैसे माँ से मॉम... यह ट्रांसफर्मेशन कब हुआ....
प्रत्युष - जब आपने मुझे झूठ बोला....
प्रतिभा - ओह ओ... यह क्या... फ़ालतू बकवास ले कर बैठ गए तुम लोग.... वैसे सेनापति जी... आपको मालूम क्या है.... बताने का कष्ट करेंगे....
तापस - प्रोफेशनल टैक्लींग में मात खा गई तुम....
प्रतिभा - व्हाट....
प्रत्युष - यह क्या बला है... डैड...
तापस - बेटे वकालत में... केस के सुनवाई के दौरान... वकील एक दुसरे पर... साइकोलॉजीकल दबाव बना कर एक तरह से जिरह के दौरान.... एडवांटेज लेने की कशिश करते हैं..... इसमें कोई शक नहीं... की तुम्हारी माँ... अपनी फील्ड में एक्सपेरियंस्ड है... पर वह जिनको टक्कर दे रही हैं... वह एक वेटरन हैं.... इसलिए तुम्हारी माँ का ध्यान भटका हुआ है....
प्रत्युष - ओ.... तो यह बात है...
तापस - देखो भाग्यवान... तुम अपनी कोशिश पूरी रखना.... बाकी.... वक्त पर छोड़ दो....
प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ कर हाँ में सर हिलाती है l
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर) हे... माँ... चीयर अप...
प्रतिभा प्रत्युष के हाथ को पकड़ कर मुस्करा कर अपनी आँखे वींक करती है और तापस से पूछती है
प्रतिभा - आपने कैसे अंदाजा लगाया....
तापस - कल मैं देख रहा था.... तुम अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान... कुछ खास पॉइंट पर जब जोर दे रही थी.... तब तुम जयंत सर को भी देख रही थी.... और वह एक दम निर्विकार भाव से बैठे हुए थे.... तब तुम भले ही जाहिर ना किया हो... पर अंदर ही अंदर तुम ऑनइज़ी फिल् कर रही थी... यह मैंने तब महसूस कर ली थी....
प्रतिभा - ओ ह...
तापस - भाग्यवान... इतना कहूँगा.... तुम इस केस को... प्रोफेशनली डील करो... ना कि पर्सनली..... तुम पब्लिक प्रोसिक्यूटर हो.... सरकारी वकील.... इस केस को अपने दिल या दिमाग पर हावी होने मत दो...
प्रतिभा मुस्कराते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलती है l
प्रत्युष - दैट्स माय मॉम.... मतलब मेरी प्यारी माँ...

तीनों हंस देते हैं
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उसी समय एक कमरे में रोणा और बल्लभ दोनों खड़े हुए हैं और उनके सामने पिनाक कमरे में एक तरफ से दुसरे तरफ तक अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे बांध कर, तो कभी अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को अपने बाएं हाथ पर मारते हुए चहल पहल कर रहा है और उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रही है l
पिनाक - तुम दोनों पिछले दो दिनों से कटक से भुवनेश्वर,... भुवनेश्वर से कटक हो रहे हो... हमसे मिलने की ज़हमत भी नहीं उठा सके.... जब कि तुम लोगों के राजगड़ से निकालते ही... भीमा ने हमे खबर कर दी थी...
बल्लभ - वह... हम.. यहां रह कर केस की... हर पहलू पर काम कर रहे थे...
पिनाक - काम कर रहे थे.... या झक मार रहे थे...
बल्लभ - एक गलती तो हुई है.... हमे अपनी तरफ से वकील देना चाहिए था....
पिनाक - तो... भोषड़ी के... राजा साहब को यह आइडिया दी क्यूँ नहीं... उस वक़्त... तु हमारा कानूनी जानकार है.... सलाहकार है... तो आइडिया भी तुझे ही देना चाहिए था ना....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम सलाह तब देते हैं... जब पूछा जाए... अगर हम अपने तरफ से.... राय दिए... तो अंजाम सभी जानते हैं... राजा साहब किसीके सुनते नहीं हैं.... और राजा साहब जो कह दें... उसकी तामील करना... हमारा धर्म...
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो जब तुझे पूछा था... सरकार विश्व के लिए वकील दे रहा है... तब तो तु बड़ी डिंगे हांक रहा था.... सब परफेक्ट है... कुछ नहीं होगा....
बल्लभ - हाँ... तब मैंने राजा साहब जी के.. सरकार पर प्रभाव को देख कर... इस बात को हल्के में ले लिया था...
पिनाक - अब.... देखो प्रधान... मैंने तब भी कहा था.... आज भी दोहरा रहा हूं... यह राजा साहब के नाक और मूँछ का सवाल है....
बल्लभ - इसलिए तो हम दोनों... यहाँ आए हुए हैं...
पिनाक - क्या... हम... जयंत से बात करें...
बल्लभ - जी नहीं छोटे राजा जी.... बिल्कुल नहीं.... मैंने... जयंत पर पूरी छानबीन कर ली है.... हम बात करेंगे तो बाहर आ सकते हैं... और यह आत्मघाती होगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म
रोणा - मैं तो कहता हूँ... उसका एक्सीडेंट ही करा देते हैं.... उन दो बॉडी गार्ड्स के साथ.... सारा झंझट ही खतम...
पिनाक - तब... सरकार... और एक सरकारी वकील नियुक्त करेगी..... तो हरामजादे कितनों को मारता रहेगा..
रोणा कुछ कहने को होता है पर बल्लभ इशारे से उसे चुप रहने को कहता है l पिनाक एक सोफ़े पर धप कर बैठ जाता है l और अपने दोनों हाथो से अपना सर पकड़ लेता है l
पिनाक - प्रधान..... कुछ सोचो.... याद रखो... राजासाहब वह डाइनामाइट है.... अगर फटे.... तबाही और बरबादी होगी सो अलग.... लाशें कितनी बिछेंगी और किन किन की... गिनना मुश्किल हो जाएगा..... इसलिए सोचो... जिस तरह से... उस जयंत ने... अपनी दो बार उपस्थिति में...ना सिर्फ अपनी ही चलाई है... बल्कि अदालत की रुख को अपने हिसाब से मोड़ा है....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम पहले जयंत क्या कहेगा कल कोर्ट में... वह पहले सुन लेते हैं.... बाद में उसी हिसाब से... हम गवाहों को हैंडल करेंगे.... ताकि कोई गवाह ना टूटे....
पिनाक - ठीक है... इस बाबत कुछ कदम उठाए हैं क्या तुमने....
बल्लभ - जी मैं और रोणा पहले से ही इसी काम में लग चुके हैं.... सावधानी से कर रहे हैं... ताकि हम में से किसीका नाम बाहर निकल कर ना आए....
पिनाक - ठीक है.... और हाँ कुछ भी करने से पहले.... मुझे इन्फॉर्म कर दिया करो.... क्यूंकि यह याद रहे.... यह ना तो यशपुर है और ना ही राजगड़ है... यह भुवनेश्वर और कटक है.... और यहाँ पर अभी तक... ना हमने पांव पसारे हैं... और ना ही पंख फैलाए हैं....

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उधर जैल में डायनिंग टेबल पर अपनी थाली हाथ में लिए विश्व बैठा हुआ है और वह भी किसी सोच में गुम है l
-क्या हुआ है... हीरो... किस सोच में तु खोया हुआ है....
डैनी अपना थाली ले कर विश्व के पास बैठते हुआ कहा l
विश्व अपना सर हिलाते हुआ ना कहा l
डैनी - पहले न्यूज में... जिस तरह धज्जियाँ उड़ाया जा रहा था... तेरा... अब वैसा नहीं हो रहा है...
विश्व - हाँ.. वह जयंत... सर ने... कोर्ट में... मीडिया एक्टिविटी को गलत ठहरा दिया... यही वजह है...
डैनी - एक बात तो है.... तुझे वकील... वाकई बहुत जबरदस्त मिला है... वह भी सरकारी ख़र्चे पर.... तेरे केस में सबसे इंट्रेस्टिंग क्या है... जानता है तेरी वाट लगाने के लिए भी सरकारी वकील... और तेरा बेड़ा पार करने वाला भी सरकारी वकील... और दोनों कामों के लिए सरकार अपनी जेब ढीली कर रही है.... हा हा हा हा...
विश्व - आप यहां कितने सालों के लिए हैं...
डैनी - मैं भी बहुत खास मुज़रिम हुं... सरकार के लिए.... हाँ... यह बात और है.. मैं यहाँ... अपनी मर्जी से आता हूँ... और अपनी मर्जी से जाता हूँ....
विश्व - वह कैसे... और आप यहाँ... कौनसे बैरक में रहते हैं...
डैनी - मैं यहाँ स्पेशल सेल में रहता हूँ.... क्यूंकि मैं यहाँ... स्पेशल अपराधी हूँ... मेरी जान को खतरा बता कर... मैं यहाँ... छुट्टियां इंजॉय कर रहा हूँ... ख़ैर तुने बताया नहीं... किस सोच में डूबा हुआ था...
विश्व - वह... मैं जयंत सर जी के बारे में.. सोच रहा था... मैं उनके व्यक्तित्व को... बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा हूँ...
डैनी - क्यूँ... तुझे... उन पर शक हो रहा है... क्या....
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... सच कहूँ तो... आज..... जब भी भगवान को याद करते हुए अपनी आँखे बंद करता हूँ..... मुझे सिर्फ उनका ही चेहरा दिखता है....
डैनी - तो फिर.... उनके बारे सोच क्या रहा है...अगर उनको भगवान के जगह रख दिया है.... तो उनके बारे में सोचना भी मत... क्यूँ की भगवान किसीके भी सोच से परे हैं.... पर यह बता... तुझे उन इतना भरोसा कैसे हो गया...
विश्व - नहीं जानता... पर जब भी काले कोट में अदालत में उनको मेरे लिए खड़े होते देखता हूँ... तो मुझे अंदर से ऐसा लगता है.... मुझ होने वाले जैसे दुनिया भर की हमलों के आगे..... वह ढाल बन कर खड़े हुए हैं.... और जब तक वह खड़े हों.... दुनिया की कोई भी बुरी ताकत... मुझे छू भी नहीं सकती....
डैनी - वाह.... क्या बात है.... अगर तू इतना ही उन परभरोसा करता है.... तो फिर उनके बारे में... सोच क्या रहा है....
विश्व - हमने हमेशा एक बात सुनी है... अपने बड़ों से.. या फिर... किसी और से.... की सफेद कोट वाले से.... मतलब डॉक्टर से... अपनी बीमारी के बारे में... और काले कोट वाले से, मतलब वकील से... अपनी गलतियों के बारे में.... कभी भी कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए...
डैनी - हाँ.... यह बात तो है.... क्यूँ तूने कुछ छुपाया है.. क्या....
विश्व - छुपाता तब ना.... जब उन्होंने... मुझसे कुछ पूछा हो.... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं है..... पर वह मेरे लिए... मुझे इन्साफ देने के लिए... जिस तरह लड़ रहे हैं.... मुझे कुछ भी नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है... जब भी उन्हें देखता हूँ.... पर कल वह मेरा पक्ष रखेंगे.... अदालत में... क्या रखेंगे... कैसे रखेंगे.... बस यही सोच रहा हूँ.....
डैनी - ह्म्म्म्म... तेरे बात सुन कर... मेरा सिर घूम गया है.... फिर भी... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... बहुत बहुत शुक्रिया....

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काठजोड़ी नदी के गणेश घाट के पास सिमेंट से बनी एक कुर्सी पर वैदेही बैठी हुई है l शाम की चहल पहल बढ़ गई है l बहुत से बुजुर्ग कोई हाथ में लकड़ी लेकर और कोई अपने साथ कुत्तों को लेकर इवनिंग वक कर रहे हैं l

-अरे वैदेही तुम यहाँ.... यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही की ध्यान टूटती है और आवाज़ को तरफ देखती है जयंत वहाँ पर खड़ा हुआ है l
वैदेही - जी नमस्ते जयंत सर...
जयंत - हाँ... नमस्ते.... पर तुमने बताया नहीं... के इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) जी फिलहाल यहाँ बैठी हुई हूँ...
जयंत - अच्छा... मुझसे ही होशियारी.... ह्म्म्म्म
वैदेही - जी... माफ कर दीजिए... दर असल... कल विश्व के तरफ से.... आप क्या कहेंगे... और उस पर जज साहब की... क्या प्रतिक्रिया होगी... बस यही सोच रही थी...
जयंत - अरे... इतनी सी बात पर तुम डर गई.... बिल्कुल एक तोते की तरह पटर पटर कैसे बोल गई...
वैदेही अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है
जयंत - ह्म्म्म्म (वैदेही के पास बैठते हुए) तो तुम्हें क्या लगता है..
कहीं मुझसे भरोसा तो नहीं उठ गया....
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं सर... मैंने तो उसी दिन कह दिया था आपको.... अब हमे अंजाम की कोई परवाह नहीं है.... पर फिर भी एक जिज्ञासा तो मन में है ही....

जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है... देखो वैदेही... मैं अपनी मुवकील से... सहानुभूति से या भावनात्मक रूप से जुड़ना नहीं चाहता हूँ.... बस केस से जुड़े तथ्यों को छोड़ मैं किसी भी प्रकार से दूसरे निजी तथ्यों से किनारा कर लेता हूँ... क्यूंकि मैं अपनी मुवकील को जज के सामने या न्यायालय में बेचारा साबित नहीं करना चाहता हूँ.... या तो दोषी साबित करूं.. या फ़िर निर्दोष..... अब सरकार ने खुद मुझे यह जिम्मा सौंपा है... के मैं तुम्हारे भाई को निर्दोष साबित करूँ... तो मेरी कोशिश तो पूरी यही रहेगी...
यह सब सुन कर वैदेही के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है, जो जयंत को साफ दिख भी जाता है l
जयंत - अच्छा... कल जब सुनवाई है... तो अब तुम यहीँ... कटक में रहोगी या... अपने गांव चली जाओगी....
वैदेही - वह मैं... एक हफ्ते से गांव नहीं गई हूँ.... यहीं... रेल्वे स्टेशन जा कर... जनरल टिकेट कर देती हूँ.... और जनाना प्रतीक्षालय में रात को सो जाती हूँ... और वहीँ शौचालय में... अपना नहाना धोना कर लेती हूँ... फिर दिन भर बाहर इधर-उधर होती रहती हूँ....

जयंत का चेहरा इतना सुनते ही सख्त हो जाता है l वह अपनी आँखे बंद कर लेता है l इतने में वैदेही पूछती है l
वैदेही - सर आपके वह... बॉडी गार्ड्स कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं....
जयंत - वह देखो.... उस चने बेचने वाले के पास चने चर रहे हैं....
यह सुनते ही वैदेही की हंसी निकल जाती है
जयंत - (उठता है) चलो मेरे साथ...
वैदेही - (चौंकते हुए) जी... ज... जी... कहाँ...
जयंत - तुम्हारे लिए... रात का बंदोबस्त करने....
वैदेही - पर....
जयंत - अरे... चलो भी.... मैं तुम्हें... अपने घर नहीं ले जा रहा हूँ... तुम लड़की हो... कहीं कोई ऊँच नीच हो गई तो.... इसलिए बातेँ हम चलते चलते या बाद में कर लेंगे... अब बिना देरी किए मेरे साथ चलो....
वैदेही उठती है और जयंत के पीछे चल देती है l उन दोनों के पीछे जयंत के बॉडी गार्ड्स भी चलने लगते हैं l जयंत चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर एक दुकान से छोटी टोकरी में पूजा का सामान लेता है और मंदिर के अंदर जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे चल देती है l मंदिर में पहुंचते ही मं
दिर के पुजारी उसे देख कर बाहर आता है और जयंत के हाथों में से पूजा की टोकरी ले जाता है
पुजारी - अहोभाग्य हमारे... जगन्नाथ के घर में जयंत पधारे...
दोनों - हा हा हा हा हा...
पुजारी - क्यूँ भई वकील... आज मंदिर... क्या बात है...
जयंत- कुछ नहीं पंडा जी... कुछ नहीं.... जिंदगी पेड़ के पत्ता हिल रहा है... पता नहीं कब झड़ जाए.... मतलब बुलावा आ जाए... इसलिए... उसके पास जाने से पहले... मस्का लगाने आ गया...
पुजारी - तुम नहीं सुधरोगे... भगवान घर में ठिठोली....
इतना कह कर पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में जा कर, पूजा करता है और पूजा की टोकरी ला कर जयंत को लौटा देता है l
पंडा - कहो... आज कई सालों बाद... मंदिर में... अपने लिए तो नहीं आए होगे.... बोलो किसके लिए....
जयंत - क्या... पंडा... अरे... मैं कोर्ट में... अपनी नौकरी पेशा जीवन का... अंतिम केस लड़ रहा हूँ... इसलिए कई सालों बाद आया हूँ... कालीया को भोग का मस्का लगाने...
पंडा - फिर.. ठिठोली... तुम... भले ही मंदिर ना आओ.... पर इस मंदिर के कमेटी में हो.... और कमेटी मीटिंग बराबर.... अटेंड करते हो.... क्या भगवान को इस बात का भान नहीं है....(जयंत चुप रहता है) पर तुमने तो केस लेना बंद कर दिया था ना..... फिर अचानक यह केस...
दोनों मंदिर की परिक्रमा करते हुये
जयंत - पंडा..... तुम्हें क्या लगता है.... सारे राज्य वासियों के भावना के विरुद्ध... मैं वह केस लड़ रहा हूँ....
पंडा - देखो जयंत.... मैं दुनिया की नहीं जानता.... पर तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूँ... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकते.... और मैं यह भी जानता हूँ... जब तक कोर्ट में तुम डटे हुए हो..... कोई भी उस लड़के का बाल भी बांका नहीं कर सकता....
जयंत, थोड़ा मुस्करा देता है l तभी जयंत की नजर एक जगह ठहर जाता है l
जयंत - वैदेही.... सुनो तो जरा...
वैदेही उस वक्त मंदिर के आनंद बाजार (जहां अन्न प्रसाद मिलता है) के एक खंबे के टेक् लगा कर वैदेही खड़े हो कर उनकी बातें सुन रही है l
जयंत - आरे... वैदेही... तुम यहाँ.... आओ
पंडा - तुम जानते हो इस लड़की को.... यह रोज दो पहर को... आ जाती है और अन्न प्रसाद सेवन तक यहीं बैठी रहती है....
जयंत - आरे.... पंडा... यह पागल लड़की.... का यहीं... मंदिर के धर्म शाला में रहने की प्रबंध कर दो....
वैदेही - आरे... सर... आप हमारे लिए... इतना तो कर रहे हैं...
जयंत - अरे... मूर्ख... अगर मैंने केस हाथ में लिया है... तो केस की सुनवाई खत्म होने तक... विश्व की तरह तुम भी मेरी... जिम्मेदारी हो...
वैदेही चुप रहती है
जयंत - मैं अब अपने घर में... तुम्हें रख नहीं सकता.... क्यूँकी मेरे घर में.... मेरे साथ... मेरे सुरक्षा के लिए... और दो मर्द रह रहे हैं... पर कटक सहर में... मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त तो कर सकता हूँ....
वैदेही उसे नजर उठा कर देखती है
जयंत - (पुजारी को देख कर) अरे पंडा... मंदिर के धर्मशाला में... एक कमरा... इस लड़की के लिए...
पंडा - समझ गया.... देखो वैदेही... अब हमारे मंदिर की धर्मशाला में एक कमरा लेलो.... और चूंकि तुम्हारी सिफारिश जयंत ने की है.... इसलिए मैं तुमको... नियम के बाहर जा कर.... जब तक केस समाप्त नहीं हो जाती... तब तक भाड़े में रह सकती हो....
जयंत - घबराओ नहीं.... भाड़ा.. भी नहीं लगेगा.... नियम में यह भी है.... ट्रस्टी के रिकॉमेंड हो... तो पैसा भी नहीं लगता...
पंडा, जयंत को मुहं फाड़े देखता है l वैदेही खुश हो कर जयंत को हाथ जोड़ती है l
जयंत - अच्छा जाओ (हाथ दिखा कर) वहां धर्मशाला... अरे पंडा... जाओ यार इस लड़की को कमरा दे दो...
पंडा अपना सर को हिलाते हुए, वैदेही को धर्मशाला की ओर ले जाता है l वैदेही को एक कमरा दिलाने के बाद, जयंत के पास वापस आता है l
पंडा - भई... कौनसे नियम के अनुसार... ट्रस्टी के सिफारिश हो... तो पैसा देना नहीं पड़ता...

जयंत - पंडा.... यह लड़की बहुत गरीब है.... और मैं तो ठहरा... अकेला.... पैसे इस गरीब के भले के लिए थोड़े खर्च हो जाए... तो क्या फर्क़ पड़ता है.... उसकी बिल मुझे भेज देना.... मैं भर दूँगा..... और हाँ... उसे मालुम ना हो.... क्यूंकि बहुत खुद्दार किस्म के लोग है यह.....

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आज कानून के बड़े बड़े दिग्गज और विशेषज्ञों की नजरे अदालत के आज की कारवाई पर टिकी हुई है.... पिछली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की वकील श्रीमती प्रतिभा सेनापति जी ने एसआइटी और पुलिस के जांच को अपनी मजबूत दलीलों को अदालत के सम्मुख प्रस्तुत किया था..... आज का दिन भी इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.... क्यूंकि आज अभियुक्त पक्ष के दलीलों को अदालत के समक्ष श्री जयंत कुमार राउत प्रस्तुत करेंगे.... एसआइटी जांच में दोषी पाए गए अभियुक्त श्री विश्व के पक्ष अपनी किन मजबूत दलीलों के द्वारा अदालत को प्रभावित करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.... चूंकि अभी कुछ ही समय पूर्व अभियुक्त को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में ले जाया गया है.... थोड़ी देर बाद सुनवाई शुरू हो जाएगी.... सुनवाई के फौरन बाद... आज अदालत में क्या क्या हुआ... हम दर्शकों के सामने लाएंगे.... तब तक के लिए कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा..... खबर ओड़िशा के लिए....
इस खबर की प्रसारण कर रिपोर्टर ने अपना माइक निकाला और अदालत के बाहर पुलिस के द्वारा बनाए गए बैरिगेट के पास चली जाती है l उधर कोर्ट की स्पेशल रूम में पिछले दिनों की तरह ही दृश्य दिख रहा है l हमेशा की तरह तीनों जज अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं l औपचारिकता के बाद
मुख्य जज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरू की जाए..
हॉकर - अभियुक्त श्री विश्व प्रताप को हाजिर किया जाए...
पुलिस विश्व को लेकर मुल्जिम वाले कटघरे में खड़ा कर देती है
जज - जैसा कि पिछली सुनवाई में... अभियोजन पक्ष.... पुलिस और एसआइटी की जांच की पक्ष और साथ साथ गवाहों के बयानात और गवाहों के नाम... अदालत और बचाव पक्ष को उपलब्ध कराया... है... आज का दिन केवल बचाव पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगे.... और यह अदालत दोनों पक्षों को सूचित करती है.... के पिछली सुनवाई बाद सभी गवाहों को समन कर दी गई है.... इसलिए अगले हफ्ते में जो गवाह आयेंगे.... उनकी गवाही की दोनों पक्षों के द्वारा जिरह की जाएगी.... पर अभी के लिए.... अभियुक्त पक्ष के वकील श्री जयंत राउत जी को अपना पक्ष रखने के लिए अनुमती देते हुए कारवाई को आगे बढ़ाया जाता है.... श्री जयंत जी आप अपना पक्ष रखें....
जयंत - जी धन्यबाद... योर ऑनर.....
अपनी जगह से उठते हुए जयंत ने कहा l जयंत के उठते ही कुछ लोगों की धड़कने उत्सुकता वश तेज हो गई l इन में विश्व और वैदेही तो हैं ही, प्रतिभा, तापस ही नहीं यहाँ तक जज भी जयंत के द्वारा दी जाने वाली दलील को सुनने के बेताब हो उठे l पूरा कोर्ट रूम में केवल शांति ही शांति विराजमान है l
जयंत - योर ऑनर.... मैं प्रोसिक्युशन की इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ.... के आज अदालत में चल रही इस केस की ओर.... साधारण जन मानस बड़े ध्यान से देख रही है.... और न्याय प्रक्रिया के दौरान और समाप्त होने तक... न्याय की परिभाषा क्या होगी यह आने वाली समय के गर्भ छुपा हुआ है......
माय लॉर्ड.... अंग्रेजी में एक कहावत है.... रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट.... अर्थात बड़े बड़े साम्राज्य... या बड़े बड़े स्वर्णिम अध्याय... कभी अचानक से नहीं बनते... क्रम अनुसार, धीरे धीरे बनते बनते समयानुसार विशाल रूप में प्रकट होती है... षडयंत्र भी इसी तरह होते हैं.... माय लॉर्ड... षडयंत्र, वह भी आर्थिक घोटाले की... एक काले साम्राज्य की तरह होता है... योर ऑनर.... यह भी धीरे धीरे.... दिमाग से निकल कर... वास्तविकता में उतर कर... आकार लेते लेते विशाल हो जाता है... यह आर्थिक घोटाले... आर्थिक अनाचार... एक समाज में एक नए नगर बधु की तरह होती है.... हर सामर्थ्य व पुरूषार्थ रखने वाला... इसे लूटना चाहता तो है... पर उसके साथ अपने परिचय को स्वीकार नहीं करता.... अगर उसके कर्म फूटने को होते हैं... तब वह सामर्थ्यबान किसी ऐसे व्यक्ति का जुगाड़ करते हैं... जिस पर अपनी काली करनी को थोप देते हैं....
आज का यह मनरेगा घोटाला केस भी ऐसा है योर ऑनर....
एक बच्चे को जन्म लेने के लिए.... प्रकृति ने नौ महीने का विधान किया है... पर उसके लिए भी पुरुष एवं स्त्री की मिलन की प्रस्तुति की जाती है..... इस प्रक्रिया में भी समय लगता है योर ऑनर.... पर यहाँ एसआइटी के जांच रिपोर्ट यह दर्शा रही है.... की यह कांड विश्व के सरपंच बनने के सिर्फ़ सात महीने में पूरा हो गया.... कितनी प्यारी... और मासूम... थ्योरी है...
इतना कह कर जयंत थोड़ी देर रुक जाता है और अपने टेबल के पास आकर एक फाइल उठा लेता है l
जयंत - योर ऑनर... प्रोसिक्युशन ने... पिछले सुनवाई के दौरान... अपना तथ्य प्रस्तुत किया... पहले पन्ने पर मुल्जिम की परिचय, शिक्षा गत योग्यता और देव पुरुष राजा साहब की उदारता का उल्लेख किया.... उसके बाद हम आते हैं... दूसरे पन्ने पर... जहां विश्व के इक्कीस वर्ष होने की बात की गई है... और उसके बाद...(प्रतिभा भी अपनी फाइल खोल कर देखने लगती है) योर ऑनर... यह तीसरी लाइन को गौर से पढ़ा जाए.... जहां पर यह लिखा गया है... राजा साहब ने... राजगड़ व उसके आसपास इलाकों के विकास के लिए एक नया जोश, एक नया खून वाले नौ जवान विश्व को सरपंच चुनाव में... भाग लेने के लिए कहा.... इसके आगे की लाइन को प्रोसिक्युशन पढ़ना या बताना शायद भूल गई.... मगर यह जांच रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है... योर ऑनर.... राजा साहब के आग्रह को विश्व ने पहले इंकार कर दिया... पर विश्व के पारिवारिक मित्र और उसके गुरु श्री उमाकांत आचार्य जी के कहने पर... विश्व चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ.... मतलब एक वर्ग ऐसा जरूर था... जो चाहता था... की विश्व सरपंच बनें.... ताकि उनके किए कुकर्मों को ढोने वाला कंधा विश्व के हो.... और ताजूब की बात यह है कि.... विश्व के किए घोटाले की... योर ऑनर... विश्व के जरिए जिस आवंटित राशि की बात की जा रही है.... वह राशि पिछले सरपंच के काल की हैं.... ना कि विश्व के काल की... और राशि है किसकी.... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, नए कैनाल बनाने की योजना, कैनाल सफाई के योजना, नए तालाब निर्माण योजना और कैनाल पर बनने वाले कल्वर्ट निर्माण योजना... इस सब योजना के ब्लू प्रिंट... पहले बनी होगी.... उसकी बजट एस्टीमेशन के बाद... प्रोजेक्ट अप्रूवल के ब्लाक ऑफिस फिर तहसील ऑफिस गई होगी.... फिर उसके बाद उस प्रोजेक्ट का पैसा तहसील को आया होगा... फिर उस प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के जरिए कंट्रैक्ट अवॉर्ड हुआ होगा... फ़िर काम शुरू हुआ होगा.... तभी तो आवंटित राशि वापस लौट ना सकी... पर चूंकि प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और पहले अलॉट किए राशि की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट ना हो तो बकाया राशि की भुगतान नहीं हो सकती थी.... इसलिए वह खास वर्ग... विश्व को चुना... क्यूंकि.. विश्व एक नव युवक था और इस राजनीति के खेल में अनभिज्ञ भी.....
इतनी बड़ी राशि को लूटने के लिए.... प्रोसिक्युशन की मानें तो विश्व के पास प्लान बना कर उसे एक्जीक्युट करने के लिए सिर्फ़ सात महीने थे... योर ऑनर... और इन साथ महीनों में उसे टीम भी बनानी थी... जिसे सौ सेल कंपनीयों के रजिस्ट्रेशन करना था... ऊपर से इन्हीं सात महीनों में उसे रूप यानी... राजगड़ उन्नयन परिषद नाम की एनजीओ का रजिस्ट्रेशन के साथ साथ उसके अकाउंट भी ऑपरेट कर.. उसके पैसे हथियाने थे... और सबसे अहम बात योर ऑनर.... यह सब प्रोसिजर को परफेक्ट करने के लिए... विश्व को पांच हजार मृत् लोगों के आधार कार्ड भी जुगाड़ने थे इन्हीं सात महीने में.... वाह क्या जांच है... और क्या कहानी है....
योर ऑनर... मैं और इसे ज्यादा नहीं खींचना चाहता हूँ....
प्रोसिक्यूशन के तरफ से जितने बयान और गवाहों के नामों का उल्लेख किया है.... उनमें प्रमुख सिर्फ पांच गवाह हैं... जिनसे बचाव पक्ष जिरह करना चाहती है... योर ऑनर...
जज - वह गवाह... कौन कौन हैं.... डिफेंस लॉयर...
जयंत - पहले गवाह हैं... मिस्टर दिलीप कुमार कर... जो पहले तो विश्व से चेक साइन करवाया और आगे चल कर एसआइटी के सरकारी गवाह बनें....
दुसरे - तहसील ऑफिस के एक और क्लर्क... मिस्टर एके सुबुद्धी... जिनके सामने तहसील ऑफिस के अंदर यह सारे कांड हुए...
तीसरे - राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा...
चौथे - राजा साहब... श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी...
और अंत में एसआइटी के मुख्य जांच अधिकारी श्री के सी परीडा
जज - ठीक है... क्या प्रोसिक्यूशन को कोई ऐतराज है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठकर) जी नहीं योर ऑनर...
जज - ठीक है... जयंत बाबु... आपको किन क्रम में... गवाहों से जिरह करेंगे....
जयंत - कोई फर्क़ नहीं पड़ता... योर ऑनर... कोई भी किसी भी क्रम में आ सकते हैं... या फिर गवाही के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं....
जज - ठीक है... आज बचाव पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद... अगले हफ्ते से गवाहों से दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से जिरह करेंगे... आज बचाव पक्ष ने जिन नामों की उल्लेख किया है... सबसे पहले उन्हीं लोगों को समन किया जाए.... इसके साथ ही अदालत की कारवाई आज के लिए स्थगित कि या जाता है....
Jabardast update hai bhai maza aa gaya
 
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