एक सौ बारहवाँ अपडेट
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शर्ट के जेब में रखी मोबाइल तेजी से वाइव्रेट होने लगती है l विश्व की आँख खुल जाती है l बस चली जा रही थी और बाहर अंधेरा छंट रहा था l विश्व जेब से मोबाइल निकालता है l राजगड़ महल का नंबर था l जिसने विश्व अपनी मोबाइल पर राजकुमारी के नाम से सेव किया हुआ था l
विश्व - हे.. हैलो...
रुप - कहा था ना... हर सुबह तुम्हें मैं जगाऊँगी... मैं कहती हूँ... गुड मॉर्निंग... जी...
रुप की आवाज सुनते ही विश्व की होठों पर मुस्कान आ जाती है l
विश्व - गुड मॉर्निंग... पर लगता है... आज आपने कल के मुकाबले.. जल्दी जगा दिया है...
रुप - और नहीं तो... आज मेरे महबूब के कदम जो पड़ने वाले हैं... राजगड़ में...
विश्व - आप शायद नहीं जानती... राजा साहब का फरमान है... विश्व प्रताप को उनकी सल्तनत से आजीवन वनवास है...
रुप - हाँ पर मेरा दिल उनकी जागीर नहीं है... और मेरे दिल में सिर्फ एंट्री है... एक्जिट नहीं...
विश्व - पर मैं तो आपसे मिलों दूर हूँ...
रुप - पर हुजूर... मेरे दिल के बहुत करीब हैं...
विश्व - हो गया...
रुप - क्या बात है... माँ जी की आदत लगा लिया है तुमने...
विश्व - हाँ... बेटा जो हूँ उनका...
रुप - पर बरखुर्दार... अब उनकी लाड़ली मैं हो गई हूँ...
विश्व - हाँ... वह तो है...
रुप - तो... कब पहुँच रहे हो...
विश्व - बस को रुकने तो दीजिए... गांव की आवोहवाओं को... मेरी सासों में घुलने तो दीजिए... गांव की मिट्टी को.. मेरी बदन से महकने तो दीजिए...
रुप - वाह क्या बात है... अपनी गांव के लिए... ऐसी ज़ज्बात भरे अल्फाज़ बयान कर लिए... तो हाय.. मेरे लिए... तो क़यामत ही ढा दोगे... (थोड़ी संजीदा हो कर) ढा दोगे ना...
विश्व - (रुप की संजीदगी को महसुस कर लेता है) पता नहीं... अभी तक तो आप तस्सबुर में हैं... जब क़यामत सामने होगी तो जुबान शायद साथ ना देगी... और नजरें आपकी खूबसूरती का वजन भी ना उठा पाएगी... क्या पता हम आपको देख कर लाज़वाब ही हो जाएं...
रुप - (शर्मा जाती है) कोई बोल नहीं फुट पाती है)
विश्व - क्या हुआ... आप चुप क्यूँ हो गई...
रुप - आह... अनाम... तुम सच में बहुत रोमांटिक हो... अब मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ...
रुप - तुमसे ज्यादा बात करूंगी... तो खुशी के मारे पागल हो जाऊँगी... बाय...
विश्व - सुनिए तो...
फोन कट चुका था l रुप से बात करते हुए विश्व को बहुत अच्छा लगा l विश्व हँसते हुए फोन को अपनी जेब में रख देता है l बाहर अंधेरा छट चुका था पर सूरज निकला नहीं था I बस का क्लीनर आवाज देता है "यशपुर" "यशपुर" I विश्व सीलु को जगाता है और अपनी सीट से निकल बाहर आता है l गाड़ी के बस स्टैंड जाने से पहले ही विश्व और सीलु गाड़ी को रुकवाते हैं और दोनों उतर जाते हैं l गाड़ी से उतरने के बाद
सीलु - क्या बात है भाई... हम यहाँ क्यूँ उतरे...
विश्व - देखो सीलु... अब हम दोनों अनजानों की तरह मिलेंगे... अगर दाव सही लगा... तो दो तीन महीने में अपना काम खतम हो जाएगा... इससे पहले हमारे बारे में... मेरे दुश्मन को जानकारी नहीं होनी चाहिए... मेरे बारे में वे लोग जितना अंधेरे में रहें... उतना ही इस जंग के लिए अच्छा है...
सीलु - ठीक है भाई... क्या जाने से पहले एक बार गले लग जाऊँ...
विश्व अपनी बाहें फैला देता है, सीलु उसके गले लग जाता है l कुछ देर तक वैसे ही दोनों एक दूसरे के गले लगे रहते हैं फिर विश्व सीलु को खुद से अलग करता है l सीलु के आँखें नम हो गई थी l
विश्व - अपने दोस्त से अलग हो रहा है... मिलना तो होता ही रहेगा... फिर किसी माशुका की तरह क्यूँ रो रहे हो...
सीलु - क्या भाई तुम भी... थोड़ा सेंटी तो होने दो...
विश्व - अच्छा जाओ अब... मैं यशपुर आता रहूँगा...
सीलु - ठीक है भाई...
दोनों अपनी अपनी राह पकड़ लेते हैं l सीलु यशपुर के अंदर जाने लगता है और विश्व राजगड़ की ओर चलने लगता है l आधे घंटे तक चलते चलते विश्व एक माइल स्टोन के पास रुक जाता है l विश्व देखता है उस माइल स्टोन पर यशपुर की जगह यमपुर लिखा हुआ है l विश्व थोड़ा हँस देता है और इधर उधर देखने लगता है l थोड़ी देर बाद पास पड़े कचरे में टुटे बैटरी की कार्बन रॉड दिखता है l विश्व कचरे से उस कार्बन की रॉड को उठाता है और विश्व यमपुर पर यशपुर लिख देता है l
- क्या लिख रहे हो...
विश्व पीछे मुड़ कर देखता है l ट्रैकिंग शूट में पसीने से लथपथ एक आदमी हांफते हुए सवाल किया था l
विश्व - सही कर रहा हूँ...
आदमी - क्या सही कर रहे हो... यमपुर ही है... बेकार में यशपुर लिख रहे हो...
विश्व - उसीको तो सही कर रहा हूँ... आज तक जो लोगों के जहन में चढ़ा हुआ है... उसको मिटाने आया हूँ...
आदमी - कोयले से लिख देने से... क्या क्या बदल जाएगा... इसी माइल स्टोन के पीछे देखो... राजगड़ नहीं राक्षसगड़ लिखा हुआ है...
विश्व - उसे भी बदल कर रख दूँगा...
आदमी हैरान हो कर विश्व को देखने लगता है l विश्व कार्बन की उस छोटी सी रॉड को फेंक कर आगे बढ़ जाता है और वह आदमी उसे जाते हुए देखता रह जाता है l पर विश्व के जहन में उस आदमी की कही बात गूंजने लगती है
"राजगड़ नहीं राक्षसगड़ लिखा हुआ है"
राक्षसगड़ शब्द उसके दिमाग पर हथोड़े की तरह बरसने लगा l धीरे धीरे वह अपनी यादों में खोने लगता है l
फ्लैशबैक
सरपंच बने छह महीने हो चुके थे l गर्मी के दिन थे पिछले दिनों रुप फाउंडेशन के काम के लिए जब यशपुर के तहसील ऑफिस गया हुआ था तब उसे मालुम हुआ सरकार मोबाइल सिनेमा की व्यवस्था करती है l यह जान कर विश्व उन अधिकारियों से अनुरोध किया कि राजगड़ में भी कोई फिल्म दिखाया जाये l आज वह दिन था शाम को गाँव के मैदान में लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी l एक बहुत बड़े गाड़ी में बड़ा सा पर्दा लगा हुआ था उस पर्दे से करीब तीस मीटर दूर प्रोजेक्टर से फिल्म दिखाया जाने लगा था l पौराणिक फिल्म थी लोग बहुत मजे से देख रहे थे l गाँव में बड़ी मुश्किल से कभी कभी नाटक होती थी वह भी भैरव सिंह के इजाजत से I यह फिल्म दिखाने के लिए विश्व ने भैरव सिंह से बड़ी मिन्नत की थी l भैरव सिंह राजी भी हो गया था I इसलिए फिल्म चल रही थी l विश्व के साथ श्रीनु भी फिल्म देख रहा था l पर चूंकि उसे देर रात तक जागने की आदत नहीं थी इसलिए आधी सिनेमा के बाद वह घर जा कर सोने के लिए जिद करने लगा l विश्व भी मज़बूर हो कर श्रीनु को घर में सुला कर मैदान को लौट रहा था l एक गली से गुजर रहा था, गली पुरी तरह सुनसान था l पर थोड़ी देर बाद एक बच्ची की रोने की आवाज सुनाई देती है l विश्व उस आवाज की तरफ जाता है l देखता है उसका दोस्त बिल्लू की चार साल की बेटी मल्ली रास्ते बैठ कर रो रही है l विश्व दौड़ कर जाता है और मल्ली को अपनी गोद में उठा लेता है l दुलार और पुचकार के साथ मल्ली से पूछता है
विश्व - क्या बात है मल्ली... तेरी माँ कहाँ है...बिल्लू कहाँ है... (आवाज़ देते हुए) बिल्लू... लाली भाभी....
रोते रोते बच्ची अपने हाथ से एक ओर इशारा करती है l विश्व उस तरफ देखता है एक घर का दरवाज़ा जो अंदर से बंद है l विश्व इससे पहले कुछ समझ पाता तभी धड़ाम से वह दरवाजा खुलता है, मल्ली की माँ और बिल्लू की पत्नी लाली भागते हुए बाहर आती है l उसके कपड़े कहीं कहीं से फटे हुए थे, वह विश्व से अपनी बेटी को लेकर वहाँ से भाग जाती है l
विश्व - (भागते हुए लाली को चिल्ला कर) अरे भाभी... बच्चे पैदा कर लेने से कुछ नहीं होता... उन्हें पालना भी होता है...
पर तब तक लाली भाग चुकी थी l विश्व देखता है उस कमरे से एक कमीनी हँसी के साथ सिर्फ लुंगी पहने नंगे बदन नागेंद्र सिंह अपनी मूँछों पर ताव देते हुए निकलता है l नागेंद्र सिंह को देख कर विश्व को बात कुछ कुछ समझ में आने लगता है l तभी कल्लू और शनीया भागते हुए वहाँ पहुँचते हैं l नागेन्द्र सिंह शनीया को चांटा मार देता है l
नागेंद्र सिंह - हरामजादे... यहाँ की पहरे दारी छोड़ कहाँ गया था बे...
शनीया - जी राजा साहब... वह पीसाब करने गया था...
नागेंद्र सिंह अपनी आलस तोड़ते हुए विश्व के पास आता है l
नागेंद्र सिंह - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) वह फिल्म देखने आ रही थी.... मैंने उसे फिल्म ही दिखा दिया... समझा... कल रोणा तुझे पंचनामा के लिए बुलाएगा... तु आकर आपनी गवाही दे देना... क्या समझा...
विश्व कुछ समझ नहीं पाता, वहीँ से वह अपने घर की ओर लौट जाता है l घर के बाहर बरामदे में चटाई लगा कर सोने की कोशिश करता है l घर के अंदर गया नहीं क्यूंकि वह वैदेही के सवालों से बचना चाहता था l पर उसके आँखों में नींद कोसों दूर थी l बार बार वह अपने गालों पर अपना हाथ फ़ेर रहा था l उसे वैदेही के मारे हुए चाटे महसुस हो रहे थे I ऐसे में उसे पता नहीं चलता उसकी आँख कब लग गई I उसे जब कोई हिलाता है तब उसकी नींद टूटती है l देखता है शनीया था
शनीया - ऑए... xxx बस्ती में चल... दारोगा रोणा आया हुआ है... तु सरपंच है... तेरा बयान लेना चाहता है...
बाहर कोलाहल सुन कर वैदेही घर से निकलती है l शनीया को देख कर
वैदेही - ऐ... मेरे भाई को लेकर कहाँ जा रहे हो...
शनीया - पुलिस आई हुई है... पंचनामा कर रही है... यह हमारा सरपंच है... इसकी गवाही... दारोगा लेना चाहता है....
कह कर विश्व की हाथ खिंचते हुए उठाता है और विश्व एक रोबोट की तरह अपनी जगह से उठता है और शनीया के पीछे पीछे चल देता है l विश्व xxx बस्ती में जब पहुँचता है तो हैरानी से उसकी आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह देखता है, लाली की लाश पड़ी हुई है, बिल्लू अपनी बेटी मल्ली को गोद में लिए मल्ली के साथ रो रहा है l पास एक पुलिस की जीप खड़ी है, बगल में दारोगा रोणा और भैरव सिंह दोनों खड़े हुए हैं l
रोणा - (विश्व को देख कर) आओ... सरपंच जी आओ... आपका बयान लेना है....
भैरव सिंह - हाँ विश्वा... लाली की पति... बिल्लू ने अपना बयान दे दिया है... तुम्हारा बयान... लेने के बाद... पंचनामा पुरी हो जाएगी...
विश्व - (बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से आवाज निकाल कर) क्य... क्या... बयान दिया है... बिल्लू ने... (बिल्लू की ओर देखता है)
भैरव सिंह - यही के... बिल्लू नपुंसक था... लाली की जिस्मानी जरूरत पुरी नहीं कर पा रहा था... इसलिए निरास हो कर लाली ने कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी...
भैरव सिंह की बात सुनते ही विश्व के सिर पर मानों बिजलियाँ गिरने लगती हैं l
रोणा - हाँ... और इन सब में... बिल्लू ने तुमको गवाह बनाया है....
विश्व को और एक झटका लगता है l वह अपनी आँखे फाड़े कभी बिल्लू को और उसके रोती हुई बच्ची मल्ली को तो कभी रोणा और भैरव सिंह को देखने लगता है l इतने में रोणा रिपोर्ट लेकर आता है और विश्व से दस्तखत करने के लिए कहता है l विश्व का हाथ नहीं उठता तो रोणा उसका हाथ उठा कर हबलदार से उसके अंगूठे में स्याही लगाने के लिए कहता है l
भैरव सिंह - रोणा...(जबड़े भींच कर) वह राजगड़ का सरपंच है... अंगूठा छाप नहीं है... ग्रैजुएशन कर रहा है... वह भी डिस्टेंट एजुकेशन... वह दस्तखत कर सकता है... उससे दस्तखत ही लो...
रोणा विश्व के हाथ में पेन देता है l विश्व अपनी थरथराते कांपते हुए हाथों से दस्तखत करता है l विश्व से दस्तखत लेने के बाद रोणा सबको वहाँ से चले जाने के लिए कहता है l विश्व भी वहाँ से निकल जाता है l अपनी आँखों में आँसू लिए l उसे ना कुछ सुनाई दे रहा था ना कुछ दिखाई l चलते चलते गाँव के सिरे पर पहुँचता है l देसी शराब की भट्टी थी, वहाँ पर वह स्तब्ध सा टेबल पर बैठ जाता है l उसके बैठते ही उसके सामने एक बोतल रख दी जाती है l विश्व बिना कुछ सोचे बोतल खोल कर गटा गट पीने लगता है l ऐसे ही पीते पीते विश्व बेहोश हो जाता है, वक़्त दो पहर हो चुका था l उस शराब के दुकान में काम करने वाला डोरा विश्व को सहारा देते हुए घर के आँगन में छोड़ कर चला जाता है l वैदेही विश्व की यह रुप देख कर गुस्से के मारे कुए से बाल्टी से पानी निकाल कर विश्व के मुहँ पर उड़ेल देती है l विश्व छटपटा कर उठता है और उल्टी करने लगता है l उल्टी कर लेने के बाद जब उसे थोड़ा अच्छा लगता है l वह वैदेही को देख कर रोने लगता है l
विश्व - दीदी... तुम... तुमने... तुमने गलत आदमी को... अपनी वैचारिक थप्पड़ मारा था... वह राजा रामचंद्र देव थे दीदी... मैं विश्व प्रताप... अरे काहे का प्रताप... थू... जानती हो दीदी... मैंने दारोगा रोणा के रिपोर्ट में... अपनी नपुंसकता पर मोहर लगाते हुए दस्तखत की है... मैं... मैं क्या रक्षा करूँगा... अपने गाँव के धन जीवन और गौरव की... मैं खुद अपनी नपुंसकता की बेदी पर... बड़े राजा नागेंद्र सिंह के हवस की आग में... मैं लाली भाभी की... धन, जीवन और गौरव की बलि चढ़ा कर आया हूँ... भेंट चढ़ा कर आया हूँ... थू... थू.. थू है मेरे मर्द होने पर थू...
कहते हुए बिलखते हुए विश्व फिर से बेहोश हो जाता है l वैदेही विश्व की मुहँ से यह सब सुन कर सुन हो जाती है l आसपास पड़ोस के लोगों की सहायता से विश्व को घर के अंदर सुला देती है l कुछ देर बाद वहाँ उमाकांत आ पहुँचता है l वैदेही रो रो कर सारी बातेँ बता देती है l उमाकांत विश्व के करीब आकर विश्व को गौर से देखते हैं l
उमाकांत - रो मत बेटी... रो मत... क्रांति की चिंगारी अब भड़क चुकी है... बरसों से पी रहा अपने भीतर की सारे जहर को... आज उसने निकाल बाहर कर दिया है... अब जब यह जागेगा... एक नया विश्व होगा... वह विश्व जिसने कुल्हाड़ी हाथ में लेकर... तुझे छूने वाले का हाथ काट दिया था... अब वह तन मन आत्मा से... एक अलग विश्व बन गया है....
वैदेही - क्या...
उमाकांत - हाँ बेटी... विश्व की आवेश को अब दिशा देना होगा... नहीं तो... उसे तो क्षति पहुँचेगी ही... हम भी उसके चपेट में आ जाएंगे.... देखना कल राजगड़ में एक नया सूरज उगने वाला है.....
एक ट्रैक्टर के गुजरने से विश्व अपने यादों से बाहर आता है l विश्व अपने गाँव के सीमा से थोड़ी दूर पहुँच चुका था l दूर से अपनी गाँव को देख कर अपनी बाहें फैलाए एक गहरी सांस लेता है l आँखे मूँद कर अपनी बचपन से लेकर जवानी तक हर एक पल उसके आँखों के सामने क्षण भर में गुजर जाते हैं l आँखे खोलता है, आँखों में आँसू आ गए थे l अपनी आंखों को पोछते हुए विश्व गाँव की ओर आगे बढ़ जाता है l
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वीर आज सुबह दादी और अनु को जल्दी जगा दिया था l मंदिर में पूजा की आयोजन किया है यह कह कर जगन्नाथ मंदिर की ओर दोनों को जल्दी में ले जा रहा है l
वीर - जल्दी चलिए दादी... पंडित जी इंतजार कर रहे होंगे...
दादी - अरे बेटा... माफ़ करना... पता नहीं क्यूँ... सुबह से सिर भारी भारी सा लग रहा है...
अनु - हाँ दादी मेरा भी...
वीर - कोई नहीं... पूजा के बाद... धर्मशाला में जाकर आराम से सो जाइएगा...
श्री जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार के पास एक पंडित वीर को इशारा करते हैं l वीर, दादी और अनु उस पंडित के पास पहुँचते हैं l
पंडित - जी कहिए यजमान... किस सेवा के लिए याद किया...
वीर - जी पंडित जी... दादी जी को पूजा कराना था... और यह रहा टिकट... मैंने पूजा के लिए... काउंटर पर पैसे जमा कर दिए हैं...
पंडित - जी ठीक है... आइये माता जी...
दादी - राजकुमार... तुम नहीं आ रहे...
वीर - नहीं...
अनु - क्यूँ...
दादी - हाँ राजकुमार... क्यूँ...
वीर - दादी... उस भगवान के तेज के सामने... मुझे मेरी पिछली जिंदगी के पाप.... खड़ा होने से रोक रहा है... टोक रहा है... इसलिए आप जाओ... मेरे लिए भी भगवान से प्रार्थना कर दो...
दादी - नहीं राजकुमार... अगर तुम पूजा में नहीं बैठो गे... तो उस पूजा में... हम क्या करें...
वीर - दादी... आप और अनु... पूजा में बैठ जाएं... जब महा प्रसाद सेवन का समय आएगा... मैं आपके साथ बैठ जाऊँगा....
दादी कुछ और नहीं कहती l अनु बड़ी मायूस होती है l वीर पंडित को इशारा करता है तो पंडित उन्हें मंदिर के अंदर ले जाता है l उनके अंदर जाते ही वीर मुड़ता है और तेजी से धर्मशाला में आता है l वहीँ बाहर एक गाड़ी में महांती वीर का इंतजार कर रहा था l वीर के उसके पास पहुँचते ही चाबी दे देता है l वीर सीधे उस गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है l बगल में महांती के बैठते ही वीर गाड़ी स्टार्ट कर भुवनेश्वर की ओर दौड़ाता है l
वीर - तो... मोबाइल के मालिक का तुमने पता लगा लिया...
महांती - हाँ... ऐसे छोटे मोटे हैकिंग एक्सपोर्ट... हमारे टीम में हैं...
वीर - और गाड़ी का क्या हुआ...
महांती - आपके लिए जब गाड़ी भेजी थी... तब आपकी गाड़ी को वहाँ से हटवा दिया था....
वीर - हूँ... बढ़िया... तो उस मोबाइल का मालिक कौन है पता चला... वह जाहिर है... भुवनेश्वर में ही कहीं रहता होगा...
महांती - हाँ... पर जो आइडेंटिफाय हुआ है... मुझे वही चौंका रहा है...
वीर - पहेलियाँ बंद करो महांती.... सीधे नाम बताओ...
महांती - राजकुमार... बता तो दूँगा... पर फिर भी... मुझे लगता है... हम भटक रहे हैं...
वीर - पहले नाम बताओ... फिर सोचेंगे... हम भटक रहे हैं... या नहीं...
महांती - विनय... विनय महानायक...
चर्र्र्र्र् वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l हैरान हो कर महांती को देखता है और फिर गाड़ी को रास्ते के किनारे लगाता है l
वीर - क्या... विनय... आर यु श्योर...
महांती - अब आप मुझे बताएं... आपको किस बात का शॉक लगा...
वीर - विनय... वह साला... गोबर दिमाग वाला छछूंदर... वह...
महांती - हाँ...
वीर गाड़ी से उतर जाता है और गाड़ी के आगे इधर उधर होने लगता है l महांती भी गाड़ी से उतर कर उसके पास खड़ा होता है l
वीर - महांती... तुम्हें क्यूँ लगा... हम भटक रहे हैं...
महांती - मैंने जब से... ESS को एस्टाब्लीश किया है... तब से उन बाप बेटों को... मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... वे जरूरत से ज्यादा कमीने तो हैं... पर इतने चालाक नहीं... की अपना नाम क्षेत्रपाल की दुश्मनी की लिस्ट में देखें....
वीर - फिर भी... चेट्टी का साथ तो दे ही रहे हैं....
महांती - हाँ... पर सीधे मैदान में उतरे... इतना बड़ा जिगर नहीं रखते....
वीर - फिर भी... सच्चाई का तो पता लगाना ही होगा...
महांती - हाँ... सो तो है...
वीर - आओ फिर...
दोनों गाड़ी में बैठते हैं l वीर फिरसे अपनी गाड़ी दौड़ाता है l
वीर - चलो... तुम्हारी थ्योरी पर चलते हैं..... कल रात के कांड के बाद... क्या बाप बेटे... अपने घर में होंगे...
महांती - कल रात... आपकी गाड़ी को ठोकने के बाद... वह लोग... उस गाड़ी को सिर्फ दो किलोमीटर के बाद ही छोड़ दिया... फिर एक के बाद एक करके तीन ऑटो बदल कर... महानायक मैनसन में पहुँचे थे... उनके वहाँ पर पहुँचने के बाद... मैंने अपने आदमियों को महानायक मैनसन पर नजर रखने के लिए भेज दिया था... ताज्जुब की बात यह है कि... केके... अभी भी अपने घर में है...
वीर - इतना बड़ा कांड के बाद भी... अगर वह छुपने के वजाए... घर में है... इसका मतलब यह हुआ... या तो वह कल रात की बात जानता नहीं है... या फिर वह कंफीडेंट है...
महांती - राजकुमार... अगर हमारा कलपिर्ट विनय हुआ... तब भी एक कंफ्यूजन है...
वीर - (चुप रहता है)
महांती - (कहना जारी रखता है) विनय... युवराज पर खार खाया हुआ था... तो वह आपसे दुश्मनी क्यूँ निकाल रहा है...
गाड़ी की रफ्तार बहुत बढ़ जाती है l क्यूँकी यही सवाल उसके मन में भी उठ रहा है l वह बेशक विनय नहीं हो सकता l क्यूँकी वीर के जीवन की जिस काले पन्ने की बात उस दुश्मन ने फोन पर कही थी l वह बात विनय तो किसी भी हाल में नहीं जान सकता था l
वीर - विनय एक मोहरा है महांती... हमारे खिलाफ वह इस्तमाल हो रहा है... वह... चेट्टी भी हो सकता है...
महांती - हाँ... हो भी सकता है... तब भी सवाल यह उठता है... उसे आपसे क्या खीज है... अगर बात यश के लिए है... तो तब भी... चेट्टी पहले छोटे राजा जी से उलझा... फिर युवराज जी से... पर आपसे क्यूँ...
वीर - शायद दोनों से मात खाया... इसलिए मुझसे जितना चाहता है...
महांती - हाँ... यह हो सकता है...
वीर - तो फिर चेट्टी कहाँ है...
महांती - दिल्ली में...
वीर - तो हमें अब सब कुछ... विनय ही बतायेगा...
महांती चुप हो जाता है l वीर की गाड़ी तेजी से भुवनेश्वर में प्रवेश करता है l थोड़ी देर बाद उनकी गाड़ी महानायक मैनसन के परिसर में घुसता है l उन्हें ताज्जुब होता है कि उनकी गाड़ी को किसीने नहीं रोका l वीर गाड़ी को आगे बढ़ा देता है, जब वह पोर्टिको में पहुँचता है वीर और महांती वहाँ का नज़ारा देख कर हैरान हो जाते हैं l एक एम्बुलेंस खड़ा था, साथ में दो पुलिस की जीप खड़ी हुई थी, और कोई बड़े अधिकारी की गाड़ी भी वहीं पर था l दोनों उतरते हैं और अंदर जाते हैं l बड़े से ड्रॉइंग हॉल में कुछ नौकर चाकर खड़े हैं l पुलिस उनसे कुछ सवालात कर रहे हैं l दोनों को हैरानी होती है l वीर देखता है पुलिस कमिश्नर और डॉक्टर नीचे उतर रहे हैं l
महांती - आई एफ्रेड... कोई मीशाप ना हुआ हो...
कमिश्नर डॉक्टर से बात करने के बाद वीर और महांती को देखता है और इन दोनों के पास आता है l कमिश्नर वीर और महांती को अच्छी तरह से पहचानता था I
कमिश्नर - अरे... राजकुमार... महांती तुम भी... यहाँ कैसे आना हुआ...
वीर - वह हम... विनय... विनय के लिए आए थे...
कमिश्नर - क्या... (हैरान होते हुए) विनय के लिए...
महांती - जी... पर यहाँ देख कर लगता है... कुछ बुरा हुआ है...
कमिश्नर - हाँ... बुरा तो हुआ है... केके साहब के साथ... उनका एकलौता लड़का विनय का किडनैप हुआ है...
वीर और महांती - (चौंक कर) क्या... कब...
कमिश्नर - हाँ... परसों शाम से ही... विनय गायब है....
वीर - क्या... परसों शाम से....
कमिश्नर - हाँ राजकुमार... ईफ यु डोंट माइंड... क्या आप दोनों... मुझे मेरे गाड़ी में कंपनी दे सकते हैं...
वीर - (चेहरा सख्त हो जाता है) क्या मतलब....
कमिश्नर - वेल देन... आप लोग मुझे अपनी गाड़ी में कंपनी देते हुए... कमिश्नरेट में छोड़ दीजिए...
महांती - क्या बात है कमिश्नर... कोई खास बात...
कमिश्नर - हाँ... और राजकुमार... बात आपसे भी जुड़ी हुई है.... क्यूंकि मैटर... xxx होटल से ताल्लुक रखता है...
वीर और महांती एक दुसरे को देखते हैं l वीर फिर अपना सिर हिला कर हामी भरते हुए
वीर - ठीक है कमिश्नर... मैं आपके साथ... आपके गाड़ी में जाता हूँ... महांती... गाड़ी में आपकी गाड़ी को फलो करेगा...
कमिश्नर - ओके... लेटस गो.... महांती आप भी आ जाओ... मेरा एक ऑफिसर तुम्हारा गाड़ी लेकर हमें फॉलो करेगा...
वीर और महांती दोनों कमिश्नर की गाड़ी में बैठ जाते हैं l गाड़ी महानायक मानसन के परिसर से निकल कर भुवनेश्वर कमिश्नरेट की ओर जाने लगती है l पीछे पीछे उनकी गाड़ी को लेकर एक ऑफिसर उन्हें फॉलो करते हुए जाता है l
वीर - तो बोलिए कमिश्नर... हम से क्या जानना चाहते हैं... या उगलवाना चाहते हैं...
कमिश्नर - अरे राजकुमार जी... हमारी औकात कहाँ आपसे कुछ उगलवाएं... मुझे लगता है आपको कुछ जानना चाहिए... इसीलिए मैंने आपको मेरी सरकारी गाड़ी में निमंत्रण दिया है...
महांती - तो... मुद्दे पर आइए कमिश्नर सर...
कमिश्नर - पहले आप यह बताएं... आप विनय को क्यूँ ढूंढ रहे हैं...
वीर - क्यूंकि... उसके कुछ आदमी मेरा पीछा करते हुए पकड़े गए... इसलिए उससे वजह जानने के लिए मैं यहाँ आया था...
कमिश्नर - हूँ... मुझे पता है आप सच कह रहे हैं... लेकिन मुझे लगता है... आपको बहुत कुछ मालूम नहीं है...
वीर - वह सब अब आप हमें बतायेंगे... और उस होटल से... कौनसी बातेँ जुड़ी हुई हैं... वह भी...
कमिश्नर - जी बिलकुल... पहली बात... परसों शाम से... विनय गायब है... पर तलाश हमें उसकी नहीं थी... तलाश थी... एक लड़की पुष्पा... आपके ESS में सर्विस करने वाले... मृत्युंजय नायक की बहन की...
वीर - क्या हुआ उसे...
कमिश्नर - तो हुआ यूँ... परसों सुबह से... पुष्पा गायब है... चूंकि चौबीस घंटे तक कोई गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं ली जाती... इसलिए उस लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट कल सुबह लिखी गई...
महांती - तो इससे... विनय का क्या ताल्लुक...
कमिश्नर - ताल्लुक है महांती बाबु... बहुत गहरा ताल्लुक है... पुष्पा की गुमशुदगी की वजह विनय को ठहरा रहा था... मृत्युंजय...
वीर - (चौंकते हुए) क्या... यह कैसे हो सकता है...
कमिश्नर - बिल्कुल यही सवाल... हमारे पुलिस वालों के मन में भी आया.... पर मृत्युंजय ने सबूत दिखाया.... पुष्पा की मोबाइल में... उन दोनों की.... अंतरंग फोटो.... इसलिए जब विनय का नाम आया तो जाहिर है... यह एक हाई प्रोफाइल केस बन गया... हमें हर कदम फूंक फूंक कर रखना पड़ रहा था... हमने विनय की मोबाइल को ट्रेस करने की कोशिश की... तो स्विच ऑफ आ रहा था... फिर भी... हमने ट्रैक करना नहीं छोड़ा... पर कल रात अचानक हमें... पूरी रोड के xxx होटल में उसकी लोकेशन मिली... तो हमने अपनी फोर्स वहाँ पर भेज दी... पर तब तक... आपका कांड हो चुका था... हमने देखा मोबाइल भुवनेश्वर से पुरी शिफ्ट हो रहा था... पर हमें तब तक सीसीटीवी की फुटेज मिल चुका था... इसलिए हमने दुसरी और ध्यान लगाया... तो आप लोग जिस तरह से... महानायक मानसन पहुँचे... हम भी वहीँ पर पहुँचे थे...
वीर - ओ... तो क्या मानसन में विनय नहीं मिला...
कमिश्नर - ना... नहीं मिला...
महांती - वहाँ पर एम्बुलेंस...
कमिश्नर - केके महानायक को दिल का दौरा पड़ा था... एक तो लोयर क्लास की लड़की के साथ... विनय फरार है... या... पता नहीं क्या हुआ है... हमने तो बात छुपाई थी... पर हमारे ही डिपार्टमेंट से किसीने उन्हें खबर कर दी... इस सदमे में... उन्होंने बिस्तर पकड़ ली...
वीर - ह्म्म्म्म... और कुछ...
कमिश्नर - यही के... आपको उस होटल की अच्छी तरह से तलाशी लेनी चाहिए थी....
वीर - क्या... मेरा मतलब है... क्यूँ...
वीर - क्यूंकि... पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद... मृत्युंजय का भी किडनैप हो गया था... वह कल उसी होटल में... बेहोशी की हालत में... पुलिस को मिला...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... अब वह कहाँ है...
कमिश्नर - सिटी हॉस्पिटल में...(ड्राइवर से) बहादुर गाड़ी रोको...
ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l वीर और महांती दोनों उतरकर पुलिस ऑफिसर से अपना गाड़ी ले लेते हैं और वहाँ से महांती गाड़ी पुरी के रास्ते ले जाता है l गाड़ी के अंदर वीर बहुत ही गहरी सोच में खोया हुआ है l महांती कभी रास्ते को तो कभी वीर को देख रहा था l तभी वीर की फोन बजने लगती है l वीर कॉल देखता है, स्क्रीन पर प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा था l वीर कॉल लिफ्ट करता तो है पर जवाब कुछ नहीं देता
- क्यूँ... झटका खा गया ना..
वीर -.....
- ऐसा झटका... के तेरी बोलती बंद हो गई... हा हा हा हा हा...
वीर -.......
- अबे भूतनी के... मैं तुझसे सौ कदम आगे हूँ... मैं जब चाहूँ... तुझे मौत की नींद सुला सकता हूँ...
वीर - तो देर किस बात की... महुरत देख रहे हो क्या...
- हाँ... ऐसा ही कुछ... पर तुझे मरूंगा नहीं... बल्कि तेरो जिंदगी.. इतनी खराब कर दूँगा... के तू खुद भिखारियों की तरह रास्ते पर घूम घूम कर लोगों से मौत मांगेगा...
वीर - पहले यह बता... पुष्पा का अपहरण तुने किया...
- अरे ना रे... विनय भी तेरे जैसा है.... लड़की बाज... मैंने इसलिए विनय से पुष्पा की सेटिंग कर दिया... पर यह साला मृत्युंजय.. बीच में अपना टांग लेकर घुस रहा था... इसलिए उसे क्लोरोफॉर्म दे कर सुला दिया...
वीर - हराम जादे... किसी की हवस के लिए... तुने एक मासूम की जिंदगी से खिलवाड़ किया...
- आले आले आले... देखो तो कौन बतीआ रहा है... जिसने अपनी खानदान की चलन को आगे बढ़ाते हुए... ना जाने कितने मासूमों को रौंदा है... वैसे भी... मृत्युंजय से तुझे क्या... तुने तो.. उसकी माँ की बजायी... ऐँ... और उसके बाप को टांग दी...
वीर - (चिल्लाते हुए) कमीने...
- अरे... इतना क्यूँ छटपटा रहा है... कहीं पुष्पा पर तेरी नजर तो नहीं थी... हा हा हा हा हा...
वीर - कमीने... मादरचोद... एक बार... बस एक बार... तु मेरे हाथ लग जा...
- हाँ क्या करेगा... बोल बोल क्या कर लेगा...
वीर - अनु की कसम... तुझे वह मौत मरूंगा... के तेरे मौत के फरिश्ते भी तेरे लिए सोचे नहीं होंगे...
- देख तु अनु की झूठी कसम खा रहा है.... (छेड़ते हुए) तुझे मालुम है ना... जिसकी झूठी कसम खाई जाती है... वह ऊपर वाले को.. प्यारी हो जाती है...
वीर - बस हरामजादे बस... अगर तुने अनु की तरफ आँख भी उठाई... मैं तेरे चिथड़े बिछा दूँगा...
- शाबास... चैलेंज... अब तु तैयार रह... तेरी कमीने पन का हिसाब... अब से अनु चुकाएगी
फोन कट चुका था और वीर के मुहँ से कोई लफ्ज़ नहीं फुट रहा था l
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वैदेही एक बड़ा सा तख्ता दुकान के बाहर टांग देती है l एक चॉक लेकर उसमें कुछ लिखने लगती है l वैदेही ने क्या लिखा यह देखने गौरी उत्सुकता वश दुकान के बाहर देखने आती है l
"आज भंडारा है, बदले में कोई पैसा नहीं लिया जाएगा"
गौरी यह पढ़ कर मुस्करा देती है l और अंदर आकर वैदेही को देखने लगती है l आज वैदेही बहुत खुश दिख रही थी और बड़े उत्साह से चूल्हे में लगी हुई है l क्यूँकी आज उसका भाई आ रहा है l लोग भी वहाँ से गुजरने वाले सभी एक नजर उस तख्ता पर डाल कर चले जा रहे थे l कुछ वहीं खड़े लोगों में से एक
एक - क्या कर रही हो वैदेही... नाश्ते का वक़्त कब आएगा...
वैदेही - बस एक घंटे के बाद...
- क्या बात है... बड़ी खुश नजर आ रही हो आज...
तभी और एक आवाज़ सबके कानों में पड़ती है l वह आवाज शनीया का था I वैदेही देखती है शनीया और उसके साथ कुछ मुस्टंडे आए थे, महल के जीप में थे पर कोई आज महल वाली वर्दी में नहीं था l उन सबको अपने दुकान के आगे देख कर वैदेही की जबड़े भींच जाती हैं l
वैदेही - क्या बात है... गाँव अभी बसा नहीं... झूठन खाने... कुत्ते अभी से आ गए...
शनीया - तमीज... लड़की तमीज...(लोगों से) ऐ... फुटो तुम सब यहाँ से... (लोग धीरे धीरे वहाँ से खिसक जाते हैं, तब वैदेही से) तमीज से बात कर... हम आज ग्राहक हैं तेरे...
वैदेही - तमीज से तु बात कर हरामी... यह कोई कोठा नहीं है... जो तु अपनी ग्राहकी झाड़ने यहाँ आया है...
शनीया - आज तो बड़ी धार है.. तेरी कटीली जुबान में... आज सब्जियाँ काटने के लिए... यही इस्तमाल करोगी क्या...
वैदेही - मेरे दुकान में सब्ज़ियों में... तुझसे भी ज्यादा ग़ैरत है... इसलिए उन्हें काटने चाकू छुरीयों की जरूरत पड़ती है...
थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा जाती है l शनीया से कुछ कहते नहीं बनता I वैदेही अपने काम में लग जाती है l थोड़ी देर बात
वैदेही - अब बोल क्यूँ आया है यहाँ...
शनीया - राजा साहब का हुकुम बजाने...
वैदेही - कौनसा हुकुम...
शनीया - अरे... भूल गई... हाँ आआँ.. भूल ही गई होगी... इसी चौराहे पर... राजा साहब ने... तुझसे सात फेरे तो नहीं ली थी... सात लप्फड़ मारे थे... और फरमान दिया था... विश्व का इस गाँव से हुक्का पानी बंद है...
वैदेही - बे राजा का गू खाने वाले... तेरा राजा सरकार नहीं है...
शनीया - हाँ सरकार नहीं है... भगवान है... ऐसा ही समझ...
वैदेही - अच्छा... तो चल... आज मेरा भाई यहाँ आएगा... मेरे हाथों से खाना भी खाएगा... बोल तु क्या उखाड़ लेगा..
शनीया - इंतजाम... तेरा भी वहिष्कार का इंतजाम कर दूँगा...
वैदेही - कुछ भी कर लेना... पर सबसे पहले यहाँ से जाकर... अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिषी को दिखा देना...
शनीया - (एक भद्दी सी हँसी हँसते हुए) दिखा दूँगा... अपने नीचे लाने के लिए... कोई अच्छा सा महुरत निकल दूँगा
कह कर शनीया हँसने लगता है और उसके साथ आये सभी मुस्टंडे शनीया के साथ बहुत ही भद्दी हँसी हँसने लगते हैं l
वैदेही - हाँ.. हाँ... जरुर दिखाना.... और उससे अपनी ग्रह शांति जरुर करवा लेना... क्यूंकि जब भी तु मुझसे उलझा है... मुहँ काला सिर्फ तेरा ही होता है...
शनीया - साली रंडी कमीनी...
वैदेही - आ गया ना औकात पर... जितना चाहे भोंक ले... झूठन तो तुझे... सबके खा लेने के बाद ही मिलेगा...
शनीया से अब और बर्दास्त नहीं होता l गुस्से में तमतमाये वैदेही की ओर बढ़ने लगता है l
वैदेही - ना शनीया ना.. तु भेड़िये की नस्ल में... किसी गटर छाप कुत्ते का फसल है... आज कोई गुस्ताखी नहीं... मुझसे बद जुबानी की सजा.. मेरे भाई ने किस तरह से देता है... तु जा कर रोणा से पूछ लेना... कोई बद नियत वाली हरकत करेगा... तो तु... जान से जाएगा... जहान से भी जाएगा...
शनीया थम जाता है l ना चाहते हुए भी उसके अंदर एक सिहरन दौड़ जाती है l वैदेही के आँखों में अंगारे दहक रही थी l वह अपने चारों तरफ देखता है लोग तो कोई नहीं थे पर उसके इज़्ज़त का कबाड़ा अपने स्टाफ के सामने हो चुका था l
शनीया - याद दिलाने आया था... भुल गई है तु... कैसे गिड़गिड़ाए थी... अपनी भाई को बचाने के लिए... मत भुल... यह वही गाँव... है... यह वही मैं हूँ... और तु भी वही है...
वैदेही - हाँ... तु वही है... यह गाँव भी वही है और... मैं भी वही हूँ... पर विश्वा वह नहीं है... अभी तो तुने उसे देखा नहीं है... झटके झेल नहीं पाएगा तु... जब उसे देखेगा तो समझ लेगा... के वही तेरा असली बाप है... और तुझे अपने माँ पर... अपने पैदा होने पर कोई अफ़सोस ना होगा...
शनीया - (चिल्लाते हुआ) साली हराम की जनी.... यह राजगड़... राजा साहब की हुकूमत का दरिया है... जहां के हम मगरमच्छ हैं...
वैदेही - अबे जा दुम कटे छिपकली... हर आकर अपना दुम और नाक कटवाता रहता है... जब तक फिर से वापस उग नहीं जाता... जैसे ही उग जाता है... अपनी नाक और दुम कटवाने आ ही जाता है...
शनीया - ठीक है कमीनी... ठीक है... एक घंटे के बाद आता हूँ... तेरा भाई विश्वा कितना बड़ा तोप है... वह भी देख लूँगा... (अपने मुस्टंडो से) चलो रे... (फिर वैदेही से) तु रोयेगी... अपने भाई के लिए... ठीक सात साल पहले... जैसे रोई थी...
शनीया अपने मुस्टंडो को लेकर वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही गौरी वैदेही के पास आती है l
गौरी - यह क्या है वैदेही... दिन व दिन... इन लोगों की उत्पात बढ़ता ही जाता है...
वैदेही - तुम घबराओ मत काकी... हर परिंदे की अपनी उड़ान होती है... और हद... पर सैयाद के आगे सभी बराबर होते हैं... इनके पर कटने का वक़्त आ गया है....
गौरी - यह सात साल पहले की बात... क्यूँ कर रहा था....
वैदेही एक गहरी सांस लेती है फिर सांस छोड़ते हुए गौरी को देखती है l
वैदेही - काकी... बड़े अरमानों से... विशु सरपंच बना था... गाँव का भला करेगा... लोगों का भला करेगा... पता नहीं क्या क्या सोच कर छह महीने गुजर गए... उसके साथ देने के नाम पर उसके साथ बहुत धोखे हुए... वह वास्तव से अपरिचित था... ज्यूं ही वास्तव से अवगत हुआ... विशु के सारे भरम टुट गए... चकनाचूर हो गए... उस दिन वह ऐसा टूटा की... ठेके पर जा कर दारू पीकर लौटा था... अपने अंदर की पीड़ा... कुछ ना कर पाने की भड़ास को... निकाल बाहर कर बेहोश हो गया था...
वह दिन जैसे तैसे गुजर गई... अगले दिन वह जब उठा... उसके चेहरे पर पहले एक डर जो बस्ता था... वह गायब था... आँखे भाव शून्य थे उसके और... चेहरा सपाट... उसकी ऐसी हालत देख कर... मै उस दिन बहुत डर गई थी... अगले दिन भी किसी तरह से उसे कहीं जाने से रोके रखा... पर कब तक... उसके अंदर का तूफान पल पल करवटें बदल रहा था... मैं खाना बना कर जब कमरे में लौटी... तो देखा विशु गायब था.... मैं बदहवास हो गई... पुरे गाँव में गली गली भाग कर उसे ढूंढती रही... पर वह नहीं मिला... मैं घर के बाहर बरामदे में... बैठ कर कर उसकी इंतजार करने लगी... दिन ढल गया... फिर शाम को... हरिया भाग कर मेरे पास आया...
फ्लैशबैक
हरिया - वैदेही दीदी... वह विश्वा...
वैदेही - (हड़बड़ा कर उठते हुए) क्या... क्या हुआ विशु को...
हरिया - राजा के आम की बाग में... उसे शनीया... भूरा सब मिलकर मार रहे हैं... जल्दी जाओ... कहीं उसे जान से ना मार दें...
इतना सुनते ही वैदेही वहाँ से भागती है, आम की बाग की ओर l जब वहाँ पहुँचती है तो देखती है विश्व एक पेड़ से बंधा हुआ था और मोटे रस्सी से शनीया मारता जा रहा है l वैदेही भागते हुए उसके पैरों पर गिर जाती है l
वैदेही - मत मारो मेरे भाई को... छोड़ दो उसे...क्यूँ मार रहे हो...
शनीया - (वैदेही की बालों को पकड़ कर उपर उठाता है) कमाल है... राजा साहब से गद्दारी करेगा... तो क्या हम आरती उतारेंगे...
वैदेही - कैसी गद्दारी...
शनीया - अगर जिंदा बच जाए... तो पुछ लेना... बता तो देगा ही...
वैदेही - (रोते हुए) शनीया भाई... दया करो... मेरे भाई को छोड़ दो...
शनीया - दया करूँ... हाँ कर तो सकता हूँ... अगर ज़मानत में तु मिल जाए... हा हा हा हा हा...
शनीया के साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी हँसने लगते हैं l
शनीया - रे विश्वा... ऐ विश्वा... देख तेरी बहन... अपनी ज़मानत पर तुझे छोड़ने को बोल रही है....
विश्व की हालत बहुत बुरी थी l बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उठा कर शनीया की ओर देखता है l
शनीया - जान है लौंडे में... हाँ जान है तुझ में... (वैदेही से) जा अपने भाई को खोल कर लेजा... पर... हाँ पर... जितना वक़्त तु लेगी... विश्वा के गांठ खोलने में... उतने वक़्त में मैं तेरे बदन का माप लेता रहूँगा... समझी... बोल तैयार...
वैदेही - (रोते हुए) हाँ... हाँ तैयार हूँ...
वैदेही के इतना कह देने से शनीया वैदेही को छोड़ देता है l वैदेही जैसे ही विश्व की बंधे गांठ खोलने लगती है शनीया उसके पीछे चिपक जाता है और वैदेही की चुंचीयों को मसलते हुए अपना कमर हिलाने लगता है l वैदेही उस हालत में विश्व की गांठ खोल नहीं पाती l क्यूँकी जिस वहशी पन से शनीया हाथ और कमर चला रहा था वैदेही को बहुत मुश्किल हो रहा था विश्व की गांठ खोलने के लिए l फिर भी वैदेही अपनी परवाह किए वगैर विश्व की गांठ खोल देती है और रस्सी को घूम घूम कर निकालने लगती है l इस पूरी प्रक्रिया के दौरान शनीया वैदेही के साथ वही सलूक किए जा रहा था l पुरी रस्सी निकल जाने के बाद विश्व गिर जाता है l उसके बावजूद शनीया वैदेही को नहीं छोड़ता, वहशी पन अब उसके सिर चढ़ चुका था l वह वैदेही की ब्लाउज फाड़ देता है l ब्लाउज फटने की आवाज सुन कर विश्व उठता है और शनीया पर झपट पड़ता है l शनीया के साथ साथ विश्व और वैदेही नीचे गिर पड़ते हैं l तमाशा देख रहे भूरा और दुसरे विश्व को फिर से पकड़ लेते हैं l शनीया वैदेही को छोड़ कर उठता है l तभी वहाँ महल का एक आदमी पहुँचता है
आदमी - शनीया... जल्दी आओ राजा साहब ने बुलाया है...
शनीया - हाँ आया... (वैदेही से) आज ज़मानत अधूरा रह गया... पर कोई ना... फिर पुरा लेने आऊंगा... (विश्व को नीचे से उठाते हुए) मादर चोद... तेरी बहन की आधी ज़मानत के वजह से तुझे छोड़ रहा हूँ... जा जी ले साले...
भूरा और बाकी सभी मौजूद लोग हँसने लगते हैं l फिर सभी वहाँ से चल देते हैं l वैदेही रोते हुए विशु को सहारा दे कर उठाती है और बड़ी मुश्किल से घर में ले जाती है l विश्व की हालत बहुत ही खराब थी l जब उसे थोड़ी होश आती है तो सामने वैदेही, और श्रीनु दोनों दीखते हैं l विश्व कराहते हुए उठने की कोशिश करता है
वैदेही - तु उठ क्यूँ रहा है... सारी गलती मेरी है... जब से तु मुझे वापस मिला... हमें सब छोड़ कर चले जाना चाहिए था....
विश्व - (बड़ी मुश्किल से) क्यूँ...
वैदेही - पुछ रहा है क्यूँ... हम अपनी लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं... पर निकले दूसरों की लड़ाई में सामिल होने... अब देख... सिवाय मेरे और तुम्हारे... और उमाकांत सर जी के... कोई नहीं यहाँ...
विश्व - उ.. उमाकांत सर... कहाँ हैं...
उमाकांत - (अंदर आते हुए) डॉक्टर को बाहर छोड़ने गया था...बोलो... किस लिए... राजा के गुंडों से उलझे...
विश्व - (कराहते हुए) मैं उलझा नहीं... उलझाया गया हूँ...
उमाकांत - क्या मतलब हुआ... तुम सुबह से गायब हो गए... के जब मिले... तो ऐसी हालत में... ऐसा क्या हो गया...(कह कर विश्व के करीब बैठ जाता है)
विश्व - (एक गहरी सांस लेते हुए, कुछ देर की खामोशी के बाद) मैं... यशपुर गया था... तहसीलदार के पास... लाली भाभी जी का बलात्कार किया गया था... ना कि उन्होंने आत्महत्या की थी... मैं उस घटना का चश्मदीद गवाह हूँ... मुझसे और बिल्लू से बयान पर दस्तखत ज़बरदस्ती ले ली गई है... यही बताने गया था.... तहसील दार सब सुनने के बाद... मुझे एक काग़ज़ और कलम दी... पुरी बयान लिखने के लिए... मैं उनके कमरे में बैठा... बयान लिखता रहा... इतने में... तहसील ऑफिस का पियोन आया... और मुझे भाग जाने के लिए कहा... मैंने जब कारण पुछा... तो उसने बताया कि... तहसील दार ने... राजा साहब को खबर कर दी... मैं यह सुन कर वहाँ से निकलने वाला था कि... तब तक... शनीया.. भूरा... अपने गुंडों के साथ मुझे और उस पियोन को दबोच लिए.... तभी माणीया गाँव का मुखिया... दिलीप कर आया.... और मुझे... इन सब मामलों से दूर रहने के लिए कहा... पर मैंने इंकार कर दिया... तब उसने मुझे रुप फाउंडेशन और उसके जरिए मुझे आधार बना कर... हुई घपलों के बारे में जानकारी दी... (विश्व मनरेगा और आधार कार्ड से हुई घोटाले के बारे में विस्तार से सब बताता है) और चेतावनी दी... के मैं इन सब मामलों से दूर रहूँ वरना... पर मैं फिर भी... मानने से इंकार कर दिया... इसलिए... मुझे वापस राजगड़ ला कर... मेरी पिटाई की गई...
विश्व की बात सुन कर वैदेही और उमाकांत पुरी तरह से शॉक हो जाते हैं l उमाकांत के आँखों से आँसू बह रहे थे l यह देख कर
विश्व - सर... मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है...
उमाकांत - पर मुझे है... खुद से... ऐसा लग रहा है... जैसे मैंने तुम्हें अपने कंधे पर बिठा कर... ऊपर चढ़ाया... और अपने ही हाथों से सीढ़ी को काट दिया...
विश्व - नहीं सर... आप खुद को भी दोषी ना समझें...
उमाकांत अपनी जगह से उठाता है और श्रीनु के पास जाता है, फिर विश्व की ओर देख कर
उमाकांत - विश्वा... क्या तुमसे... एक गुरु दक्षिणा मांगूं...
विश्व - जी सर...
उमाकांत - यह मेरी बेटी की अंतिम निशानी है... इसका खयाल रखना... श्रीनु... विश्वा भाई के साथ रुकेगा ना...
श्रीनु खुशी के मारे अपना सिर हाँ में हिलाता है l श्रीनु के राजी होने के बाद उमाकांत वहाँ से चला जाता है l विश्व और वैदेही कुछ समझ नहीं पाए l पर श्रीनु उनके साथ रुक जाता है l सुबह करीब दस बजे उन्हें खबर मिलती है कि उमाकांत सर को नदी किनारे सांप काटने से देहांत हो गया है l यह खबर विश्व और वैदेही को स्तब्ध कर देता है l विश्व को समझ में नहीं आता कि करे तो क्या करे l क्यूँकी वह एक बात अच्छी तरह से समझ चुका था, कानून हो या व्यवस्था भैरव सिंह के साथ है और हाथ में है l वैसे भी उसकी हालत ठीक नहीं थी l उसी हालत में विश्व उमाकांत सर का क्रियाकर्म कर देता है l श्रीनु अब अपने सीने से लगा कर साथ में रखता है l इसी तरह से पंद्रह दिन बीत जाते हैं l उसे खबर लगती है कि तहसील ऑफिस का पियोन, बैंक मैनेजर, रेवेन्यू इंस्पेक्टर और तहसील दार या तो गायब हो गए हैं, या फिर मार दिए गए हैं l विश्व समझ जाता है कि उसे यशपुर में कानून और सिस्टम से कोई मदत नहीं मिलने वाली l अगर वह कुछ नहीं किया पता नहीं और किन किन लोगों की बलि चढ़ जाएगी I यह सब सोच कर वह एक चिट्ठी लिखता है रुप फाउंडेशन और उसके जरिए हुए मनरेगा घोटाले के बारे में l उस चिट्ठी की सात कॉपी बना कर सात लिफाफे पर पते लिखता है l पहला राष्ट्रपति जी को, दुसरा प्रधान मंत्री जी को, तीसरा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी को, चौथा राज्य की राज्यपाल जी को, पांचवां मुख्यमंत्री जी को, छठवाँ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी को और सातवां राज्य के डिजी यानी डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस को l पर चिट्ठी लिखने के बाद उन्हें कैसे पोस्ट करे वह निर्णय ले नहीं पा रहा था l क्यूँकी वह समझ चुका था भैरव सिंह का नजर उस पर भी होगी I कैसे राजगड़ में घटित हुए ख़बरों को जन जन तक पहुँचाया जाए इसी उधेडबुन में लगा रहता है l फिर विश्व से वह गलती होती है जिसके लिए विश्व कभी खुद को माफ नहीं कर पाता l एक दिन पंचायत ऑफिस में विश्व बैठा अपने अगले कदम की सोच रहा था कि उसे श्रीनु का ध्यान आता है l वह घर पर श्रीनु को खबर भिजवाता है मिलने के लिए l ऐसे वक़्त पर श्रीधर परिड़ा अपने साथियों के साथ पंचायत ऑफिस में आ धमकता है l विश्व से रूप फाउंडेशन के ऑडिट इंचार्ज के रुप में अपना परिचय दे कर पूछताछ करने लगता है l चूंकि पहले से ही सिस्टम से मार खाया हुआ था इसलिए विश्व गोल मोल जवाब देने लगता है l जब विश्व की इंट्रोगेशन चल रहा था तभी श्रीनु पहुँचता है I विश्व उसे देख कर तेलुगु में कहता है
विश्व - आओ श्रीनु... मुझसे तेलुगु में बात करो...
श्रीनु - क्या है विशु भैया... मुझे क्यूँ बुलाया आपने...
विश्व - एक काम करो.... (श्रीनु के हाथ में सौ सौ के दस नोट दे कर) घर में... मेरे टेबल के ड्रॉयर में सात चिट्ठियां है... उन्हें निकाल कर... यशपुर चले जाना... वहीँ मुख्य पोस्ट ऑफिस से... रजिस्ट्री वीथ एडी पोस्ट कर देना... कर पाएगा ना...
श्रीनु - हाँ विशु भैया कर दूँगा...
श्रीनु विश्व से पैसे लेकर चला जाता है l श्रीनु के जाने के कुछ देर बाद श्रीधर परीड़ा अपने साथियों को लेकर चला जाता है l विश्व खुश था, उसका काम पुरा हो गया था I उसे बस श्रीनु के लौटने का इंतजार था l पर दिन ढल गया श्रीनु की कोई खबर नहीं थी l विश्व अब खुद को गाली दिए जा रहा था और उसकी सलामती के लिए भगवान से लगातार प्रार्थना कर रहा था l शाम को अचानक उसे खबर मिलती है गांव के बाहर एक बच्चे की लाश मिली है l विश्व की आँखों में आंसू बहने लगते हैं l वह खुद को रोक नहीं पाता जहां लाश मिलने की खबर मिली थी l उस ओर भागते हुए जाता है l हाँ वह लाश श्रीनु का ही था l उसका पंचनामा रोणा कर रहा था l जैसे ही रोणा विश्व को देखता है
रोणा - आओ... आओ बर्खुर्दार आओ... तुम्हारी ही प्रतीक्षा हो रही थी...
विश्व भाग कर श्रीनु की लाश को गले लगाते हुए फुट फुट कर रोने लगता है l
रोणा - अब रोने से होगा क्या... जब जान ही चली गई...
विश्व की आँखों में खुन उतरने लगती है l वह जलते हुए आँखों से रोणा की ओर देखने लगता है l
रोणा - अबे... ऐसे क्या देख रहा है... एक तो क्राइम स्पॉट पर... आकर सबूतों से छेड़ छाड़ किया है... और ऊपर से... घूर भी रहा है...
विश्व - किसने मारा इसे...
रोणा - (गाते हुए) वही... जिसका कोई... उखाड़ सकता नहीं....
लगता है अब फ्लैशबैक पूरा हो चुका है, क्योंकि कहानी उसी मोड़ पर आ गई है जहां से शुरू हुई थी। गलतियां सबने की मगर सजा सिर्फ विश्व और वैदेही हो ही मिली। शायद इन गलतियों और उनकी आत्मग्लानि ने विश्व को अंदर और बाहर से जला कर फौलाद बना दिया जिसने 7 साल जेल में राज किया और अब इन फर्जी राजाओं का राजपाठ खतम करने आया है।
विश्व अपने पत्ते बिछा चुका है तभी उसने सीलू को यशपुर भेजा है। मतलब इमारत गिराने से पहले उसकी बुनियाद में बारूद लगाने की तैयारी हो चुकी है। आज इस शानिया और उसके चमचों की मरम्मत का महूर्त भी निकला है शायद।
इंतजार तो अब विश्व के हवेली जा कर रूप से अपने प्यार के इजहार करने का है। बहुत ही भावुक अपडेट।