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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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छठवां भाग

बहुत ही बेहतरीन कहानी।।

शुभ्रा ने भले ही विक्रम से प्रेम विवाह किया है लेकिन वो भी अपने परिवार की संकीर्ण विचारधारा की सताई हुई लगती है। नंदिनी खुद इस बात का एक उदाहरण है यही कारण है कि नंदिनी और शुभ्रा के बीच बहनों जैसा स्नेह है।। सही है इतने बड़े घर परिवार में भी इनका अपना कहने वाला कोई नहीं है सभी अपनी झूठी शान और अहंकार में जीने वाले हैं। औरतों को अपने पैरों की धूल समझने वाले कहाँ से उनकी भावनाओं की कद्र करेंगे।।

रॉकी के अतीत से ये बात साफ पता चल रही है कि वो क्षेत्रपाल के रुतबे से पूरी तरह प्रभावित है और वैसा ही रुतबा बनाना चाहता है अपना। इस बात से ये तो स्पष्ट हो जाता है कि वो नंदिनी से प्यार नहीं करता, वो बस नंदिनी को सीढ़ी बनाकर वो मुकाम हासिल करना चाहता है जो इस समय क्षेत्रपालों मे पास है। लगता है रॉकी के दिन भी भर गए हैं। राजू ने एक बात बिल्कुल सही कही कि नंदिनी अपने भाइयों और बाप के खिलाफ तभी खड़ी होगी जब उसके दिल और दिमाग मे रॉकी घर कर जाए।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आपकी विश्लेषण वाकई अद्भुत है
उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद
 

Kala Nag

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सातवां अपडेट कल आ रहा है
मित्रों
आपकी शुभकामना की अपेक्षा है
 

Kala Nag

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👉सातवां अपडेट
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अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












 
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राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












Nice and excellent update...
 

Jaguaar

Well-Known Member
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👉सातवां अपडेट
-------------------
अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












Awesome Updatee
 
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भैरव सिंह का दबदबा मुझे " हुकूमत " फिल्म का विलेन " सदाशिव अमरापुरकर " की तरह जैसा लगा । पुरी रियासत को अपने खौफ और अत्याचारों से भयभीत कर रखा है । ऐसे में जानते बूझते हुए भी राॅकी जो स्टेप उठाने को सोच रहा है वो उसके लिए काफी खतरनाक हो सकता है । उसकी बेटी से प्यार करने का प्रयास उसके लिए आत्मघाती कदम ही होगा ।

इधर कालेज में भी रूप सहेली बनाने के चक्कर में कहीं उन लड़कियों की जान खतरे में न डाल दे । छः का ग्रूप बन चुका है पर शायद दिप्ती का रोल कुछ अहम हो सकता है । शायद वो उसकी खास सहेली बनने वाली है ।

वैदेही का कैरेक्टर भी बहुत बढ़िया है । हिजड़ों के बस्ती में एकलौती मर्द के समान है । औरत होकर भी काफी डेयरिंग है । शायद इनका वास्तविक परिचय फ़्लैश बैक आने के बाद क्लियर हो ! यह तो साफ है कि वो विश्व प्रताप के काफी करीबी हैं और उसी का इंतजार कर रही है भैरव सिंह के प्रकोप का सामना करने के लिए । लोगों को भैरव सिंह के ताप से बचाने के लिए ।

विश्व पर आरोप काफी लम्बा चौड़ा लगाया गया था पर शर्तिया वो झूठा होगा । उसके जेल से बाहर निकलने के बाद कहानी में रोमांच आएगा । देखते हैं वो अपनी बुद्धि का किस तरह से इस्तेमाल कर रहा है क्योंकि ताकत में तो वह उन लोगों से काफी दूर है ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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👉पहला अपडेट
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मित्रों चूंकि रवि वार को मैं बहुत व्यस्त रहने वाला हूँ इसलिए मैं आज ही पहला अपडेट प्रस्तुत कर रहा हूं l


सेंट्रल जेल भुवनेश्वर
आधी रात का समय है l बैरक नंबर 3 कोठरी नंबर 11 में फर्श पर पड़े बिस्तर पर एक कैदी छटपटा रहा है बदहवास सा हो रहा है जैसे कोई बुरा सपना देख रहा है....


सपने में......

एक नौजवान को दस हट्टे कट्टे पहलवान जैसे लोग एक महल के अंदर दबोच रखे हुए हैं
इतने में एक आदमी महल के सीढियों से नीचे उतर कर आता है l शायद वह उस महल का मालिक है, जिसके पहनावे, चाल व चेहरे से कठोरता व रौब झलक रहा है l

वह आदमी उस नौजवान को देख कर कहता है
आदमी - तेरी इतनी खातिरदारी हुई फिर भी तेरी हैकड़ी नहीं गई तेरी गर्मी भी नहीं उतरी l अबे हराम के जने पुरे यशपुर में लोग जिस चौखट के बाहर ही अपना घुटने व नाक रगड़ कर बिना पीठ दिखाए वापस लौट जाते हैं l तुने हिम्मत कैसे की इसे लांघ कर भीतर आने की l

वह नौजवान उन आदमियों के चंगुल से छूटने की फ़िर कोशिश करता है l इतने में एक आदमी जो शायद उन पहलवानों का लीडर था एक घूंसा मारता है जिसके वजह से वह नौजवान का शरीर कुछ देर के लिए शांत हो जाता है l

जिसे देखकर उस घर का मालिक के चेहरे का भाव और कठोर हो जाता है, फिर उस नौ जवान को कहता है - बहुत छटपटा रहा है मुझ तक पहुंचने के लिए l बे हरामी सुवर की औलाद तू मेरा क्या कर लेगा या कर पाएगा l

इतना कह कर वह पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और उन आदमियों से इशारे से उस नौजवान को छोड़ने के लिए कहता है l

वह नौजवान छूटते ही नीचे गिर जाता है बड़ी मुश्किल से अपना सर उठा कर उस घर के मालिक की तरफ देखता है l
जैसे तैसे खड़ा होता है और पूरी ताकत से कुर्सी पर बैठे आदमी पर छलांग लगा देता है l पर यह क्या उसका शरीर हवा में ही अटक जाता है l वह देखता है कि उसे हवा में ही वह दस लोग फिरसे दबोच लिया है l वह नौजवान हवा में हाथ मारने लगता है पर उसके हाथ उस कुर्सी पर बैठे आदमी तक नहीं पहुंच पाते l यह देखकर कुर्सी पर बैठा उस आदमी के चेहरे पर एक हल्की सी सर्द मुस्कराहट नाच उठता है l जिससे वह नौजवान भड़क कर चिल्लाता है - भैरव सिंह......


भैरव सिंह उन पहलवानों के लीडर को पूछता है - भीमा,
भीमा-ज - जी मालिक l
भैरव सिंह - हम कौन हैं l


भीमा- मालिक, मालिक आप हमारे माईबाप हैं, अन्न दाता हैं हमारे, आप तो हमारे पालन हार हैं l

भैरव सिंह - देख हराम के जने देख यह है हमारी शख्सियत, हम पूरे यशपुर के भगवान हैं और हमारा नाम लेकर हमे सिर्फ वही बुला सकता है जिसकी हमसे या तो दोस्ती हो या दुश्मनी l वरना पूरे स्टेट में हमे राजा साहब कह कर बुलाया जाता है l तू यह कैसे भूल गया बे कुत्ते, गंदी नाली के कीड़े l

वह नौजवान चिल्लाता है - आ - आ हा......... हा.. आ

भैरव सिंह - चर्बी उतर गई मगर अभी भी तेरी गर्मी उतरी नहीं है l जब चीटियों के पर निकल आने से उन्हें बचने के लिए उड़ना चाहिए ना कि बाज से पंजे लड़ाने चाहिए l
छिपकली अगर पानी में गिर जाए तो पानी से निकलने की कोशिश करनी चाहिए ना कि मगरमच्छ को ललकारे l तेरी औकात क्या है बे....
ना हमसे दोस्ती की हैसियत है और ना ही दुश्मनी के लिए औकात है तेरी
तु किस बिनाह पर हम से दुश्मनी करने की सोच लिया l हाँ आज अगर हमे छू भी लेता तो हमारे बराबर हो जाता कम-से-कम दुश्मनी के लिए l

इतना कह कर भैरव सिंह खड़ा होता है और सीढियों के तरफ मुड़ कर जाने लगता है l सीढ़ियां चढ़ते हुए कहता है

भैरव सिंह - अब तू जिन के चंगुल में फंसा हुआ है वह हमारे पालतू हैं जो हमारी सुरक्षा के पहली पंक्ति हैं l हमारे वंश का वैभव, हमरे नाम का गौरव पूरे राज्य में हमे वह रौब वह रुतबा व सम्मान प्रदान करते हैं कि समूचा राज्य का शासन व प्रशासन का सम्पूर्ण तंत्र न केवल हमे राजा साहब कहता है बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए जी जान लगा देते हैं l तू जानता है हमारा वंश के परिचय ही हमे पूरे राज्य के समूचा तंत्र वह ऊचाई दे रखा है.....

इतना कह कर भैरव सिंह सीढ़ियों पर रुक जाता है और मुड़ कर फिर से नौजवान के तरफ देख कर बोलता है

भैरव सिंह - जिस ऊचाई में हमे तू तो क्या तेरे आने वाली सात पुश्तें भी मिलकर सर उठा कर देखने की कोशिश करेंगे तो तुम सब के रीढ़ की हड्डीयां टुट जाएंगी l
देख हम कहाँ खड़ा हैं देख, सर उठा कर देख सकता है तो देख l

नौजवान सर उठाकर देखने की कोशिश करता है ठीक उसी समय उसके जबड़े पर भीमा घूंसा जड़ देता है l
वह नौजवान के मुहँ से खून की धार निकलने लगता है l


भैरव सिंह - हम तक पहुंचते पहुंचते हमारी पहली ही पंक्ति पर तेरी यह दशा है l तो सोच हम तक पहुंचने के लिए तुझे कितने सारे पंक्तियाँ भेदने होंगे और उन्हें तोड़ कर हम तक कैसे पहुँचेगा l चल आज हम तुझे हमारी सारी पंक्तियों के बारे जानकारी मिलेगी l तुझे मालूम था तू किससे टकराने की ज़ुर्रत कर रहा है पर मालूम नहीं था कि वह हस्ती वह शख्सियत क्या है l आज तु भैरव सिंह क्षेत्रपाल का विश्वरूप देखेगा l तुझे मालूम होगा जिससे टकराने की तूने ग़लती से सोच लीआ था उसके विश्वरूप के सैलाब के सामने तेरी हस्ती तेरा वज़ूद तिनके की तरह कैसे बह जाएगा l

नहीं...


कह कर वह कैदी चिल्ला कर उठ जाता है l उसके उठते ही हाथ लग कर बिस्तर के पास कुछ किताबें छिटक कर दूर पड़ती है और इतने में एक संत्री भाग कर आता है और कोठरी के दरवाजे पर खड़े हो कर नौजवान से पूछता है - क्या हुआ विश्वा l

विश्वा उस संत्री को बदहवास हो कर देखता है फ़िर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान ले कर कहता है - क.. कुछ नहीं काका एक डरावना सपना आया था इसलिए थोड़ा नर्वस फिल हुआ तो चिल्ला बैठा l

संत्री - हा हा हा, सपना देख कर डर गए l चलो कोई नहीं यह सुबह थोड़े ही है जो सच हो जाएगा l हा हा हा हा

विश्वा धीरे से बुदबुदाया - वह सच ही था काका जो सपने में आया था l एक नासूर सच l

संत्री - कुछ कहा तुमने

विश्वा - नहीं काका कुछ नहीं l

इतने में दरवाजे के पास पड़ी एक किताब को वह संत्री उठा लेता है और एक दो पन्ने पलटता है फिर कहता है

संत्री - वाह विश्वा यह चौपाया तुमने लिखा है l बहुत बढ़िया है..

काल के द्वार पर इतिहास खड़ा है
प्राण निरास जीवन कर रहा हाहाकार है
अंधकार चहुंओर घनघोर है
प्रातः की प्रतीक्षा है चंद घड़ी दूर भोर है

वाह क्या बात है बहुत अच्छे पर विश्वा यह कानून की किताब है इसे ऐसे तो ना फेंको l


विश्वा - सॉरी काका अगली बार ध्यान रखूँगा क्यूंकि वह सिर्फ कानून की किताब नहीं है मेरे लिए भगवत गीता है l

संत्री - अच्छा अच्छा अब सो जाओ l कल रात ड्यूटी पर भेंट होगी l शुभरात्रि l

विश्वा - शुभरात्रि

इतना कहकर विश्वा संत्री से किताब लेकर अपने बिस्तर पर आके लेट जाता है l

×××××××××××××××××××××
सुबह सुबह का समय एक सरकारी क्वार्टर में प्रातः काल का जगन्नाथ भजन बज रहा है l एक पचास वर्षीय व्यक्ति दीवार पर लगे एक नौजवान के तस्वीर के आगे खड़ा है l इतने में एक अड़तालीस वर्षीय औरत आरती की थाली लिए उस कमरे में प्रवेश करती है और उस आदमी को कहती है - लीजिए आरती ले लीजिए l

आदमी का ध्यान टूटता है और वह आरती ले लेता है l फ़िर वह औरत थाली लेकर भीतर चली जाती है l
वह आदमी जा कर सीधे डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वह औरत भी आकर उसके पास बैठ जाती है और कहती है - क्या हुआ सुपरिटेंडेंट साब अभी से भूक लग गई क्या आपको l अभी तो हमे पूरी जाना है फ़िर जगन्नाथ दर्शन के बाद आपको खाना मिलेगा l
आदमी - जानता हूँ भाग्यवान तुम तो जनती हो l आज का दिन मुझे मेरे नाकामयाबी याद दिलाता रहता है l

औरत - देखिए वक्त ने हमसे एक बेटा छीना तो एक को बेटा बना कर लौटाया भी तो है l और आज का दिन हम कैसे भूल सकते हैं l उसीके याद में ही तो हम आज बच्चों के, बूढ़ों के आश्रम को जा रहे हैं l

आदमी - हाँ ठीक कह रहे हो भाग्यवान l अच्छा तुम तो तैयार लग रही हो l थोड़ा चाय बना दो मैं जा कर ढंग के कपड़े पहन कर आता हूँ l फिर पीकर निकालते हैं l

इतना कह कर वह आदमी वहाँ से अपने कमरे को निकाल जाता है l
इतने में वह औरत उठ कर किचन की जा रही थी कि कॉलिंग बेल बजती है l तो अब वह औरत बाहर के दरवाजे के तरफ मुड़ जाती है l दरवाजा खोलती है तो कोई नहीं था नीचे देखा तो आज का न्यूज पेपर मिला उसे उठा कर मुड़ती है तो उसे दरवाजे के पास लगे लेटते बॉक्स पर कुछ दिखता है l वह लेटर बॉक्स खोलते ही उसे एक खाकी रंग की सरकारी लिफाफा मिलता है l जिस पर पता तापस सेनापति जेल सुपरिटेंडेंट लिखा था, और वह पत्र डायरेक्टर जनरल पुलिस के ऑफिस से आया था l

वह औरत चिट्ठी खोल कर देखती है l चिट्ठी को देखते ही उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो जाती है l वह गुस्से से घर में घुसती है और अपने पति चिठ्ठी दिखा कर पूछती है यह क्या है...?
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अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान - यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - सर एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












भैरव सिंह का दबदबा मुझे " हुकूमत " फिल्म का विलेन " सदाशिव अमरापुरकर " की तरह जैसा लगा । पुरी रियासत को अपने खौफ और अत्याचारों से भयभीत कर रखा है । ऐसे में जानते बूझते हुए भी राॅकी जो स्टेप उठाने को सोच रहा है वो उसके लिए काफी खतरनाक हो सकता है । उसकी बेटी से प्यार करने का प्रयास उसके लिए आत्मघाती कदम ही होगा ।

इधर कालेज में भी रूप सहेली बनाने के चक्कर में कहीं उन लड़कियों की जान खतरे में न डाल दे । छः का ग्रूप बन चुका है पर शायद दिप्ती का रोल कुछ अहम हो सकता है । शायद वो उसकी खास सहेली बनने वाली है ।

वैदेही का कैरेक्टर भी बहुत बढ़िया है । हिजड़ों के बस्ती में एकलौती मर्द के समान है । औरत होकर भी काफी डेयरिंग है । शायद इनका वास्तविक परिचय फ़्लैश बैक आने के बाद क्लियर हो ! यह तो साफ है कि वो विश्व प्रताप के काफी करीबी हैं और उसी का इंतजार कर रही है भैरव सिंह के प्रकोप का सामना करने के लिए । लोगों को भैरव सिंह के ताप से बचाने के लिए ।

विश्व पर आरोप काफी लम्बा चौड़ा लगाया गया था पर शर्तिया वो झूठा होगा । उसके जेल से बाहर निकलने के बाद कहानी में रोमांच आएगा । देखते हैं वो अपनी बुद्धि का किस तरह से इस्तेमाल कर रहा है क्योंकि ताकत में तो वह उन लोगों से काफी दूर है ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
वाव 👌👌👌
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
144
भैरव सिंह का दबदबा मुझे " हुकूमत " फिल्म का विलेन " सदाशिव अमरापुरकर " की तरह जैसा लगा । पुरी रियासत को अपने खौफ और अत्याचारों से भयभीत कर रखा है । ऐसे में जानते बूझते हुए भी राॅकी जो स्टेप उठाने को सोच रहा है वो उसके लिए काफी खतरनाक हो सकता है । उसकी बेटी से प्यार करने का प्रयास उसके लिए आत्मघाती कदम ही होगा ।

इधर कालेज में भी रूप सहेली बनाने के चक्कर में कहीं उन लड़कियों की जान खतरे में न डाल दे । छः का ग्रूप बन चुका है पर शायद दिप्ती का रोल कुछ अहम हो सकता है । शायद वो उसकी खास सहेली बनने वाली है ।

वैदेही का कैरेक्टर भी बहुत बढ़िया है । हिजड़ों के बस्ती में एकलौती मर्द के समान है । औरत होकर भी काफी डेयरिंग है । शायद इनका वास्तविक परिचय फ़्लैश बैक आने के बाद क्लियर हो ! यह तो साफ है कि वो विश्व प्रताप के काफी करीबी हैं और उसी का इंतजार कर रही है भैरव सिंह के प्रकोप का सामना करने के लिए । लोगों को भैरव सिंह के ताप से बचाने के लिए ।

विश्व पर आरोप काफी लम्बा चौड़ा लगाया गया था पर शर्तिया वो झूठा होगा । उसके जेल से बाहर निकलने के बाद कहानी में रोमांच आएगा । देखते हैं वो अपनी बुद्धि का किस तरह से इस्तेमाल कर रहा है क्योंकि ताकत में तो वह उन लोगों से काफी दूर है ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
आदरणीय संजू जी
आपका अनुमान लगभग लगभग सही है
पर चूँकि कहानी मेरी है तो घटना व संघटना मेरी कल्पना से ही सजेगी
और सच में सदाशिव अमरापुरकर मेरे प्रिय खलनायक रहे हैं
आपका विश्लेषण वाक़ई अद्भुत है
👌 👌 🙏🙏🙏
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
6,668
25,554
219
👉दुसरा अपडेट
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यह क्या है....? वह खाकी रंग के चिट्ठी को दिखाते हुए पूछती है वह औरत l
अपना टाई बांधते हुए तापस मुस्कराता है l औरत खीज जाती है, फ़िर चिढ़ कर पूछती है - आप हंस क्यूँ रहे हैं.....?

तापस उस औरत के तरफ मुड़ कर कहता है - अरे यार तुमने तो पढ़ लिया होगा l फ़िर पूछ क्यूँ रहे हो l

वह औरत पूछती है - इसका मतलब आप अपने जॉब से VRS ले रहे हैं l
तापस - हाँ....
औरत - पर क्यूँ...
तापस- अरे मेरे साथी जीवन साथी मैंने इस्तीफा तो नहीं दी है ना l मैंने नौकरी से VRS मांगा, यह उसकी क्लीयरेंस है l
औरत - हाँ... दिख रही है मुझे l पर क्यूँ...? और एक बार भी आपने मुझसे कहा भी नहीं l (दुखी स्वर में) क्या हमारे बीच इतना गैप आ गया है l
तापस - (कुछ सीरियस होते हुए) नौकरी में रहकर मैंने क्या उखाड़ लिया l पहले फील्ड में था l वहां से प्रमोशन दे कर मुझे जैल सुप्रीनटेंडेंट बना कर डम्मी बना कर बिठा दिया l जब अपने बच्चे के लिए कुछ करना चाहा तब.....
तब भी एक डम्मी ही रहा
अब नहीं.... हाँ अब और नहीं
मैं नौकरी में रहकर शायद तुम्हारे प्रताप को वह मदद नहीं दे सकता था जो अब मैं उसके लिए कर सकता हूँ प्रतिभा l
प्रतिभा - क्यूँ नहीं कर सकते थे......
नौकरी में रहकर अपने कनेक्शन से भी तो मदद किया जा सकता है l
तापस- नहीं कर सकता था l तुम जानती हो..
मैं सरकारी तंत्र से बंधा हुआ था और तब मैं खुद भी तन मन से सरकारी मशीनरी का पुर्जा ही होता l लेकीन अब वह बंदिश नहीं है मुझ पर l कहने को मैं इस्तीफा भी दे सकता था, पर दस साल और नौकरी रहते हुए अगर इस्तीफा देता तो इंक्वायरी विंग के रेडार में रहता l अब मैं निश्चिंत हो कर अपना काम कर सकता हूं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म .... आप शायद ठीक कर रहे हैं l लेकिन मुझे इतना गैर क्यूँ कर दिया
तापस - इस बात के लिए मुझे माफ कर दो l मुझे अंदाजा नहीं था कि तुम इस बात से इस हद तक दुखी होगी l सॉरी प्रतिभा मुझे माफ़ नहीं करोगी.....

प्रतिभा - ठीक है, ठीक है... अब इतना सीन बढ़ाने की जरूरत नहीं है l लेकिन हमे आगे चलते कनेक्शनस की जरूरत पड़ेगी..... तब
तापस-तुम मुझ पर भरोसा रखो मैंने इन डेढ़ सालों में अपना जो कनेक्शनस डिवेलप किया है l तुम्हें आगे चलते अंदाज़ा हो जाएगा l
इतना सुनते ही प्रतिभा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और चेयर से उठ कर तापस से कहती है - ठीक है सेनापति जी तो क्या अब पूरी चलें l
तापस - अरे सीधे सुप्रीनटेंडेंट से सेनापति जी....
प्रतिभा - जी... क्यूँ के अब आप जैल सुप्रीनटेंडेंट तो रहे नहीं...
तापस - ठीक है वकील साहिबा चलें...
हा हा हा हा दोनों हंसते हुए घर से बाहर निकालते हैं..

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ठीक उसी समय भुवनेश्वर से पांच सौ किलोमीटर दूर पश्चिम में यशपुर प्रांत के राजगड़ कस्बे में एक बड़ी सी महल है l उसी महल के एक कमरे में एक बहुत ही सुंदर सी लड़की रीडिंग टेबल के पास रखे चेयर पर कोई किताब पढ़ रही है.....
तभी उस कमरे के दरवाजे पर दस्तक होती है l
वह लड़की - कौन है
बाहर से आवाज आती है - जी राज कुमारी जी मैं सेबती.
लड़की - हाँ सेबती अंदर आओ (सेबती अंदर आती है) हाँ अब बोलो क्या हुआ l
सेबती- जी वह राजा साहब ने आपको नाश्ते के लिए बुलाया है...
लड़की - अच्छा l तो आज कमरे तक नाश्ता नहीं आएगा...
बहुत दिनों बाद नाश्ते के टेबल पर जाना पड़ेगा...
सेबती- अब मैं क्या कह सकती हूँ..
लड़की - हाँ ठीक कहा..
तुम चलो मैं पहुँचती हूँ..
सेबती कमरे से निकल जाती है l उसके जाते ही लड़की अपनी किताब टेबल पर रख देती है और कमरे से निकल कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुंचती है
तो देखती है उसके परिवार के सभी सदस्य टेबल पर बैठे हैं

( राजगड़ इस महल में रह रहे सदस्यों के बारे में थोड़ा-सा विवरण

लड़की - रूप नंदिनी क्षेत्रपाल
लड़की के पिता - भैरव सिंह क्षेत्रपाल/राजा साहब
लड़की के दादाजी - नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल/बड़े राजा जी
लड़की के चाचा - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल/छोटे राजा जी
लड़की की चाची- सुषमा सिंह क्षेत्रपाल
लड़की की बड़ा भाई - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल/युवराज
लड़की की भाभी - शुभ्रा सिंह क्षेत्रपाल

लड़की की चचेरा भाई और पिनाक सिंह का बेटा - वीर सिंह क्षेत्रपाल/राज कुमार )
रूप जब डायनिंग टेबल के पास शुभ्रा को देखती है खुशी के मारे भाभी कह कर उसके गले लग जाती है l और पूछती है - क्या भाभी आप कब आईं और मुझे बताया भी नहीं l
शुभ्रा - वह कल अचानक से राजा साहब का फोन आया और कहा तुरंत राजगड़ पहुंचो l तो सीधे यहां आ गए l पर तब तक आप सो चुकीं थी....
रूप - चलो अच्छा हुआ...
इतना कह कर रूप शुभ्रा से ज़ोर से गले मिली

यह देख कर पिनाक सिंह कहता है - यह क्या है रूप.... ऐसे क्यूँ गले मिल रही हैं ... मत भूलिए आप राज कुमारी हैं और राजकुमारी जैसी एटिट्यूड रखिए l अपने इमोशंस को काबु में रखें l
यह सुन कर रूप का चेहरा उतर जाता है l शुभ्रा उसके कंधे पर हाथ रखकर रूप को अपने पास बिठाती है l
इतने में राजा साहब उर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल डायनिंग हॉल में प्रवेश करता है और रूप से कहता है - छोटे राजा जी ने ठीक कहा है......
आपको अपने एटिट्यूड पर ध्यान देना चाहिए l कल को आपके विवाह के बाद यही एटिट्यूड आगे चलकर आप ही के काम आएगी....
रूप - जी राजा साहब...
फिर भैरव सिंह एक नौकर को कहता है- है तु... जा कर बड़े राजा जी को ले कर आ l
वह नौकर दौड़ कर जाता है और एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बिठा कर लता है l
बुजुर्ग के हॉल में प्रवेश करते ही सभी सदस्य अपने चेयर से खड़े हो जाते हैं
नागेंद्र की व्हीलचेयर डायनिंग टेबल पर लगते ही भैरव सिंह पहले बैठता है और उसके बाद सभी अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं
कुछ नौकर आ कर सबको नाश्ता परोस देते हैं..
भैरव सिंह एक चम्मच से निवाला उठा कर नागेंद्र के मुहं पर देता है, नागेंद्र के निवाला खाते ही पास खड़े नौकर से नागेंद्र को खिलते रहने को बोलता है फिर अपना नाश्ता शुरू करता है l भैरव सिंह के नाश्ता शुरू करने के बाद सभी अपना नाश्ता शुरू करते हैं l
नाश्ता सभी का लगभग ख़त्म होते ही भैरव सिंह बोलता है - आज बहुत दिनों बाद हम सब इक्कठे हो कर यहाँ बैठ कर खा रहे हैं इसकी एक विशेष वजह है l
सब के चेहरे पर आश्चर्य झलक रहा है.. शुभ्रा और रूप एक दूसरे को देख कर आँखों आंखों पूछ रहे हैं क्या खबर हो सकती है और एक दूसरे को सर हिला कर ना में जवाब देते हैं l
भैरव सिंह - रूप आज शाम को युवराज व आपने भाभी के संग भुवनेश्वर जाएंगी l और वीर सिंह जिस कॉलेज में MA कर रहे हैं उसी कॉलेज में ग्रेजुएशन करेंगी l
यह सुनते ही रूप, शुभ्रा और सुषमा के चेहरे पर खुशी छा जाती है, पर वहीं सारे पुरुषों के चेहरे पर सवाल तैर रहे होते हैं l
विक्रम - माफी चाहूँगा राजा साहब पर आप तो रूप के आगे पढ़ने के विरुद्ध थे, फिर अचानक l
भैरव - हाँ अब वही बताने जा रहा हूँ... परसों हमारे यहाँ स्टेट के उद्योग मंत्री श्री गजेंद्र सिंह देव आये थे बड़े राजा जी से मिलने l मिलकर जाते वक्त वे रूप को देखे l उन्हें रूप उनके सुपुत्र दिव्य शंकर सिंह देव के लिए पसंद कर लिया और बातों बातों में मुझसे कह भी दिया l हमारे जैसे ही रजवाड़ों से संबंधित हैं l उनका परिवार दसपल्ला रजवाड़ों से है और देश विदेश में कारोबार फैला हुआ है बिल्कुल हमारी तरह l पर उनके सुपुत्र दिव्य शंकर फ़िलहाल अपनी उच्च शिक्षा के लिए तीन वर्षो के लिए विदेश जा रहे हैं l इसलिए रूप उनके आने तक भुवनेश्वर में अपना ग्रेजुएशन पूरी करेंगी l
वीर - ठीक है यह बहुत ही अच्छी ख़बर है पर इस विवाह से और रूप के ग्रेजुएशन से क्या सम्बंध है l

भैरव - (अपने चेहरे पर थोड़ी कठोरता ला कर) मुझे इस विवाह से मतलब है ना कि रूप कि ग्रेजुएशन से l उनको एक ग्रेजुएट बहु चाहिए और हमे हमारी बेटी के लिए एक रजवाड़ा खानदानी परिवार l
यह सुन कर सब खामोश हो जाते हैं l सभी औरतें जिनके चेहरे कुछ देर पहले जो खिली हुई थी अब मुर्झा जाती है l
भैरव सिंह - वीर आपके कॉलेज में रूप जाएंगी तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ गई है l मैंने प्रिन्सिपल से बात कर ली है l आपको सीधे जा कर रूप का एडमिशन कराना है l
वीर - जैसी आपकी आज्ञा....
भैरव - युवराज आप रूलिंग पार्टी के युवा मंच के अध्यक्ष हैं फ़िर भी आप जितना ध्यान पार्टी को देंगे उतना ही रूप का खयाल रखेंगे l
विक्रम - जी राजा साहब
भैरव - एक बात याद रहे आप सबको, वहाँ कोई रूप को नजर उठाकर भी नहीं देखेगा ऐसा खौफ होना चाहिए उस कॉलेज के हर छात्रों में l
वीर व विक्रम - जी राजा साहब.....
भैरव - (सुषमा व शुभ्रा से) आप दोनों रूप कि सामान वगैरह पैकिग में सहायता करें l और बहू रानी खास कर आपके लिए हिदायत है.....
इतना सुनते ही शुभ्रा के माथे पर कुछ पसीने की बूंदे दिखने लगी l
भैरव - आपके यहाँ रूप हमारे घर की बेटी से ज्यादा सिंह देव परिवार की होने वाली बहु की तरह रहनी चाहिए l
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज़ निकालती है) ज..... ज... जी राजा साहब l
भैरव - ठीक है अब आप जनानी लोग यहाँ से प्रस्थान करें l
यह सुनते ही तीनों औरतें तुरंत प्लेट में हाथ साफ कर रूप कि कमरे की चले जाते हैं l
उनके जाते ही भैरव सिंह उस नौकर से जो नागेंद्र को खिला रहा था, कहता है - जाओ बड़े राजा जी को उनके कमरे तक ले कर आराम से सुला देना l
"जी मालिक " कहकर वह नौकर नागेंद्र को ले कर चला जाता है l
अब भैरव पिनाक, विक्रम व वीर से कहता है मुझे थोड़ी देर में आप सब बैठक में आ कर मिलें l
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इधर रूप के कमरे में बिस्तर पर बैठ कर रूप सिसक रही है l पास बैठ कर सुषमा उसे दिलासा दे रही है और कमरे में शुभ्रा चहल कदम कर रही है l
रूप - चाची माँ मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है.... दो साल पहले मैंने कितने चाव से इंटर किया था पूरे जिला मे फर्स्ट आए और राज्य में सेवेंथ l हम सोचे जो उपलब्धियां भाईयों हासिल नहीं हुआ तो मेरे उपलब्धी शायद राजा साहब को खुश करदे l मगर ऐसा न हुआ उल्टा मेरे आगे की पढ़ाई बंद करवा दी... और अब शादी के लिए मुझे आगे पढ़ाया जा रहा है l
सुषमा - बेटी तू अगर कम मार्क से पास हो रही होती तो शायद आगे पढ़ाई में कोई असुविधा ना होती पर तेरी अच्छी पढ़ाई उनके अहं को ठेस पहुंचाई l इसलिए उन्हों ने तेरी पढ़ाई रोक दी थी l अब इसी बहाने इस कैद खाने से बाहर जाएगी तीन साल के लिए ही सही बाहर तो जाएगी ना बेटी l
शुभ्रा - हाँ रूप चाची माँ सही कह रही हैं l तुझे अब जीवन भर की बंधन में बंधने से पहले तीन साल की आजादी की ज़मानत मिली है l चल उसे जी भर के जी l तेरे साथ मैं पुरी तरह से खड़ी रहूंगी l तेरी भाभी बन कर नहीं बल्कि तेरी दोस्त बन कर l
सुषमा - अच्छी बात कही बहु l युग युग जियो l इस परिवार में हम तीन ही हैं जो आपस में रिश्ते निभा रहे हैं l वरना राजा साहब, छोटे राजा, बड़े राजा, युवराज व राज कुमार में बंधे हुए इन मर्दों को और किसी रिश्तों से कोई मतलब ही नहीं है l
रूप- हाँ चाची माँ, आप ठीक कह रही हैं l हम इस घर से रिश्तों से बंधे हुए हैं इसलिए बचे हुए हैं वरना....
सुषमा- ना मेरी बच्ची यह बात अपने मुँह से मत कह...
शुभ्रा - चाची माँ ठीक कह रहे हैं l यहाँ उनके खिलाफ हवा भी नहीं बह सकता और हम कह कैसे सकते हैं l
रूप - ठीक है चाची माँ l पर आप भी मेरे साथ चलिए ना l
सुषमा - नहीं मैं नहीं जा सकती l तेरे दादाजी की देखभाल मुझे ही करना है l पर तू जा मेरा आशीर्वाद तेरे साथ हमेशा रहेगी l जा...... (सुषमा की आंखों से आंसू निकल जाते हैं)
यह देख कर रूप सुषमा के गले लग जाती है
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पिनाक, विक्रम और वीर डायनिंग हॉल से निकल कर बैठक में पहुंचते हैं l वीर अपना चेयर पर बैठ कर आवाज़ देता है - अरे कोई है.....
भीमा आता है - हुकुम मालिक
वीर - राजा साहब दिख नहीं रहे हैं
भीमा-जी राजा साहब ने कहा है आप थोड़ी देर बैठे वह शीघ्र ही पधार रहे हैं l
पिनाक-लगता है कुछ विशेष है...
भैरव - हाँ विशेष तो है (बैठक के अंदर आते हुए) पर चिंता करने लायक नहीं है
विक्रम - अगर चिंता की बात नहीं तो हम सब यहाँ पर किस विषय पर चर्चा करेंगे l
भैरव - हमारे लीगल एडवाइजर बल्लभ प्रधान को किसी बात की चिंता है l इसलिए यश पुर के अपने लाव-लश्कर को लेकर आ रहा है l इसलिए हमे देखना होगा कि उसकी चिंता क्या है....
विक्रम - हमारा लीगल एडवाइजर किसी घोर चिंता में है और उसकी चिंता वह आपसे दूर करवाएगा l तो हम उसे अपना लीगल एडवाइजर क्यूँ रखे l
भैरव - हमे उसकी चिंता दूर करना होगा ताकि भविष्य में हमे चिंतित न होना पड़े....
भीमा-मालिक दस गाड़ियों से बारह लोग आए हैं l अंदर आने की इजाजत मांग रहे हैं l
भैरव - हाँ वे सब खास महमान हैं l उन्हें भीतर ले आओ और सबको बिठाओ l
भीमा सारे लोगों को अंदर लाता है
भैरव - आओ प्रधान आओ l कुछ तो ऐसा हुआ है जो पूरे लश्कर लेकर आए हो l आओ और आप सब विराजे l
सब के बैठने के बाद प्रधान बोलता है - राजा साहब यह महाशय हमारे नए BDO हैं सुधांशु मिश्र हमारे यहां अभी इनकी सरकारी पोस्टिंग हुई है.....
भैरव - ह्म्म्म्म रुक क्यों गए बोलते रहो
प्रधान - जी अब मेरे पास कुछ नहीं है कहने के लिए...... अब अगर मिश्र जी कहेंगे l
भैरव, सुधांशु मिश्र को देखता है l सुधांशु भैरव को अपने तरफ देखते हुए पाया तो कहाना शुरू किया - राजा साहब मैं यश पुर के लिए नया हूँ पर इस प्रोफेशन में नया नहीं हूँ l ब्लॉक के डेवलपमेंट के खर्चों पर NOC व UC देना हमारा काम होता है l मैंने ऑडिट कराने के बाद पाया कि दो साल पहले जितने भी ब्लॉक प्रोजेक्ट व मनरेगा के काम दिखाया गया है सब में दस से पंद्रह प्रतिशत ही काम हुआ है जब कि UC में मेरा मतलब युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट में सौ फीसदी दिखाया गया है....
बैठक में इतनी शांति थी के अगर एक सुई भी गिर जाए तो जोर से सुनाई देती l
मिश्र - इन दो वर्षो में कोई भी प्रोजेक्ट नहीं लाया गया क्यूंकि भारत सरकार ने जब से डिजिटल इंडिया का मुहीम शुरू की है और मनरेगा में काम करने वालों की बैंक अकाउंट आधार कार्ड से जुड़ गया है तब से आप सबके हाथ खाली हैं......
भैरव सिंह के चेहरे पर ना तो कोई शिकन था ना कोई चिंता एक दम भाव हीन l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव न देख कर मिश्र के चेहरे पर थोड़ी सी निराशा दिखा
मिश्र फिर कहने लगा - राजा साहब भले ही भारत सरकार डिजिटल इंडिया की मुहिम चलाएं है पर पिछले दो साल पहले की तरह अब भी सबके हाथ में पैसा आ सकता है l मेरे पास इसका फूल प्रूफ़ प्लान है l पर इसके बदले में पिछला BDO जितना लेता था मुझे उससे डबल चाहिए l
बड़ी आशा भरी नजर से मिश्र भैरव सिंह को देख रहा था l पर उसकी बात सुन कर पिनाक कुछ कहना चाहता था l भैरव पिनाक को हाथ दिखा कर चुप रहने को इशारा किया और मिश्र से कहा - आपने आज हमे खुश कर दिया है l आप सबको हम दावत का निमंत्रण दे रहे हैं l आप सब आज रंग महल में दोपहर का भोजन करें और शाम को हम मिश्र से प्लान सुनेंगे l भीमा यह सब आज हमरे मेहमान हैं l इन्हें रंग महल में ठहराव और खाने पीने का पूरा ध्यान रखो l
भीमा- जी मालिक
भीमा सबको अपने साथ लेकर रंग महल की और चला जाता है l
अब पिनाक भैरव सिंह से पूछता है - यह क्या राजा साहब एक अदना सा मुलाजिम हमारे सामने इतना कह गया और हमसे हिस्से की सौदा भी कर गया फिर भी आपने उसे छोड़ दिया और मेहमान बना कर दावत दे रहे हैं l
विक्रम - हाँ छोटे राजा ठीक कह रहे हैं l हमारी आँखों में आँख डाल कर बात कर रहा था l कहीं यह उसकी आदत ना बन जाये......
भैरव - इच्छायें जितनी बड़ी होती हैं उतनी ही खूबसूरत होती हैं........
लालच बहुत बुरी बला है फ़िर भी इंसानी फितरत है........
वक्त कम हो या झोली छोटी फिर भी सब समेट लेना इंसानी आदत है.......
यह स्टेट हमारी मिल्कियत है और सारा सिस्टम पानी, हम इस पानी के मगरमच्छ हैं
यह वह सुना है,
पर जाना नहीं है

यह अब जानना उसकी जरूरत है....
Mind blowing update bhai
 
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