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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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ANUJ KUMAR

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👉एक सौ छठवाँ अपडेट
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विशु

यह नाम सुनते ही विश्व चौंकता है l मुड़ कर उसने जिस औरत को बचा कर घर लाया था उसके चेहरे की ओर गौर से देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी आँखे हैरानी से बड़े हो जाते हैं l होंठ थरथराने लगे

विश्व - दी... दी...

वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है वह रोते रोते पीछे हटने लगती है l फिर मुड़ कर बाहर भागने लगती है l

विश्व - (चिल्लाते हुए) दीदी... अगर यह चौखट लांघी... तुम्हारी कसम... अपनी जान दे दूँगा...

वैदेही रुक जाती है और दरवाजे के पास दीवार से सट कर अपनी मुहँ छुपाये रोने लगती है l विश्व हैरानी और आँसू भरे आँखों से उसे बिलखते हुए देख रहा था l वह आगे बढ़ कर वैदेही के कंधे पर हाथ रखने के लिए हाथ बढ़ाता है पर रुक जाता है l

विश्व - (अपनी रुलाई को काबु करते हुए) दी... दी... तु.. म.. जी.. जिंदा हो...
वैदेही - (अचानक रुलाई बंद हो जाती है और चीखते हुए) नहीं... मैं जिंदा नहीं हूँ... मैं जिंदा नहीं हूँ... मर चुकी हूँ... आज से सात साल पहले... सुना तुमने... मार दी गई हूँ... सात साल पहले... सा...त साल... प.. हले

कहते कहते बेहोश हो कर गिर जाती है l विश्व दीदी दीदी चिल्लाते हुए वैदेही के पास पहुँचता है अपनी बाहों में उठा कर उसे पहले चारपाई पर सुलाता है l फिर बाहर आता है तो पाता है कि बस्ती के कुछ लोग बाहर खड़े हो कर सब सुनने की कोशिश कर रहे थे l विश्व उन्हें देख कर एक आदमी से

विश्व - बंसी काका... यह मेरी दीदी है... मेरी वैदेही दीदी... बेहोश हो गईं हैं... हस्पताल ले जाना है उन्हें... मदत करो मेरी...
बंसी - (टालने की कोशिश करते हुए) देखो विश्व... मामला क्षेत्रपाल महल से जुड़ा लगता है... हमें माफ करो...

कह कर वहाँ से चल देता है, उसके पीछे पीछे दुसरे भी नजर फ़ेर कर चल देते हैं l विश्व भाग कर अपने दोस्त बिल्लू से बैल गाड़ी मांगता है l पर मना नहीं कर पाता और बेमन से उसे बैल और बैल गाड़ी दे देता है l विश्व बैल गाड़ी को अपने घर के बाहर खड़ा कर अंदर भागते हुए जाता है और बेहोश पड़े वैदेही को अपनी बाहों में उठा कर गाड़ी में सुलाता है और यश पुर की ओर बैलों को भगाने लगता है l यश पुर के हस्पताल में वैदेही को दाख़िल कर देता है l हस्पताल के डॉक्टर वैदेही की चेक अप कर इंजेक्शन देते हैं और सलाइंन चढ़ाते हैं I

विश्व - डॉक्टर साहब... कैसी है मेरी दीदी...
डॉक्टर - बहुत कमजोरी है... शरीर में ग्लूकोज़ की कमी थी... सलाइन दे दिया है... इंजेक्शन भी दे दिया है... एक दो घंटे में होश में आ जाएगी... आप बेफिक्र रहें....

विश्व डॉक्टर को हाथ जोड़ कर अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है l डॉक्टर उसका पीठ थपथपा कर वहाँ से चला जाता है l विश्व अपनी दीदी के पास आता है और वैदेही की चेहरे को गौर से देखता है l चेहरा और स्वास्थ्य देखने पर अपनी उम्र से भी बहुत बड़ी लग रही थी l उसके आँखों में आँसू आ जाते हैं वह वहाँ पर रुक नहीं पाता, वार्ड से निकल कर हस्पताल के एंट्रेंस पर भगवान गणेश जी की एक छोटा मंदिर था, वहाँ पर आँखे मूँदे और हाथ जोड़े बैठ जाता है l समय बीतने लगता है, करीब करीब डेढ़ घंटे बाद धीरे धीरे वैदेही अपनी आँखे खोलती है और खुद को हस्पताल के वार्ड में देख कर हैरान हो जाती है, कराहते हुए नजर घुमाती है उसे विश्व तो नहीं दिखता पर कमरे के अंदर एक वृद्ध व्यक्ति को देखती है l उन व्यक्ति के आँखों में अपने लिए एक करुणा सी भाव दिखती है l वैदेही की हैरान हो कर उनके चेहरे को गौर से देखने लगती है फिर धीरे धीरे उसकी आँखे चौड़ी हो जाती है l वैदेही ने पहचान लेती है
"उमाकांत आचार्य" उसके बचपन के प्राथमिक विद्यालय के प्रधान आचार्य उमाकांत सर थे l महापात्र परिवार के पारिवारिक मित्र l वैदेही के होंठ थर्राने लगती है और आवाज कांपने लगती है l

वैदेही - सर... आप...
उमाकांत - तो तुमने पहचान लिया...
वैदेही - वि... विशु... कहाँ है...
उमाकांत - तुम्हारे स्वस्थ होने के लिए... भगवान को मना रहा है...

वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l वह उठ कर बैठने की कोशिश करती है l

उमाकांत - तुम लेटी रहो बेटी... (वैदेही उठने कोशिश छोड़ देती है) अब बताओ... तुम कहाँ थी... क्यूंकि गाँव में एक अफवाह फैल गई थी... के तुम्हें डाकू उठा ले गए... और मार कर जंगल में फेंक दिया गया...
वैदेही - (एक फीकी हँसी हँसते हुए) सर... क्या वाकई गाँव में कोई नहीं जानता... वह डाकू कौन थे... या हैं...
उमाकांत - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) माफ करना बेटी... सभी जानते हैं... गाँव का हर बच्चा बच्चा तक जानता है... पर नाम लेने से... सच्चाई स्वीकार करने से डरते हैं....
वैदेही - मुझे जब उठा कर लिया जा रहा था... मैंने पीछे मुड़ कर... बाबा और विशु को गिरते देखा था.... मैं इस गलत फहमी में थी... की विशु मारा गया था... पर आज उसे जिंदा देख कर बहुत अच्छा लगा...
उमाकांत - हाँ बेटी... उस हादसे के कुछ ही देर बाद मैं गाँव में पहुँचा था... तुम तो जानती थी... मेरी बेटी और दामाद का अकस्मात देहांत होने के वजह से... मैं अपने नाती को अपने साथ लेकर पहुँचा था... पहुँच कर देखा... पुरा का पुरा गाँव सुनसान और विरान लग रहा था... दो जिस्म धुल से सने रास्ते पर पड़े हुए थे... उनके करीब पहुँच कर देखा तो... रघुनाथ... मेरा मित्र रघुनाथ... लहू लोहान हो कर पड़ा था... कुछ दूरी पर विशु भी मुहँ के बल पड़ा था... (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) मैंने... लोगों को आवाज दी... पर कोई नहीं दिखा मुझे... बस एक बैल गाड़ी दिखी... मैंने फौरन... उस बैल गाड़ी में दोनों को डाल कर... नाती के संग हस्पताल पहुँचा... डॉक्टर ने रघुनाथ को मृत घोषित कर दिया... पर विशु को होश नहीं आया था...
खैर मैंने रघुनाथ की अंतिम संस्कार कर दी... तीन दिन बाद विशु को होश आया... होश में आते ही... तुम्हें याद करते हुए चिल्लाने लगा... जिस तरह से उसे चोट लगी थी... उसके वजह से... तीन महीने तक दिमागी संतुलन खो बैठा था... डॉक्टर बहुत अच्छे थे... उन्होंने तुम्हारे भाई के लिए... बहुत मेहनत की... तब... तब जा कर विशु... ठीक हुआ...
वैदेही - ओह... भगवान का लाख लाख शुक्र है...
उमाकांत - हाँ कह सकती हो...
वैदेही - मतलब...
उमाकांत - वह जो तीन महीना हस्पताल में था... उस दौरान राजा साहब के आदमी... एक दो बार हस्पताल आकर विशु की खैर खबर लिए थे...
वैदेही - (चौंक कर) क्या....
उमाकांत - हाँ... इसलिए डॉक्टर से मिलकर... उन्हें यह बतला दिया... की विशु की याददाश्त चली गई है... पर पता नहीं... भगवान को मंजूर था... एक दिन... मुझे राजा साहब के यहाँ से बुलावा आया... मैं गया... तो... छोटे राजा और छोटी रानी... उनकी बेटी को पढ़ाने के लिए... बिना स्कुल जाए... शिक्षा मिले... ऐसा कुछ सुझाव मांगने लगे... पर शर्त थी के उनकी बेटी का नाम ना हम जानेंगे... और ना ही... उनकी बेटी हमारे बारे में कुछ जानेगी....
वैदेही - क्या... यह कैसे मुमकिन था...
उमाकांत - हाँ... मुमकिन नहीं था... तो मैंने एक रास्ता सुझाया... राजकुमारी की एडमिशन... यश पुर बालिका विद्यालय में करवाने के लिए... और केवल परिक्षा के समय उपस्थित रहने के लिए... और यहाँ पढ़ाने के लिए... मैंने विशु का नाम सुझाया....
वैदेही - विशु... विशु का नाम क्यूँ...
उमाकांत - राजा साहब के आदमी विशु की खैर खबर लेने लगे थे... पता नहीं क्यूँ... मैंने अपनी मज़बूरी दिखा कर... विशु का नाम सुझाया था... मुझे लगा कि विशु ही राजकुमारी को पढ़ा सकता है... और वहाँ सुरक्षित रह सकता है... क्यूंकि अगर विशु... तुम्हारे बारे में खोज खबर लेने की कोशिश की... तो उसकी जान पर बन आ सकती थी... उसे किसी तरह से... व्यस्त रखना चाहता था... चूंकि राजा साहब को पता था... की विशु की यादाश्त चली गई है... इसलिए राजा साहब भी उसे अपना नौकर बना कर... महल में रख लेने का फैसला किया... मैंने हाथ पैर जोड़ कर किसी तरह... बारहवीं तक पढ़ने की इजाजत ले ली... इसलिए विश्व की प्रतिदिन का नियम बन गया... रात को... मेरे यहाँ सोने आता था... फिर सुबह श्रीनु के साथ रहता था... उसके बाद... दिन भर राजकुमारी को पढ़ाया करता था... शाम ढलने तक काम करता था... और फिर रात को सोने आ जाता था...
वैदेही - विशु... तैयार कैसे हुआ... राजा के यहाँ काम करने के लिए...
उमाकांत - (झिझकते हुए) मुझे माफ करना बेटी... मैंने उसे एक आश दिखाया था...
वैदेही - कैसी आश...
उमाकांत - तेरी दीदी... चकमा दे कर भाग गई है... र... राजा... साहब... तेरी दीदी को ढूंढ रहे हैं... तु अगर वहाँ रहेगा.. तो तुझे तेरी दीदी की खबर लग जाएगी...

वैदेही यह सुन कर बहुत हैरान रह जाती है l

वैदेही - म.. मतलब... विशु... आज तक राजा की... गुलामी कर रहा था...
उमाकांत - हाँ... मुझे कुछ सूझा ही नहीं... क्यूंकि राजा के आदमी... विशु की खैर ख़बर ले रहे थे... मुझे अनहोनी की डर सता रही थी... वह कहते हैं ना... किसीको छुपाना हो... तो उसे.. दिया तले छुपा दो... मैंने वही किया... (वैदेही चुप रहती है, उसे यूँ चुप देख कर) मुझे उस वक़्त जो सही लगा... मैंने वही किया... कुछ झूठ... राजा को... और कुछ झूठ विशु को... सिर्फ विशु को बचाए रखने के लिए....
वैदेही - तो क्या विशु... अभी भी... राजकुमारी को पढ़ा रहा है...
उमाकांत - नहीं... कुछ ही महीने पहले... विशु का अंतर्महल में प्रवेश बंद कर दिया गया है... वह बस अब राजा साहब के काम के लिए... महल जा रहा है...
वैदेही - क्यूँ... अब राजकुमारी आगे नहीं पढ़ेगी...
उमाकांत - वैदेही... राजकुमारी की उम्र अभी श्रीनु की जितनी है... पर अभी... उसकी रजोधर्म शुरु हो गई है... इसलिए...
वैदेही - ओ... क्या नाम है उसका...
उमाकांत - नहीं जानते... ना मैं... ना ही विशु... इतनी हिम्मत... मुझमें नहीं थी... और विशु को... उसकी सुरक्षा के खातिर... मैंने उससे... ना जानने की कसम ले ली थी... क्यूँ... क्यूँ पूछ रही हो उसका नाम...
वैदेही - पता नहीं... ऐसे ही... पर शायद... मैंने एक बार.. उसका नाम सुना था...
उमाकांत - क्या...
वैदेही - हाँ... पर...

"रुप... ऐ रुप... उठो... तुम्हें आज निकलना है ना..."

कुन मूनाते हुए रुप उठती है और जम्हाई लेते हुए अपनी भाभी की ओर देखने लगती है l

रुप - क्या हुआ भाभी... इतनी सुबह सुबह...
शुभ्रा - राजकुमारी जी... क्षमा कर दीजिए... वह क्या है कि... आपके भ्राता श्री ने कहा कि... आपको सात बजे तक भुवनेश्वर से चले जाना चाहिए... क्यूंकि आठ घंटे का रास्ता है... आप लंच तक पहुँच जायेंगी....
रुप - (मुहँ फूला कर बेड पर बैठी शुभ्रा को देखने लगती है)
शुभ्रा - क्या हुआ... आप क्रोधित हैं...
रुप - (गुस्सा करते हुए) भाभी... यह क्या है...
शुभ्रा - क्या... क्या है... राजकुमारी रुप जी...
रुप - ओ हो... तो यह बात है... ठीक है... युवराणी जी... आप आदेश करें... हमें अभी क्या करना चाहिए...
शुभ्रा - (आँखे दिखाते हुए) ऐ...
रुप - चुभा ना... थोड़ी देर पहले मुझे भी ऐसा ही लग रहा था....
शुभ्रा - मुझे चुभेगा ही... क्यूंकि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ... पर तुमने... अपनी दोस्ती तोड़ दी है...
रुप - (थोड़ी सीरियस हो कर) आप यह क्या कह रही हैं भाभी...
शुभ्रा - और नहीं तो... तुम कल कहाँ गई थी.... बताया नहीं... फिर ऐसा क्या हो गया... जो तुमने अचानक से फैसला कर लिया... की राजगड़ जाना है...

रुप चुप रहती है l शुभ्रा की मनोदशा समझती है l आखिर इस हैल में रुप ही तो उसके सबसे करीब थी, और कल अचानक से जो फैसला किया था उसके बारे में कम से कम उसे शुभ्रा को बताना ही चाहिए था l

रुप - भाभी... आई एम सॉरी... मैं वह कल... प्रतिभा मेम से मिलने गई थी...
शुभ्रा - (हैरानी से आँखे फैल जाती हैं) क्या...

शुभ्रा जिस तरह से प्रतिक्रिया देती है रुप सकपका जाती है l रुप को हालत देख कर शुभ्रा खुद को संभालती है और फौरन जा कर कमरे का दरवाजा बंद करती है l फिर रुप के पास बैठ कर

शुभ्रा - (दबी आवाज में) क्या... तुम... प्रतिभा मेम से मिलने गई थी... (रुप बड़ी मासूमियत से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) तो क्या पता किया तुमने...
रुप - ( चेहरा बहुत ही गंभीर हो जाता है) मेरे परिवार का पाप... प्रताप का अतीत... वर्तमान... उसके साथ साथ मेरे परिवार का भविष्य...
शुभ्रा - फिर से तुम पहेली बुझाने लगी... सीधे सीधे क्यूँ नहीं कहते...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए शुभ्रा की दोनों हाथ थाम कर) भाभी... आप थोड़ी बहुत मेरे खानदान की... उस काले करतूत से वाकिफ हो... जिसके चपेट में... प्रताप का पूरा परिवार आ गया था...

कह कर चुप हो जाती है, शुभ्रा उसकी चुप्पी देख कर पूछती है

शुभ्रा - तो इससे... तुम्हारा राजगड़ जाने की... क्या लॉजिक है...

रुप के चेहरे पर हल्का सा शर्म छा जाती है l वह अपनी नजरें चुराने लगती है l

शुभ्रा - एक मिनट... अब समझी... प्रताप का एक महीना खतम हो रहा है... ओ... मतलब वह राजगड़ जा रहा है... ह्म्म्म्म... पहले जब यह एक महीने वाला किस्सा सुना था... लगा था... वह बाहर कहीं नौकरी कर रहा है... छुट्टी ले कर महीना रुकेगा... ह्म्म्म्म... पर नंदिनी... तुम राजगड़ चली भी गई... तो भी उसे मिलोगी कैसे...
रुप - मैं नहीं मिलूंगी... वह मुझसे मिलने आएगा...
शुभ्रा - (चौंकती है) क्या...
रुप - ओहो भाभी... आप यह बार बार... ऐसे चौंकिए मत... चौंकती आप हैं... झटके मुझे लग रहे हैं...
शुभ्रा - फिर भी... वह क्यूँ... मेरा मतलब है... कैसे...
रुप - मैं तरकीब भिड़ाउंगी ना... वह मुझसे मिलने आएगा...
शुभ्रा - नंदिनी... तुम्हें नहीं लगता... एडवेंचर के चक्कर में... तुम जरूरत से ज्यादा रिस्क ले रही हो...
रुप - भाभी... एक शेर मशहूर है...
यह इश्क़ नहीं आसान...
बस इतना समझ लीजिए...
एक आग का दरिया है...
जिस में डूब कर जाना है...
वैसे भी... मैं सिर्फ प्रताप से मिलने के लिए नहीं जा रही हूँ... प्रताप मेरे लिए सेकंड प्रायरिटी है...
शुभ्रा - प्रताप से नहीं... तो फिर किससे...
रुप - यह अब मत पूछो भाभी... मैं वादा करती हूँ... आपसे सब कुछ कहूँगी... सब कुछ... पर अभी नहीं... (शुभ्रा उसे असमंजस सी देखने लगती है) मेरा यकीन लीजिए भाभी.... कुछ भी नहीं छुपाउंगी...

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रोज वकींग खतम करने के बाद तापस जिस पत्थर पर बैठता है आज उसी पत्थर पर विश्व बैठा हुआ था l बहते पानी को देखते हुए विश्व किसी सोच में खोया हुआ था l

ले पीले... इस में नैचुरल ग्लूकोज़ है...

यह सुन कर विश्व देखता है l नारियल हाथ में लेकर तास उसके पास खड़ा था l

तापस - ले... पीले...

विश्व तापस के हाथ से नारियल लेकर स्ट्रॉ से पानी पीने लगता है l तापस भी उसके पास बैठ कर पानी पीने लगता है l दोनों का नारियल खतम होते ही दोनों नारियल को पानी में फेंक देते हैं l

तास - तो... लाट साहब... आज तुम मेरी जगह पर बैठ कर क्या सोच रहे हो...
विश्व - (सोच में खोए हुए) डैड... क्या दुश्मन का दुश्मन... दोस्त होता है...
तापस - ह्म्म्म्म... यह एक राजनीतिक कहावत है... जरूरी नहीं... के हर हालत में सही हो...
विश्व - मैं भी यही सोच रहा था...
तापस - तो यह तुम्हें... कोई राजनीतिक सलाह मिली है... या...
विश्व - एक बिल्डर के आड़ में... राजनीतिक सलाह...
तापस - कौन है...
विश्व - ठीक से अंदाजा नहीं लगा सकता... पर जो भी है... जिसकी पोलिटिकल होल्ड... भैरव सिंह के बराबर तो नहीं... पर कम भी नहीं है...
तापस - ह्म्म्म्म... वैसे... मुझे लगता है... ओंकार चेट्टी हो सकता है...
विश्व - मुझे भी यही अंदेशा है...
तापस - फिर...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ कर) यहाँ झगड़ा... दो बिल्ली और एक बंदर के बीच वाली है....
तापस - ह्म्म्म्म... लड़ाई... सांप और नेवले की क्यूँ नहीं... (विश्व हैरान हो कर तापस को देखता है) देखो प्रताप... तुम्हारी लड़ाई है... नजरिया भी तुम्हारा है... बिल्लियों के बीच लड़ाई रोटी के लिए थी... पर तुम्हारे और भैरव सिंह के बीच की लड़ाई... रोटी की नहीं है... तो जाहिर है... बंदर का यहाँ कोई काम नहीं है...

विश्व तापस की ओर हैरानी से देखता है l तापस कहना जारी रखता है l

तापस - यहाँ.. मेरी नजरिए से देखोगे... तो... लड़ाई सांप और नेवले के बीच है... जो दूर से दुसरा सांप देख कर अपना मतलब आंक रहा है...

तापस की बात सुन कर विश्व की आँख और मुहँ दोनों खुला रह जाता है l

तास - अगर वह चेट्टी ही है... तो भैरव सिंह के खिलाफ एक हथियार चाहिए... उसे तुममे वह नजर आ रहा है...
विश्व - वाव... क्या एनीलिसीस किया है... आपने...
तापस - देखो प्रताप... चेट्टी मदत करेगा भी तो... खुद को पर्दे के पीछे ही रखेगा... तुम्हारे उसके हथियार बनने में तुम्हारा फायदा तो होगा जरूर...
विश्व - तो मुझे क्या उसकी बात मान लेनी चाहिए...
तापस - हाँ... पर... यहाँ... तुम्हें हथियार दोधारी होना पड़ेगा... जिस धार से... चेट्टी... भैरव सिंह पर हमला बोलेगा... उसी धार से... वह भैरव सिंह की वार को रोकना चाहेगा... तब दुसरा धार उसके खिलाफ होगा...
विश्व - क्या इसे डबल क्रॉस नहीं कहेंगे...
तापस - नहीं... क्यूंकि... चेट्टी कोई महात्मा तो नहीं है... तुम्हें अंदर करने के लिए... भैरव सिंह जितना जिम्मेदार है... कम ही सही... तुमको अंदर करने में... चेट्टी का हाथ भी है... और उसे इस बात की कोई सजा नहीं मिली है...
विश्व - (मुस्कराते हुए) परफेक्ट... मैं कल से... खुद को चौराहे पर देख रहा था... पर आपने मेरी सारी उलझने खतम कर दी... थैंक्स डैड...
तापस - कोई नहीं... इट्स माय प्लेजर...
विश्व - इतना सब कुछ... आपको कैसे सूझ गया डैड...
तापस - एक्सपेरियंस बच्चे... एक्सपेरियंस...
विश्व - आई अग्रिड... आखिर... बेकार में तो बाल काले नहीं करते हैं आप...
तापस - (बिदक कर) क्या मतलब है तुम्हारा... बाल काले करने का मतलब...
विश्व - मेरा मतलब है... आदमी जितना बुढ़ा होता है... उसका एक्सपेरियंस उतना ज्यादा होता है...
तापस - (तुनक कर खड़ा हो जाता है) मुझे बुढ़ा कह रहा है...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) सॉरी डैड... आप एवर ग्रीन हो... मेरा मतलब है... आप एवर ग्रीन उम्र दराज हो...
तापस - (खुश हो कर) हाँ... हाँ.. गुड... (फिर बात समझ कर) क्या... क्या कहा ना लायक...

यह कह कर विश्व पर लपकता है l विश्व उसे ठेंगा दिखा कर वहाँ से भागता है l तापस भी उसके पीछे पीछे भागने लगता है

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बल्लभ अपनी गाड़ी से रोणा की सरकारी क्वार्टर पर पहुँचता है l बल्लभ देखता है दरवाजा खुला हुआ है l रोणा की जीप बाहर खड़ी है l बल्लभ रोणा के घर के अंदर जाता है l अंदर ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर रोणा पीठ टिकाए लेटा हुआ था, एक पैर उसका टी पोए पर रखा हुआ है और दुसरा पैर नीचे फर्श पर टिका हुआ है l टी पोए पर शराब के कुछ खाली बोतलें, खाली प्लेट दिखे l

बल्लभ - क्यूँ खाकी वर्दी वाले... किस बात का मातम मना रहा है...

रोणा अपनी आँखे खोल कर सिर को सीधा कर अपनी पलकों को मिंचते हुए नजर को दुरुस्त कर बल्लभ की ओर देखता है l फिर खुद को सोफ़े पर सीधा कर बैठता है l

रोणा - कहो... प्रधान बाबु... कैसे याद आई... इस गरीब खाने की...
बल्लभ - तु दो दिन से दिखा नहीं... रंग महल से क्या निकला... अब दिख रहा है... बड़े मजे ले रहा है... वह भी अकेले अकेले...
रोणा - कोई नहीं... मैं अपने पिछवाड़े का छेद को तैयार कर रहा था... तुझसे तो होगा नहीं... आ बैठ... मैं तेरी भी छेद को तैयार करता हूँ... ताकि जब परसों विश्वा राजगड़ पहुँचे... टॉस करके.. हमारी ले...
बल्लभ - तु ऐसे क्यूँ बात कर रहा है...
रोणा - और तुझे किसने बताया... विश्वा परसों आ रहा है...

रोणा की जबड़े भींच जाती हैं l उसका चेहरा तमतमाने लगता है l गुस्सा कुछ ऐसा टपक रहा था कि उसके दांतों से कड़ कड़ की आवाज़ बल्लभ को साफ सुनाई दे रहा था l

बल्लभ - ऐ... अपना गुस्सा मेरे पे मत दिखा... जब जब तेरे पिछवाड़े में चूल मचती है... तु उस दो टके की रंडी से... अपने पिछवाड़े मे कीड़े डलवा कर आ जाता है....
रोणा - सुन बे ज्ञानचोद... ज्यादा ज्ञान मत चुदा... अब बोल... यहाँ तु आया किस लिए है...
बल्लभ - यही... के हम जितने अपने पिछवाड़े के लिए सोच रहे हैं... हम से ज्यादा... क्षेत्रपाल सोच रहे हैं...
रोणा - हाँ... उन्हें सोचना भी चाहिए... क्यूंकि हमारी चाहे जितनी भी बजे... फटेगी तो उनकी भी जरूर...
बल्लभ - हाँ... उनकी इतनी फटी हुई है कि... उन्होंने तैयारी भी शुरु कर दी है...

अब रोणा कुछ ज्यादा संभल कर बैठ जाता है l टी पोए पर रखे जग से पानी निकाल कर अपने चेहरे पर उड़ेल देता है l

बल्लभ - अररे.. यह क्या कर रहा है...
रोणा - लगता है... कुछ अच्छी खबर ले कर आया है...
बल्लभ - खबर कितनी अच्छी है... यह बाद की बात है... बस समझ ले... विश्व अब अदालत में... मुहँ ताकता और हाथ मलता रह जाएगा...

रोणा के चेहरे पर रौनक आ जाती है l उसकी आँखे चमकने लगती है l

रोणा - लगता है... आज तु मेरा दिन बनाने वाला है...
बल्लभ - दिन नहीं जिंदगी...
रोणा - साला दो दिन से... दिमाग और किस्मत... खराब चल रही थी... चल बता यार... इस टेंशन ने.. महीने भर से मेरी ले रखी है....
बल्लभ - तो सुन खाकी... अब मान ले... विश्व को आरटीआई से... कुछ इन्फॉर्मेशन मिल जाएगा... तो क्या होगा...
रोणा - क्या होगा... वकील है... पीआईएल दाखिल करेगा... और केस को रीओपन करेगा...
बल्लभ - ठीक है... तेरी बात पर चलते हैं... वह पीआईएल कैसे दाखिल करेगा...
रोणा - कैसे करेगा मतलब... अबे तु मुझे दादी अम्मा वाली कहानी मत सुना... बात क्या हुई... उसकी जानकारी दे...
बल्लभ - ठीक है... तो सुन... छोटे राजा जी ने पुरा जिम्मा लिया है... उन्होंने... लॉ मिनिस्टर... और एडिशनल सालिसिटर जनरल से बात कर ली है... सात साल पहले की बात अलग थी... जैसे ही केस उछला... हमने और भी उछाला था... इसलिए... वह स्टेट की इज़्ज़त पर आ गई थी... मज़बूर हो कर सरकार ने... स्पेशल कोर्ट बनाई... तीन जजों की पैनल बनाई... पर इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा...
रोणा - (मूर्खों की तरह मुहँ फाड़े बल्लभ को देखे जा रहा था)
बल्लभ - कमीने... अपना शैतानी दिमाग खोल... जैसे मैंने खोल कर... छोटे राजा जी को बताया... तो वह दौड़े... और अपने काम में लग गए... अब तु भी विश्व से खेलने के लिए तैयार हो जा.. विश्व अगर ऑनलाइन केस फाइल करता है... तो रैंडम में किसी भी जज के कोर्ट में जाएगी... और अगर ऑफ लाइन फाइल करता है... तो उस जज को हटा दी जाएगी...
रोणा - कैसे...
बल्लभ - स्टेट में लाखों केस है... जिनकी कमिशन रिपोर्ट बननी बाकी है... ऐसे किसी केस में... उस जज को... डेपुटेशन में... कमिशन का इंचार्ज बना कर... केस से हटा दिया जाएगा...
रोणा - (उछल कर, चिल्लाता है) ओ.. हो हो... हो... क्या बात है... साला एक मच्छर... विश्व... हम सबको हिजड़ा बनाने चला था... वाह कुत्ते... वाह कमीने... क्या हरामी दिमाग चलाया है... काले कोट वाले... क्या पत्ता फेंका है... (फिर अचानक उसका लहजा बदल जाता है, आँखों में अंगारे उतर आते हैं) आने दो विश्व को... उन दो भाई बहन को... जलील कर... इस राजगड़ के गालियों में.. कुत्तों की तरह ना दौड़ाया तो मेरा नाम... अनिकेत रोणा नहीं...

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नाश्ते के लिए तापस और विश्व बैठे हुए हैं l प्रतिभा बड़ी खुशी के साथ तापस और विश्व के सामने प्लेट लगाती है l दोनों को प्रतिभा के चेहरे पर एक अलग सी चमक दिखती है l प्लेट लगाने के बाद प्रतिभा नाश्ता परोसने लगती है l विश्व प्रतिभा के चेहरे को देखता है और फिर उसके बाद तापस की ओर देख कर आँखों के इशारों से पूछता है

विश्व - (इशारों में) क्या बात है डैड...
तापस - (इशारे में) मुझे क्या पता...
विश्व - तो आप पूछिये ना...
तापस - क्यूँ... मैं क्यूँ पूछूं... जा जा... पार्टी बदलु.. जब... खिसकने का टाइम आएगा... तब तु पार्टी बदल देगा...
विश्व - इसका मतलब... आप नहीं पूछेंगे...
तापस - नहीं...

विश्व अपनी आँखे सिकुड़ कर तापस को देखता है l तापस विश्व को नजर अंदाज कर प्रतिभा से

तापस - वाह भाग्यवान वाह... कितनी बढ़िया नाश्ता बनाई हो... खुशबु से ही आधा पेट भर गया है...
विश्व - तो पुरा क्यूँ लिए बैठे हैं... आधा ही लीजिए ना...
तापस - तवे पर रोटियाँ कितनी बढ़िया तरीके से सेका है... पर कुछ होते हैं... जो अंदर से जल रहे हैं...
प्रतिभा - थैंक्यू... पर जल कौन रहा है...
विश्व - मैं क्यूँ जलुँ... (अपनी आँखों को सिकुड़ कर, इशारे से) रुको अभी बताता हूँ...
तापस - (इशारे से) जा जा पार्टी बदलु...
विश्व - माँ... आपके शादी के कितने साल हो गये...
तापस - देखा भाग्यवान... तुमसे उम्र पूछ रहा है...
प्रतिभा - (तापस से) आप चुप रहिए... (विश्व से) ह्म्म्म्म... आपके मन में... अभी क्यूँ यह सवाल आया है...
विश्व - वह इसलिए माँ... मैंने इतने सालों में... कभी भी डैड से... आपकी रसोई की तारीफ नहीं सुनी थी... इसलिए पूछ बैठा...

प्रतिभा अब अपनी भवों को तन कर तापस को देखती है l तापस के हाथ में ही निवाला ऐसे ही रह जाती है डर के मारे l फिर अचानक से प्रतिभा खिल खिला कर हँसने लगती है l उसको हँसते हुए देख कर दोनों हैरान हो जाते हैं l

विश्व - क्या बात है माँ... कल रात से देख रहा हूँ... तुम बहुत खुश लग रही हो....
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... हूँ तो...
तापस - हाँ भाग्यवान... कल ऐसा कौन खास आया था... जिसने तुम्हें इतना खुश कर दिया है कि... उसका सुरूर उतरे ना उतर रही है...
प्रतिभा - कल मुझसे मिलने... मेरी होने वाली बहु आई थी...
विश्व और तापस - क्या...

दिनों चौंक कर प्रतिभा की ओर देखते हैं, फिर एक दुसरे की ओर देखते हैं l धीरे धीरे तापस के चेहरे पर शरारती मुस्कान उभर आती है l

तापस - (इशारे से) अब आया ना बच्चू लाइन पे...
विश्व - (प्रतिभा से नाराजगी भरे लहजे में) माँ... यह... यह क्या कह रही हो... अभी... मैं... मैं शादी.. नहीं... नहीं
तापस - तु चुप... तेरी माँ के फैसले के खिलाफ जा रहा है... (प्रतिभा से) वैसे भाग्यवान... लड़की... कौन है कैसी है...
प्रतिभा - आह... क्या बताऊँ... सुंदर इतनी... जैसे आसमान की परी...इतनी मीठी आवाज के... क्या बताऊँ... ऐसा लगता है... वह बोलती रहे... और हम सुनते रहे... सच कहती हूँ... प्रताप के लिए... दो सौ फीसद परफेक्ट है...
विश्व - यह आपने... कैसे पता लगा लिया...
प्रतिभा - अरे... उसने जैसे ही अपना नाम और पहचान बताया... मैं फौरन ही जान गई... वह प्रताप के लिए ही बनी है... इसलिए उसे ढूंढते हुए... यहाँ तक आई...
विश्व - सच सच बताओ माँ... तुम मेरी फिरकी ले रही हो ना...

प्रतिभा कुछ देर के लिए चुप रह कर विश्व को देखने लगती है l प्रतिभा के ऐसे देखने से विश्व सकपका जाता है l फिर प्रतिभा जोर से हँसने लगती है और हँसते हुए पूछती है

प्रतिभा - तुझे वाकई लगता है... मैं तुझसे मज़ाक कर रही हूँ...
विश्व - कौन... कौन आया था माँ...
तापस - लाटसाहब... थोड़ा सा करेक्शन... कौन आया था नहीं... कौन आई थी... (विश्व अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है) अरे भाग्यवान... प्रताप को ढूंढते हुए... कौन आई थी...
प्रतिभा - प्रताप को ढूंढते नहीं....
तापस - तो...
प्रतिभा - विश्व को... विश्व को ढूंढते हुए... विश्व की रुप आई थी...

रुप की नाम सुनते ही, विश्व की बैठने की पोजिशन गड़बड़ा जाती है l वह ऐसे चौंकता है जैसे कोई भूकंप आया हो l

तापस - वाह क्या नाम है... रुप... ह्म्म्म्म... जरुर रुपबती होगी...
विश्व - (आवाज़ बिल्ली जैसी हो जाती है) क्या... क... क.. कौन आई थीं...
प्रतिभा - कहा ना... रुप सिंह क्षेत्रपाल...
तापस और विश्व - क्या... (विश्व की आवाज पूरी तरह बैठ जाती है)
विश्व - र.. र.. राज... राजकुमारी आई थीं...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हूँ...
विश्व - पर... पर उन्हें.. कैसे मालुम हुआ... की मैं... यहाँ रहता हूँ...
प्रतिभा - अरे... तुने जिस तरह से पार्टी में झंडे गाड़ दिए... वह तो और भी इम्प्रेस हो गई.. आख़िर बचपन की चाहती है... तुझे पार्टी में देखते ही पहचान गई... (चहकते हुए) और जानता है... मेरी बहु बनने के लिये तैयार भी हो गई... जब घर के अंदर आई... तब मैं उसके लिए आंटी थी... पर जब वह सब जान कर घर से जाने को हुई... मैंने उसे कहा... अगर इस घर में... बहु बन कर आना है... तो मुझे माँ कहना होगा... मैं तो हैरान रह गई.. उसने जाते जाते मुझे माँ कहा...

इतना कह कर प्रतिभा, विश्व की ओर देखती है I विश्व के मुहँ में आधा निवाला था और हाथ में आधा निवाला l वह हैरान और शॉक के वजह से जड़ वत चेयर पर बैठा हुआ था l प्रतिभा उसे हिलती है l

प्रतिभा - प्रताप... ऐ प्रताप...
विश्व - हाँ... क.. क.. क्या.. क्या हुआ माँ...
तापस - क्या हुआ माँ के बच्चे... पहले आवाज सही कर... यह क्या मिमिया रहा है... कमबख्त इतना बड़ा झोल किया हुआ है... मुझे बताया भी नहीं...
विश्व - (मिमियाते हुए) झोल... कैसा झोल... यह दुनिया सच में गोल है... जहां मैं... अब ढोल बन गया हूँ... कहाँ से बज रहा हूँ... कौन बजा रहा है... मैं क्या जानू...

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ह हैल में
रुप तैयार हो चुकी है राजगड़ जाने के लिए l उसे दरवाजे तक छोड़ते हुए विक्रम कहता है

विक्रम - नंदिनी... मैं भी तुम्हें छोड़ने जा सकता था... और वह ठीक भी रहता... तुमने मना क्यूँ किया...
रुप - भैया... आप भूल रहे हो.. मैं भी क्षेत्रपाल हूँ... आपके गार्ड्स भी तो मेरे साथ जा रहे हैं... और यह कभी ना कभी तो होना ही था...
विक्रम - तुम अपनी बातों से किसी को भी... कंविंस कर देती हो... फिर भी... मैं चाहता हूँ... कम से कम... भुवनेश्वर से बाहर तक मैं खुद ड्राइव कर छोड़ दूँ...
रुप - ठीक है भैया... पर आगे नहीं... मेरा दिल तो कर रहा था... की मैं खुद कार ड्राइव कर जाऊँ... पर आपने समझाया.... की मैं क्षेत्रपाल हूँ... इसलिए इन गार्ड्स घिरे जा रही हूँ...
विक्रम - हाँ... कुछ बातेँ तुम्हारी मैंने रख ली... कुछ बातेँ तुम मेरी रख लो...
रुप - ठीक है भैया... तो चलें...
विक्रम - हाँ चलो...

रुप शुभ्रा को बाय कह कर निकल जाती है l विक्रम ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और पीछे रुप बैठ जाती है l विक्रम गाड़ी को द हैल से निकाल कर सड़क पर ले आता है l उसके पीछे पीछे ESS के गार्ड्स की दो गाड़ी फोलो करते हुए निकलती है l कुछ देर बाद रुप एक पार्क के पास विक्रम को गाड़ी रोकने के लिए कहती है l विक्रम गाड़ी रोक देता है l

रुप - भैया... क्या पांच मिनट के लिए... पार्क की एक राउंड लगाएं...
विक्रम - (हैरान हो कर रुप को देखता है) ह्म्म्म्म...

फिर दोनों पार्क के अंदर जाते हैं l वहाँ पर चलने के लिए जो सीमेंट की रोड बनी हुई है, उस पर चलने लगते हैं l

विक्रम - बोलो नंदिनी... क्या बात करना चाहती हो...
रुप - (कुछ सोचने के बाद) भैया... आप कलकत्ता छोड़ कर जब से भुवनेश्वर में हो... एक तरफ से राजगड़ से कटे हुए हो... मैं भी एक दिन चली जाऊँगी... वीर भैया भी शायद साथ ना रहें... ऐसे में... आपके जीवन में... भाभी की क्या अहमियत है...
विक्रम - (शॉक हो जाता है)
रुप - जिस दिन भाभी की किडनैप की कोशिश हुई... उसी दिन भाभी सब कुछ भुला कर... आपके पास वापस आ गई... पर वह क्या वजह है.. की आप भाभी के पास लौट नहीं पा रहे हो...
विक्रम - (चुप रहता है)
रुप - मैं जब राजगड़ जाने को तैयार हुई... तब आपने मुझे... क्षेत्रपाल बन कर सोचने को... दुनिया को देखने को कहा... मैंने आपकी बात रख भी ली... तो भैया एक बात आप मेरी भी रख लो...
विक्रम - (कुछ कहता तो नहीं पर सवालिया नजर से रुप की ओर देखता है)
रुप - आप जब भी... भाभी के पास जाओ... तो अपने क्षेत्रपाल होने की बात को या तो भूल जाओ... या दर किनार कर लो...

इतना कह कर उस पार्क में विक्रम को छोड़ कर रुप बाहर आकर गाड़ी में बैठ जाती है l गुरु अब ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी चलाने लगता है l धीरे धीरे भुवनेश्वर से रुप की गाड़ी निकल चुकी है l गाड़ी सड़क पर तेजी से भाग रही है l गाड़ी के पीछे पीछे गार्ड्स की गाड़ी भी भाग रही हैं l

रुप अपनी मोबाइल निकाल कर ईयरपॉड अपने कानों में लगा कर प्रतिभा की कही कहानी सुनने लगती है l

विश्व वैदेही को घर ले आता है l बैल गाड़ी से उतार कर वैदेही को घर के अंदर ले जाता है l घर में चारपाई पर वैदेही को लिटा देता है l

वैदेही - विशु... तु... जानना नहीं चाहेगा... इतने साल... मैं कहाँ थी...
विश्व - दीदी... मैं.. वह नालायक भाई हूँ... जिसके आँखों के सामने... उसकी बहन उठा ली गई... मैं जितने भी दिन... राजा साहब के घर में काम करता रहा... उन दिनों में... मैं दूसरों से जान चुका था... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... मैं जैसे जैसे राजा साहब को जानता गया... मैं उससे डरने लगा और डरता ही रहा...
वैदेही - मैं... समझ सकती हूँ... पर क्या तुझे मुझसे कोई शिकायत नहीं...
विश्व - शिकायत... कैसी शिकायत... शिकायत है तो मुझसे... मेरे भगवान से... की मैं अपनी घर की इज़्ज़त ना बचा पाया...
Awesome update
 

Luckyloda

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बहुत ही शानदार अपडेट नाग भाई😍😍😍😍😍


जब से आपकी यह कहानी पढ़ने शुरू हुई है तब से लेकर आज तक हमेशा आपके अपडेट आने का इंतजार करते रहते हैं

और आपकी लेखनी के लिए कभी भी हमारे पास कोई शब्द नहीं होते



इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी 🙏🙏 हूं कि शायद आपका उस तरह से उत्साहवर्धन नहीं कर पाता जिस प्रकार से करना चाहिए

उसका एक मुख्य कारण मेरा मानना यह है कि अगर मैं आपकी तारीफ में कुछ कहूं तो वह सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा


ऐसी कहानी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏
 

Kala Nag

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बहुत ही शानदार अपडेट नाग भाई😍😍😍😍😍
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
जब से आपकी यह कहानी पढ़ने शुरू हुई है तब से लेकर आज तक हमेशा आपके अपडेट आने का इंतजार करते रहते हैं
भाई इस इज़्ज़त अफजाई के लिए तह दिल से आभार
और आपकी लेखनी के लिए कभी भी हमारे पास कोई शब्द नहीं होते
ना ना
मुझसे भी कई गुना बेहतर लेखन के महारथी हैं इस फोरम में
मैं खुद उनसे प्रभावित रहा हूँ
इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी 🙏🙏 हूं कि शायद आपका उस तरह से उत्साहवर्धन नहीं कर पाता जिस प्रकार से करना चाहिए
आरे बंधु क्षमा किस बात के लिए
आप का एक लाइनर कमेंट भी बहुत है
तसल्ली दे देता है कि पाठक पढ़ रहे हैं और मेरे उत्साह बढ़ाने के लिए कमेंट करते हैं
उसका एक मुख्य कारण मेरा मानना यह है कि अगर मैं आपकी तारीफ में कुछ कहूं तो वह सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा
अरे भाई ऐसा ना कहो

ऐसी कहानी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏
धन्यबाद फिर से आभार तह दिल से
 

Rajesh

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👉एक सौ छठवाँ अपडेट
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विशु

यह नाम सुनते ही विश्व चौंकता है l मुड़ कर उसने जिस औरत को बचा कर घर लाया था उसके चेहरे की ओर गौर से देखने लगता है l धीरे धीरे उसकी आँखे हैरानी से बड़े हो जाते हैं l होंठ थरथराने लगे

विश्व - दी... दी...

वैदेही की रुलाई फुट पड़ती है वह रोते रोते पीछे हटने लगती है l फिर मुड़ कर बाहर भागने लगती है l

विश्व - (चिल्लाते हुए) दीदी... अगर यह चौखट लांघी... तुम्हारी कसम... अपनी जान दे दूँगा...

वैदेही रुक जाती है और दरवाजे के पास दीवार से सट कर अपनी मुहँ छुपाये रोने लगती है l विश्व हैरानी और आँसू भरे आँखों से उसे बिलखते हुए देख रहा था l वह आगे बढ़ कर वैदेही के कंधे पर हाथ रखने के लिए हाथ बढ़ाता है पर रुक जाता है l

विश्व - (अपनी रुलाई को काबु करते हुए) दी... दी... तु.. म.. जी.. जिंदा हो...
वैदेही - (अचानक रुलाई बंद हो जाती है और चीखते हुए) नहीं... मैं जिंदा नहीं हूँ... मैं जिंदा नहीं हूँ... मर चुकी हूँ... आज से सात साल पहले... सुना तुमने... मार दी गई हूँ... सात साल पहले... सा...त साल... प.. हले

कहते कहते बेहोश हो कर गिर जाती है l विश्व दीदी दीदी चिल्लाते हुए वैदेही के पास पहुँचता है अपनी बाहों में उठा कर उसे पहले चारपाई पर सुलाता है l फिर बाहर आता है तो पाता है कि बस्ती के कुछ लोग बाहर खड़े हो कर सब सुनने की कोशिश कर रहे थे l विश्व उन्हें देख कर एक आदमी से

विश्व - बंसी काका... यह मेरी दीदी है... मेरी वैदेही दीदी... बेहोश हो गईं हैं... हस्पताल ले जाना है उन्हें... मदत करो मेरी...
बंसी - (टालने की कोशिश करते हुए) देखो विश्व... मामला क्षेत्रपाल महल से जुड़ा लगता है... हमें माफ करो...

कह कर वहाँ से चल देता है, उसके पीछे पीछे दुसरे भी नजर फ़ेर कर चल देते हैं l विश्व भाग कर अपने दोस्त बिल्लू से बैल गाड़ी मांगता है l पर मना नहीं कर पाता और बेमन से उसे बैल और बैल गाड़ी दे देता है l विश्व बैल गाड़ी को अपने घर के बाहर खड़ा कर अंदर भागते हुए जाता है और बेहोश पड़े वैदेही को अपनी बाहों में उठा कर गाड़ी में सुलाता है और यश पुर की ओर बैलों को भगाने लगता है l यश पुर के हस्पताल में वैदेही को दाख़िल कर देता है l हस्पताल के डॉक्टर वैदेही की चेक अप कर इंजेक्शन देते हैं और सलाइंन चढ़ाते हैं I

विश्व - डॉक्टर साहब... कैसी है मेरी दीदी...
डॉक्टर - बहुत कमजोरी है... शरीर में ग्लूकोज़ की कमी थी... सलाइन दे दिया है... इंजेक्शन भी दे दिया है... एक दो घंटे में होश में आ जाएगी... आप बेफिक्र रहें....

विश्व डॉक्टर को हाथ जोड़ कर अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है l डॉक्टर उसका पीठ थपथपा कर वहाँ से चला जाता है l विश्व अपनी दीदी के पास आता है और वैदेही की चेहरे को गौर से देखता है l चेहरा और स्वास्थ्य देखने पर अपनी उम्र से भी बहुत बड़ी लग रही थी l उसके आँखों में आँसू आ जाते हैं वह वहाँ पर रुक नहीं पाता, वार्ड से निकल कर हस्पताल के एंट्रेंस पर भगवान गणेश जी की एक छोटा मंदिर था, वहाँ पर आँखे मूँदे और हाथ जोड़े बैठ जाता है l समय बीतने लगता है, करीब करीब डेढ़ घंटे बाद धीरे धीरे वैदेही अपनी आँखे खोलती है और खुद को हस्पताल के वार्ड में देख कर हैरान हो जाती है, कराहते हुए नजर घुमाती है उसे विश्व तो नहीं दिखता पर कमरे के अंदर एक वृद्ध व्यक्ति को देखती है l उन व्यक्ति के आँखों में अपने लिए एक करुणा सी भाव दिखती है l वैदेही की हैरान हो कर उनके चेहरे को गौर से देखने लगती है फिर धीरे धीरे उसकी आँखे चौड़ी हो जाती है l वैदेही ने पहचान लेती है
"उमाकांत आचार्य" उसके बचपन के प्राथमिक विद्यालय के प्रधान आचार्य उमाकांत सर थे l महापात्र परिवार के पारिवारिक मित्र l वैदेही के होंठ थर्राने लगती है और आवाज कांपने लगती है l

वैदेही - सर... आप...
उमाकांत - तो तुमने पहचान लिया...
वैदेही - वि... विशु... कहाँ है...
उमाकांत - तुम्हारे स्वस्थ होने के लिए... भगवान को मना रहा है...

वैदेही के आँखों में आंसू आ जाते हैं l वह उठ कर बैठने की कोशिश करती है l

उमाकांत - तुम लेटी रहो बेटी... (वैदेही उठने कोशिश छोड़ देती है) अब बताओ... तुम कहाँ थी... क्यूंकि गाँव में एक अफवाह फैल गई थी... के तुम्हें डाकू उठा ले गए... और मार कर जंगल में फेंक दिया गया...
वैदेही - (एक फीकी हँसी हँसते हुए) सर... क्या वाकई गाँव में कोई नहीं जानता... वह डाकू कौन थे... या हैं...
उमाकांत - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) माफ करना बेटी... सभी जानते हैं... गाँव का हर बच्चा बच्चा तक जानता है... पर नाम लेने से... सच्चाई स्वीकार करने से डरते हैं....
वैदेही - मुझे जब उठा कर लिया जा रहा था... मैंने पीछे मुड़ कर... बाबा और विशु को गिरते देखा था.... मैं इस गलत फहमी में थी... की विशु मारा गया था... पर आज उसे जिंदा देख कर बहुत अच्छा लगा...
उमाकांत - हाँ बेटी... उस हादसे के कुछ ही देर बाद मैं गाँव में पहुँचा था... तुम तो जानती थी... मेरी बेटी और दामाद का अकस्मात देहांत होने के वजह से... मैं अपने नाती को अपने साथ लेकर पहुँचा था... पहुँच कर देखा... पुरा का पुरा गाँव सुनसान और विरान लग रहा था... दो जिस्म धुल से सने रास्ते पर पड़े हुए थे... उनके करीब पहुँच कर देखा तो... रघुनाथ... मेरा मित्र रघुनाथ... लहू लोहान हो कर पड़ा था... कुछ दूरी पर विशु भी मुहँ के बल पड़ा था... (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, फिर) मैंने... लोगों को आवाज दी... पर कोई नहीं दिखा मुझे... बस एक बैल गाड़ी दिखी... मैंने फौरन... उस बैल गाड़ी में दोनों को डाल कर... नाती के संग हस्पताल पहुँचा... डॉक्टर ने रघुनाथ को मृत घोषित कर दिया... पर विशु को होश नहीं आया था...
खैर मैंने रघुनाथ की अंतिम संस्कार कर दी... तीन दिन बाद विशु को होश आया... होश में आते ही... तुम्हें याद करते हुए चिल्लाने लगा... जिस तरह से उसे चोट लगी थी... उसके वजह से... तीन महीने तक दिमागी संतुलन खो बैठा था... डॉक्टर बहुत अच्छे थे... उन्होंने तुम्हारे भाई के लिए... बहुत मेहनत की... तब... तब जा कर विशु... ठीक हुआ...
वैदेही - ओह... भगवान का लाख लाख शुक्र है...
उमाकांत - हाँ कह सकती हो...
वैदेही - मतलब...
उमाकांत - वह जो तीन महीना हस्पताल में था... उस दौरान राजा साहब के आदमी... एक दो बार हस्पताल आकर विशु की खैर खबर लिए थे...
वैदेही - (चौंक कर) क्या....
उमाकांत - हाँ... इसलिए डॉक्टर से मिलकर... उन्हें यह बतला दिया... की विशु की याददाश्त चली गई है... पर पता नहीं... भगवान को मंजूर था... एक दिन... मुझे राजा साहब के यहाँ से बुलावा आया... मैं गया... तो... छोटे राजा और छोटी रानी... उनकी बेटी को पढ़ाने के लिए... बिना स्कुल जाए... शिक्षा मिले... ऐसा कुछ सुझाव मांगने लगे... पर शर्त थी के उनकी बेटी का नाम ना हम जानेंगे... और ना ही... उनकी बेटी हमारे बारे में कुछ जानेगी....
वैदेही - क्या... यह कैसे मुमकिन था...
उमाकांत - हाँ... मुमकिन नहीं था... तो मैंने एक रास्ता सुझाया... राजकुमारी की एडमिशन... यश पुर बालिका विद्यालय में करवाने के लिए... और केवल परिक्षा के समय उपस्थित रहने के लिए... और यहाँ पढ़ाने के लिए... मैंने विशु का नाम सुझाया....
वैदेही - विशु... विशु का नाम क्यूँ...
उमाकांत - राजा साहब के आदमी विशु की खैर खबर लेने लगे थे... पता नहीं क्यूँ... मैंने अपनी मज़बूरी दिखा कर... विशु का नाम सुझाया था... मुझे लगा कि विशु ही राजकुमारी को पढ़ा सकता है... और वहाँ सुरक्षित रह सकता है... क्यूंकि अगर विशु... तुम्हारे बारे में खोज खबर लेने की कोशिश की... तो उसकी जान पर बन आ सकती थी... उसे किसी तरह से... व्यस्त रखना चाहता था... चूंकि राजा साहब को पता था... की विशु की यादाश्त चली गई है... इसलिए राजा साहब भी उसे अपना नौकर बना कर... महल में रख लेने का फैसला किया... मैंने हाथ पैर जोड़ कर किसी तरह... बारहवीं तक पढ़ने की इजाजत ले ली... इसलिए विश्व की प्रतिदिन का नियम बन गया... रात को... मेरे यहाँ सोने आता था... फिर सुबह श्रीनु के साथ रहता था... उसके बाद... दिन भर राजकुमारी को पढ़ाया करता था... शाम ढलने तक काम करता था... और फिर रात को सोने आ जाता था...
वैदेही - विशु... तैयार कैसे हुआ... राजा के यहाँ काम करने के लिए...
उमाकांत - (झिझकते हुए) मुझे माफ करना बेटी... मैंने उसे एक आश दिखाया था...
वैदेही - कैसी आश...
उमाकांत - तेरी दीदी... चकमा दे कर भाग गई है... र... राजा... साहब... तेरी दीदी को ढूंढ रहे हैं... तु अगर वहाँ रहेगा.. तो तुझे तेरी दीदी की खबर लग जाएगी...

वैदेही यह सुन कर बहुत हैरान रह जाती है l

वैदेही - म.. मतलब... विशु... आज तक राजा की... गुलामी कर रहा था...
उमाकांत - हाँ... मुझे कुछ सूझा ही नहीं... क्यूंकि राजा के आदमी... विशु की खैर ख़बर ले रहे थे... मुझे अनहोनी की डर सता रही थी... वह कहते हैं ना... किसीको छुपाना हो... तो उसे.. दिया तले छुपा दो... मैंने वही किया... (वैदेही चुप रहती है, उसे यूँ चुप देख कर) मुझे उस वक़्त जो सही लगा... मैंने वही किया... कुछ झूठ... राजा को... और कुछ झूठ विशु को... सिर्फ विशु को बचाए रखने के लिए....
वैदेही - तो क्या विशु... अभी भी... राजकुमारी को पढ़ा रहा है...
उमाकांत - नहीं... कुछ ही महीने पहले... विशु का अंतर्महल में प्रवेश बंद कर दिया गया है... वह बस अब राजा साहब के काम के लिए... महल जा रहा है...
वैदेही - क्यूँ... अब राजकुमारी आगे नहीं पढ़ेगी...
उमाकांत - वैदेही... राजकुमारी की उम्र अभी श्रीनु की जितनी है... पर अभी... उसकी रजोधर्म शुरु हो गई है... इसलिए...
वैदेही - ओ... क्या नाम है उसका...
उमाकांत - नहीं जानते... ना मैं... ना ही विशु... इतनी हिम्मत... मुझमें नहीं थी... और विशु को... उसकी सुरक्षा के खातिर... मैंने उससे... ना जानने की कसम ले ली थी... क्यूँ... क्यूँ पूछ रही हो उसका नाम...
वैदेही - पता नहीं... ऐसे ही... पर शायद... मैंने एक बार.. उसका नाम सुना था...
उमाकांत - क्या...
वैदेही - हाँ... पर...

"रुप... ऐ रुप... उठो... तुम्हें आज निकलना है ना..."

कुन मूनाते हुए रुप उठती है और जम्हाई लेते हुए अपनी भाभी की ओर देखने लगती है l

रुप - क्या हुआ भाभी... इतनी सुबह सुबह...
शुभ्रा - राजकुमारी जी... क्षमा कर दीजिए... वह क्या है कि... आपके भ्राता श्री ने कहा कि... आपको सात बजे तक भुवनेश्वर से चले जाना चाहिए... क्यूंकि आठ घंटे का रास्ता है... आप लंच तक पहुँच जायेंगी....
रुप - (मुहँ फूला कर बेड पर बैठी शुभ्रा को देखने लगती है)
शुभ्रा - क्या हुआ... आप क्रोधित हैं...
रुप - (गुस्सा करते हुए) भाभी... यह क्या है...
शुभ्रा - क्या... क्या है... राजकुमारी रुप जी...
रुप - ओ हो... तो यह बात है... ठीक है... युवराणी जी... आप आदेश करें... हमें अभी क्या करना चाहिए...
शुभ्रा - (आँखे दिखाते हुए) ऐ...
रुप - चुभा ना... थोड़ी देर पहले मुझे भी ऐसा ही लग रहा था....
शुभ्रा - मुझे चुभेगा ही... क्यूंकि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ... पर तुमने... अपनी दोस्ती तोड़ दी है...
रुप - (थोड़ी सीरियस हो कर) आप यह क्या कह रही हैं भाभी...
शुभ्रा - और नहीं तो... तुम कल कहाँ गई थी.... बताया नहीं... फिर ऐसा क्या हो गया... जो तुमने अचानक से फैसला कर लिया... की राजगड़ जाना है...

रुप चुप रहती है l शुभ्रा की मनोदशा समझती है l आखिर इस हैल में रुप ही तो उसके सबसे करीब थी, और कल अचानक से जो फैसला किया था उसके बारे में कम से कम उसे शुभ्रा को बताना ही चाहिए था l

रुप - भाभी... आई एम सॉरी... मैं वह कल... प्रतिभा मेम से मिलने गई थी...
शुभ्रा - (हैरानी से आँखे फैल जाती हैं) क्या...

शुभ्रा जिस तरह से प्रतिक्रिया देती है रुप सकपका जाती है l रुप को हालत देख कर शुभ्रा खुद को संभालती है और फौरन जा कर कमरे का दरवाजा बंद करती है l फिर रुप के पास बैठ कर

शुभ्रा - (दबी आवाज में) क्या... तुम... प्रतिभा मेम से मिलने गई थी... (रुप बड़ी मासूमियत से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) तो क्या पता किया तुमने...
रुप - ( चेहरा बहुत ही गंभीर हो जाता है) मेरे परिवार का पाप... प्रताप का अतीत... वर्तमान... उसके साथ साथ मेरे परिवार का भविष्य...
शुभ्रा - फिर से तुम पहेली बुझाने लगी... सीधे सीधे क्यूँ नहीं कहते...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए शुभ्रा की दोनों हाथ थाम कर) भाभी... आप थोड़ी बहुत मेरे खानदान की... उस काले करतूत से वाकिफ हो... जिसके चपेट में... प्रताप का पूरा परिवार आ गया था...

कह कर चुप हो जाती है, शुभ्रा उसकी चुप्पी देख कर पूछती है

शुभ्रा - तो इससे... तुम्हारा राजगड़ जाने की... क्या लॉजिक है...

रुप के चेहरे पर हल्का सा शर्म छा जाती है l वह अपनी नजरें चुराने लगती है l

शुभ्रा - एक मिनट... अब समझी... प्रताप का एक महीना खतम हो रहा है... ओ... मतलब वह राजगड़ जा रहा है... ह्म्म्म्म... पहले जब यह एक महीने वाला किस्सा सुना था... लगा था... वह बाहर कहीं नौकरी कर रहा है... छुट्टी ले कर महीना रुकेगा... ह्म्म्म्म... पर नंदिनी... तुम राजगड़ चली भी गई... तो भी उसे मिलोगी कैसे...
रुप - मैं नहीं मिलूंगी... वह मुझसे मिलने आएगा...
शुभ्रा - (चौंकती है) क्या...
रुप - ओहो भाभी... आप यह बार बार... ऐसे चौंकिए मत... चौंकती आप हैं... झटके मुझे लग रहे हैं...
शुभ्रा - फिर भी... वह क्यूँ... मेरा मतलब है... कैसे...
रुप - मैं तरकीब भिड़ाउंगी ना... वह मुझसे मिलने आएगा...
शुभ्रा - नंदिनी... तुम्हें नहीं लगता... एडवेंचर के चक्कर में... तुम जरूरत से ज्यादा रिस्क ले रही हो...
रुप - भाभी... एक शेर मशहूर है...
यह इश्क़ नहीं आसान...
बस इतना समझ लीजिए...
एक आग का दरिया है...
जिस में डूब कर जाना है...
वैसे भी... मैं सिर्फ प्रताप से मिलने के लिए नहीं जा रही हूँ... प्रताप मेरे लिए सेकंड प्रायरिटी है...
शुभ्रा - प्रताप से नहीं... तो फिर किससे...
रुप - यह अब मत पूछो भाभी... मैं वादा करती हूँ... आपसे सब कुछ कहूँगी... सब कुछ... पर अभी नहीं... (शुभ्रा उसे असमंजस सी देखने लगती है) मेरा यकीन लीजिए भाभी.... कुछ भी नहीं छुपाउंगी...

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रोज वकींग खतम करने के बाद तापस जिस पत्थर पर बैठता है आज उसी पत्थर पर विश्व बैठा हुआ था l बहते पानी को देखते हुए विश्व किसी सोच में खोया हुआ था l

ले पीले... इस में नैचुरल ग्लूकोज़ है...

यह सुन कर विश्व देखता है l नारियल हाथ में लेकर तास उसके पास खड़ा था l

तापस - ले... पीले...

विश्व तापस के हाथ से नारियल लेकर स्ट्रॉ से पानी पीने लगता है l तापस भी उसके पास बैठ कर पानी पीने लगता है l दोनों का नारियल खतम होते ही दोनों नारियल को पानी में फेंक देते हैं l

तास - तो... लाट साहब... आज तुम मेरी जगह पर बैठ कर क्या सोच रहे हो...
विश्व - (सोच में खोए हुए) डैड... क्या दुश्मन का दुश्मन... दोस्त होता है...
तापस - ह्म्म्म्म... यह एक राजनीतिक कहावत है... जरूरी नहीं... के हर हालत में सही हो...
विश्व - मैं भी यही सोच रहा था...
तापस - तो यह तुम्हें... कोई राजनीतिक सलाह मिली है... या...
विश्व - एक बिल्डर के आड़ में... राजनीतिक सलाह...
तापस - कौन है...
विश्व - ठीक से अंदाजा नहीं लगा सकता... पर जो भी है... जिसकी पोलिटिकल होल्ड... भैरव सिंह के बराबर तो नहीं... पर कम भी नहीं है...
तापस - ह्म्म्म्म... वैसे... मुझे लगता है... ओंकार चेट्टी हो सकता है...
विश्व - मुझे भी यही अंदेशा है...
तापस - फिर...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ कर) यहाँ झगड़ा... दो बिल्ली और एक बंदर के बीच वाली है....
तापस - ह्म्म्म्म... लड़ाई... सांप और नेवले की क्यूँ नहीं... (विश्व हैरान हो कर तापस को देखता है) देखो प्रताप... तुम्हारी लड़ाई है... नजरिया भी तुम्हारा है... बिल्लियों के बीच लड़ाई रोटी के लिए थी... पर तुम्हारे और भैरव सिंह के बीच की लड़ाई... रोटी की नहीं है... तो जाहिर है... बंदर का यहाँ कोई काम नहीं है...

विश्व तापस की ओर हैरानी से देखता है l तापस कहना जारी रखता है l

तापस - यहाँ.. मेरी नजरिए से देखोगे... तो... लड़ाई सांप और नेवले के बीच है... जो दूर से दुसरा सांप देख कर अपना मतलब आंक रहा है...

तापस की बात सुन कर विश्व की आँख और मुहँ दोनों खुला रह जाता है l

तास - अगर वह चेट्टी ही है... तो भैरव सिंह के खिलाफ एक हथियार चाहिए... उसे तुममे वह नजर आ रहा है...
विश्व - वाव... क्या एनीलिसीस किया है... आपने...
तापस - देखो प्रताप... चेट्टी मदत करेगा भी तो... खुद को पर्दे के पीछे ही रखेगा... तुम्हारे उसके हथियार बनने में तुम्हारा फायदा तो होगा जरूर...
विश्व - तो मुझे क्या उसकी बात मान लेनी चाहिए...
तापस - हाँ... पर... यहाँ... तुम्हें हथियार दोधारी होना पड़ेगा... जिस धार से... चेट्टी... भैरव सिंह पर हमला बोलेगा... उसी धार से... वह भैरव सिंह की वार को रोकना चाहेगा... तब दुसरा धार उसके खिलाफ होगा...
विश्व - क्या इसे डबल क्रॉस नहीं कहेंगे...
तापस - नहीं... क्यूंकि... चेट्टी कोई महात्मा तो नहीं है... तुम्हें अंदर करने के लिए... भैरव सिंह जितना जिम्मेदार है... कम ही सही... तुमको अंदर करने में... चेट्टी का हाथ भी है... और उसे इस बात की कोई सजा नहीं मिली है...
विश्व - (मुस्कराते हुए) परफेक्ट... मैं कल से... खुद को चौराहे पर देख रहा था... पर आपने मेरी सारी उलझने खतम कर दी... थैंक्स डैड...
तापस - कोई नहीं... इट्स माय प्लेजर...
विश्व - इतना सब कुछ... आपको कैसे सूझ गया डैड...
तापस - एक्सपेरियंस बच्चे... एक्सपेरियंस...
विश्व - आई अग्रिड... आखिर... बेकार में तो बाल काले नहीं करते हैं आप...
तापस - (बिदक कर) क्या मतलब है तुम्हारा... बाल काले करने का मतलब...
विश्व - मेरा मतलब है... आदमी जितना बुढ़ा होता है... उसका एक्सपेरियंस उतना ज्यादा होता है...
तापस - (तुनक कर खड़ा हो जाता है) मुझे बुढ़ा कह रहा है...
विश्व - (थोड़ा सीरियस हो कर) सॉरी डैड... आप एवर ग्रीन हो... मेरा मतलब है... आप एवर ग्रीन उम्र दराज हो...
तापस - (खुश हो कर) हाँ... हाँ.. गुड... (फिर बात समझ कर) क्या... क्या कहा ना लायक...

यह कह कर विश्व पर लपकता है l विश्व उसे ठेंगा दिखा कर वहाँ से भागता है l तापस भी उसके पीछे पीछे भागने लगता है

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बल्लभ अपनी गाड़ी से रोणा की सरकारी क्वार्टर पर पहुँचता है l बल्लभ देखता है दरवाजा खुला हुआ है l रोणा की जीप बाहर खड़ी है l बल्लभ रोणा के घर के अंदर जाता है l अंदर ड्रॉइंग रुम में सोफ़े पर रोणा पीठ टिकाए लेटा हुआ था, एक पैर उसका टी पोए पर रखा हुआ है और दुसरा पैर नीचे फर्श पर टिका हुआ है l टी पोए पर शराब के कुछ खाली बोतलें, खाली प्लेट दिखे l

बल्लभ - क्यूँ खाकी वर्दी वाले... किस बात का मातम मना रहा है...

रोणा अपनी आँखे खोल कर सिर को सीधा कर अपनी पलकों को मिंचते हुए नजर को दुरुस्त कर बल्लभ की ओर देखता है l फिर खुद को सोफ़े पर सीधा कर बैठता है l

रोणा - कहो... प्रधान बाबु... कैसे याद आई... इस गरीब खाने की...
बल्लभ - तु दो दिन से दिखा नहीं... रंग महल से क्या निकला... अब दिख रहा है... बड़े मजे ले रहा है... वह भी अकेले अकेले...
रोणा - कोई नहीं... मैं अपने पिछवाड़े का छेद को तैयार कर रहा था... तुझसे तो होगा नहीं... आ बैठ... मैं तेरी भी छेद को तैयार करता हूँ... ताकि जब परसों विश्वा राजगड़ पहुँचे... टॉस करके.. हमारी ले...
बल्लभ - तु ऐसे क्यूँ बात कर रहा है...
रोणा - और तुझे किसने बताया... विश्वा परसों आ रहा है...

रोणा की जबड़े भींच जाती हैं l उसका चेहरा तमतमाने लगता है l गुस्सा कुछ ऐसा टपक रहा था कि उसके दांतों से कड़ कड़ की आवाज़ बल्लभ को साफ सुनाई दे रहा था l

बल्लभ - ऐ... अपना गुस्सा मेरे पे मत दिखा... जब जब तेरे पिछवाड़े में चूल मचती है... तु उस दो टके की रंडी से... अपने पिछवाड़े मे कीड़े डलवा कर आ जाता है....
रोणा - सुन बे ज्ञानचोद... ज्यादा ज्ञान मत चुदा... अब बोल... यहाँ तु आया किस लिए है...
बल्लभ - यही... के हम जितने अपने पिछवाड़े के लिए सोच रहे हैं... हम से ज्यादा... क्षेत्रपाल सोच रहे हैं...
रोणा - हाँ... उन्हें सोचना भी चाहिए... क्यूंकि हमारी चाहे जितनी भी बजे... फटेगी तो उनकी भी जरूर...
बल्लभ - हाँ... उनकी इतनी फटी हुई है कि... उन्होंने तैयारी भी शुरु कर दी है...

अब रोणा कुछ ज्यादा संभल कर बैठ जाता है l टी पोए पर रखे जग से पानी निकाल कर अपने चेहरे पर उड़ेल देता है l

बल्लभ - अररे.. यह क्या कर रहा है...
रोणा - लगता है... कुछ अच्छी खबर ले कर आया है...
बल्लभ - खबर कितनी अच्छी है... यह बाद की बात है... बस समझ ले... विश्व अब अदालत में... मुहँ ताकता और हाथ मलता रह जाएगा...

रोणा के चेहरे पर रौनक आ जाती है l उसकी आँखे चमकने लगती है l

रोणा - लगता है... आज तु मेरा दिन बनाने वाला है...
बल्लभ - दिन नहीं जिंदगी...
रोणा - साला दो दिन से... दिमाग और किस्मत... खराब चल रही थी... चल बता यार... इस टेंशन ने.. महीने भर से मेरी ले रखी है....
बल्लभ - तो सुन खाकी... अब मान ले... विश्व को आरटीआई से... कुछ इन्फॉर्मेशन मिल जाएगा... तो क्या होगा...
रोणा - क्या होगा... वकील है... पीआईएल दाखिल करेगा... और केस को रीओपन करेगा...
बल्लभ - ठीक है... तेरी बात पर चलते हैं... वह पीआईएल कैसे दाखिल करेगा...
रोणा - कैसे करेगा मतलब... अबे तु मुझे दादी अम्मा वाली कहानी मत सुना... बात क्या हुई... उसकी जानकारी दे...
बल्लभ - ठीक है... तो सुन... छोटे राजा जी ने पुरा जिम्मा लिया है... उन्होंने... लॉ मिनिस्टर... और एडिशनल सालिसिटर जनरल से बात कर ली है... सात साल पहले की बात अलग थी... जैसे ही केस उछला... हमने और भी उछाला था... इसलिए... वह स्टेट की इज़्ज़त पर आ गई थी... मज़बूर हो कर सरकार ने... स्पेशल कोर्ट बनाई... तीन जजों की पैनल बनाई... पर इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा...
रोणा - (मूर्खों की तरह मुहँ फाड़े बल्लभ को देखे जा रहा था)
बल्लभ - कमीने... अपना शैतानी दिमाग खोल... जैसे मैंने खोल कर... छोटे राजा जी को बताया... तो वह दौड़े... और अपने काम में लग गए... अब तु भी विश्व से खेलने के लिए तैयार हो जा.. विश्व अगर ऑनलाइन केस फाइल करता है... तो रैंडम में किसी भी जज के कोर्ट में जाएगी... और अगर ऑफ लाइन फाइल करता है... तो उस जज को हटा दी जाएगी...
रोणा - कैसे...
बल्लभ - स्टेट में लाखों केस है... जिनकी कमिशन रिपोर्ट बननी बाकी है... ऐसे किसी केस में... उस जज को... डेपुटेशन में... कमिशन का इंचार्ज बना कर... केस से हटा दिया जाएगा...
रोणा - (उछल कर, चिल्लाता है) ओ.. हो हो... हो... क्या बात है... साला एक मच्छर... विश्व... हम सबको हिजड़ा बनाने चला था... वाह कुत्ते... वाह कमीने... क्या हरामी दिमाग चलाया है... काले कोट वाले... क्या पत्ता फेंका है... (फिर अचानक उसका लहजा बदल जाता है, आँखों में अंगारे उतर आते हैं) आने दो विश्व को... उन दो भाई बहन को... जलील कर... इस राजगड़ के गालियों में.. कुत्तों की तरह ना दौड़ाया तो मेरा नाम... अनिकेत रोणा नहीं...

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नाश्ते के लिए तापस और विश्व बैठे हुए हैं l प्रतिभा बड़ी खुशी के साथ तापस और विश्व के सामने प्लेट लगाती है l दोनों को प्रतिभा के चेहरे पर एक अलग सी चमक दिखती है l प्लेट लगाने के बाद प्रतिभा नाश्ता परोसने लगती है l विश्व प्रतिभा के चेहरे को देखता है और फिर उसके बाद तापस की ओर देख कर आँखों के इशारों से पूछता है

विश्व - (इशारों में) क्या बात है डैड...
तापस - (इशारे में) मुझे क्या पता...
विश्व - तो आप पूछिये ना...
तापस - क्यूँ... मैं क्यूँ पूछूं... जा जा... पार्टी बदलु.. जब... खिसकने का टाइम आएगा... तब तु पार्टी बदल देगा...
विश्व - इसका मतलब... आप नहीं पूछेंगे...
तापस - नहीं...

विश्व अपनी आँखे सिकुड़ कर तापस को देखता है l तापस विश्व को नजर अंदाज कर प्रतिभा से

तापस - वाह भाग्यवान वाह... कितनी बढ़िया नाश्ता बनाई हो... खुशबु से ही आधा पेट भर गया है...
विश्व - तो पुरा क्यूँ लिए बैठे हैं... आधा ही लीजिए ना...
तापस - तवे पर रोटियाँ कितनी बढ़िया तरीके से सेका है... पर कुछ होते हैं... जो अंदर से जल रहे हैं...
प्रतिभा - थैंक्यू... पर जल कौन रहा है...
विश्व - मैं क्यूँ जलुँ... (अपनी आँखों को सिकुड़ कर, इशारे से) रुको अभी बताता हूँ...
तापस - (इशारे से) जा जा पार्टी बदलु...
विश्व - माँ... आपके शादी के कितने साल हो गये...
तापस - देखा भाग्यवान... तुमसे उम्र पूछ रहा है...
प्रतिभा - (तापस से) आप चुप रहिए... (विश्व से) ह्म्म्म्म... आपके मन में... अभी क्यूँ यह सवाल आया है...
विश्व - वह इसलिए माँ... मैंने इतने सालों में... कभी भी डैड से... आपकी रसोई की तारीफ नहीं सुनी थी... इसलिए पूछ बैठा...

प्रतिभा अब अपनी भवों को तन कर तापस को देखती है l तापस के हाथ में ही निवाला ऐसे ही रह जाती है डर के मारे l फिर अचानक से प्रतिभा खिल खिला कर हँसने लगती है l उसको हँसते हुए देख कर दोनों हैरान हो जाते हैं l

विश्व - क्या बात है माँ... कल रात से देख रहा हूँ... तुम बहुत खुश लग रही हो....
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... हूँ तो...
तापस - हाँ भाग्यवान... कल ऐसा कौन खास आया था... जिसने तुम्हें इतना खुश कर दिया है कि... उसका सुरूर उतरे ना उतर रही है...
प्रतिभा - कल मुझसे मिलने... मेरी होने वाली बहु आई थी...
विश्व और तापस - क्या...

दिनों चौंक कर प्रतिभा की ओर देखते हैं, फिर एक दुसरे की ओर देखते हैं l धीरे धीरे तापस के चेहरे पर शरारती मुस्कान उभर आती है l

तापस - (इशारे से) अब आया ना बच्चू लाइन पे...
विश्व - (प्रतिभा से नाराजगी भरे लहजे में) माँ... यह... यह क्या कह रही हो... अभी... मैं... मैं शादी.. नहीं... नहीं
तापस - तु चुप... तेरी माँ के फैसले के खिलाफ जा रहा है... (प्रतिभा से) वैसे भाग्यवान... लड़की... कौन है कैसी है...
प्रतिभा - आह... क्या बताऊँ... सुंदर इतनी... जैसे आसमान की परी...इतनी मीठी आवाज के... क्या बताऊँ... ऐसा लगता है... वह बोलती रहे... और हम सुनते रहे... सच कहती हूँ... प्रताप के लिए... दो सौ फीसद परफेक्ट है...
विश्व - यह आपने... कैसे पता लगा लिया...
प्रतिभा - अरे... उसने जैसे ही अपना नाम और पहचान बताया... मैं फौरन ही जान गई... वह प्रताप के लिए ही बनी है... इसलिए उसे ढूंढते हुए... यहाँ तक आई...
विश्व - सच सच बताओ माँ... तुम मेरी फिरकी ले रही हो ना...

प्रतिभा कुछ देर के लिए चुप रह कर विश्व को देखने लगती है l प्रतिभा के ऐसे देखने से विश्व सकपका जाता है l फिर प्रतिभा जोर से हँसने लगती है और हँसते हुए पूछती है

प्रतिभा - तुझे वाकई लगता है... मैं तुझसे मज़ाक कर रही हूँ...
विश्व - कौन... कौन आया था माँ...
तापस - लाटसाहब... थोड़ा सा करेक्शन... कौन आया था नहीं... कौन आई थी... (विश्व अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है) अरे भाग्यवान... प्रताप को ढूंढते हुए... कौन आई थी...
प्रतिभा - प्रताप को ढूंढते नहीं....
तापस - तो...
प्रतिभा - विश्व को... विश्व को ढूंढते हुए... विश्व की रुप आई थी...

रुप की नाम सुनते ही, विश्व की बैठने की पोजिशन गड़बड़ा जाती है l वह ऐसे चौंकता है जैसे कोई भूकंप आया हो l

तापस - वाह क्या नाम है... रुप... ह्म्म्म्म... जरुर रुपबती होगी...
विश्व - (आवाज़ बिल्ली जैसी हो जाती है) क्या... क... क.. कौन आई थीं...
प्रतिभा - कहा ना... रुप सिंह क्षेत्रपाल...
तापस और विश्व - क्या... (विश्व की आवाज पूरी तरह बैठ जाती है)
विश्व - र.. र.. राज... राजकुमारी आई थीं...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हूँ...
विश्व - पर... पर उन्हें.. कैसे मालुम हुआ... की मैं... यहाँ रहता हूँ...
प्रतिभा - अरे... तुने जिस तरह से पार्टी में झंडे गाड़ दिए... वह तो और भी इम्प्रेस हो गई.. आख़िर बचपन की चाहती है... तुझे पार्टी में देखते ही पहचान गई... (चहकते हुए) और जानता है... मेरी बहु बनने के लिये तैयार भी हो गई... जब घर के अंदर आई... तब मैं उसके लिए आंटी थी... पर जब वह सब जान कर घर से जाने को हुई... मैंने उसे कहा... अगर इस घर में... बहु बन कर आना है... तो मुझे माँ कहना होगा... मैं तो हैरान रह गई.. उसने जाते जाते मुझे माँ कहा...

इतना कह कर प्रतिभा, विश्व की ओर देखती है I विश्व के मुहँ में आधा निवाला था और हाथ में आधा निवाला l वह हैरान और शॉक के वजह से जड़ वत चेयर पर बैठा हुआ था l प्रतिभा उसे हिलती है l

प्रतिभा - प्रताप... ऐ प्रताप...
विश्व - हाँ... क.. क.. क्या.. क्या हुआ माँ...
तापस - क्या हुआ माँ के बच्चे... पहले आवाज सही कर... यह क्या मिमिया रहा है... कमबख्त इतना बड़ा झोल किया हुआ है... मुझे बताया भी नहीं...
विश्व - (मिमियाते हुए) झोल... कैसा झोल... यह दुनिया सच में गोल है... जहां मैं... अब ढोल बन गया हूँ... कहाँ से बज रहा हूँ... कौन बजा रहा है... मैं क्या जानू...

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ह हैल में
रुप तैयार हो चुकी है राजगड़ जाने के लिए l उसे दरवाजे तक छोड़ते हुए विक्रम कहता है

विक्रम - नंदिनी... मैं भी तुम्हें छोड़ने जा सकता था... और वह ठीक भी रहता... तुमने मना क्यूँ किया...
रुप - भैया... आप भूल रहे हो.. मैं भी क्षेत्रपाल हूँ... आपके गार्ड्स भी तो मेरे साथ जा रहे हैं... और यह कभी ना कभी तो होना ही था...
विक्रम - तुम अपनी बातों से किसी को भी... कंविंस कर देती हो... फिर भी... मैं चाहता हूँ... कम से कम... भुवनेश्वर से बाहर तक मैं खुद ड्राइव कर छोड़ दूँ...
रुप - ठीक है भैया... पर आगे नहीं... मेरा दिल तो कर रहा था... की मैं खुद कार ड्राइव कर जाऊँ... पर आपने समझाया.... की मैं क्षेत्रपाल हूँ... इसलिए इन गार्ड्स घिरे जा रही हूँ...
विक्रम - हाँ... कुछ बातेँ तुम्हारी मैंने रख ली... कुछ बातेँ तुम मेरी रख लो...
रुप - ठीक है भैया... तो चलें...
विक्रम - हाँ चलो...

रुप शुभ्रा को बाय कह कर निकल जाती है l विक्रम ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और पीछे रुप बैठ जाती है l विक्रम गाड़ी को द हैल से निकाल कर सड़क पर ले आता है l उसके पीछे पीछे ESS के गार्ड्स की दो गाड़ी फोलो करते हुए निकलती है l कुछ देर बाद रुप एक पार्क के पास विक्रम को गाड़ी रोकने के लिए कहती है l विक्रम गाड़ी रोक देता है l

रुप - भैया... क्या पांच मिनट के लिए... पार्क की एक राउंड लगाएं...
विक्रम - (हैरान हो कर रुप को देखता है) ह्म्म्म्म...

फिर दोनों पार्क के अंदर जाते हैं l वहाँ पर चलने के लिए जो सीमेंट की रोड बनी हुई है, उस पर चलने लगते हैं l

विक्रम - बोलो नंदिनी... क्या बात करना चाहती हो...
रुप - (कुछ सोचने के बाद) भैया... आप कलकत्ता छोड़ कर जब से भुवनेश्वर में हो... एक तरफ से राजगड़ से कटे हुए हो... मैं भी एक दिन चली जाऊँगी... वीर भैया भी शायद साथ ना रहें... ऐसे में... आपके जीवन में... भाभी की क्या अहमियत है...
विक्रम - (शॉक हो जाता है)
रुप - जिस दिन भाभी की किडनैप की कोशिश हुई... उसी दिन भाभी सब कुछ भुला कर... आपके पास वापस आ गई... पर वह क्या वजह है.. की आप भाभी के पास लौट नहीं पा रहे हो...
विक्रम - (चुप रहता है)
रुप - मैं जब राजगड़ जाने को तैयार हुई... तब आपने मुझे... क्षेत्रपाल बन कर सोचने को... दुनिया को देखने को कहा... मैंने आपकी बात रख भी ली... तो भैया एक बात आप मेरी भी रख लो...
विक्रम - (कुछ कहता तो नहीं पर सवालिया नजर से रुप की ओर देखता है)
रुप - आप जब भी... भाभी के पास जाओ... तो अपने क्षेत्रपाल होने की बात को या तो भूल जाओ... या दर किनार कर लो...

इतना कह कर उस पार्क में विक्रम को छोड़ कर रुप बाहर आकर गाड़ी में बैठ जाती है l गुरु अब ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी चलाने लगता है l धीरे धीरे भुवनेश्वर से रुप की गाड़ी निकल चुकी है l गाड़ी सड़क पर तेजी से भाग रही है l गाड़ी के पीछे पीछे गार्ड्स की गाड़ी भी भाग रही हैं l

रुप अपनी मोबाइल निकाल कर ईयरपॉड अपने कानों में लगा कर प्रतिभा की कही कहानी सुनने लगती है l

विश्व वैदेही को घर ले आता है l बैल गाड़ी से उतार कर वैदेही को घर के अंदर ले जाता है l घर में चारपाई पर वैदेही को लिटा देता है l

वैदेही - विशु... तु... जानना नहीं चाहेगा... इतने साल... मैं कहाँ थी...
विश्व - दीदी... मैं.. वह नालायक भाई हूँ... जिसके आँखों के सामने... उसकी बहन उठा ली गई... मैं जितने भी दिन... राजा साहब के घर में काम करता रहा... उन दिनों में... मैं दूसरों से जान चुका था... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... मैं जैसे जैसे राजा साहब को जानता गया... मैं उससे डरने लगा और डरता ही रहा...
वैदेही - मैं... समझ सकती हूँ... पर क्या तुझे मुझसे कोई शिकायत नहीं...
विश्व - शिकायत... कैसी शिकायत... शिकायत है तो मुझसे... मेरे भगवान से... की मैं अपनी घर की इज़्ज़त ना बचा पाया...
Awesome update bro maza aa gaya
 

Nobeless

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Kala Nag bhai hamesha ki tarah ek achcha diya hai aapne. Bhale hi likhne ki शैली badli ho aapne par quality me kyu अन्तर नहीं आया है।

विशु और vaidahi की बीच के संवाद bht भावनात्मक थे वैदेही ने तो कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वो ऐसे अपनें विशु के सामने आएगी उसे तो पता भी नहीं था कि उसका विशु zinda भी है। जो कुछ भी हुआ है वो उसके साथ उसके बाद उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कि वो विशु का और सामना कर पाए aur दूर भी चली जाती अगर विशु उसे कसम देकर नहीं रोकता तो। फिर तो जो बेबसी के आंसू बहे है वैदेही के अपनी हालत पर वो उसके बेहोश होने पर ही रुके, विशु का साथ toh कोई भी गांव वाला दे नहीं सकता था चाह कर भी, कोई भी क्षेत्रपाल pariwar के मामलों मे नहीं आना चाहेगा इसीलिए उसका दोस्त के बिल्लू एक बैलगाड़ी ही दे पाया अपनी दोस्ती के नाते।
अस्पताल मे वैदही का एडमिट होना विशु का भगवान से अपनी दीदी के लिए प्रार्थना करना काफी सहज भाव से लिखा गया है। फिर होती है उमाकांत की एंट्री जिनको पहचानने के vaidahi को ज्यादा समय ना lga, उमाकांत भी कितने बेबस थे जो सब कुछ जानते हुए भी कि कौन वैदेही को उठा कर ले गया था कुछ भी नहीं कर सके क्यूंकि अंजाम तो उसका भी बाकी लोगों के तरह ही होता जैसा कि आज तक होते आया है।
इधर विशु को sadma लगा था अपने बहन से अलग होने का साथ ही उसके बाप की मृत्यु ऐसे मे उसे सम्भालने वाले की जरूरत थी जो उमाकांत ने puri की डॉक्टर के साथ मिल कर, वो तो भला हो डॉक्टर का जो उमाकांत के कहने पर क्षेत्रपाल के आदमियों से झूट बोल दिया कि विशु की यादाश्त जा चुकी है। बहुत कम अच्छे Character देखने को मिले h इस कहानी मे जिसने से एक यह डॉक्टर है जिसने अपनी जान की चिंता ना krte हुए विशु की देखभाल की है।
पर कब तक उमाकांत विशु को ऐसे छुपा पाता कभी ना कभी तो सामने आना ही था उसे तो ऐसे मे क्षेत्रपाल द्वारा उनके बेटी के लिए शिक्षक की जरूरत पढ़ना और उमाकांत का विशु की सिफारिश करना बहुत ही अच्छे से सोच कर लिया गया फैसला है उसे क्षेत्रपाल से बचाने का उन्हीं के आँख के सामने रखते हुए।
और उतनी बढ़िया ही आपकी writing है नाग भाई की कैसे क्षेत्रपाल ने वैदेही के भाई को रूप कि पढ़ाई के लिए मंजूरी दी राजा सहाब की नजरो me विशु की यादाश्त खोना विशु को एक benifit of the doubt दे गया।
फिर चाहे उसके लिए उमाकांत को विशु से झूट ही क्यूँ ना बोलना पड़े की राजा सहाब उसकी बहन को ढूंढ रहे है विशु को जिंदा रखना उस झूट के सामने कुछ भी नहीं था। विशु भी fir लग गया अपने काम मे रूप को पढ़ाना, उससे ज्यादा कुछ रिश्ता बनाए बगैर उसके बाद महल के छोटे मोटे काम फिर घर वापसी ऐसा ही chlta Rha और chlta ही rhta अगर रूप के मासिक धर्म चालू ना होते पर तब तक, राजा सहाब ने जो कहा था कि ज्यादा पहचान ना बनाए राजकुमारी से, यहां पहचान क्या उससे भी बहुत आगे रिश्ता निकल चुका था दोनों का।
रूप अपनी भाभी को अभी सब कुछ नहीं बताना चाहती है बस ऊपरी तौर पर जानकारी दे दी है कि प्रताप भी एक मुख्य कारण है उसके राजगढ़ जाने का और प्रताप उससे मिलने भी आएगा और वो कैसे होगा वो तो रूप ही janti है पर जब तक चीजे उसके हिसाब से घटित नहीं हो जाती है वो शुभ्रा को इंतजार ही करवाने वाली है। रूप को शुभ्रा का राजकुमारी जी कह कर अपनी नाराजगी दिखाना वाला scene भी मजेदार था नाग bhai शुभ्रा को भी लग रहा है कि हर कोई उससे बात छुपा ता है और उसकी सबसे करीबी सखी भी जब उससे बात छुपाने लगे तो नाराज तो होगी ही वो।

Vishva और tapash का disscusuion केके के uper important था यह दिखाने के लिए की आप भले ही कितने talented, hardworking kyu na ho par अनुभव से in चीजों का कोई मुकाबला नहीं है अनुभव एक ऐसी chij है जो बढ़ती उम्र के साथ ही हासिल की जा सकती है जो विश्व की है ही कितनी? Tapash की तुलना मे तो विश्वा के पास ऐसे अनुभवी माँ बाप भले सगे ना हो पर सगे से कम भी नहीं है, का होना उसकी ताकत मे वृद्धि की करता है। tapash से उसे समझाया कि ओंकार चेट्टी जैसे इंसान का इस्तमाल krna और उसे डबल क्रॉस krna गलत नहीं है जो इंसान पहले से ही गलत है उससे धोखा देना कहाँ से गलत हुआ वो भी तब जब उसने पहले ही tumhe नुकसान phuchaya है अतीत मे।
नाग भाई आपने tapash और प्रतिभा का character अच्छे तरीके से कहानी मे ढाला है लगता ही नहीं कि दोनों कोई unnecessary character है या इनके ज्यादा scene के बिना भी स्टोरी चल सकती हाँ,, लेकिन jabki दोनों ka अपना अपना अहम स्थान है इस कहानी मे जहां एक taraf प्रताप उसे जिंदगी के बाहरी समस्याओं से लड़ने मे मदद krta है वहीँ प्रतिभा उसकी भीतर की भावनाओ को समझने मे मदद करती है जो वो खुद से समझ नहीं पाता एक तरह से वो रूप कि भी उतनी ही मदद कर रहीं है क्यूंकि उनका अनुभव तो शुभ्रा के पास भी नहीं है तो प्रतिभा ही बचती है उसको रास्ता दिखाने के लिए।
बाकी प्रतिभा ने तो बॉम्ब फोड़ दिया विश्व पर यह बता कर की रुप आयी थी और अपना रिश्ता विश्व से पक्का कर के भी gyi है और अंत ने माँ भी बोल चुकी है प्रतिभा को, अब तापस को कौन बताये कि झोल विश्व ने नहीं उसकी माँ कर रहीं है रूप के साथ मिलकर और इधर विश्व ढोल की तरह बज रहा है दोनों साइड से हाहाहा।

रूप भी विक्रम से अब चाहती है कि वो शुभ्रा से अपने संबंध पहले जैसे कर ले जैसा कि शुभ्रा कर चुकी है उसके kidnap वाले accident ke Baad से, वो शुभ्रा के पास जब हो तो उसका विक्की हो ना कि विक्रम क्षेत्रपाल जो कि इतना भी आसान नहीं है विक्रम से और साथ मे उसे विश्व का अहसान भी उतारना है उसके बाद ही शायद वो शुभ्रा से पहले जैसे संबंध कर पाए पर तब तक राह मुश्किल होने वाली है।

अनिकेत और वल्लभ यह chutiye की तरह खुशियाँ मना रहे है यह सोच कर की केस की सुनवाई होने पर judge खरीद लेगे या बदल देगे उनको यह समझ नहीं आ रहा है कि जब वो लोग यह बात itne दिन के अंदर सोच सकते है तो विश्वा जो सालों से इस के लिए तैयारी कर रहा है क्या उसके दिमाग मे एक बार भी यह बात नहीं आयी होगी हाहाहा यह लोग हमेशा ही सोचते रहते है कि ईन लोगों ने विश्वा के लिए तोड़ निकाल लिया है इस बात से अनजान की वो इनसे कई कदम आगे की सोच लिए चल रहा है। सही है बहुत सही है जब वैदेही के ढाबे मे जाकर अपनी इज्जत का कचरा करवायगे तब शायद थोड़ी अक्ल आ जाए।


वैदेही - विशु... तु... जानना नहीं चाहेगा... इतने साल... मैं कहाँ थी...
विश्व - दीदी... मैं.. वह नालायक भाई हूँ... जिसके आँखों के सामने... उसकी बहन उठा ली गई... मैं जितने भी दिन... राजा साहब के घर में काम करता रहा... उन दिनों में... मैं दूसरों से जान चुका था... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... मैं जैसे जैसे राजा साहब को जानता गया... मैं उससे डरने लगा और डरता ही रहा...
वैदेही - मैं... समझ सकती हूँ... पर क्या तुझे मुझसे कोई शिकायत नहीं...
विश्व - शिकायत... कैसी शिकायत... शिकायत है तो मुझसे... मेरे भगवान से... की मैं अपनी घर की इज़्ज़त ना बचा पाया...

Yeh paraghap mera पसंदीदा था नाग भाई इस अपडेट का, जब वैदेही ने विश्व से पूछा कि वो जानना नहीं चाहता है कि क्या हुआ उसके साथ फिर विश्वास का उत्तर देना की वो जान चुका था कि क्या हुआ है क्यूंकि ऐसा तो नामुमकिन है कि इतने साल राजा सहाब के महल मे रहते हुए उसे कुछ पता ना चले कि उसकी बहन के साथ क्या हुआ है फिर भी उसके बाद भी उसका कुछ नहीं कर पाना और रूप को पढ़ाते रहना जबकि वो तो पढ़ा ही अपनी बहन के पते के लिया Rha था तो क्या कारण था कि वो यह जानने के बाद भी की उसकी बहन को उठाने वाला और कई नहीं राजा सहाब ही है वो उनके महल मे एक नौकर की तरह रोजमर्रा के काम krta रहा। और जिसका जवाब भी उसे पता था और वो जवाब है "डर" कहने को दो अक्षर का शब्द है पर इसका प्रभाव इंसान पर उतना ही अधिक, विश्व की उम्र ही क्या थी उस time और फिर ऐसे माहौल मे रहा है जहां उसने राजा सहाब का आंतक देखा है गांव वालों पर फिर उसके मन मे डर पैदा होना बहुत ही स्वाभाविक था खुद की जान का डर अगर उसने कुछ भी ऐसा वैसा करने की कोशिश की तो क्या हो सकता है उसके साथ, उसके टीचर उमाकांत के साथ उसके दोस्तों के साथ पर सबसे बड़ कर khud की जान का डर।

आपने यहां पर मेरा दिल जीत लिया नाग भाई इतना realistic take लेकर क्यूंकि असल जिंदगी भी ऐसी ही होती है ना कि कोई मूवी की तरह की जिसमें मुख्य पात्र अपने क्रोध की ज्वाला मे सब दुश्मनों का विनाश कर देता है। विश्व तो एक बच्चा था इस time सबसे पहले उसके दिमाग मे को ख्याल आया होगा वो तो खौफ का ही आएगा अभी उसको इस सीमा तक नहीं धकेला नहीं गया था कि उसके मन मे बस बदला लेने की भावना के अलावा कुछ ना रहे और शायद वो सीमा दूर नहीं रह गई जब वैदेही उसकी जिंदगी मे पुनः वापस आ गयी थी फिर उसके बाद ऐसा कुछ हुआ है जो विश्व को आज के विश्वा मे बदलने की नीव रखी थी।
लगता है और भी sad scenes aane wale hai apne dil ko मजबूत कर लेता हूं पर शायद वैदेही के आपबीती जितने sad nhi hoge या हो भी सकते है अब यह तो आप ही jante है नाग भाई।

Thanx for the update नाग bhai👍👍
 

masterji1970

मम्मी का दीवाना (पागल)
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मान्यवर।
आपसे एक गुजारिश है कि यदि आप कहानी का इंडेक्स बना लेते हैं तो कहानी पढ़ने में सहूलियत हो जाएगी, क्योंकि मैं समयाभाव के कारण नियमित कहानी नहीं पढ़ पाऊंगी। जिस दिन समय रहेगा उस दिन कई भाग लगातार पढूंगी, तो इंडेक्स होने पर कहानी मुझे पढ़ने में आसानी होगी

बाकी आपकी मर्जी।।
मैं मौर्या जी की इस बात से पुर्ण रूप से सहमत हूँ की कथा की सूचिका बना लेनी चाहिए ताकि मेरे जैसे अन्य पाठकों को पड़ने का आनंद मिल सके, बाकि तो आप पर निर्भर है (जिसके कई कारण हो सकते हैं)🙏
 

11 ster fan

Lazy villain
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Maine Kal ye padha kuchh update man maar kar.....mujhe ye story Kingfisher ne bataya tha ...uss samay aaya tha padhane lekin wo veer ka character negative tha rup ke character me dam nhi tha... isiliye 1-2 update ke baad Chala gaya...lekin Kal phir Kingfisher ne kaha ki ek baar pura padh Kar to dekh...so padhane laga aur shuru ke update man markar padha....lekin lekin lekin shuruwat ke update ke baad storyline ne ek jabardast pace pakadi...Matlab owsm Wala ...phir Maja aane laga story me...
Character sare khul ke samane aaye apne apne anokhe vyaktitatv ko samane lekar..
Veer, rup, vishv, bhabhi, tapas uncle, bhairav , vaidehi Vikram Rana, vllav etc ye sare character ekdam se story ke character na rahakar jivant ho uthe ,jaise nain sir ke character nishchal and jivisha...
Maine ek Revo me dekha ki SANJU ( V. R. ) sir ne kaha hai ki agar ye story paid karke padhana ho to bhi wo pasand karenge isse padhana ...unhone ekdam sahi kaha tha ye story hai uss layak...
Lekhani me abhi kuchh kamiya hai,lekin usme sudhar bahut hi jabardast tarike se kiye , jiske Karan ye story masterpiece bante ja RHA hai ...khair koi na aage padhate ja RHA hu current update par aane ke baad revo bhi dunga....agar na de paya to Bhai samajh Lena ki Mai padhai me vyast ho gaya hu...ye na samjhana ki aaya padha aur munh utha ke Chala gaya Bina kuchh kahe hi....tarife to bahut hai Karne ko lekin mere pass samay ki kami hai bahut to bye bye Mai Chala update padhane....bas u samjh lo tumhe ek Naya reader mil gaya Jo aapki Kahani ka kdradan hai, bas dikhu na to bhi samajh Jana ki jab bhi Kahani padhunga to aapko jarur appreciate karunga...
 
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