भाग 146
(प्रिय पाठको,
सलेमपुर में सुगना और सोनू के मिलन की विस्तृत दास्तान जो की एक स्पेशल एपिसोड है तैयार हो रहा है उसे पहले की ही भांति उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जो कहानी से अपना लगातार जुड़ाव दिखाएं रखते हैं यद्यपि यह एपिसोड सिर्फ और सिर्फ सोनू और सुगना के कामुक मिलन को इंगित करता है इसका कहानी को आगे बढ़ाने में कोई विशेष उपयोग नहीं है। )
सोनू और सुगना का यह मिलन उनके बीच की लगभग सभी दूरियां मिटा गया था वासना की आग में सोनू और सुगना के बीच मर्यादा की सारी लकीरें लांघ दी थी सुगना जिस गरिमा और मर्यादा के साथ अब तक सोनू के साथ बर्ताव करती आई थी उसमें परिवर्तन आ चुका था सोनू अब सुगना पर भारी पड़ रहा था।
अब बनारस आने की तैयारी हो रही थी।
सोनू अपने कपड़े पहन चुका था यद्यपि वह बेहद थका हुआ था परंतु फिर भी आज वह एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह व्यवहार कर रहा था सुगना अब भी अपने पलंग पर नंगी लेटी हुई थी चेहरे पर गहरी शांति और तृप्ति के भाव लिए अपनी बंद पलकों के साथ बेहद गहरी नींद में थी। सोनू उसे उठाना तो नहीं चाह रहा था परंतु बनारस पहुंचना जरूरी था ज्यादा देर होने पर इसका कारण बता पाना कठिन था। आखिरकार सोनू ने सुगना के माथे को चुनते हुए बोला
“दीदी उठ ना ता बहुत देर हो जाए लाली 10 सवाल करी”
सुगना के कानों तक पहुंचे शब्द उसके दिमाग तक पहुंचे या नहीं पर लाली शब्द ने उसके दिमाग को जागृत कर दिया। शायद सुगना को पता था की सोनू को अपनी जांघों के बीच खींचकर उसने जो किया था कहीं ना कहीं उसके मन में लाली के प्रति अपराध बोध आ रहा था।
सुगना ने अपनी आंखें खोल दी और सोनू की गर्दन में अपनी गोरी बाहें डालते हुए उसे अपनी और खींच लिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे की मिठास महसूस करने लगे तभी सुगना ने कहा…
“लाली अब तोहरा से हमारा बारे में बात ना कर ले”
सोनू अभी सुगना की छेड़छाड़ में नहीं उलझना चाह रहा था वह समय की अहमियत समझ रहा था पर आज सुगना बिंदास थी।
“दीदी चल लेट हो जाए तो जवाब देती ना बनी”
आखिर सुगना खड़ी हुई उसे अपने नंगेपन का एहसास हुआ. उसने सोनू को पलटने का इशारा किया …
सोनू ने पलटते हुए कहा
“अब भी कुछ बाकी बा का….”
“जवन कुछ भइल ओकरा के भूल जो आज भी तेज छोट बाड़े छोट जैसन रहु”
आज से तुम जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ तुम छोटे हो और छोटे जैसे ही रहो।
सुगना अपने कपड़े पहने लगी नियति को भी यह बात समझ नहीं आ रही थी कि अब सुगना के पास छुपाने को कुछ भी ना था फिर भी न जाने क्यों उसने सोनू को पलटने का निर्देश दिया था।
सुगना ने महसूस किया कि उसके बदन पर गिरा सोनू का वीर्य अब सूख चुका था और त्वचा में आ रहा खिंचाव इसका एहसास बखूबी दिला रहा था सुगना ने स्नान करने की सोची..
“अरे रुक पहले नहा ली देख ई का कर देले बाड़े..”
सोनू पलट गया उसकी निगाहों ने सुगना की तर्जनी को फॉलो किया और सुगना की भरी हुई चूंची पर पड़े वीर्य के सूखने से पड़े चक्कते को देखा और अपने हाथों से उसे हटाने की कोशिश की…
“दीदी इ त प्यार के निशानी हो कुछ देर रहे दे बनारस में जाकर धो लीहे।
सुगना ने सोनू के गाल पर हल्की सी चपत लगाई और “कहा ते बहुत बदमाश बाड़े..”
सुगना ने भी अपने कपड़े पहन लिए और उठ खड़ी हुई। उसने सोनू के साथ आज अपने कामुक मिलन के गवाह अपने गुलाबी रंग के लहंगा और चोली को वापस उस बक्से में रखा जिसमें उसने अपने पुराने दो लहंगे रखे थे। यह संदूक सुगना के कामुक मिलन की यादों को संजोए रखने में एक अहम भूमिका निभा रहा था। सुगना के यह तीनों मिलन अनोखे थे अनूठे थे पर यह विधि का विधान ही था की रतन से उसका मिलन अधूरा था।
अब कमरे से बाहर निकालने की बारी थी। आज जिस तरह सोनू ने उसे कस कर चोदा था इसका असर उसकी चाल पर भी दिखाई पड़ रहा था सुगना अपने कदम संभाल संभाल कर रख रही थी। सुगना आगे आगे सोनू पीछे पीछे.. सुगना की चाल सोनू की मर्दानगी की मिसाल पेश कर रही थी सोनू के चेहरे पर विजई मुस्कान थी। आज आखिरकार उसने सुगना को हरा दिया था।
सुगना और सोनू मुख्य द्वार की तरफ बढ़ रहे थे तभी सुगना ने कहा ..
“सोनू बाहर से तो ताला लगा होगा”
“नहीं दीदी मैंने खोल दिया था”
“पर कब ?”
“काम होने के बाद आप जब सो रही थीं”
सुगना समझ चुकी थी काम शब्द उन दोनों की काम क्रीड़ा की तरफ इंगित कर रहा था उसने अपनी गर्दन झुका ली घर से बाहर आते ही लाली के माता-पिता एक बार फिर दरवाजे पर उनका इंतजार कर रहे थे सुगन की चाल में आई लचक को लाली की मां ने ताड़ लिया और बोला..
“अरे सुगना का भइल एसे काहे चलत बा?”
सुगना सचेत हुई उसने यथासंभव अपनी चाल को नियंत्रित किया और मुस्कुराते हुए बोली..
बहुत दिन बाद घर आई रहनी हां तो अपन कमरा ठीक-ठाक करे लगनी हा…वो ही से से थोडा थकावट हो गइल बा।
लाली की मां परखी जरूर थी पर इतनी भी नहीं कि वह सोनू और सुगना के बीच बन चुके इस अनूठे संबंध के बारे में सोच भी पाती। सुगना का चरित्र सुगना को छोड़ बाकी सब की निगाहों में अब भी उतना ही प्रभावशाली था।
सुगना द्वारा लाई गई मिठाई उसे ही खिलाकर लाली के माता-पिता ने सोनू और सुगना को विदा किया और कुछ ही देर बाद गांव की तंग सड़कों से निकलकर सोनू की कर बाजार में आ गई इस बार मिठाई की दुकान पर सोनू और सुगना एक साथ उतरे सुगना ने तरह-तरह की मिठाइयां पैक करवाई और वापस बनारस की तरह निकल पड़े। कार बनारस की तरफ सरपट दौड़ने लगी सोनू और सुगना दोनों आज की कामुक यादों में खोए हुए थे। सुगना मन ही मन सोच रही थी आखिर क्या है उसके गुदाद्वार के छेद में जिसने सरयू सिंह के साथ-साथ अब सोनू को भी पागल कर दिया था।
इसका प्रयोग कामवासना के लिए? सुगना मर्दों की इस अनूठी इच्छा को अब भी समझ ना पा रही थी पर उसे इस बात का बखूबी अहसास था की चरम सुख के अंतिम पलों में उसने सुगना सोनू की उंगलियों के अनूठे स्पर्श का आनंद अवश्य लिया था।
दीदी अपन वादा याद बा नू…सोनू ने सुगना की तरफ देखते हुए बोला..
सुगना को अपना वादा बखूबी याद था परंतु सुगना चतुर थी..
उसने अपनी मादक आंखों से सोनू की तरफ देखा और आंखों आंखें डालते हुए बोला
“ हां याद बा लेकिन कब ई हम ही बताइब..ये जनम में की अगला जनम में” सुगना ने अपनी बात समाप्त करते-करते अपना चेहरा वापस सड़क की तरफ कर लिया था । उसने देखा कि सोनू की गाड़ी एक गाड़ी के बिल्कुल करीब आ रही थी वह जोर से चिल्लाई..
“ओ सामने देख गाड़ी…”
सोनू सचेत हुआ उसने तुरंत ही अपनी गाड़ी को दाहिनी तरफ मोडा और सामने वाली गाड़ी से टकराने से बच गया परंतु यह पूर्ण लापरवाही की श्रेणी में गिना जा सकता था। सुगना ने सोनू को हिदायत देते हुए कहा
“ गाड़ी चलाते समय यह सब बकबक मत किया कर जतना मिलल बा उतना में खुश रहल कर।”
“ठीक बा दीदी हमार सब खुशी तोहरे से बा तू जैसन चहबू ऊहे होई..”
अचानक सुगना को सोनू के दाग का ध्यान आया जो अब तक सोनू द्वारा गले में डाले गए गमछे की वजह से बचा हुआ था। सुगना ने अपने हाथ बढ़ाए और सोनू के गले से गमछा खींच लिया। जैसा की सुगना को अनुमान था
सोनू की गर्दन पर दाग आ चुका था और यह अब तक पहले की तुलना में कतई ज्यादा था…
“अरे तोर ई दाग तो अबकी बार बहुत ज्यादा बा..”
“छोड़ ना दीदी ठीक हो जाई”
“ना सोनू, कुछ बात जरूर बा आज तोरा का हो गइल रहे..? अतना टाइम कभी ना लगता रहे ..
“काहे में..” सोनू भली-भांति जानता था कि सुगना उसके स्खलन के बारे में बात कर रही है परंतु फिर भी उसने उसे छेड़ने और उसका ध्यान दाग से भटकने की कोशिश की।
परंतु सोनू को यह बात भली बात जानता था कि आज उसने सुगना पर जो विजय प्राप्त की थी वह उसकी मर्दानगी के साथ-साथ शिलाजीत का भी असर था सोनू ने अपनी बड़ी बहन की कामुकता पर विजय पाने के लिए शिलाजीत का सहारा लिया था और शायद यही वजह रही होगी जिससे विधाता ने उसके दाग को और भी उभार दिया था।
बाहर हाल जो होना था हो चुका था सोनू की गर्दन का दाग आज उफान पर था..
कुछ ही घंटों बाद सोनू और सुगना बनारस आ चुके थे सुगना गांव के बाजार से खरीदी गई मिठाइयां अपने और लाली के बच्चों में बांट रही थी हर दिल अजीज सुगना ने अपनी मां और कजरी दोनों की पसंद की मिठाई भी लाई और सरयू सिंह के लिए पसंदीदा मालपुआ भी।
सरयू सिंह का भाग्य अब बदल चुका था सुगना का मालपुआ उन्होंने स्वेच्छा से छोड़ दिया था और सुगना ने अब अपना मालपुआ सरयू सिंह की प्लेट से उठाकर हमेशा के लिए सोनू की प्लेट में डाल दिया था जिसे सोनू पूरे चाव से चूम चाट रहा था और उसका रस भी पी रहा था।
लाली के लिए सुगना ने उसकी मां द्वारा दिया गया पैकेट दे दिया…लाली भी खुश हो गई वैसे भी वह सोनू के आ जाने से खुश हो गई थी पर इन्हीं खुशियों के बीच देर होने का कारण तो पूछना ही था आखिरकार सरयू सिंह ने सोनू से पूछा
“इतना देर क्यों हो गया कोनो दिक्कत तो ना हुआ”
प्रश्न पूछा सोनू से गया था पर जवाब सुगना ने दिया एक बार जो झूठ सुगना ने लाली की मां से बोला था अब उसने अपने अपने गुमनाम पिता को चिपका दिया था।
नियत भी एक पुत्री को अपने पिता से अपने काम संबंधों को छुपाने के लिए झूठ बोलते देख रही थी।
सुगना की बात पर विश्वास न करना सरयू सिंह के लिए संभव न था कुछ ही देर में घर का माहौल सामान्य हो गया सुगना बेहद संभल संभल कर सबसे बात कर रही थी उसकी चाल में थकावट थी पर इस थकावट को उसने सफर के नाम डाल दिया था परंतु सब कुछ इतना आसान न था सोनू की गर्दन का दाग उसके किए गए अनाचार की गवाही दे रहा था आखिरकार लाली ने पूछ ही दिया
अरे यह गर्दन में दाग फिर उभर गया है ये क्या हो गया है ? डाक्टर से दिखा लो“
वह दाग बरबस ही सबका ध्यान खींच रहा था सोनू ने शायद इसका उत्तर पहले ही सोच रखा था
“अरे गांव में कुछ ना कुछ लागले रहेला मकड़ी छुआ गइल होई …अब शायद भूख लागल बा खाना बनल बाकी ना?”
घर का मुखिया सोनू भूखा हो तो किसी और बात पर चर्चा करना बेमानी था। लाली और सुगना झटपट रसोई में चली गई परंतु सुगना को पता था वह अभी रसोई में काम करने लायक न थी उसने लाली से कहा
“ सोनू के खाना खिला दे हम थोड़ा नहा लेते बानी “
लाली की नजरों में सुगना की इज्जत पहले की तुलना में काफी बढ़ गई थी दोनों सहेलियां अब नंद भाभी बन चुकी थी पर सुगना का कद और व्यक्तित्व लाली पर भारी था सोनू और लाली का विवाह कर कर उसने लाली की नजरों में और भी सम्मानित हो गई थी।
इससे पहले की सोनू के गर्दन पर और भी विचार विमर्श हो सोनू ने सोचा अपने दोस्तों से मिलने चले जाना ही उचित होगा।
पर इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपाते सोनू का दाग आज चरम पर था। किसी प्रकार शाम बीत गई सोनू बचत बचाता आखिर में लाली के साथ बिस्तर पर था
सोनू लाली की तरफ पीट कर कर सोया हुआ था और आज सुगना के साथ बिताएं गए वक्त के बारे में सोच रहा था नतीजा स्पष्ट था उसका लंड पूरी तरह तन गया था वह लूंगी के नीचे से उसे बार-बार सहला रहा था तभी लाली ने अपने हाथ उसके लंड पर रख दिए।
अरे वह आज तो छोटे राजा पहले से ही तैयार बैठे हैं..
लाली आज मूड में थी…उसने देर न की और सोनू के लंड पर झुक गई । उसने लंड को बाहर निकाल लियाजै से ही उसने सोनू के लैंड को चूमने की कोशिश की इत्र की भीनी भीनी खुशबू उसके नथुनों में आने लगी जैसे-जैसे वह खुशबू सुनती गई उसके नथुनों में से हवा का प्रवाह और तेज होता गया। जैसे वह उस खुशबू को पहचानने की कोशिश कर रही हो अचानक उसने सोनू से पूछ लिया …अरे
“अरे यह इत्र तुमने क्यों लगाया है…”
सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।
लाली ने उसके लंड को पकड़ कर सोनू का ध्यान खींचा और
“बोला बताओ ना इत्र क्यों लगाया है? यह कहां मिला?
प्रश्न पर प्रश्न….. उत्तर देना कठिन था सोनू ने अपने मजबूत हाथों से लाली को अपनी तरफ खींचा और उसे चूमते हुए उसकी चूचियों से खेलने लगा पर लाली बार-बार अपने प्रश्न पर आ जाती।
लाली को बखूबी पता था कि इत्र सुगना के पास था जिसकी खुशबू अनूठी थी और इसका प्रयोग सुगना विशेष अवसर पर ही करती थी…
सोनू फंस चुका था लाली को संतुष्ट करना जरूरी था अन्यथा उन दोनों के बीच खटास आने की संभावना थी।
उसने कहा अरे यह इत्र दीदी के बक्से में था वह अपना बक्सा ठीक कर रही थी तभी यह दिखाई पड़ गया मैंने इसको देखने के लिए लिया यह मेरे हाथों में लग गया।
“अरे वाह इत्र हाथों में लगा और खुशबू नीचे से आ रही है?”
लाली ने सोनू के लंड को नीचे की तरफ खींचकर उसके सुपारे को उजागर कर दिया जो सुगना की याद में फुल कर कुप्पा हुआ चमक रहा था।
अब से कुछ घंटे पहले जो सुगना की मढ़मस्त बुर में हलचल मचाकर आया था अब लाली के होठों के स्पर्श को महसूस कर रहा था। तभी लाली ने सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया। कुछ पल चुभलाने के बाद और सोनू की तरफ देखती हुई बोली…
“सोनू ई खाली हमार ह नु एकर कोनो साझेदारी नईखे नू?”
लाली ने अपने मन में न जाने क्या-क्या सोचा यह तो वही जाने पर सोनू घबरा गया था वह अपने और सुगना के संबंधों को अब उजागर कर पाने की स्थिति में नहीं था.. उसने लाली को अपनी तरफ खींचा और उसकी साड़ी को जांघों से ऊपर करते हुए अपने तने हुए लंड को उसकी
चिर परिचित बुर के मुहाने पर रखकर लाली की आंखों में आंखें डालते हुए बोला
ई हमार पहलकी ह और आखरी भी यही रही “ सोनू ने जो कहा उसका अर्ध वही जाने पर लाली की पनियाई बुर ने उसके दिमाग को शांत कर दिया।धीरे-धीरे लंड लाली की बुर में उतरता गया और लाली के होंठ सोनू के होठों से मिलते चले गए।
सोनू के साथ संभोग के सुख ने लाली को कुछ पलों के लिए रोक लिया परंतु सुगना के इत्र की अनोखी खुशबू वह भी सोनू के लंड पर….इस अनोखे संयोग से लाली के मन में शक का कीड़ा अवश्य आ गया था।
उधर सोनी और विकास अपनी दक्षिण अफ्रीका यात्रा पूरी कर वापस अमेरिका की फ्लाइट में बैठ चुके थे। सोनी ने अल्बर्ट के साथ जो अनोखा संभोग किया था उसने उसके दिलों दिमाग में सेक्स की परिभाषा ही बदल दी थी। उसे मजबूत और तगड़े लंड की अहमियत शायद अब पता चली थी। वह बार-बार यही सोचती की क्या मैंने सही किया ? क्या यह उचित था ? पर जब-जब वह विकास की आतुरता को याद करती द उसे अपने निर्णय पर पछतावा कम होता आखिरकार इसमें विकास की पूर्ण और सक्रिय सहमति शामिल थी।
विकास तृप्त था वह सोनी के हाथों को अपने हाथों में लेकर सहला रहा था और उसकी तरफ बड़े प्यार से देख रहा था उसने कहा..
“यहां की बात यही भूल जाना उचित है यदि तुम कहोगी तो इस बारे में हम आगे कभी बात नहीं करेंगे”
सोनी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया “जैसा आप चाहें”
कुछ ही दिनों में विकास और सोने के बीच सब कुछ पहले की भांति सामान्य हो गया.। अल्बर्ट को भूल पाना अब सोनी के लिए संभव न था और न हीं विकास के लिए बिस्तर पर दोनों एक दूसरे से उसके बारे में बात नहीं करते पर उनके अंतर्मन में कहीं न कहीं अल्बर्ट घूमता रहता।
वो कामुक दृश्य ….वह सोनी की गोरी बुर में उसे काले लंड का आना-जाना वह, सोनी का प्रेम भरे दर्द से आंखें बाहर निकलना…वो सोनी की कोमल गोरे हाथों में उस मजबूत लंड का फिसलना …एक एक दृश्य विकास और सोनी को रोमांचित कर जाते।
अल्बर्ट द्वारा दी गई क्रीम काम कर गई थी। सोनी की बुर भी अब विकास के लंड को आत्मीयता से पनाह दे रही थी और उसका कसाव विकास को इस स्खलित करने में कामयाब था ।
सोनी अब अब एक गदराई माल थी। पूर्णतया उन्नत यौवन के साथ भारी-भारी चूचियां गदराई जांघें भरे भरे नितम्ब और चमकती त्वचा …सोनी को देखकर ऐसा लगता था जैसे जिस पुरुष ने इस नवयौवना को नहीं भोगा उसका जीवन निश्चित ही अपूर्ण था।
सपने अवचेतन मन में चल रही भावनाओं की अभिव्यक्ति होते हैं। सोनी के सपने धीरे-धीरे भयावह हो चले थे…उसे सपने में कभी अल्बर्ट सा मोटा लंड दिखाई पड़ता तो कभी सरयू सिंह का मर्दाना शरीर…धोती कुर्ता पहने पुरुषार्थ से भरे सरयू सिंह को जब सोनी अपना लहंगा उठाते देखती …उसकी बुर पनिया जाती…जैसे ही सरयू सिंह उसकी जांघों को फैलाकर उसके गुलाबी छेद को अपनी आंखों से निहारते सोनी शर्म से पानी पानी हो जाती…इसके आगे जो होता वह सोने की नींद तोड़ने के लिए काफी होता और वह अचकचा कर उठ जाती..
अक्सर सपना टूटते समय उसके मुख पर सरयू चाचा का मान होता…विकास भी सोनी के सपने में सरयू चाचा के योगदान से अनजान था और यह बात बताने लायक भी कतई नहीं थी यह निश्चित ही सोनी की विकृत मानसिकता का प्रतीक होती।
विकास और सोनी की शादी को 1 वर्ष से अधिक बीत चुका था। यद्यपि विकास का परिवार आधुनिक विचारों का था परंतु उसकी मां अपने पोते के लिए बेचैन थी। सोनी ने 1 वर्ष का समय मांगा था और अब धीरे-धीरे विकास अपना वीर्य सोनी के गर्भ में डालकर उसे जीवंत करने की कोशिश में लगातार लगा हुआ था।
सुगना और सोनी अपनी अपनी जगह पर आनंद में थी और उनकी तीसरी बहन मोनी भी आश्रम के अनोखे कूपन में रतन से मुख मैथुन का आनंद ले रही थी परंतु जब कभी रतन अपने तने हुए लंड को उसकी जादूई बुर से छूवाता मनी कुए का लाल बटन दबा देता और रतन को बरबस अपनी कामुक गतिविधि रोकनी पड़ती। रतन मुनि को एक तरफा प्यार दे रहा था मुनि को तो शायद यह ज्ञात भी नहीं था कि उसे अनोखा मुखमैथुन देने वाला व्यक्ति उसका जीजा रतन था।
विद्यानंद का यह आश्रम तेजी से प्रगति कर रहा था और भीड़ लगातार बढ़ रही थी मोनी जैसी कई सारी कुंवारी लड़कियां इन कूपों में आती और किशोर और पुरुषों की वासना को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास करतीं।
इसी दौरान कई सारी किशोरियों अपनी वासना पर काबू न रख पाती और कूपे में लड़कों द्वारा संभोग की पहल करने पर खुद को नहीं रोक पाती और अपना कोमार्य खो बैठती।
कौमार्य परीक्षण के दौरान ऐसी लड़कियों को इस अनूठे कृत्य से बाहर कर दिया जाता। निश्चित ही कुंवारी लड़कियों को मिल रहा है यह विशेष काम सुख अधूरा था पर आश्रम में उन्हें काफी इज्जत की निगाह से देखा जाता था और उनके रहन-सहन का विशेष ख्याल रखा जाता था। मोनी अब तक इस आश्रम में कुंवारी लड़कियों के बीचअपनी जगह बनाई हुई थी। ऐसी भरी और मदमस्त जवानी लिए अब तक कुंवारे रहना एक एक अनोखी बात थी। नियति उसके कौमार्य भंग के लिए व्यूह रचना में लगी हुई थी…
शेष अगले भाग में…