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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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Lovely Anand

Love is life
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नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

अब आगे...

लाली राजेश और सोनू के बीच करवट लेकर लेटी हुई थी उसका चेहरा राजेश की तरफ और पीठ सोनू की तरफ थी।

नियति लाली की दुविधा समझ रही थी। लाली जो सोनू से दिल खोलकर दिल ही क्या दिल और चूत दोनों खोलकर चुदना चाहती थी, परंतु वह राजेश की इच्छा पूरी कर अपना पत्नी धर्म भी निभाना चाह रही थी उसने अपना चेहरा और वक्षस्थल राजेश की तरफ बढ़ा दिया। लाली की कमर तथा भरे पूरे नितंब सोनू को उपहार स्वरूप स्वतः ही प्राप्त हो गए।

लाली के नितंब तब ही रुके जब सोनू के खड़े लण्ड ने उसकी गांड पर दबाव बना दिया। लाली का खरबूजा चाकू की नोक पर आ चुका था।

उधर लाली का चेहरा राजेश की हथेलियों में आ चुका वह उसे प्यार से चूमे जा रहा था। लाली और राजेश के होंठ आपस में मिल गए। जीभ रूपी दोनों तलवारें आपस में टकराने लगी जाने यह कैसा प्यार था जिसमें प्रेम युद्ध तो ऊपर हो रहा परंतु रंगहीन पारदर्शी रक्त लाली की जांघों के बीच से रिस रहा था और लाली इस प्रेम से अभिभूत प्रेमयुद्व के आनंद में डूब रही थी। उसकी उसकी सांसे भारी हो रही थीं।

लाली के ऊपरी होंठ राजेश के होठों से गीले हो चुके थे। निचले होठों को गीला करने में राजेश और सोनू दोनों के ही स्पर्श का योगदान था। सोनू का लण्ड उस चिपचिपी दरार तक पहुंच चुका था और आगे का मार्ग तलाश रहा था। लाली अपनी बुर सिकोड़ने का प्रयास कर रही थी।

अजब बिडम्बना थी जिसके इंतजार में लाली की बुर खुशी के आँशु लिए बेकरार थी और अब अपने करीब देखकर अब नजरें चुरा रही थी।

दरअसल लाली कुछ देर इसी आनंद को जीना चाह रही थी। राजेश अब होठों को छोड़ लाली की भरी-भरी चुचियों की तरफ आ गया। अपने दोनों हाथों में भरकर वह उसकी चूँची चूसने लगा। सोनू तो सुध बुध खो कर अपने लण्ड को उसके नितंबों के बीच से निकाल कर अपनी दीदी की फूली हुई बुर पर रगड़ रहा था तथा अपनी हथेलियों को लाली की जांघों पर फिरा रहा था।

कुछ देर लाली के वस्ति प्रदेश पर घूमने के पश्चात उसकी उंगलियों ने लाली की चुचियों की तरफ बढ़ने की कोशिश की। लाली ने लक्ष्मण रेखा खींच रखी थी उसने सोनू का हाथ पकड़ कर वापस अपनी जांघों पर रख दिया। सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अप्रत्याशित लगा परंतु वह हर हाल में लाली को चोदना चाहता था। उसने लाली के इस कदम को नजरअंदाज कर दिया और अपने लण्ड से उस जादुई सुरंग को खोजने लगा।

उत्तेजित स्त्री की बुर में चुंबकीय आकर्षण होता है लाली की बुर के चुंबकीय आकर्षण ने सोनू के चर्म दंड को ढूंढ लिया और उसे अपने मुहाने तक खींच लाई। भावनाओं की एक करंट लाली और सोनू के शरीर में दौड़ गयी और सोनू का बहुप्रतीक्षित सपना पूरा हो गया.

सोनू का लण्ड अपनी दीदी की बुर की गहराइयों में उतर चुका था।

सोनू का हथियार लाली की बुर में उतरता जा रहा था। अंदर सिर्फ और सिर्फ प्रेम भरी फिसलन थी। रोकने वाला कोई ना था जैसे-जैसे लण्ड अंदर जा रहा था बुर का मांसल दबाव उसे एक मखमली एहसास दे रहा था। सोनू का लण्ड तब रुका जब उसने लाली के गर्भाशय पर ठोकर मारी और लाली के मुख से चीख निकल गई

"बाबू तनि अपनी धीरे से… आह…...."

राजेश ने लाली के होठों को चूम लिया।

लाली की आह सुन सोनू और उत्तेजित हो गया उसने अपने लण्ड को बाहर निकाला और फिर ठान्स दिया। लाली मीठे दर्द सेकराह उठी…

आह ….सोनू बाबू…

सोनु को अफसोस हुआ और उसके मन मे एक अनजाना डर समाया कि कहीं राजेश जीजू जग मत जाएं। वह कुछ देर के लिए शांत हो गया लाली ने स्वयं अपनी कमर आगे पीछे की और सोनू को एक बार फिर इशारा मिल गया। उधर राजेश लाली की चुचियों को लगातार मीस रहा था और लाली उसके बालों को सहलाए जा रही थी.

लाली एक समझदार रानी की तरह अपने उत्तरी और दक्षिणी भाग को अपने दोनों आशिकों में बांट कर आनंद के सागर में गोते लगा रहे थी और अपनी वासना पर निष्कंटक राज कर रही थी।

जैसे-जैसे सोनू की उत्तेजना बढ़ रही थी वह उग्र होता जा रहा था उसके धक्कों की रफ़्तार तेज हो रही थी। लाली को अब जाकर आपीने अद्भुत युवा भाई की ताकत का एहसास हो रहा था। लण्ड की ठोकर उसके गर्भाशय का मुख खोलने का प्रयास कर रही थी.

सोनू के युवा लण्ड की थिरकन लाली की बुर को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे लाली की बुर ने जिंदा रोहू निगल ली थी जो तड़प रही थी। बुर से रिस रही लार रोहू को न मरने दे रही थी न जीने। लण्ड बेतरतीब ढ़ंग से आगे पीछे हो रहा था। परंतु बुर् का मांसल दबाव उसे हर बार गर्भाशय के मुख तक पहुंचा दे रहा था जिसका आनंद अद्भूत था।

उत्तेजना का दौर ज्यादा देर नहीं चल पाया एक तरफ सोनू को यह स्वर्गीय सुख पहली बार मिल रहा था वह भी अपनी प्यारी लाली दीदी से और दूसरी तरह लाली दोहरे आनंद का शिकार हो रही थी। अपने पति परमेश्वर के होठों से अपनी चूचियां चुसवाते हुए अपने छोटे भाई का लण्ड गपागप ले रही थी।

राजेश भी बेहद उत्साहित था वह खुल्लम खुल्ला लाली को चोदना चाहता था। उसके दिमाग में लाली के साथ सोनू की उपस्थिति में संभोग करने की इच्छा थी परंतु लाली ने उसे रोक दिया था..

सोनू की रफ्तार बढ़ती जा रही थी वह लाली को पूरी तन्मयता से चोदे जा रहा था परंतु उसके हाथ अपनी दीदी की चुचियाँ खोज रहे थे। पिछली बार उसकी हथेलियों को लाली ने रोक दिया था परंतु सोनू को लाली की चुचियों का वह मादक स्पर्श याद आ रहा था। उसने एक बार फिर प्रयास किया और अपनी उंगलियों को लाली के पेट से सटाते हुए ऊपर बढ़ाने लगा। लाली ने सोनू की मनसा जान ली उसने राजेश को ऊपर की तरफ खींचा और अपने होठो को उसके होठों से सटा दिया तथा राजेश के हाथों को अपने चुचियों से हटाकर दूर कर दिया।

सोनू की उंगलियां कोई अवरोध न पाकर चुचियों के निचले हिस्से तक पहुंच चुकी थी। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा ।उसने लाली की चूँचियां अपनी हथेलियों में भर ली। लाली की चुचियाँ राजेश की लार से पूरी तरह गीली थी। सोनू के आश्चर्य का ठिकाना न उसे यह बात समझ ही नहीं आएगी लाली की चूचियां गीली कैसे हो गयीं। क्या लाली दीदी ने अपनी चुचियाँ खुद अपने होठों में ले ली? तनी हुई चुचियों को अपने होंठो से चूसना असंभव था और जो संभव था वह उसकी कल्पना से परे था।

सोनू को अब जाकर लाली के पूरे जिस्म का आनंद मिल रहा था सिर्फ उन खूबसूरत होठों को छोड़कर जिस पर अभी भी राजेश ने कब्जा जमाया हुआ था। सोनू और लाली एक हो चुके थे। गर्भाशय का मुख बार-बार दस्तक देने से खुल चुका था। जादुई सुरंग सोनू का रस खींचने को तैयार थी।

लाली ने अपनी कमर पीछे की और सोनू ने अपना लण्ड आगे। लाली बुदबुदा रही थी…

बाबू आ….आईईईई आ…...धीरे….आह…..मममममम

बुर की कपकपी सोनू महसूस कर पा रहा था। लाली के पैर सीधे हो रहे थे परंतु सोनू का लण्ड उसे सीधे होने से रोक रहा था। लाली झड़ रही थी और सोनू उसे लगातार चोद रहा था। जब तक वीर्य की फुहारे लाली के गर्भ से को सिंचित करतीं लाली स्खलित हो चुकी थी और एकदम शांत होकर अपने गर्भ पर अपने भाई सोनू के वीर्य की फुहारों को महसूस कर रही थी जो उसके बूर की तपिश को शांत कर रहीं थीं।

लाली के गर्भ ने अपने ऊपर हो रही वीर्य वर्षा में से कुछ अंश को आत्मसात कर लिया। तृप्ति की पूर्णाहुति हो चुकी थी प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था और लाली के गर्भ में अपना अंश छोड़ चुका था.

वासना का तूफान शांत हो चुका था परंतु लाली और सोनू के दिल की धड़कन तेज थी। उनकी तेज चलती हुई साँसे कमरे में स्पष्ट सुनाई दे रही थीं राजेश भी वासना से ओतप्रोत स्खलित होने को तैयार था परंतु उसकी गाड़ी प्लेटफार्म खाली होने का इंतजार कर रही थी।

स्खलित होने के बाद कुछ ही देर में सोनू को बहुत जोर की पेशाब लगी। राजेश ने यह अवसर नहीं गवाया जब तक सोनू वापस कमरे में आता लाली की चुदी हुई और शांत बुर में राजेश ने भी हलचल मचाने की कोशिश की परंतु लाली पूरी तरह तृप्त थी उसके दिलों दिमाग पर सोनू छाया हुआ था। श्वेत वीर्य से लथपथ लाली की रानी आराम चाहती थी फिर भी उसने अपने पुराने प्रेमी को निराश न किया और इस अवस्था में भी उसे आत्मसात कर लिया ।

राजेश के लण्ड ने लाली की बुर से रिश्ते हुए सोनू के वीर्य को वापस धकेल कर गर्भाशय तक पहुंचा दिया था। जाने नियति क्या चाह रही थी? राजेश का यह प्रयास क्या रंग लाने वाला था? जब तक सोनू दरवाजे तक पहुंचता राजेश ने अपनी उत्तेजना शांत कर अपना लावा उड़ेल दिया। वह लाली की जांघों के बीच से हटकर वापस अपनी जगह पर आ रहा था. सोनू को यह टाइमिंग सातवें आश्चर्य से कम ना लगी।

सोनू दरवाजे की ओट लेकर खड़ा हो गया और अंदर स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा करने लगा। राजेश ने लाइट जला दी और लाली को चुमते हुए बोला..

" मेरी रानी तुम खुश होना ना ? "

लाली ने कुछ कहा नहीं परंतु उसके चेहरे के हाव भाव उसकी खुशी जाहिर कर रहे थे उसने राजेश को चूम लिया। राजेश बिस्तर से उठा और अपना पेंट पहनने के बाद कमरे की लाइट जला दी।

लाली भी रजाई से बाहर आ गई और अपनी नाइटी को गले से डालते हुए अपने हाथ हटा लिए नाइटी एक पर्दे की भांति लाली के गदराए और मादक जिस्म को ढकती चली गई ऐसा लग रहा था जैसी वासना की इस फिल्म का द एंड हो गया था। परंतु सोनू की निगाहों ने लाली की खूबसूरत और चुदे हुए जिस्म का भरपूर नजारा देख लिया था। उसका लण्ड एक बार फिर तन्ना कर खड़ा हो गया। जैसे ही राजेश हाल में आया उसने सोनू को देखकर बोला..

"अरे बड़ी जल्दी नींद खुल गई तुम्हारी"

" हां जीजू नए बिस्तर पर नींद कच्ची ही आती है"

" कोई बात नहीं... अब तो छुट्टी ही है जाओ आराम करो"

राजेश ने लाली को आवाज देते हुए कहा

"साले साहब को नींद नहीं आ रही है उनका ख्याल रखना"

"लाली भी अब हॉल में आ चुकी थी उसके चेहरे को देख कर ऐसा लगता ही नहीं था जैसे अब से कुछ देर पहले वह सोनू से चुद रही थी। उसने सोनू के गालों को सहलाते हुए बोला

"जा टीवी चला कर देख मैं तेरे जीजू के लिए चाय बना रही हूं तू भी पीयेगा? "

"हां दीदी"

कुछ देर बाद राजेश अपनी ड्यूटी पर चला गया और कमरे में लाली और सोनू अपनी नजरें झुकाए चाय पी रहे थे दोनों के होंठ सिले हुए थे परंतु जांघों के बीच हलचल तेज थी अद्भुत और कामांध प्रेम का सैलाब हिलोरे मार रहा था।

नियति ने एक और व्यभिचार को बखूबी अंजाम तक पहुंचा दिया था और तो और लाली के गर्भ में उसके मुँहबोले भाई सोनू के अंश को सहेज कर रख दिया था। यह गर्भ नियति की साजिश में एक अहम भूमिका अदा करने वाला था।

इधर लाली के घर में लाली और सोनू अंतरंग हो रहे थे उधर सोनू की बहन सुगना परेशान थी. विद्यानंद के पांडाल में सुगना की आंखों की नींद उड़ी हुई थी। कजरी सो चुकी थी, परंतु सुगना टकटकी लगाकर कर पांडाल की छत को देख रही थी। पंडाल का वैभव उसे अब आकर्षित नहीं कर रहा था। सूरज सुगना की एक चूची को मुंह में डालें बड़े प्रेम से चूस रहा था और दूसरी चूची के निप्पल को अपने छोटे छोटे हाथों से सहला रहा था।

वह अपने जादुई अंगूठे से सुगना के निप्पल को सहलाता और अपनी छोटी-छोटी मुट्ठीओं में उस निप्पल को भरने की कोशिश करता। सुगना पांडाल की हल्की रोशनी में उस अंगूठे को देख रही थी।

क्या यह सच में जादुई है ?

सुगना को सोनी की बात याद आने लगी। वह अंगूठे को मसलने पर नुन्नी के बढ़ने की बात उसे दिखाना चाह रही थी परंतु उसमें सफल ना हुई थी। सुगना ने उस बात की तस्दीक करने के लिए अपने उंगलियों से उस उस अंगूठे को सहलाया और उसका असर देखने के लिए अपने छोटे बालक की जांघों की तरफ अपना ध्यान ले गई ।

ऐसा कैसे हो सकता है? क्या मेरा सूरज वास्तव में अलग है ? यदि सोनी की बात सच है तो निश्चय ही विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर हैं? काश कि सोनी यहां होती?

सुगना मन ही मन सोनी से मिलने को अधीर हो उठी सोनी और मोनी दोनों ही उसकी बहनें थी और सूरज की मौसी थीं।

विद्यानंद के अनुसार जो असर सोनी ने देखा था वही मोनी के साथ में भी होना था। सुगना ने मन ही मन सोच लिया कि बनारस महोत्सव खत्म होने के बाद वह अपने मायके जाकर विद्यानंद जी की बताई बात की तस्दीक करेगी।

सुगना ने सूरज का जन्म एक नाजायज और अनुचित संबंधों से होने की बात को स्वीकार कर लिया था। सच में सरयू सिंह उसके पिता के उम्र के थे और रिश्ते में ससुर….यह संबंध अब सुगना की नजर में अनुचित लगने लगा था।

सुगना सूरज के सामान्य होने की बात को याद कर एक बार फिर सिहर उठी। क्या मेरे इस कोमल पुत्र को अपनी सगी बहन से संभोग करना होगा? पर यह कैसे संभव होगा? यह तो मेरा एकमात्र पुत्र है ? और बाबूजी तो अविवाहित हैं उनका संबंध कजरी मां और मेरे सिवा शायद ही किसी से हो? और यदि हुआ भी हो तो मैं उनसे कैसे यह बात पूछ पाऊंगी? और यदि सूरज को मुक्ति दिलाने के लिए उसकी बहन ना मिली तो?

सुगना विद्यानंद जी की दूसरी बात याद कर पसीने पसीने हो रही थी । नहीं नहीं यह असंभव है ऐसा निकृष्ट और नीच कार्य मुझसे नहीं होगा। मुझसे ही क्या कोई मां ऐसा सोच भी नहीं सकती।

तभी सुगना की आत्मा सुगना को कचोटने लगी। उसकी अंतरात्मा से आवाज आई

"तो क्या तुम अपने पुत्र को यूं ही समाज में सांसारिक रिश्तो को कुचलने और संभोग करने के लिए छोड़ दोगी? क्या वह समाज में एक सम्मानित जीवन जी पाएगा ? क्या कुछ ही वर्षों में वह एक कामुक और चरित्रहीन व्यक्ति के रूप में पहचान नहीं लिया जाएगा?

ऐसे कलंकित जीवन से तो मृत्यु बेहतर है सूरज इस कलंक के साथ ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएगा"

"नहीं नहीं मैं अपने बालक को मरने नहीं दे सकती"

"सुगना तेरे पास कोई चारा नहीं है"

"मैं अपने पुत्र को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं"

"अपने आप को झुठला मत... तेरा मन इस बात की गवाही कभी नहीं देगा... तेरे पुत्र को यह दुनिया छोड़नी ही होगी"

"नहीं…. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी"

"तो क्या तू अपने पुत्र के साथ… संभोग करेगी.?"

सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपने कान बंद कर लिए उसे लगा ऐसी बात सुनने से बेहतर था इसी वक्त अपनी जान दे देना।

सुगना की आत्मा फिर अट्टहास करने लगी।

"मैं जानती हूं सुगना तू एक कोमल और पावन हृदय वाली युवती है। पुत्र की लालसा में तूने सरयू सिंह के साथ संबंध बनाए उन्होंने तेरे साथ छल किया पर उस व्यभिचार का आनंद तुम दोनों ने लिया सूरज का जन्म निश्चित ही व्यभिचार की देन है तुझे फैसला करना ही होगा।"

सुगना को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तभी उसके मन में विचार आया और उसने खुशी-खुशी सोचा

"मैं एक पुत्री को जन्म दूंगी जो मेरे सूरज को इस शाप से मुक्ति दिलाएगी"

"तू कह रही तू ? क्या तू अपनी पुत्री और अपने पुत्र के बीच संभोग करवाएगी ? परन्तु तुझे पुत्री होगी कैसे? सूरज के पिता के साथ तेरा संभोग अब वर्जित हो चुका है क्या तू उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करेगी।

सुगना जानती थी कि सरयू सिंह अब उसके साथ पहले की तरह संभोग नहीं कर पाएंगे और गर्भधारण के लिए न जाने कितने बार उसे उनके वीर्य को आत्मसात करना होगा।

सुगना प्रतिज्ञा होते हुए बोली

" मैं कुछ भी करूंगी पर निश्चित ही सूरज की मुक्तिदाता अपनी पुत्री को जन्म दूंगी"

"और यदि तुझे पुत्री की जगह पुनः पुत्र प्राप्त हुआ तो..?"

सुगना एक बार फिर थरथर कांपने लगी. सच यदि वह पुत्र हुआ तो क्या वह भी सूरज की तरह विलक्षण होगा। नहीं नहीं अपने दोनों पुत्रों के जीवन के बारे में सोच कर वह बेहद डर गई। इस अवस्था में उसे अपने दोनों पुत्रों के साथ …. छी छी छी कितनी विषम और घृणित परिस्थितियों में नियत ने सुगना को लाकर छोड़ दिया था।

सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह पुत्री के जन्म के लिए प्रयास अवश्य करेगी चाहे वह उसके बाबूजी सरयू सिंह हो या कोई और।

सूरज सुगना की चूची छोड़ कर उसके चेहरे को एकटक देख रहा था।

सूरज ने सुगना के चेहरे को छू कर अपना ध्यान आकर्षित किया और सुगना अपने अचेतन मन से बाहर आई और अपने सूरज के कोमल और मासूम चेहरे को चूम लिया...

"बाबू तेरे लिए मैं सब कुछ करूंगी"

सूरज ने अपने होठों से सुगना के निप्पल को काट लिया और सुगना की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा...

सूरज मुस्कुरा रहा था और सुगना भाव विभोर होकर उसे चुमें जा रही थी सूरज उसे इस दुनिया में सबसे प्यारा था वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी।

सुगना थक चुकी थी धीरे-धीरे उसकी पलकें बंद होने लगी सूरज जाग रहा था और उसकी सूचियों को चूमते और चाटते हुए अपनी मां को सुखद एहसास करा रहा था। सूरज निश्चित ही एक विलक्षण बालक था…

इधर सुगना नींद की आगोश में जा रही थी उधर लाली और सोनू वासना के दलदल में धसते चले जा रहे थे। राजेश के जाने के पश्चात दोनों प्रेमी युगल अब किसी बंदिश के शिकार न थे। चाय खत्म होते-होते सोनू की लाली दीदी उसकी गोद में आ चुकी थी….

नियति ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया और बनारस महोत्सव के दूसरे दिन की तैयारियों में लग गई।
 
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आखिर सोनू और लाली का मिलन हो ही गया बहुत ही मस्त
स्वामी विद्यानंद की भविष्यवाणी के कहे अनुसार सुगना सुरज के उज्ज्वल भविष्य के लिये क्या निर्णय लेती हैं देखते हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

komaalrani

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शब्दहीन करने वाली पोस्ट,

सबसे पहले वो घडी आ गयी जिसका इन्तजार सबको था, सोनू और लाली,... साथ में राजेश भी,

जो कुछ भी हुआ पति की इच्छा से, पति की उपस्थिति में, ... और रसमय स्थिति के लिए चुन चुन कर शब्द पिरोये हैं आपने ,

और साथ में सुगना के मन में चल रहा झंझावात,

गर्भ से जुडी भविष्य की आशंकाए,... :applause: :applause: :applause: :applause:
 

Lovely Anand

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आखिर सोनू और लाली का मिलन हो ही गया बहुत ही मस्त
स्वामी विद्यानंद की भविष्यवाणी के कहे अनुसार सुगना सुरज के उज्ज्वल भविष्य के लिये क्या निर्णय लेती हैं देखते हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Dhanyavaad..
 

Lovely Anand

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शब्दहीन करने वाली पोस्ट,

सबसे पहले वो घडी आ गयी जिसका इन्तजार सबको था, सोनू और लाली,... साथ में राजेश भी,

जो कुछ भी हुआ पति की इच्छा से, पति की उपस्थिति में, ... और रसमय स्थिति के लिए चुन चुन कर शब्द पिरोये हैं आपने ,

और साथ में सुगना के मन में चल रहा झंझावात,

गर्भ से जुडी भविष्य की आशंकाए,... :applause: :applause: :applause: :applause:
Dhanyavaad
 
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