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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Bhanupratap

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भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..

आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..
लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…
सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…
Kya update diya h mza a gya ab sugna ki aankho me aankhe dal ke sonu lali ki lega to bahut uttejak lgega
 

Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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आह ....तनी धीरे से ...दुखता
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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Ab to ho gye 20/20 update de
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 82

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…

सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

सुगना अपनी आंखें बंद किए अंदर के दृश्य देख रही थी और उसके कानों पर पड़ रही वह सुनहरी थाप उसे और भी मदहोश किए जा रही थी। सोनू अधीर होकर लाली को चोद रहा था और अपनी बड़ी बहन को उस कामुक दृश्य देखने के लिए अनोखे अंदाज में आमंत्रित कर रहा था।


परंतु सुगना खड़ी रही…लग रहा था जैसे उसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली हो…. उसी समय छोटा सूरज सुगना के पास आ गया…

मां… मां… कर वह सुगना के पैरों से लिपटने लगा.. सुगना ने उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

यद्यपि अपने पुत्र का यह व्यवधान उसे रास ना आया परंतु सूरज जो उसके कलेजे का टुकड़ा था उसे वह किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं कर सकती थी।

न जाने आज सूरज को क्या हुआ था सुगना की गोद में आने पर वह सुगना की चुचियों को छूने का प्रयास करने लगा… वह बार-बार सुगना से दूधू पीने का अनुरोध करने लगा…. सुगना लाली और सोनू के प्रेम प्रसंग में इतनी खोई थी कि उसने सूरज की बात न टाली और पास पड़े बिस्तर पर लेटकर अपनी चूचियां उसे पकड़ा दी पर मन के तार सोनू और लाली के कमरे में जुड़े रहे। सुगना की चूचियां उत्तेजना से पूरी तरह सख्त हो चुकी थी… सूरज के होठों में सुगना के निप्पलों से दूध निकालने की कोशिश की परंतु असर कुछ और हो रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे काम रस वात्सल्य रस पर हावी था। दिमाग में नंगी लाली की चूदाई घूम रही थी। उत्तेजना ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया था..आज सुगना अपने ही पुत्र द्वारा अपनी चुचियों के चूसे जाने से उत्तेजित हो रही थी……

सरयू सिंह का पुत्र सूरज …अनजाने में ही सरयू सिंह की अनूठी पुत्री अपनी बहन की चूचियों को रखाबंधन के पवित्र दिन चूस रहा था..

विद्यानंद की बातें मूर्त रूप ले रही थी…

दरअसल सूरज बड़ी मासूमियत से दूध निकालने का प्रयास कर रहा था….. उस अबोध को चुचियों का जादू अभी पता न था।


नियति मुस्कुरा रही थी….. रक्षाबंधन के दिन सोनू सुगना को याद कर लाली को चोद रहा था और सुगना का पुत्र जो दरअसल उसका भाई था उसकी चूचियों से से खेल रहा था….. सूरज के छोटे-छोटे पैर सुगना की जांघों के बीच टकरा रहे थे । संवेदनशील हो चुकी बुर को वह स्पर्श बेहद आनंददायक लग रहा अनजाने में ही सही आज सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।

उधर लाली और सोनू का मिलन अब अंजाम तक पहुंचने वाला था। कमरे में आ रही कामुक मिलन को थाप अब मध्यम हो चली थी। सुगना अपने कान लगातार उस कमरे में लगाए हुए थी।

एकाग्रता आवाज की तीव्रता को बढ़ा देती है। मिलन की थाप तीव्र होती गई और उसका समापन सोनू की मदहोश कर देने वाली कराह से हुआ

दीईईईई ….. दीईइ………

सुगना तड़प उठी…

सोनू और लाली दोनों स्खलित हो रहे थे। उत्तेजना के बादल शांत होकर वर्षा का रूप ले चुका था…और उस बारिश में सोनू की लाली भीग रही थी।

जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

सोनू के लंड से निकलने वाली धार लाली को भिगोने के बाद अब बूंद का रूप ले रही थी। सोनू के मन में निराशा थी सुगना खिड़की पर ना आई परंतु उसका लंड पूरी तरह तृप्त था आज कई महीनों बाद उसे मखमली गोद में स्खलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था।


उसे सुगना के बुर के मखमली बुर के एहसाह का अता पता न था परंतु जहा वह था वह सोनू के कठोर हाथों से लाख दर्जे अच्छा था…

उधर कमरे में सोनू की धौंकनी जैसी चल रही सांसों से सुगना ने उसके स्खलन का अंदाजा लगा लिया… और उसके उछलते और वीर्य वर्षा करते लंड की कल्पना कर मदहोश होने लगी.. उसे पुराने दिन याद आने लगी जब वह सरयू सिंह के उछलते हुए लंड को अपने छोटे हाथों से पकड़ने का प्रयास करती परंतु असफल रहती और लंड एक जिंदा मछली की भांति सुगना के हाथों से कभी छूटता वह उसे फिर पकड़ती परंतु खुद को श्वेत धवल वीर्य से भीगने से न रोक पाती।

इन उत्तेजक यादों ने और सोनू के इस स्खलन की कामुक कल्पना ने सुगना को स्खलन की कगार पर ला दिया…

इधर सूरज सुगना की स्थिति से अनजान अभी दूध की तलाश में था उसने सुगना की चुचियों पर अचानक अपने दांतो का दबाव बढ़ा दिया और सुगना कराह उठी "बाबू……. तनी धीरे से दुखाता"

सुगना स्वयं अपनी मादक कराह से अतिउत्तेजित हो गई…


सुगना ने अपनी जांघें अपने पेट से सटाने की कोशिश की और सूरज का पैर उसकी भग्नासा पर छूने लगा। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसकी जांघें ऐंठने लगी पेट में हल्की मरोड़ हुई और सुगना की बुर ने संकुचन प्रारंभ कर दिए..प्रेमरस छलकने लगा…अतृप्त सुगना तृप्त हो रही थी सूरज, सुगना की चुचियों से दूध लाने में नाकामयाब रहा पर उसने अनजाने में ही सुगना को प्रेमरस से भर दिया था जो इस समय उसकी जांघों के बीच मुस्कुराती करिश्माई बूर से रिस रहा था..

सुगना ने सूरज को खुद से अलग किया और बोला

बाबू ….अब बस हो गईल.

स्खलन का सुख अनूठा होता है …घर के तीनों युवा सोनू, सुगना और लाली यह महसूस कर रहे थे परंतु सोनू के मन में सुगना के खिड़की पर ना आने की कसक रह गई थी।


उसी दौरान सोनी और बच्चों के आने की आहट हुई

लाली घबरा गई और आनन-फानन में अपना सूट उल्टा पहन कर कमरे से बाहर निकल गई। वह सीधा बाथरूम में घुस गई। ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्र था सोनी ने लाली को सोनू के कमरे से निकलते देखा तो जरूर परंतु वह लाली के उल्टा सूट पहनने को देख ना पाई।

सोनू ने बेमन से अपनी बनियान और लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट कर पंखे को देखने लगा जो बेहद तेजी से घूम रहा था सोनू को अपनी जिंदगी भी इसी तेजी से घूमती प्रतीत हो रही जितने उम्मीदें और सपने वह संजो कर आया था वह टूट रहे थे…

सोनू ने अपने मन में जितनी कल्पनाएं की थी आज कुदरत ने उसका साथ न दिया था। सुगना को दिखाकर लाली को बेहद उत्तेजक तरीके से चोदने की उसकी योजना नाकामयाब रही थी। सुगना का खिड़की पर ना आना सोनू की कल्पना पर एक कुठाराघात जैसा था।

सोनी बाजार से समोसे लेकर आई थी जैसे ही वह सोनू को समोसा देने के लिए उस कमरे में गई …कमरे में फैली काम रस की सुगंध उसके नथुनो से टकराई। अब तक सोनी इस सुगंध से भलीभांति वाकिफ हो चुकी थी परंतु सोनू भैया के कमरे से इस सुगंध का आना सोनी को आश्चर्यचकित कर रहा था क्या सोनू भैया ने हस्तमैथुन किया था?? सोनी इससे ज्यादा न सोच पाई।

सोनू ने जो किया था जो कर रहा था और जो सोच रहा था वह सोनी ख्वाबों में भी नहीं सोच सकती थी वह उस सुगंध को नजरअंदाज कर समोसे निकालने लगी। उसने वहीं से सुगना और लाली को भी आवाज दी और कुछ ही देर में सोनू अपनी तीनों बहनों के साथ समोसे खाने लगा। सब आपस में बातें कर रहे थे पर जो सबसे ज्यादा बातें करते थे वह दोनों चुप थे। सोनू सुगना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।

अपने अवचेतन मन में किए गए इस कामुक अपराध से दोनों भाई बहन ग्रस्त थे खासकर सुगना।

सोनू उदास होकर बाहर घूमने चला गया और सोनू की बहने एक बार फिर सोनू के लिए शाम का खाना बनाने में लग गई।


सोनी को बच्चों के साथ खेलने में ज्यादा मजा आता था वह एक बार फिर बच्चों के बीच आ गई और लाली एवं सुगना रसोई में खाना बनाने लगी। सोनी के विकास को याद किया और एक बार फिर उसने प्यारे सूरज के अंगूठे को सहला दिया….सोनी खुश थी …जिस दंड को उसने स्वयं चुना था वो उसका आनंद लेने लगी..

रसोई में सुगना ने लाली को छेड़ा और बोला

" तोरा एकदम लाज ना लागेला आज राखी के दिन रहे ते आजो सोनूवा के परेशान कईले हा.."

"अरे वाह ढेर अपना भाई के पक्ष मत ले। हम परेशान कईनी हां? आज त उहे ढेरे बेचैन रहे एकदम थका देले बा"

"ई काहे…?" सुगना में मासूमियत से पूछा

सोनू के साथ संभोग के दौरान लाली ने जान लिया था सोनू के मन में सुगना के प्रति कुछ ना कुछ कामुक भावनाएं अवश्य थीं । उसे इस बात का अंदाजा न था कि पिछली बार सोनू और सुगना की नजरें उस कामुक संभोग के दौरान मिल चुकी थी।

जब जब सुगना का नाम आता सोनू का मन प्रफुल्लित हो उठता और सोनू की पकड़ में एक अद्भुत कसाव आ जाता। यह अंतर लाली स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही थी। उसने एक दो नहीं अपितु कई बार सुगना का नाम लेकर सोनू को उत्तेजित करने में मदद की थी और उसका असर बखूबी धक्कों की रफ्तार उसके लंड की उछाल के रूप में महसूस किया था..

"अब तू टाइट सूट में मटक मटक के ओकरा सामने घुमाबु दे त का करी?"

"हट पागल कुछो बोलेले?

"आज ते आईल रहते द बड़का सिनेमा देखे के मिलीत। आज सोनू पूरा जोश में रहे"

"इ काहे…?"

" अनजान बनत बाड़े..आज राखी बांधत खानी आपन चूची काहे देखावत रहले..हमरा लगता तबे से गरमाइल रहे"

सुगना इस बात का बखूबी एहसास था और अब लाली ने वह बात कहकर सुगना को निशब्द कर दिया था..

सुगना ने लाली की पीठ पर मुक्का मारा और शरमाते हुए बोली ..

"हम काहे करब लाली सोनुआ हमर आपन भाई ह"

"ई हे त दुख बा…. काश सोनुआ तोर भाई ना होखित"

लाली का यह वाक्य सुगना के दिमाग में अब अक्सर गूंजने लगा था हकीकत को झुठला पाना इतना आसान न था परंतु कल्पनाओं का क्या उन पर तो सिर्फ मन का नियंत्रण होता है मन अपनी इच्छा और भावनाओं के अनुसार कल्पनाए संजोता है. सुगना की कल्पनाएं भी एक नई दिशा ले रही थीं।

अजीब कशमकश थी सूचना के मन में भी और सोनू के मन में भी परंतु दोनों के बीच जमी बर्फ रक्षाबंधन के इस त्यौहार ने और जमा दिया था… जिसका टूटना इतना आसान न था.

सोनू और लाली ने रात में एक बार फिर संभोग किया और लाली ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए सुगना के नाम का बार बार प्रयोग किया सोनू भी सुगना के बारे में बातें कर अपनी कल्पना को आकार देता उसकी नग्न छवि को मन में संजोता और लाली को चोद कर अपने मन में उपज रही इस अनोखी वासना को शांत करने का प्रयास करता.. परंतु सुगना की उपस्थिति में लाली को चोदने का जो सुख उसे उस दिन प्राप्त हुआ था वह यादगार था और सोनू उस उत्तेजना के लिए तरस रहा था..

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उधर लखनऊ में एक शासकीय बंगले में काफी गहमागहमी थी घर के बाहर पुलिस वाले इकट्ठा हो चुके थे …अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी.

एक पुलिस वाले ने कहा…

साहब मेम साहब पर फालतू बिगड़ते रहते हैं आज तो हद ही हो गई है क्या हम लोगों को अंदर जाना चाहिए

नौकरी से हाथ धोना है क्या? उनकी लड़ाई में दखल देना ठीक नहीं । दोनों पति पत्नी हैं जल्द ही शांत हो जाएंगे।

पुलिस वालों ने अंदर जाने की हिम्मत तो ना जुटाई परंतु दरवाजे से अपने कान सटा दिए…

"साली तू जितनी शरीफ दिखती है उतनी है नहीं न जाने कहां-कहां मुंह मारी होगी?"

वरिष्ठ अधिकारी से इस तरह की भाषा की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती परंतु मनुष्य स्वभाव से जंगली होता है और आज यह जानने के पश्चात की मनोरमा ने किसी और के साथ भी संभोग किया था सेक्रेटरी साहब पूरी तरह आग बबूला थे।

मनोरमा का भी गुस्सा आसमान पर था.

हां मैंने किया है पर मैं रंडी नहीं हूं खबरदार जो मेरे बारे में अपशब्द कहा…

"तो मुझे बता ….पिंकी का पिता कौन है"

"क्यों आपको यकीन नहीं कि आप इसके पिता हैं?"

"पहेलियां मत बुझा साली मुझे पता है यह बीज तुम्हारे पाप का है" सेक्रेटरी साहब ने दांत पीसते हुए कहा..

"तुम्हें कैसे पता" मनोरमा के संबोधन भी अब सम्मान की भाषा छोड़ चुके थे।

सेक्रेटरी साहब ने कागज मनोरमा की तरफ उछालते हुए कहा..

"ये देख लो अपनी करतूत…"

मनोरमा ने वह रिपोर्ट उठाई और उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

उसने पिंकी को देखा और उसके पास गई तथा उसे गोद में लेकर चूम लिया। जैसे वो अपने व्यभिचार से जन्मी पुत्री को मान्यता दे रही हो।

"हा यह आपकी पुत्री नही है…और एसी सुंदर बच्ची तुम्हारे जैसे नामर्द की हो भी नहीं सकती"

पिंकी वास्तव में एक खूबसूरत बच्ची थी फूल सी कोमल और चेहरे पर ढेर सारा प्यार लिए। मनोरमा की खूबसूरती और सरयू सिंह के तेज को संजोए हुए यह बच्ची अनोखी थी सबका दिल जीतने वाली और मन मोहने वाली।


मनोरमा की बात सुनकर सेक्रेटरी साहब भड़क गए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकलने लगे।

बाहर दरवाजे पर कान लगाए पुलिस वाले तुरंत ही सावधान की मुद्रा में आ गए और सेक्रेटरी साहब को बड़ी तेजी से बाहर की तरफ जाते हुए देख रहे थे। बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और सेक्रेटरी साहब अपना गुस्से से लाल चेहरा लिए एंबेसडर में बैठकर आगे बढ़ चले। शायद उन्होंने मन ही मन मनोरमा के साथ न रहने का फैसला कर लिया था।

मनोरमा पिंकी को गोद में लेकर चूम रही थी आज पिंकी के प्रति उसके प्यार में दोगुनी वृद्धि हो गई। यह जानने के पश्चात कि वह सरयू सिंह का अंश थी मनोरमा बेहद भावुक हो गई । सरयू सिंह के साथ किया गया उसका अकस्मात हुआ संभोग उसके जीवन की न भूलने वाली घटना थी। उत्तेजना को चरम पर ले जाकर स्खलित करने का जो सुख सरयू सिंह ने उसे दिया था वह आज तक उसे नहीं भूल थी। वो उस दिन को याद करने लगी…


बनारस महोत्सव के उस मंगल दिन वह बनारस महोत्सव के अपने कमरे में शरीर पोछने के बाद आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। उसकी कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। उसका शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था उसकी काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

पूर्व भाग से पुनः मनोरंजन हेतु उद्धृत


"उसने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया जो सुगना को खोजते हुए अंदर आ गए…

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं ।

उधर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना घूम रही थी। सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना की जगह मनोरमा को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। उधर सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह युवती निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।


मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया और सरजू सिंह के लण्ड पर मल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।


गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।


जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।


सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।"


नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र पिंकी के रूप में सृजित हो चुका था…..

शेष अगले भाग में...
 

Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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भाग 82

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…

सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

सुगना अपनी आंखें बंद किए अंदर के दृश्य देख रही थी और उसके कानों पर पड़ रही वह सुनहरी थाप उसे और भी मदहोश किए जा रही थी। सोनू अधीर होकर लाली को चोद रहा था और अपनी बड़ी बहन को उस कामुक दृश्य देखने के लिए अनोखे अंदाज में आमंत्रित कर रहा था।


परंतु सुगना खड़ी रही…लग रहा था जैसे उसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली हो…. उसी समय छोटा सूरज सुगना के पास आ गया…

मां… मां… कर वह सुगना के पैरों से लिपटने लगा.. सुगना ने उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

यद्यपि अपने पुत्र का यह व्यवधान उसे रास ना आया परंतु सूरज जो उसके कलेजे का टुकड़ा था उसे वह किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं कर सकती थी।

न जाने आज सूरज को क्या हुआ था सुगना की गोद में आने पर वह सुगना की चुचियों को छूने का प्रयास करने लगा… वह बार-बार सुगना से दूधू पीने का अनुरोध करने लगा…. सुगना लाली और सोनू के प्रेम प्रसंग में इतनी खोई थी कि उसने सूरज की बात न टाली और पास पड़े बिस्तर पर लेटकर अपनी चूचियां उसे पकड़ा दी पर मन के तार सोनू और लाली के कमरे में जुड़े रहे। सुगना की चूचियां उत्तेजना से पूरी तरह सख्त हो चुकी थी… सूरज के होठों में सुगना के निप्पलों से दूध निकालने की कोशिश की परंतु असर कुछ और हो रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे काम रस वात्सल्य रस पर हावी था। दिमाग में नंगी लाली की चूदाई घूम रही थी। उत्तेजना ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया था..आज सुगना अपने ही पुत्र द्वारा अपनी चुचियों के चूसे जाने से उत्तेजित हो रही थी……

सरयू सिंह का पुत्र सूरज …अनजाने में ही सरयू सिंह की अनूठी पुत्री अपनी बहन की चूचियों को रखाबंधन के पवित्र दिन चूस रहा था..

विद्यानंद की बातें मूर्त रूप ले रही थी…

दरअसल सूरज बड़ी मासूमियत से दूध निकालने का प्रयास कर रहा था….. उस अबोध को चुचियों का जादू अभी पता न था।


नियति मुस्कुरा रही थी….. रक्षाबंधन के दिन सोनू सुगना को याद कर लाली को चोद रहा था और सुगना का पुत्र जो दरअसल उसका भाई था उसकी चूचियों से से खेल रहा था….. सूरज के छोटे-छोटे पैर सुगना की जांघों के बीच टकरा रहे थे । संवेदनशील हो चुकी बुर को वह स्पर्श बेहद आनंददायक लग रहा अनजाने में ही सही आज सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।

उधर लाली और सोनू का मिलन अब अंजाम तक पहुंचने वाला था। कमरे में आ रही कामुक मिलन को थाप अब मध्यम हो चली थी। सुगना अपने कान लगातार उस कमरे में लगाए हुए थी।

एकाग्रता आवाज की तीव्रता को बढ़ा देती है। मिलन की थाप तीव्र होती गई और उसका समापन सोनू की मदहोश कर देने वाली कराह से हुआ

दीईईईई ….. दीईइ………

सुगना तड़प उठी…

सोनू और लाली दोनों स्खलित हो रहे थे। उत्तेजना के बादल शांत होकर वर्षा का रूप ले चुका था…और उस बारिश में सोनू की लाली भीग रही थी।

जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

सोनू के लंड से निकलने वाली धार लाली को भिगोने के बाद अब बूंद का रूप ले रही थी। सोनू के मन में निराशा थी सुगना खिड़की पर ना आई परंतु उसका लंड पूरी तरह तृप्त था आज कई महीनों बाद उसे मखमली गोद में स्खलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था।


उसे सुगना के बुर के मखमली बुर के एहसाह का अता पता न था परंतु जहा वह था वह सोनू के कठोर हाथों से लाख दर्जे अच्छा था…

उधर कमरे में सोनू की धौंकनी जैसी चल रही सांसों से सुगना ने उसके स्खलन का अंदाजा लगा लिया… और उसके उछलते और वीर्य वर्षा करते लंड की कल्पना कर मदहोश होने लगी.. उसे पुराने दिन याद आने लगी जब वह सरयू सिंह के उछलते हुए लंड को अपने छोटे हाथों से पकड़ने का प्रयास करती परंतु असफल रहती और लंड एक जिंदा मछली की भांति सुगना के हाथों से कभी छूटता वह उसे फिर पकड़ती परंतु खुद को श्वेत धवल वीर्य से भीगने से न रोक पाती।

इन उत्तेजक यादों ने और सोनू के इस स्खलन की कामुक कल्पना ने सुगना को स्खलन की कगार पर ला दिया…

इधर सूरज सुगना की स्थिति से अनजान अभी दूध की तलाश में था उसने सुगना की चुचियों पर अचानक अपने दांतो का दबाव बढ़ा दिया और सुगना कराह उठी "बाबू……. तनी धीरे से दुखाता"

सुगना स्वयं अपनी मादक कराह से अतिउत्तेजित हो गई…


सुगना ने अपनी जांघें अपने पेट से सटाने की कोशिश की और सूरज का पैर उसकी भग्नासा पर छूने लगा। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसकी जांघें ऐंठने लगी पेट में हल्की मरोड़ हुई और सुगना की बुर ने संकुचन प्रारंभ कर दिए..प्रेमरस छलकने लगा…अतृप्त सुगना तृप्त हो रही थी सूरज, सुगना की चुचियों से दूध लाने में नाकामयाब रहा पर उसने अनजाने में ही सुगना को प्रेमरस से भर दिया था जो इस समय उसकी जांघों के बीच मुस्कुराती करिश्माई बूर से रिस रहा था..

सुगना ने सूरज को खुद से अलग किया और बोला

बाबू ….अब बस हो गईल.

स्खलन का सुख अनूठा होता है …घर के तीनों युवा सोनू, सुगना और लाली यह महसूस कर रहे थे परंतु सोनू के मन में सुगना के खिड़की पर ना आने की कसक रह गई थी।


उसी दौरान सोनी और बच्चों के आने की आहट हुई

लाली घबरा गई और आनन-फानन में अपना सूट उल्टा पहन कर कमरे से बाहर निकल गई। वह सीधा बाथरूम में घुस गई। ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्र था सोनी ने लाली को सोनू के कमरे से निकलते देखा तो जरूर परंतु वह लाली के उल्टा सूट पहनने को देख ना पाई।

सोनू ने बेमन से अपनी बनियान और लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट कर पंखे को देखने लगा जो बेहद तेजी से घूम रहा था सोनू को अपनी जिंदगी भी इसी तेजी से घूमती प्रतीत हो रही जितने उम्मीदें और सपने वह संजो कर आया था वह टूट रहे थे…

सोनू ने अपने मन में जितनी कल्पनाएं की थी आज कुदरत ने उसका साथ न दिया था। सुगना को दिखाकर लाली को बेहद उत्तेजक तरीके से चोदने की उसकी योजना नाकामयाब रही थी। सुगना का खिड़की पर ना आना सोनू की कल्पना पर एक कुठाराघात जैसा था।

सोनी बाजार से समोसे लेकर आई थी जैसे ही वह सोनू को समोसा देने के लिए उस कमरे में गई …कमरे में फैली काम रस की सुगंध उसके नथुनो से टकराई। अब तक सोनी इस सुगंध से भलीभांति वाकिफ हो चुकी थी परंतु सोनू भैया के कमरे से इस सुगंध का आना सोनी को आश्चर्यचकित कर रहा था क्या सोनू भैया ने हस्तमैथुन किया था?? सोनी इससे ज्यादा न सोच पाई।

सोनू ने जो किया था जो कर रहा था और जो सोच रहा था वह सोनी ख्वाबों में भी नहीं सोच सकती थी वह उस सुगंध को नजरअंदाज कर समोसे निकालने लगी। उसने वहीं से सुगना और लाली को भी आवाज दी और कुछ ही देर में सोनू अपनी तीनों बहनों के साथ समोसे खाने लगा। सब आपस में बातें कर रहे थे पर जो सबसे ज्यादा बातें करते थे वह दोनों चुप थे। सोनू सुगना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।

अपने अवचेतन मन में किए गए इस कामुक अपराध से दोनों भाई बहन ग्रस्त थे खासकर सुगना।

सोनू उदास होकर बाहर घूमने चला गया और सोनू की बहने एक बार फिर सोनू के लिए शाम का खाना बनाने में लग गई।


सोनी को बच्चों के साथ खेलने में ज्यादा मजा आता था वह एक बार फिर बच्चों के बीच आ गई और लाली एवं सुगना रसोई में खाना बनाने लगी। सोनी के विकास को याद किया और एक बार फिर प्यारा सूरज के अंगूठे को सोनी ने सहला दिया….और फिर सूरज अपनी मौसी के बाल खींच कर …….सोनी खुश थी …जिस दंड को उसने स्वामी चुना था वो उसका आनंद लेने लगी..

रसोई में सुगना ने लाली को छेड़ा और बोला

" तोरा एकदम लाज ना लागेला आज राखी के दिन रहे ते आजो सोनूवा के परेशान कईले हा.."

"अरे वाह ढेर अपना भाई के पक्ष मत ले। हम परेशान कईनी हां? आज त उहे ढेरे बेचैन रहे एकदम थका देले बा"

"ई काहे…?" सुगना में मासूमियत से पूछा

सोनू के साथ संभोग के दौरान लाली ने जान लिया था सोनू के मन में सुगना के प्रति कुछ ना कुछ कामुक भावनाएं अवश्य थीं । उसे इस बात का अंदाजा न था कि पिछली बार सोनू और सुगना की नजरें उस कामुक संभोग के दौरान मिल चुकी थी।

जब जब सुगना का नाम आता सोनू का मन प्रफुल्लित हो उठता और सोनू की पकड़ में एक अद्भुत कसाव आ जाता। यह अंतर लाली स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही थी। उसने एक दो नहीं अपितु कई बार सुगना का नाम लेकर सोनू को उत्तेजित करने में मदद की थी और उसका असर बखूबी धक्कों की रफ्तार उसके लंड की उछाल के रूप में महसूस किया था..

"अब तू टाइट सूट में मटक मटक के ओकरा सामने घुमाबु दे त का करी?"

"हट पागल कुछो बोलेले?

"आज ते आईल रहते द बड़का सिनेमा देखे के मिलीत। आज सोनू पूरा जोश में रहे"

"इ काहे…?"

" अनजान बनत बाड़े..आज राखी बांधत खानी आपन चूची काहे देखावत रहले..हमरा लगता तबे से गरमाइल रहे"

सुगना इस बात का बखूबी एहसास था और अब लाली ने वह बात कहकर सुगना को निशब्द कर दिया था..

सुगना ने लाली की पीठ पर मुक्का मारा और शरमाते हुए बोली ..

"हम काहे करब लाली सोनुआ हमर आपन भाई ह"

"ई हे त दुख बा…. काश सोनुआ तोर भाई ना होखित"

लाली का यह वाक्य सुगना के दिमाग में अब अक्सर गूंजने लगा था हकीकत को झुठला पाना इतना आसान न था परंतु कल्पनाओं का क्या उन पर तो सिर्फ मन का नियंत्रण होता है मन अपनी इच्छा और भावनाओं के अनुसार कल्पनाए संजोता है. सुगना की कल्पनाएं भी एक नई दिशा ले रही थीं।

अजीब कशमकश थी सूचना के मन में भी और सोनू के मन में भी परंतु दोनों के बीच जमी बर्फ रक्षाबंधन के इस त्यौहार ने और जमा दिया था… जिसका टूटना इतना आसान न था.

सोनू और लाली ने रात में एक बार फिर संभोग किया और लाली ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए सुगना के नाम का बार बार प्रयोग किया सोनू भी सुगना के बारे में बातें कर अपनी कल्पना को आकार देता उसकी नग्न छवि को मन में संजोता और लाली को चोद कर अपने मन में उपज रही इस अनोखी वासना को शांत करने का प्रयास करता.. परंतु सुगना की उपस्थिति में लाली को चोदने का जो सुख उसे उस दिन प्राप्त हुआ था वह यादगार था और सोनू उस उत्तेजना के लिए तरस रहा था..

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उधर लखनऊ में एक शासकीय बंगले में काफी गहमागहमी थी घर के बाहर पुलिस वाले इकट्ठा हो चुके थे …अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी.

एक पुलिस वाले ने कहा…

साहब मेम साहब पर फालतू बिगड़ते रहते हैं आज तो हद ही हो गई है क्या हम लोगों को अंदर जाना चाहिए

नौकरी से हाथ धोना है क्या? उनकी लड़ाई में दखल देना ठीक नहीं । दोनों पति पत्नी हैं जल्द ही शांत हो जाएंगे।

पुलिस वालों ने अंदर जाने की हिम्मत तो ना जुटाई परंतु दरवाजे से अपने कान सटा दिए…

"साली तू जितनी शरीफ दिखती है उतनी है नहीं न जाने कहां-कहां मुंह मारी होगी?"

वरिष्ठ अधिकारी से इस तरह की भाषा की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती परंतु मनुष्य स्वभाव से जंगली होता है और आज यह जानने के पश्चात की मनोरमा ने किसी और के साथ भी संभोग किया था सेक्रेटरी साहब पूरी तरह आग बबूला थे।

मनोरमा का भी गुस्सा आसमान पर था.

हां मैंने किया है पर मैं रंडी नहीं हूं खबरदार जो मेरे बारे में अपशब्द कहा…

"तो मुझे बता ….पिंकी का पिता कौन है"

"क्यों आपको यकीन नहीं कि आप इसके पिता हैं?"

"पहेलियां मत बुझा साली मुझे पता है यह बीज तुम्हारे पाप का है" सेक्रेटरी साहब ने दांत पीसते हुए कहा..

"तुम्हें कैसे पता" मनोरमा के संबोधन भी अब सम्मान की भाषा छोड़ चुके थे।

सेक्रेटरी साहब ने कागज मनोरमा की तरफ उछालते हुए कहा..

"ये देख लो अपनी करतूत…"

मनोरमा ने वह रिपोर्ट उठाई और उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

उसने पिंकी को देखा और उसके पास गई तथा उसे गोद में लेकर चूम लिया। जैसे वो अपने व्यभिचार से जन्मी पुत्री को मान्यता दे रही हो।

"हा यह आपकी पुत्री नही है…और एसी सुंदर बच्ची तुम्हारे जैसे नामर्द की हो भी नहीं सकती"

पिंकी वास्तव में एक खूबसूरत बच्ची थी फूल सी कोमल और चेहरे पर ढेर सारा प्यार लिए। मनोरमा की खूबसूरती और सरयू सिंह के तेज को संजोए हुए यह बच्ची अनोखी थी सबका दिल जीतने वाली और मन मोहने वाली।


मनोरमा की बात सुनकर सेक्रेटरी साहब भड़क गए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकलने लगे।

बाहर दरवाजे पर कान लगाए पुलिस वाले तुरंत ही सावधान की मुद्रा में आ गए और सेक्रेटरी साहब को बड़ी तेजी से बाहर की तरफ जाते हुए देख रहे थे। बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और सेक्रेटरी साहब अपना गुस्से से लाल चेहरा लिए एंबेसडर में बैठकर आगे बढ़ चले। शायद उन्होंने मन ही मन मनोरमा के साथ न रहने का फैसला कर लिया था।

मनोरमा पिंकी को गोद में लेकर चूम रही थी आज पिंकी के प्रति उसके प्यार में दोगुनी वृद्धि हो गई। यह जानने के पश्चात कि वह सरयू सिंह का अंश थी मनोरमा बेहद भावुक हो गई । सरयू सिंह के साथ किया गया उसका अकस्मात हुआ संभोग उसके जीवन की न भूलने वाली घटना थी। उत्तेजना को चरम पर ले जाकर स्खलित करने का जो सुख सरयू सिंह ने उसे दिया था वह आज तक उसे नहीं भूल थी। वो उस दिन को याद करने लगी…


बनारस महोत्सव के उस मंगल दिन वह बनारस महोत्सव के अपने कमरे में शरीर पोछने के बाद आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। उसकी कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। उसका शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था उसकी काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

पूर्व भाग से पुनः मनोरंजन हेतु उद्धृत


"उसने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया जो सुगना को खोजते हुए अंदर आ गए…

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं ।

उधर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना घूम रही थी। सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना की जगह मनोरमा को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। उधर सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह युवती निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।


मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया और सरजू सिंह के लण्ड पर मल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।


गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।


जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।


सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।"


नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र पिंकी के रूप में सृजित हो चुका था…..

शेष अगले भाग में...
Badiya update lekin ummedo pr pani pher diya
 

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भाग 82

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…

सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

सुगना अपनी आंखें बंद किए अंदर के दृश्य देख रही थी और उसके कानों पर पड़ रही वह सुनहरी थाप उसे और भी मदहोश किए जा रही थी। सोनू अधीर होकर लाली को चोद रहा था और अपनी बड़ी बहन को उस कामुक दृश्य देखने के लिए अनोखे अंदाज में आमंत्रित कर रहा था।


परंतु सुगना खड़ी रही…लग रहा था जैसे उसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली हो…. उसी समय छोटा सूरज सुगना के पास आ गया…

मां… मां… कर वह सुगना के पैरों से लिपटने लगा.. सुगना ने उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

यद्यपि अपने पुत्र का यह व्यवधान उसे रास ना आया परंतु सूरज जो उसके कलेजे का टुकड़ा था उसे वह किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं कर सकती थी।

न जाने आज सूरज को क्या हुआ था सुगना की गोद में आने पर वह सुगना की चुचियों को छूने का प्रयास करने लगा… वह बार-बार सुगना से दूधू पीने का अनुरोध करने लगा…. सुगना लाली और सोनू के प्रेम प्रसंग में इतनी खोई थी कि उसने सूरज की बात न टाली और पास पड़े बिस्तर पर लेटकर अपनी चूचियां उसे पकड़ा दी पर मन के तार सोनू और लाली के कमरे में जुड़े रहे। सुगना की चूचियां उत्तेजना से पूरी तरह सख्त हो चुकी थी… सूरज के होठों में सुगना के निप्पलों से दूध निकालने की कोशिश की परंतु असर कुछ और हो रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे काम रस वात्सल्य रस पर हावी था। दिमाग में नंगी लाली की चूदाई घूम रही थी। उत्तेजना ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया था..आज सुगना अपने ही पुत्र द्वारा अपनी चुचियों के चूसे जाने से उत्तेजित हो रही थी……

सरयू सिंह का पुत्र सूरज …अनजाने में ही सरयू सिंह की अनूठी पुत्री अपनी बहन की चूचियों को रखाबंधन के पवित्र दिन चूस रहा था..

विद्यानंद की बातें मूर्त रूप ले रही थी…

दरअसल सूरज बड़ी मासूमियत से दूध निकालने का प्रयास कर रहा था….. उस अबोध को चुचियों का जादू अभी पता न था।


नियति मुस्कुरा रही थी….. रक्षाबंधन के दिन सोनू सुगना को याद कर लाली को चोद रहा था और सुगना का पुत्र जो दरअसल उसका भाई था उसकी चूचियों से से खेल रहा था….. सूरज के छोटे-छोटे पैर सुगना की जांघों के बीच टकरा रहे थे । संवेदनशील हो चुकी बुर को वह स्पर्श बेहद आनंददायक लग रहा अनजाने में ही सही आज सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।

उधर लाली और सोनू का मिलन अब अंजाम तक पहुंचने वाला था। कमरे में आ रही कामुक मिलन को थाप अब मध्यम हो चली थी। सुगना अपने कान लगातार उस कमरे में लगाए हुए थी।

एकाग्रता आवाज की तीव्रता को बढ़ा देती है। मिलन की थाप तीव्र होती गई और उसका समापन सोनू की मदहोश कर देने वाली कराह से हुआ

दीईईईई ….. दीईइ………

सुगना तड़प उठी…

सोनू और लाली दोनों स्खलित हो रहे थे। उत्तेजना के बादल शांत होकर वर्षा का रूप ले चुका था…और उस बारिश में सोनू की लाली भीग रही थी।

जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

सोनू के लंड से निकलने वाली धार लाली को भिगोने के बाद अब बूंद का रूप ले रही थी। सोनू के मन में निराशा थी सुगना खिड़की पर ना आई परंतु उसका लंड पूरी तरह तृप्त था आज कई महीनों बाद उसे मखमली गोद में स्खलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था।


उसे सुगना के बुर के मखमली बुर के एहसाह का अता पता न था परंतु जहा वह था वह सोनू के कठोर हाथों से लाख दर्जे अच्छा था…

उधर कमरे में सोनू की धौंकनी जैसी चल रही सांसों से सुगना ने उसके स्खलन का अंदाजा लगा लिया… और उसके उछलते और वीर्य वर्षा करते लंड की कल्पना कर मदहोश होने लगी.. उसे पुराने दिन याद आने लगी जब वह सरयू सिंह के उछलते हुए लंड को अपने छोटे हाथों से पकड़ने का प्रयास करती परंतु असफल रहती और लंड एक जिंदा मछली की भांति सुगना के हाथों से कभी छूटता वह उसे फिर पकड़ती परंतु खुद को श्वेत धवल वीर्य से भीगने से न रोक पाती।

इन उत्तेजक यादों ने और सोनू के इस स्खलन की कामुक कल्पना ने सुगना को स्खलन की कगार पर ला दिया…

इधर सूरज सुगना की स्थिति से अनजान अभी दूध की तलाश में था उसने सुगना की चुचियों पर अचानक अपने दांतो का दबाव बढ़ा दिया और सुगना कराह उठी "बाबू……. तनी धीरे से दुखाता"

सुगना स्वयं अपनी मादक कराह से अतिउत्तेजित हो गई…


सुगना ने अपनी जांघें अपने पेट से सटाने की कोशिश की और सूरज का पैर उसकी भग्नासा पर छूने लगा। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसकी जांघें ऐंठने लगी पेट में हल्की मरोड़ हुई और सुगना की बुर ने संकुचन प्रारंभ कर दिए..प्रेमरस छलकने लगा…अतृप्त सुगना तृप्त हो रही थी सूरज, सुगना की चुचियों से दूध लाने में नाकामयाब रहा पर उसने अनजाने में ही सुगना को प्रेमरस से भर दिया था जो इस समय उसकी जांघों के बीच मुस्कुराती करिश्माई बूर से रिस रहा था..

सुगना ने सूरज को खुद से अलग किया और बोला

बाबू ….अब बस हो गईल.

स्खलन का सुख अनूठा होता है …घर के तीनों युवा सोनू, सुगना और लाली यह महसूस कर रहे थे परंतु सोनू के मन में सुगना के खिड़की पर ना आने की कसक रह गई थी।


उसी दौरान सोनी और बच्चों के आने की आहट हुई

लाली घबरा गई और आनन-फानन में अपना सूट उल्टा पहन कर कमरे से बाहर निकल गई। वह सीधा बाथरूम में घुस गई। ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्र था सोनी ने लाली को सोनू के कमरे से निकलते देखा तो जरूर परंतु वह लाली के उल्टा सूट पहनने को देख ना पाई।

सोनू ने बेमन से अपनी बनियान और लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट कर पंखे को देखने लगा जो बेहद तेजी से घूम रहा था सोनू को अपनी जिंदगी भी इसी तेजी से घूमती प्रतीत हो रही जितने उम्मीदें और सपने वह संजो कर आया था वह टूट रहे थे…

सोनू ने अपने मन में जितनी कल्पनाएं की थी आज कुदरत ने उसका साथ न दिया था। सुगना को दिखाकर लाली को बेहद उत्तेजक तरीके से चोदने की उसकी योजना नाकामयाब रही थी। सुगना का खिड़की पर ना आना सोनू की कल्पना पर एक कुठाराघात जैसा था।

सोनी बाजार से समोसे लेकर आई थी जैसे ही वह सोनू को समोसा देने के लिए उस कमरे में गई …कमरे में फैली काम रस की सुगंध उसके नथुनो से टकराई। अब तक सोनी इस सुगंध से भलीभांति वाकिफ हो चुकी थी परंतु सोनू भैया के कमरे से इस सुगंध का आना सोनी को आश्चर्यचकित कर रहा था क्या सोनू भैया ने हस्तमैथुन किया था?? सोनी इससे ज्यादा न सोच पाई।

सोनू ने जो किया था जो कर रहा था और जो सोच रहा था वह सोनी ख्वाबों में भी नहीं सोच सकती थी वह उस सुगंध को नजरअंदाज कर समोसे निकालने लगी। उसने वहीं से सुगना और लाली को भी आवाज दी और कुछ ही देर में सोनू अपनी तीनों बहनों के साथ समोसे खाने लगा। सब आपस में बातें कर रहे थे पर जो सबसे ज्यादा बातें करते थे वह दोनों चुप थे। सोनू सुगना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।

अपने अवचेतन मन में किए गए इस कामुक अपराध से दोनों भाई बहन ग्रस्त थे खासकर सुगना।

सोनू उदास होकर बाहर घूमने चला गया और सोनू की बहने एक बार फिर सोनू के लिए शाम का खाना बनाने में लग गई।


सोनी को बच्चों के साथ खेलने में ज्यादा मजा आता था वह एक बार फिर बच्चों के बीच आ गई और लाली एवं सुगना रसोई में खाना बनाने लगी। सोनी के विकास को याद किया और एक बार फिर उसने प्यारे सूरज के अंगूठे को सहला दिया….और फिर क्या ...सूरज अपनी मौसी के बाल खींच कर …….उसके होंठो को सही जगह ले आया। सोनी खुश थी …जिस दंड को उसने स्वयं चुना था वो उसका आनंद लेने लगी..

रसोई में सुगना ने लाली को छेड़ा और बोला

" तोरा एकदम लाज ना लागेला आज राखी के दिन रहे ते आजो सोनूवा के परेशान कईले हा.."

"अरे वाह ढेर अपना भाई के पक्ष मत ले। हम परेशान कईनी हां? आज त उहे ढेरे बेचैन रहे एकदम थका देले बा"

"ई काहे…?" सुगना में मासूमियत से पूछा

सोनू के साथ संभोग के दौरान लाली ने जान लिया था सोनू के मन में सुगना के प्रति कुछ ना कुछ कामुक भावनाएं अवश्य थीं । उसे इस बात का अंदाजा न था कि पिछली बार सोनू और सुगना की नजरें उस कामुक संभोग के दौरान मिल चुकी थी।

जब जब सुगना का नाम आता सोनू का मन प्रफुल्लित हो उठता और सोनू की पकड़ में एक अद्भुत कसाव आ जाता। यह अंतर लाली स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही थी। उसने एक दो नहीं अपितु कई बार सुगना का नाम लेकर सोनू को उत्तेजित करने में मदद की थी और उसका असर बखूबी धक्कों की रफ्तार उसके लंड की उछाल के रूप में महसूस किया था..

"अब तू टाइट सूट में मटक मटक के ओकरा सामने घुमाबु दे त का करी?"

"हट पागल कुछो बोलेले?

"आज ते आईल रहते द बड़का सिनेमा देखे के मिलीत। आज सोनू पूरा जोश में रहे"

"इ काहे…?"

" अनजान बनत बाड़े..आज राखी बांधत खानी आपन चूची काहे देखावत रहले..हमरा लगता तबे से गरमाइल रहे"

सुगना इस बात का बखूबी एहसास था और अब लाली ने वह बात कहकर सुगना को निशब्द कर दिया था..

सुगना ने लाली की पीठ पर मुक्का मारा और शरमाते हुए बोली ..

"हम काहे करब लाली सोनुआ हमर आपन भाई ह"

"ई हे त दुख बा…. काश सोनुआ तोर भाई ना होखित"

लाली का यह वाक्य सुगना के दिमाग में अब अक्सर गूंजने लगा था हकीकत को झुठला पाना इतना आसान न था परंतु कल्पनाओं का क्या उन पर तो सिर्फ मन का नियंत्रण होता है मन अपनी इच्छा और भावनाओं के अनुसार कल्पनाए संजोता है. सुगना की कल्पनाएं भी एक नई दिशा ले रही थीं।

अजीब कशमकश थी सूचना के मन में भी और सोनू के मन में भी परंतु दोनों के बीच जमी बर्फ रक्षाबंधन के इस त्यौहार ने और जमा दिया था… जिसका टूटना इतना आसान न था.

सोनू और लाली ने रात में एक बार फिर संभोग किया और लाली ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए सुगना के नाम का बार बार प्रयोग किया सोनू भी सुगना के बारे में बातें कर अपनी कल्पना को आकार देता उसकी नग्न छवि को मन में संजोता और लाली को चोद कर अपने मन में उपज रही इस अनोखी वासना को शांत करने का प्रयास करता.. परंतु सुगना की उपस्थिति में लाली को चोदने का जो सुख उसे उस दिन प्राप्त हुआ था वह यादगार था और सोनू उस उत्तेजना के लिए तरस रहा था..

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उधर लखनऊ में एक शासकीय बंगले में काफी गहमागहमी थी घर के बाहर पुलिस वाले इकट्ठा हो चुके थे …अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी.

एक पुलिस वाले ने कहा…

साहब मेम साहब पर फालतू बिगड़ते रहते हैं आज तो हद ही हो गई है क्या हम लोगों को अंदर जाना चाहिए

नौकरी से हाथ धोना है क्या? उनकी लड़ाई में दखल देना ठीक नहीं । दोनों पति पत्नी हैं जल्द ही शांत हो जाएंगे।

पुलिस वालों ने अंदर जाने की हिम्मत तो ना जुटाई परंतु दरवाजे से अपने कान सटा दिए…

"साली तू जितनी शरीफ दिखती है उतनी है नहीं न जाने कहां-कहां मुंह मारी होगी?"

वरिष्ठ अधिकारी से इस तरह की भाषा की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती परंतु मनुष्य स्वभाव से जंगली होता है और आज यह जानने के पश्चात की मनोरमा ने किसी और के साथ भी संभोग किया था सेक्रेटरी साहब पूरी तरह आग बबूला थे।

मनोरमा का भी गुस्सा आसमान पर था.

हां मैंने किया है पर मैं रंडी नहीं हूं खबरदार जो मेरे बारे में अपशब्द कहा…

"तो मुझे बता ….पिंकी का पिता कौन है"

"क्यों आपको यकीन नहीं कि आप इसके पिता हैं?"

"पहेलियां मत बुझा साली मुझे पता है यह बीज तुम्हारे पाप का है" सेक्रेटरी साहब ने दांत पीसते हुए कहा..

"तुम्हें कैसे पता" मनोरमा के संबोधन भी अब सम्मान की भाषा छोड़ चुके थे।

सेक्रेटरी साहब ने कागज मनोरमा की तरफ उछालते हुए कहा..

"ये देख लो अपनी करतूत…"

मनोरमा ने वह रिपोर्ट उठाई और उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

उसने पिंकी को देखा और उसके पास गई तथा उसे गोद में लेकर चूम लिया। जैसे वो अपने व्यभिचार से जन्मी पुत्री को मान्यता दे रही हो।

"हा यह आपकी पुत्री नही है…और एसी सुंदर बच्ची तुम्हारे जैसे नामर्द की हो भी नहीं सकती"

पिंकी वास्तव में एक खूबसूरत बच्ची थी फूल सी कोमल और चेहरे पर ढेर सारा प्यार लिए। मनोरमा की खूबसूरती और सरयू सिंह के तेज को संजोए हुए यह बच्ची अनोखी थी सबका दिल जीतने वाली और मन मोहने वाली।


मनोरमा की बात सुनकर सेक्रेटरी साहब भड़क गए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकलने लगे।

बाहर दरवाजे पर कान लगाए पुलिस वाले तुरंत ही सावधान की मुद्रा में आ गए और सेक्रेटरी साहब को बड़ी तेजी से बाहर की तरफ जाते हुए देख रहे थे। बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और सेक्रेटरी साहब अपना गुस्से से लाल चेहरा लिए एंबेसडर में बैठकर आगे बढ़ चले। शायद उन्होंने मन ही मन मनोरमा के साथ न रहने का फैसला कर लिया था।

मनोरमा पिंकी को गोद में लेकर चूम रही थी आज पिंकी के प्रति उसके प्यार में दोगुनी वृद्धि हो गई। यह जानने के पश्चात कि वह सरयू सिंह का अंश थी मनोरमा बेहद भावुक हो गई । सरयू सिंह के साथ किया गया उसका अकस्मात हुआ संभोग उसके जीवन की न भूलने वाली घटना थी। उत्तेजना को चरम पर ले जाकर स्खलित करने का जो सुख सरयू सिंह ने उसे दिया था वह आज तक उसे नहीं भूल थी। वो उस दिन को याद करने लगी…


बनारस महोत्सव के उस मंगल दिन वह बनारस महोत्सव के अपने कमरे में शरीर पोछने के बाद आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। उसकी कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। उसका शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था उसकी काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

पूर्व भाग से पुनः मनोरंजन हेतु उद्धृत


"उसने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया जो सुगना को खोजते हुए अंदर आ गए…

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं ।

उधर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना घूम रही थी। सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना की जगह मनोरमा को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। उधर सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह युवती निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।


मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया और सरजू सिंह के लण्ड पर मल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।


गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।


जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।


सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।"


नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र पिंकी के रूप में सृजित हो चुका था…..

शेष अगले भाग में...
जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

Shugna aur suraj ka khel bhi mast chala , soni ko bhi sonu ki garmi ka pata chal raha hai

Woow, lekin kahani bahut slow jaa rahi hai ya fir ye kaha jaa sakta hai ki ye dil maange more
 
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Lovely Anand

Love is life
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No words... अद्भुत, अकल्पनीय, मनोरम, मनोरंजक, मनोहर

उत्तेजक, कामोत्तेजक
धन्यवाद ..अब आपकी dp aapke अनुरूप है...😘
 
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