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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

MaalPaani

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Lovely Anand Bhaai, Sabse Pahle Pichhli Update Ki Baat Karte Hain. Jo Aapne Ant Mein Suspense bna Kar Chhoda Hai Wo Padhne Laayk Hoga! Main Apeksha Kar Raha Tha Ki Update Mein Kuch Padhne Ko Milega Magar Aapne Jo Bhumika Baandhi Hai Usse Agli Update Se Hmaari Umeedein Badh Gai Hain! Agli Update Mein Kaise Bhi Karke "Ghapa Ghapp" Daal Dena!
Ab Aate Hain Aapke Upar Likhit Comment Par, To Aapke Mahila Readers Ke Prati Jhukaav Ko Dekh Main Bas Itna Kahunga; Agar Mujhe Pata Hota Ki Aapko Mahila Readers Ke Comment Padh Kar Itni Khushi Hoti Hai To Main Apni ID Kisi Ladki Ke Naam Se Bnaataa! :wink:
Ant Mein Ek Aapse Ek Prem Poorvak Agraah Hai, Agar Aap Hmaare Guru Ji Ki Tarah Ek Super Mega Pro Ultimate Wala Update Likh Dein To Ham Sabhi Khush Hojayenge! 🙏
 

Lovely Anand

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Lovely Anand Bhaai, Sabse Pahle Pichhli Update Ki Baat Karte Hain. Jo Aapne Ant Mein Suspense bna Kar Chhoda Hai Wo Padhne Laayk Hoga! Main Apeksha Kar Raha Tha Ki Update Mein Kuch Padhne Ko Milega Magar Aapne Jo Bhumika Baandhi Hai Usse Agli Update Se Hmaari Umeedein Badh Gai Hain! Agli Update Mein Kaise Bhi Karke "Ghapa Ghapp" Daal Dena!
Ab Aate Hain Aapke Upar Likhit Comment Par, To Aapke Mahila Readers Ke Prati Jhukaav Ko Dekh Main Bas Itna Kahunga; Agar Mujhe Pata Hota Ki Aapko Mahila Readers Ke Comment Padh Kar Itni Khushi Hoti Hai To Main Apni ID Kisi Ladki Ke Naam Se Bnaataa! :wink:
Ant Mein Ek Aapse Ek Prem Poorvak Agraah Hai, Agar Aap Hmaare Guru Ji Ki Tarah Ek Super Mega Pro Ultimate Wala Update Likh Dein To Ham Sabhi Khush Hojayenge! 🙏
आपको भी धन्यवाद . मैंने स्वाति जी( I know it may be fake id) के पोस्ट पर इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया इसलिए दी थी क्योंकि उन्होंने अपना समय खर्च कर इस कहानी के बारे में अपने विचार रखे थे

आपकी इस विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आपको भी धन्यवाद कहानी का लेखक प्रतिक्रियाओं को पढ़कर उतना ही आनंद लेता है जितना आप कहानी पढ़ कर लेते हैं.
बाकी इस फोरम पर अपनी हकीकत बयां करने कोई नहीं आता यह हम सभी जानते हैं.

रही बात सुगना और सरयू सिंह के बीच संभोग की, वह तो कहानी के शुरू के दो तीन भागों में ही हो चुका है।
अभी तो वह दोनों अपनी सुनहरी यादों में खोए हुए है बढ़ती उत्तेजना का अपना अलग आनंद है अभी उस का आनंद लीजिए बीच-बीच में कामुकता के अतिरेक के लिए पदमा और कजरी सरयू सिंह की नायिका है। सुगना और सरयू सिंह का मिलन निश्चित है अपना इंतजार और प्रोत्साहन कायम रखें।
एक बार सभी पाठकों का फिर से धन्यवाद
 
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karan77

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सुबह सुबह दालान में बैठे हुए सरयू सिंह धूप सेंक रहे थे। कजरी ने जो तेल कल रात उनके शरीर पर लगाया उसका अंश अब भी उनके शरीर पर था। वह अपने घर की बदली हुई परिस्थितियों के बारे में सोच रहे थे।

सुगना को ससुराल आए को चार-पांच महीने बीत चुके थे। सुगना जब इस घर में आई थी उन्होंने उसे एक बहू और पुत्री के रूप में ही माना था। उसके प्रति उनके मन में कामुकता कतई न थी। ऐसा नहीं था की सुगना की कद काठी उन्हें दिखाई नहीं पड़ती थी। वह तो नारी शरीर के पारखी थे पर जब मन में भाव गलत ना हो तो यह आवश्यक नहीं कि सुंदरता हमेशा उत्तेजना को जन्म दे।

परन्तु पिछले एक दो महीनों में सुगना के व्यवहार में परिवर्तन आया था। वो उस परिवर्तन के बारे में खो गए। कैसे उन्होंने हैण्डपम्प पर बर्तन धोते समय उसकी चूँचियों का उपरी भाग देखा वो भी एक बार नहीं की कई बार। क्या सुगना उन्हें वह दिखाना चाहती थी? क्या वह अकस्मात हुआ था ? पर कई बार? यह महज संयोग था या सुगना उन्हें उकसा रही थी? प्रश्न कई थे और उत्तर सरयू सिंह के विवेकाधीन था। उत्तेजना और पारिवारिक संबंध दो अलग-अलग पलड़ों पर थे तराजू की डंडी सरयू सिंह के हाथ में थी। दिमाग पारिवारिक संबंधों का साथ दे रहा था पर लंड उत्तेजना की तरफ झुक रहा था। नियति समय-समय पर उत्तेजना का पलड़ा भारी कर रही थी। उनके और सुगना के बीच दूरियां तेजी से कम हो रही थीं।

विशेषकर होटल में बितायी गयी उस रात जब उन्होंने सुगना की चूँचियों को नग्न देखा था उनकी उत्तेजना ने सुगना से पुत्री का दर्जा छीन लिया। और कल की रात …. वो उत्तेजना की पराकाष्ठा थी… सारे संबंध कामुकता की भेंट चढ़ गए थे।

कैसे वह अपनी भौजी कजरी को चोद रहे थे वह भी सुगना को दिखा दिखा कर और तो और उत्तेजना के उत्कर्ष पर वह अपने मन मे अपनी पुत्री समान बहु को चोदने लगे थे।

उन्हें एक बार फिर आत्मग्लानि होने लगी। सुगना जवान थी उसे सम्भोग सुख प्राप्त नहीं हो रहा था इसके कारण भी वही थे जिन्होंने बिना रतन की सहमति से उसका विवाह सुगना से कर दिया था। ऐसी युवती यदि किसी जोड़े को सम्भोग करते हुए यदि देखती भी हो तो उसमें क्या बुराई थी? क्या इस देखने मात्र से वह उनकी बहू बेटी न रहेगी?

सरयू सिंह की दुविधा कायम थी। तभी सुगना की पायल की आवाज आई वो पास आ रही थी…

"बाबुजी दूध ले लीं" सुगना ने अपनी नजरें झुकाई हुई थी कल रात के दृश्य के बाद वह अभी उनसे बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी।

सरयू सिंह ने दूध ले लिया। सुगना वापस जा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें उसकी गोरी और बेदाग पीठ से चिपक गयीं जब तक वो निगाहें फिसलते हुए नितंबो तक पहुंचतीं सुगना निगाहों से ओझल हो गयी।

सुगना जिस आत्मीयता से उन्हें बाबूजी कहती थी वह भाव सरयू सिंह के विचारों पर तुरंत लगाम लगा देता। सरयू सिंह की कामुक सोच तुरंत ठंडी पड़ जाती। उन्हें यह प्रतीत होने लगता कि सुगना उनके बारे में कभी कामुक तरीके से नहीं सोच सकती। वह कभी-कभी दुखी भी हो जाते। परंतु मन के किसी कोने में उनकी कामुकता ने सुगना को अपनी मलिका का दर्जा दे दिया था।

कुछ ही दिनों बाद दशहरा आने वाला था. सुगना का पति रतन सुगना के आने के कुछ दिनों बाद मुंबई चला गया था जो अभी तक नहीं लौटा था वह साल में दो बार आया करता एक बार दशहरा या दिवाली पर दूसरी बार होली के अवसर पर।

शहर में उसकी महाराष्ट्रीयन पत्नी बबीता एक होटल की रिसेप्शनिस्ट थी वह अनुपम सुंदरी थी और शहर की आधुनिकता में ढली हुई थी।

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होटल के रिसेप्शन पर रहने के कारण उसे हमेशा टिपटॉप रहना पड़ता था। रतन से उसकी मुलाकात भी उसी होटल में हुई थी जब वह अपने बॉस के साथ उस होटल में किसी कार्य के लिए गया हुआ था। रतन एक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। वह सरयू सिंह का भतीजा था और सरयू सिंह के परिवार का अंश था। उसमें सरयू सिंह जैसी मर्दानगी तो नहीं थी पर कम अभी नहीं थी।

बबीता और रतन करीब आते गए । बबीता की गोरी चिकनी चूत में अपना लंड डालकर रतन सारी दुनिया भूल गया था। उसे एक पल के लिए भी सुगना का ख्याल नहीं आया था। जब एक बार बबीता की मलाईदार चूत का चस्का रतन को लग गया वह दिन प्रतिदिन उसके करीब आता गया। गांव के भोले भाले रतन को दुनिया का अनोखा सुख प्राप्त हो चला था। उसका भोलापन बबीता ने हर लिया और उसे एक शहर का इंसान बना दिया चतुर और चालाक।

बबीता ने रतन पर विवाह करने का दबाव बढ़ाया तब जाकर रतन को सुगना का ख्याल आया। रतन दुविधा में फंस गया अंत में वह बबीता का आग्रह न ठुकरा पाया और सरयू सिंह और कजरी से अनुमति लिए बिना विवाह कर लिया। उसने मन ही मन अपने और सुगना के बीच हुए बाल विवाह को नकार दिया था।

बबीता सच में सुंदर थी छोटी-छोटी मझौली चूचियां और छोटे चिकने गोलनितंब लिए हुए वह शहर की एक सुंदर लड़की थी। रतन उसकी खूबसूरती में पूरी तरह खो गया था यही कारण था कि जब वह गवना के बाद अपनी पत्नी सुगना को देखा तो ग्रामीण और शहरी लड़की का जो अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है उसमें बबीता सुगना से कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ी। रतन वैसे भी व्यभिचारी नहीं था। उसने सुगना को हाथ तक नहीं लगाया और वह उसे सुहाग की सेज पर अकेला छोड़कर वापस चला गया.

कजरी के मन में अभी भी उम्मीद कायम थी कि शायद इस बार रतन और सुगना के बीच कुछ नजदीकियां बढें और सुगना को पत्नी सुख की प्राप्ति हो जिसके लिए वह अब अधीर हो चली थी।

कजरी को इस बात की भनक न थी की सुगना और सरयू सिंह इस तरह करीब आ रहे हैं। वह उन्हें घुल मिलकर बात करते हुए देखती और सुगना की खुशी देखकर वह बेहद प्रसन्न हो जाती पर इन नज़दीकियों में उसे कामुकता की उम्मीद कतई न थी। उसे यह भी ज्ञात नहीं था कि कल रात नियति ने उसे भी अपनी साजिश का एक हिस्सा बना लिया था।

सुगना के हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था कजरी ने उसे पूरा आराम करने के लिए कहा. वैसे भी एक हाथ से कोई काम होना संभव न था. वह सरयू सिंह के पास ज्यादा समय व्यतीत करती. सरयू सिंह को भी उसका साथ अच्छा लगता था। वह उनकी नई नई प्रेमिका बन रही थी। सरयू सिंह ने अब उसे पदमा के रुप में देखना शुरू कर दिया था। वह एक विवाहिता थी जो उनके भतीजे की पत्नी थी। यह नियति का खेल था कि वह अब तक कुंवारी थी अन्यथा यह वही अवस्था थी जब पद्मा ने उनके साथ पहली बार संभोग किया था। सरयू सिंह का हृदय परिवर्तन हो रहा था। अभी दो-चार दिन पहले ही उन्होंने कजरी को सुगना बनाकर अपनी वासना शांत की थी और सुगना ने अपनी सास को उन्हें चोदते हुए देखा था.

घर के पिछवाड़े में अमरूद के पेड़ पर फल आये हुए थे। सुबह-सुबह सुगना नहा कर लहंगा और चोली पहने टहल रही थी।

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लहंगे का कपड़ा बेहद मुलायम था। सुगना को कभी-कभी यह एहसास होता जैसे वह नग्न ही घूम रही हो हाथ मे लगे प्लास्टर को छोड़कर उसका कमनीय शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। सरयू सिंह अचानक घूमते हुए सुगना के पास आ गए। सुगना चहक उठी। उसकी निगाह एक अमरुद पर टिकी थी जो लगभग पक चुका था। उसने सरयू सिंह से कहा

"बाबूजी उ अमरुदवा तूर दी"

सरयू सिंह ने उसे अपने हाथों से तोड़ने की कोशिश की पर उसकी ऊंचाई कुछ ज्यादा थी. वह अगल-बगल किसी उचित लकड़ी की तलाश करने लगे। तभी सुगना ने कहा "बाबू जी हमरा के उठायीं हम तूर लेब"

सरयू सिंह को एक पल के लिए यह अजीब लगा अपनी जवान बहु को उपर उठाने का मतलब उसके शरीर को बेहद करीब से छूना पड़ता।

सुगना अपने दोनों हाथ ऊपर कर अमरूद की डाली को पकड़ने की कोशिश करने लगी। वह सरयू सिंह को उसे उठाने के लिए आमंत्रित कर रही थी। सरयू सिंह ने कोई रास्ता न देख सुगना को पीछे जाकर उसकी जांघों को पकड़ लिया और ऊपर उठाने लगे। सुगना आगे की तरफ गिरने लगी। सुगना ने फिर कहा

"बाबूजी आगे से पकड़ीं ना त हम गिर जाइब"

अब तक सरयू सिंह में पिस्टन में लहू भरना प्रारंभ हो चुका था। कामुकता जाग चुकी थी।

सरयू सिंह ने सुगना को सामने से पकड़ लिया। उनकी मजबूत बांहों ने सुगना के नितंबों के नीचे अपना घेरा बना लिया और सरयू सिंह सुगना को लेकर खड़े हो गए। सुगना के मुलायम और कोमल नितंब उनकी मजबूत भुजाओ पर टिक गए। लहंगे का मुलायम कपड़ा सरयू सिंह और सुगना के नितंबों के बीच कोई अवरोध उत्पन्न नहीं कर पा रहा था सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा एहसास हुआ जैसे उन्होंने नंगी सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हूं उनका लंड थिरक उठा।

सरयू सिंह का चेहरा सुगना की नंगी नाभि से टकरा रहा था। सरयू सिंह को एक साथ सुगना के कई अंगों का स्पर्श मिल रहा था। एक तरफ सुगना के कोमल नितम्ब उनकी भुजाओं से छूकर एक सुखद एहसास दे रहे थे वहीं वह अपने गालों और चेहरे से सुगना ने चिकने और नग्न पेट को महसूस कर रहे थे।

अचानक उन्होंने अपने होंठ उसकी नाभि से सटा दिए। सुगना सिहर उठी। उसने अपने हाथ अपने बाबूजी के सर पर रख दिए। वह इस दुविधा में थी कि अपने बाबूजी के सर को अपने पेट की तरफ खींचे या बाहर की धकेले। दरअसल सरयू सिंह के नाक के नीचे खुजली हुयी थी जिसे उन्होंने सुगना के पेट से रगड़ कर शांत करने की कोशिश की थी। सुगना तो अब सरयू सिंह की हर हरकत से ही उत्तेजित जो जाती थी चाहे वह अकस्मात ही क्यों न हुआ हो।

सुगना ने कहा

"बाबू जी थोड़ा और ऊपर उठायीं"

सरयू सिंह ने अपनी भुजाएं और ऊपर कर दी. सुगना और ऊपर उठ गई। सरयू सिंह का चेहरा सुगना की जाँघों के जोड़ पर आ गया। सरयू सिंह के होंठ अब ठीक सुगना की बूर के उपर थे यदि लहंगा न होता तो सरयू सिंह अपनी बहू की पवित्र गुफा का न सिर्फ स्पर्श महसूस कर लेते अपितु उस पर आए मदन रस का स्वाद भी ले लेते।

सुगना की वह अद्भुत दरार गीली हो चुकी थी। उसकी खुसबू सरयू सिंह के नथुनों से टकरा रही थी। चुदी हुयी चूत की खुश्बू सरयू सिंह बखूबी पहचानते थे पर सुगना वह तो पाक साफ और पवित्र थी।

वो सुगना की बुर पर ध्यान लगा कर आंनद लेने लगे। उनकी उत्तेजना जागृत हो चली थी। धोती के नीचे लंड लंगोट फाड़कर बाहर आने को तैयार था। सुगना सरयू सिंह की गर्म सांसे अपनी बुर पर महसूस कर रही थी।

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वह जान बूझ कर अमरूद तोड़ते हुए अपनी जांघो के जोड़ को अपने बाबुजी चेहरे पर रगड़ रही थी।

नियति यह प्रेमालाप देख रही थी। सरयू सिंह इस अद्भुत पल का आनंद ले रहे थे तभी सुगना ने वह अमरुद पकड़ लिया। उधर सुगना ने अमरुद पकड़ा और उधर सुगना की बुर का भग्नासा सरयू सिंह की नाक से टकरा गया। ससुर और बहू दोनों इस छुअन से सिहर उठे।

सुगना खिलखिला कर हंसी और बोली "बाबूजी अमरूद मिल गईल अब उतार दीं"

सरयू सिंह ने सुगना को धीरे-धीरे नीचे करते गए. नीचे उतरते उतरते एक बार सुगना की चूँचियां उनके चेहरे से छूती हुई नीचे चली गई। उनकी हथेलियों में भी सुगना के नितंबों का स्पर्श महसूस कर लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के मुलायम नितंबों को दबाना चाहा पर सरयू सिंह ने दिमाग ने रोक लिया।

यह उत्तेजना सरयु सिंह के लिए बिल्कुल नयी थी। वह बेहद खुश थे। जब सुगना नीचे उतर रही थी वह भी पूरी तरह सचेत थी सरयू सिंह के लंड में आया उभार सुगना ने भी महसूस कर लिया था। ससुर और बहू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति मुस्कुरा रही थी उसकी साजिश कामयाब होने वाली थी.

इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..


शेष अगले भाग में।

Have a nice sunday.
mind blowing
 
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Lovely Anand

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इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..

हरिया बाहर दरवाजे पर खड़ा सरयू भैया... सरयु भैया... पुकार रहा था।

"का भईल हो."

"हम शहर जा तानी। तू हूँ चलके.. सुघीरवा के देख आवा। ओकरा होश आ गईल बा का जाने पुलिस ले तोहरा के मत फसा दे"

बात सच थी। सुधीर वकील था जितना चतुर उतना ही हरामी। संयोग से उस दिन सरयू सिंह भी शहर में थे जिस दिन सुधीर की कुटाई हुई थी। यदि वह पुलिस के सामने उनका नाम ले लेता तो सरयू सिंह के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाती। उन्होंने हरिया का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

"ठीक बा हम तैयार हो के आवतानी"

वह आगन में आ गए और कजरी और सुगना को शहर जाने की सूचना दी। वह दोनों झटपट उनके लिये नाश्ते की तैयारी में लग गयीं। उन्हीने कजरी और सुगना से पूछा

"शहर से कुछ ले आवे के बा?"

सुगना चाहती तो बहुत कुछ पर उसने कहा "कब ले आइब"

सुगना के मुंह से यह शब्द सुनकर सरयू सिंह खुश हो गए. उनकी प्यारी सुगना अब उनका इंतजार किया करती है यह बात इनके दिल को छू गई.

कजरी ने कहा

"देखीं सुगना बेटी राउर केतना ख्याल राखे ले"

यह कह कर कजरी ने किए धरे पर पानी फेर दिया। सुगना की कुवारी बुर सूंघने के बाद सरयू सिंह ने सुगना से बेटी का दर्जा छीन लिया था।

रास्ते भर वो सुगना के साथ अपनी रेल यात्रा के दौरान उसके स्पर्श को याद करते रहे। धोती के अंदर लंड परेशांन होकर उन्हें गरिया रहा था। लेना एक नया देना दो, वो बेचारा खामखां परेशान हो रहा था।

दोपहर तक सरयू सिंह हरिया के साथ अस्पताल पहुंच चुके थे। उन्हें अस्पताल दुनिया की सबसे गंदी जगह लगती थी जहां सिर्फ और सिर्फ दर्द था। यहां भी वह अपना दर्द लेकर ही आए थे पर यह दर्द उनके डर के कारण जन्मा था और उन्हें मजबूरन सुधीर से मिलने आना पड़ा था।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ सुधीर अपनी आंखें खोल कर टुकुर-टुकुर देख रहा था। उसने सरयू सिंह और हरिया को पहचान लिया। सरयू सिंह ने पूछा

"कैसे हो गईल हो?"

तभी सुधीर की पत्नी ने घुंघट के अंदर से कहा

"इहे चारों ओर केस करत चलेले। रामपुर के तीन चार गो लड़का मरले रहले हा सो"

सरयू सिंह को यह जानकर हर्ष हुआ की सुधीर को मारने वाले लोग पहचान लिए गए थे और उनका इस केस से कोई संबंध नहीं था। सुधीर की आंखों में भी नफरत कम दिखाई पड़ रही थी। सरयू सिंह का हॉस्पिटल आना लगभग सफल हो गया था।

वह कुछ देर सुधीर के साथ रहे साथ में लाया हुआ फल उन्होंने सुधीर की पत्नी को पकड़ाया और बोले

"भगवान इनका के जल्दी ठीक करो फेर केस भी त लड़े के बा।"

उन्होंने सुधीर को हंसाने की कोशिश की थी। सुधीर की नफरत निश्चय ही घट चुकी थी वह मुस्कुराने लगा। घुंघट के अंदर से सुधीर की पत्नी की हंसी सुनाई दी।

सरयू सिंह खुश हो गए और हरिया के साथ हॉस्पिटल से बाहर आ गए। आज का दिन शुभ हो गया था। उन्होंने खेती किसानी से संबंधित शहर के कुछ और कार्य निपटाए और वापसी में स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े। रिक्शे पर आज सुगना की जगह हरिया बैठा हुआ था।

एक वह दिन था जब उत्तेजना चरम पर थी और एक आज का दिन था। वह रास्ते में फिर सुगना की यादों में खो गए। उन्हें वह होटल दिखाई दे गया जिसमें उन्होंने सुगना के साथ रात गुजारी थी और उसकी मदमस्त चूचियों के दर्शन किए थे। होटल से कुछ ही दूर पर वह कपड़े की दुकान भी दिखाई पड़ी। उस दुकान के बगल में लटके हुए औरतों के अंग वस्त्र देखकर सरयू सिंह का मन ललच गया। वह मॉडल उन्हें सुगना दिखाई देने लगी। उनके मन में आया कि वह रिक्शा रोककर अपनी सुगना के लिए वह अंतर्वस्त्र ले लें और उसे मॉडल की तरह सजा कर …...आगे वह स्वयं शर्मा गए। उनकी सोच पर दिमाग का नियंत्रण कायम था परंतु उनकी लंगोट में हलचल होने लगी लगी। लंड का तनाव बढ़ रहा था उन्हें दर्द का एहसास होने लगा।

हरिया ने कहा

"कहां भुलाईल बाड़ा भैया"

सरयू सिंह चाह कर भी हरिया को हकीकत नहीं बता सकते थे. जहां उनका सुखचैन खोया था वह उनकी अपनी बहू सुगना की बुर थी। उन्होंने बात टाल दी।

स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने सुगना और कजरी के लिए उनकी पसंद की मिठाइयां लीं और वापस ट्रेन पकड़ने के लिए चल पड़े.

उधर सुधीर की पत्नी रानी ने कहा

"सरयू जी.. केतना अच्छा आदमी हवे आपके देखे आईल रहले हा"

सुधीर ने रानी की बात से सहमति जताई उसे अब सच में अफसोस हो रहा था कि उसने सरयू सिंह पर बिना मतलब केस कर दिया था। उस विवाद का समाधान बैठकर भी निकाला जा सकता था जिसमें हर व्यक्ति को अपना अपना रुख थोड़ा नरम करना था। रानी सरयू सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी। मजबूत कद काठी के सरयू सिंह वैसे भी स्त्रियों के पसंदीदा थे।

जिस तरह सुंदर स्त्री हर वर्ग के पुरुषों को पसंद आती है वही हाल सरयू सिंह का था जिस स्त्री के योनि से प्रेम रस बहता हो वह सरयू सिंह को देख कर एक बार जरूर उनकी कद काठी की तारीफ करती होगी। उनसे अंतरंग होना या ना होना वह स्त्री की मानसिकता पर निर्भर था पर शरीर सिंह का व्यक्तित्व स्त्रियों को प्रभावित करने में सक्षम था.

घर पहुंच कर सुगना थाली में पानी लेकर अपने बाबुजी के पैर धोने लगी। उसकी कोमल हथेलियां उनके पैरों को पानी से धुलते हुए मालिश भी कर रहीं थीं।

सरयू सिंह की निगाह उसकी चूचियों पर टिकी थी। सुगना का ध्यान पैर धोने पर लगा हुआ था और उसका आंचल छाती से हट गया था चूँचियों की झलक सरयू सिंह के मन में उत्तेजना पैदा कर रही थी उधर सुगना की निगाह बीच बीच मे सरयू सिंह के लंगोट पर जा रही थी उसके अंदर छुपा जीव अपना आकार बढ़ा रहा था। सुगना अब समझदार हो चली थी। उसने अपनी चूचियों पर नजर डाली और आँचल खींच लिया।

कजरी गुड़ और पानी लेकर आ गयी थी। सरयू सिंह के झोले में सिर्फ मिठाई देखकर सुगना थोड़ा मायूस हो गई। अपने मन के किसी कोने में उसने कल्पना की थी कि उसके बाबुजी उसके लिए वह अंतर्वस्त्र खरीद लाएंगे पर यह सिर्फ और सिर्फ उसकी कोरी कल्पना थी। उसे पता था यह संभव नहीं होगा फिर भी मन तो मन होता है खुद ही बेतुकी चीजें सोचता है और उनके पूरा न होने पर स्वयं दुखी हो जाता है।

नियति ने सुगना को निराश न किया। आज सुगना का जन्मदिन था. उसने आज सुबह सुबह ही घर के सारे काम निपटाये और स्नान करके अपनी वही खूबसूरत लहंगा चोली पहन ली जो सरयू सिंह ने उसे होली के दिन उपहार स्वरूप दिया था। जब भी सुगना सुंदर कपड़े पहनती वह खुद को उस मॉडल के रूप में देखती पर उसके पास अंतर्वस्त्र नहीं थे लहंगे के नीचे उसे अपनी नग्नता का एहसास होता वह सिहर उठती और मन ही मन आनंदित होती। कपड़े पहन कर वह घर के पिछवाड़े में बाल सुखाने लगी।

सरयू सिंह सब्जियों की क्यारी में कार्य कर रहे थे। कजरी रसोई में सुगना के लिए मालपुआ बना रही थी। आज घर में खुशी का माहौल था। सरयू सिंह सुगना को मुस्कुरा कर देख रहे थे वह आज बहुत सुंदर लग रही थी। ससुर और बहू में कुछ नजदीकियां तो आ ही चुकी थीं दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति कामुकता लिए हुए थे।

नियति ने तरह-तरह की परिस्थितियां बनाकर उन दोनों को इतना करीब ला दिया था और आज फिर नियत ने अपनी एक चाल चल दी थी। एक उड़ने वाला कीड़ा सुगना के लहंगे में घुस गया। फर्रर्रर... फुर्ररर….की आवाजें आने लगी सुगना परेशान हो रही थी। आवाज उसके बिल्कुल करीब से आ रही थी पर वह जीव उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था तभी वह उसकी नग्न जांघों से छू गया। वह कीड़ा स्वयं एक अनजाने घेरे में आ चुका था। वह कभी सुगना के घुटने को तो कभी उसके कोमल जाँघों को छू रहा था।

सुगना अपने हाथों से उसे पकड़ना चाहती पर वह अपनी जगह लगातार बदल रहा था। सुगना ने उसे पकड़ने का प्रयास किया पर असफल रही वह बेचैन थी। वो अपने हाथ इधर-उधर कर रही थी तभी सरयू सिंह की निगाह उस पर पड़ गई उन्होंने पूछा

"का भईल सुगना "

उसने कहा

"लागा ता कोनो कीड़ा घुस गईल बा"

सरयू सिंह क्यारी छोड़कर सुनना के पास आ गये और उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। सुगना ने अपने हाथों से अपने लहंगे को घुटनों तक उठा लिया था उसके कोमल पैर सरयू सिंह की आंखों के सामने थे। इस प्रक्रिया में उनके हाथ सुगना के पैरों से छूने लगे। वह कभी उसकी जांघों को छूते कभी घुटनों को। सुगना परेशान तो थी अब उत्तेजित भी हो चली थी। उसे मन ही मन यह डर भी था कि कहीं वह कीड़ा उसे काट ना ले अंततः सुगना ने स्वयं ही वह कीड़ा पकड़ लिया। वह उसकी दाहिनी जांघ के ठीक ऊपर था जिसे सुगना ने अपनी उंगलियों में पकड़ रखा था।

कीड़े और सुगना के उंगलियों के बीच सुगना का खूबसूरत लहंगा था । अब मुश्किल यह थी कि उस कीडे को बाहर कैसे निकाला जाए। उसके हाथ में प्लास्टर बधे होने की वजह से वह अपने दूसरे हाथ का प्रयोग नहीं कर पा रही थी. उसने कहा

"बाऊजी हम पकड़ ले ले बानी इकरा के निकाल दी" सरयू सिंह उत्साहित हो गए वह पास आकर सुगना का लहंगा ऊपर उठाने लगे. सुगना की निगाह अपने लहंगे की तरफ जाते वह सिहर उठी सरयू सिंह जमीन पर उकड़ू बैठे हुए थे और सुगना का लहंगा घुटनों के ठीक ऊपर आ चुका था। सरयू सिंह इसी पसोपेश में थे कि वह लहंगे को और ऊपर उठाएं या नहीं पर कीड़ा पकड़ने के लिए उन्हें अपने हाथ तो अंदर ले ही जाने थे।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और सुगना ने अपनी आंखें शर्म से बंद कर लीं। अब तक नैनों की भाषा सरयू सिंह और सुगना समझने लगे थे ।

सरयू सिंह ने लहंगा और ऊपर उठा दिया उनकी निगाहें पहले तो कीड़े को देख रहीं थीं पर उन्हें सुगना की जांघों के बीच का जोड़ दिखाई पड़ गया। वह कीड़े को एक पल के लिए भूल ही गए सुगना की हल्की रोयेंदार कमसीन बुर को देखकर को वह मदहोश हो गए। उनका ध्यान कीड़े पर से हट गया।

बाहर बहती हुई हवा ने जब सुगना की कोमल बुर को छुआ सुगना भी सिहर उठी। उसे अपनी नग्नता का एहसास हो गया उसने यह महसूस कर लिया कि उसके बाबूजी उसकी कोमल बुर को देख रहे हैं यह सोचकर वह थरथर कांपने लगी।

उसके हाथों की पकड़ ढीली हो रही थी. सरयू सिंह उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। उन्होंने अपनी उंगलियां कीड़े को पकड़ने के लिए लहंगे के अंदर की उसी समय उनकी हथेलियों का पिछला भाग सुगना की जांघों के ऊपरी भाग से छू गया। आज पहली बार किसी मर्द ने सुगना की जांघों को छुआ था। सुगना सिहर गई उसके हाथ से वह कीड़ा छूट गया और लहंगा भी।

एक बार फिर वह कीड़ा सुगना के लहंगे में गुम हो गया और सुगना का लहंगा उसके बाबूजी के हाथों पर टिक गया। फुर्ररर…फर्रर्रर ….. की आवाजें आने लगी. सरयू सिंह और सुगना दोनों कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे. अंततः सरयू सिंह ने सुगना के लहंगे को स्वयं ही ऊपर उठा दिया जांघों तक आते-आते उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई.

सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर को निहार रहे थे उसी समय कीड़ा सुगना की जांघों के बीच से निकलकर उनके माथे को छूता हुआ उड़ गया पर जाते-जाते उनके माथे पर अपना दंश दे गया। सरयू सिंह के माथे पर लाल निशान दिखने लगा उन्हें अपनी कुंवारी बहू की कोमल चूत देखने का नियति ने अवसर भी दिया था और दंड भी।

परन्तु सरयू सिंह का लंड इस दंश के दंड को भूल कर उदंड बालक की तरह घमंड में तन कर खड़ा था आखिर उसके एक सुकुमारी की कोमल बुर में प्रवेश होने की संभावना योगबल ही रही थी।

सरयू सिंह ने लहंगा छोड़ दिया। सुगना अपने बाबूजी का माथा सहलाये जा रही थी। सुगना झुक कर उस जगह पर फूंक मारने लगी जहां कीड़े ने काटा था।

उसकी इस गतिविधि ने उसकी कोमल चूचियों को एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने ला दिया जो चोली में से झांकते हुए उन्हें ललचा रही थीं।

सरयू सिंह कीड़े का दर्द भूल चुके थे वह सुगना के प्यार में खो गए थे। आज सरयू सिंह ने सुगना का खजाना देख लिया था। और वह मन ही मन प्रसन्न थे।

सुगना भी मन ही मन प्रसन्न थी उसकी कोमल बुर उत्तेजना से पनिया गई थी पर उस पर लहंगे का आवरण आ चुका था उसके बाबूजी ने उसकी कुंवारी बुर तो देख तो ली थी पर वह उसकी उत्तेजना न देख पाए थे। सुगना ऊपर वाले को धन्यवाद दे रही थी।

आंगन में आने के बाद मालपुआ खाते समय कजरी ने सरयू सिंह से पूछा

ई माथा प का काट लेलस हा?"

सुगना भी अब हाजिर जवाब को चली थी. सुगना ने हंसते हुए बोला..

"बाबूजी मालपुआ में भुलाईल रहले हा तबे कीड़ा काट लेलस हा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. वह सच में आज अपनी बहू सुगना की कोमल बुर में खोए हुए थे। सुगना की बूर मालपुए से किसी भी तरह कम न थी वह उतनी ही मीठी, उतनी ही रसीली और मुलायम थी। सरयू सिंह की जीभ मालपुए में छेद करने के लिए लप-लपाने लगी।

कजरी भी मालपुए का नाम सुनकर शर्मा गयी। उसके कुँवर जी उसकी बुर को भी कभी कभी मालपुआ बुलाया करते थे।

सुगना ने अनजाने में सरयू सिंह के तार छेड़ दिए थे...
 

MaalPaani

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इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..

हरिया बाहर दरवाजे पर खड़ा सरयू भैया... सरयु भैया... पुकार रहा था।

"का भईल हो."

"हम शहर जा तानी। तू हूँ चलके.. सुघीरवा के देख आवा। ओकरा होश आ गईल बा का जाने पुलिस ले तोहरा के मत फसा दे"

बात सच थी। सुधीर वकील था जितना चतुर उतना ही हरामी। संयोग से उस दिन सरयू सिंह भी शहर में थे जिस दिन सुधीर की कुटाई हुई थी। यदि वह पुलिस के सामने उनका नाम ले लेता तो सरयू सिंह के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाती। उन्होंने हरिया का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

"ठीक बा हम तैयार हो के आवतानी"

वह आगन में आ गए और कजरी और सुगना को शहर जाने की सूचना दी। वह दोनों झटपट उनके लिये नाश्ते की तैयारी में लग गयीं। उन्हीने कजरी और सुगना से पूछा

"शहर से कुछ ले आवे के बा?"

सुगना चाहती तो बहुत कुछ पर उसने कहा "कब ले आइब"

सुगना के मुंह से यह शब्द सुनकर सरयू सिंह खुश हो गए. उनकी प्यारी सुगना अब उनका इंतजार किया करती है यह बात इनके दिल को छू गई.

कजरी ने कहा

"देखीं सुगना बेटी राउर केतना ख्याल राखे ले"

यह कह कर कजरी ने किए धरे पर पानी फेर दिया। सुगना की कुवारी बुर सूंघने के बाद सरयू सिंह ने सुगना से बेटी का दर्जा छीन लिया था।

रास्ते भर वो सुगना के साथ अपनी रेल यात्रा के दौरान उसके स्पर्श को याद करते रहे। धोती के अंदर लंड परेशांन होकर उन्हें गरिया रहा था। लेना एक नया देना दो, वो बेचारा खामखां परेशान हो रहा था।

दोपहर तक सरयू सिंह हरिया के साथ अस्पताल पहुंच चुके थे। उन्हें अस्पताल दुनिया की सबसे गंदी जगह लगती थी जहां सिर्फ और सिर्फ दर्द था। यहां भी वह अपना दर्द लेकर ही आए थे पर यह दर्द उनके डर के कारण जन्मा था और उन्हें मजबूरन सुधीर से मिलने आना पड़ा था।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ सुधीर अपनी आंखें खोल कर टुकुर-टुकुर देख रहा था। उसने सरयू सिंह और हरिया को पहचान लिया। सरयू सिंह ने पूछा

"कैसे हो गईल हो?"

तभी सुधीर की पत्नी ने घुंघट के अंदर से कहा

"इहे चारों ओर केस करत चलेले। रामपुर के तीन चार गो लड़का मरले रहले हा सो"

सरयू सिंह को यह जानकर हर्ष हुआ की सुधीर को मारने वाले लोग पहचान लिए गए थे और उनका इस केस से कोई संबंध नहीं था। सुधीर की आंखों में भी नफरत कम दिखाई पड़ रही थी। सरयू सिंह का हॉस्पिटल आना लगभग सफल हो गया था।

वह कुछ देर सुधीर के साथ रहे साथ में लाया हुआ फल उन्होंने सुधीर की पत्नी को पकड़ाया और बोले

"भगवान इनका के जल्दी ठीक करो फेर केस भी त लड़े के बा।"

उन्होंने सुधीर को हंसाने की कोशिश की थी। सुधीर की नफरत निश्चय ही घट चुकी थी वह मुस्कुराने लगा। घुंघट के अंदर से सुधीर की पत्नी की हंसी सुनाई दी।

सरयू सिंह खुश हो गए और हरिया के साथ हॉस्पिटल से बाहर आ गए। आज का दिन शुभ हो गया था। उन्होंने खेती किसानी से संबंधित शहर के कुछ और कार्य निपटाए और वापसी में स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े। रिक्शे पर आज सुगना की जगह हरिया बैठा हुआ था।

एक वह दिन था जब उत्तेजना चरम पर थी और एक आज का दिन था। वह रास्ते में फिर सुगना की यादों में खो गए। उन्हें वह होटल दिखाई दे गया जिसमें उन्होंने सुगना के साथ रात गुजारी थी और उसकी मदमस्त चूचियों के दर्शन किए थे। होटल से कुछ ही दूर पर वह कपड़े की दुकान भी दिखाई पड़ी। उस दुकान के बगल में लटके हुए औरतों के अंग वस्त्र देखकर सरयू सिंह का मन ललच गया। वह मॉडल उन्हें सुगना दिखाई देने लगी। उनके मन में आया कि वह रिक्शा रोककर अपनी सुगना के लिए वह अंतर्वस्त्र ले लें और उसे मॉडल की तरह सजा कर …...आगे वह स्वयं शर्मा गए। उनकी सोच पर दिमाग का नियंत्रण कायम था परंतु उनकी लंगोट में हलचल होने लगी लगी। लंड का तनाव बढ़ रहा था उन्हें दर्द का एहसास होने लगा।

हरिया ने कहा

"कहां भुलाईल बाड़ा भैया"

सरयू सिंह चाह कर भी हरिया को हकीकत नहीं बता सकते थे. जहां उनका सुखचैन खोया था वह उनकी अपनी बहू सुगना की बुर थी। उन्होंने बात टाल दी।

स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने सुगना और कजरी के लिए उनकी पसंद की मिठाइयां लीं और वापस ट्रेन पकड़ने के लिए चल पड़े.

उधर सुधीर की पत्नी रानी ने कहा

"सरयू जी.. केतना अच्छा आदमी हवे आपके देखे आईल रहले हा"

सुधीर ने रानी की बात से सहमति जताई उसे अब सच में अफसोस हो रहा था कि उसने सरयू सिंह पर बिना मतलब केस कर दिया था। उस विवाद का समाधान बैठकर भी निकाला जा सकता था जिसमें हर व्यक्ति को अपना अपना रुख थोड़ा नरम करना था। रानी सरयू सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी। मजबूत कद काठी के सरयू सिंह वैसे भी स्त्रियों के पसंदीदा थे।

जिस तरह सुंदर स्त्री हर वर्ग के पुरुषों को पसंद आती है वही हाल सरयू सिंह का था जिस स्त्री के योनि से प्रेम रस बहता हो वह सरयू सिंह को देख कर एक बार जरूर उनकी कद काठी की तारीफ करती होगी। उनसे अंतरंग होना या ना होना वह स्त्री की मानसिकता पर निर्भर था पर शरीर सिंह का व्यक्तित्व स्त्रियों को प्रभावित करने में सक्षम था.

घर पहुंच कर सुगना थाली में पानी लेकर अपने बाबुजी के पैर धोने लगी। उसकी कोमल हथेलियां उनके पैरों को पानी से धुलते हुए मालिश भी कर रहीं थीं।

सरयू सिंह की निगाह उसकी चूचियों पर टिकी थी। सुगना का ध्यान पैर धोने पर लगा हुआ था और उसका आंचल छाती से हट गया था चूँचियों की झलक सरयू सिंह के मन में उत्तेजना पैदा कर रही थी उधर सुगना की निगाह बीच बीच मे सरयू सिंह के लंगोट पर जा रही थी उसके अंदर छुपा जीव अपना आकार बढ़ा रहा था। सुगना अब समझदार हो चली थी। उसने अपनी चूचियों पर नजर डाली और आँचल खींच लिया।

कजरी गुड़ और पानी लेकर आ गयी थी। सरयू सिंह के झोले में सिर्फ मिठाई देखकर सुगना थोड़ा मायूस हो गई। अपने मन के किसी कोने में उसने कल्पना की थी कि उसके बाबुजी उसके लिए वह अंतर्वस्त्र खरीद लाएंगे पर यह सिर्फ और सिर्फ उसकी कोरी कल्पना थी। उसे पता था यह संभव नहीं होगा फिर भी मन तो मन होता है खुद ही बेतुकी चीजें सोचता है और उनके पूरा न होने पर स्वयं दुखी हो जाता है।

नियति ने सुगना को निराश न किया। आज सुगना का जन्मदिन था. उसने आज सुबह सुबह ही घर के सारे काम निपटाये और स्नान करके अपनी वही खूबसूरत लहंगा चोली पहन ली जो सरयू सिंह ने उसे होली के दिन उपहार स्वरूप दिया था। जब भी सुगना सुंदर कपड़े पहनती वह खुद को उस मॉडल के रूप में देखती पर उसके पास अंतर्वस्त्र नहीं थे लहंगे के नीचे उसे अपनी नग्नता का एहसास होता वह सिहर उठती और मन ही मन आनंदित होती। कपड़े पहन कर वह घर के पिछवाड़े में बाल सुखाने लगी।

सरयू सिंह सब्जियों की क्यारी में कार्य कर रहे थे। कजरी रसोई में सुगना के लिए मालपुआ बना रही थी। आज घर में खुशी का माहौल था। सरयू सिंह सुगना को मुस्कुरा कर देख रहे थे वह आज बहुत सुंदर लग रही थी। ससुर और बहू में कुछ नजदीकियां तो आ ही चुकी थीं दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति कामुकता लिए हुए थे।

नियति ने तरह-तरह की परिस्थितियां बनाकर उन दोनों को इतना करीब ला दिया था और आज फिर नियत ने अपनी एक चाल चल दी थी। एक उड़ने वाला कीड़ा सुगना के लहंगे में घुस गया। फर्रर्रर... फुर्ररर….की आवाजें आने लगी सुगना परेशान हो रही थी। आवाज उसके बिल्कुल करीब से आ रही थी पर वह जीव उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था तभी वह उसकी नग्न जांघों से छू गया। वह कीड़ा स्वयं एक अनजाने घेरे में आ चुका था। वह कभी सुगना के घुटने को तो कभी उसके कोमल जाँघों को छू रहा था।

सुगना अपने हाथों से उसे पकड़ना चाहती पर वह अपनी जगह लगातार बदल रहा था। सुगना ने उसे पकड़ने का प्रयास किया पर असफल रही वह बेचैन थी। वो अपने हाथ इधर-उधर कर रही थी तभी सरयू सिंह की निगाह उस पर पड़ गई उन्होंने पूछा

"का भईल सुगना "

उसने कहा

"लागा ता कोनो कीड़ा घुस गईल बा"

सरयू सिंह क्यारी छोड़कर सुनना के पास आ गये और उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। सुगना ने अपने हाथों से अपने लहंगे को घुटनों तक उठा लिया था उसके कोमल पैर सरयू सिंह की आंखों के सामने थे। इस प्रक्रिया में उनके हाथ सुगना के पैरों से छूने लगे। वह कभी उसकी जांघों को छूते कभी घुटनों को। सुगना परेशान तो थी अब उत्तेजित भी हो चली थी। उसे मन ही मन यह डर भी था कि कहीं वह कीड़ा उसे काट ना ले अंततः सुगना ने स्वयं ही वह कीड़ा पकड़ लिया। वह उसकी दाहिनी जांघ के ठीक ऊपर था जिसे सुगना ने अपनी उंगलियों में पकड़ रखा था।

कीड़े और सुगना के उंगलियों के बीच सुगना का खूबसूरत लहंगा था । अब मुश्किल यह थी कि उस कीडे को बाहर कैसे निकाला जाए। उसके हाथ में प्लास्टर बधे होने की वजह से वह अपने दूसरे हाथ का प्रयोग नहीं कर पा रही थी. उसने कहा

"बाऊजी हम पकड़ ले ले बानी इकरा के निकाल दी" सरयू सिंह उत्साहित हो गए वह पास आकर सुगना का लहंगा ऊपर उठाने लगे. सुगना की निगाह अपने लहंगे की तरफ जाते वह सिहर उठी सरयू सिंह जमीन पर उकड़ू बैठे हुए थे और सुगना का लहंगा घुटनों के ठीक ऊपर आ चुका था। सरयू सिंह इसी पसोपेश में थे कि वह लहंगे को और ऊपर उठाएं या नहीं पर कीड़ा पकड़ने के लिए उन्हें अपने हाथ तो अंदर ले ही जाने थे।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और सुगना ने अपनी आंखें शर्म से बंद कर लीं। अब तक नैनों की भाषा सरयू सिंह और सुगना समझने लगे थे ।

सरयू सिंह ने लहंगा और ऊपर उठा दिया उनकी निगाहें पहले तो कीड़े को देख रहीं थीं पर उन्हें सुगना की जांघों के बीच का जोड़ दिखाई पड़ गया। वह कीड़े को एक पल के लिए भूल ही गए सुगना की हल्की रोयेंदार कमसीन बुर को देखकर को वह मदहोश हो गए। उनका ध्यान कीड़े पर से हट गया।

बाहर बहती हुई हवा ने जब सुगना की कोमल बुर को छुआ सुगना भी सिहर उठी। उसे अपनी नग्नता का एहसास हो गया उसने यह महसूस कर लिया कि उसके बाबूजी उसकी कोमल बुर को देख रहे हैं यह सोचकर वह थरथर कांपने लगी।

उसके हाथों की पकड़ ढीली हो रही थी. सरयू सिंह उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। उन्होंने अपनी उंगलियां कीड़े को पकड़ने के लिए लहंगे के अंदर की उसी समय उनकी हथेलियों का पिछला भाग सुगना की जांघों के ऊपरी भाग से छू गया। आज पहली बार किसी मर्द ने सुगना की जांघों को छुआ था। सुगना सिहर गई उसके हाथ से वह कीड़ा छूट गया और लहंगा भी।

एक बार फिर वह कीड़ा सुगना के लहंगे में गुम हो गया और सुगना का लहंगा उसके बाबूजी के हाथों पर टिक गया। फुर्ररर…फर्रर्रर ….. की आवाजें आने लगी. सरयू सिंह और सुगना दोनों कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे. अंततः सरयू सिंह ने सुगना के लहंगे को स्वयं ही ऊपर उठा दिया जांघों तक आते-आते उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई.

सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर को निहार रहे थे उसी समय कीड़ा सुगना की जांघों के बीच से निकलकर उनके माथे को छूता हुआ उड़ गया पर जाते-जाते उनके माथे पर अपना दंश दे गया। सरयू सिंह के माथे पर लाल निशान दिखने लगा उन्हें अपनी कुंवारी बहू की कोमल चूत देखने का नियति ने अवसर भी दिया था और दंड भी।

परन्तु सरयू सिंह का लंड इस दंश के दंड को भूल कर उदंड बालक की तरह घमंड में तन कर खड़ा था आखिर उसके एक सुकुमारी की कोमल बुर में प्रवेश होने की संभावना योगबल ही रही थी।

सरयू सिंह ने लहंगा छोड़ दिया। सुगना अपने बाबूजी का माथा सहलाये जा रही थी। सुगना झुक कर उस जगह पर फूंक मारने लगी जहां कीड़े ने काटा था।

उसकी इस गतिविधि ने उसकी कोमल चूचियों को एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने ला दिया जो चोली में से झांकते हुए उन्हें ललचा रही थीं।

सरयू सिंह कीड़े का दर्द भूल चुके थे वह सुगना के प्यार में खो गए थे। आज सरयू सिंह ने सुगना का खजाना देख लिया था। और वह मन ही मन प्रसन्न थे।

सुगना भी मन ही मन प्रसन्न थी उसकी कोमल बुर उत्तेजना से पनिया गई थी पर उस पर लहंगे का आवरण आ चुका था उसके बाबूजी ने उसकी कुंवारी बुर तो देख तो ली थी पर वह उसकी उत्तेजना न देख पाए थे। सुगना ऊपर वाले को धन्यवाद दे रही थी।

आंगन में आने के बाद मालपुआ खाते समय कजरी ने सरयू सिंह से पूछा

ई माथा प का काट लेलस हा?"

सुगना भी अब हाजिर जवाब को चली थी. सुगना ने हंसते हुए बोला..

"बाबूजी मालपुआ में भुलाईल रहले हा तबे कीड़ा काट लेलस हा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. वह सच में आज अपनी बहू सुगना की कोमल बुर में खोए हुए थे। सुगना की बूर मालपुए से किसी भी तरह कम न थी वह उतनी ही मीठी, उतनी ही रसीली और मुलायम थी। सरयू सिंह की जीभ मालपुए में छेद करने के लिए लप-लपाने लगी।

कजरी भी मालपुए का नाम सुनकर शर्मा गयी। उसके कुँवर जी उसकी बुर को भी कभी कभी मालपुआ बुलाया करते थे।

सुगना ने अनजाने में सरयू सिंह के तार छेड़ दिए थे...
:reading: Review Kal Doonga :ciao:
 

odin chacha

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मस्त अपडेट था ब्रो अब देखते हैं इस नया मालपुआ से रस कितना निकलता है,और सरुयू भाई कितने चाव से उस मालपुआ को खाते हैं........रस से भरपूर कामुक अपडेट था
 
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