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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Lovely Anand

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बनारस महोत्सव का दुसरे दिन की उत्सुकता लगी हैं
अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

अपडेट आज रात या कल सुबह तक ...
 
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Lovely Anand

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बनारस महोत्सव का दूसरा दिन…

बनारस स्टेशन से एक महिला दो खूबसूरत किशोरियों के साथ रिक्शे पर बैठी हुई शहर की तरफ आ रही थी सोनू का दोस्त विकास जो स्टेशन से अपने रिश्तेदार को छोड़कर वापस आ रहा था खूबसूरत किशोरियों को देखकर लालायित हो गया वह अपनी राजदूत से रिक्शे का पीछा करने लगा। कभी वह रिक्शे से आगे निकलता और अपनी गर्दन घुमा कर कभी एक किशोरी पर ध्यान गड़ाता कभी दूसरी पर कभी दाएं कभी बाएं।

लड़की के हाव भाव यह इंगित कर रहे थे की वह पुरुष नजरों की प्रतीक्षा में थी। बाई तरफ बैठी लडक़ी ज्यादा सतर्क नजर आ रही थी जब जब उसकी नजरें विकास से मिलतीं वह अपनी नजरें झुका लेती।

विकास उन किशोरियों के आकर्षण में बंधा हुआ बनारस महोत्सव में पहुंच गया। किशोरियों की सीलबंद बुर का आकर्षण उसे रस्ता भूला कर इस महोत्सव में खींच लाया था। रिक्शा के अचानक बाई तरफ घूमने से विकास की मोटरसाइकिल रिक्शा से टकरा गई और एक किशोरी रिक्शे से गिर कर जमीन पर आ गई..

"बेटा लगी तो नहीं?"

पद्मा ने रिक्शे से उतरते हुए पूछा।


विकास भी मोटरसाइकिल से गिर चुका था।

मोनी उस पर गुस्सा होते हुए बोली


"भैया आप को दिखता नहीं है"

विकास सोनी पर ध्यान टिकाये हुए था। वह फटाफट उठ खड़ा हुआ और राजदूत को स्टैंड पर खड़ा कर वह सोनी के पास पहुंचा और बेहद संजीदगी से बोला..

"मुझे माफ कर दीजिए रिक्शा के अचानक मुड़ जाने से मैं टकरा गया.."

रिक्शा वाले ने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी सच मे वह बिना हाथ दिए ही मुड़ गया था..

भगवान का शुक्र था की किसी को कोई विशेष चोट नहीं आई थी परंतु इस मिलन के चिन्ह सोनी और विकास दोनों के घुटनों पर अवश्य थे जो थोड़े छिल चुके थे।

पीछे आ रहे रिक्शे में पदमा की पड़ोसी भी इसी महोत्सव में आ रही थी। दोनों रिक्शे विद्यानंद के पंडाल की तरफ बढ़ रहे थे और विकास अपनी मोटरसाइकिल से सुरक्षित दूरी बनाए हुए उनके पीछे पीछे जा रहा था। विद्यानंद के पंडाल पर पहुंचते ही सब लोग रिक्शे से उत्तर कर पंडाल में जाने लगे। सोनी की निगाहें विकास को ढूंढ रही थी और विकास अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा दूर से सोनी को देख रहा था।

सोनी की नजरें जब विकास से टकराई सोनी ने अपनी गर्दन झुका ली। विकास पहली मुलाकात में ही सोनी पर फिदा हो गया था। अंदर से मोनी की आवाज आई…


"अरे सोनी चल पहले सामान रख ले मेला बाद में देख लेना " मोनी को क्या पता था सोनी मेला नहीं अपना मेल देख रही थी।

पंडाल में पहुंचकर शीघ्र ही पदमा की मुलाकात कजरी और सुगना से हो गयी। सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा.. कल रात ही वह सोनी और मोनी के बारे में सोच रही थी और आज उसकी दोनों बहने उसके सामने थीं। सुगना ने उन दोनों को अपने गले से लगा लिया और उनकी छोटी छोटी कसी हुई चूचियां सुगना की फूली हुई चुचियों से सटने लगी सोनी के मन में हमेशा यह भाव आता की दीदी की चूचियां कितनी भरी भरी हैं न जाने मेरी कब बड़ी होंगीं।

मिलन की घड़ी बेहद सुखद थी अपने परिवार के साथ मेला घूमने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी। कजरी और पदमा भी देश दुनिया की बातें करने लगीं। बनारस महोत्सव ने सच में सभी के चेहरे पर खुशियां ला दी थीं सरयू सिंह अपनी दोनों भूतपूर्व प्रेमिकाओं और अपनी वर्तमान रानी सुगना को लालच भारी निगाहों से देख रहे थे उनका ध्यान सुगना के गदराये नितंबों के बीच छुपे छेद पर केंद्रित था। उनका इंतजार अब उन्हें बेसब्र कर चुका था।

उधर विकास अपने बिस्तर पर पड़ा सोनी को याद कर रहा था कितनी खूबसूरत और करारी माल थी सोनी।

सोनी की छोटी-छोटी चुचियों को याद कर विकास की हथेलियों में ऐठन उत्पन्न हो गई काश कि वह उन्हें छु पाता। उसकी उत्तेजना ने उसके लण्ड को जागृत कर दिया और वह बेचारा एक बार फिर विकास की खुरदरी हथेलियों में पिसने को तैयार हो रहा था। विकास का लण्ड अपने मालिक को चीख चीख कर अपनी संगिनी लाने को कह रहा था पर विकास भी उतना ही मजबूर था जितना कि वह मसला जा रहा लण्ड।

विकास ने न जाने कितनी लड़कियों और युवतियों को अपने ख्याओं में लाकर पर अपने लण्ड को झांसा देते हुए हस्तमैथुन किया था पर आज वह सोनी पर फिदा हो गया था। वह अपनी भावनाओं को वह अपने दोस्त सोनू से साझा करना चाहता था परंतु उसका दोस्त सोनू अपनी लाली दीदी की के साथ रसोई में बर्तन मांज रहा था और लाली के शरीर से अपने शरीर को अलग-अलग अवस्थाओं में सटा रहा था। सोनू की लाली दीदी उसके दिलो-दिमाग , तन, मन सब पर छाई हुई थी।

सोनू को इस बनारस महोत्सव की शुरुआत में ही अपनी लाली दीदी की जवानी उसे उपहार स्वरूप मिल गई थी नियति ने यह संयोग ऐसे ही नहीं बनाया था। सोनू, लाली और उसके पति राजेश की कामुक कल्पनाएं का अभिन्न अंग था वह उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला था।

कल रात लाली के साथ अपने प्रथम संभोग को सकुशल अंजाम देने और राजेश के जाने के बाद हुई घटनाओं को याद करते करते सोनू खो सा गया। लाली खाना बनाते बनाते बीच-बीच में सोनू को देख रही थी जो अपनी यादों में खोए हुए निर्विकार भाव से खिड़की के बाहर देख रहा था और अपने हाथों में गिलास लिए उस पर अपनी उंगलियां लापरवाही से फिर आ रहा था..

लाली ने अंदाज लगा लिया की सोनू कल रात के ख्यालों में डूबा हुआ है...

बीती रात बिस्तर पर चाय पीने के पश्चात लाली रजाई में घुस गई और अपनी पीठ पर तकिया लगा कर टीवी देखने लगी सोनू भाई बिस्तर पर आ चुका था लाली ने पूछा

"सोनू बाबू नींद आ रही हो तो टीवी बंद कर दूं"

" नहीं दीदी मुझे तो नहीं आ रही"

"क्यों अपनी दीदी के साथ मन नहीं लगता क्या"

लाली सोनू को खोलना चाह रही थी पर सोनू अभी भी शर्मा रहा था।

"अच्छा आ देख मेरी आंख में कुछ पड़ गया है जरा फूंक मारकर निकाल दे"

सोनू लाली के बिल्कुल पास आ गया और अपने होठों को गोलकर लाली की आंख के पास आकर फूंक मारने लगा। सोनू के भोलेपन को देखकर लाली को उस पर बेहद प्यार आया और उसने अपने होंठ उससे बड़े आकार में गोलकर उसके फूंक मार रहे होठों को अपने आगोश में ले लिया। जब तक सोनू कुछ समझ पाता रेलवे कॉलोनी की बत्ती एक बार फिर गुल हो गयी।

सोनू ने लाली की मंशा जान ली थी और उसने लाली के होठों से जंग छेड़ दी । लाली ने अपनी तलवार रूपी जीभ बाहर निकाल ली पर सोनू ने उसे अपने होठों से खींच कर अपनी जीभ से सटा लिया।

इधर लाली और सोनू एक दूसरे के होठों से खेल रहे थे उधर सोनू के हाथ लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे..

रजाई तो न जाने कब एक उपेक्षित वस्त्र की भांति किनारे पड़ी हुई थी जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई लाली के कोमल बदन को ठंड का एहसास होता गया।

लाली की नाभि तक पहुंचते-पहुंचते सोनू ने लाली की नाइटी को छोड़ अपने पजामे को नीचे करना शुरू कर दिया।

दोनों प्रेमी अर्धनग्न हो चुके थे सोनू ने लाली के होठों को चूमते हुए नाइटी पर ध्यान लगाया और लाली के सहयोग से उसका ही चीर हरण कर लिया।

सोनू अब पूरी तरह लाली के ऊपर आ चुका उसकी लाली दीदी जो उम्र में तो बड़ी थी पर सोनू के आगोश में लगभग समा चुकी थी। उम्र का यह अंतर सोनू के बलिष्ठ शरीर ने मिटा दिया था। दोनों एक प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे से सटे हुए थे। उधर सोनू ने एक बार फिर लाली के चेहरे और होठों को चूमना शुरू किया और सोनू के तने हुए लण्ड ने लाली की चूत को चुम लिया।


जैसे-जैसे लाली अपनी जीभ को सोनू के होठों के अंदर करती गई सोनू का लण्ड उसकी मलाईदार और कसी हुई चूत में प्रवेश करता गया।

वासना अंधेरे में जवान होती है और एकांत में फलती फूलती है। उसके विविध रूप भी अंधकार में ही प्रकट होते हैं। यदि दोनों पक्षों की सहमति हो और शरीर का लचीलापन बरकरार हो तो संभोगरत जोड़े अपने सारे अरमान पूरे कर सकते हैं ।

सोनू ने आज तक जितना भी ज्ञान अपने दोस्तों और गंदी किताबों से सीखा था अपनी लाली दीदी पर प्रयोग कर लेना चाहता था। उसने अपने हाथों से लाली की जांघों को पकड़कर लाली के घुटने उसकी चुचियों के दोनों तरफ करते हुए अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक उतार दिया लाली एक बार फिर कराह उठी

"बाबू तनी धीरे से ….आह...दुखाता"

लाली ने अंतिम शब्द का प्रयोग यूं ही नहीं किया था इस अवस्था में सोनू का लण्ड उसके गर्भाशय पर एक बार फिर छेद करने को आतुर था।

सोनू ने लाली को चूम लिया और अपने लिंग को थोड़ा पीछे कर लिया लाली ने भी अपनी जांघें थोड़ा ऊंची की और खुद को व्यवस्थित कर लिया।

सोनू अपनी लाली दीदी को पूरी रिदम के साथ चोद रहा था और लाली अपनी आंखें बंद किए उस का आनंद ले रही थी। जाने लाली ने अपनी आंखें क्यों बंद की थी कमरे में तो पहले से ही अंधेरा था पर शायद आंखों के बंद करने से दिमाग और शांत हो जाता है और लाली उस अद्भुत असीम शांति में अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

पर नियति तो जैसे शरारत करने के मूड में ही थी। रेलवे कॉलोनी की लाइट वापस आ गयी। लाली की बंद आंखों पर रोशनी की हल्की फुहारे आने लगीं। लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह आज अपने ही बिस्तर पर पूरी तरह नग्न होकर अपने पैर के दोनों घुटनों को अपनी चुचियों के दोनों तरफ हाथों से खींचे हुए चुद रही थी।। लाली शर्म से पानी पानी हो गई सोनू क्या सोच रहा होगा? उसने अपने पैरों को छोड़ा और अपनी बंद आंखों को अपनी उंगलियों से ढक लिया.

अचानक लाइट आ जाने से एक पल के लिए सोनू भी डर गया था परंतु लाली ने जब अपनी आंखें स्वयं ही ढक लीं तो सोनू को आंखें बंद करने की कोई आवश्यकता न थी। वह लाली के खूबसूरत और भरे पूरे जिस्म का आनंद लेने लगा। एक पल के लिए उसने अपना ध्यान चुदाई से हटाकर लाली की खूबसूरती को जी भर कर निहारने लगा। अपनी नंगी दीदी का खूबसूरत चेहरा, सुंदर और सांचे में ढली हुई गर्दन और गर्दन में पहना हुआ काले मोतियों और सोने के धागों से बना हुआ मंगलसूत्र। मंगलसूत्र का लॉकेट दोनों चुचियों के बीच निर्विकार भाव से पड़ा सोनू को देख रहा था।


उस लाकेट को आज अपना अस्तित्व समझ नहीं आ रहा था। आज से पहले उसने नग्न लाली पर सिर्फ उसके पति राजेश को ही देखा था। उसे राजेश ने अपने प्रतीक स्वरूप लाली के खूबसूरत शरीर पर सजाया था परंतु आज लाली के भाई को उसी अवस्था में देखकर उसे अपनी उपयोगिता पावन संबंधों के प्रतीक के रूप में नहीं अपितु एक सौंदर्य की वस्तु के रूप में महसूस हो रही थी।

लाली सोनू की मनोदशा से अनभिज्ञ उसके कमर हिलाने का इंतजार कर रही थी। प्रेम कीड़ा में यह ठहराव उसे पसंद नहीं आ रहा था। उसने अपनी उंगलियां अपनी आंखों पर से हटायीं और सोनू की तरफ देखा जो अपना ध्यान उसकी चुचियों पर लगाए हुए था।


जब तक लाली कुछ कहती सोनू ने उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां गप्प से अपने मुंह में भर लीं और दोनों हाथों से पकड़ कर उसे मीसने लगा। सोनू के बलशाली होठों द्वारा चुसे जाने से दूध की धारा सोनू के मुंह में फूट पड़ी। अपनी भांजी रीमा के हिस्से का दूध पीना सोनू को पसंद ना आया और उसने अपने होठों का दबाव नियंत्रित किया और चूसने की वजह उसे चुभलाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया

आनंद में जो ठहराव आया था वह उतनी ही तेजी से अपनी गति पकड़ने लगा। लाली ने अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं अब वह उंगलियों के प्रयोग से अपने प्यारे भाई सोनू के सर को प्यार से सहलाने लगी।


सोनू इस प्यार से अभिभूत होकर लाली को गचागच चोदने लगा कमरे में हलचल बढ़ रही थी जांघों के टकराने की थाप अद्भुत थी। लाली के दोनों बच्चे सो रहे थे और उनकी मां अपने भाई सोनू को प्रेमझुला झूला कर सुलाने का प्रयास कर रही थी।

सोनू अभी कुछ देर पहले ही स्खलित हुआ था उसकी उसका शरीर वीर्य उत्पादन के लिए अंडकोषों को निचोड़ रहा था। परंतु स्खलन हेतु वीर्य एकत्रित होने में अभी समय था। सोनू की तेज चल रही सांसे और लण्ड ने लाली को अपने पैर तानने पर मजबूर कर दिया। सोनू की चुदाई ने लाली को एक बार फिर झड़ने पर मजबूर कर दिया था। लाली हांफ रही थी और अपनी झड़ती हुई बुर में सोनू के लण्ड के आवागमन को महसूस कर रही थी। कभी वह उसे रोकना चाहती कभी अपनी बुर को सिकोड़ कर उसे बाहर निकालना चाहती। परंतु उसकी उंगलियां सोनू के सिर को लगातार अपनी चुचियों पर खींचे हुए थीं।

लाली शांत हो रही थी और भरपूर प्रयास कर रही थी कि वह अपने भाई सोनू की उत्तेजना को भी अपनी बुर की गर्मी से शांत कर दे परंतु सोनू तो आज अड़ियल सांड की तरह उसे निर्ममता से चोदे जा रहा था।

लाली की बुर अब आराम चाह रही थी परंतु लाली सोनू की उत्तेजना पर ग्रहण नहीं लगाना चाहती थी। वह सच में सोनू से प्यार करने लगी थी अपनी बुर की थकान और उसकी संवेदना को ताक पर रख वह अभी भी चेहरे पर मुस्कान लिए सोनू को इस स्खलन के लिए उत्साहित कर रही थी। नियत लाली की यह कुर्बानी देख रही थी उसने लाली को आराम देने की सोची और लाली की पुत्री रीमा जाग गई..

सोनू ने इस आकस्मिक आए विघ्न को ध्यान में रख अपनी रफ्तार बढ़ाई परंतु रीमा की आवाज तेज होती गयी। इससे पहले की राजू जागता और अपने मामा को अपनी मम्मी के ऊपर देखता लाली ने करवट लेना ही उचित समझा। सोनू ने अपना फनफनाता आता हुआ लण्ड मन मसोसकर बाहर खींच लिया जो फक्क की आवाज के साथ बाहर आ गया लाली और सोनू दोनों का ही ध्यान उस आवाज पर गया और उनकी नजरें मिल गई यह आवाज बेहद मादक थी और लाली और सोनू दोनों को उनके नंगे पन का एहसास करा गई थी दोनों ने ही अपनी पलके झुका लीं।


लाली ने रीमा की तरफ बढ़ कर उसे अपनी चुचियों से सटा लिया अपने मामा द्वारा कुछ देर पहले चुसी जा रही चुचियों को रीमा ने अपने मुंह में ले लिया और उससे दूध खींचने का प्रयास करने लगी। सोनू ने अनजाने में ही अपनी भांजी की मदद कर दी थी उसके चुभलाने से लाली का दूध उतर आया था। रीमा आंखें बंद कर दूध पीने लगी।

करवट मुद्रा में लाली को नग्न देखकर सोनू एक बार फिर उसके मदमस्त नितंबों का कायल हो गया वह नीचे आकर लाली के नितंबों को चूमने लगा ….

सोनू लाली को सर से पैर तक झूमे जा रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके सामने पूरी तरह नग्न लेटी हुई थी। लाली भी अपने तन की नुमाइश सोनू को बेझिझक होकर कर रही थी। पास पड़ी रजाई को न तो लाली ने खींचने की कोशिश की और न हीं सोनू ने।

रीमा के सो जाने के पश्चात लाली जान चुकी थी कि उसे एक बार फिर चुदना है। अपने प्रेम सफर पर उसने सोनू को अकेला छोड़ दिया था। उसकी बुर फूल चुकी थी और अब लण्ड के ज्यादा वार सहने को तैयार न थी। लाली ने अपने जांघों के बीच अपनी रानी की संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए खुद को डॉगी स्टाइल में ला दिया।

सोनू लाली का यह दिव्य रूप देख भाव विभोर हो गया। दोनों नितंबों के बीच उसकी कसी हुई गांड और उसके नीचे फूली और चुदी हुई बुर सोनू के लण्ड का इंतजार कर करती हुयी प्रतीत हुयी। लाली में अपनी ठुड्डी अपनी हथेलियों पर रख ली थी और बेहद प्यार और मासूमियत से चोली


"बाबू बत्ती बंद कर लो…फिर चो….."

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली। हाय राम मैंने यह क्या कह दिया। हालांकि लाली ने उस कामुक शब्द का दूसरा अंश अपने होठों पर नहीं लाया था परंतु सोनू तो पूरी एकाग्रता से लाली की अवस्था और आमंत्रण दोनों को देख और सुन रहा था।

वह इस नयनाभिराम दृश्य को देखना चाहता था उसने लाली की पीठ को चूमते हुए कहा

"दीदी बस थोड़ा देर…. और आप बहुत सुंदर लग रही हो"


इधर सोनू ने अपनी बात खत्म की और उसके लण्ड ने एक बार फिर लाली की नाभि की तरफ दौड़ लगा दी। लाली यह बात जानती थी कि उसके मादक और नंगे जिस्म को इस अवस्था में देखकर सोनू की उत्तेजना सातवें आसमान पर होगी फिर भी वह राजू के अकस्मात जाग जाने की आशंका से थोड़ा चिंतित थी..

उसने सोनू की उत्तेजना को नया आयाम देने की सोची और अपने मुंह से हल्की हल्की मादक आवाजें निकालने लगी

"बाबू ….धीरे…..आ…..ईईई ….और जोर से...हां हां ऐसे आ…".

जैसे-जैसे लाली कराह रही थी उसकी उत्तेजना एक बार फिर जागृत हो रही थी। अपने भाई सोनू के प्रति उसका अद्भुत प्रेम देख उसकी बुर् अपने सूजन को दरकिनार कर खुद स्खलन के लिए एक बार फिर तैयार हो गयी। सोनू लाली की कमर को पकड़े हुए उसे लगातार चोद रहा था और बीच-बीच में झुककर कभी वह उसकी पीठ को चूमता और चुचियों को मसलता और फिर उसी अवस्था में आ जाता।

सोनू और लाली के इस प्रेम पर अब सोनू की उत्तेजना हावी हो चुकी थी वह यह बात भूल चुका था कि जिस कोमल युवती की बुर वह बेरहमी से चोद रहा था वह उसकी अपनी लाली दीदी है। लाली के नितंबों के बीच अपने लण्ड के आवागमन को देखकर सोनू पागल हो गया और अपने लण्ड को तेजी से आगे पीछे करने लगा उसका दिमाग पूरी तरह एकाग्र होकर स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू ने एक बार फिर अपने लण्ड को लाली को बुर के अंदर ठान्स दिया और वीर्य वर्षा प्रारंभ कर दी।


"दीदी …...आह…." सोनू झड़ रहा था और लाली भी. जहां लाली की बुर उसके तने हुए लण्ड को जड़ से सिरे तक अपने प्रेमरस से सिंचित कर रही थी वही सोनू का लण्ड लाली के गर्भ में एक बार फिर वीर्य भर गया था।

नियति मुस्कुरा रही थी। लाली कि बुर ने आज कई दिनों बाद दिवाली मनाई थी और उसकी कोमल बुर में चलाए गए पटाखों की गूंज 9 महीने बाद सुनाई देनी थी।

नियत उस गूंज को सुनना चाहती थी महसूस करना चाहती थी और अपनी साजिश का अंश बनाकर इस खेल को आगे बढ़ाना चाहती थी।


"जल्दी जल्दी काम खत्म कर जीजू आते ही होंगे शाम को बनारस महोत्सव चलना है ना अपनी दीदी से मिलने"

लाली सोनू का ध्यान खींचकर उसे वापस वर्तमान में ले आयी।

"आप भी तो मेरी दीदी ही हो" सोनू ने अपने सचेत होने का प्रमाण देते हुए बोला..

"तो क्या हम दोनों तेरी निगाहों में एक ही हैं"

"आप मेरे लिए दीदी से बढ़कर हो"

"तो इसका मतलब अब मैं तुझे सुगना से ज्यादा प्यारी हूं"

सोनू उत्तर न दे पाया पर लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया। और सोनू का लण्ड एक बार फिर खड़ा हो गया।

जब तक सोनू लाली की जांघों के बीच आने के लिए कोई रणनीति बनाता राजेश दरवाजे पर आ चुका था। सोनू के अरमान जमीन पर आ गए पर पिछली रात उसे जो सुख मिला था वह उसे कई दिनों तक तरोताजा और उत्साहित रखने वाला था।

बनारस महोत्सव में जाने की तैयारियां शुरू हो गई थी.

उधर विद्यानंद के पंडाल में सुगना ने मोनी को बुलाया

"जी.. दीदी"

"चल तुझे.. एक वीआईपी कमरा दिखा कर लाती हूं"

सुगना ने मनोरमा के वीआईपी कमरे की चाबी ली और मोनी को लेकर उसके कक्ष की तरफ चल पड़ी। सूरज सुगना की गोद में बैठा अपनी मौसी मोनी को देख रहा था। मोनी भी सूरज को छेड़ती हुई सुगना के साथ साथ चल रही थी और सूरज किलकारियां मारकर मोनी की छेड़छाड़ का अपनी भाषा और भाव से उत्तर दे रहा था..

कमरे के आसपास मनोरमा की गाड़ी न देखकर सुगना खुश हो गई सरयू सिंह ने उसे बताया था कि यदि मनोरमा की गाड़ी उस कमरे के आसपास नहीं हो तभी उस कमरे का प्रयोग करना है।

सुगना ने दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गई।

कमरे के साफ और सुंदर बिस्तर पर मोनी बैठ गई।

सुगना ने पूरी संजीदगी से कहा

" मोनी क्या तुझे सूरज के अंगूठे के बारे में सोनी ने कुछ बताया था "

"हां दीदी"

"क्या वह बात सच है?"

"हां दीदी उस दिन तो हुआ था"

"चल मेरे सामने कर ना"

मोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया उसकी कच्छी सरकायी उसके जादुई अंगूठे को अपने हाथों से सहलाने लगी। सूरज मुस्कुरा रहा था।



"रुक जा मैं बाथरूम से आती हूं फिर वापस चलते हैं" सुगना ने कहा और सोचती हुई बाथरूम में चली गई।

"सुगना दीदी यह देखिए.."

सुगना बाथरूम में नीचे बैठकर मूत्र विसर्जन कर रही थी उसकी बुर की फाँकें फैली हुई थी और उसका ध्यान मूत्र की सुनहरी धार पर लगा हुआ था। मोनी की आवाज सुनकर उसने अपने मूत्र विसर्जन को यथाशीघ्र रोकने की कोशिश की और वापस कमरे में आ गई सूरज की बढ़ी

"मोनी, अब यह वापस सामान्य कैसे होगा?

। सुगना कि आज आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी।

स्वामी विद्यानंद की बात सोलह आने सच थी..

सुगना सोच में पड़ गई तो क्या…. सूरज को सामान्य करने के लिए सच में उसे अपने बेटे सूरज से…...

छी छी छी…... मैं यह कभी नहीं कर पाऊंगी. सुगना बुदबुदाई..

"क्या नहीं कर पाओगी.. दीदी"

सुगना क्या क्या बोलती उसने बात टालने की कोशिश की।

"कुछ नहीं…"

"दीदी सूरज के साथ ऐसा क्यों हो रहा है?

"मोनी कसम खा तू यह बात किसी को नहीं बताएगी"

"पर दीदी यह सोनी को भी पता है"

तुम दोनों ही उसकी मौसी हो तुम दोनों के अलावा यह बात किसी के सामने नहीं आनी चाहिए यहां तक कि हमारी मां और मेरी सासू मां को भी नहीं।

"ठीक है दीदी आप चिंता मत कीजिए"

सुगना खुश हो गई परंतु मोनी के मन में शरारत सूझी चुकी थी उसने हंसते हुए कहा..

"जब सूरज व्यसक हो जाएगा तो इसके अंगूठे पर दस्ताना पहनाना पड़ेगा वरना यदि कहीं मैंने और सोनी ने इस अंगूठे को छू लिया तब …….?"

सुगना मुस्कुराने लगी । उसके दिमाग में युवा सूरज और मोनी की तस्वीर घूम गयी। वह मोनी और सोनी की बड़ी बहन थी उनके बीच बातचीत की मर्यादा कायम थी। वह सेक्स विषय पर खुल कर बात करना नहीं चाहती थी। उसने बात टालने के लिए कहा


"हट पगली…. चल तू ही दस्ताना बना देना"

दोनों उस कमरे से वापस पंडाल की तरफ आने लगीं। सुगना मन ही मन गर्भवती होने की योजना बना रही थी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह एक पुत्री को अवश्य जन्म देगी और अपने जान से प्यारे सूरज को इस अभिशाप से मुक्त करेंगी।

सरयू सिंह पंडाल के गेट पर खड़े अपनी मदमस्त बहू सुगना को आते हुए देख रहे थे। भरी-भरी चुचियों के बीच पतली कमर और साड़ी के पतले आवरण से झांकती सुगना की नाभि उन्हें सुगना कि गुदांज गाड़ का आभास करा रही थी। उनका लण्ड लंगोट के तनाव से जंग लड़ रहा था…

सुगना अपने बाबूजी के नजरों को बखूबी पहचानती थी परंतु मोनी साथ में थी वह चाह कर भी सरयू सिंह के करीब नहीं आ सकती थी उसने अपना घुंघट लिया और पंडाल के अंदर जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा..

"सुगना बेटा लावा सूरज के हमरा के दे द"

सुगना रुकी और सरयू सिह के पास जाकर सूरज को उनके हवाले करने लगी। ससुर बहू के निराले संबंधों से जन्मा सूरज अपनी माता की गोद से अपने पिता की गोद में जा रहा था सरयू सिंह की बड़ी उंगलियों ने इसी दौरान अपनी बहू सुगना की चुचियों को छेड़ दिया। सुगना शरीर सिंह की मनोदशा से बखूबी परिचित थी उसने अगल-बगल देखा और उंगलियों के खेल की प्रतिक्रिया में मुस्कुरा दी। और एक बार फिर पंडाल की तरफ बढ चली…


शेष अगले भाग में
 
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