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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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अद्भुत लेखनी का अद्वितीय कमाल
अवर्णनीय अपडेट है भाई दिल गार्डन गार्डन हो गया
भाई आपसे एक विनती करता की आप कहानी को अपने ही लवली और आनंद देने वाले अंदाज में ही लिखे
बहुत से पाठकोंका अलग अलग नजरीया हो सकता है जिससे कहानी का मेन प्लाट ही में बदलाव हो जाता है जो एक सफेदपोश में देख चुके हैं
तो अपने ही अंदाज और अपने ही हिसाब से लिखिए 🙏
बड़े दिनों बाद आपको देखकर अच्छा लगा। मित्र, मैने पाठको के कहने पर सफेदपोश में कहानी में कोई बदलाव नही किए हैं।
हा इस कहानी में सेक्स और जुड़ाव का सेक्स के स्वरूप में थोड़ा बदलाव अवश्य होगा पर कहानी मूलरूप में वही रहेगी।
जुड़े रहिये।।
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग -57

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती पर आत्मीयता से भरी आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


अब आगे…

दरअसल सूरज सरकते हुए नीचे आ गया था वह अपने छोटे-छोटे पैरों से सुगना की जांघों के बीच प्रहार कर रहा था जो अनजाने में ही उसकी भग्नासा से टकरा रहा था। शायद इसी वजह से सुगना की नींद खुल गई थी ।

सुगना जाग चुकी थी पर उसके दिमाग में स्वप्न में देखे गए दृश्य अभी भी कायम थे। अपने स्वप्न में स्वयं को सूरज के समक्ष नग्न रूप में याद कर सुगना मुस्कुराने लगी। उसने सूरज को ऊपर खींच कर अपनी चूचियां पुनः पकड़ाई और सोने की कोशिश करने लगी।

नियति ने सुगना को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया था जहां पंगत में बैठा हर व्यक्ति उसकी निगाहों में अब पवित्र और पावन नहीं बचा था। और जो समाजिक रिश्तों में सबसे पवित्र और पावन था (उसका पति रतन) वह उससे न तो भावनात्मक रूप से जुड़ा था और न हीं बनारस महोत्सव के विद्यानंद के पण्डाल में विद्यमान था।

सुगना की नाव आज दिन भर हिचकोले खाती रही पर किनारे न लग पायी। उसके गर्भ में आ चुका अंडाणु अपने निषेचन का इंतजार कर रहा था। परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन समाप्त हो चुका था.


बनारस महोत्सव का छठवां दिन

मुंबई से आ रही बनारस एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बैठी हुई छोटी बच्ची मिंकी ( रतन और बबिता की पुत्री) खिड़की पर ध्यान टिकाये हुए थी। धान की फसल लहलहा रही थी। मुम्बई में पल रही बच्ची के लिए वह नजारा बेहद खुबसूरत था हरियाली में लिपटी हुई उत्तर प्रदेश की पावन धरती सबका मन मोहने में सक्षम थी। तभी आवाज आई

"ये किसके साथ हैं? एक काले कोट पहने व्यक्ति ने पूछा।

"जी पापा इधर ही गए हैं" मिन्की ने अपनी मीठी आवाज में कहा।

टीटी और कोई नहीं लाली का पति राजेश था। वह बाहर गलियारे में झांकने लगा। रतन अपने ही कूपे की तरफ आ रहा था रतन और राजेश एक दूसरे को बखूबी पहचानते थे।


लाली के विवाह में रतन ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी और राजेश का पूरी इज्जत और सम्मान के साथ स्वागत किया था। वह दोनों एक दूसरे की भरपूर इज्जत किया करते थे। हालांकि यह मुलाकात चंद दिनों की ही हुआ करती थी।

रतन के विवाह और सुगना के अलग रहने के कारण राजेश को रतन का यह व्यवहार कतई पसंद नहीं आता था। वह बार-बार उसे सुगना को मुंबई ले जाने के लिए अपना सुझाव देता पर रतन की परिस्थितियां अलग थी। धीरे धीरे राजेश सुगना पर आसक्त होता गया और वह उसके खयालों में एक अतृप्त युवती की भूमिका निभाने लगी।

"अरे रतन भैया"

रतन ने जबाब न दिया पर अपनी बाहें खोल दीं।

राजेश और रतन एक दूसरे के गले लग गए। यह मुलाकात कई महीनों बाद हो रही थी।


मिंकी के रतन से कहा दिया पापा यह अंकल आपको पूछ रहे थे।

राजेश को इस बात का इल्म न था कि रतन मुंबई में शादी की हुई है मिंकी द्वारा रतन को पापा बुलाए जाने से वह आश्चर्यचकित था उसने रतन से कौतूहल भरी निगाहों से प्रश्न किया रतन उसे थोड़ा किनारे कर एक मीठा झूठ बोल कर अपनी स्थिति को बचा लिया । उसने राजेश को यह बताया वह उसके एक दोस्त की बेटी है जिसकी मृत्यु होने के पश्चात वह उसके साथ ही रह रही है और वह उसे बेटी की तरह पाल रहा है।

राजेश ने कोमल चिंकी की को अपनी गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला..

कितनी प्यारी बच्ची है।

कुछ ही देर में मैं रतन और राजेश खुल कर बातें करने लगे । राजेश ने रतन को बनारस महोत्सव में उसके परिवार के आगमन की खबर दे दी और रतन ने अपने गांव न जाकर बनारस मैं ही उतरने का फैसला कर लिया।


राजेश को यह जानकर थोड़ी खुशी भी हुई कि रतन सब कुछ छोड़ छाड़ कर वापस गांव लौट आया परंतु उसके अंतर्मन में दुख भी था सुगना उसकी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल रही थी।

सूर्य अपनी चमक बिखेर रहा था दोपहर के 12:00 बज रहे थे सुगना के जीवन में चमक बिखेरने के लिए उसका पति रतन वापस आ चुका था विद्यानंद के पांडाल के गेट पर टीन की दो बड़ी बड़ी संदूकें लिए रतन की निगाहें अपनी धर्मपत्नी सुगना को खोज रही थी। जिस धर्म का अनुपालन रतन ने खुद नहीं किया था परंतु देर से ही सही वह अब उसे पूरे तन मन से अपनी पत्नी बनाने को तैयार हो चुका था। परंतु सुगना क्या वह उसे माफ कर अपने पति का दर्जा दे पाएगी?


यह प्रश्न उतना ही कठिन था जितना सुगना का गर्भधारण।

गेट पर खड़े रतन को देखकर कजरी भागती हुयी उसके पास आयी। रतन ने उस के चरण छुए और मां बेटा दोनों गले लग गए।

कजरी ने राजेश की तरफ देखा तभी राजेश ने कहा

"चाची तोहार रतन अब हमेशा खातीर गावें आ गईले खुश बाड़ू नु"

कजरी की आंखों से आंसू बहने लगे अपने पुत्र का साथ पाकर कजरी भाव विभोर हो गई भगवान में उसे उसके व्रत का फल दे दिया था। वह मिंकी को लेकर अंदर गयी और उसे सुगना से मिलवाया।

मिन्की बेहद प्यारी थी यद्यपि वह सुगना की सौतन बबीता की पुत्री थी परंतु मिंकी ने बाल सुलभ चेहरे और कोमलता ने सुगना का मन मोह लिया मिंकी ने आते ही सुगना के पैर छुए और सुगना से कहा

"बाबू जी कहते हैं कि आप बहुत अच्छी हैं" सुगना मिन्की से पहले ही प्रभावित थी उसकी इस अदा से वह उसकी कायल हो गई उसने मिंकी को गोद में उठा लिया और उसके गालो को चुमते हुए बोली

" तुम भी तो केतना प्यारी हो" सुगना ने मिंकी से हिंदी बोलने की कोशिश की।


दूर खड़ा रतन सुगना और मिंकी के बीच बन रहे रिश्ते को देखकर प्रसन्न हो रहा था अचानक सुगना से उसकी निगाह मिली। परंतु दोनों में कुछ तो एक दूसरे से झिझक थी और कुछ परिस्थितियां दोनों अपनी ही जगह पर खड़े रहे।

बनारस महोत्सव का छठवां दिन खुशियां लेकर आया था परंतु भूखी प्यासी सुगना और उसकी अधीर बूर अब भी अपने बाबूजी की राह देख रही थी उसका इंतजार लंबा हो रहा था।

राजेश रतन को पांडाल में छोड़कर वापस अपने घर गया और शाम ढलते ढलते लाली और अपने बच्चों को लेकर वापस विद्यानंद के पांडाल में आ गया आज शाम 6:00 बजे राजेश द्वारा खरीदी गई लॉटरी का ड्रा भी होना था।

गरीब और मध्यम वर्ग हमेशा से चमत्कार की उम्मीद में जीता है राजेश भी इससे अछूता न था। ₹10 से 10 लाख की उम्मीद करना सिर्फ उसके ही बस का था। राजेश आशान्वित अवश्य था पर उसने अपने मनोभाव लाली से छुपा लिए लाली को पांडाल में छोड़कर लॉटरी के ड्रा में पहुंच गया।

एक-एक करके इनाम खुलते गए और हमेशा की तरह राजेश के भाग्य ने उसे वही दिया जिसका वह हकदार था। 10 से 10लाख बनाना न तो राजेश के बस में था और नहीं उसके भाग्य में लिखा था।

प्रथम पुरस्कार की घोषणा होने वाली थी राजेश हतोत्साहित होकर वापस मुड़ने ही वाला था तभी


सूरज का नाम पुकारा गया...

परिसर में लाउड स्पीकर की आवाज घूमने लगी

"सूरज सिंह पुत्र रतन सिंह" जहां कहीं भी हो मंच पर आएं…

उद्घोषणा दो तीन बार होती रही। रतन भागता हुआ स्टेज की तरफ गया और आयोजकों के सामने प्रस्तुत होकर बोला।

"सूरज और उसके माता-पिता अभी यहां नहीं है मैं उन्हें लेकर आता हूं"

आयोजकों ने उसे बताया कि अब से 1 घंटे बाद पुरस्कार वितरण किया जाएगा आप जाकर उन्हें ले आइये। राजेश भागता हुआ पंडाल में पहुंचा।


संयोग से सुगना बाहर ही खड़ी सरयू सिंह की राह देख रही थी। राजेश ने भावावेश में सुगना को दोनों कंधों से पकड़ा और बोला

" सूरज बाबू के लॉटरी निकल गइल 10 लाख रूपया जीतेले बाड़े"


सुगना को राजेश की बात पर यकीन नहीं हुआ।

" काहे मजाक कर तानी"

"साथ सुगना तोहार कसम हम झूठ नइखी बोलत"

सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा उसका मन बल्लियों उछलने लगा।

एक पल के लिए सुगना अपनी भूख प्यास और गर्भधारण को आपको भूल कर इस धन सुख में हो गई वह भाव विभोर होकर राजेश से लगभग लिपट गई परंतु उसे अपनी मर्यादा का ख्याल था उसने राजेश से अपने कंधे तो सटा लिए परंतु अपनी चुचियों और राजेश के सीने के बीच दूरी कायम रखी।

"सुगना टिकट कहां रख ले बाड़ू ?" राजेश ने पूछा..

सुगाना को याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उस दिन अपनी चूचियों के बीच छुपाया हुआ टिकट कहां रखा था। वह भागती हुई अंदर गई और अपने संदूक में वह टिकट खोजने लगी सारे कपड़े एक-एक कर बाहर आ गए पर वह टिकट न मिला सुगना पसीने पसीने होने लगी।

व्यग्रता निगाहों को धुंधला कर देती है उसे पास बड़ी चीजें भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। तभी उसे वह टिकट अपनी साड़ियों के बीच से झांकता हुआ दिखाई पड़ गया…।

सुगना प्रसन्न हो गई। अब तक कजरी और पदमा भी सुगना के पास आ चुकी थी पूरे पांडाल में एक उत्साह का माहौल हो गया था। सारे लोग सूरज की ही बात कर रहे थे अब तक रतन भी आ चुका था। अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए सुगना एक रानी की तरह लग रही थी।

पंडाल में उपस्थित सभी स्त्री पुरुषों की निगाहें सुगना और उसकी गोद में खेल रहे सूरज की तरफ थी।

थोड़ी ही देर में सुगना अपने पुत्र को गोद में लिए लॉटरी के मंच पर उपस्थित थी परिवार के बाकी सदस्य सामने दर्शक दीर्घा में अपने उत्साह का प्रदर्शन कर रहे थे अब तक सोनी मोनी और सोनू भी आ चुके थे। धीरे धीरे सरयू सिंह को छोड़कर उनका सारा परिवार दर्शक दीर्घा में आ चुका था लाली भी अपने बच्चों के साथ उपस्थित थी। उसे सुगना की किस्मत से थोड़ी जलन अवश्य हो रही थी परंतु सुगना उसकी बेहद प्रिय सहेली थी लाली ने अपने प्यार पर जलन को हावी न होने दिया वह खुश दिखाई पड़ रही थी।

इधर सुगना स्टेज पर बैठी पुरस्कार वितरण समारोह प्रारंभ होने का इंतजार कर रही थी उधर दर्शक दीर्घा में खड़ी सोनी अचानक वहां से हटकर किनारे की तरफ जा रही थी। सोनू का दोस्त विकास उसे दिखाई पड़ गया था। दोनों में एक दूसरे के प्रति जाने किस प्रकार का आकर्षण था सोनी के के कदम खुद-ब-खुद विकास की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

विकास धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा से दूर हो रहा था और सोनी उसके पीछे पीछे। कुछ ही देर में वह दोनों लॉटरी के स्टेज के पीछे आ गए.।

पुरस्कार वितरण देखने के लिए सारे लोग स्टेज के सामने खड़े थे और विकास और सोनी स्टेज के पीछे अपने जीवन का नया अध्याय लिखने जा रहे थे यह एकांत उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

सोनी के पास आते ही विकास ने सोनी को अपने आलिंगन में खींच लिया जाने यह विकास का आकर्षण था यार सोनी की स्वयं की इच्छा वह स्वतः ही विकास से सट गई। आज पहली बार नियति को सोनी के मन में उठ रही भावना का एहसास हो गया था सोनी की भावनाएं और तन बदन जवान हो चुका था।

विकास ने बिना कुछ कहे अपने होंठ सोनी के होठों से सटा दिए। सोनी शर्म बस अपने होंठ ना खोल रही थी पर वह ज्यादा देर अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और उसने अपने निकले हुए विकास के होठों के बीच दे दिए।

अपने पहले पुरुष के स्पर्श को महसूस कर सोनी का रोम रोम उठा जवानी की आग प्रस्फुटित हो उठी। होठों की मिलन ने सोनी को मोम की तरह पिघलने पर मजबूर कर दिया। विकास की हथेलियों ने सोनी की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया सोनी मदहोश हो रही थी। उसके लिए यह एहसास बिल्कुल नया था।

अचानक सोनी को अपनी नाभि में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ सोनी का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ चला गया उसे उत्थित पुरुष लिंग का एहसास न था और न कभी उसे देखा था। उसकी उंगलियों में संवेदना जागृत हो गई वह उस लिंग को छूना भी चाहती थी और उसे महसूस करना चाहती थी।


परंतु एक किशोरी की भावनाएं हया के अधीन होती हैं वह सोनी की भी थी विकास सोनी की हथेलियों को अपने लण्ड पर ले जाना चाहता था वह वह अपने होंठ सोनी के होठों से हटा नहीं रहा था।

जैसे-जैसे दोनों उत्तेजना के आधीन हो रहे थे सोनी के कोमल वस्त्र विकाश को चुभ रहे थे सोनी के नंगे बदन को छूने की इच्छा लिए विकास उसके लहंगा और चोली के बीच की जगह तलाशने लगा। सोनी की चोली उसकी कमर तक आ रही थी विकास ने अपने हाथ से उसकी चोली ऊपर उठाई और उसकी नंगी पीठ पर अपना हाथ फिराने लगा। अब तक सोनी को ब्रा पहनने की आवश्यकता महसूस न हुई थी उसकी चूचियां संतरे का आकार ले चुकी थी पर अपना भार स्वयं ले पाने में सक्षम थी।


अपनी पीठ पर पुरुष हथेलियों को पाकर सोनी की बुर ताजे कटे फल की तरह रस छोड़ने लगी। कुछ ही देर में विकास की हथेलियों ने सोनी के घागरे में कमर से प्रवेश करने की कोशिश घागरे का कसाव विकास के हाथों को अवरोध पैदा कर रहा था पर कब तक घागरे का नाडा विकास की हथेलियों का दबाव न झेल पाया और विकास की हथेलियां उस प्रतिबंधित क्षेत्र तक पहुंच गई जहां बिना सोनी के सहयोग से पहुंचना असंभव था। विकास की मजबूत उंगलियां दोनों नितंबों के बीच घूमने लगी और बरबस ही उसकी उंगलियों ने सोनी की गांड को छू लिया।

विकास ने न तो आज तक कभी न बुर को छुआ था न गांड। सोनी का वह छेद ही बुर की तरह प्रतीत हुआ वह । अपनी उंगलियों से उसकी गांड को सहलाने लगा।

सोनी मन ही मन चीख चीख कर कह रही थी थोड़ा और नीचे परंतु विकास शायद उसकी मनोभाव समझने में नाकाम था। अंततः सोनी ने अपने हाथों से उसके हाथों को और नीचे जाने का निर्देश दिया। विकास ने थोड़ा आगे झुक कर अपनी हथेलियों को और नीचे किया।

सोनी के बुर से रिस रही चासनी उसकी उंगलियों से छू गई कितना मखमली और कोमल था वह एहसास। सोनी के मुंह से आह निकल गयी।

वह उस अद्भुत रस के स्रोत की तरफ बढ़ चला कुछ ही देर में विकास की उंगलियों ने उस अद्भुत गुफा को छू लिया जिसकी तमन्ना में वह कई दिनों से तड़प रहा था। विकास की उंगलियां सोनी की बुर में अपनी जगह तलाशने की कोशिश करने लगी।


परंतु उन दोनों की यह अवस्था इस कार्य में विघ्न पैदा कर रहे थी। विकास ने सोनी को घुमा कर उसकी पीठ अपनी तरफ कर ली और अपने हाथों को आगे से उसके घागरे के अंदर कर दिया।

दोनों जांघों के बीच उसकी हथेलियां जिस स्पर्श सुख को प्राप्त कर रही थी अकल्पनीय था। हल्की रोजेदार बुर पर हाथ फिरा कर विकास एक अलग एहसास में डूब चुका था। वह एक हाथ सोने की चुचियों ने ठीक नीचे रखे हुए उसे सहारा दिया हुआ था और दूसरे हाथ से उसकी जांघों के बीच बुर पर अपना हाथ फिरा रहा था । सोनी कभी अपनी जाने से कुर्ती कभी थोड़ा फैला देते विकास की उंगलियों को अपनी इच्छा अनुसार मार्गदर्शित करना चाहती थी।

विकास की उंगलियां बरबस ही उसकी बुर के अंदर प्रवेश करने लगी सोनी मैं आह भरते हुए कहा

"बस इतना ही... तनी धीरे से ….दुखाता "

विकास ने अपने हाथों को रोक लिया और अपनी उंगलियों से बुर् के होठों को सहलाते हुए बुर की रूपरेखा को समझने का प्रयास करने लगा। गुलाब की पंखुड़ियों को फैलाते फैलाते व उसके केंद्र में जाने की कोशिश करता परंतु सोनी की कराह सुनकर अपनी उंगलियां रोक लेता।

उसका लण्ड लगातार सोनी के नितंबों में छेद करने का प्रयास कर रहा था । सोनी के दोनों हाथ अभी खुद को बचाने में ही लगे हुए थे वह एक हाथ अपनी चुचियों पर रखे हुयी विकास के हाथ को ऊपर बढ़ने से रोक रही थी और दूसरा हाथ विकास की हथेलियों पर रखकर कभी उसे अपनी बुर से दूर करती कभी हटा लेती अजीब दुविधा में थी सोनी।

विकास ने अपनी पेंट का चैन खोलकर लण्ड को बाहर निकाल लिया उससे अब और तनाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था। लण्ड बाहर आने के बाद और भी उग्र हो गया। सोनी के नितंबों पर दबाव और बढ़ गया था। सोनी को थोड़ा असहज लगा उसने अपना हाथ पीछे किया और उस लिंग को अपने से दूर करने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियों ने अपने से भी कोमल अंग को छू लिया। लण्ड की कोमल त्वचा उसे अभिभूत कर गई।

एक तरफ तो वह उसके तनाव से आश्चर्यचकित थी दूसरी तरफ उसकी मुलायम त्वचा। लण्ड का जादुई एहसास सोनी के आकर्षण का केंद्र बन गया। उसने अपनी कोमल हथेलियों मैं उस लण्ड को लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी। तनाव का आकलन करते करते उसने विकास के लण्ड को कुछ तेजी से दबा दिया।

विकास के मुंह से मादक आह निकल गयी उसने सोनी के कानों को चूम लिया और बेहद प्यार से बोला..

"तनी ...धीरे से दुखाता"

सोनी मुस्कुरा उठी उसने धीरे से कहा

"हमारो"

दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे की बातों से मुस्कुरा उठे। दोनों के ही हाथ एक दूसरे की दुखती रग पर थे। एक दूसरे के जननांगों का यह स्पर्श उन दोनों को उत्तेजना के चरम पर ले आया। सोनी की चूचियां अभी भी विकास के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। सोनी ने अपनी निगोड़ी बुर को बेसहारा छोड़ अपनी हथेली को विकास के दूसरे हाथ पर ले आई और उसे ऊपर बढ़ने का न्योता दे दिया ।

विकास सोनी की बुर में ही खोया हुआ था उसे पता ही नहीं था कि चुचियों की कोमलता क्या होती है। उसने हाथ बढ़ाएं और सोने की चूची को अपने हाथ में ले लिया। विकास के दोनों ही हाथों में लड्डू आ चुके थे। एक हाथ से वह उसकी चूचियां सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर। कभी वह अनजाने में सोनी की भग्नासा को छूता कभी उसके निप्पल को। भग्नाशा का वह दाना अपने सोश मात्र से सोनी में थिरकन पैदा कर देता।


जितना ही वह उत्तेजित होती उतनी ही कोमलता से विकास के लण्ड को सहलाती।विकास दोहरी उत्तेजना में था किशोरी की बुर और चूची सहलाते हुए वह बेहद उत्तेजित हो गया था और सोनी की हथेलियों का स्पर्श पाकर वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार हो गया।

सोनी की बुर भी अब और बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं थी । उसकी बुर ने प्रेम रस उगलना शुरू कर दिया सोनी थरथर कांप रही थी और स्खलित हो रही थी। अपनी उंगलियों पर आए प्रेम रस से और उत्तेजित होकर विकास के लण्ड ने भी अपना लावा उगलना शुरू कर दिया ।

सोनी की हथेलियों में चिपचिपा द्रव्य लगने लगा। सोनी ने अपने हाथ हटा लिए परंतु वीर्य उसकी उंगलियों पर लग चुका था।

विकास ने अपने स्खलन के दौरान अपने हाथ को सोनी की बुर पर से हटाकर अपने लण्ड पर ले आया और अपने हाथों में लेकर हिलाने लगा इस कला का वह पुराना खिलाड़ी था। उसे पता था इस दौरान अपना हाथ किसी बजी अन्य हाथ से अधिक सुख देता है...हा बुर की बातअलग है जिसका इल्म अब्जी विकास को न था।

सोनी तृप्त हो चुकी थी । विकास के हाथ हटाने से वह विकास की पकड़ से आजाद हो गई वह विकास की तरफ मुड़ गई। और उसके हाथ में आए लण्ड को ध्यान से देखने लगी। विकास लगातार अपने लण्ड को तेजी से हिलाए जा रहा था और वीर की धार हवा में फैल रही थी विकास में अपनी बंदूक का मुंह सोनी की तरफ कर दिया। और सोनी उस से निकल रही धार से बचने का प्रयास करने लगे परंतु प्रेम रस के छींटे उसके शरीर पर पड़ चुके थे।

जब तक विकास सचेत हो पाता सोनी भागकर स्टेज के सामने अपने परिवार के बीच पहुंच गई। अपनी उंगलियों पर लगे वीर्य को सोनी अपनी तर्जनी और अंगूठे से छूकर महसूस कर रही थी। यह द्रव्य उसे वैसा ही प्रतीत हो रहा था जो आज सुबह उसने लाली के बिस्तर पर छुआ था। सोनी मन ही मन सोचने लगी क्या लाली दीदी के बिस्तर पर गिरा हुआ चिपचिपा द्रव्य यही था। पर किसका? राजेश जीजू तो घर में थे नहीं... तो क्या सोनू भैया का? हे भगवान….. क्या सोनू भैया भी यह सब करते हैं….? और उन्होंने यह सब किया कैसे होगा ??? लाली दीदी तो घर पर ही थी. सोनी का दिमाग चकराने लगा. उस बेचारी को क्या पता था सोनू इस कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुका था। तभी सोनू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला

"कहां चली गई थी…?"

सोनी ने कोई उत्तर न दिया। वह अपने कपड़े सहेजने लगी और एक बार फिर अपने कपड़े पर लगे विकास के वीर्य को अपनी उंगलियों में महसूस किया। सोनी शर्म वश सोनू से दूर आकर मोनी के पास खड़ी हो गई और पुरस्कार वितरण समारोह का आनंद लेने लगी।

स्टेज पर सुगना के साथ राजेश भी उपस्थित था। सुगना ने स्वयं ही उसे ऊपर अपने साथ चलने के लिए अनुरोध किया था। एक तो लॉटरी की टिकट उसने स्वयं खरीदी दूसरे सुगना अकेले ऊपर जाने में घबरा रही थी वहां उपस्थित व्यक्तियों में अभी राजेश ही सबसे ज्यादा करीब था रतन से भी ज्यादा।

अपने लोक लाज के कारण उसने लाली को भी ऊपर चढ़ने के लिए कहा था परंतु राजेश ने उसे रोक लिया स्टेज पर एक साथ इतने व्यक्तियों के जाने स्थिति असहज हो सकती थी।

पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया था तृतीय द्वितीय पुरस्कारों को बांटने के पश्चात आखिरी बारी सुगना पुत्र सूरज की थी। सूरज का नाम आते ही सुगना खुश ही गयी। आयोजक मंडल के कई सदस्य फूल माला लेकर सुगना की तरफ बढ़ने लगे सुगना भाव विभोर हो उठी। उसे अपने जीवन में इतना सम्मान कभी नहीं मिला था। देखते ही देखते सुगना फूल मालाओं से लद गई। उसका कोमल और कांतिमय चेहरा और खिल गया। सुबह से भूखी प्यासी सुगना के चेहरे पर चमक आ गई थी।

तभी आयोजक मंडल का एक सदस्य हाथ में मिठाई लिए सुगना को खिलाने पहुंचा तभी सुगना को अपने व्रत की याद आ गई उसने लड्डू खाने के लिए मुंह तो जरूर खोला परंतु रुक गई...

"आज हमारा व्रत है" कह कर उसने उस व्यक्ति को रोक लिया राजेश ने धीरे से पूछा सुगना आज कौन सा व्रत है सुगना मन ही मन मुस्कुरा उठी परंतु उसका उत्तर देना बेहद कठिन था।

सुगना की आंखें भीड़ में सरयू सिंह को खोज रही थी परंतु वह अब तक बनारस महोत्सव नहीं पहुंचे थे सुगना की सारी खुशियां सरयू सिंह से जुड़ी थी जब तक वह बनारस महोत्सव में आकर उसे गर्भवती ना करते उसकी मनो इच्छा पूरी ना होती….

सुगना के जीवन में आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था सुगना जैसी युवती के लिए 10 लाख रुपए एक वरदान से कम न थे और यह वरदान भगवान ने राजेश के हाथों से प्रदान कर आया था। राजेश द्वारा लाया गया वह लाटरी का टिकट सुगना और उसके परिवार कि जिंदगी सवाँरने के लिए काफी था। पूरा परिवार हंसी खुशी वापस विद्यानंद के पंडाल में आ गया पर सुगना की निगाहें अभी भी पंडाल के गेट की तरफ लगी हुई थी अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…


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उधर आज सलेमपुर में सुबह सुबह सरयू सिंह के घर पर डाकिया खड़ा था वह मुंबई से रतन द्वारा भेजा गया पार्सल लेकर आया था। सरयू सिंह के गांव में आने की खबर उसे भी लग चुकी थी उस खबर में मनोरमा की गाड़ी का विशेष योगदान था। इन दिनों सरयू सिंह की किस्मत जोरों पर थी वह गांव में मनोरमा की गाड़ी में दिखाई पड़ते उनका शारीरिक कद तो पहले भी ऊंचा था और अब उनका सामाजिक कद भी बढ़ चुका मनोरमा द्वारा दी गई पदोन्नति ने भी अपना योगदान दिया था।

"सरयू भैया लागता रतन भेजले बाड़े"

डाकिए ने मुंबई का पता देखकर अंदाज लगा लिया था सरयू सिंह ने वह पार्सल लिया और अपनी दालान में रख कर उसे खोलने लगे।

सूरज के लिए ढेर सारे खिलौने देखकर वह खुश हो गए और मन ही मन रतन को धन्यवाद दिया पार्सल में पड़े बंद लिफाफे पर सुगना का नाम देखकर वह आश्चर्यचकित थे रतन ने सुगना को पत्र क्यों लिखा? सरयू सिह यह भली-भांति जानते थे की रतन और सुगना में कोई संबंध नहीं है फिर उसे खत लिखने का क्या औचित्य था ? सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को किसी और से साझा नहीं करना चाहते थे? उनकी बहू अब उनकी अर्धांगिनी तो न सही पर उनके जीवन का अभिन्न अंग हो चली थी ।

रतन के खत को हाथों में लिए वह उसे खोलने और न खोलने के बीच निर्णय नहीं ले पा रहे थे। यह खत एक पति द्वारा अपनी पत्नी को लिखा गया था परंतु पति पत्नी में कोई संबंध नहीं थे। सरयू सिंह को सुगना अपने हाथों से फिसलती हुए प्रतीत हो रही थी। वह सुगना को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते थे। अंततः वह खत खोल दिया और उसे पढ़ने लगे..


(पुरानी पोस्ट से उधृत)

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।


तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

सरयू सिंह की दुविधा और बढ़ गई। रतन सुगना के करीब आना चाह रहा था यह सुगना के भविष्य के लिए निश्चित ही एक सुखद मोड़ था यह अलग बात थी कि सुगना रतन के प्रति कोई संवेदना नहीं रखती थी परंतु पिछली 1 -2 मुलाकातों में सुगना और रतन आपस में एक दूसरे से बातचीत करने लगे थे वह दोनों धीरे-धीरे खुल रहे थे यह बात सरयू सिंह जानते थे।

राहत कार्य में लगे पुलिसकर्मी आ चुके थे और सरयू सिंह के एक बार फिर सलेमपुर में आई प्राकृतिक आपदा के राहत कार्य में व्यस्त हो गये। कार्य के दौरान समय का पता ही ना चला और देखते देखते शाम हो गई।

सरयू सिंह ने अपनी काबिलियत के बल पर मनोरमा द्वारा दिया गया कार्य पूरी कुशलता से समाप्त कर लिया था और वह अब एक भी पल सलेमपुर में रुकना नहीं चाहते थे। बनारस महोत्सव के दौरान ही वह अपनी प्यारी सुगना को अपनी बाहों में लेकर जी भर प्यार करना चाहते थे। मनोरमा ने अपने कमरे की चाबी देकर बनारस महोत्सव में उनके और सुगना के लिए कामक्रीड़ा का मैदान तैयार कर दिया था परंतु यह दुर्भाग्य ही था कि वह पिछले 5 दिनों में सुगना के दूसरे क्षेत्र का उद्घाटन न कर सके थे।

अंधेरा हो रहा था उन्होंने ड्राइवर को लालच किया और वह मन में उम्मीदें और लण्ड में तनाव लिए बनारस महोत्सव की तरफ बढ़ चले। रास्ते में सलेमपुर बाजार में रोक कर उन्होंने अपने वैद्य से शिलाजीत की वह दवाई भी ले ली जिसका लाभ वह सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के समय लेना चाह रहे थे। सुगना की कसी हुई गांड का उन्हें अंदाजा था वह किसी भी हाल में अपने लैंड के तनाव को कमनहीं करना चाह रहे थे। सुगना का कसे छेद को भेदने के लिए वह अपनी तलवार में पूरी तरह धार लगा रहे थे।


उनकी असफलता उनके स्वाभिमान को हमेशा के लिए गिरा सकती थी। सुगना के कसी गांड को ध्यान कर उन्हें सुगना के कौमार्य हरण के दिन की घटना याद आ गई जब उन्होंने अपनी उंगलियों को कजरी द्वारा बनाए गए मक्खन से सराबोर कर उसकी कौमार्य झिल्ली को तोड़ा था।

सरयू सिंह हलवाई की दुकान पर जाकर थोड़ा मक्खन भी खरीद लाए। सरयू सिंह के झोले में आज रात को रंगीन करने के सारे हथियार उपलब्ध थे।

रतन द्वारा सुगना के लिए भेजा गया खत भी उसी झोले में एक तरफ पड़ा हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की भावनाएं उस झोले में किनारे पड़ी हुई थी और उसकी पत्नी को चोदने तथा उसका भोग करने के लिए सरयू सिह अपने अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा कर रहे थे।

उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सूरज को कजरी के हवाले कर सुगना को लेकर मनोरमा के कमरे में चले जाएंगे और रात भर अपने सारे अरमान शांत करेंगे।

बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..

धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।


परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे

वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..

"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"

अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..

"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"

10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।

सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।

पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।


सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।

कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।


पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।

कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के स्कूल में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।

इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।

खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….

बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...

"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"

सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा

"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"

सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।

राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।


सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...

" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।


सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।

सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।

खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा

"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"

"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"

"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".

सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"


"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"

सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।


आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।

सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।

इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।

इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।


"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….


शेष अगले भाग में...
 

Rekha rani

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Gajab update, sab patr line me ab dekhna hai niyati kya khel dikhati hai, udhar soni aur Vikas bhi apni prem lila me aage bad rhe hai, niyati ne apna khel phir dikha diya saryu aur sugna ka miln rok diya, end is part ka phir suspanc me hua dekhte hai suraj Singh ko achanak kya hua niyati ne konsa khel racha hai, koun bete ki jan bacha kr sugna ke dil me ghar krta hai
 

komaalrani

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अद्भुत प्रस्तुति, अब इस महाकथा के सभी पात्र रंगमंच पर आ चुके है, रतन भी,

बनारस महोत्सव भी अपने समापन की ओर बढ़ रहा है,

सब उत्सुक हैं , कौन सुगना के साथ, राजेश, सोनू ,रतन या फिर सरजू सिंह,

नियति ने सब कुछ तय कर दिया है

और साथ ही काम के आंगन में बस देहरी पर खड़ी किशोरियां , सुगना की छोटी बहनें, जिनके मन में उंचासो पवन चल रहे हैं,

इतने सारे पात्र, इतनी सारी घटनाएं और उनका अद्भुत संयोजन लेकिन सबसे बढ़कर, मंज़रकशी

ट्रेन से बाहर का दृश्य हो या बनारस महोत्स्व का सब सुंदर
 

Royal boy034

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भाग -57

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती पर आत्मीयता से भरी आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


अब आगे…

दरअसल सूरज सरकते हुए नीचे आ गया था वह अपने छोटे-छोटे पैरों से सुगना की जांघों के बीच प्रहार कर रहा था जो अनजाने में ही उसकी भग्नासा से टकरा रहा था। शायद इसी वजह से सुगना की नींद खुल गई थी ।

सुगना जाग चुकी थी पर उसके दिमाग में स्वप्न में देखे गए दृश्य अभी भी कायम थे। अपने स्वप्न में स्वयं को सूरज के समक्ष नग्न रूप में याद कर सुगना मुस्कुराने लगी। उसने सूरज को ऊपर खींच कर अपनी चूचियां पुनः पकड़ाई और सोने की कोशिश करने लगी।

नियति ने सुगना को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया था जहां पंगत में बैठा हर व्यक्ति उसकी निगाहों में अब पवित्र और पावन नहीं बचा था। और जो समाजिक रिश्तों में सबसे पवित्र और पावन था (उसका पति रतन) वह उससे न तो भावनात्मक रूप से जुड़ा था और न हीं बनारस महोत्सव के विद्यानंद के पण्डाल में विद्यमान था।

सुगना की नाव आज दिन भर हिचकोले खाती रही पर किनारे न लग पायी। उसके गर्भ में आ चुका अंडाणु अपने निषेचन का इंतजार कर रहा था। परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन समाप्त हो चुका था.


बनारस महोत्सव का छठवां दिन

मुंबई से आ रही बनारस एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बैठी हुई छोटी बच्ची मिंकी ( रतन और बबिता की पुत्री) खिड़की पर ध्यान टिकाये हुए थी। धान की फसल लहलहा रही थी। मुम्बई में पल रही बच्ची के लिए वह नजारा बेहद खुबसूरत था हरियाली में लिपटी हुई उत्तर प्रदेश की पावन धरती सबका मन मोहने में सक्षम थी। तभी आवाज आई

"ये किसके साथ हैं? एक काले कोट पहने व्यक्ति ने पूछा।

"जी पापा इधर ही गए हैं" मिन्की ने अपनी मीठी आवाज में कहा।

टीटी और कोई नहीं लाली का पति राजेश था। वह बाहर गलियारे में झांकने लगा। रतन अपने ही कूपे की तरफ आ रहा था रतन और राजेश एक दूसरे को बखूबी पहचानते थे।


लाली के विवाह में रतन ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी और राजेश का पूरी इज्जत और सम्मान के साथ स्वागत किया था। वह दोनों एक दूसरे की भरपूर इज्जत किया करते थे। हालांकि यह मुलाकात चंद दिनों की ही हुआ करती थी।

रतन के विवाह और सुगना के अलग रहने के कारण राजेश को रतन का यह व्यवहार कतई पसंद नहीं आता था। वह बार-बार उसे सुगना को मुंबई ले जाने के लिए अपना सुझाव देता पर रतन की परिस्थितियां अलग थी। धीरे धीरे राजेश सुगना पर आसक्त होता गया और वह उसके खयालों में एक अतृप्त युवती की भूमिका निभाने लगी।

"अरे रतन भैया"

रतन ने जबाब न दिया पर अपनी बाहें खोल दीं।

राजेश और रतन एक दूसरे के गले लग गए। यह मुलाकात कई महीनों बाद हो रही थी।


मिंकी के रतन से कहा दिया पापा यह अंकल आपको पूछ रहे थे।

राजेश को इस बात का इल्म न था कि रतन मुंबई में शादी की हुई है मिंकी द्वारा रतन को पापा बुलाए जाने से वह आश्चर्यचकित था उसने रतन से कौतूहल भरी निगाहों से प्रश्न किया रतन उसे थोड़ा किनारे कर एक मीठा झूठ बोल कर अपनी स्थिति को बचा लिया । उसने राजेश को यह बताया वह उसके एक दोस्त की बेटी है जिसकी मृत्यु होने के पश्चात वह उसके साथ ही रह रही है और वह उसे बेटी की तरह पाल रहा है।

राजेश ने कोमल चिंकी की को अपनी गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला..

कितनी प्यारी बच्ची है।

कुछ ही देर में मैं रतन और राजेश खुल कर बातें करने लगे । राजेश ने रतन को बनारस महोत्सव में उसके परिवार के आगमन की खबर दे दी और रतन ने अपने गांव न जाकर बनारस मैं ही उतरने का फैसला कर लिया।


राजेश को यह जानकर थोड़ी खुशी भी हुई कि रतन सब कुछ छोड़ छाड़ कर वापस गांव लौट आया परंतु उसके अंतर्मन में दुख भी था सुगना उसकी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल रही थी।

सूर्य अपनी चमक बिखेर रहा था दोपहर के 12:00 बज रहे थे सुगना के जीवन में चमक बिखेरने के लिए उसका पति रतन वापस आ चुका था विद्यानंद के पांडाल के गेट पर टीन की दो बड़ी बड़ी संदूकें लिए रतन की निगाहें अपनी धर्मपत्नी सुगना को खोज रही थी। जिस धर्म का अनुपालन रतन ने खुद नहीं किया था परंतु देर से ही सही वह अब उसे पूरे तन मन से अपनी पत्नी बनाने को तैयार हो चुका था। परंतु सुगना क्या वह उसे माफ कर अपने पति का दर्जा दे पाएगी?


यह प्रश्न उतना ही कठिन था जितना सुगना का गर्भधारण।

गेट पर खड़े रतन को देखकर कजरी भागती हुयी उसके पास आयी। रतन ने उस के चरण छुए और मां बेटा दोनों गले लग गए।

कजरी ने राजेश की तरफ देखा तभी राजेश ने कहा

"चाची तोहार रतन अब हमेशा खातीर गावें आ गईले खुश बाड़ू नु"

कजरी की आंखों से आंसू बहने लगे अपने पुत्र का साथ पाकर कजरी भाव विभोर हो गई भगवान में उसे उसके व्रत का फल दे दिया था। वह मिंकी को लेकर अंदर गयी और उसे सुगना से मिलवाया।

मिन्की बेहद प्यारी थी यद्यपि वह सुगना की सौतन बबीता की पुत्री थी परंतु मिंकी ने बाल सुलभ चेहरे और कोमलता ने सुगना का मन मोह लिया मिंकी ने आते ही सुगना के पैर छुए और सुगना से कहा

"बाबू जी कहते हैं कि आप बहुत अच्छी हैं" सुगना मिन्की से पहले ही प्रभावित थी उसकी इस अदा से वह उसकी कायल हो गई उसने मिंकी को गोद में उठा लिया और उसके गालो को चुमते हुए बोली

" तुम भी तो केतना प्यारी हो" सुगना ने मिंकी से हिंदी बोलने की कोशिश की।


दूर खड़ा रतन सुगना और मिंकी के बीच बन रहे रिश्ते को देखकर प्रसन्न हो रहा था अचानक सुगना से उसकी निगाह मिली। परंतु दोनों में कुछ तो एक दूसरे से झिझक थी और कुछ परिस्थितियां दोनों अपनी ही जगह पर खड़े रहे।

बनारस महोत्सव का छठवां दिन खुशियां लेकर आया था परंतु भूखी प्यासी सुगना और उसकी अधीर बूर अब भी अपने बाबूजी की राह देख रही थी उसका इंतजार लंबा हो रहा था।

राजेश रतन को पांडाल में छोड़कर वापस अपने घर गया और शाम ढलते ढलते लाली और अपने बच्चों को लेकर वापस विद्यानंद के पांडाल में आ गया आज शाम 6:00 बजे राजेश द्वारा खरीदी गई लॉटरी का ड्रा भी होना था।

गरीब और मध्यम वर्ग हमेशा से चमत्कार की उम्मीद में जीता है राजेश भी इससे अछूता न था। ₹10 से 10 लाख की उम्मीद करना सिर्फ उसके ही बस का था। राजेश आशान्वित अवश्य था पर उसने अपने मनोभाव लाली से छुपा लिए लाली को पांडाल में छोड़कर लॉटरी के ड्रा में पहुंच गया।

एक-एक करके इनाम खुलते गए और हमेशा की तरह राजेश के भाग्य ने उसे वही दिया जिसका वह हकदार था। 10 से 10लाख बनाना न तो राजेश के बस में था और नहीं उसके भाग्य में लिखा था।

प्रथम पुरस्कार की घोषणा होने वाली थी राजेश हतोत्साहित होकर वापस मुड़ने ही वाला था तभी


सूरज का नाम पुकारा गया...

परिसर में लाउड स्पीकर की आवाज घूमने लगी

"सूरज सिंह पुत्र रतन सिंह" जहां कहीं भी हो मंच पर आएं…

उद्घोषणा दो तीन बार होती रही। रतन भागता हुआ स्टेज की तरफ गया और आयोजकों के सामने प्रस्तुत होकर बोला।

"सूरज और उसके माता-पिता अभी यहां नहीं है मैं उन्हें लेकर आता हूं"

आयोजकों ने उसे बताया कि अब से 1 घंटे बाद पुरस्कार वितरण किया जाएगा आप जाकर उन्हें ले आइये। राजेश भागता हुआ पंडाल में पहुंचा।


संयोग से सुगना बाहर ही खड़ी सरयू सिंह की राह देख रही थी। राजेश ने भावावेश में सुगना को दोनों कंधों से पकड़ा और बोला

" सूरज बाबू के लॉटरी निकल गइल 10 लाख रूपया जीतेले बाड़े"


सुगना को राजेश की बात पर यकीन नहीं हुआ।

" काहे मजाक कर तानी"

"साथ सुगना तोहार कसम हम झूठ नइखी बोलत"

सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा उसका मन बल्लियों उछलने लगा।

एक पल के लिए सुगना अपनी भूख प्यास और गर्भधारण को आपको भूल कर इस धन सुख में हो गई वह भाव विभोर होकर राजेश से लगभग लिपट गई परंतु उसे अपनी मर्यादा का ख्याल था उसने राजेश से अपने कंधे तो सटा लिए परंतु अपनी चुचियों और राजेश के सीने के बीच दूरी कायम रखी।

"सुगना टिकट कहां रख ले बाड़ू ?" राजेश ने पूछा..

सुगाना को याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उस दिन अपनी चूचियों के बीच छुपाया हुआ टिकट कहां रखा था। वह भागती हुई अंदर गई और अपने संदूक में वह टिकट खोजने लगी सारे कपड़े एक-एक कर बाहर आ गए पर वह टिकट न मिला सुगना पसीने पसीने होने लगी।

व्यग्रता निगाहों को धुंधला कर देती है उसे पास बड़ी चीजें भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। तभी उसे वह टिकट अपनी साड़ियों के बीच से झांकता हुआ दिखाई पड़ गया…।

सुगना प्रसन्न हो गई। अब तक कजरी और पदमा भी सुगना के पास आ चुकी थी पूरे पांडाल में एक उत्साह का माहौल हो गया था। सारे लोग सूरज की ही बात कर रहे थे अब तक रतन भी आ चुका था। अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए सुगना एक रानी की तरह लग रही थी।

पंडाल में उपस्थित सभी स्त्री पुरुषों की निगाहें सुगना और उसकी गोद में खेल रहे सूरज की तरफ थी।

थोड़ी ही देर में सुगना अपने पुत्र को गोद में लिए लॉटरी के मंच पर उपस्थित थी परिवार के बाकी सदस्य सामने दर्शक दीर्घा में अपने उत्साह का प्रदर्शन कर रहे थे अब तक सोनी मोनी और सोनू भी आ चुके थे। धीरे धीरे सरयू सिंह को छोड़कर उनका सारा परिवार दर्शक दीर्घा में आ चुका था लाली भी अपने बच्चों के साथ उपस्थित थी। उसे सुगना की किस्मत से थोड़ी जलन अवश्य हो रही थी परंतु सुगना उसकी बेहद प्रिय सहेली थी लाली ने अपने प्यार पर जलन को हावी न होने दिया वह खुश दिखाई पड़ रही थी।

इधर सुगना स्टेज पर बैठी पुरस्कार वितरण समारोह प्रारंभ होने का इंतजार कर रही थी उधर दर्शक दीर्घा में खड़ी सोनी अचानक वहां से हटकर किनारे की तरफ जा रही थी। सोनू का दोस्त विकास उसे दिखाई पड़ गया था। दोनों में एक दूसरे के प्रति जाने किस प्रकार का आकर्षण था सोनी के के कदम खुद-ब-खुद विकास की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

विकास धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा से दूर हो रहा था और सोनी उसके पीछे पीछे। कुछ ही देर में वह दोनों लॉटरी के स्टेज के पीछे आ गए.।

पुरस्कार वितरण देखने के लिए सारे लोग स्टेज के सामने खड़े थे और विकास और सोनी स्टेज के पीछे अपने जीवन का नया अध्याय लिखने जा रहे थे यह एकांत उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

सोनी के पास आते ही विकास ने सोनी को अपने आलिंगन में खींच लिया जाने यह विकास का आकर्षण था यार सोनी की स्वयं की इच्छा वह स्वतः ही विकास से सट गई। आज पहली बार नियति को सोनी के मन में उठ रही भावना का एहसास हो गया था सोनी की भावनाएं और तन बदन जवान हो चुका था।

विकास ने बिना कुछ कहे अपने होंठ सोनी के होठों से सटा दिए। सोनी शर्म बस अपने होंठ ना खोल रही थी पर वह ज्यादा देर अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और उसने अपने निकले हुए विकास के होठों के बीच दे दिए।

अपने पहले पुरुष के स्पर्श को महसूस कर सोनी का रोम रोम उठा जवानी की आग प्रस्फुटित हो उठी। होठों की मिलन ने सोनी को मोम की तरह पिघलने पर मजबूर कर दिया। विकास की हथेलियों ने सोनी की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया सोनी मदहोश हो रही थी। उसके लिए यह एहसास बिल्कुल नया था।

अचानक सोनी को अपनी नाभि में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ सोनी का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ चला गया उसे उत्थित पुरुष लिंग का एहसास न था और न कभी उसे देखा था। उसकी उंगलियों में संवेदना जागृत हो गई वह उस लिंग को छूना भी चाहती थी और उसे महसूस करना चाहती थी।


परंतु एक किशोरी की भावनाएं हया के अधीन होती हैं वह सोनी की भी थी विकास सोनी की हथेलियों को अपने लण्ड पर ले जाना चाहता था वह वह अपने होंठ सोनी के होठों से हटा नहीं रहा था।

जैसे-जैसे दोनों उत्तेजना के आधीन हो रहे थे सोनी के कोमल वस्त्र विकाश को चुभ रहे थे सोनी के नंगे बदन को छूने की इच्छा लिए विकास उसके लहंगा और चोली के बीच की जगह तलाशने लगा। सोनी की चोली उसकी कमर तक आ रही थी विकास ने अपने हाथ से उसकी चोली ऊपर उठाई और उसकी नंगी पीठ पर अपना हाथ फिराने लगा। अब तक सोनी को ब्रा पहनने की आवश्यकता महसूस न हुई थी उसकी चूचियां संतरे का आकार ले चुकी थी पर अपना भार स्वयं ले पाने में सक्षम थी।


अपनी पीठ पर पुरुष हथेलियों को पाकर सोनी की बुर ताजे कटे फल की तरह रस छोड़ने लगी। कुछ ही देर में विकास की हथेलियों ने सोनी के घागरे में कमर से प्रवेश करने की कोशिश घागरे का कसाव विकास के हाथों को अवरोध पैदा कर रहा था पर कब तक घागरे का नाडा विकास की हथेलियों का दबाव न झेल पाया और विकास की हथेलियां उस प्रतिबंधित क्षेत्र तक पहुंच गई जहां बिना सोनी के सहयोग से पहुंचना असंभव था। विकास की मजबूत उंगलियां दोनों नितंबों के बीच घूमने लगी और बरबस ही उसकी उंगलियों ने सोनी की गांड को छू लिया।

विकास ने न तो आज तक कभी न बुर को छुआ था न गांड। सोनी का वह छेद ही बुर की तरह प्रतीत हुआ वह । अपनी उंगलियों से उसकी गांड को सहलाने लगा।

सोनी मन ही मन चीख चीख कर कह रही थी थोड़ा और नीचे परंतु विकास शायद उसकी मनोभाव समझने में नाकाम था। अंततः सोनी ने अपने हाथों से उसके हाथों को और नीचे जाने का निर्देश दिया। विकास ने थोड़ा आगे झुक कर अपनी हथेलियों को और नीचे किया।

सोनी के बुर से रिस रही चासनी उसकी उंगलियों से छू गई कितना मखमली और कोमल था वह एहसास। सोनी के मुंह से आह निकल गयी।

वह उस अद्भुत रस के स्रोत की तरफ बढ़ चला कुछ ही देर में विकास की उंगलियों ने उस अद्भुत गुफा को छू लिया जिसकी तमन्ना में वह कई दिनों से तड़प रहा था। विकास की उंगलियां सोनी की बुर में अपनी जगह तलाशने की कोशिश करने लगी।


परंतु उन दोनों की यह अवस्था इस कार्य में विघ्न पैदा कर रहे थी। विकास ने सोनी को घुमा कर उसकी पीठ अपनी तरफ कर ली और अपने हाथों को आगे से उसके घागरे के अंदर कर दिया।

दोनों जांघों के बीच उसकी हथेलियां जिस स्पर्श सुख को प्राप्त कर रही थी अकल्पनीय था। हल्की रोजेदार बुर पर हाथ फिरा कर विकास एक अलग एहसास में डूब चुका था। वह एक हाथ सोने की चुचियों ने ठीक नीचे रखे हुए उसे सहारा दिया हुआ था और दूसरे हाथ से उसकी जांघों के बीच बुर पर अपना हाथ फिरा रहा था । सोनी कभी अपनी जाने से कुर्ती कभी थोड़ा फैला देते विकास की उंगलियों को अपनी इच्छा अनुसार मार्गदर्शित करना चाहती थी।

विकास की उंगलियां बरबस ही उसकी बुर के अंदर प्रवेश करने लगी सोनी मैं आह भरते हुए कहा

"बस इतना ही... तनी धीरे से ….दुखाता "

विकास ने अपने हाथों को रोक लिया और अपनी उंगलियों से बुर् के होठों को सहलाते हुए बुर की रूपरेखा को समझने का प्रयास करने लगा। गुलाब की पंखुड़ियों को फैलाते फैलाते व उसके केंद्र में जाने की कोशिश करता परंतु सोनी की कराह सुनकर अपनी उंगलियां रोक लेता।

उसका लण्ड लगातार सोनी के नितंबों में छेद करने का प्रयास कर रहा था । सोनी के दोनों हाथ अभी खुद को बचाने में ही लगे हुए थे वह एक हाथ अपनी चुचियों पर रखे हुयी विकास के हाथ को ऊपर बढ़ने से रोक रही थी और दूसरा हाथ विकास की हथेलियों पर रखकर कभी उसे अपनी बुर से दूर करती कभी हटा लेती अजीब दुविधा में थी सोनी।

विकास ने अपनी पेंट का चैन खोलकर लण्ड को बाहर निकाल लिया उससे अब और तनाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था। लण्ड बाहर आने के बाद और भी उग्र हो गया। सोनी के नितंबों पर दबाव और बढ़ गया था। सोनी को थोड़ा असहज लगा उसने अपना हाथ पीछे किया और उस लिंग को अपने से दूर करने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियों ने अपने से भी कोमल अंग को छू लिया। लण्ड की कोमल त्वचा उसे अभिभूत कर गई।

एक तरफ तो वह उसके तनाव से आश्चर्यचकित थी दूसरी तरफ उसकी मुलायम त्वचा। लण्ड का जादुई एहसास सोनी के आकर्षण का केंद्र बन गया। उसने अपनी कोमल हथेलियों मैं उस लण्ड को लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी। तनाव का आकलन करते करते उसने विकास के लण्ड को कुछ तेजी से दबा दिया।

विकास के मुंह से मादक आह निकल गयी उसने सोनी के कानों को चूम लिया और बेहद प्यार से बोला..

"तनी ...धीरे से दुखाता"

सोनी मुस्कुरा उठी उसने धीरे से कहा

"हमारो"

दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे की बातों से मुस्कुरा उठे। दोनों के ही हाथ एक दूसरे की दुखती रग पर थे। एक दूसरे के जननांगों का यह स्पर्श उन दोनों को उत्तेजना के चरम पर ले आया। सोनी की चूचियां अभी भी विकास के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। सोनी ने अपनी निगोड़ी बुर को बेसहारा छोड़ अपनी हथेली को विकास के दूसरे हाथ पर ले आई और उसे ऊपर बढ़ने का न्योता दे दिया ।

विकास सोनी की बुर में ही खोया हुआ था उसे पता ही नहीं था कि चुचियों की कोमलता क्या होती है। उसने हाथ बढ़ाएं और सोने की चूची को अपने हाथ में ले लिया। विकास के दोनों ही हाथों में लड्डू आ चुके थे। एक हाथ से वह उसकी चूचियां सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर। कभी वह अनजाने में सोनी की भग्नासा को छूता कभी उसके निप्पल को। भग्नाशा का वह दाना अपने सोश मात्र से सोनी में थिरकन पैदा कर देता।


जितना ही वह उत्तेजित होती उतनी ही कोमलता से विकास के लण्ड को सहलाती।विकास दोहरी उत्तेजना में था किशोरी की बुर और चूची सहलाते हुए वह बेहद उत्तेजित हो गया था और सोनी की हथेलियों का स्पर्श पाकर वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार हो गया।

सोनी की बुर भी अब और बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं थी । उसकी बुर ने प्रेम रस उगलना शुरू कर दिया सोनी थरथर कांप रही थी और स्खलित हो रही थी। अपनी उंगलियों पर आए प्रेम रस से और उत्तेजित होकर विकास के लण्ड ने भी अपना लावा उगलना शुरू कर दिया ।

सोनी की हथेलियों में चिपचिपा द्रव्य लगने लगा। सोनी ने अपने हाथ हटा लिए परंतु वीर्य उसकी उंगलियों पर लग चुका था।

विकास ने अपने स्खलन के दौरान अपने हाथ को सोनी की बुर पर से हटाकर अपने लण्ड पर ले आया और अपने हाथों में लेकर हिलाने लगा इस कला का वह पुराना खिलाड़ी था। उसे पता था इस दौरान अपना हाथ किसी बजी अन्य हाथ से अधिक सुख देता है...हा बुर की बातअलग है जिसका इल्म अब्जी विकास को न था।

सोनी तृप्त हो चुकी थी । विकास के हाथ हटाने से वह विकास की पकड़ से आजाद हो गई वह विकास की तरफ मुड़ गई। और उसके हाथ में आए लण्ड को ध्यान से देखने लगी। विकास लगातार अपने लण्ड को तेजी से हिलाए जा रहा था और वीर की धार हवा में फैल रही थी विकास में अपनी बंदूक का मुंह सोनी की तरफ कर दिया। और सोनी उस से निकल रही धार से बचने का प्रयास करने लगे परंतु प्रेम रस के छींटे उसके शरीर पर पड़ चुके थे।

जब तक विकास सचेत हो पाता सोनी भागकर स्टेज के सामने अपने परिवार के बीच पहुंच गई। अपनी उंगलियों पर लगे वीर्य को सोनी अपनी तर्जनी और अंगूठे से छूकर महसूस कर रही थी। यह द्रव्य उसे वैसा ही प्रतीत हो रहा था जो आज सुबह उसने लाली के बिस्तर पर छुआ था। सोनी मन ही मन सोचने लगी क्या लाली दीदी के बिस्तर पर गिरा हुआ चिपचिपा द्रव्य यही था। पर किसका? राजेश जीजू तो घर में थे नहीं... तो क्या सोनू भैया का? हे भगवान….. क्या सोनू भैया भी यह सब करते हैं….? और उन्होंने यह सब किया कैसे होगा ??? लाली दीदी तो घर पर ही थी. सोनी का दिमाग चकराने लगा. उस बेचारी को क्या पता था सोनू इस कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुका था। तभी सोनू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला

"कहां चली गई थी…?"

सोनी ने कोई उत्तर न दिया। वह अपने कपड़े सहेजने लगी और एक बार फिर अपने कपड़े पर लगे विकास के वीर्य को अपनी उंगलियों में महसूस किया। सोनी शर्म वश सोनू से दूर आकर मोनी के पास खड़ी हो गई और पुरस्कार वितरण समारोह का आनंद लेने लगी।

स्टेज पर सुगना के साथ राजेश भी उपस्थित था। सुगना ने स्वयं ही उसे ऊपर अपने साथ चलने के लिए अनुरोध किया था। एक तो लॉटरी की टिकट उसने स्वयं खरीदी दूसरे सुगना अकेले ऊपर जाने में घबरा रही थी वहां उपस्थित व्यक्तियों में अभी राजेश ही सबसे ज्यादा करीब था रतन से भी ज्यादा।

अपने लोक लाज के कारण उसने लाली को भी ऊपर चढ़ने के लिए कहा था परंतु राजेश ने उसे रोक लिया स्टेज पर एक साथ इतने व्यक्तियों के जाने स्थिति असहज हो सकती थी।

पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया था तृतीय द्वितीय पुरस्कारों को बांटने के पश्चात आखिरी बारी सुगना पुत्र सूरज की थी। सूरज का नाम आते ही सुगना खुश ही गयी। आयोजक मंडल के कई सदस्य फूल माला लेकर सुगना की तरफ बढ़ने लगे सुगना भाव विभोर हो उठी। उसे अपने जीवन में इतना सम्मान कभी नहीं मिला था। देखते ही देखते सुगना फूल मालाओं से लद गई। उसका कोमल और कांतिमय चेहरा और खिल गया। सुबह से भूखी प्यासी सुगना के चेहरे पर चमक आ गई थी।

तभी आयोजक मंडल का एक सदस्य हाथ में मिठाई लिए सुगना को खिलाने पहुंचा तभी सुगना को अपने व्रत की याद आ गई उसने लड्डू खाने के लिए मुंह तो जरूर खोला परंतु रुक गई...

"आज हमारा व्रत है" कह कर उसने उस व्यक्ति को रोक लिया राजेश ने धीरे से पूछा सुगना आज कौन सा व्रत है सुगना मन ही मन मुस्कुरा उठी परंतु उसका उत्तर देना बेहद कठिन था।

सुगना की आंखें भीड़ में सरयू सिंह को खोज रही थी परंतु वह अब तक बनारस महोत्सव नहीं पहुंचे थे सुगना की सारी खुशियां सरयू सिंह से जुड़ी थी जब तक वह बनारस महोत्सव में आकर उसे गर्भवती ना करते उसकी मनो इच्छा पूरी ना होती….

सुगना के जीवन में आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था सुगना जैसी युवती के लिए 10 लाख रुपए एक वरदान से कम न थे और यह वरदान भगवान ने राजेश के हाथों से प्रदान कर आया था। राजेश द्वारा लाया गया वह लाटरी का टिकट सुगना और उसके परिवार कि जिंदगी सवाँरने के लिए काफी था। पूरा परिवार हंसी खुशी वापस विद्यानंद के पंडाल में आ गया पर सुगना की निगाहें अभी भी पंडाल के गेट की तरफ लगी हुई थी अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…


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उधर आज सलेमपुर में सुबह सुबह सरयू सिंह के घर पर डाकिया खड़ा था वह मुंबई से रतन द्वारा भेजा गया पार्सल लेकर आया था। सरयू सिंह के गांव में आने की खबर उसे भी लग चुकी थी उस खबर में मनोरमा की गाड़ी का विशेष योगदान था। इन दिनों सरयू सिंह की किस्मत जोरों पर थी वह गांव में मनोरमा की गाड़ी में दिखाई पड़ते उनका शारीरिक कद तो पहले भी ऊंचा था और अब उनका सामाजिक कद भी बढ़ चुका मनोरमा द्वारा दी गई पदोन्नति ने भी अपना योगदान दिया था।

"सरयू भैया लागता रतन भेजले बाड़े"

डाकिए ने मुंबई का पता देखकर अंदाज लगा लिया था सरयू सिंह ने वह पार्सल लिया और अपनी दालान में रख कर उसे खोलने लगे।

सूरज के लिए ढेर सारे खिलौने देखकर वह खुश हो गए और मन ही मन रतन को धन्यवाद दिया पार्सल में पड़े बंद लिफाफे पर सुगना का नाम देखकर वह आश्चर्यचकित थे रतन ने सुगना को पत्र क्यों लिखा? सरयू सिह यह भली-भांति जानते थे की रतन और सुगना में कोई संबंध नहीं है फिर उसे खत लिखने का क्या औचित्य था ? सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को किसी और से साझा नहीं करना चाहते थे? उनकी बहू अब उनकी अर्धांगिनी तो न सही पर उनके जीवन का अभिन्न अंग हो चली थी ।

रतन के खत को हाथों में लिए वह उसे खोलने और न खोलने के बीच निर्णय नहीं ले पा रहे थे। यह खत एक पति द्वारा अपनी पत्नी को लिखा गया था परंतु पति पत्नी में कोई संबंध नहीं थे। सरयू सिंह को सुगना अपने हाथों से फिसलती हुए प्रतीत हो रही थी। वह सुगना को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते थे। अंततः वह खत खोल दिया और उसे पढ़ने लगे..


(पुरानी पोस्ट से उधृत)

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।


तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

सरयू सिंह की दुविधा और बढ़ गई। रतन सुगना के करीब आना चाह रहा था यह सुगना के भविष्य के लिए निश्चित ही एक सुखद मोड़ था यह अलग बात थी कि सुगना रतन के प्रति कोई संवेदना नहीं रखती थी परंतु पिछली 1 -2 मुलाकातों में सुगना और रतन आपस में एक दूसरे से बातचीत करने लगे थे वह दोनों धीरे-धीरे खुल रहे थे यह बात सरयू सिंह जानते थे।

राहत कार्य में लगे पुलिसकर्मी आ चुके थे और सरयू सिंह के एक बार फिर सलेमपुर में आई प्राकृतिक आपदा के राहत कार्य में व्यस्त हो गये। कार्य के दौरान समय का पता ही ना चला और देखते देखते शाम हो गई।

सरयू सिंह ने अपनी काबिलियत के बल पर मनोरमा द्वारा दिया गया कार्य पूरी कुशलता से समाप्त कर लिया था और वह अब एक भी पल सलेमपुर में रुकना नहीं चाहते थे। बनारस महोत्सव के दौरान ही वह अपनी प्यारी सुगना को अपनी बाहों में लेकर जी भर प्यार करना चाहते थे। मनोरमा ने अपने कमरे की चाबी देकर बनारस महोत्सव में उनके और सुगना के लिए कामक्रीड़ा का मैदान तैयार कर दिया था परंतु यह दुर्भाग्य ही था कि वह पिछले 5 दिनों में सुगना के दूसरे क्षेत्र का उद्घाटन न कर सके थे।

अंधेरा हो रहा था उन्होंने ड्राइवर को लालच किया और वह मन में उम्मीदें और लण्ड में तनाव लिए बनारस महोत्सव की तरफ बढ़ चले। रास्ते में सलेमपुर बाजार में रोक कर उन्होंने अपने वैद्य से शिलाजीत की वह दवाई भी ले ली जिसका लाभ वह सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के समय लेना चाह रहे थे। सुगना की कसी हुई गांड का उन्हें अंदाजा था वह किसी भी हाल में अपने लैंड के तनाव को कमनहीं करना चाह रहे थे। सुगना का कसे छेद को भेदने के लिए वह अपनी तलवार में पूरी तरह धार लगा रहे थे।


उनकी असफलता उनके स्वाभिमान को हमेशा के लिए गिरा सकती थी। सुगना के कसी गांड को ध्यान कर उन्हें सुगना के कौमार्य हरण के दिन की घटना याद आ गई जब उन्होंने अपनी उंगलियों को कजरी द्वारा बनाए गए मक्खन से सराबोर कर उसकी कौमार्य झिल्ली को तोड़ा था।

सरयू सिंह हलवाई की दुकान पर जाकर थोड़ा मक्खन भी खरीद लाए। सरयू सिंह के झोले में आज रात को रंगीन करने के सारे हथियार उपलब्ध थे।

रतन द्वारा सुगना के लिए भेजा गया खत भी उसी झोले में एक तरफ पड़ा हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की भावनाएं उस झोले में किनारे पड़ी हुई थी और उसकी पत्नी को चोदने तथा उसका भोग करने के लिए सरयू सिह अपने अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा कर रहे थे।

उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सूरज को कजरी के हवाले कर सुगना को लेकर मनोरमा के कमरे में चले जाएंगे और रात भर अपने सारे अरमान शांत करेंगे।

बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..

धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।


परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे

वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..

"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"

अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..

"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"

10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।

सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।

पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।


सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।

कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।


पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।

कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के स्कूल में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।

इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।

खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….

बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...

"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"

सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा

"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"

सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।

राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।


सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...

" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।


सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।

सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।

खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा

"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"

"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"

"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".

सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"


"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"

सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।


आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।

सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।

इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।

इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।


"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….


शेष अगले भाग में...
बहुत बढिया अपडेट मिल गया, वेटिंग फॉर नेक्स्ट अपडेट
 

Lutgaya

Well-Known Member
2,159
6,156
144
आज के अपडेट से ऐसा लगा जैसे औलोम्पिक हो रहा है सुगना के मालपुए का
 
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