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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

prkin

Well-Known Member
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आप जैसे कुछ चुनिंदा लोग ही बचे है इस कहानी के पाठको में।

पाठको के साथ साथ मेरा भी उत्साह कम हुआ है।
अपडेट वीकेंड पर आएगा कुछ नया करने का प्रयास है।

भाई,
ये कहानी मुझे अच्छी लग रही है. समय की कमी के कारण कुछ दिनों से अन्य कहानियों के समान ही इसे भी नहीं पढ़ पा रहा हूँ. आपकी कहानी में कुछ तो अंक विशिष्ट हैं. मैं आपकी भावनाएं समझता हूँ और प्रयास करूँगा कि शीघ्र ही इस को फिर से पढ़कर आपको अपनी प्रतिक्रिया दूँ.

धन्यवाद।
 

komaalrani

Well-Known Member
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One of the most well structured story of this forum, waiting for the next part
 

Lovely Anand

Love is life
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रिक्शे में बैठा राजेश सुगना के बारे में सोचने लगा। सुगना जैसी खूबसूरत और जवान युवती के साथ भगवान ने ऐसी नाइंसाफी क्यों की थी? उसका पति हर 6 महीने में गांव आता था। उस बेचारी को पति का सुख उन 3 -4 दिनों के लिए ही मिलता था. बाकी समय उसकी गदराई और मदमस्त जवानी का कोई पूछनहार न था.

राजेश इस बात को लेकर सुगना से बेहद हमदर्दी रखता था। सुगना भी राजेश के करीब आ रही थी यह बात राजेश ने महसूस की थी। जब भी वह अपनी ससुराल जाता सुगना राजेश के लिए तरह-तरह की खानपान की सामग्री बनाती. राजेश उसकी ढेर सारी तारीफ करता और जीजा साली एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार अपनी आंखों ही आंखों में कर लेते। राजेश उसके लिए उपहार भी ले जाने लगा था जिसे सुगना सहर्ष स्वीकार कर लेती।

इस बार की होली ने राजेश और लाली के बीच सुगना को लेकर आम सहमति बना दी। लाली को अब सुगना और राजेश के बीच पनप रहे कामुक संबंधों से परहेज न रहा। यही हाल राजेश का था वह लाली में सुगना के भाई सोनू के प्रति कामवासना भड़का रहा था।

दरअसल राजेश एक खुले विचार का आदमी था उसके जीवन में कामुकता और सेक्स का विशेष स्थान था। उसे पता था लाली और उसके बीच जो संबंध है उसकी डोर मजबूत थी थोड़ा बहुत व्यभिचार से यदि आनंद बढ़ता था तो उसे इसमे कोई आपत्ति न थी। अब तो लाली भी उसकी इच्छा में शामिल हो गई थी और नियति ने उनकी इच्छा पूर्ति के लिए सुगना और सोनू को उनसे मिला दिया था।

रिक्शा हॉस्पिटल के सामने पहुंच चुका था। राजेश ने राजू को गोद में लिया और लाली ने रीमा को। दोनों पति पत्नी हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरयू सिंह के कमरे में आ गए। सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े हुए कमरे में घुस रहे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे थे। राजेश ने उन्हें नमस्कार किया और उनका हालचाल लिया। राजेश की निगाहें कुछ देर तो सरयू सिंह के ऊपर रही पर शीघ्र ही अपने लक्ष्य पर पहुंच गयीं।

सुगना के मासूम चेहरे पर प्यार बरसाने के बाद उसकी निगाहों में कामुकता जाग उठी। राजेश की निगाहें सुगना की चूचियों और कटीली कमर पर पड़ीं। कमर के उस गोरे हिस्से जो ब्लाउज और कमर पर साड़ी के घेरे के बीच दिखाई पड़ रहा था उसके बीच सुगना की सुंदर नाभि सुगना के छुपे खजाने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। राजेश ने सुगना की नाभि को देख कर मन ही मन सुगना की कसी हुयी बुर की कल्पना कर ली।

सुगना ने राजेश की निगाहों को अपने शरीर पर महसूस कर लिया था। वह गठरी की भांति सिमट रही थी। उसने लाली की गोद से रीमा को ले लिया और लाली को अपने बगल में बैठा लिया। वह राजेश की कामुक निगाहों को अपने बाबू जी के सामने सहने की स्थिति में नहीं थी।

राजेश ने नर्स से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी इकट्ठा की। वहां उपस्थित सारे लोगों में राजेश सबसे पढ़ा लिखा और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सरयू सिंह भी अपनी युवावस्था में इसी प्रकार अपनी काबिलियत के बल पर कई लड़कियों और युवतियों को प्रभावित करते थे। आज राजेश उनके सामने ही उनकी सुगना को उनसे दूर करने जा रहा था। सरयू सिंह की सोच ना चाहते हुए भी राजेश को प्रतिद्वंदी की निगाह से देख रही थी। इसके उलट राजेश उन्हें और अपने ससुर हरिया को एक ही निगाह से देखता था। सुगना उसकी साली थी और जिस अवस्था से गुजर रही थी उसने राजेश के मन में सुगना के प्रति स्वाभाविक कामवासना को जन्म दिया था। राजेश को तो यह इल्म भी न था की हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा हुआ यह अधेड़ अपनी बहू सुगना से ऐसे संबंध बनाए हुए था।

अचानक हरिया ने कहा

"भैया आज हम गांव चल जा तानी खेत में खाद डाले के बा. कल फिर आईब"

हरिया यह जान चुका था कि राजेश आज घर पर ही रहेगा और घर की हालत ऐसी न थी जहां अधिक मेहमान एक साथ रह सकते थे उसने गांव जाना ही बेहतर समझा।

कुछ देर और बातें करने के पश्चात हरिया गांव के लिए निकल गया.

शाम हो रही थी। लाली की बेटी रीमा रो रही थी। सरयू सिंह ने राजेश से कहा..

"बेटा अब आप लोग भी जाके आराम करो बच्चा सब भी परेशान हो रहे हैं" सरयू सिंह राजेश से हिंदी में बात करने का प्रयास कर रहे थे। राजेश ने लाली की तरफ देखा और उसकी इच्छा जाननी चाही। आंखों ही आंखों में लाली की सहमति प्राप्त कर उसने कहा..

" ठीक है । अब हम लोग जा रहे है। काल फिर आएंगे"

सरयू सिंह खुश हो गए। उन्हें जाने क्यों यह उम्मीद हो गई थी कि आज सुगना राजेश के घर नहीं जाएगी। आखिर अब वहां जाने का कोई औचित्य भी न था। आज लाली का पति घर आ चुका था।

राजेश उठ कर खड़ा हो गया। लाली ने सुगना से कहा

"सुगना चला ना ता अंधेरा हो जाई"

कजरी भी यही चाहती थी कि सुगना लाली के साथ चली जाए ताकि उसके बेटे सूरज को कोई दिक्कत ना हो।

लाली ने कजरी के मुंह की बात छीन ली थी। कजरी में उसका साथ देते हुए कहा

"अरे सुगना.. सूरज बाबू के भूख लागल होइ घर जाकर कुछ खिया पिया दीह"

सूरज का नाम सुनकर सरयू सिंह शांत हो गए। एक बार फिर उनकी प्यारी सुगना उनकी आंखों के सामने उनसे दूर अपने प्रेमी राजेश के साथ जा रही थी। उनके दिल का दर्द एक बार फिर बढ़ रहा था। नियति उनके साथ यह खेल क्यों खेल रही थी वह स्वयं ना समझ पा रहे थे।

कजरी उनके मन की व्यथा जान रही थी। जब से उनके जीवन में सुगना आई थी तब से शायद ही कोई दिन ऐसा था जिस दिन उनके लंड ने वीर्य प्रवाह ना किया हो। सरयू सिंह दिन में कभी एक बार तो कभी दो बार सुगना या कजरी को जमकर चोदते तथा अपनी कामवासना को शांत करते। उनमें यह आग पिछले दो-तीन वर्षों में और भी बढ़ गई थी। निश्चय ही इसकी जिम्मेदार सुगना की मदमस्त जवानी और उनकी पुरी यात्रा थी जिसमें सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के साथ कामकला के विविध रंग देखे थे।

सरयू सिंह अपना सोया हुआ लंड लेकर बिस्तर पर पड़े हुए थे। जब तक सुगना यहां थी वह चहक रहे थे। वह मन ही मन हॉस्पिटल के इस बिस्तर पर भी सुगना को चोदना चाहते थे। उसके जाते ही उनका चेहरा उदास हो गया कजरी ने कहा..

"अपना सुगना बाबू के याद कर तानी हां?"

कजरी ने सरयू सिंह की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सरयू सिंह मुस्कुराने लगे वह आज कुछ तरोताजा महसूस कर रहे थे. कजरी ने फिर कहा

"अब ई कुल चोदा चोदी छोड़ दीं। हर चीज के ए गो उमर होला। सुगना त अभी जवान बिया हमनी के उम्र गइल अब ई कुल ठीक नइखे।"

( हर चीज की एक उम्र होती है सुगना तो अभी जवान है पर हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं)

सरयू सिंह कजरी की बातें सुन तो रहे थे पर उनका लंड इस बात को सिरे से नकार रहा था। शिलाजीत का असर अभी भी उस पर था। सुगना के साथ चोदा चोदी की बातें सुनकर वह हरकत में आ गया और धोती में एक नाग की भांति अपना सर उठाने लगा। कजरी ने हॉस्पिटल के कमरे का दरवाजा बंद किया और सरयू सिंह के लंड को सहलाने लगी। उसे पता था सरयू सिंह को सबसे ज्यादा आनंद स्खलित होने में ही मिलेगा। शायद वह सुगना की कमी को कुछ हद पूरा कर पाएगी और अपने कुँवर जी के चेहरे पर वापस ताजगी ला पाएगी।

कजरी सरयू सिंह के लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी वह अब अपनी बुर को सन्यास दिला चुकी थी परंतु आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथों के कमाल से शरीर सिंह को खुश कर देती। आज भी उसने सरयू सिंह के लंड को सहलाना शुरु कर दिया था।

उधर राजेश अपनी पत्नी और अपनी प्यारी साली को लेकर हॉस्पिटल के नीचे आ चुका था उसने लाली और सुगना को एक रिक्शे में बैठाया तथा दूसरे रिक्शा अपने पुत्र राजू को लेकर घर की तरफ निकल पड़ा लाली और सुनना का रिक्शा आगे आगे चल रहा था और राजेश का उनके पीछे।

राजेश को आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी बहुप्रतीक्षित प्रेमिका उसके घर आई हुई थी। राजेश ने घर पहुंचने के ठीक पहले रिक्शा रोक दिया और आइसक्रीम तथा मोतीचूर के लड्डू खरीद लिए। उसने शायद लाली से कभी सुन रखा था कि सुगना को मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद थे।

सुगना और लाली ने घर पहुंचते ही बच्चों के खान-पान का प्रबंध किया बच्चे अस्पताल के वातावरण में कुछ देर में ही तंग हो गए थे। बच्चों का खाना पीना समाप्त होते हैं वह कमरे में लगे बड़े बिस्तर पर खेलने लगे। राजेश के दोनों बच्चे उससे बेहद प्यार करते थे और उसके पीठ पर चढ़कर खेल रहे राजेश भी उनका साथ पाकर आनंदित था ।

उसने सुगना के पुत्र सूरज को अपनी गोद में लेने की चेष्टा की। सूरज राजेश के पास नहीं जाना चाहता था पर उसके हाथ में एक नया और अनजान खिलौना देखकर उसे लेने के लिए राजेश की तरफ हाथ बढ़ाया इसी समय राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए और सूरज उसकी गोद में आ गया पर सूरज के हस्तांतरण के समय राजेश की हथेलियों ने सुगना के वक्ष स्थल पर तने हुए सांची के स्तूपों को छू लिया यह घटना अकस्मात हुई थी पर उसकी सिहरन जीजा और साली दोनों में हुई थी। एक पल के लिए राजेश का लंड हरकत में आ गया था। सभी चूचियां उतनी ही कोमल होती है परंतु पराई और अपरिचित चूँची की बात ही अलग थी। सुगना भी अपनी जाँघों के बीच में अनजाना करेंट महसूस कर रही थी। उसने अपनी आंखें झुका ली और कमरे से बाहर आ गई।

कुछ देर खेलने के बाद लाली के दोनों बच्चे राजू और रीमा निद्रा देवी के आगोश में चले गए। सुगना का पुत्र सूरज बिना सुगना की चुचियों का रसपान किये नहीं सोता था। वह अभी भी जाग रहा था और राजेश के साथ खेल रहा था।

सुगना जब भी कमरे की तरफ देखती उसे यह देखकर बेहद हर्ष होता की राजेश सूरज को कितना प्यार करता है जिस तरह बछड़े को प्यार करने से मां स्वतः ही करीब आ जाती है वही हाल सुगना का राजेश उसे पसंद आने लगा था।

लाली ने कहा "जा सूरज के सुता दा उ भी थक गईल होइ"

सुगना कमरे में आ गई और राजेश से बोली

"लाइए मुझे दे दीजिए आपको बहुत तंग किया होगा"

सुगना आवश्यकता पड़ने पर हिंदी बोल लेती थी वह अपनी मां और फौजी पिता के साथ जब कई वर्षों तक बाहर रही थी उस दौरान उसने यह गुण सीख रखा था परंतु यह हिंदी भाषा वह सोच समझकर बोलती थी स्वाभाविक रूप से वह अपनी मूल भाषा में ही बात करती थी।

एक बार फिर सूरज का हस्तांतरण हुआ पर राजेश के हाथों को सुगना का उभरी हुयी चूँचियों का स्पर्श प्राप्त ना हो सका।

राजेश ने कहा बहुत "प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है"

इतना कहकर राजेश ने सूरज के गाल पर चुंबन ले लिया सूरज का गाल और सुगना के गाल में ज्यादा दूरी न थी एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सूरज के बाद उसकी ही बारी है तभी लाली कमरे में आ गयी।

सुगना सूरज को लेकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी लाली ने उसे रोक लिया और बोली

"एहीजे बैठ के दूध पिया ल"

सुगना राजेश के सामने अपनी चूचियां खोलकर सूरज को दूध पिलाने में शर्मा रही थी उसकी दुविधा देखकर राजेश ने कहा

" आप आराम से बैठ जाइए मैं बाहर घूम कर आता हूं"

लाली ने अधिकार पूर्वक कहा

" अरे आप बैठिए सुगना दूसरी तरफ मुंह करके पिला लेगी।"

सुगना बिस्तर पर बैठ गई और सूरज को दूध पिलाने लगी। राजेश दीवाल पर टेक लगा कर बैठा हुआ था। सुगना ने अपने आंचल से अपनी चुचियाँ ढक लीं और सूरज को दूध पिलाने लगी। सुगना की पीठ राजेश की तरफ थी।

लाली ने राजेश को छेड़ा..

"लीजिए अब तो आपकी साली घर आ गई कीजिए उसका स्वागत जैसे हमसे बात करते थे"

राजेश शर्म से पानी पानी हो गया लाली इस तरह की बात बोल जाएगी उसने कभी न सोचा था। वह निरुत्तर हो गया। उधर सुगना अपना सर नीचे किये मुस्कुरा रही थी। पिछली रात लाली ने राजेश द्वारा उसे लेकर की जाने वाली बातों का एहसास करा दिया था। इतना तो सुगना को भी पता था कि पति-पत्नी के बीच में ढेर सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता। खुद सरयू सिंह उसके साथ ऐसी ऐसी कल्पनाएं किया करते थे जो संभव न था पर उसका आनंद सरयू सिंह भी लेते थे और सुगना भी।

राजेश उसके प्रति आकर्षित था पर लाली जितना बोलती थी उतना सोचना तो आसान था पर करना कठिन। सुगना की जांघों के बीच तनाव बढ़ रहा था उसकी कोमल बुर सचेत हो गई थी।

राजेश ने बात बदलते हुए कहा

"आप के आदेश पर आपकी सहेली के लिए आइसक्रीम ले आया हूं"

" और वह मोतीचूर का लड्डू क्या अकेले में खिलाएगा"

लाली फिर हंस पड़ी थी वह राजेश पर प्रहार किए जा रही थी और सुगना सर नीचे किए हुए मुस्कुरा रही थी।

राजेश भी

हाजिर जवाब था उसने कहा

"अरे आप मौका दीजिएगा तब ना लड्डू खिलाएंगे"

लाली ने झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोला

"ठीक है हम जा रहे हैं खाना निकालने तब तक अपनी साली को लड्डू खिला लीजिए"

वह उठकर जाने लगी। सुगना ने लाली का हाथ पकड़ लिया और बोला

"हम तोरा रहते लड्डू खा लेब हमरा लड्डू खाए में कौन लाज लागल बा"

सुगना की बात सुनकर राजेश को बल मिला वह बोला "मेरी साली साहिबा ज्यादा समझदार है"

तीनों हंसने लगे थे अब तक सूरज सो चुका था। सुगना ने उसे सुलाने के लिए अनजाने में ही राजेश की तरफ मुड़ गई उसे अपनी चूचियां ढकने का ख्याल न रहा और सूरज को बिस्तर पर सुलाते समय उसने अपनी कोमल नंगी चूचि और खुले हुए निपल्ल का दर्शन राजेश को करा दिया। लाली ने राजेश की निगाहों को सुगना की चुचियों पर निशाना साधते देख लिया और सुगना से हंसते हुए बोली..

"ए सुगना एक आदमी और पियासल बा, कुछ दूध बाचल बा का?"

राजेश की चोरी पकड़ी गई थी सुगना ने राजेश की निगाहों को अपनी चुचियों पर महसूस कर लिया और तुरंत ही अपनी चूचियां ढक लीं.

उसने कुछ कहा नहीं और मुस्कुराते हुए बोली

"ते पागल हो गईल बाड़े चल खाना निकल जाऊ"

उसी समय एक व्यक्ति द्वारा दरवाजा खटखटाने का का एहसास हुआ। राजेश ने उठकर दरवाजा खोला उस व्यक्ति ने कहा

"स्टेशन मास्टर साहब ने आपको बुलाया है"

"ठीक है मैं आता हूं" राजेश ने कहा।

राजेश कपड़े पहन कर बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा। लाली थोड़ा दुखी हो गई पर राजेश ने कहा

"अरे तुम खाना निकालो मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा" लाली थोड़े गुस्से में थी।

राजेश के जाने के पश्चात सुगना ने लाली का गुस्सा शांत किया और वह दोनों सहेलियां आपस में हंस-हंसकर बातें करने लगी। लाली ने सुगना से कहा...

"चल तब तक हमनी के कपड़ा बदल लीहल जाउ"

आज ही राजेश ने लखनऊ से आते समय लाली के लिए एक सुंदर नाइट गाउन लाया था। यह नाइट गाउन फ्रंट ओपन टाइप का था जिसे कमर में बने कपड़े के बेल्ट द्वारा बांधा जा सकता था उसका कपड़ा बेहद मुलायम और कोमल था सुगना उसे अपने हाथों में लेकर छू रही थी। उसने इतना अच्छा और कोमल नाइट गाउन पहले कभी नहीं देखा था।

लाली ने कहा

"ए सुगना आज तू ई हे पहिंन ला"

" हट पागल, जीजा जी तोहरा खातिर ले आईल बाड़े."

"पर तोरा के पहिंनले देखे लीहें तो और मस्त हो जइहें. हमार कसम पहिंन ले"

लाली की जिद के आगे सुगना की एक न चली और उसने वह नाइट गाउन पहनने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। अचानक सुगना को याद आया उसने पेंटी नहीं पहनी थी साड़ी और पेटीकोट पहनने के बाद उसकी कोई विशेष आवश्यकता वह महसूस नहीं करती थी। आज दिन भर तो वह बिना ब्रा के रही थी दरअसल दूध भरे होने के कारण सुगना की चूचियां ज्यादा बड़ी थी।

आज सुबह नहाने के पश्चात सुगना ने लाली की साड़ी और पेटीकोट तो पहन लिया था परंतु उसकी ब्रा सुगना को फिट नहीं आ रही थी बड़ी मुश्किल से एक पुरानी ब्लाउज सुगना की चूँचियों को ढक पाने में कामयाब हुई थी। इस कसी हुई ब्लाउज की वजह से सुगना की चूचियां और तन गई थी तथा निप्पल अपनी उपस्थिति साफ साफ दिखा रहे थे जिसे सुगना अपने आंचल से ढक कर उसे छुपाने का प्रयास कर रही थी।

सुगना ने लाली से कहा

"गाउन पेटीकोट के ऊपर से पहनब हमरा भीरी नीचे के कपड़ा नईखे"

लाली सुगना की दुविधा समझ गई और अपनी अलमारी खोलकर एक सुंदर सी लाल रंग की पेंटी निकाली। सुगना के नितंब लाली के नितंबों से थोड़ा ही बड़े थे परंतु पेंटी लचीले कपड़े से बनी हुई थी थोड़ा प्रयास करने पर सुगना ने उसे पहन लिया सुगना की गोरी जांघो पर लाली की निगाहें टिक गई वो बेहद खूबसूरत थीं और केले के तने की भांति चमक रही थीं। सुगना का सिर्फ रंग ही गोरा न था उसकी त्वचा में एक अलग किस्म की चमक थी।

लाली ने कहा..

"तोर जाँघ कतना चमकत बा का लगावे ले"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने कोई उत्तर न दिया वह अपने गनितंबों को उस लाल पेंटी में व्यवस्थित कर रही थी।

कुछ देर में उसने लाली की साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया तथा उस सुंदर नाइट का उनको अपने शरीर पर धारण कर लिया। सुगना की खूबसूरती देखते ही बन रही थी वह खूबसूरत तो थी ही और इस खूबसूरत निवास में एक परी की बात दिखाई पड़ रही थी। सुगना ने लाली से अपनी सुबह खोली गई ब्रा लाने को कहा।

"एक बार ऐसे ही अपना जीजा जी के दिखा दे उनकर जीवन तर जायी।"

इतने में ही दरवाजे पर एक बार फिर खटखट की आवाज हुयी। राजेश वापस आ चुका था लाली झट से भाग कर गई और सुगना की ब्रा ले आई सुगना ने आनन-फानन में ही वह ब्रा पहनी उसकी सांसे तेज चल रही थी। जब तक सुगना ब्रा के हुक फसाती लाली दरवाजे की कुंडी खोल चुकी थी। राजेश अंदर आ चुका था और सुगना कमरे से निकलकर हॉल में आ रही थी। राजेश ने सुगना को देखा... उसकी सांसे रुक गई….
 

komaalrani

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बहुत सुन्दर
 

Sexy launda

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रिक्शे में बैठा राजेश सुगना के बारे में सोचने लगा। सुगना जैसी खूबसूरत और जवान युवती के साथ भगवान ने ऐसी नाइंसाफी क्यों की थी? उसका पति हर 6 महीने में गांव आता था। उस बेचारी को पति का सुख उन 3 -4 दिनों के लिए ही मिलता था. बाकी समय उसकी गदराई और मदमस्त जवानी का कोई पूछनहार न था.

राजेश इस बात को लेकर सुगना से बेहद हमदर्दी रखता था। सुगना भी राजेश के करीब आ रही थी यह बात राजेश ने महसूस की थी। जब भी वह अपनी ससुराल जाता सुगना राजेश के लिए तरह-तरह की खानपान की सामग्री बनाती. राजेश उसकी ढेर सारी तारीफ करता और जीजा साली एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार अपनी आंखों ही आंखों में कर लेते। राजेश उसके लिए उपहार भी ले जाने लगा था जिसे सुगना सहर्ष स्वीकार कर लेती।

इस बार की होली ने राजेश और लाली के बीच सुगना को लेकर आम सहमति बना दी। लाली को अब सुगना और राजेश के बीच पनप रहे कामुक संबंधों से परहेज न रहा। यही हाल राजेश का था वह लाली में सुगना के भाई सोनू के प्रति कामवासना भड़का रहा था।

दरअसल राजेश एक खुले विचार का आदमी था उसके जीवन में कामुकता और सेक्स का विशेष स्थान था। उसे पता था लाली और उसके बीच जो संबंध है उसकी डोर मजबूत थी थोड़ा बहुत व्यभिचार से यदि आनंद बढ़ता था तो उसे इसमे कोई आपत्ति न थी। अब तो लाली भी उसकी इच्छा में शामिल हो गई थी और नियति ने उनकी इच्छा पूर्ति के लिए सुगना और सोनू को उनसे मिला दिया था।

रिक्शा हॉस्पिटल के सामने पहुंच चुका था। राजेश ने राजू को गोद में लिया और लाली ने रीमा को। दोनों पति पत्नी हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरयू सिंह के कमरे में आ गए। सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े हुए कमरे में घुस रहे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे थे। राजेश ने उन्हें नमस्कार किया और उनका हालचाल लिया। राजेश की निगाहें कुछ देर तो सरयू सिंह के ऊपर रही पर शीघ्र ही अपने लक्ष्य पर पहुंच गयीं।

सुगना के मासूम चेहरे पर प्यार बरसाने के बाद उसकी निगाहों में कामुकता जाग उठी। राजेश की निगाहें सुगना की चूचियों और कटीली कमर पर पड़ीं। कमर के उस गोरे हिस्से जो ब्लाउज और कमर पर साड़ी के घेरे के बीच दिखाई पड़ रहा था उसके बीच सुगना की सुंदर नाभि सुगना के छुपे खजाने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। राजेश ने सुगना की नाभि को देख कर मन ही मन सुगना की कसी हुयी बुर की कल्पना कर ली।

सुगना ने राजेश की निगाहों को अपने शरीर पर महसूस कर लिया था। वह गठरी की भांति सिमट रही थी। उसने लाली की गोद से रीमा को ले लिया और लाली को अपने बगल में बैठा लिया। वह राजेश की कामुक निगाहों को अपने बाबू जी के सामने सहने की स्थिति में नहीं थी।

राजेश ने नर्स से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी इकट्ठा की। वहां उपस्थित सारे लोगों में राजेश सबसे पढ़ा लिखा और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सरयू सिंह भी अपनी युवावस्था में इसी प्रकार अपनी काबिलियत के बल पर कई लड़कियों और युवतियों को प्रभावित करते थे। आज राजेश उनके सामने ही उनकी सुगना को उनसे दूर करने जा रहा था। सरयू सिंह की सोच ना चाहते हुए भी राजेश को प्रतिद्वंदी की निगाह से देख रही थी। इसके उलट राजेश उन्हें और अपने ससुर हरिया को एक ही निगाह से देखता था। सुगना उसकी साली थी और जिस अवस्था से गुजर रही थी उसने राजेश के मन में सुगना के प्रति स्वाभाविक कामवासना को जन्म दिया था। राजेश को तो यह इल्म भी न था की हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा हुआ यह अधेड़ अपनी बहू सुगना से ऐसे संबंध बनाए हुए था।

अचानक हरिया ने कहा

"भैया आज हम गांव चल जा तानी खेत में खाद डाले के बा. कल फिर आईब"

हरिया यह जान चुका था कि राजेश आज घर पर ही रहेगा और घर की हालत ऐसी न थी जहां अधिक मेहमान एक साथ रह सकते थे उसने गांव जाना ही बेहतर समझा।

कुछ देर और बातें करने के पश्चात हरिया गांव के लिए निकल गया.

शाम हो रही थी। लाली की बेटी रीमा रो रही थी। सरयू सिंह ने राजेश से कहा..

"बेटा अब आप लोग भी जाके आराम करो बच्चा सब भी परेशान हो रहे हैं" सरयू सिंह राजेश से हिंदी में बात करने का प्रयास कर रहे थे। राजेश ने लाली की तरफ देखा और उसकी इच्छा जाननी चाही। आंखों ही आंखों में लाली की सहमति प्राप्त कर उसने कहा..

" ठीक है । अब हम लोग जा रहे है। काल फिर आएंगे"

सरयू सिंह खुश हो गए। उन्हें जाने क्यों यह उम्मीद हो गई थी कि आज सुगना राजेश के घर नहीं जाएगी। आखिर अब वहां जाने का कोई औचित्य भी न था। आज लाली का पति घर आ चुका था।

राजेश उठ कर खड़ा हो गया। लाली ने सुगना से कहा

"सुगना चला ना ता अंधेरा हो जाई"

कजरी भी यही चाहती थी कि सुगना लाली के साथ चली जाए ताकि उसके बेटे सूरज को कोई दिक्कत ना हो।

लाली ने कजरी के मुंह की बात छीन ली थी। कजरी में उसका साथ देते हुए कहा

"अरे सुगना.. सूरज बाबू के भूख लागल होइ घर जाकर कुछ खिया पिया दीह"

सूरज का नाम सुनकर सरयू सिंह शांत हो गए। एक बार फिर उनकी प्यारी सुगना उनकी आंखों के सामने उनसे दूर अपने प्रेमी राजेश के साथ जा रही थी। उनके दिल का दर्द एक बार फिर बढ़ रहा था। नियति उनके साथ यह खेल क्यों खेल रही थी वह स्वयं ना समझ पा रहे थे।

कजरी उनके मन की व्यथा जान रही थी। जब से उनके जीवन में सुगना आई थी तब से शायद ही कोई दिन ऐसा था जिस दिन उनके लंड ने वीर्य प्रवाह ना किया हो। सरयू सिंह दिन में कभी एक बार तो कभी दो बार सुगना या कजरी को जमकर चोदते तथा अपनी कामवासना को शांत करते। उनमें यह आग पिछले दो-तीन वर्षों में और भी बढ़ गई थी। निश्चय ही इसकी जिम्मेदार सुगना की मदमस्त जवानी और उनकी पुरी यात्रा थी जिसमें सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के साथ कामकला के विविध रंग देखे थे।

सरयू सिंह अपना सोया हुआ लंड लेकर बिस्तर पर पड़े हुए थे। जब तक सुगना यहां थी वह चहक रहे थे। वह मन ही मन हॉस्पिटल के इस बिस्तर पर भी सुगना को चोदना चाहते थे। उसके जाते ही उनका चेहरा उदास हो गया कजरी ने कहा..

"अपना सुगना बाबू के याद कर तानी हां?"

कजरी ने सरयू सिंह की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सरयू सिंह मुस्कुराने लगे वह आज कुछ तरोताजा महसूस कर रहे थे. कजरी ने फिर कहा

"अब ई कुल चोदा चोदी छोड़ दीं। हर चीज के ए गो उमर होला। सुगना त अभी जवान बिया हमनी के उम्र गइल अब ई कुल ठीक नइखे।"

( हर चीज की एक उम्र होती है सुगना तो अभी जवान है पर हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं)

सरयू सिंह कजरी की बातें सुन तो रहे थे पर उनका लंड इस बात को सिरे से नकार रहा था। शिलाजीत का असर अभी भी उस पर था। सुगना के साथ चोदा चोदी की बातें सुनकर वह हरकत में आ गया और धोती में एक नाग की भांति अपना सर उठाने लगा। कजरी ने हॉस्पिटल के कमरे का दरवाजा बंद किया और सरयू सिंह के लंड को सहलाने लगी। उसे पता था सरयू सिंह को सबसे ज्यादा आनंद स्खलित होने में ही मिलेगा। शायद वह सुगना की कमी को कुछ हद पूरा कर पाएगी और अपने कुँवर जी के चेहरे पर वापस ताजगी ला पाएगी।

कजरी सरयू सिंह के लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी वह अब अपनी बुर को सन्यास दिला चुकी थी परंतु आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथों के कमाल से शरीर सिंह को खुश कर देती। आज भी उसने सरयू सिंह के लंड को सहलाना शुरु कर दिया था।

उधर राजेश अपनी पत्नी और अपनी प्यारी साली को लेकर हॉस्पिटल के नीचे आ चुका था उसने लाली और सुगना को एक रिक्शे में बैठाया तथा दूसरे रिक्शा अपने पुत्र राजू को लेकर घर की तरफ निकल पड़ा लाली और सुनना का रिक्शा आगे आगे चल रहा था और राजेश का उनके पीछे।

राजेश को आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी बहुप्रतीक्षित प्रेमिका उसके घर आई हुई थी। राजेश ने घर पहुंचने के ठीक पहले रिक्शा रोक दिया और आइसक्रीम तथा मोतीचूर के लड्डू खरीद लिए। उसने शायद लाली से कभी सुन रखा था कि सुगना को मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद थे।

सुगना और लाली ने घर पहुंचते ही बच्चों के खान-पान का प्रबंध किया बच्चे अस्पताल के वातावरण में कुछ देर में ही तंग हो गए थे। बच्चों का खाना पीना समाप्त होते हैं वह कमरे में लगे बड़े बिस्तर पर खेलने लगे। राजेश के दोनों बच्चे उससे बेहद प्यार करते थे और उसके पीठ पर चढ़कर खेल रहे राजेश भी उनका साथ पाकर आनंदित था ।

उसने सुगना के पुत्र सूरज को अपनी गोद में लेने की चेष्टा की। सूरज राजेश के पास नहीं जाना चाहता था पर उसके हाथ में एक नया और अनजान खिलौना देखकर उसे लेने के लिए राजेश की तरफ हाथ बढ़ाया इसी समय राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए और सूरज उसकी गोद में आ गया पर सूरज के हस्तांतरण के समय राजेश की हथेलियों ने सुगना के वक्ष स्थल पर तने हुए सांची के स्तूपों को छू लिया यह घटना अकस्मात हुई थी पर उसकी सिहरन जीजा और साली दोनों में हुई थी। एक पल के लिए राजेश का लंड हरकत में आ गया था। सभी चूचियां उतनी ही कोमल होती है परंतु पराई और अपरिचित चूँची की बात ही अलग थी। सुगना भी अपनी जाँघों के बीच में अनजाना करेंट महसूस कर रही थी। उसने अपनी आंखें झुका ली और कमरे से बाहर आ गई।

कुछ देर खेलने के बाद लाली के दोनों बच्चे राजू और रीमा निद्रा देवी के आगोश में चले गए। सुगना का पुत्र सूरज बिना सुगना की चुचियों का रसपान किये नहीं सोता था। वह अभी भी जाग रहा था और राजेश के साथ खेल रहा था।

सुगना जब भी कमरे की तरफ देखती उसे यह देखकर बेहद हर्ष होता की राजेश सूरज को कितना प्यार करता है जिस तरह बछड़े को प्यार करने से मां स्वतः ही करीब आ जाती है वही हाल सुगना का राजेश उसे पसंद आने लगा था।

लाली ने कहा "जा सूरज के सुता दा उ भी थक गईल होइ"

सुगना कमरे में आ गई और राजेश से बोली

"लाइए मुझे दे दीजिए आपको बहुत तंग किया होगा"

सुगना आवश्यकता पड़ने पर हिंदी बोल लेती थी वह अपनी मां और फौजी पिता के साथ जब कई वर्षों तक बाहर रही थी उस दौरान उसने यह गुण सीख रखा था परंतु यह हिंदी भाषा वह सोच समझकर बोलती थी स्वाभाविक रूप से वह अपनी मूल भाषा में ही बात करती थी।

एक बार फिर सूरज का हस्तांतरण हुआ पर राजेश के हाथों को सुगना का उभरी हुयी चूँचियों का स्पर्श प्राप्त ना हो सका।

राजेश ने कहा बहुत "प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है"

इतना कहकर राजेश ने सूरज के गाल पर चुंबन ले लिया सूरज का गाल और सुगना के गाल में ज्यादा दूरी न थी एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सूरज के बाद उसकी ही बारी है तभी लाली कमरे में आ गयी।

सुगना सूरज को लेकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी लाली ने उसे रोक लिया और बोली

"एहीजे बैठ के दूध पिया ल"

सुगना राजेश के सामने अपनी चूचियां खोलकर सूरज को दूध पिलाने में शर्मा रही थी उसकी दुविधा देखकर राजेश ने कहा

" आप आराम से बैठ जाइए मैं बाहर घूम कर आता हूं"

लाली ने अधिकार पूर्वक कहा

" अरे आप बैठिए सुगना दूसरी तरफ मुंह करके पिला लेगी।"

सुगना बिस्तर पर बैठ गई और सूरज को दूध पिलाने लगी। राजेश दीवाल पर टेक लगा कर बैठा हुआ था। सुगना ने अपने आंचल से अपनी चुचियाँ ढक लीं और सूरज को दूध पिलाने लगी। सुगना की पीठ राजेश की तरफ थी।

लाली ने राजेश को छेड़ा..

"लीजिए अब तो आपकी साली घर आ गई कीजिए उसका स्वागत जैसे हमसे बात करते थे"

राजेश शर्म से पानी पानी हो गया लाली इस तरह की बात बोल जाएगी उसने कभी न सोचा था। वह निरुत्तर हो गया। उधर सुगना अपना सर नीचे किये मुस्कुरा रही थी। पिछली रात लाली ने राजेश द्वारा उसे लेकर की जाने वाली बातों का एहसास करा दिया था। इतना तो सुगना को भी पता था कि पति-पत्नी के बीच में ढेर सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता। खुद सरयू सिंह उसके साथ ऐसी ऐसी कल्पनाएं किया करते थे जो संभव न था पर उसका आनंद सरयू सिंह भी लेते थे और सुगना भी।

राजेश उसके प्रति आकर्षित था पर लाली जितना बोलती थी उतना सोचना तो आसान था पर करना कठिन। सुगना की जांघों के बीच तनाव बढ़ रहा था उसकी कोमल बुर सचेत हो गई थी।

राजेश ने बात बदलते हुए कहा

"आप के आदेश पर आपकी सहेली के लिए आइसक्रीम ले आया हूं"

" और वह मोतीचूर का लड्डू क्या अकेले में खिलाएगा"

लाली फिर हंस पड़ी थी वह राजेश पर प्रहार किए जा रही थी और सुगना सर नीचे किए हुए मुस्कुरा रही थी।

राजेश भी

हाजिर जवाब था उसने कहा

"अरे आप मौका दीजिएगा तब ना लड्डू खिलाएंगे"

लाली ने झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोला

"ठीक है हम जा रहे हैं खाना निकालने तब तक अपनी साली को लड्डू खिला लीजिए"

वह उठकर जाने लगी। सुगना ने लाली का हाथ पकड़ लिया और बोला

"हम तोरा रहते लड्डू खा लेब हमरा लड्डू खाए में कौन लाज लागल बा"

सुगना की बात सुनकर राजेश को बल मिला वह बोला "मेरी साली साहिबा ज्यादा समझदार है"

तीनों हंसने लगे थे अब तक सूरज सो चुका था। सुगना ने उसे सुलाने के लिए अनजाने में ही राजेश की तरफ मुड़ गई उसे अपनी चूचियां ढकने का ख्याल न रहा और सूरज को बिस्तर पर सुलाते समय उसने अपनी कोमल नंगी चूचि और खुले हुए निपल्ल का दर्शन राजेश को करा दिया। लाली ने राजेश की निगाहों को सुगना की चुचियों पर निशाना साधते देख लिया और सुगना से हंसते हुए बोली..

"ए सुगना एक आदमी और पियासल बा, कुछ दूध बाचल बा का?"

राजेश की चोरी पकड़ी गई थी सुगना ने राजेश की निगाहों को अपनी चुचियों पर महसूस कर लिया और तुरंत ही अपनी चूचियां ढक लीं.

उसने कुछ कहा नहीं और मुस्कुराते हुए बोली

"ते पागल हो गईल बाड़े चल खाना निकल जाऊ"

उसी समय एक व्यक्ति द्वारा दरवाजा खटखटाने का का एहसास हुआ। राजेश ने उठकर दरवाजा खोला उस व्यक्ति ने कहा

"स्टेशन मास्टर साहब ने आपको बुलाया है"

"ठीक है मैं आता हूं" राजेश ने कहा।

राजेश कपड़े पहन कर बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा। लाली थोड़ा दुखी हो गई पर राजेश ने कहा

"अरे तुम खाना निकालो मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा" लाली थोड़े गुस्से में थी।

राजेश के जाने के पश्चात सुगना ने लाली का गुस्सा शांत किया और वह दोनों सहेलियां आपस में हंस-हंसकर बातें करने लगी। लाली ने सुगना से कहा...

"चल तब तक हमनी के कपड़ा बदल लीहल जाउ"

आज ही राजेश ने लखनऊ से आते समय लाली के लिए एक सुंदर नाइट गाउन लाया था। यह नाइट गाउन फ्रंट ओपन टाइप का था जिसे कमर में बने कपड़े के बेल्ट द्वारा बांधा जा सकता था उसका कपड़ा बेहद मुलायम और कोमल था सुगना उसे अपने हाथों में लेकर छू रही थी। उसने इतना अच्छा और कोमल नाइट गाउन पहले कभी नहीं देखा था।

लाली ने कहा

"ए सुगना आज तू ई हे पहिंन ला"

" हट पागल, जीजा जी तोहरा खातिर ले आईल बाड़े."

"पर तोरा के पहिंनले देखे लीहें तो और मस्त हो जइहें. हमार कसम पहिंन ले"

लाली की जिद के आगे सुगना की एक न चली और उसने वह नाइट गाउन पहनने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। अचानक सुगना को याद आया उसने पेंटी नहीं पहनी थी साड़ी और पेटीकोट पहनने के बाद उसकी कोई विशेष आवश्यकता वह महसूस नहीं करती थी। आज दिन भर तो वह बिना ब्रा के रही थी दरअसल दूध भरे होने के कारण सुगना की चूचियां ज्यादा बड़ी थी।

आज सुबह नहाने के पश्चात सुगना ने लाली की साड़ी और पेटीकोट तो पहन लिया था परंतु उसकी ब्रा सुगना को फिट नहीं आ रही थी बड़ी मुश्किल से एक पुरानी ब्लाउज सुगना की चूँचियों को ढक पाने में कामयाब हुई थी। इस कसी हुई ब्लाउज की वजह से सुगना की चूचियां और तन गई थी तथा निप्पल अपनी उपस्थिति साफ साफ दिखा रहे थे जिसे सुगना अपने आंचल से ढक कर उसे छुपाने का प्रयास कर रही थी।

सुगना ने लाली से कहा

"गाउन पेटीकोट के ऊपर से पहनब हमरा भीरी नीचे के कपड़ा नईखे"

लाली सुगना की दुविधा समझ गई और अपनी अलमारी खोलकर एक सुंदर सी लाल रंग की पेंटी निकाली। सुगना के नितंब लाली के नितंबों से थोड़ा ही बड़े थे परंतु पेंटी लचीले कपड़े से बनी हुई थी थोड़ा प्रयास करने पर सुगना ने उसे पहन लिया सुगना की गोरी जांघो पर लाली की निगाहें टिक गई वो बेहद खूबसूरत थीं और केले के तने की भांति चमक रही थीं। सुगना का सिर्फ रंग ही गोरा न था उसकी त्वचा में एक अलग किस्म की चमक थी।

लाली ने कहा..

"तोर जाँघ कतना चमकत बा का लगावे ले"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने कोई उत्तर न दिया वह अपने गनितंबों को उस लाल पेंटी में व्यवस्थित कर रही थी।

कुछ देर में उसने लाली की साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया तथा उस सुंदर नाइट का उनको अपने शरीर पर धारण कर लिया। सुगना की खूबसूरती देखते ही बन रही थी वह खूबसूरत तो थी ही और इस खूबसूरत निवास में एक परी की बात दिखाई पड़ रही थी। सुगना ने लाली से अपनी सुबह खोली गई ब्रा लाने को कहा।

"एक बार ऐसे ही अपना जीजा जी के दिखा दे उनकर जीवन तर जायी।"


इतने में ही दरवाजे पर एक बार फिर खटखट की आवाज हुयी। राजेश वापस आ चुका था लाली झट से भाग कर गई और सुगना की ब्रा ले आई सुगना ने आनन-फानन में ही वह ब्रा पहनी उसकी सांसे तेज चल रही थी। जब तक सुगना ब्रा के हुक फसाती लाली दरवाजे की कुंडी खोल चुकी थी। राजेश अंदर आ चुका था और सुगना कमरे से निकलकर हॉल में आ रही थी। राजेश ने सुगना को देखा... उसकी सांसे रुक गई….
भाई सुगना जब राजेश के साथ सम्बंध बना रही हैं तो पता नही क्यों अच्छा नही लग रहा है,
सुगना की जोड़ी सरयू सिंह के साथ ज्यादा अच्छी लगती थी
 
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