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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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लवली आनंद भाई !
आप के लेखनी से ही समझ गया था कि आप एक बेहतरीन राइटर हो । ये एडल्ट फोरम है यार ! मालपानी भाई ने वही कहा जो अधिकांशतः लोग एडल्ट कहानी में पढ़ना चाहते हैं इसलिए उनके बातों का बुरा मत मानिए ।
यदि उन्हें खराब लगा हो तो प्यार से समझा दो न ! मिस अंडरस्टैंडिंग तो होता ही है ।
चूंकि ये आपका थ्रीड है तो पहल आपको ही करना है न !

लेकिन आप का ये भी कहना सही नहीं है कि आप लोग एस कुमार की कहानी पढ़ें । एस कुमार भी आप ही की तरह बहुत ही अच्छे राइटर है । और ये आप भी जानते हैं ।

आप बहुत ही बढ़िया राइटर है और मुझे विश्वास है कि आप अपने रीडर्स के सवालों को बेहतर तरीके से संतुष्ट करेंगे ।
 

Lovely Anand

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लवली आनंद भाई !
आप के लेखनी से ही समझ गया था कि आप एक बेहतरीन राइटर हो । ये एडल्ट फोरम है यार ! मालपानी भाई ने वही कहा जो अधिकांशतः लोग एडल्ट कहानी में पढ़ना चाहते हैं इसलिए उनके बातों का बुरा मत मानिए ।
यदि उन्हें खराब लगा हो तो प्यार से समझा दो न ! मिस अंडरस्टैंडिंग तो होता ही है ।
चूंकि ये आपका थ्रीड है तो पहल आपको ही करना है न !

लेकिन आप का ये भी कहना सही नहीं है कि आप लोग एस कुमार की कहानी पढ़ें । एस कुमार भी आप ही की तरह बहुत ही अच्छे राइटर है । और ये आप भी जानते हैं ।

आप बहुत ही बढ़िया राइटर है और मुझे विश्वास है कि आप अपने रीडर्स के सवालों को बेहतर तरीके से संतुष्ट करेंगे ।

धन्यवाद
संजू जी। मालपानी जी इस कहानी के एक प्रमुख पाठक थे। जिन्होंने लगभग हर अपडेट पर अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया दी। लेखक से कहानी में सेक्स सीन की अपेक्षा रखना उचित है और इसे आप जोर देकर कह सकते है पर " घाँस काटने " जैसे शब्दों का प्रयोग अशोभनीय है।
मेरी तीखी प्रतिक्रिया सिर्फ उसी लिए थी।

इस कुमार जी का लेखन सराहनीय है। उन्हीने नजदीकी और खूनी रिश्तों सेक्स को दर्शाया है और बेहद उत्तेजक तरीके से दर्शाया है और पाठक उसे पसंद भी करते हैं।
मैने उनका नाम इसीलिए सुझाया था ताकि जो पाठक अति उत्तेजक और नजदीकी रिश्ते जैसे पिता पुत्री में गहन सेक्स पढ़ना चाहते हों वे वह कहानी पढ़ सकते है।
मेरा आशय एस कुमार जी के लिए कतई गलत नहीं था।
मालपानी जी का अभी भी स्वागत है।
पुनः धन्यवाद...

अगला अपडेट सुबह आएगा।

शुभ रात्री।
 

Lovely Anand

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होली के दौरान राजेश और सुगना के बीच बढ़ रही नजदीकियों को सरयू सिंह की पारखी निगाहों ने देख लिया था। वह स्वयं इस कला में माहिर थे। उनकी आंखों के सामने उनकी प्यारी सुगना अपने हम उम्र और युवा राजेश के करीब आ रही थी।

उन्होंने सुगना पर अपना अधिकार कायम रखने के लिए उसके साथ बार-बार और विविध प्रकार से संभोग करने लगे परंतु सुगना बदल रही थी। सरयू सिंह की मुट्ठी से रेत फिसल रही थी। जितनी तेजी से वह अपनी मुट्ठी दबाते रेत उतनी ही तेजी से फिसल कर बाहर आती।

दिन पर दिन वह सुगना के साथ और कामुक होते चले गए कभी-कभी वह दिन में दो बार सुगना की जमकर चुदाई करते सुगना उसका आनंद अवश्य लेती पर जो चुलबुला पन उसे राजेश के सानिध्य और उसके एहसास में मिलता वह अब सरयू सिंह के बस में न था। यद्यपि राजेश और सुगना के बीच अब तक कुछ विशेष ना हुआ था फिर भी वह बाहरी स्पर्श भी सुगना को उत्तेजित कर जाता था। वह उसकी सहेली लाली का पति था यही बात सुनना को ज्यादा उत्तेजित करती थी।

सुगना अब भी सरयू सिंह से उतना ही प्यार करती थी परंतु धीरे धीरे उस प्यार में कामुकता का अंश घट रहा था। इधर सुगना की कामुकता में कमी आ रही थी उधर सरयू सिंह कामुकता के अतिरेक पर थे वह अपनी अति कामुकता से अपनी बहू सुगना के मन में वही आकर्षण जगाना चाह रहे थे जो आज से कुछ वर्षों पहले सुगना के मन में था।

सरयू सिंह का दिया बुझने से पहले फड़फड़ा रहा था। यही हाल उनके लंड का था। लंड का तनाव कम हो रहा था यह तो सुगना की बेहद खूबसूरत और मलाईदार बुर थी जो बूढ़ों के लंड में भी एक हरकत पैदा कर देती थी उस बुर के आकर्षण में सरयू सिंह का लंड अब भी तुरंत खड़ा हो जाता था।

सरयू सिंह नीम हकीम से अपने माथे का दाग तो ठीक न करा सके थे परंतु लंड को और खड़ा करने तथा स्तंभन शक्ति को बढ़ाने के लिए वह कई दवाइयों का सेवन करने लगे थे जिसका परिणाम सुगना को भुगतना पड़ता था वह उसे जरूरत से ज्यादा चोदने लगे थे। सुगना की निर्दोषऔर कोमल जाँघे अब थकने लगी थी। वह वासना के अतिरेक से अब तंग हो चली थी।

वह अपने बाबू जी से अब भी प्यार करती थी और अपना जीवन संवारने के लिए उनके प्रति कृतज्ञ थी पर वह चाह कर भी अपने बाबू जी को इस वासना के दलदल से निकाल नहीं पा रही थी। जब भी वह उनसे दूर होती सरयू सिंह की आंखों में आग्रह देखकर वह उनकी बाहों में चली।

आज भी सुगना नहा कर निकली ही थी तभी सरयू सिंह ने उसे अपनी बाहों में ले लिया उन्होंने पीछे से आकर सुगना की कमर में हाथ डाला और उसे अपने पेट से सटा कर उठा लिया। सुगना के दोनों पैर हवा में हो गये। सुगना ने कहा

"बाबूजी अभी ना राती के".

पर सरयू सिंह कहां मानने वाले थे। शिलाजीत के असर और सुगना की गदरायी जवानी ने उन्हें कामुकता के जाल में जकड़ लिया था। सूरज कजरी के साथ किचन में बैठा हुआ आटे की लोई से खेल रहा था। आंगन में सरयू सिंह उसकी मां को अर्धनग्न अवस्था में अपने सीने से सटाये घुमा रहे थे। कजरी को पता था सुगना चुदने वाली है उसने किचन से आवाज दी

"अपना सुगना बाबू संगे कुछ देर बाद खेल लेब चली पहले खाना खा लीं।" कजरी ने सरयू सिंह को रोकने की कोशिश की

सरयू सिंह कुछ सुनने के मूड में नहीं थे वह सुगना को लिए लिए उसके कमरे में आ गए सुगना अभी उत्तेजित न थी परंतु अपने बाबूजी की इच्छा का मान रखने के लिए वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गई सरयू सिंह ने उसके साये को ऊपर किया और उसके गदराये नितंबों को अनावृत कर दिया।

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सुगना के नितंब पूरी तरह गोल और अत्यंत मादक थे। सुगना अभी अभी नहा कर आई थी और उसकी जांघों पर पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं। उसकी जांघो और शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी। सरयू सिंह ने अपने लंड का सुपाड़ा सुगना की बुर पर सटा दिया।

सुगना ना तो उत्तेजित थी नहीं उसका मन इस कृत्य के लिए तैयार था परंतु वह सरयू सिंह की इच्छा का मान रखते हुए इस अवस्था में आ गई थी। सरयू सिंह ने उसकी जांघों और नितंबों को सह लाया और अपने लंड को सुगना की बुर में घुसाने का प्रयास करने लगे।

सुगना की बुर गीली न थी सरयू सिंह को अपना लंड अंदर डालने में परेशानी हो रही थी परंतु वह तो बेचैन थे। उन्होंने ढेर सारी लार अपने हथेलियों में ली और अपने लंड पर मल दिया। लंड की चिकनाई बढ़ चली थी। सुगना की बुर उनके लंड को और ना रोक पायी।

सुगना की सांसे रुक गई सरयू सिंह का लंड सुगना की नाभि को चूमने लगा। सरयू सिंह ने अपनी बहू की कमर पकड लिया और लगातार धक्के लगाने लगे।

उन्हें यह भ्रम हो गया था कि शायद उनकी उत्तेजना में वह आवेश और नयापन नहीं था जो सुगना युवा मर्दों में खोज रही थी। वह अपने लंड को बेहद तेजी से आगे पीछे कर रहे थे। सुगना इससे उलट परेशान हो रही थी वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहती इसलिए उनकी कामुकता को लगभग सह रही थी।

सरयू सिंह सुगना की बुर से वह सहयोग न पाकर मन ही मन उससे नाराज हो जाते और उनकी चुदाई में प्यार गायब हो जाता। सुगना उनके व्यवहार में आए बदलाव को बखूबी महसूस करती परंतु उनकी उम्र और पुराने संबंधों को ध्यान रखते हुए कोई प्रतिरोध न करती।

सरयू सिंह अब भी सुगना की गुदांज गाड़ के पीछे पड़े हुए थे। डॉगी स्टाइल में सुगना को चोदते समय सुगना की सुंदर गांड उन्हें ललचाती कभी वह फूलती कभी पिचकती। वह केलाइडोस्कोप की भांति अपनी आकृति बदल कर सरयू सिंह को लुभाती। वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाते कभी अपनी उंगलियों में थूक लगाकर अपनी उंगली को थोड़ा अंदर प्रवेश कराते।

सुगना सिहर उठती और बोलती..

"बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

उसे पता था सरयू सिंह उसकी उस गुदांज गांड के पीछे शुरू से ही पड़े थे। उसे अपना वादा याद था परंतु आज भी वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। सरयू सिंह उसे कभी-कभी हंसकर उसे उसका वादा याद दिलाते।

सुगना अपने बाबू जी की यह इच्छा पूरी तो करना चाहती थी पर वह हिम्मत न जुटा पाती थी। सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। सुगना ना चाहते हुए भी स्खलित होने को तैयार हो गई थी। आज भी सरयू सिंह के लंड में जादू कायम था। कुछ देर की चुदाई में सुगना की बुर सुगना की बात न मानकर स्खलन के लिए तैयार हो गई।

सरयू सिंह ने अंततः अपनी बहू के बुर से बह रहे मदन रस को महसूस कर लिया और अपनी चुदाई को और तेज कर दिया। वह हांफ रहे थे।

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"सुगना…….हमार बाबू, ठीक…. लग ता नु" कहते हुए वह अपनी प्यारी बहु को चोद रहे थे। अंततः उन्होंने अपने लंड को पूरी तरह सुगना की स्खलित हो रही बुर में ठान्स दिया। सुगना पहले ही स्खलित हो रही थी उधर सरयू सिंगर की आवाज लहराने लगी। सुगना …...कहते हुए अचानक सरयू सिंह एक कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़े।

उनके लंड से वीर्य उछल उछल कर बह रहा था। सुगना पीछे मुड़ी और अपने बाबुजी को जमीन पर गिरते हुए देख रही थी। सर्विसिंग अपना सीना पकड़े जमीन पर पड़े कराह रहे थे

नंगी सुगना ने रोते हुए कजरी को आवाज दी।

"माँ बाबुजी गिर गइले"

कजरी सूरज को गोद मे लिए भागते हुए कमरे में आयी….

अंदर का दृश्य देखकर कजरी की सांसे रुक गई नंग धड़ंग सरयू सिंह जमीन पर अपना सीना पकड़े कराह रहे थे नंगी सुगना उनके चेहरे को हिला कर बाबूजी…. बाबूजी… पुकार रही थी.

शरीर सिंह की का मुंह टेढ़ा हो रहा था कजरी ने कहा

"सुगना बाबू... अपन कपड़ा पहन और जाकर हरिया चाचा के बुला ले आव.."

सुगना ने अपने उपेक्षित पड़े साये से अपनी चुदी हुई बुर को पोछा फिर सरयू सिंह की जाँघों पर गिरा वीर्य पोछकर उसे पहना और कजरी की मदद से सरयू सिंह को लंगोट और धोती पहनायी और आनन फानन में साड़ी लपेट कर हरिया को बुलाने चली गयी।

गाँव के वैद्य की मेहरबानी से सरयू सिंह उठ तो गए पर सुगना और कजरी ने दबाव बनाकर उन्हें शहर इलाज कराने ले आयीं।

नियति ने सरयू सिंह की कामुकता पर विराम लगा लेने की सोच ली थी... आज वह अपनी अति कामुकता की वजह से ही अपनी बहू सुगना को चोदते चोदते गिर पड़े थे। उनकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी।

यह कैसा वासना का अतिरेक था सुगना जैसी सुंदरी की जांघों के बीच जाने कौन सा रत्न छुपा था जिसे सरयू सिंह का लंड बार-बार खोद कर निकालना चाहता पर हर बार उसका गुरुर उन गुफाओं में पानी की भांति बह जाता और सुगना की बुर एक बार फिर उन्हें वही प्रयत्न करने को बाध्य कर देती।

आज उनके माथे का दाग भी बढ़ा हुआ प्रतीत हो रहा था। कभी-कभी तो सुगना को लगता की उसके बाबूजी जब जब उसको अति उत्तेजना से चोदते हैं तभी उनके माथे का दाग बढ़ जाता है। उसका यह वहम उसे अपने बाबू जी से दूर रहने को प्रेरित करता पर सरयू सिंह वह तो सुगना की कमर के नीचे छुपे खजाने के गुलाम थे। उनके हाथ सुगना का एक खजाना तो लग ही चुका था और दूसरे खजाने को प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षारत थे।

बनारस पहुंच कर सरयू सिंह जी को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया डॉक्टर ने उनके शरीर की विधिवत जांच और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कुछ विशेष दवाओं के सेवन की वजह से उनका रक्तचाप आवश्यकता से अधिक बढ़ गया था. यह एक लघु हृदयाघात से कम न था।

डॉक्टर बार-बार सरयू सिंह से उन दवाओं के बारे में पूछता पर सरयू सिंह ने उन दवाओं का नाम डॉक्टर को ना बताएं आखिर वह किस मुंह से डॉक्टर को यह बताते हैं कि उन्होंने शिलाजीत और अन्य कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया है जबकि वह ऐसे सम्मानित पुरुष थे जिसने आज तक विवाह न किया था।

डॉक्टर ने कहा ने 2 दिन यही रहना पड़ेगा आप में से कोई एक व्यक्ति यहां रह सकता है।

हरिया ने कहा

"भौजी तू इनका संगे रुक जा हम सुगना के लाली के यहां ले जा तानी सूरज बाबू के खाए पिए के इंतजाम हो जाए. काल सुबह फेर आइब जा"

हरिया का यह प्रस्ताव सर्वाधिक उचित था पर सरयू सिंह उदास हो गए हॉस्पिटल के कमरे में वह सुगना के साथ की उम्मीद कर रहे थे उन्हें हर वक्त सुगना का साथ पसंद आता था। उनके दिमाग में बार बार यह बात आ रही थी कि सुगना लाली के घर में जाएगी तो राजेश निश्चय ही उनकी बहु सुगना से नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करेगा जो उन्हें कतई गवारा ना था मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने कोई प्रतिकार न किया और सुगना हरिया के साथ कमरे से बाहर जाने लगी सुगना के भरे पूरे नितंब उनकी आंखों के सामने हिलते हुए ओझल हो रहे थे कजरी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की चूतड़ का पीछा करते हुए देख रही थी सुगना के जाते ही उसने कहा

"सुगना के साथ उ सब काम कईल अब छोड़ दी। देखी आज उहे कारण हॉस्पिटल में आवे के परल बा"

सरयू सिंह किसी भी सूरत में यह बात मानने को तैयार न थे कि वह और उनकी मर्दानगी सुगना को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। परंतु आज वह बिस्तर पर पड़े थे और उनके पास कजरी की बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता ना था।

कजरी सरयू सिंह के बिस्तर के बगल में पढ़े लंबे बेंच पर लेट कर ऊँघने लगी.

सरयू सिंह अपने और सुगना के प्रथम मिलन को याद करने लगे…..

कजरी ने जब से सुगना और शरीर सिंह के मिलन का रास्ता बनाया था वह बेहद प्रसन्न थी। सरयू सिंह ने उसकी बात मान कर उसकी राह आसान कर दी थी। दरअसल कजरी को सुगना और सरयू सिंह के बीच पनप रही कामुकता की भनक बिल्कुल न थी. बेचारी कजरी तो सुगना की भावनाओं में बहकर सरयू सिंह के पास चली गई थी। वरना कुछ ही समय में सुगना की कोमल बुर का आकर्षण सरयू सिंह को उसके लहंगे में खींच लाता अद्भुत सुंदरी थी सुगना...अपनी मां पदमा से भी ज्यादा।

सुबह सुगना के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ नववधू वाली लालिमा भी थी। पिछली दोपहर में सरयू सिंह की मजबूत उंगलियों ने उसका कौमार्य हर लिया था। सरयू सिंह की उंगली किसी कमजोर मर्द के लंड से कम नहीं थी। सुगना को अपना कौमार्य खोने का दर्द वैसा महसूस न हुआ था जैसा लंड से चोदने के बाद होता उसके बाबुजी ने मक्खन की मदद से स्खलित होते समय यह शुभ कार्य किया था सुगना खुश थी।

अब सुगना तैयार हो रही थी बीती रात उसकी कोमल उंगलियों ने पहली बार उसकी बुर की अंदरूनी मालिश की थी और सुगना को स्खलित कर दिया था। सुगना को अब अपनी उंगलियां करामातीं लग रही थी। उसने अपनी उनलियों को चूम लिया और अनजाने में ही अपने होंठों से स्वयं के प्रेम रस का स्वाद भी ले लिया।

कजरी की आवाज आयी

" ए सुगना कुँवर जी के दूध दे आवा"

कजरी सुगना को पहले भी बता चुकी थी कि वह सरयू सिंह को बाबूजी की जगह कुंवर जी ही बोला करें। कजरी के अनुसार बाबूजी शब्द पिता पुत्री के बीच का संबोधन है इस संबोधन के साथ चुदना या चोदना दोनों अनुचित होगा। परंतु सुगना के मुंह से हमेशा बाबूजी शब्द ही निकलता। वही हाल शरीर सिंह का था वह अपने मन में सुगना को नग्न करते मन ही मन उसे चोदते उसके साथ सारे नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप करते पर जैसे ही वह सामने आती उसे सुगना बेटा या सुगना बेटी ही बुलाते। सिर्फ सुगना बोलना जैसे उनकी जीभ को गवारा ना था। शुरुआती महीनों में सुगना और सरयू सिंह के बीच बना ससुर बहु का संबंध प्रगाढ़ हो गया था।

यह तो पिछले दो-तीन महीनों में सरयू सिंह और सुगना प्रेम की पाठशाला में पढ़ने लगे थे और दिन पर दिन महारत हासिल करते जा रहे थे।

"बाबूजी दूध ले ली" सुगना ने कहा। अपनी गलती पर उसकी जीभ खुद-ब-खुद दांतो के बीच आ गई।

सरयू सिंह ने दूध पकड़ते वक्त उसका चेहरा देख लिया सुगना ने अपनी नजरें झुका ली. वह अब बाबुजी से शर्माने लगी थी। दूध का गिलास छोड़ते ही सुगना वापस जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा

"सुगना बाबू कोनो दिक्कत नइखे नु, दुखाइल होखे त माफ कर दिह"

वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर रहे थे।

"ना सब ठीक बा" वह मुस्कुराते हुए अपनी पायल बजाते हुए छम छम करती आगन में चली गई. नव योवनाओं की खुशी सरयू सिंह के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी।

तभी अंदर से कजरी की आवाज आई

"सुगना के मायके घुमा ले आयीं दीपावली से पहले अपना मां पदमा से मिल ली"

कजरी ने दीपावली शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था। सरयू सिंह को ऐसा महसूस हुआ जैसे सुगना दीपावली के दिन अपनी चुदाई से पहले अपनी मां से मिलना चाहती हो। यह सच ही था सुगना के लिए वह अवसर एक त्यौहार से कम न था वह अपनी मां से आशीर्वाद चाहती होगी ऐसा उन्होंने अनुमान लगाया।

सुगना मायके जाने के नाम से खुश हो गई थी।

कजरी और सुगना ने मिलकर सुगना के छोटे भाई बहनों के लिए कई सारी मिठाइयां बनाई और अगले दिन सुगना अपने बाबुजी के साथ मायके के लिए निकल पड़ी।

सरयू सिंह जब भी पदमा के बारे में सोचते उनके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ जाती। यद्यपि वह पिछले कई वर्षों से वह पदमा के संपर्क में नहीं आए थे पर उसका नाम सुनकर उनका लंड थिरक उठता।

वह पद्मा को याद करते करते आगे आगे चल रहे थे और पद्मा पुत्री सुगना पीछे पीछे चल रही थी।

आज जब वह सुगना को लेकर पदमा के पास जा रहे थे उन्हें वह दिन याद आ गया जब सुगना पदमा की गोद में थी और पदमा अपने मायके आई हुई थी । सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। पदमा को तांगे से उतरते देखकर ही उनकी आंखों में चमक आ गई। शहर से आई हुई पदमा और खूबसूरत हो गई थी। गोद में सुगना को लिए हुए व नीचे उतर रही थी। आँचल हटते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ का उभार दिखाई दे गया। चूचियाँ सच मे कुछ ज्यादा बड़ी लग रही थीं। बड़ी हो भी क्यों न? उन चूचियों पर चार चार हथेलियो (सरयू सिंह और पद्मा का पति) ने मेहनत की थी। ऊपर से चूँचियों में सुगना के लिए दूध भी भर आया था। सरयू सिंह उन चूँचियों को सोचकर ही मस्त हो गए धोती में लंड फनफनाने लगा।

पदमा का पति लोहे की दो बड़े-बड़े संदूके लिए घर की तरफ आ रहा था। पास पहुंचने पर पद्मा ने अपने सरयू भैया की तरफ देखा और मुस्कुरायी।

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पद्मा ने उनसे बात नहीं की पर आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति प्यार का इजहार हो गया। सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था और लंड का क्या कहना वह तनाव में आ रहा था और पद्मा की जाँघों के बीच खो जाने को बेकरार था।

पदमा का पिछवाड़ा अब सरयू सिंह की निगाह में था। उसके गोरे-गोरे गदराए नितंब लाल रंग की साड़ी में छुपे हुए हिल रहे थे। सुगना अपनी मां के कंधे पर सर रखे हुए सरयू सिंह का को टुकुर टुकुर देख रही थी। कुछ ही देर में पदमा अपने आंगन में चली गई और सरयू सिंह का नयनसुख खत्म हो गया।

"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ" गांव के एक किसान बुधिया ने कहा

सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।।।

शेष अगले भाग में
 
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