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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

pprsprs0

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सोनू के आने की बात सुनकर लाली सचेत हो गई उसके शरीर में एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार हुआ वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगी। सोनू अंदर आ चुका था। सुगना को इन मादक कपड़ों में देखकर सोनू विस्मित था। उसने अपनी बहन सुगना के पैर छुए और ऊपर उठते समय पतले और कामुक गाउन के पीछे छुपे सुगना के पैर जांघों और कमर के उभारों और गहराइयों के दर्शन कर लिये। सुगना को भी अपनी इस उत्तेजक अवस्था का एहसास था परंतु वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
सोनू सुगना के प्रति गलत भावनाएं नहीं रखता था पर अपनी बड़ी बहन का यह रूप उसने पहली बार देखा था। कई दिनों बाद मिलने पर वह अक्सर अपनी बहन ले गले लग जाता था परंतु आज वह हिम्मत न जुटा पाया। जब तक सुगना की बाहें उसे आलिंगन में लेने के लिए उठतीं सोनू उससे दूर हो गया था।
लाली भी अब हाल में आ चुकी थी सोनू ने लाली के भी पैर छुए लाली भी गाउन में ही थी। यह एक अजीब संयोग था कि सुगना की पेंटी सुबह लाली ने उतार दी थी और बीती रात राजेश का हस्तमैथुन करते समय लाली की ब्रा राजेश ने उतार दी थी और उसकी चुचियों से जी भर कर खेला था।
जैसे ही सोनू लाली के पैर छूकर ऊपर उठा लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और प्यार से बोला "अरे हमार सोनू बहुत दिन बाद आइल बा"
लाली और सोनू का यह आलिंगन एक भाई बहन के आलिंगन से बेहद अलग था सोनू के सीने से लाली की चूचियां सट गई जिसका एहसास सोनू को हो रहा था उसके हाथ लाली की पीठ पर थे। उसके हाथों ने लाली की पीठ पर कामुक आलिंगन वाला दबाव बना दिया था।
सुगना ने खलल डाला और बोला
"अतना भोरे भोरे कैसे?"
"अरे दीदी 8:00 बजता"
सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसे उठने में देर हो गई थी उसे हॉस्पिटल भी जाना था वह आनन-फानन में अपनी साड़ी और ब्लाउज लेकर नहाने चली गई।
लाली रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी और सोनू हाल में बैठा हुआ अपनी लाली दीदी के शरीर का मुआयना कर रहा था उसे महिलाओं के शरीर का ज्यादा अनुभव नहीं था। लाली की नंगी चुचियां वह होली के अवसर पर छू चुका था परंतु वह आकस्मिक और होली के भावावेश में हुई घटना थी।
सोनू लाली की चुचियों को देखना चाहता था और उसे अपने हाथों तथा होठों से महसूस करना चाहता था। कॉलेज में जाने के पश्चात उसका सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था लाली की कमर और उसकी जांघों के बीच सोचते ही सोनू का लंड बेकाबू हो जाता था।
सुगना बाहर आ चुकी थी। सोनू ना चाहते हुए भी आज सुगना को बार-बार देख रहा था उसे आज पहली बार अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था उसने अपना ध्यान हटाया और वापस अपने लक्ष्य लाली पर केंद्रित कर दिया।
कुछ ही देर पश्चात सुगना और सोनू एक ही रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। लाली ने कहा "सुगना शाम के जल्दी आजईहे"
धीरे धीरे सोनू सुगना का वह कामुक रूप भूल गया और अपनी बहन के साथ सामान्य रूप से बातें करते हुए हॉस्पिटल आ गया।
सरयू सिंह सुगना और उसके भाई सोनू को देखकर प्रसन्न हो गए। आज वह स्वस्थ लग रहे थे और कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। सुगना को देखकर लंगोट में छुपा उनका नाग सतर्क हो गया। अपने बाबूजी को टहलते हुए देखकर सुनना के चेहरे पर खुशी आ गयी।
सरयू सिंह के मन में राजेश को लेकर बेचैनी थी उन्होंने पूछा
" सुगना बेटा राजेश ना अइले हा"
" बाबूजी उ त रात के ही चल गइले"
सरयू सिंह ने चैन की सांस ली वह अपने मन में सुगना और राजेश को लेकर तरह तरह की गलत कल्पनाएं करने लगे थे।
उसी समय दो तीन डॉक्टरों की टीम ने कमरे में प्रवेश किया और सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा। सरयू सिंह आदर्श पेशेंट की तरह तुरंत बिस्तर पर लेट गए। डॉक्टरों की टीम ने उनका चेकअप किया और बाहर निकल कर कजरी से बोले
"अब यह पूरी तरह ठीक हैं आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं"
उसने अपने असिस्टेंट से कहा
"इनके डिस्चार्ज पेपर रेडी करा दीजिए"
इस बार डॉक्टर ने सुगना की तरफ देख कर कहा
"और हां एक बात का ध्यान रखिएगा कि यह हमेशा खुश रहे इनका खुश रहना बेहद आवश्यक है वैसे मैं कुछ दवाइयां लिख दे रहा हूं कुछ ही दिनों में वो पूरी तरह खेत जोतने लायक हो जाएंगे।" डाक्टर मुस्कुराने लगा।
डॉक्टर ने यह बात शारीरिक श्रम के भाव से कही थी परंतु सुगना सिहर उठी उसे अपनी जांघों के बीच कोमल खेत की याद आ गई जिसे उसके बाबूजी न जाने कितनी बार जोत चुके थे…
सुगना ने डॉक्टर से पूछा "बाबूजी के माथा के दाग कुछ कम लग रहा है आप उसकी भी दवाई दिए हैं ना?"
डॉक्टर ने कहा
"उस दाग का हमारे पास कोई इलाज नहीं है वह कब बढ़ता है और कब कम होता है यह आपको ही देखना है हमें लगता है वह समय के साथ चला जाएगा वैसे उस दाग से उनके शरीर को कोई दिक्कत नहीं है"
सुगना ने यह महसूस किया था कि पिछले दो दिनों में वह दाग कुछ कम हो गया था। एक पल के लिए उसके मन में आई यह बात फिर प्रगाढ़ हो रही थी कि कहीं यह दाग उसके और उसके बाबूजी के बीच बने अनैतिक कार्यों की वजह से तो नहीं है? उसने अपने दिमाग से यह बात निकाल दी। वैसे भी आज सुगना, कजरी और सोनू तीनों खुश हो गए थे। सुगना अंदर आकर अपने बाबू जी से लिपट गई और बोली "बाबूजी रउआ ठीक हो गईनी आज हमनी के घरे चले के"
सुगना सरयू सिंह से बेहद प्यार करती थी वह उनका आदर और सम्मान भी करती थी। यदि नियति ने साजिश रच कर उनके बीच यह कामुक संबंध न बनाए होते तो सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को वैसे ही प्यार करते जैसे कोई आदर्श ससुर अपनी बहू बेटी को करता है बल्कि कहीं उससे ज्यादा। वही हाल सुगना का भी था।
जब तक डिस्चार्ज पेपर तैयार होते हरिया भी हॉस्पिटल आ चुका था। कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अगल-बगल लिए हुए हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे। सोनू ने सारे सामान पकड़ रखे थे और सूरज को संभालने की जिम्मेदारी हरिया ने उठा ली थी। वह नीचे रिक्शा वालों को रोके सरयू सिंह का इंतजार कर रहा था।
सरयू सिह पूरी तरह स्वस्थ थे परंतु कजरी और सुगना उनके साथ साथ चल रहे थे।
हॉस्पिटल के नीचे खड़े रिक्शे के पास पहुंचकर विदाई का वक्त आ गया रिक्शे में कुल 4 व्यक्तियों के जाने की जगह थी सोनू को यहीं से अलग होना था।
हरिया की पत्नी ने अपनी बेटी लाली और उसके बच्चों के लिए कुछ मिठाईयां बनाकर भेजी थी परंतु हरिया अब लाली के घर जाने की स्थिति में नहीं था उसने सोनू से कहा
"बेटा हॉस्टल जाने से पहले ई सामान लाली तक पहुंचा देना"
सुगना ने भी पीछे मुड़कर अपनी ब्लाउज में हाथ डाला और ₹50 के दो नोट निकाल कर सोनू को दिया और बोली
"लाली के बच्चा लोग खातिर चॉकलेट खरीद लीहे और बाकी अपना खर्चा खातिर रख लीहे।"
सुगना भावुक हो गई। सोनू ने सभी के चरण छुए और अंत में सुगना के भी आज सुबह ही उसने सुगना का नया रूप देखा था पर साड़ी में उसका यह रूप सोनू की भावनाओं से मेल खाता था सोनू मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे ही वह उठा दोनों भाई बहन स्वाभाविक आलिंगन में आ गए सुगना ने उसके माथे को चूम लिया और बोली..
"आपन ख्याल रखिहे, कोनो दिक्कत परेशानी होखे लाली दीदी भीरे चल जईहे"
हरिया ने भी सुगना की बात को आगे बढ़ाया और बोला..
"कितना बढ़िया बात बा की लाली यही शहर में है जब भी छुट्टी हो लाली के घर चले जाया करो उसका भी मन लग जाया करेगा वइसे भी राजेश बाबू अधिकतर बाहर ही रहते हैं।"
हरिया ने यह बात बोल कर सोनू को एक नई ऊर्जा दे दी। वह लाली से मिलने को बेचैन हो गया। जैसे ही सरयू सिंह और सुगना का रिक्शा स्टेशन की तरफ बड़ा सोनू मन में उमंग लिए तेज कदमों से लाली के घर की तरफ बढ़ चला। उसकी चाल धड़क पिक्चर के हीरो जैसी थी।
रास्ते में बाजार सजा हुआ था परसों ईद की तैयारियां जोरों पर थी। एक से एक सुंदर युवतीयां कुछ बुरके में तो कुछ सलवार सूट में सोनू जैसे मैंने मर्द को लुभा रही थी वह कभी अपने कदम रोक कर उन्हें देखता पर उनमें से कोई भी उसकी लाली दीदी के आसपास न था। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां सोनू के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। उसने लाली के बच्चों के लिए कई चॉकलेट खरीदी और दो चूसने वाली आइसक्रीम भी खरीदी। वह हॉस्टल जाने के बाद लड़कियों को आइसक्रीम चूसते हुए देखता और वह और उसके दोस्त उसकी तुलना अपनी मनोदशा के हिसाब से अपने लंड से कर लेते।
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता अंततः वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"सुगना कहा है"
"मैं अकेले ही आया हूँ दीदी गांव चली गयी"
"ठीक है तू रूक मैं आती हूँ"
सोनू मैं मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि उसकी लाली दीदी बाथरूम में नहा रही थी वह उसकी कल्पनाओं में डूब गया और लाली के आने का इंतजार करने लगा।
उधर सरयू सिंह स्टेशन पर आ चुके थे और ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आज ट्रेन में स्लीपर की बोगी में भीड़भाड़ कम थी सरयू सिंह सपरिवार अपने दोस्त हरिया के साथ स्लीपर में चढ़ गए ट्रेन के चलते ही वह खिड़की से बाहर खेतों और पेड़ों का नजारा देखने लगे 2 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद उन्हें यह खेत खलिहान बेहद पसंद आ रहे थे। ट्रेन की यह स्लीपर बोगी उन्हें उनकी पुरी यात्रा की याद दिलाने लगी। वह पूरी यात्रा की यादों में खो गए…..
पुरी जाते समय कजरी की बेहद उत्साहित थी। आने वाले सात आठ दिन उन तीनों को एक ही कमरे में गुजारने थे सरयू सिंह की उत्तेजना इस समय चरम पर थी वह सुगना की मदमस्त जवानी का भोग लगा रहे थे।
कजरी स्वयं भी सुगना को नग्न देखकर बेहद खुश होती थी उसके मन में अक्सर सुगना को नग्न देखने की चाहत उठती वह उसके कोमल चूचियों को छूना चाहती थी। सुगना की साफ-सुथरी और कोमल बुर भी कजरी को बेहद आकर्षित करती थी। जब से उसने सरयू सिंह के होठों को सुगना के बुर की फांकों से खेलते हुए देखा था उसका मन ललच गया था।
कजरी जितना अपने मन में सुगना के साथ अंतरंग हो जाती थी उतना हकीकत में लगभग असंभव जैसा था। सुगना के मन में कजरी के प्रति इस तरह की कोई भावना न थी वह तो मासूम थी। उसने संभोग का नया नया सुख प्राप्त किया था वह भी अपने बाबूजी के साथ। उम्र का अंतर छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह ने उसकी मनो इच्छा पूरी करने में कोई कमी ना रखी थी। उम्र का यह अंतर उन्होंने अपने मजबूत लंड से मिटा दिया था। जितना सुख सरयू सिंह का वह जादुई लंड सुगना को दे रहा था उतना शायद उसका पति रतन या उस उम्र के लड़के भी ना दे पाते। यह अलग बात थी की नए लड़कों के अनाड़ीपन और अलहड़ता सरयू सिंह में न थी वह एक मजे हुए खिलाड़ी थे।
सरयू सिंह इस बात को लेकर पसोपेश में थे की पुरी पहुंचने के बाद वह होटल में कैसे रहेंगे? क्या एक ही कमरे में दो विवाहित महिलाओं के साथ उन्हें रहने की अनुमति होटल प्रबंधन देगा? क्या यह व्यवस्था उन्हें प्रश्नों के दायरे में नहीं खड़ा कर देगी? वह किस तरह से इस बात को होटल प्रबंधन को समझा पाएंगे?
कजरी तो उनकी पत्नी स्वरूप थी उसे तो वह अपनी भार्या बनाकर अपने कमरे में रख सकते थे परंतु विवाहित सुगना को उसी कमरे में रखना यह कठिन था। दो कमरे लेने में धन का अपव्यय था इतना धन सरयू सिंह के पास ना था कि वह दो अलग-अलग कमरे लेकर अपनी कजरी भाऊ जी और सुगना की मनो इच्छा को पूरा कर पाते।
उन्होंने यह बात कजरी से बताई कजरी एक समझदार महिला थी उसे मुसीबतों से निकलना आता था उसने कहा
"अरे जाए दी कह देब की बेटी ह। आखिर बहू और बेटी में ढेर अंतर ना होला। सुगना के उम्र भी कम बा"
सरयू सिंह को यह बात पसंद आ गई परंतु बेटी शब्द सुनकर उनके मन में अजीब से भाव पैदा हुए सुगना उनकी प्रेमिका थी।
"ओकरा माथे पर सिंदूर देखकर लागी ना कि शादीशुदा ह"
" अरे परेशान मत होई तनी मनी सिंदूर भीतेरी लगा ली और लड़की वाला कपड़ा पहनी साड़ी ब्लाउज ना पहिनी"
सरयू सिंह धीरे धीरे आश्वस्त हो गए सुगना के पास लड़कियों वाले कपड़े न थे। कुछ लहंगा और चोली अवश्य थे जिसे लड़कियां और नव युवतियां बराबरी से प्रयोग करती थीं। कजरी ने सुगना को साड़ी और ब्लाउज ना ले जाने के लिए कहा वह बार-बार जिद करती रही कि वह सिर्फ दो या तीन कपड़ों में इतने दिनों तक कैसे रहेगी परंतु उसकी सास कजरी ने उसे यह कहकर मना लिया उसके लिए नए वस्त्र वहीं खरीदे जाएंगे।
सफर के लिए तैयार होते समय कजरी ने सुगना के बाल बनाएं और उसकी मांग में बिल्कुल छोटा सा सिंदूर लगा दिया जो बालों के बीच लगभग छुप सा गया था सुगना ने पूछा
"सासू मां आज इतना कम सिंदूर"
"अरे सुगना बाबू, शहर जा तारे घूमे, शहर में असही सिंदूर लगावल जाला"
सुगना बेहद उत्साहित थी वह इस प्रपंच में नहीं पड़ना चाहती थी वैसे भी वह लहंगा और चोली में बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे अपने विवाह के पूर्व के दिन याद आ रहे थे।
ट्रेन आ चुकी थी और सुगना अपने सास और बाबूजी के साथ ट्रेन पर सवार हो गयी। उसकी पर्यटन की इच्छा पूर्ण होने वाली थी नियति एक बार फिर उसी ट्रेन पर सवार होकर सुगना को जीवन के नए सुख दिलाने निकल पड़ी थी।
सुबह-सुबह ट्रेन उड़ीसा के पुरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गयी। सरयू सिंह ट्रेन के दरवाजे पर सामान लेकर खड़े थे पीछे पीछे उनकी भौजी कजरी और कोमलांगी सुगना खड़ी थी। तीनों ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रहे थे।
टेंपो में बैठकर सरयू सिंह सपरिवार पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गए। सड़क के एक तरफ कई प्रकार के छोटे और बड़े होटल थे तथा दूसरी तरफ बेहतरीन और आकर्षक समुद्र तट सुगना की तो जैसे आंखें समुद्र से अटक गई थी वह कजरी के पीछे पीछे चल रही थी परंतु टकटकी लगाकर समुद्र तट की तरफ देख रही कजरी उसका हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी। कभी-कभी लगता जैसे कजरी सुगना को घसीट रही हो। सरयू सिंह कंधे पर झोला तथा हाथ में दो संदूक लिए हुए कुली की भांति आगे चल रहे थे।
उनके लंड ने उन्हें इस अधेड़ अवस्था में सुगना के साथ हनीमून मनाने पर विवश कर दिया था मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थीं।
तभी एक दलाल सरयू सिंह के पास आया और बोला
"ए चाचा चली होटल दिखा दी बहुत बढ़िया बा सस्ता में"
सरयू सिंह का बजट ज्यादा न था सस्ता शब्द ने उन्हें कुछ ज्यादा ही आकर्षित किया एक तो वह व्यक्ति उनकी भाषा बोल रहा था दूसरे उसने सस्ते होटल का आश्वासन दिया था सरयू सिंह उसके झांसे में आ गए और अपने परिवार को लेकर उसके पीछे पीछे चल पड़े होटल के अंदर प्रवेश करते ही सिगरेट की महक आ रही थी होटल भी उनकी अपेक्षा अनुरूप न था वह उन्हें अपनी प्यारी बहू सुगना के लायक न लगा।
कुछ देर और होटल देखने के बाद सुगना और कजरी के पैर थक गए और अंततः सरयू सिंह ने होटल के रिसेप्शन की चमक दमक देखकर एक होटल को पसंद कर लिया।
होटल के रिसेप्शनिस्ट जो लगभग 20 - 21 साल का युवक था ने पूछा…
"चाचा जी आप का नाम"
"सरयू सिंह"
"चाची आपका"
"कजरी"
"और दीदी का" उसने सुगना की तरफ देखते हुए पूछा।
"सुगना"
कजरी ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उस व्यक्ति ने सरयू सिंह और उनकी दोनों प्रेमिकाओं के बीच संबंधों की जगह पर पत्नी और पुत्री लिख दिया। सरयू सिंह अपनी आंखों के सामने उन संबंधों को देख रहे थे पर नियति जो उनके साथ साथ ही घूम रही थी उसने सरयू सिंह का ध्यान वहां से हटा दिया और वह होटल के अटेंडेंट के साथ कजरी और सुगना को लेकर कमरे की तरफ बढ़ चले।

डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …
सोनू ने भी अपने दोनो बहनों की जवानी का दर्शन कर लिया है अब उसे भी थोड़ा प्रसाद मिलना चाइए
 

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डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …

अब आगे...

कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न थीं। होटल उनकी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा था। वैसे भी वह दोनों गांव में रहने वाली औरतें थीं उनके लिए यह होटल किसी स्वर्ग से कम न था। सुगना तो सरयू सिंह से लिपट गई एक पल के लिए वह भूल गई कि उसकी सास कजरी ठीक बगल में खड़ी है। उसने अपनी चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटा दी और उनके गालों को चूम लिया सरयू सिंह ने कजरी को अपने पास खींचा और उसे अपने से सटा लिया वह उसे अलग-थलग नहीं छोड़ना चाहते थे

गुसल खाने का सर्वप्रथम उपयोग सरयू सिंह ने किया तत्पश्चात सुगना ने और जैसे ही कजरी गुसल खाने की तरफ बढ़ी श्रृंगार दान के सामने बाल बना रही सुगना को सरयू सिंह ने पीछे से आकर अपने आलिंगन में ले लिया उनकी हथेलियों ने अपनी प्यारी बहू के होंठ ढक लिए। यह सिर्फ चुप रहने का इशारा था सरयू सिंह को नहीं पता था कि सुगना तो स्वयं उसका इंतजार कर रही थी।

कुछ ही देर में सुगना बिस्तर पर थी समय कम था सरयू सिंह ने उसे आज पहली बार उसे डॉगी स्टाइल में आने को कहा। सुगना के लिए यह अवस्था बिल्कुल नई थी सरयू सिंह ने उसके नितंबों और पीठ को अपने हाथों से व्यवस्थित किया तथा उसे संभोग की आदर्श स्थिति में ला दिया सुगना का लचीला और कोमल शरीर इस अवस्था मैं बेहद आकर्षक लग रहा था।

सरयू सिंह को समय का अनुमान था उन्होंने सुगना को निर्वस्त्र न किया परंतु उसके लहंगे को उठाकर उसके दोनों नितंबों को अनावृत कर दिया दोनों गोल नितंबों के बीच से सुगना की कोमल और गुदाज गांड सरयू सिंह को दिखाई पड़ गई उन्होंने घुटनो के बल आकर सुगना के नितंबों को चूम लिया सुगना थिरक उठी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की जीभ सुगना की जांघों के बीच बुर से रस चुराने को आतुर हो उठी। गुसल खाने में नहाते समय सुगना अपनी बुर को पहले ही सहला कर गीला कर चुकी थी तौलिए से पोछने के बावजूद बुर् के होठों पर मदन रस चमक रहा था जो इस डॉगी स्टाइल में आने के कारण गुरुत्वाकर्षण से नीचे लटक रहा था। सरयू सिंह ने अपनी जीभ से उस रस को आत्मसात कर लिया तथा सुगना की कोमल बुर को अपनी जीभ का स्पर्श दे दिया सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं और उसकी सिहरन चुचियों तक पहुंच गई।

सुगना को इस बात का अंदाजा न था वह अपने बाबूजी के लंड का इंतजार कर रही थी सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सरयू सिंह की तरफ देखा परंतु वह तो उसके मादक नितंबों के पीछे गुम हो गए थे।

सुगना ने धीमी आवाज में कहा

"बाबुजी जल्दी करीं सासू मां जल्दी आ जईहें"

सरयू सिंह ने सुगना को छेड़ते हुए कहा

"का करीं सुगना बाबू?" सरयू सिंह ने अपना ध्यान सुगना की जांघों के बीच से हटाकर सुगना के चेहरे पर केंद्रित किया।

सुगना शर्म से लाल हो गई वह उनकी शरारत जान रही थी पर वह इस समय वार्तालाप करने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।

सुगना का मासूम चेहरा और खुले हुए नितंब देखकर सरयू सिह मदहोश हो गए उन्होंने आगे बढ़कर सुगना को चूमने की कोशिश की और इसी दौरान उनके लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। सुगना ने अपने नितंब पीछे किये और उसकी पनियायी बुर ने मुहाने पर खड़े लंड का सूपड़ा लील लिया।

आगे किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता न थी उसके बाबूजी का जादुई दंड अपनी जगह ढूंढ रहा था कुछ ही देर में कमरे में थपाथप की आवाजें गूंजने लगी। सरयू सिंह अपनी उत्तेजना और आवाज का समन्वय बनाए हुए थे। उधर कजरी गुसल खाने में नहाते वक्त तरह तरह की कल्पनाएं कर रही थी। । उसके दिमाग में आज रात्रि के संभावित अवसर घूम रहे थे क्या कुँवर आज संभोग करेंगे? और किसके साथ करेंगे क्या यह संभव हो पाएगा?

कजरी ने सुगना को गर्भवती कराने की ठान ली थी। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वह होटल से निकलकर बाहर बाजार में आ जाएगी तब तक सरयू सिंह सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भर देंगे। काश वह सुगना और सरयू सिंह का संभोग इसी कमरे में देख पाती उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे और इसी दौरान कमरे में उसकी बहू सुगना चुद रही थी।

सुगना को लगा हुआ इंजेक्शन काम कर रहा था सरयू सिंह ने एक बार फिर अपना वीर्य सुगना की बुर में भर दिया था थोड़ी ही देर की चुदाई में सुगना और सरयू सिंह स्खलित हो गए थे। इससे पहले की कजरी गुसल खाने का दरवाजा खोलती सुगना के अनावृत नितंब घागरे के अंदर जा रहे थे। सरयू सिंह अपना लंड लिए हुए दीवाल की तरफ मुड़ चुके थे और उसे लंगोट में समेट रहे थे। कजरी सुगना के करीब आ गयी। सुगना की तेज सांसे कजरी को इशारा कर रही थी कजरी ने सारी बात समझ ली।

वह मुस्कुरा रही थी। सरयू सिह ने बात बदलते हुए कहा…

"चल अपना सुगना बेटा खातिर कपड़ा खरीद दिहल जाऊ"

कजरी ने हंसते हुए कहा…

"जब इहे करे के बा त कपड़ा के कौन जरूरत बा"

सुगना शरमाते हुए गुसल खाने की तरफ बढ़ गई थी उसे अपनी जांघों पर लगा हुआ वीर्य पोछना था।

सरयू सिह ने अपनी शर्म बचाने के लिए कजरी को चूम लिया। कुछ ही देर में वह सुगना और कजरी के साथ समुंदर के किनारे आ चुके थे।

मानव मन चंचल होता है यह बात हम सबको पता है पर जब इस चंचलता में कामुकता का अंश लग जाए तो यह चंचलता और प्रबल हो उठती है सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के प्रेम जाल में अपनी उम्र भूल कर बीच पर आ चुके थे उन्होंने धोती कुर्ता पहना हुआ था साथ चल रही सुंदर कजरी साड़ी में थी सुगना ने आज फिर लहंगा और चोली पहना हुआ था।

बीच पर सरयू सिंह को एक दूसरी दुनिया दिखाई पड़ रही थी सुगना की उम्र की लड़कियां उन्हें अलग-अलग वस्त्रों में दिखाई दे रही थी. सरयू सिंह सुगना को कई दिनों से चोद रहे थे उन्हें अपनी उम्र याद न रही थी वह उन लड़कियों को भी उसी तरह देख रहे थे जिस तरह सुगना को देखते थे।

सरयू सिंह की निगाहें मदमस्त यौवनाओं के खूबसूरत नितंबों और पीठ पर घूम रही थी जब कभी कोई लड़की सामने से आती दिखाई पड़ती सरयू सिंह की पारखी निगाहें लड़कियों की चूची और जांघों के बीच की गहराई का अंदाज करने लगते। उनका लंड उन अनजानी गहराइयों में गोते लगाने की कल्पनाओं में खो जाता।

सरयू सिंह मन ही मन सुगना के बारे में सोच रहे थे वह इन वस्त्रों में कैसी दिखाई देगी। तभी एक विदेशी लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ वहां से गुजरी। उस लड़की ने बेहद पतली बिकनी पहनी हुई थी चुचियाँ उभर कर बाहर आ रही थीं। सरयू सिंह के कदम धीरे हो गए सुगना और कजरी ने उनकी धीमी की चाल का कारण जान लिया था वह दोनों भी आश्चर्यचकित होकर उस लड़की की नग्नता का आनंद ले रही थीं।

सुगना ने कजरी से कहा…

"ओकर आगा पीछा कतना बढ़िया बा"

(उसका आगे और पीछे का भाग कितना सुंदर है)

"हमरा सुगना बाबू से कम सुंदर बा" कजरी ने मुस्कुराते हुए कहा और सुगना के नितंबों पर हाथ फिरा दिया।

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई पर वह अपनी प्रशंसा सुनकर खुश हो गई।

सरयू सिंह की आंखों में अभी सुगना ही नाच रही वह उसे अलग-अलग वस्त्रों में अपने कल्पनाओं में देख रहे थे। उनके मन मे सुगना के मादक और कमनीय शरीर को इन उत्तेजक वस्त्रों में देखने की इच्छा प्रबल हो रही थी। सरयू सिंह समुद्र स्नान का आनंद तो लेना चाहते थे पर यह कार्यक्रम उन्होंने अगले दिन के लिए रखा था आज वह बीच पर उपलब्ध संसाधनों का मुआयना करने आए थे। कुछ देर बीच पर चहल करने करने के पश्चात सरयू सिंह सपरिवार पास के बाजार में आ गए…

दुकानों पर रंग-बिरंगे वस्त्र सजे हुए थे जिसमें अधिकतर लड़कियों और युवतियों के वस्त्र थे सरयू सिंह का यहां कोई कार्य न वह सिर्फ अपने परिवार के रक्षक के रूप में वहां आ गए थे।

कजरी और सुगना ग्रामीण वेशभूषा में थे परंतु उनके चेहरे पर चमक थी जो उनके सभ्रांत होने का एहसास दिलाती।

"दीदी इधर आईये"

एक व्यक्ति सामने से आकर कजरी और सुगना को एक दुकान की तरफ मोड़ दिया सरयू सिंह चाह कर भी उसे ना रोक पाए। दुकान पर और भी महिलाएं थी वह दुकान से थोड़ा दूर खड़े होकर अपनी तंबाकू बनाने लगे।

दुकानदार ने कजरी और सुगना के लिए तरह-तरह के अंदरूनी वस्त्र दिखाएं जिनमें से कुछ बीच पर समुद्र में अठखेलियां करने के काम आते और कुछ अपनी उत्तेजक कल्पनाओं को जागृत करने के लिए।

सुगना नव वधु की तरह शर्माते हुए कजरी की पसंद को देख रही थी। कजरी अपने मन में सुगना के प्रति उत्तेजना लिए हुए थी। उसने भी इस यात्रा में कई कल्पनाएं की हुई थीं।वह सुगना की कोमल और मखमली जांघों के बीच उसकी मासूम बुर को सजाना संवारना चाहती थी और उसे अपने कोमल स्पर्श से अभिभूत करना चाहती थी। उसमें सुगना के प्रति यह आकर्षण क्यों पैदा हो रहा था यह बात वह नहीं जानती परंतु उसे यह आकर्षण अच्छा लग रहा था।

कजरी ने सोच रखा था अब नहीं तो कभी नहीं उसने बेझिझक होकर अपने लिए और सुगना के लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदें। सुगना उसे रोकती रह गई पर कजरी ने एक न सुनी वह अपने सारे सपने पूरा कर लेना चाहती थी।

सुगना अपने शरीर पर इन उत्तेजक वस्त्रों की कल्पना कर गरम हो चुकी थी उसकी जाँघों के बीच गुदगुदी हो रही थी।

दोपहर में जब सरयू सिंह होटल में आराम कर रहे थे कजरी सुगना को लेकर पास के ही सस्ते से ब्यूटी पार्लर में चली गई। आज पहली बार उसने और सुगना ने अपने बालों को थोड़ा छोटा कराया अपनी आइब्रो बनवाई और वापस आ गयीं। भगवान ने कजरी और सुगना को प्राकृतिक सुंदरता दी थी उन्हें फेशियल या ब्यूटी प्रोडक्ट की आवश्यकता न थी।

शाम को सरयू सिंह सुगना और कजरी को तैयार होने का निर्देश देकर कमरे से बाहर आ गए उन्होंने आज पहली बार धोती की जगह पैजामा पहना हुआ था परंतु कुर्ता अपनी जगह बरकरार था। इस खूबसूरत कुर्ता पायजामे में सरयू सिंह ने अपनी उम्र कुछ वर्ष कम कर ली थी। सुगना अपने छैल छबीले बाबूजी को देखकर खुश हो रही थी उसे उनके साथ एकांत में बिताए जाने वाले पलों का इंतजार था।

सुगना और कजरी अपने नए वस्त्रों में तैयार होने लगे। सुगना को यह नए वस्त्र बेहद अजीब लग रहे थे परंतु कजरी की जिद की वजह से उसने वह पहन लिए। कजरी ने भी नई साड़ी पहनी और कई वर्षों बाद साड़ी का उल्टा पल्लू लिया खुले हुए बाल पीठ पर कजरी और सुगना की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे पार्लर में जाने की वजह से बालों की बनावट और खूबसूरती निखर आई थी।

सरयू सिंह कुछ देर होटल की लॉबी में टहलने के बाद कमरे में आये। उनके कदम ठिठक गए। एक नवयुवती नीले रंग की जींस और सफेद टॉप में आइने के सामने खड़ी थी। दूसरी युवती काली और सुनहरे पाढ़ वाली साड़ी में जींस वाली लड़की के बाल सवार रही थी।

सरयू सिह को गलत कमरे में आ जाने का आभास हुआ।

"माफ कीजिएगा….."

कहकर वह उल्टे पैर बाहर आ गए। अंदर दो अनजान महिलाओं को देखकर उन्हें यह भ्रम हो गया कि वह किसी दूसरे कमरे में आ गए उनकी सांसें तेज चल रही थी उन्होंने एक बार फिर कमरे की चौखट पर पीतल के स्टिकर पर गुदा हुआ नंबर देखा।

कमरा तो उन्हीं का था उनकी आंखें एक बार फिर उस नंबर पर केंद्रित हुयीं और दिमाग सक्रिय हो गया उन्होंने पुनः दरवाजा खोला और अंदर आ गए उनका संदूक टेबल के नीचे दिखाई पड़ गया कजरी उनकी तरफ मुखातिब हुई और बोली

"आज हमार सुगना बाबू एकदम शहर के लईकी लाग तिया"

सरयू सिंह के लिए सुगना का यह नया रूप बेहद आकर्षक और उत्तेजक था। अपनी जवानी के दिनों से उन्होंने शहर में कई लड़कियों को इस तरह की चुस्त जींस और टॉप मैंने देखा था और न जाने कितनी बार अपनी कल्पनाओं में उस जींस को अपने हाथों से उतारा था।

सरयू सिंह सुगना को ऊपर से नीचे तक घूरे जा रहे सुगना का टॉप तो ढीला था परंतु जीन्स ने सुगना के पैरों पर एक चुस्त आवरण दे दिया था। वह सुगना की जाँघों के कसाव को छुपा पाने में असमर्थ थी।

दोनों जांघों के जोड़ पर जींस सुगना की कोमल बुर से चिपकी हुई थी और उसके ठीक नीचे बुर और जांघों के मिलन पर एक दिलनुमा आकार बन गया था जो अत्यंत मनमोहक लग रहा था सुगना की बुर की फाँकों ने उस खाली जगह को दिल का रूप दे दिया था। सफेद टॉप में सुगना की सूचियां उभरकर दिखाई दे रही थी निश्चय ही उन दिलकश चूचियों को ब्रा का भी समर्थन प्राप्त था।

सरयू सिंह को इस तरह घूरते हुए देखकर कजरी ने सुगना को गालों पर चूम लिया और कहा

" हमरा सुगना बाबू के नजर मत लगायीं"

कजरी तो उसके खूबसूरत होंठ चूमना चाहती थी परंतु वह हिम्मत न जुटा पा रही थी।

सरयू सिंह का ध्यान कजरी पर गया वह आज जितना खूबसूरत कभी नहीं लगी थी कजरी ने अपने बाल खुले रखे थे और वह उसकी बाई चुचियों को ढक रहे थे काले रंग की साड़ी कजरी के गोरे शरीर पर खूब जच रही थी सुनहरे रंग के ब्लाउज में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां सांची के स्तूप की भांति तन कर खड़ी थीं

सरयू सिंह का लंड एक बार फिर खड़ा हो चुका था। परंतु समय का आभाव था।कुछ ही देर में सरयू सिंह सपरिवार पवित्र मंदिर के दर्शन हेतु निकल चुके थे।

कजरी ने मंदिर में सुगना के गर्भवती होने की कामना की और प्रभु से उसके लिए आशीर्वाद मांगा उधर सरयू सिंह सुगना की खुशियों की कामना कर रहे थे परंतु उस कामना में उसके गर्भवती होने का जिक्र न था उसका यह हक वह स्वयं छीन चुके थे सुगना को लगाया गया इंजेक्शन अगले 2 वर्षों तक उसे गर्भधारण से बचाए रखता।

सुगना ने भी भगवान से प्रार्थना की परंतु वह कुछ मांग पाने की स्थिति में न थी। उसे पिछले कुछ दिनों में इतनी खुशियां मिली थी कि वह भगवान के प्रति कृतज्ञता जाहिर करती रह गयी उसे और कुछ ना चाहिए था।

रात करीब आ रही थी सरयू सिंह के मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे खाना खाने के पश्चात होटल जाते समय सुगना और कजरी आगे आगे चल रहे थे। पीछे कसी हुई जींस में सुगना के नितंब सरयू सिंह को आकर्षित कर रहे थे सुगना की चाल के साथ वह गोल नितंब एक लय में हिलते और सरयू सिंह को उन्हें अपनी हथेलियों में भर लेने को आमंत्रित करते।

उनका सारा ध्यान सुगना के कोमल नितंबों पर ही टिका था परंतु जब कभी उनकी निगाह कजरी पर पड़ती उनका लंड एक बार फिर उछल पड़ता।

कमरे में प्रवेश करते करते ही कजरी बाथरूम चली गई। सुगना की जींस का बटन बेहद टाइट था। सरयू सिंह बिस्तर पर बैठ कर अपना कुर्ता उतार रहे थे तभी सुगना उनके पास आई और बोली

" बाबूजी ई बटन खोल दीं"

सरयू सिंह ने तुरंत ही अपनी उंगली जींस के पीछे कर दीं और अंगूठे की मदद से बटन को खोल दिया उनकी उंगलियां यही ना रुकीं वह सुगना की जींस को नीचे करते गए। ज्यों ज्यों जींस नीचे उतरती गयी सुगना का वस्ति प्रदेश सरयू सिंह की आंखों के सामने आता गया। लाल रंग की पेंटिं ने सुगना की कोमल बुर और उसके ऊपरी भाग को ढक रखा था परंतु गोरा और चमकदार वस्ति प्रदेश उनकी आंखों के सामने उन्हें ललचा रहा था सुगना ने उन्हें रोकने की कोशिश न की और जींस कुछ ही देर में उसके घुटनों तक आ गई थी।

तभी कजरी के आने की आहट हुई सुगना ने बिस्तर पर पड़ा तोलिया अपनी कमर में लपेट लिया और दूसरी तरफ बैठकर अपनी जींस को उतारने लगी।

कजरी के बाहर आते हैं सुगना बाथरूम में चली गई. कजरी सरयू सिंह के करीब आई और सरयू सिंह ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया। जितनी उत्तेजना उन्होंने सुगना की जींस खोलने में बटोरी थी वह सारी उन्होंने कजरी पर उड़ेल दी कजरी ने उनके तने हुए लंड को महसूस कर लिया और उसे दबाते हुए बोला।

"तब महाराज आज कैसे शांत होइहें"

"जे खड़ा करलए बा उहे शांत करी " सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा" कजरी उनकी बात को पूरी तरह न समझ पायी। एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसे नहाने के बाद इस मादक अवस्था में देखकर सरयू सिंह का लंड खड़ा हुआ था। परंतु उसे क्या मालूम था आज सरयू सिंह ने अपनी जवान बहू सुगना को एक मनचली लड़की का रूप देकर उसके जींस के बटन खोले थे। वह अपनी सुगना के इस नए रूप से बेहद उत्तेजित थे।

कजरी में इस पचड़े में न पड़ते हुए कि कुँवर जी का लंड किसने खड़ा किया है, अपने होंठ सरयू सिंह की तरफ बढ़ा दिया और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह उसके होठों का रसपान करने लगे कजरी के नितंब सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों में आ चुके थे और उनकी उंगलियां धीरे-धीरे कजरी की बुर की तरफ बढ़ रही थीं।

सरयू सिंह कजरी को उसी समय कसकर चोदना चाहते थे परंतु उनकी जींस वाली सुगना अभी बाथरूम में नहा रही थी उन्होंने मन ही मन आज रात की कई कल्पनाएं की थीं उन्होंने कजरी को उस समय चोदने का विचार दिमाग से निकाल दिया तथा उसे उत्तेजित करने पर अपना ध्यान केंद्रित किए रखा। कजरी पूरी तरह उत्तेजित हो गई थी और उत्तेजना से हाफ रही थी।

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और एक अति सुंदर नाइट गाउन में अपने बाल झटकती हुई सुगना कमरे में आ चुकी थी सुगना का यह नाइट गाउन कजरी ने आज ही खरीदा था। कजरी और सरयू सिंह सुगना को एकटक तक देखे जा रहे थे। सुगना धीरे धीरे चलते हुए ड्रेसिंग टेबल पर आकर तौलिए से अपने बाल सुखाने लगी।

कजरी ने सरयू सिंह से कहा

"जायीं रउओ नहा लीं"

जब तक सरयू सिंह बाथरूम में नहा कर बाहर निकलते उनकी दोनों परियां बेहद खूबसूरत गाउन में तैयार हो चुकी थीं। कजरी सुगना के नाइट गाउन व्यवस्थित कर रही थी। कजरी ने अपनी युवावस्था में जिस सुंदरता के दर्शन न कर पायी थी आज वह अपनी बहू को सजा संवार कर वह सारे अरमान पूरे कर रही थी।

कजरी ने कहा

"अब हमार सुगना बाबू एकदम रानी लागत बिया. आज कुँवर जी से कहब मलाई भितरे भरिहें। भगवान तोर मा बने के इच्छा पूरा करसु।"

कजरी ने सुगना के माथे को चूम लिया और सुगना को अपने आलिंगन में लेकर नाइटी के अंदर छुपी नंगी चुचियों (बिना ब्रा के आवरण की) को सुगना की खूबसूरत चूँचियों से सटा दिया।

सुगना के जवान बदन की खुशबू कजरी के नथुने से टकराई कजरी स्वयं बहुत उत्तेजित थी और इस रात के लिए कई अरमान संजोये हुए थी।

सरयू सिंह बाथरूम का दरवाजा खोल कर आ चुके थे उन्होंने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा हुआ परंतु अपने जादुई लंड के उभार को छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे। उनकी प्यारी बहु सुगना और भौजी कजरी बेहद उत्तेजक कपड़ों में एक दूसरे के पास घड़ी थीं। वह एक टक उन्हें देखे जा रहे थे। तभी अचानक कमरे की लाइट चली गई..

शेष अगले भाग में।

 

Lutgaya

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ढाबा स्टाईल दाल फ्राई के साथ तंदूरी रोटी
 

komaalrani

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जबरदस्त,...इससे ज्यादा कुछ कहने लायक इस पोस्ट छोड़ा ही नहीं, बस अब रात की प्रतीक्षा है, रात के साथ , रात की बात की , और जहां पोस्ट रुकी है उससे आगे, ...
 

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test my screen resolutionसासू कजरी नहाने गई तब सुगना डागी स्टाईल में चुदते हुए
 
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