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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

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Lovely Anand

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लाली को प्रसन्न देखकर सोनू की बांछें खिल उठीं। वह फटाफट अपनी फटफटिया से नीचे उतरा और मन में उमंगे लिए लाली के घर की तरफ तेज कदमों से चल पड़ा उसके मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही ख्याल आ रहा था कि हे भगवान राजेश जीजू घर पर ना हो.

नियति मुस्कुरा रही थी जिस व्यक्ति ने लाली और सोनू को करीब लाने में सबसे अहम भूमिका अदा की थी सोनू अपनी अज्ञानता वश उसकी उपस्थिति को अवांछित मान रहा था.

परंतु मन का चाहा कहां होता है। फटफटिया की आवाज राजेश ने भी सुनी थी और लाली का संबोधन भी वह भी हॉल में आ चुका था जैसे ही सोनू लाली के करीब आया राजेश ने कहा

"अरे वाह साले साहब आज तो फटफटिया में….. कहां लॉटरी लग गई?"

सोनू केअरमानों पर घड़ों पानी फिर गया.

"नहीं. जीजाजी , यह मेरे दोस्त की है कुछ काम से शहर आया था सोचा आप लोगों से मिलता चलूं"

"सच बताना मुझसे या अपनी लाली दीदी से?"

सोनू पूरी तरह झेंप गया परंतु लाली ने बात संभाली

"आपका क्या है आप तो दिन रात ट्रेन में ही गुजारते हैं मेरा भाई कभी-कभी आकर हम सबको खुश कर देता है"

सोनू मुस्कुराने लगा उसने राजेश के चरण छुए और फिर लाली दीदी के। लाली ने फिर उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया यदि राजेश उस हाल में ना होता तो सोनू के हाथ निश्चय ही लाली की पीठ पर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे होते और इन दोनों के बीच दूरियां कुछ और कम होती लाली के तने हुए स्तन सोनू के सीने से सट कर चिपटे हो चुके होते।

तभी लाली का पुत्र राजू सोनू के पास आ गया। सोनू ने उसे अपनी गोद में उठाया और कुर्ते की जेब से दो लॉलीपॉप निकालकर उसके हाथों में दे दिया। राजू ने सोनू के गालों पर चुंबन दिया। एक पल के लिए सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे लाली के कोमल होंठ उसके गालों से हट गए। सोनू की स्थिति सावन के अंधे जैसी हो गई थी उसे हर जगह सिर्फ और सिर्फ लाली के खूबसूरत कोमल अंग और दिखाई पड़ रहे थे.

लाली ने फटाफट चाय बनाई और हॉल में बैठकर अपने दोनों मालियों के साथ चाय पीने लगी। सोनू की नजरें झुकी हुई थीं और राजेश अपनी आंखों के सामने नियति द्वारा मिलाए गए तो अद्भुत प्रेमियों को एक साथ देख रहा था। सोनू जैसे बलिष्ठ और मजबूत युवा को लाली जैसी गदराई हुई युवती के साथ देख कर राजेश भाव विभोर हो गया। मन ही मन हुआ उन दोनों को संभोग अवस्था में देखने लगा। लाली ने उसकी मनोदशा पढ़ ली और बेहद प्यार से बोली

"कहां अपनी फटफटिया में खो गए चाय पी लीजिए चाय ठंडी हो जाएगी"

राजेश अपनी ख्यालों से बाहर आया और बोला

"तुम शंकर जी के मंदिर जाने वाली थी ना जाओ आज तो तुम्हारा भाई फटफटिया लेकर आया है उसी के साथ घूम आओ"

"और घर का काम धाम कौन करेगा आपको ड्यूटी भी तो जाना है"

"अरे तुम तैयार होकर जल्दी चली जाओ आज सब्जी मैं बना दूंगा तुम आकर रोटी सेक लेना और बाकी काम बाद में हो जाएगा और फिर फटफटिया रोज रोज थोड़ी ही आएगी"

अभी कुछ देर पहले राजेश की उपस्थिति को देखकर सोनू जितना निराश हुआ था राजेश के प्रस्ताव को सुनकर वह उतना ही प्रसन्न हो गया। उसने राजेश की हां में हां मिलाते हुए कहा

"चलिए दीदी आप को घुमा लाता हूं"

सोनू के साथ फटफटिया पर बैठने की बात सोच कर लाली के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई वह अपनी भावनाएं छुपाते हुए बोली

"तू मोटरसाइकिल चलाना कब सीख गया मुझे गिरा तो नहीं देगा"

"नहीं दीदी मैं चला लेता हूं"

तभी राजू भी जाने की जिद करने लगा

"नहीं बेटा अभी मम्मी को जाने दो जब मैं फटफटिया लाऊंगा तब उस पर बैठना"

सोनू एक बार फिर राजेश के प्रति कृतज्ञ हो गया वह अपनी किस्मत पर नाज कर रहा था कि आज सब कुछ उसके मनोमुताबिक हो रहा था। उसने अपनी खुशी पर काबू रखते हुए चाय के कब को उठाकर किचन में ले जाते हुए कहा.

"दीदी फटाफट तैयार हो जाइये"..

जितना उत्साह सोनू के मन में था लाली भी उतनी ही खुश थी. वह फटाफट अपने कमरे में जाकर अपना अधोवस्त्र लिया और उसे अपनी नाइटी के अंदर छुपा कर हाथ में पकड़े हुए बाथरूम में प्रवेश कर गयी। उसने अपनी पेंटी और ब्रा को सोनू की कामुक नजरों से बचा लिया था। अजब दुविधा में थी लाली एक तरफ तो वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थी दूसरी तरफ उन अंतर्वस्त्रों को नाइटी के बीच में लपेट कर उन्हें छुपा रही थी.

बाथरूम से पानी गिरने की आवाजें आने लगी सोनू के मन में लाली के नंगे और भरे हुए शरीर के दृश्य घूमने लगे। लाली को नहाते हुए तो वह पहले भी एक बार देख चुका था पर नारी रूप के दिव्य दर्शन उसे नहीं मिल पाए थे। पिछली बार उसे लाली का शरीर उसे साइड से दिखाई दिया था. वह अब लाली को साक्षात नग्न देखना चाहता था वह भी वस्त्र विहीन।

राजेश को भी बाथरूम से आ रही आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी हाल में शांति की वजह से यह आवाज और भी साफ थी। राजेश ने सोनू से यूं ही बातें शुरू कर दी।

"मुझे भी मोटरसाइकिल चलाना सीखना है"

"हां जीजा जी आप भी खरीद लीजिए मैं आपको सिखा दूंगा"

जीजा साले की बातें चल रही थी. तभी मदमस्त लाली अपने पूर्ण यौवन को नाइटी के आवरण से ढके हुए बाहर आई और लक्स साबुन की खुशबू बिखेरती हुई सोनू से सटते हुए अपने कमरे में चली गई। सोनू भीनी भीनी खुशबू से मस्त हो गया परंतु उसके नथूने उसी मदन रस की सुगंध को खोज रहे थे जो आज से कुछ दिनों पहले सोनू के उंगलियों ने लाली की बुर में प्रवेश कर चुराया था।

कमरे में जाने के बाद लाली तैयार होने लगी तभी उसनें आवाज दी

"ए जी सुनिए"

"क्या हुआ? आता हूं" राजेश उठकर कमरे के अंदर जाने लगा

दरवाजा सटाने के बाद राजेश ने पूछा

"क्या हुआ?"

"बताइए ना कौन सी साड़ी पहनु"

"अरे साड़ी मत पहनो पहली बार फटफटिया में बैठोगी कहीं साड़ी फस फसागई तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

"तो फिर क्या पहनूं?" लाली चिंता में पड़ गई

"अरे तुम्हारे पास एक सलवार कमीज भी थी ना जो तुम कभी-कभी पहनती थी"

"नहीं नहीं मैं वह नहीं पहनूंगी अब वह थोड़ा छोटी भी होती है और पूरे बदन पर कस जाती है"

राजेश के मन मे लाली का कसा हुआ शरीर घूम गया।

"अरे तुम भी तो दुबली हो गई हो एक बार पहन के तो देखो" राजेश की तारीफ ने लाली में उत्साह भर दिया।

लाली ने अलमारी से मैरून कलर की कुर्ती और चूड़ीदार पैजामा निकाला और पहनने लगी। राजेश का लंड खड़ा हो चुका था। अपनी बीवी को उस खूबसूरत वस्त्र में देख वह मदहोश हो रहा था। इसके पहले की लाली कुछ सोच पाती राजेश पीछे से आया और उसकी दोनों भरी-भरी चुचियों अपनी हथेलियों से दबाने लगा। उसका लण्ड लाली के भरे हुए नितंबों पर सट रहा था लाली ने शर्माते हुए कहा..

"यह तो पूरे बदन से चिपक सा गया है देखिए ना चुचियां कितनी निकल कर बाहर आ गई हैं।"

अपने निप्पलों को दबाते हुए उसने फिर कहा

"और यह दोनों मुए... लग रहा है कुर्ती फाड़ कर बाहर आ जाएंगे."

राजेश ने लाली की मदद की और कुर्ती को थोड़ा सामने खींचकर उसके निप्पलों को छुपा दिया परंतु लाली की भरी भरी चुचियों को छुपा पाना असंभव था। और राजेश तो वैसे भी उन्हें छुपाना नहीं चाहता था। चाहती तो लाली भी यही थी पर स्त्रीसुलभ लज्जा उसमे अभी भी कायम थी।

कुर्ती लाली के शरीर से उसी तरह चिपक गई थी जैसे चांदी का अर्क मिठाई को ढक लेता है परंतु मिठाई का आकार छुपाने में नाकाम रहता है। लाली का सपाट पेट उसकी चुचियों और जांघों के बीच बेहद आकर्षक लग रहा था । कुर्ती लाली के भरे भरे नितंबों को बड़ी मुश्किल से ढक पा रही थी लाली अपने हाथों को पीछे करती और उसे खींचकर नीचे करने का प्रयास करती परंतु उसे ज्यादा सफलता नहीं मिलती।

लाली उदास हो गई उसने सलवार कुर्ती पहनने का विचार त्याग दिया और बोली मैं साड़ी ही पहन लेती हूं यह कुर्ती वास्तव में छोटी है

इससे पहले की लाली का विचार परिवर्तित होता राजेश ने सोनू को बुलाया…

"तुम ही समझाओ अपनी दीदी को साड़ी पहनकर फटफटिया में कैसे बैठेंगी?"

सोनू कमरे में आया और अपनी लाली दीदी का यह रूप देख कर दंग रह गया. लाली को उसने पिछले कई वर्षों में कभी सलवार कुर्ती में नहीं देखा था।

वह लाली की तुलना अपनी कॉलेज की लड़कियों से करने लगा। राजेश ने सोनू की मनोदशा पढ़ ली उसने एक बार फिर कहा

"देखो ठीक तो लग रहा है पर ये परेशान है"

"सच में दीदी, जीजा जी ठीक कह रहे आप बेहद सुंदर लग रही हैं"

"चल झूठे तू भी इनका साथ दे रहा है" लाली ने शर्माते हुए कहा

"नहीं दीदी सच में"

राजेश ने इस बातचीत को विराम देते हुए कहा

"अब तुम लोग जाओ और जल्दी वापस आना मुझे ड्यूटी भी जाना है।"

लाली ने अपने बाल संवारे और झीना सा जार्जेट का दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और अपने भरे भरे नितंब हिलाते हुए दरवाजे से बाहर निकल आयी और आस पड़ोस की महिलाओं से नजर बचाती हुयी खूबसूरत लाली अपने युवा सोनू के साथ मजबूत मोटरसाइकिल पर बैठकर शंकर जी के दर्शन के लिए निकल पड़ी।

मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने के पश्चात राजेश ने सोनू से कहा

"अपनी दीदी को मंदिर के बाहर भी घुमा देना पिछली बार वह सिर्फ गर्भ ग्रह के दर्शन ही कर पाई थी।"

सोनू उस समय तो पूरे उन्माद में था उसने राजेश की बात सुनी तो जरूर पर समझ नहीं पाया

"हां जीजाजी, पूरा घुमा दूंगा कहकर उसने बात बंद की और मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी"

नियति भी पेड़ की डाली से उड़ते हुए मोटरसाइकिल का पीछा करने लगी आस्था और वासना दोनों अपनी अपनी जगह सर उठा रहे थे ……

उधर साधुओं की टोली और डुगडुगी वाला सुगना के मायके पहुंच चुके थे। बच्चों की टोली उनके पीछे पीछे चल रही थी डुगडुगी की आवाज सुनकर जाने बच्चों के पैरों में पंख लग जाते थे। सब अपने घर से वैसे ही निकलते जैसे स्कूल की घंटी के बाद बच्चे भागते हैं।

कुछ ही देर में गांव की गलियां के दोनों तरफ बच्चों और घूंघट ली हुई महिलाएं दिखाई पड़ने लगती। साधु लोग उस महोत्सव के प्रचार प्रसार से संबंधित पोस्टर घरों पर चिपकाते और सभी को हाथ जोड़कर उस उत्सव में शामिल होने का आमंत्रण देते।

सोनी और मोनी पोस्टर में दिख रहे मेले के दृश्यों को टकटकी लगाकर देख रही थी। वो लकड़ी के बड़े बड़े झूले जिसमें कुल 4 खटोले बांधे हुए थे। उसमें बैठे युवक और युवती को देखकर सोनी के मन में प्रेम की हिलोरे उठने लगीं। अभी उनकी जांघों के बीच की कली पूरी तरह खिली भी नहीं थी परंतु पुरुष के समीप आने पर उतपन्न होने वाली संवेदनाएं उनके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थीं। स्त्री और पुरुष का भेद और जांघों के बीच का आकर्षण वह भली-भांति समझने लगी थी।

"क्या देख रही है खटोले में…..साथ बैठने वाला ?"

मोनी ने सोनी के पेट पर चोटी काटते हुए बोला..

अपनी चोरी पकडे जाने पर सोनी शर्मा गई और उसने मोनी से कहा

"तेरा मन नहीं करता क्या?"

"जब भगवान ने मुंह दिया है तो खाना भी देगा मैं भगवान से मांगूंगी की तेरी जांघों के बीच की आग जल्दी बुझे"

मोनी की बात सुनकर सोनी ने उसे दौड़ा लिया और दोनों भागती भागती अपनी मां पदमा के पास आ गयीं जहां पदमा की सहेली पुलिया बनारस महोत्सव के बारे में ही बातें कर रहीं थी।

जाने इसस महोत्सव में क्या बात थी कि गांव के अधिकतर लोग वहां जाने की बातें कर रहे थे कोई 2 दिनों के लिए तो कोई 4 दिनों के लिए पर मन में ललक सभी के थी।

उधर लाली सोनू की मोटरसाइकिल पर दोनों पैर एक तरफ करके बैठी सोनू जैसे अकुशल चालक के लिए यह एक और कठिनाई थी जैसे ही वह लाली की रेलवे कॉलोनी से बाहर आया उसने मोटरसाइकिल रोकी और लाली से कहा

"दीदी आप दोनों पैर फैला कर बैठ जाइये गाड़ी का बैलेंस सही रहेगा?"

राजदूत मोटरसाइकिल कुछ ज्यादा ही ऊँची थी। लाली उस पर बैठने का प्रयास करने लगी परंतु ऊंचाई की वजह से वह अपना पैर दूसरी तरफ नहीं ले जा रही एक तो उसकी चूड़ीदार एक तो पहले से तंग थी दूसरी तरफ पैर को ऊंचा उठाना एक नई मुसीबत आ गई थी।

सोनू के साहस देने पर लाली में अपना पैर थोड़ा और ऊंचा किया और उसका पैर सीट के दूसरी तरफ आ तो गया परंतु "चर्र" एक अवांछित ध्वनि लाली के कानों तक पहुंची। मोटरसाइकिल पर सफलतापूर्वक बैठ जाने की खुशी में लाली उस ध्वनि को नजर अंदाज कर गई परंतु जैसे ही उसके नितंबों ने सीट को छुआ लाली घबरा गई। सीट की ठंडक उसकी बुर के होठों पर महसूस हुई।

लाली को अब जाकर समझ आ चुका था उसकी सलवार का जोड़ पैर के ज्यादा फैलाए जाने की वजह से टूट गया था। और उसकी सलवार थोड़ा फट गई थी सुबह जल्दी बाजी में उसने अपनी ब्रा तो पहन ली थी पर पेंटी पहनना जरूरी नहीं समझा था। घर में वैसे भी उसे पेंटी पहनने की आदत कम ही थी।

लाली के बैठ जाने के पश्चात गाड़ी का बैलेंस बिल्कुल सही हो गया था सोनू की मोटरसाइकिल तेजी से बनारस की सड़कों को रौंदकर हुए शंकर मंदिर की तरफ बढ़ रही थी। लाली अपनी सलवार फटे होने के विचारों से अभी भी मुक्त नहीं हो पा रही थी बनारस की सर्द हवाएं जब उसके बालों को उड़ाने लगी तब उसने अपनी बुर पर से ध्यान हटाकर बालों पर लगाया और उसे व्यवस्थित करने लगी। तथा पीछे से चीखते हुए बोली

"सोनू धीरे चला"

"दीदी बहुत मजा आ रहा है चलाने दो ना"

आनंद तो लाली को भी उतना ही आ रहा था उसने जो सपने अपनी किशोरावस्था में देखे थे वह आज पहली बार पूरे हो रहे थे।

सोनू अपनी रफ्तार में यह भूल बैठा की रोड पर स्पीड ब्रेकर भी होते हैं अपनी लाली दीदी को पीछे बैठा कर वह स्वयं को राजेश खन्ना समझ रहा था स्पीड ब्रेकर ने लाली को उछाल कर उसकी पीठ पर लगभग गिरा दिया।

लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी पीठ पर चपटी हो गई। लाली के इस तरह उछलने से सोनू की मोटरसाइकिल लगभग अनियंत्रित सी हो गई यह तो शंकर जी की लाली पर कृपा थी कि वह दोनों गिरे नहीं और सोनू ने अपनी मोटरसाइकिल सकुशल रोक ली।

लाली ने सोनू को डांटते हुए कहा

"मैं कहती थी ना की धीरे चला…."

अपनी प्रेमिका से डांट खाकर सोनू को अच्छा तो नहीं लगा परंतु सोनू ने अपना चेहरा पीछे घूम आया और लाली को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला

"ठीक है बाबा अब धीरे चलाऊगा"

लाली को भी अपनी गलती का एहसास हो चला था शायद उसने कुछ ज्यादा ही देश में वह बात कह दी थी सोनू के मासूम चेहरे और कोमल गाल को अपने बेहद समीप देखकर लाली का प्यार जागृत हो उठा उसने उसके गालों पर चूमते हुए कहा

"कोई बात नहीं सोनू बाबू अब धीरे चलना"

मोटरसाइकिल ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली..

बाली की बुर को अब भी मोटरसाइकिल की सीट का एहसास हो रहा था। अपने हाथों से सलवार के कपड़े को घसीट कर वह अपनी बुर के ऊपर ला रही थी परंतु कुछ ही दूर चलने के पश्चात कपड़ा वापस अपनी जगह पर आ जा रहा था और सीट उसकी बुर को फिर चुमने लगती थी।

लाली ने अपना ध्यान शंकर मंदिर की तरफ लगाया और इस विषम परिस्थिति को भूलने का प्रयास करने लगी। कुछ ही देर में सोनू की मोटरसाइकिल शंकर मंदिर के बाहर खड़ी थी। मोटरसाइकिल से उतरते वक्त एक बार फिर चर्र की आवाज हुई हालांकि यह आवाज पिछली बार की तुलना में कम थी परंतु इसने सलवार के जोड़ को थोड़ा और फैला दिया। लाली ने अपनी कुर्ती को व्यवस्थित किया और दोनों भाई बहन मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे लाली आगे आगे और पीछे पीछे। रेलिंग लगे होने की वजह से एक समय पर एक आदमी ही चल सकता था। सोनू जानबूझकर पीछे हट गया और लाली ने पहली सीढ़ी चढ़ी लाली आगे-आगे चढ़ती गई और सोनू उसके पीछे पीछे। सोनू ने जानबूझकर लाली और अपने बीच तीन चार सीढ़ियों का फासला बना लिया था।

सोनू तो दूसरे ही नशे में था अपने आगे सीढ़ी चढ़ती हुई लाली के नितंबों को देखकर उसका ध्यान आस्था से हटकर वासना पर केंद्रित हो गया था लाली के बड़े-बड़े भरे हुए नितम्ब सोनू की निगाहों के सामने थिरक रहे थे लाली की मोटी और गदराई हुई जाँघों ने नितंबों को सहारा दिया हुआ था …

"लाली ने पीछे मुड़कर कहा साथ साथ चल ना पीछे क्यों चल रहा है"

लाली ने खुद को सोनू की निगाहों से देख लिया था उसे एहसास हो गया था कि सोनू उसके नितंबों की चाल को देख रहा है..

"हां दीदी" सोनू थोड़ा झेंप गया परंतु उसने उनके बीच का फासला तेजी से कम किया और दोनों अपनी अपनी मनोकामनाएं लिए शंकर मंदिर मैं प्रवेश कर चुके थे।

शंकर भगवान की पूजा अर्चना करने के पश्चात दोनों भाई बहन ने अपनी अपनी मनोकामना उसे भगवान को अवगत कराया लाली की मनोकामना में सोनू से मिलन दूसरे स्थान पर था परंतु सोनू के मन में सिर्फ और सिर्फ इस समय एक ही मनोकामना थी और वह थी लाली दीदी के साक्षात दर्शन और उनसे मिलन।

मंदिर से बाहर आने के पश्चात रेलिंग का सहारा लेकर सोनू और लाली खड़े हो गए तथा मंदिर के पीछे पर ही नदी का खूबसूरत दृश्य देखने लगे लाली ने अपने हाथ में लिए सिंदूर से सोनू के माथे पर तिलक लगाया और प्रसाद खिलाया।

यह मंदिर चोल वंश के राजाओं ने बनाया था जिसमें अंदर कर ग्रह में शंकर भगवान की मूर्ति थी परंतु बाहर में विभिन्न कलाकृतियां बनाई गई थी उनमें से कुछ कलाकृतियां काम कला को प्रदर्शित करती हुई भी थी।

इन कलाकृतियों में खजुराहो जैसे आसन तो नहीं दिखाए गए थे परंतु फिर भी उसका कुछ अंश अवश्य मौजूद था मंदिर के बाहरी भाग को पर्यटन के हिसाब से भी सजाया गया था जिनमें आस्था न थी वो लोग भी इस मंदिर के बाहरी भाग में लगी हुई मूर्तियों को देखने आया करते थे और कुछ ठरकी किस्म के व्यक्ति कलाकृतियों में छुपी हुई कामवासना को देखकर अपनी उत्तेजना भी जागृत किया करते थे।

लाली को इस बात की जानकारी न थी परंतु सोनू तो अब बनारस का जानकार हो गया था हॉस्टल के लड़कों ने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया था लाली दीदी के साथ शंकर मंदिर जाने की बात सुनकर उसके लण्ड ने तुरंत सहमति दे दी थी।

सोनू को राजेश की बात याद आई जो उन्होंने घर से निकलते वक्त कही थी कि अपनी दीदी को मंदिर का बाहरी भाग भी दिखा देना। क्या जीजाजी चाहते थे कि मैं दीदी को इन कामकला की मूर्तियों को दिखाऊं..क्या उन्हें इस मंदिर की इन कलाकृतियों की जानकारी थी?

"कहां खो गया सोनू" लाली ने आवाज लगाई

"कुछ नहीं दीदी चलिए आपको मंदिर का बाहरी भाग दिखाता हूं"

मंदिर के पीछे एक काम पिपासु युवक और युवती की तस्वीर थी परंतु उसमें कोई नग्नता न थी कुछ लोग उन्हें किसी अनजान भगवान की मूर्ति मानते थे परंतु जानकार उसकी हकीकत जानते थे।

सोनू के मन में शरारत सूझी उसने जमीन पर अपने दोनों घुटने टिकाए और सर को सजदे की तरह जमीन से छुआ दिया कुछ सेकंड उसी अवस्था में रहकर वह उठ खड़ा हुआ।

लाली ने पूछा

"यह कौन से भगवान है"

" पहले प्रणाम कर लीजिये फिर बताता हूं"

लाली में देर ना की और सोनू ने जिस तरह प्रणाम किया था उसी तरह प्रणाम करने लगी। लाली की कुर्ती जो नितंबों को ढकी हुई थी वह हवा के झोंके से उड़ गई और लाली की फटी हुई सलवार के बीच से उसकी सुंदर और कसी हुई बुर सोनू की निगाहों के ठीक सामने आ गई जो लाली के ठीक पीछे खड़ा उसके नितंबों की खूबसूरती निहार रहा था। सोनू ने तो सिर्फ उसके नितंबों को जी भर कर देखने की कल्पना की थी परंतु उसकी जांघों के बीच छुपा हुआ अनमोल खजाना सोनू की निगाहों के सामने आ गया था। फटी हुई सलवार ने अपना कमाल दिखा दिया था ।

उधर लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

शेष अगले भाग में
 

Lutgaya

Well-Known Member
2,159
6,156
144
पाठकों पर आपका मोहपाश कसता चला जा रहा है अदभुत
 

komaalrani

Well-Known Member
19,871
46,340
259
लाली और सोनू , बहुत बढ़िया कथानक और पात्रों का विकास,

सहज पके सो मीठा होय
 
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