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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

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Agli Update Ke Intejaar Mein :waiting1:
पद्मा का हलुआ बड़ी जल्दी पचा लिया आपने.....

अभी सुगना की भावनाएं पनप रही है चुदने के लिए .......जब तक अपडेट तैयार होता है मेरी लिखी एक कहानी पढ़िए. (यह कहानी एक पूर्ण कहानी है).





संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

"मैं मानसी"

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.

मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था. राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती. राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी .

मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुसी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…

मैंने कहा…

"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.

राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा...

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.

तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

समाप्त
 
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odin chacha

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पद्मा का हलुआ बड़ी जल्दी पचा लिया आपने.....

अभी सुगना की भावनाएं पनप रही है चुदने के लिए .......जब तक अपडेट तैयार होता है मेरी लिखी एक कहानी पढ़िए. (यह कहानी एक पूर्ण कहानी है).





संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

"मैं मानसी"

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.

मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था. राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती. राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी .

मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुसी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…

मैंने कहा…

"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.

राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा...

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.

तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

समाप्त
Sundar short story
 

MaalPaani

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पद्मा का हलुआ बड़ी जल्दी पचा लिया आपने.....

अभी सुगना की भावनाएं पनप रही है चुदने के लिए .......जब तक अपडेट तैयार होता है मेरी लिखी एक कहानी पढ़िए. (यह कहानी एक पूर्ण कहानी है).





संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

"मैं मानसी"

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.

मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था. राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती. राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी .

मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुसी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…

मैंने कहा…

"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.

राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा...

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.

तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

समाप्त

:applause: Aapki Kahani Likhne ka Ye Dhang Pasand Aaya. Soch Achhi Thi, Kahani Or Bhi Achhi Thi. Prntu Sach Kahun To Main Aapki Avdhi Bhasha Ka FAN Hun! Aapki Babuji Waali Kahani Padh Kar Maza HI Aa Jata Hai.
 

Nasn

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बहुत ही बेहतरीन अपडेट था
पदमा का हलवा सरयू ने चांट लिया ।
 

Lovely Anand

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उस दिन सुगना ने सरयू सिंह को दो - दो झटके दे दिए थे। सुबह हैंड पंप पर उसने अपनी चुचियों का ऊपरी भाग सरयू सिंह की नजरों के सामने परोस दिया था और कुछ ही देर बाद अपना सुंदर मुखड़ा अपने बाबूजी को दिखाकर उन्हें जड़ कर दिया था। और तो और शाम को हलवा खिला कर उसने स्वयं सरयू सिंह के मन मे अपनी माँ पद्मा की यादें ताजा कर दीं थी।
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सरयू सिंह भी सुगना में पदमा का रूप देखने लगे थे। उनका दिमाग अभी भी सुगना को अपनी बहू के रूप में ही देख रहा था पर उनकी कामुकता सुगना को पदमा के रूप में देख रही थी। सरयू सिंह के लंगोट में हलचल होने लगी थी। शाम को जब सुगना ने अपने हाथों से बनाकर उन्हें हलवा खिलाया था तब एक बार फिर सरयू सिंह मन ही मन सोच रहे थे कि काश रात में पद्मा की तरह सुगना भी उनकी चारपाई पर आ जाती वह अपनी कामुक सोच पर मन ही मन मुस्कुरा दिए उन्हें पता था यह एक कोरी कल्पना थी।

अगले कुछ दिन सरयू सिंह सुबह-सुबह हैंडपंप पर सुगना का इंतजार करते थे सुगना भी अपने बाबूजी की अंदरूनी इच्छा को पहचान चुकी थी। उसने उन्हें निराश न किया। सुबह-सुबह वह उनका दिन शुभ कर देती उसकी चुचियों का आकार दिन पर दिन ज्यादा दिखाई पड़ने लगा। सरयू सिंह की धोती का उभार भी उसी अनुपात में बढ़ रहा था। कामुकता का तापमान दोनों तरफ बढ़ रहा था। सुगना ज्यादा से ज्यादा समय अपने बाबू जी के करीब रहती और यही हाल सरयू सिंह का था। वह दोनों ढेर सारी बातें करते। कजरी को यह एहसास बिल्कुल भी नहीं था की सुगना और सरयू सिंह के बीच में इस प्रकार की नजदीकियां बढ़ रही हैं। वह सिर्फ इस बात से ही खुश थी की उसकी बहू सुगना अब खुश रहती थी।

सरयू सिंह और कजरी दोनों रात में जमकर चुदाई करते। सुगना कमरे से आ रही चारपाई की आवाज सुनकर यह तो समझ जाती की उसकी सास कजरी के जांघों के बीच काला नाग आगे पीछे हो रहा है परंतु वह न उसे चुदते हुए देख पा रही थी और न हीं सरयू सिंह के विशाल जादुई लंड के दर्शन कर पा रही थी।

होली के दिन उसने जो वासना का खेल देखा था वह उसके दिलो-दिमाग पर छाया जरूर था पर उसकी यादें अब कमजोर पड़ रही थी। वह उन दोनों को एक बार फिर देखना चाहती थी पर यह संभव नहीं हो रहा था। वह दोनों रात में दीया बुझा घर ही चुदाई किया करते थे.

इसी बीच एक दिन सुगना हैंड पंप पर लगी काई की वजह से फिसल गई। उसने अपनी हथेलियों से अपने शरीर का भार रोकना चाहा पर उसकी कोमल कलाई उसका भार न सह पाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी कलाई की हड्डी टूट गई थी। वह दर्द से कराह रही थी। कजरी भाग कर आई और उसके हाथों को आराम देने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर में सुगना के हाथों पर हल्दी चूना और प्याज लगाया गया पर यह आराम तभी तक था जब तक कि उसकी कलाई हिल नही रही थी।

जैसे ही उसकी कलाई हिलती सुगना दर्द से बिलख उठती। सरयू सिंह तक खबर चली गई। वह चौपाल से उठकर भागते हुए घर आ गए। अपनी बहू सुगना को कष्ट में देखकर उनके दिल में टीस सी उठ रही थी। उन्होंने आकर सुगना की कोमल हथेलियों को अपने हाथों में ले लिया और एक अर्ध कुशल डॉक्टर की भांति उसके दर्द का पता लगाने की कोशिश करने लगे।

जैसे ही सुगना की कोमल हथेलियां उनके हाथों में आई उनके शरीर में एक सनसनी फैल गई। कितनी कोमल थी सुगना अपनी मां पदमा से भी ज्यादा। वह सुगना की हथेलियों की कोमलता महसूस करते हुए खो से गए। तभी सुगना की मधुर आवाज आई …

"बाबू जी तनी धीरे से …….दुखाता" सुगना की यह मासूम सी मीठी आवाज उनके दिलोदिमाग पर छा गयी।

"अरे मोरा सुगना बाबू…मत रोआ ठीक हो जायी""

सुगना का कोमल और मासूम चेहरा देख सरयू सिंह में पनप रही कामुकता प्यार में बदल गई.

सरयू सिंह ने आज पहली बार सुगना को छुआ था. उनके स्पर्श में प्यार छुपा हुआ था जो कामुक न था पर सुगना के प्रति संवेदना को स्पष्ट जरूर करता था. उधर सुगना अपने बाबू जी से प्रभावित हो रही थी। वह मन ही मन उनके करीब आ रही थी उसका तन तो नजदीक आने के लिए तड़प ही रहा था.

बाहर रामू डाकिया दरवाजे पर खड़ा "सरयू भैया ….सरयू भैया.." पुकार रहा था.

सरयू सिंह बाहर आए और रामू से हालचाल लेने के बाद अपना सरकारी खत प्राप्त किया। पर यह क्या? यह तो कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस था वह भी 2 दिनों बाद का। वकील सुधीर ने अपनी चाल चल दी थी। सरयू सिंह को कोर्ट में उपस्थित होना था जो उनके गांव से दूर शहर में था। उन्होंने सुधीर को कई गालियां दी परंतु उसकी चाल से बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

अंततः कोई रास्ता ना देख सरयू सिंह शहर जाने के लिए तैयार हो गए। सुगना को दर्द से कराहते हुए देखकर कजरी ने सरयू सिंह से कहा

"सुगना के भी ले ले जइतीं एकर हथवा के डॉक्टर से देखा देतीं, दिन भर रोवत रहेले"

सरयू सिंह ने कहा

"ठीक बा तब तू हूँ चला"

"हम परसो ना जा पाइब हरिया के यहां कथा बा" कजरी ने कहा।

"पतोह (बहु) के लेके घुमब त लोग का कही?"

तभी सुगना की कराह एक बार फिर सुनाई दी। वह उनकी बातें सुन रही थी और वह भी मन ही मन अपने बाबुजी के साथ शहर जाना चाहती थी।

अंततः सरयू सिंह तैयार हो गए।

शहर गांव से 40- 50 किलोमीटर दूर था जहां जाने के लिए मुख्य साधन ट्रेन थी। सरयू सिंह ने अपनी प्यारी सुगना के लिए पालकी बुला दी और चल पड़े रेलवे स्टेशन की तरफ।

कहार तेज कदमों से सुगना की पालकी लिए चले जा रहे थे और सरयू सिंह अपने तेज कदमों से उनका साथ देते हुए सुगना के पीछे चल रहे थे। एक पल के लिए उनके मन में यह ख्याल आया जैसे वह अपनी बीवी को ससुराल से विदा करा कर ला रहे हो। उधर पालकी के अंदर सुगना मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।
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आज दिन भर उसे अपने बाबूजी के साथ रहना था अब उसे सरयू सिंह का साथ अच्छा लगने लगा था। वह जितना उनके करीब रहती उतना ही प्रफुल्लित रहती। कामुकता के अलावा वह उनसे मन ही मन प्यार करने लगी थी कभी सच में बाबू जी की तरह और कभी अपने प्रेमी की तरह उसके दिमाग पर सरयू सिंह छा गए थे। वह सरयू सिंह की मर्दानगी और उसके प्रति प्यार की कायल हो गई थी जो सुख उसे पुरुष रूप में अपने पति से प्राप्त होना था वह सुखवा सरयू सिंह में ढूंढने लगी। सुगना जब भी सरयू सिंह को एक मर्द के रूप में याद करती उसकी कोमल बुर मुस्कुराने लगती और उसके अंदर उठ रही हलचल के अंश उसकी कोमल बुर के होठों पर छलक आते।

कुछ समय बाद सुगना की पालकी स्टेशन पर उतर रही थी। सुगना प्लेटफार्म पर बने सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गई उसने अपनी गठरी अपने बगल में रख ली जिसमें उसने रास्ते में खाने के लिए कुछ सामग्री रखी हुई थी। सरयू सिंह भी बेहद उत्साहित थे परंतु थोड़ा शर्मा भी रहे थे। प्लेटफॉर्म पर गांव के कई सारे लोग थे वह इस बात से चिंतित थे कि यदि गांव का कोई आदमी है पूछेगा कि सुगना को अकेले क्यों ले जा रहे हैं तो वह इसका क्या उत्तर देंगे। उनके मन में सुगना के प्रति पनप रही कामुकता ने उन्हें इस प्रश्न की दुविधा में डाल दिया था अन्यथा उनके पास सुगना की दुखती कलाई एक स्पष्ट उत्तर था।

ट्रेन आ चुकी थी। प्लेटफार्म पर दिख रहे लोग एकाएक जनरल डिब्बे की तरह दौड़े और पूरे गेट को लगभग घेर लिया। ट्रेन ज्यादा देर तक नहीं रुकती थी सरयू सिंह ने भी सुगना को ऊपर चढ़ाने की कोशिश की पर सुगना की एक हथेली पहले से घायल थी। सुगना को दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के डंडे पकड़ने में दिक्कत हो रही थी। भीड़ लगातार उन्हें न सिर्फ जल्दी करने की जिद कर रही थी अपितु धकेल रही थी। अंततः सरयू सिंह ने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और अंदर धकेला सुगना दरवाजे के अंदर प्रविष्ट हो गयी पर मन ही मन सिहर उठी। सरयू सिंह के मर्दाना हाथ आज उसके कोमल और चिकने पेट को छू गए थे। पेट ही क्या जब वह दरवाजे पर पहुंच गई तो एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह ने अपनी हथेलियों से उसके नितंबों को धक्का दिया था जिससे वह दरवाजे के अंदर पूरी तरह आ जाए।

सुगना के पीछे पीछे सरयू सिंह भी ट्रेन के अंदर आ गए। पीछे आ रही भीड़ सरयू सिंह पर लगातार दबाव बनाए हुए थी और वह ना चाहते हुए भी सुगना से सटे जा रहे थे। अंदर पहुंच कर उन्होंने बैठे हुए यात्रियों से सुगना के लिए जगह की याचना की और उसे एक महिला के बगल में बैठा दिया।

भाप से चलने वाला इंजन छुऊऊक...छुऊऊऊऊक……. करके बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसकी रफ्तार बढ़ती गई और ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया। सुगना खिड़की की सीट पर तो नहीं बैठी थी पर उसका ध्यान खिड़की से दिख रहे दृश्यों पर ही लगा रहा शायद वह कई वर्षों बाद ट्रेन में बैठी थी। वह अपने कलाई का दर्द भूल चुकी थी और खिड़की से दिख रहे दृश्यों को देखकर मंत्रमुग्ध थी।

अगले स्टेशन पर खिड़की के पास बैठी हुई महिला उतर गई। सुगना खिड़की की तरफ खिसक गई और अपने बाबू जी को बगल में बैठने का इशारा कर दिया। उस कंपार्टमेंट में सरयू सिंह के गांव का कोई व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था वह उस लकड़ी की सीट पर सुगना के बगल में बैठे गए। उनका दो तिहाई पिछवाड़ा सीट पर था और कुछ भाग बाहर ही रह गया था पर फिर भी वह येन केन प्रकारेण अपना वजन सीट पर रख पा रहे थे। उनकी जाँघे सुगना की जांघों से छूने लगीं। वह एहसास सरयू सिंह के लिए भी उतना ही उत्तेजक था जितना सुगना के लिए। एक तरफ सरयू सिंह सुगना की जांघों की कोमलता महसूस कर रहे थे दूसरी तरफ सुगना उन मर्दाना जांघों की मांस पेशियों को। सुगना की आंखें अभी भी बाहर की तरफ देख रही थी पर दिल तेजी से धड़क रहा था वह सरयू सिंह की मर्दानगी को बड़े करीब से महसूस कर रही थी। उसकी कोमल बुर चैतन्य हो चुकी थी।

डेढ़ घंटे के सफर के बाद शहर आ गया ट्रेन से उतरते वक्त एक बार फिर सरयू सिंह को सुगना को उठाना पड़ा। उन्होंने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और सहारा देकर नीचे उतार दिया। इस दौरान सुगना की कोमल चूचियां उनके सीने से टकरा गयीं। सुगना की चूचियों की कोमलता महसूस कर शरीर सिंह का लंड में लहू का प्रवाह बढ़ गया जिससे सरयू सिंह थोड़ा असहज हो गए सुगना ने भी इस उनकी असहजता महसूस कर लिया था।

दोपहर तक सरयू सिंह कोर्ट कचहरी का काम करते रहे उन्होंने सुगना हो अपने वकील के स्टाल पर बैठा दिया था। सुगना ने घुंघट लेकर अपना चेहरा तो छुपा लिया था पर उसकी रमणीय और उत्तेजक काया छुपने योग्य नहीं थी। साड़ी सुगना की चूचियां और कोमल नितंबों का आकार छुपाने में असमर्थ थी। वह आसपास के लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही।

कचहरी का काम निपटाने के बाद सरयू सिंह सुगना को लेकर एक मंदिर में आ गए जहां बैठकर दोनों ने खाना खाया घर से लाई गई रोटियां सूख चुकी थी जो सुगना के बाएं हाथ से टूट नहीं रही थी। सुगना का दाहिना हाथ किसी काम का ना रहा था। सरयू सिंह ने अपने हाथों से सुगना को खाना खिलाया। सुगना मन ही मन सरयू सिंह का यह प्यार देखकर उन पर मोहित होती रही।
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सरयू सिंह अब उसके लिए आदर्श पुरुष हो चले थे वह उनकी हो जाना चाहते थी पर वह उसके लिए बहु से प्रेमिका तक की दूरी अभी भी चंद्रमा और पृथ्वी जितनी थी। जो एक दूसरे के समीप तो कई बार आते हैं पर उनका मिलन प्रश्नचिन्ह के दायरे में था।

डॉक्टर के यहां सुगना का हाथ दिखाने और उस पर प्लास्टर चढ़ाने मैं काफी देर हो गई . सरयू सिंह ने भागते भागते दवाई ली और रिक्शा पर बैठकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े। रास्ते में टेंपो पलट जाने की वजह से जाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी.

सरयू सिंह बार-बार अपनी घड़ी देख रहे थे. रिक्शा में बैठे हुए सरयू सिंह बेचैन हो रहे थे. वापसी के लिए यही एकमात्र यही ट्रेन थी जिसे वह किसी भी हालत में छोड़ना नही चाहते थे. उधर सुगना इन सब समस्याओं से दूर शहर की चकाचौंध में खोई हुई थी. सड़क के किनारे कितनी सुंदर सुंदर दुकानें थी. कई सारी चीजें तो ऐसी थी जो उसने पहली बार देखी थी. एक से एक सुंदर कपड़े दुकानों के बाहर टंगे हुए थे. वह मन ही मन खुद को उन कपड़ों में सोचती और खुश हो जाती.

किसी फूहड़ फिल्म का पोस्टर दीवार पर देखकर सुगना की आंखें ठहर गयीं. फिल्म की हीरोइन में उत्तेजक कपड़े पहन रखे थे उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी और चुचियों का उभार भी. हीरोइन की उत्तेजक अवस्था को देख सुगना मन ही मन सोच रही थी यह कैसी औरत है जिसने अर्धनग्न होकर इस तरह की तस्वीरें खिंचवाई हैं. सुगना शहर की निराली दुनिया में खोई हुई थी तभी रिक्शा चल पड़ा अचानक चलने की वजह से सुगना का संतुलन बिगड़ गया. उसने अपने आप को गिरने से बचाने के लिए सरयू सिह की जांघों को पकड़ने की कोशिश की पर उसका हाथ जांघों के बीच आ गया. एक पल के लिए सुगना ने गलती से अपने बाबूजी का सोया हुआ नाग छू लिया था जो अब तक उनके लंगोट में कुंडली मार कर बैठा हुआ था.

उसने अपना हाथ तुरंत हटाया और संभल कर बैठ गई पर सरयू सिंह का लंड जाग चुका था। स्टेशन पर पहुंचते ही सरयू सिंह ने सुगना को रिक्शे से उतारा और भागते हुए प्लेटफार्म तक पहुंचे। सुगना भी लगभग दौड़ते हुए प्लेटफार्म तक आ गयी। पर दुर्भाग्य ….ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। ट्रेन के डिब्बे से हाथ हिलाता हुआ उन्हीं के गांव का बिरजू उन्हें दिखाई पड़ा सरयू सिंह ने कहां

"भौजी के बता दिह हम कॉल आइब"

"ठीक बा"

सुगना हाफ रही थी। आज उसने कई दिनों बाद दौड़ लगाई थी। सरयू सिंह के पास आते ही उसने कहा

"बाबू जी अब का होई गाड़ी त छूट गईल उसकी आवाज में दुख स्पष्ट था"

सरयू सिंह स्वयं परेशान हो गए थे। उन्होंने स्टेशन का नजारा देखा कई सारे लोग अगली ट्रेन का इंतजार करते हुए चादर बिछाकर प्लेटफार्म पर बैठे हुए थे पर सरयू सिंह का यह इंतजार लंबा था उन्हें पूरी रात गुजारनी थी उनकी ट्रेन अब सुबह ही मिलनी थी।

आज सुगना पहली बार उनके साथ बाहर आई थी और उसे सरयू सिंह किसी हाल में कोई कष्ट नहीं देना चाहते थे। वह उनकी जान थी और वह उसके आदर्श पुरुष। पर वह करे तो क्या करें प्रश्न बहुत कठिन था। आज के पहले सरयू सिंह एक दो बार होटल में रुके थे पर आज सुगना उनके साथ थी क्या उसे लेकर वह होटल में रह सकते है…

उनके मन में आई इस दुविधा ने यह स्पष्ट कर दिया था की सुगना उनकी बेटी तो कतई नहीं थी.. सरयू सिंह अपनी सोच में डूबे हुए थे सुगना अपनी जांघों के बीच सिहरन लिए अपने बाबूजी के अगले कदम का इंतजार करने लगी…..


यह तो तय था कि वह सुगना को लेकर प्लेटफार्म पर नहीं रह सकते थे। उन्होंने सुगना से कहा

"आवा चला रहे के ठेकाना देखल जाऊ"

सुगना निरापद थी उसे यह अंदाजा कतई भी नहीं था की उसकी रात कैसे गुजरेगी और कहां पर गुजरेगी वह अपने बाबू जी पर पूरा भरोसा करते हुए उनके पीछे पीछे चल दी.

स्टेशन के बाहर कुछ छोटे होटल थे शहर इतना बड़ा नहीं था. दूर गांव से आने वाले धनाढ्य लोग जब ट्रेन पकड़ने के लिए आते थे तो ट्रेन लेट होने पर कभी-कभी इन होटलों में कुछ समय के लिए रूक जाया करते थे। सरयू सिंह के लिए भी यह पहला अनुभव था उन्होंने अपनी जेब टटोली और मन ही मन होटल में रहने का निर्णय कर लिया.

मनोरमा लाज के दरवाजे पर पहुंच कर वह उसकी सीढ़ियां चढ़ने लगे काउंटर पर बैठा व्यक्ति सरयू सिंह की दमदार कद काठी और पीछे आ रही सुगना की कमनीय काया देख कर वह प्रभावित हो गया उसने कहा

"प्रणाम चाचा... गाड़ी पकडब का" उसने चाचा संबंध स्वयं जोड़ लिया था. वह सरयू सिंह को पहचानता नहीं था पर उम्र के अनुसार उसने स्वयं रिश्ता बना लिया था. वह सुगना को लेकर अभी भी सशंकित था होटल का रजिस्टर खोलकर उसने सरयू सिंह से पूछा

"चाचा का नाम लिखीं" सरयू सिंह ने दमदार आवाज में अपना नाम बताया उस व्यक्ति ने फिर पूछा

"और ईहां के"

"पदमा"

सुगना आश्चर्यचकित थी. बाबू जी ने उसकी जगह उसकी मां का नाम क्यों लिखवाया. उस व्यक्ति ने कहां

"आई चाचा" सरयू सिंह उसके पीछे चल पड़े और और उनके पीछे सुगना। एक कमरे का दरवाजा खोला गया जिसमें एक डबल बेड लगा हुआ था सरयू सिंह ने उससे कहा

"दुगो अलग-अलग बिस्तर वाला दीजिए"

"ठीक बा चाचा"

उसने दूसरा कमरा दिखाएं जिसमें दो अलग-अलग बिस्तर लगे हुए थे

"हां, ई ठीक बा"

"ठीक बा चाचा, कोनो जरूरत होई त आवाज दे देब"

सुगना इस कमरे की खूबसूरती देखकर खुश हो गई थी पर उसे तो वह डबल बेड वाला कमरा ज्यादा पसंद आया था। कुछ ही देर में उसने अपने को सरयू सिंह के बगल में सोता हुआ देख लिया था एक पल के लिए वह सिहर उठी थी। उसके मन में कामुकता फूट पड़ी थी पर सरयू सिंह ने उसकी सोच पर पानी डाल दिया था। वह दोनों दूसरे कमरे में आ चुके थे।

उस व्यक्ति के जाने के बाद सरयू सिंह ने दरवाजा सटा दिया सरयू सिंह ने बाथरूम का मुआयना किया होटल एक औसत दर्जे का था पर सरयू सिंह के लिए वह उम्मीद से ज्यादा था। और सुगना के लिए तो वह स्वर्ग समान था।

सुगना बाथरूम में गई उसने आज पहली बार वाशबेसिन देखा था सरयू सिंह ने उसे उसका प्रयोग समझाया। बाथरूम के नल इत्यादि के बारे में भी अपनी जानकारी सुगना को बताइ पर बाथरूम मैं लगे झरने के बारे में उन्हें खुद भी ज्ञान न था। सुगना को समझाते समझाते उन्होंने वह नल खोल दिया जिससे झरने में पानी जाता था।

झरने से निकले पानी ने सुगना और शरीर सिंह दोनों को भिगो दिया दिया। सुगना जोर से हंस पड़ी सरयू सिंह थोड़ा शर्मा गए पर उन्होंने स्थिति संभाल ली उन्होंने कहा

"ई त नहाए खातिर बढ़िया बा "

सुगना अपना मुंह हाथ धुल कर कमरे में आ गई सरयू सिंह और सुगना दोनों के पास एकमात्र वही कपड़ा था जो वह पहन कर आए थे. वह दोनों आराम करने लगे अपनी बहू को अपने इतना करीब पाकर सरयू सिंह में रह-रहकर उत्तेजना जन्म लेती पर सुगना का कोमल चेहरा देखते हैं उनकी उत्तेजना शांत पड़ जाती वह उन्हें एक कोमल नवायैवना जैसी दिखाई पड़ती जो उनके बेटी की उम्र की थी उससे संभोग करना उनके दिमाग को स्वीकार न था।

दिनभर की भागदौड़ से सुगना थक गई थी होटल के बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गई सरयू सिंह भी अपने बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे। वह सोती हुई सुगना को देख रहे थे और सुगना से बदल रहे अपने रिश्तो के बारे में सोच रहे थे। एक तरफ तो वह उनकी बहू थी दूसरी तरफ पदमा जैसी अद्भुत खूबसूरती लिए हुए छोड़ने योग्य आदर्श स्त्री जिसने अब तक संभोग सुख न प्राप्त किया था और न हीं प्राप्त होने की कोई संभावना थी।

प्रकृति द्वारा दिये इस शरीर मैं काम भावना स्वता ही जन्म लेती है वह सुगना में भी ली होगी पर क्या वह कुवारी रह जाएगी? सरयू सिंह कई प्रकार की बातें सोचते पर किसी भी प्रकार वह अपने दिमाग को उससे संभोग करने के लिए राजी न कर पाते। उनका मन और लंड दोनों एक तरफ हो गए थे और दिमाग और जमीर से सुगना को चोदने की इजाजत मांग रहे थे पर अभी उनकी बात दिमाग द्वारा अनसुनी कर दी जा रही थी।

कुछ देर बाद सरयू सिंह की आंख खुली उन्होंने देखा सुगना उठ चुकी थी और सरयू सिंह की तरफ पीठ कर अपनी साड़ी ठीक करने का प्रयास कर रही थी। उसकी कलाई में चढ़े प्लास्टर की वजह से एक हाथ से साड़ी को पेटीकोट के अंदर करना संभव नहीं हो रहा था। सुगना परेशान हो गई थी ब्लाउज के नीचे और पेटीकोट के ऊपर सुगना की पीठ स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बेहद चिकनी और गोरी पीठ अत्यंत सुंदर लग रही थी। सपना के कोमल चूतड़ दो छोटे फुटबॉल के जैसे दिखाई पड़ रहे थे। सरयू सिंह के मन और दिमाग में एक बार फिर युद्ध शुरू हो चुका था तभी सुगना पलटी और

"बोली बाबूजी तनी सड़ियां फसा दीं"
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सरयू सिंह का अपने बिस्तर से उठकर खड़े हो गए और सुगना के पास जाकर बोले "बताव का करे के बा"

" तनी साड़ियां भीतर करके फसा दीं "

सरयू सिंह सुगना के बिस्तर पर बैठ गए। सुगना सामने खड़ी थी। उन्होंने साड़ी की चुन्नट बनाई और सुगना की नाभि के नीचे बंधे पेटीकोट में उस चुन्नट को फसाने लगे। उनकी उंगलियां सुनना के पेट से छू रही थीं उनकी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज में कैद सुगना की चुचियां आमंत्रित कर रही थीं। सुगना की चुची और उनके चेहरे के बीच चार अंगुल से कम का फैसला था पर वहां तक पहुचना चार योजन जितना दूर था।

सुगना जैसी सुंदर और कुंवारी स्त्री की चुची तक पहुंचना सच में कई इतना आसान न था। यह अलग बात थी कि सुनना स्वयं अपनी चूचियां अपने बाबूजी को परोसने के लिए तत्पर थी पर यह भावना सुनना के मन में थी हरकतों में नहीं। उसकी हरकतें अभी भी एक बहू बेटी जैसे ही थीं।

शरीर सिंह की नाक सुगना के बदन की खुशबू को महसूस कर रही थी। उनका मन बार-बार पर कर रहा था की वह अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर सुनना की कोमल चुचियों को अपने मुंह में ले ले। उंगलियां पेटिकोट में और नीचे जाने के लिए लालायित थीं।

पर सरयू सिंह इतने गिरे हुए इंसान न थे। वह वासना के अधीन जरूर थे पर उन्होंने अपना दिमाग नहीं खोया था।

उधर सुगना अपने बाबूजी को इतना करीब पाकर सुगना की वासना जागृत हो गयी। उसकी जांघों के जोड़ पर कोमल बुर खुश हो गई थी और अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा में थी ठीक उसी प्रकार जैसे विवाह में आया कोई दूरदराज का व्यक्ति स्टेज पर जाने की अपनी प्रतीक्षा करता है।

सुगना की बुर का इंतजार लंबा था। सुगना की साड़ी ठीक कर सरयू सिंह उठ खड़े हुए सुगना ने अपना पल्लू ठीक किया और बाबू जी से बोली

" रहुआ बहुत बढ़िया बानी"

अपनी बहू से तारीफ पाकर सरयू सिंह खुश हो गए उन्होंने कहा

"चला बाहरी घूमा दीं"

वह सुगना को लेकर बगल के बाजार में आ गए। उन्होंने सुगना और कजरी के लिए कपड़े खरीदे इसी दौरान बगल की दुकान में बाहर ब्रा और पेंटी टंगी हुई थी सुगना बहुत ध्यान से उसे देख रही थी और मन ही मन उन कपड़ों को अपने शरीर पर महसूस कर रही थी। उसने आज तक ब्रा और पेंटी का उपयोग न किया था पर दीवार पर लगे पोस्टर में ब्रा और पेंटी को उस मॉडल की चुचियों और बुर को ढके दिखाया हुआ था जिससे सुगना को उसकी उपयोगिता समझ आ चुकी थी। एक बार उसके मन में आया कि वह अपने बाबू जी से उसे खरीदने के लिए कहे पर वह हिम्मत न जुटा पायी।

कपड़े खरीदने के बाद सरयू सिंह ने पास के ठेले से सुगना को उसकी पसंद की चटपटी चीजें खिलायीं और अपनी बहू को लेकर फिर एक बार कमरे में आ गए।

होटल के गलियारे में जाते समय 3- 4 मनचले लड़के उन्हें देख रहे थे. वह सुगना की जवानी से बेहद प्रभावित हुए थे। साड़ी के अंदर सुगना का फसा हुआ सुडौल शरीर सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता उसकी कद काठी बेहद खूबसूरत थी। साड़ी में उसकी कमर और नितंबों का आकार खुलकर दिखाई पड़ता और सुगना की चुचियां तो अद्भुत थी।

सरयू सिंह और सुगना कमरे में जा चुके थे तभी बाहर से उन मनचले लड़कों की आवाज आने लगी

"चाचा तो बढ़िया माल ले आइल बाड़े"

"हां, ओकर चुची देखला हा"
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" बुझाता चाचा अपनहि मीस मीस के बड़ कइले बाड़े"

" लगता आज चाचा ओकर बुर चोदबे करिहें तबे चाट खियावतले हा" उन लड़कों के हंसने की आवाज आने लगी

उनमें से एक शरीफ लड़के की आवाज आई "इसन मत कह सो का जाने ओकर बहु बेटी होखे तब?"

" ए भाई अइसन हमार पतोहियो रही त हम ना छोड़ब" एक बार फिर वह हंसने लगे

सरयू सिंह इन सब बातों को सुनकर क्रोधित हो गए थे और मन ही मन उन्हें मारने की सोच रहे थे अचानक वह उठे और बाहर की तरफ जाने लगे। सुगना ने अपने कोमल हाथों से उनकी मजबूत कलाई पकड़ ली और बोली

"बाबूजी रहे दीं उ सब लफुआ हवे सो काहे झगड़ा करता करब" यह एक संयोग ही था कि वलड़के कॉरिडोर से जा रहे थे उनकी आवाज धीमी पड़ रही थी।

उन लड़कों की बातों का सबसे ज्यादा आनंद किसी ने लिया था तो वह सुगना की बुर। उन बातों में सबसे ज्यादा उसका ही जिक्र हो रहा था कोई तो ऐसा था जो उसका नाम ले रहा था और उसके बारे में सोच रहा था। यहां तो सुगना और उसके बाबूजी दोनों ही अपनी अपनी भावनाओं पर काबू किए उसे अकेला छोड़ दिए थे। सुगना की मूमल बुर तो उन लड़कों की ही शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसकी खोज खबर ली थी वह खुशी से पनिया गई थी। उसके कोमल होठों पर मदन रस तैरने लगा था। काश सुगाना के बाबूजी उसकी खुशी देख पाते।

सरयू सिंह का लंड भी विद्रोह पर उतारू हो चुका था इन बातों से उसमें भी हरकत हुई थी पर उतनी नहीं जितनी सुगना के बुर में हो रही थी। जितनी वासना सुगना के मन में सरयू सिंह के प्रति जागृत थी शायद उतनी वासना अभी सरयू सिंह के मन में नहीं थी पर भी जरूर।

सुगना निश्चय ही अब उनकी बेटी नहीं रही थी अब वह सिर्फ एक बहू के रूप में आ चुकी थी। भावनाएं बदल रही थी समय भी बदल रहा था नियति अपनी साजिश रच रही थी और कुछ हद तक कामयाब भी हो रही थी। …..

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पर अभी सुगना की बुर का इंतजार कायम था....
 
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