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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lutgaya

Well-Known Member
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भाग 74

जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ स्वता ही ऊपर की तरफ आ रहे थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

अब आगे..

लाली को नंगी देखकर सोनू सुध बुध खो बैठा। वैसे भी आज उसे अपनी बहनों को छोड़कर न जाने कितने दिनों के लिए लखनऊ जाना था। समय कम था..काम ज्यादा। सोनू ने अधीर होकर लाली को बिस्तर पर बिछा दिया।

लाली चाहती तो यही थी कि वह अपनी निगाहें खिड़की पर रखें ताकि वह इस बात की तस्दीक कर सके कि क्या सुगना ने अकस्मात ही अंदर झांक लिया था या वह जानबूझकर उन्हें देख रही थी।


परंतु संयोग कहे या नियति का खेल लाली चाह कर भी यह न कर पाई सोनू के मजबूत हाथ बिस्तर पर उसकी दिशा तय कर गए थे । लाली अपने दोनों पैर ऊपर किए हुए बिस्तर पर लेटी गई और सोनू ने उसकी चिकनी चूत में मुंह गड़ा दिया।

सुगना की आंखों के सामने जो हो रहा था वो वह भलीभांति समझती थी। क्या सच में सोनू उम्र से पहले परिपक्व हो गया था? निश्चित ही लाली ने उसे उकसाया होगा। अन्यथा उसका सीधा साधा भाई इतनी छोटी उम्र में इस तरह …. हे भगवान सोनू की हथेलियां लाली की नंगी चूचियों पर घूम रही थी। वह अपनी मजबूत हथेलियों से लाली की कोमल चुचियों को कभी सहलाता कभी उन्हें जोर से मसल देता और लाली अपने पैर उसकी पीठ पर पटकने लगती।

सुगना एक टक वह दृश्य देख रही थी। लाली के हिलते हुए पैर उसकी जांघों के बीच हो रही हलचल एवम् उस छेड़छाड़ से उत्पन्न उत्तेजना का प्रदर्शन कर रहे थे। लाली बार-बार सर उठाकर सुगना को देखना चाहती थी परंतु कभी सोनू का सर कभी उसके हवा में लहराते पैर उसकी निगाहों के सामने अवरोध पैदा कर देते और उसकी नजरें सुगना से ना मिल पातीं।

लाली की सुगना को देखने की उत्सुकता ने उसकी गोरी और पनियायी चूत को चुसवाने के आनंद में कमी ला दी थी। उसका ध्यान बार बार खिड़की पर जा रहा था। वह सुगना को देखना चाहती थी।

कौतूहल और जिज्ञासा मनुष्य का सारा ध्यान खींच लेती है उसका किसी काम में मन नहीं लगता यही हाल लाली का था..


अंततः उसने सोनू को स्वयं से अलग कर दिया और सोनू के बिना कहे ही बिस्तर पर घोड़ी बन गई उसने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि इस बार वह खिड़की की तरफ देख पाए। उसने खिड़की के समानांतर अपनी अवस्था बना ली। खिड़की की तरफ देखते ही उसकी आशंका ने मूर्त रूप ले लिया…. उसका कलेजा मुंह को आ गया … सुगना अभी भी अंदर की तरफ देख रही थी…हे भगवान…कुछ अनिष्ट हो रहा था।

पर्दे की पीछे से उसकी कजरारी आंखें लाली को दिखाई पड़ गईं जिनका निशाना शायद सोनी का चेहरा ना होकर लाली के मादक नितंब थे जिसे सोनू सहला रहा था। लाली और सुगना की नजरें न मिलीं पर लाली की कामुकता में अचानक उबाल आ गया… अपनी प्रिय सहेली के भाई से उसी के सामने चुदवाने की बात सोचकर वह अत्यधिक कामुक हो उठी। उसने सोनू से कहा

"अरे वाह… हमार कूल कपड़ा उतार के हमारा के नंगा कर देला और अपने सजधज कर खड़ा बाड़….. कलेक्टर साहब ई ना चली… " सोनू मुस्कुराने लगा..और खिड़की पर खड़ी उसकी बहन सुगना भी।

इस कलेक्टर संबोधन से सुगना के स्वाभिमान को बल मिला था। सोनू ने झटपट अपने कपड़े उतार दिए उसे क्या पता था आज वह पहली बार अपनी बहन सुगना के सामने नंगा हो रहा था।


सुगना की नजरों और उपस्थिति से अनजान सोनू पूरी तरह नग्न होकर अपने लंड को हवा में लहराने लगा तथा अपनी हथेली से उसे पकड़ कर आगे पीछे करने लगा..

सुगना अपनी सांसें रोके यंत्र वत अंदर देख रही थी वह यह दृश्य देखना चाहती थी या नहीं… यह तो वह और उसकी अंतरात्मा जाने परंतु सोनू के लंड पर से नजरें हटा पाना किसी युवा स्त्री के लिए संभव न था। सुगना एक पुतले को भांति खड़ी सोनू को देखे जा रही थी।


सोनू का लंड समय से पहले ही मर्दाना लंड से मुकाबला करने या यूं कहे मात देने को तैयार था। सरयू सिंह की जिस दिव्य काया के दर्शन सुगना अब तक कर चुकी थी उसकी तुलना में सोनू का का भरा पूरा मांसल शरीर और तना हुआ लंड किसी भी प्रकार कम न था। अनजाने में ही सुगना सरयू सिंह के लंड की तुलना सोनू के लंड से करने लगी….. और उसकी तुलना ने उसे सोनू के लंड को ध्यान से देखने का अधिकार दे दिया। …

आज एक बार फिर सोनू के लंड की तुलना करते करते सुगना ने अपनी कलाई को देखा जैसे वह सोनू के लंड को अपनी कलाई के व्यास से मिलाने की कोशिश कर रही थी।

अपना आखिर अपना होता है सोनू सुगना की निगाहों में भारी पड़ा… सच कहे तो युवा सोनू अद्भुत था। सोनू का लंड अपने भीतर आ रहे रक्त के धक्कों से रह रह कर ऊपर उठ रहा था सुगना को इस तरह लंड का उछलना बेहद पसंद आता था।

इधर सुगना अपनी तुलना में व्यस्त थी उधर सोनू बिस्तर पर आ चुका और वह लाली के नितंबों और कटीली कमर पर हाथ फिराते हुए उस पर झुकता गया.. उसके होंठ जब तक लाली के कानों तक पहुंचते तब तक उसके लंड के सुपाड़े ने लाली के बुर् के होठों में छेद करने की कोशिश की। लाली की चुंबकीय चूत जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी उसने एक झलक सुगना की तरफ देखा और अपनी कमर पीछे कर दी। सोनू का लंड एक गर्म रॉड की तरह की कसी पर चिपचिपी बुर में उतर गया।

सुगना यह दृश्य देखकर मदहोश हो गईं। न चाहते हुए भी उसकी जांघों के बीच गीलापन आ गया चूचियां सख्त हो गई और आंखें लाल…। एकाग्रता और उत्तेजना ने सुगना का दिमाग कुंद कर दिया उसे यह अहसास भी ना था की जिस प्रेमी युगल को वह रति क्रिया करके देख रही थी उसमें से एक उसका अपना छोटा भाई था।

सुगना आज पहली बार रति क्रिया के दृश्य नहीं देख रही थी वह इससे पहले भी सरयू सिंह और कजरी की चूदाई देख चुकी थी। उसके जीवन में यह संयोग पहले भी हो चुका था पर आज सुगना अपने सगे भाई को अपनी हमउम्र प्यारी सहेली को चोदते हुए देख रही थी। सोनू जो उसका छोटा और प्यारा भाई था आज एक पूर्ण मर्द की तरह लाली को गचागच चोद रहा था और लाली सुगना की तरफ बार-बार देख कर मुस्कुरा देती।

सोनू और लाली की चूदाई की रफ्तार बढ़ रही थी । सुगना की उपस्थिति से लाली अति उत्तेजित हो गई और कुछ ही देर में उसकी बुर ने कंपन प्रारंभ कर दिए…. सोनू में उसकी चूचियों को मसलते कहा..

" काहे दीदी आज जल्दी ए……कांपे लगलू"

लाली ने कुछ ना कहा वह अपने इस स्खलन का आनंद उठाने में व्यस्त थी। उसकी निगाहें खिड़की की तरफ थीं.. और वह अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर स्खलित हो रही थी। सुगना की नजरों की तरफ देखते हुए इस तरह स्खलित होने का यह अप्रतिम आनंद लाली को अभिभूत कर गया इस स्खलन का आनंद लाली के दिलों दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया।

अचानक सोनू का ध्यान लाली की निगाहों की तरफ गया सोनू की निगाहों ने लाली की निगाहों का अनुसरण किया एक झटके में सोनू ने सुगना को अंदर का दृश्य देखते देख लिया।


एक पल के लिए सोनू सहम गया उसी यकीन ना हुआ कि सुगना वहां खड़ी थी।

जब दो नजरें जब एक दूसरे से मिल जाती है तो दोनों को ही एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास हो जाता है। आप चाह कर भी उस पल को झुठला नहीं सकते।

सोनू और सुगना की भी निगाहे एक दूसरे से मिल चुकी थीं। सोनू से नजरें मिलते ही सुगना एक पल के लिए खिड़की से हट गई। परंतु उस एक पल ने सोनू को व्यग्र कर दिया….

सोनू ने दोबारा खिड़की की तरफ देखा सुगना वहां न थी। सोनू ने अपनी व्यग्रता को दरकिनार कर एक बार फिर लाली को उसकी कमर से पकड़कर अपने लंड पर खींच लिया। और तना हुआ लंड लाली की चिपचिपी और प्रतिरोध को चुकी हो बुर में अंदर तक प्रवेश कर गया।

सोनू अपनी आंखें बंद किए अपना चेहरा छत की तरफ किया हुआ था चेहरे पर अजब से भाव थे। न जाने सोनू को क्या हो गया था…. उसने लाली की कमर को और तेजी से पकड़ा तथा उसे पूरी ताकत से अपनी कमर से सटा दिया…उसका तना हुआ लंड लाली के गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो गया … लाली कराह उठी..

"सोनू बाबू …तनी धीरे से….. दुखाता"

लाली की इस कामुक कराह ने सुगना का ध्यान बरबस खींच लिया जिससे वह भली भांति परिचित थी। सुगना अभी भी खिड़की के पास दीवार से पीठ टिकाए अपनी सांसो को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसके सीने में शांत धड़कने वाला दिल आज पिंजरा तोड़ बाहर आना चाह रहा था। उसने एक बार फिर खिड़की के अंदर देखना चाहा.. अंदर सोनू अपनी आंखे बंद किए और चेहरे पर वासनजन्य उत्तेजना लिए लाली को पूरी रफ्तार से चोद रहा था। उसकी हथेलियों की मजबूत पकड़ से लाली की कमर और कंधों पर निशान पड़ गए थे…लंड चूत से पूरा बाहर आता और गचाक से अंदर चला जाता। लाली की बुर के रस से लंड की चमक और बढ़ गई थी। हल्के गेहुएं लंड पर नसों की नीली धारियां उभर आयी थी। कभी-कभी लाल ही चुका सुपाड़ा बाहर आता परंतु वह लाली की प्यारी पुर से अपना संपर्क न छोड़ता और तुरंत उन कोमल गहराइयों में विलुप्त हो जाता।

सोनू का लावा फूटने वाला था। लाली को इस तरह चोदते समय उसने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी थीं.. उसके दिमाग में क्या चल रहा था यह तो वही जाने या हमारे ज्ञानी पाठक ..। परंतु लाली इस चूदाई से अभीभूत थी …सोनू की उत्तेजना का यह रंग नया था।

वीर्य की पहली धार ने जब अंडकोष से सुपाडे तक का रास्ता तय किया.. सोनू ने अपनी आंखें खोली और एक बार फिर खिड़की की तरफ देखा… सुगना से आंखें मिलते ही वह तड़प उठा….उसने अपनी आंखें पुनः बंद कर लीं और लाली की बुर में अपने वीर्य की पहली बूंद डालकर लंड को ना चाहते हुए भी बाहर निकाल लिया.. और लाली के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगा…उसकी मजबूत हथेलियां जैसे उसके लंड का मानमर्दन कर उससे वीर्य की हर बूंद खींच लेना चाहती हो…


लाली तुरंत पलट कर पीठ के बल आ गई और सोनू के लंड से से निकल रहा वीर्य उसकी चुचियों चेहरे और गदरायी जांघों पर गिराने लगा…. सोनू खिड़की की तरफ दोबारा देखने की हिम्मत न जुटा पाया.. परंतु उसे यह अहसास हो चुका था उसकी बड़ी बहन सुगना ने आज जो कुछ देख लिया था शायद वह उचित न था।

सोनू यहीं ना रुका..वह लाली की चुचियों पर गिरे वीर्य को अपने हाथों से उसकी चुचियों पर मलने लगा….

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह भागते हुए अपने कमरे में गई और बिस्तर पर बैठ कर अपनी आंखें बंद किए खुद को संयमित और नियंत्रित करने का प्रयास करने लगी। पर यह इतना आसान न था।

अप्रत्याशित दृश्य दिमाग पर गहरा असर छोड़ते हैं।

आज उसने अपने ही भाई को पूर्ण नग्न अवस्था में अपनी सहेली के साथ संभोग करते हुए अपनी इच्छा और होशो हवास में देखा था। उसने ऐसा क्यों किया इसका उत्तर स्वयं उसके पास न था। पर जो होना था वो हो चुका था।

सोनू और लाली के कमरे से बाहर आने की हलचल से सुगना सतर्क हो गई और वह अपनी बुर के बीच एक अजीब सा चिपचिपा पन लिए बाथरूम में चली गई। उसने अपनी पेंटी उतार कर उसे बदलना चाहा जो चिपचिपी हो कर उसे असहज कर रही थी। अपनी ही प्रेमरस से गीली पेंटी से अपने बुर के होंठों को पोछते समय अनजाने में ही उसकी तर्जनी ने उसके भगनाशे को छू लिया। उंगली और उसके भगनासे का यह मिलन कुछ देर तक यूं ही चलता रहा… सुगना के दिमाग में एक बार फिर न चाहते हुए भी लंड का दिव्य आकार घूम गया …वह बार-बार अपने बाबूजी के लंड को याद करती जिससे न जाने वह कितनी बार चुदी थी परंतु रह रह कर उसके दिमाग में..सोनू के थिरकता लंड का ध्यान आ जाता।


अचानक सुगना ने महसूस किया जैसे वो स्खलित हो चुकी है। पैरों में ऐठन इस बात का प्रतीक थी। ऐसा लग रहा था जैसे सुगना रह-रहकर टुकड़ों में स्खलित हुईं थी। कुछ शायद सोनू और लाली के प्रेमलाप के समय और रही सही कसर अभी तर्जनी और भगनासे की रगड़ ने पूरी कर दी थी।

"मां बाहर आओ मामा के जाने का टाइम हो गया है" मालती की आवाज सुनकर सुगना ने अपनी दूसरी पेंटी पहनी और अपने कपड़ों को ठीक कर बाहर आ गई। चेहरे के भाव अब भी सुगना के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते थे। वह बदहवास सी सोनू के सामान को सजाने में लग गई।

सोनू के जाने की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं। सुगना और लाली ने सोनू के लिए तरह-तरह के सूखे पकवान बनाए थे जिनका उपयोग वो आने वाले कई दिनों तक कर सकता था । हाल में सभी एकत्रित होकर गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। जहां लाली के चेहरे पर सुकून दिखाई दे रहा था वही सोनू और सुगना तनाव में थे। लाली को यह बात पता न थी की उस अद्भुत चूदाई के दौरान सोनू और सुगना की निगाहें मिल चुकी थीं। परंतु लाली यह बात भली-भांति जानती थी कि सुगना ने आज उन दोनों का मिलन अपनी नंगी आंखों से देख लिया है और वह इसीलिए असहज महसूस कर रही है।

वह बार-बार सुगना से सामान्य बातचीत कर उसे सहज करने का प्रयास करती पर सुगना चुप थी। नियति ने भाई बहन को और परेशान न किया और बाहर दरवाजे पर गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी।

"लगता गाड़ी आ गइल" सोनू ने बाहर झांकते हुए बोला..

सोनू अपने नए कार्यभार की ट्रेनिंग लेने के लिए घर से बाहर निकल रहा था। आज का दिन उसके दिलो-दिमाग में एक अजब सी कशमकश छोड़ गया था। घर की दहलीज से बाहर निकलने से पहले उसे यह भी याद ना रहा कि उसे सुगना के चरण भी छूने है। अपनी सर और लज्जा बस वह ऐसे ही बाहर निकल रहा था। लाली ने उसे याद दिलाया…

"अरे बाबू ऐसे ही चला जाएगा? अपना दीदी के पैर नहीं छुएगा ?"

सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ परंतु उसकी हिम्मत अभी भी न हो रही थी। फिर भी वह सुगना के चरण छूने के लिए झुक गया।

सुगना ने उसके सर को सहला कर आशीर्वाद दिया और अपने प्यारे भाई को कई दिनों के लिए बिछड़ते देख उसका पवित्र प्रेम फिर जाग उठा और उसने सोनू को गले से लगा लिया। इस दौरान सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी उसके आलिंगन में वही अपनापन वही प्यार था जो आज इस घटना से पहले हमेशा रहा करता था। परंतु सोनू असहज था।

सुगना ने अपनी आंखों में विदा होने का दर्द लिए रुंधे हुए गले से सोनू के गाल को सहलाते हुए कहा ..

"जा अपना ख्याल रखिह और बड़का कलेक्टर बन के आईह…" सुगना की आंखों से आंसू छलक आए . कुछ समय पहले जो सुगना सोनू को लेकर असहज हुई थी वह अचानक ही पूरी तरह सामान्य हो गई थी सोनू के प्रति उसका प्रेम प्रेम छोटे-मोटे झंझावातों को भूल कर एक बार फिर अपना प्रभुत्व जमा चुका था। सोनू भी अपनी बहन के प्यार में बह गया और उसने भी एक बार फिर उसे अपने से सटा लिया सोनू का यह अपनत्व पूर्ववत था..विचारों में आई धुंध एक पल में ही साफ होती प्रतीत हो रही थी।

सोनी ने भी सोनू के चरण छुए। सोनू ने उसे अच्छे से पढ़ाई करने की नसीहत दी तथा बाहर निकलने लगा।

सोनी ने याद दिलाया "अरे लाली दीदी के पैर ना लगबे का?"

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….



लवली जी आपके शब्दों के जाल मे हर बार कुछ अनोखा 👁️👁️ पढने को मिलता है।
👄 शानदार अपडेट
वाह 👍👍👍👏👏👏
 
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Lovely Anand

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लवली जी आपके शब्दों के जाल मे हर बार कुछ अनोखा 👁️👁️ पढने को मिलता है।
👄 शानदार अपडेट
वाह 👍👍👍👏👏👏
धन्यवाद.....
Aage badhaiye mahodaya
जरूर..आप भी बीच बीच में गायब हो जाते है...जुड़े रहे..
Khoobsurat story and shandaar update.
कहानी के पटल पर आपका स्वागत है। अपने विचार रखने के लिए धन्यवाद यूं ही जुड़े रहे
Writer sahab update aaj mil. Sakta h kya
अपडेट आज शाम तक आ जाएगा
 
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धन्यवाद.....

जरूर..आप भी बीच बीच में गायब हो जाते है...जुड़े रहे..

कहानी के पटल पर आपका स्वागत है। अपने विचार रखने के लिए धन्यवाद यूं ही जुड़े रहे

अपडेट आज शाम तक आ जाएगा
Tq
 
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भाग 75

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….

सोनू के जाने से सिर्फ लाली और सुगना ही दुखी न थी घर के सारे बच्चे भी दुखी थे। सोनी शायद सुगना के परिवार की एकमात्र सदस्य थी जो सबसे कम दुखी थी और अपने व्यावहारिक होने का परिचय दे रही। उसके दुख कमी का एक और कारण भी था वह थी आने वाले समय में उसकी आजादी और विकास से मिलने की खुली छूट वह भी बिना किसी डर और संशय के।

दरअसल सोनी अपने भाई सोनू से बहुत डरती थी उसे बार-बार यही डर सताता कि यदि सोनू भैया को यह बात मालूम चल गई कि वह विकास से प्यार की पींगे बढ़ा रही है और उसके साथ कामुक क्रियाकलाप कर रही है तो सोनू भैया उसे बहुत मारेंगे तथा उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देंगे। शायद यह सच भी होता जो सोनू स्वयं अपनी ही मुंह बोली बहन लाली को बेझिझक चोद रहा वह अपनी कुंवारी बहन को लेकर निश्चित ही संजीदा था। सोनी सोनू के जाने से इसीलिए सहज थी।

सोनू और सुगना जिस तरह एक दूसरे के आलिंगन में बिना किसी झिझक के आ जाते थे वैसा सोनी के साथ न था। सोनी सोनू के आलिंगन में कभी ना आती वह उसके चरण छूती परंतु उसे से सुरक्षित दूरी बना कर रहती। ऐसा न था कि सोनी के मन में कोई पाप था परंतु यह स्वाभाविक रूप से हो रहा था। जो पवित्रता और अपनापन सुगना और सोनू के बीच थी शायद सोनी अपने प्रति कम महसूस करती थी।

उधर रेलवे स्टेशन पर खड़ा सोनू का दोस्त विकास उसका इंतजार कर रहा था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए…ट्रेन आने में देर थी इधर उधर की बातें होने लगी तभी सोनू ने उससे पूछा…

"अरे तेरे एडमिशन का क्या हुआ?.

"दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगा" विकास में चहकते हुए जवाब दिया

"वाह बेटा तब तो तेरी बल्ले बल्ले हो जाएंगे यहां तेरी बनारस की बबुनी तो सती सावित्री बन रही थी वहां अंग्रेज लड़कियां ज्यादा नानुकुर नहीं करती खुल कर मजे लेना "

"नहीं यार मुझे तो बनारस की बबुनी ही चाहिए.. क्या गच्च माल है मैं उसको ही अपनी बीवी बनाऊंगा और फिर गचागच …."

विकास को अब तक नहीं पता था कि अपनी प्रेमिका के संग बिताए गए अंतरंग पलों को वह जिस तरह सोनू से साझा किया करता था उसकी प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की अपनी सगी बहन थी। सोनू भी नियति के इस खेल से अनजान अपनी ही बहन के बारे में बातें कर उत्तेजित होता और विकास को उसे अति शीघ्र चोदने के लिए प्रेरित करता। गजब विडंबना थी सोनू अपनी ही बहन को चोदने के लिए विकास को उकसा रहा था।

विकास भली-भांति यह बात जानता था की सोनू लाली के साथ संभोग सुख ले चुका है… वह उसे अपना गुरु मानता था। सोनू विकास की अधीरता समझ रहा था उसने कहा..

"यार कोई तरीका नहीं है उसे मनाने का कोई उपाय तो होगा" सोनू ने विकास को टटोलना चाहा..

"भाई वह शादी की शर्त लगाए बैठी है"

" तो शादी कर क्यों नहीं लेते? तू तो प्यार भी करता है उससे?"

"पागल है क्या मेरे घरवाले कभी नहीं मानेंगे"

"प्राचीन मंदिर में ले जाकर पंडित को 1000 दे वह तेरी शादी करा देगा और फिर बुला लेना अपने पास और कर लेना अपनी तमन्ना पूरी ।"

"क्या यह धोखा नहीं होगा?

नहीं यार जब दोनों ही इस पर राजी हो तो क्या दिक्कत है। जब विदेश से आना तो कर लेना शादी धूमधाम से "

विकास को यह बात समझ आ गई नियति ने सोनी की चूत की आग बुझाने का प्रबंध कर दिया था वह भी उसके अपने ही भाई के मार्गदर्शन में।

पटरियों पर आ रही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म पर कंपन पैदा कर दिए और खड़े सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया। सोनू भी अपने सामान के साथ अलर्ट हो गया विकास भी उसकी मदद करते हुए सोनू के डब्बे के साथ-साथ आगे बढ़ने लगा।

सोनू द्वारा बताई गई सलाह विकास के दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ट्रेन में बैठ चुका था और बनारस शहर को पीछे छूटता हुआ देख रहा था… इस बनारस शहर ने उसके जीवन में कई मोड़ लाए थे।

कॉलेज में आने के पश्चात अपने जीवन को संवारने को संवारने के लिए अकूत मेहनत की थी और उसका फल भी उसे बखूबी मिला था। बनारस शहर ने उसे और भी कुछ दिया था वह थी.. लाली एक अद्भुत प्यार करने वाली महिला जो संबंधों में तो सोनू की मुंहबोली बहन थी पर इस शब्द के मतलब नियति ने समय के साथ बदल दिए थे। प्यार का रूप परिवर्तित हो चुका था। सोनू भी तृप्त था और उसकी दीदी लाली भी।

परिपक्व महिला के कामुक प्रेम का आनंद अद्भुत होता है खासकर युवा मर्द के लिए..

पर आज शाम हुई अप्रत्याशित घटना ने सोनू को हिला दिया था। उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी सुगना दीदी उसे और लाली को संभोग करते देख रही थी। इस घटना ने उसे सुगना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया..था। क्या सुगना दीदी के जीवन में वीरानगी थी? क्या रतन जीजा के जाने के बाद सुगना दीदी अकेले हो गईं थीं? सुगना का मासूम चेहरा सोनू की निगाहों में घूम रहा था।

कैसे सुगना उसका बचपन में ख्याल रखती थी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा उसके सारे कष्टों और गलतियों को अपने सर पर ले लेती। उसे आज भी वह दिन याद है जब वह सुगना के साथ-साथ उसके गवना के दिन उसके ससुराल आया था। उस समय उसे शादी विवाह और गवना का अर्थ नहीं पता था।

सुगना की सुहागरात की अगली सुबह जब वह सुहागरात और उसके अहमियत से अनजान मासूम सोनू सुगना से मिलने गया तो सुगना बेहद दुखी और उदास थी। वह बार-बार सुगना से पूछता रहा

"दीदी का भईल तू काहे उदास बाड़ू ? "

परंतु सुगना क्या जवाब देती… विवाह के उपरांत जिस समागम और अंतरंग पलों की तमन्ना हर विवाहिता में होती है वही आस लिए सुगना सुहाग की सेज पर रतन का इंतजार कर रही थी जिसे रतन ने चूर चूर कर दिया था और इस विवाह पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।

सोनू अपनी बहन के दर्द के करण को तो नहीं समझ पाया परंतु अपनी बड़ी बहन के चेहरे पर आए दुख ने उसे भी दुखी कर दिया था उसने अपनी मां पदमा को भी बताया परंतु उसे न कारण का पता था न निदान का।

जब सोनू को स्त्री पुरुष संबंधों का ज्ञान हुआ तब से उसे हमेशा इस बात का मलाल रहता था की उसके जीजा रतन उसकी बहन सुगना के साथ न थे।

उसे रतन का मुंबई में नौकरी करना कतई पसंद नहीं था। परंतु सोनू घर की परिस्थिति में दखल देने की स्थिति में नहीं था।

कुछ ही महीनों बाद सरयू सिंह और सुगना के बीच एक अनोखा संबंध बन गया और सुगना प्रसन्न रहने लगी। और सोनू अपनी बड़ी बहन की खुशियों में शरीक हो रतन को भूलने लगा। सोनू को वैसे भी रतन से कोई सरोकार न था रतन उसकी बड़ी बहन सुगना का पति था सुगना खुश थी तो सोनू भी खुश था।

टिकट टिकट करता हुआ काले कोट में एक व्यक्ति सोनू को उसकी यादों से बाहर खींच लाया…सोनू को बरबस ही राजेश जीजू की याद आ गई जो लाली का पति था और अपनी लाली को सोनू के हवाले कर न जाने किस दुनिया की सैर करने अकस्मात ही चला गया था।

सोनू को कभी-कभी लगता कि राजेश जीजू कैसे आदमी थे। वह उनकी मनोदशा से पूरी तरह अनजान था।अब न तो राजेश के बारे में लाली बात करना चाहती और ना सोनू। राजेश की बात कर जहां लाली एक तरफ दुखी होती वहीं सोनू असहज। राजेश ने लाली और सोनू को करीब लाने में जो भूमिका अदा की थी वह सोनू के आश्चर्य का कारण था और राजेश के व्यक्तित्व को और उलझा गया था।

सोनू ने अपनी टिकट दिखाई और अपनी बहन सुगना द्वारा दिए गए खाने को खाने लगा सुगना एक बार फिर उसके दिमाग में घूम रही थी।

इधर सोनू सुगना को याद कर रहा था उधर सुगना तकिया में अपना चेहरा छुपाए पेट के बल लेटी हुई सोच कर रही थी। क्यों आज उसने सोनू के कमरे में झांका? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे तो यह बात पता थी की लाली और सोनू अंतरंग होते हैं फिर क्यों नहीं वह वहां से हट गई? परंतु अब पछतावे का कोई मतलब न था। सुगना ने अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन होकर एक युवा प्रेमी युगल के संभोग को लालसा वश देखा था वह यह भूल चुकी थी कि उस रति क्रिया में लीन जोड़े में उसका अपना छोटा भाई था जिसे इस तरह नग्न और संभोगरत अवस्था में देखना सर्वथा अनुचित था।

सुगना कुछ देर यूं ही जागती रही और फिर ऊपर वाले से क्षमा मांग कर सोने का प्रयास करने लगी।

अगली सुबह लाली और सुगना दोनों के घर में अजब सा सन्नाटा था घर का एक मुख्य सदस्य सोनू जा चुका था। सोनू को लखनऊ भेजने की तैयारियों में लाली और सुगना दोनों का घर अस्त-व्यस्त हो गया कई सारे सामान निकाले गए थे इसी क्रम में कुछ अवांछित वस्तुएं भी बाहर आ गई थी जो अब तक किसी कोने में पड़ी धूल चाट रही थीं।

सबसे प्रमुख लाली के पति राजेश द्वारा एकत्रित की गई कामुक किताबें। दरअसल कल सोनू ने अलमारी के ऊपर से सामान निकालते समय उन किताबों को भी निकाल दिया था और रखना भूल गया था।

सुगना लाली के कमरे में आई और नीचे पड़ी पतली जिल्द लगी किताबों को देखकर अपना कौतूहल न रोक पाई उसने उसमें से एक किताब उठा ली और लाली से कहा…

"अरे बच्चा लोग के किताब नीचे काहे फेकले बाड़े?"

लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और बोली "ई लइकन के नाह…लइकन के माई बाबू के हा"

" के पढ़ेला ई कुल?"

"तोर जीजाजी पढ़त रहन…"

अब तक सुगना पन्ने पलट चुकी थी अंदर किताब में रतिक्रिया का सचित्र वर्णन था। सुगना की सांसे थम गई रतिक्रिया में लीन विदेशी युवक और युवतियों की रंगीन परंतु धुंधली तस्वीर ने सुगना की उत्सुकता और बढ़ा दी वह पन्ने पलटने लगी…

लाली ने सुगना की निगाहों में उत्सुकता और चेहरे पर कोतुहल भाप लिया उसने सुगना को एकांत देने की सोची और उससे बिना नजरे मिलाए हुए बोली

"ते बैठ हम चाय लेके आवा तानी"

सुगना ने उसे रोकने की कोशिश न कि वह सच एकांत चाहती थी सुगना बिस्तर पर बैठ गई और कुछ चित्र देखने के बाद किताब को पढ़ने की कोशिश करने लगी…

कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार थी…

रहीम अपनी आपा फातिमा की पुद्दी में अपना लंड डाले उसे गचागच चोद रहा था रहीम ने फातिमा के मुंह को अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था फातिमा की आंखों में आंसू थे और उसके दोनों पैर हवा में थे…..

फातिमा को इस अवस्था में लाने के लिए रहीम को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे….

जैसे-जैसे सुगना कहानी बढ़ती गई उसे कहानी में और भी मजा आने लगा स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण एक स्वाभाविक और कुदरती प्रक्रिया है… सुगना रहीम और फातिमा की प्रेम कहानी को दिलचस्पी लेकर पढ़ रही थी…जैसे-जैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी सुगना की जांघों के बीच बालों के झुरमुट में हलचल हो रही थी अंदर बंद मक्खन पसीज रहा था.. सुगना गर्म हो रही थी…

तभी लाली कमरे में चाय लेकर आ गई। उसे देखकर सुगना ने झटपट किताब बंद कर दी और स्वयं को व्यवस्थित करते हुए उसने उत्सुकता बस लाली से पूछा….

"आपा केकरा के कहल जाला"

"बड़ बहिन के"

"हट पागल ऐसा ना हो ला"

"सच कहतानी आपा मियां लोग में बड़ बहन के कहल जाला" ई किताब रहीम और फातिमा वाली त ना ह"

"हे भगवान… फातिमा रहीम के बड़ बहिन रहे…"

सुगना को अपने कानों पर विश्वास ना हुआ….

"इतना गंदा किताब के ले आई रहे?"

"तू अपना जीजा जी के ना जानत रहो उनकर ई कुल में ढेर मन लागत रहे और ई सब गंदा पढ़ा पढ़ा के हमारो मन फेर देले आगे ते जानते बाड़े …"

सुगना को यकीन नहीं हो रहा अब तक उसने जितनी कहानी पढ़ी थी वह घटनाएं भाई और बहन के बीच होती जरूर थी पर उनकी परिणीति को जिस रूप में इस कहानी में दिखाया गया था भाई-बहन के बीच होना असम्भव था…

किताब की भाषा बेहद अश्लील और गंदी थी जिस सुगना में आज तक अपने मुंह से चोदने चुदवाने की बात न की थी वह अपनी आंखों से वह शब्द पढ़कर एक अजीब किस्म की बेचैनी महसूस कर रही थी। चाय खत्म होते ही वह उठकर जाने लगी अनमने मन से किताबों को बंद कर उसी जगह पर रखने लगी।

तभी लाली ने कहा

"ले लेजो अपना भीरी आधा दूर के बाद कहानी पढ़ना में ढेर मजा आई …ओसाहों कहानी बीच में ना छोड़े के आदमी रास्ता भुला जाला… "

"ना ना हमरा नईखे पढ़ने के ई कुल"

"ठीक बा ले ले जो मन करे तब पढ़िहे ना ता फेंक दिहे… हमरा खातिर अब एकर कौनो मतलब नइखे.".

"सुगना ने किताब को वापस अपने हाथों में ले लिया.. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी ..उसने लाली से नजर ना मिलाई और गर्दन झुकाए हुए कमरे से बाहर निकल गई…. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था और चूचियां सख्त हो रही थी. ऐसा नहीं कि वह सोनू के बारे में सोच रही थी परंतु उसके लिए यह कहानी अविश्वसनीय और अद्भुत थी।

उधर विकास सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। वह सोनी के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़प रहा था। उस दिन ट्यूबवेल पर उसका यह सपना पूरा होते-होते रह गया था। क्या विवाह संभोग की अनिवार्य शर्त है? क्या प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण का कोई स्थान नहीं?

विकास मन ही मन यह फैसला कर चुका था कि वह सोनी से विवाह करेगा परंतु वह यह कार्य अपने पैरों पर खड़ा होने के बात करना चाहता था। परंतु शरीर की भूख उसे अधीर कर रही थी वह सोनी के कामुक बदन को भोगने के लिए तड़प रहा था।

उसे सोनू की बात पसंद आ गई आखिर हर विवाह के साक्षी भगवान ही होते हैं…. तो क्यों ना वह सोनू की बात मानकर सोनी से मंदिर में शादी कर ले.

ऐसा ना था की प्यार में सिर्फ विकास ही पागल था सोनी भी अपनी छोटी सी चूत में धधकती आग लिए पिचकारी की तलाश कर रही थी जो अपने श्वेत धवल वीर्य से उसकी बुर की आग शांत कर पाता। सोनी अपनी सहेलियों से कामवासना के साहित्य में पीएचडी कर चुकी थी बस प्रैक्टिकल करना बाकी था। विकास का लंड उसे बेहद पसंद आता था जिसका आकार उसे अपने छोटी सी बुर के अनुरूप लगता…।

कुछ ही दिनों में विकास के विदेश जाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। अमेरिका जाने की खबर विकास के लिए ढेरों खुशियां लाई थी परंतु सोनी से बिछड़ने का दर्द उसे सताने लगा।

सोनी तक जब यह खबर पहुंची वह फफक फफक कर रोने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अपने को खोने जा रही है। दोनों प्रेमी एक दूसरे के आलिंगन में अपनी आंखों में आंसू लिए आने वाले समय के बारे में सोच रहे थे।

सोनी और विकास ने पिछले 2 वर्षों में ढेरों आनंद उठाए थे विकास सोनी को चोद तो नहीं पाया था परंतु सोनी के अंग प्रत्यंग से वह भलीभांति परिचित हो चुका था। ऐसा लग रहा था जिस इमारत का निर्माण उसने स्वयं अपने हाथों से किया था उसका वह कोना-कोना देख चुका था सिर्फ ग्रह प्रवेश बाकी रह गया था। सोनी भी तड़प रही थी और अपनी अधीरता को जाहिर करते हुए बोली..

"अब तो हम लोगों की शादी 1 वर्ष बाद ही होगी तुम आ तो जाओगे ना"

"मेरी जान यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं वहां जाता ही नहीं.. रही बात शादी की तो वह हम अब भी कर सकते हैं . घरवाले अभी तो नहीं मानेंगे पर हम दोनों के इष्ट देव इस बात के गवाह रहेंगे"

विकास के मन में सोनू द्वारा की गई बातें घूम रही थी। उसने सोनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे कहा .

"क्यों ना हम प्राचीन मंदिर में जाकर विवाह करलें कई जोड़े वहां विवाह करते हैं। मैं जाने से पहले तुम्हें सुहागन देखना चाहता हूं और वहां से आने के पश्चात हम दोनों धूमधाम से शादी कर लेंगे।"

सोनी विकास की बात सुनकर अवाक रह गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। विकास ने उसे एक बार फिर आलिंगन में भर लिया और बोला

"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी विवाह हमें करना ही है चाहे अभी या आने के बाद.. यह तुम्हारी इच्छा पर है."

सोनी कुछ कह पाने की स्थिति में न थी. विकास के जाने का दर्द उसे सता रहा था और उससे भी ज्यादा उसे खोने का डर सोनी के मन में आया निश्चित ही विवाह के उपरांत विकास विवाह की पवित्रता की लाज रखेगा और अमेरिका में जाकर व्यभिचार से दूर रहेगा.

सोनी ने अपनी मासूम बुद्धि से विचार मंथन किया और बोली

" पंडित जी वहां शादी करावे ले…बिना घर वालन के?"

सोनी के प्रश्न में विकास के प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ था सोनी ने अपनी रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से दे दी थी।

तुम सुबह-सुबह तैयार रहना मैं लेने आऊंगा बाकी मुझ पर छोड़ दो …

दोनों युवा प्रेमी चेहरे पर समर्पण का भाव लिए अलग हुए परंतु दोनों के मन में उथल-पुथल जारी थी जो कदम उठाने जा रहे थे वह बेहद नया और गंभीर था।

कुछ ही देर में सोनी विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने घर की तरफ निकल पड़ी और हमेशा की तरह घर से कुछ दूर पहले ही उतर कर विकास को विदा कर दिया। सोनी कभी भी यह नहीं चाहती थी कि विकास उसके परिवार वालों से मिले । वह वक्त आने पर उसे अपने परिवार से मिलाना चाहती थी.। उस बेचारी को क्या पता था कि जिस पुरुष को उसने पसंद किया है वह उसके बड़े भाई सोनू का लंगोटिया यार है और उससे हर बात साझा करता यहां तक की उसके अंग अंग प्रत्यंगो के विस्तृत विवरण से लेकर उसकी अब तक की कामयात्रा भी।

अगली सुबह विकास पूरे उत्साह और तैयारी के साथ आया तथा प्राचीन मंदिर में जाकर उसने सोनी से विवाह कर लिया। दिन का वक्त था .. जब विवाह दिन में हुआ था तो आगे की रस्में भी दिन में ही होनी थी…सोनी अपने इस अप्रत्याशित कदम से कभी दुखी होती पर विकास को अपने करीब पाकर खुश हो जाती। उसे इस आनन-फानन में हो रहे विवाह को लेकर एक अजब किस्म का डर था जो अब समय के साथ कम हो रहा था। फेरे खत्म होते होते सोनी सहज हो गई.

उस दौर में विवाह प्रेम की पराकाष्ठा थी और संभोग पूर्णाहुति…विकास और सोनी किराए की कार में बनारस के एक खूबसूरत होटल की तरह बढ़ चले.. विकास के कुछ दोस्तों ने सोनी के सुहागरात की जोरदार व्यवस्था कर दी थी……

नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…

शेष अगले भाग में..
 

Tarahb

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भाग 75

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…


शेष अगले भाग में….

सोनू के जाने से सिर्फ लाली और सुगना ही दुखी न थी घर के सारे बच्चे भी दुखी थे। सोनी शायद सुगना के परिवार की एकमात्र सदस्य थी जो सबसे कम दुखी थी और अपने व्यावहारिक होने का परिचय दे रही। उसके दुख कमी का एक और कारण भी था वह थी आने वाले समय में उसकी आजादी और विकास से मिलने की खुली छूट वह भी बिना किसी डर और संशय के।

दरअसल सोनी अपने भाई सोनू से बहुत डरती थी उसे बार-बार यही डर सताता कि यदि सोनू भैया को यह बात मालूम चल गई कि वह विकास से प्यार की पींगे बढ़ा रही है और उसके साथ कामुक क्रियाकलाप कर रही है तो सोनू भैया उसे बहुत मारेंगे तथा उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देंगे। शायद यह सच भी होता जो सोनू स्वयं अपनी ही मुंह बोली बहन लाली को बेझिझक चोद रहा वह अपनी कुंवारी बहन को लेकर निश्चित ही संजीदा था। सोनी सोनू के जाने से इसीलिए सहज थी।

सोनू और सुगना जिस तरह एक दूसरे के आलिंगन में बिना किसी झिझक के आ जाते थे वैसा सोनी के साथ न था। सोनी सोनू के आलिंगन में कभी ना आती वह उसके चरण छूती परंतु उसे से सुरक्षित दूरी बना कर रहती। ऐसा न था कि सोनी के मन में कोई पाप था परंतु यह स्वाभाविक रूप से हो रहा था। जो पवित्रता और अपनापन सुगना और सोनू के बीच थी शायद सोनी अपने प्रति कम महसूस करती थी।

उधर रेलवे स्टेशन पर खड़ा सोनू का दोस्त विकास उसका इंतजार कर रहा था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए…ट्रेन आने में देर थी इधर उधर की बातें होने लगी तभी सोनू ने उससे पूछा…

"अरे तेरे एडमिशन का क्या हुआ?.

"दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगा" विकास में चहकते हुए जवाब दिया

"वाह बेटा तब तो तेरी बल्ले बल्ले हो जाएंगे यहां तेरी बनारस की बबुनी तो सती सावित्री बन रही थी वहां अंग्रेज लड़कियां ज्यादा नानुकुर नहीं करती खुल कर मजे लेना "

"नहीं यार मुझे तो बनारस की बबुनी ही चाहिए.. क्या गच्च माल है मैं उसको ही अपनी बीवी बनाऊंगा और फिर गचागच …."


विकास को अब तक नहीं पता था कि अपनी प्रेमिका के संग बिताए गए अंतरंग पलों को वह जिस तरह सोनू से साझा किया करता था उसकी प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की अपनी सगी बहन थी। सोनू भी नियति के इस खेल से अनजान अपनी ही बहन के बारे में बातें कर उत्तेजित होता और विकास को उसे अति शीघ्र चोदने के लिए प्रेरित करता। गजब विडंबना थी सोनू अपनी ही बहन को चोदने के लिए विकास को उकसा रहा था।

विकास भली-भांति यह बात जानता था की सोनू लाली के साथ संभोग सुख ले चुका है… वह उसे अपना गुरु मानता था। सोनू विकास की अधीरता समझ रहा था उसने कहा..

"यार कोई तरीका नहीं है उसे मनाने का कोई उपाय तो होगा" सोनू ने विकास को टटोलना चाहा..

"भाई वह शादी की शर्त लगाए बैठी है"

" तो शादी कर क्यों नहीं लेते? तू तो प्यार भी करता है उससे?"

"पागल है क्या मेरे घरवाले कभी नहीं मानेंगे"

"प्राचीन मंदिर में ले जाकर पंडित को 1000 दे वह तेरी शादी करा देगा और फिर बुला लेना अपने पास और कर लेना अपनी तमन्ना पूरी ।"

"क्या यह धोखा नहीं होगा?

नहीं यार जब दोनों ही इस पर राजी हो तो क्या दिक्कत है। जब विदेश से आना तो कर लेना शादी धूमधाम से "

विकास को यह बात समझ आ गई नियति ने सोनी की चूत की आग बुझाने का प्रबंध कर दिया था वह भी उसके अपने ही भाई के मार्गदर्शन में।

पटरियों पर आ रही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म पर कंपन पैदा कर दिए और खड़े सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया। सोनू भी अपने सामान के साथ अलर्ट हो गया विकास भी उसकी मदद करते हुए सोनू के डब्बे के साथ-साथ आगे बढ़ने लगा।

सोनू द्वारा बताई गई सलाह विकास के दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ट्रेन में बैठ चुका था और बनारस शहर को पीछे छूटता हुआ देख रहा था… इस बनारस शहर ने उसके जीवन में कई मोड़ लाए थे।


कॉलेज में आने के पश्चात अपने जीवन को संवारने को संवारने के लिए अकूत मेहनत की थी और उसका फल भी उसे बखूबी मिला था। बनारस शहर ने उसे और भी कुछ दिया था वह थी.. लाली एक अद्भुत प्यार करने वाली महिला जो संबंधों में तो सोनू की मुंहबोली बहन थी पर इस शब्द के मतलब नियति ने समय के साथ बदल दिए थे। प्यार का रूप परिवर्तित हो चुका था। सोनू भी तृप्त था और उसकी दीदी लाली भी।

परिपक्व महिला के कामुक प्रेम का आनंद अद्भुत होता है खासकर युवा मर्द के लिए..

पर आज शाम हुई अप्रत्याशित घटना ने सोनू को हिला दिया था। उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी सुगना दीदी उसे और लाली को संभोग करते देख रही थी। इस घटना ने उसे सुगना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया..था। क्या सुगना दीदी के जीवन में वीरानगी थी? क्या रतन जीजा के जाने के बाद सुगना दीदी अकेले हो गईं थीं? सुगना का मासूम चेहरा सोनू की निगाहों में घूम रहा था।

कैसे सुगना उसका बचपन में ख्याल रखती थी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा उसके सारे कष्टों और गलतियों को अपने सर पर ले लेती। उसे आज भी वह दिन याद है जब वह सुगना के साथ-साथ उसके गवना के दिन उसके ससुराल आया था। उस समय उसे शादी विवाह और गवना का अर्थ नहीं पता था।

सुगना की सुहागरात की अगली सुबह जब वह सुहागरात और उसके अहमियत से अनजान मासूम सोनू सुगना से मिलने गया तो सुगना बेहद दुखी और उदास थी। वह बार-बार सुगना से पूछता रहा

"दीदी का भईल तू काहे उदास बाड़ू ? "

परंतु सुगना क्या जवाब देती… विवाह के उपरांत जिस समागम और अंतरंग पलों की तमन्ना हर विवाहिता में होती है वही आस लिए सुगना सुहाग की सेज पर रतन का इंतजार कर रही थी जिसे रतन ने चूर चूर कर दिया था और इस विवाह पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।

सोनू अपनी बहन के दर्द के करण को तो नहीं समझ पाया परंतु अपनी बड़ी बहन के चेहरे पर आए दुख ने उसे भी दुखी कर दिया था उसने अपनी मां पदमा को भी बताया परंतु उसे न कारण का पता था न निदान का।

जब सोनू को स्त्री पुरुष संबंधों का ज्ञान हुआ तब से उसे हमेशा इस बात का मलाल रहता था की उसके जीजा रतन उसकी बहन सुगना के साथ न थे।


उसे रतन का मुंबई में नौकरी करना कतई पसंद नहीं था। परंतु सोनू घर की परिस्थिति में दखल देने की स्थिति में नहीं था।

कुछ ही महीनों बाद सरयू सिंह और सुगना के बीच एक अनोखा संबंध बन गया और सुगना प्रसन्न रहने लगी। और सोनू अपनी बड़ी बहन की खुशियों में शरीक हो रतन को भूलने लगा। सोनू को वैसे भी रतन से कोई सरोकार न था रतन उसकी बड़ी बहन सुगना का पति था सुगना खुश थी तो सोनू भी खुश था।

टिकट टिकट करता हुआ काले कोट में एक व्यक्ति सोनू को उसकी यादों से बाहर खींच लाया…सोनू को बरबस ही राजेश जीजू की याद आ गई जो लाली का पति था और अपनी लाली को सोनू के हवाले कर न जाने किस दुनिया की सैर करने अकस्मात ही चला गया था।


सोनू को कभी-कभी लगता कि राजेश जीजू कैसे आदमी थे। वह उनकी मनोदशा से पूरी तरह अनजान था।अब न तो राजेश के बारे में लाली बात करना चाहती और ना सोनू। राजेश की बात कर जहां लाली एक तरफ दुखी होती वहीं सोनू असहज। राजेश ने लाली और सोनू को करीब लाने में जो भूमिका अदा की थी वह सोनू के आश्चर्य का कारण था और राजेश के व्यक्तित्व को और उलझा गया था।

सोनू ने अपनी टिकट दिखाई और अपनी बहन सुगना द्वारा दिए गए खाने को खाने लगा सुगना एक बार फिर उसके दिमाग में घूम रही थी।

इधर सोनू सुगना को याद कर रहा था उधर सुगना तकिया में अपना चेहरा छुपाए पेट के बल लेटी हुई सोच कर रही थी। क्यों आज उसने सोनू के कमरे में झांका? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे तो यह बात पता थी की लाली और सोनू अंतरंग होते हैं फिर क्यों नहीं वह वहां से हट गई? परंतु अब पछतावे का कोई मतलब न था। सुगना ने अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन होकर एक युवा प्रेमी युगल के संभोग को लालसा वश देखा था वह यह भूल चुकी थी कि उस रति क्रिया में लीन जोड़े में उसका अपना छोटा भाई था जिसे इस तरह नग्न और संभोगरत अवस्था में देखना सर्वथा अनुचित था।

सुगना कुछ देर यूं ही जागती रही और फिर ऊपर वाले से क्षमा मांग कर सोने का प्रयास करने लगी।

अगली सुबह लाली और सुगना दोनों के घर में अजब सा सन्नाटा था घर का एक मुख्य सदस्य सोनू जा चुका था। सोनू को लखनऊ भेजने की तैयारियों में लाली और सुगना दोनों का घर अस्त-व्यस्त हो गया कई सारे सामान निकाले गए थे इसी क्रम में कुछ अवांछित वस्तुएं भी बाहर आ गई थी जो अब तक किसी कोने में पड़ी धूल चाट रही थीं।


सबसे प्रमुख लाली के पति राजेश द्वारा एकत्रित की गई कामुक किताबें। दरअसल कल सोनू ने अलमारी के ऊपर से सामान निकालते समय उन किताबों को भी निकाल दिया था और रखना भूल गया था।

सुगना लाली के कमरे में आई और नीचे पड़ी पतली जिल्द लगी किताबों को देखकर अपना कौतूहल न रोक पाई उसने उसमें से एक किताब उठा ली और लाली से कहा…

"अरे बच्चा लोग के किताब नीचे काहे फेकले बाड़े?"

लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और बोली "ई लइकन के नाह…लइकन के माई बाबू के हा"

" के पढ़ेला ई कुल?"

"तोर जीजाजी पढ़त रहन…"

अब तक सुगना पन्ने पलट चुकी थी अंदर किताब में रतिक्रिया का सचित्र वर्णन था। सुगना की सांसे थम गई रतिक्रिया में लीन विदेशी युवक और युवतियों की रंगीन परंतु धुंधली तस्वीर ने सुगना की उत्सुकता और बढ़ा दी वह पन्ने पलटने लगी…

लाली ने सुगना की निगाहों में उत्सुकता और चेहरे पर कोतुहल भाप लिया उसने सुगना को एकांत देने की सोची और उससे बिना नजरे मिलाए हुए बोली

"ते बैठ हम चाय लेके आवा तानी"

सुगना ने उसे रोकने की कोशिश न कि वह सच एकांत चाहती थी सुगना बिस्तर पर बैठ गई और कुछ चित्र देखने के बाद किताब को पढ़ने की कोशिश करने लगी…

कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार थी…

रहीम अपनी आपा फातिमा की पुद्दी में अपना लंड डाले उसे गचागच चोद रहा था रहीम ने फातिमा के मुंह को अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था फातिमा की आंखों में आंसू थे और उसके दोनों पैर हवा में थे…..

फातिमा को इस अवस्था में लाने के लिए रहीम को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे….

जैसे-जैसे सुगना कहानी बढ़ती गई उसे कहानी में और भी मजा आने लगा स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण एक स्वाभाविक और कुदरती प्रक्रिया है… सुगना रहीम और फातिमा की प्रेम कहानी को दिलचस्पी लेकर पढ़ रही थी…जैसे-जैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी सुगना की जांघों के बीच बालों के झुरमुट में हलचल हो रही थी अंदर बंद मक्खन पसीज रहा था.. सुगना गर्म हो रही थी…

तभी लाली कमरे में चाय लेकर आ गई। उसे देखकर सुगना ने झटपट किताब बंद कर दी और स्वयं को व्यवस्थित करते हुए उसने उत्सुकता बस लाली से पूछा….

"आपा केकरा के कहल जाला"

"बड़ बहिन के"

"हट पागल ऐसा ना हो ला"

"सच कहतानी आपा मियां लोग में बड़ बहन के कहल जाला" ई किताब रहीम और फातिमा वाली त ना ह"

"हे भगवान… फातिमा रहीम के बड़ बहिन रहे…"

सुगना को अपने कानों पर विश्वास ना हुआ….

"इतना गंदा किताब के ले आई रहे?"


"तू अपना जीजा जी के ना जानत रहो उनकर ई कुल में ढेर मन लागत रहे और ई सब गंदा पढ़ा पढ़ा के हमारो मन फेर देले आगे ते जानते बाड़े …"

सुगना को यकीन नहीं हो रहा अब तक उसने जितनी कहानी पढ़ी थी वह घटनाएं भाई और बहन के बीच होती जरूर थी पर उनकी परिणीति को जिस रूप में इस कहानी में दिखाया गया था भाई-बहन के बीच होना असम्भव था…

किताब की भाषा बेहद अश्लील और गंदी थी जिस सुगना में आज तक अपने मुंह से चोदने चुदवाने की बात न की थी वह अपनी आंखों से वह शब्द पढ़कर एक अजीब किस्म की बेचैनी महसूस कर रही थी। चाय खत्म होते ही वह उठकर जाने लगी अनमने मन से किताबों को बंद कर उसी जगह पर रखने लगी।


तभी लाली ने कहा

"ले लेजो अपना भीरी आधा दूर के बाद कहानी पढ़ना में ढेर मजा आई …ओसाहों कहानी बीच में ना छोड़े के आदमी रास्ता भुला जाला… "

"ना ना हमरा नईखे पढ़ने के ई कुल"

"ठीक बा ले ले जो मन करे तब पढ़िहे ना ता फेंक दिहे… हमरा खातिर अब एकर कौनो मतलब नइखे.".

"सुगना ने किताब को वापस अपने हाथों में ले लिया.. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी ..उसने लाली से नजर ना मिलाई और गर्दन झुकाए हुए कमरे से बाहर निकल गई…. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था और चूचियां सख्त हो रही थी. ऐसा नहीं कि वह सोनू के बारे में सोच रही थी परंतु उसके लिए यह कहानी अविश्वसनीय और अद्भुत थी।

उधर विकास सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। वह सोनी के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़प रहा था। उस दिन ट्यूबवेल पर उसका यह सपना पूरा होते-होते रह गया था। क्या विवाह संभोग की अनिवार्य शर्त है? क्या प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण का कोई स्थान नहीं?


विकास मन ही मन यह फैसला कर चुका था कि वह सोनी से विवाह करेगा परंतु वह यह कार्य अपने पैरों पर खड़ा होने के बात करना चाहता था। परंतु शरीर की भूख उसे अधीर कर रही थी वह सोनी के कामुक बदन को भोगने के लिए तड़प रहा था।

उसे सोनू की बात पसंद आ गई आखिर हर विवाह के साक्षी भगवान ही होते हैं…. तो क्यों ना वह सोनू की बात मानकर सोनी से मंदिर में शादी कर ले.

ऐसा ना था की प्यार में सिर्फ विकास ही पागल था सोनी भी अपनी छोटी सी चूत में धधकती आग लिए पिचकारी की तलाश कर रही थी जो अपने श्वेत धवल वीर्य से उसकी बुर की आग शांत कर पाता। सोनी अपनी सहेलियों से कामवासना के साहित्य में पीएचडी कर चुकी थी बस प्रैक्टिकल करना बाकी था। विकास का लंड उसे बेहद पसंद आता था जिसका आकार उसे अपने छोटी सी बुर के अनुरूप लगता…।

कुछ ही दिनों में विकास के विदेश जाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। अमेरिका जाने की खबर विकास के लिए ढेरों खुशियां लाई थी परंतु सोनी से बिछड़ने का दर्द उसे सताने लगा।

सोनी तक जब यह खबर पहुंची वह फफक फफक कर रोने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अपने को खोने जा रही है। दोनों प्रेमी एक दूसरे के आलिंगन में अपनी आंखों में आंसू लिए आने वाले समय के बारे में सोच रहे थे।


सोनी और विकास ने पिछले 2 वर्षों में ढेरों आनंद उठाए थे विकास सोनी को चोद तो नहीं पाया था परंतु सोनी के अंग प्रत्यंग से वह भलीभांति परिचित हो चुका था। ऐसा लग रहा था जिस इमारत का निर्माण उसने स्वयं अपने हाथों से किया था उसका वह कोना-कोना देख चुका था सिर्फ ग्रह प्रवेश बाकी रह गया था। सोनी भी तड़प रही थी और अपनी अधीरता को जाहिर करते हुए बोली..

"अब तो हम लोगों की शादी 1 वर्ष बाद ही होगी तुम आ तो जाओगे ना"

"मेरी जान यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं वहां जाता ही नहीं.. रही बात शादी की तो वह हम अब भी कर सकते हैं . घरवाले अभी तो नहीं मानेंगे पर हम दोनों के इष्ट देव इस बात के गवाह रहेंगे"


विकास के मन में सोनू द्वारा की गई बातें घूम रही थी। उसने सोनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे कहा .

"क्यों ना हम प्राचीन मंदिर में जाकर विवाह करलें कई जोड़े वहां विवाह करते हैं। मैं जाने से पहले तुम्हें सुहागन देखना चाहता हूं और वहां से आने के पश्चात हम दोनों धूमधाम से शादी कर लेंगे।"

सोनी विकास की बात सुनकर अवाक रह गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। विकास ने उसे एक बार फिर आलिंगन में भर लिया और बोला

"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी विवाह हमें करना ही है चाहे अभी या आने के बाद.. यह तुम्हारी इच्छा पर है."

सोनी कुछ कह पाने की स्थिति में न थी. विकास के जाने का दर्द उसे सता रहा था और उससे भी ज्यादा उसे खोने का डर सोनी के मन में आया निश्चित ही विवाह के उपरांत विकास विवाह की पवित्रता की लाज रखेगा और अमेरिका में जाकर व्यभिचार से दूर रहेगा.

सोनी ने अपनी मासूम बुद्धि से विचार मंथन किया और बोली

" पंडित जी वहां शादी करावे ले…बिना घर वालन के?"

सोनी के प्रश्न में विकास के प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ था सोनी ने अपनी रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से दे दी थी।

तुम सुबह-सुबह तैयार रहना मैं लेने आऊंगा बाकी मुझ पर छोड़ दो …

दोनों युवा प्रेमी चेहरे पर समर्पण का भाव लिए अलग हुए परंतु दोनों के मन में उथल-पुथल जारी थी जो कदम उठाने जा रहे थे वह बेहद नया और गंभीर था।


कुछ ही देर में सोनी विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने घर की तरफ निकल पड़ी और हमेशा की तरह घर से कुछ दूर पहले ही उतर कर विकास को विदा कर दिया। सोनी कभी भी यह नहीं चाहती थी कि विकास उसके परिवार वालों से मिले । वह वक्त आने पर उसे अपने परिवार से मिलाना चाहती थी.। उस बेचारी को क्या पता था कि जिस पुरुष को उसने पसंद किया है वह उसके बड़े भाई सोनू का लंगोटिया यार है और उससे हर बात साझा करता यहां तक की उसके अंग अंग प्रत्यंगो के विस्तृत विवरण से लेकर उसकी अब तक की कामयात्रा भी।

अगली सुबह विकास पूरे उत्साह और तैयारी के साथ आया तथा प्राचीन मंदिर में जाकर उसने सोनी से विवाह कर लिया। दिन का वक्त था .. जब विवाह दिन में हुआ था तो आगे की रस्में भी दिन में ही होनी थी…सोनी अपने इस अप्रत्याशित कदम से कभी दुखी होती पर विकास को अपने करीब पाकर खुश हो जाती। उसे इस आनन-फानन में हो रहे विवाह को लेकर एक अजब किस्म का डर था जो अब समय के साथ कम हो रहा था। फेरे खत्म होते होते सोनी सहज हो गई.

उस दौर में विवाह प्रेम की पराकाष्ठा थी और संभोग पूर्णाहुति…विकास और सोनी किराए की कार में बनारस के एक खूबसूरत होटल की तरह बढ़ चले.. विकास के कुछ दोस्तों ने सोनी के सुहागरात की जोरदार व्यवस्था कर दी थी……

नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…


शेष अगले
गजब की रचना, लयबद्ध तरीके से पिरोया है कहानी को आपने, देखना होगा कि सुगना की दोनो बहने और सुगना खुद भी क्या अपने बेटे सूरज से इसी कमरे में एक साथ संभोग रत होती हैं या फिर दुबारा बनारस का मेला भरेगा वहां चुदाती है जिसमे मनोरमा की हुई थी।
 

Curiousbull

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भाग 75

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…


शेष अगले भाग में….

सोनू के जाने से सिर्फ लाली और सुगना ही दुखी न थी घर के सारे बच्चे भी दुखी थे। सोनी शायद सुगना के परिवार की एकमात्र सदस्य थी जो सबसे कम दुखी थी और अपने व्यावहारिक होने का परिचय दे रही। उसके दुख कमी का एक और कारण भी था वह थी आने वाले समय में उसकी आजादी और विकास से मिलने की खुली छूट वह भी बिना किसी डर और संशय के।

दरअसल सोनी अपने भाई सोनू से बहुत डरती थी उसे बार-बार यही डर सताता कि यदि सोनू भैया को यह बात मालूम चल गई कि वह विकास से प्यार की पींगे बढ़ा रही है और उसके साथ कामुक क्रियाकलाप कर रही है तो सोनू भैया उसे बहुत मारेंगे तथा उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देंगे। शायद यह सच भी होता जो सोनू स्वयं अपनी ही मुंह बोली बहन लाली को बेझिझक चोद रहा वह अपनी कुंवारी बहन को लेकर निश्चित ही संजीदा था। सोनी सोनू के जाने से इसीलिए सहज थी।

सोनू और सुगना जिस तरह एक दूसरे के आलिंगन में बिना किसी झिझक के आ जाते थे वैसा सोनी के साथ न था। सोनी सोनू के आलिंगन में कभी ना आती वह उसके चरण छूती परंतु उसे से सुरक्षित दूरी बना कर रहती। ऐसा न था कि सोनी के मन में कोई पाप था परंतु यह स्वाभाविक रूप से हो रहा था। जो पवित्रता और अपनापन सुगना और सोनू के बीच थी शायद सोनी अपने प्रति कम महसूस करती थी।

उधर रेलवे स्टेशन पर खड़ा सोनू का दोस्त विकास उसका इंतजार कर रहा था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए…ट्रेन आने में देर थी इधर उधर की बातें होने लगी तभी सोनू ने उससे पूछा…

"अरे तेरे एडमिशन का क्या हुआ?.

"दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगा" विकास में चहकते हुए जवाब दिया

"वाह बेटा तब तो तेरी बल्ले बल्ले हो जाएंगे यहां तेरी बनारस की बबुनी तो सती सावित्री बन रही थी वहां अंग्रेज लड़कियां ज्यादा नानुकुर नहीं करती खुल कर मजे लेना "

"नहीं यार मुझे तो बनारस की बबुनी ही चाहिए.. क्या गच्च माल है मैं उसको ही अपनी बीवी बनाऊंगा और फिर गचागच …."


विकास को अब तक नहीं पता था कि अपनी प्रेमिका के संग बिताए गए अंतरंग पलों को वह जिस तरह सोनू से साझा किया करता था उसकी प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की अपनी सगी बहन थी। सोनू भी नियति के इस खेल से अनजान अपनी ही बहन के बारे में बातें कर उत्तेजित होता और विकास को उसे अति शीघ्र चोदने के लिए प्रेरित करता। गजब विडंबना थी सोनू अपनी ही बहन को चोदने के लिए विकास को उकसा रहा था।

विकास भली-भांति यह बात जानता था की सोनू लाली के साथ संभोग सुख ले चुका है… वह उसे अपना गुरु मानता था। सोनू विकास की अधीरता समझ रहा था उसने कहा..

"यार कोई तरीका नहीं है उसे मनाने का कोई उपाय तो होगा" सोनू ने विकास को टटोलना चाहा..

"भाई वह शादी की शर्त लगाए बैठी है"

" तो शादी कर क्यों नहीं लेते? तू तो प्यार भी करता है उससे?"

"पागल है क्या मेरे घरवाले कभी नहीं मानेंगे"

"प्राचीन मंदिर में ले जाकर पंडित को 1000 दे वह तेरी शादी करा देगा और फिर बुला लेना अपने पास और कर लेना अपनी तमन्ना पूरी ।"

"क्या यह धोखा नहीं होगा?

नहीं यार जब दोनों ही इस पर राजी हो तो क्या दिक्कत है। जब विदेश से आना तो कर लेना शादी धूमधाम से "

विकास को यह बात समझ आ गई नियति ने सोनी की चूत की आग बुझाने का प्रबंध कर दिया था वह भी उसके अपने ही भाई के मार्गदर्शन में।

पटरियों पर आ रही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म पर कंपन पैदा कर दिए और खड़े सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया। सोनू भी अपने सामान के साथ अलर्ट हो गया विकास भी उसकी मदद करते हुए सोनू के डब्बे के साथ-साथ आगे बढ़ने लगा।

सोनू द्वारा बताई गई सलाह विकास के दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ट्रेन में बैठ चुका था और बनारस शहर को पीछे छूटता हुआ देख रहा था… इस बनारस शहर ने उसके जीवन में कई मोड़ लाए थे।


कॉलेज में आने के पश्चात अपने जीवन को संवारने को संवारने के लिए अकूत मेहनत की थी और उसका फल भी उसे बखूबी मिला था। बनारस शहर ने उसे और भी कुछ दिया था वह थी.. लाली एक अद्भुत प्यार करने वाली महिला जो संबंधों में तो सोनू की मुंहबोली बहन थी पर इस शब्द के मतलब नियति ने समय के साथ बदल दिए थे। प्यार का रूप परिवर्तित हो चुका था। सोनू भी तृप्त था और उसकी दीदी लाली भी।

परिपक्व महिला के कामुक प्रेम का आनंद अद्भुत होता है खासकर युवा मर्द के लिए..

पर आज शाम हुई अप्रत्याशित घटना ने सोनू को हिला दिया था। उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी सुगना दीदी उसे और लाली को संभोग करते देख रही थी। इस घटना ने उसे सुगना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया..था। क्या सुगना दीदी के जीवन में वीरानगी थी? क्या रतन जीजा के जाने के बाद सुगना दीदी अकेले हो गईं थीं? सुगना का मासूम चेहरा सोनू की निगाहों में घूम रहा था।

कैसे सुगना उसका बचपन में ख्याल रखती थी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा उसके सारे कष्टों और गलतियों को अपने सर पर ले लेती। उसे आज भी वह दिन याद है जब वह सुगना के साथ-साथ उसके गवना के दिन उसके ससुराल आया था। उस समय उसे शादी विवाह और गवना का अर्थ नहीं पता था।

सुगना की सुहागरात की अगली सुबह जब वह सुहागरात और उसके अहमियत से अनजान मासूम सोनू सुगना से मिलने गया तो सुगना बेहद दुखी और उदास थी। वह बार-बार सुगना से पूछता रहा

"दीदी का भईल तू काहे उदास बाड़ू ? "

परंतु सुगना क्या जवाब देती… विवाह के उपरांत जिस समागम और अंतरंग पलों की तमन्ना हर विवाहिता में होती है वही आस लिए सुगना सुहाग की सेज पर रतन का इंतजार कर रही थी जिसे रतन ने चूर चूर कर दिया था और इस विवाह पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।

सोनू अपनी बहन के दर्द के करण को तो नहीं समझ पाया परंतु अपनी बड़ी बहन के चेहरे पर आए दुख ने उसे भी दुखी कर दिया था उसने अपनी मां पदमा को भी बताया परंतु उसे न कारण का पता था न निदान का।

जब सोनू को स्त्री पुरुष संबंधों का ज्ञान हुआ तब से उसे हमेशा इस बात का मलाल रहता था की उसके जीजा रतन उसकी बहन सुगना के साथ न थे।


उसे रतन का मुंबई में नौकरी करना कतई पसंद नहीं था। परंतु सोनू घर की परिस्थिति में दखल देने की स्थिति में नहीं था।

कुछ ही महीनों बाद सरयू सिंह और सुगना के बीच एक अनोखा संबंध बन गया और सुगना प्रसन्न रहने लगी। और सोनू अपनी बड़ी बहन की खुशियों में शरीक हो रतन को भूलने लगा। सोनू को वैसे भी रतन से कोई सरोकार न था रतन उसकी बड़ी बहन सुगना का पति था सुगना खुश थी तो सोनू भी खुश था।

टिकट टिकट करता हुआ काले कोट में एक व्यक्ति सोनू को उसकी यादों से बाहर खींच लाया…सोनू को बरबस ही राजेश जीजू की याद आ गई जो लाली का पति था और अपनी लाली को सोनू के हवाले कर न जाने किस दुनिया की सैर करने अकस्मात ही चला गया था।


सोनू को कभी-कभी लगता कि राजेश जीजू कैसे आदमी थे। वह उनकी मनोदशा से पूरी तरह अनजान था।अब न तो राजेश के बारे में लाली बात करना चाहती और ना सोनू। राजेश की बात कर जहां लाली एक तरफ दुखी होती वहीं सोनू असहज। राजेश ने लाली और सोनू को करीब लाने में जो भूमिका अदा की थी वह सोनू के आश्चर्य का कारण था और राजेश के व्यक्तित्व को और उलझा गया था।

सोनू ने अपनी टिकट दिखाई और अपनी बहन सुगना द्वारा दिए गए खाने को खाने लगा सुगना एक बार फिर उसके दिमाग में घूम रही थी।

इधर सोनू सुगना को याद कर रहा था उधर सुगना तकिया में अपना चेहरा छुपाए पेट के बल लेटी हुई सोच कर रही थी। क्यों आज उसने सोनू के कमरे में झांका? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे तो यह बात पता थी की लाली और सोनू अंतरंग होते हैं फिर क्यों नहीं वह वहां से हट गई? परंतु अब पछतावे का कोई मतलब न था। सुगना ने अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन होकर एक युवा प्रेमी युगल के संभोग को लालसा वश देखा था वह यह भूल चुकी थी कि उस रति क्रिया में लीन जोड़े में उसका अपना छोटा भाई था जिसे इस तरह नग्न और संभोगरत अवस्था में देखना सर्वथा अनुचित था।

सुगना कुछ देर यूं ही जागती रही और फिर ऊपर वाले से क्षमा मांग कर सोने का प्रयास करने लगी।

अगली सुबह लाली और सुगना दोनों के घर में अजब सा सन्नाटा था घर का एक मुख्य सदस्य सोनू जा चुका था। सोनू को लखनऊ भेजने की तैयारियों में लाली और सुगना दोनों का घर अस्त-व्यस्त हो गया कई सारे सामान निकाले गए थे इसी क्रम में कुछ अवांछित वस्तुएं भी बाहर आ गई थी जो अब तक किसी कोने में पड़ी धूल चाट रही थीं।


सबसे प्रमुख लाली के पति राजेश द्वारा एकत्रित की गई कामुक किताबें। दरअसल कल सोनू ने अलमारी के ऊपर से सामान निकालते समय उन किताबों को भी निकाल दिया था और रखना भूल गया था।

सुगना लाली के कमरे में आई और नीचे पड़ी पतली जिल्द लगी किताबों को देखकर अपना कौतूहल न रोक पाई उसने उसमें से एक किताब उठा ली और लाली से कहा…

"अरे बच्चा लोग के किताब नीचे काहे फेकले बाड़े?"

लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और बोली "ई लइकन के नाह…लइकन के माई बाबू के हा"

" के पढ़ेला ई कुल?"

"तोर जीजाजी पढ़त रहन…"

अब तक सुगना पन्ने पलट चुकी थी अंदर किताब में रतिक्रिया का सचित्र वर्णन था। सुगना की सांसे थम गई रतिक्रिया में लीन विदेशी युवक और युवतियों की रंगीन परंतु धुंधली तस्वीर ने सुगना की उत्सुकता और बढ़ा दी वह पन्ने पलटने लगी…

लाली ने सुगना की निगाहों में उत्सुकता और चेहरे पर कोतुहल भाप लिया उसने सुगना को एकांत देने की सोची और उससे बिना नजरे मिलाए हुए बोली

"ते बैठ हम चाय लेके आवा तानी"

सुगना ने उसे रोकने की कोशिश न कि वह सच एकांत चाहती थी सुगना बिस्तर पर बैठ गई और कुछ चित्र देखने के बाद किताब को पढ़ने की कोशिश करने लगी…

कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार थी…

रहीम अपनी आपा फातिमा की पुद्दी में अपना लंड डाले उसे गचागच चोद रहा था रहीम ने फातिमा के मुंह को अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था फातिमा की आंखों में आंसू थे और उसके दोनों पैर हवा में थे…..

फातिमा को इस अवस्था में लाने के लिए रहीम को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे….

जैसे-जैसे सुगना कहानी बढ़ती गई उसे कहानी में और भी मजा आने लगा स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण एक स्वाभाविक और कुदरती प्रक्रिया है… सुगना रहीम और फातिमा की प्रेम कहानी को दिलचस्पी लेकर पढ़ रही थी…जैसे-जैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी सुगना की जांघों के बीच बालों के झुरमुट में हलचल हो रही थी अंदर बंद मक्खन पसीज रहा था.. सुगना गर्म हो रही थी…

तभी लाली कमरे में चाय लेकर आ गई। उसे देखकर सुगना ने झटपट किताब बंद कर दी और स्वयं को व्यवस्थित करते हुए उसने उत्सुकता बस लाली से पूछा….

"आपा केकरा के कहल जाला"

"बड़ बहिन के"

"हट पागल ऐसा ना हो ला"

"सच कहतानी आपा मियां लोग में बड़ बहन के कहल जाला" ई किताब रहीम और फातिमा वाली त ना ह"

"हे भगवान… फातिमा रहीम के बड़ बहिन रहे…"

सुगना को अपने कानों पर विश्वास ना हुआ….

"इतना गंदा किताब के ले आई रहे?"


"तू अपना जीजा जी के ना जानत रहो उनकर ई कुल में ढेर मन लागत रहे और ई सब गंदा पढ़ा पढ़ा के हमारो मन फेर देले आगे ते जानते बाड़े …"

सुगना को यकीन नहीं हो रहा अब तक उसने जितनी कहानी पढ़ी थी वह घटनाएं भाई और बहन के बीच होती जरूर थी पर उनकी परिणीति को जिस रूप में इस कहानी में दिखाया गया था भाई-बहन के बीच होना असम्भव था…

किताब की भाषा बेहद अश्लील और गंदी थी जिस सुगना में आज तक अपने मुंह से चोदने चुदवाने की बात न की थी वह अपनी आंखों से वह शब्द पढ़कर एक अजीब किस्म की बेचैनी महसूस कर रही थी। चाय खत्म होते ही वह उठकर जाने लगी अनमने मन से किताबों को बंद कर उसी जगह पर रखने लगी।


तभी लाली ने कहा

"ले लेजो अपना भीरी आधा दूर के बाद कहानी पढ़ना में ढेर मजा आई …ओसाहों कहानी बीच में ना छोड़े के आदमी रास्ता भुला जाला… "

"ना ना हमरा नईखे पढ़ने के ई कुल"

"ठीक बा ले ले जो मन करे तब पढ़िहे ना ता फेंक दिहे… हमरा खातिर अब एकर कौनो मतलब नइखे.".

"सुगना ने किताब को वापस अपने हाथों में ले लिया.. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी ..उसने लाली से नजर ना मिलाई और गर्दन झुकाए हुए कमरे से बाहर निकल गई…. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था और चूचियां सख्त हो रही थी. ऐसा नहीं कि वह सोनू के बारे में सोच रही थी परंतु उसके लिए यह कहानी अविश्वसनीय और अद्भुत थी।

उधर विकास सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। वह सोनी के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़प रहा था। उस दिन ट्यूबवेल पर उसका यह सपना पूरा होते-होते रह गया था। क्या विवाह संभोग की अनिवार्य शर्त है? क्या प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण का कोई स्थान नहीं?


विकास मन ही मन यह फैसला कर चुका था कि वह सोनी से विवाह करेगा परंतु वह यह कार्य अपने पैरों पर खड़ा होने के बात करना चाहता था। परंतु शरीर की भूख उसे अधीर कर रही थी वह सोनी के कामुक बदन को भोगने के लिए तड़प रहा था।

उसे सोनू की बात पसंद आ गई आखिर हर विवाह के साक्षी भगवान ही होते हैं…. तो क्यों ना वह सोनू की बात मानकर सोनी से मंदिर में शादी कर ले.

ऐसा ना था की प्यार में सिर्फ विकास ही पागल था सोनी भी अपनी छोटी सी चूत में धधकती आग लिए पिचकारी की तलाश कर रही थी जो अपने श्वेत धवल वीर्य से उसकी बुर की आग शांत कर पाता। सोनी अपनी सहेलियों से कामवासना के साहित्य में पीएचडी कर चुकी थी बस प्रैक्टिकल करना बाकी था। विकास का लंड उसे बेहद पसंद आता था जिसका आकार उसे अपने छोटी सी बुर के अनुरूप लगता…।

कुछ ही दिनों में विकास के विदेश जाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। अमेरिका जाने की खबर विकास के लिए ढेरों खुशियां लाई थी परंतु सोनी से बिछड़ने का दर्द उसे सताने लगा।

सोनी तक जब यह खबर पहुंची वह फफक फफक कर रोने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अपने को खोने जा रही है। दोनों प्रेमी एक दूसरे के आलिंगन में अपनी आंखों में आंसू लिए आने वाले समय के बारे में सोच रहे थे।


सोनी और विकास ने पिछले 2 वर्षों में ढेरों आनंद उठाए थे विकास सोनी को चोद तो नहीं पाया था परंतु सोनी के अंग प्रत्यंग से वह भलीभांति परिचित हो चुका था। ऐसा लग रहा था जिस इमारत का निर्माण उसने स्वयं अपने हाथों से किया था उसका वह कोना-कोना देख चुका था सिर्फ ग्रह प्रवेश बाकी रह गया था। सोनी भी तड़प रही थी और अपनी अधीरता को जाहिर करते हुए बोली..

"अब तो हम लोगों की शादी 1 वर्ष बाद ही होगी तुम आ तो जाओगे ना"

"मेरी जान यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं वहां जाता ही नहीं.. रही बात शादी की तो वह हम अब भी कर सकते हैं . घरवाले अभी तो नहीं मानेंगे पर हम दोनों के इष्ट देव इस बात के गवाह रहेंगे"


विकास के मन में सोनू द्वारा की गई बातें घूम रही थी। उसने सोनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे कहा .

"क्यों ना हम प्राचीन मंदिर में जाकर विवाह करलें कई जोड़े वहां विवाह करते हैं। मैं जाने से पहले तुम्हें सुहागन देखना चाहता हूं और वहां से आने के पश्चात हम दोनों धूमधाम से शादी कर लेंगे।"

सोनी विकास की बात सुनकर अवाक रह गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। विकास ने उसे एक बार फिर आलिंगन में भर लिया और बोला

"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी विवाह हमें करना ही है चाहे अभी या आने के बाद.. यह तुम्हारी इच्छा पर है."

सोनी कुछ कह पाने की स्थिति में न थी. विकास के जाने का दर्द उसे सता रहा था और उससे भी ज्यादा उसे खोने का डर सोनी के मन में आया निश्चित ही विवाह के उपरांत विकास विवाह की पवित्रता की लाज रखेगा और अमेरिका में जाकर व्यभिचार से दूर रहेगा.

सोनी ने अपनी मासूम बुद्धि से विचार मंथन किया और बोली

" पंडित जी वहां शादी करावे ले…बिना घर वालन के?"

सोनी के प्रश्न में विकास के प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ था सोनी ने अपनी रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से दे दी थी।

तुम सुबह-सुबह तैयार रहना मैं लेने आऊंगा बाकी मुझ पर छोड़ दो …

दोनों युवा प्रेमी चेहरे पर समर्पण का भाव लिए अलग हुए परंतु दोनों के मन में उथल-पुथल जारी थी जो कदम उठाने जा रहे थे वह बेहद नया और गंभीर था।


कुछ ही देर में सोनी विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने घर की तरफ निकल पड़ी और हमेशा की तरह घर से कुछ दूर पहले ही उतर कर विकास को विदा कर दिया। सोनी कभी भी यह नहीं चाहती थी कि विकास उसके परिवार वालों से मिले । वह वक्त आने पर उसे अपने परिवार से मिलाना चाहती थी.। उस बेचारी को क्या पता था कि जिस पुरुष को उसने पसंद किया है वह उसके बड़े भाई सोनू का लंगोटिया यार है और उससे हर बात साझा करता यहां तक की उसके अंग अंग प्रत्यंगो के विस्तृत विवरण से लेकर उसकी अब तक की कामयात्रा भी।

अगली सुबह विकास पूरे उत्साह और तैयारी के साथ आया तथा प्राचीन मंदिर में जाकर उसने सोनी से विवाह कर लिया। दिन का वक्त था .. जब विवाह दिन में हुआ था तो आगे की रस्में भी दिन में ही होनी थी…सोनी अपने इस अप्रत्याशित कदम से कभी दुखी होती पर विकास को अपने करीब पाकर खुश हो जाती। उसे इस आनन-फानन में हो रहे विवाह को लेकर एक अजब किस्म का डर था जो अब समय के साथ कम हो रहा था। फेरे खत्म होते होते सोनी सहज हो गई.

उस दौर में विवाह प्रेम की पराकाष्ठा थी और संभोग पूर्णाहुति…विकास और सोनी किराए की कार में बनारस के एक खूबसूरत होटल की तरह बढ़ चले.. विकास के कुछ दोस्तों ने सोनी के सुहागरात की जोरदार व्यवस्था कर दी थी……

नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…


शेष अगले भाग में..
Awesome as always
 
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