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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Lovely Anand

Love is life
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बनारस महोत्सव का दूसरा दिन अपरान्ह 3:00 बजे…..


बनारस महोत्सव के निकट एक पांच सितारा होटल के बेहतरीन सजे धजे कमरे में एक नग्न युवती अपने घुटनों के बल बैठी हुई एक मोटे और थुलथुले व्यक्ति का छोटा सा लण्ड अपने मुंह में लेकर चूस रही थी वह व्यक्ति उसके सर को पकड़कर अपने लण्ड पर आगे पीछे कर रहा था।

युवती पूरी तरह रति क्रिया के लिए आतुर थी और पूरी लगन से उस कमजोर हथियार में जान भरने की कोशिश कर रही थी। पुरुष की आंखों में वासना नाच रही थी परंतु जितनी उत्तेजना उसके दिमाग में थे उतना उसके हथियार तक न पहुंच रही थी। अपने चेहरे पर कामुक हावभाव लिए वह उस सुंदर युवती के मुंह में अपना लण्ड आगे पीछे कर रहा था। कुछ देर बाद उसने उस युवती को उठाया और बिस्तर पर लेटने का इशारा युवती खुशी खुशी बिस्तर पर बिछ गई।

कामुक और सुडोल अंगों से सुसज्जित वह युवती प्रणय निवेदन के लिए अपनी जांघें फैलाए और अपने हाथों से उस व्यक्ति को संभोग के लिए आमंत्रित कर रही थी। सुंदर, सुडोल और कामवासना से भरी हुई युवती का यह आमंत्रण देख वह व्यक्ति उस पर टूट पड़ा।

उस मोटे व्यक्ति ने सुंदर युवती की जांघों के बीच आकर अपने लगभग तने हुए लण्ड को अंदर प्रवेश कराया और अपनी कुशलता और क्षमता के अनुसार धक्के लगाने लगा।

वह उसकी चुचियों को भी मीसने और चूसने का प्रयास करता रहा और वह युवती उसकी पीठ और कमर को सहला कर उसे उत्तेजितऔर प्रोत्साहित करती रही। धक्कों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी और उस युवती के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक उस व्यक्ति के धक्के गहरे होते गए परंतु उनके बीच का अंतराल कम हो गया वह स्खलित होते हुए बोल रहा था

"….मनोरमा मुझे माफ कर देना…"

मनोरमा के पति सेक्रेटरी साहब स्खलित हो चुके थे और मनोरमा बिस्तर पर आज फिर तड़पती छूट गई थी। कुछ देर यदि वह यूं ही अपने चर्म दंड को रगड़ पाने में सक्षम होते तो आज कई दिनों बाद मनोरमा को भी वह सुख प्राप्त हो गया होता। मनोरमा नाराज ना हुई परंतु उसकी बुर में बेजान पड़ा लण्ड अब फिसल कर बाहर आ रहा था और उसके द्वारा बुर के अंदर भरा पतला वीर्य भी उसी के साथ साथ बाहर आ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे "बरसात में सड़क पर चलने वाला जोक अपनी लार गिराते हुए चल रहा हो."

सेक्रेटरी साहब ने अपनी उंगलियों से मनोरमा की बुर को और उत्तेजित कर स्खलित कराने की कोशिश की परंतु मनोरमा ने मना कर दिया। उसका रिदम टूट चुका था और अब वह अपनी उत्तेजना लगभग खो चुकी थी। उसने स्त्री सुलभ व्यवहार को दर्शाते हुए कहा...

"कोई बात नहीं जी अभी तो बनारस महोत्सव में कई दिन है. फिर कभी"

मनोरमा को संभोग के उपरांत नहाने की आदत थी उसने स्नान किया और वापस सज धज कर एक एसडीएम की तरह वापस सेक्रेटरी साहब के सामने आ गई। घड़ी एक के बाद एक टन टन टन की पांच घंटियां बजाई मनोरमा बनारस महोत्सव में जाने के लिए तैयार थी उसका ड्राइवर ठीक 5:00 बजे गाड़ी लेकर उस होटल के नीचे आ जाता.. था। मनोरमा होटल के रिसेप्शन हॉल में जाने के लिए सीढ़ीयां उतरने लगी बनारस महोत्सव के आयोजन से संबंधित रोजाना होने वाली मीटिंग में उसे पहुंचना अनिवार्य था।

एक सुंदर और अतृप्त नवयौवना अपना दैहिक सुख छोड़कर कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल चुकी थी। परंतु नियति आज निष्ठुर न थी। वह सुंदर, सुशील तथा यौवन से भरी हुई मनोरमा की जागृत उत्तेजना को अपनी साजिश में शामिल करने का ताना-बाना बुनने लगी।


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उधर लाली अपने परिवार औरपरिवार के नए सदस्य सोनू को लेकर विद्यानंद जी के पंडाल में आ चुकी थी। जहां सरयू सिंह के परिवार के लगभग सभी सदस्य उपस्थित थे। सुगना भी सज धज कर अपनी दोनों बहनों सोनी और मोनी के साथ मेला घूमने को तैयार थी।

कजरी और सरयू सिंह विद्यानंद से मिलने को आतुर थे परंतु किसी न किसी वजह से उनकी मुलाकात टलती जा रही थी। परंतु आज दोनों ने उनसे मिलने का निश्चय कर लिया था। दोनों देवर भाभी मेला घूमने का मोह त्याग कर विद्यानंद से मिलने का उपाय तलाश रहे थे।

रात में कई बार चुदने की वजह से लाली की चाल में अंतर आ गया था। लाली खुद भी आश्चर्यचकित थी। उसे यह एहसास कई दिनों बाद हुआ था। फूली हुई बुर चलने पर अपनी संवेदना का एहसास करा रही थी और लाली की चाल स्वतः ही धीमे हो जा रही थी थी।

सुगना ने कहा..

"काहे धीरे धीरे चल रही हो?"

"सोनुवा से पूछ" लाली सुगना से अपने और सोनू के संबंधों के बारे में खुलकर बात करना चाह रही थी परंतु सीधी बात करने में उसकी स्त्री सुलभ लज्जा आड़े आ रही थी।

सोनू सोनी और मोनी के साथ आगे चल रहा था अपना नाम लाली की जुबान पर आते ही वह सतर्क हो गया और पीछे मुड़कर देखा पर सुगना ने कुछ ना कहा...

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"इसकी शादी जल्दी करनी पड़ेगी.."

लाली के बार-बार उकसाने से सुगना भी मूड में आ गई उसने लाली को छेड़ते हुए धीरे से बोला

"काहे तोहरा संगे फिर होली खेललस हा का"

सुगना ने होली के दिन सोनू को लाली की चूचियां पकड़े हुए देख लिया था और यह बात लाली भी बखूबी जानती थी लाली शर्मा गई और मुस्कुराते हुए बोली..

"बदमाश होली त छोड़ दिवाली भी मना ले ले बा"

"का कहतारे?" सुगना को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ उसे अभी भी सोनू एक किशोर के जैसा ही दिखाई पड़ता था यद्यपि उसकी कद काठी एक पूर्ण युवा की हो चुकी थी।

"जाके ओकरे से पूछ" लाली का चेहरा पूरी तरह शर्म से लाल था

"तूने ही उकसाया होगा.."

"मतलब?"

"मतलब.. मिठाई खुली छोड़ी होगी"

"अरे वाह मिठाई का ढक्कन खुला छूट गया तो कोई भी खा ले…" लाली ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा

"तूने जानबूझकर अपनी मिठाई खोलकर दिखाई होगी मेरा भाई सोनू ऐसा लगता तो नहीं है.."

" वाह मेरा भाई….तो क्या वह मेरा भाई नहीं है ?"

"जब भाई मान रही है तब मिठाई की बात क्यों कर रही है?" सुगना ने जैसे बेहद सटीक बात कह दी वह अपने इस हंसी ठिठोली में आए इस तार्किक बात से खुद की पीठ थपथपा रही थी।

"अरे वाह जब मेरा भाई मिठाई का भूखा हो तो उसको क्यों ना खिलाऊं कही इधर उधर की मिठाई खाया और पेट खराब हुआ तो…" लाली ने नहले पर दहला मार दिया।

"अच्छा जाने दे छोड़ चल वह झूला झूलते हैं…" सुगना ने प्रसंग बदलते हुए कहा... वह सोनू के बारे में ज्यादा अश्लील बातें करना नहीं चाह रही थी।

सुगना को यह विश्वास न था की लाली और सोनू ने प्रेम समागम पूर्ण कर लिया है। परंतु लाली के चंचल स्वभाव और बातों से वह इतना अवश्य जानती थी की लाली सोनू को अपने अंग प्रत्यंग दिखा कर उत्तेजित किया रहती थी और भाई-बहन के संबंधों की मर्यादा को तार तार करती थी।

झूले के पास पहुंचने पर झूले वाले ने बच्चों को झूले पर चढ़ाने से इनकार कर दिया। यह झूला लकड़ी की बड़ी-बड़ी बल्लियों से मिलकर बनाया गया था और बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम न होने की वजह से उस पर 10 वर्ष से कम के बच्चों को चढ़ने की रोक थी।

राजेश ने सामने की दुकान से दो बड़े-बड़े लॉलीपॉप लाया और बच्चों को देकर बोला

"बेटा तुम और रीमा सामने सर्कस का शो देख लो। सोनू मामा दिखा लाएंगे।" सोनू बगले झांकने लगा वह लाली से दूर नहीं होना चाहता था।

"साले साहब जाइए अपने मामा होने का हक अदा कीजिए और बच्चों को सर्कस दिखा लाइए तब तक मैं इन लोगों को झूला झूला देता हूं.."

सोनू ने राजेश की बात मान ली. वैसे भी इन दोनों बच्चों की मां ने उसके सारे सपने कल रात पूरे कर दिए थे और इन बच्चों ने भी पूरी रात भर गहरी नींद सो कर उनकी प्रेम कीड़ा में कोई विघ्न न पहुंचाया था।

सोनू के जाने के पश्चात झूले पर बैठने की बारी आ रही थी। सुगना और उसकी दोनों बहनों ने उनका पसंदीदा घाघरा चोली कहना हुआ था।

झूले पर कुल चार खटोले बंधे हुए थे एक खटोले पर दो व्यक्ति बैठ सकते थे। सुगना और सोनी एक साथ बैठे और लाली तथा मोनी एक साथ। राजेश में अपनी सधी हुई चाल चलते हुए सुगना के ठीक सामने वाला खटोला चुन लिया। परंतु उसका साथी न जाने कौन होता तभी सोनू का दोस्त विकास न जाने कहां से भागता हुआ आ गया और राजेश के बगल में बैठ गया।

एक पल के लिए राजेश को लगा जैसे उसने उस व्यक्ति को कहीं देखा है परंतु वह उसे पहचान नहीं पाया। चौथे खटोले पर एक अनजान युगल बैठा हुआ था। झूले वाले ने झूला घुमाना प्रारंभ कर दिया जैसे जैसे झूले की रफ्तार बढ़ती गई सुगना और सोनी दोनों के लहंगे हवा में उड़ने लगे। जब राजेश और विकास का खटोला ऊपर रहता उन दोनों की निगाहें सुगना और सोनी के गर्दन के नीचे टिकी रहती और चूँचियों के बीच गहराइयों में उतरने का प्रयास करतीं। सुगना और सोनी दोनों बहने अपनी चुचियों का उधार छुपा पाने में नाकाम थीं सुगना तो चाह कर भी अपनी मादक चुचियों को नहीं छुपा सकती थी परंतु आज सोनी ने भी अपनी छोटी चचियों को चोली में कसकर उनमें एक अद्भुत और मोहक उभार दे दिया था।

शाम के सुहाने मौसम और खिली हुई रोशनी में सुगना और सोनी के पैर चमकने लगे पैरों में बनी हुई पाजेब और पैरों में लगा हुआ आलता उनकी स्त्री सुलभ खूबसूरती को और उजागर कर रहा था। जैसे-जैसे झूला तेज होता गया ऊपर से नीचे आते वक्त उनका घाघरा और ऊपर उठता गया। सोनी के सुंदर घुटने पर लगी चोट देख कर विकास आहत हो गया। सोनी की खूबसूरत जांघों से उसकी नजर हटकर एक पल के लिए घुटनों पर केंद्रित हो गई थी। चोट का जिम्मेदार कहीं ना कहीं विकास खुद को मान रहा था।

उधर सुगना की मदमस्त और गोरी जाघे राजेश की उत्तेजना नया आयाम दे रही थी। कितनी सुंदर थी सुगना और कितने सुंदर थे उसके खजाने। आज कई दिनों बाद सुगना के नग्न पैरों को देख राजेश का लण्ड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसकी नजरें सुगना के कोमल और खूबसूरत पैरों पर रेंगने लगी धीरे धीरे वह अपने ख्यालों में सुगना की जांघों को नग्न करता गया और उसकी जांघों के बीच छुपे स्वर्गद्वार की कल्पना करता गया।

राजेश जिस एकाग्रता से सुगना की जांघों के बीच अपना ध्यान लगाया हुआ उस एकाग्रता को पाने के लिए न जाने कितने तपस्वी कितने दिनों तक ध्यान लगाया करते होंगे।

राजेश की कामुक नजरों का यह खेल ज्यादा देर तक न चल पाया और झूला शांत होने लगा। राजेश की उत्तेजना पर भी ग्रहण लग गया।

नई सवारियां झूले पर बैठने को तैयार हो रही थीं। खूबसूरत रंग-बिरंगे कपड़ों में लड़के और लड़कियां युवक और युवतियां अपने मन में तरह-तरह के भाव और संवेदनाएं लिए झूले पर अपने जीवन की खुशियां ढूंढने कतार में इंतजार कर रहे थे। झूला रुकते ही विकास और राजेश ने अपनी भावनाओं को काबू में किया तथा तने हुए लण्ड को अपने पेट की तरफ इशारा कर उसे फूलने पिचकने का मौका दिया.

झूला परिसर से बाहर आते समय सोनी और विकास थोड़ा पीछे रह गए यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी दोनों ही एक दूसरे से मिलने को आतुर थे। विकास ने सोनी से कहा..

"आपके घुटने पर तो ज्यादा चोट लगी है मुझे माफ कर दीजिएगा"

सोनी शर्मा गई परंतु वह मन ही मन बेहद प्रसन्न थी। उसके सपनों का राजकुमार मैं आज पहली बार खुद पास आकर उससे बात की थी। सोनी को इस बात का आभास न था उसने अनजाने में ही अपने प्रेमी को अपने खूबसूरत अंगों की एक झलक दिखा दी थी।

सोनी को चुप देखकर विकास ने कहां

"अपना नाम तो बता दीजिए"

"मिलते रहिये नाम भी मालूम चल जाएगा" सोनी ने अपने कदम तेज किये। वह अपने परिवार से थोड़ा दूर हो गई थी इससे पहले कि कोई देख पाता वह परिवार में शामिल हो जाना चाह रही थी।

तभी विकास के दोस्त भोलू ने आवाज दी

"साले मुझे मौत का कुआं की टिकट लेने भेज कर तू यहां झूला झूल रहा है. चल जल्दी अगला शो शुरू होने वाला है"

विकास अब से कुछ मिनट पहले जिस दृश्य को देख रहा था उसमें जीवन का रस छुपा था। काश कुछ देर झूला यूं ही घूमता रहता तो विकास अपनी युवा नायिका की जांघों के दर्शन कुछ देर और कर पाता।

विकास ने सोनी के नग्न पैरों को देखकर उसकी जांघों के जोड़ पर बैठी उसकी सोन चिरैया की कल्पना कर ली थी। वह सोनी के बारे में ढेर सारी बातें करना चाहता था उसका प्रिय मित्र सोनू अपनी लाली दीदी के यहां जाकर बैठ गया था। आज विकास में सोच लिया कि वह जाकर सोनू से जरूर मिलेगा। विकास को क्या पता था कि उसका दोस्त सोनू कुछ ही दूर पर ध्यान सर्कश के जोकर पर आँखे टिकाये सर्कस खत्म होने का इंतजार कर रहा था।

कुछ देर बाद सोनू बच्चों को सर्कस दिखा कर वापस आ गया और पूरा परिवार एक बार फिर मेले में आगे बढ़ने लगा।

रास्ते में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की बड़ी-बड़ी होर्डिंस लगी हुई थीं। (उस समय बनारस शहर का विकास तेजी से हो रहा था। गंगा नदी के किनारे कई सारे हाउसिंग प्रोजेक्ट चालू हो गए थे।)

होर्डिंग पर बने हुए खूबसूरत घर, सड़कें और न जाने क्या-क्या बरबस ही ग्रामीण युवतियों का ध्यान खींच लेते हैं अपनी आभाव भरी जिंदगी से हटकर उन खूबसूरत दृश्यों को देखकर ही उनका मन भाव विभोर हो उठता है। होर्डिंस में दिखाए गए घर उन्हें स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होते। सुगना और लाली भी इन से अछूती न थीं। लाली का पति तो फिर भी आगे पीछे कर कुछ पैसा कमा लेता था परंतु सुगना वह तो परित्यक्ता की भांति अपना जीवन बिता रही थी। यह तो शुक्र है सरयू सिंह का जिन्होंने सुगना और कजरी की आर्थिक स्थिति को संभाले रखा था और सुगना को कभी भी उसका एहसास नहीं होने दिया था तथा एक मुखिया के रूप में सुगना की हर इच्छा पूरी की थी परंतु इस घर को खरीद पाना उनकी हैसियत में न था।

सुगना और लाली दोनों टकटकी लगाकर उन खूबसूरत मकानों को देखे जा रही थी और उन मकानों के सामने सजे धजे कपड़ों में खुद को अपनी कल्पनाओं में देख मन ही मन खुश हो रही थीं

सोनी ने कहा.

"सुगना दीदी चल आगे, ई सब हमनी खातिर ना ह"

सुगना और लाली ने सोनी की बात को सुना जरूर पर जैसे उनके पैर जमीन से चिपक गए थे और आंखें होर्डिंग पर।

उस हाउसिंग प्रोजेक्ट के बुकिंग काउंटर के ठीक बगल में एक लॉटरी काउंटर था। जिनके पास पैसे थे वह हाउसिंग प्रोजेक्ट के काउंटर पर जाकर प्रोजेक्ट से संबंधित पूछताछ कर रहे थे और जिनकी हैसियत न थी परंतु उम्मीदें और आकांक्षाएं भरपूर थी वह अपना भाग्य आजमाने के लिए लाटरी की दुकान में खड़े थे।

अपनी पत्नी लाली और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को उन घरों की तरफ देखते हुए राजेश का मन मचल गया था काश कि वह टाटा बिरला जैसा कोई धनाढ्य व्यापारी होता अपनी खूबसूरत सुगना को निश्चित ही वह घर उपहार स्वरूप दे देता। अपने मनोभावों को ध्यान में रखते हुए राजेश ने लाटरी की टिकट खरीद ली दो टिकट अपने बच्चों के नाम और एक टिकट सूरज के नाम। उसे अपने भाग्य पर भरोसा न था परंतु बच्चों के भाग्य को लेकर वह हमेशा से आशान्वित था।

लॉटरी का ड्रा बनारस महोत्सव के समाप्ति के 1 दिन पूर्व होना था। राजेश खुशी-खुशी सुगना और लाली के पास गया और सुगना की गोद में खेल रहे सूरज को वह टिकट पकड़ाते हुए बोला...

"सूरज बहुत भाग्यशाली है इसके छूने से यह टिकट सोना हो जाएगा" सूरज ने वह टिकट पकड़ लिया और तुरंत ही अपने होठों से सटाने लगा सुगना ने उसका हाथ पकड़ लिया और राजेश से बोली...

"जीजा जी क्यों आपने पैसा बर्बाद किया?"

"अरे ₹10 ही तो है सूरज के हाथ लगने से यह 1000000 हो जाए तो बात बन जाए. आप यह टिकट संभाल कर रख लीजिए"

सुगना ने सूरज के हाथ से वह टिकट ले लिया और अपनी चोली के अंदर चुचियों के बीच छुपा लिया।

लाली राजेश और सुगना को देख रही थी राजेश ने उसे भी निराश ना किया और उसके भी दोनों बच्चों को एक-एक लॉटरी की टिकट पकड़ा दी। लाली भी खुश हो गयी। राजेश चंद पलों में ही कई सारे सपने बेच गया।

आगे-आगे चल रही युवा पीढ़ी अपने में ही मगन थी जहां सोनू अपनी लाली दीदी के साथ बिताई गई रात के बारे में सोच रहा था और लाली की शर्म और उसके चेहरे पर आए मनोभावों को पढ़कर अपनी मेहनत के सफल या असफल होने का आकलन कर रहा था वहीं दूसरी तरफ सोनी के जांघों के बीच हलचल मची हुई थी विकास से मिलने के बाद उसे अपनी जांघों के बीच एक अजीब सी सनसनी महसूस हो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे उसकी छोटी सी बुर के अगल बगल के बाल इस सिहरन से सतर्क हो गए थे। चोली में कसी हुई चूचियां उसके शरीर से रक्त खींचकर बड़ी हो गई थी और बार-बार सोनी का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी वह मौका देख कर उन्हें सामान्य करने की कोशिश भी कर रही थी।

सोनी के लिए यह एहसास बेहद सुखद था उसे आज रात का इंतजार था जब वह मोनी के साथ खुलकर इस विषय पर बात करती और अपने एहसासों से मोनी को अवगत करती। मोनी अभी भी मेले की खूबसूरती में खोई हुई थी उसके शांत मन में हलचल पैदा करने वाला न जाने कहां खोया हुआ था।

बनारस महोत्सव का यह मेला वास्तव में निराला था देखते ही देखते तीन-चार घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला और सुगना तथा लाली का परिवार एक बार फिर विद्यानंद के पंडाल की तरफ आ रहा था।

सोनू अपने इष्ट देव से राजेश की नाइट ड्यूटी लगवाने का अनुरोध कर रहा था। वह अनजाने में ही उसके और लाली के मिलन के प्रणेता को अपने बीच से हटाना चाह रहा था। लाली के साथ रात बिताने की सोच कर उसका लण्ड अचानक ही खड़ा हो गया परंतु नियति ने आज लाली की बुर को आराम देने की सोच ली थी।

राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।

"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."

सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।

परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।

शेष अगले भाग में..

 

Lovely Anand

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Welcome back ... Good update...
Great story
Thoda jaldi dijiyega update please
बहुत ही अकल्पित अद्भुत रचना आत्मा का अपडेट
Gazab ka update rahal
Baaki dher din baad aail rahe e update

आप लोगों को आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद एक बात और कहना चाहूंगा आपको इस कहानी में क्या अच्छा लगता है और क्या खराब इसे खुलकर बताने का प्रयास करें मुझे उम्मीद है आप कहानी को ध्यान पूर्वक पढ़ते होंगे और उसका यथोचित आनंद भी लेते होंगे परंतु मेरे लिए आपकी प्रतिक्रियाओं में सिर्फ चंद शब्द ही होते हैं जबकि मेरे लिए यह प्रतिक्रियाएं ही उत्साहवर्धन का एकमात्र स्रोत है खुलकर लिखिए जरूरी नहीं कि आपकी भाषा शैली में वजन हो परंतु विचार तो हर व्यक्ति खुलकर रख सकता है।


मैं आप सबसे कोमल जी जैसी प्रतिक्रियाओं की उम्मीद नहीं करता वह स्वयं एक लेखिका हैं और भाषा पर उनकी पकड़ अच्छी है परम आप napster जी जैसी चंद लाइनों की प्रतिक्रिया तो अवश्य दे सकते हैं।
(Napster जी आप इसे अन्यथा मत लीजिएगा आपकी प्रतिक्रियाएं भी मुझे बेहद पसंद है)

आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा मुझे हमेशा रहती है और रहेगी...
 
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