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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145
 
Last edited:

Rajesh Lodhi

BY BY FORUM
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सुगना और सोनू के मिलन का विस्तृत एपिसोड उन सभी पाठकों को भेज दिया गयाहै जो कहानी को मन लगाकर पढ़ रहे है।
writer sahab update nhi mila hum bhi aapke update ke kayal h or reply bhi dete h phir bhi nhi phuchaya
update phuchane ka kst kre
 

Sugna

New Member
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भाग 143

अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।


उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।


अब आगे…

सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के पुराने खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे। सरयू सिंह ने अपनी पुत्री सुगना की खुशी का अनजाने में ही ख्याल रख लिया था।

सोनू ने और देर नहीं की उसने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठा कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी ई बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशंकित नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल का?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी हैं.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ देखते हुए उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“दीदी एक बात बता उस रात जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सोनू इस काली रात की बात कर रहा है जब उसने सुगना के साथ पहली बार संभोग किया था। पर सुगना को यह उम्मीद नहीं थी अनजान बनते हुए उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वो दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उस काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।


प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि

सुगना के अंतरात्मा चीख चीख कर कह रही थी…”हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी”

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यह बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो के भी घसीट लीहले”

(आशय : तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।)

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नहीं तो मैं पलंग की बजाय अस्पताल में लेटी मिलूंगी” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना। सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह दीपावली की काली रात में घटित पाप को अपना चुकी थी और और अब पूरी सहमति और समर्पण के साथ सोनू को अपनाने जा रही थी।

कितना अजीब सहयोग था सुगना के माथे का सिंदूर का रंग बदल चुका था । गले का मंगलसूत्र भी सोनू द्वारा ही लाया हुआ था। और उसके दिलों दिमाग पर अब सरयू सिंह की जगह सोनू राज कर रहा था।

सोनू स्वयं सुगना के बारे में सोच रहा था।

सुगना के प्रति सोनू के मन में आकर्षण तभी उत्पन्न हुआ था जब वह किशोरावस्था से गुजर रहा था स्त्री शरीर की पहली परिकल्पना उसने सुगना के रूप में ही की थी। अपनी किशोरावस्था में जब-जब वह सुगना के अंगों को देखता उसे अंदर ही अंदर एक अजब सी संवेदना होती पर मन में पाप अपराध बोध भी जन्म लेता।

उस समय सुगना के कामुक अंगों को देख पाना लगभग असंभव था पर पर इसके बावजूद वह सुगना की गोरी पीठ और घुटने के नीचे सुंदर टांगों को देखने में कामयाब रहा था वैसे भी सुगना की सुडौल कद काठी स्वयं ही उसकी चोली के पीछे छुपे खजाने का बखान करती थी।

जितना ही सोनू उन दिनों के बारे में सोचता सुगना का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगता गांव की एक सुंदर अल्हड़ लड़की सुगना आज एक पूर्ण युवती बन चुकी थी जो इस समय कार के शीशे से बाहर लहलहाती फसलों को देख रही थी।

सुगना के विवाह के पश्चात सोनू और सुगना दूर हो गए थे पर सोनू को लाली का सानिध्य प्राप्त हो चुका था। लाली ने सोनू को अपने मुंह बोले भाई की तरह अपना लिया था आखिर वह उसकी सहेली का भाई था। लाली सोनू के करीब आती गई और सोनू की कामुकता अब लाली के सहारे उफान भरने लगी…

बनारस हॉस्टल आने के बाद जब सोनू ने लाली से और नजदीकी बढ़ाई तब जाकर उसे स्त्री शरीर के उन दोनों अद्भुत अंगों का दर्शन और स्पर्श सुख का लाभ प्राप्त हुआ…

जब एक बार सोनू ने लाली की चूचियों और बुर का स्वाद चख लिया उसकी कल्पना में न जाने कब सुगना वापस अपना स्थान खोजने लगी। सोनू को पता था कि उसका जीजा सुगना को छोड़कर जा चुका था। सुंदर और अतृप्त सुगना के कामुक जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए सोनू मन ही मन सुगना के नजदीक आने की कोशिश करने लगा नियति ने सोनू का साथ दिया और आज वह अपनी प्यारी सुगना को उसके ही पलंग पर भोगने उसी के घर पर ले जा रहा था।

सुगना को उसके अपने ही सुहाग सेज पर चोदने की कल्पना कर सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो गया जैसे ही सोनू ने स्टेरिंग से अपने हाथ हटाकर अपने लंड को व्यवस्थित करना चाह सुगना ने सोनू की यह हरकत ताड़ ली..

सोनू शर्मा गया इससे पहले की सोनू कुछ बोलता सुगना का हाथ सोनू की जांघों के बीच आ गया और सुगना में सोनू के तने हुए लंड का आकलन अपनी हथेलियां के दबाव से महसूस कर लिया और तुरंत ही सोनू के कंधे पर चपत लगाते हुए कहा..

“तोहरा दिन भर यही सब में मन लागेला का सोचत रहले हा…?”

जो सोनू सो रहा था वह बता पाना कठिन था पर उसने बेहद संजीदगी से बात बदलते हुए कहा..

“दीदी उस दिन जब सलेमपुर में पूजा थी और रतन जीजू आए थे और आप लोगों ने साथ में पूजा की थी उस दिन आप बहुत सुंदर लग रही थी”

सुगना को वह दिन याद आ गया जब उसने रतन को एक बार फिर अपने पति के रूप में स्वीकार किया था और अपने कुलदेवी के सामने पूजा अर्चना की थी और उसके बाद रतन के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी। पर हाय री सुगना की किस्मत पुरुषार्थ से भरा रतन जो एक खूबसूरत और तगड़े लंड का स्वामी था अभिशप्त सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था।

“बोल ना दीदी”

सुगना ने अपने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए सोनू से पूछा

“क्यों क्या बात है क्यों पूछ रहे हो?”

“उस दिन आपने सुन्दर लहंगा पहना था और जो इत्र लगाया था वह अनूठा था”

सुगना को उसे दिन की पूरी घटनाएं याद आ गई उसे यह भी बखूबी याद था कि जब सोनू उसके चरण छूने के लिए नीचे झुका था तो उसके लहंगे से उठ रही इत्र की खुशबू को उसने जिस तरह सूंघा था वह अलग था और बेहद कामुक था सुगना को तब सोनू से यह अपेक्षा कतई नहीं थी।

सुगना ने सोनू कि इस हरकत को बखूबी नोट किया था परंतु जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी उसे इतना तो इल्म अवश्य ताकि सोनू लाली के साथ कामुक गतिविधियों में लिप्त है और शायद यही वजह हो कि उसने अपनी काम इच्छा के बस में आकर यह हिमाकत की थी।


परंतु कई बातों पर प्रतिक्रिया न देना ही उचित होता है शायद सुगना ने तब इसीलिए अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी पर अब जब सोनू ने वह बात छेड़ ही दी थी तो सुगना ने पूछा..

“ते इत्र कहा सूंघले?

सोनू से उत्तर देते नहीं बना। वह किस्म से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर पर लगा इत्र सूंघ रहा था । पर अब जब उसके और सुगना के बीच शर्म की दीवार हट रही थी उसने हिम्मत जुटा और बोला..

“दीदी हम बता ना सकी पर वह दिन तो बिल्कुल अप्सरा जैसन लागत रहलू और ऊ खुशबू…. सोनू ने एक लंबी आह भरी…

सोनू कहना तो बहुत कुछ चाहता था परंतु अब भी हिचकचा रहा था।

इससे पहले की उन दोनों का बात और आगे बढ़ती सलेमपुर का बाजार आ चुका था। सोनू ने गाड़ी रोकी और मिठाई की दुकान से जाकर जलपान के लिए कुछ आइटम और मिठाइयां खरीद लाया।

कुछ भी देर बाद उसकी कार सलेमपुर गांव के बीच से गुजरती सरयू सिंह के दरवाजे तक जा पहुंची।

कार का पीछा कर रहे पिछड़े वर्ग के बच्चे अब थक चुके थे। सुगना कार से बाहर आई और सोनू द्वारा खरीदी गई मिठाई में से कुछ भाग उन बच्चों में बांट दिया। बच्चे सुगना दीदी दीदी...चिल्ला कर अपनी मिठाई मांग रहे थे और सुगना सबको मिठाई बाट रही थी।सुगना निराली थी शायद इसीलिए वह हर दिल अजीज थी।

लाली के माता पिता हरिया और उसकी पत्नी भी अब तक बाहर आ चुके थे। अपनी पुत्री को ना देख कर वह थोड़े उदास हुए पर जब सुगना ने पूरी बात समझाइ वह सुगना और सोनू के आदर् सत्कार में लग गए।

जलपान कर सुगना और सोनू अपने घर में आ गए।


सुगना ने सर्वप्रथम कजरी द्वारा बताए गए गहने को उसके बक्से से निकला और सोनू को देते हुए बोली..

“सोनू इकरा के जाकर मुखिया जी के घर दे आओ और हां जाए से पहले गाड़ी में से हमरा बैग निकाल दे”

“तू हिंदी ना बोल पईबू” सोनू सुगना को चिढ़ाते हुए बोला

“ठीक है एसडीएम साहब अब हिंदी ही बोलूंगी …अब जो”

सुगना मुस्कुरा रही थी और सोनू को अपनी अदाओं से घायल किया जा रही थी।

“अब जो…. ये तो हिंदी नहीं है”

सुगना सोनू को बड़ी अदा से मारने दौड़ी..पर सोनू हंसते हुए गाड़ी से बैग निकालने चला गया।


पर न जाने क्यों सुगना से रहा नहीं क्या वह उसके पीछे-पीछे गाड़ी तक आ गई सोनू ने सुगना से पूछा

“ दो-चार घंटा खातिर अतना बड़ बैग काहे ले आइल बाड़ू”

“अब ते काहे भोजपुरी बोलत बाड़े” सुगना ने सोनू को उलाहना देते हुए कहा।

“बताव ना पूजाई के समान लेले बाड़ू का”

सोनू ने जिस संदर्भ में यह बात कही थी वह सुगना बखूबी समझ चुकी थी। बुर की पूजा का मतलब सुगना भली भांति समझती थी और सोनू इस भाषा को सीख चुका था।

सुगना एक पल के लिए शर्मा गई पर अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बोली

“अपना काम से काम रख ….”

वह सोनू से नज़रे चुराते हुए बैग लेकर अंदर जाने लगी तभी सोनू ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया अपने हाथों से उसके नंगे पेट को सहलाने लगा। उसकी हथेलियां ऊपर की तरफ बढ़ने लगी वह सुगना के कानों को चूमने की कोशिश कर रहा था और कान में फुसफुसाकर बोला..

“हमार इनाम कब मिली?”

“पहले मुखिया के घर जो और हां बाहर से ताला लगा दीहे वापस आवत समय पीछे के दरवाजा से आ जाईहे.”

सोनू सुगना की बात को पूरी तरह समझ चुका था बाहर ताला लगा होने का मतलब यह था कि घर में कोई नहीं था पिछले दरवाजे से आकर वह बिना किसी रुकावट के सुगना के साथ रंगरलिया मना सकता था।

सोनू ने अपनी पकड़ ढीली की और एक बार उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में भरते हुए बोला..

“जो हुकुम मेरे आका…”

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी वह उसकी पकड़ से दूर हुई और उसे धकेलते हुए बोली

“अब जो ना त देर होई “

“ फेर भोजपुरी…”

सोनू मुस्कुराते हुए उससे दूर हुआ पर दरवाजे से निकलने से पहले उसने एक बार फिर सुगना की तरफ देखा और अपने होठों को गोल कर उसे चूमने की कोशिश की यह कुछ-कुछ फ्लाइंग किस जैसा ही था सुगना ने उसी प्रकार सोनू को रिप्लाई कर उसे खुश कर दिया..

सोनू के जाने के पश्चात सुगना अपनी तैयारी में लग गई।

सजना सवरना हर स्त्री को पसंद होता है सुगना भी इससे अछूती नहीं थी। और आज तो उसे सोनू को खुश करना था जब स्त्री किसी पुरुष को अपनी अंतरात्मा से प्यार करती है तो वह उसके लिए पूरी तन्मयता से खुद को तैयार करती है आज सुगना भी अपने बैग में वही गुलाबी लहंगा चोली लेकर आई थी जो सोनू ने अपनी होने वाली पत्नी लाली के लिए चुना था और जो तात्कालिक परिस्थिति बस सुगना के भाग्य में आ गया था।

सुगना ने स्नान किया अपने केस सवारे और सोनू द्वारा दिया हुआ लहंगा चोली पहन लिया अंतर वस्त्रों की जरूरत शायद नहीं थी इसलिए सुगना ने पैंटी नहीं पहनी। पर चोली सुगना की कोमल चूचियों को तंग कर रही थी सुगना ने ब्रा ढूंढने के लिए अपना पुराना संदूक खोला..

संदूक खोलते ही सुगना की पुरानी यादें ताजा हो गई..

सरयू सिंह के साथ बिताई गई पहली रात और उसका गवाह वह लाल जोड़ा सुगना को आकर्षित कर रहा था उसने उसे लाल जोड़े को बाहर निकाल लिया और उस खूबसूरत जोड़े को सहलाते हुए सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी पहली रात को याद करने लगी।

सरयू सिंह ने उसे जितना प्यार दिया था उसने उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखेर दिए थे सुगना तब एक अल्लढ नवयौवना थी.. और सरयू सिंह कामकला में पारंगत जिस खूबसूरती से उन्होंने सुगना में वासना के रंग भरे और उसे पुष्पित पल्लवित होने दिया.. उसने सुगना के व्यक्तित्व को और निखार दिया था। व्यक्तित्व ही क्या सुगना की चूचियां उसके नितंब कटीली कमर सब कुछ कहीं ना कहीं सरयू सिंह के कारण ही थे।

वह उसके जनक भी थे उसे सजाने संवारने वाले भी थे और भोगने वाले भी।

उन्होंने न जाने कितनी बार सुगना को नग्न कर उसकी मालिश की थी कभी तेल से कभी अपने श्वेत धवल वीर्य से।

सुगना ने लहंगे पर लगे सरयू सिंह के वीर्य और अपने रज रस के दागों को देखा और मन ही मन मुस्कुराने लगी चेहरे की चमक बढ़ती चली गई।

अचानक सुगना का ध्यान संदूक में रखे अपने दूसरे लहंगे पर गया जो उसकी सास कजरी ने उसके लिए लाया था यह वही लहंगा था जो उसने रतन को अपने पति स्वरूप में स्वीकार करने के बाद घर की उसे विशेष पूजा में पहना था। पर शायद सुगना स्वाभाविक संबंधों के लिए बनी ही नहीं थी रतन के लाख जतन करने के बाद भी वह सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था और यह जोड़ा सिर्फ और सिर्फ रतन के वीर्य का गवाह था पर सुगना का काम रास इस लहंगे के भाग में न था।

संदूक खाली हो चुका था और सुगना जिस खूबसूरत लाल ब्रा को ढूंढ रही थी वो अब साफ दिखाई पड़ रही थी सुगना ने उसे अपने हाथों में ले लिया यह ब्रा भी सुगना की पहली रात की गवाह थी पर सबसे पहले उसका साथ छोड़ कर जाने वाली या ब्रा पूरी तरह कुंवारी थी सरयू सिंह के वीर्य के दाग इस पर अब भी नहीं लगे थे।

सुगना ने अपनी चोली को उतारा और उसे खूबसूरत ब्रा को पहनने की कोशिश की।

सुगना चाह कर भी उस छोटी ब्रा में अपनी भरी भरी चूचियों को कैद करने में नाकाम रही…

सुगना की चूचियां अब अपना आकर ले चुकी थी और अब वह छोटी ब्रा में कैद होने के लिए तैयार नहीं थी एक तो उसके पहले मिलन की यादों ने उसकी चूचियों को और भी तान दिया था….

आखिरकार सुगना ने आज पहनी हुई अपनी पुरानी ब्रा को ही धारण किया अपनी चोली पहनी और अपने लहंगे को संदूक में वापस रखने लगी तभी अचानक उसे एहसास हुआ जैसे सोनू घर के पिछले दरवाजे को खोल रहा है।

वह अपने अतीत को अपने वर्तमान पर हावी नहीं होने देना चाहती थी आज उसका एकमात्र उद्देश्य सोनू को खुश करना था और कई दिनों से उसके अपने बदन में उठ रही काम अग्नि को शांत करना था। उसने फटाफट अपने पुराने लहंगे को वापस संदूक में बंद किया अपने कपड़े को व्यवस्थित किया और अपने बालों में कंघी करने लगी। अभी वह अपने बाल सवांर ही रही थी कि सोनू उसके समक्ष आ गया।

अभी सुगना की तैयारी में एक कमी थी वह थी सुगंधित इत्र का प्रयोग सुगना ने उसे बक्से से निकाल तो लिया था परंतु इसका प्रयोग नहीं कर पाई थी।

उसने सोनू से कहा..

“ए सोनू पीछे पलट हमारा तरफ मत देखिहे “

सोनू अधीर था वह सुगना की खूबसूरती का वैसे ही कायल था और इस समय तो सुगना बला की खूबसूरत लग रही थी। कमरे में व्याप्त स्नान की ही सुगना की खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। सजी धजी सुगना से नज़रें हटाना कठिन था।

सोनू ने सुगना के दोनों कंधों को अपनी हथेलियां से पकड़ लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला..

“कुछ बाकी बा का ?”

“….तोहरा से जवन बोला तानी ऊ कर” सुगना ने अपने हाथों से सोनू को पलटने का निर्देश देते हुए कहा।

अभी सोनू सुगना को जी भर कर देख भी नहीं पाया था पर बड़ी बहन सुगना का निर्देश टाल पाना कठिन था..

सोनू कोई और चारा न देख पलट गया ..

तभी सुगना की एक और हिदायत आई

“जब तक ना कहब पीछे मत देखिहे”

सोनू ने न जाने क्यों अपनी आंखें बंद कर ली शायद वह पीछे हो रहे घटनाक्रम का अंदाजा लगाना चाहता था।

सुगना ने इत्र की बोतल निकाली अपना लहंगा उठाया और इत्र में भीगी हुई रुई को अपनी दोनों जांघों के जोड़ पर रगड़ दिया।

इससे पहले कि वह इत्र की शीशी बंद कर पाती…

सोनू बोल उठा..

“दीदी ई खुशबू तो हम पहले भी सूंघले बानी”

सुगना मुस्कुरा उठी उसे पता था यह इत्र उसने कब लगाया था और यह भी बखूबी याद था कि सोनू ने उसके चरण छुते समय इस खुशबु को महसूस किया था।

“कब सूंघले बाड़े ते ही बता दे”

“पहले बोल मुड़ जाई?” सोनू अब बेचैन हो रहा था पर बिना सुगना के निर्देश के वह वापस नहीं मुड़ सकता था।

“ले हम ही तोरा सामने आ गईनी अब बता दे”

सोनू खूबसूरत और सजी-धजी सुगना को देखकर उसकी धड़कने तेज हो गईं..

सुगना के केश अब भी हल्के गीले थे..चेहरा दमक रहा था माथे पर सिंदूर आंखों में कजरा और होंठो पर लिपस्टिक उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे थे।

गर्दन में लटक रहा सोनू का मंगलसूत्र चूचियों की घाटी में और गहरे उतर जाने को व्याकुल था।

भरी भरी मदमस्त चूचियां चोली के आवरण में कैद थी पर छलक छलक कर अपने अस्तित्व का एहसास करा रही थी।

चूचियों के ठीक नीचे सुगना का सपाट पेट और कटावदार कमर जो इस उम्र में भी किशोरियों जैसे थी सुगना का व्यक्तित्व और सुंदरता निखार रही थी।

नाभि का खूबसूरत बटन न जाने कितने मर्दों की नींद उड़ाई लेता था वह सोनू को बरबस आकर्षित कर रहा था। जिस प्रकार मिठाई की दुकान पर खड़ा ग्राहक मिठाइयों को लेकर कंफ्यूज रहता है उसी प्रकार सोनू की स्थिति थी सुगना के खजाने को वह जी भर कर देखना चाह रहा था पर नज़रें इधर-उधर फिसल रही थी।

सोनू अभी सुगना को निहार ही रहा था तभी सुगना बोल पड़ी

“ का देखे लगले कुछ बतावत रहले हा ऊ खुशबू के बारे में.”

सोनू घुटनों के बल बैठ गया.. उसने अपना सर नीचे किया और सुगना के अलता लगे खूबसूरत पैरों की तरफ अपना सर ले जाने लगा एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे वह उसके पैरों पर अपना कर रख रहा हो।

शायद सुगना इसके लिए तैयार न थी उसने झुक कर सोनू को पकड़ने की कोशिश की पर तब तक सोनू के होंठ सुगना के पंजों को चूम चुके थे।

लहंगे के भीतर से आ रही इत्र की खुशबू सोनू के नथुनों में पढ़ चुकी थी।

सोनू अपना सर उठाता गया और इत्र की खुशबू के स्रोत को ढूंढता गया। सुगना का लहंगा सोनू के सर के साथ-साथ ऊपर उठ रहा था न जाने क्यों सुगना यंत्रवत खड़ी थी। सोनू लगातार सुगना के पैरों को चूमें जा रहा था.. घुटनों के ऊपर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जवाब दे गया। उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ यदि वह सोनू को नहीं रोकती तो काम रस की बूंदे उसकी प्यासी बर से छलक कर टपक पड़ती। वह एक कदम पीछे हटी और लहंगे ने वापस नीचे गिर कर उसके खूबसूरत पैरों को ढक लिया।

सोनू को यह यह नागवार गुजरा उसने आश्चर्य से सुगना की तरफ देखा। कितना तारतम्य था सुगना और सोनू में सुगना ने सोनू के मनोभाव को ताड़ लिया और अपनी सरल मुस्कान से उसकी तरफ देखते हुए बोला

“ना पहचानले नू?”

सोनू के मन में उपजा गुस्सा तुरंत शांत हो गया..

उसने लहंगे के ऊपर से ही सुगना की जांघों को सूंघते हुए बोला

“दीदी ये वही खुशबू ह जब तू रतन जीजा के साथ पूजा करे के समय लगवले रहलू “

“तब से बहुत बदमाश बाड़े ओ समय भी तू यही सूंघत रहले”

सोनू शर्मा गया। …पर अब सुगना और सोनू के बीच शर्म की दीवार हट रही थी।

“तू पहले भी अप्सरा जैसन रहलू मन तो बहुत करत रहे पर डर लागत रहे”

“का मन करत रहे?” सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को छेड़ा.

सोनू अचानक उठ खड़ा हुआ और सुगना को अपनी बाहों में भरते हुए उसके होठों को चूम लिया और अपने बदन से सटाए हुए सुगना को सोनू पूरी तरह आलिंगन में भर चुका था उसकी हथेलियां सुगना की पीठ से होते हुए नितंबों की तरफ बढ़ रही थी।

सुगना खिले हुए फूलों की तरह दमक रही थी परंतु सोनू शायद उतना फ्रेश महसूस नहीं कर रहा था अचानक उसने कहा…

“दीदी 1 मिनट रुक तनी हम भी नहा ली”

सुगना ने उसे नहीं रोका उसने तुरंत ही सरयू सिंह की एक धोती लाकर सोनू को दी और कुछ ही पलों में सोनू वह धोती पहनकर आंगन में लगे हैंड पंप पर आ गया।

सोनू का गठीला बदन हल्की धूप में चमक रहा था। धोती को अपनी जांघों पर लपेटे सोनू हैंड पंप चलाकर बाल्टी में पानी भर रहा था।

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।

अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया…

शेष अगले भाग में…
bhut achchhi story
 

Deepak@123

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सुगना और सोनू के मिलन का विस्तृत एपिसोड उन सभी पाठकों को भेज दिया गयाहै जो कहानी को मन लगाकर पढ़ रहे है।
मुझे नहीं मिला एपिसोड लावली जी भेज दीजिए मुझे भी
 

yenjvoy

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भाग 143

अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।


उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।


अब आगे…

सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के पुराने खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे। सरयू सिंह ने अपनी पुत्री सुगना की खुशी का अनजाने में ही ख्याल रख लिया था।

सोनू ने और देर नहीं की उसने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठा कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी ई बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशंकित नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल का?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी हैं.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ देखते हुए उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“दीदी एक बात बता उस रात जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सोनू इस काली रात की बात कर रहा है जब उसने सुगना के साथ पहली बार संभोग किया था। पर सुगना को यह उम्मीद नहीं थी अनजान बनते हुए उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वो दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उस काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।


प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि

सुगना के अंतरात्मा चीख चीख कर कह रही थी…”हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी”

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यह बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो के भी घसीट लीहले”

(आशय : तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।)

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नहीं तो मैं पलंग की बजाय अस्पताल में लेटी मिलूंगी” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना। सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह दीपावली की काली रात में घटित पाप को अपना चुकी थी और और अब पूरी सहमति और समर्पण के साथ सोनू को अपनाने जा रही थी।

कितना अजीब सहयोग था सुगना के माथे का सिंदूर का रंग बदल चुका था । गले का मंगलसूत्र भी सोनू द्वारा ही लाया हुआ था। और उसके दिलों दिमाग पर अब सरयू सिंह की जगह सोनू राज कर रहा था।

सोनू स्वयं सुगना के बारे में सोच रहा था।

सुगना के प्रति सोनू के मन में आकर्षण तभी उत्पन्न हुआ था जब वह किशोरावस्था से गुजर रहा था स्त्री शरीर की पहली परिकल्पना उसने सुगना के रूप में ही की थी। अपनी किशोरावस्था में जब-जब वह सुगना के अंगों को देखता उसे अंदर ही अंदर एक अजब सी संवेदना होती पर मन में पाप अपराध बोध भी जन्म लेता।

उस समय सुगना के कामुक अंगों को देख पाना लगभग असंभव था पर पर इसके बावजूद वह सुगना की गोरी पीठ और घुटने के नीचे सुंदर टांगों को देखने में कामयाब रहा था वैसे भी सुगना की सुडौल कद काठी स्वयं ही उसकी चोली के पीछे छुपे खजाने का बखान करती थी।

जितना ही सोनू उन दिनों के बारे में सोचता सुगना का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगता गांव की एक सुंदर अल्हड़ लड़की सुगना आज एक पूर्ण युवती बन चुकी थी जो इस समय कार के शीशे से बाहर लहलहाती फसलों को देख रही थी।

सुगना के विवाह के पश्चात सोनू और सुगना दूर हो गए थे पर सोनू को लाली का सानिध्य प्राप्त हो चुका था। लाली ने सोनू को अपने मुंह बोले भाई की तरह अपना लिया था आखिर वह उसकी सहेली का भाई था। लाली सोनू के करीब आती गई और सोनू की कामुकता अब लाली के सहारे उफान भरने लगी…

बनारस हॉस्टल आने के बाद जब सोनू ने लाली से और नजदीकी बढ़ाई तब जाकर उसे स्त्री शरीर के उन दोनों अद्भुत अंगों का दर्शन और स्पर्श सुख का लाभ प्राप्त हुआ…

जब एक बार सोनू ने लाली की चूचियों और बुर का स्वाद चख लिया उसकी कल्पना में न जाने कब सुगना वापस अपना स्थान खोजने लगी। सोनू को पता था कि उसका जीजा सुगना को छोड़कर जा चुका था। सुंदर और अतृप्त सुगना के कामुक जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए सोनू मन ही मन सुगना के नजदीक आने की कोशिश करने लगा नियति ने सोनू का साथ दिया और आज वह अपनी प्यारी सुगना को उसके ही पलंग पर भोगने उसी के घर पर ले जा रहा था।

सुगना को उसके अपने ही सुहाग सेज पर चोदने की कल्पना कर सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो गया जैसे ही सोनू ने स्टेरिंग से अपने हाथ हटाकर अपने लंड को व्यवस्थित करना चाह सुगना ने सोनू की यह हरकत ताड़ ली..

सोनू शर्मा गया इससे पहले की सोनू कुछ बोलता सुगना का हाथ सोनू की जांघों के बीच आ गया और सुगना में सोनू के तने हुए लंड का आकलन अपनी हथेलियां के दबाव से महसूस कर लिया और तुरंत ही सोनू के कंधे पर चपत लगाते हुए कहा..

“तोहरा दिन भर यही सब में मन लागेला का सोचत रहले हा…?”

जो सोनू सो रहा था वह बता पाना कठिन था पर उसने बेहद संजीदगी से बात बदलते हुए कहा..

“दीदी उस दिन जब सलेमपुर में पूजा थी और रतन जीजू आए थे और आप लोगों ने साथ में पूजा की थी उस दिन आप बहुत सुंदर लग रही थी”

सुगना को वह दिन याद आ गया जब उसने रतन को एक बार फिर अपने पति के रूप में स्वीकार किया था और अपने कुलदेवी के सामने पूजा अर्चना की थी और उसके बाद रतन के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी। पर हाय री सुगना की किस्मत पुरुषार्थ से भरा रतन जो एक खूबसूरत और तगड़े लंड का स्वामी था अभिशप्त सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था।

“बोल ना दीदी”

सुगना ने अपने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए सोनू से पूछा

“क्यों क्या बात है क्यों पूछ रहे हो?”

“उस दिन आपने सुन्दर लहंगा पहना था और जो इत्र लगाया था वह अनूठा था”

सुगना को उसे दिन की पूरी घटनाएं याद आ गई उसे यह भी बखूबी याद था कि जब सोनू उसके चरण छूने के लिए नीचे झुका था तो उसके लहंगे से उठ रही इत्र की खुशबू को उसने जिस तरह सूंघा था वह अलग था और बेहद कामुक था सुगना को तब सोनू से यह अपेक्षा कतई नहीं थी।

सुगना ने सोनू कि इस हरकत को बखूबी नोट किया था परंतु जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी उसे इतना तो इल्म अवश्य ताकि सोनू लाली के साथ कामुक गतिविधियों में लिप्त है और शायद यही वजह हो कि उसने अपनी काम इच्छा के बस में आकर यह हिमाकत की थी।


परंतु कई बातों पर प्रतिक्रिया न देना ही उचित होता है शायद सुगना ने तब इसीलिए अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी पर अब जब सोनू ने वह बात छेड़ ही दी थी तो सुगना ने पूछा..

“ते इत्र कहा सूंघले?

सोनू से उत्तर देते नहीं बना। वह किस्म से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर पर लगा इत्र सूंघ रहा था । पर अब जब उसके और सुगना के बीच शर्म की दीवार हट रही थी उसने हिम्मत जुटा और बोला..

“दीदी हम बता ना सकी पर वह दिन तो बिल्कुल अप्सरा जैसन लागत रहलू और ऊ खुशबू…. सोनू ने एक लंबी आह भरी…

सोनू कहना तो बहुत कुछ चाहता था परंतु अब भी हिचकचा रहा था।

इससे पहले की उन दोनों का बात और आगे बढ़ती सलेमपुर का बाजार आ चुका था। सोनू ने गाड़ी रोकी और मिठाई की दुकान से जाकर जलपान के लिए कुछ आइटम और मिठाइयां खरीद लाया।

कुछ भी देर बाद उसकी कार सलेमपुर गांव के बीच से गुजरती सरयू सिंह के दरवाजे तक जा पहुंची।

कार का पीछा कर रहे पिछड़े वर्ग के बच्चे अब थक चुके थे। सुगना कार से बाहर आई और सोनू द्वारा खरीदी गई मिठाई में से कुछ भाग उन बच्चों में बांट दिया। बच्चे सुगना दीदी दीदी...चिल्ला कर अपनी मिठाई मांग रहे थे और सुगना सबको मिठाई बाट रही थी।सुगना निराली थी शायद इसीलिए वह हर दिल अजीज थी।

लाली के माता पिता हरिया और उसकी पत्नी भी अब तक बाहर आ चुके थे। अपनी पुत्री को ना देख कर वह थोड़े उदास हुए पर जब सुगना ने पूरी बात समझाइ वह सुगना और सोनू के आदर् सत्कार में लग गए।

जलपान कर सुगना और सोनू अपने घर में आ गए।


सुगना ने सर्वप्रथम कजरी द्वारा बताए गए गहने को उसके बक्से से निकला और सोनू को देते हुए बोली..

“सोनू इकरा के जाकर मुखिया जी के घर दे आओ और हां जाए से पहले गाड़ी में से हमरा बैग निकाल दे”

“तू हिंदी ना बोल पईबू” सोनू सुगना को चिढ़ाते हुए बोला

“ठीक है एसडीएम साहब अब हिंदी ही बोलूंगी …अब जो”

सुगना मुस्कुरा रही थी और सोनू को अपनी अदाओं से घायल किया जा रही थी।

“अब जो…. ये तो हिंदी नहीं है”

सुगना सोनू को बड़ी अदा से मारने दौड़ी..पर सोनू हंसते हुए गाड़ी से बैग निकालने चला गया।


पर न जाने क्यों सुगना से रहा नहीं क्या वह उसके पीछे-पीछे गाड़ी तक आ गई सोनू ने सुगना से पूछा

“ दो-चार घंटा खातिर अतना बड़ बैग काहे ले आइल बाड़ू”

“अब ते काहे भोजपुरी बोलत बाड़े” सुगना ने सोनू को उलाहना देते हुए कहा।

“बताव ना पूजाई के समान लेले बाड़ू का”

सोनू ने जिस संदर्भ में यह बात कही थी वह सुगना बखूबी समझ चुकी थी। बुर की पूजा का मतलब सुगना भली भांति समझती थी और सोनू इस भाषा को सीख चुका था।

सुगना एक पल के लिए शर्मा गई पर अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बोली

“अपना काम से काम रख ….”

वह सोनू से नज़रे चुराते हुए बैग लेकर अंदर जाने लगी तभी सोनू ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया अपने हाथों से उसके नंगे पेट को सहलाने लगा। उसकी हथेलियां ऊपर की तरफ बढ़ने लगी वह सुगना के कानों को चूमने की कोशिश कर रहा था और कान में फुसफुसाकर बोला..

“हमार इनाम कब मिली?”

“पहले मुखिया के घर जो और हां बाहर से ताला लगा दीहे वापस आवत समय पीछे के दरवाजा से आ जाईहे.”

सोनू सुगना की बात को पूरी तरह समझ चुका था बाहर ताला लगा होने का मतलब यह था कि घर में कोई नहीं था पिछले दरवाजे से आकर वह बिना किसी रुकावट के सुगना के साथ रंगरलिया मना सकता था।

सोनू ने अपनी पकड़ ढीली की और एक बार उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में भरते हुए बोला..

“जो हुकुम मेरे आका…”

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी वह उसकी पकड़ से दूर हुई और उसे धकेलते हुए बोली

“अब जो ना त देर होई “

“ फेर भोजपुरी…”

सोनू मुस्कुराते हुए उससे दूर हुआ पर दरवाजे से निकलने से पहले उसने एक बार फिर सुगना की तरफ देखा और अपने होठों को गोल कर उसे चूमने की कोशिश की यह कुछ-कुछ फ्लाइंग किस जैसा ही था सुगना ने उसी प्रकार सोनू को रिप्लाई कर उसे खुश कर दिया..

सोनू के जाने के पश्चात सुगना अपनी तैयारी में लग गई।

सजना सवरना हर स्त्री को पसंद होता है सुगना भी इससे अछूती नहीं थी। और आज तो उसे सोनू को खुश करना था जब स्त्री किसी पुरुष को अपनी अंतरात्मा से प्यार करती है तो वह उसके लिए पूरी तन्मयता से खुद को तैयार करती है आज सुगना भी अपने बैग में वही गुलाबी लहंगा चोली लेकर आई थी जो सोनू ने अपनी होने वाली पत्नी लाली के लिए चुना था और जो तात्कालिक परिस्थिति बस सुगना के भाग्य में आ गया था।

सुगना ने स्नान किया अपने केस सवारे और सोनू द्वारा दिया हुआ लहंगा चोली पहन लिया अंतर वस्त्रों की जरूरत शायद नहीं थी इसलिए सुगना ने पैंटी नहीं पहनी। पर चोली सुगना की कोमल चूचियों को तंग कर रही थी सुगना ने ब्रा ढूंढने के लिए अपना पुराना संदूक खोला..

संदूक खोलते ही सुगना की पुरानी यादें ताजा हो गई..

सरयू सिंह के साथ बिताई गई पहली रात और उसका गवाह वह लाल जोड़ा सुगना को आकर्षित कर रहा था उसने उसे लाल जोड़े को बाहर निकाल लिया और उस खूबसूरत जोड़े को सहलाते हुए सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी पहली रात को याद करने लगी।

सरयू सिंह ने उसे जितना प्यार दिया था उसने उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखेर दिए थे सुगना तब एक अल्लढ नवयौवना थी.. और सरयू सिंह कामकला में पारंगत जिस खूबसूरती से उन्होंने सुगना में वासना के रंग भरे और उसे पुष्पित पल्लवित होने दिया.. उसने सुगना के व्यक्तित्व को और निखार दिया था। व्यक्तित्व ही क्या सुगना की चूचियां उसके नितंब कटीली कमर सब कुछ कहीं ना कहीं सरयू सिंह के कारण ही थे।

वह उसके जनक भी थे उसे सजाने संवारने वाले भी थे और भोगने वाले भी।

उन्होंने न जाने कितनी बार सुगना को नग्न कर उसकी मालिश की थी कभी तेल से कभी अपने श्वेत धवल वीर्य से।

सुगना ने लहंगे पर लगे सरयू सिंह के वीर्य और अपने रज रस के दागों को देखा और मन ही मन मुस्कुराने लगी चेहरे की चमक बढ़ती चली गई।

अचानक सुगना का ध्यान संदूक में रखे अपने दूसरे लहंगे पर गया जो उसकी सास कजरी ने उसके लिए लाया था यह वही लहंगा था जो उसने रतन को अपने पति स्वरूप में स्वीकार करने के बाद घर की उसे विशेष पूजा में पहना था। पर शायद सुगना स्वाभाविक संबंधों के लिए बनी ही नहीं थी रतन के लाख जतन करने के बाद भी वह सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था और यह जोड़ा सिर्फ और सिर्फ रतन के वीर्य का गवाह था पर सुगना का काम रास इस लहंगे के भाग में न था।

संदूक खाली हो चुका था और सुगना जिस खूबसूरत लाल ब्रा को ढूंढ रही थी वो अब साफ दिखाई पड़ रही थी सुगना ने उसे अपने हाथों में ले लिया यह ब्रा भी सुगना की पहली रात की गवाह थी पर सबसे पहले उसका साथ छोड़ कर जाने वाली या ब्रा पूरी तरह कुंवारी थी सरयू सिंह के वीर्य के दाग इस पर अब भी नहीं लगे थे।

सुगना ने अपनी चोली को उतारा और उसे खूबसूरत ब्रा को पहनने की कोशिश की।

सुगना चाह कर भी उस छोटी ब्रा में अपनी भरी भरी चूचियों को कैद करने में नाकाम रही…

सुगना की चूचियां अब अपना आकर ले चुकी थी और अब वह छोटी ब्रा में कैद होने के लिए तैयार नहीं थी एक तो उसके पहले मिलन की यादों ने उसकी चूचियों को और भी तान दिया था….

आखिरकार सुगना ने आज पहनी हुई अपनी पुरानी ब्रा को ही धारण किया अपनी चोली पहनी और अपने लहंगे को संदूक में वापस रखने लगी तभी अचानक उसे एहसास हुआ जैसे सोनू घर के पिछले दरवाजे को खोल रहा है।

वह अपने अतीत को अपने वर्तमान पर हावी नहीं होने देना चाहती थी आज उसका एकमात्र उद्देश्य सोनू को खुश करना था और कई दिनों से उसके अपने बदन में उठ रही काम अग्नि को शांत करना था। उसने फटाफट अपने पुराने लहंगे को वापस संदूक में बंद किया अपने कपड़े को व्यवस्थित किया और अपने बालों में कंघी करने लगी। अभी वह अपने बाल सवांर ही रही थी कि सोनू उसके समक्ष आ गया।

अभी सुगना की तैयारी में एक कमी थी वह थी सुगंधित इत्र का प्रयोग सुगना ने उसे बक्से से निकाल तो लिया था परंतु इसका प्रयोग नहीं कर पाई थी।

उसने सोनू से कहा..

“ए सोनू पीछे पलट हमारा तरफ मत देखिहे “

सोनू अधीर था वह सुगना की खूबसूरती का वैसे ही कायल था और इस समय तो सुगना बला की खूबसूरत लग रही थी। कमरे में व्याप्त स्नान की ही सुगना की खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। सजी धजी सुगना से नज़रें हटाना कठिन था।

सोनू ने सुगना के दोनों कंधों को अपनी हथेलियां से पकड़ लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला..

“कुछ बाकी बा का ?”

“….तोहरा से जवन बोला तानी ऊ कर” सुगना ने अपने हाथों से सोनू को पलटने का निर्देश देते हुए कहा।

अभी सोनू सुगना को जी भर कर देख भी नहीं पाया था पर बड़ी बहन सुगना का निर्देश टाल पाना कठिन था..

सोनू कोई और चारा न देख पलट गया ..

तभी सुगना की एक और हिदायत आई

“जब तक ना कहब पीछे मत देखिहे”

सोनू ने न जाने क्यों अपनी आंखें बंद कर ली शायद वह पीछे हो रहे घटनाक्रम का अंदाजा लगाना चाहता था।

सुगना ने इत्र की बोतल निकाली अपना लहंगा उठाया और इत्र में भीगी हुई रुई को अपनी दोनों जांघों के जोड़ पर रगड़ दिया।

इससे पहले कि वह इत्र की शीशी बंद कर पाती…

सोनू बोल उठा..

“दीदी ई खुशबू तो हम पहले भी सूंघले बानी”

सुगना मुस्कुरा उठी उसे पता था यह इत्र उसने कब लगाया था और यह भी बखूबी याद था कि सोनू ने उसके चरण छुते समय इस खुशबु को महसूस किया था।

“कब सूंघले बाड़े ते ही बता दे”

“पहले बोल मुड़ जाई?” सोनू अब बेचैन हो रहा था पर बिना सुगना के निर्देश के वह वापस नहीं मुड़ सकता था।

“ले हम ही तोरा सामने आ गईनी अब बता दे”

सोनू खूबसूरत और सजी-धजी सुगना को देखकर उसकी धड़कने तेज हो गईं..

सुगना के केश अब भी हल्के गीले थे..चेहरा दमक रहा था माथे पर सिंदूर आंखों में कजरा और होंठो पर लिपस्टिक उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे थे।

गर्दन में लटक रहा सोनू का मंगलसूत्र चूचियों की घाटी में और गहरे उतर जाने को व्याकुल था।

भरी भरी मदमस्त चूचियां चोली के आवरण में कैद थी पर छलक छलक कर अपने अस्तित्व का एहसास करा रही थी।

चूचियों के ठीक नीचे सुगना का सपाट पेट और कटावदार कमर जो इस उम्र में भी किशोरियों जैसे थी सुगना का व्यक्तित्व और सुंदरता निखार रही थी।

नाभि का खूबसूरत बटन न जाने कितने मर्दों की नींद उड़ाई लेता था वह सोनू को बरबस आकर्षित कर रहा था। जिस प्रकार मिठाई की दुकान पर खड़ा ग्राहक मिठाइयों को लेकर कंफ्यूज रहता है उसी प्रकार सोनू की स्थिति थी सुगना के खजाने को वह जी भर कर देखना चाह रहा था पर नज़रें इधर-उधर फिसल रही थी।

सोनू अभी सुगना को निहार ही रहा था तभी सुगना बोल पड़ी

“ का देखे लगले कुछ बतावत रहले हा ऊ खुशबू के बारे में.”

सोनू घुटनों के बल बैठ गया.. उसने अपना सर नीचे किया और सुगना के अलता लगे खूबसूरत पैरों की तरफ अपना सर ले जाने लगा एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे वह उसके पैरों पर अपना कर रख रहा हो।

शायद सुगना इसके लिए तैयार न थी उसने झुक कर सोनू को पकड़ने की कोशिश की पर तब तक सोनू के होंठ सुगना के पंजों को चूम चुके थे।

लहंगे के भीतर से आ रही इत्र की खुशबू सोनू के नथुनों में पढ़ चुकी थी।

सोनू अपना सर उठाता गया और इत्र की खुशबू के स्रोत को ढूंढता गया। सुगना का लहंगा सोनू के सर के साथ-साथ ऊपर उठ रहा था न जाने क्यों सुगना यंत्रवत खड़ी थी। सोनू लगातार सुगना के पैरों को चूमें जा रहा था.. घुटनों के ऊपर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जवाब दे गया। उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ यदि वह सोनू को नहीं रोकती तो काम रस की बूंदे उसकी प्यासी बर से छलक कर टपक पड़ती। वह एक कदम पीछे हटी और लहंगे ने वापस नीचे गिर कर उसके खूबसूरत पैरों को ढक लिया।

सोनू को यह यह नागवार गुजरा उसने आश्चर्य से सुगना की तरफ देखा। कितना तारतम्य था सुगना और सोनू में सुगना ने सोनू के मनोभाव को ताड़ लिया और अपनी सरल मुस्कान से उसकी तरफ देखते हुए बोला

“ना पहचानले नू?”

सोनू के मन में उपजा गुस्सा तुरंत शांत हो गया..

उसने लहंगे के ऊपर से ही सुगना की जांघों को सूंघते हुए बोला

“दीदी ये वही खुशबू ह जब तू रतन जीजा के साथ पूजा करे के समय लगवले रहलू “

“तब से बहुत बदमाश बाड़े ओ समय भी तू यही सूंघत रहले”

सोनू शर्मा गया। …पर अब सुगना और सोनू के बीच शर्म की दीवार हट रही थी।

“तू पहले भी अप्सरा जैसन रहलू मन तो बहुत करत रहे पर डर लागत रहे”

“का मन करत रहे?” सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को छेड़ा.

सोनू अचानक उठ खड़ा हुआ और सुगना को अपनी बाहों में भरते हुए उसके होठों को चूम लिया और अपने बदन से सटाए हुए सुगना को सोनू पूरी तरह आलिंगन में भर चुका था उसकी हथेलियां सुगना की पीठ से होते हुए नितंबों की तरफ बढ़ रही थी।

सुगना खिले हुए फूलों की तरह दमक रही थी परंतु सोनू शायद उतना फ्रेश महसूस नहीं कर रहा था अचानक उसने कहा…

“दीदी 1 मिनट रुक तनी हम भी नहा ली”

सुगना ने उसे नहीं रोका उसने तुरंत ही सरयू सिंह की एक धोती लाकर सोनू को दी और कुछ ही पलों में सोनू वह धोती पहनकर आंगन में लगे हैंड पंप पर आ गया।

सोनू का गठीला बदन हल्की धूप में चमक रहा था। धोती को अपनी जांघों पर लपेटे सोनू हैंड पंप चलाकर बाल्टी में पानी भर रहा था।

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।

अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया…

शेष अगले भाग में…
Exquisite bhai. Baar baar padhne layak episode,.
 

rajeev13

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मुझे यह आश्चर्य होता है की कई सारे पाठककहानी पढ़ते तो है परअपनी प्रतिक्रिया देने सेबचते रहते हैं जो कदापि उचित नहीं है यह कहानीएक दूसरे के मनोरंजन के लिए लिखी जा रही है यदि पाठक इसी प्रकार निष्क्रिय पड़े रहेंगे तो इस कहानी को लिखने का कोई मतलब नहीं है।
कहानी के बारे में अपने सुझाव औरराय जरूर रखें क्या गलत है क्या सही क्या होना चाहिए इस बारे में भी आप अपने विस्तृत विचार रख सकते हैं। कुछ लिखने लायक नहीं है तो कृपया इस कहानी से संबंधित कोई फोटोग्राफी चिपकाए पर इस तरह शांत नहीं रहेएपिसोड भेजे जा रहे हैं कुछ समय लग सकता है इंतजार करें

कुछ पुराने पाठक तभी दिखाई पड़ते हैं जब स्पेशल एपिसोड की बारी आती है बाकी समय वह भीसाइलेंट पड़े रहते है यह उचितनहीं है नए पाठकों काहार्दिक स्वागत है
मैंने तो अपने विचार साझा किए है, आपसे उत्तर की अपेक्षा है !

और अगर संभव हो तो मुझे भी स्पेशल एपिसोड भेजने की कृपा करे शायद उसमे कुछ वैसा हो, जो आपने यहां अब तक नहीं लिखा हो!
 
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